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मूरख का माल खुशामद से खाइए.

 

कौवे और लोमड़ी की कहानी हम सब ने बचपन में सुनी होगी. एक कौवे को कहीं से रोटी का एक बड़ा सा टुकड़ा मिल गया. वह उसे चोंच में दबा कर कर पेड़ की डाल पर जा बैठा. एक लोमड़ी ने उधर से जाते हुए कौवे की चोंच में रोटी का टुकड़ा देखा तो उस के मुँह में पानी आ गया. वह उसे हथियाने की जुगाड़ सोचने लगी. अचानक उसे एक तरकीब सूझी. पेड़ के नीचे आ कर वह कौवे से बोली – कौवे भाई तुम कितने अच्छे गायक हो. बहुत दिन से तुम्हारा गाना नहीं सुना. तुम्हारी मधुर आवाज सुने हुए कितने दिन हो गए. जरा एक अच्छा सा गाना सुनाओ न. कौवा अपनी प्रशंसा सुन कर ख़ुशी से फूल उठा. उसने जैसे ही गाने के लिए मुँह खोला, रोटी का टुकड़ा नीचे गिर गया. इससे पहले कि कौवा कुछ समझ पाता, लोमड़ी वह टुकड़ा ले कर भाग गई. तभी से यह कहावत बनी –  ‘मूरख का माल खुशामद से खाइए’. कहीं कहीं बोलते हैं – फूहड़ का माल सराह सराह खाइए.

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