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जैसा दिया वैसा पाया

एक चालाक अहीर पांच सेर की एक मटकी में नीचे साढ़े चार सेर गोबर और ऊपर से खूब अच्छा आधा सेर ताजा घी फैलाकर बेचने चला. रास्ते में उसे एक आदमी मिला, जो एक चमकीली तलवार को बाजार में बेचने जा रहा था. वह तलवार दरअसल लकड़ी की थी जिसके ऊपर उसने रुपहली पत्ती चिपका रखी थी. अहीर ने सोचा घी के बदले में यह खूबसूरत तलवार मिल जाए तो मेरे भाग्य खुल जाएं. उस ने कहा, एक तलवार तो मुझे भी खरीदनी थी, लेकिन सौदा करूंगा घी बिकने पर. तलवार वाले ने सोचा, तलवार के बदले में अगर यह घी की मटकी मुझे मिल जाए तो खूब घी-खिचड़ी का मजा आएगा. अहीर से बोला,  मुझे भी तलवार बेचकर घी ही लेना है, आओ सौदा कर लें. मैं तुम्हें घी के बदले तलवार दे दूँगा. दोनों ने मन में सोचा कि हम सामनेवाले को उल्लू बना रहे हैं. घर जाकर जब दोनों ने असलियत जानी तो समझ गये – जैसा दिया वैसा पाया.

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