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सुनार अपनी माँ की नथ में से भी चुराता है

एक बार किसी बादशाह ने सुनार से पूछा कि तुम रुपए में कितना खा सकते हो? सुनार ने जवाब दिया- ‘सोलह आने तक।’ बादशाह इस बात से चिढ़ गया और कहा कि तुम्हें इस को साबित करना होगा। बादशाह ने कहा कि तुम्हें एक सोने की मूर्ति राजमहल में बैठकर ही बनानी होगी और साथ ही  उस पर कड़ा पहरा बिठा दिया। राजमहल में जाकर काम शुरू करने के पहले सुनार ने अपने घर पर ही एक पीतल की ठीक वैसी ही मूर्ति बना ली और उसे अपनी स्त्री के पास दही की मटकी में डालकर छोड़ दिया। राजमहल में जब सब के सामने स्वर्णमूर्ति बनकर तैयार हो गई तो उसने कहा कि इसे अब खटाई में साफ करना होगा। उसी समय उसकी स्त्री, जिसे उसने पहले से सिखा-पढ़ा रखा था, ‘दही लो, दही लो’ की आवाज़ करती हुई निकली। सुनार ने यह कहकर कि खटाई के लिए इसका दही ख़रीद लिया जाए, उसे बुला लिया, और उसकी मटकी लेकर उसमें सोने की मूर्ति डाल दी और उसके स्थान पर पीतल की मूर्ति, जो उसमें पड़ी हुई थी, निकाल कर राजा को दे दी। इस प्रकार सोने की मूर्ति उसके घर पहुंच गई और बादशाह के सामने उसने अपनी बात रख ली।

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