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अं       आंआँआ       ई                   

      ग                                           

                                                      ह     क्षत्रज्ञ

अं

अंधेरी रात और साथ में रंडुआ. किसी भी स्त्री के लिए खतरनाक स्थिति. रंडुआ – अविवाहित या विधुर पुरुष.

अंग लगी मक्खियाँ पीछा न छोड़तीं. जो लोग कोई लाभ पाने के लिए किसी के पीछे ही पड़ जाएं उन के लिए.

अंगिया का ही ओढ़ना, अंगिया का ही बिछौना. अत्यधिक निर्धनता.

अंगिया फटी क्या देखे, बेटी तो दौराले की. दौराला – मेरठ का एक कस्बा. साधन सम्पन्न न होते हुए भी अकड़ में रहना.

अंगूर खट्टे हैं. लोमड़ी और अंगूर की कहानी सबने सुनी होगी. लोमड़ी ने एक बार बेल में लटका हुआ अंगूर का गुच्छा देखा. उस के मुँह में पानी आ गया. उसने बहुत कोशिश की पर उन अंगूरों तक नहीं पहुँच सकी. अंत में यह कह कर कि अंगूर खट्टे हैं वह वहां से चली गई. जब कोई व्यक्ति अपनी पहुँच से बाहर की चीज़ को खराब बताता है तो यह कहावत कही जाती है. इस तरह की एक और कहावत है – हाथ न पहुंचे, थू कौड़ी.

अंग्रेजी राज, न तन को कपड़ा न पेट को नाज. अंग्रेजों के राज में भारतीयों की दशा बहुत खराब थी.

अंटी तर, दिल चाहे सो कर. पास में पैसा हो तो जो चाहे सो करो.

अंटी में न धेला, देखन चली मेला. पहले के लोग धोती या पाजामा पहनते थे जिसमे जेब नहीं होती थी. पैसे इत्यादि को एक छोटी सी थैली में रख कर धोती की फेंट में बाँध लेते थे या पजामे में खोंस लेते थे. इसको बोलचाल की भाषा में अंटी कहते थे. धेला एक सिक्का होता था जो कि पैसे से आधी कीमत का होता था. कहावत का अर्थ है – रुपये पैसे पास नहीं हैं फिर भी तरह तरह के शौक सूझ रहे हैं.

अंडा चींटी बाहर लावै, घर भागो अब वर्षा आवै. चींटी अगर अपना अंडा बिल में से बाहर ला रही हो तो वर्षा आने की अत्यधिक संभावना होती है.

अंडा सिखावे बच्चे को कि चीं चीं न कर. जब कोई आयु, बुद्धि या पद में छोटा व्यक्ति अपने से बड़े व बुद्धिमान व्यक्ति को कोई अनावश्यक सीख देता है तो यह कहावत कही जाती है.

अंडुवा बैल, जी का जवाल. स्वतंत्र और उच्छृंखल व्यक्ति को सांड के समान बताया गया है जिसे संभालना मुश्किल काम होता है. (अंडुवा – बिना बधियाया हुआ बैल अर्थात सांड). सांड से खेती नहीं कराई जा सकती इस लिए बछड़े के अंडकोष नष्ट कर के उसे बैल बना दिया जाता है जोकि नपुंसक और शांत स्वभाव का होता है). 

अंडे सेवे कोई, बच्चे लेवे कोई. जब मेहनत कोई और करे और उसका लाभ कोई दूसरा उठाए तो यह कहावत कही जाती है. इस कहावत को समझने के लिए कौए और कोयल की कहानी समझनी पड़ेगी. कोयल इतनी चालाक होती है कि कौए के घोंसले में अंडे दे आती है. कौआ बेचारा उन्हें अपने अंडे समझ कर सेता है. अंडे में से बच्चे निकलते हैं तो मालूम होता है कि वे कोयल के बच्चे हैं.

अंडे होंगे तो बच्चे बहुतेरे हो जाएंगे. इसका शाब्दिक अर्थ तो स्पष्ट ही है. इस का उदाहरण इस तरह दे सकते हैं- किसी व्यापार में बहुत नुकसान होता है लेकिन व्यापार बंद करने की नौबत नहीं आती. तो सयाने लोग बच्चों से कहते हैं – बेटा कोई बात नहीं! व्यापार बचा रहेगा तो बाद में बहुतेरा लाभ हो जाएगा.

अंत बुरे का बुरा. जो हमेशा सब का बुरा करता है उसका अंत भी बुरा ही होता है.

अंत भला तो सब भला. किसी कार्य में कितने भी उतार चढ़ाव या बाधाएं आएं, यदि अंत में कार्य सफलता पूर्वक संपन्न हो जाए तो यह कहावत कही जाती है. इंग्लिश में इसे इस प्रकार कहा जाता है All is well that ends well.

अंत भले का भला. जो सब का भला करता है अंत में उसका भला अवश्य होता है.

अंतड़ी का गोश्त गोश्त नहीं, खुशामदी दोस्त दोस्त नहीं. जिस प्रकार आंत को गोश्त नहीं माना जाता उसी प्रकार खुशामद करने वाले को दोस्त नहीं माना जा सकता.

अंतड़ी में रूप, बकची में छब. भोजन आँतों में पचता है इसलिए कहा गया की अच्छा भोजन करने से रूप निखरता है और अच्छे कपड़े और गहने बक्से (बकची) में रखे जाते हैं इसलिए कहा गया कि सुन्दरता बकची में है.

अंतर अंगुली चार का झूठ सांच में होय. आँख और कान में चार अंगुल की दूरी होती है. आँख का देखा सच और कान का सुना झूठ. इंग्लिश में कहावत है – The eyes believe themselves, the ears believe others.

अंतर राखे जो मिले, तासों मिले बलाय. जो मन में अंतर रखता हो उस से मिलने की कोई जरूरत नहीं.

अंदर से काले, बाहर से गोरे. जो लोग अंदर से बेईमान और चरित्रहीन होते हैं और बाहर से बहुत ईमानदार होने का दिखावा करते हैं (सफेदपोश).

अंदर होवे सांच तो कोठी चढ़ के नाच. जिस के मन में सच हो उसे किसी का डर नहीं, वह छत पर चढ़ कर नाच सकता है. कोठी, कोठा – छत.

अंध कंध चढ़ि पंगु ज्यों, सबै सुधारत काज. पंगु – लंगड़ा. अंधा देख नहीं सकता और लंगड़ा चल नहीं सकता. यदि अंधे के कंधे पर लंगड़ा बैठ जाए तो दोनों एक दूसरे के पूरक हो जाते हैं.

अंधरी गैया, धरम रखवाली. अंधी गाय धर्म की रक्षा करने वाली होती है, अर्थात उसकी सेवा से विशेष पुण्य मिलता है. भाव यह है कि जो अत्यधिक दीन-हीन हो उसकी सेवा अवश्य करनी चाहिए. 

अंधा आगे ढोल बाजै, ये डमडमी क्या है. अंधे के आगे ढोल बजाओ तो वह कुछ नहीं समझ पाता. इसी प्रकार अज्ञानी व्यक्ति भी सामाजिक कार्यों और प्रकृति के क्रिया कलापों से अनभिज्ञ रहता है.

अंधा आगे रस्सी बंटे, पीछे बछड़ा खाए. अंधा आदमी बेचारा बैठा बैठा रस्सी बंट रहा है और पीछे से बछड़ा उसे खाता जा रहा है. सरकार अंधी हो तो जन हित के कामों का यही अंजाम होता है. 

अंधा एक बार ही लकड़ी खोता है. अंधे की लकड़ी अगर खो जाए तो उसे इतनी परेशानी होती है कि वह आगे से उसका बहुत ध्यान रखता है. तात्पर्य है कि कोई बड़ी गलती एक बार हो जाने पर व्यक्ति आगे के लिए विशेष रूप से सतर्क हो जाता है. 

अंधा और बदमिजाज. अंधा व्यक्ति काफी कुछ दूसरों की सहायता पर निर्भर होता है इसलिए उसे विनम्र होना चाहिए. यदि वह बदमिजाज होगा तो कोई उस की सहायता क्यों करेगा.

अंधा कहे ये जग अंधा. किसी व्यक्ति में कोई कमी हो और वह बहस करे कि यह कमी तो सब में है.

अंधा किसकी तरफ उंगली उठाए. अंधा खुद कुछ नहीं देख सकता इसलिए किसी पर आरोप नहीं लगा सकता.

अंधा क्या चाहे दो आँखे. अंधे व्यक्ति की सबसे बड़ी इच्छा होती है की उसे दो आँखें मिल जाएं. व्यक्ति को जिस चीज़ की अत्यधिक आवश्यकता है यदि वही देने के लिए आप उससे पूछें तो यह कहावत कही जाएगी.

अंधा क्या जाने बसंत की बहार. वसंत ऋतु में प्रकृति का सौंदर्य अद्भुत होता है, पर जो बेचारा अंधा है वह तो उसका आनंद नहीं ले सकता. श्री कृष्ण की बाल लीलाओं के वर्णन में जो रस की प्राप्ति होती है उसे अधर्मी और विधर्मी लोग कैसे जान सकते हैं.

अंधा गाए बहरा बजाए. जहाँ दो अयोग्य व्यक्ति मिल कर कोई काम करें.

अंधा गुरू बहरा चेला, मागें गुड़ देवे धेला (मांगे हरड़ दे बहेड़ा). न गुरु को चेले में कोई कमी दिखती है, न चेले को गुरु की कोई बात समझ में आती है और दोनों एक से बढ़ कर एक हैं. 

अंधा घोड़ा थोथा चना, जितना खिलाओ उतना घना. गरीब और अपाहिज व्यक्ति को जो कुछ भी मिल जाए वही उस के लिए बहुत है.

अंधा घोड़ा बहिर सवार, दे परमेसुर ढूँढ़नहार. घोड़ा अंधा होगा तो कहां का कहां पहुंचेगा, सवार बहरा होगा तो किसी से रास्ता कैसे पूछेगा, ऐसी जोड़ी की तो भगवान ही सहायता कर सकता है. 

अंधा चूहा, थोथे धान. चूहा यदि अँधा होगा तो उसे खोखले धान ही खाने को मिलेंगे. योग्य या असहाय व्यक्ति को घटिया चीज़ से ही काम चलाना पड़ता है. 

अंधा जाने अंधे की बला जाने. माना कि अंधे व्यक्ति को बहुत परेशानियाँ हैं लेकिन मैं भी किस किस के लिए और कहाँ तक परेशान होऊं. जिस को परेशानी है वही निबटे.

अंधा जाने आँखों की सार. आँखों की कीमत क्या है यह अंधा ही जान सकता है. व्यक्ति को जो सुख सुविधाएँ मिली हुई हैं उनकी कीमत वह नहीं समझता.

अंधा तब पतियाए जब दो आँखें पाए. अंधा व्यक्ति किसी बात पर तभी पूरी तरह विश्वास कर सकता है जब वह स्वयं उसे देख ले, अर्थात वह संतुष्ट तभी होगा जब उसे दो आँखें मिल जाएं. पतियाना – विश्वास करना 

अंधा देखे आरसी, कानी काजल देय. अपात्र को कोई वस्तु मिल जाना. अंधे के लिए आरसी (छोटा दर्पण) और कानी के लिए काजल की कोई उपयोगिता नहीं है.

अंधा बगुला कीचड़ खाय. मजबूरी में इंसान को बहुत कुछ सहन करना पड़ता है. अंधा बगुला मछली नहीं पकड़ सकता इसलिए बेचारा कीचड़ खाने पर मजबूर हो जाता है.

अंधा बजाज कपड़ा तौल कर देखे. अंधा बजाज कपड़े को देख नहीं सकता तो हाथ में उठा कर उसके वजन से अंदाज़ लगाता है कि यह कौन सा कपड़ा है.

अंधा बांटे रेवड़ी फिर फिर अपनेहु देय. स्वार्थ में अंधा व्यक्ति जब कुछ भी बांटता है तो अपने को या अपनों को ही देता है.

अंधा मुर्गा थोथा धान, जैसा नाई वैसा जजमान. अंधे मुर्गे को खोखले धान ही खाने को मिलेंगे. नाई घटिया होगा तो उसे जजमान भी घटिया मिलेंगे.

अंधा मुल्ला, टूटी मस्जिद. मुल्ला जी अंधे होंगे तो मस्जिद में जो भी टूट फूट होगी उसे दिखाई नहीं देगी. यदि घर का मुखिया अयोग्य और लापरवाह है तो घर में सब ओर अव्यवस्था दिखाई देगी.

अंधा राजा बहिर पतुरिया, नाचे जा सारी रात. पतुरिया – वैश्या या नर्तकी. भारी अव्यवस्था की स्थिति. राजा अंधा है उसे कुछ दिखता नहीं है और नर्तकी बहरी है वह न संगीत सुन सकती है और न कोई आदेश. लोकतंत्र में विधायिका और कार्यपालिका की कुछ ऐसी ही दशा है.

अंधा शक्की, बहरा बहिश्ती. बहिश्त माने स्वर्ग. बहरे को बहिश्ती कहा गया क्योंकि वह कुछ सुनता ही नहीं है, लिहाजा भलाई बुराई से दूर रहता है. अंधे को कुछ दिखाई नहीं देता इसलिए वह हर आहट पर शक करता है. 

अंधा सिपाही कानी घोड़ी, विधि ने खूब मिलाई जोड़ी. दो अयोग्य व्यक्ति मिल कर कोई काम कर रहे हों तो उन का मज़ाक उड़ाने के लिए यह कहा जाता है.

अंधा हाथी अपनी ही फ़ौज को मारे (लेंड़ा हाथी अपनी ही फ़ौज मारे). हाथी अंधा होगा या डरपोक होगा तो इधर उधर भाग कर अपनी सेना को ही कुचलेगा. 

अंधाधुंध की सायबी, घटाटोप को राज. सायबी – शासन. मूर्ख राजा के राज में कुटिल लोगों की बन आती है.

अंधाधुंध के राज में गधे पंजीरी खाएँ. जिस देश में बेईमानी और अराजकता हो वहाँ अयोग्य व्यक्तिओं की चांदी हो जाती है. 

अंधाधुंध मनोहरा गाए. बिना किसी की परवाह किए कोई बेतुका काम करते जाना.

अंधियारे में परछाईं भी साथ छोड़ देती है. बुरे दिनों में निकट संबंधी भी साथ नहीं देते.

अंधी आँख में काजल सोहे, लंगड़े पाँव में जूता. अपात्र को सुविधाएं मिलना.

अंधी घोड़ी खोखला चना, खावे थोड़ा बिखेरे घना.  घोड़ी अंधी है इसलिए खा कम रही है, बिखेर ज्यादा रही है. (मूर्ख या अहंकारी व्यक्ति वस्तु का उपयोग कम और बर्बादी अधिक करता है).

अंधी देवियाँ, लूले पुजारी. अयोग्य गुरु या शासक और उसके उतने ही नालायक चमचे. आजकल के परिप्रेक्ष्य में कुछ राजनैतिक दलों के विषय में ऐसा कहा जा सकता है.

अंधी नाइन, आइने की तलाश. कोई आदमी ऐसी चीज़ मांग रहा हो जिस का उस के लिए कोई उपयोग न हो.

अंधी पीसे कुत्ते खाएँ. चाहे घर की व्यवस्था हो या व्यापार हो, यदि आप आँखें बंद किए रहंगे तो चाटुकार लोग, धोखेबाज लोग और नौकर चाकर सब खा जाएंगे.

अंधी पीसे पीसना, कूकुर घुस घुस खात, जैसे मूरख जनों का, धन अहमक ले जात. ऊपर वाली कहावत की भांति.

अंधी भैंस वरूँ में चरे. वरूँ – जहां घास कम हो. मूर्ख या अभागे आदमी को अच्छे अवसरों की पहचान नहीं होती इसलिए वह उनसे वंचित रहता है. 

अंधी मां निज पूतों का मुँह कभी न देखे. किसी अभागे व्यक्ति के लिए. 

अंधे अंधा ठेलिया दोनों कूप पड़ंत (अंधे को अंधा राह दिखाए तो दोनों कुँए में गिरते हैं). अर्थ स्पष्ट है. कम से कम एक तो आँख वाला होना चाहिए.

अंधे का हाथ कंधे पे. अंधे को हमेशा किसी का सहारा लेना पड़ता है.

अंधे की गुलेल कहीं भी लगे. अंधा गुलेल चलाएगा तो पत्थर किसी को भी लग सकता है. मूर्ख और अहंकारी व्यक्ति के हाथ में ताकत आ जाए तो वह कुछ भी नुकसान पहुँचा सकता है.

अंधे की जोरू का राम रखवाला. अत्यधिक दीन हीन व्यक्ति का ईश्वर ही सहारा होता है.

अंधे की दोस्ती, जी का जंजाल. अंधे से दोस्ती करो तो हर समय उस की सहायता करनी होती है. लाचार व्यक्ति की सहायता करने में बहुत मुसीबतें हैं. 

अंधे की पकड़ और बहरे को बटको, राम छुड़ावे तो छुटे नहीं तो सर ही पटको. बटका – दांतों की पकड़. अंधा आदमी बहुत कस के पकड़ता है और बहरा आदमी बहुत जोर से काटता है.

अंधे की बीबी देवर रखवाला. अंधे की पत्नी की रखवाली अगर किसी भी पर पुरुष को सौंप दी जाएगी (चाहे वह देवर ही क्यों न हो) तो खतरा हो सकता है.

अंधे की मक्खी राम उड़ावे. निर्बल का सहारा भगवान.

अंधे की लुगाई, जहाँ चाहे रमाई. अंधे की पत्नी यदि कोई गलत कार्य करे तो अंधा उसे रोक नहीं सकता. यहाँ अंधे से अर्थ केवल आँख के अंधे से ही नहीं, अक्ल के अंधे से भी है.

अंधे कुत्ते को खोलन ही खीर. खोलन – मूर्ति पर चढ़ाया जाने वाला दूध मिला जल. मजबूर आदमी को जो मिल जाए उसी में संतोष करना पड़ता है.

अंधे के आगे दीपक. अंधे को दीपक दिखाना या मूर्ख को ज्ञान देने का प्रयास करना बराबर है.

अंधे के आगे रोवे, अपने नैना खोवे. यदि कोई व्यक्ति बहुत परेशानी में है और किसी के आगे रो रहा है तो उसको देख कर दूसरे को दया आ जाती है और वह उसकी सहायता करने का प्रयास करता है. लेकिन यदि आप किसी अंधे के सामने रोएंगे तो उसे कुछ दिखेगा ही नहीं. आप रो रो कर अपनी ही आँखें खराब करेंगे. कहावत के द्वारा यह समझाया गया है कि ऐसे आदमी के सामने फरियाद करने से कोई फायदा नहीं जो अक्ल का अंधा हो या अहंकार में अंधा हो.

अंधे के लिए हीरा कंकर बराबर. हीरे की चमक को आँखों से ही देखा जा सकता है, टटोल कर नहीं. कहावत का अर्थ है कि अक्ल के अंधे लोग उत्तम और निम्न प्रकार के मनुष्यों और वस्तुओं में भेद नहीं कर सकते.

अंधे के हाथ बटेर लगी. अंधा व्यक्ति लाख कोशिश करे बटेर जैसे चंचल पक्षी को नहीं पकड़ सकता. अगर किसी अयोग्य व्यक्ति को बैठे बिठाए, बिना प्रयास करे कोई बड़ी चीज़ मिल जाए तो ऐसा कहते हैं.

अंधे के हाथ से लकड़ी मरने पर ही छूटती है. बहुत आवश्यक वस्तु को जीवन भर साथ रखना व्यक्ति की मजबूरी है, जैसे अंधे के लिए लकड़ी, लंगड़े के लिए बैसाखी, दृष्टि बाधित के लिए चश्मा इत्यादि. आजकल के युग में दवाओं को भी इस श्रेणी में रख सकते हैं.

अंधे के हिसाब दिन रात बराबर. शाब्दिक अर्थ स्पष्ट है. अंधे को क्योंकि दिन में भी नहीं दिखता इसलिए उसके लिए दिन और रात बराबर हैं. कोई मूर्ख व्यक्ति किन्हीं दो बिलकुल अलग अलग बातों में अंतर न समझ पा रहा हो तब भी मज़ाक में ऐसा कह सकते हैं.

अंधे को अँधेरे में बहुत दूर की सूझी. कोई मूर्ख आदमी मूर्खतापूर्ण योजना बना रहा हो तो उसका मज़ाक उड़ाने के लिए ऐसा कहा जाता है.

अंधे को अंधा मिला, कौन दिखावे राह. अंधे को अंधा रास्ता नहीं दिखा सकता. अज्ञानी मनुष्य को कोई ज्ञानवान ही रास्ता दिखा सकता है. 

अंधे को भागने की क्यों पड़ी. जो काम आप बिलकुल ही नहीं कर सकते उसे क्यों करना चाहते हैं.

अंधे को सूझे कंधेरे का घर. कंधेरा – जिस के कंधे पर हाथ रख कर चला जाए. अंधे को किसी के कंधे पर हाथ रख कर चलना पड़ता है. वह बेचारा अंधा होते हुए भी उस का घर ढूँढ़ लेता है. जिस से हमें सहारा मिलता है उसे हम कैसे भी खोज लेते हैं. 

अंधे ने चोर पकड़ा, दौड़ियो मियां लंगड़े. असंभव और हास्यास्पद बात.

अंधे मामा से काना मामा अच्छा. कुछ नहीं से कुछ अच्छा.

अंधे रसिया, आइने पे मरें. किसी व्यक्ति द्वारा ऐसी वस्तु की मांग करना जो उसके किसी उपयोग की न हों.

अंधे वाली सीध. किसी ने टेढ़ा मेढ़ा कुछ बनाया हो उस का मजाक उड़ाने के लिए.

अंधे ससुरे से घूँघट क्या. जब ससुर बहू को देख ही नहीं सकता तो बहू को घूँघट की क्या आवश्यकता.

अंधे से रास्ता क्या पूछना. जिसे स्वयं नहीं दिखता वह किसी को रास्ता क्या बताएगा. जो स्वयं मूर्ख होगा वह किसी को क्या ज्ञान देगा.

अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा. एक गुरु और चेला घूमते घूमते एक ऐसे शहर में पहुंचे जहां भाजी (सब्जी) भी टके सेर बिक रही थी और खाजा (एक बढ़िया मिठाई) भी. चेला बोला यह तो बहुत अच्छी जगह है, मैं तो यहीं रहूँगा. गुरु जी ने समझाया कि यहाँ रहना खतरे से खाली नहीं है, पर चेला नहीं माना. एक बार उस शहर में एक ककड़ी चुराने वाले को फांसी की सजा सुनाई गई. चोर की गर्दन फांसी के फंदे में फिट नहीं आई तो कोई ऐसा आदमी ढूँढा गया जिसकी गर्दन फंदे में फिट आ जाए. इत्तेफाक से चेले की गर्दन फंदे के नाप की पाई गई तो उसे फांसी देने की तैयारी कर ली गई. अब उसने गुरुजी को याद किया तो गुरुजी ने आ कर उसे बचाया. इस प्रकरण पर यह कहावत बनाई गई जिसका प्रयोग किसी देश व समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, अन्याय और अराजकता को दर्शाने के लिए किया जाता है.

अंधेरी रात में मूंग काली. अंधेरे में हरी मूंग भी काली दिखाई देती है. अज्ञान के अंधेरे में भी मनुष्य को सत्य का भान नहीं हो पाता.

अंधेरी रैन में रस्सी भी सांप. अँधेरे में व्यक्ति डरने लगता है. व्यक्ति अगर अज्ञान रूपी अन्धकार से घिरा हो तब भी वह छोटी छोटी सांसारिक विपदाओं से डरने लगता है.

अंधेरे घर में धींगर नाचें. 1. जहाँ न्याय व्यवस्था के अभाव में दबंग लोग मनमानी करें, (धींगर – लम्बा चौड़ा आदमी, भूत) 2. अवैज्ञानिक सोच और अज्ञान के अंधकार में तरह तरह के डर पैदा होते हैं.

अंधेरे घर में सांप ही सांप. इसका अर्थ भी ऊपर की दोनों कहावतों के समान ही है.

अंधेरे में भी हाथ का कौर कान में नहीं जाता. अंधेरे में भी ग्रास मुंह में ही जाता है. अपने स्वार्थ की बात हर परिस्थिति में ठीक से समझ में आती है.

अंधों की दुनिया में आइना न बेच. शाब्दिक अर्थ तो साफ़ ही है. यहाँ अंधे से अर्थ मूर्ख और अहंकारी लोगों से है. आइने में अपनी वास्तविक शक्ल दिखाई देती है जिसे मूर्ख और अहंकारी लोग देखना नहीं चाहते. यहाँ आइने से मतलब आत्म चिंतन से भी है जोकि अहंकारी लोग बिलकुल पसंद नहीं करते.

अंधों द्वारा हाथी का वर्णन. मूर्खो द्वारा किसी महान चीज़ को तुच्छ बताया जाना. एक बार चार अंधों से हाथी का वर्णन करने को कहा गया. एक अंधे ने हाथी की सूँड़ पकड़ी – वह बोला हाथी तो सांप जैसा है, दूसरे ने हाथी की पूँछ पकड़ी – वह बोला नहीं हाथी रस्सी जैसा है, तीसरे ने हाथी के पैर को टटोल कर देखा – बोला नहीं! हाथी खम्बे जैसा है, चौथे के हाथ में हाथी का कान आया – वह बोला तुम सब गलत कह रहे हो, हाथी सूप जैसा है. ऐसा कह कर वे आपस में लड़ने लगे. 

अंधों ने गांव लूटा, दौड़ियो बे लंगड़े. अनहोनी बात. कोई मूर्खता पूर्ण अतिश्योक्ति कर रहा हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.

अंधों में काना राजा. जहाँ सभी लोग मूर्ख हों वहाँ थोड़ी सी अक्ल रखने वाले व्यक्ति की पूछ हो जाती है

अकड़ी मकड़ी दूधमदार, नज़र उतर गई पल्ले पार. बच्चे की नजर उतारने के लिए.

अकरकर मकरकर, खीर में शकर कर, जितने में कुल्ला कर बैठूं, दक्षिणा की फिकर कर. यह कहावत उन ब्राह्मणों के लिए है जो उलटे सीधे मन्त्र बोलकर जल्दी जल्दी पूजा कराते हैं, और जिनका सारा ध्यान खाने पीने और दक्षिणा पर होता है.

अकल आसरे कमाई. बुद्धि के बल से ही कमाई की जा सकती है.

अकल और हेकड़ी एक साथ नहीं रह सकतीं. अक्ल मतलब समझदारी. जो आदमी समझदार होगा वह हेकड़ी कभी नहीं दिखाएगा, हमेशा विनम्र ही होगा.

अकल का अंधा गांठ का पूरा. जिसके पास पैसा काफी हो पर समझदारी न हो. ऐसे आदमी को बेबकूफ बना कर उससे पैसा ऐंठना आसान होता है.

अकल का घर बड़ी दूर है. अक्ल बड़ी मुश्किल से आती है इसलिए यह कहावत बनाई गई है.

अकल की कोताही और सब कुछ. केवल अक्ल की कमी है, बाकी सब ठीक है. 

अकल की बदहजमी. जो आदमी अपने को बहुत अधिक बुद्धिमान समझता हो उस का मजाक उड़ाने के लिए.

अकल के बोझ से मरा. जो व्यक्ति अति बुद्धिमत्ता में कोई मूर्खतापूर्ण कार्य कर दे.

अकल के लिए टके लगते हैं. अकल सेंत में नहीं मिलती. शिक्षा और अनुभव से अक्ल आती भाई. दोनों ही चीजों में पैसे खर्च होता है.

अकल तो अपनी ही काम आती है. आप की सहायता करने के लिए कितने भी लोग उपलब्ध हों जीवन में विशेष अवसरों पर अपनी बुद्धि ही काम आती है.

अकल तो आई पर खसम के मरने के बाद. काम पूरा बिगड़ने के बाद अक्ल आई.

अकल दुनिया में डेढ़ ही है, एक आप में और आधी में सारी दुनिया. (आप से अर्थ अपने से है). 1. हर आदमी अपने को बहुत अक्लमंद और दुनिया को तुच्छ समझता है. 2. अपने को बहुत अक्लमंद समझने वाले किसी व्यक्ति पर व्यंग्य.

अकल न क्यारी ऊपजे, प्रेम (हेत) न हाट बिकाय. अक्ल खेत में नहीं उगती और प्रेम बाजार में नहीं मिलता. 

अकल बड़ी के नकल. नकल कर के कोई कार्य सिद्ध नहीं किया जा सकता. बुद्धि से ही काम बनते हैं.

अकल बड़ी के भाग्य. सच यह है कि दोनों का ही महत्व है.

अकल बड़ी या भैंस. कोई मूर्ख आदमी बेबकूफी की बात कर रहा हो और अपने को बहुत अक्लमंद समझ रहा हो तो उसका मज़ाक उड़ाने के लिए इस कहावत को बोलते हैं. 

अकल बिन पूत लठेंगुर सो, लछन बिन बिटिया डेंगुर सी (बहू बिन पूत डेंगुर सी). (भोजपुरी कहावत) बुद्धि के बिना पुत्र बेकार है और सुलक्षणों के बिना पुत्री. लठेन्गुर – लकड़ी का लट्ठा, डेंगुर – पशुओं के गले में बंधा लकड़ी का टुकड़ा.

अकल मारी जाट की, रांघड़ राख़या हाली, वो उस को काम कहे, वो उस को दे गाली. (हरयाणवी कहावत) रांघड़  मुस्लिम राजपूतों की एक जाति है. किसी जाट ने रांघड़ को नौकरी पर रख लिया. जाट उससे किसी काम के लिए कहता था तो वह बदले में गाली देता था.

अकल से ही खुदा पहचाना जाए. ईश्वर किसी को दिखता नहीं है, बुद्धि के द्वारा ही महसूस किया जाता है.

अकल हाट बिके तो मूरख कौन रहे. अर्थ स्पष्ट है.

अकलमंद को इशारा ही काफी है. बुद्धिमान व्यक्ति हलके से इशारे से ही बात समझ लेता है.

अकलमन्द की दूर बला. जो बुद्धिमान होता है वह मुसीबतों से दूर रहता है.

अकलमन्द को इशारा, अहमक को फटकारा. अक्लमंद इशारे में ही समझ लेता है जबकि मूर्ख व्यक्ति को डांट कर समझाना पड़ता है. इंग्लिश में इसे इस तरह कहा गया है – A nod to the wise, rod to the foolish.

अकाल पड़े तो पीहर और ससुराल में साथ ही पड़ता है. अगर केवल ससुराल में अकाल पड़े तो स्त्री मायके में जा कर रह सकती है, लेकिन आम तौर पर अकाल दोनों जगह एक साथ पड़ता है, बेचारी कहाँ गुजारा करे. कहावत का अर्थ है कि मुसीबतें व्यक्ति को सब ओर से घेरती हैं. आजकल के लोगों को यह अंदाज़ नहीं होगा कि अकाल कितनी बड़ी आपदा होती थी.  इंग्लिश में कहावत है –Misfortunes never come alone.

अकेला खाय सो मट्टी, बाँट खाय सो गुड़. बाँट कर खाने से स्वाद बढ़ जाता है.

अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता. भाड़ एक बड़ा सा तंदूर जैसा होता है जिस में चने मक्का इत्यादि भूने जाते हैं. कहावत का शाब्दिक अर्थ यह है कि एक चने के फटने से भाड़ नहीं फूट सकता. इसको इस प्रकार से प्रयोग करते हैं कि एक आदमी अकेला ही कोई बहुत बड़ा काम नहीं कर सकता.

अकेला चले न बाट, झाड़ बैठे खाट. इस कहावत में दो सीख दी गई हैं – कहीं लम्बे रास्ते पर अकेले नहीं जाना चाहिए (अचानक कोई परेशानी आ जाए तो एक से दो भले) और खाट को हमेशा झाड़ कर ही बैठना चाहिए (खाट में कोई कीड़ा मकोड़ा, बिच्छू सांप इत्यादि हो सकता है).

अकेला पूत कमाई करे, घर करे या कचहरी करे. जहाँ एक आदमी से बहुत सारी जिम्मेदारियां निभाने की अपेक्षा की जा रही है.

अकेला पूत, मुँह में मूत (चूल्हे में मूत). अकेला बच्चा अधिक लाड़ प्यार के कारण बिगड़ जाता है.

अकेला हँसता भला न रोता भला. इकलखोरे लोगों को सीख देने के लिए यह कहावत कही गई है.

अकेला हसन, रोवे कि कबर खोदे. बेचारे हसन के किसी प्रियजन की मृत्यु हो गई है. वह अकेला रोए या कब्र खोदे. किसी व्यक्ति पर बहुत दुःख और जिम्मेदारी एक साथ आ पड़े तो.

अकेली कहानी, गुड़ से मीठी.  जब मनोरंजन के अन्य साधन नहीं थे तो कहानी नियामत हुआ करती थी.

अकेली कुतिया भौंके या रखवाली करे. एक व्यक्ति से कितने काम कराए जा सकते हैं.

अकेली दुकान वाला बनिया, मनमाने भाव सौदा बेचे. यदि किसी गाँव या शहर में एक ही व्यापारी हो तो उस का एकाधिकार हो जाता है और वह मनमानी करता है. 

अकेली लकड़ी कहाँ तक जले. कोई व्यक्ति बहुत लम्बे समय तक किसी कठिन काम को अकेले ही नहीं कर सकता.

अकेले से झमेला भला. कई लोग साथ मिल कर रहें या कोई काम करें तो थोड़ा मतभेद या झगड़ा हो सकता है लेकिन ये अकेले रहने से अच्छा है.

अकेले से दुकेला भला. खाली समय बिताना हो या कोई काम करना हो, एक से दो आदमी हमेशा बेहतर होते हैं.

अक्कल बिना ऊंट उभाणे फिरै. उभाणे – नंगे पैर. जानवर नंगे पैर क्यों घूमते है, क्योंकि वे मनुष्य के समान समझदार नहीं हैं. जो बच्चे नंगे पैर घूमते हैं उन्हें उलाहना देने के लिए बड़े लोग ऐसे बोलते हैं.

अक्ल आप ही ऊपजे, दिए न आवे सीख. समझदारी अपने आप से ही आती है सिखाने से नहीं आ सकती.

अक्ल उधार नहीं मिलती. अपनी अक्ल से ही काम लेना होता है.

अक्ल उम्र की मोहताज नहीं होती. छोटी आयु का व्यक्ति अक्लमंद हो सकता है और बड़ी आयु वाला बेबकूफ.

अक्ल का नहीं दाना, खुद को समझे स्याना. जिन को बिलकुल अक्ल नहीं होती वे अपने को बहुत अक्लमंद समझते हैं.

अक्ल का बंटवारा नहीं हो सकता. भाइयो में सम्पत्ति का बंटवारा हो सकता है पर बुद्धि का नहीं.

अक्ल किसी की बपौती नहीं होती. सम्पत्ति की तरह अक्ल विरासत में नही मिलती. बुद्धिमान पिता का बेटा महामूर्ख भी हो सकता है.

अक्ल की पूछ है आदमी की नहीं. अर्थ स्पष्ट है.

अक्ल के पीछे लट्ठ लिए फिरते हैं. कोई बार बार मूर्खता पूर्ण कार्य करता हो तब.

अक्ल बड़ी कि बहस. तर्क कुतर्क करने की बजाए अक्ल से काम लेना बेहतर है.

अक्लमंद के कान बड़े और जुबान छोटी. समझदार आदमी सबकी बात सुनता अधिक है और बोलता कम है.

अखाड़े का लतखौर पहलवान बनता है. अखाड़े में लात खा खा कर ही आदमी पहलवान बनता है. मनुष्य अपनी गलतियों से सीख कर ही कुछ बनता है.

अगड़म बगड़म काठ कठम्बर. फ़ालतू चीजों का ढेर.

अगर कुत्ता आप पर भौंके, तो आप उस पर न भौंको. कोई अपशब्द कहे तो बदले में अपशब्द न कह कर चुप रहना चाहिए. इंग्लिश में कहावत है – If a donkey brays at you, don’t bray at him.

अगर चावल न हो तो भात पका दो. मूर्खता पूर्ण बात.

अगर यह पेट न होता, तो काहू से भेंट न होता. पेट की खातिर ही आदमी सब से मिलता जुलता है.

अगला करे पिछले पर आवे. पहले वाला गलती कर गया, बाद वाला उसे भुगत रहा है.

अगला पाँव उठाइये, देख धरन का ठौर. पैर रखने का स्थान पहले से देख कर अगला पाँव उठाना चाहिए. संभावनाओं पर विचार कर के ही कोई कार्य करना चाहिए.

अगला पैर टिके तो पिछला पैर उठाओ. किसी काम का एक चरण पूरा हो जाए तभी दूसरा शुरू करो. 

अगली खेती आगे आगे, पिछली खेती भागे भागे. समय से की गई खेती हमेशा लाभ देती है. समय निकल जाने पर बोया बीज भाग्य पर निर्भर होता है. भागे – भाग्य से.

अगले पानी पिछले कीच. जो पहले पानी भरने आता है उसे पानी मिलता है, बाद में आने वाले को कीचड़ मिलती है. तात्पर्य है कि यदि कुछ पाना चाहते हो तो आलस्य मत करो. इंग्लिश में कहावत है – Early bird catches the worm.

अगसर खेती अगसर मार, कहें घाघ तें कबहुँ न हार. जो पहले खेती करता है और जो लड़ाई में आगे बढ़ कर मारता है वह कभी नहीं हारता. असगर – आगे बढ़ कर.

अगहन में मुसवौ के सात जोरू. (भोजपुरी कहावत) मुसवा – मूसा, चूहा. अगहन में धान कटने के कारण इतना अनाज होता है कि चूहा भी सात बीबियाँ रख सकता है.

अगाड़ी तुम्हारी, पिछाड़ी हमारी. भैंस का बंटवारा. भैंस के अगले हिस्से में मुँह है जिससे वह खाती है और पिछले हिस्से से दूध और गोबर देती है. स्वार्थी लोग हर चीज़ में अपना फायदा ढूँढ़ते हैं.

अग्गम बुद्धि बानिया, पच्छम बुद्धि जाट. बनिया बुद्धि में आगे होता है, जाट बुद्धि में पीछे होता है. 

अग्नि और काल से कोई न बचे. आग सब कुछ भस्म कर देती है और काल सब को लील लेता है.

अग्र सोची सदा सुखी. पहले सोच कर काम करने वाला सदा सुखी रहता है. 

अघाइल भैंसा, तबो अढ़ाई कट्टा. (भोजपुरी कहावत) भैंसे का पेट भरा हो तब भी वह ढाई कट्टा भूसा खा सकता है. बहुत खाने वाले व्यक्ति के लिए.

अघाइल रांड और भुखाएल बाभन से न बोलो. (भोजपुरी कहावत) रांड का अर्थ विधवा से भी होता है और दुष्ट स्त्री से भी. पेट भरी हुई चालाक स्त्री और भूखे ब्राहण से बात करने में खतरा है. 

अघाई मछुआरिन मछली से चूतड़ पोंछे. जिस का पेट भरा हो वह खाने की वस्तु की कद्र नहीं करता.

अघाए को ही मल्हार सूझे. पेट भरने के बाद ही मस्ती सूझती है.

अघाना बगुला, पोठिया तीत. (भोजपुरी कहावत) बगुले का पेट भरा है तो उसे पोठिया (एक प्रकार की मछली) कड़वी लग रही है. कहावत का अर्थ है कि कोई भी वस्तु भूख लगने पर ही स्वादिष्ट लगती है.

अघाया ऊँट टोकरी लुढ़कावे. ऊंट का पेट भरा हो तो वह टोकरी में रखी खाने की वस्तुओं की कद्र नहीं करता.

अघाया ढोर जुगाली करे. 1.सम्पन्न लोगों का मजाक उड़ाने के लिए. 2.पान खाने वाले का मजाक उड़ाने के लिए.

अच्छत थोर देवता बहुत. अच्छत – अक्षत – पूजा में प्रयोग होने वाला साबुत चावल. पूजन सामग्री कम है और देवता अधिक हैं. 

अच्छा बोओ अच्छा काटो. अच्छा बीज बोने पर अच्छी फसल मिलती है. अच्छे कर्म करने का अच्छा फल मिलता है. 

अच्छी अच्छी मेरे भाग, बुरी बुरी बामन के लाग. यदि वर या कन्या अच्छे मिल गए तो हमारे भाग्य से और खराब मिले तो पंडित जी की मूर्खता से.

अच्छी जीन  से कोई घोड़ा अच्छा नहीं हो जाता. केवल अच्छी जीन बाँधने से कोई घोड़ा अच्छा नहीं हो जाता.अच्छे साज श्रृगार से कोई व्यक्ति योग्य नहीं हो जाता.

अच्छी नीयत, अच्छी बरकत. अच्छी नीयत से किये काम में लाभ होता है.

अच्छी मति जो चाहो, बूढ़े पूछन जाओ. समझदारी भरी राय चाहिए हो तो बूढ़े लोगों के पास जाइए क्योंकि उन के पास लम्बा अनुभव होता है.

अच्छी सूरत से अच्छी सीरत भली. अच्छी शक्ल वाले के मुकाबले वह व्यक्ति अधिक अच्छा है जिसके व्यवहार अच्छा हो.

अच्छे की उम्मीद करो लेकिन बुरे के लिए तैयार भी रहो. अर्थ स्पष्ट है.

अच्छे फूल महादेव जी पर चढ़ें. ईश्वरीय कार्य में अच्छे लोग ही लगते हैं.

अच्छे भए अटल, प्राण गए निकल. अटल का एक अर्थ है अपनी बात पर अड़ने वाला. इस हिसाब से कहावत का अर्थ उस व्यक्ति के लिए है जो अपनी बात पर अड़ा रहा भले ही जान चली गई. अटल का दूसरा अर्थ है तृप्त. इस सन्दर्भ में इसे मथुरा के चौबे लोगों के लिए प्रयोग करते हैं जो खाते ही चले जाते हैं चाहे प्राण निकल जाएं.

अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम. (दास मलूका कह गए, सब के दाता राम) मलूक दास नाम के एक संत थे जिन्होंने ईश्वर की महत्ता बताने के लिए ऐसा कहा है. आजकल कामचोर लोग, भिखारी और ढोंगी साधु भी अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए ऐसा कहते हैं.

अजब तेरी कुदरत अजब तेरे खेल, छछूंदर भी डाले चमेली का तेल. किसी अयोग्य व्यक्ति को भाग्य से कोई नायाब वस्तु मिल जाने पर ऐसा बोला जाता है.

अजब तेरी माया, कहीं धूप कहीं छाया. ईश्वर की बनाई दुनिया में कहीं सुख है तो कहीं दुःख.

अटकल पच्चू डेढ़ सौ. बिना सर पैर की बात के लिए कही गई कहावत.

अटका बनिया देय उधार (अटका बनिया सौदा दे). बनिया मजबूरी में माल दे रहा है, क्योंकि पिछला उधार निकालने का और कोई तरीका नहीं है. मजबूरी में कोई किसी का काम कर रहा हो तो यह कहावत कहते हैं.

अटकेगा सो भटकेगा. दो अर्थ हुए.1- जिस का कोई काम अटकेगा वह दौड़ भाग करेगा. 2- जो दुविधा में पड़ेगा वो भटकता रहेगा.

अड़ते से अड़ो जरूर, चलते से रहो दूर. जो लड़ने पर उतारू है उससे लड़ो जरूर पर जो अपने रास्ते जा रहा है उससे बिना बात मत उलझो.

अड़ी घड़ी काजी के सर पड़ी. कोई भी परेशानी मुखिया के सर पर ही पड़ती है.

अढ़ाई दिन की सक्के ने भी बादशाहत कर ली. अलिफ़ लैला में एक किस्सा है जिस में सक्का नामक एक भिश्ती को ढाई दिन की बादशाहत मिल गई थी. किसी को थोड़े समय के लिए सत्ता मिले और वह रौब गांठे तो ऐसा कहते हैं.

अढ़ाई हाथ की ककड़ी, नौ हाथ का बीज. कोई असंभव सी बात. कोरी गप्प.

अति का फूला सैंजना, डाल पात से जाए. सैजना एक पेड़ है जिसमें अत्यधिक फूल और फलियाँ लगती है और उसके बाद पतझड़ हो जाता है . कहावत का अर्थ है कि धन या पद मिलने पर अहंकार नहीं करना चाहिए.

अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप (अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप). अति हर चीज़ की बुरी होती है.

अति तातो पय जल पिए, तातो भोजन खाए, बाकी बत्तीसी सबहि, ज्वानी में झर जाए. बहुत गर्म पेय पदार्थ पीने और बहुत गर्म खाना खाने से दांत कमजोर हो जाते हैं.

अति पितवालों आदमी, सोए निद्रा घोर, अनपढ़िया आतम कही, मेघ आवे अति घोर. अत्यधिक पित्त प्रकृति वाला आदमी यदि दिन में भी घोर निद्रा में सोए तो अनपढ़ (किन्तु अनुभव से भरपूर) आतम कहते हैं कि जोर से वर्षा होगी.

अति बड़ी घरनी को घर नहीं, अति सुंदरी को वर नहीं. बहुत बड़े घर की लड़की के लिए बराबर का घर न मिल पाने के कारण और अत्यधिक सुंदर कन्या के लिए सुयोग्य वर न मिल पाने के कारण इन के विवाह में कठिनाई आती है. 

अति भक्ति चोर का लक्षण. कोई बहुत ज्यादा भक्ति दिखा रहा हो तो संशय होता है कि कहीं इस के मन में चोर तो नहीं है.

अति हर चीज़ की बुरी है. अर्थ स्पष्ट है. संस्कृत में कहते हैं – अति सर्वत्र वर्जयेत.

अतिथि देवो भव. घर में आया अतिथि भगवान के समान है. शिक्षा यह दी गई है कि घर में आए किसी व्यक्ति का अनादर न करो.

अतिशय रगड़ करे जो कोई, अनल प्रकट चन्दन से होई. बहुत रगड़ने से चन्दन जैसी शीतल लकड़ी में से भी अग्नि पैदा हो जाती है. बहुत अधिक अन्याय करने पर सीधे साधे लोग भी विद्रोह पर उतारू हो जाते हैं

अतिशय लोभ न कीजिए लोभ पाप की धार, इक नारियल के कारने पड़े कुएं में चार. अधिक लोभ करने से कितना संकट उत्पन्न हो सकता है इसके पीछे एक कहानी कही जाती है. एक कंजूस नारियल लेने बाज़ार में गया. दुकानदार ने कहा चार पैसे का है. उसने आगे बढ़ कर पूछा तो दूसरा दूकानदार बोला तीन पैसे का. और आगे बढ़ा तो दो पैसे, उससे आगे एक पैसे. कंजूस बोला कहीं मुफ्त में नहीं मिलेगा. दुकानदार ने कहा, आगे नारियल का पेड़ है खुद तोड़ लो. कंजूस आगे जा कर नारियल के पेड़ पर चढ़ा और नारियल तोड़ कर उतरने लगा तभी उस का पैर फिसल गया. उसने एक डाल कस कर पकड़ ली और लटकने लगा. संयोग से नीचे एक कुआं था. कुछ देर बाद हाथी पर सवार एक आदमी उधर से निकला. कंजूस उससे बोला तुम मुझे उतार दो तो मैं सौ रूपये दूंगा. उस आदमी ने कंजूस को उतारने के लिए उस के पैर पकड़े तब तक हाथी नीचे से चल दिया. अब दोनों कुँए के ऊपर लटकने लगे. इसी तरह एक ऊंट सवार और उसके बाद एक घुड़सवार भी एक के बाद एक लटक गए. अधिक बोझ से पेड़ की डाल टूट गई और चारों कुँए में जा पड़े. 

अतै सो खपै.  अति करने वाले का विनाश हो जाता है.

अदरक के चन्दन, ललाट चिरचिराय. (भोजपुरी कहावत) अदरख का चन्दन बना कर लगाओगे तो माथे पर छरछराहट होगी. बदमिजाज आदमी को सर पर बिठाओ तो वह आपको कष्ट ही देगा.

अधकचरी विद्या दहे, राजा दहे अचेत, ओछे कुल तिरिया दहे, दहे कपास का खेत. अधूरी विद्या, लापरवाह राजा, निम्न संस्कारों वाली बहू और कपास की खेती विनाश का कारण बनते हैं

अधकुचले सांप सा खतरनाक. चोट खाया हुआ सांप खतरनाक होता है. इसी प्रकार जो व्यक्ति चोट खा कर बच जाए वह बहुत प्रतिहिंसक हो जाता है.

अधजल गगरी छलकत जाए. घड़े में यदि पानी पूरा भरा हो तो ले कर चलने से उसमें से पानी नहीं छलकता जबकि आधे भरे घड़े से पानी छलकता है. कहावत का अर्थ है कि जिन लोगों को कम ज्ञान होता है वे अधिक बोलते है और अधिक दिखावा करते हैं.

अधरम से धन होय, बरस पाँच या सात.   पाप की कमाई जल्दी ही नष्ट हो जाती है.

अधिक कसने से वीणा का तार टूट जाता है. अधिक कड़े अनुशासन से जनता त्रस्त हो जाती है और विद्रोह कर सकती है. 

अधिक खाऊं न बेवक्त जाऊं. न अधिक खाऊं न बेवक्त शौच के लिए जाऊं.

अधिक खाद औ गहरी फाल, ढो ढो नाज होय बेहाल. खाद अधिक देने और गहरा जोतने से फसल अच्छी होती है (इतनी अधिक कि किसान अनाज ढो ढो के थक जाए).

अधिक प्रेम टूटे, बड़ी आँख फूटे. किसी को बहुत अधिक प्रेम करने से प्रेम के टूटने का डर होता है. तुक मिलाने के लिए कहा गया है कि बहुत बड़ी आँख हो तो उस में चोट लगने का डर होता है.

अधिक संतान गृहस्थी का नाश, अधिक वर्षा खेती का नाश. यूँ तो वर्षा खेती के लिए आवश्यक है पर अधिक वर्षा खेती का सत्यानाश कर देती है. इसी प्रकार एक दो सन्तान होना प्रत्येक परिवार के लिए आवश्यक हैं पर अधिक संतान होने से गृहस्थी का नाश हो जाता है.

अधिक सयानो, जाय ठगानो. (बुन्देलखंडी कहावत)अपने आप को अधिक चतुर समझने वाला व्यक्ति अंततः ठगा जाता है.

अधेले के नोन को जाऊं, ला मेरी पालकी. छोटे से काम के लिए बहुत आडम्बर करना. अधेला – आधा पैसा, नोन – नमक. 

अनकर कपड़ा धोबिनियाँ रानी. दूसरे के कपड़े पहन कर धोबिन बनी ठनी घूमती है. अनकर – दूसरे का.

अनकर खेती अनकर गाय, वह पापी जो मारन जाय. दूसरे का खेत है और किसी और की गाय चर रही है, तुम्हें क्या पड़ी है जो गाय को भगाने का पाप ले रहे हो. अर्थ है कि यदि कोई दूसरा व्यक्ति किसी तीसरे को कोई नुकसान पहुँचा रहा है तो उस में टांग नहीं अड़ानी चाहिए. अनकर – दूसरे की.

अनकर चुक्कर अनकर घी, पांडे बाप का लागा की. (भोजपुरी कहावत) आटा भी दूसरे का है और घी भी दूसरे का, कितना भी लगे, रसोइए के बाप का क्या जा रहा है. अनकर – पराया, चुक्कर – आटा. 

अनकर मूड़ी बेल बराबर. दूसरे का सिर बेल के समान तुच्छ. अनकर – दूसरे का, मूड़ी – सिर (मुंड). 

अनकर सेंदुर देख कर आपन कपार फोरें. (भोजपुरी कहावत) ईर्ष्यालु स्त्रीदूसरी औरत की मांग में सिंदूर देख कर अपना सर फोड़ रही है. दूसरे के सुख से ईर्ष्या करना.

अनका खातिर कांटे बोए कांटा उनके गड़े. अनका – दूसरे का. जो दूसरों के लिए कांटे बोते हैं उनके पैर में काँटा जरूर गड़ता है. 

अनका धन पे रोवे अंखिया. अनका – दूसरे का. दूसरे के धन समृद्धि से दुखी होने वाले के लिए. 

अनके धन पर चोर राजा. दूसरे का धन चुरा कर चोर ऐश करता है.

अनके पनिया मैं भरूँ, मेरे भरे कहार. अपने घर में काम करने में हेठी समझना और दूसरे के घर में वही काम करना.

अनजान का अपराध नहीं माना जाता. मासूम व्यक्ति यदि अनजाने में कोई अपराध करता है तो उसे अपराध नहीं मानना चाहिए.

अनजान पानी में न उतरो. जिस पानी की गहराई न मालूम हो उस में नहीं उतरना चाहिए. जिस काम के खतरे न मालूम हों उस को नहीं करना चाहिए.

अनजान सुजान, सदा कल्याण. जो बिलकुल अज्ञानी है वह सुखी रहता है क्योंकि उसे कोई चिंता नहीं होती, या फिर जो पूर्ण ग्यानी है वह सुखी रहता है क्योंकि उसे कोई सांसारिक दुःख नहीं व्यापता.

अनजाने को कांसा दीजे, वासा न दीजे. किसी अनजान व्यक्ति को धन या भोजन देकर उसकी सहायता कीजिए पर उसे घर में वास मत कराइए, बहुत बड़ा धोखा हो सकता है. कांसा एक मिश्र धातु (alloy) है जिससे बर्तन बनते थे.

अनदेखा चोर राजा बराबर. जब तक चोर को चोरी करते न पकड़ लिया जाए तब तक तो चोर और राजा बराबर हैं.

अनपढ़ कमाए और जूता खाए (अभागा कमाय और जूता खाय). अभागा आदमी मेहनत से कमाता है फिर भी अपमान सहता है.

अनपढ़ जाट पढ़े बराबर, पढ़ा जाट खुदा बराबर. जाटों की चालाकी पर व्यंग्य.

अनपढ़ तो घोड़ी चढ़ें, पंडित मांगें भीख. जहाँ अंधेर गर्दी का राज्य हो वहाँ अनपढ़ लोगों को सत्ता मिल जाती है और ज्ञानवान लोग भीख मांग कर गुजारा करते हैं.

अनपढ़ भी पंडित के कान काट सकता है. जिसको व्यवहारिक ज्ञान अधिक हो वह अधिक सफल होता है.

अनमिले के सौ जती हैं.  स्त्री न मिले तो सब योगी बन जाते हैं. जती – यती (सन्यासी). मजबूरी का नाम महात्मा गांधी.

अनरूच बहू के कड़वे बोल. जो अपने को पसंद नहीं है उसकी सभी बातें बुरी लगती हैं. अनरूच – जो रुचे नहीं.

अनहोनी होती नहीं, होती होवनहार (अनहोनी होनी नहीं, होनी हो सो होय). होनी बलवान है. जो नहीं होना है वह आपके लाख चाहने पर भी नहीं होगा और जो होना है वह हो के रहेगा.

अनाज खाओ पर बीज बचाओ. जीवित रहने के लिए अनाज खाना आवश्यक है पर बोने के लिए बीज बचाना भी जरूरी है, प्रकृति का दोहन भी करो और सरंक्षण भी.

अनाड़ियों को अनाड़ी ही सिखा सकता है. कम बुद्धि वाले को पढ़ाना बहुत कठिन काम है. तीव्र बुद्धि वाला तो यह काम बिलकुल नहीं कर सकता.

अनाड़ी का सोना बाराबानी (अनाड़ी का सोना हमेशा चोखा). सुनारों की भाषा में बाराबानी सोना कई बार शुद्ध किए गए सोने को कहते हैं. अनाड़ी आदमी सोना बेचने आया हो तो वह सोना बढ़िया ही होगा क्योंकि वह उस की कीमत ही नहीं जानता.

अनाड़ी के घी में भी कंकड़. अनाड़ी आदमी के हर काम में फूहड़पन रहता है. 

अनाड़ी गया चोरी, छेड़न लगा छोरी. हर काम को करने के कुछ नियम कानून होते हैं. चोर लड़की छेड़ेगा तो पकड़ लिया जाएगा, चोरी कैसे करेगा. 

अनोखी जुरवा, साग में शुरवा. साग बनाते हैं तो उस में शोरबा नहीं बनाते. अनाड़ी पत्नी ने साग में भी शोरबा बना दिया. कोई अनाड़ी आदमी बेतुके ढंग से काम करे तो.

अनोखे गाँव में ऊंट आया, लोगों ने जाना परमेसुर आया. मूर्ख लोगों ने जो चीज़ न देखी हो उसको कुछ का कुछ समझ लेते हैं. 

अनोखे घर में नाती भतार. ऐसा घर जहाँ बाप दादा के मुकाबले पोते की बात अधिक मानी जाए. जहाँ बड़ों के मुकाबले छोटों की ज्यादा चले. भतार शब्द भर्ता का अपभ्रंश है जिसका अर्थ है घर का स्वामी. 

अन्त बुरे का बुरा. बुरे काम का बुरा नतीजा.

अन्तकाल सुधरा तो सब सुधरा. किसी व्यक्ति ने जीवन भर बुरे कर्म किये हों पर यदि अंतिम समय में वह सुधर जाए तो लोग उसकी बुराइयों को भूल जाते हैं.

अन्ते गति सो मति. मरते समय व्यक्ति के मन में जो भाव रहते हैं वैसी ही उस की गति होती है. एक ऋषि को वन में एक मृग शावक मिला जिसकी मां हिरनी उसे जन्म देते ही मृत्यु को प्राप्त हो गई थी. उन्होंने दयावश उसे अपने आश्रम में ला कर पाल लिया. उन्हें उस से इतना मोह हो गया कि अपने अंतिम समय पर भी वे उस की चिंता में ही डूबे रहे. इसके फलस्वरुप उन्हें हिरन की योनि में जन्म लेना पड़ा. 

अन्दर छूत नहीं, बाहर करें दुर दुर. केवल दिखावे के लिए छुआछूत करना. जहाँ अपना स्वार्थ हो वहाँ छुआछूत न करना. 

अन्न अमृत, अन्न विष. अन्न जीवन के लिए आवश्यक भी है और अधिक खाने या गलत खाने से आदमी मरता भी है.

अन्न खाय मन भर, घी खाय दम भर. अन्न उतना खा सकते हो जितनी भूख हो पर घी उतना ही खाना चाहिए जितना पचा सको.

अन्न जल बड़ो बलवान, काल बड़ो शिकारी. अन्न और जल बड़े बलवान हैं मनुष्य को कहाँ कहाँ ले जाते हैं, भटकाते हैं और पाप भी कराते हैं. काल सबसे बड़ा शिकारी है जो हर जीव जन्तु का शिकार करता है.

अन्न जलाय के भाड़ा खातिर रार करे भड़भूजा. भाड़ भूनने वाले ने चने तो जला दिए और ऊपर से अपनी मजूरी मांग रहा है. भाड़ा – मेहनताना, रार – झगड़ा 

अन्न जी का गाजा और अन्न जी का बाजा. संसार में सारी महिमा अन्न की ही है.

अन्न दान महा दान. किसी भूखे को खिलाना सबसे बड़ा पुण्य है.

अन्न देवता को माथे चढ़ा कर खाओ.  अन्न को देवता मानना चाहिए और कभी उसका तिरस्कार नहीं करना चाहिए.

अन्न धन अनेक धन, सोना रूपा कितेक धन. सबसे बड़ा धन अन्न है उसके सामने सोना चांदी भी कुछ नहीं.

अन्न मुक्ता, घी युक्ता. अन्न को भरपेट (मुक्त हो कर) खाना चाहिए और घी को सोच समझ कर खाना चाहिए.

अन्न से मरे काम से न मरे. अधिक खाने से आदमी मर सकता है पर अधिक काम से कोई नहीं मरता.

अन्न ही तारे, अन्न ही मारे. खाने से ही आदमी जिन्दा रहता है, और अधिक खाने से मरता भी है. अन्न को ले कर युद्ध भी होते हैं, जिनमें अनेक लोग मारे जाते हैं.

अन्न ही नाचे, अन्न ही कूदे, अन्न ही तोड़े तान. पेट भरा होने पर ही सब तरह की मस्ती सूझती है.

अन्यायी और सूरमा, जब चाले तब सगुन. अन्यायी लोग अत्याचार का कार्य करते समय सगुन असगुन नहीं विचारते. इसी प्रकार शूरवीर अपने अभियान से पहले मुहूर्त नहीं देखते.

अन्यायी के उलटे पैर. 1. अन्यायी व्यक्ति हर काम उलटे ढंग से करता है. 2. जब पीड़ित लोग प्रतिकार करते हैं तो अन्यायी बहुत जल्दी भाग खड़ा होता है.

अन्हरे सियार के पिपरे मेवा. (भोजपुरी कहावत) अंधे सियार को पीपल ही मेवा के समान है. मजबूर आदमी को जो मिल जाए वही उसके लिए बहुत है. 

अपत भए बिन पाइए, को नव दल फल फूल. बिना पत्ते झड़े नए पत्ते और फल फूल कहाँ आते हैं. कुछ नया पाने के लिए पुराने को खोना पड़ता है.

अपना अपना घोलो अपना अपना पियो. सत्तू के लिए कहा गया है. कहावत का अर्थ है कि अपनी व्यवस्था स्वयं करो.

अपना अपना, पराया पराया. अपना अपना ही रहता है. पराया आदमी कितना भी अच्छा हो अपने जैसा नहीं हो सकता.

अपना काम बनता भाड़ में जाये जनता. विशुद्ध स्वार्थ. (आजकल के नेताओं की तरह).

अपना काम बिगाड़े बिना दूसरे का काम नहीं सुधरता. दूसरों की सहायता करने के लिए अपना नुकसान (समय और पैसे का) करना पड़ता है.

अपना के जुरे न, अनका के दानी. (भोजपुरी कहावत) अपने घर में कुछ है नहीं, दूसरों को दान करने चले हैं.

अपना के बिड़ी बिड़ी, दुसरे के खीर पुड़ी. (भोजपुरी कहावत) अपने आदमी को दुत्कारना और दूसरों का सत्कार करना.

अपना कोढ़ बढ़ता जाए, औरों को दवा बताए. उन लोगों के लिए जो अपनी समस्याएँ नहीं सुलझा पाते और दूसरों की सहायता करने को आतुर रहते हैं.

अपना कोढ़ राजी बेराजी ओढ़. यदि अपने को कोई असाध्य बीमारी है तो उसको झेलना ही पड़ेगा. यदि अपना कोई सगा सम्बन्धी नालायक हो तो भी निभाना पड़ता है.

अपना कोसा अपने आगे आता है. जो गलत काम आप करते हैं उस के दुष्परिणाम कभी न कभी झेलने पड़ते हैं 

अपना खिलाए और निहोरे कर के. किसी को अपनी जेब से खिलाओ भी और वह भी खुशामद कर के.

अपना घर दूर से सूझता है. अर्थ स्पष्ट है.

अपना चेता होत नहिं, प्रभु चेता तत्काल. मनुष्य जो चाहता है वह नहीं होता, ईश्वर जो चाहता है वह फ़ौरन हो जाता है. इंग्लिश में कहावत है – Man proposes, God disposes.

अपना ठीक न, अनका नीक न. अपना काम ठीक से करना नहीं जानते और पराये में दोष निकालते हैं. अनका – पराया.

अपना पाद सुगंध से भरा. अपने अंदर कोई दुर्गुण भी है तो भी उस को गुण बताया जाता है.

अपना पूत पूत और सौत का पूत दूत. केवल अपने सगे को महत्व दे कर दूसरे की उपेक्षा करना.

अपना पूत सभी को प्यारा. अपना पुत्र चाहे कुरूप हो, मंदबुद्धि हो तब भी सब को प्यारा होता है.

अपना पूत, पराया डंगर. उन संकीर्ण दृष्टिकोण वाले लोगों के लिए जो अपने पुत्र को नाज़ों से पालें और दूसरे के पुत्र को जानवर तुल्य समझें.

अपना फटा सियें नहीं, दूसरे के फटे में पैर दें. अपनी समस्याएँ न सुलझाएं और दूसरों की परेशानियाँ हल करने की कोशिश करें.

अपना बैल, कुल्हाड़ी नाथब. हमारा बैल है हम चाहें कुल्हाड़ी से नाथें. कहावत का अर्थ है कि अपना काम हम चाहे जैसे करें किसी को क्या. शहर में रहने वाले लोग यह नहीं जानते होंगे कि बैल नाथने का अर्थ होता है, बैल के नथुने में छेद कर के उसमें रस्सी डालना.

अपना मकान कोट (क़िले) समान. अपना घर सभी को बहुत अच्छा और सुरक्षित लगता है. इंग्लिश में कहावत है – There is no place like home.

अपना मरण, जगत की हँसी. अर्थ है कि हम मुसीबत में पड़े हैं और लोग हँस रहे हैं.

अपना मारे छाँव में डाले. माँ क्रोध में आ कर अपने बेटे को पीटती है. बेटा रोते रोते सो जाता है तो उसे उठा कर छाँव में लिटा देती है. क्रोध में भी माँ की ममता कम नहीं होती.

अपना माल अपनी छाती तले. अपने माल की सुरक्षा सभी लोग स्वयं ही करते हैं.

अपना मीठ, पराया तीत. अपना माल अच्छा और पराया बेकार. (मीठ – मीठा, तीत – कड़वा)

अपना रख पराया चख. अपना माल बचा कर रखो और दूसरे का माल हड़पने की कोशिश करो. निपट स्वार्थी लोगों का कथन.

अपना लाल गँवाय के दर-दर माँगे भीख. (अपने नैन गवांय के दर दर मांगे भीख). अपनी कीमती वस्तु की रक्षा न करना और जरूरत पड़ने पर औरों से मांगते फिरना.

अपना वही जो आवे काम. जो आड़े समय में काम आये वही अपना हितैषी है.

अपना सर, सौ चोटी रखें तो कौन बरजे. हम जैसे चाहें रहें, कौन मना कर सकता है. बरजना – मना करना.

अपना सूप मुझे दे, तू हाथों से फटक. शुद्ध स्वार्थ परता. (अनाज में से भूसी और छिलके हटाने के लिए उसे सूप में ले कर फटकते हैं).  

अपना हाथ जगन्नाथ. जिनके पास अपने हाथ से काम करने का हुनर है वे सबसे अधिक भाग्यशाली हैं. संपत्ति छीनी जा सकती है पर हाथ का हुनर हमेशा आपके पास रहता है. इंग्लिश में कहावत है – Self done is soon done.

अपना ही माल जाए, आप ही चोर कहलाए. जिस का नुकसान हुआ हो उसी को चोर साबित करने की कोशिश की जाए तो ऐसा कहते हैं. हिन्दुस्तान की पुलिस अक्सर ऐसे कारनामे करती है.

अपना-अपना कमाना, अपना-अपना खाना. 1. आजकल की संस्कृति के ऊपर व्यंग्य. 2. इसका अर्थ इस प्रकार से भी है कि अपनी रोजी रोटी की चिंता सब को करनी पड़ती है.

अपनी अकल और पराई दौलत सबको बड़ी मालूम होती है. सभी लोग अपने को दूसरों से अधिक अक्लमंद समझते हैं और दूसरों को अपने से अधिक धनवान समझते हैं.

अपनी अटके, सौत के मायके जाना पड़ता है. किसी स्त्री के लिए सबसे बुरा और अपमान जनक स्थान सौत का मायका ही हो सकता है. लेकिन काम अटकने पर वहाँ भी चले जाना चाहिए.

अपनी अपनी खाल में सब मस्त. आम लोग अपने काम, अपने स्वार्थ और अपने परिवार की चिंता में ही व्यस्त रहते हैं. 

अपनी अपनी खाल में सभी जीव खुशहाल. ऊपर वाली कहावत की भाँति. इस की पूरी कहावत इस प्रकार है – क्या सीपी क्या घूंघची, क्या मोती क्या लाल, अपनी अपनी खाल में सभी जीव खुशहाल.

अपनी अपनी खींचो और ओढ़ो. अपनी अपनी व्यवस्था खुद करो.

अपनी अपनी गरज को अरज करे सब कोई. अपने स्वार्थ की सिद्धि के लिए सभी लोग प्रयास करते हैं.

अपनी अपनी ढपली, अपना अपना राग. (अपनी अपनी तुनतुनी, अपना-अपना राग). यदि एक व्यक्ति ढपली बजा रहा हो और कुछ लोग उसकी ताल के साथ गा रहे हों तो सुनने में अच्छा लगता है. यदि चार लोग अलग अलग ढपली पर अलग ताल बजा कर अलग अलग राग गा रहे हों तो सुनने में कितना बुरा लगेगा. किसी एक बात पर बहुत से लोग अपनी अपनी अलग अलग राय दे रहे हों या अपनी बात मनवाने की कोशिश कर रहे हों तो यह कहावत कही जाती है. 

अपनी अपनी तान में गदहा भी मस्तान. मूर्ख लोग अक्सर आत्म मुग्धता के शिकार होते हैं.

अपनी अपनी धोती में सब नंगे (अपने जामे में सभी नंगे). मनुष्य सभ्यता और शालीनता का कितना भी लबादा ओढ़ ले अन्दर से हर मनुष्य की मानसिकता वही आदिम युग वाली होती है.

अपनी अपनी मूंछ पर, सब ही देवें ताव. हर व्यक्ति अपने को महत्वपूर्ण समझता है. आत्म सम्मान सब को प्यारा होता है.

अपनी आँख फूटी तो फूटी पड़ोसी का असगुन तो हुआ. दूसरे को नुकसान पहुँचाने की ललक में अपना चाहे कितना बड़ा नुकसान हो जाए. नीच प्रवृत्ति.

अपनी आँखें मुझे दे दे, तू घूम फिर कर देख. निपट स्वार्थपरता.

अपनी ओर निबाहिए, बाकी की वह जाने. आपका जो कर्तव्य है उसे आप निभाइए, बाकी ईश्वर के हाथ में है.

अपनी करनी अपने आगे. जो कर्म आपने किए हैं वही आपके आगे आते हैं.

अपनी करनी पार उतरनी. परेशानियों से पार पाने के लिए अपना पुरुषार्थ ही काम आता है. 

अपनी कोख का पूत नौसादर. नौसादर से यहाँ तात्पर्य उत्कृष्ट वस्तु से है. अपनी सन्तान सब को अच्छी लगती है.

अपनी गई का कोई गम नहीं, जेठ की रही का गम है. अपनी चीज़ चोरी चली गई उसका इतना दुःख नहीं है, जेठ की चोरी नहीं हुई इस का दुःख अधिक है. 

अपनी गरज बावली. स्वार्थ आदमी को अंधा बना देता है.

अपनी गरज से लोग गधे को भी बाप बनाते हैं. अर्थ स्पष्ट है.

अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है. सामान्य लोग वैसे तो डरपोक होते हैं पर अपने इलाके में बहादुरी दिखाते हैं उनके लिए यह कहावत कही जाती है.

अपनी गाँठ पैसा, तो पराया आसरा कैसा. पुराने लोग बाहर जाते समय रुपये पैसे को धोती की फेंट में गाँठ बाँध कर रखते थे. गाँठ में पैसा माने अपने पास पैसा होना. अपने पास ही पैसा होगा तो आवश्यकता पड़ने पर किसी का मुँह क्यों देखना पड़ेगा.

अपनी घानी पिर जाए, फिर चाहे तेली के बैल को शेर खा जाए. निपट स्वार्थ. अपना काम निकल जाए, फिर चाहे कोई मरे या जिए.

अपनी चाल में गधा भी मस्ताना. 1. ईश्वर ने आत्म मुग्धता का अधिकार सब को दे रखा है. 2. अधिक इठला कर चलने वालों का मजाक उड़ाने के लिए. 

अपनी चिलम भरने को मेरा झोपड़ा जलाते हो. अपने छोटे से फायदे के लिए किसी का बहुत बड़ा नुकसान करना गलत है.

अपनी छाछ को कोई खट्टा नहीं कहता. अपनी चीज़ को कोई घटिया नहीं बताता.

अपनी छोड़ पराई तक्के, सो सब जाए गैब के धक्के. जो अपनी सम्पत्ति छोड़ कर दूसरे की चीज़ पर कुदृष्टि रखता है उस का सब कुछ ईश्वर छीन लेता है. गैब – अदृश्य शक्ति.

अपनी जांघ उघारिए, आपहिं मरिए लाज. आपसी झगडे में अपने घर का भेद दूसरों के सामने खोलने वाले को अंततः स्वयं ही लज्जित होना पड़ता है. 

अपनी झोली के चने दूसरे की झोली में डाले. अपने लाभ की चीज़ अज्ञानतावश दूसरे को दे देना (और फिर पछताना).

अपनी नरमी दुश्मन को खाय. आप यदि झुक जाएँ तो दुश्मनी समाप्त हो सकती है. (हार मानी, झगड़ा टूटा). 

अपनी नाक़ कटे तो कटे, दूसरे का सगुन तो बिगड़े. उन नीच प्रकृति के लोगों के लिए जो दूसरों को हानि पहुंचाने के लिए अपना नुकसान भी कर सकते हैं.

अपनी नाक पर मक्खी कोई नहीं बैठने देता. अपना अहं सभी को प्यारा होता है.

अपनी नींद सोना, अपनी नींद उठना. पूरी आज़ादी.

अपनी पगड़ी अपने हाथ. यहाँ पगड़ी का अर्थ मान सम्मान से है. कहावत का अर्थ है – आप का कितना आदर हो, यह आपके अपने हाथ में है. जैसा व्यवहार करोगे, वैसा ही सम्मान पाओगे. 

अपनी पीठ खुद को न दिखाई दे. 1.अपनी कमियाँ किसी को नहीं दिखतीं. 2.आपकी पीठ पीछे लोग आपको क्या कहते हैं इसकी चिंता नहीं करना चाहिए.

अपनी फूटी न देखे, दूसरे की फूली निहारे. आँख की एक बीमारी होती है जिसमें आँख फूल जाती है और उस से दिखाई कम देता है. कहावत उन लोगों के लिए है जो अपनी फूटी हुई आँख (बहुत बड़ी कमी) नहीं देख रहे हैं दूसरे की फूली हुई आँख (छोटी कमी) के दोष गिना रहे हैं.

अपनी बारी घोलमघाला, हमरी बारी भूखम भाखा. अपनी बारी पर खूब माल खाए, हमारी बारी आई तो भूखा ही टरका दिया.

अपनी ब्याहता को लाने क्या जाना. अपने घर के लोगों की कद्र न करने वालों के लिए.

अपनी मां को डाकिन कौन बतावे. अपना सगा व्यक्ति यदि बिल्कुल गलत भी हो तब भी कोई स्वीकार नहीं करता.

अपनी हंसी हंसना, अपना रोना रोना. केवल अपना स्वार्थ देखना. दूसरे के सुख दुःख में शरीक न होना.

अपनी हैसियत से अतिथि का सत्कार करो, अतिथि की हैसियत से नहीं. यदि हमारे घर कोई ऐसा अतिथि आता है जो हमसे बहुत अधिक सम्पन्न है तो हमें उसके सत्कार में झूठे दिखावे के लिए अपनी हैसियत से अधिक खर्च नहीं करना चाहिए और यदि कोई छोटा व्यक्ति आए तो उस का भी भली प्रकार सत्कार करना चाहिए (छोटा आदमी समझ कर टरका नहीं देना चाहिए).

अपने अपने ओसरे कुँए भरे पनिहार. ओसरा या ओसारा – घर के बाहर का हिस्सा. अपनी बुनियादी जरूरतों का इंतजाम सभी करते हैं.

अपने अपने घर में सभी ठाकुर. यहाँ ठाकुर का अर्थ है स्वामी. हर आदमी अपने घर का स्वामी है, चाहे वह छोटा हो या बड़ा.

अपने ऊपर आवे घात, बामन मारे नाहीं पाप. वैसे तो ब्रह्म हत्या को महापाप माना गया है लेकिन यदि ब्राह्मण आप के प्राण लेने की कोशिश कर रहा हो तो उसकी हत्या भी पाप नहीं है.

अपने ऐब सब लीपते हैं. अपनी कमियाँ सब छिपाते हैं.

अपने किए का क्या इलाज. जो परेशानी हम ने खुद पैदा की है उस का इलाज करने की उम्मीद किसी और से कैसे कर सकते हैं.

अपने को आंक, फिर दरवाजा झाँक. पहले अपनी कमियाँ देखो फिर दूसरे के घर में झांको.

अपने को सूझता नहीं, औरों से बूझता नहीं. किसी ऐसे व्यक्ति के लिए जिसकी अपनी बुद्धि भी काम नहीं करती और वह औरों से पूछता भी नहीं है.

अपने खुजाए ही खुजली मिटती है. अपनी व्यक्तिगत आवश्यकताओं को व्यक्ति स्वयं ही पूरा कर सकता है. 

अपने घर में बिलौटा बाघ. अपने इलाके में हर आदमी बहादुर होता है. (अपने घर में कुत्ता भी शेर).

अपने जोगी नंगा तो का दिए वरदान.  जोगी खुद नंगे हैं तो किसी को क्या वरदान देंगे. जिसके पास खुद के लिए साधन ना हो वो आपको क्या देगा. 

अपने पहरू, अपने चोर. खुद ही पहरेदार हैं और खुद ही चोर हैं. (जैसे आजकल के नेता)

अपने पूत कुआँरे फिरें, पड़ोसी के फेरे. अपने लड़कों की शादी नहीं हो रही है, पड़ोसियों के सम्बन्ध कराते घूम रहे है. उन लोगों के लिए कहा गया है जो अपने घर की समस्याएं सुलझा नहीं पाते और परोपकारी बने फिरते हैं.

अपने पूत को कोई काना नहीं कहता. अपने प्रिय लोगों की कमियों को सब छिपाते हैं.

अपने बच्चे को ऐसा मारूं कि पड़ोसन की छाती फटे (अपनी बेटी को ऐसा मारूं कि बहू सहम जाए). दूसरे के मन में डर बैठाने के लिए अपने पर जुल्म करना.

अपने बावलों रोइए गैर के बावलों हंसिए. यदि अपने घर में कोई पागल या मंदबुद्धि है तो आप उस पर रोते हैं और दूसरे के घर में है तो उस पर हँसते हैं.

अपने बिछाए कांटे अपने पैरों में ही गड़ते हैं. जो दूसरों के लिए षड्यंत्र रचते हैं वे स्वयं उनका शिकार होते हैं.

अपने मन के जौकी भात पकाए के लौकी. (भोजपुरी कहावत) अपने मन में जो आए वही करेंगे.  

अपने मन के मौजी माँ को कहें भौजी. मनमौजी लोग कुछ भी कर सकते हैं.

अपने मन से जानिए पराए मन की बात. यदि आप दूसरे के मन की बात जानना चाहते हैं तो सोचिए कि यदि आप उस की जगह होते तो क्या चाहते.

अपने मन से पूछिए, मेरे मन की बात. यदि आप अपने मन में झाँक कर देखेंगे तो आप को समझ में आ जाएगा कि मैं क्या चाहता/चाहती हूँ. (अक्सर पत्नियाँ अपने पतियों से इस प्रकार से कहती हैं).

अपने मरे बिना स्वर्ग नहीं दीखता. 1. जब तक अपने पर न बीते तब तक दूसरों की परेशानी का एहसास नहीं होता. 2. खुद किए बिना कोई काम नहीं होता.

अपने मियाँ दर दरबार, अपने मियाँ चूल्हे भाड़. एक आदमी क्या क्या करे. उसी से दरबार जाने को कह रहे हो, उसी को चूल्हा फूँकने को भी कह रहे हो.

अपने मुंह मियाँ मिट्ठू. अपनी प्रशंसा स्वयं करना. इंग्लिश में कहावत है – To blow one’s own trumpet.

अपने मुंह शादी मुबारक. अपनी तारीफ़ खुद करना. अपने आप को शाबासी देना.

अपने लगे तो देह में, और के लगे तो भीत में. दूसरे के कष्ट की कोई परवाह न करना. अपने लगी तो कह रहे हैं हाय बहुत जोर से लगी, दूसरे के लगी तो कहते हैं तुम्हारे लगी ही कहाँ, दीवार में लगी.

अपने सुई भी न चुभे, दूसरे के भाले घुसेड़ दो. दूसरे के कष्ट की कोई परवाह न करना.

अपने से बचे तो और को दें (अपने से बचे तो बाप को दे). स्वार्थी लोगों के लिए कहा गया है.

अपने हाथ का काम, आधी रात का गहना. जो काम हम अपने हाथ से कर सकते हैं वह हमारे लिए हर समय सुलभ है.

अपने हाथों अपनी आरती. अपनी प्रशंसा स्वयं करना.

अपने हाथों अपने कान नहीं छेदे जाते. अपने कुछ काम ऐसे भी होते हैं जिन्हें हम अपने हाथ से नहीं कर सकते.

अपने ही जलते हैं. किसी की तरक्की देख कर सबसे अधिक अपने लोग ही जलते हैं. इंग्लिश में कहावत है – The worst hatred is that of relatives.

अपने हुनर में हर आदमी चोर है. अपने अपने व्यवसाय में हर व्यक्ति कुछ न कुछ हेराफेरी करने का जुगाड़ कर लेता है, और मज़े की बात यह है कि वह इस को जायज भी ठहराता है.

अपनो है फिर आपनो, जा में फेर न सार, गोड़ नमत निज उदर को, जानत सब संसार. घुटने जब मुड़ते हैं तो पेट की ओर ही जाते हैं. अपना अपना ही होता है. गोड़ – घुटना. 

अपनों से सावधान. इंसान को सब से अधिक धोखा अपनों से ही मिलता है.

अफ़लातून के नाती बने हैं. अपने को बहुत अकलमंद समझने वाले के लिए. यूनान के प्रसिद्ध दार्शनिक अरस्तु (Aristotle) को अरबी में अफलातून कहते हैं.

अफवाहों के पंख होते हैं. अफवाहें बहुत तेज़ी से फैलती हैं. इंग्लिश में कहावत है – Nothing amongst mankind, swifter than rumour. 

अफ़सोस कि दिल गड्ढे में. किसी बात पर अफ़सोस जाहिर करने का मज़ाकिया लहजा.

अफ़ीम या खाए अमीर या खाए फकीर. अफ़ीम महँगी है. या तो बहुत पैसे वाला खा सकता है, या मांगने वाला. इस में एक अर्थ यह भी है कि अफ़ीम आदमी को खाती है, या अमीर को या फकीर को.

अफ़ीमची तीन मंजिल से पहचाना जाता है. अपनी लड़खड़ाती चाल के कारण अफ़ीमची दूर से पहचान लिया जाता है.

अब आया ऊँट पहाड़ के नीचे. रेगिस्तान में सब तरफ रेत ही रेत होती है. कोई ऊंची चीज नहीं होती. इसलिए ऊंट यह समझता है कि वह सबसे ऊंचा है. लेकिन जब वह पहाड़ के नीचे पहुंचता है तो उसे अपनी औकात समझ में आती है. कोई आदमी जो अपने को बहुत शक्तिशाली और होशियार समझता हो जब उसका सामना अपने से ज्यादा ताकतवर आदमी से होता है तो यह कहावत कही जाती है.

अब की अब के साथ, जब की जब के साथ. वर्तमान में हमें क्या करना है इस पर ध्यान देने की सबसे अधिक आवश्यकता है. पहले क्या हुआ था या आगे क्या हो सकता है ये बातें इतनी महत्वपूर्ण नहीं हैं.

अब की छई की निराली बातें. आजकल की पीढ़ी की बातें निराली हैं.

अब की बार, बेड़ा पार. कोई काम करने के लिए बार बार प्रयास करना पड़े तो जोश दिलाने के लिए. 

अब के बचे तो सब घर रचे. किसी बहुत बड़ी परेशानी या बीमारी के दौरान आदमी सोचता है कि इस से बाहर निकलूँ फिर सब ठीक कर लूँगा. (और उस परेशानी के बीतते ही सब भूल जाता है)

अब कै मारे तो जानूं. (हरयाणवी कहावत) कायर आदमी की ललकार. अब के मार लिया सो मार लिया, अब मार के देख.

अब तब काल सीस पर नाचे. मृत्यु हर व्यक्ति के सर पर हर समय नाचती रहती है.

अब दिल्ली दूर नहीं. अब काम पूरा होने ही वाला है.

अब पछिताए होत क्या, जब चिड़ियाँ चुग गईं खेत. खेती जब तैयार खड़ी होती है तो उसकी रखवाली करनी होती है वरना चिड़ियों का झुंड आकर फसल के दाने खा जाता है. यह कहावत ऐसे व्यक्ति के लिए कही जाती है जो आलस में समय पर जरूरी काम नहीं करता और जब काम बिगड़ जाता है तो पछताता है. 

अब भी मेरा मुर्दा तेरे जिन्दा पर भारी है. मेरे हालात बिगड़ गए हैं तो क्या, मैं अब भी तुझ से बेहतर हूँ.

अब लौं नसानी अब न नसैहों. (अवधी कहावत) अब तक मैं ने समय नष्ट किया (जन्म बेकार गँवाया) अब नहीं गंवाऊंगा.

अब सतवंती होकर बैठी, लूट लिया सारा संसार. (अब सतवन्ती बनी, लूट खायो संसार.) कोई भ्रष्ट व्यक्ति अन्त समय में जन कल्याण की बातें करे तो. 

अबरे के भैंस बियाए, सारा गाँव मटकी ले धाए (आंधर के गाय बियाइल, टहरी लेके दौरलन). (भोजपुरी कहावत)गरीब या अंधे आदमी की गाय भैंस बियाही है तो सारा गाँव मटकी ले कर दौड़ा चला आ रहा है. मजबूर आदमी की मजबूरी का सब फायदा उठाना चाहते हैं. टहरी – मटकी.

अबल पर सभी सबल. कमजोर पर सब जोर जमाते हैं.

अबला को सतावे उसे राम सतावे. जो निर्बल (विशेषकर स्त्री) को सताता है उसे ईश्वर दंड देता है.

अब्बर के हम जब्बर हैं, जब्बर के हम दास. निर्बल के ऊपर जोर जमाना और सबल की जी हुजूरी करना.

अभागा कमाए, भाग्यवान खाए. अभागा व्यक्ति बहुत मेहनत कर के पैसा कमाता है पर भाग्य में न होने के कारण उसकी मेहनत का लाभ उसे न मिल कर भाग्यवान को मिलता है. जो बहुत कंजूस है वह भी एक प्रकार से अभागा ही है.

अभागा पूत त्यौहार के दिन रूठे. त्यौहार के दिन रूठता है तो उस को अच्छे अच्छे पकवान खाने को नहीं मिलते.

अभागिये चोर पे बिल्ली भी भूंसे है. चोर की किस्मत खराब हो तो कुत्ता तो क्या बिल्ली भी उस पर गुर्राती है.

अभागे की जाई, गरीब के गले लगाई. अभागे व्यक्ति की बेटी की शादी गरीब से ही होती है.

अभागे को जैसा वार वैसा त्यौहार. जिस के भाग्य में सुख न लिखा हो उस के लिए त्यौहार भी सामान्य दिनों की भांति महत्वहीन होते हैं.

अभी एक बूंट की दो दाल नहीं हुई है. बूंट मने चना. चने को दल के दाल बनाई जाती है. अभी बूंट की दाल नहीं हुई है मतलब अभी मामला तय नहीं हुआ है.

अभी कै दिन कै रात. अधिकार पा कर इतराने वाले आदमी से सवाल – कितने दिन तुम्हारा यह रुआब चलेगा.

अभी क्या मियाँ मर गए के रोजे घट गए. अगर तुम वाकई कोई काम करना चाते हो तो अभी भी मौका है.

अभी तो बेटी बाप की है. अभी फैसला नहीं हुआ है/ बंटवारा नहीं हुआ है. अभी दिल्ली दूर है. अभी काम पूरा होने में समय लगेगा.

अभी सेर में पौनी भी नहीं कती. अभी काम पूरा नहीं हुआ है. रुई को कात के उसका सूत बनता है. एक सेर रुई में से अभी पौन सेर भी नहीं कती है. सूत कातने के लिए एक छोटी सी तकली होती थी या चरखे से सूत काता जाता था. (देखिये परिशिष्ट)

अमर सिंह को मरते देखा, धनपत मांगें भीख, लछमी कंडा बीनत फिरतीं, इसें नाम छुछइयाँ ठीक. एक आदमी का नाम छुछइयाँ था. इस बात से वह बहुत परेशान रहता था. एक बार वह इतना हताश हो गया कि उसने मरने की ठान ली. मरने के लिए चला तो एक शवयात्रा मिली. मरने वाले का नाम पूछा तो बताया अमर सिंह. आगे बढ़े तो एक आदमी भीख मांगते दिखा. नाम था धनपत. उसके आगे लक्ष्मी नाम की एक गरीब फटेहाल औरत कंडे बीनती मिली. तो उस की समझ में आया कि नाम से कुछ नहीं होता. अपना नाम छुछइयाँ हीठीक है.

अमली मिसरी छांड़ि के खैनी खात सराह. अमली – अमल (नशा) करने वाला, खैनी – एक प्रकार का तम्बाखू. जिसको तम्बाखू की लत होती है वह मिश्री जैसी स्वादिष्ट चीज़ को छोड़ कर तम्बाखू को शौक से खाता है. 

अमानत में खयानत. किसी की चल अचल संपत्ति को नुकसान पहुँचाना.

अमीर का उगाल, गरीब का आधार. अमीर आदमी जिस चीज़ को तुच्छ समझ कर फेंक देता है गरीब के लिए वह भी आधार है.

अमीर का उतार गरीब का सिंगार. धनि व्यक्ति के लिए जो वस्तु अनुपयोगी हो जाती है वह भी गरीब के बहुत उपयोग में आ सकती है.

अमीर की बकरी मरी गाँव भर रोया, गरीब की बेटी मरी कोई न आया. अर्थ स्पष्ट है.

अमीर को जान प्यारी, ग़रीब को दम भारी. अमीर आदमी के पास सभी सुख सुविधाएँ होती हैं इसलिए वह अधिक दिन जीना चाहता है जबकि गरीब को जीवन बोझ लगता है.

अमीर ने पादा सेहत हुई, गरीब ने पादा बेअदबी हुई. अशिष्ट भाषा में आवाज़ के साथ गैस पास करने को पादना कहते है.लोक भाषा में कुछ इस प्रकार के शब्द अत्यधिक प्रचलन में होते हैं. अमीर आदमी कोई असामाजिक काम करे तो कोई आपत्ति नहीं करता, बल्कि कुछ लोग तारीफ भी कर देते हैं, गरीब कोई ऐसा काम करे तो उसे बुरा भला कहते हैं.  इंग्लिश में कहावत है – One law for the rich and another for the poor.

अमीरी और फकीरी की बू चालीस बरस तक नहीं जाती. कोई अमीर अगर गरीब हो जाए या गरीब आदमी अमीर बन जाए तो उन की पुरानी आदतें लम्बे समय तक नहीं जातीं.

अमृत लागे राबड़ी जा में दांत हिले ना जाबड़ी. रबड़ी सबसे बढ़िया खाद्य पदार्थ है जिसे खाने में बिल्कुल मेहनत नहीं होती.

अम्बर के तारे हाथ से नहीं तोड़े जाते. बहुत बड़ी बड़ी हांकने वालों पर व्यंग्य.

अम्बर ने पटका और धरती ने झेला. किसी बहुत मनहूस व्यक्ति के लिए कही गई बात.

अम्बा झोर चले पुरवाई, तब जानो बरखा ऋतु आई. तेज पुरबाई चलने से आम झड़ने लगें तो समझो वर्षा ऋतु आने वाली है.

अयाना जाने हिया, सयाना जाने किया. अयाना – मासूम व्यक्ति, हिया – हृदय.छोटा बच्चा या मासूम व्यक्ति केवल प्रेम की भाषा समझता है जबकि सयाना व्यक्ति इस बात पर अधिक ध्यान देता है कि उस के ऊपर क्या उपकार किया गया है.

अरका नाइन, बांस की नहरनी (नई नाइन, बांस का नहन्ना.) नहरनी (नेहन्ना) नाखून काटने के औजार को कहते हैं जोकि लोहे का होता है. नई नई नाइन बांस की नहरनी ले कर आई है. नौसिखिए आदमी का मज़ाक उड़ाने के लिए. (देखिये परिशिष्ट)

अरजी हमारी आगे मरजी तिहारी है. किसी बड़े अधिकारी के सामने या ईश्वर के समक्ष कमज़ोर व्यक्ति की प्रार्थना.

अरध तजहिं बुद्ध सरबस जाता. (जब सारा धन जात हो, आधा देओ लुटाय) (सर्वनाश समुत्पन्ने, अर्ध त्यजहिं पंडित:) जब सारा माल जाने का खतरा हो तो बुद्धिमान लोग यह कोशिश करते हैं कि आधे को लुटा कर आधा बचा लो.

अरहर की टट्टी, गुजराती ताला. किसी सस्ती वस्तु की सुरक्षा के लिए महंगा इंतज़ाम. (देखिये परिशिष्ट)

अरे जौहरी बावले सुन मेरे दो बोल, बिन गाहक मत खोल तू गठरी रतन अमोल. जौहरी को सीख दी जा रही है कि तू बिना उपयुक्त ग्राहक के अपने अमूल्य रत्नों की गठरी मत खोल. अगर कोई मूर्खों के बीच में ज्ञान बांटने की कोशिश कर रहा हो तब भी ऐसा कहा जाता है. 

अरे बिजूका खेत के काहे अपजस लेत, आप न खावे खेत को और न खाने देत. (बुन्देलखंडी कहावत) बिजूका – काकभगोड़ा. खेत में खड़े पुतले से कहा जा रहा है कि तू क्यों चिड़ियों की बद्दुआ ले रहा है, न खुद खाता है, न ही उन्हें खाने देता है. ईमानदार कर्मचारी से भी भ्रष्ट सहकर्मी ऐसा ही बोलते हैं.

अर्क तरुन की डाल तें, कहूँ गज बाँधे जांय. कच्चे पेड़ की डाल से हाथी नहीं बांधे जाते. अपर्याप्त साधनों से बड़े बड़े काम नहीं किए जा सकते. अर्क तरु – आक का पेड़.

अर्थ अनर्थ का मूल है. यहाँ अर्थ का अभिप्राय पैसे से है. दौलत सभी प्रकार के अनर्थ की जड़ है.

अर्ध रोग निद्रा हरे, सर्व रोग हरे भूख. यदि रोगी को नींद आने लगे तो इसका अर्थ है उसका आधा रोग दूर हो चुका है और भूख लगने लगे तो पूरा रोग. 

अल गई, बल गई, जलवे के वक्त टल गई. बातें बहुत बनाना और काम के समय गायब हो जाना. जलवा – मुसलमानों में नई बहू की मुँह दिखाई. नई बहू को मुंह दिखाई के वक्त रूपये देने होते हैं. घर की कोई औरत बहुत बातें बना रही है, बहू की बलैयां ले रही है, पर मुंह दिखाई के समय गायब हो जाती है.

अलख राजी तो खलक राजी. जिस पर प्रभु प्रसन्न उस से दुनिया राजी है. 

अलग हुआ बेटा पड़ोसी बराबर. जो बेटा संपत्ति में बंटवारा कर के अपना व्यवसाय व चूल्हा अलग कर ले वह पड़ोसी के समान हो जाता है.

अलबेली ने पकाई खीर, दूध के बदले डाला नीर. नौसिखिया लोगों का मज़ाक उड़ाने के लिए.

अला लूँ बला लूँ, थाली सरका लूँ. प्यार भरी बातों में फंसा कर थाली अपनी ओर सरका लेना. किसी को बेबकूफ बना कर अपना मतलब निकालना.

अलूनी सिल कुत्ता भी न चाटे. जिस काम से कुछ प्राप्त न हो उसे कौन करेगा.

अल्कस नींद मर्द को मारे, नार को मारे हांसी, अधिक ब्याज बनिए को मारे, चोर को मारे खांसी. पुरुष को आलस्य, स्त्री को हंसी मज़ाक, बनिये को अधिक ब्याज, (क्योंकि उसे न लौटा पाने से रकम डूब जाती है) और चोर को खांसी मार देती है.

अल्प विद्या भयंकरी. अधूरा ज्ञान हानिकारक होता है.

अल्पाहारी सदा सुखी. कम खाने वाला सुखी रहता है. (अधिक खाने से रोग होते हैं और घर का बजट भी बिगड़ता है).

अल्ला तेरी आस, नजर चूल्हे पास. ऊपर से दिखाने को कह रहे हैं कि अल्लाह तेरा आसरा है लेकिन नजर चूल्हे पर ही है.

अल्ला देवे खाने को तो कौन जाय कमाने को. यदि भगवान सब को बैठा कर खिलाएगा तो कोई मेहनत क्यों करेगा.

अवगुण तब अजमाइए जब गुण न पूछे कोय. जब आदमी के गुणों की कद्र न हो तो उसे गलत तरीके अपना कर काम निकालना पड़ता है.

अवसर और अंडा एक बार में एक ही आते हैं. मुर्गी एक बार में एक ही अंडा देती है. इसी प्रकार किसी व्यक्ति को एक बार में एक ही अवसर मिलता है. इंग्लिश में कहावत है – Blessings never come in pairs, misfortunes never come alone.

अवसर चूके, जगत थूके. जो सही अवसर को भुनाने में चूक जाता है उस की सभी लोग लानत मलानत करते हैं.

अवसर पर हाथ आए सो ही हथियार. हथियार वही काम का है जो मौके पर उपलब्ध हो.

अव्वल मरना आखिर मरना, फिर मरने से क्या है डरना. पहले मरें या बाद में, मरना एक दिन है ही तो डरना कैसा.

अशर्फियाँ लुटें, कोयलों पर मुहर. महत्वपूर्ण चीजों को लुटाना और महत्वहीन चीजों को संभाल कर रखना. इंग्लिश में कहावत है Penny wise pound foolish.

असल असल है, नकल नकल है. अर्थ स्पष्ट ही है.

असल कहे सो दाढ़ीज़ार. जो सच कहे वह बुरा है क्योंकि सच कड़वा होता है. (दाढ़ीज़ार – एक गाली)

असाढ़ चूका किसान और डाल चूका बंदर. आषाढ़ में जो किसान बुवाई करने से चूक जाता है वह पछताता ही रह जाता है (जिस प्रकार डाल से डाल पर छलांग लगाने वाला बन्दर डाल पकड़ने से चूक जाए तो पछताता है).

असाढ़ में खाद खेत में जावै, तब भरि मूठि दाना पावै. खाद को असाढ़ के महीने में डालने से फसलों में अच्‍छी पैदावार होती है. 

अस्सी की आमदनी चौरासी का खर्चा. जब खर्च आमदनी से अधिक हो.

अस्सी की उमर, नाम मियां मासूम. नाम के विपरीत शख्सियत.

अस्सी बरस पूरे किये फिर भी मन फेरों में. 1. अस्सी साल के हो गए हैं फिर भी हेर फेर में ही मन लगता है. 2. अस्सी साल के हो गये हैं पर शादी करना चाह रहे हैं.

अहमक से पड़ी बात, काढ़ो सोटा तोड़ो दांत.  मूर्ख से पाला पड़े तो डंडा निकालो और दांत तोड़ दो. 

अहमद की दाढ़ी बड़ी या मुहम्मद की. बेकार की बहस.

अहमद की पगड़ी महमूद के सर. बेतुका काम या एक का नुकसान कर के दूसरे को लाभ पहुँचाना.

अहिंसा परमोधर्म:  किसी के प्रति हिंसा न करना सबसे बड़ा धर्म है. लेकिन इसके आगे कहा गया है – धर्म हिंसा तथैव चाहिए, अर्थ धर्म की रक्षा के लिए हिंसा करनी पड़े तो उचित है.

अहिर मिताई कब करे जब सब मीत मरि जाए. (भोजपुरी कहावत) अहीर से दोस्ती तब करो जब सब दोस्त मर जाएँ.

अहिर मिताई बादर छाँई, होवे होवे नाहीं नाहीं. अहीर की दोस्ती बादलों की छाँव के समान क्षणिक होती है.

अहिर, बानिया, पुलिस, डलेवर, नहीं किसी के यारी, भीतरले में कपट राखल, मीठी बोली प्‍यारी. (भोजपुरी कहावत) अहीर, बनिया, पुलिस और ड्राइवर लोग किसी के दोस्त नहीं होते, ऊपर से मीठी बोली बोलते है पर भीतर से कपट रखते हैं.

अहिरे के बिटिया के लुरबुर जीव, कब जइहें सास कब चटिहूं घीव. अहीर की बेटी को घी खाने की आदत होती है. ससुराल में भी वह इसी जुगाड़ में रहती है कि कब घी चाटने को मिले.

अहीर अपने दही को खट्टा नहीं बताता. अपनी चीज़ की बुराई कोई नहीं करता.

अहीर का क्या जजमान, लप्सी का क्या पकवान. अहीर बहुत अच्छा जजमान नहीं है क्योंकि वह अधिक दक्षिणा नहीं दे सकता, उसी तरह जैसे लप्सी अच्छा पकवान नहीं है.

अहीर का पेट गहिर, बामन का पेट मदार. अहीर का पेट गड्ढा है और ब्राह्मण का पेट ढोल, अर्थात दोनों अधिक खाते हैं.

अहीर खड़ा सामने मैं रूखा खाऊँ. जब सुविधाएं उपलब्ध हों तो मैं परेशानी क्यों उठाऊं.

अहीर गड़रिया पासी तीनों सत्यानासी. पुरानी कहावतों में कुछ जातियों के विषय में आधारहीन बातें कही गई हैं, उन में से एक.  

अहीर देख गड़रिया मस्ताना. अहीर को पिए देख कर गड़रिए ने भी चढ़ा ली. दूसरे की बुराई का गलत अनुसरण करना.

अहीर साठ बरिस तक नाबालिग रहें. अहीर के विषय में कहा गया है कि वह साठ साल की आयु तक भी समझदार नहीं होते.  

अहीर से जब भेद मिले जब बालू से घी. बालू से घी कभी नहीं निकल सकता इसी प्रकार अहीर से उसके काम का भेद कोई नहीं पा सकता.

, आँ, आं

आ गई तो ईद बरात नहीं तो काली जुम्मेरात. भाग्य ने साथ दिया तो मौज ही मौज वरना परेशानी तो है ही.

आ झगड़ालू राड़ करें, ठाली बैठे क्या करें. कुछ लोगों को झगड़ा करने का शौक होता है, उन के लिए कही गई कहावत.

आ पड़ोसन लड़ें. जो लोग बिना बात लड़ने पर उतारू रहते हैं उनके लिए.

आ बला गले लग. जबरदस्ती मुसीबत बुलाना.

आ बे पत्थर पड़ मेरे गाँव. जबरदस्ती मुसीबत मोल लेना. 

आ बैल मुझे मार, सींग से नहीं तो पूंछ से ही मार. जबरदस्ती मुसीबत मोल लेना. अधिकतर इस का पहला भाग ही बोला जाता है.

आ रे मेरे लाले, सेंत का चन्दन तू भी लगा ले, औरों को भी बुला ले. 1.जहाँ कोई कीमती चीज़ मुफ्त में मिल रही हो. 2. किसी दुखी बाप का नालायक बेटे से कथन.

आ रै मेरा सम्पटपाट, मैं तनै चाटूं, तू मनै चाट. (हरियाणवी कहावत) दो निकम्मे व्यक्तियों का समागम होना.

आँख एक नहीं, कजरौटा दस ठो. कजरौटा – काजल बना कर रखने की डिब्बी. आवश्यकता के बिना आडम्बर की वस्तुएं इकट्ठी करना. (देखिये परिशिष्ट)

आँख ओट पहाड़ ओट. जो आँखों से दूर हो जाता है वह बहुत दूर हो जाता है. इंग्लिश में इस तरह की कहावत है – out of sight, out of mind.

आँख और कान में चार अंगुल का फर्क. (अंतर अंगुली चार का आँख कान में होए). देखे और सुने में बहुत अंतर होता है. सुना हुआ अक्सर गलत हो सकता है इस लिए देखे बिना किसी बात पर विशवास नहीं करना चाहिए.

आँख का अंधा गाँठ का पूरा. यहाँ पर आँख का अंधा का अर्थ है मूर्ख. गाँठ का पूरा याने जिसकी धोती की गाँठ में खूब पैसे बंधे हों. धनी परन्तु मूर्ख व्यक्ति (जिसको आसानी से ठगा जा सके).

आँख की तिरिया गाँठ को दाम, बेई बखत पे आवें काम. जो पत्नी हर समय आँख के सामने रहती है और जो पैसा गाँठ में मौजूद है वे ही समय पर काम आते हैं.

आँख के अंधे नाम नयनसुख. गुण के विरुद्ध नाम.

आँख गई संसार गयो कान गयो सुख आयो. आँख की रोशनी चली जाना संसार का सब से बड़ा दुःख है और कान से सुनाई न पड़ना सुख है (न किसी के मुंह से अपनी बुराई सुनोगे न दुखी होगे).

आँख गई संसार गयो, कान गयो अहंकार गयो. आँख की रोशनी जाना संसार की सब से बड़ी हानि है, लेकिन सुनने की क्षमता जाने से नुकसान के साथ एक लाभ भी होता है कि मान अपमान और अहंकार से दूर हो जाता है (कुछ न सुन पाने के कारण). 

आँख चौपट, अँधेरे नफरत. आँख है ही नहीं और कहते हैं कि हमें अँधेरे से नफरत है. 

आँख देखे को पाप है. संसार में जाने क्या क्या अनर्थ हो रहे हैं जो हम देख लें उसी को हम पाप समझते है.

आँख न दीदा, काढ़े कसीदा. किसी काम को करने का सलीका और सामर्थ्य न होने पर भी वह काम करना. (देखिये परिशिष्ट)

आँख न नाक, बन्नी चाँद सी. अपनी चीज़ जैसी भी हो, बढ़ा चढ़ा के बताना. बन्नी माने ब्याह योग्य कन्या.

आँख नहीं पर काजर पारे. श्रृंगार करने लायक शक्ल नहीं हो पर श्रृंगार करने का बहुत शौक हो तब.

आँख नाक मोती करम ढोल बोल अरु नार, इनके फूटे न भला ढाल तोप तलवार. आँख, नाक, मोती, कर्म(भाग्य के लिए प्रयोग किया गया है), ढोल, वचन, नारी, ढाल, तोप और तलवार, इनका फूटना (खंडित होना) अच्छा नहीं होता.

आँख फड़के दहनी, लात घूँसा सहनी. स्त्रियों के लिए दाईं आँख फडकना अशुभ माना जाता है.

आँख फड़के दहिनी, मां मिले कि बहिनी, आँख फड़के बाँई, भाई मिले कि सांई. दाहिनी आँख फड़कती है तो माँ या बहन से मुलाकात होती है, बांयी आँख फड़के तो भाई या पति से.

आँख फूटी पीर गयी. किसी की आँख बहुत लम्बे समय से बहुत तकलीफ दे रही है और ठीक भी नहीं हो रही है. अंततः आँख की रौशनी चली जाती है पर तकलीफ ख़तम हो जाती है. उसे आँख जाने का दुःख तो है पर पीड़ा ख़तम होने का सुख भी है. कोई नालायक बेटा बहू माँ बाप को बहुत परेशान कर रहे हैं. अंत में वे अलग हो जाते हैं, ऐसे में पिता यह कहावत कहता है. इंग्लिश में कहावत है – Better a finger off than always aching. कहीं कहीं कहते हैं – फोड़ा फूटा पीर गई.

आँख फूटे भौंह नहीं भाती. जब तक आँखें होती हैं तब तक भौंह अच्छी लगती हैं, आँख फूट जाए तो भौंह भी अच्छी नहीं लगती. जैसे लड़की की म्रत्यु हो जाए तो दामाद अच्छा नहीं लगता.

आँख फूटेगी तो क्या भौं से देखेंगे. किसी अति महत्वपूर्ण वस्तु का कोई विकल्प नहीं होता.

आँख फेरे तोते की सी, बातें करे मैना की सी. मीठी बातें करने वाला धोखेबाज व्यक्ति.

आँख बची माल दोस्तों का. ऐसे धोखे बाज दोस्तों के लिए जो मौका मिलते ही चूना लगाने से बाज नहीं आते.

आँख मींचे अँधेरा होय. यदि कोई जान बूझ कर अनजान बन रहा हो तो.

आँख में अंजन दांत में मंजन, नितकर नितकर नितकर; कान में तिनका नाक में उँगली मतकर मतकर मतकर. बच्चों को दी जाने वाली सीख.

आँख में कीचड़ और नाम मृगनैनी. गुण के विपरीत नाम.

आँख वाले की लुगाई अंधा ले गया. किसी गप्प हाँकने वाले का मजाक उड़ाने के लिए.

आँख सुख कलेजे ठंडक. जिन चीजों को देखने से आँखों को सुख मिलता है उनसे हृदय को भी शान्ति मिलती है. 

आँख से दूर, दिल से दूर. प्रेम बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि मिलते जुलते रहा जाए. बहुत दिन तक दूर रहने से स्नेह भी कम हो जाता है. 

आँख ही फूटी तो अंजन क्या लगाएँ. जिस काम के लायक नहीं हैं वह काम क्यों करें. 

आँखिन सों सब देखियत, आँखि न देखि जाहिं. आँखों से ही हम सब कुछ देखते हैं पर आँख स्वयं को नहीं देख सकती.

आँखें मन का दर्पण हैं. मनुष्य के मन में जैसे भाव होते हैं वही उसकी आँखों में प्रकट होते हैं. इंग्लिश में कहावत है – Eyes are windows of the soul.

आँखें मीचे रात नहीं होती. (आँखें मीच अँधेरा करना). जान बूझ कर अनजान बनने वाले के लिए.

आँखें हुईं चार तो मन में आया प्यार, आँखें हुईं ओट तो जी में आया खोट. व्यक्ति सामने हो तो प्यार जताना, पीठ पीछे उसका अहित करना.

आँखों का नूर, दिल की ठंडक. अत्यधिक प्रिय व्यक्ति.

आँखों के आगे नाक, तो सूझे क्या ख़ाक. विवेक के आगे जब व्यक्ति का अहम आ जाता है तो उसे कुछ भला बुरा नहीं दीखता. इसको मजाक में भी प्रयोग करते हैं – जब कोई चीज़ सामने रखी हो और आप उसे ढूँढ़ न पा रहे हों.

आँखों के आगे पलकों की बुराई. किसी व्यक्ति के सामने उसके बहुत प्रिय व्यक्ति की बुराई करना.

आँखों देखा भाड़ में जाए, मैंने कानों सुना था. जो आदमी आँखों देखी बात पर विश्वास न करे उसका मजाक उड़ाने के लिए.

आँखों देखी कानों सुनी. जो बात सुनी हुई भी हो और देखी हुई भी. सुनिश्चित.

आँखों देखी परसराम, कभी न झूठी होय. आँखों देखी बात कभी झूठी नहीं होती.

आँखों देखी प्रीत और मुँह देखा व्यवहार. जो लोग केवल सामने पड़ जाने पर प्रेम दिखाते हैं उन के लिए.

आँखों देखी साची, कानों सुनी काची. जो आँखों से देखते हैं वही सच है, कान से सुनी झूठी भी हो सकती है.

आँखों देखे सो पतियाय. स्वयं अपनी आंखों से देख कर ही किसी बात पर पूरी तरह से विश्वास किया जा सकता है. इंग्लिश में कहते हैं seeing is believing.

आँखों पर काजल का क्या बोझ (आँखों पर पलकों का बोझ नहीं होता). अपने प्रिय व्यक्ति के लिए कुछ करना पड़े तो हमें उसका बोझ नहीं लगता

आँखों से आंसू बहें, दिल में लड्डू फूटें. दिखावे का दुख (जैसा सासू के मरने पर होता है).

आँसू एक नहीं कलेजा टूक-टूक. दिखावटी शोक. शोक बहुत दिखा रहे हैं और आंसू एक भी नहीं आ रहा है.

आंखन अंजन, दांतन नोन, भूखों राखें चौथो कोन, ताजो खावे, बाएं सोय, ताको रोग कबहुं न होय. चौथो कोन – एक चौथाई. जो व्यक्ति आँखों में नित्य काजल डालता हो, दांतों में नमक से मंजन करता हो, भूख से पौना भोजन करे, ताजा खाना खाए और बाईं करवट सोए, वह बीमार नहीं पड़ता.

आंच के पास घी जरूर पिघलता है. युवक युवती साथ रहें तो काम भावनाएं उत्तेजित हो जाती हैं, इसलिए सावधानी बरतना आवश्यक है.

आंत भारी तो माथ भारी. पेट में भारीपन हो तो सर भी भारी होता है

आंधर कूकर, बतास भूँके. बतास – हवा. अंधा कुत्ता हवा चलने पर भौंकने लगता है. अंधा व्यक्ति शक्की हो जाता है (क्योंकि वह देख नहीं पाता इसलिए बात बात पर शक करता है). इस का अर्थ यह भी हो सकता है कि अन्धविश्वासी व्यक्ति को अनजाने भय बहुत सताते हैं (भूत प्रेत आदि).

आंधर कूटे, बहिर कूटे, चावल से काम. धान को कूट कर उससे छिलका अलग करते हैं और चावल अलग. चाहे अंधा व्यक्ति कूटे चाहे बहरा, हमें चावल से मतलब है. काम चाहे कैसे भी हो, चाहे कोई भी करे, काम होने से मतलब.

आंधी आई ही नहीं, हाहाकार पहले ही मच गया. कोई मुसीबत आये बिना उसकी आशंका से ही हाय तौबा मचाना.

आंधी आई है तो मेह भी आएगा. संकट से डरो नहीं, यह समाप्त अवश्य होगा. और हो सकता है यह किसी अच्छाई का संकेत हो.

आंधी आवे बैठ जाए, पानी आवे भाग जाए. सीख दी गई है – आंधी आने पर बैठ जाओ, खड़े रहने पर गिर सकते हो. पानी बरसे तो वहाँ से हट जाओ, खड़े हो कर भीगो नहीं.

आंधी का मेह, बैरी का नेह. दोनों स्थाई नहीं होते.

आंधी के आगे पंखे की हवा (आंधी के आगे बेने की बतास). उसी अर्थ में है जैसे कहते हैं – सूरज को दिया दिखाना.

आंधी के आम और ब्याह के दाम किसने गिने हैं. शादी में अनाप-शनाप खर्च होता है इस बात को आंधी में अनगिनत आम टूटते हैं इस बात की उपमा देकर बताया गया है.

आंधी के आम. आंधी आने पर एक साथ बहुत से आम गिर जाते हैं जिन्हें कम दाम पर बेचना पड़ता है. कोई वस्तु बहुत अधिक मात्रा में और कम दाम में मिल जाए तो.

आंधी में पेड़ गिर जाते हैं घास बच जाती है. जो लोग कठिन परिस्थितियों में लचीला रुख अपनाते हैं वह उन परिस्थितियों से सफलतापूर्वक बाहर निकल आते हैं जो अड़ियल रुख अपनाते हैं वे समाप्त हो जाते हैं.

आई तीज, बिखेर गई बीज, आई होली, भर ले गई झोली. अक्षय तृतीया के बाद एक के बाद एक त्यौहार होते है. होली के बाद जल्दी कोई त्यौहार नहीं होता.

आई तो रमाई, नहीं तो फ़कत चारपाई. मिल गया तो मौज कर लो नहीं तो शांति से बैठो. (रमाई मतलब धूनी रमाई, हुक्का चिलम आदि से तात्पर्य है).

आई तो रोजी नहीं तो रोजा. भाग्य ने साथ दिया तो रोजी रोटी मिल जाएगी नहीं तो भूखे रहना पड़ेगा. मुसलमानों में रमजान के महीने में रोजे (व्रत) रखे जाते हैं.

आई थी बिल्ली, पूंछ थी गीली. सास और बहू पास पास लेटी थीं. सास ने कहा, जरा देख बाहर वर्षा तो नहीं हो रही. बहू ने कहा अभी बिल्ली आई थी उसकी पूंछ गीली थी इसका मतलब वर्षा हो रही है. सास ने कहा जरा दीपक बुझा दे, बहू ने कहा आँखें बंद कर लो अंधेरा हो जाएगा. सास ने कहा जरा किवाड़ बंद कर दे, बहू ने कहा, दो काम मैंने कर दिए अब एक आप भी कर लो. 

आई थी मांड को, थिरकन लगी भात को. अमीर लोगों के यहाँ जो चावल को मांड निकलता है उसे गरीब लोग मांग कर ले जाते हैं. कोई मांड मांगने आये और चावलों पर जोर जमाने लगे तब.

आई थी मिलने, बिठाली दलने. आप किसी से ऐसे ही मिलने जाएँ और वह आप को किसी काम में लगा ले. (दलने का मतलब दाल दलने से है).

आई न गई, कौन नाते बहिन. जबरदस्ती रिश्ता जोड़ने वाले के लिए.

आई न गई, कौले लग ग्याभन भई. कोई कुआंरी या विधवा स्त्री गर्भवती हो गई और अपने को निर्दोष बता रही है, तो अन्य स्त्रियाँ उस से पूछ रही हैं कि तू कहीं आई गई नहीं तो यह कैसे हो गया. कोई दोषी व्यक्ति अपने को निर्दोष सिद्ध करने का प्रयास करे तो. (कौले लग – गले लग के, ग्याभन – गर्भवती)

आई बहू आयो काम, गई बहू गयो काम. बहू के आते ही सारे काम दिखाई देने लगते हैं (बहू से कराने के लिए) और बहू के जाते ही काम दिखाई पड़ना बंद हो जाते हैं. संस्कृत में कहावत है – यावत् गृहणी तावत् कार्यं.

आई बहू, जन्मा पूत. दोहरी ख़ुशी. बहू घर में आई और पहली बार में ही पुत्र को जन्म दिया.

आई बी आकिला, सब कामों में दाखिला. कुछ लोग अपने को बहुत अक्लमंद समझते है और सब कामों में टांग अड़ाते हैं, उन का मजाक उड़ाने के लिए.

आई माई को काजर नहीं, बिलैय्या को भर मांग. बिलैया माने बिल्ली. यहाँ पराई औरत या दुष्ट पत्नी से तात्पर्य है. अपनी माँ के लिए काजल भी नहीं है और बिल्ली के लिए ढेर सारा सिंदूर. अपने लोगों की उपेक्षा कर के दूसरों के काम करना. मां की उपेक्षा कर के पत्नी की गुलामी करना.

आई मुझको, ले गई तुझको. किसी कम आयु के व्यक्ति की असमय मृत्यु हो जाए तो बड़े बुजुर्ग ऐसे बोलते हैं.

आई मौज फ़कीर की, दिया झोपड़ा फूँक. (दी मढैया फूँक) बेफिक्रा और मनमौजी आदमी कुछ भी कर सकता है.

आई है जान के साथ, जाएगी जनाज़े के साथ. कोई असाध्य बीमारी.

आऊँ न जाऊं घर बैठी मंगल गाऊं. जो लोग सामाजिक आयोजनों में कहीं आते जाते नहीं हैं उन पर व्यंग्य.

आए का मान करो, जाते का सम्मान करो. घर में कोई भी आए उसका मान करना चाहिए. कोई छोटा आदमी हो तो भी उससे उचित व्यवहार करना चाहिए. जब कोई जा रहा हो तो उसको सम्मान के साथ विदा करना चाहिए.

आए की खुशी न गए का गम. उन लोगों के लिए जोकोई चीज़ मिलने पर बहुत प्रसन्न नहीं होते और कुछ खोने पर बहुत दुखी भी नहीं होते.

आए गए से पूछे बात, करे न खेती अपने हाथ. जो अपने हाथ से खेती न करे और आए गए लोगों से ही खेती का हाल पूछता रहे उसकी खेती कभी सफल नहीं हो सकती.

आए चैत सुहावन, फूहड़ मैल छुड़ावन. ऐसे व्यक्ति के लिए कहा गया है जो जाड़े भर नहीं नहाता और चैत आने पर मैल छुड़ाने बैठा है. व्यवहार में ऐसे व्यक्ति के लिए प्रयोग करते हैं जो कभी कभी ही सफाई करता हो.

आए थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास. सांसारिकता में फंस कर अपने जीवन का उद्देश्य भूल जाना.

आए वीर, भागे पीर. 1.वीर पुरुषों के सामने भूत प्रेत सब भाग जाते हैं. 2. भूत प्रेत सब मन का वहम हैं जिन्हें वीर पुरुष नहीं मानते.

आए हैं सो जायेंगे, राजा, रंक, फ़कीर. (आया है तो जायगा क्या राजा क्या रंक.) सभी लोगों को इस दुनिया से जाना है. सीख यह है कि हमें अपने पद और धन का अहंकार नहीं करना चाहिए.

आओ तो घर आपका, जाओ तो वह रास्ता. प्रेम से आओ तो स्वागत है, रूठ कर जाओ तो रास्ता सामने है.

आओ निकम्मे कुछ तो करो, खाट उधेड़ कर रस्सी बुनो. निकम्मे आदमी को उलाहना देने के लिए. 

आओ पूत सुलच्छने, घर ही का ले जाव. अपने कुपुत्र से दुखी होकर पिता कह रहा है कि तुम कुछ कमा कर तो नहीं ला सकते, घर का ही ले जाओ.

आओ बहन लड़ें, ठाली बैठी क्या करें. लड़ाकू स्त्रियों के लिए.

आओ बैठो गावो गीत, नहीं हमारे बताशों की रीत. जो लोग हमारे यहाँ विवाह आदि में आए हैं वो शौक से गाने वाने गाएं, हमारे यहाँ कुछ खिलाने पिलाने का रिवाज़ नहीं है.

आओ मित्तर जाओ मित्तर घर तुम्हारो है, चून होय तुम्हारे पास तो चूल्हा हमारो है. (बुन्देलखंडी कहावत) चतुर व्यक्ति आने वाले अतिथि को सीधे सीधे मना नहीं कर रहा है, कह रहा है कि हमारा चूल्हा तैयार है, बस आटा तुम ले आओ. चून – आटा.

आओ मियां खाना खावो, बिसमिल्ला झट हाथ धुलावो, आओ मियां बोझ उठावो, हम बूढ़ा कोई ज्वान बुलावो. खाने पीने के लिए फौरन तैयार परन्तु काम करने के लिए बहाने बनाना.    

आओ मेरी हाट में, देऊं तेरी टाट में. लालची बनिया इस फ़िराक में रहता है कि कोई ग्राहक उसकी दूकान में आए और वह उसे ठगे.

आओ-आओ घर तुम्हाराखाना माँगे दुश्मन हमारा. झूठा स्वागत सत्कार.

आक का कीड़ा आक में राजी, ढाक का कीड़ा ढाक में राजी. जो जिस परिवेश में रह रहा है वह उसी में संतुष्ट रहता है.

आक को सींचे पर पीपल को न सींचे. पक्षपात पूर्ण और बेढंगा काम.

आक में ईख और ईख में आक. निकृष्ट कुल में भी कभी कभी उच्च संस्कार वाले जन्म लेते हैं और उच्च कुल में नीच.

आकाश बांधू, पाताल बांधू, घर की टट्टी खुली. उन लोगों के लिए जो बड़ी बड़ी योजनाएं बनाते हैं और अपने घर में छोटा सा काम भी नहीं कर सकते. टट्टी का अर्थ है सींकों से बना हुआ पर्दा. (देखिए परिशिष्ट)

आकाश बिना खम्बों के खड़ा है. आकाश सत्य और धर्म के सहारे खड़ा है.

आकास बिजली चमके, गधा दुलत्ती झाड़े. जिस बात से कोई लेने देना नहीं और जिस में कुछ कर भी नहीं सकते उस पर बिना बात आक्रोश प्रकट करना.

आखिर शंख बजा लेकिन बाबाजी को पदा के. काम हुआ लेकिन कड़े परीश्रम के बाद.

आग और पानी को कम न समझें. थोड़ी सी भी आग बढ़ के विकराल रूप धारण कर सकती है और बाढ़ का पानी आज थोड़ा हो तो भी कल बढ़ कर बहुत नुकसान पहुँचा सकता है.

आग और वैरी को कम न समझो. आग और शत्रु को छोटा नहीं समझना चाहिए.

आग कह देने से मुँह नहीं जल जाता. अर्थ स्पष्ट है.

आग की लपटों को दीया जलाकर कौन देखे. जो सत्य स्वयं प्रकाशमान हो उसे सिद्ध करने की क्या आवश्यकता.

आग को दामन से ढकना. किसी खतरे को टालने के लिए ऐसा उपाय करना जिससे और बड़ा नुकसान हो सकता हो.

आग खाएगा तो अंगार उगलेगा. 1.गलत काम का नतीज़ा गलत ही होता है. 2.व्यक्ति अगर गलत शिक्षा ग्रहण करेगा तो गलत बातें ही बोलेगा.

आग खाओगे तो अंगार हगोगे. गलत तरीकों से कमाया हुआ धन अंततः व्यक्ति को कष्ट ही पहुंचाता है.

आग खाय मुँह जरे, उधार खाय पेट जरे. आग खाने से मुँह जल जाता है और उधार ले कर खाने पर उसे चुकाने की चिंता आदमी को ही जला देती है.

आग तापें चीलर मारें, एक साथ दो काम निबारें. होशियार लोग दो काम एक साथ कर लेते हैं.

आग बिना धुआँ नहीं. अगर कहीं धुआं दिख रहा है तो आग जरूर होगी. अगर किसी परिवार में या संगठन के लोगों में बाहर से ही कुछ खटपट दिख रही है तो इस का मतलब यह है कि अंदरूनी क्लेश अवश्य होगा. इंग्लिश में कहावत है – There is no smoke without fire.

आग में तप के सोना और खरा हो जाता है. गुणवान व्यक्ति कठिनाइयों से जूझ कर और निखर जाता है.

आग लगन्ते झोपड़ी, जो निकले सो लब्ध. झोंपड़ी में आग लग गई हो तो जो कुछ भी बचा कर निकाल सको उसी में अपने को भाग्यशाली मानना चाहिए.

आग लगाकर पानी को दौड़े. पहले स्वयं कोई परेशानी पैदा करना और फिर उस का हल खोजने के लिए दौड़ भाग करना.

आग लगे को धूल बतावे. आग लगने पर धुआँ उठ रहा है, उसे धूल बता कर लोगों को धोखा दे रहे हैं या खुद को धोखे में रख रहे हैं. जैसे देश पर बड़ा संकट हो और नेता लोगों को गुमराह करे.

आग लेने आए थे, क्या आए क्या चले. जब आग जलाने के लिए माचिस और लाइटर नहीं होते थे तब लोग पड़ोसी के घर से आग मांग कर लाते थे. (जलता हुआ कोयला या लकड़ी). जो आदमी बहुत जल्दी में आए और चला जाए उसके लिए मजाक. 

आग लेने रोज आवे, पर उपला कभी न लावे. जब माचिस का आविष्कार नहीं हुआ था तो लोग आस पड़ोस से आग मांग कर लाते थे (कोई जलता हुआ कोयला या कंडे का टुकड़ा). कोई स्वार्थी व्यक्ति किसी के घर रोज आग मांगने जाए और उसी का कंडा रोज ले जाए तो.

आग से जले हुए जुगनुओं से डरते हैं. जो आग से जल चुका हो वह कोई भी चमकदार चीज़ देख कर डरता है.

आगामीर की दाई, सब सीखी सीखाई. अवध के नवाब गाजीउद्दीन के वजीर आगामीर एक बहुत चालाक आदमी थे. उनके नौकर चाकर भी बड़े खुर्रांट थे. किसी बड़े आदमी के शातिर नौकर पर व्यंग्य करने के लिए यह कहावत बोली जाती है.

आगाय सो सवाय (अगाई बोवाई, सवाई लवाई). समय से पूर्व खेती के काम करने से सवाया लाभ होता है.

आगे आगे बामना, नदी ताल बरजन्ते. जीमने और दक्षिणा समेटने में ब्राह्मण आगे रहते है, जहां खतरा हो (जैसे नदी तालाब पार करना हो) तो कहते हैं कि यह शास्त्र में वर्जित है. 

आगे को सुख समझ होय, बीती जो बीती. जो बीत गई उस की चिंता छोड़ कर आगे मिलने वाले सुखों पर ध्यान केन्द्रित करो.

आगे जाएं घुटने टूटें, पीछे देखें आँखें फूटें. किसी काम के दो विकल्प हैं और दोनों में ही बराबर संकट है.

आगे दौड़, पीछे छोड़. आगे बढ़ने का प्रयास करो, पीछे जो गलतियाँ हुईं उनका दुःख मनाने में समय मत गंवाओ. बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले. इंग्लिश में कहावत है – Let bygones be bygones.

आगे नाथ न पीछे पगहा, सबसे भला कुम्हार का गदहा. बैल के नथुने में छेद कर के रस्सी डाल देते हैं जिसे नाथ (नथना) कहते है, हाथी के पिछले पैर में रस्सी या जंजीर बाँध देते हैं जिसे पगहा कहते हैं. गाय, भैंस, बैल और घोड़े के गले में बंधे रस्सी के फंदे को भी पगहा कहते है. धोबी के गधे को न तो नथा जाता है और न ही उस के पैर में पगहा पहनाया जाता है (क्योंकि वह स्वभाव से बहुत सीधा होता है). कहावत का प्रयोग उन लोगों के लिए करते हैं जिन पर परिवार का कोई बंधन न हो. भोजपुरी में इसे इस प्रकार बोला जाता है – आगे नाथ ना पीछे पगहा, खा के मोटा भइले गदहा.

आगे पग से पत बढ़े, पाछे से पत जाए. अपने मार्ग पर आगे बढ़ने से व्यक्ति का सम्मान बढ़ता है और पीछे हटने पर सम्मान कम होता है.

आगे बैजू पीछे नाथ. 1. जब कोई बिना सोचे समझे किसी का अंधानुकरण करे. 2. जब कोई बड़ा आदमी किसी छोटे का अनुसरण करे.

आगे हाथ, पीछे पात. अत्यधिक निर्धन व्यक्ति जो शरीर को हाथ और पत्तों से ढकता है. 

आगे ही गधे आवें तो पीछे घोड़ों की क्या आस. सेना में या शोभायात्रा में आगे गधे चल रहे हों तो पीछे घोड़ों की क्या उम्मीद करें. जिस काम की शुरुआत ही बेकार हो उस में आगे क्या उम्मीद.

आछे दिन पाछे गये, गुरु (हरि) सों किया न हेत, अब पछितावे होत क्या, जब चिड़ियाँ चुग गईं खेत. आम तौर पर इसका बाद वाला हिस्सा ही बोला जाता है. यह कहावत ऐसे व्यक्ति के लिए कही जाती है जो आलस के कारण समय पर जरूरी काम नहीं करता और जब काम बिगड़ जाता है तो पछताता है. 

आज का बनिया कल का सेठ. जो आज मेहनत करता है वही कल को बड़ा आदमी बन सकता है.

आज की कसौटी बीता हुआ कल है. कसौटी माने वह पत्थर जिस पर रगड़ कर सोने के असली होने की पहचान करते हैं, अर्थात किसी चीज़ को परखने का साधन. कोई व्यक्ति या समाज आज क्या है इसको परखने के लिए उसके बीते हुए कल को अवश्य देखना चाहिए.

आज की ठोकर, कल के गिरने से बचा सकती है. ठोकर लगने से इंसान सीखता है.

आज के थपे आज ही नहीं जलते. उपलों (गोबर से बने कंडे) को जिस दिन थापते (बनाते) हैं उसी दिन नहीं जलाते (पहले सूखने देते हैं). अर्थ है कि किसी काम का फल मिलने के लिए उतावलापन नहीं करना चाहिए कुछ समय प्रतीक्षा करनी चाहिए.

आज चुराए ककरी, कल चुराए बकरी. आज छोटी मोटी चोरी करने वाला कल बड़ी चीज़ चुराएगा.

आज नगद कल उधार. उधार देने से मना करने के लिए दुकानों पर अक्सर लोग यह लिख कर लगाते हैं. 

आज निपूती कल निपूती, टेसू फूला सदा निपूती. निपूती – जिसके पुत्र न हो. बाँझ स्त्री के लिए अपमान जनक कथन.

आज मरे कल दिन दूसरा. किसी के जाने से दुनिया का कोई काम नहीं रुकता. दुनिया ऐसे ही चलती रहती है. 

आज मरे, कल पितरों में. मृत्यु के बाद हम सभी को पूर्वजों में शामिल हो जाना है.

आज मेरी कल तेरी. स्वार्थी व्यक्ति कोई चीज़ बांटते समय दूसरे को समझा रहा है कि आज मैं ले लेता हूँ, तू कल ले लेना. 

आज मेरी मँगनी, कल मेरा ब्याह, टूट गई टंगड़ी, रह गया ब्याह. हम भांति भांति की योजनाएं बनाते हैं, पर किसके साथ आगे क्या होना है यह कोई नहीं जानता.

आज राज सो राज. जिसका इस समय राज है उसी का हुक्म चलेगा.

आज हम पर तो कल तुम पर. हमारी दुर्दशा देख कर खुश मत हो, जो आज हम पर बीत रही है वह कल तुम पर भी बीत सकती है.

आज हमारी कल तुम्हारी, देखो लोगों फेरा फारी. संसार परिवर्तनशील है किसी को अपनी वर्तमान स्थिति पर न तो अहंकार करना चाहिए न अफ़सोस.

आजमाए को आजमावे, नामाकूल कहावे. जिसके साथ नुकसान उठा चुके हो उसको दोबारा आजमाने वाला मूर्ख कहलाता है. इंग्लिश में कहावत है – If a man deceives me once, shame on him; if he deceives me twice, shame on me.

आटा नहीं तो दलिया जब भी हो जाएगा. गेहूँ को चक्की में पीसते हैं तो अगर पूरी तरह पिस कर आटा नहीं बन पाया तब भी दलिया तो बन ही जाएगा. काम पूरी तरह नहीं होगा तो भी कुछ न कुछ तो निबट ही जाएगा. आजकल के लोगों ने चक्की ही नहीं देखी होगी. (देखिये परिशिष्ट)

आटा निबड़ा, बूचा सटका. बूचा माने कान कटा कुत्ता. खाना ख़तम होते ही कुत्ता अपनी राह निकल लेता है. यह कहावत स्वार्थी लोगों के लिए कही गई है.

आटे का चिराग, घर रखूँ तो चूहा खाए, बाहर रखूँ तो कौआ ले जाए. ऐसी चीज़ जिसकी सुरक्षा कठिन हो.

आटे के साथ घुन भी पीसा जाता है. दोषी व्यक्ति के साथ निर्दोष भी सजा पाता है.

आटे में नमक मिलाया जाता है नमक में आटा नहीं.  झूठ उतना ही बोलो जितने चल जाए.

आठ कठौती मठा पिए, सोलह मकुनी खाय, उसके मरे न रोइए, घर का दलिद्दर जाए. आठ बड़े वाले बर्तन भर कर मट्ठा पीने वाला और सोलह मोटी रोटी खाने वाला (अर्थात बहुत अधिक खाने वाला) कोई घर का सदस्य यदि मर जाए तो रोओ नहीं. उस के मरने से घर का दुःख दारिद्र्य दूर हो जाएगा.

आठ कनौजिया नौ चूल्हे. जिस समाज के लोगों में एकता न हो.

आठ खावे नौ लटकावे. बहुत दिखावा करने वाले के लिए.

आठ जुलाहे नौ हुक्का, तिस पर भी थुक्कम थुक्का. जितने लोग हैं उससे अधिक उपयोग की वस्तुएं हैं, फिर भी आपस में लड़ रहे हैं. 

आठ वार नौ त्यौहार. आठ दिन में नौ त्यौहार. सदा आनंद मनाना. हिन्दुओं में तीज त्यौहार बहुत होते हैं इसको लेकर मजाक.

आता तो सब ही भला, थोड़ा, बहुता, कुच्छ, जाते तो दो ही भले दलिद्दर और दुक्ख. आता तो सब अच्छा लगता है, थोड़ा आये या बहुत, जाती हुई दो ही चीज़ें अच्छी लगती हैं दुःख और दारिद्र्य.

आता हुआ सब को अच्छा लगता है, जाता हुआ किसी को नहीं. मनुष्य का स्वभाव है.

आता है हाथी के मुँह और जाता है चींटी के मुँह. कोई भी संकट आता बहुत तेजी से है और जाता बहुत धीरे धीरे है.

आता हो तो आने दीजे, जाता हो तो गम न कीजे. जो आता हो उसे छोड़ो नहीं, जो चला जाए उसका गम मत करो.

आती बहू जनमता पूत सबको अच्छा लगता है. घर में कोई खुशी हो तो सभी लोग आनंदित होते हैं लेकिन जो लोग बहू के आने पर या पुत्र के जन्म पर बहुत अधिक खुश हो रहे होते हैं उन्हें सयाने लोग यह सीख देते हैं कि जरूरत से ज्यादा खुश मत हो, आगे क्या होगा यह कोई नहीं जानता. 

आतुर खेती, आतुर भोजन, आतुर कीजे बेटी ब्याह. खेती, भोजन और बेटी का ब्याह, इन तीनों कामों में शीघ्रता करनी चाहिए.

आते का बोलबाला, जाते का मुँह काला. अफसर आता है तो सब उस की चापलूसी करते हैं, जाते ही उसकी बुराई करने लगते हैं.

आते जाते मैना न फंसी, तू क्यों फंसा रे कौए. भोला भाला व्यक्ति तो फंसा नहीं तू इतना सयाना हो कर कैसे फंस गया. कोई धूर्त व्यक्ति धोखा खा जाए तो उस पर व्यंग्य..

आत्मघाती महापापी. आत्महत्या को महापाप माना गया है.

आत्मा में पड़े तो परमात्मा की सूझे. पेट में रोटी पड़े तभी भगवान की भक्ति कर सकते हैं.

आदमियों में नउआ, जानवरों में कउआ. जिस प्रकार जानवरों में कौए को धूर्त प्राणी माना जाता है उसी प्रकार मनुष्यों में नाई को चंट चालाक माना गया है. यहाँ नाई से तात्पर्य हज्जाम से नहीं बल्कि हिन्दुओं में रीति रिवाज़ कराने वाले नाई से है. (नरों में नाई, पखेरुओं में काग, पानी में कछुआ, तीनों दगाबाज).

आदमी अनाज का कीड़ा है. अन्न मनुष्य की प्रथम आवश्यकता है.

आदमी अपनी संगत से पहचाना जाता है. कोई आदमी कैसा है यह जानना हो तो यह देखिए कि उसके यार दोस्त कौन हैं. इंग्लिश में कहते हैं – Man is known by the company he keeps.

आदमी उपदेश का नहींतारीफ़ का भूखा है. उपदेश सुनना किसी को अच्छा नहीं लगता, पर प्रशंसा सुनना सबको अच्छा लगता है. इंग्लिश में कहावत है – The sweetest of all sounds is praise.

आदमी का आदमी ही शैतान. आदमी को सबसे अधिक हानि आदमी ही पहुँचाता है.

आदमी का तोल एक बोल में पहचानिए. अनुभवी लोग किसी मनुष्य से थोड़ी बहुत बात कर के ही उसकी वास्तविकता का अंदाज़ लगा लेते हैं.

आदमी की कदर मरे पर होती है. किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद ही उसकी विशेषताओं का बखान किया जाता है.

आदमी की दवा आदमी. मनुष्य के पास कितना भी कुछ हो, उसे दूसरे मनुष्यों का साथ चाहिए ही होता है. किसी भी आदमी की परेशानी या दुःख को कोई दूसरा आदमी ही ठीक कर सकता है.

आदमी की पेशानी, दिल का आईना है. पेशानी – माथा. व्यक्ति के हृदय में चिंता है या संतोष, यह उसके चेहरे पर प्रतिबिंबित हो जाता है.

आदमी की पैठ पुजती है. मनुष्य की नहीं उस की पहुँच की कद्र होती है.

आदमी के सौ कायदे, लुगाई का एक. पुरुष प्रधान समाज में पुरुष लोग अपनी अनियमितताओं  को किसी भी तरह से सही साबित कर देते हैं, पर स्त्रियों से यह आशा की जाती है कि वे उनके बनाए नियमों पर ही चलें.

आदमी जन्म से नहीं कर्म से महान होता है. व्यक्ति ने किस कुल में जन्म लिया है इस से वह महान नहीं बनता, बल्कि अपने कार्यों से महान बनता है. इंग्लिश में कहावत है – Worth is more important than birth. 

आदमी जाने बसे, सोना जाने कसे. सोना कसौटी पर कस के पहचाना जाता है और व्यक्ति को उसके साथ रह कर ही पहचाना जा सकता है.

आदमी नहीं कमाता, आदमी का भाग्य कमाता है. कहावतों में दोनों प्रकार की बातें सुनने को मिलती हैं. एक तो यह कि उद्यम करने से ही सब कुछ मिलता है और दूसरा यह कि कितना भी कुछ कर लो भाग्य से ही सब मिलता है. 

आदमी पहले शराब पीता है, फिर शराब आदमी को पीती है. अधिकतर लोग पहले केवल शौक शौक में शराब पीते हैं. फिर वे उसके आदी हो जाते हैं और अपनी इज्जत, धन दौलत और स्वास्थ्य सब बर्बाद कर लेते हैं.

आदमी पेट का कुत्ता है. आदमी पेट का गुलाम है.

आदमी फूले भात खाकर, खेत फूले खाद खाकर. जिस प्रकार मनुष्य अच्छा भोजन कर के स्वस्थ होता है उसी प्रकार खेत उपयुक्त खाद लगाने से अच्छी उपज देता है.

आदमी भगवान और शैतान को एक साथ खुश नहीं कर सकता. पाप और पुन्य एक साथ नहीं किए जा सकते.

आदमी भूल चूक का पुतला है. भूल सभी से हो सकती है. कोई यह नहीं कह सकता कि उस ने कभी भूल नहीं की. इंग्लिश में कहते हैं – The Man is bundle of errors.

आदमी मान के लिए पहाड़ भी उठाता है. इंसान अपनी प्रतिष्ठा के लिए सामर्थ्य से बाहर का काम भी करता है.

आदमी लड़खड़ा कर ही चलना सीखता है. कोई भी नया काम करने में शुरू में परेशानियाँ आती ही हैं, उन से हतोत्साहित नहीं होना चाहिए. इंग्लिश में कहावत है – We learn to walk by stumbling.

आदमी सा पखेरू कोई नहीं. मनुष्य सभी प्राणियों में सबसे विशिष्ट है.

आदमी हो या घनचक्कर. मूर्ख व्यक्ति के लिए.

आदमी–आदमी अंतर, कोई हीरा कोई कंकर. सब मनुष्य एक से नहीं हो सकते. कुछ अच्छे, कुछ साधारण व कुछ बुरे भी हो सकते हैं.

आदर दिए कुजात को नाहीं होत सुजात. नीच आदमी आदर पा कर भी नीच ही रहता है.

आदर न भाव, झूठे माल खाव. छल प्रपंच कर के व्यक्ति माल खा सकता है पर आदर नहीं पा सकता.

आदर न मान, बार बार सलाम. सम्मान न मिलने पर भी घुसने की चेष्टा करना.

आदि बुरा तो अंत भी बुरा. यदि किसी काम की शुरुआत ही गड़बड़ हो तो काम ठीक से पूरा होने की संभावना बहुत कम होती है. इंग्लिश में कहते है – A bad beginning makes a bad ending.

आधा आप घर, आधा सब घर. स्वार्थी आदमी आधा खुद रख लेता है और आधे में सब को निबटा देता है. आजकल बहुत से नेता और अधिकारी इस तरह के होते हैं.

आधा ज्ञान, जी की हान. अधूरा ज्ञान खतरनाक है. 

आधा तजे पंडित, सारा तजे गंवार. संकट के समय मूर्ख व्यक्ति सब कुछ गँवा देता है जबकि समझदार व्यक्ति आधे को दांव पर लगा कर आधा बचा लेता है. 

आधा तीतर आधा बटेर. ऐसा व्यक्ति जिस का कोई एक मत या विचारधारा न हो.

आधा पाव की लोमड़ी, ढाई पाव की पूँछ. व्यक्ति छोटा, आडम्बर बहुत बड़ा.

आधा पाव भात लाई, बाहर से गाती आई. छोटे से कार्य का बहुत अधिक दिखावा.

आधा बगुला, आधा सुआ. सुआ – तोता. जिसका कोई एक मत न हो.

आधा साधे, कमर बांधे.  कमर बांध लेने से ही आधा कार्य सिद्ध हो जाता है.

आधा सेर कोदों, मिरजापुर का हाट. थोड़ी सी चीज़ का बहुत अधिक दिखावा. कोदों – एक अनाज.

आधी छोड़ सारी को धावे, आधी मिले न सारी पावे (आधी छोड़ एक नै धावै, बाकी आधी मुंह से जावै).  एक कुत्ते को आधी रोटी मिल गई. वह उसे मुँह में दबा कर नदी के किनारे जा रहा था कि उसे पानी में अपनी परछाईं दिखी. वह समझा कि यह दूसरा कुत्ता रोटी ले कर जा रहा है. उससे रोटी छीनने को झपटा तो मुँह की रोटी भी पानी में गिर गई.

आधी मार घरहरिया को.  घरहरिया – बीच बचाव करने वाला. दो लोग लड़ रहे हों तो बीच बचाव करने वाले को भी काफी मार पड़ जाती है.

आधी रात को जम्भाई आए, शाम से मुंह फैलाए. कोई काम शुरू करने से बहुत पहले से ही दिखावा करने लगना.

आधी रोटी घर की भली. दूर देश जा कर अधिक कमाई होती हो, उस के मुकाबले घर रह कर कम कमाई अधिक अच्छी है.

आधी रोटी बस, कायस्थ हैं की पस (पशु). कायस्थों की तकल्लुफ बाजी पर व्यंग है – ये कायस्थ हैं कोई जानवर थोड़े ही हैं, इन्हें बस आधी रोटी परोसो.

आधे आंगन सासरो और आधे आंगन पीहर. मुसलमानों में बहुत निकट सम्बन्धियों में विवाह सम्बन्ध हो जाते हैं उस पर व्यंग्य. सासरो – ससुराल, पीहर – मायका.

आधे आसाढ़ तो बैरी के भी बरसे. आधे आषाढ़ तो वर्षा अवश्य होनी चाहिए.

आधे गाँव दीवाली आधे गाँव फाग. समाज के लोगों का एकमत न होना. फाग – होली.

आधे दादा आधे काका, कौन किससे काम को कहे. गाँव में सारे ही अपने बुजुर्ग हैं, काम के लिए किस से कहें.

आधे माघे, कंबली कांधे. आधा माघ बीत गया जाड़ा कम हो गया, अब कंबली ओढ़ो मत कंधे पर रख लो.

आधे में लोमड़ी और आधे में पूंछ. थोड़ी वास्तविकता पर थोड़ा आडम्बर भी.

आन के धन पर तीन टिकुली. आन का – दूसरे का. दूसरे का धन खर्च कर के माथे पर सोने की तीन टिकुली लटकाए है. दूसरे के धन की मूर्खता पूर्ण फिजूलखर्ची.

आन के धन पर तेल बुकुआ.  बुकुआ – पीसी हुई गीली सरसों जिसे तेल के साथ शरीर पर मलते हैं. दूसरे का धन मिल रहा हो तो ऐय्याशी करना.

आन पड़ी सिर आपने, छोड़ पराई आस. अगर अपने ऊपर कोई मुसीबत पड़ी है तो खुद ही भुगतनी पड़ेगी, पराई आस छोड़ दो.

आन से मारे, तान से मारे, फिर भी न मरे तो रान से मारे. वैश्या के लिए कहा गया है. किसी चीज़ को प्राप्त करने के लिए जो लोग हद से अधिक गिर जाते हैं उन के लिए भी. रान – जांघ.

आप करे सो काम पल्ले हो सो दाम. काम वही अच्छा है जो हम अपने आप से कर सकें और पैसा वही अच्छा है जो हमारे पास हो.

आप काज सो महा काज. 1. जो अपना काम स्वयं करना जानता है वह सबसे अच्छा रहता है. 2. इसका उसका मुँह देखने की बजाए अपना काम अपने आप कर लो.

आप को जो चाहे बा को चाहिए हजार बार, आपको न चाहे बा के बाप को न चाहिए. जो आप से प्रेम करता हो उसी से प्रेम करिए. 

आप खाय, बिलाई बताय. चालाक बच्चे ने खुद रबड़ी खा ली और बिल्ली का नाम लगा रहा है. खुद चोरी करके दूसरों पर इल्ज़ाम लगाने वाले लिए.

आप गुरु जी कांतल मारें, चेलों को परबोध सिखावें. गुरु जी खुद तो कांतल मार रहे हैं (जीव हत्या कर रहे हैं) और चेलों को अहिंसा परमोधर्म: का पाठ पढ़ा रहे हैं.

आप गुरुजी बैंगन खाएँ, औरों को उपदेश पिलाएँ. पुराने लोग बैंगन को कुपथ्य मानते थे (मालूम नहीं क्यों). कहावत उन गुरुओं के लिए है जो खुद गलत काम करते हैं और दूसरों को उपदेश देते हैं.

आप जिंदा जहान जिंदा. जब तक हम जीवित हैं (हमारे लिए) यह संसार भी तभी तक है. इस कहावत को इस प्रकार से भी कहा गया है – आप मरे जग परलै.

आप डुबन्ता पंडित, ले डूबे जजमान. भ्रष्ट पंडित यजमान को भी ले डूबता है.   

आप डूबे तो जग डूबा. यदि किसी की इज्ज़त चली जाए तो संसार उसके लिए बेकार ही है.

आप डूबे बामना, जिजमाने ले डूबे. ऐसा ब्राह्मण जो खुद भी डूबे और यजमान को भी ले डूबे. भ्रष्ट व्यक्ति को गुरु नहीं बनाना चाहिए.

आप तो मियां हफ्ताहजारी, घर में रोए कर्मों की मारी. हफ्ताहजारी माने जिसकी एक हफ्ते में एक हजार रुपये की आमदनी हो, याने पुराने हिसाब से बहुत बड़ा आदमी. मियाँ तो बहुत बड़े आदमी हैं और घर में बीबी काम में पिस रही है और भाग्य को कोस रही है

आप धनी तो जग धनी. जिस के पास पैसा है उसी के लिए संसार सुखमय है.

आप न जाए सासुरे, औरन को सिख देय. खुद तो ससुराल जाने को मना कर रही है और दूसरी लड़कियों को ससुराल जाने को समझा रही हैं. इस प्रकार की दूसरी कहावत है – पर उपदेस कुसल बहुतेरे.

आप बड़े हम छोटे. विनम्रता सबसे बड़ा आभूषण है. अपने आप को छोटा मानना सबसे बड़ा बड़प्पन है.

आप बुआ जी नंगी फिरें, भतीजों को झबला टोपी. बुआ जी के पास खुद के पहनने के लिए ढंग के कपड़े नहीं हैं पर भतीजों के लिए कपड़े बना रही हैं. साधन हीन व्यक्ति परोपकार करे तो.

आप बुरा तो जग बुरा. यदि आप सब के बारे में बुरा सोचते हैं या बुरा चाहते हैं तो दुनिया भी आप के लिए बुरी है.

आप भला तो जग भला. आप सब की भलाई करते हैं तो दुनिया भी आप के लिए भली है. इंग्लिश में इस से मिलती जुलती एक कहावत है – Do good, have good.

आप भलो तो जग भलो, नहिं तो भला न कोय. जो लोग निर्मल चरित्र वाले होते हैं उन्हें संसार के अन्य लोग भी भले लगते हैं, जो स्वयं कुटिल होते हैं उन्हें कोई भला नहीं लगता.

आप मरता बाप किसे याद आवे. (राजस्थानी कहावत) जब आदमी स्वयं बहुत बड़ी मुसीबत में हो तो उस से सगे सम्बन्धियों के लिए कुछ करने की आशा नहीं करना चाहिए. 

आप मरे जग परलै. किसी व्यक्ति की मृत्यु उसके लिए दुनिया ख़त्म होने के बराबर है. इंग्लिश में कहावत है – Death’s day is Dooms day.

आप महान हैं, प्रभु के समान हैं. अपने आप को बहुत महान समझने वाले व्यक्ति का मज़ाक उड़ाने के लिए.

आप मियाँ फज़ीहत, औरों को नसीहत. खुद गलत काम करते है और दूसरों को उपदेश देते हैं.

आप मियां मंगते, द्वार खड़े दरवेश. दरवेश – साधु. खुद मंगते (मांगने वाले) हैं और द्वार पर फकीर को भिक्षा देने के लिए बुलाया हुआ है. झूठी शान दिखाने वालों के लिए.

आप मिले तो दूध बराबर, मांग मिले तो पानी, कंह कबीर वह खून बराबर, जा में एंचातानी. जो अपने आप मिल जाए वह कीमती चीज़ है (दूध की तरह), जो मांग कर मिले वह पानी की तरह साधारण और जिसके मिलने में झंझट हो वह खून के बराबर है. 

आप रहें उत्तर, काम करें पच्छम. बेतरतीब काम करने वाले के लिए.

आप लगावे आप बुझावे, आप ही करे बहाना, आग लगा पानी को दौड़े, उसका कौन ठिकाना. बहुत कुटिल व्यक्ति के लिए (जैसे आजकल के कुछ नेता, खुद दंगा कराते हैं और फिर खुद ही उसको नियंत्रित करने का श्रेय ले लेते हैं).

आप लिखे खुदा पढ़े. बहुत खराब लिखावट वालों के लिए.

आप सुखी जग सुखी. जब आप स्वयं सुखी होते हैं तो सारा संसार सुखी लगता है.

आप से आवे तो आने दे. जो चीज़ बिना कोई प्रयास किए मिल रही हो उसे मना मत करो.

आप हारे और बहू को मारे. अपनी हार का गुस्सा पत्नी/बहू पर निकालना.

आप ही उलझाए और आप ही सुलझाए. जो खुद ही समस्या पैदा करे और खुद उसका हल ढूँढे.

आप ही गावे और आप ही बजावे. जिसे सारा काम खुद करना पड़े उस के लिए.

आप ही मारे, आप ही चिल्लाए. धूर्त व्यक्ति, स्वयं किसी को मार रहा है और पीड़ित होने का दिखावा कर रहा है (जैसे समाज के कुछ विशेष वर्ग जो दंगा करते हैं). 

आपकी अकल घोड़े से भी तेज दौड़ती है. अपने आप को बहुत अक्लमंद समझने वाले पर व्यंग्य.

आपके चेहरे पर लगी कालिख औरों को दिखती है आपको नहीं. अपने चरित्र पर धब्बा स्वयं को नहीं दिखता, औरों को दिखता है. 

आपको न चाहे ताके बाप को न चाहिए. जो आपका आदर न करे आपको भी उसका आदर नहीं करना चाहिए. 

आपज करियो कामड़ा, दई न दीजै दोस. अपने किये हुए अनर्थ के लिए दैव को दोषी नही ठहराना चाहिए. 

आपत काल में सब जायज़. जब जान पर संकट आ पड़ा हो तो अपनी सुरक्षा के लिए सब कुछ जायज़ है.

आपन मामा मर मर गए, जुलहा धुनिया मामा भए. (भोजपुरी कहावत) अपने मामा मर गए उन्हें कभी पूछा नहीं, अब बेकार के लोगों से संबंध बनाते घूम रहे हैं.

आपन हाथ आपनी कुल्हाड़ी, जान बूझ के पैर में मारी. अपने हाथों अपना नुकसान कर के दुखी होने वाले के लिए.

आपबीती कहूँ कि जग बीती. दुनिया के बारे में क्या कहूँ, जो मुझ पर बीती है सो कहता हूँ.

आपम धाप कड़ाकड़ बीते, जो मारे सो जीते. एक तरह से बच्चों की कहावत. अर्थ है कि जो आगे बढ़ के मारता है वही जीतता है.

आपसे गया तो जहान से गया. जो अपनी नज़रों से गिर गया वह दुनिया की नज़रों से गिर जाता है.

आपा तजे तो हरि को भजे. अहं को छोड़ोगे तभी प्रभु को पा सकते हो.

आपे आपे जगत व्यापे, न कोई माई न कोई बापे. सब अपनी अपनी समस्याओं में व्यस्त हैं, माँ बाप की चिंता करनेवाला कोई नहीं है. भोजपुरी में इस प्रकार कहा गया है – आपे आपे लोग सियापे, केकर माई केकर बापे.

आफत में औ दुःख में, बुध नहिं तजें उछाह. बुद्धिमान लोगों का उत्साह दुख और संकट के समय कम नहीं होता.

आब गई, आदर गया, नैनन गया सनेह, यह तीनों तब ही गये, जबहिं कहा कुछ देह. जब आप किसी से कुछ मांगते हैं तो आपका सम्मान और आपसी प्रेम ख़त्म हो जाते हैं.

आबरू जग में रहे तो जान जाना पश्म है. सम्मान की रक्षा के लिए प्राण भी चले जाएं तो कोई बात नहीं. पश्म – तुच्छ वस्तु.

आबरू जग में रहे तो जानिए. सभी लोग चाहते हैं कि संसार में उनकी इज्जत बनी रहे.

आबरू वाला रोवे, बेआबरू वाला हंसे. जिसे अपना सम्मान प्यारा हो उसे ही सारे कष्ट उठाने पड़ते हैं, बेशर्म तो केवल मौज उड़ाता है.

आबरू वाले की हर तरफ मौत. इज्जतदार व्यक्ति को हर समय मुसीबतों का सामना करना पड़ता है.

आभ चमक्के बीजली, गधी मरोड़े कान. बिजली चमकने से गधी को बहुत डर लग रहा है. अज्ञानी लोग व्यर्थ की बातों से डरते हैं.

आम आयें चाहें जाए लबेदा. लबेदा – मोटा डंडा. बहुत से लोग डंडा फेंक कर आम तोड़ने की कोशिश करते हैं. (इस में इस बात का डर होता है कि डंडा खो सकता है). जो व्यक्ति छोटे लाभ के लिए बड़ा खतरा उठाने के लिए तैयार हो उसके लिए.

आम का बौर कलार की माया, जैसे आया वैसे गँवाया. कलार – शराब बेचने वाला. आम का पेड़ आरम्भ में बौर से लद जाता है पर बाद में सब बौर झड़ जाती है, उसी प्रकार शराब बेचने वाला खूब धन कमाता है पर अंत में सब गँवा देता है.

आम के आम गुठलियों के दाम. दोहरा लाभ.

आम खाने से काम, पेड़ गिनने से क्या फायदा. व्यक्ति को अपने काम से काम रखना चाहिए व्यर्थ की नुक्ताचीनी में नहीं पड़ना चाहिए.

आम खाय पाल का, खरबूजा खाय डाल का, पानी पिए ताल का. अर्थ स्पष्ट है.

आम टूट मस्तक पर पड़े, याको को जतन कहा कोऊ करे. आलसी व्यक्ति चाहता है कि बैठे बिठाए सब कुछ मिल जाए.

आम फले झुक जाए, अरंड फले इतराए. (आम फले नीचे झुके, ऐरण्ड ऊँचो जाए). समझदार व्यक्ति सफलता पाने पर विनम्र हो जाता है, छोटी बुद्धि वाला व्यक्ति सफलता पाने पर घमंड करने लगता है.

आम फले परवार सों, महुआ फले पत खोय, वा को पानी जो पिए, अकल कहाँ से होय. यहाँ पत का अर्थ पत्ते भी है और इज्जत भी. आम पत्तों सहित फल देता है लेकिन महुए पर पत्ते झड़ने के बाद (अर्थात प्रतिष्ठा खोने के बाद) फल आता है. महुए का पानी (अर्थात उस से बनने वाली शराब) जो पियेगा, उसकी अक्ल तो खराब होनी ही है. 

आम बोओ आम खाओ, इमली बोओ इमली खाओ. जैसा करोगे वैसा ही फल पाओगे. इंग्लिश में कहावत है As you sow, so shall you reap.

आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया. आय से अधिक खर्च होना. जिन लोगों की आय तो सीमित है पर वे दिखावे के लिए खर्च अधिक करते हैं उनको सीख देने के लिए यह सरल गणित समझाई गई है. कुछ लोग इसके आगे भी बोलते हैं – नतीज़ा ठन ठन गोपाल.

आमदनी के सिर सेहरा. जिस व्यक्ति की आमदनी (आय) अच्छी हो उसी को श्रेष्ठ माना जाता है.

आमों की कमाई, नीबुओं में गँवाई. एक स्रोत से कमाया और दूसरे में उतना नुकसान कर बैठे.

आम्बा, नीबू, बनिया, ज्यों दाबो रस देयं, कायस्थ, कौआ किरकिटा (चींटी) मुर्दा हूँ से लेय. आम, नीबू और बनिया दबाने से रस देते हैं, कायस्थ, कौआ और चींटी मुर्दे को भी नोंच लेते हैं. बनिए डरपोक होते हैं, डरने पर पैसा निकालते हैं, कायस्थ कागज़ी कार्यवाही में फंसा कर मरने के बाद भी आदमी से कुछ न कुछ कमा लेते हैं. (आम ईख नीबू वणिक, दाबे ही रस देंय). 

आया कनागत बंधी आस, बामन उछलें नौ नौ बांस. श्राद्ध पक्ष आने पर ब्राह्मण बहुत प्रसन्न होते हैं. कुछ लोग इसके आगे भी बोलते हैं – गया कनागत गई आस, बामन रोवें चूल्हे पास. कनागत – श्राद्ध पक्ष.

आया कर तू जाया कर, कुंडी मत खड़काया कर. किसी चरित्रहीन स्त्री का अपने यार से कथन. कोई सरकारी मुलाजिम रिश्वत खा कर अगर यह कहे कि तुम चुपचाप यह गलत काम कर लो तो यह कहावत कही जाएगी.

आया कातिक उठी कुतिया. निर्लज्ज और कामातुर स्त्री के लिए उपेक्षापूर्ण कथन.

आया कुत्ता खा गया तू बैठी ढोल बजा. लापरवाही में गृहस्थी का नुकसान करने वाली महिलाओं के लिए. यह कहावत अमीर खुसरो की एक कहानी पर आधारित है जिसमें वह एक ही कविता में चार महिलाओं की कविता सुनाने की फरमाइश पूरी करते हैं. एक बार अमीर खुसरो ने कुँए पर पानी भरने वाली महिलाओं से पीने को पानी माँगा. उन में से एक ने खीर पर, दूसरी ने चरखे पर, तीसरी ने कुत्ते पर और चौथी ने ढोल पर कविता सुनाने के लिए कहा. इस पर उन्होंने यह कविता सुनाई – खीर पकाई जतन से, चरखा दिया जला, आया कुत्ता खा गया, तू बैठी ढोल बजा. 

आया चैत फूले गाल, गया चैत फिर वही हवाल. चैत में फसल आदि कटने से किसान भरपेट खाना खाता है और प्रसन्न व स्वस्थ हो जाता है. महीना बीतते बीतते लगान और उधारी चुका कर फिर वैसे का वैसा हो जाता है.

आया तो लाख का, नहीं आया तो सवा लाख का. कोई बड़ा मेहमान घर में आने वाला हो तो उस के आने पर अन्य लोगों के बीच आपका मान बढ़ जाता है और वह न आए तो चैन की सांस आती है.

आया बुढ़ापा आया बुढ़ापा, सौ तकलीफें लाया बुढ़ापा. बुढ़ापा अपने साथ बहुत सी परेशानियाँ ले कर आता है.

आया ब्याज कमाने को, मूल गंवा कर जाय. कुछ लाभ कमाने की इच्छा से आए थे और घाटा उठा कर जा रहे हैं. 

आये हैं सो जाएँगे, राजा रंक फकीर, (एक सिंहासन चढ़ि चले, एक बँधा जंजीर). सभी लोगों को इस दुनिया से जाना है चाहे वह सिंहासन पर बैठा राजा हो या जंजीरों में बंधा फकीर. अर्थ यह है कि हमें अपने पद और धन का अहंकार नहीं करना चाहिए.

आयो रात, गयो परभात – रात में आया और सुबह ही चला गया. यदि कोई बिना रुके तुरंत चला जाए.

आर वाले कहें पार वाले अच्छे, पार वाले कहें आर वाले अच्छे. जो नदी के इस पार हैं उन्हें उस पार के लोग सुखी दिखाई देते हैं और जो इस पार हैं उन्हें इस पार वाले. किसी भी व्यक्ति को दूसरे लोग अपने से अधिक सुखी दिखाई देते हैं. इंग्लिश में कहते हैं – The grass is always greener on the other side of the court.

आरंभ सही तो आधा काम हुआ समझो. जिस कम की शुरुआत बिल्कुल ठीक हो वह बहुत शीघ्र पूरा हो जाता है. इंग्लिश में कहावत है Well begun is half done.

आरत कहा न करे कुकरमा. आरत – आर्त, कुकरमा – कुकर्म. आर्त व्यक्ति (अत्यधिक कष्ट में पड़ा हुआ व्यक्ति) कुछ भी गलत काम कर सकता है.

आरती वक्त सोवे, भोग वक्त जागे. स्वार्थी व्यक्ति के लिए जिसे पूजा आरती से कोई मतलब नहीं, केवल खाने पीने से मतलब है.

आराम बड़ी चीज़ है, मुँह ढक के सोइए. आलसी लोगों का ध्येय वाक्य.

आल तू जलाल तू, आई बला को टाल तू. कोई परेशानी आ पड़ने पर ईश्वर से सहायता मांगने के लिए. जलाल – ईश्वर का तेज (उर्दू)

आलमगीर सानी, चूल्हे आग न घड़े पानी. औरंगजेब के जमाने में प्रजा बड़े कष्ट में थी उसी पर यह कहावत कही गई.

आलस कबहु न करिए यार, चाहें काम परे हों हजार, मल की शंका तुरत मिटावे, वही सभी सुख पुनि पुनि पावे मलत्याग की इच्छा होते ही तुरंत उसके लिए चले जाना चाहिए, तभी स्वास्थ्य ठीक रहता है.

आलस नींद किसान को खोवे, चोर को खोवे खांसी, टक्को ब्याज मूल को खोवे, रांड को खोवे हांसी. किसान को निद्रा व आलस्य नष्ट कर देता है, खांसी चोर का काम बिगाड़ देती है, ब्याज के लालच से मूल धन भी है डूब जाता है और हंसी मसखरी विधवा को बिगाड़ देती है.

आलस नींद किसाने नासे, चोरे नासे खांसी, अँखियाँ कीच बेसवा नासे, साधु नासे दासी. किसान को आलस्य, चोर को खांसी, वैश्या को आँखों की कीचड़ (अर्थात गंदा रहना) और साधु को दासी नष्ट कर देते हैं.

आलस, निद्रा और जम्हाई, ये तीनों हैं काल के भाई. अधिक आलस्य और अधिक निद्रा रोग को बुलावा देते हैं.

आलसी को कुत्ता मोटो, मेहनती को बैल मोटो. आलसी आदमी खाने के सामान को ठीक से नहीं रखता इसलिए कुत्ते को खूब खाने को मिलता है, मेहनती आदमी अपने बैल को बड़े प्यार से खिलाता है.

आलसी गिरा कुएं में, कहा यहाँ ही भले. आलस की पराकाष्ठा.

आलसी बटाऊ असगुन की बाट जोहे. आलसी यात्री इस बात का इंतज़ार करता रहता है कि कोई अपशकुन हो जाए और उसे जाना न पड़े.

आलसी मर्द की नार चंचल. आम तौर पर देखा गया है कि आलसी पुरुषों की पत्नियां चंचल होती हैं.

आलसी सदा रोगी. आलसी आदमी कभी स्वस्थ नहीं रह सकता.

आलस्य दरिद्रता का मूल है. (दरिद्रता को मूल एक आलस बखानिए). बिलकुल स्पष्ट एवं सत्य. इंग्लिश में कहावत है – Idleness is the root of all evils.

आला दे निवाला. एक कहानी है कि एक राजा ने किसी भिखारी की बहुत सुंदर लड़की से शादी कर ली. महल में उस लड़की का भीख मांगने का बहुत मन करता था. तो वह चुपचाप दीवार में बने आले से रोटी का टुकड़ा मांगती थी. कहावत का अर्थ है कि कोई आदमी कहीं भी पहुँच जाए उसकी बुनियादी आदतें नहीं छूटतीं.

आवत आवत सब भले आवत भले न चार, विपत बुढ़ापा आपदा और अचीती धार. अचीती धार – अनायास संकट. और सब चीजों का आना अच्छा लगता है, इन चार के अतिरिक्त – विपत्ति, बुढ़ापा, बड़ी आपदा और अनायास संकट.

आवतो नहिं लाजे तो जावतो क्यूँ लाजे. (राजस्थानी कहावत) वैश्या के घर, या किसी भी गलत स्थान पर आते समय लाज नहीं आई तो जाते समय क्यों आ रही है. 

आवश्यकता आविष्कार की जननी है. जिस चीज़ की आवश्कता होती है उसे ही बनाने के लिए मनुष्य प्रयास करता है. इंग्लिश में कहावत है – necessity is the mother of invention.

आवा का आवा ही कच्चा रह गया. कुम्हार के आवे में सारे ही बर्तन कच्चे रह गए. किसी घर या समाज में सारे सदस्य मूर्ख हों तो.

आवाज़े खलक को नक्कारा ए खुदा समझो. जनता की आवाज को ईश्वर की आज्ञा मानो.

आवे न जावे बृहस्पति कहावे. आता जाता कुछ नहीं है और खुद को बड़ा विद्वान घोषित करते हैं.

आशा अमर धन. आशावादी दृष्टिकोण व्यक्ति की ऐसी पूँजी है जो कभी समाप्त नहीं होती.

आशा जिए, निराशा मरे (आशा ही जीवन है). आशा और सकारात्मक सोच से ही आदमी जीवित रहता है, निराशा और नकारात्मक सोच मृत्यु को बुलावा देती हैं.

आशा, मान, महत्त्व अरु बालपने को नेहु, ये सबरे तबही गए जबहि कहा कछु देहु. जैसे ही आप किसी से कुछ मांगते हैं, वैसे ही उससे की हुई आशा, आपका सम्मान, महत्व और पुराने से पुराना प्रेम समाप्त हो जाता है. 

आषाढ़ करै गांव गौतरी, कातिक खेलय जुआ, पास-परोसी पूछै लागिन, धान कतका हुआ. जो किसान आषाढ़ महीने में गांव-गांव मेहमानी करते हुए घूमता रहा और कार्तिक महीने में जुआ खेलता रहा, उसे उसके पड़ोसी व्यंग्य करते हुये पूछते हैं – कितना धान हुआ? गौतरी – मेहमानी.

आषाढ़ माह जो दिन में सोय, ओकर सिर सावन में रोय. (भोजपुरी कहावत) आषाढ़ में दिन में सोना हमारे स्वास्थ्य के लिए काफी हानिकारक है. आषाढ़ में दिन में सोने से सावन में सिर में पीड़ा होती है.

आस पराई जो तके, जीवत ही मर जाए. प्रत्येक व्यक्ति को प्रयास यही करना चाहिए कि अपना काम अपने आप ही करे. दूसरे का आसरा देखने वाले को अक्सर धोखा खाना पड़ता है.

आस पास बरसे, दिल्ली पड़ी तरसे. कहीं पर बहुतायत कहीं पर अभाव.

आसन बड़ा कि भक्ति. जिस  मठ मन्दिर का नाम बहुत प्रसिद्द हो जाता है वहाँ जाना चाहिए या जहाँ अधिक भक्ति और ज्ञान मिले वहाँ.

आसन मारे क्या भया, मुई न मन की आस. अगर मन से लोभ नहीं गया तो आसन मार कर बैठने से भी क्या लाभ होगा.

आसमान के फटे को कहाँ तक थेगली (पैबंद) लगे. बहुत बिगड़ा हुआ काम कहाँ तक संभाला जा सकता है.

आसमान पर थूको तो मुँह पर ही आता है. किसी सज्जन और सच्चरित्र व्यक्ति पर लांछन लगाने वाला व्यक्ति अंत में स्वयं ही अपमानित होता है.

आसमान से गिरे खजूर में अटके. किसी एक परेशानी से निकल कर दूसरी में पड़ जाना.

आसा में भगवान का वासा. ईश्वर आशावादी व्यक्ति की ही सहायता करते हैं.

आहार चूके वह गया, व्यौहार चूके वह गया, दरबार चूके वह गया, ससुरार चूके वह गया. खाने पीने में, लोक व्यवहार में, दरबार में और ससुराल में जो संकोच करता है वह नुकसान में रहता है.

आहारे व्योहारे लज्जा न कारे. खाने में और लोक व्यवहार में लज्जा नहीं करनी चाहिए.

इंचा खिंचा वह फिरे, जो पराए बीच में पड़े. जो दूसरों के मसलों में बीच में पड़ता है वह खुद ही परेशानी में पड़ जाता है (अपनी टांगें खिंचवाता है) .

इंतजार का फल मीठा. प्रतीक्षा करने के बाद जो चीज़ मिलती है वह अधिक अच्छी लगती है.

इंशाअल्लाहताला, बिल्ली का मुँह काला. मुसलमान लोगमुँह से कोई अशोभनीय बात निकल जाए तो ऐसा कहते हैं.

इंसान अपने दुःख से इतना दुखी नहीं है जितना औरों के सुख से है. अर्थ स्पष्ट है.

इंसान जन्म से नहीं कर्म से महान होता है. अर्थ स्पष्ट है.

इंसान बनना है तो दारू पियो, दूध तो साले कुत्ते भी पीते हैं. यूँ तो शराब पीने वाले अपने आप को सही ठहराने के लिए बहुत से बहाने बताते हैं पर इस से ज्यादा मजेदार शायद ही कोई होगा.

इक कंचन इक कुचन पे, को न पसारे हाथ. सोने पर और स्त्री के शरीर पर कौन हाथ नहीं पसारता. कुच – स्तन.

इक तो बड़ों बड़ों में नाँव, दूजे बीच गैल में गाँव, ऊपै भए पैसन से हीन, दद्दा हम पै विपदा तीन. कोई सज्जन अपनी तीन विपदाएं बता रहे हैं – एक तो लोग हमें धनी समझते हैं (इसलिए सहायता मांगने आते हैं), दूसरे मुख्य मार्ग पर गाँव स्थित है (इसलिए अधिक लोग हमारे घर आते हैं) और तीसरे यह कि अब हम पर अब धन नहीं रहा.

इक तो बुढ़िया नचनी, दूजे घर भया नाती. बुढ़िया नाचने की शौक़ीन थी और ऊपर से घर में पोते का जन्म हो गया तो वह नाचे ही जा रही है. किसी सुअवसर पर अधिक प्रसन्न होने वालों पर व्यंग्य. 

इक नागिन अरू पंख लगाई. एक खतरनाक चीज़ जब और खतरनाक हो जाए.

इकली लकड़ी ना जले, नाहिं उजाला होय. अकेला व्यक्ति कोई महत्वपूर्ण काम नहीं कर सकता.

इक्का, वकील और गधा, पटना शहर में सदा. किसी भुक्तभोगी ने पटना शहर की तारीफ़ यह कह कर की है कि वहाँ इक्के, वकील और गधे हमेशा मिलते है.

इक्के चढ़ कर जाए, पैसे दे कर धक्के खाए. इक्के की सवारी में धक्के बहुत लगते थे, उस पर मजाक.

इज्जत भरम की, कमाई करम की, लुगाई सरम की. जो आदमी जितनी हवा बना कर रखता है उस की उतनी अधिक इज्जत होती है, कमाई अपने भाग्य से होती है या अपने कर्म से होती है (यहाँ करम का अर्थ कर्मफल अर्थात भाग्य से भी है और उद्यम से भी) और स्त्री लज्जाशील ही अच्छी होती है. भरम – भ्रम.

इज्जत वाले की कमबख्ती है. जिसकी कोई इज्जत नहीं उसे कोई चिंता नहीं, प्रतिष्ठित व्यक्ति को ही अपनी साख बचाने के लिए सब झंझट करने पड़ते हैं.

इडिल-मिडिल की छोड़ आस, धर खुरपा गढ़ घास. पहले जमाने में आठवाँ पास को मिडिल पास कहते थे. जिस का मन पढ़ाई में न लग रहा हो उस से बड़े बूढ़े कह रहे हैं कि तुम तो खुरपा पकड़ो और घास खोदो.

इतना ऊपर न देखो की सर पर रखा टोप ही नीचे गिर जाय. आदमी को अपनी हैसियत से ज्यादा का सपना नहीं देखना चाहिए.

इतना नफा खाओ जितना आटे में नोन. व्यापार में थोड़ा ही मुनाफा खाना चाहिए. ज्यादा मुनाफाखोरी से व्यापार चौपट हो सकता है और लोगों की हाय भी लगती है.

इतना हंसिए की रोना न पड़े. सफलता मिलने पर या किसी शुभ अवसर पर बहुत अधिक खुश नहीं होना चाहिए. समय बड़ा बलवान है, कभी भी पलट सकता है.

इतनी बड़ाई और फटी रजाई. जो लोग डींगें बहुत हांकते हैं और अन्दर से खोखले होते हैं.

इतनी सी जान गज भर की जबान. जब कोई लड़का या छोटा आदमी बहुत बढ़-चढ़ कर बातें करता है.

इत्तेफाक से कुतिया मरी, ढोंगी कहे मेरी बानी फली. कुतिया तो इत्तेफाक से मरी थी, ढोंगी बाबा को यह कहने का मौका मिल गया कि देखो मैंने श्राप दिया इसलिए मर गई. संयोग का फायदा उठाने वाले कुटिल लोगों के लिए.

इधर का दिन उधर उग आया. आशा के विपरीत लाभ किसी और को हो गया.

इधर काटा उधर पलट गया. सांप के लिए कहते हैं कि वह काटते ही पलट जाता है तभी उसका जहर चढ़ता है. इस कहावत को धोखेबाज आदमी के लिए प्रयोग करते हैं जो धोखा देता है और अपनी बात पर कायम नहीं रहता.

इधर कुआं उधर खाई. (आगे कुआं पीछे खाई) (इधर गिरूँ तो कुआं, उधर गिरूँ तो खाई). जब व्यक्ति किसी ऐसी परिस्थिति में फंस जाए जिसमें दोनों ही विकल्प खतरनाक हों तब यह कहावत प्रयोग की जाती है. इंग्लिश में कहते हैं Between the devil and the deep sea.

इधर तलैया उधर बाघ. दोनों ओर संकट का होना.

इधर न उधर यह बला किधर. जब कोई अत्यधिक बीमार व्यक्ति न मरे न ही ठीक हो, तब कहते हैं. 

इन तिलों में तेल नहीं. निचुड़ा हुआ आदमी. 

इन नैनन का यही विसेख, वह भी देखा यह भी देख. इन आँखों की विशेषता यही है कि ये अच्छा भी देखती हैं और बुरा भी. तात्पर्य है कि व्यक्ति को अच्छे बुरे सभी तरह के दिन देखने पड़ते हैं.

इनकी नाक पर गुस्से का मस्सा. जो लोग हर समय गुस्से में रहते हैं उन पर व्यंग्य.

इन्दर की जाई पानी को तिसाई. जाई – बेटी, तिसाई – प्यासी (तृषित). वर्षा के देवता इंद्र की पुत्री पानी को तरस रही है. जहाँ किसी वस्तु की अधिकता होनी चाहिए वहाँ उसकी कमी हो तो.

इन्दर राजा गरजा, म्हारा जिया लरजा. बरसात आने पर गल्ले का व्यापारी घबरा रहा है कि सामान कहाँ रखूँ, जो भीग कर खराब न हो. (कुम्हार के लिए भी).

इब्तदाये इश्क है रोता है क्या, आगे- आगे देखिए होता है क्या. किसी काम को शुरू करने पर जो लोग ज्यादा उत्साह दिखाते हैं या ज्यादा घबराते हैं उन के लिए.

इमली बूढ़ी हो जाए पर खटाई नहीं छोड़ती. बूढ़ा होने पर भी व्यक्ति का स्वभाव नहीं बदलता.

इराकी पर जोर न चला, गधी के कान उमेठे. इराकी – घुड़सवार. ताकतवर पर वश न चले तो कमज़ोर पर ताकत दिखाते हैं.

इर्ष्या द्वेष कभी न कीजे, आयु घटे तन छीजे. किसी से ईर्ष्या करने पर उसका कोई नुकसान नहीं होता, अपना स्वास्थ्य खराब होता है और आयु कम होती है. दूसरों की सुख समृद्धि देख कर जलना नहीं चाहिए, मन में संतोष रखना चाहिए.

इलाज से बड़ा परहेज. परहेज का महत्त्व दवा से भी अधिक है. इंग्लिश में कहावत है – Prevention is better than cure.

इल्म का परखना और लोहे के चने चबाना बराबर है. किसी की सही योग्यता जान पाना बहुत कठिन है.

इल्म थोड़ा, गरूर ज्यादा. अल्पज्ञानी और अहंकारी व्यक्ति के लिए.

इल्लत जाए धोए धाय, आदत कभी न जाए. गन्दगी तो धोने से छूट सकती है पर गन्दी आदत कभी नहीं छूटती. इंग्लिश में कहते हैं – Old habits die hard.

इल्ली मसलने से आटा वापस नहीं मिलता. इल्ली कहते हैं अनाज में पलने वाले लार्वा को. यह बहुत तेज़ी से अनाज को खाता है. लेकिन अगर हम गुस्से में इल्ली को मसल दें तो वह अनाज वापस नहीं मिल सकता. किसी ने हमारा नुकसान किया हो तो उस को मार देने से नुकसान की भरपाई नहीं की जा सकती.

इश्क और मुशक छिपाए नहीं छिपते. प्रेम और दुश्मनी छिपाने से नहीं छिपते (प्रकट हो ही जाते हैं). रहीम ने इसे और विस्तार से इस प्रकार कहा है – खैर, खून, खांसी, खुसी, बैर, प्रीत, मदपान; रहिमन दाबे न दबें, जानत सकल जहान. कत्थे का दाग, खून, खांसी, ख़ुशी, दुश्मनी, प्रेम और शराब पीना ये सब छिपाने से नहीं छिपते.

इश्क का मारा फिरे बावला. प्रेम का रोग जिसको लग जाए वह उचित अनुचित का बोध खो देता है.

इश्क की मारी कुतिया कीचड़ में लोटती है. विशेषकर दुश्चरित्र स्त्री की ओर संकेत है कि वह अपने प्रेमी को पाने के लिए कुछ भी कर सकती है.

इश्क की मारी गधी धूल में लोटे. गधी को भी इश्क हो जाए तो वह अपने काबू में नहीं रहती. प्रेम करने वालों पर व्यंग्य.

इश्क के कूचे में आशिक की हजामत होती है. प्रेम के चक्कर में आदमी लुट जाता है.

इश्क ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया, वरना हम भी आदमी थे काम के. इश्क के चक्कर में पड़ कर अच्छे खासे कामकाजी लोग भी बरबाद हो जाते हैं. प्रेम के अलावा कोई और परेशानी होने पर भी लोग मजाक में ऐसा बोलते हैं.

इश्क मुश्क खांसी ख़ुशी, सेवन मदिरा पान, जे नौ दाबे न दबें, पाप पुण्य औ स्यान. (बुन्देलखंडी कहावत) स्यान – चालाकी. प्रेम, शत्रुता, खांसी, ख़ुशी, मदिरा सेवन, पाप, पूण्य और चतुराई, ये सब छिपाने से नहीं छिपते.

इश्क में शाह और गधा बराबर. अर्थात दोनों की ही अक्ल घास चरने चली जाती है.

इस घर का बाबा आदम ही निराला है. किसी घर के रीति रिवाज़ दुनिया से अलग हों तो.

इस दुनिया के तीन कसाई, पिस्सू, खटमल, बामन भाई. ये तीनों ही लोगों का खून चूसते हैं.

इस देवी ने बहुत से भक्त तारे हैं. किसी कुलटा स्त्री के प्रति व्यंग्य.

इस मुर्दे का पीला पाँव, के पीछे पीछे तुम भी आओ. कुछ चोर सोने की मूर्ति चुरा कर उस की अर्थी बना कर ले जा रहे थे. संयोग से पैर के ऊपर ढंका कपड़ा कुछ उघड़ गया और मूर्ति का पैर दिखने लगा. किसी आदमी ने यह देख कर सवाल पूछा. चोरों को लगा कि इस आदमी को शक हो गया है तो उस से बोले कि तुम भी साथ आ जाओ, तुम्हें भी हिस्सा दे देंगे. किसी घोटाले के उजागर होने पर घोटाला करने वाला हिस्सा देने की बात कहे तो यह कहावत कही जाती है.

इस हाथ घोड़ा, उस हाथ गधा. जो आदमी जल्दी खुश हो जाए और उतनी ही जल्दी नाराज भी हो जाए.

इस हाथ ले, उस हाथ दे. इस का अर्थ दो प्रकार से है – एक तो यह कि धन संपत्ति के लिए अधिक लोभ और मोह नहीं करना चाहिए, यदि हम समाज से बहुत कुछ लेते हैं तो समाज को बहुत कुछ देना भी चाहिए. दूसरा यह कि उधार ली हुई रकम जितनी जल्दी हो सके लौटा देनी चाहिए. कुछ लोग पूरी कहावत इस प्रकार बोलते हैं – क्या खूब सौदा नकद है, इस हाथ ले उस हाथ दे.

इहाँ कुम्हड़बतिया कोऊ नाहीं, जे तर्जनी देखि मुरझाहीं. यहाँ कोई छुईमुई की पत्तियाँ नहीं है जो तुम्हारी उँगली देख कर मुरझा जाएंगी. राम ने जब शिवजी का धनुष तोड़ दिया तो परशुराम आ कर बहुत क्रोधित होने लगे. तब लक्ष्मण ने उन को ललकारते हुए यह कहा. कहावत का अर्थ है कि आप अपने को बहुत बलशाली समझते हो पर हम भी आप से कम नहीं है.

इहाँ न लागहिं राउर माया. यहाँ आप की जालसाजी नहीं चलेगी. राउर – आपकी.

 

ई बुढ़िया बड़ी लबलोली, चढ़े को मांगे डोली. किसी अपात्र व्यक्ति द्वारा अनुचित सुविधाएं मांगने पर.

ईंट का घर, मिट्टी का दर. बेतुका काम. घर तो ईंट का बनाया पर दरवाज़ा मिट्टी का बना दिया.

ईंट की देवी, रोड़े का प्रसाद. जैसी देवी वैसा प्रसाद.

ईंट की लेनी पत्थर की देनी. कठोर बदला चुकाना, मुँह तोड़ जवाब देना.

ईंट खिसकी दीवार धसकी. एक ईंट खिसकने से ही दीवार गिर सकती है. समाज और संगठन में एक एक व्यक्ति महत्वपूर्ण है, इसलिए किसी की अवहेलना नहीं करना चाहिए. 

ईंट मारेगा छींट खाएगा. (पाथर डारे कीच में उछरि बिगारे अंग). कीचड़ में ईंट फेंकने से अपने ऊपर छींटें आती हैं. नीच व्यक्ति को छेड़ने पर अपना ही नुकसान होता है.

ईख की गांठ में रस नहीं होता. गन्ना बहुत रस से भरा होता है पर उसकी भी गाँठ में रस नहीं होता. किसी भी व्यक्ति में सभी अच्छाईयाँ नहीं होतीं थोड़ी बहुत कमियाँ भी होती हैं..

ईतर के घर तीतर, बाहर बाधूँ कि भीतर (घड़ी बाहर घड़ी भीतर). किसी इतराने वाले व्यक्ति के हाथ कोई बड़ी चीज़ लग गई है. कभी घर में रखता है कभी बाहर सबको दिखाता घूमता है.

ईद खाई बकरीद खाई, खायो सारे रोजा, एक दिना की होरी आई, घर घर मांगे गूझा. मुसलमान के लिए व्यंग्य में कह रहे हैं कि उसने ईद पर, बकरीद पर और तीसों रोजों में खूब माल खाए. अब एक दिन की होली आई है तो घर घर जा कर गुझिया मांग रहा है.

ईद पीछे चाँद मुबारक. बेमौके काम.

ईन मीन साढ़े तीन. कोई बहुत छोटा परिवार या संस्था.

ईश रजाय सीस सबही के. ईश्वर सभी के सर झुकाता है.

ईश्वर उनकी सहायता करता है, जो अपनी सहायता स्वयं करते हैं. अर्थ स्पष्ट है. 

ईश्वर की गति ईश्वर जाने. भगवान की माया वे स्वयं ही समझ सकते हैं. इंग्लिश में कहते हैं Mysterious are the ways of God.

ईश्वर की माया, कहीं धूप कहीं छाया. ईश्वर की बनाई दुनिया में कहीं ख़ुशी है कहीं दुःख.

ईश्वर देखा नहीं तो बुद्धि से तो जाना जा सकता है. ईश्वर का साक्षात दर्शन नहीं हो सकता, बुद्धि के द्वारा ही ईश्वर के अस्तित्व की पहचान हो सकती है.

ईश्वर राखे जैसे तैसे रहो खुश. अर्थ स्पष्ट है.

ईश्वर लड़ने की रात दे बिछड़ने का दिन न दे. घरवालों या दोस्तों से थोड़ी बहुत लड़ाई भले ही होती रहे, कभी बिछड़ना न पड़े.

ईस जाए पर टीस न जाए. किसी से ईर्ष्या न भी करो तो भी उस की सम्पन्नता देख कर मन में टीस तो होती है.

 

उंगलियों से नाखून अलग नहीं होते. जो अपने हैं वे अपने ही रहते हैं.

उंगली पकड़ाई पाहुंचा पकड़ लिया. किसी की थोड़ी सी सहायता की तो वह पीछे ही पड़ गया.

उंगली सूज कर अंगूठा नहीं बन सकती. किसी वस्तु की मूलभूत प्रकृति नहीं बदल सकती.

उंगली हिलाने से किसी का भला होता हो तो मना क्यूँ करें. अपने बिना प्रयास किये किसी का भला होता हो तो क्या हर्ज़ है.

उगता नहीं तपा, तो डूबता क्या तपेगा. जिसने युवावस्था में कोई प्रसिद्धि पाने लायक कार्य नहीं किया वह वृद्धावस्था में क्या करेगा.

उगता सूरज तपे. जब व्यक्ति कामयाबी की सीढियों पर चढ़ रहा होता है वह बहुत रौब दिखाता है.

उगते सूरज को सभी नमस्कार करते हैं. जब व्यक्ति उन्नति कर रहा होता है तो सभी उसका आदर करते हैं.

उगले सो अंधा खाए तो कोढ़ी. (सांप छछूंदर की गति) किसी ऐसी स्थिति में फंस जाना जिस में दोनों प्रकार से संकट हो. (सांप के विषय में कहा जाता है कि यदि वह छछूंदर को पकड़ ले तो बहुत संकट में पड़ जाता है, यदि वह उसे उगल दे तो अंधा हो जाएगा और अगर निगल ले तो कोढ़ी हो जाएगा). 

उगे सो अस्ते, जन्मे सो मरे. जो उदय होता है वह अस्त भी होगा (चाहे सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र हों या साम्राज्य) और जिसने जन्म लिया है वह मृत्यु को अवश्य प्राप्त होगा. अपने अच्छे समय में कभी अभिमान नहीं करना चाहिए.

उघरे अंत न होहि निबाहू, (कालनेमि जिमि रावन राहू). धोखे का काम अधिक समय नहीं चलता (अंत में खुल जाता है), जिस प्रकार कालनेमि, रावण और राहु के साथ हुआ.

उजड़े घर का बलेंड़ा. किसी बर्बाद हुए व्यापार या संस्था का एकमात्र जिम्मेदार आदमी. (बलेंड़ा – छप्पर में लगने वाली लम्बी लकड़ी).

उजड़े न टिड्डी का घर, नाम वीरसिंह. गुण के विपरीत नाम.

उजला उजला सभी दूध नहीं होता. सभी सफ़ेद चीज़ दूध नहीं होतीं. अर्थ है कि केवल देखने से किसी वस्तु के गुणों का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता. इंग्लिश में कहते हैं – All that glitters is not gold.

उजले उजले सब भले उजले भले न केस, नारि नवे न रिपु दबे न आदर करे नरेस. और सब चीजों का उज्ज्वल होना अच्छा है पर बालों का उजला (सफ़ेद) होना नहीं. बाल सफ़ेद हों तो स्त्री नहीं दबती, शत्रु भय नहीं खाते और राजा भी आदर नहीं करते.

उज्ज्वल बरन अधीनता, एक चरन दो ध्यान, हम जाने तुम भगत हो, निरे कपट की खान. बगुले के लिए कही गई पहेली नुमा कहावत. उजला रंग, एक पैर पर खड़े होकर दो चीज़ों में ध्यान लगाए हैं. देखने में भगत लगते हैं पर निरे कपट की खान हैं. ढोंगी साधुओं और नेताओं के लिए भी. 

उज्ज्वलता मन उज्जवल राखे, वेद पुरान सकल अस भाखैं. चरित्र की शुद्धता से मन भी उज्ज्वल रहता है. वेद पुराण सभी ऐसा कहते हैं. भाखैं – भाषित करते हैं. 

उठ दूल्हे फेरे ले, हाय राम मौत दे. आलसी होने की पराकाष्ठ. दूल्हे से कहा जा रहा है कि उठ फेरे ले, वह कह रहा है हाय राम! क्या मौत आ गई.

उठ बंदे, वही धंधे. सुबह सो कर उठते ही आदमी को काम धंधे की चिंता सताने लगती है.

उठ बे बंदर, बैठ बे बंदर. जोरू के गुलाम का मजाक उड़ाने के लिए.

उठती मालिन और बैठता बनिया. मालिन जब दुकान समेट कर घर जा रही होती है तो निबटाने के लिहाज से सामान सस्ता दे देती है, और बनिया जब दुकान खोलता है तो बोहनी के चक्कर में सामान सस्ता दे देता है.

उठी पैठ आठवें दिन ही लगती है. यहाँ पैठ का अर्थ साप्ताहिक बाज़ार से है. अवसर एक बार हाथ से निकल जाने पर दोबारा जल्दी हाथ नहीं आता.

उठो सासू जी आराम करो, मैं कातूं तुम पीस लो. बहू को सास के आराम का बड़ा ध्यान है. कह रही है, तुम आराम से चक्की पीसो,  सूत कातने जैसा कठिन काम मैं कर लेती हूँ. 

उड़ता आटा पुरखों को अर्पण. चक्की में से उड़ते आटे को पुरखों को अर्पण करने का ढोंग.

उड़ती उड़ती ताक चढ़ी. किसी उड़ती खबर को महत्त्व मिल जाना.

उड़द कहे मेरे माथे टीका, मुझ बिन ब्याह न होवे नीका. उड़द की दाल पर छोटा सा निशान होता है. उड़द के बिना बड़े और कचौड़ी नहीं बन सकतीं इसलिए कोई भी आयोजन फीका रहेगा.

उड़द लगे न पापड़ी, बहू घर में आ पड़ी. शादी विवाह जैसे समारोहों में बड़ियाँ व कचौड़ियाँ बनती हैं जिन में उड़द की दाल का प्रयोग होता है. किसी के विवाह आदि में कोई समारोह न किया जाए और लोगों को दावत न मिले तो लोग मजाक उड़ाने के लिए इस प्रकार बोलते हैं.

उढ़ली बहू बलैंड़े सांप दिखावे. उढ़ली माने दुश्चरित्रा स्त्री. इस प्रकार की बहू छप्पर में साँप बता कर लोगों का ध्यान उस तरफ लगा देती है और खुद घर से निकल जाती है. कोई कामचोर या बेईमान आदमी बहाने बनाए तो यह कहावत कही जाती है.

उत तेरा जाना मूल न सोहे, जो तुझे देख के कूकुर रोवे. यदि कहीं जाने पर आपको देख के कुत्ता रोता है तो इसे भारी अपशकुन मानें.

उत से अंधा आय है, इत से अंधा जाय, अंधे से अंधा मिला, कौन बतावे राय. जहाँ सारे लोग अज्ञानी हों वहाँ राह कौन दिखाएगा.

उतना खाए जितना पचे. खाने में संयम रखने के लिहाज से भी कहा गया है और रिश्वतखोरों को भी सलाह दी गई है.

उतर गई लोई तो क्या करेगा कोई. 1. एक बार बेज्जती हो गई तो फिर वह मान सम्मान लौट कर नहीं आ सकता. 2. जिस का सम्मान चला जाए वह कुछ भी कर सकता है.

उतरती नदी किनारे ढाए. बाढ़ के बाद जब नदी का पानी उतरता है तो किनारों को ढहा देता है. संकट खत्म होते होते भी हानि पहुँचा सकता है इसलिए संकट बिल्कुल समाप्त होने तक सावधान रहना चाहिए.

उतरा घांटी, हुआ माटी. स्वादिष्ट से स्वादिष्ट भोजन भी गले से नीचे उतर कर मिट्टी के समान महत्वहीन हो जाता है.

उतरा पातर, मैं मियां तू चाकर. पातर – कर्ज़. कर्ज़ उतारने के बाद अब मैं तुम से क्यों दबूं.

उतरा हाकिम कुत्ते बराबर (उतरा हाकिम चूहे बराबर). पद खोने के बाद हाकिम को कोई नहीं पूछता.

उतारने से ही बोझ उतरता है. सर पर रखा बोझ हो या कोई क़र्ज़, वह प्रयास करने से ही उतरता है.

उतावला दो बार फिरे. जल्दबाजी में आगे बढ़ने वाले को दो बार लौट के आना पड़ता है और अधिक समय लगता है.

उतावला सो बावला. धीरा सो गम्भीरा. जल्दबाजी करने वाला अक्सर मूर्खतापूर्ण कार्य कर देता है. धैर्य से काम करने वाला गंभीर व्यक्ति ही सफल होता है.

उतावली कुम्हारन, नाखून से मिट्टी खोदे. जल्दबाजी में फूहड़पन से काम करना.

उतावली नाइन उंगली काटे. नाई की कुशलता की परीक्षा नहरनी से नाखून काटने में होती है. नाइन अगर जल्दबाजी में काम करगी तो नाखून के साथ उंगली भी काट देगी.

उतावले मारे जाते हैं, वीरों के गाँव बसते हैं. जल्दबाजी करने वाले सही योजना न बनाने के कारण युद्ध में हार जाते हैं जबकि वीर पुरुष समझदारी से युद्ध जीत कर गाँव व शहर बसाते हैं.

उत्तम खेती जो हल गहा, मध्यम खेती जो संग रहा. जो खुद हल चलाता है उस की खेती सब से अच्छी होती है और जो हलवाहे के साथ में रहता है उसकी खेती मध्यम (कुछ कम सफल) होती है. 

उत्तम खेती मध्यम बान, अधम चाकरी भीख निदान. घाघ के अनुसार खेती सर्वोत्तम कार्य है, व्यापार मध्यम और नौकरी निम्न श्रेणी का काम है और यदि कोई काम न कर सको तो भीख मांग कर काम चलाओ.

उत्तम गाना, मध्यम बजाना. गायकी सर्वश्रेष्ठ है, वाद्य बजाना उसके बाद आता है.

उत्तम विद्या लीजिए. तदपि नीच में होए. यदि किसी छोटे व्यक्ति में कोई गुण हो तो उससे सीखने में संकोच नहीं करना चाहिए.

उत्तम विद्या लीजिये जदपि नीच में होय, पड़यो अपावन ठौर में कंचन तजे न कोय. किसी निम्न कुल के व्यक्ति, निर्धन या अनपढ़ से भी यदि कोई उत्तम बात सीखने को मिले तो सीखनी चाहिए. सोना यदि गंदे स्थान पर पड़ा हो तो भी उसे छोड़ थोड़े ही देते हैं.

उत्तम से उत्तम मिले, मिले नीच से नीच, पानी में पानी मिले, मिले कीच में कीच. व्यक्ति अपनी संगत स्वयं ही ढूँढ़ लेता है. उत्तम व्यक्ति उत्तम लोगों की संगत पसंद करता है और नीच व्यक्ति नीच लोगों की संगत ढूँढता है.

उत्तर गुरु दक्खन में चेला, कैसे विद्या पढ़े अकेला. जब कोई दो व्यक्ति बहुत दूर दूर हों तो आपस में संवाद हीनता की स्थिति बन जाती है.

उत्तर जायं कि दक्खन, वे ही करम के लच्छन. जिन का भाग्य साथ नहीं देता वे बेचारे कहीं भी जाएँ असफल ही होते हैं.

उत्तर रखे बतावे दक्खन बाके अच्छे नाही लच्छन. जो व्यक्ति बात का उल्टा जवाब देता है वह विश्वास योग्य नहीं होता.

उथली रकाबी फुलफुला भात, लो पंचों हाथ ही हाथ. कंजूस की बेटी की शादी हुई तो उसने उथली प्लेट में फूला फूला भात परोस दिया ताकि देखने में ज्यादा लगे. कोई खिलाने पिलाने में कंजूसी करे तो यह कहावत कहते हैं.

उथले कहि के गहरे बोरें.  उथला पानी बता कर गहरे में डुबो देने वालों के लिए.

उथले पानी की मछली. कम संसाधनों में परेशानी से गुजारा करने वाले के लिए.

उदधि बड़ाई कौन है, जगत पियासो जाय. समुद्र में कितना भी पानी क्यों न हो उससे किसी की प्यास नहीं बुझती. कोई व्यक्ति कितना भी धनवान या ज्ञानवान क्यों न हो, यदि किसी के काम न आ सके तो उसका बड़प्पन बेकार है. 

उदधि रहे मर्याद में बहे उलटो नव नीर. समुद्र जिसमें अथाह जल है वह तो गंभीर रहता है पर बरसात में इकठ्ठा होने वाला पानी उल्टा सीधा बहता है. अर्थ है कि जो पुराने खानदानी धनवान या विद्वान होते हैं वे तो गंभीर होते हैं पर नया धन या नई विद्या अर्जित करना वाला व्यक्ति बहुत दिखावा करता है.

उद्यम के सर लक्ष्मी, पंखा कीसी ब्यार. उद्यमी व्यक्ति के सर पर लक्ष्मी स्वयं पंखा ले कर हवा करती है. (अर्थात उस की दासी बन कर रहती है)

उद्यम से दलिद्दर घटे. कर्म करने से ही दरिद्रता घटती है.

उद्यम ही सफलता की कुंजी है. कोई नया काम आरम्भ करे या किसी का कोई चलता हुआ काम हो, दोनों ही अवस्थाओं में उद्यम करने से ही सफलता मिलती है. इंग्लिश में  कहावत है – Every man is the architecht of his own fortune.

उधार का खाना, फ़ूस का तापना. जैसे आग लगाने के बाद फूस एक दम ख़तम हो जाता है वैसे ही उधार के पैसे से यदि खाओगे पियोगे तो वह एक दम ख़तम हो जाएगा. अर्थ है कि उधार लेना व्यापार के लिए तो ठीक है (जिससे कमा कर आप वापस कर सकते हैं), पर उधार के पैसे से गुलछर्रे नहीं उड़ाने चाहिए.

उधार का गड्ढा समन्दर से गहरा. एक बार उधार ले कर उससे उऋण होना बहुत कठिन है.

उधार का बाप तकादा.  उधार लोगे तो तकादा झेलना ही पड़ेगा. तकादा – पैसा वापस माँगना.

उधार काढ़ व्यौहार चलावे, छप्पर डारे ताला, साले संग बहिनी को पठावे, तीनहुं का मुँह काला. उधार ले कर सामाजिक लेन देन करना, छप्पर पर ताला डालना और साले के संग अपनी बहन को कहीं भेजना, ये तीनों मूर्खतापूर्ण कार्य हैं. 

उधार की कोदों खाएं, ठसक से मरी जाएं. कोदों एक घटिया अनाज माना जाता है वह भी उधार ले कर खा रही हैं और घमंड दिखा रही हैं.

उधार की जूती, खैरात का नाड़ा, पढ़ दे मुल्ला ब्याह उधारा. गाँठ में कुछ नहीं है पर मियाँ जी ब्याह करने चले हैं. सब काम उधार हो रहा है. पास में पैसा न होने पर भी महंगे शौक करने वालों के लिए.

उधार दिया और ग्राहक गंवाया (उधार दिया, गाहक खोया). जिस ग्राहक को उधार दिया वह फिर दूकान पर नहीं आता (लौटाना न पड़े इस चक्कर में).

उधार दीजे, दुश्मन कीजे. किसी को उधार देना गलत है क्योंकि जब आप अपना पैसा वापस मांगेंगे तो वह आपका दुश्मन हो जाएगा. (उधार देना, लड़ाई मोल लेना). इंग्लिश में कहावत है – Borrowing is sorrowing.

उधार प्रेम की कैंची है. ऊपर वाली कहावत के समान.

उधार बड़ी हत्या है. उधार लेना और देना दोनों ही परेशानी का कारण बनते हैं.

उधार बेचें न मांगने जाएं. न उधार माल बेचेंगे, न तकादे करते फिरेंगे.

उधार लाएं और ब्याज पर दें. एक के बाद दूसरी उस से भी बड़ी गलती करना. 

उधार लेना और देना दोनों फसाद की जड़. अपनी झूठी शान दिखाने के लिए उधार ले कर खर्च करने वाले लोग बाद में परेशानी उठाते हैं और उधार देने वाले उस की उगाही को ले कर परेशानी उठाते हैं. इंग्लिश में कहावत है – Neither a borrower nor a lender be.

उधारिया पासंग नहीं देखता. जो व्यक्ति माल उधार ले रहा है वह तोलने में थोड़ी बहुत बेईमानी को नजर अंदाज़ कर देता है. पासंग – तराजू के पल्लों को बराबर करने के लिए लगाया गया वजन.

उधेड़ के रोटी न खाओ, नंगी होती है. रोटी को उधेड़ कर नहीं खाना चाहिए इस बात को ज्यादा ही जोर दे कर कह दिया गया है. एक अर्थ यह भी हो सकता है कि जो भी खाते हो उसे दाब ढक कर खाओ दिखा कर नहीं.

उन धारी है देह वृथा जग में, जिन नेह के पंथ में पाँव न दीन्हों. जिनके मन में प्रेम नहीं है उनका जन्म लेना बेकार है.

उपजति एक संग जल माही, जलज जोंक जिमि गुण विलगाही. कमल का फूल और जोंक दोनों जल में उत्पन्न होते हैं पर उनके गुणों में जमीन आसमान का फर्क है. इसी प्रकार एक घर या एक समाज में पैदा होने वाले दो लोगों में बहुत अंतर हो सकता है.

उपदेश देना सरल है उपाय बताना कठिन. दूसरों की कमियाँ बताना बड़ा आसान है पर कठिन परिस्थिति में स्वयं आगे बढ़ कर समाधान करना बहुत कठिन है.

उपला जले गोबर हँसे. कंडे को जलता देख कर गोबर हँसता है. यह भूल जाता है कि कल उसे भी उपला बन कर जलना है.

उपास न त्रास, फलार की आस. उपास – उपवास, फलार – व्रत में खाया जाने वाला फलाहार. व्रत नहीं रखा, कोई कष्ट नहीं उठाया और बढ़िया फलाहार की उम्मीद लगाए बैठे हैं.

उपास से मेहरी के जूठ भला. (भोजपुरी कहावत) उपास – उपवास. भूखा रहने से अपनी पत्नी का जूठा खाना अच्छा.

उम्मीद पर दुनिया कायम है. व्यक्ति हमेशा अच्छे की आशा करता है इसी आशावाद पर संसार चल रहा है.

उलझना आसान, सुलझना मुश्किल. समस्याएं पैदा करना आसान होता है पर उनका हल निकालना मुश्किल.

उलटा पुलटा भै संसारा, नाऊ के सर को मूंडे लुहारा. संसार में बहुत कुछ उल्टा पुल्टा भी होता है, जैसे नाई का सर अगर लुहार मूंडे तो.

उलटी गंगा पहाड़ चली. 1. उलटी रीत. 2.असंभव सी बात. (हास्यास्पद भी)

उलटी बाकी रीत है, उलटी बाकी चाल, जो नर भौंड़ी राह में, खोवे अपना माल. अपनी मूर्खता से अपना माल गंवाने वाले व्यक्ति के लिए कहावत है.

उलटे बाँस बरेली को. एक समय में बरेली बांसों की मंडी थी. (कुछ हद तक अभी भी है). उस समय यदि कोई बांस ले कर बरेली आता तो यह कहावत कही जाती. कहावत का अर्थ है कि जहाँ जिस चीज़ की बहुतायत है वहाँ उसे ले कर जाना बेतुकी बात है.

उलटो जो बादर चढ़े, विधवा खड़ी नहाए, घाघ कहैं सुन भड्डरी, वह बरसे वह जाए. घाघ कवि कहते हैं कि यदि बादल हवा के विरुद्ध बह कर आ रहा है तो जरूर बरसेगा और यदि विधवा स्त्री खड़ी हो कर नहा रही है तो वह जरूर किसी के साथ भाग जाएगी. (पुराने समय में विधवा विवाह को समाज स्वीकार नहीं करता था).

उलायता चोर सही सांझे ऐड़ा. जल्दबाजी में आदमी गलत काम कर बैठता है. चोर जल्दबाजी कर रहा है तो शाम को ही चोरी करने निकल पड़ा. उलायता – जल्दबाज.

उल्टा चोर कोतवाल को डांटे. कोई आदमी गलत काम कर रहा है. आप टोकते हैं या समझाते हैं तो वह उल्टा आप से लड़ने लगता है. ऐसे में यह कहावत कही जाती है. 

उल्लू के बेटा भया, गदहा नाम धरा. (भोजपुरी कहावत) मूर्ख लोगों की सन्तान भी मूर्ख ही होती हैं.

उसकी किस्मत क्या जागे जो काम करे से भागे. जो काम से जी चुराए उसकी किस्मत नहीं जाग सकती.

उस कूकुर से बच कर रहे, जा को जगत कटखना कहे. बदनाम और झगड़ालू व्यक्ति से बच कर रहना चाहिए.

उस को सीख न दो कभी जो हो मूरख नीच, लोह मेख नाहीं धंसे कबहूँ पाथर बीच. जो मूर्ख या नीच व्यक्ति हो उसे शिक्षा देने का प्रयास मत करो. पत्थर में कभी लोहे की कील नहीं धंस सकती.

उस जातक से करो न यारी, जिस की माता हो कलहारी. जिस बच्चे की माँ झगड़ालू हो उस से दोस्ती मत करो.

उस नर को न सीख सुहावे, प्रीत फंद में जो फंस जावे. जो इश्क के फंदे में फंस गया उसे सीख अच्छी नहीं लगती.

उस्ताद, हज्जाम, नाई, मैं और मेरा भाई, घोड़ी और घोड़ी का बछेड़ा और मुझको तो आप जानते ही हैं. कहीं कोई चीज़ बंट रही थी. वहाँ एक ही आदमी (नाई) कई नाम बता बहुत सारी लेने की कोशिश कर रहा है.

 

 

 

ऊँच अटारी मधुर बतास, कहें घाघ घर ही कैलास. ऊंचा मकान और ठंडी हवा का आनंद जिस को प्राप्त हो उस के लिए घर पर ही कैलाश पर्वत है.

ऊँच नीच में बोई क्यारी, जो उपजी सो भई हमारी. ऊबड़ खाबड़ क्यारी में कुछ बोया है तो जो कुछ भी उग आए वही नफ़ा है.

ऊँची दुकान, फीके पकवान. जहाँ कहीं तड़क भड़क व दिखावा तो बहुत हो पर माल घटिया मिल रहा हो वहाँ इस कहावत का प्रयोग करते हैं. 

ऊँचे चढ़ कर देखा, तो घर घर बाही लेखा. हर घर में कुछ न कुछ खटपट व कलह होती है. (चाहे बाहर से न दिखती हो).

ऊँट अपनी पूँछ से मक्खी नहीं उड़ा सकता. बड़े से बड़े व्यक्ति को भी अपने छोटे छोटे कामों के लिए किसी की सहायता लेनी पडती है.

ऊँट का मुँह ऊँट ही चूमे. बड़े आदमियों से बड़े ही संबंध बना सकते हैं.

ऊँट का रोग रैबारी जाने. रैबारी – ऊँटों का विशेषज्ञ. जो जिस काम का विशेषज्ञ है वही उस काम को ठीक से कर सकता है.

ऊँट का होंठ कब गिरे और कब खाऊँ. ऊँट का होंठ देख कर लगता है कि जैसे गिरने वाला है. लोमड़ी बैठी सोच रही है कि कब होंठ गिरे और कब खाने को मिले. व्यर्थ की आशा करने वालों पर व्यंग्य. 

ऊँट की चोरी झुके-झुके. (ऊँट की चोरी निहुरे निहुरे). कोई छोटी सी चीज़ चुरा कर तो आप झुक कर भाग सकते हैं पर ऊँट की चोरी झुके झुके नहीं कर सकते. कोई चुपचाप बहुत बड़ी चोरी करने का प्रयास करे तो.

ऊँट के गले में बिल्ली. 1. बहुत लम्बा दूल्हा और छोटी सी दुल्हन. बेमेल जोड़ी. 2. ऊंट और बिल्ली की एक कहानी भी है. एक आदमी का ऊंट खो गया. उसने ऐलान करवाया कि अगर ऊंट मिल गया तो उसे लाने वाले के हाथों दो टके में बेच देगा. जिस आदमी को ऊंट मिला वह इस उम्मीद से उस के पास आया कि दो टके में ऊंट खरीद लेगा. पर वह आदमी बहुत चालाक था. उसने ऊंट के गले में एक बिल्ली बांध दी और कहा कि ऊंट के साथ बिल्ली को भी लेना जरूरी है जिसकी कीमत सौ अशर्फियाँ है. इस तरह उस ने अपना ऊंट बचा लिया. किसी अच्छी चीज़ के साथ एक ख़राब चीज़ जबरदस्ती लेनी पड़ रही हो तो यह कहावत कही जाएगी. 

ऊँट के ब्याह में गधा गवैया. दो मूर्खों का समागम.

ऊँट के मुँह में जीरा. बहुत अपर्याप्त सामग्री.

ऊँट को उठते ही सरपट नहीं दौड़ना चाहिए. ऊँट बेडौल होता है इसलिए उठते ही भागेगा तो गिर जाएगा. किसी काम के आरम्भ में बहुत तेजी नहीं दिखानी चाहिए.

ऊँट को किसने छप्पर छाए. घोड़े के लिए घुड़साल और गाय के लिए गौशाला बनाई जाती हैं पर ऊंट को खुले में ही रहना होता है. किस को क्या मिलेगा यह उस के भाग्य पर निर्भर होता है.

ऊँट को निगल लिया और दुम को हिचके (ऊँट निगल जाए, दुम पे हिचकियाँ ले). बहुत बड़ा घोटाला करने वाला यदि छोटे से गलत काम को मना करे तो.

ऊँट गए सींग मांगे, कानौ खो आए. ऊंट के कान बहुत छोटे होते हैं. कहा जाता है कि ऊंट भगवान से सींग मांगने गया था और कान भी गंवा दिए.

ऊँट गुड़ दिए भी बर्राए, नमक दिए भी बर्राए. जिसकी आदत बड़बड़ाने की होती है वह हर परिस्थिति में शिकायत ही करता रहता है.

ऊँट चढ़ के मांगे भीख. जिस की भीख मांगने की आदत हो वह ऊंट पर चढ़ कर भी भीख ही मांगेगा.

ऊँट तेरी गर्दन टेढ़ी, कि मेरा सीधा क्या है. कुटिल व्यक्ति सब ओर से कुटिलता से भरा हुआ ही होता है.

ऊँट दुल्हा गधा पुरोहित. दो एक से बढ़ कर एक मूर्ख लोग मिल जाएं तो.

ऊँट न कूदे, बोरे कूदें, बोरों से पहले उपले कूदें. जहाँ अफसर कुछ न बोले लेकिन उस के नीचे के कर्मचारी ज्यादा तेजी दिखाएँ.

ऊँट रे ऊँट तेरी कौन सी कल सीधी. ऊंट कभी इस करवट बैठता है तो कभी उस करवट. उस से पूछ रहे हैं कि तेरी कौन सी करवट तेरे लिए सीधी है. (जैसे इंसान के लिए दाहिनी करवट सीधी मानी जाती है). ऐसे व्यक्ति के लिए जिस की हरकतें विश्वास योग्य न हों.

ऊँट लँगड़ाये और गधा दागा जाये. दागना – लोहे की छड़ गरम कर के शरीर के किसी हिस्से से छुआना. ऐसा माना जाता है कि ऊँट लंगड़ा हो जाय तो गधे को दागने से ठीक हो जाता है. किसी को लाभ पहुँचाने के लिए दूसरे का नुकसान करना.

ऊँट लदने से गया तो क्या पादने से भी गया. जो आदमी किसी काम का नहीं रहता वह फ़ालतू बकवास तो कर सकता है.

ऊँट लदे गधा मरा जाए. किसी दूसरे के कष्ट से व्यर्थ में परेशान होना.

ऊँट लम्बा पर पूँछ छोटी. कोई भी व्यक्ति सब तरह से पूर्ण नहीं हो सकता.

ऊंघते को ठेलते का बहाना. कोई व्यक्ति ऊंघता ऊंघता गिरने को हुआ. तब तक किसी का हल्का सा धक्का लग गया. अब वह गिर गया तो दूसरे को दोष दे रहा है कि तूने मुझे गिरा दिया. अपनी गलती से काम बिगड़े पर दूसरे को दोष देना.

ऊंचे कुल क्या जनमिया जो करनी उच्च न होय, कनक कलश मद सों भरी साधुन निंदे सोय. यदि करनी अच्छी न हो तो ऊँचे कुल में जन्म लेने का क्या लाभ. यदि सोने का घड़ा शराब से भरा हो तो साधु उसकी निंदा करते हैं.

ऊंचे गढ़ों के ऊंचे ही कंगूरे. बड़े लोगों की बड़ी बातें.

ऊंट का पाद, न जमीन का न आसमान का. किसी ऐसे आदमी के लिए जिस की गिनती किसी भी जमात में न हो सके. असभ्य भाषा है पर कहावतों में चलती है. 

ऊंट का सुहाली से क्या भला होगा. सुहाली – मैदा की पतली पापड़ी. सुहाली कितनी भी अच्छी क्यों न हो ऊंट के लिए बेकार है क्योंकि न तो वह उसका स्वाद जानता है और न ही उसका सुहाली से पेट भरेगा.

ऊंट की पकड़, कुत्ते की झपट, खुदा इनसे बचाए. ये दोनों ही बहुत खतरनाक होती है.

ऊंट की बरसात में कमबख्ती. कीचड़ में चलने में ऊंट को बहुत परेशानी होती है इसलिए. 

ऊंट को दगते देख मेंढकी ने भी टांग फैला दी. कहावत का अर्थ है किसी छोटे आदमी द्वारा अपने से बहुत बड़े आदमी की बराबरी करने की कोशिश करना.

ऊंट को बबूल प्यारा. घटिया सोच वाले व्यक्ति को घटिया वस्तुएं ही प्रिय होती हैं.

ऊंट घी देने पर भी बलाबलाए और फिटकरी देने पर भी बलबलाए. जिन की असंतुष्ट रहने की आदत है वे कैसे भी संतुष्ट नहीं होते.

ऊंट चढ़े पे कमरिया अपने आप मटके. (बुन्देलखंडी कहावत)ऊंट चलता है तो उस पर बैठे सवार की कमर न चाहते हुए भी मटकने लगती है. उच्च पद पाने पर व्यक्ति अपने आप ही इतराने लगता है. 

ऊंट जब भागे तब पच्छम को. नासमझ और जिद्दी आदमी के लिए.

ऊंट न खाए आक, बकरी न खाए ढाक. सामान्य लोक विश्वास है कि ऊंट सब तरह के पेड़ पौधे खा लेता है पर आक के पेड़ को नहीं खाता. इसी प्रकार बकरी ढाक के पत्ते नहीं खाती.

ऊंट पर से गिरे, भाड़ेती से रूठे. अपनी असावधानी से ऊंट पर से गिर गए और भाड़े पर ऊंट देने वाले पर नाराज हो रहे हैं. अपनी कमी के लिए दूसरों को दोष देना.

ऊंट बलबलाता ही लदता है. जो लोग कोई काम करने में लगातार अनिच्छा और नाखुशी जाहिर करते रहते हैं उनके लिए.

ऊंट बहे, गधा थाह ले. नदी इतनी गहरी है कि ऊँट बह गया पर गधा यह जानने की कोशिश कर रहा है की पानी कितना गहरा है. जहाँ बड़े बड़े बुद्धिमान किसी समस्या का हल न खोज पा रहे हों वहाँ कोई मूर्ख व्यक्ति अपनी अक्ल लगाए तो.

ऊंट बुड्ढा हुआ पर मूतना न आया. उम्र बढ़ने के साथ भी यदि किसी व्यक्ति को काम करने का ढंग न आए तो यह कहावत कहते हैं.

ऊंट मरा, कपड़े के सिर. व्यापार में जो भी नुकसान होता है, उसे दाम बढ़ा कर ही वसूला जाता है. यदि कपडे के व्यापारी का ऊंट कपड़ा लाते समय रास्ते में मर गया तो उस की कीमत कपडे का दाम बढ़ा कर ही वसूल की जाएगी.

ऊजड़ खेड़ा, नाम निवेड़ा. बिलकुल निरक्षर व्यक्ति का नाम विद्याधर. 

ऊजड़ हो घर सास का, बैर करे हर बार, पीहर घर सूयस बसे, जब लग है संसार. सास वैर करती है इसलिए उसका घर उजड़ जाए. पीहर (मायके) से इतना प्रेम है कि उसका सुयश जब तक संसार रहे तब तक रहने की कामना कर रही हैं. (इन्हें यह नहीं मालूम है कि सास का घर उजड़ेगा तो अपना भी तो नुकसान होगा).

ऊत के निन्नानवे, बारह पंजे साठ. मूर्ख आदमी के लिए. (उससे पूछा निन्यानवे कितने होते हैं – बोला बारह पंजे).

ऊत गाँव में कुम्हार ही महतो. सामान्यत: गाँव में कुम्हार की विशेष इज्जत नहीँ होती लेकिन मूरखों के गाँव में कुम्हार को भी बहुत महत्व दिया जा सकता है. 

ऊत घोड़ी के घोंचू बछेड़े. माँ बाप मूर्ख हों तो सन्तान भी मूर्ख होती है.

ऊधो की पगड़ी माधो के सर. किसी की चीज़ किसी को देना या किसी का दोष किसी और के मत्थे मढ़ देना.

ऊधौ का लेना न माधौ का देना. झंझटों से मुक्त होना.

ऊन छीलते तेरह जगहे कटी बिचारी भेड़. गरीब आदमी को लोग लूटते भी हैं और चोट भी पहुँचाते हैं.

ऊपर भरे नीचे झरे, उसको गोरखनाथ क्या करे. (राजस्थानी कहावत) खाने पीने वाला परन्तु संयमहीन. पहले के लोग यह मानते थे कि चालीस सेर खाने से एक सेर खून बनता है और एक सेर खाने से एक बूँद वीर्य. जो संयम नहीं रख सकता वह कितना भी खा ले स्वस्थ नहीं हो सकता.

ऊपर वाले की लाठी में आवाज नहीं होती. ईश्वर जब पापों की सजा देता है तो व्यक्ति कुछ समझ ही नहीं पाता कि यह क्या हुआ कैसे हुआ.

ऊपर से बाबाजी दीखे नीचे खोज गधे के. खोज – पंजे के निशान. एक मठ के बाबाजी दिन में तो लोगों को उपदेश दिया करते थे और रात में खेतों में से ककड़ियां चुरा कर खाते थे. किसी को शक न हो इसके लिए उन्होंने विशेष प्रकार के जूते बनवाए थे जिनसे मिट्टी में गधे के पैर के निशान (खोज) बन जाते थे. एक दिन एक किसान रात में अपने खेत में छिप कर बैठ गया और उस ने बाबा जी को पकड़ लिया. जब कोई खुराफाती आदमी धर्मात्मा बनने का ढोंग करे तब यह कहावत कही जाती है.

ऊसर का खेत, जैसे कपटी का हेत. ऊसर खेत में फसल नहीं हो सकती और कपटी से मित्रता कभी सफल नहीं हो सकती. हेत – प्रेम.

ऊसर खेत में केसर. किसी असंभव बात के लिए यह कहावत कही जा सकती है.

ऊसर बरसे तृन न जमे. ऊसर खेत में वारिश हो तो भी कुछ पैदा नहीं होता. मूर्ख व्यक्ति को ज्ञान देने से कोई लाभ नहीं होता.

 

 

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ए कूकुर तुम दुर्बल काही, दस घर की आवाजाही. कुत्ते से कोई पूछता है कि तुम दुबले क्यों हो, वह कहता है, क्या करूँ, पेट भरने के लिए दस घरों में आनाजाना पड़ता है.

ए माँ मक्खी, के बेटा उड़ा दे, माँ माँ दो हैं. बहुत ही आलसी व्यक्ति पर व्यंग्य.

एक अंडा, वह भी गंदा. कोई एक चीज़ हो वह भी खराब हो.

एक अकेला, दो ग्यारह (एक अकेला दो का मेला). यदि दो लोग मिल कर काम करें तो उनकी शक्ति कई गुना बढ़ जाती है. 

एक अनार सौ बीमार. अधिकतर लोग भ्रमवश यह समझते हैं कि अनार बीमारियों को दूर करता है. कहावत का अर्थ है कि बीमारियों को दूर करने वाला अनार तो एक ही है पर बीमार बहुत सारे हैं, कैसे सब का इलाज हो? जहाँ आवश्यकता से बहुत कम साधन उपलब्ध हों वहाँ यह कहावत कही जाती है.

एक अहारी सदा व्रती, एक नारी सदा जती. दिन में एक बार भोजन करने वाला व्रती माना जाता है और एक ही स्त्री रखने वाला ब्रह्मचारी माना जाता है.

एक अहीर की एक ही गाय, ना लागे तो छूछी जाय. किसी अहीर के पास एक ही गाय है. वह किसी दिन दूध न दे तो बहुत परेशानी की बात है. जैसे घर में कोई एक ही कमाने वाला हो, जिस दिन काम नहीं कर पाया उस दिन फाका करना पड़ेगा.

एक आँख फूटे तो दूसरी पर हाथ रखते हैं. कोई एक बड़ा नुकसान होने पर व्यक्ति दूसरे नुकसान से बचने का उपाय तुरंत ही करता है.

एक आँख से रोवे, एक आँख से हँसे. झूठ बोलने वाले बहरूपिये व्यक्ति के लिए.

एक आंसू, लाख फ़साने. लाख बार अपना दुखड़ा सुनाने के मुकाबले एक आंसू अधिक बात कह देता है.

एक इतवार के व्रत से जनम का कोढ़ नहीं जाता. कोई एक व्रत या पूजा पाठ कर लेने से सारे संकट नहीं मिट जाते. (कुछ लोग मानते हैं कि इतवार के व्रत रखने से कुष्ठ रोग ठीक हो जाता है.

एक इल्ली सौ मन अनाज बिगाड़े. एक लार्वा बहुत सारे अनाज को बर्बाद कर सकता है, क्योंकि वह तेजी से अनाज को खाता है और गंदगी करता है. इसी प्रकार किसी भी संगठन या समाज को एक ही गलत आदमी बदनाम कर सकता है.

एक ओर चार वेद, एक ओर चतुराई. पोथियों का ज्ञान चतुराई की बराबरी नहीं कर सकता.

एक और एक ग्यारह होते हैं. इस कहावत का अर्थ है कि यदि दो लोग मिल कर काम करें तो उनकी शक्ति कई गुना बढ़ जाती है. 

एक और एक तो दो होवें, पर एका हो तो ग्यारह हों. एकता में बहुत शक्ति है.

एक करे सब लाजैं. घर या समाज में एक आदमी की गलती से सब को लज्जित होना पड़ता है.

एक कहो न दस सुनो. यदि हम किसी को भला-बुरा न कहेंगे तो दूसरे भी हमें कुछ न कहेंगे.

एक की दारू दो. अकेलेपन की एक ही दवा है, एक से दो हो जाओ. दारु – दवा.

एक की सैर, दो का तमाशा, तीन का पिटना, चार का स्यापा. एक आदमी की मौज होती है, दो हो जाएं तो काम कुछ नहीं केवल तमाशा होगा, तीन में मार पीट झगड़ा और कहीं चार मिल गए तब तो रोने पीटने ही पड़ जाएंगे. यह कहावत उन कहावतों की एकदम उलट है जिनमें एक और एक ग्यारह और जमात में करामात जैसी बातें बताई गई हैं. इस बारे में एक कहानी कही जाती है. एक व्यक्ति के चार बेटे थे. उनको एकता का महत्त्व समझाने के लिए उसने उन चारों को एक एक लकड़ी दी और उसे तोड़ने कहा. सबने फ़ौरन लकड़ी तोड़ दी. फिर उसने चार लकड़ियाँ बाँध कर गट्ठर बना दिया और तब तोड़ने को कहा. तब उसे कोई नहीं तोड़ पाया. उसने लड़कों को समझाया कि मिल कर रहोगे तो सब का फायदा होगा. उसकी इस बात का जबाब देने के लिए छोटा लड़का पाँच गमले ले कर आया. एक गमले में चार छोटे छोटे सूखे सूखे पौधे लगे थे, और चार गमलों में एक एक भरा पूरा पौधा लगा था. उसने कहा – देखो बापू! अलग अलग रहने में ही तरक्की है.

एक की सैर, दो का तमाशा, तीन का मेला, चार का झमेला. एक काम को अधिक लोग करें तो काम नहीं होता.

एक कील ठोंके दूसरा टोपी टाँगे. पहले वाला आदमी कोई काम करता है और बाद वाले उसका फायदा उठाते हैं.

एक कुंजड़न नहीं आएगी तो क्या हाट नहीं भरेगा. कुंजड़न – सब्जी बेचने वाली. जो आदमी यह समझता हूं कि उसके न आने से सब काम रुक जाएंगे उसको सीख देने के लिए.

एक कुत्ते को रोता देख सब कुत्ते रोवें (कुत्ते को सुन कर कुत्ता रोवे). बिना सोचे समझे एक दूसरे की नकल करने वालों पर व्यंग्य.

एक के दूने से सौ के सवाए भले. अधिक लाभ के चक्कर में पड़ के धन गँवाने से अच्छा है कम लाभ वाला सुरक्षित निवेश.

एक खजेली कुतिया सौ कुत्तों को खजेला करे. एक कुतिया को खुजली हो तो उस से सौ कुत्तों को खुजली हो सकती है. समाज में एक गलत व्यक्ति अनेक लोगों को गलत रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित कर सकता है.

एक खम्बे से दो हाथी नहीं बंध सकते. कोई दो शक्तिशाली लोग एक व्यक्ति के अधीन नहीं रह सकते. 

एक खसम नहिं होवे जिसके सहस खसम हो जाएं. जिस स्त्री का पति नहीं रहता उस पर जोर जमाने वाले हजार लोग हो जाते हैं. सहस – सहस्त्र, हजार.

एक खाए मलीदा, एक खाए भुस. अपना अपना भाग्य, एक व्यक्ति हलवा खा रहा है और एक भूसा खाने को बाध्य है.

एक गाँव में नकटा बसै, छिन में रोवै छिन में हंसै. नकटे व्यक्ति की मजाक उड़ाने के लिए बच्चों की कहावत.

एक घड़ी की नाक कटाई, सारे दिन की बादशाही (एक घड़ी की बेहयाई, सारे दिन का आराम). किसी काम के लिए मना कर देने में कुछ देर बेशर्मी दिखानी पड़ती है पर फिर बहुत आराम रहता है. 

एक घर तो डायन भी छोड़ देती है. डायन के बारे में कहा जाता है कि वह बच्चों को खा जाती है, लेकिन एक घर वह भी छोड़ देती है. जो घूस खोर बिना घूस लिए कोई काम करने को राजी न हों उन्हें उलाहना देने के लिए यह कहावत कही जा सकती है.

एक घर में सौ मर्द खुशी से रह सकते हैं, दो औरतें चैन से नहीं रह सकतीं. स्त्रियों में आपसी डाह की प्रवृत्ति को दर्शाने के लिए.

एक चन्द्रमा नौ लख तारा, एक सखी और नग्गर सारा. असंख्य तारे होते हुए भी एक चन्द्रमा ही प्रकाश देता है. नगर में असंख्य लोग होते हुए भी एक सखी (दानी व्यक्ति) को ही कीर्ति मिलती है.

एक चादर जने पचास, सभी करें ओढ़न की आस. उपयोग में आने वाली वस्तुएँ कम और जरूरतमंद बहुत अधिक. 

एक चुप सौ को हरावे. दस लोग आप को बुरा कह रहे हों, यदि आप चुप रहते हैं तो वे अंततः चुप हो जाते हैं.

एक चुप हजार सुख. कोई कितना भी क्रोध दिलाने की कोशिश करे यदि आप उस समय चुप रहते हैं तो बहुत सुखी रहते हैं. इंग्लिश में कहावत है – Silence is golden.

एक जंगल में दो शेर. दो दबंग लोग एक स्थान पर एक साथ नहीं रह सकते.

एक जना झख मार मरे, पांच का काम पांचै करें. जो काम पांच आदमियों के करने का है उसे एक आदमी कितना भी प्रयास करें नहीं कर सकता.

एक जना नाखून काटे, चार जने नेहन्ना लाएँ. नेहन्ना या नहरना एक लोहे का छोटा सा औजार होता था जिस से नाई लोग नाखून काटते थे. कहावत में कहा गया है कि छोटे से काम में फ़ालतू में बहुत से लोग लग रहे हैं. (देखिये परिशिष्ट)

एक जो होए सो बुद्धि सिखाइये, कूपहि में यहाँ भांग पड़ी है. जहाँ एक व्यक्ति मूर्खतापूर्ण हरकतें कर रहा हो वहाँ उसे बुद्धि सिखाने का कार्य किया जा सकता है, यहाँ तो ऐसा लगता है कि कुएं में ही भांग पड़ी है (सब के सब दीवाने हैं). 

एक जोरू का जोरू, एक जोरू का भतार, एक जोरू का सीसफूल, एक टांग का बार. अलग अलग तरह के पति गिनाए गए हैं. एक पत्नी का गुलाम है एक स्वामी, एक पत्नी के लिए शीशफूल (माथे का गहना) के समान प्रिय और महत्वपूर्ण है और एक टांग के बाल की तरह तुच्छ और अवांछित. 

एक जोरू सारे कुनबे को बस है. एक स्त्री पूरे परिवार को संभालती है.

एक झूठ के सबूत में सत्तर झूठ बोलने पड़ते हैं. झूठी बात को सिद्ध करने के लिए बहुत से झूठ बोलने पड़ते हैं. इंग्लिश में कहावत है – One lie makes many.

एक झूठ छिपाने के लिए दस झूठ बोलने पढ़ते हैं. एक झूठ को छिपाने के लिए दूसरा झूठ, फिर उसे छिपाने के लिए एक और झूठ, इस प्रकार झूठ पर झूठ बोलने पड़ते हैं.

एक टका दहेज, नौ टका दक्षिणा. विवाह में जितना दहेज दिया गया उससे कई गुना अधिक पंडित जी दक्षिणा मांग रहे हैं.

एक कौड़ी मेरी गांठी, चूड़ा बनवाऊं या माठी. मेरे पास बहुत थोड़े से पैसे हैं, उसमें क्या क्या अरमान पूरे कर लूँ. मेरी गांठी – मेरी गाँठ में (मेरे पास), माठी – बांह में पहनने वाला आभूषण.

एक टका मेरी गांठी, मगद खाऊं के माठी. मगद – शादी ब्याह में बनने वाले बेसन के बड़े लड्डू, माठी – बड़ी मठरी. जेब में थोड़े से पैसे हैं उसमें क्या क्या शौक पूरे कर लें.

एक ठौर बोली, एक ठौर गाली. वही बात कहीं पर सामान्य बोलचाल की भाषा मानी जाती है और कहीं पर गाली. 

एक तरफ चार वेद एक तरफ चातुरी, एक तरफ सब मंतर एक तरफ गात्तरी. गात्तरी – गायत्री मंत्र. अर्थ स्पष्ट है.

एक तवे की रोटी क्या पतली क्या मोटी. (एक तवे की रोटी, क्या मोटी क्या छोटी). एक कुटुम्ब के मनुष्यों में बहुत कम अन्तर होता है.

एक तिनके से हवा का रुख मालूम हो जाता है. हवा किधर को चल रही है, यह मालूम करना है तो घास के तिनके को देखिये. वह उधर को ही झुका होगा.

एक तीर से दो शिकार. जब कोई एक ही काम करने से दो प्रयोजन सिद्ध हो जाएँ तो. इंग्लिश में कहावत है – To kill two birds with one stone.

एक तो अंधे को खिलाओ, फिर घर छोड़ के आओ. असहाय व्यक्ति की मदद करने की कोशिश करो तो उस में भी बड़ी मुसीबतें हैं.

एक तो कानी बेटी की माई, दूजे पूछने वालों ने जान खाई. बेटी कानी है इसी का माँ को बहुत कलेस है ऊपर से पूछने वाले और जान खाते रहते हैं.

एक तो गड़ेरन, दूसरे लहसुन खाए. एक तो गड़ेरन वैसे ही गन्दी रहती है ऊपर से लहसुन खाती है जिससे और बदबू आती है

एक तो डाकिन ऊपर से जरख पे चढ़ी. जरख – लकड़बग्घा. लोक विश्वास है कि डाकिन की सवारी लकड़बग्घा है इसीलिए उसे जरखवाहिनी भी कहते हैं. डाकिन अकेली ही बच्चों को खा जाती है ऊपर से लकड़बग्घे पर सवार हो तो क्या कहने.

एक तो डायन दूजे ओझा से ब्याह. एक तो डायन वैसे ही खतरनाक होती है ऊपर से ओझा से शादी करके और खतरनाक हो गई है.

एक तो डायन, दूसरे हाथ लुआठ (जलती हुई लकड़ी). भयंकर चीज़ का और भयंकर हो जाना. (इक नागन अरु पंख लगाईं).

एक तो था ही दीवाना, उस पर आई बहार. कोई आदमी वैसे ही पगलाया हुआ हो और ऊपर से बहार का मौसम आ जाए तो उसका बौरानापन और बढ़ जाता है.

एक तो भालू, दूसरे कांधे कुदाल. भयंकर चीज़ का और भयंकर हो जाना.

एक तो मियाँ बावले, दूजे खाई भाँग, तले हुआ सर, ऊपर हुई टांग. एक तो मियाँ वैसे ही पगले थे ऊपर से भांग खा ली तो बुरा हाल हो गया. समझदार व्यक्ति के मुकाबले यदि कोई कम अक्ल आदमी नशा कर ले तो बहुत अधिक नुकसान है.

एक तो शेर, ऊपर से बख्तर पहने. शेर वैसे ही इतना खतरनाक और अजेय ऊपर से कवच और पहन ले.

एक थैली के चट्टे बट्टे. एक ही परिवार के लोग एक से होते हैं.

एक दम में हजार दम. एक आदमी हजार लोगों का पेट पाल सकता है.

एक दम, हजार उम्मीद. जब तक सांस है तब तक हजार उम्मीदें रहती हैं.

एक दर बंद, हजार दर खुले. यदि किसी को सहायता देने का एक रास्ता बंद कर दिया जाए तो उसके लिए अन्य बहुत सी संभावनाओं के द्वार खुल जाते हैं.

एक दिन का दिखावा, हजार दिन का सियापा (एक दिन की शोभा, सहस दिन का रोबा).  विवाह आदि बड़े आयोजन में लोग झूठी शान दिखाने के लिए क़र्ज़ ले कर अनाप शनाप खर्च करते हैं और फिर उन्हें बहुत समय तक उस की भरपाई करनी पड़ती है.

एक दिन पाहुना, दूजे दिन अनखावना, तीजे दिन अपने घर भला. अनखावना – खीझ पैदा करने वाला. कोई अतिथि पहले दिन प्रिय लगता है और दूसरे दिन उससे खीझ होने लगती है. तीसरे दिन उसे अपने घर चला ही जाना चाहिए. 

एक दिन मेहमान, दो दिन मेहमान, तीजे दिन बलाए जान. घर आया हुआ मेहमान एक दिन अच्छा लगता है, दूसरे दिन भी झेल लिया जाता है, तीसरे दिन तो वह मुसीबत लगने लगता है. इंग्लिश में कहावत है – Two days guest, third day a pest.

एक दीप से जले दूसरा. (चिराग से चिराग जलता है). 1.ज्ञान के प्रकाश से प्रकाशित होने वाला एक व्यक्ति दूसरे को प्रकाशित करता है. 2.एक मनुष्य से दूसरा मनुष्य जन्म लेता है.

एक देखा राजा ढोर, मारे शाह और छोड़े चोर. भ्रष्ट शासक पर व्यंग्य.

एक देश का बगला, दूजे में बकलोल. एक ही व्यक्ति को कहीं पर बुद्धिमान समझा जाता है और कहीं पर मूर्ख.

एक न शुद दो शुद. जहां एक मुसीबत गले पड़ी है वहाँ एक और सही.

एक नकटा सौ को नकटा करे. यह कहावत एक कहानी पर आधारित है. एक व्यक्ति की नाक धोखे से कट गई. उसे बड़ी चिंता हुई कैसे सबको मुंह दिखाएगा. फिर उसने सोचा कि यदि सब  नकटे हो जाएं  तो उसे कोई नहीं  चिढ़ाएगा.  उसने सबसे कहना शुरू किया कि नाक कटने के बाद उसे स्वर्ग दिखाई दे रहा है. बहुत से लोगों ने स्वर्ग देखने के लालच में नाक कटवा ली. अब नकटे ने उन सब से कहा कि अगर तुम्हें बेइज्जती से बचना है तो सब से कहो कि तुम्हें भी स्वर्ग दिख रहा है जिससे सब लोग अपनी नाक कटा लें.

एक नजीर सौ नसीहत. सौ उपदेश देने के मुकाबले एक उदाहरण पेश कर के दिखाना अधिक कारगर होता है. इंग्लिश में कहावत है – Example is better than precept.

एक नथ और दो बहुएँ, बात कैसे पटेगी. चीज़ एक हो और दावेदार दो हों तो बहुत मुश्किल आती है.

एक नन्नो सौ लफड़ा टाले. किसी काम के लिए एक बार न कह देने से बहुत से झंझटों से बचा जा सकता है. नन्नो – ‘न’

एक नयन अमृत झरे, एक नयन में बिष भरे. मन में कुछ ऊपर से कुछ. लाड़ का दिखावा पर मन में जहर. 

एक नाक दो छींक, काम बनेगा ठीक. किसी काम से पहले कोई छींक दे तो यह अपशकुन होता है पर यदि कोई व्यक्ति दो बार छींके तो वह शुभ शकुन माना जाता  है.

एक नाहीं, सत्तर बला टाले (एक नाहीं, सौ दुःख हरे). किसी काम को मना कर देने से बहुत सी परेशानियाँ कम हो जाती हैं. इस कहावत में उन लोगों को नसीहत दी गई है जो किसी काम को मना न कर पाने के कारण मुसीबत में पड़ जाते हैं.

एक नींबू मनों दूध फाड़ देता है. 1. एक छोटी सी युक्ति बहुत बड़े बड़े काम कर सकती है. 2. एक कुटिल आदमी पूरे समाज को दो फाड़ कर सकता है.

एक नीम, सौ कोढ़ी. ऐसा मानते हैं कि नीम की पत्तियों को उबाल कर उसका पानी लगाने से कुष्ठ रोग में लाभ होता है. कहावत में कहा गया है कि नीम एक है और कोढ़ी बहुत सारे हैं. (एक अनार सौ बीमार).

एक नूर आदमी, हजार नूर कपड़ा. व्यक्ति की सुन्दरता में कपड़ों का बहुत अधिक महत्त्व है. इंग्लिश में कहावत है – Clothes make a man.

एक ने कही दूजे ने जानी, नानक कहें दोनों ज्ञानी. वैसे तो शाब्दिक अर्थ स्पष्ट है लेकिन इस बात को मजाक के रूप में प्रयोग करते हैं जैसे कोई मूर्ख व्यक्ति किसी दूसरे कम बुद्धि वाले व्यक्ति को कोई ऐसी बात बता रहा हो जिसे वह बड़े ज्ञान की बात समझता हो तो मजाक में यह कहावत कही जाती है.

एक पंथ दो काज. एक ही रास्ते पर जाने से दो काम हो जाएँ तो. एक काम से दो लाभ होना.

एक पग उठावे और दूसरे की आस नहीं. जीवन इतना क्षण भंगुर है कि एक पग रखने के बाद दूसरे का भी भरोसा नहीं है.

एक पजामा दो भाई, फेरा फेरी कचहरी जाई. अत्यधिक निर्धनता की स्थिति.

एक पड़े लोटते हैं, दूसरे चोखी मांगते हैं. दो शराबियों में से एक जमीन पर लोट रहा है, दूसरा और दारु मांग रहा है. दो नालायक लोग एक से बढ़ कर एक हों तो.

एक पहिए से गाड़ी नहीं चलती. घर गृहस्थी एक व्यक्ति से नहीं चल सकती. 

एक पाख दो गहना, राजा मरे कि सेना. एक पाख (कृष्ण पक्ष या शुक्ल पक्ष) में दो ग्रहण पड़ें तो बहुत अशुभ होते हैं.

एक पापी सारी नाव डुबोए (एक के पाप से नाव डूबे). ऐसा मानते हैं कि नाव में कोई पापी बैठा हो तो उस के पाप के बोझ से नाव डूब जाती है. किसी एक व्यक्ति के कर्मों का फल बहुत से लोगों को भुगतना पड़े तो.

एक पूत को पूत और एक आँख को आँख नहीं कहा जाता. एक पुत्र होना और एक ही आँख पर्याप्त नहीं होते. 

एक पूत मत जनियो माय, घर रहे या बाहर जाय. पुत्र एक से अधिक होना चाहिए. यदि एक पुत्र को काम के लिए परदेस जाना पड़े तो दूसरा तो साथ में रहेगा.

एक पूत, ढाई हाथ कलेजा. एक पुत्र होने से ही व्यक्ति की हिम्मत बहुत बढ़ जाती है.

एक पेड़ हर्रे, सब गाँव खांसी. ऐसा मानते हैं कि हरड़ (हर्र) खाने से खांसी कम हो जाती है. समस्या यह है कि हर्र का एक ही पेड़ है और सारे गाँव को खांसी है. आवश्यकता अधिक और साधन कम.

एक पैसे की खोज में चवन्नी का तेल जले. छोटे से लाभ के लिए उससे कई गुना खर्च.

एक प्राण दो पिंजर. एक दूसरे से अत्यधिक प्रेम करने वालों के लिए.

एक फूल खिलने से बहार नहीं आती. किसी एक घर में ख़ुशी हो इस का अर्थ यह नहीं होता कि समाज में सुख शान्ति है.

एक फूल से माला नहीं गूँथी जावे. 1.समाज के महत्वपूर्ण कार्य अकेला व्यक्ति नहीं कर सकता. 2 किसी आयोजन में अकेले आदमी से शोभा नहीं होती है. 

एक फूहड़ दूजी के घर गई, जा कुठला सी ठाड़ी भई. कुठला – अनाज रखने का मिटटी का बड़ा सा बर्तन. फूहड़ स्त्रियों पर कटाक्ष किया गया है कि एक फूहड़ स्त्री दूसरी फूहड़ स्त्री के घर गई. न कोई आचार व्यवहार न कोई काम की बात बस फूहड़ की तरह खड़ी हो गई.

एक बंदरिया के रूठे क्या अयोध्या खाली होवे. कुछ लोग अपने को बहुत महत्वपूर्ण समझते हैं और सोचते हैं कि उन के चले जाने से सारे काम रुक जाएंगे, ऐसे लोगों को उनकी हैसियत बताने के लिए यह कहावत कही जाती है. 

एक बनिये से बाजार नहीं बसता. समाज की अर्थ व्यवस्था एक व्यक्ति से नहीं चल सकती.

एक बांबी में दो सांप. दो दबंग लोग एक स्थान पर नहीं रह सकते.

एक बार खाय योगी, दो बार खाय भोगी, तीन बार खाय रोगी. पहले के लोगों का विश्वास था कि खाना जितनी कम बार खाया जाए उतना ही अच्छा है. सामान्य लोग दो बार खाना खाते थे, तीन बार खाना केवल राजा महाराजा ही खाते थे.

एक बार खावे नेमी धेमी, दो बार खावे बड़ा (व्यस्क), तीन बार खावें बालक बूलक, चार बार खावे गधा. नियम पालन करने वाले योगी दिन में एक बार भोजन करते हैं, सामान्य वयस्क लोग दो बार और बालक तीन बार. इस से अधिक बार तो केवल गधे ही खाते हैं.

एक बार जाय योगी, दो बार जाय भोगी, तीन बार जाय रोगी. खाने के अलावा शौच जाने में भी यही सिद्धांत लागू होता है.

एक बार ठगाए, सहस बुद्धि आए. धोखा खा कर ही व्यक्ति बुद्धिमान बनता है.

एक बार भूले सो भूला कहाए, बार बार भूले सो मूरख कहाए. भूल चूक सभी से हो सकती है लेकिन एक बार भूलकर जो उससे शिक्षा ले वह समझदार कहलाएगा और जो उसी गलती को बार बार करे वह मूर्ख कहलाएगा.

एक बिहारी सौ पर भारी. बिहार के लोगों ने अपने खुद की प्रशंसा की है.

एक बुरे से बुराई नहीं होती. आम तौर पर अकेला आदमी दुष्टता पूर्ण कार्य नहीं करता, बहुत से गलत लोग मिल कर गलत काम करते हैं.

एक बुलावे तेरह धावे. ब्राह्मणों के लिए कहा गया है, एक बुलाओ तो तेरह आते हैं.

एक बेटी लाइ, दूजी मिठाइ, तीसरी होय तो तीनों बलाइ. एक या दो बेटियां प्रिय लगती हैं लेकिन अगर तीन हो जाएं तो तीनों मुसीबत लगने लगती हैं.

एक बैल इक्यावन खूँटा. जब एक व्यक्ति से कई स्थानों पर काम करने को बोला जाए.

एक भेड़ कुएं में पड़े तो सौ जा पड़ें. जो लोग बिना अपनी बुद्धि का प्रयोग करे किसी का अंधानुसरण करते हैं उनके लिए (जैसे आजकल के कलियुगी बाबाओं के भक्त). 

एक मखौल, सौ गाली. किसी को सौ गाली देने से अधिक बुरा है उसका मजाक उड़ाना.

एक मछली सारे तालाब को गंदा करती है. एक गलत व्यक्ति से सारा समाज बदनाम होता है. एक गलत व्यक्ति से बहुत से लोग गलत बातें सीखते हैं.

एक मरता सौ पर भारी. जो अपनी जान की परवाह किए बगैर लड़ता है वह अकेला ही सौ पर भारी होता है.

एक माला के मनके. सारे लोग एक से हों तो.

एक मास ऋतु आगे धावे. ऋतु बदलने से एक महीने पहले ही मौसम में उसके अनुरूप परिवर्तन दिखाई देने लगता है.

एक मुँह दो बात. अपनी बात पर स्थिर न रहना.

एक मुर्गी नौ जगह हलाल नहीं होती. एक कर्मचारी एक साथ कई जगह काम नहीं कर सकता. इसको इस तरह भी प्रयोग कर सकते हैं कि किसी एक आदमी से दफ्तर के हर कर्मचारी को रिश्वत नहीं मांगनी चाहिए.

एक मौनी सौ लबारों को हराए. लबार – अपनी झूठी तारीफ़ करने वाला. एक चुप रहने वाला सौ लबारों पर भारी पड़ता है.

एक म्यान में दो तलवारें नहीं समा सकतीं (एक म्यान में दो खड्ग, दीठा सुना न कान).  एक घर में या एक संगठन में दो जबर लोग एक साथ नहीं रह सकते.

एक राम इक रावन्ना, एक छत्री इक बामन्ना, बा ने बा की त्रिया हरी, बा ने बा की लंक जरी, बात को बन गयो बातन्ना, तुलसी लिख गए पोथन्ना. रामायण का उदाहरण दे कर मजेदार ढंग से कहा गया है कि कैसे बात का बतंगड़ बन जाता है. एक राम थे और एक रावण, एक क्षत्रिय थे और एक ब्राह्मण. एक ने दूसरे की स्त्री का अपहरण किया तो दूसरे ने उसकी लंका जला दी. इतनी सी बात का बतंगड़ बना कर तुलसीदास पोथी लिख गये. कहावतों की बात का किसी को बुरा नहीं मानना चाहिए. 

एक रोता सौ को रुलाए. एक व्यक्ति के दुःख को देख कर सौ व्यक्ति दुखी होते हैं.

एक लख पूत सवा लख नाती, ता रावण घर दिया न बाती. किसी अत्यंत ऐश्वर्यशाली किन्तु अहंकारी व्यक्ति के पूर्ण विनाश हो जाने पर इस लोकोक्ति का प्रयोग किया जाता है.

एक लिखा और सौ वाचा. सौ बार कही हुई बात का इतना मूल्य नहीं है जितना एक लिखी हुई बात का.

एक लोटा सात भाई, बेरा बेरी पैखाना जाई. अत्यंत निर्धनता की स्थिति. अत्यधिक कंजूस लो का मजाक उड़ाने के लिए भी इस प्रकार की कहावतकही जाती है.

एक शेर शिकार करे, सौ लोमड़ियाँ पेट भरें (एक शेर शिकार करे, बहुतों के पेट भरें). एक शक्तिशाली व्यक्ति बहुत से लोगों को आश्रय और जीविका दे सकता है.

एक सवार दो घोड़ों पर सवारी नहीं कर सकता. एक व्यक्ति दो विरोधाभासी संस्थाओं का सदस्य नहीं बन सकता.

एक सियार हुआँ हुआँ, सबहिं सियार हुआँ हुआँ. जंगल में जब एक सियार हुआ हुआ बोलता है तो सभी सियार बोलने लगते हैं. यदि किसी एक मूर्ख व्यक्ति की बात का समर्थन बहुत से मूर्ख लोग करें तो व्यंग में यह कहावत बोली जाती है. आजकल संसद की कार्यवाही के दौरान ऐसे दृश्य देखने को मिलते हैं.

एक से दो भले. कहीं जाना हो या कोई काम करना हो तो एक आदमी के मुकाबले दो अच्छे रहते हैं.

एक से भले दो, दो से भले चार. जितने अधिक लोग उतना अधिक आनंद आएगा और काम अच्छा होगा. इंग्लिश में कहावत है – The more, the merrier. 

एक सेर की मुंडी हिले, एक तोले की जबान न हिले. जो लोग मुँह से बोले बिना सिर्फ सर हिला कर जवाब देते हैं उन के लिए.

एक हड्डी सौ कुत्ते (एक बोटी सौ कुत्ते). जहाँ पर आवश्यकता अधिक हो और उपलब्धता कम.

एक हरदसिया, सबरा गाँव रसिया. हरदसिया नाम की कोई एक ही सुंदर कन्या है और गाँव के सभी लड़के उसे वरना चाहते हैं. जहाँ मांग अधिक और उपलब्धता कम हो. 

एक हल हत्या, दो हल काज, तीन हल खेती, चार हल राज. एक हल की खेती सत्यानाश, दो हल की काम चलाऊ, तीन हल सही सही और चार हल उत्तम. 

एक हांडी तेरह चीजें मांगे. रसोई की एक हंडिया को पकाने के लिए तेरह प्रकार की वस्तुएं चाहिए होती हैं.

एक हाथ देना, दूजे हाथ लेना. किसी को कुछ देना और हाथ की हाथ बदले में कुछ और ले लेना.

एक हाथ से घर चले, सौ हाथ से खेती. घर का काम एक व्यक्ति के करने से पूरा हो सकता है परन्तु खेती में बहुत लोगों को लगना पड़ता है.

एक ही बिल के चूहे. एक घर के सभी सदस्य निकृष्ट वृत्ति के हों तो.

एक हुस्न आदमी, हजार हुस्न कपड़ा, लाख हुस्न जेवर, करोड़ हुस्न नखरा. व्यक्ति की सुन्दरता को अच्छे कपड़े हजार गुना बढ़ाते हैं, अच्छे गहने लाख गुना बढ़ाते हैं और उस की भाव भंगिमा करोड़ गुना बढ़ाती हैं.

एकनारी यथा ब्रह्मचारी. जो एक नारी तक सीमित रहते हैं वे भी ब्रह्मचारी के समान हैं. यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि जिनके लिए यह मजबूरी है (एक से अधिक नारी मिल ही नहीं सकती) उनकी कोई तारीफ़ नहीं है. जो लोग एक से अधिक नारियों के उपलब्ध होने पर भी एक तक ही सीमित रहते हैं उन्हीं को ब्रह्मचारी माना जाएगा.

एकला सो बेकला. बेकल – बेचैन. अकेला आदमी घबराहट और बेचैनी का शिकार हो सकता है इसलिए कोई भी काम मिल बांटकर करना चाहिए.

एकांत वासा, झगड़ा न झांसा. जो एकांत में रहते हैं उनके साथ झगड़े इत्यादि का कोई झंझट नहीं होता.

एकादशी की कसर द्वादशी को पूरी होती है. एकादशी के व्रत की कसर द्वादशी को खूब खा कर पूरी करते हैं.

एकै दार एकै चाउर, किसी को गुन, किसी को बाउर. वही दाल है और वही चावल, किसी को लाभ करता है और किसी को वायु पैदा करता है.

एकै नीम, सब घर सितलहा. चेचक को लोग शीतला माता का प्रकोप मानते हैं और नीम के पत्तों से झाड़ते हैं. कहावत में कहा गया है कि गाँव के सारे ग्नरों में चेचक निकली हुई है और एक ही नीम का पेड़ है. आवश्यकता बहुत अधिक और उपलब्धता बहुत कम.

एकै भले सपूत सों सब कुल भलो कहाय. एक योग्य संतान सारे कुल का नाम रोशन करती है.

एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय, (रहिमन सींचे मूल को, फूलै फलै अघाय). किसी भी कार्य के लिए सब से मुख्य जो व्यक्ति है उसी को साध लेने से सारा कार्य सिद्ध हो जाता है. जड़ को सींचने से पौधा फूलता फलता है, पत्तों पर पानी डालने से नहीं.

एकौ न आँख, कजरौठा नौ ठो. शक्ल सूरत कुछ भी नहीं है और सौन्दर्य प्रसाधन बहुत सारे इकट्ठे किए हैं. कजरौठा – काजल बना कर रखने की डिब्बी. (देखिये परिशिष्ट).

एक्के मियाँ खर खरिहान, एक्के मियाँ दर दोकान. जहाँ एक ही व्यक्ति पर बहुत सारी जिम्मेदारियां डाल दी जाएं. 

एरे ताड़ वृक्ष, एतो बढ़ कर कहा कियो. ताड़ के पेड़ से पूछा जा रहा है कि तू ने इतना लम्बा हो कर क्या किया? ऊँचा पद पा कर किसी के काम न आने वालों के लिए व्यंग्य.

एहसान लीजे सब जहान का, न एहसान लीजे शाहेजहान का. राजा या बड़े अधिकारी का एहसान लेना ठीक नहीं.

ऐंचन छोड़ घसीटन में पड़े. ऐंचना माने खींचना, जैसे किसी को रस्सी का फंदा डाल कर खींचना. घसीटन माने घसीटना. कहावत का अर्थ है कि एक मुसीबत से निकल कर दूसरी में पड़ गए.

ऐब को हुनर चाहिए. कोई गलत काम करने के लिए भी होशियारी चाहिए. जैसे कहते हैं नक़ल के लिए भी अक्ल चाहिए.

ऐरे गैरे पचकल्यान (ऐरे गैरे नत्थू खैरे). फ़ालतू और अशुभ आदमी. पचकल्यान एक प्रकार के घोड़े को कहते हैं जो अशुभ माना जाता है.

ऐरे गैरे, फ़सल बहुतेरे. खाने को मिल रहा हो तो बहुत से आलतू फ़ालतू और मुफ्तखोरे इकट्ठे हो जाते हैं.

ऐसी करनी न करे, जो करके पछिताए. ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए जो कर के पछताना पड़े. तात्पर्य यह है कि सब काम सोच समझ कर ही करना चाहिए.

ऐसी कही कि धोए न छूटे. इतनी लगने वाली बात कही.

ऐसी छठी बलबल जाएं, नौ नौ पटरी भातें खायं. बच्चे की छठी पर किसी ने बहुत बड़ा भोज दिया है तो लोग आशीर्वाद दे रहे हैं. ऐसी छठी की बलिहारी जाएं जहां खूब सारा खाने को मिल रहा है.

ऐसी बहू सयानी, कि उधार मांगे पानी. बहू इतनी चालाक है कि किसी से पानी भी मांगती है तो उधार मांगती है जिससे लोग उससे ली हुई चीज़ तुरंत लौटा दें.

ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोय, (औरन को शीतल करे आपहु शीतल होय). हम सभी को ऐसी वाणी बोलना चाहिए जो अपने मन के अहम् को और दूसरे के मन के क्रोध को शांत करे.

ऐसी रातों के ऐसे ही सवेरे. ऐसी परिस्थितियों के ऐसे ही परिणाम होते हैं.

ऐसी सुहागन से तो रांड ही भली. दुष्चरित्र विवाहिता स्त्री के लिए कहा गया है की ऐसी विवाहिता से तो विधवा ही भली. 

ऐसी होती कातनहारी तो काहे फिरती मारी मारी. इतनी होशियार होती तो मारी मारी क्यूँ फिरती. (कातनहारी – सूत कातने वाली).

ऐसे ऊत रिवाड़ी जाएं, आटा बेचें गाजर खाएं. रिवाड़ी राजस्थान में एक शहर है जहाँ गल्ले की मंडी लगती है. किसी मूर्ख व्यक्ति का मज़ाक उड़ाया जा रहा है कि ये अगर मंडी में जाएंगे तो आटा बेच कर गाजर खाएंगे.

ऐसे गायब हुए जैसे गधे के सर से सींग. गधे के सर पर सींग का नामोनिशान भी नहीं होता उसी को लेकर कहावत बनी है. कोई बिल्कुल ही गायब हो जाए तो.

ऐसे घूमे जैसे नाई बिगड़े ब्याह में. यदि किसी विवाह में वर और वधु पक्ष में अनबन हो जाए, और मारपीट की नौबत आ जाए तो सबसे बुरा हाल विवाह तय कराने वाले नाई का होता है. वह दोनों के गुस्से का शिकार बनता है. कोई आदमी बहुत परेशान सा इधर उधर घूम रहा हो तो उसका मजाक उड़ाने के लिए. 

ऐसे दाता से सूम भला, जो फट देय जबाब. जो लोग देने की बात कर के टालते रहते हैं उन से वह कंजूस अच्छा है जो फट से मना कर देता है.

ऐसे बूढ़े बैल को कौन बाँध भुस देय. (कहावत का पूर्वार्ध इस प्रकार है – दांत घिसे और खुर घिसे, पीठ बोझ न लेय). जब कोई कर्मचारी किसी कार्य के योग्य नहीं रहता तो.

ऐसे ही हम ऐसा ही हमारा सगा, न हमारे सर पर टोपी न इस के तन पर झगा. जैसे हम वैसे ही हमारे रिश्तेदार. झगा – शरीर पर पहनने का कुर्ता नुमा वस्त्र.

ऐसो कोऊ नाहिं जग माहीं, जाको काम नचावे नाहीं. काम – कामदेव.इस संसार में ऐसा कोई नहीं है जिसे कामदेव न सताते हों.

 

 

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ओई की रोटी ओई की दार, ओई की टटिया लगी दुआर. यह एक बुन्देलखंडी पहेलीनुमा कहावत है जिस का उत्तर है चना. चने की रोटी चने की दाल से खाओ और चने का पर्दा (टट्टर) बना कर दरवाजे पर लगाओ. 

ओखली में सर दिया तो मूसलों से क्या डरना. जब कोई कठिन काम हाथ में लिया है तो उस में आने वाली परेशानियों से क्या डरना.

ओखली में हाथ डाले, मूसली को दोष देवे. जाहिर है कि ओखली में हाथ डालोगे तो मूसल की चोट पड़ेगी. ऐसे में मूसल को क्या दोष देना. स्वयं गलती करके कष्ट उठाने वाला व्यक्ति यदि दूसरे को दोष दे तो.

ओछा आते भी काटे और जाते भी काटे. दुष्ट सुनार लेते समय भी कम तौलता है और देते समय भी.

ओछा आदमी निहोरे करने पर ज्यादा नखरे दिखाता है. ओछे आदमी से यदि किसी काम के लिए मनुहार करो तो वह और अधिक नखरे दिखाता है.

ओछा ठाकुर मुजरे का भूखा.  मुजरा – झुक कर सलाम करना. ठाकुर से तात्पर्य यहाँ सामंतशाही व्यवस्था के उन बड़े लोगों से है जो जनता को गुलाम बना कर रखना चाहते थे.

ओछा बनिया, गोद का छोरा, ओछे की प्रीत, बालू की भीत, कभी सुख नहीं देते. अर्थ स्पष्ट है. (गोद का छोरा – गोद लिया हुआ लड़का).

ओछी नार उधार गिनावे. ओछी बुद्धि वाली स्त्री उधार दी हुई छोटी छोटी चीजों को गिनाती है.

ओछी पूंजी, खसमो खाए. गलत तरीके से कमाया गया धन व्यक्ति का सर्वनाश कर देता है.

ओछी रांड उधार गिनावे. निकृष्ट किस्म की स्त्रियाँ हर समय अपने द्वारा किए गये एहसान गिनाती रहती हैं.

ओछी लकड़ी झाऊ की, बिन बयार फर्राए, ओछों के संग बैठ के, सुघड़ों की पत जाए. झाऊ का एक पेड़ होता है जो बिना हवा चले ही आवाज करता है, मतलब पेड़ बिना बात आवाज़ कर रहा है और हवा का नाम बदनाम हो रहा है. ओछे लोगों के साथ बैठ कर अच्छे लोगों का सम्मान कम होता है.

ओछे की प्रीत, कटारी को मरबो.  ओछे मनुष्य की प्रीति और कटारी से मरना दोनों समान होते हैं.

ओछे की प्रीत, बालू की भीत. ओछे आदमी की प्रीत, रेत की दीवार की भांति क्षणभंगुर है. (भीत – दीवार)

ओछे की सेवा, नाम मिले न मेवा.  ओछे आदमी की सेवा करने से कोई लाभ नहीं है. न तो नाम होगा और न ही कोई  इनाम मिलेगा.

ओछे के घर खाना, जनम जनम का ताना. छोटी सोच वाले व्यक्ति का एहसान नहीं लेना चाहिए, वह हमेशा आपको ताना मारता रहेगा.

ओछे के पेट में बड़ी बात नहीं पचती. ओछी बुद्धि वाले व्यक्ति के पेट में कोई बात नहीं पचती इसलिए उस को कोई महत्वपूर्ण या रहस्य की बात नहीं बतानी चाहिए.

ओछे के सर का जुआँ इतराए.  ओछा  हाकिम स्वयं तो  अत्यधिक इतराता ही है उसके घर के सदस्य और नौकर चाकर और अपने  आपको तीसमारखां समझते हैं. 

ओछे नर के पेट में रहे न मोटी बात, आध सेर के पात्र में कैसे सेर समात. आमतौर पर इसका बाद वाला हिस्सा ही बोला जाता है. अर्थ है कि किसी मूर्ख व्यक्ति में अधिक ज्ञान कहाँ से समा सकता है, या ओछा अधिक आदमी धन पाने पर इतराने लगता है.

ओछे पर एहसान करना, जैसे बालू में मूतना. बालू में पेशाब करने पर उसका निशान नहीं पड़ता इसी प्रकार ओछे व्यक्ति पर एहसान करो तो उस पर कोई असर नहीं होता.

ओछो मन्‍त्री राजै नासै, ताल बिनासै काई, सुक्‍ख साहिबी फूट बिनासै, घग्‍घा पैर बिवाई.  ओछा मंत्री राज्य का विनाश कर देता है, तालाब को काई बिगाड़ देती है, राज्य और शासन को आपसी फूट खत्म कर देती है और बिबाई पैर को बेकार कर देती है.

ओछों के ढिंग बैठ कर अपनी भी पत जाए. ओछे व्यक्तियों के साथ बैठ कर अपना स्वयं का मान सम्मान कम होता है.

ओढ़नी की बतास लगी. स्त्री की गुलामी करने लगा. (ऐसे कहते हैं – फलाने को ओढ़नी की हवा लग गई है). बतास – हवा.

ओनामासी धम बाप पढ़े न हम. ॐ नम: सिद्धं का अपभ्रंश. जो बच्चे पढ़ने से जी चुराते हैं उन के लिए.

ओलती का पानी मंगरे पर नहीं चढ़ता. ओलती – छप्पर का किनारा जहाँ से वारिश का पानी नीचे गिरता है. मंगरा – छत या छप्पर का ऊपरी भाग. कोई उलटी बात कर रहा हो तो उसे समझाने के लिए.

ओलती तले का भूत, सत्तर पुरखों का नाम जाने. घर के अन्दर का आदमी घर का सब हाल जानता है.

ओलों का मारा खेत, बाकी का मारा गाँव और चिलम का मारा चूल्हा कभी न पनपें. जो फसल ओले गिरने से बर्बाद हुई हो, जिस गाँव ने लगान न दी हो और जिस चूल्हे से कोयले निकाल कर बार बार चिलम भरी जाती हो, वे कभी नहीं पनपते.

ओस चाटे प्यास नहीं बुझती. कहावत का अर्थ है किसी को आवश्यकता से बहुत कम चीज़ मुहैया कराना.

ओस से घड़े नहीं भरते. अत्यंत सीमित साधनों से बड़े कार्य नहीं किए जा सकते. 

औंघते को ठेलने का सहारा. जरा सी सलाह से असमंजस दूर हो जाना. जो आदमी सोया हो उसे तो जोर से धक्का दे कर उठाना पड़ता है पर जो ऊंघ रहा हो वह हलके से ठेलने से ही सावधान हो जाता है.

औंधी खोपड़ी उल्टा मत. मूर्ख का विचार उल्टा ही होता है.

औंधे घड़े का पानी, मूरख की कही कहानी. जिस प्रकार उलटे रखे हुए घड़े में पानी नहीं होता उसी प्रकार मूर्ख की बात में कोई सार नहीं होता.

औंधे मुँह गिरे तो दंडवत. बिगड़े हुए काम को संभालने की चतुराई. अचानक आई परेशानी से भी लाभ उठाने की कला.

औगुन ऊपर गुण करे, ताको नाम सपूत. सबसे श्रेष्ठ आदमी वही है जो बुराई का बदला भलाई से दे.

औघट चले न चौपट गिरे. गलत काम नहीं करोगे तो गिरने का डर नहीं होगा.

और किसहू की भूख न जानें, अपनी भूख आटा सानें. स्वार्थी व्यक्ति के लिए. और किसी की भूख की परवाह नहीं है, खुद को भूख लगी तो आटा मलने चले.

और की औषध है सजनी, सुभाव की औषध है न कछू. और बहुत सी बातों का इलाज है पर गलत स्वभाव का कोई इलाज नहीं है.

और की बुराई, अपने आगे आई. 1. किसी और द्वारा किये गये गलत काम का फल हमको मिला. 2. हमने दूसरे की बुराई की वही बाद में हमारे आगे आई.

और दिन खीर पूड़ी, परब के दिन दांत निपोड़ी. सामान्य दिनों में इतने गुलछर्रे उड़ाना कि त्यौहार के दिन जेब खाली रहे.

और बात खोटी, सही दाल रोटी. मनुष्य की सबसे प्रधान आवश्यकता भोजन है. जब तक पेट न भरे सारे नियम कायदे, धर्म अधर्म, रिश्ते नाते बेकार हैं.

औरत का काम प्यारा होता है चाम नहीं (चाम से क्या प्रीत, काम से प्रीत). स्त्री की सुन्दरता कुछ दिन तक सब को आकर्षित कर सकती है, अंततः उस का आदर उस के काम से ही होता है.

औरत का खसम मर्द, मर्द का खसम रोज़गार. स्त्री का सहारा उसका पति होता है और पति का सहारा उसका रोज़गार जिससे वह घर चलाता है.

औरतों की मति चोटी में होती है. किसी दिलजले मर्द का कथन.

औरों की नजर इधर उधर, चोर की नजर बकरी पर. चोर का ध्यान केवल उसी चीज़ पर रहता है जिसे वह चुरा सकता है.

औरों को नसीहत, खुद मियां फजीहत. खुद गलत काम करना व औरों को उपदेश देना.

औषध बाको दीजिये, जाके रोग शरीर. जिसको कोई बीमारी हो उसी को दवा देनी चाहिए.

औसत मेरा ज्यों का त्यों, कुनबा मेरा डूबा क्यों. गणित के एक शिक्षक अपने परिवार के साथ एक छोटी नदी पार कर रहे थे. नदी के बीच में पहुँच कर उन्होंने फीता निकाल कर नदी की गहराई नापी जो चार फुट थी. फिर उन्होंने अपनी, अपनी पत्नी की और बच्चों की लम्बाई नाप कर उसका औसत निकाला तो साढ़े चार फुट आया. उन्होंने सोचा सब निकल जाएंगे. परिवार जब नदी पार करने लगा तो पत्नी और बच्चे डूबने लगे. किनारे बैठे लोगों ने उन्हें बचाया. शिक्षक महोदय ने किनारे पहुँच कर सोचा कि हिसाब लगाने में कोई गलती तो नहीं हुई. फिर हिसाब जोड़ा तो वही साढ़े चार फुट आया. तब उन्होंने उपरोक्त बात कही. किसी पढ़े लिखे मूर्ख व्यक्ति द्वारा बिना बुद्धि का प्रयोग किए किताबी ज्ञान द्वारा कोई काम करने पर यह कहावत प्रयोग करते हैं.

औसर का चूका आदमी और डाल का चूका बन्दर फिर नहीं संभलते. बन्दर अक्सर एक डाल से दूसरी पर छलांग लगाते हैं. अगर कोई बन्दर डाल पकड़ने में चूक जाए तो संभल नहीं सकता. इसी का उदाहरण दे कर बताया गया है कि कोई व्यक्ति एक बार अवसर का लाभ उठाने से चूक जाए तो फिर वह अवसर हाथ नहीं आता.

औसर चूकी डोमनी, गावे ताल बेताल. यदि अवसर हाथ से निकल जाए तो व्यक्ति अत्यधिक परेशानी उठाता है. डोम जाति की स्त्रियाँ मांगलिक अवसरों पर गीत गा कर नेग माँगती हैं. अगर वह सही अवसर पर नहीं पहुँचे तो उसे कुछ इनाम नहीं मिलता.

औसर चूके, जगत थूके. यदि व्यक्ति सही अवसर पर चूक जाता है तो सभी उसकी थुक्का फजीहत करते हैं.

 

 

, , ग के लूर ना, दे माई पोथी. (भोजपुरी कहावत) क ख ग जानते नहीं हैं और पोथी पढ़ने को मांग रहे हैं. जिस चीज को प्रयोग करना नहीं आता उस की मांग करना.

कंकड़ बीनते हीरा मिला. किसी बहुत छोटे काम को करते समय बड़ा लाभ हो जाना.

कंगाल की छोरी और लड्डू के लिए रूठे. व्यक्ति को उसी चीज की मांग करनी चाहिए जो उस की पहुँच में हो.

कंगाल छैल गाँव को भारी. जिसके पास पैसे न हों और तरह तरह के शौक करना चाहता हो वह चोरी ठगी करके अपने शौक पूरे करेगा.

कंगाली (गरीबी) में आटा गीला. एक अत्यधिक गरीब व्यक्ति बहुत मुश्किल से आटा ले कर आता है लेकिन पानी गिरने से वह आटा बेकार हो जाता है. यदि आप पहले से ही मुश्किल में हों और ऊपर से कोई और परेशानी खड़ी हो जाए तो. 

कंचन जैसी ऊजली उत्तर बीच सुहाए, अग्गम देवे सूचना बेगी बरखा आए. यदि उत्तर दिशा में बादलों के बीच बिजली चमकती हो तो अच्छी वर्षा होगी. 

कंजड़ की कुतिया कहाँ जा के ब्याहेगी. राजस्थान की घुमंतू जाति के लोगों को कंजड़ भी कहते हैं. उनका कोई एक ठिकाना नहीं होता यह बताने के लिए मजाक में इस प्रकार से कहा गया है. 

कंडे बीनने जाय और जलेबी का तोसा. तोसा – खाना. कंडे बीनने जाने वाली को जलेबी रख कर नहीं दी जाएंगी.

कंत न पूछे बात, मेरा धरा सुहागन नाम. ऐसी स्त्री की बात की जा रही है जिसको उसका पति नहीं पूछता और वह अपने को सुहागन कहती है. जब किसी घर, विभाग या संगठन में किसी व्यक्ति की पूछ न हो रही हो और फिर भी वह अपना महत्त्व जताने की कोशिश करे तो.

काले कौए खा कर नहीं आया है. एक पुराना विश्वास है कि काले कौए खाने से आदमी अमर हो सकता है. 

ककड़ी के चोर को कनेठी ही काफी है. कनेठी – कान उमेठना.छोटी चोरी के लिए छोटी सी सजा पर्याप्त है.

ककड़ी के चोर को फांसी नहीं दी जाती. छोटे अपराध के लिए बहुत बड़ी सजा नहीं दी जाती.

ककड़ी के चोर को लकड़ी. छोटे अपराध के लिए छोटी सी सजा (लाठी से पिटाई) ही काफी है.

कचरे से कचरा बढ़े. जहाँ एक बार कूड़ा डालना शुरू कर दो वहाँ और कूड़ा पड़ने लगता है.

कच्चा तो कचौड़ी मांगे, पूरी मांगे पूरा, नोन मिर्च तो कायस्थ मांगे, बामन मांगे बूरा. कच्चा माने छोटी उम्र का बालक, पूरा माने वयस्क. बालक कचौड़ी मांगता है, वयस्क पूड़ी खाना चाहता है, कायस्थ को मिर्च मसाले पसंद आते हैं और ब्राह्मण मीठे से प्रसन्न होता है. (ब्राह्मणं मधुर: प्रियं)

कच्चा बांस जिधर से नवाओ नव जाए. कच्चे बांस को मोड़ना आसान होता है. बच्चों को किसी संस्कार में ढालना आसान होता है.

कच्ची कली कनेर की तोड़त ही कुम्हलाए. जो बच्चे बहुत नाजों से पले होते हैं वे थोड़े से कष्ट से ही विचलित हो जाते हैं.

कच्ची शीशी मत भरो, जिसमें पड़ीं लकीर, बालेपन की आशिकी गले पड़ी जंजीर. बहुत छोटी आयु में इश्क प्रेम के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए.

कच्चे घड़े में पानी नहीं भर सकता. अपरिपक्व व्यक्ति कोई सार्थक कार्य नहीं कर सकता.

कछु कहि नीच न छेड़िए, भलो न वाको संग, पाथर डारै कीच मैं, उछरि बिगारै अंग. नीच को छेड़ने में अपने मान सम्मान को ही खतरा होता है. कीचड़ में पत्थर फेंको तो अपने ऊपर छींटें आती हैं.

कछु दिन जदपि लुभत संसार, सदा न निभे कपट व्यौहार. कपट पूर्ण व्यवहार कर के कुछ दिन आप संसार को लुभा सकते हैं लेकिन अंत में भेद खुल ही जाता है.

कछुए का काटा कठौती से डरे. कठौती – काठ का बर्तन जिस में पानी भर कर रखते हैं. किसी को कछुए ने काट लिया हो तो वह पानी भरे बर्तन से डरने लगता है. 

कटखनी कुतिया मखमल की झूल. कोई बदतमीज आदमी बड़ा हाकिम बन जाए तो.

कटड़े की मां तलै नौ मन दूध, पर कटड़े का क्या. (हरयाणवी कहावत) गाय के थनों में नौ मन दूध है पर कटड़े को उस का कोई लाभ नहीं मिलता. कोई बड़ा आदमी अपने घर वालों के काम न आता हो तो.

कटरे धोए कहीं बछड़े हुआ करें. भैंस के बच्चे को कितना भी रगड़ रगड़ कर धो लो वह गाय का बछड़ा नहीं बन सकता. कितना भी प्रयास कर लीजिए अयोग्य व्यक्ति को योग्य नहीं बना सकते.

कड़की कहीं और गिरी कहीं. बिजली कहीं कड़कती है और कहीं गिरती है. अनिष्ट की आशंका कहीं और थी और हो कहीं और गया.

कड़वा बोली माई, मीठा बोले लोग, सच कहती थी माई, झूठ कहे थे लोग. माँ जब बचपन में डांटती थी तो उस की बात बहुत कड़वी लगती थी और अन्य लोगों की बातें अच्छी लगती थीं. बड़े हो कर समझ में आया कि माँ सच कहती थी और लोग झूठ बोलते थे.

कड़वी बेल की कड़वी तूमड़ी, अडसठ तीर्थ नहाई, गंग नहाई गोमती नहाई मिटी नहीं कड़वाई. तूमड़ी एक लौकी के समान फल होता है जिस को सुखा कर सन्यासी लोग कमंडल बना लेते हैं. सन्यासी के साथ तूमड़ी भी सब तीर्थों के जल में डुबकी लगा लेती है लेकिन उसकी कड़वाहट नहीं जाती. कहावत का अर्थ है कि अच्छी संगत पा कर और तीर्थ यात्रा कर के भी दुष्टों का स्वभाव नहीं बदलता. (देखिये परिशिष्ट).

कडवी बेल की तूमड़ी उस से भी कड़वी. किसी निम्न श्रेणी के परिवार का कोई व्यक्ति और अधिक ओछी हरकत करे तो.

कड़वी बेल तेज़ी से बढती है. जिस में बहुत से अवगुण हों वह तेजी से बढ़ता है. इंग्लिश में कहते हैं – An ill weed grows apace.

कड़वी भेषज बिन पिए, मिटे न तन का ताप. बुखार कड़वी दवा से ही उतरता है. किसी भी परेशानी को हल करने के लिए कुछ कष्ट उठाना पड़ता है.

कड़ी काट बेलन बनाया. पहले के मकानों में लकड़ी की छतें हुआ करती थीं. उन में लम्बी मजबूत लकडियाँ (कड़ियां) एक दीवार से दूसरी दीवार तक लगाते थे और उन पर तख्ते लगा कर छत बनाते थे. बेलन जैसी छोटी सी चीज़ को बनाने के लिए कड़ी जैसी बड़ी चीज़ को काट कर बर्बाद करना अर्थात बहुत मूर्खता पूर्ण कार्य.

कड़ुआ स्वभाव, डूबती नाव. जिस को मीठा बोलना न आता हो वह किसी काम में सफल नहीं हो सकता.

कड़ुए से मिल के रहो, मीठे से डर के रहो. कड़वा आदमी खरी लेकिन भले की बात कहता है. मीठा आदमी मीठी लगने वाली लेकिन झूठी बात कह कर आपको खुश करता है और आपको नुकसान पहुँचा सकता है.

कढ़ाई से निकले चूल्हे में पड़े (तवे से उतरी, चूल्हे में पड़ी, खटाई से निकले अमचूर में पड़े). एक मुसीबत से निकल कर दूसरी में पड़ जाना. (आसमान से गिरे खजूर में अटके). इंग्लिश में कहावत है – Out of frying pan, into the fire.

कण कण भीतर राम जी, ज्यूँ चकमक में आग. चकमक पत्थर को रगड़ने से आग निकलती है पर ऊपर से आग नहीं दिखती. इसी प्रकार कण कण में राम हैं जिन्हें हम देख नहीं पाते.

कण थोड़े और कंकड़ ज्यादा. अनाज के दाने कम और कंकड़ ज्यादा. उपयोगी वस्तुएं कम और फ़ालतू चीजें अधिक. 

कतवारी को सुधरे, बतवारी को बिगड़े. कतवारी – सूत कातने वाली (काम करने वाली), बतवारी – बातें बनाने वाली. काम काज करने वाली स्त्री के बच्चे अच्छे निकलते हैं और बातें बनाने वाली और काम न करने वाली स्त्री के बच्चे बिगड़ जाते हैं.

कत्त्थर गुद्दर सोवैं, मरजाला बैठे रोवैं. कथरी गुदड़ी ओढ़ने वाला आराम से सो रहा है लेकिन फैशन के कपडे पहनने वाला परेशान बैठा है.

कथनी से करनी भली. केवल कहते रहने से कर के दिखाना बेहतर है. इंग्लिश में कहावत है – Actions speak louder than the words.

कथनी से न बहक, करनी को परख. कोई व्यक्ति बढ़ चढ़ कर बातें हांक रहा हो तो फौरन उस का विश्वास न करके उसके कृतित्व को देखना चाहिए.

कथरी ओढ़ के घी पिया. ऊपर से गरीबी का प्रदर्शन करना और अंदर ठाठ से रहना.

कदम कदम पर कुनबा डूबे, आगे धरमराज दरबार. किसी काम में नुकसान पर नुकसान हो रहा है, फिर भी आगे फायदे की आशा कर रहे हैं.

कदली और काँटों में कैसी प्रीत. केले और काँटों में प्रेम नहीं हो सकता. कांटे की प्रवृत्ति यही है कि वह केले को चुभ कर कष्ट पहुंचाएगा.

कदली काटे ही फले. केले का पेड़ काटने के बाद ही फल देता है. मूर्ख व दुष्ट व्यक्ति दंड मिलने पर ही कार्य करते हैं.

कद्र उल्लू की उल्लू जानता है. मूर्ख आदमी की कद्र मूर्ख ही कर सकता है.

कद्र खो देता है रोज का आना जाना. बार बार कहीं जाने से आदमी की कद्र कम हो जाती है. संस्कृत में कहावत है – अति परिचयादवज्ञा सतत गमनमनादरो सन्ति.

कद्रदान की जूतियाँ उठाइये, नाकद्रे को जूतियाँ मारने भी न जाइए. जो आपकी कद्र करता हो उसका हर काम करिए और जो कद्र न करता हो उसकी उपेक्षा कीजिए.

कन कन जोड़े मन जुड़े. एक एक कण जोड़ने से एक मन (चालीस सेर) इकठ्ठा हो सकता है. थोड़ा थोड़ा जोड़ने से बड़ी राशि इकठ्ठी की जा सकती है. 

कन का चोर सो मन का चोर. चोर तो चोर है, कण भर चुराए या मन भर (चालीस सेर) चुराए.

कनखजूरे का एक पैर टूटने से वह लंगड़ा नहीं हो जाता (कनखजूरे के कै पाँव टूटेंगे). कनखजूरे के सैकड़ों पैर होते हैं, दो चार टूट जाएंगे तो क्या फर्क पड़ेगा. बहुत धनी व्यक्ति को थोड़ा बहुत नुकसान भी हो जाएगा तो उसे कोई फर्क नहीं पड़ेगा.

कनवा पांडे पांय लागूं, वेही लड़ाई के लच्छन (काणे दादा पांय लागूँ, वोहे लड़ाई के लच्छन). काने  को काना कह के पुकारोगे तो लड़ाई तो होगी ही. किसी को उसकी कमी के बारे में सीधे सीधे नहीं बताना चाहिए. 

कनवा बैल बयारे सनके. कनवा – काना, बयारे – हवा चलने से. काना बैल ठीक से देख नहीं पाता इसलिए हवा चलने से ही बिदक जाता है. जो व्यक्ति सही और गलत में भेद नहीं कर सकता वह बिना उचित कारण के बिदक जाता है.

कपटी की प्रीत, मरन की रीत. कपटी व्यक्ति से प्रेम करने पर बहुत कष्ट उठाना पड़ता है.

कपड़ा कहे तू मेरी इज्जत रख, मैं तेरी इज्जत रखूँ. कपड़े को संभाल कर पहना जाए तो वह व्यक्ति की शोभा बढ़ाता है.

कपड़ा पहने तीन वार, बुध, बृहस्पत, शुक्करवार. पुराने लोग मानते थे कि नए कपड़े को इन तीन दिन ही पहनना चाहिए.

कपड़े का पेट बड़ा. कपड़े के व्यापार में अधिक मुनाफे की गुंजाइश होती है.

कपड़े फटे हैं तो क्या, घर दिल्ली है. वास्तविकता कुछ भी हो अपने को बड़ा बताने की कोशिश करना.

कपड़ों के भीतर हर आदमी नंगा है. आदमी ऊपर से सभ्यता रूपी कितने भी कपड़े ओढ़ ले भीतर से हर आदमी के अन्दर आदिम प्रवृत्तियाँ जिन्दा रहती हैं.

कपूत कलाल के जावे और सपूत सुनार के. कपूत कलाल के यहाँ जा कर शराब पीने में पैसे उड़ाते हैं और सपूत सुनार के यहाँ जा कर गहने आदि बनवाते हैं जिनसे बरक्कत होती है.

कपूत न जायो भलो, न आयो. कुपुत्र न तो पैदा किया अच्छा होता है न गोद लिया हुआ. आया माने गोद लिया हुआ. 

कपूत भी अरथी में कंधा देता है.  कुपुत्र भी कभी न कभी काम आता है.

कपूत से तो निपूती भली. पुत्र कुपुत्र निकल जाए इससे तो निस्संतान होना अच्छा.

कपूतों की अलग बस्ती नहीं होती. समाज में अच्छे और बुरे लोग एक साथ मिल कर रहते हैं. 

कफन में जेब ना दफन में मेव. ज्यादा जोड़ कर कहाँ ले जाओगे, कफन में जेब नहीं होती और कब्र की दीवार में आले नहीं होते. 

कब दादा मरेंगे कब बेल बंटेगी. बेल एक तरह का नेग होता है जो गमी के अवसर पर नाई इत्यादि को दिया जाता है. किसी एक कार्य की वज़ह से बहुत से काम अटके पड़े हों तो.

कब बाँझ ब्यावे और कब ढोल बाजे. ऐसा काम जिसके कभी होने की उम्मीद ही न हो.

कब मरे कब कीड़े पड़ें. दिल से निकली हुई बद्दुआ.

कब मुआ, कब राक्षस हुआ. किसी बहुत दुष्ट आदमी को कोसने के लिए कहे जाने वाले शब्द.

कब से भैया राजा भये, कोदों के दिन बिसर गए. कोदों एक घटिया अनाज है जिसे गरीब लोग खाते हैं. कोई मामूली व्यक्ति बड़ा आदमी बन जाए और अपने पुराने दिन भूल जाए तो लोग ऐसा बोलते हैं.

कबड्डी खेल, नीम के तेल. नीम का तेल जैसे रोग निवारक होता और लाभदायक है, उसी तरह कबड्डी का खेल भी लाभदायक होता है.

कबहुं न धावे स्यार पर, बरु भूखो मृगराज. धावे – दौड़े, मृगराज – सिंह. शेर कितना भी भूखा क्यों न हो, सियार का शिकार नहीं करता. ऊंची प्रकृति के लोग निम्न कार्य नहीं करते.

कबहूँ नाहीं होते दूबर, रसोई के बामन, कसाई के कूकर. दूबर – दुर्बल. रसोइये का काम करने वाला ब्राह्मण और कसाई का कुत्ता कभी दुबले नहीं होते, क्योंकि उन्हें खूब खाने को मिलता है.

कबाड़ी के छप्पर पर फूस नहीं. जिस चीज़ की बहुतायत होनी चाहिए उसी का अकाल.

कबाब में हड्डी. अवांछनीय व्यक्ति. मांस को बारीक पीस कर उससे कबाब बनाए जाते हैं जो कि बहुत मुलायम होते हैं, यदि उस में हड्डी का टुकड़ा आ जाए तो कबाब का सारा मज़ा खराब कर देता है.

कबिरा आप ठगाइए, और न ठगिए कोय, आप ठगे सुख होत है, और ठगे दुख होय. कबीर कहते हैं कि कभी किसी को धोखा नहीं देना चाहिए, चाहे आपको कोई ठग ले. इंग्लिश में कहावत है – Better suffer ill than do ill.

कबिरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर, ना काहू से दोस्ती, न काहू से बैर. इस संसार में आकर कबीर बस यही चाहते हैं कि सबका भला हो. न किसी से अनावश्यक दोस्ती करते हैं न दुश्मनी.

कबिरा गरब न कीजिए, कबहूँ न हंसिए कोय (अजहूँ नाव समुद्र में क्या जाने क्या होय).हम को अपने धन या पद पर कभी घमंड नहीं करना चाहिए और किसी का उपहास नहीं करना चाहिए. किसी के साथ कभी भी कोई अनहोनी हो सकती है.

कबिरा जब पैदा हुए, जग हँस्या हम रोये, ऐसी करनी कर चलो, आप हँसे जग रोये. कबीर दास जी कहते हैं कि जब हम पैदा हुए थे उस समय सब खुश हुए और हम रो रहे थे. जीवन में कुछ ऐसा काम करके जाओ कि जब हम मरें तो दुनिया रोये और हम हँसें.

कबिरा यह संसार है, जैसो सेमल फूल, दिन दस के व्यवहार में, झूठे रंग न भूल. यह संसार सेमल के फूल की भांति रंग बिरंगा परन्तु क्षण भंगुर है.

कबिरा ये घर प्रेम का खाला का घर नांहि. खाला – मौसी. मौसी का घर वह स्थान है जहाँ सब तरह का आराम मिलता है (अपने घर पर तो डांट भी पडती है). प्रभु की भक्ति करनी है तो यह समझ लो कि यह मौसी का घर नहीं है. यहाँ केवल ईश्वर से प्रेम ही करना है, सारे आराम भूल जाओ. इसकी अगली पंक्ति है – सीस उतारे भुईं धरे, तो पैठे घर मांहि.

कबिरा वो दिन याद कर पग ऊपर तल शीश, मृत्यु लोक में आनकर भूल गया जगदीश. कबीर कहते हैं कि जब तू माँ के गर्भ में था तो पैर ऊपर और सर नीचे कर के कष्ट में रह रहा था. अब मृत्युलोक में आ कर मोह माया में तू भगवान को ही भूल गया है.

कबिरा संगत साधु की ज्यों गंधी को बास, जो कुछ गंधी दे नहीं तो भी बास सुबास. साधु की संगत वैसी ही है जैसे सुगंध बेचने वाले के पास बैठना. गंधी कुछ न भी दे तो भी सुगंध आती है. उसी प्रकार साधु के साथ बैठने से सुविचार आते हैं.

कबिरा सोई पीर है  जो जाने पर पीर, जो पर पीर न जानहीं  सो काहे को पीर. मुसलमानों में कुछ लोगों को पीर (पहुँचे हुए संत) का दर्जा दिया जाता है. कबीर दास जी कहते हैं कि जो इंसान दूसरे की पीड़ा को समझता है वही पीर है. जो दूसरे की पीड़ा ना समझ सके वह कैसा संत. पीर – पीड़ा.

कबीर कहा गरबियौ, ऊंचे देखि आवास, काल्हि परयौ भू लेटना ऊपरि जामे घास. कबीर कहते है कि ऊंचे भवनों को देख कर क्या गर्व करते हो. कल आप धरती पर लेट जाएंगे और ऊपर से घास उग आएगी.

कबीर सो धन संचये, जो आगे को होय, सीस चढ़ाए पोटली, जात न देख्यो कोय. कबीर कहते हैं कि उस धन को इकट्ठा करो जो भविष्य में (परलोक में) काम आए. सर पर धन की गठरी बाँध कर ले जाते तो किसी को नहीं देखा.

कबीरदास की उलटी बान, मूते इन्द्री बांधे कान. कबीरदास जी कहते हैं कि दुनिया में सब उल्टा पुल्टा है, मूत्र विसर्जन तो जननेन्द्रिय करती है पर बाँधा कान को जाता है (जो लोग जनेऊ बांधते हैं वे पेशाब करते समय जनेऊ को कान पर बाँध लेते हैं).

कबीरदास की उलटी बानी, बरसे कंबल भीगे पानी. दुनिया में कई चीजों का उल्टा चलन देख कर कबीरदास का व्यंग्य. 

कबीरा खड़ा बाजार में लिए लुकाठी हाथ, जो घर फूंके आपना चले हमारे साथ. लुकाठी – लकड़ी. कबीरदास सांसारिक मोह माया से मुक्त है. उन के साथ चलना गृहस्थी में आग लगाने जैसा है.

कबूतर को कुआं ही दीखता है. जो जहाँ सुरक्षित हो वहीं जाना चाहता है.

कब्जा सच्चा, मुकदमा झूठा. जायदाद पर किसी का कब्ज़ा हो तो वह मुक़दमा जीतने से भी ज्यादा असर रखता है.

कब्र का मुंह झाँक कर आए हैं. मौत के मुँह से निकल कर आए हैं. बहुत गंभीर बीमारी से ठीक होना.

कब्र का हाल मुर्दा ही जानता है. कोईव्यक्ति कितनी कठिन परिस्थितियों में रह रहा है इसके बारे में वही जान सकता है.

कब्र देख सब्र आवे. कब्रिस्तान में जा कर ही इंसान को जीवन की वास्तविकता का ज्ञान होता है.

कब्र पर कब्र नहीं बनती. पुराने लोगों का विचार था कि विधवा को विवाह नहीं करना चाहिए, इस आशय का कथन. दूसरा अर्थ यह हो सकता है कि क़र्ज़ से दबे आदमी को और क़र्ज़ नहीं देना चाहिए.

कब्र में छोटे बड़े सब बराबर. अपने जीवन काल में हमें घमंड नहीं करना चाहिए इस को याद दिलाने के लिए बताया गया है कि मरने के बाद सब बराबर हो जाते हैं.

कब्र में पैर लटकाए बैठे हैं. मृत्यु के करीब हैं.

कब्र में रख के खबर को न आया कोई, मुए का कोई नहीं जीते का सब कोई. अपने लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए पाप कर्म नहीं करना चाहिए, आपके मरने के बाद कोई सगा सम्बन्धी आपको याद नहीं करेगा.

कभी कभी दर्द इलाज से बेहतर होता है. यदि इलाज बीमारी से अधिक कष्टदायक हो तो ऐसा सोचना पड़ता है. देश और समाज के सामने भी कभी कभी ऐसी परिस्थितियाँ आती हैं. 

कभी के दिन बड़े, कभी की रात. सब दिन एक से नहीं होते.

कभी घी घना, कभी मुठ्ठी चना, कभी वह भी मना. मनुष्य का भाग्य सदा एक सा नहीं रहता. कभी खूब घी, पकवान खाने को मिलते हैं, कभी मुट्ठी भर चने पर गुज़ारा करना पड़ता है और कभी वह भी नहीं मिलता.

कभी दूध था, बूरा थी, कटोरा था, कटोरे में दूध ले कर उस में बूरा डाल कर उंगली  से घोल कर पीते थे. अब तो बस उंगली ही बची है. पुराने दिनों की शान बघारने वालों का मजाक उड़ाने के लिए.

कभी न घोड़ा हींसिया, कभी  न खींची तंग, कभी  न कायर  रण चढ़ा, कभी  न बाजी बंब. जो कायर पुरुष कभी भी रण भूमि में नहीं गया, उसका मजाक उड़ाने के लिए. .

कभी नाव गाड़ी पर, कभी गाड़ी नाव पर. (कभी नाव गाड़ी में कभी गाड़ी नाव में). किसी का भी समय बदल सकता है. आज आप जिस को आसरा दे रहे हैं कल हो सकता है कि वह आप को आसरा दे.

कभी बिल्ली को मंगल गाते नहीं देखा. ओछे व्यक्ति कभी अच्छा काम नहीं कर सकते.

कभी बोरा गधे पर, कभी गधा बोरे पर. वक्त वक्त की बात है. कभी गधा बोरे पर बैठता है कभी बोरा गधे पर लादा जाता है.

कभी रंज, कभी गंज. गंज – बहुत सा. दुनिया में कभी बहुत कम मिलता है कभी बहुत अधिक मिल सकता है.

कम खाना और गम खाना अच्छा (कम खा लो, गम खा लो). कम खाओ और मन को समझा कर रखो यह अधिक अच्छा है. अधिक पाने की लिप्सा में आदमी गलत काम करता है और अधिक खाने के चक्कर में स्वास्थ्य खराब कर लेता है. कुछ लोग इस तरह से बोलते हैं – कम खाना, गम खाना और किनारे से चलना.

कम खानें और गम खानें, न हकीम के जाने, न हाकिम के जाने. (बुन्देलखंडी कहावत) कम खाओ और संतोष रखो तो न तो वैद्यों के चक्कर लगाने पड़ेंगे न कचहरी के.

कम जोर और गुस्सा ज्यादा, यही मार खाने का इरादा. कमजोर आदमी ज्यादा गुस्सा दिखाएगा तो पिटेगा.

कम मोल की और बहुत दुधारी. गाय की तारीफ़ में कही गई बात. कोई वस्तु कम कीमत की हो और बहुत उपयोगी हो तो यह कहावत कही जाती है. इससे मिलती जुलती एक कहावत है – कम खर्च बालानशीन.

कमउआ आवें डरते, निखट्टू आवें लड़ते. किसी घर में चार पुरुष हैं दो कमाने वाले हैं और दो निखट्टू हैं. जो कमाऊ हैं वे तो घर में गंभीर और चिंतित मुद्रा में घुसते हैं, क्योंकि उनके ऊपर जिम्मेदारियों का बोझ होता है. पर जो निखट्टू हैं वे झगड़ते हुए ही घर में घुसते हैं. हमारा फला काम क्यों नहीं हुआ. हमारे लिए फलानी चीज क्यों नहीं बनी. अमुक व्यक्ति की हमसे ऐसा बोलने की हिम्मत कैसे हुई वगैरा-वगैरा. 

कमजोर देही में बहुत रीसि होला. (भोजपुरी कहावत) कमजोर शरीर में बहुत गुस्सा होता है. जो शक्तिशाली हैं वे गंभीर होते हैं.

कमबख्त गए हाट, न मिली तराजू न मिले बांट. भाग्य साथ न दे तो कहीं कुछ भी नहीं मिलता है.

कमबख्ती की निशानी, सूख गया कुएं का पानी. अभागा आदमी पानी पीने गया तो कुँए का पानी ही सूख गया.

कमर का मोल है, तलवार का नहीं. ताकत तलवार में नहीं उसे बांधने वाले में होती है.

कमर टूटे रंडी की और भडुवे ओढें दुशाला. वैश्या बेचारी नाच नाच कर अपनी कमर तोड़ लेती है (मेहनत करती है) और दलाल लोग (बिना कुछ किए) गुलछर्रे उड़ाते हैं.

कमर में तोसा, बड़ा भरोसा. तोसा – खाने का सामान. अपनी आवश्यकता का सामान अपने पास हो तो मन में बड़ी संतुष्टि और आत्म विश्वास रहता है.

कमर में लंगोटी, नाम पीताम्बरदास. नाम के विपरीत गुण.

कमला काहू की न भई. लक्ष्मी किसी की सदा के लिए नहीं होती.

कमला थिर न रहीम कहि यह जानत सब कोय, पुरुष पुरातन की वधू क्यों न चंचला होय. धन दौलत, माया किसी के पास स्थिर रूप से नहीं रहता.

कमला नारी कूपजल, और बरगद की छांय, गरमी में शीतल रहें शीतल में गरमाय. लक्ष्मी स्वरूपा स्त्री, कुएं का जल और बरगद की छाँव, ये गर्मी में शीतल रहते हैं और सर्दी में गर्म.

कमली ओढ़ने से कोई फ़कीर नहीं होता. साधुओं जैसा वेश धर लेने से कोई साधु नहीं हो जाता.

कमा कर खाने में दोष नहीं चुरा कर खाने में दोष है. पैसा कमाने के लिए यदि कोई छोटे से छोटा काम भी करना पड़े, तो वह चुरा कर खाने से अच्छा है.

कमाई में हाथ गंदे करने ही पड़ते हैं. केवल ईमानदारी से व्यापार नहीं किया जा सकता.

कमाई सब को दिखती है, दुख किसी को नहीं दिखता. कोई व्यक्ति दिन रात मेहनत कर के किसी मुकाम पर पहुँचा हो अभी भी तरह तरह के कष्ट उठा कर पैसा कमा रहा हो तो उस के कष्ट किसी को नहीं दीखते, बस उस की कमाई दिखती है.

कमाऊ खसम कौन न चाहे. सभी स्त्रियाँ चाहती हैं कि उन्हें अच्छा कमाने वाला पति मिले. लाभ के पद पर बैठे व्यक्ति से सब दोस्ती करना चाहते हैं.

कमाऊ पूत किसे अच्छा नहीं लगता. स्पष्ट.

कमाऊ पूत की दूर बला. कमाने वाला पुत्र सब परेशानियों से दूर रहता है.

कमाए थोड़ो खरचे घनो, पहलों मूर्ख उस को गिनो. जो व्यक्ति आमदनी से अधिक खर्च करता है वह सबसे बड़ा मूर्ख होता है.

कमान से निकला तीर और जुबान से निकली बात कभी वापस नहीं आती. बात सोच समझ कर बोलना चाहिए क्योंकि मुँह से निकली बात वापस नहीं ली जा सकती.

कमानी न पहिया, गाड़ी जोत मेरे भैया. साधन न होते हुए भी जबरदस्ती काम करने के लिए कहना.

कमाय न धमाय, मोको भूंज भूंज खाय. निठल्ले पति के लिए पत्नी का कथन, निठल्ले बेटे के लिए माँ या बाप का कथन.

कमावे तो वर, नहीं कुआंरा ही मर. कमाने की सामर्थ्य हो तभी विवाह करना चाहिए नहीं तो कुआंरा ही रहना चाहिए.

कमावे धोती वाला, उड़ावे टोपी वाला. कमाए कोई और उड़ाए दूसरा कोई. यहाँ पर अभिप्राय इस बात से भी है कि मेहनतकश (धोतीवाला) कमाए और नेता और अफसर (टोपीवाले) खाएं.

कर की नाड़ी कर ही जाने. हाथ की नब्ज़ को हाथ से ही टटोला जाता है.

कर तो डर, न कर तो भी खुदा के गज़ब से डर. यदि हम कोई काम गलत करते हैं तो हमें डरना चाहिए. यदि गलत काम नहीं भी करते हैं तो भी ईश्वर के कोप से डरना चाहिए.

कर भला हो भला. जो दूसरों का भला करता है उस का भला अवश्य होता है.

कर ले सो काम, भज ले सो राम. जो कुछ करना हो उसे शीघ्र कर लेना चाहिए, उसमें आलस्य नहीं करना चाहिए. कबीर दास जी ने भी कहा है काल्ह करे सो आज कर.

कर सेवा तो खा मेवा. (बिन सेवा मेवा नहीं). बड़ों की सेवा करने से ही फल मिलता है.

करके खाना और मौज उड़ाना. खूब मेहनत करो, खूब कमाओ और प्रसन्न रहो. मेहनत करे बिना ख़ुशी नहीं मिल सकती.

करघा छोड़ तमाशे जाए, करम की चोट जुलाहा खाए. पहले जमाने में जब टीवी, सिनेमा इत्यादि नहीं थे तो लोगों के मनोरंजन के मुख्य साधन मेला और तमाशा हुआ करते थे. भीड़ भाड़ वाले स्थान पर कुछ कलाकार इकट्ठे हो कर नाच गाना, नाटक, मदारी का खेल, नट का खेल, जादू इत्यादि दिखाते थे और उसके बाद लोगों से पैसा मांगते थे उसी को तमाशा कहते थे. कहावत में कहा गया है कि जो व्यक्ति अपना रोज़गार छोड़ कर तमाशा देखने जाएगा वह बहुत नुकसान उठाएगा.

करघा बीच जुलाहा सोहे, हल पर सोहे हाली, फौजन बीच सिपाही सोहे, बाग़ में सोहे माली. अपने अपने काम में हर व्यक्ति शोभा देता है. कहावत में यह सन्देश भी दिया गया है कि कोई काम छोटा नहीं होता, सब का अपना महत्त्व है. हाली – हल चलाने वाला.

करजदार, पत्थर खाए हर बार. कर्ज़दार व्यक्ति को बहुत जलालत झेलनी पड़ती है.

करजा भला ना बाप का बेटी भली ना एक, करमा के लेख उघाड़ उघाड़ देख. कर्ज हमेशा बुरा होता है (चाहे पिता से ही क्यों न लिया हो) और एक ही सन्तान हो वह भी बेटी यह भी अच्छा नहीं होता.

करत करत अभ्यास के जड़ मति होत सुजान. जड़ मति का अर्थ है कोई कम बुद्धि वाला अकुशल व्यक्ति. सुजान का अर्थ है चतुर और कार्य कुशल. कहावत का अर्थ स्पष्ट है. इस दोहे की अगली पंक्ति को आम तौर पर नहीं बोला जाता है. अगली पंक्ति है – रस्सी आवत जात से सिल पर परत निशान, कुँए में से पानी निकालने के लिए जो रस्सी बाल्टी में बाँधी जाती है उसकी रगड़ बार बार लगने से पत्थर पर निशान बन जाता है. इंग्लिश में इस कहावत को इस प्रकार कहते हैं – practice makes a man perfect. 

करत न कूकर वृन्द की कछु गयंद परवाह. कूकर वृन्द – कुत्तों का झुण्ड, गयंद – हाथी. हाथी कुत्तों के झुण्ड की परवाह नहीं करता.

करता गुरु, न करता चेला. जो अभ्यास करता रहता है वह कुशल हो जाता है, जो अभ्यास नहीं करता वह कभी नहीं सीख सकता बल्कि सीखा हुआ भी भूल जाता है.

करता था सो क्यों किया, अब कर क्यों पछिताय, बोया पेड़ बबूल का, आम कहाँ से खाय. जब गलत काम कर रहे थे उस समय कुछ सोचा नहीं तो अब क्यों पछता रहे हो. बबूल का पेड़ बोया है तो आम खाने को कैसे मिल जाएगा.

करते से न करे वो बावला, न करते से करे वो भी बावला. अपने साथ बुरा करने वाले से जो बदला न ले वह मूर्ख है और जो बुरा न करने वाले के साथ बुरा करे वह और बड़ा मूर्ख है.

करना चाहे आशिकी और मामाजी से डरे. आशिकी करना चाह रहे हैं और घर के बड़े लोगों से डर भी लग रहा है. डर डर के काम करने वालों के लिए.

करना चाहे काम, बसना चाहे गाँव. अगर काम करना चाहते हो (व्यापार, खेती या नौकरी) तो घर पर मिलने वाली सुविधाओं का लालच छोड़ना पड़ेगा.

करनी न करतूत, कहलाएं पूत सपूत. पुत्र करते कुछ नहीं हैं पर माँ बाप उन की प्रशंसा में फूले नहीं समा रहे हैं.

करनी न करतूत, लड़ने को मजबूत. जो व्यक्ति काम तो कुछ न करे पर लड़ने- झगड़ने में तेज हो.

करनी न खाक की, बातें मारे लाख की. जो व्यक्ति करता धरता कुछ न हो और बातें बड़ी बड़ी बनाता हो.

करनी ना धरनी, धियवा ओठ बिदोरनी. (भोजपुरी कहावत)  धियवा – बेटी, होठ बिदोरनी – मुँह बनाने वाली. कुछ काम भी न करना और दूसरे के काम में कमियाँ निकालना.

करनी ही संग जात है, जब जावे छूट शरीर, कोई साथ न दे सके, मात पिता सुत वीर. अंत समय पर कोई नाते रिश्तेदार साथ नहीं जाता केवल आपके सत्कर्म ही साथ जाते है.

करम और परछाई साथ कभी न छोड़ें. भाग्य और परछाईं कभी साथ नहीं छोड़ते.

करम करो सुख पाओ. सुख केवल कर्म कर के ही प्राप्त किया जा सकता है. यदि फल मिले तब तो सुख है ही और यदि फल न भी मिले तो इस बात का संतोष होता है कि हमने प्रयास तो किया.

करम की गति कोई न जाने. भाग्य की गति नहीं जानी जा सकती.

करम के बलिया, रांधी खीर हो गयो दलिया. कर्मों के बलिहारी जाएं. भाग्य से ही सब कुछ मिलता है. कर्महीन व्यक्ति ने खीर बनाई तो दलिया बन गया.

करम गति टारे नाहिं टरी. यह सही है कि मनुष्य को पुरुषार्थ के बिना कुछ नहीं मिलता पर यह भी सही है कि वह कितना भी पुरुषार्थ कर ले, अपने कर्मों के फल अर्थात प्रारब्ध को नहीं टाल सकता. 

करम चले दो डग आगे. आप कहीं भी जाएँ, भाग्य उस से पहले ही वहाँ पहुँच जाता है.

करम छिपे न भभूत रमाए. दुष्कर्मी साधुओं के लिए कहा गया है. भभूत लगा लेने से उन की असलियत नहीं छिप जाती.

करम दरिद्री नाम चैनसुख. कहावतों में करम का अर्थ कर्म (पुरुषार्थ) से भी होता है और कर्मफल (भाग्य) से भी. किसी दरिद्र व्यक्ति का नाम चैनसुख है अर्थात गुण के विपरीत नाम. 

करम फूटे का इलाज हो सकता है पर घर फूटे का कोई इलाज नहीं. भाग्य खराब हो इस का इलाज तो हो सकता है, पर घर में फूट पड़ जाए तो उस का कोई इलाज नहीं हो सकता.

करम फूटे को अकल फूटा मिल ही जाता है. जिसका भाग्य खराब हो उसे मूर्ख लोग ही मिलते हैं.

करम बिना नर कौड़ी न पावै. 1. कर्म किए बिना हम कुछ भी हासिल नहीं कर सकते. 2. भाग्य में न लिखा हो तो कुछ नहीं मिल सकता. 

करम में कंकर लिखे और हीरों की चाह करे. भाग्य में कुछ न होते हुए भी बहुत इच्छाएँ रखना.

करम में कौए का पंजा. बिल्कुल भाग्यहीन व्यक्ति.

करम में लिख्या कंकर, तो के करें शिव शंकर. जिसके भाग्य में कुछ न मिलना लिखा हो उसकी सहायता ईश्वर भी नहीं करता.

करम से करम. करम – कर्म, करम – भाग्य. मनुष्य कर्म कर के ही भाग्य का निर्माण करता है.

करम हीन जब होत हैं, सबहु होत हैं बाम, छाँव जान जंह बैठते, तहां होत है घाम. जब भाग्य साथ न दे रहा हो तो सभी आपके विपरीत हो जाते हैं. जहाँ आप छाँव समझ कर बैठते हैं वहाँ कड़ी धूप आ जाती है.

करमहीन खेती करे, बैल मरे सूखा पड़े. भाग्य के बिना सफलता नहीं मिलती. अभागे व्यक्ति ने खेती करना चाही तो बैल मर गए और सूखा पड़ गया.

करमहीन लंबा जिए. अभागे व्यक्ति की उमर लम्बी होती है.

करमहीन सागर गए, जहां रतन को ढेर, कर छूअत घोंघा भए, यही करम को फेर. अभागा व्यक्ति समुद्र के किनारे गया, वहाँ रत्नों का ढेर लगा था. लेकिन कर्मों का फेर देखिये, हाथ लगते ही वे रत्न घोंघा बन गए. तात्पर्य यह है कि बिना भाग्य के किसी को कुछ नहीं मिल सकता.

करमू चले बरात, करम गत संगै जैहै. (बुन्देलखंडी कहावत) भाग्यहीन व्यक्ति कहीं भी चला जाए, कर्मों की गति उसका साथ नहीं छोड़ती (उसको बरात में भी अपमान झेलना पड़ता है). 

करवा कुम्हार को, घी जजमान को, का लगे बाप को स्वाहा. करवा कुम्हार का है, घी जजमान का है, पंडित जी के बाप का क्या जा रहा है, खूब स्वाहा करो. दूसरों के माल को बेदर्दी से खर्च करने वालों के लिए.

करा नहीं तो कर देखो, जिसने किया उसका घर देखो. किसी का बुरा नहीं किया तो अब कर के देख लो. जिसने किसी का बुरा किया हो उसके घर जा कर उसका हाल देख लो.

करि कुचाल अंतहि पछतानी. कुचाल – नीच कार्य. निम्न श्रेणी के कार्य करोगे तो अंत में पछताना पड़ेगा.

करिया बादर जी डरियावे, भूरा बादर पानी लावे. काले बादल को देख कर डर जरूर लगता है पर वह वर्षा नहीं करता, वर्षा भूरे बादल से होती है.

करी भलाई आपनो चित सों दे बिसराय, मानो डारी कूप में काहू सों न जनाय. किसी के साथ भलाई कर के भूल जाना चाहिए, किसी को जताना नहीं चाहिए. इस कहावत को इस प्रकार भी कहते हैं – नेकी कर कूएँ में डाल.

करे एक, भरें सब. किसी एक व्यक्ति की गलती का खामियाजा बहुत से लोगों को उठाना पड़ता है.

करे कारिन्दा नाम बरियार का, लड़े सिपाही नाम सरदार का. छोटे लोग काम करते हैं परन्तु नाम उनके सरदार का होता है.

करे कोई भरे कोई. गलती किसी और की है नुकसान किसी दूसरे का हो रहा है.

करे दाढ़ीवाला, पकड़ा जाए मुँछोंवाला. अपराध कोई और कर रहा है, सजा किसी और को मिल रही है.

करे न धरे, सनीचर को दोस. कुछ काम नहीं करते हैं और भाग्य में शनि बैठा होने का बहाना करते हैं. 

करे प्रपंच, कहलावे पंच. कहावत उन लोगों के लिए है जो छल कपट कर के भी समाज में सम्माननीय बने रहते है. भ्रष्ट न्याय व्यवस्था पर भी व्यंग्य है.

करे सो डरे. अर्थ दो प्रकार से है- 1. जो जिम्मेदार व्यक्ति होता है वह डरता है कि कहीं कुछ गलत न हो जाए. जो कुछ करे ही नहीं उसे किस बात का डर. 2. जो अपराध या पाप करता है वह डरता भी रहता है.

करे सो भरे, खोदे सो पड़े. जो किसी का बुरा करता है वह उसका दंड भरता है, जो दूसरों के लिए खाई खोदता है वह स्वयं उसमें गिरता है.

करें कल्लू, भरें लल्लू. गलती कोई और कर रहा है, खामियाजा कोई और भुगत रहा है.

करेगा टहल तो पाएगा महल. बड़े लोगों की सेवा करोगे तो उपयुक्त पुरस्कार पाओगे.

करेगा सो भरेगा. जो गलत काम करेगा वह उसका खामियाजा भी भुगतेगा.

करेला वो भी नीम चढ़ा (गिलोय और नीम चढ़ी). कोई मूर्ख या दुष्ट व्यक्ति और अधिक दुर्गुणों से लैस हो जाए तो.

करो खेती और भरो दंड. खेती करने वाला बेचारा खेती में भी पिसता है और लगान भी देता है. जो कुछ नहीं करते उन्हें कोई टैक्स वैक्स नहीं देना होता. 

करो तो सबाब नहीं, न करो तो अजाब नहीं. अजाब – पाप का दंड. कोई ऐसा काम जिसे करने में पुण्य न मिले और न करने में पाप भी न हो.

क़र्ज़ काढ़ करे व्यवहार, मेहरारू से रूठे जो भतार, बेपूछे बोले दरबार, ये तीनों पूंछ के बार. यहाँ व्यवहार से मतलब है सामाजिक लेन देन. जो सामाजिक लेन देन के लिए क़र्ज़ लेता है, जो पति अपनी पत्नी से रूठता है और जो बिना पूछे दरबार में बोलता है, ये सब निकृष्ट लोग होते हैं. 

क़र्ज़ बाप का भी बुरा. कर्ज पिता से भी नहीं लेना चाहिए.

कर्ज, मर्ज और फर्ज को कभी छोटा नहीं समझना चाहिए. क़र्ज़ न चुकाएँ तो ब्याज लग कर बढ़ता जाएगा इसलिए उसको हलके में न लें, बीमारी छोटी सी दिखती हो तो भी एकदम से बढ़ कर खतरनाक हो सकती है इसलिए हलके में नहीं लेना चाहिए और अपने कर्तव्य को भी कभी हलके में नहीं लेना चाहिए. 

कर्ज, सात जनम का मर्ज. कोई व्यक्ति कर्ज लेता है तो उशकी कई पीढ़ियों को चुकाना पड़ सकता है.

कर्ज़दार छाती पर सवार. उलटी बात. जिसने आपसे क़र्ज़ लिया है वही आपकी छाती पर सवार है.

कर्ज़दार दो घरों को पालता है. कर्ज लेने वाला व्यक्ति व्यापार आदि कर के अपने परिवार को पालता है और ब्याज चुका कर साहूकार के परिवार को भी पालता है.

कर्ता से कर्तार हारे. परिश्रम करने वाले के आगे ईश्वर भी नतमस्तक हो जाते हैं.

कर्मे खेती कर्मे नार, कर्मे मिले कुटुम परिवार (सुजन दो चार). अच्छी खेती, अच्छी स्त्री और अच्छा परिवार भाग्य से ही मिलते हैं.

कल का लीपा देओ बहाय, आज का लीपा देखो आय. कल की बात को भूल जाओ. आज की योजना बनाओ. आजकल के लोगों को यह नहीं मालूम होगा कि पहले जमाने में चूल्हे चौके को मिट्टी या गोबर से लीपा जाता था.

कल के जोगी, पैर तक जटा. नए नए पैसे वाले अधिक शान शौकत दिखाएँ तो.

कल देवेगा कल पाएगा, कलपाएगा कल पाएगा. कल – चैन, कलपाना – तड़पाना. दूसरों को सुख चैन देगा तो खुद भी सुख चैन पाएगा. किसी को दुख देगा तो वैसा ही दुख कल को स्वयं भी पाएगा.

कल मरी सासू, आज आया आंसू. बनावटी दुःख.

कलकत्ता के कमाई जूता छाता में लगाई. बड़े शहरों में कमाई अधिक होती है लेकिन वहाँ का रहन सहन भी बहुत महंगा होता है. 

कलकत्ते नहिं जाना, चाहे जहर खाय मर जाना. गाँव या छोटे शहर में रहने वाले सीधे साधे व्यक्ति से जब कहा जाता है कि बड़े शहर में जा कर जीविका कमाओ तो वह बहुत घबरा जाता है.

कलजुग के लइका करै कचहरी, बुढ़वा जोतै हल.  कलियुग में लड़का संपत्ति के लिए कचहरी के चक्कर लगाता है और बूढ़े बाप को खेत मे हल चलाना पड़ता है.

कलम और तलवार वाले कभी भूखे नहीं मरते. पढ़े लिखे व्यक्ति और योद्धा को भूखे मरने की नौबत नहीं आती.

कलयुग के जोगी भाई भाई. कलयुग के साधु सब एक से.

कलयुग में झूठ ही फले. कलयुग में झूठ बोलने वाले मजे मार रहे हैं और सच बोलने वाले कष्ट झेल रहे हैं.

कलहारी कल कल करे, दूहारी छू होए, अपनी अपनी बान से कभी न चूके कोय. कलहारी (लड़ाका स्त्री) लड़ती रहती है और दूहारी (आपस में झगड़ा कराने वाली) झगड़ा करा के गायब हो जाती है. किसी की दुष्टता नहीं छूटती.

कलार की दुकान पर पानी पियो तो भी शराब का शक होता है. कलार – शराब बेचने वाला. अर्थ यह है कि बदनाम लोगों से किसी प्रकार का भी मेलजोल नहीं रखना चाहिए.

कलाली की बेटी डूबने चली, लोग कहें मतवाली (कलार का लड़का भूखा मरे और लोग कहें मतवाला). शराब बेचने वाले की बेटी डूबने चली तो लोग समझते हैं कि वह नशे में है. अगर आप गलत काम करते हैं या लोगों के साथ रहते हैं तो लोग हमेशा आप को गलत ही समझेंगे.

कवित्त सोहे भाट ने और खेती सोहे जाट ने. भाट को कविता पढ़ना शोभा देता है और जाट को खेती करना. सबको अपना अपना काम शोभा देता है.

कश्मीरी बेपीरी, जिनमें लज्ज़त न शीरीं. काश्मीरी लोग बेमुरव्वत होते हैं.

कश्मीरी से गोरा सो कोढ़ी. काश्मीरी लोग बहुत गोरे होते हैं. इसलिए ऐसा कहा गया कि उन से गोरा केवल कुष्ठ रोगी ही हो सकता है. सामान्य लोग कुष्ठ रोग और सफ़ेद दाग की बीमारी (leukoderma) में अंतर नहीं जानते इसलिए वे ल्यूकोडर्मा के रोगी को भी कोढ़ी समझ लेते हैं. कुष्ठ रोगियों में अलग प्रकार के हल्के रंग के दाग होते हैं.

कसम और तरकारी खाने के लिए ही बने हैं. कसम खा कर मुकर जाने वाला बेशर्म आदमी इस प्रकार बोलता है.

कसाई का अनाज और पाड़ा खा जाए. कसाई जैसे खतरनाक इंसान का अनाज बछड़े जैसा निरीह प्राणी कैसे खा सकता है. 

कसाई का खूँटा और खाली रहे. कसाई के खूंटे पर लगातार कोई न कोई जानवर बंधा रहता है. किसी भी चलते हुए व्यापार में काम आने वाले उपकरण कभी खाली नहीं रहते.

कसाई की लौंडिया, छिछ्ड़ों की भूखी. जहाँ जिस चीज़ की बहुतायत होना चाहिए वहाँ उस का अभाव हो तो.

कसाई रोवे मांस को बकरा रोवे जान को. बकरा इस बात से परेशान है कि उस की जान जा रही है, कसाई इस बात से परेशान है कि बकरे में माल कम निकला. सब की अपनी अपनी परेशानी, सब के अपने अपने दृष्टिकोण.

कस्तुरी कुँडलि बसै, मृग ढूँढे बन माहिँ, ऐसे घट घट राम हैं, दुनिया देखे नाहिँ. कस्तूरी मृग की नाभि में कस्तूरी होती है पर वह उसे वन में ढूँढता फिरता है. इसी प्रकार ईश्वर सभी के भीतर विद्यमान हैं और मनुष्य सब जगह ढूँढता फिरता है.

कस्तूरी की गंध सौगंध की मोहताज नहीं. जो वास्तविक गुण होते हैं उन्हें किसी के द्वारा प्रमाणपत्र दिए जाने की आवश्यकता नहीं होती.

कह कर खाने वाली डायन नहीं कहलाती (कह कर खाए वो डायन कैसी). खुल्लम खुल्ला अनाचार करने वाले लोग भ्रष्ट नहीं कहलाते. 

कहत बड़े जन सांच है, बात हवा ले जात. मुँह से निकली हुई बात बहुत तेज़ी से फैलती है.

कहना सरल है करना कठिन. अर्थ स्पष्ट है.

कहने से करना भला. जो लोग बातें बड़ी बड़ी करते हैं पर काम कुछ नहीं करते उनको सीख देने के लिए यह कहावत कही जाती है. 

कहने से कुम्हार गधे पर नहीं चढ़ता है. बहुत से कुम्हार बर्तन वगैरह ढोने के लिए गधा पालते हैं कभी-कभी मस्ती लेने के लिए खुद भी गधे की सवारी कर लेते हैं. लेकिन यदि आप उससे कहें कि भैया जरा गधे पर चढ़ के दिखाओ तो वह गधे पर नहीं चढ़ता. यदि किसी व्यक्ति की ऐसी आदत हो कि वह कहने पर कोई काम न करे केवल अपने मन से ही करे तो उसका मजाक बनाने के लिए यह कहावत कही जाती है.

कहवे को अबला, बोलवे को सबला. लड़ाका स्त्रियों के लिए.

कहा न अबला करि सके, कहा न सिन्धु समाय, कहा न पावक में जरे, कहा काल न खाय. स्त्री अबला होते हुए भी क्या नहीं कर सकती (अर्थात सब कुछ कर सकती है), समुद्र में क्या नहीं समा सकता, आग में क्या नहीं जल जाता और काल किसे नहीं खा लेता? इसके उत्तर में किसी ने कहा है – सुत नहिं अबला करि सकै (पुरुष के बिना), मन नहिं सिन्धु समाय, धर्म न पावक में जरे, नाम काल नहिं खाय.

कहा भी न जाए चुप रहा भी न जाए. किसी परिस्थिति में जब आप कुछ कहने का साहस न जुटा पा रहे हों और चुप रहने में भी कष्ट हो रहा हो. भोजपुरी कहावत – का कहीं कुछ कही ना जाता अउरी कहले बिना रही ना जाता.

कहाँ कहाँ मन रुच करे, जीवन है छन भंग. (कहाँ कहाँ मन रुच करे, मिलो यो तन छन भंग). जीवन इतना छोटा है इस में व्यक्ति किस किस चीज़ में रूचि ले, कहाँ कहाँ मन लगाए.

कहाँ गरजा, कहाँ बरसा. बादल गरजा कहीं और बरसा कहीं और. कोई व्यक्ति गाली गलौज कहीं पर करे और मारपीट कहीं और तो.

कहाँ राजा भोज, कहाँ गंगू तेली. जब दो लोगों के सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक स्तर में बहुत अंतर हो तो.

कहाँ राम राम, कहाँ टांय टांय. तोता टांय टांय करता है पर सिखाने पर राम राम बोलने लगता है. असभ्य अशिक्षित व्यक्ति शिक्षा पा कर योग्य बन जाता है. इसका दूसरा अर्थ यह है कि तोते तोते में कितना फर्क होता है, एक राम राम कहता है और दूसरा टांय टांय ही करता है.

कहानी बिना कैसा व्रत. हर व्रत की कोई न कोई कहानी होती है. पहले के समय घर की बड़ी बूढियाँ, बहू बेटों पोतों को वे कहानियाँ सुनाया करती थीं.

कहीं आग कहीं पानी. कहीं लोग गर्मी से परेशान हैं कहीं अतिवृष्टि से. आग और पानी का अर्थ लड़ाई और शांति से भी हो सकता है.

कहीं आग कहीं शोले. आग कहीं और लगी है और उसका असर कहीं और हो रहा है.

कहीं की ईट कहीं का रोड़ा, भानु मती ने कुनबा जोड़ा. बिलकुल बेमेल चीजों को जोड़ कर कोई बेतुकी चीज़ बना देना.

कहीं डूबे भी तिरे हैं. जो डूब जाएँ वे फिर सतह पर नहीं आते. एक बार नाम और सम्मान खो जाने पर वापस नहीं आ सकता. व्यापार चौपट होने के बाद दोबारा खड़ा नहीं हो सकता.

कहीं तो सूहा चूनरी, और कहीं ढेले लात. अपना अपना भाग्य है, कहीं स्त्री को सुहाग का जोड़ा पहनने को मिल रहा है और कहीं लात घूंसे खाने पड़ रहे हैं. सूहा माने एक प्रकार का गहरा लाल रंग.

कहीं नाखून भी गोश्त से जुदा हुआ है. खून के रिश्ते, सच्चे प्रेमी और सच्चे मित्र अलग नहीं होते.

कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना. ऊपर से कुछ और दिखाना पर मन में कुछ और होना.

कहीं सूखे दरख़्त भी हरे हुए हैं. एक बार सूखने के बाद पेड़ दोबारा हरा भरा नहीं हो सकता. रिश्तों के विषय में और व्यक्ति के मान सम्मान के विषय में भी ऐसा ही कहा जाता है.

कहीं  कल से तो कहीं बल से. कहीं युक्ति से काम होता है और कहीं ताकत से.

कहु रहीम कैसे निभै, बेर केर को संग, वे डोलत रस आपने, उनके फाटत अंग. केले का पेड़ बेर के पेड़ के पास लगा है. बेर हवा चलने पर झूमता है तो उसके काँटों से केले का कोमल तना फट जाता है. कहावत का अर्थ है कि दो विपरीत प्रकृति वाले लोगों का साथ नहीं निभ सकता.

कहूँ तो माँ मार खाय, न कहूँ तो बाप कुत्ता खाय. दुविधा की स्थिति. एक बार एक स्त्री ने बकरे के धोखे में (या जान कर) कुत्ते का मांस पका दिया. बेटे को यह बात मालूम थी. बाप खाना खाने बैठा तो बेटे के सामने यह दुविधा थी कि बता देता है तो बाप माँ को पीटेगा, और नहीं बताता है तो बाप को कुत्ता खाने का पाप लगेगा.

कहे से कोई कुँए में नहीं गिरता. कोई आपका कितना भी बड़ा समर्थक या प्रेमी क्यों न हो आपके कहने से कुँए में नहीं गिरेगा.

कहें खेत की, सुनें खलिहान की (कहें जमीन की, सुनें आसमान की) (कहें कुछ, सुनें कुछ). कुछ का कुछ सुनना.

कहें रणधीर, भाग जात पात खरके सों. अपने को बड़ा वीर बताते हैं और पत्ता खड़कने से भाग जाते हैं. (पात खरके – पत्ता खड़के)

कहो बात, कटे रात. एक दूसरे को ढाढस बंधाने से दुःख के दिन कट जाते हैं.

का टेसू के फूल, का हल्दी को रंग, का बदली की छाँव, का परदेसी को संग. यह सभी चीजें क्षणिक होती हैं. कहावत के द्वारा यह सन्देश दिया गया है कि परदेसियों से प्रेम नहीं करना चाहिए. 

का बर्षा जब कृषी सुखानी, (समय चूकि पुनि का पछितानी). खेती के सूखने के बाद वर्षा हो तो उससे क्या फायदा. समय पर कोई काम नहीं किया तो अब क्यों पछताते हो.

काँटा बुरा करील का और बदली की घाम, सौत बुरी है चून की और साझे को काम. करील का काँटा बुरा होता है और बादलों के साथ जो धूप होती है वह बुरी होती है (क्योंकि वह बहुत तेज होती है). सौत चाहे आटे की बनी हुई क्यों न हो बुरी होती है और साझे का काम बुरा होता है (इस कहावत का सबसे मुख्य सन्देश यही है कि साझे का काम कभी नहीं करना चाहिए).

कांट कंटीली झांखड़ी, लागे मीठा बेर. बेर जैसा मीठा फल कंटीली झाड़ियों में ही लगता है.

कांटे से कांटा निकलता है. दुष्ट व्यक्ति को दुष्टता से ही ठीक किया जा सकता है.

कांटों से बाड़ और वचनों से राड़. काँटों से बाड़ बनती है और दुर्वचनों से राड़ (झगड़ा).

कांधिये किराए पर नहीं मिलते. कांधिये – अर्थी को कंधा देने वाले. जो लोग धन के घमंड में अपने नातेदारों का आदर नहीं करते उन्हें सीख देने के लिए.

कांधे डाली झोली, डोम छोड़ा न कोली. भीख मांगने वाले किसी को नहीं छोड़ते. डोम – श्मशान में काम करने वाले लोग. कोली – मछुआरा. आजकल के समाज में जाति सूचक शब्दों का प्रयोग बुरा माना जाता है, लेकिन कहावतें पुराने जमाने की हैं, उन को जैसा सुना वैसा लिख दिया गया है. इन में हमारी ओर से कुछ नहीं जोड़ा गया है. 

कांसी, कुत्ती, कुभार्या, बिन छेड़े कूकंत. कांसे की थाली, कुतिया और झगड़ालू पत्नी बिना छेड़े ही बोलती हैं.

काक कहहिं पिक कंठ कठोरा. कौआ कह रहा है कि कोयल की आवाज कर्कश है. कोई मूर्ख व्यक्ति किसी विद्वान पर आक्षेप करे तो.

काका काहू के न भए. जो व्यक्ति अपने ही लोगों को धोखा दे उस के लिए मज़ाक में.

काका के हाथ में कुलहाड़ी हल्की मालूम होती है. जब खुद उठानी पड़े तो मालूम होता है कि कुलहाड़ी कितनी भारी है. बच्चों को पालने में माँ बाप को कितनी मेहनत पड़ती है यह तब मालूम पड़ता है जब खुद बच्चे पालने पड़ते हैं.

काका जी को मरता देख मरने से मन हट गया. जो लोग बात बात पर मरने की धमकी देते हैं उन पर व्यंग्य. दूसरा अर्थ है कि अपने किसी सगे सम्बंधी की मृत्यु होने पर मालूम पड़ता है कि मृत्यु कितना भयावह अनुभव है.

काग कुल्हाड़ी कुटिल नर काटे ही काटे, सुई सुहागा सत्पुरुष सांठे ही सांठे. कौवा, कुल्हाड़ी और दुष्ट पुरुष केवल काटना ही जानते हैं जबकि सुई सुहागा और सत्पुरुष केवल जोड़ते ही हैं.

काग पढ़ायो पीन्जरो, पढ़ गयो चारों वेद, समझायो समझो नहीं, रह्यो ढेढ को ढेढ. एक महात्मा जी ने कौवे को पिंजरे में बंद कर के अपनी विद्या के बल पर चारों वेद पढ़ा दिए. पर जैसे ही पिंजड़े का दरवाजा खोला वह बाहर निकल कर रैंट खाने को भागा. 

कागज की नाव ज्यादा देर नहीं चलती (कागज़ की नाव, आज न डूबी कल डूबी). कागज़ की नाव पानी में अधिक देर नहीं चल सकती, कुछ देर बाद गल जाएगी. झूठ के सहारे या अपर्याप्त साधनों के सहारे खड़ा किया गया व्यापार अधिक दिन नहीं चल सकता.

कागज की भसम किन भस्मों में, बिन ब्याहा खसम किन खसमों में. कोई स्त्री बिना विवाह के किसी पुरुष को पति नहीं मान सकती. ऐसा सम्बन्ध उतना ही निरर्थक है जितनी कागज़ की राख.

कागज हो तो हर कोई बांचे, भाग न बांचा जाए. कागज पर लिखा हर कोई पढ़ सकता है पर भाग्य में क्या लिखा है यह कोई नहीं पढ़ सकता.

कागभगोड़ा न खावे न खावन दे. खेत में बांस की खपच्चियों को कुरता पहना कर उसके ऊपर उल्टा मटका रख देते हैं कि दूर से कोई आदमी खड़ा हुआ लगता है. इस को देख कर पक्षी आदि डर कर खेत में नहीं आते. कोई ईमानदार हाकिम न खुद रिश्वत लेता हो और न लेने देता हो तो उस के मातहत चिढ़ कर ऐसे बोलते हैं. (परिशिष्ट)

कागा कहा कपूर चुगाए, श्वान न्हवाए गंग. कौवे को कपूर खिलाओ और कुत्ते को गंगा में नहलाओ तो भी इनका स्वभाव नहीं बदलेगा.

कागा किस का धन हड़पे, कोयल किस को देय, मीठ बोल के कारने जग अपनो कर लेय. न कौवा किसी का कोई नुकसान करते है और न ही कोयल किसी को कुछ देती है. कौवे की बोली कर्कश है इसलिए सब उससे चिढ़ते हैं और कोयल मीठा बोलती है इसलिए सब को अपना बना लेती है.

कागा कूकुर और कुमानुस तीनों जात कुजात. कौवा, कुत्ता और कुमानुष तीनों ही निकृष्ट श्रेणी के जीव माने गए हैं.

कागा बोले, पड़ गए रौले. 1.भोर होते ही कागा बोलता है और दुनिया की दौड़ भाग शुरू हो जाती है. 2.कुटिल आदमी कुछ का कुछ बोल कर झगड़े शुरू करा देते हैं.

कागा रे तू मल मल नहाए, तेरी कालिख कभी न जाए. कौवा कितना भी मल मल कर नहा ले उस की कालिख कभी नहीं जाती. 

काचर का बीज, एक ही काफी. काचर – एक छोटी ककड़ी जिस का बीज खट्टा और कड़वा होता है और एक ही बीज मनों दूध को फाड़ देता है.

काज परै कछु और है, काज सरै कछु और. ऐसे लोगों के लिए जिनका व्यवहार काम पड़ने पर कुछ और होता है और काम निकल जाने पर कुछ और होता है. (काम परे कछु और है, काम सरे कछु औ)र. 

काजल की कोठरी में कैसो भी सयानो जाय, एक लीक काजल की लागे रे लागे रे भाई. गलत काम को आदमी कितनी भी होशियारी से करे कुछ न कुछ दाग लग ही जाता है.

काजल लगाते आँख फूटी. अच्छा काम करने की कोशिश में भारी नुकसान हो जाना.

काजी का प्यादा घोड़े पे सवार. अफसरों के मातहत अपने आपको अफसरों से कम नहीं समझते.

काजी की कुतिया कहाँ जा के ब्याहेगी. जो आदमी अपने को बहुत होशियार समझता हो और एक सामान खरीदने के लिए पच्चीसों दुकानें देखता हो उस का मजाक उड़ाने के लिए दुकानदार ऐसा बोलते हैं.

काजी की घोड़ी कोई घी थोड़े ही मूतती है. बड़े आदमी के नौकर चाकर जानवर सब अपने आप को वीआईपी समझने लगते हैं, उनका मजाक उड़ाने के लिए.

काजी की मारी हलाल होवे. मुसलमानों में किसी पशु का वध करने का खास तरीका होता है. उसी तरह करने पर उसके मांस को हलाल (धर्म सम्मत) माना जाता है नहीं तो वह हराम (निषिद्ध) हो जाता है. काजी (या कोई अति प्रभावशाली व्यक्ति) अगर किसी जानवर को मारे तो सब उसे हलाल मान लेते हैं चाहे उसने कैसे भी किया हो.

काजी की लौंडी मरी सारा शहर आया, काजी मरे कोई न आया. जब आदमी ऊँचे पद पर होता है तो उसके मातहतों तक की बड़ी पूछ होती है और जब वह पद पर नहीं रहता तो उसे भी कोई नहीं पूछता.

काजी के घर के चूहे भी सयाने. बड़े आदमी के नौकर, चाकर, चमचे आदि भी अपने को बहुत होशियार समझते हैं.

काजी के मरने से क्या शहर सूना हो जाएगा. कोई कितना बड़ा आदमी क्यों न हो, उसके मरने से संसार के कार्य रुकते नहीं हैं.

काजी जी दुबले क्यों, शहर के अंदेशे से. (काजी जी तुम क्यों दुबले, शहर का अंदेशा). जिम्मेदार व्यक्ति को हमेशा कोई न कोई चिंता लगी रहती है.

काजी जी पहले अपना आगा ढको, पीछे नसीहत देना. जो बड़े हाकिम खुद तो भ्रष्ट हों और दूसरों को ईमानदारी का उपदेश दे रहे हों, उन को आईना दिखाने के लिए यह कहावत कही जाती है.

काटने को आई चारा, खेत पर इजारा. इजारा – ठेका, पट्टा. चारा काटने को आई और खेत पर अपना दावा ठोंकने लगी. अनधिकार चेष्टा करने वालों के लिए.

काटने वाले को थोड़ा और बटोरने वाले को बहुत. अनाज की कटाई के बाद बचे खुचे गिरे हुए अनाज को बटोरने के लिए लोग लगाए जाते हैं. बटोरे हुए अनाज का कुछ हिस्सा बटोरने वालों को दे दिया जाता है. जहाँ मुख्य काम करने वाले को कम और आलतू फ़ालतू लोगों को ज्यादा मिल जाए वहां यह कहावत कहते हैं.

काटे कटे, न मारे मरे. आसानी से जो काम न हो. कोई आदमी बहुत प्रयास के बाद भी काबू न आए तो.

काटे न तो फुंकार जरूर मार दे. सांप काटेगा नहीं तब भी फुंकार जरूर मारेगा. दुष्ट कुछ न कुछ दुष्टता जरूर करेगा.

काठ की घोड़ी पाँवों नहीं चलती. बनावटी चीज़ असल की तरह काम नहीं कर सकती.

काठ की तलवार, क्या करेगी वार. उपरोक्त के सामान.

काठ की हांडी बार बार नहीं चढ़ती है. (फेर न ह्वैहैं कपट सों, जो कीजै ब्यौपार, जैसे हांडी काठ की, चढै न दूजी बार). अगर कोई हंडिया लकड़ी की बनी हो तो आप उस में बार बार खाना नहीं पका सकते. एक आध बार में ही वह जल जाएगी. कहावत का अर्थ है कि झूठ और बहाने बाजी से एकाध बार ही काम निकाला जा सकता है बार-बार नहीं.

काठ छीलो तो चिकना, बात छीलो तो रूखी. आपसी बातचीत में बहुत बहस नहीं करनी चाहिए और किसी से कोई बात बहुत खोद खोद कर नहीं पूछनी चाहिए (इससे संबंधों में रूखापन आ जाता है).

काणी अपनी टेंट न निहारे, दूजे को पर पर झाकें. जो लोग अपनी कमियाँ न देख कर दूसरे की गलतियाँ निकालते रहते हैं उनके लिए.

काणी का संग सहा न जाए, कानी बिना भी रहा न जाए. किसी व्यक्ति की पत्नी कानी है. अब उसके साथ रहने में भी परेशानी है और उसके बिना काम भी नहीं चलता.

काणी को सराहे काणी को बाप (कानी को सराहे कानी की माँ). औलाद कैसी भी हो माँ बाप हमेशा उसकी तारीफ़ ही करते हैं. क्योंकि उन्हें अपना बच्चा प्रिय होता है और इसलिए भी क्योंकि वे उसका उत्साह बढ़ाना चाहते हैं.

काणे की आंख में डाला घी और यूँ कहे मेरी फोड़ दी. (हरयाणवी कहावत) किसी का भला करने की कोशिश करो और वह आपसे लड़ने को आ जाए तो.

कातिक कुतिया, माघ बिलाई, चैते चिड़िया, सदा लुगाई. कुतिया कार्तिक माह में, बिल्ली माघ में और चिड़िया चैत्र में रजस्वला होती हैं जबकि मानव स्त्रियाँ प्रत्येक माह में रजस्वला होती हैं.

कातिक जो आंवर तले खाय, कुटुम समेत बैकुंठ जाय. आंवर – आंवला. कार्तिक माह में जो आंवले की पूजा करता है वह बैकुंठ जाता है.

कातिक मास रात हर जोतौ, टांग पसार घरै मत सोतौ. (बुन्देलखंडी कहावत) कार्तिक माह में घर पर न सो कर रात को भी हल जोतो तो जुताई पूरी हो पाती है.

कान छिदाय सो गुड़ खाय. पहले के समय में गुड़ भी नियामत होता था, कभी कभी ही खाने को मिलता था. कान छिदाने के लिए बच्चे को गुड़ का लालच दिया जाता था. जो बच्चा कान छिदवाएगा उसी को गुड़ खाने को मिलेगा. कहावत का अर्थ है जो कष्ट उठाएगा वही इनाम पाएगा.

कान प्यारे तो बालियाँ, जोरू प्यारी तो सालियाँ. मजाक की तुकबंदी है. कुछ लोग ऐसे भी बोलते हैं – कान से प्यारी बालियाँ, जोरू से प्यारी सालियाँ.

काना कुबड़ा तिरपटा, मूढ़ में गंजा होय, इन से बातें जब करो, हाथ में डंडा होय. (बुन्देलखंडी कहावत) तिरपटा – भेंगा, एंचा ताना. कुछ लोक विश्वास बड़े बेसिरपैर के होते हैं. इसी प्रकार का एक विश्वास यह भी है कि काना व्यक्ति, कुबड़ा, भेंगा और गंजा आदमी. ये सब दुष्ट होते हैं.

काना खसम भी घूर कर देखे. पति खुद काना है तब भी सुन्दर पत्नी पर रौब दिखा रहा है. 

काना मुझको भाय नहीं, काने बिन भी सुहाय नहीं. किसी स्त्री का पति काना है. वह उसे सुहाता नहीं है लेकिन उसके बिना भी काम नहीं चलता. इसी प्रकार की दुविधा वाली परिस्थिति में कहावत का प्रयोग होता है.

कानी अपने मने सुहानी. कानी भी अपने आप को सुंदर समझती है. 

कानी आँख देखे भले न, खटकती जरूर है. कानी आँख किसी काम की नहीं होती पर तकलीफ देती है. घर में कोई आदमी निकम्मा हो तो काम तो कुछ नहीं करेगा पर सब को परेशान जरूर करेगा.

कानी के ब्याह को नौ सौ जोखें (कानी के ब्याह में फेरों तक खोट). जोखें – जोखिम, परेशानियाँ. कानी लड़की की शादी करना बहुत मुश्किल काम है. किसी काम में बहुत सारी परेशानियाँ आ रही हों तो इस प्रकार से कहते हैं.

कानी को काजल न सुहाए. कानी को काजल अच्छा नहीं लगता (क्योंकि उस के लिए काजल की कोई उपयोगिता नहीं है).

कानी को काना प्यारा, रानी को राना प्यारा. अपना अपना सगा सम्बन्धी सब को प्यारा होता है.

कानी गदही सोने की लगाम. अपात्र के लिए विशेष सुविधाएँ.

कानी गाय के अलग बथान. कानी गाय अलग बंधना चाहती है क्योंकि उसे घास खाने में कठिनाई होती है. कमजोर बच्चा या व्यक्ति अलग से परवरिश चाहता है. इस से मिलती जुलती कहावत है – कानी बिलरिया के अलगे डेरा.

कानी गाय बाह्मन के दान. घटिया चीज़ दान कर के पुण्य कमाने की कोशिश करना.

कानी गीदड़ी का ब्याह. जब धूप भी निकल रही हो और पानी बरस रहा हो तो बच्चे कहते हैं कि कानी गीदड़ी का ब्याह हो रहा है. कुछ लोग काले चोर का ब्याह बोलते हैं.

कानी बिना रहा न जाये, कानी को देख के अंखियाँ पिराएँ.  कानी को देख कर मन कुढ़ता भी है और उस के बिना काम भी नहीं चलता.

कानी बिल्ली घर में सिकार. बिल्ली कानी है (अपाहिज है) तो बाहर न जा कर घर में ही शिकार करेगी. कोई अयोग्य व्यक्ति घर वालों को ही धोखा दे तो.  

कानून न कायदा, जी हुजूरी में फायदा. जो लोग कायदे और कानून की बात करते हैं वे पीछे रह जाते हैं और चमचागीरी करने वाले आगे बढ़ जाते हैं.

कानूनगो की खोपड़ी मरी भी दगा दे. कहावत कहने वाले के अनुसार कानूनगो इतने धोखेबाज़ होते हैं कि उनकी मरी हुई खोपड़ी भी इंसान के साथ दगा कर सकती है.

काने की एक रग सिवा होती है. काने के पास धोड़ी सी अतिरिक्त कुटिलता होती है.

काने पे अंधा हंसे. कोई मूर्ख व्यक्ति बुद्धिमान पर हंसे तो.

काने से काना कहो तब तो जानो टूटी, धीरे धीरे पूछो भैया कैसे तेरी फूटी. काने को अगर सीधे सीधे काना कह कर सम्बोधित करोगे तब तो समझो संबंध टूट ही जाएगा. उससे हलके से पूछो कि भैया तेरी आँख में क्या हुआ था. किसी की कमी के विषय में घुमा फिरा कर युक्तिपूर्वक बात करनी चाहिए.

काबुल में मेवा दई, ब्रज में दई करील. (काबुल में मेवा रच्यो, ब्रज में रच्यो करील). ईश्वर की अजीब माया है, काबुल जैसे गधों के देश में मेवा ही मेवा पैदा की है जबकि बृज जैसे पवित्र और प्रिय स्थान पर काँटों भरा करील का पेड़.

काबुल में सब गधे ही गधे. जहाँ सब एक से बढ़ कर एक मूर्ख भरे हों वहाँ के लिए.

काबू आई गूजरी, गहरा बर्तन लाओ. ग्वालन कब्जे में आ गई है, गहरा बर्तन लाओ, ज्यादा दूध मिल जाएगा. किसी से लाभ पाने का मौका हाथ आया हो तो.

काम का न काज का, दुश्मन अनाज का. जो काम काज कुछ न करे केवल खाने में होशियार हो.

काम काज को थर थर काँपे, खाने को मरदानी. काम करने के नाम पर कमजोरी और बुखार, खाने के लिए पूरी तरह तैयार.

काम की न काज की ढाई सेर अनाज की (मन भर अनाज की). जो काम काज कुछ न करे केवल खाने में होशियार हो.

काम को काम सिखाता है. अनुभव से ही काम करना आता है. इस को इस प्रकार भी कह सकते हैं कि एक व्यक्ति के अनुभव से बहुत से लोग सीखते हैं.

काम को सलाम है. काम की ही प्रशंसा होती है. 

काम क्रोध मद लोभ की जौं लों मन में खान, का पंडित का मूरखा दोउ एक समान. जब तक मन में काम, क्रोध, अहंकार और लोभ हैं तब तक पंडित और मूर्ख सामान ही हैं. अर्थात इन को जीत कर ही व्यक्ति पंडित बन सकता है.

काम चोर, निवाले हाजिर. काम के नाम पर गायब और खाने के वक्त मौजूद.

काम जो आवे कामरी, का ले करे कुलांच. कुलांच – महंगा ऊनी वस्त्र. जहाँ कम्बल काम आना हो वहाँ कुलांच ले कर क्या करेंगे.

काम धाम में आलसी भोजन में होशियार. काम के नाम पर सबसे पीछे और खाने पीने में चौकस.

काम न कोउ का बनि जाय, काटी अँगुरी मूतत नाँय. यदि किसी की कटी हुई उँगली इनके मूतने से ठीक हो जाए तो ये वह भी नहीं करेंगे. अत्यधिक स्वार्थी लोगों के लिए. (पुराने लोग मानते थे कि छोटे मोटे घाव पर मूत्र लगा देने से वह ठीक हो जाता है).

काम न पड़ने तक सब दोस्त अच्छे हैं. सारे दोस्त व रिश्तेदार तभी तक आपकी आवभगत करते हैं जब तक उनसे किसी काम के लिए न कहा जाए.

काम पड़े ते जानिए जो नर जैसो होए. कौन व्यक्ति कैसा है यह तभी समझ में आता है जब उस से कोई काम पड़ता है.

काम पड़े मूर्ख से तो मौन गहे रहिए. मूर्ख व्यक्ति से काम पड़े तो चुप रहना चाहिए. अगर आप चुप रहेंगे तब तो वह शायद काम कर भी दे, पर कहने से कभी नहीं करेगा.

काम रहे तक काजी, न रहा तो पाजी. जब तक किसी से काम अटका रहा तब तक उस की जी हुजूरी करते रहे, काम निकलते ही गालियाँ देने लगे.

काम रहे तो काजी न रहे तो पाजी. जब तक व्यक्ति जीविका के लिए काम रहता है तब तक ही उस की इज्ज़त रहती है.

काम सरा दुख बीसरा, छाछ न देत अहीर. जब तक अहीर को आपसे काम था तब तक वह छाछ ला कर दे रहा था. अब काम निकल गया और उस की परेशानी दूर हो गई तो वह छाछ क्यों ला कर देगा.

काम ही करता तो घर ही बहुत काम था. कामचोर आदमी जो काम से बचने के लिए घर छोड़ कर भागा है उससे काम करने के लिए कहा जाए तो वह ऐसे बोलता है.

कामिनी मोहिनी रूप है. स्त्री अपने मोहपाश में सब को बाँध सकती है. 

कामी की साख नहीं, लोभी की नाक नहीं. कामुक व्यक्ति का कोई सम्मान नहीं करता और लोभी का अपना कोई आत्मसम्मान नहीं होता. नाक से अर्थ यहाँ आत्मसम्मान से है.

कामी क्रोधी लालची, इनसे भक्ति न होय, भक्ति करे कोई सूरमा, जाति बरन कुल खोए. कबीर दास जी कहते हैं कि कामी, क्रोधी और लालची, ऐसे व्यक्तियों से भक्ति नहीं हो पाती. भक्ति तो कोई सूरमा ही कर सकता है जो अपनी जाति, कुल, अहंकार सबका त्याग कर देता है.

कायर का हिमायती भी हारा है (बुजदिल का हिमायती भी हारे). कायर आदमी कभी नहीं जीत सकता. यहाँ तक कि उसका पक्ष लेने वाला भी हार जाता है.

कायस्थ का बच्चा कभी न सच्चा. कायस्थों से अत्यधिक द्वेष रखने वाले (या सताए गए) व्यक्ति का कथन. समाज के सभी वर्गों के लोगों के लिए इस प्रकार की कहावतें मिलती हैं, और ये कहावतें सच भी नहीं होतीं इसलिए इनका बुरा नहीं मानना चाहिए..

कायस्थ का बेटा, पढ़ा भला या मरा भला. कायस्थों के यहाँ केवल नौकरी करने का रिवाज़ होता है जिसके लिए पढ़ना लिखना जरूरी है, जो नहीं पढ़ा वह मरे के समान.

कायस्‍थ मीत ना कीजिए, सुन कंता नादान, राजी हो तो धन हरें, बैरी हो तो जान. (हरयाणवी कहावत) कायस्थ से दोस्ती नहीं करनी चाहिए. वह दोस्ती का दिखावा कर के आपका धन हर लेगा और कहीं दुश्मनी हो गई तो जान ही ले लेगा.

कायस्थों की घुट्टी में भी शराब. कायस्थों में शराब के अत्यधिक चलन पर व्यंग्य. खुद हरिवंशराय बच्चन जी ने अपनी ‘मधुशाला’ में लिखा है – मैं कायस्थ कुलोद्भव मेरे पुरखों ने इतना ढाला, मेरे तन के लोहू में है पचहत्तर प्रतिशत हाला.

काया और माया का क्या भरोसा. शरीर और माया दोनों ही नश्वर हैं.

काया और माया का गर्व न करो (काया और माया का गर्व कैसा). ये दोनों क्षण भंगुर हैं. काया ढल जाती है और माया चली जाती है.

काया कष्ट है, जान जोखिम नहीं. ऐसी बीमारी जो जानलेवा न हो.

काया का पेट भर जाए पर माया का न भरे. शरीर की भूख मिट सकती है पर मन का लालच नहीं.

काया पापी अच्छा, मन पापी बुरा. सबको दिखा कर पाप करने वाला इतना बुरा नहीं जितना मन में पाप पालने वाला.

काया रहै निरोग जो कम खावै, उसका बिगड़ै ना काम जो गम खावै. कम खाने वाला स्वस्थ रहता है और संतोषी व्यक्ति का काम नहीं बिगड़ता.

काया राखे धर्म है. हम धर्म का पालन तभी कर सकते हैं जब शरीर स्वस्थ हो. इसलिए अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए. (शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनम्).

काया राखे धर्म, पूंजी रखे बनिज (व्यापार). काया को ठीक रखोगे तो धर्म कर्म कर पाओगे और धर्म तुम्हारी काया की रक्षा करेगा. इसी प्रकार पूंजी बना कर रखोगे तो व्यापार कर पाओगे और व्यापार पूंजी की रक्षा करेगा.

काया राम की माया राज की. शरीर भगवान का बनाया हुआ है इसलिए उस पर उन्हीं का अधिकार है, जब कि धन धान्य राज्य की संपत्ति है.

कारज पीछे कीजिए, पहले जतन विचारि. पहले सोच समझ कर तब कोई काम करना चाहिए.

कार्तिक की छांट बुरी, बनिये की नाट बुरी, भाइयों की आंट बुरी, हाकिम की डांट बुरी.  कार्तिक महीने की वर्षा बुरी, उधार देने के लिए बनिए की मनाही बुरी, भाइयों की अनबन बुरी और हाकिम की डांट-डपट बुरी होती है.

काल आ जाए पर कल नहीं आता. ख़ास तौर पर उधार चुकाने के मामले में.

काल आ जाए पर कलंक न आए. सम्मानित लोग ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि मृत्यु भले ही आ जाए पर कलंक न लगे.

काल औ कर्ज़, किसान को खाएं. किसान को अकाल (अनावृष्टि) और कर्ज़ बर्बाद कर देते हैं.

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब, पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब. हर कार्य समय पर करना चाहिए, टालना नहीं चाहिए.

काल का मारा, सब जग हारा. काल के आगे सब बेबस हैं.

काल के मारे न मरें, बामन बकरी ऊंट, वो मांगे, वो इत उत चरे, वो चाबे सूखा ठूँठ. ब्राह्मण, बकरी और ऊंट अकाल पड़ने पर भी जीवित रहते हैं. ब्राह्मण भिक्षा मांग कर, बकरी इधर उधर कुछ भी चर के और ऊंट सूखे ठूँठ खा कर काम चला लेता है.

काल के हाथ कमान, बूढ़ा बचे न जवान. काल किसी को नहीं छोड़ता.

काल गया पर कहावत रह गई. समय बीत जाता है पर जो कुछ हम ने किया है (अच्छा या बुरा) उसकी कहानियाँ रह जाती हैं.

काल जाए पर कलंक न जाए. समय बीतने के बाद भी किसी के ऊपर लगा हुआ कलंक नहीं जाता.

काल टले कलाल न टले. आदमी मौत के पंजे से निकल सकता है पर शराब के पंजे से नहीं.

काल न छोड़े राजा, न छोड़े रंक. काल किसी को नहीं छोड़ता, न राजा को न गरीब को.

काल पड़े पे कोदो मीठ. यूँ तो कोदों एक घटिया अनाज माना जाता है लेकिन अकाल पड़ने पर वह भी अच्छा लगता है.

काला अक्षर भैंस बराबर. अनपढ़ व्यक्ति का मज़ाक उड़ाने के लिए यह कहावत बोली जाती है. 

काला करम का धौला धरम का. जब तक बाल काले हैं (युवावस्था है) तब तक कर्म करना चाहिए, जब बाल सफ़ेद होने लगें तो धार्मिक कार्यों पर ध्यान देना चाहिए.

काला कुत्ता, मोती नाम. गुण के विपरीत नाम.

काला मुँह करील के दांत. अत्यधिक कुरूप व्यक्ति. 

काला हिरन न मारियो, सत्तर होवें रांड. काला हिरन बहुत सी मादाओं के बहुत बड़े झुंड में अकेला नर होता है. कहावत का अर्थ है कि ऐसे व्यक्ति को बेसहारा मत करो या मत मारो जिस पर बहुत लोग आश्रित हों.

काली ऊन और कुमानुस चढ़े न दूजो रंग. काली ऊन पर दूसरा रंग नहीं चढ़ता, इसी प्रकार कुमानुष को अच्छे संस्कार नहीं दिए जा सकते.

काली घटा डरावनी और भूरी बरसनहार (करिया बादर जी डरपावे भूरा बादर पानी लावे). अर्थ स्पष्ट है.

काली भली न सेत, दोनहूँ मारो एकहि खेत. जब दोनों ही विकल्प खतरनाक हों तो दोनों से छुटकारा पा लेना चाहिएएक राजा के दो रानियाँ थीं. राजा को नहीं मालूम था कि वे दोनों ही जादूगरनी थीं. एक बार दोनों आपस में लड़ रही थीं. एक ने सफ़ेद (श्वेत, सेत) चिड़िया का रूप बनाया और एक ने काली चिड़िया का और आसमान में उड़ कर एक दूसरे पर हमला करने लगीं. राजा को मालूम हुआ तो उसने मंत्री से पूछा इनमें से किस जादूगरनी को मार दूँ. इस पर मंत्री ने जवाब दिया कि काली और सफ़ेद दोनों ही खतरनाक हैं दोनों को एक साथ मार दो. कहीं कहीं इस कहानी में चार रानियों का जिक्र है – काली भली न कबरी, भूरी भली न सेत, चारों मारो एकहि खेत.

काली माई करिया, भवानी माई गोर. ईश्वर की हर रचना अपने आप में विशिष्ट है, काले भी अच्छे हैं और गोरे भी. हिन्दू लोग रंगभेद नहीं करते, काले और गोरे दोनों को पूजते हैं.

काली मिर्च कुलंजन सक्कर, तीनों पीसें भाग बरोबर, आधो तोला फंकी मारें, मानो कोकिल राग उचारें. (बुन्देलखंडी कहावत) उपरोक्त तीनों चीजों का सेवन करने से स्वर मधुर हो जाता है.

काली मुर्गियां भी सफ़ेद अंडे देती हैं. मुर्गी चाहे किसी भी रंग की हो, अंडा सफेद रंग का ही देती है. मनुष्य की उपयोगिता को उस के बाहरी रंग रूप या आकार से नहीं आँका जा सकता.

काली हांडी के पास बैठ कर कालिख जरूर लगती है. बदनाम लोगों की संगत में बदनामी अवश्य होती है.

काले कपड़े पर काला दाग नहीं दीखता. चरित्रहीन व्यक्ति कितने भी गलत काम करे उन पर कोई ध्यान नहीं देता.

काले का काटा पानी नहीं मांगता. काले नाग द्वारा डसा हुआ व्यक्ति तुरंत मर जाता है. बहुत धूर्त व्यक्ति के लिए कहावत कही गई है कि उस से धोखा खाया आदमी फिर उबर नहीं सकता.

काले का क्या काला होगा. कलुषित चरित्र वाले पर और अधिक कालिख क्या लगेगी.

काले काले किशन जी के साले. यूँ तो यह बच्चों की कहावत है, लेकिन बड़े लोगों के भी काम आ सकती है. काले लोगों को अपने को कम करके नहीं आंकना चाहिए.

काले काले राम के, भूरे भूरे हराम के. जो काले हैं वे भगवान राम के वंशज हैं, भूरे रंग के हैं वे अवश्य ही वर्ण संकर होंगे. हिन्दुस्तानी लोग अंग्रेजों के लिए इस प्रकार से बोलते थे. 

काले के आगे दिया नहीं जलता. लोक विश्वास है कि काले नाग के आगे दिया नहीं जलता. (समीपे कृष्णसर्पस्य दीपो नैव प्रकाशते).

काले के काटे का यंत्र न तंत्र. काले नाग के काटने पर कोई तंत्र मंत्र काम नहीं करता.

काले के काला नही तो चितकबरा जरूर जन्मे.  दुष्ट व्यक्ति की संतान पूरी दुष्ट न भी हो तो भी उस में कुछ न ओछापन तो अवश्य ही आ जाता है. संतान में माता पिता के कुछ गुण अवश्य आते हैं.

काले के संग बैठ कर कालिख ही लगती है. दुर्जन का संग करने से कलंकित होना पड़ता है.

काले को उजला कब सुहावे. बुरी मानसिकता वाले व्यक्ति को भले लोग अच्छे नहीं लगते.

काले फूल न पाया पानी, धान मरा अधबीच जवानी. जब धान के फूल काले होते हैं तब पानी देना आवश्यक होता है. उस समय पानी न देने से धान मर जाता है.

काले सर का एक न छोड़ा. यहाँ काले सर से अर्थ है जवान आदमी. दुश्चरित्र स्त्री के लिए कहा गया है.

काशी दुर्लभ ज्ञान पुंज, विश्वनाथ को धाम, मुअले पे गंगा मिले जीते लंगड़ा आम. काशी में रानी अहिल्याबाई होल्कर ने एक परम्परा शुरू की थी जो अब भी चालू है. सावन कृष्ण पक्ष एकादशी को बाबा विश्नाथ को 551 लंगड़े आमों का भोग लगाया जाता है. इसी पर यह कहावत बनी.

कासा भर खाना और आसा भर सोना. भर पेट खाना (कांसा भर) और इच्छानुसार सोना, मतलब बिलकुल आराम का जीवन.

काहु समय में दिन बड़ा. काहु समय में रात. मनुष्य के दिन सदा एक से नहीं रहते. कभी सुख अधिक होता है, कभी दुःख.

काहू पे हंसिये नहीं, हंसी कलह की मूल. किसी की हंसी नहीं उड़ानी चाहिए, क्योंकि इससे लड़ाई होने का डर रहता है. महाभारत का युद्ध भी इसी हंसी के कारण हुआ था.

काहे को अनका लड़का रुलाए, अपना गुड़ छुपा कर खाए. अनका – दूसरे का. अपने पास जो कुछ है उसका प्रदर्शन कर के दूसरों का दुख मत बढ़ाओ.

किए धरे पर गू का लीपा. अच्छा ख़ासा काम कर के सत्यानाश कर देना.

किच्ची किच्ची कौआ खाए, दूध मलाई मुन्ना खाए. कौवा नाक से निकलने वाली रैंट को खा जाता है. बच्चे की नाक साफ़ करते समय बच्चे का ध्यान बंटाने के लिए माँ बोलती हैं कि यह गंदगी तो कौवे के लिए है मेरा मुन्ना दूध मलाई खाएगा.

कित काशी, कित काश्मीर, खुरासान, गुजरात, दाना पानी परसुराम बांह पकड़ ले जात. मनुष्य अपनी इच्छा से कहीं नहीं जाता, दाना पानी उसे वहां ले जाता है.

कितनहिं चिड़िया उड़े अकास, फेरि करे धरती की आस. चिड़िया कितनी भी आकाश में उड़ ले, फिर धरती पर लौटने की इच्छा करती है. कोई व्यक्ति जीवन में कितना भी ऊँचा उठ जाए, अपनी जड़ों तक लौटने की इच्छा रखता है.

कितना अहिरा होय सयाना, लोरिक छोड़ न गावे गाना. लोरिक – अहीरों की वीरता का गीत.कहावतों में अहीरों का खूब मजाक उड़ाया जाता है. अहीर कितना भी होशियार क्यों न हो, लोरिक के अलावा कुछ नहीं गा सकता. 

कितना भी धाओ, करम लिखा सो पाओ. व्यक्ति कितनी भी दौड़ भाग कर ले, जितना भाग्य में लिखा है उतना ही पाता है. धाओ – दौड़ो.

कितना सा सपना और कितनी सी रात. जीवन कितना छोटा सा है, इस में कितने सपने देख लोगे.

कितनो अहीर पढ़े पुरान, तीन बात से हीन, उठना बैठना बोलना, लिए विधाता छीन. अहीर कितना भी पढ़ लिख जाए सभ्य समाज के शिष्टाचार नहीं सीख सकता.

किया चाहे चाकरी, राखा चाहे मान. नौकरी करने में बहुत सम्मान नहीं मिल सकता. कहावत का अर्थ है की अगर आप नौकरी करना चाहते हैं तो व्यर्थ की हेकड़ी न रखें.

किलाकोट, मंदिर, महल, द्विज, छत्री, गज, बाज, ये दस ऊँचे चाहिए, बैद ईख अरु नाज. (बुन्देलखंडी कहावत) किले का परकोटा, मंदिर, महल, ब्राहण, क्षत्रिय, हाथी, घोड़ा, वैद्य, गन्ना, और अनाज के पौधे, ये दस चीजें जितनी ऊँची हों उतनी अच्छी मानी जाती हैं. बाज शब्द का अर्थ यहाँ घोड़े से है (घोड़े को बाजि भी कहते हैं). किलाकोट – किले का परकोटा.

किले के पीछे से और मंदिर के आगे से निकलना चाहिए. किले में आगे पहरेदार होते हैं जो आने जाने वालों से बदसलूकी करते हैं इसलिए किले के सामने से नहीं निकलना चाहिए. मंदिर के सामने से ही निकलना चाहिए जिससे भगवान के दर्शन हो सकें.

किस किस का मन राखिए, बीच राह में खेत. रास्ते से लगा हुआ खेत हो तो किसान की बड़ी मुसीबत होती है. रास्ता चलने वाले सभी परिचित लोग उस से कुछ न कुछ सुविधा चाहते हैं.

किस चक्की का पिसा आटा खाया है. मोटे आदमी का मजाक उड़ाने के लिए.

किस बिरते पर तत्ता पानी. आजकल तो सभी लोग गर्म पानी से नहाते हैं. पहले के जमाने में नहाने के लिए गरम पानी बिरले लोगों को ही मिलता था. कोई ऐरा गैरा आदमी गरम पानी मांग रहा है तो उस से पूछा जा रहा है कि तुम्हारे अंदर ऐसी क्या खास बात है कि जो तुम्हें गरम पानी दिया जाए. कोई अपात्र यदि विशेष सुविधाएँ मांगे तो.

किस में हिम्मत है जो छेड़े दिलेर को, गर्दिश में घेर लेते हैं कुत्ते भी शेर को. जब शेर के बुरे दिन आते हैं तो उसे कुत्ते भी घेर लेते हैं, वैसे मज़ाल है कोई उस के आस पास भी फटक जाए.

किसने खोदी और कौन पड़ा. खाई किसी और ने खोदी और कोई और. किसी के कुकर्मों का फल कोई और भुगते तो. 

किसान उपजाय, बनिया पाय, बनिक पूत खाय. किसान मेहनत कर के फसल उगाता है, बनिया उसे उधार वसूली के बहाने हड़प लेता है लेकिन कंजूस होने के कारण वह उस का उपभोग नहीं करता. अंततः बनिए का बेटा उससे गुलछर्रे उड़ाता है.

किसान को जमींदार जैसे बच्चे को मसान. किसान के लिए जमींदार उतना ही डरावना होता है जितना बच्चों के लिए प्रेत.

किसान चाहे वर्षा, कुम्हार चाहे सूखा. संसार में सभी व्यक्ति केवल अपना ही हित चाहते हैं. किसान भगवान् से प्रार्थना करता है वर्षा करने के लिए और कुम्हार प्रार्थना करता है वर्षा न करने के लिए.

किसी का ऊँचा मस्तक देखकर अपना मस्तक मत फोड़ लो. किसी की उन्नति देख कर ईर्ष्या से मत जलो. भोजपुरी में कहावत है – केहू के ऊँच लिलार देखि के आपन लिलार फोड़ी नाहीं लेहल जाला.

किसी का घर जले कोई हाथ सेंके. नीच स्वार्थी लोगों के लिए जो दूसरों के कष्ट में अपना लाभ ढूँढ़ते हैं.

किसी का चाम घिसे, किसी के दाम घिसें. कोई शरीर से मेहनत करता है कोई पैसा खर्च कर के काम कराता है.

किसी का मुँह चले किसी का हाथ (किसी की जीभ चलती है, किसी के हाथ चलते हैं). जो बोलने में तेज होता है वह बोली द्वारा दूसरे को कष्ट पहुँचाता है. जो बोलने में नहीं जीत पाता वह खिसिया कर हाथ उठाता है.

किसी का लड़का, कोई मन्नत माने. दूसरे की चीज़ के लिए आवश्यकता से अधिक चिंतित होना.

किसी की जान गई, आपकी अदा ठहरी. जो लोग कुटिल चाल चल कर मासूम बनने की कोशिश करते हैं उन पर व्यंग्य.

किसी की जोरू मरे, किसी को सपने में आवे. दूसरे के कष्ट में अनावश्यक भागीदारी.

किसी की साई किसी को बधाई. साई माने वह रकम जो कोई काम करने से पहले पेशगी ली जाती है. मतलब पैसा किसी से लिया, काम किसी और का कर रहे हो.

किसी के लिए कुआं खोदो तो अपने लिए खाई तैयार समझो. (खाई खने जो और को ताको कूप तैयार). जो दूसरों का बुरा करते हैं उनका बुरा अवश्य होता है.

किसी को अपना कर लो या किसी के हो के रहो. संसार में जीने का सर्वोत्तम रास्ता है प्रेम और बंधुत्व का.

किसी को तवे में दिखाई देता है, किसी को आरसी में. अपनी अपनी सामर्थ्य के अनुसार ही कार्य करना चाहिए. अगर हमारे पास आरसी नहीं है तो हम तवे में मुँह देख कर काम चलाएं.

किसी को बैंगन बाबरे, किसी को पथ्य समान. एक ही चीज़ किसी के लिए हानिकारक को सकती है और किसी के लिए लाभकारी. इंग्लिश में कहावत है – One man’s meat is another man’s poison.

किस्मत और औरतें, बेबकूफों पर मेहरबान. जो लोग जीवन में असफल रहते हैं वे आम तौर पर यह कहते पाए जाते हैं कि भाग्य ने उनका साथ नहीं दिया और भाग्य केवल मूर्खों का साथ देता है. इसी प्रकार जो लोग स्त्रियों को प्रभावित नहीं कर पाते वे भी ऐसा ही बोलते हैं. 

किस्मत किसी को तख़्त देती है किसी को तलवार. भाग्य से ही कोई सिंहासन पर बैठ जाता है और कोई तलवार के घाट उतार दिया जाता है. इस कहावत को इस प्रकार भी कहा गया है – तख़्त या तख्ता अर्थात भाग्य से ही सिंहासन और भाग्य से ही फांसी का तख्ता.

किस्मत दे यारी, तो क्यों हो ख्वारी. भाग्य से अच्छे मित्र मिल जाएँ तो बर्बादी क्यों हो.

किस्मत न दे यारी, तो क्यों करे फौजदारी. भाग्य में यदि दोस्ती नहीं लिखी है तो मारपीट तो मत करो.

किस्मत बहादुरों का साथ देती है. जो हिम्मत कर के आगे बढ़ता है, भाग्य भी उसी का साथ देता है.

किहूँ भांत सोहत नहीं, केहरि ससक विरोध. सोहत नहीं – शोभा नहीं देता, केहरि – सिंह, ससक – शशक (खरगोश). सिंह को खरगोश से लड़ना शोभा नहीं देता.

कीचड़ का आदी सूअर सफाई देख कर नाक भौं चढ़ाता है. जिस आदमी को गंदगी में रहने की आदत हो उसे सफाई अच्छी नहीं लगती. जिस आदमी के संस्कार घटिया हों उसे न्याय और धर्म की बातें अच्छी नहीं लगतीं.

कीड़ी (चींटी) को कन भर, हाथी को मन भर. ईश्वर सभी को उन की आवश्यकता के अनुसार देता है.

कीड़ी को तिनका पहाड़. चींटी के लिए तिनका भी पहाड़ के सामान है. छोटे आदमी के लिए छोटी छोटी समस्याएँ भी बहुत बड़ी होती हैं.

कीड़ी संचे तीतर खाय, पापी को धन पर ले जाय. चींटी जो इकठ्ठा करती है उसे तीतर खा जाता है. इसी प्रकार पापी का धन दूसरा ले जाता है. इस कहावत में एक बात गलत है. चींटी द्वारा मेहनत से इकट्ठे किए गए सामान की तुलना पापी के धन से की गई है.

कीर्ति के गढ़ कभी नहीं ढहते. ईंट पत्थर का बना किला समय के साथ ढह जाता है लेकिन सत्पुरुषों की कीर्ति अमर रहती है.

कुँआरे को भी ससुराल की याद आये. कोई व्यक्ति किसी ऐसी बात पर उदास हो रहा हो जिस से उसका कोई लेना देना न हो, तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.

कुँए की मिट्टी कुँए में ही लगती है. व्यापार से व्यक्ति धन कमाता है लेकिन उस में से अधिकतर धन व्यापार में ही लग जाता है. 

कुँए की मेंढकी क्या जाने समन्दर का फांट. संकुचित बुद्धि वाले लोग व्यापक सोच वाली बात नहीं समझ सकते.

कुँए में की मेंढकी करे सिन्धु की बात. जब कोई बहुत छोटी बुद्धि वाला आदमी बहुत बड़ी बड़ी बातें करे तो.

कुँए में पानी बहुतेरा, जो निकालो सो ही अपना. प्रकृति में संसाधनों की कमी नहीं है, उनका उपयोग करने वाला चाहिए.

कुँए से कुआँ नहीं मिल सकता. दो बड़े व्यक्ति अपने अपने अहम के कारण एक दूसरे से न मिलते हों तो उन पर व्यंग्य.

कुंआरों का क्या अलग गांव बसता है. समाज में अलग अलग प्रकार के लोगों की बस्तियाँ अलग नहीं होतीं, सब मिल जुल कर एक साथ ही रहते हैं.

कुंजड़न अपने बेरों को खट्टा नहीं बतावे. अपने माल की बुराई कोई नहीं करता.

कुंजड़न की अगाड़ी और कसाई की पिछाड़ी. सब्जी वाली ताजी सब्जी आगे लगाती है इसलिए उससे आगे वाला माल लेना चाहिए. कसाई ताजा गोश्त पीछे लगाता है इसलिए उससे पीछे वाला माल लेना चाहिए.

कुंजड़े का गधा मरे और तेली सर मुंडाए. दूसरे के दुख में अनावश्यक दुखी होना.

कुंद हथियार और किया भतार किसी के काम नहीं आते. किया भतार – ऐसा पुरुष जिससे स्त्री का विधिवत विवाह न हुआ हो (केवल पति मान कर साथ रहती हो). जिस प्रकार बिना धार वाला हथियार किसी काम का नहीं होता, उसी प्रकार माना हुआ पति किसी काम का नहीं होता. 

कुआँ पनघट बैठ के, गोड़ लिए लटकाय, पीठ मलावें सौत से, मरने करें उपाय. मूर्खतापूर्ण कार्य करने वालों के लिए. सौत अगर मौका पा कर जरा सा धक्का दे देगी तो सीधे कुएँ में जा पड़ेंगी.

कुआँ बेचा है कुएं का पानी नहीं बेचा. माल बेचने के बाद बेइमानी करना. इस के पीछे एक कहानी कही जाती है. गाँव के एक ठाकुर ने किसी बनिए को अपना कुआँ बेचा. जब बनिया कुँए से पानी निकालने पहुँचा तो ठाकुर ने कहा कि मैंने तुम्हें कुआँ बेचा है पानी नहीं बेचा है, पानी के लिए अलग से पैसा दो. बात पंचायत में पहुँची. सरपंच ने सारा माजरा समझ कर ठाकुर को सबक सिखाने के लिए फैसला दिया कि कुआँ बनिए का है और पानी ठाकुर का. ठाकुर को अपना पानी कुँए में रखने के लिए सौ रुपये रोज किराया देना होगा. 

कुआं खुदाया बावड़ी, छोड़ गया परदेस. ऐसे व्यक्ति के लिए जिसने ऐश्वर्य के साधन जुटाए लेकिन छोड़ कर चला गया या जाना पड़ा.

कुआं तेरी माँ मरी, कुआं तेरी माँ मरी. कुएं में मुंह डाल कर जो बोलोगे वही आवाज कुएं में से आएगी. वह कुछ सोच समझ कर जवाब नहीं देता है. जो लोग बिना समझे दूसरों की बात दोहराते हैं उन पर व्यंग्य (जैसे आजकल सोशल मीडिया पर बिना सोचे समझे मैसेज फॉरवर्ड करने वाले लोग). बड़े गुम्बद में बोलने पर भी वही आवाज आती है.

कुआंरा सब से आला, जिसके लड़का न साला (कुआंरा सब से आला है, न जोरू है न साला है). कुआंरेपन का अपना अलग ही आनंद है. 

कुआंरी को सदा बसंत. वैश्या के लिए व्यंग्य.

कुआंरी खाय रोटियाँ, ब्याही खाय बोटियाँ. लड़की की शादी के बाद माँ बाप की मुश्किलें और बढ़ जाती हैं. बेटी घर में हो तब तक तो केवल रोटी का ही खर्च होता है, उसकी शादी के बाद ससुराल वालों का पेट भरते भरते वे बर्बाद हो जाते हैं. (दुर्भाग्य से हिन्दुस्तान में आज भी ऐसे बहुत से घर हैं).

कुएँ में गिर कर कोई भी सूखा नहीं निकलता. उसी प्रकार जैसे काजल की कोठरी से कोई दाग लगाए बिना नहीं निकल सकता. संसार में आ कर सभी मोह माया में लिप्त हो ही जाते हैं.

कुएँ में नथ गिर गई, मैं जानूँ ननद को दे दी (खोई नथ ननद के खाते). खोई हुई चीज को दान किया हुआ मान लेना.

कुएं के मेंढक को कुआं जहान. संकुचित सोच वाला अपने संकुचित दायरे में ही खुश रहता है.

कुच बिन कामिनी, मुच्छ बिन जवान, ये तीनों फीके लगें, बिना सुपारी पान. स्त्री बिना स्तन के, युवा बिना मूँछ के और पान बिना सुपारी के आकर्षक नहीं लगते.

कुचाल संग फिरना, आप मूत में गिरना. गलत चाल चलन वाले के साथ रहने वाला अपनी दुर्गति स्वयं करता है.

कुचाल संग हांसी, जीव जाल की फांसी. गलत चाल चलन वाली स्त्री के साथ हंसी मज़ाक करना अपने लिए मुसीबत बन सकता है.

कुछ कमान झुके कुछ गोशा. गोशा – कमान का सिरा जिसमें तांत अटकाई जाती है. कोई कार्य करना हो या कोई मसला हल करना हो तो थोड़ी थोड़ी सब पक्षों को गुंजाइश करनी चाहिए.  

कुछ कर्मों से हीन, कुछ लच्छनों से हीन. जिस आदमी का भाग्य भी साथ न दे रहा हो और जो मेहनत भी न करना चाहता हो.

कुछ काम करोगे ना जी, जलपान करोगे हाँ जी. काम करने के नाम बहाने, खाने पीने को मुस्तैद.

कुछ खो कर ही सीखते हैं. मनुष्य धोखा खा कर ही सीखता है.

कुछ तुम समझे, कुछ हम समझे. दो लोग एक दूसरे की चालाकी के बारे में समझ जाएं तो.

कुछ तुम समझो, कुछ हम समझें. 1.किसी के साथ कोई सौदा या साझा करने से पहले दोनों ही लोगों को एक दूसरे को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए. 2. दो लोगों में अनबन हो तो दोनों को ही एक दूसरे की बात समझ कर कुछ झुकना चाहिए.

कुछ तो खरबूजा मीठा, कुछ ऊपर से कंद. एक साथ दो दो अच्छाइयाँ.

कुछ तो खलल है जिस से यह खलल है. कहीं भी कोई खराबी पैदा हो रही है तो उस के पीछे कोई न कोई कारण जरूर होता है.

कुछ तो गेहूँ गीली, ऊपर से जिंदरी ढीली. गेहूँ गीला है इसलिए पिसने में दिक्कत है ऊपर से चक्की की कीली (जिंदरी) ढीली है इसलिए और नहीं पिस पा रहा है. परेशानी में परेशानी.

कुछ तो बावली, कुछ भूतों खदेड़ी. एक तो बावली ऊपर से भूत बाधा से ग्रस्त. जैसे कोई मानसिक रोग से ग्रस्त हो और ऊपर से व्यापार में घाटे का तनाव हो जाए.

कुछ दिए कुछ दिलाए, कुछ का देना ही क्या है. उधार लेकर न देने वालों का कथन.

कुछ पाने की इच्छा हो तो पहले उसके लायक बनो. आदमी बहुत कुछ पाने की इच्छा करता है पर पहले उस वस्तु का उपयोग करने लायक बनना आवश्यक है. इंग्लिश में कहावत है – First deserve and then desire.

कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है. जीवन में कुछ प्राप्त करने के लिए त्याग भी आवश्यक है. इंग्लिश में कहावत है – You can’t make an omlette without breaking eggs.

कुछ लेना न देना मगन रहना. संसार में जो लोग इस नीति पर चलते हैं वे ही सबसे प्रसन्न रहते हैं.

कुछ लोग पैसे के मालिक होते हैंकुछ गुलाम. कुछ लोग पैसा कमाते हैं और उसे ठीक से उपयोग भी करते हैं, वे पैसे के मालिक कहलाते हैं, जबकि कुछ लोग केवल पैसे की रखवाली करते रहते हैं. कहावत के द्वारा यह बताने का प्रयास किया गया है कि मनुष्य को पैसे का गुलाम नहीं बनना चाहिए. इंग्लिश में कहावत है – If money is not thy servant, it will be thy master.

कुछ लोहा खोटा, कुछ लोहार खोटा. सामान भी घटिया हो और बनाने वाला भी अयोग्य हो तो माल कैसे बनेगा.

कुछ स्वार्थ कुछ परमार्थ. अपना भी ध्यान रखो और समाज के लिए भी करो. (घर में दिया जला कर मस्जिद में दिया जलाना). इस से मिलती जुलती एक कहावत इंग्लिश में भी है – Charity begins at home.

कुजात मनाया सर पर चढ़े, सुजात मनाया पांवों पड़े (सज्जन मनाए पैरों पड़े, दुर्जन मनाए सर चढ़े). नीच व्यक्ति की मान मनौवल करोगे तो और ऐंठ दिखाता है, सज्जन व्यक्ति को मनाओगे तो वह विनम्रता से झुक जाता है. 

कुटनी से तो राम बचावे, प्यार दिखा कर पत उतरावे. दुश्चरित्र स्त्री से बच कर रहना चाहिए, वह प्यार दिखा कर आपकी इज्ज़त उतार सकती है.

कुठले में दाना, मूरख बौराना. कुठला – अनाज रखने का बर्तन, बौराना – घमंड में पागल. ओछा व्यक्ति थोड़ी सी धन दौलत से ही बौरा जाता है.

कुठाँव का घाव, ससुर ओझा (कुठौर फोड़ा, ससुर वैद्य). किसी स्त्री के निजी अंग में घाव या फोड़ा हो और उसका ससुर ही वैद्य हो तो कितनी कठिन परिस्थिति होगी.

कुतिया के छिनाले में फंसे हैं. छिनाला – दुश्चरित्रता. किसी दुश्चरित्र स्त्री के दुष्चक्र में फंसे व्यक्ति के लिए.

कुतिया के पिल्ले, सब एक जैसे. नीच माता पिता की संतानें निम्न प्रवृत्ति की ही होती हैं.

कुतिया क्यूँ भूंसे, टुकड़ों की खातिर. कोई हाकिम ज्यादा गुर्राता है तो लोग कहते हैं कि टुकड़ा डाल दो.

कुतिया गई और पट्टा भी ले गई. बड़े नुकसान के साथ एक छोटा नुकसान भी.

कुतिया गई काशी (कुतिया चली प्रयाग). कोई चरित्रहीन या पापी आदमी पुण्यात्मा बनने का ढोंग करे तो उस का मजाक उड़ाने के लिए. 

कुतिया बैठी नांद में, न खाए न खाने दे. भैंस की नांद में कुतिया आ कर बैठ गई है, न तो खुद भुस खाएगी न किसी को खाने देगी. कोई ईमानदार हाकिम जो खुद भी घूस न खाए और किसी को खाने भी न दे उस से परेशान लोगों का कथन.

कुतिया मिल गई चोर से तो पहरा किसका होए (चोरों कुतिया मिल गई, पहरा दे अब कौन). जिस को आप ने पहरेदारी के लिए पाला है वही चोर से मिल जाए तो पहरा कौन देगा. जिस को गद्दी पर बिठाया वही नेता अगर दुश्मन से मिल जाए तो देश की रक्षा कैसे होगी.

कुत्ता अपनी पूँछ को टेढ़ी कब कहता है (कुकुर सराहे अपनी पूँछ). कोई भी व्यक्ति अपनी वस्तु को घटिया नहीं बताता.

कुत्ता अपनी ही दुम के चक्कर लगाता फिरे. निकृष्ट प्रवृत्ति के लोग केवल अपने स्वार्थ के विषय में सोचते हैं.

कुत्ता कपास का क्या करे. कपास कितनी भी उपयोगी वस्तु क्यों न हो, कुत्ते के किसी काम की नहीं है. कोई मूर्ख या ओछा व्यक्ति किसी बहुमूल्य वस्तु का उपहास कर रहा हो तो.

कुत्ता काटे अनजान के और बनिया काटे पहचान के. कुत्ता अपरिचित को काटता है और बनिया पहचान वाले की जेब काटता है.

कुत्ता कुत्ता भूंसे, राजा राजा चुप. यह एक प्रकार से बच्चों की कहावत है. कुछ बच्चे मिलकर किसी एक को चिढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. वह यह कहावत कह कर सबको चुप कर देता है.

कुत्ता घास खाय तो सभी न पाल लें. कहावत उस समय की है जब घास बहुत सस्ती मिलती थी और अक्सर लोग मुफ्त में भी खोद लाते थे (अब तो घास भी बहुत महँगी है). कुत्ते को दूध, रोटी, अंडा, मांस वगैरा खिलाना पड़ता है इसलिए उसे कुछ ही लोग पाल सकते हैं. अगर कुत्ता घास खाता होता तो सब पाल लेते.

कुत्ता चौक चढ़ाए, चपनी चाटन जाए. (कुत्ता चौक चढ़ाइए चाकी चाटन जाए). चौक चढ़ाना – विवाह के समय वस्त्राभूषण पहनाने के लिए कन्या को मंडप के नीचे बिठाना. कुत्ते का कितना भी आदर सत्कार या लाड़ प्यार करो, वह मौका देखते ही थाली चाट लेता है. नीच व्यक्ति का कितना भी सम्मान करो वह नीचता से बाज नहीं आता.

कुत्ता टेढ़ी पूंछरी, कभी न सीधी होय. कुत्ते की टेढ़ी पूंछ बारह साल पाइप के अन्दर रखी फिर भी टेढ़ी निकली. कोई ढीठ आदमी लगातार दंड देने से भी ठीक न हो रहा हो तो.

कुत्ता देखे आइना, भूंक भूंक पगलाय (कुत्ते ने आईना देखा, भौंक भौंक के मर गया). कुत्ता दर्पण में अपना प्रतिबिम्ब देख कर उसे दूसरा कुत्ता समझ कर खूब भौंकता है. मूर्ख व्यक्तियों का मजाक उड़ाने के लिए.

कुत्ता न देख, कुत्ते के मालिक को देख. कुत्ते की अहमियत कुत्ते के मालिक की अहमियत के अनुसार आंकी जाती है.

कुत्ता न देखेगा न भौंकेगा. कहावत में कानून की नज़र बचा कर चुपचाप अपराध करने की सलाह दी गई है.

कुत्ता पाए तो सवा मन खाए, नहीं तो दिया ही चाट कर रह जाए. कुत्ते को मिल जाए तो ढेर सारा खा लेता है और न मिले तो बेचारा दिये में लगा तेल चाट कर ही रह जाता है. गरीब और बेसहारा लोग ऐसे ही जीवन काटते हैं.

कुत्ता पाले और पहरा दे. पहरा देने को कुत्ता पाला और खुद पहरा दे रहे हैं. मूर्ख लोगों के लिए. इस आशय की इंग्लिश में कहावत है – Do not keep a dog and bark yourself.

कुत्ता पाले वह कुत्ता, कुत्ता मारे वो कुत्ता, बहन के घर भाई कुत्ता, ससुरे के घर जमाई कुत्ता, सब कुत्तों का वह सरदार, जो रहे बेटी के द्वार. पहले जमाने में कुत्ता पालने को निकृष्ट कार्य माना जाता था. (लोग गाय पालना पसंद करते थे). कुत्ते जैसे निरीह पशु को मारना भी निकृष्ट काम माना गया है. शादी शुदा बहन के घर यदि भाई रहे और दामाद ससुराल में रहे तो उन का सम्मान नहीं होता इस लिए उन्हें निकृष्ट बताया गया है. इन सबसे अधिक घटिया आदमी वह है जो बेटी के घर में रहे.

कुत्ता भी दो घर छोड़ के मूतता है. पालतू कुत्ता अपने घर के आगे कभी नहीं मूतता.जो अपने ही लोगों को धोखा दे या अपने ही इलाके में गंदगी फैला रहा हो उसको उलाहना देने के लिए.

कुत्ता भी बैठता है तो दुम हिला कर बैठता है. कुत्ता बैठने के पहले पूंछ हिला कर जमीन की मिट्टी को झाड़ कर साफ़ करता है. गंदे और आलसी लोगों को उलाहना देने के लिए.

कुत्ता भूँके हजार, हाथी चले बजार. हाथी जब बाज़ार में निकलता है तो कुत्ते खूब भौंकते हैं लेकिन हाथी पर इसका कोई असर नहीं होता. जब महान लोग कोई बड़ा काम कर रहे हों और घटिया लोग उनका विरोध करें तो यह कहावत कही जाती है.

कुत्ता भौंक भौंक कर मरे, मालिक को परवाह ही नहीं. निष्ठुर लोगों को अपने सेवकों के कष्टों की कोई चिंता नहीं होती.

कुत्ता भौंके, काफ़िला सिधारे. काफिला निकलता है तो कुत्ते भौंकते हैं, पर काफिला अपने रास्ते चलता जाता है. सामाजिक कार्य करने वाले संगठन मूर्ख निंदकों की चिंता नहीं करते.

कुत्ता मरे अपनी पीर, मियाँ मांगे शिकार. बहुत से लोग शिकार के लिए कुत्ता पालते हैं. कहावत में कहा गया है कि कुत्ता तो दर्द से मर रहा है और मियाँ को सिर्फ शिकार से मतलब है. नौकरों की तकलीफ न देख कर केवल अपना स्वार्थ देखना.

कुत्ता मरे तो चीलर भी मरें. किसी की मृत्यु होने पर उस पर आश्रित लोग बेसहारा हो जाते हैं. वे आश्रित चाहे मरने वाले का खून चूसने वाले ही क्यों न हों.

कुत्ता मुँह लगाने से सर चढ़े. नीच व्यक्ति को मुँह लगाने से वह सिर पर चढ़ता है.

कुत्ता मूते जहाँ जहाँ, सौ सौ गाली पाए. (बुन्देलखंडी कहावत) कुत्ता कभी जमीन पर नहीं मूतता, किसी वस्तु पर ही मूतता है और गाली खाता है. फिर भी अपनी आदत नहीं छोड़ता.

कुत्ता हो कर भी न भौंके. कुत्ता यदि भौंकेगा ही नहीं तो किस काम का. कोई कामचोर कर्मचारी अपने लिए नियत किए गए काम को करने में हीला हवाला करे तो.

कुत्ते और गोती गाँव गाँव में मिलें. कुत्ते और अपने गोत्र वाले हर गाँव में मिल जाते हैं.

कुत्ते का जोर गली में. कुत्ते का अधिकार क्षेत्र अपनी गली तक ही सीमित होता है. बदमाश और रंगबाज अपने अपने इलाके में ही प्रभावी होते हैं.

कुत्ते की छूत, बिल्ली को नहीं लगती. कुत्ते को यदि कोई छूत की बीमारी है तो वह उस से बिल्ली में नहीं फैलती. गलत काम करने वालों के अलग अलग ढंग होते हैं, वे एक दूसरे से नहीं सीखते.

कुत्ते की पूँछ में कितना भी घी लगाइए, वह टेड़ी की टेड़ी ही रहेगी. नीच व्यक्ति की कितनी भी सेवा करो या मक्खन लगाओ, वह खुश नहीं होता.

कुत्ते की पूंछ पे गठरी बंधी है. जिस को धन को उपयोग करना नहीं आता उस के पास धन हो तो क्या लाभ. कंजूस आदमी पर व्यंग्य.

कुत्ते की मार अढ़ाई घड़ी. कुत्ता मार खाने के बाद बहुत जल्दी भूल जाता है, और फिर ड्योढ़ी पर आ कर बैठ जाता है. जो व्यक्ति अपमान के बाद भी किसी के पीछे लगा रहे उस पर व्यंग्य.

कुत्ते की मौत आए तो मस्जिद में मूते. कुत्ता यदि मस्जिद में पेशाब करेगा तो धर्मांध लोग उसे मार डालेंगे. कभी कभी छोटी सी गलती भी मृत्यु का कारण बन सकती है.

कुत्ते की मौत आती है तब खोपड़ी में कीड़े पड़ते हैं. शरीर में और जगह कीड़े पड़ें तो कुत्ता उन्हें चाट चाट कर साफ़ कर देता है. सर में कीड़े पड़ें तो नहीं चाट पाता है. कहावत का अर्थ इस प्रकार कर सकते हैं कि मूर्ख व्यक्ति का विनाश नजदीक आता है तो उस के दिमाग में तरह तरह के कीड़े कुलबुलाने लगते हैं.

कुत्ते की सी झपकी. (कुत्ते की नींद) अत्यधिक चौकन्नी नींद.

कुत्ते के पाँव जा, बिल्ली के पाँव आ. काम को जल्दी से जल्दी करने के लिए.

कुत्ते को आटा दोगे तो क्या रोटी पकाएगा. जिस वस्तु की किसी व्यक्ति के लिए कोई उपयोगिता नहीं है उसे देने से क्या लाभ.

कुत्ते को काम न धाम पर फुरसत नाहीं. जो लोग कोई ठोस काम नहीं करते पर अपने को बहुत व्यस्त दिखाते हैं, उनका मजाक उड़ाने के लिए.

कुत्ते को घी नहीं पचता (कुत्तों को घी हजम नहीं होता). नीच आदमी को उत्तम विचार समझ में नहीं आते.

कुत्ते को टुकड़ा डालते तो क्यूँ भूँकता. नीच हाकिम को रिश्वत दे देते तो वह तुम पर नहीं गुर्राता.

कुत्ते को मस्जिद से क्या काम. मस्जिद में कुत्ते को कुछ नहीं मिलेगा, बल्कि मार खाने का डर है. ऐसी जगह जाने से क्या लाभ.

कुत्ते को हड्डी का ही चाव (कुत्ते को हड्डी ही अच्छी लगती है). नीच व्यक्ति को घटिया बातें ही अच्छी लगती हैं. घूसखोर को केवल घूस ही चाहिए होती है.

कुत्ते डाली इलायची, सूँघ सूँघ मर जाए. (बुन्देलखंडी कहावत) कुत्ते के सामने इलायची डालोगे तो खाएगा नहीं, सूँघता ही रहेगा. जो पारखी न हो उसे उत्तम वस्तु नहीं देनी चाहिए.

कुत्ते तेरा लिहाज नहीं तेरे मालिक का लिहाज है (कुत्ते ये तेरा मुँह नहीं तेरे मालिक का मुँह है). कुत्ता अपने मालिक के बल पर ही भौंकता है. कुत्ते की अहमियत उस के मालिक के अनुसार ही होती है.

कुत्ते भूंकें तो चन्द्रमा को क्या. नीच और ओछे लोग कितनी भी आलोचना करें, बड़े लोगों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता. 

कुत्ते वाली योनि पूरी कर रहा है. सनातन मान्यता के अनुसार मनुष्य को चौरासी लाख योनियों में भटक कर फिर मनुष्य का जन्म मिलता है. कोई व्यक्ति बहुत नीचता दिखा रहा हो तो लोग घृणा वश ऐसा बोलते हैं.

कुत्तों की टोली में आटे का दीपक कब तक टिके. कुत्ते मौका पा कर उसे खा ही जाएंगे.

कुत्तों के गाँव नहीं बसते. आपस में लड़ने झगड़ने के कारण. जो लोग आपस में बहुत लड़ते हों उन को उलाहना देने के लिए बड़े लोग ऐसा बोलते हैं.

कुत्तों के भौंकने से बादल नहीं बिखरते. क्षुद्र लोगों के शोर मचाने से बड़े बड़े काम नहीं रुकते.

कुत्तों को दूँ, पर तुझे न दूँ. किसी से बहुत घृणा करना.

कुत्तों में एका हो गंगा जी न नहा आवें. किसी भी समुदाय में एकता हो तो वे बड़े से बड़ा काम कर सकते हैं.

कुनबा खीर खाए और देवते राजी हों. श्राद्ध पक्ष में लोग पितरों को खुश करने की आड़ में खुद भी माल खाते हैं उस पर व्यंग्य.

कुबड़े वाली लात (कूबड़े लात, बन गई बात). किसी व्यक्ति ने गुस्से में आ कर कुबड़े की पीठ पर जोर से लात मारी तो उसकी कूबड़ ठीक हो गई. कोई किसी को नुकसान पहुँचाना चाहे और नुकसान के स्थान पर उस का काम बन जाय तब.

कुमानुस कहें काको, ससुराल में बसे बाको. एक बार भगवान राम अपनी ससुराल जनकपुरी गए. सास जी स्नेहवश उन्हें जाने नहीं दे रही थीं और इधर दशरथ जी को बेचैनी होने लगी. सीधे सीधे बुलावा भेजना मर्यादा के विरुद्ध था. तो जनक जी के पास एक चिट्ठी भेजी कि कृपया एक कुमानुष हमारे यहाँ भेज दीजिए. जनकजी के दरबार में तरह तरह के डोम, बहेलिए, भिश्ती, जुलाहे, सफाईकर्मी, मल्लाह इत्यादि बुलाए गए. सब ने कहा कि राजन, हम तो समाज के लिए बहुत उपयोगी मनुष्य हैं, हम कुमानुष कैसे हो सकते हैं. जनक जी ने पूछा, तो कुमानुष कौन हुआ. तब उन में से एक ने बताया – कुमानुस कहें काको, ससुरार में बसे ताको. राजा जनक फ़ौरन समझ गए कि राम का बुलावा है.

कुम्हार अपना ही घड़ा सराहता है. सब को अपना किया हुआ काम ही अच्छा लगता है.

कुम्हार का गधा, जिन के चूतड़ मिटटी देखे, उन्हीं के पीछे दौड़े. कुम्हार कच्ची जमीन पर बैठ कर काम करता है इसलिए उसके नितम्बों पर मिट्टी लग जाती है. कुम्हार के गधे ने किसी भी आदमी की धोती पे मिट्टी लगी देखी उसी को कुम्हार समझ कर उसके पीछे चल दिया. कहावत उन भोले भाले लोगों के लिए कही जा सकती है जो गेरुए वस्त्र पहनने वाले हर इंसान को महात्मा समझ कर उसके पीछे चल देते हैं.

कुम्हार की गधी, घर घर लदी (भाड़े की गधी, घर घर लदी). गरीब और लाचार आदमी पर सब काम लादते हैं.

कुम्हार के घर चुक्के का दुख (वासन का अकाल). जिस चीज़ की बहुतायत जहाँ होनी चाहिए उसी की कमी हो तो. चुक्का – कुल्हड़. वासन – बर्तन.

कुम्हार पे बस न चला, गधी के कान उमेठ दिए. सबल आदमी पर बस न चले तो निर्बल पर गुस्सा उतारना.

कुयश और मौत बराबर. इज्जतदार लोगों के लिए अपयश मृत्यु के समान है.

कुरमी कुत्ता हाथी, तीनो जात के घाती. कुर्मी, कुत्ता और हाथी अपनी जाति वालों को ही हानि पहुंचाते हैं. 

कुल और कपड़ा रखने से. कुल और कपड़े की अगर देखभाल नहीं होगी तो वे नष्ट हो जाएँगे.

कुलटा के यहाँ छिछोरे पहुंचेंगे ही. गलत काम करने वाले के यहाँ उसी प्रकार के लोगों का जमावड़ा होता है.

कुलिया में गुड़ नहीं फूटता. कुलिया (छोटा कुल्हड़) में रख कर गुड़ को तोड़ने की कोशिश करोगे तो कुलिया ही टूट जाएगी. अपर्याप्त साधनों से बड़े काम नहीं किए जा सकते.

कुलेल में गुलेल. पक्षियों का जोड़ा पेड़ की डाल पर बैठा किलोल कर रहा है कि किसी ने गुलेल चला दी तो रंग में भंग हो गया.

कुल्हड़ भरा और सीधी मायके. गरीब घर की लड़की यदि धनवान ससुराल में पहुँच जाए तो अपने मायके वालों के लिए बहुत कुछ करना चाहती है.

कूटनवारी कूटी गई, सास पतोहू एक भई. कूटनवारी – अनाज कूटने वाली. सास बहू की लड़ाई में अनाज कूटने वाली बीच में बोल दी. सास बहू फिर एक हो गईं और कूटने वाली पिट गई. दो लड़ने वालों के बीच में न बोलने की सलाह.

कूड़े घर की गाय, फिर कूड़े घर में. जिसको गंदगी प्रिय है वह गंदगी में रहना ही पसंद करता है.

कूद कूद मछली बगुले को खाए. असंभव बात. कोरी गप्प.

कूदने से पहले चलना सीखो. अर्थ स्पष्ट है.

कूदा पेड़ खजूर से राम करे सो होय. कोई व्यक्ति यदि कोई दुस्साहसिक फैसला ले तो.

कूदे फांदे तोड़े तान, ताका दुनिया राखे मान. 1. जो दिखावा करने की कला में माहिर हो दुनिया उसी की इज्ज़त करती है. 2. नृत्य की वास्तविक कलाओं के मुकाबले आजकल भौंडे नाच और हू हा को ज्यादा लोकप्रियता मिलती है.

कूवत थोड़ी मंज़िल भारी. ताकत थोड़ी बची है जबकि मंजिल अभी दूर है. सामर्थ्य कम है और काम बड़ा है.

कृपण के धन और स्त्री के मन को कोई न जाने. कंजूस के पास कितना धन है यह कोई नहीं जान सकता और स्त्री के मन में क्या है यह भी कोई नहीं जान सकता.

कृष्ण चले बैकुंठ को राधा पकड़ी बांह, यहाँ तम्बाखू खाय लो वहाँ तम्बाखू नांह. तम्बाखू खाने वाले अपने आप को धोखा देने के लिए तरह तरह की बातें बनाते हैं.

के पालत माय, के पालत गाय. बच्चा माँ का दूध पी कर पलता है या गाय का दूध पी कर. इसी लिए हमारे देश में गाय को इतना महत्व दिया गया है.

केका केका लेवें नांव, कमली ओढ़े सारा गाँव. अलग से किस किस का नाम लें. यहाँ तो सभी गलत हैं.

केतनो अहिर पिंगल पढ़े, बात जंगल ही की बोले. (भोजपुरी कहावत) पिंगल – छंद शास्त्र. अहीर को कितनी भी उच्च शिक्षा दे दो वह जंगल की बात ही करेगा.

केरा केकड़ा बिच्छू बाँस, इन चारों की जमले नाश. (भोजपुरी कहावत) जमला – संतान. केला, केकड़ा, बिच्छू और बांस, इन चारों की सन्तान ही इन का नाश कर देती हैं.

केवल मूर्ख और मृतक अपने विचार नहीं बदलते. मूर्ख लोग अपनी बात पर अड़े रहते हैं इस बात को अधिक जोर दे कर कहने के लिए इस प्रकार से कहा गया है.

केसर की करिहे कहा कीमत, है न परख जहाँ हरदी की. जिन लोगों को हल्दी की परख तक न हो उनसे केसर की कीमत समझने की उम्मीद कैसे की जा सकती है.

केसव केसन अस करी, जो अरिहू न कराहिं, मधुर वचन मृग लोचनी, बाबा कहि कहि जाहिं. केशव दास हिंदी के आरंभिक कवियों में से एक हैं. उन के बाल जल्दी सफेद हो गये थे. एक बार कुछ सुंदर स्त्रियों ने उनके बाल देख कर उन्हें बाबा कह कर सम्बोधित किया तो उन्होंने यह कविता कही.

केहरि फंसा पींजरे में, क्या कर लेगा बल से. शेर यदि पिंजरे में फंस जाए तो अपनी ताकत से नहीं निकल सकता. जहाँ बुद्धि काम आती है वहाँ बल काम नहीं आता.

केहि की प्रभुता न घटी, पर घर गए रहीम. दूसरे के घर जा कर (विशेषकर कुछ मांगने के लिए) सभी का मान घट जाता है.

केहू खाए खाए मुए और केहू बिना खाए मुए. (भोजपुरी कहावत) कोई ज्यादा खाने से मरे और कोई खाने के बिना मरे. कहीं पर किसी वस्तु की अधिकता और कहीं पर बहुत कमी. केहू -कोई, मुए – मरे.

केहू खाना खाय, केहू पैखाना जाय. करे कोई भरे कोई. 

केहू हीरा चोर, केहू खीरा चोर. (भोजपुरी कहावत) कोई बहुत बड़ी चीज़ का चोर है और कोई बहुत छोटी चीज़ का.

कै जागे जोगी कै जागे भोगी. योग साधना के लिए योगी जागता है और भोग भोगने के लिए भोगी जागता है.

कै जागे बेटी को बाप, कै जागे जाके घर में सांप. या तो वह व्यक्ति चिंता में जागता है जिस की बेटी ब्याह योग्य हो, या वह जागता है जिस के घर में सांप छिपा बैठा हो.

कै तो घोड़ा काटे नहीं, और काटे तो फिर छोड़े नहीं. सामर्थ्यवान व्यक्ति सामान्यत: क्रोध नहीं करता. और क्रोध करता है तो मटियामेट कर देता है.

कै तो जीभ संभाल, कै खोपड़ो संभाल. (हरयाणवी कहावत) जीभ उल्टा सीधा बोलती है तो खोपड़ी पिटती है. जीभ को संभाल लो वरना खोपड़ी को संभालना पड़ेगा.

कै तो बावली सिर खुजावै ना, खुजावै तो लहू चला ले. (हरयाणवी कहावत) बावला आदमी या तो कोई काम करेगा नहीं, और करेगा तो उसे रोकना मुश्किल.

कै तो बिगड़े कुपंथ से, कै बिगड़े कुपथ्य से. आदमी गलत राह पर चलने से विनाश को प्राप्त होता है या गलत भोजन से.

कै तो बिलुआ चले न, और चले तो मेंड़ की मेंड़ ढहावे. आजकल के लोगों ने हाथ से चलने वाली चक्की नहीं देखी होगी. चक्की चलती है तो उसके चारों तरफ आटे की ढेरी बनती जाती है और जैसे जैसे नया आटा पिस कर आता है पुरानी ढेरी ढह कर नई ढेरी बनती जाती है. ढेरी की तुलना यहाँ खेत की मेड़ से की गई है. कहावत में यह कहा गया है कि या तो चक्की का पाट चलता नहीं है और चलता है तो मेड़ की मेड़ ढहाता है. कोई भी काम शुरू तो बहुत मुश्किल से हो पर फिर खूब तेज़ी से चले तो यह कहावत कही जाती है. (देखिये परिशिष्ट)

कै तो लड़े कूकुर, कै लड़े गँवार. लड़ने भिड़ने का काम मूर्ख लोग ही करते हैं.

कै धन मिले धाए धाए, कै धन मिले पराया पाए, कै धन मिले नदी के कच्छ्न, कै धन मिले बहू के लच्छन. (बुन्देलखंडी कहावत) नदी के कच्छ्न – नदी किनारे की उपजाऊ जमीन. धन मिलता है या तो दौड़ भाग करने से, या कहीं पड़ा मिलने से, या नदी के कच्छ में खेती करने से, या अच्छे लक्षणों वाली बहू के घर में आने से.

कै मारे बदली की धूप, कै मारे बैरी को पूत. भादों की धूप मारती है या जिससे दुश्मनी हो उसकी संतान.

कै लड़े सूरमा, कै लड़े मूरख. आम तौर पर समझदार लोग लड़ाई भिड़ाई से दूर रहते हैं. या तो शूरवीर लोग लड़ना पसंद करते हैं या मूर्ख लोग जो अपना भला बुरा नहीं समझते.

कै सोवे राजा का पूत, कै सोवे योगी अवधूत. या तो राजा का पुत्र निश्चिन्त हो के सो सकता है (क्योंकि वह सब प्रकार से सुरक्षित होता है) या फिर योगी सन्यासी (क्योंकि उसे कोई सांसारिक चिंता नहीं होती).

कै हंसा मोती चुगे, कै भूखा रह जाए (लंघन करि जाय). ऐसा माना जाता है कि हंस केवल मोती चुगता है, गंदगी नहीं खाता. जो लोग उत्तम प्रकृति के होते हैं वे केवल उत्तम बातें ही ग्रहण करते हैं.

कैंची काटे ही काटे, सूई जोड़े ही जोड़े. जो लोग अच्छी मनोवृत्ति के है वे लोगों को जोड़ते हैं और जो दुष्ट प्रवृत्ति के होते हैं वे केवल लोगों में अलगाव पैदा करते हैं. 

कैर का ठूंठ टूट जाए पर झुके नहीं. नासमझ लोग परिस्थितियों से समझौता करना नहीं जानते.

को कहि सके बड़ेन सों होत बड़ी नहिं भूल, दी ने दई गुलाब की इन डारन पर फूल. दी – दैव (ईश्वर).बड़े लोग भी कभी कभी भूल करते हैं. भगवान ने भी गुलाब की काँटों भरी डालियों में इतने सुंदर फूल दिए हैं.

को न कुसंगति पाय नसाई. कुसंगति पा कर सभी नष्ट हो जाते हैं. नसाई – नष्ट हो जाता है.

को नृप होहिं हमें का लाभ. कोई भी राजा हो हमें क्या फायदा होगा. हम दासी की जगह रानी तो नहीं बन जाएँगी. जिस जमाने में राजा चुनने में प्रजा का कोई हाथ नहीं होता था तब तो यह सोच ठीक थी पर अब लोकतंत्र के जमाने में भी लोग ऐसी सोच रखते हैं जोकि ठीक नहीं है.

को नृप होहिं हमें का हानि. चेरि छांड़ि नहिं होऊ रानी. उपरोक्त की भांति.

कोइरी की बिटिया के न मैके सुख न ससुरारे सुख. कोइरी – सब्जी बोने वाला किसान. गरीब की बेटी को सभी जगह काम अधिक करना पड़ता है और सुख सुविधाएं कहीं नहीं मिलतीं.

कोइरी सिपाही न बकरी मरखनी. किसान योद्धा नहीं बन सकता जैसे बकरी मरखनी नहीं हो सकती.

कोई आँख का अंधा, कोई हिए का अंधा. कोई आँख का अंधा है और कोई हृदय का (भावना शून्य व्यक्ति).

कोई ओढ़े शाल दुशाला, कोई ओढ़े कम्बल काला. भाग्य से किसी को कम और किसी को बहुत मिलता है.

कोई काम करे दाम से, कोई दाम करे काम से. कोई पैसा खर्च कर के लोगों से काम कराता है और कोई अपने हाथों से काम कर के पैसा कमाता है.

कोई खींचे लांग लंगोटी, कोई खींचे मूंछड़ियाँ, कोठे चढ़ कर देत दुहाई, कोऊ मत करियो दो जनियाँ. किसी व्यक्ति की दो पत्नियाँ हैं. वह छत पर चढ़ कर लोगों को समझा रहा है कि कोई दो बीबियाँ मत रखना. कोठा – छत

कोई तोलों कम, कोई मोलों कम, कोई मोल में भारी, कोई तोल में भारी. सभी प्रकार के लोग होते हैं. कोई तोल में कम है (उस में गुण कम हैं) कोई मोल में कम है (उसके पास धन दौलत कम है). इसी प्रकार किसी में गुण और गंभीरता अधिक हैं और किसी के पास पैसा अधिक है.

कोई न बैरी कूकर बैरी. आप लाख कोशिश करें कि किसी से आपकी दुश्मनी न हो लेकिन कोई न कोई आपसे वैर भाव रखने वाला निकल ही आएगा. और कुछ नहीं तो मोहल्ले का कुत्ता ही बिना बात आप पर भौंकेगा.

कोई न मिले तो अहीर से बतलाय, कुछ न मिले तो सतुआ खाय. सत्तू को घटिया खाद्य पदार्थ माना गया है. कुछ न मिले तो मजबूरी में सत्तू खा कर काम चलाना चाहिए. इसी प्रकार अहीर से तभी बात करना चाहिए जब और कोई न मिले.

कोई निरखे चूड़ी कंघी, कोई निरखे मनिहारी. मनिहारी – स्त्रियों के श्रृंगार आदि का सामान (विशेषकर चूड़ियाँ) बेचने वाली महिला. किसी की सामान देखने में रूचि है तो कोई मनिहारी को ही निहार रहा है.

कोई मरे कोई अर्थी बनाए. कहीं पर मृत्यु होने से मातम हो रहा है और किसी को उससे जीविका मिल रही है.

कोई मरे कोई जीवे, सुथरा घोल बताशा पीवे. स्वार्थी लोगों के लिए. 

कोई माल मस्त, कोई हाल मस्त. कोई माल में मस्त, तो कोई ख़याल में मस्त. कोई धन संपदा में खुश है तो कोई कोरी कल्पनाओं में ही मस्त है.

कोई मुझे न मारे तो मैं किसी को नहीं छोड़ूँ. कायर आदमी का कथन.

कोई रोवे कोई मल्हार गावे (कोई मरे कोई मल्हार गावे). संसार में सब के दिन एक से नही होते. कोई प्रसन्न है तो कोई दुखी. इस कहावत का अर्थ इस प्रकार भी कर सकते हैं कि स्वार्थी लोगों को दूसरों का दुःख नहीं दिखता, वे अपने राग रंग में मस्त रहता हैं.

कोई लाख करे चतुराई, करम का लेख मिटे न रे भाई. व्यक्ति कितनी भी बुद्धिमत्ता दिखा ले, भाग्य के लिखे को नहीं मिटा सकता.

कोई साथ आवे नहीं कोई साथ जावे नहीं. इस संसार में न तो कोई साथ आता है, न कोई साथ जाता है.

कोई स्यान मस्त कोई ध्यान मस्त कोई हाल मस्त कोई माल मस्त. दुनिया में सब प्रकार के लोग हैं. कोई ख्यालों में ही मस्त है, कोई धन धान्य में खुश है, कोई जैसे भी हाल में है उसी में खुश है.

कोऊ काटे मेरी नाक और कान, मैं न छोडूँ अपनी बान. अत्यधिक हठी व्यक्ति.

कोऊ को कल्पाए के, कोउ कैसे कल पाए. कलपाना – पीड़ित करना, कल पाए – चैन पाए. किसी को पीड़ित कर के कोई कैसे चैन पा सकता है.

कोऊ लांगड़ कोऊ लूल, कोऊ चले मटकावत कूल. ऐसा समाज जहाँ सारे लोगों में कोई न कोई कमी हो.

कोख से जन्मा सांप भी माँ को प्यारा लगे. माँ को अपना बच्चा हमेशा प्यारा लगता है, चाहे वह कैसा भी हो.

कोटहिं रंग दिखावत है जब अंग में आवे भंग भवानी. भंग – भांग. भंगेड़ियों द्वारा भांग की महिमा का बखान.

कोटिन काजू दाख खवावे, ऊंटहिं काठ झंकाड़हि भावे. दाख – द्राक्ष (अंगूर, किशमिश). ऊंट को कितना भी काजू किशमिश खिलाओ उसे झाड़ झंखाड़ ही अच्छे लगते हैं. मूर्ख व्यक्ति उत्तम वस्तुओं का मोल नहीं जानता, उसे निकृष्ट वस्तुएं ही प्रिय होती हैं.

कोठी कुठले को हाथ न लगाओ, घरबार सब तुम्हारा. कोठी – अनाज रखने का मिटटी का बड़ा बर्तन. कुठला – पानी भरने का बड़ा बर्तन. मेहमान से कह रहे हैं कि खाने पीने की बात मत करो, घरबार सब तुम्हारा ही है. दिखावे का आतिथ्य. (देखिये परिशिष्ट) 

कोठी धोए कीच हाथ लगे. अनाज रखने के बर्तन को धोने से कीचड़ हाथ लगती है. (लेकिन तब भी यह आवश्यक काम है)

कोठी में चावल, घर में उपवास. धन धान्य भरपूर मात्रा में है तब भी घर के लोग भूखे हैं. प्रबंधन (मैनेजमेंट) में गड़बड़ी.

कोठी में धान तो मूढ़ में ज्ञान. घर में अनाज भरपूर मात्रा में हो तभी ज्ञान की बातें समझ में आती हैं.

कोठी वाला रोवे, छप्पर वाला सोवे. पैसे वाला आदमी हर समय चिंता में दुबला होता रहता है जबकि झोंपड़ी वाला चैन से सोता है.

कोठे से गिरा संभल सकता है, नजरों से गिरा नहीं. कोठा – छत. छत से गिरा आदमी उठ कर खड़ा हो सकता है लेकिन जो एक बार नजरों से गिर जाए वह नहीं.

कोढ़ मिट जाए पर दाग न जाए. एक बार इज्जत चली जाए तो वह बात दोबारा नहीं आती.

कोढ़ में खाज. परेशानी में परेशानी. 

कोढ़ी का टका भी मंदिर में चढ़ता है. 1. भगवान् के यहाँ सब बराबर हैं. 2. कोढ़ी से वैसे तो सब लोग छुआछूत मानते हैं पर पैसा उस के हाथ से भी ले लेते हैं.  

कोढ़ी का दिल शहजादी पर. अपनी हैसियत से बहुत अधिक इच्छा रखना.

कोढ़ी के जूँ नहीं पड़ती. लोक विश्वास है कि कोढ़ से ग्रसित व्यक्ति को जूँ नहीं होतीं. हालांकि बीमारी एक ईश्वरीय प्रकोप है और इस में कोढ़ी की कोई गलती नहीं होती फिर लोग उसे गन्दा और नीच मानते हैं. कहावत का अर्थ है कि नीच आदमी को छोटे मोटे कष्ट नहीं सताते.

कोढ़ी डराए थूक से. नीच आदमी अपनी नीचता से डराता है.

कोढ़ी मरे संगाती चाहे. संगाती माने साथ जाने वाला. कोढ़ी चाहता है कि वह मरे तो उस के साथ रहने वाला भी उसके साथ परलोक जाए. 

कोतवाल को कोतवाली ही सिखाती है. किसी भी व्यवसाय को करने वाला व्यक्ति उस काम को करके ही सीखता है.

कोदों का भात किन भातों में, ममिया सास किन सासों में. कोदों एक घटिया अनाज होता है. कोदों से बने भात की गिनती भातों में नहीं होती. इसी प्रकार ममिया सास जबरदस्ती की सास है, उसकी गिनती सासों में नहीं होती.

कोदों दे के नहीं पढ़े. कोदों जैसी घटिया चीज दे के पढ़े होते तो शिक्षक भी घटिया मिलता और शिक्षा भी घटिया मिली होती.

कोदों दे के पूत पढ़ाए, सोलह दूनी आठ. घटिया शिक्षा का घटिया फल.

कोदों परस के मट्ठे को गये. कोदों को पचाने के लिए मट्ठा आवश्यक होता है. कोई व्यक्ति कोदों को ठाली में परस कर मट्ठा मांगने गया है. ऐसे लोग जो योजना बना कर काम नहीं करते.

कोदों में घी खोवे, मूरख से दुख रोवे. कोदों जैसे घटिया अनाज में घी डालना बेकार है और मूर्ख व्यक्ति से अपना दुःख कहना भी बेकार है,

कोदों सबा अन्न न, धी दामाद धन्न न. कोदों और सबा घटिया प्रकार के अनाज हैं, जिन्हें लोग अन्न की श्रेणी में नहीं मानते हैं. कहावत में तुकबन्दी कर के दूसरी बात और बताई गई है जो इस से सम्बंधित नहीं है. पुत्री और दामाद व्यक्ति का धन नहीं होते (बेटी को पराया धन कहा गया है), जबकि पुत्र एक प्रकार का धन है. 

कोपीन की गिनती पोशाकों में. कोपीन जैसे न्यूनतम वस्त्र की पोशाकों में गिनती कैसे हो सकती है. कोई बहुत क्षुद्र व्यक्ति अपने को महत्वपूर्ण समझता हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.

कोमल डार ज्यों नमावो त्यों नमे. पेड़ या पौधे की कोमल डाल को जिस प्रकार मोड़ो मुड़ जाती है. इसी प्रकार छोटे बच्चे का मन कोमल होता है उसे किसी भी रूप में ढाला जा सकता है.

कोयल अम्बहिं लेत है, काग निम्बौरी लेत. कोयल मीठा आम खाती है जबकि कौवा कड़वी निम्बौली खाता है. हर व्यक्ति अपनी रूचि के अनुसार चीज़ चुनता है.

कोयल काले कौवे की जोरू. 1.बेमेल जोड़ा, क्योंकि कोयल सुरीली है और कौआ कर्कश. 2.उपयुक्त जोड़ा, क्योंकि दोनों काले हैं. 3.जहाँ पति पत्नी किसी अवगुण में एक से बढ़ कर एक हों.

कोयल की बोली कोयल क्या जाने. कोयल को अपनी बोली का मोल नहीं मालूम.

कोयला गर्म हो तो हाथ जलाए, ठंडा हो तो हाथ काला करे. नीच मनुष्य का साथ हर परिस्थिति में दुखदाई होता है.

कोयला होय न ऊजला, सौ मन साबुन धोय. चाहे सौ मन साबुन से धो लो, कोयला सफ़ेद नहीं हो सकता. दुष्ट व्यक्ति को सुधारने का कितना भी प्रयास कर लो वह नहीं सुधर सकता.

कोयले की दलाली में हाथ काले. आप कोई गलत काम स्वयं न भी करें, अगर उसमें बीच में भी पड़ते हैं तो आपको भी कुछ न कुछ बदनामी होने की संभावना रहेगी.

कोयले से हीरा, कीचड़ से फूल. कोयले जैसी घटिया चीज़ में से हीरा प्राप्त होता है और कीचड़ की गंदगी में कमल का फूल खिलता है. अति निर्धन या पिछड़ी पृष्ठभूमि से निकला व्यक्ति यदि उच्च स्थान प्राप्त कर ले तो.

कोरी का ब्याह, कड़ेरा हाथ जोड़े फिरे. कोरी – बुनकर, कड़ेरा – धुनिया (रुई धुनने वाला). किसी दूसरे के काम में आवश्यकता से अधिक रूचि दिखाना.

कोरी ठकुराई और बगल में कंडा. झूठ मूठ के ठाकुर. राजस्थानी कहावत – ठाली ठकुराई कांख में छाण.

कोरी नून की पोवे. केवल नमक की रोटी बनाता है. जो बिल्कुल बिना सिर पैर की गप्प हाँकता हो.

कोल्हू के बैल को साथी की क्या दरकार. यदि एक ही आदमी से काम चलता हो तो दो लोग क्यों लगाए जाएँ.

कोल्हू से खल उतरी, भई बैलों जोग. तिल में से तेल निकलने के बाद खल बचती है जोकि केवल बैलों के खाने के काम आती है. महत्वपूर्ण व्यक्ति अपना पद खोने के बाद गरिमाहीन हो जाता है.

कोस कोस पर पानी बदले, बारह कोस पे बानी.  हमारे देश में हर कोस पर पानी का स्वाद बदल जाता है और हर बारह कोस पर बोली में कुछ बदलाव आ जाता है.

कोस चली न, बाबा प्यासी. कोस भर भी नहीं चली और कहने लगी बाबा प्यास लग रही है. काम शुरू करते ही थकने का बहाना करना.

कोसे जिएँ, असीसे मरें. किसी को खूब कोसा गया फिर भी वह जीवित है, किसी को जुग जुग जीने की आशीष दी गई फिर भी वह मर गया. अर्थ है कि कोसने या असीस देने से कुछ नहीं होता, सब ईश्वर की मर्ज़ी से होता है.

कौआ अपने शिसुन को जानत सबसे सेत. सेत – श्वेत (यहाँ सुंदर से तात्पर्य है) कौए को अपने बच्चे सबसे सुंदर लगते हैं. हर जीव जन्तु को अपनी संतान प्रिय होती है (चाहे वह कैसी भी हो).

कौआ के कोसे ढोर न मरे. कौए के कोसने से ढोर (गाय, भैंस, बैल इत्यादि) नहीं मरते. उन अन्धविश्वासी लोगों को सीख दी गई है जो मंत्र तंत्र कर के किसी को हानि पहुँचाना चाहते हैं.

कौआ चला हंस की चाल, अपनी चाल भी भूल गया. दूसरों की नकल करने में हम उसके जैसा भी नहीं बन पाते हैं और अपनी वास्तविकता एवं मौलिकता को भी भूल जाते हैं.

कौआ जैसे पंख मोर का अपनी दुम में बांधे. फूहड़पने से किसी की नकल करना.

कौआ बोले बेसी, घर आवे परदेसी. कौवा यदि बार बार बोलता है तो घर में कोई मेहमान आता है.

कौए की चोंच में अंगूर, हूर के पहलू में लंगूर. यदि किसी लल्लू पंजू आदमी को बहुत सुंदर पत्नी मिल जाए तो दूसरे लोग ईर्ष्या वश यह कहावत कहते हैं.

कौए की दुम में अनार की कली. उपरोक्त के समान.

कौए की नजर तो रैंट पर ही. नीच व्यक्ति को निम्न कोटि की वस्तुएँ ही पसंद आती हैं. (कौआ नाक से निकली रैंट को बड़े शौक से खाता है).

कौए के साथ हंस का जोड़ा. बेमेल जोड़ा.

कौए को सोने के पिंजरे में मोती चुगाओ तो भी राजहंस नहीं हो सकता. अर्थ स्पष्ट है.

कौए धोए कहीं बगुले हुआ करें. किसी खुराफाती आदमी को सुधारने की बहुत कोशिश की गई पर वह खुराफाती ही रहा तो यह कहावत कही गई. कोई काला या असुंदर व्यक्ति सुंदर दिखने के लिए तरह-तरह के साबुन और लेप लगाए तो भी उसका मजाक उड़ाने के लिए यह कहावत कही जाती है.

कौए सब जगह काले ही काले. दुष्ट लोग सब जगह दुष्टता ही करते हैं.

कौए से भी गोरा. किसी अत्यधिक काले आदमी का मजाक उड़ाने के लिए.

कौओं के बजाए ढोल थोड़े ही फूटें. छोटे और महत्वहीन लोग बड़े व महत्वपूर्ण लोगों का कोई नुकसान नहीं कर सकते.

कौड़ी कौड़ी जोड़ के निधन होत धनवान, अक्षर अक्षर के पढ़े मूरख होत सुजान. अर्थ स्पष्ट है.

कौड़ी कौड़ी बचाओ, लाखों रूपए पाओ (कौड़ी कौड़ी धन जुड़े). छोटी छोटी बचत अंततः बहुत बड़ी बन जाती हैं.

कौड़ी गाँठ की, जोरू साथ की. कौड़ी वही काम की है जो गाँठ में हो (मतलब पैसा वही काम का है जो पास में हो), पत्नी तभी काम की है जब साथ हो.

कौड़ी नहीं गाँठ, चले बाग की सैर. अपने पास कुछ न होते हुए भी तरह तरह के शौक सूझना.

कौडी नाहीं गाँठ में, करे ऊँट की बात. पास में पैसा न होते हुए भी बड़ी बड़ी बातें करने वालों के लिए.

कौड़ी बिना दो कौड़ी का. जिस के पास पैसा न हो उसे कोई नहीं पूछता.

कौड़ी में हाथी बिकाय, पर कौड़ी तो हो. कोई महंगी चीज बहुत सस्ती मिल रही है लेकिन हमारे पास तो उतने पैसे भी नहीं हैं.

कौन कहे राजा जी नंगे हैं. एक राजा के दरबार में दो लोग आए और राजा से बोले कि वे देवताओं के वस्त्र बनाते हैं. राजा ने कहा कि मेरे लिए भी वस्त्र बनाओ. उन्होंने राजा से एक महीने का समय माँगा और बहुत सा सोना, हीरे जवाहरात और रेशम, मखमल वगैरा ले कर महल के एक कमरे में काम शुरू कर दिया. एक महीने बाद उन्होंने सभा बुलवाई और राजा से कहा कि हम आप को देवताओं के वस्त्र अपने हाथ से पहनाएंगे. वस्त्र तो ऐसे बने हैं कि जो देखेगा देखता रह जाएगा लेकिन इन वस्त्रों की एक विशेषता यह है कि ये उन्हीं लोगों को दिखाई देते हैं जो अपने बाप से पैदा हैं. उन्होंने राजा के कपडे उतरवाए और खाली मूली हवा में ही एक एक चीज़ राजा को पहनाने लगे. लीजिये महाराज यह मलमल का जांघिया, यह रेशम की धोती, यह हीरे मोती जड़ा कुर्ता आदि आदि. राजा को कुछ नहीं दिख रहा था लेकिन वह यह कैसे कहे. उसने सोचा कि हो न हो मैं अपने पिता महाराज की औलाद न हो कर किसी द्वारपाल की औलाद हूँ जो मुझे ये वस्त्र दिखाई नहीं दे रहे हैं. उन लोगों ने सब दरबारियों से पूछा कि कैसे लग रहे हैं महाराज के वस्त्र? सब ने एक स्वर से कहा अद्वितीय. जहाँ पर कोई गलत काम होता सब को दिख रहा हो पर कहने की हिम्मत कोई न जुटा पा रहा हो वहाँ यह कहावत कहते हैं.

कौन किसी के आवे जावे, दाना पानी खेंच लावे. कोई किसी के घर वैसे क्यों आएगा जाएगा, दाना पानी व्यक्ति को खींच लाता है.

कौन जाने किस विधि राजी राम. कोई नहीं जान सकता कि ईश्वर की इच्छा क्या है.

कौन सिखावत है कहो, राजहंस को चाल. राजहंस की चाल राजसी होती है. लेकिन यह उस का जन्मजात गुण है. हमारे कुछ गुण जन्मजात होते हैं.

कौन सुने किससे कहें, ऐसी आन पड़ी, किस किस को समझाइये, कूएँ भांग पड़ी. जहाँ सभी एक से बढ़ कर एक हों.

कौन से जनम का कर्म कौन से जनम में उघड़ आवे. कोई नहीं जानता कि किस जन्म में किया पाप या पुण्य किस जन्म में अपना फल दिखाएगा.

कौवा अपने बच्चों को ही सबसे सुंदर समझता है. अपने बच्चे सभी को सब से सुन्दर लगते हैं.

कौवा कहे कोयल काली. अपनी कमियों को न देख कर दूसरों की खामियाँ ढूँढना. इंग्लिश में कहावत है – The pot calls the kettle black.

कौवा कान ले गया. मूर्ख व्यक्ति से कुछ भी कहो वह विशवास कर लेता है. किसी व्यक्ति ने एक मूर्ख से कहा – देख! कौवा तेरा कान ले गया. मूर्ख तुरंत अपना कान टटोल कर देखने लगा या कौवे के पीछे दौड़ने लगा.

कौवा कोसे ढोर मरें तो रोज़ कोसे, रोज़ मारे, रोज़ खाए. कौए के कोसने से अगर ढोर (गाय भैंस आदि) मरने लगें तो कौया रोज कोस कोस कर उन्हें मार कर खाएगा. अन्धविश्वासी लोगों को सीख दी गई है.

कौवों की बरात में बड़े कौए की पूछ. निकृष्ट लोगों के यहाँ कोई आयोजन होता है तो सब से निकृष्ट आदमी की विशेष पूछ होती है.

क्या अंधे का सोना और क्या उसका जागना. अंधा व्यक्ति चाहे सोए चाहे जागे, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता.

क्या उल्लू और क्या उल्लू का पट्ठा. किसी मूर्ख व्यक्ति और उसकी मूर्ख संतान के लिए हिकारत भरे शब्द.

क्या करे नर बांकुरो, जब थैली को मुख सांकरो. धन के अभाव में योग्य व्यक्ति भी असहाय हो जाता है.

क्या कहूँ कछु कहा न जाए, बिन कहे भी रहा न जाए, मन की बात मन में ही रही, सात गाँव बकरी चर गई. एक चरवाहे ने किसी राजा की जान बचाई तो राजा ने उसे पत्ते पर सात गाँव का पट्टा लिख कर दे दिया. उसने यह बताने के लिए बड़ा खुश हो कर सब लोगों को इकठ्ठा किया. तब तक उसकी निगाह बचते ही बकरी उस पत्ते को खा गई. 

क्या कुत्ते का मगज़ खाया है. कोई आदमी बहुत बकवास करे उसके लिए. (कुत्ता बहुत भौंकता है इसलिए).

क्या तत्ते पानी से घर जले है. गरम पानी से शरीर जल सकता है लेकिन घर नहीं जल सकता. छोटी छोटी चीजें बहुत बड़ा नुकसान नहीं कर सकती हैं. 

क्या पता ऊँट किस करवट बैठे? अनिश्चितता की स्थिति में. (ऊँट के विशेष में यह नहीं पता होता कि वह किस तरफ बैठेगा).

क्या पिद्दी और क्या पिद्दी का शोरबा. पिद्दी एक छोटी सी चिड़िया होती है. किसी छोटे और कमजोर आदमी का मजाक उड़ाने के लिए.

क्या भरोसा है जिंदगानी का, आदमी बुलबुला है पानी का. जीवन का कोई भरोसा नहीं, पानी के बुलबुले की तरह क्षणभंगुर है. (पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात – कबीर)

क्या भूख को बासन. क्या नींद को ओढ़न. भूख लगी हो तो बिना बर्तनों के भी खाया जा सकता है और नींद आ रही हो तो बिना ओढ़नी के भी सोया जा सकता है.

क्या रखा इन बातों में, जूते ले लो हाथों में. जूते हाथों में लेने का अर्थ जूते ले कर भागने से भी है, जूते मारने से भी है. वैसे आम तौर पर इस कहावत को मजाक में प्रयोग करते हैं.

क्या ले गए राव और क्या ले गए उमराव. कोई कितना भी शक्तिशाली और सम्पन्न हो इस दुनिया से कुछ नहीं ले जा सकता.

क्या ले गया शेरशाह और क्या ले गया सलीमशाह. बड़े से बड़े लोग भी इस दुनिया से कुछ ले नहीं जा पाए. इसलिए किसी के साथ अन्याय करके धन कमाने का प्रयास नहीं करना चाहिए. 

क्या सासू जी अटको मटको, क्या मटकाओ कूल्हा, डोली पर से जब उतरूंगी, जुदा करूंगी चूल्हा. जो महिलाएं बेटे की शादी में बहुत नाच कूद रही हों उन को सावधान किया गया है.

क्या सौ रुपये की पूंजी, क्या एक बेटे की औलाद. जैसे सौ रुपये की पूंजी नाकाफ़ी है वैसे ही संतान के रूप में एक ही बेटा होना पर्याप्त नहीं है.

क्या हंसिया को बेच खाए, क्या खुरपी को गिरवी रखे. हंसिया को बेचने और खुरपी को गिरवी रखने से कितना पैसा मिल जाएगा. बहुत निर्धन व्यक्ति के लिए.

क्या हल्दी को रंग और क्या परदेसी को संग. जिस प्रकार हल्दी का रंग स्थायी नहीं होता उसी प्रकार परदेसी की प्रीत भी क्षणभंगुर होती है.

क्या हिजड़ों ने राह मारी है. क्या हिजड़ों ने तुम्हारी राह रोक ली थी. कोई काम न करने के लिए व्यर्थ के बहाने बनाने पर.

क्यों अंधा न्योता और क्यों दो बुलाए. कोई ऐसा काम करना जिसमें अनावश्यक खर्च शामिल हो.

क्यों कही और क्यों कहाई. न तुम कुछ कहते और न तुम्हें इतना सुनना पड़ता.

क्रोध की सबसे अच्छी दवा मौन है. अर्थ स्पष्ट है.

क्रोध विवेक का दुश्मन है. क्रोध में आदमी विवेक भूल जाता है. इंग्लिश में कहावत है – Anger is a short madness.

क्वांरी कन्या को सौ घर और सौ वर (क्वांरी कन्या सहस वर). ब्याहता स्त्री का तो एक ही वर होता है लेकिन क्वांरी कन्या के लिए सैकड़ों सम्भावित वर होते हैं. वैश्या के लिए भी व्यंग्य में ऐसा कहते हैं.

क्वार करेला चैत गुड़, भादों मूली खाय, पैसा खरचै गांठ को, रोग बिसावन जाय. क्वार में करेला, चैत में गुड़ और भादों में मूली खाना हानिकारक है. पैसा खर्च होता है और रोग भी आते हैं. घाघ ने इस तरह की बहुत सी बातें लिखी हैं जो उस समय के लोगों की स्वास्थ्य सम्बंधी मान्यताओं को दर्शाती हैं. आज के वैज्ञानिक युग में इन में से अधिकतर का कोई आधार नहीं है.

क्वार का सा झल्ला, आया बरसा चल्ला. क्वार के महीने में बहुत हल्की सी वारिश होती है (बहुत थोड़े समय के लिए). कोई व्यक्ति बहुत थोड़े समय के लिए आए तो मज़ाक में कहते हैं.

क्वार जाड़े का द्वार. क्वार के महीने के बाद जाड़ा आता है.

क्वारी को अरमान, ब्याही परेशान. कुंआरी लड़की अपने विवाह को लेकर तरह तरह के सपने देख रही है, जबकि विवाहिता स्त्री गृहस्थी की मुसीबतों से परेशान है.

 

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खंजर तले जो दम लिया तो क्या दम लिया. तलवार के साए में कौन चैन से बैठ सकता है.

खंबा गिरे छप्पर भारी. छप्पर को टिकाने वाला खंबा गिर जाए तो छप्पर भारी हो जाता है. घर के मुख्य कमाने वाले की मृत्यु हो जाए तो घर चलाना भारी पड़ने लगता है.

खग ही जाने खग की भाषा. चिड़िया की भाषा चिड़िया ही समझ सकती है. बच्चे की भाषा बच्चा समझ सकता है, जवान की भाषा जवान और बूढ़े की भाषा को बूढ़ा ही समझ सकता है.

खजुही कुतिया, मखमली झूल. खुजली वाली कुतिया के लिए मखमल की झूल. अपात्र को कोई बहुत बढ़िया चीज़ मिल जाना.

खजूर खाने हैं तो पेड़ पर चढ़ना पड़ेगा. कुछ पाने के लिए परिश्रम तो करना ही पड़ेगा.

खटमल के कारण खटिया मार खाय. खाट में खटमल हो जाएँ तो उन्हें निकालने के लिए जोर जोर से लाठी मारते हैं. गलत लोगों की संगत से मनुष्य हानि उठाता है.

खटिया में खटमल और गाँव में तुरक. खाट में खटमल और गाँव में मुसलमान परेशानी का कारण बनते हैं.

खट्टा खट्टा साझे में, मीठा मीठा न्यारा. जो फल खट्टा निकल गया उसको बाँट कर खाओ और जो मीठा है वह केवल मेरा है. निपट स्वार्थपरता.

खड़ा बनिया पड़े समान, पड़ा बनिया मरे समान. बनियों के डरपोक होने पे व्यंग्य.

खड़ा मूते लेटा खाय, उसका दलिद्दर कभी न जाय. जो आदमी खड़ा हो कर पेशाब करता है और लेट कर खाता है वह हमेशा दरिद्र ही रहेगा.

खड़ा स्वर्ग में गया. जिसकी मृत्यु चलते फिरते हो उसके लिए कहते हैं.

खड़ी आई, लेटी जाऊँगी. स्त्री का ससुराल वालों से कथन.

खड़ी खेती, गाभिन गाय, तब जानो जब मुँह में जाय. खेती पक कर तैयार खड़ी हो तो भी किसान बहुत खुश नहीं होता. जब फसल कट कर खलिहान में पहुँच जाए और खाने को मिल जाए तभी वह खुश होता है. इसी प्रकार गाय गर्भवती हो तो तब तक खुश नहीं होना चाहिए जब तक वह ब्याह न जाए और दूध पीने को न मिल जाए.

खतरा दो अंगुल, डर सौ अंगुल. खतरे से अधिक डर आदमी को परेशान करता है. 

खता करे बीबी, पकड़ी जाए बांदी. इसका अर्थ दो तरह से है. एक तो यह कि गलती कोई और करे और सजा किसी और को मिले. दूसरा यह कि बीबी से कुछ कहने की हिम्मत नहीं है इसलिए उसकी गलती की सजा बांदी को दे रहे हैं.

खता लम्हों ने की, सजा सदियों ने पाई. कुछ देखने में छोटी लगने वाली गलतियाँ बहुत लम्बे समय तक दुःख पहुँचाती हैं. गलती तो थोड़ी देर में ही हो जाती है लेकिन उसके परिणाम दूरगामी होते हैं. आजादी मिलने के समय जो गलतियाँ उस समय के नेताओं ने कीं उस का खामियाजा देश अब तक भुगत रहा है.

खत्री पुत्रम् कभी न मित्रम् (जब मित्रम् तब दगा ही दगा).खत्रियों के विषय में किसी दिलजले का कथन.

खत्री से गोरा सो पिंड रोगी. खत्री से गोरा कोई दिखाई दे रहा है तो हो न हो पीलिया का रोगी होगा. खत्रियों के गोरे रंग पर कहावत.

खन में तत्ते खन में सीरे.  खन – क्षण, तत्ता – गरम, सीरा – ठंडा. घड़ी घड़ी मिजाज़ बदलना.

खपरा फूटा, झगड़ा टूटा. जिस चीज को लेकर झगड़ा हो रहा है वह टूट जाए तो झगड़ा खत्म.

खर को गंग न्हवाइए, तऊ न छांड़े खार. कितना भी प्रयास करो, दुष्ट व्यक्ति अपनी दुष्टता नहीं छोड़ता.

खर, उल्लू औ मूरख नर सदा सुखी इस घरती पर. गधा, उल्लू और मूर्ख नर, इस धरती पर सदा सुखी हैं क्योंकि इन की कोई महत्वाकांक्षाएं नहीं होतीं. 

खरचे से ठाकुर बने. ठकुराई करने के लिए कुछ शान शौकत दिखानी पड़ती है.

खरब अरब लौं लच्छमी, उदै अस्त लौं राज, तुलसी हरि की भक्ति बिन, जे आवें किस काज. कितना भी धन हो और कितना भी फैला हुआ राज पाट हो, हरि की भक्ति के बिना सब बेकार हैं.

खरबूजा खरबूजे को देख कर रंग बदलता है. जो लोग दूसरों को देख कर रंग बदलते हैं उनका मज़ाक उड़ाने के लिए.

खरबूजा चाहे घाम को आम चाहे मेह, औरत चाहे जोर को और बालक चाहे नेह. खरबूजा तेज धूप में मीठा होता है और आम बरसात में. स्त्री पौरुष को पसंद करती है और बालक स्नेह को.

खरा कमाय खोटा खाय. ईमानदार आदमी कमाता है और बेईमान बैठ कर खाता है.

खरा खेल फरुक्खाबादी. सच्ची बात और ईमानदारी का काम.

खरादी का काठ काटे ही से कटता है. धीरे धीरे ही सही, काम करने ही से निबटता है और ऋण चुकाने से ही चुकता है.

खराब किराएदार से खाली मकान बेहतर. गलत आदमी को मकान किराए पर देने में बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

खरी मजूरी चोखा काम. नगद और अच्छी मजदूरी देने से काम अच्छा होता है.

खरे को बरकत ओर खोटे को हरकत. ईमानदार की उन्नति होती है और बेईमान का विनाश.

खरे माल के सौ गाहक. अर्थ स्पष्ट है. कहावत के द्वारा दूकानदारों को अच्छी गुणवत्ता वाला माल बेचने को प्रेरित किया गया है.

खरे सोने को कसौटी का क्या डर. सोना यदि शुद्ध हो तो कसौटी पर खरा ही उतरेगा. जो व्यक्ति निर्दोष है वह किसी से नहीं डरता.

खर्चा घना पैदा थोड़ी, किस पर बांधूं घोड़ा घोड़ी. आमदनी से अधिक खर्च है, किस बूते घोड़ा पाल लूँ. (घोड़ा पालना बहुत महंगा शौक है)

खल की दवा पीठ की पूजा. दुष्ट लोग पीटने से ही ठीक रहते हैं.

खल खाई और कुत्तों की झूठी. (बुन्देलखंडी कहावत) वैश्या के यहाँ जाने वाले से ऐसा कहा जाता है.

खलक का हलक किसने बंद किया है. जनता की आवाज़ को कोई नहीं दबा सकता.

खलक की जुबान, खुदा का नक्कारा. जनता की बात ईश्वर की आज्ञा. इंग्लिश में कहावत है – The voice of the people is the voice of God.

खलक गाल भरावे, पेट नहीं भरावे. खलक – संसार. संसार के लोग मुँह देखी बातें करते हैं, पर पेट भरने वाला कोई नहीं होता.

खली गुड़ एक भाव (खांड़ खड़ी का एक भाव). भारी अव्यवस्था की स्थिति. (घोड़े गधे एक भाव, टके सेर भाजी टके सेर खाजा). खराब शासन व्यवस्था.

खसम का खाए, भाई का गाए. पति बेचारा सारी सुख सुविधाएं मुहैया करा रहा है लेकिन गुणगान भाई का ही करेंगी. उन स्त्रियों के लिए जो हमेशा अपने मायके की ही तारीफ़ करती हैं.

खसम किया सुख सोने को, कि पाटी लग के रोने को. ससुराल में जो लड़की सुखी नहीं है उसका कथन.

खसम देवर दोनों एक ही सास के पूत, यह हुआ या वह हुआ. पति के मरने पर स्त्री को देवर से विवाह करने के लिए प्रेरित करने का प्रयास.

खसम मरे का गम नहीं, घरवाली का सपना सच होना चाहिए. एक स्त्री को यह गलतफहमी थी कि उस के सपने अवश्य सच्चे होते हैं. एक बार उस ने सपना देखा कि उस के पति की मृत्यु हो गई है. जागने पर उसने अपने पति को जीवित पाया तो वह बहुत दुखी हुई. लोगों ने कहा कि तुम्हें तो खुश होना चाहिए. तो वह बोली पति को चाहे कुछ भी हो मेरा सपना सच होना चाहिये. कितना भी नुकसान हो, अपनी मूर्खतापूर्ण सोच से चिपके रहना 

खसम मरे तो मरे सौतन विधवा होनी चाहिए. बहुत नीच प्रकृति के लोग हर हाल में दूसरे का बुरा चाहते हैं चाहे उस में अपना कितना बड़ा नुकसान क्यों न हो जाए.

खसम वाली रांड. ऐसी स्त्री जिसका पति उसकी कोई कद्र न करता हो.

खसम ही मारे तो किसके आगे पुकारे. अगर कोई स्त्री पर अत्याचार करता है तो वह सहायता के लिए अपने पति को पुकारती है, अगर पति ही उस पर अत्याचार करे तो वह किससे सहायता मांगे. यदि राजा या हाकिम ही अत्याचारी हो तो जनता किस की शरण में जाए. 

खा के मुँह पोंछ लिया. गलत काम कर के उसे छिपाना या मुकर जाना.

खा चुके खिचड़ी, सलाम चूल्हे भाई. जिस से मतलब निकल गया उसको विदा की नमस्कार.

खांड की रोटी, जहाँ तोड़ो वहीँ मीठी. अच्छी वस्तु हर प्रकार से अच्छी ही है.

खांड़ खून्देगा तो खांड़ खाएगा. जो परिश्रम करेगा उसी को फल मिलेगा. (खांड बनाने के लिए उसे पैरों से खूँदना पड़ता है).

खांड दही जो घर में होय, बांके नैन परोसे जोय, बा घर ही बैकुंठा होय. घर में बढ़िया खाद्य सामग्री हो और आग्रह कर के खिलाने वाली पत्नी हो तो घर में ही बैकुंठ धाम है.

खांड बिना सब रांड रसोई. जब चीनी बनाने के परिष्कृत तरीके ईजाद नहीं हुए थे तब गन्ने के रस से गुड़ और खांड बनाई जाती थी. फिर खांड को शुद्ध कर के उस से बूरा बनाने का रिवाज़ शुरू हुआ. इन चीजों से ही मिठाई आदि बनती थी. इसी लिए कहा गया कि खांड के बिना रसोई बेकार है. 

खांसी करूं खुर्रा करूं, फिर भी न मरे तो क्या करूं. बीड़ी व तम्बाखू का कथन.

खांसी, काल की मासी. लम्बे समय चलने वाली खांसी किसी गंभीर रोग का सूचक हो सकती है.

खाइए मन भाता, पहनिए जग भाता. इंसान को खाना तो अपने मन का खाना चाहिए पर पहनना वह चाहिए जो दूसरों को उसके ऊपर अच्छा लगे.

खाई दाल तबेले की, अक्कल होवे धेले की. तबेला माने घोड़ों के बाँधने का स्थान (अस्तबल). घोड़े को जब तबेला में रहने की आदत पड़ जाती है तो उस का दिमाग खराब हो जाता है. कहावत का अर्थ है कि सरकारी नौकरी लगते ही आदमी के दिमाग में सुरूर आ जाता है.

खाऊं कि न खाऊं तो न खाओ, जाऊं कि न जाऊं तो जरूर जाओ. जब मन में दुविधा हो कि इस समय खाना खाऊं या न खाऊं, तो उस समय नहीं खाना चाहिए. अगर यह दुविधा हो कि शौच जाऊं या न जाऊं तो चले जाना ज्यादा अच्छा है.

खाए के गाल और नहाए के बाल नहीं छिपते. जिस को भरपेट पौष्टिक आहार मिल रहा हो उस के गाल देख कर मालूम हो जाता है कि यह खाया पिया है. रिश्वत खाने वाले के लिए भी इस कहावत का प्रयोग कर सकते हैं. कहावत में तुक मिलाने के लिए नहाए हुए व्यक्ति के बाल भी नहीं छिपते यह भी जोड़ दिया गया है.

खाए गोप, कुटे जयपाल. अपराध कोई और करे, सजा किसी और को मिले.

खाए तो भेड़िए का नाम न खाए तो भेड़िए का नाम. कोई भी गलत काम हो तो लोग उन्ही पर शक करते है जो बदनाम हैं (चाहे उन्होंने वह काम किया हो या न किया हो).

खाए बकरी की तरह, सूखे लकड़ी की तरह. जो लोग खाते खूब हैं पर फिर भी दुबले पतले हैं उन के लिए.

खाए मुँह पचाए पेट, बिगड़ी बहू लजाए जेठ. गलत काम कोई करे और उस को सुधारने की कोशिश दूसरे को करनी पड़े तो. स्वाद के चक्कर में मुँह अंट शंट चीजें खाता है और पेट को वह सब पचाना पड़ता है, बहू गलत काम करती है और लज्जित जेठ को होना पड़ता है.

खाए सिपाही नाम कप्तान का. अधीनस्थ कर्मचारी रिश्वत लेते हैं तो भी हाकिम की बदनामी होती है.

खाए हुए को खिलाना आसान. 1.भरे पेट पर आदमी कम खाएगा. 2.जिस के विषय में पता हो कि वह रिश्वतखोर है उस को रिश्वत खिलाना आसान है.

खाएं भीम हगें शकुनि. काम कोई और करे, फल किसी और को मिले.

खाएगा तो हगेगा भी.  कर्म का फल अवश्य मिलेगा.

खाओ तो कद्दू से न खाओ तो कद्दू से. किसी को कद्दू पसंद नहीं है पर खाने के लिए केवल कद्दू की सब्जी ही है, मजबूरी में वही खानी पड़ रही है. पसंद की चीज़ न मिले और मजबूरी में दूसरी चीजों से काम चलाना पड़े तब यह कहावत कही जाती है.

खाओ दाल रोटी चटनी, कमाई कितनी भी हो अपनी. आमदनी अधिक हो तब भी सादगी से रहना चाहिए.

खाओ न पिओ, जुग जुग जिओ. झूठा आशीर्वाद देने वालों के लिए.

खाओ पकोड़ी पेलो दंड. जीवन को बिंदास जीने का संदेश.

खाओ यहाँ तो पानी पियो वहां. बहुत जल्दी जाओ.

खाक डाले चाँद नहीं छिपता. धूल फेंकने से चंद्रमा नहीं छिपता. महापुरुषों पर बेकार के लांछन लगाने से उनकी महानता कम नहीं होती.

खाक न खटाई, मुंडो फिरे इतराई. किसी के पास कुछ भी न हो फिर भी वह बहुत घमंड करे तो यह कहावत कहते हैं. किसी स्त्री की शक्ल सूरत कुछ खास न हो पर वह अपने को बहुत सुंदर समझ कर घमंड करती हो तो भी यह कहावत कही जाती है.

खाकर आवे आलस, नहा के होवे चौकस. खाना खा कर आलस आता है और नहाने के बाद स्फूर्ति. 

खाकर हगे, कबहुं न अघे.  कुछ लोगों की खाना खाते ही शौच जाने की आदत होती है. ऐसे लोगों का पेट कभी नहीं भरता.

खाके जल्दी चलिए कोस, मरिए आप दैव के दोस. खाना खाके फ़ौरन लम्बी दूरी चलना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है. (ऐसा करने वाला व्यक्ति अपनी गलती से मरता है और ईश्वर को दोष देता है).

खाज चली जाय, खुजाने की आदत न जाय. खुजली की बीमारी खत्म भी हो जाए तब भी खुजाने की आदत नहीं जाती. किसी भी चीज की आदत आसानी से नहीं जाती है.

खाज पर उँगली सीधी जावे. जहाँ खुजली हो रही होती है उँगली सीधे वहीँ जाती है. इस के लिए किसी को सिखाना नहीं पड़ता. यह बात आदमी ही नहीं जानवरों पर भी लागू होती है. शरीर को अपनी नैसर्गिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना प्रकृति सिखाती है. 

खाज से गंजी कुतिया, पूंछ में कंघी बांधे. जिस कुतिया के बाल खुजली के कारण गिर गए हैं वह पूंछ में कंघी बांधे घूम रही है. कोई व्यक्ति जिस शौक के लायक न हो उस तरह का शौक करे तो.

खाट खड़ी और बिस्तर गोल. किसी स्थान से कब्जा छोड़ने को मजबूर किया जाना. पहले जब चारपाई (खाट) का चलन था तो लोग चारपाई बिछा के उस पर बिस्तर बिछाया करते थे. चारपाई पर कब्ज़ा करने वाले आदमी को हटाने के लिए चारपाई खड़ी कर दी गई और बिस्तर को गोल कर दिया (लपेट दिया).

खाता जाए और खप्पर फोड़ता जाए. किसी चीज से अपना काम निकल जाने के बाद वह चीज किसी और के काम न आ जाए, ऐसी नीचता पूर्ण सोच रखने वाला.

खाता भी जाए और बड़बड़ाता भी जाए. जो लोग कभी खुश हो कर कोई काम नहीं करते, उन के लिए.

खातिन ईंधन को क्यूँ जाए, तेलिन रूखा क्यूँ खाए. खातिन – बढ़ई की पत्नी. बढ़ई को लकड़ी के छोटे टुकड़े और छीलन सहज ही उपलब्ध होती हैं और तेली को तेल की कमी नहीं होती.

खाते खाते भंडार नष्ट हो जाते हैं. अन्न या धन का कितना भी बड़ा भंडार हो, यदि आप उसमें कुछ जोड़ें नहीं और खर्च करते रहें तो वे एक दिन ख़त्म हो जाता है.

खाते पीते न मरे, आलस से  मर जाए. कोई व्यक्ति अधिक खाने से चाहे न मरे पर आलस्य से जरूर मर जाएगा.

खाद पड़े तो खेत, नहीं तो कूड़ा रेत. खाद से ही खेत फलता फूलता है.

खान तो खान, जुलाहा भी पठान. मुसलामानों में खान और पठान ऊंची जात के लोग माने जाते हैं और जुलाहा नीची जात का. कोई निम्न कोटि का व्यक्ति अपने को उच्च कोटि का दिखाने की कोशिश करे तो.

खान पान में आगे, काम काज से भागे. जो लोग खाने में सबसे आगे रहते हैं और काम के समय गायब हो जाते हैं.

खानदान है कि शिव जी की बारात. शिव जी की बरात में भयंकर शक्लों वाले उन के भूत और गण गए थे. किसी खानदान के सभी लोग भयंकर शक्लों वाले हों तो.

खाना कुखाना उपासे भला, संगत कुसंगत अकेले भला. (भोजपुरी कहावत) कुपथ्य खाने से भूखा रहना अच्छा है और बुरी संगत से अकेला रहना अच्छा है.

खाना घर में, भौंकना सड़क पे (खाना मन्दिर में, भौंकना मस्जिद में). जो आजीविका दे रहा हो उसका काम न कर के दूसरे का काम करना.

खाना थाली का, परोसना साली का. जहाँ सब लोगों को पत्तल में खाना मिल रहा हो वहाँ थाली में खाना मिलना विशेष आवभगत का सूचक है (विशेषकर दामाद को ऐसी सुविधा मिलती है) और ऐसे में परोसने वाली साली हो तो सोने में सुहागा.

खाना पराया है पर पेट तो पराया नहीं है. मुफ्त का मिल रहा हो तो इस का अर्थ यह नहीं कि इतना खा लो कि बीमार हो जाओ.

खाना सीरा को, मिलना वीरा को. खाना शीरे (हलवे) का सबसे उत्तम होता है और मिलना भाई का.

खाना, तिरिया, रुपैय्या, तीनों रखो छुपाए. जो खाना आप खाते हैं वह दूसरों को दिखा कर नहीं खाना चाहिए, इसी प्रकार अपने घर की स्त्रियों का और अपने पैसे का प्रदर्शन नहीं करना चाहिए.

खाने को ऊँट (शेर), कमाने को बकरी (खाने को बाघ, कमाने को मुर्गी). अर्थ स्पष्ट है.

खाने को चटनी, पलंग पे नटनी. घर में ठीक से खाने को तो है नहीं लेकिन वैश्या वृत्ति का शौक सूझ रहा है.

खाने को दाम नहीं नाम करोड़ीमल. नाम कुछ असलियत कुछ.

खाने को शेर, कमाने को बकरी. खाने में मजबूत कमाने में फिसड्डी.

खाने को हम और लड़ने को हमारा भाई. स्वार्थी और अवसरवादी लोगों के लिए. 

खाने में आगे, काम से भागे. ऐसे व्यक्ति के लिए जो खाने पीने के मौकों पर आगे रहता हो और काम पड़ने पर गायब हो जाता हो.

खाने में शरम क्या, और घूंसे में उधार क्या. खाने में शरम नहीं करनी चाहिए और मारपीट का बदला तुरंत चुकाना चाहिए.

ख़ामोशी नीम रज़ा. उर्दू में नीम का अर्थ है आधा और रज़ा का अर्थ है सहमति. यदि आप किसी बात का विरोध नहीं करते (विशेषकर अन्यायपूर्ण बात का) तो इसका अर्थ यह लगाया जाता है कि आप उससे सहमत हैं. इंग्लिश में कहावत है – Silence is half consent. संस्कृत में कहा गया है – मौन स्वीकृति लक्षणं. 

खाय कै मूते सोवे बाऊँ, काय को वैद बसावे गाऊँ. स्वास्थ्य के विषय में बहुत से लोक विश्वास प्रचलित हैं जिन में से एक यह भी है – खाना खा कर तुरंत मूत्र त्याग करे और बायीं करवट सोए तो व्यक्ति स्वस्थ रहता है (फिर वह गाँव में वैद्य क्यों बसाएगा).

खाय चना, रहे बना. चना खाने वाला लम्बे समय तक स्वस्थ रहता है.

खाय तो घी से, नहीं तो जाय जी से. दाल और रोटी में घी के बिना कोई स्वाद नहीं है. घी न मिले इस से तो अच्छा है कि जान चली जाए.

खाय न खरचे सूम धन, चोर सबै ले जाय. सूम – कंजूस. कंजूस अपना धन खर्च नहीं करता. अंततः चोर सब धन ले जाता है.

खाय पिए रोवे, वो प्रभु को खोवे. जो लोग सब तरह से संपन्न हैं फिर भी रोते रहते हैं उनसे ईश्वर नाराज़ हो जाता है.

खाय भी गुर्राय भी. नीच प्रवृत्ति के कृतघ्न लोगों के लिए कहा जाता है. उन हाकिमों के लिए भी जो रिश्वत लेते हैं फिर भी गुर्राते हैं.

खाया पिया अंग लगेगा, दान धर्म संग चलेगा, धन पड़ा-पड़ा जंग लगेगा. आदमी को अधिक धन संग्रह के लालच में नहीं पड़ना चाहिए. अच्छा खाओगे तो शरीर स्वस्थ होगा, दान करोगे तो पुन्य मिलेगा जो कि परलोक में साथ जाएगा. इकठ्ठा किया हुआ पैसा केवल जंग खाएगा.

खाया पीया एक नाम, मारा पीटा एक नाम. किसी के घर चाहे थोड़ा खाओ या अधिक, खाने वालों में नाम तो हो ही जाता है. इसी तरह किसी को चाहे थोड़ा पीटो या अधिक, मारने वालों में नाम तो आ ही जाता है. 

खाये बिना रहा जाय, पर कहे बिना न रहा जाय. जिन लोगों की बहुत बोलने की आदत होती है उन पर व्यंग्य.

खारा कड़वा गंधला, जो बरसेला तोय, खेती की हानी हुवे, देस नास भी होय. अगर कभी खारा, कड़वा या गंदा पानी बरसता है तो वह खेती को तो नुकसान करता ही है, देश के लिए भी यह अच्छा शगुन नहीं है. तोय – पानी.

खारे समन्दर में मीठा कुआं. बहुत से दुष्ट लोगों के बीच एक भला आदमी.

खाल उढ़ाए सिंह की, स्यार सिंह नहिं होए. अच्छे वस्त्र पहन लेने से या या दिखावा करने से कायर और मूर्ख पुरुष वीर या विद्वान नहीं बन सकते.

खाला खसम कराय दे, के मैं तो खुद हेरती फिरूं (खाला खसम करा दे, खाला खुद तलाश लें). खाला – मौसी., हेरती – ढूँढती. कोई लड़की मौसी से कह रही है कि मेरी शादी करा दो. मौसी कह रही हैं कि मैं तो खुद अपने लिए ढूँढ़ रही हूँ. जो स्वयं परेशानी में है वह दूसरे की सहायता क्या कर पाएगा.

खाली घर में चमगादड़ डेरा डाल लेते हैं. 1. खाली पड़ी जायदाद पर अनधिकृत लोग कब्ज़ा कर सकते है. 2. खाली दिमाग में तरह तरह के फितूर पैदा होते हैं.

खाली दिमाग शैतान का घर है. दिमाग अगर खाली होता है तो उसमें तरह-तरह के फितूर आते रहते हैं. इसलिए इंसान को कभी खाली नहीं बैठना चाहिए अगर आपके पास कोई धंधा पानी न हो तो कोई सामाजिक कार्य करें, भविष्य की योजना बनाएं, अच्छा साहित्य पढ़ें या किसी शौक में मन लगाएं. लंबे समय तक खाली न बैठें. इंग्लिश में इस प्रकार की कई कहावतें हैं – An idle brain is devil’s workshop.  Idleness is mother of all evil.

खाली बर्तन खटकते हैं. निठल्ले लोग बैठे बिठाए झगड़ा ही किया करते हैं.

खाली बोरा सीधा खडा नहीं हो सकता. बोरे में कुछ गेहूँ चावल आदि भरा होगा तभी वह सीधा खड़ा हो पाएगा. कहावत का अर्थ है कि खाली पेट रहने वाला व्यक्ति ईमानदारी से काम नहीं कर सकता या स्वाभिमान से नहीं जी सकता.

खाली लल्ला ही सीखा है दद्दा नहीं सीखा. लल्ला – ‘ल’, दद्दा – ‘द’. ल से लेना, द से देना. जो लोग केवल लेना जानते हैं, देना नहीं जानते. कुछ लोग इस कहावत में आगे यह और जोड़ते हैं – दद्दा के डर से दिल्ली को भी हस्तिनापुर बोले.

खाली हाथ मुंह की तरफ नहीं जाता है. हाथ में कोई खाने की चीज़ होगी तो वह अवचेतन रूप से ही मुँह में जाता है. हाथ खाली होगा तो नहीं जाएगा. प्रकृति सभी जीवों को यह सिखाती है.

खाविंद राज बुलंद राज, पूत राज दूत राज. पति के राज में स्त्री को जितना सुख मिलता है उतना पुत्र के राज में नहीं मिलता.

खावे जैसो अन्न, होवे तैसो मन्न. बेईमानी से पैदा किया हुआ अन्न खाओगे तो बुद्धि भ्रष्ट होगी और ईमानदारी की रोटी खाओगे तो मन निर्मल रहेगा.

खावे पान, टुकड़े को हैरान. घर में खाने को नहीं है और पान खाने जैसा फालतू शौक करने की सूझ रही है.

खावे पूत, लड़े भतीजा. खाना पीना खाने और जायदाद का सुख भोगने के लिए तो बेटा है और खतरे उठाने के लिए भतीजे को आगे करना चाहते हैं.

खावे पौना, जीवे दूना. कोई व्यक्ति जितना खा सकता है उससे पौना (तीन चौथाई) ही खाने की आदत डाल ले तो वह लंबे समय तक जियेगा.

खावे मोट, तोड़े कोट. मोटा अनाज खाने से अधिक ताकत आती है. तोड़े कोट – किला तोड़ देते हैं.

ख़ास ख़ास को टोपली, बाकी को लंगोट. कुछ चुने हुए लोगों को टोपी दी गयी परन्तु शेष लोगों को लंगोट ही मिला.  कुछ विशेष चयनित लोगों का तो सम्मान किया गया परन्तु शेष लोगों को जैसे-तैसे ही निपटा दिया गया.

खिचड़ी की तारीफ़ कर दी तो दांतों में चिपक गई. किसी की तारीफ़ करने से वह गले पड़ जाए तो.

खिचड़ी खाते नीक लागे और बटुली माजत पेट फटे. (भोजपुरी कहावत) खिचड़ी खाते समय अच्छी लगती है और बरतन धोते समय बहुत परेशानी होती है. सुविधाएँ सब चाहते हैं पर काम कोई नहीं करना चाहता.

खिचड़ी खाते पाहुंचा उतरा. बहुत नाज़ुक व्यक्ति का मज़ाक उड़ाने के लिए. पाहुंचा – कलाई. 

खिचड़ी तेरे चार यार, घी, पापड़, दही, अचार. खिचड़ी खाने का असली मज़ा इन चार चीजों के साथ है.

खिदमत से अज़मत है. बड़ों की सेवा करके ही आप संपन्न बन सकते हैं. इसका अर्थ यह भी हो सकता है कि चमचागिरी कर के ही रुतवा मिल सकता है. (खुशामद से ही आमद है). 

खिलाए का नाम नहीं, रूलाए का नाम. आप किसी के बच्चे को कितनी भी देर खिलाएं और बहलाएं उसका कोई श्रेय नहीं मिलता, अगर बच्चा रो दिया तो माँ कहेगी कि बच्चे को रुला दिया.

खिसियाई कुतिया भुस में ब्याई, टुकड़ा दिया काटने आई. कोई व्यक्ति खिसिया रहा हो और जो उस की सहायता करना चाहे उसी को बुरा भला कह रहा हो उस का मजाक उड़ाने के लिए. 

खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचे. चूहा बिल्ली की पकड़ से निकल कर भाग गया तो बिल्ली खिसिया कर खम्बे को नोचने लगी. काम न होने पर कोई व्यक्ति खिसिया रहा हो तो यह कहावत बोलते हैं.

खीर खीचड़ी मंदी आंच. खीर और खिचड़ी मंदी आंच पर अच्छी बनती हैं.

खीर पूड़ी खाएं और देवता को मनाएं (घर वाले खीर खाएँ और देवता राजी हों). पहले के लोगों ने भगवान को प्रसन्न करने के लिए व्रत रखने का विधान बनाया जिसमें व्यक्ति दिन भर भूखा रह कर केवल एक बार रूखा सूखा भोजन करता था (यह एहसास करने के लिए कि गरीब कितनी कठिनाई से जीवन बिताते हैं). आजकल के ढोंगी भक्त व्रत रखने का नाटक करते हैं जिसमे वे दिन भर भी कुछ न कुछ खाते पीते रहते हैं और शाम को खूब पकवान खाते हैं.

खीरा खाए ओस में सोवे, ताको वैद कहां तक रोवे. खीरे को लोग ठंडी तासीर वाला मानते थे. कोई आदमी खीरा खा कर ओस में सो जाए तो बीमार पड़ेगा ही, वैद्य इसमें क्या कर सकता है. 

खीरा सिर तें काटिए, मलियत नमक बनाय, रहिमन करुए मुखन को, चहिअत इहै सजाय. खीरे का सर काट के नमक लगा मलते हैं जिस से उसकी कड़वाहट दूर हो जाए. जो लोग कड़वा बोलते हैं उनके साथ भी ऐसा ही व्यवहार होना चाहिए.

खील बताशों का मेल. दो अच्छी चीजों का मेल.

खुजली तो खुजलाने से ही मिटती है. व्यक्तिगत आवश्यकताएं स्वयं अपने करने से ही पूरी होती हैं.

खुद करे तो खेती, नहीं तो बंजर हैती. खेती खुद करने से ही कामयाब होती है. दूसरों के ऊपर छोड़ देने से खेत बंजर हो जाता है.

खुद तो दान दे नहीं, देने में अड़ंगा लगाए. दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों के लिए.

खुद राह राह, दुम खेत खेत. खुद सड़क पर चल रहे हैं और पूँछ खेत में है. निहायत ही फूहड़ और बेतरतीब आदमी के लिए.

खुद ही नाचे खुद ही न्योछावर करे (बलैयां ले). अपनी प्रशंसा स्वयं करना.

खुदा का दिया कन्धों पर, पंचों का दिया सर पर. पंचों की आज्ञा ईश्वर की आज्ञा से बड़ी है. 

खुदा का मारा हराम, अपना मारा हलाल. मांसाहारी लोग अपने आप से मरे हुए जानवर का मांस नहीं खाते बल्कि इंसान द्वारा मारे हुए जानवर का मांस ही खाते हैं.

खुदा किसी को लाठी ले कर नहीं मारता. ईश्वर किसी को दंड देता है तो लाठी ले कर नहीं मारता.

खुदा की खुदाई को कौन जाने. अकबर ने बीरबल के सामने ऐसा बोला तो बीरबल ने कहा, जहांपनाह मैं जानता हूँ. अकबर ने चिढ़ कर कहा, अच्छा! मुझे भी दिखाओ. बीरबल उसे यमुना के किनारे ले गए और यमुना की तरफ इशारा कर के बोले, हुजूर! यह खुदा ने खुदाई है या आप ने. 

खुदा की चोरी नहीं तो बंदे का क्या डर. यदि हम ईश्वर के आगे सच्चे हैं तो मनुष्य से क्यों डरें.

खुदा की बातें खुदा ही जाने. ईश्वर के मन में क्या है यह ईश्वर ही जान सकता है.

खुदा के घर में चोर का क्या काम. चोर बदमाश लुटेरे आसानी से नहीं मरते (उनकी जरूरत वहाँ भी नहीं है).

खुदा दो सींग दे तो भी सहे जाते हैं. ईश्वर कुछ भी दे उसे सहर्ष स्वीकार करना पड़ता है. 

खुदा ने गंजे को नाख़ून नहीं दिए हैं. वैसे तो इस कहावत का अर्थ स्पष्ट है लेकिन इसका एक बहुत आश्चर्यजनक पहलू भी है. एक बहुत बिरली बीमारी होती है Anonychiya जिसमें जन्म से नाखून नहीं होते. ऐसे ही एक बीमारी होती है जिसमें सर पर या सारे शरीर पर बाल नहीं होते (Alopecia totalis). ये बीमारियाँ जेनेटिक गड़बड़ी के कारण एक साथ भी हो सकती हैं. इस तरह के किसी बच्चे को देख कर किसी सयाने व्यक्ति ने मजाक में कहा होगा कि देखो इस गंजे को खुदा ने नाखून भी नहीं दिए हैं नहीं तो वह खुजा खुजा के अपनी खोपड़ी लहुलुहान कर लेतातभी से यह कहावत बनी होगी. 

खुदा ने जवाब दे दिया है, बेहयाई से जीते हैं. कोई अत्यधिक वृद्ध व्यक्ति परिवार और समाज पर बोझ बना हुआ हो तो यह कहावत कही जाती है.  

खुदा मेहरवान तो गधा पहलवान (किस्मत मेहरबान तो गधा पहलवान). कोई पढ़ाई में पीछे रहने वाला बंदा यदि सिफारिश के बल पर अच्छी नौकरी पा जाए तो उससे ज्यादा काबिल लोग कुढ़ कर यह कहावत बोलते हैं. इंग्लिश में कहावत है – God sends fortune to fools.

खुदा लड़ने की रात दे, बिछड़ने का दिन न दे. पति पत्नी, दोस्त या रिश्तेदार आपस में थोड़ा लड़ लेते हैं पर बिलकुल बिछड़ना नहीं चाहते.

खुदी और खुदाई में बैर है. जिसके अन्दर अहम् है ईश्वर उससे प्रसन्न नहीं होता.

खुर तातो, खर मातो. बैसाख में मौसम बदलने के साथ जैसे ही गधे के खुर गरम होते हैं वैसे ही उस पर मस्ती छाने लगती है.

खुरचन मथुरा की, और सब नक़ल. खुरचन एक दूध की मिठाई का नाम है जोकि मथुरा की सबसे बढ़िया होती है. किसी बढ़िया और असली चीज़ की तारीफ़ करने के लिए यह कहावत कहते हैं.

खुले घर में धाड़ नहीं, निर्जन गांव में राड़ नहीं.  (राजस्थानी कहावत)धाड़ – डाका, राड़ – झगड़ा. अर्थ स्पष्ट है. 

खुले मांस पर मक्खी तो बैठेगी ही. अपनी चीज़ की परवाह नहीं करोगे तो अवांछित तत्व उस का फायदा उठाएंगे ही.

खुशामद किसे कड़वी लगती है. खुशामद और तारीफ़ सब को अच्छी लगती है. अगर आप यह जानते हैं कि सामने वाला अपने स्वार्थ के लिए आपकी खुशामद कर रहा है तब भी आप खुश होते हैं. राजस्थानी कहावत है – खुसामद किसे खारी लागै.

खुशामद खरा रोजगार. खुशामद सबसे सच्चा व्यापार और सफलता का मन्त्र है.

खुशामद से ही आमद है. जो दूसरों की खुशामद करना जानते हैं वही जीवन में सफल होते हैं.

खुशामद से ही आमद है, इसलिए बड़ी खुशामद है. खुशामद से सब कार्य सिद्ध हो जाते हैं, इसीलिए खुशामद बड़ी चीज है.

खुशामदी का मुँह काला. जो व्यक्ति अयोग्य होते हुए भी दूसरों की खुशामद कर के आगे बढ़ जाता है, उसे कभी न कभी नीचा देखना पड़ता है. 

खुसरो दरिया प्रेम का उल्टी बाकी धार, जो उतरा सो डूब गया जो डूबा सो पार. प्रेम की गति अजीब होती है. (अमीर खुसरो ने हिंदी में बहुत सी लोकप्रिय पहेलियाँ लिखी हैं और कुछ कहावतें भी बनाई हैं जिनमें से एक यह भी है). 

खूंटे के बल बछड़ा कूदे (खूंटे के बल बछड़ा नाचे). कमजोर आदमी दूसरे की शह पर ही बोलता है.

खूंटे बंधा बछड़ा गाय की राह देखे. जिसका जिससे कार्य सिद्ध होता हो वह उसी की राह देखता है.

खून सर चढ़ कर बोलता है. (खून वह जो सर चढ़ कर बोले). 1. किसी का खून किया गया हो तो सबूत अपने आप बोलते हैं. 2. खून के रिश्ते सर चढ़ के बोलते हैं.

खूब कीचड़ उछालो, दाग तो लगेगा ही. किसी के ऊपर बिना किसी सबूत के भी अगर खूब कीचड़ उछालोगे तो कुछ न कुछ दाग तो लगेगा ही. इंग्लिश में कहते हैं – Fling dirt enough and some will stick.

खूब गुजरेगी जब मिल बैठेंगे दीवाने दो. दो दोस्त मिल कर बैठते हैं तो खूब मस्ती होती है.

खूब दुनिया को आजमा देखा, जिसको देखा तो बेवफा देखा. ईमानदारी और कृतज्ञता बहुत कम लोगों में मिलती है.

खूबसूरती गहनों की मोहताज नहीं. जो वास्तव में सुन्दर है उसको सुन्दर दिखने के लिए आभूषणों की आवश्यकता नहीं होती.

खेत को खोवे गेली, साधु को खोवे चेली. गेली – खेत में से हो कर जाने वाला रास्ता. खेत अगर छोटा हो और उस में से भी रास्ता निकाल दिया जाए तो खेत में बचेगा ही क्या. कहावतों में तुक बंदी करने के लिए अक्सर कोई दूसरी बात साथ में जोड़ दी जाती है. इस कहावत में भी यह बात जोड़ दी गई है कि चेली के मोह में पड़ जाने से साधु की साख धूमिल हो जाती है.

खेत खाय गदहा, मार खाय जुलहा. गधा यदि किसी का खेत चरे तो उस को पालने वाले जुलाहे को मार पड़ती है. जब अपने से सम्बन्धित किसी व्यक्ति की गलती का दंड किसी को भुगतना पड़े तो.

खेत खाय पड़िया, भैंस का मुँह झकझोरा जाय. .बच्चों की गलती की सजा उन के माँ बाप को भुगतनी पडती है.

खेत बिगाड़े खरतुआ और सभा बिगाड़े दूत. दूत से अर्थ यहाँ चुगलखोर है. खरतुआ – खरपतवार जो खेत में अपने आप उगती है.

खेत बिगाड़े सौभना, गांव बिगाड़े बामना. सौभना – बन ठन के घूमने वाला. इसका अर्थ है कि जो व्यक्ति अपने कपड़ों पर ज्यादा ध्यान देता है वह व्यक्ति खेत को बिगाड़ देता है. कहावत की दूसरी उक्ति है कि ब्राह्मण गांव को बिगाड़ता है. यह उक्ति सम्पूर्ण ब्राहमण वर्ग के लिए न हो कर केवल लालची पंडितों को लक्ष्य कर के कही गई है.

खेत भला न झील का, घर अच्छा नहिं सील का. झील के किनारे का खेत अच्छा नहीं होता क्योंकि झील में पानी बढ़ने से उसके डूबने का डर रहता है. जिस घर में सीलन हो वह घर भी अच्छा नहीं होता.

खेत में तरकारी को बघार नहीं लगता. हर कार्य के लिए अलग अलग स्थान उपयुक्त होते हैं.

खेत में बुरी नाली और घर में बुरी साली. खेत में नाली का होना नुकसान की बात है और घर में साली का स्थायी रूप से रहना अच्छा नहीं है.  

खेत रखे बाड़ को, बाड़ रखे खेत को. ये दोनों एक दूसरे की रक्षा करते हैं व एक दूसरे के पूरक हैं.

खेतिहर गये घर, दाएँ बाएँ हर. हर – हल. खेत का मालिक घर गया तो मजदूर हल छोड़ कर दाएँ बाएँ हो गए.

खेती उत्तम काज है, इहि सम और न कोय, खाबै को सब को मिले, खेती कीजे सोय. (बुन्देलखंडी कहावत) खेती सबसे अच्छा काम है जिससे अपना निर्वाह तो होता ही है, दूसरे प्राणियों को भी खाने को मिलता है.

खेती कर आलस करे, भीख मांग सुस्ताय, सत्यानास की क्या कहें, अठ्यानास हो जाए. (बुन्देलखंडी कहावत) खेती करने वाला यदि आलस करे और भीख मांगने वाला यदि सुस्ताने बैठ जाए तो इन का विनाश होना तय है.अठ्यानास – सत्यानाश से भी बड़ा नुकसान.

खेती कर कर हम मरे, बहुरे के कोठे भरे. किसान प्राण पण से खेती करता है और बदहाल रहता है. साहूकार और व्यापारी अपना घर भरते हैं.

खेती करे न बनिजे जाय, विद्या के बल बैठा खाय. बनिज (वणिज) – व्यापार. विद्वान व्यक्ति खेती या व्यापार करे बिना अपने ज्ञान के बल पर पैसा कमाता है.

खेती करे सांझ घर सोवे, काटे चोर हाथ धरि रोवे. खेती करने वाले को खेत की रखवाली करनी पड़ती है. अगर नहीं करेगा तो चोए काट के ले जाएंगे. कहावत का अर्थ सभी व्यापारों पर लागू होता है.

खेती करै वणिक को धावै, ऐसा डूबै थाह न पावै. खेती करने वाला यदि सूदखोर से उधार लेता है तो बहुत परेशानी में पड़ सकता है. वणिक – बनिया.

खेती खसम सेती. खेती या व्यापार में लाभ तभी होता है जब मालिक स्वयं उसकी देखरेख करे. खसम से अर्थ यहाँ मालिक से है.

खेती तो उनकी जो अपने कर हल हांकें, उनकी खेती कुछ नहीं जो सांझ सवेरे झांकें. जो किसान लग कर अपने हाथ से खेती करते हैं उन्हीं की खेती सफल होती है, जो सुबह शाम खेत का चक्कर लगा आएं उनकी खेती सफल नहीं होती.

खेती तो थोरी करे, मेहनत करे सिवाय, राम चहें बा मनुस को टोटो कबहुं न आए. (बुन्देलखंडी कहावत) खेती यदि थोड़ी भी हो तो भी मेहनत करने वाले व्यक्ति को धन की कमी नहीं होती.

खेती धन की नास, जो धनी न होवे पास, खेती धन की आस, धनी जो होवे पास. खेती करने वाले का वहीं रह कर खेती करना आवश्यक है. धनी से अर्थ यहाँ खेत के स्वामी से है.

खेती धान के नास, जब खेले गोसइयां तास. जब किसान ताश खेलता रहता है तो उसकी खेती स्वाभाविक रुप से नष्ट हो जाती है. गोसाईं – गोस्वामी, मालिक.

खेती बिनती पत्री और खुजावन खाज, घोड़ा आप संवारिये जो प्रिय चाहो राज. (बुन्देलखंडी कहावत) कुछ कार्य ऐसे हैं जो अपने हाथ से करने पर ही सफल होते हैं – खेती, अर्जी, चिट्ठी, खुजली और घोड़े की देखभाल.

खेती रहिके परदेस मां खाय, तेखर जनम अकारथ जाय. इसका अर्थ है कि जो व्यक्ति अपने पास खेत होते हुए भी पैसों के लिए परदेश जाता है उसका जन्म ही निरर्थक है.

खेती राज रजाए, खेती भीख मंगाए. फसल अच्छी हो जाए तो किसान राजा हो जाता है, चौपट हो जाए तो भीख मांगने की नौबत आ जाती है.

खेती हो चुकी, हल खूँटी ऊपर. काम ख़त्म हो गया अब औजार उठा कर रख दो.

खेती, पाती, बीनती, परमेसर को जाप, पर हाथां नहिं कीजिये, करिए आपहिं आप. खेती करना, किसी को चिट्ठी लिखना, अर्जी लिखना और ईश्वर की भक्ति अपने आप ही करना चाहिए.

खेती, पानी, बीनती (अर्ज़ी) औ घोड़े की तंग, अपने हाथ संभारिये लाख लोग हों संग. खेती के सारे काम, खेत में पानी देना, अर्जी लिखना और घोड़े की रास संभालना ये सारे काम अपने हाथ से ही करने चाहिए.

खेती, बेटी, गाभिन गायजो ना देखे उसकी जाय. खेती, बेटी और गाभिन गाय की देख-रेख करनी पड़ती है. यानि अगर आप इन तीनों पर नजर नहीं रखेंगे तो ये हाथ से निकल जाएंगी.

खेल खतम, पैसा हजम. खेल तमाशा देखने के लिए पैसा खर्च होता है. खेल ख़त्म होने के बाद जो पैसा आपने खर्च किया वह हज़म हो गया. पैसा खर्च करके आनंद उठाने के लिए यह कहावत बोलते हैं.

खेल खिलाड़ी का, पैसा मदारी का. काम कर्मचारी करते हैं और कमाई मालिक की होती है.

खेल में रोवे सो कौवा. जो बच्चा खेल खेल में खिसिया के रोने लगे उसे चिढ़ाने के लिए.

खेले कूदे होए खराब, पढ़े लिखे होए नबाव. (खेलोगे कूदोगे तो होगे खराब, पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नबाब). वैसे तो कहावत का अर्थ स्पष्ट है लेकिन यहाँ खेल से मतलब व्यर्थ के घटिया खेलों से है जो समय नष्ट करते हैं (जैसे गुल्ली डंडा, पतंगबाजी आदि). जो अच्छे प्रतिस्पर्धात्मक खेल हैं उन्हें खेलने से व्यक्तित्व का विकास होता है और उन में कैरियर भी बनाया जा सकता है.

खेले खाय तो कहाँ पिराए. यहाँ खेल से तात्पर्य अच्छे व्यायाम वाले खेलों से है और खाय का अर्थ पौष्टिक भोजन खाने से है. अच्छा व्यायाम और पौष्टिक भोजन करने वाले का शरीर कहीं से नहीं दुखता. पिराए – दर्द करे.

खेले न खेलन देय, खेल में मूत देय. दुष्ट प्रवृत्ति और खिसियाने वाले लोगों के लिए.

खैर का खूँटा. खैर की लकड़ी बहुत मजबूत होती है. इसमें दीमक या कीड़ा नहीं लगता. किसी दृढ़ निश्चयी व्यक्ति के लिए यह कहावत प्रयोग करते हैं.

खैर, खून, खांसी, खुसी, बैर, प्रीत, मदपान; रहिमन दाबे न दबें, जानत सकल जहान. कत्थे का दाग, बहता हुआ खून, खांसी, खुशी, वैर, प्रेम और शराब का नशा, ये दबाने से नहीं दबते (छिपाने से नहीं छिपते), सारा संसार इन्हें देख लेता है (जान जाता है).

खैरात के टुकड़े बाजार में डकार. दूसरों से दान लेकर दिखावा करना.

खोखला शंख पराई फूंक से ही बजता है. शंख क्योंकि खोखला होता है इसलिए अपने आप नहीं बोल सकता. दूसरे की फूंक से ही बोलता है. पुरुषत्व विहीन लोग अपने आप कुछ नहीं करते दूसरों के बल पर ही बोलते हैं.

खोखले अंडे की पैदाइश. तुच्छ व्यक्ति.

खोखले में तो उल्लू ही पैदा होते हैं. मूर्ख लोगों को अपनी जमात बढ़ाने के लिए समाज से अलग जगह चाहिए होती है.

खोटा खरा तो भी गाँठ का, भला बुरा तो भी पेट का. गाँठ का पैसा चाहे खोटा हो या खरा, अपने को प्रिय होता है. पेट का जाया चाहे सज्जन हो या दुर्जन, माँ को प्रिय होता है.

खोटा खाओ और खरा कमाओ. खाना कितना भी रूखा सूखा मिले, कमाई ईमानदारी से ही करनी चाहिए.

खोटा नारियल होली के लिए या पूजा के लिए. खोटे नारियल को लोग होली में जलने वाली वस्तुओं में डाल देते हैं या पूजा में चढ़ा देते हैं.

खोटा बेटा खोटा दाम, बखत पड़े पे आवे काम (खोटा बेटा और खोटा पैसा भी समय पर काम आता है). जिस जमाने में सिक्कों की बहुत कीमत हुआ करती थी तब लोग नकली सिक्के बना लिया करते थे (जैसे आजकल जाली नोट बना लेते हैं). बहुत मुसीबत के समय कभी कभी खोटा सिक्का भी धोखे से चल जाया करता था. इसी प्रकार नालायक बेटा भी मुसीबत में काम आ सकता है.

खोटी बात में हुंकारा भी पाप. कोई अन्यायपूर्ण बात कर रहा हो  तो उस की हाँ में हाँ मिलाना भी पाप है. (उसका विरोध करना चाहिए).

खोटी संगत के फल भी खोटे. बुरे लोगों की संगत के बुरे परिणाम होते हैं.

खोटे की बुराई श्मशान में. दुष्ट व्यक्ति जब तक जीवित होता है तब तक किसी की उस को बुरा कहने की हिम्मत नहीं होती. उस के मरने के बाद लोग उसे खुले आम बुरा कहते हैं.

खोटे खाते में गवाही कौन दे. धोखाधड़ी वाले काम में गवाही देने के चक्कर में कभी नहीं पड़ना चाहिए.

खोटे खाते में मरे हुए की गवाही. बिलकुल फर्जी काम. 

खोतों के सींग थोड़े ही होते हैं (वो ऐसे ही पहचाने जाते हैं). अगर कोई व्यक्ति समझदार लोगों के बीच बैठा बेवकूफी की हरकतें कर रहा हो तो यह कहावत कही जाती है. खोता माने होता है गधा. कहावत का अर्थ है कि गधों के सिर पर सींग नहीं होते. वे अपनी हरकतों से ही आदमियों के बीच अलग से पहचान लिए जाते हैं.

खोदा पहाड़ निकली चुहिया. बहुत अधिक श्रम करने के बाद बहुत कम लाभ होना या लाभ न होना. कुछ लोग इस बात में और वजन देने के लिए इस प्रकार कहते हैं – खोदा पहाड़ निकली चुहिया, वह भी मरी हुई.

खोदे चूहा और सोवे सांप. चूहा बड़े परिश्रम से बिल खोदता है और सांप उस पर कब्जा कर लेता है. यही समाज का नियम है.

खोया ऊंट घड़े में ढूंढे. ऊंट को घड़े में ढूँढना (मूर्खता पूर्ण कार्य). 

खोवें आदर मान को दगा लोभ और भीख.  धोखा करना, मन में लोभ रखना और किसी से भीख माँगना, ये तीनों बातें व्यक्ति के सम्मान को ख़त्म कर देती हैं.

 

 

गँवार गन्ना न दे, भेली दे (गुड़ न दे भेली दे). मूर्ख व्यक्ति छोटी सी चीज़ देने में आनाकानी करता है जबकि बड़ी चीज़ दे देता है. भेली – गुड़ की भेली. 

गंगा आवनहार, भगीरथ को जस. (गंगा आनहार भागीरथ के सिर पड़ी). गंगा को आना ही था, भगीरथ को यश प्राप्त हुआ. जैसे भारत को बहुत से कारणों से आज़ादी मिली नेहरू जी ने श्रेय ले लिया.

गंगा की राह किसने खोदी है. वेगवती नदी जब पहाड़ से उतरती है तो अपनी राह खुद बनाती है. उसके लिए कोई खोद के मार्ग नहीं बनाता. महान लोग जब किसी कार्य के लिए निकलते हैं तो अपना रास्ता खुद बनाते हैं.

गंगा की राह में पीर के गीत. गंगा नहाने जाएंगे तो गंगा के गीत गाए जाएंगे, पीर बाबा के नहीं.

गंगा के मेले में चक्की खोदने वाले को कौन पूछे. चक्की के पाटों में छोटे छोटे गड्ढे बना कर उन को खुरदुरा बनाया जाता है तभी पिसाई होती है. कुछ दिन चलाने के बाद पाट फिर चिकने होने लगते हैं तो उन्हें फिर खोदना पड़ता है. गंगा के मेले में लोग चक्की ले कर जाते ही नहीं हैं इसलिए वहां चक्की खोदने वाले का क्या काम. जिस माल की जहाँ खपत हो वहीं उस का व्यापार करना चाहिए.

गंगा गए तो गंगादास, जमुना गए तो जमुनादास. जैसी परिस्थिति देखी वैसे ही बन गए. इंग्लिश में कहावत है – When in Rome, do as Romans do.

गंगा जाते कोढ़ उभरा. पहले के लोग मानते थे कि गंगा में नहाने से कोढ़ ठीक हो जाता है. अगर गंगा जाते समय कोढ़ उभरा है तो चिंता की कोई बात ही नहीं है, हाथ की हाथ निवारण हो जाएगा.

गंगा जी के घाट पर बामन वचन प्रमान, गंगा जी को रेत को तू चंदन कर के मान. जाट गंगा नहाने गया तो एक पंडे ने उसे घेर लिया. हाथ में गंगाजल ले कर कुछ उलटे सीधे मन्त्र पढ़े, जाट को गंगा जी की रेत से तिलक लगाया और बोला बामन का वचन है, तू इस रेत को चंदन मान और जल्दी से इस बामन को गऊ दान कर दे. जाट उस से ज्यादा चतुर था. उस ने एक मेंढकी पकड़ी और पंडे से कहा, गंगा जी कै घाट पर जाट वचन परमान, गंगा जी की मेंढकी तू गऊ कर के जान (जाट के वचन को प्रमाण मानो और गंगा जी की मेंढकी को गऊ मान कर ग्रहण करो).

गंगा जी को नहायबो, बामन को व्योहार, डूब जाय तो पार है, पार जाए तो पार. गंगा में नहाने वाला डूब जाए तो यह मान कर संतोष कर लिया जाता है कि वह भवसागर से पार हो गया और तैर कर पार हो जाए तब तो पार है ही. इसी प्रकार ब्राह्मण को दिया गया ऋण वापस मिल जाए तो अच्छा है और न मिले तो दान पुण्य मान कर संतोष कर लेना चाहिए.

गंगा नहाए मुक्ति होय तो मेंढक मच्छियाँ, मूढ़ मुड़ाए सिद्धि होए तो भेड़ कपछियाँ. गंगा नहाने से मुक्ति होती तो मेढक मछलियाँ सबसे पहले मुक्त हो जाते, सर मुड़ाने से सिद्धि मिलती तो भेड़ें सबसे पहले सिद्ध हो जातीं क्योंकि वो तो हर साल मुंडती हैं.

गंगा नहाने से गधा घोड़ा नहीं बनता. गंगा नहाने से मूर्ख व्यक्ति योग्य नहीं हो जाता.

गंगा बही जाय, कलारिन छाती पीटे. कलारिन – शराब बनाने वाली. कलारिन को इस बात की चिंता हो रही है कि सारा पानी बह गया तो शराब कैसे बनाएगी.

गंगोत्री ही गन्दी हो तो गंगा में बदबू होगी ही. अर्थ स्पष्ट है. उदाहरण के तौर पर – जिस पकिस्तान का जन्म ही घृणा, उन्माद और हिंसा पर हुआ हो वहां आतंकवाद तो पनपेगा ही.

गंजा और कंकड़ों में कुलांचे खाए. गंजा कंकडों में कुलांचे खाएगा तो उसका सर लहूलुहान हो जाएगा. कोई व्यक्ति अपनी मूर्खता से अपने को नुकसान पहुँचा रहा हो तो.

गंजा मरा खुजाते खुजाते. कोई व्यक्ति कुछ दुर्भाग्य से और कुछ अपने कर्मों के कारण दुर्दशा को प्राप्त हुआ हो तो.

गंजी कबूतरी और महल में डेरा. अयोग्य व्यक्ति को उच्च स्थान प्राप्त होना.

गंजी को सर मुंडाने की क्यों पड़ी. अनावश्यक काम करने वाले पर व्यंग्य.

गंजी क्या मांग निकाले. जिसके बाल ही नहीं है वह मांग कैसे निकालेगी. कोई साधनहीन व्यक्ति सामर्थ्यवान की बराबरी करे तो. 

गंजी देवी, ऊत पुजारी. जैसे देवता वैसे ही मानने वाले.

गंजी पनिहारी और गोखुरू का हंडुवा. पनिहारी अर्थात पानी भरने वाली. पहले गाँव की स्त्रियाँ कुँए या तालाब से मटके में पानी भर कर सर पर रख कर लाती थीं. सर पर मटके को बैलेंस करने के लिए कपड़े का गोल रिंग बना कर रखा जाता है जिसे हंडुवा या कुंडरी कहते हैं. कहावत का अर्थ है कि एक तो पानी भरने वाली गंजी है ऊपर से गोखुरू (एक प्रकार की कंटीली घास) का हंडुवा बना कर रखा गया है जिससे उसे और कष्ट हो रहा है. अपनी मूर्खता से कष्ट उठाना.

गंजे आदमी को नाई की क्या परवाह. जिस व्यक्ति से हमें कभी काम नहीं पड़ने वाला उसकी परवाह क्यों करें.

गंजे के भाग से ओले पड़ें. जब किसी गंजे के भाग्य में कष्ट उठाना लिखा होता है तब ओले पड़ते हैं.

गंजे को कौओं का डर. गंजे सर पर कौवा चोंच न मार दे इसलिए.

गंजे पर नाई का क्‍या एहसान. गंजे को नाई की जरूरत ही नहीं है, फिर वह उसका एहसान क्यों माने. 

गंजे सर पानी पड़ा, ढल गया. वैसे बात तो गलत है पर यहाँ गंजे सर का अर्थ बेशर्म आदमी से है.

गंदला है तो भी गंगाजल. गंगाजल यदि थोड़ा गंदला भी हो जाए तो भी उसकी महिमा कम नहीं होती. उच्च चरित्र वाले किसी व्यक्ति पर थोड़े बहुत आक्षेप लग जाएँ तो भी उसका आदर कम नहीं होता.

गंधी बेटा टोटा खाए, डेढ़ा दूना कहीं न जाए. इत्र के व्यापार में कई गुना मुनाफा है. जब इत्र का व्यापारी यह कहता है कि उसे घाटा हुआ है तो इसका मतलब  यह होता है कि उसे केवल डेढ़ दो गुना ही मुनाफा हुआ है.

गंवार अधेला न दे अधेली दे. अधेला माने आधा पैसा और अधेली माने अठन्नी. नासमझ व्यक्ति छोटी सी चीज़ देने में आनाकानी करता है पर लोग उस को बेवकूफ बना कर उस से बड़ी चीज़ ठग लेते हैं.

गंवार की अकल गुद्दी में. पुराने जमाने में गंवार शब्द को मूर्ख के लिए प्रयोग करते थे. मूर्ख व्यक्ति की बुद्धि दिमाग में न हो कर उसकी गर्दन में होती है.

गंवार की गाली, हंसी में टाली. मूर्ख व्यक्ति गाली दे तो हंसी में टाल देना चाहिए, दिल पे नहीं लेना चाहिए.

गंवार को पैसा दीजे पर अकल न दीजे. गंवार शब्द का प्रयोग बहुत स्थानों पर मूर्ख के लिए होता है. इस बात का ग्रामीण लोगों को बुरा नहीं मानना चाहिए. कहावत का अर्थ है कि मूर्ख व्यक्ति को अक्ल का उपदेश देना बेकार है.

गंवार खा के मरे या उठा के मरे. मूर्ख व्यक्ति या तो अधिक खाने से मरता है या क्षमता से अधिक बोझ उठाने से.

गया राज जहाँ चुगला पैठे, गया पेड़ जहाँ बगुला बैठे. भोजपुरी कहावत. चुगलखोर की जिस राजपरिवार में पैठ (पहुँच) होती है वह नष्ट हो जाता है और गिद्ध व बगुले जिस पेड़ पर बैठते हैं वह पेड़ भी ठूँठ हो जाता है.

गई आबरू वापस न आवे. एक बार इज्जत चली जाए तो वापस नहीं आती.

गई को जाने दे राख रही को. जो चला गया उसे भूल जाओ जो तुम्हारे पास है उसे संभालो. इसी प्रकार की दूसरी कहावत है – बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुधि लेय.

गई जवानी फिर न बहुरे, चाहे लाख मलीदा खाओ. मलीदा कहते हैं खूब घी से बनने वाले एक पकवान को. मनुष्य चाहे कितना प्रयास कर ले, बीता हुआ यौवन वापस नहीं आ सकता.

गई नार जो घर घर डोले, गया घर जहं उल्लू बोले, गया राज जहाँ माने गोले, गया वनिक जो कम कर तोले. पराए घरों में डोलने वाली स्त्री का सम्मान नहीं होता, जिस घर में उल्लू बोले उस का सर्वनाश हो जाता है, जिस राजा के यहाँ गोलों (दासों) की चलती हो वह भी नष्ट हो जाता है, जो बनिया कम तोलता है उस की साख भी समाप्त हो जाती है. गया – नष्ट हो गया.

गई परोथन लेने, कुत्ता आटा ले गया. किसी आवश्यक कार्य के बीच अनपेक्षित नुकसान हो जाना.

गई बला को कौन पुकारे. जो आफत अपने आप टल गई हो उसे वापस बुलाना मूर्खता ही कहलाएगी.

गई बात फिर हाथ न आवे. जो बात बिगड़ जाए वह दोबारा नहीं बनती.

गई भैंस पानी में. भैंस को यदि कहीं पानी भरा तालाब दिख जाए तो वह आपके रोकने के बावज़ूद उस में उतर जाती है. आपके कोशिश करने के बाद भी कोई बना बनाया काम बिगड़ जाए तो मज़ाक में यह बोलते हैं.

गई माँगने पूत, खो आई भतार. पुत्र मांगने गई थी, पति को खो आई. किसी लाभ की कोशिश में उससे भी बड़ा नुकसान उठाना.

गई साख फिर हाथ न आवे. जो साख चली जाए वो दोबारा नहीं आती.

गई सोभा दरबार की सब बीरबल के संग. बीरबल से ही अकबर के दरबार की शोभा थी. बीरबल की मृत्यु के बाद अकबर के दरबार में वह बात नहीं रही.

गऊ संतन के कारने, हरि बरसावें मेंह. अच्छे लोगों के हित के लिए प्रभु जो भी कृपाएं प्रदान करते हैं उनसे अच्छे बुरे सब का भला हो जाता है.

गए कटक, रहे अटक. बिना बात के किसी काम में फंस जाना.

गए को सबने सराहा है. व्यक्ति के मरने के बाद सब उसकी सराहना करते हैं.

गए गंगा जी और लाए बालू. किसी महत्वपूर्ण स्थान पर जा कर कोई क्षुद्र चीज ले आना.

गए थे रोजा छुड़ाने, उल्टे नमाज गले पड़ी (गए थे नमाज छुडाने, रोजे गले पड़े). एक छोटी मुसीबत से पीछा छुड़ाने की कोशिश कर रहे थे, उससे बड़ी मुसीबत गले पड़ गई.

गए बिचारे रोजे, और रहे दस बीस. कोई कठिन कार्य करना पड़ रहा हो तो मन में यह भाव रखना चाहिए कि काम बहुत कठिन नहीं है और अब थोड़ा ही तो बचा है, निबट जाएगा.

गए शेर को कंकड़ मारे. शेर चला गया तो उस के पीछे कंकड़ फेंक रहे हैं. बनावटी बहादुर.

गगरी दाना, सूत उताना. सूत – शूद्र. गगरी में अनाज होने पर तुच्छ व्यक्ति इतराने लगता है. 

गज भर के गाजी मियाँ, नौ गज की पूंछ. बहुत अधिक तामझाम और दिखावा.

गज, गेंडा, कायर पुरुष, एकहि बार गिरन्त, छत्रिय सूर सपूत नर, गिर गिर उठत अनंत. (बुन्देलखंडी कहावत) हाथी, गेंडा और कायर पुरुष एक बार गिर कर फिर उठ नहीं पाते. क्षत्रिय, शूर वीर और सुपुत्र गिर कर भी बार बार उठते हैं.

गठरी बाँधी धूल की रही पवन से फूल, गाँठ जतन की खुल गई रही धूल की धूल. मानव जीवन की क्षणभंगुरता के विषय में सुन्दर कथन. मनुष्य का शरीर हवा से फूली हुई धूल की गठरी की तरह है. गाँठ खुलते ही केवल धूल ही बचती है.

गठरी संभाल, मधुरी चाल, आज न पहुंचब, पहुंचब काल. भोजपुरी कहावत. सामान संभाल कर रखो और आराम से चलो, भले ही थोड़ा देर से पहुँच जाओ.

गडर प्रावाही लोक (संसार भेड़चाल है). जैसे भेड़ें बिना सोचे समझे एक के पीछे एक चलती हैं वैसे ही संसार के लोग एक दूसरे की नकल करते हैं.  

गढ़ की शान कंगूरे बताते हैं. कौन सा गढ़ कितना शानदार है यह उसके कंगूरे देख कर ही मालूम हो जाता है. 

गढ़िया लोहार का गाँव क्या. महाराणा प्रताप के लिए हथियार बनाने वाले लुहार जाति के लोगों ने यह शपथ ली थी कि जब तक राणा को मेवाड़ का राज्य नहीं मिल जाता तब तक वे बस्तियों में नहीं बसेंगे. उन के वंशज (जोकि गढ़िया लोहार कहलाते हैं) अभी तक घुमंतू जीवन व्यतीत कर रहे हैं.

गढ़े कुम्हार भरे संसार. कुम्हार घड़ा बनाते हैं, सब लोग उससे पानी भरते हैं. एक आदमी की कृति से अनेक लोग लाभ उठाते हैं.

गढ़े सुनार, पहने संसार. सुनार सुंदर गहने बनाता है जिन्हें सारा संसार पहनता है. कार्य ऐसा ही करना चाहिए जिससे खुद की जीविका भी चले और संसार लाभान्वित भी हो.

गढ़ों और मठों के बंटवारे नहीं होते. जिस प्रकार वारिसों के बीच संपत्ति का बंटवारा होता है उस प्रकार से राज्य और मठ का बंटवारा न कर के किसी एक ही व्यक्ति को उत्तराधिकारी बनाया जाता है. बंटवारे से राजसत्ता और धर्मसत्ता कमजोर होती है.

गणेश के ब्याह में सौ विघ्न. जो व्यक्ति हमेशा दूसरों की सहायता करता हो, उसका खुद का कोई काम न हो रहा हो तो मजाक में यह कहावत कही जाती है. 

गणेश को बुद्धि कौन दे. गणेश जी स्वयं बुद्धि के स्रोत कहलाते हैं, उन्हें बुद्धि कौन दे सकता है. बहुत विद्वान या समझदार व्यक्ति को कौन समझा सकता है.

गणेशजी का चौक पूजा, मेंढक जी आन विराजे. किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति के लिए कोई प्रबंध किया जाए और ओछा व्यक्ति उसका लाभ उठाए तो. जो व्यक्ति अपने को बहुत होशियार समझता हो उस का मजाक उड़ाने के लिए भी ऐसे बोला जाता है.

गदहा गावे, ऊंट सराहे. गदहा गा रहा है और ऊँट सराहना कर रहा है. जब एक मूर्ख व्यक्ति दूसरे मूर्ख की तारीफ़ करे तो. संस्कृत में इस प्रकार कहा गया है – उष्ट्रानां विवाहेषु गीत: गायन्ति गर्दभ:, परस्परं प्रशंशंति अहो रूप: अहो ध्वनि.

गदहा पीटे धूल उड़े. मूर्ख व ढीढ आदमी को दंड देने से कोई लाभ नहीं होता.

गदहा मरे कुम्हार का, और धोबन सती होए. किसी और के दुःख पर अनावश्यक शोक मनाना.

गधा अगर सोने से लदा, तो भी रहे गधे का गधा. कोई बहुत पैसे वाला व्यक्ति हो पर उसे बातचीत का सलीका न हो या व्यवहारिक ज्ञान न हो तो यह कहावत कही जाती है. इंग्लिश में कहावत है – An ass remains an ass, even if laden with gold.

गधा की पीठ गधा ही खुजावे. मूर्ख ही मूर्ख के काम आता है.

गधा क्या जाने कस्तूरी की गंध. मूर्ख व्यक्ति बहुमूल्य वस्तुओं का मूल्य नहीं समझ सकता.

गधा क्यों नहाए गंगा, घूरा ही चंगा. गधा गंगा में क्यों नहाएगा (उसे गंगाजी का महत्व क्या मालूम), वह तो घूरे में लोटने में ही खुश है. मूर्ख व्यक्ति को सत्पुरुषों की संगति अच्छी नहीं लगती.

गधा खेत खाय, कुम्हार मारा जाय. कोई मातहत गलती करे और मालिक उसका दंड भुगते तो.

गधा गंगाजल का माहात्म्य क्या जाने. मूर्ख व्यक्ति किसी अनमोल चीज़ का महत्व नहीं समझ सकता.

गधा गया दुम की तलाश में, कटा आया कान. चौबे जी छब्बे बनने गए, दुबे बन कर लौटे.

गधा गिरा पहाड़ से और मुर्गी के टूटे कान. किसी बिलकुल अनजान व्यक्ति की परेशानी से यदि कोई अत्यधिक दुखी हो रहा हो तो.

गधा घूरा देख कर ही रेंके. मूर्ख व्यक्ति निकृष्ट वातावरण में ही प्रसन्न होता है.

गधा घोड़ा एक भाव. जहाँ योग्य व्यक्ति की पूछ न हो.

गधा चरे खेत, न पाप न पुन्य, गाय चरे तो पुन्य तो होता. यदि किसी के खेत में गधा चर रहा हो तो वह उसे क्यों चरने दे. अगर गाय चर रही हो तो कम से कम पुन्य तो मिलेगा. कोई ऐसा आदमी आपकी पूँजी खा रहा हो जिससे आपको कोई फायदा न हो तो यह कहावत कही जाती है.

गधा धोने से बछड़ा नहीं हो जाता. कितना भी प्रयास करो मूर्ख आदमी अक्लमंद नहीं बन सकता.

गधा पानी पिए घंघोल के. गधा तो गधा ही है. गड्ढे में भरे पानी में गन्दगी बैठ जाती है और ऊपर साफ़ पानी होता है. बाकी जानवर ऊपर का साफ़ पानी पीते हैं, पर गधा पानी को जोर से हिला कर पीता है जिससे गन्दगी पानी में घुल जाती है. मूर्ख व्यक्तियों के मूर्खतापूर्ण कार्य के लिए कहावत.

गधा पीटे घोड़ा नहीं होता. कितना भी प्रयास करो मूर्ख व्यक्ति बुद्धिमान नहीं बन सकता.

गधे का जीना थोड़े दिन भला. गधे जैसी जिंदगी हो तो थोड़े दिन ही जीना बेहतर है.

गधे का पूत गधा. मूर्ख लोगों की संतान भी मूर्ख होती हैं.

गधे का मूंह कुत्ता चाटे तो क्या बिगड़े. दो मूर्ख या निकृष्ट लोग एक दूसरे से प्रेम करें या एक दूसरे को नुकसान पहुँचाएं, तो हमें क्या.  

गधे की खातिर सर मुंडवाया. किसी मूर्ख व्यक्ति के प्रति अत्यधिक प्रेम प्रदर्शित करना.

गधे की पूँछ पकड़ाई. किसी को ऐसे फालतू के काम पर लगा देना, जिससे लाभ कुछ न हो बल्कि हानि की संभावना हो.

गधे की बगल में गाय बाँधी तो वह भी रेंकने लगी. संगत का असर (कुसंगति कथय किम् न करोति पुंसाम).

गधे की रेंक और ओछे की प्रीत घटती जाती है. दो बिल्कुल अलग दृष्टान्तों को जोड़ कर हास्यपूर्ण ढंग से कोई बात कहना कहावतों की विशेषता होती है. जैसे गधे की रेंक पहले तेज और बाद में धीमी हो जाती है वैसे ही ओछे व्यक्ति की प्रीत शुरू में अधिक और बाद में कम हो जाती है.

गधे के ऊपर वेद लदे, गधा न वेदी होय. गधे के ऊपर पुस्तकें लादने से वह ज्ञानी नहीं हो जाता.

गधे को गधा ही खुजाता है. मूर्ख व्यक्ति की जरूरतों को मूर्ख ही पूरा कर सकता है.

गधे को गुलकंद (गधे को जाफरान, गधे को हलुआ पूड़ी, गधे को अंगूरी बाग़). अयोग्य व्यक्ति को ऐसी वस्तु मिल जाना जिसके वह बिलकुल योग्य न हो.

गधे को दिया नोन, गधा कहे मेरे दीदे फोड़े. गधे को किसी ने नमक खाने को दिया. गधा तो गधा ही ठहरा. उसने नमक का हाथ आँख में लगा लिया. आँख में तकलीफ हुई तो नमक देने वाले को कोसने लगा कि तुमने मेरी आँख फोड़ दी. किसी के भले के लिए कोई काम करो और वह उल्टा आपको कोसे तो यह कहावत कहते हैं.

गधे गुड़ हगने लगें तो गन्ने कौन पेरे. (बुन्देलखंडी कहावत) आसानी से कोई चीज़ मिल जाए तो कोई मेहनत क्यों करेगा इस बात को मजेदार ढंग से कहा गया है.

गधे घोड़े एक भाव. जहाँ प्रतिभाशाली व्यक्ति की कोई कद्र न हो.

गधे पर जीन कसने से घोड़ा नहीं होता. मूर्ख व्यक्ति को अच्छे कपड़े पहना दो तो वह योग्य नहीं हो जाता.

गधे पर हाथी की झूल. बेमेल काम.

गधे में ज्ञान नहीं, मूसल की म्यान नहीं (मूरख के ज्ञान नहीं, दरांती के म्यान नहीं). गधे (मूर्ख व्यक्ति) में ज्ञान नहीं होता और मूसल या दरांती की म्यान नहीं होती.

गधे से गिरा और गाँव से रूठा. बिना बात रूठने वालों पर व्यंग्य.

गधे से हल चले तो बैल कौन बिसाय. बैल को पालना गधे के मुकाबले बहुत महंगा है. अगर गधा हल चला लेता तो बैल कौन पालता. अगर सस्ती चीज़ से काम चले तो कोई महंगी चीज़ क्यों लेगा.

गधे ही मुल्क जीत लें तो घोड़ों को कौन पूछे. गधे की कीमत भी घोड़े से बहुत कम होती है और रख रखाव भी बहुत सस्ता होता है, लेकिन युद्ध लड़ने के लिए घोड़े ही चाहिए जोकि बहुत महंगे होते हैं. अगर सस्ती चीज़ से पूरा काम निकल जाए तो महंगी चीज़ को कौन पूछेगा. (जो टट्टू जीते संग्राम, को खर्चे तुर्की को दाम).

गधों की यारी में लातों की तैयारी. गधे से दोस्ती करोगे तो दुलत्ती खानी पड़ेगी. मूर्ख व्यक्ति से दोस्ती करना खतरे से खाली नहीं है.

गधों के गले में गजरा. अयोग्य व्यक्ति को बहुमूल्य परन्तु बेमेल चीज़ मिल जाना.

गन्दी बोटी का गन्दा शोरबा. 1. घटिया कच्चा माल तो घटिया उत्पाद. 2. नीच मां बाप की नीच संतान.

गन्ना बहुत मीठा होता है तो उसमें कीड़े पड़ जाते हैं. ज्यादा सज्जनता मुसीबत बन जाती है.

गन्ने से गंडेरी मीठी, गुड़ से मीठा राला, भाई से भतीजा प्यारा, सब से प्यारा साला. रिश्तों की मिठास को प्रकट करने वाली कहावत.

गम न हो तो बकरी पाल लो. बकरी पालने में बहुत परेशानियाँ उठानी पडती हैं.

गया बदरी, काया सुधरी. बद्रीनाथ की यात्रा करने से स्वास्थ्य लाभ होता है.

गया मर्द जिन खाई खटाई, गई रांड जिन खाई मिठाई. पहले के लोग समझते थे कि खटाई खाने से पौरुष शक्ति कम हो जाती है और विधवाओं से यह अपेक्षा की जाती थी कि किसी प्रकार का सुख न भोगें.

गया माघ दिन उनतीस बाकी. माघ का एक दिन बीतने के बाद कह रहे हैं कि माघ खत्म हो गया, बस उन्तीस दिन बाकी हैं. अति उत्साह की मूर्खतापूर्ण पराकाष्ठा.

गया वक्त फिर हाथ नहीं आता. बीता हुआ समय और खोया हुआ अवसर पुन: हाथ नहीं आते.

गरज का क्या मोल (गरज दीवानी होय). किसी वस्तु की बहुत अधिक आवश्यकता होने पर उसकी मुंह मांगी कीमत देनी पड़ती है.

गरज का बावला अपनी गावे. जरूरतमंद आदमी अपनी ही कहता है.

गरज मिटी गूजरी नटी. दूध का काम करने वाले लोग अधिकतर गुर्जर जाति के होते थे. उनकी पत्नी गूजरी कहलाती थी. जब तक गूजरी को आप से कोई काम है वह रोज खीर खिलाती है. जैसे ही उस का काम निकल गया वह छाछ देने को भी मना कर देती है. (गरज दीवानी गूजरी, नित्य जिमावे खीर, गरज मिटी गूजरी नटी, छाछ नहीं रे बीर).

गरज रहे तो चाकर, गरज मिटी तो ठाकुर (गर्ज पड़े मन और है, गर्ज मिटे मन और). जब तक अपना स्वार्थ था तब तक जी हुजूरी करते रहे. स्वार्थ पूरा हो जाने के बाद ऐंठ दिखाने लगे.

गरब का बिरछा, कबहुं नहीं हरियाए. (बुन्देलखंडी कहावत) गरब – गर्व, घमंड, बिरछा – वृक्ष. घमंड का पेड़ कभी फलता फूलता नहीं है, अर्थात घमंड बहुत दिन नहीं टिकता.

गरीब का बेली राम. निर्धन का सहायक ईश्वर है.

गरीब की आहें मोटी होती हैं, बाहें नहीं. गरीब अपने सताने वाले को पीट नहीं सकता, केवल बद्दुआ दे सकता है. लेकिन उस में भी असर होता है.

गरीब की कौड़ी टेंट में. गरीब अपनी छोटी सी पूँजी को भी संभाल कर रखता है. टेंट – अंटी.

गरीब की खाय, जड़ मूल सों जाए. गरीब के हक को मारने वाला समूल नष्ट हो जाता है.

गरीब की जवानी, बहता पानी. गरीब की जवानी व्यर्थ ही चली जाती है.

गरीब की जोरू सब की भौजाई. गरीब पर सब जोर जमाते हैं.

गरीब की बछिया को रंभाना मना. गरीब को अपनी व्यथा कहने का भी अधिकार नहीं है.

गरीब की सच्ची गवाही भी झूठी. गरीब की बात पर कोई विश्वास नहीं करता.

गरीब की हाय, सरबस खाय. गरीब को नहीं सताना चाहिए, उस की हाय व्यक्ति को बर्बाद कर देती है. (कबीरदास ने कहा है – दुर्बल को न सताइए, जाकी मोटी हाय). 

गरीब के लिए तो बाल-बच्चे ही धन है. अर्थ स्पष्ट है.

गरीब को मत सता गरीब रो देगा, गरीब की हाय पड़ी तो जड़ मूल खो देगा. अर्थ स्पष्ट है.

गरीब को मिट्टी भी भारी. गरीब को अपने सगों का अंतिम संस्कार करना भी बहुत भारी पड़ता है.

गरीब को मुहूर्त कैसा, जब चाहे चल पड़े. गरीब शगुन असगुन का विचार नहीं कर सकता. जब काम होगा उसे जाना ही पड़ेगा.

गरीब को सरग में भी बेगार. एक गरीब आदमी रोज की बेगार से तंग आ कर मरने की सोच रहा था, तो जमींदार ने कहा कि तुझे स्वर्ग में भी बेगारी में काम करना पड़ेगा, इससे अच्छा तू यहीं रह. (चमार को अर्श पे भी बेगार).

गरीब ने रोजे रखे तो दिन ही बड़े हो गए. गरीब कोई अच्छा काम करना चाहता है तो उसमें भी बहुत सी अड़चनें आती हैं.

गरीबी गुनाहों की जननी है. गरीब व्यक्ति मज़बूरी में अपराध करता है.

गरीबी तेरे तीन नाम लुच्चा, गुंडा, बेईमान; अमीरी तेरे तीन नाम परसा परसी परसराम. गरीब को सब लुच्चा, लफंगा और बेईमान कहते हैं जबकि वही अगर अमीर हो जाए तो उस से इज्ज़त से बात करने लगते हैं. गरीब को परसा कहते थे, उस पे थोड़ा पैसा आया तो परसी भाई कहने लगे और वह सम्पन्न हो गया तो परशुराम जी कहने लगे.

गरीबी से बढ़ कर कोई भाईचारा नहीं. गरीब लोग मुसीबत में एक दूसरे का साथ निभाते हैं, जबकि अमीर लोग आड़े समय में मुँह मोड़ लेते हैं.

गर्जमंद की अकल जाए, दर्दमंद की शकल जाए. जब व्यक्ति बहुत गर्जमंद होता है तो उस की अक्ल काम नहीं करती और जिस व्यक्ति को बहुत बड़ा शारीरिक कष्ट हो रहा हो उसकी सुन्दरता नष्ट हो जाती है.

गलमिल गलकट सुरसुर हाय हाय. मुसलमानों के चार मुख्य त्यौहारों पर कही गई कहावत. गलमिल – गले मिलने वाली मीठी ईद, गलकट- बकरा काटने वाली बकरीद, सुरसुर – पटाखे छोड़ने वाली शबेरात, हाय हाय – शोक मनाने वाली मुहर्रम.

गलियारे में टट्टी बैठे और उल्टे आँख दिखाए. गलियारे में शौच कर रहा है और मना करने पर अकड़ रहा है. चोरी और सीनाजोरी.

गले पड़ी, बजाए सिद्ध. कोई आदमी मजबूरी में कोई काम करे और लोग उसे महान समझ लें तो यह कहावत कही जाती है. 

गले पड़े का सौदा. कोई जिम्मेदारी जबरदस्ती गले पड़ जाए तो.

गले में ढोल पड़ा, रो के बजाओ चाहे गा के (गले में ढोल पड़ा है बजाना ही पडेगा). जो जिम्मेदारी आप के ऊपर पड़ी है उसे निभाना तो पड़ेगा ही, हँस के निभाओ या रो कर यह आप के ऊपर है.

गले में सिगड़ी बंधी है. जो लोग हर समय गुस्से में रहते हैं उन का मजाक उड़ाने के लिए.

गहना चांदी का, नखरा बांदी का. गहना चांदी का अच्छा लगता है और दासी के नखरे अच्छे लगते हैं.

गहनों वस्त्र उधार को, कभी न धरिए अंग. उधार के वस्त्र और गहने कभी नहीं पहनने चाहिए.

गहरा बोने वाला और रिश्वत देने वाला, घाटे में नहीं रहते. बीज को गहरा बोने में मेहनत अधिक लगती है लेकिन उपज अच्छी होती है इसलिए सब वसूल हो जाता है. रिश्वत देने में पैसा खर्च होता है लेकिन व्यक्ति उस से अधिक लाभ कमा लेता है.

गहिर न जोते बोवे धान, सो घर कुठला भरे किसान. धान की बुआई के लिए खेत को गहरा नहीं जोतना होता है. (घाघ)

गाँठ का गवाऊँ न लोगों साथ जाऊँ. जो आदमी बिल्कुल जोखिम लेने को तैयार न हो.

गाँठ का जाए और जग हँसाई होय. जिस का नुकसान होता है उसी पर लोग हँसते हैं. 

गाँठ का देय और बैरी होय. किसी को उधार दे कर आप उससे दुश्मनी पाल लेते हैं.

गाँठ का पैसा, साथ की जोरू, वक्त पर यही काम आते हैं. पैसा वही काम आता है जो अपने पास हो (उधार में बंटा हुआ न हो) और पत्नी वही काम आती है जो साथ रहती हो.

गाँठ का भरम क्यूँ गवाऊँ. बाजार में किसी की कितनी साख है यह इस बात पर निर्भर करता है कि उसके पास कितना नकद पैसा है. कुछ लोगों के पास पैसा न भी हो तब भी उनकी हवा बंधी रहती है. ऐसे किसी व्यक्ति का कथन.

गाँठ गिरह से मद पीवे, लोग कहें मतवाला. शराब ऐसी चीज़ है कि आदमी अपना पैसा खर्च कर के पीता है तो भी मतवाला समझा जाता है.

गाँठ में जमा रहे तो खातिर जमा. जिस व्यक्ति का धन उस के पास रहता है वह निश्चिंत रहता है.

गाँव करे सो पगली करे. जैसा सब गाँव के लोग करते हैं पगली उन की नकल करती है. बिना सोचे समझे किसी के नकल करने वाले पर व्यंग्य.

गाँव का छोरा छोरा, दूजे गाँव का दूल्हा. गाँव के लड़के की शादी होती है तो उसे दूल्हे वाली इज्जत नहीं मिलती, वह छोरा ही कहलाता है. दूसरे गाँव के लड़के को दूल्हे राजा और जमाई बाबू कह कर सत्कार किया जाता है.

गाँव की छवि चौक से और घर की छवि द्वार से. कोई गाँव कितना उन्नत और समृद्ध है यह उस के चौक को देख कर समझा जा सकता है, इसी प्रकार घर के द्वार को देख कर गृह स्वामी की हैसियत जानी जा सकती है.

गाँव के गडढे पोखर अंधा भी जाने. गाँव के लोग उन्हीं रास्तों पर चलते चलते इतने अभ्यस्त हो जाते हैं कि वे आँख बंद कर के भी चल सकते हैं.

गाँव जले, डोम त्यौहारी मांगे. किसी का कितना भी नुकसान हो रहा हो क्षुद्र लोगों को केवल अपने स्वार्थ से मतलब होता है.

गाँव जले, नंगे को क्या. यहाँ नंगे से तात्पर्य बेशर्म आदमी से भी हो सकता है और अत्यधिक गरीब से भी. गाँव के जलने का इन दोनों पर कोई फर्क नहीं पड़ता.

गाँव न माने पगले को और पगला न माने गाँव को. जो व्यक्ति स्वयं पागल या मूर्ख है वह और सब को पागल और मूर्ख समझता है.

गाँव बसा नहीं, बिलैंया लोटन लगीं. जब कोई नया गांव बसता है तो आसपास के जंगल से बिल्लियां आकर वहां डेरा डाल लेती हैं. इस कथन का शाब्दिक अर्थ है कि गांव के बसने से पहले ही बिल्लियां डेरा डाल रही हैं. कहावत का अर्थ है – कोई लाभप्रद काम होने से पहले ही फ़ालतू और मुफ्तखोरों का जमा हो जाना.

गाँव में धोबी का छैल. धोबी का बेटा गाँव में छैला बना घूमता है क्योंकि वह शहर के लोगों के कपड़े पहनता है (जो कपड़े लोग धोने के लिए देते हैं).

गाए गीत का गाना क्या, पके धान का पकाना क्या. किसी काम को बार बार करने में आनंद नहीं आता.

गागर में सागर. बहुत कम शब्दों में बहुत बड़ी बात कह देना.

गाजर की पूंगी, बजी तो बजी, नहीं तो तोड़ खाई. हर तरह से उपयोगी वस्तु.

गाजे न बाजे, दूल्हे राजा आय बिराजे. कोई बड़ा आदमी बिना किसी पूर्व सूचना और तैयारी के अचानक आ जाए तो.

गाडर (भेंड़) पाली ऊन को बैठी चरे कपास. भेड़ इसलिए पाली कि ऊन मिलेगी पर वह तो सारी कपास चर गई. 

गाडर पाली ऊन को, बैठी चरे कपास, बहू लाया काम को, बैठी करे फरमास. उपरोक्त कहावत में यह बात जोड़ दी गई है कि बहू लाए थे यह सोच कर कि कुछ काम धाम करेगी, पर वह बैठ कर फरमाइशें कर रही है.

गाड़ी का पहिया और मर्द की जुबान फिरती ही अच्छी. जो मर्द अपनी बात पर कायम न रहें उन के लिए व्यंग्य.

गाड़ी का सुख गाड़ी भर, गाड़ी का दुख गाड़ी भर. गाड़ी जब तक चलती है तब तक बहुत सुख देती है, जब बिगड़ती है तो दुख भी बहुत देती है. यही बात गृहस्थी पर भी लागू होती है.

गाड़ी कुत्ते के बल नहीं चलती. एक कुत्ता बैलगाड़ी के नीचे चल रहा था. उसे यह गलतफहमी हो गई कि गाड़ी को वही चला रहा है. चलते चलते उसे गुस्सा आया कि वह गाड़ी क्यों चलाए. वह रुक गया. लेकिन गाड़ी ऊपर से निकल गई. कोई व्यक्ति बिना किसी उपयोगिता के अपने आप को बहुत महत्वपूर्ण सिद्ध करने की कोशिश कर रहा हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.

गाड़ी के पाड़ी बंधी हुई है. किसी व्यक्ति ने अपने पड़ोसी से कुछ देर के लिए बैलगाड़ी उधार मांगी. देने वाले का मन नहीं था तो उस ने बहाना बनाया कि गाड़ी में पड़िया बंधी हुई है इसलिए नहीं दे सकते.

गाड़ी तो चलती भली, ना तो जान कबाड़. गाड़ी जब तक चलती रहे तभी तक उपयोगी है, अन्यथा कबाड़ के समान है. यही बात मनुष्य पर भी लागू होती है.

गाड़ी देख लाड़ी के पावँ भारी. लाड़ली बेटी अच्छी खासी पैदल चल रही थी. तब तक रिक्शा दिख गया. उसको देख कर कहने लगी माँ मेरे पैरों में दर्द हो रहा है. कोई सुविधा उपलब्ध हो तो हर कोई उसे भोगना चाहता है.

गाड़ी पे सूप का क्‍या भार (चलती गाड़ी में चलनी का क्या भार) (गाड़ी भर नाज में टोकरी का क्या बोझ). जो व्यक्ति बहुत सी जिम्मेदारियाँ उठा रहा हो उस को छोटे मोटे काम से क्या परेशानी.

गाड़ी भर अनाज की मुट्ठी बानगी. गाड़ी में लदा हुआ अनाज कैसा है यह एक मुट्ठी देख कर ही जाना जा सकता है. किसी समाज के विषय में जानकारी उस के एकाध व्यक्ति को देख कर ही हो सकती है.

गाड़ी भर बोया, पल्लू भर पाया. बहुत अधिक परिश्रम का बहुत थोड़ा प्रतिफल.

गाड़ीवान की नार सदा दुखिया. गाड़ी चलाने वाले को अधिकतर घर से बाहर रहना पड़ता है इसलिए उस की पत्नी दुखी रहती है. ट्रकों पर भी अक्सर लिखा होता है – कीचड़ में पैर दोगी तो धोना पड़ेगा, ड्राइवर से शादी करोगी तो रोना पड़ेगा.

गाते गाते कीरतनिया हो जाते हैं. कीरतनिया – कीर्तन करने वाले. गाने का अभ्यास करते करते सभी अच्छे गायक बन जाते हैं. 

गाना और रोना कौन नहीं जानता. ये मनुष्य के मूलभूत गुण हैं.

गाय का दूध सो माय का दूध. गाय का दूध मां के दूध के सामान गुणकारी है.

गाय का बछड़ा मर गया तो खलड़ा देख पनिहाय. खलड़ा – भूसा भरी हुई बछड़े की खाल (बछड़े का पुतला). पनिहाना – थन में दूध उतरना. किसी के प्रियजन की मृत्यु हो जाने पर उस से मिलती जुलती शक्ल सूरत वाले को देख कर भी प्रेम उमड़ता है. पशुओं में भी माँ की ममता की यही पराकाष्ठा देखने को मिलती है.

गाय की भैंस क्या लगे. किसी व्यक्ति से हमारा कोई संबंध नहीं है यह बताने का हास्यपूर्ण तरीका.

गाय को अपने सींग भारी नहीं होते. अपने प्रिय सगे सम्बन्धी कभी बोझ नहीं लगते.

गाय गुण बछड़ा पिता गुण घोड़ा, बहुत नहीं तो थोड़ा थोड़ा. गाय के बछड़े में माँ के गुण होते हैं जबकि घोड़े के बछड़े में पिता के गुण होते हैं.

गाय जने, बैल की दुम फटे (गाय बियाए पीर बैल को), (बिल्ली बच्चा जने, बिलौटे को पीर आवे). बच्चा जनना – बच्चा पैदा करना, पीर आना – दर्द होना. किसी दूसरे की परेशानी में अत्यधिक परेशान होने वाले पर व्यंग्य.

गाय तिरावे, भैंस डुवाबे. डूबता आदमी यदि गाय की पूँछ पकड़ ले तो गाय उसे पार करवा देती है, जबकि भैंस डुबो देती है.

गाय तैरी, भैंस तैरी, बकरी बिचारी डूब मरी. बड़ी आपदाओं को बड़े लोग तो झेल लेते हैं पर छोटे बेचारे मटियामेट हो जाते हैं. 

गाय दुही और कुत्तों को पिलाया (गाय दुही और गधे को पिलाया). परिश्रम से अर्जित किए हुए धन को बर्बाद कर देना. घर के लोगों से छीन कर अपात्रों को बांटना.

गाय दूब से सलूक करे तो क्या खाय. गाय दूब का लिहाज करेगी तो क्या खाएगी. दूकानदार अगर सब ग्राहकों से दोस्ती कर लेगा तो पैसा किस से कमाएगा. (घोड़ा घास से यारी करेगा तो क्या खाएगा).

गाय न बच्छी, नींद आवे अच्छी. गाय पालना बहुत जिम्मेदारी का काम है. जिस व्यक्ति के पास ऐसी कोई जिम्मेदारी न हो वह चैन से सोता है.

गाय न हो तो बैल दुहो. कुछ न कुछ कर्म करो चाहे उससे कुछ हासिल न हो.

गाय बाँध के रखी जाए सांड नाहीं. 1. सारी बंदिशें स्त्रियों के लिए ही हैं, पुरुषों के लिए कुछ नहीं. 2. सीधे आदमी के लिए ही सब कानून हैं, दबंग के लिए नहीं.

गाय बैल मर गए, कुत्ते के गले घंटी. योग्य व्यक्तियों के न रहने पर अयोग्य लोगों की चांदी हो जाना.

गाय भी हाँ और भैंस भी हाँ. हर बात में हाँ में हाँ मिलाना.

गाय मार के जूता दान. बहुत बड़ा पाप कर्म कर के थोड़ा सा दान कर देना और पुण्यात्मा बनने का ढोंग करना.

गाय रतन निगल गई. अत्यधिक दुविधा की स्थिति. गाय को मार कर बहुमूल्य रत्न को निकाल भी नहीं सकते.

गायें तो मालिकों की हैं, ग्वाले का अपना तो फकत लट्‌ठ. गरीब और मजदूर का अपना कुछ नहीं होता.

गायों के भाग से बर्षा होवे. वर्षा होती है तो गायों को घास पत्ते आदि प्रचुर मात्रा में खाने को मिलते हैं. कहावत का अर्थ है कि गरीब और बेसहारा लोगों के लिए ही ईश्वर पानी बरसाते हैं मनुष्य के कर्म तो ऐसे हैं कि वर्षा हो ही न.

गायों को घास, कुतियों को मलीदा. अयोग्य व्यक्तियों को विशेष सुविधाएं.

गाल कट जाए पर चावल न उगले. बहुत कंजूस या बेशर्म आदमी के लिए.

गाल बजाए हू करैं गौरीकन्त निहाल. गाल बजाना – अपनी प्रशंसा स्वयं करना, गौरीकंत – भगवान शंकर. 1. ऐसे व्यक्तियों के लिए जो किसी की सहायता नहीं करते केवल बड़ी बड़ी बातें करते हैं और आश्वासन देते हैं. 2. इससे उलट इसका यह अर्थ भी हो सकता है कि जो व्यक्ति उदार होते हैं वे सहज में ही प्रसन्न हो जाते हैं.

गाल बजाने से कोई बड़ा नहीं हो जाता. गाल बजाना – अपनी बड़ाई करना. अपनी प्रशंसा स्वयं करने से कोई बड़ा नहीं हो जाता.

गाल वाला जीते, माल वाला हारे. जो बातें बनाने में तेज हो वह जीत जाता है और पैसे वाला उसके सामने हार जाता है.

गालियों से कोई गूमड़े पड़ते हैं. कोई आपको डंडा मार देगा तो सर पर गूमड़ा पड़ जाएगा, लेकिन गाली देगा तो कोई नुकसान थोड़े ही होगा, इसलिए कोई गाली दे तो मारपीट पर उतारू नहीं होना चाहिए.

गाली और तरकारी खाने के लिए ही बने हैं. कोई आप को गाली दे उसका बुरा नहीं मानना चाहिए.

गाली मत दे किसी को, गाली करे फसाद, गाली सूं लाखों हुए, लड़ भिड़ कर बरबाद. किसी को गाली देना शर्तिया लड़ाई का नुस्खा है.

गावे तो सीठना, लड़े तो गाली. सींठना – विवाह इत्यादि में गाई जाने वाली हंसी मजाक की गालियाँ. विशेष अवसर पर वही बात हंसी मजाक मानी जाती है जो लड़ाई के समय गाली मानी जाती है. 

गिदधों को कौन न्योता देता है. गिद्धों को कोई निमंत्रण नहीं भेजता, वे तो लाश देख कर अपने आप चले आते हैं. दुष्ट और अवसरवादी लोगों को कोई बुलाने नहीं जाता, वे अपने आप पहुँच जाते हैं.

गिद्ध की आँख पिड़की निकाले. पिड़की जैसा छोटा सा पक्षी भी गिद्ध की आँख निकाल सकता है. किसी को बहुत कमज़ोर समझने की भूल नहीं करना चाहिए.

गिद्ध को मौत से प्यार. लाशों पर पलने वाले गिद्ध यही चाहते हैं कि आदमी और जानवर मरते रहें. घटिया नेताओं और पत्रकारों पर व्यंग्य.

गिनी गाय में चोरी नहीं हो सकती. अपनी धन संपदा का ठीक से हिसाब रखा जाए तो उसमें चोरी नहीं हो सकती.

गिनी बोटी, नपा शोरबा. जहाँ हिसाब किताब बिल्कुल साफ़ हो.

गिने को गिनावे, टोटा हो जावे. गिना हुआ धन बार बार गिनने से उसमें घाटा हो जाता है.

गिने गिनाए नौ के नौ. एक गाँव के नौ बुनकरों ने अच्छे अच्छे वस्त्र बुने और अच्छे पैसे मिलने की आशा में उन्हें ले कर शहर की ओर चले. रास्ते में जंगल में बेरों की झाड़ियों में पके हुए बेर देख कर सब का मन चल आया. बेर खाने के लिए सब इधर उधर बिखर गए. छक कर बेर खाने के बाद सब इकट्ठे हुए तो चलने से पहले मुखिया ने सब की गिनती की, लेकिन उसने अपने को नहीं गिना. कई बार गिना पर हर बार आठ ही निकले. वहाँ रोना पीटना पड़ गया. एक घुड़सवार उधर से निकला तो उन से पूछा क्या माजरा है. उन की समस्या सुन कर वह मन ही मन हँसा और बोला, अगर मैं तुम्हारा खोया हुआ आदमी ढूँढ़ दूँ तो क्या दोगे. बुनकर बोले हम ये सारे बहुमूल्य वस्त्र तुम्हें दे देंगे. घुड़सवार ने उन्हें लाइन से खड़ा किया और हर आदमी को कोड़ा मारते हुए पूरे नौ गिन दिए. वे सारे मूर्ख ख़ुशी ख़ुशी सारे वस्त्र उसे दे कर जान बचने की ख़ुशी मनाते हुए अपने गाँव लौट गए.

गिने पूए संभाल खाए. धन संपत्ति को ठीक से गिन कर रखा जाए तो उस का प्रबन्धन आसान हो जाता है..

गिरगिट की दौड़ बिटौरे तक. बिटौरा – कंडों का ढेर. तुच्छ आदमी की सोच सीमित ही होती है. (देखिये परिशिष्ट) 

गिरता पत्ता  यूं कहै, सुन तरुवर बनराय, अबका बिछड़ा कब मिलूं, दूर पड़ूँगा जाय. गिरता हुआ पत्ता कहता है कि हे तरुवर! अब दूर जा पडूंगा, पता नहीं बिछुड़ने पर फिर कब मिलना हो.

गिरधर वहां न बैठिए, जंह कोऊ दे उठाए. जहाँ सम्मान न हो उन लोगों के बीच नहीं बैठना चाहिए.

गिरा सत्तू पितरों को दान. सत्तू गिर गया, खाने लायक नहीं रहा तो पितरों को दान कर के पुण्य कमा रहे हैं. ढोंगी धर्मात्मा.

गिरी पहाड़ से रूठी भतार से. किसी की नाराजगी किसी और पर उतारना. 

गिरे का क्या गिरेगा. जिसकी कोई इज्ज़त न हो उसकी क्या बेइज्ज़ती हो जाएगी. जो जमीन पर गिरा हुआ है उसका क्या सामान गिर जाएगा.

गिरे का क्या गिरेगा. जो आदमी पहले ही गिरा हुआ है उसके पास से क्या गिर सकता है. यहाँ गिरे हुए का अर्थ ओछे व्यक्ति से भी हो सकता है और अत्यधिक गरीब से भी.

गिरे तो देव के पगों में पड़े. गिरे तो लेकिन देवता के चरणों में गिरे. (ऐसे गिरने से कोई नुकसान नहीं हुआ बल्कि लाभ हो गया). नुकसान के साथ में ही भरपाई भी हो जाना.

गिरे पड़े वक्त का टुकड़ा. बुरे समय में काम आने के लिए बचा कर रखा गया धन या वस्तु.

गिरे पे चार लात जमाना. ऐसे बनावटी बहादुरों पर व्यंग्य जो लड़ने की हिम्मत नहीं रखते पर गिरे हुए पर लात जरूर जमाते हैं.

गिलहरी की दौड़ पीपल तक. छोटा व्यक्ति छोटी सोच ही रखता है. 

गीदड़ की तावल से बेर नहीं पकते. तावल – उतावलापन, जल्दबाजी. गीदड़ के चाहने से बेर जल्दी नहीं पक जाते. उतावले लोगों को सीख देने के लिए.

गीदड़ की मौत आती है तो वह शहर की ओर भागता है. गीदड़ अगर शहर में घुसेगा तो मार दिया जायेगा. यदि कोई कमजोर और डरपोक व्यक्ति दुस्साहस दिखाने का प्रयास करता है तो उसकी मजाक उड़ाने के लिए यह कहावत कही जाती है.

गीदड़ गिरा गड्ढे में, आज यहीं रहेंगे. अपनी गलती से विपत्ति में पड़े व्यक्ति द्वारा यह दिखावा करना कि उसे कोई परेशानी नहीं है.

गीदड़ ने मारी पालथी, अब मेह बरसेगा तभी उठेगा. अत्यधिक गर्मी होने पर गीदड़ पालथी मार लेता है और पानी बरसने पर ही उठता है. कोई मूर्ख व्यक्ति अपनी बात पर अड़ जाए तो.

गीदड़ पट्टा. कुत्तों के डर से सियार बस्ती में जाने से डरते हैं. एक सियार को संयोग से एक पुराना कागज मिल गया तो उसने अपनी जमात इकट्ठी की. कागज दिखाकर बोला – मैंने गाँव का पटटा ले लिया है. अब कोई कुत्ता हम पर नहीं भौंक सकता. चलो गाँव चलते हैं. सबसे आगे मैं चलूँगा. सियारों की बिरादरी को पट॒टे वाली बात समझ में आ गई. वे सभी उसके पीछे-पीछे गॉव की ओर चले. पर गाँव में घुसते ही कुत्तों की फ़ौज भौंकते हुए उन पर टूट पड़ी. मुखिया सियार वापस भागने में सबसे आगे था. साथियों ने  कहा – भाग क्यों रहे हो? गाँव का पट्टा दिखाओ. तब उस सियार ने और जोर से भागते हुए कहा – ये सभी अनपढ़ हैं, फिर किसे पट्‌टा दिखाऊँ. जान बचाकर भागो, वरना बेमौत मारे जाओगे.

गुजरे लोगन की निंदा अजोग है. मरे हुए लोगों की निंदा नहीं करना चाहिए. इंग्लिश में कहावत है – Speak well of the dead.

गुड़ अँधेरे में खाओ तो मीठा, उजाले में खाओ तो भी मीठा (गुड़ तो अंधेरे में भी मीठा लागे). अर्थ स्पष्ट है.

गुड़ कड़वा लगे तो जानो ज्वर का जोर. बिना बात मुँह कड़वा हो रहा हो तो बुखार की संभावना होती है.

गुड़ की चोट थैली जाने. थैली में रखे गुड़ को तोड़ने के लिए थैली को उठाकर पत्थर पर पटका जाता है. गुड़ मीठा होता है पर थैली पर भीतर से चोट तो करता ही है. कोई मीठा दिखने वाला व्यक्ति चुपचाप किसी को चोट पहुँचाए तो.

गुड़ खाए गुलगुलों से परहेज करे. जो लोग परहेज नहीं करते लेकिन परहेज का दिखावा बहुत करते हैं उनके लिए यह कहावत है.

गुड़ गुड़ कहने से मुंह मीठा नहीं होता. सिर्फ बातें बनाने से कोई काम नहीं होता.

गुड़ से मीठी क्या ईंटें. इस कहावत का प्रयोग उसी प्रकार किया जाता है जैसे – नेकी और पूछ पूछ.

गुड़ से मीठी जुबान. जुबान से बहुत मीठी बोली बोली जा सकती है.

गुड़ हर दफै मीठा ही मीठा. गुड़ को जितनी बार भी खाओगे मीठा ही लगेगा. जो फायदे की बात है वह हर समय अच्छी ही लगेगी.

गुड़ होता गुलगुले करती, आटा उधार मांग लाती, निगोड़ो तेल ही नाय है. पास में कुछ भी न हो तब भी मंसूबे बांधना.

गुड़ियों के ब्याह में चियों का नेग. चिया – इमली का बीज. जैसा बचकाना आयोजन, वैसी बचकानी भेंट.

गुण मिलें तो गुरु बनाए चित्त मिले तो चेला, मन मिलें तो मीत बनाए वरना रहे अकेला. गुरु उसी को बनाना चाहिए जिसमें बहुत से गुण हों, चेला उसी को बनाना चाहिए जिससे विचार मिलते हों और मित्र उसी को बनाना चाहिए जिससे मन मिलता हो. 

गुणवान सब जगह पूजा जाता है. जबकि राजा केवल स्वदेश में पूजा जाता है.

गुणों के अनुसार प्रतिष्ठा होती है. अर्थ स्पष्ट है.

गुदड़ी से बीबी आईं, शेखजी किनारे हो. कोई ओछा व्यक्ति थोड़ा बहुत अधिकार पाकर अत्यधिक इतराने लगे तो.

गुनके गाहक सहस नर, बिन गुन लहै न कोय. गुणों की कद्र सभी लोग करते हैं. बिना गुणों के कोई आपको नहीं पूछता. (गिरधर की एक कुंडली से).

गुनवंती के नौ मायके, गली गली ससुराल. जिस में गुण होते हैं उस की सब जगह पूछ होती है.

गुनिया तो औगुन तजे, गुन को तजे गंवार. जो गुणवान है वह अपने अवगुणों को त्यागने का प्रयास करता है और जो मूर्ख है वह अपने भीतर छिपे गुणों को ही त्याग देता है.

गुनियां तो गुण कहे, निर्गुनिया देख घिनाय. गुणों को पहचानने वाला व्यक्ति हर चीज़ में गुण देखता है और जिस में स्वयं कोई गुण नहीं है या जिसे गुणों की पहचान नहीं है वह हर चीज़ को बेकार समझ कर घृणा करता है.

गुनियों की कमी नहीं, पारखियों की कमी है. गुणवान लोग बहुत हैं, उन्हें परखने वाले पारखी चाहिए. 

गुपचुप बुलाई, ऊंट चढ़ी आई. गुप्त रूप से कोई काम करने लिए किसी को चुपचाप बुलाया और वह बेबकूफ दिखावा करता हुआ आया.

गुप्तदान महापुण्य. वैसे तो सभी प्रकार के दान करने से पुन्य मिलता है लेकिन गुप्त दान (बिना अपना नाम प्रदर्शित किए) सबसे बड़ा पुन्य है क्योंकि इस में व्यक्ति को अपने नाम की भूख नहीं होती.

गुबरारी की रानी भई, रानी की गुबरारी. (बुन्देलखंडी कहावत) गुबरारी – गोबर उठाने वाली. भाग्य से ही सब मिलता है. गोबर उठाने वाली रानी बन सकती है और रानी गोबर उठाने वाली.

गुबरैले के लिए तो गोबर ही गुड़. 1. जो जिस परिवेश में रहता है उसको वही अच्छा लगता है. 2. निकृष्ट व्यक्ति निकृष्ट परिवेश में ही खुश रहता है.

गुरु कहै सो करो, करे सो न करो. गुरु के उपदेशों का पालन करो, गुरु जो करते हैं उसकी नकल मत करो. (गुरु में कोई गलत आदत भी हो सकती है).

गुरु की चोट, विद्या की पोट. गुरु की मार से ही विद्या आती है.

गुरु की विद्या गुरु को फली. जहाँ कोई शिष्य गुरु से कोई विद्या सीख कर गुरु को लाभ पहुँचाए. (यदि अत्यधिक हानि पहुँचाए तो भी व्यंग्य में यह कहावत बोलते हैं).

गुरु कुम्हार सिष कुंभ है, गढ़ि-गढ़ि काढ़ै खोट, अन्तर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट. गुरु कुम्हार के समान है और शिष्य घड़े के समान. कुम्हार अन्दर से हाथ का सहारा देता है और बाहर से चोट कर के घड़े के टेढ़े पन को दूर करता है. इसी प्रकार गुरु शिष्य को सहारा भी देता है और दंड दे कर उसके दोष दूर करता है.

गुरु गुरु विद्या, सिर सिर ज्ञान. हर गुरु से विद्या ग्रहण की जा सकती है और हर व्यक्ति से ज्ञान.

गुरु तो ऐसा चाहिए ज्यों सिकलीगर होए, जनम जनम का मोरचा छिन में डाले खोए. सिकलीगर – छुरी कैंची पर धार रखने वाला. गुरु ऐसा होना चाहिए जैसा छुरी पर धार रखने वाला होता है. कितनी भी पुरानी जंग (अज्ञान) हो उसे साफ़ कर दे.

गुरु बिन मिले न ज्ञान, भाग बिन मिले न संपति. गुरु के बिना ज्ञान और भाग्य के बिना सम्पत्ति नहीं मिल सकती.

गुरु मारे धमधम, विद्या आवे छमछम. गुरु के धमाधम कूटने से ही विद्या आती है.

गुरु शुक्र की बादरी, रहे शनीचर छाए, कहे घाघ सुन घाघनी, बिन बरसे नहिं जाए. घाघ कवि के अनुसार बृहस्पति से शनिवार तक यदि बादल छाए रहें तो वर्षा अवश्य होती है.

गुरु से चेला सवाया. जब चेला गुरु से अधिक योग्य या दुष्ट हो तो.

गुरु से पहले चेला माल खाए. गुरु से पहले चेला माल खाता है क्योंकि उस के जरिये ही माल गुरु तक पहुँचता है. रिश्वतखोरों के दलालों के विषय में भी ऐसा ही कहा जा सकता है.

गुरु से पहले चेला मार खाए. जहाँ तक मार खाने (पिटने) का सवाल है तो वह भी गुरु से पहले चेला ही खाता है क्योंकि वह ज्यादा आसानी से उपलब्ध होता है और गुरु को बचाने की कोशिश भी करता है.

गुरु, बैद अरु जोतसी, देव, मंत्रि औ राज, इन्हें भेंट बिन जो मिले, होए न पूरन काज. गुरु, वैद्य, ज्योतिषी, देवता, मंत्री और राजा, इनसे जो भी बिना भेंट लिए मिलता है उसका कार्य पूर्ण नहीं हो सकता.

गुरू कीजै जान के, पानी पीजै छान के. किसी व्यक्ति के विषय में पूरी छानबीन कर के ही उसे अपना गुरु बनाना चाहिए, और पानी हमेशा छान कर पीना चाहिए.

गुरू गुड़ रह गए चेला चीनी हो गया. चेला गुरु से अधिक काबिल हो जाए तो.

गुरू से कपट मित्र से चोरी, या हो निर्धन या हो कोढ़ी. गुरु से कपट और मित्र से चोरी करने वाला या तो निर्धन हो जाएगा या कोढ़ी. यहाँ कोढ़ से आशय असाध्य बीमारी से है.

गुलगुला भावे, पर गुड़ घी आटा कहाँ से आवे. गुलगुले सब को अच्छे लगते है पर उनको बनाने के लिए सामान हर किसी को उपलब्ध नहीं है. अपनी हैसियत देख कर ही मन ललचाना चाहिए.

गुलाब में कांटे या कांटो में गुलाब. अपना अपना नज़रिया है, हाय गुलाब में कांटे हैं यह कह कर दुखी हो या काँटों जैसी विपरीत परिस्थितियों में भी गुलाब खिलते हैं, यह सोच कर आशान्वित हो.  

गुस्सा बहुत, जोर थोड़ा, मार खाने की निशानी. किसी आदमी में ताकत तो है नहीं पर गुस्सा बहुत है तो मार तो खाएगा ही.

गू का कीड़ा गू में ही खुश रहता है. नीच आदमी अपने निकृष्ट परिवेश में ही खुश रहता है.

गू का पूत नौसादर. लोगों की धारणा है कि नौसादर मल से बनाया जाता है. किसी निम्न कुल में कोई सपूत पैदा हुआ हो तो यह कहावत कही जाती है.

गू का भाई पाद और पाद का भाई गू. दो निकृष्ट लोगों के लिए हिकारत भरा कथन.

गू के कीड़े को गुलाब जल में डालो तो मर जाए. निकृष्ट मनोवृत्ति वाले व्यक्ति को अच्छे परिवेश में रखो तो वह बहुत परेशान हो जाता है.

गू खाए तो हाथी का जो पेट तो भरे, बकरी की मींगनी क्या खाए जो दाढ़ भी न भरे. कहावत में शिक्षा दी गई है कि रिश्वत खाओ तो बड़ी खाओ, छोटी छोटी मत खाओ.

गू भी कहे कि गोबर में बदबू. अपने अवगुण न देख कर दूसरों में कमियाँ निकालना.

गू में कौड़ी गिरे तो दांतों से उठा ले. किसी महा कंजूस के लिए. आम तौर पर ऐसा कथन वे दिलजले लोग कहते हैं जो कंजूस के पास कुछ मांगने गये हों और उस ने देने से मना कर दिया हो.

गू में न ढेला डाले, न छींटें पड़ें. किसी नीच से बहस करना ऐसा ही है जैसा गू में ढेला डालना. गू में ढेला डालोगे तो छींटों से तुम्हारे ही कपड़े गंदे होंगे और नीच से बहस करोगे तो तुम्हारी ही बेइज्जती होगी.

गूँगे वाला गुड़ (गूँगे वाला सपना), (गूँगा गुड़ खाये और मन-ही-मन मुस्काये). जो व्यक्ति अपनी प्रसन्नता को व्यक्त न कर पा रहा हो.

गूंगा, अंधा, चुगदढ़िया और काना, कहें कबीर सुनो भई साधो, इनको नहिं पतियाना. गूंगा, अंधा, छोटी दाढ़ी वाला और काना, इनका विश्वास नहीं करना चाहिए. वैसे यह एक निरर्थक कथन है जोकि कबीरदास का कहा हुआ हो ही नहीं सकता.

गूंगी जोरू भली, गूंगा हुक्का न भला. हुक्का जब तक गुड़गुड़ न करे उसे पीने में मज़ा नहीं आता.

गूंगे का कोई दुश्मन नहीं. क्योंकि उस को कुछ भी कह लो वह जबाब नहीं देता.

गूंगे की सैन गूंगा जाने. सैन – इशारों की भाषा. गूंगे की भाषा गूंगा ही समझ सकता है.

गूंगे के बैन, माँ समझे या भैन (बहन). गूंगे की बात उसकी माँ और बहन ही समझ सकती हैं.

गूंगे के सैन को और न समझे कोय, या समझे माई या समझे जोय. गूंगे के इशारों को माँ समझती है या पत्नी.

गूंगे ने सपना देखा, मन ही मन पछताए. गूंगे ने सपना देखा, अब मन में परेशान हो रहा है कि सब को कैसे बताए. अपनी बात किसी को न समझा पाने का दर्द.

गूजर का दहेज़ क्या, बकरी या भेड़. गूजर दहेज़ में क्या देगा, भेड़ बकरी ही तो देगा. (उसका वही धन है).

गूजर किसके असामी, कलाल किसके मीत. गूजर बहुत अच्छे ग्राहक नहीं होते और शराब बेचने वाले किसी के दोस्त नहीं होते.

गूजर से ऊजड़ भली. गूजर के पड़ोस से उजाड़ अच्छा.

गूदड़ में गिंदौड़ा. गिंदौड़ा एक बढ़िया मिठाई का नाम है. कोई बहुत गुणवान व्यक्ति अत्यंत साधारण परिस्थितियों में रह रहा हो तो यह कहावत कहते हैं. (गुदड़ी का लाल).

गूदड़ में लाल नहीं छिपता. प्रतिभाशाली व्यक्ति गरीबी में भी अपनी प्रतिभा की पहचान करा देता है.

गृहस्थ का एक हाथ दुख में ओर एक हाथ सुख में. गृहस्थी में सुख और दुख दोनों बराबरी से लगे रहते हैं.

गृहस्थ के पास कौड़ी न हो तो दो कौड़ी का, साधु के पास कौड़ी हो तो दो कौड़ी का. गृहस्थ के पास पैसा न हो तो उसकी कोई कद्र नहीं है और साधु के पास पैसा हो तो वह साधु ही नहीं कहलाएगा.

गेंद खेल की और धन दोनों एक सुभाय, कर आवत छिन एक में छिन में कर से जाए. खेलने वाली गेंद और धन, इन दोनों का स्वभाव एक सा होता है. ये क्षण में आप के हाथ में आते हैं और क्षण में ही निकल जाते हैं.

गेंवड़े आई बरात, बहू को लगी हगास. गेंवड़ा – गाँव का बाहर का हिस्सा. गाँव के बाहर बरात आ गई है और बहू को शौच जाना है (बात उस समय की है जब शौच के लिए गाँव के बाहर जाना होता था). जरूरी काम के समय अगर कोई आदमी विकट समस्या ले कर बैठ जाए तो. (शिकार के वक्त कुतिया हगासी). हगास – शौच जाने की इच्छा.

गेंवड़े खेती हम करी, कर धोबन से हेत, अपनी करी का से कहें, चरो गधन ने खेत. (बुन्देलखंडी कहावत) गाँव के पास के हिस्से को गेंवड़ा कहते हैं. वहाँ के खेत को गाँव के आवारा पशु चर जाते हैं. ऊपर से धोबन से प्रेम कर लिया तो उस के गधे ने भी खेत चर लिया. अपनी गलतियों से कोई नुकसान उठाए तो यह कहावत कही जाती है.

गेंवड़े खेती, छप्पर सांप, भाई भयकरन, बादी बाप, ये अच्छे नहीं होते. गाँव से लगा खेत, छप्पर में सांप, डराने वाला भाई और मुकदमेबाज बाप ये अच्छे नहीं होते.

गेहूँ के साथ घुन भी पीसा जाता है. जब चक्की में गेहूं पीसा जाता है तो अगर कोई घुन भी गेहुओं के बीच हो तो पिस जाता है. जहां दोषी लोगों को सजा देने में कोई निर्दोष भी लपेटे में आ जाए तो यह कहावत कही जाती है. 

गेहूं के साथ बथुए को भी पानी मिलता है. जब गेहूं की खेती की जाती है तो उसके बीच में जगह जगह पर बथुए के पौधे अपने आप निकल आते हैं. जब गेहूं जैसे महत्वपूर्ण पौधे को पानी दिया जाता है तो बथुए जैसे महत्व हीन पौधे को भी पानी मिल जाता है. आप अपने दोस्त के साथ उसकी ससुराल जाएं और वहां दामाद साहब के साथ आपकी भी खातिरदारी हो तो मजाक में यह कहावत कही जा सकती है.

गैब का धन ऐब में जाए ऐब का धन गैब में जाए. गैब – अदृश्य शक्ति. बिना मेहनत के मिला धन गलत आदतों में खर्च होता है और गलत तरीकों से कमाया धन ईश्वर छीन लेता है.

गैर का सिर कद्दू बराबर. दूसरे की जान को कोई जान नहीं समझता.

गों निकलीआँख बदली. गों माने स्वार्थ. स्वार्थ सिद्ध हो जाने पर लोगों की आँख बदल जाती हैं, कृतघ्न मनुष्यों के विषय में ऐसा कहा जाता है.

गोंद पंजीरी और ही खाएं, जच्चा रानी पड़ी कराहें. जच्चा रानी – प्रसूता स्त्री. जिसको प्रसव हुआ है वह तो पड़ी कराह रही है और उसके लिए बनी हरीरा पंजीरी और लोग उड़ा रहे हैं. 

गोकुल गाँव को पैड़ों न्यारो. अनोखी रीति.

गोत्र वाली गाली तो कुत्ते को भी बुरी लगे. जाति सूचक गाली सभी को बुरी लगती है (कुत्ते को भी).

गोद का खिलाया गोद में नहीं रहता. छोटा बच्चा हमेशा छोटा नहीं रहता, कभी न कभी बड़ा होता ही है. बड़ा होने के बाद उसका व्यवहार भी बदल जाता है.

गोद में बैठ के आँख में उँगली (गोद में बैठ के दाढ़ी नोचे). अपने आश्रय देने वाले के साथ विश्वासघात करना.

गोद मोल का छोरा, निहाल किसको करे. गोद लिया हुआ या मोल लिया हुआ बेटा किसी को सुख नहीं दे सकता. जब वह बड़ा होता है तो लोग उसे बता देते हैं कि वह गोद लिया हुआ है इसलिए उस के मन में उतना प्रेम नहीं आ सकता.

गोद लड़ायो छोकरो, चढ़ा कचहरी जाट, पीहर लड़ाई पद्मिनी, तीनों बारहबाट. गोद लिया बेटा, कचहरी के चक्कर लगाने वाला जाट और मैके से लड़ कर आई स्त्री इन तीनों का भविष्य अच्छा नहीं होता.

गोद वाले की बात न पूछे, पेट वाले को पुचकारे. वर्तमान पर ध्यान न दे कर केवल भविष्य के विषय में सोचना.

गोबर का पुतला भी पहन ओढ़ कर अच्छा लगता है. अच्छे कपड़ों से व्यक्तित्व में निखार आता है.

गोबर में कीड़ा पड़ें, पपीहा मीठे बोल सुनाय, अफीम चमड़ा गीले होंय, वर्षा हो संशय न कोय. अर्थ स्पष्ट है.

गोबर में तो गुबरैले ही पैदा होंगे. खराब परिवेश में तो नीच लोग ही पनपेंगे.

गोबर, मैला, नीम की खली, या से खेती दूनी फली. जब कृत्रिम खाद का रिवाज़ नहीं था तो गोबर, मल और नीम की खली की खाद ही लगाई जाती थी. कहावत में कहा गया है कि इन से खेती दोगुनी हो जाती है.

गोबर, राखी, पाती सड़े, फिर खेती में दाना पड़े. गोबर, राख और पत्तियों को सड़ा कर उनकी खाद बना कर खेत में डालो, उस के बाद बीज बोओ. (घाघ)

गोरस बेचन हरिमिलन, एक पंथ दो काज. एक काम करने से दो प्रयोजन सिद्ध हों. 

गोरी तेरे संग में गई उमरिया बीत, अब चाली संग छोड़ के ये न प्रीत की रीत. मरणासन्न व्यक्ति अपनी आत्मा से ऐसे कहता है. कोई बूढ़ा व्यक्ति अपनी मरणासन्न पत्नी से भी ऐसे कह सकता है.

गोरे चमड़े पे न जा, वह है छछूंदर से बदतर. वेश्याओं से बचने के लिए सीख. 

गोला और  मूंज पराये बल ऐंठे. दास अपने स्वामी के बल पर अकड़ता है, मूंज भी पानी का बल पाकर ही  ऐंठती है.

गोली को घाव भर जाए, पर बोली को न भरे. कड़वी बोली और चुभने वाली बात कितना कष्ट पहुंचा सकती है इसको समझाने के लिए यह उदाहरण दिया गया है. 

गोह के जाए, सारे खुरदरे. गोह – छिपकली की जाति का बड़ा जानवर (बिस्खोपड़ी), जाए – पैदा किए हुए. गोह के सब बच्चे कुरूप ही होते हैं. कहावत का अर्थ है कि नीच लोगों की सभी संतानें नीच ही होती हैं.

गोहरा के पाप से पीपला जले. गोह को मारने के लिए लोग पीपल को जला देते हैं. दुष्ट व्यक्ति की संगत अनजाने में ही आप के लिए बहुत खतरनाक हो सकती है.

गौन के माल में गधे का क्या साझा. जानवरों की पीठ पर जिस बोरे में भर कर माल लादा जाता है उसे गौन कहते हैं. जिस माल को गधा ढोता है उसमें गधे का कोई हिस्सा नहीं होता. मेहनत करने वाले को व्यापार के लाभ में हिस्सा नहीं मिलता.

गौमुखा नाहर. (राजस्थानी कहावत) ऊपर से गाय की तरह सीधा, अंदर से शेर जैसा खतरनाक. नाहर – सिंह.

ग्रह बिना घात नहीं, भेद बिना चोरी नहीं. बुरे ग्रहों के प्रभाव से ही मृत्यु या कोई बड़ा नुकसान होता है और भेदिये द्वारा भेद देने से ही चोरी होती है. 

ग्रहण का दान, गंगा का स्नान. ग्रहण के समय दान देने से विशेष पुण्य मिलता है.

ग्रहण तो लगा ही नहीं, डोम घूमने लगे. पुरानी मान्यता है कि ग्रहण पड़ता हो (विशेषकर सूर्य ग्रहण) तो सफाई सेवकों और डोमों इत्यादि को दान देना चाहिए. इस प्रकार के लोग ग्रहण के समय बाहर निकल कर घूमने लगते हैं और आवाज लगाते हैं – दान करो, दान करो. कहावत में कहा गया है कि ग्रहण लगा ही नहीं और मांगने वाले आ गए. बिना उपयुक्त अवसर के लाभ लेने का प्रयास करने वाले लोगों के लिए.

ग्रहण में डोमों की मौज. सामान्य जनता के लिए ग्रहण को अनिष्टकारी माना गया है, लेकिन डोमों को ग्रहण में खूब दान मिलता है.

ग्राहक और मौत का भरोसा नहीं होता. यह तो हर कोई जानता है की मौत का कोई भरोसा नहीं कब आ जाए. बुद्धिमान लोग व्यापार में लगे अपने से छोटे लोगों को यह सिखाते हैं कि दुकान छोड़कर गायब नहीं होना चाहिए. ग्राहक का कोई भरोसा नहीं कब आ जाए. अपनी बात को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए साथ में मौत का उदाहरण भी जोड़ दिया गया है.

ग्राहक कभी गलत नहीं होता. व्यापार का नियम है कि ग्राहक की हाँ में हाँ मिलाना चाहिए. इंग्लिश में कहावत है – The customer is always right.

ग्वाले के घर दूध हो तो दूधन नहीं नहाए. अगर किसी के पास कोई वस्तु अधिक मात्रा में उपलब्ध हो तो वह उसका दुरूपयोग थोड़े ही करता है.

 

 

 

घट तोला, मिठ बोला. 1.बनिए की विशेषता बताई गई है, कम तौलते है और मीठा बोलते हैं. 2. जो कम तौलते हैं वे मीठा बोलते हैं.

घड़ी घड़ी की मांगो खैर. कोई नहीं जानता कब क्या हो जाए, इसलिए ईश्वर को हमेशा याद करते रहना चाहिए और यह प्रार्थना करनी चाहिए कि सब कुशल रहे.

घड़ी घड़ी को रंग न्यारो. किसी का समय सदा एक सा नहीं रहता.

घड़ी भर का पता नहीं, जनम भर के सौदे. मनुष्य के जीवन का एक क्षण का भी भरोसा नहीं है लेकिन वह लम्बे समय की योजनाएं बनाता है. 

घड़ी भर की बेशर्मी, सारे दिन का आराम. कोई आप से किसी काम के लिए कहे और उस समय थोड़ी बेशर्मी दिखा कर मना कर दें तो फिर बड़ा आराम रहता है. (हांलाकि उस समय बुरा लगता है).

घड़ी भर में घर जले, अढ़ाई घड़ी भद्रा. वारिश में अभी देर है और घर जला जा रहा है. मुसीबत सर पे हो और सहायता मिलने में देर हो तो. भद्रा – एक नक्षत्र जिसमें वर्षा का योग होता है.

घड़ी में औलिया, घड़ी में भूत. औलिया माने महात्मा या भूत भगाने वाला.. ऐसा व्यक्ति जिसका मूड पल पल में बदलता हो.

घड़ी में तोला घड़ी में माशा. तोला और माशा किसी जमाने में तौलने की इकाइयाँ हुआ करती थीं. उस समय एक रुपये का सिक्का एक तोला (लगभग 11.7ग्राम) का होता था. माशा इसका दसवां हिस्सा होता था. कहावत का अर्थ ऐसे व्यक्ति से है जिसका मूड बहुत जल्दी जल्दी बदलता हो.

घड़े को अरंड ही वज्र. अरंड की लकड़ी काफी कमजोर होती है परन्तु घड़े को फोड़ सकती है. गरीब आदमी को छोटी मोटी परेशानी भी बर्बाद कर सकती है.

घड़े में से घड़ा नहीं भरा जाता. घर में एक घड़ा भरा हुआ रखा हो तो दूसरा घड़ा बाहर से भर कर लाना चाहिए. एक घड़े से पानी लौट कर दूसरा भरा तो क्या फायदा होगा.

घड़े सरीखी ठीकरी, माँ सरीखी डीकरी. फूटे हुए घड़े का टुकड़ा भी घड़े के समान रंग रूप वाला होता है, इसी प्रकार बेटी भी माँ जैसी होती है.

घना कुनबा घना दुखी, घना कुनबा घना सुखी. बड़े परिवार की परेशानियाँ भी अधिक है और सुख भी बहुत हैं.

घनी  सीघी छिपकली चुन –चुन कीड़े खाय.  ऊपर से सीधा-सादा दिखलाई पड़ने वाला भी कभी-कभी भीतर से बड़ा घातक होता है. 

घमंडी का सर नीचा. अहंकारी व्यक्ति को अंततः नीचा देखना पड़ता है. इंग्लिश में कहावत है – Pride goes before a fall.

घर आए कुत्ते का भी आदर होता है. अपने घर जो भी आए उसका अनादर नहीं करना चाहिए.

घर आए नाग न पूजिए, बाँबी पूजन जाए. घर पे जो नाग आया है उस की पूजा न करके दूर सांप की बांबी पूजने जा रहे हैं. अपने घर या आस पास की उपयोगी वस्तुओं की उपेक्षा कर के दूर की चीजों को अधिक महत्व देना.

घर आएं तो माँ मारे, बाहर जाएं तो कुत्ता काटे. जब दोनों ओर संकट हो तो.

घर आया बैरी भी पाहुना (घर आए बैरी को भी न मारिए). अपने घर कोई अतिथि आया है तो वह वैरी हो तब भी उसका यथोचित सत्कार करना चाहिए.

घर कपड़ा और रोटी, और सब बात खोटी. मनुष्य की तीन मूलभूत आवश्यकताएँ हैं, रोटी कपड़ा और मकान.

घर कर घर कर, सत्तर बला सर पर. गृहस्थी बसाने का मतलब है अनेकों मुसीबतें सर पे लेना.

घर का अगुआ घर का बैरी, गाँव का अगुआ गाँव का बैरी. मुखिया चाहे घर का हो या गाँव का. यदि अनुशासन और न्याय प्रिय है तो सब उससे नाराज रहते हैं.

घर का आदमी घर से बाहर भला. आदमी हमेशा घर से बाहर ही अच्छा रहता है. निठल्ला या लड़ाका हो तब तो घर से बाहर अच्छा है ही, कमाऊ हो तब भी घर से बाहर रहेगा तभी तो कमाएगा.

घर का कुआँ है तो क्या डूब कर मरोगे. घर में कोई सुविधा उपलब्ध है तो उसका मूर्खतापूर्ण दुरूपयोग नहीं करना चाहिए. 

घर का कोल्हू, तेली रूखी क्यों खाए. घर में तेल की भरमार हो तो कोई रूखा क्यों खाएगा.

घर का गांजा और घर की चिलम (घर की दारू, घरवाले ही पीने वाले). जब घर वाले ही अपनी संतान को गलत काम सिखा कर बर्बाद करें.

घर का गुड़ घर ही में फोड़ लो. जो बंटवारा करना है चुपचाप घर में ही कर लो, चार जनों के बीच तमाशा न बनाओ.

घर का जोगी जोगिड़ा, आन गाँव का सिद्ध. अपने घर या आस पास की उपयोगी वस्तुओं की उपेक्षा कर के दूर की चीजों को अधिक महत्व देना. घर में कोई साधु है उस का उपहास कर रहे हैं और दूसरे गाँव के महात्मा को सिद्ध बता रहे है. इंग्लिश में कहावत है – The prophet is not honoured at home.

घर का द्वार, खसम के हाथ. घर को गृह स्वामी ही चलाता है.

घर का परोसनियाँ और अँधेरी रात. खाना परोसने वाला घर का आदमी है और अंधेरी रात है अत: कोई देख भी नहीं सकता कि वह किस को कितना परोस रहा है. फिर तो मौज ही मौज है. ऐसी ही एक कहावत है – मामा का ब्याह और माँ परोसन वारी.

घर का बच्चा, काना भी अच्छा. अपना बच्चा कुरूप हो तब भी प्यारा लगता है.

घर का बामन बैल बराबर. घर में कोई विद्वान व्यक्ति हो तो उसकी कद्र नहीं होती.

घर का भेद और दिल का दर्द हरेक के सामने न कहे. अर्थ स्पष्ट है.

घर का भेदी लंका ढाए. रावण और मेघनाथ महापराक्रमी और मायावी थे और उनके पास सब साधनों से संपन्न राक्षस सेना थी. दूसरी ओर राम के पास साधन विहीन वानर सेना थी इसलिए रावण और मेघनाथ को मारना और लंका को जीतना आसान नहीं था. विभीषण ने जो भेद की बातें राम को बताईं उन की सहायता से ही रावण को मारना संभव हो सका. जब कोई व्यक्ति घर के भेद बाहर वालों को बताकर अपने घर को नुकसान पहुंचाता है तब यह कहावत कही जाती है. 

घर का लड़का चाकी चाटे, ओझा जी को सीधा. घर के लोग भूखों मर रहे हैं और झाड़ फूंक करने वालों पर धन बर्बाद किया जा रहा है.

घर का लड़का भूखा मरे, पड़ोसियों को खीर चूरमा. घर के लोगो की बेकदरी कर के बाहर के लोगों को खुश करना.

घर का ही देव, घर के ही पुजारी. जैसे आजकल के कुछ परिवार वादी राजनैतिक दल.

घर की आग ना देखें पहाड़ की आग देखे (घर जलता नजर न आए, पहाड़ की आग देखन जाए). अपना घर जल रहा है उसे नहीं देख रहे हैं, और कहीं आग लगी है वहाँ तमाशा देखने जा रहे हैं. 

घर की खांड किरकरी लागे, चोरी को गुड़ मीठा. जो चीज़ सहज ही उपलब्ध है वह अच्छी नहीं लगती. जो मुश्किल से मिले (चाहे चोरी करना पड़े) वह अच्छी लगती है. इंग्लिश में कहावत है – Stolen fruits are the sweetest.

घर की खाये, सदा सुख पाये. जो व्यक्ति अपने उपलब्ध संसाधनों में काम चलाता है वह सदा सुखी रहता है.

घर की गाय और घर के ही सांड. सब कुछ घर में ही उपलब्ध है, किसी पर आश्रित नहीं हैं.

घर की जोरू की चौकसी कहाँ तक. अगर घर का ही कोई व्यक्ति चोरी करने लग जाए तो चोरी से कैसे बचा जा सकता है.

घर की दाही वन गयी, वन में लागी आग. अभागा और प्रताड़ित व्यक्ति कहीं भी जाए दुर्भाग्य उस का साथ नहीं छोड़ता. दाही – जली. 

घर की धुनियानी, धुने आग पानी. धुनिया उसे कहते हैं जो रुई धुनता है. घर में कोई रुई धुनने वाली होगी तो रुई न मिलने पर और चीजों को धुनने लगेगी. 

घर की फूट घर को खाय. घर के लोगों में मतभेद और झगड़ा घर को बर्बाद कर देता है.

घर की फूट जगत की लूट. जिस घर के लोगों में आपसी झगड़े होते हैं उसे दुनिया के लोग लूट लेते हैं.

घर की फूट, लोक की हांसी (घर की हान लोक की हांसी). घर के लोग आपस में लड़ते हैं तो दुनिया तमाशा देखती है.

घर की बिल्ली और घर ही में शिकार. अपने परिवार के लोगों को धोखा देना.

घर की बीबी हांडनी, घर कुत्तों जोग. घर की स्त्री बहुत बाहर घूमने वाली हो तो घर बरबाद हो जाता है.

घर की मुर्गी दाल बराबर. जो चीज़ घर में मौजूद हो उस की कीमत लोग नहीं समझते. 

घर के चोर के खोज कैसे मिलें. खोज – पैरों के निशान. कहीं पर चोरी होती है तो पैरों के निशान देख कर यह पता लगाया जाता है कि बाहर से कौन आया होगा. घर के किसी आदमी ने चोरी की हो तो पैरों के निशान से कोई सहायता नहीं मिलेगी.

घर के जाए के दिन गिनो या दांत. जानवर की उम्र कितनी है इस का अंदाज़ उसके दांत गिन कर लगाया जाता है, लेकिन जो बछड़ा घर में पैदा हुआ है उस के दांत गिनने की क्या जरूरत. उस का जन्म तो याद ही होता है.

घर के ना घाट के माई के न बाप के. नितांत आवारा.

घर के पीर को तेल का मलीदा. मलीदा एक विशेष प्रकार का पकवान है जो खूब सारा घी डाल कर बनता है. घर में कोई साधु संत है तो उसे तेल से बना घटिया मलीदा खिलाया जा रहा है.

घर के सरकंडे से आँख फूटी. यदि घर का ही कोई व्यक्ति बहुत बड़ा नुकसान पहुंचाए.

घर के सिंगार, लीपा पोता आंगन और पहनी ओढ़ी नार. घर कब अच्छा लगता है, जब आंगन लीपा पोता हो (पहले के जमाने में सफाई करने के बाद आंगन को गोबर या चकनी मिट्टी से लीपते थे) और गृहणी अच्छे कपड़े पहने हो. 

घर के ही नन्द बाबा और घर की ही यशोदा. जब नटखट कृष्ण कोई शैतानी करते थे तो गोप गोपियाँ नंद बाबा और यशोदा से ही शिकायत करने आते थे और यह जानते भी थे कि वे कुछ नहीं करेंगे. वास्तव में कृष्ण सभी के इतने प्रिय थे कि वे लोग स्वयं भी नहीं चाहते थे कि कृष्ण का कुछ अहित हो.   

घर खीर तो बाहर खीर. घर में आपकी पूछ होगी तभी बाहर भी होगी. बेटा घर से बाहर जा रहा था, माँ ने कहा कुछ खा के जा. बेटा बोला, माँ बहुत जगह जाना है सब जगह कुछ न कुछ खाना पड़ेगा. उस दिन कहीं कुछ खाने को नहीं मिला. लौट कर माँ को बताया तो माँ ने कहा, बेटा! घर खीर तो बाहर खीर.

घर घर मटियारे चूल्हे हैं. झगड़े झंझट हर घर में हैं. मटियारे – मिटटी के.

घर घर मित्र न कर सको तो गाँव गाँव में एक. (घर घर मीत न कीजे, तो गाँव गाँव तो कीजे). हर घर में मित्र न बना पाएं तो कम से कम हर गाँव में एक तो बनाएं.

घर घर शादी, घर घर गम (जहाँ ख़ुशी वहाँ रंज). यह संसार है, जहाँ ख़ुशी है वहाँ कुछ न कुछ दुःख भी है.

घर चैन तो बाहर चैन. घर में सुख होगा तभी व्यक्ति तनाव रहित हो कर बाहर भी चैन से काम कर पाएगा.

घर जल गया तब चूड़ियाँ पूछीं. एक स्त्री ने नई चूड़ियाँ बनवाई. इत्तेफाक से किसी ने चूड़ियों के लिए पूछा ही नहीं. हताश हो कर उसने अपने घर में आग लगा ली और हाथ उठा उठा कर लोगों को दिखाने लगी कि देखो मेरे घर में आग लग गई. तभी किसी औरत का ध्यान उसकी चूड़ियों पर गया और उसने पूछ कि ये चूड़ियाँ तुमने कब बनवाईं. तब वह स्त्री बोली, बहन! पहले ही पूछ लेतीं तो मैं घर में आग क्यों लगाती.

घर जला कर उजाला कौन करता है. अर्थ स्पष्ट है.

घर जलेगा तो चूहे भी सुख नहीं पाएंगे. घर में आग लगती है तो घर को नुकसान पहुँचाने वाले चूहों को भी नुकसान ही होता है. देश विरोधी तत्वों को भी ऐसा सोच कर देश को आग में नहीं धकेलना चाहिए. 

घर जाना हो तो पाँव नहीं दुखते. जब मन माफिक काम करना हो तो थकान नहीं होती.

घर तंग बहू जबरंग. घर में साधनों की कमी और बहू खर्चीली.

घर तो नागर बेल पड़ी, पड़ोसन  को खोसै फूस. अपने पास सब कुछ होते हुए भी दूसरे की तुच्छ वस्तुओं को भी हड़पता है.

घर पर काम, कूएँ पर विश्राम. 1. उल्टा काम. कायदे में कुएँ पर काम और घर पर आराम होना चाहिए.  2. कोई व्यक्ति घर पर काम करने को कहा जाएगा इस डर से कुएँ पर जा कर लेटा है. 

घर फूंक कर छत्ता जलाना (घर फूंक कर बर्रैया मारे). बर्र के छत्ते को जलाने के लिए घर में आग लगाने वाले के लिए. छोटी मुसीबत से छुटकारा पाने के लिए बड़ा नुकसान उठाना.

घर फूटे गँवार लूटे. अगर घर में फूट पड़ जाए मूर्ख से मूर्ख व्यक्ति भी आप को लूट सकता है.

घर फूटे घर जाए. आपसी फूट से घर बर्बाद होता है.

घर बार तुम्हारा, ताला चाबी हमारा. किसी का झूठा आदर सत्कार करना. सास भी नई बहू से ऐसे ही कहती है.

घर बैठे आधा भला. घर बैठे थोड़ा लाभ भी मिल जाए तो वह बाहर भटक कर मिलने वाले अधिक लाभ से अच्छा है.

घर बैठे गंगा आई. बड़े भाग्य से लोगों को गंगा में नहाने को मिलता है. किसी के घर में ही गंगा आ जाए तो इससे बड़ा भाग्य क्या होगा. बैठे बिठाए किसी को कोई बहुत बड़ी चीज़ मिल जाए तो यह कहावत कही जाती है. 

घर भर दढ़ियल, चूल्हा कौन फूंके. दढ़ियल – दाढ़ी वाला. लम्बी दाढ़ी वाला व्यक्ति चूल्हा फूंकता है तो दाढ़ी में आग लगने का डर रहता है. घर के सभी लोगों में कोई न कोई ऐब है तो घर का काम कौन करेगा.

घर भाड़े, हाट भाड़े, पूंजी लागे ब्याज, मुनीम बैठा रोटी झाड़े, दीवाला निकले कैसी लाज. घर किराए का, दूकान किराए की, पूंजी उधार की जिस पर ब्याज लग रहा है, नौकर चाकरों को तनखाह भी दे रहे हैं, अब दीवाला निकलने में क्या देर है.

घर भी बैठो और जान भी खाओ. निकम्मे पति से परेशान महिला का कथन.

घर मिले तो वर न मिले और वर मिले तो घर न मिले. कन्या के लिए वर ढूँढने जाएँ तो यह ख़ास परेशानी होती है, जहाँ वर अच्छा हो वहाँ घर अच्छा नहीं होता और जहाँ घर अच्छा हो वहाँ वर अच्छा नहीं होता.

घर में अंधियारा, घुड़साल में दिया. (बुन्देलखंडी कहावत) 1.उल्टा काम, घर में अँधेरा है लेकिन घुड़साल में दिया जला रहे हैं. 2. घुड़साल जैसी महत्वपूर्ण जगह पर दिया जलाना आवश्यक है चाहे घर में अँधेरा हो. (पहले अर्थ से उल्टा)

घर में आई जोय, टेढ़ी पगड़ी सीधी होय. शादी के बाद टेढ़े भी सीधे हो जाते हैं.

घर में उजियारी घरवाली से. घर की शोभा गृहिणी से ही होती है.

घर में कसाला. ओढ़े दुशाला. कसाला – तंगी, खाने की कमी. घर में तंगी होते हुए भी फिजूलखर्ची करना.

घर में कोल्हू, तेली खाय सूखा. जो तेली सब के लिए तेल निकालता है वही बेचारा रूखा सूखा खाता है. जहां चीज़ की बहुतायत होनी चाहिए वहीं उसका अभाव हो तो.

घर में खरच न, ड्योढ़ी पर नाच. कुछ न होते हुए भी दिखावा करना. (पहले जमाने में रईस लोग आम लोगों के मनोरंजन के लिए अपने घर के बाहर नाच आदि का आयोजन करते थे).

घर में खाने का टोटा, तिस पर पाहुनों की मार. एक तो घर में खाने की कमी है ऊपर से बहुत सारे मेहमान आ गए हैं.

घर में घर, लड़ाई का डर. एक घर में दो परिवार रहते हों तो लड़ाई होने की काफी संभावना रहती है.

घर में चाकी, घर में चूल्हा, पर घर पीसे जाय, पड़ोसन से लगी बतियाने, आटा कूकर खाय. जो लोग घर में साधन होते हुए भी दूसरों के यहाँ चक्कर लगाते है और बातें करने में समय गंवाते हैं उन का घर बर्बाद हो जाता है.

घर में चिराग नहीं, बाहर मशाल. घर में कुछ न होते हुए भी तडक भडक और दिखावा करना. 

घर में चूहों की एकादशी. बहुत अधिक गरीबी. (चूहों तक को व्रत रखना पड़ रहा है).

घर में जनाना पैर तो टिका. एक आदमी इस बात से बहुत परेशान था कि उस की शादी नहीं हो पा रही थी. एक बार पड़ोस की मुर्गी उस के घर में घुस गई. किसी ने आवाज़ दे कर उस से कहा कि तेरे घर में मुर्गी घुस गई है, जल्दी निकाल दे. वह बड़े इत्मीनान से बोला, कोई बात नहीं, अच्छा शगुन है, घर में कोई जनाना पैर तो टिका. 

घर में जो शहद मिले, काहे को वन जाए. आवश्यकता की वस्तु घर में ही उपलब्ध हो तो बाहर क्यों भटकना पड़े.

घर में जोरू का नाम महारानी रख लो. अपने घर में कुछ भी करो, कौन रोकने वाला है. (जैसे एक सज्जन ने कोई समिति बनाई और अपने को उसका राष्ट्रीय अध्यक्ष बना लिया).

घर में तो फाका पड़े, साधू न्यौतन जाए. घर वालों को खाने के लाले पड़ रहे हैं और साधु को निमंत्रण देने जा रहे है. मूर्खता भी और अंधविश्वास भी.

घर में दवा, हाय हम मरे. सब कुछ होते हुए भी व्यर्थ का रोना.

घर में दिया जला कर चौराहे पर (मस्जिद में) दिया जलाना. सामाजिक कार्य करने से पहले अपने घर की न्यूनतम आवश्यकताएं पूरी करना चाहिए.

घर में दिया न बाती, मुंडो फिरें इतराती. घर में कुछ न होते हुए भी झूठी शान दिखाना.

घर में देखो चलनी न छाज, बाहर मियाँ तीरंदाज़. (घर में देखी छलनी न छाज, बाहर मियाँ तीरंदाज़). घर में कुछ नहीं है, बाहर तीस मार खां बने घूमते हैं.

घर में धन आता है, लोग हंसें तो हंसने दो, हलवा खाते दांत घिसें तो घिसने दो. कोई काम करने से घर में धन आता है और लोग उस पर हंसते हैं तो हंसने दो. किसी काम में अत्यधिक सुख मिलता है और थोड़ा सा नुकसान भी है तो होने दो.

घर में धान न पान, बीबी को बड़ा गुमान. घर में आवश्यकता की चीजें भी नहीं हैं पर बीबी जी को बड़ा घमंड है.

घर में नहीं दाने, शादी चले रचाने. घर मे कुछ न होते हुए भी बड़े बड़े आयोजन करने की सोचना. 

घर में नारी आंगन सोवे, रन में चढ़ के छत्री रोवे, रात को सतुआ करे बियारी, घाघ मरे तिन्ह की महतारी. जो घर में पत्नी के होते हुए आंगन में सोता है, जो क्षत्रिय रण में रोता है, जो कोई रात में सत्तू का सेवन करता है, इन सब की माएं रो रो के मर जाती हैं. 

घर में नाहीं चून चने को ठाकुर बड़ियाँ खावें, मुझ दुखिया पे धोती नाहीं कुत्ता झूल सियावें. घर में चने का आता तक नहीं है और ठाकुर को बड़ियाँ खाने की सूझ रही है, पत्नी के पास ढंग की धोती नहीं है और कुत्ते के लिए झूल सिल्वा रहे हैं. जहाँ तंगी भी हो और कुप्रबंधन भी हो.

घर में बबूल बोए तो पांवों में कांटे तो गड़ेंगे ही. गलत काम का बुरा ही परिणाम.

घर में बीवी पान नरंगी, बाहर मियाँ कलुआ भंगी. घर में बीवी खूब बन ठन के रहती हैं और बाहर पति बड़ी दीन हीन हालत में काम कर रहा है. भंगी शब्द पर बहुत से लोगों को आपत्ति हो सकती है, पर इससे इतना तो मालूम होता ही है कि उस समय सफाई सेवकों की दशा खराब थी.

घर में ब्याह, बहू कंडों को डोले. घर में कोई बहुत बड़ा काम होना है और घर के महत्वपूर्ण व्यक्ति को छोटे से काम में लगा दिया है.

घर में भूँजी भाँग नहीं, बाहर करता नाच. घर में कुछ नहीं है, बाहर दिखावा करते घूम रहे हैं.

घर में महुआ की रोटी, बाहर लम्बी धोती. घर में गरीबी का यह आलम है कि महुआ जैसे घटिया अनाज की रोटी खा रहे हैं, और बाहर दिखावे के लिए लम्बी धोती पहन रखी है.

घर में मूसे दंड पेलें, बाहर मिर्ज़ा होली खेलें. घर में इतना कुप्रबंधन है कि चूहों की मौज हो रही है, और गृहस्वामी बाहर होली खेल रहे हैं.

घर में शेर, बाहर भेड़ (राजस्थानी कहावत). घर के लोगों पर रौब झाड़ना और बाहर भीगी बिल्ली बन जाना.

घर में संटी, बच्चे पिटने को तरसें. घर में अनुशासन लागू न किया या जाए तो बच्चे बिगड़ जाते हैं.इंग्लिश में कहावत है – spare the rod and spoil your child.

घर में साला दीवार में आला, आज नहीं तो कल दीवाला (भीत में आला और घर में साला ठीक न होते). दीवार में आला होने से दीवार कमज़ोर होती है और घर में साले के रहने से घर कमजोर होता है. महाभारत का शकुनि सबसे बड़ा उदाहरण है. 

घर में ही औलिया घर में ही भूत. औलिया – भूत भगाने वाला. बीमारी भी घर में है और डॉक्टर भी.

घर मेरो दूर गागर सिर भारी. काम मुश्किल भी है और जल्दी निबटने वाला भी नहीं है.

घर यार का, पूत भतार का. दुश्चरित्र स्त्री के लिए जो गैर पुरुष से संबंध रखती है पर पुत्र को पति का बताती है.

घर रहे घर की खाय, बाहर रहे तो भी घर को खाय. निठल्ले आदमी के लिए.

घर रहे न तीरथ गए, मूंड मुंड़ा के जोगी भए (फजीहत भए). मूंड मुंडा के घर के भी नहीं रहे और न ही तीरथ कर के जोगी बन पाए. बेकार में अपनी फजीहत करा ली.

घर ला चीज़ उतनी, काम आवे जितनी. उतना ही सामान घर में लाना चाहिए जितना काम आए. अनावश्यक वस्तुओं का ढेर नहीं लगाना चाहिए.

घर सब से उत्तम, पूरब हो के पच्छम. सबसे आराम दायक जगह घर ही है चाहे वह कहीं भी हो.

घर सुधारयां गांव सुधरे. (राजस्थानी कहावत) हर व्यक्ति अपना घर संभाल ले तो पूरा गाँव ठीक हो जाएगा.

घर से खेत कितना, जितना खेत से घर. किसी बात का सीधा जवाब न देना.

घर से घर नहीं चलता. 1. आप किसी की सहायता कर सकते हैं पर उसका पूरा खर्च नहीं उठा सकते. 2. घर का मुखिया घर में ही बैठा रहेगा तो घर नहीं चल सकता.

घर से निकली बेटी को जम ले जाय या जमाई, वह घर लौट कर नहीं आती. पहले के जमाने में यह मान्यता थी की स्त्री की मायके से डोली उठनी चाहिए और ससुराल से सीधे अर्थी ही उठनी चाहिए.

घर ही में वैद, मरे कैसे. मूर्खता पूर्ण प्रश्न. मृत्यु तो अवश्यम्भावी है, खुद वैद्य को भी एक दिन मरना है.

घर हीना देना पर वर हीना मत देना. लड़की अपने माता पिता से कहती है कि एक बार को मुझे कमजोर घर में दे देना, पर निखट्टू वर को मत दे देना.

घरनी बिना घर कैसा. घर गृहणी से ही होता है. (बिन घरनी घर भूत का डेरा).

घरवाले का एक घर, निघरे के सौ घर. गृहस्थ व्यक्ति का एक ही घर होता है, घर विहीन व्यक्ति के लिए हर जगह घर है.

घरै बाबरा, बाहर सयाना. ऐसे व्यक्ति के लिए जिस के गुणों की कद्र उस के घर वाले न करते हों. 

घाघरे का चीलर, पालते बने न निकालते बने. घाघरे में चीलर लग जाए तो सब के सामने निकाल भी नहीं सकती और न निकाले तो वह काटता रहेगा. कोई संबंधी यदि नीचता पर उतारू हो जाए तो.

घाघरे का रिश्ता. पत्नी की तरफ के रिश्तेदार.

घाट-घाट का पानी पी के होखल बड़का संत. (भोजपुरी कहावत) जगह जगह मुंह मारते हैं और अपने को बड़ा संत घोषित करते हैं.

घाटा डेढ़ हजार का, नाम हजारी लाल. गुण के विपरीत नाम. कहावत उस समय की है (जब हजार रूपये बहुत बड़ी रकम होती थी).

घाटी का पानी पहाड़ पर नहीं चढ़ता. कोई असम्भव बात कर रहा हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.

घाटे में बनिया बही टटोले. बनिया घाटे में चल रहा होता है तो अपना पुराना बही खाता टटोलता है कि शायद किसी पर लेनदारी निकल आए. 

घायल की गति घायल जाने, और न जाने कोय. दुखी व्यक्ति की हालत दुखी ही जानता है.

घायल दुश्मनों में, साँस ले तो मरे साँस न ले तो मरे. घायल व्यक्ति दुश्मनों के बीच में सांस रोक के पड़ा है, अगर सांस लेगा तो दुश्मन समझ जाएंगे कि वह जिन्दा है और उसे मार डालेंगे. अगर सांस नहीं लेगा तब भी मर जाएगा. बहुत बड़ी दुविधा में फंसे व्यक्ति के लिए.

घाव भर जाता है पर निशान रह जाता है. किसी ने आप के साथ दुर्व्यवहार किया हो और समय के साथ आप उसे भूल जाएं तो भी उस की कसक मन में रहती है.

घाव से टीस बड़ी. जब शरीर के घाव से मन का घाव बड़ा हो.

घास काटने जाए और कसार का तोसा. कसार – घी, आटे, बूरा और मेवा से बनने वाली मिठाई, तोसा – काम पर जाने वाले जो खाना ले जाते हैं. किसी काम में जितनी कमाई न हो उससे ज्यादा खर्च करना.

घास की छाया कितनी. छोटे आदमी से कितना सहारा हो सकता है.

घिरी हुई बिल्ली कुत्ते से पंजा लड़ाती है. संकट में फंसा व्यक्ति अपने से अधिक ताकतवर से भी भिड़ जाता है.

घिस घिस कर ही गोल होता है. नदी के साथ बहने वाले पत्थर घिस कर गोल हो जाते हैं. कुछ बनने के लिए कष्ट उठाने पड़ते हैं.

घिसे बिना चमक कहाँ. लकड़ी और पत्थर को घिसने पर ही चमक आती है. उन्नति करने के लिए कष्ट उठाना आवश्यक है.

घी कबीरा खा गया, छाछ पाई संसार. ज्ञान का घी कबीर ने चख लिया, दुनिया को बची हुई छाछ ही मिली है.

घी कहाँ गया, खिचड़ी में, खिचड़ी कहाँ गई, पेट में. किसी वस्तु का सही काम में उपयोग हो जाना.

घी का चूरमा, भैरों जी को भाए न. भैरों जी को तेल का चूरमा ही चढ़ाया जाता है. अगर कोई बच्चा घर के स्वादिष्ट और स्वास्थ्य प्रद भोजन के स्थान पर बाजार का चटर पटर खाने को मांगे.

घी का लड्डू टेढो भलो. उपयोगी वस्तु देखने में अच्छी न भी तो भी ठीक लगती है.

घी की हंडिया से बेटों को जिमाए, खट्टी छाछ बेटियों को खिलाए. पुराने समय में बेटों और बेटियों में बहुत भेदभाव होता था.

घी खाने से ताकत आती है, लगाने से नहीं. अर्थ स्पष्ट है.

घी खावत बल तन में आवे, घी आँखों की जोत बढ़ावे. पहले के लोग मानते थे कि घी खाने से शरीर में ताकत आती है और आँखों की ज्योति बढ़ती है. वैसे आँखों की ज्योति वाली बात ठीक भी है क्योंकि घी में विटामिन ‘ए’ होता है.

घी खिचड़ी का मेल. एक दूसरे का महत्व बढ़ाने वाली दो चीजों का मेल.

घी गिर गया, मुझे रूखी भाती है. घी गिर गया तो समझदारी इसी में है कि यह कहें हमें तो रूखी रोटी पसंद है. (मजबूरी का नाम महात्मा गांधी),

घी गुड़ आटा तेरा, फूंक आग और पानी मेरा. बिना लागत लगाए साझा करने की कोशिश करना. 

घी गुड़ मीठा या दुलहन. बरातियों को अच्छा खाना प्रिय है पर दूल्हे को तो दुल्हन ही अधिक प्रिय है.

घी जाट का और तेल हाट का. घी गाँव से लिया अच्छा होता है क्यों कि ताज़ा होता है और मिलावट की संभावना कम होती है, तेल बाजार से लिया अधिक अच्छा होता है क्यों कि साफ़ किया हुआ होता है.

घी जिमावे सास, पोतों की आस. सास बहू को घी खिलाती है, जिससे उसकी संतान (पोता) हृष्ट पुष्ट हो.  

घी डालते कौन मना करता हैअपने भले के लिए कौन मना करता है.

घी डाले आग नहीं बुझती. आग में घी डालना एक मुहावरा है जिसका अर्थ है लड़ाई को और भड़काना. कहावत का अर्थ है कि लड़ाई को और भड़काने वाला काम करोगे तो लड़ाई शांत नहीं होगी. 

घी तो निकल गया, छाछ ही बची है. किसी संगठन में से श्रेष्ठ व्यक्तियों के निकल जाने पर यह कहावत बोली जाएगी.

घी न खाया, कुप्पा तो बजाया. कुप्पा – बड़ा मटका. कुप्पे को उंगली से बजा कर देखते हैं कि वह कितना भरा है. यह कहावत उसी प्रकार है जैसे ब्याह नहीं किया तो क्या, बारात तो गए हैं. 

घी नहीं है तो कुप्पा ही बजाओ. अभावों में समय काटना हो तो समझदारी इसी में है.

घी बिना रूखा कसार, बच्चों बिना सूना संसार. अर्थ स्पष्ट है.

घी भी खाएं तो खेसारी की दाल में. खेसारी की दाल घटिया मानी जाती है. उस में घी डाल कर खाना घी का अपमान करना है.

घी भी खाओ और पगड़ी भी रखो (घी खाना है तो पगड़ी रख कर खाओ).  अच्छा खाना सब चाहते हैं लेकिन उसके लिए अपनी प्रतिष्ठा पर आंच मत आने दो.

घी मिले तो गोड़ चलें. पुराने लोग मानते थे कि घी खाने से ही ताकत आती है. गोड़ – घुटने.

घी शक्कर और दूध की मलाई हो, सात भाइयों में कमाई सवाई हो, घर में सोना चांदी हो बाजार में हुंडी चले, इतना दे दो प्रभु कुछ और मिले ना मिले. सब कुछ मांग रहे हैं और कह रहे हैं कि प्रभु बस इतना दे दो.

घी सम्हाले ताहरी, नाम बहू को होए. नई बहू से ताहरी बनाने के लिए कहा गया. उसने खूब सारा घी डाल कर बढ़िया ताहरी बना दी. सबने ताहरी की तारीफ़ की तो सास ने जल कर यह बात कही. जरूरत से अधिक साधनों का उपयोग कर के कोई काम किया जाए तो यह कहावत कहते हैं. इसको ऐसे भी कहते हैं – घी संवारे काम, बड़ी बहू को नाम.

घुसिया हाकिम, रुसिया चाकर. हाकिम घूसखोर हैं और उनका नौकर तुनक मिजाज है. रुसिया – गुस्सा करने वाला.

घूँघट का मर्म गँवार कया जाने (घूँघट का भार, क्या जाने गंवार). मूर्ख व्यक्ति स्त्री की मर्यादा और महत्व को नहीं समझ सकता.

घूँघट की मर्यादा तो मूँछ की भी मर्यादा (घूँघट का मान, मूँछों की शान). पुरुष यदि स्त्री का सम्मान करेगा तभी उसका सम्मान होगा.

घूँघट में मकखी गटके. पर्दे की ओट में गलत काम करने वालों के लिए.

घूँघट से सती नहीं, मूंड मुंडाए जती नहीं. घूँघट कर लेने मात्र से कोई स्त्री पतिव्रता नहीं बन जाती और सर मुंडा लेने से कोई योगी नहीं हो जाता.

घूमे सो चरे, बंधा भूखा मरे. जो जानवर आजाद है वह तो इधर उधर मुंह मार कर पेट भर लेता है पर जो खूंटे से बंधा है उसे खाना न मिले तो वह तो भूखा ही मरेगा. यही बात इंसानों पर भी ठीक बैठती है.

घूर में पड़ा हीरा भी कूड़ा. व्यक्ति का महत्व उसके स्थान से होता है.

घूरे का हंस (घूरे का रत्न). किसी गलत स्थान पर पड़ा हुआ कोई उत्तम वास्तु या व्यक्ति.

घूरे की गाय, कूड़ा ही खाय. ओछी संगत में पड़ कर श्रेष्ठ व्यक्ति भी ओछे काम ही करता है.

घूरे के साथ गोबर खुश. ओछा व्यक्ति उसी प्रकार के परिवेश में खुश रहता है.

घूरे पर उगा आम का पेड़. किसी निकृष्ट व्यक्ति के घर अच्छी संतान का जन्म लेना.

घूरे पर घूरा पड़ता है. जहाँ एक बार कूड़ा डालना शुरू कर दो वहाँ सभी लोग कूड़ा डालने लगते हैं. कोई व्यक्ति एक बार गलत काम करना शुरू कर दे तो उसे वैसा ही काम करने वाले लोग मिलने लगते हैं.

घूरे पर भी मेंह बरसे और महलों पर भी. ईश्वर की कृपा सब पर बराबर से बरसती है.

घूस चलती तो बनिया यमराज को भी घूस दे देता (घूस दिए मौत टले तो बनिया यमराज से भी न चूके). यदि परलोक में घूस देने की कोई व्यवस्था होती तो बनिया वहाँ भी घूस दे कर अपना काम निकाल लेता. 

घोड़ा और फोड़ा, जितना सहलाओ उतना बढ़ते हैं. फोड़े को सहलाना नहीं चाहिए यह सीख देने के लिए यह कहावत कही गई है. यह भी बताया गया है कि घोड़े का बच्चा भी मालिश करने से जल्दी बड़ा होता है.

घोड़ा को चढ़इया चूक जात, राजा को सिपहिया चूक जात, धन को धरैय्या चूक जात, चूकत नहीं चुगला चुगलखोरी सों. (बुन्देलखंडी कहावत) घोड़े पर चढ़ने वाला घुड़सवार चूक सकता है, राजा का सिपाही चूक सकता है, धन को रखने वाला चूक सकता है, पर चुगलखोर चुगली करने से नहीं चूकता.

घोड़ा घास से यारी करेगा तो खायगा क्या. यह एक बड़ी व्यवहारिक सी बात है की घोड़ा घास से दोस्ती नहीं कर सकता, वरना वह खाएगा क्या. कोई डॉक्टर अगर मरीज से फीस न ले तो यह कहावत कही जाएगी.

घोड़ा चले चार घड़ी, ब्याज चले आठ घड़ी. उधार के पैसे का ब्याज दिन दूना रात चौगुना बढ़ता है.

घोड़ा चाहिए विदा को, लौटते पे आना. जाने के लिए घोड़े की जरूरत है, जिससे मांगने गए वह कह रहा है कि लौटते पे ले लेना. जरूरत पर चीज़ न देने के लिए बहाना बनाना.

घोड़ा दौड़े या घोड़ी दौड़े कौन जाने. बहुत सी बातों का अंदाज दूर से नहीं लगाया जा सकता.

घोड़ा पहचाने सवार को. कोई नया सवार जैसे ही घोड़े पर बैठता है घोड़ा उसके हावभाव से तुरंत पहचान लेता है कि सवार कितना काबिल है. ऐसे ही मातहत कर्मचारी नए हाकिम की आदतों को तुरंत भांप लेते हैं.

घोड़ा पालूं और पैदल चलूँ. अगर घोड़ा पालने के बाद भी पैदल चलना पड़े तो घोड़ा पालने का क्या फायदा हुआ. (कुत्ता पाले और पहरा दे)

घोड़ा भला न लांगड़ा, रूख भला न झांगड़ा. लंगड़ा घोड़ा अच्छा नहीं होता और पेड़ के नाम पर झाड़ झंखाड़ अच्छा नहीं होता.

घोड़ा भेज के वैद बुलाए, मर्ज घटा तो पैदल पठाए. काम निकल जाने के बाद कोई नहीं पूछता.

घोड़ा है पर सवार नहीं. साधन तो हैं पर उनका उपयोग करने वाला सही व्यक्ति कोई नहीं है.

घोड़ा, टट्टू, गज, गऊ, पूत, मीत, धन, माल, कोऊ संग न जात है, जब लै जिउ निकाल. जब यमराज प्राण लेने आते हैं तो किसी भी प्रकार का धन और मित्र व सम्बन्धी साथ नहीं जाते.

घोड़ा, मर्द और मकौड़ा, पकड़ने के बाद छोड़ते नहीं. अर्थ स्पष्ट है.

घोड़ी नहलाएँ या पानी पिलाएँ. काम करने में बहाने बनाने वालों के लिए. 

घोड़े का गिरा संभल सकता है, नजरों का गिरा नहीं. एक बार किसी का विश्वास खो देने पर दोबारा लौट कर नहीं आ सकता.

घोड़े का हठ और औरत का हठ एक समान. अर्थ स्पष्ट है.

घोड़े की दुम बढ़ेगी तो अपनी ही मक्खियाँ उड़ाएगा. क्षुद्र मनोवृत्ति का व्यक्ति उन्नति करेगा तो खुद अपना ही भला करेगा, किसी और काम नहीं आएगा.

घोड़े की नालबाजी में गदही पैर बढ़ावे (घोड़े के नाल ठुकती देख मेंढकी ने भी पंजा बढ़ा दिया). घोड़ों के पैर सड़क पर दौड़ने से घिस न जाएं इसके लिए उनके पैर में लोहे की नाल ठोंकी जाती है. घोड़े के नाल ठुकती देख कर गदही या मेंढकी ने भी अपना पैर आगे कर दिया. कोई मूर्ख और कमजोर आदमी बुद्धिमान और शक्तिशाली आदमी की बराबरी करने की कोशिश करे तो यह कहावत कही जाती है. 

घोड़े की पूँछ पकड़ूँ क्या दोगे, के घोड़ा खुद ही दे देगा. मूर्खतापूर्ण प्रश्न पूछने वालों पर व्यंग्य.

घोड़े की लात से घोड़े नहीं मरते. किसी बेईमान के हथकंडों से बेईमानों का नुकसान नहीं होता.

घोड़े की सवारी और गठरी सिर पर. कोई व्यक्ति घोड़े की पीठ पर बैठा हो और गठरी अपने सर पर रखे हो वह निपट मूर्ख ही कहा जाएगा.

घोड़े की सवारी, चलता जनाजा. घोड़े की सवारी खतरनाक होती है.

घोड़े को लात, आदमी को बात. घोड़े को लात की भाषा ही समझ में आती है (घोड़े को दौड़ाने के लिए एड़ लगाते हैं), जबकि मनुष्य को बातों से समझाया जा सकता है. यहाँ घोड़े से मतलब मूर्ख या नीच आदमी से भी है.

घोड़े घोड़े लड़ें, मोची का जीन टूटे. दो व्यक्तियों की लड़ाई में नुकसान किसी तीसरे का हो तो.

घोड़े तो असवारों से ही दबते हैं. घोड़ा कितना भी शक्तिशाली और उच्छ्रंखल क्यों न हो, अच्छे सवार उसे काबू कर लेते हैं.

घोड़े भैंसे की लाग. दो बड़े आदमियों की टक्कर.

घोड़े मर गए, गधों का राज आया. योग्य व्यक्ति नहीं रहे, अब मूर्खों का राज है.

घोड़े से गिर गिर कर ही घुड़सवार बनता है. चोट खा कर ही आदमी कुशल और मजबूत बनता है.

घोड़ों का घर कितनी दूर. यदि आप काम करना चाहते हैं तो साधन कितनी भी दूर क्यों न हो आप उस तक पहुँच जाएँगे, यदि नहीं करना चाहते हैं तो साधन कितनी भी पास क्यों न हो आप बहाने बनाते रहेंगे. इसी प्रकार की दूसरी कहावत है – जहाँ चाह वहाँ राह.

घोड़ों का दाना गधों को नहीं खिलाया जाता. उत्तम सुविधाएँ प्राप्त करने के लिए उनके योग्य होना जरूरी है.

घोड़ों की शोभा घुड़सवारों से. घोड़ा कितनी भी अच्छी नस्ल का क्यों न हो, उसकी शोभा अच्छे सवार से ही होती है.

 

 

चंचल नार की चाल छिपे नहिं, कोई नीच छिपे न बड़प्पन पाए, जोगी का भेस नीक धरो, कोई करम छिपे न भभूत रमाए. यहाँ चंचल नार से अर्थ चरित्रहीन नारी से है. अर्थ है कि चरित्रहीन नारी का चाल चलन छिपता नही है, किसी नीच को बड़ा पद मिल गया हो तो वह भी नहीं छिपता और भभूत रमा कर कोई धूर्त व्यक्ति साधु बनना चाहे तो वह भी नहीं छिपता.

चंचल नार छैल से लड़ी, खन अंदर खन बाहर खड़ी. दुश्चरित्र स्त्री का मिलन किसी मनचले (छैल) से हो गया है तो वह अपनी प्रसन्नता छिपा नहीं पा रही है.

चंडी माई लीपेगी, न निगोड़े खोदुंगी. कुछ स्त्रियां बड़े कर्कश स्वभाव की होती हैं, कुछ पूछो तो हमेशा उल्टा जवाब देती हैं. बोलचाल की भाषा में इन्हें चंडीमाई कहते हैं. ऐसी किसी स्त्री से किसी भले मानुष ने पूछा – चंडीमाई चौका लीपने जा रही हो? चंडीमाई ने जवाब दिया – न निगोड़े! खोदने जा रही हूँ. आजकल के बच्चों को यह नहीं मालूम होगा कि पहले के जमाने में खाना बनाने के पहले चौके (रसोई) को मिट्टी या गोबर का पतला घोल बना कर उससे लीपते थे. कुछ लोग इस कहावत को पूरा इस तरह बोलते हैं – चंडी माई लीपेगी, न निगोड़े खोदुंगी, चंडी माई खोदेगी, न निगोड़े लीपुंगी.

चंदन तरु की बास से सब चन्दन हुई जात, तैसेई एक सपूत से सबरो कुटुम अघात. (बुन्देलखंडी कहावत) जैसे एक चंदन के पेड़ की खुशबू से सारे पेड़ों में खुशबू आ जाती है, वैसे ही एक सुपुत्र से सारा कुटुंब धन्य हो जाता है.

चंदन धोई माछली, पर छूटी ना गंध. (राजस्थानी कहावत) मछली पर चंदन रगड़ो तब भी उस की गंध नहीं छूटती. निम्न कोटि का व्यक्ति अच्छी संगत पा कर भी नहीं सुधरता.

चंदन हूँ की आग से जरे देह तत्काल. चंदन की लकड़ी शीतल होती है पर जलती हुई चंदन की लकड़ी शरीर को जला देती है. कोई संत प्रकृति का व्यक्ति अगर क्रोध में है तो हानि पहुँचा सकता है. 

चंद्र ग्रहण कुत्तों को भारी.  चंद्र ग्रहण के दौरान डोम इत्यादि भीख माँगते हैं, तब गलियों में कुत्ते उन पर भौंकते हैं और अकारण ही पिट जाते हैं. दूसरों के कारण व्यर्थ कष्ट उठाने पर.

चंद्रमा में भी कलंक (दाग) हैं. कोई भी चीज़ पूर्णत: दोष रहित नहीं है. इंग्लिश में कहावत है -Nothing is perfect.

चंपा के दस फूल चमेली की एक कली, मूरख की सारी रैन चातुर की एक घड़ी. जिस प्रकार चम्पा के दस फूल से चमेली की एक कली अधिक अर्थपूर्ण है उसी प्रकार मूर्ख की सारी रात की मेहनत के मुकाबले बुद्धिमान व्यक्ति का एक घड़ी का कार्य अधिक अर्थपूर्ण है.

चकमक दीदा, खाय मलीदा. जो स्त्री सब लोगों से नैन मटक्का करती है उसे गुलछर्रे उड़ाने को मिलते हैं.

चकरया चाकरी करके आप अपने हाथ बिकता है. किसी की नौकरी करने वाला स्वयं ही अपने आत्म सम्मान को उसके हाथ बेच देता है. (चकरया – चाकरी करने वाला)

चकवा चकवी दो जने, इन मत मारो कोय, ये मारे करतार के रैन बिछोहा होय. चकवा और चकवी को वैसे ही रात में अलग रहने का श्राप मिला हुआ है. इन में से किसी को मारने से पाप लगता है.

चक्की पर चक्की, मेरी कसम पक्की. बच्चों की कहावत. कसम खाने के लिए बच्चे ऐसे बोलते हैं.

चक्की पे घर तेरो, निकल सास घर मेरो. नई बहू सास को बता रही है कि तेरा काम अब केवल चक्की पीसना ही है. अब इस घर की मालकिन मैं हूँ.

चक्की में कौर डालोगे तो चून पाओगे. चक्की में गेहूँ डालोगे तभी आटा मिलेगा. पहले कुछ रुपया पैसा खर्च करोगे या पहले कुछ रिश्वत वगैरा दोगे तभी काम हो सकेगा.

चक्की में से साबुत निकल आवे. बहुत निर्लज्ज व्यक्ति (जो चलती हुई चक्की में से भी साबुत निकल आए).

चख ले माल धन को, कौड़ी न रख कफन को. बिंदास जीवन जीने वालों का कथन. सब कुछ अपने जीते जी खर्च कर लो, बचाने के चक्कर में मत पड़ो.

चचरे ममेरे, बड़तले बहुतेरे. बड़े लोगों से सब लोग अपनी रिश्तेदारी निकालते हैं.

चचा चोर भतीजा काजी. चाचा चोर है पर उसका भतीजा ही न्यायाधीश है, ऐसे में न्याय की क्या उम्मीद करें. यह कहावत कुछ राजनैतिक दलों और न्यायपालिका के कुछ भ्रष्ट सदस्यों के अनैतिक गठबन्धन पर बिलकुल सटीक बैठती है.

चट मंगनी पट ब्याह. तुरंत निर्णय लिया और तुरंत काम हो जाए तो यह कहावत कही जाती है.

चट मकई, पट सनई. जल्दी मक्का बो कर काट ली और सनई बो दी. बहुत जल्दी जल्दी काम निबटाने वाले लोगों के लिए.

चट मौत, पट शादी (चट रांड, पट सुहागन). किसी स्त्री के पति की मृत्यु के बाद जल्दी दूसरा विवाह हो जाए तो.

चटनी बिन न रोटी सोहे, गूँधे बिन न चोटी सोहे (लवन बिना न सोहे रोटी, बिन गूँधे न सोहे चोटी). बाल खोल कर घूमने वाली लड़कियों को पहले फूहड़ माना जाता था. उनको सीख देने के लिए कहा गया है कि जिस प्रकार चटनी या नमक के बिना रोटी अच्छी नहीं लगती, उसी प्रकार गूँधे बिना चोटी अच्छी नहीं लगती. लवन – लवण, नमक.

चटोर का ब्याह, चोट्टी न्योते आई. जैसा दूल्हा वैसे ही बाराती.

चटोर खोवे एक घर, बतोर खोवे दो घर. चटोरा व्यक्ति (खाने पीने का शौक़ीन) केवल अपना घर बर्बाद करता है (पैसा उड़ा कर), पर बातों का शौक़ीन आदमी दो घर बर्बाद करता है. अपना भी समय खराब करता है और दूसरे का भी.

चटोरा कुत्ता, अलोनी सिल. अलोनी सिल – ऐसी सिल जिस पर कुछ न पीसा गया हो. चटोरा कुत्ता ऐसी सिल क्यों चाटेगा जिस पर कुछ न लगा हो.

चटोरी जबान, दौलत की हान. चटोरी जबान वाले लोग खाने पीने में सब पैसा उड़ा देते हैं.

चढ़ जा बेटा सूली पर, भली करेंगे राम (भली करेगो अल्ला). किसी व्यक्ति को जोखिम भरे काम के लिए उकसाया जा रहा हो तो वह यह कहावत कहता है.

चढ़ मार, गूलर पक्के. आगे बढ़ के काम करो, सफलता अवश्य मिलेगी.

चढ़ती जवानी और भरी हुई अंटी क्या अनर्थ नहीं कराती. जवानी के जोश में भी बहुत से गलत काम होते हैं और पास में आवश्यकता से अधिक धन हो तो भी गलत काम किए जाते हैं.

चढ़ते पित्त उतरते बाय, ताते गोरख भूंज के खाय. भांग की महिमा बताई गई है. भांग चढ़ते समय पित्त को शांत करती है और उतरते समय वायु को. बाय – वायु रोग, ताते – इस कारण से.

चढ़ाई से उतराई महान. 1. पहाड़ पर चढ़ने से उतरना अधिक कठिन है. 2. किसी व्यक्ति की उन्नति हो रही हो तो बहुत अच्छा लगता है, पर जब उस की अवनति होती है तो उसकी कठिन परीक्षा होती है.

चढ़ी कढ़ाही तेल न आया तो कब आएगा. गृहणी ने कढ़ाही आग पर चढ़ा दी है और पति तेल लाने में आनाकानी कर रहा है. तो पत्नी पूछती है कि इस मौके पर तेल नहीं लाओगे तो कब लाओगे. आवश्यकता के समय काम न किए जाने पर.

चढ़े ऊंट, मांगे बूंट. जो मांगने वाला है वह किसी भी स्थान पर पहुँच जाए उस की मांगने की आदत नहीं जाती. बूंट – चना.

चढ़े कचेहरी, बिके मेहरी. जो कचहरी के चक्कर में पड़ेगा उसका घर बार बिक जाएगा. मेहरी – स्त्री.

चढ़ेगा सो गिरेगा. जो चढ़ेगा वही गिरेगा, जो चढ़ेगा ही नहीं उसे गिरने का क्या डर (गिरते हैं शहसवार ही मैदाने जंग में, वो तिफ़्ल क्या गिरेगा जो घुटनों के बल चले). इस का दूसरा अर्थ यह है कि उन्नति करने पर बहुत खुश मत हो, कल को फिर नीचे गिर सकते हो. इंग्लिश में कहावत है – He that never climbed, never fell.

चढ़ो चाचा, चढ़ो ताऊ, येहि में घोड़ी खाली चले. एक दूसरे के शिष्टाचार में चाचा ताऊ दोनों पैदल चल रहे हैं और घोड़ी खाली चल रही है

चतुर की चाकरी बुरी. यहाँ चतुर से अर्थ बहुत मीन मेख निकालने वाले व्यक्ति से है. ऐसे व्यक्ति की नौकरी करने में बहुत परेशानियाँ हैं.

चतुर के चार कान नहिं होत. चतुर व्यक्ति बहुत जल्दी बात को सुन और समझ लेता है, इसलिए नहीं कि उसके पास चार कान हैं. बल्कि इसलिए कि उसकी बुद्धि तीव्र होती है. 

चतुर चार जगह ठगा जाता है. जो अपने को ज्यादा होशियार बनता है वह अधिक नुकसान उठाता है. 

चतुर नार नरकूढ़ से ब्याह होए पछताए, जैसे रोगी नीम को आँख मीच पी जाए. बुद्धिमती स्त्री मूर्ख व्यक्ति से विवाह हो जाने पर मन ही मन शोक के घूँट पी कर रह जाती है, जैसे रोगी नीम को आँख बंद कर के मजबूरी में पी लेता है.

चतुर शत्रु उपायहिं नासे. चतुर शत्रु को चालाकी से ही नष्ट किया जा सकता है, पराक्रम से नहीं.

चतुर सो गृही जो संचै कोषा. कोष – खजाना. वही गृहस्थ चतुर माना जाता है जो रुपया पैसा और अनाज आदि इकठ्ठा कर के रखता है.

चतुरा का काम न करे, हेजिये के बच्चे न खिलाए. जो स्त्री अपने को बहुत चतुर समझती हो उसका काम नहीं करना चाहिए (क्योंकि वह उसमें कमियाँ निकालने से बाज नहीं आएगी). इसी प्रकार जिसे अपने बच्चे का बहुत हेज (सयान) हो उसके बच्चे को नहीं खिलाना चाहिए (क्योंकि वह खिलाने वाले पर इलज़ाम लगाएगी कि उसने बच्चे को नुकसान पहुँचा दिया).

चतुरा तो पूतन को तरसे, फूहड़ जन जन हारी. प्रकृति की अजब माया है. समझदार और सम्पन्न स्त्री सन्तान के लिए तरस रही है और जो फूहड़ और गरीब स्त्री है, (जो बच्चों को ठीक से पाल भी नहीं सकती) उसके धड़ाधड़ बच्चे हो रहे हैं.

चना और चुगल को मुहँ नहीं लगाना चाहिए. (चना और चुगल मुँह लग जाए तो छूटता नहीं है). चुगल – जो दूसरों की बुराई (परनिंदा) करता हो. ऐसे व्यक्ति को मुँह नहीं लगाना चाहिए, क्योंकि फिर आपको भी परनिंदा में रस आने लगता है. कहावत को रुचिकर बनाने के लिए चने का उदाहरण जोड़ दिया गया है.

चना कूदे तो कितना कूदे, कढ़ाई से बाहर. छोटा आदमी बहुत बड़ा काम नहीं कर सकता.

चने चबाओ या शहनाई बजाओ. अगर शहनाई बजाना है तो चने नहीं चबा सकते. जब दो प्रिय कामों में से एक को चुनने की मज़बूरी हो तो.

चने चाब कर उँगलियाँ चाटने में क्या स्वाद आएगा. जब हम कोई स्वादिष्ट भोजन करते हैं तो उसके बाद उंगलियाँ चाटने में आनंद आता है, चने जैसी साधारण और बिना मसाले की चीज़ खा कर उँगली चाटने में क्या स्वाद आएगा. 

चने चिरौंजी हो गए, गेहूँ हो गए दाख, घर में गहने तीन हैं, चरखा, पीढ़ी, खाट. अत्यधिक गरीबी. चने और गेहूँ मिलना इतने मुश्किल हो गए जैसे चिरौंजी और किशमिश. घर में जो मूल्यवान वस्तुएं बची हैं वे हैं चरखा, बैठने का पीढ़ा और खाट.

चन्दन की चुटकी भली, गाड़ी भरा न काठ. गाड़ी भर कर लकड़ी मिलने के मुकाबले चुटकी भर चन्दन बेहतर है. यह उन्हीं के लिए कहा गया है जो चन्दन की कीमत जानते हैं.

चप्पा भर की झोपड़ी नई हवेली नाम. नाम के विपरीत गुण.

चप्पे जितनी कोठरी और मियाँ मोहल्लेदार. चप्पा – चार अंगुल जगह. बहुत छोटी से घर में रहते हैं और शान बघारते हैं. झूठी शान बघारने वालों के लिए.

चबा के खाते तो हलक में क्यूँ फंसता. धैर्य पूर्वक काम करते तो परेशानी में क्यों पड़ते.

चबोकड़ सो लबोकड़. ज्यादा बातूनी आदमी झूठा होता है.

चमगादड़ के घर मेहमान आए, जैसे हम लटके वैसे तुम भी लटको भैया. गरीब के घर मेहमान आए तो वह कहता है कि भैया जिस तरह मैं काम चलाता हूँ वैसे ही तुम भी काम चलाओ.

चमचागिरी न करो न कराओ. न किसी की चमचागीरी करनी चाहिए और न ही चमचों को देख कर खुश होना चाहिए.

चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए. पैसे के आठवें भाग को दमड़ी कहते थे. ऐसा व्यक्ति जो शरीर के अंगों को नुकसान होने की दशा में भी रत्ती भर पैसा इलाज में न खर्च करे. अत्यधिक कंजूस लोगों के लिए यह कहावत कही जाती है.

चमड़े का जल दुनिया पीवे. पहले के जमाने में चमड़े के मशक में कुएं से पानी भर कर भिश्ती लोग घर घर जा कर घड़ों में पानी भरते थे. (देखिये परिशिष्ट) 

चमड़े की चलनी और कुत्ता रखकार (चाम का चमोटा, कूकुर रखवाल). चमड़े की चलनी की रखवाली भला कुत्ता कैसे कर सकता है. वह तो मौका मिलते ही उसे चबा जाएगा.

चमड़े की देवी को जूतों की पूजा. जैसी देवी वैसी पूजा.

चमत्कार को नमस्कार. चमत्कार के आगे सब नतमस्तक होते हैं.

चमार के मनाने से डांगर नहीं मरते.  डांगर – गाय, भैंस, बकरी आदि. चमार के मनाने से पशु नहीं मरते. अर्थात किसी के चाहने से दूसरे का अनिष्ट नहीं हो जाता. (कहावत उस समय की है जब चर्मकार बंधुओं का जीवन अत्यंत दयनीय था. उन बेचारों की जीविका केवल मरे हुए जानवरों पर ही निर्भर थी. आधुनिक भारत में अब सब के लिए समान अवसर उपलब्ध हैं)

चमरिया को चाची कह दिया तो चौके में चली आई. किसी निम्न कुल की स्त्री को कुछ सम्मान दे दिया तो वह ज्यादा सर चढ़ गई. (कहावतें तत्कालीन समाज का दर्पण होती हैं. इस कहावत में उस समय व्याप्त छुआछूत और जात पांत का सटीक चित्रण है. यह कितना भी आपत्तिजनक और निन्दनीय क्यों न हो, उस समय की सच्चाई यही है).   

चमार चमड़े का यार. जिसका जो काम होता है उसको उसी से सम्बन्धित चीजों में रूचि होती है (चर्मकार को चमड़े में, लोहार को लोहे में, मिस्त्री को ईंट गारे में).

चमेली लाड़ में आई, घर भर साथ लाई. चमेली नाम की किसी घटिया स्त्री को दावत में बुला लिया तो वह सारे कुनबे को साथ ले आई. ओछे व्यक्ति से थोड़ा प्यार जता दो तो वह उस का गलत फायदा उठाता है.

चरणामृत के गटके, मिटें चौरासी योनि के भटके. चरणामृत पीने से मोक्ष प्राप्त हो जाता है. विशेषकर उन लोगों का कथन जिन्हें कथा से अधिक चरणामृत में रूचि होती है.

चर्बी छाई आंखन में तो नाचन लागी आँगन में. आँखों में चर्बी छाना – अहंकार में अंधा होना.

चल न सकूँ मेरा कूदन नाम. गुण के विपरीत नाम.

चल मरघट को लकड़ियाँ सस्ती हैं. कुछ लोग सस्ते के चक्कर में अनावश्यक सामान खरीद लेते हैं, उन का मज़ाक उड़ाने के लिए.

चलत फिरत धन पाइए, बैठे पावे कौन. कुछ परिश्रम करने से ही धन की प्राप्ति होती है. इंग्लिश में कहावत है – No gains without pains.

चलता है तो चल निगोड़े, मैं तो गंगा नहाउंगी. पत्नी पति को धमकी दे रही है कि तुम्हें चलना है तो चलो, मैं तो गंगा नहाने अवश्य जाऊँगी. अपनी इच्छा दूसरों पर जबरदस्ती थोपना.

चलती का नाम गाड़ी, गाड़ी का नाम उखली. संसार के रीति रिवाज़ उलटे हैं. कबीर कहते हैं – रंगी को नारंगी कहते, नकद माल को खोया, चलती को तो गाड़ी कहते, देख कबीरा रोया.

चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोय, दुइ पाटन के बीच में, साबित बचा न कोय. संसार की चक्की चलती देख कर कबीरदास को रोना आ रहा है. चाकी का एक पाट सांसारिक माया मोह है और दूसरा पाट भगवान की भक्ति है, इन के बीच में कोई भी साबुत नहीं बचता.

चलती में न चलाये वो बावला और न चलती में चलाये वो भी बावला. जो अवसर का लाभ न उठाए वह मूर्ख और जो बिना अवसर लाभ उठाने की कोशिश करे वह भी मूर्ख.

चलती हवा से लड़े. बहुत लड़ाका औरत के लिए.

चलते घोड़े को चाबुक कैसा. जो कर्मचारी अपने आप से अच्छा काम करता हो उसे व्यर्थ में नहीं फटकारना चाहिए.

चलना भला न कोस का, बेटी भली न एक, देना भला न बाप का, जो प्रभु राखे टेक. कोस भर चलना पड़े (सवारी न हो), एक ही संतान हो वह भी बेटी, पिता का ऋण बेटे को चुकाना पड़े, ईश्वर इन सब परेशानियों से बचाए.

चलना है रहना नहीं, चलना बिस्वे बीस, ऐसे सहज सुहाग पर कौन गुंधावे सीस. संसार से सब को निश्चित रूप से जाना है तो ऐसे क्षणिक सुखों के लिए क्यों माथापच्ची करते हो. बिस्वे बीस – जैसे आजकल कहते हैं शत प्रतिशत, वैसे ही पहले के लोग कहते थे बिस्वे बीस (क्योंकि एक बीघे में बीस बिस्वे होते हैं). इसी तरह लोग कहते थे सोलह आने सच (क्योंकि रूपये में सोलह आने होते थे).

चलनी चम्मा, घोड़ लगम्मा, कायस्थ गुलम्मा, ये तीनों नहिं कोऊ कम्मा. चमड़े की चलनी, घोड़े की लगाम और नौकरी करने वाला कायस्थ, ये तीनों किसी और काम के लायक नहीं होते.

चलनी में दुहे और करम को टटोले. चलनी में दूध दुह रहे हैं और दूध इकट्ठा नहीं हो रहा है तो अपने भाग्य को रो रहे हैं. मूर्खतापूर्ण कार्य करना और भाग्य को दोष देना.

चलनी में न दाने, अम्मा चलीं भुनाने. पहले के लोग किफायत करने के लिए गेहूं, चावल, मक्का, चने आदि इकट्ठा लेकर रखते थे (अब भी कुछ लोग ऐसा करते हैं). जरूरत पड़ने पर अनाज के रूप में तो इनका उपयोग होता ही था, इसके अलावा कभी भुने चने या मक्का खाने का मन हो तो जाकर भाड़ में भुनवा लाते थे. घरों में उस समय बर्तन भी सीमित हुआ करते थे. इसलिए भाड़ तक अनाज ले जाने के लिए चलनी एक उपयोगी बर्तन होता था. कहावत का शाब्दिक अर्थ है की चलनी में दाने तो है नहीं और अम्मा भुनाने चल दी हैं. अर्थात घर में कुछ नहीं है लेकिन तड़क-भड़क और दिखावा खूब है.

चलनो भलो तो कोस को, दुहिता भली तो एक, मांगन भलो तो बाप सों, जो मांगे पर देत. थोड़ा चलना पड़े तो अच्छा, बेटी एक हो तो अच्छी, और माँगना ही पड़े तो ऐसे पिता से माँगना अच्छा जो आसानी से दे देता हो.

चला चली की राह में, भला भली कर लेहु (चला चली के मेले में, भला भली खरीदो). इस संसार से कब जाना पड़ जाए यह कोई नहीं जानता, इसलिए परोपकार अवश्य करो, वही साथ जाएगा.

चले जब तक चलने दो. जब तक काम चले चलाना चाहिए.

चले तो अगाड़ी, ध्यान रहे पिछाड़ी. आगे को चलो लेकिन पीछे का भी ध्यान रखो.

चले तो चाकी, नहीं तो पत्थर. जो चीज जिस काम के लिओए बनाई गई है वही नहीं करेगी तो वह बेकार है.

चले रांड का चरखा और चले चटोरे का पेट. विधवा स्त्री बेचारी पेट पालने के लिए लगातार चरखा चलाती है और चटोरे आदमी का पेट अंट शंट खाने के कारण खराब होता रहता है. पेट चलना – दस्त होना.

चले हल न चले कुदारी, बैठे भोजन दे मुरारी. आलसी और मुफ्तखोरों के लिए.

चश्मे बद्दूर, आँखें मोतीचूर. छोटी आँख वालों की मजाक उड़ाने के लिए. चश्मे बद्दूर उर्दू का शब्द है जिसका अर्थ है बुरी नजर दूर रहे. चश्म – आँख, बद – बुरी.

चस्का दिन दस का, पराया खसम किसका. दूसरी महिला के पति पर डोरे डालने वाली महिला को सीख दी जा रही है कि पराया पति तुम्हारा सगा नहीं होगा.

चाँद आसमान चढ़ा, सबने देखा. जब व्यक्ति उन्नति करता है तो उस पर सबकी निगाह पड़ती है.

चाँद उगेगा तो क्या आंचल में छुपेगा. चाँद उगेगा तो सारी दुनिया को दिखेगा. प्रतिभा छिपती नहीं है.

चाँद के ऊपर थूको तो वह अपने ऊपर ही आता है. महापुरुषों पर कीचड़ उछालने से अपनी ही छवि खराब होती है.

चाँद के सामने तारों की परवाह कौन करे. बड़े आदमी के सामने छोटों को कोई नहीं पूछता.

चाँद को भी ग्रहण लगता है. महान से महान व्यक्ति को भी कभी न कभी बदनामी झेलनी पड़ती है.

चाँद देखे चंद्रमुखी याद आए. परदेस में रहने वाले व्यक्ति को चाँद देख कर अपनी पत्नी/प्रेयसी की याद आती है.

चाँद में भी दाग है. (चंद्रमा में भी कलंक है). जब हम किसी बड़े आदमी की कोई कमी बताते हैं तो उसके प्रशंसक/समर्थक कहते हैं कि ऐसे तो हर व्यक्ति में कुछ न कुछ कमी होती है.

चांडालों के गाँव में कुत्ते भी खामोश. चांडाल – श्मशान में शवों का डाह संस्कार कराने वाला व्यक्ति. यह हमारे समाज की विकृति है कि चांडाल जैसा समाज के लिए आवश्यक मनुष्य घृणा का पात्र बना दिया गया है. उसको लोग निम्नतम श्रेणी का मनुष्य मानते हैं. कहावत में यह कहने की कोशिश की गई है कि नीच लोगों से सब डरते हैं, यहाँ तक कि कुत्ते भी.

चांदनी रात भाग्य में होती तो रतौंधी ही क्यों होती. रतौंधी – रात में दिखाई न देने की बीमारी, (विटामिन ए की कमी से होती है). जिन लोगों को यह बीमारी होती है उन्हें चांदनी रात में भी दिखाई नहीं देता. जिसके भाग्य में सुख न लिखा हो उसके लिए.

चांदनी से जले और हवा से उड़े. बहुत नाज़ुक आदमी.

चांदी का जूता सबके सर पर भारी. पैसे के बल पर सबको दबाया जा सकता है.

चांदी की चाबी सब द्वार खोले. पैसे से सब काम कराए जा सकते हैं.

चांदी की चोट पड़े तब सांड भी गाय हो जावे. पैसे के बल पर टेढ़े आदमियों को भी सीधा किया जा सकता है.

चांदी देखे चेतना, मुख देखे व्यौहार. यहाँ चांदी से तात्पर्य चांदी के रुपयों से है. व्यापारी जब देख लेता है कि ग्राहक के पास रूपये हैं तभी माल दिखाने में रूचि लेता है, व्यक्ति को देख कर ही व्यवहार किया जाता है.

चाकर को उज्र नहीं, कूकुर को उज्र है. 1. नौकरी करने वाले को इस बात की स्वतंत्रता नहीं होती कि वह किसी काम को मना कर दे. उस से तो कुत्ता अधिक स्वतन्त्र होता है. 2. आप किसी बड़े आदमी से मिलना चाहते हैं. उसके नौकर को कोई आपत्ति नहीं है लेकिन उसका कुत्ता आप पर भौंके जा रहा है (या कोई महत्वहीन आदमी ख्वामखाह अड़ंगा डाल रहा है). 

चाकर को ठाकुर बहुतेरे और ठाकुर को चाकर बहुतेरे. नौकरी करने वाले के लिए काम देने वालों की कमी नहीं है और काम देने वालों के लिए नौकरी करने वालों की कमी नहीं है.

चाकर मालिक के हैं या बेंगन के. एक दिनराजा ने दरबार में कहा- बैंगन बहुत अच्छी सब्जी है. दरबारी बोले – जी हुजूर, तभी तो इस के सर पर भगवान ने ताज रखा है. कुछ दिन बाद राजा ने कहा – बैंगन तो बिल्कुल वाहियात चीज है. दरबारी तुरंत बोले – जी मालिक, तभी तो इसका नाम बेगुन (बिना गुण वाला) रखा है. राजा बोला – उस दिन तो तो तुम लोग बैगन की बहुत तारीफ़ कर रहे थे. दरबारी बोले – हुजूर हम आपके नौकर हैं, बैंगन के थोड़े ही हैं.  

चाकर से कूकुर भला जो सोये अपनी नींद. पहले के लोग नौकरी को बुरा समझते थे क्योंकि उस में किसी की गुलामी करनी पड़ती है. कहते थे कि नौकर से तो कुत्ता अधिक आजाद है.

चाकर है तो नाचा कर, ना नाचे तो ना चाकर. नौकरी करने वाले को मालिक की मर्ज़ी के अनुसार नाचना पड़ता है. जो नाचने को तैयार न हो वह नौकरी नहीं कर सकता. (चाकरी या तो ना करी, करी तो फिर ना नाकरी).

चाकरी में आकरी कैसी. नौकरी में अकड़ नहीं चल सकती.

चाकरी में न करी क्या. नौकरी करने वाला किसी काम को मना नहीं कर सकता.

चाकी फेरी, हुई चून की ढेरी. कोई काम शुरू करने की देर है, एक बार शुरू हो जाए फिर तो ढेर लग जाता है. चून – आटा.

चाचा पिए, भतीजे को चढ़े. जो लोग अपने रिश्ते दारों के बल पर ऐंठते फिरते हैं उन का मजाक उड़ाने के लिए.

चाची के मूंछें निकल आएं तो चाचा न कहलाएँ. कुछ काम ऐसे हैं जो चाचा ही कर सकते हैं. अगर चाची वो काम करने लगें तो चाचा और चाची में फर्क क्या रह जाएगा.

चातुर का काम नहीं पातुर से अटके. बुद्धिमान व्यक्ति वैश्या के चक्कर में नहीं पड़ता है.

चातुर की चेरी भली मूरख की नार से. कोई काम कराना हो तो बुद्धिमान व्यक्ति की नौकरानी से कहना बेहतर है बामुकाबले मूर्ख की स्त्री के.

चातुर को चिंता घनी, नहिं मूरख को लाज, सर औसर जाने नहीं, पेट भरे सो काज. घनी – बहुत अधिक, औसर – अवसर. समझदार व्यक्ति की बहुत सी चिंताएं होती हैं जबकि मूर्ख को कोई लाज शर्म नहीं होती. उसे केवल खाने से मतलब होता है.

चातुर को चौगुनी, मूरख को सौ गुनी. बुद्धिमान इशारे में ही बात समझ लेता है, मूर्ख को बार बार समझाना पड़ता है.

चातुर तो बैरी भलो, मूरख भलो न मीत. मूर्ख मित्र के मुकाबले बुद्धिमान शत्रु अधिक अच्छा है. मूर्ख व्यक्ति का कोई भरोसा नहीं कि वह कब अपनी मूर्खता से आपको कोई नुकसान पहुँचा दे. एक आदमी ने भालू पाला हुआ था. भालू उसकी बड़ी सेवा करता था. एक दिन वह सो रहा था और भालू पास में बैठा उस की मक्खियाँ उड़ा रहा था. एक मक्खी बार बार आदमी की नाक पर बैठ जा रही थी. भालू ने कई बार उसे उड़ाया, पर वह फिर आ कर बैठ जा रही थी. थोड़ी देर कोशिश करने के बाद भालू ने आव देखा न ताव पास में रखा मूसल उठा कर मक्खी पर दे मारा. 

चापलूसी का मुँह काला. चापलूसी करने वाले व्यक्ति से सावधान रहना चाहिए.

चाबी लागे ही ताला खुले. सही युक्ति से ही कोई कठिन काम पूरा किया जा सकता है.

चाबुक तो मिल गई, बस जीन, लगाम, घोड़ी ही बाकी है. कोई छोटी सी चीज़ मिल जाने पर बहुत बड़े बड़े मंसूबे बांधना.

चाम प्यारा नहीं, दाम प्यारा है. जिसको अपने शरीर से पैसा अधिक प्यारा हो.

चार अफीमची तीन हुक्के. डिमांड अधिक हो और सप्लाई कम हो तो झगड़ा तो होगा ही.

चार आने का बाजरा, चौदह आने का मचान. चार आने के बाजरे की फसल की सुरक्षा के लिए चौदह आने का मचान बनाया है. छोटे से लाभ के लिए बहुत अधिक निवेश.

चार औरतें कजिए करें, तो कोई न कोई घर टूटे (औरतें इकटठी हों तो किसी का घर तोड़ती है). औरतें इकट्ठी होती हैं तो तरह तरह की बातें कर के एक दूसरे को भड़काती हैं और घरों में फूट डलवाती हैं.

चार कान की बात ब्रह्मा भी नहीं छिपा सकता. कोई बात किसी एक व्यक्ति से कहो तो हो सकता है कि वह उसे अपने तक सीमित रखे, पर अगर दो लोगों से कह दी तब तो उसका फैलना तय है.

चार गोड़वा बांधा जाए, दो गोड़वा न बांधा जाए. चार पैर वाले (जानवर) को बांध कर रख सकते हैं दो पैर वाले (मनुष्य) को नहीं. गोड़ – घुटना.

चार चोर चौरासी बनिया, एक एक कर लूटा. चार चोर, चौरासी बनियों (डरपोक लोगों) को एक एक कर के लूट सकते हैं. जब एक को लूट रहे हों तो बाकी चुपचाप देखते रहते हैं.

चार जात गावें हरबोंग, अहीर, डफाली, धोबी, डोम. इन चार जातियों के लोग बेसुरा और बेतुका गाते हैं, अहीर, डफाली (डफली बजाने वाला), धोबी और डोम.

चार दिन की आइयाँ, और सोंठ बिसाइन जाईयां. अभी चार दिन आये हुए बीते हैं और सोंठ खरीदने चल दीं. सोंठ आमतौर पर प्रसव के बाद खिलाई जाती है. कोई नया आने वाला अधिक अधिकार जमाए तो.

चार दिन की चमर जोतिस. चमड़े का काम करने वाला कोई व्यक्ति ज्योतिषी बनने का ढोंग करके बैठा है. उसका यह ढोंग चार दिन में ही खुल जाएगा. कोई भी व्यक्ति वही काम ठीक से कर सकता है जो उस ने बचपन से सीखा हो, दूसरा काम करने की कोशिश करेगा तो उस की छीछालेदर होनी तय है.

चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात (अंधियारी पाख). जब व्यक्ति को मालूम होता है कि कुछ दिनों की मौज मस्ती के बाद फिर परेशानी आनी है, तब वह यह कहावत कहता है.

चार दिन के गईले, सुग्गा मोर बन के अईले. (भोजपुरी कहावत) कुछ दिन विदेश में कुछ दिन रह कर जो अपने को अंग्रेज समझने लगते हैं. सुग्गा – तोता. गइले – गया, अइले – आया.

चार बिछिये टन टन बाजें, नौ मन काजल नैन बिराजे, झीना घूँघट नखरा घना, थोथा चना बाजे घना. सुन्दर न होने पर भी अत्यधिक श्रृंगार कर के इतराने वाली स्त्रियों के लिए. 

चार लठा के चौधरी पांच लठा के पंच, जिनके घर में छह लठा वो अंच गिनें न पंच. (बुन्देलखंडी कहावत)जिस घर के चार सदस्य लठैत हों वह गाँव का चौधरी बन जाता है, जहाँ पांच लाठी चलाने वाले हों वह पंच, जहाँ छह हों वह किसी को कुछ नहीं गिनता. 

चार वेद और पांचवाँ लवेद. लवेद माने छड़ी. ज्ञान प्राप्त करने के लिए चार वेद चाहिए और पांचवीं छड़ी.

चार सुहाली, चौदह थाली, बाँटन वाली सत्तर जनी. सुहाली – मैदे की पापड़ी नुमा पूड़ी. काम बहुत कम और करने वाले बहुत लोग.

चारण मत कर चतुर्भज नाई कीजे नाथ, आधी गद्दी बैठवों माथा ऊपर हाथ. हे चतुर्भूज (भगवान विष्णु), मुझे चारण मत बनाना, नाई बनाना क्योंकि नाई राजा के पास गद्दी पर बैठता है और राजा के मस्तक पर हाथ रखता है.

चारा खरीदने के लिए गाय बेच दो. गाय का चारा खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं तो कुछ बेचना पड़ेगा. कोई लाल बुझक्कड़ सलाह दे रहे हैं कि गाय बेच कर चारा खरीद लो. जब गाय नहीं होगी तो चारे का करोगे क्या. किसी समस्या के समाधान के लिए मूर्खतापूर्ण सुझाव देने वालों पर व्यंग्य. 

चारु सो भारु. जो अधिक चारा खाता है वह बोझ बन जाता है.

चारों धार दुहारी में पड़ें, तो भरती क्या देर लगे. दुहारी – दूध दुहने की बाल्टी. काम करने वाले कई लोग हों तो काम निबटने में देर नहीं लगती. 

चाल गड मगड, मतलब में चौकस. चाल ढाल में भोंदू लगते हैं पर अपने मतलब में होशियार हैं.

चाल चपल, मुख चरपरा, निपट निर्लज्जा होय, नाक काट गुद्दी धरे, करे दलाली सोय. तेज चलने वाला, अधिक बोलने वाला और निर्लज्ज व्यक्ति ही दलाली कर सकता है.

चाल रहे सादा तो निबहे बाप दादा. जो व्यक्ति सादा और सरल जीवन जीते हैं वे ही अपने कुटुंब की मर्यादा निभा पाते हैं. 

चालाक पदनी पहले ही नाक दाबे. अपान वायु खारिज करने को बोलचाल की अशिष्ट भाषा में पादना कहा जाता है. पदनी का अर्थ है पादने वाली स्त्री. इस प्रकार की वायु में अक्सर दुर्गन्ध होती है. इसलिए चालाक लोग अपान वायु से पहले नाक बंद कर लेते हैं. कहावत का अर्थ है, चालाक आदमी कोई गलत काम करने से पहले अपने आप को बचाने का प्रबंध कर लेता है. 

चालीस सेरा ऊत. मूर्ख व्यक्ति के लिए.

चाव घटे नित घर के जाए, भाव घटे कुछ मुँह के मांगे, रोग घटे औषधि के खाए, ज्ञान घटे कुसंगत पाए. बार बार कहीं जाने से मिलने की ललक कम हो जाती है, कुछ मांगने से सम्मान कम होता है, औषधि खाने से रोग कम होता है और कुसंगति से ज्ञान कम होता है.

चाह करी ताकि चाकरी कीजे, अनचाहत का नाम न लीजे. जो प्रेम करे उसकी नौकरी करो और जो न करे उस का नाम भी न लो.

चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह, जिनको कछू न चाहिए, वे साहन के साह. जब तक मनुष्य कुछ पाने की इच्छा करता है तब तक वह चिंताओं से दबा रहता है. जब मनुष्य अपने को इन इच्छाओं से मुक्त कर लेता है तब वह शहंशाह बन जाता है.

चाह चमारी चूहड़ी, सब नीचन की नीच. चाह का अर्थ यहाँ लालच से है. चमारी – चर्मकार जाति की महिला, चूहड़ी – सफाईकर्मी महिला. पुराने जमाने में जब छुआछूत और सामाजिक विषमता का बोलबाला था, तब चर्मकार और सफाई कर्मियों को नीची जाति का कह कर अपमानित किया जाता था (सौभाग्य से अब ऐसा नहीं है). उस समय की कहावत में लालच करने की वृत्ति को बहुत निम्न कोटि का बताने के लिए चमारी और चूहड़ी से उपमा दी गई है.

चाहले की भैंस. ऐसी स्थूलकाय स्त्री के लिए जिसका पति उसे खूब लाड़ प्यार से रखता हो.

चाहे गाड़ी भर दहेज़ मिल जाए, पर ऐसे घर में ब्याह न करे जहाँ साला न हो. सही बात है, साले के बिना ससुराल बेकार है.

चाहे जहाँ जाओ, अपने आप से मुक्ति नहीं पा सकते. आदमी दुनिया से भाग सकता है लेकिन अपनी अंतरात्मा से नहीं.

चाहे जितने आदमी काम पर लगाओबच्चा पैदा होने में नौ महीने ही लगेंगे. कुछ काम ऐसे होते हैं जिनमें समय लगता ही है.

चाहे देकर भूल जाए, पर लेकर कभी न भूले. उधार दे कर वापस लेना भले ही भूल जाओ, लेकर वापस करना कभी नहीं भूलना चाहिए.

चाहे मार चाहे तार. ईश्वर के सब आधीन हैं, वह चाहे मारे चाहे तार दे.

चिंता ऐसी डाकिनी काट के जिउ को खाय, बैद बिचारा क्या करे कितनी दवा लगाय. (बुन्देलखंडी कहावत)चिंता बहुत बुरी बीमारी है, मनुष्य को घुला देती है, इसकी कोई दवा भी नहीं है.

चिंता चिता समान है. चिता तो मृत देह को जलाती है पर चिंता जीवित व्यक्ति को ही जला डालती है.

चिंता ज्वाल सरीर वन, दाह लगे न बुझाय, (प्रकट धुंआ न देखिये भीतर ही धुन्धुआए). शरीर रूपी वन के लिए चिंता दावानल के सामान है जो बुझाए नहीं बुझती. फर्क यह है कि इस आग में धुंआ दिखाई नहीं देता, भीतर ही भीतर घुटता रहता है.

चिकना मुँह पेट खाली. देखने में अच्छा भला पर वास्तविकता में अभावग्रस्त. कुछ लोग इसे इस प्रकार बोलते हैं – दिल्ली की दलाली, मुँह चिकना पेट खाली. 

चिकनी बातों मत पतियाओ. चिकनी चुपड़ी बातों पर विश्वास मत करो. 

चिकने गाल तिलनियाँ के औ जरे भुजे भुरजनिया के. तेली की औरत के गाल चिकने हो जाते हैं और भड़भूंजे की औरत के गाल काले हो जाते हैं. अर्थात व्यक्ति जो काम करता है उसका असर उस के रंग रूप पर पड़ता है.

चिकने घड़े पर पानी नहीं ठहरता, पर मैल जम सकता है. बेशर्म आदमी कायदे की बात नहीं सीखता पर अनुचित बात फौरन सीख लेता है.

चिकने घड़े पर पानी नहीं ठहरता. बेशर्म आदमी को किसी भलाई बुराई से कोई फर्क नहीं पड़ता.

चिकने घाट बैठ कर उतरो. यदि नदी का घाट चिकना हो तो बैठ कर आगे बढ़ना चाहिए. प्रतिकूल परिस्थिति में अतिरिक्त सावधानी आवश्यक है.

चिकने मुँह को सब चूमते हैं. कमज़ोर का फायदा सब उठाते हैं.

चिड़ा चिड़ी की क्या लड़ाई, चल चिड़े मैँ तेरे पीछे आई. चिड़िया व चिड़े की कैसी लड़ाई, पति-पत्नी के बीच का मनमुटाव क्षणिक होता है.

चिड़िया का धन चोंच. गरीब आदमी के हाथ ही उसका धन हैं जिनसे श्रम कर के वह रोजी रोटी कमाता है.

चिड़िया की चोंच में चौथाई हिस्सा. जब किसी गरीब की कमाई में कोई हिस्सा मांगे.

चिड़िया की चोंच में सौ मन काठ. किसी गप्प मारने वाले का मजाक उड़ाने के लिए.

चिड़िया को बाज से क्या काम? सही बात है, भला शिकार को शिकारी से क्या काम हो सकता है. कोई भोला भाला व्यक्ति किसी दुष्ट के जाल में फंसने जा रहा हो तो उसे सावधान करने के लिए.

चिड़िया चाहे जितने प्यार से पाले, पंख लगते ही बच्चे उड़ जाते हैं. माँ बाप चाहे जितने प्यार से बच्चों को पालें, कमाना शुरू करते ही वे अलग हो जाते हैं.

चिड़ियों की मौत, गवारों की हंसी. मूर्ख लोग यह नहीं देखते कि उन के मनोरंजन में निरीह लोगों का कितना नुकसान हो रहा है.

चिड़ियों के शिकार में शेर का सामान. छोटे से काम के लिए बहुत टीम टाम.

चिड़ी चोंच भर ले चली, नदी न घट्यो नीर, धरम किए धन न घटे, कह गए दास कबीर. भिखारी लोग इस तरह की बातें सुना कर लोगों को दान करने के लिए कहते हैं.

चिढ़े को चिढ़ाएंगे, हलुआ पूरी खाएंगे. जो चिढ़ने वाला हो उसे चिढ़ाने में सब को मज़ा आता है.

चित भी मेरी पट भी मेरी, अंटा मेरे बाप का. किसी भी सिक्के के एक साइड को चित और दूसरी साइड को पट कहते हैं. कई बार लोग किसी बात का फैसला सिक्का उछाल कर करते हैं. सिक्का उछालने से पहले ही एक व्यक्ति बोल देता है कि चित आने पर वह जीतेगा. लाख में एक चांस यह भी होता है कि सिक्का न चित पड़े न पट बल्कि खड़ा हो जाए. इसे अंटा कहते हैं. कोई किसी फैसले को अपने पक्ष में करने के लिए जोर जबरदस्ती कर रहा हो तो यह कहावत कहते हैं. इंग्लिश में कहावत है – Heads I win, Tails you lose.

चित्त लगा भोजन में कवित्त को कहवें. (बुन्देलखंडी कहावत)मन तो भोजन में लगा है और कविता सुनाने को कहा जा रहा है. 

चिराग गुल, पगड़ी गायब. चोर और जेबकतरे निगाह बचते ही अपना काम कर जाते हैं.

चिराग तले अंधेरा. दीपक जलता है तो चारों ओर प्रकाश फैलता है पर दीपक के नीचे अँधेरा रहता है. कोई व्यक्ति देश या समाज के लिए बहुत कुछ कर रहा हो पर उसके अपने घर में अभाव हों तो यह कहावत कही जाती है.

चिराग में बत्ती और आँख में पट्टी. जो लोग बहुत जल्दी सो जाते हैं उनके लिए. जलते दिये को बुझाने के लिए लोग बत्ती को दीपक से बाहर कर देते थे जिससे तेल न मिलने के कारण वह बुझ जाए. बोलचाल की भाषा में इसे बाती बढ़ाना या दिया बाती करना कहते थे. विशेष रूप से यह कहावत उन पुरुषों का मजाक उड़ाने के लिए कही जाती है जो दीपक बुझने के बाद फौरन सो जाते हैं. कुछ स्त्रियाँ अपने पतियों की इस आदत से बहुत परेशान भी रहती हैं.

चिवड़ा दही बारह कोस, पूड़ी अठारह कोस. पूड़ी के मुकाबले चिवड़ा दही जल्दी पच जाता है, इसलिए अगर अधिक दूर जाना है तो पूड़ी खा कर जाना चाहिए.

चींचड़ी को खाज (जूं के सिर में खाज). चीलर और जूँ जो सभी प्राणियों के शरीर में खुजली पैदा करती हैं उन्हें खुद ही खुजली हो जाए. कोई दुष्ट व्यक्ति अपनी दुष्टता के कारण किसी परेशानी में पड़ जाए तो.

चींटी की आवाज़ अर्श तक. निर्बल की पुकार ईश्वर सुनता है. अर्श माने आसमान.

चींटी की खाल निकालना.  बाल की खाल निकालना.

चींटी की मौत आती है तो उसके पंख निकल आते हैं (चींटी के पर निकले और मौत आई). छोटा आदमी बड़ा दुस्साहस करे तो उसकी बर्बादी निश्चित है.

चींटी के घर नित मातम. गरीब आदमी पर कोई न कोई दुःख टूटता ही रहता है.

चींटी को अपने पैर भारी हाथी को अपने पैर भारी. बड़ा आदमी बड़ी मुसीबतों से परेशान होता है तो छोटे आदमी को उसकी छोटी परेशानियाँ भी उतना ही परेशान करती हैं.

चींटी को पेशाब की धार ही बहुत है. गरीब के लिए छोटी मोटी परेशानी भी जानलेवा बन सकती है.

चींटी चाहे सागर थाह (चींटी लेत समुन्दर थाह). बहुत क्षुद्र व्यक्ति अपनी औकात से बहुत अधिक प्रयास करे तो.

चींटी जावे सासरे, नौ मन सुरमा डाल. 1.बच्चों द्वारा मजाक में बोली जाने वाली कहावत. 2.अधिक लीपापोती करने वाली महिलाओं का मजाक उड़ाने के लिए.

चीज न राखे आपनी, चोरन गाली देय, चोर बिचारा क्या करे, पड़ी पाय सो लेय. यदि आपने अपनी चीज़ संभाल कर नहीं रखी और वह चोरी हो गई तो इस के लिए चोर को गाली न दें. उस बेचारे को तो पड़ी मिली तो उस ने उठा ली.

चीटा मारे पानी हाथ. गरीब को सताने से कुछ हासिल नहीं होता. (बगुला मारे पखना हाथ).

चीरे चार बघारे पांच. थोड़ा काम कर के बहुत ज्यादा बताना.

चील का मूत. असंभव वस्तु (जो चीज़ दुनिया में होती ही नहीं है).

चील के घर में मांस की धरोहर. (चील के घोंसले में मांस कहाँ). चील के घोंसले में मांस ढूँढना मूर्खता है. चील मांस छोड़ेगी ही नहीं. चोर उचक्कों से भरी जगह में आप अपना कोई कीमती सामान भूल आएँ और फिर फिर उसे ढूँढने जाएँ तो यह कहावत कही जाएगी.

चीलर मारे कुत्ता खाए. दुनिया को दिखाने के लिए चीलर मार रहा है और मौका मिलने पर कुत्ते को खा जाता है. ऐसे व्यक्ति के लिए जो भलाई के छोटे मोटे काम कर के वाहवाही लूटे और मौका लगने पर बड़ी चीज़ पर हाथ साफ़ करे.

चुका वायदा, दिखाया कायदा. काम निकल जाने के बाद नियम बताने लगना.

चुगलखोर खुदा का चोर. चुगलखोर व्यक्ति भगवान की नजर में चोर के समान होता है

चुटके का खाए, उकटे का न खाए. चुटका – गरीब, उकटा – कर के एहसान जताने वाला. 

चुटिया को तेल नहीं, पकौड़ी को जी चाहे. आज के जमाने में खाने के लिए भी तरह तरह के तेल उपलब्ध हैं और सर में डालने के लिए भी, पर पहले के जमाने में ले दे कर एक सरसों का तेल ही सब कामों में आता था. कहावत का अर्थ है कि सर में डालने लायक जरा सा तेल तक तो है नहीं और पकोड़ी खाने का मन कर रहा है जिसके लिए बहुत सारा तेल चाहिए. कुछ भी न होते हुए बहुत कुछ की इच्छा करना.

चुड़ैल पर दिल आ जाए तो वह भी परी है. जो चीज़ अपने को पसंद आ जाए वही अच्छी है. इस तरह की एक कहावत और है – दिल लगा गधी से तो परी क्या करे. माँ बाप बेटे की शादी अपनी पसंद की किसी घरेलू लड़की से करना चाहते हैं पर लड़का किसी फैशनेबिल लड़की से शादी करने के लिए अड़ा हुआ है, ऐसे में माँ बाप यह कहावत बोल कर अपनी कुढ़न शांत करते हैं.

चुप आधी मर्ज़ी. कोई बात सुन कर अगर आप चुप रहते हैं तो इस का मतलब यह है कि आप उससे काफ़ी कुछ सहमत हैं.

चुप रहने का मौका कभी मत छोड़ो. चुप रहने से बहुत सी समस्याएँ हल हो जाती हैं. इंग्लिश में कहावत है – Silence is gold.

चुपको रह चन्दन, यहाँ करीलन को वन है. चन्दन को समझाया जा रहा है कि यहाँ करील (कांटेदार झाड़ियाँ) का जंगल है. तुम चुप रहो. यहाँ तुम्हारी कोई कद्र नहीं होगी.

चुपड़ी और दो दो (मीठा और भर कठौती). गरीब आदमी के लिए चुपड़ी रोटी एक नियामत है और वो भी दो मिल जाएं तो क्या कहने. कोई अच्छी चीज़ मिल रही हो और वह भी उम्मीद से अधिक तो यह कहावत कही जाती है. इस प्रकार की दूसरी कहावत है.

चुप्पा आदमी गहरा होता है. बहुत बोलने वाला आदमी आमतौर पर हलकी मानसिकता का होता है जबकि चुप रहने वाले में गहराई होती है.

चुप्पा कुत्ता पहले काटे. जहाँ कई कुत्ते बैठे हों वहाँ जो कुत्ते बहुत भौंक रहे हों उनसे खतरा कम है. जो कुत्ता चुप बैठा हो वह पहले काटेगा. इसी तरह चुप रहने वाला आदमी भी अधिक खतरनाक होता है. इंग्लिश में कहावत है – Beware of silent dog and still waters.

चुभने वाली कील हथोड़े से ठोंक दी जाती है. अधिक परेशान करने वाले व्यक्ति को कड़ा सबक सिखाना जरूरी है.

चुरावे नथ वाली, नाम लगे चिरकुट वाली का.  चिरकुट – कपड़े का चिथड़ा.पैसे वाला व्यक्ति गलत काम करता है और नाम गरीब का लगता है.

चुल्लू चुल्लू साधेगा, द्वारे हाथी बांधेगा. छोटी छोटी बचत से बड़ी राशि इकट्ठी की जा सकती है. इसके आगे एक पंक्ति और बोली जाती है ‘चुल्लू, चुल्लू खोवेगा, द्वारे बैठा रोवेगा.’

चुल्लू भर पानी में तंग जिंदगानी. अत्यधिक गरीबी.

चुल्लू में उल्लू करे, गाँठ कमाई खाय, मनुष जनावर बन चले, दारु बुरी बलाय. शराब बहुत बुरी चीज़ है, जो एक चुल्लू में ही आदमी को उल्लू बना देती है, आदमी की जमा पूँजी खा जाती है और आदमी को जानवर बना देती है. 

चुहिया का शिकार और ग्यारह तोपें. छोटे से काम में बहुत बड़ा ताम झाम.

चूक अजाने से पड़े, बाँधे गाँठ सयान. नासमझ आदमी गलती करता है समझदार आदमी उससे सीख लेता है. इंग्लिश में कहावत है – Learn wisdom by the follies of others.

चूकी चोट निहाई पर. निहाई मजबूत लोहे की बड़ी सी वस्तु होती है जिस पर रख कर लोहे को पीटते हैं या काटते हैं. जिस चीज़ पर चोट करते हैं वह चूक जाए तो निहाई पर ही चोट पड़ती है. घर गृहस्थी में गलती कोई भी करे, जो जिम्मेदार व्यक्ति होता है उसी को खामियाजा भुगतना पड़ता है. (देखिये परिशिष्ट) 

चून खाए मुसंड होवे, तला खाए रोगी. आटा खाने से ताकत आती है, तला हुआ खाने से रोग होते हैं.

चूनी कहे मुझे घी से खाओ. चूनी – मटर का आटा. चूनी जैसे घटिया आटे का भी दिमाग हो गया है, कह रहा है मुझे घी से खाओ. साधारण आदमी अपनी हैसियत से बहुत ऊपर की बात करे तो.

चूरा झाड़ खाओ, लड्डू मत तोड़ो. अपनी मूल पूँजी खा के खत्म नहीं करनी चाहिए, उससे मिलने वाले ब्याज या कमाई को खर्च कर के काम चला लेना चाहिए.

चूल्हा चक्की, सबहि काम पक्की. ऐसी स्त्री जो खाना पकाने में भी होशियार हो और चक्की भी खूब चला ले. ऐसा व्यक्ति जो हर काम में होशियार हो.

चूल्हा झोंके चांवर हाथ. चांवर माने हाथ का छोटा पंखा. बीबीजी चूल्हे पे खाना बनाने बैठी हैं और चांवर हाथ में है. काम में नज़ाकत दिखाना. (देखिए परिशिष्ट)

चूल्हा फूँके और दाढ़ी रखे. यदि आपकी दाढ़ी लम्बी होगी तो इस बात का बहुत खतरा है कि चूल्हा फूंकते हुए जल जाए. आप को सलाह दी गई है कि चूल्हा फूंकना है तो दाढ़ी न रखें.

चूल्हे का राव लाव लाव ही पुकारे. चूल्हे का देवता हमेशा लकड़ी मांगता है. 

चूल्हे को आग से क्या डराना. जिन परेशानियों को कोई रोज झेलता हो, उनसे उसे क्या डराना.

चूल्हे पर तलवार चलाई, तोऊ चुहिया मार न पाई. किसी छोटे से काम को करने के लिए बहुत बड़ा और मूर्खतापूर्ण प्रयास करना.

चूल्हे में थूके और सुख की आस करे. चूल्हे में थूकना अर्थात किसी अत्यंत आवश्यक वस्तु का निरादर करना. ऐसा करने वाला व्यक्ति कभी सुखी नहीं हो सकता.

चूहा छोटा और पूँछ बड़ी. अधिक दिखावा करने वाले व्यक्ति का मजाक उड़ाने के लिए.

चूहा बिल न समा सके कानौ बांधा छाज (पूँछ में बाँधा छाज). बिल इतना छोटा कि चूहा उस में घुस नहीं सकता है ऊपर से कान में छाज बाँध लिया. बहुत कम सामर्थ्य वाला व्यक्ति बहुत बड़ी जिम्मेदारी ले ले तो ऐसा कहते है.

चूहा मारे खेत जलाया. खेत या खलिहान में चूहे अधिक हों तो उन्हें मारने के लिए यदि कोई खेत ही जला दे. जैसे विरोधियों को मात देने के लिए यदि कोई नेता दंगे करा दे. 

चूहे के चाम से जूते नहीं बनते. छोटे आदमी बड़ा काम नहीं कर सकते.

चूहे के जाए बिल ही तो खोदेगें. चूहे के जाए माने चूहे के बच्चे. कोई भी बच्चे वही काम करेंगे जो उन के माँ बाप करते आए हैं. किसी घटिया व्यक्ति के बच्चे कोई घटिया काम करें तो यह कहावत बोलते हैं.

चूहे के बिल में ऊंट नहीं समा सकता. किसी बहुत बड़े आयोजन के लिए बहुत छोटी जगह हो तो मजाक में ऐसा कहते हैं.

चूहे को गेहूँ मिलेगा तो कुतर कर ही खाएगा, पूड़ी नहीं बनाएगा. गरीब आदमी के पास आमोद प्रमोद मनाने के साधन नहीं होते. वह जैसे तैसे अपना पेट भरता है.

चूहे को सुपारी का टुकड़ा मिल गया तो खुद को पंसारी समझने लगा. पंसारी की दूकान में छोटी बड़ी सैकड़ों चीजें होती हैं जिनका वह हिसाब रखता है (देखा जाए तो यह बहुत कठिन काम है). चूहे को सुपारी का टुकड़ा मिल गया तो समझने लगा कि वह भी पंसारी से कम नहीं है. कोई छोटा सा ज्ञान या वस्तु मिल जाने पर अपने को बहुत काबिल या बहुत बड़ा समझने लगना. जैसे इन्टरनेट पर एक बीमारी के विषय में एक लेख का कुछ हिस्सा पढ़ कर लोग अपने को डॉक्टर समझने लगते हैं.

चूहों की मौत बिल्ली का खेल. अहंकारी और अत्याचारी लोग मन बहलाते हैं और गरीब की जान पर बन आती है.

चेले लावें मांग कर बैठा खाए महंत, राम भजन का नाम है पेट भरन का पंथ. ढोंगी साधु, महंतों के लिए. 

चैत्र चना, वैशाखे बेल, जेठ शयन अषाढ़े खेल. चैत में चना, वैशाख में बेल खाने तथा जेठ की दोपहरी में सोने एवं आषाढ़ में खेलकूद करने से शरीर स्वस्थ और निरोग रहता है.

चोट तभी करो जब लोहा गरम हो. लोहे को किसी आकार में ढालना हो तो उस पर तभी चोट करते हैं जब वह खूब गर्म होता है. किसी आदमी को दूसरे के खिलाफ भड़काना हो तो उस से तभी बात करनी चाहिए जब वह गुस्से में हो. इंग्लिश में कहावत है – Strike the iron when it is hot.

चोट पर चोट, भाग्य का खोट. भाग्य खराब हो तो एक परेशानी में दूसरी जुड़ जाती है.

चोट्टी कुतिया, जलेबियों की रखवाली (रहबर). जब कोई कीमती चीज़ किसी चोर प्रकृति के व्यक्ति को रखवाली के लिए दी जाए. जैसे भ्रष्ट नेता को सत्ता सौंपना.

चोर उचक्का चौधरी, कुटनी भई प्रधान. जब नीच और दुष्ट मनुष्यों के हाथ में सत्ता आ जाती है.

चोर और गठरी को कस कर बांधना चाहिए. चोर को पकड़ लिया जाए तो उस के हाथ पैर कस कर बांधना चाहिए नहीं तो वह मौका मिलते ही खोल कर भाग जाएगा. गठरी को कस कर नहीं बाँधोगे तो खुल जाएगी और सामान बिखर जाएगा.

चोर और चाँद का बैर.  चोर को चांदनी अच्छी नहीं लगती.

चोर और ढोर का नाहिं भरोसा. चोर और जानवर का विश्वास नहीं करना चाहिए.

चोर और सांप दबे पर चोट करते हैं. अर्थ तो स्पष्ट है, लेकिन जो सीख इस के द्वारा दी गई है वह याद रखने योग्य है. चोर व सांप को पकड़ते समय भी और पकड़ने के बाद सावधान रहना चाहिए.

चोर का क्या दीवाला. दीवाला निकलने का डर उसे होता है जो पूँजी लगा कर या उधार ले कर व्यापार करता है. चोर की कोई पूँजी थोड़े ही लगी है.

चोर का चावल टके सेर (चोरी का बाजरा टके धड़ी). चोरी का माल औने पौने दाम में बिकता है. धड़ी – पांच किलो.

चोर का माल चांडाल खाय. पुराने जमाने में चांडाल को सभी मनुष्यों में सब से निकृष्ट माना जाता था. कहावत में कहा गया है कि चोर से भी निकृष्ट आदमी चोर का माल खाएगा.

चोर का माल सब घर खाए, चोर अकेला मारा जाए. चोरी का फायदा उसके घर वाले भी उठाते हैं और माल खरीदने वाले भी, लेकिन सजा अकेले चोर को ही मिलती है. 

चोर का साथी गिरहकट (चोर का भाई गंठकटा). चोर की दोस्ती अपने जैसे लोगों से ही होती है.

चोर की दाढ़ी में तिनका. एक व्यक्ति की दुकान में चोरी हुई. दुकान के नौकरों पर शक था इसलिए सब नौकरों को इकठ्ठा किया गया. तभी किसी ने जोर से कहा – “चोर की दाढ़ी में तिनका.” जिस ने चोरी की थी वह अपनी दाढ़ी टटोल कर देखने लगा और पकड़ में आ गया. कहावत का अर्थ है कि जिसने चोरी की होती है उसके मन में चोर होता है.

चोर की नज़र गठरी पर. चोर की नज़र उस माल पर ही रहती है जिसे वह चुरा सकता है.

चोर की नार जनम भर दुखिया. चोर की पत्नी हमेशा दुखी रहती है. क्योंकि पहली बात तो चोर रात रात भर बाहर रहता है और पकड़ा जाए तो उसे जेल या मृत्युदंड मिलता है.

चोर के घर चोरी करना चोरी नहीं कहलाता. अर्थ स्पष्ट है.

चोर के घर मोर. चोर के घर में कोई चोरी कर ले तो यह कहावत बोलते हैं. 

चोर के पेट में गाय, आप ही आप रम्भाय. यहाँ चोर का अभिप्राय उस व्यक्ति से है जिसने चोरी से गोमांस खाया हो. उसे अपने पाप की सदैव ग्लानि रहती है.

चोर के पैर कितने. चोर बहुत डरपोक होता है.

चोर के हजार बुद्धि. चोर बनने के लिए बुद्धिमान होना जरूरी है. 

चोर को कहे घुसो और कुत्ते को कहे भूँसो. ऐसे बहरूपिये नेताओं के लिए जो अपराधियों से सांठ गांठ करते हैं और पुलिस प्रशासन को उनसे निपटने के लिए निर्देश देते हैं.

चोर को न मारो, चोर की माँ को मारो. चोर को मारने से अधिक लाभ नहीं होगा, नए चोर पैदा हो जाएंगे. समाज से उन कारणों को दूर करना चाहिए जिन से लोग चोर बनते हैं.

चोर को पकड़ने के लिए चोर रखो. किसी चोर को पकड़ना हो तो किसी ऐसे आदमी को इस का जिम्मा दो जो चोरी करने के सारे दांवपेंच जानता हो. 

चोर को पकड़िये गाँठ से, छिनाल को पकड़िये खाट से. चोरी सिद्ध करनी हो तो चोर को गाँठ (चोरी के माल) के साथ पकड़ना चाहिए और किसी किसी दुश्चरित्र स्त्री को पकड़ना हो तो उसे पर पुरुष के साथ ही पकड़ना चाहिए.

चोर गठरी ले गया, बेगारियों को छुट्टी मिली. जमींदारी के जमाने में गरीब लोगों को पकड़ कर उनसे मुफ्त में काम कराया जाता था जिसे बेगार करना कहते थे. जिस काम के लिए लोग पकड़ कर लाए गए थे उस से सम्बन्धित सामान चोर ले गए तो उन लोगों को काम से छुट्टी मिल गई.

चोर चाहे हीरे का हो या खीरे का, चोर चोर ही होता है. अर्थ स्पष्ट है.

चोर चूके उठाईगीर चूके पर चुगल न चूके. चोर चोरी करने से चूक सकता है, उठाईगीर सामान उठाने से चूक सकता है पर चुगलखोर चुगली करने से नहीं चूकता.

चोर चोर मौसेरे भाई. चोर लोग एक दूसरे से सहानुभूति रखते हैं. चोरों में आपस में मिलीभगत होती है.

चोर चोरी से जाय, हेरा फेरी से न जाय. चोर सजा के डर से या समझाने से चोरी करना तो छोड़ सकता है लेकिन उसकी हेराफेरी करने की आदत नहीं जा सकती इस कहावत के द्वारा यह सीख भी दी गई है कि कोई चोर कितना भी कहे कि उसने चोरी छोड़ दी है उसका विश्वास नहीं करना चाहिए.

चोर जाने चोर की सार (चोर को चोर ही पहचाने). चोर को चोर ही सबसे जल्दी पहचान सकता है. चोर के भेद चोर ही जान सकता है.

चोर जुआरी गंठकटा, जार अरु नारि छिनार; सौ सौगंधें खायं जो, घाघ न कर एतबार. चोर, जुआरी, जेबकतरा, परस्त्रीगामी पुरुष और दुश्चरित्र स्त्री, ये सब अगर सौ सौ कसमें खाएं तब भी इनका विश्वास नहीं करना चाहिए. जार – परस्त्रीगामी.

चोर न जाने मंगनी के वासन. चोर को चोरी से मतलब है, जिन बरतनों को वह चुरा रहा है वे मँगनई के हैं इससे उसे क्या मतलब.

चोर न प्यारी चाँदनी, माँगे कारी रात (चोरहिं चांदनी रात न भावे). चोरों को चांदनी अच्छी नहीं लगती. गलत काम करने वाले लोग भ्रष्टाचारी शासक को पसंद करते हैं क्योंकि उन्हें अपने काम में आसानी होती है.

चोर नारि जिमि प्रकट न रोई. चोर के पकड़े जाने पर या उसे सजा मिलने पर उसकी पत्नी सबके सामने रो भी नहीं सकती, छिप के रोती है.

चोर पेटी ले गया तो क्या हुआ, चाबी तो मेरे पास है. अपनी मूर्खतापूर्ण सोच से, नुकसान न होने के प्रति आश्वस्त रहने वाले लोगों के लिए.

चोर बन्दीखाने, तलवार सिरहाने. चोर पकड़ लिया गया, अब तलवार उठा कर रख दो.

चोर लाठी दो जने और हम बाप पूत अकेले. कोई दो बहादुर बाप बेटे चोर को देख कर वहाँ से भाग खड़े हुए. अब गाँव के लोगों को बता रहे हैं कि कितनी कठिन परिस्थिति थी – चोर के पास लाठी थी यानि वो दो जने थे और हम बाप बेटा अकेले थे. जब कोई व्यक्ति अपनी कायरता छिपाने के लिए परिस्थितियों को कठिन बता रहा हो तब यह कहावत कही जाती है.

चोर वही जो पकड़ा जाय. चोरी तो बहुत लोग करते हैं, जो पकड़ा जाए वही चोर कहलाता है. 

चोर सब घर ले मरे. चोर अंत में खुद तो फंसता ही है सारे घर वालों को फंसा देता है.

चोर सब जग में चोरी करे पर घर में सच बोले. चोर सब जगह चोरी करता है पर अपने घर में सच बोलता है

चोर से कही चोरी करियो, शाह से कही जागते रहियो (चोर से कहे तू घुस, कुत्ते से कहे तू भौंक, और शाह से कहे तू जाग). अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए सबसे अलग अलग तरह की बात करना और सबको खुश करने की कोशिश करना. इंग्लिश में इस तरह की एक कहावत है – To run with the hare and hunt with the hound.

चोर ही जाने चोर की घात. चोर की चालाकी चोर ही समझ सकता है.

चोरी ऊपर से सीना जोरी (चोरी और मुंहजोरी). एक तो गलत काम करना और ऊपर से उसको सही ठहराने के लिए बहस करना.

चोरी करनी आसान, माल पचाना मुश्किल. चोरी के माल को ठिकाने लगाने में बहुत मुश्किलें आती हैं.

चोरी करी निहाई की, किया सुई का दान, ऊँचे चढ़ि चढ़ि देखता, केतिक दूरि विमान. आजकल के धनाढ्यों और महात्माओं के लिए यह कहावत है. (निहाई माने लोहे की बहुत बड़ी सी सिल). समाज के लोगों को लूट कर खूब धन इकट्ठा किया और उसमें से जरा सा दान कर दिया. अब ऊंचे चढ़ कर देख रहे हैं कि स्वर्ग से विमान हमें लेने आता होगा.

चोरी का धन मोरी में जाता है. मोरी माने नाली. चोरी का धन व्यर्थ ही जाता है.

चोरी का माल सब कोई खाए, चोर की जान अकारथ जाए. चोरी के माल में से बहुत लोग खाते हैं (चोर के घर वाले, पुलिस वाले, चोरी का माल खरीदने वाले आदि), पर पकड़े जाने पर सजा अकेले चोर को मिलती है.

चोरी का माल, कुछ धर्म खाते बाकी हलाल. हलाल माने जो धर्म सम्मत हो. समाज में ढोंगी लोग चोरी के माल में से कुछ तथाकथित धार्मिक कार्यों में खर्च कर देते हैं और बाकी से अपनी तिजोरी भर लेते हैं.

चोरी की कमाई, मोरी में गँवाई. मोरी – नाली. चोरी का माल व्यर्थ जाता है.

चोरी के बाद चौकसी (चोरी पीछे हुशियारी). चोरी के बाद पहरेदारी करने से क्या फायदा.

चोरी सा रुजगार नहीं जो मार न होवे, जुए सा व्यापार नहीं जो हार न होवे. अगर मार खाने का डर न हो तो चोरी जैसा कोई और रोजगार नहीं है और हारने का डर न हो तो जुए जैसा कोई व्यापार नहीं है.

चोरों की बरात में अपनी अपनी होशियारी. जहाँ सभी चोर हों वहाँ एक दूसरे से होशियार रहना पड़ता है.

चोरों के ब्याह में गिरहकट मेहमान. जैसा दूल्हा होगा वैसे ही बराती होंगे.

चोरों के रखवाले चोर. चोरों का साथ देने वाले भी चोर की श्रेणी में आते हैं.

चोरों के हवाले रखवाली. 1. रखवाली का काम चोर के हवाले कर दोगे तो चोरी होगी ही. 2. जिस से चोरी का डर हो उससे ही रखवाली को कह दो तो चोरी नहीं होगी.

चोरों को सारे नजर आते हैं चोर. जो खुद चोर होते हैं वे सब को चोर समझते हैं.

चोरों में भी इमानदारी होती है. चोर भी अपने धंधे के प्रति ईमानदार होते हैं. इंग्लिश में कहावत है – There is honour among thieves.

चौबे जी छब्बे बनने गए थे दुबे बन कर लौटे. जैसे थे उससे बड़ा बनने गए थे पर छोटे हो के लौटे. फायदे के लालच में नुकसान उठाना.

चौबे मरें तो बंदर हों, बंदर मरें तो चौबे हों. चौबे लोगों से चिढ़ने वाले किसी व्यक्ति का कथन.

चौमासे का गोबर, लीपने का न थापने का. (बिल्ली का गू, लीपने का न पोतने का). बरसात के मौसम में गाय भैंस कहीं गोबर करती हैं तो वह पानी के कारण फ़ैल जाता है और किसी काम का नहीं रहता. जो चीज़ किसी काम की न हो उस के प्रति उपेक्षा पूर्ण कथन.

चौमासे का ज्वर और राजा का कर. इन दोनों से मुश्किल से निजात मिलती है.

चौमासे में लोमड़ी जो नहिं खोदे गेह, निस्चय करके जान लो नहिं बरसेगो मेह. चौमास आने पर यदि लोमड़ी खोद कर अपना घर नहीं बनाती तो समझ लो वर्षा नहीं होगी.

चौराहे पर बैठे लड़कों और सड़क पर बैठे कुत्तों को कभी न छेड़ें. अर्थ स्पष्ट है, बहुत व्यवहारिक बात है. कहावतों की उपमाएं भी कमाल की होती हैं.

 

 

छंटाक भर चून चौबारे रसोई (छंटाक भर सतुआ और मथुरा में भंडारा). बहुत थोड़े साधन में बहुत अधिक दिखावा. घर में जरा सा आटा है और घर के बाहर रसोई लगा रखी है.

छछूंदर के सर में चमेली का तेल. अयोग्य व्यक्ति को विशेष सुविधाएं.

छज्जू गईले छौ जना, छज्जू अइले नौ जना. (भोजपुरी कहावत) छः आदमियों को ले कर गए और नौ को ले कर लौटे. व्यर्थ के लोगों को इकठ्ठा करने वाले के लिए.

छज्जे की बैठक बुरी, परछाईं की छाँह, धोरे का रसिया बुरा, नित उठ पकरे बांह. कारण कुछ भी हों पहले के लोग छज्जे पर बैठने को बुरा मानते थे. (छज्जा टूट कर गिरने का डर होता है, शोहदे वहाँ बैठ कर ओछी हरकतें करते हैं आदि). परछाईं की छाँव भी बुरी होती है क्योंकि वह स्थाई नहीं होती. धोरे का रसिया माने बगल में रहने वाला प्रेमी. वह इसलिए बुरा है क्योंकि वह जब तब उठ कर बांह पकड़ कर परेशान करता है.

छठी का दूध याद आ गया. कुछ नवजात शिशुओं के स्तन से थोड़े से दूध का स्राव होता है. संभवत: जन्म से पहले माँ के रक्त से जो हॉर्मोन शिशु के रक्त में पहुँचते हैं उनके प्रभाव से ऐसा होता है. कहीं कहीं पर यह प्रथा है कि छठी संस्कार के समय शिशु के स्तनों को दबा कर इस दूध को निकाल देते हैं. इससे शिशु को दर्द होता है और वह रोता है. किसी व्यक्ति को बहुत अधिक परेशानी का सामना करना पड़े तो कहते हैं कि फलाने को छठी का दूध याद आ गया.

छठी की तेरईं हो गई. ख़ुशी अचानक मातम में बदल गई. (ईद मुहर्रम हो गई).

छठी के राजा. जो छठी के दिन ही राजा बन गए. (जैसे किसी बड़े नेता या राजा का बेटा). इंग्लिश में कहते हैं – born with silver spoon in mouth.

छड़ी चौदहवाँ रत्न है. डंडा बड़ी अनमोल चीज़ है. डंडे के डर से ही सब काम करते हैं.

छत्तीस प्रकार के व्यंजन में बहत्तर प्रकार के रोग. अधिक खाने और गरिष्ट भोजन खाने वालों को सावधान किया गया है कि ऐसे भोजन से तरह तरह के रोग होते हैं.

छत्रपती, घटे पाप बढ़े रती. बच्चों को छींक आने पर बोलते हैं. (रति का अर्थ प्रेम से है)

छत्री का शोहदा, कायस्थ का बोदा, बामन का बैल, बनिया का ऊत. क्षत्रिय का बेटा अगर लफंगा हो, कायस्थ का अनपढ़, ब्राह्मण का मूर्ख और बनिए का बेटा ऊत हो तो ये किसी काम के नहीं होते.

छत्री के छै बुधी, बामन के बारह, अहीर के एके बुधी, बोला तो मारूंगा. (भोजपुरी कहावत) क्षत्रिय के छः बुद्धि होती हैं और ब्राह्मण की बारह. अहीर की एक ही बुद्धि होती है, बोलोगे तो मारूँगा.

छदाम का छाज, छह टका गठाई. जब किसी चीज को ठीक कराने (repair) की कीमत वस्तु के मूल्य से अधिक मांगी जा रही हो तो. छाज देखने के लिए परिशिष्ट देखें.

छप्पन भोग छोड़ कर कूकुर, हड्डी को ही दौड़े. नीच प्रवृत्ति के मनुष्य को घटिया चीजें ही भाती हैं.

छप्पर पर फ़ूस नहीं, ड्योड़ी में नक्कारा. घर में कुछ नहीं है बाहर बहुत सा दिखावा कर रहे हैं. नक्कारा – नगाड़ा.

छलनी कहे सूईं से तेरे पेट में छेद. जिस छलनी में खुद बहुत सारे छेद हैं वह सुई से कह रही है कि तेरे पेट में छेद है. जिसमें खुद बहुत सी कमियाँ हों वह दूसरे की छोटी सी कमी का मज़ाक उड़ाए तो.

छांड़ शतरंज, जा में रंज बड़ो भारी है. रंज – दुख. शतरंज के खेल में समय बहुत नष्ट होता है और व्यायाम भी बिल्कुल नहीं होता, इसलिए इसको नहीं खेलना चाहिए.

छाछ भी दे और पाँव भी लगे. गाँव में जिन के पास अधिक गाय भैसें हों वे दही में से माखन निकाल कर छाछ बाँट दिया करते थे, पर वे छाछ लेने वाले गाँव के बुजुर्गों का पूरा आदर भी करते थे. 

छाछ मांगन जाए और मलैया लुकाए. माँगना मजबूरी है पर मांगने में शर्म भी आ रही है. लुकाए – छिपाए.

छाजा जी का छाज करे, राजा जी का राज करे. एक बाप के दो बेटे थे छाजा और राजा. छाजा के वंशज छाज बनाते हैं और राजा के वंशज राज करते हैं. (छाज बनाने वाले अपने आप को श्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए ऐसा बताते हैं).

छाती पर आम गिरा, कोई मुंह में डाल दे तो खा लूँ. आलसी होने की पराकाष्ठा.

छाती पे बाल नहीं, भालू से लड़ाई. अपने से बहुत अधिक शक्तिशाली से वैर मोल लेना.

छिनरा, चोर, जुआरी, इनसे गंगा हारीं. दुश्चरित्र व्यक्ति, चोर और जुआरी. इनके पाप गंगा मैया भी नहीं धो सकतीं.

छिनाल का बेटा, बबुआ रे बबुआ. चरित्रहीन स्त्री के बच्चे को सब खिलाते हैं. 

छिनाल डायन से भी बीस (डायन से छिनाल बुरी). डायन कितनी भी बुरी क्यों न हो, चरित्रहीन स्त्री उससे भी गई गुजरी होती है.

छिप के चलें छिपक के काटें, का जानें पर पीरा, जे दुई जात कहाँ से आईं कायथ और खटकीरा. खटकीरा – खटमल. कायस्थ की तुलना खटमल से की गई है जो छिप कर काटता है.

छिपाओ उमर और कमाई, चाहे पूछे सगा भाई. यह तो सही है कि अपनी वास्तविक कमाई किसी को नहीं बतानी चाहिए (सगे भाई को भी नहीं) लेकिन उमर छिपानी चाहिए इस बात में संशय है, विशेषकर भाई से आप उमर कैसे छिपा सकते हैं.

छिमा बड़न को चाहिए, छोटन को उत्पात (का रहीम हरि को घट्यो, जो भृगु मारी लात). छोटे लोग कोई गलती करें या उद्दंडता करें तो बड़े व्यक्ति का बड़प्पन इसी में है कि उन्हें क्षमा कर दे. इंग्लिश में कहावत है – To err is human, to forgive divine.

छींकत नहाइए, छींकत खाइए, छींकत रहिए सोए, छींकत पर घर न जाइए, चाहे सुवर्ण का होए. छींकते हुए और सब काम किए जा सकते हैं पर छींक आ जाने पर किसी के घर नहीं जाना चाहिए (चाहे वह सोने का बना हुआ ही क्यों न हो). पहले के लोग छींक आने को अपशगुन मानते थे.

छींकते की नाक नहीं काटी जाती. किसी छोटी सी गलती के लिए बड़ी सजा नहीं दी जाती (विशेषकर छींक आ जाना तो किसी के वश में भी नहीं है).

छींकते गए, झींकते आए. किसी काम के लिए जाते समय छींक आ जाए तो काम नहीं होता और झींकते हुए लौटना पड़ता है.

छींकते ही नाक कटी. किसी छोटी सी गलती से बहुत बड़ा नुकसान हो जाना.

छींका टूटा और बिल्ली लपकी. दुष्ट लोग मौका देखते ही अपना दाँव लगाते हैं.

छीकें कोई, नाक कटावे कोई. गलती कोई करे और सजा कोई और भुगते.

छी-छी गप-गप. किसी खाने की चीज़ को देख कर घिनिया भी रहे हैं और गपा गप खाए भी जा रहे हैं. किसी वस्तु को खराब भी कहना और उसका उपयोग भी करना.

छुटी घोड़ी भुसौरे खड़ी. घोड़ी छूटते ही भूसे की कोठरी पर जा कर खड़ी हो जाती है. 

छुरी गिरी खरबूजे पर तो खरबूजा हलाल, खरबूजा गिरा छुरी पर तो भी खरबूजा हलाल. शाब्दिक अर्थ तो स्पष्ट है. कहावत के रूप में अर्थ यह है कि कुछ भी होनी या अनहोनी हो नुकसान हमेशा कमज़ोर आदमी का होता है, जबर को कुछ नहीं होता.

छुरी छड़ी छतरी छलो, सदा राखिए संग. छलो – छल्ला. ये चारों चीजें संकट में काम आती हैं इसलिए साथ रखना चाहिए.

छूछा कोई न पूछा. गरीब आदमी का आदर-सत्कार कोई नहीं करता.

छूछी हांडी बजे टना टन. खाली हंडिया पर हाथ मारो तो आवाज करती है. जिसमें ज्ञान न हो वह व्यर्थ की बकवास बहुत करता है. 

छूछे फटके उड़ उड़ जाए. किसी कठिनाई का सामना करने में जो अंदर से खोखला है वह असफल हो जाएगा. जैसे सूप से फटकने पर खोखला अनाज और छिलके उड़ जाते हैं.

छूटा सो बैल भुसौडी में. इसका शाब्दिक अर्थ है कि कोल्हू में जुता हुआ बैल छूटते ही भूसे की कोठरी की ओर भागता है. तात्पर्य है कि मेहनत मजदूरी करने वाले को भी भूख लगती है, वह कोई मशीन नहीं होता. 

छै चावल और नौ मशक पानी. आजकल के लोगों ने मशक नहीं देखी होगी. यह एक चमड़े की बहुत बड़ी थैली होती थी जिसमे पानी भर के भिश्ती (पानी भरने वाले) लोग कमर से बाँध के ले जाते थे. कहावत का अर्थ है छोटे से काम में बहुत लागत लगाना.

छोकरा दिखाय के डोकरा ब्याह दियो. धोखे का काम. शादी के लिए जवान लड़का दिखाया और शादी बुड्ढे से कर दी.

छोटा मुँह, बड़ा निवाला. 1.कोई छोटा आदमी बड़ा काम करने की कोशिश करे तो. 2. कोई अदना सा कर्मचारी बड़ी रिश्वत मांगे तो.

छोटा मुंह और ऐंठा कान, यही बैल की है पहचान. अच्छे बैल के लक्षण हैं कि उसका मुंह छोटा और कान मुड़े हुए होते हैं.

छोटा सबसे खोटा (छोटा उतना ही खोटा). एक आम विश्वास है कि नाटा आदमी दुष्ट होता है.

छोटा सा छेद जहाज डुबावे. एक छोटी सी गलती बहुत बड़े काम को बिगाड़ सकती है.

छोटी भेंट दोनों घर लजाए. भेंट अगर अवसर और मर्यादा के अनुकूल न हो तो देने वाला और लेने वाला दोनों लज्जित होते हैं.

छोटी मछली उछले कूदे, बड़ी जाल में फंसे (छोटी मछली उछले कूदे, रोहू पकड़ी जाय). किसी तालाब में मछलियाँ होने की सूचना छोटी मछलियों की उछल कूद से मिलती है, पर जाल डाला जाता है तो फंसती हैं बड़ी मछलियाँ.

छोटी मोटी कामिनी, सब ही विष की बेल, बैरी मारे दांव से, यह मारे हँस खेल. स्त्रियों को ले कर किसी दिलजले द्वारा कही हुई कहावत. औरत चाहे छोटी हो या मोटी, सब विष की बेल होती हैं. दुश्मन तो आपको दाँव से मारता है पर ये हँस खेल के मारती हैं.

छोटी सी गौरैया, बाघन से नज़ारा मारे. नज़ारा मारे – मुकाबला करे, बाघन से – बाघों से. कोई बहुत छोटा आदमी बड़े आदमी से दुश्मनी मोल ले तो.

छोटी सी बछिया, बड़ी सी हत्या. पुराने जमाने में किसी हिन्दू के हाथों धोखे से भी गाय की हत्या हो जाए तो समाज बहुत बड़ा दंड देता था, (बछिया की हत्या हो जाए तो भी). छोटा अपराध करने में अगर बहुत बड़ी सजा मिले.

छोटी हो या बड़ी, मिर्च तो तीखी ही होती है. कहावत के द्वारा स्त्री जाति पर व्यंग्य किया गया है.

छोटे बिगड़ें, देख बड़ों को. बड़े लोगों को कोई गलत काम करने से पहले यह ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे वही सीखते हैं जो वे बड़ों को करते देखते हैं.

छोटे मुँह बड़ी बात. कोई छोटा बच्चा या छोटा आदमी बड़ों जैसी बात कहे तो. अपनी विनम्रता दिखाने के लिए भी लोग इस तरह बोलते हैं कि साहब! छोटे मुँह बड़ी बात कह रहा हूँ.

छोटे सींग औ छोटी पूंछ, ऐसा बरधा लो बेपूछ. बरधा – बैल. अच्छे बैल की पहचान बताई गई है.

छोटो बरतन छन में छलके. छन – क्षण. जिस प्रकार छोटे बर्तन में थोड़ा भी पानी हो तो छलकने लगता है उसी प्रकार छोटे व्यक्ति के पास थोड़ा धन आ जाए तो वह बहुत दिखावा करने लगता है.

छोड़ चले बंजारे की सी आग. बंजारे कुछ समय एक स्थान पर रह कर फिर दूसरे स्थान के लिए चले जाते हैं. जाते समय वे कुछ टूटी फूटी वस्तुएँ और कहीं कहीं जलती हुई आग और राख छोड़ जाते हैं. कोई व्यक्ति कुछ दिन कहीं रुके और फिर कुछ निशानियाँ छोड़ कर चला जाए तो यह कहावत कही जाती है. 

छोड़ जाट, पराई खाट. जाटों से मालूम नहीं लोगों को क्यों दुश्मनी थी, उनका मजाक उड़ाने वाली बहुत सी बेतुकी कहावतें बनाई गई हैं. जाट से कहा जा रहा है कि दूसरे की चीज़ पर कब्ज़ा छोड़ दे.

छोड़ झाड़, मुझे डूबन दे. एक महिला तालाब में डूब कर जान देने का नाटक कर रही है. वहाँ कुछ लोग उसे बचाने आ जाते हैं, तो उन्हें यह दिखा रही है कि वह झाड़ में अटक गई है और झाड़ से कहती है झाड़ मुझे छोड़ दे, मुझे डूबने दे. नाटकबाज लोगों के लिए. 

छोड़े खाद जोत गहराई, फिर खेती का मज़ा दिखाई. खेत को गहरा जोत कर उस में खाद डालनी चाहिए तभी खेती का मजा आता है.

छोड़े गाँव से नाता क्या. जो जगह छूट गई उससे मोह नहीं करना चाहिए.

 

 

जंगल देख के गूजर नाचे, चंग देख बैरागी, खीर देख के बामन नाचे, तन मन होवे राजी. गूजर जंगल देख कर खुश होता है क्योंकि उसे जानवर चराने होते हैं, बैरागी चंग नामक वाद्य यंत्र से प्रसन्न होता है और ब्राह्मण खीर देख कर.

जंगल में मंगल, बस्ती में कड़ाका. उपयुक्त स्थान पर उपयुक्त काम न होना. जंगल में उत्सव हो रहा है और बस्ती में सन्नाटा है.

जंगल में मंगल, बस्ती में वीरान, जा घर भांग न संचरे, ता घर भूत समान (होत मसान). भांग खाने वालों द्वारा भांग का गुणगान.

जंगल में मोर नाचा किसने देखा. यदि कोई प्रतिभाशाली व्यक्ति ऐसी जगह अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करे जहाँ कोई देखने वाला ही न हो.

जंगली हाथी, हाकिम चोर, इन के बिगड़े ओर न छोर. जंगली हाथी और भ्रष्ट अधिकारी जब बिगड़ते हैं तो बहुत नुकसान कर सकते हैं.

जंह जंह पाँव पड़े सन्तन के, तंह तंह बंटाढार. किसी व्यक्ति के आने से काम बिगड़ जाए तो मज़ाक में ऐसा कहते हैं. कलियुगी संतों के लिए भी कह सकते हैं.

जंह जंह संत मठा को गए, भैंस पड़ा दोउ मर गए. जब आपके भाग्य में कुछ न हो तो कहीं भी जाएं कुछ नहीं मिलने वाला. ऐसे संत जहाँ भी मट्ठा मांगने गए वहाँ भैंस और उस का कटरा दोनों मर गए. (जहां जाए भूखा, वहां पड़े सूखा).

जैसा देवर वैसी भौजी. (भोजपुरी कहावत) जैसा देवर वैसी भाभी. दोनों एक से ठिठोली करने वाले.

जैसी माई वैसी धिया,  जैसी काकड़ वैसी बिया. (भोजपुरी कहावत) धिया – बेटी, बिया – बीज. जैसी माँ वैसी ही बेटी, जैसी ककड़ी वैसा बीज.

जग कैसो, जग मों सो. जैसा मेरा चिंतन है संसार मुझे वैसा ही दिखाई देता है. जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखि तिन तैसी. 

जग जीतना आसान पर मन जीतना मुश्किल. संसार को जीतना इतना कठिन नहीं है जितना अपने मन को जीतना.

जग जीता मोरी कानी, वर ठाड़ होए तब जानी. जब दो चतुर लोग एक दूसरे को बेबकूफ बनाने की कोशिश करें तो. एक कानी लड़की की शादी वर पक्ष को बिना बताए तय कर दी गई. लड़का लंगड़ा था यह बात लड़के वाले छिपाए रहे. शादी की रस्मे पूरी होने के बाद लड़की के पिता ने कहा – मेरी कानी ने दुनिया जीत ली, तो लड़के का पिता बोला – वर खड़ा होगा तो मालूम पड़ेगा.

जग में देखत ही का नाता. दुनिया में जो भी नाते हैं वे सब जब तक मनुष्य रहता है तभी तक हैं.

जगत कहे भगत पगला, भगत कहे जगत पगला. भक्त को देखकर संसार के लोग सोचते है कि यह व्यक्ति तो पागल है. और इधर भक्त संसार के लोगो को देखकर सोचता है कि ये सब लोग पागल है.

जगन्नाथ का भांटा, जिसमें झगड़ा न टांटा. जगन्नाथ जी का भात सब के लिए सुलभ है, इसमें जाति वर्ण का कोई झगड़ा नहीं है. अर्थ है कि ईश्वर के दरबार में सब बराबर हैं.

जगन्नाथ को भात, जगत पसारे हाथ. उड़ीसा के जगन्नाथ जी के मन्दिर में सभी को भात का प्रसाद मिलता है. अर्थ है कि ईश्वर के सम्मुख सभी हाथ फैलाते हैं.

जजमान के जौ, जजमान का घी, बोल बराहमन स्वाहा. दूसरे के माल को बर्बाद करने में किसी को कष्ट नहीं होता.

जजमान चाहे स्वर्ग जाए या नरक को, मुझे अपनी दही पूड़ी से काम. स्वार्थी ब्राह्मणों के लिए.

जटा बढ़ाए हरि मिले तो बरगद स्वर्ग सिधाये. हिन्दू धर्म के अंध विश्वास पर व्यंग्य.

जड़ काटते जाएं, पानी देते जाएं. (जड़ खोदते जाएं, पानी देते जाएं) (नीचे से जड़ खोदें, ऊपर से पानी दें). मूर्खता पूर्ण कार्य के लिए भी कह सकते हैं और धोखेबाज़ के लिए भी कह सकते हैं जो भीतर से आपकी जड़ काटता है और ऊपर से दिखाने के लिए पानी देता है.

जड़ काटे वा डार की, बैठे जाही डार. जिस डाल पर बैठा है उसी की जड़ काट रहा है. मूर्ख व्यक्ति.

जड़ से बैर, पत्तों से यारी. मूर्खता पूर्ण सोच. अगर जड़ को नुकसान पहुँचाओगे तो पत्ते तो अपने आप खत्म हो जाएंगे.

जदपि जग दारुन दुःख नाना, सब तें कठिन जाति अपमाना. जाति सूचक गाली दे कर किसी का अपमान नहीं करना चाहिए. नाना प्रकार के – बहुत से.

जनते समय मरे तो जमाई के सर न पड़े. किसी स्त्री की ससुराल में रहते हुए मृत्यु हो जाए तो दामाद को ही दोषी माना जाता है. केवल एक अपवाद है, यदि मृत्यु प्रसव के समय हो. 

जननी जन तो पूत जन कै दाता कै सूर, कै तो रह जा बाँझ ही काहे गंवाए नूर. महिलाओं से कहा जा रहा है कि पुत्र उत्पन्न करो तो ऐसा करो जो दाता हो या शूरवीर हो. वरना बाँझ रहना अच्छा है, प्रसव कर के अपना सौन्दर्य मत गंवाओ.

जनम के दुखिया करम के हीन, तिनको दैव तिलंगवा कीन. तिलंगा – अंग्रेजी फ़ौज का हिन्दुस्तानी सिपाही. जो हिन्दुस्तानी लोग अंग्रेजों की फ़ौज में नौकरी करते थे, उनसे बाकी हिन्दुस्तानी घृणा करते थे. ऐसे ही किसी व्यक्ति का कथन.

जनम के दुखिया, नाम सदासुख. नाम के विपरीत गुण.

जनम के मंगता, नाम दाताराम. ऊपर वाली कहावत की भांति.

जनम के साथी हैं, करम के साथी नहीं. जन्म एक ही घर में हुआ है पर कर्म अलग अलग हैं.

जनम जनम का मारा बनिया, अजहूँ पूर न तौले. पाप कर्म करने के चक्कर में बनिये को बार बार जन्म लेना पड़ता है पर वह अब भी पूरा नहीं तौल रहा. खाली बनिया ही नहीं संसार के हर व्यक्ति के साथ यह समस्या है.

जनम न देखी बोरिया, सुपने आई खाट. जिस गरीब ने जन्म से बोरी भी नहीं देखी वह खाट के सपने देख रहा है. अपनी हैसियत से बहुत ऊंचे सपने देखना. आजकल के बच्चों ने बोरी और खाट नहीं देखी होंगी. (देखिये परिशिष्ट) 

जने–जने की लकड़ी, एक जने का बोझ. सब लोग मिल कर थोड़ी थोड़ी सहायता करें तो एक व्यक्ति की बहुत बड़ी सहायता हो जाती है. इंग्लिश में कहावत है – Many hands make work light.

जने-जने से मत कहोकार भेद की बात. अपने रोजगार और भेद की बात हर एक व्यक्ति से नहीं कहनी चाहिए.

जन्म के दुखी, नाम चैनसुख. गुण के विपरीत नाम.

जब अपना पैसा खोटा तो परखैय्या का क्या दोष (अपना सोना खोटा तो सुनार का क्या दोष). एक जमाना था जब सिक्कों की बड़ी कीमत हुआ करती थी. उस समय धातु के सिक्कों की नकल में रांग के नकली सिक्के बनाए जाते थे, जो खोटे सिक्के कहलाते थे. समझदार लोग फौरन यह परख लिया करते थे कि यह सिक्का खोटा है. यदि आपके मित्र या संबंधी में कुछ कमियां हो और कोई उसे बुरा कह रहा हो तो आप यही कहावत कह कर चुप रह जाते हैं.

जब अपनी उतार ली तो दूसरे की उतारने में क्या लगता है. जिस की खुद की इज्जत उतर चुकी हो उसे दूसरे की इज्जत उतारने में देर नहीं लगती.

जब आया देही का अन्तजैसा गदहा वैसा सन्त. सज्जन और दुर्जन सभी को मरना पड़ता है और मरते समय सब एक से हो जाते है.

जब आवे बरसन को चाव, पुरबा गिने न पछवा बाव. जब पानी बरसने को आता है तो पुरवा पछवा कोई भी हवा हो, बरसता ही है. बाव – वायु.

जब आवे संतोष धन सब धन धूरि समान. व्यक्ति के पास कितनी भी सम्पत्ति हो उसे सुख नहीं मिल सकता. सुख तभी मिलता है जब मन में संतोष करने की प्रवृत्ति हो. इसकी प्रथम पंक्ति है – गोधन, गजधन, बाजिधन और रतन घन खान.

जब एक कलम घसके तब बावन गाँव खसके. कचहरी और कायस्थों के लिए कहा गया है कि उनकी कलम चलने से कुछ का कुछ अनर्थ हो सकता है.

जब किस्मत मारे जोर, तब खेत निराएं चोर. एक गरीब किसान अपने खेत की निराई के लिए परेशान था. तभी कुछ चोर सिपाहियों से बचते हुए उसके खेत में आ छिपे. उन्होंने किसान से कहा कि हम आप का खेत निरा देते हैं, आप सिपाहियों से कह देना कि हम मजदूर हैं. इस तरह किसान का काम मुफ्त में हो गया.

जब कुर्सी अफसर पर सवार तब उल्टी गंगा बहे. जब अफसर पर पद का अहंकार हावी हो जाता है तो वह सारी मर्यादाएँ भूल जाता है.

जब गुण को गाहक मिले, तब गुण लाख बिकाई, जब गुण को गाहक नहीं,  कौड़ी बदले जाई. कबीर कहते हैं कि जब गुण को परखने वाला ग्राहक मिल जाता है तो  गुण की कीमत होती है. पर जब ऐसा ग्राहक नहीं मिलता, तब गुण कौड़ी के भाव चला जाता है.

जब जंगल जावे, तभी लोटा याद आवे. जंगल जाना – शौच के लिए खुले में जाना. आवश्यकता होने पर ही कोई चीज़ याद आती है यह कहने का हास्यप्रद तरीका.

जब जागो तभी सवेरा. अगर कोई गलती से गलत रास्ते पर चल पड़ा हो तो निराश नहीं होना चाहिए. अच्छा जीवन कभी भी शुरू किया जा सकता है.

जब डाकनवारो चढ्यो सर पे तब लाज कहाँ खर पे चढ़िबै की. डाकनवारो – बुलाने वाला, खर – गधा. प्रियतम से मिलने की धुन सर पे सवार है तो गधे पर चढ़ने में भी कैसी शर्म.

जब तक जीना तब तक सीना. जब तक मनुष्य जीवित रहता है तब तक उसे कुछ न कुछ करना ही पड़ता है. सीना – सिलाई करना.

जब तक तेरे पुन्य का बीता नहीं करार, तब तक तुझ को माफ़ है औगुन करे हजार. जब तक पिछले जन्मों के पुण्य समाप्त नहीं हो जाते तब तक ही तुम पाप कर्म कर के भी सुरक्षित हो. (इसके बाद तुम्हें दंड अवश्य मिलेगा)

जब तक दम है, तब तक गम है. जब तक जीवन है तब तक कुछ न कुछ दुःख लगे ही रहते हैं.

जब तक लालाजी पाग संभालेंगे, तब तक दरबार उठ जाएगा. श्रृंगार करने और तैयार होने में बहुत देर लगाने वालों पर व्यंग्य. 

जब तक साँस, तब तक आस (जबलग सांसा, तबलग आसा). कोई व्यक्ति गम्भीर रूप से बीमार हो तो यह कहावत कही जाती है, जब तक उस की सांस चल रही है तब तक उस के ठीक होने की आशा लगी रहती है.

जब दम लगा घटने, तो खैरात लगी बंटने. जब मृत्यु निकट आती है तो आदमी को दान धर्म सूझने लगता है.

जब दांत थे तब चने न थे, जब चने भए तो दांत नहीं. जब शरीर स्वस्थ होता है तो मनुष्य के पास आनन्द उठाने के साधन नहीं होते और जब तक साधन इकट्ठे हो पाते हैं तब तक शरीर अशक्त हो चुका होता है.

जब बरखा चित्रा में होए, सगरी खेती जावे खोय. घाघ कहते हैं कि यदि चित्रा नक्षत्र में वर्षा होती है तो खेती नष्ट हो जाती है.

जब बरसेगा उत्तरा, नाज न खावे कुत्तरा. उत्तरा नक्षत्र में वर्षा हो तो इतना अन्न पैदा होता है कि कुत्ते भी खाते खाते थक जाएं.

जब बाप का जूता बेटे के पैर में आ जाए तो उसको दोस्त समझना चाहिए. जब बेटा जवान हो जाए तो उससे मित्रवत व्यवहार करना चाहिए.

जब बिगड़े तब सुघड़ नर, क्या बिगड़ेगा कूढ़, मट्ठे का क्या बिगड़ना, जब बिगड़े तब दूध. जिसके पास कुछ है ही नहीं उसका क्या बिगड़ेगा.

जब बोलो तब राम ही राम, ठाली जिव्हा कौने काम. खाली जीभ के लिए सबसे अच्छा काम यह है कि वह बार बार राम राम बोले.

जब भए सौ तो भाग गया भौ. जब बहुत से लोग इकट्ठे होते हैं तो भय भाग जाता है.

जब भूख लगी भड़ुए को तो तंदूर की सूझी और पेट भरा तो दूर की सूझी. आम सांसारिक लोग पहले भूख और खाने की ही चिंता करते हैं. जब पेट भर जाए तो तभी कुछ और सोच पाते हैं.

जब माँ की चूड़ी बेटी के हाथ में आ जाए तो उसकी शादी कर देनी चाहिए. अर्थ स्पष्ट है.

जब मैं था तब गुरु नहीं, अब गुरु हैं मैं नाहिं, प्रेम गली अति सांकरी, जा में दो न समाहिं. जब मेरे अंदर अहंकार था तब मैं किसी को गुरु नहीं बना पाया, अब मुझे गुरु मिले हैं तो मेरा अहंकार चला गया है. प्रेम की गली बहुत पतली है, इस में गुरु और अहंकार दोनों नहीं समा सकते.

जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नांहि (सब अँधियारा मिट गया, दीपक रेखा मांहि).  कबीर दास जी कहते हैं कि जब मेरे अंदर अहंकार (मैं) था, तब मेरे ह्रदय में ईश्वर का वास नहीं था. और अब मेरे ह्रदय में ईश्वर का वास है तो अहंकार नहीं है.

जब राम तकें सब दुःख भगिहें. जब भगवान की कृपा दृष्टि होती है तो सब दुःख दूर हो जाते हैं. 

जब लक्ष्मी तिलक करती हो, तब मुहँ धोने नहीं जाना चाहिए. अवसर को पहचान कर उचित कदम उठाना चाहिए.

जब लग चलें हाथ और पाँव, तब लग पूजे सारा गाँव. जब तक व्यक्ति के हाथ पाँव चलते हैं तभी तक उसका सम्मान होता है.

जब लाद ली तब लाज क्या. जब बेशर्मी लाद ली तो शर्म किस बात की.

जब साजन की होए लुगाई, तोड़े कोट और फांदे खाई. प्रेम में व्यक्ति किला तोड़ सकता है और खाई फांद सकता है.

जब हांडी पे ढकना न होवे तो बिलैया की लाज काहे चाहो. हंडिया पे ढक्कन न होगा तो बिल्ली शरम क्यों करेगी. अपनी चीज की सुरक्षा नहीं करोगे तो चोर चोरी क्यों नहीं करेगा.

जब ही तब ही दंडै करे, ताल नहाय ओस में परै, दैव न मारे आपै मरे. जो कभी कभी ही व्यायाम करता है और तालाब में नहा कर ओस में लेटता है उसे भगवान नहीं मारते, वह खुद ही मर जाता है.(घाघ कवि)

जब होवें करमन के फेर, मकड़ी जाल में फंस जाए शेर. (बुन्देलखंडी कहावत) भाग्य का फेर हो तो शेर भी मकड़ी के जाल में फंस सकता है. भाग्य सब से प्रबल है.

जब होवें बिधना विपरीत तब ऊँट चढ़े पर कूकर काटे. जब भाग्य विपरीत हो तो ऊँट पर बैठे व्यक्ति को भी कुत्ता काट सकता है.

जबर की जोय महतारी लागे, निबल की जोय मोरी साली. बलवान की पत्नी माँ जैसी लगती है और निर्बल की पत्नी साली. अर्थ है कि कमजोर को सब दबाते हैं.

जबर के जबरई, अबरा के नियाव. (भोजपुरी कहावत) दबंग अपनी जबरदस्ती पर विश्वास रखता है और कमजोर न्याय तन्त्र का मुँह देखता है. 

जबरदस्त के दो भाग. किसी चीज़ के कई हिस्से किये जाएँ तो ताकतवर आदमी उसमें से दो हिस्से लेता है.

जबरदस्त के बीसों बिस्वे. जो जबरदस्त है वह सारा हिस्सा खुद लेना चाहता है. एक बीघे में बीस बिस्वे होते हैं. (देखिये परिशिष्ट) 

जबरदस्त सबका जमाई. अर्थ स्पष्ट है. जमाई की सबको इज्ज़त करनी पडती है इसलिए उसका उदाहरण दिया गया है.

जबरदस्ती का ठेंगा सिर पर. अर्थ ऊपर वाली दोनों कहावतों के समान.

जबरा की जोरू, गाँव भर की ताई. दबंग व्यक्ति की पत्नी से सब डरते हैं.

जबरा मारे और रोने न दे. जो जबरदस्त होता है वह मारता है और रोने भी नहीं देता.

जबरा हारे तो भी मारे, न हारे तो भी मारे. दबंग व्यक्ति हार जाए तो भी अपने को हारा हुआ नहीं मानता और मार पीट पर उतारू हो जाता है.

जबरे की जात कोई न पूछे. पहले के जमाने में लोग जात पांत का बहुत विचार करते थे. ऊँची जाति वालों का सम्मान और निम्न जाति वालों का अपमान करना आम बात थी. लेकिन उस समय भी जो ताकतवर होता था उसकी जाति कोई नहीं पूछता था.

जबरे को जबरा ही मारे, या मारे करतार. आतताई को आतताई ही मार सकता है या ईश्वर.

जबरे ने दी गाली तो मजाक में टाली. दबंग आदमी गाली देता है तो लोग हँस के टाल देते हैं.

जबलग सनहकी में भात, तब लग तेरो मेरो साथ. जब तक तुम्हारे यहाँ खाने पीने की जुगाड़ है तब तक का ही तुम्हारा मेरा साथ है. निपट स्वार्थ. सनहकी – खाना पकाने का बर्तन.

जबान को लगाम चाहिए. जो कुछ हम बोलते हैं उस पर हमारा पूरा नियन्त्रण होना चाहिए.

जबान से ही घर उजड़ते हैं, जबान से ही घर बसते हैं. मीठी बोली प्रेम सम्बंध बना कर घर बसा सकती है और कड़वी बोली दुश्मनी करवा कर घर उजाड़ सकती है.

जबान ही हलाल है, जबान ही मुरदार है. जिस जानवर को इस्लामिक विधि से मारा गया हो उसे खाना मुसलमान हलाल (धर्मसंगत) मानते हैं और जो अपनी मौत मरा हो (मुरदार) उसे खाना पाप मानते हैं. कहावत में यह कहा गया है कि जीभ ही धर्म की बात करती है और जीभ ही अधर्म की.

जबान ही हाथी चढ़ाए, ज़बान ही सिर कटाए. बात को चतुराई से कहने पर हाथी इनाम में मिल सकता है और मूर्खता से कहने पर सर काटने की सजा मिल सकती है. (बातन हाथी पाइए, बातन हाथीपाँव).

जम की भैन बरात. बारात की खातिरदारी करना बड़ा ही खतरनाक काम है. इसीलिए बारात को यमराज की बहन कहा गया है.

जम के पानी बरसे स्वाती, कुरमिनि पहिरै सोने की पाती. स्वाति नक्षत्र में पानी बरसे तो किसान को बहुत लाभ होता है (उसकी पत्नी सोने के गहने बनवाती है).  

जम से जबर बनिया. बनिया अपने उधार की उगाही करने के मामले में यमराज से भी बढ़ कर होता है.

जमा लगे सरकार की और मिर्ज़ा खेलें फाग. सरकार के धन का दुरुपयोग करने वालों के लिए.

जमाई के घर घोड़ा और सास हिनहिनाए. कोई व्यक्ति साधन सम्पन्न हो तो उस के सगे सम्बन्धी भी इतराने लगते हैं. ऐसे लोगों का मजाक उड़ाने के लिए यह कहावत कही जाती है.  

जमाई जम के समान होता है. दामाद यमराज की तरह डरावना और खतरनाक होता है.

जमाई तो रूठा ही भला. दामाद के रूठने से बड़ा फायदा है, न वह बार बार घर आएगा, न उस की खातिर करनी पड़ेगी.

जमात में करामात. संगठन में शक्ति है.

जमीं जोरू जोर की, जोर हटया और की. जायदाद और स्त्री बलवान के पास ही ठहर सकती है.

जमींदार की जड़ हरी. जमींदार हमेशा फलता फूलता है. (अकाल पड़ेगा तो किसान मरेगा, जमींदार फिर भी फलेगा फूलेगा).

जर का जर्रा भी आफताब है, बेजर की मिट्टी खराब है. जर – खजाना, आफताब – सूर्य, बेजर – निर्धन. धन का कण भी सूर्य के समान तेजवान लगता है. जिस के पास धन नहीं है उस की कोई पूछ नहीं है.

ज़र का जोर पूरा है, और सब अधूरा है. पैसे में जितनी ताकत है उतनी किसी चीज़ में नहीं है.

ज़र गया ज़र्दी छाई, ज़र आया सुर्खी आई. धन न रहने पर आदमी उदास हो जाता है और धन आ जाने से प्रसन्न. (जर्दी – पीलापन, सुर्खी – ललामी)

ज़र दीजे हजार मगर दिल न दीजे, उल्फत बुरी बला है किसी से न कीजे. पैसा जितना भी चाहे किसी को दे दें पर किसी से इश्क न करें.

जर नेस्त, इश्क टें टें. जर – खजाना, नेस्त – समाप्त. पैसा खत्म तो प्रेम भी खत्म.

जर है तो घर है, नहीं तो खंडहर है. पैसा हो तभी घर बनता है. जर – धन.

जर है तो नर है नहीं तो पंछी बेपर है. रुपया पैसा पास हो तभी आदमी की इज्जत है.

जर है तो नर, नहीं तो पूरा खर. पैसा पास हो तो आदमी नहीं तो गधे के बराबर.

जरा जरा सा कर लिया और अपना पल्ला भर लिया. थोड़ी थोड़ी बचत भी बहुत महत्वपूर्ण होती है.

जरा सा खावे बहुत बतावे वह है बहू सुघड़ेली, ज्यादा खावे कम बतलावे वह बहुतहि बिगड़ेली. जो बहू सुघड़ होती है वह कम खाती है और कहती है कि उसने बहुत खा लिया है, जो बहू बिगडैल होती है वह अधिक खाती है और कहती है कि उसे कुछ नहीं मिला.

जरा सा मुँह, बड़ा सा पेट. जो बोलता कम हो और पेट में ज्यादा बात रखता हो. उसके लिए भी जो देखने में दुबला पतला हो पर खाता अधिक हो.

जरूरत पड़ने पर लोग गधे को भी बाप बना लेते हैं. स्वार्थ सिद्धि की लिए मनुष्य कुछ भी कर सकता है.

जल की मछलिया जल में ही प्यासी. जिस चीज़ की बहुतायत होनी चाहिए उसी की कमी हो तो.

जल की मछली जल ही में भली. जो जहाँ का होता है उसे वहीं अच्छा लगता है.

जल में खड़ी प्यासों मरे. साधन सम्पन्न होने पर भी परेशान होना.

जल में जो मूते वही जाने. नदी या तालाब में नहाते समय किसने पानी के अंदर पेशाब की है यह केवल करने वाला ही जान सकता है. जो गलत काम छिप के किया जाता है उसे केवल करने वाला ही जान सकता है.

जल में डूबा तैर निकले, तिरिया में डूबा बह जाए. एक बार को पानी में डूबा आदमी तैर कर निकल सकता है पर जो स्त्री के मोह में डूब गया वह निश्चित रूप से बह जाता है.

जल में रहे मगर से बैर. जहां आप रहते हैं वहाँ रहने वाले शक्तिशाली लोगों से दुश्मनी मोल नहीं लेना चाहिए. 

जल लकीर जिमि जीवनों है, स्थिर रह्यो नाहिं. जीवन पानी की लकीर की भांति है, अस्थिर और क्षणभंगुर.

जल सूर बामन, रन सूर छत्री, कलम सूर कायस्थ और डर सूर खत्री. ब्राह्मण ठन्डे पानी में रोज नहाता है (जल शूर), क्षत्रिय युद्ध करने (रण) में शूर होता है, कायस्थ कलम का वीर होता है और खत्री महा डरपोक होता है. खत्रियों से निवेदन है कि कहावत का बुरा न मानें.

जलता घर भगवान् को अर्पण. जो चीज़ हाथ से जा रही हो उस को भगवान को अर्पण कर के भक्त होने का नाटक करना.

जली तो जली पर सिकी खूब. काम बिगड़ तो गया पर आनंद खूब आया.

जले को क्या जलाना. जो कष्ट में हो उसे और कष्ट नहीं देना चाहिए. कोई आपसे ईर्ष्या करता हो उसके सामने ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिए जिससे वह और अधिक जले.

जले घर की बलेंडी. बलेंडी – छप्पर की लम्बी लकड़ी. व्यापार में बहुत नुकसान हुआ पर जो कोई एक बड़ा अदद बच गया.

जले पराया घी और हंसें बटाऊ लोग. दूसरे का नुकसान होते देख कर कुछ लोग आनंद लेते हैं. बटाऊ – राहगीर. 

जले पांव की बिल्ली. एक साहूकार ने बिल्ली पाल रखी थी. बिल्ली के पाँव में चोट लग गई तो साहूकार ने उस के पाँव में मिट्टी के तेल में कपड़ा भिगोकर पट्टी बाँधी. वह बिल्ली अचानक रसोई घर में चली गई तो उस कपड़े में आग लग गई. आग लगने से वह बिल्ली घर में इधर-उधर भागने लगी. साहूकार के घर में कई अन्य व्यापारियों की रुई रखी थी जिसमें आग लग गई. इसके बाद बिल्ली ने इधर उधर भागते हुए कई घरों में आग लगा दी. कहावत किसी ऐसे व्यक्ति के लिए प्रयोग की जाती है जो गाँव भर में घूम घूम कर झगड़े की आग लगा देता है.

जलेबी की तरह सीधा. जलेबी बहुत टेढ़ी मेढ़ी होती है. अगर कोई धूर्त व्यक्ति अपने को सीधा बताने का प्रयास करता है तो उस के लिए मजाक में ऐसे बोलते हैं. 

जलो मगर दीपक की तरह. जो लोग दूसरों की सफलता और सम्पन्नता से जलते हैं उन को सीख दी गई है कि अगर जलना ही है तो दीपक की तरह जलो जो स्वयं जल कर औरों को प्रकाश देता है.

जलो मत रीस करो. किसी की सम्पन्नता से जलने की बजाय उससे स्वस्थ प्रतिस्पर्धा करना और उस के बराबर बनने की कोशिश करना चाहिए. इंग्लिश में कहावत है – Envy never enriched any man.

जल्दबाजी करो तो भी धीरे धीरे. कभी कोई काम जल्दी में करना पड़े तो भी जितना संयम हो सके रखना चाहिए.

जल्दबाजी काम शैतान का, सुघड़ काम रहमान का. जल्दबाजी में काम खराब हो जाता है.

जवान जाए पताल, बुढ़िया मांगे भतार. बुढ़िया कह रही है कि जवान स्त्री भाड़ में जाए मुझे ब्याह करना है. बुढ़ापे में कुछ लोग बहुत स्वार्थी हो जाते हैं, उनके लिए.

जवान डरे भगने से, बूढ़ा डरे मरने से. जवान युद्ध भूमि से भागने से डरता है और बूढ़ा मरने से डरता है.

जवान में ही रस अर जबान में ही बिस. बोली में ही रस है और बोली में ही विष रहता है.

जवान रांड, बूढ़े सांड. जवान विधवा को देख कर बूढ़े लोग नीयत खराब कर रहे हों तब.

जवानी में गधी पर भी जोवन होता है. स्त्री कुरूप हो तब भी युवावस्था में उस पर भी मद छाता है.

जवानी में शादी, नहीं तो बरबादी. युवावस्था में विवाह न हो पाए तो आदमी बर्बाद हो जाता है.

जवानी में हाजी, बुढ़ापे में पाजी. जो व्यक्ति जवानी में धर्मात्मा हो पर बुढ़ापे में मदांध हो जाए.

जवानों को चला चली, बुढ़िया को ब्याह की पड़ी. जवानों की तो जान जोखिम में है और बुढिया को ब्याह करने का शौक सूझ रहा है. बुढ़ापे में मनुष्य स्वार्थी हो जाता है इस पर व्यंग्य.

जस केले के पात में पात पात में पात, तस ग्यानी की बात में बात बात में बात. जैसे केले के पत्ते में पत्ता होता है वैसे ही ग्यानी आदमी की बात में गूढ़ अर्थ छिपे होते हैं.

जस दुल्हा तस बनी बराता. जैसा नेता वैसी जनता, जैसा राजा वैसी प्रजा.

जस मतंग तस पादन घोड़ी, बिधना भली मिलाई जोड़ी. एक साथ काम करने वाले दो लोग जब एक से बढ़ कर एक निकम्मे हों तो.

जहँ आपा तहँ आपदा, जहँ संशय तहँ रोग. जहाँ स्वार्थ और अहंकार का बोलबाला है वहाँ संकट है और जहाँ शंकालु प्रवृत्ति है वहाँ आप स्वस्थ मन से काम नहीं कर सकते.

जहँ लूट पड़ी वहां टूट पड़ी जहँ मार पड़ी वहां भाग पड़ी. जहाँ माल की खुल्लम खुल्ला लूट मच रही हो वहाँ लालची लोग टूट पड़ते हैं और जहाँ मार पड़ने का डर हो वहाँ से भाग खड़े होते हैं.

जहर को जहर ही मारता है. दुष्ट का नाश दुष्टता से ही किया जा सकता है. (संस्कृत – विषस्य विषम औषधम्).

जहाँ एकता वहाँ लक्ष्मी, जहाँ कलह वहाँ काल. घर हो व्यापार हो या समाज, जहाँ लोगों में एकता है वहाँ उन्नति है, जहाँ लड़ाई झगड़े है वहाँ दुर्गति.

जहाँ काम, वहीं राम. जहाँ उद्यम है, वहीं ईश्वर का वास है.

जहाँ के मुरदे तहाँ ही गड़ते हैं. जो काम जहां का है उसे वहीं निबटाना चाहिए.

जहाँ खर्च नहीं वहाँ हर एक गाँठ का पूरा. जहाँ लोगों की आदत व्यर्थ खर्च करने की नहीं होती वहाँ हर व्यक्ति सम्पन्न होता है.

जहाँ खैरात बंटे वहाँ मंगते अपने आप पहुँच जाते हैं. अर्थ स्पष्ट है.

जहाँ गंग, वहाँ रंग. जहाँ गंगा है, वहाँ आनंद हैं. 

जहाँ गंज, वहाँ रंज. जहाँ ख़ुशी है वहाँ दुःख भी अवश्य है.

जहाँ गाय वहाँ बछड़ा, जहाँ गुरु वहाँ चेला. जैसे बछड़ा गाय पर पूरी तरह निर्भर है वैसे ही चेला भी पूरी तरह गुरु पर आश्रित है.

जहाँ गुलाब, वहाँ कांटे. जहाँ सुख सुविधाएँ होती हैं वहाँ कुछ न कुछ कष्ट भी होते हैं. इंग्लिश में कहावत है – There are no rose without thorns.

जहाँ चने हैं वहाँ दांत नहीं, जहाँ दांत हैं वहाँ चने नहीं. जहाँ सुविधाएँ उपलब्ध हैं वहाँ उन्हें भोगने वाले नहीं हैं, जहाँ भोगने वाले बहुतेरे हैं वहाँ सुविधाएँ नहीं हैं.

जहाँ चार गगरी तहाँ लड़बे करी. (भोजपुरी कहावत) जहाँ चार पनिहारिनें होंगी वहाँ आपस में लड़ाई तो होगी ही. स्त्रियों की लड़ने की आदत पर व्यंग्य. 

जहाँ चार रजपूत, हुआँ बात मजबूत. राजपूत अकेला हो तो भी अपनी बात का पक्का होता है, और अगर चार राजपूत मिल जाएं तो क्या कहना.

जहाँ जाएं बाले मियाँ तहाँ जाए पूँछ. चमचों पर व्यंग्य करने के लिए.

जहाँ जाट, वहाँ ठाठ. जाट बड़े दरियादिल और मस्त माने जाते हैं उसी पर बनी कहावत.

जहाँ तेल देखा वहीँ जनने को बैठ गई. बच्चे का जन्म कराने के लिए दाइयों को तेल की आवश्यकता होती थी. एक ऐसी स्त्री का ज़िक्र किया गया है जो कहीं पर तेल देख कर बच्चे का प्रसव करने बैठ जाती है. कहावत उस निर्लज्ज व्यक्ति के लिए कही गई है जो अपने थोड़े से लाभ के लिए कुछ भी कर सकता है.

जहाँ दया तहँ धर्म है, जहाँ लोभ तहँ पाप, जहाँ क्रोध तहँ ताप है, जहाँ क्षमा तहाँ आप. जो दूसरों पर दया करते हैं वे धर्म पर चलने वाले माने जाते हैं, जो लोभी होते हैं वे लोभ के कारण पाप में प्रवृत्त हो जाते हैं. जो लोग क्रोध करते हैं वे कष्ट उठाते हैं और जो क्षमा करते हैं वे ईश्वर के समतुल्य बन जाते हैं.

जहाँ दूल्हा वहीँ बरात. जो महत्वपूर्ण व्यक्ति है उसी के इर्द गिर्द सब लोग रहना चाहते हैं.

जहाँ नहीं पेड़ वहाँ अरंड ही पेड़ (जहाँ रूख नहीं वहाँ अरंडा ही रूख). अरंड का पेड़ बहुत घटिया पेड़ माना जाता है. लेकिन जहाँ पेड़ ही न हों वहाँ अरंड को ही पेड़ मान सकते हैं. काम चलाने वाली बात. 

जहाँ नाश वहाँ सवा सत्यानाश. जहाँ नुकसान हो रहा है वहाँ थोड़ा और नुकसान सही. इस को इस प्रकार भी कहते हैं – जहाँ लादी वहाँ सवा लादी.

जहाँ पड़े मूसल, वहीं क्षेम कुशल. 1.मूसल से मसाले कूटे जाते हैं और चूरमा बनता है, इसलिए जहाँ खुशहाली हो वहीं मूसल का प्रयोग होता है. 2. कुटाई के डर से ही सारी व्यवस्थाएं सुचारू रूप से चलती हैं.

जहाँ पाँच पंच तहाँ परमेश्वर. जहाँ पांच पंच मिल कर न्याय करते हैं वहाँ अन्याय की गुंजाइश बहुत कम हो जाती है.

जहाँ फूल वहाँ काँटा. ईश्वर ने जहाँ सुख दिए हैं वहाँ कुछ न कुछ दुःख भी दिए हैं. इंग्लिश में कहावत है – No rose without thorns.

जहाँ बस्ती होती है वहाँ कुत्ते भी होते हैं. अच्छे इंसानों के बीच बुरे लोग भी अवश्य होते हैं.

जहाँ बहू का पीसना, वहीं ससुर की खाट. जहाँ बहू चक्की पीस रही है वहीं ससुर खाट डाले बैठे हैं. बेतुका काम.

जहाँ मिले पाँच माली, वहाँ बाग़ सदा खाली. साझे का काम हमेशा गड़बड़ होता है. इस आशय की और भी बहुत सी कहावतें हैं – ज्यादा जोगी मठ उजाड़, साझे की माँ गंगा न पाए. इत्यादि. इंग्लिश में कहते हैं – Too many cooks, spoil the broth.

जहाँ लाख, वहाँ सवा लाख. जहाँ बहुत अधिक खर्च हो रहा हो वहाँ थोड़ा और सही.

जहाँ हाथी तुलें, वहाँ गधे पासंग. कोई सामान तोलने से पहले तराजू के हल्के पलड़े में थोड़ा वजन बाँध कर दोनों पलड़ों को बराबर करते हैं. इसे पासंग कहते हैं. जहाँ हाथी जैसी बड़ी चीज़ तोलने का काम हो रहा वहाँ गधे की औकात पासंग जितनी ही है.  

जहां काम आवे सुई, कहा करे तलवार. शेर और चूहे की कहानी हम सब को याद होगी. शेर ने एक बार एक चूहे को पकड़ लिया. चूहा गिड़गिड़ाया – मालिक मुझे छोड़ दीजिये. मैं कभी आपके काम आऊँगा. शेर हँसा कि तू मेरे किस काम आएगा पर उसे छोड़ दिया. कुछ समय बाद शेर एक शिकारी के जाल में फंस गया. चूहे को मालूम पड़ा तो उसने फ़ौरन आ कर अपने पैने दांतों से जाल को काट दिया और शेर को छुड़ा दिया. कहावत का तात्पर्य यह है कि आपके सम्बन्ध कितने भी बड़े बड़े लोगों से क्यों न हों आपके छोटे लोगों को भी सम्मान और महत्त्व देना चाहिए. (रहिमन देख बड़ेन को लघु न दीजिए डार, जहां काम आवे सुई कहा करे तलवार). 

जहां गड्ढा होता है पानी वहीँ भरता है. इस का शाब्दिक अर्थ तो स्पष्ट है पर कहावत के रूप में इसका अर्थ थोड़ा सूक्ष्म है. कहीं चार लोग बैठे हों तो आप किसी एक राजनैतिक दल की बुराई करना शुरू कर दीजिए. जो उस दल का समर्थक होगा उसे बुरा लगेगा और वह फ़ौरन विरोध करेगा. आप सोशल मीडिया पर किसी ग्रुप में किसी एक व्यवसाय की बुराई कीजिए. उस ग्रुप में उस व्यवसाय से संबंधित जो लोग होंगे वे फौरन आपत्ति करेंगे. इसे कहते हैं जहां गड्ढा होता है वहीं पानी भरता है.

जहां गुड़ होगा वहां मक्खियाँ आयेंगी ही. जिसके पास धन व अधिकार हो उसके बहुत से मित्र बन जाते हैं.

जहां चाह वहां राह. व्यक्ति यदि कोई कार्य करना मन से चाहता है तो उसके लिए रास्ता निकाल लेता है. इंग्लिश में कहावत है – Where there is a will, there is a way.

जहां जाय भूखा, वहां पड़े सूखा. अभागा व्यक्ति कहीं भी जाए दुर्भाग्य उसका साथ नहीं छोड़ता.

जहां जाये दूला रानी, वहाँ पड़े पाथर पानी. पाथर पानी – ओला वृष्टि. किसी अभागे व्यक्ति पर व्यंग्य है कि वह जहाँ जाता है वहाँ कुछ न कुछ अनर्थ हो जाता है.

जहां ढेर मउगी, तहँ मरद उपास. (भोजपुरी कहावत) जिस आदमी की कई पत्नियाँ होती हैं उसे भूखा रहना पड़ता है. (क्योंकि सभी एक दूसरे पर काम टालती हैं). ढेर – बहुत सारी, मउगी – पत्नी, उपास – उपवास.

जहां देखी रोटी, वहीं मुड़ाई चोटी. चोटी कटाने से दोनों अर्थ हो सकते हैं, सिर मुंडा कर सन्यासी बनना या चोटी कटा कर सन्यासी से पुनः सांसारिक बनना. अर्थ यह है कि रोटी के कारण व्यक्ति कुछ भी कर सकता है.

जहां देखे तवा परात, वहीँ बितावे सारी रात. जहाँ खाने पीने का इंतजाम हो वहीँ रहने की इच्छा करने वाले लोग.

जहां दो बर्तन होते हैं, खड़कते ही हैं. जब दो लोग एक साथ रहते हैं तो कभी न कभी, कुछ न कुछ मनमुटाव हो ही जाता है.

जहां धुंआ वहां आग जरूर होगी. (आग बिन धुंआ नहीं). अगर कहीं धुंआ दिखाई दे रहा है तो इसका अर्थ यह है कि कहीं न कहीं आग जरूर लगी हुई है. अगर कोई व्यक्ति बहुत उदास दिखाई दे रहा है तो इसका अर्थ यह है कि उसके मन में जरूर कोई क्लेश है. अगर दो लोगों के रिश्तों में तनाव दिखाई दे रहा है तो कुछ गम्भीर कारण जरूर होगा.

जहां न जाए रवि, वहां जाए कवि (जहां न पहुंचे रवि, वहां पहुंचे कवि). कवियों की कल्पना के विषय में कहा गया है.

जहां न जाए रेलगाड़ी, वहां जाए मारवाड़ी. मारवाड़ी लोग दूर दूर तक व्यापार करते हैं उसके लिए मजाक.

जहां बालों का संग वहां बाजे मृदंग, जहां बुड्ढों का संग वहां खरचे से तंग. जहां बालक होते हैं वहां मौज मस्ती होती है और जहां केवल बूढ़े लोग हों वहां केवल परेशानियों की चर्चा होती है.

जहां मीठा होइ, उहाँ चिउंटी लगबे करी. (भोजपुरी कहावत) जहाँ मीठा होगा वहाँ चीटियाँ जरूर आएंगी. जहाँ लाभ होने की संभावना होती है वहाँ बहुत से लाभार्थी पहुँच जाते हैं.

जहां मुर्गा नहीं होता वहां क्या सवेरा नहीं होता. मुर्गे को यह गलतफहमी होती है कि उसके बांग देने से ही सवेरा होता है. इसी प्रकार कुछ लोगों को यह भ्रान्ति होती है कि अमुक संस्था उन के कारण से चल रही है. ऐसे लोगों को उनकी हैसियत बताने के लिए यह कहावत कही जाती है.

जहां मेरो सैयां, वहां मेरो गइयां. मेरा गाँव वहीँ है जहां मेरा पति रहता है. सुहागिन स्त्रियों का कथन.

जहां राजा बसे, वहीं राजधानी. महत्वपूर्ण व्यक्ति जहाँ रहेगा वही स्थान महत्वपूर्ण हो जाएगा.

जहां रोजगार, वहीं घरबार. व्यक्ति को जहाँ रोजगार मिलता है वह वहीँ घर बसाता है.

जहां शहद वहां माखी. जो लाभ का स्थान होगा वहाँ बहुत से लोभी लोगों का जुटना स्वाभाविक ही है.

जहां सुमति तंह सम्पति नाना. जहाँ अच्छी मति होगी वहाँ सब प्रकार के सुख होंगे. 

जा के रखवाल गोपाल धनी ताको बलभद्र कहा डर रे. जिसके रखवाले स्वयं श्रीकृष्ण हों, उस को बलराम से क्या डर. दुर्योधन बलराम का प्रिय शिष्य था. जब भीम ने गदा प्रहार कर के दुर्योधन की जंघा तोड़ दी (जोकि नियम विरुद्ध था) तो बलराम बहुत कुपित हुए और भीम को मार डालने को तैयार हो गए. लेकिन कृष्ण के समझाने पर वह मान गए.

जा घट प्रेम न संचरै, ता घट जानि मसान. जिस के हृदय में प्रेम का वास नहीं है वह श्मशान के समान है.

जा दिन घोड़ी, बा दिन गाय, तई दिन होरी दियो जराय. क्वार शुक्ल नवमी, कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा और फागुन पूर्णिमा एक ही वार को पडती है,

जा मन होय मलीन, सो पर सम्पदा सहे ना. जिस के मन में ईर्ष्या की भावना होगी उसे पराई सम्पत्ति देख कर कष्ट होगा.

जा मुख राम न उच्चरे, वा मुख लोह जड़ाइ. जिस मुख से राम का नाम न निकले उस को लोहे की कीलों से जड़ देना चाहिए. उच्चरे – उच्चारित हो, जड़ाई – जड़ दें.

जा री बिल्ली, कुत्ते को मार. किसी गरीब और छोटे आदमी को जबरदस्ती मुसीबत में धकेलना.

जाइए दुःख में पहले, सुख में पीछे. किसी की यहां कोई दुःख का अवसर हो उस में फौरन जाना चाहिए चाहें सुख के प्रसंग में बाद में चले जाएं.

जाए जान, रहे ईमान. चाहे जान चली जाए पर ईमान नहीं जाना चाहिए.

जाए लाख, रहे साख (लाख जाए पर साख न जाए). चाहे लाखों रुपये खर्च हो जाएं अपनी साख नहीं जानी चाहिए.

जाओ चाहे नेपाल, साथ जायगा कपाल (जावो कलकत्ते से आगे, करम साथ में जावे. चाहे कहीं भी चले जाओ, भाग्य आपके साथ जाएगा.

जाका ऊंचा बैठना, जाका खेत निचान, ताका बैरी क्या करे, जाका मीत दिवान. जिस का बड़े लोगों में उठना बैठना हो, खेत नीची जगह पर हो और मंत्री या कोतवाल जिसके मित्र हों उसका कोई क्या बिगाड़ सकता है.

जाका कोड़ा ताका घोड़ा. घोड़ा उसी का है जिसके पास कोड़ा है. जिसके पास ताकत है उसी का संपत्ति पर अधिकार होता है. इस प्रकार की दूसरी कहावत है – जिसकी लाठी उसकी भैंस.

जाका गुरु भी अँधला, चेला खरा निरंध, अंधहि अंधा ठेलिया, दोनों कूप पडंत. यदि गुरु भी अँधा हो और चेला भी अँधा हो तो दोनों कुँए में गिरते हैं. 

जाकी अच्छी सास बाका ही घर वास, जाकी सास नकारा, ताका कहाँ गुजारा. जिस बहू की सास अच्छी हो उसका घर स्वर्ग है.

जाकी अपकीरति छाय रही जग, सो यमलोक गयो न गयो. जिसकी बदनामी हो जाए वह जिन्दा भी मरे के बराबर है.

जाकी छाति न एकौ बार, उनसे सब रहियो हुशियार (जाकी छाती जमे न बार, उनसे रहना तुम होशियार). जिनकी छाती पर बाल नहीं होते वे कुटिल प्रवृत्ति के होते हैं (एक पुरानी सोच).

जाकी जात के जौन हैं ताकि पाँत के तौन, बाघ बाज के पूत को मार सिखावत कौन. (बुन्देलखंडी कहावत) जौन – जो भी, तौन – वही. जो जिस जाति के हैं उस के गुण अपने आप विकसित कर लेते हैं. शेर और बाज के बच्चों को शिकार करना कौन सिखाता है.

जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी. जब भगवान राम सीता स्वयम्बर में धनुष तोड़ने के लिए उठे तो अलग अलग लोगों को उनके अलग अलग रूप दिखाई दिए. कहावत का अर्थ है कि आप किसी को उसी रूप में देखते हैं जैसी आप के मन में उसके प्रति भावना होती है.

जाके कारन पहनी सारी, वही लगा अब टांग उघारी. प्राय: लडकियां शादी के पहले कुर्ता सलवार आदि पहनती थीं और शादी के बाद साड़ी. इस आशय में साड़ी पहनने का अर्थ विवाह करने से है. जिससे विवाह किया वही बदनाम करने पर तुला हुआ है.

जाके घर में नौ सौ गाय, सो क्यों छाछ पराई खाय. जिस के घर में बहुत सारी गाएं हों वह दूसरे से मांग कर छाछ क्यों खाएगा. जो स्वयं साधन सम्पन्न है वह दूसरों से कुछ क्यों मांगेगा.

जाके घर में माई, ताकी राम बनाई. जिस घर में माँ होती है वह स्वर्ग हो जाता है.

जाके पाँव न फटी बिबाई, वो क्या जाने पीर पराई. पैर की एड़ी और तलवे में खाल के फटने से जो गहरे क्रैक्स हो जाते हैं उन्हें बिवाई कहते हैं. इनमें बहुत दर्द होता है. जिनके पैर में बिबाई ना हुई हो वे उसका दर्द नहीं जान सकते. जो खुद किसी खास परेशानी से न गुजरा हो वह दूसरे को होने वाले कष्ट को कैसे जान सकता है.

जाके पास रहिए, ताकी ही सी कहिए. जैसा परिवेश हो वैसी ही बात कहनी चाहिए.

जाके सिर पे बोझ है, सोई करे निबाह. जिस के ऊपर पड़ती है उसी को निभाना पड़ता है.

जाके हित चोरी करों, सोई बनावे चोर. जिसको लाभ पहुँचाने के लिए चोरी की, वही आपको चोर ठहरा रहा है.

जाको जहं स्वारथ सधे, सोई ताहि सुहात, चोर न प्यारी चांदनी, जैसी कारी रात. जिसका स्वार्थ जहाँ पूरा होता है उसको वहीं अच्छा लगता है. चोर को चांदनी नहीं काली रात अच्छी लगती है.

जाको जेहिपर सत्य सनेहू, सो तेहि मिलेहि न कछु सन्देहू. जो सच्चे मन से किसी को चाहता है उसे वह जरूर मिलता है. विशेषकर ईश्वर के मिलने के लिए कहा गया है.

जाको जौन स्वभाव जाय नहिं जी से, नीम न मीठा होय सींचो गुड़ घी से. आदतें आसानी से नहीं बदलतीं.

जाको डंडा ताकी गाय, करो न कोई हाय हाय. जिसके पास डंडा होगा वही गाय को ले जाएगा, इसमें किसी को आपत्ति नहीं होना चाहिए. (जिसकी लाठी उसकी भैंस). अर्थ है कि सम्पत्ति पर अधिकार बलवान का ही होता है.

जाको प्रभु दारुण दुःख देहीं, ताकी मति पहले हर लेहीं. जिसको प्रभु दुःख देना चाहते हैं उसकी बुद्धि भ्रष्ट कर देते हैं. यदि कोई व्यक्ति इस प्रकार के काम कर रहा हो जिस से वह बहुत परेशानी में पड़ सकता है तो यह कहावत कही जा सकती है.

जाको मारा चाहिए बिन मारे बिन घाव, बाको यही बताइये घुइंया पूरी खाव. पुराने लोग मानते थे कि घुइंया (अरबी) बहुत बादी होती है और नुकसान करती है, और अगर पूड़ी के साथ खाई जाए तब तो और भी अधिक. घाघ कवि कहते हैं कि जिस को आप बिना घाव के मारना चाहते हैं उसे घुइंया पूड़ी खाने की सलाह दीजिये.

जाको राखे सांइयाँ मार सके न कोय, बाल न बांका करि सकै जो जग बैरी होय. ईश्वर जिसका रखवाला हो उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता.

जाको राम रक्खे, ताको कौन भक्खे. (जाका राम रच्छक, ताको कौन भच्छक). जिसका राम रखवाला हो उसका कौन भक्षण कर सकता है.

जाग मछन्दर गोरख आयो. मछन्दर नाथ (शुद्ध नाम मत्स्येन्द्र नाथ) गोरख़ नाथ के गुरु थे. एक बार मत्स्येन्द्र नाथ आसक्ति में पड़ गए तो गोरखनाथ ने आ कर उन्हें बोध कराया. आम तौर पर गुरु शिष्य को रास्ता दिखाते हैं पर यदि शिष्य को यह काम करना पड़े तो यह कहावत कही जाती है.

जागते को कौन जगाए. सोते हुए को जगाया जा सकता है पर जो स्वयं जाग रहा हो उसे कौन जगा सकता है. यदि आप मुझे किसी समझदार व्यक्ति को अक्ल सिखाने के लिए कहेंगे तो मैं यह कहावत बोलूँगा.

जागे जिस के देह में दूख, जागे जिस को लागे भूख. जिस के शरीर में कोई कष्ट होता है वह जागता है या जो भूखा होता है वह जागता है.

जागे जिसके घर में साँप, जागे जो बिटिया का बाप. जिसके घर में कोई सांप छिपा हो वह चिंता के कारण जागता है या बेटी का बाप चिंता के कारण जागता है.

जागे जो हो धन का धनी, जागे जिसको चिंता घनी. जिसके पास अधिक धन हो वह उस को सम्भालने की फ़िक्र में नहीं सो पाता है या जिस को कोई बड़ी चिंता हो वह नहीं सो पाता है.

जाट कहे शरमाय, पर लड़े न शरमाए. जाट बोलने में शर्माता है पर लड़ने में नहीं.

जाट कहे सुन जाटनी तोको इसी गाँव में रहना, ऊँट बिलाई लै गई तो हांजी हांजी कहना. जाट अपनी पत्नी को समझा रहा है की तुझे इसी गाँव में रहना है. कोई प्रभावशाली आदमी अगर यह कहे कि बिल्ली ऊँट को उठा ले गई, तो भी उसकी हाँ में हाँ मिलाना. जिस समाज में आप रह रहे हैं वहाँ की बहुत सी गलत बातें न चाहते हुए भी स्वीकारनी पड़ती हैं.

जाट का बैरी जाट, काठ का बैरी काठ. जाटों के आपसी वैमनस्य के ऊपर कहावत है. बात को समझाने के लिए लकड़ी का उदाहरण दिया गया है. लकड़ी को काटने वाली कुल्हाड़ी का बट लकड़ी का ही बना होता है, अर्थात लकड़ी ही लकड़ी को काटने में सहयोग करती है. कहीं कहीं इसे जात की बैरी जात भी कहा गया है (अर्थात सभी जातियों में ऐसा होता है).

जाट क्या जाने लौंग का भाव. जाट दिल के कितने भी साफ़ हों, स्वभाव से थोड़े अक्खड़ होते हैं. जाटों में नज़ाकत का अभाव होता है इसी को ले कर यह कहावत बनाई गई है.

जाट जाटनी से पार न पावे तो बैल को चाबुक मारे. बलवान पर बस न चले तो लोग कमजोर पर गुस्सा उतारते हैं. (कुम्हार पे बस न चला तो गधे के कान मरोड़े).

जाट बुढ़ापे में बिगड़ा करे. (हरयाणवी कहावत) जाट बूढ़े होने पर ज्यादा मनचले हो जाते हैं.

जाट मरा तब जानिये, जब तेरई हो जाए (जब चालीसा होए). जाट लोगों में बड़ी कर्मठता और जिजीविषा होती है. उनकी तरक्की से जलने वाले दूसरी जातियों के लोग तरह तरह से उनका मजाक उड़ाने की कोशिश करते हैं. इस कहावत का शाब्दिक अर्थ तो यह है कि जाट का मरना आसान नहीं होता. जब उसकी तेरहवीं हो जाए तो समझो कि जाट वाकई मर गया. व्यवहार में इस कहावत का प्रयोग इस प्रकार करते हैं कि कोई भी काम तब तक पूरा हुआ मत मानो जब तक बिलकुल पक्का न हो जाए.

जाट रे जाट तेरे सर पे खाट, तेली रे तेली तेरे सर पे कोल्हू. किसी तेली ने जाट का मजाक उड़ाने के लिए कहा कि रे जाट तेरे सिर पर खाट. जाट ने तुरंत जवाब दिया कि तेली तेरे सिर पर कोल्हू. तेली बोला जाट भाई कुछ तुकबंदी नहीं बनी, जाट बोला तो क्या हुआ, तू बोझ से तो मरा.

जाट, जमाई, भांजा और सुनार, कभी न होवे आपनो कर देखो उपकार. कहावत का अर्थ स्पष्ट है. किसी सयाने ने अपने व्यक्तिगत अनुभव को सब के साथ साझा करने का प्रयास किया है (जरूरी नहीं है कि आप इससे सहमत हों).

जाड़ लाग, जाड़ लाग जड़नपुरी, बुढ़िया का हगास लागि बिपति परी. जाड़े के मारे सबकी हालत खराब है और ऐसे जाड़े की रात में बुढ़िया अम्मा को टट्टी लग रही है. बड़ी विपत्ति आ पड़ी है कि उसे लेके बाहर कौन जाए.

जाड़ा गए रजाई और जोवन गए भतार. जाड़ा बीतने के बाद रजाई मिले तो किस काम की और स्त्री का यौवन बीतने के बाद पति मिले तो किस काम का.

जाड़ा जाए रुई से या दुई से. जाड़ा या तो रुई के गद्दे व रजाई से जाएगा या दो लोग एक साथ सोएं तो जाएगा.

जाड़ो ठाड़ो खेत में, सुन रे मेरे लाल, मोरे दुसमन तीन हैं, रुई कम्बल और प्याल. जाड़ा कह रहा है कि मेरे तीन दुश्मन हैं – रुई, कम्बल और पुआल.

जात का बामन. करम कसाई. उच्च जाति में जन्म लेने वाला कोई निम्न श्रेणी का निर्दयी व्यक्ति.

जात पांत पूछे नहिं कोई, वर्दी पहिन सिपहिया होई. जो व्यक्ति सिपाही बन जाता है उस की जाति कोई नहीं पूछता. वह किसी भी जाति का क्यों न हो, सब के लिए आदरणीय हो जाता है.

जात पात पूछे नहिं कोई, हरि को भजे सो हरि का होई. हमारे समाज में जाति भेद की बुराई कितनी भी व्याप्त हो ईश्वर के दरबार में सब बराबर हैं. 

जात सुभाय न जाय कभी, माँगना ही भावै, रानी हो गई डोमनी, आले धर खावे. मनुष्य का जातिगत स्वभाव कभी जाता नहीं है. डोमनी रानी बन गई तो बीमार रहने लगी. फिर उसने अपने लिए एक अलग महल बनवाया. वहां वह खाने के टुकड़े कर के आले में रख देती थी और आले से मांगती थी, आला दे निवाला, और तब खाती थी.

जात सुभाव ना छूटे, कुकुर टाँग उठा के मूते.  व्यक्ति के जन्मजात स्वभाव छूटते नहीं हैं (जिस प्रकार कुत्ता टांग उठा कर ही मूतता है).

जाति न पूछो साधु की, पूछि लीजिए ज्ञान, मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान. व्यवहार में इस कहावत को आधा ही बोला जाता है. साधु की जाति नहीं पूछनी चाहिए ज्ञान देखना चाहिए. इस कहावत से यह बात भी सिद्ध होती है कि हमारे देश में तथाकथित नीची जाति के साधु संतों को भी पूरा सम्मान मिलता था

जातो गंवाए, भातो न खाए. बात उस समय की है जब देश में जात पाँत और छुआछूत का काफी जोर था. यदि कोई उच्च कुलीन व्यक्ति नीची जाति वाले के साथ खाना खा ले तो वह जाति से निकाल दिया जाता था. कहावत में ऐसे व्यक्ति का ज़िक्र किया गया है जो बढ़िया बढ़िया खाना भी नहीं खा पाया और नीची जाति वाले के साथ बैठने के कारण जाति से निकाल दिया गया. कोई व्यक्ति अनुचित लाभ उठाने के लिए अपने स्तर से नीचे गिर कर काम करे और उसे वह लाभ भी न मिल पाए तो यह कहावत कही जाएगी.

जादू टोना हे सखी भूल करो मत कोय, पिया कहे सो कीजिए आपहि बस में होय. पति को वश में करना है तो उसके लिए जादू टोना न करो बल्कि जो पति कहे वह करो.

जादू वह जो सर चढ़ कर बोले. असली जादू वह है जो आदमी की सुध बुध छीन ले.

जान की जान गई, ईमान का ईमान. बहुत से लोग जान दे कर ईमान की रक्षा करते हैं और कुछ लोग जान बचाने के लिए ईमान बेच देते हैं, पर अगर कोई व्यक्ति अपनी मूर्खता से दोनों ही चीज़ गंवा दे तो यह कहावत कही जाएगी.

जान के साथ जेवड़ा. यह जंजीर जिन्दगी भर पड़ी रहेगी. जेवड़ा, जेवड़ी – जंजीर.

जान जाए पर माल न जाए. कंजूस व्यक्ति के लिए.

जान न पहचान, खाला बड़ी सलाम. अपने मतलब के लिए किसी से जबरदस्ती जान पहचान निकालना.

जान न पहचान, मैं तेरा मेहमान (मान न मान मैं तेरा मेहमान). ऊपर वाली कहावत की भांति.

जान बची तो लाखों पाए, लौट के बुद्धू घर को आए. कोई व्यक्ति कुछ काम करने गया. काम तो नहीं हुआ उलटे खतरे में फंसते फंसते बचा, तो लौट के आने पर और लोग उसका मजाक उड़ाने के लिए यह कहते हैं.

जान बची, लाखों पाए. किसी आदमी पर कोई खतरा आया और टल गया तो यह कहावत बोली जाती है. 

जान भले ही जाए पर रोजी न जाए (जी जाए जीविका न जाए). जीविका का छिन जाना, मृत्यु से भी अधिक दुखदायी है.

जान मारे बनिया, पहचान मारे चोर. बनिया जानने वाले को चूना लगाता है और चोर पहचान की जगह पर चोरी करता है.

जान है तो जहान है. जब तक हम जीवित हैं तभी तक संसार है. कोई काम करने में बहुत लाभ होने की सम्भावना हो पर जान का खतरा भी हो तो बुज़ुर्ग लोग उस काम के लिए मना करते हुए यह कहावत बोलते हैं. 

जाना अपने बस, आना पराए बस. आप कहीं भी जाते तो अपनी इच्छा से हैं पर लौटना अपने वश में नहीं होता. जिसके यहाँ गए हैं उसकी इच्छा क्या है और ईश्वर की इच्छा क्या है दोनों पर निर्भर करता है.

जाना है रहना नहीं, मोए अंदेसा और, जगह बनाई है नहीं बैठेगा किस ठौर. इस संसार में सदा के लिए किसी को नहीं रहना है, इसलिए कुछ ऐसे कर्म अवश्य करने चाहिए जिनसे परलोक में जगह मिल सके.

जान लीन्ह बामन के लच्छन, बाप का नाम फीरोज़ अली. कोई मुसलमान ब्राहण का बहरूप बनाए और पकड़ा जाए तो. कहावत के द्वारा एकाध प्रसिद्ध नेताओं पर भी व्यंग्य किया गया है.

जाने को बकरी आने को ऊँट. घर से जाते समय धीरे धीरे चल रहे हैं और आते समय तेजी से आ रहे हैं. जो लोग घर से जाना नहीं चाहते उन के लिए.

जाने चोंच दी वही चुग्गा देगा. जिसने हमें जन्म दिया वही हमें भोजन भी देगा. आलसी एवं अकर्मण्य लोगों का कथन. रोजी रोटी के लिए बहुत प्रयास करने पर भी यदि सफलता न मिले तो निराशा से उबारने के लिए भी सयाने लोग ऐसा बोलते हैं.

जाने न बूझे, कठौती से जूझे. बिना किसी काम के विषय में जाने उस में सर खपाना.

जाने वाली चीज के पाँव निकल आते हैं. जो नुकसान होना होता है उसके हज़ार बहाने बन जाते हैं.

जाने वाले के हज़ार रास्ते, ढूँढने वाले का एक. खोए हुए व्यक्ति या वस्तु को ढूँढना बहुत कठिन है यह बताने के लिए यह कहावत कही जाती है.

जाने वाले को भूल जाएं पर आने वालों को नहीं भूलते. जिस की मृत्यु हो जाए उसे लोग भूल जाते हैं, पर उस समय आने वालों को लोग याद रखते हैं.

जानो नहिं जिस गाँव में कहा बूझनो नाम, तिन सखान की क्या कथा जिनसों नहिं कछु काम. जिस जगह जाना ही नहीं है उसका पता पूछ कर समय क्यों नष्ट करें और जिन लोगों से कुछ काम नहीं पड़ना उन की चर्चा क्यों करें.

जाप की ओट में पाप. ढोंगी और पापी महात्माओं के लिए.

जामिन हो मत चोर का, सींग पकड़ मत ढोर का. चोर की जमानत मत दो और जानवर का सींग मत पकड़ो. जामिन – जमानत देने वाला.

जामिन होना, धन का खोना. किसी की जमानत देने में अपना धन खोना पड़ सकता है. 

जाया नाम जनम से हो तो रहना किस विधि होय. जाया का अर्थ उत्पन्न हुआ (संतान) भी है और जाया का अर्थ व्यर्थ में बर्बाद करने से भी है.   

जालिम गुजर जाए, जुल्म बाकी रह जाए (जालिम मर जाता है पर कानून छोड़ जाता है). अत्याचारियों के मरने के बाद भी उन के बनाए कानून बाकी रह जाते हैं और दुष्टता की कथाएँ रह जाती हैं.

जासु राज में प्रजा दुखारी, सो नृप अवसि नरक अधिकारी. जासु – जिसके, अवसि – अवश्य. जिस राजा के राज में प्रजा कष्ट पाती है वह नर्क में जाता है.

जासे जाको काम, सोई ताको राम. जिससे आपका काम बनता हो वही आपके लिए ईश्वर के बराबर है.

जासौ निबहे जीविका, करिए सो अभ्यास, वैश्या राखे लाज तो कैसे पूरे आस. जो भी जीविका का साधन हो उस में सहायक बनने वाली आदतें डालनी चाहिए. वैश्या लज्जावान होगी तो कैसे जीविका कमाएगी. 

जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिए. जिन परिस्थितियों में व्यक्ति रहता है उन्हीं में संतोष करना सीखना चाहिए. पुराने लोग इसके पहले ‘सीताराम सीताराम सीताराम कहिए’ भी बोलते हैं.

जीते जी पुजवायें औ मर कर भी पुजवायें, जीते जी भी खाएँ और मरने पर भी खाएँ. (भोजपुरी कहावत) ब्राह्मणों के ऊपर व्यंग्य. जब मनुष्य जीवित होता है तब भी इनको पूजे और मरे तो भी इन को पूजे. जीवित हो तब भी इन को खिलाए और मरे तो भी इन को खिलाए.

जिए बाप को कोई न पूछे, मुए बाप पे छाती पीटे. जिन्दा माँ बाप की कद्र नहीं करते और मरने पर दिखावे के लिए छाती पीटते हैं.

जितना अधिक धन उतनी अधिक चिंता. धन आने के साथ उसको संभालने की चिंता भी बढ़ती जाती है.

जितना करम में लिखा उतना ही मिलेगा. जितना भाग्य में लिखा है उतना ही मिलेगा.

जितना खाय, उतना ललचाय. मनुष्य को जितना प्राप्त होता है उतना ही उसका लालच बढ़ता जाता है.

जितना गधा बनोगे उतने ही लादे जाओगे (अपने आप को गधा बना लोगे तो और लादे जाओगे). जो लोग सिधाई से और ईमानदारी से काम करते हैं उन्हीं पर और काम लादा जाता है.

जितना गर्माएगा, उतना ही बरसेगा (जितना तपेगा, उतना बरसेगा). बरसात के मौसम में पानी बरसने से पहले गर्मी और उमस हो जाती है. जितनी अधिक गर्मी होती है उतनी ही अधिक वारिश होती है. इस कहावत का दूसरा अर्थ यह भी है कि आपसी वाद विवाद में जितनी अधिक गरमा गरमी होगी उतने ही परिणाम बुरे होंगे.

जितना गुड़ डालोगे उतना ही मीठा होगा. जितना खर्च करोगे उतना ही अच्छा काम होगा. जैसी रिश्वत दोगे, वैसा ही काम होगा.

जितना घी डालोगे उतना स्वाद होगा. किसी काम में जितना खर्च करोगे उतना ही बढ़िया काम होगा.

जितना छानो, उतना ही किरकिरा. जितनी मीन मेख निकालोगे, उतने ही दोष नज़र आएँगे.

जितना छोटा, उतना ही खोटा. छोटे कद वालों का मजाक उड़ाने के लिए.

जितना जाने उतना बखाने. किसी भी विषय में व्यक्ति जितना जानता है उतनी ही बात कर सकता है.

जितना भोग, उतना सोग. सोग – शोक, दुःख. भोग में जितना लिप्त होगे उतना ही दुःख उठाना पड़ेगा.

जितना मुटाय, उतना मिमियाय. कहा तो बकरे के लिए गया है पर मनुष्य पर भी लागू होता है.

जितना लंबा सांप, उतनी ही गोह चौड़ी. जब दो धूर्त एक से बढ़ कर एक हों तो (गोह – बिस्खोपड़ी).

जितना सयाना, उतना दीवाना (वहमी). 1.जो व्यक्ति जितना अनुभवी होता है वह उतना ही अधिक किसी बात के भले बुरे पहलू पर विचार करता है. अपने आप को बहुत बुद्धिमान समझने वाले नौसिखिये लोग उसे दीवाना और वहमी करार देते है. 2. जो जितना बड़ा मूर्ख होता वह अपने को उतना ही होशियार समझता है.

जितना सरे, उतना करे. जितनी सामर्थ्य हो उतना ही काम करना चाहिए. सरे – कर मिले.

जितनी आमद, उतना लोभ (जितना लाभ, उतना लोभ). जितनी जितनी आय बढ़ती है उतना ही लालच बढ़ता जाता है.

जितनी भेड़ नाहीं उतने गड़ेर. काम कम, करने वाले अधिक. गड़ेर – गड़रिया.

जितने काले, मेरे बाप के साले. जितने भी चोर बदमाश हैं सब मेरे रिश्तेदार हैं.

जितने की ताल नहीं उतने का मंजीरा फूट गया. जितना लाभ नहीं कमाया, उससे अधिक का सामान खराब हो गया.

जितने ठाकुर मरें, उतने जुहार कम हों. जुहार – झुक कर सलाम कटना. पहले जमाने में लोगों को ठाकुर और जमीदारों को झुक कर सलाम करना पड़ता था. ऐसा कोई सताया हुआ व्यक्ति ठाकुरों के मरने की कामना कर रहा है, जिस से उसे जुहार कम करनी पड़ें.

जितने नर उतनी बुद्धि. हर व्यक्ति की बुद्धि अलग अलग प्रकार की होती है. (मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना).

जितने फेरे उतनी वसूली. हाकिम जितनी बार अपने क्षेत्र में जाएगा उतनी ही उगाही कर के लाएगा. 

जितने बड़के गाजी मियाँ, उतना बड़की मोंछ. अधिक तड़क भड़क और दिखावा करने वालों पर व्यंग्य. 

जितने भाई, उतने घर. आज के जमाने में एक ही घर में कई भाइयों का रहना संभव नहीं है. हर एक भाई को अलग घर चाहिए.

जितने मुहँ उतनी बातें. यदि किसी विषय में बहुत से लोगों की अलग अलग राय हों तो यह कहावत कही जाती है. 

जिद पर आई दुगुना पीसे. कुछ लोग या तो काम करते नहीं हैं, और जिद पर आ जाएँ तो करते ही चले जाते हैं.

जिधर जलता देखें, उधर तापें. जहाँ अपना स्वार्थ सिद्ध होता हो वहीँ पहुँच जाना.

जिन की यहाँ जरूरत, उन की वहाँ भी जरूरत (जिनकी यहाँ चाह, उनकी वहाँ भी चाह). अच्छे लोगों की इस दुनिया में भी जरूरत है और उस दुनिया में भी, इसीलिए अच्छे लोगों की मृत्यु जल्दी हो जाती है. इंग्लिश में कहावत है – Heaven gives its favourites early death.

जिन के दामन में दाग हों वे दूसरों पर कीचड़ न उछालें. जिनके अंदर खुद कमियां हैं उन्हें दूसरों को बुरा भला नहीं कहना चाहिए.

जिन के पास न हो कौड़ी, वो कौड़ी के तीन. जिन के पास पैसा न हो उन की कोई इज्ज़त नहीं है.

जिन खोजा तिन पाइयाँ, गहरे पानी पैठ (मैं बपुरा बूड़न डरयो, रहा किनारे बैठ).जो परिश्रम करता है वही फल पाता है. 

जिन घर साधु न पूजिये  घर की सेवा नांहि, ते घर मरघट जानिए, भूत बसे तिन मांहि. (कबीर) जिस घर में साधु की पूजा नहीं होती,  वह घर तो मरघट के समान है.

जिन जाए उन्हहिं लजाए. जिन जाए – जिन्होंने पैदा किया. अपने मां बाप को लज्जित करने वाला.

जिन मोलों आई, उन्हीं मोलों गंवाई. कोई चीज़ मुफ्त में मिली थी और मुफ्त में ही हाथ से निकल गई.

जिनके घर शीशे के बने हैं वे दूसरों पर पत्थर नहीं फेंकते. शाब्दिक अर्थ है कि यदि आप कांच से बने घर में रह रहे हैं तो आप दूसरों पर पत्थर न फेंके क्योंकि यदि उसने पत्थर फेंक दिया तो आपका घर टूट जाएगा. तात्पर्य है कि जिनके अंदर खुद कमियां हैं उन्हें दूसरों को बुरा भला नहीं कहना चाहिए.

जिनके पशु प्यासे बंधे, तिरियां करें कलेश, उनकी रक्षा ना करें, ब्रह्मा विष्णु महेश. जिन घरों में पालतू पशुओं की देखभाल न हो और स्त्रियाँ कलेश करती हों, उनकी ईश्वर भी रक्षा नहीं करते.

जिनके बड़े बिछाई खाट, उनका कुनबा बारह बाट. जिस खानदान में बड़े लोग खाट बिछा कर बैठ जाएं (अर्थात कुछ काम न करें) उसका सत्यानाश होना तय है.

जिनके मर गए बादशाह, रोते फिरें वजीर. जब राजा की मृत्यु हो जाती है तो उसके मंत्रियों की दशा बहुत दयनीय हो जाती है.

जिनके मुच्छ नहीं उनके कुच्छ नहीं. जिन लोगों को बड़ी बड़ी मूंछें रखने का शौक होता है वे बिना मूंछ वालों को हिकारत की नजर से देखते हैं और यह कहावत बोलते हैं.

जिनके लाड़ घनेरे, उनको दुःख बहुतेरे. जो बच्चे अधिक लाड़ प्यार में पलते हैं, वे अधिक दुखी रहते हैं. 

जिनके होंगे पूत, वो पूजेगें भूत. कोई व्यक्ति कितना भी वैज्ञानिक सोच वाला और नास्तिक क्यों न हो जब अपना बच्चा बीमार हो तो वह भूत प्रेतों और ग्रह नक्षत्रों को मानने लगता है.

जिनको चाव घनेरा, उनको दुख बहुतेरा. जितनी अधिक अपेक्षाएं उतना अधिक दुःख.

जिन्ने न पी गांजे की कली, उस लड़के से लड़की भली. (बुन्देलखंडी कहावत) नशा करने वाले मूर्ख लोग अपने को बड़ा मर्द समझते हैं, उनके अनुसार नशा न करने वाले लोग नामर्द होते हैं.

जिन्ह सन करत सनेहु, तिन्ह की सब सहि लेहु. (बुन्देलखंडी कहावत) जिन से प्रेम हो उनकी अच्छी बुरी सब बात सहन कर ली जाती है.

जिन्हें जल्दी थी वो चले गये. सड़क पर चलने में जो बहुत जल्दबाज़ी करते हैं वे दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं. (ट्रकों पर लिखी जाने वाली कहावत).

जिन्हें मुस्कुराना नहीं आता, उन्हें व्यापार नहीं करना चाहिए. व्यापार चलाने के लिए व्यक्ति को हंसमुख होना आवश्यक है.

जिब्बो चलेगी, चन्दो पिटेगी. (जिब्बो – जिव्हा, जीभ. चन्दो – चांद, खोपड़ी). जीभ जितना अधिक अंट शंट बोलेगी खोपड़ी उतना ही पिटेगी.

जिभ्या रोगों की जड़ है. जीभ के स्वाद के लिए मनुष्य आलतू फ़ालतू चीजें खाता है और बीमार पड़ता है, इसलिए जीभ ही रोगों की जड़ है.

जिम्मेदारी ले उतनी, संभल सके जितनी. जितनी जिम्मेदारी संभाल पाओ उतनी ही लेनी चाहिए.

जिय बिनु देह नदी बिन वारी, तैसेहि नाथ पुरुस बिनु नारी. जैसे आत्मा के बिना शरीर और पानी के बिना नदी अर्थहीन है वैसे ही पति के बिना स्त्री है.

जियत पिता की करी न सेवा, बाद मरन के लड्डू मेवा. जब माता पिता जीवित थे तब उनकी सेवा नहीं की और उनके मरने के बाद उन्हें प्रसन्न करने का ढोंग कर रहे हैं. 

जियत पिता की पूछी न बात, मरे पिता को दूध और भात. जो लोग जीवित माता पिता को नहीं पूछते और उनके मरने पर श्राद्ध करने का ढोंग करते हैं उन पर व्यंग्य.

जियत पिता से जंगम जंगा, बाद मरन के हर हर गंगा. जीवित माता पिता से झगड़ा करते रहे और उनके मरने के बाद उन्हें गंगा ले जा कर उनके भक्त होने का नाटक कर रहे हैं.

जियेगा नर तो फिर बसाएगा घर. कितनी भी बड़ी आपदा आए, यदि मनुष्य जीवित रहेगा तो फिर से घर बसाएगा. 

जियो और जीने दो. जिस प्रकार आप स्वयं एक अच्छा जीवन जीना चाहते हैं उसी प्रकार औरों को भी जीने दें. इंग्लिश में कहावत है – Live and let live.

जिस आंगुली चोट लगे, दर्द उसी में होय. बात बड़ी स्पष्ट है,अपना अपना दर्द सबको स्वयं ही झेलना पड़ता है, कोई उसको बंटा नहीं सकता.

जिस का अगुआ अंधा, उसका लश्कर कुआं में. लश्कर माने सेना. सेना अपने नायक के पीछे आँख बंद कर के चलती है. यदि नायक अंधा होगा तो कुँए में गिरेगा और पीछे पीछे सेना भी कुँए में गिरेगी. अर्थ है कि यदि नेता मूर्ख हो तो जनता को ले डूबता है और गुरु मूर्ख हो तो शिष्यों को ले डूबता है.

जिस का आँडू बिके, वह बधिया क्यों करे. गाय का बछड़ा बड़ा हो कर सांड बनता है जोकि स्वेच्छाचारी होता है और खेती के काम नहीं आ सकता (इसलिए बिकता भी नहीं है). इसलिए बचपन में ही उस के अंडकोष नष्ट कर दिए जाते हैं जिससे वह बधिया हो जाता है और बैल बन कर खेती के काम आता है. आँडू का अर्थ है सांड (जिसके अंडकोष सलामत हैं) और बधिया का अर्थ है बैल. किसी का घटिया उत्पाद बिक रहा हो तो वह उस को बढ़िया बनाने की कोशिश क्यों करेगा.

जिस का काम उसी को साजे, और करे तो डंडा बाजे. जो काम जिसके करने का वही करे तो ठीक रहता है, और कोई करे तो उस को मुसीबतों का सामना करना पड़ता है. एक धोबी ने अपने कुत्ते से नाराज हो कर उसे खूब मारा और खाने को भी नहीं दिया, लिहाजा कुता नाराज हो कर एक कोने में पड़ गया. उस रात धोबी के घर चोर आए. कुत्ता नाराजी के कारण नहीं भौंका. गधे ने सोचा चलो मैं ही धोबी को जगा दूँ, तो वह जोर जोर से रेंकने लगा. धोबी गुस्से में उठा और नींद में खलल डालने की एवज में गधे की डंडे से ठुकाई कर दी. 

जिस का खाओ, उसका गाओ. जिससे आपको लाभ होता हो उसी की प्रशंसा करनी चाहिए.

जिस का जाए, वही चोर कहलाए. हिन्दुस्तान में कुछ भी हो सकता है. यहाँ यह भी हो सकता है कि जिसके घर में चोरी हो उसी को पुलिस चोर ठहरा दे.

जिस का जूता उसी का सर (मियां की जूती मियां के सर) मेरी ही चीज़ से कोई मुझे ही नुकसान पहुंचाए तो.

जिस का पल्ला भारी, उसी के साथ यारी. विशद्ध स्वार्थ. जो जीत रहा हो उसी के साथ दोस्ती करना.

जिस का बनिया यार, उसे दुश्मन की क्या दरकार. बनियों के बारे में कहा गया है कि वे अपने दोस्तों तक की जेब काट लेते हैं. इसी बात पर किसी ने कहा है कि जिस का बनिया दोस्त हो उसे दुश्मनों की क्या जरूरत.

जिस का ब्याह उसी के गीत. समय देख कर ही काम करना चाहिए. जिस का समय अच्छा हो उसी की प्रशंसा करो.

जिस की आँख में तिल, वह बड़ा बेदिल. जिसकी आँख में तिल होता है वह निष्ठुर होता है. 

जिस की खाओ बाजरी, उसकी भरो हाजरी. जिसका अन्न खाओ उसी का काम करो.

जिस की खातिर नाक कटाई, वो ही कहे नकटा. जिस को लाभ पहुंचाने के लिए कोई गलत काम किया, वही आप को गलत ठहरा रहा हो तो यह कहावत कही जाती है.  

जिस की गोद में बैठे उसी की दाढ़ी नोचे. आश्रय देने वाले को नुकसान पहुँचाने वाला.

जिस की जीभ चलती है उसके नौ हल चलते हैं. जो जबान का धनी है वह अपने सब काम करा लेता है.

जिस की जोरू अंदर, उसका नसीबा सिकन्दर. राजशाही और नवाबशाही के जमाने में जिस औरत को अंग्रेजों के घर में नौकरी मिल जाए उस के परिवार को बहुत सी सुविधाएं मिल जाती थीं.

जिस की तेग उसकी देग. जिसके पास ताकत होगी वही खाद्य सामग्री और अन्य संसाधनों पर कब्ज़ा कर लेगा. तेग – तलवार (युद्ध करने की क्षमता), देग – बड़ी हंडिया (भोजन का प्रबंध).

जिस की देग, उसकी तेग. देग माने भोजन पकाने का बड़ा बर्तन. जिसके पास फ़ौज को खिलाने का इंतज़ाम होगा वही युद्ध जीतेगा.

जिस की फ़िक्र, उसका ज़िक्र. हम जिस के विषय में हर समय सोचते हैं उसी की बात करते हैं.

जिस की बंदरी वही नचावे, और नचावे तो काटन धावे. जो जिस का काम है वही उस को काम को करे तो काम ठीक से होता है, दूसरा उसे करने की कोशिश करे तो काम बिगड़ जाता है.

जिस की बीवी से पहचान, उसकी लौंडी से क्या काम. जहाँ बड़े हाकिम से जान पहचान हो वहाँ चपरासी को क्यों पूछें. (लौंडी – दासी).

जिस की महल में मैया, मांगे पैसा मिले रुपैय्या. महल में नौकरी करने वालों की बड़ी ऐश होती है. महल में नौकरी करने वाली किसी महिला का बच्चा खर्चे के लिए पैसा माँग रहा है तो माँ उसे रुपया दे रही है. आजकल भी सरकारी नौकरी करने वालों का काफ़ी कुछ यही हाल है.

जिस की लाठी उसकी भैंस. यहाँ लाठी का अर्थ ताकत से और भैंस का अर्थ चल अचल संपत्ति से है. जिसके पास ताकत होती है वह संपत्ति पर कब्ज़ा कर लेता है.  जाका कोड़ा ताका घोड़ा. इंग्लिश में कहावत है – Might is right.

जिस की सीरत अच्छी, उसकी सूरत भी अच्छी. जो आदत का अच्छा होता है वह अपने सौम्य स्वभाव के कारण देखने में भी अच्छा लगने लगता है.

जिस के कारन जोगन भई, वह सैंया परदेस. जिसके कारण घर बार छोड़ा वही छोड़ कर चला गया.

जिस के घर में बेरी का पेड़ है, उसके घर में ढेले आयेंगे ही. यदि आपके पास कोई नायाब चीज़ है और आप ठीक से उसकी रक्षा नहीं कर सकते तो लोग उस पर कुदृष्टि तो रखेंगे ही.

जिस के पास न पैसावह भलामानस कैसा. जिसके पास धन होता है उसको लोग भलामानस समझते हैं, निर्धन को लोग भलामानस नहीं समझते.

जिस के पास पूत नहीं, वह क्या जाने माया. जिनके संतान नहीं होती वे पैसे के महत्व को नहीं समझते (पैसे को महत्वपूर्ण नहीं मानते).

जिस के राम धनीउसे कौन कमी. जो भगवान के भरोसे रहता है, उसे किसी चीज की कमी नहीं होती.

जिस के लिए चोरी की वही कहे चोर. कभी कभी मजबूरी में अपने किसी बहुत प्रिय व्यक्ति की खातिर आपको गलत काम करना पड़ता है. जिसके लिए ऐसा काम किया वही आपको चोर कहने लगे तो यह कहावत कही जाएगी.

जिस के वास्ते रोए, उसकी आँखों में आंसू नहीं. जिस से हमदर्दी जताने के लिए आप रो रहे हैं वह अपने दुःख से इतना दुखी नहीं है.

जिस के सर पर ताज, उसके सर में खाज. किसी भी परिवार या संगठन में जो मुखिया होता है उसी को सारे झंझट झेलने पड़ते हैं.

जिस के हाथ डोई उसका सब कोई. डोई – करछी.यहाँ डोई का तात्पर्य खाने पीने की सुविधा से है. अर्थ है कि सब लोग धनवान का साथ देते हैं और उसी की खुशामद करते हैं.

जिस के होय न पैसा पास, उस को मेला लगे उदास. मेले में मस्ती करनी हो तो खर्च करने के लिए पैसा चाहिए. जिसके पास पैसा न हो उसे मेला उदास लगता है.

जिस को आदत है मेहनत की, उसको कमी नहीं है दौलत की. जो मेहनत करते हैं वे इतना पैसा तो कमा ही लेते हैं कि उनको अभावों में न रहना पड़े.

जिस को न दे मौला, उसको दे आसफुद्दौला. आसफुद्दौला लखनऊ के एक प्रसिद्द नवाब हुए हैं जो बड़े दानी माने जाते थे. उन्ही के लिए यह कहावत प्रसिद्द थी.

जिस को पिया चाहे वही सुहागन. 1. केवल विवाह कर लेने मात्र से कोई स्त्री सुहागिन नहीं हो जाती. सही मानों में सुहागिन वही है जिसका पति उसे प्रेम करता हो. 2. जिस मातहत पर हाकिम की कृपादृष्टि हो जाए उसी की मौज है.

जिस गाँव जाना नहीं, उसके कोस क्या गिनने. जो काम करना ही नहीं उसका हिसाब लगाने में समय क्यों खपाया जाए.

जिस घर जाई, उसी घर ब्याई. मुसलमानों में बहुत निकट सम्बन्धियों में विवाह सम्बन्ध हो जाते हैं उस पर व्यंग्य. जाई – पैदा हुई, ब्याई – विवाह हो कर गई.

जिस घर दूहे काली, उस घर नित दीवाली. जिस घर में काली गाय दूध दे रही हो वहाँ नित्य ही उत्सव का माहौल रहता है. वैसे काली तो भैंस भी होती है, लेकिन कहावतों में आमतौर पर भैंस को इतनी तवज्जो नहीं दी जाती.

जिस घर नारी फूहड़, वह घर जानो कूहड़. जिस घर में गृहणी फूहड़ होती है वह कूड़े के ढेर के समान हो जाता है.

जिस घर बड़े न बूझिए, दीपक जले न सांझ, वह घर ऊजड़ जानिए, जाकी तिरिया बाँझ. जिस घर में बड़े लोगों से सलाह नहीं ली जाती, शाम से दीपक नहीं जलाया जाता और स्त्री बाँझ है उस घर का उजड़ना निश्चित है.

जिस घर बड्डा ना मानिये ढोरी पड़ै ना घास, सास-बहू की हो लड़ाई उज्जड़ हो-ज्या बास. (हरयाणवी कहावत) जिस घर में बड़ों की बात नहीं मानी जाती, जानवरों को समय पर दाना पानी नहीं डाला जाता और सास बहू में लड़ाई होती है, वह घर उजड़ जाता है.

जिस घर में खाना, उसी में आग लगाना. निकृष्ट और कृतघ्न लोगों के लिए. जैसे देश में रहने वाले कुछ लोग यहाँ का खाते हैं और देश की अर्थ व्यवस्था को नुकसान पहुंचाने का प्रयास करते रहते हैं.

जिस घर में नहिं बूढा, वो घर जानो बूड़ा. बूढ़ा – वृद्ध, बुजुर्ग, बूड़ा – डूबा. जिस घर में बुजुर्ग लोग न हों वह ड़ूब जाता है.

जिस घर में संपत नहीं, तासे भला विदेस. घर में बहुत अधिक गरीबी हो तो परदेस जा कर जीविका तलाशना अधिक अच्छा है.

जिस घर सौंफ महकनी उस घर जीरा कौन लिवाल, जिस घर सास मटकनी, उस घर बहू को कौन हवाल. बेटे की शादी हो जाए और बहू घर में आ जाए उस के बाद भी कुछ औरतें बहुत चटक मटक से रहती हैं, उन्हीं के ऊपर व्यंग्य. लिवाल – लेने वाला.

जिस घर होए कुचलिया नारी, सांझ भोर हो उसकी ख्वारी. जिस घर में स्त्री बदचलन हो वहाँ सुबह शाम सब बर्बाद हैं.

जिस घर होवे पुरुष कुचलिया, उस घर होवे खीर का दलिया. जिस घर में पुरुष दुश्चरित्र हो वहाँ पूरी अर्थ व्यवस्था बिगड़ जाती है.

जिस तन लागे वह तन जाने. जिस को कष्ट उठाना पड़ता है वही जान सकता है.

जिस थाली में खाए उसी में हगे. अत्यंत नीच और कृतघ्न व्यक्ति.

जिस थाली में खाये उसी में छेद करे. जिस के बूते खाना पानी मिल रहा हो उसी को नुकसान पहुँचाना.

जिस ने पढ़ा गीता, उसने घर में दिया पलीता. वैसे यह बात गीता के मुकाबले महाभारत के साथ अधिक सही बैठती है. जो महाभारत पढ़ता है वह घर में भी वैसे ही लड़ाई झगड़े करता है. इसीलिए पुराने लोग लोगों को महाभारत नहीं बल्कि रामायण पढने की सलाह देते हैं. गीता पढ़ने से भी लोगों के मन में वैराग्य का भाव आ सकता है जो कि गृहस्थ के लिए अच्छा नहीं माना जाता है.

जिस ने वैश्या को चाहा वह भी तबाह और जिसे वैश्या ने चाहा वह भी तबाह. वेश्याओं के चक्कर में पड़ने से हर तरह से बर्बादी ही बर्बादी है.

जिस राह ही नहीं चलना उसके कोस गिनने से क्या काम. जो काम करना ही नहीं है उसके नुकसान फायदे क्या गिनना.

जिस वन सुआ न कोयल, वहाँ कौए खाएं कपूर. जिस वन में तोते और कोयल न हों वहाँ कौओं को कपूर खाने को मिलता है. जहाँ योग्य व्यक्तियों का अभाव हो वहाँ अयोग्य व्यक्तियों की मौज हो जाती है.

जिस से चोरी का डर हो उसी से कहो रखवाली करे. बहुत ही व्यवहारिक सुझाव है. 

जिस हंडिया में हमारा हिस्सा नहीं, वह भले ही चूल्हे पर चढ़ते ही टूटे. जिस आयोजन से हमें कोई लाभ नहीं होने वाला वह पूरा हो या उसका बंटाढार हो जाए, हमें क्या. 

जिस का खा कर आओगे उसे खिलाना भी पड़ेगा. किसी के यहाँ विवाह आदि आयोजन में दावत खाओगे उसे फिर अपने यहाँ भी आमंत्रित करना पड़ेगा. किसी का एहसान लोगे तो उसको चुकाना भी पड़ेगा.

जिस का खावै टीकड़ा, उसका गावै गीतड़ा. (हरयाणवी कहावत) जिसकी रोटी खाओ, उसके गीत गाओ.

जिस का गुइंया नहीं उसका कूकुर गुइयां. जिसका कोई दोस्त नहीं उसका कुत्ता ही दोस्त होता है. गुइंया – दोस्त.

जिस का चाम, उसी की सीवन. चमड़े को सिलने के लिए चमड़े की ही डोरी बनाई जाती थी. अर्थ है कि जिस प्रकार के लोगों से काम लेना हो उसी प्रकार का कर्मचारी रखना चाहिए.

जिस का नहीं साला, उसके घर में ताला. कुछ कहावतें केवल आपसी हंसी मजाक के लिए बनाई गई हैं. 

जिस का पल्ला भारी, उसी के साथ यारी. अवसर वादिता. 

जिस का बाप बिजली से मरे, वो कड़क देख के डरे. अर्थ स्पष्ट है. इसी प्रकार की एक और कहावत है – सांप का काटा रस्सी से भी डरता है.

जिस का मरा सो रोवे, गंगादास सुख से सोवे. जो लोग कोई सामाजिक सरोकार नहीं रखते उन पर व्यंग्य. समाज का नियम तो यह है कि चाहे ख़ुशी में किसी के घर न जाओ, पर दुःख में अवश्य जाओ.

जिस की गाड़ी रेत में उसी का बुद्धू नाम. जिस की गाड़ी रेत में फंस जाए उसी को लोग बुद्धू समझते हैं. जिस का काम बिगड़ जाए उसे ही सब मूर्ख कहते हैं.

जिस की गूजर खीर खाए, उसी की भैंस चुरा ले जाए. कहावत मेंगूजर को कृतघ्न बताया गया है. 

जिस के एक खसम न हो उसके सौ खसम हो जाते हैं. जिस स्त्री का पति न रहे सभी लोग उस पर अपनी हुकूमत चलाते हैं या उस का शोषण करना चाहते हैं.

जिस को चलना हो बाट, उसे कैसे सुहावै खाट. (हरयाणवी कहावत) जिसको दूर जाना है वह खाट पर बैठ कर आराम कैसे कर सकता है.

जिस को लगे उसी को दुखे. जिसको चोट लगती है वही उस के कष्ट को जान सकता है. वह चोट चाहे शरीर पर लगी हो या मन पर.

जिस ने दिया तन को देगा वही कफन को. जिसने शरीर के निर्वाह के लिए साधन दिए हैं वही कफन का इंतजाम भी करेगा. आलसी लोगों का कथन.

जिस ने देखी ना दिल्‍ली, वो कुत्‍ता न बिल्‍ली. जिसने दिल्ली नहीं देखी वह कुत्ते बिल्ली से भी गया बीता है.

जिसे आकाश में खोजा वह धरती पर मिला. कोई व्यक्ति बहुत ढूँढने के बाद मिले तो.

जिसे खाने को मिले यूँ, वह कमाने जाए क्यूँ. जिसे घर बैठे खाने को मिले वह पैसा कमाने के लिए मेहनत क्यों करेगा.

जिसे मरने का डर नहीं, उसे मारने वाला कोई नहीं. युद्ध में जो व्यक्ति जीवन का मोह छोड़ कर लड़ता है उसे हराना बहुत मुश्किल है.

जिस्म तोड़े तो घर बने. घर बनाने के लिए अत्यधिक श्रम करना पड़ता है.

जी कहीं लगता नहीं, जब जी कहीं लग जाए है. किसी से प्रेम हो जाए तो कहीं मन नहीं लगता. यह प्रेम स्त्री पुरुष का भी हो सकता है और आत्मा परमात्मा का भी.

जी कहो जी कहलाओ (जी न कहो तो जी न सुनोगे). यदि तुम दूसरों का आदर करोगे, तो लोग भी तुम्हारा आदर करेंगे.

जी का बैरी जी. 1. मनुष्य स्वयं अपना सबसे बड़ा शत्रु है. 2. जीव ही जीव का शत्रु है. इंग्लिश में कहावत है – Man is his own worst enemy.

जी के बदले जी. जान के बदले जान लेने की इच्छा. बदला लेने की उत्कट भावना.

जी चाहे बैराग को, कुनबा छोड़े नाहिं. 1. कोई व्यक्ति वास्तव में वैराग्य लेना चाहता है लेकिन कुटुम्ब के लोग उसे छोड़ नहीं रहे हैं. 2. कोई व्यक्ति वैराग्य लेने का ढोंग रच रहा है और कह रहा है कि मैं तो वैराग्य लेना चाहता हूँ पर क्या करूँ परिवार के लोग जाने नहीं दे रहे हैं.

जी जाए, घी न जाए. चाहे जान चली जाए पर घी खर्च न हो. महा कंजूस व्यक्ति का मजाक उड़ाने के लिए. के लिए.

जी बहुत चलता है मगर टट्टू नहीं चलता. बुढ़ापे में इन्द्रियाँ कमज़ोर हो जाने पर.

जी ही से जहान है. यदि जीवन है तो सब कुछ है. इसलिए सब तरह से प्राण-रक्षा की चेष्टा करनी चाहिए.

जी हुजूरी को कभी जोखिम नहीं. चमचागिरी करने में नफा ही नफा है, जोखिम कोई नहीं.

जीजा के माल पे साली मतवाली. अपने रिश्तेदारों के बल पर घमंड करना.

जीजा हमारे इत्ते शर्मीले, इक परसो दो छोड़त हैं. (बुन्देलखंडी कहावत) खाने पीने में ज्यादा तकल्लुफ करने वाले लोगों पर हास्य पूर्ण व्यंग्य.

जीता सो भी हारा, और हारा सो मुआ. मुकदमा जीतने वाला इंसान भी बहुत परेशानी उठाता है (अत्यधिक मानसिक तनाव और खर्च के कारण) और अगर हार गया तब तो बिलकुल ही मरा.

जीती मक्खी कोई न निगले. कोई अपमानजनक या घृणित चीज़ अनजाने में तो आप सह सकते हैं पर जानते बूझते कोई नहीं सह सकता.

जीते आसा, मुए निरासा. जीवन के साथ आशा की डोर बंधी है जो मरते ही समाप्त हो जाती है. इस का अर्थ यह भी हो सकता है कि आशावादी व्यक्ति की जीत होती है और निराशावादी मरे हुए के समान है.

जीते चाव चाव, मुए दाब दाब. जीवित व्यक्ति से सब प्रेम रखते हैं पर उसके मरते ही दफनाने की जल्दी होने लगती है.

जीते तो हाथ काला, हारे तो मुँह काला. जुआरियों के लिए. जीतेंगे तो धन उड़ा देंगे, हारेंगे तो बेइज्ज़त होंगे.

जीते थे तो लीखों भरे, मर गए तो मोतियों जड़े. लीख कहते हैं जूँ के अंडे को. जीते जी तो माँ बाप की इतनी बेकदरी कि उन के सर में जूएँ पड़ गईं और उन के मरने के बाद उनकी मोतियों जड़ी तस्वीरें लगाई जा रही हैं.

जीना कठिन है पर मरना और भी ज्यादा कठिन. अर्थ स्पष्ट है.

जीने के लिए खाओ, खाने के लिए मत जिओ. कुछ लोग हर समय खाने के विषय में ही सोचते हैं जैसे कि वे केवल खाने के लिए जिन्दा हैं. उनके लिए यह शिक्षा है कि उतना ही खाना चाहिए जितना स्वस्थ जीवन जीने के लिए आवश्यक है. 

जीभ और थैली को बंद ही रखना अच्छा है. कम बोलने (कम खाने) और कम खर्च करने से बड़ा लाभ होता है.

जीभ भी जली और स्वाद भी न पाया. जब कोई काम करने में आनंद भी नहीं मिला और नुकसान अलग हुआ.

जीभ में ही अमृत बसे और जीभ में ही जहर. मीठी बोली द्वारा किसी मृतप्राय व्यक्ति को जिलाया जा सकता है, और कड़वी बोली द्वारा किसी को मृत्यु जैसी प्रताड़ना दी जा सकती है.

जीमना और झगड़ना पराए घर ही अच्छे लगते हैं. जो मजा दूसरे के घर पर जीमने (खाने) में है वह अपने घर पर खाने में नहीं है. इसी तरह झगड़ा करने का मजा भी दूसरे के घर पर ही आता है.

जीमना न जूठना, न कंघी न खाट, साँपों के ब्याह में बस जीभों की लपलपाट. दुष्टों के जमावड़े में कोई एक दूसरे की आवभगत नहीं करता, सब एक दूसरे को निगल जाने की फ़िराक में रहते हैं.

जीमा जूठा एक नाम, मारा पीटा एक नाम. किसी के घर केवल मुँह जूठा किया या जम कर खाया, खाने का नाम तो हो ही गया. ऐसे ही किसी को एक थप्पड़ मारा या जम के ठुकाई की, मारने का नाम तो हो ही गया.

जीयेगा तो खेलेगा फाग. जीवन का आनंद लेने के लिए जीवित रहना जरूरी है.

जीवे मेरा भाई, गली गली भौजाई. ननद की भाभी से लड़ाई हुई तो वह कहती है कि मेरा भाई जीता रहे, तेरे जैसी भाभियाँ तो गली गली में मिल जाएंगी.

जुआरी का खर्चा बादशाह भी पूरा नहीं कर सकता. जुआरी के पास कितना भी पैसा हो, वह सब जुए में हार सकता है.

जुआरी को अपना ही दांव सूझता है. स्वार्थी आदमी अपना स्वार्थ ही देखता है.

जुआरी हमेशा मुफ़लिस. जुआरी अगर जुए में जीत जाए तो पैसे को खुर्द बुर्द कर देता है, और हार जाए तो कंगाल हो ही जाता है.

जुए में हारा और मेहरारू का मारा भेद न खोले. जुए में हारा हुआ व्यक्ति और पत्नी से मार खाया हुआ व्यक्ति किसी को अपना भेद बताता नहीं है.

जुए से बैल भी हारा है. इसका कहावती अर्थ तो यह है कि जुआ सभी के लिए बुरा है चाहे आदमी हो या जानवर. उसको अलंकारिक रूप में इस तरह कहा गया है क्योंकि कि जुए का एक अर्थ वह लकड़ी भी है जिसके द्वारा बैल हल से बांधे जाते हैं.

जुओं के मारे सर कौन कटाए. छोटी परेशानी से बचने के लिए बहुत बड़ा नुकसान कौन करता है.

जुगनू बोले सूर्य सों हम बिन जग अंधियार. किसी महत्वहीन व्यक्ति द्वारा अपने को बहुत महत्वपूर्ण बता कर अहंकार करना.

जुगल जोड़ी सलामत रहे. पति पत्नी को एक साथ दिया जाने वाला आशीवाद.

जुड़ती नहीं धुर की टूटी, धरी रहें सब दारु बूटी. धुर की टूटी का अर्थ है जिस गाड़ी की धुरी टूटी गई हो. यहाँ इशारा किसी ऐसी बीमारी से है जो शरीर को बिलकुल तोड़ दे. ऐसी बीमारी का इलाज नहीं हो पता, सब दवा दारु रखी रह जाती हैं.

जुत जुत मरें बैलवा बैठे खाएं तुरंग. बैल बिचारे हल जोत जोत कर जान देते हैं और घोड़े बैठे बैठे खाते हैं. मेहनतकश लोग मेहनत करते हैं और धनी लोग व हाकिम लोग उसका लाभ उठाते हैं.

जुबान बिना हड्डी की, फिरने में क्या देर लगे. जो लोग अपनी बात पर कायम नहीं रहते उन के ऊपर व्यंग्य.

जुबान में ही रस, जुबान में ही विष. जुबान से ही मीठी बोली बोली जाती है और जुबान से ही कड़वी बोली.

जुमा छोड़ सनीचर नहाए, उसका सनीचर कभी न जाए. लोक विश्वास है कि जो व्यक्ति शुक्रवार को न नहा कर शनिवार को नहाता है उसके सर से शनिश्चर नहीं हटता.

जूँ बिना खाज नहीं, कुल बिना लाज नहीं. दोनों बातों का आपस में सम्बंध नहीं है, केवल तुकबंदी करने के लिए साथ कही गई हैं. सर में खुजली जूँ के कारण से होती है और लज्जा कुलीन लोगों में ही पाई जाती है. 

जूं के कारण गुदड़ी नहीं फेंकी जाती. किसी छोटी सी कमी के कारण उपयोगी वस्तु या व्यक्ति का तिरस्कार नहीं करना चाहिए.

जूठा खाए मीठे को. (जूठा खाए मीठे के लालच). मीठा खाने के लालच में मनुष्य झूठा भी खा लेता है. मनुष्य नीच काम तभी करता है जब लाभ अधिक हो.

जूठे हाथ से कुत्ता भी नहीं मारते. 1. किसी छोटे से छोटे व्यक्ति को भी अपमानित नहीं करना चाहिए. 2. अत्यधिक कंजूस व्यक्ति के लिए.

जूती तंग और रिश्तेदार नंग, सारी जगहां चुभें. (हरयाणवी कहावत) तंग जूता और बेशर्म रिश्तेदार बहुत कष्ट देते हैं.

जूती तो हमेशा पाँव के नीचे ही रहेगी. जो लोग स्त्री को पाँव की जूती समझते हैं (पुरुष से बहुत नीचा समझते हैं) और दबा कर रखना चाहते हैं वे इस प्रकार से बोलते हैं. 

जूते का घाव, मियाँ जाने या पाँव. जूते से होने वाले घाव की पीड़ा वही जान सकता है जिस पर बीतती है.

जूते का मारा ऊपर को और टुकड़े का मारा नीचे को देखता है. जिस को जूता मारोगे वह आक्रोश दिखाएगा, जिस को टुकड़ा पकड़ा दोगे वह निगाह झुका लेगा.

जूते दान करने के लिए गाय की हत्या. अपने किसी छोटे से स्वार्थ के लिए किसी का बहुत बड़ा नुकसान करना.

जे खाय गाय के गोश्त, ते कैसे हिन्दू के दोस्त. जो गाय का मांस खाते हैं वे हिन्दुओं के दोस्त कैसे हो सकते हैं (दोस्ती में दूसरों की भावनाओं का ध्यान रखना आवश्यक होता है).

जे गरीब पर हित करैं, ते रहीम बड़ लोग, कहाँ सुदामा बापुरो, कृष्‍ण मिताई जोग. व्यवहार में इसका पूर्वार्ध ही बोला जाता है. वास्तव में वही लोग बड़े कहलाने योग्य हैं जो निर्धन का हित करते हैं. (श्री कृष्ण का उदाहरण दिया गया है जिन्होंने राजा होते हुए भी अत्यंत निर्धन सुदामा से मित्रता निभाई).

जे न मित्र दुःख होहिं दुखारी, तिन्हहिं विलोकति पातक भारी. जो मित्र के दुःख में दुखी नहीं होते उन्हें देखने मात्र से ही भारी पाप लगता है.

जिसका धन जाता है उसका धर्म भी चला जाता है. इसका एक अर्थ यह है कि गरीब को लोग धर्मात्मा नहीं मानते, झूठा लुच्चा ही मानते है. दूसरा अर्थ है कि धन जाने पर आदमी उसे वापस पाने के लिए अनैतिक कार्य भी करता है.   

जिस की छाती बार नाहीं, उस का एतबार नाहीं. यह भी एक पुरानी मान्यता है.

जिस का खसम पूछा न करे, उस की मांग में भर भर सिन्दूर. (भोजपुरी कहावत) जिस स्त्री का पति उसको नहीं पूछता वह औरों को दिखाने के लिए अपनी मांग में अधिक सिदूर भरती है.

जिस की बहिन अंदर उस का भाई सिकंदर. (भोजपुरी कहावत) जिस भाई की बहन किसी बड़े नेता या अधिकारी के घर ब्याही हो वह बेखौफ उस घर में आता जाता है.

जिसकी जोरू अंदर, उसका नसीबा सिकंदर. जिस की पत्नी किसी बड़े आदमी के घर में काम करती हो उस का भाग्य चमक जाता है.

जेठ के भरोसे पेट. 1.जब कोई मनुष्य बहुत निर्धन होता है (या उस की मृत्यु हो जाए) और उसके परिवार का पालन उसका बड़ा भाई (स्त्री का जेठ) करता है तब कहते हैं. 2. कोई व्यक्ति अपने किसी रिश्तेदार की शह पर अनैतिक काम कर रहा हो तो व्यंग्य में बोलते हैं.

जेठ के सो पेट के. जेठ के पुत्र भी अपने बेटों जैसे हैं.

जेठ चले पुरवाई, सावन सूखा जाई. अगर जेठ के महीने में पुरबाई चले तो सावन में वारिश नहीं होती.

जेठा बेटा भाई बराबर. बड़े बेटे को भाई की तरह महत्व देना चाहिए. जेठा – ज्येष्ठ, बड़ा.

जेठे लड़का लड़की की शादी जेठ में न करो. पुरानी मान्यता है कि बड़े लड़के या लड़की की शादी जेठ के महीने में नहीं करना चाहिए.

जितने के बबुआ नाहीं, उतने के झुनझुना. (भोजपुरी कहावत) मूल वस्तु की कीमत कम, रख रखाव का खर्च अधिक. 

जेते जग में मनुज हैं तेते अहैं विचार. संसार में सभी मनुष्यों की प्रकृति, प्रवृत्ति तथा अभिरुचि भिन्न-भिन्न हुआ करती है.

जेते मुख तेती वार्ता. (जितने मुंह उतनी बात). सभी लोगों का सोचने का ढंग अलग अलग होता है.

जेब जितनी भारी, दिल उतना हल्का. पैसा आने के साथ आदमी और अधिक स्वार्थी और कंजूस होता जाता है.

जेर से ही सेर होवे. आज का निरा बालक कल बलवान बन सकता है. इसलिए बच्चों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए.

जेहि घट प्रेम न सँचरै, सो घट जानि मसान (जैसे खाल लोहार की, साँस लेत बिनु प्रान). जिस व्यक्ति के मन में प्रेम नहीं है वह श्मशान के समान है. वह उसी प्रकार है जैसे लुहार की चमड़े की धौंकनी बिना प्राण के सांस लेती है.

जेहि घर साला सारथी, अरु तिरिया की हो सीख, सावन में बिन हल रहे, तीनहु मांगें भीख. जो घर साले की सलाह से चलता हो, जिस घर में केवल पत्नी की चलती हो एवं जो किसान सावन में बिना हल के रहे इन तीनों की बर्बादी निश्चित है. इस से मिलती एक बुन्देलखंडी कहावत है – बैरी को मत मानबो, अरु तिरिया की सीख, क्वार करे हल जोतनी, तीनहुं मांगें भीख. 

जै घर में सुरती नहीं, नहीं पान सैं हेत, ते घर ऐसे जाएंगे, ज्यों मूली को खेत. (बुन्देलखंडी कहावत) सुरती – एक विशेष प्रकार की तम्बाखू. तम्बाखू प्रेमी कहते हैं कि जिस घर में पान तम्बाखू से प्रेम नहीं होता वह मूली के खेत की तरह नष्ट हो जाता है.

जै दिन जेठ चले पुरवाई, तै दिन सावन धूल उड़ाई. यदि जेठ के महीने में पुरवाई चले तो सावन में सूखा पड़ता है.

जैसन को तैसन, सुकटी को बैंगन. किसी दुबली पतली लड़की की शादी मोटे लड़के से हो जाए तो.

जैसन देखे गाँव की रीत, तैसन करे लोग से प्रीत. जैसी परिस्थितियाँ और परिवेश हों वैसा ही व्यवहार करना चाहिए.

जैसा अंश, वैसा वंश. माता पिता का जैसा अंश बच्चों में आता है वैसा ही उनका वंश बनता है. आधुनिक विज्ञान का आनुवंशिकता का सिद्धांत भी यही कहता है.

जैसा ऊँट लम्बावैसा गधा खवास. जब एक ही प्रकार के दो मूर्खों का साथ हो.

जैसा कन भर, वैसा मन भर. बोरी में से एक चावल देखकर चावल की क्वालिटी मालूम हो जाती है. व्यक्ति के एक काम को देख कर उसके विषय में अंदाज़ लग जाता है.

जैसा करेगा, वैसा भरेगा. व्यक्ति जैसे कार्य करता है वैसा ही फल पाता है.

जैसा काछ काछे वैसा नाच नाचे. काछ – परिधान (विशेषकर नटों या अभिनेताओं द्वारा धारण किया हुआ वेष). कहावत का अर्थ यह भी हो सकता है कि नट लोग जैसा वेश पहनते हैं वैसा ही अभिनय करते हैं और यह भी हो सकता है कि जैसा परिवेश हो वैसा ही व्यवहार हमें करना चाहिए.

जैसा खावे, वैसी डकार आवे. आदमी जिस प्रकार का कार्य करता है उसके वैसे ही परिणाम होते हैं.

जैसा खुदा, वैसे ही फ़रिश्ते. जब कोई अफसर या नेता भ्रष्ट हो और उसके मातहत भी बेईमान हों. 

जैसा जामन वैसा दही. 1. जामन अगर अच्छा होगा तो दही भी अच्छा जमेगा. जितना अच्छे साधन होंगे उतना ही अच्छा कार्य होगा. 2. बच्चे को जैसे संस्कार दोगे वह वह वैसा ही बनेगा.

जैसा तेरा ताना-बाना वैसी मेरी भरनी. जैसा व्यवहार तुम मेरे साथ करोगे, वैसा ही मैं तुम्हारे साथ करूँगा. ताना बाना और भरनी कपड़ा बुनने में प्रयोग होने वाले शब्द हैं.

जैसा दूध धौला, वैसी छाछ धौली. 1. जितना अच्छा दूध होगा उतनी ही अच्छी छाछ बनेगी. जितना उच्च कोटि का कच्चा माल होगा उतना ही अच्छा उत्पाद (product) होगा. 2. योग्य माँ बाप की योग्य संतान के लिए.

जैसा देवर, वैसी भौजी. जहाँ देवर भाभी एक से मजाकिया या दुष्ट हों.

जैसा देवे वैसा पावे, पूत भतार के आगे आवे. कोई स्त्री दूसरी से कह रही है कि जैसे सब के साथ करोगी वैसा ही तुम्हारे साथ होगा. औरों के साथ बुरा करोगी तो तुम्हारे पुत्र और पति के साथ बुरा होगा.

जैसा देस वैसा भेस. जहां रहो वहीँ के हिसाब से अपने को ढाल लो.

जैसा पशु, तैसा पगहा. पगहा माने जानवर के पिछले पैर या गले में बांधे जाने वाला रस्सा या जंजीर. जितना शक्तिशाली और गुस्सैल जानवर होता है उतने ही मजबूत पगहे से उस को बाँधा जाता है. समाज के लोगों के साथ व्यवहार में भी इसी सिद्धांत का प्रयोग किया जाता है. कौन से अफसर या सरकारी मुलाजिम से कैसे निबटना है इस के लिए भी यही कहावत चरितार्थ होती है. 

जैसा पीवे पानी, वैसी बोले वानी. व्यक्ति का खान पान जैसा होता है उसका व्यवहार भी वैसा ही हो जाता है. 

जैसा पैसा गाँठ का, तैसा मीत न कोय (जैसी गठरी आपनी, वैसो मीत न कोय). अपने पास का पैसा ही सबसे अच्छा मित्र है.

जैसा बाप वैसा पूत. 1. पुत्र अमूमन पिता के आदर्शों पर ही चलते हैं. 2. अगर कोई बाप बेटा एक से बढ़ कर एक हों तो (चाहे खुराफाती हों या बुद्धिमान).

जैसा बेटा रानी का, वैसा बेटा कानी का. सभी स्त्रियों को अपना पुत्र प्यारा होता है. 

जैसा बोओगे वैसा काटोगे. जैसा व्यवहार औरों के साथ करोगे वैसा ही फल आपको मिलेगा. यदि दूसरों के खिलाफ़ षड्यंत्र रचोगे तो खुद भी किसी षड्यंत्र का शिकार होगे.

जैसा बोले डोकरा, वैसा बोले छोकरा. घर के बड़े बूढ़े जैसी बोली बोलते हैं वैसी ही बोली बच्चे सीख जाते हैं. (डोकरा – बूढ़ा आदमी)

जैसा ब्याह वैसा नेग. जैसा काम वैसा ही ईनाम.

जैसा मन हराम में वैसा हरि में होए, चला जाए बैकुंठ को रोक सके न कोए. जितना मन खुराफात में लगता है उतना अगर ईश्वर की भक्ति में लगाएं तो मोक्ष मिल जाएगा.

जैसा माल वैसा मोल. जैसा माल होगा वैसा ही उसका मूल्य मिलेगा.

जैसा मुँह वैसा थप्पड़ (जैसा मुंह वैसी चपेट). गलती की सजा भी व्यक्ति का मुँह देख कर दी जाती है.

जैसा मुँह, वैसा तिलक. व्यक्ति की हैसियत के अनुसार उसका सम्मान होता है.

जैसा साजन वैसा भोजन. अतिथि की योग्यता के अनुसार ही उसका सम्मान होता है.

जैसा सोचे, वैसा पावे. जो बड़ी सोच रखते हैं वे बड़ी उपलब्धियाँ पा जाते हैं, जो छोटी सोच रखते हैं उनकी उपलब्धियाँ भी सीमित होती हैं.

जैसा सोता वैसी धारा. जैसा स्रोत होगा वैसी ही जल की धारा होगी. कोई संगठन या परिवार जिन विचारों से प्रेरित होगा वैसे ही कार्य करेगा.

जैसी कमाई वैसी समाई (खर्च). कमाई जितनी हो खर्च भी उतना ही करना चाहिए.

जैसी करनी वैसी भरनी. जैसे कर्म करोगे वैसे ही फल भुगतने पड़ेंगे. कुछ लोग इस के आगे बोलते हैं – जैसी करनी वैसी भरनी, न माने तो कर के देख.

जैसी खान वैसा ही हीरा, ऐसी बहन का ऐसा ही वीरा. हीरों की कुछ खानें उच्च कोटि के हीरों के लिए प्रसिद्ध हैं, अर्थात उच्च कोटि की खान से निकला हीरा भी उच्च कोटि का होगा. जैसे योग्य माता पिता वैसा ही योग्य पुत्र, जैसी योग्य बहन, वैसा ही योग्य भाई. 

जैसी गंगा नहाए, तैसी सिद्धि पाए. जैसी पूजा वैसा फल.

जैसी छिनरी आप छिनार, वैसा जाने सब संसार. जो स्त्री दुश्चरित्र होती है वह सारे संसार को दुश्चरित्र समझती है.

जैसी जाकी बुद्धि है, तैसी कहै बनाय, ताको बुरा न मानिए, लेन कहाँ सो जाय. यदि कोई मूर्खतापूर्ण बात करता है तो उसका बुरा मत मानिए. जिस के पास जैसी बुद्धि है वह वैसी ही बात कर सकता है.

जैसी जाकी भावना तैसी ताकी सिद्धि. जिसकी जैसी भावना होती है उसको वैसी ही सिद्धि मिलती है. दुष्ट प्रकृति के लोग नीच शक्तियाँ सिद्ध करते हैं, उत्तम प्रकृति के लोग परोपकारी भावनाओं को सिद्ध करते हैं. राक्षस लोग तपस्या करते थे तो भगवान से शक्तियाँ और दिव्यास्त्र मांगते थे, ऋषि मुनि तपस्या करते थे तो लोक कल्याण के साधन मांगते थे.

जैसी जात वैसी बात. आदमी अपनी जात के अनुसार ही बात करता है. इस बात को जातिवाद से जोड़ कर नहीं देखना चाहिए. यह सच है कि जो व्यक्ति जिस जाति में अर्थात जैसे माहौल में पैदा हुआ और पला बढ़ा है वह अधिकतर अपने उसी परिवेश के अनुरूप ही बात करता है.

जैसी झूठी बधाई, वैसी कड़वी मिठाई. आपने किसी को झूठी बधाई दी. बदले में उसने आप को जो मिठाई खिलाई वह आपको कड़वी लगी तो शिकायत किस बात की.

जैसी तेरी तिल चावली, वैसे मेरे गीत. विवाह या संतान जन्म पर जो स्त्रियाँ गीत गाती है उन्हें तिल चावल भेंट में दिए जाते हैं. यदि गाने वालियों को पर्याप्त तिल चावल नहीं मिला या घटिया मिला तो वे बेकार के गीत गायेंगी.

जैसी देखी गाँव की रीती वैसी उठाईं अपनी भीती.  जैसी गाँव की रीति देखें वैसी अपनी दीवार बनाएँ. माहौल को देखते हुए काम करना चाहिए.

जैसी देवी सीतला वैसा वाहन खर. शीतला माता को खतरनाक देवी माना गया है क्योंकि उन के प्रकोप से चेचक निकलती है. जैसी देवी हैं वैसा ही उनका वाहन है गधा. हाकिम और उनका मातहत दोनों एक से अजीब हों तब.

जैसी धूप वैसी छतरी. जैसी परिस्थिति हो वैसा ही प्रबंध करना चाहिए.

जैसी नीयत, वैसी बरकत. जैसी जिसकी मनोवृत्ति हो उसी हिसाब से उसकी उन्नति या पतन होता है.

जैसी पड़े मुसीबत, वैसी सहे शरीर. जैसी परेशानी आती है शरीर वैसा ही अपने को ढालता है.

जैसी बंदगी, वैसा ईनाम. बंदगी शब्द के अर्थ में पूजा, सलाम और गुलामी का मिश्रण है. जितनी लगन और सच्चाई से बंदगी की जाएगी उतना ही अच्छा इनाम मिलेगा.

जैसी बहे बयार, पीठ तब तैसी कीजे. जैसा माहौल हो उसी के अनुसार व्यवहार कीजिए.

जैसी भाई की प्रीत, वैसे बहन के गीत. भाई के यहाँ कोई शुभ कार्य होता है तो बहनें बड़े चाव से गीत गाती हैं. यदि भाई की प्रीत में खोट होगा तो बहनों के गीत भी फीके होंगे.

जैसी मति, तैसी गति. जैसी व्यक्ति की मति (सोच) होती है उसको वैसी ही गति (परिणति) प्राप्त होती है.

जैसी माई, वैसी जाई. जाई माने बेटी. जैसी माँ वैसी बेटी.

जैसी रूह वैसे फ़रिश्ते. व्यक्ति ने जैसे कर्म किए हों उसे वैसा ही फल मिलेगा. दुष्ट आत्माओं को लेने के लिए दुष्ट फरिश्ते आएँगे और नेक आत्माओं को लेने अच्छे फरिश्ते आएँगे.

जैसी संगत, वैसी रंगत. व्यक्ति जिस प्रकार के लोगों के साथ रहता है वैसे ही उस के आचार विचार हो जाते हैं.

जैसी होत होतव्यता, तैसी उपजे बुद्धि, होनहार हिरदै बसे, बिसर जाए सब सुद्धि. जैसी होनहार होती है वैसी ही आदमी की बुद्धि हो जाती है. जब कुछ अनिष्ट होने वाला होता है तो आदमी सारी समझदारी भूल जाता है.

जैसे उदई वैसे भान, ना इनके चुनई ना उनके कान. दो मूर्ख एक सा व्यवहार करते हैं.

जैसे उदई वैसेहि खान, न उनके चुटिया, न उनके ईमान. जो लोग अपने धर्म में आस्था न रखते हों उनके लिए. ऊदई कोई हिन्दू हैं जो चुटिया नहीं रखते और खान कोई मुसलमान हैं जो अपने धर्म पर ईमान नहीं रखते.

जैसे उधौ वैसे माधौ. जब दो मूर्ख एक से हों तो.

जैसे कंता घर रहे वैसे रहे विदेस, जैसे ओढ़ी कामली वैसे ओढ़ा खेस. पत्नी को प्रेम न करने वाला पति या निकम्मा पति घर में रहे या विदेश में पत्नी को कोई फर्क नहीं पड़ता. कम्बल ओढ़ो या सूती चादर क्या फर्क पड़ता है. राजस्थान में इस का दूसरा प्रारूप भी प्रचलित है – कदे न हँस कर कुच गह्यो, कदे न रिस कर केस, जैसे कंता घर रह्यो, वैसे ही परदेस (पति ने कभी हँस कर शरीर को हाथ नहीं लगाया और न ही क्रोध में बाल पकड़े, जैसे परदेस में रहा वैसे ही घर में रहा). 

जैसे कुम्हड़ा छप्पर पर, वैसे कुम्हड़ा नीचे. स्थान या पद बदलने के बाद भी यदि व्यक्ति की हैसियत वही रहे तो मजाक में ऐसे कहा जाता है.

जैसे को तैसा मिला ज्यों बामन को नाई, इनने आशीर्वाद कही उन आरसी काढ़ दिखाई. ब्राह्मण किसी को आशीर्वाद देते हैं तो बदले में दक्षिणा की आशा रखते हैं. नाई जब किसी को आरसी में मुँह दिखाता है तो बदले में इनाम की आशा करता है. ब्राह्मण देवता ने दक्षिणा की जुगाड़ में नाई को आशीर्वाद दिया तो नाई ने बदले में आरसी निकाल कर दिखा दी. दो कुटिल व्यक्ति एक से बढ़ कर एक हों तो यह कहावत कही जाएगी.

जैसे को तैसा मिले सुन रे राजा भील, लोहे को चूहा खा गया लड़का ले गई चील. इस के पीछे एक कहानी कही जाती है. एक व्यक्ति ने किसी से लोहे के बर्तन उधार लिए और जब लौटाने का वक्त आया तो यह कह कर मुकर गया कि बर्तनों को चूहा खा गया. उधार देने वाला समझ गया पर कुछ बोला नहीं. कुछ दिन बाद उस ने इस व्यक्ति के बेटे को अपने घर बुलाया और छिपा लिया. फिर इससे कहा कि लड़के को चील ले गई है. जब बात राजा के पास पहुंची तो उस ने यह कहावत बोली. 

जैसे को तैसा मिले, मिले कुल्हाड़ी बेंट, कानी को काना मिले, लिए आँख में टेंट. जिस की जैसी प्रवृत्ति होती है उस को वैसा ही साथ मिल जाता है.

जैसे को तैसा. कोई व्यक्ति किसी के साथ धूर्तता करे और दूसरा व्यक्ति उसी की भाषा में उसका जवाब दे तो.

जैसे जल, वैसे मच्छ. जितनी बड़ी नदी, तालाब या समुद्र होगा उतनी ही बड़ी मछलियाँ और मगरमच्छ उसमे होंगे. बड़े शहर में बड़े व्यापारी और बड़े अपराधी होंगे.

जैसे तेरी बाँसुरी, वैसे मेरे गीत. जैसे साधन तुम मुझे उपलब्ध कराओगे वैसा ही काम मैं कर के दूंगा.

जैसे नाग नाथ वैसे साँप नाथ. दो कुटिल लोग एक से मिल जाएँ तो.

जैसे नीमनाथ, वैसे बकायननाथ. बकायन – नीम की जाति का एक पेड़, महानिम्ब. यह भी नीम जैसा कड़वा होता है. कोई दो व्यक्ति एक से बढ़ कर एक बदमिजाज हों तो.

जैसे फूल गुलाब का सूखे तऊं बसाय, तैसी प्रीत सुशील की दिन पर दिन अधिकाय. (बुन्देलखंडी कहावत) बसाय – बास (सुगंध) देता है. जैसे गुलाब का फूल सूख कर भी सुगंध देता है, वैसे ही सुशील व्यक्ति की प्रीति समय के साथ बढ़ती है.

जैसे बाबा आप लबार, वैसा उनका कुल परिवार. लबार – झूठ बोलने वाला, गप्पें हांकने वाला. घर का बड़ा बूढ़ा झूठ बोलने वाला हो तो सारा घर वैसा ही हो जाता है.

जैसे मुर्दे पर सौ मन मिट्टी वैसे हजार मन. मुर्दे के ऊपर सौ मन मिटटी हो या हजार मन, मुर्दे को क्या फर्क पड़ता है. काम में पिसने वाली घर की महिला या काम के बोझ से दबे कर्मचारी पर जब और काम लादा जाता है तो वह ऐसे बोलता है. क़र्ज़ के बोझ तले दबा आदमी और अधिक क़र्ज़ लेने के लिए भी ऐसे बोलता है.

जैसे साजन आए, तैसे बिछौना बिछाए (तैसी सेज बिछाए). जैसा मेहमान वैसा सत्कार.

जैसो पावणों, वैसो ही जीमावणों. (राजस्थानी कहावत)जैसा मेहमान वैसा ही सत्कार. पावणा – पाहुना, अतिथि, जिमावणा – जीमाना, खाना खिलाना.

जो अति आतप व्याकुल होई, तरु छाया सुख जाने सोई : आतप – सूर्य का ताप. जब व्यक्ति तेज धूप से व्याकुल होता है तभी उसे पेड़ की छाया का महत्व समझ में आता है. व्यक्ति जितनी बड़ी विपत्ति का सामना करता है उतना ही अधिक वह विपत्ति हटने पर आनंद पाता है.

जो अनमनी सासरे जावे, वो क्या निहाल करे. जो लड़की ससुराल जाने में आनाकानी करे वह ससुराल जा कर कैसे निभेगी. कार्य के आरम्भ में ही जो कोई अनिच्छा जाहिर करे वह उस काम को पूरा कैसे करेगा.

जो अपने काम न आए, सो चूल्हे भाड़ में जाए. कोई कितना भी बड़ा या महत्वपूर्ण व्यक्ति क्यों न हो, हमारे काम न आए तो उस का बड़प्पन हमारे किस काम का. (बारह गाँव का चौधरी, अस्सी गाँव का राय, हमारे काम न आए तो ऐसी तैसी में जाए).

जो अपने पर विश्वास नहीं करता, वह किसी पर विश्वास नहीं कर सकता. अर्थ स्पष्ट है.

जो आके न जाय वो बुढ़ापा, जो जाके न आय वो जवानी. अर्थ स्पष्ट है.

जो आया है वह खाएगा जो कमायेगा वह खिलाएगा. इस संसार में जिसने जन्म लिया है उसको भोजन मिलना चाहिए. यदि उस के पास खाने को नहीं है तो जो सम्पन्न लोग हैं उनका कर्तव्य है कि वंचित लोगों की सहायता करें.

जो इच्छा करिहौं मन माहिं, हरि कृपा कछु दुर्लभ नाहिं. आप मन में कोई भी इच्छा कर लीजिए, ईश्वर की कृपा हो तो कुछ भी दुर्लभ नहीं है.

जो ऊँट की पीठ पे न लदे वो उसके गले बंधे. यदि कोई सामान ऊँट की पीठ पर नहीं लद पाता है तो उसे ऊँट के गले में बाँध कर लटका देते हैं. काम को हर हाल में गरीब आदमी पर ही लादा जाता है.

जो कबीर काशी में मरिहें, रामहिं कौन निहोरा. काशी में मरने से स्वर्ग जाने की गारंटी हो तो कोई भगवान की भक्ति क्यों करेगा.

जो करता है वह कहता नहीं फिरता, जो कहता फिरता है वह करता नहीं. अर्थ स्पष्ट है.

जो करे धरम, उसके फूटे करम, जो करता है पाप कमाई, वो खाता है दूध मलाई. कलियुग की सच्चाई यही है.

जो करे बिरानी आस, वो जीते जी मर जाय. दूसरों पर आश्रित होना, जीते जी मरने के समान है.

जो करे शरम उसके फूटे करम, जो करता है बेशर्माई वो खाता है दूध मलाई. यह कहावत आधी भी बोली जाती है और पूरी भी. संकोच करने वाला सदा नुकसान में रहता है.

जो करे होड़, सो मरे सिर फोड़. अपनी क्षमताओं और सीमाओं को जाने बिना दूसरों से होड़ करने वाला व्यक्ति हमेशा पछताता है.

जो कहुं माघे बरसे जल, सब नाजों में होगा फल. माघ के महीने में जल बरसता है तो सभी अनाजों की पैदावार अच्छी होती है. (घाघ) माघ की वर्षा को महोटे कहते हैं.

जो काम हिकमत से निकलता है वो हुकूमत से नहीं निकलता. युक्ति द्वारा जो काम किया जा सकता है वह तानाशाही और जोर जबरदस्ती से नहीं किया जा सकता.

जो किसी से न हारे वो अपने से हारे. अपने से – स्वयं से, अपने से – अपनों से. 1. गलत काम कर के आगे बढ़ने वाला अंततः अपनी अंतरात्मा को जवाब नहीं दे पाता. 2. जो किसी से नहीं हारता है उसे किसी अपने (सगे) से हारना पड़ता है. एक से एक वीर पुरुष अपनों के द्वारा ही धोखे से मरवाए गए.

जो कोऊ हमें देख के जरे बरे, ओकी आंखन में राई नोन परे. (भोजपुरी कहावत) जलने वाले को लानत भेजने के लिए. कहीं कहीं महिलाएं राई और नमक से बच्चों की नजर उतारते समय इस प्रकार बोलती हैं.

जो कोसत बैरी मरे, मन चितवे धन होय, जल में घी निकसन लगे तो रूखा खाय न कोय. शत्रु अगर कोसने से मर जाए, इच्छा करने से धन मिल जाए, पानी मथने से घी निकल आए तो सभी सुखी हो जाएंगे.

जो खड़े मूते उसे छींटों का क्या डर. जान बूझ कर गलत काम करने वाले को उसके दुष्परिणामों की चिंता नहीं होती.

जो खेत में मोती फरे, तबहूँ बनिया न खेती करे. बनिए बहुत चालाक होते हैं, वे खेती जैसा मेहनत और खतरे से भरा काम कभी नहीं करते.

जो गंवार पिंगल पढ़े, तीन वस्तु से हीन, बोली, चाली, बैठकी, लीन्ह विधाता छीन. गंवार यदि पढ़ लिख भी जाए तो भी उसकी बोली और चाल ढाल संभ्रान्त लोगों जैसी नहीं हो सकती. पिंगल का अर्थ है छंद शास्त्र.

जो गरजते हैं वो बरसते नहीं. (गरजें सो बरसें नहीं) (गरजता बादल बरसता नहीं, बरसता है सो गरजता नहीं). बादलों के विषय में कहा जाता है कि गरजने वाले बादल बरसते नहीं हैं. कहावत के रूप में इस का अर्थ यह है कि जो बहुत बढ़ चढ़ कर बोलते हैं वे कुछ कर के नहीं दिखाते.

जो गुड़ देने से मर जाए, उसे जहर क्यों दिया जाए (रस के मरे को विष क्यों देय). जो मीठी बातों में फंस कर आपका काम कर दे उस के साथ रुखाई क्यों की जाए.

जो घर चलावे सो घर का बैरी, जो गॉव चलावे सो गाँव का बैरी. घर का मुखिया सभी का हित चाहता है लेकिन प्रत्येक व्यक्ति को लगता है कि उसी के साथ अन्याय हो रहा है. यही बात गाँव और देश के मुखिया पर भी लागू होती है.

जो घर में बोलें डोकरा, सो बाहर बोले छोकरा (जैसा बोले डोकरा, वैसा बोले छोकरा). घर में बड़े बूढ़े जैसे बोलते हैं वैसा ही बच्चे बाहर बोलते हैं.

जो चढ़ेगा सो गिरेगा. इसका अर्थ दो तरह से है – 1. जो उन्नति करता है वह कभी न कभी गिरेगा भी. 2. जो चढ़ने का साहस करेगा वही तो गिरेगा. जो चढ़ेगा ही नहीं वह गिरेगा क्या.

जो चोरी करता है वह मोरी देख के रखता है. चोर चोरी करने से पहले अपने निकलने की जगह देख कर रखता है.

जो जाके मन में बसे सो सपने दर्शाए (जो मन में बसे सो सुपने दसे). आपके मन में जो विचार होते हैं वही आपको सपने में दिखते हैं.

जो जाने जाड़े को भेद, सो ढांके कंबल को छेद. जिसको मालूम है कि कम्बल में छेद हो तो उससे जाड़ा दूर नहीं हो सकता वह समय रहते कम्बल के छेद को ढक देता है.

जो जीता वही सिकंदर. जब दो धुरंधरों में लड़ाई होती है तो जो जीतता है वही श्रेष्ठ कहलाता है चाहे वह अधर्म और कुटिलता से जीता हो या धुप्पल में जीत गया हो. 

जो जैसा करता है, वो वैसा भरता है (जैसा करोगे वैसा भरोगे). अर्थ स्पष्ट है.

जो जैसी करनी करे सो तैसो फल पाए, बेटी पहुँची राजमहल साधु बंदरा खाए. यह कहावत एक कहानी पर आधारित है. एक साधु राजा के महल में गया. राजा ने उसका बड़ा सत्कार किया. राजा की सुंदर बेटी को देख कर साधु के मन में पाप आ गया. उसने राजा से कहा कि ये कन्या बहुत अशुभ है इसे लकड़ी के बक्से में रख कर नदी में बहा दो. राजा उस की बातों में आ गया और उस ने ऐसा ही किया. साधु जल्दी जल्दी चल कर वहाँ से काफी दूर नदी किनारे बने अपने आश्रम में पहुँचा और बक्से के आने का इंतज़ार करने लगा. उधर बीच जंगल में एक राजकुमार ने नदी में बहते बक्से को देखा तो कौतूहल वश उसे बाहर निकाल कर खोला. राजकुमारी ने बाहर निकल कर उसे सारी कहानी बताई. राजकुमार ने एक कटखना बंदर पकड़ा और उसे बक्से में बंद कर के बक्सा नदी में बहा दिया. साधु तो बेसब्री से बक्से का इंतज़ार कर रहा था. जैसे ही बक्सा बहता हुआ उसके आश्रम के पास पहुँचा उसने झट उसे निकाल कर खोला. खिसियाये हुए बंदर ने उसे काट काट कर लहुलुहान कर दिया.

जो ज्यादा करीब सो ज्यादा रकीब. जो आपके अधिक निकट है वही अधिक स्पर्धा और ईर्ष्या करता है. (रकीब – प्रतिद्वंद्वी).

जो ज्यादा काम करता है उसी पर और लादा जाता है. जो अधिक काम करता है और ठीक काम करता है, सब उसी से काम करवाना चाहते हैं. एक प्रकार से यह भलमनसाहत का नुकसान है.

जो टट्टू जीते संग्राम, क्यों खरचें तुर्की के दाम. टट्टू और खच्चर सामान ढोने वाले सस्ते जानवर होते हैं जबकि तुर्की उन्नत किस्म का लड़ाई में काम आने वाला घोड़ा होता है जो कि बहुत महंगा होता है. कहावत का अर्थ है कि यदि सस्ती और कामचलाऊ चीज़ से काम चल जाए तो महंगी चीज़ क्यों खरीदी जाएगी.

जो डरता है उसे और डराया जाता है, जो चिढ़ता है उसे और चिढ़ाया जाता है. अर्थ स्पष्ट है.

जो तिल हद से ज्यादा हुआ सो मस्सा हुआ. अति हर चीज़ की बुरी होती है. तिल चेहरे की सुन्दरता बढ़ाता है और मस्सा बुरा लगता है.

जो तुम करन फैसला चाहो, दोउ जने गम खाओ. गम खाना – कष्ट सहना. दो लोगों में विवाद हो और फैसला कराना चाह रहे हों, तो दोनों को थोड़ा थोड़ा दबना पड़ता है.

जो तोकु कांटा बुवे, ताहि बोय तू फूल, (तोकू फूल के फूल है, बाकू है त्रिशूल). जो तुम्हारे साथ बुराई करे उसके साथ भी भलाई करो. आप भलाई कर के खुश रहोगे, वह बुराई कर के मन में परेशान रहेगा. इंग्लिश में कहावत है – Return good for evil.

जो दम गुजरे सो गनीमत. इस संसार में रहते हुए जितना समय आसानी से निकल जाए उतना ही गनीमत समझो.

जो दूसरों के लिए कुआं खोदते हैं उनके लिए पहले ही खाई खुद जाती है. (खाई खने जो और को, बाको कूप तैयार) जो दूसरों को हानि पहुंचाने के लिए षड्यंत्र रचते हैं वे स्वयं भी किसी न किसी प्रकार से उसी षड्यंत्र (या किसी और परेशानी) का शिकार हो जाते हैं. इंग्लिश में कहावत है – Who so diggeth a pit, shall fall there in.

जो दे उसका भी भला, जो न दे उसका भी भला. भीख मांगने वाले ऐसा बोल कर सब को खुश करते हैं.

जो देगा वह गाएगा, जो लेगा वह छिपाएगा. जो किसी को कुछ देता है वह सब लोगों से कहना चाहता है जिससे सब उस की बड़ाई करें. जो लेने वाला है वह छिपाना चाहता है क्योंकि उसे इसमें अपना अपमान लगता है.

जो धन दीखे जात, आधा दीजे बाँट. यदि धन जाता दिखे तो उसमें से आधा लुटा कर बाकी को बचाने का प्रयास करना चाहिए.

जो धरती पे आया, उसे धरती ने ही खाया. जो भी इस मिटटी से पैदा हुआ है उसे इस मिटटी में ही मिलना है.

जो धार पर चले, सो फूलों पर सोए. यहाँ धार पर चलने का अर्थ है तलवार की धार पर चलना. जो कठिन परिश्रम करता है और खतरों से खेलता है वही उसके बाद सुख भोगता है.

जो धावे सो पावे, जो सोवे वो खोवे. जो कुछ पाने के लिए दौड़ भाग करता है वही कुछ पाता है, जो सोता रहता है (आलस करता है) उसे कुछ नहीं मिलता.

जो न मानें बड़न की सीख, ले खपरिया मांगें भीख. जो बड़ों की सीख नहीं मानते, उन्हें खप्पर ले कर भीख मांगनी पड़ती है.

जो नर वचनों से फिरे वह पत देत गंवाए. जो अपना वचन नहीं निभाते उन का कोई सम्मान नहीं करता.

जो नवे सो भारी. तराजू का जो पलड़ा झुक जाता है वही भारी माना जाता है. आपसी वाद विवाद में जो व्यक्ति झुक जाता है वही वजनदार माना जाता है.

जो नहिं सीखा बोलना, सब सीखा बेकार. संसार में वही व्यक्ति दूसरे लोगों को प्रभावित कर सकता है जिसे बोलने की कला आती हो.

जो निकले सो भाग धनी के. खेती करने वाला मजदूर कहता है कि जो उपज होगी वह मालिक के भाग्य से होगी. हमें तो फ़कत बंधी हुई मजदूरी मिलनी है.

जो निर्दोष को देवे दोष, उसकी होय गति न मोक्ष. जो निर्दोष व्यक्ति को फंसाता है वह अत्यधिक पाप का भागी बनता है.

जो पंडित विवाह कराता है वही पिंडदान भी. यह संसार का चक्र है, जिसका जन्म हुआ उसको जीवन के विभिन्न संस्कारों से गुजरना होता है और अंत में उसकी मृत्यु भी होती है. 

जो पकड़ा गया सो ही चोर. चोरी तो बहुत से लोग करते हैं, जो पकड जाए वही चोर कहलाता है.

जो पजामा सिलाता है, वो मूतने का रास्ता रख लेता है. समझदार आदमी कोई भी काम करता है तो उसमें होनी वाली संभावित परेशानियों का हल पहले ही सोच कर रखता है.

जो पल्ला भारी सो झुके. तराजू का जो पल्ला भारी होता है वही झुकता है. आपसी मतभेद में जो व्यक्ति अधिक वजनदार (गंभीर) है उसी को झुकना पड़ता है.

जो पहले कीजे जतन सो पाछे फल दाए, आग लगे खोदे कुआँ कैसे आग बुझाए. आम तौर पर इसका बाद वाला हिस्सा बोला जाता है. यदि पहले से प्रयास किया जाए तभी समय पर कार्य सिद्ध होता है. आग लगने पर कुआं खोदना आरम्भ करोगे तो आग कैसे बुझेगी. इंग्लिश में कहावत है – Dig a well before you are thirsty.

जो पहले मारे सो मीर. लड़ाई में जो पहले मारता है वह मनोवैज्ञानिक बढ़त हासिल कर लेता है.

जो पुरवा पुरबाई पावे, झूरी नदिया नाव चलावे. पूर्वा नक्षत्र में पुरवाई चले तो सूखी नदी में भी नाव चलने लगेगी, अर्थात बहुत वर्षा होगी. (घाघ की कहावतें)

जो पूत दरबारी भए, देव पितर सब से गए. मुगलों के दरबार में नौकरी करने वालों के लिए कहा गया है कि वे सब संस्कार हीन हो जाते थे.

जो फल चक्खा नहीं वही मीठा. जो चीज़ अपने को उपलब्ध नहीं है उसको हम बहुत अच्छा समझते हैं. (दूर के ढोल सुहावने)

जो बन आवे सहज में, वाही में चित देय. जो काम आसानी से सिद्ध हो उसी पर ध्यान देना चाहिए.

जो बल से न हो वह कल से हो जावे. कुछ काम ऐसे होते हैं जो कितना भी बल प्रयोग करो नहीं होते, लेकिन मशीन से फौरन हो जाते हैं. (युक्ति बल से बड़ी होती है).

जो बात से नहीं मरा, वह लात से क्या मरेगा. जो सज्जन व्यक्ति है वह केवल अपना दोष बताए जाने से ही लज्जित हो जाता है. जो निर्लज्ज है उसको आप कितना भी बुरा भला कह लो या डांट फटकार लो उस पर कोई असर नहीं होता. ऐसे व्यक्ति पर लात खाने का भी कोई असर नहीं होता.

जो बामन की जीभ पर सो बामन की पोथी में. जिस बात से पंडित को लाभ होता हो वही वह पोथी में देख कर बताता है.

जो बिगड़ी बनावे सो बनिया. बनिए जुगाड़ करने में बहुत तेज होते हैं. कोई सामान खराब हो रहा हो उस से भी पैसा कमा लेते हैं.

जो बिल्ली पहने दस्ताने, तो चूहे पकड़े कौन. कहावत के द्वारा यह बताया गया है कि घर गृहस्थी या व्यापार के काम नजाकत से नहीं किए जा सकते.

जो बीत गई सो बात गई. जो बात बीत गई उसे भूल जाना चाहिए. (जो चला गया उसे भूल जा).

जो बैरी हों बहुत से और तू होवे एक, मीठा बन कर निकस जा यही जतन है नेक. अगर बहुत से शत्रुओं के बीच फंस जाओ तो मीठी बातें कर के उन्हें खुश करो और वहाँ से सुरक्षित निकल लो.

जो बोले सो कुंडी खोले. घर के भीतर कई लोग बैठे हों और कोई बाहर से दरवाज़ा खटखटाए, तो जो बोलेगा वही कुण्डी खोलेगा. कोई काम करने के लिए कई लोग उपलब्ध हों तो जो आगे बढ़ कर अपनी राय देगा उससे ही काम करने को कहा जाएगा.

जो बोले सो बछड़ा खोले.  अर्थ ऊपर वाली कहावत की भांति.

जो भावे न आप को, सो देऊ बहू के बाप को. जो चीज अपने काम की नहीं है वह किसी को उपहार में दे दो. निम्न कोटि की सोच.

जो भौंकते हैं वो काटते नहीं. जो अधिक शोर मचाते हैं वे उतना नुकसान नहीं पहुँचाते. इंग्लिश में कहावत है – Great barkers are no biters.

जो मना करे उसे ही मनुहार कर के खिलाया जाता है. अर्थ स्पष्ट है.

जो माँ से ज्यादा चाहे सो डायन. माँ से अधिक अपनी संतान को कोई नहीं चाह सकता. यदि कोई स्त्री उससे अधिक प्रेम दिखा रही है तो अवश्य ही उस के मन में कपट है.

जो मीठा खाएगा वह कडुआ भी खाएगा. जो किसी चीज़ का लाभ उठाएगा उसे उस से संबंधित कुछ न कुछ कष्ट भी सहने पड़ेंगे.

जो मुसीबतें ढूँढ़ता रहता है, उसे वे मिल भी जाती हैं. जो जान बूझ कर बेबकूफियों के काम करता है वह अंततः परेशानी में जरूर पड़ता है.

जो मैं ऐसा जानती प्रीत किये दुःख होए, नगर ढिंढोरा पीटती प्रीत न करियो कोए. प्रेम कर के दुःख उठाने वाली स्त्री का कथन.

जो रहीम उत्‍तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग, (चंदन विष व्‍यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग). व्यवहार में इसकी केवल पहली पंक्ति ही बोली जाती है. जो लोग उच्च और दृढ़ चरित्र वाले होते हैं उन पर बुरी संगत का कोई कुप्रभाव नहीं पड़ता. चन्दन के पेड़ का उदाहरण दिया गया है जिस पर सांप लिपटे रहते हैं लेकिन उस में विष नहीं फैलता.

जो रहीम ओछो बढ़ै, तौ अति ही इतराय, प्‍यादे सों फरजी भयो, टेढ़ों टेढ़ो जाय. रहीम के नीति के दोहे एक से बढ़ कर एक हैं. अधिकतर दोहों में पहली पंक्ति में कोई नीति का उपदेश होता है और दूसरी पंक्ति में उदाहरण दे कर उसे सिद्ध किया जाता है. शतरंज के खेल में जो पैदल मोहरा (प्यादा) होता है वह एक बार में केवल एक घर चल सकता है वह भी सीधा. वही पैदल आखिरी खाने में पहुंच जाए तो वज़ीर (फरजी) बन जाता है और फिर वह आड़ा तिरछा कई घर चल सकता है. कहावत में कहा गया है कि तुच्छ मानसिकता वाले व्यक्ति को यदि बड़ा पद मिल जाए तो वह बहुत इतराने लगता है.

जो राह बताए सो आगे चले. जो किसी परेशानी का हल सुझाए उसे ही आगे कर दिया जाता है.

जो रुचे सो पचे. जो अच्छा लगता है वही पचता है और वही शरीर को लगता है.

जो रोज मरे, उसे कहाँ तक रोए. जिस के दुखों का कोई अंत ही न हो उस की सहायता कहाँ तक की जा सकती है.

जो वर देख ताप मोहे आवे, सोई वर मोहे ब्याहने आवे. कहावत का शाब्दिक अर्थ है कि जिस वर को देख कर मुझे बुखार चढ़ जाता है (कष्ट होता है या गुस्सा आता है) वही मुझसे शादी करने आ रहा है. अर्थात जिस काम से मैं हर हाल में बचना चाहती हूँ वही मुझे करना पड़ रहा है.

जो विधि लिखी ललाट पर, मेट सके न कोय. विधि ने जो भाग्य में लिख दिया है उसे कोई मिटा नहीं सकता.

जो विषया संतन तजी, मूढ़ ताहि लपटाय, ज्‍यों नर डारत वमन कर, स्‍वान स्‍वाद सों खाय. संत लोग जिन विषय भोग की वस्तुओं को त्याग देते हैं, मूर्ख सांसारिक लोग उन्हीं में लिपटे रहते हैं. जैसे मनुष्य जो भोजन उल्टी कर देता है कुत्ता उसे स्वाद से खाता है.

जो सिर उठा कर चलेगा सो ठोकर खाएगा. यहाँ सर उठा कर चलने से अर्थ है अपने चाल चलन में अहंकार प्रदर्शित करना. अर्थ है कि जो अहंकार दिखाएगा उसे नीचा देखना पड़ेगा.

जो सुख चाहो देह का चीजें त्यागो चार, चोरी, चुगली, जामनी और पराई नार. जामनी – किसी की जमानत देना. चैन से रहना चाहते हो तो इन चार चीजों को त्याग दो.

जो सुख छज्जू के चौबारे में, सो न बलख बुखारे में. जो सुख अपने घर और गाँव के लोगों के बीच में मिलता है वह किसी सम्पन्न विदेश में नहीं मिल सकता.

जो सेर से मरे उसे पसेरी क्या मारना. जब छोटे साधन से काम चल सकता हो तो बड़े की क्या जरूरत है.

जो सोवेगा सो खोवेगा, जो जागेगा सो पावेगा. चाहे पढ़ाई हो या व्यापार, जो आलस करेगा और सोएगा उसे कुछ प्राप्त नहीं होगा. जो जागेगा, उद्योग करेगा वही कुछ पाएगा.

जो हल जोतै खेती वाकी, और नहीं तो जाकी ताकी. खेती का लाभ उसी को हो सकता है जो स्वयं खेती करे. दूसरों पर खेती छोड़ने से दूसरे लोग ही उसका लाभ उठाते हैं.

जो हांडी में होगा सो रकाबी में आएगा.  कुछ लोग बहुत उतावले होते हैं. कहीं भी कोई काम हो रहा हो वे बार बार पूछते हैं कि क्या हो रहा है, आगे क्या होने वाला है आदि. उनको समझाने के लिए यह कहावत कही जाती है. रकाबी – तश्तरी, थाली.

जोंक की कौन माई कौन बाप. खून चूसने वाले लोग किसी को नहीं छोड़ते. 

जोंक को जोंक नहीं लगती. समाज के परजीवी लोग केवल मेहनत कर के कमाने वालों का ही खून चूसते हैं, दूसरे परजीवियों का नहीं.

जोग में भोग की आस. ऐसे बनावटी साधुओं पर व्यंग्य जो सुख भोगने की लालसा रखते हैं.

जोगी का बेटा खेलेगा तो साँप से. बच्चा अपने घर परिवेश में जो देखता है वही करता है. संपेरे को जोगी भी बोलते हैं.

जोगी किसके पाहुने, राजा किसके मीत. पाहुना माने आपके घर कुछ समय टिकने वाला अतिथि. जोगी अर्थात सन्यासी किसी के घर टिकते नहीं हैं, वे तो आज यहाँ तो कल वहाँ. ऐसे ही राजा और हाकिम किसी के सगे नहीं होते, जब आपका काम पड़े तो वे आपके काम नहीं आते. इंग्लिश में कहावत है – Kings are always ungrateful.

जोगी किसके मीत और पातुर किसकी नार. पातुर – वैश्या. जोगी किसी के मित्र नहीं होते और वैश्या किसी की पत्नी नहीं होती.

जोगी किसके मीत कलंदर किसके साथी, (जोगी काके मीत, कलन्दर किसके भाई). हिन्दुओं में साधुओं को जोगी कहा जाता है और मुसलमानों में फकीरों और सूफियों को कलंदर कहा जाता है. कहावत का अर्थ है कि ये किसी के मित्र नहीं होते.

जोगी की प्रीत क्या. जोगी से दिल लगाना ठीक नहीं (क्योंकि वह आज यहाँ तो कल और कहीं).

जोगी को बैल बला. जोगी को बैल दान में दे दिया जाए तो वह उस के लिए मुसीबत ही होगा.

जोगी जुगत जानी नहीं, कपड़े रंगे तो क्या हुआ. केवल भगवा कपड़े पहनने से कोई जोगी नहीं हो जाता, उसके लिए ज्ञान होना आवश्यक है.

जोगी जुगत से जुग जुग जिए. योगी अपने संयमित जीवन और योग द्वारा लम्बे समय तक जीते हैं.

जोगी जोगी लड़े खप्परों की हानि, (जोगियों की लड़ाई में खप्पर फूटते हैं). खप्पर – मिट्टी का बना भिक्षा मांगने का पात्र, खोपड़ी को भी खप्पर कहते हैं. कहावत का अर्थ है कि यदि किसी संगठन या परिवार के सदस्य आपस में लड़ते हैं तो घर और व्यापार की हानि होती है.

जोगी था सो उठ गया आसन रही भभूत. किसी व्यक्ति के चले जाने के बाद उसके अवशेष और स्मृतियाँ रह जाते हैं.

जोगी बढ़े, तूमड़ी बोवे. कोई छोटा आदमी यदि बड़े पद पर पहुँच जाए तो भी उस की सोच नहीं बदलती. जोगी को यदि बड़ी जायदाद मिल जाए तो वह उसमें तूमड़ी की खेती करेगा.

जोगी मारे छार हाथ. छार – राख, भभूत. जोगी को मारने से क्या मिलेगा, बस राख ही हाथ आएगी. इसी प्रकार की एक कहावत है – बगुला मारे पखना हाथ.

जोड़ जोड़ मर जाएंगे, माल जमाई खाएंगे. जो लोग दिन रात पैसा कमाने में लगे रहते हैं उन को समझाया गया है कि तुम तो पैसा जोड़ जोड़ कर मर जाओगे, ये सारा माल तुम्हारे उत्तराधिकारी खाएंगे.

जोड़ने में बनिया, पहनने में पठान, खाने में बामन, झेलने में किसान.  बनिया पैसा जोड़ने में, पठान कपड़े पहनने में, ब्राहण खाने में और किसान मुसीबतों को झेलने में सबसे माहिर होते हैं.

जोड़ी टूटे गोटी पिटे. लूडो और चौपड़ के खेल में जब एक खाने में दो गोटियाँ होती हैं तो उन्हें कोई नहीं पीट सकता. जोड़ी में से एक गोटी चलनी पड़ जाए तो अकेली गोटी को पीटा जा सकता है. संगठन में शक्ति है.

जोतेगा हल पावेगा फल. जो खेती में मेहनत करेगा उसी को लाभ मिलेगा.

जोर बादशाह और दाँव वजीर. कुश्ती लड़ने वालों का कथन. ताकत (बादशाह) भी जरुरी है और दाँव पेंच (वजीर) भी.

जोरू का मरना और जूती का टूटना बराबर है. कुछ लोगों की सोच इतनी निकृष्ट होती है कि वे पत्नी को जूती के बराबर समझते हैं. वे समझते हैं कि जैसे जूती टूटने पर नई जूती खरीद ली जाती है वैसे ही पत्नी के मरने पर दूसरी पत्नी लाई जा सकती है.

जोरू खसम की लड़ाई, दूध की मलाई. पति पत्नी की लड़ाई में दूसरे लोग मजा लेते हैं.

जोरू चिकनी मियाँ मजूर. जहाँ पत्नी बहुत बन ठन कर रहती हो और पति बेचारा काम में पिसता रहता हो.

जोरू टटोले गठरी, माँ टटोले अंतड़ी. पत्नी इस बात की चिंता करती है कि आदमी क्या कमा कर लाया है जबकि माँ इस बात की चिंता करती है कि बेटे ने कुछ खाया है कि नहीं.

जोरू न जाता, अल्लाह मियां से नाता. उन लोगों का मज़ाक उड़ाया गया है जिनके बीबी और औलाद न होने के कारण वे अल्लाह से नाता जोड़ लेते है. तुलसी दास जी ने भी ऐसे लोगों के लिए कहा है – नारी मुई भई सम्पति नासी, मूढ़ मुड़ाए भए सन्यासी.

जोवन था तब रूप था, ग्राहक था सब कोय, जोवन रतन गवांय के, बात न पूछे कोय. जब तक रूप और यौवन था तब तक सब कोई पूछते थे, यौवन बीत जाने के बाद अब कोई नहीं पूछता.

ज्यादा खाय जल्द मरि जाय, सुखी रहे जो थोड़ा खाय. जो ज्यादा खाता है वह बीमार हो कर जल्दी मर जाता है, जो कम खाता है वह सुखी रहता है. आज की दुनिया में मोटापा सब से बड़ी बीमारी है.

ज्यादा जोगी मठ उजाड़. (बहुते जोगी मठ उजाड़). अधिक जोगी इकट्ठे हो जाएं तो मठ उजड़ जाता है. ज्यादा हिस्सेदार हों तो व्यापार चौपट हो जाता है. अधिक राय देने वाले हों तो काम चौपट हो जाता है.

ज्यादा दाइयां पेट फाड़ें. प्रसव कराने के लिए पहले दाइयां ही बुलाई जाती थीं. एक से ज्यादा दाइयां हों तो उससे लाभ होने की संभावना कम और खतरा अधिक होता है. 

ज्यादा नौकर, घर उजाड़. ज्यादा नौकर हों तो एक दूसरे से हिर्स करते हैं और एक दूसरे पर काम टालते हैं. घर की अर्थव्यवस्था भी बिगड़ती है.

ज्यादा पढ़े तो घर सों गए, थोड़ा पढ़े सो हर सों गए.  (बुन्देलखंडी कहावत) हर – हल. ज्यादा पढ़ लिख कर बच्चे बाहर नौकरी करने चले जाते हैं याने घर से जाते हैं और थोड़ा बहुत पढ़ जाएँ तो हल चलाने में शर्म महसूस करने लगते हैं.

ज्यादा बहुएं बटाऊओं की खातिर थोड़े ही हैं. अगर हमारे घर में अधिक बहुएं हैं तो राहगीरों की सेवा करने के लिए थोड़े ही हैं. चंदा मांगने वाले लोग धनी लोगों से कहते हैं कि आप के पास क्या कमी है. कोई व्यक्ति सम्पन्न है तो इसका अर्थ यह नहीं है कि वह अपना धन आलतू फ़ालतू अनजान लोगों में बांट दे. 

ज्यादा मरोड़ने से लोहा भी टूट जाता है. वीर से वीर पुरुष भी अत्यधिक अत्याचार या वेदना से टूट जाते हैं.

ज्यादा मेहनत से गधा हो जाता है. इतना अधिक परिश्रम नहीं करना चाहिए कि आदमी गधे से भी गया गुजरा हो जाए.

ज्यादा लज्जा करे छिनाल. चरित्रहीन स्त्री अधिक लज्जावान होने का दिखावा करती है.

ज्यादा लाड़ से बालक बिगड़े. बच्चों को लाड़ प्यार करना चाहिए लेकिन इतना अधिक नहीं कि वे बिगड़ जाएँ.

ज्यादा हाथ अच्छे, ज्यादा मुँह नहीं अच्छे. काम में हाथ बताने वाले जितने अधिक हों उतना अच्छा, खाने वाले और बातें करने वाले जितने अधिक हों उतना बुरा. (मुँह से अर्थ खाने से भी है और बातें बनाने से भी).

ज्यादा होशियार ज्यादा ठगा जाता है. जो अपने को अधिक बुद्धिमान समझता है और किसी पर विश्वास नहीं करता वह अधिक ठगा जाता है.  

ज्यों ज्यों बड़ा हो त्यों त्यों पत्थर पड़ें. यहाँ पत्थर पड़ने से अर्थ अक्ल पर पत्थर पड़ने से है. ऐसा व्यक्ति जो बड़ा होने के साथ और अधिक मूर्खतापूर्ण व्यवहार करे.

ज्यों ज्यों बाय बहे पुरवाई, त्यों त्यों घायल अति दुःख पाई. पुरबाई हवा चलने से चोटों का दर्द बढ़ जाता है.

ज्यों ज्यों मुर्गी मोटी होए, त्यों त्यों दुम सिकुड़े. जैसे जैसे व्यक्ति के पास पैसा बढ़ता है, वह कंजूस होता जाता है.

ज्यों तिल मांही तेल है, ज्यों चकमक में आग, तेरा सांई तुझमें, जाग सके तो जाग. तिल में तेल होता है पर ऊपर से नहीं दिखता, चकमक में से आग पैदा होती है पर चकमक के अंदर दिखाई नहीं देती. इसी प्रकार ईश्वर मनुष्य के मन में होता है पर वह उसे देख ही नहीं पाता.

ज्यों नकटे को आरसी देख होत है क्रोध. आरसी का अर्थ है छोटा दर्पण. नकटे को कोई शीशा दिखाए तो उसे गुस्सा आता है. किसी को उसकी कमी बताओ तो उसे गुस्सा आता है.

ज्यों-ज्यों भीजे कामरी त्यों-त्यों भारी होय. (अति हठ मत कर हठ बढे, बात न करिहै कोय). कम्बल जैसे जैसे भीगता है वैसे वैसे भारी होता जाता है. इसी प्रकार अधिक हठ या बहस करने से नाराजगी बढ़ती जाती है.

ज्वर, याचक और पाहुना, करजा मांगनहार, लंघन तीन कराए दो, फेर न आवें द्वार. कहावत में यह सुझाव दिया गया है कि कर्ज़ मांगने वाले, भीख मांगने वाले और मेहमान को तीन चार बार टरका दो तो वह फिर नहीं आएगा. लंघन कराना – भूखा रखना. पहले के लोग मानते थे कि भूखा रहने से ही बुखार उतरता है.

 

 

झगड़ा झूठा कब्जा सच्चा. जायदाद पर जिसका कब्ज़ा है वही एक प्रकार से उसका मालिक है. एक तो इसलिए कि वह उसे काम में ले  रहा है यानि उसका फायदा उठा रहा है, दूसरे इस लिए कि उससे खाली कराने के लिए दूसरे पक्षकार को बीसियों साल तक मुकदमा लड़ना पड़ेगा.

झगड़ा भतार से, रूठीं संसार से. ऐसी स्त्री का मजाक उड़ाने के लिए जो पति से झगड़ा होने पर सब से रूठ कर बैठी है. 

झगड़े की तीन जड़, जोरू जमीन और जर. तीन चीजें ऐसी हैं जिनके कारण सबसे अधिक सबसे अधिक झगड़े, मुकदमे और कत्ल आदि होते हैं – स्त्री, जमीन जायदाद और रुपया पैसा.

झटपट की घानी, आधा तेल आधा पानी. जल्दीबाज़ी में कोल्हू चलाओगे तो तेल में आधा पानी मिल जाएगा. जल्दबाज़ी का काम बुरा होता है. घानी – कोल्हू. 

झटपट खेती, झटपट न्याव, झटपट कर कन्या को ब्याव. खेती तभी सफल होती है जब समय से की जाए, न्याय तभी न्याय माना जाता है जब समय से मिल जाए, इसलिए ये दिनों कार्य झटपट करना चाहिए. कन्या के विवाह में भी बिलकुल विलम्ब नहीं करना चाइए. 

झरबेरी के जंगल में बिल्ली शेर. कहावत का अर्थ है कि परिस्थियाँ अनुकूल हों तो छोटा अपराधी भी खतरनाक हो सकता है.

झांसी गले की फांसी, दतिया गले का हार; ललितपुर तब तक न छोडिए, जब तक मिले उधार. पुराने शहरों के विषय में बहुत से लोक कथन हैं, उन्हीं में से एक.

झाड़ को जेरी, गंवार को लठा, कोदों की रोटी को भैंस का मठा. झाड़ से निबटने को जेली की जरूरत होती है, मूर्ख व्यक्ति से निबटने को लट्ठ और कोदों की रोटी पचाने के लिए भैंस के दूध का मट्ठा जरूरी होता है. जेली – झाड़ियाँ आदि हटाने का औजार.

झाडूं फूंकूँ चंगा करूं, दैव ले जाए तो मैं क्या करूं. झाड़ फूंक करने वाला (या अन्य इलाज करने वाला) व्यक्ति कह रहा है कि मैं तो झाड़ फूंक कर ठीक कर देता हूँ, पर ईश्वर के घर से किसी का बुलावा आ जाए तो मैं क्या करूं.

झार बिछाई कामरी, रहे निमाने सोई. किसी के लिए कंबल झाड़ के बिछाया पर वह फर्श पर सो गया. जिसके लिए इंतजाम किया उसे ही पसंद नहीं आया.

झिलंगा खटिया, वातल देह, तिरिया लम्पट, हाटै गेह, भाई बिगर के मुद्दई मिलंत, घाघ कहै ई विपति कै अंत. घाघ कवि ने पांच सब से बड़ी विपत्तियाँ यूँ गिनाई हैं – ढीली खाट, वायु रोग से ग्रस्त शरीर, दुश्चरित्र पत्नी, बाज़ार में घर होना और भाई का बिगड़ कर मुकदमा करने वाले दुश्मन से मिल जाना.

झुक के रहे तो सुख से रहे. विनम्रता से रहने वाला व्यक्ति सुखी रहता है.

झुके पेड़ पर बकरी भी चढ़ जाती है. आदमी की कमजोरी का लाभ सभी लोग उठाते हैं.

झूठ कहना और झूठा खाना बराबर है. अर्थ स्पष्ट है.

झूठ कहे सो लड्डू खाए, सांच कहे सो मारा जाए. जो झूठ बोलता है और तरह तरह के प्रपंच करता है उसे माल खाने को मिलता है, जो सच बोलता है वह नुकसान उठाता है.

झूठ की टहनी कभी फलती नहीं, नाव कागज़ की सदा चलती नहीं. झूठ बहुत समय तक नहीं टिकता.

झूठ की दौड़ छत तक होती है.  झूठ अधिक नहीं चल सकता

झूठ की नाव मंझधार में डूबती है. झूठ बहुत दिन तक नहीं चलता.

झूठ के पाँव कहाँ (झूठ के पाँव नहीं होते). झूठ बहुत दिन नहीं टिक सकता. इंग्लिश में कहावत है – A lie has no legs.

झूठ तितौंही बोलिए, ज्यों आटे में नोन. झूठ उतना ही बोलना चाहिए जितना आटे में नमक डाला जाता है.

झूठ न बोले तो अफर जाए. बहुत से लोग ऐसे होते हैं जो अगर झूठ न बोलें तो उनका पेट फूल जाता है.

झूठ नौ कोस, सच सौ कोस. झूठ अधिक दूर नहीं जा सकता, सच्ची बात दूर दूर तक जाती है. 

झूठ बोलना पाप है, नदी किनारे सांप है. बच्चों की कहावत. झूठ बोलने से मना करने का बाल सुलभ तरीका.

झूठ बोलने के लिए अच्छी याददाश्त चाहिए.  झूठ बोलने वाले को याद रखना पड़ता है कि किस से क्या कहा था.

झूठ बोलने में सरफ़ा क्या.  झूठ बोलने में कुछ खर्च नहीं होता, इसलिए झूठ बोलने में क्या हर्ज़ है.

झूठ बोलने वाले को पहले मौत आती थी, अब बुखार भी नहीं आता. पहले के लोग कहते थे कि झूठ बोलने वाले को मौत आ जाती है. अब तो लोग इतने बेशर्म हैं कि झूठ बोलने वाले को बुखार तक नहीं आता.

झूठइ लेना झूठइ देना, झूठइ भोजन झूठ चबेना. 1. अत्यधिक झूठे व्यक्ति के लिए (जैसे आजकल के कुछ नेता). 2. संसार के मिथ्या होने का ज्ञान. यहाँ लेन देन, खाना पीना सब मिथ्या है.

झूठा भले ही खा लो पर झूठी बात कभी मत करो. किसी का झूठा खाना बहुत बुरी बात मानी जाती है पर झूठ बोलना उससे भी बुरा है.

झूठे की कोई पत नहीं, मूरख का कोई मत नहीं. झूठ बोलने वाले व्यक्ति की कोई इज्ज़त नहीं होती, इसी प्रकार मूर्ख व्यक्ति के मत का कोई सम्मान नहीं होता.

झूठे की क्या दोस्ती, लंगड़े का क्या साथ, बहरे से क्या बोलना, गूंगे से क्या बात. जो आदमी झूठा हो उससे दोस्ती क्या करना (वह कभी दोस्ती नहीं निभाएगा), लंगड़े के साथ चलना कैसा, बहरे को कुछ सुनाने से क्या फायदा और गूंगे से बात क्या करना.

झूठे की क्या पहचान, वह बात बात पर कसम खाता है. जो आदमी बात बात पर कसम खाता है, यकीन मानिए वह सबसे बड़ा झूठा होता है. 

झूठे के आगे सच्चा रो मरे. झूठ बोलने वाले व्यक्ति से पार पाना बहुत कठिन है.

झूठे के सींग पूँछ थोड़े ही होते हैं. क्या बात सच है और क्या झूठ यह जानना बहुत कठिन होता है. 

झूठे को घर तक पहुँचाना चाहिए : झूठे से तब तक तर्क-वितर्क करना चाहिए जब तक वह सच न कह दे.

झूठे को झूठा मिले, दूना बढ़े सनेह, झूठे को साँचा मिले तब ही टूटे नेह. जब झूठे आदमी को दूसरा झूठा आदमी मिलता है तो दूना प्रेम बढ़ता है. पर जब झूठे को सच्चा आदमी मिलता है तो प्रेम टूट जाता है.

झूठे घर को घर कहें, सच्चे घर को गोर. गोर माने कब्र. आदमी जिस घर में कुछ दिन के लिए रहने को आया है उसे अपना घर समझने लगता है. उसका सच्चा घर तो वह है जिसे वह कब्र कहता है और जहाँ उसे सैकड़ों साल रहना है.

झूठे जग पतियाए, सच्चा मारा जाए. झूठे व्यक्ति का लोग आसानी से विश्वास कर लेते हैं और सच्चे व्यक्ति को बहुत कष्ट उठाने पड़ते हैं.

झूठे मीठे वचन कहि ऋण उधार ले जाय, लेत परम सुख ऊपजै लैके दियो न जाय. उधार लेने वाले झूठ बोल कर उधार ले लेते हैं और ले कर देना नहीं चाहते.

झूठे सुख को सुख कहै, मानत है मन मोद, जगत चबेना काल का, कछु मुख में कछु गोद. जिस व्यक्ति के पास धन दौलत, जायदाद पत्नी बच्चे इत्यादि सांसारिक सुख हैं वह मन में बड़ा प्रसन्न होता है, पर वह यह भूल जाता है कि ये सब क्षण भंगुर हैं. 

झूठों में झूठा मिले हांजी हांजी होए, झूठों में सच्चा मिले तुरत लड़ाई होए. झूठे धोखेबाज और चापलूस लोगों में आपस में खूब बनती है लेकिन सच्चा आदमी उनके बीच क्षण भर भी नहीं रह सकता.

झोपड़ी में रहें, महलों के ख्वाब देखें. जो अपनी वास्तविकता भूल कर बड़े बड़े सपने देखता है.

 

 

टंटा विष की बेल है (टंटा मत कर जब तलक बिन टंटे हो काम, टंटा बिस की बेल है, या का मत ले नाम). जब तक राजी खुशी काम चले तब तक झगड़ा नहीं करना चाहिए. झगड़े से आपसी सम्बन्ध खराब होते हैं. झगड़ा बढ़े तो जान माल का नुकसान, मारपीट मुकदमेदारी की संभावना होती है. 

टका धर्म: टका कर्म: टका देवो महेश्वर:, टका कर्ता टका हर्ता टका मोक्ष विधायका. टका – रुपया पैसा. पैसे की ही सारी महिमा है.

टका है जिसके हाथ में, वही बड़ा है जात में. जिसके पास पैसा है वही बड़ा माना जाता है, वह अगर निम्न जाति का है तब भी कोई उसकी जाति नहीं पूछता. टका – पुराना दो पैसे का सिक्का.

टका हो जिसके हाथ में, वही बड़ा है बात में. जिसके पास पैसा हो उस की बात सब को माननी पड़ती है.

टके का सब खेल है. सारा खेल पैसे का है. पैसा है तो आप सारे साधन जुटा सकते हैं.

टके की तरकारी और रूपये का तड़का. बहुत सस्ती चीज़ को बनाने में बहुत अधिक खर्च आ रहा हो तो यह कहावत कही जाती है.

टके की बुढ़िया, नौ टका मूड़ मुड़ाई. चीज़ तो बहुत सस्ती पर रखरखाव की कीमत (मेंटेनेंस कॉस्ट) बहुत अधिक.

टके की मुर्गी छै टके महसूल. माल बहुत सस्ता पर टैक्स बहुत अधिक. महसूल – टैक्स.

टके की लौंग बनियानी खाय, कहो घर रहे के जाय. बनिए की पत्नी ने टके की लौंग खा ली तो बनिया पूछता है कि इस तरह घर कैसे चलेगा.

टके के वास्ते मस्जिद ढहाना. छोटे से लाभ के लिए बहुत बड़ा अपराध करना.

टके बिना टुकुर टुकुर ताकते रहो (टके बिना टकटकी लगा के देखते रहो).  जिस के पास पैसा नहीं है उसे किसी भी काम के लिए दूसरों का आसरा देखना पड़ता है. 

टके भर की कमाई नहीं और पल भर की फुरसत नहीं. यह कहावत ऐसे लोगों पर व्यंग्य है जो कोई ठोस कार्य नहीं करते और अपने को बहुत व्यस्त दिखाते हैं.

टके वाली का बालक झुनझुना बजाएगा. एक महिला मेले में जा रही थी. आस पड़ोस की औरतों ने अपनी अपनी फरमाइशें बता दीं, मेरे लिए ये लाना, मेरे लिए वो लाना, लेकिन किसी ने कोई रुपया पैसा नहीं दिया. केवल एक औरत ने एक टका उस के हाथ पर रखा और कहा कि मेरे बालक के लिए झुनझुना ले आना. तो वह केवल उसी के लिए झुनझुना ले कर आई.

टटींगर काहे मोटा, लाभ गने न टोटा. आवारा आदमी मोटा इसलिए है क्योंकि उसे लाभ हानि की कोई चिंता नहीं है. टटींगर – आवारा आदमी.

टट्टर खोल निखट्टू आया. टट्टर – लोहे या बांस के जाल से बना दरवाजा. कोई निखट्टू व्यक्ति आवारागर्दी कर के घर लौटता है तो घर के लोग उपेक्षा से ऐसे बोलते हैं.

टट्टी की ओट शिकार. छिप कर शिकार करना. टट्टी माने सींको का बना पर्दा या चटाई.

टट्टू को कोड़ा और ताज़ी को इशारा. टट्टू बोझा धोने वाला सस्ता जानवर है और ताज़ी उन्नत किस्म का युद्ध में काम आने वाला घोड़ा. कहावत का अर्थ है कि मंदबुद्धि व अड़ियल व्यक्ति को मार कर काम कराना पड़ता है जबकि बुद्धिमान को इशारा काफी होता है.

टट्टू मारे घोड़ा काँपे (ताजी मारे तुर्की काँपे). किसी एक को सजा मिले तो दूसरों के मन में भी डर बैठ जाता है.  

टहल करो माँ बाप की हो समपूरन आस, टहल करे से जो फिरे नरक उन्हीं का वास. माँ बाप की सेवा करने से सारी आशाएं पूरी होती हैं और उन का दिल दुखाने से नरक मिलता है.

टहल न टकोरी, लाओ मजूरी मोरी. काम धाम कुछ नहीं, मजदूरी मांगने में सबसे आगे.

टहलुए को टहल सोहे, बहलिए को बहल सोहे. जो जिसका काम है वह उसी को करता हुआ अच्छा लगता है.

टांग उठे न, चढ़ना चाहे हाथी. टांग उठती नहीं है और हाथी पर चढ़ना चाहते हैं, अपनी औकात से बहुत अधिक इच्छा रखना.

टांग लम्बी धड़ छोटा, वोही आदमी खोटा. एक लोक विश्वास है कि जिस आदमी की टांगें लम्बी और धड़ छोटा होता है वह आदमी खोटा (मक्कार) होता है.

टांटे से नाटा भला, जो तुरत दे जवाब, वह टांटा किस काम का जो बरसों करे खराब. टांटा – झगड़ा या मुकदमा करने वाला, नाटा – वायदा कर के नट जाने (मुकर जाने) वाला. 

टाट का लंगोटा, नबाब से यारी. खुद इतने गरीब हैं कि टाट का लंगोटा पहने हैं पर दोस्ती बड़े बड़े लोगों से करना चाहते हैं.

टाट के अंगिया, मूंज की तनी, देख मेरे देवरा मैं कैसी बनी. कोई फूहड़ स्त्री भद्दा श्रृंगार कर के अपनी तारीफ़ करवाना चाह रही हो तो. टाट – पटसन से बना मोटा कपड़ा जिससे बोरी बनाते हैं, मूँज – सरकंडे के रेशों से बनी पतली रस्सी जो खाट बुनने के काम आती है. आजकल फटी हुई जींस पहन कर घूमने वाले लोगों के लिए भी कहा जा सकता है.

टाट पर मूँज का बखिया.  घटिया माल बनाने के लिए घटिया सामान का ही प्रयोग किया जाएगा.

टाल बता उसको न तू जिससे किया करार, चाहे हो बैरी तेरा चाहे होवे यार. यदि किसी को कोई वचन दिया है तो उसका पालन अवश्य करें, चाहे वह आपका शत्रु क्यों न हो.

टिकटिक समझे, आ आ समझे, कहे सुने से रहे खड़ा, कहे कबीर सुनो भई साधो, अस मानुस से बैल भला. जैसे बैल केवल टिकटिक और आ आ की भाषा समझता है वैसे ही मूर्ख मनुष्य इसी प्रकार की भाषा समझते हैं. कबीर कहते हैं कि ऐसे मनुष्य से तो बैल ही भला.

टिटहरी समझे कि आकाश उसी पे टिका है. टिटहरी पक्षी मनुष्यों की भांति जमीन पर पीठ के बल सोती है और पैर ऊपर रखती है. एक मजाक भरा लोक विश्वास है कि टिटहरी समझती है आसमान उसके पैरों पर टिका है. कोई छोटी हैसियत वाला व्यक्ति अपने को बहुत महत्वपूर्ण बता रहा हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए यह कहावत बोलते हैं.

टिड्डी का आना, काल की निशानी. जब टिड्डियों का कोई इलाज नहीं था तब टिड्डी दल देखते देखते पूरे के पूरे खेत खा जाते थे. उस समय टिड्डी दल को अकाल की निशानी मानते थे.

टीले ऊपर चील बोले, गली गली में पानी डोले. घाघ कवि कहते हैं कि यदि टीले के ऊपर चील बैठ कर बोले तो समझ लो बहुत वारिश होगी.

टुकड़ा डालने पर कुत्ता भी पूँछ हिलाता है. घटिया किस्म के रिश्वतखोर सरकारी मुलाजिमों पर व्यंग्य.

टुकड़े दे दे बछड़ा पाला, सींग लगे तब मारन चाला. गाय के बछड़े को टुकड़े दे कर पाला, अब उसके सींग निकल आये तो मारने चला है. आपका आश्रित कोई व्यक्ति थोड़ा सा समर्थ होने पर आपको ही हानि पहुँचाने लगे तो.

टूटते हुए आकाश को खम्भों से नहीं रोका जा सकता. बहुत बड़ी आपदा को छोटे मोटे प्रयासों से नहीं टाला जा सकता. 

टूटा औजार और खोटा बेटा भी समय पर काम आते हैं (टूटा हथियार और लूला बेटा भी समय पर काम आता है). जिस चीज़ को हम बेकार समझते हैं वह भी आड़े समय में काम आ सकती है, इसलिए किसी की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए.

टूटी की बूटी नहीं, नहीं काल की टाल. रिश्ते टूट जाए तो फिर जुड़ नहीं सकते (इसलिए कभी किसी से सम्बन्ध तोड़ने नहीं चाहिए) और मृत्यु को कोई टाल नहीं सकता. बूटी – दवा.

टूटी की बूटी बता दो हकीम जी. अर्थ ऊपर वाली कहावत की भांति.

टूटी टांग पाँव न हाथ, कहे चलूं घोड़ों के साथ. क्षमता न होने पर भी अपने से बहुत अधिक क्षमता वान लोगों की बराबरी करना.

टूटी नाड़ बुढ़ापा आया टूटी खाट दलिद्दर छाया. गर्दन हिलने लगती है तो इसका अर्थ यह है कि बुढ़ापा आ गया है और अगर खाट टूटी हुई है तो इसका अर्थ यह है कि घर में दलिद्दर छाया हुआ है.

टूटी बांह गले पड़ी. बांह टूट जाती है तो कपड़े की पट्टी के सहारे उसे गले से लटका देते हैं. कोई असहाय सगा सम्बन्धी किसी पर आश्रित हो जाए तो यह कहावत कही जाएगी.

टूटे पीछे फिर जुड़े, गाँठ गंठीली होय. जिस प्रकार धागा टूटने के बाद जोड़ा जाए तो उसमें गाँठ पड़ जाती है, उसी प्रकार सम्बन्ध टूटने के बाद जोड़ा जाए तो उसमें भी गाँठ पड़ जाती है. रहीम ने इस को इस प्रकार कहा है – रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाए, टूटे से फिर न जुड़े, जुड़े गाँठ पड़ जाए.

टूटे सुजन मनाइए, जौ टूटे सौ बार, रहिमन फिरि फिरि पोहिए, टूटे मुक्‍ताहार. यदि आप की मोतियों की माला टूट जाए तो आप बड़े यत्न से उसे दुबारा पो लेते हैं. इसी प्रकार यदि कोई स्वजन आपसे रूठ जाए तो उसे यत्न कर के मना लीजिए.

टेंट आँख में मुँह खुरदीला, कहे पिया मोरा छैल छबीला. जो स्त्री अपने कुरूप पति की बहुत शेखी बघारती हो. टेंट आँख में – भेंगापन.

टेंटी बेर काल के मीत, खाएँ किसान और गावें गीत. टेंटी और बेर जैसे फल अकाल के दिनों में ग़रीबों के काम आते हैं.

टेक उन्हीं की राखे साईं, गरब कपट नहिं जिनके माहीं. ईश्वर उन्हीं की सहायता करता है जिन के अंदर कपट और अहंकार नहीं है.

टेढ़ी उँगली से ही घी निकलता है (इस कहावत को इस प्रकार भी कहते हैं – सीधी उँगली से घी नहीं निकलता). पहले के जमाने में चम्मच का प्रयोग नहीं होता था. यदि थोड़ा सा घी निकालना हो महिलाएं डब्बे में उँगली डाल कर उससे घी निकाल लेती थीं. अब जाहिर सी बात है कि अगर सीधी उंगली डालोगे तो घी कहाँ निकलेगा, टेढ़ी उँगली से ही निकलेगा. कहावत का अर्थ है कि केवल सिधाई से काम नहीं निकलता.

टेढ़ी खुरपी को टेढ़ो बेंट. 1. खुरपी जैसे खुद टेढ़ी होती है वैसा ही टेढ़ा उसमें बट लगाया जाता है टेढ़े आदमी से काम लेने के लिए टेढ़ा ही होना पड़ता है. 2. दुष्ट लोगों की मित्रता दुष्टों से ही होती है.

टेढ़े फंसे को काट कर निकाला जाए. जब सर्जरी द्वारा बच्चे का प्रसव कराने की सुविधा उपलब्ध नहीं हुई थी तब यदि कोई बच्चा टेढ़ा फंस जाए तो उसे काट कर निकाला जाता था. आजकल के लोगों को यह बात बड़ी वीभत्स लग सकती है लेकिन उस समय ऐसा करना मजबूरी थी. कहावत का अर्थ है कि जो सीधी तरह न माने उस को कैसा भी दंड देना पड़ सकता है.

टेढ़ों के निकले नाम, सीधों ने मारे दांव. कई बार ऐसा होता है कि सीधे माने जाने वाले लोग चुपचाप दांव मार लेते हैं और आरोप उन्हीं पर आता है जो टेढ़े समझे जाते हैं.

टेर टेर के रोवे, अपनी लाज खोवे. अपनी परेशानी का रोना सबके आगे रोने से अपनी इज्ज़त ही कम होती है.

टोटा तेरे तीन नाम, लुच्चा गुंडा बेईमान. टोटा – घाटा. जिस आदमी को व्यापार में घाटा हो जाता है वह लोगों का पैसा वापस नहीं कर पाता और सब उसे लुच्चा लफंगा बेईमान कहने लगते हैं.

टोलन में घर टोल भला, सब बाजों में ढोल भला. टोल माने मोहल्ला. सब मोहल्लों में वह मोहल्ला सबसे अच्छा है जहाँ अपना घर है. बाद की पंक्ति तुकबंदी के लिए जोड़ी गई है.

 

 

ठंडा लोहा गरम लोहे को काट देता है. यदि दो लोगों में लड़ाई हो तो जीत उस की होती है जो ठंडा (संयत) रहता है. जो अधिक गरम हो जाता है (आपा खो देता है) वह हार जाता है.

ठंडो नहावे तातो खावे, ऊ घर वैद कबहुं न जावे. जो ठंडे पानी से नहाए और गर्म खाना खाए, वह बीमार नहीं पड़ता.

ठकुर सुहाती सब कहें, जब कछु लेनो होय. ठकुर सुहाती – मालिक को सुहाने वाली बात (चापलूसी भरी बात). जब व्यक्ति का स्वार्थ होता है तो वह चापलूसी भरी बातें करता है.

ठग कसाई, चोर सुनार, खाऊ बामन, बली लुहार. विभिन्न जातियों की विशेषताएं बताई गई हैं. कसाई लोगों को ठगता है, सुनार गहनों में से कुछ न कुछ चुराता जरूर है, ब्राह्मण खाता बहुत है और लोहार अत्यधिक बलशाली होता है.

ठग की कौन मौसी. धूर्त लोग अपने सगे सम्बन्धियों को भी नहीं बख्शते.

ठग न देखा देख कसाई, शेर न देखा देख बिलाई. किसी ने ठग न देखा हो तो कसाई को देख लो जो कि उस से भी बढ़ कर है. शेर न देखा हो तो बिल्ली को देख लो जो उसी के समान शिकार करने वाली होती है.

ठग ही जाने ठग की भाषा. चोर उचक्कों ठगों की अलग ही भाषा होती है जिसे वही लोग समझ सकते हैं.

ठगा कर ठाकुर बने (ठगाने से ठाकुर कहाता है). धोखा खा कर बुद्धि आती है. 

ठठेरे ठठेरे बदलाई. बचपन में हम ने ‘ठ’ से ठठेरा पढ़ा था. आजकल के लोग नहीं जानते होंगे कि बर्तन बनाने वाले को ठठेरा कहते हैं. ठठेरा अगर दूसरे ठठेरे से कोई बर्तन लेता है तो बदले में पैसे नहीं बर्तन ही देता है. वाणिज्य में इसे वस्तु विनिमय कहते हैं.

ठठेरों की बिल्ली खटपट से नहीं डरती. ठठेरा बर्तन बनाने में लगातार खटपट करता रहता है, इसलिए उसकी पालतू बिल्ली खटर पटर की आदी हो जाती है. इसी प्रकार सीमा पर स्थित गाँवों के लोग थोड़ी बहुत गोलीबारी से नहीं डरते.

ठहर ठहर के चालिए जब हो दूर पड़ाव, डूब जात मंझधार में दौड़ चले जो नाव. जब दूर की मंजिल तय करनी हो तो बीच बीच में ठहर कर चलना चाहिए. जो नाव तेज़ दौड़ कर चलती है वह मंझधार में डूब जाती है.

ठांव गुन काजल, ठांव गुन कालिख. ठांव माने स्थान (place). तेल को जला कर उसका धुआँ इकठ्ठा कर के काजल बनाया जाता है जो आँखों के लिए श्रृंगार है. वही धुंआ दीवारों पर जम जाता है तो उसे कालिख कह कर साफ़ करते हैं. व्यक्ति और वस्तु का महत्त्व उसके स्थान से होता है.

ठाकुर की बेटी ब्याहे, हिजड़े अड़ंगा लगाएँ. किसी भले आदमी के काम में बदमाश लोग अड़ंगा लगाएं तो.

ठाकुर गया, ठग रह्या, रह्या मुलक का चोर, वे ठकुरनियाँ मर गईं, जे जनतीं ठाकुर और. (राजस्थानी कहावत) वीर पुरुष अब नहीं रहे, केवल धूर्त लोग ही बचे हैं. वे वीर माताएं भी नहीं रहीं जो वीर पुरुषों को जन्म देती थीं.

ठाकुर चाकर दोऊ नीके. जब मालिक और नौकर (या हाकिम और मातहत) दोनों एक से बढ़ कर एक हों तो.

ठाकुर पत्थर, माला लक्कड़, गंगा जमना पानी, जब लग मन में साँच न उपजे, चारों वेद कहानी. भक्ति करने चले हो तो यह समझ लो कि जब तक मन सच्चा न हो तब तक शालिग्राम जी केवल पत्थर हैं, तुलसी की माला बेजान लकड़ी मात्र है, गंगा जमना का जल मात्र पानी है और वेदों में लिखा हुआ केवल कहानी के समान है.

ठाकुर बाल सफेद हो गए हैं और मैदान से भागते हो भाग भाग कर ही तो बाल सफेद किए हैं वरना काले में ही मारे जाते. ठाकुर साहब से कोई कह रहा है कि तुम्हारे बाल सफेद हो गए हैं, बूढ़े हो गए हो, फिर भी मैदान छोड़कर भागते हो. तो ठाकुर जवाब देते हैं कि मैदान से भागे ना होते तो काले बाल रहते हुए ही मारे गए होते. बाल सफेद होने की नौबत ही क्यों आती.

ठाड़ा मारे और आगे धर ले. दबंग और दुस्साहसी लोग अपराध कर के उसे छिपाने की कोशिश नहीं करते.

ठाड़ा मारे तो गरीब कोसने से भी गया. दबंग आदमी किसी गरीब को मारे तो बेचारा गरीब उसे कोस भी नहीं सकता (वरना वह और मारेगा).

ठाड़े की बहू सबकी दादी, माड़े की बहू सबकी भाभी. दबंग आदमी की बीबी का सब सम्मान करते हैं और गरीब की बीबी से सब मजाक करते हैं.

ठाड़े के धन को जोखिम नहीं होता. जो आदमी जबर होता है उसकी संपत्ति को हाथ लगाने की कोई हिम्मत नहीं करता.

ठाढ़ा तिलक मधुरिया बानी, दगाबाज कै यहै निसानी. (कंठी टीका मधुरी बानी, दगाबाज़ की यही निशानी). जो ज्यादा लम्बा टीका लगाए हो और ज्यादा मीठी बोली बोल रहा हो उस के धूर्त होने की संभावना बहुत अधिक है.

ठाली नाइन बछड़े को मूंड़े. नाई की पत्नी खाली हो तो अपनी गाय के बछड़े के ही बाल काटने लगती है. उद्यम शील व्यक्ति कभी खाली नहीं बैठता.

ठाली बनिया क्या करे, इस कोठी का धान उस कोठी में दे. बनिया कभी खाली नहीं बैठता, कुछ न कुछ उद्योग करता ही रहता है.

ठाली बहू नोन में हाथ. जो काम करने वाली बहू होती है वह कभी खाली नहीं बैठती. 

ठिकाने ठाकुर पूजा जाय (ठिकाने से ठाकुर). ठाकुर की इज्ज़त केवल उसके गाँव में होती है, बाहर उसे कोई नहीं पूछता.

ठीकरी के ठाकुर जी को थूक का तिलक. ठीकरी – फूटे हुए घड़े का टुकड़ा. निकृष्ट मूर्ति की भ्रष्ट पूजा ही की जाएगी.

ठुमकी गैया सदा कलोर. नाटा व्यक्ति सदा युवा लगता है.

ठेस लगे बुद्धि बढ़े. धोखा खाने से आदमी सीखता है.

ठोक बजा ले चीज, ठोक बजा दे दाम. चीज़ को खूब देख परख कर लो और पैसा भी ठीक से मोल भाव कर के और ठीक से गिन कर दो.

ठोकर खावे बुद्धी पावे. ठोकर खा कर ही इंसान को अक्ल आती है. इंग्लिश में कहावत है – There is no education like adversity.

ठोकर मारने से धूल भी सर की ओर आती है. छोटे से छोटे व्यक्ति का भी अपमान नहीं करना चाहिए. जिस का अपमान करोगे वह आपको किसी न किसी प्रकार से नुकसान पहुँचा सकता है.

ठोकर लगी पहाड़ की, तोड़े घर की सिल. पहाड़ से ठोकर लगी, उसका तो कुछ बिगाड़ नहीं सकते तो घर की सिल को तोड़ कर अपना गुस्सा निकाल रहे हैं. बड़े आदमी का कुछ न बिगाड़ पाओ तो छोटों पर गुस्सा उतारना.

ठोकर लगे तब आँख खुले. धोखा खा कर ही व्यक्ति जागता है.

 

 

डंक मारना बिच्छू का सुभाव. दुष्ट व्यक्ति के स्वभाव में ही दुष्टता होती है, उसे उसके लिए कोई योजना नहीं बनानी होती.

डंडा सब का पीर. शरीफ लोग तो डंडे से डरते ही हैं, जो दुष्ट या कामचोर लोग होते हैं वे भी डंडे से डरते हैं. अर्थात डंडा सबको सीख देने में सक्षम है.

डकैतों ने माल लूटा, बेगारियों का पिंड छूटा (ले गए गठरी चोर चुराई, सकल बेगारन छुट्टी पाई).  बेगारी – बिना पैसा दिए किसी से मजदूरी कराना. गरीब लोगों को गाँव के जमींदार का सामान ढोना पड़ रहा है (बिना मजदूरी मिले). डकैत वह सामान लूट लेते हैं तो उन बेचारों को छुट्टी मिल जाती है. 

डर के पास जाने से ही डर निकलता है. दूर से हम किसी बात से डरते हैं पर जब उसके पास पहुँच जाते हैं तो वह उतनी डरावनी नहीं लगती. इस प्रकार की एक राजस्थानी कहावत है – डर कने गियां डर मिटे.

डर के पास जाने से ही डर मिटता है. अर्थ स्पष्ट है.

डर तो अधिक खाने में है. कम खाने से आदमी कमजोर हो सकता है पर मरता नहीं है, अधिक खाने से तरह तरह की बीमारियाँ होती हैं और जल्दी मृत्यु हो सकती है.

डरपोक का बेली तो राम भी नहीं. कायर व्यक्ति की भगवान भी सहायता नहीं करता.

डरा सो मरा (जो डर गया सो मर गया). किसी संकट से मुकाबला करना हो तो जो डर जाता है वह मुकाबला करने से पहले ही हार जाता है.

डरें लोमड़ी से, नाम शेर खां (दिलेर खां). गुण के विपरीत नाम.

डांवाडोल सदा मोहताज. जिसमें निर्णय लेने की क्षमता न हो वह जीवन में कुछ नहीं बन सकता.

डाकिनी खाय तो मुँह लाल न खाय तो मुँह लाल (डायन खाए तो मुँह लाल, न खाए तो मुँह लाल). डायन के विषय में लोगों को अंधविश्वास है कि वह बच्चों को खा जाती है. मुँह पर खून लगा रहने की वजह से उसका मुँह लाल ही रहता है. कहावत का प्रयोग इस अर्थ में करते हैं कि जो बदनाम है वह गलत काम करे या न करे, सब उसी पर शक करते हैं.

डाकिनों के ब्याह में मेहमान ही गटके जाएं. डाकिन के घर में कोई समारोह होगा तो कोई भरोसा नहीं कि वह मेहमानों को ही खा जाए. दुष्ट व्यक्तियों से दूर ही रहना चाहिए.

डायन किसकी मौसी. दुष्ट और अत्याचारी लोग किसी सामाजिक रिश्ते को नहीं मानते. 

डायन को ख़्वाब में भी कलेजे. दुष्ट व्यक्ति को हर समय अपना स्वार्थ ही सूझता है.

डायन को भी दामाद प्यारा. अपना दामाद सबको प्यारा होता है, डायन को भी.

डायन को मौसी कहे सो बचे. अपनी जान बचाने के लिए कभी कभी दुष्ट लोगों से आत्मीयता भी दिखानी पड़ सकती है.

डायन भी अपने बच्चे को नहीं खाती. अपना बच्चा सब को प्यारा होता है. कोई व्यक्ति कितना भी दुष्ट और निर्दयी क्यों न हो, अपने बच्चे से सबको ममता होती है.

डायन भी दस घर छोड़ कर खाती है. कोई अपनों को ही धोखा दे तो. कोई भ्रष्ट हाकिम अपने निकट के किसी व्यक्ति से रिश्वत मांगे तो यह कहावत कही जाती है.

डायन मरे न मांचा छोड़े. मांचा – खाट. कोई अधिक आयु का व्यक्ति बीमार हो कर खाट पर पड़ा हो तो उससे परेशान परिजन ऐसा कहते हैं (विशेषकर बहू सास के लिए).

डायन से पूतों की रखवाली. बच्चों को खाने वाली डायन से ही अगर आप बच्चों की रखवाली करने को कहेंगे तो यह मूर्खता ही कही जाएगी. भ्रष्ट नेताओं से देश की अर्थव्यवस्था की रखवाली की आशा करना भी कुछ ऐसा ही है.

डायनों को पराए न मिलें तो अपनों को ही गटकें. जिसको अपराध करने की लत और गलत आदतें लग जाती हैं वह बाहर कुछ न मिले तो घर वालों को ही अपना शिकार बनाता है.

डाल का चूका बंदर और बात का चूका आदमी, ये फिर नहीं संभलते. अर्थ स्पष्ट है. 

डाले दाढ़ में तो आवे हाड़ में. उपयुक्त भोजन करने से ही स्वस्थ शरीर बनता है

डालें वही खाना, भेजें वहीं जाना. घर के बड़े जो थाली में डालें वही खाना चाहिए और जो काम बताएँ वह करना चाहिए.

डींग हांकनी है तो हल्की फुल्की क्यों. अर्थ स्पष्ट है.डींग हांकना – अपनी झूठी प्रशंसा करना. 

डील डौल गुम्बद, आवाज़ फिस्स. बहुत मोटे तगड़े आदमी की बहुत हलकी आवाज़ हो तो.

डुग डुग बाजे बहुत नीको लागे, नाऊ नेग मांगे तो बगलें झांके. घर में कोई मंगल कार्य हो, ढोल बज रहे हो तो बड़ा अच्छा लगता है, पर जब दक्षिणा मांगने वाले पंडित और नेग मांगने वाले नाई, कर्मचारी वगैरा इकट्ठे हो जाते हैं तो आदमी बगलें झांकता है.

डूब जात आधी चले, झपट चले जो नाव. जो नाव बहुत तेज चलने की कोशिश करती है वह आधे रास्ते में ही डूब जाती है.

डूबते को तिनके का सहारा. किसी बड़ी मुसीबत में फंसे व्यक्ति को थोड़ा सा भी सहारा मिल जाए तो उसे बहुत लगता है. इंग्लिश में कहावत है – A drowning man will cathch at a straw.

डूबते जहाज में से चूहे बाहर कूद जाते हैं. जब समुद्री जहाज डूब रहा होता है तो उस में रहने वाले चूहे बाहर कूदने लगते हैं (हालांकि बाहर कूद कर भी उन्हें मरना ही है). जब कोई राजनैतिक दल डूब रहा होता है तो उसके सदस्य छोड़ कर भागने लगते हैं.

डूबते हाथी को मेंढक भी लात मारता है. जब व्यक्ति अपना पद और मान खो देता है तो छोटे से छोटे लोग भी उसे अपमानित करने से नहीं चूकते.

डूबी कन्त भरोसे तेरे. कोई स्त्री पति के भरोसे पानी में उतरी पर जब डूबने लगी तो पति ने उसको नहीं बचाया. जिस पर आप विश्वास करें वह संकट में आप का साथ न दे तो.

डेढ़ ईंट की अलग मस्जिद. सबसे अलग नियम कायदे बनाना.

डेढ़ चावल की अलग खिचड़ी. सबसे अलग और हास्यास्पद तरीके से काम करना. 

डेढ़ पाव आटा, पुल पर रसोई. अपने पास साधन न होते हुए भी बहुत दिखावा करना.

डोई क्या जाने पकवान का स्वाद. डोई – करछुली.हँड़िया में जो कुछ पक रहा है उसका स्वाद करछुली नहीं ले सकती. जो ऐशो आराम की वस्तुएँ गरीब आदमी बड़े लोगों के लिए तैयार करता है उनका आनंद वह स्वयं नहीं ले सकता.

डोकरी को राजकथा से क्या मतलब. आम आदमी को राजा रजवाड़ों की बातों से क्या लेना देना.

डोम के घर ब्याह, मन आवे सो गा. डोम लोग अपने घरों पर बहुत अश्लील गीत गाते हैं क्योंकि वहाँ कोई टोकने वाला नहीं होता. 

डोम हारे अघोरी से. बेचारे डोम को काफी निम्न श्रेणी का मनुष्य माना गया है पर अघोरी उस से भी निम्न होता है.

डोमन बजावे चपनी, जात बतावे अपनी. डोमनी(गाने बजाने वाली स्त्री) चपनी (तश्तरी) बजा के गाती है तो हर कोई जान जाता है कि उस की जात क्या है. व्यक्ति के कार्य कलापों से उसकी जाति का पता चल जाता है.

डोमनी के रोने में भी राग. डोमनियां घर घर जा कर बधाई गाती हैं. वे रोती हैं तो उस में भी गाना होता है. कोई भी काम जो हम लगातार करते हैं वह हमारी आदत में शुमार हो जाता है. 

डोली आई डोली आई मेरे मन में चाव, डोली में से निकल पड़ा भोंकड़ा बिलाव. बच्चों का मजाक. गाँव के बच्चे कहीं खेल रहे हैं कि कोई डोली आ कर रूकती है. बच्चे बड़ी उत्सुकता से देखते हैं कि उस में से सजी धजी दुल्हन निकलेगी, पर उसमे से मोटी तोंद वाले हाकिम उतरते हैं. तब बच्चे दूर खड़े ताली बजा बजा कर यह पंक्तियाँ बोलते हैं.

डोली न कहार, बीबी जाने को तैयार. कोई बिना निमंत्रण जाने को तैयार हो तो.

डोली में बैठ के कंडे बीनें. अत्यधिक नजाकत दिखाने वालों पर व्यंग्य. उन लोगों पर भी व्यंग्य जो वातानुकूलित कमरों में बैठ कर लोक कल्याणकारी काम करने का दिखावा करते हैं. 

 

 

ढंग से करो तो गेंडे को भी गुदगुदी होती है. गेंडे की खाल इतनी मोटी होती है कि उसे गुदगुदी होना असंभव सी बात है, लेकिन युक्ति पूर्वक करने से उसे भी गुदगुदी हो सकती है. कहावत में हास्य का सहारा ले कर यह बताया गया है कि प्रयास करने पर कठोर हृदय और नीरस व्यक्तियों की भावनाओं को भी जगाया जा सकता है. ऐसे भी कह सकते हैं कि प्रयास करने पर कंजूस आदमी से भी चंदा लिया जा सकता है.

ढका हुआ ना उघाड़ बहू घर तेरा ही है. सास बहू को सीख दे रही है की घर की बदनामी वाली कोई बात मत उघाड़ो. अब यह घर तुम्हारा ही है.

ढपोर शंख.  ढपोर शंख की कथा कही जाती है कि उस से कोई एक चीज़ मांगो तो वह कहता था कि मैं तुम्हें दो दूँगा, पर देता कुछ नहीं था. आजकल के बहुत से नेता भी ऐसे ही हैं. (देना लेना कुछ नहीं हामी भरूं करोड़).

ढाई आखर प्रेम को पढ़े सो पंडित होय(पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय). जिसने मनुष्य मात्र के प्रति प्रेम का भाव जगा लिया वही सच्चा पंडित है.

ढाई दिन की बादशाहत. यह कहावत अलिफ़ लैला के किस्सों के किसी किरदार पर आधारित है जिसे ढाई दिन की बादशाहत मिली थी. कोई छोटी मानसिकता वाला व्यक्ति थोड़े समय के लिए कोई महत्वपूर्ण पद मिल जाने पर इतराए तो लोग यह बोल कर उसे उसकी हैसियत याद दिलाते हैं. मुगल बादशाह हुमायूं के समय में भी ऐसा एक किस्सा हुआ था जब हुमायूं ने डूबने से बचाने की एवज़ में एक भिश्ती को एक दिन की बादशाहत दी थी. उस भिश्ती ने चमड़े के सिक्के चलवा दिए थे.

ढाक के वही तीन पात. ढाक के एक पत्ते में तीन पत्तियाँ होती हैं. आप कितना भी ढूँढिए सारे पेड़ में तीन पत्तियों की तिकड़ी ही मिलेंगी, किसी में चार या पांच पत्तियाँ नहीं मिलेंगी. काफ़ी प्रयास करने के बाद भी समस्या वहीँ की वहीँ रहे तो यह कहावत कही जाती है. 

ढाक तले की फूहड़, महुए तले की सुघड़. ढाक के पेड़ में न छाँव है न फल. उसके नीचे केवल मूर्ख स्त्री ही खड़ी होगी. महुए में छाँव भी है और फल भी इसलिए समझदार स्त्री उसी के नीचे खड़ी होगी.

ढाल तलवार सिरहाने और चूतड़ बन्दीखाने. कायर व्यक्ति के लिए. ढाल तलवार दिखाने के लिए रखी हुई है और खुद युद्ध भूमि में जाने की बजाए बन्दीखाने में बैठे हैं.

ढाल देख कर दौड़ने का मन करता है. यह एक मनुष्य की स्वभावगत कमजोरी है, जो कार्य आसानी से हो जाए उसे करने का सब का मन करता है.

ढीलों का भाग्य भी ढीला. (राजस्थानी कहावत) जो लोग ढीले (अकर्मण्य) होते हैं, उनका भाग्य भी साथ नहीं देता.

ढुलमुल बेंट कुदारी और हँस के बोले नारी. कुदाली की बेंट हिलती हुई हो और नारी हँस के बोले, इन दोनों से खतरा है.

ढोर को क्या पता कि खेत रिश्तेदारों का है. जानवर को जहाँ मौका मिलता है वह किसी भी खेत में घुस कर फसल खाना शुरू कर देता है, फिर वह खेत चाहे उसके मालिक के रिश्तेदार का ही क्यों न हो. कोई नासमझ आदमी अनजाने में ही अपने किसी आदमी को नुकसान पहुँचाए तो.

ढोर को समझाना आसान, मूर्ख को समझाना मुश्किल. एक बार को जानवर को समझाया जा सकता है पर मूर्ख व्यक्ति को समझाना बहुत कठिन है. (क्योंकि वह अपने को बहुत बुद्धिमान समझता है).

ढोर मरे कूकुर हरषाय. जानवर के मरने पर कुत्ता खुश होता है क्योंकि उसे मांस हड्डी आदि मिलती है. किसी की विपत्ति में कोई दुष्ट व्यक्ति प्रसन्न हो या लाभ उठाए तो यह कहावत कही जाती है. 

ढोल के भीतर पोल. ढोल देखने में कितना भी बड़ा हो अंदर से खोखला होता है. जब किसी चीज़ में आडम्बर बहुत हो पर वास्तविकता में वह कुछ भी न हो तो यह कहावत कही जाती है. 

ढोल गले पड़ गया, बजाओ चाहे न बजाओ. कोई अनचाही जिम्मेदारी आ पड़ी है, अब यह आपके ऊपर है कि निभाएँ या मना कर दें.

ढोल में पोल है, बजे जितना बजा लो. भरोसा नहीं कब फूट जाए, इसलिए जब तक हो सके मौके का फायदा उठालो. जहाँ कोई सरकारी ठेकेदार अफसरों से मिलीभगत कर के घटिया निर्माण करा रहा हो वहाँ यह कहावत कही जा सकती है. 

 

 

तंगी में कौन संगी. जब आदमी परेशानी में होता है तो कोई साथ नहीं निभाता.

तंदुरस्ती हजार नियामत (सेहत हजार नेमत). नियामत का अर्थ है वह चीज़ जिसको पाने की आपकी बहुत इच्छा हो पर उसको पाना कठिन हो. जैसे धन दौलत, उच्च पद आदि. कहावत में बताया गया है कि अच्छा स्वास्थ्य इस प्रकार की हजार नियामतों के बराबर है. यदि हमारा स्वास्थ्य ही ठीक नहीं होगा तो ये सब नियामतें हमारे किस काम आएँगी. 

तक तिरिया को आपनी, पर तिरिया मत ताक, पर नारी के ताकने, पड़े सीस पर ख़ाक. केवल अपनी स्त्री की और निगाह उठा कर देखो, पराई स्त्री की ओर नहीं. पराई स्त्री को ताकने में सिर पर धूल पड़ने का डर है (बेईज्जती होने का डर है).

तकदीर के आगे तदबीर नहीं चलती (तकदीर के लिखे को तदबीर क्या करे). भाग्य में नहीं हो तो किसी भी युक्ति से हम कोई चीज़ प्राप्त नहीं कर सकते. तदबीर – युक्ति, प्रयास.

तकदीर चलती है तो दुनिया जलती है. किसी का भाग्य साथ दे तो लोग उसे देख कर जलते हैं. (ट्रकों पर यह कहावत अक्सर लिखी मिलती है).

तकदीर बड़ी के तदबीर. भाग्य बड़ा है या परिश्रम. सत्य यह है कि दोनों का महत्व है. 

तकल्लुफ में है तकलीफ सरासर. संकोच करने वालों को बहुत परेशानी उठानी पड़ती है.

तकाज़ा नहीं किया तो भरपाई नहीं समझो. बिना तकाज़ा किए कोई उधार की रकम नही लौटाता.

तख्ती पर तख्ती और मियाँ जी की आई कमबख्ती. साधन कम और काम बहुत ज्यादा. कुछ जगहों पर तख्ती पर तख्ती रखने को मास्टर साहब के लिए अशुभ माना जाता है, इस सन्दर्भ में भी बच्चे ऐसा बोलते हैं.

तजी प्रतिज्ञा मोर मैं तोर प्रतिज्ञा काज. तुम्हारी बात का मान रखने के लिए मैंने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी. महाभारत के युद्ध में कृष्ण भगवान ने भीष्म की प्रतिज्ञा का मान रखने के लिए अपनी शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा तोड़ दी थी.

तड़के का मेंह और सांझ का बटेऊ टला नहीं करते. सुबह सुबह जो बादल घिर कर आता है वह बरसता जरूर है (टलता नहीं है). जो अतिथि शाम को घर आता है वह टिकता जरूर है (टलता नहीं है).

ततड़ी ने दिया जनमजली ने खाया, जीभ जली स्वाद भी न पाया. ततड़ी माने जली हुई या दुखियारी. जनम जली माने अभागन स्त्री. जब दो अभागे लोग एक दूसरे की सहायता करने की कोशिश करें तो.

तत्ता कौर, न निगलने का न उगलने का. कभी धोखे से बहुत गरम कौर मुँह में रख लिया जाए तो बड़ी दुविधा की स्थिति हो जाती है, गरम की वज़ह से निगल भी नहीं सकते, मुँह में रखे रहें तो मुँह जलता है और थूक दें तो असभ्यता होती है.

तत्ते पानी से क्या घर जलते हैं. दुर्वचनों से किसी का अनिष्ट नहीं होता.

तन उजला मन सांवला, बगुले का सा भेक, तोसे तो कागा भला, बाहर भीतर एक. जो लोग देखने में भलेमानस लगते हैं पर मन के काले होते हैं उन के लिए कहा गया है कि आप तो बगुले की तरह बाहर से सफ़ेद और भीतर से काले अर्थात धूर्त हो. आप से तो कौआ अच्छा है जो बाहर से भी काला है और भीतर से भी.

तन कसरत में, मन औरत में. जो लोग व्यायाम तो करते हैं पर उनका ध्यान भोग वासनाओं में लगा रहता है उनका शरीर स्वस्थ नहीं हो सकता.

तन की तनक सराय में, नेक न पावो चैन, सांस नकारा कूच का, बाजत है दिन रैन. शरीर रूपी छोटी सी सराय में सांस रूपी नकारा बजता रहता है. जाने की तैयारी हर समय है इस लिए चैन से न बैठो.

तन तकिया मन विश्राम, जहाँ पड़े वहीं आराम. परिश्रमी व्यक्ति को बढ़िया बिस्तर और तकिये की आवश्यकता नहीं है. उसका शरीर ही तकिया है और हर स्थान उस के विश्राम के लिए उपयुक्त है.

तन ताजा तो कलन्दर ही राजा. शरीर स्वस्थ हो तो फ़कीर भी राजा है. कलन्दर – मस्त, फक्कड़.

तन दे मन ले. अपने शरीर द्वारा किसी की सहायता कर के ही आप उस का मन जीत सकते हैं.

तन पर चीर न घर में नाज, दद ससुरे का रोपा काज. घर में घोर गरीबी है और ददिया ससुर का श्राद्ध करने जा रहे हैं जो सामर्थ्य से बाहर भी है और बिलकुल अनावश्यक भी है.

तन पर नहीं लत्ता मिस्सी मले अलबत्ता. मिस्सी – लेप करने वाली प्रसाधन सामग्री. शरीर पर ढंग के कपड़े नहीं हैं और सुगन्धित लेप लगा रहे हैं. साधन न होने पर भी अनावश्यक खर्च करना.

तन पर नहीं लत्ता, पान खाएँ अलबत्ता. साधन न होने पर भी अनावश्यक शौक करना.

तन पिंजरा मन तीतरा सांस जीव का मूल, जब तीतर उड़ जात है होता पिंजर धूल. शरीर पिंजरा है और मन उसमें रहने वाला पक्षी है. जब पक्षी उड़ जाता है तो पिंजरा मिटटी हो जाता है.

तन पुतला है ख़ाक का इसे देख मत फूल, इक दिन ऐसा आएगा मिले धूल से धूल. शरीर मिटटी का पुतला है. इस के ऊपर घमंड मत करो. एक दिन ऐसा आएगा जब यह धूल का पुतला धूल में मिल जाएगा.

तन फूहड़ का भैंस सा भारी, कहे कहो मोहे नाजो प्यारी. फूहड़ स्त्री भैंस सी मोटी है लेकिन पति से कहती है कि मुझे सुकुमारी पुकारो.

तन मोर सा मन चोर सा. जो व्यक्ति देखने में सौम्य और आकर्षक हो पर अंदर से चोर हो.

तन शीतल हो शीत सों, मन शीतल हो मीत सों. शरीर तो ठन्डे मौसम और ठंडी हवा से शीतल होता है परन्तु मन मित्र का साथ मिलने पर शीतल होता है.

तन सुखी तो चैन है, वरना दुख दिन रैन है. शरीर निरोग हो तभी मनुष्य को चैन मिलता है, वरना दुःख ही दुःख है.

तन सुखी तो मन सुखी, मन सुखी तो तन सुखी. शरीर स्वस्थ हो व कोई रोग न हो तो मन भी सुखी रहता है और मन प्रसन्न हो तो शरीर भी सुखी रहता है. 

तपे जेठ तो बरखा हो भरपेट. जेठ में अधिक गरमी हो तो वर्षा अच्छी होती है.

तपे मृगशिरा जोय, तो बरखा पूरन होय.  मृगशिरा नक्षत्र में अधिक गर्मी पड़े तो पूर्ण वर्षा होती है.

तब लग झूठ न बोलिए, जब लग पार बसाय. जब तक बहुत मज़बूरी न हो, झूठ नहीं बोलना चाहिए.

तबेले की बला बंदर के सर. पुराने लोग मानते थे कि तबेले में घोड़ों के साथ बन्दर पाले जाएं तो घोड़ों पर आने वाली बला बंदरों पर आ जाती है. इस के पीछे एक कहानी भी है. एक राजा की घुड़साल के पास बहुत से बन्दर रहते थे. उन में से कुछ युवा बन्दर बहुत शैतान थे. वे सैनिकों का सामान चुरा कर भाग जाया करते थे. सयाने बन्दर उन्हें बहुत समझाते थे कि राजा के आदमियों से पंगा मत लो, पर वे एक न मानते थे. एक बार एक शैतान बन्दर कहीं से जलती हुई लकड़ी उठा लाया और फूस की झोंपड़ी के पास गिरा दी. उससे अस्तबल में आग लग गई और बहुत से अच्छी नस्ल के कीमती घोड़े जल गए. घोड़ों के वैद्य ने बताया कि घोड़ों के घावों को ठीक करने के लिए बन्दर के मांस का लेप करना होगा. इस इलाज के चक्कर में बेचारे बहुत से बन्दर मुफ्त में मारे गए. तभी से यह कहावत बनी.

तमाम रात पीसा और नाली में सकेला. किसी मूर्ख स्त्री ने रात भर मेहनत कर के कोई चीज़ पीसी और सुबह नाली में बहा दी. कोई व्यक्ति किसी काम के लिए बहुत मेहनत करे और अंत में उस चीज़ को व्यर्थ गंवा दे तो.

तय की तेरी, हाथ की मेरी. जो बंटवारा तय हुआ है वह तुम बाद में ले लेना, अभी जो हाथ में है वह मेरा है.

तरवर तास बिलम्बिए, बारह मास फलंत, सीतल छाया गहर फल, पंछी केलि करंत. कबीर कहते हैं कि ऐसे वृक्ष के नीचे विश्राम करो, जो बारहों महीने फल देता हो. जिसकी छाया शीतल हो,  खूब फल लगते हों और पक्षी क्रीडा करते हों. यहाँ वृक्ष से अर्थ सज्जन पुरुष से भी है.

तरवर बिना सरबर सूना. (राजस्थानी कहावत). तालाब के पास पेड़ अवश्य होने चाहिए. पर्यावरण के हिसाब से भी दोनों एक दूसरे के पूरक हैं.

तरुवर अच्छा छांवला और रूप सुहाना सांवला. पेड़ वही अच्छा है जो छाँव देता हो और रूप सबसे मोहक वही होता है जो सांवला हो. सांवले व्यक्ति को सांत्वना देने के लिए.

तरुवर फल नहिं खात हैं, सरबर पियहिं न पान, कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान. वृक्ष कभी फल नहीं खाते और तालाब खुद पानी नहीं पीते. सज्जन लोग अपने द्वारा संचित किये गए धन को परोपकार के लिए ही प्रयोग करते हैं.

तलवार का खेत हरा नहीं होता. जोर जबरदस्ती से कराई गई खेती सफल नहीं हो सकती.

तलवार गिरी और परजा फिरी. हाकिम का आतंक खत्म होते ही प्रजा मनमानी करने लगती है. इसका अर्थ यह भी हो सकता है कि जो प्रजा विद्रोह पर उतारू है वह तलवार का वार होते ही वापस घरों में दुबक जाती है.

तलवार मारे एक बार, एहसान मारे बार बार. तलवार तो इंसान को एक ही बार में मार देती है लेकिन किसी का एहसान बार बार आदमी को मारता है (लज्जित करता है).

तलवार म्यान में ही अच्छी. तलवार बाहर निकलती है तो खून खराबा करती है. यहाँ तलवार से अर्थ विवादित मुद्दों से भी है.

तलवों की सी कहूँ या जीभ की सी. एक हाकिम ने मुक़दमे के वादी और प्रतिवादी दोनों से रिश्वत खाई, एक ने मिठाई भेंट की और दूसरे ने पैर तले अशर्फी सरका दी. अब हाकिम परेशानी में कि तलवे की बात मानें या जीभ की.

तले पड़ा हूँ पर टांग तो मेरी ही ऊपर है. कुश्ती में जिस की पीठ जमीन से लग जाए वह हारा हुआ मान लिया जाता है. कोई हारा हुआ पहलवान कह रहा है कि मैं नीचे पड़ा हूँ तो क्या हुआ, मेरी टांग तो ऊपर है. हार कर भी हार न मानना.

तले पड़ी का मोल क्या. 1. जो वस्तु आसानी से उपलब्ध हो उस की कदर नहीं होती. 2. कोई वस्तु बेकद्री से पड़ी हो तो मूल्यहीन हो जाती है और वही वस्तु अच्छे रख रखाव से मूल्यवान बन जाती है.

तवा चढ़ा बैठी मिसरानी, घर में नाज, अगन न पानी. मिसरानी – मिश्रानी, ब्राह्मणी, खाना बनाने वाली. घर में कुछ साधन न होते हुए भी बड़ा काम करने के लिए तैयार होना.

तवा न तगारी, काहे की भटियारी. न तवा है न थाली, तो तुम संपन्न घर की कहां से हो गईं. 

तवायफ के बिछौने पर बना है काम सोने का, न ठहरेगा मुलम्मा है अबस है ज़र के खोने का. तवायफ – वैश्या, मुलम्मा – बारीक परत. वैश्या के बिछौने पर सोने की कारीगरी किस काम की? बहुत से व्यक्तियों के सम्पर्क में आने के कारण वह जल्द ही बेकार हो जाएगी. कहावत का अर्थ है कि कोई नाज़ुक चीज़ ऐसे स्थान पर प्रयोग करना बेकार है जहाँ उस का रुखाई से प्रयोग हो.

तस्वीह फेरूँ, किस को घेरुं. तस्वीह – फेरने वाली मनकों की माला. ढोंगी भगत के लिए जो दिखावे के लिए माला फेर रहा है और मन में सोच रहा है कि किस को घेरूं.

तांक झाँक कर मत चले, ये है बुरा सुभाव, जार कहें या चोट्टा या फिर ऊदबिलाव. जार माने व्यभिचारी. दूसरों के घरों में ताँक झाँक करने वाले को चरित्रहीन या चोर समझा जाता है या ऊदबिलाव कह कर गाली दी जाती है.

तांत बजी राग पहचाना. किसी चीज़ की शुरुआत होते ही फौरन पहचान लेना.

तांत सी देह, पाँव न हाथ, लड़न चली सूरन के साथ. (वाद्य यंत्रों में बंधने वाले पतले तार को तांत कहते हैं). किसी बहुत दुबले पतले कमजोर परन्तु दुस्साहसी व्यक्ति के लिए. लड़न चली सूरन के साथ अर्थात शूरवीरों के साथ लड़ने चली है.

तांबा देख व्यापार, मुँह देख व्यवहार. तांबे से अर्थ यहाँ रूपये पैसे से है. किसी के पास कितना पैसा है यह देख कर व्यापार किया जाता है (नकद ले रहा है या उधार, उधार चुका पाएगा या नहीं) और व्यक्ति से व्यवहार उस की हैसियत के अनुसार किया जाता है.

ताक पे बैठा उल्लू, माँगे भर भर चुल्लू. जब कोई बेशर्म हाकिम अधिक रिश्वत मांगे. जब छोटा आदमी बड़े पर हुक्म चलाए तो भी.

ताकत कमर में चाहिए औलाद के लिए, रखते नहीं हैं सिर्फ भरोसा मदार का. शाह मदार मुस्लिमों के एक प्रसिद्ध संत हुए हैं जिनके आशीर्वाद से संतान प्राप्ति होती है. कहावत में कहा गया है कि संतान प्राप्त करने के लिए खाली शाह मदार का आशीर्वाद ही नहीं पौरुष शक्ति भी चाहिए. किसी भी कार्य को सिद्ध करने के लिए केवल पूजा पाठ ही नहीं पुरुषार्थ भी आवश्यक है.

ताज़ी पर बस न चला तुर्की के कान काटे. ताज़ी और तुर्की घोड़ों की नस्लें हैं. कहावत उन लोगों पर कही गई है जो किसी एक पर बस न चले तो दूसरे पर उसका गुस्सा उतारते हैं.

ताज़ी मार खाय, तुरकी माल खाय. भाग्य से बहुत कुछ होता है. एक ही जगह रहने वाले दो लोगों में से एक मार खाता है और एक माल खाता है.

ताड़ पेड़ के नीचे दूध भी पिए तो लोग समझें कि ताड़ी पिए है. बुरी संगत में रह कर अच्छा काम भी करोगे तो लोग गलत ही समझेंगे.

ताड़ने वाले कयामत की नज़र रखते हैं. कोई काम कितना भी छिप कर करो, होशियार लोग देख ही लेते हैं.

ताता खाए छाँव में सोए, उस के पीछे बैद रोए. जो गर्म खाना खाता है और छाँव में सोता है वह बीमार नहीं पड़ता (इस कारण वैद्य को रोना पड़ता है).

ताती रोटी और ठंडा पानी. सब तरह से सुख. ताज़ी गरम रोटी और ताजा ठंडा पानी, ऐसा सुख सब के भाग्य में नहीं होता.

ताते दूध बिलाई नाचे. कटोरे में तेज़ गरम दूध रखा हो तो उसे पी भी नहीं पाएगी और वहाँ से हटेगी भी नहीं, उसके चारों ओर नाचती रहेगी. जरूरत मंद मनुष्य भी अपनी जरूरत की चीज़ के लिए इसी प्रकार का व्यवहार करता है.

तार टूटा और राग पूरा हुआ. यदि उपकरण खराब होने से बिल्कुल पहले कार्य पूरा हो गया (जिससे काम रुका नहीं) तो यह कहावत कही जाती है. 

तारे रौशनी करें तो चन्द्रमा क्या झख मारे. अगर छोटे लोग ही सारा काम कर लें तो बड़ों को कौन पूछेगा.

ताल तो भोपाल ताल, और सब तलैयां, गढ़ तो चित्तौड़गढ़, और सब गढ़ैयां. जिस ने भोपाल की झील देखी है वह इस कथन से जरूर सहमत होगा. चित्तौड़गढ़ के भग्नावशेष देख कर भी यह समझा जा सकता है की अपने समय में यह अद्वितीय रहा होगा. साथ ही बर्बर असभ्य मुगलों से घृणा भी होगी जिन्होंने इस प्रकार की उत्कृष्ट कृतियों को नष्ट किया.

ताल न तलैया, सिंघाड़े बुवैया. तालाब है नहीं और सिंघाड़े बोने की सोच रहे हैं. बिना साधन काम करने की सोचना.

ताल बजा कर मांगे भीख, उसका जोग रहा क्या ठीक. योगी वह है जो केवल ईश्वर की आराधना में ध्यान लगाए और जो कुछ भी रूखा सूखा मिल जाए वही खा के काम चलाए. गाना गा गा कर भीख मांगने वाले को योगी या साधु कैसे मान सकते हैं.

ताल में चमके ताल मछरिया, रन चमके तलवार, तम्बुआ चमके सैंया पगड़िया, सेज पे बिंदिया हमार. हर चीज़ अपनी अपनी जगह शोभा पाती है.

ताल में पानी नहीं हाथी को नेवता. साधन न होते हुए भी बहुत बड़ा काम करने की मूर्खता करना.

ताल सूख चौरस भयो, हंसा कहीं न जाए, मरे पुरानी प्रीत को, कंकर चुन चुन खाए. तालाब सूख गया है लेकिन हंस कहीं और ठिकाना ढूँढने नहीं जा रहा है. तालाब के प्रति अपने पुराने प्रेम के कारण वह जान देने को तैयार है और कंकड़ खा रहा है. इस कहावत को प्रेम के प्रति त्याग के महान आदर्श के रूप में भी प्रयोग कर सकते हैं और व्यक्ति के मूढ़ प्रेम एवं अनावश्यक आसक्ति के लिए भी प्रयोग कर सकते हैं.

ताल से तलैया गहरी, सांप से संपोला जहरी. संपोला माने सांप का बच्चा, ताल माने बड़ा तालाब और तलैया माने छोटा सा तालाब. जहाँ बेटा बाप से भी ज्यादा खुराफाती हो वहाँ यह कहावत कही जाती है.

तालाब के भरोसे घड़ा नही फोड़ा जाता. तालाब और घड़ा, दोनों का अपना महत्त्व है. इसी प्रकार समाज में छोटे बड़े सभी लोगों का महत्व होता है. यदि हमारे सम्बन्ध किसी बड़े आदमी से हों तो अपने निकटवर्ती छोटे लोगों को छोड़ नहीं देना चाहिए.

तालाब खुदा नहीं घड़ियाल डेरा डाल लिया. कोई काम होने से पहले ही उससे लाभ लेने वालों का इकट्ठा होना. (तालाब खुदने के बाद जब पानी से भर जाता है तो घड़ियाल उस में रहने के लिए आ जाते हैं). 

तालाब प्यासो और ब्याह भूखो. जो व्यक्ति तालाब के पास रह कर प्यासा रहे और बरात में जा कर भी भूखा रहे. मूर्ख या दुर्भाग्य का मारा व्यक्ति.

ताली एक हाथ से नहीं बजती. जब दो लोगों में झगड़ा होता है तो दोनों ही यह सिद्ध करने की कोशिश करते हैं कि इन की रत्ती भर भी गलती नहीं है, दूसरे ने ही झगड़ा किया है. ऐसे में सयाने लोग समझाते हैं कि देखो ताली तभी बजेगी जब दोनों हाथ एक दूसरे से टकराएंगे. कुछ न कुछ गलती दूसरे की भी होती है. इंग्लिश में कहावत है – It takes two to quarrel.

ताली दोउ कर बाजे (ताली दोनों हाथसे बजती है). ऊपर वाली कहावत की भांति.

ताली बिन कैसा ताला, जोरू बिन कैसा साला. चाबी के बिना ताला बेकार है और पत्नी के बिना साले की कोई अहमियत नहीं है.

ताले बनियों के लिए होते हैं, चोरों के लिए नहीं. अर्थ स्पष्ट है. हम लोग ताला लगा कर निश्चिन्त हो जाते हैं, पर चोर के लिए ताले की कोई बिसात नहीं है.

तावल मत कर काज में धीरे धीर चला, ताता भोजन बालके देउत जीभ जला. तावल – उतावलापन, ताता – गरम. काम में उतावलापन न कर के धीरे धीरे चलो. बच्चा गरम खाने को मुंह में रख कर जीभ जला लेता है.

ताश पर मूंज का बखिया. ताश – सलमा सितारों वाला बारीक काम, मूंज – खाट बुनने वाला बान. सलमा सितारे वाले बारीक काम में कोई मूंज का बखिया लगा कर सिल दे तो यह अत्यधिक फूहड़पन कहलाएगा. बने बनाए काम को बिगाड़ देना.

तिनका उतारे का भी एहसान होता है. किसी ने आपका बहुत छोटा सा काम भी किया (सर पे से तिनका हटा दिया हो) उसका भी एहसान मानना चाहिए.

तिनका कबहुँ न निंदिये, जो पाँयन तर होय, कबहुँ उड़ आँखिन परे, पीर घनेरी होय. तिनका यदि पैरों के नीचे हो तो उस की निंदा मत करो, यदि वह उड़ कर आँख में गिर गया तो बहुत कष्ट देगा. अर्थ यह है कि कोई व्यक्ति कितना भी छोटा क्यों न हो उसका अपमान मत करो.

तिनका गिरा गयंद मुख तनिक न घटा अहार, सो ले चली पिपीलिका पालन को परिवार. गयंद – हाथी, पिपीलिका – चींटी. हाथी के मूंह से तिनका गिरा तो उसका भोजन तो जरा भी कम नहीं हुआ लेकिन उससे चींटी के पूरे परिवार का पालन हो गया. अर्थ है कि यदि अमीर लोग चाहें तो थोड़े से प्रयास से ही गरीबों की बहुत सहायता कर सकते हैं.

तिनका हो तो तोड़ लूँ प्रीत न तोड़ी जाए, प्रीत लगी टूटत नहीं जब लग मौत न आए. किसी से सच्चा प्रेम हो तो आसानी से नहीं टूटता.

तिनके की ओट पहाड़. 1.छोटा सा तिनका भी आँख के सामने हो तो पहाड़ को ढंक सकता है. 2.पास की छोटी सी चीज़ भी दूर की बड़ी चीज़ से अधिक महत्वपूर्ण हो सकती है. 

तिनके की चटाई, नौ बीघा फैलाई. थोड़ा काम कर के बहुत दिखावा करना.

तिनब्याहे का बढ़िया भाग, दो ले जाएँ अरथी और इक ले जाए आग. जो आदमी तीन शादियाँ करे उसका मजाक उड़ाने के लिए. 

तिरिया जने बार बार, जबान जने एक बार. स्त्री बार बार संतान को जनती है (पैदा करती है) पर जबान को एक ही बार बात जननी चाहिए. जबान से निकली बात बदलनी नहीं चाहिए.

तिरिया तुझ से जो कहे, उसको तू मत मान, तिरिया मत पर जो चले, वह नर है निर्ज्ञान. जो पुरुष अपने विवेक का उपयोग न कर के केवल स्त्रियों के कहने पर चलते हैं वे निरे मूर्ख होते हैं.

तिरिया तेरह मर्द अठारह. कहावत उस समय की है जब कम आयु में ही विवाह हो जाते थे. कहावत के अनुसार विवाह के लिए लड़की की आयु कम से कम तेरह वर्ष और लड़के की कम से कम अठारह वर्ष होनी चाहिए.

तिरिया तेल हमीर हठ, चढ़े न दूजी बार. राजस्थान के वीर हम्मीर देव चौहान के विषय में कहावत है कि वे जो हठ कर लेते थे उससे हटते नहीं थे. पूरी कहावत इस प्रकार है – सिंह सुवन, सत्पुरुष वचन, कदली फले इक बार, तिरिया तेल हमीर हठ चढ़े न दूजी बार. अर्थात सिंह एक ही संतान को जन्म देता है, सत्पुरुष अपने वचन पर अडिग रहता है, केला एक ही बार फल देता है, स्त्री पर तेल व उबटन एक ही बार चढ़ता है (अर्थात उस का विवाह एक ही बार होता है) और हम्मीर एक ही बार हठ करता है.

तिरिया तो है शोभा घर की जो हो लाज रखावा नर की. वही स्त्री घर की शोभा होती है जो पुरुष की लाज रखे.

तिरिया बिन तो नर है ऐसा, राह बटाऊ होवे जैसा. स्त्री के बिना पुरुष ऐसा ही है जैसा राह में चलता हुआ राहगीर (जो हमेशा अपनी मंजिल की तलाश में रहता है). बटाऊ – राहगीर.

तिरिया बिस की बेल है, या सूं बच कर चाल, याका नेहा खोत है, दीन धरम धन माल. स्त्री विष की बेल है इससे बच कर चलो, इसका प्रेम धोखा है और आपके दीन, धर्म, धन और माल के लिए खतरा है.

तिरिया भी बिन नर है ऐसी, बिना धनी के खेती जैसी. स्त्री पुरुष के बिना सब तरह से असुरक्षित है. 

तिरिया रोवे गेह बिना, खेती रोवे मेह बिना. स्त्री घर के लिए तरसती है और खेती वर्षा के लिए.

तिरिया सके न बात पचाय. स्त्रियों के पेट में कोई बात नहीं पचती.

तिरिया सरम की, कमाई करम की. करम – कर्म, भाग्य.स्त्री वही अच्छी जो लज्जाशील हो. कमाई अपने उद्यम और भाग्य दोनों से होती है.

तिल गुड़ भोजन नीच मिताई, आगे मीठ पाछे कडुआई. तिल गुड़ से बनी मिठाई आप खाते हैं तो पहले मीठी लगती है पर बाद में मुँह में कड़वाहट आ जाती है, इसी प्रकार नीच से मित्रता शुरू में अच्छी लगती है पर बाद में उस से परेशानी होती है.

तिल गुड़ भोजन तुरक मिताई, गेंवड़े खेती गाँव सगाई, पहले सुख पीछे दुखदाई, मतकर भाई मतकर भाई. तिल गुड़ से बनी मिठाई, मुसलमान की दोस्ती, गाँव के पास खेती और अपने ही गाँव में सगाई यह सब शुरू में अच्छे लगते हैं पर बाद में कष्ट देते हैं. 

तिल चोर सो बज्जुर चोर. चोर तो चोर है चाहे बड़ी चीज़ चुराने वाला हो या तिल जैसी छोटी चीज़.

तिल तिल खाए, पहाड़ बिलाय. कितना भी धन इकट्ठा हो यदि उसमें से थोड़ा-थोड़ा लगातार खर्च करते रहोगे और उसमें जोड़ोगे  नहीं तो कभी न कभी वह खर्च हो जाएगा.

तिल रहे तो तेल निकले.  व्यापार की पूँजी ही खा जाओगे तो व्यापार क्या करोगे.

तिल, तीखुर और दाना, घी शक्कर में साना, खाय के बूढ़ा होय जवाना. तीखुर – हल्दी की प्रजाति का एक पौधा जिस की जड़ का सत हलुआ खीर आदि बनाने के काम आता है, दाना – पोस्त का दाना. तिल, तीखुर और पोस्त को घी शक्कर के साथ खाने से बूढ़े भी जवान हो जाते हैं.

तिलचट्टे को मारने से हाथ ही गंदा होता है. नीच को दंड देने की कोशिश में अपना ही नुकसान हो सकता है.

तिलों की परख तो तेली ही जानता है. हर व्यक्ति अपने अपने व्यवसाय से सम्बंधित चीजों के विषय में जानकार होता है. 

तिसरी पीढ़ी सुधरे या तिसरी पीढ़ी बिगड़े. जो आज निर्धन है उस की तीसरी पीढ़ी धनवान हो सकती है, और जो आज सम्पन्न है उस की तीसरी पीढ़ी निर्धन हो सकती है. ऐसा इसलिए होता है कि निर्धन परिवार में अधिकतर बच्चे विनम्र और परिश्रमी होते हैं, जबकि धनी के बच्चे आलसी और नकचढ़े.

तीखी हु नीकी लगे कहिए समय बिचारि, सबके मन हर्षित करे ज्यों विवाह में गारि. उचित समय पर कही हुई तीखी बात भी अच्छी लगती है, जिस प्रकार विवाहादि में गाई जाने वाली गालियाँ (हंसी मज़ाक के लोक गीत) भी अच्छी लगती हैं.

तीतर की बोली बटेर क्या जाने. किसी समुदाय की भाषा उसी समुदाय के लोग समझ सकते हैं. 

तीतर के मुँह लक्ष्मी. हाकिम कितना भी निकृष्ट क्यों न हो उस की जवान में बहुत ताकत होती है.

तीतर जाने तीतर की, मैं जानूँ तेरे भीतर की. बच्चों की कहावत.

तीन कचौड़ी नौ बराती खाओ ठूसमठूस, वाह भटियारिन तेरे घर ब्याह है या है लूटमलूट. किसी कंजूस महिला का मजाक उड़ाया गया है. अपने घर शादी में वह लोगों से कह रही है कि नौ बरातियों के बीच में तीन कचौड़ियाँ हैं, खूब ठूँस ठूँस कर खाओ. इस के जवाब में दूसरी महिला व्यंग्य कर रही है कि भई कमाल है, तेरे घर की शादी में तो लूट मची हुई है.

तीन कनौजिया तेरह चूल्हे. कनौजिया लोगों के बारे में कहा जाता है कि वे कभी मिल कर नहीं रह सकते. सब के चूल्हे अलग ही जलते हैं.

तीन का टट्टू तेरह का जीन. चीज़ की कीमत तो कम हो पर उसके साथ प्रयोग में आने वाला तामझाम महंगा हो तो.

तीन कोस के बाद भी काना मिल जाए तो वापस आ जाना चाहिए. पहले के लोग शगुन अपशगुन का बहुत विचार करते थे. किसी काम के लिए जाओ और कोई काना व्यक्ति दिख जाए. तो यह बहुत बड़ा अपशगुन माना जाता था. (वैसे यह काने व्यक्ति के साथ बहुत बड़ा अन्याय है).

तीन गुनाह तो खुदा भी माफ़ करता है (तीन गुनाह खुदा भी बख्शता है). अपराध करने वाले अक्सर यह कह कर सजा से बचना चाहते हैं. किसी को क्षमादान के लिए प्रेरित करना हो तो भी ऐसे बोला जाता है.

तीन जात अलगरजी, नाऊ, धोबी, दर्जी. हज्जाम, धोबी और दर्जी किसी की परवाह नहीं करते (स्वार्थी होते हैं).

तीन टांग की घोड़ी, नौ मन की लदान. किसी अक्षम व्यक्ति पर बहुत सा काम लाद दिया जाए तो.

तीन तिकट महा विकट, चार का मुँह काला, पाँच हो तो आला. तीन लोग हों तो कोई काम नहीं होता और चार हों तो सब का मुँह काला होता है, पाँच हों तो बढ़िया काम होता है.

तीन तिगाड़ा काम बिगाड़ा. लोक विश्वास है कि तीन लोग मिल कर कोई काम करें तो काम बिगड़ जाता है.

तीन दिए और तेरह पाए, कैसे लोभ ब्याज का जाए. ब्याज पर रुपये देने से बहुत मोटा मुनाफा होता है इसलिए लोग ब्याज का लालच नहीं छोड़ पाते हैं.

तीन पाव की तीन पकाई सवा सेर की एक, जेठ निपूता तीन खा गया मैं संतोखन एक. किसी किसी पुरानी कहावत में उच्च कोटि का हास्य व्यंग्य देखने को मिलता है. कोई महिला बता रही है कि तीन पाव आटे से तीन रोटी पकाईं (यानि एक एक पाव की तीन) और सवा सेर आटे से एक पकाई. जेठ लालची और खाऊ था एक एक पाव की तीन रोटी खा गया और मुझ बेचारी को सवा सेर की एक खा कर संतोष करना पड़ा. कहावत उन लोगों के लिए कही गई है जो परले दर्जे के शातिर होते हैं और खुद को मासूम सिद्ध करने की कोशिश करते हैं.

तीन बराती नौ पाहुने. महत्वपूर्ण लोग कम और फ़ालतू लोग अधिक.

तीन बुलाए तेरह आए देखो यहाँ की रीत, बाहर वाले खा गए घर के गावें गीत. अनुमान से अधिक मेहमान आ जाएँ तो ऐसा होता है.

तीन बुलाए तेरह आए, दे दाल में पानी. किसी ने घर में दावत आयोजित की. जितने लोग बुलाए थे उससे बहुत अधिक लोग आ गए. खाना कम पड़ने की नौबत आ गई. तो बेचारे ने दाल में पानी मिलाकर उसे पतला किया. तब से यह कहावत बन गई. किसी भी कार्य में यदि अनुमान से बहुत अधिक खर्च होने की नौबत आने लगे तो जुगाड़ करनी पड़ती है. ऐसे में यह कहावत प्रयोग की जाती है.

तीन में न तेरह में, मृदंग बजाएं डेरे में. उपेक्षित होते हुए भी डींग हांकना.

तीन रांडें मुझे रंडुआ कर गईं, एक रांड तो मैं भी करूँगा. किसी व्यक्ति की एक के बाद तीन पत्नियों की मृत्यु हो गई. वह चौथा विवाह करने चला तो लोगों ने कहा कि अब अधेड़ावस्था में विवाह क्यों कर रहे हो. तब उसने चिढ़ कर ऐसा कहा.

तीन लोक से मथुरा न्यारी. 1. अति प्रिय स्थान. 2. ऐसी जगह जिस के सब नियम कायदे अलग ही हों.

तीनों पन नहिं एक समान. तीनों पन अर्थात जीवन की तीन अवस्थाएं.

तीर न कमान, काहे के पठान. पठान से पूछा जा रहा है कि अगर तुम्हारे पास तीर कमान नहीं हैं तो काहे के योद्धा बने फिर रहे हो.

तीर नहीं तो तुक्का ही सही. तुक्का माने बिना फलक का तीर. कहावत का प्रयोग इस तरह करते हैं कि यदि किसी बात का प्रमाण न हो तो अंदाज़ से कुछ भी बोल दो. (देखिये परिशिष्ट) 

तीर, तुरमती (बाज), इस्तिरी छूटत बस न आएं, झूठ जो मानें ये वचन ते नर कूढ़ कहाएं. तीर, बाज और स्त्री एक बार हाथ से निकल जाएँ तो दोबारा हाथ नहीं आते.

तीरथ गए से एक फल, संत मिले फल चार, सतगुरु मिले अनेक फल, कहे कबीर विचार. अच्छे गुरु का मिल जाना तीर्थ जाने और संतों के साथ सत्संग करने से भी कई गुना फलदायक है.

तीसरी बार खीर भी बेसवाद लगती है. कोई चीज कितनी भी प्रिय क्यों न हो, अधिक मात्र में मिल जाए तो उस का महत्व ख़त्म हो जाता है.

तीसरे दिन मुरदा भी हलाल है. मुसलमान अपने आप मरे हुए जानवर को खाना हराम मानते हैं. लेकिन अगर कोई मुसलमान तीन दिन से भूखा हो तो मरे हुए जानवर को खाना भी हलाल (धर्म सम्मत) मान लिया जाता है. आशय है आपातकाल में धर्म अधर्म नहीं देखा जाता.

तुझको पराई की क्या पड़ी, अपनी निबेड़ तू. जो खुद परेशानी में हो और दूसरों की परेशानी में टांग अड़ा रहा हो उस को सीख दी गई है.

तुझे हुकहुकी आवे तो मुझे डुबडुबी आवे. नदी के इस पार रहने वाले एक सियार और ऊंट में बड़ी दोस्ती थी. नदी के उस पार खरबूजे के खेत थे. सियार का मन खरबूजे खाने के लिए करता था लेकिन वह नदी को पार नहीं कर सकता था. उसने ऊंट को इस बात के लिए पटाया कि वह उस को अपनी पीठ पर बैठा कर उस पार ले जाए तो दोनों खूब खरबूजे खाएंगे. ऊँट राजी हो गया और दोनों उस पार पहुंच गए. वहां खूब खरबूजे खाने के बाद सियार बोला कि मुझे हुकहुकी आ रही है (मेरा मन हुआ हुआ करने को कर रहा है). ऊँट ने कहा, ऐसा मत करना. अभी खेत का मालिक आ जाएगा और हमें मारेगा. पर सियार नहीं माना और हुआ हुआ करने लगा. खेत के रखवाले डंडा लेकर आए तो सियार झाड़ियों में छुप गया और उन्होंने ऊँट को खूब मारा. ऊंट को बहुत गुस्सा आया पर वह उस समय कुछ नहीं बोला. लौटते समय नदी की बीच धार में ऊंट बोला कि मुझे डुबडुबी आ रही है (मेरा मन डुबकी लगाने का कर रहा है). सियार बोला भाई ऐसा मत करना, मैं मर जाऊंगा. लेकिन ऊँट नहीं माना. उसके डुबकी लगाते ही सियार नदी की तेज धार में बह गया.

तुम एक लेते नहीं, मैं दो देता नहीं.  तुम कम लेने को तैयार नहीं हो और ज्यादा मैं दूंगा नहीं. मोल भाव के समय का आम दृश्य. 

तुम काटो मेरी नाक और कान, मैं न छोडूँ अपनी बान. अत्यंत हठी व्यक्ति के लिए.

तुम रूठे हम छूटे. कोई व्यक्ति आप से अक्सर अपने काम के लिए कहता है और आप को न चाहते हुए भी उसका काम करना पड़ता है. फिर वह कोई काम न होने से आप से नाराज हो जाता है तब यह कहावत कही जाती है.

तुमको हम सी अनेक हैं हम को तुम सा एक, रवि को कमल अनेक हैं कमलन को रवि एक. इस कहावत को यदि कृष्ण और गोपियों का उदाहरण दे कर समझा जाए तो आसानी से समझ आएगी.

तुम्हरे भतार न हमरे जोय, अस कुछ करो कि बेटवा होय. एक विधुर व्यक्ति किसी विधवा स्त्री से विवाह का प्रस्ताव रखने के लिए घुमा फिरा कर कह रहा है, तुम्हारे पति नहीं है और हमारी पत्नी नहीं है, कुछ ऐसा करो कि बेटा हो जाए. मतलब की बात को घुमा फिरा कर कहना.

तुम्हारा हमारा क्या रूठना. यह बाट वह लोग कहते हैं जो काम के समय रूठ जाते हैं और खाने के समय मन जाते हैं.

तुम्हारी बराबरी वह करे जो टांग उठा कर मूते. किसी को गाली देने के लिए सीधे सीधे कुत्ता कहने की बजाए घुमा फिर कर कहा गया है.

तुम्हारे मरे देस पाक, हमारे मरे देस ख़ाक. आज कल के नेता एक दूसरे के लिए ऐसा कहते हैं, तुम मरोगे तो देश में से गंदगी कम होगी और हम मर गए तो देश बर्बाद हो जाएगा.

तुम्हारे मुंह में घी शक्कर. कोई बहुत अच्छी बात बोले तो ऐसा कहा जाता है.

तुम्हें और नहीं हमें ठौर नहीं (मुझे और न तुझे ठौर).  मजबूरी में एक दूसरे का साथ निभाना, जैसे आजकल के राजनैतिक गठबंधन.

तुरक काके मीत, सरप से क्या प्रीत. तुर्क से दोस्ती क्या और सर्प से प्रीत क्या.

तुरक की यारी, तूम्बे की तरकारी, अंत खारी की खारी. तुर्क से दोस्ती करोगे तो शुरू में चाहे ठीक लगे पर बाद में पछताना पड़ेगा. इसी प्रकार तूम्बे की सब्जी खाने के बाद कड़वी लगती है. तुरक – तुर्क, तुर्की (Turkey) के लोगों को तुर्क कहा जाता है. मुग़ल लोग तुर्की से नहीं आये थे लेकिन आम बोल चाल की भाषा में उन्हें भी तुर्क कहा जाता था. तरकारी माने सब्जी. 

तुरक, ततैया, तोतरा जे सब किसके मीत, भीर परत मुख मोड़ लें राखें नाहीं प्रीत. तुर्क, ततैया और तोता ये किसी के मित्र नहीं होते. संकट के समय मुँह मोड़ लेते हैं.

तुरत की पोई तुरत ही खाओ, बासी खा मत तोंद बढ़ाओ. रोटी ताज़ी बनी हुई ही खानी चाहिए, बासी खाने से तोंद बढ़ती है.

तुरत दान महा कल्याण. किसी काम को तुरंत निपटाना ही सबसे अच्छा रहता है. 

तुरत फुरत हों सगरे काम, जब होवें मुट्ठी में दाम. पैसा पास हो तो सारे काम तुरंत होते हैं.

तुर्कनी के पकाए में क्या कसर. पहले के समय में हिंदू स्त्रियां खाना बनाने के बाद पहले भगवान को भोग लगाते थीं और फिर घरवालों को खिलाती थीं. वे खाना बनाते समय बीच में चखती नहीं थीं जिससे खाना झूठा न हो जाए. इस कारण से यह संभावना रहती थी कि खाने में कोई कमी हो सकती है. लेकिन मुसलमान स्त्रियाँ क्योंकि वह बीच-बीच में चख कर देख लेती है इसलिए उनके बनाए खाने में कोई कमी नहीं होती.

तुलसी अच्छे वचन सों सुख उपजे चहुँ ओर, बसीकरण यह तंत्र है तज दे वचन कठोर. सत्य और मधुर बोलने से सब ओर सुख पैदा होता है. यही सच्चा वशीकरण यंत्र है.

तुलसी अपने राम को रीझ भजो के खीझ, खेत पड़े सब ऊपजें औंधे सीधे बीज. राम नाम को जाहे खुश रह कर भजो खीझ कर, उसका फल अवश्य मिलता है. खेत में बीज चाहे सीधा पड़ा हो चाहे उल्टा, पौधा सब से निकलता है. (ऐसा माना जाता है कि महाकवि वाल्मीकि पहले डाकू थे. उनको नारद मुनि ने राम नाम जपने का उपदेश दिया तो वह राम राम नहीं बोल पा रहे थे. तब नारद जी ने उनको मरा मरा जपने की सलाह दी. मरामरामरामरा बार बार बोलने से भी राम का नाम निकलता है.

तुलसी अवसर के पड़े, को न सहे दुःख द्वन्द. सभी को कभी न कभी दुःख सहना पड़ता है.

तुलसी ऐसे पतित को बार बार धिक्कार, राम भजन को आलसी खाने को तैयार. ऐसे पतित व्यक्ति को धिक्कार है जो राम का नाम भजने में आलस करे और खाने को हर समय तैयार रहे.

तुलसी ऐसे मीत के कोट फांद कर जाए, आवत ही तो हंस मिले चलत बेर मुरझाए. कोट – किला या किले की चारदीवारी. जो मित्र आपके आते ही हँस कर मिलता है और बिछड़ते समय उदास हो जाता है वही सच्चा मित्र है. ऐसे मित्र से मिलने के लिए किले की दीवार फांद कर भी जाना पड़े तो भी जाना चाहिए.

तुलसी कर से कर्म कर मुँह से भज ले राम, ऐसो समय न आएगो लाखों खरचो दाम. जब तक शरीर स्वस्थ है मनुष्य को कर्म करते रहना चाहिए और साथ साथ मुँह से राम का भजन करते रहना चाहिए. ऐसा अवसर दोबारा नहीं मिलेगा.

तुलसी कलयुग के समय देखो यह करतूत, राम नाम को छांड़ि के पूजन लागे भूत. तुलसी दास जी को इस बात का बहुत दुःख है कि कलयुग में लोग राम नाम को छोड़ कर भूतों की पूजा करने लगे हैं. सब से बुरी बात तो यह है कि लोग मजारों की पूजा करने लगे हैं.

तुलसी के पत्ता छोट बड़ बरोबर होवे. जो वस्तु पवित्र है वह छोटी या बड़ी, पवित्र ही मानी जाती है.

तुलसी जग में दो बड़े, कै रुपया कै राम. तुलसी का नाम ले कर किसी ने कहा है कि संसार में या तो राम बड़े हैं या रुपया. इस प्रकार की तुच्छ बात तुलसीदास नहीं कह सकते.

तुलसी पैसा पास का सब से नीको होय, होते के सब कोय हैं, अनहोते की जोय. जिस प्रकार पास का पैसा ही आदमी के काम आता है उसी प्रकार परेशानी में पत्नी ही काम आती है. (अन्य लोग तो केवल अच्छे दिनों के साथी होते हैं). आम तौर पर केवल बाद वाला हिस्सा ही बोलते हैं.

तुलसी बिरवा बाग़ के सींचत ही कुम्हलाएँ, राम भरोसे जो रहे परवत पे लहराए. ईश्वर की ऐसी महिमा है कि पर्वत पर भी पेड़ लहराता है जबकि बाग़ में लगा पौधा सींचने के बाद भी कुम्हला सकता है.

तुलसी मन शुद्ध भए जिनके वे तीरथ तीर रहे न रहे. जिनके मन शुद्ध हैं उन्हें तीर्थ के किनारे जा कर रहने की जरूरत नहीं है. (उनकी मुक्ति वैसे ही हो जाएगी).

तुलसी मीठे वचन सों सुख उपजत चहुँ ओर. मीठे वचन से सब ओर सुख फैलता है.

तुलसी मूढ़ न मानिहै जब लग खता न खाय, जैसे विधवा इस्तिरी गरभ रहे पछताय. मूर्ख व्यक्ति जब तक धोखा नहीं खाता तब तक वह नहीं मानता. जैसे विधवा स्त्री जिसका चाल चलन ठीक न हो गर्भ रह जाने पर पछताती है.

तुलसी या संसार में पांच रतन हैं सार, साधुमिलन अरु हरि भजन, दया, धर्म, उपकार. इस संसार में पाँच रत्न हैं, साधुओं से मिलना, ईश्वर का भजन करना, सब पर दया करना, धर्म पर चलना और परोपकार करना.

तुलसी या संसार में पाखंडी को मान, सीधों को सीधा नहीं झूठों को सम्मान. इस संसार में पाखंडियो को ही सम्मान मिलता है. सीधे लोगों को तो भरपेट भोजन भी नहीं मिलता जबकि झूठे लोगों को सम्मान मिलता है.

तुलसी वह दोउ गए पंडित और गृहस्थ, आते आदर न कियो जात दियो न हस्त. जो आते ही अतिथि का सत्कार नहीं करते और उसके जाते समय हाथ में कुछ देते नहीं हैं, ऐसे लोग मुक्ति नहीं पा सकते.

तुलसी विलम्ब न कीजिए लेते हरी को नाम. ईश्वर का नाम लेने में आलस्य नहीं करना चाहिए.

तुलसी वैश्या देख के करन लगे तकझाँक, आवत देखे संत को मुँह लीन्हों झट ढांक. कहावत उन लोगों के लिए कही गई है जो वैश्या को आते देख कर तो तांक झांक करते हैं और संत को आते देख कर झट से मुँह ढक लेते हैं.

तुलसी हरि की भगति बिन, धिक दाढ़ी धिक मूँछ, पशु गढ़न्ते नर बनो, बिना सींग और पूंछ. हरि की भक्ति के बिना दाढ़ी मूंछें बढ़ा लेने पर धिक्कार है. ऐसे लोग बिना सींग और पूंछ के पशुओं के समान हैं.

तू अपना काम कर, तबलया भूँसन दे. तू अपना काम करता रह तबेले में बैठे कुत्ते को भौंकने दे. आलोचकों से बिना डरे काम करने की सलाह.

तू कबर खोद मोकों, मैं गाड़ आऊँ तोको. तू मेरे लिए कब्र क्या खोदेगा मैं ही तुझे गाड़ दूंगा.

तू गधी कुम्हार की, तुझे राम से क्या. बात ठीक ही है, कुम्हार की गधी को राम से क्या काम. जिसके अंदर कोई आध्यात्मिक चिंतन न हो और जो केवल अपना पेट भरने के लिए किसी की गुलामी कर रहा हो उस के लिए.

तू चाहे मेरे जाये को, मैं चाहूँ तेरी खाट के पाए को. पुरुष पुत्र की इच्छा करता है और स्त्री साथ रहने की. इससे उलट एक दूसरी कहावत है – मैं चाहूँ तेरे जाए को, तू चाहे मेरी खाट के पाए को. स्त्री की रूचि पुत्र को पालने में है और पुरुष की रूचि संसर्ग में.

तू डार डार मैं पात पात. तुम पेड़ की डालों पर चलोगे तो मैं पत्तों पर चलूँगा अर्थात मैं तुम से अधिक चालाक हूँ.

तू डाल मेरे मुँह में उँगली, मैं डालूँ तेरी आँख में. तू मेरा कुछ नुकसान करेगा तो मैं तेरा उससे बड़ा नुकसान करूंगा.

तू तेली का बैल, तुझे क्या सैर, लगा रह घानी से. जो व्यक्ति दिन रात काम में पिसता रहता है उस का मजाक उड़ाने के लिए. घानी – कोल्हू.

तू देवरानी मैं जेठानी, तेरे आग न मेरे पानी. जब दो बराबर के शातिर लोग मिल जाएँ.

तू भी ऐंठा मैं भी ऐंठी कैसे होए निबाह. चाहे विवाह का सम्बंध हो या दोस्ती का, किसी विवाद पर कोई भी झुकने को तैयार न हो तो निर्वाह नहीं हो सकता. 

तू भी रानी मैं भी रानी, कौन भरेगा पानी. जहाँ सभी अपनी अपनी ऐंठ में हों वहाँ काम कौन करेगा.

तू मेरा लड़का खिला, मैं तेरी खिचड़ी पकाऊँ. बहू का सास या ससुर से कथन. तुम मुझे सहयोग करो तो मैं तुम्हें सहयोग करूँ.

तू मेरी ढपली बजा, मैं तेरा राग अलापूं. तुम मुझसे सहमत हो तभी मैं तुम्हारी इच्छा के अनुसार बोलूंगा.

तू मेरी पीठ खुजला, मैं तेरी पीठ खुजलाऊँ. पीठ खुजलाना एक ऐसा काम है जो हम खुद से नहीं कर सकते. इस तरह के सभी कामों में एक दूसरे की मदद करना चाहिए.

तू मेरे घूँघट की रख, मैं तेरी मूंछों की रक्खूँ. पत्नी का पति से कथन – तुम मेरी स्त्री सुलभ लज्जा और मर्यादा का ध्यान रखो, मैं तुम्हारे पुरुषत्व का मान रखूँगी.

तू मेरे बारे को चाहे, मैं तेरे बूढ़े को चाहूँ. बहू सास से कह रही है कि तुम मेरे बच्चे का ध्यान रखोगी तो मैं तुम्हारे बुढ़ऊ का ध्यान रखूँगी.

तू सच्चा तेरा पीर सच्चा. जो लोग अपनी आस्थाओं के प्रति बहुत हठी होते हैं उन से पीछा छुड़ाने के लिए ऐसा कहा जाता है.

तूने की रामजनी, मैंने किया रामजना. रामजनी माने वैश्या. वेश्यागामी पति से परेशान कोई स्त्री उस से कह रही है कि तू वैश्या के यहाँ जाता है तो जा, मैं ने भी एक यार पाल लिया है.

तूम्बी का क्या मीठा. जो व्यक्ति हर तरह से केवल कड़वा ही हो.

तूम्बी तिरे, तूम्बी तारे, तूम्बी कभी न भूखा मारे.  जो साधु बन गया वह कभी भूखा नहीं मरता.

तूम्बे की बेल पर तो तूम्बे ही लगेंगे. यदि किसी कर्कश स्त्री के बच्चे असभ्य हों तो यह कहावत कही जाएगी. 

तृन समूह को छिन भर में, जारत तनिक अंगार. छोटा सा अंगारा तिनकों के ढेर को क्षण भर में जला देता है. ज्ञान की छोटी सी बात, शंकाओं के समूह को भस्म कर देती है. 

तेजी का बोलबाला, मंदी का मुँह काला. व्यापारी लोग सब से अधिक मन्दी से डरते हैं.

तेतरी बेटी राज रजावे, तेतरा बेटा भीख मंगावे. तेतरी बेटी – दो बेटों के बाद होने वाली बेटी. दो बेटों के बाद बेटी हो तो शुभ होती है और बेटा हो तो अशुभ.

तेते पाँव पसारिए जेती लम्बी सौर (अपनी पहुँच बिचारि कै, करतब करिये दौर). जितनी लम्बी आपकी चादर है उतने ही पैर फैलाओ. चादर छोटी हो तो पैर समेट के लेटो. जितनी व्यक्ति की सामर्थ्य हो उतना ही खर्च करना चाहिए.

तेरह के तीन ही देना, पर नाम दरोगा रख देना. कुछ लोग ऐसी नौकरी चाहते हैं जिसमें वेतन चाहे कम हो लेकिन रौब दाब अधिक हो (चाहे बनावटी ही क्यों न हो).

तेरह बरस की तिरिया पन्द्रह बरस का पुरख, अक्ल आई तो आई नहीं तो रहा जरख. स्त्री में यदि तेरह वर्ष की आयु तक और पुरुष में पंद्रह वर्ष की आयु तक अक्ल न आये तो उसे जानवर समझ लेना चाहिए. जरख – लकडबग्घा. 

तेरा तो घड़ा ही फूटा, मेरा तो बना बनाया घर ही ढह गया. एक तेली तेल से भरा घड़ा ले कर शहर की ओर चला तो रास्ते में एक हट्टा कट्टा शेखचिल्ली (निहायत मूर्ख आदमी) मिला. तेली ने कहा मेरा घड़ा लाद लो मैं तुम्हें दो आने दूंगा (पहले के जमाने में दो आने बड़ी रकम थी). शेखचिल्ली ने घड़ा लाद लिया और जोर जोर से बोलते हुए चलने लगा, मैं इन दो आनों से अंडे खरीदूँगा, उन से मुर्गियाँ निकलेंगी, उन्हें बेच कर बकरी खरीदूँगा, फिर कई बकरियाँ हो जाएंगी तो भैंस खरीदूँगा, उस का दूध बेच कर शादी करूंगा, फिर मेरे खूब सारे बच्चे होंगे, मेरा कहना नहीं मानेंगे तो यूँ उठा के पटक दूंगा, और उसने घड़ा पटक दिया. तेली ने कहा कि तूने मेरा तेल से भरा घड़ा क्यों तोड़ दिया, तो शेखचिल्ली बोला तेरा तो घड़ा ही फूटा है, मेरा तो बना बनाया घर ही उजड़ गया. कहावत में शिक्षा दी गई है कि मूर्ख आदमी से अपना कोई काम नहीं करवाना चाहिए. 

तेरा माल सो मेरा माल, मेरा माल सो हें हें. तेरा माल भी मेरा है और जो मेरा है वह तो मेरा है ही. धूर्त व्यक्ति के लिए.

तेरा यार मर गया, कौन सी गली का. वेश्याओं के बहुत सारे ग्राहक होते हैं. सभी अपने आप को उसका खास दोस्त समझते हैं. उनकी नासमझी पर व्यंग

तेरी आँखों में राइ नोन. किसी से बहुत नाराज होने पर उसे कोसने के लिए कहा जा रहा है कि तेरी आँखों में राई और नमक पड़ जाए. तेरे मुँह में घी शक्कर से उल्टा. किसी की नजर लगने की आशंका हो तो भी उस का नाम ले कर फिर यह बोलते हैं. 

तेरी करनी तेरे आगे, मेरी करनी मेरे आगे. अपनी अपनी करनी सब के आगे आनी है. कोई आप के साथ अन्याय कर रहा है और आप का कुछ बस नहीं चल रहा तो आप उसे ऐसा बोल कर मन में संतोष कर लेते हैं.

तेरी कुदरत के आगे कोई जोर किसी का चले नहीं, चींटी पर हाथी चढ़ बैठे फिर भी चींटी मरे नहीं. ईश्वर की लीलाएं निराली हैं. ईश्वर चाहे तो ऐसा भी हो सकता है कि चींटी के ऊपर हाथी पैर रख दे फिर भी चींटी न मरे.

तेरी गठरी में लागा चोर, मुसाफिर जाग जरा. मनुष्य को इस सांसारिक यात्रा में काम क्रोध लोभ मोह से सावधान रहने की सलाह दी गई है.

तेरी गाली, मेरे कान की बाली. जिससे प्रेम हो उसकी हर बात अच्छी लगती है.

तेरी मेरी बने नहीं, तेरे बिना सरे नहीं. उन लोगों के लिए जिनमें आपस में बनती नहीं है पर एक दूसरे के बिना काम भी नहीं चलता.

तेरी मेरी बोली में बस इतना ही फरक, तू तो कहे फ़रिश्ता मैं कहूँ था जरख. जरख – लकड़बग्घा. किसी मुसलमान की कब्र खोद कर लकडबग्घा उस की लाश को ले गया. एक जाट ने यह देख लिया. उसने जब मुसलमान के घरवालों को यह बात बताई तो वे बोले कि वह तो लकड़बग्घा नहीं फ़रिश्ता था. 

तेरे जौ तेरी दरांती, जैसे चाहे काट. मनुष्य को इस बात की पूरी स्वतन्त्रता है कि वह अपनी चीज़ को जिस तरह चाहे प्रयोग करे.

तेरे मेरे सदके में, उसकी जोरू पेट से. कोई स्त्री पराए आदमी को मना न कर पाने का खामियाजा भुगत रही है (उसे गर्भ ठहर गया है). इसी प्रकार की दूसरी कहावत है – मुरव्वत में मातियन गाभिन हो गई.

तेरो राम बसत है मन में, तू कहे को डोले वन में. तेरा ईश्वर तेरे मन में बसता है, तू उसे ढूँढने के लिए वन वन क्यों भटक रहा है?

तेल की जलेबी मुआ दूर से दिखाए. एक तो घटिया चीज़ है (तेल से बनी जलेबी) ऊपर से नालायक आदमी खिलाने की बजाए दूर से दिखा रहा है. 

तेल जले बाती जले नाम दिए का होए, बेटा तो तिरिया जने नाम पिया का होए. देश और समाज के कामों में त्याग व बलिदान कोई और करता है पर नाम किसी और का होता है. 

तेल डाल कमली का साझा. किसी आदमी ने काफी मेहनत और लागत लगा कर कम्बल बनाया और उसे चिकना करने के लिए तेली से तेल मांगा. तेली ने कहा मेरा इस में आधे का साझा होना चाहिए.

तेल तिल से निकलता है, खली से नहीं. जब तिल में से तेल निकाल लिया जाता है तो जो बचता है उसे खली कहते हैं. उस खली में से फिर तेल नहीं निकल सकता. आप सेल में कपड़ा खरीदें और दुकानदार से उस पर भी छूट देने को कहें तो वह यह कहावत बोलेगा.

तेल तेली का नाम भगत जी का. भगत जी ने आरती में सौ दिए जलाए. तेल तो बेचारे तेली का खर्च हुआ और तारीफ़ भगत जी की हुई. किसी और के काम का श्रेय कोई दूसरा ले ले तो.

तेल देखो तेल की धार देखो. किसी बड़े बर्तन से छोटी शीशी में तेल डालना हो तो बड़े धैर्य से तेल की धार को ध्यान से देखते हुए तेल डालना होता है. कहावत का अर्थ है कि कोई कठिन काम पूरा होने में समय लगता है उसके लिए धैर्य रखना चाहिए.

तेल न मिठाई, चूल्हे धरी कड़ाही. साधन न होते हुए भी कोई काम करने की कोशिश करना या दिखावा करना.

तेल पिला कर घी निकाले. गाय भैंस से अधिक घी प्राप्त करने के लिए उन्हें तिल और बिनौले की खली खिलाई जाती है. जो व्यापार में लाभ प्राप्त करना चाहता है वह लागत भी लगाता है.

तेल में घी की मिलावट कोई नहीं करता. सस्ती चीज़ में महंगी की मिलावट कोई नहीं करता.

तेलिन से न धोबिन (मोचिन) घाट, इनके मोगरी उनके लाठ. घाट – घटी हुई (कम). तेली की स्त्री धोबिन या मोची की स्त्री से किसी प्रकार कम नहीं है. उसके पास मूसल है तो इन के पास लट्ठ. जब दो लोग इस बात पर बहस कर रहे हो कि उन में से कौन बड़ा है तो उन का मजाक उड़ाने के लिए.

तेली का काम तमोली करे, चूल्हे में से आग उठे. तमोली माने पान बेचने वाला. किसी का काम कोई और करे तो कुछ का कुछ हो सकता है.

तेली का तेल गिरा हीना हुआ, बनिए का नून गिरा दूना हुआ. तेली का तेल जमीन पर गिर जाए तो बेकार हो जाता है, बनिए का नमक गिर जाए तो वह उस को उठा लेता है और धूल मिट्टी मिल कर नमक दूना हो जाता है. मतलब बनिया कभी नुकसान नहीं उठाता.

तेली का तेल जले, मशालची का दिल जले. कोई खर्च कर रहा है और परेशानी किसी और को हो रही है.

तेली का हुनर तमोली क्या समझेगा. तमोली – पान बेचने वाला (ताम्बूल से बना है). किसी भी व्यवसाय को करने वाला व्यक्ति अपने काम को करते करते उसमें पारंगत हो जाता है. कोई दूसरा उस हुनर को नहीं समझ सकता.

तेली के घर तेल तो चुपड़े नहीं पहाड़. तेली के घर तेल उपलब्ध है तो वह उससे पहाड़ थोड़े ही चुपड़ेगा. यदि हमारे पास किसी चीज़ की बहुतायत है तो हम उसका दुरुपयोग थोड़े ही करेंगे. 

तेली के बैल को घर ही कोस पचास. तेली का बैल कोल्हू से बंधा हुआ दिन भर उसी के चक्कर लगाता रहता है और दिन भर में कई कोस के बराबर चल लेता है. कहावत ऐसे लोगों के लिए कही जाती है जिन्हें घर में रह कर भी बहुत मेहनत करनी पड़ती है.

तेली के माथा में तेल. व्यक्ति जिस चीज का व्यवसाय करता है वह उसे सहज ही उपलब्ध होती है.

तेली खसम किया, फिर भी रूखा खाया.  तेली से शादी की फिर भी रूखा खाना खाया. जो सुविधा पाने के लिए आप कहीं गए वही आप को नहीं मिली तो यह कहावत कही जाती है.

तैरता सो डूबता. (तैरेगा सो डूबेगा). जो तैरेगा वही तो डूबेगा, जो डर के मारे किनारे बैठा रहेगा वह थोड़े ही डूबेगा.

तैराक की मौत पानी में ही होती है. अति आत्म विश्वास अंतत: मनुष्य को ले डूबता है.

तो सम पुरुष न मो सम नारी, यह संयोग विधि रचा विचारी. सूपनखा ने लक्ष्मण जी से ऐसा कहा था. जो स्त्रियाँ अपनी शक्ल सूरत और आयु न देख कर पुरुषों के सामने तरह तरह की अदाएँ दिखाती हैं उन का मजाक उड़ाने के लिए यह कहावत कही जाती है. 

तोको पीर न मोको आपदा. इस काम में न तुझे कोई कष्ट है न मुझे कोई आफत है, अर्थात यह काम कर लेना चाहिए.

तोड़ने आए चारा और खेत पर इजारा. आपने किसी को अपने खेत में उगा हुआ चारा तोड़ने की इजाज़त दे दी और वह खेत पर ही अधिकार जमाने लगे तो यह कहावत कही जाएगी.

तोप के धमाकों में ताली की क्या बिसात. जहाँ बहुत बड़े बड़े लोग बोल रहे हों, वहाँ छोटे आदमी की कौन सुनेगा.

तोला के पेट में घुंघची. घुंघची – रत्ती (एक तोले में 96 रत्ती होती हैं). अर्थ है कि बड़ी चीज़ में छोटी चीज़ समा जाती है. (देखिये परिशिष्ट) 

तोला भर की आरसी, नानी बोले फ़ारसी. पहले के जमाने में दर्पण बहुत कम लोगों के पास होते थे. गरीब लोग पानी में शक्ल देख कर काम चला लेते थे. कुछ लोगों के पास एक छोटा सा शीशा होता था जिसे आरसी कहते थे. जैसे आज कल अंग्रेज़ी बोलना संभ्रांत होने का पर्यायवाची है वैसे ही उस जमाने में संभ्रांत लोग फ़ारसी बोलते थे. कहावत का अर्थ है कि बिलकुल छोटी सी चीज़ पर नानी इतरा रही हैं.

तोला भर की तीन कचौड़ी, खुरमा माशे ढाई का, लालाजी ने ब्याह रचाया, लहंगा बेच लुगाई का. अति कंजूस लोगों की मज़ाक उड़ाने के लिए. (पुरानी तौल के हिसाब से 8 रत्ती का एक माशा, 12 माशों का एक तोला (11.66 ग्राम). लाला जी ने एक तोला आटे से तीन कचौड़ी बनाईं और ढाई माशे से खुरमा (शक्करपारा). पत्नी का लहंगा बेच कर बाकी पैसे इकट्ठा किये और शादी करने चले हैं. बहुत जुगाड़ कर के लोगों को बेवकूफ बनाने वाले लोगों के लिए भी यह कहावत कही जा सकती है.

तोले भर की तीन चपाती, चले जिमाने घोड़े हाथी. बिना साधन के बड़ा काम करने की मूर्खता करना.

तोहरा बैल मोरा भैंसा, हम दोनों में संगत कैसा. व्यर्थ की बातों पर लड़ाई.

तौबा तेरी छाछ से, मुझे इन कुत्तों से छुड़ा.  सम्पन्न लोग अक्सर दही में से मक्खन निकाल कर उसकी छाछ को बांटने के लिए गरीब लोगों को बुलाते हैं. ऐसे किसी गरीब आदमी को रहीस के कुत्तों ने घेर लिया तो वह बेचारा परेशान हो कर ऐसे बोल रहा है. किसी छोटी चीज के लालच में आदमी बड़ी मुसीबत में फंस जाए तो.  

 

 

 

थका ऊँट सराय ताकता. जब ऊँट थका हुआ होता है तो वह सराय की ओर ताकता है (कि कब मालिक सराय में पहुँचे और कब उसे विश्राम मिले).

थका तैराक फेन चाटता है. परिस्थितियों से बाध्य हो कर मनुष्य को छोटा कार्य भी करना पड़ता है.

थके का सहारा, तम्बाकू बिचारा. तम्बाखू का सेवन करने वाले अपने को सही ठहराने (अपने को धोखा देने) के लिए ऐसे बोलते हैं.

थके बैल गौन है भारी, अब क्या लादोगे व्यापारी. (गौन – एक प्रकार का थैला जिस में सामान रख कर बैलों पर लादते हैं). वृद्धावस्था के लिए कहा गया है, शरीर थक चुका है, पापों की गठरी पहले ही भारी हो चुकी है अब इस में और क्या लादोगे.

थके मनुष्य का भाग्य भी थक जाता है. जब तक मनुष्य उद्यम करता है तभी तक भाग्य उसका साथ देता है, उद्यम करना छोड़ने पर भाग्य भी उसका साथ छोड़ देता है.

थाली गिरी, झनकार हमने भी सुनी (थाली फूटी न फूटी झंकार तो हुई).  इसकोकुछ इस प्रकार से प्रयोग करते हैं – फलाने दो लोगों में शायद झगड़ा हुआ है, कुछ आहट हमको भी मालूम हुई है. सम्बन्ध चाहे न टूटा हो पर कुछ तकरार तो हुई है.

थूक बिलोने से मक्खन नहीं निकलता. बिना साधन के कोई काम नहीं किया जा सकता.

थूक से चिपकाया कै दिन चलेगा. घटिया काम और झूठ बहुत दिन तक नहीं चलते.

थूक से सत्तू नहीं सनते.  1. सत्तू बनाने के लिए ठीक ठाक मात्रा में पानी चाहिए. बहुत थोड़े से पानी से सत्तू नहीं बनेगा. काम बड़ा हो और साधन बहुत कम हों तो. 2. अपमान जनक तरीके से किसी पर उपकार नहीं करना चाहिए.

थैली की चोट बनिया जाने. पूंजी का नुकसान कितना बड़ा नुकसान होता है यह बनिया ही जान सकता है. (क्योंकि उसे केवल खर्च करने के लिए ही नहीं बल्कि व्यापार करने के लिए भी पूंजी चाहिए).

थैली बनाए हवेली. पैसे से बड़े बड़े काम किए जा सकते हैं.

थैली भरी तो सारी बात खरी. जिस के पास पैसा हो उस की सब बात ठीक है.

थैली में रुपया, मुँह में शक्कर. व्यापार के लिए ये दोनों आवश्यक हैं. थैली में रुपया अर्थात निवेश के लिए पूँजी और मुँह में शक्कर अर्थात मीठी बोली. 

थैली लगावे सो थैला पावे. व्यापार में पूंजी लगाओगे तभी अधिक कमा पाओगे.

थोड़ा कमावे खरचे घनो, पहला मूरख उस को गिनो. सबसे बड़ा मूर्ख वह है जो कमाता कम है और खर्च अधिक करता है.

थोड़ा करें गाज़ी मियाँ, ज्यादा गाएं डफाली. डफाली – डफली बजा कर गाने वाले. साधु महात्मा लोग थोड़ा सा भी कुछ करते हैं तो उनके प्रशंसक बहुत बढ़ा चढ़ा कर बताते है.

थोड़ा खरचे थोड़ा खाए, उस पर टोटा कभी न आए. समझदारी से खर्च करने और कम खाने वाले को धन का संकट कभी नहीं आता. कम खाने से धन की बचत भी होती है और बीमारी भी नहीं होती.

थोड़ा खाना, बनारस में बसना. बनारस में बसने का एक समय बड़ा महत्व था. भरपेट खाना न मिले तब भी लोग बनारस में बसने की लालायित रहते थे.

थोड़ा खावे अंग लगावे, ज्यादा खावे घूर बढ़ावे. थोड़ा खाया हुआ शरीर को लगता है और ज्यादा खाने से शरीर को कोई लाभ नहीं होता, केवल अधिक मल बनता है. घूर – घूरा  (मल और कूड़े का ढेर).

थोड़ा खावे बहुत डकारे. काम थोड़ा और दिखावा बहुत करने वालों के लिए.

थोड़ा जितना मीठा, ज्यादा उतना ही कड़वा. जो वस्तु कम मात्रा में उपलब्ध होती है वह अच्छी लगती है. जो अधिक मात्रा में मिल जाए वह बेकार लगने लगती है.

थोड़ा थोड़ा खाय, न मरे न मुटाय. थोड़ा थोड़ा खाने वाला मोटा भी नहीं होता और जल्दी मरता भी नहीं है. (क्योंकि कम खाने से बीमारियाँ कम होती हैं).

थोड़ा थोड़ा जोड़ो, मुनाफ़ा कभी ना छोड़ो. कहावत के द्वारा बहुत से व्यवहारिक सुझाव दिया गया है. छोटी बचत भी लम्बे समय में बड़ी राशि बन जाती हैं. दूसरी सलाह है कि व्यापार में जहाँ मुनाफा हो रहा हो वहाँ चूकना नहीं चाहिए.

थोड़ी पूँजी खसमै खाय. कम पूँजी दूकानदार को ही बर्बाद कर सकती है. क्योंकि उससे लाभ कम होगा. यदि व्यापार की लागत अधिक हुई तो कम पूँजी का व्यापार नष्ट हो जाएगा.

थोड़े नफे में अधिक कुसल. ज्यादा मुनाफे के चक्कर में रकम डूब जाए इससे अच्छा है कि कम नफा लिया जाए.

थोड़े ही धन, खल बौराए (थोड़े धन में खल इतराए). ओछी प्रवृत्ति का आदमी थोड़ा धन पा कर ही इतराने लगता है.

थोड़े ही में पाइए सब बातन को सार. अपनी बात को आप जितने कम शब्दों में व्यक्त कर पाएँ उतने ही काबिल माने जाएंगे.

थोथा चना बाजे घना. कोई घड़ा यदि चनों से पूरा भरा हो तो हिलाने से आवाज़ नहीं आएगी, लेकिन यदि आधा भरा हो तो हिलाने से आवाज़ आएगी. इसे इस प्रकार भी कह सकते हैं कि घुना हुआ चना अधिक आवाज करता है. कहावत का अर्थ है कि जिन लोगों को कम ज्ञान होता है वे अधिक बोलते है. इंग्लिश में कहावत है – The less men know, the more they talk.

थोथा फटके उड़ उड़ जाए. छाज (सूप) में अनाज फटकते समय जो खोखला अनाज होता है वह उड़ जाता है. जो व्यक्ति स्वभाव से गंभीर नहीं होता वह कठिनाइयों का सामना नहीं कर सकता. 

थोथे बांस कड़ाकड़ बाजें. बांस यदि ठोस हो तो उसे पटकने पर आवाज नहीं होती, पर यदि खोखला हो तो उसे पटकने पर जोर की आवाज होती है. कहावत में यह समझाया गया है कि अल्पज्ञानी व्यक्ति बहुत बोलता है.

थोथे बादर क्वार के, ज्‍यों रहीम घहरात, धनी पुरुष निर्धन भये, करै पाछिली बात. थोथे बादर – बिना पानी के बादल. जिस प्रकार क्वार के महीने में बिना पानी वाले बादल गरजते हैं, उसी प्रकार धनी लोग जब निर्धन हो जाते हैं तो अपने पिछले दिनों की बातें करते हैं.

 

 

दगा किसी का सगा नहीं. धोखेबाज़ आदमी किसी का सगा नहीं होता.

दगा किसी का सगा नहीं, कर के देखो भाई, चिट्ठी उतरी बामन ऊपर, नाई नाक कटाई. किसी को धोखा दे कर आप फायदा नहीं उठा सकते, इस आशय की एक कहानी कही जाती है.  एक राजा किसी ब्राह्मण के ऊपर बहुत मेहरबान था. राजा के नाई को यह बहुत नागवार गुजरता था. नाई ने ईर्ष्यावश ब्राह्मण के खिलाफ राजा के खूब कान भरे. राजा उस के षड्यंत्र को नहीं समझ पाया और ब्राह्मण को सजा देने के लिहाज से राजा ने उसे एक बंद चिट्ठी और दो मोहरें दीं और कहा कि कोतवाल को चिट्ठी दे देना. चिट्ठी में लिखा था कि चिट्ठी लाने वाले की नाक काट लेना. सरल हृदय ब्राह्मण ने बाहर निकल कर नाई को बताया कि वह कोतवाल को कोई महत्वपूर्ण संदेश देने जा रहा है. नाई ने उससे चिट्ठी ले ली और स्वयं ही देने चला गया और अपनी नाक कटा बैठा.

दगाबाज दूना नवे, चीता चोर कबाण. चीता, चोर, धनुष और दगाबाज व्यक्ति जितना झुकते हैं उतना ही अधिक नुकसान पहुँचाते हैं. इस आशय की एक और कहावत है – नमनि नीच की अति दुखदाई.

दब कर रहना ही बड़ा दाँव. व्यवहार कुशलता का सबसे बड़ा गुर है दब कर रहना. विनम्रता पूर्ण व्यवहार से बड़े से बड़े शक्तिशाली लोगों को भी वश में किया जा सकता है.

दबा बनिया पूरा तौले. जब बनिये की अटकी होती है तो वह पूरा तौलता है वरना वह डंडी मारने की कोशिश करता है.

दबा हाकिम मातहतों से दबे. कमजोर अधिकारी (या रिश्वतखोर अधिकारी) अपने मातहतों से दबता है.

दबाने पर चींटी भी चोट करती है. अधिक अत्याचार करने से दुर्बल व्यक्ति भी हिंसक हो सकता है.

दबी आग और दबी बहू. जो लोग घर की बहू को दबा कर रखते हैं उन्हें सीख दी गई है कि दबी हुई बहू दबी हुई आग के समान खतरनाक है जो कि कभी भी विकराल रूप धारण कर सकती है.

दबी बिल्ली चूहों से कान कतरवाती है. शक्तिशाली व्यक्ति जब संकट में होता है तो उसे कमज़ोर लोगों से दबना पड़ता है.

दबे को सब दबाते हैं. मजबूर और लाचार इंसान पर सब रौब जमाते हैं.

दम भाई सगे भाई, और भाई घसर पसर. नशा करने वालों में बड़ा तगड़ा भाईचारा होता है.

दम है तो क्या गम है. अपने अंदर शक्ति है और आत्मविश्वास है तो कोई काम कठिन नहीं है.

दम है तो क्या गम है. नशा करने के बाद सारे दुःख भूल जाते हैं.

दमड़ी का उपला, धुआंधार मचाए. कोई सस्ती सी चीज बहुत बड़ा काम कर दे यह बहुत अव्यवस्था फैला दे तो.

दमड़ी का सौदा, बाजार ढिंढोरा. छोटे से काम का बहुत भारी दिखावा.

दमड़ी की अरहड़, सारी रात खड़खड़. पुरानी मुद्रा में दमड़ी माने पैसे का आठवाँ भाग. बहुत कम कीमत की अरहर काट के लाए हैं और उसे रखने के लिए रात भर उठा पटक कर रहे हैं. छोटे से काम में बहुत दिखावा करना.

दमड़ी की उगाही में दस चक्कर. थोड़े से लाभ के लिए बहुत अधिक परिश्रम करना पड़े तो.

दमड़ी की घोड़ी, छै पसेरी दाना. पसेरी माने पाँच सेर (कहीं कहीं ढाई सेर को भी पसेरी कहते हैं). घोड़ी तो बहुत कम कीमत की है पर दाना बहुत पैसों का खा रही है. किसी सस्ती चीज़ की मेंटेनेंस कॉस्ट बहुत अधिक हो तो.

दमड़ी की दाल, बुआ पतली न हो. कामवाली को जरा सी दाल बनाने के लिए दी है और कह रही हैं दाल पतली नहीं होनी चाहिए.

दमड़ी की निहारी में टाट के टुकड़े. निहारी माने नाश्ता (निराहार का अपभ्रंश है). कहीं बहुत सस्ता नाश्ता मिल रहा है, खाते समय उस में टाट के टुकड़े निकल आए तो शिकायत कैसी. बहुत सस्ते में कोई चीज़ बनाने की कोशिश की जाए तो उसकी गुणवत्ता कम हो ही जाएगी.

दमड़ी की पगड़ी, अधेली का जूता. दमड़ी माने पैसे का आठवाँ हिस्सा और अधेली माने अठन्नी. कहावत उस समय की जब पगड़ी शान की चीज़ मानी जाती थी लिहाजा उस में लोग अधिक पैसा खर्च करते थे. जूते को लोग हिकारत की नजर से देखते थे और उसमें बहुत कम पैसे खर्च करना चाहते थे. उस समय के हिसाब से कोई आदमी उल्टा काम करे तो यह कहावत कहते थे. अब पगड़ी तो लोग पहनते ही नहीं हैं और जूते में हजारों रूपये खर्च करते हैं.

दमड़ी की बुलबुल, टका हलाली. दमड़ी माने पैसे का आठवाँ हिस्सा और टका माने दो पैसा (अधन्ना). सामान बहुत सस्ता लेकिन बनाने का खर्च बहुत अधिक हो तो.

दमड़ी की भाजी, घर भर राजी. गरीब आदमी की आवश्यकताएँ बहुत कम होती हैं.

दमड़ी की मुर्गी, नौ टका पकड़ाई. सामान बहुत सस्ता पर सामान लाने का खर्च बहुत अधिक है.

दमड़ी की सुई, सवा मन मलीदा. (मलीदा – एक प्रकार का बढ़िया व महंगा खाद्य पदार्थ). अनहोनी और उलटी बात, छोटी सी सस्ती सी सुई के लिए कोई सवा मन मलीदा क्यों देगा.

दमड़ी की हंडिया गई सो गई, कुत्ते की जात तो पहचानी गई. कोई सज्जन अच्छी नस्ल का समझ कर एक महंगा कुत्ता खरीद कर लाए. एक दिन मौका मिलते ही कुत्ता आंगन में रखी हंडिया ले कर भाग गया. वह सज्जन इस घटना से उदास हो कर बैठे थे तो किसी सयाने ने उन्हें इस तरह से समझाया. आपका कोई दोस्त, रिश्तेदार या नौकर धोखा दे तब भी यह कहावत कही जाती है.

दमड़ी न कौड़ी, रानी से मटकौअल. पास में फूटी कौड़ी नहीं है और बहुत बड़े घर की स्त्री से प्रेम करने चले हैं. मटकौअल को लोग नैन मटक्का भी बोलते हैं.

दमदमे में दम नहीं, खैर मांगो जान की. दमदमा – मोर्चाबंदी. जिसकी सेना कमजोर हो वह यह बात कहता है.

दमा दम के साथ जाता है. दमे की बीमारी ठीक नहीं होती, प्राण निकलने पर ही रोगी का पीछा छोड़ती है.

दमी यार किसके, दम लगाया खिसके. गांजा, सुल्फा, चरस और स्मैक आदि पीने वाले नशेड़ी लोगों को दमी (दम लगाने वाला) कहा जाता है. जहाँ कहीं नशे के अड्डे होते हैं वहाँ ये लोग पहुँच जाते हैं और दम लगा कर वहाँ से खिसक लेते हैं. कहावत स्वार्थी लोगों के लिए कही गई है जो अपना स्वार्थ पूरा होते ही वहाँ से निकल लेते हैं.

दया धर्म को मूल है पाप मूल अभिमान, तुलसी दया न छोड़िये जब लग घट में प्रान. सभी प्राणियों पर दया करना धर्म का मूल घटक है और अपने ऊपर अभिमान करना पाप की जड़ है. जब तक मनुष्य जीवित है उसे दया नहीं छोड़नी चाहिए.

दया धर्म नहिं मन में, मुखड़ा क्या देखे दर्पन में. यदि तुम्हारे मन में दया और धर्म नहीं है तो दर्पण में अपना रूप देख कर प्रसन्न मत हो.

दया बिनु संत कसाई. जिस संत के मन में दया नहीं है वह कसाई के समान है.

दरदी ही जाने दरदी की गति (दर्द को वह समझे जो खुद दर्दमंद हो).  दूसरे का कष्ट वही जान सकता है जिसने स्वयं वह कष्ट झेला हो. 

दरबार तक पहुँच हो तो दरबारी के पास क्यों जाए. जब बड़े आदमी से सीधे सम्बंध हों तो चमचों के पास क्यों जाएं.

दरया पर जाना और प्यासे आना. यदि किसी याचक को बहुत सम्पन्न व्यक्ति के यहाँ से खाली हाथ लौटना पड़े तो यह कहावत कहते है. 

दरवाजे पर आई बरात, समधन को लगी हगास. जब बरात किसी के घर आती है तो द्वारचार में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका लड़की की मां की होती है. उस समय अगर उस को शौच लगने लगे तो बड़ी परेशानी होगी, ख़ास तौर पर उस जमाने में जब शौच के लिए लोटा ले कर बाहर जाना होता था. किसी अति आवश्यक कार्य के समय महत्वपूर्ण व्यक्ति के साथ कोई परेशानी आ जाए तो यह कहावत बोलते हैं.

दरिद्रता को मूल एक आलस बखानिए. आलसी व्यक्ति हमेशा दरिद्र ही रहता है.

दर्जी का क्या सामान और क्या मुकाम. कहावत उस समय की है जब बड़ी बड़ी टेलर शॉप नहीं हुआ करती थीं और दर्जी लोग अपना सुई धागा ले कर घर घर घूम कर काम करते थे.

दर्जी की सुई, कभी रेशम में कभी टाट में. दर्जी की सुई कीमती रेशम को भी सिलती है और घटिया टाट को भी. किसी ऐसे व्यक्ति या उपकरण के लिए कहावत कही जाती है जो सभी तरह के काम करता हो.

दर्शन मोटे, करतब खोटे. तड़क भड़क और दिखावा अधिक, काम बहुत कम या बहुत गलत काम.

दलाल का दिवाला क्या मस्जिद का ताला क्या. जिस व्यापार में पूंजी लगाई गई हो उस में अत्यधिक घाटा हो जाने पर दीवाला निकलने का डर रहता है. लेकिन दलाली एक ऐसा धंधा है जिस में व्यक्ति की स्वयं की पूंजी नहीं लगती इस लिए उस में दीवालिया होने का कोई डर नहीं है. इसी प्रकार किसी भी इमारत में कोई न कोई सामान अंदर रखा होता है जिस की चोरी न हो इसलिए ताला लगाया जाता है. मस्जिद एक ऐसी इमारत है जहाँ कोई सामान नहीं होता इस लिए ताले की कोई जरूरत नहीं है.

दलाली बेशरम की, सर्राफी भरम की, दौलत करम की, बात मरम की. दलाली का काम करने के लिए काफी बेशर्मी करनी पड़ती है, सर्राफ वही बड़ा बनता है जो बाजार में अपना भरम बना कर रखे, धन वही कमा सकता है जो कर्म करता हो, बात वही दमदार होती है जिसमें कुछ मर्म हो.

दलिद्दर घर में नोन पकवान. घोर गरीबी में रहने वाले इंसान के लिए नमक भी पकवान के समान है.

दलिद्दर बहुत दुखदाई. दलिद्दर – दारिद्र्य. दरिद्रता बहुत दुःख देती है.

दलिद्दर से जंजाल भला. दलिद्दर माने दरिद्रता, गरीबी. धन कमाने के लिए बहुत से जंजाल झेलने पड़ते हैं. लेकिन घोर गरीबी में जीने के मुकाबले यह जंजाल झेलना अधिक अच्छा है.

दवा की दवा और गिज़ा की गिज़ा. ऐसी वस्तु जिससे पेट भरे, ताकत आए और रोग भी ठीक हों. जैसे दूध मुनक्का.

दस भाइयों की बहन कुँवारी डोले. ज्यादा भाई होते हैं तो एक दूसरे पर जिम्मेदारी डाल देते हैं. इस प्रकार की दूसरी कहावत है – सात बेटों की माँ गंगा न पावे.

दस भोला भाला, बीस बावला, तीस तीखा, चालीस चोखा, पचास पका, साठ थका, सत्तर झूला, अस्सी लूला, नब्बे नागो और सौ भागो. हर अवस्था के व्यक्ति की विशेषता बताई गई है. 10 वर्ष की आयु में भोला भाला, 20 वर्ष की आयु में जुनूनी, 30 वर्ष की आयु में तेजतर्रार और कड़क, 40 वर्ष की आयु में अनुभवी, 50 वर्ष की आयु में परिपक्व, 60 वर्ष की आयु तक थोड़ा थकने लगता है, 70 वर्ष में भूलना शुरू हो जाता है, 80 में चलना फिरना मुश्किल, 90 में अपनी देखभाल स्वयं नहीं कर सकता इसलिए नंगा रहता है और 100 वर्ष की अवस्था का मतलब अब संसार से कूच का समय आ गया.

दस्तरखान के बिछाने में सौ ऐब, न बिछाने में एक ऐब. मेहमानों की आवभगत के लिए खाने की मेज पर कपड़ा बिछाया जाता है उसे दस्तरखान कहते हैं. आप दस्तरखान बिछाते हैं तो उस में बहुत सी कमियाँ निकाली जाती हैं, मसलन – गंदा है, छोटा है, ठीक से नहीं बिछाया, घटिया है वगैरा वगैरा. लेकिन अगर आप कुछ बिछाते ही नहीं हैं तो कहने वालों के लिए एक ही बात रह जाती है कि दस्तरखान नहीं बिछाया. कहावत का अर्थ यह है कि यदि आप अच्छे के लिए कोई काम करें और लोग उसमें बहुत कमियाँ निकालें तो वह काम न करना ही अच्छा है.

दाँत टूटा साँप जोर से फू-फू करता है. दांत टूटने के बाद सांप जोर से फुफकार कर डराने की कोशिश करता है. शक्ति छिन जाने के बाद दुष्ट व्यक्ति अधिक भयंकर दिखने की कोशिश करता है. 

दाँया धोए बांये को और बाँया धोए दांये को. कोई भी हाथ स्वयं अपने आप को नहीं धो सकता. दायें हाथ को धोने के लिए बायाँ हाथ जरूरी है और बाएँ को धोने के लिए दाहिना. समाज में सभी लोग एक दूसरे पर निर्भर होते हैं इसलिए सब को साथ मिल कर चलना चाहिए और एक दूसरे की मदद करना चाहिए..

दांत कुरेदने को तिनका नहीं बचा. आग या बाढ़ आदि आपदाओं में सब कुछ नष्ट हो जाने पर.

दांतले खसम का ना रोते का पता चले न हंसते का. (हरयाणवी कहावत) जिस आदमी के दांत बाहर हों उस का यह पता लगाना मुश्किल होता है कि वह हँस रहा है या रो रहा है.

दांतों का काम आँतों से नहीं लेना चाहिए. भोजन को पीसने का काम दांतों का है और पचाने का काम आँतों का. कहावत द्वारा उन लोगों को सीख दी गई है जो लोग भोजन को बिना ठीक से चबाए निगल जाते हैं.

दांव में आई, मरे बिलाई. बिल्ली जैसा चालाक प्राणी भी कभी कभी दांव में फंस जाता है. कोई कितना भी धूर्त हो कभी न कभी दांव में फंस सकता है. 

दाई से क्या पेट छिपाना. जो जिस विषय का जानकार है उस से संबंधित राज छिपाने की कोशिश नहीं करना चाहिए.

दाख छुआरा छांड़ि अमर फल, विष कीड़ा विष खात. विषैले फल खाने वाला कीड़ा, किशमिस छुआरा आदि छोड़ कर विष खाता है.यह उसी प्रकार है जैसे दुनिया में एक से एक स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक चीजों के होते हुए भी शराब पीने वाले शराब पीते हैं.

दाख पके जब काग के होय कंठ में रोग. जब अंगूर पक कर तैयार हुए तो कौवे के गले में ऐसी बीमारी हो गई कि वह उन्हें खा ही नहीं सकता. जब कोई चीज प्राप्त करने में दुर्भाग्य आड़े आ जाए.

दाग लगाए लँगोटिया यार. जिगरी दोस्त आपकी बहुत बदनामी कर सकता है (क्योंकि वह आपके सब राज जानता है).

दाता कहने से बनिया गुड़ देता है. यदि किसी से कोई काम निकालना हो तो उसकी प्रशंसा करनी चाहिए. बनिए से कहोगे कि भाई आप बड़े दानी दाता हो तो वह खुश हो कर गुड़ दे देगा.

दाता की नाव पहाड़ चढ़े. दाता के सब काम आसानी से हो जाते हैं.

दाता के घर लच्छमी ठाड़ी रहत हजूर, जैसे गारा राज को भर भर देत मजूर. दानी व्यक्ति पर लक्ष्मी की विशेष कृपा रहती है. लक्ष्मी उस को इस प्रकार भर भर कर सम्पत्ति देती है जैसे मजदूर राज मिस्त्री को भर भर कर गारा देता है.

दाता के तीन गुण, दे, दिलावे, छीन ले. दाता स्वयं भी देता है और दूसरों से दिलाता भी है, पर जब क्रुद्ध होता है तो छीन भी लेता है. यहाँ दाता का अर्थ ईश्वर से है.

दाता को राम छप्पर फाड़ कर देता है. दानी व्यक्ति को ईश्वर भरपूर मदद देता है.

दाता दाता मर गए, रह गए मक्खीचूस. कोई जरूरतमंद व्यक्ति कई स्थानों से निराश होने के बाद कुढ़ कर यह बात कहता है.

दाता दे भण्डारी का पेट फटे (दाता दे, भंडारी पेट फाड़े). भंडारी वह व्यक्ति होता है जो अनाज आदि के भंडारों का रख रखाव करता है. कहावत में कहा गया है कि दान तो दाता दे रहा है और भंडारी को कष्ट हो रहा है.

दाता देवे और शरमावे, पानी बरसे और गरमावे. जो सच्चे दानवीर होते हैं वे दान दे कर उस पर अहंकार नहीं करते बल्कि लज्जा और विनम्रता प्रकट करते हैं. तुक बंदी करने के लिए एक बिलकुल असम्बद्ध बात जोड़ दी गई है कि पानी बरसने के बाद गर्मी बढ़ जाती है.

दाता पुन्न करे, कंजूस जोड़ जोड़ मरे. जो लोग अपनी सम्पत्ति में से यथाशक्ति दान करते हैं वे पुन्य कमाते हैं जबकि कंजूस लोग जोड़ जोड़ कर ही मर जाते हैं.

दाद खाज अरु सेउआ बड़भागी के होंय, पड़े खुजावें खाट पर बड़ी अनंदी होय. जो बेचारे दाद, खाज और खुजली से परेशान हों उन का मजाक उड़ाने के लिए यह कहावत कही गई है (कि वे बड़े भाग्यवान हैं जो खाट पर पड़े खुजाने का आनंद ले रहे हैं).  

दाद, खाज और राज, बड़भागी को ही मिलते हैं. कोई खुजली से मरा जा रहा हो तो उस के जले पर नमक छिड़कने के लिए. दाद और खाज की तुलना राज्य मिलने से की गई है.

दादा कहे सरसों ही लादना. दादाजी ने कहा था कि सरसों का ही व्यापार करना तो केवल वही करेंगे. बिना अपनी बुद्धि प्रयोग करे लकीर के फकीर बनना. 

दादा की बेटी लुगरी और भाई की बेटी चुनरी. लुगरी – फटी पुरानी धोती. बुआ की कोई इज्जत नहीं और भतीजी से प्यार.

दादा के भरोसे फौजदारी. मूर्खता पूर्ण कार्य. दादा कितने भी प्रभावशाली क्यों न हों, उन के भरोसे मार पीट नहीं करनी चाहिए. दादा के न रहने पर कौन बचाने आएगा. फौजदारी – मारपीट.

दादा खरीदे और पोता बरते. कोई चीज़ बहुत टिकाऊ है यह बताने के लिए यह कहावत कही जाती है. 

दादा मर गया रोता, मरने के बाद हुआ पोता. जब किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उस की इच्छा पूरी हो.

दादा मरिहैं तो भोज करिहैं. किसी काम को लम्बे समय के लिए टालना (किसी से दावत मांगी जा रही है तो कह रहा है कि दादा मरेंगे तो भोज करेंगे).

दादी को मत सिखलाओ कि जच्चगी कैसे होती है. अपने से अधिक अनुभवी व्यक्ति को सिखाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए. 

दादू दावा छोड़ दे, निरदावा दिन काट, केतेक सौदा कर गए, पंसारी की हाट. संत दादू कहते हैं कि दुनिया की मोह माया पर दावा करना छोड़ दो. जाने कितने यहाँ आए और चले गए. इस बाज़ार में सौदा सब करते हैं पर कोई कुछ ले कर नहीं गया.

दादो घी खायो, म्हारो हाथ सूँघ ल्यो. हमारे दादा बहुत घी खाते थे, हमारा हाथ सूँघ कर देख लो. जिन के बाप दादे बड़े आदमी थे पर वे दुर्भाग्यवश कुछ भी नहीं हैं, ऐसे लोग हर समय अपने बाप दादाओं का बखान करते हैं. 

दान की गाय है तो क्या चलनी में दुहेंगे. दान में मिली हुई चीज को व्यर्थ ही बर्बाद नहीं किया जाता. चलनी में दूध दुहने का अर्थ है दूध को ऐसे ही बहा देना.

दान की बछिया के दांत नहीं गिने जाते. जब आप गाय की बछिया खरीदने जाते हैं तो उसके दांत गिन के देखते हैं कि वह उत्तम प्रजाति की है या नहीं. लेकिन अगर बछिया दान में मिली है तो यह सब थोड़े ही देखा जाता है. अगर कोई व्यक्ति मुफ्त में मिली चीज में मीन मेख निकालता है तो यह कहावत कही जाती है.

दान दहेज़ बह जाएगा, छाती कूटता रह जाएगा. जो लोग दान दहेज़ के चक्कर में रहते हैं उन्हें सीख दी गई है कि यह सब मिला हुआ धन नष्ट हो जाएगा और पैसे वाले घर की नकचढ़ी लड़की अपने घर में ला कर जीवन भर पछताना पड़ेगा.

दान दीन को दीजिए, मिटे दीन की पीर, औषध बाको दीजिए जा के रोग शरीर. जो गरीब है उसी को धन का दान दीजिए. उसी प्रकार जैसे औषधि केवल उसी को दी जाती जो रोगी है.

दान वित्त समान. 1. जरूरत मंदों को दान देना एक उत्तम निवेश है. यही वह धन है जो आपके साथ जाएगा. 2. अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान देना चाहिए.

दाना खाए न पानी पीवे, ऐसन आदमी कैसे जीवे. कुछ लोग चाहते हैं कि अपने कर्मचारी या मजदूर को खाने पीने न दें बस काम में जोते रहें. ऐसे लोगों के लिए.

दाना न घास, खरहरा छ: छ: बार. खरहरा कहते हैं खुरदुरी चीज़ से घोड़े की मालिश करने को जो दिन में एक बार करना पर्याप्त रहता है. कहावत का अर्थ है अपने कर्मचारी को आवश्यक वस्तु न दे कर फ़ालतू की चीजें देते रहना.

दाना न घास, घोड़ी तेरी आस. घोड़ी को खिलाने के लिए न दाना है न घास लेकिन घोड़ी पालने की इच्छा रखते हैं. साधन न होते हुए भी दिवास्वप्न देखना.

दाने को टापे, सवारी को पादे. ऐसे घोड़े के विषय में कहा गया है जो दाना खाने की जुगत में हर समय रहता है, पर सवारी बैठाने के नाम पर पादने लगता है.

दाने दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम. जो जिस के भाग्य में लिखा है वह उसी को मिलेगा.

दाम दीजे, काम लीजे. मुँह मांगा पैसा दीजिये और मनमाफ़िक काम लीजिए.

दाम बनावे काम (दाम सँवारे काम), (दाम करे सब काम). पैसा हर काम बना देता है.

दामों रूठा बातों नहीं मानता. जो पैसे के लेनदेन पर रूठा हो वह केवल बातों से नहीं मानता.

दारु तो हाथी को भी पटक देती है. हाथी जैसा ताकतवर प्राणी भी यदि शराब पी लेगा तो नशे में ढेर हो जाएगा. कहावत द्वारा शराब से बचने की सलाह दी गई है.

दाल भात चोखा, कबहुं न करे धोखा. दाल भात से यहाँ अर्थ है सादा और पौष्टिक भोजन. सादा भोजन सबसे अच्छा है, जिससे स्वास्थ्य अच्छा रहता है और उसे कमाने के लिए गलत काम भी नहीं करने पड़ते.

दाल भात में मूसर चंद. किसी आनन्ददायक काम में विघ्न डालने वाला. किसी बने बनाए काम को गुड़ गोबर करने वाला.

दाल भात लंबा जैकारा, ए बाई परताप तुम्हारा. कोई व्यक्ति यदि अपनी जवान बेटी को किसी बूढ़े को ब्याह दे तो बेटी की ससुराल में उसकी खूब खातिरदारी होती है. ऐसे किसी व्यक्ति का कथन.

दाल में कुछ न कुछ काला है. जहाँ कुछ गड़बड़ी की आशंका हो वहाँ यह कहावत कही जाती है. 

दाल में नमक, सच में झूठ. जितना दाल में नमक होता है उतना सच में झूठ चल जाता है.

दावत नहीं, अदावत है. अदावत – झगड़ा, दुश्मनी. 1. दावत देने से कुछ लोग तो खुश होते हैं पर बहुत से लोग नाराज़ भी हो जाते है. (यहाँ तक कि कुछ लोग दुश्मनी तक मानने लगते हैं). 2. अधिक लोगों की दावत करना बहुत झंझट का काम है.

दावत में सबसे पहले पहुँचो और लड़ाई में सबसे बाद. दावत में पहले पहुँचने का फायदा यह है कि सबसे बढ़िया और ताज़ा माल खाने को मिलता है, जहाँ लड़ाई हो रही हो वहाँ बाद में इसलिए पहुँचो कि तब तक खतरा टल चुका होता है.

दावा किया, तकादा गया. जब आप अपने रुपए की वसूली के लिए किसी के ऊपर मुकदमा कर देते हैं तो फिर उस से तकादा नहीं कर सकते.

दासा सदा उदासा. जो किसी का दास हो वह कभी सुखी नहीं रह सकता.

दासी करम, कहार से नीचे. किसी एक व्यक्ति की नौकरानी बन के काम करना सबसे खराब काम है. उस से अच्छी कहारिन है जो घर घर जा कर काम करती है लेकिन किसी की गुलामी नहीं करती.

लेन देन पर ख़ाक, मुहब्बत रक्खो पाक.  इस कहावत को दो प्रकार से प्रयोग करते हैं – 1. थोड़े बहुत लेन देन के पीछे प्रेम सम्बन्ध नहीं तोड़ना चाहिए. 2. जो लोग क़र्ज़ ले कर वापस नहीं करना चाहते वे इस प्रकार की बहाने बाजी करते हैं. 

दिन अस्त, मजूर मस्त. दिन भर काम में खपने वाला मजदूर शाम होने पर सुख की सांस लेता है.

दिन आया रावण मरे. सब समय की बात है बुरा समय आने पर रावण जैसा सर्वशक्तिमान व्यक्ति भी मारा गया.

दिन ईद, रात शबेरात. हर समय मौज ही मौज.

दिन कटे काम से, रात कटे नींद से, राह कटे साथ से. अर्थ स्पष्ट है.

दिन के पीछे रात और रात के पीछे दिन. कहावत के द्वारा यह सीख दी गई है कि जिस प्रकार दिन के बाद रात अवश्य आती है और रात के बाद दिन, उसी प्रकार जीवन में सुख के बाद दुख अवश्य आता है और दुख के बाद सुख.

दिन चोखे होवें व्यापार चले और न्यौते आवें, दिन आड़े होवें तो माल घटे और पाहुने आवें. अच्छे दिन होते हैं तो व्यापार भी चलता है, आमदनी होती है और निमंत्रण मिलते हैं. दिन बुरे होते हैं तो व्यापार भी नहीं चलता, घाटा होता है और घर में मेहमान भी आ जाते हैं जिन के ऊपर खर्च भी करना पड़ता है.

दिन बुरे आते हैं तो सोने में हाथ डालो मिट्टी हो जाता है, दिन भले आते हैं तो मिट्टी छूने से सोना बन जाती है. अर्थ स्पष्ट है.

दिन दस आदर पाए के करनी आप बखान, जब लौं काग सराध पख तब लग को सन्मान. बहुत से लोगों का विश्वास है कि पितृ लोग श्राद्ध पक्ष में कौवे का रूप धर कर भोजन करने आते हैं, इसलिए लोग कौवों को भोजन कराते हैं. यह सम्मान केवल श्राद्ध पक्ष समाप्त होने तक ही मिलता है. थोड़े समय के लिए सत्ता या अधिकार पा जाने पर जो लोग इतराने लगते हैं उनको सीख देने के लिए यह कहावत कही गई है.

दिन नीके कंकर मोती (दिन अच्छे होते हैं तो कंकड़ जवाहर हो जाते हैं). भाग्य साथ देता है तो हर काम में लाभ होता है. अच्छे दिन आते हैं तो कंकड़ मोती बन जाते हैं.

दिन भर ऊनी ऊनी, रात को चरखा पूनी. दिन में समय बर्बाद करती रही और रात में चरखा और पूनी (रूई का गोला) ले कर बैठी. समय पर काम न कर के अंत में बेसमय उल्टा सीधा काम करने वाले लोगों के लिए.

दिन भर खेली आले माले, जूआँ ढूँढे दिया उजाले (कातन बैठी दिया उजाले). दिन भर इधर उधर खेलती रही और रात में दीये के उजाले में जूएँ बीनने बैठी. अर्थ ऊपर वाली कहावत की भांति.

दिन भले आएँगे तो घर पूछते चले आएंगे. जब आदमी के अच्छे दिन आने होते हैं तो उसे कोई प्रयास नहीं करना पड़ता.

दिन में गर्मी रात में ओस, कहे घाघ वर्षा सौ कोस. अगर दिन में गर्मी हो और रात में ओस गिरे तो घाघ कवि कहते हैं कि दूर दूर तक वर्षा की कोई संभावना नहीं है.

दिन में बादल रात में तारे, चलो कंत कहीं करें गुजारे. यदि चौमासे में कभी दिन में बादल छाए रहें पर रात में तारे दिखने लगें तो यह वर्षा न होने (अकाल पड़ने) के लक्षण हैं. ऐसे में किसान की स्त्री अपने पति को सुझाव दे रही है कि गुजारा करने के लिए कहीं और चलो.

दिन में सोवे, रोजी खोवे. जो दिन में सोता है वह अपनी जीविका खो देता है.

दिनन के फेर से सुमेरू होत माटी को. जब बुरा समय आता है तो बड़े बड़े लोग मिट्टी में मिल जाते हैं (सुमेरु जैसा विशालकाय पर्वत भी मिट्टी हो जाता है).

दिया कलेजा काढ़, हुआ नहिं आपना. अपना कलेजा निकाल कर दे दिया फिर भी वह अपना न हुआ.

दिया तो मुंह चाँद था, न दिया तो सियार की मांद था. जब तक किसी को कुछ देते रहो वह आपकी बड़ाई करता है (आपके मुँह को चाँद सा बताता है) और न दो तो गाली देने से बाज भी नहीं आता (आपकी शक्ल को सियार की मांद जैसा बताने लगता है).

दिया न बाती, बांदी फिरे इतराती. कुछ न होते हुए भी घमंड करना.

दिया भूलो, लिया कभी न भूलो. इस का अर्थ दो तरह से किया जा सकता है. 1. किसी को धन या कोई वस्तु उधार दिया हो तो भले ही भूल जाओ पर उधार ले कर कभी नहीं भूलना चाहिए. 2. किसी पर उपकार किया हो तो जताओ नहीं और उससे बदले में कुछ पाने की अपेक्षा मत करो (नेकी कर कुँए में डाल). किसी ने आप पर उपकार किया हो तो हमेशा उसके कृतज्ञ रहो.

दिया लिया सब बह गया, रह गई कानी बहू. किसी ने अधिक दहेज़ के लालच में कानी लड़की से शादी कर ली. रुपया पैसा तो थोड़े दिनों में ही खर्च हो गया, पर अब कानी बहू को जीवन भर झेलना पड़ेगा.

दिया लिया ही काम आता है. दिया हुआ दान परलोक में काम आता है.

दिये का प्रकाश धरती पर, दिए का प्रकाश स्वर्ग तक. दिये का (दीपक का) प्रकाश धरती पर ही फैलता है जबकि दिए का (दान का) प्रकाश स्वर्ग तक साथ चलता है.

दिल को होए करार तब सूझे त्यौहार. मन में चैन हो तभी उत्सव इत्यादि अच्छे लगते हैं.

दिल जाने सो ही दिलदार. वही सच्चा मित्र या प्रेमी है जो आपके दिल का हाल जानता है और समझता है.

दिल मिले की यारी. दिल मिलते हैं तभी दोस्ती होती है.

दिल में न हो रार, तबहिं मने त्यौहार. किसी से कोई लड़ाई, झगड़ा, टंटा न हो तभी त्यौहार मनाने का मन करता है.

दिल में रहम हो, जुबान नरम हो, आँखों में शरम हो, तो सब कुछ तुम्हारा है.  स्पष्ट है.

दिल में हो आग तो शब्द बनें शोले. जला भुना आदमी जली कटी बातें बोलता है.

दिल लगा गधी से तो परी क्या करे. आदमी को जिस स्त्री से प्रेम हो जाए उसके आगे सब बेकार लगती हैं.

दिल लगा मेंढकी से तो पद्मिनी क्या चीज़ है. ऊपर वाली कहावत की भांति.

दिल से दिल को राह है. एक दूसरे से मन मिल जाना ही सब से बड़ा सुख है.

दिलेरी मर्दों का गहना है. स्त्रियाँ के शरीर पर बहुत से गहने अच्छे लगते हैं पर पुरुषों के लिए तो साहस और शूरता ही सबसे बड़े गहने हैं.

दिलों में ख़ाक उड़ती है, फकत मुँह पर सफाई है. दिल में ख़ाक उड़ने का अर्थ दुखी होने से भी है और ईर्ष्या में जलने से भी. जहाँ लोग ऊपर से ख़ुशी जाहिर करते हैं पर अंदर से दुखी होते हैं वहाँ यह कहावत कही जाती है. 

दिल्ली की कमाई, दिल्ली में ही गंवाई. पैसा कमाने के लिएघर से बाहर तो रहे पर जो भी कमाया वहीँ खर्च आये.

दिल्ली की गद्दी लई, सुरा सुन्दरी राग. दिल्ली की गद्दी पर बैठने वाले सुरा, सुंदरी और संगीत के चक्कर में पड़ कर गद्दी की रक्षा नहीं कर पाए.

दिल्ली की तुर्कनो मरे और बूंदी का राजपूत सिर मुंडाए.  किसी अनजान व्यक्ति के दुख में अनावश्यक दुखी होना. तुर्कनो – मुस्लिम स्त्री.

दिल्ली की बेटी गोकुल की गाय, करम फूटे तो बाहर जाय. दिल्ली में पली बढ़ी लड़की को दिल्ली के बाहर कहीं अच्छा नहीं लगता. उसकी शादी कहीं बाहर हो जाए तो उसे लगता है कि उस के करम फूट गए. इसी प्रकार गोकुल में पलने वाली गाय गोकुल से बाहर जा कर खुश नहीं रह सकती.

दिल्ली के बांके, जूती में सौ सौ टाँके. दिल्ली वालों का मज़ाक उड़ाने के लिए कहा गया है. (अपने आप को बड़ा भारी अफलातून समझते हैं और जूते में मार तमाम टांके लगे हुए हैं).

दिल्ली में क्या दीवालिए नहीं रहते. कोई स्थान कितना भी सम्पन्न क्यों न हो, वहाँ रहने वाले सभी लोग धनी नहीं होते.

दिल्ली में दरबारी से अपने गाँव की लंबरदारी भली. राजा के दरबार में दरबारी बनने के मुकाबले गाँव की जमींदारी ज्यादा अच्छी है. यहाँ आप अपने मालिक खुद हैं जबकि वहाँ किसी के गुलाम हैं.

दिल्ली से हींग आई, तब बड़े पके. किसी काम में आडम्बर के कारण अनावश्यक देर लगना. 

दिवस जात नहिं लागहिं बारा. अच्छे दिन हों या बुरे, अंततः सब बीत जाते हैं.

दिवाले में डेढ़ हिस्सा. जिसे हर काम में घाटा ही घाटा होता हो.

दी दिवाई खली न खाए, पीछे कोल्हू चाटन जाए. बैल को जो खल दी गई है वह नहीं खा रहा है बल्कि पिराई के बाद कोल्हू को चाट रहा है. अवसर का लाभ न उठाने वाले मूर्ख व्यक्ति के लिए.

दीन की सेवा ही दीनबंधु की सेवा है. दीन हीन व्यक्ति की सेवा ही ईश्वर की सच्ची सेवा है. 

दीन सबन को लखत है, दीनहिं लखै न कोय, जो रहीम दीनहिं लखै, दीनबंधु सम होय. दीन हीन व्यक्ति सब की ओर आशा भरी नजरों से देखता है लेकिन उसकी ओर कोई नहीं देखता. जो दीन की ओर ध्यान देता है वह दीनबंधु ईश्वर के समान होता है.

दीन से दुनिया रखनी मुश्किल है. धर्म पर चलो तो दुनिया में रहना मुश्किल है. 

दीन से दुनिया है. धर्म पर ही संसार टिका है.

दीमक का खाया पेड़ और चिंता का खाया शरीर किसी काम के नहीं रहते. जिस पेड़ के तने को दीमक खा ले वह सूख जाता है, इसी प्रकार चिंताओं का मारा व्यक्ति भी किसी काम का नहीं रहता.

दई दई का करत है, दई दई सो कबूल. दई – दैव, दई – दिया है. दैव – दैव क्यों चिल्लाते हो. दैव (ईश्वर) ने जो दिया है उसे स्वीकार करो. इस दोहे की पहली पंक्ति इस प्रकार है – दीरघ सांस न लेय दुख, सुख साईँ न भूल.

दीवानी आदमी को दीवाना कर देती है. यहाँ दीवानी से अर्थ मुकदमों से है. मुकदमेदारी आदमी को पागल कर देती है.

दीवाने को बात बताई, उसने ले छप्पर चढ़ाई. मूर्ख आदमी को गोपनीय बात बताओगे तो वह सारे में फैला देगा.

दीवार खाई आलों ने, घर खाया सालों ने. दीवार में आले अधिक हों तो दीवार कमज़ोर हो जाती है. घर में सालों का दखल हो तो घर कमज़ोर हो जाता है.

दीवारों के भी कान होते हैं. घर की अंदर गुपचुप की गई बात भी जाने कैसे बाहर पहुँच जाती है. इसीलिए कहते हैं कि दीवारों के भी कान होते हैं.

दीवाल रहेगी तो पलस्तर बहुतेरे चढ़ जाएंगे. शरीर जीवित रहेगा तो चर्बी मांस सब बाद में चढ़ जाएगा.

दीवाली की कुलिया. देखने में आकर्षक चीज़ जो बाद में किसी काम न आए.

दीवाली जीत, साल भर जीत. दीवाली पर जुए में जीतना शुभ माना जाता है.

दीवे को परवा नहीं, जल जल मरे पतंग. एकतरफा प्रेम करने वालों के लिए यह कहावत कही जाती है.

दुख कहने के लिए नहीं सहने के लिए होता है. जब आप पर कोई दुःख पड़े तो चुपचाप उसे सहना चाहिए, सब के सामने उसका रोना नहीं रोना चाहिए. इंग्लिश में कहावत है – What cannot be cured must be endured.

दुख जाने दुखिया या दुखिया की माँ. किसी व्यक्ति के दुख को वह स्वयं समझ सकता है या उसकी माँ समझ सकती है, और कोई नहीं समझ सकता.

दुख पीछे सुख होत है ज्यों निशि बीते भोर. जिस प्रकार अँधेरी रात के बाद सुबह आती है उसी प्रकार दुःख के बाद सुख अवश्य आता है.

दुख मरें बी फाख्ता, कौवे मेवें खाएं. शरीफ लोग दुखी रहते हैं और धूर्त लोग मौज करते हैं.

दुख मिटा बिसरे राम. जब तक व्यक्ति परेशानी में होता है तब तक वह ईश्वर को याद करता है, दुःख समाप्त होते ही वह ईश्वर को भूल जाता है. इंग्लिश में कहावत है – The danger past and god forgotten.

दुख में सुमरिन सब करें, सुख में करे न कोय (जो सुख में सुमिरन करे, दुःख कहे को होए). दुःख में सभी लोग ईश्वर को याद करते हैं और सुख में कोई नहीं करता. अगर सुख के दिनों में ईश्वर को याद करें तो दुःख होगा ही क्यों. इसी प्रकार का दूसरा दोहा है – सुख में सुमिरन न किया, दुःख में किया याद, रहिमन ऐसे नरन की कौन सुने फ़रियाद.

दुख सुख निसदिन संग हैं मेट सके न कोय, जैसे छाया देह की अलग कभी न होय. मनुष्य को सुख और दुःख दोनों मिलना अवश्यम्भावी है. जैसे शरीर की छाया को शरीर से अलग नहीं किया जा सकता वैसे ही सुख और दुःख को अलग नहीं किया जा सकता. जो व्यक्ति सुख में रह रहा है उसे घमंड नहीं करना चाहिए क्योंकि उसे भी कभी न कभी दुःख मिलेगा, और जो दुःख में जी रहा है उसे निराश नहीं होना चाहिए क्योंकि उसे भी कभी सुख अवश्य मिलेगा.

दुई दिन दौड़े इक दिन खाए, अहमक होय बराते जाए. बरात में एक दिन दावत खाने को मिलती है पर उसके लिए दो दिन फ़ालतू में दौड़ना पड़ता है. इस कारण से बरात में जाना कोई समझदारी का काम नहीं है.

दुकान सी दाता न घर सा भिखारी. व्यापार हमें जीवन भर कुछ न कुछ देता रहता है, अर्थात उस के जैसा दाता कोई नहीं है. गृहस्थी हर समय कुछ न कुछ मांगती रहती है अर्थात उसके जैसा भिखारी कोई नहीं है.

दुख में सुख की कदर मालूम होती है. आज यदि हमें सब प्रकार की सुविधाएँ मिली हुई हैं तो हम उन की कदर नहीं करते. कल जब हम पर दुख पड़ता है तो हमें इस चीजों की कीमत मालूम पडती है. इंग्लिश में कहावत है – Misfortunes tell us what fortune is.

दुखती चोट, काने से भेंट. कुछ लोग काने व्यक्ति को देखना बहुत अपशकुन मानते हैं (वैसे यह बहुत गलत और निंदनीय आचरण है, काना होना किसी का स्वयं का दोष नहीं है). कहावत में कहा गया है कि किसी की चोट दुःख रही है ऊपर से काना आदमी दिख गया, याने दुःख में दुःख.

दुखते दांत को उखाड़ना ही अच्छा. जो चीज़ स्थायी दुःख का कारण बन जाए उसे नष्ट कर देना चाहिए.

दुखिया का घर जले, सुखिया पीठ सेंके. स्वार्थी लोग किसी के दुःख में भी अपना उल्लू सीधा कर लेते हैं.

दुखिया का दुःख दुखिया जाने और न जाने कोय. दुखी व्यक्ति का दुःख वह स्वयं ही जान सकता है, और कोई उसे नहीं समझ सकता.

दुखिया की पीड़ा दुखिया ही सुनता है. जिसने स्वयं दुख झेला हो वही दूसरों का दुखड़ा सुन सकता है.

दुखिया दुःख को रोवे, सुखिया उसकी जेब टोवे. दुखिया अपना दुःख सुना रहा होता है और सुखिया यह देखने की कोशिश करता है कि उस से कितना पैसा उगाहा जा सकता है.

दुखिया रोवे, सुखिया सोवे. जिसको कोई दुख है वह अपने दुख से परेशान है जबकि जो सुखी है वह चैन की नींद सोता है.

दुखे पेट, कूटे माथा (पिराए पेट, फोड़े माथा). किसी और की परेशानी के लिए किसी और को प्रताड़ित करना.

दुखों का भंडार नाम सदासुखराय. गुण के विपरीत नाम.

दुधारू गाय की लात भली (लात खाए पुचकारिए होए दुधारू धेनु). दूध देने वाली गाय लात भी मार दे तो उसे पुचकारा जाता है. जिससे आपका स्वार्थ सिद्ध होता है उसके अवगुण भी सहन किए जाते हैं.

दुधारू भी उतना खाय, जितना खाय बाँझ. घर व समाज के लिए जो उपयोगी व्यक्ति है उस पर जितना खर्च होता है उतना ही खर्च निठल्ले (अनुपयोगी) व्यक्ति पर भी होता है.

दुनिया का मुँह कौन पकड़े (दुनिया से कौन जीते). यदि आप में कोई कमी है तो दुनिया के लोग कुछ न कुछ जरूर बोलेंगे. उन्हें कोई रोक नहीं सकता.

दुनिया खाये बिना रह जाए, पर कहे बिना नहीं रहती. लोगों को सबसे अधिक रस परनिंदा करने में मिलता है.

दुनिया ठगिये मक्कर से रोटी खाइए शक्कर से. आज कल की दुनिया में धूर्त और ठग लोग ही मजे मार रहे हैं.

दुनिया दुरंगी मकारा सराय कहीं खैर खूबी कहीं हाय हाय. मकारा सराय – मक्कारों की सराय. दुनिया में कहीं ख़ुशी का रंग है तो कहीं दुःख का रंग है.

दुनिया पराए सुख दुबली है (दुनिया पराए सुख से परेशान है). दूसरे का सुख देख कर हर किसी को ईर्ष्या होती है.

दुनिया मुर्दापरस्त है. दुनिया मरे हुए लोगों की ही प्रशंसा करती है.

दुनिया में दो ही गरीब या बेटी या बैल. दुनिया में सबसे अधिक सताए हुए दो ही प्राणी हैं, बेटी और बैल.

दुनिया से कौन जीते. दुनिया वाले आप के बारे में क्या कहते हैं इस से अधिक परेशान नहीं होना चाहिए. जिस काम में आपको लाभ हो व सुविधा हो वह काम करना चाहिए. एक बाप और बेटा अपने गधे पर बैठे कहीं जा रहे थे. लोगों ने देखा तो बोले, देखो कैसे कसाई हैं, बेचारे दुबले पतले गधे पर दोनों लदे हुए हैं. लोगों की बात सुन कर बाप उतर कर पैदल चलने लगा, तो लोगों ने कहा कि देखो जवान मुस्टंडा गधे की सवारी कर रहा है और बूढ़े बाप को पैदल चलना पड़ रहा है. यह सुन कर बेटा उतर गया और बाप गधे पर बैठ गया. अब लोग कहने लगे कि कैसा बाप है, बेटे को चलवा रहा है और खुद मजे से गधे पर बैठा है. तंग आ कर वो दोनों गधे से उतर कर पैदल चलने लगे तो लोग हंसने लगे कि कैसे मूर्ख हैं, गधे के होते हुए पैदल चल रहे हैं. 

दुबला कुनबा सराप की आस. दुर्बल आदमी की एक ही ताकत है उसका श्राप, जिससे सबल लोग भी डरते हैं.

दुबला जेठ देवर बराबर. परिवार का कोई बड़ा बूढ़ा व्यक्ति यदि साधन सम्पन्न न हो तो उस की कोई इज्जत नहीं होती. जेठ यदि गरीब है तो उससे देवर जैसा व्यवहार किया जाता है.

दुबली बिटिया को घाघरा भारी. दुबले पतले लोगों का मजाक उड़ाने के लिए.

दुबली बिल्ली भी अपशकुन करती है. दुबली बिल्ली चाहे शिकार न कर पाए, पर यदि रास्ता काट जाएगी तो अपशकुन तो पूरा ही करेगी. दुष्ट व्यक्ति कमजोर हो तो भी नुकसान पूरा पहुँचा सकता है.

दुबले कलावंत की कौन सुने. गरीब कलाकार को कोई नहीं पूछता.

दुबले को दुख बहुत. दुबले से अर्थ यहाँ शारीरिक रूप से दुर्बल व्यक्ति से भी है और आर्थिक रूप से दुर्बल से भी. दुर्बल व्यक्ति को दुःख ही दुःख हैं.

दुबले पर दो लदें. कमजोर को सभी सताते हैं.

दुबले से भिड़ो नहीं, मोटे से डरो नहीं. दुबले आदमी को कमजोर समझ कर उससे भिड़ने की गलती नहीं करना चाहिए (हो सकता है कि वह लड़ने में तेज हो), और मोटे आदमी को तगड़ा समझ कर उससे डरना नहीं चाहिए. 

दुम पकड़ी भेड़ की आर हुए न पार. गाय की पूँछ पकड़ कर आप नदी पार कर सकती हैं, भेड़ की पूँछ पकड़ कर नहीं. संकट से पार पाने के लिए किसी समर्थ व्यक्ति का ही सहारा लेना चाहिए.

दुरंगी छोड़ दे एक रंग हो जा, सरासर मोम हो या संग हो जा. मोम – मोम की तरह मुलायम, संग – पत्थर (पत्थर की तरह सख्त). दो तरह का व्यक्तित्व मत पालो, या विनम्र बनो या सख्त. इस को इस प्रकार भी कहते हैं – दो रंगी छोड़ दे एक रंग हो जा, या किनारे हो ले या संग हो जा. 

दुराए दुरे नहीं, नाह को नेह, सुगंध की चोरी. स्वामी किसी को प्रेम करता हो तो यह बात छिप नहीं सकती (व्यवहार में प्रकट हो जाती है), इसी प्रकार सुगंध की चोरी छिप नहीं सकती (हाथ में सुगंध आ जाती है).

दुर्घटना से देर भली. कहीं पहुँचने की जल्दी में दुर्घटना का शिकार होने के मुकाबले देर से पहुँचना अच्छा है. इंग्लिश में कहावत है – Better late than never.

दुर्बल को न सताइए, जाकि मोटी हाय, (मुई खाल की सांस सौं, लौह भसम हुई जाय). लोहे को तपाने के लिए लोहार भट्टी जलाया करते थे जिसकी आग बढ़ाने के लिए धौंकनी से हवा फूँकी जाती थी. धौंकनी बकरे की खाल से बनती थी. कबीर दास ने कहा है कि दुर्बल व्यक्ति को मत सताओ. जिस प्रकार मरे हुए जानवर की खाल की सांस से लोहा भस्म हो जाता है उसी प्रकार दुर्बल व्यक्ति की हाय से बड़े से बड़ा व्यक्ति भी मिट्टी में मिल सकता है. (देखिये परिशिष्ट) 

दुलहिन नहीं देखी तो देख उसका भाई, बाघ नहीं देखा तो देख ले बिलाई. (भोजपुरी कहावत) दुल्हन के भाई को देखने से दुल्हन कैसी होगी इसका अनुमान लगाया जा सकता है. इसी तरह बिल्ली को देखने से बाघ कैसा होगा इसका अनुमान लगाया जा सकता है.

दुलारी धिया का कनकटनी नाम. कुछ लोग अधिक लाड़ में बच्चों के ऊलजलूल नाम रख देते हैं, उन पर व्यंग्य. 

दुलारी बिटिया, ईंटे का लटकन. ज्यादा लाड़ प्यार से बिगड़ी हुई बिटिया फूहड़ पने से फैशन कर रही है (ईंट का झुमका पहने है).

दुल्हिन वही जो पिया मन भाए. कोई स्त्री कितनी भी सुंदर या गुणवान क्यों न हो यदि पति उसे पसंद नहीं करता तो सब बेकार है. इसी प्रकार जिसे मालिक पसंद करे वही कर्मचारी योग्य माना जाता है.

दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम. अधिकतर मनुष्य सांसारिक सुखों (माया) का आनन्द लेते हैं और कुछ ईश्वर की भक्ति (राम) में लीन हो कर परम सुख प्राप्त करते हैं, पर जो लोग दुविधा में रहते हैं उन्हें दोनों में से कुछ नहीं मिलता.

दुशाले में लपेट कर मारो. किसी का अपमान करना है तो भी शालीनता के साथ करो.

दुश्मन एक भी हो तो बहुत, दोस्त अनेक भी हों तो कम. दुश्मन कोई न हो तो अच्छा, दोस्त जितने अधिक हों उतना अच्छा.

दुश्मन की किरपा बुरी, भली मित्र की त्रास. दुश्मन की कृपा से तो मित्र द्वारा दिया गया कष्ट अच्छा है.

दुश्मनों की कमी है तो उधार दे के देखो. कहावत में यह सीख दी गई है कि जिसको आप उधार देते हैं वह (उधार वापस मांगने पर) आपका दुश्मन हो जाता है. इसलिए उधार देने से बचना चाहिए.  

दुश्मनों में यूँ रहो, जैसे दांतों में जीभ. दांतों के बीच जीभ बड़ी युक्ति पूर्वक रहती है क्योंकि उस को हर समय कटने का खतरा होता है. 

दुष्ट न छोड़े दुष्टता, दे कैसी सिख कोय, धोए हू सौ बार के स्वेत न काजर होय. कितना भी समझाने की कोशिश करो, दुष्ट व्यक्ति दुष्टता नहीं छोड़ता (जैसे सौ बार धोने पर भी काजल सफेद नहीं होता).

दुष्ट नारि और मित्र शठ परै जानिए जाय, बसे सर्प घर बीच ही जाने कब उठ खाय. (बुन्देलखंडी कहावत) दुष्ट नारी और कपटी मित्र को घर में नहीं बसाना चाहिए. इनको घर में रखना सांप पालने के बराबर है.

दुष्ट सास और बदमाश बहू राम रूठें तभी मिलें. दुनिया में ये दोनों कष्ट सबसे बड़े हैं. भगवान जिससे नाराज हों उसे ही ऐसा कष्ट देते हैं.

दूजिये की जोरू, शैतान का घोड़ा, जितना कूदे उतना थोड़ा. दूजिया – पहली पत्नी की मृत्यु (या तलाक) के बाद दूसरा विवाह करने वाला. कोई दूजिया यदि कुँवारी लड़की से विवाह करता है तो उसे उसके बहुत नखरे उठाना पड़ते हैं. (शैतान के घोड़े से तुलना की गई है).

दूतों से भींते हिल जाती हैं. कुटिल और चुगलखोर लोगों की करतूतों से राजमहलों की दीवारें (भीतें) हिल जाती हैं, अर्थात शासन अस्थिर हो जाते हैं. घर के बुजुर्ग लोग इस आशय से यह कहावत कहते हैं कि कुटिल लोगों की बातों में आने से घर परिवार और सम्बन्ध टूट जाते हैं, इसलिए सुनी सुनाई बातों में न आ कर अपने विवेक से काम लेना चाहिए. 

दूध और पूत किस्मत से मिलते हैं. दूध केवल सम्पन्न लोगों को ही मिलता है अर्थात जो भग्यवान हैं वही पी सकते हैं. किसी के घर में पुत्र का जन्म भी भाग्य से ही होता है. 

दूध कलारी कर गहे मद समझे सब कोए. कलारी – शराब बेचने वाली. शराब बेचने वाली स्त्री अगर दूध का गिलास भी पकड़े हो तो सब उसे शराब ही समझते हैं. जिस व्यक्ति की समाज में गलत छवि बनी हुई हो वह यदि अच्छा काम भी करे तो लोग बुरा ही समझते हैं.

दूध का उफान ठन्डे जल के छींटे से दबे. कोई व्यक्ति बहुत क्रोध में हो तो बदले में क्रोध करने से नहीं बल्कि शांत व्यवहार करने से वह शांत होता है.

दूध का जला छाछ भी फूँक फूँक कर पीता है (फूँके तक्र दूध को दाह्यो). तक्र – मट्ठा. गर्म दूध पीने से कोई जल गया हो तो वह डर के कारण मट्ठे को भी पीने से पहले फूंक मार कर ठंडा करता है. एक बार धोखा खाया हुआ व्यक्ति दोबारा कुछ अधिक ही सावधानी से काम करता है. इंग्लिश में कहावत है – The burnt child dreads the fire.

दूध का दूध पानी का पानी 1. हंस के विषय में कहा जाता है की वह दूध और पानी को अलग कर देता है और केवल दूध ग्रहण करता है. संस्कृत में इसे नीर क्षीर विवेक कहते हैं, अर्थात अशुद्धियों को अलग कर के शुद्ध वस्तु या शुद्ध ज्ञान ग्रहण करना. 2. दूध और पानी को अलग करना बहुत कठिन कार्य है. किसी उलझे हुए कठिन मसले को तर्क पूर्ण ढंग से सुलझाना. 3. इस कहावत का एक बिल्कुल अलग प्रकार से भी अर्थ किया जाता है. एक दूधवाली दूध में आधा पानी मिलाती थी और ग्राहकों से पूरे पैसे वसूलती थी. एक बार वह रुपयों की पोटली ले कर कहीं जा रही थी. नदी किनारे एक पेड़ के नीचे सुस्ताने के लिए बैठ गई तो उस की आँख लग गई. इसी बीच एक बंदरिया उस की रुपयों की पोटली ले गई और पेड़ की डाल पर बैठ कर पोटली में से निकाल कर एक रुपया नदी में और एक जमीन पर फेंकने लगी. दूध वाली जोर जोर से रोने लगी तो पास खड़े एक आदमी ने कहा कि बंदरिया दूध की कमाई तुझे दे रही है और पानी की कमाई पानी में डाल रही है.(बंदरिया कहे गूजरी सयानी, दूध का दूध और पानी का पानी).

दूध की मलाई, रखवाली में बिल्ली बिठाई. मूर्खतापूर्ण कार्य. बिल्ली मौका मिलते ही मलाई को चट कर जाएगी. 

दूध दही का पाहुना छाछ से अनखावना. जिस मेहमान को दूध दही की आदत पड़ी हो उसे छाछ दी जाए तो वह नाराज हो जाता है.

दूध देने वाली गाय की लात भी सही जाती है. जिस से कोई लाभ मिलता हो उसकी अनुचित हरकतें भी सहन करनी पड़ती हैं.

दूध पीती बिल्ली कुत्तों में जा पड़ी. कोई बेचारा सुख में जीवन व्यतीत कर रहा हो और अचानक बहुत बड़ी मुसीबत में फंस जाए.

दूध बेचा, मानो पूत बेचा. गाँव के लोगों में आज भी दूध को बेचना अच्छा नहीं माना जाता. अपने बच्चे दूध पीने वाले हों तो लोग कहते हैं कि अगर तुम ने दूध बेचा तो यह बच्चे के साथ बहुत बड़ा अन्याय है.

दूध में की मक्खी, किसने चक्खी. दूध में यदि मक्खी गिर जाए तो मक्खी चखना तो बहुत दूर की बात है उस दूध को भी कोई नहीं पीता. जान बूझ कर किसी गलत व घृणित बात को कोई स्वीकार नहीं करता.

दूधों नहाओ, पूतों फलो. स्नेह से दिया गया आशीवाद. दूध से नहाओ अर्थात तुम्हारे घर में खूब सम्पन्नता हो, पूतों फलो अर्थात तुम्हारे घर में बहुत से पुत्र जन्म लें.

दूब तो चरने के लिए ही होती है. आतताइयों का मानना है कि कमजोर लोग सताने के लिए ही बने हैं.

दूर की गंगा से घर का पोखर भला.  कोई भी चीज़ कितनी भी अच्छी क्यों न हो यदि हमारी पहुँच से बाहर हो तो हमारे लिए बेकार है. जो सहज उपलब्ध हो वह अधिक अच्छी है.

दूर के ढोल सुहावने होते हैं. बहुत सी वस्तुएँ दूर से अच्छी लगती हैं परन्तु पास जा कर मालूम होता है कि वे इतनी अच्छी नहीं हैं.

दूर जमाई फूल बराबर गावँ जमाई आदो, घर जमाई गधे बराबर जितना चाहे लादो. जो दामाद दूर रहता है वह फूल के समान प्रिय होता है, जो उसी गाँव में रहे वह कुछ कुछ प्रिय और सम्माननीय होता है, पर जो ससुराल में रहे वह गधे के समान लादा जाता है.

दूर देस से साजन आया, ऊंची मैंड़ी पलंग बिछाया, खाय पीय कर रहिया सोय, लेना एक न देना दोय. 1. किसी ऐसे व्यक्ति के लिए जिसे अपनी पत्नी से कोई आसक्ति न हो. 2. किसी विशिष्ट अतिथि के लिए अच्छा प्रबंध करो और वह कोई तवज्जो न दे तो.

दूर रहे से हेत बढ़े. दूर रहने से प्रेम बढ़ जाता है.

दूल्हा और दूल्हे का भाई, लंगड़ी घोड़ी और काना नाई. जहाँ बरात में बहुत कम लोग हों और वो भी एक से बढ़ कर एक कार्टून हों तो.

दूल्हा ढाई दिन का बादशाह. ढाई दिन की बादशाहत का मुहावरा अलिफ़ लैला के एक किस्से से आया है जिसमें किसी गरीब आदमी को ढाई दिन के लिए बादशाह बना दिया गया था. दूल्हे की शान भी केवल ढाई दिन की होती है, बारात लौटने के बाद उसे कोई नहीं पूछता.

दूल्हा तो आया नहीं और फेरों की तैयारी. सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति के बिना कोई कार्यक्रम कैसे हो सकता है.

दूल्हा दुल्हन मिल गए, झूठी पड़ी बरात. दूल्हे को दुल्हन से मिलवाने के लिए ही विवाह नाम का बड़ा भारी आयोजन किया जाता है. अब अगर दूल्हा दुल्हन अपने आप से ही मिल जाएँ तो बारात को कौन पूछेगा. इस का दूसरा अर्थ यह है कि यदि दो व्यक्ति आपस में दुश्मनी रखते हों तो उनके समर्थक भी लड़ने लगते हैं. अब यदि वे दोनों आपस में मिल जाएँ तो समर्थक कहीं के नहीं रहते.

दूल्हे के मुंह से लार गिरे तो बाराती क्या करें. मुंह से लार गिरने का अर्थ है मंद बुद्धि होना. दूल्हा मंद बुद्धि है इस में बारातियों का क्या दोष है.

दूल्हे के सो जाने से ब्याह नहीं टलता. जब बाल विवाह होते थे तब यह समस्या आती होगी कि कोई कोई दूल्हा विवाह के बीच में ही सो जाता होगा. तभी यह कहावत बनी होगी. बड़े आयोजन किसी एक महत्वपूर्ण व्यक्ति की अनुपस्थिति से भी रुकते नहीं हैं, इस आशय में यह कहावत कही जाती है. 

दूल्हे के ही साथ बरात. बारात दूल्हे के ही साथ चलती है, इसी प्रकार सेना सरदार के साथ और जनता अपने नेता के साथ चलती है.

दूल्हे को पत्तल नहीं, बजनिये को थाल. महत्वपूर्ण व्यक्ति की अनदेखी कर के महत्वहीन लोगों की आवभगत करना. (दूल्हे को पत्तल भी नहीं मिल रही है और बाजा बजाने वाले को थाल में भोजन परोसा जा रहा है. बजनिया – बाजा बजाने वाला.

दूसरे की थाली में घी घना दीखे. मनुष्य को सदैव ऐसा लगता है कि दूसरे लोग उससे अधिक सुखी हैं. ऐसा लगता है कि दूसरे की थाली में घी अधिक है (एक जमाने में घी अधिक होना अच्छे खाने का मानक था).

दूसरे की थाली में लड्डू बड़ा दीखे. दूसरे की सुख समृद्धि हमेशा अपने से अधिक लगती है. इंग्लिश में कहावत है – The grass is always greener on the other side of court.

दूसरे की पत्तल, लंबा-लंबा भात. चावल जितना लम्बा हो उतना ही उच्च कोटि का माना जाता है. हर व्यक्ति को ऐसा लगता है कि दूसरे को उस से अच्छा भात मिला है. अर्थ ऊपर वाली दोनों कहावत की भांति.

दूसरे की पीठ खुजलाने से अपनी खुजली नहीं मिटती है. दूसरों के काम करते रहने से अपनी आवश्यकताएं पूरी नहीं होतीं. इसका अर्थ यह नहीं है कि दूसरों के लिए कुछ नहीं करना चाहिए. व्यक्ति को अपनी आवश्यकताओं और समाज के कार्यों में संतुलन बना कर चलना चाहिए. (घर में दिया जला कर चौराहे पर दिया जलाओ).

दूसरे की बहू और अपनी बेटी सबको अच्छी लगती है. अधिकतर महिलाओं को अपनी बहू में बुराइयाँ ही बुराइयाँ और अपनी बेटी में अच्छाइयाँ ही दिखाई पडती है, साथ ही दूसरों की बहू बहुत सुशील और गुणवान नज़र आती हैं.

दे गया सो ले गया, जमा किया सो गवां दिया. जो धन दान दिया वह आपके साथ परलोक जाएगा, जो जमा करते रहे वह सब यहीं रह जाएगा.

दे दुआ समधियाने को, नहिं फिरती दाने दाने को. लड़के की ससुराल से मिले माल पर कोई औरत घमंड कर रही है तो दूसरी उसे आइना दिखा रही है.

दे दे बारूद में आग, किसकी रही और किस की रह जाएगी. खूब खाओ पियो और मौज उड़ाओ. यहाँ क्या बचना है.

देकर कोई नहीं भूलता. व्यक्ति कोई वस्तु ले कर भूल सकता है पर दे कर कभी नहीं भूलता.

देख पराई चूपड़ी जा पड़ बेईमान, एक घड़ी की सरमा सरमी दिन भर को आराम. कहीं खाने पीने का बढ़िया इंतजाम हो तो बिना शर्म किये वहाँ जा कर पड़ जाओ. एक घड़ी की बेशर्मी और सारे दिन का आराम.

देखती आँखों और चलते घुटनों. सभी लोग यह चाहते हैं कि जब इस संसार से जाने का समय आए तब तक आँखों से दिखता रहे और पैर चलते रहें (किसी का मोहताज न होना पड़े).

देखते हैं ऊँट किस करवट बैठता है. ऊंट जब बैठता है तो पहले से यह बताना संभव नहीं होता कि वह दाएं या बाएं किस तरफ बैठेगा. जब किसी व्यक्ति के विषय में यह अनुमान लगाना कठिन होता है कि वह आगे क्या निर्णय लेगा तो यह कहावत कही जाती है.

देखन के बौरहियाँ, मतलब में चौकस. कहावत उन लोगों के लिए जो देखने में बुद्धू लगते हैं पर अपने मतलब में होशियार होते हैं.

देखन के बौराहिया, आवें पांचो पीर. ऊपर वाली कहावत की भांति.

देखा देखी साधे योग, छीजे काया बाढ़े रोग. बिना योग्य गुरु से सीखे किसी की नकल कर के योग करने से शरीर को हानि होती है.

देखा देस बंगाला, जहाँ दांत लाल मुँह काला. बंगाल के लोगों के सांवले रंग और पान खाने की आदत पे व्यंग्य.

देखा न भाला, सदके गई खाला. बिना देखे किसी की बड़ाई करना.

देखा बाप घर, करे आप घर. लड़की ने जो अपने मायके में देखा होता है वही ससुराल में करना चाहती है.

देखी तेरी कालपी, बावनपुरा उजाड़. कालपी में पुराने महलों और किलों के खंडहर बहुत हैं इस पर किसी का व्यंग्य.

देखो खेल खुदाय का क्या क्या पलटे रंग, खानजादा खेती करे, तेली चढ़े तुरंग. एक नवाब ने तेली की रूपवती लड़की से शादी कर ली तो तेली जाति के लोगों की महल में बहुत पूछ हो गई और नवाब के अपने खानदानी खेती कर के पेट पालने पर मजबूर हो गए.

देना और मरना बराबर है. कंजूस के लिए कथन.

देना थोड़ा, दिलासा बहुत. देना कुछ ख़ास नहीं केवल बातों से ढाढस बंधाना.

देनी पड़ी बुनाई तो घटा बतावें सूत. एक जमाने में लोग सूत कात कर जुलाहों को बुनने के लिए देते थे. किसी ऐसे आदमी की बात हो रही है कि जब बुनाई (जुलाहे की मजदूरी) देने का नम्बर आया तो बोले मेरा सूत कम हो गया है. कामगार को पैसा देने में हीला हवाली करना. 

देने का बाट और, लेने का बाट और. बनिए को जब माल देना होता है तो वह कम तोलता है और जब लेना होता है तो ज्यादा तोलता है.

देने के लिए दीवालिया और लेने के लिए शाह. जब उधार वापस करने की बात आती है तो अपने को दीवालिया बताते हैं और जब किसी से उधार लेना होता है तो अपने को बहुत बड़ा आदमी बताते हैं.

देने को लेने को राम जी का नाम है. सन्यासियों के लिए कथन.

देने वाले से दिलाने वाले को ज्यादा सबाब है. परोपकार करने वाले से परोपकार करवाने वाले को अधिक पुन्य मिलता है.

देर आए, दुरुस्त आए. गलत काम करने वाला कोई आदमी थोड़ी देर से सही पर सही राह पर आ जाए तो. 

देव न मारे डेंग से कुमति देत चढ़ाय. ईश्वर किसी को दंड देना चाहता है तो डंडा नहीं मारता, उसकी बुद्धि भ्रष्ट कर देता है.

देवता का माहात्म्य, पुजारी के हाथ. पुजारी जितना अधिक देवता का गुणगान करेगा उतनी अधिक लोग देवता की भक्ति करेंगे. महात्माओं और नेताओं के चमचे भी इसी प्रकार से उनका प्रचार करते हैं.

देवदार औ चन्दन टोरा खस का इत्र मिलावें, करें उबटनों देह लगा के गरमी में सुख पावें. (बुन्देलखंडी कहावत) देवदार, चंदन और खस को मिला कर उबटन करने से ठंडक पड़ती है.

देवर से परदा जेठ से ठिठोली. उल्टा काम. आम तौर पर स्त्रियाँ जेठ से पर्दा करती हैं और देवर से हंसी मजाक कर लेती हैं.

देवी दिन काटें, लोग परिचै मांगें. देवी खुद परेशानी में हैं और किसी तरह दिन काट रही हैं, लोग उनसे आग्रह कर रहे हैं कि अपनी महिमा दिखाइये. कोई व्यक्ति स्वयं परेशानी में हो और उससे सहायता मांगी जाए तब.

देवी दे तो दे नहीं तो भैरों तैयार है. जहाँ पर मांगने वाले के पास बहुत सारे विकल्प हों.

देवेगा सो पावेगा, बोवेगा सो काटेगा. जैसा व्यवहार दूसरों को दोगे वैसा ही पाओगे.

देवों से दानव बड़े. भले लोगों के मुकाबले दुष्ट लोग अधिक प्रभावशाली हों तो.

देश छोड़ो, वेश न छोड़ो. यदि किसी कारण से विदेश में बसना पड़े तो भी अपनी संस्कृति और मूल्यों को नहीं छोड़ना चाहिए.

देशी गधा पूर्वी रेंक (देसी गधा पंजाबी रेंक). कोई फूहड़ व्यक्ति अधिक फैशन करे या अनपढ़ व्यक्ति ज्यादा अंग्रेज़ी बोले तो.

देशी मुर्गी विलायती बोल. ऊपर वाली कहावत की भांति.

देस चाकरी, परदेस भीख. अपने शहर या गाँव में व्यक्ति लज्जा के कारण भीख नहीं मांग सकता, इसलिए नौकरी ही कर सकता है. लेकिन परदेस में (जहाँ उसे कोई जानता न हो) भीख मांग सकता है.

देस चोरी परदेस भीख. बहुत भूखा होने पर आदमी परदेस में तो भीख मांग कर काम चला लेता है पर अपने गाँव या शहर में लज्जा के कारण भीख नहीं मांग पाता, लिहाजा चोरी करता है.

देस पर चढ़ाव, सर दुखे न पाँव. परदेस से घर वापस आना हो तो न थकान होती है न पैर दुखते हैं.

देसी कुतिया विलायती बोली. अनपढ़ व्यक्ति ज्यादा अंग्रेज़ी बोले तो.

देसी गधी, पूरवी चाल. मूर्ख व्यक्ति अधिक इतराए तो.

देह धरे का दंड है, हर काहू को होय, ज्ञानी काटे ज्ञान से, मूरख काटे रोय. मानव शरीर मिला है तो कुछ न कुछ कष्ट तो मिलेगा ही. ज्ञानी लोग समझदारी से कष्ट सह लेते हैं जबकि मूर्ख कष्ट मिलने पर रोते रहते हैं.

देह पर बाल न, तीन पाव का उस्तरा. अनावश्यक साज सामान. (देखिये परिशिष्ट)  

देहरी को दीपक, ज्यौं घर को त्यौं आँगन को. देहरी पर रखा हुआ दीपक घर को भी रौशनी देता है और आंगन को भी. समझदार लोग घर और समाज के कामों में संतुलन बना कर चलते हैं.

दैव दैव आलसी पुकारा. उद्यमी लोग कर्म करते हैं जिसका उन्हें फल मिलता है जबकि आलसी लोग ईश्वर से ही मांगते रहते हैं.

दो कहे तो चार सुने. यदि किसी की बुराई में दो बातें कहोगे तो चार सुननी भी पड़ेंगी. कहावत में यह सीख दी गई है कि यदि अपनी बुराई सुनना नहीं चाहते तो किसी को बुरा भी न कहो.

दो खसम की जोरू, चौसर की गोट. जिस स्त्री के दो पति हों वह हर दम दोनों के इशारों पर नाचने को मज़बूर रहती है. दो हाकिमों के बीच कोई एक ही मातहत हो तो दोनों उस पर अपना जोर जमाते हैं.

दो घर का पाहुना, भूखा ही रह जाए. यदि कोई व्यक्ति दो घरों का मेहमान हो तो दोनों यह सोचते हैं कि उसने दूसरी जगह खा लिया होगा, इस चक्कर में वह भूखा ही रह जाता है. दो लोगों के चक्कर में कोई काम न हो पा रहा हो तो यह कहावत कही जाती है.

दो घर डूबते तो एक ही डूबा. जहाँ पति पत्नी दोनों ही निकम्मे और झगड़ालू हों वहाँ यह बात कही जाती है कि इन की शादी अलग अलग हुई होती तो दो घर डूबते. इनकी आपस में हुई है तो गनीमत है एक ही घर डूबा.

दो घर मुसलमानी, तिसमें भी आनाकानी. किसी एक जाति के बहुत थोड़े से लोग हों और उन में भी आपस में खींच तान हो तो.

दो घोड़ों पर सवारी खोटी. कहावत में यह सीख दी गई है कि किसी लक्ष्य को पाने का पूरे मन से प्रयास करो, अधूरे मन से कई सारे लक्ष्यों के पीछे भागने से कुछ भी हासिल नहीं होगा.

दो जोरुओं का खसम फूंके चूल्हा. जिस आदमी के दो पत्नियाँ हों उसे खुद ही खाना बनाना पड़ता है (बल्कि कभी कभी तो पत्नियों के लिए भी बनाना पड़ता है), क्योंकि दोनों पत्नियाँ आपस में हिर्स करती हैं.

दो तरबूज एक हथेली पर नहीं सधते. एक व्यक्ति से एक साथ दो बहुत बड़े काम नहीं लिए जा सकते.

दो दिन की मुसलमानी अल्लाह अल्लाह पुकाऱै. (हरयाणवी कहावत) जो नया मुसलमान बना हो वह अधिक दिखावा करता है.

दो नाव में चढ़ना, छाती फाड़ के मरना. यदि कोई व्यक्ति दो नावों में पैर रख कर नदी पार करना चाहेगा तो बीच मंझदार अवश्य डूबेगा. कोई व्यक्ति एक साथ दो कठिन काम करना चाह रहा हो और कोई भी काम ठीक से न कर पा रहा हो तो उसे नसीहत देने के लिए.

दो पाटन के बीच में साबत बचा न कोए. संसार रूपी चक्की के दो पाट हैं, माया मोह और ईश्वर की भक्ति. बेचारा आम आदमी इन दोनों के बीच पिसता रहता है. (इसकी पहली पंक्ति है – चलती चाकी देख के दिया कबीरा रोय).

दो बेटों की माँ दुखिया. दोनों बेटे एक दूसरे पर जिम्मेदारी टालते हैं. 

दो भिड़ेंगे तो एक तो गिरेगा ही. अर्थ स्पष्ट है.

दो मुल्लो में मुर्गी हराम. अगर जानवर को एक ही वार में ठीक तरह से जिबह न किया गया तो उसका मांस हराम हो जाता है. दो मुल्ले करेंगे तो ठीक तरह से नहीं होगा.

दो मुल्लों में मुर्गी हलाल. दो मुल्लों की आपसी लड़ाई और हिर्स में मुर्गी बेचारी मुफ्त में मारी जाती है.

दो लड़ें तीसरा ले उड़े (दो की लड़ाई, तीजे की मौज). जब दो लोग लड़ते हैं तो तीसरा उसका लाभ उठाता है. दो बिल्लियों की लड़ाई में बंदर ने किस तरह रोटी खा ली थी यह कहानी हम सब ने सुनी होगी.

दो लड़ेंगे तो एक गिरेगा भी. जब दो लोग लड़ेंगे तो कोई न कोई तो गिरेगा ही.

दो शरीर एक प्राण. अत्यधिक प्रेम.

दो हाथ दो पाँव मिलें तो चौपाया भी बन सकते हैं और चतुर्भुज भी. दो लोग मिल कर काम करें तो महान काम भी कर सकते हैं (भगवान के समान चतुर्भज बन सकते हैं) और नीचता की पराकाष्ठा भी कर सकते हैं (पशुओं के समान चौपाए बन सकते हैं)

दोउ बेर जो घूमे फिरे, तीन बेर जो खाए, सदा निरोगी चंग रहे, जो प्रातः उठ न्हाए. जो व्यक्ति सुबह शाम सैर को जाता है (अर्थात व्यायाम करता है), तीन बार से अधिक भोजन नहीं करता है और प्रातः उठ कर नहाता है वह सदा निरोगी रहता है.

दोनों दीन से गए पांड़े, हलुआ मिला न मांड़े. मांड़े माने पतली रोटी. पांडे जी दोनों चीजें खाने के चक्कर में थे हलुआ भी और रोटी भी. अंततः दोनों ही नहीं मिलीं. (दुविधा में दोनों गए, माया मिली न राम).

दोनों पलीतों में दे दो तेल, तुम नाचो हम देखें खेल. दो लोगों में लड़ाई करा कर तमाशा देखने वालों के लिए.

दोनों वक्त मिले सियोगे तो सूरज की आँख फूट जाएगी. पुराने लोगों की आदत थी कि किसी काम को मना करना हो तो उस के साथ कोई लोक विश्वास जोड़ दो. इसी प्रकार का एक बच्चों को समझाने वाला लोक विश्वास.

दोष कहा वा कुब्जा को सखि अपनो श्याम खोटो. कंस के बुलाने पर जब कृष्ण मथुरा गए तो वहां उन्होंने एक कुबड़ी स्त्री को स्पर्श कर के परम रूपवती में बदल दिया. गोपियों को जब यह बात मालूम हुई तो उन्हें बड़ी जलन हुई. वे आपस में बात कर रही हैं कि इस में कुब्जा का कोई दोष नहीं है कृष्ण के मन में ही खोट है. 

दोस पराए देख करि, चला हसन्त हसन्त, आपने याद न आवई, जिनको आदि न अन्त. सभी लोग पराए दोष को देख कर हँसते हैं लेकिन अपने दोष कोई नहीं देखता.

दोस्त के मुँह पर कहिए और दुश्मन की पीठ पर. दोस्त को उसकी कोई कमी बतानी हो तो उसके मुँह पर बताओ, पीठ पीछे किसी से उसकी बुराई मत करो. दुश्मन की कमी बतानी हो उस के मुँह पर कुछ न कह कर पीठ पीछे उसकी बुराई करो.

दोस्त बने दुश्मन से सावधान रहिए. कोई दुश्मन यदि आप का दोस्त बन जाता है तो उस पर पूरा विश्वास नहीं करना चाहिए. हो सकता है वह आपकी पीठ में छुरा भोंकना चाहता हो. (फागुन को मेंह बुरो, बैरी को नेह बुरो).

दोस्त मिलें खाते, दुश्मन मिलें रोते. आशीर्वाद के रूप में कहा जाता है.

दोस्ती टूट जाती है बहुत अधिक मिलने से या बहुत कम मिलने से. बहुत अधिक मिलने से अनादर होता है. संस्कृत में कहावत है ‘अति परिचयात अवज्ञा, सतत गमनं अनादरम्’. बहुत कम मिलने से भी प्रेम कम हो जाता है. इंग्लिश में कहावत है ‘out of sight, out of mind.’

दोस्तों का हिसाब दिल में. जहां सच्ची दोस्ती हो वहां लिखत पढ़त की जरूरत नहीं पड़ती.

दोस्तों से रखिएगा लेन देन साफ़, कायम अगर आपको रखनी है दोस्ती. दोस्ती चाहे कितने भी पक्की क्यों न हो आपसी हिसाब किताब साफ़ रखना चाहिए, क्या मालूम कब किस के मन में कोई खटास पैदा हो जाए.

दौड़ चले सो औंधा गिरे. किसी भी काम को करने में जो बहुत तेजी दिखाने की कोशिश करता है वह परेशानी में जरूर पड़ता है.

दौड़े दौड़े जाइए, भाग बिना क्या पाइए. कितनी भी दौड़ भाग कर लो (प्रयास कर लो) भाग्य के बिना कुछ नहीं मिलता. (बहुत से आलसी लोग यह सोच कर प्रयास ही नहीं करते). वैसे सयाने लोग इस आशय में भी इस कहावत को कहते हैं कि पूरा प्रयास करने के बाद यदि सफलता न मिले तो निराश मत हो, यह मान लो कि अमुक वस्तु तुम्हारे भाग्य में ही नहीं थी. इंग्लिश में भी इस आशय की एक कहावत है – Nothing is stronger than destiny.

दौलत पाय न कीजिए सपनेहूँ में अभिमान, (चंचल जल दिन चारिको, ठाउं न रहत निदान). लक्ष्मी चंचला है, किसी के पास ठहरती नहीं है, इसलिए धन दौलत पा कर घमंड नहीं करना चाहिए, सपने में भी नहीं.

द्वार धनी के पड़ रहे, धक्का धनी के खाय, कबहूँ धनी नवाजिहैं, जो दर छांड़ि न जाए. धनवान के द्वार पर पड़े रहो चाहे वह धक्का ही क्यों न दे. अगर आशा ले कर पड़े रहेगो तो कभी न कभी उसकी कृपा हो जाएगी.

 

 

धंधा थोड़ा धांधल घनी. (राजस्थानी कहावत). जहाँ काम बहुत कम और धांधलेबाजी ज्यादा होती है. जैसे सरकारी कार्यालय. घनी – अधिक.

धतूरे के गुण महादेव जानें. जो जिस चीज का सेवन करता है वही उस के गुण जान सकता है.

धन और कन्दुक खेल की दोनों एक सुभाय, कर आवत छिन एक में छिन में कर से जाय. कन्दुक – गेंद. धन और गेंद दोनों का एक सा स्वभाव है, हाथ में आते ही तुरंत निकल जाते हैं.

धन का धन गया, मीत का मीत गया. (धन का धन गया, मीत की प्रीत गयी). दोस्ती और रिश्तेदारी में पैसा उधार देने में यह खतरा हमेशा रहता है कि पैसा भी वापस न मिले और पैसा वापस मांगने पर सम्बंध भी खराब हो जाएँ.

धन के तेरह मकर पचीस दिन जाड़े दो कम चालीस. चिल्ला जाड़ा अड़तीस दिन का होता है.

धन के पन्द्रा मकर पचीस. जाड़ा परै दिना चालीस. राशि के हिसाब से बताया गया है कि धन राशि के पन्द्रह दिन और मकर राशि के पच्चीस दिन बहुत जाड़ा पड़ता है. 

धन का बढ़ना अच्छा है,  मन का बढ़ना नाहीं. (भोजपुरी कहावत) रहीम ने इस विषय में बहुत उच्च कोटि की बात कही है – बढ़त बढ़त सम्पति सलिल, मन सरोज बढ़ जाहिं, घटत घटत पुनि न घटे, बरु समूल कुम्ह्लाहिं (तालाब में पानी बढ़ने के साथ कमल की नाल लम्बी होती जाती है पर पानी कम होने पर फिर छोटी नहीं होती, बल्कि कमल मुरझा जाता है. इसी प्रकार संपत्ति के बढ़ने से व्यक्ति का मन बढ़ जाता है और संपत्ति कम होने से मुरझा जाता है).

धन के बिना नाथिया और धनी हुए तो नाथू लाल. किसी व्यक्ति का नाम नत्थू है. जब वह गरीब था तो सब उसे नाथिया कह कर बुलाते थे, धनी हो गया तो नाथू लाल कहने लगे. 

धन खेती धिक चाकरी, धन धन बणिज व्यापार. खेती धन्य है और नौकरी को धिक्कार है. व्यापार भी धन्य है.

धन गया कुछ नहीं गया, स्वास्थ्य गया कुछ गया, चरित्र गया सब कुछ गया.  स्पष्ट है.

धन दे जी को राखिए, जी दे राखे लाज. धन खर्च कर के प्राणों की रक्षा कीजिए और प्राण दे कर आत्मसम्मान की.

धन से लखपति दिल से भिखारी. धनी परन्तु कंजूस व्यक्ति के लिए.

धन, जोबन और माया, तीन दिनां की छाया. धन, यौवन और माया अधिक समय तक नहीं ठहरते (इसलिए इनके होने पर अभिमान नहीं करना चाहिए). 

धनबल जनबल बुद्धि अपार, सदाचार बिन सब बेकार. सदाचार के बिना सारे धन और बुद्धि बेकार हैं.

धनवंती के काँटा लगा, दौड़े लोग हजार, निर्धन गिरा पहाड़ से, कोइ न करे विचार (धनवंती के कांटा लगा पूछे सब कोय, निर्धन गिरा पहाड़ से पूछे ना जोय). धनवान को जरा सा भी कष्ट हो तो सब पूछने आते हैं, गरीब को कितना भी बड़ा कष्ट हो, कोई नहीं पूछता. (घर की जोरू भी नहीं पूछती).

धनि बगुला भक्तन की करनी, हाथ सुमरनी बगल कतरनी. धनि – धन्य है, सुमरनी – जपने वाली माला, कतरनी – कैंची. हे बगुला भक्तों, तुम्हारी करनी धन्य है. तुम हाथ में माला ले कर भक्त बने हुए हो और बगल में जेब काटने वाली कैंची रखे हुए हो. कहीं कहीं पर केवल ‘हाथ सुमरनी बगल कतरनी’ बोला जाता है.

धनि रहीम जल पंक को लघु जिय पियत अघाय, उदधि बड़ाई कौन है जगत पियासो जाय. रहीम कहते हैं कि छोटे तालाब का जल धन्य है जिस से लोगों की प्यास बुझती है. समुद्र इतना बड़ा है लेकिन उस से किसी की प्यास नहीं बुझती. बड़े का बड़प्पन तभी माना जाएगा जब किसी को उससे लाभ होगा.

धनी की बेटी ब्याहे, हिजड़े अड़ंगा लगायें.  किसी अच्छे काम में यदि दुष्ट लोग अड़ंगा लगाएं तो.

धनी बाप के काने बेटे भी ब्याहे जाते हैं. पैसे वाले लोगों के अयोग्य और कुरूप बेटों की भी शादी हो जाती है. 

धन्य मेरी बालकी, जिन बाप चढ़ाए पालकी. बेटी के कारण प्रतिष्ठा पाने वाले के लिए प्रशंसा या व्यंग्य में कही गई बात.बालकी – पुत्री.

धरती माता तुम बड़ीं, तुम से बड़ा न कोय, जब धरती पर पग धरूँ, बैकुंठ सवेरा होय. सुबह उठ कर धरती पर पाँव रखने से पहले बोली जाने वाली पंक्तियाँ.

धरम का धरम, करम का करम. सर्वोत्तम कार्य वह है जिसमें धर्म का पालन भी हो और रोजी रोटी भी चले.

धर्म की जड़, सदा हरी (धर्म की जड़ पाताल में). धर्म पर चलते वाला धनवान न भी हो तब भी सुखी रहता है.

धर्म धीरा, पाप अधीरा. धर्म पर चलने वाला व्यक्ति धैर्यवान होता है जबकि पाप कर्म करने वाला सब कुछ पा लेने के चक्कर में अधीर होता है.

धर्म भी छूटा, तुम्बा भी फूटा. तुम्बा – कड़वे कद्दू को सुखा कर बनाया गया पात्र जिसे साधु लोग प्रयोग करते हैं. कोई व्यक्ति धर्म से विमुख हो जाए तो.

धर्मी धर्म करे और पापी पेट पीटे. कोई धर्मात्मा परोपकार के कार्य करता है तो दुष्ट लोगों को बड़ा कष्ट होता है.

धाओ धाओ, करम लिखा सो पाओ. धाओ – दौड़ो. कितना भी दौड़ लो, जो भाग्य में लिखा है वही मिलेगा. 

धाकड़ चोर, सेंध में गावे. आमतौर पर चोर सेंध लगा कर जल्दी से चोरी कर के भाग जाते हैं. परन्तु जो चोर आत्म विश्वास से भरा होता है उसे कोई जल्दी नहीं होती. कोई सरकारी कर्मचारी बिना किसी से डरे घर जा कर रिश्वत मांगे और धौंस दिखाए तो भी यह कहावत कह सकते हैं.                

धान का गाँव पुआल से जाना जाता है. यदि गाँव में पुआल का प्रयोग अधिक दिखाई दे तो समझ लो यहाँ धान की खेती होती है. अर्थ है कि परिवेश को देख कर किसी स्थान के विषय में बहुत कुछ जाना जा सकता है.

धान गिरे बढ़ भाग, गेहूँ गिरे दुरभाग. खेत में अगर धान की खड़ी फसल गिरती है तो धान की उपज अच्छी होती है लेकिन गेहूँ की फसल गिर जाए तो उपज अच्छी नहीं होती. यानि गिरी हुई धान की फसल के दाने निरोग और बड़े होते हैं जबकि गेहूँ गिर जाए तो उसके दाने छोटे-छोटे हो जाते हैं।

धान पान ऊखेरा, तीनों पानी के चेरा. धान, पान और गन्ने की फसल को बहुत पानी चाहिए होता है.

धान पान पनियाव ले, दुष्ट जात लतियाव ले. धान और पान अधिक पानी से ठीक रहते हैं और दुष्ट जात लतियाने से.

धान पान पनिआए, बाभन खूब खिलाए, कायथ घूस दिलाए, नान्ह जात लतिआए. धान और पान के पौधे खूब पानी देने से खुश होते हैं (तेजी से बढ़ते हैं), ब्राह्मण खूब खिलाने से,  कायस्थ घूस देने से और छोटी जात के लोग लात खा कर खुश रहते हैं. यह एक कडवा सच है कि सामंत शाही व्यवस्था में तथाकथित उच्च जाति के लोग वंचितों पर बहुत अत्याचार करते थे.

धान पुराना घी नया और कुलवंती नार, चौथी पीठ तुरंग की सरग निसानी चार. चावल पुराना अच्छा माना जाता है और घी नया. ये चीजें भाग्य से ही मिलती हैं. इनके अतिरिक्त कुल की लाज रखने वाली स्त्री और घोड़े की सवारी भी बड़े भाग्य से मिलती हैं इसलिए इन चारों चीजों को स्वर्ग की निशानी बताया गया है.

धी छोड़ दामाद प्यारा. लड़की मायके में अपने पति की बुराई कर रही है. मां बाप समझाते हैं कि पति के बारे में ऐसा नहीं कहते, तो लड़की बोलती है कि अच्छा अब तुम्हें लड़की से दामाद ज्यादा प्यारा हो गया.

धी जमाई ले गए, बहू ले गईं पूत, चरनदास हम बुड्ढे बुढ़िया रहे ऊत के ऊत. धी माने बेटी. जमाई लोग लड़कियों को ले गए और लड़कों को बहुएं ले गईं. बेचारे पति पत्नी बुढ़ापे में अकेले रह गए.

धी ताको कहूँ, बहुरिया तू कान धर. कोई औरत बहू पर रोब जमाने के लिए लड़की को डांट रही है (जिससे बहू यह न कहे कि लड़की को कुछ नहीं कहतीं), और इस तरह बोल रही है कि बहू भी सुन कर सावधान हो जाए.

धी दस कोस, पूत पड़ोस.  धी – बेटी. लड़की को अपने घर से थोड़ा दूर बसाना चाहिए और पुत्र को बगल में.

धी न धियाना, आप ही कमाना, आप ही खाना. ऐसे इकलखोर निस्संतान व्यक्ति के लिए जो कोई सामाजिक सरोकार न रखता हो.

धी पराई, आँख लजाई. कोई व्यक्ति कितना भी बड़ा क्यों न हो, कितना भी अहंकारी क्यों न हो, बेटी की शादी के बाद उसे विनम्र होना पड़ता है. 

धी ब्याही तब जानिये जब घर से डोली जावे. बेटी के विवाह में तरह तरह के संकट आते हैं. जब उस की डोली विदा हो जाए तभी मानना चाहिए कि विवाह सम्पन्न हो गया है.

धीमे नाचो, नंगे दिख जाओगे. अति उत्साह में आ कर ज्यादा उछल कूद करने से आपकी असलियत सामने आ जाने का खतरा होता है.

धीया न पूता, मुँह चाटे कुत्ता.  धीया, धी – बेटी, पूता – पुत्र. जिनके कोई संतान न हो बुढापे में उनकी बहुत बेकदरी होती है (कुत्ते मुँह चाटते हैं).

धीरज धरिअ उतरिये पार, नाहीं बूड़त सब परिवार. जो लोग धैर्य रख कर नदी पार करते हैं, उनका परिवार बीच नदी में नहीं डूबता.

धीरज धर्म मित्र अरू नारी, आपत काल परखियेहीं चारी. कोई व्यक्ति कितना धैर्यवान है, कितना अपने धर्म पर अडिग है, कोई मित्र कितना सच्चा हितैषी है और कोई नारी कितनी पतिव्रता है, इन सब की परख आपत्ति काल में ही हो सकती है.

धीरज बनिज, उतावल खेती. व्यापार में धैर्य की आवश्यकता होती है और खेती में जल्दी निर्णय ले कर पहले काम करने की. 

धीरज सुधारे कारज. धैर्यपूर्वक कार्य करने से सारे कार्य ठीक से हो जाते हैं.

धुली धुलाई भेड़ कीचड़ में गिरी. बाल अधिक होने के कारण भेड़ को नहलाना कठिन होता है, और नहलाने के बाद अगर वह कीचड़ में गिर जाए तो नहलाने वाले को कितना कष्ट होगा. मेहनत से किया हुआ काम मिट्टी हो जाना.

धूप रहते मेंह बरसे, काले चोर का ब्याह. लोक विश्वास है कि धूप और वर्षा एक साथ हो तो काले चोर का ब्याह हो रहा होगा. कहीं कहीं भूत भूतनी का ब्याह भी मानते हैं.

धूल उड़ाने से सूरज नहीं छिपता. किसी महापुरुष की निंदा करने से उसकी महानता कम नहीं हो जाती.

धूल छाने कंकड़ हाथ. व्यर्थ के काम से कुछ हासिल नहीं होता. धूल को छानोगे तो कंकड़ ही हाथ लगेंगे.

धूल पड़ी वा काम में एक चित्त दो ठौर. काम कहीं और कर रहे हैं और मन कहीं और है तो काम में सफलता नही मिल सकती.

धूल से ढका हो तो भी सूरज सूरज ही रहता है. अर्थ स्पष्ट है. 

धेला न कौड़ी, कान छिदाने दौड़ी. कर्ण छेदन संस्कार में काफी खर्च होता है.जिस कन्या के माँ बाप के पास पैसा न हो और कन्या के कान छिदाना चाह रहे हों    

धेले की नथनी पर इतना गुमान, सोने की होती तो चढ़ती आसमान. बहुत छोटी छोटी चीजों पर घमंड करने वालों का मजाक उड़ाने के लिए यह कहावत कही गई है. 

धेले की बुढ़िया टका सर मुड़ाई. किसी सस्ती चीज़ का रखरखाव महंगा हो तो.

धैया छूने आये थे. बच्चों के खेल में किसी एक स्थान को धैया मान लेते हैं. बच्चे एक स्थान से दौड़ कर धैया छूते हैं और लौट कर वापस आते हैं. कोई आप के घर आते ही जाने के लिए कहने लगे तो यह कहावत बोली जाती है.

धोबी अपने गदहे को भी बाबू कहे. जिससे काम लेना है उस से अच्छा व्यवहार करना चाहिए.

धोबियों से कौन सा घाट छिपा है. हर व्यापारी को अपने व्यवसाय से सम्बन्धित सभी बारीकियाँ मालूम होती हैं.

धोबी अहीर की कौन मिताई, इनके गदहा उनके गाई. दो अलग प्रवृत्ति या व्यवसाय वाले लोगों में मित्रता नहीं हो सकती इस बात को मजेदार ढंग से कहा गया है. धोबी के पास गदहा है और अहीर के पास गाय, इनमें मित्रता कैसे हो सकती है.

धोबी का कुत्ता, न घर का न घाट का. धोबी का कुत्ता धोबी के साथ घाट पर जाता है और घाट पर कपड़े सूखते छोड़ कर धोबी के साथ ही घर आ जाता है. अर्थात वह न तो घर की रखवाली कर पाता है और न ही घाट की. किसी ऐसे व्यक्ति के लिए जिस से कोई भी एक काम ढंग से न लिया जाए (और इस कारण उस की कोई कद्र न हो). भोजपुरी कहावत – घर के ना घाट के माई के न बाप के.

धोबी का गधा, साधु की गाय और राजा का नौकर किसी और काम के नहीं रहते. अर्थ स्पष्ट है.

धोबी का छैला (बेटा), आधा उजला आधा मैला. धोबी का बेटा आधे कपड़े अपने पहनता है जो मैले होते हैं और आधे कपडे ग्राहकों के पहनता है जो उजले होते हैं.

धोबी की भाजी गधा भी खाए. भाजीविवाह में रिश्तेदारों को बंटने वाली मिठाई. पालतू जानवर परिवार के सदस्य जैसा हो जाता है. 

धोबी के घर पड़े चोर , वह न लुटा लुटे और. धोबी के घर चोरी होगी तो नुकसान धोबी का नहीं उन लोगों का होगा जिनके कपड़े धोबी धोने के लिए ले कर आया है.

धोबी के घर ब्याह, गधे का छुट्टी भइल. (भोजपुरी कहावत) धोबी के घर में ब्याह है. कपड़े नहीं धुलने इस लिए गधे को छुट्टी मिल गई है. किसी असम्बद्ध कारण से किसी को लाभ मिलने पर.

धोबी के घर में आग लगी, न हरष न बिषाद. धोबी के घर में आग लगी तो उसे कोई चिंता ही नहीं है, क्योंकि जो कपड़े जलेंगे वे उसके हैं ही नहीं. 

धोबी के बसे या कुम्हार के, गधा तो लदेगा ही. गरीब और असहाय आदमी कहीं भी रहे उस पर काम तो लादा ही जाएगा.

धोबी के ब्याह, गधे के माथे मोर. धोबी के घर में ब्याह है तो गधे को भी सजने को मिल रहा है.

धोबी छोड़ भिश्ती किया, रही घाट के पास. धोबी घाट पर कपड़े धोता है और भिश्ती पानी भरता है. किसी स्त्री ने धोबी को छोड़ कर भिश्ती से शादी कर ली, तो भी उसे घाट पर ही रहना पड़ा. स्थान या व्यवसाय बदल कर भी किसी व्यक्ति की स्थिति न सुधरे तो यह कहावत कही जाती है.  

धोबी बस के क्या करे, दिगम्बरन के गाँव. दिगम्बर – दिक्+अम्बर, दिशाएँ जिनका वस्त्र हैं अर्थात पूर्णतया निर्वस्त्र रहने वाले साधु लोग (जैन मुनियों का एक वर्ग). जो लोग कपड़े ही नहीं पहनते उनके गाँव में बस कर धोबी क्या करेगा. जहाँ किसी चीज़ की बिलकुल माँग न हो वहाँ उस का व्यापार करने की क्या तुक.

धोबी रोवे धुलाई को, मियाँ रोवे कपड़े को. धोबी इस बात को रोता है कि धुलाई के पैसे कम मिल रहे हैं और मियाँ इस बात को रो रहे हैं कि कपड़े साफ़ नहीं धुले. सब अपनी अपनी परेशानी को रोते हैं.

धौले पर दाग लगे. सफेद पर ही दाग लगता है, काले या गहरे रंग पर दाग दिखाई नहीं पड़ते. सच्चरित्र लोगों की बदनामी बहुत जल्दी हो जाती है.

धौले भले हैं कापड़े, धौले भले न बार, काली भली है कामली, काली भली न नार. कपड़े तो सफेद अच्छे लगते हैं पर सफ़ेद बाल अच्छे नहीं लगते, कमली (छोटा कम्बल) तो काली अच्छी लगती है पर स्त्री काली अच्छी नहीं लगती. 

 

 

न अंधे को न्योता देते न दो जने आते. अंधे को बुलाओगे तो अंधा खुद तो आएगा ही, किसी को साथ में ले कर भी आएगा. ऐसा कोई काम करो ही क्यों जिसमें उम्मीद से अधिक खर्च हो.

न इतना मीठा बन कि चट कर जाएं भूंखे, न इतना कड़वा बन कि जो चक्खे वो थूके. समाज में अपना व्यवहार कैसा रखना चाहिए इसके लिए बड़ा सुंदर सुझाव है. अगर बहुत मीठा बनोगे तो लोग आप से बहुत अपेक्षाएं करेंगे और आपको चैन से जीने नहीं देंगे. अगर बहुत कड़वा बनोगे तो आप के नाम पर थूकेंगे. इसलिए न बहुत मीठा और न बहुत कड़वा, संतुलित व्यवहार करना चाहिए.

न खाता न बही, जो हम कहें वही सही. जबरदस्ती अपनी बात मनवाने वालों के लिए.

न खुदा ही मिला न बिसाले सनम, न इधर के रहे न उधर के रहे. बिसाले सनम – प्रिय से मिलना (उर्दू). कहावत का अर्थ स्पष्ट है. इस प्रकार की दूसरी कहावत है – दुविधा में दोनों गए, माया मिली न राम.

न खोटा करें न हाथ जोड़ें. जब हम कोई गलत काम नहीं करते तो हम किसी के आगे हाथ क्यों जोड़ें.

न गदहे को दूजा मालिक, न धोबी को जानवर दूजा. जहाँ दो व्यक्ति मजबूरी में एक दूसरे से गठबंधन किए हों और निभा रहे हों.

न गाय के थन, न किसान के भांडे. काम का कोई सूत कपास ही नहीं है.

न चलनी में पानी आएगा न मूँज का रस्सा बन पाएगा. खाट बुनने वाले मूंज से मोटा रस्सा नहीं बन सकता (जिस प्रकार चलनी में पानी नहीं भर सकते). छोटी बुद्धि वाले लोग बड़ा काम नहीं कर सकते.

न तुम जीते न हम हारे.  आपसी विवाद को समझदारी से सुलझाने की कला.


न दीन का न दुनिया का. दीन – धार्मिक आस्था. कोई दुविधा ग्रस्त व्यक्ति जो न साधु सन्यासी बन पा रहा हो और न दुनियादारी निभा पा रहा हो.

न देने के नौ बहाने. कोई वस्तु देने का मन न हो तो बहुत से बहाने बनाए जा सकते हैं.

न दौड़ चलेंगे, न ठेस लगेगी. दौड़ के चलने में ठोकर लगने का डर है, हम दौड़ कर चलेंगे ही नहीं तो ठेस क्यों लगेगी. कोई काम करने में जल्दबाजी न करो.

न धान बोवो न बादल ताको. जब सिंचाई के साधन नहीं थे तब धान बोने वाले किसान बादल आने की बाट देखते रहते थे. कहावत में यह सीख दी गई है कि ऐसा कोई काम मत करो जिसमें दूसरों पर आश्रित रहना पड़े.

न नाम लेवा, न पानी देवा. किसी का पूरा खानदान नष्ट हो जाना. न तो कोई नाम लेने वाला बचा, न पितरों को तर्पण देने वाला.

न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी. राधा नाम की एक लड़की से नाचने के लिए कहा गया. उसने कहा नौ मन तेल के दिए जलाओ तो मैं नाचूँगी. यहाँ नौ मन तेल का अर्थ है कोई असंभव सी शर्त. किसी काम को करने के लिए कोई बहुत बड़ी और अव्यावहारिक शर्त रखे तो यह कहावत कही जाती है. 

न बात बिरानी कहिए, न ऐंचातानी सहिए. बिरनी – पराई. दूसरे की बुराई करोगे तो परेशानी में पड़ोगे, इसलिए दूसरों के कजिए किस्से (परनिंदा परचर्चा) नहीं करने चाहिए.

न बासी बचे, न कुत्ता खाय. किसी काम को बहुत किफायत से करना जिसमें चीज़ खराब न जाए.

न बेटा न बेटी, बेट होए. स्वामी जी से किसी गर्भवती स्त्री ने पूछा कि उसके बेटा होगा या बेटी. स्वामी जी बोले बेट होए. कोई व्यक्ति किसी बात का गोल मोल जवाब दे तो यह कहावत कही जाती है.

न मिली तो त्यागी, मिल गई तो वैरागी. स्त्री नहीं मिली तो त्यागी बन गए, मिल गई तो वैरागी बन गए. (वैरागी वैष्णवों का एक सम्प्रदाय है जिसमें स्त्री रख सकते हैं).

न मैं जलाऊं तेरी, न तू जलाए मेरी. न मैं तुम्हें बुरा भला कह कर गुस्सा दिलाऊं, न तुम मुझे.

न मैके में सुख, न ससुराल में. जिसे कहीं सुख न मिले. (घर की दाही वन गई, वन में लागी आग).

न रहेगा बाँस न बजेगी बांसुरी. सभी जानते हैं कि बांसुरी बांस से बनती है (उसका नाम बांसुरी इसीलिए है). अब अगर बांस नहीं होगा तो बांसुरी बन ही नहीं पाएगी. जिस वस्तु के द्वारा कोई काम होना हो उसे ही नष्ट कर देना.

न सुनोगे सीख, तो मांगोगे भीख. बड़ों की सीख नहीं सुनोगे तो जीवन में कुछ नहीं बन पाओगे, भीख मांगने की नौबत आ जाएगी.

न सूप दूसे जोग, न चलनी सराहे जोग. दूसे जोग – दोष देने योग्य, सराहे जोग – सराहने योग्य. दो चीजें या दो व्यक्ति एक से हों तो. सूप और चलनी में से कोई भी प्रशंसा या बुराई करने योग्य नहीं है.

नंग बड़े परमेश्वर से. यहाँ नंगे से अर्थ निर्लज्ज व्यक्ति से है. निर्लज्ज व्यक्ति से सबको डरना चाहिए (चाहे एक बार को आप परमात्मा से मत डरो).

नंगई तेरहवां रत्न है. बेशर्म आदमी से सब डरते हैं इस आशय में यह कहावत कही जाती है. 

नंगई तेरा ही सहारा. निर्लज्ज व्यक्ति का सब से बड़ा हथियार निर्लज्जता ही है.

नंगा क्या ओढ़े क्या बिछाए. सभ्य समाज के लोगों की कुछ न्यूनतम आवश्यकताएँ होती हैं, जैसे ओढ़ने और बिछाने के कपड़े. जिसके पास कुछ भी नहीं है वह बेशर्म हो जाता है.

नंगा क्या नहाए और क्या निचोड़े. जो नंगा है वह नहा कर क्या करेगा, और नहा भी लेगा तो उसे कौन से कपड़े निचोड़ने हैं. जिसके पास कुछ भी न हो उसका भद्दे तरीके से मज़ाक उड़ाने के लिए.

नंगा खड़ा बजार में, है कोई कपड़े ले. नंगा बीच बाज़ार में खड़ापूछ रहा है कोई कपड़े लेगा. जो कंजूस और निर्लज्ज आदमी अपने आप को बहुत दानी बताता हो उस का मजाक उड़ाने के लिए.

नंगा नाचे खोवे क्या. जो निर्लज्ज है वह कुछ भी बेहयाई कर सकता है, उसका कोई नुकसान तो होना नहीं है.

नंगा साठ रुपये कमाए, तीन पैसे खाए. बहुत कंजूस आदमी के लिए.

नंगी ने घाट रोका, नहावे न नहाने दे. कोई बेशर्म स्त्री नंगी हो कर घाट पर खड़ी हुई है, खुद भी नहीं नहा रही है और लज्जा के मारे दूसरे लोग भी नहीं नहा पा रहे हैं. कोई नीच व्यक्ति खुद भी कोई काम न करे और दूसरों को भी न करने दे तो.

नंगी हो के काता सूत, बूढ़ी होके जाया पूत. उचित समय पर कोई काम न करना. जब कपड़े बिलकुल फट गए तो कपड़ा बुनने के लिए सूत कातने बैठीं, और जवानी में न करके बुढापे में पुत्र पैदा किया.

नंगे का आग में क्या जले. जिसके पास कुछ नहीं है उसका किसी प्राकृतिक आपदा में क्या बिगड़ेगा.

नंगे का क्या चुरा लोगे (नंगे का कोई क्या लेगा). जिसके पास कुछ भी नहीं है (कपड़े तक नहीं हैं) उस से क्या ले लोगे. भाव यह है कि जो निर्लज्ज व्यक्ति है उसकी क्या बेइज्जती कर लोगे (बल्कि उससे लड़ने में आपकी इज्ज़त ही दांव पर लग जाएगी).

नंगे के नौ हिस्से. उद्दंड और निर्लज्ज व्यक्ति किसी चीज के बंटवारे में अधिक से अधिक हिस्सा चाहता है.

नंगे को लुटने का क्या डर. 1. जो व्यक्ति एकदम कंगाल हो उस से कोई क्या लूट लेगा. 2. जो व्यक्ति एकदम बेशर्म हो उस की कोई क्या बेइज्जती कर लेगा. इंग्लिश में कहते हैं – Beggars are never robbed.

नंगे को लोटा मिल्यो, बार बार हगन गयो. नंगे को लोटा मिल गया (जो उसके लिए बहुत बड़ी चीज़ है) तो वह दूसरों को लोटा दिखाने के लिए बार बार दिशा मैदान (खुले में शौच करने) जा रहा है. तुच्छ मानसिकता वाले व्यक्ति को छोटी सी चीज़ मिल जाए तो वह बहुत दिखावा करता है.

नंगे पाँव ही जाएंगे, राजा और कंगाल. अंतिम यात्रा सभी को नंगे पाँव ही करनी है. 

नंगे बादशाह से भी न्यारे (नंगे लुच्चे सब से ऊँचे). बेशर्म आदमी सब से ऊपर है.

नंगे सर न नौ लेना न नौ देना. पहले के जमाने में सम्भ्रान्त लोगों के लिए टोपी या पगड़ी पहनना आवश्यक माना जाता था.बिलकुल निम्न वर्ण के लोग या बहुत गरीब लोग ही नंगे सर रहते थे. कहावत में बताया गया है कि निम्न श्रेणी के या बहुत गरीब लोगों को सामाजिक जिम्मेदारियों की कोई चिंता नहीं सताती.

नंगे से तो गंगा भी हारी है.  1.निर्लज्ज व्यक्ति से सब हार मान लेते हैं. 2.महापापी लोगों के पाप गंगा मैया भी नहीं धो सकतीं.

नंगों की बस्ती में धोबी का क्या काम. जहाँ कोई कपड़े ही नहीं पहनता, वहाँ धोबी क्या करेगा. नंगों से अर्थ बेशर्मों और धोबी से अर्थ सुधारक से भी है.

नैहर रहा न जाय, सासरा सहा न जाय. मायके में रहना अच्छा नहीं समझा जाता, इसलिए मायके में रह नहीं सकती, और ससुराल में रहना सहन नहीं होता. नैहर –  मायका, पीहर, सासरा – ससुराल.

नई कहानी, गुड़ से मीठी. पुराने समय में जब मनोरंजन के और कोई साधन नहीं थे तो किस्से कहानियों से ही मन बहलाया जाता था. बड़े लोग एक ही कहानी को बार बार सुनाते थे और बच्चे शौक से सुनते थे. उस समय नई कहानी का बहुत अधिक महत्व हुआ करता था.

नई घोड़ी चाल दिखाएगी. बच्चों की कहावत. कुछ बच्चे चोर सिपाही खेल रहे हों तो जो नया बच्चा खेल में शामिल होने आएगा उसे चोर बनना पड़ेगा.

नई दुलहन, कान में नथनी. कोई नौसिखिया आदमी किसी काम को गलत ढंग से कर रहा हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.

नई धोबनिया लुगरी में साबुन. लुगरी – फटी पुरानी धोती. पुराने जमाने में साबुन महंगा होता था और केवल कीमती कपड़ों को धोने में प्रयोग होता था. कोई अनुभव हीन व्यक्ति घटिया काम में अधिक खर्च करे तो यह कहावत कही जाएगी.   

नई नई दुल्हन की नई नई चाल. जब किसी समूह में नया आने वाला व्यक्ति कुछ नई निराली रीत चलाने की कोशिश करे तो.

नई नवेली के नौ फेरे.  अल्हड़ व नौसिखिए लोगों का मजाक उड़ाने के लिए. 

नई बहू का दुलार नौ दिन. किसी भी नए काम का उत्साह थोड़े दिन ही रहता है. फिर सब उस के अभ्यस्त हो जाते हैं और उस में कमियाँ भी दिखने लगती हैं.

नई बहू के नए चाव. किसी भी नए काम को करने में लोगों में अधिक उत्साह होता है. जब घर में नयी बहू आती है तब घर के लोग तरह तरह से उसका लाड़ करते हैं.

नई बहू नौ दिन की. नयी बहू के नए चाव जल्दी ही खत्म भी हो जाते हैं. नए काम में उत्साह केवल कुछ ही दिन रहता है.

नउआ के घर चोरी भइल, तीन बोरा बाल गइल. (भोजपुरी कहावत) नाई के घर चोरी हुई तो तीन बोरा बाल चोरी गए. जिस के पास कोई कीमती चीज़ नहीं है उसके पास से क्या चुरा लोगे.

नाई देख कांख में बाल. नाई को देख कर बगल के बाल याद आ गए. (बहुत से लोग बगल के बाल नाई से साफ़ करवाते हैं). मौका देख कर अपना काम करा लेना. भोजपुरी में इस प्रकार की एक कहावत है – नउआ के देखि के हजामत बड़ी जाला. कांख – बगल.

नए चिकनियाँ, अंडी का फुलेल. कहावत उन के लिए है जिन्हें नया नया फैशन का शौक चढ़ा हो लेकिन शऊर न हो. ऐसे कोई साहब अंडी के तेल को इत्र समझ कर लगा रहे हैं.

नए नए कानूननए नए तोड़. सरकारें नए नए कानून बनाती हैं पर होशियार लोग उससे पहले ही उन के तोड़ ढूँढ़ लेते हैं. इंग्लिश में कहावत है – Laws catch flies, but let hornets free. (hornet – ततैय्या)

नए नए हाकिम, नई नई बातें. नए हाकिम अपनी ऐंठ में नए कायदे लागू करने की कोशिश करते हैं (और बरसों से वहाँ जमे लोग उनका मजाक उड़ाते हैं. 

नए सिपाही, मूंछ में ढांटा. ढाटा – चेहरे पर बाँधने वाला कपड़ा. नया नया अधिकार मिलने पर व्यक्ति बौरा जाता है.

नकटा जीवे बुरे हवाल. दुर्भाग्य वश नकटे व्यक्ति को समाज में अशुभ माना जाता है. इसलिए बेचारा नकटा आदमी बुरी स्थिति में जीता है.

नकटा बूचा सबसे ऊँचा. बूचा माने कान कटा कुत्ता (जो काफी मनहूस माना जाता है). और अगर वह नकटा भी हो तो क्या कहने. कुल मिला कर यहाँ नकटा बूचा का अर्थ महा निर्लज्ज और मनहूस आदमी से है. इस प्रकार के आदमी से सब डरते हैं. (नंग बड़े परमेश्वर से)

नकटा ससुर निर्लज्ज बहू, आ रे ससुर कहानी कहूँ. रिश्तों की मर्यादा न जानने वाले निर्लज्ज लोगों का मजाक उड़ाने के लिए. ससुर और बहू दोनों बेशर्म हैं इसलिए साथ बैठ कर हंसी ठट्ठा कर रहे हैं.

नकटी नथ का क्या करे (नकटी को भी नथ की चाह). जिसकी नाक ही नहीं है वह नथ का क्या करेगी. 

नकटे का खाइए, उकेटे का न खाइए. उकेटा – दे कर एहसान जताने वाला आदमी. यहाँ नकटे का अर्थ है जिसकी कोई इज्जत न हो. किसी भी दीन हीन व्यक्ति का एहसान ले लो पर जो दे कर एहसान जताए उस का एहसान मत लो.

नकटे की नाक कटी, सवा गज और बढ़ी. जिसकी कोई इज्जत न हो उस की क्या बेइज्जती कर लोगे.

नकटे को आइना मत दिखाओ. 1. नकटे को आइना दिखाने का अर्थ है उसके नकटेपन को लेकर उसे चिढ़ाना. किसी व्यक्ति में कोई कमी हो तो उस को ले कर उसे अपमानित नहीं करना चाहिए. 2. निर्लज्ज आदमी से कभी यह नहीं कहना चाहिए कि उस की कोई इज्ज़त नहीं है.

नकद को छोड़ नफे को न दौड़िए. जो लाभ नकद मिल रहा हो वह अधिक अच्छा है. उस को छोड़ कर अधिक लाभ के पीछे भागने में खतरा अधिक है. (नौ नकद न तेरह उधार)

नकल को भी अकल चाहिए. किसी की नकल करने के लिए भी इतनी बुद्धि तो होना ही चाहिए कि नकल करने में हमारा भला बुरा क्या होगा यह समझ सके. इंग्लिश में कहावत है – Imitation needs intelligence.

नकल में भी असल की कुछ न कुछ बू आ ही जाती है. नकल कर के बनी हुई चीज़ में भी कुछ कुछ असली चीज़ का असर आ जाता है.

नकलची बन्दर. बंदर की आदत होती है कि वह इंसान की नकल करता है. इंसानों में कोई किसी की नकल करता हो तो उसे नकलची बन्दर कह कर चिढ़ाते हैं. विशेष कर बच्चों की कहावत. इस विषय में एक कहानी सुनाई जाती है. एक टोपी बेचने वाला गाँव से शहर जा रहा था. रास्ते में थक कर एक पेड़ के नीचे सो गया. पेड़ पर बहुत सारे बन्दर रहते थे, वे उसकी टोपियाँ उठा उठा कर ले गए. जागने पर उसने यह दृश्य देखा तो उसकी बुद्धि चकरा गई. फिर उसे एक तरकीब सूझी. उसने एक टोपी अपने सर पर लगा ली. बंदरों ने भी सर पर टोपी लगा ली. अब उसने सर से टोपी उतार कर जमीन पर पटक दी, तो बंदरों ने भी अपने अपने सर से टोपियाँ उतार कर नीचे फेंक दीं.

नक्कार खाने में तूती की आवाज. नक्कारखाना – जहाँ बहुत से नगाड़े रखे जाते हों या बजाए जाते हों, तूती – शहनाई की तरह का एक बाजा. जहाँ बड़े बड़े नगाड़े बज रहे हों वहाँ तूती की आवाज क्या सुनाई देगी. कहावत का अर्थ है कि बड़े बड़े लोगों के बीच किसी महत्व हीन आदमी की आवाज कोई नहीं सुनता. (देखिये परिशिष्ट) 

नखरे दिखावे मुर्गी (लाड़ में आवे कुकड़ी), बल बल जावे कौवा. कुछ फूहड़ लडकियाँ जो अपने को अधिक सुंदर समझती हैं, नखरे दिखाती हैं और छिछोरे लड़के उन नखरों पर बलिहारी जाते हैं, इस प्रकार के जोड़ों का मजाक उड़ाने के लिए.

नट विद्या पाई जाय, जट विद्या न पाई जाय. अभ्यास करने से कोई नटों के समान कलाबाजी खाने जैसा कठिन काम सीख सकता है, परन्तु जाटों की विद्या नहीं सीख सकता.

नटनी जब बाँस पर चढी तो घूंघट क्या. नटनी बांस पर चढ़ कर करतब दिखाती है तो उस का सारा शरीर ही दिखाई देता है. अब ऐसे में अगर वह घूँघट करे तो क्या फायदा. कोई व्यक्ति सामजिक प्रतिष्ठा के प्रतिकूल कोई छोटा काम कर रहा हो और लोगों से छिपाने की कोशिश कर रहा हो तो.

नटे सो नाक कटाय. नटना – अपनी बात से मुकर जाना, नाक कटाना – बेइज्जती कराना. जो अपनी बात से मुकर जाए उसका कोई सम्मान नहीं करता.

नदी किनारे घर किया, क़र्ज़ काढ़ कर खाएं, जब कोई आवे मांगने, गड़प नदी में जाएं. उधार ले कर छिप के घूमने वाले के लिए.

नदी किनारे रूखडा, जब तब होय बिनास. रूखड़ा – रूख, पेड़. वृक्ष का अपभ्रंश, (वृक्ष – वृक्ख – रुक्ख). नदी के किनारे उगे पेड़ को हर समय इस बात का खतरा होता है कि मिट्टी कटने से वह नदी में गिर सकता है. सदैव खतरे के साये में पलने वाले ले लिए.

नदी नाव संयोग. थोड़े समय का मेल. इस संसार में हमारे जो नाते हैं वे भी नदी नाव संयोग की भांति क्षणिक हैं.

नदी में जाना और प्यासे आना. जहाँ जा कर आप का काम हो जाना चाहिए था अगर वहाँ से आप खाली हाथ लौट आते हैं तो यह कहावत कही जाएगी.

नदीदी का खसम आया, भरी दोपहरी दिया जलाया. नदीदी – छोटी सोच वाली स्त्री. अपनी ख़ुशी दिखने को ऊटपटांग हरकतें करने वाले के लिए.

नदीदी ने कटोरा पाया, पानी पी पी पेट फुलाया (नदीदी को लोटा मिला, रातों उठ कर पानी पिया).  यदि किसी ओछी मानसिकता वाले व्यक्ति को कोई साधारण चीज भी मिल जाए तो वह बहुत इतराता है.

ननद का नन्दोई, गले लाग रोई. जिस से बहुत दूर का संबंध हो उस से बहुत आत्मीयता और सहानुभूति दिखाना.

ननद भाभी में आग-पानी का बैर. ननद भाभी एक दूसरे को फूटी आँखों देखना पसंद नहीं करतीं.

नन्ही सी नाक, नौ सेर की नथनी. ऐसा भारी भरकम श्रृंगार जिसका कोई औचित्य न हो.

नन्हीं सी जान और इतने अरमान. किसी छोटे आदमी या कम आयु के व्यक्ति की बहुत बड़ी बड़ी महत्वाकांक्षाएं होना.

नफा घाटा भाई भाई. व्यापार में लाभ भी होता है और हानि भी. इन दोनों को ही स्वीकार करना चाहिए. 

नमक गिराओगे तो आँखों से उठाना पड़ेगा. यह एक लोक विश्वास है. लोक विश्वासों के पीछे अक्सर कोई कारण भी होता है. एक समय में समुद्र के पानी से नमक नहीं बनाया जाता था बल्कि पहाड़ से बड़ी मुश्किल से सेंधा नमक लाया जाता था. उस समय साधन सम्पन्न लोग नमक को बर्बाद न करें इसलिए उनके मन में इस प्रकार का डर बैठाया गया होगा.

नमक फूट फूट कर निकले. विश्वास घात करने वाले की अंत में दुर्दशा होती है.

नमक हरामी नर से तो कूकर ही भलो. नमक हराम माने कृतघ्न और धोखेबाज, इस प्रकार के आदमी से तो कुत्ता अधिक अच्छा है.

नमनि नीच की अति दुखदाई. नीच व्यक्ति यदि झुके (नम्रता दिखाए) तो समझ लो कि धोखा देने वाला है.

नमे सो भारी होए. जैसे जैसे व्यक्ति की विनम्रता बढ़ती है वैसे वैसे वह और गंभीर और वज़नदार हो जाता है. नमे से अर्थ नमन करने अर्थात झुकने से भी है और नम होने अर्थात भीगने से भी.

नया नया राज, ढब ढब बाज. नया राजा आता है तो तरह तरह के फरमान जारी करता है. ढब ढब बजने का अर्थ है ढिंढोरा पीट कर राजाज्ञा का ऐलान करना.

नया नवाब, आसमान पर दिमाग. नए हाकिम अपने को तुर्रम खां समझते हैं.

नया नौ दिन, पुराना सौ दिन. जब हम किसी से नया नया सम्बंध बनाते हैं तो हमें वह व्यक्ति बहुत अच्छा लगता है और उस के सामने हम पुरानों की उपेक्षा करने लगते हैं, लेकिन कुछ दिन बाद हमें उसमें कमियाँ नज़र आने लगती हैं और पुराना अच्छा लगने लगता है. इसी कारण सयाने लोग यह सीख देते हैं कि नए के कारण पुराने की उपेक्षा मत करो. इंग्लिश में कहावत है – old is gold. 

नया नौकर तीरंदाज़. नया नौकर अपने को ज्यादा होशियार सिद्ध करने की कोशिश करता है.

नया बैल खूंटा तोड़ता है. नए बैल को बंधने की आदत नहीं होती इसलिए बन्धनमुक्त होने का प्रयास करता है. धीरे धीरे उसे समझ में आ जाता है कि अब यही उस की नियति है.

नया मुल्ला ज्यादा जोर से बांग देता है. किसी को कोई नया काम मिलता है तो वह अधिक जोर शोर और दिखावे के साथ उस काम को करता है.

नया मुल्ला प्याज ज्यादा खाता है. कहावत उस समय की जब हिन्दुओं (विशेषकर ब्राह्मण व बनियों में) प्याज खाने को बहुत बुरा माना जाता था और प्याज को मुसलमानों के खाने की चीज़ मानते थे. आज अधिकतर लोग प्याज खाने लगे हैं लेकिन पूजा और व्रत के दिन अब भी बहुत से लोग प्याज नहीं खाते. कहावत में कहा गया है कि जो नया नया मुसलमान बना है वह ज्यादा प्याज खाता है अर्थात कोई व्यक्ति जो भी नया काम शुरू करता है उसका दिखावा अधिक करता है.

नया साधू, कमंडल में पादे. नए आदमी के हर काम में अनाड़ी पन एवं अव्यवस्था होती है यह कहने का असभ्य तरीका. कहावतों में अक्सर इस प्रकार की असभ्य भाषा देखने को मिलती है.

नया हकीम, देवे अफीम. नया हकीम बीमारी के बारे में कम जानता है इसलिए मरीज को नशे की दवा देता है. 

नयी घोसन, उपलों का तकिया. घोसन – दूध का काम करने वाले घोसी की पत्नी. दूध का नया काम शुरू करने वाली स्त्री अपने काम को महत्वपूर्ण सिद्ध करने के लिए गोबर के कंडों का तकिया लगाती है.

नर बिन तिरिया, ज्यों अन्न बिन देह, खेती बिन मेह. मेह – वर्षा. पुरुष बिना स्त्री उसी प्रकार असहाय है जैसे अन्न के बिना मानव शरीर और वर्षा के बिना खेती.

नरको में ठेलाठेली. (भोजपुरी कहावत) नरक में भी जीवन आसान नहीं है, वहाँ भी बड़ा कम्पटीशन है.

नर्मदा के कंकर, सब ही शिव शंकर. मध्यप्रदेश में नर्मदा नदी को अत्यधिक पवित्र मानते हैं. (वहाँ बहुत से लोग आपसी अभिवादन में नर्मदे नर्मदे बोलते हैं). इसके उलट दूसरी कहावत है – नर्मदा के सब पत्थर शंकर नहीं होते. 

नशा उसने पिया, खुमार तुम्हें चढ़ा. जब किसी बड़े अधिकारी या नेता का भाई भतीजा ज्यादा अकड़ दिखाए  तो.

नशेड़ी को नशेड़ी मिल ही जाता है. (शक्करखोरे को शक्करखोरा मिल ही जाता है). ऐबी आदमी, लोगों की भीड़ में भी अपने जैसा ऐबी ढूँढ़ लेता है.

नसकट पनही, बतकट जोय, जो पहलौठी बिटिया होए; तातरि कृषि, बौरहा भाई, घाघ कहें दुःख कहाँ समाय. घाघ ने पाँच दुःख महा दुःख बताए हैं – 1. जूता (पनही) छोटा हो जो पैर की नस को काटता हो, 2. स्त्री (जोय, जोरू) जो पति की हर बात काटती हो, 3. पहली सन्तान यदि बेटी हो (अब इन बातों का महत्व कम हो गया है लेकिन पहले पुत्र होना अत्यधिक आवश्यक मानते थे), 4. खेती के लिए बहुत थोड़ी (तातरि) जमीन और 5. बौरहा भाई. बौरहा का अर्थ पागल भी होता है और गूंगा बहरा भी.

नहर का मुर्दा और शहर का फ़क़ीर, इनका क्या ठिकाना. नहर में यदि कोई लाश पड़ी हो तो कुछ नहीं कह सकते कि वह बह कर कहाँ से कहाँ पहुँच जाए और फ़क़ीर भी शहर में आज एक जगह है तो कल कुछ पता नहीं कहाँ मिले.

नहरनी तेज होगी तो क्या पेड़ काटेगी. नहरनी – नाखून काटने का औजार. नहरनी की धार कितनी भी तेज हो, उस से पेड़ नहीं कट सकता. हर काम के लिए अलग साधन चाहिए होता है.

नहाए के बाल और खाए के गाल अलग नजर आ जाते हैं. जो व्यक्ति नहाया हुआ हो उसके बाल देख कर ही फौरन समझ में आ जाता है. इसी प्रकार जो ठीक से खाता पीता हो उसके गाल देख कर ही समझ में आ जाता है.

नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए, मीन सदा जल में रहे,  धोये बास न जाए. कबीर दास जी कहते हैं कि कितना भी नहा धो लो,  अगर मन साफ़ नहीं हुआ तो ऐसे नहाने का क्या फायदा. मछली हमेशा पानी में रहती है लेकिन फिर भी उस में से बदबू आती है.

नहीं मामा से काना मामा अच्छा. किसी का मामा काना हो यह थोड़ी परेशानी की बात है लेकिन मामा हो ही न इससे तो अच्छा है. कोई चीज़ बिलकुल न हो इसके मुकाबले थोड़ी सी त्रुटि वाली हो वह बेहतर है.

नहीं मिली नारी तो सदा ब्रह्मचारी. नारी न मिलने पर मजबूरी में ब्रह्मचारी बनने वालों पर व्यंग्य.

ना अच्छा गीत गाऊँगा ना दरबार पकड़कर जाऊँगा. काम से बचने के लिए जानबूझकर हमेशा गलत काम ही करना.

ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर. जो लोग समाज में किसी एक विचारधारा से न जुड़ कर तटस्थ रहते हैं. यह कबीर के दोहे की दूसरी पंक्ति है. पहली है – कबिरा खड़ा बजार में, मांगे सब की खैर. 

ना गाऊँ, गाऊं तो बिरहा गाऊँ. गाने में नखरा कर रहे हैं, और गाएंगे तो बिरहा ही गाएँगे. या तो काम करेंगे नहीं और करेंगे तो अपने मन से ही करेंगे. बिरहा – विशेष प्रकार के लोकगीत (विरह के)

ना बारे की माँ मरे, ना बूढ़े की जोय. बालक की माँ न मरे औए बूढ़े की स्त्री न मरे. बच्चा अपनी माँ के बिना और बूढ़ा व्यक्ति अपनी पत्नी के बिना बेसहारा हो जाता है.

ना बोले में नौ गुण. चुप रहने के बहुत लाभ हैं. इससे किसी से लड़ाई नहीं होती और व्यक्ति यदि मूर्ख है तो उस की मूर्खता जाहिर नहीं होती..

नाइन सबके गोड़े धोए, अपने धोने में लजावे. (सबके पाँव नइनियाँ धोए, धोवत आप लजाए). हम दूसरों के यहाँ जो काम करते हैं वही काम अपने यहाँ करने में शर्म महसूस करते हैं.

नाई किसका काम सुधारे. हिंदू रीति-रिवाजों में चाहे विवाह हो या अंतिम संस्कार, पंडित के साथ नाई का भी विशेष महत्व होता है. बहुत से काम नाई को ही करने होते हैं. नाई को बहुत चालाक धूर्त माना गया है. इस कहावत में भी यही दर्शाया गया है.

नाई की दूकान में बारै बार. नाई की दुकान में बाल ही बाल मिलेंगे. बजाज की दूकान में कपड़ा और सुनार की दुकान में सोना चांदी जैसी कीमती चीजें मिलेंगी, और बेचारे नाई की दूकान में केवल बाल. 

नाई की परख नाखूनों में. पहले जमाने में जब नेल कटर का आविष्कार नहीं हुआ था तो नाई एलपीजी नहन्ने से नाखून काटते थे. जरा सी असावधानी होने पर उंगली कटने का डर होता था, इसलिए नाई की योग्यता की परीक्षा नाखून काटने में ही होती थी.

नाई की बरात में सब ही ठाकुर. सब की बारात में नाई प्रमुख सेवक के रूप में होता है और कुछ लोग विशेष माननीय (ठाकुर) होते हैं. नाई की बरात में सभी माननीय हैं.

नाई के नौ बुद्धि, ठाकुर के एक ही. नाई बहुत चतुर (और धूर्त) होता है और ठाकुर मंदबुद्धि (व लट्ठमार). 

नाई देख दाढ़ी बढ़ी. जहाँ कोई सुविधा उपलब्ध हो वहाँ उसका लाभ उठाना.

नाई नाई की बारात, टिपारा कौन धरे. टिपारा – मुकुट. औरों की बारात में तो नाई दूल्हे को मुकुट पहनाता है, नाई की बारात में मुकुट कौन पहनाएगा. हरयाणवी कहावत – नाइयों की बारात मां सारे ठाकर, हुक्का कौन भरै.

नाई नाई, बाल कितने ? ज‍जमान, अभी सामने आ जाएँगे. जो काम अभी तुरंत होने वाला है उसमें पहले से अनुमान क्या लगाना. एग्जिट पोल देख कर लोग बहस करते हैं तो उन से यही कहना चाहिए कि नतीजे दो दिन में आने वाले हैं अभी बहस क्यों कर रहे हो.

नाई पुराना घोबी नया. नाई पुराना और अनुभवी अच्छा होता है जबकि धोबी नया अच्छा होता है क्योंकि उस के हाथों में ताकत और काम का उत्साह अधिक होता है.

नाई, दाई, बैद, कसाई, इनका सूतक कभी न जाई. पुरानी मान्यता के अनुसार घर में बच्चे का जन्म होने पर दस दिन तक सूतक काल होता है जिस में कोई धार्मिक कार्य नहीं करना होता है, इसी प्रकार घर में किसी की मृत्यु होने पर तेरह दिन का सूतक काल होता है. कहावत में कहा गया है कि नाई, बच्चे का जन्म कराने वाली दाई, वैद्य (डॉक्टर) और कसाई ये सूतक के बंधन से मुक्त हैं.

नाक कटी पर घी तो चाटा. एक जमाने में किसी को घी चाटने को मिले तो यह बहुत बड़ी नियामत थी. किसी की नाक दुर्घटनावश कट गई तो उसे घी चाटने को दिया गया. अब वह अगर इस बात से खुश हो तो यह कहावत कही जाएगी. अपमान हो कर कुछ इनाम मिले उस पर भी खुश होने वाले के लिए.

नाक कटी पर हठ न हटी. कुछ लोग कितना भी अपमान झेलना पड़े अपना हठ नहीं छोड़ते.

नाक कटी बला से, दुश्मन की बदसगुनी तो हुई. अपना नुकसान हुआ फिर भी खुश हैं क्योंकि दुश्मन का भी नुकसान हो गया.

नाक कटे मुबारक, कान कटे सलामत. निर्लज्ज आदमी के लिए, जिसका कितना भी अपमान हो, उसे कोई फर्क नहीं पड़ता. 

नाक की नकटी, गले में नजरबट्टू. कोई बहुत सुंदर दिखता हो तो उसको नजर से बचाने के लिए काला टीका लगाते हैं या गले में कोई ताबीज़ इत्यादि पहना देते हैं. इसे नजरबट्टू कहते हैं. कहावत में उन स्त्रियों का मजाक उड़ाया गया है जो कुरूप होते हुए भी अपने आप को सुंदर समझती हैं.

नाक दबाने से ही मुहँ खुलता है. हिस्टीरिया नाम की बीमारी से ग्रस्त लोग कई बार आँखे बंद कर के और दांत भींच कर बेहोश होने का नाटक करते हैं (विशषकर महिलाएँ अपनी बात मनवाने के लिए). वे वाकई में बेहोश हैं या नहीं यह देखने के लिए उन की नाक को कुछ देर के लिए दबा दिया जाता है. साँस बंद होने पर वे घबरा कर मुँह खोल देते हैं. कहावत का अर्थ है कि दुष्ट लोगों को समझाने के लिए सख्ती करनी पड़ती है.

नाक पर मक्खी न बैठन दे. ऐसा व्यक्ति जो थोड़ा सा भी अपमान बर्दाश्त न करे.

नाक हो तो नथिया सोहे. सभी स्त्रियाँ अच्छे गहने पहनना चाहती हैं पर चेहरा भी तो इस लायक होना चाहिए.

नाग मरा तब गोह गद्दी पर बैठी. किसी शक्तिशाली दुष्ट शासक के मरने के बाद पर उतना ही दुष्ट दूसरा शासक गद्दी पर बैठ जाए तो.

नागों के ब्याह में गोहरे बराती. दुष्टों के आयोजन में दुष्ट ही शामिल होते हैं.  

नाच न आवे आँगन टेढ़ा. एक महिला को नाचने के लिए कहा गया. वह नाच नहीं पाई तो कहने लगी कि यह आँगन टेढ़ा है इसलिए वह नृत्य नहीं कर पा रही है. जो लोग कोई काम न कर पाने पर संसाधनों में कमी निकालते हैं उनके लिए यह कहावत कही जाती है. इंग्लिश में कहावत है – A bad worksman always blames his tools.

नाच बंदरिया नाच, पैसा दूँगा पांच. छोटा सा लालच दे कर काम कराना.

नाचने निकली तो घूँघट क्या. जब कोई ओछा काम कर रहे हो तो शर्म क्या करना.

नाचने वाली तो बस घुंघरू ही मांगे. आदमी को जिस चीज का शौक हो उसी से सम्बंधित वस्तुएँ मांगता है.

नाचे कूदे वानरा, माल मदारी खाय. (खेल खिलाड़ी का, पैसा मदारी का). मेहनत कश लोग मेहनत करते हैं और बड़े लोग उसका फ़ायदा उठाते है.

नाज बौहरौ ले गयौ, भुस ले गयी बयार. बोहरा – उधार देने वाला बनिया. खेती करने वाले किसान को कुछ हाथ नहीं आता. फसल कटने पर अनाज तो सूदखोर ले जाता है और भूसा हवा में उड़ जाता है.

नाजो नाज बिना रह जाए, काजल टीके बिना नहीं रहती. ज्यादा श्रृंगार और नखरे करने वाली स्त्रियों पर व्यंग्य. नाज से अर्थ अनाज से भी हो सकता है और नखरे से भी.

नाटा सबसे टांटा. टांटा – झगड़ा (टंटा) करने वाला.बौने आदमी को झगड़ालू बताया गया है.

नाटे खोटे बेच के चार धुरंधर लेहु, आपन काम बनाय के औरन मंगनी देहु. छोटे कद के कामचोर बहुत सारे बैलों को बेच कर चार तगड़े बैल लो. अपना काम भी पूरा करो और जरूरत पर औरों को भी दो. (घाघ कवि)

नाड़ी की कुछ समझ नहीं है, दवा सभों की करते हैं, वैदों का क्या जाता है, बीमार बिचारे मरते हैं. नीम हकीम और झोला छाप डाक्टरों के विषय में कहा गया है.

नात का न गोत का, बांटा मांगे पोथ का. न नाते में कुछ हैं न गोत्र में, पर जायदाद में हिस्सा मांग रहे हैं.

नाता न गोता, खड़ा हो के रोता. न कोई रिश्ता है और न ही उस गोत्र के हैं पर किसी के दुःख में बहुत अधिक दुखी हो रहे हैं. गोता शब्द गोत्र का अपभ्रंश है.

नाता न गोता, नेवत ताबड़तोड़. आजकल विवाह आदि समारोहों में अंधाधुंध निमंत्रण बांटे जाते हैं उस पर व्यंग्य. नेवत – न्यौता, निमंत्रण. 

नातिन तो कुआँरी फिरे, नानी के नौ नौ फेरे. जहाँ घर के छोटे सदस्यों की मूलभूत आवश्यकताओं पर ध्यान न दे कर बड़े लोग अपने शौक पूरे करने में लगे हों.

नातिन सिखावे दादी को, बारह ड्योढ़े आठ. अपने को बहुत होशियार समझ कर बड़ों को सिखाने की कोशिश कर रहे हैं और वह भी गलत पढ़ा रहे हैं. (बारह ड्योढ़े आठ बता रहे हैं जबकि आठ ड्योढ़े बारह होता है). अपने को बुद्धिमान समझने वाले मूर्ख लोगों के लिए.

नाती तो नाती बाबा खड़ा मूते. पहले के लोग खड़े हो कर पेशाब करने को बहुत असभ्यता मानते थे. कहावत ऐसे स्थान पर कही जाती है जहाँ बच्चे और बड़े सभी असभ्य व्यवहार करते हों.

नाती स‌िखावैं नानी को चलोगी नानी गौने. कायदे में नानी धेवती को ससुराल जाने के लिए समझाती हैं. यहाँ धेवता या धेवती नानी को सीख दे रहे हैं कि ससुराल जाओगी कि नहीं. कोई छोटा और कम अक्ल आदमी अपने से बड़े और समझदार व्यक्ति को अक्ल सिखा रहा हो तो.
 

नादां की दोस्ती, जी का जंजाल. मूर्ख से दोस्ती करने में बड़ी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है.

नानक दुखिया सब संसार. कोई अपने दुखों का रोना रो रहा हो तो उसको समझाने के लिए यह कहावत कही जाती है कि संसार में सभी प्राणियों को कोई न कोई दुख है.

नानक नन्हा हो रहो जैसे नन्ही दूब, बड़े पेड़ गिर जाइहैं दूब खूब की खूब. गुरु नानक देव कहते हैं कि व्यक्ति को विनम्र और छोटा बन कर रहना चाहिए. जब आंधी आती है तब बड़े पेड़ गिर जाते हैं लेकिन दूब पर कोई असर नहीं होता. इंग्लिश में कहावत है – Oaks may fall, when reeds stand the storm.

नाना की दौलत पर, नवासा ऐंड़ा फिरे. (नाना के धन पर धेवता ऐंठे). जो खुद तो किसी काबिल न हो पर अपने पूर्वजों की कमाई हुई दौलत पर घमंड करे.

नानी के आगे ननसाल की बातें. नानी को जा कर बता रहे हैं कि ननसाल में क्या क्या होता है. अल्पज्ञानी होते हुए भी किसी जानकार व्यक्ति के सामने अपना ज्ञान बघारना.

नानी के टुकड़े खावे, दादी का पोता कहावे. लाभ किसी और से पाते हैं, गुण किसी और के गाते हैं.

नानी का धन, बेइमानी का धन और जजमानी का धन नाहीं पचे. ननिहाल से मिले धन, बेइमानी से कमाए धन और यजमानी में मिले धन से कोई तरक्की नहीं कर सकता.

नानी के बिना ननिहाल कैसा. ननिहाल का आनंद तो नानी के होने पर ही आता है. नानी ही सबसे अधिक स्नेह करती है.

नानी क्वारी मर गयी, नवासे के नौ नौ ब्याह. खानदान में किसी ने कुछ देखा नहीं, पर खुद चले हैं तीसमारखां बनने.

नानी खसम करे, धेवती दंड भरे (नानी फंड करै, धेवता डंड भरै).  खसम करे अर्थात शादी कर ले. खानदान के बड़े लोग कोई गलती करें और बच्चे उसका नुकसान उठाएँ तो.

नानी मरी, नाता टूटा. ननसाल विशेष रूप से नानी से ही होती है. नानी के न रहने पर ननसाल का आकर्षण ख़त्म हो जाता है.

नाप न तोल, भर दे झोल. ईश्वर जो देता है उसकी नाप तोल नहीं करता, भरपूर देता है.

नापे सौ गज, फाड़े नौ गज. जो बातें बहुत करता है और काम कम करता है.

नाम कपूरचंद, गोबर की गंध. नाम के विपरीत गुण.

नाम काल नहीं खाय. हर मनुष्य को अंततः काल के गाल में समाना है. लेकिन यह भी सच है कि काल कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो किसी के नाम को नहीं खा सकता.

नाम के पेड़ काटे न कटें. धन दौलत समाप्त हो जाता है पर ख्याति जल्दी समाप्त नहीं होती.

नाम क्या शकरपारा, रोटी कितनी खाई दस बारा, पानी कितना पिया मटका सारा, काम कितना करोगे, मैं तो लड़का बेचारा. छोटे और पेटू लोगों के लिए जो खाते बहुत हैं पर काम कुछ नहीं करना चाहते.

नाम गंगादास कमण्डल में जल ही नहीं. गुण के विपरीत नाम.

नाम गंगाधर, नहाए ना सारी उमर. गुण के विपरीत नाम.

नाम बड़ा ऊँचा, कान दोनों बूचा. नाम बहुत ऊंचा है और कान कटे हुए हैं (हैसियत कुछ नहीं है).

नाम बड़े और दर्शन छोटे. (नाम मोटा, दरशन खोटा). नाम अधिक हो पर वास्तव में कुछ भी न हों तो.

नाम बढ़ावे दाम. जिसका अधिक नाम हो जाता है उसकी कीमत बढ़ जाती है. आजकल भी बड़ी बड़ी ब्रांड अपने नाम का खूब फायदा उठाती हैं.

नाम मोटा, घर में टोटा. गुण के विपरीत नाम.

नाम राखें, गीत या भीत. मरने के बाद या तो गीतों से नाम अमर रहता है या भवन निर्माण से. 

नाम लखन देइ मुँह कुतिया सा. नाम के विपरीत गुण.

नाम शेरसिंह, चूहे से डरें. नाम के विपरीत गुण.

नाम से काम नहीं, काम से नाम है. किसी का बड़ी ख्याति हो उससे कोई काम नहीं होता, काम करने से ख्याति होती है.

नामरदी तो खुदा की देन है, मार मार तो कर. किसी कायर पुरुष को उलाहना दी जा रही है कि खुदा ने तुझे नामर्द (कायर) बनाया है, तू आगे बढ़ कर मार नहीं सकता तो मार मार चिल्ला तो सकता है.

नामी चोर मारा जाए, नामी शाह कमा खाए (नामी बनिया बैठा खाय, नामी चोर बांधा जाय). जो चोर अधिक प्रसिद्ध हो जाता है वह अंततः मारा जाता है (क्योंकि वह प्रशासन की निगाह में आ जाता है), जबकि जो बनिया या हाकिम अधिक नामी होता है वह अपने नाम के बल पर खूब कमाता है.

नामी बनिया का नाम बिकता है. जिस व्यापारी का नाम हो जाता है उस के नाम से माल बिकता है. आजकल के लोग तो खास तौर पर ब्रांड के पीछे पागल रहते हैं.

नामी मरे नाम को, पेटू मरे पेट को. प्रसिद्ध आदमी अपनी प्रसिद्धि को और बढाने के लिए मरता है और पेटू आदमी खाने के लिए मरा जाता है.

नार सुलक्खनी कुटुम छकावे, आप तले की खुरचन खावे. सुलक्षणा नारी पहले सारे कुटुंब को खिला देती है उसके बाद जो बचता है उसे खा कर संतोष कर लेती है.

नारी अति बल होत है, अपने कुल की नाश. जिस कुल में नारी को अत्यधिक अधिकार दे दिए जाएं उस कुल का नाश हो जाता है.

नारी के बस भए गुसाईं, नाचत हैं मर्कट की नाईं. गुसाईं – साधु सन्यासी (गोस्वामी का अपभ्रंश है), मर्कट – बंदर. नकली साधु का मज़ाक उड़ाने के लिए (जो स्त्री के वश में हो कर बंदर की तरह नाच रहे हैं).

नारी तो हैं सीपियां इनका मोल न तोल, न जाने किस कोख में छिपा रत्न अनमोल. नारी का सम्मान करने के जो बहुत से कारण गिनाए गए हैं उनमे से एक यह भी है कि नारियाँ ही उत्तम श्रेणी के पुरुषों को जन्म देती हैं.

नारी मुई भई सम्पति नासी, मूड़ मुड़ाए भए सन्यासी. तुलसीदास जी ने दो तरह के सन्यासियों का वर्णन किया है. एक वे जो सत्य की खोज के लिए संसार को त्याग कर सन्यासी बन जाते हैं, दूसरे वे जो स्त्री के मरने और सम्पत्ति के नाश के कारण मजबूरी में सर मुंडा कर सन्यासी बन जाते हैं.

नाली की ईंट कोठे चढ़ी, फिर भी गंध आती है. किसी निम्न श्रेणी के इंसान को उच्च पद मिल जाए तो भी उस का नीच पन नहीं छूटता. 

नाली के कीड़े नाली में ही खुश रहते हैं. ओछी मानसिकता वाले लोग वैसे ही परिवेश में खुश रहते हैं.

नासमझ को कुछ नहीं, समझदार की मौत. जो समझदार होता है और जिम्मेदारी से काम करता है उसी को सारी परेशानी झेलता पड़ती है.

नासमझ को बात बताई, उसने ले छप्पर पे चढ़ाई. किसी नासमझ को भेद की बात नहीं बतानी चाहिए (वह उसे छप्पर पर चढ़ा देगा अर्थात सारे में फैला देगा).

नाहीं चीन्ह तो नाया कीन्ह. 1. जिस काम की समझ नहीं है उसे मत करो. 2. पुरानी वस्तुओं की पहचान नहीं है तो नई खरीदना चाहिए.

निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छबाय, बिन साबन पानी बिना, निर्मल करे सुभाय. आम आदमी अपनी निंदा सुनना नहीं चाहता लेकिन कबीरदास कहते हैं कि निंदा करने वाले को अपने घर में कुटी बना कर उसमें रखो. जो निंदा वह करे उससे सीख ले कर अपने स्वभाव को निर्मल बनाया जा सकता है.

निकली हलक, पडी खलक (निकली होंठों, हुई पोटों). हलक – गला, खलक – ब्रह्मांड. बात मुँह से निकल जाए तो सारे में फ़ैल जाती है.

निकली होंठों, चढी कोंठों. मुंह से निकले बात तुरन्त सारे में फ़ैल जाती है (इसलिए मनुष्य को सोच समझ कर बोलना चाहिए). कोठा माने छत.

निकौड़िये गए हाट, ककड़ी देखे जियरा फाट. निकौड़िए – जिनके पास कौड़ी भी न हो. बिना पैसा कौड़ी के बाज़ार गए. वहाँ ककड़ी देख के हृदय फट रहा है (खाने का मन है पर खरीद नहीं सकते).

निखट्टू भाई, नित उठ कर हलुआ मांगे. जो कोई काम नहीं करते वे अधिक सुविधाएं मांगते हैं. 

निज हित अनहित पशु पहिचाना. पशुओं को भी अपने अच्छे बुरे की पहचान होती है.

निठल्ले सुहाग से तो रंडापा ही अच्छा. पति निठल्ला और आवारा हो इस से तो विधवा होना अच्छा.

निन्यानवे के फेर में जो पड़ा वो गया. इसके पीछे एक कहानी है. एक नेक लकड़हारा जंगल से लकड़ियाँ बीन कर अपने परिवार का पेट पालता था. वह हर समय भगवान का नाम लेता था और खुश रहता था. एक दिन भगवान विष्णु ने नारद जी से कहा कि देखो यह मेरा सबसे बड़ा भक्त है, इतनी कठिन परिस्थितियों में भी मेरा नाम लेता है और खुश रहता है. नारद जी बोले ठीक है प्रभु, कल से नहीं रहेगा. उस रात नारद जी ने एक थैली में निन्यानवे रुपये रख कर उस के आंगन में डाल दिए. सुबह पति पत्नी उठे तो रुपयों की थैली देखी. जल्दी जल्दी गिने, निन्यानवे थे. अब दोनों भजन कीर्तन भूल कर इसी फेर में लग गए कि एक एक पैसा बचा कर कैसे सौ रुपये पूरे कर लें.

निपट कठिन हठ मोसे कीन्हीं रे सैयां. किसी चाहने वाले ने कोई बहुत कठिन शर्त रख दी हो तो.

निपूतिये का धन फलता नहीं है. नि:सन्तान व्यक्ति के मरने के बाद सम्पत्ति की बन्दर बाँट होती है.

निपूती का घर सूना, मूरख का हृदय सूना, दरिद्री का सब कुछ सूना. जिसके कोई संतान न हो उसका घर सूना होता है, मूर्ख व्यक्ति का हृदय सूना होता है (क्योंकि उस में भावनाएँ नहीं होतीं) पर दरिद्र व्यक्ति का सब कुछ सूना है. निपूती – निस्संतान.

निपूती का मुँह देख सात उपास. निपूती – जिसके पुत्र न हों.पहले जमाने में लोग निस्संतान स्त्रियों को बहुत उपेक्षा की दृष्टि से देखते थे. यहाँ तक कहा गया है कि निस्संतान स्त्री को देख लो तो सात दिन खाना नहीं मिलेगा.

निपूते को धन प्यारा, कोढ़ी को जीवन. जिसके कोई सन्तान नहीं होती उसको भी धन प्यारा होता है और कोढ़ी का जीवन कितना भी कष्टमय क्यों न हो उसे भी जीवन से प्यार होता है.

निर्जलिया एकादशी, करवा चौथ, शिवरात, इन तीनों से कठिन है, लाला की बरात. बनियों की कंजूसी पर व्यंग्य.  जिस प्रकार मनुष्य को निर्जला एकादशी, करवा चौथ और शिवरात्रि के व्रत में दिनभर कुछ खाने को नहीं मिलता, सीधे रात में ही खाने को मिलता है वैसे ही बनिया की बारात में भी कुछ नहीं मिलता.

निर्धन के धन गिरधारी. जिसके पास कोई धन नहीं, ईश्वर उसका धन है.

निर्धन निर्बल पर सभी करें घात प्रतिघात, जैसे टूटी डाल पर, पाँव धरत सब जात. जो गरीब और कमजोर होता है उसे सब सताते हैं, जैसे पेड़ से टूटी डाल पर सब पैर रख कर जाते हैं.

निर्बल को दैव भी सतावे. कमजोर व्यक्ति को विधाता भी सताता है. 

निष्ट देव की भिष्ट पूजा. (दुष्ट देव की भ्रष्ट पूजा). जैसे निकृष्ट देवता वैसी भ्रष्ट उनकी पूजा.

निहाई की चोरी, सुई का दान. निहाई – पक्के लोहे की बड़ी सी सिल जिस पर रख कर लोहे को काटते व पीटते हैं. कहावत ऐसे ढोंगी दाताओं के लिए कही गई है जो अपने काले धंधों से खूब पैसा कमाते हैं और दिखावे के लिए उसमें से जरा सा दान कर देते हैं.

नींद न जाने टूटी खाट, प्यास न जाने धोबी घाट, भूख न जाने कच्चा भात, प्रीत न जाने जात कुजात. पहले के जमाने में समाज में यह नियम था कि विवाह सम्बन्ध अपनी जाति वालों से ही करना चाहिए. उस समय दूसरी जाति में विवाह करना (विशेषकर नीची जाति में) बहुत आपत्तिजनक माना जाता था. तब यह कहावत बनाई गई कि प्यार करने वाले ऊंची नीची जाति नहीं देखते. इस कथन को अधिक प्रभावी और मनोरंजक बनाने के लिए अन्य तीन बातें भी जोड़ दी गईं कि नींद आ रही हो आदमी टूटी खाट नहीं देखता, प्यास लगी हो तो धोबीघाट का गंदा पानी भी पी लेता है और भूख लगी हो तो कच्चा भात भी खा लेता है.

नीक लगे ससुरार की गारी. 1.विवाह और प्रसव आदि शुभ अवसरों पर ससुराल पक्ष द्वारा गाई जाने वाली गालियाँ भी अच्छी लगती हैं. 2. ससुराल भक्त दामादों पर व्यंग्य.

नीकी हु फीकी लगे, बिन अवसर की बात. बिना उचित अवसर के कही गई अच्छी बात भी बुरी लग सकती है.

नीके को सब लागत नीको. 1. जो लोग अच्छा हृदय रखते हैं उन्हें सब अच्छे लगते हैं. 2. जो अपने को अच्छा लगता है, उस की हर बाट अच्छी लगती है.

नीच की दोस्ती पानी की लकीर, शरीफ की दोस्ती पत्थर की लकीर. नीच की दोस्ती पानी की लकीर की तरह क्षण भंगुर होती है जबकि सज्जन की दोस्ती अमिट होती है.

नीच के साथ छक कर जीमो या उंगली भर चाखो बात एक ही है. नीच व्यक्ति के साथ थोड़ा बहुत संबंध भी नहीं रखना चाहिए (बदनाम पूरी होती है).  

नीच न छोड़े निचाई, नीम न छोड़े तिताई. जिस प्रकार नीम अपना कड़वापन नहीं छोड़ सकता, उसी प्रकार नीच आदमी नीचता नहीं छोड़ सकता.

नीचन कूटन, देवन पूजन. नीच आदमी पिट कर ठीक रहता है और देवता पूजा से प्रसन्न रहते है.

नीचे की सांस नीचे ऊपर की सांस ऊपर. भय मिश्रित अचम्भे वाली स्थिति.

नीम न मीठा होए चाहे सींचो गुड़ घी से. (इसकी पहली पंक्ति इस प्रकार है – जाको जौन स्वभाव मिटे नहिं जी से).नीम के पेड़ को गुड़ और घी से सींचो तब भी मीठा नहीं हो सकता. किसी भी व्यक्ति का स्वभाव बदलता नहीं है.

नीम पै तो निम्बोली ही लागैंगी. (हरयाणवी कहावत) जिसका जैसा स्वभाव होगा वह वैसा ही काम करेगा.

नीम हकीम खतरा ए जान, भीतर गोली बाहर प्रान. अधकचरे हकीम या डॉक्टर से इलाज कराने में जान का खतरा होता है. हो सकता है कि गोली भीतर जाए तो प्राण बाहर आ जाएं.

नीम हकीम खतरा-ए-जान, नीम मुल्ला खतरा-ए-ईमान. उर्दू में नीम का मतलब है आधा. नीम हकीम याने अधूरी जानकारी रखने वाला हकीम. उससे इलाज कराने में जान का खतरा है. नीम मुल्ला माने धर्म के विषय में अधूरी जानकारी रखने वाला धर्मगुरु. उससे आप धर्म की शिक्षा लेंगे तो धर्म का सत्यानाश हो जाएगा.

नीयत तेरी अच्छी है तो किस्मत तेरी दासी है, कर्म तेरे अच्छे हैं तो घर में मथुरा काशी है. कोई भी काम अच्छी नीयत से किया जाए तो सफलता निश्चित रूप से मिलती है. व्यक्ति अगर अच्छे कर्म करता है तो उसका घर ही तीर्थ बन जाता है. 

नीयत सही तो मंजिल आसान. इरादा नेक हो तो मंजिल अवश्य मिलती है.

नील का टीका, कोढ़ का दाग, ये कभी नहीं छूटते. धोबी लोग कपड़े पर निशान लगाने के लिए जो स्याही प्रयोग करते हैं उस का दाग छूटता नहीं है और कुष्ठरोग का सफ़ेद दाग भी नहीं छूटता. कहावत उस समय की है जब कुष्ठ रोग का कोई इलाज नहीं था, पहले के लोग सफ़ेद दाग (ल्यूकोडर्मा) को भी कुष्ठ रोग समझते थे..

नीलकंठ कीड़ा भखें, मुखहिं विराजे राम, खोट कपट क्या देखिए, दर्शन से है काम. नीलकंठ (एक पक्षी जिस का गला नीला होता है) को देखना शुभ माना जाता है (क्योंकि शिव जी को भी नीलकंठ कहा जाता है). नीलकंठ पक्षी कीड़े मकोड़े खाता है लेकिन ईश्वर का प्रतिबिम्ब मान कर लोग उस के दर्शन करते हैं. कहावत का तात्पर्य यह है कि किसी के खोट (कमियाँ) न देख कर उस के गुण देखना चाहिए.

नीलकंठ जिस सिर मंडरावे, मुकुटपति सों लाभ वो पावे. जिस के सर पर नीलकंठ मंडरा जाए उसके राजा होने का योग होता है.

नीला कंधा बैंगन खुरा, कभी न निकले बरधा बुरा. जिस बैल के कंधे नीले और खुर बैंगनी हों वह निश्चित रूप से अच्छा ही होता है. (घाघ की कहावतें) 

नेक अंदर बद, बद अंदर नेक. अच्छे से अच्छे आदमी के अंदर भी कुछ बुराइयाँ होती हैं और बुरे से बुरे में भी कुछ न कुछ अच्छाई होती है.

नेक की बनी देख नीच जलें. सज्जन व्यक्ति को उन्नति करते देख कर नीच लोग ईर्ष्या करते हैं.

नेक रहें करम, तो का करिहें बरम. (भोजपुरी कहावत) बरम – देवता (संभवतः ब्रह्म का अपभ्रंश है). यदि व्यक्ति नेक कर्म करता है तो देवता भी उस का कुछ नहीं बिगाड़ सकते.

नेकनामी देर से, बदनामी जल्दी. प्रसिद्धि मुश्किल से और देर से मिलती है जबकि बदनामी जलदी मिल जाती है.

नेकी और पूछ पूछ. कोई व्यक्ति किसी भिखारी के पास जाकर पूछे, क्यों भैया सौ रूपए लोगे क्या? तो वह कहेगा – क्या बाबूजी! नेकी और पूछ पूछ.

नेकी कर कुँए में डाल. यदि आप किसी के ऊपर उपकार करते हैं तो उसे करके भूल जाइए उससे यह अपेक्षा मत करिए कि उसे आपका एहसान मानना चाहिए या एहसान चुकाना चाहिए. आजकल के लोग नेकी कम करते हैं या नहीं करते हैं पर उसका विज्ञापन जरूर करते हैं. उनके लिए यह कहावत इस प्रकार होनी चाहिए – नेकी कर न कर, अखबार (या फेसबुक) में जरूर डाल. 

नेकी करो, खुदा से पाओ. किसी के साथ अच्छाई करने का प्रतिफल भगवान देता है.

नेकी नौ कोस, बदी सौ कोस. आप जो नेकी करोगे उसकी कहानी तो नौ कोस तक ही कही जाएगी पर अगर किसी के साथ कोई बदी की है (बुरा किया है) तो उसके किस्से सौ कोस तक फ़ैल जाएंगे.

नेकी बदी साथ जाला. (भोजपुरी कहावत) जो कुछ भी भलाई बुराई (पाप, पुण्य) मनुष्य करता है सब परलोक में उस के साथ जाती हैं.

नेकी बर्बाद, गुनाह लाजिम. किसी का भला किया उस की कोई कद्र नहीं ऊपर से अपराधी ठहरा दिए जाएं तो यह कहावत कही जाती है. 

नेह फंद में जो फंस जावे, उस नर को न सीख सुहावे. जो मनुष्य प्रेम के फंदे में फंस जाता है उसे सीख अच्छी नहीं लगती.

नैन लगे तब चैन कहाँ है. नैन लगना – आँखें लड़ना, प्रेम हो जाना. किसी से प्रेम हो जाए तो मन को चैन नहीं रहता.

नैना देत बताय सब हिय को हेत अहेत, जैसे निर्मल आरसी भली बुरी कहि देत. हिय – हृदय. आप हृदय से किसी का भला चाहते हैं या बुरा यह आँखें बोल देती हैं, जिस प्रकार नाई की आरसी (एक प्रकार का छोटा दर्पण) में अच्छा बुरा सब दिख जाता है.

नौ पुरबिया तेरह चौके (नौ कनौजिया तेरह चूल्हे). पुरबिया लोगों में एकता नहीं होती इस पर व्यंग्य.

नौ की लकड़ी नब्बे खर्च. चीज़ सस्ती हो पर लाने में खर्च अधिक हो रहा हो तो.

नौ जाने छौ जनबे न करे. (भोजपुरी कहावत) छह की गिनती नौ से पहले आती है. जाहिर सी बात है कि जिसे नौ की गिनती आती है उसे छह की तो जरूर आनी चाहिए. कोई अगर नौ जानता है और छह नहीं जानता (अर्थात आरम्भिक ज्ञान नहीं है पर आगे का ज्ञान है) तो यह कहावत कही जाती है.

नौ दिन चले अढ़ाई कोस. बहुत धीमी गति से काम होना.

नौ नकटों में एक नाक वाला भी नकटा. अयोग्य व्यक्तियों के बीच रहने से योग्य आदमी भी अयोग्य बन जाता है.

नौ नगद न तेरह उधार. कोई व्यक्ति तेरह रूपये बाद में देने को कहे उस के मुकाबले अगर नौ रूपये नकद मिल रहे हों तो अधिक अच्छे हैं. इंग्लिश में कहावत है – One in the hand is better than two in the bush.

नौ महीने माँ के पेट में कैसे रहा होगा. अत्यंत शैतान बालक या चंचल चित्त वाले व्यक्ति के लिए.

नौ लावे तेरह की भूख. मनुष्य को जब थोड़ा सा मिल जाता है तो उसे और अधिक की लालसा होती है.

नौ सौ चूहे खाय बिलैया हज को चली. (नौ सौ चूहे खाय बिलाई बैठी तप पे) यदि किसी व्यक्ति ने जीवन भर खूब कुकर्म किए हो और बाद में वह धर्म-कर्म का नाटक करने लगे तो यह कहावत कही जाती है. भोजपुरी में कहावत है – सत्तर मुस खाइके बिलाइ भईली भगतीन.

नौकर ऐसा चाहिए कबहूँ घर न जाय, काम करे सब ताव से भीख मांग कर खाय. सभी लोग ऐसा नौकर चाहते हैं जो कभी छुट्टी न ले और न ही घर जाए. काम पूरे जोश से करे पर तनख्वाह न ले.

नौकर का चाकर, चाकर का कूकुर. बड़े हाकिमों के महकमे के जो छोटे से छोटे कर्मचारी भी अपने को तुर्रमखां समझने लगते हैं, उनका मजाक उड़ाने के लिए व उन की हैसियत जताने के लिए उन को यह बताया जा रहा है कि साहब के नौकर के नौकर और उस के कुत्ते जितनी तुम्हारी औकात है, अपने को ज्यादा मत समझो. जो लोग इस के इसके आगे बोलते हैं – और कूकुर की पूंछ का बाल. कहीं कहीं इस कहावत में चाकर का कूकुर के स्थान पर चाकर का चूतड़ बोला जाता है. 

नौकरी की जड़ आसमान में. (नौकरी की जड़ धरती से सवा हाथ ऊंची). नौकरी का कोई भरोसा नहीं होता कब चली जाए.

नौकरी ताड़ की छांव. ताड़ के पेड़ की छाया बहुत थोड़ी और अपर्याप्त होती है. इसी प्रकार नौकरी की कमाई अपर्याप्त होती है (पहले के समय में नौकरी में बहुत कम वेतन मिलता था). रिश्वत लेने वाले कर्मचारी रिश्वत को सही ठहराने के लिए भी ऐसा कहते हैं.

नौकरी न कीजिए घास खोद खाइए, और खोदें आस पास आप दूर जाइए. नौकरी करने से अच्छा है घास खोद कर अपना काम चलाया जाए. आस पास न मिले तो चाहे दूर जा कर खोदना पड़े.

नौकरी में सात खाविंद रिझाने पढ़ते हैं. बहुत सी स्त्रियों को यह शिकायत होती है कि उन्हें अपने पति को खुश रखने के लिए बहुत यत्न करने पड़ते हैं. उन स्त्रियों को समझाने के लिए पति यह बताते हैं कि नौकरी करना इतना कठिन है जितना एक दो नहीं सात पतियों को खुश करना.

न्याव को और भाव को कोउ भरोसा नाहिं. राजा के न्याय और बाजार के भाव के विषय में कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता.

न्यौता बामन, शत्रु बराबर. ब्राहण को न्यौता देना अपने लिए मुसीबत बुलाना है.

 

 

पंखे से कोहरा नहीं छंटता. छोटे साधन से बहुत बड़ा कार्य सिद्ध नहीं किया जा सकता.

पंच कहें बिल्ली तो बिल्ली सही. पंचों की बात सब को माननी पड़ती है. किसी ने अपनी आँखों से देखा कि पडोसी के कुत्ते ने उसकी मुर्गी का शिकार किया, लेकिन यदि पंच कहते हैं कि जंगली बिल्ली ने किया है तो बिल्ली ने ही किया होगा.

पंच जहाँ परमेश्वर. कोर्ट कचहरी जा कर बर्बाद होने के मुकाबले यदि गाँव के लोग अपने बीच से ही पांच लोगों को पंच बना कर फैसला कर लें तो सभी का फायदा है. इसीलिए कहा गया है कि जहाँ आपसी समझ बूझ से झगड़े निबटाने की व्यवस्था है वहाँ परमेश्वर का वास है.

पंचों का कहना सर माथे, लेकिन परनाला यहीं गिरेगा. किन्हीं दो पड़ोसियों के बीच इस बात पर झगड़ा हो रहा है कि छत से आने वाला परनाला नीचे कहाँ खुलेगा. झगड़ा निबटाने के लिए पंचायत होती है और पंच कुछ फैसला देते हैं. लेकिन जो दबंग आदमी है वह कहता है कि मैं पंचों की बात जरूर मानूँगा लेकिन परनाला जहाँ मैं कह रहा हूँ वहीँ गिरेगा. किसी व्यक्ति द्वारा अपनी ही शर्त पर समझौता करने की जिद करना. 

पंचों का जूता और मेरा सिर. अगर मेरी बात गलत साबित हो तो पंच जो सजा दें मैं मानने को तैयार हूँ.

पंज ऐब शरई. चोरी, व्यभिचार, शराब, जुआ और झूठ, इस्लाम  में ये पाँचों ऐब वर्जित हैं. किसी व्यक्ति में ये सारे ऐब हों और अपने को सच्चा मुसलमान बताता हो, उस के लिए व्यंग्य. शरई – शरिया को मानने वाला.

पंडित और मसालची दोनों उल्टी रीत, और दिखावें रोशनी आप अँधेरे बीच. मशालची औरों को रोशनी दिखाता है पर खुद अँधेरे में रहता है. पंडित औरों को ज्ञान देता है पर खुद उस पर अमल नहीं करता.

पंडित की कथा कोरी बांच ले तो पंडित को कौन पूछे. कोरी – बुनकर. कोरी यदि कथा सुना ले और पूजा करा ले तो पंडित को कौन पूछेगा. कम्पाउंडर अगर इलाज कर ले तो डॉक्टर को कौन पूछेगा.

पंडित केरा पोथड़ा ज्यों तीतर को ज्ञान, औरन सगुन बतात हैं, अपनों फंद न जान. तीतर का दिखाई पड़ना अच्छा शगुन माना जाता है, लेकिन तीतर को इस का ज्ञान नहीं होता. ऐसे ही पंडित अपने पोथे से औरों को मुहूर्त बताता है लेकिन अपने लिए मुहूर्त नहीं निकाल पाता.

पंडित जी गए दारू पीए तो भठिए में लग गई आग. (भोजपुरी कहावत)पंडित जी दारु पीने गए तो भट्ठी में ही आग लग गई. कलियुगी ब्राह्मणों का मजाक उड़ाने के लिए.

पंडित जी ने कौआ हग दिया. अफवाहों द्वारा बात का बतंगड बनना. एक पंडित जी जंगल में शौच के लिए गए और एक पेड़ के नीचे बैठ कर शौच करने लगे. पेड़ के ऊपर एक कौआ बैठा था. पंडित जी मलत्याग कर के उठे तभी संयोग से कौए का एक बड़ा सा पंख उन के मल पर आ कर गिर गया. पंडित जी की नज़र मल पर पड़ी तो उस में कौए का पंख दिखाई दिया. पंडित जी को यह वहम हो गया कि यह पंख उन के पेट से निकला है. घर आ कर उन्होंने पंडितानी को यह बात बताई. आधी अधूरी बात एक कामवाली के कानों में पड़ी. उसने किसी दूसरे को बताई, दूसरे ने तीसरे को बताई. उड़ते उड़ते यह बात फ़ैल गई कि पंडित जी ने कौआ हग दिया.

पंडित जी बैंगन वातल है, मुझे नहीं औरों को. पंडित लोग अपने फायदे के लिए उपदेशों को घुमा फिरा लेते हैं. एक पंडित जी बैंगन की बहुत सी बुराइयाँ बताया करते थे. किसी जजमान के घर गए तो वहाँ बढ़िया घी में तर बैंगन का भर्ता बना था. भोजन करने बैठे तो जजमान ने उन्हें भर्ता नहीं परोसा. कहा – पंडित जी बैंगन तो वायु करता है. पंडित जी बोले – मुझे नहीं औरों को.

पंडित बांचें पोथी लेखा, कबिरा बांचें आँखों देखा. पंडित तो पोथी में लिखा हुआ पढ़ कर ज्ञान की बात करते हैं लेकिन कबीरदास आँखों से देख कर और अनुभव द्वारा प्राप्त ज्ञान की बात करते हैं. सही बात यही है कि पोथियों में लिखे ज्ञान के मुकाबले धरातल का व्यवहारिक ज्ञान अधिक महत्वपूर्ण है.

पंडित भूलें तो राह कैसे मिले. मार्ग दिखाने वाला ही मार्ग भूल जाए तो रास्ता कैसे मिलेगा.

पंडित सोई जो गाल बजावा. गाल बजाना – अपनी प्रशंसा करना. जो पंडित अपने बारे में बढ़ चढ़ कर हांकता है, उसे ही लोग विद्वान समझते हैं.  

पंडित, सूर, सुजानवर, रूपवती तिय जान, जहाँ जहाँ ये पग धरें, वहाँ वहाँ सम्मान. विद्वान व्यक्ति, शूरवीर, बुद्धिमान व्यक्ति और रूपवती स्त्री का हर जगह सम्मान होता है.

पंद्रह बुलाए आये बीस, घर के मिल कर हो गए तीस. घर के किसी आयोजन में थोड़े लोग बुलाओ तब भी बहुत लोग हो जाते हैं.

पंसेरी में पांच सेर की भूल. पंसेरी माने पांच सेर. पांच सेर तोलने में दो चार छटांक की भूल हो जाए तो माफ़ की जा सकती है, लेकिन अगर पांच सेर की भूल हो तो कोई कैसे मान जाएगा. 

पंसेरी वाली भी दुह लेता है और पाव वाली भी. जो भ्रष्ट हाकिम अमीर गरीब सब से रिश्वत ले लेता हो. पंसेरी वाली – पांच सेर दूध देने वाली गाय, पाँव वाली – पाँव भर दूध देने वाली गाय.

पकाय सो खाय नहीं, खाय कोई और, दौड़े सो पाय नहीं, पाय कोई और. जिसने पकाया उसे नहीं मिला किसी और को खाने को मिला. जिसने दौड़ भाग की उसे नहीं किसी और को लाभ हो गया. जिसके भाग्य में कोई चीज़ नहीं होती वह उसे नहीं मिल सकती.

पके आम सुहावन, पके मर्द छिनावन. आम पक कर मीठा और आकर्षक हो जाता है जबकि पुरुष पक कर (वृद्ध हो कर) अप्रिय हो जाता है.

पक्का होना चाहे तो पक्के के संग खेल, कच्ची सरसों पेर के खली होय न तेल. अगर आप किसी काम में दक्ष होना चाहते हैं तो अनुभवी व्यक्ति के साथ काम कीजिए, कोई खेल सीखना चाहते हैं तो अनुभवी खिलाड़ी के साथ खेलिए. बात को समझाने के लिए सरसों का उदाहरण दिया गया है. सरसों पक जाए तभी उसको पेरने से तेल और खली मिलती है.

पक्के घड़े में जोड़ नहीं लगता. कच्चा घड़ा चटक जाए तो उस में जोड़ लगाया जा सकता है या टेढ़ा हो तो उसे सीधा किया जा सकता है लेकिन पक्के घड़े को न तो सीधा किया जा सकता है न ही उस में पैबंद लग सकता है. छोटे बच्चे के विचारों को प्रभावित किया जा सकता है, बड़े आदमी की मान्यताओं को नहीं.

पग पवित्र तीरथ गवन, कर पवित्र कछु दान, मुख पवित्र तब होत है, भज ले जब भगवान. पैर तभी पवित्र होते हैं जब आप उन से चल कर तीर्थ करने जाते हैं, हाथ दान देने से पवित्र होते हैं और मुख तब पवित्र होता है जब आप भगवान का नाम लेते हैं.

पग बिन कटे न पंथ. बिना पहला पग बढ़ाए रास्ता नहीं कटता है. अर्थात काम कितना भी बड़ा क्यों न हो जब तक आरम्भ ही न किया जाए, पूरा कैसे होगा.

पगड़ी की साख से घाघरी की साख ज्यादा प्यारी. जिसे अपने कुल की साख से पत्नी और ससुराल अधिक प्यारी हो.

पगड़ी गई ऐसी तैसी में, सिर तो बच गया. इज्जत चली गई तो क्या हुआ, जान तो बच गई. कुछ लोग इस के विपरीत सोचते हैं – सिर चला जाए, इज्ज़त नहीं जानी चाहिए. 

पगड़ी दोनों हाथों से संभाली जाती है. बहुत मेहनत से इज्जत बचाई जाती है.

पगड़ी रख, घी चख.  घी चखने का अर्थ है मौज उड़ाना. 1. मौज उड़ाओ लेकिन पगड़ी सम्भाल कर (अपने सम्मान पर ठेस मत आने दो). 2. सम्मान की परवाह मत करो, पगड़ी नीचे रखो और मौज उड़ाओ..

पगड़ी रहे या जाए, सर सलामत रहना चाहिए. जहां इज्जत बचाने के चक्कर में जान जा रही हो वहाँ कुछ लोग तो कहते हैं कि जान जाए पर इज्ज़त न जाए. कुछ लोग कहते हैं कि यदि जान बची रहे तो प्रतिष्ठा तो फिर भी प्राप्त की जा सकती है इस लिए पहले जान बचाओ.

पगले आग मत लगा देना, भली याद दिलाई. उल्टी खोपड़ी के आदमी से जिस काम के लिए मना करो वही करता है.

पगले सबसे पहले. 1. मूर्ख व्यक्ति भला बुरा विचार किये बिना हर काम में कूद पड़ता है. 2. कहीं भी कोई आयोजन हो रहा हो, उस में पगले लोगों को पहले पूछना चाहिए, क्योंकि वे रायता फैला सकते हैं. 

पचै सो खाए, रुचै सो बोले. भोजन वही करना चाहिए जो आसानी से पच जाए. बोलना वही चाहिए जो सब को अच्छा लगे.

पछवा चले, खेती फले. खेती के लिए पछवा हवा (पश्चिम से आने वाली शुष्क हवा) लाभदायक होती है.

पछुआ हवा उसावे जोई, घाघ कहें घुन कबहु न होई. ओसाना – अनाज को हवा में उड़ा कर भूसी को अलग करना. पछवा हवा में अनाज को ओसाया जाए तो उसमें घुन नहीं होता.

पजामे का कोई जिकर नहीं. किसी व्यक्ति के घर उसका एक मित्र आया. मित्र को उस शहर में कुछ लोगों से मिलने जाना था लेकिन रास्ते में उसका पजामा कीचड़ से गंदा हो गया था. उस व्यक्ति ने नया पजामा मित्र को पहनने को दिया और दोनों लोग चल पड़े. रास्ते में उसे लगा कि मित्र का पजामा बहुत अच्छा लग रहा है जबकि उस का पजामा घटिया लग रहा है. जिन पहले सज्जन के घर ये लोग पहुँचे वहाँ उसने अपने मित्र का परिचय कराया कि ये मेरे मित्र फ़लाने फ़लाने हैं, अमुक शहर से आये हैं और ये जो पजामा पहने हैं ये मेरा है. मित्र ने बाहर निकल कर कहा, यार यह कहने की क्या जरूरत थी कि पजामा तुम्हारा है. दूसरे घर में गए तो वहाँ उन्होंने अपने मित्र का परिचय कराया और बोले कि जो पजामा ये पहने हैं ये इन्हीं का है. बाहर निकल कर मित्र ने फिर कहा कि यार यह अजीब बात है. यह कहने की क्या जरूरत है की पजामा मेरा है या तुम्हारा है. तीसरे घर में उन सज्जन ने मित्र का परिचय कराया और कहा कि ये पजामा न इनका है न मेरा है. मित्र बाहर निकल कर बहुत बिगड़े. बोले तुम पजामे का जिक्र ही क्यों करते हो. चौथे घर में उन्होंने मित्र का परिचय कराया कि ये श्री फलाने हैं, अमुक शहर से आए है और पजामे का कोई जिकर नहीं.

पटको तुम, मूछें हम उखाड़ें. पुराने जमाने में मूंछें उखाड़ना किसी का सब से बड़ा अपमान माना जाता था. जानी दुश्मनों के साथ ही ऐसा बर्ताव किया जाता था. कोई चतुर व्यक्ति अपने साथ वालों को उकसा रहा है कि तुम फलाने को पटक दो तो हम उस की मूँछ उखाड़ देंगे. किसी को खतरनाक काम के लिए उकसाना और खुद उस का श्रेय लेना.

पट्ठों की जान गई, पहलवान का दांव ठहरा. पहलवान अपने चेलों और चमचों पर अपने दांव आजमाते हैं, उसी पर कहावत.

पठान का पूत, घड़ी में औलिया, घड़ी में भूत. पठान का व्यवहार बड़ा विचित्र और अनुमान से परे होता है. वह कभी कुछ हो जाता है कभी कुछ.

पठानों ने गाँव मारा, जुलाहों की चढ़ बनी. बहादुर लोग कोई वीरतापूर्ण काम करते हैं और कायर लोग उसका फायदा उठाते हैं. 

पड़वा पाठ भुलावे, छोरों को खिलावे. पुराने समय की मान्यता है कि पड़वा के दिन पढ़ाई करने से विद्यार्थी पाठ भूल जाता है. कुछ लोग केवल दीपावली की पड़वा के लिए ही ऐसा कहते हैं.

पड़िया के साथ भैंस मुफ्त. आम तौर पर किसी बड़ी चीज़ के साथ छोटी चीज मुफ्त मिलती है. जहाँ छोटे लाभ के साथ बड़ा लाभ स्वत: ही हो रहा हो वहाँ यह कहावत कही जाती है. भोजपुरी में इस कहावत को इस प्रकार कहते हैं – पड़िया मोल भैंस सुगौना. 

पड़ी लकड़ी कौन उठाए. व्यर्थ की मुसीबत कौन मोल ले.

पड़ोसी के घर में बरसेगा तो बौछार यहाँ भी आयेगी. पड़ोसी की तरक्की से जलने के स्थान पर यह सोचना चाहिए कि पड़ोसी के घर समृद्धि आएगी तो हमें भी कुछ न कुछ लाभ होगा.

पडोसी से प्रेम रखोपर बीच की दीवार न तोड़ो. पड़ोसियों से सद्भाव बना कर रखना चाहिए और उनके सुख दुःख में सम्मिलित भी होना चाहिए लेकिन थोड़ी दूरी भी बना कर रखना चाहिए.

पढ़ा लिखा जाट, सोलह दूनी आठ. पहले के जमाने में जाट लोगों में खेती का चलन ज्यादा था, पढ़ाई लिखाई का कम. इसी बात को लेकर लोगों ने उनका मजाक उड़ाने की कोशिश की है. व्यवहारिक रूप में इस कहावत का प्रयोग केवल जाटों के लिए नहीं करते हैं. कोई भी पढ़ा लिखा व्यक्ति यदि बचकाना और बेवकूफी की बात कर रहा हो तो यह कहावत कही जा सकती है.

पढ़ि पढ़ि के पत्थर भया लिख लिख भया ज्यूँ ईंट, कहें कबीरा प्रेम की लगी न एको छींट. पढ़ लिख कर यदि मनुष्य ईंट पत्थर जैसा निर्बुद्धि बन जाए,  तो ऐसे ज्ञान का क्या लाभ.

पढ़े घर की पढ़ी बिल्ली. जिस खानदान में कुछ लोग पढ़ लिख जाते हैं उस घर के सभी लोग अपने को बहुत काबिल समझने लगते हैं. उनका मज़ाक उड़ाने के लिए.

पढ़े तो हैं गुने नहीं. गुनना – व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त करना. पढ़ा पर गुना नहीं हो तो किस काम का. किसी राज पुरोहित का बेटा काशी से पढ़ कर आया. राजा ने उस की योग्यता की परीक्षा लेने के लिए पूछा, बताओ मेरी मुट्ठी में क्या है. उसने अपनी विद्या के बल पर बताया, कोई सफ़ेद पत्थर की गोल चीज़ है जिसके बीच में छेद है. राजा ने कहा, क्या हो सकता है? वह बहुत देर तक सोचता रहा कि इस तरह की गोल चीज़ क्या हो सकती है, फिर बोला – आपके हाथ में चक्की का पाट होगा. राजा हँस पड़ा. उस ने मुट्ठी खोली, उस में एक मोती था. 

पढ़े तोता पढ़े मैना, कहीं सिपाही का पूत भी पढ़ा है. एक बार को तोता और मैना पढ़ सकते हैं पर सिपाही का बेटा नहीं पढ़ के देता (वह रिश्वत की कमाई से बिगड़ जाता है और अपने पिता की ताकत के नशे में चूर रहता है).

पढ़े न लिखे, नाम विद्यासागर. गुण के विपरीत नाम.

पढ़े फारसी बेचें तेल, ये देखो कुदरत का खेल. पहले जमाने में सामान्य लोग उर्दू पढ़ते थे. जिनको ज्यादा पढ़ना होता था वे उसके बाद फारसी पढ़ते थे. मतलब यह कि फारसी एक प्रकार की उच्च शिक्षा थी. फारसी पढ़ने के बाद लोगों को नौकरी इत्यादि मिल जाया करती थी. अब यदि कोई किस्मत का मारा फारसी पढ़ने के बाद भी तेल बेच रहा हो तो यह कहावत कही जाएगी. अर्थ है कि कोई उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति बदकिस्मती से बहुत छोटा मोटा काम करने पर मजबूर है.

पढ़े वेद, जोते खेत. उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद कोई छोटा मोटा काम करना.

पढ़े से विद्या, किए से खेती. जिस प्रकार किसी दूसरे के पढ़ने से हमें विद्या नहीं आ सकती (अपने आप पढ़ने से ही आएगी) उसी प्रकार किसी दूसरे के करने से खेती नहीं हो सकती.

पढे सो पंडित होय. जो पढ़े लिखेगा वही विद्वान बनेगा.

पढों में अनपढ़, जैसे हंसों में कौवा. बहुत से शिक्षित व्यक्तियों के बीच में एक अनपढ़ व्यक्ति वैसा ही है जैसे हंसों के बीच में कौवा.

पतली देह अन्न की खान. जो आदमी दुबला पतला हो पर खाता अधिक हो.

पति तो पूजे देव को, भूतन पूजे जोय, एकै घर में दो मता, कुसल कहाँ से होय. पति देवता की पूजा करता है और पत्नी भूतों की. जब पति पत्नी दोनों के मत और विश्वास एक दूसरे से एकदम उल्टे हों तो उन में नहीं निभ सकती.

पति भूखा तो माथा दूखे, अपनी भूखों चूल्हा फूंके. उन कामचोर स्त्रियों के लिए जो पति का काम करने में बहाने बनाएँ और अपना स्वार्थ पूरा करती रहें. माथा दूखे – सर में दर्द. 

पतिबरता भूखी मरे, पेड़े खाए छिनार. पतिव्रता स्त्री भूखी मरती है और चरित्रहीन स्त्रियों को पेड़े खाने को मिलते हैं. ईमानदार आदमी को रोटी मिलना मुश्किल है और धूर्त लोग मजे मार रहे हैं.

पतीली न जाने खाने का स्वाद. पतीली सब के लिए खाना बनाती है पर स्वयं उस का स्वाद नहीं ले सकती. मेहनतकश लोग सुख सुविधा के सारे साधन बनाते हैं पर स्वयं उन का आनंद नहीं ले पाते हैं.

पतुरिया का डेरा, जैसे ठगों का घेरा. पतुरिया – चरित्रहीन स्त्री. ऐसी स्त्री अपने मोहजाल में फंसा कर व्यक्ति का धन सम्मान सब ठग लेती है.

पतुरिया रूठी, धरम बचा. चरित्रहीन स्त्री अगर आपसे रूठ जाए तो यह समझो कि आपका धर्म बच गया (क्योंकि उसके चक्कर में पड़ कर तो धर्म भ्रष्ट होना ही था).

पत्ता खटका, बंदा सटका. डरपोक लोगों के लिए जो पत्ता खड़कने की आवाज सुन कर ही सरक लेते हैं.

पत्ता खड़कल बाभन हड़कल. (भोजपुरी कहावत) ब्राह्मण इतने डरपोक होते हैं कि पता खड़कने से भी डर जाते हैं.

पत्थर को जोंक नहीं लगती. किसी भी समाज में मुफ्तखोर लोग जोंक के समान होते हैं जो कि समाज के अन्य लोगों का खून चूसते हैं. ये आपसे हर समय कुछ न कुछ सहायता मांगते रहते हैं और अगर आप मना करते हैं तो उलटे आपको ही पत्थर दिल कहते हैं. ऐसे लोगों से निबटने के लिए पत्थर दिल बनना ही अच्छा रहता है.

पत्थर नीचे हाथ दबे, तो चतुराई से काढ़े. किसी बड़ी मुसीबत में फंसने पर बहुत होशियारी से उससे निकलने की कोशिश करना चाहिए. 

पत्थर से पत्थर टकराता है तो चिंगारियां निकलती हैं. जब दो विकट योद्धा लड़ते हैं तो लड़ाई भीषण होती है.

पर उपदेश कुशल बहुतेरे, (जे आँचरन्हि ते नर न घनेरे). दूसरों को उपदेश देना बहुत आसान है. ऐसे लोग बहुत कम होते हैं जो स्वयं उन बातों पर अमल करें. अधिकतर इस कहावत का प्रथम भाग ही बोला जाता है.

पर घर कूदें मूसरचंद. जो बिना निमन्त्रण किसी के घर जाएं या बिना सहायता मांगे सहायता करने पहुँच जाएँ.

पर घर नाचें तीन जन, कायस्थ, बैद, दलाल. कायस्थ (कचहरी में काम करने वाले पेशकार व अन्य मुलाजिम), वैद्य और दलाल ये दूसरों के धन पर ऐश करते हैं.

पर धन बांधे मूरखचंद. (पर धन राखें मूरखचंद). पराई धरोहर की चौकीदारी करना मूर्खता का काम है. इससे आप को लाभ तो कुछ नहीं होता, उलटे खतरा और होता है.

पर नारी पैनी छुरी, मत कोई लावो संग, दसों सीस रावन के ढह गए, पर नारी के संग. पराई स्त्री पैनी छुरी की भाँति खतरनाक है. पराई स्त्री का अपहरण करने के कारण रावण के दसों सर कट गए.

परखना हो किसी को तो उस के यार देख लो.  यदि किसी व्यक्ति की सच्चाई जाननी हो तो यह मालूम करो कि उसके मित्र किस बौद्धिक और सामाजिक स्तर के हैं. इंग्लिश में इस आशय की एक कहावत है – Man is known by the company he keeps.

परजा जड़ है राज की, राजा है ज्यों रूख, रूख सूख कर गिर पड़े, जब जड़ जावे सूख. राजा को यह नहीं भूलना चाहिए कि यदि वह पेड़ के समान है तो प्रजा उसकी जड़ है. यदि प्रजा कष्ट में रहेगी तो राजा का उसी प्रकार नाश हो जाएगा जैसे जड़ सूख जाने से पेड़ सूख जाता है.

परजा भागे छोड़ कर कुन्यायी का गाम, चहूँ ओर जग में करे फेर उसे बदनाम. अन्यायी राजा के राज्य को लोग छोड़ कर भागने लगते हैं और उसे बदनाम करते हैं.

परदे की बीवी और चटाई का लहंगा. किसी कुलीन महिला द्वारा सस्ता और फूहड़ता से भरा पहनावा धारण करना.

परदेशी की प्रीत, फ़ूस का तापना. फूस में आग लगाते ही वह एकदम से जल उठता है और बहुत कम समय में खत्म हो जाता है. परदेसी आदमी की प्रीत भी इसी प्रकार अल्प कालिक होती है.

परदेस कलेस नरेसन को. राजा और बड़े हाकिम दूसरे देश में परेशान रहते हैं क्योंकि उन की पूछ अपने देश में ही होती है.

परदेस में पैसे पेड़ों पर नहीं लगते. जो लोग यह समझते हैं कि विदेश में बहुत कमाई है उन को सीख देने के लिए.

पर नारी पैनी छुरी, तीन ओर से खाय, धन छीजे, जोवन हरे, पत पंचों में जाय. पराई नारी से आसक्ति पैनी छुरी से खेलने के समान है. उससे धन और यौवन का ह्रास होता है और पंचों (समाज के प्रतिष्ठित लोगों) के बीच प्रतिष्ठा जाती है. कुछ लोग इस के आगे भी बोलते हैं – जीवत काढ़े कलेजा, अंत नरक ले जाय.

परमात्मा गंजे को नाखून न दे. अगर गंजे के नाखून होंगे तो वह खुजा खुजा कर अपनी खोपड़ी लहूलुहान कर लेगा. (विस्तृत विवरण के लिए देखिए कहावत – खुदा ने गंजे को नाखून नहीं दिए).

परवत पर खोदे कुआँ कैसे निकसे तोय. पर्वत पर कुआँ खोदने पर पानी नहीं मिल सकता. गलत स्थान पर उद्यम करना व्यर्थ जाता है.

परसी थाली देख कर मत चूको बेईमान. बेईमान व्यक्ति बेईमानी करने का कोई मौका नहीं चूकता, ख़ास तौर पर अगर पकी पकाई मिल रही हो तो.

परहथ बनिज संदेसे खेती, बिन वर देखे ब्याहें बेटी, द्वार पराए गाड़ें थाती, ये चारों मिल पीटें छाती. दूसरे के हाथों व्यापार करने वाला, संदेश भेज कर खेती कराने वाला, बिना वर को देखे कन्या का विवाह करने वाला और दूसरे के घर के बाहर अपना धन गाड़ने वाला, ये चारों लोग छाती पीटते हैं.

परहित सरिस धर्म नहिं भाई. परोपकार के समान उत्तम कोई दूसरा धर्म नहीं है. व्यवहार में इतनी ही कहावत बोली जाती है. इसके आगे की पंक्ति इस प्रकार है – पर पीड़ा सम नहिं अधमाई.

पराई आसा, नित उपवासा. दूसरों के भरोसे रहोगे तो भूखों मरोगे.

पराई नौकरी सांप खिलाने के बराबर है. दूसरे की नौकरी में बहुत खतरे हैं (सब से बड़ा खतरा तो नौकरी जाने का ही है). इसके अलावा कोई भी अनहोनी हो तो उसका ठीकरा नौकर के सर पर ही फोड़ा जाता है.

पराई पत्तल का भात मीठा. मनुष्य को हमेशा यह प्रतीत होता है कि दूसरे लोग उससे अधिक सुखी हैं.

पराई बदशगुनी के वास्ते अपनी नाक कटाई. कुछ लोग इतने नीच प्रवृत्ति के होते हैं कि हमेशा दूसरों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करते हैं चाहे उस प्रयास में अपना नुकसान क्यों न हो जाए.

पराई हंसी गुड़ से भी मीठी. दूसरा व्यक्ति यदि प्रसन्न दिखाई देता है तो हम सोचते हैं कि वह बहुत सुखी है (चाहे वास्तविकता इससे भिन्न हो).

पराए घर में नौ खाटों पर कमर सीधी होती है (दूसरों के घर चार खाटों पर कमर खुले). अपने घर पर आदमी चाहे कैसे भी काम चला ले, दूसरे के घर जाता है तो उसे अतिरिक्त सुविधाएं चाहिए होती हैं.

पराए दुःख में दुखी होने वाले कम, पराए सुख में दुखी होने वाले ज्यादा मिलते हैं. किसी दूसरे के दुःख को बहुत कम लोग महसूस करते हैं और ज्यादातर लोग दूसरों को सुखी देख कर दुखी होते हैं.

पराए धन पर धींगर नाचे. मुस्टंडे लोग दूसरों के धन पर मौज करते हैं. 

पराए धन पर लक्ष्मी नारायण. दूसरों का धन बांट कर अपने को बड़ा दानी सिद्ध करना.

पराए पीर को मलीदा, घर के देव को धतूरा. दूसरों के लिए पूजनीय किसी व्यक्ति का सम्मान करना और अपने देवताओं का अपमान करना.

पराए पूत किसको कमा कर देते हैं. किसी दूसरे को कमा कर देना कोई नहीं चाहता.

पराए पूतन सपूती होए. दूसरे की संपत्ति से अपने को धनवान समझने की मूर्खता. पराए पूतन – दूसरे के पुत्रों से, सपूती – पुत्रवती.

पराए भरोसे खेला जुआ, आज न मुआ कल मुआ. दूसरे पर विश्वास कर के जुआ खेलने वाला बर्बाद हो जाता है. पैसा उधार ले कर जुआ खेलने से भी मतलब हो सकता है.

पराए माथे पर सिल फोड़े. अपना गुस्सा दूसरों पर निकालना.

पराधीन दोनों सदा, जग में बेटी बैल. बेटी सदा दूसरों के आधीन रहती है, पहले पिता के घर में और फिर ससुराल में. इसी प्रकार बैल भी अपनी जीविका के लिए दूसरों के आधीन होता है. ये दोनों ही अपनी मर्जी से कुछ नहीं कर सकते.

पराधीन सपनेहूँ सुख नाहिं. दूसरे की गुलामी करने वाले को कभी सुख नहीं मिल सकता (सपने में भी नहीं). 

पराया खाइए गा बजा, अपना खाइए सांकल लगा. सांकल लगा कर कोई काम करने का अर्थ है घर के दरवाजे की कुंडी बंद कर के अर्थात बिना किसी को बताएकिसी दूसरे की दी हुई चीज़ खा कर खूब प्रशंसा कीजिए पर अपने घर में क्या खाते हैं यह किसी को नहीं बताना चाहिए.

पराया धर थूकने में भी डर, अपना घर हग जी भर. पराए घर में कोई भी काम डर डर कर करना पड़ता है, अपने घर में कोई भी काम हो और कैसा भी काम हो पूरी आज़ादी रहती है.

पराया माल, जी का जंजाल. किसी दूसरे का कोई कीमती सामान अपने घर में रखना बहुत झंझट का काम है. उसकी बहुत चौकीदारी करनी पड़ती है और यदि खो जाए तो बहुत लानत मलानत होती है.

पराया माल, पूंछ का बाल. दूसरे की सम्पत्ति को उतना ही तुच्छ समझना चाहिए जितना किसी पशु की पूंछ का बाल. संस्कृत साहित्य में भी ‘परद्रव्येषु लोष्टवत्’ समझने की सीख दी गई है.

परिवर्तन संसार का नियम है. संसार में हर वस्तु परिवर्तन शील है, कुछ भी स्थायी नहीं है. इंग्लिश में कहावत है – Change is the law of nature.

पर्दा रहे तो पुन्य, खुल जाए तो पाप. ऐसे दिखावटी पुण्यात्मा लोगों के लिए जो परदे के पीछे पाप करते हैं. (जैसे आजकल के बहुत से ढोंगी धर्मगुरु).

पल का चूका कोसों दूर. मौके पर जरा सी चूक हो जाने पर आदमी अपने लक्ष्य से बहुत दूर भटक सकता है. (जैसे आजकल वन वे ट्रैफिक में होता है, एक कट छूटा और मीलों का चक्कर).

पल पखवाड़ा, घड़ी महीना, चार घड़ी का साल, करजदार जब कल कहे तो ताको कौन हवाल. कर्जदार पैसा वापस करने की मियाद को टालता रहता है. वह एक पल कहता है तो पखवाड़ा निकाल देता है, एक घड़ी कह कर महीना बिता देता है और चार घड़ी कह कर साल निकाल देता है. अगर वह एक साल कह रहा है तब तो न जाने कभी देगा भी या नहीं.

पल्ले में रुपया हो तो जंगल में मंगल. जिसके पास धन है वह कहीं भी उत्सव मना सकता है.

पशु का सताना, निरा पाप कमाना. बेजुबान पशुओं को सताने से बहुत पाप लगता है.

पसु पच्छी हू जानिहैं अपनी अपनी पीर. अपनी अपनी पीड़ा को पशु पक्षी भी जानते हैं.

पहने ओढ़े नारी, लीपे पोते घर. स्त्री पहन ओढ़ कर अच्छी लगती है और घर लीपने पोतेने के बाद.

पहलवानी पचाय की, रईसी बचाय की. पहलवान वही बन सकता है जो अच्छी खुराक खाए और उसे पचा ले, धनवान वही बन सकता है जो अपनी कमाई में से बचत करे. 

पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में हो माया, तीजा सुख पतिव्रता नारी, चौथा सुख सुत आज्ञाकारी. किसी भी मनुष्य के लिए चार सुख सबसे बड़े माने गए हैं – पहला स्वस्थ शरीर, दूसरा सुख घर में धन संपदा, तीसरा सुख पतिव्रता पत्नी और चौथा सुख आज्ञाकारी पुत्र. इन के ऊपर तीन सुख और बताए गए हैं – पांचवां सुख राज सम्माना, छटवां सुख कुटुम्बी नाना, सातवाँ सुख धरम रति होई, तासे स्वर्ग धरनि पर होई. 

पहला सुख निरोगी काया. संसार में भांति भांति के सुख माने गए हैं पर सब से बड़ा सुख है स्वस्थ शरीर (क्योंकि स्वस्थ शरीर के बिना आप अन्य सभी सुखों का उपभोग नहीं कर सकते).

पहले अपना आगा ढंको, पीछे किसी को नसीहत करो. पहले अपने अंदर जो कमियाँ हों उन्हें छिपाओ या दूर करो, फिर किसी को उपदेश दो.

पहले आत्मा, फिर परमात्मा. पहले जीविका का प्रबंध करो, फिर भगवान की भक्ति करना संभव हो पाएगी.

पहले आप पहले आप में गाड़ी छूटी. दो तकल्लुफी लोग गाड़ी पकड़ने के लिए गए. दोनों एक दूसरे से आग्रह करते रहे कि पहले आप चढ़ें. इसी औपचारिकता में गाड़ी छूट गई.

पहले आप, फिर बाप. आजकल की संतानें अपना पेट भरने के बाद ही माँ बाप के विषय में सोचती हैं.

पहले गस्से में मक्खी (पहले गस्से में बाल). किसी कार्य के आरंभ में ही कोई अनर्थ हो जाए तो. मूलत: यह संस्कृत की कहावत है – प्रथम ग्रासे मक्षिका पात.

पहले चारा भितर, फिर देवता पितर. इंसान पहले खाने की चिंता करता है उसके बाद उसे देवता और पितृ याद आते हैं.

पहले चुम्मे गाल काटा. आरंभ में ही धोखा दे दिया. चुम्मा – चुम्बन.

पहले ढोर चराते थे अब कान काटते हैं. बहुत मामूली व्यक्ति यदि किसी महत्वपूर्ण और प्रभावी पद पर पहुँच जाए तो (जैसे कुछ क्षेत्रीय राजनीति करने वाले शातिर नेता).

पहले तो वह रीझ थी, अब क्यों ऐसी खीज. स्त्रियाँ अक्सर अपने पतियों से पूछती हैं कि पहले तुम्हें इतना प्रेम था कि तुम हर बात पर रीझ जाते थे, अब क्यों इतना खीजते हो.

पहले तोलो, पीछे बोलो. कोई बात बोलने से पहले उस पर मनन अवश्य कर लेना चाहिए.

पहले दही जमाय के पीछे कीन्ही गाय. दही जमाने का इंतजाम करने के बाद गाय पाल रहे हैं. बिना योजना के काम करना.

पहले नेग, पीछे गीत. विवाह आदि में जो लोग मंगल गीत आदि गाते हैं उन्हें विवाह के बाद नेग (रुपये, अनाज, कपड़े आदि) दिया जाता है. यदि कोई पहले नेग लेने की बात कहे तो यह उल्टी बात हुई.

पहले पहरे हर कोई जागे, दूजे पहरे भोगी, पहर तीसरे चोर जागे, चौथे पहर जोगी. रात्रि के चार प्रहर के बारे में बताया गया है, पहले प्रहर हर कोई जागता है, दूसरे प्रहर में भोगी लोग जाग कर भोग का आनंद उठाते हैं, तीसरे प्रहर सब गहरी नींद सोते हैं इसलिए चोर जाग कर चोरी करते हैं. चौथे प्रहर में योगी लोग जाग कर ध्यान और पूजन करते हैं.

पहले पहुंचे, मन भर खाए. दावत में जो पहले पहुँचता है उसे हमेशा लाभ होता है. इंग्लिश में कहते हैं -Early bird catches the worm. या First come first served.

पहले पिए जोगी, बीच में भोगी, पीछे रोगी. योगी लोग खाना खाने के पहले पानी पीते हैं और भोगी लोग बीच में. जो खाने के बाद पानी पीते हैं वे सदैव रोगी रहते हैं.

पहले पेट पूजा, फिर काम दूजा. बिना पेट भरे कोई काम ठीक से नहीं हो सकता.

पहले बो, पहले काट. खेती में जो पहले बोता है वह पहले फसल भी काटता है. पहले काम करने वाला हमेशा लाभ में रहता है.

पहले भात खवाय के पीछे मारी लात. पहले दिखावटी प्रेम दिखा के फिर अपमान करना.

पहले भोजन फिर स्नान, फिर टट्टी फिर सालिगराम. कायदे से हम पहले शौचादि से निवृत्त हो कर स्नान करते हैं, फिर भगवान की पूजा करते हैं और बाद में भोजन करते हैं. कहावत में आजकल की पीढ़ियों का जिक्र है जो सब काम उलटे करती हैं.

पहले मार पीछे संवार. मौका मिलने पर पहले ठुकाई कर दो और बाद में बात को संभाल लो.

पहले लिख ले पीछे दे, भूल पड़े कागज़ सूँ ले. किसी को रुपया पैसा या कोई चीज़ उधार देनी हो तो पहले लिख कर रखो उसके बाद दो. कभी भूल पड़े (आप स्वयं भूल जाओ या लेने वाला आनाकानी करे) तो यही लिखा हुआ काम आता है.

पहलो मूरख फांदे कुआँ, दूजो मूरख खेले जुआ, तीजो मूरख बहन घर भाई, चौथो मूरख घर जमाई. महा मूर्खों के चार प्रकार बताए गए हैं – पहला वह जो कुआँ फांदे (जरा सी चूक हुई और कुएँ में गया), दूसरा वह जो जुआ खेले (बर्बादी का पूरा प्रबंध), तीसरा वह जो विवाहित बहन के घर स्थायी रूप से रहे (उसकी कोई इज्ज़त नहीं होती) और चौथा वह जो घर जमाई बन कर ससुराल में रहे (घरेलू नौकर से भी बुरा हाल होता है).

पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी पहाड़ के काम नहीं आते. पहाड़ का पानी नीचे को बह जाता है और पहाड़ी युवक काम की तलाश में मैदानी इलाकों में चले जाते हैं.

पहाड़ दूर से ही सुहाने लगते हैं. जो लोग पहाड़ पर नहीं रहते उन्हें पहाड़ों पर जाना और घूमना बहुत अच्छा लगता है, पर जो लोग वहाँ रहते हैं उन्हें मालूम है कि पहाड़ का जीवन कितना कठिन है.

पहाड़ भले ही टले फ़क़ीर न टले. भिखारी आसानी से नहीं हटता, कुछ ले कर ही टलता है.

पहाड़ों से छाया नहीं होती. कहने को पहाड़ इतने बड़े होते हैं पर आप चाहें कि उन की छाया में खड़े हो जाएँ तो यह नहीं हो सकता. जो बड़ा आदमी किसी के काम न आता हो उस पर व्यंग्य.

पहिला गाहक, परमेसुर बराबर. दुकानदार प्रत्येक दिन के अपने पहले ग्राहक को बहुत शुभ मानते है.

पहिले जागे पहिले सोवे, जो वह चाहे वाही होवे. जो पहले सोता है और पहले जागता है वह सदैव सफल होता है. इंग्लिश में कहावत है – Early to bed and early to rise, makes a man healthy wealthy and wise.

पहिले दिन पहुना, दूसरे दिन ठेहुना, तीसरे दिन केहुना. इंग्लिश में कहावत है –Fish and guest, smell in three days.

पहिले भात, पीछे बात. पहले पेट भरेगा तभी कुछ बात समझ में आएगी.

पाँच पंच मिल कीजे काजा, हारे-जीते कुछ नहीं लाजा. बहुत से लोग मिल कर कोई काम करते हैं तो हानि लाभ की जिम्मेदारी किसी की नहीं होती.

पाँच पहर धंधे गया, तीन पहर गया सोय, एक पहर हरिनाम बिन, मुक्ति कैसे होय. दिन रात मिला कर आठ पहर (प्रहर) होते हैं. इन में से पांच पहर धंधे पानी में लगा दिए और तीन पहर सो गया. कुछ समय निकाल कर एक पहर तो अच्छे कामों में लगा, वरना मुक्ति कैसे होगी. 

पाँच भाई पाँच ठौर, मौका पड़े तो एक ठौर. आजकल के युग में सब भाइयों का एक ही घर में रहना तो संभव नहीं है पर समझदारी इस में है कि वे अलग अलग रहते हुए आवश्यकता होने पर एकजुट हो जाएं.

पाँच महीने ब्याह के बीते, पेट कहाँ से लाई. गर्भवती स्त्रियों का पेट छह माह के गर्भ के बाद बाहर निकला दिखाई देता है. किसी स्त्री के विवाह को पाँच महीने ही हुए हैं और उस का पेट निकला दिखाई दे रहा है तो अन्य स्त्रियाँ उस से पूछ रही हैं. किसी को नौकरी करते हुए साल दो साल ही हुआ हो और वह बहुत पैसा इकठ्ठा कर ले मजाक में यह कहावत कही जा सकती है.

पाँच साल की बाला का बेटा बारह साल का. असम्भव और हास्यास्पद बात.

पाँचों उँगलियों से पाहुंचा भारी. एकता में शक्ति है.

पाँचों उंगलियाँ एक सी नहीं होतीं. किसी घर में या समाज में सभी व्यक्ति एक से नहीं होते.

पाँचों पांडव छठे नारायण. 1. जो समूह भगवान् की प्रेरणा से कार्य करे. 2. व्यंग्य में – ये पांच पांडव क्या कम थे जो इन के गुरु घंटाल छठे नारायण और आ गए.

पांच कोस प्यादा रुके, दस कोस असवार, या तो नार कुभार्या, या नामर्द भतार. कहीं बाहर से घर लौट कर आने वाला व्यक्ति घर पहुँचने के लिए बहुत उतावला होता है. लेकिन अगर पैदल चल कर घर लौटने वाला व्यक्ति (प्यादा) शाम होने के कारण घर से पांच कोस पहले ही रुक जाए, और घोड़े पर सवार हो कर आने वाला यदि दस कोस पहले रुक जाए तो इसका अर्थ यह है कि या तो पत्नी में या पति में कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है.

पांच में तीन उठाऊं और दो में हिस्सा लूँ. कोई व्यक्ति हिस्से बांटे में दबंगई कर के ज्यादा हिस्सा हड़पना चाहता हो तो यह कहावत कही जाती है. 

पांच रुपया शंकर और पच्चीस रूपये नंदी को. उलटी बात. कोई बड़े अफसर को कम रिश्वत दे और उसके मातहत को बहुत अधिक तो यह कहावत कही जाएगी.

पांचो उँगलियाँ घी में. अत्यधिक लाभ की स्थिति. घी के डब्बे में से कम घी निकालने के लिए एक उंगली से घी निकाला जाता है. अगर कोई पाँचों उंगलियाँ डाल कर घी निकाल रहा हो तो इसका मतलब हुआ कि वह बहुत सम्पन्न है. किसी की सम्पन्नता देख कर कोई व्यक्ति ईर्ष्यावश उस से कहता है कि भई तुम्हारी तो पाँचों उँगलियाँ घी में हैं, तो वह जवाब में कहता है – हाँ भई पाँचों उँगलियाँ घी में, सर कढ़ाई में और पैर चूल्हे में हैं (क्योंकि कि उसे धन कमाने के लिए बहुत कष्ट उठाने पड़ते हैं).

पांड़े के घर की बिल्ली भी भगतिन. 1. घर के संस्कारों का असर सभी सदस्यों पर पड़ता है. 2. कपटी पंडित और उसके धूर्त चेलों पर व्यंग्य. 

पांडे जी पछताएंगे, वोई चने की खाएंगे (सूखे चने चबाएंगे). कहावत इस आशय में कही जाती है किशुरू में आप कितने भी नखरे करें अंत में मजबूर हो कर आप को यही काम करना पड़ेगा.

पांत में दो भांत कैसी. भोजन करने के लिए पंगत बैठी है तो दो तरह की पंगत क्यों बनाई गई हैं? ऊँच नीच और जात पांत का विरोध करने के लिए.

पांत, कचहरी, रेल में सबसे पहले जाए, जो न माने बात यह सो पाछे पछताए. पांत – पंगत (भोज). खाने की दावत, कचहरी के काम और रेल में चढ़ने के लिए सबसे पहले जाना चाहिए. 

पाऊँ तो रस लाऊँ, नाहीं तो घर-घर आगी लगाऊँ. फलां चीज़ मुझे मिल जाएगी तो खुश होऊंगा, नहीं मिलेगी तो घर घर आग लगाऊंगा.

पाक रह, बेबाक रह. पाप से दूर रह कर पवित्र मन से काम कीजिए तो आप निडर हो कर काम कर सकते हैं.

पके आम का क्या ठीक, कब टपक जाए.  अधिक वृद्ध और बीमार लोगों के लिए ऐसे बोलते हैं.

पागल और सांड के लिए रास्ता छोड़ देना चाहिए. कहावत के द्वारा यह सीख दी गई है कि पागल और सांड से नहीं उलझना चाहिए.

पादें कम कांखें ज्यादा (हगें कम, कांखें ज्यादा).  जो लोग काम कम करते हैं शोर ज्यादा मचाते हैं. कांखना – जोर लगाना.

पान पीक सोहे अधर, काजर नैनन जोग. पान की पीक होठों पर ही अच्छी लगती है और काजल आँखों में ही. हर वस्तु अपनी जगह पर ही अच्छी लगती है. 

पान सड़ा क्यों, घोड़ा अड़ा क्यों, फेरा न था. (यह अमीर खुसरो की एक विशेष प्रकार की पहेली नुमा कहावत है जिसमें दो प्रश्नों का एक ही उत्तर होता है). पान को लम्बे समय तक रखना हो तो उसे बार बार उलट पलट कर रखना होता है. इसे पान को फेरना कहते हैं. घोड़े की थकान दूर करने के लिए मिटटी का बना एक खुरदुरा खरहरा घोड़े के ऊपर फेरा जाता है, इससे घोड़े को बड़ा आराम मिलता है. 

पान सड़े, घोड़ो अड़े, विद्या बीसर जाए, रोटी जले अंगार पर, कहु चेला किन दाय, गुरु जी फेरा न था. ऊपर वाली कहावत में दो बातें और जोड़ दी गई हैं – विद्या क्यों बिसरी (भूली), क्योंकि फेरी नहीं थी (दोबारा नहीं पढ़ी) और रोटी क्यों जली. क्योंकि एक तरफ सिकने के बाद फेरी (पलटी) नहीं थी.

पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात, देखत ही छिप जाएगा, ज्यों तारा परभात. मनुष्य देह पानी के बुलबुले के समान क्षण भंगुर है.

पानी था सो निकल गया, अब क्या बांधे पाल. वर्षा के पानी को इकट्ठा करने के लिए पाल बांधते हैं. पानी बह जाने के बाद पाल बाँधने से कोई लाभ नहीं होगा. अवसर चूक जाने के बाद प्रयास क्यों कर रहे हो.

पानी पी कर क्या जात पूछना (पानी पी घर पूछनो नाही भलो विचार). अपने स्वार्थ के लिए कुछ भी करना और बाद में भला बुरा विचारना. पहले के जमाने में लोग छुआछूत को बहुत मानते थे. तब उच्च जाति के लोग नीची जाति वाले के हाथ का छुआ हुआ पानी नहीं पीते थे. एक महात्मा जी एक बार प्यास से मर रहे थे, किसी ने उन्हें पानी दिया जो उन्होंने तुरन्त गटागट पी लिया. पानी पी कर पूछते हैं भैया कौन जात हो?

पानी पीकर मूत तोले. बहुत अधिक स्यानपन दिखानेवाले के लिए. वैसे आजकल गुर्दे की बीमारी में ऐसा करना पड़ता है.

पानी पीजे, चार महीने डाल का, चार महीने पाल का, चार महीने ताल का. डाल का और पाल का ये शब्द आम तौर पर फलों के लिए प्रयोग करते हैं. डाल का फल अर्थात तुरंत का तोड़ा हुआ, पाल का मतलब रख कर पकाया हुआ. पानी के लिए कहा गया है कि चैत, बैशाख, जेठ और अषाढ़ घड़े का पानी पीजिए (पाल का). सावन, भादों, क्वार, कार्तिक नल का पानी पीजिए (डाल का) और बाकी चार महीने कुएँ या तालाब का पानी पीजिए (ताल का).

पानी पीये छानकर और जीव मारे जानकर. ढोंगी महात्माओं के लिए.

पानी बाढ़े नाव में, घर में बाढ़े दाम, दोनों हाथ उलीचिए, यही सयानो काम. यदि आप नाव में जा रहे हैं और उस में पानी भरने लगे तो तुरन्त दोनों हाथों से उसे उलीचना (बाहर फेंकना) आरम्भ कर दीजिए (वरना पानी भरने से नाव डूब जाएगी), इसी प्रकार यदि घर में आवश्यकता से अधिक धन इकट्ठा होने लगे तो उसे दान करना शुरू कर दीजिए.

पानी मथे घी नहीं निकलता. बिना उचित साधनों के कोई कार्य सिद्ध नहीं होता. घी दही को मथने से निकलता है, पानी को मथने से नहीं.

पानी में आग लगाय लुगाई. स्त्रियाँ कहीं भी झगड़ा करा सकती हैं.

पानी में घुस कर कोई सूखा नहीं निकल सकता. इस संसार रूपी भवसागर में कोई व्यक्ति बिल्कुल निश्छल, निष्कपट, निष्पाप हो कर नहीं रह सकता.

पानी में पखान, भीगे पर छीजे नहीं, मूरख के आगे ज्ञान, रीझे पर बूझे नही. पखान – पाषाण (पत्थर). पानी में पत्थर भीगता तो है पर गलता नही है. मूर्ख के आगे ज्ञान की बात करोगे तो वह खुश तो होगा, पर समझेगा कुछ नही. 

पानी में पादोगे तो बुलबुले तो उठेंगे ही. कोई गलत काम कितना भी छिप कर करो तो भी औरों को दिखाई दे जाएगा. (भाषा में थोड़ी अभद्रता है पर बात सही है).

पानी में मछली के नौ नौ हिस्सा. मछली अभी पकड़ी भी नहीं है (अभी पानी में ही है) और उस के हिस्से बांटे किए जा रहे हैं. काम पूरा होने से पहले ही लाभ के लिए झगड़ना.

पानी में मीन पियासी, मोहे देखत आवे हांसी. सब प्रकार की सुविधाओं के बीच रहते हुए भी मनुष्य की लालसा कम नहीं होती.

पानी में हगा ऊपर आता है. कोई गलत काम छिप कर किया जाए तब भी अंततः सामने आ जाता है. भोजपुरी कहावत – भइंस पानी में हगी त उतरइबे करी.

पाप का घड़ा कभी न कभी फूटता ही है. कोई अत्याचारी, अनाचारी कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो उसका अंत अवश्य होता है.

पाप का घड़ा डूब कर रहता है. (पाप का घड़ा भर कर डूबता है). ऊपर वाली कहावत के समान.

पाप का धन, अकारथ जाए. पाप की कमाई अंततः व्यर्थ ही जाती है.

पाप का बाप लोभ. लोभ से पाप पैदा होता है. लालच ही इंसान को पाप करने के लिए प्रेरित करता है. 

पाप की कमाई, कुत्ते-बिल्लियों ने खाई. पाप कर के कमाया हुआ धन अंतत: बर्बाद ही हो जाता है. 

पाप छिपाए न छिपे, जस लहसुन की बास. जैसे लहसुन की गंध छिपाए नहीं छिपती वैसे ही पाप भी नहीं छिपता.

पाप डुबोवे धरम तिरावे, धरमी कभी नहीं दुःख पावे. पाप मनुष्य को डुबोता है जबकि धर्म मनुष्य को डूबने से बचाता है. धर्म पर चलने वाला अंततः सुख पाता अवश्य है.

पाप मूल निंदा. किसी की निंदा करना पाप की जड़ है.

पापियों के मारने को पाप महाबली. पापी व्यक्ति अंततः अपने पापों के कारण ही मारा जाता है.

पापी की नाव, भर कर डूबे. पाप कर्म द्वारा जो सम्पत्ति कमाई जाती है वह अंततः डूब जाती है.

पापी के मन में पाप ही बसे. अर्थ स्पष्ट है.

पापी को माल अकारथ जाए, दंड भरे या चोर लै जाए. पाप की कमाई व्यर्थ जाती है. दंड भरने में जाती है या चोर ले जाते हैं.

पार कहें सो आर है आर कहें सो पार, पकड़ किनारा बैठ रह यही पार यहि आर. नदी के किनारे बैठा आदमी अपने किनारे को आर कहता है और दूसरे किनारे को पार. दूसरी तरफ बैठा बंदा उस किनारे को आर कहता है और इस किनारे को पार. व्यर्थ के मोहजाल में मत उलझो. कोई एक किनारा पकड़ कर बैठ जाओ, यही आर है और यही पार. 

पारसनाथ से चक्की भली जो आटा देवे पीस, कूढ़ नर से मुर्गी भली जो अंडा देवे बीस. पारसनाथ – जैन धर्मावलम्बियों का तीर्थस्थल पारसनाथ पर्वत जो झारखंड में स्थित है. कहावत में कहा गया है कि किसी पवित्र पर्वत के मुकाबले साधारण चक्की अधिक अच्छी है जो आटा पीस देती है. इसी प्रकार किसी बेकार के मनुष्य के मुकाबले मुरगी अधिक अच्छी है जो अंडे देती है. जैन धर्म का मजाक उड़ाने के लिए किसी ने ऐसा कहा है.

पाव की हंडिया में सेर नहीं समाता. छोटे आदमी की बुद्धि में बड़ी बात नहीं समा सकती. छोटी मानसिकता वाले व्यक्ति से किसी बड़े काम की आशा नहीं की जा सकती.

पाव भरी की देवी और नौ पाव पूजा. देवी छोटी सी हैं और पूजा की सामग्री बहुत सारी है. किसी अपात्र का बहुत अधिक सत्कार करने पर.

पावक, बैरी, रोग, रिन सेस राखिए नाहिं, जे थोड़े हूँ बढ़त पुनि बड़े जतन सों जाहिं. (बुन्देलखंडी कहावत) आग, शत्रु और ऋण, इनको बिल्कुल समाप्त कर के छोड़ना चाहिए. ये थोड़े से भी बच जाएँ तो पुनः विकराल रूप धारण कर लेते हैं और फिर बड़ी कठिनाई से जाते हैं. 

पावस देखि रहीम मन, कोइल साधे मौन, अब दादुर बक्‍ता भए, हमको पूछत कौन. वर्षा ऋतु में कोयल चुप हो जाती है. वह सोचती है कि अब तो मेंढक बोल रहे हैं, उसे कौन पूछेगा. मूर्खों की भीड़ में कोई बुद्धिमान व्यक्ति बोलना पसंद नहीं करता.

पास का कुत्ता न दूर का भाई. दूर रहने वाले भाई के मुकाबले पास रहने वाला कुत्ता अधिक मददगार होता है.

पास की ससुरार, रात दिना की रार. ससुराल अगर बहुत पास में हो तो रोज कोई न कोई लफड़ा होता है, इसलिए ससुराल के पास नहीं रहना चाहिए. 

पास जल सो जल, बांह बल सो बल. जो पानी हमारे आसपास उपलब्ध हो वही हमारे काम का है, जो बल हमारी बाहों में है वही हमारे काम का है.

पासा पड़े अनाड़ी जीते. भाग्य साथ दे तो अनाड़ी व्यक्ति भी कामयाब हो जाता है.

पासा पड़े सो दांव, राजा करे सो न्याव. पासा जो भी पड़ा वही आपका दांव माना जाएगा, उसे आप बदल नहीं सकते. राजा जो कह दे वही न्याय माना जाएगा, उसे कोई बदल नहीं सकता. 

पासों का सबसे अच्छा फेंकना यही है कि उनको फेंक ही दें. चौपड़ का खेल बर्बादी का पूरा इंतजाम है. उसमें पासे फेंक कर चाल चली जाती है. सयाने लोगों का कहना है पासे फेंकना है तो घर से बाहर फेंक दो वही सबसे अच्छी चाल है. 

पाहन में कौ मारबो, चोखा तीर नसाय. पत्थर में मार कर अच्छा ख़ासा तीर क्यों खराब कर रहे हो. पाहन – पाषाण, पत्थर. चोखा – अच्छा, नसाय – नष्ट कर रहे हो. कोई आदमी किसी निष्ठुर व्यक्ति से सहायता प्राप्त करने की कोशिश में अपना समय नष्ट करे तो. (या विद्वान व्यक्ति किसी मूर्ख को समझाने की कोशिश कर रहा हो तो)

पाहुने जीमते जाते हैं, रांडें रोती जाती हैं. वैसे तो रांड शब्द का अर्थ विधवा स्त्री होता है, पर कहावतों में कई स्थानों पर इस का प्रयोग धूर्त स्त्री के अर्थ में करते हैं. कहीं कोई शुभ कार्य होता देख कर धूर्त लोगों को कष्ट हो रहा हो तो यह कहावत कही जाती है. 

पाहुनों से वंश नहीं चलता. किसी के घर में मेहमानों का जमघट लगा रहता हो पर उसकी अपनी कोई सन्तान न हो तो उस का वंश नहीं चल सकता. कोई व्यक्ति दुनियादारी में लगा रहे और अपने परिवार पर ध्यान न दे उसके लिए.

पिए भैंस का दूध, रहे ऊत का ऊत. भैंस का दूध पीने से अक्ल मोटी हो जाती है (गाय का दूध पीने से बुद्धि तीव्र होती है).

पिए रुधिर पय न पिए, लगी पयोधर जोंक. जोंक यदि स्तन में लग जाए तो भी रक्त ही पीती है दूध नहीं. दुष्ट व्यक्ति को अच्छे परिवेश में रखो तब भी दुष्टता ही करता है.

पिछली रोटी खाय, पिछली मति पाय. ऐसा विश्वास है कि आखिरी रोटी खाने से बुद्धि कम हो जाती है.

पिछले गाँवों पिटकर आये, अगले गाँव में सिद्ध. धूर्त साधुओं के लिए.

पिटा हुआ और जीमा हुआ भूलता नहीं. किसी के घर से पिट के आए हों तो नहीं भूल सकते और कहीं भरपेट स्वादिष्ट भोजन मिला हो तो नहीं भूल सकते.

पितरन को पानी बामन को दान, आए दरवाजे को सदा रक्खें माने. पितरों को पानी देना, ब्राह्मण को दान देना और अतिथि को सम्मान देना सब का कर्तव्य है.  

पितृ मुखी कन्या सुखी. जिस कन्या का चेहरा पिता से मिलता है वह सुखी रहती है.

पिय वियोग सम दुख जग नाहीं. किसी भी स्त्री के लिए पति के वियोग जैसा कोई दुख नहीं है.

पिया आगे राज, पीछे चलनी न छाज. विधवा स्त्री का कथन, पति के सामने तो मैंने राज किया और अब चलनी और सूप जैसी छोटी छोटी चीजों के लिए मुहताज हूँ.

पिया गए परदेश, अब डर काहे का. पति बाहर गए हों तो स्त्रियाँ निरंकुश हो जाती हैं. यह पुराने जमाने की कहावत है, अब स्त्रियाँ मैके जाती हैं तो पति निरंकुश हो जाते हैं.

पिया बिना कैसा त्यौहार. पति परदेश में हो तो सुहागिन को कोई त्यौहात अच्छा नहीं लगता.

पिया मोरा आंधर (अंधा), मैं का पर करूं सिंगार. मेरा पति अंधा है मैं श्रृंगार किस के लिए करूँ. जहाँ आपकी योग्यता का कोई कद्रदान न हो वहाँ योग्यता किस को दिखाएँ.

पिसनहारी को पूत, जो चबा ले सो लाभ (पिसनहारी के पूत को चना लाभ ही बहुत है). पिसनहारी – अनाज पीसने वाली. पिसनहारी वहाँ से कुछ ले तो नहीं जा सकती. उस का लड़का वहाँ बैठ कर जितना चबा ले वही उसके लिए बहुत बड़ा लाभ है. छोटे आदमी के लिए छोटे छोटे लाभ भी बहुत मायने  रखते हैं.

पीठ की मार मारे, पेट की न मारे. किसी ने गलती की हो तो उस को दंड कितना भी दे दो पर उस की रोजी रोटी मत छीनो.

पीठ देख कर ही नजर लगे. 1.अत्यंत सुंदर व्यक्ति. 2.अत्यंत भद्दे व्यक्ति पर व्यंग्य.

पीठ पर मैल जम ही जाती है. शाब्दिक अर्थ तो स्पष्ट है, भावार्थ यह है कि जो स्थान हमारी देख रेख और कार्य क्षेत्र से दूर हो वहाँ गंदगी इकट्ठी हो जाती है.

पीठ पीछे की छींक, संका ते मत झींक. यदि आपकी पीठ के पीछे कोई छींके तो यह अपशकुन नहीं माना जाता.

पीतल की अँगूठी सोने का टांका, माँ छिनाल पूत बांका. किसी चरित्रहीन स्त्री का पुत्र बहुत बना ठना घूम रहा हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए. 

पीतल, कांसा, लौह में पड़े जंग चढ़ जाए, जलधर आवे दौड़ता, इस में संसै नाय. अगर घर में पड़े पीतल, कांसा या लोहे में जंग लग जाए तो इस का अर्थ है कि वर्षा होने वाली है. (जलधर – बादल)

पीताम्‍बर ओच्‍छा भला, साबत भला न टाट, और जात शत्रु भली, मित्र भला न जाट. पीला कपड़ा घटिया वाला हो तो भी टाट से अच्छा है. इसी प्रकार दूसरी जातियों के दुश्मन भी जाट दोस्त से बेहतर हैं. (जाट से दोस्ती खतरनाक है).

पीपर तले हाँ करे, कीकर तले नट जाए. पल पल में बात बदलने वाला आदमी जो अभी हाँ करे और अभी मुकर जाए.

पीपल पूजन मैं गई अपने कुल की लाज, पीपल पूजत हरि मिले एक पंथ दो काज. एक काम करने से दो लाभ होना.

पीर की सगाई पीर के घर. विवाह इत्यादि सम्बन्ध अपनी बराबरी वालों में ही करना चाहिए.

पीर को न शहीद को, पहले नकटे देव को. योग्य और पूज्य लोगों से पहले ओछे ओर बेशर्म आदमी को पूछना चाहिए, क्योंकि वह रायता फैला सकता है. 

पीर जी की सगाई, मीर जी के यहाँ. दोस्ती, दुश्मनी, व्यापार,विवाह इत्यादि अपनी बराबरी वालों में ही करना चाहिए

पीला पीला सब सोना नहीं होता. ऊपरी दिखावे से जो चीज़ उत्तम प्रतीत होती है वह जरूरी नहीं कि वास्तव में उत्तम हो. इंग्लिश में कहते हैं – All that glitters is not gold.

पीसे हुए को क्या पीसना. जो सताया हुआ हो उसे क्या सताना.

पुचकारा कुत्ता सर चढ़े. कुत्ते को अधिक लाड़ करो तो वह सर पर चढ़ने लगता है. अपात्र को अधिक सुविधाएं दो तो वह उनका गलत लाभ उठाता है.

पुजारी की पगड़ी, नामर्द की जोय, कायर की तलवार, पड़ी पुरानी होय. ये चीजें बिना उपयोग के व्यर्थ हो जाती हैं.

पुजारी की पगड़ी, सिपाही की जोय, जुलाहे की जूती, पड़ी पुरानी होय. पुजारी अधिकतर समय पूजा पाठ के कारण पगड़ी नहीं पहनता, सिपाही ड्यूटी पर तैनात रहता है या युद्ध में मारा जाता है इस कारण वह पत्नी साथ समय नहीं बिता पाता, जुलाहा दिन रात बैठ कर काम करता है इसलिए जूती नहीं पहनता.

पुड़किया बाज से कैसे जीत सकती है. पुड़किया – कबूतर की जाति का एक छोटा पक्षी. अर्थ स्पष्ट है.

पुन्य करत होत यदि हानि, तऊ न छाड़िए पुन्य की बानि. पुन्य (किसी का भला) करने में यदि अपना कुछ नुकसान भी हो जाए तब भी पुन्य करने की आदत नहीं छोड़नी चाहिए.

पुन्य की जड़ सदा हरी. पुन्य (परोपकार) करने वाले व्यक्ति की सदा उन्नति होती है.

पुराना ठीकरा और कलई की भड़क. बुढापे में ज्यादा रंग रोगन लगा कर जवान दिखने की कोशिश. ठीकरा – टूटे हुए बर्तन का टुकड़ा.

पुराना पंसारी, नया बजाज. पुराने पंसारी को बहुत सी वस्तुओं के विषय में अधिक जानकारी होती है इसलिए वह अधिक योग्य माना जाता है, नए बजाज को नए फैशन और स्टाइल के विषय में अधिक जानकारी होती है इसलिए नया बजाज अधिक अच्छा माना जाता है.

पुराना वैद्य और नया ज्योतिषी अच्छा होता है. वैद्य पुराना अच्छा होता है क्योंकि जैसे जैसे वह पुराना होता जाता है उस का अनुभव बढ़ता जाता है, जबकि ज्योतिषी नया अच्छा होता है क्योंकि वह नए ज्योतिष शास्त्र की नई बातें सीख कर आता है.

पुरुष के दुख और पशु की भूख का कुछ पता नहीं चलता. ये अपनी परेशानी कहना नहीं जानते.

पुरुष पुरातन की वधू क्यों न चंचला होए. लक्ष्मी जी भगवान विष्णु की पत्नी हैं जोकि सृष्टि के सबसे पुरातन पुरुष हैं. शायद इसी लिए वह इतनी चंचल हैं. (लक्ष्मी अर्थात धन सम्पदा कभी किसी के पास ठहरती नहीं है इसलिए उन्हें चंचला कहा गया है).

पुरुष बिचारा क्या करे जिस घर नार कुनार, वो सीमे दो आंगुली, वो फाड़े गज चार. जिस घर में गृहणी दुष्ट स्वभाव की हो उस घर को अकेला पुरुष नहीं संभाल सकता. वह दो उँगली सी कर चुकता है तब तक वह दो गज और फाड़ देती है, अर्थात वह थोड़ी बहुत बात सम्भालता है तब तक वह बात को और बिगाड़ देती है. 

पुल पार करने के लिए होता हैघर बनाने के लिए नहीं. जो चीज़ समाज के उपयोग की होती है उस पर किसी को कब्ज़ा नहीं ज़माना चाहिए.

पुश्तों बाद कबूतर पाले, आधे गोरे आधे काले. किसी खानदान में कभी किसी ने कोई कायदे का काम न किया हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.

पूंछकटा हर वक्त लड़ने को तैयार. जिस कुत्ते की पूंछ कटी हो तो वह हर समय लड़ने को तैयार रहता है. जिस आदमी की कोई इज्ज़त न हो उस के लिए.

पूंजी से पूंजी उपजे. व्यापार में पूँजी लगाने से ही और पूँजी पैदा होती है. इंग्लिश में कहा गया है – Money begets money.

पूछता नर पंडिता. (जो पूछे सो पंडित). औरों से पूछ पूछ कर ज्ञान प्राप्त करने वाला व्यक्ति पंडित बन जाता है. इंग्लिश में कहावत है – Curiosity is the mother of knowledge.

पूछी खेत की बताई खलिहान की (पूछी जमीन की, बताई आसमान की). कुछ का कुछ जवाब देना.

पूछी न काछी, मैं दुल्हन की चाची. जबरदस्ती किसी से रिश्ता जोड़ना. मान न मान मैं तेरा मेहमान.

पूजनीय गुण ते पुरुष, वयस न पूजित होए. पुरुष अपन गुणों से पूजा जाता है न कि अधिक आयु से.

पूड़ी न पापड़ी, पटाक बहू आ पड़ी. कहीं पर बिना किसी समारोह और दावत के कोई बड़ा काम (विवाह, बच्चे का जन्म आदि) हो जाए तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.

पूत कपूत सुने बहुतेरे, मां न सुनी कुमाता. ऐसे बहुत से नालायक पुत्र हो सकते हैं जो अपनी माँ का ध्यान न रखें पर ऐसी माँ कोई नहीं होती जो अपने पुत्र का ध्यान न रखे.

पूत कमावे चार पहर, ब्याज कमावे आठ पहर. आदमी तो चार प्रहर काम कर के ही पैसा कमा सकता है पर ब्याज पर लगा पैसा आठों प्रहर पैसा कमाता है.

पूत का मूत प्रयाग का पानी. कोई कम उम्र की बहू पहली बार मां बनी तो बच्चे की टट्टी पेशाब से घिनिया रही थी तो उसकी मां या सास ने उसको समझाने के लिए यह कहावत कही. कुछ पुरानी महिलाओं जो लड़की पैदा होने को बुरा समझती हैं, वे इस कहावत के आगे ये भी बोलती हैं – धी का मूत नरक की निशानी.धी – बेटी.

पूत की जात को सौ जोखें. पुत्रों का शुरू से ही बहुत ध्यान रखा जाता है लेकिन तब भी उनको पालने में ज्यादा परेशानियाँ आती हैं, लड़कियां बेचारी बेकद्री का शिकार हो कर भी आसानी से पल जाती हैं.

पूत के पाँव पालने में ही पहचान लिए जाते हैं. बच्चे के आरम्भिक लक्षण देख कर ही इस बात का अंदाज़ लग जाता है कि वह होनहार है.

पूत के लक्षण पालने और बहू के लक्षण द्वार. पूत के लक्षण पालने में पहचान लिए जाते हैं यह तो सब जानते ही हैं, बहू के लक्षण तब ही पहचान लिए जाते हैं जब वह घर में प्रवेश करती है. 

पूत तो गाय का और पूत किसका, राजा तो मेघराज और राज किसका. गाय का पूत – बैल, मेघराज – बादल. जब खेती बैलों से होती थी और वर्षा पर निर्भर थी तब किसान के लिए बैल और बादलों की बहुत कीमत थी.

पूत न माने अपनी डांट, भाई लड़े कहे नित बाँट, तिरिया करकस कलही होय, नियरे बसें दुष्ट सब कोय, मालिक नाहीं करें विचार, सबै कहें ये विपत अपार. (बुन्देलखंडी कहावत)पाँच सबसे बड़े कष्ट इस प्रकार हैं – पुत्र आपकी डांट न माने, भाई सम्पत्ति बाँटने के लिए लड़े, स्त्री कर्कशा हो, आस पास दुष्ट लोग बसें और मालिक आपकी परेशानी को न समझे.

पूत भए सयाने, दुःख भए बिराने. पुत्र सयाने हो जाते हैं तो आदमी के दुःख दूर हो जाते हैं.

पूत भी प्यारा भतार भी प्यारा, किसकी सौगंध खाऊं. किसी के सर की कसम खाने में यदि कसम पूरी न हुई तो उस की जान को खतरा होता है. पुत्र और पति दोनों प्यारे हैं, किसकी कसम खाऊं. असमंजस की स्थिति. 

पूत मांगे गई, भतार खो आई. पुत्र की कामना में कुछ ऐसी अनहोनी हो गई कि पति से हाथ धो बैठी.

पूत मांगे गई, भतार लेती आई. ऐसी स्त्रियों पर व्यंग्य जो पुत्र की कामना में दुराचारी पीर फकीरों की वासना का शिकार हो जाती हैं.

पूत सपूत तो क्यों धन संचै, पूत कपूत तो क्यों धन संचै. पहले के जमाने के लोग पैसा जोड़ने को बुरा समझते थे. तब ऐसा माना जाता था यदि व्यक्ति की आमदनी अच्छी हो तो उसे पैसा इकठ्ठा करने की बजाए सामाजिक कार्य में लगाना चाहिए. तर्क यह होता था कि बेटा अगर लायक है तो भी धन संचय मत करो क्योंकि वह बुढ़ापे में आपको सहारा देगा ही और अगर बेटा नालायक है तो भी धन संचय मत करो क्योंकि वह सब उड़ा देगा. हमारे विचार से आज के युग में इस को उल्टा करके बोलना चाहिए. पूत सपूत तो भी धन संचय, पूत कपूत तो भी धन संचय. बेटा अगर होनहार है तो उसे उच्च शिक्षा या व्यापार के लिए धन चाहिए होगा और अगर नालायक है तो आपको अपना बुढ़ापा इज्जत से काटने के लिए धन चाहिए होगा.

पूता कारज करियो सोई, जामें हंडिया खुदबुद होई. सयाने लोग बच्चों को समझाते हैं कि काम वही करो जिससे घर में खाने पीने का प्रबंध हो सके (रोजी रोटी चल सके).

पूतों का क्या बुरा, बुरे वो जिन के पूत न हों. संतान को पालने में यदि कोई लोग परेशानी महसूस करते हैं तो बड़े बूढ़े उनको यह समझाते हैं.

पूरब का बरधा, दक्खिन का चीर, पच्छिम का घोड़ा, उत्तर का नीर. दशहरे की पूजा में बनियों के प्रतिष्ठानों में बही खाते बदले जाते हैं और उस दिन का मुख्य वस्तुओं का भाव लिखा जाता है. इस के साथ क्या चीज़ कहाँ की अच्छी होती है यह भी लिखा जाता है. उसी क्रम में उपरोक्त कहावत लिखी जाती है. 

पूरब के चाँद पश्चिम चले जाइहैं, धी के दुलार बहू नहीं पाइहैं. चाहे दुनिया इधर से उधर हो जाए, जो प्यार लड़की को दिया जाता है वह बहू नहीं पा सकती.

पूरा आसमान फटा है, थेगली कहाँ तक लगाऊं. थेगली – पैबंद. बहुत बड़ी गड़बड़ हो तो उस पर लीपा पोती नहीं की जा सकती. 

पूरा तोल चाहे महंगा बेच. दुकानदार को हमेशा पूरा तोलना चाहिए चाहे सामान की कीमत औरों से कुछ अधिक ही क्यों न रखनी पड़े.

पूरे घर में एक घाघरा, पहले उठे सो पहने. घोर अभाव की स्थिति. वस्तुएं कम हैं और उपभोक्ता अधिक हैं, जो पहले पहुंचेगा वह पाएगा.

पूस न बइए, पीस खइए. पूस में गेहूँ बोने से फसल होने की सम्भावना कम है. इस से अच्छा तो उसे पीस कर खा लो. बइये – बोइये. 

पेट काटे धन न जुड़े. जो गरीब व्यक्ति इतना कम धन कमा पा रहा हो कि केवल अपने परिवार का पेट भर सके वह धन नहीं जोड़ सकता. यदि वह भरपेट खाना नहीं खाएगा तो काम कैसे करेगा. पेट काटना – आवश्यकता से कम भोजन करना. 

पेट की आग बुझते बुझते ही बुझती है. 1.तेज भूख लगी हो तो धीरे-धीरे ही शांत होती है 2.यदि स्त्री के पेट का जाया बच्चा ना रहे तो उसका दुख धीरे-धीरे ही भूलता है

पेट के आगे सब हेठ. सारे रिश्ते नाते, आदर्श और नैतिकता तभी अच्छे लगते हैं जब पेट भरा हो.

पेट खाली ईमान खाली. आदमी भूखा हो तो ईमानदारी से काम नहीं कर सकता, पेट भरने के लिए कुछ न कुछ बेईमानी जरूर करेगा.

पेट घुसे तो भेद मिले. किसी से मित्रता बढ़ा कर और अंतरंगता स्थापित कर के ही उस के मन का भेद लिया जा सकता है.

पेट जो चाहे करावे. पेट की आग आदमी से सब प्रकार के गलत काम कराती है. संस्कृत में कहा गया है – बुभुक्षितः किं न करोति पापं.

पेट नरम, पैर गरम, सर ठंडा, जो आवे वैद तो मारो डंडा. पुराने जमाने में जब बहुत थोड़ी सी ही बीमारियां हुआ करती थी तो लोग यह मानते थे कि सर गर्म होना बुखार का लक्षण है, पेट का कड़ा होना या फूलना पेट की बीमारी का लक्षण है और पैर ठंडे होना किसी गंभीर बीमारी का लक्षण है. अगर किसी का पेट नरम है, पैर गर्म हैं और सर ठंडा है तो उसे कोई बीमारी नहीं है. ऐसे में यदि वैद्य देखने आए तो उसे डंडा मारकर भगा दो. इस कहावत से दो बात समझ में आती हैं एक तो यह कि रोजमर्रा में होने वाली छोटी मोटी बीमारियों के यही तीन मुख्य लक्षण होते थे और  दूसरी यह कि उस जमाने में भी ऐसे वैद्य होते होंगे जो झूठी मूठी बीमारी बताकर लोगों को बेवकूफ बनाते होंगे. कुछ कुछ इस आशय की इंग्लिश में एक कहावत है – Keep your feet warm and your head cool, then you may call your doctor a fool.

पेट पालना कुत्ता भी जानता है. मनुष्य का जन्म मिला है तो केवल पेट के बारे में ही मत सोचो, इस से ऊपर उठ कर धर्म और समाज के विषय में भी कुछ सोचो. पेट तो कुत्ता भी भर लेता है. 

पेट बुरी बला है. भूख आदमी से सारे पाप कराती है.

पेट भर और पीठ लाद (पेट भेट, काज समेट). यदि किसी आदमी से भरपूर काम लेना है तो पहले उसका पेट भरो.

पेट भरा जानो तब, कुत्ता कौरा पावे जब. भोजन पूरा हुआ तब मानना चाहिए जब कुत्ते को भी रोटी दे दी जाए. प्राणी मात्र पर दया करने वाली सनातन संस्कृति का यही आदर्श है.

पेट भरा, नीयत नहीं भरी. यह तो मनुष्य की मूलभूत कमजोरी है कि पेट भरने के बाद भी नीयत नहीं भरती.

पेट भरे के खोटे चाले. 1. पेट भरा हो तो आदमी को खुराफात सूझती है. 2. पेट भरा हो तो आदमी काम नहीं करना चाहता.

पेट भरे नीच और भूखे भलमानस से डरिये. नीच आदमी का पेट भरा हो तो उसे बदमाशी सूझती है. भलामानस भूखा हो तो मजबूरी में कुछ भी कर सकता है इसलिए इन से डरना चाहिए.

पेट भरे पर सौ मस्ती सूझे (पेट में पड़ा चारा तो कूदन लगे विचारा). जब तक इंसान का पेट नहीं भरता उसको इसी की चिंता रहती है. एक बार पेट भर जाने के बाद उस का मन भांति भांति के आनंद पाने के लिए भटकने लगता है.

पेट भरे पे सब खाने को पूछते हैं. कुछ ऐसा संयोग होता है कि जब आपका पेट भरा हो तो आप जहाँ भी जाएं, सब आपसे खाने के लिए पूछते हैं. कभी भूखे घर से निकल जाएं तो कोई नहीं पूछेगा.

पेट भरे मन मोदक से कब. मन के लड्ड़ओं से भूख नहीं मिटती.

पेट भूखा भले ही रखे, पीठ भूखी कोई नहीं रखता. निर्दयी लोग जानवर या मजदूर को खाना देने में कंजूसी करते हैं पर माल लादने में कंजूसी नहीं करते.

पेट में आंत न मुंह में दांत. अत्यधिक बुढ़ापा, जरावस्था.

पेट में न रोटी तो सारी बातें खोटी. मनुष्य भूख से व्याकुल हो तो उसे ज्ञान और आदर्श की सारी बातें बेमानी लगती हैं.

पेट में पड़ गई रोटी तो फड़के बोटी बोटी. अर्थ स्पष्ट है. आमतौर पर बहुत छोटे बच्चों के लिए प्रयोग करते हैं जो दूध पीने के बाद हाथ पैर चलाने लगते हैं.

पेट में पाप और गोमुखी में जाप. मन में पाप भरा है ऊपर से भक्ति दिखाते हैं.

पेट से निकली, घर से न निकली. एक लड़की ससुराल में सताए जाने के कारण मायके में आ कर रह रही थी. उस की भाभी को यह बात बहुत नागवार गुजरती थी. एक दिन चिढ़ कर उसने अपनी ननद से कहा कि तू मां के पेट से तो निकली पर इस घर से न निकली.

पेट-पीठ के कारने सब जग नाचे नाच. पेट भरने के लिए ही सब तरह के काम करने पड़ते हैं. 

पेटवा चाकर, मुटवा घोड़, खाएं ज्यादा, काम करें थोड़. पेटू (ज्यादा खाने वाला) नौकर और मोटा घोड़ा, खाते अधिक हैं और काम कम करते हैं.

पेटू मरे पेट को, नामी मरे नाम को. जिसे केवल खाने का ही शौक है वह हर समय खाने की ही चिंता करता है, और जो नाम कमाना चाहता है वह केवल उसी विषय में सोचता रहता है.

पेड़ फल से जाना जाता है. पेड़ का अपना कोई नाम नहीं होता, वह अपने फल के द्वारा ही जाना जाता है – जैसे आम का पेड़, जामुन का पेड़ आदि. इसी प्रकार व्यक्ति भी अपने कार्यों के द्वारा जाना जाता है.

पेड़ में कटहल, होठों तेल. कटहल खाते समय होठों पर न चिपके इस के लिए कटहल खाने से पहले होठों पर तेल लगा लेते हैं. अगर कटहल पेड़ से तोड़ा ही नहीं गया है तो तेल लगाने की क्या जरूरत. बहुत जल्दबाजी मचाने वालों का मजाक उड़ाने के लिए यह कहावत कही जाती है. 

पैंठ लगी नहीं गिरहकट पहले आ गए. पैंठ – बाजार. कोई काम शुरू होने से पहले ही अवांछित लोगों का आ जाना.

पैदल और सवार का क्या साथ. मित्रता और सम्बन्ध अपने बराबर वालों से ही रखना चाहिए.

पैर उठाते ही छींक दिया. यात्रा शुरू करने से पहले कोई छींक दे दो इसे अपशकुन मानते हैं. कोई काम शुरू करते ही कोई अपशकुन कर दे तो यह कहावत कही जाती है. 

पैर का जूता पैर में ही ठीक रहता है (पैर की जूती पैर में ही अच्छी होती है). जो व्यक्ति जिस लायक हो उससे वैसा ही व्यवहार करना चाहिए. निम्न श्रेणी के व्यक्ति को दबा कर रखना ही ठीक रहता है.

पैर की पूजा हुई है, पीठ की नहीं. कोई माननीय रिश्तेदार (फूफा या दामाद आदि) बहुत दुष्टता करे तो.

पैर जलें तो जूती पहनो, धरती पर कालीन नहीं बिछेगी. आपकी व्यक्तिगत परेशान आपको स्वयं सुलझानी होगी, उसके लिए समाज में बदलाव नहीं लाया जाएगा.

पैर में से काँटा निकालो तो भी पीड़ा होती है. अपना कोई सगा सम्बंधी कितना भी निकृष्ट क्यों न हो उससे संबंध तोड़ने में कष्ट होता है.

पैरों से गाँठ लगाए जो हाथों से न खुले. बहुत धूर्त आदमी के लिए, जो सब के लिए उलझनें पैदा करता हो.

पैरों से लंगड़ी, नाम फुदकी. नाम के विपरीत गुण.

पैसा आते भी दुःख देता है और जाते भी. पैसा कमाने के लिए बहुत से कष्ट उठाने ही पड़ते हैं, पैसा जब आ जाता है तो रखने की चिंता, और अगर चला जाए तब तो कष्ट ही कष्ट.

पैसा करे काम, बीबी करे सलाम. पैसे में बड़ी ताकत है. पैसे के बल पर आदमी के सारे काम हो जाते हैं और पत्नी भी उसकी इज्ज़त करती है.

पैसा तो बेसवा भी कमा ले. (भोजपुरी कहावत) केवल पैसा कमाने के लिए काम नहीं करना चाहिए. पैसा तो लोग उल्टे सीधे और भ्रष्ट काम कर के भी कमा लेते हैं. बेसवा – वैश्या का अपभ्रंश.

पैसा ना कौड़ी, बाजार जाएँ दौड़ी (पैसा न कौड़ी, बीच बाज़ार में दौड़ा दौड़ी). साधन हीन होने पर भी ख़याली पुलाव पकाना.

पैसा पर्वत पे राह चलावे है. पैसे के बल पर कठिन काम भी आसान हो जाते हैं.

पैसा पास का, घोड़ी रान की. रान – जांघ. पैसा वही काम आता है जो हमारे पास हो (इधर उधर बंटा हुआ न हो), घोड़ी वही काम की है जिसकी हम सवारी कर सकें.

पैसा फले न पेड़. पैसा पेड़ पर पैदा नहीं होता (परिश्रम कर के कमाया जाता है).

पैसा माँ पैसा भाई, पैसे बिन न होय सगाई. सगाई माने आपसी प्रेम भी होता है और सगाई माने विवाह संबंध भी होता है.. आज के युग में पैसा ही सब कुछ है. उसी पर सारे सम्बन्ध टिके हैं.

पैसा माई, पैसा बाप, पैसे बिना बड़ा संताप. आज के समय में पैसा ही सब कुछ है, पैसे के बिना बड़ा कष्ट है.

पैसा हाथ का मैल है. जिस प्रकार हाथ पर मैल लग जाए तो हम उसे धो कर साफ़ कर देते हैं उसी प्रकार अधिक पैसा हाथ में आने पर उसे बांट देना चाहिए. अधिक धन मनुष्य को पाप की ओर प्रवृत्त करता है.

पैसे का कोई पूरा नहीं, अक्ल का कोई अधूरा नहीं. पैसा कितना भी अधिक हो किसी को पर्याप्त नहीं लगता और अपने अंदर अक्ल कितनी भी कम हो किसी को कम नहीं लगती.

पैसे की आने की एक राह, जाने की चार. पैसा कमाया बहुत मुश्किल से जाता है पर खर्च बड़ी जल्दी हो जाता है, आता एक स्रोत से है पर खर्च कई जगह होता है.

पैसे की दाल और टके का बघार. एक पैसे की दाल में दो पैसे का छौंक. 

पैसे को पैसा खींचता है. पूँजी से ही पूँजी कमाई जाती है.

पैसे बिन माता कहे जाया पूत कपूत, भाई भी पैसे बिना मारें सर लख जूत. पैसे के बिना माँ, बाप, भाई, बहन कोई सम्मान नहीं करते (माँ कहती है कि मैंने कुपुत्र पैदा किया है और भाई जूते मारते हैं).

पैसे बिना बुद्धि बेचारी. आदमी कितना भी बुद्धिमान हो, धन के बिना अपनी बुद्धि का लाभ नहीं उठा सकता.

पोटली में जितने सिक्के डालोगे उतने ही निकलेंगे. आपने जितना पैसा इकट्ठा किया है उतना ही तो आपके पास होगा, उससे कम या अधिक कैसे हो जाएगा. यही बात पाप और पुण्य के विषय में भी कही जा सकती है.

पोतड़ों के अमीर. पोतड़े – नवजात शिशुओं के लंगोटे बिछौने आदि. जन्म से अमीर लोगों के लिए यह कहावत कही जाती है.

पोतड़ों के नशेड़ी. जिस ने बाप दादों से नशा करना सीखा हो.

पोतड़ों के बिगड़े, धोतड़ों में नहीं सुधरते. पोतड़े – बच्चों के लंगोटी बिछौने आदि, धोतड़े – पहनने के कपड़े (धोती इत्यादि) बचपन में जो खराब आदतें पड़ जाएँ वे बड़े होने पर भी नहीं सुधरतीं.

पोथा सो थोथा, पाठे सो साथै. पोथियों में जो लिखा है वह हमारे लिए व्यर्थ है, जो हम ने पढ़ लिया व कंठस्थ कर लिया वही हमारे साथ रहने वाला है.

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भय न कोय, ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय. पोथियाँ पढ़ कर कोई पंडित नहीं बनता. जो मानव मात्र से प्रेम करना सीख ले वही सच्चा पंडित बनता है.

पोपला और चने चाबे. अपनी सामर्थ्य से बाहर काम करने की कोशिश करना.

प्याज को जितना छीलो उतनी ही बदबू आती है. पुरानी बातों को जितना उघाड़ो उतना ही मनमुटाव बढता है.

प्यार करूं प्यार करूं, चूतड़ तले अंगार धरूं, जल जाए तो क्या करूं. कपटी मित्र या सम्बंधी के लिए जो ऊपर से प्रेम दिखाता है और चुपचाप आपको नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता है.

प्यार दिए से बेटा बिगड़े, भेद दिए से नारी, लोभ दिए से नौकर बिगड़े, धोखा दिए से यारी. अधिक लाड़ प्यार से बेटा बिगड़ जाता है, भेद की बात नारी को नहीं पचती, लालच देने से नौकर बिगड़ जाता है और धोखा देने से दोस्ती खत्म हो जाती है.

प्यास से मरने के बाद हजार घड़ा पानी बेकार. अर्थ स्पष्ट है. 

प्यासे के पास कुआँ चल कर नहीं आता है. सयाने लोग समझाने के लिए कहते हैं कि जिस चीज की आपको आवश्यकता है उसके लिए आपको ही प्रयास करना पड़ेगा. वह चीज बैठे-बैठे आपके पास चलकर नहीं आएगी.

प्यासे को पिलाओ पानी, चाहे हो जाए कुछ हानी. प्यासे को पानी अवश्य पिलाना चाहिए, चाहे इसमें कुछ हानि क्यों न उठानी पड़े.

प्रजा मरन, राजा को हाँसी. प्रजा कितनी भी त्रस्त हो, राजा लोग अपने आमोद, प्रमोद, हास्य, विनोद में व्यस्त रहते हैं.

प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं है जो सामने दिख रहा उस को सिद्ध करने के लिए प्रमाण की क्या आवश्यकता. संस्कृत में कहते हैं – प्रत्यक्षम् किम् प्रमाणं.

प्रभुता पाई काहि मद नाहीं. प्रभुता का अर्थ यहाँ है धन, बल और अधिकार. कहावत का अर्थ है कि प्रभुता पा कर सभी को घमंड हो जाता है. तुलसीदास जी द्वारा रचित मूल कविता इस प्रकार है – नहिं कोई जन्मा इस जग माहीं, प्रभुता पाई जाहि मद नाहीं. इंग्लिश में कहावत है – Power always corrupts.

प्रारब्ध पहले बना, पीछे बना शरीर. व्यक्ति के जन्म लेने से पहले ही उसका भाग्य लिख दिया जाता है.

प्रीत करी थी नीच से पल्ले आई कीच, सीस काट आगे धरा अंत नीच का नीच. नीच व्यक्ति से प्रेम करने पर मुश्किल ही सामने आती है. चाहे कोई अपना सर काट कर सामने रख दे नीच व्यक्ति अपनी नीचता नहीं छोड़ता.

प्रीत का निबाहना खांडे की धार है. खांडा – सीधी एवं चौड़ी तलवार. प्रीत का निबाहना उतना ही मुश्किल है जितना तलवार की धार पर चलना.

प्रीत जहाँ परदा नहीं, परदा जहां न प्रीत. जहाँ प्रेम होता है वहाँ कुछ दुराव छिपाव नहीं होता, और जहाँ दुराव छिपाव होता है वहाँ प्रेम नहीं हो सकता.

प्रीत तो ऐसी कीजिए ज्यों हिन्दू की जोय, जीते जी तो संग रहे मरे पे सत्ती होय. दूसरे धर्म के लोगों द्वारा हिन्दू स्त्रियों की प्रशंसा की गई है. हिन्दू स्त्री के समान प्रेम करो जो जीवन भर साथ निभाती है और पति के मरने पर सती हो जाती है.

प्रीत न टूटे अनमिले, उत्तम मन की लाग, सौ जुग पानी में रहे, चकमक तजे न आग. प्रेमी जन यदि आपस में न मिल पाएं तो भी उनके प्रेम में कमी नहीं आती. चकमक पत्थर युगों तक पानी में डूबा रहे तो भी बाहर निकालने पर आग पैदा करता है.

प्रीत रीत जानी आसान, मुस्किल पड़ी बात अब आन. सामान्य लोग समझते हैं कि प्रेम करना आसान है, पर जब उन्हें किसी से प्रेम होता है तो मालूम होता है कि इस में कितनी मुश्किलें हैं.

प्रीत सीखिये ऊख सों, पोर पोर रसवान जहाँ गाँठ वहाँ रस नहीं, जेई प्रीत की बान. गन्ने में सब जगह रस होता है, केवल गाँठ में नहीं होता. इसी प्रकार प्रेम के संबंध में रस ही रस होता है, पर जहाँ मन में गाँठ पड़ जाती है वहाँ रस समाप्त हो जाता है.

प्रीतम मिले उजाड़ में, वही उजाड़ बजार. प्रीतम यदि उजाड़ में मिल जाएँ तो वही उजाड़ गुलज़ार हो जाता है.

प्रीतम हरि से नेह कर, जैसे खेत किसान, घाटा दे अरु दंड भरे, फेरि खेत पे ध्यान. ईश्वर से उसी प्रकार प्रेम करो जैसे किसान अपने खेत से करता है. खेती में घाटा हो या दंड भरना पड़े तो भी किसान का ध्यान खेत में ही लगा रहता है.

प्रेम और युद्ध में सब जायज है. अर्थ स्पष्ट है. इंग्लिश में कहते हैं – All is fair in love and war.

प्रेम करि काहू सुख न लयो. मीराबाई ने यह बात स्वयं के परिप्रेक्ष्य में कही है पर यह बात सब पर लागू होती है कि प्रेम करने वाले को कभी सुख नहीं प्राप्त होता (हमेशा कष्ट मिलता है).

प्रेम का पान हीरा समान. पान वैसे तो बहुत तुच्छ वस्तु है पर किसी ने प्रेम से दिया हो तो हीरे के समान है.

प्रेम न डाली फलत है, प्रेम न हाट बिकाए, प्रेम से खोजो प्रेम को, आपहि में मिल जाए. प्रेम पेड़ पर भी पैदा नहीं होता और बाजार में भी नहीं मिलता. अपने अंदर ही प्रेम को खोजना चाहिए.

प्रेम में नेम कहाँ. नेम – नियम. प्रेम कोई नियम कानून नहीं मानता.

 

 

फकत ताबीज़ से काम नहीं चलता, कुछ कमर में भी बूता चाहिए. सन्तान मांगने (या और किसी काम) के लिए पीरों फकीरों के यहाँ चक्कर लगाने वालों के लिए कथन.

फकीर अपनी कमली में मस्त. जो सही माने में फकीर होते हैं उन्हें धन व ऐश्वर्य की परवाह नहीं होती.

फकीर की जुबान किसने कीली है. फकीर की जबान को कोई नहीं रोक सकता (क्योंकि उसे किसी का डर नहीं होता).

फकीर की सूरत ही सवाल है. जरूरत मंद कुछ न भी मांगे तो भी उसकी सूरत देख कर ही अंदाजा हो जाता है कि वह जरूरत मंद है. 

फटी जेब में पैसा डालना बेकार. जो व्यक्ति धन को संभालना और ठीक से खर्च करना न जानता हो उसको धन देना बेकार है (दान देना भी और उधार देना भी). 

फटे कपड़े को पैबंद लग सकता है फूटे भाग्य को नहीं. किसी का भाग्य ही फूटा हो तो वह लाख प्रयास कर के भी आप उस की कोई सहायता नहीं कर सकते.

फटे को सियो और रूठे को मनाओ. जितना आवश्यक फटे हुए कपड़े को सिलना है उतना ही आवश्यक है रूठे हुए मित्र और सम्बन्धियों को मनाना (अपने अहं को अलग रख कर).

फटे को सिलाय, रूठे को मनाय. रूठे स्वजन को मनाना उतना ही आवश्यक है जितना फटे कपड़े को सिलाना.

फटे पजामें में गोटे का नाड़ा. बेमेल काम.

फटे में पाँव, दफ्तर में नाँव. दूसरे के फटे में टांग अड़ाने वाला अपने को झंझट में डाल लेता है (दफ्तरों और कचहरी के चक्कर लगाने पड़ते हैं).

फतह और शिकस्त, खुदा के हाथ. हार जीत ईश्वर के हाथ में है (हमें केवल प्रयास करना चाहिए).

फन फन मणि नहिं होत. हर सांप के फन में मणि नहीं होती. हर व्यक्ति योग्य नहीं होता.

फल लगने पर पेड़ झुक जाता है. जिस प्रकार फल लगने के बाद पेड़ झुक जाता है उसी प्रकार संतान होने के बाद अहंकारी व्यक्ति भी विनम्र हो जाता है.

फलाने की मां ने खसम किया बड़ा बुरा किया, कर के छोड़ दिया और बुरा किया. खसम किया अर्थात किसी को अपना पति बना लिया (विवाह कर लिया). किसी विधवा ने (जिसके एकाध बच्चा भी है) किसी पुरुष से विवाह कर लिया यह पुराने जमाने के हिसाब से बुरी बात हुई. लेकिन विवाह कर के फिर छोड़ दिया यह और भी बुरी बात हुई. समाज इस बात की अनुमति नहीं देता कि विवाह को हंसी खेल समझ लिया जाए. 

फलेगा सो झड़ेगा. जिस पेड़ में फल आयेंगे उस पर अंततः पतझड़ भी आएगी, यह कालचक्र है.

फांदिये न कुआं, खेलिए न जुआ. कोई आदमी कितनी भी लंबी छलांग क्यों न लगा लेता हो, कुआँ फांदने की कोशिश कभी नहीं करनी करने चाहिए. जरा सा धोखा होते ही कुएं में गिरने का डर है. इसी प्रकार जुआ भी कभी नहीं खेलना चाहिए, जीवन भर की कमाई लुट सकती है. 

फागुन का मेह बुरो, बैरी का नेह बुरो. फागुन के महीने की वारिश नुकसानदायक होती है (क्योंकि फसल पक कर खड़ी होती है या कट कर खेत में पड़ी होती है). इसी प्रकार शत्रु का प्रेम बुरा होता है. शत्रु अगर आप से प्रेम दर्शा रहा हो तो सतर्क रहना चाहिए. बुन्देलखंड में पूरी कहावत इस प्रकार बोली जाती है – फागुन का मेह बुरो, बैरी का नेह बुरो, साला घर बीच बुरो, बिगड़ा भानेज बुरो (घर में साला बुरा और नाराज भांजा बुरा). इंग्लिश में कहावत है – Gifts from enemies are dangerous.

फागुन मर्द, ब्याह लुगाई. होली के त्यौहार पर पुरुष लोग हंसी ठिठोली में महिलाओं को रंग लगाते हैं और शादी ब्याह में स्त्रियां हल्दी की रस्म में पुरुषों की पीठ पर धप्पी लगाती हैं.

फाटे पीछे न मिलें (जुड़ें), मन मानिक औ दूध. मन, माणिक और दूध फट जाएँ तो फिर नहीं मिलते. कहावत में यह सीख दी गई है कि आपसी संबंधों को सहेज कर रखना चाहिए.

फ़ारस गए फ़ारसी पढ़ आए बोले वहीँ की बानी, आब आब कह पुतुआ मर गए खटिया तरे धरो रहो पानी. मुगलों के जमाने में पढ़े लिखे लोग फ़ारसी पढ़ा करते थे (फ़ारसी एक प्रकार की उच्च शिक्षा थी, जैसे आजकल इंग्लिश है). फ़ारसी में पानी को आब कहते हैं. फ़ारसी का ज्ञान बघारने वाले लोगों का मजाक उड़ाने के लिए यह कहावत कही गई है कि प्यास लगने पर वह आब आब चिल्लाते रहे, कोई समझा ही नहीं कि वह पानी मांग रहे हैं. वह बेचारे प्यास से मर गए जब कि खाट के नीचे पानी रखा था. आजकल इंग्लिश बोलने में अपनी शान समझने वालों पर यह कहावत लागू की जा सकती है.

फालूदा खाते दांत टूटे. किसी बहुत नाजुक आदमी का मजाक उड़ाने के लिए.

फ़िक्र बुरी फ़ाका भला, फ़िक्र फकीरै खाय. फाका – उपवास. चिंता करने के मुकाबले भूखा रहना कम नुकसानदायक है. चिंता तो फ़क़ीर को भी खा लेती है.

फ़िक्र से हाथी भी घुल जाता है. चिंता से हाथी भी दुबला हो जाता है.

फिजूलखर्ची से फकीरी. जो आज फिजूलखर्ची कर रहा है वह कल फकीर बनने पर मजबूर हो जाएगा.

फिसल पड़े तो हर गंगा. जिस काम से आप बचना चाहते हैं अगर मजबूरी में वह काम करना पड़ जाए तो यह दिखावा करना चाहिए कि आप प्रसन्नता से वह काम कर रहे हैं. कोई सज्जन नदी में नहाने से बचना चाह रहे थे, इसलिए लोगों की निगाह बचा कर किनारे खड़े थे. पर अचानक पैर फिसलने से नदी में गिर पड़े तो जोर जोर से हर हर गंगे चिल्लाने लगे जैसे नहाने में बड़ा आनंद आ रहा हो.

फुरसत घड़ी की नहीं, कमाई कौड़ी की नहीं (धेले भर का काम नहीं, घड़ी भर की फुरसत नहीं). ऐसे लोगों का मजाक उड़ाने के लिए जो कोई ठोस कार्य नहीं करते और अपने को बहुत व्यस्त दिखाते हैं.

फूँक मार कर धूल उड़ाएँ, हम ऐसे बलवान. कायर लोगों का मजाक उड़ाने के लिए. 

फूंकने से पहाड़ नहीं उड़ते. बेबकूफी के प्रयासों से बहुत बड़े काम नहीं किये जा सकते.

फूंके के न फांके के, टांग उठा के तापे के. अलाव जलाने में कोई सहयोग नहीं कर रहे हैं बस टांग उठा के ताप रहे हैं.

फूटा घड़ा आवाज से पहचाना जाता है (जर्जर घड़े की आवाज भी जर्जर). फूटे घड़े में दरार दिखाई न भी दे तो ठोंक कर देखने पर उसकी आवाज से मालूम हो जाता है. इसी प्रकार चरित्रहीन मनुष्य के व्यवहार में उसकी असलियत झलक जाती है.

फूटी देगची और कलई की भड़क. देगची – एक प्रकार का पतीला. पतीला तो फूटा हुआ है पर उस पर कलई कर के चमकाया गया है. बेकार की चीज की बनावटी दिखावट.

फूटे घड़े में पानी नहीं टिकता. जिस के भाग्य फूटे हों या बुद्धि भ्रष्ट हो उस के पास धन नहीं टिक सकता. 

फूटे लड्डू में सबका हिस्सा. लड्डू जब तक बंधा हुआ होता है तब तक एक ही आदमी के हिस्से में आता है, पर अगर फूट जाए तो लूट मच जाती है. एकता में ही शक्ति है.

फूफा रूठेगा तो बुआ को रखेगा. फूफा रूठेंगे तो हद से हद क्या करेंगे, बुआ को नहीं आने देंगे. फूफाओं के नखरों से तंग किसी व्यक्ति का कथन.

फूफी नाते लेना, भतीजे नाते देना. एक रिश्ते से लेना और दूसरे रिश्ते से देना.

फूल आये हैं तो फल भी लगेंगे. कहावत ऐसे परिप्रेक्ष्य में कही जाती है कि यदि देश या समाज में कोई सकारात्मक बदलाव हुआ है तो उसके अच्छे परिणाम अवश्य आएंगे. 

फूल की डाल नीचे को झुकती है. परिपक्वता आने पर व्यक्ति विनम्र हो जाता है.

फूल की बैरन धूप, घी का बैरी कूप. फूल धूप में कुम्हला जाता है और घी कुप्पे में रखा रखा सड़ जाता है. कहावत में यह सीख दी गई है कि घी को अधिक दिन कुप्पे में नहीं रखना चाहिए, खा पी कर खत्म करो या बाँट दो.

फूल झड़े तो फल लगे. कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है. फूल झड़ने के बाद ही फल लगता है.

फूल न पाती, देवी हा हा. जिस देवी की पूजा ही न होती हो वह देवी कैसी.

फूल नहीं पंखुड़ी ही सही. बहुत न सही, थोड़ा ही सही.

फूल फूल करके चंगेर भरती है. चंगेर – बांस की डलिया. एक एक फूल इकट्ठा कर के ही डलिया भरती है. (बूंद बूंद से गागर भरता).

फूल से फांस लगे और दिए से लू. नज़ाकत की पराकाष्ठा. 

फूले फूले फिरत हैं आज हमारो ब्याव, तुलसी गाय बजाय के देत काठ में पाँव. विवाह के समय व्यक्ति बहुत प्रसन्न होता है, वह यह नहीं जानता कि इस तरह गा बजा के वह पिंजरे में फंसने जा रहा है.

फूहड़ करे सिंगार, मांग ईंटों से फोड़े. फूहड़ स्त्री कुछ भी कर सकती है, माँग में सिंदूर लगाने के लिए ईंट से सर भी फोड़ सकती है.

फूहड़ का माल, सराह सराह खाइए. मूर्ख व्यक्ति की तारीफ़ करते जाइए और उस का माल खाते जाइए

फूहड़ का मैल फागुन में उतरे. जो लोग जाड़े के मौसम में बहुत कम नहाते हैं उन पर व्यंग्य.

फूहड़ के घर उगी चमेली, गोबर मांड़ उसी पर गेरी. फूहड़ व्यक्ति किसी गुणवान चीज़ की कद्र नहीं जानता. उस के घर चमेली का पेड़ उग आया तो उसने उसी पर गोबर गिरा दिया.

फूहड़ के घर खुली किवाड़ी, सारे कुत्ते चले रिवाड़ी. यदि घर की मालकिन फूहड़ हो तो मुफ्तखोरों और बेईमानों की चांदी हो जाती है.

फूहड़ के तीन काम हगे, समेटे और गेरन जाए. (हरयाणवी कहावत) फूहड़ व्यक्ति की परिभाषा थोड़े हास्य पूर्ण ढंग से बताई गई है. पहले काम बिगाड़ता है और फिर समेटता है.

फूहड़ चले, नौ घर हिले. कहावत को मजेदार बनाने के लिए अतिशयोक्ति द्वारा हास्य उत्पन्न किया गया है. फूहड़ आदमी इतने फूहड़ पने से चलता है कि नौ घर हिलते हैं. 

फेरन पे हगास लगी. हगास – शौच जाने की इच्छा. यदि किसी दुल्हन को फेरों के दौरान शौच जाने की इच्छा हो तो कितनी बड़ी परेशानी खड़ी हो जाएगी. किसी अति आवश्यक कार्य के बीच व्यर्थ की परेशानी खड़ी हो जाना.

फ़ोकट का चन्दन, घिस मेरे नंदन. कोई कीमती चीज़ मुफ्त में मिल जाए तो आदमी उस की कद्र नहीं करता. (माले मुफ्त – दिल बेरहम).

फ़ौज की अगाड़ी, आंधी की पिछाड़ी. इनको संभालना मुश्किल होता है.

 

 

बंके को तिरबंका मिल ही जाता है. धूर्त व्यक्ति को अपने से बड़ा धूर्त कभी न कभी मिल जाता है.

बंद है मुठ्ठी तो लाख की, खुल गई तो फिर ख़ाक की. जब तक कोई रहस्य खुलता नहीं है तब तक लोगों को उसके विषय में बहुत उत्सुकता रहती है. रहस्य खुलने के बाद उसकी पूछ खत्म हो जाती है. एक राजा ने घोषणा की कि वह अमुक मंदिर में पूजा अर्चना करने के लिए अमुक दिन जाएगा. इतना सुनते ही मंदिर के पुजारी ने मंदिर की सजावट करना शुरू कर दिया, इस खर्चे के लिए उसने छः हजार रुपये का कर्ज लिया. राजा मंदिर में पूजा के लिए पहुंचे और आरती की थाली में चार आने रख कर प्रस्थान कर गए. पुजारी को बड़ा गुस्सा आया. उसने गांव भर में ढिंढोरा पिटवाया कि राजा की दी हुई वस्तु को वह नीलाम कर रहा है नीलामी पर उसने अपनी मुट्ठी बंद रखी. लोग समझे कि राजा की दी हुई वस्तु बहुत अमूल्य होगी इसलिए बोली दस हजार रूपये से शुरू हुई और बढ़ते बढ़ते पचास हजार तक पहुंची. यह बात राजा के कानों तक पहुंची. राजा ने अपने सैनिकों से पुजारी को बुलवाया और कहा कि मेरी वस्तु को नीलाम न करो, मैं तुम्हें लाख रुपए देता हूं और इस प्रकार राजा ने अपनी इज्जत को बचाया. तब से यह कहावत बनी.

बंदर के हाथ में आइना. बंदर आइने की कद्र नहीं जान सकता, उसमें अपनी शक्ल देख कर उसे दूसरा बंदर समझ कर तोड़ देगा. मूर्ख व्यक्ति बहुमूल्य वस्तु का मोल नहीं समझ सकता.

बंदर के हाथ में उस्तरा. किसी नासमझ व्यक्ति के हाथ में कोई छोटा सा अस्त्र भी बहुत खतरनाक हो जाता है, वह औरों को भी बहुत हानि पहुँचा सकता है और अपने को भी चोट मार सकता है. उस्तरे से पहले नाई लोग हजामत बनाते थे.(देखिये परिशिष्ट) 

बंदर क्या जाने अदरख का स्वाद. अगर आप बंदर को अदरक खाने को दें तो वह यह नहीं समझेगा कि यह कोई नायाब चीज है. वह उसे कड़वा और चरपरा समझ कर थूक देगा. यह कहावत उस जगह प्रयोग की जाती है जब किसी नासमझ आदमी को कोई अक्ल की बात बताई जाए या कोई बहुत बढ़िया चीज दी जाए और वह उसकी कद्र न करे.

बंदर नाचे, ऊँट जल मरे. बन्दर को आज़ादी से नाचता देख कर ऊँट को बहुत जलन होती है, क्योंकि वह न तो आज़ाद है, न ही उसे नाचना आता है. दूसरे को प्रसन्न देख कर परेशान होना.

बंदर बूढ़ा हो जाए फिर भी छलांग लगाना नहीं भूलता. बूढ़ा होने के बाद भी आदमी की खुराफातें कम नहीं होतीं.

बंदरों के बीच में गुड़ की भेली. बंदरो के झुंड में अगर गुड़ की भेली रख दी जाए तो वे उस पर कब्जा करने के लिए आपस में बुरी तरह लड़ते हैं. अपात्र लोग अगर किसी चीज के लिए झगड़ रहे हों तो यह कहावत कही जाती है.

बकरा मुटाय, तब लकड़ी खाय. बकरा ज्यादा मोटा हो जाता है तो लड़ाका हो जाता है, इसलिए पिटता है.

बकरी के मुँह में काशीफल. किसी को ऐसी चीज़ देना जिस का वह उपयोग ही न कर सके.

बकरी खटीक से ही बहलती है. खटीक – चमड़ा निकाल कर बेचने वाली एक जाति. बकरी यह नहीं जानती कि यह खटीक ही उसे मार कर उसकी खाल उतार लेगा. वह उसी का कहना मानती है. जो लोग भ्रष्ट और लुटेरे नेताओं को अपना शुभचिंतक समझते हैं उन्हें सीख देने के लिए.

बकरी जान से गई, राजा कहें नमक कम है. किसी गरीब का बहुत बड़ा नुकसान कर के यदि बड़ा आदमी कहे कि उसका मतलब हल नहीं हुआ तो यह कहावत कही जाती है. 

बकरी दूध तो दे पर मींगनी कर के. किसी का कोई काम करने के साथ में अशोभनीय व्यवहार करना.

बकरी से हल चलता तो बैल कौन रखता. कम लागत से व्यापार हो तो अधिक लागत क्यों लगाई जाएगी.

बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी. जब कोई अप्रिय घटना होना अटलनीय हो. (जैसे बकरा तो कभी न कभी कटना ही है, उसकी माँ कब तक खैर मनाएगी).

बख्शो बी बिल्ली, चूहा लंडूरा ही जिएगा. लंडूरा – दुमकटा.एक बिल्ली ने चूहे पर झपट्टा मारा तो चूहे की पूँछ कट के उस के हाथ में आ गयी. चूहा जल्दी से बिल में घुस गया. बिल्ली बोली – चूहे राजा, बाहर आ जाओ, पूँछ जोड़ दूंगी. चूहा बोला, मुझे बख्शो बड़ी बी, मैं दुमकटा ही अच्छा. कोई दुष्ट व्यक्ति किसी को लालच दे कर फंसाने की कोशिश करे तो वह आदमी यह कहावत बोलेगा. 

बगल में कटारी, चोर को घूंसों से मारे. 1. मूर्खता पूर्ण काम. कटारी होते हुए घूंसे मारना. 2. समझदारी भी कह सकते हैं. कटारी से मारने में इस बात का डर है कि अगर चोर मर गया तो उल्टे लेने के देने पड़ जायेंगे. 

बगल में छोरा शहर में ढिंढोरा. ढिंढोरा – बड़ा ढोल. पहले के जमाने में कोई बात आम जनता को बताने से पहले ढोल बजा कर (ढिंढोरा पीट कर) लोगों का ध्यान आकर्षित करते थे. कहावत में कहा गया है कि लड़का तो बगल में मौजूद है और शहर में ढिंढोरा पीट पीट कर उसे ढूँढा जा रहा है. पास में उपलब्ध किसी चीज़ को अन्यत्र ढूँढना.

बगल में तोशा, किसका भरोसा. (अपना तोसा अपना भरोसा). जरूरत का सामान अपने साथ हो तो किसी पर निर्भर नहीं होना पड़ता. तोशा – खाने का सामान.

बगुला मारे पखना हाथ. मुर्गा या बत्तख मारने पर तो मांस हाथ आएगा पर यदि बगुले को मारोगे तो केवल पंख हाथ लगेंगे. कहावत का अर्थ है कि किसी गरीब आदमी को सताने से क्या हासिल होगा.

बगुलों की लड़ाई में चोंचों की खटखट. दो डरपोक लोग आपस में लड़ रहे हों और एक दूसरे को नुकसान पहुँचाने की हिम्मत न कर पा रहे हों तो उन का मजाक उड़ाने के लिए.

बचाया सो कमाया. धन बचाना भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना धन कमाना. क्रिकेट के खेल में भी कहते हैं runs saved are runs made.

बचे नर, हजार घर. आदमी की जान बची रहे तो घर तो बहुत से मिल जाएंगे.

बच्चा जने कोई, गोंद मखाने खाए कोई. पहले जमाने में स्त्रियों को प्रसव के बाद गोंद, मखाने, घी, मेवा (हरीरा, पंजीरी) इत्यादि खाने को मिलते थे. कहावत में कहा गया है कि प्रसव का कष्ट किसी और ने उठाया, और गोंद मखाने किसी और को खाने को मिल रहे हैं.

बच्चा बूढ़ा एक समान. बूढ़ा आदमी भी बच्चों के समान जिद्दी और मनचला हो जाता है. अधिक बूढ़ा होने पर मल मूत्र पर भी उसका नियंत्रण नहीं रहता.

बच्चे तो पेट में भी लातें मारते हैं. बच्चों की शैतानियों पर कही गई कहावत.

बच्चे पाले दूधों भात, बड़े हुए तो मारें लात. नालायक पुत्र के लिए. 

बच्चे रोवें तब फूहड़ पोवे. जब बच्चे भूख से रोने लगते हैं तो फूहड़ स्त्री रोटी बनाने बैठती है.

बच्चों और मूर्खो के पेट में बात नहीं पचती. अर्थ स्पष्ट है.

बच्चों के पैर और बुड्ढों के मुँह खुजलाते हैं. बच्चों के पैर खुजलाते हैं अर्थात बच्चे एक जगह बैठते नहीं हैं, बुड्ढों के मुँह खुजलाते हैं मतलब बुड्ढे लोग चुप नहीं बैठते.

बच्चों के बिना घर कैसा. बच्चों से ही घर में रौनक होती है.

बच्चों से बोलूं नहीं, जवान मेरो भैया, बुड्ढन को छोडूँ नहीं चाहें ओढ़ें दस रजैयाँ (चाहें करें दय्या मैया). जाड़े का मौसम ऐसा कहता है.

बछवा बैल जुताय जोय, न हल बहे न खेती होय. खेती से सम्बन्धित अधिकतर कहावतें घाघ ने कही हैं. घाघ कहते हैं कि जो बछवा बैल (एक विशेष प्रकार का बैल) से हल जोतने की कोशिश करेगा वह खेती नहीं कर पाएगा.

बछिया मरी तो मरी कलकत्ता तो देखा. कुछ नुकसान हुआ तो कुछ फायदा भी हो गया.

बजरंग बली का सोटा, फूट जाए भंगेड़ी का लोटा. भांग पीने वाले को डराने के लिए.

बजा दे बेटा ढोलकी, मियाँ खैर से आए. किसी काम में असफल हो कर कोई जान बचा कर लौट आया हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए. 

बजाज की गठरी का झींगुर मालिक. दूसरों के माल को अपना समझ कर घमंड करना.

बज्जड़ परे कहाँ, तीन कायथ जहाँ. जहाँ तीन कायस्थ हों वहाँ बर्बादी होना तय है. कायस्थों को कचहरी का पर्यायवाची माना जाता था.

बटिया खेती सांट सगाई, जा में नफा कौन ने पाई. खेती को बटाई पे करने पर नफा नहीं मिलती और सांटे की सगाई (जिस घर में लड़की दी जाए उसी घर की लड़की को बहू बना कर अपने घर में लाया जाए) में दहेज़ आदि नहीं मिलता.

बटेऊ खांड मांडे खाए, कुतिया की जीभ जले. बटेऊ – राहगीर. राह चलता आदमी कोई अच्छी चीज़ खा रहा है, उसे देख कर कुतिया की जीभ जल रही है. दूसरे की ख़ुशी देख कर जलना.

बड़ खुस बनिया, दमड़ी दान. बनियों की कंजूसी पर व्यंग्य. बनिया बहुत खुश होगा तो दमड़ी दान में देगा. 

बड़ संग रहियो तो खइयो  बीड़ा पान, छोट संग रहियो तो कटइयो दुनु कान. (भोजपुरी कहावत) सज्जन का संग अच्छा है जबकि दुष्टों का संग करने से हानि होती है. पूरब में अतिथि का सत्कार करने के लिए पान खिलाने की प्रथा थी. किसी बड़े आदमी के साथ कहीं जाओगे तो पान खाने को मिलेगा और नीच आदमी के साथ जाओगे तो दोनों कान कटेंगे.

बड़का दुश्मन कौन, माँ का पेट. माँ का पेट – माँ के पेट से उत्पन्न दूसरी सन्तान अर्थात भाई. जायदाद के लिए भाइयों में दुश्मनी हो जाती है.

बड़न की बात बड़े पहचाना बड़े लोगों के बातें बड़े ही समझ सकते हैं. इसको मज़ाक में अधिक प्रयोग करते हैं (दो मूर्ख लोग एक दूसरे की बड़ाई कर रहे हों तो). पूरी कहावत इस प्रकार है – काँधे धनुष, हाथ में बाना, कहाँ चले दिल्ली सुल्ताना, बन के राव विकट के राना, बड़न की बात बड़े पहचाना. इसके पीछे एक कहानी है. एक बार एक धुनिया (रुई धुनने वाला) अपना धनुष जैसा औजार लिए जंगल में हो कर जा रहा था. एक सियार ने उसे देखा तो उसे शिकारी समझ कर डर गया. सियार ने उस की चापलूसी करने के लिए कहा कि कंधे पर धनुष और हाथ में वाण ले कर दिल्ली के सुल्तान कहाँ जा रहे हैं? धुनिया ने कभी सियार नहीं देखा था, वह उसे शेर समझ कर डर गया और उसे मक्खन लगाने के लिए बोला कि हे जंगल के राजा, बड़े लोगों को बड़े ही पहचानते हैं. आज कल के लोगों ने धुनिया और उस का अस्त्र नहीं देखा होगा. (देखिये परिशिष्ट) 

बड़न को बड़ो पेट. बड़े आदमियों का पेट भी बड़ा होता है. जो जितना बड़ा हाकिम होगा वह उतनी ही बड़ी रिश्वत मांगेगा.

बड़सिंगा मत लीजो मोल, कुएं में डारौ रुपया खोल. बड़े सींग वाला बैल ठीक से काम नहीं करता. उसे खरीदना कुएं में रूपये डालने जैसा है. (घाघ की कहावतें)

बड़ा टूट कर भी बड़ा ही रहता है. अर्थ स्पष्ट है. बड़े आदमी को कुछ घाटा भी हो जाए तब भी वह छोटा नहीं हो जाता. 

बड़ा धोता बड़ा पोथा, पंडिता पगड़ा बड़ा, अक्षरं नैव जानामि, स्वाहा स्वाहा करोम्यहम. पाखंडी पंडितों के लिए. बड़ी धोती, बड़ी पगड़ी पहन कर बड़ी पोथी हाथ में लिए हैं. मंत्र वंत्र कुछ नहीं जानते हैं, केवल कुछ बुदबुदा कर जोर से स्वाहा स्वाहा करते हैं.

बड़ा निवाला खाइए, बड़ा बोल न बोलिए. यदि आप धन धान्य से सम्पन्न हैं तो अच्छा खाइये पर अहंकार मत करिए.

बड़ा मरे बड़ाई को, छोटा मरे लाड़ को. वयस्क लोग जीवन में कुछ बनने के लिए संघर्ष कर रहे होते हैं. बच्चों को इस से कोई मतलब नहीं होता उन्हें केवल लाड़ प्यार ही चाहिए. 

बड़ा रोवे बड़ाई को, छोटा रोवे पेट को. बड़ा आदमी अपना बड़प्पन सिद्ध करने लिए परेशान रहता है और छोटा आदमी पेट भरने के लिए.

बड़ा शोर सुनते थे कि हाथी की पूंछ है, पास जाके देखा तो सुतली बंधी थी. अर्थ स्पष्ट है. किसी स्थान या व्यक्ति के बारे में बहुत तारीफ सुनी हो और पास जाकर देखने पर वास्तविकता कुछ और निकले तो ऐसा कहा जाता है.

बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर (पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर). कोई व्यक्ति बड़ा अधिकारी, नेता या अमीर बन गया पर आम लोगों की पहुँच से दूर है उस के लिए कहा गया है. 

बड़ी असामी, बड़ी फरमाइश. 1.बड़े लोगों की फरमाइशें भी बड़ी होती हैं. 2.बड़ी असामी से बड़ी रिश्वत मांगी जाती है.

बड़ी नाव की बड़ी विपदा. जो चीज़ जितनी बड़ी होगी उस की विपत्ति भी उतनी ही कठिन होगी.

बड़ी बड़ी बात बगल में हाथ. जो लोग बातें बड़ी बड़ी करते हैं पर काम कुछ नहीं करते.

बड़ी बहू को बड्डा भाग, छोटो बनड़ो घनो सुहाग. (राजस्थानी कहावत) अगर पत्नी की उम्र पति से अधिक है तो उसे भाग्यशाली मानते हैं, पति आयु में छोटा होगा तो पत्नी से अधिक दिन जीएगा एवम् पत्नी सुहागन रहेगी.

बड़ी बहू, बड़ा भाग. अर्थ ऊपर वाली कहावत की भाँति.

बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है. जिस प्रकार बड़ी मछली छोटी मछली को निगल जाती है उसी प्रकार बड़े व्यापार छोटे व्यापार को और बड़े अपराधी छोटे अपराधियों को निगल जाते हैं.

बड़ी रातों के बड़े ही सवेरे. अधिक कष्ट के बाद सुख भी अधिक ही मिलता है.

बड़ी हैं जेठानी तो रखें अपना पानी. यहाँ पानी का अर्थ मान सम्मान से है. जो बड़े हैं उन्हें अपने बड़प्पन का ध्यान स्वयं रखना चाहिए.

बड़े आदमी का कुत्ता भी घमंडी होता है. जिस के पास सत्ता या ताकत हो उस को अहंकार हो जाना स्वाभाविक है, लेकिन देखा यह गया है कि उसके नौकर चाकर और चमचे भी अहंकारी हो जाते हैं. 

बड़े आदमी की एक बात, बड़े घोड़े की एक लात. (बुन्देलखंडी कहावत) बड़े आदमी की एक ही बात काफी होती है और बड़े घोड़े की एक ही लात.

बड़े आदमी के चेले बनो कंगाल के दोस्त नहीं. कंगाल से दोस्ती करोगे तो उस की सहायता करने में ही उमर बीत जाएगी. बड़े आदमी के चेले बनने से खुद बड़ा बनने की संभावना हो जाती है.

बड़े आदमी ने साग खाया तो कहा सादा मिजाज़ है, गरीब ने साग खाया तो कहा कंगाल है. अर्थ स्पष्ट है. नेताजी खद्दर पहनते हैं तो उनकी महानता मानी जाती है, गरीब आदमी पहनता है तो उसका मजाक उड़ाया जाता है.

बड़े कढ़ाई में तले जाते हैं. कढ़ाई में तल कर दाल के बड़े बनाए जाते हैं. इन शब्दों का दूसरा अर्थ यह है कि घर के बड़ों को बहुत कष्ट उठाना पड़ता है. 

बड़े की पीठ काली करें, छोटे का मुहँ काला. बड़े आदमी की बुराई करनी है तो उसकी पीठ पीछे ही करना चाहिए, छोटे आदमी की करनी है तो उसके मुँह पर कर सकते हो.

बड़े की बड़ाई न छोटे की छुटाई. ऐसे व्यक्ति के लिए जो न बड़ों का सम्मान करता हो और न ही छोटों को स्नेह करता हो.

बड़े गाँव जाऊं, बड़ा लड्डू खाऊं. बड़ी जगह पर कमाई अधिक होने की संभावना अधिक होती है.

बड़े घड़े के ठीकरे किस काम के. टूटे हुए टुकड़े किसी काम के नहीं होते चाहे छोटे घड़े के हों या बड़े खड़े के.  

बड़े घर पड़ी, पत्थर ढो ढो मरी. लड़की ऐसे घर में ब्याह के गई जहाँ बहुत बड़ा परिवार था. बेचारी काम करते करते मर गई.

बड़े घर में बेटी दी, उससे मिलना भी मुश्किल. बेटी के घर खाली हाथ नहीं जाते हैं. बेटी बड़े घर की बहू है, हर बार उसी के अनुरूप भेंट ले कर जाना पड़ेगा.

बड़े न बूड़न देत हैं जाकी पकड़ी बांह, जैसे लोहा नाव में तिरत रहे जल मांह (संगत सार अनेक फल, लोहा तिरे काठ के संग). बूड़ना – डूबना. बड़े लोग जिसकी बांह पकड़ लेते हैं उसको डूबने नहीं देते, जैसे लकड़ी के साथ लोहा भी पानी में तैरता रहता है.

बड़े पेड़ों की बड़ी शाखें. बड़े संगठनों या प्रतिष्ठानों की शाखाएं भी बड़ी होती हैं.

बड़े बड़ाई ना करैं, बड़ो न बोलैं बोल, (हीरा कब मुख ते कहै, लाख टका मेरो मोल). जो लोग वास्तव में महान होते हैं वे अपने मुँह से अपनी बड़ाई नहीं करते. हीरा अपने मुँह से कभी नहीं कहता कि उसका मोल लाख रुपये है.

बड़े बड़े बादल टकराते हैं तो बिजली चमकती है. बड़े लोगों की लड़ाई के परिणाम भयानक हो सकते हैं.

बड़े बर्तन की खुरचन ही बहुत होती है. शाब्दिक अर्थ तो स्पष्ट है, कहावत का अर्थ यह है कि बड़े लोगों के यहाँ का बचा खुचा भी गरीब के लिए बहुत है. (अमीर का उगाल, गरीब का आधार).

बड़े बात से, छोटे लात से. बड़े लोगों को बातचीत द्वारा समझाया जा सकता है किन्तु नीच लोगों को दंड दे कर ही समझाया जा सकता है.

बड़े बे आबरू होके, तेरे कूचे से हम निकले. अपमानित हो कर कहीं से निकलना पड़े तो.

बड़े बोल का सिर नीचा (घमंडी का सिर नीचा). अहंकारी को कभी न कभी नीचा देखना पड़ता है.

बड़े मियाँ तो बड़े मियाँ छोटे मियाँ सुभान अल्लाह. जब कोई बड़े ओहदे वाला आदमी गड़बड़ियां करने वाला हो और उसके नीचे काम करने वाले और अधिक खुराफाती हों तब यह कहावत कही जाती है.

बड़े लोगों की डांट दूध मलाई होती है. बुजुर्गों की डांट का बुरा बिल्कुल नहीं मानना चाहिए. इससे केवल हमारी भलाई ही होती है.

बड़े लोगों के कान होते हैं आँखें नहीं. बड़े लोग केवल अपने चापलूसों की बातें सुन कर विश्वास कर लेते हैं, स्वयं देख कर सच्चाई जानने की कोशिश नहीं करते.

बड़े शहर का बड़ा ही चाँद. बड़े शहरों की हर बात निराली होती है.

बड़ों का बड़ा मुँह. बड़े लोगों की मांग भी बड़ी होती है (वे अधिक मुँह फैलाते हैं).

बड़ों की बड़ी बात. 1.बड़े लोगों की बड़ी बड़ी बातें होती हैं. छोटे लोग उन से बराबरी करने की कोशिश में नुकसान उठाते हैं. 2. बुजुर्ग लोगों की सलाह बड़े काम की होती है.

बड़ों के कहे और आंवलों के खाए का पीछे ही स्वाद आता है. आंवला खाओ तो पहले कड़वा लगता है बाद में उसका स्वाद आता है, इसी प्रकार बड़े लोगों की सलाह पहले बुरी लगती है पर बाद में उसका महत्व मालूम पड़ता है.

बड़ों के पाँव सिर पर. बड़ों की आज्ञा शिरोधार्य करनी चाहिए.

बड़ों के बड़े हाथ. बड़ा आदमी किसी की बहुत सहायता कर सकता है.

बड़ों को टोपी नहीं, कुत्ते को पजामा. घर के बड़ों की अनदेखी कर के आलतू फ़ालतू लोगों को लाभ पहुँचाना.

बड़ों को बड़े ही कलेस. बड़ों की समस्याएं भी बड़ी होती हैं.

बड़ों को लड़ा कर बच्चे फिर एक हो जाते हैं. बच्चों की लड़ाई में बड़े शामिल हो जाते हैं और आपसी रंजिश पाल लेते हैं जबकि बच्चे फिर एक हो जाते हैं.

बड़ों को होवे दुःख बड़ा, छोटों से दुःख दूर, तारे तो न्यारे रहें गहे राहु ससि सूर. बड़े लोगों की परेशानियाँ भी बड़ी होती हैं, जबकि छोटे लोग उन विपदाओं से दूर रहते हैं. राहु, सूर्य और चन्द्रमा को ही ग्रसता है तारों को नहीं.

बढ़िया मिल गया तो बिटिया के भाग, न मिला तो नाऊ बामन मारियो. (हरियाणवी कहावत) पहले के जमाने में नाई और ब्राह्मण रिश्ते करा दिया करते थे. बढ़िया रिश्ता मिल गया तो कहेंगे हमारी बेटी का भाग्य अच्छा था, और खराब मिला तो नाई और पंडित को मारो. 

बढ़े बाल औ मैले कपड़े और करकसा नार, सोने को धरती मिले नरक निसानी चार. कहावत में घोर दुर्दशा के चार लक्षण बताए हैं – बढ़े हुए बाल (पहले जमाने में बढ़े हुए बालों को बहुत बुरा माना जाता था), मैले कपड़े, कर्कश पत्नी और जमीन पर सोना.

बढ़ें तो अमीर, घटें तो फकीर, मरें तो पीर. मुसलमानों के विषय में अन्य धर्म वालों का व्यंग्य – वे तरक्की करते हैं तो अमीर बन जाते हैं, नुकसान हो जाए तो फकीर बनने का नाटक कर के मौज करते हैं और मर जाएं तो पीर बन कर अपनी पूजा करवाते हैं. मतलब हर परिस्थिति का लाभ उठाते हैं.

बतख तिरे तो तिरन दे, तू क्यों तैरे काग. बत्तख तैरती है तो उसे तैरने दे, तू तैरने की कोशिश मत कर हे कौवे. दूसरों की नकल करने में अपना नुकसान मत करो.

बात मानूँगा लेकिन खूँटा यहीं गाड़ा जाएगा.  (भोजपुरी कहावत). सबकी सुनना लेकिन अपने मन की ही करना.

बत्तख की नकल करने में कौआ डूब जाता है. बिना सोचे समझे किसी की नकल करने में आदमी बहुत नुकसान उठा सकता है, विशेषकर यदि कोई गरीब आदमी किसी अमीर की नकल करे तो.

बद अच्छा बदनाम बुरा. बहुत से लोग वाकई में बुरे होते हैं लेकिन लोग उनके बारे में सच नहीं जानते इसलिए उन्हें अच्छा समझते हैं, कुछ लोग इतने बुरे नहीं होते पर किसी कारणवश बदनाम हो जाते हैं और लोग उन्हें बहुत बुरा समझते हैं.

बद बदी से न जाए तो नेक नेकी से भी न जाए. अगर बुरा आदमी बुराई नहीं छोड़ सकता तो अच्छे आदमी को अच्छाई भी नहीं छोड़नी चाहिए.

बदनाम भी होंगे तो क्या नाम न होगा. कुछ लोगों को नाम की इतनी भूख होती है कि वे उसके लिए गलत काम करने को भी तैयार हो जाते हैं, उन्हें बदनामी में भी अपनी प्रसिद्धि दिखाई देती है.

बदली की छाँव क्या. बादल अभी यहाँ तो कुछ देर बाद कहीं और होता है, उसकी छाँव पर आप भरोसा नहीं कर सकते. जो भी चीज़ क्षण भंगुर है उस के सहारे नहीं बैठना चाहिए.

बन आई कुत्ते की जो पालकी बैठा जाए. किसी दुष्ट व्यक्ति को या बड़े आदमी के मुंहलगे नौकर को ठाठ बाट से रहता देख कर आम आदमी के उद्गार.

बन में अहीर, नैहर में जोय, जल में केवट, काऊ के न होय. अहीर जब जंगल में हो, पत्नी अपने मायके में हो और केवट जल में नाव खे रहा हो, ये तीनों उस समय किसी के सगे नहीं होते. 

बन में उपजे सब कोई खाए, घर में उपजे घर खा जाए. यह एक पहेलीनुमा कहावत है जिसका उत्तर है – फूट जोकि एक खरबूजे की जाति का फल होता है. यह पकने पर अपने आप फूट जाता है. कहावत में कहा गया है कि फूट अगर वन में उगती है तो उसे सब कोई खाते हैं और अगर घर में उगती है (आपसी फूट) तो घर को खा जाती है.

बन में बेर पके, कौवा के कौन काम के. (भोजपुरी कहावत) वन में बेर पक रहे हैं तो कौवे को उससे कोई लाभ नहीं होने वाला, क्योंकि वह तो शहर में रहने लगा है. 

बनज में भाई बंदी क्या. बनज – वाणिज्य, व्यापार. व्यापार में भाई बन्धु नहीं देखे जाते.

बनते देर लगती है, बिगड़ते देर नहीं लगती. अर्थ स्पष्ट है.

बनत काम में बाधा डालो कुछ तो पंच दिलाएगा. (भोजपुरी कहावत) बनते काम में बाधा डालो. झगड़ा निपटाने की एवज में कुछ न कुछ तो मिल जाएगा.  

बनिए का बहकावा और जोगी का फिटकारा. इनसे बचना मुश्किल है. फिटकारा – श्राप. 

बनिए का बेटा कुछ देख कर ही गिरता है. बनिये इतने चालाक माने गये हैं कि अगर गिरते भी हैं तो कुछ देख कर उसे उठाने के लिए गिरने का बहाना करते हैं.

बनिए का लिखा बनिया बांचे. कारोबार के रहस्य दूसरा कारोबारी ही समझ सकता है.

बनिए की उचापत घोड़े की दौड़ सी. बनिए का उधार घोड़े की तरह तेज दौड़ता है.

बनिए की कमाई उसके चूतड़ों में होती है. बनिया गद्दी से चिपक कर बैठता है तभी कुछ कमा पाता है.

बनिए की सलाम बेगरज नहीं होती. बनिया अगर किसी को सलाम कर रहा है तो उस का कुछ न कुछ स्वार्थ अवश्य होगा.

बनिक पुत्र जाने कहा गढ़ लेवे की बात. बनिए का बेटा किला खरीदने की बात नहीं सोच सकता. छोटी सोच रखने वाला व्यक्ति बहुत बड़ा काम नहीं कर सकता.

बनिया अपना गुड़ छिपा कर खाता है. बनिया अपने धन का दिखावा नहीं करता.

बनिया कब कबूले कि नफा बहुत है. बनिया अपने मुँह से कभी नहीं कहता कि उसे व्यापार में बहुत लाभ है.

बनिया को सखरच, ठाकुर को हीन, वैद्य पूत व्याध नहिं चीन्ह, पंडित चुप चुप, बेसवा (वैश्या) मईल, घाघ कहहिं पांचो घर गइल. बनिए का बेटा खर्चीला हो, ठाकुर का बेटा तेजहीन हो, वैद्य अपने पुत्र की बीमारी न समझ पाए (या वैद्य पुत्र को बीमारियों की पहचान न हो), पंडित चुप रहने वाला हो और वैश्या मैले वस्त्र पहनने वाली हो, ये पाँचों घर चले जाते हैं अर्थात व्यवसाय नहीं कर पाते हैं.

बनिया खाट में तो बामन ठाठ में, बनिया ठाठ में तो बामन खाट में. बनिया बीमार होगा तो पूजा पाठ करेगा जिससे पंडित की मौज होगी और बनिया ठाठ में होगा तो पंडित भूखा मरेगा.

बनिया गम खाने में सयाना. गम खाना – कष्ट को सह लेना. बनिया व्यापार में होने वाले भांति भांति के नुकसान झेल कर परेशानियों का अभ्यस्त हो जाता है.

बनिया गुड़ न दे गुड़ की सी बात तो करे. एक बनिए से किसी ने थोड़ा गुड़ मांगा. बनिए ने कहा, चलो आगे बढ़ो, चले आते हैं मुफ्त में मांगने. हराम का आ रहा है क्या. उसने कहा भैया गुड़ न दो गुड़ जैसी मीठी बात तो बोल सकते हो. व्यापार में बुजुर्ग लोग बच्चों को समझाते हैं कि हर एक किसी से मीठा बोलना सीखो. किसी को मना भी करो तो भी मिठास के साथ.

बनिया चाहे बैठा खाए, मूल धन कहीं न जाए. बनिया ही क्यों, हम सभी यह चाहते हैं कि हमें बैठे बैठे (बिना काम किए) खाने को मिलता रहे और हमारी पूँजी कम न हो. 

बनिया नरम के, नारी सरम के और सासन गरम के. सासन – शासन. बनिया तभी सफल हो सकता है जब वह नरम व्यवहार करे, नारी वही सम्मान पाती है जो लज्जावान हो और शासन वही कामयाब होता है जहाँ सख्ती हो.

बनिया बामन बन जाए तो सौदा तौले कौन. समाज में जिसका जो काम उसे वही करना चाहिए तभी समाज की व्यवस्था सुचारू रूप से चलती है. बनिया ब्राह्मण बन जाएगा तो सामान कौन बेचेगा.

बनिया मारे जान, ठग मारे अनजान. बनिया जानने वाले को ठगता है और ठग अनजान व्यक्ति को.

बनिया मीत न बेसवा सत्ती, सुनार साँच न एको रत्ती.  बनिया किसी का दोस्त नहीं हो सकता, वैश्या पतिव्रता नहीं हो सकती और सुनार सच्चा नहीं हो सकता. एको रती – रत्ती भर भी.

बनिया मीत न वेश्या सती, कागा हंस न गदहा जती. बनिया किसी का मित्र नहीं हो सकता, वैश्या सती सावित्री नहीं हो सकती, कौवा हंस नहीं हो सकता और गधा सन्यासी नहीं हो सकता.

बनिया मेवे का रूख. बनिए को खुश करो तो बहुत कुछ मिल सकता है.

बनिया या तो आंट मे दे या खाट में दे. आंट – परेशानी. बनिया मुसीबत में फंसता है तो पैसा खर्च करता है, या बीमार पड़ता है तो करता है.

बनिया रीझे तो हँस के दांत दिखावे. बनिया किसी से खुश होता है तो देता कुछ नहीं है, केवल हँस के दांत दिखा देता है.

बनिया रीझे, हर्रे दे. बनिया किसी से खुश होगा तो क्या देगा – हर्र. हर आदमी की अपनी अलग मानसिकता होती है जिस के अनुसार ही वह कुछ दे सकता है.

बनिया लड़ेगा भी तो गढी ईंट को ही उखाड़ेगा. 1. बनियों की कंजूसी पर व्यंग्य है. 2. बनिया लड़ता है तो पुराने बही खाते निकाल कर देनदारी दिखाता है.

बनिया लिखे पढ़े करतार. कुछ तो बनिए की लिखावट वैसे ही गंदी होती है, कुछ वह जान बूझ कर गंदा लिखता है जिसे कोई पढ़ न पाए. पहले के जमाने में बही खाते लिखने में मुंडी भाषा का प्रयोग होता था जिसमें मात्राएँ नहीं होती थीं इसलिए उसे पढ़ना और मुश्किल होता था.

बनिया हाट न छेडिये, जाट जंगल के बीच. अपने अपने स्थान पर सब मजबूत होते हैं. बनिए को बाज़ार में मत छेड़ो और जाट को जंगल में.

बनिये का जी धनिये बराबर. बनियों की कायरता और कंजूसी पर व्यंग्य. 

बनिये को पसंगे की आस. अधिक लाभ कमाने के लिए बनिए अपने तराजू में पासंग की जुगाड़ कर लेते हैं जिस से तराजू कम तौलता है.

बनिये से सयाना, सो दीवाना. बनिये से चतुर कोई नहीं होता.

बनी के सौ साले, बिगड़ी का एक बहनोई भी नहीं. आपके अच्छे दिनों में बहुत लोग आपसे रिश्ते निकाल लेते हैं. बुरे दिनों में कोई पास नहीं फटकता.

बनी न बिगारी तो बुंदेला काहे के. (बुन्देलखंडी कहावत) बुंदेले लोगों को यह कहने में गर्व होता है कि वे किसी की बनी बनाई बात को बिगाड़ने की क्षमता रखते हैं.

बनी फिरे बेसवा, खोले फिरे केसवा. पहले के जमाने में स्त्रियों के लिए बाल खोल कर घूमना बहुत निर्लज्जता की निशानी मानी जाती थी, केवल वैश्याएं ही ऐसा कर सकती थीं. बेसवा – वैश्या.

बनी बनावे बानिया, बनी बिगाड़े जाट, मूंड़ें सीस सराह के, डोम कवी अरु भाट. बनिया बनी हुई बात को और बनाता है जबकि जाट बनी हुई को बिगाड़ देता है. डोम, कवि और भाट आपकी प्रशंसा कर के आपको मूँड़ते हैं. मूंड़ें सीस – सर मूंडते हैं, सराह के – प्रशंसा कर के.

बनी बनी के सब कोई साथी, बिगड़ी के कोई नाहीं (बनी के सब यार हैं). जब आप के दिन अच्छे होते हैं तो सब आपके दोस्त होते हैं.

बने को सब ही सराहें, बिगड़े को कहें कमबख्त. जिसका काम बन जाए उसकी सब सराहना करते हैं. जिसका बिगड़ जाए उसे मूर्ख और अभागा कहते हैं.

बन्दर एक निसाचरी लाया कर अपनी अर्धंगी, लालदास रघुनाथ कृपा से पैदा हुए फिरंगी. बंदर ने एक राक्षसी से शादी कर ली, उनसे जो संतानें पैदा हुईं वही फिरंगी (अंग्रेज़) हुए. इसके पीछे एक किंवदन्ती भी है कि भगवान राम ने वानरों को वरदान दिया था कि उनके वंशज कलियुग में संसार पर राज करेंगे.

बन्दर कभी गुलाटी मारना नहीं भूलता. धूर्त व्यक्ति कभी धूर्तता करने से बाज नहीं आता.

बन्दर का जखम जल्दी न भरे. क्योंकि बन्दर उसे हर समय नोचता खुजाता रहता है.

बन्दर का हाल मुछंदर जाने. मुछन्दर बंदरों के सरदार को कहते हैं. जो सच्चा नेता है वही जनता का हाल जान सकता है.

बन्दर की आशनाई, घर में आग लगाई. बंदर से प्रेम करने का अर्थ है अपना घर बर्बाद करना. कहावत का अर्थ है कि अपात्र से प्रेम नहीं करना चाहिए. आशनाई – प्रेम.

बन्दर की दोस्ती, जी का जियान. ऊपर वाली कहावत की भांति.

बन्दर के गले में मोतियों का हार. किसी अपात्र को बहुमूल्य चीज़ मिल जाना (जैसे किसी कुरूप व्यक्ति को बहुत सुंदर पत्नी मिल जाना).

बन्दर के हाथ में नारियल. किसी मूर्ख व्यक्ति को कोई ऐसी चीज़ मिल जाना जिसका वह उपयोग न कर सकता हो (बंदर नारियल को तोड़ नहीं पाता है).

बन्दा जोड़े पली पली और राम लुढ़ावे कुप्पा. पली – एक प्रकार का चमचा जो कुप्पे या पीपे में से घी, तेल निकालने के काम आता है, कुप्पा – बड़ा मटका. आदमी चमचा चमचा भर के इकट्ठा करता है, ईश्वर एक साथ कुप्पा ही लुढ़का देता है.

बरखा हो तो खेलूं खाऊँ, काल पड़े घर जाऊं. वर्षा हो और अच्छी खेती हो तो यहीं मौज करेंगे, अकाल पड़ा तो घर चले जाएंगे. विशुद्ध स्वार्थ.

बरगद का भार जटाएँ झेलती हैं. बरगद का वृक्ष जब बहुत फ़ैल जाता है तो उसका तना पूरा भार नहीं संभाल पाता. बरगद की जो जड़ें (जटाएं) पेड़ से लटकती हैं वे जमीन तक पहुँच जाती हैं और मोटी हो कर तने के समान पेड़ का भार संभालती हैं. इसी प्रकार बड़े परिवार में एक बुजुर्ग पर सारी जिम्मेदारी न डाल कर और सदस्यों को भी परिवार का भार उठाना चाहिए. 

बरगद के नीचे पेड़ नहीं बढ़ते. बड़े पेड़ की छाँव में पेड़ नहीं बढ़ते. बच्चों को सीख देने के लिए यह कहावत कही जाती है कि हमेशा माँ बाप के साए में रहने वाला बच्चा स्वतंत्र रूप से कुछ नहीं बन सकता.

बरगद बोलते बोलते पीपल बोलने लगे. बात बदलने वाला व्यक्ति.

बरतन से बरतन खटकता ही है (जहां चार बर्तन होंगे वहां खट्केंगे भी). जब चार लोग साथ रहते हैं तो कभी कभार उनमें थोड़ा बहुत मन मुटाव हो जाना स्वाभाविक है.

बरसा पानी बह न पावे, तब खेती के मजा देखावे.  वर्षा के पानी को सहेजने से ही खेती अच्छी हो सकती है.

बरसात बर के साथ. वर्षा का आनंद पति के साथ ही आता है.

बरसात में घोंघे का मुँह भी खुल जाता है. कोई मूर्ख व्यक्ति अचानक किसी बात के बीच में बोल पड़े तो उस का मजाक उड़ाने के लिए. 

बरसें कम, गरजें ज्यादा. जो लोग बातें बढ़ बढ़ कर करते हैं और काम कम करते हैं उनके लिए.

बरसेगा मेह होंगे अनंद, तुम साह के साह हम नंग के नंग. वर्षा होगी, खेती फले फूलेगी, अमीर आदमी और अमीर हो जाएगा, पर गरीब गरीब ही रहेगा.

बरसो राम कड़ाके से, बुढ़िया मर गयी फाके से. तेज वारिश में बच्चे खुश हो कर बोलते हैं कि हे भगवान जोर से पानी बरसाओ जिससे बुढ़िया भूख से मर जाए. बच्चों को बुड्ढे लोगों से कुछ विशेष बैर होता है.

बरसौ राम जगै दुनिया, खाय किसान मरै बनिया. किसान भगवान से वर्षा के लिए प्रार्थना करते हुए ऐसा कहता है.

बरात की सोभा बाजा, अर्थी की सोभा स्यापा. बरात में जितने अधिक बाजे हों उसे उतना ही प्रभाव छोड़ने वाली माना जाता है, अर्थी में जितना अधिक क्रन्दन हो उसे उतना ही प्रभावी माना जाता है. (स्यापा – रोना पीटना)

बराबर से लड़े और ऊपर से रोवे. कुछ लोग लड़ाई पूरी करते हैं पर साथ में अपने को सताया हुआ दिखाने के लिए रोते भी जाते हैं.

बराबरों से कीजिए ब्याह, बैर औ प्रीत. विवाह आदि संबंध और प्रेम अपने से बराबर वालों में करना चाहिए, दुश्मनी भी अपने से बराबर वालों से करना चाहिए. अपने से बहुत बड़े से दुश्मनी करोगे तो बर्बाद हो जाओगे, बहुत छोटे से दुश्मनी करोगे तो आप को शोभा नहीं देगा.

बल बुद्धी की बोरियां, बिकें न हाट बजार. बल और बुद्धि बाजार में नहीं मिलते. ये परिश्रम से और भाग्य से ही मिलते हैं.

बलि का बकरा भी हँसे, ओछी पूजा देख. 1. कहीं पर कोई अधकचरा पंडित गलत सलत पूजा करा रहा हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए. 2. न्यायालयों में भ्रष्टाचार और गलत सलत निर्णय देख कर वादी और प्रतिवादी भी विद्रूप की हंसी हँस कर रह जाते हैं.

बलि के समय बकरा गायब. किसी समारोह में उपयुक्त समय पर यदि मुख्य व्यक्ति अनुपस्थित हो मजाक में यह बात कही जाती है (जैसे विवाह में दूल्हा ही गायब हो जाए). 

बस कर मियाँ बस कर, देखा तेरा लश्कर. जो अपनी बहादुरी की झूठी शान बघार रहा हो उससे कही जाने वाली कहावत.

बस हो चुकी नमाज, मुसल्ला बढ़ाइये. मुसल्ला – नमाज के लिए बिछाई जाने वाली दरी. काम पूरा हो जाने के बाद किसी से जाने के लिए कहने का एक तरीका यह भी है.

बसाव शहर का और खेत नहर का. शहर में बसना अच्छा होता है और नहर किनारे का खेत अच्छा होता है. नहर किनारे के खेत में सिंचाई में आसानी होती है.

बसि कुसंग चाहत कुसल, यह र‍हीम जिय सोस, (महिमा घटी समुद्र की, रावन बस्‍यो परोस). रहीम इस बात पर अफ़सोस करते हैं कि व्यक्ति बुरी संगत में रह कर भी अपनी कुशल चाहता है. रावण के पड़ोस में रहने के कारण समुद्र को अपमानित होना पड़ा था.

बसे बुराई जासु तन, ताहि को सन्मान. यहाँ सम्मान का अर्थ हृदय से किया गया सम्मान नहीं बल्कि मजबूरीवश किया गया दिखावटी सम्मान है. इस प्रकार का सम्मान दुष्ट लोगों को ही मिलता है. सूर्य चन्द्रमा की पूजा न कर के लोग शनि और राहु की ही पूजा करते हैं.

बस्ती ऊजड़ को खावे. जब बस्तियों का विस्तार होता है तो जंगल काटे जाते हैं और बस्तियों में रहने वाले मनुष्य वनों का अत्यधिक दोहन भी करते हैं.

बस्ती की लोमड़ी बाघ को डराती है. बस्ती में रहने वाला कमजोर प्राणी भी सुविधाएँ मिलने के कारण शक्तिशाली हो जाता है.

बहता पानी निर्मला, खड़ा सो गंदा होय, (साधू जन रजता भला, दाग लगे न कोय). बहता हुआ पानी स्वच्छ रहता है और यदि कहीं इकट्ठा हो जाए तो गंदा होने लगता है. इसी प्रकार साधु चलते फिरते ठीक रहते हैं, यदि एक स्थान पर रुक जाएं तो उनके चरित्र को दाग लग सकता है. पैसे के लिए भी ऐसा ही कहते हैं कि इकट्ठा किया हुआ धन पाप को जन्म देता है. इंग्लिश में इस आशय की एक कहावत है – Hoarded money becomes foul like standing water.

बहती गंगा में हाथ धो लो. मुफ्त में कोई सुविधा मिल रही हो तो उस का लाभ उठा लो.

बहते दरिया में चुल्लू भर लो. अवसर का लाभ उठा लो.

बहन के घर भाई कुत्ता, ससुरे के घर जमाई कुत्ता. विवाहित बहन के घर भाई को स्थाई रूप से नहीं रहना चाहिए और ससुराल में दामाद को घर जमाई बन कर नहीं रहना चाहिए. दोनों ही परिस्थितियों में व्यक्ति का कोई सम्मान नहीं होता.

बहन बत्तीस, भाई छत्तीस. जब भाई बहन एक से बढ़ कर एक हों तो.

बहन मरी तो जीजा किसके. जीजा से रिश्ता बहन के कारण ही होता है. बहन की मृत्यु हो जाए तो रिश्ते का आधार ही क्या रहा. इस प्रकार की एक कहावत है – बेटी मरी जमाई चोर.

बहरा पति और अंधी पत्नीसदा सुखी जोड़ा. पति अगर बहरा हो तो पत्नी की हर समय की बक बक से परेशान नहीं होगा, और पत्नी अंधी हो तो हर समय कुछ न कुछ देख कर शक नहीं करेगी.

बहरा सुने धर्म की कथा. बहरा व्यक्ति प्रवचन सुने तो बेकार है. जिस ज्ञान को कोई ग्रहण ही नहीं कर सकता वह उस के लिए बेकार है.

बहरा सो गहरा. बहरा आदमी प्राय: गंभीर प्रवृत्ति का होता है.

बहरे आगे गावना, गूंगे आगे गल्ल, अंधे आगे नाचना, तीनों अल्ल बिलल्ल. बहरे के आगे गाना, गूंगे से बात करने की कोशिश करना और अंधे के आगे नृत्य करना ये तीनों मूर्खतापूर्ण कार्य हैं.

बहसू के नौ ठो हल, खेत में गया एको नहीं. बहसू – बहस करने वाला. बहुत बहस करने वाला व्यक्ति केवल बहस करना जानता है, अपने संसाधनों से काम लेना नहीं जानता.

बहादुरी का काम, चाहे नहीं नाम. जो सही मानों में बहादुर होते हैं वे नाम के लिए काम नहीं करते.

बहादुरी तो बैरी की भी सराही जाती है. शत्रु भी अगर वीर हो तो उस की वीरता की प्रशंसा करनी चाहिए.

बहु ऋणी, बहु धन्धी, बहु बेटियों का बाप, इन्हें कबहुं न मारिए, ये मर जाएँ आप. बहुत से लोगों से उधार लेने वाला, बहुत से व्यवसाय करने वाला और बहुत सी बेटियों का बाप, इनको कभी न मारो. ये बेचारे तो अपने आप मर जाते हैं.

बहु गुणी, बहु दुखी. जिसमें जितने अधिक गुण होते हैं वह उतना अधिक दुखी होता है. जो मूर्ख व्यक्ति है वह सबसे अधिक सुखी होता है.

बहु निबल मिल बल करें, करैं जो चाहे सोइ. कमजोर लोग यदि संगठित हो कर कार्य करें तो जो चाहें कर सकते हैं.

बहू सरम की बिटिया करम की. बहू वही अच्छी है जो लज्जावान हो, बेटी वही अच्छी है जो काम काज करती हो.

बहुत बोलना मूरखताई. बहुत बोलना मूर्खता की निशानी है.

बहुत सी कथनी से थोड़ी सी करनी भली. बहुत अधिक हांकने के मुकाबले थोड़ा सा काम कर के दिखाना अधिक अच्छा है.

बहू आई सास हरखी, पैर लगी तो परखी. बहू के आने पर सास को एकदम से बहुत खुश नहीं होना चाहिए, जब उस के लक्षण देख ले तब खुश होना चाहिए. 

बहू और भैंस का खिलाया बेकार नहीं जाता. बहू को अच्छा खाने को मिलेगा तो घर का काम भी ठीक से कर पाएगी और स्वस्थ संतान को जन्म देगी. भैंस को ठीक से खिलाया जाएगा तो दूध अच्छा देगी और पड़िया जनेगी.

बहू के हाथ चोर मरवाए, चोर बहू का भाई. बहू से कहा गया कि चोर को मारो, यह किसी को मालूम ही नहीं कि चोर तो बहू का भाई है. जिस से श देने को कह रहे हो वह तो अपराधियों से मिला हुआ है.

बहू चुस्त और कूआं पास. बहू काम में मुस्तैद हो और कुआँ भी पास हो तो काम में आसानी ही आसानी है. सारी बातें अनुकूल हों तो काम आसानी से होता है.

बहू नवेली और गऊ दुधेली. नई बहू और दुधारी गाय सबको अच्छी लगती हैं.

बहू ने कूटा पीसा, सास ने हाथ साने. एक आदमी मेहनत कर रहा हो और दूसरा केवल दिखावा, तब यह कहावत कही जाती है. 

बहू परोसा खाएगा जीते जी मर जाएगा. बहू अपने ससुर को पौष्टिक खाना क्यों खिलाएगी?

बहू बिना कैसा आंगन. घर के आंगन की शोभा बहू और बच्चों से ही होती है.

बहू लाली, धन घर खाली. बहू श्रृंगार करने की शौक़ीन (खर्चीली) हो तो धन और घर खाली कर देती है.

बा अदब बा नसीब, बे अदब बे नसीब. दूसरों का सम्मान करने वालों का भाग्य साथ देता है, जो दूसरों का सम्मान नहीं करते वे भाग्य हीन हो जाते हैं.

बाँझ क्या जाने प्रसव की पीड़ा. जिसने कभी बच्चा नहीं जना वह स्त्री प्रसव की पीड़ा को नहीं समझ सकती. जो कष्ट आपने स्वयं नहीं झेला उसकी परेशानी को आप नहीं समझ सकते.

बाँझ गाय द्वार की सोभा. जो गाय दूध नहीं देती वह भी द्वार की शोभा तो बढ़ाती ही है. घर के बड़े बूढों के लिए भी यही बात कही जा सकती है.  

बाँझ गाय से घी की आस. गाय बाँझ होगी तो दूध ही नहीं देगी, फिर घी कैसे मिलेगा. किसी ठप पड़े व्यवसाय से कोई लाभ की आशा कर रहा हो तो. 

बाँझ बंझौटी, शैतान की लँगोटी. बाँझ – जिस के संतान न हो. पहले के जमाने में लोग संतान न होने पर केवल स्त्री को ही दोषी मानते थे और बहुत प्रताड़ित करते थे. ऐसे ही लोगों का कथन.

बाँट कर खाना, स्वर्ग में जाना. अपनी कमाई को बाँट कर खाने वाले को स्वर्ग में भी स्थान मिलता है और इस धरा पर भी उस के लिए स्वर्ग है.

बाँट खाओ या सांट खाओ. सांट – अदला बदली (वस्तु विनिमय). भोजन को बाँट कर खाना चाहिए या अदला बदली कर के. बाँट कर खाने से परोपकार होता है और एक दूसरे से अदला बदली करने से सभी प्रकार के तत्व भोजन से प्राप्त हो जाते हैं.

बाँबी में हाथ तू डाल मंत्र मैं पढूं. सांप को पकड़ने के लिए मन्त्र पढ़ते हैं और हाथ से उसे पकड़ते हैं. मन्त्र पढने में तो कोई खतरा नहीं है पर बांबी में हाथ डालने में बहुत खतरा है. जब कोई धूर्त व्यक्ति लाभ पाने के लिए साथी को खतरे में डाल रहा हो तो.

बांटने से ज्ञान बढ़ता है. ज्ञान को बांटने से ज्ञान और बढ़ता है.

बांटने से सुख दूना होता है और दुख आधा. खुशियों को सबके साथ मिल कर मनाना चाहिए क्योंकि इस से खुशियाँ बढ़ती हैं. दुःख को भी दूसरों के साथ साझा करना चाहिए क्योंकि इस से दुःख कम हो जाता है.

बांटल भाई, पड़ोसी बराबर. जिस भाई से बंटवारा हो चुका हो वह पड़ोसी के बराबर ही है.

बांदी के आगे बांदी, मेह गिने न आंधी. नौकर के नीचे का नौकर बहुत काम करता है.

बांध कुदारी खुरपी हाथ, लाठी हंसिया राखे साथ, काटे घास औ खेत निरावे, सो पूरा किसान कहलावे. जो अपने साथ कुदाली, खुरपी, लाठी और हंसिया रखता है, अपने हाथ से घास काटता है और खेत निराता है वही किसान कहलाता है.

बांधा बरधा रहे मठाय, बैठा जवान जाय तुन्दियाय. बैल बंधे बंधे सुस्त हो जाता है और जवान आदमी कुछ न करे तो उस की तोंद निकल आती है. (घाघ कवि) 

बांबी पास मरे, सांप का नाम बदनाम. कोई अगर सांप की बांबी के पास मरता है तो सब लोग सांप पर ही शक करते हैं. जो बदनाम होता है उसका नाम कई बार बिना कुछ किए भी घसीटा जाता है.

बांस की कोख से रेड़ पैदा हुआ है. रेड़ – अरंड. किसी सज्जन व्यक्ति के घर कुपुत्र पैदा हो जाए तो.

बांस चढ़ी गुड़ खाए. नटनी बांस पर चढ़ कर ऊपर बंधा हुआ गुड़ तोड़ कर लाती है. अर्थ है कि जो प्रयास करेगा वही फल पाएगा.

बांस चढ़ी नटनी कहे, होत न नटियो कोय, मैं नट कर नटनी बनी, नटे सो नटनी होय. नट जाना – मना करना, मुकर जाना. बांस पर चढ़ी नटनी कह रही है कि पैसा होते हुए भी देने को मना मत करना. मैंने मना किया था तो मैं नटनी बनी, जो मना करेगा वह नटनी बनेगा.

बांस डूबें, बौरा थाह मांगे. पानी इतना गहरा है कि बांस डूब जाए और मूर्ख व्यक्ति यह जानने की कोशिश कर रहा है कि पानी कितना गहरा है. (हाथी घोड़ा डूब गए, गदहा पूछे कित्तो पानी).

बांह गहे की लाज. किसी की बांह पकड़ी है (सहारा दिया है) तो निभाओ जरूर, या सहारा ही मत दो.

बाई खा लें तो बामनों को दें. स्वार्थी लोगों के लिए कहा गया है. कायदे में तो पहले ब्राह्मणों को दान दे कर या भोजन करा के तब स्वयं खाना चाहिए. 

बाको अच्छा मत कहो, जो तेरे धोरे आय, करे बुराई और की, अपने तईं बधाय. जो आप के घर आ कर औरों की बुराई करे और अपनी प्रशंसा करे वह अच्छा व्यक्ति नहीं है.

बाघ ने मारी बकरी और कुत्ते हड्डी खाएँ. 1.शक्तिशाली लोग कोई उद्यम करते हैं तो समाज के कमजोर लोगों को भी उस का लाभ मिलता है. 2.बड़े अपराधी बड़े अपराध करते हैं और छोटे अपराधी उनके साए में फलते फूलते हैं.

बाघ बकरी एक घाट पर पानी पीते हैं. जहाँ किसी को किसी से भय न हो.

बाघ मार नदी में डारा, बिलाई देख डरानी. कोई ऐसी स्त्री अपनी बहादुरी के किस्से सुना रही थी कि उसने बाघ को मार कर नदी में डाल दिया था. अचानक वहाँ बिल्ली आ गई तो डर वह गई. झूठी शेखी बघारने वालों के लिए. 

बाघ से लड़ने के लिए बघनखा. बघनखा एक खतरनाक अस्त्र होता है जिसे उँगलियों में पहन कर मुट्ठी बाँध ली जाती है. उस के मुड़े हुए काँटों से किसी का भी पेट फाड़ा जा सकता है. कहावत का अर्थ है कि खतरनाक दुश्मन से लड़ने के लिए खतरनाक अस्त्र ही चाहिए.

बाज के बच्चे मुंडेरी पर नहीं उड़ा करते. बाज अपने बच्चे को बहुत कठिन शिक्षा दे कर उड़ना सिखाता है जिससे वह शिकारी पक्षी बन सके. कहावत में ऐसा बताया गया है कि बहादुर लोग कड़ी मेहनत से ही उंचाई पर पहुँचते हैं.

बाजार का सत्तू, बाप भी खाए, बेटा भी खाए (बाज़ार की मिठाई, जिसने चाही उसने खाई). वैश्या के लिए. वैश्या बाजार में बिकने वाली वस्तु की तरह है जिसे जो भी चाहे दाम दे कर खरीद सकता है.

बाजार किसका, जो लेकर दे उसका (बाज़ार उसका जो ले के दे). जो उधार ले कर समय से वापस करे उसी की बाजार में साख है.

बाजार के दोनवा चाटे गुजर न होई. (भोजपुरी कहावत) दोनवा – दोने, पत्ते. कोई व्यक्ति चाहे कि रोज बाजार की चाट पकौड़ी खा कर काम चला लेगा तो ऐसा नहीं हो सकता. इस में अत्यधिक खर्च भी है और बीमार होने का डर भी. कहावत के द्वारा वैश्यावृत्ति के प्रति भी आगाह किया गया है.

बाड़ के सहारे दूब बढ़ती है (बाड़ बिना बेल नहीं चढ़ती). कमजोर व्यक्ति को आगे बढ़ने के लिए किसी का सहारा चाहिए होता है.

बाड़ लगाईं खेत को बाड़ खेत को खाय, राजा हो चोरी करे कौन करे फिर न्याय (बाड़ ही जब खेत को खाए तो रखवाली कौन करे). खेत की रक्षा करने को बाड़ लगाई और बाड़ ही खेत को खाने लगी. जब राजा ही चोरी करेगा तो न्याय कौन करेगा.

बाड़ी बारह, हाट अठारह, घर बैठे चौबीस. खेत से कोई चीज़ बारह रूपये में मिलती है तो बाज़ार में अठारह की और घर बैठे मंगाना चाहो चौबीस की पड़ती है. कहावत में जो अनुपात बताया गया है वास्तविकता में उस से भी बहुत अधिक अंतर होता है.

बाढ़े पूत पिता के धरमे, खेती उपजे अपने करमे. पुत्र पिता के धर्म कर्म से बढ़ता है पर खेती अपने कर्म से ही बढ़ती है.

बात एक ही है साँपनाथ कहो या नागनाथ. दुष्ट को किसी भी नाम से पुकारो, वह दुष्ट ही रहेगा. 

बात कम हुई, बदनामी ज्यादा हुई. किसी स्त्री ने पड़ोस के पुरुष से जरा सी बात कर ली तो लोगों ने दोनों को खूब बदनाम किया. किसी बहुत छोटी सी बात पर अनावश्यक रूप से अधिक बदनामी होना.

बात कहिए जगभाती, रोटी खाइए मनभाती. बोली ऐसी बोलनी चाहिए जो सब को प्रिय लगे. खाना वह खाना चाहिए जो अपने को अच्छा लगे.

बात कही और पराई हुई. बात जब मुँह से निकल जाती है तो आप के वश में नहीं रहती.

बात की बात खुराफ़ात की लात, बकरी के सींगों को चर गए बेरी के पात. पहले के जमाने में कहानियाँ सुनाने का बहुत रिवाज़ था. एक विशेष प्रकार की कहानियाँ होती थीं गप्प. उन्हीं गप्पों की शुरुआत इस तरह से होती थी. कहावत का अर्थ है कोई असम्भव बात.

बात गई फिर हाथ न आती.  सम्मान चला जाए तो वापस नहीं आता.

बात चूका लात खाय. जो अपनी बात पर कायम नहीं रहता वह लात खाता है (प्रताड़ित किया जाता है).

बात छीले रूखड़ी औ काठ छीले चीकना. बात छीलने का यहाँ पर अर्थ है अनावश्यक बहस करना. काठ को छीलो तो चिकना होता है पर ज्यादा खोद खोद कर बात पूछने से या बहस करने से आपस में रुखाई होती है (मधुरता कम होती है).

बात पूछे, बात की जड़ पूछे. बहुत खोद खोद के कोई बात पूछने वाला.

बात बिगारे तीन, अगर मगर लेकीन. शंका और संशय से बनते काम बिगड़ जाते हैं. 

बात में हुँकारा और फौज में नगाड़ा. ये दोनों चीजें लोगों में जोश भरने का काम करती हैं.

बातन हाथी पाइए, बातन हाथी पाँव. (बातों हाथी पायं, बातों हाथी पायं). एक ही बात को कहने का तरीका इतना फर्क हो सकता है कि राजा खुश हो कर हाथी इनाम में दे दे या नाराज हो कर हाथी के पैर तले कुचलवा दे.

बातें कम, लातें ज्यादा. मूर्ख लोग स्वस्थ तर्क वितर्क के मुकाबले लातों घूंसों में विश्वास रखते हैं.

बातें चीतें हमसे लेओ, खसम को रोटी तुम पै देओ. दुनिया भर की बातें और कजिए किस्से तो हम से कराओ और कोई काम आ पड़े तो तुम करो. 

बातों की बुढ़िया करतब की ख्वार. जो बातें बहुत बड़ी बड़ी बनाए पर काम चौपट कर दे.

बातों के राजा नहीं होय काजा. जो लोग बातें बहुत करते हैं पर काम कुछ नहीं करते उनके लिए यह कहावत कही जाती है. 

बातों चीतों मैं बड़ी, करतब बड़ी जिठानी. बातें बनाने में तो मैं बड़ी हूँ और कोई काम आ पड़े तो जिठानी बड़ी हैं.

बादल की छाया से कै दिन काम सरे. अस्थिर वृत्ति (चलायमान प्रकृति) वाले व्यक्ति पर निर्भर नहीं रहा जा सकता. बादल की छाया अभी है अभी खत्म हो जाएगी.

बादल देख कर ही घड़ा फोड़ दिया. मूर्खतापूर्ण और अदूरदर्शितापूर्ण काम. बादल आए हैं तो क्या मालूम बरसेंगे भी या नहीं, और बरसेंगे भी तो पानी भरने के लिए घड़ा तो चाहिए ही होगा.

बादलों को थेगली. बादलों में पैबंद लगाना. असम्भव काम. 

बानिये की बान न जाए, कुत्ता मूते टांग उठाए. जिस व्यक्ति की जो आदत होती है वह जाती नहीं है. बान – आदत, बानिया – आदत से मजबूर आदमी.

बाप ओझा, मां डायन. विचित्र संयोग. माँ डायन है और बाप डायन को भगाने वाला ओझा है.

बाप कर गए मजा, बेटा पावे सजा. बाप ने गलत काम कर के या उधार ले कर गुलछर्रे उडाए हों और बेटे को उस का भुगतान करना पड़े तो यह कहावत कही जाती है. 

बाप का किया बेटे के आगे आता है. मनुष्य जो गलतियाँ करता है वो उसकी संतानों को भुगतनी पड़ती हैं.

बाप का नाम दमड़ी, बेटे का नाम पचकौड़िया, नाती का नाम दोकौड़िया, तीन पुरसें बीतीं छदाम न पूरा हुआ. दमड़ी = 12 कौड़ी, छदाम = 24 कौड़ी. किसी निम्न कोटि के खानदान का मजाक उड़ाने के लिए.

बाप का पोखर है तो क्या कीच खानी है. कोई चीज़ पुरखों से मिली है तो उसका गलत प्रयोग थोड़े ही करोगे.

बाप की कमाई पर तागड़धिन्ना. जो लोग अपने आप कुछ नहीं करते और पैतृक सम्पत्ति पर ऐश करते हैं, उन पे व्यंग्य.   

बाप की टांग तले आई, और माँ कहलाई. बाप की रखैल के लिए.

बाप के गले लबनी, पूत के गले रुद्राच्छ. लबनी – ताड़ी इकठ्ठा करने वाली हांडी. बाप महा कुकर्मी है और पुत्र रुद्राक्ष की माला पहने साधु बना घूम रहा है.

बाप जिन्न और बेटा भूत. जहाँ बाप बदमाश हो और बेटा उस से भी बढ़ कर हो.

बाप देवता पूत राक्षस. पिता बहुत भला आदमी था पर बेटा उतना ही दुष्ट.

बाप न दादे, सात पुश्त हरामज़ादे. किसी नीच व्यक्ति को गाली देने के लिए (इसके केवल बाप और दादा ही नहीं सात पीढियां धूर्त हैं).

बाप न मारी मेंढकी, बेटा तीरंदाज. बाप ने कभी मेंढकी भी नहीं मारी और बेटा अपने को योद्धा समझता है. शेखी खोरों का मजाक उड़ाने के लिए.

बाप नरकटिया, पूत भगतिया. नरकटिया – कीड़े मकौड़ों जैसे आचरण वाला क्षुद्र व्यक्ति (नरकीट). बाप नरकीट है और बेटा भगत बना हुआ है.

बाप पदहिन न जाने, पूत शंख बजावे. बाप पादना नहीं जानते और पुत्र शंख बजा रहा है.

बाप पेट में, पूत ब्याहने चला. उचित समय से बहुत पहले कोई काम करने की कोशिश की जाए तो उसका मजाक उड़ाने के लिए यह अतिश्योक्ति पूर्ण बात कही जाएगी (बाप अभी पैदा भी नहीं हुआ है और बेटा विवाह करने चला है).

बाप बड़ा न मैया सबसे बड़ा रुपैया. रुपया सब सम्बन्धों से बड़ा है.

बाप बनिया, पूत नवाब. बाप बनिए जैसा कंजूस और शातिर हो और बेटा नवाबों जैसा दरियादिल, तो यह कहावत कही जाती है. 

बाप भिखारी पूत भंडारी. किसी गरीब पिता का पुत्र धनवान हो जाए और अपने धन का प्रदर्शन करने लगे तो लोग व्यंग्य में ऐसा कहते हैं.

बाप मरिहैं, तब पूत राज करिहैं. बाप के मरने के बाद ही बेटा राजा बनेगा. कोई बाधा दूर होने तक प्रतीक्षा करनी ही पड़ेगी.

बाप मरे घर बेटा हुआ, इसका टोटा उस में गया. एक नुकसान और एक फायदा हो तो नुकसान की भरपाई मान ली जाती है.

बाप मारे पूत साखी दे. साखी – साक्षी, गवाही. पिता ने कोई अपराध किया हो और पुत्र को गवाही के लिए बुलाया जाए तो न्याय कैसे होगा.

बाप से बैर पूत से सगाई. घर में किसी एक व्यक्ति से दुश्मनी और दूसरे से दोस्ती.

बाबरे गाँव में ऊँट पाहुना. मूर्खों के बीच में कुछ भी संभव है (वे ऊँट को भी सम्मानित अतिथि मान सकते हैं).

बाबली गीदड़ी के पकड़े कान. न छोड़े जाएँ, न पकड़े राखे जाएँ. (हरियाणवी कहावत) पागल गीदड़ी के कान धोखे से पकड़ लिए हैं, अब छोड़ते हैं तो वह काट खाएगी और पकड़े रहेंगे तो आखिर कब तक पकड़े रहेंगे. जिस काम को करते रहने और छोड़ने दोनों में परेशानी हो.

बाबले कुत्ते हिरनों के पीछे भागें. हिरन जैसे तेज प्राणी को कुत्ते कभी नहीं पा सकते. अपनी पहुँच से बाहर कोई लक्ष्य पाने का प्रयास करना.

बाबा कमावे, बेटा उड़ावे. नालायक बेटे बाप दादों की मेहनत की कमाई को उड़ा देते हैं.

बाबा की बातें, कुत्ता चले बरातें. बाबा जी आप भी क्या बात करते हैं, कुत्ते भी कहीं बरात में चलते हैं? बड़े बुज़ुर्ग कभी कभी गप्पें हांकते हैं तो बच्चे इस प्रकार उनका मजाक उड़ाते हैं.

बाबा घर आना चाहिए, चाहे गली गली आए चाहे छप्पर फाड़ के आए. कैसे भी हो काम होना चाहिए.

बाबा जी कूदे तो सीधे बैकुंठ के अन्दर. बाबा जी को चेताया जा रहा है कि यहाँ से कूदे तो सीधे स्वर्ग सिधार जाओगे. 

बाबा जी के दाना, हक लगा के खाना. अपनी पुश्तैनी संपत्ति का उपभोग करने का व्यक्ति को पूरा अधिकार है. 

बाबा जी चेले बहुत हो गए हैं, बच्चा भूखों मरेंगे तो आप चले जाएंगे. जिम्मेदारियों से तनावग्रस्त न हो कर मस्त रहना.

बाबा मरे नाती जन्मा, वही तीन के तीन. घर या समूह में से कोई कम हुआ तो कोई बढ़ गया. खर्च के लिए उतने ही लोग रहे.

बाभन कुत्ता नाई, जात देख गुर्राई / घिनाई. ब्राह्मण, कुत्ता और नाई (हज्जाम नहीं कर्मकांड कराने वाला नाई) अपनी जाति वालों से ही शत्रुता रखते हैं / घृणा करते हैं.

बाभन कुत्ता भाट, जात जात के काट. ब्राह्मण कुत्ता और भाट अपनी जाति वालों की काट करते हैं.

बाभन को घी देव बाभन झल्लाय. किसी को लाभ पहुँचाने की कोशिश करो और वह नाराजगी दिखाए तो यह कहावत कही जाती है. 

बामन का बनाया बामन खाए न तो बैल खाए. ब्राह्मणों की बनाई खराब रसोई का मजाक उड़ाने के लिए.

बामन का बेटा, बावन बरस तक पोंगा. ब्राहण का बेटा काफ़ी आयु तक पिता का पिछलग्गू रहता है.

बामन का मन लड्डू में. अर्थ स्पष्ट है.

बामन कुत्ता हाथी, ये न जात के साथी (तीनों जात के घाती). ब्राहण, कुत्ता और हाथी अपनी जाति वाले का साथ नहीं देते.

बामन को दी बूढ़ी गाय, धरम न होय दलिद्दर जाय. ब्राह्मण को बूढ़ी गाय दान कर के बड़े खुश हैं, पुण्य न भी मिले तो भी कम से कम उसे खिलाने का झंझट तो गया.

बामन को बामन मिला, मुख देखे व्यौहार, लेन देन को कुछ नहीं नमस्कार ही नमस्कार. ब्राह्मण यदि समाज के किसी अन्य वर्ग के व्यक्ति से मिलते हैं तो आशीर्वाद देते हैं और बदले में कुछ पाने की आशा करते हैं. यदि दूसरा ब्राह्मण ही मिल जाए तो कोई लेन दन कुछ नहीं होता बस नमस्कार होती है. एक समय में ब्राह्मणों की ऐसी छवि बन गई थी कि वे भांति भांति से लोगों को ठगते हैं, उसी पर व्यंग्य.

बामन को लरिका मूलन में नाहिं होत. ब्राहण लोग आम लोगों को तरह तरह के भय दिखा कर धन ऐंठते हैं. इसी प्रकार का एक भय है मूल नक्षत्र का. मूल नक्षत्र को अशुभ बता कर उसमें जन्म लेने वाले बच्चों के लिए पूजा पाठ कराने का प्रावधान रखा गया है. कहावत में कहा गया है कि ब्राह्मण का बेटा मूलों में नहीं होता क्योंकि उस को मूल नक्षत्र का बता कर किस से धन ऐठेंगे.

बामन को साठ बरस पे बुद्धि आवे, और तब वह मर जावे. (राजस्थानी कहावत) साठ वर्ष का होके तो ब्राह्मण को बुद्धि आती है और उसके बाद वह मर जाता है. 

बामन जीमे ही पतियाय. ब्राह्मण जब भर पेट खाना खा लेता है तभी किसी का विश्वास करता है.

बामन नाई कूकरो, जात देख गुर्राएं, कायथ कागो कूकड़ो, जात देख हरषाएं. ब्राह्मण, नाई और कुत्ता, अपनी जाति वाले को देख कर गुर्राते हैं. कायस्थ, कौवा और मुर्गा अपनी जाति वालों को देख कर खुश होते हैं. 

बामन नाचे, धोबी देखे. उल्टी रीत.

बामन बनिया पनिया सांप, न उन में रिस न इन में बिस. (बुन्देलखंडी कहावत) ब्राह्मण और बनिया पानी के सांप के समान हैं. वे क्रोध (रिस) नहीं करते और इन में विष नहीं होता. 

बामन बांधे छुरा तो बड़ा बुरा. ब्राह्मण से यह आशा नहीं की जाती कि वह छुरा रखेगा. 

बामन बेटा लोटे पोटे, मूल ब्याज दोनहूँ घोटे. ब्राह्मण का बेटा कुछ न कुछ उलट फेर कर के मूल धन और ब्याज दोनों ही पचा लेता है.

बामन हाथी चढ़ कर भी मांगे. आदमी की आदत नहीं जाती. ब्राह्मण को हाथी मिल गया तो उस पर चढ़ कर भिक्षा मांग रहा है.

बामन, कुक्कुर, घोड़िया, जात देखि नरियाए. ब्राह्मण, कुत्ता और घोड़ा अपनी ही जाति के दुश्मन होते हैं.

बामनों में तिवारी, कटहल की तरकारी और हैजा की बीमारी ये तीनों खतरनाक होते हैं. तिवारी लोगों से परेशान किसी व्यक्ति का कथन.

बाय बह जाएगी और बात रह जाएगी. समय बदल जाता है, परिवेश बदल जाता है पर व्यक्ति की बात रह जाती है.

बार बार चोर की तो एक बार शाह की. चोर बार बार चोरी कर के राजा को परेशान करता है पर राजा जब एक बार चोर को पकड़ लेता है तो उसी एक बार में सारा हिसाब पूरा कर देता है.

बारह गाँव का चौधरी, अस्सी गांव का राय, अपने काम न आए तो ऐसी तैसी में जाए. अँगरेज़ लोग अपने चाटुकार लोगों को तरह तरह के इनाम और ओहदे दिया करते थे. किसी चाटुकार को चौधरी साहब की पदवी दे कर बारह गाँव की जमींदारी दे दी तो उस से बड़े चाटुकार को अस्सी गाँव का पट्टा दे कर राय साहब बना दिया. कहावत में कहा गया है कि कोई कितना भी बड़ा आदमी क्यों न हो अगर हमारे काम नहीं आता तो ऐसी तैसी में जाए.

बारह बरस का कोढ़ी, एक ही इतवार पाक. कुछ लोग (विशेषकर ईसाई) मानते हैं कि किसी एक पवित्र इतवार को कुछ चमत्कारों द्वारा कुष्ठ रोग को ठीक किया जा सकता है. कहावत में कहा गया है कि बहुत पुराना कुष्ठ रोगी है जिसे कई बार चमत्कारिक इलाज की जरूरत है, लेकिन एक ही इतवार ऐसा पड़ रहा है. आवश्यकताएँ बहुत अधिक हों और साधन सीमित हों तो. 

बारह बरस की कन्या और छठी रात का वर, मन माने तो कर. कन्या बारह बरस की है और वर छह दिन का है. समझ में आता हो तो शादी करो वरना नहीं. कहावत का अर्थ है कि काम बड़ा बेमेल है, मर्जी हो तो करो.

बारह बरस तप किया, जुलहा भतार मिला. बारह साल कन्या ने व्रत तपस्या की लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ, शादी गरीब जुलाहे से हुई. 

बारह बरस बाद घूरे के भी दिन फिरते हैं. घूरा – कूड़े का ढेर. बेकार से बेकार व्यक्ति या स्थान का भाग्य कभी न कभी बदलता है.

बारह बरस में बाँझ ब्याही, पूत ब्याही लंगड़ा. बहुत दिनों में कोई काम किया और वह भी ढंग का नहीं किया.

बारह बरस में बाबा बोले, बोले पड़ेगा अकाल. बाबा बारह बरस बाद तो बोले, और बोले भी तो इतनी अशुभ बात कि अकाल पड़ेगा.

बारह बरस लौं कूकुर जीवे, अरु तेरह तक जिए सियार, बरस अठारह छत्री जीवे, आगे जीवन को धिक्कार. कुत्ता बारह साल तक जीवित रहता है और सियार तेरह साल तक. मनुष्य की आयु सौ बर्ष मानी गयी है परन्तु क्षत्रिय योद्धा अठारह बरस तक ही जीते हैं (इसके बाद युद्ध में मारे जाते हैं) इसलिए इसके आगे यदि वे जिएँ तो वे कायर माने जाएंगे (क्षत्रिय युवकों को युद्ध में जाने के लिए उकसाने हेतु कथन).

बारह बरस सेई कासी, मरने को मगहर की माटी. ऐसा माना जाता था की काशी में मरने वाला निश्चित रूप से स्वर्ग जाता है और काशी के पास मगहर नामक स्थान में मरने वाला निश्चित रूप से नर्क में जाता है. कबीरदास इस प्रकार के अंधविश्वासों के कट्टर विरोधी थे. वे जीवन भर काशी में रहे और मृत्यु निकट आने पर जानबूझ कर मगहर चले गए थे. एक तो उन के लिए विशेष रूप से यह कहावत कही गई है. दूसरे ऐसे लोगों के लिए जिनका जीवन अच्छा कटा हो पर मृत्यु के समय जिनकी दुर्गति हुई हो उनके लिए यह कहावत कही जा सकती है.

बारह बामन बारह बात, बारह खाती (बढ़ई) एक ही बात. आप किसी समस्या का हल पूछेंगे तो बारह ब्राह्मण बारह तरह की बात कहेंगे और बारह बढ़ई एक ही हल बताएंगे. कहावत का अर्थ है कि पंडितों में एक राय नहीं हो सकती.

बारह साल दिल्ली में रहे पर भाड़ ही झोंका. अच्छी से अच्छी परिस्थितियों में रह कर भी कोई प्रभावशाली कार्य नहीं कर पाए.

बाराती किनारे हो जइहैं, काम दूल्हा दुल्हन से पड़िहैं (बाराती जीम के जाते धाम, दूल्हा दुल्हन से पड़ता काम). किसी भी आयोजन में इकठ्ठी हुई भीड़ आप के किसी काम की नहीं है. काम मुख्य लोगों से ही पड़ेगा.

बाल की खाल, हिंदी की चिंदी. व्यर्थ की नुक्ताचीनी.

बाल जंजाल, बाल सिंगार. बालों को धोना, काढ़ना, सुलझाना और समय समय पर कटवाना ये सब जी का जंजाल हैं पर बाल मनुष्य का श्रृंगार भी हैं. किसी भी चीज़ से हानि लाभ दोनों ही होते हैं.

बाल दोस गुन गनहिं न साधू. सज्जन लोग बच्चों के दोष नहीं गिनते (क्षमा कर देते हैं).

बाल नोचने से ऊंट नहीं मरते. बड़े लोगों को छोटे मोटे नुकसान से कोई फर्क नहीं पड़ता.

बाल मराल कि मंदर लेहीं. हंस का बच्चा कहीं मंदराचल पर्वत को उठा सकता है? यह प्रसंग राम चरित मानस का है. जब ऋषि विश्वामित्र ने जनक जी के धनुष यज्ञ में राम से धनुष उठाने को कहा तो वहाँ उपस्थित स्त्रियाँ कहने लगीं कि यह सुकोमल बालक इस धनुष को कैसे उठा सकता है?

बाल हठ, तिरिया हठ, राज हठ. तीन हठ प्रसिद्ध हैं, बच्चों का हठ, स्त्रियों का हठ और राजा का हठ.

बालक हो बुद्धिमान सो बड़ा नर जान तू, बूढ़ा हो अज्ञानी सो पशु समान मान तू. बालक यदि बुद्धिमान हो तो उसे व्यस्क मानो और बूढ़ा अगर अज्ञानी हो तो उसे पशु समान मानो.

बालू की भीत, ओछे का संग, पतुरिया की प्रीत, तितली के रंग. रेत की दीवार, धूर्त व्यक्ति का साथ, चरित्रहीन स्त्री का प्रेम और तितली के रंग ये सब स्थायी नहीं होते.

बालू जैसी भुरभुरी, धौली जैसी धूप, मीठी ऐसी कुछ नहीं, जैसी मीठी चूप. चूप – मौन, धौली – श्वेत, धवल. मौन रहना बहुत बड़ा गुण है (क्योंकि इससे सब झगड़े शांत हो जाते हैं). इस को इस प्रकार भी कहते हैं – सब से मीठी मौन.

बालों हाथ छिनाला और कागों हाथ संदेसा. किसी चरित्रहीन स्त्री द्वारा बच्चे के साथ व्यभिचार करना सफल नहीं हो सकता और कोई व्यक्ति कौवे के हाथ संदेश भेजना चाहे तो सफल नहीं हो सकता.

बावन बुद्धि बकरिया में, छप्पन बुद्धि गड़रिया में. गड़रिये में बकरी से कुछ ही ज्यादा बुद्धि होती है.

बावन बुद्धि बानिया, तरेपन बुद्धि सुनार, सबको ठगे बनिया, बनिया को ठगे सुनार. बनिया जितना होशियार होता है, सुनार उससे भी अधिक चालाक होता है.

बावली को आग बताई, उसने ले घर में लगाई. पहले के जमाने में माचिस और लाइटर की उपलब्धता न होने के कारण लोग एक दूसरे के घर से जलता हुआ कोयला या लकड़ी मांग कर लाते थे. कहावत में कहा गया है कि मूर्ख स्त्री को आग दी तो उस ने घर में ही आग लगा दी. मूर्ख व्यक्ति की सहायता भी सोच समझ कर ही करना चाहिए.

बावली खाट के बावले पाए, बावली रांड के बावले जाए. जहाँ माँ भी मूर्ख हो और बच्चे भी उस बढ़ कर मूर्ख हों. तुकबंदी के लिए खाट और पायों का ज़िक्र कर दिया गया है.

बावले मर गए औलाद छोड़ गए. किसी मूर्ख व्यक्ति की मूर्ख संतान का मजाक उड़ाने के लिए.

बासी कढ़ी उबाला आया. बुढापे में जोश आना.

बासी चावल बासी साग, अपने घर खाए क्या लाज. अपने घर पर कुछ भी खाओ उसमें शरम नहीं करनी चाहिए.  

बासी भात में अल्ला मियाँ का कौन निहोरा (बासी भात में ठाकुर साहब का कौन निहोरा). बासी भात खा कर किसी तरह पेट भर रहे हैं, तो इस में अल्ला मियाँ या ठाकुर साहब की क्या मेहरबानी मानें.  

बासी मुंह फीका पानी औगुन करे है. बहुत से लोग खाली पेट पानी पीना ठीक नहीं मानते. ऐसे लोग पहले कुछ मीठा खा कर तब पानी पीते हैं. कहीं कहीं यह रिवाज होता है कि यदि कोई कामवाला भी पानी मांगे तो उसे पहले कुछ मीठा खाने को देते हैं.

बाहर की चुपड़ी से घर की रूखी सूखी भली. 1. घर में जो कुछ भी रूखा सूखा उपलब्ध हो वही खा कर व्यक्ति को संतोष करना चाहिए, बाहर चुपड़ी खाने के प्रयास में धन और स्वास्थ्य दोनों की हानि होती है. (रूखी सूखी खाय के ठंडा पानी पीव, देख पराई चूपड़ी मत ललचावे जीव). 2. बाहर रह कर अधिक आय होती हो उस के मुकाबले कम आय हो पर घर में रहने को मिले तो बेहतर है.

बाहर खुशबू, भीतर बदबू. ढोंगी सफेदपोश लोगों के लिए.

बाहर टेढ़ो फिरत है, बाँबी सूधो साँप. सांप दुनिया भर में टेढ़ा टेढ़ा चलता है लेकिन अपनी बांबी में सीधा ही घुसता है. कोई व्यक्ति दुनिया के लिए कितना भी दुष्ट क्यों न हो घर में सीधा ही रहता है.

बाहर त्याग, भीतर सुहाग. ऐसे लोगों के लिए जो त्यागी होने का ढोंग करते हैं और वास्तव में भोगी होते हैं.

बाहर मियाँ झंगझंगाले, घर में नंगी जोय. घर से बाहर पतिदेव खूब चौकस कपड़े पहने घूम रहे हैं और घर में बीबी फटे पुराने और अपर्याप्त कपड़े पहन रही है. 

बाहर मियाँ पंजहजारी, घर में बीबी कर्मों मारी. पंज हजारी – पांच हजार रूपये वेतन पाने वाला (पुराने समय में पांच हजार एक अत्यधिक बड़ी रकम थी). पति बड़े ओहदे पर काम कर रहा है और पत्नी घर के कामों में पिस रही है.

बाहर मियाँ सूबेदार, घर में बीबी झोंके भाड़. घर से बाहर पति बड़े अधिकारी बने रौब गाँठ रहे है और घर में बीबी चूल्हा झोंक रही है.

बाहर वाले खा गए, घर के गावें गीत. बाहर के लोग दावत खा गए और घर वाले गीत गाते ही रह गए. बिना सही योजना बनाए अव्यवस्था पूर्ण कार्य करने वालों के लिए.

बिंध गया सो मोती, रह गया सो पत्थर. जिस का काम बन गया वह बड़ा आदमी बन गया और जिसका काम नहीं बना वह बेचारा छोटा ही रह गया.

बिआवत दुख, बिहावत दुख.  बेटी के बारे में यह कहावत कही गई है कि जब पैदा होती है तब भी दुख और जब शादी होकर चली चली जाती है, तब भी दुख।

बिगड़ी तो चेली बिगड़ी, बाबा जी तो सिद्ध के सिद्ध. बाबा जी और चेली के बीच कोई अनैतिक सम्बन्ध हुआ तो चेली की ही बदनामी होती है.

बिगड़ी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय, (रहिमन फाटे दूध के मथे न माखन होय).बिगड़ी बात फिर नहीं बनती चाहे कितना भी प्रयास करो (फटे हुए दूध को मथने से माखन नहीं निकलता).

बिगड़ी रसोई सुधरती नहीं. जो बात बिगड़ जाए वह सुधर नहीं सकती.

बिगड़ी लड़ाई सिपाहियों के सिर. हारी हुई लड़ाई का ठीकरा सिपाहियों के सर फोड़ा जाता है. कोई पार्टी चुनाव हारती है तो कार्यकर्ताओं पर दोष डालती है.

बिगड़ेगा बस सुगढ़ नर क्या बिगड़ेगा कूढ़, क्या बिगड़ेगा मट्ठा बिगड़ेगा बस दूध. जो सज्जन और सम्पन्न व्यक्ति है उसे ही हानि होने का डर होता है, जो मूर्ख और विपन्न है उसे क्या हानि होगी.

बिच्छू का काटा चोर, न हूँ कर सकै न चूँ. चोरी करते समय यदि किसी चोर को बिच्छू काट ले तो वह बेचारा दर्द से बिलबिलाते हुए भी चिल्ला नहीं सकता. 

बिच्छू का काटा रोवे, साँप का काटा सोवे. बिच्छू का काटा व्यक्ति भयानक दर्द से रोता है जबकि सांप का काटा व्यक्ति विष के प्रभाव से मूर्च्छित होने लगता है.

बिच्छू का मंत्र जाने नहीं, साँप के बिल में हाथ डाले. जब बिच्छू और सांप के काटे का कोई इलाज उपलब्ध नहीं था तो लोग झाड़ फूँक किया करते थे. अगर सांप जहरीला नहीं हुआ या अधिक विष शरीर में नहीं पहुँचा तो मरीज़ बच जाता था और लोग समझते थे कि मन्त्र से ठीक हो गया. कहावत ऐसे व्यक्ति के विषय में कही गई है जो बिना किसी जानकारी के किसी खतरनाक काम में हाथ डाल रहा है.

बिच्छू के डर से भागे, सांप के मुँह में पड़े. छोटी परेशानी से बचने के प्रयास में बड़े संकट में पड़ जाना.

बिच्छू के मंत्र से सांप का जहर नहीं उतरता. हर संकट का हल एक ही तरीके से नहीं किया जा सकता. अलग अलग परिस्थितियों में अलग अलग हल खोजने होते हैं.

बिछौना देख थकावट लगे. अर्थ स्पष्ट है.

बिजली कांसे पर ही गिरती है. कांसा क्योंकि बिजली का अच्छा चालक (conductor) होता है इसलिए बिजली कांसे पर गिर कर धरती में समाती है. कांसा अन्य धातुओं से महंगा होता है. कहावत को इस अर्थ में प्रयोग कर सकते हैं कि आपदा बड़े आदमी पर ही आती है या किसी काम की गाज़ बड़े आदमी पर ही गिरती है.

बिटिया तेरो ब्याह कर दें, मैं कैसे कहूँ. किसी व्यक्ति से ऐसे विषय पर चर्चा करना जो उस के लिए लज्जा का विषय हो. पुराने समय में विवाह की बात पर लड़कियाँ शर्माती थीं. 

बिटोरे में से तो उपले ही निकलेंगे. बिटोरा – गोबर के कंडों (उपलों) का ढेर. बिटोरे में से तो उपले ही निकलेंगे, कोई लकड़ियाँ थोड़े ही निकलेंगी. कोई घटिया आदमी गालियाँ दे रहा हो तो यह कहावत कही जा सकती है.

बित्ते भर की छोकरी गज भर की जीभ. कोई छोटा बच्चा बहुत बढ़ चढ़ कर वयस्कों जैसी बातें कर रहा हो तो.

बिन कुत्तों के गाँव में बिल्ली अलबेली घूमे. समाज में जागरूक लोगों की कमी हो तो धूर्त लोगों की बन आती है.

बिन घरनी घर भूत का डेरा. बिना पत्नी घर भूत के डेरे के समान है.

बिन देखे राजा भी चोर. अपनी आँख से देखे बिना किसी बात पर विश्वास नहीं करना चाहिए.

बिन निरधार न हो सके सांच झूठ को न्याव. निरधार – निर्धारण करने वाला. बिना उचित निर्धारण करने वाले के सच और झूठ का न्याय नहीं हो सकता.

बिन बिचौलिया छिनाला नहीं. कोई भी गलत काम जैसे चोरी, डकैती, रिश्वतखोरी, वैश्या वृत्ति आदि दलालों के बिना नहीं होते.

बिन बुलाए अहमक, ले दौड़े सहनक. सहनक – भोजन का थाल. बिना बुलाए दूसरे के यहाँ जा कर भोजन करना.

बिन बैलन खेती करे, बिन भैय्यन के रार, बिन मेहरारू घर करे, चौदह साख गंवार. जो बिना बैलों के खेती करने चले, बिना भाइयों की सहायता के किसी से दुश्मनी मोल ले और बिना पत्नी के घर बनाए ये सब गंवार होते हैं.

बिन माँगे मोती मिले, मांगे मिले न भीख. माँगना बहुत बुरा है यह समझाने के लिए.

बिन विद्या नर नार, जैसे गधा कुम्हार. विद्या के बिना नर और नारी कुम्हार के गधे के समान हैं.

बिन स्वारथ कैसे सहे कोऊ करवे बैन, लात खाय पुचकारिए होए दुधारू धेनु. अपने स्वार्थ के लिए आदमी कड़वे बोल भी सह लेता है, दूध देने वाली गाय की लात खा कर भी उसे पुचकारते हैं.

बिन हिम्मत किस्मत नहीं. जो लोग साहस नहीं दिखाते उनका भाग्य भी साथ नहीं देता.

बिना कष्ट उठाए कोई सफलता नहीं मिलती. अर्थ स्पष्ट है.

बिना चाह का पाहुना, घी डालूं या तेल. जो अतिथि अपने मन को न भाता हो, उसका सत्कार भी काम चलाऊ ढंग से किया जाता है.

बिना दबाए तिल से तेल नहीं निकलता. बिना भय दिखाए कोई काम नहीं करता.

बिना नून का रांधे साग, बिना पेंच की बांधे पाग, बिना कंठ के गाए राग, न वो साग, न पाग, न राग. बिना नमक के साग बनाओ तो वह बेकार ही बनेगा, इसी प्रकार बिना पेंच के बंधी पगड़ी और बिना मधुर कंठ के गाया राग भी बेकार ही माना जाएगा.

बिना पथ्य के दवा और बिना सत्य के बात. बिना परहेज के दवा उतनी ही निरर्थक है जितनी बिना सत्य के कोई बात.

बिना पेंदी का लोटा चाहे जिधर लुढ़क जाए. जिस व्यक्ति की अपनी कोई विचारधारा न हो.

बिना बाप का छोरा बिगड़े, बिना माई की छोरी. बिना बाप का बेटा बिगड़ जाता है (अनुशासन के अभाव में) और बिना माँ की बेटी बिगड़ जाती है (माँ की सीख के अभाव में).

बिना बिचारे जो करे सो पाछे पछिताए, (काम बिगारे आपनो जग में होत हंसाय). जो बिना सोचे विचारे जल्दबाजी में काम करता है उसे बाद में पछताना पड़ सकता है. उसका काम भी बिगड़ता है और दुनिया के लोग उस पर हंसते भी हैं. इस कहावत को आम तौर पर केवल आधा ही बोला जाता है. 

बिना बुलाई आवे, टांय टांय गावे. विवाह आदि अवसरों पर कुछ विशेष जातियों की स्त्रियाँ आ कर गीत गाती हैं और नेग मांगती है. किसी ऐसे व्यक्ति के लिए भी कहावत प्रयोग की जा सकती है जो बिना बुलाए आया हो और जबरदस्ती अपनी सलाह दे रहा हो.

बिना बुलाए आदर नहीं चाहे जा देखे, पेट भरे स्वाद नहीं चाहे खा देखे. अर्थ स्पष्ट है.

बिना बुलाए तो राम के घर भी नहीं जाएंगे. बिना बुलाए कहीं नहीं जाना चाहिए. 

बिना बुलावे कुकुर धावे. बिना बुलाए कुत्ता ही जाता है. कहावत का अर्थ है कि बिना बुलाए कहीं नहीं जाना चाहिए.

बिना माँगे सलाह देने से बाज आइए. बिना मांगे किसी को सलाह नहीं देना चाहिए (ऐसी सलाह का कोई मोल नहीं होता).

बिना मारे की तौबा. कोई बिना कष्ट के कोई चिल्ला रहा हो तो.

बिना मिर्च के घोटे भंग, बिन भाइन के रोपे जंग, ले वैश्या जो न्हावे गंग, ना वह भंग न जंग न गंग.  कहावत में तीन अलग अलग बातें तुकबन्दी कर के एक साथ बताई गई हैं – बिना मिर्च केभांग का सेवन करने से हानि हो सकती है, जिसका परिवार मजबूत न हो वह किसी से लड़ाई मोल ले तो मार खा सकता है, वैश्या को साथ ले कर कोई गंगा नहाएगा तो पुण्य की जगह पाप मिलेगा.

बिना मेह के जोतना, घोड़ा बिना लगाम, फ़ौज बिना सरदार के, तीनों भए निकाम. बिना वर्षा के खेत जोतना, बिना लगाम का घोड़ा और बिना सरदार की सेना ये किसी काम के नहीं हैं.

बिना रोए माँ भी दूध नहीं पिलाती. जब तक अपनी परेशानी बताओगे नहीं, कोई तुम्हारी सहायता कैसे करेगा.

बिना लाग खेले जुआ, आज न मुआ कल मुआ. लाग माने चालाकी, युक्ति. जिस के अंदर चालाकी नहीं है वह अगर जुआ खेलेगा तो निश्तित रूप से बर्बाद हो जाएगा.

बिना सींग पूँछ का बैल. किसी ताकतवर किन्तु मूर्ख व्यक्ति का मजाक उड़ाने के लिए. 

बिनु मेहरी ससुरारै जाय, बिना माघ घी खिचरी खाय, बिन भादों पिन्हाए पउआ, घाघ कहै ये तीनहुं कउआ. मेहरी – पत्नी, पिन्हाए पउआ – झूला झूले. ससुराल पत्नी के साथ ही जाना अच्छा होता है. घी मिली हुई खिचड़ी को माघ के महीने में खाना ही ठीक माना गया है. जो बिना पत्नी ससुराल जाए, माघ के महीने अलावा घी खिचड़ी खाए और भादों के अलावा झूला झूले वह कौए के समान है.

बिनु सत्संग विवेक न होई. सत्संग का अर्थ है अच्छी संगत. कहावत का अर्थ है कि बुद्धिमान लोगों के साथ रहने से ही बुद्धि और विवेक जागृत होता है. (आम तौर पर लोग सत्संग का अर्थ केवल भगवान् का कीर्तन करना और धार्मिक उपदेश देना ही समझते हैं). इस कहावत की अगली पंक्ति इस प्रकार है – बिनु सत्संग विवेक न होई, राम कृपा बिनु सुलभ न सोई. अर्थात अच्छी संगत भी भगवान् की कृपा से मिलती है. 

बिनौलों की लूट में बरछी का घाव. बहुत छोटा अपराध करते समय बहुत बड़ा नुकसान हो जाना.

बिपत संगाती तीन जन, जोरू बेटा भाई. संगाती – साथ देने वाला. विपत्ति में तीन ही लोग साथ देते हैं, पत्नी, पुत्र और भाई.

बिरछा कबहुँ न फल भखै, नदी न संचै नीर, परमारथ के कारने, साधुन धरा शरीर. वृक्ष कभी अपने फल खुद नहीं खाता और नदी अपना पानी अपने लिए संचित नहीं करती. इसी प्रकार साधु लोग भी अपने शरीर का उपयोग परोपकार के लिए ही करते हैं.

बिरादरी का मुखिया, दुखिया ही दुखिया. किसी भी समाज का मुखिया होना बहुत तनाव का काम है.

बिरादरी को न खिलाया, चार कांधी ही जिमा दिए. किसी व्यक्ति की कंजूसी का ज़िक्र किया जा रहा है जिसने अपने घर में किसी की मृत्यु होने पर बिरादरी की दावत नहीं की केवल अर्थी को कंधा देने वाले चार लोगों को ही जिमाया (भोजन कराया). देहाती समाज की यह बहुत बड़ी कुरीति है कि किसी की मृत्यु के बाद सारी बिरादरी को दावत देनी पड़ती है चाहे मरने वाला घर का इकलौता कमाने वाला ही क्यों न रहा हो और चाहे इस के लिए कर्ज़ ही क्यों न लेना पड़े.

बिल खोद चूहा मरे, मौज उड़ावे सांप. चूहा मेहनत कर के बिल खोदता है और सांप उस में रहने आ जाता है. किसी गरीब के परिश्रम का लाभ कोई दबंग व्यक्ति उठाए तो.

बिलाई का मन मलाई में. ओछे लोग हर समय अपने स्वार्थ के विषय में सोचते रहते हैं.

बिल्ली और दूध की रखवाली? बिल्ली से दूध की रखवाली कौन करा सकता है.

बिल्ली की नज़र बस चूहे पे. धूर्त व्यक्ति केवल अपने लाभ की बात देखता है. भोजपुरी में कहते है – बिलैया की नज़र मुसवे पर.

बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे. एक बार चूहों की सभा हुई जिसमें बिल्ली के आतंक से मुक्ति पाने के उपायों पर विचार किया गया. किसी नौजवान चूहे ने सुझाव दिया कि बिल्ली के गले में एक घंटी बाँध दी जाए जिससे हमें उसके आने की आहट दूर से ही मिल जाए. सब को यह बात पसंद आई, पर एक बूढ़े चूहे ने कहा कि यह काम करेगा कौन, तो वहाँ सन्नाटा छा गया. कहावत का अर्थ है कि सुझाव सब देते हैं पर खतरा उठा कर काम करना कोई नहीं चाहता. इंग्लिश में कहावत है – Who will bell the cat.

बिल्ली के भागों छींका टूटा. अचानक बिना उम्मीद के कोई वांछित वस्तु मिल जाना.

बिल्ली के सपने में चूहा. धूर्त व्यक्ति को सपने में भी अपने फायदे की बात ही दिखती है.

बिल्ली के सरापे छींका नहीं टूटता. सरापे – श्राप देने से, कोसने से. धूर्त व्यक्ति द्वारा कोसे जाने से किसी का नुकसान नहीं होता. (कौआ कोसे ढोर नहीं मरते). 

बिल्ली के सिरहाने दूध नहीं जमता. बिल्ली दूध को इतनी देर छोड़ेगी ही कहाँ कि दूध जम पाए. जिस से चोरी का डर हो उसके आसपास कोई चीज़ कैसे सुरक्षित रह सकती है.

बिल्ली को ख़्वाब में भी छिछ्ड़े नजर आते हैं. धूर्त व्यक्ति सोते जागते हर समय केवल अपने लाभ के विषय में ही सोचते हैं. इंग्लिश में कहावत है – A sleeping fox counts hens in her sleep.

बिल्ली को पहले दिन ही मार देना चाहिए. 1.अप्रिय और अशुभ वस्तु को पहले दिन ही दूर कर देना चाहिए. 2.एक आदमी ने अपनी शादी के पहले दिन ही एक बिल्ली को मार दिया ताकि उसकी पत्नी के मन में आतंक बैठ जाए.

बिल्ली क्या जाने मोल का दही (बिल्ली को खाने से काम, मोल का हो या मुफ्त का). गाँव के लोग अधिकतर गाय भैंस पालने की कोशिश करते हैं और दूध दही खरीदने से बचते हैं. मोल का दूध दही गाँव में विलासिता का प्रतीक माना जाता है. बिल्ली के हाथ दही लग जाए तो वह उसे फौरन चट कर जाएगी. उसे इस बात से क्या मतलब कि घर में बना है या खरीदा हुआ है. 

बिल्ली खाएगी नहीं तो लुढ़का ही देगी. दुष्ट लोग अपना लाभ न ले पाएँ तो दूसरे का काम बिगाड़ कर ही खुश हो लेते हैं.

बिल्ली गई चूहों की बन आयी. बिल्ली चली जाए तो चूहों की मौज हो जाती है. इंग्लिश में कहावत है – When the cat is away, the mice are at play.

बिल्ली बाज़ार तो खूब कर ले पर कुत्ते करने दें तब न. कमजोर आदमी बहुत से काम कर सकता है लेकिन जबर उसे नहीं करने देते.

बिल्ली भई मुखिया, गीदड़ करमचारी. जहाँ हाकिम और मातहत सभी धूर्त हों.

बिल्ली भी चूहा खुदा के वास्ते नहीं मारती. हर आदमी अपने स्वार्थ के लिए काम करता है, बिल्ली भी परोपकार करने के लिए चूहा नहीं मारती (अपना पेट भरने के लिए मारती है).

बिल्ली भी दब कर हमला करती है. इसका अर्थ दो प्रकार से हो सकता है – 1. बिल्ली झुक कर हमला करती है अर्थात धूर्त व्यक्ति अगर विनम्रता दिखा रहा हो तो सावधान हो जाएँ, हो सकता है कि हमला करने वाला हो. 2. दबाने पर बिल्ली भी हमला करती है अर्थात कमजोर को अधिक न दबाओ. 

बिल्ली से छिछड़ों की रखवाली. चोर से किसी चीज़ की पहरेदारी करने को कैसे कहा जा सकता है.

बिसधर पकड़ जहर को चाट, परनारी संग चले न बाट. एक बार को सांप को पकड़ के उसका जहर चाट ले, लेकिन परनारी के साथ रास्ता न चले.

बिस्वा को कौन आसन सिखावे. जो सब सीखा सीखाया हो उसे कौन सिखा सकता है.

बिस्वा बिस की गाँठ. वैश्या विष की गाँठ होती है.

बीघे बीघे भूत, बिस्वे बिस्वे सांप. राजस्थान की मरुभूमि में हर बीघे पर भूत और हर बिस्वे पर सांप रहते हैं.

बीच की उँगली बड़ी होती है. किसी भी विवाद के निवारण के लिए बीच का मार्ग सबसे अच्छा होता है.

बीज बोया नहीं, खेत का दुख. जिस काम से कोई सरोकार न हो उस के लिए दुखी होने वालों का मजाक उड़ाने के लिए. 

बीती ताहि बिसारि दे, आगे की सुधि लेइ, (जो बनि आवै सहज में, ताही में चित देइ). जो बीत गया उसका पश्चाताप करने की बजाए आगे क्या करना है यह सोचो. जो काम आसानी से हो सके उस में मन लगाओ. आम तौर पर इसका पहला भाग ही बोला जाता है.

बीबी को बांदी कहा हंस दी, बांदी को बांदी कहा रो दी. घर के किसी व्यक्ति को नौकर कहोगे तो मज़ाक समझ कर हँस देगा पर नौकर को नौकर कहोगे तो बुरा मानेगा.

बीबी नेकबख्त, दमड़ी की दाल तीन वक्त. बीबी बहुत उदार हैं जो दमड़ी की दाल में तीन बार का खाना बनवाती हैं. बहुत कंजूस लोगों का मजाक उड़ाने के लिए. 

बीबी बच्चे भूखों मरे और भड़वे लड्डू खाएँ. अपने घर वालों की बेकद्री कर के आलतू फ़ालतू लोगों पर खर्च करने वालों के लिए.

बीबी बीबी ईद आई, चल हरामजादी तुझे क्या. कंजूस से खर्चे की बात कहो तो चिढ़ता है. नौकरानी मालकिन से कह रही है कि ईद आ गई है (मतलब उसे इनाम चाहिए) तो कंजूस मालकिन चिढ़ रही है.

बीबी वारे बांदी खाए, घर की बला कहीं न जाए. बच्चे की नज़र उतारने के लिए बीबी आटे की लोई को वार के (बच्चे के सिर के चारों और घुमा के) बाहर फेंक देती हैं जहां उसे कुत्ता इत्यादि खा लेता है और घर की बला बाहर चली जाती है. अब अगर वह बांदी को ही खिला देंगी तो घर की बला बाहर कैसे जाएगी. दान पुन्य के नाम पर अगर घर के लोगों को ही खिलाया पिलाया जाए तो परोपकार नहीं माना जाएगा.

बीबी हैं भरमाली, कान पीतर की बाली. अपने पास बहुत छोटी सी कोई चीज़ (पीतल की बाली) हो तो भी दिखावा करना.

बीमार की राय बीमार. अस्वस्थ आदमी की राय मानने लायक नहीं होती (क्योंकि उसकी दिमागी हालत ठीक नहीं होती और उसकी सोच भी नकारात्मक हो जाती है).

बीमारी की रात पहाड़ बराबर. बीमारी में दिन तो फिर भी कट जाता है रात काटना बहुत मुश्किल होता है (बात उस समय की है जब न तो टीवी था न स्मार्ट फोन और न ही दर्द निवारक व नींद की दवाएँ थीं).

बीरबल लाओ ऐसा नर, पीर बाबर्ची भिश्ती खर. ऐसे व्यक्ति की तलाश जो सारे काम कर सकता हो – पीर भी बन जाए, खाना भी पका ले, पानी भी भर लाए और बोझ भी ढो ले. इस कहावत के पीछे एक कहानी है. एक बार अकबर ने बीरबल से ऐसा कोई आदमी लाने को कहा तो बीरबल ने उनके सामने एक ब्राह्मण को ले जा कर खड़ा कर दिया. वास्तव में मुगल काल में ब्राह्मणों की दशा बड़ी खराब थी. 

बीस पचीस के अंदर में जो पूत सपूत हुआ सो हुआ. पुत्र लायक है या नालायक यह बात बीस पचीस साल की आयु तक स्पष्ट हो जाती है. 

बुआ के पास गहने तो भतीजी को क्या. किसी निकट संबंधी के पास धन हो, उससे हमें क्या लाभ होने वाला. 

बुआ जाऊं जाऊं करे थी, फूफा लेने आ गया. बिना उम्मीद के कोई काम आसानी से हो जाना.

बुखार हाथी के भी हाड़ तोड़ देता है. बीमारी  बड़े से बड़े शक्तिशाली लोगों को भी त्रस्त कर देती है.

बुझने से पहले दीपक की लौ तेज हो जाती है. शाब्दिक अर्थ तो स्पष्ट है. कहावत का प्रयोग इस प्रकार करते हैं कि मृत्यु से पहले मनुष्य की स्मृतियाँ अधिक जागृत हो जाती हैं.

बुड़बक गए मछली मारे, काँटा आए गंवाय. (भोजपुरी कहावत) बुड़बक – मूर्ख व्यक्ति. कोई काम करने गए तो अपने औजार ही गंवा आए. 

बुड्ढा ब्याह करे, पड़ोसियों को सुख हो गया. वैसे यह कोई न्यायपूर्ण और अच्छी बात तो नहीं है पर कटु सत्य तो है. कहावत में सीख दी गई है कि बूढ़े व्यक्ति को युवा स्त्री से विवाह नहीं करना चाहिए.

बुड्ढी बकरी और हुंडार (भेड़िया) से ठट्ठा. अपने से बहुत अधिक शक्तिशाली शत्रु से पंगा लेना.

बुड्ढी भैंस का दूध शक्कर का घोलना, बुड्ढे मर्द की जोरू गले का ढोलना. बुड्ढी भैंस का दूध मीठा होता है, बूढ़े व्यक्ति को अपनी पत्नी बहुत प्रिय होती है. (गले का ढोलना – गले में लटका तावीज़).

बुढ़वा भतार पर पाँच टिकुली. टिकुली – माथे का टीका (सोने का),  भतार – पति. बूढ़े पति को प्रसन्न करने के लिए पाँच टिकुली लगाए हैं. अनावश्यक साज सज्जा.

बुढ़ापा दूसरा लड़कपन है. बुढापे में व्यक्ति बच्चों के समान जिद्दी और खाने पीने का लालची हो जाता है.

बुढ़ापा बड़ा कमीना.  1.बुढ़ापे में कष्ट ही कष्ट हैं. 2. बुढापे में आदमी बहुत स्वार्थी हो जाता है.

बुढ़ापा माने बुरा आपा. बूढ़ा होने पर शरीर में सौ बुराइयाँ आ धमकती हैं. 

बुढ़ापे की औलाद ज्यादा प्यारी लगे. अर्थ स्पष्ट है.

बुढ़ापे में आदमी की मत मारी जाती है. अर्थ स्पष्ट है.

बुढ़ापे में मिट्टी खराब. किसी का सारा जीवन अच्छा कटा हो पर बुढ़ापे में बहुत कष्ट हो रहे हों तो. (बड़ी बीमारी हो जाए या सन्तान नालायक निकल जाए)

बुढ़िया के कहे खीर कौन रांधे (बुढ़िया के लिए खीर कौन पकाए). आम घरों में लोग बुजुर्गों की फरमाइशों पर ध्यान नहीं देते.

बुढ़िया को पैठ बिना कब सरे. पैठ माने बाज़ार. बुढ़िया का बाज़ार जाए बिना काम नहीं चलता. (किसी की बुढापे में भी सैर सपाटे और खाने पीने की आदत न छूट रही हो तो व्यंग्य).

बुढ़िया मरी कैसे, बोले सांस नहीं आई. किसी बात का सीधा उत्तर न देना.

बुढ़िया मरी तो मरी आगरा तो देखा. कुछ लोग घर की बड़ी बूढ़ी का इलाज कराने आगरा गए. बूढ़ी अम्मा तो नहीं बचीं पर इस बहाने आगरे की सैर हो गई. कहावत का अर्थ है कि जहाँ एक ओर कुछ काम बिगड़ा वहीं दूसरी ओर कुछ लाभ भी हो गया.

बुढ़िया मरी, खटोला मिला. किसी के नुकसान में अपना फायदा ढूँढने वालों के लिए.

बुढ़िया मरे का गम नहीं, पर जम घर देख गए. बुढ़िया मर गई इस बात का गम नहीं है पर इस बात की चिंता है कि यमदूत घर देख गए (अब दोबारा जल्दी न आ धमकें).

बुढ़िया मिर्ची की पुड़िया. लड़ाकू बुढ़िया के लिए.

बुद्धि बिना बल बेकार. कोई कितना भी बलवान क्यों न हो अगर उसमें बुद्धि न हो तो सब बेकार है. शेर, हाथी, घोड़ा कितने भी बलवान क्यों न हों, मनुष्य अपनी बुद्धि से उन्हें वश में कर लेता है.

बुद्धि बिना विद्या बेकार (बुद्धि बिना विद्या बेचारी). कोई कितनी भी विद्याएँ सीख ले, जब तक अपने अंदर बुद्धि न हो वे किसी काम की नहीं हैं. 

बुद्धिमान शत्रु से मूर्ख मित्र अधिक खतरनाक होता है. अर्थ स्पष्ट है. उदाहरण के तौर पर एक कहानी कही जाती है. एक शिकारी जंगल में शेर का शिकार करने गया. शेर बहुत चालाक था. झाडियों की ओट से हमला करता, फिर छुप जाता. शिकारी ने अपनी सहायता के लिए एक भालू को शहद खिला कर उस से दोस्ती कर ली. एक दिन शिकारी थक कर पेड़ के नीचे सोया था और भालू पास बैठ कर उस की रखवाली कर रहा था. एक मक्खी बहुत देर से शिकारी के मुँह पर बार बार बैठ जा रही थी. भालू बहुत देर तक उसे उड़ाता रहा. जब वह नहीं मानी तो भालू ने आव देखा न ताव मक्खी को मारने के लिए एक बड़ा सा पत्थर उठा कर शिकारी के मुँह पर दे मारा. बेचारा शिकारी बुद्धिमान शत्रु (शेर) के हाथों नहीं बल्कि मूर्ख मित्र (भालू) के हाथों मारा गया. इंग्लिश में कहावत है – A wise enemy is better than a foolish friend.

बुरा कब्र तक कोसा जाए. बुरे व्यक्ति को लोग मरने के बाद तक कोसते हैं.

बुरा जो देखन मैं चली, बुरा न मिलिया कोय, जो दिल खोजो आपनो, मुझसे बुरा न कोय. दूसरों में बुराई ढूँढने की बजाए अपनी बुराइयों को ढूँढ़ कर उन्हें ठीक करना चाहिए.

बुरी नज़र वाले तेरा मुँह काला. ट्रकों के पीछे लिखा जाने वाली सबसे प्रचलित कहावत.

बुरी नज़र वाले तेरे बच्चे जीयें, बड़े हो कर तेरा खून पीएँ. ट्रकों के पीछे लिखा जाने वाली कहावत.

बुरी बात सच्ची हो जाती है, भली बात सच्ची नहीं होती. यदि हम बुरी बुरी आशंकाएं करते हैं तो उन में से कुछ सच हो जाती हैं. इसीलिए पुराने लोग कहते थे, बुरा मत सोचो.  

बुरी संगत से अकेला भला (कुसंग से इकंत भली) (बुरी सोहबत से तन्हाई अच्छी).  बुरे लोगों के साथ रहने से अकेला रहना अधिक अच्छा है. इंग्लिश में कहावत है – Better be alone than in a bad company.

बुरे का साथ दे वो भी बुरा. बुरा तो बुरा होता ही है, जो उसका साथ दे वह भी बुरा. द्रोणाचार्य और भीष्म पितामह इसी लिए बुरे बने क्योंकि उन्होंने दुर्योधन का साथ दिया.

बुरे काम का बुरा नतीजा (बुरे काम का बुरा हवाल). किसी के साथ बुराई करने का परिणाम बुरा ही होता है.

बुरे दिन आते हैं तो पूछकर नहीं आते. कोई व्यक्ति कितना भी शक्तिशाली या सम्पन्न क्यों न हो, हर किसी को यह सोचना चाहिए कि उस पर भी कभी बुरे दिन आ सकते हैं.इसलिए जब अच्छे दिन हों तो भी सब से आदर और प्रेम रखना चाहिए.

बुरे लगत सिख के बचन, हिए बिचारो आप, करुवे भेषज बिन पिये, मिटै न तन को ताप. सिख के वचन – सीख, शिक्षा की बात, हिए – हृदय, भेषज – दवा, तन को ताप – बुखार. कड़वी दवाई से बुखार उतरता है इसलिए हमें दवा पीने में बुरा नहीं मानना चाहिए. इसी प्रकार सीख देने वाली बात कड़वी लगे तब भी हमें बुरा नहीं मानना चाहिए.

बुरे से देव डरावें. बुरे आदमी से भगवान भी डरता है.

बुर्के वाली बूआ, पीछे पीछे चूहा. बच्चों की आपसी मजाक. 

बुलाई न चलाई, मैं दूल्हे की ताई. जबरदस्ती किसी से संबंध जोड़ने वालों के लिए.

बूँद का चूका, घड़े छ्लकावे. छोटा सा अवसर चूक जाने पर फिर उस लाभ को पाने के लिए बहुत प्रयास करना पड़ता है.

बूँद बूँद से सागर भरता है. सागर में अथाह जल है लेकिन वह बूँद बूँद कर के ही इकठ्ठा हुआ है. छोटी छोटी बचत एक बड़ी राशि बन सकती है.

बूंद बूंद सों घट भरे, टपकत रीतो होए. बूँद बूँद कर के घड़ा भरता है और बूँद बूँद टपकने से खाली भी हो जाता है. थोड़ी थोड़ी बचत कर के निर्धन व्यक्ति धनवान बन सकता है और थोड़ा थोड़ा धन गंवा के धनी व्यक्ति कंगाल हो सकता है.

बूचा सबसे ऊँचा. बूचा – कान कटा कुत्ता (जिसे मनहूस माना जाता है). निर्लज्ज व्यक्ति सबसे बड़ा होता है.

बूची को और ताव, कानी को और ताव. बूची – जिसका कान कटा हुआ हो, ताव – गुस्सा या जोश. बूची और कानी दोनों को ही अशुभ माना जाता है (यद्यपि यह गलत है). 

बूढ़ा कुत्ता, पिलवा नाम. बेमेल नाम (बूढ़ा कुत्ता है और नाम है पिल्ला).

बूढ़ा गिना न बालका, सुबहा गिनी न सांझ, जन जन का मन राखते, वैश्या रह गई बाँझ. वैश्या ने जो भी उसके पास आया, जिस समय भी आया, सबका मन रखा, इसलिए खुद वह बाँझ रह गई. (वैश्या गर्भधारण से बचने के लिए कुछ दवाएँ खाती है). इसकी केवल एक पंक्ति भी बोली जाती है – जने जने का मन रखते वैश्या हो गई बाँझ. 

बूढ़ा बैल और बूढ़े माँ बाप जितना काम कर दें उतना ही नफा. बैल बूढ़ा हो जाए तो उसे खिलाना तो पड़ता है पर वह खेती के काम का नहीं रहता, अर्थात उस का रख रखाव बहुत महंगा पड़ता है. इसी प्रकार बूढ़े माँ बाप घर के काम में या खेती व्यापार आदि में हाथ तो नहीं बंटा पाते पर उन पर खर्च पूरा होता है. इस प्रकार के लोग काम में जितना भी सहयोग कर दें वह एक प्रकार का बोनस है.

बूढ़ा बैल ब्याह गया है. कोई असम्भव सी बात. जैसे कोई बहुत कंजूस आदमी बड़ी रकम दान कर दे तो.

बूढ़ा रहे घर, न फिकर न डर. घर में कोई बुजुर्ग आदमी रहता हो तो घर सुरक्षित रहता है.

बूढ़ी घोडी लाल लगाम. किसी बूढ़े व्यक्ति को फैशन सूझ रहा हो तो या फिर किसी पुरानी चीज़ में कोई नया पुर्जा लगा दिया गया हो तो.

बूढ़ी बकरी को बहकावे भेड़िया, चल नाले पर हरी हरी खाने को मिलेगी. बूढ़ी बकरी भेड़िये की बातों में नहीं आने वाली. किसी अनुभवी व्यक्ति को कोई बहकाने की कोशिश करे तो यह कहावत कही जाती है. 

बूढ़ी हुई बिल्ली, चूहे उड़ावें खिल्ली. जब कोई आततायी शक्तिहीन हो जाता है, तो कमजोर लोग भी उसका मजाक उड़ाने लगते हैं.

बूढ़े की जबान में जोर होता है. बूढ़े आदमी के हाथ पैर नहीं चलते लेकिन जबान बहुत चलती है.

बूढ़े को खिलाना, गठरी का डुबाना.  कहावत में कहा गया है कि बूढ़े आदमी पर अधिक पैसा खर्च करना समझदारी नहीं है. 

बूढ़े तो सबकी करें, उनकी करे न कोय. बूढ़े लोग बेचारे सब की फ़िक्र करते हैं लेकिन उनकी फ़िक्र कोई नहीं करता.

बूढ़े तोते भी कही पढ़ते हैं (बूढ़ सुआ राम राम थोरै पढ़िहैं). 1. बूढ़े लोग नहीं पढ़ सकते. इंग्लिश में कहावत है – You can not teach an old dog new tricks. 2. बूढ़े लोगों को पढ़ाने की कोशिश मत करो (उनका अनुभव किताबी ज्ञान से कम मूल्यवान नहीं है).

बूढ़े बैल से भली कुदारी. बूढ़ा बैल किसी काम का नहीं होता क्योंकि वह हल नहीं चला सकता. उससे अधिक उपयोगी तो कुदाली है.

बूढ़े मुंह मुंहासे, लोग आए तमासे. मुँह पर मुँहासे जवानी में निकलते हैं अगर बुढापे में निकलें तो आश्चर्य की बात होगी. बूढों को यदि जवानी चढ़ने लगे तो उनका मजाक उड़ाने के लिए.

बूढ़ों की सीख, करे काम को ठीक. बूढ़े लोगों के पास लंबा अनुभव होता है जिस से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं.

बूढ़ों से बरकत. घर में मार्ग दिखाने वाले बूढ़े लोग हों तभी समृद्धि आती है.

बेइज्जत की पूरी से इज्जत की आधी भली. सम्मान के साथ थोड़ा भी मिले तो बेहतर है.

बेकार न बैठ कुछ किया कर, कपड़े ही उधेड़ कर सिया कर. आदमी को कभी खाली नहीं बैठना चाहिए. चाहे किसी काम को दोबारा करना पड़े. 

बेकार से बेगार भली. बेकार होने का अर्थ है कोई काम न करना और बेगार का अर्थ है ऐसा काम करना जिसमें कोई मेहनताना या पैसा न मिले. कहावत का अर्थ है कि बेकार बैठने के मुकाबले कुछ न कुछ करना अच्छा है चाहे उससे कोई आर्थिक लाभ न भी हो. सयाने लोग कहते हैं कि खाली बैठोगे तो खाली दिमाग शैतान का घर है. कुछ काम करोगे तो पैसा न भी मिले कुछ अनुभव ही मिलेगा, किसी की दुआ ही मिलेगी. इंग्लिश में कहावत है – Better wear out than rust out.

बेकारी महकमे का जमादार. कोई बिलकुल बेकार आदमी. इस कहावत में बहुत से लोगों को जमादार शब्द पर आपत्ति होगी और होना भी चाहिए. कायदे में तो सफाई कर्मी को विभाग के महत्वपूर्ण लोगों में गिनना चाहिए. लेकिन यह कड़वा सच है कि जिस समय यह कहावत प्रचलन में आई होगी उस समय स्वच्छता कर्मियों की दशा शोचनीय थी.

बेगानी खेती पर झींगुर नाचे. दूसरे की चीज़ पर जबरदस्ती कब्जा करने वालों के लिए.

बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना. अनजान लोगों की ख़ुशी में जबरदस्ती खुश होने वाला मूर्ख व्यक्ति.

बेटा अभी हुआ नहीं, ढोल बजने लगे (बेटा हुआ नहीं, ढोल पीटने लगे). उचित अवसर से पहले ही ख़ुशी मनाना.

बेटा एक कुल की लाज रखता है और बेटी दो कुल की. पुत्र को केवल अपने पिता के कुल की मर्यादा का पालन करना होता है जबकि पुत्री को अपने पिता और पति दोनों कुलों की मर्यादा निभानी होती है.

बेटा खाय, बाप लखाय, कलजुग अपना बल दिखलाय. बेटा खा रहा है और बाप बेचारा बैठा देख रहा है, यह कलियुग का लक्षण है.

बेटा जन कर झुक चले, सोना पहन कर ढक चले. बेटा होने के बाद स्त्री को घमंड नहीं करना चाहिए बल्कि विनम्र हो जाना चाहिए. सोने के गहने पहने हों तो उनका दिखावा नहीं करना चाहिए, ढक कर चलना चाहिए.

बेटा बेटी बस का अच्छा. बेटा और बेटी वही अच्छे हैं जो माता पिता की बात मानें.

बेटा से बेटी भली जो कुलवन्तिन होय. जो बेटा कुल की मर्यादा का ध्यान न रखे उस से वह बेटी अच्छी है जो कुल की लाज रखे.

बेटा हुआ तब जानिए जब पोता खेले द्वार. पहले के जमाने में संक्रामक रोगों के कारण बहुत से बच्चों की अकाल मृत्यु हो जाया करती थी. इसलिए यह कहावत कही गई है कि बेटा होने की ख़ुशी तब मनाओ जब बेटे का बेटा हो जाए.

बेटा होवे सयाना, दलिद्दर जाए पुराना. जब बेटे बड़े हो जाएँ और कमाने लगें तो घर की दरिद्रता दूर हो जाती है.

बेटी और घूरा, बहुत जल्दी बढ़ते हैं. कहावतों की एक विशेषता यह होती है कि उसे मजेदार बनाने के लिए दो बिल्कुल अलग चीजों को एक साथ मिला कर एक कहावत बना दी जाती है. कहीं पर कूड़ा डालना शुरू करो तो बहुत से लोग वहाँ कूड़ा डालने लगते हैं और घूरा बन जाता है जोकि बहुत तेजी से बढ़ता है. बेटी भी बहुत जल्दी बड़ी होती है और उसके विवाह की चिंता करनी पड़ती है.

बेटी कंगाल की नाम राजरानी. 1. गुण के विपरीत नाम. 2. गरीब से गरीब आदमी को भी अपनी संतान प्यारी होती है.

बेटी का भला चाहे तो बोल जमाई लाल की जै. बेटी को सुखी रखना चाहो तो दामाद को मक्खन लगाना चाहिए. 

बेटी की माँ, बुढ़ापे में पानी भरे. जिस माँ के सब बेटियाँ ही होती हैं उसे बुढ़ापे में सारे काम करने पड़ते हैं, क्योंकि बेटियाँ अपने घर चली जाती हैं.

बेटी के बेटा कौनो काम, खइहें यहाँ और जइहें गाँव. (भोजपुरी कहावत) बेटी के बेटे किस काम के, खाएँगे यहाँ जाएँगे अपने गाँव. दूर रहनेवाले समय पर काम नहीं आते.

बेटी तू क्यों रोवे है, जो तुझको ब्याहेगो वो रोवेगा. एक समय था जब विवाह के समय लड़की के माँ बाप चिंता करते थे कि मालूम नहीं लड़का और उसके घर वाले कैसे निकलेंगे. अब तो लड़के वाले अधिक चिंता करते हैं कि मालूम नहीं बहू कैसी निकलेगी.

बेटी दे कंजूस को, बेटी ले उदार की. कंजूस के घर में बेटी की शादी करने से खर्च कम करना पड़ता है और उदार व धनवान व्यक्ति की बेटी से शादी करने पर माल खूब मिलता है.

बेटी ने किया कुम्हार और मां ने किया लुहार, न तुम चलाओ हमार न हम चलाएं तुम्हार. बेटी ने कुम्हार से शादी कर ली और माँ ने लुहार से. अब दोनों एक दूसरे से कह रही हैं कि तुम हमारे बारे में कुछ न कहो, हम तुम्हारे बारे में कुछ नहीं कहेंगे. जब दो अपराधी एक दूसरे का अपराध छिपाएं तो.

बेटी मरी जमाई चोर, टूट गई डाली उड़ गया मोर. जिस डाली पर मोर बैठा है वह टूट जाए तो मोर को वहाँ से उड़ जाना पड़ता है. बेटी के मरने पर दामाद की उस घर में हालत चोर जैसी हो जाती है (वह एक अवांछित व्यक्ति बन जाता है).

बेटी माँ के पेट में समाती है पर बाप के आंगन में नहीं समाती. बेटा और बेटी दोनों माँ की कोख से पैदा होते हैं पर बेटी को अपना आंगन छोड़ कर जाना पड़ता है.

बेटे को खिलाऊँगी तगड़ा हो जाएगा, आदमी को खिलाऊँगी खूब कमाएगा, बूढ़े को खिलाऊँगी सो बेकार जाएगा. स्वार्थी बहुओं का कथन.

बेटे से बेटी भली जो कोई होय सपूत. नालायक बेटे से तो योग्य बेटी अधिक अच्छी.

बेटों को घी भरपूर और बेटियों को खट्टी छाछ. पुराने समय में बेटे बेटी में बहुत भेदभाव होता था.

बेड़ी सोने की भी बुरी. सोने की बेड़ी अर्थात खूब सुख सुविधाओं वाली गुलामी. गुलामी हमेशा बुरी ही होती है, चाहे उसमें कितनी भी सुविधाएं क्यों न हों. 

बेदिल नौकर, दुश्मन बराबर. जो नौकर अपनेपन से काम न करे वह दुश्मन जैसा है (उसे मालिक के हानि लाभ की कोई परवाह नहीं होती).

बेबकूफ किस्मत के धनी होते हैं. यदि किसी बेबकूफ आदमी को अच्छी सुविधाएं मिल रही होती हैं तो अक्लमंद लोग कुढ़ कर यह बात बोलते हैं. (खुदा मेहरबान तो गधा पहलवान)

बेबकूफों की कमी नहीं है, एक ढूँढो हजार मिलते हैं. मूर्ख लोग इस दुनिया में बहुतायत में पाए जाते हैं. 

बेर खावे गीदड़ी, डंडे खावे रीछ. अपराध कोई और करे, दंड कोई और पाए.

बेल कच्चा या पका, कौवों के बाप का क्या. बेल पका हो या कच्चा हो कौवे को इससे फर्क नहीं पड़ता क्योंकि वह बेल खा ही नहीं सकता (कठोर छिलके में अपनी चोंच से छेद नहीं कर सकता). जिस चीज़ से हमें कोई नफा नुकसान न हो उस में हम क्यों सर खपाएँ.

बेल के मारे बबूल तले, बबूल के मारे बेल तले. बेल के पेड़ के नीचे खड़े थे तो सर पे बेल गिरा और सर फट गया, वहां से भाग कर बबूल के पेड़ के नीचे खड़े हुए तो कांटे चुभ गए तो फिर भाग कर बेल के नीचे आए. अभागे व्यक्ति के लिए.

बेलज्जी बहुरिया पर घर नाचे. निर्लज्ज बहू दूसरों के घरों पर घूमती फिरती है.

बेलाग बेबाक. जिसे कोई लाग लपेट (स्वार्थ) न हो वह स्पष्ट बात कहने में नहीं डरता. बेलाग – निस्वार्थ, बेबाक – स्पष्टवादी. 

बेवकूफ की सबसे बड़ी समझदारी चुप रहना है. बेवकूफ आदमी जब तक चुप रहता है तब तक उसमें और समझदार आदमी में अंतर करना मुश्किल होता है, पर जैसे ही वह बोलता है उसकी असलियत सामने आ जाती है. एक मंदबुद्धि लड़के को देखने के लिए लड़की वाले आ रहे थे. सब लोग उसे समझा रहे थे कि लड़की वाले ऐसा पूछे तो यह जवाब देना, वैसा पूछे तो वह जवाब देना आदि. तब एक बुजुर्ग ने कहा कि बेटा सब से बड़ी समझदारी यह होगी कि तुम चुप रहना.

बेवक्त की शहनाई, मुए कूढ़ ने बजाई. कोई मूर्ख व्यक्ति बेअवसर की बात करे तो. (कूढ़ – मूर्ख व्यक्ति, इसको कुछ लोग कूढ़ मगज़ भी कहते हैं). शहनाई कुछ ख़ास अवसरों पर ही अच्छी लगती है, उस के अलावा कोई बजाए तो गुस्सा आता है. 

बेवारिसी नाव डांवाडोल. हर काम के लिए योग्य नेतृत्व की आवश्यकता होती है. बिना मल्लाह की नाव डांवाडोल रहती है.

बेशरम को दुख नहीं, कंजूस को सुख नहीं. बेशर्म आदमी मान अपमान से परे होता है इसलिए उसे कोई दुख नहीं होता. कंजूस कभी अपने ऊपर खर्च नहीं करता इसलिए उसे कोई सुख नहीं होता.

बेशर्म का नंगे से पाला पड़ा है. जब एक बेशर्म आदमी का अपने से बड़े बेशर्म से पाला पड़े तो.

बेशर्मों के पूँछ थोड़े ही होती है. बेशर्म लोग देखने में इंसान ही होते हैं, बस उनकी हरकतें उन्हें औरों से अलग करती हैं.

बेसवा का जाया, किसको बाप कहे. वैश्या के बेटे के सामने यह समस्या होती है कि वह किसी को अपना बाप नहीं कह सकता.

बेहया की पीठ पर रूख जमा, उसने जाना छाँव हुई. बेशर्म आदमी की पीठ पर पेड़ उग आया, बात बहुत परेशानी की है पर वह खुश हो रहा है कि चलो छाया हो गई. बेशर्म आदमी के लिए मान अपमान एक समान है. इसको कुछ अश्लील ढंग से ऐसे भी कहा गया है – बेहया के चूतड़ में पेड़ उगा, आओ लोगों छाँव में बैठो.

बैठने को जगह दे दो, लेटने को खुद ही कर लेंगे. जो लोग थोड़ी सी सुविधा मिलने पर अपना अधिकार जमा लेते हैं उनके लिए.

बैठा बनिया क्या करे, बाट तराजू तौले. बनिया बहुत उद्यमशील होता है, वह खाली बैठने की बजाए कुछ न कुछ करता रहता है.

बैठी बुढ़िया मंगल गाए. समझदार आदमी कभी खाली नहीं बैठता. वह ऐसा कुछ न कुछ काम करता रहता है जो दूसरों को अच्छा लगे.

बैठे बैठे तो कारूँ का खजाना भी खाली हो जाता है. कारूँ – मुस्लिम कथाओं में एक अति धनवान और कंजूस व्यक्ति जो हज़रत मूसा का चचेरा भाई था. इंसान यदि कोई काम न करे तो उसने कितना भी धन जोड़ कर रखा हो सब खत्म हो जाता है.

बैद्य, धनी, राजा, नदी, अरु पंडित नहिं होय, जहाँ पाँच ये न हुए, वहाँ बसो न कोय. (बुन्देलखंडी कहावत) किसी भी समाज के अस्तित्व के लिए ये पांच आवश्यक हैं, जहाँ ये न हों वहाँ जीवन जीना कठिन है.

बैरी लायो गेह में, किया कुटुम पर रोस, आप कमाया कामड़ा, दई न दीजे दोस (बैरी न्यूत बुलाइयाँ कर भायां से रोस). दई – दैव,ईश्वर;कामड़ा – दुर्भाग्य, दुर्दशा. घर वालों से बदला लेने के लिए बैरी को घर में बुलाया. अब मेरी बारी भी आ गई है. इस दुर्दशा को मैंने खुद बुलाया है, भाग्य का इस में दोष नहीं है. इस कहावत के पीछे एक कथा कही जाती है. एक कुएं में बहुत से मेंढक रहते थे. एक बार उनमें आपस में लड़ाई हो गई तो एक मेंढक दूसरों से बदला लेने के लिए एक सांप को बुला लाया. सांप ने एक एक कर के सब मेंढकों को खा लिया. जब अंत में उस मेंढक की बारी आई तो उस ने यह कहा. पृथ्वीराज चौहान से बदला लेने के लिए जयचंद ने मोहम्मद गोरी को बुलाया. बाद में गोरी ने कन्नौज पर आक्रमण कर के जयचंद को भी मार डाला.

बैरी संग न बैठिए पीकर मद और भांग. किसी प्रकार का नशा कर के अपने शत्रु के साथ कभी नहीं बैठना चाहिए. आप नशे में कोई भेद की बात उसे बता कर अपना नुकसान कर सकते हैं.

बैल अकेला किस काम का. अकेला बैल हल भी नहीं चला सकता और गाड़ी भी नहीं जोत सकता. 

बैल का बैल गया, नौ हाथ का पगहा भी गया. किसी बड़े नुकसान के साथ एक छोटा नुकसान और होना. बैल तो चोरी हुआ है साथ में बैल को बाँधने वाली रस्सी भी चोरी हो गई.

बैल न कूदा, कूदी गौन, (ऐसा तमाशा देखे कौन). गौन – बैल के ऊपर रखी जाने वाली अनाज की बोरी. बोरी रखने पर बैल ने तो कोई आपत्ति नहीं की, बोरी ही उछल कूद मचाने लगी. जिस से कोई चुभती बात कही गई वह तो कुछ न बोला, दूसरा कोई लड़ने को तैयार हो गया.

बैल बेच घंटी पर रार (भैंस बेच पगहे पर झगड़ा).  बड़ा सौदा कर के छोटी सी बात पर लड़ना. रार – झगड़ा. पगहा – गाय भैंस को बाँधने की रस्सी.

बैल ब्याहे तो नहीं पर बूढ़ा तो होगा ही. बैल की शादी भले ही न हो बैल बूढ़ा तो होगा ही. शादी न कर के कोई व्यक्ति समाज के नियम को टाल सकता है पर प्रकृति के नियम को नहीं टाल सकता.

बैल मरखना चमकुल जोय, बा घर रोना नित ही होय. जिस का बैल मरखना (सींग मारने वाला) हो और पत्नी चमक धमक से रहने वाली हो, उस के घर में नित्य ही मातम होता है.

बैल सरकारी, यारों की टिटकारी. सरकारी सम्पत्ति या किसी भी मुफ्त की चीज़ का लोग खूब दुरूपयोग करते हैं.

बैले दीजे जायफल, क्या तौले क्या खाय. जायफल सुपारी की जाति का एक फल होता है जिसका प्रयोग कुछ औषधियों और गरम मसाले में किया जाता है. बैल को जायफल दिया जाए तो न तो उस का पेट भरेगा और न ही वह उस के गुणों को समझेगा. इस कहावत में दो कहावतों का समावेश है – बंदर क्या जाने अदरख का स्वाद और ऊँट के मुँह में जीरा. 

बैलों से खेती घोड़ों से राज, मर्दों से सुधरें सिगरे काज. खेती के लिए बैल आवश्यक हैं, शासन चलाने के लिए घोड़े और सभी प्रकार के कामों के लिए पुरुष आवश्यक हैं.

बोए कोई काटे कोई. इस कहावत का प्रयोग दो प्रकार से हो सकता है – मेहनत किसी और ने की और फल किसी और को मिला, या गलती किसी और ने की खामियाजा किसी और ने भुगता.

बोटी नहीं तो शोरबा ही सही. जो मिल जाए वही गनीमत.

बोया गेहूँ, उपजा जौ. भाग्य साथ न दे तो कोई काम ठीक नहीं होता.

बोया न जोता, अल्ला मियाँ ने दिया पोता. बिना मेहनत करे अचानक कोई चीज़ मिल जाए तो.

बोया पेड़ बबूल का, तो आम कहाँ से खाय. सब के साथ बुरा करोगे तो तुम्हारे साथ भलाई कैसे होगी.

बोलने वाले का भुस बिकाय, न बोलने वाले का धान सड़ाय. जिसके अंदर बोलने की कला है वह अपना घटिया उत्पाद भी बेच लेता है और जो नहीं बोल पाता है वह अच्छा उत्पाद भी नहीं बेच पाता है. विज्ञापन भी यही काम करते हैं.

बोलबो न सीख्यो तो सब सीख्यो गयो धूल में. आप कितना भी ज्ञान प्राप्त कर लें यदि आप को ठीक से बोलना नहीं आता (अभिव्यक्ति का गुण नहीं है) तो सब ज्ञान बेकार है.

बोली एक अमोल है, जो कोइ बोलै जानि, हिये तराजू तौल के, तब मुख बाहर आनि. बोली अनमोल वस्तु है इसलिए जो कुछ भी बोलो पहले अपने हृदय में उसे तोल लेना चाहिए.

बोली गधे चढ़ावे, बोली घोड़े चढ़ावे. जहाँ एक ओर खराब बोली बोलने पर किसी को मुंह काला कर के गधे पर बिठाया जाता है, वहीं दूसरी ओर अच्छी बोली बोल कर राजा के यहाँ अच्छा पद और सुविधाएं मिल जाती हैं. 

बोली बोली तो ये बोली कि मेरी जूती बोले. लड़ाका स्त्री के लिए जो गुस्से में मुँह फुलाए है और कुछ बोल नहीं रही है, फिर कहती है मेरी जूती बोलेगी.

बोली से ही पान मिले और बोली से ही पन्हैया. अच्छी बोली बोलने से पान खिला कर सम्मान किया जाता है और बुरी बोली बोलने से जूते खाने पड़ते हैं. पन्हैया – जूता.

बोले सो तेल को जाए. चुप रहना सबसे अच्छा है. जो बोलेगा वही तेल लेने जाएगा. (जो बोले सो कुण्डी खोले).

बोहरे की बकरी सो बरस सखरी. सखरी – अच्छी, स्वस्थ, बोहरा – सूदखोर. सूदखोर के असामी ही उस के भेड़ बकरी हैं जो पीढ़ियों तक कर्ज़ भरते हैं. 

बोहरे की राम राम, जम का संदेसा. बोहरा – सूदखोर बनिया. बोहरा नमस्कार कर के अपने पैसे मांगता है, इसलिए उस की नमस्कार भी मौत का संदेश है.

बौना, जोरू का खिलौना. ठिगने कद के व्यक्ति को चिढ़ाने के लिए.

बौरी बिस्तुइया, बाघन से नज़ारा. बिस्तुइया – बिस्खोपड़ी, गोह (छिपकली की जाति का एक बड़ा प्राणी जो उस से काफी बड़ा होता है). गोह पगला गई है जो बाघों से भिड़ रही है. कोई अपने से बहुत बड़े दुश्मन से भिड़े तो.

ब्याज कमाने आया, मूल गवां के जाए. किसी काम में लाभ के स्थान पर हानि हो जाना.

ब्याज बढ़ावे धन घना रार बढ़ावे छोय, जैसे गंधक आग में गिरे सो दूनी होय. ब्याज से धन बढ़ता है और झगड़ा बढ़ाने से क्षोभ बढ़ता है (जिस प्रकार गंधक आग में गिर कर दूनी हो जाती है).

ब्याज मोटा, मूल का टोटा. ज्यादा मोटा ब्याज वसूलने के चक्कर में कभी कभी मूलधन भी मारा जाता है.

ब्यारी कबहुं न छोडिये, बिन ब्यारी बल जाए, जो ब्यारी औगुन करे दुपरै थोड़ो खाएँ.(बुन्देलखंडी कहावत) मेहनतकश आदमी को रात का भोजन अवश्य करना चाहिए. अगर रात में खाने से पेट में भारीपन लगे तो दोपहर में खाना थोड़ा कम कर देना चाहिए. 

ब्याह तो बिगड़ गया, घर के तो जीमो. किसी विवाह में कन्या और वर पक्ष के बीच बात बिगड़ जाने से बारात वापस चली गई, तो कन्या का पिता कह रहा है कि घर के लोग तो भोजन करो. कोई काम बिगड़ जाने के बाद भी दुनिया रुक नहीं जाती, चलती रहती है.

ब्याह न सगाई, तू मेरी लुगाई. जबरदस्ती किसी से सम्बन्ध होने का दावा करना. 

ब्याह नहीं किया तो क्या, बारात तो गए हैं. कोई कार्य हमें स्वयं करने का अनुभव नहीं है तो क्या हुआ हमने औरों को करते देख कर ही सीख लिया है.

ब्याह पीछे पत्तल भारी. किसी बड़े कार्य में आप कितना भी खर्च कर लें उस के बाद छोटे छोटे खर्च भी भारी लगते हैं. विवाह में चाहे हजार लोगों को खिला दिया हो पर उसके बाद एक आदमी को भोजन कराना भी भारी लगता है.

ब्याह पीछे बरात, बरात पीछे धौंसा. जो काम पहले करना चाहिए वह बाद में करना. विवाह के बाद बारात निकालना और बारात निकलने के बाद बैंड बाजा बजाना.

ब्याह बिगाड़ें दो जने, या मूंजी या मेह. दो चीजें विवाह में व्यवधान डालती हैं, पैसे का लालची व्यक्ति या बरसात. किसी भी आयोजन के लिएउचित खर्च करना जरुरी होता है और प्रकृति का सहयोग भी.

ब्याह में गाए गीत, सारे साँची न होते. विवाह में लोग अच्छे अच्छे गीत गाते हैं वे सब सच नहीं होते. हम भविष्य के बारे में बहुत सी आशाएं संजोते हैं, पर वे सब सच नहीं होतीं.

ब्याह सगाई नौकरी, राजी ही से होय. विवाह, प्रेम और नौकरी आपसी सहमति से ही हो सकते हैं.

ब्याह हुआ नहीं, गौने का झगड़ा. किसी काम को आरम्भ किए बिना उस के परिणाम को लेकर झगड़ा करना. गौना विवाह के बाद होने वाली रस्म है जिसमें वर वधू को विदा करा के अपने घर ले जाता है. किसी किसी समाज में गौना विवाह के काफी दिन बाद होता है.

ब्याहे न बरात गए. नितांत अनुभवहीन व्यक्ति.

ब्राह्मण और धान की जातियाँ अनंत हैं. जिस प्रकार धान की बहुत सारी प्रजातियाँ होती हैं उसी प्रकार ब्राह्मणों में भी बहुत सी उपजातियाँ होती हैं.

ब्राह्मण हो चोरी करे, विधवा पान चबाय, क्षत्री हो रण से भगे, जन्म अकारथ जाय. ब्राह्मण यदि चोरी करे, विधवा यदि पान चबाए (पान चबाना विलासिता का प्रतीक है जबकि विधवा स्त्रियों से बिलकुल सादा जीवन जीने की अपेक्षा की जाती थी) और क्षत्रिय हो कर रणभूमि से भाग जाए, इन सब का जीवन बेकार है.

 

 

 

भंवरा जाने सर्व रस, जिन चाखी वनराय, घुन क्या जाने बापुरो, सूखी लकड़ी खाय. भंवरा भांति भांति के फूलों का पराग चखता है इस लिए उसे सारे रसों का ज्ञान होता है, घुन बेचारा केवल सूखी लकड़ी खाता है इसलिए कुछ नहीं जानता.

भई गति साँप छछूंदर केरी (धरम सनेह उभय मति घेरी). सांप के विषय में कहा जाता है कि यदि वह छछूंदर को पकड़ ले तो बहुत संकट में पड़ जाता है, यदि वह उसे निगल ले तो अंधा हो जाएगा और अगर उगल दे तो कोढ़ी हो जाएगा. इस संसार में मनुष्य के लिए ऐसी ही स्थिति होती है एक तरफ धर्म होता है और दूसरी तरफ स्नेह करने वाले स्वजन होते हैं.

भए विधि विमुख विमुख सब कोऊ. भाग्य साथ न दे तो बंधु, बांधव, मित्र सभी मुँह मोड़ लेते हैं. 

भगवान के राज्य में देर है अंधेर नहीं (भगवान के घर देर है अंधेर नहीं है). ईश्वर सभी के साथ न्याय करता है चाहे वह कुछ देर से क्यों न हो.

भगवान तो भाव के भूखे हैं (भगवान भावना के भूखे हैं). भगवान सवा मन लड्डू या सवा सेर सोना चढ़ाने से प्रसन्न नहीं होते, वे तो भक्त की भावना देखते हैं. 

भगवान पर विश्वास रखोपर अपनी सुरक्षा स्वयं करो. भगवान् पर विश्वास रखना चाहिए लेकिन अंधविश्वास न कर के अपने कार्य स्वयं करना चाहिए. इस से मिलती जुलती इंग्लिश में एक कहावत है – God helps those, who help themselves.

भगवान मुझे अपनों से बचाए शत्रुओं से मैं अपनी रक्षा आप कर लूँगा. शत्रुओं से अधिक खतरा उन लोगों से है जो अपना होने का दिखावा करते हैं और मौका पाते ही पीठ में छुरा भोंक देते हैं.

भगवान् देता है तो छप्पर फाड़ के देता है. ईश्वर जब कृपा करता है तो भरपूर देता है.

भगाओ मन के डर को, बुड्ढे वर को. मन के डर को भगाओ (जो डरता है वह कुछ नहीं कर सकता) और अगर कोई बुड्ढा किसी युवा लड़की से शादी करने को आए तो उसे भगा दो. 

भगोड़ा सिपाही पलटन की बुराई करता है. कोई भी कर्मचारी जहाँ से काम छोड़ता है (या निकाला जाता है) वहाँ की बुराई करता है.

भज कलदारं, भज कलदारं, कलदारं भज मूढमते. कलदार – रुपया.इस कलयुग में रुपया ही सब कुछ है. यह कहावत श्री कृष्ण भजन – भज गोविन्दं मूढ़मते की तर्ज पर बनाई गई है. 

भजन और भोजन एकान्त में भला. भजन एकांत में इसलिए करना चाहिए जिससे मन इधर उधर न भटके, और भोजन एकांत में इसलिए करना चाहिए जिससे औरों की नज़र न लगे.

भटा भर्ता (बैगन का भर्ता) न खाए, तो दुनिया में काहे को आए. बुन्देलखंड में बैगन के भर्ते को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. वहाँ के लोगों का कहना है कि यदि बैंगन का भर्ता नहीं खाया तो मनुष्य का जन्म लेना बेकार है. 

भड़भड़िया अच्छा, पेट पापी बुरा. जो ऊपर से शांत दीखता है पर उसके मन में पाप है उस के मुकाबले जल्दी मचाने वाला व्यक्ति अच्छा है. भड़भड़िया – जल्दी मचाने वाला.

भड़भूँजा की छोकरी और केसर का तिलक. अयोग्य व्यक्ति को बहुमूल्य वस्तु मिल जाना. भड़भूँजा – भाड़ में अनाज इत्यादि भूनने वाला (पहले जमाने में निचली श्रेणी के लोगों में से एक).

भडुए को भी मुंह पर भडुआ नहीं कहते. नीच व्यक्ति को भी उस मुँह पर नीच नहीं कहना चाहिए. भडुआ – वेश्याओं का दलाल या साज बजाने वाला. 

भय और प्रेम एक जगह नहीं रहते. जहाँ प्रेम है वहाँ भय का कोई स्थान नहीं है और जो भय दिखाता है उस से प्रेम नहीं हो सकता.

भय बिन भाव न ऊपजै, भय बिन होय न प्रीति. बिना डर के किसी के प्रति आदर का भाव नहीं पैदा होता और बिना डर के प्रीति भी नहीं होती.

भय बिनु होहि न प्रीत. बिना डर के आदमी कोई काम नहीं करता. भगवान राम ने जब समुद्र से मार्ग देने का अनुरोध किया और वह नहीं माना तो राम ने अपने धनुष पर अग्नि बाण चढ़ाया और क्रोध से कहा कि यदि समुद्र रास्ता नहीं देगा तो मैं इसे सुखा दूँगा. – तुलसीदास जी ने राम चरित मानस में इस प्रकरण को इस प्रकार कहा है – विनय न मानत जलधि जड़ गए तीनु दिन बीत, बोले राम सकोप तब भय बिनु होहि न प्रीत. 

भर फगुआ बुढ़उ देवर लागेंले. (भोजपुरी कहावत) होली के मौसम में इतनी मस्ती छाती है कि स्त्रियाँ ससुर से भी देवर के समान मजाक कर लेती हैं. फगुआ – फाग, होली.

भरम भारी, पिटारा खाली. जहाँ किसी बात का बहुत भारी भ्रम फैलाया जा रहा हो और वास्तविकता में कुछ न हो. बंद पिटारा दिखा कर लोगों को मूर्ख बनाया जा रहा है जबकि पिटारा अंदर से खाली है.

भरम मारे, भरम जियावे. भ्रम (अनावश्यक डर) ही व्यक्ति को मारता है और भ्रम (आशा) ही व्यक्ति को जीने की और कर्म करने की इच्छा प्रदान करता है.

भरी जवानी मांझा ढीला. मांझा – शरीर में कमर और नितम्बों का भाग. युवावस्था में यौनेच्छा की कमी या अशक्ति.

भरी जवानी में बुढ़ापे का मजा. कोई जवानी में ढीला ढाला, कमजोर और आलसी हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए ऐसे बोलते हैं.

भरी न छलके, अधभरी छलके (भरी गगरिया चुपके जाय). भरी हुई गागर ले कर चलने पर वह छलकती नहीं है, आधी भरी हुई छलकती है. इसी प्रकार जिस व्यक्ति को अधिक ज्ञान होता है वह कम बोलता है जबकि अधूरे ज्ञान वाला व्यक्ति बहुत बकबक करता है.

भरी नाव में सूप भी भारी. जो व्यक्ति या संस्थान काम के बोझ से लदा हुआ है उस को थोड़ा सा भी अतिरिक्त काम भारी लगता है. 

भरे को सब भरें. जो सब प्रकार से सम्पन्न है उसी को सब लोग भेंट और सम्मान देते हैं, जो वास्तव में जरूरतमंद है उसे कोई नहीं देना चाहता.

भरे पेट शक्कर खारी. जब पेट भरा हो तो अच्छे खाद्य पदार्थ भी स्वादिष्ट नहीं लगते, जबकि भूखे पेट पर सादा भोजन भी स्वादिष्ट लगता है.

भरे समंदर में घोंघा प्यासा. समस्त सुविधाओं के बीच रहने वाला व्यक्ति ही अगर उनसे वंचित हो

भरोसे की भैंस, पड़ा बियानी. (बुन्देलखंडी कहावत) भैंस की पड़िया की कीमत पड्ढे के मुकाबले बहुत अधिक होती है. जिस भैंस पर विश्वास था कि वह पड़िया जनेगी उसी ने पड्डा पैदा कर दिया. कोई विश्वास पात्र व्यक्ति ही धोखा दे जाए तो यह कहावत कही जाती है.

भलमानस घर में पड़ा, मवाली ने जाना मुझसे डरा. शांति प्रिय व्यक्ति चुपचाप अपने घर में रह रहा है तो गुंडे बदमाश समझ रहे हैं कि उन से डर गया है.

भला हुआ ननद गौने गई, ननद की साड़ी मोको भई. किसी के जाने से किसी का फ़ायदा. ननद के ससुराल जाने से भाभी इसलिए खुश है कि ननद की साड़ी उसे पहनने को मिल गई.

भले आदमी की मुर्गी टके टके. भले आदमी के माल को सब सस्ते में हासिल करना चाहते हैं.

भले के भाई, बुरे के जंवाई. जो हमारे साथ शराफ़त से पेश आएगा उस के लिए हम शरीफ़ हैं और जो हमारे साथ बुरा करेगा उस के लिए हम बुरे है. यहाँ जंवाई का अर्थ खून चूसने वाले प्राणी के रूप में किया गया है.

भले घोड़े को एक चाबुक, भले आदमी को एक इशारा काफी है. अर्थ स्पष्ट है.

भले दिन का मेहमान, बुरे दिन का दुश्मन. जब व्यक्ति सम्पन्न होता है तो घर आया मेहमान अच्छा लगता है. जब व्यक्ति परेशानी में होता है तो घर आया मेहमान दुश्मन लगता है.

भलो भयो मेरी मटकी फूटी, मैं दही बेचन से छूटी. चाहे नुकसान हो जाए पर काम न करना पड़े ऐसा सोचने वाले व्यक्ति के लिए. 

भलो भयो मेरी माला टूटी राम जपन की किल्लत छूटी. उपर्युक्त कहावत की भांति.

भलो, भलो कह छांड़िए, खोटे ग्रह जप दान (दुष्ट ग्रहों को ही पूजा जाता है). किसी भी घर, खानदान या संगठन में भले लोगों को तो यह कह कर उपेक्षित कर दिया जाता है कि ये तो भले आदमी है मान जाएंगे. जो दुष्ट और दुराग्रही हैं उन्हें मनाने की कोशिश की जाती है. इसका दृष्टांत इस कहावत में इस प्रकार दिया गया है कि सूर्य और बृहस्पति की पूजा कोई नहीं करता, शनि और राहु को शांत करने के लिए दान और हवन किए जाते हैं. इसकी पहली पंक्ति है – बसे बुराई जासु तन, ताही को सन्मान.

भवन बनावत दिन लगे, ढावत लगे न देर. मनुष्य बड़ी मेहनत से महीनों सालों में कोई भवन बनाता है या व्यापार खड़ा करता है, पर जब दुर्भाग्य आता है तो कुछ क्षणों में ही सब ढह जाता है.

भवानी निबल बकरे सबल. देवी कमजोर हैं और उनको बलि चढ़ाने के लिए लाए गए बकरे ताकतवर हैं. जहाँ प्रशासन कमज़ोर और अपराधी मजबूत हों.

भाँड़ो संग खेती की, गा बजा के छीन ली. निम्न श्रेणी के लोगों के साथ साझे में कोई काम नहीं करना चाहिए, वे नंगई दिखा कर व्यापार का सारा लाभ छीन सकते हैं.

भांग भखन तो सुगम है, लहर कठिन कैंह होय. भांग खाना आसान है भांग की तरंग झेलना मुश्किल है.

भांग मांगे भूगड़ा, सुल्फा मांगे घी, दारू मांगे खूंसड़ा, खुसी आवे तो पी. भूंगड़ा – भुने चने. भांग की तरंग मसाले दार भुने चने खाने से कम होती है और सुल्फे की खुश्की घी से, दारू पी के जो दिमाग फिरता है वह जूते लगने से ठीक होता है, जिसको जिसमें ख़ुशी हो वही पियो.

भांड की कौन बुआ, सांप की कौन मौसी. निकृष्ट लोग कोई सामाजिक रिश्ता नहीं मानते.

भाई का भाई बाहर बैठ जाए, जोरू का भाई चौके तक जाए. (बुन्देलखंडी कहावत)  महिलाएँ पति के भाई को घर में बैठाती तक नहीं हैं, लेकिन अपने भाई को चौके में बैठा कर प्रेम से खाना खिलाती हैं.

भाई दूर पड़ोसी नियरे. पड़ोसी का बहुत महत्व है क्योंकि मुसीबत के वक्त भाई तो दूर होगा पर पड़ोसी पास होगा.

भाई बराबर बैरी नहीं, भाई बराबर प्यारा नहीं. भाई सब से प्यारा भी होता है और जायदाद के झगड़े के कारण भाई सब से बड़ा दुश्मन भी बन जाता है.

भाई भतीजा भांजा भाट भांड भुइंहार, इतने भ को छोड़ के फेरि करो व्यापार (भइअन छओ भकार से, सदा रहो होसियार). भ अक्षर से शुरू होने वाले इन सब लोगों के साथ व्यापार नहीं करना चाहिए. ये छः लोग कभी भी धोखा दे सकते हैं. 

भाई भले ही मरे, भाभी का घमंड टूटना चाहिए. मूर्खता पूर्ण स्वार्थपरता की पराकाष्ठा.

भाई लड़ें तो माँ भी दो हो जाएँ. भाइयों में लड़ाई होती है तो बेचारी माँ के सामने यह दुविधा हो जाती है कि वह क्या बोले. दोनों को लगता है कि माँ दूसरे का पक्ष ले रही है.

भाई सीधा और भाभी चंट, उधर की कसर इधर पूरी. किसी घर में पति सीधा हो और पत्नी चालाक तो लोग पति के सीधेपन का नाजायज फायदा नहीं उठा पाते हैं. ऐसी परिस्थिति में यह कहावत कही जाती है.  

भाग बिना भोगे नहीं भली वस्‍तु का भोग, (दाख पके जब काग के होत कंठ में रोग). भाग्य के बिना हम किसी वस्तु का उपभोग नहीं कर सकते. लोक मान्यता है कि जब अंगूर पकते हैं तो कौए के गले में रोग हो जाता है और वह अंगूर नहीं खा सकता. दाख – द्राक्ष (अंगूर).

भागते भूत की लंगोटी ही भली. जब कोई बड़ा नुकसान हो रहा हो तो जो कुछ भी बच जाए वही अच्छा.

भागतों के आगे और मारतों के पीछे. डरपोक लोगों के लिए. जहाँ मैदान छोड़ कर भागने की बात आएगी वहाँ सबसे आगे होंगे, और जहाँ आगे बढ़ कर मारने की बात आएगी वहाँ सब से पीछे होंगे.

भागने वाली को दहेज नहीं मिलता. जो लड़की घर से भाग कर शादी करती है उसे दहेज़ नहीं मिलता.

भागने से पहले चलना सीखो. किसी काम को सीखने में जल्दबाजी न करो.

भागलपुर के भागलिए कहलगाँव के ठग, पटना के दिवालिए ये तीनों नामज़द. स्थान विशेष के ऊपर बनाई गई कहावतें जो कभी किसी कारण से बनती हैं और कभी बेसिरपैर की भी होती हैं.

भागलपुर जाइए न, जाइए तो कुछ लाइए न और लाइए तो रोइए न. कहावत में कहा गया है कि भागलपुर में मिलने वाला सामान घटिया होता है. सत्य मालूम नहीं क्या है. 

भाग्य और परछाई कभी साथ नहीं छोड़ते. जिस प्रकार परछाईं आदमी का साथ कभी नहीं छोड़ती, उसी प्रकार भाग्य भी हमेशा साथ लगा रहता है (व्यक्ति कहीं भी जाए). 

भाग्य की बलिया, रांधी खीर हो गयो दलिया. भाग्य में न हो तो आदमी जो भी काम करे कुछ का कुछ हो जाता है (खीर बनाई तो दलिया बन गया)..

भाग्य दो कदम आगे चलता है. जब व्यक्ति का भाग्य खराब होता है तो वह कहीं भी जाए उसे सफलता नहीं मिलती. उसका दुर्भाग्य उससे पहले ही वहाँ पहुँच जाता है.

भाग्यवान का पड़ोसी नरक में जाता है. क्योंकि वह ईर्ष्या से जलता भुनता रहता है.

भाग्यवान के भूत कमावें (भाग्यवान का हल भूत जोतते हैं). जब आदमी का भाग्य प्रबल होता है तो उस के सारे काम अपने आप होते चले जाते हैं.

भाड़ में जावे दुनिया, हम बजावें हरमुनिया. दुनिया भाड़ में जाए, हम अपने राग रंग में मस्त हैं. हरमुनिया – हारमोनियम.

भाड़ लीप कर हाथ काला किया. अपनी हैसियत के अनुकूल काम न करके प्रतिष्ठा को बट्टा लगाया.

भाड़ा, ब्याज, दच्छना, पीछे मिले कुच्छ ना. किराया, ब्याज और दक्षिणा तुरंत ले लेना चाहिए. बाद में कुछ नहीं मिलता.

भाड़े के घोड़े, खाएं बहुत चलें थोड़े. किराए पर लिए गए घोड़े खाते अधिक हैं और काम कम करते हैं. जब तक किसी काम में व्यक्ति का अपना नफा नुकसान नहीं होता तब तक वह काम नहीं करता.

भात खाते हाथ पिराए. अत्यधिक नजाकत, चावल खाने में हाथ में दर्द होना.

भात छोड़ दो साथ न छोड़ो. चाहे एक बार को भोजन छोड़ दो पर किसी अपने का साथ न छोड़ो.

भात बिना है रांड रसोई, खांड बिना अनपूती, बिन घी के जिन खाई रोटी, मानो खाई जूती. चावल और खांड के बिना रसोई बिल्कुल निरर्थक है. घी के बिना रोटी खानी पड़े तो उसे बेइज्जती मानना चाहिए.  

भात होगा तो कौवे बहुत आ जाएंगे. आपके पास धन और सत्ता हो उस का लाभ उठाने के लिए बहुत लोग आ जाएंगे (और धन एवं सत्ता के जाते ही ये सब गायब भी हो जाएंगे).

भादों की घाम और साझे का काम देहि तोड़ा करें (या बैरी भादों की घाम, या बैरी साझे का काम). भादों की धूप बहुत तेज़ होती है इसलिए शरीर को तोड़ देती है, साझे के काम में मेहनत करना सबको भारी लगता है इसलिए शरीर टूटता है.

भादों की छाछ जूतों को, कातक की छाछ पूतों को. भादों में छाछ हानिकारक मानी जाती है और कार्तिक में गुणकारी (खाद्य पदार्थों के बारे में ऐसे बहुत से बेतुके अंधविश्वास पहले के लोगों में भी पाए जाते थे और अब भी पाए जाते हैं). जूतों के स्थान पर भूतों भी बोला जाता है.

भादों की धूप में हिरन काले हो जाते हैं. भादों की धूप बहुत तेज होती है इस बात को थोड़ा बढ़ा चढ़ाकर कहा गया है.

भादों की बरखा, एक सींग गीला एक सींग सूखा. भादों की वारिश कहीं होती है और कहीं नहीं होती, इस बात को हास्यपूर्ण ढंग से कहा गया है.

भानु उदय दीपक किहिं काजा. सूर्य उदय होने के बाद दीपक का क्या काम.

भाभी लीपती जाय, देवर खेलता जाय. कोई आदमी मेहनत कर के काम बना रहा हो और दूसरा उसे बिगाड़ता जा रहा हो तो.

भार घसीटत और को, रहे ऊँट के ऊँट. जो लोग अपने दिमाग से काम नहीं करते वे जानवरों के समान दूसरों का बोझ ही ढोते रहते हैं.

भारी पत्थर न उठा तो चूम कर छोड़ दिया. कोई चालाक आदमी भारी पत्थर उठाने की कोशिश कर रहा था. नहीं उठा तो चूम कर छोड़ दिया, यह जताने के लिए कि उठाने की कोशिश नहीं कर रहे थे, हम तो पत्थर को चूम रहे थे. कोई काम न कर पाओ तो चालाकी से उस से हाथ खींच लेना.

भारी ब्याज मूल को खाय. ज्यादा मोटा ब्याज वसूलने के चक्कर में कभी कभी मूलधन भी मारा जाता है.

भाव बिना भक्ति नहीं. भाग बिना धन मान. जब तक भगवान के प्रति समर्पण का भाव न हो तब तक भक्ति नहीं होती और भाग्य के बिना धन व सम्मान नहीं मिलते.

भाव राखे सो भाई. असल भाई वही है जो मन में प्रेम का भाव रखे.

भावज की थैली, सर्राफी करे देवर. दूसरों के धन पर व्यापार करने वालों के लिए.

भावी के वश सब संसार. भाग्य के वश में सारा संसार है.

भाषा जो न जाने ताहि शाखामृग जानिए. शाखामृग – बंदर. जो अनपढ़ है वह बंदर के समान है.

भिखारी का क्या दीवाला. जिस व्यापार में पूँजी लगती है उस में दीवाला निकलने का डर रहता है. भिखारी की कोई पूँजी दांव पर नहीं लगती.

भिच्छु जो लछमी पाइहै, सीधे परत न पाँव. भिखारी को धन मिल जाए तो बहुत इतराने लगता है.

भीख के टुकड़े बाजार में डकार. अपने पास कुछ न होते हुए भी दिखावा करना.

भीख न दे माई, मेरो खप्पर तो मत फोड़े. भले ही मेरे ऊपर कुछ उपकार न करो, मुझे नुकसान तो न पहुँचाओ.

भीख माँगे आँख दिखावे. निर्लज्ज भिखारी, भीख मांग रहा है और आँखें दिखा रहा है.

भीख मांगे और पूछे गाँव की जमा. गाँव भर से जो लगान इत्यादि जमींदार लोग जमा करते थे उसे गाँव की जमा कहते थे. कोई भीख मांगने वाला गाँव की जमा पूछे यह बेतुकी बात है.  

भीख में पछोड़ क्या (भीख में मांगें पछोर पछोर). भीख का अनाज साफ़ कर के नहीं मिलता. इंग्लिश में कहावत है – Beggars can’t be choosers.

भीख से भंडार नहीं भरते. भीख मांग कर कोई तरक्की की सीढ़ियाँ नहीं चढ़ सकता.

भीड़ में सिर बहुत, दिमाग एको नहीं. भीड़ में विवेक नहीं होता.

भीतर का घाव, रानी जाने या राव. घर की अंदरूनी समस्याओं को घर के मुखिया ही जानते हैं.

भील का घर टोकरी में. बहुत गरीब आदमी के पास इतना कम सामान होता है कि एक टोकरी में आ सकता है.

भीषण सिंधु तरंग में पहले पैठे कौन. समुद्र में भयंकर लहरें उठ रही हों तो पहले कौन उस में उतरेगा. किसी खतरनाक काम को पहले करने का बीड़ा कोई नहीं उठाना चाहता.

भुस के मोल मलीदा. जब कोई बहुत कीमती चीज़ बहुत सस्ते में मिल रही हो तो.

भुस में आग लगाए जमालो दूर खड़ी. दो लोगों में लड़ाई करवा के दूर से तमाशा देखना.

भूख गए भोजन मिले, जाड़ो गए रजाई, जोवन गए तिरिया मिले, कौन काम को भाई. भूख खत्म होने के बाद भोजन, जाड़ा खत्म होने के बाद रजाई और यौवन बीत जाने के बाद स्त्री मिले तो किस काम के.

भूख में किवाड़ पापड़ होते हैं (भूख में गूलर ही पकवान). बहुत भूख लगी हो तो जो भी खाने को मिले अच्छा लगता है.

भूख में चने बादाम (भूख में चना चिरौंजी, भूख में चने भी मखाने) भूख में चना भी मेवे जैसा लगता है.

भूख लगी तो घर की सूझी. आवारा आदमी और बालक इनको भूख लगने पर घर ही याद आता है.

भूखा आदमी क्या पाप नहीं करता. भूखा आदमी अपनी भूख मिटाने के लिए कुछ भी पाप करने को तैयार हो जाता है.(बुभुक्षित: किम न करोति पापं). इंग्लिश में कहावत है – When there is no bread in the stomach, everything goes wrong.

भूखा खाए तो पतियाए. भूखे को कितने भी आश्वासन देते रहो, उसे विश्वास तभी होगा जब भर पेट खाने को मिल जाएगा.

भूखा गया जोय बेचने, अघाना कहे बंधक रखो. अघाना – जिस का पेट भरा हुआ हो. गरीब अपनी स्त्री को बेचने धनी के पास गया, धनी कहता है मैं खरीदूंगा नहीं मेरे पास गिरवी रख दो. किसी की मजबूरी का अनुचित लाभ उठाना.

भूखा चाहे रोटी दाल, अघाया कहे मैं जोडूं माल. भूखा आदमी भोजन के लिए परेशान है और धनी आदमी (अघाया हुआ, पेट भरा हुआ) माल जोड़ने की चिंता में है.

भूखा पूछे जोतसी, अघाया पूछे वैद. भूख से परेशान गरीब आदमी ज्योतिषी के पास जाता है और पूछता है कि उस के दिन कब फिरेंगे. अधिक खाने से परेशान संपन्न आदमी वैद्य से पूछता है कि खाना कैसे पचाया जाए.

भूखा बंगाली भात ही भात पुकारे. भूखा आदमी भोजन भोजन ही पुकारता है (अगर बंगाली होगा तो भात पुकारेगा क्योंकि भात उसका मुख्य भोजन है).

भूखा बामन सिंह बराबर. भूखा ब्राह्मण हिंसक हो जाता है.

भूखा बामन सोवे, भूखा जाट रोवे, भूखा बनिया हंसे, भूखा रांगड़ कसे. ब्राह्मण भूखा होता है तो चुपचाप सो जाता है, जात भूखा होने पर रोता है, बनिया अजीब अजीब हरकतें करने लगता है और रांगड़ (मुस्लिम राजपूतों की एक जाति) लूटपाट के लिए कमर कस लेता है.

भूखा मरे कि सतुआ खाए. किसी को सत्तू बिलकुल पसंद नहीं है लेकिन खाने के लिए केवल सत्तू ही है. अब वह परेशान है कि भूखा मरे या सत्तू से पेट भरे. मजबूरी में कोई काम करना पड़े तो.

भूखा सिंह न तिनका खाय. शेर कितना भी भूखा क्यों न हो, घास नहीं खा सकता. वीर पुरुष कितने भी संकट में हों, अपने आदर्शों से समझौता नहीं करते.

भूखा सो जाना, पर जौ का दलिया नहीं खाना. सम्भवतः जौ का दलिया बहुत बेस्वाद होता है.

भूखा सो रूखा. भूखे आदमी से मधुर व्यवहार और विनम्रता की आशा नहीं करना चाहिए. 

भूखे का पेट बातों से नहीं भरता. भूखे व्यक्ति को आदर्श वाद की बातें नहीं समझाना चाहिए. इंग्लिश में कहावत है – Hungry bellies have no ears.

भूखे की कोई जात नहीं होती. भूखा आदमी किसी भी जात का हो, समान रूप से त्रस्त होता है.

भूखे को क्या रूखा, थके को क्या तकिया. भूख लगी हुई तो रूखा सूखा भोजन भी अच्छा लगता है, आदमी थका हुआ हो तो बिना तकिये के सो सकता है.

भूखे को भोजन थके को विश्राम. भूखे को भोजन और थके हुए व्यक्ति को विश्राम सबसे अधिक प्यारा होता है. इस को इस प्रकार भी कह सकते हैं कि भूखे को भोजन और थके को विश्राम कराने से बड़ा पुण्य मिलता है.

भूखे ने भूखे को मारा, दोनों को गश आ गया. कमजोर आदमी जब कमजोर से लड़ता है तो दोनों का नुकसान होता है.

भूखे बेर, अघाने गाड़ा, ता ऊपर मूली का डांड़ा. भूखे पेट पर बेर खाना चाहिए, पेट भरने के बाद गन्ना और उसके ऊपर मूली का सेवन करना चाहिए. 

भूखे भजन न होय गोपाला, ये लो अपनी कंठी माला. भूखा आदमी भजन नहीं कर सकता.

भूखे से पूछा दो और दो क्या, बोला चार रोटियाँ. भूखे व्यक्ति को केवल भोजन ही दिखाई पड़ता है.

भूत की दवा गू. एक नई नवेली बहू अपने ऊपर भूत आने का नाटक कर के बेहोश पड़ी थी. किसी सयानी स्त्री ने कहा भूत भगाने के लिए हम लोग कुत्ते का गू मुँह में डालते हैं. यह सुनते ही बहू को फौरन होश आ गया.

भूत जान न मारे, सता मारे. भूत किसी को जान से कैसे मार सकता है, भूत तो कुछ होता ही नहीं है. आदमी केवल उसका डर लोगों को सताता है. 

भूत न मारे, मारे भय. भूत प्रेत कुछ नहीं होता, केवल भय से ही लोग मर जाते हैं.

भूत मरे, पलीत जागे. एक मुसीबत समाप्त नहीं हुई कि दूसरी खड़ी हो गई.

भूत माटी का भी डराता है. इंसान भूत के नाम से ही डरता है.

भूतों के घर सालिग्राम. किन्हीं निकृष्ट लोगों के घर में कोई अच्छा व्यक्ति जन्म ले तो.

भूमि न भुमिया छोड़िये, बड़ो भूमि को वास, भूमि विहीनी बेल ज्यों, पल में होत बिनास. (बुन्देलखंडी कहावत)आजकल बहुत से किसान जमीन बेच कर शहरों में बसना चाहते हैं. कहावत में सलाह दी गई है कि किसान को अपनी जमीन नहीं छोड़नी चाहिए. 

भूमियाँ तो भू पे मरी, तू क्यों मरी बटेर. भूस्वामी तो जमीन के लिए लड़ते हैं, बटेर तू क्यों मरी जा रही है. जब बड़े लोगों की लड़ाई में कोई छोटा आदमी बिना बात शामिल हो रहा हो तो. धूर्त नेता तो सत्ता के लिए लड़ रहे होते हैं, उनके समर्थक बिना बात अपनी जान देते हैं. 

भूरा भैंसा, चंदली जोय, पूस में वारिश, बिरले होय. भूरे भैंसे, गंजी स्त्री और पूस के महीने में वारिश ये बहुत कम पाए जाते हैं.

भूल का टका भूल में गया. व्यापार में भूल से कुछ पैसा आ भी जाता है और कुछ पैसा चला भी जाता है. 

भूल गए राग रंग भूल गए छकड़ी, तीन चीज याद रहीं नोन तेल लकड़ी. शादी के पहले मस्त मौला रहने वाले लोगों का गृहस्थी संभालने के बाद का कथन.

भूल चूक का पैसा कमाई में नहीं गिना जाता. भूल चूक में कुछ पैसा यदि आ जाए तो उसे कमाई में नहीं गिनते.

भूल चूक लेनी देनी. व्यापारी लोग हिसाब में छोटी मोटी भूल चूक को आपसी सहमति से नज़र अंदाज कर देते हैं, उसी के लिए कथन. इंग्लिश में कहते हैं – Errors and omissions accepted.

भूला फिरे किसान जो कातिक मांगे मेंह. कार्तिक की वर्षा से कोई लाभ नहीं होता.

भूले चूके दंड नहीं. अनजाने में किसी से भूल हो गई हो तो उसे दंड नहीं देना चाहिए.

भूले बनिया भेड़ खाई (भूले बामन गाय खाई), अब खाऊं तो राम दुहाई. धोखे से कोई गलत काम हो गया है, अब आगे से किसी हाल में नहीं करूंगा. 

भूसी बहुत आटा थोड़ा. कायदे में आटे में थोड़ी सी ही भूसी (चोकर) होना चाहिए. अगर भूसी अधिक और आटा कम है तो उसे घटिया माना जाएगा. 

भेड़ की खाल में भेड़िया. कोई बहुत दुष्ट आदमी सज्जन बनने का ढोंग कर रहा हो तो.

भेड़ की लात घुटनों तक. कमजोर आदमी किसी को अधिक नुकसान नहीं पहुँचा सकता. भेड़ किसी को लात भी मारेगी तो टांगों पर ही मार पाएगी.

भेड़ जहां जाएगी वहीं मुंड़ेगी. सीधा साधा आदमी जहाँ जाएगा वहीं ठगा जाएगा.

भेड़ पर ऊन किसने छोड़ी. कमजोर को सब लूटते हैं.

भेड़ पूंछ भादों नदी को गहि उतरे पार. भादों की उफनती नदी है. भेड़ की पूंछ पकड़ कर कैसे पार हो सकती है. किसी बड़ी मुसीबत को छोटे आदमी के सहारे पार नहीं किया जा सकता.

भेड़ भगतिन बन गई और पूंछ में डाली माला. बनावटी साधुओं पर व्यंग्य.

भेड़ भेड़ तुझे कंबल उढ़ाउंगा, के ऊन कहाँ से लाएगा. जनता को मुफ्त में उपहार बांटने का नाटक करने वाले नेताओं से जनता को यह प्रश्न पूछना चाहिए कि तुम यह कहाँ से लाते हो. यह सब पैसा है तो जनता का ही.

भेड़िया आया, भेड़िया आया. एक चरवाहा दूर जंगल में भेड़ें चराया करता था. एक दिन वह मज़ाक मजाक में चिल्लाने लगा – भेड़िया आया, भेडिया आया. आसपास के लोग उसकी मदद के लिए दौड़े तो देखा कि वह झूठ मूठ चिल्ला रहा है. लोगों से मज़ा लेने के लिए उसने दो तीन बार फिर यही हरकत की. हर बार लोग आते और वापस लौट जाते. एक दिन सचमुच में भेड़िया आ गया और उस की एक भेड़ को उठा कर ले जाने लगा. अब वह बहुत चिल्लाया पर लोगों ने सोचा कि वह फिर से मज़ाक कर रहा होगा इसलिए कोई उस की मदद को नहीं आया. कहावत का अर्थ है कि गंभीर सामाजिक मसलों में ठिठोली नहीं करनी चाहिए.

भेड़िये रे भेड़िये, बकरी चराएगा. किसी दुष्ट आदमी से ऐसे काम के लिए पूछना जिसमें उसका फायदा ही फायदा हो. 

भेड़ियों के जरख ही पाहुने. जरख – लकड़बग्घा. नीच लोगों के संबंध नीच लोगों से ही होते हैं.

भेदिया सेवक, सुंदर नार, जीरन पट, कुराज, दुख चार. कहावत कहने वाले को चार दुःख सबसे बड़े लगते हैं – नौकर जो आपके भेद और लोगों को बताता है, सुन्दर नारी (यदि वह काम न करती हो और हर समय उसके नखरे उठाने पड़ते हों), फटे कपड़े और बुरा राज (राजकीय अराजकता).

भेदी चोर, उजाड़े गाँव. भेद जानने वाला चोर सबसे अधिक नुकसान करता है.

भैंस अपना रंग न देखे, छतरी को देख के बिदके. कोई व्यक्ति अपनी कमी न देखे और दूसरों की कमियाँ निकाले तो.

भैंस का गोबर, भैंस के चूतड़ों को ही लग जाता है. बड़े व्यापार में कमाई तो होती है पर उसके अपने खर्चे भी बहुत होते हैं.

भैंस की सगी भैंस. कम बुद्धि वाले लोग अपनी जाति वाले को ही अपना सगा मानते हैं.

भैंस के आगे पढ़ें भागवत, भैंस खड़ी रम्भाए. मूर्ख व्यक्ति के सामने ज्ञान की बात करना बेकार है.

भैंस के आगे बीन बजाई, गोबर का ईनाम. भैंस के आगे बीन बजाई तो उस ने गोबर कर दिया. जो कला का पारखी नहीं है उस के आगे कला प्रदर्शित करोगे तो क्या होगा.

भैंस के आगे बीन बजाओ, भैंस खड़ी पगुराए. यदि आप किसी मूर्ख व्यक्ति के सामने ज्ञान की बातें कर रहे हैं और उस पर कोई असर नहीं हो रहा है, या किसी ऐसे व्यक्ति के सामने अपनी कला प्रदर्शित करें जो उसको समझ न पा रहा हो तो यह कहावत बोलते हैं. 

भैंस को पड़िया ही जननी चाहिए और बहू को बेटा. भैंस से तो यह उम्मीद करते हैं कि वह पड़िया ही जने (क्योंकि पड़िया की कीमत बछड़े से बहुत अधिक होती है), पर घर की बहू से यह चाहते हैं कि वह बेटा ही जने. निपट स्वार्थपरता. 

भैंस चढ़ी बबूल पे, तकि तकि गूलर खाए. कोई व्यक्ति असम्भव और हास्यास्पद बात कह रहा हो तो उसका मजाक उड़ाने के लिए.

भैंस दूध जो काढ़ के पीवे, ताकत घटे न जब लग जीवे. जो आदमी भैंस के दूध को स्वयं दुह के पीता है वह सदा बलवान रहता है. यहाँ ध्यान देने लायक बात यह है कि भैंस का दूध दुहने में काफी अच्छा व्यायाम भी हो जाता है

भैंस पकोड़े हग गई. किसी को अचानक बिना उम्मीद के बड़ा लाभ हो जाए और वह उस का भेद न बता रहा हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.

भैंस हमें चाहिए कम कीमत की और उधार, पड़िया उसके तले हो होवे बहुत दुधार. कोई ग्राहक ऐसा सामान मांग रहा हो जिस की कीमत भी कम हो और उस में सारी खूबियाँ भी हों, साथ में कोई चीज़ मुफ्त भी हो और उधार में मिल जाए.

भैंसा, मेंढा, बाकरा, चौथी विधवा नार, ये चारों पतले भले मोटा करें बिगाड़. अर्थ स्पष्ट है.

भैया जी कितने भी डंड मलवाएं, बंदा पहलवान नहीं बनने का. आप लोग कितनी भी कोशिश कर लो मैं पहलवान (या डॉक्टर या आई ए एस) नहीं बन सकता.

भैरों (भूतों) के लड्डुओ में इलायची का क्या स्वाद. जो लड्डू भैरों देवता (या भूतों) पर चढ़ाने के लिए बनाने हैं उनमें इलायची जैसी नजाकत वाली चीज़ डालने का क्या औचित्य.

भैस पूछ उठाएगी तो गाना नहीं गाएगी गोबर करेगी. कोई मूर्ख या निकृष्ट आदमी मुँह खोलेगा तो निकृष्ट बात ही बोलेगा.

भोथर चटिया, बस्ता मोट. (भोजपुरी कहावत) मंद बुद्धि बालक का बस्ता अधिक मोटा होता है.

भोर का मुर्गा बोला, पंछी ने मुँह खोला. भोर होते ही पंछी भोजन की जुगाड़ में लग जाते हैं. छोटे बच्चे के लिए भी कहा जाता है जब वह उठते ही दूध मांगता है.

भौंकते कुत्ते को रोटी का टुकड़ा. जो हाकिम ज्यादा गुर्राता है उसे दक्षिणा दे कर चुप किया जाता है.

भौंके न बर्राय (गुर्राय), चुपके से काट खाय. जो आदमी बोले कुछ नहीं और चुपचाप भरी नुकसान पहुँचा दे.

भौंर न छाँड़े केतकी, तीखे कंटक जान. केतकी के फूल के साथ तीखे कांटे होते हैं पर भौंरा उसे नहीं छोड़ता. अपने मतलब की वस्तु हासिल करने के लिए (या जिससे प्रेम होता है उसे पाने के लिए) व्यक्ति थोड़ा खतरा भी उठाता है.

 

 

मंगती और छुआ छूत करे. मांगने वाले को यह अधिकार नहीं होता कि वह छुआछूत करे.

मंगते से माँगना जैसे बुढ़िया से सगाई. भिखारी से भीख माँगना और बूढ़ी औरत से विवाह करना एक समान हैं.

मंगनी का बैल चांदनी रात, जोत बड़े भाई सारी रात (मांगे का बैल, मशक्कत से जोतो). (बुन्देलखंडी कहावत). दूसरे की चीज को लोग बेरहमी से प्रयोग करते हैं.

मंगनी के बैल के दांत नहीं देखे जाते. बैल अच्छे गुण वाला है या नहीं इसकी पहचान उसके दांत देख कर की जाती है. अब अगर आप किसी से बैल मांग कर ला रहे हैं तो उसके दांत थोड़े ही गिनेंगे. मांगी हुई वस्तु में गुण दोष नहीं देखे जाते.

मंगनी के सतुआ, सास के पिंडा. मंगनी के सत्तू से सास का पिंडदान कर रही है. पहली बात तो यह है कि सास का पिंडदान आप कर ही क्यों रहे हैं, साले को (यानि उन के बेटे को) करना चाहिए. दूसरी बात आप के पास पैसा नहीं है तो माँग कर क्यों कर रहे हैं. अपनी सामर्थ्य न होने पर भी किसी अनावश्यक कार्य में टांग अड़ाने की मूर्खता करना.

मंगलवार परै दीवारी, हँसे किसान मरे व्यापारी. यदि दीपावली मंगलवार को पड़े तो फसल अच्छी होती है.

मंजिल पे पहुँच के लुटा कारवाँ. कार्य समाप्त होने से बिल्कुल पहले बिगड़ जाना.

मंडप में बैठी भैंस भी सुंदर लगती है. विवाह के समय सज संवर के सभी लड़कियां अच्छी लगती हैं.     

मकोड़ा कहे मां गुड़ की भेली उठा लाऊं, के अपनी कमर तो देख. अपनी सामर्थ्य देखे बिना कोई काम करने की योजना बनाने वालों के लिए यह कहावत कही जाती है.

मक्के गए न मदीने गए, बीच ही बीच में हाजी भए. कोई कार्य न कर के केवल उसका दिखावा करना और उससे लाभ लेने की कोशिश करना.

मक्के में रहते हैं पर हज नहीं करते. सारी सुविधाएँ उपलब्ध होते हुए भी कोई अच्छा काम न करना या फिर जो चीज़ सहज ही उपलब्ध हो उसकी कद्र न करना. 

मक्खी बैठी शहद पर पंख लिए लपटाए, हाथ मले और सर धुने लालच बुरी बलाए. लालच में फंस के प्राणी की दुर्गति हो जाती है. लालच वश मक्खी शहद पर बैठ गई और शहद पंखों पर लग गया. अब वह कभी उड़ नहीं सकती.

मक्खी भी कुछ देख कर बैठती है. हर व्यक्ति अपना स्वार्थ देख कर ही कोई काम करता है.

मक्खी मारी पंख उखाड़े चींटे से रण जीता, मैं तो बहुत वीर मज़बूता. अपनी वीरता की डींग हांकने वाले किसी डरपोक आदमी पर व्यंग्य.

मक्खी मारुं पंख उखाडूँ, तोडूँ कच्चा सूत, लात मार कर पापड़ तोडूँ, मैं बनिए का पूत. बनियों की बहादुरी पर व्यंग्य. 

मखमल के परदे पर टाट का पैबंद. कीमती और सुरुचिपूर्ण वस्तुओं के बीच में कोई बदनुमा चीज़.

मगध देश कंचन पुरी, देश अच्छा भाषा बुरी. बिहार के लोगों की भाषा का मजाक उड़ाने के लिए.

मगर को डुबकी सिखाए वो मूर्ख. मगरमच्छ स्वयं डुबकी लगाने में माहिर होता है. जो उसे डुबकी लगाना सिखाने की कोशिश करेगा मगर उसे ही खा जाएगा. 

मगहर मरे सो गदहा होय (नरक में पड़े). लोक विश्वास है कि काशी में जो मरता है वह स्वर्ग जाता है जबकि पास के मगहर नामक स्थान में जो मरता है वह नर्क में जाता है.

मच्छर मार के ऐंठा सिंह. कायर व्यक्ति का मजाक उड़ाने के लिए. 

मछली के जाए किन्ने तैराए. जाए – उत्पन्न किए हुए, बच्चे. मछली के बच्चे को तैरना कौन सिखाता है? (वे खुद ही तैरना सीखते हैं). युवाओं को यह सीख देने के लिए कि तुम्हें सब कुछ सिखाया पढ़ाया नहीं जाएगा, अपनी निर्णय लेने की क्षमता भी विकसित करो.

मछली खा के बगुला ध्यान. उन लोगों के लिए जो धार्मिक होने का ढोंग करते हैं और धार्मिकता की आड़ में चुपचाप गलत काम करते हैं. 

मछली तालाब में, मसाले कुटन लागे. किसी काम के प्रति अदूरदर्शिता और मूर्खतापूर्ण उत्साह.

मछली भले ही दे दो पर मछली कहाँ से मिली ये नहीं बताओ. अपनी आमदनी में से किसी की सहायता भले ही कर दो पर अपने व्यापार के भेद किसी को मत बताओ.

मजनू को लैला का कुत्ता भी प्यारा. यदि कोई व्यक्ति आपको प्रिय हो तो उस की हर चीज़ अच्छी लगती है.

मजबूर को उलाहना, ज्यूँ घाव पर ठेस. किसी मजबूर आदमी को बुरा भला कहना किसी के घाव पर नमक छिडकने जैसा है.

मजबूरी का नाम महात्मा गांधी. महात्मा गांधी जी से प्रभावित होकर बहुत से संपन्न लोगों ने सादा जीवन शैली अपनाई थी. बहुत से लोग ऐसे भी थे जिनके पास कुछ नहीं था इसलिए वे साधारण तरीके से रहने को मजबूर थे. उनमें से बहुत से लोग यह कहा करते थे कि भाई हम महात्मा गांधी के चेले हैं इसलिए बहुत सादगी से रहते हैं. 

मजूरी में क्या हुजूरी. जो मेहनत मजदूरी करके पेट पालता है वह किसी की जी हुजूरी क्यों करेगा.

मजे के लिए चाचा, सलाह के लिए बाबा. मौज मस्ती चाचा के साथ अच्छी लगती है लेकिन गंभीर विषयों पर सलाह बाबा से ही ली जाती है. परिवार में हर व्यक्ति का अलग महत्व है.

मज्जन फल पेखिअ तत्काला, काक होहिं पिक बकहिं मराला. सत्संग रूपी गंगा में स्नान करने का फल तत्काल ही देखा जा सकता है, इसके प्रभाव से कौआ कोयल और बगुला हंस बन जाता है.

मझधार में नाव नहीं बदलनी चाहिए. कोई काम जब नाज़ुक मोड़ पर हो तो उस समय अपने साधन बदलने से बचना चाहिए. उदाहरण के लिए जब गंभीर मरीज आधा ठीक हो चुका हो तो डॉक्टर नहीं बदलना चाहिए.

मटका में पानी गरम, चिड़ी न्हावे धूर, चिऊंटी अंडा ले चले, तो वर्षा भरपूर. घाघ कवि ने अनुभव के आधार पर ऐसी बहुत सी कहावतें कही हैं. उनके अनुसार यदि मटके में पानी ठंडा नहीं हो रहा है, चिड़िया धूल में नहा रही है और चींटी अपना अंडा लेकर जा रही है तो भरपूर वर्षा होगी.

मट्ठा मांगन चली, और मलैया पीछे लुकाई. मलैया – छोटी मटकी, लुकाई – छिपाई. माँगने भी जा रही हैं और शर्म भी आ रही है.

मढ़ो दमामा जात नहिं सौ चूहों के चाम. बहुत सारे छोटे लोग मिल कर भी बड़ा काम नहीं कर सकते. सौ चूहों का चमड़ा भी लगा दिया जाए तो भी दमामा (बहुत बड़ा वाला ढोल) नहीं मढ़ा जा सकता. इस दोहे की पहली पंक्ति इस प्रकार है – रहिमन छोटे नरन सों बड़ो बनत नहिं काम.

मत कर सास बुराई, तेरे भी आगे जाई. बहू सास को सावधान कर रही है कि तू मेरे साथ बुरा व्यवहार मत कर. तेरी लड़की को भी ससुराल जाना है. जाई माने पुत्री.

मत चूको चौहान. एक किम्वदंती के अनुसार पृथ्वीराज चौहान ने अंधा किए जाने के बाद भी शब्द भेदी बाण चला कर मोहम्मद गोरी को मार दिया था. चंदवरदाई ने उनसे कहा था – चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है मत चूको चौहान. इसी पर यह कहावत बनी है. किसी को सही काम के लिए जोश दिलाना हो तो यह कहावत कही जाती है.  

मतलब की मनुहार, जगत जिमावे चूरमा. अपना मतलब होता है तो संसार के लोग चूरमे जैसा उत्कृष्ट खाद्य पदार्थ भी खिलाते हैं. 

मतलब के दो बोल ही बहुत हैं. व्यर्थ की लम्बी चौड़ी बातों के मुकाबले अर्थ पूर्ण दो बातें अधिक उपयोगी हैं.

मतलब बनता लोग हंसे तो हंसने दो. यदि अपना काम निकलता हो तो लोगों के हंसी उड़ाने की परवाह मत करो.

मद पिए जात लखाय. दारु पी कर आदमी अपना भेद खोल देता है. कोई व्यक्ति सम्भ्रांत लोगों के बीच रहता है और लोग उसे कुलीन समझते हैं. एक दिन वह सब के बीच बैठ कर शराब पी लेता है और नशे में उगल देता है कि वह किसी नीचे कुल का है या आपराधिक इतिहास वाला है.

मदिरा मानत है जगत, दूध कलाली हाथ. शराब बेचने वाले के हाथ में दूध का पात्र होगा तब भी लोग मदिरा ही समझेंगे. (दूध कलारी कर गहे, मद समझे सब कोय).

मद्धिम आंचे रोटी मीठ. तसल्ली और सलीके से किया गया काम अच्छा होता है. धीमी आंच में सिकी रोटी अधिक स्वादिष्ट होती है.

मधुर वचन सौ क्रोध नसाही. मधुर वचन बोलने से सौ क्रोध नष्ट हो जाते हैं. इंग्लिश में कहावत है – A soft answer turneth away wrath.

मधुर वचन है औषधी, कटुक वचन है तीर. मधुर वचन घाव को भर सकते हैं जबकि कड़वे वचन घाव कर सकते हैं.

मन का अंकुस ज्ञान. हाथी को वश में रखने के लिए महावत के पास जो औजार होता है उसे अंकुश कहते हैं. स्वेच्छाचारी मन को काबू में रखने के लिए ज्ञान अंकुश के समान है.

मन का अटका तन का झटका. जो मन में हार मान ले वह शरीर से भी हार जाता है. जो समय पर सही निर्णय नहीं ले पाता उसे धन व स्वास्थ्य सभी की हानि होती है.

मन का घाटा कि धन का. धन चला जाए तो इतना नुकसान नहीं मालूम देता, मन में घाटा मानो तभी घाटा होता है.

मन की मारी का से कहूँ, पेट मसोसा दे दे रहूँ. जब आप मन की बात किसी से न कह पा रहे हों और मन ही मन घुट रहे हों.

मन के मते न चालिए, मन के मते अनेक, जो मन पर अधिकार है, है कोई साधू एक. मन के कहने पर मत चलिए क्योंकि मन तरह तरह की बातें समझाता है. जो विवेकी पुरुष हैं वही मन पर अधिकार रख पाते हैं.

मन के मते न चालिए, मन है पक्का धूत. कहावत में यह समझाया गया है कि मन पक्का धूर्त होता है. मन के कहने पर चलेंगे तो यह आपको बहकाता रहेगा. अर्थात मनुष्य को संयम और विवेक से काम लेना चाहिए. इस दोहे की अगली पंक्ति है – ले डूबे मंझधार में, जाय हाथ से छूट.

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत. कहावत का अर्थ है कि जो अपने मन में हार मान लेता है वह निश्चित रूप से हार जाता है और जो जीत के लिए दृढ़ निश्चय कर लेता है वह अंततः जीत जाता है. कुछ लोग इसके पहले एक पंक्ति और बोलते हैं – यही जगत की रीत है यही जगत की नीत. 

मन चंगा तो कठौती में गंगा. कठौती कहते हैं लकड़ी से बने पानी रखने के बर्तन को. गंगा नहाने को बहुत से लोग बड़े पुण्य का काम मानते हैं. लेकिन सब लोगों को तो गंगा नहाना नसीब नहीं होता. उन लोगों को दिलासा देने के लिए यह कहा जाता है कि यदि तुम्हारा मन शुद्ध है तो तुम्हारे लिए कठौती में नहाना ही गंगा नहाने के समान है. इसको इस प्रकार से भी प्रयोग कर सकते हैं जैसे किसी बूढ़े या बीमार व्यक्ति के लिए तीर्थ यात्रा पर जाना संभव नहीं है तो उसके लिए घर में या शहर में बने मंदिर में पूजा करना ही तीर्थ यात्रा के समान है. कुछ लोग इसके पीछे संत रैदास जी की कहानी सुनाते हैं कि उन्होंने चमड़ा भिगोने वाली अपनी कठौती में से गंगा जी में गिरा हुआ सोने का कड़ा निकाल कर दे दिया था.

मन जीते जग जीत. जो अपने मन पर काबू कर लेता है वह संसार को जीत सकता है.  

मन तो चले, पर टट्टू न चले. कुछ कार्य करने का मन तो बहुत कर रहा है पर शरीर साथ नहीं दे रहा. यौन शक्ति के सम्बन्ध में भी यह कहावत कही जाती है.

मन थिर किए सिद्धि सब पावे. मन को स्थिर करने पर ही सिद्धि पाई जा सकती है.

मन बिना मेल नहीं बाड़ बिना बेल नहीं. मन मिलते हैं तो मेल बढ़ता है, बाड़ का सहारा मिलता है तो बेल बढ़ती है.

मन भर धावे, करम भर पावे. व्यक्ति कितना भी प्रयास कर ले, पाएगा उतना ही जितना भाग्य में है. 

मन भाए तो ढेला सुपारी. मन को जो अच्छा लग जाए वह अच्छा.

मन मन भावे, मूढ़ हिलावे. कोई काम करने का या कुछ खाने का आपका अंदर से बहुत मन कर रहा है पर ऊपर से आप मना कर रहे हैं तो यह कहावत कही जाती है. कहीं-कहीं पूरी कहावत इस प्रकार कही जाती है – मन मन भावे मूढ़ हिलावे, साजन से कहियो मोहे लेने को आवे.

मन मलीन तन सुन्दर कैसे, विष रस भरा कनक घट जैसे. किसी का शरीर सुन्दर हो पर मन मैला हो तो वह उसी प्रकार है जैसे विष से भरा हुआ सोने का घड़ा.

मन मिले का मेला, चित्त मिले का चेला. दोस्ती उसी के साथ की जा सकती है जिससे मन मिलता हो, शिष्य उसी को बनाया जा सकता है जिससे विचार मिलते हों.

मन मिले का मेला. दोस्ती और मौज मस्ती उसी के साथ की जा सकती है जिससे मन मिलता हो.

मन में आन, बगल में छूरी, जब चाहे तब काटे मूरी. मन में कुछ और, बगल में छुरी, जब चाहे तब सिर काट ले. मूरी – मूंड़, सर.

मन में बसे सो सुपने दसे. जो बातें हमारे मन में होती हैं वही सपने में दिखती हैं.

मन मोतियों ब्याह, मन चावलों ब्याह. (मन – चालीस सेर) विवाह में सभी यथाशक्ति खर्च करते हैं. जिसके पास अथाह धन है वह मन भर मोती लुटाता है, जिसके पास कम पैसा है वह मन भर चावल खर्च करता है.

मन मोती औ दूध रस दोनों एक सुभाय, फाटे पे जुड़ते नहीं कोटिन करो उपाय. मन रूपी मोती और दूध का स्वभाव एक सा होता है, ये एक बार फट जाएँ तो फिर नहीं जुड़ते.

मन मोदक नहिं भूख बुझावें. मन के लड्डुओं से भूख नहीं मिटती.

मन मौजी, जोरू को कहे भौजी. मन मौजी का कोई भरोसा नहीं क्या कर बैठे, वह पत्नी को भाभी भी कह सकता है.

मन राजा करम दरिद्री. मन तो बहुत बड़ी बड़ी बातें सोचता है पर भाग्य में नहीं है.

मन साँचा तो जग साँचा (मन साँचा तो सब साँचा). आप अपने मन में सत्य का अनुसरण करते हैं तो आप को संसार भी सच्चा लगता है.

मन के मेड़ नहीं होती. मन पर कोई बंदिशें नहीं होतीं, वह किसी भी बात के लिए मचल सकता है.

मना करने वाले की खिचड़ी में ही घी डाला जाता है. जो मना करता है उसी का अधिक आतिथ्य किया जाता है.

मनुज बली नहिं होत है समय होत बलवान, भीलन लूटीं गोपियाँ वहि अर्जुन वहि बान. समय अच्छा हो तो मनुष्य बलवान हो जाता है. समय खराब आने पर वही मनुष्य निर्बल हो जाता है. भगवान कृष्ण के गोलोक गमन और यादव पुरुषों के मारे जाने के बाद अर्जुन द्वारिका की स्त्रियों की सुरक्षा के लिए उन को अपने साथ हस्तिनापुर ले कर जा रहे थे. रास्ते में भीलों ने उन पर आक्रमण कर के उन स्त्रियों को लूट लिया. अर्जुन का गांडीव और वाण कुछ नहीं कर पाए.

मनुष्य अपना भाग्य स्वयं बनाता है. परिश्रम और व्यवहार मनुष्य के अपने हाथ में हैं, इन से ही सफलता मिलती है. इंग्लिश में कहावत है –Every man is the architect of his destiny.

मनुहार से बूढ़े नहीं ब्याहे जाते. बूढ़े आदमी से कोई युवा लड़की मान मनुहार से शादी नहीं कर लेती है, उस के लिए साम दाम दंड भेद प्रयोग करना पड़ता है.

मर जैहें पर टरिहैं नाहीं. (भोजपुरी कहावत) मर जाएंगे पर अपनी बात पे अड़े रहेंगे.

मर पड़ कर तो खसम किया, और वह भी हिजड़ा निकला. किसी तरह तो शादी की और पति हिजड़ा निकला. बहुत मुश्किल से कोई काम हुआ हो और उस में भी धोखा हो जाए तो.

मरखना बैल गली संकरी. अत्यंत संकट पूर्ण स्थिति. जैसे आप पतली गली में जा रहे हों और सामने से मरखना बैल आ जाए.

मरता क्या न करता. जब मजबूरी में कोई ऐसा काम करना पड़े जो आप सामान्य परिस्थितियों में करना पसंद नहीं करते.

मरते के साथ कोई नहीं मरता (मरते के साथ आप न मरो). किसी प्रिय व्यक्ति की मृत्यु पर यदि कोई बहुत अधिक शोक ग्रस्त हो जाए तो उसे समझाने के लिए.

मरते मियाँ मल्हारें गाएं. मल्हार सावन में गाए जाने वाले मस्ती भरे गीतों को कहते हैं. उसी पर आधरित एक राग है मेघ मल्हार. किसी बहुत बीमार आदमी को शौक या मस्ती सूझ रही हो तो यह कहावत बोली जाती है.

मरते मूसे को गोबर सुंघा दिया. ऐसा मानते हैं कि मरते हुए चूहे को गोबर सुंघा दो तो वह जिन्दा हो जाता है. यदि आप किसी अयोग्य व अपात्र व्यक्ति को सजा मिलने से बचा लें तो व्यंग्य में यह कहावत कही जाएगी. भोजपुरी कहावत है – गोबर सुंघला से मुसरी जीओ.   

मरद की बात और गाड़ी का पहिया आगे को ही चलते हैं. सच्चा मर्द अपनी बात से पीछे नहीं हटता.

मरद तो जुबान बांका, कोख बांकी गोरियां, गाय तो दुधार बांकी, तेज बांकी घोड़ियाँ. बांके से अर्थ यहाँ श्रेष्ठ से है. पुरुष वही श्रेष्ठ है जो जुबान का पक्का हो, स्त्री वह जो श्रेष्ठ संतान को जन्म दे, गाय वह अच्छी है जो दूध अधिक दे और घोडी वह अच्छी है जो तेज चले. 

मरन चली तो बदसगुनी हो गई. कोई स्त्री मरने के लिए जाने का नाटक कर रही है कि बिल्ली रास्ता काट जाती है. इस पर वह कहती है कि अपशकुन हो गया, अब मैं नहीं जाऊँगी. झूठ मूठ का नाटक करने वाली महिलाओं के लिए.

मरना भला बिदेस में जहां न अपना कोय, माटी खाए जनावरा उनका उत्सव होय. साधु प्रवृत्ति के व्यक्ति का कथन – मरना विदेश में अच्छा है जहाँ कोई जानने वाला न हो, पशु पक्षी शरीर को खा लें, उनका भी भला हो जाए.

मरने के डर रोटी खावे. अत्यंत आलसी आदमी. रोटी खाने जितनी मेहनत भी इस लिए करता है कि नहीं खाएगा तो मर जाएगा.

मरने के बाद बाबा को घी पिलाने से क्या लाभ. जो लोग जीवित माता पिता की सेवा नहीं करते और उनके मरणोपरांत कर्मकांड करते हैं उन पर व्यंग्य.

मरने को जी करे, कफन का टोटा. जो लोग बात बात पर मरने की धमकी देते हैं उन पर व्यंग्य. 

मरने से पहले ही भूतनी हो गई. किसी बहुत दुष्ट स्त्री पर व्यंग्य.

मरी बछिया बामन को दान. जो चीज़ किसी काम की न हो उसे दान कर के दानवीर बनना.

मरे कुत्ते को कोई लात नहीं मारता. मरे हुए कुत्ते को लात मारने में किसी का अहम संतुष्ट नहीं होता. जिन्दा कुत्ते को लात मारने से (विशेषकर अगर वह किसी बड़े आदमी का कुत्ता हो तो) अपने अहम की तुष्टि होती है.

मरे को मारे शाह मदार. (दुबले मारे शाह मदार) पीर और शाह भी दुर्बल को ही सताते हैं.

मरे कोई और, स्वर्ग मैं जाऊं. निकृष्ट स्वार्थपरता.

मरे तो शहीद, मारे तो गाजी. मुस्लिमों को जिहाद (धर्म युद्ध) के लिए उकसाने के लिए कहा जाता है कि यदि तुम काफिरों (दूसरे धर्म वालों, विशेषकर मूर्तिपूजकों) से लड़ते हुए मारे गए तो तुम्हें जन्नत में शहीद का दर्ज़ा मिलेगा और काफिर को मार दोगे तो जिन्दा रहते हुए गाज़ी की उपाधि मिलेगी.

मरे न जिए, हुकुर हुकुर करे (मरे न जिए, खों खों करे). कोई बूढ़ा और बीमार व्यक्ति ठीक भी न हो रहा हो और मर भी न रहा हो तो अंततः प्रियजन भी तंग आ जाते हैं. 

मरे न मूसा सिंह से, मारे ताहि बिलार. बिलार – बिल्ली. चूहे को शेर नहीं मार सकता, बिल्ली ही मार सकती है. कोई व्यक्ति कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, हर काम के लिए उपयुक्त नहीं हो सकता.

मरे बाघ की मूँछ उखाड़े. कायर लोगों पर व्यंग्य. जो जीवित बिल्ली से भी डरते हों वे मरे हुए बाघ की मूंछें उखाड़ कर बहादुरी दिखाते हैं.

मरे बाबा के बड़े बड़े दीदे. बाबा जब तक जिन्दा थे तब तक तो उन्हें कोई पूछता नहीं था, अब उनके मरने के बाद उनकी छोटी छोटी खूबियाँ गिनाई जा रही हैं, जैसे कोई कह रहा है कि उन की आँखें बड़ी बड़ी थीं.

मरे मुक्ति केहि काम. मर कर कष्टों से मुक्ति मिले तो किस काम की. 

मरे हुए आदमी को मार कर कुछ नही मिलता. कमजोर को सताने से कुछ हासिल नहीं होता.

मर्ज बढ़ता ही गया ज्यों ज्यों दवा की. किसी समस्या को हल करने का प्रयास करने पर भी यदि वह बढ़े तो.

मर्द का एक कौल होता है. जो सही मानों में मर्द होते हैं वे अपनी बात पर अडिग रहते हैं.

मर्द का नहाना और औरत का खाना, किसी ने जाना किसी ने न जाना. दोनों काम बहुत जल्दी होते हैं

मर्द को गर्द जरूरी है. पुरुषों के लिए शारीरिक श्रम करना आवश्यक है.

मर्द को गर्द में रहना, हिजड़े की हवेली में नहीं. मर्द को शोभा देता है धूल मिट्टी में काम करना (मेहनत करना) न कि हिजड़ों के साथ रह कर बेशर्मी की कमाई खाना.

मर्द गया खटाई में, औरत गई ढिठाई में, दूकान गई ठठाई में. पहले के लोग मानते थे कि खटाई खाने से पुरुषों की यौनशक्ति कम हो जाती है इसलिए ऐसा कहा गया है कि मर्द ने खटाई खाई तो काम से गया, औरतें ढिठाई (हठ, त्रिया हठ) में जाती हैं और दूकान के बाहर यदि चार लोग खड़े हो कर हंसी ठठ्ठा करने लगें तो व्यापार चौपट हो जाता है.

मर्द तो मर्द है पांच का हो या पचास का. स्त्रियों को सलाह दी जाती है कि वे घर से बाहर जाएं तो किसी मर्द को साथ ले कर जाएँ. वे अगर किसी बच्चे को साथ ले जाएँ तो मजाक में यह बात कही जाती है.

मर्द मरे नाम को, नामर्द मरे नान को. नान – रोटी. मर्द लोग (वीर पुरुष, सत्पुरुष) नाम कमाने के लिए परिश्रम करते हैं और नामर्द (कापुरुष) केवल रोटी (सांसारिक साधनों) के लिए.

मर्द साठा सो पाठा, औरत बीसी सो खीसी. पुरुष साठ साल की आयु में परिपक्व होता है और स्त्री बीस के बाद ढलने लगती है.

मल-मल धोए शरीर को, धोए न मन का मैल नहाए गंगा-गोमती, रहे बैल के बैल.

मलयगिरी की भीलनी चन्दन देत जलाय (अति परिचय ते होत है अरुचि अनादर भाय). जहाँ जो चीज़ अधिक मात्रा में और सहज उपलब्ध होती है वहाँ उस चीज़ की कद्र नहीं होती. इंग्लिश में इस प्रकार की एक कहावत है – Familiarity breeds contempt.

मल्लाह का लंगोटा ही भीगता है. क्योंकि वह केवल लंगोट ही पहनता है. जिसके पास खोने के लिए अधिक कुछ न हो उसका अधिक नुकसान नहीं होता.

मसालची मरे तो जुगनू हो, यहाँ भी चमके वहां भी चमके. मशालचियों के सम्बन्ध में एक कथन है कि वे मरने के बाद जुगनू बन के जन्म लेते हैं (पता नहीं यह तारीफ़ है या व्यंग्य). जुगनू को पटबीजना भी कहते हैं.

मस्जिद से नजदीक खुदा से दूर. कट्टर मुस्लिम धर्मावलम्बियों पर व्यंग्य. इंग्लिश में इस के समकक्ष एक कहावत है – The nearer the church, the farther from God.

महादेव को मन्त्र कौन सिखाए. जो सब कुछ जानता हो उसे कौन सिखा सकता है.

महावत से यारी और दरवाजा संकरा. सीमित साधन होते हुए भी अपने से बहुत बड़े लोगों से दोस्ती करना.

महुआ मेवा, बेर कलेवा, गुलगुच बड़ी मिठाई, इतनी चीजें चाहो तो गोंडवाने करो सगाई. गुलगुच – महुए का पका फल. बुन्देलखंड के गोंडवाना क्षेत्र में महुआ और बेर के पेड़ बहुत हैं. वहाँ के लोगों को ये बहुत प्रिय भी हैं. 

माँ उठाए गोबर, पूत बिटौरे बख्शे.   जहाँ माँ बाप बहुत गरीब हों और बेटा बहुत दानी बना फिरता हो. बिटौरा – कंडों का ढेर.

माँ का ऋण कोई नहीं चुका सकता. अर्थ स्पष्ट है.

माँ का पेट कुम्हार का आवा, कोई गोरा कोई काला रे. किसी माँ के कई बच्चों में कोई गोरा और कोई काला हो तो उन्हें समझाने के लिए. कुम्हार के आवे (बर्तन पकाने की भट्टी) में से भी कोई बर्तन पक कर सामान्य रंग का निकलता है जबकि कोई काला हो जाता है).

माँ की सौत, न बाप से यारी, किस नाते बन गई महतारी. जब कोई जबरदस्ती रिश्तेदारी निकाल कर अपना अधिकार जमा रहा हो तो.

माँ के पेट से सीख कर कोई नहीं आता. जो कुछ भी हम सीखते हैं सब इस संसार में रह कर अपने अध्ययन और अनुभवों द्वारा ही सीखते हैं. 

माँ को मारे, सासू को सिंगारे. ऐसे निकृष्ट बेटे के लिए जो माँ को प्रताड़ित करे और सास की गुलामी करे.

माँ डायन हो तो क्या बच्चे ही को खाएगी. कोई व्यक्ति कितना भी नीच और पापी क्यों न हो अपनी सन्तान का अहित नहीं कर सकता (हालांकि बच्चे मां बाप का अहित कर सकते हैं).

माँ दूसरी तो बाप तीसरा. सौतेली माँ के आने बाद पिता भी पराया हो जाता है (बच्चे के प्रति पिता का व्यवहार भी बदल जाता है).

माँ धोबन, पूत बजाजी. जहाँ माँ बाप कुछ न हों और बेटा कुछ बन जाए (तो लोग व्यंग्य में ऐसा कहते हैं).

माँ न माँ का जाया, सब ही लोक पराया. माँ का जाया माने भाई. जब आप किसी ऐसी जगह रह रहे हों जहाँ आप का कोई न हो. कुछ लोग इसे ऐसे भी बोलते हैं – न तो माँ न ही भाई का साया. यदि किसी कारण से घर के लोग किसी व्यक्ति का साथ छोड़ दें तब भी यह कहावत कही जा सकती है.

माँ पिसनहारी बाप कंजर और बेटा मिरजा संजर. माँ अनाज पीसने वाली (मेहनत मजदूरी करने वाली) और बाप घर घर घूमने वाला कंगाल आदमी पर बेटा बड़ा आदमी बन गया है.

माँ बेटी गाने वाली, बाप पूत बराती. जब कोई अपने सगे सम्बन्धियों को बिना बुलाए घर में ही कोई आयोजन कर ले तो तो सगे संबंधी कुढ़ कर यह बात कहते हैं.

माँ भटियारी, पूत फ़तेह खां. भटियारी – भाड़ झोंकने वाली. यदि किसी परिवार में माँ बाप बहुत गरीब हों, पर उनका बेटा कोई बड़ा पद पा जाए तो लोग ईर्ष्यावश तरह तरह की बातें बोलते हैं. 

माँ मर गई तो मर गई खीर तो खाली. नीच और स्वार्थी व्यक्ति. माँ के मरने का दुःख नहीं है, मृत्युभोज में खीर खाने को मिल रही है, इस बात से खुश हैं.

माँ मर गई नंगी, बेटी का नाम चंगी. जहाँ माँ बाप कुछ न हों, बेटी कुछ बन जाए और घमंड करने लगे तो लोग व्यंग्य में ऐसा कहते हैं.

माँ मारे और माँ ही माँ पुकारे. माँ और बच्चे के बीच सच्चा प्रेम है. माँ जब बच्चे को मारती है तो बच्चा माँ को ही पुकारता है. माँ की मार में भी उस का प्रेम छिपा है और बच्चा भी पिट कर माँ की गोद में ही चढ़ता है. ईश्वर और सच्चे भक्त का प्रेम भी ऐसा ही होता है.

माँ मारे पर दूसरे को मारन न दे. माँ स्वयं तो बच्चे को दंड दे सकती है पर दूसरे को ऐसा नहीं करने देती. माँ की मार में भी स्नेह होता है.

माँगन मरन समान है, मति माँगो कोई भीख, (माँगन से मरना भला, यह सतगुरु की सीख). माँगना और मरना समान है.

माँगना न आवे भीख, तो सुरती खाना सीख. तंबाखू खाने वाला कितना भी धनी हो तब भी तंबाखू मांग के खाना सीख जाता है, उसी पर व्यंग्य.

माँगने से तो मौत भी नहीं मिलती. मांगने से कुछ नहीं मिलता, इसलिए कुछ माँगना चाहिए ही नहीं. इस बात को जोर दे कर कहने के लिए यह कहावत कही जाती है.  

माँगे बिन महतारी भी न दे. जो आपका अधिकार है उसे मांग कर लेना चाहिए. बिना मांगे तो माँ भी दूध नहीं पिलाती.

माँगे हरड़, दे बहेड़ा. कोई भी काम ठीक से न करने वाला इंसान.

मां एली, बाप तेली, बेटा शाखे जाफ़रान. जहाँ माँ बाप कुछ न हों और बेटा कुछ बन जाए तो लोग व्यंग्य में ऐसा कहते हैं. (ज़ाफ़रान माने केसर).

मां तो उपलों को तरसे, बेटी बिटौड़े के बिटौड़े बख्शे. माँ छोटी छोटी चीजों को तरस रही है और बेटी बड़ी भारी दानी बनी हुई है. बिटौरा – उपलों का ठेर.

मांगन भलो न बाप सों ईश्वर राखे टेक. हे ईश्वर तू हमारी इज्ज़त बचाए रख, हमें कभी अपने पिता से भी न माँगना पड़े.

मांगने वाले के सौ घर, कोई न दे तो जाए कहाँ, सब दे दें तो धरे कहाँ. मांगने वाला बहुत से घरों से मांगता है, कोई भी न दे तो बेचारा जाएगा कहाँ (कैसे जिन्दा रहेगा), और सब कुछ न कुछ दे दें तो इतना सामान हो जाएगा कि बेचारा रखेगा कहाँ. 

मांगे तांगे काम चले तो ब्याह क्यों करें. अगर मांगने से स्त्री का साथ मिल जाए तो इंसान विवाह क्यों करे. अगर मांगने से ही गृहस्थी चल जाए तो इंसान व्यापार या नौकरी का झंझट क्यों करे.

मांगे मान न पाइए, सक्ति सनेह न होय. मांगने से सम्मान नहीं मिल सकता और जबरदस्ती किसी का प्रेम नहीं पाया जा सकता. सक्ति – शक्ति. इंग्लिश में कहावत है – Respct is earned, not commanded.

मांगे मिलें न चार, पूर्ब जनम के पुन्न बिन, इक विद्या इक संपति, नारी नेह सरीर सुख. विद्या, संपत्ति, स्त्री का प्रेम और शरीर का सुख, ये चारों वस्तुएँ पूर्व जन्म के सत्कर्मों से ही मिलती हैं. 

मांगो उसी से, जो दे ख़ुशी से, कहे ना किसी से. यदि माँगना भी पड़े तो उसी से मांगो जो ख़ुशी से दे और सब जगह गाता न फिरे.

मांस खाए मांस बढ़े, घी खाए खोपड़ी, दूध पिए तो चल पड़े, अस्सी बरस की डोकरी. (बुन्देलखंडी कहावत) डोकरी – बुढ़िया. कहावत का अर्थ एकदम स्पष्ट है.

माई का मनवा गाय जैसा और पूत का मनवा कसाई जैसा. माँ दयालु और पुत्र निर्दयी.

माई घूमे गली गली, बेटा बने बजरंगबली. माँ तो महा गरीब थी पर बेटा अपने को बड़ा आदमी समझने लगा है.

माई बाप के लातन मारे, मेहरी देख जुड़ाए, चारों धामे जो फिरि आवे तबहूँ पाप न जाए. माँ, बाप को लात मारे और पत्नी को देख कर खुश हो, ऐसा व्यक्ति चारों धाम की यात्रा कर आए तब भी उसके पाप दूर नहीं हो सकते.

माई मासे, बाप छमासे, और लोग सब बारह मासे. बच्चा एक महीने को होने पर माँ को पहचानने लगता है, छह महीने में पिता को और बाकी सब लोगों को बारह महीने का होने पर.

माघ का जाड़ा, जेठ की धूप, बड़े कष्ट से उपजे ऊख. गन्ने की खेती में बहुत मेहनत करनी पड़ती है, माघ का जाड़ा और जेठ की धूप सहन करनी पड़ती है.

माघ के टूटे मरद और भादो के टूटे बरध कभी नहीं जुड़ते.  बरध – बैल. माघ में जिस आदमी का शरीर कमजोर हो गया और भादों में जिस बैल का शरीर कमजोर हो गया उनका स्वास्थ्य फिर नहीं सुधरता.

माघ जाड़ा न पूस जाड़ा, जो चले बतास तो जाड़ा. माघ हो या पूस हो, जाड़ा तभी ज्यादा सताता है जब हवा चलती है. बतास – हवा.

माघ नंगे वैशाख भूखे. बहुत अधिक वंचित. (माघ की ठंड में भी जो नंगा रहे और बैसाख में नया गेहूँ आने के बाद भी भूखा रहे).

माघ पंद्रह और पूस पचीस, चिल्ला जाड़ा दिन चालीस. अत्यधिक ठंड (चिल्ला जाड़ा) चालीस दिन पड़ता है, पन्द्रह दिन माघ महीने के और पच्चीस दिन पूस के.

माघ मास की बादरी और क्वार की घाम, ये दोनों जो कोई सहै करै परायो काम. पराए खेत में मजदूरी वही कर सकता है जो माघ की वर्षा और क्वार की धूप सहन कर ले. (घाघ की कहावतें)

माघ में बादर लाल घिरे, साँची मानो पाथर परै. माघ में यदि लाल बादल घिर कर आए तो निश्चित समझो कि ओला गिरेगा. (घाघ की कहावतें)

माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय, एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूंगी तोय. मिटटी कुम्हार से कह रही है कि तू मुझे क्या रौंद रहा है, एक दिन मैं तुझे रौंदूंगी. जो लोग अपने धन और पद का घमंड कर के दूसरों को परेशान करते हैं उन को सीख देने के लिए.

माटी की मूरत भी पहनी ओढ़ी अच्छी लगती है. अच्छे कपड़े पहनने का बड़ा महत्व है.

माटी के देवता जल चढ़ाने में खतम हो गए. देवता की मूर्ति मिट्टी की बनी थी, लोग उन पर जल चढाने लगे. बेचारे देवता पानी के साथ बह गए. अंधविश्वासी भक्तों पर व्यंग्य.

मात पिता कुल तारन को जो गया न गया सो कहीं न गया. जो पुत्र पितरों का तर्पण करने ‘गया’ नहीं गया उसके सारे तीर्थ बेकार हैं. गया – बिहार में एक तीर्थ स्थान जहाँ पितरों का तर्पण किया जाता है.

माता जैसी ममता, सौतन जैसा बैर, दूजा राखे न कोई, देखा सांझ सवेर. अर्थ स्पष्ट है. 

माता न परसे भरे न पेट, भादों न बरसे भरे न खेत. जब तक माँ न खिलाए तब तक पेट नहीं भरता और जब तक भादों में वर्षा न हो तब तक खेत में पानी पूरा नहीं पड़ता.

मान का तो मुट्ठी भर चना ही बहुत है. सम्मान सहित मुट्ठी भर चना मिले तो भी से अच्छा है.

मान का पान भला न अपमान का लड्डू. व्यक्ति का सम्मान सबसे अधिक महत्वपूर्ण है. सम्मान के साथ मिलने वाला पान, अपमान हो कर मिलने वाले लड्डू से बेहतर है.

मान का माहुर न अपमान का लड्डू. माहुर – विष. अपमान सह कर लड्डू खाने की अपेक्षा सम्मान सहित जहर पीना श्रेयस्कर है.

मान घटे नित के घर जाए, ज्ञान घटे कुसंगत पाए, भाव घटे कुछ मुंह के मांगे, रोग घटे कुछ औषध खाए. किसी के घर बार बार जाने से सम्मान कम होता है, बुरे लोगों के साथ रहने से ज्ञान कम होता है, किसी से कुछ मांगने से प्रेम भाव कम होता है और दवा खाने से रोग कम होता है.

मान घटे नित के घर जाए. बार बार कहीं जाने से सम्मान कम होता है. (कद्र खो देता है रोज़ का आना जाना). संस्कृत में कहते हैं – अति गमनं अनादरं. 

मान न मान, मैं तेरा मेहमान. जबरदस्ती किसी के गले पड़ना.

मान बड़ा कि दान. किसी को दान देने के मुकाबले सम्मान देना अधिक अच्छा है. 

मान मनाई खीर न खाई, झूठी पातर चाटन आई. सम्मान के साथ परोसी गई खीर नहीं खाई और अब झूठी पत्तल चाटने आई हो. जो व्यक्ति उचित समय पर मिलने वाले सम्मान को ठुकरा दे और फिर घटिया काम कर के अपनी बेइज्जती कराए उस के लिए.

मान सहित विष खाय के शम्भु भए जगदीश, बिना मान अमृत पिए, राहू कटायो शीश. सम्मान सहित विष पान कर के शंकर जी को महादेव की उपाधि मिली, और चोरी से अमृत पीने वाले राहु का सिर काटा गया.

माने तो देवता नहीं तो पत्थर. किसी पत्थर की मूर्ति को देवता मान लो तो वह देवता बन जाती है और नहीं मानो तो पत्थर है.

मानो चाहे न मानो हम तुम्हारे पंच. जबरदस्ती किसी का भाग्य विधाता बनना.

मानों तो देव, नहीं तो भीत को लेव. दीवार में उकेर कर किसी ने देवता की मूर्ति बनाई हुई है. अगर मानो तो वह देवता है और न मानो तो दीवार का पलस्तर है.

मापा, कनिया और पटवारी, भेंट लिए बिन करें न यारी. (मापा – भूमि नापने वाला अमीन, कनिया – कानूनगो). ये सभी सरकारी कर्मचारी बिना भेंट लिए काम नहीं करते.

मामू के कान में बालियाँ, भांजा ऐंड़ा ऐंड़ा फिरे. अपने किसी रिश्तेदार की समृद्धि पर घमंड करना.

मायके का कुत्ता भी प्यारा होता है. स्त्रियों को मायके की हर चीज़ प्यारी होती है.

माया का डर, काया का क्या डर. जिस के पास धन दौलत है उसे उस के चोरी होने या छिन जाने का डर है, जिस के पास कुछ नहीं है (केवल शरीर है) उसे क्या डर.

माया के भी पाँव होते हैं, आज मेरे पास कल तेरे पास. माया किसी की नहीं होती, चलती फिरती रहती है. इसलिए धन सम्पदा को अपना मान कर अधिक खुश नहीं होना चाहिए.

माया गंठी, विधा कंठी. पैसा वह काम आता है जो हमारे पास मौजूद हो (उधार में बंटा पैसा या बाद में मिलने वाला पैसा वक्त पर काम नहीं आता). विद्या वही काम आती है जो हमें कंठस्थ हो (याद हो). विद्या से भरी हुई कितनी भी पुस्तकें हमारे पास रखी हों, समय पर वही विद्या काम आएगी जो हमें याद हो. (विद्या कंठी दाम अंटी).

माया चलती फिरती छाया. माया किसी की नहीं होती, चलती फिरती रहती है. इसलिए धन सम्पदा को अपना मान कर अधिक खुश नहीं होना चाहिए.

माया छाया एक सी, बिरला जाने कोय, भगता के पीछे लगे, सम्मुख भागे सोय. माया और छाया एक सी होती हैं यह बात बहुत कम लोग जानते हैं, जो इनसे दूर भागता है उसके पीछे भागती हैं और जो इनके पीछे भागता है उससे दूर भागती हैं.

माया बादल की छाया. बादल एक स्थान पर स्थिर नहीं रहता इसलिए उस की छाया भी स्थिर नहीं रहती. इसी प्रकार माया भी एक स्थान पर स्थिर नहीं रहती.

माया महा ठगिनी, हम जानी. जो ज्ञानी लोग हैं वही समझ पाते हैं कि माया केवल सबको ठगती है, किसी की हो कर नहीं रहती.

माया मिल गई सूम को, न खरचे न खाय. कंजूस के पास रखा धन बेकार ही है, न तो वह खुद खाएगा और न ही परोपकार में खर्च करेगा.

माया मुई न मन मुआ, मरि मरि गये शरीर, (आशा तृष्णा ना मुई, यों कह गये कबीर). माया इसी संसार में रहती है जबकि उसे जोड़ने की इच्छा करने वाले लोग चले जाते हैं. सब कुछ जानते हुए भी मनुष्य की तृष्णा नहीं मिटती.

माया से छाया भली. पैसा अपने पास रखे रहने से भवन बनवाना अधिक अच्छा है.

माया से माया मिले कर कर लम्बे हाथ, तुलसी दास गरीब की कोई न पूछे बात. जिनके पास घन सम्पत्ति है उन्हीं के पास और धन इकट्ठा होता जाता है, गरीब को कोई नहीं पूछता.

माया हुई तो क्या हुआ हिरदा हुआ कठोर, नौ नेजा पानी चढ़ा तऊ न भीजी कोर. नेजा – बांस. बहुत धनी परन्तु कंजूस और निर्दयी व्यक्ति के लिए कहा गया है कि उस के पास माया आई तो किसी को क्या लाभ हुआ, उसका हृदय और कठोर हो गया. पत्थर के ऊपर नौ बांस की ऊँचाई के बराबर पानी भी चढ़ जाए तो भी उसका अंदरूनी हिस्सा नहीं भीगता.

मार के आगे भूत भी भागता है. कोई आदमी अपने ऊपर भूत आने का नाटक कर रहा था. गाँव के एक सयाने ने कहा कि दस कोड़े मारने से भूत भाग जाएगा. दो कोड़े खाने के बाद ही उस ने हाथ जोड़ दिए. तभी से यह कहावत बनी.

मार खाए और कहे मार के देख. कायर आदमी के लिए.

मार गुसैंया तेरी आस. जब स्त्रियाँ पूरी तरह पति पर आश्रित थीं तो पति यदि उन्हें मारे पीटे तब भी यह कहती थीं, कि तू चाहें हमें मार ले तब भी तेरे ही आसरे हैं. मां जब बच्चे को मारती है तब भी वह यही कहता है. जब राजा और जमींदार जैसे लोग गरीब पर अत्याचार करते हैं तो वह भी ऐसा ही बोलता है. हमारे ऊपर जब भी कोई कष्ट आए हमें ईश्वर से यही कहना चाहिए.

मार मार कर कोई हकीम नहीं बनता. जिस के अंदर लगन हो और मेहनत करने का जज़्बा हो वही बड़ा विद्वान बन सकता है, किसी को मार मार कर होशियार नहीं बनाया जा सकता.

मार पीछे पुकार होती रहे. मौके पर आगे बढ़ कर मार लो उसके बाद चीख पुकार होती रहे.

मारते का हाथ पकड़ा जाए, बोलते की जबान थोड़े ही न पकड़ी जाए. मारने वाले को रोका जा सकता है पर कड़वी बात कहने वाले या अपशब्द कहने वाले को रोकना कठिन है.

मारने वाले से जिलाने वाला बड़ा दाता है. कोई ऐसा हाकिम जो केवल लोगों को पीड़ित कर सकता हो उसके मुकाबले ऐसे व्यक्ति का स्थान बहुत बड़ा है जो दूसरों को जीवन दे सके या सुख दे सके.

मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है (मारने वाले से बचाने वाले के हाथ लंबे होते हैं). अर्थ स्पष्ट है.

मारा चोर उपासा पाहुन लौटता नहीं. मार खाया हुआ चोर और भूखे लौटाया हुआ अतिथि दोबारा नहीं आते. उपासा – उपवास कराया हुआ.

मारि के टरि जाए, खाय के परि जाए. कहीं मार पीट करनी पड़े तो मारने के बाद के वहाँ से भाग लेना श्रेयस्कर है और भोजन कर के आराम करना अच्छा है.

मारे आप लगावे ताप. काल किसी को तलवार ले कर नहीं मारता, बुखार आदि कोई बीमारी लगा देता है.

मारे घुटना, फूटे ललाट. किसी और की गलती की सजा किसी और को मिलना. लात से किसी को मारोगे तो दूसरा आप का सर फोड़ेगा (घुटने की गलती की सजा सर को मिलना).

मारे छोहन छाती फटे और आँसू के ठिकाने नाहीं. (भोजपुरी कहावत) बिछड़ते समय बहुत दुखी होने का दिखावा कर रहे हैं लेकिन आँसू बिल्कुल नहीं आ रहे हैं.

मारे सिपाही नाम सरदार का. बेचारे सिपाही खतरा उठा के आगे बढ़ के दुश्मन को मारते हैं और जंग जीतने पर नाम सरदार का होता है. किसी भी बड़े उद्योग में मेहनत मजदूर करते हैं और नाम मैनेजर का होता है या लाभ मालिक को होता है.

मारें मक्खी नाम तीसमारखां. एक सज्जन ने एक ही वार से तीस मक्खियाँ मार दीं, जिसके बाद वह अपने को तीसमारखां कहने लगे थे.

माल के नुकसान में जान की खैर. अगर किसी के माल का नुकसान हुआ तो यही कहने में आता है कि चलो माल चला गया कोई बात नहीं जान तो बच गई.

माल से चाल आवे. धन आता है तो आदमी की चाल बदल जाती है.

माला फेरत जुग गया, गया न मन का फेर, कर का मनका डारि दे, मन का मनका फेर. कहावत उन लोगों के लिए है जो दिखाने के लिए माला फेरते हैं पर उन का मन प्रपंचों में लगा रहता है. उनसे कहा गया है की माला को छोड़ो और अपने मन को प्रपंचों से हटा कर भगवान में लगाओ. इसी प्रकार का एक दोहा और भी है – माला तो कर में फिरे जीभ फिरे मुख मांहि, मनुआ तो चंहु दिसि फिरे ये तो सुमिरन नांहि.

माला फेरूँ, किस को घेरूँ. ढोंगी साधु के लिए जो माला फेरते समय हिसाब लगाता रहता है कि किसको घेरा जाए.

मालिक को काटने वाला कुत्ता बटाऊ का क्या लिहाज करेगा. बटाऊ – राहगीर. जो कुत्ता इतना नालायक है कि मालिक को काट सकता है वह राहगीर को तो जरूर काटेगा.

मालिक मालिक एक से. जैसे मालिक लोग मिल कर नौकरों की बेबकूफियों की बातें करते हैं वैसे ही नौकर भी जब आपस में मिलते हैं तो अपने मालिकों की बेबकूफियों और ज्यादतियों की चर्चा करते हैं.

माली आवत देख के, कलियाँ करें पुकार, फूले-फूले चुन लिए, काल्ह हमारी बार. माली को आता देख कर कलियाँ डर रही हैं कि आज यह फूल चुन रहा है, कल हमारी बारी आएगी. मनुष्य को सावधान करने के लिए.

माली चाहे बरसना, धोबी चाहे धूप, साहू चाहे बोलना, चोर चाहे चूप. हर व्यक्ति यह चाहता है कि दुनिया का हर काम उसकी सुविधा के अनुसार होना चाहिए.

माली सींचे नौ घड़ा, रुत आवे फल होय. माली चाहे पेड़ में नौ घड़े पानी डाल दे, फल ऋतु आने पर ही लगेगा. प्रयत्न चाहे कितना भी करो, समय आने पर ही कार्य होता है. इसकी पहली पंक्ति है – धीरे धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय. इंग्लिश में कहावत है – Rome was not built in a day.

माले मुफ्त, दिल बेरहम. मुफ्त के माल को आदमी बेरहमी से खर्च करता है. (फोकट का चन्दन, घिस मेरे नन्दन).

माहे गेहूँ, जेठ गुड़, भादों मास कपास, बहू मायके धी घरै, राखे होय बिनास. (बुन्देलखंडी कहावत) माघ के महीने में गेहूँ, जेठ में गुड़ और भादों में कपास घर में रखने से हानि होती है. इसी प्रकार बहू को मायके में रखने और बेटी को घर में रखने से हानि होती है.

मिजाज क्या है तमाशा, घड़ी में तोला घड़ी में माशा. तोला और माशा किसी जमाने में तौलने की इकाइयाँ हुआ करती थीं. उस समय एक रुपये का सिक्का एक तोला (लगभग 11.7ग्राम) का होता था. माशा इसका दसवां हिस्सा होता था. कहावत का अर्थ ऐसे व्यक्ति से है जिसका मूड बहुत जल्दी जल्दी बदलता हो. 

मिट्टी की ढांड़, लोहे की किवाड़. बेतुका काम. मिट्टी की कच्ची दीवारों में लोहे का किवाड़ लगाने से क्या लाभ होगा.

मिट्टी की दीवार को गिरते देर नहीं लगती. कमजोर व्यापार और कमजोर संबंध टूटते देर नहीं लगती.

मिट्टी के माधो. जो किसी काम के न हों.

मित्र का बैरी बैरी, बैरी का बैरी मित्र. जो हमारे मित्र का दुश्मन है वह हमारा भी दुश्मन हुआ और जो हमारे शत्रु का शत्रु है वह हमारे काम आ सकता है इसलिए हमारे मित्र के समान है.

मित्र को मिलाप अति आनंद को कंद है. किसी बिछड़े हुए मित्र से मिलना दुनिया के सबसे बड़े सुखों में से एक है.

मित्र वही जो विपत्ति में काम आए. वैसे तो हर व्यक्ति के बहुत से मित्र होते हैं पर उनमें से सच्चा मित्र कौन है इसकी पहचान तभी होती है जब कोई विपत्ति आती है.

मियाँ का मैल ईद में उतरे. मुसलमानों के कम नहाने पर व्यंग्य. 

मियाँ की जूती, मियाँ के सर. किसी की खुद की चीज़ से उसी को नुकसान पहुँचाना.

मियाँ की दाढ़ी तावीजों में गई. कहीं कहीं रिवाज़ होता है कि मुल्ला लोग अपनी दाढ़ी का बाल तावीज़ में रख कर देते हैं. अपनी तारीफ़ करवाने के चक्कर में मुल्ला जी की पूरी दाढ़ी ही नुच गई. (मियां की दाढ़ी वाहवाही में गई), (मुल्ला की दाढ़ी तबर्रुक में गई).

मियाँ घर नहीं बीवी को डर नहीं. पति बाहर गया हो तो पत्नियाँ आज़ाद हो जाती हैं. इस कहावत को इस तरह भी बोलते हैं – सैयां गए परदेस तो अब डर काहे का. (यह पुराने जमाने की बात है जब पत्नियां पतियों से डरती थीं. अब कुछ लोग इस कहावत को इस तरह कहते हैं – बीवी घर नहीं मियाँ को डर नहीं).

मियाँ नाक काटने को फिरें, बीवी कहे नथ गढ़ा दो. मियाँ इतने गुस्से में हैं कि बीवी की नाक काटने पर उतारू हैं और बीवी कह रही है कि मेरे लिए नाक की नथ बनवा दो. बिना वक्त की नजाकत देखे कोई बात कहना.

मियाँ फिरें लाल गुलाल, बीबी के हैं बुरे हवाल. जहाँ पति सजधज के छैला बने घूमते हों और पत्नी घर के कामों में ही पिसती रहती हो.

मियाँ बीवी राजी तो क्या करेगा काजी. मुगल शासन काल में शहर में काजी की एक पोस्ट हुआ करती थी जो उस समय का मजिस्ट्रेट होता था. शादी करवाना, तलाक करवाना, झगड़े निपटाना आदि उसके काम हुआ करते थे. जब मियां बीवी आपस में राजी हो तो काजी का क्या काम. जब किसी झगड़े में शामिल दो लोग आपस में सुलह कर ले तो किसी न्यायाधीश या मध्यस्थ की क्या आवश्यकता? ऐसे ही प्रसंग में यह कहावत कही जाती है.

मियाँ भए गोर जोग, बीवी लाए घर योग. मियाँ बहुत बूढ़े हो गए हैं (कब्र में जाने योग्य), और बीबी लाये हैं जवान (गृहस्थी योग्य). कोई अधिक आयु का व्यक्ति कम आयु की स्त्री से विवाह करे तो. गोर – कब्र.

मियाँ रिसाने मुर्गी मारी. मियाँ जी को बहुत गुस्सा आया तो और तो किसी का कुछ नहीं बिगाड़ पाए, मुर्गी मार दी. कमजोर पर गुस्सा निकालना.

मियाँ रोते क्यूँ हो, क्या करें सूरत ही ऐसी है. कुछ लोग शक्ल से ऐसे लगते हैं जैसे अभी रो पड़ेंगे. ऐसे ही लोगों के लिए कहावत.

मिरग, बांदरा, तीतर, मोर, ये चारों खेती के चोर. हिरन, बन्दर, तीतर और मोर ये चारों खेती को नुकसान पहुँचाते हैं.

मिरजापुरी बगल में छुरी, खाते पीते नीयत बुरी. मिर्जापुर में रहने वालों पर कही गई कहावत. इस तरह की कहावतें कहाँ से उत्पन्न होती हैं यह पता लगाना कठिन है.

मिल गए तो राम राम. वैसे याद नहीं करते हैं, सामने दिख गए तो राम राम कर ली. दिखावे की दोस्ती.

मिल जुल कर रहो मगर हिसाब साफ़ रखो. दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ मिल जुल कर रहना चाहिए, पर पैसे खर्चे का हिसाब साफ़ रखना चाहिए. हिसाब में गड़बड़ी होने से गाँठ पड़ जाती है.  

मिलन भलो बिछुड़न बुरो, मत मिल बिछड़ो कोय. अपने प्रिय व्यक्ति से मिलना जितना अच्छा लगता है उससे अधिक बुरा बिछड़ना लगता है.

मिलन लगे दूध भात, बिसर गए माई बाप. जब व्यक्ति को सब सुख सुविधाएं मिलने लगती हैं तो वह माँ बाप को भूल जाता है.

मिलें न सूखी, चुपड़ के मांगें. सूखी रोटी नसीब नहीं हो रही है और घर वाले चुपड़ के मांग रहे हैं. 

मिलेंगे ऊत बजेंगे जूत. मूर्ख लोग मिलते हैं तो जूतम पैजार करते हैं.

मिस्सों से पेट भरता है किस्सों से नहीं. पेट अनाज से भरता है कोरी बातों से नहीं. इंग्लिश में कहावत है – Give me some francs, not thanks.

मीठा और भर कठौती. एक तो मन माफिक चीज़ और वह भी खूब सारी. (चुपड़ी और दो दो).

मीठा निवाला और कड़वे बोल कोई नहीं भूलता. जिस प्रकार आदमी स्वादिष्ट मिठाई का स्वाद नहीं भूलता उसी प्रकार वह कड़वे बोल की कड़वाहट भी कभी नहीं भूलता. तात्पर्य यह है कि किसी से कड़वे बोल नहीं बोलना चाहिए.

मीठा मीठा हप्प, कड़वा कड़वा थू. हम में से अधिकतर लोग केवल अच्छा अच्छा ही प्राप्त करना चाहते हैं, जो हमें बुरा लगता है उससे दूर भागते हैं. किसी व्यक्ति में या किसी काम में अच्छाइयों के साथ कुछ बुराइयाँ भी हैं तो हमें उन्हें भी सहन करना सीखना चाहिए.

मीठी छुरी, जहर की भरी. जो लोग बोलते तो मीठा हैं पर उन के मन में कपट होता है, उन के लिए.

मीठी मीठी बात से बनते बिगड़े काम. मीठी बोली से बिगड़ी हुई बात बन जाती है.

मीठे के लिए जूठा खाए. अल्पकालिक लाभ के लिए जो गलत काम करे उस के लिए कहा गया है (विशेषकर वैश्यागामियों के लिए).

मीत बनाए न बनें, बैरी, सिंह और नाग, जैसे कभी न हो सकें एक ठौर जल आग. शत्रु, सिंह और सांप प्रयास करने पर भी मित्र नहीं बन सकते (जैसे आग और पानी एक साथ नहीं रह सकते).

मीर साहब की जात आली है, मुँह चिकना है पेट खाली है. जो लोग बड़े लोगों की जमात में शामिल होने के लिए दिखावा बहुत करते हैं पर अंदर से खाली होते हैं, उनके लिए.

मुँड़ी हुई भेड़ की तरह अमीर. आपसी हास्य व्यंग्य में इस तरह की विरोधाभासी बात बोली जाती है. किसी दोस्त ने दूसरे से कहा कि तुम बहुत पैसे वाले हो, तो वह मजाक में कहता है कि हाँ उतना ही जितनी मुंडी हुई भेड़. 

मुँह काला, वक्त उजाला. नीच परन्तु अच्छे भाग्य वाला व्यक्ति, जिसका समय अच्छा चल रहा हो.

मुँह के चिकने, पेट के काले (मुँह मीठी और पेट कसाइन). जो लोग ऊपर से मीठी मीठी बातें करते हैं और अंदर से जहर से भरे होते हैं उनके लिए कही जाने वाली कहावत.

मुँह खाए, आँख लजाए. किसी से एहसान लेने के बाद व्यक्ति को थोड़ा लज्जित होना पड़ता है. कोई हाकिम जिस से रिश्वत ले लेता है उस से नज़र बचाता है.

मुँह देख कर बीड़ा और कमर देखकर पीढ़ा. आदमी की हैसियत देख कर ही उस का मान सम्मान किया जाता है. असभ्य भाषा में इसको इस तरह बोलते हैं – मुंह देख के बीड़ा और चूतड़ देख के पीढ़ा. बीड़ा – पान, पीढ़ा – सींकों का बना हुआ स्टूल.

मुँह देख बात, सर देख सलाम. व्यक्ति की हैसियत देख कर ही बात की जाती है और सलाम किया जाता है.

मुँह देखे की उल्फ़त. वैसे याद नहीं करते हैं, सामने दिख गए तो कुछ प्रेम भरी बात कर ली. दिखावे की दोस्ती.

मुँह न धोवे से ओझा कहावे. ओझागीरी करने वाले बहुत गंदे रहते हैं उन पर व्यंग्य. 

मुँह पर कहे सो मूंछ का बाल, पीछे कहे सो पूंछ का बाल. किसी की बुराई उस के मुंह पर करने वाला बहादुर होता है और पीठ पीछे बुराई करने वाला कायर. मूँछ का बाल गर्व का प्रतीक है और पूँछ का बाल लज्जा का.

मुंगेरी लाल के हसीन सपने. कोई अयोग्य व्यक्ति बहुत बड़े बड़े सपने देखे तो.

मुंडा योगी और पिसी दवा का क्या ठीक. दोनों को पहचानना मुश्किल है. 

मुंह देख कर तिलक. जैसी आदमी की हैसियत होती है वैसा ही उसका सत्कार होता है.

मुंह पर पूत, पीछे हरामी भूत. जो लोग सामने आपसे प्रेम जताते हैं (बेटा कहते हैं) और पीठ पीछे गन्दी गालियाँ देते हैं.

मुंह पर मुमानी, पीठ पीछे सूअर खानी. ऊपर वाली कहावत की तरह. सामने मुमानी (मुसलमानों में मामी को मुमानी कहते हैं) कह कर प्यार जता रहे हैं और पीठ पीछे सूअर खाने वाली कह रहे हैं (मुसलमानों में सूअर खाना हराम है इसलिए किसी को सूअर खाने वाली कहना बहुत बड़ी गाली है).

मुंह बंधा कुत्ता क्या शिकार करेगा. किसी कर्मचारी को मुख्य औजार ही नहीं दोगे तो वह काम कैसे करेगा.

मुंह में राम बगल में छुरी. देखने में धर्मात्मा और अंदर से कपटी.

मुंह रहते नाक से पानी पिये. बेतुका काम.

मुंह लगाई डोमनी, बाल बच्चों समेत आए. छोटे आदमी को थोड़ी सी तवज्जो दे दो तो सर चढ़ जाता है.

मुंह सुपारी, पेट पिटारी. (मुंह सुई, पेट कुई). मुँह छोटा पर पेट बड़ा. जो आदमी देखने में छोटा हो पर खाता बहुत हो. कोई हाकिम या बाबू बातें मीठी करता हो पर रिश्वत बहुत मांगता हो. 

मुंह से चावल हजार खाए, नाक से एको न खाए.  (भोजपुरी कहावत). जिस काम का जो कायदा होता है उसी से किया जाता है.

मुआ घोड़ा भी कहीं घास खाता है. मरा हुआ घोड़ा घास नहीं खाता. पितरों को श्राद्ध करने पर व्यंग्य. रिटायर्ड रिश्वतखोर अफसरों पर भी व्यंग्य.

मुए और मूरख कभी न बदलें. जो मर चुका है वह अपने विचार नहीं बदल सकता. इसी प्रकार मूर्ख लोग भी अपने विचारों पर अड़े रहते हैं. 

मुए शेर से जीती बिल्ली भली. मरे हुए शेर से जीवित बिल्ली अच्छी है. किसी रिटायर्ड बड़े अफ़सर के मुकाबले नौकरी कर रहा क्लर्क अधिक काम का है.

मुए सांप पर कीड़ियों का हमला. सांप जब मर जाता है तो चींटियां उस पर हमला कर देती हैं. जब व्यक्ति के पास धन या सत्ता की शक्तियाँ नहीं रहतीं तो छोटे से छोटा आदमी भी उस पर हमलावर हो जाता है.

मुकद्दर किसी की जागीर नहीं. भाग्य किसी को विरासत में नहीं मिल सकता.

मुख दरसावे दुःख. इंसान का दुःख चेहरे पर प्रकट हो जाता है.

मुद्दई लाख बुरा चाहे तो क्या होता है, वही होता है जो मंजूरे खुदा होता है. इंसान लाख किसी का बुरा चाहे, होगा वही जो ईश्वर की इच्छा होगी. आम तौर पर केवल बाद वाला हिस्सा ही बोला जाता है.

मुद्दई सुस्त गवाह चुस्त. मुद्दई – मुकदमा करने वाला. किसी परेशानी का सब से ज्यादा असर जिस पर पड़ रहा है वह इतनी दौड़ भाग नहीं कर रहा है, जिनसे सहायता मांगी गई है वे ज्यादा परेशान हैं.

मुफलिस से माँगना हराम है. गरीब से कुछ नहीं माँगना चाहिए.

मुफलिसी सब बहार खोती है, मर्द का ऐतबार खोती है. 1.बहार आती है तो गरीब को उससे क्या लाभ. 2. गरीब आदमी पर कोई विश्वास भी नहीं करता. मुफलिसी – गरीबी.

मुफ्त का चंदन घिस रे लाला, तू भी घिस, घरवालों को भी बुला ला. कोई चीज मुफ्त में मिल रही हो तो सब उस का दुरूपयोग करते हैं.

मुफ्त का सिरका, शहद से मीठा. मुफ्त की चीज़ सदैव अच्छी लगती है.

मुफ्त की गंगा में हराम के गोते. मुफ्त में मिली चीज़ का मज़ा सब लूटना चाहते हैं.

मुफ्त की शराब काजी को भी रवां है. काजी जी लाख सब को समझाएँ कि शराब बुरी चीज़ है, पर जब मुफ्त में मिल जाए तो खुद भी हाथ साफ़ करने से नहीं चूकते.

मुफ्त में निकले काम तो काहे को दीजे दाम. जहाँ मुफ्त में काम बन रहा हो वहां पैसे खर्च करना मूर्खता ही कहलाएगी.

मुरगी की अजान कौन सुनता है. गरीब की आवाज़ कोई नहीं सुनता.

मुरदे के साथ कांधिये नहीं जलते. कांधिये – अर्थी को कंधा देने वाले. कोई मरने वाले का कितना भी सगा सम्बंधी क्यों न हो, चिता पर साथ कोई नहीं चढ़ता. 

मुरदे पर सौ मन मिट्टी तो एक मन और सही. जहाँ किसी पर बहुत सारी मुसीबतें टूट पड़ी हों वहाँ एक और आ जाएगी तो क्या फर्क पड़ेगा.

मुरव्वत में मातियन गाभिन हो गई. मातियन – नाइन. एक नाई काफी लम्बे समय के लिए परदेस गया. लौट के आया तो देखा कि पत्नी गर्भवती है. उसने पूछा कि यह कैसे हुआ. तो नाइन बोली कि वह संकोच में मना नहीं कर पाई इसलिए किसी ने उस का गलत फायदा उठा लिया.

मुर्गा बांग न देगा तो क्या सवेरा न होगा. मुर्गे को एक बार यह अहंकार हो गया कि उसके बांग देने से ही सूरज उगता है. ऐसे ही कुछ लोग यह समझते हैं कि उनके बिना कोई काम नहीं हो सकता. ऐसे लोगों को हंसी हंसी में उनकी औकात बताने के लिए यह कहावत कही जाती है.

मुर्गी की नजर में हीरे से अच्छा घास का कीड़ा. हीरा चाहे कितना भी कीमती क्यों न हो मुर्गी के लिए उसकी कोई कीमत नहीं है. कोई चीज़ किसी के लिए मूल्यवान हो सकती है पर दूसरे के लिए बेकार भी हो सकती है.

मुर्गी को तकुआ का घाव ही बहुत है. छोटे आदमी को छोटा मोटा नुकसान भी बहुत बड़ा लगता है. तकुआ – चरखे से लगी लोहे की सलाई जिस पर सूत लपेटते हैं.

मुर्गी जान से गई, मुल्ला को मजा नहीं आया. जब किसी बड़े को खुश करने के लिए छोटा आदमी बहुत नुकसान उठाए और बड़ा खुश न हो.

मुर्गी बीमार और भैंस की बलि. छोटी सी परेशानी को हल करने के लिए बहुत महंगा उपाय करना.

मुर्गी रहे महमूद के, अंडे देवे मसूद के. खाए किसी और का, लाभ किसी और को पहुँचाए. जैसे देश में रहने वाले कुछ लोग खाते यहाँ का हैं और लाभ पड़ोसी देशों को पहुँचाते हैं.

मुर्गे को कलगी का गुमान. अपने रूप रंग पर वही लोग घमंड करते हैं जो मुर्गे की भांति छोटी सोच वाले होते हैं.

मुर्गों की लड़ाई में कबूतरों को फायदा. दो शक्तिशाली लोगों की लड़ाई में तीसरे को फायदा होता है (वह कमजोर हो तब भी).

मुर्दे को कफन और देना पड़ता है. घर के किसी व्यक्ति की मृत्यु होना अपने आप में इतना बड़ा नुकसान है, ऊपर से उसके अंतिम संस्कार और मृत्यु भोज में और खर्च करना पड़ता है.

मुर्दे को बैठ कर रोते हैं, रोजगार को खड़े हो कर. अच्छा काम हो या बुरा, सामाजिक हो या असामाजिक, समाज में हर काम को करने का एक ढंग होता है.

मुल्ला की दाढ़ी तबर्रुक में गई. एक मुल्ला जी अपनी दाढ़ी का एक बाल नोच कर ताबीज़ में रख कर अपने मुरीदों को दिया करते थे. धीरे धीरे उनकी सारी दाढ़ी ही नुच गई. दूसरों की भलाई के चक्कर में अपना नुकसान कर बैठना.

मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक. छोटी सोच वाले लोग छोटा ही सोच सकते हैं (छोटा काम ही कर सकते हैं).

मुसलमान भी हुए तो जुलाहे के घर. किसी बड़े आदमी के घर होते तो खूब गोश्त बिरयानी उड़ाते. कोई गलत काम भी किया और उस की एवज़ में भरपूर आनन्द भी नहीं उठाया. 

मुसल्ला पसार, बगल में यार. मुसल्ला – नमाज पढने वाली दरी. नमाज पढ़ने जा रहे हैं और बगल में यार (प्रेमिका) को लिए हैं. ढोंगी नमाजी.

मुसाफिर प्यासा क्यों, गदहा उदासा क्यों, लोटा न था. अमीर खुसरो की खास तरह की पहेली नुमा कहावत जिसमें दो सवालों का एक ही उत्तर होता है. पहले के जमाने में लोग सफर में लोटा और डोरी साथ रखते थे जिससे कुँए से पानी निकाल कर पी सकें. मुसाफिर के पास लोटा नहीं था इसलिए प्यासा रह गया. गधा कुछ देर जमीन में लोटता है तभी उसका मन खुश होता है. गधा उदास क्यों था क्योंकि उसे लोटने को नहीं मिला था.

मुसीबत में काम आवे सो ही सगा. अर्थ स्पष्ट है.

मुसीबत सब पे आती है, भाग्यवान के मांस पर बीतती है, अभागे के हाड़ पर बीतती है. मांस पर बीतने का अर्थ है ऐसी परेशानी जो ठीक हो जाए (बीमारी में मांस सूख जाएगा तो ठीक होने के बाद दोबारा आ जाएगा), हाड़ पर बीतने का अर्थ है स्थाई नुकसान (हड्डी चली जाएगी तो दोबारा नहीं आ सकती).

मुहर्रम की पैदाइश. मनहूस आदमी.

मूँछ उखाड़े मुर्दा हल्का न होय. बहुत छोटा सा नुकसान पहुँचा कर किसी बड़े आदमी का कुछ नहीं बिगाड़ लोगे. 

मूँछ बिचारी क्या करे जब हाथ न फेरा जाए. मूंछ रखने का फायदा तभी है जब उस पर हाथ फेरा जाए. मूँछ पर हाथ फेरने को मर्दानगी का प्रतीक माना गया है.

मूँजी को नमाज छोड़ के मारे. मूंजी – बहुत बड़ा कंजूस, दुर्जन. ऐसे व्यक्ति को सब काम छोड़ कर पीटना चाहिए.

मूंग और मोठ में कौन बड़ा कौन छोटा. व्यर्थ की बहस.

मूंगफली ऊपर पानी पी लो खांसी हो जाएगी, काने से ब्याह कर लो हांसी हो जाएगी. किसी लड़की की काने से शादी हो जाए तो वह सबकी हँसी का पात्र बन जाती है. तुक मिलाने के लिए मूंगफली के ऊपर पानी का जुमला जोड़ दिया गया है.

मूंड़ कटाए बाल की रच्छा. बालों की रक्षा करने के लिए सर कटवा लेना. छोटे नुकसान से बचने के लिए बहुत बड़ा नुकसान उठाना. 

मूंड़ मुंड़ाए सिगरे गाँव, कौन कौन का लीजे नाँव. जहां सभी लोग एक से बढ़ कर एक हों.

मूंड़ मुंड़ाए हरि मिलें तो सब ही लेंय मुंड़ाय (बार बार के मूंड़ने, भेड़ न बैकुंठ जाय). कबीर दास ने कहा है कि सर गंजा कराने से प्रभु नहीं मिलते. यदि मिलते होते तो सबसे पहले भेड़ बैकुंठ जाती. 

मूंड़ मुंड़ाए, जटा रखाए, नगन फिरें ज्यों भैंसा, खलड़ी ऊपर राख लगाए, मन जैसे को तैसा. ढोंगी साधुओं के लिए. मूंछ मुंडाए हैं, जटाएं बढ़ाए हैं, भैंसे की तरह नंगे घूम रहे हैं, तन पर राख मल रखी है, पर मन शुद्ध नहीं है.

मूजी को टरकाइए, हाथ पाँव बचाइये. मूजी – दुष्ट. दुष्ट और धूर्त व्यक्ति यदि आप के पास किसी काम से आये या आप की सहायता करने का प्रस्ताव भी रखे तो उसे टाल देना चाहिए. धूर्त व्यक्ति हमेशा आप को नुकसान पहुँचाएगा.

मूरख का बल मौन. मूर्ख व्यक्ति की सबसे बड़ी ताकत उस के चुप रहने में ही है (बोलते ही उस की पोल खुल जाती है).

मूरख का माल खुशामद से खाइए. मूर्ख व्यक्ति की प्रशंसा करो तो वह बड़ा प्रसन्न होता है. उसकी प्रशंसा कर के उसे बेवकूफ बनाया जा सकता है और उससे जो चाहे कराया जा सकता है.

मूरख की सारी रैन, छैल की एक घड़ी (मूरख की सारी रैन, सयाने की एक घड़ी). मूर्ख व्यक्ति बहुत समय लगा कर भी जो काम नहीं कर सकता उसी काम को चंट चालाक या बुद्धिमान व्यक्ति तुरंत कर लेता है.

मूरख को दियो पान, वो लगो रोटी संग खान. (बुन्देलखंडी कहावत) मूर्ख व्यक्ति को पान खाने को दिया तो वह उसे सब्जी की तरह से रोटी के साथ खाने लगा. कोई व्यक्ति मूर्खतावश किसी दी हुई चीज़ का गलत प्रयोग करे तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.

मूरख को समझाय, ज्ञान गाँठ को जाय. मूर्ख को समझाने की कोशिश में अपना ज्ञान कम होता है.

मूरख मारे लट्ठ से ऊपर ही दरसाए, ज्ञानी मारे ज्ञान से रोम रोम भिद जाए. किसी को दंड देना हो तो मूर्ख व्यक्ति तो लाठी से मारता है जिसकी चोट केवल शरीर को लगती है, पर ज्ञानी आदमी आपके अंतर्मन को चोट पहुंचाने वाली बात कहता है.

मूरख मिले मौन हो जईयो, ऊसर बीज न बईयो जी. जिस प्रकार बंजर जमीन में बीज नहीं बोना चाहिए उसी प्रकार मूर्ख व्यक्ति को ज्ञान की बात समझाने का प्रयास नहीं करना चाहिए. इंग्लिश में कहावत है – You can never counsel a fool.

मूरख मूढ़ गंवार को सीख न दीजो कोय, कूकुर वर्गी पून्छड़ी कभी न सीधी होय. जैसे कुत्ते की पूँछ कभी सीधी नहीं हो सकती वैसे ही मूर्ख व्यक्ति लाख सीख देने से भी बुद्धिमान नहीं बन सकता.

मूरख वैद से मौत भली. मूर्ख वैद से इलाज कराने में जान तो जाएगी ही और धन भी जाएगा. संस्कृत में इस प्रकार से कहा गया है – वैद्यराज नमस्तुभ्यं! यमराजस्य सहोदर:, यम हरति प्राणानि, त्वं प्राण धनानि च.

मूर्ख अपने को अकलमंद समझते हैं और अकलमंद अपने को अज्ञानी. मूर्ख व्यक्ति कभी अपने को मूर्ख मानने को तैयार नहीं होते, वे समझते हैं कि उन्हें सब कुछ आता है. जो सही मानों में समझदार हैं वे यह समझते हैं कि दुनिया में जानने के लिए बहुत कुछ है जिसमें से वे बहुत कम जान पाए हैं. उदाहरण के तौर पर जो लोग धर्म की एक ही पुस्तक पढ़ते हैं वे अपने को सर्वज्ञ समझते हैं जबकि भारतीय धर्म दर्शन के सैकड़ों ग्रन्थों का अध्ययन करने वाला विद्वान अपने को अज्ञानी मानता है. 

मूर्ख के तरकस में तीर नहीं टिकते. मूर्ख व्यक्ति अपने संसाधनों को ठीक से प्रयोग नहीं करता. (देखिये परिशिष्ट) 

मूर्ख को कभी मूर्ख न कहो क्योंकि वह मूर्ख है. एक बार को बुद्धिमान व्यक्ति को मूर्ख कहने पर वह बुरा नहीं मानेगा पर अगर आपने मूर्ख को उस के मुँह पर मूर्ख बोल दिया तो शामत आई जान लो.

मूर्खों के पटाखे दीवाली से पहले ही ख़तम हो जाते हैं. जो लोग सही से खर्च करना नहीं जानते वे समय से पहले ही अपनी सारी सम्पत्ति गंवा देते हैं और जरूरत के वक्त खाली हाथ होते हैं.

मूर्खों के बीच अकल की बात करना मूर्खता. मूर्ख तो मूर्ख होते ही हैं, उन से बड़ा मूर्ख वह है जो उन के बीच अक्ल की बात करे. 

मूर्खों के बीच मौन रह जाना अच्छा है. जहाँ बहुत सारे मूर्ख व्यक्ति अपनी राय दे रहे हों वहाँ समझदार लोग चुप रहते हैं.

मूल से ब्याज प्यारा होता है. 1. अपनी पूँजी (मूलधन) तो सब को प्यारी होती ही है उस पर मिलने वाला ब्याज और अधिक प्यारा होता है. 2. अपनी सन्तान से अधिक अपने नाती पोते प्यारे होते हैं.

मूस मोटइहें लोढ़ा हुइहें, न हाथी न घोड़ा हुइहें. चूहा कितना भी मोटा क्यों न हो जाए, हाथी या घोड़ा नहीं बन सकता. कोई ओछा आदमी धन या अधिकार पा कर महान नहीं बन सकता.

मूसे और बिलार में कबहुं प्रीत न होय. चूहे और बिल्ली में कभी प्रेम नहीं हो सकता. शोषक और शोषित में कभी मधुर संबंध नहीं हो सकते.

मूसे ने पाई खाकी कत्तर, तो वो थानेदार बन बैठा. ओछी बुद्धि के आदमी को छोटी सी चीज़ मिल जाए तो अपने आप को बहुत बड़ा समझने लगता है.

मृत्यु सारे दुखों का अंत है. अर्थ स्पष्ट है. इंग्लिश में कहावत है – Death is the grand leveler.

मेंढकी को जुकाम, हँसें लोग तमाम. ज्यादा नज़ाकत दिखाने या बीमारी का दिखावा करने वालों का मज़ाक उड़ाने के लिए.

मेंह, लड़का और नौकरी घड़ी घड़ी नहीं होते. वारिश होना, पुत्र का पैदा होना और नौकरी मिलना, ये बहुत जल्दी जल्दी नहीं होते.

मेढ़ा जब पीछे हटे, बैरी जब मीठा बोले. मेढ़ा जब पीछे हटे तो समझ लो कि टक्कर मारने वाला है, शत्रु जब मीठा बोले तो समझ लो कि नुकसान पहुँचाने वाला है.

मेरा कुत्ता मुझी पे भौंके. किसी के टुकड़ों पर पलने वाला व्यक्ति यदि उसी पर आक्रामक हो जाए तो.

मेरा पेट हाऊ, मैं न देहूं काऊ. अत्यधिक लालची व्यक्ति के लिए. मेरा पेट बहुत बड़ा है, मैं किसी को नहीं दूंगा.

मेरी एक आंख फूटे कोई गम नहीं, पडोसी की दोनों फूटनी चाहिए. ईर्ष्या की पराकाष्ठा. दूसरे को नुकसान पहुंचाने के लिए खुद भी नुकसान उठाने को तैयार. एक व्यक्ति को अपने पड़ोसी से बड़ी ईर्ष्या थी. उस ने कड़ी तपस्या कर के भगवान को प्रसन्न किया. भगवान ने कहा कि जो मांगोगे मैं तुम्हें दूँगा पर शर्त यह है कि पड़ोसी को उससे दुगुना दूँगा. तब काफी सोच समझ कर उसने माँगा कि मेरी एक आँख फूट जाए.

मेरी तौबा, मेरे बाप की तौबा. किसी काम से तौबा करना (वैसा काम कभी न करने की कसम खाना).

मेरी नाजो को कहाँ कहाँ दुखता है, जहाँ जहाँ सहलाओ वहाँ वहाँ दुखता है. अधिक नाज नखरे दिखाने वाली स्त्रियों पर व्यंग्य.

मेरे और मौसी के इक्कीस रूपये. धूर्त व्यक्ति जोकि मौसी के दिए रुपयों में अपना नाम जोड़ रहा है.

मेरे घर ही बरसे मेह, मेरे घर ही खेती फले. निकृष्ट स्वार्थी व्यक्ति.

मेरे पूत निकम्मा को ढेर सारे कम्मा. जो लोग कोई ठोस काम नहीं करते और आलतू फ़ालतू कामों में व्यस्त रहते हैं या व्यस्त रहने का दिखावा करते हैं उन के लिए.

मेरे मन कछु और है साईं के कछु और. मैं अपने मन में कुछ भी चाहूँ यदि ईश्वर की इच्छा कुछ और है तो मेरा चाहा हुआ नहीं हो सकता.

मेरे लला के कौन कौन यार, धुनिया, जुलहा और मनिहार. एक माँ का कथन जो कि अपने पुत्र की घटिया मित्र मंडली से दुखी है.

मेव का पूत बारह बरस में बदला लेता है. मेव – राजपूतों की एक जाति जो अपनी वीरता और प्रतिहिंसक प्रवृत्ति के लिए प्रसिद्ध हैं. कहते हैं कि इस जाति में पिता की हत्या का बदला पुत्र बारह साल बाद भी ले सकता है.

मेहनत आराम की कुंजी है. सुनने में उलटी बात लगती है पर सही बात है. 1. मेहनत कर के जो बच्चे अपना भविष्य संवार लेते हैं वे फिर आराम का जीवन बसर करते हैं. 2. मेहनत कर के हम समय से काम निबटा लें तो फिर निश्चिंत हो कर आराम कर सकते हैं.

मेहनत मेरी रहमत तेरी. मेहनत मनुष्य करता है लेकिन ईश्वर की कृपा भी आवश्यक है. 

मेहमानों से घर नहीं बसता. अतिथि कितना भी प्रिय क्यों न हो, उससे घर नहीं बस सकता. घर तो घर के सदस्यों से ही बसता है. (इसलिए मेहमानों के लिए घर वालों का अनादर नहीं करना चाहिए. 

मेहरी जस बैरी न मेहरी जस मीत. पत्नी से बड़ा मित्र कोई नहीं हो सकता, और अगर वह दुश्मनी पर उतर आए तो उस से बड़ा शत्रु भी कोई नहीं हो सकता.

मेहरी भतार का झगरा, बीच में बोले सो लबरा. लबरा – झूठ बोलने वाला, मेहरी भतार – पति पत्नी. पति पत्नी में झगड़ा हो रहा तो बीच में नहीं बोलना चाहिए. पति पत्नी फिर एक हो जाते हैं, बेचारा बीच में बोलने वाला झूठा सिद्ध हो जाता है.

मैं कब कहूँ तेरे बेटे को मिरगी आवे है. किसी को उसकी कमी बताना और यह भी कहना कि मैं तो कुछ नहीं कह रहा हूँ.

मैं करूँ तेरी भलाई, तू करे मेरी आँखों में सलाई. भलाई के बदले में बुराई करने वाले के लिए. 

मैं क्या तुमसे पतला मूतता हूँ. मैं तुमसे किसी तरह कम नहीं हूँ यह कहने का अश्लील तरीका.

मैं गला कटाए. अहं का भाव (अहंकार) सर्वनाश कर देता है.

मैं सच्चा, मेरा पीर सच्चा. जबरदस्ती अपनी बात मनवाना, जो मैं कह रहा हूँ वही ठीक है.

मैं ही पाल करा मुस्टंडा, मोहे ही मारे लेके डंडा. मैंने ही जिसे पाल पोस कर बड़ा किया वही (कृतघ्न पुत्र या आश्रित) अब मुझे डंडा ले कर मार रहा है. (टुकड़े दे दे बछड़ा पाला, सींग लगे तब मारन चाला).

मैके के महुए मीठे. मायके की हर वस्तु स्त्रियों को प्रिय लगती है.

मैना जो मैं ना कहे, दूध भात नित खाय, बकरी जो मैं मैं करे, उलटी खाल खिंचाय. मैना कहती है मैं ना (मैं कुछ नहीं हूँ), उसे दूध भात मिलता है. बकरी कहती है मैं मैं (मैं ही सब कुछ हूँ), उस की खाल खींची जाती है.

मैला कपड़ा पतली देह, कुत्ता काटे कौन संदेह. गरीब दुर्बल गाँव वालों को दुष्ट सरकारी कर्मचारी परेशान करते हैं उसके ऊपर व्यंग्य.

मोकों मिले न तोकों, ले चूल्हे में झोंको. जिस चीज़ पर लड़ाई हो रही है वह अगर मुझे नहीं मिल सकती तो तुझे भी न मिले, चाहे चूल्हे में झोंक दो.

मोची की जोरू और फटी जूती. जहाँ पर किसी चीज की बहुतायत होनी चाहिए, वहीं पर उस की कमी हो तो यह कहावत कही जाती है. 

मोची की नजर जूते पर ही पड़ती है. मोची – जूते बनाने वाला. (आजकल इस नाम की एक बड़ी ब्रांड भी है). जिसका जो काम होता है वह उससे सम्बन्धित चीजों पर ही गौर करता है.

मोज़े का घाव, मियाँ जाने या पाँव. मोज़े से जो घाव लगता है वह बाहर दिखाई नहीं देता, जिस को घाव लगा है वही जान सकता है. कोई अन्तरंग व्यक्ति यदि किसी को चोट पहुँचाता है तो वह किसी से कह भी नहीं सकता. ऐसे में यह कहावत कही जाती है.

मोठों का पीसना क्या और सास का रूसना क्या. किसी ऐसी दबंग बहू का कथन जो सास के रूठने की परवाह नहीं करती.

मोदक मरे जो ताहि माहुर न मारिए. जो लड्डू खाने से मरे उसे जहर मत दीजिए. जो मीठी बातों से वश में आ जाए उस के लिए कड़वी बात या दंड का प्रयोग क्यों किया जाए. इंग्लिश में कहावत है – It is easier to catch flies with honey than with vinegar.

मोम का हाकिम लोहे के चने चबावे. जो हाकिम कोमल हृदय होता है वह प्रशासन चलाने में बहुत परेशानी उठाता है.

मोर भुखिया मोर माई जाने, कठवत भर पिसान साने. कठवत – लकड़ी का बर्तन, पिसान – आटा. मेरी माँ ही जानती है कि मेरी खुराक कितनी है, इसलिए कठौता भर के आटा सानती है. बच्चे कि भूख केवल माँ ही समझ सकती है.

मोरी की ईंट चौबारे चढ़ी. (नाली की ईंट कोठे चढ़ी). मोरी – नाली, चौबारे – चौपाल. कोई निम्न कोटि का व्यक्ति उच्च पद पा जाए कोई छोटे खानदान की लड़की बड़े घर में ब्याहे जाने पे घमंड करे तो लोग ईर्ष्यावश ऐसे बोलते हैं.

मोहिनी देख मुनिवर चले. ढोंगी मुनि के लिए जो सुंदर स्त्री को देख कर तपस्या छोड़ कर उसकी ओर चल देते हैं.

मौके का घूँसा तलवार से बढ़ कर. सटीक मौके पर दी गई छोटी चोट भी बड़ा काम कर देती है.

मौत कभी रिश्वत नहीं लेती.   अर्थ स्पष्ट है.

मौत दीजो पर मंदी न दीजो. व्यापारी मंदी से सबसे अधिक घबराते हैं.

मौत मांदगी मुकद्दमा मंदी मांगनहार ये पाँचों मम्मा बुरे भली करे करतार. मांदगी – बीमारी, मम्मा – ‘म’ अक्षर से आरम्भ होने वाले शब्द. अर्थ स्पष्ट है.

मौत या तो बहुत जल्दी आती है या बहुत देर से. मृत्यु कभी भी मनुष्य की इच्छानुसार नहीं आती. या तो व्यक्ति की असामयिक मृत्यु होती है या मौत आती ही नहीं है (परिवार वाले इंतज़ार करते रहते हैं).

मौत हराए, भूख नवाए. मौत सबको हरा देती है और भूख अच्छे अच्छों को झुका देती है.

मौन स्वीकृति लक्षणं (मौन सम्मति लक्षणं) यदि कोई अन्याय होता देख कर आप चुप रह जाते हैं तो इसे आपकी स्वीकृति माना जाएगा.

मौला यार तो बेड़ा पार. ईश्वर प्रसन्न हो तो हर काम आसान है.

मौसी के मूंछें होतीं तो उन्हें भी मामा कहता. रिश्तों की आपसी मजाक.

म्याऊँ के ठौर को कौन पकडे. शाब्दिक अर्थ के लिए देखिए – बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे. कहावत का प्रयोग इस प्रकार करते हैं कि क्रोधी हाकिम या झगड़ालू व्यक्ति से काम के लिए कौन कहे.

 

 

यथा नाम तथा गुण. किसी व्यक्ति का नाम उसके गुणों से मेल खाता हो तो.

यथा राजा तथा प्रजा. जैसा राजा होता है प्रजा भी वैसी ही हो जाती है. राजा ईमानदार व न्यायप्रिय हो तो प्रजा भी ईमानदार हो जाती है, राजा भ्रष्ट हो तो प्रजा भी भ्रष्ट हो जाती है.

यह गुड़ इतना गीला नहीं कि चींटे खाएँ. यह कहावत इस आशय में कही जाती है कि हम इतने बुद्धू नहीं हैं कि हमारा माल ऐरे गैरे हजम कर जाएँ. 

यह घोड़ा किसका, जिसका मैं नौकर हूँ, तू नौकर किसका, जिसका ये घोड़ा है. बात का सीधा जवाब न देना.

यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान, शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान. कबीर दास जी कहते हैं कि यह जो शरीर है वो विष से भरा हुआ है और गुरु अमृत की खान हैं. अगर अपना सर देने के बदले में आपको कोई सच्चा गुरु मिले तो भी बहुत सस्ता है.

यह बात वह बात टका धर मोरे हाथ. 1. पंडित लोग पूजा कराते समय बात बात पर कुछ दक्षिणा रखने को कहते हैं. 2. सरकारी मुलाजिम किसी काम को करने में तरह तरह के बहाने बनाता है और इशारा करता है कि कुछ दो तभी काम होगा.

यह संसार काल का खाजा, जैसा कुत्ता तैसा राजा. खाजा – एक प्रकार की मिठाई. संसार में सभी प्राणी काल का भोजन हैं, चाहे राजा हो या कुत्ता.

यहाँ का मुर्दा यहीं जलेगा, वहाँ का मुर्दा वहीँ. जो काम जहाँ के लिए उपयुक्त है उसे वहीं करना चाहिए.

यहाँ क्या तेरी नाल गड़ी है. हिन्दुओं में जब घर पर प्रसव कराने की प्रथा थी और घर कच्चे हुआ करते थे तो बच्चे के पैदा होने के बाद उसकी नाल वहीं गाड़ने का रिवाज़ था. यदि कोई व्यक्ति किसी जगह पर अपना अधिकार जता रहा हो तो यह कहावत कही जाती है.

या अघाए रोटी से, या अघाए सोटी से. सोटी – छोटा डंडा. ओछा आदमी पेट भरने पर मानता है या मार खा के मानता है.

या अल्लाह, गौड़ों में भी कौन गौड़. एक बार एक मुसलमान दावत खाने के लालच में ब्राह्मण का बहरूप बना कर किसी विवाह समारोह में शामिल हो गया. उसके हाव भाव देख कर किसी को शक हुआ तो उस से पूछा – कौन जात हो भाई? उसने कहा ब्राह्मण, कौन सा गोत्र? वह बोला गौड़, पूछने वाले ने फिर पूछा कौन से गौड़? तो उस के मुँह से निकला या अल्लाह, गौड़ों में भी कौन से गौड़.

या करे दर्दमंद, या करे गर्जमंद. जो कष्ट में होगा या जो जिस को अत्यधिक आवश्यकता होगी वही किसी से फ़रियाद करेगा या किसी की खुशामद करेगा.

या तो नहलाए दाई, या नहलाएं पांच भाई. जो लोग बहुत कम नहाते हैं उन के ऊपर व्यंग्य. या तो पैदा होने पर दाई ने नहलाया या मरने पर पांच भाइयों ने.

या तो नाम सपूतों से, या फिर नाम कपूतों से. कुछ लोगों का नाम उनके सुपुत्रों द्वारा रोशन होता है और कुछ कुपुत्रों के कारण बदनाम होते हैं.

या तो पगली सासरे जावे न, और जावे तो लौट के आवे न. मंदबुद्धि आदमी या तो काम करेगा नहीं और करेगा तो करता ही चला जाएगा, मना करने पर भी नहीं मानेगा. 

या तो पेट पाल लो या बेटा पाल लो. बड़ी बूढ़ी महिलाएं नवजात शिशु की माँ से ऐसे बोलती हैं. प्रसूता स्त्री (जो बच्चे को अपना दूध पिला रही हो) को अपने खान पान का बहुत ध्यान रखना पड़ता है, अपने स्वाद को भूल कर वही चीजें खानी होती हैं जो बच्चे को नुकसान न दें. 

या तो भर मांग सिंदूर, या निपट ही रांड. जो लोग हर काम की अति करते हैं उन के लिए.

या तो लड़ें कूकर, या लड़ें गंवार. बिना बात लड़ने भिड़ने का काम केवल मूर्ख लोग ही करते हैं.

या तो स्वामी धन को खाय, या धन स्वामी को खा जाय. जो लोग पैसे को खर्च नहीं करते, वे उसे संभाल कर रखने की चिंता में ही मर जाते हैं, या धन के लालच में मार दिए जाते हैं.

या दुनिया दो रोज की, मत कर यासो हेत, गुरु चरनन चित लाइये, जो पूरन सुख देत. इस संसार का झमेला दो दिन का है, इससे मोह सम्बन्ध न जोड़ो. सद्गुरु के चरणों में मन लगाओ, उसी में सच्चा सुख है.

या दुनियाँ में आइ के, छाँड़ि दे तू ऐंठ, लेना हो सो लेइले, उठी जात है पैंठ. पैंठ – बाज़ार. इस संसार में आ कर अहंकार मत करो. अच्छे कर्म कर लो, यह जन्म समाप्त होने वाला है.

या बेईमानी, तेरा ही आसरा. धूर्त लोगों के लिए.

या भैंसा भैंसों में या कसाई के खूंटे पे. भैंसे को लोग इसलिए पालते हैं ताकि भैंसें हरी होती रहें. जब भैंसा इस काम के उपयुक्त नहीं रहता तो उसे कसाई को बेच दिया जाता है. गरीब कामगार को लोग बुरी तरह काम में जोते रहते हैं और जब वह काम करने लायक नहीं रहता तो उसे निकाल कर बाहर कर देते हैं.

या मारे भादों की घाम या मारे साझे को काम. भादों की धूप बहुत तेज होती है इसलिए मारती है, और साझे के काम में किसी की जिम्मेदारी नहीं होती इसलिए वह सफल नहीं होता.

यार का गुस्सा, भतार के ऊपर. दुराचारिणी स्त्री प्रेमी का गुस्सा पति पर निकालती है. 

यार के घर खीर पके तो जरूर चाखिए, यार के घर आग लगे पड़े पड़े ताकिए. स्वार्थी दोस्त्तों के लिए जो दोस्त का माल खाने के लिए हर समय तैयार रहते हैं पर मुसीबत में उसके काम नहीं आते.

यार को खीर, खसम को दलिया. दुश्चरित्र स्त्री के लिए, जो पति से अधिक अपने मित्र को चाहती है.

यार डोम ने बनिया कीन्हा, दस ले कर्ज़ सैकड़ा दीन्हा. डोम ने बनिए से दोस्ती की तो दस रूपये उधार लिए. ब्याज सहित सौ रूपए चुकाने पड़े. सीख यह है कि दोस्ती सोच समझ कर करनी चाहिए और दोस्त पर आँख मूँद कर विश्वास नहीं करना चाहिए.

यार वही है पक्का, जिसने दिल यार का रक्खा. जो दोस्त का दिल रखे वही सच्चा दोस्त है.

यारां चोरी न पीरां दगाबाजी. दोस्तों से चोरी नहीं करनी चाहिए और साधु संतों को धोखा नहीं देना चाहिए. 

यारी करें सो बावरे, कर के छोड़ें कूर, या तो छोर निबाहिए, या फिर रहिए दूर. सच्ची दोस्ती बावले लोग ही कर सकते हैं. जो दोस्ती कर के छोड़ दें वे क्रूर होते हैं. दोस्ती या तो करो ही नहीं या अंत तक निभाओ.

यारी का घर दूर है. प्रेम और मित्रता करके निभाना बहुत होता मुश्किल है इस पर यह कहावत बनी है. 

यूँ मत जान रे बावरे कि पाप न पूछे कोय, साईं के दरबार में इक दिन लेखा होय. यह मत सोचो कि तुम पाप करते रहोगे और कोई पूछेगा नहीं, ईश्वर के दरबार में एक दिन सबका न्याय होगा.

ये पुर पट्टन ये गली, बहुरि न देखे आई. अपना देश छोड़ कर जाना पड़े या संसार छूट रहा हो तो मन में अजीब सी टीस होती है.

ये मुँह और मसूर की दाल, (वाह रे वाह मेरे बांके लाल). किसी का मज़ाक उड़ाने के लिए.

ये लड्डू हैं रेत के लोभी मन ललचात, खाए तो पछतात है न खाए पछतात. विवाह के लिए. इस से मिलती जुलती इंग्लिश में कहावत है – Who marries, does well; who marries not, does better. 

ये लो जी घोड़ों का पारखी, पूंछ ऊंची कर के दांत देखे. उन लोगों पर व्यंग्य जो कुछ न जानते हुए भी अपने को बड़ा पारखी बताते हैं. ऐसे किसी सज्जन से घोड़े की नस्ल परखने के लिए कहा गया. उन्होंने सुन रखा था कि घोड़े के दांत देख कर उसकी पहचान करते हैं, पर घोड़े के दांत कहाँ होते हैं यह मालूम ही नहीं था. तो घोड़े की पूंछ उठा कर उसके दांत ढूँढ़ रहे थे.

ये वो गुड़ नहीं जो चींटे खाएँ. यह किसी मूर्ख आदमी का माल नहीं है जिसे जो चाहे उड़ा ले.

ये ही जमाई है तब तो खिला लिया धेवता. किसी दुबले पतले कमजोर आदमी को देख कर कटाक्ष किया जा रहा है कि यह क्या बच्चा पैदा करेगा.

ये ही मेरे आसरा, या पीहर या सासरा. स्त्री के दो ही आश्रय होते हैं, मायका और ससुराल. इन के अतिरिक्त और कहीं वह सुरक्षित महसूस नहीं करती.

यौवन लुगाई का बीस या तीस और बैल चलै नौ साल – मरद और घौड़ा कदे हो ना बूढ़ा, जै मिलता रहवै माल. (हरयाणवी कहावत) स्त्री का यौवन बीस या तीस साल का ही होता है और बैल नौ साल तक ही मेहनत कर सकता है. पर मर्द और घोड़ा कभी बूढ़े नहीं होते यदि उन्हें माल खाने को मिलता रहे. 

 

 

रंक रीझे तो रो दे. गरीब बेचारा किसी बात पर बहुत खुश भी होता है तो केवल रो ही सकता है. 

रंग कौए का, नाम महताब कुंवर. रूप के विपरीत नाम (रंग एकदम काला है और नाम है चाँद).

रंग फूल का तीन दिनां, फिर बदरंग. फूल का रंग केवल तीन दिन स्थिर रहता है. मनुष्य का यौवन और जीवन भी इसी प्रकार क्षणभंगुर है.

रंग में भंग. जहाँ कोई आनंद दायक कार्य चल रहा हो वहाँ यदि अचानक कोई विघ्न बाधा उपस्थित हो जाए तो यह कहावत कही जाती है. 

रंग लाती है हिना पत्थर पे घिसने के बाद. मेहँदी पत्थर पर घिसने के बाद ही रंग लाती है. संघर्षों के बाद ही आदमी निखरता है.

रंडियों की खरची और वकीलों का खरचा पेशगी ही दिया जाता है. वेश्याएं और वकील अपनी फीस पहले ही ले लेते हैं क्योंकि बाद में लोग मुकर जाते हैं.

रंडी मांगे रूपया, ले ले मेरी मैया, फक्कड़ मांगे पैसा, आगे बढ़ो भैया. वैश्या रुपये (अधिक धन) मांगती है तो ख़ुशी से दे देते हैं और भिखारी पैसा (छोटी सी राशि) मांगता है तो उसे टरका देते हैं.

रंडुआ गया सगाई को, खुद को लाभ या भाई को. विधुर आदमी (विशेषकर अधिक आयु का विधुर) शादी कर रहा है. इसका लाभ उसे अधिक होगा या उसके छोटे भाई को? बात सामाजिक मर्यादा के विरुद्ध है लेकिन कहावत में यह सीख दी गई है कि अधिक आयु के व्यक्ति को कम आयु की कन्या की मजबूरी का फायदा उठा कर उस से विवाह नहीं करना चाहिए.  

रख पत, रखा पत. अपनी प्रतिष्ठा के अनुकूल व्यवहार करोगे तभी लोग सम्मान करेंगे.

रघुकुल रीत सदा चलि आई, प्राण जाई पर वचन न जाई. दशरथ जी ने कैकेयी को दिया वचन निभाने में अपने प्राण त्याग दिए क्योंकि वचन को निभाना उन के कुल की रीत थी (उनके पूर्वज महान राजा रघु के कारण उनके कुल को रघुकुल कहा गया है). जो लोग अपने कहे पर अडिग रहते हैं वे यह कहावत बोलते हैं.

रटंत विद्या, खोदन्त पानी. रटते रटते विद्या आती है और खोदते खोदते भूमि में से पानी निकल आता है. लगातार चेष्टा करने से ही सफलता मिलती है.

रत्तियों जोड़े तोलों खोवे, बाको लाभ कहाँ से होवे. जो व्यक्ति जोड़े तो बहुत कम और गंवाए बहुत ज्यादा , उसे लाभ कहाँ से हो जाएगा. 1 तोला = 96 रत्ती.

रत्ती भर सगाई न गाड़ी भर आशनाई (राई भर नाता न पेटहा भर प्रीत). बहुत थोड़ा प्रेम भी नहीं और बहुत सारा प्रेम भी नहीं. आपसी रिश्तों में संतुलित व्यवहार करना चाहिए. 

रत्ती रत्ती साधे तो द्वारे हाथी होय, रत्ती रत्ती खोवे तो द्वारे बैठा रोय. छोटी छोटी बचत कर के बहुत बड़ी राशि इकट्ठी की जा सकती है और छोटी छोटी रकम गंवा कर कोई रईस आदमी भी कंगाल बन सकता है. इंग्लिश में कहते हैं – Little gains make a heavy purse. 

रन जीता जाए, जन नहीं जीता जाए. आततायी राजा युद्ध जीत सकता है पर जनता का मन नहीं जीत सकता.

रमता जोगी बहता पानी. घूमता हुआ योगी बहते पानी के समान निर्मल रहता है. जैसे ठहरा पानी गंदा हो जाता है वैसे ही योगी कहीं ठहर जाए तो उसके पतित होने की सम्भावना हो जाती है.

रवि नहिं लखियत बारि मसाल. सूर्य को देखने के लिए मशाल नहीं जलानी पड़ती. महापुरुषों की महानता किसी परिचय या प्रशंसा की मोहताज नहीं होती.

रवि हू की इक दिवस में तीन अवस्था होए. कोई कितना भी बड़ा आदमी क्यों न हो, उतार चढ़ाव सभी के जीवन में होते हैं. सब को प्रकाश देने वाले सर्वशक्तिमान सूर्य को भी एक ही दिन में तीन अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है.

रस में विष, सुरजन में दुरजन. अच्छे लोगों के बीच कोई बुरा आदमी. भले लोगों के परिवार में जन्मा कोई नीच व्यक्ति.

रसोई का वामन, कसाई का कूकुर. रसोई बनाने वाले ब्राह्मण और कसाई के कुत्ते को मुफ्त माल खूब खाने को मिलता है.

रस्सी जल गयी ऐंठ न गयी. रस्सी के दो हिस्से होते हैं जिन्हें बट के रस्सी बनाई जाती है. रस्सी के बट को उसकी ऐंठ कहते हैं. यदि रस्सी को जला दिया जाए तो भी उसकी ऐंठ वैसी ही बनी रहती है. यह कहावत उन अहंकारी लोगों के लिए कही जाती है जो धन व पद न रहने पर भी अहंकार (ऐंठ) नहीं छोड़ते. 

रहट की हंडिया भरी आए और खाली जाए. रहट की गति भी इस संसार के चक्र के समान है.

रहट के बारह मास, इन्दर की दो घड़ी. रहट जितना पानी बारह महीने में नहीं निकाल पाता, इंद्र देवता उससे अधिक पानी दो घड़ी में बरसा देते हैं. रहट उस यंत्र को कहते हैं जिसकी सहायता से कुएं से सिंचाई के लिए पानी निकाला जाता था. रहट देखने के लिए परिशिष्ट देखिये. 

रहना है तो कहना नहीं, कहना है तो रहना नहीं. अगर तुम्हें शक्तिशाली और दबंग लोगों के बीच रहना है तो कुछ कहना नहीं है (किसी बात पर कोई आपत्ति नहीं करनी है), और अगर कुछ कहोगे तो तुम्हें यहाँ रहने नहीं दिया जाएगा.

रहम दिली बड़ाई की निशानी है. दूसरों पर दया करना और दूसरों की सहायता करना ये बड़प्पन की निशानी है.

रहिमन अँसुआ नैन ढरि, जिय दुख प्रगट करेइ, जाहि निकारो गेह ते, कस न भेद कहि देइ. रावण ने विभीषण को घर से निकाला तो उस ने लंका के सारे भेद श्री राम को जा कर बता दिए. इसी प्रकार आंसू भी आँख से निकाले जाते हैं तो हृदय का भेद (दुःख) सब पर प्रकट कर देते हैं.

रहिमन ओछे नरन सों बैर भला न प्रीत, काटे चाटे स्वान के दोहु भांत विपरीत. ओछी प्रकृति के व्यक्ति से प्रेम भी नहीं करना चाहिए और दुश्मनी भी नहीं. कुत्ते से दुश्मनी करोगे तो आपको काट लेगा, प्यार जताओगे तो आप का मुँह चाट लेगा.

रहिमन छोटे नरन सों बड़ो बनत नहीं काम. बहुत सारे छोटे लोग मिल कर भी कोई बड़ा काम नहीं कर सकते.

रहिमन जिह्वा बावरी, कहि गइ सरग पताल, आपु तो कहि भीतर रही, जूती खात कपाल. जीभ कुछ भी बोल कर चुपचाप मुँह के अंदर चली जाती है और सर उसके बदले में जूते खाता है.

रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि, जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तलवारि. कितने भी बड़े लोगों से आपके सम्बन्ध क्यों न हों, छोटे लोगों का अनादर और उपेक्षा नहीं करना चाहिए. जो काम सुई करती है तलवार नहीं कर सकती. 

रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय, टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय. आवेश में आ कर किसी के साथ सम्बन्ध तोड़ना नहीं चाहिए. जिस प्रकार धागा टूटने के बाद जोड़ा जाए तो उसमें गाँठ पड़ जाती है, उसी प्रकार सम्बन्ध टूटने के बाद जोड़ा जाए तो उसमें भी गाँठ पड़ जाती है.

रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय, सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय. अपने मन की व्यथा को अपने तक सीमित रखना चाहिए दूसरों से नहीं कहना चाहिए. दूसरे लोग सुन कर हंसते हैं, कोई आपका दुःख नहीं बांटता.

रहिमन नीचन संग बसि, लगत कलंक न काहि, दूध कलारी कर गहे, मद समुझै सब ताहि. नीच लोगों के संग रहने से कलंक लगने का खतरा रहता है. शराब बेचने वाली स्त्री अगर दूध का गिलास भी पकड़े हो तो सब उसे शराब ही समझते हैं. (कलारी – शराब बेचने वाली).

रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून. बिना स्वाभिमान के मनुष्य बेकार है.

रहिमन बहु भेषज करत, ब्‍याधि न छाँड़त साथ, खग मृग बसत अरोग बन, हरि अनाथ के नाथ. मनुष्य बीमार होने पर तरह तरह की दवाएं करता है लेकिन बीमारी ठीक नहीं होती, जबकि पशु पक्षी वन में निरोग रहते हैं (क्योंकि प्रभु उन सब के रक्षक हैं जिन का कोई नहीं है).

रहिमन बिपदाहू भली, जो थोरे दिन होय, हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय. विपत्ति यदि थोड़े दिन की हो तो उस से एक लाभ भी होता है. यह पता चल जाता है कि मुसीबत में कौन हमारा साथ देने वाला है.

रहिमन मोहिं न सुहाए, अमिय पियावत मान बिनु, जो विष देत बुलाय, मान सहित मरिवो भलो. अपमान सह कर अमृत पीने के मुकाबले सम्मान सहित विष पीना बेहतर है.

रहिमन या संसार में, सब सौं मिलिये धाइ, ना जानैं केहि रूप में, नारायण मिलि जाइ. इस संसार में सब से आदर पूर्वक मिलना चाहिए (सबका सम्मान करना चाहिए). क्या मालूम प्रभु कौन सा रूप धर कर हमारी परीक्षा ले लें.

रहिमन वे नर मर चुके जे कहुं मांगन जाएं, उनते पहले वे मुए जिन मुख निकसत नाहिं. किसी से मांगना बहुत निकृष्ट कार्य है लेकिन मांगने वाले को मना करना उस से भी निकृष्ट है.

रहिमन यह तन सूप है, लीजे जगत पछोर, हलुकन को उड़ि जान दे, गरुए राखि बटोर. यह शरीर सूप के समान है जिससे दुनिया को पछोर लेना (फटक लेना) चाहिए. जो हल्का अर्थात सारहीन हो, उसे उड़ जाने दो, और जो भारी अर्थात् सारमय हो, उसे रख लो.

रहे के ठेकान ना पंड़ाइन मांगस डेरा. भोजपुरी कहावत. अपने रहने का ठिकाना नहीं है और पंडितानी घर में रहने को कह रही हैं.

रहे निरोगी जो कम खाय, बिगरे काम न जो गम खाय. जो कम खाते हैं वे जल्दी बीमार नहीं पड़ते. जो संतोष करना नहीं जानते उनके काम बिगड़ जाते हैं. 

रहे बजावत दुंदुभी, दसकंधर के द्वार, कलजुग में वो ही भए, जात बंस भुमिहार. भूमिहार – मुख्यत: बिहार में बसने वाली ब्राह्मणों की एक उपजाति, दसकंधर – रावण. भूमिहारों से द्वेष रखने वाले लोगों का कथन है कि ये लोग रावण के द्वार पर दुंदुभी बजाने वालों के वंशज हैं.

रहै का कोरियाने भूँके का चमराने. ऐसा कुत्ता जो रहता और खाता कोरी के घर है और पहरेदारी चमार की करता है. कृतघ्न लोगों के लिए कही जाने वाली कहावत. कोरियाना – बुनकरों की बस्ती. चमराना – चमारों का गाँव.

राँड़ मांड ही में मगन. मांड – उबले हुए चावल को छानने के बाद बचने वाला स्टार्च युक्त पानी. गरीब और वंचित व्यक्ति थोड़े में ही खुश हो जाता है.

रांघड़ गूजर दो, कुत्ता बिल्ली दो, ये चारों न हों तो खुले किवाड़ों सो. रांघड़ – मुस्लिम राजपूतों की एक जाति, गूजर – कुछ संपन्न और कुछ खानाबदोश जाति के लोग. रांघड़ और गूजरों पर अक्सर चोरियां करने का इल्जाम लगाया जाता है. कहावत में भी यही कहा गया है कि ये दोनों न हों और कुत्ते बिल्लियाँ न हों तो आप किवाड़ खोल कर भी सो सकते हैं.

रांड और खांड का जोवन रात को. दुश्चरित्र स्त्री और मिठाई रात में अपने यौवन पर आती हैं.

रांड का रोना और पुरबा का बहना व्यर्थ नहीं जाते. यदि पुरबा हवा बहे तो वर्षा अवश्य होती है और विधवा स्त्री विलाप करे (दुखी हो कर श्राप दे) तो अमंगल अवश्य होता है).

रांड के रोने में भी बान. विधवा स्त्री विलाप करती है तो भी कुल की मर्यादा का ध्यान रखती है.

रांड रंडापा तब काटे, जब रंडुए काटन देंय. कोई युवा विधवा स्त्री मर्यादा के भीतर रह कर संयम के साथ अपने वैधव्य के दिन काट रही है लेकिन आस पड़ोस के मनचले कुंवारे लड़के उसके आस पास मंडराते रहते हैं और उसको उकसाते रहते हैं. कोई डायबिटीज़ का मरीज़ बेचारा परहेज़ करना चाहता है लेकिन और लोग उससे जिद करते रहते हैं कि यह खा लो वह खा लो.

रांड रोवे मांग खातिर, निपूती रोवे कोख खातिर. विधवा स्त्री सुहाग के लिए तरसती है और निस्संतान स्त्री संतान के लिए.

रांड रोवे, कुँवारी रोवे, साथ लगी सतखसमी रोवे. विधवा स्त्री अपने कष्टों के कारण रो रही है, साथ में कुँवारी भी मन में डर के कारण रो रही है लेकिन ये सात पतियों वाली क्यों रो रही है.

रांड सांड और नकटा भैंसा, ये बिगड़ें तो होवे कैसा. सांड को बहुत दिनों तक गाय से सम्पर्क न कराया जाय तो वह उन्मत्त और हिंसक हो जाता है. इसी प्रकार भैसे को जब भैंसा गाड़ी में जोतते हैं तो यदि उसको नाथने वाली रस्सी से उसकी नाक कट जाए तो वह बिगड़ जाता है. कहावत को हिंसक प्रवृत्ति के पुरुषों के लिए भी प्रयोग करते हैं.

रांड, भांड और सांड बिगड़े बुरे. ये तीनों यदि बिगड़ जाएं तो बहुत विकट हो जाते हैं.

रांड, सांड, सीढ़ी, सन्यासी, इनसे बचे तो देखे काशी. काशी में बहुत सी विधवा स्त्रियाँ स्थान स्थान से आ कर रहती हैं और आम तौर पर भिक्षा मांग कर गुजारा करती हैं, वहाँ की तंग गलियों में सांड भी खूब घूमते हैं, काशी के घाटों की सीढ़ियाँ खतरनाक रूप से टूटी फूटी और फिसलन भरी हैं जिनसे आसानी से कोई दुर्घटना का शिकार हो सकता है और काशी में सन्यासी भी बहुत हैं जिनमें से अधिकतर भिक्षा मांगते हैं. इन सब से बचे तो काशी घूमे.

राई घटे न तिल बढ़े, बेमाता का लेख. (बेमाता – विधाता). विधाता के लिखे को कोई थोड़ा सा भी नहीं बदल सकता.

राई सों परवत करे परवत राई माहिं. ईश्वर सर्वशक्तिमान है, वह राई को पर्वत और पर्वत को राई बना सकता है.

राख से आग नहीं छिपती. किसी ज्वलंत समस्या को ऊपर से ढंकने की कोशिश करो तो भी वह छिपती नहीं है.

राखन हार भए भुज चार, तो क्या बिगड़े दो भुज के बिगाड़े. चतुर्भुज भगवान जिस की रक्षा करने वाले हों उसका दो भुजाओं वाला मनुष्य क्या बिगाड़ सकता है.

राखो लाख कपूर में हींग न होय सुगंध. हींग को कपूर में कितना भी रख लो उसमें सुगंध नहीं आ सकती. दुष्ट व्यक्ति लाख प्रयत्न करने पर भी नहीं सुधर सकता.

राग ताल का नाम न जाने दोऊ हाथ मजीरा. कुछ भी ज्ञान न होते हुए भी दिखावा करना.

राग, रसायन, नृत्य शास्त्र, नटबाजी, वैद्यंग; अश्वारोहण, व्याकरण ज्ञान, जाने ज्योतिष अंग; धनुष वाण, रथ हांकना, चितचोरी, ब्रह्मज्ञान; जल तैरना घीरज वचन चौदह विद्या निधान. जो मनुष्य इन चौदह विद्याओं में निष्णात हो वह पुरुषोत्तम माना जाता है.

राग, रसोई, पागड़ी, कभी कभी बन पाए. गाने वाला कितना भी कुशल हो राग कभी कभी ही बहुत अच्छा निकल पाता है. इसी प्रकार रसोई कभी कभी ही अच्छी बनती है और पगड़ी कभी कभी ही बहुत अच्छी बंध पाती है.

राज का राज में, ब्याज का ब्याज में, नाज का नाज में. राजा जितना धन इकट्ठा करता है वह सब राजकाज में लग जाता है, सूदखोर जितना ब्याज से कमाता है वह फिर से ब्याज पर चढ़ा देता है और किसान जितना खेती से कमाता है वह सब फिर खेती में लग जाता है.

राज सफल तब जानिए, प्रजा सुखी जब होय. कोई भी राज तभी सफल माना जाता है जब प्रजा सुखी हो.

राज हंस बिन को करे, नीर छीर को दोय. राज हंस ही दूध और पानी को अलग कर सकता है. विवेकी व्यक्ति ही गलत सही का उचित मूल्यांकन कर सकता है.

राजपूत की तलवार से न मरे वो कायस्थ की कलम से मर जाए. कायस्थ लोग (कचहरी में पहले अधिकतर कायस्थ लोग ही होते थे) कानून के जाल में उलझा कर किसी का भी जीना दूभर कर सकते हैं.

राजा का ओढ़ना, धोबी का बिछौना. किसी व्यक्ति के लिए मूल्यवान कोई वस्तु दूसरे के लिए साधारण वस्तु हो सकती है. राजा जिस ओढ़ने को संभाल कर ओढ़ता है धोबी जब उसे धोने ले जाता है तो उसे बेकद्री से बिछा लेता है. (सासू का ओढ़ना, बहू का नकपोंछना).

राजा का दान, प्रजा का स्नान. 1. प्राचीन काल में अच्छे राजा प्रजा के हित के लिए कुँए तालाब आदि खुदवाते थे. 2. राजा का थोड़ा सा दान भी प्रजा के लिए बहुत साबित होता है.

राजा का धन तीन खाएँ: घोड़ा, रोड़ा और दंत निपोड़ा. घोड़ा – फ़ौज, रोड़ा – ईंट, पत्थर, बिल्डिंग (महल, किले आदि) और दंत निपोड़ा – दांत निपोरने वाला,चापलूस. इन्हीं तीनों पर राजा धन लुटाता है.

राजा का परचाना और सांप का खिलाना बराबर है. परचाना – परिचय. राजा से घनिष्ठता बढ़ाना खतरनाक हो सकता है (राजा नाराज हो गया तो सीधे प्राणदण्ड ही देगा).

राजा की कुतिया को कुतिया जी कहना पड़ता है. (बुन्देलखंडी कहावत) अर्थ स्पष्ट है. राजा से संबंधित हर चीज का जबरदस्ती आदर करना पड़ता है.

राजा की बेटी से मंगते का ब्याह. भाग्य से कुछ भी हो सकता है.

राजा की सभा नरक को जाए. राजा की सभा में अधिकतर लोग चाटुकार होते हैं जो अन्याय का विरोध न कर के केवल राजा की हाँ में हाँ मिलाते हैं. इसलिए ये सभी लोग नरक के भागी होते हैं.

राजा के घर मोतियों का अकाल? जिस चीज़ की बहुतायत होनी चाहिए उस की कमी हो तो.

राजा के नौकर महाराज. राजा के नौकर अपने को राजा से बढ़ कर समझते हैं.

राजा को दूसरो, अरंड को मूसरो और बकरिया को तीसरो, ये कमजोर रहते हैं. राजा अपना राज्य और सारे अधिकार बड़े बेटे को देता है इसलिए दूसरा बेटा कमजोर रहता है, अरंड की लकड़ी कमजोर होती है इसलिए उस का डंडा मजबूत नहीं होता और बकरी के दो थन होते हैं लिहाजा तीसरे बच्चे को दूध नहीं मिल पाता, इसलिए वह कमज़ोर रहता है.

राजा छुए और रानी होय. जिस पर राजा की कृपादृष्टि हो जाए उस की मौज है.

राजा नल पर बिपत परी, भूनी मछली जल में परी. जब व्यक्ति पर विपत्ति आती है तो कुछ भी अनर्थ हो सकता है. राजा नल पर विपत्ति पड़ी तो भूनी हुई मछली वापस जल में कूद गई.

राजा बांधे दल, बैद बांधे मल. राजा लोगों के दल को बाँध कर (संगठित कर के) सेना का गठन करता है और वैद्य दवाओं द्वारा मल को बाँध कर दस्तों को रोकने का काम करता है.

राजा बुलावे, ठाड़े आवे. राजा के बुलाने पर हर आदमी को दौड़ कर आना पड़ता है.

राजा माने सो रानी, और भरें सब पानी. राजा के रनिवास में अनेक रानियाँ होती हैं. जो राजा को सबसे प्रिय हो वही महारानी बनती है, और सब को उस की गुलामी करनी पड़ती है. इसी प्रकार कोसो भी महकमे में जिस पर बड़े हाकिम मेहरबान हो उसी कर्मचारी की मौज है.

राजा रूठेगा (रूसेगा) तो अपनी नगरी लेगा, किसी का भाग तो नहीं लेगा. राजा रूठेगा तो हद से हद अपने देश से निकाल देगा किसी का भाग्य तो नहीं ले लेगा.

राजा, योगी, अग्नि, जल इनकी उलटी रीति, डरते रहियो परसुराम थोड़ी राखें प्रीति. परसुराम नाम के कोई सयाने व्यक्ति हैं जो यह बता रहे हैं कि राजा, योगी, अग्नि और जल ये किसी से अधिक प्रीति नहीं रखते (कभी भी अत्यधिक नुकसान पहुँचा सकते हैं), इसलिए इन से डर कर रहना चाहिए.

राजी से सब कोउ नवे, जबरन नवे न कोय. आपसी सहमति और प्रेम से सब का विश्वास जीता जा सकता है, जबरदस्ती से नहीं. इंग्लिश में कहावत है – Respct is earned, not commanded.

राड़ में जाए न रण में जूझे, अपनी कहे न पराई बूझे. दूसरों से कोई सरोकार न रखने वाला व्यक्ति.

राड़ से बाड़ भली (रार से दीवार भली). घर में रोज रोज के झगड़े के मुकाबले दीवार खींच कर घर अलग कर लेना अधिक अच्छा है.राड़ – झगड़ा, बाड़ – दीवार.

रात की कमाई, पड़ी पाई. रात तो सोने में  ही नष्ट हो जाती है इसलिए रात में यदि कोई लाभदायक काम कर लिया तो यह समझो जैसे कोई चीज पड़ी मिल गई.

रात की नीयत हराम. रात में अनैतिक काम और अपराध अधिक होते हैं इसलिए ऐसा कहा गया है.

रात को झाड़ू देनी मनहूस है. पुराने लोग कहते हैं कि रात को झाडू नहीं देनी चाहिए, इससे लक्ष्मी घर से चली जाती है. इस प्रकार की पुरानी बातों के पीछे अक्सर कोई तर्क छिपा होता है. दिए की मद्धिम रोशनी में ईंटों के फर्श पर झाड़ू लगाने में इस बात का खतरा था कि यदि कोई बहुमूल्य वस्तु जमीन पर गिर गई होगी तो दिखाई नहीं देगी और कूड़े के साथ चली जाएगी.

रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय, हीरा जन्म अमोल सा, कौड़ी बदले जाय. कबीर दास जी कहते हैं कि रात सो कर गँवा दी और दिन खाते खाते गँवा दिया. जो ये अनमोल जीवन मिला है वो कोड़ियों में जा रहा है.

रात गई बात गई. रात में जो भी कोई अप्रिय घटना, मनमुटाव, क्लेश इत्यादि हुआ हो उसको रात बीतने के साथ भुला दो. नए दिन को नई सोच के साथ आरंभ करो.

रात थोड़ी कहानी बड़ी. समय कम है काम बहुत है.

रात भर गाई बजाई, लड़के के नूनी ही नहीं. नूनी – लिंग. लड़का पैदा होने की ख़ुशी में रात भर गा बजा लिए, सुबह देखा कि लड़का तो शिखंडी है. एक जमाने में समाज का यह नियम था कि जिन बच्चों का लिंग निर्धारण न हो पा रहा हो (कि वह लड़का है या लड़की) उसको परिवार के लोग नहीं रख सकते थे. उसको हिजड़ों को सौंपना होता था. कहावत का अर्थ है कि कोई काम ठीक से पूरा हुआ या नहीं यह जाने बिना बहुत जल्दी खुश नहीं होना चाहिए. 

रात भर मिमियाई, एको न ब्याही. शोर बहुत मचाया, काम कुछ नहीं किया. बकरी रात भर में में करती रही और एक बच्चा भी नहीं ब्याहा.

रात भरे दिन रीते, इन पेटन ने जग जीते. रात को भर पेट खाना मिल भी जाए तो दिन में फिर पेट खाली हो जाता है. पेट भरने के लिए व्यक्ति को निरंतर प्रयास करना पड़ता है.

रात में बोलै कागला, दिन में बोलै स्‍याल, तो यूँ भाखै भड्‌डरी, निशचै पड़े अकाल. भड्डरी कवि कहते हैं किरात में कौआ बोले और दिन में सियार बोले तो अकाल पड़ना निश्चित है. भाखे – बोले.

रातों रोई एक न मरा. बहुत कोसा पर किसी का कुछ नहीं बिगड़ा.

राधे राधे रटत हैं आक ढाक अरु कैर, तुलसी या ब्रजभूमि में कहा राम से बैर. ब्रजभूमि में पेड़ पौधे तक राधे राधे रटते हैं. तुलसी को इस बात का आश्चर्य है कि यहाँ राम का नाम कोई नहीं लेता. तुलसी दास चाहते थे कि सभी हिन्दू लोग भगवान राम से प्रेरणा ले कर अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करें. उन्होंने वृन्दावन में भगवान कृष्ण की मूर्ति देख कर कहा था – कहा कहूँ छवि आप की भले बने हो नाथ, तुलसी मस्तक जब नवे, धनुष वान लेउ हाथ.

रानी को कानी कौन कहे. जो सामर्थ्यवान है (विशेषकर जो आपको नुकसान पहुंचा सकता है) उसकी बुराई कोई नहीं कर सकता.

रानी को कौन कहे आगा ढक. जो शक्तिशाली है उसे नसीहत देने में खतरा है.

रानी को राना प्यारा, कानी को काना प्यारा. सभी स्त्रियों को अपना पति प्यारा होता है (वह कैसा भी हो).

रानी गईं हाट, लाईं रीझ कर चक्की का पाट. रानी बाज़ार गईं तो लोग सोच रहे थे कि कोई बड़ी नायाब चीज़ लाएंगी, पर वह चक्की का पाट ले कर आयीं. बड़ा आदमी कोई छोटा और तुच्छ काम करे तो.

रानी जी जब तक सिंगार करेंगी, तब तक राजा जी सो जाएंगे. राजा को रिझाने के लिए रानी श्रृंगार ही करती रहीं और राजा जी सो गए. किसी काम में इतनी देर लगा देना कि उस का लाभ ही न रहे.

रानी जी राग गावें तो सौ जनी सिर हिलावें. रानी कोई भी काम करें तो उसकी तारीफ़ करनी पड़ती है.

रानी दीवानी हुईं, औरों को पत्थर, अपनों को लड्डू मारें. बनावटी पागल. कोई स्त्री पागल होने का नाटक कर रही है, औरों को तो पत्थर मार रही है और अपने लोगों पर लड्डू फेंक रही है.

रानी रूठेंगी अपना सुहाग लेंगी, कोई भाग तो न लेंगी. राजा रानी किसी स्त्री से उसका धन, घरबार या पति छीन सकते हैं, उसका भाग्य नहीं छीन सकते. कुछ लोग रानी का अर्थ पार्वती देवी से बताते हैं.

राम कहो आराम मिलेगा. शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार के कष्ट राम का नाम लेने से कम महसूस होते हैं. कुछ लोग इसके आगे बोलते हैं – कृष्ण कहो कुछ और मिलेगा.

राम का खाये, रावण का गीत गाये. अर्थ स्पष्ट है. 

राम की भी जय और रावण की भी जय. जो लोग अपने स्वार्थ के लिए अच्छे बुरे सब से मिला कर चलते हैं.

राम के भगत काठ के गुरिया, दिन भर माला रात के घुसकुरिया. उन पाखंडी साधुओं के लिए जो दिन में माला जपते हैं और रात में घर में घुस कर मौज मनाते हैं.

राम के लिखल रहे वन, और कैकयी के अपयश. (भोजपुरी कहावत) भाग्य से ही सब होता है. राम के भाग्य में वनवास लिखा था और कैकेयी के भाग्य में अपयश.

राम झरोखा बैठ कर सबका मुजरा लेय, जैसी जाकी चाकरी वैसा बाको देय. ईश्वर सब कुछ देखता है कि कौन क्या कर रहा है और उसी के अनुसार सब को उसका फल देता है.

राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूटअंत काल पछताएगा, जब प्राण जाएंगे छूट. राम नाम का खजाना खुला हुआ है, इस जग में रहते हुए जितना लूट सको उतना लूट लो. प्राण छूटने के बाद पछताओगे कि समय रहते यह काम क्यों नहीं किया.

राम नाम के कारने सब धन डारो खोय, मूरख जाने खो गया दिन दिन दूना होय. ईश्वर की भक्ति में अपना सब धन लुटा दो. मूर्ख लोग समझते हैं कि उनका धन खो गया, जबकि ज्ञानी लोग जानते हैं कि धन दूना हो रहा है.

राम नाम जपना, पराया माल अपना (राम राम जपना), जो लोग धर्म-कर्म और पूजा पाठ का दिखावा तो बहुत करते हैं लेकिन लोगों के साथ धोखाधड़ी और ठगी करते हैं उनके लिए यह कहावत है.

राम नाम में आलसी भोजन में होशियार. भगवान का नाम लेने में आलस आता है पर खाने पीने में सबसे आगे हैं.

राम नाम लड्डू, गोपाल नाम घी, हर का नाम मिश्री, तू घोल घोल पी. भगवान के नाम में बहुत मिठास है इस को पीने वाला ही जान सकता है.

राम नाम ले सो धक्का पावे, चूतड़ हिलावे सो टक्का पावे. आजकल के समय में भगवान का भजन करने वाला तो धक्के खा रहा है और फूहड़ पन से नाचने वाला पैसा कमा रहा है.

राम नाम सत्य है, सत्य बोले मुक्ति है. वैसे तो बिलकुल सामान्य सा कथन है लेकिन क्योंकि अर्थी ले जाते समय इस कथन का उच्चारण बार बार किया जाता है इसलिए लोकभाषा में इस का प्रयोग मृत्यु होने के लिए ही करते हैं. अर्थ यह है कि जीवन में कुछ भी करें, अंतिम सत्य राम का नाम ही है. 

राम बढ़ावे सो बढ़े, बल कर बढ़ा न कोय, बल करके रावन बढ़ा, छिन में डाला खोय. मनुष्य ईश्वर की कृपा से ही बड़ा बनता है अपने बल से नहीं. जो अपने बल से बड़ा बनने की कोशिश करते हैं वे रावण के समान नष्ट हो जाते हैं.

राम बिन दुख कौन हरे, बरखा बिन सागर कौन भरे. भगवान की कृपा न हो तो दुख कैसे धटेगा, वर्षा न हो तो सागर को कौन भरेगा.

राम बिना दुख कौन हरे, माता बिन भोजन कौन धरे. राम के अतिरिक्त दुःख कौन हर सकता है, माँ के अतिरिक्त भोजन कौन करा सकता है.

राम बुलावा भेजिया, दिया कबीरा रोय, जो सुख साधू संग में, सो बैकुंठ न होय. जब मृत्यु का समय नजदीक आया तो कबीर दास जी रो पड़े क्यूंकि जो आनंद संतों की संगति में है वह आनंद तो स्वर्ग में भी नहीं होगा.

राम भये जेहि दाहिने, सबै दाहिने ताहि. जिस के सहायक ईश्वर हैं उसके सब सहायक हो जाते हैं.

राम भरोसे जो रहें परवत पर हरियाएं, तुलसी बिरवा बाग़ के सींचत हूँ कुम्हलाएँ. बाग़ में लगे पौधे सींचने के बाद भी मुरझा सकते हैं और प्रभु की कृपा पा कर पर्वत पर भी पेड़ लहरा सकते हैं. इस कहावत में यह सीख भी छिपी है कि बच्चों का बहुत लाड़ प्यार कर के उन्हें कोमल नहीं बनाना चाहिए, कुछ आत्म निर्भर और मजबूत भी बनाना चाहिए. 

राम मिलाइ जोड़ी इक अंधा इक कोढ़ी. दो एक से मूर्ख या बेकार लोगों की जोड़ी.

राम राम कहते रहो, जब लग घट में प्रान, कबहुं तो दीनदयाल के भनक परेगी कान. जब तक शरीर में प्राण है राम का नाम जपते रहो, कभी न कभी तो ईश्वर आपकी प्रार्थना सुनेंगे.

रामजी की चिरई, राम जी का खेत, खा ले चिरई भर भर पेट. दूसरे के खेत को चिड़ियाँ चुग रही हैं तो हमें कोई चिंता नहीं है.

रामलली के तीन सौ, रामलाल के तीन. 1. रामलली कोई नर्तकी हैं जिनको देखने तीन सौ लोग आते हैं. रामलाल रामकथा सुनाते हैं जिस में तीन लोग आते हैं. 2. नर्तकी को तीन सौ रूपये मेहनताना मिलता है और कथावाचक को तीन रूपये. जिन्होंने प्रेमचन्द की कहानी ‘रामलीला‘ पढ़ी है वे इस बात को भलीभांति समझ सकेंगे.

रार (राड़) के सर पैर नहीं होते. झगड़े के सर पैर नहीं होते. वह बिना बात के पैदा होता है और बिना बात के बढ़ता है. इंग्लिश में कहावत है – Evil begets evil.

राव न जाने भाव. राजा लोग चीजों के दाम की क्या चिंता करें.

रावन ने जब जनम लिया, थीं बीस भुजा दस सीस, मात अचम्भे हो रही, किस मुख में दूँ खीस. 1. विचित्र समस्या से पाला पड़ना. 2.बहुत सारी समस्याएँ एक साथ आ जाएं तो किससे पहले निबटें?

रास्ता न मालूम हो तो धीरे चलो. जिस काम का पर्याप्त अनुभव न हो उस में जल्दबाजी नहीं करना चाहिए.

राह के पत्थर पे बंदूक का पहरा. मूर्खतापूर्ण कार्य. जो पत्थर रास्ते में पड़ा है, उस पर पहरा देने की क्या जरूरत है.

राह बतावे सो आगे चले. जो रास्ता बताता है उसी से आगे चल कर राह दिखाने को कहा जाता है.

रियासत के बगैर सियासत नहीं होती. 1. राजनीति में पाँव जमाने के लिए धन बल एवं जन बल का होना आवश्यक है. 2. राज्य हथियाने के लिए ही राजनीति की जाती है.

रिश्ता कीजे जानकर और पानी पीजे छानकर. कहीं शादी ब्याह का रिश्ता करना हो तो पहले पूरी छानबीन कर लेनी चाहिए और पानी हमेशा छान कर पीना चाहिए. 

रिश्वत के चार भेद, नज़राना, शुक्राना, मेहनताना और जबराना. रिश्वत चारप्रकार की होती है. होली दीवाली हाकिम को भेंट दे आओ यह नज़राना, काम कराने के बाद अपने मन से कुछ भेंट दे आओ यह शुक्राना, काम कराने के बाद काम के हिसाब से पैसा दो यह मेहनताना और हाकिम या बाबू ये कहे कि तू रिश्वत नहीं देगा तो काम नहीं करूंगा तो यह जबराना. 

रिश्वत लेता पकड़ा गया, रिश्वत दे कर छूट गया. रिश्वत की महिमा न्यारी है. जो रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ पकड़ा गया हो वह भी रिश्वत ही दे कर छूटता है.

रिस मारे रसायन पैदा होता है. द्वेष और क्रोध को मारने से ही प्रेम भाव पैदा होता है.

रीछ का एक बाल भी बहुत है. 1. पुराना विश्वास है कि रीछ के बाल को तावीज़ में रख कर पहनाने से नज़र नहीं लगती. 2. बड़े लोगों की छोटी सी अनुकम्पा भी गरीब के लिए बहुत माने रखती है. 

रीझे तो निहाल करे खीजे तो पैमाल. यह बात राजा और ईश्वर दोनों के लिए कही जा सकती है कि वे अगर प्रसन्न हों तो निहाल कर दें और नाराज़ हो जाएँ तो दुर्दशा कर दें.

रीता थोथा लाड़ बंदरिया का. बंदरिया अपने बच्चे को छाती से चिपकाए रहती है लेकिन अगर वह खाने को मांगता है तो कुछ नहीं देती. दिखावटी प्यार के लिए इस कहावत को प्रयोग करते हैं.

रीती भरे भरी ढुलकावे, मेहर करे तो फेरि भरावे. ईश्वर जब कृपा करता है तो खाली कुप्पे को भर देता है, जब कुपित होता है तो भरे हुए को लुढ़का देता है, फिर प्रसन्न होता है तो फिर भर देता है.

रीस अच्छी, हौंस बुरी. रीस – स्पर्धा, हौंस – ईर्ष्या. किसी की उन्नति देख कर स्वयं उस के जैसा बनने के प्रयास करना चाहिए, उस से ईर्ष्या नहीं करना चाहिए.

रीस करता आगे बढ़े, दिलजला जल कर मरे. किसी को आगे बढ़ता देख कर जो स्वस्थ प्रतिस्पर्धा करता है वह आगे बढ़ता है, जो ईर्ष्या करता रहता है वह जल कर मरता रहता है.

रुके हुए काम तो रावण के भी रह गए थे. रावण आकाश तक जाने वाली सीढियां बनाना चाहता था और सोने में सुगंध मिलाना चाहता था लेकिन नहीं कर पाया.

रुपया परखे बार बार, आदमी परखे एक बार. चाहे रूपये को बार बार परखो (कि असली है या नहीं) पर आदमी को एक ही बार में परख लेना चाहिए कि वह विश्वसनीय है या नहीं.

रुपया है तो शेख, नहीं तो जुलाहा. धन से ही आदमी की इज्ज़त होती है.

रुपये को रूपया खींचता है. पूँजी से ही पूँजी पैदा होती है.

रूख बिना न नगरी सोहे, बिन बरगे नहिं कड़ियाँ, पूत बिना न माता सोहे, लख सोने में जड़ियाँ. बरगे – कड़ियों पर रखे जाने वाले लकड़ी के तख्ते. वृक्षों के बिना नगर शोभा नहीं देता और तख्तों के बिना छत की कड़ियाँ शोभा नहीं देतीं. इसी प्रकार स्त्री की शोभा पुत्र से ही है (सोने के गहने लादने से नहीं).

रूखा-सूखा खाना और खरा कमाना. सबसे अच्छा सिद्धांत है ईमानदारी से काम करना, चाहे रूखा सूखा ही खाने को मिले.

रूठे बाबा, दाढ़ी हाथ. बूढ़ा आदमी नाराज होता है तो अपनी दाढ़ी पकड़ता है. इस को इस तरह भी कह सकते हैं कि बूढ़े आदमी की घर में कोई पूछ नहीं है. वह रूठेगा भी तो अपनी ही दाढ़ी नोचेगा.

रूठे भगवान, तो दे खोटी संतान. भगवान नाराज होते हैं और दंड देना चाहते हैं तो खोटी संतान दे देते हैं.

रूप की काली नाम कनको बाई. किसी महिला का रंग अच्छा खासा काला है. देखने में थोड़ी कुरूप भी है. पर नाम है कनक बाई (कनक माने सोना). जहां नाम,रूप व गुण में बहुत अंतर हो.

रूप की रोवे कर्मों की खाय, राजा की बेटी लकड़हारे को जाय. केवल रूप गुण ही व्यक्ति का भविष्य तय नहीं करते, भाग्य का भी उसमें बड़ा हाथ होता है. एक रूपवती राजकुमारी का उदाहरण दिया गया है जिसको उसके दुर्भाग्य के कारण (पिछले जन्म के कर्मों के फल कारण) लकड़हारे से शादी करनी पड़ती है.

रूप की रोवे, करमों की हँसे. 1. यहाँ कर्मों का अर्थ भाग्य (पिछले जन्म के कर्मों के अनुसार) समझें तो अर्थ यह हुआ कि जिस लड़की का भाग्य अच्छा न हो वह रूपवती हो कर भी दुखी रह सकती है और भाग्यवान रूपवती न हो तब भी खुशहाल हो सकती है. 2. करमों का अर्थ कामकाजी होने से समझें तो अर्थ हुआ कि रूप की नहीं कामकाज की कद्र होती है. (औरत का काम प्यारा होता है चाम नहीं). 

रूप को क्या आभूषण. जो सही मानों में सुंदर हो उसे आभूषणों की क्या आवश्यकता.

रूप देख रीझे सो पाछे पछताए. जो लोग केवल सुन्दरता देख कर विवाह कर लेते हैं वे बाद में पछताते हैं.

रूप लाल जी गुरू बाकी सब चेला. रुपया सब का गुरु है.

रूपये की जड़ कलेजे में. रुपया हर इंसान को अत्यंत प्रिय होता है.

रे मन अधिक न बोलिए, अति बोले पत जाए. अधिक बोलने वाले का लोग सम्मान नहीं करते.

रैन गई अरु भोर भई, सुख नींद सोया के माला जपी. रात बीत गई है और सुबह हो गई है. बता तूने भगवान को याद किया कि नहीं (अब तो याद कर ले या सांसारिक सुखों में ही डूबा रहेगा).

रैन गई तो जान दे सजनी, दिन मत खोवे री. जो दुःख के दिन बीत गए तो उन को याद कर कर के अब सुख के दिनों को मत खोवो.

रो के पूछ ले हंस के उड़ाता फिरे. सहानुभूति दिखा के किसी मन का भेद ले ले और फिर सब के बीच उसकी हंसी उड़ाए.

रो रो खाई, धो धो जाई. रो रो कर खाओगे तो शरीर को नहीं लगेगा, बार बार शौच जाओगे. जो भी खाने को मिले प्रसन्न मन से खाना चाहिए.

रोग और राजा निर्बल को ही दबाते हैं. रोग भी कमज़ोर आदमी को जल्दी होता है और राजा भी निर्बल लोगों पर ही अपनी ताकत दिखाता है.

रोग का घर खांसी, लड़ाई का घर हाँसी. इस कहावत में एक सीख तो यह दी गई है कि यदि किसी को लगातार खांसी आती हो तो उसे कोई गंभीर बीमारी हो सकती है. दूसरी एक बहुत महत्वपूर्ण सीख दी गई है कि किसी की हंसी उड़ाना लड़ाई को न्योता देने के समान है. महाभारत के युद्ध की जड़ भी यही हंसी थी, जब दुर्योधन के पानी में गिरने पर द्रोपदी ने हंसकर कहा था “अंधे का पुत्र अंधा”.

रोग गए वैद्य वैरी. रोग ठीक होने के बाद वैद्य (या डॉक्टर) दुश्मन लगने लगता है (उस की फीस भारी लगती है और वह परहेज वगैरा बताता है).

रोग जिन बनायो तिन औषधी बनाई है. जिन प्रभु ने रोग बनाया है, उन्होंने उसकी दवा भी बनाई है. जब व्यक्ति रोग से पीड़ित हो कर निराश होता है तो उसे सांत्वना देने के लिए.

रोगिया भावे सो बैद बतावे. रोगी को जो अच्छा लगे चालाक वैद्य वही बताते हैं. 

रोगी को रोगी मिला कहा नीम पी. दो रोगी मिलते हैं तो बीमारी और इलाज की ही बातें करते हैं.

रोगी ठगा जाए या भोगी ठगा जाए. रोगी को बीमारी का डर दिखा कर चिकित्सक और पंडे पुरोहित या झाड़ फूँक करने वाले ठगते हैं, भोगी को व्यापारी और दलाल लोग भांति भांति के आनंदों का लालच दे कर ठगते हैं.

रोज कुआं खोदे, रोज पानी पीवे. दिहाड़ी मजदूर. जो जीविका के लिए अपने रोज के काम पर निर्भर हैं. 

रोज के टपके से पत्थर भी घिस जाते हैं. पत्थर पर जिस जगह पानी टपकता है वह हिस्सा धीरे धीरे घिस जाता है. कोई कितना भी कठोर क्यों न हो लगातार प्रयास करने से उसको भी प्रभावित किया जा सकता है. इंग्लिश में कहावत है – Constant dripping wears away the stone.

रोज़गार और दुश्मन बार बार नहीं मिलते. रोजगार (नौकरी या व्यापार करने का मौका) बार बार नहीं मिलता इसलिए जब मिले चूकना नहीं चाहिए. दुश्मन भी बार बार नहीं मिलता इसलिए जहां मिल जाए चूकना नहीं चाहिए.

रोजे मेरी किस्मत में कहाँ, पर सहरी खा सकता हूँ. रोजे से बचना चाह रहे हैं इसलिए बहाना बना रहे हैं कि रोजे मेरी किस्मत में ही नहीं हैं. लेकिन सहरी के लिए बने माल भी खाना चाह रहे हैं. कष्ट बिना उठाए सुविधाएं चाहने वालों के लिए.

रोटी आधी कीजिए सब्जी को दोगुना, पानी तिगुना कीजिए हांसी को चौगुना. (बुन्देलखंडी कहावत) अच्छे स्वास्थ्य के लिए बहुत उपयोगी सुझाव है. रोटी जितनी खाते हैं उससे आधी खाएं और सब्जी दोगुनी खाएं, पानी तीन गुना पियें और खूब हंसें.

रोटी करो, सत्तू करो, भात बरोबर नाहीं, मौसी करो फूफी करो, माई बरोबर नाहीं. रोटी और सत्तू से पेट भरा जा सकता है लेकिन ये भात के बराबर नहीं हो सकते, मौसी और बुआ प्यार से रख सकती हैं पर माँ के बराबर फिर भी नहीं हो सकतीं.

रोटी कहे मंजिल पहुंचाऊं, बाटी कहे फेर ले आऊँ, भात कहे मेरा हल्का खाना मेरे भरोसे कहीं न जाना. भात सबसे जल्दी पच जाता है, रोटी उस से देर तक पेट में रहती है और बाटी सब से देर में पचती है. 

रोटी कारन छोड़ कर कुटुम देस परिवार, लाख कोस जाकर बसें रोटी ढूंढनहार. रोटी कमाने के लिए आदमी क्या क्या नहीं करता. जीविका ढूँढने के लिए आदमी को परिवार, कुटुंब और देश को छोड़ कर दूर देश जा कर बसना पड़ता है.

रोटी कारन जाल में फंसे पखेरू आए, रोटी कारन आदमी लाखों पाप कमाए. भोजन के लालच में पक्षी जाल में आ कर फंसता है, पेट भरने के लिए आदमी क्या क्या पाप नहीं करता.

रोटी कारन लश्करी रन में सीस कटाए, रोटी कारन रैन दिन गीत गवेसर गाए. जीविका के लिए सैनिक रणभूमि में शीश कटवाता है, जीविका के ही लिए गायक दिन रात गाना गाता है. लश्करी – लश्कर में रहने वाला सिपाही.

रोटी किस्मत की, हुक्का पाव दौड़ी का. रोटी किस्मत से मिलती है जबकि समाज में इज्जत परिश्रम करने से मिलती है.

रोटी खाते भौंकते नहीं बनता. कुत्ता जब रोटी खा रहा होता है तो भौंक नहीं पाता. कोई हाकिम रिश्वत ले रहा होता है तो गुर्रा नहीं पाता.

रोटी गई मूँ में, जात गई गू में. पेट भरने के लिए आदमी जात पाँत सब भूल जाता है.

रोटी न कपड़ा, सेंत का भतार. पत्नी के लिए रोटी कपड़े का प्रबंध न करे तो पति किस बात का.

रोटी बिन भोंड़े लगें सकल कुटुम के लोग, रोटी ही को जान लो ठेठ मिलन का जोग. रोटी का जुगाड़ न हो तो परिवार के लोग भी बुरे लगने लगते हैं, रोटी ही परिवार में मेल रखने का माध्यम है.

रोटी सांटे रोटी, क्या पतली क्या मोटी. रोटी के बदले रोटी देनी हो तो मोटी पतली क्या देखना.

रोता जाए और मारता जाए. कुछ लोग ऐसे होते हैं जो खुद गलत काम करते हैं और खुद को सताया हुआ सिद्ध करते हैं. इससे मिलती जुलती कहावत है – लड़े बराबर रोवे दून.

रोती को पुचकारा तो कहा साथ ले चलो (रोती को चुपाया तो साथ चलने को तैयार). किसी मुसीबत में पड़े व्यक्ति को ढाढस बंधाओ और वह पीछे ही पड़ जाए तो यह कहावत कही जाती है. 

रोते क्यों हो, क्या करें शकल ही ऐसी है. कुछ लोग हर समय रोनी शक्ल बनाए रहते हैं, उनका मज़ाक उड़ाने के लिए. 

रोते हुए गए मरे की खबर लाए. जो लोग हमेशा अनिष्ट की आशंका से ग्रस्त रहते हैं उनका अनिष्ट हो भी जाता है.

रोने को तो थी ही, इतने में आ गए भैया. कोई लड़की ससुराल में परेशान हो कर रुआंसी हो रही थी पर सास के डर से रो नहीं पा रही थी. इतने में उसका भाई मिलने आ गया तो वह भाई के सहारे फूट फूट कर रोने लगी. कोई काम करने का बहाना मिल जाए तो. 

रोम जल रहा था, नीरो बंसी बजा रहा था. रोम में नीरो नाम का एक राजा हुआ है जिसके बारे में यह कहा जाता है कि जब रोम अत्यधिक संकट से गुजर रहा था तब वह बांसुरी बजा रहा था. संकट के समय अपना उत्तरदायित्व न निभाने वाले व्यक्ति के लिए.

रोवे गावे तूरे तान, ओकर दुनिया राखे मान. नंगे (निर्लज्ज होकर हंगामा करनेवाले) की बात सब लोग मान लेते हैं. जो अपनी परेशानियों को लेकर ज्यादा रोता गाता है उस से सब को सहानुभूति हो जाती है.

रौन गौरई की कुतिया. रौन और गौरई बुंदेलखंड में दो गाँव हैं. एक कुतिया को खबर लगी कि दोनों गांवों में दावत है. सोचा दोनों जगह माल मिलेगा. वह पहले रौन गाँव में गई, वहाँ खाना शुरू होने में देर थी तो उसने सोचा कि गौरई जा कर माल उड़ा लूँ, फिर यहाँ आ जाऊँगी. गाँव दूर था, जब तक वहाँ पहुँची वहाँ सब निबट चुका था. लौट कर फिर रौन गाँव आई तो वहाँ भी सब निबट चुका था. टांगें भी टूटीं और भूखी भी रही. कोई व्यक्ति दो स्थान पर लाभ लेने की कोशिश करे और कहीं कुछ न मिले तो यह कहावत कही जाती है. 

 

 

लंका में सब बावन गज के. जहां सभी लोग एक से बढ़कर एक खुराफाती हों वहां यह कहावत प्रयोग की जाती है.

लंगड़ी गिलहरी, आसमान में घोंसला. अपनी हैसियत से बहुत बड़ा कोई काम करने की कोशिश.

लंगड़ी घोड़ी मसूर का दाना. अपात्र व्यक्ति को अनुचित सुविधाएँ.

लंगड़ी डाकिन, घरालों को ही खाए. लोक विश्वास है कि डाकिन आदमियों को खा जाती है. डाकिन अगर लंगड़ी हो तो बाहर नहीं जा पाएगी और घर वालों को ही खाएगी. इसी प्रकार निकृष्ट प्रवृत्ति के व्यक्ति घर वालों को ही हानि पहुंचाते हैं.

लंगड़ी बाई फूस बुहारो, कि दो जने पाँव उठाओ. बहुत कमजोर या गरीब आदमी से काम कराना चाहो तो उस में भी बहुत मुश्किलें हैं.

लंगड़े लूले गए बरात, दो दो जूते दो दो लात. जो व्यक्ति काम का न हो उसकी कहीं इज्जत नहीं होती.

लंगोटी में फाग खेलें. बहुत गरीब हो कर भी उत्सव मनाना.

लंबा घूँघट, धीमी चाल, भीतर-ही-भीतर बहुत पंपाल. जो स्त्री लंबा घूँघट किए हो और धीमे चल रही हो वह आवश्यक नहीं कि लज्जावती ही हो, वह लड़ाका या चरित्रहीन भी हो सकती है.

लंबा टीका मधुरी बानी, दगाबाज की यही निशानी. अगर कोई अधिक लम्बा टीका लगाये है और ज्यादा मीठा बोल रहा है तो उस से सावधान रहिए. उसके कपटी होने की बहुत संभावना है. 

लंबा पर सही रास्ता ही ठीक. हमेशा सही रास्ते पर ही चलना चाहिए चाहे वह लंबा ही क्यों न हो. सीढ़ियाँ चाहे कितनी भी घुमावदार क्यों न हों, हम सीढियों से ही उतारते हैं, जल्दी के चक्कर में छत से कूद नहीं पड़ते.

लंबी बांह दूर तक पसरे. उदार लोग दूर वालों की भी सहायता करते हैं.

लंबे की अक्ल घुटनों में. अधिक लम्बे आदमी का मजाक उड़ाने के लिए. 

लकड़ी के बल बन्दर नाचे (लाठी के डर वानर नाचे).  दंड के डर से ही आदमी काम करता हैं. 

लकीर के फकीर. जो लोग अपनी मान्यताओं को बिलकुल बदलना नहीं चाहते (चाहे वे गलत ही क्यों न हों).

लक्ष्मी आए, दलिद्दर जाए. दीवाली पर घर की सफाई करते समय घर की महिलाएं यह कामना करती हैं.

लक्ष्मी आते भी मारे और जाते भी मारे. धन आता है तो उसको संभालने की चिंता में आदमी मरता रहता है (सरकारी महकमे भी खून पीते हैं) और चला जाए तो उसके दुख में मरता है.

लक्ष्मी उद्यमी की चेरी होती है. लक्ष्मी उद्यम करने वाले की दासी बन कर रहती है.

लक्ष्मी और सरस्वती में बैर है. जो लोग विद्या अध्ययन को जीवन का लक्ष्य बनाते हैं वे अधिक धन नहीं कमा पाते.

लक्ष्मी किसी के यहाँ पीढ़ा डाल कर नहीं बैठती. धन संपदा किसी के पास स्थायी रूप से नहीं रहती.

लक्ष्मी तेरे काज, काहे आवे लाज. धन कमाने के लिए कोई भी काम करना पड़े उस में लज्जा कैसी.

लक्ष्मी बिन आदर कौन करे. धन के बिना व्यक्ति का सम्मान नहीं होता.

लग गई जूती उड़ गई खेह, फूल पान सी हो गई देह. निर्लज्ज व्यक्ति के लिए. बेशर्म आदमी को जूते मारो तो कहता है कि मेरी धूल उड़ गई और शरीर हल्का हो गया.

लग जाय तो तीर, नहीं तो तुक्का. तुक्का – बिना फलक का तीर. जब कोई व्यक्ति अंदाज़े से कोई बात कहता है (कि ठीक बैठ जाए तो अच्छा है, नहीं तो कोई बात नहीं).

लगन लगी तब लाज कहां है. जब किसी से सच्चा प्रेम हो जाए तो लाज शर्म खत्म हो जाती है (वह प्रेम चाहे मनुष्य से हो या ईश्वर से).

लगाओ तो बुझाओ. आग लगाईं है तो बुझाओ भी. तुम्हीं ने झगड़ा शुरू किया है तुम्हीं निबटाओ.

लगे को बिगाड़ो न, बिन लगे को हिलाओ न. जिससे अपना सम्बंध है उससे बिगाड़ो नहीं और जो अनजान है उस को सर पर मत चढ़ाओ.

लगे खुशामद सब को प्यारी. खुशामद सबको अच्छी लगती है.

लगे दम, मिटे गम. नशा करने वाले यह कहते हुए पाए जाते हैं कि दम लगाने से दुख मिट जाते हैं.

लगे रगड़ा, मिटे झगड़ा. भांग पीने वालों का कथन. भांग को घोट कर तैयार करते हैं इसलिए.

लगे सो दवा और रीझे सो देव. बीमारी को ठीक करने के लिए भांति भांति की चीजें प्रयोग की जाती हैं. जिससे बीमारी ठीक हो जाए, वही दवा मानी जाएगी. इसी प्रकार बहुत देवी देवता हैं, जिस की पूजा करने से आप का काम बन जाए उसी को आप देवता मान लेंगे.  

लघुता ते प्रभुता मिले, प्रभुता ते प्रभु दूर, चिट्टी सक्कर लै चली, हाथी के सिर धूर. छोटा बनने से आदमी बड़ा बनता है. छोटी सी चीटी शक्कर ले जाती है और बड़े हाथी के सर पे धूल होती है.

लघुता से प्रभुता मिले. विनम्रता से ही आदमी बड़ा बनता है.

लछमी जाए तो लच्छन भी जाएं. धन जब तक रहता है व्यक्ति संभ्रांत माना जाता है, धन जाते ही वह घटिया लोगों की श्रेणी में मान लिया जाता है. (उस के व्यवहार में स्वाभाविक रूप से बदलाव भी आ जाता है).

लजाउर बहुरिया, सराय में डेरा. सराय इस प्रकार का स्थान होता था जहाँ यात्री लोग ठहरते थे. वहाँ पर अक्सर चोर बदमाश और वेश्यागामी लोगों का भी डेरा होता था. ऐसे स्थान में लज्जावान कुलवधू का क्या काम.

लटा हाथी बिटौरे बराबर. बिटौरा – कंडों का ढेर. हाथी कमज़ोर हो जाए तो उसकी हैसियत कंडों के ढेर के बराबर हो जाता है.

लड़का जने बीबी, पट्टी बांधें मियाँ. कष्ट पत्नी को हो रहा है और दिखावा पति कर रहा है.

लड़का रोवे बालों को, नाई रोवे मुड़ाई को. लड़का कह रहा है कि मेरे बाल ठीक से नहीं कटे और नाई कह रहा है कि मुझे पैसे कम मिले. सबको अपनी ही चिंता है.

लड़की और ककड़ी जल्दी बढती हैं. जैसे ककड़ी बहुत तेजी से बढती है वैसे ही लड़की बहुत जल्दी बड़ी हो जाती है (और माँ बाप के मन में उसकी शादी की चिंता हो जाती है).

लड़के को अंगोछा नहीं, बिलाई को कुर्ती. घर के आदमी को न पूछ कर बाहर के फालतू लोगों को लाभ पहुँचाना.

लड़के को जब भेड़िया ले गया, तब टट्टी बांधी. नुकसान उठाने के बाद बचाव का प्रबंध करना. टट्टी – सींकों का पर्दा या दीवार.

लड़के को मुंह लगाओ तो दाढ़ी नोचे, कुत्ते को मुंह लगाओ तो मुंह चाटे. छोटे बच्चे और कुत्ते को अधिक सर नहीं चढ़ाना चाहिए.

लड़कों में लड़का, बुड्ढों में बुड्ढा. जो व्यक्ति बच्चों में बच्चा बन जाए और बड़ों के बीच में बड़ा.

लड़ना दे पर बिछुड़ना न दे. दोस्तों और रिश्तेदारों से थोड़ा बहुत झगड़ा या कहासुनी हो जाये तो कोई बात नहीं है पर ईश्वर करे कभी कोई किसी से बिछड़े नहीं.

लड़ाई के मैदान से दूरसभी बहादुर. अपने अपने घरों में बैठ कर सभी लोग बहादुरी की बातें हांकते हैं. आजकल सोशल मीडिया पर विशेष तौर पर ऐसे वीर पुरुष बहुत देखने को मिलते हैं.

लड़ाई पीछे सबहिं सूरमा. लड़ाई खत्म होने के बाद सब अपनी अपनी बहादुरी की डींगें हांकने लगते हैं. आजकल के परिप्रेक्ष्य में इस प्रकार कह सकते हैं – फेसबुक पर सबहिं सूरमा.

लड़ाई में तो सिर ही फूटते हैं, लड्डू थोड़े ही फूटते हैं. लड्डू फूटना एक मुहावरा है जो सुखद अनुभव के लिए प्रयोग करते हैं और सर फूटना भी एक मुहावरा है जो भयंकर लड़ाई के प्रयोग करते हैं. 

लड़ाई में लड्डू नहीं बंटते हैं. लड़ाई कोई आनंद का विषय नहीं है. इस में दोनों पक्षों को अत्यधिक हानि होती है. 

लड़ाई लड़ाई माफ़ करो, कुत्ते का गू साफ़ करो. बच्चों की कहावत. बच्चों की आपस की लड़ाई इस कहावत से खत्म हो जाती है.

लड़ाके के चार कान. लड़ाका व्यक्ति कुछ का कुछ सुन कर जबरदस्ती लड़ने के बहाने ढूँढ़ता है.

लड़ें न भिड़ें, तरकस पहने फिरें. युद्ध में कभी नहीं गए पर तरकश बांधे ऐसे घूमते हैं जैसे बहुत बड़े योद्धा हों. दिखाने के वीर. (तरकश में तीर रखे जाते है – देखिए परिशिष्ट)

लड़ें लोह पाहन दोउ, बीच रुई जल जाए. लोहा और पत्थर टकराते हैं तो चिंगारी निकलती है जिस से रूई में आग लग जाती है. दो शक्तिशाली लोगों की लड़ाई में कमजोर लोग बेकार में मारे जाते हैं. 

लड़ो सर फोड़ के, खाओ मुहँ जोड़ के. जहां घर में कई लोग होते हैं वहां थोड़े बहुत मतभेद या खटपट होना स्वाभाविक है. लेकिन लड़ाई चाहे जितनी भी हो तीज त्यौहार साथ मनाना चाहिए, और सुख दुख में साथ निभाना चाहिए. इससे परिवार में एकता बनी रहती है.

लड्डू पर तो भगवान का भी मन  चले. एक बार लड्डू भगवान के पास अपनी फरियाद ले कर गया कि सब मुझे खाना चाहते हैं, मैं क्या करूँ, कहाँ जाऊँ. भगवान बोले – तुम हो ही इतने अच्छे. मन तो मेरा भी कर रहा है. 

लड्डू लड़ें, चूरा झड़े. जब दो व्यक्ति आपस में लड़ते हैं तो दोनों का ही नुकसान होता है.

लदनिये ही लादे जाते हैं. जो अधिक काम करते हैं उन पर ही काम लादा जाता है.

लपकी गाय गुलेंदे खाय, दौड़ दौड़ महुआ तले जाय. गुलेंदा – महुआ का फल. जिस गाय को गुलेंदे खाने की लत लग जाती है वह दौड़ दौड़ कर महुआ के पेड़ तक जाती है. जिस चीज़ का शौक लग जाए उस के लिए इंसान दौड़ भाग करता है. 

लबार, सौगंध खाए हजार. झूठ बोलने वाला हजार कसमें खाता है.

लड़का ठाकुर बूढ़ दीवान, मामला बिगड़े सांझ विहान. (भोजपुरी कहावत) जहाँ उच्छ्रंखल युवा शासक बन जाते हैं वहाँ समझदार और अनुभवी कर्मचारियों को कोई नहीं पूछता वहाँ अराजकता फ़ैल जाती है. लरिका – लड़का, विहान – सवेरा.

ललना के लच्छन पलना में दिख जात. जो बालक होनहार होता है उस के लक्षण बचपन में ही दिख जाते हैं.

लला को सिर पर बिठावो तो वह कानहिं मूतिहै. (भोजपुरी कहावत) बच्चे को सर पर बिठाओगे तो वह कान में मूतेगा. अधिक लाड़ प्यार से बच्चे बिगड़ जाते हैं इस बात को मजेदार ढंग से कहा गया है.

ललाट की फूटी अच्छी, हिय की फूटी बुरी. लड़ाई किसी भी प्रकार की अच्छी नहीं होती लेकिन यदि लड़ना ही हो तो दिलों में दरार पैदा करने के मुकाबले हाथ पैर से लड़ना और सर फोड़ना बेहतर है. 

लहंगे का नाड़ा ढीला हो तो नाचना नहीं चाहिए. जब अपनी स्थिति कमजोर हो तो ज्यादा इतराना नहीं चाहिए.

ला साले मेरी चने की दाल. यह कहावत बच्चों की एक कहानी में से निकली है. एक शेखचिल्ली ने एक सिपाही से दोस्ती कर ली. दोनों साथ साथ कहीं जा रहे थे. एक स्थान पर शेखचिल्ली को चना पड़ा हुआ मिला. उसने आधा चना खुद खा लिया और आधा सिपाही को खिला दिया. उस के बाद जब भी सिपाही किसी काम के लिए मना करता, शेखचिल्ली उसे धौंस देता – ला साले मेरी चने की दाल. कहावत का अर्थ है किसी छोटे से मूर्खतापूर्ण कार्य का बहुत एहसान जताना.

लाएगा दारा तो खाएगी दारी, न लाएगा दारा तो होगी ख्वारी. पति कमा कर लाएगा तो पत्नी खाएगी. नहीं लाएगा तो झगड़े होंगे.

लाख कमाया जो जीता लौट आया. कोई व्यक्ति धन कमाने के लिए बाहर जाए और वहाँ किसी खतरे में फंस जाए तो उसके सही सलामत लौट आने को लाखों कमाने से बेहतर मानना चाहिए.

लाख का घर ख़ाक कर दिया. यहाँ लाख का अर्थ लाख रूपये भी हो सकता है और सील लगाने वाली लाख से भी हो सकता है जो बहुत जल्दी आग पकड़ती है. (पांडवों को जला कर मारने के लिए दुर्योधन ने लाक्षागृह बनवाया था). कोई व्यक्ति अपनी मूर्खताओं से बना बनाया काम या घर बर्बाद कर दे तो.

लाख चुरा लो मोती, कफ़न में जेब नहीं होती. आदमी कितनी भी पाप की कमाई कर ले अपने साथ कुछ ले नहीं जा सकता. इंग्लिश में कहावत है – Our last garment is made without pockets.

लाख जाए पर साख न जाए. पैसा कितना भी खर्च हो जाए साख नहीं जानी चाहिए.

लाचारी पर्वत से भारी. लाचारी किसी भी इंसान के लिए सबसे बड़ा बोझ है.

लाचारी में विचार क्या. जब व्यक्ति बहुत अधिक मजबूरी में हो तो उसे अच्छे बुरे का ज्यादा विचार नहीं करना चाहिए.

लाज की आँख, जहाज से भारी. पहले के जमाने में पानी का जहाज दुनिया की सबसे भारी चीज हुआ करता था इसलिए उसका उदाहरण दिया गया है. यदि किसी ने आप पर एहसान किया है या आप के किसी निकट सम्बन्धी ने कोई बहुत गलत काम किया है तो आप की आँख शर्म से झुक जाती है. कहावत में कहा गया है कि ऐसी हालत में आँखों पर जो शर्म का बोझ होता है वह जहाज के बोझ से भी ज्यादा होता है.

लाज तो आँखों की होती है. कोई स्त्री घूँघट या पर्दा न भी करे तो भी उसकी भाव भंगिमा से यह मालूम हो जाता है कि वह लज्जाशील है या नहीं. 

लाठी कपाल पे लगी नहीं, झूठ मूठ बाप रे बाप. नुकसान न होने पर भी बहुत हाय तौबा करना. (भोजपुरी में – लाठी कपारे भेंट नाहीं अउरी बाप-बाप चिल्ला).

लाठी टूटे न भांडा फूटे. बर्तन पर इस तरह लाठी मारी जा रही है कि लाठी भी न टूटे और बर्तन भी न फूटे. दिखावटी लड़ाई, जिसमे किसी का भी नुकसान न हो. (नूरा कुश्ती).

लाठी पकड़ी जा सकती है, जीभ नहीं पकड़ी जा सकती. किसी को शारीरिक बल प्रयोग से रोका जा सकता है, कटु वचन बोलने से नहीं. 

बल बिनु लाठी काम न आवे, बैरी छीन तुझे हड़कावे. यदि आप में शक्ति और कौशल न हो तो लाठी आप के किसी काम की नहीं. दुश्मन आप से लाठी छीन कर आप को ही हड़काएगा.

लाठी मारने से पानी अलग नहीं होता. जोर जबरदस्ती से परस्पर प्रेम करने वाले लोगों को अलग नहीं किया जा सकता (चाहे सच्चे दोस्त हों, प्रेमी हों या निकट सम्बन्धी हों).

लाठी में गुन बहुत हैं, सदा राखिए संग. गाँव के लोग जिन विषम परिस्थितियों में रहते हैं उनके लिए लाठी एक बहुत उपयोगी वस्तु है. (गिरधर कवि की कुंडलियों से)

लाठी हाथ की, भाई साथ का. लाठी वह काम की है जो हर समय आपके हाथ में हो और भाई वह अच्छा है जो हर समय साथ खड़ा हो.

लाठी हाथ में तो सब साथ में. जिस के पास शक्ति है उस का सब समर्थन करते हैं.

लाड़ला लड़का जुआरी, लाड़ली लड़की छिनाल. ज्यादा लाड़ला बेटा बुरी संगत में पड़ कर जुआ खेलना सीख जाता है और ज्यादा लाड़ली बेटी गलत हाथों में पड़ कर चरित्रहीन हो जाती है.

लातों के भूत बातों से नहीं मानते. जो लात खा कर काम करने के आदी हैं वे सिर्फ कहने से काम नहीं करते. इंग्लिश में कहावत है – Rod is the logic of fools.

लाद दे लदावन दे हांकने वाला साथ दे (लाद दे लदवा दे, घर तक पहुँचा दे). बेशर्म मांगने वालों के लिए जो उँगली पकड़ के पाहुंचा पकड़ते हैं (हमें फलाना सामान दो, सामान लादने वाला दो, साथ में गाड़ी और हांकने वाला भी दो). 

लापरवाई सदा दुखदाई. किसी भी काम में लापरवाही बहुत दुखदाई होती है.

लाभे लोहा ढोइये, बिन लाभ न ढोए रुई. यदि किसी को कोई लाभ हो रहा होगा तो वह भारी वजन का लोहा भी ढोने को तैयार हो जाएगा और लाभ नहीं होगा तो हल्की सी रूई भी नहीं ढोएगा.

लाम और काम का बैर है. जल्दबाजी से काम बिगड़ जाता है. लाम – जल्दबाजी.

लारा लीरी का यार, कभी न उतरे पार. लारा लीरी – ऊहापोह. जो व्यक्ति अनिर्णय की स्थिति में रहता है, वह कभी कोई ठोस काम नहीं कर सकता.

लाल गुदड़ी में भी नहीं छिपते. जो होनहार होते हैं वे अभावों में पल कर भी अपनी पहचान बना लेते हैं.

लाल प्यारा लाल का ख्याल प्यारा. अपना बच्चा इतना प्यारा होता है कि उस के बारे में सोच कर भी सुख मिलता है.

लाल बुझक्कड़ बूझिए और न बूझा कोय, कड़ी बरंगा टार के ऊपर ही को लेय. आज कल के बच्चे लाल बुझक्कड़ का अर्थ नहीं जानते होंगे. किसी गाँव में लाल जी नाम के सज्जन थे जो नितांत मूर्ख गाँव वालों के बीच अंधों में काने राजा थे. लोग उनके पास समस्याएँ ले कर आते थे और वह अपनी बुद्धि के अनुसार उनका हल निकालते थे. (गाँव की भाषा में हल निकालने को बूझना भी कहते हैं इस लिए उन का नाम लाल बुझक्कड़ पड़ गया). एक बार गाँव में झोपड़ी के अंदर एक बच्चा बल्ली को पकड़े खड़ा था. किसी ने उसे चने दिए तो बच्चे ने बल्ली के दोनों ओर हाथ किये किये दोनों हाथों का चुल्लू बना कर उस में चने ले लिए. तभी बच्चे की माँ ने घर चलने के लिए कहा. अब बच्चा अगर बंधे हुए हाथ खोलता है तो चने गिर जाएंगे, और हाथ नहीं खोलता है तो जाएगा कैसे, लिहाजा वह चीख चीख कर रोने लगा. सारा गाँव इकट्ठा हो गया, सब एक से बढ़ कर एक मूर्ख अपनी अपनी राय देने लगे. और कोई रास्ता समझ नहीं आया तो यह तय हुआ कि लड़के के हाथ काटने पड़ेंगे. तब तक लाल बुझक्कड़ आ गए. उन्होंने ने राय दी कि छप्पर की कड़ियाँ और फूस हटा कर लडके को बल्ली के सहारे सहारे ऊपर उठाओ और बल्ली से बाहर निकाल दो. कोई अपने आप को अक्लमंद समझने वाला मूर्ख आदमी जब किसी समस्या का मूर्खतापूर्ण हल सुझाता है तो यह कहावत कही जाती है. 

लाल बुझक्कड़ बूझिए और न बूझा कोय, हो न हो अल्लाह की सुरमादानी होय. एक गाँव के लोगों ने कभी ओखली मूसल नहीं देखा था. एक बार गाँव के बाहर उन्हें ओखली मूसल रखा दिखाई दिया तो सब में चर्चा होने लगी कि यह क्या हो सकता है. कोई हल न निकलने पर लाल बुझक्कड़ बुलाए गए. उनहोंने बताया कि हो न हो यह अल्लाह मियाँ की सुरमे दानी होगी.

लाल बुझक्कड़ बूझिए, और न बूझा कोय; पाँव में चाकी बाँध के, हिरना कूदा होय. एक रात में गाँव के पास से हाथी निकल गया. उस गाँव के लोगों ने कभी हाथी नहीं देखा था. सुबह उठ के लोगों ने हाथी के पैरों के बड़े बड़े गोल निशान देखे. सब लोग कौतूहलवश इकट्ठे हो गए. तरह तरह के अनुमान लगने लगे. किसी की समझ में कुछ नहीं आया तो लाल बुझक्कड़ बुलाए गए. लाल बुझक्कड़ ने दिमाग लगा कर इस पहेली को बूझा, बोले पैर में चक्की बाँध के हिरन कूदा होगा. 

लाल, पीयर जब होय अकासतब नइखे बरसा के आस. (भोजपुरी कहावत) अगर आकाश का रंग लाल और पीला हो तो बारिश की संभावना नहीं होती.

लालच बस परलोक नसाया. लालच में पड़ कर आदमी गलत काम करता है और अपने परलोक का सत्यानाश कर लेता है.

लालच बुरी बलाए. बला माने कोई मुसीबत, दैवी आपदा. लालच सबसे बुरी बला है.

लाला का घोड़ा, खाए बहुत चले थोड़ा. लाला के घोड़े को खाने को खूब मिलता है और काम कोई ख़ास होता नहीं है इसलिए उस की आदतें खराब हो जाती हैं. बड़े आदमियों के नौकर चाकरों के लिए भी यह कहावत कही जाती है.

लिखना आवे नहीं, मिटावें दोनों हाथ. खुद काम करना आता नहीं है, दूसरों का किया काम बिगाड़ते हैं.

लिखना न आवे कलम टेढ़ी. लिखना नहीं आता है तो कलम को टेढ़ी बता रहे हैं. (नाच न आवे आंगन टेढ़ा).

लिखे न पढ़े, ऊपर चढ़े. जो लोग अनपढ़ होते हुए भी अपनी तिकड़म से अच्छा स्थान प्राप्त कर लेते हैं उन पर व्यंग्य. 

लिखे न पढ़े, नाम मुहम्मद फाजिल. फ़ाज़िल – विद्वान. गुण के विपरीत नाम.

लिखे मूसा पढ़े ईसा. बहुत गंदी लिखावट.

लीक लीक गाड़ी चले, लीकहिं चले कपूत, लीक छोड़ तीनहिं चलें, शायर सूर सपूत. पहले के जमाने में जब कच्ची सड़कें हुआ करती और घोड़ागाड़ी व बैलगाड़ियों में लकड़ी के पहिए हुआ करते थे तो सड़क पर पहियों की लकीरें खुद जाती थीं जिन्हें लीक कहते थे. ज्यादातर गाड़ियाँ लीक में ही चलती थीं. इसी प्रकार समाज के अधिकतर लोग समाज की बनी बनाई मान्यताओं का ही अनुसरण करते हैं केवल कुछ लोग ही उस से अलग हट कर चलने का प्रयास करते हैं. (शायर, शूरवीर और योग्य पुत्र).

लीद ही खाए तो हाथी की खाए जिससे पेट तो भरे. रिश्वत ही खानी है तो किसी बड़े मामले में खाओ जिससे पेट तो भरे.

लुगाई एक घर के दो करा दे. झगड़ालू स्त्रियाँ घर का बंटवारा करा देती हैं. लुगाई – स्त्री.

लुगाई की लाज घूँघट में. हमारे देश में लम्बे घूँघट का प्रचलन पहले नहीं था. घूँघट का सामान्य अर्थ था सर और माथे पर हल्का सा पल्लू डाल कर बड़ों के प्रति आदर दिखाना और बाहरी लोगों से दूरी बनाना. कामुक, लुटेरे, वहशी  आक्रान्ताओं के कारण यहाँ की महिलाओं को परदे में कैद होना पड़ा.

लुगाई के पेट में बच्चा समा जाता है बात नहीं समा सकती. स्त्रियाँ नौ महीने बच्चे को पेट में रख सकती हैं पर दो मिनट कोई बात उनके पेट में नहीं पच सकती.

लुगाई बूढ़ी हो जावे तो भी पीहर की याद आवे. स्त्री बूढ़ी हो जाए तो भी मायके को याद करती है.

लुगाई से उसकी उमर न पूछो. स्त्री से उसकी आयु पूछना बहुत असभ्यता की निशानी है.

लुच्चे की जोरू को सदा तलाक. चरित्रहीन व्यक्ति की पत्नी को सदा इस बात का डर सताता है कि उसका पति उसे छोड़ कर नई स्त्री ला सकता है.

लुटने के बाद क्या डर (डर कैसा). जिस के पास कोई कीमती सामन हो उस को लुटने का डर होता है. अगर उसका वह माल छिन जाए तो फिर किस बात का डर.

लुटने के बाद डोमनी बारह कोस भागी. नुकसान उठाने के बाद बचने का उपाय करना.

लुटा बनिया और पिटा ठाकुर ये राज नहीं खोलते. बनिया कहीं से लुट कर या ठग कर आया हो और ठाकुर पिट कर आया हो तो ये किसी को बताते नहीं हैं (क्योंकि लोग इन पर हंसते हैं).

लूट का क्या भाव, मरने का क्या चाव. लूटी हुई चीज या चोरी की हुई चीज़ का कोई भाव नहीं होता (वह जितने में भी बिक जाए). तुक मिलाने के लिए एक असम्बद्ध बात जोड़ दी गई है कि मरने का किसी को शौक नहीं होता. 

लूट का चरखा भी नफ़ा (लूट का मूसल भी भला). चरखा या मूसल वैसे तो बहुत सस्ती चीज़ है लेकिन लूट में मिल जाए तो क्या बुरा है.

लूली लीपे तो दो जनें उसकी कमर थामें. लूली – ऐसी स्त्री जिसके हाथ न हों या कमजोर हों. अपंग या कमजोर आदमी से कोई काम कराओ तो उसे सहारा देने के लिए दो लोग और चाहिए. 

लेकर दिया, कमा कर खाया वो क्या झख मारने जग में आया. उधार ले कर वापस कर दिया और खुद कमा कर खाया तो दुनिया में आने का फायदा ही क्या हुआ. चार्वाक मत से प्रेरित किसी व्यक्ति का कथन.

लेखनी, पुस्तक, नारी पराए हाथ न दो. डॉट पेन को कोई भी चलाए कोई विशेष अंतर नहीं होता लेकिन किसी के फाउंटेन पेन को दूसरा व्यक्ति चलाए तो उस की निब खराब हो जाती है इसलिए किसी को नहीं देना चाहिए. पुस्तक को भी कुछ लोग सम्भाल कर रखते हैं और कुछ लोग बड़ी बेकद्री से रखते हैं इसलिए किसी को नहीं देना चाहिए और स्त्री को किसी के सुपुर्द करने के विषय में सोचना भी नहीं चाहिए.

लेखा चोखा, प्रेम चौगुना. यदि आपसी व्यवहार में लिखत पढ्त और लेन देन ठीक रखा जाए तो प्रेम बना रहता है.

लेखा जौ जौ, बख्शी सौ सौ. कहावत का शाब्दिक अर्थ है कि जहाँ बात लिखत पढ़त की आती है वहाँ जौ का भी हिसाब रखना चाहिए, चाहे आप उस व्यक्ति को सैकड़ों रुपये बख्शीश में दे देते हों. तात्पर्य यह है कि आपस दारी में भी जब बात हिसाब किताब की आती है तो छोटी छोटी चीजों का भी पूरा हिसाब सही से रखना चाहिए. इस को इस प्रकार भी कहते हैं – हिसाब बाप बेटे का, बख्शीश लाख की.

लेखे का नाम चोखा. चोखा – बहुत अच्छा. लेखा जोखा ठीक रखना हमेशा लाभदायक रहता है.

लेनदेन में लाज कैसी. लेन देन के मामले में औपचारिकता नहीं करनी चाहिए, लिखत पढ़त पूरी करनी चाहिए.

लेना एक न देना दो. 1. जिस चीज़ से कोई सम्बन्ध न हो, न कुछ लेना हो न कुछ देना हो. 2. ऐसा व्यक्ति जिसे सांसारिकता से कोई मतलब न हो.

लेना देना कुछ नहीं लड़ने को मौजूद. जो लोग फ़ालतू की बात पर लड़ने को तैयार रहते हैं उन के लिए.

लेना न देना बजाओ जी बजाओ. मांगलिक अवसरों पर ढोल शहनाई आदि बजाने वालों को उनके काम की एवज में ईनाम दिया जाता है. जहाँ पर ईनाम कोई न दे रहा हो और काम करने को कहा जा रहा हो वहाँ यह कहावत कही जाती है. 

लेने देने के मुंह में ख़ाक, मुहब्बत बड़ी चीज़ है. लेन देन के चक्कर में आपसी प्रेम नहीं तोड़ना चाहिए. जो उधार लेकर वापस देना न चाह रहा हो वह भी इसी तरह बोलता है.

लैला की खूबसूरती देखनी हो तो मंजनू की निगाह से देखो. जिस को आप प्रेम करते हैं वह आप को बहुत सुंदर दिखाई देता है.

लोक वाणी सो देव वाणी. 1.जनता जिस भाषा को समझती है वही देवताओं की वाणी मानी जानी चाहिए.2. जनता के मत को ईश्वर की आज्ञा मानना चाहिए.

लोटा ले के हगन गए और टट्टी हो गई बंद, भजो राधे गोविन्द. कोई बड़बोला आदमी बड़े ताव में आ कर कोई काम करने जाए और असफल हो कर लौटे तो बाकी लोग उस का मज़ाक उड़ाने के लिए बोलते है. 

लोढ़ा डूबे, सिल तिरे. उल्टी बात. कायदे में सिल लोढ़े से भारी होती है इसलिए पहले डूबना चाहिए.

लोभ का पेट सदा खाली. लोभी व्यक्ति को कितना भी मिल जाए उसकी भूख कभी मिटती नहीं है.

लोभी का माल झूठा खाए (लोभी जहाँ बसते हैं वहाँ झूठे भूखों नहीं मरते). लोभी व्यक्ति को झूठ बोल कर ठगना आसान होता है. वह लालच के कारण आसानी से प्रलोभन में आ जाता है.

लोभी गुरू लालची चेला, दोनों नरक में ठेलम ठेला. अर्थ स्पष्ट है.

लोमड़ी के ब्याह में गीदड़ गीत गावें. ओछे लोगों के घटिया लोग ही मित्र होते हैं.

लोमड़ी के लाख उपाय. धूर्त आदमी कुछ न कुछ तिकड़म कर के अपना काम निकाल ही लेता है.

लोमड़ी के शिकार को जाओ तो भी शेर के लायक सामान लाओ. छोटे काम के लिए जाओ तो भी तैयारी पूरी करनी चाहिए (क्या मालूम अचानक से कोई बड़ी विपदा आ जाए).

लोमड़ी ने पादा ओर सियार ने हामी भरी. धूर्त लोग आपस में एक दूसरे के हर सही या गलत क्रियाकलाप  का बिना शर्त समर्थन करते हैं. 

लोहा जाने लुहार जाने, धौंकने वाले की बला जाने. धौंकनी से हवा फूँकने वाले को इस बात से मतलब नहीं है कि लोहे का क्या हो रहा है और लोहार सही कर रहा है या गलत, उसे तो जो काम मिला है वह कर रहा है.

लोहा जाने लुहार जाने, बढ़ई की बला जाने. कोई चीज बनाने में कहाँ से कच्चा माल आया, कितनी परेशानी से उसे बनाया गया, इस सब से हमें क्या लेना देना. हमें तो इस्तेमाल करने से मतलब है.

लोहारिक का बैल, कुम्हारिन ले के सती होए. लोहार का बैल मर गया, कुम्हार की पत्नी उसे ले कर सती हो रही है. किसी असंबंधित व्यक्ति के दुःख में बहुत अधिक दुखी होना.

लोहू लगा कर शहीदों में दाखिल. शहीद होने का नाटक करना (लड़ाई होती देख कर छिप गए और बाद में कपड़ों पर किसी घायल का खून लगा कर बताने लगे कि मैं बहुत बहादुरी से लड़ा).

लोहे की मंडी में मार ही मार. लोहे की मंडी में सब तरफ ठोक पीट और उठा पटक की आवाजें आती हैं. जिस स्थान पर बहुत शोर शराबा और गतिविधियाँ हों वहाँ के लिए.

लोहे को लोहा काटता है. लोहे को काटने के लिए लोहा ही काम आता है. जो जैसा हो उस उसी प्रकार की युक्ति से हराया जा सकता है. 

लौंडी की जात क्या, वैश्या का साथ क्या, भेड़ की लात क्या, औरत की बात क्या. लौंडी – दासी. चार अलग अलग बातें तुकबन्दी के साथ बताई गई हैं. दासी किसी भी जाति की हो उससे क्या अंतर पड़ता है, वैश्या किसी का साथ नहीं देती, भेड़ की लात से चोट नहीं लगती और स्त्री की बात का कोई महत्व नहीं है.

लौंडी बन कर कमाओ और बीबी बन कर खाओ. मेहनत कर के और छोटा बन कर कमाओ तो इज्ज़त से खाने को मिलेगा.

लौटो बराती और गुजरो गवाह, जे फिर नहीं पूछे जाते. बरात में बारातियों की बड़ी पूछ होती है. लड़के वाला और लड़की वाला दोनों ही बड़ा ध्यान रखते हैं. बरात से लौटने के बाद भी वे उसी प्रकार के व्यवहार की उम्मीद करते हैं पर फिर कोई उन्हें नहीं पूछता. ऐसे ही किसी मुकदमे में कोई गवाह होता है तो गवाही होने तक उसकी बड़ी पूछ होती है, बाद में उसे कोई नहीं पूछता. काम निकलने के बाद पूछ न होने से कोई परेशान हो तो यह कहावत कहता है.

 

 

वकीलों का हाथ पराई जेब में. वकील हर समय अपने मुवक्किलों (clients) की जेब से पैसा निकालने की फिराक में रहते हैं.

वक्त आने पर कौओं की भी पूछ होती है. कौवे को वैसे तो बहुत निकृष्ट प्राणी माना गया है लेकिन श्राद्ध पक्ष में उनकी भी कद्र हो जाती है. समय समय की बात है.

वक्त उड़ जाता है, बुलंदी रह जाती है. समय चला जाता है, व्यक्ति का नाम रह जाता है.

वक्त का रोना वेवक्त के हंसने से बेहतर है. गलत समय पर हंसना एक अत्यंत अशोभनीय और आपत्तिजनक व्यवहार है जबकि मुसीबत के समय रोना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है.

वक्त की बलिहारी. अच्छा या बुरा, सब समय से ही होता है. समय सबसे बलवान है. 

वक्त की हर शै गुलाम. समय बहुत बलवान है, हर व्यक्ति और वस्तु समय के साथ कुछ का कुछ बन और बिगड़ सकते हैं.

वक्त निकल जाता है, बात रह जाती है. समय बीत जाता है पर कही हुई बात का असर हमारे दिलों में बहुत समय तक रहता है (इसलिए सोच समझ कर ही बोलना चाहिए). 

वक्त पड़े बांका, तो गधे से कहिए काका. बांका – टेढ़ा. कठिन समय हो तो अपना मतलब निकालने के लिए किसी को भी मक्खन लगाना पड़ सकता है (गधे से काका कहना पड़ सकता है).

वक्त पर एक टांका नौ का काम देता है. सही समय पर किया हुआ छोटा सा काम आगे आने वाली बड़ी परेशानी से बचा सकता है. इंग्लिश में कहावत है – A stitch in time saves nine.

वक्त पे बोए तो उपजें मोती. समय पर फसल बोने और देखभाल करने से भरपूर फसल होती है.

वक्त बड़े से बड़े घाव को भर देता है. समय सब घावों को भर देता है. कोई बात कितना भी कष्ट दे समय के साथ सब उसे भूल जाते हैं.

वक्त बुरा आवे, तो तन का कपड़ा भी बैरी हो जावे. बुरा समय आता है तो निकट से निकटतम लोग भी नुकसान पहुँचा सकते हैं. तन का कपड़ा भी, जो हमारे शरीर के सबसे निकट होता है.

वक्र चंद्रमहिं ग्रसे न राहू. जो टेढ़ा होता है उसे कोई कुछ नहीं कहता. राहु भी गोल चन्द्रमा को ग्रसता है टेढ़े को नहीं.

वचनों का बांधा खड़ा है आसमान. जो लोग अपना वचन निभाते हैं उन्ही के बल पर आसमान टिका हुआ है.

वज़ा कहे जिसे आलम उसे वज़ा समझो. संसार जिसे ठीक माने उसे ठीक मानो. (वह पूर्णतया ठीक न भी हो तब भी).

वणज करेंगे बानियाँ और करेंगे रीस, वणज किया जो जाट ने रह गए सौ के तीस. जो जिस का काम होता है वही उसे ठीक से कर पाता है. बनिए ने व्यापार किया तो तरक्की की और जाट ने व्यापार किया तो सौ के तीस रह गए.

वर का यह हाल तो बरात का क्या होगा. किसी जमात का मुखिया ही निम्न कोटि का हो तो वह जमात कैसी होगी.

वस्त्र से ही खूँटी शोभती है. 1. खूँटी की अपनी कोई शोभा नहीं होती, वह वस्त्र से ही शोभा देती है. अच्छे वस्त्र पहनने से हमारे व्यक्तित्व में चार चांद लगते हैं. 2. जिसका जो काम है उसको वह करे तभी उसकी पूछ होती है.

वह कीमियागर कैसा, जो मांगे पैसा. कीमियागीरी – अन्य धातुओं से सोना चांदी बनाने की विद्या. जो आदमी सोना चांदी बना सकता हो वह दूसरे से पैसा क्यों मांग रहा है. आज के जमाने में भी हम अक्सर ऐसे समाचार पढ़ते हैं कि सोना दुगुना करने का लालच दे कर किसी से जेवर ठग लिए गए. यदि आप के पास कोई ऐसा व्यक्ति आए जो सोना दुगुना करने का लालच दे तो उस से यही कहना चाहिए कि यदि तुम सोना दुगुना कर सकते हो तो हम से क्यों मांग रहे हो. 

वह कौन सी किशमिश है जिस में तिनका नहीं. हर अच्छी चीज़ में कुछ न कुछ कमी अवश्य होती है.

वह तिरिया पत नांहि गंवावे, जाकी बर बर आँख लजावे. वह स्त्री अपना सम्मान और मर्यादा नहीं खोती जिस की आँखों में लज्जा होती है.

वह दिन गए जब भैंस पकौड़े हगती थी. वह दिन गए जब मुफ्त की कमाई आया करती थी. रिश्वतखोर हाकिम के रिटायर होने के बाद.

वहम की दवा हकीम लुकमान के पास भी नहीं थी. हकीम लुकमान अकबर के समय में एक बहुत प्रसिद्ध हकीम हुए हैं. कहते हैं कि उन के पास हर मर्ज़ का इलाज था. लेकिन अगर किसी को वास्तविक बीमारी न हो कर केवल वहम हो तो उसका इलाज उन के पास भी नहीं था.

वही किसानों में है पूरा, जो छोड़े हड्डी को चूरा. घाघ को यह बात मालूम थी कि हड्डी का चूरा डालने से खेती अच्छी होती है. हड्डियों में फॉस्फेट अधिक मात्र में होता है इस लिए यह बात विज्ञान सम्मत भी है.

वही तीन बीसी वही साठ, वही चारपाई वही खाट. कोई अंतर नहीं, वही बात है. आप तीन बीसी कहो या साठ कहो एक ही बात है, चारपाई कहो या खाट कहो एक ही बात है. तीन बीसी – तीन बार बीस, अर्थात साठ.

वही मुँह पान, वही मुँह पनही. अच्छे काम करने पर उसी मुँह का पान दे कर सत्कार किया जा सकता है, बुरे काम करने पर उसी को जूते मारे जा सकते हैं. पनही – जूता.

वही होता है जो मंजूरे खुदा होता है. जो कुछ होता है ईश्वर की इच्छा से ही होता है. कुछ लोग इस को पूरा इस तरह बोलते हैं – मुद्दई लाख बुरा चाहे तो क्या होता है, वही होता है जो मंजूरे खुदा होता है

वा तिरिया संग बैठ न भाई, जाको जगत कहे हरजाई. जिस स्त्री को सब लोग धोखेबाज और विश्वास न करने योग्य मानते हों उस से मेलजोल नहीं बढ़ाना चाहिए.

वा पुरखा की दिन दिन ख्वारी, जाकी तिरिया हो कलहारी. जिस पुरुष की स्त्री लड़ाका हो उस की मिटटी ख्वार हो जाती है.

वा सोने को जारिए, जासौं फाटें कान. सोने के आभूषण किसे अच्छे नहीं लगते लेकिन जिस सोने से कान कट जाएँ ऐसा सोना किस काम का (उसे जला दो). 

वार बड़ा कि त्यौहार. कोई कोई काम सप्ताह के किसी विशेष दिन निषिद्ध होते हैं (जैसे मंगलवार को बाल नहीं कटवाते), लेकिन अगर उस दिन कोई त्यौहार हो तो यह निषेध नहीं माना जाता.

वासन विलाय जात, रह जात वासना. शरीर नष्ट हो जाता है इच्छाएँ रह जाती हैं.

वाह बहू तेरी चतुराई, देखा मूसा कहे बिलाई. अर्थ स्पष्ट है, सास बहू को ताना दे रही है. मूसा – चूहा.

विद्या और समुद्र के जल का पार नहीं है. मनुष्य के जानने के लिए इतना ज्ञान उपलब्ध है जिसकी सीमा नहीं है, उसी प्रकार जैसे समुद्र के जल की कोई सीमा नहीं है.

विद्या तिरिया बेल जे, नहिं जानें कुल जात, जे जाके ढिंग में रहें ताहि सों लपटात (विद्या वनिता बेल नृप ये नहिं जात गिनन्त, जो ही इनसे प्रेम करे ताही से लिपटन्त). (बुन्देलखंडी कहावत)विद्या, स्त्री, बेल और राजा, बिना कुल और जाति देखे जिस के पास रहते हैं उसी को अपना लेते हैं (लिपट जाते हैं).

विद्या तो वो माल है, खरचत दूना होए, राजा, डाकू, चोट्टा, छीन सके न कोय. विद्या ऐसा धन है जो खर्च करने से दुगुना होता है और राजा या चोर डाकू कोई आपसे छीन नहीं सकता.

विद्या पढ़ी संजीवनी, निकले मति से हीन, ऐसे निर्बुद्धी जने, सिंह ने खा लये तीन. विद्या प्राप्त करने के साथ बुद्धि होना आवश्यक है, वरना विद्या पाना खतरनाक हो सकता है. एक बार तीन युवक संजीवनी विद्या पढ़ कर लौट रहे थे. रास्ते में जंगल में उन्होंने सिंह की हड्डियाँ पड़ी देखीं. उन्होंने सोचा क्यों न अपनी विद्या को यहाँ आजमाया जाए. एक ने अस्थियों को जोड़ कर अस्थिपंजर बनाया, दूसरे ने उस पर मांस चढाया और तीसरे ने उस में प्राण डाल दिए. सिंह जिन्दा होते ही उन तीनों को खा गया.

विद्या में विवाद बसे. जहाँ विद्या होगी वहाँ विवाद भी होगा.

विद्या ले मर जाय पर मूरख को नहिं देय, सारे गुन जब जान ले अंत बैर कर लेय. (बुन्देलखंडी कहावत) विद्या ले कर चाहे मर जाओ पर मूर्ख को मत दो, वह सारी विद्या सीखने के बाद आप को ही मात देने की कोशिश करेगा.

विद्या लोहे के चने हैं. विद्या प्राप्त करना आसान नहीं है, लोहे के चने चबाने जैसा है.

विद्या सबसे बड़ा धन है. विद्या स्वयं भी बहुत बड़ा धन है और धन कमाने का साधन भी है.

विधवा की बेटी, रास्ते की खेती. विधवा की बेटी समाज में असुरक्षित जीवन जीती है.

विधवा बेचारी क्या करे, भीतर रहे तो घुट घुट मरे, बाहर रहे तो सुन सुन मरे. पहले के जमाने में जब विधवा विवाह को बुरा समझा जाता था तो विधवा स्त्रियों का जीवन बहुत कष्टप्रद होता था. 

विधवा मरे न खंडहर ढहे. विधवा स्त्री को जल्दी मृत्यु नहीं आती (यह उस समय की बात है जब प्रसव के समय मृत्यु होना बड़ी आम बात थी और विधवा को प्रसव होना नहीं था), और भवनों के ढह जाने के बाद जो खंडहर बच जाते हैं वे जल्दी नहीं ढहते. वस्तुत: विधवा भी एक खण्डहर के समान ही होती थी.

विधवा संग रखवाले और दुल्हन जाए अकेली. उल्टा काम. विधवा स्त्री जिस को कोई डर नहीं है उस के साथ तो रखवाले जा रहे हैं, और दुल्हन अकेली जा रही है.

विधवा हो के करे सिंगार, ता से रहियो सब हुसियार. विधवा स्त्री को श्रृगार करने का कोई अधिकार नहीं था. यदि वह श्रृंगार कर रही है तो उस से सावधान रहने को कहा गया है.

विधा कंठी, दाम अंटी. विद्या वही काम की है जो आप को कंठस्थ हो और पैसा वही काम का है जो नकद आपके पास हो (ब्याज आदि पर बंटा हुआ न हो).

विधि की निराली माया, किसी ने कमाया किसी ने खाया. भाग्य की गति विचित्र है, कोई परिश्रम कर के कमाता है और कोई बैठा बैठा खाता है.

विधि की लिखी ललाट पे ना कोऊ मेटनहार (विधि को लिखो को मेटन हारो). ईश्वर ने भाग्य सबके माथे पर लिख दिया है, उसे मिटाने वाला कोई नहीं है.

विधि प्रपंच गुन अवगुन साना. ईश्वर ने मनुष्य में गुण अवगुण का मिश्रण बनाया है.

विधि रचल बुधि साढ़े तीन, तेहि में जगत आधा आपन तीन. (भोजपुरी कहावत) जो व्यक्ति अपने को बहुत बुद्धिमान समझते हैं उनका मजाक उड़ाने के लिए. उनसे कहा जा रहा है कि यदि ईश्वर ने साढ़े तीन बुद्धि बनाई है, तो आधे में से सारे जगत को बांटी है और तीन आपको दी हैं. 

विनाश काले विपरीत बुद्धि. जब व्यक्ति के विनाश का समय आता है तब उसकी बुद्धि फिर जाती है (जैसे रावण की बुद्धि फिरी और वह सीता को हर लाया).

विपत पड़ी तब भेंट मनाई, मुकर गया जब देने आई. जब विपत्ति आई तो देवता को कुछ भेंट करने की कसम खाई और जब विपत्ति टल गई तो मुकर गया. 

विपत पड़े जो कर गहे, सोई साँचो मीत. विपत्ति के समय आपका हाथ पकड़ता है वही सच्चा मित्र है. (कर गहे – हाथ पकड़े)

विपति पड़े पर जानिए, को बैरी को मीत. विपत्ति पड़ने पर ही मालूम होता है कि कौन सच्चा मित्र है, कौन बनावटी मित्र है और कौन शत्रु है. इंग्लिश में कहावत है – A friend in need is a friend indeed.

विपत्ति कभी अकेली नहीं आती. मनुष्य को अक्सर एक के बाद एक विपत्ति का सामना करना पड़ता है.

विपत्ति में क्या मोल भाव. विपत्ति से बचने के लिए जो भी चीज़ चाहिए होती है उसका दाम नहीं देखा जाता.

विपत्ति शूरवीर की कसौटी है. कोई व्यक्ति सही मानों में शूरवीर है या नहीं इसकी परख तभी होती है जब वह विपत्तियों से हो कर गुजरता है.

विफलता ही सफलता का पथ प्रशस्त करती है. विफल होने पर हमें अपनी गलतियों का एहसास होता है जिनसे सीख कर हम सफलता की ओर बढ़ते हैं.

विरह से प्रेम बढ़ता है. जो सच्चा प्रेम होता है वह दूर रहने से कम नहीं होता अपितु बढ़ता है.

विलायत में क्या गधे नहीं होते. मूर्ख लोग सब जगह पाए जाते हैं. 

विवशता का नाम कर्तव्य परायणता है. बहुत से लोग ऐसे होते हैं जो कर्तव्य परायण दिखाई देते हैं पर उनकी वास्तविकता कुछ और होती है. वे मजबूरी वश ऊपर से अच्छे बने होते हैं. (मजबूरी का नाम महात्मा गांधी).

विविधता में ही जीवन का आनंद है. व्यक्ति के पास कितना भी धन क्यों न हो, यदि जीवन में विविधता न हो तो वह ऊब जाता है. इंग्लिश में कहावत है – Man is always in search of novelty.

विश्वासघातकी महापातकी (विश्वासघाती महापापी). विश्वासघात करने वाला महापापी होता है.

विष को सोने के बरतन में रखने से अमृत नहीं हो जाता. दुष्ट व्यक्ति को कितने भी अच्छे वातावरण में रखो वह दुष्टता नहीं छोड़ता.

विष दे दो, विश्वास न तोड़ो. किसी का विश्वास तोड़ना उसे विष देने से भी बुरा है.

विष निकल्यो अति मथन सों रत्नाकर हूँ मांहि. किसी को बहुत अधिक सताने पर वह हिंसक हो सकता है. समुद्र जो कि रत्नों का भंडार है उसे भी जब बहुत अधिक मथा गया तो उसमें से विष निकल आया.

विषय में विष है. भोग विलास मनुष्य के लिए विष के समान हैं.

वीर एक बार मरता है जबकि कायर सौ बार. वीर पुरुष एक ही बार मरता है और उसे प्रसिद्धि भी मिलती है, कायर डर डर के बार बार मरता है और बदनाम भी होता है.

वीर भोग्या वसुंधरा. जो वीर होते हैं वही धरती का उपभोग करते हैं.

वृक्ष कबहुँ नहि फल भखे, नदी न संचै नीर, परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर. पेड़ कभी अपने फल स्वयं नहीं खाता और नदी अपना जल संचय नहीं करती. इसी प्रकार साधु लोग भी अपने शरीर का उपयोग केवल परोपकार के लिए करते हैं.

वृन्दावन सो वन नहीं, नंदगाम सो गाम, बंसीवट सो तट नहीं, कृष्ण नाम सों नाम. कृष्ण भक्तों के लिए ब्रजभूमि और कृष्ण से बढ़ कर कुछ भी नहीं है.

वे दिन हवा हुए जब पसीना गुलाब था. लाड़ प्यार के दिन गए.

वे ही मियाँ जाएं दरबार, वे ही मियाँ झोकें भाड़. एक ही आदमी से सब तरह के काम लिए जाएँ तो.

वैद करे वैदाई, चंगा करे खुदाई. वैद्य केवल मरीज़ का इलाज कर सकता है, ठीक करना या न करना ईश्वर के हाथ में है. बहुत से डॉक्टर अपने यहाँ लिख कर लगाते हैं – I treat, He cures.

वैदयिकी हिंसा हिंसा नहीं होती. कभी कभी रोगी को मृत्यु से बचाने के लिए वैद्य को हिंसा करनी पडती है (मरीज का हाथ या पैर काटना पड़ सकता है). इसे हिंसा नहीं माना जाता.

वैद्य का बैरी वैद्य. चिकित्सक एक दूसरे की बखिया उधेड़ते हैं, इस पर बनी कहावत.

वैद्य का यार रोगी, पंडित का यार सोगी (शोक करने वाला), वैश्या का यार भोगी. वैद्य की संगत में रहने वाले को अपने अंदर सारे रोग दिखाई देने लगते हैं, पंडित का मित्र ग्रह नक्षत्रों के चक्कर में पड़ कर तरह तरह की आशंकाओं से ग्रस्त हो जाता है और वैश्या का मित्र भोग विलास में डूब जाता है. अर्थ यह है कि मित्र भी देखभाल कर ही बनाने चाहिए.

वैद्य के घर क्या मौत नहीं आती. मृत्यु अवश्यम्भावी है, जो वैद्य सब को जीवन दान देता है उसके घरवालों और स्वयं उसे भी एक दिन मरना है.

वैर, मित्रता, और विवाह बराबरी वालों से ही करना चाहिए. कितने पते की बात कही है सयाने लोगों ने. दोस्ती भी बराबरी वालों से करो और दुश्मनी भी. अपने से बहुत बड़े आदमी से दोस्ती करोगे तो उसके जैसा स्तर बनाने की कोशिश में बर्बाद हो जाओगे. किसी बहुत बड़े आदमी से दुश्मनी करोगे तो बर्बादी होगी और बहुत छोटे से दुश्मनी करोगे तो जग हंसाई होगी.

वैराग्य का क्या मुहूर्त. एक सज्जन झूट मूट बात बात पर सन्यास लेने की धमकी देते थे. उन से पूछा गया कि संन्यास कब ले रहे हो, तो बोले शुभ मुहूर्त ढूँढ़ रहा हूँ. 

बनिया दिवाला भी निकालेगा तो कुछ रखकर ही निकालेगा. जिसका दीवाला निकलता है उस की देनदारी बहुत कम हो जाती है (उसकी बची हुई सम्पत्ति के अनुपात में). बनिया चालाक होता है, अपने को दीवालिया घोषित करने और बची हुई सम्पत्ति घोषित करने से पहले काफी कुछ धन निकाल लेता है.

वैश्या और पहलवान का बुढापा बुरा होता है. अर्थ स्पष्ट है. 

वैश्या और वैद्य खाट पर पड़े हुए से भी वसूल लेते हैं. अगर देखा जाए तो वैश्या के काम में और वैद्य के काम में कोई समानता नहीं है, लेकिन कहावत को मजेदार बनाने के लिए इन दोनों का ज़िक्र एक साथ किया गया है.

वैश्या कब सती हो. सुहागिन स्त्रियों में से कुछ अपने पति की मृत्यु के बाद उस के साथ चिता में जल जाती थीं (सती हो जाती थीं). वैश्या का कोई सुहाग नहीं होता, इसलिए वह सती नहीं होती. 

वैश्या किसकी जोरू और भड़वे किसके साले. वैश्या किसी की पत्नी नहीं हो सकती और उनके दलाल किसी के सम्बन्धी नहीं हो सकते.

वैश्या के घर का कुत्ता भी गायक. घर के माहौल का असर प्रत्येक सदस्य पर पड़ता है.

वैश्या को एकादशी क्या. सुहागिन स्त्रियाँ अपने पति और बच्चों की मंगल कामना के लिए एकादशी का व्रत रखती है, वैश्या क्यों रखेगी. 

वैश्या चली सासरे, सात घरे संताप. किसी वैश्या की शादी हो रही है तो बहुत से लोग दुखी हो रहे हैं (जो इस वैश्या के ग्राहक हैं).

वैश्या बरस घटावहिं, जोगी बरस बढाएं. वैश्या अपनी आयु कम बताती हैं और साधु सन्यासी अपनी आयु ज्यादा बताते हैं.

वैश्या रूठे धर्म बचे. कोई कुकर्मी आदमी आप से रूठ जाए तो बड़ा फायदा है. अपना धर्म और सम्मान बचता है. (तुम रूठे, हम छूटे).

वो दिन गए जब खलील खां (बड़े मियाँ)फ़ाख्ता उड़ाया करते थे. फाख्ता उड़ाने का अर्थ है निठल्ला होना. कोई आरामतलब जीवन गुजार रहा हो और अचानक उसे काम में पिलना पड़े तो यह कहावत कहि जाती है.

वो ही पूत पटेलों में और वो ही गोबर चुगवा में. जब एक ही आदमी से बिल्कुल अलग अलग तरह के काम कराए जाएं. उसी को सरकारी मुलाजिम बना रखा है और वो ही गोबर उठा रहा है. 

वोट और बेटी तो जात में ही. पुरानी मान्यता है कि बेटी का ब्याह अपनी जात बिरादरी में ही करना चाहिए. अब वोट डलवाने के लिए भी नेता यही समझाते हैं (लोकतंत्र की विडंबना).

वो ही नार सुलच्छनी जाकी कोठी धान. कोठी, कुठला बड़े बड़े बर्तन होते थे जिनमें अनाज भर कर रखते थे. जो स्त्री अपने घर में अनाज का भंडार भर कर रखती है वही सुलक्षणा मानी जाती है.

व्यापारी अरु पाहुना तिरिया और तुरंग, ज्यों ज्यों ये ठनगन करें त्यों त्यों बाढ़े रंग. (बुन्देलखंडी कहावत) बुन्देलखंडी भाषा में नखरे को ठनगन बोला जाता है. व्यापारी, अतिथि, स्त्री और घोड़ा, यदि नखरे दिखाएँ तो इनकी और अधिक पूछ होती है.

व्यापारी अरु पाहुनो, तिरिया और तुरंग, अपने हाथ संवारिये, लाख लोग हों संग. अपने पास जो व्यापारी व्यापार करने आया हो, घर में अतिथि आया हो, अपनी स्त्री और अपना घोड़ा, इनकी देखभाल स्वयं ही करना चाहिए, चाहे लाख लोग आपके संग क्यों न हों. 

 

 

शंकर सहाय तो भयंकर क्या करे. भगवान भोले नाथ सहायता करें तो भूत पिशाच कुछ नहीं बिगाड़ सकते.

शंका डायन मनसा भूत. भूत प्रेत मन की उपज होते हैं. मनसा का अर्थ इच्छा भी होता है. कहावत का अर्थ यह भी हो सकता है कि शंकाएं और इच्छाएँ, मनुष्य के शत्रु हैं. इंग्लिश में कहावत है – Little minds nurse great suspicions.

शकल भूत की सी, नाम अलबेले लाल. गुण के विपरीत नाम. 

शक्कर खोरे को शक्कर, मक्कर खोरे को मक्कर. जो जैसा हो उस के साथ वैसी ही नीति अपनानी चाहिए.

शक्ल चुड़ैलों की मिजाज परियों के. कुछ स्त्रियाँ शक्ल सूरत अच्छी न होने पर भी बहुत अदाएँ दिखाती हैं, उनके लिए कहावत.

शक्ल से मोमन, करतूत से काफिर. मोमिन माने सच्चा मुसलमान काफिर माने गैर मुस्लिम. कोई व्यक्ति देखने में धार्मिक प्रवृत्ति का हो लेकिन काम अधर्मियों वाले करे तो.

शठे शाठ्यम समाचरेत. धूर्त व्यक्ति के साथ धूर्तता से ही पेश आना चाहिए.

शतरंज नहीं शत रंज है. शतरंज बहुत बेकार खेल है (सौ दुखों के बराबर है), इसमें समय की बहुत बर्बादी होती है और व्यायाम भी बिल्कुल नहीं होता. प्रेमचन्द की कहानी शतरंज के खिलाड़ी इसका सबसे अच्छा उदाहरण है.

शत्रु का शत्रु मित्र होता है. जो हमारे शत्रु का शत्रु है वह हमारे काम का आदमी हो सकता है.

शत्रु मरन सुन हर्ष न करो, तुम क्या सदा अमर ही रहोगे. शत्रु की मृत्यु की बात सुन कर खुश मत हो, मृत्यु सब को आनी है.

शत्रु लघु गनिये नहीं. शत्रु को कभी छोटा नहीं समझना चाहिए.

शरन गुरु की आय के जो सुमिरे सियराम, यहाँ रहे आनंद से अंत बसे हरि धाम. जो गुरु की शरण में आ कर राम का नाम जपता है वह इस दुनिया में भी आनंद से रहता है और अंत में प्रभु के धाम में स्थान पाता है.

शरम की बहू नित भूखी मरे. संकोच करने वाला व्यक्ति भूखा ही रह जाता है.

शराफत की मार सबसे बुरी. किसी को बुरा भला कहना हो तो यह न कहो कि तुम बुरे आदमी हो, बल्कि यह कहो कि तुम जैसे शरीफ आदमी से यह उम्मीद नहीं थी तो वह अधिक लज्जित होगा.

शराब भीतर, बुद्धि बाहर. शराब पीते ही विवेक नष्ट हो जाता है.

शराबी के दो ठिकाने – ठेके पै जावै या थाने. (हरयाणवी कहावत) शराबी या तो ठेके पर दिखता है या थाने में (शराब पी कर मारपीट करने या गाड़ी चलाने पर).

शहर की सलाम, देहात का दाल भात. शहर के लोग कोरा नमस्कार, हलो हाय करते हैं जबकि देहात के लोग प्रेम से खाना खिलाते हैं.

शहर दिल्ली दिल वालों का, मुंबई पैसे वालों का, कोलकाता कंगालों का. अर्थ स्पष्ट है. कलकत्ते वालों से निवेदन है कि कहावत का बुरा न मानें. मालूम नहीं क्यों कोई व्यक्ति भूखा हो उसे भूखा बंगाली कहा जाता है.

शांति में लक्ष्मी बसती है. जिस घर, समाज और देश में शांति होती है वहीं अर्थ व्यवस्था का विकास होता है.

शादी एक जुआ है. शादी से पहले वर या वधू पक्ष के लोग कितनी भी तहकीकात कर लें, शादी के बाद उन में कैसा सामंजस्य होगा यह कोई नहीं बता सकता. इंग्लिश में कहावत है – Marriage is a lottery.

शान्त की बेर ज्यों दीपक की द्युति. बुझने से पहले दीपक की लौ तेज हो जाती है. मृत्यु से पहले मनुष्य को पुरानी स्मृतियाँ याद आती हैं.

शाम के मरे को कब तक रोवे. घर में किसी की मृत्यु होने पर उसकी अर्थी उठने तक रोना धोना चलता रहता है. अगर किसी की मृत्यु शाम को हुई हो और अर्थी अगले दिन उठनी हो तो कब तक कोई रो सकता है. किसी भी बात का दुःख बहुत लम्बे समय तक नहीं मनाया जा सकता.

शाम भई दिन ढल गया, चकवी दीन्ही रोय, चल चकवे वा देस में जहं शाम कभी न होय. शाम होने पर चकवा चकवी को अलग होना पड़ता है इसलिए.

शालीनता बिना मोल मिलती है पर उससे सब कुछ खरीदा जा सकता है. अर्थ स्पष्ट है. इंग्लिश में कहावत है – All doors open to courtesy.

शाह की मुहर आने आने पर, खुदा की मुहर दाने दाने पर. पुराने जमाने में शासक लोग अपना स्वामित्व दिखाने के लिए सिक्कों पर अपनी मोहर लगवाते थे. लेकिन वे यह भूल जाते थे कि ईश्वर की मोहर (स्वामित्व) तो दाने दाने पर है.

शाह खानम की आँखें दुखती हैं, शहर के दिए गुल कर दो. राजा की आँखों को रोशनी चुभती है इसलिए शहर में अँधेरा कर दो. सामंतशाही का सच.

शिकार के वक्त कुतिया हगासी. जरूरी काम के समय कोई नौकर चाकर बहाना बनाए तो. इस से मिलती एक और कहावत है – भांवर की बेर कन्या हगासी.

शिकार को गए और खुद शिकार हो गए. दूसरे का अहित करने की कोशिश में स्वयं नुकसान उठाया.

शिकारी शिकार करें, चुगदिये साथ फिरें. शातिर लोग अपना काम करते है और जिन्हें कोई काम नहीं है ऐसे बेबकूफ और फ़ालतू लोग बिना किसी फायदे के साथ में घूमते रहते हैं.

शीतला माँ घोड़ा देना, कि मैं खुद ही गधे पर सवार हूँ. चेचक की देवी शीतला माता का वाहन गधे को माना गया है. कोई उन से घोड़ा देने की याचना कर रहा है तो वह हँस कर कह रही हैं कि मैं तो खुद गधे पर सवार हूँ. किसी की हैसियत से बड़ी चीज कोई मांगे तो मजाक में यह कहावत कही जाती है. 

शीतला माता रुष्टे तो चेचक, तुष्टे तो खाज. चेचक से बचने के लिए शीतला माता को देवी की तरह पूजा तो जाता है पर उस में श्रद्धा कम भय अधिक है. कहा जाता है कि यदि शीतला माता कुपित होती हैं तो चेचक निकलती है और प्रसन्न होती हैं तो खुजली होती है. कोई हाकिम किसी भी परिथिति में किसी का भला न करता हो उसके लिए.

शीलवंत गुण न तजे, औगुण तजे न नीच. साधु प्रकृति का व्यक्ति अपने गुण नहीं छोड़ता और नीच व्यक्ति अपने अवगुण नहीं छोड़ता.

शुक मैना राखें सबै काक न राखे कोय, मान होत है गुनन से गुन बिन मान न होय. गुणों से ही सम्मान होता है, तोता मैना को सब पालते हैं कौवे को कोई नहीं पालता.

शुभस्य शीघ्रम्. शुभ काम जल्दी से जल्दी करना चाहिए.

शुरुआत अच्छी तो काम आधा हुआ समझो. जो काम सोच समझ कर और भली प्रकार आरंभ किया गया हो उसे पूरा होने में देर नहीं लगती. (Well begun is half done).

शूर न देखे शकुन न पूछे पंचांग. शूर वीर शकुन अपशकुन नहीं देखते और मुहूर्त नहीं पूछते, अपनी वीरता और साहस के बल पर काम करते हैं.

शूर वे ही सच्चे, जिनका बैरी करें बखान. सच्चा वीर वही है जिसकी वीरता का शत्रु भी गुणगान करें.

शूरवीर की मौत कायर के हाथ होवे. क्योंकि कायर सामने से नहीं लड़ता, पीठ में छुरा भोंकता है. वीर अमर सिंह राठौर की हत्या एक कायर रिश्तेदार ने ही की थी.

शूरा सो पूरा. वीर मनुष्य ही पूर्ण मनुष्य है.

शेखी सेठ की, धोती भाड़े की. सेठ की तरह शेखी बघार रहे हैं जबकि धोती किराए पर लाए हैं. झूठी शान बघारना.

शेखीखोर का मुंह काला. जो बिना किसी योग्यता के अधिक शेखी मारता है उस को अंत में नीचा देखना पड़ता है.

शेर का एक ही भला. जिनके कम बच्चे होते हैं वे ज्यादा बच्चे वालों पर व्यंग्य कर के ऐसा कहते हैं.

शेर का झूठा गीदड़ खाय. नेताओं और बड़े आदमियों के चमचों पर व्यंग्य.

शेर का भाई बघेरा, वो कूदे नौ, और वो कूदे तेरह. बघेरा – बाघ. जहाँ दो खुराफाती लोग एक से बढ़ कर एक हों. 

शेर की आँख स्यार पहचाने. शेर के मनोभाव को सियार ही पहचानता है (क्योंकि वह शेर के शिकार पर ही निर्भर रहता है). आजकल इसे इस प्रकार कह सकते हैं कि नेता का मूड चमचा पहचाने.

शेर की भला किस जानवर से यारी. जो समर्थ होते हैं वे किसी से गठबंधन नहीं करते.

शेर की मांद खाली नही रहती. सत्ता का सिंहासन कभी खाली नहीं रहता. कोई दूसरा शेर नहीं होगा तो कोई चालाक गीदड़ ही कब्ज़ा जमा लेगा.

शेर चूहों का शिकार नहीं करते (शेर भैंसे को मारेगा खरगोश को नहीं). 1. वीर पुरुष निर्बलों पर अपना बल नहीं दिखाते. 2. बड़े हाकिम छोटी मोटी रिश्वत नहीं खाते.

शेर पर चढ़ा नर, उतरे तो मरे न उतरे तो मरे. विकट परिस्थिति.

शेर पूत एकहि भलो, सौ सियार के नाहिं. सौ कायर पुत्रों के मुकाबले एक शूरवीर पुत्र अच्छा है.

शेर बकरी एक घाट पर पानी पीते हैं. राम राज्य, जहाँ किसी को किसी से डर न हो.

शेर भूखा रह जाय पर घास न खाय. जिन लोगों की पसंद ऊंची होती है वे किसी वस्तु के बिना काम चला लेते हैं पर घटिया वस्तु प्रयोग नहीं करते.

शेरशाह की दाढ़ी बड़ी या सलीम शाह की. व्यर्थ की बहस.

शेरों के मुहँ किसने धोए हैं. जंगल में रहने वाले शेर सुबह उठकर मुंह नहीं धोते न ही खाने के पहले दांत साफ करते हैं. कुछ माताएं सुबह सुबह उठकर बिना कुल्ला मंजन कराए बच्चे को दूध पिला देती हैं और टोकने पर यह कहावत कहती हैं. कभी हमारे घर में कोई मेहमान सुबह सुबह आ जाते हैं. हम उनसे कुछ खाने का आग्रह करते हैं तो वह कहते हैं कि उन्होंने कुल्ला मंजन नहीं किया है. तो भी हम यह कहावत कहते हैं.

शैतान का नाम लिया शैतान हाज़िर. किसी का ज़िक्र हो रहा हो और वह अचानक आ जाए तो मजाक में यह कहावत कही जाती है. इंग्लिश में कहावत है – Think of the devil and there he is.

शैतान जान न मारे, हैरान तो जरुर करे. दुष्ट व्यक्ति किसी को जान से न भी मारे तब भी परेशान तो करता ही है.

शैतान भी लडकों से पनाह मांगता है. बच्चों की शैतानियों से त्रस्त बुजुर्गों का कथन.

शौक़ीन बुढ़िया, चटाई का लहंगा. बेढंगा शौक, फूहड़पन.

शौकीनों की क्या पहचान, कंघी शीशा सुरमादान. आजकल सुरमेदानी की जगह लिपस्टिक ने ले ली है.

श्मशान में गई लकडियाँ वापस नहीं आतीं. जिन लकड़ियों पर यह ठप्पा लग जाता है कि वे श्मशान में काम आनी हैं, उन्हें किसी और काम में नहीं लाया जाता. 

श्याम गौर सुंदर दोउ जोरी, निरखत छवि जननी तृन तोरी. शाब्दिक अर्थ तो यह है कि सांवले और गोरे दो सुंदर पुत्रों (राम लक्ष्मण या कृष्ण बलराम) की सुंदर छवि देख कर माता तिनका तोड़ रही हैं (जिससे उन्हें नजर न लगे). महिलाएं नज़र उतारते समय ऐसे बोलती हैं.

श्रादध का अफरा नवरात्रि में उतरता है. श्राद्ध पक्ष में ब्राह्मण लोग बहुत ठूंस कर खा लेते हैं इस पर व्यंग्य. नवरात्रि के व्रतों में उन की अपच दूर होती है. 

श्वास का क्या विशवास. जीवन का कोई विश्वास नहीं है.

 

 

संकट काल में मर्यादा नहीं देखी जाती. जब जान पर बनी हो तो व्यक्ति का पहला धर्म है प्राणों की रक्षा करना. इसी को आपद्धर्म कहा गया है. संस्कृत में कहावत है – आपात्काले मर्यादा नास्ति. इंग्लिश में कहावत है – Nessecity has no laws. 

संक्रांत को थापे हुए होली में काम आवें. गोबर से कंडे (उपले) बनाने को कंडे थापना कहते हैं. संक्रांति पर थापे हुए उपले होली पर काम आते हैं. कहावत के द्वारा सीख दी गई हैं कि 1.कल जिस वस्तु की आवश्यकता होगी उसे आज बना कर रखो. 2. कोई चीज़ बनते ही तुरंत काम में नहीं ली जा सकती इसलिए धैर्य रखो. 

संख बाजे, सत्तर बला भाजे. शंख बजाने से सत्तर बलाएं दूर होती हैं. शंख बजाने का एक अर्थ तो पूजा पाठ से है जिससे मन को शान्ति मिलती है और सम्बल मिलता है. दूसरा लाभ यह है कि सांस का व्यायाम होता है जिससे बीमारियाँ दूर होती हैं.

संग सोई तो लाज क्या. जब किसी के साथ सो लीं तो लज्जा कैसी. गलत काम में किसी का सहयोग किया है तो छिपाना कैसा.

संगठन में शक्ति होती है. अर्थ स्पष्ट है.

संगत अच्छी बैठ के खैये नागर पान, छोटी संगत बैठ के कटें नाक और कान. नागर पान एक अच्छी किस्म का पान होता है. अच्छी संगत बैठने वाले को सम्मान मिलेगा और बुरी संगत बैठ कर नाक कटेगी.

संगत कीजे साधु की हरे और की व्याधि, ओछी संगत नीच की आठों पहर उपाधि. साधु की संगत दूसरों का दुःख दूर करती है और नीच की संगत से हर समय संकट बना रहता है.

संगत बड़ों की कीजिए, बढ़त बढ़त बढ़ जाए, बकरी हाथी पर चढ़ी, चुन चुन कोंपल खाए. बड़ों की संगत से लाभ होता है. बकरी हाथी पर चढ़ जाए तो पेड़ की कोमल पत्तियाँ जो ऊँचाई पर लगी होती हैं उनको खा सकती है.

संगत सार अनेक फल. अलग अलग संगत से अलग अलग फल प्राप्त होता है.

संगत से सब होत है, वही तिली वहि तेल, जांत पांत सब छोड़ के पाया नाम फुलेल. संगत से व्यक्ति का चरित्र बदल जाता है. तिली के तेल को इत्र की संगत मिल जाती है तो उस का नाम तिली का तेल न रह कर इत्र हो जाता है.

संगत से सुधरें कम और बिगड़ें ज्यादा. गुणों की अपेक्षा अवगुणों की छूत जल्दी लगती है.

संगत ही गुण उपजे, संगत ही गुण जाय. अच्छी संगत से व्यक्ति गुण ग्रहण करता है और बुरी संगत में पड़ कर गुणों को गंवा देता है. (सत्संगति कथय किं न करोति पुंसाम्, कुसंगति कथय किं न करोति पुंसाम्)

संझा की झड़ी और सुबह का झगड़ा. ये जल्दी नहीं रुकते. शाम को यदि वर्षा आरम्भ हो तो जल्दी नहीं रूकती. झगड़ा यदि सुबह को शुरू हो तो जल्दी समाप्त नहीं होता. कहावतों की यह विशेषता है कि उन्हें रुचिकर बनाने के लिए दो अलग बातों को एक साथ जोड़ कर बोला जाता है.

संत हंस गुण गहहिं पय, परिहरि वारि विकार. संत हंस के समान हैं जो विकारों को छोड़ कर गुणों को ग्रहण कर लेते हैं (जिस प्रकार हंस पानी को छोड़ कर दूध को ग्रहण कर लेता है).

संतन की बानी सुने प्रेम सहित जो कोय, गंगादिक सब तीर्थ फल बिन अस्नाने होय. जो कोई प्रेम सहित संतों की वाणी सुनता है उसे बिना गंगा आदि नहाए ही सब तीर्थों का फल प्राप्त हो जाता है.

संतों को कैसा स्वाद, अनबिलोया ही आने दे.  एक महात्मा किसी के घर भिक्षा मांगने गये. घरवाली दही बिलो (मथ) रही थी.  घरवाली ने कहा, थोड़ा ठहरिये, बिलोना हो जाए तो छाछ देती हूँ. महात्मा जी बोले – हम संत-महात्माओं को कैसा स्वाद, अनबिलोया ही आने दे. वास्तविकता यह है कि छाछ की बजाय अनबिलोया दही ज्यादा स्वादिष्ट होता है. जो व्यक्ति भोला बनकर अपनी स्वार्थ-सिद्धि करना चाहता हो उस के लिए.

संतों संसार कैसा, कि अपने मन जैसा. व्यक्ति की भावना जैसी होती है उसको संसार वैसा ही दिखता है.

संतोष कड़वा पर फल मीठा (संतोष का फल मीठा). जब व्यक्ति को कोई चीज़ न मिलने पर संतोष करना पड़ता है तो उसे मन में कष्ट होता है लेकिन बाद में समझ आता है कि संतोष करने से ही वह सुखी रहा. इंग्लिश में कहावत है – Everything comes to him who waits.

संतोषी सदा सुखी. जिस हाल में हम हैं उसी में संतोष करना सीखें तो हम सदा सुखी रह सकते हैं.

संपत की जोरू, विपत का यार. पत्नी सम्पत्ति होने पर ही साथ देती है जबकि मित्र हर प्रकार की विपत्ति में.

संपति जाए, मति न जाए. बुद्धिमान लोग ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि हम पर संकट आए तो धन भले ही चला जाए हमारी बुद्धि न जाए (बुद्धि सलामत रहेगी तो धन फिर कमा लेंगे).

संवर जाय सो काम, पल्ले पड़े सो दाम. जो काम सही समय से सफलता पूर्वक सम्पन्न हो जाए वही काम कहलाएगा और व्यापार करने पर जो पैसा जेब में आ जाए वही लाभ माना जाएगा.

संसार तो असार, या में सुकृत ही सार है. संसार में केवल अच्छे कर्म ही काम आते हैं और सब सारहीन है.

संसार भेड़िया धसान है. संसार में सभी बिना सोचे समझे एक दूसरे के पीछे भाग रहे हैं.

सकल तीर्थ कर आई तुमडि़या तौ भी न गयी तिताई. जन्मजात स्वभाव बदलता नहीं है. (तूमड़ी- लौकी की जाति का एक फल जो बहुत कड़वा होता है. साधु लोग इससे पानी भरने या खाना रखने का पात्र बनाते हैं)

सकल पदारथ है जग माही कर्म हीन नर पावे नाही. संसार में सभी वस्तुएँ मौजूद हैं, भाग्य के बिना वह कुछ लोगों को मिल नहीं पातीं.

सकल भूमि गोपाल की यामें अटक कहाँ. सारी सृष्टि ईश्वर के आधीन है, इस में किसी को कोई संशय नहीं होना चाहिए. 

सकल वस्तु संग्रह करो, कबहुं आइहैं काम, समय पड़े पे ना मिले, माटी खरचे दाम. (बुन्देलखंडी कहावत) किसी वस्तु को बिल्कुल बेकार नहीं समझना चाहिए. मिट्टी भी कभी कभी खरीदनी पड़ती है.इंग्लिश में कहावत है –Keep a thing seven years, and you will find a use.

सकलदीपी तीन तरह के, पढ़ल-लिखल पंडित, कम पढ़ल जोतसी बैद और अनपढ़ ओझा गुनी. सकलदीपी ब्राह्मणों के बारे में लोक विश्वास. सकलदीपी – बिहार में एक प्रकार के ब्राह्मण.

सकुची पूँछ बसत विष, मस्तक बसे भुजंग, केहरि के नख में बसे, तिरिया आठों अंग. सकुची एक जहरीली मछली होती है.स्त्रियों से अत्यधिक पीड़ित किसी व्यक्ति का कथन. सकुची नामक मछली की पूंछ में विष होता है, सांप के सर में और शेर के नाखून में. लेकिन स्त्री के सारे शरीर में विष होता है.

सखी और सूम साल भर में बराबर हो रहते हैं. सखी – दानी, सूम – कंजूस. जो अपने धन का काफी हिस्सा दान करता है और जो कंजूस है उनकी सम्पत्ति में कोई ख़ास फर्क नहीं होता (दानी को आत्मिक सुख मिलता है इसलिए वह अधिक कार्य कर पाता है एवं ईश्वर भी उसकी मदद करता है).

सखी का खजाना कभी खाली नहीं होता. सखी – दानी. परोपकारी व्यक्ति का खजाना कभी खाली नहीं होता. ईश्वर किसी न किसी बहाने स्वयं उसे भरता रहता है.

सखी का बेड़ा पार, सूम की मट्टी ख्वार. दानी अपने सत्कर्मों के कारण भव सागर को पार कर जाता है, कंजूस किसी का भला न करने के कारण कर्म बंधन में बंधा रहता है.

सखी का बोलबाला, सूम का मुँह काला. दानी व्यक्ति की सब बड़ाई करते हैं और कंजूस को सब बुरा कहते हैं.

सखी का सर बुलंद, मूजी की गोर तंग. सखी – दानी, मूजी – कंजूस, गोर – कब्र. दानी व्यक्ति शान से सर उठा कर जीता है जबकि कंजूस को कब्र में भी ठीक से लेटने को जगह नहीं मिलती.

सखी की नाव पहाड़ चले. दानी के सब काम आसानी से हो जाते हैं.

सखी के माल पर पड़े, सूम की जान पर. 1. दानी व्यक्ति का तो दान देने में केवल धन खर्च होता है, कंजूस का धन खर्च हो तो उस की जान निकल जाती है. 2. धन की रखवाली में ही कंजूस का सारा जीवन लग जाता है.

सगरा खीरा खा के बोले कड़वा है. किसी का पूरा माल डकार कर बाद में कहना कि अच्छा नहीं था.

सगाई ठगाई है. 1.सगाई – संबंध. रिश्ता तय करते समय दोनों पक्ष एक-दूसरे से कई बातें छिपाकर रखते हैं और अपने विषय में अत्यधिक बढ़ा चढ़ा कर बताते हैं. यह ठगाई नहीं तो क्या है. 2. सगाई – प्रेम. वास्तविक प्रेम कुछ नहीं होता, यह केवल धोखा है.

सगाई दो जनां, ब्याह सौ जनां. किसी कंजूस आदमी का मजाक उड़ाने के लिए जिसने बहुत कम लोगों को न्यौता दिया हो.

सगों बिन सगाई कैसी, भलों बिन भलाई कैसी. सगे सम्बन्धियों को साथ लिए बिना विवाहादि कोई भी कार्य नहीं हो सकते और समाज के भले लोगों को साथ लिए बिना परोपकार का कोई कार्य नहीं हो सकता.

सच और झूठ में चार अंगुल का फर्क (अंतर अंगुली चार का सांच झूठ में होई). आँख और कान में केवल चार अंगुल की दूरी होती है. आँखों देखा सच और कानों सुना झूठ.

सच कहइया मारा जाए, झूठा भडुआ लड्डू खाए (सच कहे तो मारा जाए). सच बोलना खतरा मोल लेना है. सच कहने वाला विपत्ति में पड़ जाता है और झूठ बोलने वाला ऐश करता है.

सच कहना आधी लड़ाई मोल लेना है. किसी के मुँह पर सच बोल देने से लड़ाई होने की काफी सम्भावना होती है.

सच बोल पूरा तोल, मन चाहे जहाँ डोल. जो व्यापारी ग्राहकों से सच बोलता है और पूरा तोलता है उसे किसी का डर नहीं होता.

सच्चा जाय रोता आए, झूठा जाय हंसता आए. अदालतों में मिलने वाले झूठे न्याय के बारे में कहावत.

सच्ची बात और गधे की लात झेलने वाले बहुत कम मिलते हैं. अर्थ स्पष्ट है.

सच्ची बात सह्दुल्ला कहें, सबके दिल से उतरे रहें. जो सच्ची और खरी बात कहता है वह सब के दिल से उतरा हुआ रहता है (उसे लोग पसंद नहीं करते).

सच्चे का बोलबाला, झूठे का मुँह काला. सच्चे व्यक्ति का सब आदर करते हैं और झूठे से सब नफरत करते हैं.

सच्चे प्रभु को छोड़ के पूजें कब्रें भूत, जो बेचारे मर गए उनसे मांगें पूत. मजारों पर जा कर मन्नत मांगने वाले और भूत प्रेत को मानने वाले लोगों के लिए नसीहत.

सजन तुम झूठ मत बोलो, खुदा को सांच प्यारा है, कहावत है बड़ों की यूं, कभी न सांच हारा है. अर्थ स्पष्ट है. 

सटटे की कमाई और तेल की मिठाई. दोनों ही खराब हैं, अत: इनसे बचना चाहिए.

सठ सनेह, जीरण वसन, जतन करंता जाय, सजन सनेह, रेसम लछा, घुलत घुलत घुल जाए. धूर्त व्यक्ति का प्रेम और जीर्ण वस्त्र, यत्न करने पर भी नष्ट हो जाते हैं. सज्जन व्यक्ति का प्रेम और रेशम का लच्छा समय के साथ घुल मिल जाते हैं. सठ – शठ, दुष्ट, जीरण – जीर्ण, वसन – वस्त्र.

सठ सुधरहिं सत्संगति पाई. दुष्ट व्यक्ति भी अच्छी संगत में रह कर सुधर जाता है.

सठ सेवक, नृप कृपन, कुनारी, कपटी मित्र, शत्रु सम चारी. धूर्त नौकर, कंजूस राजा, चरित्रहीन स्त्री और कपटी मित्र ये चारों शत्रु के समान हैं.

सड़ पक जाए, दूसरा न खाए, दूसरा खाएगा तो अकारथ जाएगा. अत्यंत स्वार्थी लोगों के लिए. चीज़ चाहे सड़ जाए और फेंकनी पड़े, पर कोई दूसरा न खा ले. 

सत डिगा जहान डिगा. सत – सत्य, अहिंसा, प्रेम, शील इत्यादि सद्गुण. इन्हीं सद्गुणों पर संसार टिका हुआ है. 

सत नहिं छोड़े सूरमा, सत छोड़े पत जाए. सत – सत्य, श्रेष्ठता, धर्म. वीर पुरुष धन का मोह छोड़ देते हैं पर सत को नहीं छोड़ते क्योंकि सत को छोड़ने से उनका मान चला जाता है.

सत मत छोड़े हे पिया सत छोड़े पत जाए, सत की मारी लच्छमी फेर मिलेगी आए. वीर पुरुष धन छोड़ देते हैं पर सत को नहीं छोड़ते क्योंकि सत को छोड़ने से उनका मान चला जाता है. यदि आप सत पर अडिग रहोगे तो लक्ष्मी फिर आपके पास आ जाएगी.

सतवंती के लाज बड़ छिनाली के बात बड़. (भोजपुरी कहावत) सतवंती नारी के लिए उसकी लाज बड़ी चीज़ है और चरित्रहीन नारी के लिए उसकी बात.

सती अंग, भुजंगमणि, केहरिकेस, गजदंत, सूर कटारी, विप्र धन, हाथ लगें जब अंत. इन छः चीजों को कोई इनके जीवित रहते हाथ नहीं लगा सकता – सती का शरीर, नाग की मणि, सिंह के बाल, हाथी के दांत, शूर पुरुष की कटारी और ब्राह्मण का धन.

सती के वख्र झीर-झीर, वैश्या के रेशम का चीर. पतिव्रता स्त्री को फटे हुए कपड़े और वैश्या को बहुमूल्य वस्त्र मिलते हैं, समाज की यही विडंबना है. 

सती सराप देवे नही, छिनाल को सराप लगे नहीं. सराप – श्राप. पतिव्रता नारी किसी से नाराज होने पर भी उस को श्राप नहीं देती, और कुलटा स्त्री के श्राप का कोई असर नहीं होता.

सत्तर करता सात के और सोलह के सौ, ब्याज बुरा रे बालके इससे राखे भौ (भय). ब्याज पर पैसा लेने से डरो, इसमें सात के सत्तर और सोलह के सौ वापस करने पड़ते हैं.

सत्तू खा के शुक्रिया क्या. छोटे से उपकार का क्या शुक्रिया करना.

सत्तू मनभत्तू जब घोले तब खइबे तब जइबे, धान बिचारे भल्ले कूटे खाए चल्ले. कहावत का अर्थ है किसी को मूर्ख बना कर अपना घटिया माल उसे भिड़ा देना और उसका अच्छा माल उस से ठग लेना. इस के पीछे एक कहानी है. गाँव के कुछ लोग किसी काम से शहर जा रहे थे. रास्ते में खाने के लिए एक की पत्नी ने सत्तू साथ में बाँध दिया. दूसरे के घर में और कुछ नहीं था या उस की पत्नी फूहड़ थी तो उसने धान बाँध दिया. धान को खाना बड़ा मुश्किल काम है, पहले कूट कर छिलका अलग करना पड़ेगा, फिर पीसो और फिर खाओ. धान वाले ने सत्तू वाले को बातों में फंसा लिया कि सत्तू के साथ कितनी मुश्किल है, पहले पानी लाओ, फिर घोलो, फिर बैठ के खाओ तब कहीं जा पाओगे. धान बिचारा तो फटाफट कूटो खाओ चलो. सत्तू वाला आदमी भोला भाला था, उसने अपना सत्तू दे कर धान ले लिया. जब खाने बैठा तो मालूम हुआ कि वह मूर्ख बन गया है. तब तक दूसरा आदमी सत्तू खा कर वहाँ से निकल लिया था.

सत्य नारायण की कथा में गधे का क्या काम. (बुन्देलखंडी कहावत) जहाँ धर्म कर्म का काम हो रहा हो वहाँ मूर्खों का कोई काम नहीं है.

सत्यमेव जयते. झूठ कितना भी प्रबल क्यों न हो अंतत: सत्य की ही विजय होती है. संस्कृत में पूरा कथन है – सत्यमेव जयते नानृतं (सत्य की ही जय होती है झूठ की नहीं). 

सत्रह को पेशगी ओर तेरह को बधाई. उल्टा काम. विवाहादि समारोहों में बधाई गाने के लिए जो लोग बुलाए जाते हैं उन्हें पहले ही पेशगी (अग्रिम धनराशि) दी जाती है.   

सत्रह पटेलों से बिगड़े गाँव. ज्यादा जमींदार हों तो गाँव का विकास न हो कर विनाश हो जाता है.

सदा की पदनी, उरदों दोष. सदा पादने वाली स्त्री उरद की दाल को दोष दे रही है कि उस से वायु हो गई. अपनी कमी छिपा कर दूसरों को दोष देना. (असभ्य भाषा है).

सदा के उजड़े, नाम बस्ती खां. गुण के विपरीत नाम.

सदा के दुखिया, नाम चंगे खां. गुण के विपरीत नाम.

सदा दिवाली संत घर, जो घी मैदा होए (सदा दीवाली साधु की, जो घर गेहूँ होए). संत के घर खाद्य सामग्री उपलब्ध हो तो सदा उत्सव का सा माहौल रहता है क्योंकि वहाँ दीन दुखियों की भीड़ लगी रहती है.

सदा न काहू की रही, प्रीतम के गल बांह, ढलते ढलते ढल गई, तरुवर की सी छाँव. यौवन सदैव नहीं रहता है.

सदा न जग में जीवना, सदा न काले केश. इस संसार में न तो कोई अमर है न अजर (जिसे बुढ़ापा न आए).

सदा न फूले केतकी, सदा न सावन होए, सदा न जोवन थिर रहे, सदा न जीवे कोय. संसार में कोई वास्तु सदैव नहीं रहती. केतकी पर हमेशा फूल नहीं आते, सावन बारह महीने नहीं रहता, यौवन सदैव स्थिर नहीं रहता और कोई व्यक्ति इस धरा पर सदैव नहीं रहता. व्यवहार में इस में से आधा भी बोला जाता है.

सदा न संग सहेलियाँ सदा न राजा देस, सदा न जग में जीवनां सदा न कारे केस. संसार में कोई भी चीज सदैव नहीं रहती. किसी कन्या की सखियाँ सदा साथ नहीं रहतीं, कोई राजा अनंतकाल राज्य नहीं करता, कोई व्यक्ति अमर नहीं है और बाल सदा काले नहीं रहते.

सदा भवानी दाहिने, सम्मुख रहें गनेश, पांच देव रक्षा करें, ब्रह्मा विष्णु महेश. किसी काम को आरम्भ करने से पहले बोली जाने वाली प्रार्थना.

सन के डंठल खेत छिटावे, तिनते लाभ चौगुनो पावे. खेत में सन के डंठल छिटकाने से खेती बहुत अच्छी होती है.

सन्त न छाड़ै सन्तई, कोटिक मिलें असंत, मलय भुजंगहिं बेधिया, शीतलता न तजन्त. संत पुरुष अपनी सज्जनता नहीं छोड़ते चाहे करोड़ों दुष्ट लोग क्यों न मिलें. चन्दन पर सांप लिपटे रहते हैं पर वह अपनी शीतलता नहीं छोड़ता.

सन्मुख गाय पियावहीं बाछा, यही सगुन है सबसे आछा. जो लोग कोई काम करने से पहले शगुन अपशकुन का विचार करते हैं वे ऐसा मानते हैं कि यदि गाय बछड़े को दूध पिलाती दिख जाए तो यह सबसे अच्छा शगुन है.

सपना, सगुन, सिद्ध का वाचा, कोई झूठा कोई साँचा. सपनों के फल, शगुन अशगुन और साधु लोगों की वाणी, इन पर अधिक विश्वास नहीं करना चाहिए क्योंकि ये अक्सर झूठे निकलते हैं.

सपने की सौ मोहर से कौड़ी सरे न काम. सपने में हमारे पास कितना भी धन हो वह हमारे किसी काम का नहीं होता. इसी प्रकार इस नश्वर संसार में कोई कितना भी धन इकठ्ठा कर ले, परलोक में उसका कोई मोल नहीं है.

सपने तो सोने के बाद ही आते हैं. जागृत व्यक्ति कभी व्यर्थ की कल्पनाएँ नहीं करता. जो सोए हुए हैं (वास्तविकता से मुँह मोड़े हुए हैं) वे ही भांति भांति के सपने देखते हैं. 

सपने में राजा भए, जागत भए फ़कीर. जो आज अपने राजा होने पर घमंड कर रहा है उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि यह स्वप्न के समान क्षण भंगुर अवस्था है.

सपूत एक ही भला और कपूत सात भी खोटे. सुपुत्र एक ही काफी है और कुपुत्र सात हों तो भी बेकार हैं.

सपूत का बाप, कपूत की माई, होत की बहन, अनहोत का भाई. बाप केवल सपूत का ही सगा होता है जबकि माँ सपूत कपूत सभी से प्रेम करती है. बहन अच्छे दिनों में साथ देती है, जबकि भाई बुरे दिनों में भी साथ देता है. 

सपूत की कमाई में सब का हिस्सा. सपूत सभी के ऊपर खर्च करता है.

सपूत तो पड़ोसी का भी अच्छा, जो वक्त पर काम आता है. अच्छा बेटा पड़ोसी का भी हो तो वक्त पर काम आता है.

सपूती रोवे टूकों को, निपूती रोवे पूतों को. टूकों – टुकड़ों (छोटी छोटी चीजों को). जिसके कई सारे पुत्र हैं वह टुकड़ों की मोहताज है और जिसके पुत्र नहीं है वह पुत्र की कामना में मरी जा रही है.

सपूतों के कपूत और कपूतों के सपूत होते आए हैं. जरूरी नहीं कि दुष्ट लोगों के यहाँ दुष्ट संतानें ही पैदा हों. दुष्टों के यहाँ सज्जन भी पैदा हो सकते हैं और सज्जनों के यहाँ दुष्ट भी जन्म ले सकते हैं.

सफ़ेद भैंस काली दहीहाकिम जो कहें वही सही. हाकिम कुछ भी कहें उस को सही मानना पड़ता है. अगर वह कहें कि भैंस सफ़ेद है और दही का रंग काला है तो भी मानना पड़ेगा.

सब उस्तरे बांधो कोई तलवार न बांधो, कर दो ये मुनादी कोई दस्तार न बांधो. दस्तार – पगड़ी. सिखों द्वारा कायर हिन्दू जातियों पर किया गया व्यंग्य.

सब काम दाई का, नाम भौजाई का. काम कोई और करे व श्रेय कोई और ले तो. दाई – प्रसव कराने वाली महिला.

सब की बारी अंडे, हमारी बारी कुडुक. भाग्य साथ न देना. औरों की बारी थी तो मुर्गी ने अंडे दिए और हमारी बारी आई तो मुर्गी कुडुक हो गई. 

सब की मैया सांझ. सांझ की गोद में सब को विश्राम मिलता है.

सब कीजे,  तिरिया भेद न दीजे. स्त्रियों को भेद की बात नहीं बतानी चाहिए (वे अपने पेट में कोई बात नहीं पचा सकतीं).

सब कुत्ते गया को जाएं तो पत्ते कौन चाटेगा (सब बिल्लियाँ स्वर्ग को जाएं तो कढ़ाई कौन चाटेगा). सभी लोग बड़े और महत्वपूर्ण बन जाएँ तो छोटे काम कौन करेगा.

सब के भले में अपना भी भला. अच्छी सोच.

सब को अति प्यारा लगे, जो नर शील स्वभाव. जो स्वभाव से सुशील होता है वह सबको अच्छा लगता है.

सब कोई पायल पहनें, लंगड़ी कहे हमहूँ. किसी वस्तु के योग्य न होने पर भी उसकी इच्छा करना.

सब गहनों में चंदनहार. स्त्रियाँ सभी गहनों में चन्दनहार (चन्द्रहार) को सर्वश्रेष्ठ मानती हैं.

सब गुण की आगर धिया, नाक बिना बेहाल. एक कन्या सब प्रकार से गुणवान है पर उसकी नाक चपटी है तो उस के सब गुण बेकार हैं (उसकी शादी नहीं हो पाएगी). आगर – खजाना, धिया – बेटी.

सब गुण भरी बैंतला सोंठ. बैंतला सोंठ नामकी औषधि में बहुत से गुण होते हैं. किसी एक व्यक्ति में बहुत से गुण हों तो उस के लिए यह कहावत प्रयोग की जाती है. व्यंग्य में दुष्ट और चालू स्त्री के लिए भी इसे प्रयोग करते हैं.

सब गुन भरे ठकुरवा मोर, आपे पहरू आपे चोर. मेरे मालिक सर्व गुण सम्पन्न हैं. खुद ही पहरेदार हैं और खुद ही चोर. आजकल के नेताओं और भ्रष्ट नौकरशाहों पर व्यंग्य. 

सब घटा देते हैं मुफलिस के गरज़ माल का मोल. गरीब जब जरूरत के वक्त अपनी कोई चीज़ बेचना चाहता है तो लोग उस की मजबूरी का फायदा उठाते हुए चीज़ की कम कीमत लगाते हैं.

सब घर अंधा, द्वारे कुआं. घर के सब लोग अंधे हैं और दरवाजे पर ही कुआँ है. किसी घर या समाज के लोग आसन्न खतरे के प्रति बेपरवाह हों तो यह कहावत कही जाती है. 

सब जग रूठा रूठन दे, वह एक न रूठा चाहिए. सारा संसार रूठ जाए तो कोई बात नहीं, बस एक परमात्मा नहीं रूठना चाहिए.  

सबहिं जात भगवान की, तीन जात बेपीर, दांव पड़े चूकें नहीं, बामन बनिक अहीर. भगवान ने सभी जातियों को बनाया है लेकिन ब्राह्मण, बनिया और अहीर ये तीन जातियाँ दूसरों का दुख दर्द नहीं समझतीं.

सब जीते जी के झगड़े हैं यह तेरा है यह मेरा है, जब चल बसे इस दुनिया से न तेरा है न मेरा है. जब तक इंसान जीवित रहता है तब तक तेरा मेरा करता रहता है, दुनिया से जाते ही सब खत्म हो जाता है.

सब झगड़े की जड़ दौलत. अर्थ स्पष्ट है.

सब ते कठिन राज मद भाई. सता का नशा सब से बड़ा नशा है.

सब दाढ़ी वाले हों तो चूल्हा कौन फूंकेगा. चूल्हा फूँकने में दाढ़ी जलने का डर रहता है. सभी दाढ़ी वाले हों तो चूल्हा कौन फूंकेगा.

सब दिन चंगे, त्यौहार के दिन नंगे. उन लोगों के लिए जो अपने खर्चों का ठीक प्रकार से नियोजन नहीं करते, अन्य दिनों में फिजूलखर्ची करते हैं और त्यौहार के दिन खाली हाथ हो जाते हैं.

सब दिन जात न एक समान. किसी के भी सब दिन एक से नहीं होते. जो आज विपन्न है वह कल सम्पन्न हो सकता है और जो आज धनी है वह कल निर्धन हो सकता है.

सब दिन साहू के एक दिन चोर का. साहूकार अपनी मक्कारी से सब दिन पैसे जोड़ता रहता है और चोर मौका लगते है एक ही दिन में सब साफ़ कर देता है.

सब धन धाम शरीर से ही. शरीर ठीक हो तभी घन कमाया जा सकता है और तीर्थ किए जा सकते हैं. संस्कृत में कहावत है – शरीरमाद्यम् खलु धर्म साधनम्.

सब धान बाइस पसेरी. अच्छी बुरी हर चीज़ का एक ही भाव लगाना.

सब में है और सब से न्यारा. ईश्वर सब में होते हुए भी सब से अलग भी है.

सब रामायण सुन कहें, सीता किसकी जोय. पूरी बात सुनने के बाद कोई मूर्खतापूर्ण प्रश्न पूछना. सारी रामायण सुन कर पूछ रहे हैं कि सीता किस की पत्नी थीं.

सब सच कहने लायक नहीं होते. कुछ सच बहुत अप्रिय होते हैं इसलिए उन्हें बोलने से बचना चाहिए. संस्कृत में कहा गया है – सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात्, न ब्रूयात् सत्यं अप्रियं.

सब से भला किसान, खेती करे और घर रहे. सब से अच्छा किसान है जिसे कम से कम घर पर रहने को तो मिलता है. व्यापार में व्यक्ति को कहाँ कहाँ भटकना पड़ता है और नौकरी में हमेशा तबादले की तलवार लटकी रहती है.

सब से मीठी भूख. सबसे स्वादिष्ट क्या है – भूख, क्योंकि तेज भूख लगी हो तो हर चीज़ स्वादिष्ट लगती है. इंग्लिश में कहावत है – Hunger is the best sauce.

सब से हिलमिल चालिए जब लग पार बसाए, मिष्ट वचन मुख बोलिए नेकी ही रह जाए. जब तक सम्भव हो सब से हिलमिल कर रहना चाहिए और मीठे वचन बोलना चाहिए. हमारे जाने के बाद हमारे नेक व्यवहार की याद ही लोगों के मन में रह जाएगी.

सब से हिलिए सब से मिलिए सब से कीजे चाव, हांजी हांजी सबसे कीजे बसिए अपने गाँव. मेल जोल सबसे कीजिए, सबकी हाँ में हाँ मिलाइए लेकिन करिए वही जो आप को ठीक लगे.

सबको ठेल, मैं अकेल. स्वार्थी व्यक्ति.

सबते भले वे मूढ़ मति, जिन्हें न व्यापे जगत गति. व्यक्ति जितना बुद्धिमान होता जाता है सांसारिक समस्याओं के प्रति उतनी ही उसकी चिंताएं बढती जाती हैं, मूर्ख लोग सबसे भले हैं जिन्हें संसार की चिंताएं नहीं सतातीं. इंग्लिश में कहावत है – Ignorance is a bliss, more you know more you suffer.

सबसे तेज चले वो ही जो चले अकेला. अकेला काम करने वाला व्यक्ति सबसे जल्दी काम निबटा पाता है, सबके साथ के चक्कर में काम आगे नहीं बढ़ता.

सबसे प्यारा पेट. हर जीव जंतु का पहला लक्ष्य अपना पेट भरना ही होता है. रिश्ते, धर्म, ज्ञान सब इसके बाद हैं.

सबसे भली चुप. चुप रहना सबसे अच्छा है. इससे बड़े बड़े झगड़े निबट जाते हैं. (अव्वल तो झगड़े होते ही नहीं हैं).

सबसे भले हैं मूसर चंद, करें न खेती भरें न दंड. मूसरचंद किसी ऐसे व्यक्ति को कहते हैं जो किसी काम के योग्य न हो. ऐसे लोग सब से भले हैं क्योंकि उन्हें न खेती करनी है न कोई टैक्स देना है.

सबसे मीठी भूख (भूख मीठी या खीर). जब तक भूख न लगी हो, पकवान भी स्वादिष्ट नहीं लगते. 

सबही जात चमार की बिना चाम नहिं कोय, बिना चाम वह आप है जिसको लखै न कोय. किसी को चमार कह कर हिकारत की नज़र से मत देखो क्योंकि हम सभी चमड़ी वाले हैं (अर्थात चमार हैं) . बिना चमड़ी वाला तो केवल एक ईश्वर है जिसे हम देख नहीं सकते.

सबाब न अजाब, कमर टूटी मुफ्त में. सबाब – पुण्य, अजाब – पाप का दंड. किसी काम में लाभ या हानि कुछ नहीं हुआ, मेहनत बेकार गई.

सबै सहायक सबल के कोऊ न निबल सहाय. (पवन जगावत आग कौं, दीपहिं देत बुझाय) सभी लोग बलवान की सहायता करते हैं, निर्बल की सहायता कोई नहीं करता बल्कि उसे और दबाते हैं. हवा आग को और भड़काती है जबकि दीपक को बुझा देती है.

सब्र की डाल में मेवा फलता है (सब्र का फल मीठा). संतोष से बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है. इंग्लिश में कहावत है – Everything comes if a man can only wait.

सभा बिगारें तीन जन, चुगल, चुगद औ चोर. तीन लोग सभा को बिगाड़ते हैं, चुगलखोर, मूर्ख आदमी और चोर.

सभागिया की जीभ और अभागिया के पाँव. भाग्यशाली व्यक्ति जुबान से बोल कर ही सारे काम करा लेता है और अभागा आदमी दौड़ भाग के भी अपना काम नहीं करा पाता.

सभागिया की बेटी मरे, अभागिया का जंवाई. बेटी के मरने का दुख तो बहुत होता है, पर दामाद के मरने और बेटी के विधवा होने का दुख उससे भी बहुत बड़ा होता है (क्योंकि विधवा बेटी हमेशा आँखों के सामने रहती है).

सभागिया को जंगल में ही मंगल, निरभागिया बस्ती में भी भूखा मरे. जो भाग्यवान है उसे हर परिस्थिति में आनंद मिल जाता है, जो अभागा है वह कहीं सुख नहीं पा सकता.

सभी औरतों के मैके में छप्पर पर छप्पन मन पोदीना होता है. सभी स्त्रियाँ अपने मैके के बारे में बढ़ा चढ़ा के बताती हैं. इंग्लिश में कहावत है – In my father’s house are many mansions.

सभी झुकते हुए पलड़े के साझी हैं. जो जीतता हुआ होता है सब उसी का साथ देना चाहते हैं.

सभी सुपात्र हों कुपात्र एक, जैसे सोने के थाल में लोहे की मेख. किसी घर में सभी लोग बहुत अच्छे हों लेकिन केवल एक व्यक्ति खराब हो तो सारा कुनबा बेकार हो जाता है. एक थाल पूरा सोने का बना हो पर उसमें एक कील लोहे की लगी हो तो पूरा थाल बेकार हो जाता है.

सभी से दोस्ती करने वाला किसी का दोस्त नहीं. जो सभी से मित्रता रखना चाहता है वह किसी एक का घनिष्ठ मित्र नहीं हो सकता. 

समंदर में खसखस के दाने की क्या बिसात. इस असीम ब्रह्मांड में एक मनुष्य की कोई बिसात नहीं है.

समंदर में साझा और पोखर में नहाये. किसी व्यक्ति का समुद्र के अथाह जल में साझा है परन्तु वह तालाब में नहा रहा है. जैसे कोई सनातन जैसे वृहत धर्म का मानने वाला मजार पर माथा टेकने जाए.

समझ के खर्चे सोच के बोले. पैसा खर्च करने से पहले ठीक से समझ लेना चाहिए कि वस्तु इतने दाम के योग्य है या नहीं. इसी प्रकार बोलने से पहले भी सोचना जरूर चाहिए.

समझदार को इशारा काफी है. समझदार आदमी हलके से इशारे से ही बात समझ लेता है.

समझे न बूझे, खूँटा ले के जूझे. जबरदस्ती जिद करने वाले नासमझ आदमी के लिए.

समधियाने और पखाने के पास न बसे. पहले के लोग मानते थे कि शौचालय घर के अंदर या घर के पास नहीं होना चाहिए. इसी प्रकार लोगों का मानना है कि बेटे या बेटी की ससुराल घर के पास नहीं होनी चाहिए.

समधी चाहें दान दहेज़, लड़का चाहे जोय, सभी बराती चाहें केवल अच्छी खातिर होय. संसार में हर व्यक्तिको केवल अपना ही हित सूझता है.

समधी समरथ कीजिये, जब तब आवे काम. समर्थ लोगों से ही संबंध जोड़ना चाहिए, वे आड़े वक्त में काम आ सकते हैं. 

समय करे वह बैरी भी न करे. समय मनुष्य के साथ इतना बुरा कर सकता है जितना शत्रु भी नहीं कर सकता.

समय का भरोसा कोनी, कब पलटी मार जावे. (राजस्थानी कहावत) समय का कोई भरोसा नहीं, कब बदल जाए. 

समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता. सभी काम समय आने पर ही होते हैं, समय किसी के लिए रुकता नहीं है. इंग्लिश में कहावत है – Time and tide wait for none.

समय की फेरी, सास बहू की चेरी. समय बदल गया है. अब सास को बहू की गुलामी करनी पड़ती है.

समय के बाजे समय पर ही सुहाते हैं (समय समय की राग रागिनी, बेवक्त की शहनाई).  जो बाजे मांगलिक अवसरों पर अच्छे लगते हैं, वही दुख और चिंता के क्षणों में बहुत बुरे लगने लगते हैं.

समय धराए तीन नाम, परसा परसू परशुराम. परशुराम नाम का एक व्यक्ति जब बहुत गरीब था तो उसको लोग परसा कह कर बुलाते थे, जब उस पर कुछ पैसा हुआ तो उसे परसू कहने लगे और जब वह सम्पन्न हो गया तो परशुराम जी कहने लगे.

समय पड़े की बात, बाज पर झपटे बगुला. जब बाज का समय खराब होता है तब बगुला भी उस पर झपट लेता है.

समय परे ओछे बचन, सबके सहउ रहीम. रहीम कहते हैं कि यदि आपका समय खराब है तो सबके कड़वे वचन भी चुपचाप सुन लेना चाहिए. 

समय पाय तरूवर फले, केतिक सींचो नीर. कोई भी काम समय आने पर ही होता है उसके पहले चाहे कितना प्रयास करो. पेड़ को कितना भी सींचो वह फलेगा समय आने पर ही.

समय पाय फल होत है, समय पाय झरि जाय, सदा रहे नहिं एक सी, का रहीम पछिताय. समय के अनुसार ही पेड़ पर फल लगता है और समय के अनुसार ही झड़ जाता है. सदा किसी का समय एक सा नहीं रहता इसलिए इसका दुःख नहीं करना चाहिए.

समय बड़ा बलवान. समय व्यक्ति को कुछ का कुछ बना देता है.

समय बिताने के लिए करना है कुछ काम, शुरू करो अंताक्षरी ले कर हरि का नाम. अंताक्षरी शुरू करने से पहले बोलने वाली कहावत.

समय संपत्ति है. समय का सदुपयोग करने वाला ही धनवान बन सकता है.

समय सब घावों का मरहम है. समय सब घावों को भर देता है. इंग्लिश में कहावत है – Time is the great healer.

समय समय का बाना न्यारा. अलग अलग समय पर अलग प्रकार के वेश अच्छे लगते हैं. 

समय समय को देखिये, समय समय की बात, काहु समय में दिन बड़ा, काहु समय में रात. सब दिन एक से नहीं रहते. कभी सुख मिलता है कभी दुख.

समय समय सुन्दर सभी, रूप कुरूप न कोय. समय के अनुसार ही व्यक्ति सुंदर या असुन्दर होता है. कोई सदैव रूपवान या सदैव कुरूप नहीं होता.

समरथ को नहिं दोष गुसाईं. जो ताकतवर है व समर्थ है वह कुछ भी करे, उसका दोष नहीं माना जाता. इसको एक और तरह से भी कहते हैं – “जबरदस्त का ठेंगा सर पे.” इंग्लिश में कहते हैं – might is right. 

समुद्र और श्मशान किसी को इंकार नहीं करते. समुद्र में कितना भी कुछ डाल दो वह मना नहीं करता, इसी प्रकार श्मशान में कितनी भी अर्थियां आ जाएँ किसी को मना नहीं किया जाता.

समुद्र सूखेगा तो भी घुटनों तक पानी रहेगा. जहाँ बहुत बड़ा भंडार भरा हुआ है वहाँ कम भी होगा तो कितना.

समुद्र सोख को दरिया क्या. बहुत बड़े काम करने वाले के लिए छोटा काम क्या चीज़ है. जो समुद्र को सोख सकता है उसके लिए नदी क्या है.

सम्पत होय थोड़ी तो गाय राखिए न कि घोड़ी. जिस के पास कम पैसा हो उस की समझदारी गाय पालने में है जिसमें खर्च कम और लाभ अधिक है. कम संपत्ति वाले को घोड़ी नहीं पालना चाहिए जिसमें अनाप शनाप खर्च है और उपयोगिता भी कम है. 

सम्पति और विपत्ति को दोनों सम कर राख, चार दिनां की चांदनी फिर अँधेरी पाख. अच्छे और बुरे दोनों समय में मन को स्थिर रखना चाहिए, सुख के कुछ दिनों के बाद दुख भी आता है.

सम्मुख छींक लड़ाई भासैं, छींक पाछिली सुख अभिलासैं, छींक दाहिनी धन को नासैं, वाम छींक सुख सदा प्रकासैं. (बुन्देलखंडी कहावत)किसी के सामने छींक आ जाए तो लड़ाई होती है, पीठ पीछे छींक आए तो अच्छा शकुन मानते हैं, दाहिनी ओर कोई छींक दे तो धन का नाश होता है और कोई बायीं ओर छींके तो शुभ होता है.

सयाना कौआ विष्टा खाता है. जो धूर्त व्यक्ति अपने को ज्यादा बुद्धिमान समझता है वह अंत में मुँह की खाता है.

सयानी चली ससुराल और बावरी सीख दे. अपने से अधिक बुद्धि वाले को सीख देने की कोशिश करना. 

सयाने के सवाये, कमबख्त के दूने. सयाना व्यापारी कम मुनाफा लेता है और सफलता पूर्वक व्यापार करता है. मूर्ख व्यापारी दुगुना करने के चक्कर में धन गंवा देता है.

सयाने को जरा इशारा, मूरख को कोड़ा सारा. समझदार व्यक्ति थोड़े से इशारे से समझ जाता है और मूर्ख आदमी डांट फटकार से समझता है. (अकलमन्द को इशारा, अहमक को फटकारा).

सर गंजा और दो जोड़ी कंघा. जिस वस्तु की बिल्कुल आवश्यकता न हो उस को अधिक मात्रा में अपने पास रखना.

सर पर जूती, हाथ में रोटी. बेइज़्ज़ती के साथ रोटी कमाना. इस पर एक मुहावरा भी है – जूतों में दाल बंटना.

सर बड़ा सरदार का, पैर बड़ा गंवार का. 1.किसी का पैर बड़ा हो तो मज़ाक में यह बात कही जाती है. 2.एक आम विश्वास है कि बुद्धिमान व्यक्ति का सर बड़ा होता है और मूर्ख का पैर. इस कहावत को ऐसे भी कहते हैं – सर बड़ा सपूत का, पैर बड़ा कपूत का.

सर भले ही कट जाए, नाक नहीं कटनी चाहिए. जान भले ही चली जाए, इज्जत नहीं जानी चाहिए.

सर मुंडाते ही ओले पड़े. कोई काम पूरा करते ही उससे सम्बंधित कोई ऐसी मुसीबत आ जाए जिससे नुकसान हो जाए.

सर मुंड़े उस रांड का जो खसम से पहले खाए. लोक मान्यता है कि स्त्री को पति को खिलाने बाद ही भोजन करना चाहिए. अगर वह पहले खा ले तो उसका सर मूंड देना चाहिए.  

सर सलामत तो पगड़ी हजार. जान बची रहेगी तो मान सम्मान बाद में भी कमा लेंगे.

सर सहलाएं भेजा खाएँ. थोड़ा प्रेम दिखा कर बहुत परेशान करने वालों के लिए.

सरक बुआ भतीजी आई. जहाँ छोटे लोग बड़ों की अवमानना करें.

सरकारी सांड. ऐसे सरकारी मुलाजिम जो काम कुछ न करें और लोगों पर रौब गांठते फिरें.

सरनाम बनिया और बदनाम चोर. दोनों अच्छा पैसा कमाते हैं. नामी बनिया अच्छा पैसा कमाता है क्योंकि लोग उस के नाम से माल खरीदते हैं. बदनाम चोर पैसा कमाता है क्योंकि लोग उसके नाम से डरते हैं.

सरम की बांधी सात घर करे (सरम की मां गोड़ा रगड़े).  शर्म की बँधी सात घर करती है. मजबूरी के कारण व्यक्ति को छोटे काम या गलत काम भी करने पड़ते हैं.

सराय का कुत्ता, हर मुसाफिर का यार. जो लोग अपने स्वार्थ के लिए सब से दोस्ती गाँठ लेते हैं उन के लिए.

सराहल धिया डोम घरे जाय. (भोजपुरी कहावत) ज्यादा प्रशंसा करने से बेटी बिगड़ सकती है और उसे अपने भले बुरे का ज्ञान नहीं रहता. ऐसी बहुत सी लड़कियां आजकल लव जिहाद का शिकार हो रही हैं.

सरिता, कूप, तड़ाग नृप, जे कम कभी न देत, करम कुम्भ जाको जितै, सो उतना भर लेत. (बुन्देलखंडी कहावत) नदी, कुआं, तालाब और राजा, ये देने में कंजूसी नहीं करते. जिसका कर्म रूपी घड़ा जितना बड़ा है वह उतना भर लेता है.

सर्दियों का सवेरा, गर्मियों की दोपहर और चौमासे की रात. ये सभी कष्टप्रद होने की वजह से लंबे महसूस होते हैं.

सर्दी भोगी की और गर्मी योगी की. भोगी के लिए जाड़े अधिक उपयुक्त रहते हैं और योगी के लिए गर्मी का मौसम. जब तक एयर कंडिशनर का आविष्कार नहीं हुआ था, धनी और भोगी लोग गर्मी में परेशान रहते थे.

सर्मीलो मांगे नहीं, गर्वीलो देय नहीं. जिसे आत्म सम्मान प्यारा है वह किसी से कुछ मांगता नहीं और जिसे अपनी सम्पन्नता पर अभिमान है वह बिना मांगे (बिना नीचा दिखाए) किसी को कुछ देता नहीं.

सर्राफ की थैली में खोटा खरा एक. सर्राफ की थैली से निकली हर चीज़ को लोग असली समझ कर विश्वास कर लेते हैं.

सलाम के लिए मियाँ को क्यूँ नाराज करो. अगर मियाँ सलाम करने से खुश होता है तो कर लो, इतनी छोटी सी बात के लिए किसी से क्यूँ बिगाड़ो. (कहावत मुग़ल शासनकाल की है जब हिन्दुओं को मुसलामानों से दबना पड़ता था).

सवाल दीगर, जवाब दीगर. सवाल कुछ और, जवाब कुछ और.

सवेरे का टहलना, दिन भर की खुशी. सुबह उठ कर टहलने से व्यक्ति दिन भर प्रसन्नचित्त रहता है.

ससुर के प्राण जाए, पतोहू करे काजर. दूसरे के कष्ट को न समझ कर अपने स्वार्थ में लगे रहना. ससुर के प्राण जा रहे हैं और पुत्रवधू साज सिंगार करने में व्यस्त है.

ससुर को पड़ी हल बैल की, बहू की पड़ी नोन तेल की. सब को अपने अपने काम की चिंता होती है.

ससुर पकड़े साड़ी, तो बहू क्यों छोड़े दाढ़ी. ससुर अगर मर्यादा का उल्लंघन करे तो बहू को उस की पिटाई करने का पूरा हक है.

ससुरार पियारि लगी जब से, रिपु रूप कुटुम्ब भयो तब से. रिपु रूप – दुश्मन जैसा. जो लोग ससुराल के भक्त हो जाते हैं उन्हें अपना परिवार दुश्मन लगने लगता है.

ससुरार सुख की सार, जो रहे दिन दो चार. जो रहे दिन दस बारा, हाथ में खुरपी बगल में चारा. ससुराल बड़े सुख की जगह है अगर वहाँ दो चार दिन रहो तो. अगर ज्यादा दिन रहोगे तो काम पकड़ा दिया जाएगा (खुरपी लो और चारा काट कर लाओ).

ससुराल का वास, कुल का नाश. कोई व्यक्ति ससुराल में रहता है तो उस के कुल की मर्यादाओं का सत्यानाश हो जाता है (क्योंकि हर कुल की परम्पराएं अलग अलग होती हैं). 

ससुराल में रहना, गधे पर चढ़ना. ससुराल में रहने पर उतनी ही बेईज्ज़ती होती है जितनी गधे पर चढने से.

ससुराल में सुहाय नहीं, पीहर में समाय नहीं. बहुत सी स्त्रियों को ससुराल में अच्छा नहीं लगता, लेकिन मायके में भी उन के लिए स्थान नहीं है.

ससुराल में सौ बंधन. स्त्रियों को तो ससुराल में तरह तरह के बंधन होते ही हैं, जो पुरुष ससुराल में रहते हैं वे भी आजादी से नहीं रह सकते.

सस्ता ऊँट, महंगा पट्टा. ऊंट तो सस्ता है पर उसका पट्टा महंगा है. चीज़ का दाम तो कम है पर उसका रखरखाव बहुत महंगा है.

सस्ता ऊँट, महंगा पट्टा. किसी वस्तु का रखरखाव वस्तु की कीमत से अधिक महंगा हो तो.

सस्ता माल और बहता पानी. इनका कोई भरोसा नहीं. (आज के जमाने में चाइनीज़ माल).

सस्ता रोवे बार बार, मंहगा रोवे एक बार. कोई अच्छी चीज़ थोड़ी महंगी मिले तो खरीदते समय एक बार कष्ट होता है लेकिन सस्ते के चक्कर में घटिया माल उठा लाए तो बार बार रोना पड़ता है. इंग्लिश में कहावत है – If you buy quality, you cry only once.

सस्ती भेड़ की पूँछ, सब उठा उठा देखें. सस्ते माल की कोई कद्र नहीं करता.

सहज पके सो मीठा (धीमा पके सो मीठा होए). इत्मीनान से किया गया काम अच्छा होता है.

सहरी खाए सो रोजा रक्खे. जो किसी काम में होने वाला लाभ उठाए उसे उस काम में होने वाले कष्ट भी झेलने चाहिए. रमजान के दिनों में रोज़ा रखने वालों को सहरी (सुबह के खाने) में बढ़िया माल खाने को मिलते हैं. जो लोग रोज़ा नहीं रखते वे भी माल खाने की जुगत में रहते हैं. सहरी का माल दूसरे लोग खा गए और रोज़ा रखने को किसी दूसरे से कहा जा रहा है, तो वह यह बात कहता है.

सहरी भी न खाऊं तो काफिर न हो जाऊं. जो लोग रोज़ा रखना नहीं चाहते लेकिन सहरी खाने की जुगाड़ में रहते हैं उनका तर्क.

सहस डुबकियां मैं लई मोती कर नहिं लाग, सागर को क्या दोष है जो नहिं मेरे भाग. मैंने हजार डुबकियाँ लगाएँ लेकिन एक भी मोती हाथ नहीं आया. मेरे भाग्य में नहीं है तो मैं सागर को क्यों दोष दूँ.

सहसा करि पछताएं विमूढ़ा. नासमझ लोग जल्दबाजी में गलत काम कर बैठते हैं और फिर पछताते हैं.

सहस्त्र गोपी एक कन्हैया. जहाँ एक व्यक्ति के चाहने वाले बहुत से लोग हों.

सही गए, सलामत आए. किसी काम में असफल होकर लौटने पर व्यंग्य.

सही सवेरे सूम का नाम लो तो रोटी नहीं मिलती. पुराना विश्वास है कि यदि सुबह सुबह कंजूस का नाम ले लोगों तो उस दिन रोटी नहीं मिलती.

साँई ते सब होते है, बन्दे से कुछ नाहिं, राई से पर्वत करे, पर्वत राई माहिं. सब कार्य ईश्वर के करने से ही होते हैं, मनुष्य के करने से कुछ नहीं होता. ईश्वर चाहे तो राई को पर्वत बना दे और पर्वत को राई.

साँच कहा माने नहीं, झूठ से जग पतियाये. इस संसार में सच्ची बात को कोई नहीं मानता, सब झूठे लोगों का ही विश्वास करते हैं.

साँप के बच्चे सपोले ही कहलाएगें (सांप का बच्चा संपोला). 1. व्यक्ति में अपने वंश के गुण अवश्य आते हैं.           2. व्यक्ति कुछ भी बन जाए वंश का नाम उस का पीछा नहीं छोड़ता.

साँप को दूध पिलाओगे तो भी जहर ही उगलेगा. दुष्ट व्यक्ति की सहायता करोगे तो भी आपको नुकसान ही पहुंचाएगा.

साँप को दूध पिलाने से विष बढ़ता है. दुष्ट व्यक्ति की सहायता करो तो उसकी दुष्टता और बढ़ती है.

साँप निकल गया लकीर पीटते रहो. नुकसान होने के बाद बेकार की जांच पड़ताल करने से क्या लाभ.

साँप मरे न लाठी टूटे. (साँप भी मरे लाठी भी न टूटे). अपना काम भी हो जाए और कुछ गंवाना भी न पड़े.

साँप सर पे बूटी पहाड़ पे. सांप तो सर पे है लेकिन सांप का विष उतारने की बूटी दूर पहाड़ी पर है. खतरा सर पर मंडरा रहा हो और उस से बचने का उपाय पास न हो तो.

साँपों की सभा में जीभों की लपालप. जहाँ दुष्ट लोगों का जमावड़ा होगा वहाँ सब जहरीली बोली ही बोलेंगे.

सांई ऐसे पुत्र से बाँझ रहे बरु नारि, बिगरौ बेटो बाप से जाय रहे ससुरारि. जो बेटा बाप से बिगड़ कर ससुराल जा कर रहने लगे ऐसा बेटा होने के मुकाबले तो स्त्री बाँझ रहे वह ज्यादा अच्छा.

सांच कहे तो साथ छुटे. सच बोलने से साथ छूटने का डर रहता है.

सांच को आँच नहीं. किसी नगर में एक जुलाहा रहता था. वह बहुत बढ़िया कम्बल तैयार करता था. उसका धंधा सच्चा था. एक दिन उसने एक साहूकार को दो कम्बल दिए. साहूकार ने दो दिन बाद उनका पैसा ले जाने को कहा. दो दिन बाद जब जुलाहा अपना पैसा लेने आया तो साहूकार ने कहा – मेरे यहां आग लग गई और उसमें दोनों कम्बल जल गए अब मैं पैसे क्यों दूं? जुलाहा बोला – यह नहीं हो सकता मेरा धंधा सच्चाई पर चलता है. असली कम्बल में कभी आग नहीं लग सकती. जुलाहे के कंधे पर एक कम्बल पड़ा था उसे सामने करते हुए उसने कहा – यह लो, लगाओ इसमें आग. साहूकार ने कम्बल को जलाने कि काफी कोशिश की लेकिन कम्बल नहीं जला. तब जुलाहे ने कहा – याद रखो सांच को आंच नहीं.

सांच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप, जाके हिरदै सांच है, ताके हिरदै आप. सच बोलने में बहुत से कष्ट झेलने पड़ते हैं इसलिए सच बोलना एक तपस्या है. झूठ के बराबर कोई पाप नहीं है. जो सच बोलता है उस के हृदय में स्वयं भगवान निवास करते हैं. (कहीं कहीं पर झूठ बराबर ताप भी लिखा मिलता है जिसका अर्थ है कि झूठ बोलने में भी मनुष्य को मानसिक संताप होता है). आजकल इसके उलट एक कहावत कही जाती है – झूठ बराबर तप नहीं, सांच बराबर ताप, जाके हिरदै सांच है, बैठा बैठा टाप.

सांची कहे, खुश रहे. सच बोलो तभी मन प्रसन्न होता है.

सांचे का रंग रूखा. सच्चा व्यक्ति अक्सर रूखा होता है.

सांचे गुरु का चेला, मरे न मारा जाय. सच्चे गुरु के शिष्य को कोई विपत्ति नहीं आती. 

सांचे रांचे राम. सत्य में ही राम बसते हैं.

सांझे धनुष सकारे मोर, ये दोनों पानी के बोर. सकारे – सुबह को. शाम को इन्द्रधनुष दिखाई दे और सुबह को मोर, तो वर्षा अवश्य होगी.

सांटे की सगाई और ब्याज के रूपये का अहसान क्या. सांटे की सगाई – अदला बदली वाली शादी (जहाँ अपनी बेटी दूसरे घर में शादी हो कर जाए और उस घर की बेटी अपने घर में आए). ऐसी शादी में किसी का किसी पर अहसान नहीं होता. इसी प्रकार उधार लिए धन का ब्याज अदा करने पर भी कोई एहसान नहीं माना जाता.

सांड़ों की लड़ाई में बाड़ का नुकसान (लड़ें सांड बाड़ी का भुरकस). घर के दो लोग आपस में लड़ते हैं तो घर का ही नुकसान होता है. 

सांड़ों से हल नहीं चलते. मुफ्तखोर और अनुशासनहीन लोगों से काम नहीं लिया जा सकता.

सांप और चोर की धाक बड़ी होती है. इन से सभी डरते हैं.

सांप का काटा बच सकता है पर इंसान का काटा नहीं. सांप के काटे का इलाज संभव है पर इंसान के धोखे और विश्वासघात का नहीं. 

सांप का काटा बिच्छू से क्यों डरे. जो बड़ी बड़ी मुसीबतें झेल चूका हो वह छोटी मुसीबतों से क्यों डरेगा.

सांप का डसा रस्सी से भी डरता है. अर्थ स्पष्ट है (दूध का जला छाछ भी फूँक फूँक कर पीता है).

सांप का दांव नेवला जाने. सांप के दांव को इंसान नहीं समझ सकता, नेवला ही समझ सकता है. 

सांप काटना छोड़ दे पर फुफकारना न छोड़े. दुष्ट अपनी दुष्टता को पूर्णतया नहीं छोड़ सकता.

सांप की क्या मौसी, सुनार की क्या साख. साँपों में कोई किसी का रिश्तेदार नहीं होता, सब एक दूसरे को खा जाने को तैयार रहते हैं. इसी तरह सुनार की कोई साख नहीं होती कि फलां सुनार बड़ा ईमानदार है.

सांप की तो भाप भी बुरी. दुष्ट आदमी से जितना दूर रहो उतना अच्छा.

सांप के घर पावने, फन से फन मिलावने. (बुन्देलखंडी कहावत)पावने – पाहुने, अतिथि. 1. जहाँ मेजबान और मेहमान एक से बढ़ कर एक हों. 2. दुष्ट लोगों के ख़ुशी प्रकट करने के तरीके भी निराले होते हैं.

सांप के डसे को इतवार कब आवे. सांप ने आज काटा है और झाड़ने वाला कह रहा है कि जहर इतवार को ही उतारा जाता है.

सांप के पैर सांप को ही दिखाई देते हैं (सांप के पाँव पेट में होते हैं). दुष्ट व्यक्ति के पास क्या क्या शक्तियाँ व सामर्थ्य हैं यह वही जानता है.

सांप के संपोले का क्या छोटा और क्या बड़ा. सांप के बच्चे सभी जहरीले होते हैं, चाहे छोटा हो या बड़ा.

सांप को सांप भाई जान कहोगे तब भी काटेगा. आप कितनी भी नम्रता और आदर से बोलिए, दुष्ट अपनी दुष्टता नहीं छोड़ता.

सांप चलती हुई मौत है. अर्थ स्पष्ट है.

सांप डँसे और बोले, मेरे ऊपर मत गिरना. दुष्ट व्यक्ति सबको नुकसान पहुँचाता है और यह भी कहता जाता है कि मुझे कोई हानि मत पहुँचाना.

सांप निकल गया लकीर रह गई. 1. किसी परंपरा के लुप्त होने के बाद भी रूढ़ियों का बंधन रह जाता है. 2. डर मिटने के बाद भी आशंका नहीं मिटती.

सांप लहरा के बिल में घुसे, तो बारह जगह से छिले. दुष्ट व्यक्ति अपने घर में दुष्टता नहीं दिखाता, यदि दिखाएगा तो नुकसान उठाएगा.

सांपों के डर गोगा पूजे (सांप नहीं होते तो गोगा जी को कौन पूछता). राजस्थान में गोगा देव को साँपों का देवता मान कर पूजा जाता है. दुष्टों से बचने के लिए कभी कभी अवांछित लोगों की भी शरण लेनी पडती है.

सांबा खेती अहीर मीत, कभी कभी ही होवें हीत. सांबा एक प्रकार का घटिया अनाज होता है जिसकी खेती लाभदायक नहीं होती. इसी प्रकार अहीर से मित्रता करने से भी कोई लाभ नहीं होता. हीत – हितकर.

सांभर जाय, अलोना खाय (सांभर में नोन का टोटा). अलोना – बिना नमक का. जहां जिस चीज़ की बहुतायत होनी चाहिए वहाँ उस चीज़ का अभाव हो तो. सांभर झील के पानी में नमक बहुत है इसलिए उससे नमक बनाया जाता है.

सांभर पड़ा सो लून. सांभर झील में जो कुछ डालो वह गल कर नमक बन जाता है. किसी दूसरे समाज के साथ रहने वाला व्यक्ति अपनी पहचान खो कर उनके जैसा ही बन जाता है.

सांस बटाऊ पाहुना, आये या न आए. सांस एक राहगीर और अतिथि के समान है जिसका कोई भरोसा नहीं होता कि वह आएगा या नहीं आएगा.

साईं अपने चित्त का भेद न कहिए कोय, तब लग मन में राखिए जब लग कारज होय. जब तक कार्य सम्पूर्ण न हो जाए अपने मन की बात किसी से कहना नहीं चाहिए.

साईं अवसर के पड़े को न सहे दुःख द्वंद, जाए बिकाने डोम घर राजा श्री हरिश्चन्द्र. जब कठिन समय आता है तब बड़े लोगों को भी दुख झेलने पड़ते हैं. राजा हरिश्चन्द्र पर जब दुख आया तो उन्हें डोम के हाथों बिकना पड़ा था.

साईं इतना दीजिये, जा में कुटुम समाय, मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय. हे ईश्वर मुझे इतना दीजिए जिसमें मेरे परिवार का पालन भी हो जाए और कोई याचक मेरे द्वार से भूखा न जाए.

साईं का घर दूर है जैसे पेड़ खजूर, चढ़े तो चाखे प्रेम रस गिरे तो चकनाचूर. ईश्वर का घर दूर भी है और वहाँ जाने के प्रयास में खतरे भी हैं, जैसे खजूर के पेड़ पर चढ़ पाए तो मीठे खजूर चखने को मिलेंगे और गिर गए तो हड्डियाँ चूर हो जाएँगी.

साईं का रख आसरा वाही का ले नाम, दोउ जग भरपूर हों तेरे सगरे काम. ईश्वर का आसरा रखने पर लोक परलोक के सारे काम सही हो जाते हैं.

साईं घोड़े मर गए गदहन आयो राज, काग हाथ पै लेत हैं दूर कियो है बाज. निकम्मे या दुष्ट राजा के लिए – घोड़े मर गए हैं और गधों का राज आ गया है जिन्होंने बाज को हटा कर कौवे को हाथ पर बिठाया हुआ है.

साईं या संसार में भांत भांत के लोग, सब से मिलकर बैठिये नदी नाव संयोग. संसार में तरह तरह के लोग हैं और हमें बहुत कम समय ही रहना है इसलिए सबसे मिलाकर रखना चाहिए.

साईं या संसार में मतलब को व्यवहार, जब लग पैसा गाँठ में तब लग ताको यार. संसार में सब अपना स्वार्थ देखते हैं, जब तक आपके पास धन है तभी तक आपसे दोस्ती करते हैं.

साईसों का अकाल और मुंशियों की बहुतायत. विशेष कामों में माहिर लोगों की कमी और पढ़े लिखे बेरोजगारों की बहुतायत. साईस – घोड़ों की देखभाल करने वाला. आजकल भी कुछ ऐसा ही माहौल है.

साख के हिसाब से उधार. बाज़ार में आदमी की जैसी साख होती है उसे वैसा ही उधार मिलता है.

सागर में पानी बरसे, मरुभूमि बूँद को तरसे. जिस के पास धन और साधनों की बहुतायत है उसी के पास और धन इकठ्ठा होता जाता है, निर्धन बेचारा तरसता रहता है.

साझा उधार दोऊ अशुभ, घर अंधियारी लाय. साझे का काम और उधार लेना या देना अशुभ काम हैं. इन से घर में अंधियारा आता है. 

साझा तो भगवान का भी बुरा. साझा किसी से भी नहीं करना चाहिए, भगवान से भी नहीं.  

साझा तो सिर्फ अपना ही भला. अपने अलावा किसी से साझ नहीं करना चाहिए.सुनने में बात अटपटी लगती है, लेकिन यह भी संभव है. एक ही व्यक्ति अलग अलग नामों से प्रतिष्ठान बना कर साझेदारी कर सकता है. 

साझा निभे न बाप का. साझा कभी नहीं निभता (चाहे पिता और पुत्र के बीच क्यों न हो).

साझा बाप न रोए कोई. जिस बाप के कई बेटे हों (साझे का बाप) तो उनमें से कोई बाप के मरने पर दुखी नहीं होता. सब इसी उधेड़बुन में रहते हैं कि सम्पत्ति का बंटवारा कैसे हो. बाप की सेवा को सब एक दूसरे पर टालते हैं.

साझे की खेती गदहे खाएं. साझे की खेती में कोई रखवाली करना नहीं चाहता इसलिए आवारा जानवर जानवर खेत खा जाते हैं.

साझे की तो होली ही अच्छी होती है (साझे की होली सबसे भली). साझे का कोई काम अच्छा नहीं होता, केवल होली ही साझे की (सब मिल कर जलाएं तो) अच्छी होती है. 

साझे की नाव, पार नहीं उतारती. साझे का काम किसी भी संकट से बाहर नहीं निकालता.

साझे की माँ गंगा न पावे. साझे के काम में सब एक दूसरे पर काम टालते रहते हैं इसलिए काम नहीं होता. जिस माँ के कई बेटे हैं उसे मरने के बाद कोई भी बेटा गंगा नहीं पहुंचाता. इंग्लिश में कहावत है – Everybody’s business is nobody’s business.

साझे की सुई भी ठेले पर लदती है. साझे के काम में आदमी को पैसे का दर्द नहीं होता इसलिए फिजूलखर्ची बहुत होती है. इंग्लिश में कहावत है – Everybody’s businesses is nobody’s business.

साझे की हांडी चौराहे पर फूटी. साझे का काम फेल होता है और जग हंसाई भी होती है.

साझे के देव को भोग नहीं मिलता. किसी भी काम की जिम्मेदारी बहुत से लोगों पर डाल दी जाए तो वह काम नहीं होता (चाहे देवता को भोग लगाने का काम ही क्यों न हो).

साठ सास ननद हों सौ, माँ से होड़ न इनकी हो. साठ सासें और सौ ननदें मिल कर भी माँ की बराबरी नहीं कर सकतीं.

साठा सो पाठा. साठ वर्ष की आयु में आ कर आदमी परिपक्व हो जाता है.

साठी बुद्धि नाठी. साठ साल का होने पर बुद्धि नष्ट हो जाती है.

सात घर की कुतिया. जगह जगह मुँह मारने वालों के लिए.

सात मामा का भांजा, भूखा ही सो जाए. एक लड़का ननसाल गया. उसके सात मामा थे. वह एक-एक करके सब के घर गया. सातों मामा यह सोचते रहे कि वह दूसरे के घर से खाना खाकर आया होगा इसलिए किसी ने उससे खाने के लिए नहीं पूछा. अंततः उस बेचारे को भूखा ही सोना पड़ा. जब एक काम की जिम्मेदारी बहुत सारे लोगों को दे दी जाती है तो वह काम नहीं हो पाता. (साझे की माँ गंगा न पावे).

सात हाथ हाथी से रहिए, पांच हाथ सिंगहारे से, बीस हाथ नारी से रहिए, तीस हाथ मतवारे से. हाथी से सात हाथ दूर रहें, सींग वाले जानवर से पांच हाथ, स्त्री से बीस हाथ और पागल या नशेड़ी से तीस हाथ दूर रहना चाहिए.

सातों माँगी घाघरी घर डूबा डूबा, सातों काती पूनरी घर ऊबा ऊबा. एक आदमी की सात बहुएँ थीं. सातों ने घाघरी मांगी (खर्च करवाया) तो घर डूब गया और सातों ने छोटा छोटा काम किया (सूत काता) तो घर उबर गया.

साथ छोड़ मत मीत का राह भीर के बीच, एक अकेले मनुख को सूझे ऊंच न नीच. भीड़ के बीच मित्र का साथ नहीं छोड़ना चाहिए, अकेले इंसान को सही और गलत की पहचान नहीं हो पाती. मीत के स्थान पर कुछ लोग साथ छोड़ मत टोल का भी कहते हैं. टोल – टोली, समूह.

साथ भी सोवे और मुंह भी छिपावे. यदि स्त्री किसी के साथ सो रही है तो मुंह क्या छिपाना.

साथ सोई, बात खोई. किसी परपुरुष के साथ सोने से स्त्री का सम्मान खत्म हो जाता है.

सादा जीवन, उच्च विचार. स्पष्ट. इंग्लिश में कहावत है – To be simple is to be great.

साध से सिद्धि नहीं मिलती. केवल चाहने भर से सिद्धि नहीं मिल जाती. इसके लिए साधना करनी पड़ती है.

साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय, सार-सार को गहि रहे, थोथा देइ उड़ाय. साधु (सज्जन पुरुष) सार्थक बात को ग्रहण करते हैं और निरर्थक बातों पर ध्यान नहीं देते (जिस प्रकार सूप अनाज को रोक कर भूसी को उड़ा देता है). (देखिये परिशिष्ट) 

साधु को दासी, चोर को खांसी, प्रेम विनास हांसी, उसकी बुध्दि विनासी, खाय जो रोटी बासी. दासी साधु के विनाश का कारण बनती है (साधु उस के मोह में फंस कर पतित हो जाता है), खांसी चोर का विनाश करती है (खांसने पर चोर पकड़ा जाता है), किसी की हंसी उड़ाने से प्रेम का विनाश होता है और बासी रोटी खाने से बुद्धि का विनाश होता है.

साधु को स्वाद से क्या, गुड़ नहीं बताशा ही सही. आजकल के धूर्त साधुओं पर व्यंग्य. 

साधु भूखा भाव का धन का भूखा नाहिं, (धन का भूखा जो फिरै सो तो साधु नाहिं)  साधु का मन  भाव का भूखा होता है,  वह धन का लोभी नहीं होता. जो धन का लोभी है वह तो साधु नहीं हो सकता.

साधु मिलन अरु हरि भजन, दया धरम उपकार, तुलसी या संसार में पांच रतन हैं सार. अर्थ स्पष्ट है.

साधु संत दें जिन्हें असीस, सुखी रहें वे बिस्वे बीस. साधु संत जिन्हें आशीर्वाद देते हैं वे सदा सुखी रहते हैं. यहाँ साधु से अर्थ असली साधु से है, गेरुए वस्त्र पहन कर भीख मांगने वालों से नहीं.

साधुन पीई संतन पीई पीई कुंवर कन्हाई, जो विजया की निंदा करें उन्हें खाय कालिका माई. विजया माने भांग. भांग पीने वाले इस तरह भांग की बड़ाई करते हैं.

साधू जन रमते भले, दाग लगे न कोय. साधु को कहीं ठहरना नहीं चाहिए, ठहरने से उस पर कलंक लगने का डर रहता है.

साबित कदम को सब जगह ठाँव. परिश्रमी और ईमानदार व्यक्ति का स्वागत सब लोग करते हैं.

साबित नहीं कान, बालियों का अरमान. किसी वस्तु के योग्य न होने पर भी उसकी इच्छा करना.

साम दाम दंड भेद. किसी चीज़ को पाने के लिए उचित अनुचित सब प्रकार की तिकड़म करना. इंग्लिश में कहावत है – By hook or by crook.

सामने पड़ जाए काना, तो बैकुंठ भी नहीं जाना. एक जमाने में ऐसा माना जाता था कि यदि आप कहीं जा रहे हों और काना व्यक्ति दिख जाए, तो भारी अपशकुन होता है. 

सामने सांप और पीछे बाघ. विकट परिस्थिति, जहाँ दोनों ओर एक से बढ़ कर एक संकट हों.

सार पराई पीर की क्या जाने बेपीर. जो कष्ट किसी ने स्वयं न झेला हो उस के बारे में वह नहीं जान सकता.

सारा गाँव जल गया, काले मेघा पानी दे. मुसीबत आने पर स्वयं कोई प्रयास न कर के दूसरों का मुँह ताकते रहना.

सारा शहर जल गया, बीबी फ़ातिमा को खबर ही नहीं. अपने चारों तरफ के हालात से अनजान रहना.

सारी ईद मुहर्रम हो गई. एक झटके में सारी ख़ुशी गम में बदल गई. (छठी की तेरईं हो गई)

सारी खुदाई एक तरफ जोरू का भाई एक तरफ. अगर घर में शान्ति चाहिए तो पत्नी के भाई को अति महत्वपूर्ण का दर्ज़ा देना पड़ेगा.

सारी चोट निहाई के सिर. जिम्मेदार व्यक्ति को सब मुसीबतें झेलनी पडती हैं. निहाई पक्के लोहे की एक बड़ी सिल जैसी होती है जिस पर रख कर लोहे को काटा पीटा जाता है. लोहे पर जितनी चोट की जाती हैं वे सब निहाई पर ही पड़ती हैं. 

सारी देग में एक ही चावल टटोला जाता है. किसी घर या समाज के एक ही आदमी को देख कर यह अंदाजा लगाया जाता है कि वह घर या समाज कैसा होगा.

सारी रात पीसा पर ढकना भी न भरा. बहुत मेहनत की पर फल कुछ नहीं मिला.

सारे जहां का दर्द हमारे जिगर में है. जो लोग व्यर्थ में ही सभी की परेशानियों में परेशान होते रहते हैं उनका मज़ाक उड़ाने के लिए.

साला तीरथ, ससुरा तीरथ, तीरथ छोटी साली, मात पिता की बात न पूछे, तीरथ है घरवाली. उन लोगों पर व्यंग्य जो ससुराल को सब कुछ मानते हैं और माता पिता की सेवा नहीं करते हैं.

साली छोड़ सास से मसखरी. मूर्खता पूर्ण और बचकाना काम.

साली निहाली, चहिए ओढ़ी, चहिए बिछा ली. साली से मज़ाक का रिश्ता होता है इसलिए कुछ भी कहा जा सकता है. निहाली माने निहाल करने वाली.

साले की चूल्हे में जड़. साले को जीजा के घर में कभी खाने पीने की कमी नहीं हो सकती.

सावन की छाछ भूतों को, जेठ की छाछ पूतों को. पुराने लोग मानते थे कि सावन के महीने में छाछ (मट्ठा) नुकसान करता है और जेठ में बहुत लाभ करता है.

सावन की तीज, पड़े खेत में बीज. सावन की तीज को खेत में खरीफ की बुआई शुरू करने का रिवाज़ रहा होगा.

सावन के अंधे को हरा ही हरा सूझता है. इस कहावत को कुछ इस तरह प्रयोग करते हैं कि लालची व्यक्ति को हर समय पैसा ही पैसा दिखाई देता है.

सावन के रपटे और हाकिम के डपटे में कुछ बुरा नहीं. सावन में कीचड़ में फिसलना बहुत आम बात है इसलिए उस से ज्यादा परेशान नहीं होना चाहिए. इसी तरह हाकिम अगर डांट दे तो उसका बुरा नहीं मानना चाहिए क्योंकि यह तो हाकिमों की आम आदत होती है.

सावन केरे प्रथम दिन उगत न दीखे भान, चार महीना पानी बरसे जानो इसे प्रमान. सावन के पहले दिन यदि सूर्य बादलों में छिपा रहे तो चार महीने अच्छी वर्षा होगी. (घाघ और भड्डरी की कहावतें)

सावन घोड़ी भादों गाय, माघ मास जो भैंस बियाय, जेठे बहू असाढ़े सास, सो घर होवे बाराबाट. (बुन्देलखंडी कहावत) सावन में घोड़ी, भादों में गाय और माघ के महीने में भैंस का ब्याहना अशुभ होता है. इसी प्रकार जेठ में बहू और आषाढ़ में सास को प्रसव हो तो घर में बर्बादी आती है.

सावन घोड़ी, भादों गाय, माघ मास में भैंस बियाय, जी से जाय या खसमहिं खाय. इन महीनों में प्रसव होने से ये मर सकती हैं या इनके मालिक का अनिष्ट हो सकता है.

सावन मास बहे पुरवैया, बेचे बरधा लेवे गैया. सावन में पुरवाई चलने से वर्षा नहीं होती. ऐसे में बैल बेच कर गाय खरीद लेना चाहिए जिससे गुजर हो सके.

सावन में गधा उदासा. सावन में जब गधा सब तरफ़ बहुत सारी खास देखता है तो तनाव में आ जाता है कि मैं इतनी सारी घास कैसे खाऊंगा. कोई व्यक्ति बहुत सी सुविधाएं मिलने के बाद भी उदास हो तो यह कहावत कहकर उसका मजाक उड़ाया जाता है. वैशाख के महीने में जब मैदान सूख जाते हैं तो गधा बड़ा खुश होता है कि मैंने सारी घास खा ली. इसीलिए गधे को वैशाख नंदन कहते हैं.

सावन सूखे न भादों हरे (सावन हरे न भादों सूखे). यदि कोई व्यक्ति ऐसा काम कर रहा हो जिसमें न कभी अधिक लाभ होने की संभावना हो और न अधिक हानि (जैसे नौकरी करने वाले लोग).

सास का धन, जमाई पुन्न करे. दूसरे का धन खर्च कर के पुण्यात्मा बनने वाले लोगों पर व्यंग्य. 

सास की चेरी, सबकी जिठेरी. सास की मुंहलगी नौकरानी से सब बहुएं डरती हैं.

सास की रीस, पतोहू के माथे. बहू के आने से सास का महत्व कम हो जाता है इसलिए सास बहू से ईर्ष्या करती है.

सास को पड़ी भाजर की, बहू को पड़ी काजर की. भाजर – गृहस्थी का सामान. सास को घर गृहस्थी का सामान जुटाने की चिंता है और बहू को अपने श्रृंगार की.

सास गई गाँव, बहू कहे मैं क्या क्या खाऊं. पुराने जमाने में बहुएं सास से डरती थीं और सास के सामने अपने मन की चीज़ें नहीं खा सकती थीं. सास बाहर गई है तो बहू के ठाठ हो रहे हैं. (अब इसका उल्टा हो गया है).

सास छोटी और बहू बड़ी. जिस घर में बड़े लोगों की पूछ न हो उस के लिए कही जाने वाली कहावत.

सास ताके टुकुर टुकुर, बहू चली बैकुंठ. 1. घर में किसी अत्यधिक वृद्ध व्यक्ति के जीवित रहते यदि किसी कम आयु वाले की मृत्यु हो जाए तो. 2. सास को छोड़ कर बहू तीर्थ यात्रा पर जाए तो.

सास न नन्दी, आप ही आनंदी. जिस बहू के घर में सास और ननद नहीं होतीं वह खुश रहती है (कोई रोकने टोकने वाला नहीं होता).

सास ने बहू से कही, बहू ने कुत्ते से कही, कुत्ते ने पूँछ हिला दी. एक दूसरे पर काम टालने वालों के लिए यह कहावत कही जाती है. 

सास बहू की एकहिं सोड़ (सौर), लक्ष्मी जाए छत को फोड़. (बुन्देलखंडी कहावत) सास बहू को अगर एक साथ प्रसव हो तो यह घर के लिए अशुभ है (लक्ष्मी रूठ जाती है).

सास बहू की हुई लड़ाई, करे पड़ोसन हाथापाई. दूसरों की लड़ाई में जरूरत से ज्यादा लिप्त हो जाना.

सास बहू की हुई लड़ाई, सिर को फोड़ मरी हमसाई. सास बहू की में लड़ाई पड़ोसन को बीच में नहीं पड़ना चाहिए. वह जिस के अनुकूल नहीं बोलेगी उसी से दुश्मनी हो जायेगी.

सास मर गई कट गई बेड़ी, बहू चढ़ गई हर की पैड़ी. सास के मरने से बहू बहुत आजाद महसूस कर रही है. 

सास मर गई ससुरा जिए, नई बहुरिया के राज भए. सास मर गई और ससुर जीवित है तो नई बहू का घर पर राज हो जाता है.

सास मर गई, तूम्बे में आत्मा. बहू को डराने के लिए

सास मेरी घर नहीं, मुझे किसी का डर नहीं. सास के बाहर जाने पर बहू की मौज. कोई कड़क हाकिम छुट्टी पर हो तो कर्मचारियों की मौज हो जाती है.

सास मोरी अन्हरी, ससुर मोरा अन्हरा, जिस से बियाही वोही चक्चुन्हरा, के को दिखाने को डालूँ मैं कजरा. (भोजपुरी कहावत) अन्हरी – अंधी, अन्हरा – अंधा, चक्चुन्हरा – जिसकी आंखें रौशनी से चकाचौंध हो कर बार बार बंद होती हों. ससुराल में किसी को कुछ दिखता ही नहीं है तो बहू श्रृंगार किस को दिखाने के लिए करे.

सास से तोड़ बहू से नाता. घर में किसी एक से नाता तोड़ कर दूसरे से जोड़ना. यहाँ सास बहू का उदाहरण ख़ास तौर पर इसलिए दिया गया है क्योंकि उन में थोड़ी अनबन और एक दूसरे को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति होती है.

सास से बैर, पड़ोसन से नाता. अपने घर के सगे सम्बन्धियों से अधिक पड़ोसियों को तवज्जो देना.

सास, कोठे पर की घास. सास को बहुत तुच्छ चीज़ समझना. कोठे पर की घास – छत पर उगी घास.

सासरे का दुख और पीहर के बोल. औरत के लिए कहीं भी सुख नहीं है. ससुराल में हरदम सास और ननद का कोंचना. मायके में भौजाइयों का राज होने पर वे भी ताने मारती रहती हैं. 

सासरो सुख वासरो, दो दिनां को आसरो. पुरुषों के लिए ससुराल में दो दिन रहना ही अच्छा लगता है.

सासू का ओढ़ना, पतोहू का नक्पोछना. सास जिस चीज़ को जीवन भर संभाल कर इस्तेमाल करती है, पुत्रवधू उसकी बेकद्री करती है (सास के ओढ़ने को बहू नाक पोंछने के लिए प्रयोग कर रही है).

सासू कुत्ती दूर हट, धोबिन माई पांय लागूं (सास से रूठना और धोबिन मैया पांय लागी). ऐसी दुष्ट बहू के लिए जो सास का अपमान करती है और सास को जलाने के लिए दूसरी औरतों व काम वालियों का दिखावटी आदर करती है.

सासू खाती पाहुना, बहू बटाऊ खाय. सास शातिर है, मेहमानों को खा जाती है, पर बहू तो और बढ़ कर है, राह चलते लोगों को पकड़ कर खा लेती है. जहाँ सास बहू एक से बढ़ कर एक धूर्त हों.

सासू जी की सीख घर के द्वार तक. सास की सीख को बहू घर में ही मानती है, जैसे ही घर से निकली आजाद हुइ.

साह का दांव हाट में, चोर का दांव बाट में. व्यापारी का दांव मंडी में काम करता है और चोर का सुनसान रास्ते में.

साह का साथ भला और रात का घात भला. किसी का साथ करना हो तो सुरक्षा की दृष्टि से सब से अच्छा साथ राजा का है, और किसी पर हमला करना हो तो रात का समय सब से अच्छा है.

साहत से सुतार भला. शुभ मुहूर्त की प्रतीक्षा करते रहने से सुअवसर का लाभ उठाना ज्यादा अच्छा है.

साहब की सलाम दूर की भली (साहब से सलाम दूर की). हाकिमों से जितना दूर रहो उतना अच्छा.

साहू बनज न कीजिए जो दरबार बिकात, गाँठ लेत देतन कटे विनती में दिन रात. (बुन्देलखंडी कहावत) व्यापारियों को सलाह दी गई है कि सरकारी विभागों को कोई सामान नहीं बेचना चाहिए. वे भुगतान भी पूरा नहीं करेंगे, रिश्वत मांगेंगे और दिन रात चक्कर भी लगवाएंगे.

सिंह अकेला मारे खाए. शेर को शिकार के लिए किसी सहायक की आवश्यकता नहीं होती. वीर पुरुष अकेले ही कार्य करते हैं.

सिंह के वंश में उपजा स्यार. वीर पुरुषों के वंश में कोई व्यक्ति कायर निकल जाए तो.

सिंह चाहे वन को और वन चाहे सिंह को. शेर के लिए जंगल आवश्यक है और जंगल के लिए शेर. प्रकृति का संतुलन इसी प्रकार से बनता है. जंगल नहीं होगा तो शेर और सारे जानवर कहाँ रहेंगे. यदि शेर शाकाहारी जंतुओं का शिकार नहीं करेगा तो उनकी संख्या बहुत बढ़ जाएगी और वे जंगल को खा जाएंगे.

सिंह नहीं देखा तो देख ले बिलाई, जम नहीं देखा तो देख ले जमाई. किसी ने शेर नहीं देखा तो बिल्ली को देख लो जिस में शेर के बहुत से गुण हैं, और यमराज को न देखा हो तो दामाद को देख लो. वैसे यह बात आज के समय में सच नहीं है. आजकल बहुत से दामाद बेटों से ज्यादा सेवा करते हैं.

सिंहनी एक सपूत जन सोवत पाँव पसार, दसेक पूत जन के गधी लादे धोबी भार. समझदार और बहादुर लोग कम बच्चे पैदा करते हैं और सुख से रहते हैं, जबकि मूर्ख लोग ज्यादा बच्चे पैदा कर के गरीबी में पिसते रहते हैं.

सिंहों के नहिं लेह्ड़े, हंसों की नहिं पांत, लालन की नहिं बोरियां, साधु न चलें जमात. शेरों के झुंड नहीं होते, हंसों की पंक्तियाँ नहीं होतीं, लाल इतने सारे नहीं होते कि बोरियों में भरे जाएं और साधु इतने अधिक नहीं होते कि समुदाय बना कर चलें. ये सब बिरले ही होते हैं.

सिकंदर जब चला दुनिया से, दोनों हाथ खाली थे. कोई कितना भी शक्तिशाली और दौलतमंद क्यों न हो इस दुनिया से सब को खाली हाथ जाना है.

सिखाई बुद्धि अढाई घड़ी. सिखाई हुई बुद्धि थोड़ी देर ही काम आ सकती है, सारे जीवन नहीं. 

सिखाए पूत दरबार नहीं चढ़ते. जिसमें अपनी कोई बुद्धि न हो वह केवल सिखाने से ही योग्य नहीं बन सकता. राजा के दरबार में वही लोग जा पाते थे जो बहुत योग्य होते थे.

सिखाने से घर उजड़ते हैं, सिखाने से ही घर बसते हैं. गलत बातें सिखाने से घर उजड़ते हैं और अच्छी सकारात्मक बातें सिखाने से घर बसते हैं.

सिखैया नाऊ का काटेगा बटाऊ का. सीखने वाला नाई अनजान लोगों की ही खाल काटता है. बटाऊ – राहगीर.

सिद्ध को साधक पुजाते हैं (सिद्धों की महिमा साधकों से). किसी तथाकथित सिद्ध आदमी की महत्ता उस को पूजने वाले लोग ही निर्माण करते हैं. जितने अधिक मानने वाले होते हैं उतना ही सिद्ध पुरुष पूजा जाता है.

सिपाही की जोरू हमेशा रांड. सिपाही लड़ाई पर जाता है तो भी बेचारी अकेली रहती है, और अगर लड़ाई में मारा जाए तब तो विधवा हो ही जाती है.

सिपाही की रोटी जान बेचे की. सिपाही अपनी जान खतरे में डालने की रोटी खाता है.

सियार औरों को शगुन दे, आप कुत्तों से डरे. यात्रा में सियार का मिलना अच्छा शगुन माना जाता है. सियार बेचारा औरों के लिए तो अच्छा शगुन है लेकिन खुद कुत्तों से डरता है.

सियार के शिकार को शेर नहीं खाता है. योग्य और वीर पुरुष घटिया लोगों द्वारा अर्जित की हुई संपत्ति से लाभ नहीं उठाते.

सियार ने कहा और लोमड़ी ने गवाही दी. धूर्त लोग आपस में बिना शर्त एक दूसरे का समर्थन करते हैं, जैसे आजकल के कुछ नेता.

सिर का बोझ पैर पर आवे. बोझ चाहे सर पर रखा हो, पैरों को ही सारा बोझ उठाना पड़ता है. परिवार का सारा भार अंततोगत्वा मुखिया पर ही आता है. 

सिर की पगड़ी हाथ, कर ले दो दो हाथ. सिर की पगड़ी से अर्थ अपनी इज्ज़त से है. अपनी इज्ज़त हाथ में ले ली तो फिर गाली गलौज या लड़ने से क्या डरना.

सिर झाड़, मुँह पहाड़. कुरूप और बेतरतीव व्यक्ति. 

सिर पर जूती, हाथ में रोटी. बहुत अपमान सह कर रोजी रोटी कमाना.

सिर फोड़े को मुंह फोड़ा ही भाता है. निम्न वृत्ति के लोगों को अपने जैसे लोग ही पसंद आते हैं.

सिर बड़ा सपूत का, पांव बड़ा कपूत का. लोक मान्यता है कि योग्य लोगों का सिर बड़ा होता है और मूर्ख लोगों के पाँव.

सिर सजदे में, मन बोटियों में. झूठी इबादत. 

सिर से उतरे बाल, गू में जाएं या मूत में. सिर से उतरने के बाद बाल कहीं भी फेंक दिए जाते हैं (उन्हें कोई नहीं पूछता). समाज की निगाहों से उतरे हुए सम्मानित व्यक्ति का भी यही हाल होता है.

सिरहाना किधर भी करो, चूतड़ तो बीच में ही रहेंगे. सत्ता किसी के भी पास जाए, बिचौलिए मजे में रहते हैं.

सिर्फ ताबीज़ से ही काम नहीं होता, कुछ कमर में भी दम चाहिए. विशेष तौर पर यह कहावत संतान मांगने वालों के लिए कही गई है. लेकिन अन्य स्थानों पर भी प्रयोग कर सकते हैं कि पूजा पाठ, गंडे तावीज़ के सहारे मत बैठे रहो, कर्म करो.

सिलाई दोगे या ब्योंत में निकाल लूँ. ब्योंत – कतरन. दरजी को सिलाई का पूरा पैसा नहीं देना चाहोगे तो वह कपड़ा बचा कर कसर पूरी करेगा. जिसका जो काम है उसे उसका पूरा मेहनताना देना चाहिए, वरना वह हेर फेर करने पर मजबूर हो जाता है. 

सिवइयों बिन ईद कैसी. बढ़िया खाना, मिठाई और कपड़े आदि न मिलें तो त्यौहार कैसा.

सींग कटा बछड़ों में मिले. कोई बड़ी उम्र का व्यक्ति बच्चों के बीच बच्चा बन जाए तो.

सींग पकड़े तो टूटा हुआ, पूँछ पकड़े तो कटी हुई.  जो व्यक्ति बात-बात में बदल जाय. जिससे कुछ भी कबूलवाना मुश्किल हो. जैसे कुछ धूर्त नेता.

सींग मुड़े, माथा उठा, मुंह होवे गोल, रोम नरम, चंचल करन, तेज बैल अनमोल. आज की खेती में बैल का महत्व समाप्त हो गया है लेकिन एक जमाने में खेती के लिए बैल अपरिहार्य होता था. उस समय सयाने लोग अच्छे बैल की बहुत सी पहचान बताया करते थे.

सीख उसी को दीजिए जाको सीख सुहाए, सीख जो दीन्ही बांदरा चिड़िया का घर जाए. सीख उसी को देनी चाहिए जिसे सीख अच्छी लगे. जो सीख सुन कर खिसियाए उसे सीख नहीं देनी चाहिए. चिड़िया और बन्दर की कहानी आप ने सुनी होगी. एक बंदर जाड़े की बरसात में भीग कर थर थर काँप रहा था. बया अपने घोंसले से निकली तो यह देख कर उसने बन्दर को सीख देनी चाही – मानस के से हाथ पैर और मानस की सी काया, चार महीने वर्षा बीती छप्पर क्यों नहिं छाया. बन्दर ने खिसिया कर उसका घर तोड़ दिया.

सीख देत औरों को पांडे, आप भरें पापों के भांडे. पंडित लोग औरों को शिक्षा देते हैं और अपने आप गलत काम कर के पाप के घड़े भरते हैं.

सीख बाप की, अकल आप की. पिता की शिक्षा काम आती है पर अपनी अक्ल होना भी बहुत आवश्यक है.

सीख सड़प्पे तो लाला जी के साथ गए, अब तो देखो और खाओ. एक लालाजी बहुत कंजूस थे. रोटी में घी लगाना हो तो घी के डब्बे में सींक डुबोते थे. उसमें जितना घी आ जाए वही रोटी पर लगाते थे. सेठ जी की मृत्यु हो गई तो बेटे ने गद्दी संभाली. वह उन से बड़ा कंजूस था. उस ने घर वालों से कहा कि वह सींक वींक सेठजी के साथ चली गई. अब तो बस घी के डब्बे को देखो और रोटी खाओ.

सीख सरीरां ऊपजै देई न आवे सीख. जिसके अंदर सीखने की इच्छा हो वही कुछ सीख सकता है, जबरदस्ती किसी को कुछ नहीं सिखाया जा सकता.

सीढ़ी दर सीढ़ी छत पर चढ़ते हैं. कोई भी कठिन कार्य एक एक पायदान चढ़ कर ही पूरा होता है.

सीतल, पातल, मंद गत, अल्प अहार, निरोस, ये तिरिया में पांच गुन, ये तुरिया में दोस. शीतल स्वभाव, पतला शरीर, मंद गति, कम खाना और निरोष (क्रोध रहित) होना, स्त्री में ये पाँचों गुण हैं जबकि घोड़ी में हों तो अवगुण माने जाते हैं. तिरिया शब्द स्त्री का अपभ्रंश है. तुरिया माने घोड़ी.

सीता सुकुमारी जैमाल श्री राम गले डाले. विवाह में जयमाल के समय बड़ी बूढ़ियाँ यह मंगल गीत गाती हैं.

सीधी उँगली से घी नहीं निकलता है. पहले के जमाने में चम्मच का प्रयोग नहीं होता था. यदि थोड़ा सा घी निकालना हो महिलाएं डब्बे में उँगली डाल कर उससे घी निकाल लेती थीं. अब जाहिर सी बात है कि अगर सीधी उंगली डालोगे तो घी कहाँ निकलेगा, टेढ़ी उँगली से ही निकलेगा. कहावत का अर्थ है कि केवल सिधाई से काम नहीं निकलता. इस कहावत को इस प्रकार भी कहते हैं – टेढी उँगली से ही घी निकलता है.

सीधे का मुंह कुत्ता चाटे. जो आदमी सीधा होता है उसका सब नाजायज़ फायदा उठाते हैं.

सीधे को सौ दुख. सीधे आदमी के लिए इस स्वार्थी और कपटी संसार में दुख ही दुख हैं.

सीधे घोड़े पर दो सवार होते हैं (सीधे पर दो लदें). सीधे की सिधाई का सब फायदा उठाते हैं.

सीधे पेड़ काटे जाते हैं, टेढ़े पेड़ खड़े रहते हैं. सीधे लोगों पर ही सब अत्याचार करते हैं, दुष्ट लोगों को कोई नहीं छेड़ता.

सीलवंत गुन न तजे, औगुन तजे न गुलाम, हरदी जरदी न तजे, खटरस तजे न आम. जो शीलवान व्यक्ति है वह अपने गुणों का त्याग नहीं करता और जो बुरी आदतों का गुलाम है वह अपनी बुरी आदतें नहीं छोड़ता. जिस प्रकार हल्दी अपना पीलापन नहीं छोड़ती और कच्चा आम अपना खट्टापन नहीं छोड़ता.

सुअर का बन्दा, क्या साफ़ क्या गन्दा. गंदे आदमी की संतानें भी गंदी ही होती हैं.

सुई कहे मैं छेदूं छेदूं पहले छेद कराए. सुई सब को छेदने से पहले अपने अंदर छेद कराती है. दूसरों को नसीहत देने से पहले स्वयं उसका पालन करना चाहिए.

सुई चोर सो बज्जर चोर. चोर तो चोर है, चाहे वह सुई चुराए या कोई बड़ी चीज़ चुराए.

सुई जहां न जाए वहाँ सूजा घुसेड़ते हैं. जहाँ सिधाई से काम न चले वहाँ बल प्रयोग करना पड़ता है.

सुई टूटी कसीदे से छूटी. सुई टूटने से कामचोर महिला खुश हो रही है कि चलो अब कढ़ाई करने से मुक्ति मिली. कामचोर लोग काम से बचने के बहाने ढूँढते हैं.

सुई से बोले छलनीतेरे सर में छेद. अपने अंदर बहुत सी कमियाँ होते हुए भी दूसरे की छोटी सी कमी का मजाक उड़ाना. (छलनी में खुद इतने सारे छेद होते हैं).

सुख और दुःख एक सिक्के के दो पहलू हैं. हमें इन दोनों को ही स्वीकार करना सीखना चाहिए.

सुख कहना जन से, दुःख कहना मन से. अपना सुख सब से बांटो लेकिन दुःख को मन में ही रखो.

सुख की कदर दुख में ही मालूम होती है. जब तक इंसान को सुख ही सुख मिलता है वह उस की कदर नहीं जानता. जब दुःख मिलता है तभी समझ में आता है कि सुख कितना कीमती है.

सुख के बड़े जोधा रखवाली हैं. सुख किसी किले में बंद है और बहुत से योद्धा उस की रखवाली कर रहे हैं. सुख के आस पास पहुँचना बहुत कठिन है. इंग्लिश में कहावत है – Pleasure has a sting in its tail.

सुख के माथे सिल परै नाम हिए ते जाय, बलिहारी वा दुख की पल-पल नाम रटाय. सिल – पत्थर (शिला), हिए – हृदय. जिस सुख के कारण प्रभु का नाम भूल जाता है उस सुख के माथे पर पत्थर पड़ें. उस दुख की बलिहारी जिस के कारण प्रभु का नाम याद रहता है.

सुख के सब साथी, दुःख में न कोय. जब व्यक्ति सुख में होता है तो दूर दूर के दोस्त रिश्तेदार भी अपने होते हैं, दुःख आते ही सब गायब हो जाते हैं.

सुख बढ़े, मुटापा चढ़े. जब व्यक्ति सुख में होता है तो उस पर मोटापा चढ़ने लगता है.

सुख मानो तो सुक्ख है, दुख मानो तो दुक्ख, सच्चा सुखिया वही है, जो माने सुख न दुक्ख. सुख और दुख बहुत कुछ हमारी सोच के परिणाम हैं, जो सुख और दुःख से प्रभावित नहीं होता वही वास्तव में सुखी है.

सुख में आए करमचंद, लगे मुड़ावन गंज. करमचन्द ज्यादा पैसे वाले हो गए तो अपने गंजे सर को मुंडवाने लगे. मूर्खतापूर्ण दिखावा और फिजूलखर्ची.

सुख में निद्रा, दुख में राम. सुख में व्यक्ति चैन की नींद सोता है, दुख में उसे भगवान याद आते हैं.

सुख में सिंगार, दुख में ढाल. आभूषणों के लिए ऐसा कहा गया है. सुख के दिनों में श्रृंगार करने के काम में आते हैं और दुख के दिनों का सहारा बनते हैं (इन को बेच कर काम चलाया जा सकता है).

सुख में सुमिरन ना किया, दु:ख में किया याद, कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद. जो लोग सुख में भगवान को याद नहीं करते केवल दुःख में ही याद करते हैं उनकी प्रार्थना भगवान क्यों सुनेंगे. 

सुख सोवे कुम्हार जाकी चोर न लेवे मटिया. कुम्हार को चोरी का कोई डर नही है (उसकी मिट्टी कौन चुराएगा), इसलिए वह सुख से सोता है. सम्पन्नता के साथ ही चिंताएँ आती हैं.

सुखिया सब संसार है, खावै और सोवे, दुखिया दास कबीर है, जागै अरु रौवे. जो लोग अज्ञानी हैं वे सुख से खा रहे हैं और सो रहे हैं क्योंकि उन्हें संसार की कोई चिंता नहीं है और अपना भविष्य वे जानते नहीं हैं. जिनके ज्ञान चक्षु खुल गए हैं (जो जाग गए हैं) वे वास्तविकता जान कर दुखी होते हैं.

सुखिया सुख के आगे, दुखिया का दुख क्या जाने. जो सब प्रकार से सुखी और संपन्न है (जिसने कभी कष्ट नहीं भोगा) वह दुखी लोगों के कष्ट को नहीं समझ सकता. 

सुखी सुख देवे, दुखी दुख देवे. सुखी व्यक्ति सुख बाँटता है और दुखी व्यक्ति दुख बाँटता है. दुखी व्यक्ति हमेशा अपनी परेशानियों का रोना रोता है और मदद चाहता है.

सुखे सिहुला दुखे दिनाइ, करम फूटे तो फटे बिबाई. सिहुला – छीप (एक प्रकार का फंगल इन्फेक्शन जिस में खुजली नहिं होती, केवल हल्के रंग के छोटे छोटे गोल चकत्ते बन जाते हैं), दिनाई – दाद. जिन को सिहुला होता है उन्हें कोई कष्ट नहीं होता, जिन्हें दाद होता है उन्हें खुजली के कारण कुछ कष्ट (दुःख) होता है पर जिनके पैर में बिबाई फट जाएँ उन्हें बहुत अधिक कष्ट होता है.

सुघड़ बलैयां ससुरा ले, बैल मांग बहू को दे. होशियार और आदर करने वाली बहू की ससुर हर संभव सहायता करता है. बहू को बैलों की जरूरत हो तो दूसरों से बैल मांग कर लाता है.

सुघड़ भलाई ससुरा ले, बैल खोल बहू के दे. ऊपर वाली कहावत से एकदम अलग. कुछ लोगों में अपनी प्रशंसा करवाने की बड़ी ललक होती है. ऐसे ही एक ससुर लोगों से प्रशंसा पाने के लिए इतने लालायित हैं कि बहू के बैल खोल कर उधार दे दे रहे हैं. (अपनी तारीफ़ के लिए दूसरे का नुकसान करना).

सुधरने में देर लगती है, बिगड़ने में नहीं. व्यक्ति हो या कोई काम बिगड़ बहुत जल्दी जाता है पर सुधरता बहुत मुश्किल से है.

सुन ऐ माटी के लोला, कायथ सुनार कहीं भगत होला. (भोजपुरी कहावत) कायस्थ और सुनार लोगों से त्रस्त कोई व्यक्ति बता रहा है कि ये लोग कभी सच्चे नहीं होते.

सुना था तो डरे, जब पड़ा तो किए (सुनी थी तो डरी थी, पड़ी थी तो सही थी). जब हम किसी कठिन परिस्थिति के विषय में सुनते हैं तो डरते हैं, पर जब आ कर पड़ती है तो उसे सहते भी हैं और उससे निबटने के लिए उपाय भी करते हैं.

सुनार अपनी माँ की नथ में से भी चुराता है. अर्थ स्पष्ट है. सुनार बेचारे इतने बदनाम हैं कि उन के बारे में यहाँ तक कहा गया है.

सुनार का बेटा सुरूप भी सस्ता, बनिए का बेटा कुरूप भी महंगा. सुनार का बेटा सुंदर हो तब भी दहेज़ कम ही मिलेगा और बनिये का बेटा कुरूप हो तब भी अच्छा दहेज़ मिलेगा.

सुनार की खटाई और दर्ज़ी के बंद. काम को टालने वालों के लिए. सुनार और दर्ज़ी कभी समय पर काम कर के नहीं देते. सुनार के पास जाओ तो कहेगा कि सामान तैयार है बस खटाई में डालना है. दर्जी के पास जाओ तो कहेगा कि कपड़ा तैयार है बस बंद (बटन) लगाने हैं.

सुनार जी थोड़ा सोना दे दो, सोना क्या मांगे से मिले, मांगे से तो न मिले पर ठाली जिभ्या क्या करे. सुनार से किसी ने सोना माँगा, तो सुनार ने कहा कि सोना क्या माँगने से मिलता है. माँगने वाला कहता है कि मुझे मालूम है मांगने से नहीं मिलता है, पर खाली जीभ क्या करे, कुछ तो चलनी चाहिए. 

सुनार ही जाने सुनार की माया. सुनार किस किस प्रकार से लोगों को ठगता है यह दूसरा सुनार ही जान सकता है.

सुनो भई गप्प सुनो भई सप्प, नाव में नदिया डूबी जाए. कोई बड़ी बड़ी गप्पें हांक रहा हो तो उस का मज़ाक उड़ाने के लिए.

सुनो सब की करो मन की. यदि आपको कोई सलाह देता है तो धैर्य पूर्वक सुनना चाहिए पर बिना सोचे समझे उस पर अमल नहीं करना चाहिए. सब की सलाह पर मनन करके और अपने विवेक से सोच कर कोई कार्य करना चाहिए.

सुन्दरता को सिंगार की जरूरत नहीं. जो वास्तव में सुंदर है उसे श्रृंगार की आवश्यकता नहीं है.

सुबह का भूला शाम को घर लौट आए तो भूला नहीं कहलाता. यदि कोई व्यक्ति कुछ गलतियाँ करे पर बाद में उन्हें सुधार ले तो उसका दोष नहीं माना जाता.

सुबेला का पाहुना, कुबेला का बैरी. सही समय पर आया अतिथि अच्छा लगता है और असमय आया अतिथि दुश्मन लगता है. सुबेला – उपयुक्त समय, कुबेला – गलत समय, पाहुना – अतिथि.

सुर नर मुनि सब की यह रीती, स्वारथ लागि करें सब प्रीती. चाहे देवता हों, मनुष्य हों या मुनि हों, सब अपने स्वार्थ के लिए ही प्रेम करते हैं.

सुरमा सबहिं लगात, पर चितवन भांत भांत. श्रृंगार सब करते हैं पर सब सुंदर नहीं दिखते.

सुलगती में फूंक मत दो. यदि दो लोगों में कुछ अनबन चल रही हो तो ऐसी कोई बात मत कहो जिससे आग भड़क जाए.

सुहाते की लात, न सुहाते की बात. जो अपने को अच्छा लगता है उसकी लात भी सही जाती है लेकिन जो बुरा लगता है उसकी बात भी बुरी लगती है.

सूंड कटे गणेश. बहुत मोटे व्यक्ति का मजाक उड़ाने के लिए. 

सूअर की नजर पड़ेगी तो गू पर ही. जो व्यक्ति जिस प्रवृत्ति का होता है वह वैसे ही गुण दोष ढूँढ लेता है. सूअर के सामने तरह तरह के व्यंजन रखे हों और कोने में कहीं विष्टा पड़ी हो तो वह विष्टा की ओर ही भागेगा. विधर्मी लोग आर्य सनातन धर्म की हजार विशेषताओं को न देख कर एकाध छोटी मोटी कमी का ही मजाक उड़ाते हैं.

सूअर को गू पकवान. निकृष्ट व्यक्ति को निकृष्ट वस्तुएँ ही अच्छी लगती हैं.

सूअर चरें, कटरे मार खाएँ. किसी के अपराध की सजा दूसरे को मिले तो.

सूअर तो गू से भी पेट भरे पर गाय क्या करे. गंदगी में रहने और निकृष्ट पदार्थ खाने वाले व्यक्ति कैसे भी जीवन काट सकते हैं पर स्वच्छता प्रेमी को ऐसी परिस्थितियों में बहुत परेशानी होती है. 

सूई भी साथ नहीं जाएगी. जो लोग धन दौलत इकट्ठी करने के पीछे पागल रहते हैं उन को बार बार यह समझाया जाता है कि तुम यहाँ से सुई भी साथ नहीं ले जा सकते.

सूखे कुएं से घड़ा नहीं भरता. जिस के पास स्वयं कुछ न हो वह किसी को कैसे कुछ दे सकता है.

सूखे धानों पानी पडा. 1. जिस वस्तु की अत्यधिक आवश्यकता थी वही मिल गई. 2. जब धान सूख गए तब पानी पड़ा जोकि किसी काम का नहीं.

सूखो भोजन, कुलरिनी, औ कुलच्छनी नार, पाँव पन्हैया है नहीं, नरकों के फल चार. (बुन्देलखंडी कहावत) कुलरिनी – जिसको बाप दादों का कर्ज उतारना हो. यह चार चीजें धरती पर ही नरक भोगने की निशानी हैं – रूखा सूखा भोजन, बाप दादाओं की कर्जदारी, चरित्रहीन पत्नी और बिना जूते के पैर.

सूझे न बिटौरा और गुलेल का शौक. कंडों के ढेर जैसी बड़ी चीज नहीं दिखती और गुलेल चलाने का शौक रखते हैं. बिना सामर्थ्य के कोई काम करने की कोशिश करने वाले के लिए.

सूझे न बिटौरा, चाँद से राम राम. किसी व्यक्ति को पास की चीज़ भी ठीक से न दिखती हो और वह बहुत दूर देखने की कोशिश करे तो.

सूत न कपास, जुलाहे से लठ्ठम लठ्ठा. पहले के लोग कपास ला कर सूट कातते थे और जुलाहे को दे कर उससे कपड़ा बुनवाते थे. बुनाई की मजदूरी कितनी हो या सूत कम हो गया इस बात पर झगड़ा भी होता था. किसी के पास न सूत है न कपास फिर भी जुलाहे से लड़ रहा है. बिना किसी बात के झगड़ा करने वाले के लिए.

सूधी छिपकली घणे माछर खावै. (हरियाणवी कहावत) छिपकली देखने में सीधी सादी लगती है पर ढेर सारे मच्छर खा जाती है. कहावत ऐसे लोगों पर फिट बैठती है जो देखने में सीधे लगते हैं और खूब हेर फेर कर लेते हैं.

सूने घर चोरों का राज (चूहों का राज). सूने घर पर अवांछित तत्व कब्जा कर लेते हैं, इसलिए घर को कभी खाली नहीं छोड़ना चाहिए. 

सूने घर में सियार ब्याये. जिस घर की चौकसी नहीं की जाती, उसका प्रयोग अवांछित लोग करने लगते हैं.

सूप बोले तो बोले, साथ में छलनी भी बोले, जामें बहत्तर छेद. सूप में अनाज को फटक कर उसमें से भूसी आदि अलग करने का काम किया जाता है. सूप एक बड़ा आइटम है जबकि छलनी छोटी सी चीज है. छलनी में बहुत सारे छेद भी होते हैं. अगर कोई बड़ा आदमी कोई आपत्तिजनक बयान दे और साथ में उसका चमचा टाइप का कोई आदमी भी बोलने लगे तो यह कहावत कही जाती है.

सूप हँसे चलनी पे कि तुझ में बहत्तर छेद. जिस व्यक्ति में दोष ही दोष हों वह अपने से कम दोषों वाले व्यक्ति पर हँसे तो.

सूम का धन बिरथा जाय. कंजूस आदमी का धन व्यर्थ ही जाता है, क्योंकि वह उसका स्वयं भी उपभोग नहीं करता और किसी को दान भी नहीं करता.

सूमन पूछे सूम से, कासे मुक्ख मलीन, कै गांठी से गिर पड़ो, कै काहू को दीन्ह, ना गांठी से गिर पड़ो, ना काहू को दीन्ह, देवत देखा और को, तासे मुक्ख मलीन. कंजूस घर आया तो बड़ा उदास था. पत्नी ने पूछा, उदास क्यों हो. क्या गाँठ में से कुछ गिर पड़ा, या किसी को कुछ देना पड़ा. कंजूस बोला, ऐसा कुछ नहीं है, किसी और को कुछ दान करते देख लिया, उससे मन में हौला बैठ गया.

सूमी का धन अइसे जाय, जइसे कुंजर कैथा खाय. कहते हैं कि हाथी कैथे के फल को साबुत खा लेता है पर उसे पचा नहीं पाता और साबुत कैथा मल में निकल जाता है. कंजूस का धन भी इसी प्रकार व्यर्थ जाता है.

सूर समर करनी करहिं, कहि न जनावहिं आप. सूर – शूरवीर, समर – युद्ध. वीर पुरुष युद्ध में ही वीरता दिखाते हैं, अपने आप उस का ढिंढोरा नहीं पीटते.

सूरज का क्या दोष जो उल्लू को न दीखे. कहते हैं कि उल्लू हो सूर्य के प्रकाश में नहीं दिखता. अब इस में सूर्य का तो कोई दोष नहीं माना जा सकता. यदि किसी मूर्ख को ज्ञानी की बात समझ में नहीं आती हो तो इस में ज्ञानी का क्या दोष. 

सूरज के शनीचर. जब किसी बहुत नेक इंसान का पुत्र दुष्ट हो तो. शनिदेव सूर्य के पुत्र हैं. सूर्य देव सौभाग्य और यश के दाता हैं जबकि शनि अमंगलकारी.

सूरज बैरी ग्रहन है, दीपक बैरी पौन, जी का बैरी काल है, आवत रोके कौन. ग्रहण सूरज का वैरी है और पवन दीपक का. इसी प्रकार काल जीवन का वैरी है इन्हें आने से कोई नहीं रोक सकता.

सूरत को क्या चाटें, जब सीरत ही नहीं है. किसी सुंदर व्यक्ति या स्त्री का व्यवहार अच्छा न हो तो सुंदरता का कोई मूल्य नहीं है.

सूरत देखकर गधे बिदकते है. किसी कुरूप (परन्तु घमंडी) व्यक्ति का मजाक उड़ाने के लिए. 

सूरत न शकल, भाड़ में से निकल. किसी व्यक्ति की शक्ल सूरत अच्छी न हो पर वह अपने को बहुत सुन्दर और काबिल समझता हो उससे चिढ़ने वाले ऐसा बोल कर मन की भड़ास निकालते हैं.

सूरत में जैसे, सीरत में तैसे. कुछ लोगों की शक्ल सूरत भी अच्छी नहीं होती और व्यवहार भी खराब होता है, उन के लिए.

सूरत से सीरत भली. शक्ल अच्छी हो पर व्यवहार बुरा हो तो आदमी बेकार है, सूरत अच्छी न हो पर व्यवहार अच्छा हो तो आदमी अच्छा है. इंग्लिश में इस से मिलती जुलती एक कहावत है – Hamdsome is that handsome does.

सूरत है लंगूर की बस दुम की कसर है. किसी को चिढ़ाने के लिए बच्चों की कहावत.

सूरदास की काली कमरिया, चढे न दूजो रंग. काले कंबल पर दूसरा रंग नहीं चढ़ सकता. सूरदास जी ने इसे भक्ति के आशय में प्रयोग किया है अर्थात सूरदास जी कृष्ण की भक्ति में इतने डूबे हुए हैं कि उन पर कोई और रंग नहीं चढ़ सकता. इस कहावत को किसी भी स्थान पर जहां कोई व्यक्ति अपने कट्टर विश्वास के आगे कुछ मानने को तैयार न हो, प्रयोग किया जा सकता है.

सूरा सो पूरा. जो शूरवीर है वही सम्पूर्ण व्यक्ति है.

सूर्य अस्त पहाड़ मस्त. पहाड़ पर शराब के अत्यधिक चलन के ऊपर कहावत.

सेंत का चन्दन, घिस रे लाला. चन्दन को पैसे दे कर खरीदा हो तो बड़ी किफायत से खर्च करते हैं और मुफ्त में मिल गया है तो खूब घिसो. (फोकट का चन्दन घिस मेरे नंदन).

सेंदुर न लगाएं तो भतार का मन कैसे रखें. सिंदूर न लगाएँ तो पति को प्रसन्न कैसे करें. मालिक के मनपसंद काम करना ही पड़ेगा.

सेज की तो मक्खी भी बुरी. सौतिया डाह की पराकाष्ठा.

सेज चढ़ते ही रांड हुई. विवाह होते ही विधवा हो गई. कोई काम होते ही बिगड़ गया हो तो.

सेठ के पेट में पापों की पोटली. अधिकतर लोग यह मानते हैं कि धनवान लोगों की कमाई पाप की होती है.

सेनापति को सेना का जोर और सेना को सेनापति का जोर. सैनिक वीर और बुद्धिमान हों तो सेनापति की शक्ति बहुत बढ़ जाती है, सेनापति वीर और बुद्धिमान हो तो सेना का मनोबल बहुत बढ़ जाता है.

सेर को सवा सेर. किसी चालाक आदमी का उससे भी चालाक से पाला पड़े तो.

सेर भरे के बाबाजी, सवा सेर का शंख. यदि उपकरण बड़ा हो और उसे प्रयोग करने वाला छोटा, तो मजाक में ऐसा कहते हैं.

सेर मरद पसेरी बरद. बरद – बैल, पसेरी – पांच सेर. मेहनतकश आदमी की खुराक एक सेर अनाज की होती है और बैल की पांच सेर की. 

सेवा करोगे तो मेवा मिलेगी. सेवा किसी की भी करो, हमेशा अच्छा फल ही मिलता है. इंग्लिश में कहावत है – He profits most, who serves best.

सेही का काँटा घर में मत रखो, लड़ाई होगी. यह एक लोक विश्वास है.

सैंया के मन मुँह पाईं तो सासू के झोंटा नेवाईं. (भोजपुरी कहावत). पति के मन की थाह मिले और समर्थन मिले तो सास के बाल नोचूँ.

सैंया गए परदेस तो अब डर काहे का. जो मनचली स्त्री पति से डरती हो वह उसके बाहर जाने पर निरंकुश हो जाती हैं. कड़क हाकिम के बाहर जाने पर उसके अधीनस्थ कर्मचारी भी मस्त हो जाते हैं.

सैंया ने इस दुनिया में लाखों किए इकट्ठे, कबहिं न लाए लड्डू पेड़े बेर खिलाए खट्टे. कंजूस पति के लिए.

सैंया भए कोतवाल तो अब डर काहे का. यदि किसी का निकट संबंधी किसी अच्छी पोस्ट पर हो और वह उस के बल पर इतराए या कोई गलत काम करे तो यह कहावत कही जाती है.

सो घर सत्यानाश जहां है अति बल नारी. जिस घर में स्त्री की सत्ता चलती है उस घर का सत्यानाश हो जाता है.

सो ताको सागर जहां जाकी प्यास बुझाए. जिसकी जहां प्यास बुझे उसके लिए वही सागर है.

सो पंछी पिंजरे परै जो बोले बहु मीठ (मीठी बानी बोलि कै, परत पींजरा कीर). कीर – तोता. तोता मीठी बोली बोलता है इसलिए पिंजरे में बंद कर के रखा जाता है. अधिक मीठा होना भी खतरनाक है.

सोच कर चलना मुसाफिर, यह ठगों का गाँव है. संसार में तरह तरह के प्रलोभन हैं, उनसे सावधान रहो.

सोच करन्ता पुरषा हारे, मर्द वही जो पहले मारे. लड़ाई होने पर जो सोचता ही रहता है वह हार जाता है, वीर पुरुष वही है जो पहले बढ़ कर मारे (वही जीतता है). इंग्लिश में कहावत है – The first blow is half the battle.

सोचो आज, बोलो कल. बोलने से पहले भली भांति सोचना चाहिए.

सोचो साथ क्या जाएगा. इंसान कितना भी कुछ इकट्ठा कर ले अपने साथ कुछ भी नहीं ले जा सकता.

सोटे चल, अब तेरी बारी. सोटा – डंडा. जहाँ बातचीत से मसला हल न हो और बल प्रयोग की नौबत आ जाए, वहाँ यह कहावत कही जाती है.  

सोते का मुंह कुत्ता चाटे. जो सचेत नहीं है उसको कोई भी नुकसान पहुँचा सकता है या कोई भी उसका अनुचित लाभ उठा सकता है.

सोते को जगावे, स्वांग करते को क्या जगावे. जो सो रहा हो उसे जगाया जा सकता है, जो सोने का नाटक कर रहा हो उसे कैसे जगा सकते हैं. स्वांग – नाटक.

सोते को सोता कब जगाता है. जो स्वयं चौकन्ना नहीं है वह दूसरे को सचेत कैसे कर सकता है.

सोते शेर को मत जगाओ (सोते नाग को मत छेड़ो). शेर या नाग कितने भी खतरनाक हों अगर सो रहे हैं तो आप का कुछ नहीं बिगाड़ते इस लिए उन्हें सोने दो. कोई शक्तिशाली व्यक्ति, समाज या देश अगर सोया पड़ा है तो ऐसा कोई काम न करो जिससे उसके जागने का खतरा हो. अंग्रेजों ने भारत पर कब्जा कर लिया पर चीन को कभी नहीं छेड़ा. वे यही कहावत कहते थे. 

सोना चांदी आग में ही परखे जाते हैं. उच्च गुणों वाले व्यक्ति मुसीबत पड़ने पर ही परखे जाते हैं.

सोना जाने कसे, आदमी जाने बसे. कसौटी नाम का एक विशेष प्रकार का पत्थर होता है जिस पर सोने को घिसकर देखा जाता है कि वह शुद्ध है या मिलावटी. इस प्रक्रिया को कसौटी पर कसना कहते हैं. इस कहावत की पहली पंक्ति यह बताती है कि सोना कैसा है यह कसने से ही जाना जा सकता है. दूसरी पंक्ति का अर्थ है कि आदमी की पहचान उसके पास बसने यानी साथ रहने से ही हो सकती है. केवल दूर के मिलने से किसी की वास्तविकता नहीं जानी जा सकती.

सोना तौले ओर ईंटो का धड़ा करे. महा मूर्खतापूर्ण कार्य. कोई सामान तोलने से पहले तराजू के दोनों पलड़ों को बराबर किया जाता है. इस के लिए जो पलड़ा हल्का है उस तरफ कुछ रख कर दोनों को बराबर करते हैं. इस प्रक्रिया को धड़ा करना कहते हैं. सोना तोलने में खसखस से धड़ा करते हैं.

सोना पाना और खोना दोनों बुरा. सोने जैसी मूल्यवान चीज का खोना तो बुरा है ही, कहीं पड़ा हुआ या गड़ा हुआ सोना मिलना भी बुरा समझा जाता है क्योंकि वह लड़ाई झगड़े और यहाँ तक कि लूट और हत्याकांड का कारण बन सकता है.

सोना मिट्टी में भी चमकता है. जिन में उत्तम गुण होते हैं वे सभी परिस्थितियों में अपनी अलग पहचान बना लेते हैं.

सोना लेने पिय गए सूना कर गए देस, सोना मिला न पिय मिले चांदी हो गए केस. पति पैसा कमाने विदेश चले गए. बेचारी पत्नी को न पैसा मिला, न पति मिले, प्रतीक्षा में बाल सफ़ेद हो गए. व्यापार के सिलसिले में जो, लोग लम्बे समय तक बाहर रहते हैं उन के लिए.

सोना सज्जन साधुजन, टूट जुड़ें सौ बार (दुर्जन कुम्भ कुम्हार के, एकै धके दरार). सोना और साधु प्रवृत्ति के लोग बार बार टूटने के बाद भी जुड़ जाते हैं जबकि दुर्जन लोग कुम्हार के घड़े के समान होते हैं जोकि एक ही धक्के से टूट जाते हैं और फिर कभी नहीं जुड़ते. 

सोने का निवाला खिलाइए और शेर की निगाह से देखिये. खिलाने पिलाने में बच्चे का खूब लाड़ प्यार करें पर उस पर कड़ी नज़र भी रखें.

सोने की कटारी कोई पेट में नहीं मारता. कटारी सोने की हो या हीरे मोती जड़ी हो, अपने पेट में थोड़ी मार ली जाएगी. किसी बहुमूल्य वस्तु को कोई अपने नुकसान के लिए प्रयोग कर रहा हो तो. 

सोने की कटोरी में कौन भीख न देगा. चंदा भी मांगने वाले की हैसियत देख कर दिया जाता है.

सोने की खोट तो सुनार ही जाने. किसी काम की बारीकियों को उस से संबंधित व्यक्ति ही जान सकता है.

सोने की बलेंडी और फूस का छप्पर. बलेंडी उस बल्ली को कहते हैं जिस पर छप्पर रखा जाता है. बलेंडी सोने की है और उस पर फूस का घटिया छप्पर रखा है – बेमेल और घटिया चीज़ (मखमल में टाट का पैबंद).

सोने के अंडे देने वाली मुर्गी का पेट मत फाड़ो. एक नासमझ व्यक्ति को एक बार कहीं से एक ऐसी मुर्गी मिल गई जो रोज एक सोने का अंडा देती थी. इससे उसको बहुत कमाई होने लगी. एक दिन उसे लगा कि इस रोज रोज के झंझट से बचने के लिए क्यों न मैं एक साथ सारे अंडे निकाल लूं. यह सोच कर उसने मुर्गी का पेट फाड़ दिया, पर अंदर से कुछ न निकला और मुर्गी भी मर गई.

सोने को जंग नहीं लगता. उत्तम गुणों वाले लोगों को दोष नहीं व्यापते.

सोने को मुलम्मे की जरूरत नहीं होती. चांदी या अन्य धातुओं को सोने जैसा दिखाने के लिए उन पर सोने की बहुत बारीक पर्त चढ़ाई जाती है जिसे मुलम्मा कहते हैं. जो खुद असली सोना है उसे मुलम्मे की क्या जरूरत. जो स्वयं गुणों से भरपूर है उसे आडम्बर या किसी और के नाम की क्या आवश्यकता.

सोने में सुहागा. एक अति गुणवान और मूल्यवान वस्तु का और गुणवान बन जाना. (सुहागा एक सुगन्धित पदार्थ है).

सोने वाले को पड़वा और जागने वाले को पड़िया. भैंस के बछड़े को पड़वा और बछिया को पड़िया कहते हैं. पड़िया की कीमत पड़वे से बहुत अधिक होती है. अगर कहीं दो लोगों की भैसें साथ साथ ब्याह रही हों और एक भैंस के पड़वा व दूसरी के पड़िया पैदा हो तो जो मालिक जाग रहा होगा वह चुपचाप पड़िया पर अधिकार जमा लेगा चाहे वह उस की भैंस की हो या न हो (पहचान तो कुछ होती नहीं है). कहावत का अर्थ है कि जो चौकन्ना होगा वह हमेशा फायदे में रहेगा.

सोने से गढ़ावल महंगी. जहाँ कच्चा माल तो महंगा हो ही पर उत्पादन की लागत और भी अधिक हो.

सोम भूखे न मंगल अघाए. जिस की स्थिति सदा एक सी रहती हो. अघाए – भरे पेट.

सोया और मुआ बराबर. सोता व्यक्ति मरे के समान है. यहाँ सोये से तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से भी हो सकता है जो अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति सचेत न हो.

सोये घूरे पर और सपने देखे महलों के. अत्यंत निर्धनता में रहने वाला व्यक्ति यदि अत्यधिक धनवान बनने के सपने देखे तो.

सोलह हाथ साड़ी पर आधी पिंडली उघाड़ी. जिस फूहड़ औरत को कपड़े पहिनने का शऊर न हो. बहुत लम्बी साड़ी होते हुए भी ऐसे बांधी है कि आधी पिंडली दिख रही है.

सोवन को कुम्भकरन, भोजन को भीम. जो आदमी सोता भी बहुत हो और खाता भी बहुत हो.

सौ अजान, एक सुजान. सौ कमअक्ल लोगों के मुकाबले एक चतुर व्यक्ति का साथ अधिक अच्छा है. 

सौ इलाज एक परहेज. परहेज सभी प्रकार के इलाजों से अधिक महत्वपूर्ण है. इंग्लिश में कहावत है – Diet cures more than doctors.

सौ ऐबों का एक ऐब गरीबी. 1. गरीबी आदमी से मजबूरी में बहुत से गलत काम कराती है. 2. गरीब कितना भी ईमानदार हो लोग उसे चोर कह कर अपमानित करते हैं.

सौ कपूत से एक सपूत भला. बहुत सारे पुत्र हों और माँ बाप का ध्यान न रखें उन से एक ऐसा पुत्र बेहतर है जो उनका ध्यान रखे और संसार में माता पिता का यश फैलाए.

सौ की हानी, सहस बखानी. कुछ लोग थोड़े से नुकसान को बहुत बढ़ा चढ़ा कर बताते हैं उनके लिए (सौ की हानि हुई तो हजार बता रहे हैं).

सौ कौवों में एक बगला भी नरेस. जहाँ सभी अयोग्य हों वहाँ थोड़ी सी योग्यता रखने वाला भी राजा बन जाता है (अंधों में काना राजा).

सौ खोटों का वह सरदार, जिसकी छाती एक न बार. जिस पुरुष की छाती पर एक भी बाल न हो उसे बहुत धूर्त माना जाता है. (लोक विश्वास)

सौ गज नापूँ और गज भर न फाडूँ. जो बातें बहुत करे और काम कुछ न करे.

सौ गज पानी में रहे, मिटे न चकमक आग. चकमक पत्थर एक विशेष प्रकार का पत्थर होता है जिसको आपस में रगड़ने पर चिंगारी निकलती है. जब माचिस का आविष्कार नहीं हुआ था तो लोग चकमक रगड़ कर उससे सूखे घास फूस में आग पैदा करते थे. चकमक पत्थर को सौ गज पानी के नीचे डूबा कर रखो तब भी बाहर निकालने पर वह आग पैदा करता है. व्यक्ति में जो मौलिक गुण होता है वह विपरीत परिस्थियों में रहने पर भी नष्ट नहीं होता.

सौ गाथा सूआ पढ़े, अंत बिलाई खाय. तोते को कितना भी राम राम रटना या कुछ भी बोलना सिखा दो अंत में वह बिल्ली का भोजन बन जाता है. जो व्यक्ति स्वयं योग्य न हो केवल रट कर ही कुछ बोल लेता हो वह अपनी रक्षा स्वयं नहीं कर सकता और उस का अंत बुरा होता है.

सौ गुंडा न एक मुछमुंडा. किसी किसी समाज में जो लोग मूंछ मुंडवा देते हैं उन्हें लफंगा समझा जाता है. ऐसे ही समाज का कथन.

सौ घोड़ा सौ करहला पूत सपूती जोय, मेहा तो बरसत भला होनी हो सो होय. करहला – ऊंट. वर्षा की बाढ़ से किसी के सौ घोड़े, सौ ऊंट और स्त्री पुत्र बह गए तो भी उस ने कहा कि भले ही मेरा सर्वस्व बह गया पर मैं यही कहूँगा कि वर्षा होनी तो आवश्यक है (मनुष्य मात्र की भलाई के लिए).

सौ चंडाल न इक कंगाल. पुराने जमाने में श्मशानघाट में काम करने वाले व्यक्ति को समाज का सबसे निकृष्ट सदस्य माना जाता था और उसे चंडाल कहते थे. सभी वर्णों के लोग उस बेचारे से छुआछूत मानते थे. कंगाल आदमी को उससे भी गया गुज़रा बताया गया है.

सौ ज्योतिषी और एक बुढ़िया. सौ भविष्यवक्ताओं के किताबी ज्ञान की तुलना में एक अनुभवी व्यक्ति की बात ज्यादा सही और वजनदार होती है.

सौ दवा एक हवा. प्रदूषण मुक्त शुद्ध वातावरण में रहना सौ दवा खाने के बराबर है.

सौ दवा, एक परहेज. (सौ औषधि, एक पथ्य). परहेज इतना कारगर है कि सौ दवाओं से अधिक असर कारक है. इसको इस प्रकार भी कह सकते हैं कि परहेज़ न करो तो सौ दवाएं बेकार हैं.

सौ दिन सासू के एक दिन बहू का. सास बहू को तरह तरह से परेशान करती रहती है पर जब बहू का दांव लगता है तो वह एक ही बार में हिसाब बराबर कर लेती है.

सौ नकटों में एक नाक वाला नक्कू. अंधों में काना राजा.

सौ पट्टा और एक लट्ठा. किसी स्थान पर मालिकाना हक जताने वाले सौ पट्टे दार हों, उन पर एक ही लठैत भारी होता है. (कब्ज़ा सच्चा मुकदमा झूठा).

सौ बरस का कारीगर, और बारह वर्ष का मालिक. जहाँ कम आयु वाले अनुभवहीन लोगों के नीचे अधिक आयु वाले अनुभवी लोगों को काम करना पड़े. जैसे कुछ परिवारवादी राजनैतिक दलों में अनुभवहीन लडके अध्यक्ष बन जाते हैं और बुजुर्ग कार्यकर्ता उनके जूते उठाते हैं.

सौ बार तेरी, एक बार मेरी. 1. बार बार तेरी बात मानी जाती है एक बार मेरी भी मानी जानी चाहिए. 2. तूने सौ बार मुझे धोखा दिया है, अब एक बार तू मेरा दांव देख. 

सौ भैंसियों में एक पाड़ा, राकड़सिंह नाम. सौ मूर्खों में एक बुद्धिमान बड़े ठाट से उन पर रुआब जमाता है.

सौ मन अनाज की एक मुट्ठी बानगी. जिस प्रकार किसी अनाज की गुणवत्ता जानने के लिए उस के ढेर में से एक मुट्ठी अनाज पका कर देखते हैं (इसे बानगी कहते हैं), उसी प्रकार किसी जाति या समाज के बारे में जानने के लिए कुछ लोगों से ही बात कर के जानकारी प्राप्त की जा सकती है.

सौ मन इल्म एक मन अकल. सौ विद्याओं से एक बुद्धि बड़ी है.

सौ मन का कुठला भर जाय पर सवा सेर का पेट नही भरता. मनुष्य का लालच इतना बड़ा है कि उसे कितना भी मिल जाए, उसका पेट नहीं भरता.

सौ में फुली सहस में काना, सवा लाख में एंचकताना, एंचकताना करे पुकार, मैं मानी कैरा से हार, कैरा बुद्धि बिनासी, करे बाप की हांसी, जिनकी नइयाँ छतियन बार, उनसे कैरा मानी हार. (बुन्देलखंडी कहावत) फुली – जिसकी आँख में फुल्ली की बीमारी हो, एन्चकताना – भेंगा (टेपंखा), कैरा – कंजा (भूरी आँख वाला). लोक विश्वास है कि उपरोक्त सभी प्रकार के लोग धूर्त होते हैं. सौ लोगों में एक की आँख में फुल्ली होती है, हजार में एक काना होता है और सवा लाख में एक एन्चकताना. कंजा आदमी एन्चकताने से भी अधिक धूर्त होता है और जिसकी छाती पर बाल न हों उस से कंजा भी हार मान लेता है.

सौ में शूर और हजार में दानवीर. सौ में कोई एक व्यक्ति वीर होता है और हजार में एक दानवीर.

सौ में सूर सहस में काना, एक लाख में ऐंचक ताना, ऐचंक ताना करे पुकार, कंजा से रहियो हुशियार, जाके हिये न एकहु बार, ताको कंजा ताबेदार, छोट गर्दना करे पुकार, कहा करे छाती को बार. अर्थ ऊपर वाली कहावत की भांति. फुल्ली के स्थान पर अंधे का वर्णन है. छोटी गर्दन वाला इन सभी से अधिक धूर्त बताया गया है.

सौ सयाने एक मत. बुद्धिमान लोगों का किसी विषय पर एक ही मत होता है.

सौ सुनार की, एक लोहार की. (खुट खुट सुनार की, एक चोट लोहार की). छोटे व्यापारी दिन भर मेहनत कर के थोड़ा थोड़ा कमाते हैं, बड़ा व्यापारी एक ही सौदे में सारी कसर पूरी कर लेता है. कोई किसी दुश्मन को थोड़ा थोड़ा नुकसान पहुँचा रहा हो और दुश्मन एक ही वार में काम तमाम कर दे तो. भोजपुरी में कहते हैं – सोनरवा की ठुक ठुक, लोहरवा की धम्म.

सौ सौ जूते खाएं, तमासा घुस कर देखें. ऐसे बेशर्म लोगों के लिए जो कितना भी अपमान सह कर तमाशा देखने के लिए कहीं भी घुस जाते हैं.

सौ सौ तरह के नाच नचाती हैं रोटियाँ. जीविका के लिए आदमी को क्या क्या नहीं करना पड़ता.

सौत का गुस्सा कठौत पर. कठौत – लकड़ी का बर्तन. गुस्सा किसी और का और निकालना किसी और पर.

सौत की मूरत भी बुरी (सौत तो चून की भी बुरी). सौत कभी अच्छी हो ही नहीं सकती हमेशा बुरी ही होती है.

सौत मरी हुई भी सताती है. किसी स्त्री की सब से बड़ी शत्रु उस की सौत होती है. जीवित सौत तो परेशान करती ही है, पूर्व पत्नी की स्मृतियाँ भी नई पत्नी के लिए परेशानी का कारण बनती हैं.

सौतों में खटपट, सास बदनाम. सौतों में आपस में खटपट होती ही रहती है, सास बेचारी बेकार में बदनाम होती है.

सौदा अच्छा लाभ का, राजा अच्छा दाब का. सौदा वही अच्छा है जिसमें लाभ हो, राजा वही अच्छा जो रौब दाब रखता हो.

सौदा बिक गया, दूकान रह गई. वैश्या और पहलवान के बुढापे के लिए मजाक में ऐसा कहा जाता है.

सौदा लीजे देख कर और रोटी खाइए सेंक कर. कोई भी चीज़ देख परख कर ही लेना चाहिए और रोटी को ठीक से सेंक कर ही खाना चाहिए.

स्यार आपनी खोह में परे परे सरि जाहिं, सिंह पराए देस में जहं मारे तहं खाए. सियार (कायर व्यक्ति) अपने घर में घुस के बैठा रहता है और सिंह (वीर पुरुष) दूसरे देश में भी अपना शिकार ढूँढ लेता है.

स्याही गई सफेदी आई, तो भी तुझे समझ ना आई. बाल काले से सफेद हो गए (उम्र बढ़ गई) फिर भी अक्ल नहीं आई.

स्याही बालों की गई, दिल की आरज़ू न गई. बूढ़े हो गए पर मनचलापन नहीं गया.

स्वर्ग की गुलामी से नरक का राज भला (स्वर्ग की मातहती से नरक की दरोगाई भली). गुलामी किसी भी हालत में स्वीकार्य नहीं है.

स्वान धुनें जो अंग, अथवा लोटे भूमि पे, तो निज कारज भंग, अति ही असगुन मानिए. जो लोग शगुन अपशगुन विचार करते हैं उनके लिए कहावत है कि यदि आप किसी काम के लिए निकलें और कुत्ता जमीन पर लोटता दिख जाए तो काम नहीं होगा. (घाघ और भड्डरी की कहावतें)

स्वारथ के ही सब सगे, बिन स्वारथ कोऊ नाहिं. इस जगत में सारे संबंध स्वार्थ पर ही आधारित हैं.

स्वार्थ आदमी को अँधा बना देता है. अर्थ स्पष्ट है.

 

 

हँड़िया चढ़ा नोन को रोवे. अदूरदर्शी लोगों के लिए यह कहावत कही गई है. हँड़िया को चूल्हे पर चढ़ा कर नमक ढूँढ़ रहे हैं.

हँसता ठाकुर खांसता चोर, इनका समझो आया छोर. ठाकुर को अपने मातहतों से काम लेना होता है इसलिए उसका रोबीला और सख्त होना जरुरी है, हंसने वाला ठाकुर किसी काम का नहीं. इसी प्रकार चोर को खांसी हो जाए तो वह पकड़ जाएगा.

हँसते हँसते घर बसता है. 1. घर के लोग खुशमिजाज़ हों तो घर बस जाता है और झगड़ालू या शक्की हों तो घर उजड़ जाता है. 2. लड़का लड़की साथ बैठ कर हंसें बोलें तो उन में प्रेम हो जाता है.

हँसना ठाकुर, खंसना चोर, अनपढ़ कायस्थ, कुल का बोर. ऊपर वाली कहावत की भांति. इसमें यह और जोड़ दिया गया है कि कायस्थ अगर पढ़ा लिखा नहीं होगा तो बेकार है.

हँसिए दूर पड़ोसी नांही. दूर बैठे व्यक्ति की कितनी भी हंसी उड़ा लें पड़ोसी की हँसी नहीं उड़ानी चाहिए (सामने सामने किसी के ऊपर हँसने से दुश्मनी हो जाती है).

हँसी की खसी हो जाती है. हँसी का परिणाम अकसर झगड़ा होता है. इस आशय की इंग्लिश में एक कहावत है – Better lose a jest, than a friend.

हँसी तो फँसी. लडकियों को यह कह कर सावधान किया गया है.

हँसी-हँसी में हसनगढ़ बस ग्या. (हरयाणवी कहावत) खुश रह कर काम करो तो बड़े बड़े काम हो जाते हैं.

हँसुआ के ब्याह में खुरपी के गीत. बेमेल काम. ब्याह तो हंसुआ (हँसिया) का हो रहा है और गीत खुरपी के गाए जा रहे हैं.

हँसे फँसे, मुस्कुराए जेब में आए. अजनबियों को देख कर ज्यादा मुस्कुराना नहीं चाहिए, आप किसी के जाल में फंस सकते हैं.

हंते को हनिये, पाप दोष न गनिये. हत्यारे की हत्या करने में पाप नहीं लगता.

हंस की चाल टिटहरी चली, टांग उठा के भू में पड़ी. बिना सोचे समझे किसी की नकल करने से नुकसान उठाना पड़ता है.

हंस के मंत्री कौआ. जहाँ राजा अच्छा हो पर मंत्री धूर्त हों, हाकिम अच्छा हो पर उसके मातहत बदमाश हों.

हंस बरन बैठक भई, सुआ बरन किलकोट, सिंह बरन गर्जन भई, गधा बरन भई लोट. (बुन्देलखंडी कहावत). बरन – के समान. कहावत में शराबियों की महफ़िल का वर्णन है- शुरुआत में हंसों की तरह शालीनता से बैठते हैं, फिर तोतों की तरह कोलाहल करते हैं, फिर और नशा चढने पर शेरों की तरह लड़ते भिड़ते हैं और अंत में गधों के समान लोट जाते हैं.

हंसा थे सो उड़ गए, कागा भए दीवान. योग्य व्यक्ति के जाने के बाद यदि मूर्ख और धूर्त व्यक्ति को पद मिल जाए तो.

हंसिया रे तू टेढ़ा काहे, अपने मतलब से. हंसिए से किसी ने पूछा कि तू टेढ़ा क्यों है. उसने कहा टेढ़ा हुए बिना मेरा काम कहाँ चलेगा.

हंसों को सरवर बहुत, सरवर हंस अनेक. यह सही है कि दोनों को एक दूसरे की आवश्यकता है पर उन के पास विकल्प भी हैं.

हग न सकें पेट को पीटें. अपनी अयोग्यता का दोष किसी और को देना.

हगन की वेला गाँठ संभाले. किसी को जोर से शौच लगी हो और पजामे के नाड़े में कस कर गाँठ लगी हो तो बड़ी परेशानी हो जाती है. परेशानी खड़ी होने से पहले ही उस के निस्तारण का प्रबंध करना चाहिए.

हगासा और उमगासा रोके नहीं रुकते. जिसे जोर से शौच लग रही हो और जो किसी काम को करने की ठान ले, ये दोनों रुकते नहीं हैं.

हगासा लड़का नथनों से पहचाना जाता है. बहुत से छोटे बच्चे शौच लगने पर नथुने फुलाते हैं. अनुभवी लोग बहुत सी बातें शारीरिक भाषा (body language) से पहचानते हैं.

हज का हज, वनिज का वनिज. एक सयाना व्यक्ति हज करने गया. वहाँ से कुछ सामान ले आया जिसे उसने यहाँ आ कर बेच लिया और मुनाफ़ा कमा लिया. एक पन्थ दो काज.

हजार आफतें हैं एक दिल लगाने में. किसी से प्रेम करने में बहुत सी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है.

हजार जूतियाँ लगीं और इज्ज़त न गई. बहुत बेशर्म आदमी के लिए.

हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले. जब व्यक्ति की बहुत सारी इच्छाएँ हों और कोई भी पूरी होने की संभावना न हो. 

हज्जाम के आगे सबका सिर झुकता है. मौके पर सभी को सर झुकाना पड़ता है.

हड़बड़ का काम गड़बड़. जल्दबाजी के काम में गड़बड़ होने की संभावना बहुत होती है.

हड़बड़ी ब्याह, कनपटी सिन्दूर. जल्दबाजी का काम बुरा होता है. हड़बड़ी में शादी कर रहे हैं तो सिंदूर मांग में लगाने की बजाए कनपटी पर लगा रहे हैं.

हड्डी खाना आसान पर पचाना मुश्किल. गलत काम करना आसान है पर उससे होने वाले खतरे झेलना मुश्किल है. रिश्वतें ले कर काला धन कमाना आसान है पर उसे सफेद करना मुश्किल है.

हड्डी मिलने पर कुत्ते का कोई दोस्त नहीं. ओछी प्रवृत्ति के लोग अपने स्वार्थ के आगे कोई दोस्ती या रिश्तेदारी नहीं देखते हैं.

हत्यारी कुतिया, ग्यारस उपासी.  ग्यारस – एकादशी. हत्यारी कुतिया एकादशी का व्रत कर रही है. कोई दुर्जन यदि धर्मात्मा बनने का ढोंग करे तो.

हथकड़ी तो सोने की भी बुरी. कैदखाने में कितने भी आराम हों कैद बुरी ही होती है.

हाथी हाथी कह कर गदहा मत ले आना.  बहुत बड़ा आश्वासन दे कर छोटी चीज न ले आना.

हम करें तो पाप, कृष्ण करें तो लीला. बहुत से काम ऐसे हैं जो महान लोग करते हैं तो उनकी महानता मानी जाती है और आम आदमी करे तो अपराध माना जाता है.

हम क्यूँ कहें राजा के बेटे ने बछिया मारी है. दूसरे पर दोषारोपण भी करना यह भी कहना कि हम तो ऐसा नहीं कह रहे हैं. वैसे भी राजा के बेटे का सीधे सीधे दोष बताना खतरे से खाली नहीं है.

हम चरावें दिल्ली, हमें चरावे गाँव की बिल्ली. हम इतने होशियार हैं कि दिल्ली वालों को उल्लू बना लेते हैं और ये गाँव की छोरी हमें बेवकूफ बना रही है.

हम तो डूबे हैं सनम तुमको भी ले डूबेंगे. जो अपने डूबने के साथ दूसरों को भी डुबो देता हो.

हम भी खेलेंगे, नहीं तो खेल बिगाड़ेंगे. वैसे तो यह बच्चों की कहावत है लेकिन दुष्ट प्रवृत्ति के बड़े लोगों पर भी सही बैठती है.

हम रोटी नहीं खाते, रोटी हमको खाती है. परिवार के लिए रोटी कमाने की चिंता इंसान को खा जाती है.

हमपेशा सदा बैरी. एक ही पेशे के लोग सदैव एक दूसरे की काट करते हैं.

हमाम में सभी नंगे. अरब देशों में पानी की बहुत कमी होने के कारण सामूहिक स्नानघरों (हमाम) का रिवाज़ था. जापान में भी ऐसे हमाम हुआ करते थे. कहावत को इस प्रकार प्रयोग करते हैं कि एक ही पेशे में काम करने वाले लोग या एक ही संगठन के लोग एक दूसरे की पोलें जानते हैं और यह जानते हैं कि ऊपर से संभ्रांत दिखने वाले लोग अंदर से कितने भ्रष्ट हैं.

हमारी बिल्ली हमीं से म्याऊँ. जब आपकी छत्रछाया में पलने वाला कोई व्यक्ति आपको ही आंखें दिखाएं तो यह कहावत कही जाती है.

हमारे घर आओगे क्या लाओगे, तुम्हारे घर आएंगे क्या खिलाओगे. केवल अपना स्वार्थ देखना.

हमारे साथ रहोगे तो मजे में रहोगे. एक जाट शेखचिल्ली के साथ कहीं जा रहा था. रास्ते में सड़क पर एक मूंगफली पड़ी दिखी. शेखचिल्ली ने जाट से कहा, इसे उठाओ, जाट ने उठा लिया, अब छीलो, जाट ने छील दिया, अब खा लो. जाट ने मूंगफली खा ली. शेखचिल्ली बोला, हमारे साथ रहोगे तो मजे में रहोगे. आपसी हंसी मजाक में इस प्रकार की कहावतें बहुत बोली जाती हैं.

हमीं से मांग लाए, नाम रखा वसुन्धर. हम से मांग कर ग़रीबों में बांट रहे हैं और बड़े भारी दानी बन रहे हैं.

हमेशा बचाएं, समय, पैसा, ईमान. अर्थ स्पष्ट है.

हम्माम की लुंगी, जिसने चाहा बाँध ली. सामूहिक उपयोग की वस्तु. वैश्या के लिए भी कहा गया है.

हर आदमी बुद्धिमान है, जब तक वह बोलता नहीं. जब तक कोई आदमी बोलता नहीं है, उस के विषय में अनुमान नहीं लगाया जा सकता कि वह कितना बुद्धिमान है. कहावत के द्वारा यह सन्देश दिया गया है कि व्यक्ति को कम बोलना चाहिए और तोल कर बोलना चाहिए. यदि आप अधिक बोलते हैं तो इस बात की संभावना अधिक है कि आप बेबकूफ सिद्ध हो जाएं. इंग्लिश में कहावत है – Better be silent and pretend ignorance, than speaking out and proving it.

हर एक के कान में शैतान ने फूंक मार दी, है तेरे बराबर कोई नहीं. शैतान के बारे में यह माना जाता है कि वह आदमी के दिमाग में गलत बातें भर कर लड़ाई झगड़े कराता है.  

हर चिड़िया को अपना घोंसला प्यारा. हर जीव जन्तु को अपना घर प्यारा होता है.

हर दे हरवाहा दे और गाड़ी हांके के डंडा दे. (भोजपुरी कहावत) हल, हलवाहा और डंडा सब दीजिए. जो सब कुछ दूसरे से ही अपेक्षा करते हैं उनके लिए कहा गया है.

हर बूँद मोती नहीं बनती. कोई कोई लोग ही उत्तम गुण विकसित कर पाते हैं.

हर रात का एक सवेरा. संकट कितना भी बड़ा हो, कभी न कभी समाप्त होता है. After rain comes fair weather.

हर शाख पे उल्लू बैठा है, अंजामे गुलिस्तां क्या होगा. यह उर्दू के एक प्रसिद्ध शेर की दूसरी लाइन है. (पहली लाइन है – बर्बाद गुलिस्ताँ करने को बस एक ही उल्लू काफी था). चाहे कोई शेर, दोहा, चौपाई, श्लोक या सुभाषित हो, लोगों की जबान पर चढ़ जाए तो कहावत बन जाता है. किसी सरकारी दफ्तर में या राजनैतिक दल में सब एक से बढ़ कर एक हों तो यह कहावत कही जाती है.

हर सीप में मोती नहीं मिलता. सभी व्यक्तियों में उत्तम गुण नहीं होते और हर घर में गुणवान लोग नहीं मिलते.

हर हाल में माला, फूलों की या जूतों की. जीत कर आयेंगे तो लोग फूल मालाओं से स्वागत करेंगे, हार कर आयेंगे तो जूतों की माला पहनाएंगे.

हरफनमौला, हरफन अधूरा. जो हर काम में टांग अड़ाता हो और कोई काम ठीक से न कर पाता हो उस के लिए.

हराम का खाना और शलजम. हराम में खाने को मिल रहा हो तो शलजम क्यों खाएंगे, फिर तो बढ़िया माल खाएंगे.

हराम की कमाई हराम में गँवाई. किसी का गलत तरीकों से कमाया गया धन बर्बाद हो जाए तो दूसरे लोग मजा लेने के लिए ऐसे बोलते हैं. (हराम का माल हराम में जाता है) (पाप का धन अकारथ जाए). इंग्लिश में कहते हैं – ill gotten, ill spent.

हराम की कमाई, धरमखाते में लगाईं. कुछ लोग गलत तरीकों से हासिल किए गए धन को धार्मिक कार्यों में लगा कर धर्मात्मा होने का ढोंग करते हैं.

हराम चालीस घर ले के डूबता है. जो हराम की कमाई करता है वह खुद तो डूबता ही है, साथ में और बहुत से लोगों को भी ले डूबता है जो जाने अनजाने उस कमाई में साझेदार होते हैं.

हरामजादे से खुदा भी डरता है. बेशर्म आदमी से भगवान भी डरते हैं. (नंग बड़े परमेश्वर से).

हरि अनंत हरिकथा अनंता (कहहिं सुनहिं एहि विधि सब संता). ईश्वर अनंत है और ईश्वर की कथा का भी कोई आदि व अंत नहीं है. 

हरि बड़े कि हिरण बड़ा, शकुन बड़ा कि श्याम. किसी काम के लिए जाओ तो हिरन का दिखना बदशगुनी माना जाता है. हिरन को देख कर अर्जुन युद्ध के लिए जाने को मना करने लगा तो भगवान कृष्ण ने कहा कि मैं तुम्हारा रथ हांक रहा हूँ तो अपशकुन तुम्हारा क्या बिगाड़ लेगा.

हरि सेवा सोलह बरस, गुरु सेवा पल चार, तो भी नहीं बराबरी, वेदों किया बिचार. भगवान की भक्ति सोलह वर्ष करने में जो पुण्य मिलता है उससे ज्यादा पुण्य चार पल गुरु की सेवा करने से मिलता है.

हरी करी सो खरी. ईश्वर ने जो किया वह अच्छा ही किया है.

हरे पेड़ तले सब बैठते हैं. समृद्ध व्यक्ति की छत्र छाया में सब रहना चाहते हैं.

हर्दी न छोड़े ज़र्दी, बुलबुल न छोड़े रंग. व्यक्ति का स्वभाव नहीं बदलता. हर्दी – हल्दी, जर्दी – पीला रंग.

हर्र बहेड़ा आंवला, घी शक्कर संग खाए, हाथी दाबे कांख में, साठ कोस ले जाए. लोक विश्वास है कि हरड़, बहेड़ा और आंवले को घी व चीनी के साथ खाने से बहुत ताकत आती है.

हर्र लगे न फिटकरी रंग चोखा आय. बिना कुछ लागत लगे बढ़िया काम हो जाए तो.

हल हांकें और ढोर चरावें, ब्यारी न करें तो मरहि न जावें. (बुन्देलखंडी कहावत) ब्यारी – रात का भोजन. ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकतर दो बार भोजन करने का रिवाज़ है, लेकिन अधिक शारीरिक श्रम करने वालों के लिए तीसरी बार भोजन करना भी आवश्यक है.

हलक का न तालू का, ये माल मियां लालू का. नंबर दो का धन.

हलके ही छलकें. अधजल गगरी छलकत जाए को इस प्रकार से कहा गया है. जो हलके अर्थात कम भरे हुए पात्र होते हैं वे ही छलकते हैं.

हलवा खाने को मुंह चाहिए. अगर आप बढ़िया भोजन करना चाहते हों, बढ़िया वस्त्राभूषण पहनना चाहते हों तो अपने को उसके लायक बनाएं.

हलवा पूड़ी नौकर खाए, पोता फेरने बीबी जाए. नौकर को अनावश्यक तवज्जो देना और घर वालों से काम करवाना.

हलवाई का बिलौटा. मुफ्त का माल खा कर मुस्टंडा होने वाला व्यक्ति.

हलवाई की जाई, सोवे साथ कसाई. जाई – बेटी. हलवाई की बेटी कसाई के साथ सोए तो यह घोर अनैतिक काम माना जाएगा.

हलाल में हरकत, हराम में बरकत. ईमानदारी से काम करने में बहुत सी परेशानियाँ हैं और नुकसान भी होता है जबकि बेईमानी करने में नफा ही नफा है.

हलुवा भी बादी करे, देख दैव का खेल. ईश्वर का यह कैसा खेल है कि गरीब को तो अच्छी चीजें खाने को नहीं मिलतीं और धनी लोग सब कुछ होते हुए भी अपच के कारण स्वादिष्ट भोजन नहीं कर पाते. 

हाँके से टट्टू चले, सूँघे इतर बसाए, पूछे बेटा जानिये, तीनों दे बहाय. जो टट्टू केवल हांकने से चले, जो इत्र पास ला कर सूंघने से महसूस हो, जिस बेटे के पिता का नाम पूछना पड़े (उस के रूप रंग और गुणों से न मालूम पड़े) ये तीनों ही बहा देने योग्य हैं.

हाँजी हाँजी सबकी कीजै, करिए अपने मन की. शिष्टाचार वश सब की हाँ में हाँ मिलाइए पर कीजिए अपने मन की.

हांक लगाने से कुआं नहीं खुदता. बड़ी बड़ी बातें करने से बड़े काम नहीं होते, उसके लिए परिश्रम करना पड़ता है.

हांके दस गज फाड़ें एक गज. जो लोग हांकते बहुत हैं और काम बहुत कम करते हैं.

हांडी जैसा ठीकरा, बाप जैसा डीकरा. मिट्टी के घड़े का टुकड़ा (ठीकरा) भी घड़े की तरह का ही होता है, इसी प्रकार बेटा भी पिता जैसा ही होता है.

हांडी न डोई, घर घर हमारी रसोई. मांग कर खाने वालों के लिए यह कहावत कही जाती है.

हांडी में होगा सो डोई में आप ही आएगा. डोई माने करछी. हांडी में क्या पक रहा है यह जानने के लिए अधिक बेचैन मत होइए, वह करछी में आ जाएगा.

हांसी बैरी नार की, खांसी बैरी चोर की. हँसी स्त्री को ले डूबती है और खांसी चोर को. (हरयाणवी कहावत – चोर नै फंसावै खांसी और छोरी नै फंसावै हांसी).

हाकिम की अगाडी और घोड़े की पिछाडी से बचना चाहिए. हाकिम के सामने खड़े रहोगे तो कुछ न कुछ काम बताता रहेगा. एक तो काम में पिसना पड़ेगा, ऊपर से अगर काम कुछ गड़बड़ हो गया तो नाराजगी अलग. इसलिए उसके सामने ही मत पड़ो. बात को और अधिक वजन देने के लिए घोड़ी की पिछाड़ी का उदाहरण साथ में जोड़ दिया गया. घोड़े के पीछे खड़े होने में दुलत्ती खाने का डर है. कुछ महिलाएं इस कहावत को इस तरह बोलती हैं – मर्द की अगाड़ी और घोड़े की पिछाड़ी से बचना चाहिए. कुछ लोग इस को और बढ़ा कर बोलते हैं – हाकिम की अगाड़ी, घोड़े की पिछाड़ी, छिनरे की छाया, सबसे बचो. छिनरा – चरित्रहीन व्यक्ति.

हाकिम के आँख नहीं होतीं, कान होते हैं. हाकिम केवल सुनी हुई बात मान लेते हैं, स्वयं देख कर सत्यापित नहीं करते.

हाकिम के तीन, अधीनों के नौ. रिश्वत के तीन हिस्से हाकिम तक पहुँचते हैं, नौ हिस्से अधीनस्थ लोग खा जाते हैं.

हाकिम के मूंड में न्याय. हाकिम जो कह दें वही सब को मानना पड़ता है.

हाकिम गरीब ताकी धाक न परत है. हाकिम गरीब हो तो लोग उसका रुआब नहीं मानते.

हाकिम चून का भी बुरा. हाकिम केवल बुरा ही होता है. वह जनता और मातहतों का अच्छा कभी सोच भी नहीं सकता.

हाकिम टले, हुकुम न टले. हाकिम चला भी जाए तो भी उसका हुकुम बरकरार रहता है.

हाकिम वैद्य रसोइया, नट वैश्या और भट, इनसे कपट न कीजिए, इनका रचा कपट. इन सब लोगों से कपट नहीं करना चाहिए क्योंकि ये हर दांवपेंच जानते हैं.

हाकिम से दूर, चिंता से दूर. हाकिम से जितना दूर रहोगे चिंता से उतना ही दूर रहोगे.

हाकिम से बैर कैसा. हाकिम से वैर नहीं करना चाहिए. अगर वह बुरा भी है तो भी उसको निभाने का रास्ता निकालना चाहिए.

हाकिम हारे, मुंह पर मारे. 1. हाकिम अगर कोई शर्त इत्यादि हार जाए तो भी जबरदस्ती अपनी बात मनवाना चाहता है. 2. हाकिम यदि अपने से बड़े हाकिम से डांट खाता है तो अधीनस्थों पर गुस्सा निकालता है.

हाकिमी गरमाई की, दुकनदारी नरमाई की (हाकिमी गरमाई की, हाट नरमाई की). हुकूमत करनी को तो कड़क स्वभाव होना जरूरी है और व्यापार करना हो तो बोली नरम होनी चाहिए.

हाजिर में हुज्जत नहीं, गैर में तकरार नहीं. जो मेरे पास है वह मैं फ़ौरन दे सकता हूँ, जो मेरे पास नहीं है उस का मैं कोई वादा नहीं करता.

हाजिर सो ही हथियार. जो हथियार आवश्यकता के समय अपने पास उपलब्ध हो वही हथियार माना जाता है.

हाट जा बाजार जा, चाहे ला कर चोरी, कमाने का बूता नहीं, तो काहे ब्याही गोरी. निठल्ले पति से तंग आई पत्नी का कथन.

हाड़ रहेगा तो मांस बहुतेरा हो जाएगा.  जान बची रहेगी तो शरीर तो बाद में स्वस्थ हो ही जाएगा. व्यापार बचा रहेगा तो बाद में कमाई बहुतेरी हो जाएगी.

हाथ आई बिल्ली छोड़ के म्याऊं म्याऊँ करना. हाथ आया अवसर गंवा कर फिर पछताना.

हाथ और हथियार, पेट के आधार. कामगार लोगों के हाथ और औजार ही उनका पेट पालने के साधन हैं.

हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े लिखे को फ़ारसी क्या. बात उस समय की है जब दर्पण (आइने, mirror) बहुत महंगे और बहुत कम होते थे. एक छोटे से दर्पण को आरसी कहा जाता था. हाथ में पहनने वाले कंगन में आरसी से भी छोटे शीशे जड़े जाते थे. उस समय हिंदी और उर्दू बोलचाल की भाषा थी और ज्यादा पढ़े लिखे लोग फारसी पढ़ा करते थे. कहावत का शाब्दिक अर्थ है जिसके हाथ में कंगन हो उसके लिए आरसी क्या बड़ी चीज है और जो पढ़ा लिखा है उसके लिए फारसी कौन बड़ी चीज है.

हाथ करे सो हाथ सोहे पाँव करे सो पाँव. हाथ का काम हाथ को शोभा देता है और पाँव का काम पाँव को. इसी प्रकार समाज में जो जिस का काम है वही करे तो संतुलन बना रहता है.

हाथ कसीदा, आसमान दीदा. जो काम हाथ में है उस पर ध्यान न दे कर फालतू चीजों पर ध्यान केंद्रित करना.

हाथ का दिया ही साथ जाता है. दिया हुआ दान (पुण्य) ही परलोक में साथ जाता है.

हाथ की लकीरें, मिटाए नहीं मिटतीं. कोई अपने भाग्य को नहीं बदल सकता.

हाथ कौड़ी, न बाज़ार लेखा. पास में कुछ भी नहीं और बाज़ार में भी किसी पर रकम उधार नहीं है. (तो व्यापार किसके बूते करें).

हाथ न पहुंचे, थू कौड़ी. जो चीज़ हमारी पहुँच से बाहर है उस पर थू. (अंगूर खट्टे हैं).

हाथ पर दही नहीं जमता. जो काम सम्भव नहीं है उसके लिए कहा गया है. (हथेली पर सरसों नहीं जमती).

हाथ पसारने से पैर पसारना अच्छा. पैर पसारने से यहाँ अर्थ है मर जाना. किसी से कुछ माँगना पड़े इससे मौत अच्छी.

हाथ पाँव की काहिली, मुँह में मूंछें जायं.  आलस के मारे अपने शरीर तक की देखभाल ठीक से न करना.

मूँछ बिचारी क्या करे, जो हाथ न फेरो जाए. मूँछ पर हाथ फेरना मर्दानगी का प्रतीक है.

हाथ बेचा है कोई जात नहीं बेची. यदि हम किसी के यहाँ नौकरी कर रहे हैं तो इस का मतलब यह नहीं है कि हमारा दीन, ईमान, इज्ज़त कुछ भी नहीं है.

हाथ में माला और पेट में कुदाला. ईश्वर भक्ति का ढोंग करने वाले कपटी लोगों के लिए.

हाथ में लिया कांसा, तो पेट का क्या सांसा. भीख मांगने का तय कर लिया तो पेट तो भर ही जाएगा.

हाथ सुमरनी बगल कतरनी, पढ़े भागवत गीता रे, औरों को तो ज्ञान बतावे, आप रहे खुद रीता रे. ढोंगी साधु के लिए. सुमरनी – जपने वाली माला, कतरनी – कैंची, रीता – खाली.

हाथ से मारे, भात से न मारे. किसी कर्मचारी को उसकी गलती के लिए प्रताड़ित करना हो तो हाथ से मार लो, उसकी जीविका (रोटी) मत छीनो. इसको इस तरह से भी कहते हैं – पीठ की मार मारे पेट की न मारे.

हाथियों से हल नहीं चलवाए जाते. हर मनुष्य, पशु और वस्तु की उपयोगिता अलग अलग होती है. हाथी की सवारी की जा सकती है, हाथी युद्ध में काम आ सकता है पर हल नहीं चला सकता.

हाथी अपनी हथियाई पे आ जाए तो आदमी भुनगा है. अति बलवान व्यक्ति अगर अपना बल दिखाने लगे तो छोटे लोगों को बर्बाद कर सकता है.

हाथी अपने सिर पर ही धूल डालता है. हर कोई अपना स्वार्थ ही देखता है.

हाथी आया हाथी आया, हाथी ने किया भौं. किसी के आने से पहले बहुत महिमामंडन किया जा रहा हो और जब वह आए तो मालूम हो कि यह तो कुछ भी नहीं है तो यह कहावत कही जाती है. 

हाथी का जग साथी, कीड़ी पायन पीड़ी. हाथी पर बैठना सब चाहते हैं और चींटी को पैरों से कुचल देते हैं. बड़े के सब यार हैं.

हाथी का दांत, कुत्ते की पूँछ और चुगलखोर की जीभ सदा टेढ़ी रहती है. चुगलखोर कभी सीधी बात नहीं बोलता, हमेशा कुछ न कुछ हेर फेर कर के लोगों की निंदा करता रहता है.

हाथी का दांत, घोड़े की लात और मूंजी का चंगुल, इनसे बचना चाहिए. मूंजी – जालिम और कंजूस. अर्थ स्पष्ट है.

हाथी का बोझ हाथी ही उठा सकता है. बड़े आदमी का बोझ बड़ा आदमी ही उठा सकता है.

हाथी कितना भी घटे भैंसा थोड़े ही हो जाएगा. किसी बहुत धनी व्यक्ति को अगर व्यापार में नुकसान हो जाए तो ऐसा कहा जाता है.

हाथी की झूल गधे पर नहीं लादी जाती. जिस वस्तु का जहाँ उपयोग हो वहीं करना चाहिए. 

हाथी की टक्कर हाथी ही संभाले. बड़े की टक्कर बड़ा ही सम्भाल सकता है.

हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और. जो लोग ईमानदारी या धार्मिकता का दिखावा तो बहुत करते हैं पर उनकी असलियत कुछ और होती है, उनके लिए यह कहावत प्रयोग की जाती है.

हाथी के पाँव में सबका पाँव. यदि हाथी के पांव का निशान बना हो तो सारे जानवरों के पांव के निशान उसके भीतर समा जाएंगे. इस कहावत का प्रयोग हंसी मजाक में करते हैं. जैसे कहीं दावत में घर का एक बड़ा आदमी चला जाए तो सबका जाना मान लिया जाएगा.

हाथी खरीदना आसान है पर पालना मुश्किल. इस बारे में एक कहानी कही जाती है. एक बार जमीदार के यहां एक आदमी हाथी बेचने आया. जमीदार के लड़के ने पूछा, हाथी कितने का? वह आदमी बोला एक रूपए का. लड़के ने जमीदार की तरफ प्रश्नवाचक निगाह से देखा. जमीदार बोले, भाई बहुत महंगा है नहीं ले पाएंगे. छः महीने बाद कोई दूसरा आदमी हाथी बेचने आया. लड़के ने फिर पूछा, हाथी कितने का. वह आदमी बोला एक लाख का. जमीदार लड़के से बोले खरीद लो, काम आएगा. लड़का बोला पिता जी तब तो आपने एक रूपए में हाथी लेने को मना कर दिया था. जमींदार बोले, बेटा तब हाथी को खिलाने के लिए पैसे नहीं थे. इस कहावत में यह सीख दी गई है कि कोई चीज खरीदने से पहले यह गणित अवश्य लगाओ कि उसके रख रखाव में जो खर्च होगा वह हम कर पाएंगे या नहीं.

हाथी घोड़ा डूब गए, गदहा पूछत कित्तो पानी. जिस काम में बड़े बड़े दिग्गज फेल हो गए हों उसे करने के लिए कोई बेबकूफ सा आदमी अपनी अक्ल लगाए तो. 

हाथी चले जाते हैं, कुत्ते भौंकते रह जाते हैं. (हाथी चले बजार, कुकुर भौंके हजार) कोई सामाजिक रूप से महत्वपूर्ण व्यक्ति कोई बड़ा काम कर रहा हो और लोग उसका मजाक उडाएं या उसे गालियां दें, फिर भी वह उनकी परवाह किए बगैर अपने काम में लगा रहे, तो यह कहावत कही जाती है.

हाथी जाए गाँव गाँव, जिसका हाथी उसका नाँव (नाम). हाथी जहाँ जाता है वहाँ के लोग जान जाते हैं कि हाथी किसका है अर्थात वे उस की रईसी के बारे में जान जाते हैं.

हाथी निकल गया पूंछ रह गई. काम पूरा होते होते अंत में अटक जाना.

हाथी पर मक्खी का क्या बोझ. बहुत बड़े लोगों पर छोटे मोटे लोगों की सहायता करने में कोई बोझ नहीं पड़ता.

हाथी बहुत भरकम पर कभी तो मरेगा. कोई व्यक्ति कितना भी शक्तिशाली या सम्पन्न क्यों न हो कभी न कभी उस का भी अंत होगा.

हाथी बेच कर अंकुश पे लड़ाई. बड़े बड़े सौदे कर के छोटी सी बात पर लड़ना.

हाथी बैठा हुआ भी गधे से ऊँचा. अर्थ स्पष्ट है. 

हाथी मरा हुआ भी सवा लाख का. सभी लोग जानते हैं कि हाथी की कीमत बहुत अधिक होती है. यहां मजाक में धनी लोगों की तुलना हाथी से की गई है. उसके बाद उनका मजाक उड़ाने के लिए यह कहावत कही गई है.

हाथी लटेगा भी तो कितना. बहुत धनी व्यक्ति को यदि व्यापार में नुकसान हो जाए तो यह कहावत कही जाती है.

हाथी से मेढ़ा लड़े, अपना घर बर्बाद करे. भेड़ों के नर को मेढ़ा कहते हैं. मेढ़ा बड़े लड़ाकू किस्म का होता है इसलिए पुराने जमाने में लोग मेढ़ों की टक्कर का खेल खेलते थे. मेढ़ा कितना भी जुझारू क्यों न हो उसे मेढ़ों से ही लड़ना चाहिए हाथी से नहीं. कोई छोटी हैसियत का आदमी अपने से बहुत बड़े आदमी से लड़ेगा तो बर्बाद हो जाएगा. इंग्लिश में कहावत है – Be careful in choosing your enemies.

हाथी हजार का, महावत कौड़ी चार का. हाथी की कीमत बहुत अधिक होती है लेकिन उसे हांकने वाले महावत की कीमत बहुत कम.

हाथी हजार लटा, तो भी सवा लाख टके का. बहुत धनी व्यक्ति को यदि व्यापार में नुकसान हो जाए तो भी वह धनी ही रहता है.

हाथ में पैसा रहे, तभी बुद्धि काम करे. (भोजपुरी कहावत) हाथ में पैसा रहने पर ही बुद्धि काम करती है.

हाथों की लकीर पर विश्वास न करो, तकदीर तो उनकी भी होती है जिनके हाथ नहीं होते. जो लोग यह अंध विश्वास रखते हैं कि मनुष्य का भाग्य उस के हाथ की रेखाओं में लिखा होता है उनको सीख देने के लिए.

हाथों से लगावे, पैरों से बुझावे. खुद ही आग लगाना और फिर बुझाने का नाटक करना.

हानि लाभ जीवन मरण जस अपजस विधि हाथ. व्यापार में हानि होगी या लाभ होगा, जीवन कब तक है और मृत्यु कब आएगी, व्यक्ति को कब और कितना यश या अपयश मिलेगा ये सब ईश्वर के हाथ में है.

हाय जवानी बावरी, एक बार फिरि आव. बूढ़े लोग कहते हैं कि जवानी एक पागलपन है, फिर भी दोबारा जवान होने के लिए लालायित रहते हैं.

हार मानी झगड़ा टूटा. जब दो लोगों में झगड़ा हो रहा होता है तो उन में जो समझदार होता है वह बात को बढ़ाने की बजाए हार मान लेता है. इससे झगड़ा तुरंत समाप्त हो जाता है.

हार मानी, झगड़ा जीता. दो लोगों के झगड़े में सही मानों में जीत उसी की होती है जो हार मान कर झगड़ा समाप्त करा देता है. इंग्लिश में इस से मिलती जुलती एक कहावत है – Sometimes the best gain is to loose.

हारा जुआरी दूना दांव लगाता है. जुए में हारने वाले इंसान को हार कर सद्बुद्धि नहीं आती बल्कि वह हारी हुई रकम वसूलने के लिए दुगुना दांव लगाता है. (महाभारत का उदाहरण सब को याद ही होगा).

हारिल की लकड़ी, पकड़ी सो पकड़ी. हारिल नाम का कबूतर की प्रजाति का एक पक्षी होता है जो हर समय अपने पंजे में लकड़ी को जकड़े रहता है. ऐसे व्यक्ति के लिए जो अपनी बात या अपने विश्वास से हटने को तैयार न हो.

हारे का सहारा, तम्बाखू बेचारा. तम्बाखू खाने वाले अपने आप को धोखा देने के लिए इस प्रकार की बातें बोलते हैं.

हारे भी हार और जीते भी हार. झगड़े या बहस में यदि आप हार जाते हैं तब तो हार है ही और अगर जीत जाते हैं तो भी एक प्रकार से हार जाते हैं, क्योंकि आप एक मित्र को खो देते हैं या उस व्यक्ति से हमेशा के लिए सम्बन्ध खराब कर लेते हैं. इंग्लिश में कहावत है – when you win an argument, you lose a friend.

हारे हुए जुआरी का कौन साथी. हारे हुए जुआरी से सब कन्नी काट लेते हैं. 

हाल जाए हवाल जाए पर बन्दे का खेल न जाए. सब कुछ चला जाए तो भी धूर्त लोगों की फितरत नहीं बदलती.

हाली का पेट सुहाली से नहीं भरता. हाली – हल चलाने वाला (किसान), सुहाली – मैदा की पापड़ी. मेहनत करने वाले का पेट थोड़ा खाने से नहीं भरता.

हिकमत से हुकूमत. शासन केवल डंडे के जोर पर नहीं बल्कि युक्ति से चलाना होता है.

हिजड़े की कमाई, हजामतों में गई. अपने चेहरे को चिकना रखने के लिए उसे रोज़ हजामत बनवानी पड़ती है. गलत तरीकों से कमाया धन रुकता नहीं है.

हिजड़े के घर बेटा हुआ है. कोई असम्भव सी बात. जैसे कोई महा कंजूस आदमी लोगों को अपने घर दावत पर बुलाए तो लोग मजाक में यह कहावत कहेंगे.

हिजड़े मजबूरन ब्रहमचारी. कोई यौन शक्ति से सम्पन्न व्यक्ति यदि ब्रह्मचर्य का व्रत धारण करे तो उसे ब्रह्मचारी मानते हैं. कोई नपुंसक व्यक्ति यदि अपने को ब्रह्मचारी बताए तो यह कहावत कही जाएगी.

हिजड़ों के घर लुगाई. बेमेल बात. हिजड़ों के घर स्त्री का क्या काम.

हिजड़ों के बिना ब्याह थोड़ी रुकता है. जो लोग हर काम में अपने को महत्वपूर्ण साबित करने की कोशिश करते हैं उन का मजाक उड़ाने के लिए.

हिजड़ों ने कभी कतार लूटी है. कायर लोग कभी बहादुरी का काम नहीं कर सकते.

हिन्दी न फारसी, मियाँ जी बनारसी. पढ़े लिखे कुछ नहीं हैं और अपने को बहुत होशियार समझते हैं.

हिमायती की गधी, हाथी को लात मारे. जिस कर्मचारी का हाकिम पक्ष लेता है वह निरंकुश हो जाता है.

हिमायती की घोडी, ऐराकी को लात मारे. हिमायती – पक्ष लेने वाला, ऐराकी – घुड़सवार. मालिक किसी नौकर को अधिक सर चढ़ाता है तो वह घर के सदस्यों पर ही रौब गांठने लगता है.

हिम्मत के हिमायती राम. साहसी लोगों का ईश्वर भी साथ देता है. इंग्लिश में कहावत है – Fortune favours the brave.

हिय को हो करार, तो सूझें सब त्यौहार. मन में शान्ति हो तभी त्यौहार अच्छे लगते हैं.

हिरण ऊँचा कूदता है तो भी पाँव नीचे ही टिकते हैं. कोई व्यक्ति शक्ति मिलने पर ज्यादा उछल रहा हो तो उस को उस की हैसियत याद दिलाने के लिए यह कहावत कही जाती है. 

हिरन का बैरी उसका मांस, औरत का बैरी उसका रूप. हिरन को अपने कोमल मांस के कारण शिकारी पशुओं और मनुष्यों से खतरा है एवं औरत को अपने रूप के कारण वहशी लोगों से खतरा है.

हिरनों के सींग गीदड़ों को कब सुहाते हैं. हिरन अपने सींगों से आत्म रक्षा कर सकता है इसलिए गीदड़ों को हिरन के सींग नहीं सुहाते. आम मनुष्य अपनी रक्षा के लिए जो भी उपाय करता है वह चोर डाकुओं को नहीं अच्छे लगते.

हिल्ले रोजी, बहाने मौत. रोजगार से रोजी मिलती है और जब मौत आना होती है तो उसका कोई न कोई बहाना बन जाता है.

हिसाब किताब तो बाप बेटे में भी जायज़ है. निकट से निकट सम्बन्ध में भी हिसाब किताब पूरा रखना चाहिए.

हिस्ट्री ज्योग्राफी बड़ी बेवफा रात को रटो और सुबह को सफा. इतिहास और भूगोल की पढ़ाई बच्चों को बहुत अरुचिकर लगती है.

हींग जाए पर बास न जाए. किसी डिब्बी में हींग कुछ समय के लिए रख दी जाए तो उस को निकालने के बाद भी हींग की गंध आती रहती है. किसी व्यक्ति की सम्पन्नता चली जाए तब भी उसकी बू नहीं जाती.

हीरा हीरे को काटता है. चतुर को चतुर ही हरा सकता है.

हीरे की कदर, जौहरी जाने. अनमोल चीजों की कदर पारखी लोग ही जान सकते हैं.

हुकुम हमारा जोर तुम्हारा. 1. कमजोर हाकिम अपने मातहतों से कहता है कि हम ने तो हुकुम दे दिया. तुम में ताकत हो तो तामील करवा लो. 2. यह हमारा हुक्म है, तुम में हिम्मत हो तो रोक लो.

हुकूमत की घोड़ी, छै पसेरी दाना. सरकारी कामों में फालतू खर्च बहुत होते हैं.

हुक्का हुकम खुदा का, चिलम बहिश्त का फूल, पीयें बन्द खुदा के, घूरें नामाकूल. हुक्का और चिलम पीने वाले इस प्रकार उस की तारीफ करते हैं – हुक्का खुदा का हुक्म है और चिलम स्वर्ग का फूल है, खुदा के बन्दे इन्हें पीते हैं तो नालायक लोग घूरते हैं.

हुक्का, सुंघनी, वैश्या, गूजर, तुरक औ जाट, इनमें छूआ छूत कहाँ, जगन्नाथ का भात. इन सब चीजों में छुआछूत नहीं मानी जाती. 

हुनरमंद हर हाल में खुश. जिसके हाथ में हुनर है उसे किसी चीज़ की कमी नहीं रहती.

हुसियार लइका हगते चिन्हाला. (भोजपुरी कहावत) चिन्हाला – पहचान लिया जाता है. होशियार लड़का शौच करते समय भी पहचान लिया जाता है.

हूर भी सौतन तो डायन से बुरी है. वैसे तो सभी लोग हूरों और फरिश्तों से दोस्ती करना चाहते हैं, पर हूर अगर सौत बन जाए तो डायन से भी बुरी है. 

हृदय में गाँठ तो चाल में आँट. मन में खोट हो तो व्यक्ति की चाल बदल जाती है.

हेजिए के बच्चे और नदीदी के खसम से बात करना भी बुरा. हेजिया – जिसे अपने बच्चों का बहुत हेज (मूर्खता की हद तक लाड़) हो, नदीदी – लालची.

हेमदान गजदान से बड़ा दान सनमान. किसी को हाथी, घोड़ा, सोना, चांदी दान देने से भी बड़ा दान है सम्मान देना.हेम – सोना.

है सबका गुरुदेव रुपैया. आज के भौतिक वादी युग में रुपया सब का गुरु है. 

हैं मर्द वही पूरे जो हर हाल में खुश हैं. जो हर हाल में खुश रहना जानते हैं वही सच्चे मर्द हैं.

हो गईं ढड्ढो, ठुमक चाल कैसी. जो स्त्री बूढ़ी होने पर भी बन ठन के रहे. ढड्ढो – बूढ़ी औरत.

होएं भले के अनभले, होएं दानी के सूम, होएं कपूत सपूत के, ज्यों पावक में धूम. भले लोगों के घर में दुष्ट, दानी के घर कंजूस और सपूत के घर कपूत उत्पन्न हो सकता है. यह उसी प्रकार है जैसे पवित्र और तेजवान अग्नि में से काला धुआं उत्पन्न हो सकता है.

होठ हिले न जिभ्या डोली, फिर भी सास कहे बड़बोली. बहू बेचारी कुछ नहीं बोलती है तब भी सास उसे बड़बोली (बहुत बोलने वाली) कहती है.  

होड़ लीजे जोड़, उधार दीजे छोड़. बाजी में जीता हुआ जरूर ले लेना चाहिए चाहे उधार दिया हुआ धन छोड़ दें.

होत का बाप, अनहोत की माँ. सुख के समय पिता और और दुःख के समय माँ काम आती है.

होत की बहिन, अनहोत का भाई, पीठ पीछे नार पराई. बहने अच्छे दिनों में ही साथ देती है जबकि भाई बुरे दिनों में भी साथ देता है. पति के न रहने पर स्त्री भी पराई हो जाती है. 

होत परायो आपनो शस्त्र परायो हाथ. अपना शस्त्र अगर दूसरे के हाथ में है तो अपने किसी काम का नहीं है.

होत में बैरी भी साथी, अनहोत में साथी भी बैरी. अच्छे दिनों में दुश्मन भी दोस्त बन जाता है और बुरे दिनों में दोस्त भी दुश्मन.

होता आया है कि अच्छों को बुरा कहते हैं. अच्छों को बुरा कहना दुनिया की पुरानी आदत है.

होते के सब साथी, अनहोत का कोई नहीं. अच्छे दिनों के सब साथी होते हैं, बुरे दिनों में कोई नहीं.

होनहार फिरती नहीं होवे बिस्वे बीस. जो होना है हो के रहता है. बिस्वे बीस का अर्थ है शत प्रतिशत. 

होनहार बिरवान के होत चीकने पात. आम तौर पर जंगली पौधों की पत्तियाँ खुरदुरी होती हैं जबकि सुन्दर सजावटी पौधों की पत्तियाँ चिकनी होती हैं. जब कोई पौधा छोटा सा होता है तो उसके पत्तों से पहचाना जा सकता है कि वह जंगली झाड़ झंकाड़ बनेगा या सुन्दर पौधा. किसी छोटे बच्चे में यदि कोई विलक्षण प्रतिभा देखने को मिलती है तो यह कहावत कही जाती है. 

होनहार हिरदै बसे, बिसर जाए सब सुद्ध, जैसी हो होतव्यता, तैसी होवे बुद्ध. जब व्यक्ति का बुरा होना होता है तो उसकी सुध (और बुद्धि) वैसी ही हो जाती है.

होनी तो होक रहे, मेट सके न कोय (होनहार होके टले). होनहार यूँ ही नहीं टलती, हो के ही रहती है.

होनी माता को नमस्कार है. विधाता को होनी माता (बेमाता) भी कहा गया है. 

होम करते हाथ जले. किसी भले कार्य में नुकसान हो जाना.

होय भिन्सार बड़ी बिल खोदब. (अवधी कहावत). काम को हमेशा टालने वालों के लिए. जाड़े की रातों में जब लोमड़ी को ठंड लगती है तो वह सोचती है कि सुबह होने पर बड़ा बिल खोदुंगी. सुबह धूप निकल आती है तो वह भूल जाती है. भिन्सार – सुबह.

होली तो कपूतों से ही मने. होली के हुड़दंग में तो शैतान लड़कों से ही रंग जमता है.

हौज भरे तो फव्वारे छूटें. जब सारे साधन (रुपया, पैसा व अन्य सामान) पूरे होंगे तभी तो कार्य सिद्ध होगा. पहले के जमाने में पानी फेंकने के लिए मोटर नहीं हुआ करते थे. फव्वारे चलाने के लिए भिश्ती लोग हौज में पानी भरते थे जिसके दवाब से फव्वारे चलते थे. 

 

 

क्ष त्र ज्ञ

क्षमा बड़न को चाहिए, छोटन को उत्पात. जो धीर गम्भीर और बड़े लोग हैं उन्हें अपने से छोटों की उद्दंडता को क्षमा कर देना चाहिए.

क्षुद्र नदी जल भर उतराई. छोटी पहाड़ी नदी पानी भरने से उफन जाती है. ओछा व्यक्ति थोड़ा धन या ज्ञान पा कर इतराने लगता है

त्रियाचरित्र न जानै कोय. खसम मारि कै सत्ती होय. स्त्री के चरित्र को कोई नहीं जान सकता, वह किस बात पर जान की दुश्मन हो जाए और किस बात पर जान दे दे (पति को मार कर फिर उस के साथ सती हो जाए).

ज्ञान गले फंस जात, जब घर में ना हो नाज. यदि घर में खाने को अनाज न हो तो ज्ञान ध्यान सब गले की फांस बन जाता है.

ज्ञान बढ़े सोच से, रोग बढ़े भोग से. चिंतन करने से ज्ञान बढ़ता है और भोग से रोग बढ़ते हैं. अर्थात आध्यात्मिक चिंतन वाला व्यक्ति ज्ञानी बनता है और भोग में फंसे रहने वाला व्यक्ति रोगी बन जाता है.

ज्ञानी को ज्ञानी मिलै, रस की लूटम लूट, आनी को आनी मिलै, हौवै माथा कूट. ज्ञानी को ज्ञानी मिलता है तो ज्ञान की चर्चा में रस की धार बहती है, और अहंकारी को अहंकारी मिलता है तो दोनों में अहं का टकराव होता है.

ज्ञानी से ज्ञानी मिले करे ज्ञान की बात, गदहे से गदहा मिले मारें लातई लात. ज्ञानी से ज्ञानी मिलता है तो दोनों ज्ञान की चर्चा करते हैं. गधे से गधा मिलता है तो एक दूसरे को लात मारते हैं.