आखिर ऐसे कब तक, जब तक चले तब तक
किसी ने पूछा – यह अनीतिपूर्ण व्यवहार कब तक चलेगा. उत्तर मिला- जब तक चल सके ऐसे ही चलाओ. कहीं चार ब्राह्मण भाई रहते थे. चारों भाई मूर्ख और गरीब थे. उनमें से एक कहीं रोजी की खोज में निकला. वह कुछ जप तप मन्त्र तो जानता नहीं था, इसलिए उसने एक राजा के महल के सामने बैठ कर मुँह ही मुँह में जाप जपो, जाप जपो बुदबुदाना शुरू कर दिया. राजा तक बात पहुँची तो उसने ने उसके रहने के लिए एक कुटिया बनवा दी और खाने पीने का प्रबंध करवा दिया. कुछ दिनों के बाद दूसरा भाई भी घूमते-फिरते वहाँ पहुंचा. उसने भी वही काम आरम्भ कर दिया. चूंकि, वह भी लिख-लोढ़ा पढ़-पत्थर था, इसलिए उसने जो भइया जपें, सो हम भी जपें का पाठ आरम्भ किया. कुछ दिनों के बाद तीसरा भाई भी आया. अपने दोनों भाइयों के आग्रह पर वह भी उसी काम में रम गया, लेकिन उसे बराबर यह डर बना रहता था कि यह भेद एक न एक दिन खुलेगा अवश्य. इसलिए उसने जपना शुरू किया “आखिर ऐसा कब तक.” कुछ ही दिनों के बाद चौथा भाई भी आया और वह भी उसी काम में लग गया. उसने अपने तीसरे भाई के प्रश्न के उत्तर स्वरूप “जब तक चले तब तक” जपना आरम्भ कर दिया. धोखे के व्यापार में व्यक्ति को रोटी मिलने लगती है तो उसके लिए उसको छोड़ना कठिन हो जाता है.