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काटना छोड़ दिया तो फुंकारते तो जाओ (काटबो छोड़ दओ तो फुंकारत तौ जाओ)

एक समय किसी सर्प ने एक साधू के उपदेश से काटना बिलकुल छोड़ दिया. इस पर लोग उसे बड़ा तंग करने लगे. जो आता ढेला मारता. गुरू को जब इसका पता चला तो उन्होंने कहा, भाई काटना छोड़ दिया, ठीक किया. परन्तु थोड़ा-बहुत फुंकारते जाया करो, जिससे लोग तुमसे डरते रहें, क्योंकि उसके बिना दुनिया में काम नहीं चलता.

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