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सांची कहें तो मौसी का काजल

सच बात कहने से कोई तिनक उठे तब. एक सज्जन बड़े मुँहफट और स्पष्टवादी थे. इस कारण उनका नाम ‘साँचेरैया’ पड़ गया था. एक बार वह अपनी मौसी के यहाँ गये. धीरे से दरवाजा खोल कर भीतर पहुँचे तो देखा कि मौसी बड़ी ठसक से श्रृंगार कर रही हैं और वहीं मौसा भी खड़ें हैं. वे उल्टे पैरों बाहर लौट आये और चुपचाप दरवाजे पर बैठ गये. थोड़ी देर बाद मौसी बाहर निकली तो उन्हें बैठा देख कर पूछा – अरे, तू कब आया? साँचेरैया ने तुरंत उत्तर दिया – जब तुम काजल लगा रही थीं और मौसा खड़े हँस रहे थे. सुनते ही मौसी आग बबूला हो गयी और – अरे तेरो सत्यानास हो, मौसी से हँसी करता है, कह कर उसे मारने दौड़ी. साँचेरैया वहाँ से भाग निकले. इसके पश्चात सच बोलने के कारण जब कभी कोई विपत्ति आती है तो वे यही कहते हैं कि सांची कहें तो मौसी का काजल.

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