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चील रंग सब कोई सियारी रंग कोई न(चील्हो रंग सब कोय सियारो रंग कोय न)

सब लोग चील्हो की तरह हों, सियारो की तरह कोई नहीं. चील्हो (चील) और सियारो (सियारिन) दो सहेलियाँ थीं. दोनों ने जीवत्पुत्रिका-व्रत किया. सियारिन को बड़ी भूख लग गई. वह अपनी माँद में, कहीं से हड्डी-सहित माँस का टुकड़ा लाकर खाने लगी. कट-कट की आवाज सुन, पेड़ पर बैठी चील ने पूछा – सखी, तुम्हारी माँद में से कट-फट की आवाज कैसी आ रही है. इस पर सियारिन ने जवाब दिया – भूख के मारे शरीर की हड्डियाँ पटपटा रही है. मृत्यु के बाद एक ही नगर में चील रानी के रूप में तथा सियारिन वणिक स्त्री के रूप में पैदा हुई. दोनों के सात-सात पुत्र हुए. संयोग ऐसा कि जब-जब चील के लड़कों की शादी होती, तब-तब सियारिन का एक लड़का मर जाता. सियारिन ने एक दिन चील से इसका कारण पूछा, तो चील ने उसे पूर्वजन्म की घटना बतलाते हुए कहा कि व्रतभंग के पाप के कारण तुम्हारे बच्चे मर जाते हैं

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