बहुत सी कहावतें किसी लघु कथा पर आधारित हैं. सयाने लोग कोई छोटी मोटी शिक्षाप्रद कहानी सुना कर एक वाक्य में आम लोगों को यह बताते हैं कि उस कहानी से समाज को क्या शिक्षा मिलती है. वह कथन एक कहावत के रूप में प्रचलित हो जाता है. जब हम वह कहावत बोलते हैं तो उस कथा का पूरा प्रसंग और सन्दर्भ उस में समाहित हो जाता है. यहाँ पर ऐसी कुछ कहानियां दी जा रही हैं –
- अंगूर खट्टे हैं
- अंडे सेवे कोई, बच्चे लेवे कोई
- अंधे और हाथी
- अंधेर नगरी चौपट राजा
- अक्ल के पोपट ज्ञान कहाँ पाए, पानी में भिगो के काहे न खाए
- अक्कल अपनी ही आड़ी आवे
- अगाड़ी तुम्हारी, पिछाड़ी हमारी
- अतिशय लोभ न कीजिए लोभ पाप की धार
- अतिसय लोभ बकुल ने कीन्हा, छन में प्राण केकड़ा लीन्हा
- अन्ते मति सो गति
- अपनी अपनी खाल में सब मस्त
- अपने किए का क्या इलाज
- अपने अपने भाग से खाते हैं सब कोय
- अभी दिल्ली दूर है
- अमर सिंह को मरते देखा, धनपत मांगें भीख, लछमी कंडा बीनतीं, इसे नाम छुछइयाँ ठीक
- अल्लाह का घर सब जगह है
- आँखों की सुइयाँ निकालना बाकी है
- आई थी बिल्ली, पूँछ थी गीली
- आखिर ऐसे कब तक, जब तक चले तब तक
- आगी होती तो का पाहुनो मूंछें लैकें चलो जातो
- आज नहीं कल
- आधी छोड़ सारी को धावे, आधी मिले न सारी पावे (आधी छोड़ एक नै धावै, बाकी आधी मुंह से जावै)
- आन का दाना तान के खाना, मर जाना परवाह नहीं
- आनक धंधा आन करे, आंड दबे से बांदर मरे
- आपके नौकर हैं, न कि बैंगनों के
- आप से आवे तो आने दे
- आप ही की जूतियों का सदका है
- आया कुत्ता खा गया तू बैठी ढोल बजा
- आला दे निवाला
- इक्के-दुक्के का अल्ला बेली
- इनको भी लिखो
- इस मुर्दे का पीला पाँव, के पीछे पीछे तुम भी आओ
- ई नहिं बूझो डाक निबुद्धि, नासे काल बिनासे बुद्धि
- ईश्वर जो करता है अच्छा ही करता है
- ऊँचे चढ़ चढ़ देखा तो घर-घर वो ही लेखा
- ऊंट के गले में बिल्ली
- ऊपर बरछी नीचे कुआँ, तासे बानिया फारखत हुआ
- ऊपर से बाबाजी दीखे, नीचे खोज गधे का
- एक की सैर, दो का तमाशा, तीन का पिटना, चार का स्यापा
- एक न शुद दो शुद
- एक नकटा सौ को नकटा करे
- एक से दो भले
- एक ही साड़ी में नौ रे नौ, कहे सुने न मनियो रीस, तोहे लगा के पूरे बीस
- ऐसो बनिज साहु न करै, दानो खिलाय लीद घर भरै
- औसत मेरा ज्यों का त्यों, कुनबा मेरा डूबा क्यों
- औसर चूकी डोमनी, गावे ताल बेताल
- ककड़ी के चोर को फांसी नहीं दी जाती
- कमरिया छोड़े तब तो हम छोड़ें
- कर तो डर, न कर तो खुदा के गज़ब से डर
- करम में लिख्या कंकर तो के करै शिवशंकर
- करा तो लीं पर ढकेगा कौन
- कलयुग में झूठ ही फले
- कहूँ तो माँ मार खाय, न कहूँ तो बाप कुत्ता खाय
- काग पढ़ायो पीन्जरो. पढ़ गया चारों वेद, समझायो समझे नहीं, रहयो ढेढ को ढेढ
- काटना छोड़ दिया तो फुंकारते तो जाओ (काटबो छोड़ दओ तो फुंकारत तौ जाओ)
- काली भली न सेत, दोनहूँ मारो एकहि खेत
- काशी दुर्लभ ज्ञान पुंज, विश्वनाथ को धाम, मुअले पे गंगा मिले जीते लंगड़ा आम
- किसान चाहे वर्षा, कुम्हार चाहे सूखा
- कुआँ बेचा है कुएं का पानी नहीं बेचा
- कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना
- कुमानुस कहें काको, ससुराल में बसे बाको
- केसव केसन अस करी, जो अरिहू न कराहिं, मधुर वचन मृग लोचनी, बाबा कहि कहि जाहिं
- कौवा कान ले गया
- कौन कहे राजा जी नंगे हैं
- क्या कहूँ कछु कहा न जाए, बिन कहे भी रहा न जाए
- क्या खुदा तेरी खुदाई, मारनी थी गधी मर गई गाइ
- खुदा की खुदाई को कौन जानता है
- खुदा ने गंजे को नाख़ून नहीं दिए हैं
- खूँटी हार लील गई
- खोदा पहाड़ निकली चुहिया
- गंगा जी के घाट पर बामन वचन प्रमान, गंगा जी को रेत को तू चंदन कर के मान
- गले पड़ी बाजे है
- गाड़ी कुत्ते के बल नहीं चलती
- गिने गिनाए नौ के नौ
- गीदड़ पट्टा
- गोनू झा की बिल्ली
- घर का घर में ही सुलट लिया
- घर का भेदी लंका ढावे
- घर जल गया, तब चूड़ियां पूछीं
- घर में जनाना पैर तो पड़ा
- घोड़ी के सींग थे
- चलत फिरत धन पाइए, बैठे पावे कौन
- चातुर तो बैरी भलो, मूरख भलो न मीत (बुद्धिमान शत्रु से मूर्ख मित्र अधिक खतरनाक होता है)
- चील रंग सब कोई, सियारी रंग कोई ना (चील्हो रंग सब कोय सियारो रंग कोय न)
- चोर की दाढ़ी में तिनका.
- चोर चोरी से जाए, हेराफेरी से न जाए
- चोरी तो चोरी है हीरे की हो या खीरे की
- छोड़ झाड़, मुझे डूबन दे
- जग जीता मोरी कानी, वर ठाढ़ होय तब जानी
- जब किस्मत मारे जोर, तब खेत निराएं चोर
- जले पांव की बिल्ली
- जहां काम आवे सुई, कहा करे तलवार
- जा को रखवाल गोपाल धनी, ता को बलदाऊ कहा करिहैं
- जिन पायन पनही नहीं, उन्हें देत गजराज, विष देते विषया मिले, साहब गरीब नवाज
- जिस की लाठी उस की भैंस
- जिसका काम उसी को साजे, और करे तो डंडा बाजे
- जीभ की सी कहूँ या तलवे की सी
- जुलाहा क्या जाने जौ की कटाई
- जैसा दिया वैसा पाया
- जैसा देवे वैसा पावे, पूत भतार के आगे आवे
- जैसे को तैसा मिला, मिली खीर में खाँड़, तू जात की बेड़नी, मैं जात का भाँड़
- जैसे को तैसा मिले सुन रे राजा भील, लोहे को चूहा खा गया लड़का ले गई चील
- जो जैसी करनी करे सो तैसो फल पाए, बेटी पहुँची राजमहल साधु बंदरा खाए
- जो तुम्हें कह गया, वह मुझे भी कह गया
- जो नंगी नाचै, सोई पूतै खाय
- जो बोले सो घी को जाय
- टके वाली का बालक झुनझुना बजायेगा
- टेढ़ी खीर
- ठीकरा हाथ में और उसमें बहत्तर छेद
- ढपोर शंख
- तबेले की बला बंदर के सर
- तसलवा तोर कि मोर (तसला तेरा है या मेरा)
- तिरिया तेल, हमीर हठ, चढ़ै न दूजी बार
- तिरिया से राज छिपे न छिपाए
- तीन में न तेरह में
- तीन में न तेरा में मृदंग बजावें डेरा में
- तुझे हुकहुकी आवे तो मुझे डुबडुबी आवे
- तुम तो मुझे छेड़ोगे
- तू खेला आन से, हम खेली मान से, कुत्ता खेला पिसान से
- तेरा तो घड़ा ही फूटा, मेरा तो बना बनाया घर ही ढह गया
- तेल देखो, तेल की धार देखो
- दगा किसी का सगा नहीं, कर के देखो भाई
- दस पाँच लड़के एक संतोस, गदहा मारे कबहूँ न दोस
- दूध का दूध और पानी का पानी
- देख तिरिया के चाले, सिर मुंडा मुंह काले, देख मर्दों की फेरी, मां तेरी कि मेरी
- देखना है, ऊंट किस करवट बैठता है
- दो लड़ें तीसरा ले उड़े
- न चलनी में पानी आएगा, न चोकर की रस्सी बनेगी
- नदी किनारे दी है साखी, सोलह में तीन दिए तेरह बाकी
- ना बात बिरानी कैये, ना ऐंचा तानी सैये
- ना बेटा न बेटी, बेट होए
- नकलची बन्दर
- नित चंदन, नित पानी, सालिगराम धुल गये तब जानी
- निन्यानवे के फेर में जो पड़ा वो दीन दुनिया से गया
- नौ सौ चूहे खाय बिलाई बैठी तप पे
- पंडित जी ने कौआ हग दिया
- पजामे का कोई जिकर नहीं
- पढ़ाया लिखाया बेटा वानर हो गया
- पढ़े तो हैं पर गुने नहीं
- पहले आप पहले आप में गाड़ी छूटी (तकल्लुफ़ में है तकलीफ़ सरासर)
- पार उतरूं तो बकरा दूँ
- पाप का बाप लोभ
- पुराना सो सयाना
- फ़ारस गए फ़ारसी पढ़ आए बोले वहीं की बानी, आब आब कह पुतुआ मर गए खटिया तरे धरो रहो पानी
- बंद है मुठ्ठी तो लाख की, खुल गई तो फिर ख़ाक की.
- बकरी खाए न खाए पर मुँह तो जरूर मारे
- बड़गांव की भागवत शुरू ही से (बड़गाँव के भागवत जरिये से)
- बड़न की बात बड़े पहचाना
- बराबरी से कीजिए, ब्याह बैर अरु प्रीत
- बहन बत्तीस तो भाई छत्तीस
- बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे
- बिलइया अपनो एक दाँव तो छिपा राखत (बिल्ली वाली चाल तो सिखलाई ही नहीं)
- बीननहारी बीन कपास, तेरी मेरी एक ही सास
- बीरबल की खिचड़ी
- बीरबल लाओ ऐसा नर, पीर बाबर्ची भिश्ती खर
- बैरी लायो गेह में, किया कुटुम पर रोस, आप कमाया कामड़ा, दई न दीजे दोस
- भय बिनु होहिं न प्रीत
- भागते चोर की लंगोटी ही भली
- भूत न मारे, मारे भय
- भेड़िया आया, भेड़िया आया
- मत चूको चौहान
- मन चंगा तो कठौती में गंगा
- मनुज बली नहिं होत है समय होत बलवान
- माया तू है सुलक्खनी
- मार के आगे भूत भी भागते हैं
- मियां की दाढ़ी वाहवाही में गई
- मियाँ बीबी राजी तो क्या करेगा काजी
- मुरगे की एक ही टांग थी
- मूरख का माल खुशामद से खाइए
- मूरख मिले मौन हो जईयो, ऊसर बीज न बईयो जी
- मेरा बैल कानून नहीं पढ़ा है
- मेरी एक आंख फूटे कोई गम नहीं, पडोसी की दोनों फूटनी चाहिए
- यही तो बीमारी थी
- राजा के दरबार में रोता जाए वो भी मार खाए, हँसता जाए वो भी मारा जाए (राजा के हुआ बेटा, राजा का मरा बाप, न हंसते बने, न रोते बने)
- राजा नल पर विपदा पड़ी, भूनी मछली जल में तिरी
- रुपये को रूपया खींचता है (रुपया देख के रुपया आवेला)
- रोग का घर खांसी, लड़ाई का घर हाँसी
- रौन गौरई की कुतिया
- ला साले मेरी चने की दाल
- लाल किताब उठ बोली यों, तेली बैल लड़ाया क्यों, खिला खिला कर किया मुसंड, बैल का बैल और दंड का दंड
- लाल बुझक्कड़ बूझिए और न बूझा कोय, कड़ी बरंगा टार के ऊपर ही को लेय
- लाल बुझक्कड़ बूझिए और न बूझा कोय, हो न हो अल्लाह की सुरमादानी होय
- लाल बुझक्कड़ बूझिए, और न बूझा कोय; पाँव में चाकी बाँध के, हिरना कूदा होय
- लाला जी तोर बतिया कहि देब
- वह पानी मुल्तान गया
- विद्या पढ़ी संजीवनी, निकले मति से हीन, ऐसे निर्बुद्धी जने, सिंह ने खा लये तीन
- शेर की खाल ओढ़ लेने से गधा शेर नहीं बन सकता
- शैतान भी लडकों से पनाह मांगता है
- सतलड़ी मिलने ही वाली है
- सत्तू मनभत्तू जब घोले तब खइबे तब जइबे, धान बिचारे भल्ले कूटे खाए चल्ले
- सब से न्यारा बाल हठ
- समझने वाले की मौत है
- सयाना आदमी लीक नहीं पीटता
- सहरी खाये सो रोजा रक्खे
- सहरी भी न खाऊं तो काफ़िर न हो जाऊं
- सांच को आँच नहीं
- सांची कहें तो मौसी का काजल
- सावन में गधा उदासा
- सास मर गई, तूम्बे में आत्मा
- सींख सड़प्पे तो लाला जी के साथ गए, अब तो देखो और खाओ
- सीख उसी को दीजिए, जा को सीख सुहाए
- सुख मानो तो सुक्ख है, दुख मानो तो दुक्ख
- सुन रे ढोल, बहू के बोल
- सुनार अपनी माँ की नथ में से भी चुराता है
- सोने के अंडे देने वाली मुर्गी का पेट न फाड़ो
- सोने वाले की भैंस तो पाड़ा ही जनेगी
- सौ का भाई साठ
- सौ बार चोर की, एक बार शाह की
- सौ सयाने एक मत
- हंसा थे सो उड़ गए कागा भये दिवान
- हमारे साथ रहोगे तो मजे में रहोगे
- हाथी खरीदना आसान है पर पालना मुश्किल
- हिजड़ों ने भला कभी काफिला लूटा है
- होय भिन्सार बड़ी बिल खोदब