छह अंधे आपस में दोस्त थे. एक बार उन्होंने ने सुना कि हाथी नाम का एक बहुत बड़ा जीव होता है. उन के मन में हाथी के बारे में अधिक जानने की जिज्ञासा हुई. वे सब मिल कर जमींदार के पास गए और उससे प्रार्थना की कि वे उस का हाथी देखना चाहते हैं. जमींदार ने उन से कहा कि कोई भी व्यक्ति बिना आँखों से देखे वे हाथी की विशालता का अनुभव नहीं कर सकता. पर अंधे नहीं माने. हार कर जमींदार उन्हें अपने हाथी के पास ले गया और उनसे कहा कि वे छू कर हाथी को महसूस करें.
वे सब हाथी केइर्द गिर्द बिखर गए. उन में से एक अंधे ने हाथी की सूंड पकड़ी. वह बोला हाथी तो सांप जैसा है. दूसरे के हाथ में हाथी की पूंछ आई. वह बोला गलत, हाथी तो रस्सी जैसा है. तीसरे के हाथ हाथी के पैर पर पड़े. वह बोला, अरे हाथी तो खम्बे जैसा है. चौथे के हाथ में हाथी के कान आए. वह बोला , तुम सब पागल हो. हाथी तो सूप (छाज) जैसा है. इसी तरह पांचवें और छठे के हाथ में क्रमश: हाथी का दांत और धड़ आये. उन्होंने उसे भाले और मशक जैसा बताया. फिर वे सभी अपने को सही और दूसरों को गलत बताते हुए आपस में लड़ने लगे.
जब कोई मंद बुद्धि लोग किसी वस्तु या विज्ञान के विषय में ज्ञान हुए बिना अपने को सही और दूसरों को गलत बताते हैं तो यह कहावत कही जाती है.