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आन का दाना तान के खाना, मर जाना परवाह नहीं

दूसरे का माल जम कर खाना चाहिए, चाहे जान ही क्यों न चली जाय. एक बार एक ब्राह्मण किसी के यहाँ निमंत्रण खाने गये. तो सास ने बहू से कहा कि ‘बहू भइया का बिस्तर लगा दो, वे जैसे ही न्योता खाकर घर आयेंगे, वैसे ही तुरंत बिस्तर पर लेट जायेंगे. इस पर बहू जोर जोर से रोने लग गई. डरते हुए सास ने बहू से पूछा कि वह क्यों रो रही है तो बहू बोली- सास जी यह भला आपके यहाँ का क्या रिवाज है कि न्योता खाने वाले घर तक पैदल चल कर आते हैं. हमारे मैके में तो चारपाई भी साथ जाती है. न्योता खाने वाले को उसी पर चार लोग लेकर आते हैं.

2 thoughts on “आन का दाना तान के खाना, मर जाना परवाह नहीं

  1. Veer Singh says:

    Very good

    1. admin says:

      thanks for your appreciation.

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