बच्चों की अपनी एक अलग ही दुनिया होती है, उनके खेल, उनका साहित्य उनके मनोरंजन भी अलग होते हैं. इसी प्रकार बच्चों की कहावतें भी कुछ निराली ही होती हैं. ज्यादातर कहावतें दूसरे बच्चों को चिढ़ाने के लिए बोली जाती हैं.
- अकड़ी मकड़ी दूधमदार, नज़र उतर गई पल्ले पार. बच्चों की नजर उतारने के लिए इसको बोला जाता है.
- अटक पड़ी तो काय को बोले, एक आने में दो गोले. बच्चों में आपस में लड़ाई हो तो अगर कोई बच्चा दूसरे से कुछ बोलता है तो वह उसे चिढ़ाने के लिए ऐसा बोलता है.
- आधा पाधा किसने पादा, राम चन्द्र जी की घोड़ी ने पादा. बहुत से लोग बैठे हों और उन में से किसी ने गन्दी हवा छोड़ी हो, पर कोई कबूल न रहा हो तो गिनती करने के अंदाज़ में इसको बोला जाता है. जिस पर आ कर गिनती खत्म हो उसी ने पादा है ऐसा मान लिया जाता है.
- आपम धाप कड़ाकड़ बीते, जो मारे सो जीते. जो आगे बढ़ के मारता है वही जीतता है.
- इधर उधर नारंगी, बीच में कलुआ भंगी. बच्चों की बहुत सी कहावतें दूसरों को चिढ़ाने के लिए होती हैं, उन्हीं में से यह भी एक है. दो बच्चों के बीच में कोई तीसरा बैठा हो उसको चिढ़ाने के लिए.
- इधर उधर बन्दर बीच में राम चन्दर. ऊपर वाली कहावत में जिस बच्चे को चिढ़ाया जा रहा हो वह पलट कर यह जवाब देता है.
- इमली की जड़ में से निकली पतंग, नौ सौ मोती नौ सौ रंग. इसका कोई अर्थ नहीं है. केवल खेल खेल में बोलने के लिए.
- उल्लू बनाया चरखा चलाया. किसी को बेबकूफ बनाया हो तो उस को चिढ़ाने के लिए.
- एक के सर पर चांदी, वोई मेरी बांदी. एक बच्चा किसी के पीछे से जा कर उसके सर पर कोई कागज़ या पंख जैसी हल्की सी चीज़ इस तरह रख देता है कि उसे मालूम ही न पड़े. फिर सब बच्चे ताली बजा कर यह कहावत बोलते हैं और खूब खुश होते हैं.
- एक जने की आँख में नोन, घड़ी घड़ी रूठे मनाए कौन. जो बच्चा खेल में रूठता है या बार बार रोता है उसे चिढ़ाने के लिए.
- एक जौ की सोलह रोटी, भगत खाए भगतानी मोटी. पंडितों और भगत लोगों को चिढ़ाने के लिए बच्चे ऐसे बोलते हैं.
- एक पैर नंगा, सास मारे डंडा. यदि कोई बच्चा एक पैर में जूता या चप्पल न पहने हो तो दूसरे बच्चे उसे यह कह कर चिढ़ाते हैं.
- ओनामासी धम, बाप पढ़े न हम. बच्चों का पढ़ाई को ले कर मजाक. यहाँ ओनामासीधम संभवतः ओम नम: सिद्धं का अपभ्रंश है.
- काठ का घोड़ा लोहे की जीन, जिस पर बैठे लंगड़दीन. कोई किसी परेशानी के कारण या झूठमूठ लंगड़ा कर चल रहा हो, उस को चिढ़ाने के लिए.
- काम ख़तम पैसा हजम. कोई काम पूरा होने पर बच्चे यह कह कर खुश होते हैं.
- काले कलूटे बैगन लूटे, भरे बाज़ार में धम धम कूटे. कोई व्यक्ति काला हो तो उसको चिढ़ाने के लिए. बात को प्रभावी बनाने के लिए कालेपन की उपमा बैंगन को भी लूट लेने से दी गई है.
- काले चोर का ब्याह हो रहा है. जब धूप भी निकल रही हो और पानी भी बरस रहा हो तो बच्चे ऐसा बोलते हैं.
- किच्ची किच्ची कौआ खाए, दूध मलाई मुन्ना खाए. शायद बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि हम लोगों की नाक से जो रैंट निकलती है उसे कौवा बड़े शौक से खाता है. छोटे बच्चे की नाक साफ़ करते समय मां उसे बहलाने के लिए कहती है कि यह गंदगी कौवा खाएगा और मेरा मुन्ना तो दूध मलाई खाएगा.
- कुतिया चली बजार को बाँध पूंछ में ईंट, सभी बजाजी पूछें चाची लट्ठा लो या छींट. बच्चों का आपसी मज़ाक.
- क्या रक्खा इन बातों में, जूते ले लो हाथों में. किसी से यह कहना हो कि इस व्यर्थ की बहस में मत पड़ो, तो इस के लिए इस से अच्छी कोई कहावत नहीं हो सकती.
- क्या है, बिल्ली का ब्याह है, कुत्ते की सगाई है, बिल्ली तेरे घर आई है. जो लोग हर बात में क्या बात है, क्या हुआ, कैसे हुआ पूछते हैं उन्हें चिढ़ाने के लिए बच्चे ऐसे बोलते हैं. कुछ बच्चे “क्या है” पूछने वालों को चिढ़ाने के लिए जवाब देते हैं “दिन है”. वह पलट कर बोलता है “आँखें बंद कर लो रात हो जाएगी.”
- खेल खतम, पैसा हजम. खेल ख़त्म होने के बाद बच्चे यह कहावत बोलते हैं.
- खेल में रोवे सो कौवा. जो बच्चा खेल खेल में खिसिया के रोने लगे उसे चिढ़ाने के लिए.
- गंजू पटेल तेरी खोपड़ी में तेल, मारा पटाखा छूट गई रेल. गंजे आदमी को चिढ़ाने के लिए.
- गली गली में शोर है “फलां प्रत्याशी” चोर है. चुनाव तो बड़े लोगों का होता है पर उस के प्रचार में बच्चे भी बढ़ चढ़ कर भाग लेते हैं. विरोधी पार्टी के नेता का नाम ले कर उसे चोर घोषित किया जाता है. विरोधी पार्टी के लिए नारे लगाए जाते हैं “फलां पार्टी” की क्या पहचान, लुच्चा नंगा बेईमान.
- चक्की पर चक्की, मेरी कसम पक्की. कसम खाने के लिए बच्चे ऐसे बोलते हैं.
- चल मेरे चरखे चर्रख चूँ. झूला झूलते समय या पहिया घुमाते समय.
- चश्मुद्दीन बजावे बीन घड़ी में बज गए साढे तीन. पहले जब बहुत कम बच्चे चश्मा लगाते थे तब जो कोई बच्चा चश्मा लगाए दिख जाए उसे चिढ़ाने के लिए.
- चश्मुद्दीन बजावे बीन, जूता मारे साढ़े तीन. ऊपर वाली कहावत से एक कदम आगे बढ़ कर.
- चांदनी रात में चंदा जी आए, मूछों में खरबूजा लाए, बगलों में तरबूज लाए. बच्चों का आपसी मजाक.
- चार चवन्नी थाली में, पप्पू गिर जाए नाली में, काली माई आएगी, गला काट के जाएगी. पप्पू को चिढ़ाने के लिए.
- चिढ़े को चिढ़ाएंगे, हलुआ पूरी खाएंगे. जो चिढ़ने वाला हो उसे चिढ़ाने में सब को मज़ा आता है.
- चींटी चढ़ी पहाड़ पर पीकर नौ मन तेल, हाथी घोड़ा दाब बगल में सर पर रखी रेल. गप्प की पराकाष्ठा.
- चूहा भाग बिल्ली आई, बच्चे अपने साथ लाई, कोई भूरा कोई काला, कहलाती है शेर की खाला. भागने और छूने वाले खेल में बोली जाने वाली कहावत.
- छत्रपती, घटे पाप बढ़े रती. बच्चों को छींक आने पर बोलते हैं. (रती का अर्थ प्रेम से है)
- छल कबड्डी आल ताल, मेरी मूंछें लाल लाल. छोटे बच्चों का मनोरंजन करने के लिए.
- छोटा सब से खोटा. बौने बच्चों को चिढ़ाने के लिए.
- छोटे से गाज़ी मियाँ बड़ी सी दुम, जहाँ जाएं गाजी मियाँ वहाँ जाए दुम. कोई बच्चा बहुत ढीले या बड़े कपड़े पहने हो तो. कोई बच्चा हमेशा किसी दूसरे बच्चे के साथ रहता हो तब भी.
- जो कोई लल्ला को रोके टोके, उसकी जीभ में पड़ें फफोके, जो कोई लल्ला को देख बर्राए, उसकी जीभ ततैया खाए. नज़र उतारने के लिए.
- जो कोई हमें देख के जरे बरे, बाकी आँखिन में राई नोन पड़े. बच्चे की नजर उतारने के लिए.
- झूठ बोलना पाप है, नदी किनारे सांप है, काली माई आयेगी, तुमको उठा ले जायेगी. कोई बच्चा झूठ बोल रहा हो तो उसे समझाने के लिए.
- टीली लीली अंडा, सास मारे डंडा. कोई छोटा लड़का नंगा घूम रहा हो तो उसे चिढ़ाने के लिए.
- डोली आई डोली आई मेरे मन में चाव, डोली में से निकल पड़ा भोंकड़ा बिलाव. गाँव के लड़के कहीं खेल रहे हैं कि कुछ कहार डोली ले कर आते हैं. लड़के उत्सुकता से देखते हैं कि डोली में से कोई शर्मीली दुल्हन निकलेगी, पर एक लम्बी चौड़ी मर्दानी सी औरत या कोई सरकारी हाकिम निकले है तो लड़के उसे चिढ़ाने के लिए ऐसे बोलते हैं.
- ताऊ गया दिल्ली, दिल्ली से लाया बिल्ली, बिल्ली ने मारा पंजा, ताऊ हो गया गंजा. ताऊ का मज़ाक उड़ा कर नानी पक्ष के लोग बच्चे को इस प्रकार चिढ़ाते हैं.
- तीतर जाने तीतर की, मैं जानूँ तेरे भीतर की. किसी बच्चे की कोई गुप्त बाट पता चल जाने पर उसे चिढाने के लिए.
- तीन तिगाड़ा काम बिगाड़ा. लोक विश्वास है कि तीन लोग मिल कर कोई काम करें तो काम बिगड़ जाता है. कहीं दो बच्चे कुछ खेल रहे हों और तीसरा उन में शामिल होना चाहे तो वे ऐसे बोलते हैं.
- दो बैलों की जोड़ी, इक अंधा इक कोढ़ी. एक जमाने में कांग्रेस का चुनाव चिन्ह दो बैलों की जोड़ी हुआ करता था. उस दूसरी पार्टियों के घरों के बच्चे मजा लेने के लिए ऐसे बोलते थे.
- नई घोड़ी चाल दिखाएगी. कुछ बच्चे कहीं खेल रहे हैं. इसी बीच एक नया बच्चा खेल में शामिल होने के लिए आता है तो उसे यह कह कर चोर बनाया जाता है.
- नकलची बंदर. कोई बच्चा किसी की नकल कर रहा हो तो उसे चिढ़ाने के लिए.
- नाना नाना भूख लगी, खा ले बेटा मूंगफली, मूंगफली में दाना नहीं, तुम हमारे नाना नहीं. नाना लोगों का मज़ाक उड़ा कर बच्चे को चिढ़ाने के लिए दादा पक्ष के लोग ऐसे बोलते हैं.
- पांच लड़कियों के बीच में एक लड़का नाक कटाने आया है. कहीं लडकियां कोई खेल खेल रही हों और एक लड़का उन के खेल में शामिल होना चाहता हो तो उसे चिढ़ाने के लिए लडकियां ऐसे बोलती हैं.
- पांडे जी पछताएंगे, सूखे चने चबाएंगे. किसी से यह कहना हो कि देखो अंत में तुम्हें मजबूर हो कर यही काम करना पड़ेगा, तो बच्चे यह कहावत बोलते हैं.
- पांडे जी पछताएंगे, वोई चने की खाएंगे. ऊपर वाली कहावत की भांति.
- पेट में पड़ गई रोटी तो फड़के बोटी बोटी. छोटे बच्चे दूध पी कर किलकारी मारने और खेलने लगते हैं तो लाड़ में बड़े लोग ऐसा बोलते हैं.
- बच के बाबूराम, आठ आने की बर्फी पचास ग्राम. किसी से यह कहना हो कि भैया जरा हट जाओ, रास्ता दे दो, तो बच्चे मज़ाक में ऐसे बोलते हैं.
- बछिया के ताऊ. किसी बुद्धू बच्चे का मजाक उड़ाने के लिए. बैल को बछिया का ताऊ कहते हैं.
- बद्तमीज़ खद्दर की कमीज़, लोहे का पाज़ामा, बन्दर तेरा मामा, बंदरिया तेरी मामी. किसी पे गुस्सा आ रहा हो और उसे बद्तमीज़ कहना हो तो उसमें भी बच्चों का तरीका निराला ही होता है.
- बरसो राम तड़ाके से, बुढ़िया मर गयी फाके से. वारिश में बच्चों के अंदर विशेष उत्साह का संचार होता है. वे भगवान से कहते हैं कि खूब जोर से बरसो. आस पड़ोस के बुड्ढे बुज़ुर्ग लोग टोकते हैं तो उन को चिढ़ाने के लिए यह लाइन और जोड़ दी गई है. इतनी जोर से बरसो कि बुढ़िया को खाना न मिल पाए और वह भूख से मर जाए.
- बुआ री बुआ, बगल में चूहा, सुबह को उठी तो, लल्ला हुआ. छोटे बच्चों की बुआओं और मौसियों का वैर तो जग जाहिर है. कोई बच्चा बुआ का नाम ले तो उस को चिढ़ाने के लिए मौसियाँ इस तरह बोलती हैं.
- बुर्के वाली बुआ, पीछे पीछे चूहा. बुर्के वाली महिलाओं से हंसी ठिठोली करने के लिए.
- बौना जोरू का खिलौना. किसी छोटे कद के आदमी को चिढ़ाने के लिए.
- भेड़ भगतन बन गई और पूँछ में डाली माला. कोई बच्चा पूजा पाठ करे तो बाकी बच्चे उस का मजाक बनाते हैं.
- भोर का मुर्गा बोला, पंछी ने मुंह खोला. छोटे बच्चे सुबह उठते ही दूध मांगते हैं तो महिलाएँ लाड़ में ऐसे बोलती हैं.
- मछली जल की रानी है, जीवन उसका पानी है, हाथ लगाओ डर जायेगी, बाहर निकालो मर जायेगी. खेल खेल में बच्चों को बहुत सी बातें सिखाई जाती हैं, उन्हीं में से एक.
- मामा खोल पजामा, दे अंटी का नामा. नामा माने रेजगारी. पहले जमाने में छोटी उम्र में ही चाचा मामा आदि बन जाते थे. ऐसे किसी बच्चे को चिढ़ाया जा रहा है कि मामा बने हो तो अपना पजामा खोल कर अंटी में से पैसे निकाल कर दो.
- मामा गया दिल्ली, दिल्ली से लाया बिल्ली, बिल्ली की पूँछ नहीं, मामा की मूँछ नहीं. दादी घर के लोग मामा का मजाक उड़ा कर बच्चे को चिढ़ाते हैं.
- मेरी अंडोई भगवान के मटके में. बच्चे खेल खेल में बीच वाली ऊँगली को क्रॉस कर के तर्जनी ऊँगली पर चढ़ा लेते हैं और इस को अंडोई बोलते हैं. किसी गंदी चीज़ से छू जाएं तो अंडोई को मटके में डालने का उपक्रम करते हुए ऐसे बोलते हैं.
- मोटर का पहिया, तू मेरा भईया, साइकिल की चैन, तू मेरी भैन. भाई बहन के आपसी खेल में बच्चों की नायाब तुकबंदी.
- मोटू सेठ, पलंग पर लेट, गाड़ी आई, फट गया पेट. मोटे व्यक्ति को चिढ़ाने के लिए.
- रोमना मुंह धोमना, बिल्ली लाई आटा, बिल्ली ने मुंह चाटा. जो बच्चा बात बात में रोता हो उस को चिढ़ाने के लिए.
- लंगड़दीन बजावे बीन, घड़ी में बज गए साढ़े तीन (जूता मारो साढ़े तीन). कोई बच्चा झूठमूठ लंगड़ाने का नाटक कर रहा हो तो उसे चिढ़ाने के लिए.
- लड़ाई लड़ाई माफ़ करो, कुत्ते का गू साफ़ करो. बच्चे जितनी जल्दी आपस में लड़ते हैं उतनी ही जल्दी उसे भूल भी जाते हैं. इसके साथ ही जितनी ज्यादा मज़ेदार मूल बात होती है उससे ज्यादा मज़ेदार उसके साथ की गई तुकबन्दी होती है.
- लंबे की अकल घुटनों में. कोई बच्चा लंबा हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.
- लोटा ले के हगन गए और टट्टी हो गई बंद, भजो राधे गोविन्द. कोई बच्चा बड़े ताव में आ कर कोई काम करने जाए और असफल हो कर लौटे तो बाकी बच्चे उस का मज़ाक उड़ाने के लिए बोलते है.
- वोई चने की लोई, बुढ़िया फूट फूट के रोई. कुछ बच्चे आपस में खुसुर पुसुर कर रहे हों और कोई और बच्चा आ कर पूछे कि क्या बात कर रहे हो तो उस को इस तरह चिढ़ाते हैं.
- शांती रे शांती, गधे चरान्ती, एक गधा लंगड़ा, वो ही तेरा बनड़ा शांति नाम की लडकियों को चिढ़ाने के लिए. (बनड़ा – बन्ना, दूल्हा)
- शैहतूत गुलाबी मेवा, तू कर बुड्ढ़े की सेवा, बुड्ढ़े ने दिए अंडे, तू खेल गिल्ली डंडे. खेल खेल में बोलने वाली कविता.
- समय बिताने के लिए करना है कुछ काम, शुरू करो अंताक्षरी ले कर हरि का नाम. अंताक्षरी शुरू करने से पहले बोलने वाली कहावत.
- सुनो भई गप्प सुनो भई सप्प, नाव में नदिया डूबी जाए. कोई बड़ी बड़ी गप्पें हांक रहा हो तो उस का मज़ाक उड़ाने के लिए.
- सूरत न शकल, भाड़ में से निकल. बच्चे किसी से चिढ़ जाएँ तो कुछ भी बोल सकते हैं. वे यह नहीं सोचते कि सामने वाले को कितना बुरा लग सकता है.
- सूरत है बन्दर की बस दुम की कसर है. किसी को भी चिढ़ाने के लिए.
- हम भी खेलेंगे, नहीं तो खेल बिगाड़ेंगे. वैसे तो यह बच्चों की कहावत है लेकिन दुष्ट प्रवृत्ति के बड़े लोगों पर भी सही बैठती है. कहीं पर कोई बच्चे खेल रहे हों तो दूसरे बच्चे इस तरह धमकी देते हैं.
- हर हर गंगा गोमती, बिना कूटे रो मती. कोई बच्चा रो रहा हो तो उसका मजाक उड़ाने के लिए.
- हर हर गंगे, हर हर गंगे, धोती खुल गई, रह गए नंगे. बच्चों को नहलाते समय उन का मन लगाने के लिए.
- हाथी घोड़ा पालकी, जै कन्हैया लाल की. खेल खेल मेंबच्चों को पीठ पर लाद कर घुमाते समय ऐसा बोलते हैं.
- हिस्ट्री ज्योग्राफी बड़ी बेबफा, रात हो रटो और सुबह को सफा. इतिहास भूगोल जैसे विषय बच्चों को बहुत बुरे लगते हैं.
- होली दीवाली कच्चा सूत, जिएँ तुम्हारे सातों पूत. होली का चंदा मांगते समय बोली जाने वाली कहावत.
- होली है भई होली है, बुरा न मानो होली है. होली के हुरियारों द्वारा किसी को भी रंग लगाते समय बोली जाने वाली कहावत.
बच्चों की कहावतें अलग होने के साथ बच्चों के चुटकुले, कहानियाँ और खेल भी अलग ही होते हैं. ये सब भी लुप्त होते हुए लोक साहित्य और लोक भाषा के अंग ही हैं. माता पिता की पीढ़ी और बच्चों की पीढ़ियों (generation) के बीच एक पीढ़ी हुआ करती थी चाचा, मामा, बुआ और मौसी की जो इस बहुमूल्य धरोहर को छोटे बच्चों को हस्तांतरित करती थी. मोहल्लों में पास पास घर होने के कारण और हर घर में कई बच्चे होने के कारण बहुत सारे बच्चे इकट्ठे हो जाते थे. टीवी, मोबाइल और कार्टून फिल्म्स नहीं थे और पढ़ाई का बोझ नहीं था इसलिए बच्चों के पास खेलने के लिए समय भी बहुत होता था. (आजकल के संभ्रांत वर्ग में अब ऐसा देखने को नहीं मिलता है).
यहाँ हम बच्चों के कुछ खेलों का जिक्र कर रहे हैं जिन्हें पढ़ कर आपको अपना बचपन याद आ जाएगा.
बहुत छोटे बच्चों के खेल –
1. छोटे बच्चों को पैरों पर बिठा कर झूला झुलाते हुए झुज्झू झोटे की जाती थी –
“झुज्झू झोटे, मामू मोटे, मामा की बिटिया, नीम चढ़ी, नीम खाई निम्बोली, कच्ची कच्ची आप को, पक्की पक्की बाप को, जेठ गया सब्जी लेने आलू भिन्डी करेला, एक करेला काना, मुन्ने की सास का नाना, काहे बात का नाना, दाल भात का नाना, दाल भात बहुतेरा, खाने को मुँह टेढ़ा, मुँह में मारी लठिया, जा पड़ी खटिया.” यह कह कर बच्चे को एक तरफ लुढ़का देते थे.
(कहीं कहीं पर जेठ सब्जी लेने की बजाय चोरी करने जाता है – जेठ गया चोरी करने, लाया सात कटोरी, एक कटोरी टूटी, मुन्ने की सास रूठी, काहे बात पे रूठी, दाल भात पे रूठी, दाल भात बहुतेरा – – )
एक और प्रकार की झुज्झू झोटे इस तरह से होती थी –
झू झू के पाऊं के, पार बसाऊं के, आले में सांप, तिपाई में बिच्छू, बेटा बेटा आर न जइयो, बेटी बेटी पार न जइयो, राजा जी का महल गिरेगा, आरारारारारा धम.
2. एक होती थी आटे बाटे जिस में छोटे बच्चों को बहुत आनंद आता था. बच्चे की हथेली को थपकते हुए आटे बाटे दही चटाके बोलते थे, फिर बच्चे को झूठ मूठ तरह तरह की खाने की चीजें खिलाने का नाटक होता था, फिर उस की एक एक ऊँगली पकड़ कर अलग अलग लोगों के नाम लेते थे और अंत में अंगूठे को गैया का खूँटा बता कर वहाँ से गुलगुली करते हुए बछिया को ढूँढ़ते हुए बगल तक पहुँच जाते थे. गुलगुली होने से बच्चे खूब हँसते थे.
“आटे बाटे, दही चटाके, दाल भात रोटी हप्प, लड्डू पूड़ी हप्प, ये मुन्ने का, ये भैया का, ये नाना का, ये नानी का और गैया का खूँटा. दाना खाती चने चबाती कहाँ गई बछिया, ये पाई ये पाई ये पाई”.
थोड़े बड़े बच्चों के खेल – (आजकल के बच्चे इन सब खेलों से बिलकुल अनजान हैं). बहुत छोटे बच्चे भी साथ में खेलते थे (हालाँकि उन की कच्ची पोई होती थी) और खेल खेल में बोलना सीख जाते थे.
1. “पोशम्पा भई पोशम्पा, डाकुओं ने क्या किया, सौ रुपये की घड़ी चुराई, आठ आने की रबड़ी खाई, अब तो जेल में जाना पड़ेगा, जेल की रोटी खानी पड़ेगी, जेल का पानी पीना पड़ेगा”. (दो बच्चे आमने सामने खड़े हो कर अपने हाथ ऊँचे कर के एक दूसरे के हाथ पकड़ कर दरवाजा बना देते थे और बाकी बच्चे उसमे से निकलते थे. आखिर शब्द बोलते समय जो बच्चा नीचे होता था उसे जेल में बंद कर लिया जाता था. फिर वह कान पकड़ कर उठक बैठक लगाता था).
2. “हरा समंदर गोपी चन्दर, बोल मेरी मछली कितना पानी” – “इतना पानी”. (एक बच्चा बीच में खड़ा होता था और बाकी बच्चे चारों ओर घूमते हुए इस तरह बोलते थे. बीच वाला बच्चा अपने पैर छू कर बोलता था – इतना पानी. फिर इस को दोहराते थे लेकिन हर बार पानी की ऊंचाई बढती जाती थी).
3. कोड़ा जमा रखाई (घोड़ा बादाम चाई) पीछे देखो मार खाई. (बच्चे लोग घेरा बना कर बैठ जाते थे और एक बच्चा हाथ में कोड़ा ले कर चक्कर लगाता था. वह चुपके से किसी के पीछे कोड़ा रख देता था. अगर उस को नहीं मालूम पड़ा तो चक्कर पूरा कर के उस को कोड़े मारता था और वहां से उठा देता था, फिर कोड़े खाने वाला चक्कर लगाता था. जिसके पीछे कोड़ा रखा गया अगर वह देख ले तो कोड़ा ले कर पीछे पीछे भाग कर कोड़ा रखने वाले को कोड़े मारता था).
4. “पेंसिल पेंसिल गंगा को चली, रास्ते में कीचड़ पड़ी धड़ाम से गिर पड़ी”. (सब बच्चे एक दूसरे का हाथ पकड़ कर घेरा बना लेते थे और गोल गोल घूम कर यह बोलते थे. धड़ाम से गिरी कह कर सब गिर जाते थे और फिर उठ कर यही खेलने लगते थे. किसी को चोट भी नहीं लगती थी. यह खेल इंग्लिश के रिंगा रिंगा रोज़ेज़ की तरह है).
5. “बुढ़िया बुढ़िया क्या ढूंढे – सुई धागा, सुई धागे का क्या करेगी – थैली सीऊँगी, थैली का क्या करेगी – पैसे जोड़ूंगी, पैसे का क्या करेगी – भैंस खरीदूंगी, भैंस का क्या करेगी – दूध पियूंगी – दूध के बदले मूत ना पी ले”. (एक बच्चा बुढ़िया बनता था और एक पूछने वाला, अंतिम पंक्ति बोल कर दोनों खूब हँसते थे, फिर पूछने वाला बुढ़िया बन जाता था और खेल दोहराया जाता था).
6. “गाय, गाय का बछड़ा, गुड़ खाबे. छोटे बच्चे के ऊपर के होंठ को बाएँ हाथ से और नीचे के होंठ को दाएँ हाथ से पकड़ कर उस से कहते थे की जो हम बोलें उसे दोहराओ. गाय – बच्चा बोलता था गाय, गाय का बछड़ा – बच्चा दोहराता था, गुड़ खाबे – बच्चा बोलता था गुड़ खाबे तो ‘बे’ की ध्वनि पर उस के होठों को बार बार एक दूसरे से मिलाते थे जिससे बे बे बे बे की ध्वनि निकलती थी और बच्चे खूब हंसते थे.
7. “मेरी रोटी किसने खाई – कुत्ते ने, कुत्ता मेरे साथ गया, बिल्ली ने, बिल्ली मेरे साथ गई, घोड़े ने, घोडा मेरे साथ गया, चूहे ने, चूहा मेरे साथ गया, बंदर ने, बंदर मेरे साथ गया – – हम ने हम ने हम ने” (एक बच्चा बीच में खड़ा होकर पूछता था – मेरी रोटी किसने खाई. बाकी बच्चे घेरा बना कर खड़े होते थे, वे जवाब में कहते थे फलां जानवर ने, वह बच्चा कहता था फलां जानवर मेरे साथ गया, तो वे किसी और जानवर का नाम लेते. इस तरह सारे जानवरों के नाम लेने के बाद अंत में तालियाँ बजा बजा कर कहते – हम ने हम ने हम ने और भागने लगते थे. वह बच्चा भाग कर उनको छूता था. जो छू गया वह फिर बीच में खड़ा होता था और खेल फिर दोहराया जाता था. बच्चे बार बार यही खेल कर भी बोर नहीं होते थे. इस खेल के बहाने छोटे बच्चों को जानवरों के नाम भी याद हो जाते थे).
8. “अक्कड़ बक्कड़ बम्बे बो, अस्सी नब्बे पूरे सौ, सौ में लगा धागा, चोर निकल के भागा, राजा की बेटी सोती थी, फूलों की माला पोती थी, मेम बोली कुटकुट, खस्ता बिस्कुट).” अपने हाथ के पंजों को सामने रख बच्चे घेरा बना कर बैठ जाते थे और एक बच्चा यह शब्द बोलते हुए बारी बारी से उन पर अपनी ऊँगली रखता था.
बच्चों का मजेदार साहित्य –
ABCDEFG उसमें से निकले पंडित जी, पंडित जी ने खोदा गड्ढा उसमें से निकला गांधी बुड्ढा, गांधी बुड्ढे ने खाया कसेरू उसमें से निकला जवाहरलाल नेहरू, जवाहरलाल नेहरू ने खाया गोश्त उसमें से निकले सुभाष चंद्र बोस, सुभाष चंद्र बोस ने खाया अंडा उसमें से निकला तिरंगा झंडा, तिरंगे झंडे की आवाज इंकलाब जिंदाबाद.
चींटी चढ़ी पहाड़ पर पीकर नौ मन तेल, हाथी घोड़ा दाब बगल में सर पर रखी रेल. सुनो भई गप्प सुनो भई सप्प नाव में नदिया डूबी जाए –
कुतिया चली बजार को बाँध पूंछ में ईंट, सभी बजाजी पूछें चाची लट्ठा लो या छींट.
सुनो भई गप्प सुनो भई सप्प नाव में नदिया डूबी जाए –
नाना नाना भूख लगी, खा ले बेटा मूंगफली, मूंगफली में दाना नहीं, तुम हमारे नाना नहीं.
मामा गया दिल्ली, दिल्ली से लाया बिल्ली, बिल्ली की पूंछ नहीं, मामा की मूंछ नहीं.
वन टू थ्री चवन्नी गिरी, वन टू फोर चवन्नी चोर, वन टू फाइव चवन्नी गाइब, वन टू सिक्स चवन्नी घिस्स, वन टू सेवेन चवन्नी गिवेन, वन टू एट चवन्नी सेठ, वन टू नाइन चवन्नी फाइन, वन टू टेन चवन्नी मैन. (चवन्नी माने चार आने यानि 25 पैसे का सिक्का, अब तो चवन्नी ही गायब हो गई है).
मछली जल की रानी है, जीवन उसका पानी है.
हाथ लगाओ डर जायेगी, बाहर निकालो मर जायेगी.
आलू-कचालू बेटा कहाँ गये थे, बन्दर की झोपडी में सो रहे थे. (बैंगन की टोकरी)
बन्दर (बैंगन) ने लात मारी रो रहे थे, मम्मी ने पैसे दिये हंस रहे थे.
आज सोमवार है, चूहे को बुखार है, चूहा गया डाक्टर पास, डाक्टर ने लगायी सुई, चूहा बोला उईईईईई.
झूठ बोलना पाप है, नदी किनारे सांप है, काली माई आयेगी, तुमको उठा ले जायेगी.
चन्दा मामा दूर के, पूए पकाये बूर के, आप खाएं थाली में, मुन्ने को दे प्याली में.
बिल्ली बोली म्याऊं काहे घबराओ, मैं तो चली काशी गले लग जाओ.
वारिश आई छम छम छम, छाता लेकर निकले हम, पैर फिसला गिर गए हम, ऊपर छाता नीचे हम.
बिजली चमकी बरसा पानी, मेंढक करते हैं शैतानी, भीग गई जब तितली रानी, सर पर नन्ही छतरी तानी.
आलू भिंडी गोभी बैगन, भरी हुई है स्टेशन वैगन, इसको हरी दिखा दो झंडी, पहुंचे सीधे सब्जी मंडी.
लाठी ले कर भालू आया छम छम छम, ढोल बजाता मेंढक आया ढम ढम ढम, मेंढक ने ली मीठी तान, और गधे ने गाया गान.
तितली उड़ी, बस मे चढ़ी, सीट ना मिली, तो रोने लगी.
कंडक्टर ने कहा, आजा मेरे पास, तितली बोली ” हट बदमाश “.
मोटू सेठ, पलंग पर लेट, गाड़ी आई, फट गया पेट, गाड़ी का नम्बर फिफ्टी एट.
बबली बेटा सो जा, लाल पलंग पे सो जा, मम्मी डैडी आयेंगे, ढेर खिलौने लाएंगे, एक खिलौना टूटा, बबली बेटा रूठा.
लाला जी ने केला खाया, केला खा कर मुंह बिचकाया, मुंह बिचका कर छड़ी उठाई, छड़ी उठा कर कदम बढ़ाया, पैर के नीचे छिलका आया, लाला जी गिरे धड़ाम, मुंह से निकला हाय राम.
पाकिस्तान बेईमान, कुत्ते की सी खोपड़ी, बिलाऊ जैसे कान.
आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं दाढ़ी अय्यूब खान की, इस दाढ़ी में जुएँ भरी हैं सारे पाकिस्तान की, अंडे चाय गरम, अंडे चाय गरम.
अन्ताक्षरी भी उस समय टाइम पास करने का अच्छा साधन होती थी. जब फ़िल्मी गाने और कवितायेँ खत्म हो जाती थीं तो बेईमानी करने के लिए इस तरह की तुकबंदी की जाती थी
हे राम तुम्हारे मंदिर में दो आलू पड़े थे, परदा उठा के देखा तो दो भालू खड़े थे.
हे राम तुम्हारे मंदिर में दो बेर पड़े थे, परदा उठा के देखा तो दो शेर खड़े थे.
लुढकते पुढकते चले जाएंगे, पहाड़ों से पत्थर उठा लाएंगे.
हम लोगों ने आग जलाई धुंआ उठा आसमानों में, आलू छीले गोभी काटी साग बना मैदानों में.
एक था राजा एक थी रानी, दोनों मर गए ख़तम कहानी.