एक बार कबीर दास रैदासजी के पास सत्संग हेतु पहुंचे और पीने के लिए पानी माँगा. रैदास जी ने तुरंत चमड़ा भिगोने की कठौती से थोड़ा सा पानी दे दिया. कबीर दास जी ने सोचा कि मना करेंगे तो रैदासजी का अपमान होगा. लिहाजा पानी को इस प्रकार लिया कि सारा पानी हथेलियों से होता हुआ नीचे गिरा दिया. मुंह में एक बूंद भी नहीं जाने दी.घर लौट कर कबीर दास जी ने अंगरखी खोल धोने के लिए अपनी पुत्री कमाली को दे दी. अंगरखी में कोई दाग छूट नहीं रहा था तो कमाली कपड़े को दातों से चूस कर दाग छुड़ाने लगी, पानी का कुछ अंश मुंह में जाते हि कमाली त्रिकालदर्शी हो गई. कुछ समय बाद कमाली अपने ससुराल मुल्तान चली गई. एक दिन कबीर दास जी अपने गुरु रामानंद जी के साथ कहीं जा रहे थे. बीच में कमाली की ससुराल पड़ी. दोनों कमाली के घर पहुंचे तो यह देखकर आश्चर्य में पड़ गए कि कमाली ने दोनों के लिए भोजन तैयार कर के दो आसन लगा रखे थे. गुरु जी के पूछने पर कमाली ने अंगरखी वाली पूरी घटना सुना दी. अब तो कबीरदास अपनी अल्पज्ञता पर बहुत पछताये. वे लौटकर रैदासजी के पास पहुंचे और फिर से पानी पिलाने का आग्रह किया. रैदासजी पूरी घटना जान चुके थे, कहने लगे – पाया था तो पिया नहीं, जब मन में अभिमान किया, अब पछताए होत क्या, वह पानी मुल्तान गया.
वह पानी मुल्तान गया
19
Jun