एक बार एक लोमड़ी अंगूरों के बाग से गुजर रही थी। चारों ओर स्वादिष्ट अंगूरों के गुच्छे लटक रहे थे। मगर वे सभी लोमड़ी की पहुंच से बाहर थे। अंगूरों को देखकर लोमड़ी के मुंह में बार-बार पानी भर आता था।
वह सोचने लगी-‘वाह ! कितने सुंदर और मीठे अंगूर हैं। काश मैं इन्हें खा सकती।’ यह सोचकर लोमड़ी उछल-उछल कर अंगूरों के गुच्छों तक पहुंचने की कोशिश करने लगी। परंतु वह हर बार नाकाम रह जाती। बस, अंगूर के गुच्छे उसकी उछाल से कुछ ही दूर रह जाते थे।
अंत में बेचारी लोमड़ी थक हर कर अपने घर की ओर चल दी। पास ही में पेड़ पर बैठे एक कौवे ने व्यंग्य से पूछा, क्या बात है काकी, अंगूर नहीं खाओगी? तो लोमड़ी तमक कर बोली, अरे भैया ये अंगूर खट्टे हैं. कौआ हंस कर बोला, जो वस्तु प्राप्त नहीं हो सकती उसे खराब बताना ही ठीक है. इसी आशय में इस कहावत का प्रयोग किया जाता है.
अंगूर खट्टे हैं
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Mar