एक बार एक सन्यासी अपने चेले के साथ घूमते हुए अंधेर नगरी नाम के एक ऐसे शहर में पहुंचे जहां की शासन व्यवस्था बड़ी अजीब थी. वहां पर मामूली सब्जियां भी एक टके में एक सेर मिल रही थीं और खाजा नाम की खोए से बनी एक बढ़िया मिठाई भी. यह देख कर चेला बहुत खुश हुआ और गुरु जी से बोला, गुरु जी यह तो बहुत अच्छी जगह है हम लोगों को यही रहना चाहिए.
गुरुजी ने कहा वत्स, यह बहुत खतरनाक जगह है. यहां रहना खतरे से खाली नहीं है. लेकिन चेला नहीं माना और वहीं रुकने पर अड़ गया.
गुरुजी ने कहा, ठीक है तुम रुको मैं जाता हूं. कभी किसी संकट में पड़ो तो मुझे याद करना. चेला खुशी-खुशी वहां रहने लगा और टके सेर मिठाईयां खा- खा कर खूब मोटा हो गया.
एक बार उस राज्य में ककड़ी की चोरी के अपराध में एक चोर पकड़ा गया. राजा ने उसे फांसी की सजा सुनाई और राज्य के लोगों को हुक्म दिया गया की फांसी वाले दिन सभी को वहां उपस्थित रहना है. जल्लाद जब चोर को फांसी पर चढ़ाने चला तो देखता क्या है कि चोर की गर्दन पतली है और फांसी का फंदा मोटा.
उसने राजा से पूछा, हुजूर अब क्या करूं?
राजा बोला कोई बात नहीं. भीड़ में से छांट लो, जिसकी गर्दन इस फंदे में फिट आ जाए उसे फांसी पर चढ़ा दो (अंधेर नगरी जो ठहरी). संयोग से चेले की गर्दन फंदे में बिल्कुल फिट आ गई तो उसे ही फांसी पर चढ़ाने की तैयारी होने लगी. अब चेले ने घबरा कर गुरु जी को याद किया.
गुरुजी सिद्ध पुरुष थे. उन्होंने जान लिया कि चेला संकट में है और फौरन वहां आ गए. वहां आकर उन्होंने चेले के कान में कुछ कहा. उसके बाद गुरु और चेला आपस में झगड़ने लगे कि फांसी पर मैं चढूँगा, नहीं मैं चढूँगा.
मूर्ख राजा को इस बात पर बड़ा कौतूहल हुआ किऐसी क्या बात है जो दोनों ही फांसी पर चढ़ने परआमादा हैं. उसने गुरुजी से पूछा तो गुरु जी ने बताया, महाराज इस समय ऐसा मुहूर्त है कि जो फांसी पर चढ़ेगा वह सीधा स्वर्ग जाएगा और स्वर्ग का राजा बनाया जाएगा. मूर्ख राजा तुरंत अपने सिंहासन से कूदा और जल्लाद से बोला, मुझे फौरन फांसी पर चढ़ा मैं स्वर्ग का राजा बनूंगा. इस तरह चेले की जान बची तो उसने कसम खाई कि अब कभी ऐसी अंधेर नगरी में नहीं रहेगा.
तब से यह कहावत बनी – अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा.