किसी कंजूस ने अपने घर में यह नियम बना रखा था कि घी के बर्तन में सींक डुबाने से जितना घी निकले, उतना ही हर आदमी ले लिया करे। जब वह मर गया, तो उसका लड़का उससे भी बढ़कर कंजूस निकला। उसने घी के बर्तन का मुंह बंद करके उस पर पक्की डाट लगा दी और घरवालों से कहा कि देखो, लाला जी के ज़माने में तुम लोगों ने सींक डुबो-डुबो कर खूब घी खाया, अब तो बस घी को देखो और खाओ। इसी प्रकार एक बंगाली कंजूस की भी कथा है कि वह नदी किनारे बैठकर भात खाया करता था और प्रत्येक कौर के साथ नदी की ओर हाथ बढ़ाकर कहता था -‘ऊ मशली, ई भात.’ इस प्रकार वह मछली खाने का आनंद उठा लिया करता था.
सींख सड़प्पे तो लाला जी के साथ गए, अब तो देखो और खाओ
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May