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दो लड़ें तीसरा ले उड़े

 

दो बिल्लियों को एक बार कहीं से एक रोटी मिल गई. दोनों आपस में झगड़ने लगीं कि मुझे मिले है , मैं खाऊँगी, नहीं मुझे मिली है मैं खाऊँगी. अंत में तय हुआ कि किसी तीसरे व्यक्ति से इसका फैसला करा लिया जाए. रोटी को ले कर दोनों बंदर के पास गईं.

बंदर ने कहा, देखो बहनों लड़ो नहीं. दोनों को मिली है इसलिए दोनों आधी आधी बाँट लो. मैं बंटवारा कर देता हूँ. बात दोनों की समझ में आ गई. दोनों तैयार हो गईं.

बंदर एक तराजू ले कर आया. उसने जानबूझ कर इस तरह रोटी के दो टुकड़े किए कि एक टुकड़ा छोटा और एक बड़ा था. तराजू के दोनों पलड़ों में एक एक टुकड़ा रखा. फिर बराबर करने के लिए जो टुकड़ा बड़ा था उसमें से कुछ हिस्सा तोड़ा और खा लिया. अब वह वाला टुकड़ा छोटा हो गया. जाहिर सी बात है कि दूसरा वाला पलड़ा नीचे झुक गया. अब उसने उस टुकड़े में से एक हिस्सा तोड़ा और खा लिया जिससे वह टुकड़ा दूसरे से छोटा हो गया. अब उसने दोनों बचे हुए टुकड़ों में से जो बड़ा था उस में से एक हिस्सा तोड़ा और खा लिया. इस तरह उस ने एक एक हिस्पूसा कर के पूरी रोटी खा ली और बोला, बहनों ये रोटी तो खतम हो गई, अब तुम लोग एक और रोटी ढूँढ़ कर लाओ. उस में से बराबर हिस्से कर दूंगा.

बिल्लियों को समझ आ गया कि आपस में लड़ने के कारण वे पूरी रोटी से हाथ धो बैठी हैं. इस कहानी के ऊपर ही यह कहावत बनी – दो लड़ें तीसरा ले उड़े.

दुष्ट अंग्रेजों ने इसी तरह भारतीय राजाओं को मूर्ख बना कर पूरे भारत का राज्य हड़प लिया था. आज भी राजनैतिक दल और वकील लोग इसी तरह लोगों को मूर्ख बना कर अपना उल्लू सीधा करते हैं.

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