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अन्ते मति सो गति

मरते समय व्यक्ति के मन में जो भाव रहते हैं वैसी ही उस की गति होती है. इस बारे में एक कहानी कही जाती है. एक ऋषि को वन में एक मृग शावक मिला जिसकी मां हिरनी उसे जन्म देते ही मृत्यु को प्राप्त हो गई थी. उन्होंने दयावश उसे अपने आश्रम में ला कर पाल लिया. उन्हें उस से इतना मोह हो गया कि अपने अंतिम समय पर भी वे उस की चिंता में ही डूबे रहे. इसके फलस्वरुप उन्हें हिरन की योनि में जन्म लेना पड़ा. इस विषय में एक दूसरी कथा एक स्त्री के बारे में कही जाती है जो युवावस्था में ही विधवा हो गई थी. जब वह प्रौढावस्था में थी तो बहुत अधिक बीमार हो कर मृत्यु शैया पर पड़ी थी. उसको देखने एक युवा वैद्य आए. वैद्य ने जब नाड़ी देखने के लिए उसका हाथ पकड़ा तो उस स्त्री को एक अजीब सी सिहरन हुई और उस के मन में आया कि हाय मैं इस सुखद अनुभूति से कितनी वंचित रही. उसी समय उसका प्राणांत हो गया. अंतिम समय की उस अतृप्त इच्छा के कारण उसे एक वैश्या के घर में जन्म मिला.

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