एक राजा के दरबार में एक चोर को पकड़ कर लाया गया. उस राज्य का कानून था कि चोरी छोटी हो या बड़ी, चोर को सूली पर चढ़ाया जाएगा. लिहाजा राजा ने उसे सूली पर चढ़ाने का हुक्म दिया. चोर ने अनुनय भरे स्वर में कहा – महाराज मुझसे एक बहुत छोटी सी भूल हुई है जिसके लिए मैं लज्जित हूं और क्षमा मांगता हूं. कृपा करके इसके लिए मुझे इतनी बड़ी सजा न दें. राजा ने कड़क कर कहा – चोरी तो चोरी है हीरे की हो या खीरे की, उसके लिए सजा एक ही है. चोर ने कहा – ठीक है महाराज, आप मुझे अवश्य सूली पर चढ़ा दें, पर मरने से पहले मैं एक राज बताना चाहता हूँ जिससे राज्य को बहुत फायदा हो सकता है. राजा ने पूछा वह क्या? चोर बोला – महाराज मुझे एक विद्या आती है जिसके द्वारा सोने की खेती की जा सकती है. चोर की बात सुनकर सारे दरबारी आश्चर्य में पड़ गए लेकिन महामंत्री गुस्से से बोले – महाराज यह झूठ बोल रहा है. अगर इसको सोने की खेती करना आती होती तो यह छोटी मोटी चोरियां क्यों करता. चोर बोला – अन्नदाता मैं छोटा मोटा आदमी मेरे पास कोई जमीन नहीं, न ही इतने पैसे कि मैं सोने के बीच खरीद सकूं, और जब खेत में सोना उगेगा तो उसकी रखवाली करने के लिए भी तो सेना चाहिए. मेरे पास यह सब कहां. राजा बोले – ठीक है तुम्हें एक मौका देते हैं, वरना तुम्हें सूली पर चढ़ना ही. है चोर को सख्त पहरे में एक कारागार में रखा गया और उससे सोने की खेती का प्रबंध करने को कहा गया.
चोर ने कहा – महाराज शुरू में हम केवल एक बीघा जमीन में खेती करेंगे. इसके लिए गेहूं की तरह के बने हुए एक किलो सोने के बीच चाहिए और विषैले सांपों से बनी हुई खाद. इतना इंतजाम होने के बाद कुछ विशेष मंत्रों के साथ बुवाई की जाएगी.
निश्चित दिन राजपुरोहित एवं नगर के कुछ विद्वान ब्राह्मण बुलाए गए और सोने की बुवाई की तैयारी शुरू हुई. सभी लोगों के मन में इस सारे आयोजन को लेकर बड़ा कौतूहल था. सबके आ जाने के बाद चोर बोला – महाराज मैं एक बात तो बताना भूल ही गया. बुवाई की एक शर्त है. बुवाई केवल वही कर सकता है जिसने अपने जीवन में कभी कोई छोटी से छोटी चोरी भी न की हो. पहले मंत्र बोले जाएंगे, उसके बाद बुवाई करने वाले को ईश्वर की सौगंध खाकर पहले यह कहना होगा कि उसने बचपन से लेकर अभी तक कोई छोटी से छोटी छोरी भी नहीं की है. मंत्र बोलने के बाद यदि कोई झूठी सौगंध खाएगा तो तुरंत उसकी मृत्यु हो जाएगी. महाराज मेरी प्रार्थना है कि आप से अधिक उपयुक्त इस कार्य के लिए कौन होगा. आपने तो कभी कोई चोरी नहीं की होगी.
यह बात सुनकर राजा पशोपेश में पड़ गए. अपने दिमाग पर काफी जोर देकर बोले – मैंने बचपन में अपने पिता महाराज के शाही पानदान से एक पान चुराकर खाया था क्योंकि पिता महाराज बच्चों के पान खाने के सख्त खिलाफ थे. चोर अब महामंत्री की ओर मुड़ा और बोला – महामंत्री जी आप? मंत्री बोले – मैंने भी बचपन में अपने पिताजी की जेब में से एक पैसे का सिक्का चुराया था. अब चोर ने राजपुरोहित की ओर मुड़ कर उनसे कहा – आप तो स्वयं धर्म की मूर्ति हैं. आप ही यह कार्य करें. उसकी बात सुनकर राजपुरोहित पसीना पसीना हो गए और बोले कि मैं भी यह कार्य नहीं कर सकता, क्योंकि मैंने बचपन में एक बार अपनी माता जी के प्रसाद के लड्डुओं में से एक लड्डू चुरा कर खाया था. चोर ने फिर सभी दरबारियों की ओर मुड़ कर कहा कि आप सब महानुभावों में से कोई तो ऐसा होगा जिसने बचपन से लेकर अभी तक कोई चोरी न की हो. आप में से कोई आगे आइए. सभी दरबारी बगले झांकने लगे. कोई आगे नहीं आया. चोर अब राजा की ओर मुड़ा और बोला – महाराज जब सभी लोगों ने कभी न कभी कोई छोटी मोटी चोरी की है तो सजा अकेले मुझको ही क्यों मिल रही है. उसकी यह बात सुनकर राजा लज्जा से पानी पानी हो गया. उसने चोर को कुछ धनराशि देकर कहा कि अब वह चोरी करना छोड़ दे और इस धनराशि से अपना कोई व्यापार करे.