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त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श स ह क्षत्रज्ञ
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अंधेरी रात और साथ में रंडुआ. किसी भी स्त्री के लिए खतरनाक स्थिति. रंडुआ – अविवाहित या विधुर पुरुष.
अंग लगी मक्खियाँ पीछा न छोड़तीं. जो लोग कोई लाभ पाने के लिए किसी के पीछे ही पड़ जाएं उन के लिए.
अंगिया का ही ओढ़ना, अंगिया का ही बिछौना. अत्यधिक निर्धनता.
अंगिया फटी क्या देखे, बेटी तो दौराले की. दौराला – मेरठ का एक कस्बा. साधन सम्पन्न न होते हुए भी अकड़ में रहना.
अंगूर खट्टे हैं. लोमड़ी और अंगूर की कहानी सबने सुनी होगी. लोमड़ी ने एक बार बेल में लटका हुआ अंगूर का गुच्छा देखा. उस के मुँह में पानी आ गया. उसने बहुत कोशिश की पर उन अंगूरों तक नहीं पहुँच सकी. अंत में यह कह कर कि अंगूर खट्टे हैं वह वहां से चली गई. जब कोई व्यक्ति अपनी पहुँच से बाहर की चीज़ को खराब बताता है तो यह कहावत कही जाती है. इस तरह की एक और कहावत है – हाथ न पहुंचे, थू कौड़ी.
अंग्रेजी राज, न तन को कपड़ा न पेट को नाज. अंग्रेजों के राज में भारतीयों की दशा बहुत खराब थी.
अंटी तर, दिल चाहे सो कर. पास में पैसा हो तो जो चाहे सो करो.
अंटी में न धेला, देखन चली मेला. पहले के लोग धोती या पाजामा पहनते थे जिसमे जेब नहीं होती थी. पैसे इत्यादि को एक छोटी सी थैली में रख कर धोती की फेंट में बाँध लेते थे या पजामे में खोंस लेते थे. इसको बोलचाल की भाषा में अंटी कहते थे. धेला एक सिक्का होता था जो कि पैसे से आधी कीमत का होता था. कहावत का अर्थ है – रुपये पैसे पास नहीं हैं फिर भी तरह तरह के शौक सूझ रहे हैं.
अंडा चींटी बाहर लावै, घर भागो अब वर्षा आवै. चींटी अगर अपना अंडा बिल में से बाहर ला रही हो तो वर्षा आने की अत्यधिक संभावना होती है.
अंडा सिखावे बच्चे को कि चीं चीं न कर. जब कोई आयु, बुद्धि या पद में छोटा व्यक्ति अपने से बड़े व बुद्धिमान व्यक्ति को कोई अनावश्यक सीख देता है तो यह कहावत कही जाती है.
अंडुवा बैल, जी का जवाल. स्वतंत्र और उच्छृंखल व्यक्ति को सांड के समान बताया गया है जिसे संभालना मुश्किल काम होता है. (अंडुवा – बिना बधियाया हुआ बैल अर्थात सांड). सांड से खेती नहीं कराई जा सकती इस लिए बछड़े के अंडकोष नष्ट कर के उसे बैल बना दिया जाता है जोकि नपुंसक और शांत स्वभाव का होता है).
अंडे सेवे कोई, बच्चे लेवे कोई. जब मेहनत कोई और करे और उसका लाभ कोई दूसरा उठाए तो यह कहावत कही जाती है. इस कहावत को समझने के लिए कौए और कोयल की कहानी समझनी पड़ेगी. कोयल इतनी चालाक होती है कि कौए के घोंसले में अंडे दे आती है. कौआ बेचारा उन्हें अपने अंडे समझ कर सेता है. अंडे में से बच्चे निकलते हैं तो मालूम होता है कि वे कोयल के बच्चे हैं.
अंडे होंगे तो बच्चे बहुतेरे हो जाएंगे. इसका शाब्दिक अर्थ तो स्पष्ट ही है. इस का उदाहरण इस तरह दे सकते हैं- किसी व्यापार में बहुत नुकसान होता है लेकिन व्यापार बंद करने की नौबत नहीं आती. तो सयाने लोग बच्चों से कहते हैं – बेटा कोई बात नहीं! व्यापार बचा रहेगा तो बाद में बहुतेरा लाभ हो जाएगा.
अंत बुरे का बुरा. जो हमेशा सब का बुरा करता है उसका अंत भी बुरा ही होता है.
अंत भला तो सब भला. किसी कार्य में कितने भी उतार चढ़ाव या बाधाएं आएं, यदि अंत में कार्य सफलता पूर्वक संपन्न हो जाए तो यह कहावत कही जाती है. इंग्लिश में इसे इस प्रकार कहा जाता है All is well that ends well.
अंत भले का भला. जो सब का भला करता है अंत में उसका भला अवश्य होता है.
अंतड़ी का गोश्त गोश्त नहीं, खुशामदी दोस्त दोस्त नहीं. जिस प्रकार आंत को गोश्त नहीं माना जाता उसी प्रकार खुशामद करने वाले को दोस्त नहीं माना जा सकता.
अंतड़ी में रूप, बकची में छब. भोजन आँतों में पचता है इसलिए कहा गया की अच्छा भोजन करने से रूप निखरता है और अच्छे कपड़े और गहने बक्से (बकची) में रखे जाते हैं इसलिए कहा गया कि सुन्दरता बकची में है.
अंतर अंगुली चार का झूठ सांच में होय. आँख और कान में चार अंगुल की दूरी होती है. आँख का देखा सच और कान का सुना झूठ. इंग्लिश में कहावत है – The eyes believe themselves, the ears believe others.
अंतर राखे जो मिले, तासों मिले बलाय. जो मन में अंतर रखता हो उस से मिलने की कोई जरूरत नहीं.
अंदर से काले, बाहर से गोरे. जो लोग अंदर से बेईमान और चरित्रहीन होते हैं और बाहर से बहुत ईमानदार होने का दिखावा करते हैं (सफेदपोश).
अंदर होवे सांच तो कोठी चढ़ के नाच. जिस के मन में सच हो उसे किसी का डर नहीं, वह छत पर चढ़ कर नाच सकता है. कोठी, कोठा – छत.
अंध कंध चढ़ि पंगु ज्यों, सबै सुधारत काज. पंगु – लंगड़ा. अंधा देख नहीं सकता और लंगड़ा चल नहीं सकता. यदि अंधे के कंधे पर लंगड़ा बैठ जाए तो दोनों एक दूसरे के पूरक हो जाते हैं.
अंधरी गैया, धरम रखवाली. अंधी गाय धर्म की रक्षा करने वाली होती है, अर्थात उसकी सेवा से विशेष पुण्य मिलता है. भाव यह है कि जो अत्यधिक दीन-हीन हो उसकी सेवा अवश्य करनी चाहिए.
अंधा आगे ढोल बाजै, ये डमडमी क्या है. अंधे के आगे ढोल बजाओ तो वह कुछ नहीं समझ पाता. इसी प्रकार अज्ञानी व्यक्ति भी सामाजिक कार्यों और प्रकृति के क्रिया कलापों से अनभिज्ञ रहता है.
अंधा आगे रस्सी बंटे, पीछे बछड़ा खाए. अंधा आदमी बेचारा बैठा बैठा रस्सी बंट रहा है और पीछे से बछड़ा उसे खाता जा रहा है. सरकार अंधी हो तो जन हित के कामों का यही अंजाम होता है.
अंधा एक बार ही लकड़ी खोता है. अंधे की लकड़ी अगर खो जाए तो उसे इतनी परेशानी होती है कि वह आगे से उसका बहुत ध्यान रखता है. तात्पर्य है कि कोई बड़ी गलती एक बार हो जाने पर व्यक्ति आगे के लिए विशेष रूप से सतर्क हो जाता है.
अंधा और बदमिजाज. अंधा व्यक्ति काफी कुछ दूसरों की सहायता पर निर्भर होता है इसलिए उसे विनम्र होना चाहिए. यदि वह बदमिजाज होगा तो कोई उस की सहायता क्यों करेगा.
अंधा कहे ये जग अंधा. किसी व्यक्ति में कोई कमी हो और वह बहस करे कि यह कमी तो सब में है.
अंधा किसकी तरफ उंगली उठाए. अंधा खुद कुछ नहीं देख सकता इसलिए किसी पर आरोप नहीं लगा सकता.
अंधा क्या चाहे दो आँखे. अंधे व्यक्ति की सबसे बड़ी इच्छा होती है की उसे दो आँखें मिल जाएं. व्यक्ति को जिस चीज़ की अत्यधिक आवश्यकता है यदि वही देने के लिए आप उससे पूछें तो यह कहावत कही जाएगी.
अंधा क्या जाने बसंत की बहार. वसंत ऋतु में प्रकृति का सौंदर्य अद्भुत होता है, पर जो बेचारा अंधा है वह तो उसका आनंद नहीं ले सकता. श्री कृष्ण की बाल लीलाओं के वर्णन में जो रस की प्राप्ति होती है उसे अधर्मी और विधर्मी लोग कैसे जान सकते हैं.
अंधा गाए बहरा बजाए. जहाँ दो अयोग्य व्यक्ति मिल कर कोई काम करें.
अंधा गुरू बहरा चेला, मागें गुड़ देवे धेला (मांगे हरड़ दे बहेड़ा). न गुरु को चेले में कोई कमी दिखती है, न चेले को गुरु की कोई बात समझ में आती है और दोनों एक से बढ़ कर एक हैं.
अंधा घोड़ा थोथा चना, जितना खिलाओ उतना घना. गरीब और अपाहिज व्यक्ति को जो कुछ भी मिल जाए वही उस के लिए बहुत है.
अंधा घोड़ा बहिर सवार, दे परमेसुर ढूँढ़नहार. घोड़ा अंधा होगा तो कहां का कहां पहुंचेगा, सवार बहरा होगा तो किसी से रास्ता कैसे पूछेगा, ऐसी जोड़ी की तो भगवान ही सहायता कर सकता है.
अंधा चूहा, थोथे धान. चूहा यदि अँधा होगा तो उसे खोखले धान ही खाने को मिलेंगे. योग्य या असहाय व्यक्ति को घटिया चीज़ से ही काम चलाना पड़ता है.
अंधा जाने अंधे की बला जाने. माना कि अंधे व्यक्ति को बहुत परेशानियाँ हैं लेकिन मैं भी किस किस के लिए और कहाँ तक परेशान होऊं. जिस को परेशानी है वही निबटे.
अंधा जाने आँखों की सार. आँखों की कीमत क्या है यह अंधा ही जान सकता है. व्यक्ति को जो सुख सुविधाएँ मिली हुई हैं उनकी कीमत वह नहीं समझता.
अंधा तब पतियाए जब दो आँखें पाए. अंधा व्यक्ति किसी बात पर तभी पूरी तरह विश्वास कर सकता है जब वह स्वयं उसे देख ले, अर्थात वह संतुष्ट तभी होगा जब उसे दो आँखें मिल जाएं. पतियाना – विश्वास करना
अंधा देखे आरसी, कानी काजल देय. अपात्र को कोई वस्तु मिल जाना. अंधे के लिए आरसी (छोटा दर्पण) और कानी के लिए काजल की कोई उपयोगिता नहीं है.
अंधा बगुला कीचड़ खाय. मजबूरी में इंसान को बहुत कुछ सहन करना पड़ता है. अंधा बगुला मछली नहीं पकड़ सकता इसलिए बेचारा कीचड़ खाने पर मजबूर हो जाता है.
अंधा बजाज कपड़ा तौल कर देखे. अंधा बजाज कपड़े को देख नहीं सकता तो हाथ में उठा कर उसके वजन से अंदाज़ लगाता है कि यह कौन सा कपड़ा है.
अंधा बांटे रेवड़ी फिर फिर अपनेहु देय. स्वार्थ में अंधा व्यक्ति जब कुछ भी बांटता है तो अपने को या अपनों को ही देता है.
अंधा मुर्गा थोथा धान, जैसा नाई वैसा जजमान. अंधे मुर्गे को खोखले धान ही खाने को मिलेंगे. नाई घटिया होगा तो उसे जजमान भी घटिया मिलेंगे.
अंधा मुल्ला, टूटी मस्जिद. मुल्ला जी अंधे होंगे तो मस्जिद में जो भी टूट फूट होगी उसे दिखाई नहीं देगी. यदि घर का मुखिया अयोग्य और लापरवाह है तो घर में सब ओर अव्यवस्था दिखाई देगी.
अंधा राजा बहिर पतुरिया, नाचे जा सारी रात. पतुरिया – वैश्या या नर्तकी. भारी अव्यवस्था की स्थिति. राजा अंधा है उसे कुछ दिखता नहीं है और नर्तकी बहरी है वह न संगीत सुन सकती है और न कोई आदेश. लोकतंत्र में विधायिका और कार्यपालिका की कुछ ऐसी ही दशा है.
अंधा शक्की, बहरा बहिश्ती. बहिश्त माने स्वर्ग. बहरे को बहिश्ती कहा गया क्योंकि वह कुछ सुनता ही नहीं है, लिहाजा भलाई बुराई से दूर रहता है. अंधे को कुछ दिखाई नहीं देता इसलिए वह हर आहट पर शक करता है.
अंधा सिपाही कानी घोड़ी, विधि ने खूब मिलाई जोड़ी. दो अयोग्य व्यक्ति मिल कर कोई काम कर रहे हों तो उन का मज़ाक उड़ाने के लिए यह कहा जाता है.
अंधा हाथी अपनी ही फ़ौज को मारे (लेंड़ा हाथी अपनी ही फ़ौज मारे). हाथी अंधा होगा या डरपोक होगा तो इधर उधर भाग कर अपनी सेना को ही कुचलेगा.
अंधाधुंध की सायबी, घटाटोप को राज. सायबी – शासन. मूर्ख राजा के राज में कुटिल लोगों की बन आती है.
अंधाधुंध के राज में गधे पंजीरी खाएँ. जिस देश में बेईमानी और अराजकता हो वहाँ अयोग्य व्यक्तिओं की चांदी हो जाती है.
अंधाधुंध मनोहरा गाए. बिना किसी की परवाह किए कोई बेतुका काम करते जाना.
अंधियारे में परछाईं भी साथ छोड़ देती है. बुरे दिनों में निकट संबंधी भी साथ नहीं देते.
अंधी आँख में काजल सोहे, लंगड़े पाँव में जूता. अपात्र को सुविधाएं मिलना.
अंधी घोड़ी खोखला चना, खावे थोड़ा बिखेरे घना. घोड़ी अंधी है इसलिए खा कम रही है, बिखेर ज्यादा रही है. (मूर्ख या अहंकारी व्यक्ति वस्तु का उपयोग कम और बर्बादी अधिक करता है).
अंधी देवियाँ, लूले पुजारी. अयोग्य गुरु या शासक और उसके उतने ही नालायक चमचे. आजकल के परिप्रेक्ष्य में कुछ राजनैतिक दलों के विषय में ऐसा कहा जा सकता है.
अंधी नाइन, आइने की तलाश. कोई आदमी ऐसी चीज़ मांग रहा हो जिस का उस के लिए कोई उपयोग न हो.
अंधी पीसे कुत्ते खाएँ. चाहे घर की व्यवस्था हो या व्यापार हो, यदि आप आँखें बंद किए रहंगे तो चाटुकार लोग, धोखेबाज लोग और नौकर चाकर सब खा जाएंगे.
अंधी पीसे पीसना, कूकुर घुस घुस खात, जैसे मूरख जनों का, धन अहमक ले जात. ऊपर वाली कहावत की भांति.
अंधी भैंस वरूँ में चरे. वरूँ – जहां घास कम हो. मूर्ख या अभागे आदमी को अच्छे अवसरों की पहचान नहीं होती इसलिए वह उनसे वंचित रहता है.
अंधी मां निज पूतों का मुँह कभी न देखे. किसी अभागे व्यक्ति के लिए.
अंधे अंधा ठेलिया दोनों कूप पड़ंत (अंधे को अंधा राह दिखाए तो दोनों कुँए में गिरते हैं). अर्थ स्पष्ट है. कम से कम एक तो आँख वाला होना चाहिए.
अंधे का हाथ कंधे पे. अंधे को हमेशा किसी का सहारा लेना पड़ता है.
अंधे की गुलेल कहीं भी लगे. अंधा गुलेल चलाएगा तो पत्थर किसी को भी लग सकता है. मूर्ख और अहंकारी व्यक्ति के हाथ में ताकत आ जाए तो वह कुछ भी नुकसान पहुँचा सकता है.
अंधे की जोरू का राम रखवाला. अत्यधिक दीन हीन व्यक्ति का ईश्वर ही सहारा होता है.
अंधे की दोस्ती, जी का जंजाल. अंधे से दोस्ती करो तो हर समय उस की सहायता करनी होती है. लाचार व्यक्ति की सहायता करने में बहुत मुसीबतें हैं.
अंधे की पकड़ और बहरे को बटको, राम छुड़ावे तो छुटे नहीं तो सर ही पटको. बटका – दांतों की पकड़. अंधा आदमी बहुत कस के पकड़ता है और बहरा आदमी बहुत जोर से काटता है.
अंधे की बीबी देवर रखवाला. अंधे की पत्नी की रखवाली अगर किसी भी पर पुरुष को सौंप दी जाएगी (चाहे वह देवर ही क्यों न हो) तो खतरा हो सकता है.
अंधे की मक्खी राम उड़ावे. निर्बल का सहारा भगवान.
अंधे की लुगाई, जहाँ चाहे रमाई. अंधे की पत्नी यदि कोई गलत कार्य करे तो अंधा उसे रोक नहीं सकता. यहाँ अंधे से अर्थ केवल आँख के अंधे से ही नहीं, अक्ल के अंधे से भी है.
अंधे कुत्ते को खोलन ही खीर. खोलन – मूर्ति पर चढ़ाया जाने वाला दूध मिला जल. मजबूर आदमी को जो मिल जाए उसी में संतोष करना पड़ता है.
अंधे के आगे दीपक. अंधे को दीपक दिखाना या मूर्ख को ज्ञान देने का प्रयास करना बराबर है.
अंधे के आगे रोवे, अपने नैना खोवे. यदि कोई व्यक्ति बहुत परेशानी में है और किसी के आगे रो रहा है तो उसको देख कर दूसरे को दया आ जाती है और वह उसकी सहायता करने का प्रयास करता है. लेकिन यदि आप किसी अंधे के सामने रोएंगे तो उसे कुछ दिखेगा ही नहीं. आप रो रो कर अपनी ही आँखें खराब करेंगे. कहावत के द्वारा यह समझाया गया है कि ऐसे आदमी के सामने फरियाद करने से कोई फायदा नहीं जो अक्ल का अंधा हो या अहंकार में अंधा हो.
अंधे के लिए हीरा कंकर बराबर. हीरे की चमक को आँखों से ही देखा जा सकता है, टटोल कर नहीं. कहावत का अर्थ है कि अक्ल के अंधे लोग उत्तम और निम्न प्रकार के मनुष्यों और वस्तुओं में भेद नहीं कर सकते.
अंधे के हाथ बटेर लगी. अंधा व्यक्ति लाख कोशिश करे बटेर जैसे चंचल पक्षी को नहीं पकड़ सकता. अगर किसी अयोग्य व्यक्ति को बैठे बिठाए, बिना प्रयास करे कोई बड़ी चीज़ मिल जाए तो ऐसा कहते हैं.
अंधे के हाथ से लकड़ी मरने पर ही छूटती है. बहुत आवश्यक वस्तु को जीवन भर साथ रखना व्यक्ति की मजबूरी है, जैसे अंधे के लिए लकड़ी, लंगड़े के लिए बैसाखी, दृष्टि बाधित के लिए चश्मा इत्यादि. आजकल के युग में दवाओं को भी इस श्रेणी में रख सकते हैं.
अंधे के हिसाब दिन रात बराबर. शाब्दिक अर्थ स्पष्ट है. अंधे को क्योंकि दिन में भी नहीं दिखता इसलिए उसके लिए दिन और रात बराबर हैं. कोई मूर्ख व्यक्ति किन्हीं दो बिलकुल अलग अलग बातों में अंतर न समझ पा रहा हो तब भी मज़ाक में ऐसा कह सकते हैं.
अंधे को अँधेरे में बहुत दूर की सूझी. कोई मूर्ख आदमी मूर्खतापूर्ण योजना बना रहा हो तो उसका मज़ाक उड़ाने के लिए ऐसा कहा जाता है.
अंधे को अंधा मिला, कौन दिखावे राह. अंधे को अंधा रास्ता नहीं दिखा सकता. अज्ञानी मनुष्य को कोई ज्ञानवान ही रास्ता दिखा सकता है.
अंधे को भागने की क्यों पड़ी. जो काम आप बिलकुल ही नहीं कर सकते उसे क्यों करना चाहते हैं.
अंधे को सूझे कंधेरे का घर. कंधेरा – जिस के कंधे पर हाथ रख कर चला जाए. अंधे को किसी के कंधे पर हाथ रख कर चलना पड़ता है. वह बेचारा अंधा होते हुए भी उस का घर ढूँढ़ लेता है. जिस से हमें सहारा मिलता है उसे हम कैसे भी खोज लेते हैं.
अंधे ने चोर पकड़ा, दौड़ियो मियां लंगड़े. असंभव और हास्यास्पद बात.
अंधे मामा से काना मामा अच्छा. कुछ नहीं से कुछ अच्छा.
अंधे रसिया, आइने पे मरें. किसी व्यक्ति द्वारा ऐसी वस्तु की मांग करना जो उसके किसी उपयोग की न हों.
अंधे वाली सीध. किसी ने टेढ़ा मेढ़ा कुछ बनाया हो उस का मजाक उड़ाने के लिए.
अंधे ससुरे से घूँघट क्या. जब ससुर बहू को देख ही नहीं सकता तो बहू को घूँघट की क्या आवश्यकता.
अंधे से रास्ता क्या पूछना. जिसे स्वयं नहीं दिखता वह किसी को रास्ता क्या बताएगा. जो स्वयं मूर्ख होगा वह किसी को क्या ज्ञान देगा.
अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा. एक गुरु और चेला घूमते घूमते एक ऐसे शहर में पहुंचे जहां भाजी (सब्जी) भी टके सेर बिक रही थी और खाजा (एक बढ़िया मिठाई) भी. चेला बोला यह तो बहुत अच्छी जगह है, मैं तो यहीं रहूँगा. गुरु जी ने समझाया कि यहाँ रहना खतरे से खाली नहीं है, पर चेला नहीं माना. एक बार उस शहर में एक ककड़ी चुराने वाले को फांसी की सजा सुनाई गई. चोर की गर्दन फांसी के फंदे में फिट नहीं आई तो कोई ऐसा आदमी ढूँढा गया जिसकी गर्दन फंदे में फिट आ जाए. इत्तेफाक से चेले की गर्दन फंदे के नाप की पाई गई तो उसे फांसी देने की तैयारी कर ली गई. अब उसने गुरुजी को याद किया तो गुरुजी ने आ कर उसे बचाया. इस प्रकरण पर यह कहावत बनाई गई जिसका प्रयोग किसी देश व समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, अन्याय और अराजकता को दर्शाने के लिए किया जाता है.
अंधेरी रात में मूंग काली. अंधेरे में हरी मूंग भी काली दिखाई देती है. अज्ञान के अंधेरे में भी मनुष्य को सत्य का भान नहीं हो पाता.
अंधेरी रैन में रस्सी भी सांप. अँधेरे में व्यक्ति डरने लगता है. व्यक्ति अगर अज्ञान रूपी अन्धकार से घिरा हो तब भी वह छोटी छोटी सांसारिक विपदाओं से डरने लगता है.
अंधेरे घर में धींगर नाचें. 1. जहाँ न्याय व्यवस्था के अभाव में दबंग लोग मनमानी करें, (धींगर – लम्बा चौड़ा आदमी, भूत) 2. अवैज्ञानिक सोच और अज्ञान के अंधकार में तरह तरह के डर पैदा होते हैं.
अंधेरे घर में सांप ही सांप. इसका अर्थ भी ऊपर की दोनों कहावतों के समान ही है.
अंधेरे में भी हाथ का कौर कान में नहीं जाता. अंधेरे में भी ग्रास मुंह में ही जाता है. अपने स्वार्थ की बात हर परिस्थिति में ठीक से समझ में आती है.
अंधों की दुनिया में आइना न बेच. शाब्दिक अर्थ तो साफ़ ही है. यहाँ अंधे से अर्थ मूर्ख और अहंकारी लोगों से है. आइने में अपनी वास्तविक शक्ल दिखाई देती है जिसे मूर्ख और अहंकारी लोग देखना नहीं चाहते. यहाँ आइने से मतलब आत्म चिंतन से भी है जोकि अहंकारी लोग बिलकुल पसंद नहीं करते.
अंधों द्वारा हाथी का वर्णन. मूर्खो द्वारा किसी महान चीज़ को तुच्छ बताया जाना. एक बार चार अंधों से हाथी का वर्णन करने को कहा गया. एक अंधे ने हाथी की सूँड़ पकड़ी – वह बोला हाथी तो सांप जैसा है, दूसरे ने हाथी की पूँछ पकड़ी – वह बोला नहीं हाथी रस्सी जैसा है, तीसरे ने हाथी के पैर को टटोल कर देखा – बोला नहीं! हाथी खम्बे जैसा है, चौथे के हाथ में हाथी का कान आया – वह बोला तुम सब गलत कह रहे हो, हाथी सूप जैसा है. ऐसा कह कर वे आपस में लड़ने लगे.
अंधों ने गांव लूटा, दौड़ियो बे लंगड़े. अनहोनी बात. कोई मूर्खता पूर्ण अतिश्योक्ति कर रहा हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.
अंधों में काना राजा. जहाँ सभी लोग मूर्ख हों वहाँ थोड़ी सी अक्ल रखने वाले व्यक्ति की पूछ हो जाती है
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अकड़ी मकड़ी दूधमदार, नज़र उतर गई पल्ले पार. बच्चे की नजर उतारने के लिए.
अकरकर मकरकर, खीर में शकर कर, जितने में कुल्ला कर बैठूं, दक्षिणा की फिकर कर. यह कहावत उन ब्राह्मणों के लिए है जो उलटे सीधे मन्त्र बोलकर जल्दी जल्दी पूजा कराते हैं, और जिनका सारा ध्यान खाने पीने और दक्षिणा पर होता है.
अकल आसरे कमाई. बुद्धि के बल से ही कमाई की जा सकती है.
अकल और हेकड़ी एक साथ नहीं रह सकतीं. अक्ल मतलब समझदारी. जो आदमी समझदार होगा वह हेकड़ी कभी नहीं दिखाएगा, हमेशा विनम्र ही होगा.
अकल का अंधा गांठ का पूरा. जिसके पास पैसा काफी हो पर समझदारी न हो. ऐसे आदमी को बेबकूफ बना कर उससे पैसा ऐंठना आसान होता है.
अकल का घर बड़ी दूर है. अक्ल बड़ी मुश्किल से आती है इसलिए यह कहावत बनाई गई है.
अकल की कोताही और सब कुछ. केवल अक्ल की कमी है, बाकी सब ठीक है.
अकल की बदहजमी. जो आदमी अपने को बहुत अधिक बुद्धिमान समझता हो उस का मजाक उड़ाने के लिए.
अकल के बोझ से मरा. जो व्यक्ति अति बुद्धिमत्ता में कोई मूर्खतापूर्ण कार्य कर दे.
अकल के लिए टके लगते हैं. अकल सेंत में नहीं मिलती. शिक्षा और अनुभव से अक्ल आती भाई. दोनों ही चीजों में पैसे खर्च होता है.
अकल तो अपनी ही काम आती है. आप की सहायता करने के लिए कितने भी लोग उपलब्ध हों जीवन में विशेष अवसरों पर अपनी बुद्धि ही काम आती है.
अकल तो आई पर खसम के मरने के बाद. काम पूरा बिगड़ने के बाद अक्ल आई.
अकल दुनिया में डेढ़ ही है, एक आप में और आधी में सारी दुनिया. (आप से अर्थ अपने से है). 1. हर आदमी अपने को बहुत अक्लमंद और दुनिया को तुच्छ समझता है. 2. अपने को बहुत अक्लमंद समझने वाले किसी व्यक्ति पर व्यंग्य.
अकल न क्यारी ऊपजे, प्रेम (हेत) न हाट बिकाय. अक्ल खेत में नहीं उगती और प्रेम बाजार में नहीं मिलता.
अकल बड़ी के नकल. नकल कर के कोई कार्य सिद्ध नहीं किया जा सकता. बुद्धि से ही काम बनते हैं.
अकल बड़ी के भाग्य. सच यह है कि दोनों का ही महत्व है.
अकल बड़ी या भैंस. कोई मूर्ख आदमी बेबकूफी की बात कर रहा हो और अपने को बहुत अक्लमंद समझ रहा हो तो उसका मज़ाक उड़ाने के लिए इस कहावत को बोलते हैं.
अकल बिन पूत लठेंगुर सो, लछन बिन बिटिया डेंगुर सी (बहू बिन पूत डेंगुर सी). (भोजपुरी कहावत) बुद्धि के बिना पुत्र बेकार है और सुलक्षणों के बिना पुत्री. लठेन्गुर – लकड़ी का लट्ठा, डेंगुर – पशुओं के गले में बंधा लकड़ी का टुकड़ा.
अकल मारी जाट की, रांघड़ राख़या हाली, वो उस को काम कहे, वो उस को दे गाली. (हरयाणवी कहावत) रांघड़ मुस्लिम राजपूतों की एक जाति है. किसी जाट ने रांघड़ को नौकरी पर रख लिया. जाट उससे किसी काम के लिए कहता था तो वह बदले में गाली देता था.
अकल से ही खुदा पहचाना जाए. ईश्वर किसी को दिखता नहीं है, बुद्धि के द्वारा ही महसूस किया जाता है.
अकल हाट बिके तो मूरख कौन रहे. अर्थ स्पष्ट है.
अकलमंद को इशारा ही काफी है. बुद्धिमान व्यक्ति हलके से इशारे से ही बात समझ लेता है.
अकलमन्द की दूर बला. जो बुद्धिमान होता है वह मुसीबतों से दूर रहता है.
अकलमन्द को इशारा, अहमक को फटकारा. अक्लमंद इशारे में ही समझ लेता है जबकि मूर्ख व्यक्ति को डांट कर समझाना पड़ता है. इंग्लिश में इसे इस तरह कहा गया है – A nod to the wise, rod to the foolish.
अकाल पड़े तो पीहर और ससुराल में साथ ही पड़ता है. अगर केवल ससुराल में अकाल पड़े तो स्त्री मायके में जा कर रह सकती है, लेकिन आम तौर पर अकाल दोनों जगह एक साथ पड़ता है, बेचारी कहाँ गुजारा करे. कहावत का अर्थ है कि मुसीबतें व्यक्ति को सब ओर से घेरती हैं. आजकल के लोगों को यह अंदाज़ नहीं होगा कि अकाल कितनी बड़ी आपदा होती थी. इंग्लिश में कहावत है –Misfortunes never come alone.
अकेला खाय सो मट्टी, बाँट खाय सो गुड़. बाँट कर खाने से स्वाद बढ़ जाता है.
अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता. भाड़ एक बड़ा सा तंदूर जैसा होता है जिस में चने मक्का इत्यादि भूने जाते हैं. कहावत का शाब्दिक अर्थ यह है कि एक चने के फटने से भाड़ नहीं फूट सकता. इसको इस प्रकार से प्रयोग करते हैं कि एक आदमी अकेला ही कोई बहुत बड़ा काम नहीं कर सकता.
अकेला चले न बाट, झाड़ बैठे खाट. इस कहावत में दो सीख दी गई हैं – कहीं लम्बे रास्ते पर अकेले नहीं जाना चाहिए (अचानक कोई परेशानी आ जाए तो एक से दो भले) और खाट को हमेशा झाड़ कर ही बैठना चाहिए (खाट में कोई कीड़ा मकोड़ा, बिच्छू सांप इत्यादि हो सकता है).
अकेला पूत कमाई करे, घर करे या कचहरी करे. जहाँ एक आदमी से बहुत सारी जिम्मेदारियां निभाने की अपेक्षा की जा रही है.
अकेला पूत, मुँह में मूत (चूल्हे में मूत). अकेला बच्चा अधिक लाड़ प्यार के कारण बिगड़ जाता है.
अकेला हँसता भला न रोता भला. इकलखोरे लोगों को सीख देने के लिए यह कहावत कही गई है.
अकेला हसन, रोवे कि कबर खोदे. बेचारे हसन के किसी प्रियजन की मृत्यु हो गई है. वह अकेला रोए या कब्र खोदे. किसी व्यक्ति पर बहुत दुःख और जिम्मेदारी एक साथ आ पड़े तो.
अकेली कहानी, गुड़ से मीठी. जब मनोरंजन के अन्य साधन नहीं थे तो कहानी नियामत हुआ करती थी.
अकेली कुतिया भौंके या रखवाली करे. एक व्यक्ति से कितने काम कराए जा सकते हैं.
अकेली दुकान वाला बनिया, मनमाने भाव सौदा बेचे. यदि किसी गाँव या शहर में एक ही व्यापारी हो तो उस का एकाधिकार हो जाता है और वह मनमानी करता है.
अकेली लकड़ी कहाँ तक जले. कोई व्यक्ति बहुत लम्बे समय तक किसी कठिन काम को अकेले ही नहीं कर सकता.
अकेले से झमेला भला. कई लोग साथ मिल कर रहें या कोई काम करें तो थोड़ा मतभेद या झगड़ा हो सकता है लेकिन ये अकेले रहने से अच्छा है.
अकेले से दुकेला भला. खाली समय बिताना हो या कोई काम करना हो, एक से दो आदमी हमेशा बेहतर होते हैं.
अक्कल बिना ऊंट उभाणे फिरै. उभाणे – नंगे पैर. जानवर नंगे पैर क्यों घूमते है, क्योंकि वे मनुष्य के समान समझदार नहीं हैं. जो बच्चे नंगे पैर घूमते हैं उन्हें उलाहना देने के लिए बड़े लोग ऐसे बोलते हैं.
अक्ल आप ही ऊपजे, दिए न आवे सीख. समझदारी अपने आप से ही आती है सिखाने से नहीं आ सकती.
अक्ल उधार नहीं मिलती. अपनी अक्ल से ही काम लेना होता है.
अक्ल उम्र की मोहताज नहीं होती. छोटी आयु का व्यक्ति अक्लमंद हो सकता है और बड़ी आयु वाला बेबकूफ.
अक्ल का नहीं दाना, खुद को समझे स्याना. जिन को बिलकुल अक्ल नहीं होती वे अपने को बहुत अक्लमंद समझते हैं.
अक्ल का बंटवारा नहीं हो सकता. भाइयो में सम्पत्ति का बंटवारा हो सकता है पर बुद्धि का नहीं.
अक्ल किसी की बपौती नहीं होती. सम्पत्ति की तरह अक्ल विरासत में नही मिलती. बुद्धिमान पिता का बेटा महामूर्ख भी हो सकता है.
अक्ल की पूछ है आदमी की नहीं. अर्थ स्पष्ट है.
अक्ल के पीछे लट्ठ लिए फिरते हैं. कोई बार बार मूर्खता पूर्ण कार्य करता हो तब.
अक्ल बड़ी कि बहस. तर्क कुतर्क करने की बजाए अक्ल से काम लेना बेहतर है.
अक्लमंद के कान बड़े और जुबान छोटी. समझदार आदमी सबकी बात सुनता अधिक है और बोलता कम है.
अखाड़े का लतखौर पहलवान बनता है. अखाड़े में लात खा खा कर ही आदमी पहलवान बनता है. मनुष्य अपनी गलतियों से सीख कर ही कुछ बनता है.
अगड़म बगड़म काठ कठम्बर. फ़ालतू चीजों का ढेर.
अगर कुत्ता आप पर भौंके, तो आप उस पर न भौंको. कोई अपशब्द कहे तो बदले में अपशब्द न कह कर चुप रहना चाहिए. इंग्लिश में कहावत है – If a donkey brays at you, don’t bray at him.
अगर चावल न हो तो भात पका दो. मूर्खता पूर्ण बात.
अगर यह पेट न होता, तो काहू से भेंट न होता. पेट की खातिर ही आदमी सब से मिलता जुलता है.
अगला करे पिछले पर आवे. पहले वाला गलती कर गया, बाद वाला उसे भुगत रहा है.
अगला पाँव उठाइये, देख धरन का ठौर. पैर रखने का स्थान पहले से देख कर अगला पाँव उठाना चाहिए. संभावनाओं पर विचार कर के ही कोई कार्य करना चाहिए.
अगला पैर टिके तो पिछला पैर उठाओ. किसी काम का एक चरण पूरा हो जाए तभी दूसरा शुरू करो.
अगली खेती आगे आगे, पिछली खेती भागे भागे. समय से की गई खेती हमेशा लाभ देती है. समय निकल जाने पर बोया बीज भाग्य पर निर्भर होता है. भागे – भाग्य से.
अगले पानी पिछले कीच. जो पहले पानी भरने आता है उसे पानी मिलता है, बाद में आने वाले को कीचड़ मिलती है. तात्पर्य है कि यदि कुछ पाना चाहते हो तो आलस्य मत करो. इंग्लिश में कहावत है – Early bird catches the worm.
अगसर खेती अगसर मार, कहें घाघ तें कबहुँ न हार. जो पहले खेती करता है और जो लड़ाई में आगे बढ़ कर मारता है वह कभी नहीं हारता. असगर – आगे बढ़ कर.
अगहन में मुसवौ के सात जोरू. (भोजपुरी कहावत) मुसवा – मूसा, चूहा. अगहन में धान कटने के कारण इतना अनाज होता है कि चूहा भी सात बीबियाँ रख सकता है.
अगाड़ी तुम्हारी, पिछाड़ी हमारी. भैंस का बंटवारा. भैंस के अगले हिस्से में मुँह है जिससे वह खाती है और पिछले हिस्से से दूध और गोबर देती है. स्वार्थी लोग हर चीज़ में अपना फायदा ढूँढ़ते हैं.
अग्गम बुद्धि बानिया, पच्छम बुद्धि जाट. बनिया बुद्धि में आगे होता है, जाट बुद्धि में पीछे होता है.
अग्नि और काल से कोई न बचे. आग सब कुछ भस्म कर देती है और काल सब को लील लेता है.
अग्र सोची सदा सुखी. पहले सोच कर काम करने वाला सदा सुखी रहता है.
अघाइल भैंसा, तबो अढ़ाई कट्टा. (भोजपुरी कहावत) भैंसे का पेट भरा हो तब भी वह ढाई कट्टा भूसा खा सकता है. बहुत खाने वाले व्यक्ति के लिए.
अघाइल रांड और भुखाएल बाभन से न बोलो. (भोजपुरी कहावत) रांड का अर्थ विधवा से भी होता है और दुष्ट स्त्री से भी. पेट भरी हुई चालाक स्त्री और भूखे ब्राहण से बात करने में खतरा है.
अघाई मछुआरिन मछली से चूतड़ पोंछे. जिस का पेट भरा हो वह खाने की वस्तु की कद्र नहीं करता.
अघाए को ही मल्हार सूझे. पेट भरने के बाद ही मस्ती सूझती है.
अघाना बगुला, पोठिया तीत. (भोजपुरी कहावत) बगुले का पेट भरा है तो उसे पोठिया (एक प्रकार की मछली) कड़वी लग रही है. कहावत का अर्थ है कि कोई भी वस्तु भूख लगने पर ही स्वादिष्ट लगती है.
अघाया ऊँट टोकरी लुढ़कावे. ऊंट का पेट भरा हो तो वह टोकरी में रखी खाने की वस्तुओं की कद्र नहीं करता.
अघाया ढोर जुगाली करे. 1.सम्पन्न लोगों का मजाक उड़ाने के लिए. 2.पान खाने वाले का मजाक उड़ाने के लिए.
अच्छत थोर देवता बहुत. अच्छत – अक्षत – पूजा में प्रयोग होने वाला साबुत चावल. पूजन सामग्री कम है और देवता अधिक हैं.
अच्छा बोओ अच्छा काटो. अच्छा बीज बोने पर अच्छी फसल मिलती है. अच्छे कर्म करने का अच्छा फल मिलता है.
अच्छी अच्छी मेरे भाग, बुरी बुरी बामन के लाग. यदि वर या कन्या अच्छे मिल गए तो हमारे भाग्य से और खराब मिले तो पंडित जी की मूर्खता से.
अच्छी जीन से कोई घोड़ा अच्छा नहीं हो जाता. केवल अच्छी जीन बाँधने से कोई घोड़ा अच्छा नहीं हो जाता.अच्छे साज श्रृगार से कोई व्यक्ति योग्य नहीं हो जाता.
अच्छी नीयत, अच्छी बरकत. अच्छी नीयत से किये काम में लाभ होता है.
अच्छी मति जो चाहो, बूढ़े पूछन जाओ. समझदारी भरी राय चाहिए हो तो बूढ़े लोगों के पास जाइए क्योंकि उन के पास लम्बा अनुभव होता है.
अच्छी सूरत से अच्छी सीरत भली. अच्छी शक्ल वाले के मुकाबले वह व्यक्ति अधिक अच्छा है जिसके व्यवहार अच्छा हो.
अच्छे की उम्मीद करो लेकिन बुरे के लिए तैयार भी रहो. अर्थ स्पष्ट है.
अच्छे फूल महादेव जी पर चढ़ें. ईश्वरीय कार्य में अच्छे लोग ही लगते हैं.
अच्छे भए अटल, प्राण गए निकल. अटल का एक अर्थ है अपनी बात पर अड़ने वाला. इस हिसाब से कहावत का अर्थ उस व्यक्ति के लिए है जो अपनी बात पर अड़ा रहा भले ही जान चली गई. अटल का दूसरा अर्थ है तृप्त. इस सन्दर्भ में इसे मथुरा के चौबे लोगों के लिए प्रयोग करते हैं जो खाते ही चले जाते हैं चाहे प्राण निकल जाएं.
अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम. (दास मलूका कह गए, सब के दाता राम) मलूक दास नाम के एक संत थे जिन्होंने ईश्वर की महत्ता बताने के लिए ऐसा कहा है. आजकल कामचोर लोग, भिखारी और ढोंगी साधु भी अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए ऐसा कहते हैं.
अजब तेरी कुदरत अजब तेरे खेल, छछूंदर भी डाले चमेली का तेल. किसी अयोग्य व्यक्ति को भाग्य से कोई नायाब वस्तु मिल जाने पर ऐसा बोला जाता है.
अजब तेरी माया, कहीं धूप कहीं छाया. ईश्वर की बनाई दुनिया में कहीं सुख है तो कहीं दुःख.
अटकल पच्चू डेढ़ सौ. बिना सर पैर की बात के लिए कही गई कहावत.
अटका बनिया देय उधार (अटका बनिया सौदा दे). बनिया मजबूरी में माल दे रहा है, क्योंकि पिछला उधार निकालने का और कोई तरीका नहीं है. मजबूरी में कोई किसी का काम कर रहा हो तो यह कहावत कहते हैं.
अटकेगा सो भटकेगा. दो अर्थ हुए.1- जिस का कोई काम अटकेगा वह दौड़ भाग करेगा. 2- जो दुविधा में पड़ेगा वो भटकता रहेगा.
अड़ते से अड़ो जरूर, चलते से रहो दूर. जो लड़ने पर उतारू है उससे लड़ो जरूर पर जो अपने रास्ते जा रहा है उससे बिना बात मत उलझो.
अड़ी घड़ी काजी के सर पड़ी. कोई भी परेशानी मुखिया के सर पर ही पड़ती है.
अढ़ाई दिन की सक्के ने भी बादशाहत कर ली. अलिफ़ लैला में एक किस्सा है जिस में सक्का नामक एक भिश्ती को ढाई दिन की बादशाहत मिल गई थी. किसी को थोड़े समय के लिए सत्ता मिले और वह रौब गांठे तो ऐसा कहते हैं.
अढ़ाई हाथ की ककड़ी, नौ हाथ का बीज. कोई असंभव सी बात. कोरी गप्प.
अति का फूला सैंजना, डाल पात से जाए. सैजना एक पेड़ है जिसमें अत्यधिक फूल और फलियाँ लगती है और उसके बाद पतझड़ हो जाता है . कहावत का अर्थ है कि धन या पद मिलने पर अहंकार नहीं करना चाहिए.
अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप (अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप). अति हर चीज़ की बुरी होती है.
अति तातो पय जल पिए, तातो भोजन खाए, बाकी बत्तीसी सबहि, ज्वानी में झर जाए. बहुत गर्म पेय पदार्थ पीने और बहुत गर्म खाना खाने से दांत कमजोर हो जाते हैं.
अति पितवालों आदमी, सोए निद्रा घोर, अनपढ़िया आतम कही, मेघ आवे अति घोर. अत्यधिक पित्त प्रकृति वाला आदमी यदि दिन में भी घोर निद्रा में सोए तो अनपढ़ (किन्तु अनुभव से भरपूर) आतम कहते हैं कि जोर से वर्षा होगी.
अति बड़ी घरनी को घर नहीं, अति सुंदरी को वर नहीं. बहुत बड़े घर की लड़की के लिए बराबर का घर न मिल पाने के कारण और अत्यधिक सुंदर कन्या के लिए सुयोग्य वर न मिल पाने के कारण इन के विवाह में कठिनाई आती है.
अति भक्ति चोर का लक्षण. कोई बहुत ज्यादा भक्ति दिखा रहा हो तो संशय होता है कि कहीं इस के मन में चोर तो नहीं है.
अति हर चीज़ की बुरी है. अर्थ स्पष्ट है. संस्कृत में कहते हैं – अति सर्वत्र वर्जयेत.
अतिथि देवो भव. घर में आया अतिथि भगवान के समान है. शिक्षा यह दी गई है कि घर में आए किसी व्यक्ति का अनादर न करो.
अतिशय रगड़ करे जो कोई, अनल प्रकट चन्दन से होई. बहुत रगड़ने से चन्दन जैसी शीतल लकड़ी में से भी अग्नि पैदा हो जाती है. बहुत अधिक अन्याय करने पर सीधे साधे लोग भी विद्रोह पर उतारू हो जाते हैं
अतिशय लोभ न कीजिए लोभ पाप की धार, इक नारियल के कारने पड़े कुएं में चार. अधिक लोभ करने से कितना संकट उत्पन्न हो सकता है इसके पीछे एक कहानी कही जाती है. एक कंजूस नारियल लेने बाज़ार में गया. दुकानदार ने कहा चार पैसे का है. उसने आगे बढ़ कर पूछा तो दूसरा दूकानदार बोला तीन पैसे का. और आगे बढ़ा तो दो पैसे, उससे आगे एक पैसे. कंजूस बोला कहीं मुफ्त में नहीं मिलेगा. दुकानदार ने कहा, आगे नारियल का पेड़ है खुद तोड़ लो. कंजूस आगे जा कर नारियल के पेड़ पर चढ़ा और नारियल तोड़ कर उतरने लगा तभी उस का पैर फिसल गया. उसने एक डाल कस कर पकड़ ली और लटकने लगा. संयोग से नीचे एक कुआं था. कुछ देर बाद हाथी पर सवार एक आदमी उधर से निकला. कंजूस उससे बोला तुम मुझे उतार दो तो मैं सौ रूपये दूंगा. उस आदमी ने कंजूस को उतारने के लिए उस के पैर पकड़े तब तक हाथी नीचे से चल दिया. अब दोनों कुँए के ऊपर लटकने लगे. इसी तरह एक ऊंट सवार और उसके बाद एक घुड़सवार भी एक के बाद एक लटक गए. अधिक बोझ से पेड़ की डाल टूट गई और चारों कुँए में जा पड़े.
अतै सो खपै. अति करने वाले का विनाश हो जाता है.
अदरक के चन्दन, ललाट चिरचिराय. (भोजपुरी कहावत) अदरख का चन्दन बना कर लगाओगे तो माथे पर छरछराहट होगी. बदमिजाज आदमी को सर पर बिठाओ तो वह आपको कष्ट ही देगा.
अधकचरी विद्या दहे, राजा दहे अचेत, ओछे कुल तिरिया दहे, दहे कपास का खेत. अधूरी विद्या, लापरवाह राजा, निम्न संस्कारों वाली बहू और कपास की खेती विनाश का कारण बनते हैं
अधकुचले सांप सा खतरनाक. चोट खाया हुआ सांप खतरनाक होता है. इसी प्रकार जो व्यक्ति चोट खा कर बच जाए वह बहुत प्रतिहिंसक हो जाता है.
अधजल गगरी छलकत जाए. घड़े में यदि पानी पूरा भरा हो तो ले कर चलने से उसमें से पानी नहीं छलकता जबकि आधे भरे घड़े से पानी छलकता है. कहावत का अर्थ है कि जिन लोगों को कम ज्ञान होता है वे अधिक बोलते है और अधिक दिखावा करते हैं.
अधरम से धन होय, बरस पाँच या सात. पाप की कमाई जल्दी ही नष्ट हो जाती है.
अधिक कसने से वीणा का तार टूट जाता है. अधिक कड़े अनुशासन से जनता त्रस्त हो जाती है और विद्रोह कर सकती है.
अधिक खाऊं न बेवक्त जाऊं. न अधिक खाऊं न बेवक्त शौच के लिए जाऊं.
अधिक खाद औ गहरी फाल, ढो ढो नाज होय बेहाल. खाद अधिक देने और गहरा जोतने से फसल अच्छी होती है (इतनी अधिक कि किसान अनाज ढो ढो के थक जाए).
अधिक प्रेम टूटे, बड़ी आँख फूटे. किसी को बहुत अधिक प्रेम करने से प्रेम के टूटने का डर होता है. तुक मिलाने के लिए कहा गया है कि बहुत बड़ी आँख हो तो उस में चोट लगने का डर होता है.
अधिक संतान गृहस्थी का नाश, अधिक वर्षा खेती का नाश. यूँ तो वर्षा खेती के लिए आवश्यक है पर अधिक वर्षा खेती का सत्यानाश कर देती है. इसी प्रकार एक दो सन्तान होना प्रत्येक परिवार के लिए आवश्यक हैं पर अधिक संतान होने से गृहस्थी का नाश हो जाता है.
अधिक सयानो, जाय ठगानो. (बुन्देलखंडी कहावत)अपने आप को अधिक चतुर समझने वाला व्यक्ति अंततः ठगा जाता है.
अधेले के नोन को जाऊं, ला मेरी पालकी. छोटे से काम के लिए बहुत आडम्बर करना. अधेला – आधा पैसा, नोन – नमक.
अनकर कपड़ा धोबिनियाँ रानी. दूसरे के कपड़े पहन कर धोबिन बनी ठनी घूमती है. अनकर – दूसरे का.
अनकर खेती अनकर गाय, वह पापी जो मारन जाय. दूसरे का खेत है और किसी और की गाय चर रही है, तुम्हें क्या पड़ी है जो गाय को भगाने का पाप ले रहे हो. अर्थ है कि यदि कोई दूसरा व्यक्ति किसी तीसरे को कोई नुकसान पहुँचा रहा है तो उस में टांग नहीं अड़ानी चाहिए. अनकर – दूसरे की.
अनकर चुक्कर अनकर घी, पांडे बाप का लागा की. (भोजपुरी कहावत) आटा भी दूसरे का है और घी भी दूसरे का, कितना भी लगे, रसोइए के बाप का क्या जा रहा है. अनकर – पराया, चुक्कर – आटा.
अनकर मूड़ी बेल बराबर. दूसरे का सिर बेल के समान तुच्छ. अनकर – दूसरे का, मूड़ी – सिर (मुंड).
अनकर सेंदुर देख कर आपन कपार फोरें. (भोजपुरी कहावत) ईर्ष्यालु स्त्रीदूसरी औरत की मांग में सिंदूर देख कर अपना सर फोड़ रही है. दूसरे के सुख से ईर्ष्या करना.
अनका खातिर कांटे बोए कांटा उनके गड़े. अनका – दूसरे का. जो दूसरों के लिए कांटे बोते हैं उनके पैर में काँटा जरूर गड़ता है.
अनका धन पे रोवे अंखिया. अनका – दूसरे का. दूसरे के धन समृद्धि से दुखी होने वाले के लिए.
अनके धन पर चोर राजा. दूसरे का धन चुरा कर चोर ऐश करता है.
अनके पनिया मैं भरूँ, मेरे भरे कहार. अपने घर में काम करने में हेठी समझना और दूसरे के घर में वही काम करना.
अनजान का अपराध नहीं माना जाता. मासूम व्यक्ति यदि अनजाने में कोई अपराध करता है तो उसे अपराध नहीं मानना चाहिए.
अनजान पानी में न उतरो. जिस पानी की गहराई न मालूम हो उस में नहीं उतरना चाहिए. जिस काम के खतरे न मालूम हों उस को नहीं करना चाहिए.
अनजान सुजान, सदा कल्याण. जो बिलकुल अज्ञानी है वह सुखी रहता है क्योंकि उसे कोई चिंता नहीं होती, या फिर जो पूर्ण ग्यानी है वह सुखी रहता है क्योंकि उसे कोई सांसारिक दुःख नहीं व्यापता.
अनजाने को कांसा दीजे, वासा न दीजे. किसी अनजान व्यक्ति को धन या भोजन देकर उसकी सहायता कीजिए पर उसे घर में वास मत कराइए, बहुत बड़ा धोखा हो सकता है. कांसा एक मिश्र धातु (alloy) है जिससे बर्तन बनते थे.
अनदेखा चोर राजा बराबर. जब तक चोर को चोरी करते न पकड़ लिया जाए तब तक तो चोर और राजा बराबर हैं.
अनपढ़ कमाए और जूता खाए (अभागा कमाय और जूता खाय). अभागा आदमी मेहनत से कमाता है फिर भी अपमान सहता है.
अनपढ़ जाट पढ़े बराबर, पढ़ा जाट खुदा बराबर. जाटों की चालाकी पर व्यंग्य.
अनपढ़ तो घोड़ी चढ़ें, पंडित मांगें भीख. जहाँ अंधेर गर्दी का राज्य हो वहाँ अनपढ़ लोगों को सत्ता मिल जाती है और ज्ञानवान लोग भीख मांग कर गुजारा करते हैं.
अनपढ़ भी पंडित के कान काट सकता है. जिसको व्यवहारिक ज्ञान अधिक हो वह अधिक सफल होता है.
अनमिले के सौ जती हैं. स्त्री न मिले तो सब योगी बन जाते हैं. जती – यती (सन्यासी). मजबूरी का नाम महात्मा गांधी.
अनरूच बहू के कड़वे बोल. जो अपने को पसंद नहीं है उसकी सभी बातें बुरी लगती हैं. अनरूच – जो रुचे नहीं.
अनहोनी होती नहीं, होती होवनहार (अनहोनी होनी नहीं, होनी हो सो होय). होनी बलवान है. जो नहीं होना है वह आपके लाख चाहने पर भी नहीं होगा और जो होना है वह हो के रहेगा.
अनाज खाओ पर बीज बचाओ. जीवित रहने के लिए अनाज खाना आवश्यक है पर बोने के लिए बीज बचाना भी जरूरी है, प्रकृति का दोहन भी करो और सरंक्षण भी.
अनाड़ियों को अनाड़ी ही सिखा सकता है. कम बुद्धि वाले को पढ़ाना बहुत कठिन काम है. तीव्र बुद्धि वाला तो यह काम बिलकुल नहीं कर सकता.
अनाड़ी का सोना बाराबानी (अनाड़ी का सोना हमेशा चोखा). सुनारों की भाषा में बाराबानी सोना कई बार शुद्ध किए गए सोने को कहते हैं. अनाड़ी आदमी सोना बेचने आया हो तो वह सोना बढ़िया ही होगा क्योंकि वह उस की कीमत ही नहीं जानता.
अनाड़ी के घी में भी कंकड़. अनाड़ी आदमी के हर काम में फूहड़पन रहता है.
अनाड़ी गया चोरी, छेड़न लगा छोरी. हर काम को करने के कुछ नियम कानून होते हैं. चोर लड़की छेड़ेगा तो पकड़ लिया जाएगा, चोरी कैसे करेगा.
अनोखी जुरवा, साग में शुरवा. साग बनाते हैं तो उस में शोरबा नहीं बनाते. अनाड़ी पत्नी ने साग में भी शोरबा बना दिया. कोई अनाड़ी आदमी बेतुके ढंग से काम करे तो.
अनोखे गाँव में ऊंट आया, लोगों ने जाना परमेसुर आया. मूर्ख लोगों ने जो चीज़ न देखी हो उसको कुछ का कुछ समझ लेते हैं.
अनोखे घर में नाती भतार. ऐसा घर जहाँ बाप दादा के मुकाबले पोते की बात अधिक मानी जाए. जहाँ बड़ों के मुकाबले छोटों की ज्यादा चले. भतार शब्द भर्ता का अपभ्रंश है जिसका अर्थ है घर का स्वामी.
अन्त बुरे का बुरा. बुरे काम का बुरा नतीजा.
अन्तकाल सुधरा तो सब सुधरा. किसी व्यक्ति ने जीवन भर बुरे कर्म किये हों पर यदि अंतिम समय में वह सुधर जाए तो लोग उसकी बुराइयों को भूल जाते हैं.
अन्ते गति सो मति. मरते समय व्यक्ति के मन में जो भाव रहते हैं वैसी ही उस की गति होती है. एक ऋषि को वन में एक मृग शावक मिला जिसकी मां हिरनी उसे जन्म देते ही मृत्यु को प्राप्त हो गई थी. उन्होंने दयावश उसे अपने आश्रम में ला कर पाल लिया. उन्हें उस से इतना मोह हो गया कि अपने अंतिम समय पर भी वे उस की चिंता में ही डूबे रहे. इसके फलस्वरुप उन्हें हिरन की योनि में जन्म लेना पड़ा.
अन्दर छूत नहीं, बाहर करें दुर दुर. केवल दिखावे के लिए छुआछूत करना. जहाँ अपना स्वार्थ हो वहाँ छुआछूत न करना.
अन्न अमृत, अन्न विष. अन्न जीवन के लिए आवश्यक भी है और अधिक खाने या गलत खाने से आदमी मरता भी है.
अन्न खाय मन भर, घी खाय दम भर. अन्न उतना खा सकते हो जितनी भूख हो पर घी उतना ही खाना चाहिए जितना पचा सको.
अन्न जल बड़ो बलवान, काल बड़ो शिकारी. अन्न और जल बड़े बलवान हैं मनुष्य को कहाँ कहाँ ले जाते हैं, भटकाते हैं और पाप भी कराते हैं. काल सबसे बड़ा शिकारी है जो हर जीव जन्तु का शिकार करता है.
अन्न जलाय के भाड़ा खातिर रार करे भड़भूजा. भाड़ भूनने वाले ने चने तो जला दिए और ऊपर से अपनी मजूरी मांग रहा है. भाड़ा – मेहनताना, रार – झगड़ा
अन्न जी का गाजा और अन्न जी का बाजा. संसार में सारी महिमा अन्न की ही है.
अन्न दान महा दान. किसी भूखे को खिलाना सबसे बड़ा पुण्य है.
अन्न देवता को माथे चढ़ा कर खाओ. अन्न को देवता मानना चाहिए और कभी उसका तिरस्कार नहीं करना चाहिए.
अन्न धन अनेक धन, सोना रूपा कितेक धन. सबसे बड़ा धन अन्न है उसके सामने सोना चांदी भी कुछ नहीं.
अन्न मुक्ता, घी युक्ता. अन्न को भरपेट (मुक्त हो कर) खाना चाहिए और घी को सोच समझ कर खाना चाहिए.
अन्न से मरे काम से न मरे. अधिक खाने से आदमी मर सकता है पर अधिक काम से कोई नहीं मरता.
अन्न ही तारे, अन्न ही मारे. खाने से ही आदमी जिन्दा रहता है, और अधिक खाने से मरता भी है. अन्न को ले कर युद्ध भी होते हैं, जिनमें अनेक लोग मारे जाते हैं.
अन्न ही नाचे, अन्न ही कूदे, अन्न ही तोड़े तान. पेट भरा होने पर ही सब तरह की मस्ती सूझती है.
अन्यायी और सूरमा, जब चाले तब सगुन. अन्यायी लोग अत्याचार का कार्य करते समय सगुन असगुन नहीं विचारते. इसी प्रकार शूरवीर अपने अभियान से पहले मुहूर्त नहीं देखते.
अन्यायी के उलटे पैर. 1. अन्यायी व्यक्ति हर काम उलटे ढंग से करता है. 2. जब पीड़ित लोग प्रतिकार करते हैं तो अन्यायी बहुत जल्दी भाग खड़ा होता है.
अन्हरे सियार के पिपरे मेवा. (भोजपुरी कहावत) अंधे सियार को पीपल ही मेवा के समान है. मजबूर आदमी को जो मिल जाए वही उसके लिए बहुत है.
अपत भए बिन पाइए, को नव दल फल फूल. बिना पत्ते झड़े नए पत्ते और फल फूल कहाँ आते हैं. कुछ नया पाने के लिए पुराने को खोना पड़ता है.
अपना अपना घोलो अपना अपना पियो. सत्तू के लिए कहा गया है. कहावत का अर्थ है कि अपनी व्यवस्था स्वयं करो.
अपना अपना, पराया पराया. अपना अपना ही रहता है. पराया आदमी कितना भी अच्छा हो अपने जैसा नहीं हो सकता.
अपना काम बनता भाड़ में जाये जनता. विशुद्ध स्वार्थ. (आजकल के नेताओं की तरह).
अपना काम बिगाड़े बिना दूसरे का काम नहीं सुधरता. दूसरों की सहायता करने के लिए अपना नुकसान (समय और पैसे का) करना पड़ता है.
अपना के जुरे न, अनका के दानी. (भोजपुरी कहावत) अपने घर में कुछ है नहीं, दूसरों को दान करने चले हैं.
अपना के बिड़ी बिड़ी, दुसरे के खीर पुड़ी. (भोजपुरी कहावत) अपने आदमी को दुत्कारना और दूसरों का सत्कार करना.
अपना कोढ़ बढ़ता जाए, औरों को दवा बताए. उन लोगों के लिए जो अपनी समस्याएँ नहीं सुलझा पाते और दूसरों की सहायता करने को आतुर रहते हैं.
अपना कोढ़ राजी बेराजी ओढ़. यदि अपने को कोई असाध्य बीमारी है तो उसको झेलना ही पड़ेगा. यदि अपना कोई सगा सम्बन्धी नालायक हो तो भी निभाना पड़ता है.
अपना कोसा अपने आगे आता है. जो गलत काम आप करते हैं उस के दुष्परिणाम कभी न कभी झेलने पड़ते हैं
अपना खिलाए और निहोरे कर के. किसी को अपनी जेब से खिलाओ भी और वह भी खुशामद कर के.
अपना घर दूर से सूझता है. अर्थ स्पष्ट है.
अपना चेता होत नहिं, प्रभु चेता तत्काल. मनुष्य जो चाहता है वह नहीं होता, ईश्वर जो चाहता है वह फ़ौरन हो जाता है. इंग्लिश में कहावत है – Man proposes, God disposes.
अपना ठीक न, अनका नीक न. अपना काम ठीक से करना नहीं जानते और पराये में दोष निकालते हैं. अनका – पराया.
अपना पाद सुगंध से भरा. अपने अंदर कोई दुर्गुण भी है तो भी उस को गुण बताया जाता है.
अपना पूत पूत और सौत का पूत दूत. केवल अपने सगे को महत्व दे कर दूसरे की उपेक्षा करना.
अपना पूत सभी को प्यारा. अपना पुत्र चाहे कुरूप हो, मंदबुद्धि हो तब भी सब को प्यारा होता है.
अपना पूत, पराया डंगर. उन संकीर्ण दृष्टिकोण वाले लोगों के लिए जो अपने पुत्र को नाज़ों से पालें और दूसरे के पुत्र को जानवर तुल्य समझें.
अपना फटा सियें नहीं, दूसरे के फटे में पैर दें. अपनी समस्याएँ न सुलझाएं और दूसरों की परेशानियाँ हल करने की कोशिश करें.
अपना बैल, कुल्हाड़ी नाथब. हमारा बैल है हम चाहें कुल्हाड़ी से नाथें. कहावत का अर्थ है कि अपना काम हम चाहे जैसे करें किसी को क्या. शहर में रहने वाले लोग यह नहीं जानते होंगे कि बैल नाथने का अर्थ होता है, बैल के नथुने में छेद कर के उसमें रस्सी डालना.
अपना मकान कोट (क़िले) समान. अपना घर सभी को बहुत अच्छा और सुरक्षित लगता है. इंग्लिश में कहावत है – There is no place like home.
अपना मरण, जगत की हँसी. अर्थ है कि हम मुसीबत में पड़े हैं और लोग हँस रहे हैं.
अपना मारे छाँव में डाले. माँ क्रोध में आ कर अपने बेटे को पीटती है. बेटा रोते रोते सो जाता है तो उसे उठा कर छाँव में लिटा देती है. क्रोध में भी माँ की ममता कम नहीं होती.
अपना माल अपनी छाती तले. अपने माल की सुरक्षा सभी लोग स्वयं ही करते हैं.
अपना मीठ, पराया तीत. अपना माल अच्छा और पराया बेकार. (मीठ – मीठा, तीत – कड़वा)
अपना रख पराया चख. अपना माल बचा कर रखो और दूसरे का माल हड़पने की कोशिश करो. निपट स्वार्थी लोगों का कथन.
अपना लाल गँवाय के दर-दर माँगे भीख. (अपने नैन गवांय के दर दर मांगे भीख). अपनी कीमती वस्तु की रक्षा न करना और जरूरत पड़ने पर औरों से मांगते फिरना.
अपना वही जो आवे काम. जो आड़े समय में काम आये वही अपना हितैषी है.
अपना सर, सौ चोटी रखें तो कौन बरजे. हम जैसे चाहें रहें, कौन मना कर सकता है. बरजना – मना करना.
अपना सूप मुझे दे, तू हाथों से फटक. शुद्ध स्वार्थ परता. (अनाज में से भूसी और छिलके हटाने के लिए उसे सूप में ले कर फटकते हैं).
अपना हाथ जगन्नाथ. जिनके पास अपने हाथ से काम करने का हुनर है वे सबसे अधिक भाग्यशाली हैं. संपत्ति छीनी जा सकती है पर हाथ का हुनर हमेशा आपके पास रहता है. इंग्लिश में कहावत है – Self done is soon done.
अपना ही माल जाए, आप ही चोर कहलाए. जिस का नुकसान हुआ हो उसी को चोर साबित करने की कोशिश की जाए तो ऐसा कहते हैं. हिन्दुस्तान की पुलिस अक्सर ऐसे कारनामे करती है.
अपना-अपना कमाना, अपना-अपना खाना. 1. आजकल की संस्कृति के ऊपर व्यंग्य. 2. इसका अर्थ इस प्रकार से भी है कि अपनी रोजी रोटी की चिंता सब को करनी पड़ती है.
अपनी अकल और पराई दौलत सबको बड़ी मालूम होती है. सभी लोग अपने को दूसरों से अधिक अक्लमंद समझते हैं और दूसरों को अपने से अधिक धनवान समझते हैं.
अपनी अटके, सौत के मायके जाना पड़ता है. किसी स्त्री के लिए सबसे बुरा और अपमान जनक स्थान सौत का मायका ही हो सकता है. लेकिन काम अटकने पर वहाँ भी चले जाना चाहिए.
अपनी अपनी खाल में सब मस्त. आम लोग अपने काम, अपने स्वार्थ और अपने परिवार की चिंता में ही व्यस्त रहते हैं.
अपनी अपनी खाल में सभी जीव खुशहाल. ऊपर वाली कहावत की भाँति. इस की पूरी कहावत इस प्रकार है – क्या सीपी क्या घूंघची, क्या मोती क्या लाल, अपनी अपनी खाल में सभी जीव खुशहाल.
अपनी अपनी खींचो और ओढ़ो. अपनी अपनी व्यवस्था खुद करो.
अपनी अपनी गरज को अरज करे सब कोई. अपने स्वार्थ की सिद्धि के लिए सभी लोग प्रयास करते हैं.
अपनी अपनी ढपली, अपना अपना राग. (अपनी अपनी तुनतुनी, अपना-अपना राग). यदि एक व्यक्ति ढपली बजा रहा हो और कुछ लोग उसकी ताल के साथ गा रहे हों तो सुनने में अच्छा लगता है. यदि चार लोग अलग अलग ढपली पर अलग ताल बजा कर अलग अलग राग गा रहे हों तो सुनने में कितना बुरा लगेगा. किसी एक बात पर बहुत से लोग अपनी अपनी अलग अलग राय दे रहे हों या अपनी बात मनवाने की कोशिश कर रहे हों तो यह कहावत कही जाती है.
अपनी अपनी तान में गदहा भी मस्तान. मूर्ख लोग अक्सर आत्म मुग्धता के शिकार होते हैं.
अपनी अपनी धोती में सब नंगे (अपने जामे में सभी नंगे). मनुष्य सभ्यता और शालीनता का कितना भी लबादा ओढ़ ले अन्दर से हर मनुष्य की मानसिकता वही आदिम युग वाली होती है.
अपनी अपनी मूंछ पर, सब ही देवें ताव. हर व्यक्ति अपने को महत्वपूर्ण समझता है. आत्म सम्मान सब को प्यारा होता है.
अपनी आँख फूटी तो फूटी पड़ोसी का असगुन तो हुआ. दूसरे को नुकसान पहुँचाने की ललक में अपना चाहे कितना बड़ा नुकसान हो जाए. नीच प्रवृत्ति.
अपनी आँखें मुझे दे दे, तू घूम फिर कर देख. निपट स्वार्थपरता.
अपनी ओर निबाहिए, बाकी की वह जाने. आपका जो कर्तव्य है उसे आप निभाइए, बाकी ईश्वर के हाथ में है.
अपनी करनी अपने आगे. जो कर्म आपने किए हैं वही आपके आगे आते हैं.
अपनी करनी पार उतरनी. परेशानियों से पार पाने के लिए अपना पुरुषार्थ ही काम आता है.
अपनी कोख का पूत नौसादर. नौसादर से यहाँ तात्पर्य उत्कृष्ट वस्तु से है. अपनी सन्तान सब को अच्छी लगती है.
अपनी गई का कोई गम नहीं, जेठ की रही का गम है. अपनी चीज़ चोरी चली गई उसका इतना दुःख नहीं है, जेठ की चोरी नहीं हुई इस का दुःख अधिक है.
अपनी गरज बावली. स्वार्थ आदमी को अंधा बना देता है.
अपनी गरज से लोग गधे को भी बाप बनाते हैं. अर्थ स्पष्ट है.
अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है. सामान्य लोग वैसे तो डरपोक होते हैं पर अपने इलाके में बहादुरी दिखाते हैं उनके लिए यह कहावत कही जाती है.
अपनी गाँठ पैसा, तो पराया आसरा कैसा. पुराने लोग बाहर जाते समय रुपये पैसे को धोती की फेंट में गाँठ बाँध कर रखते थे. गाँठ में पैसा माने अपने पास पैसा होना. अपने पास ही पैसा होगा तो आवश्यकता पड़ने पर किसी का मुँह क्यों देखना पड़ेगा.
अपनी घानी पिर जाए, फिर चाहे तेली के बैल को शेर खा जाए. निपट स्वार्थ. अपना काम निकल जाए, फिर चाहे कोई मरे या जिए.
अपनी चाल में गधा भी मस्ताना. 1. ईश्वर ने आत्म मुग्धता का अधिकार सब को दे रखा है. 2. अधिक इठला कर चलने वालों का मजाक उड़ाने के लिए.
अपनी चिलम भरने को मेरा झोपड़ा जलाते हो. अपने छोटे से फायदे के लिए किसी का बहुत बड़ा नुकसान करना गलत है.
अपनी छाछ को कोई खट्टा नहीं कहता. अपनी चीज़ को कोई घटिया नहीं बताता.
अपनी छोड़ पराई तक्के, सो सब जाए गैब के धक्के. जो अपनी सम्पत्ति छोड़ कर दूसरे की चीज़ पर कुदृष्टि रखता है उस का सब कुछ ईश्वर छीन लेता है. गैब – अदृश्य शक्ति.
अपनी जांघ उघारिए, आपहिं मरिए लाज. आपसी झगडे में अपने घर का भेद दूसरों के सामने खोलने वाले को अंततः स्वयं ही लज्जित होना पड़ता है.
अपनी झोली के चने दूसरे की झोली में डाले. अपने लाभ की चीज़ अज्ञानतावश दूसरे को दे देना (और फिर पछताना).
अपनी नरमी दुश्मन को खाय. आप यदि झुक जाएँ तो दुश्मनी समाप्त हो सकती है. (हार मानी, झगड़ा टूटा).
अपनी नाक़ कटे तो कटे, दूसरे का सगुन तो बिगड़े. उन नीच प्रकृति के लोगों के लिए जो दूसरों को हानि पहुंचाने के लिए अपना नुकसान भी कर सकते हैं.
अपनी नाक पर मक्खी कोई नहीं बैठने देता. अपना अहं सभी को प्यारा होता है.
अपनी नींद सोना, अपनी नींद उठना. पूरी आज़ादी.
अपनी पगड़ी अपने हाथ. यहाँ पगड़ी का अर्थ मान सम्मान से है. कहावत का अर्थ है – आप का कितना आदर हो, यह आपके अपने हाथ में है. जैसा व्यवहार करोगे, वैसा ही सम्मान पाओगे.
अपनी पीठ खुद को न दिखाई दे. 1.अपनी कमियाँ किसी को नहीं दिखतीं. 2.आपकी पीठ पीछे लोग आपको क्या कहते हैं इसकी चिंता नहीं करना चाहिए.
अपनी फूटी न देखे, दूसरे की फूली निहारे. आँख की एक बीमारी होती है जिसमें आँख फूल जाती है और उस से दिखाई कम देता है. कहावत उन लोगों के लिए है जो अपनी फूटी हुई आँख (बहुत बड़ी कमी) नहीं देख रहे हैं दूसरे की फूली हुई आँख (छोटी कमी) के दोष गिना रहे हैं.
अपनी बारी घोलमघाला, हमरी बारी भूखम भाखा. अपनी बारी पर खूब माल खाए, हमारी बारी आई तो भूखा ही टरका दिया.
अपनी ब्याहता को लाने क्या जाना. अपने घर के लोगों की कद्र न करने वालों के लिए.
अपनी मां को डाकिन कौन बतावे. अपना सगा व्यक्ति यदि बिल्कुल गलत भी हो तब भी कोई स्वीकार नहीं करता.
अपनी हंसी हंसना, अपना रोना रोना. केवल अपना स्वार्थ देखना. दूसरे के सुख दुःख में शरीक न होना.
अपनी हैसियत से अतिथि का सत्कार करो, अतिथि की हैसियत से नहीं. यदि हमारे घर कोई ऐसा अतिथि आता है जो हमसे बहुत अधिक सम्पन्न है तो हमें उसके सत्कार में झूठे दिखावे के लिए अपनी हैसियत से अधिक खर्च नहीं करना चाहिए और यदि कोई छोटा व्यक्ति आए तो उस का भी भली प्रकार सत्कार करना चाहिए (छोटा आदमी समझ कर टरका नहीं देना चाहिए).
अपने अपने ओसरे कुँए भरे पनिहार. ओसरा या ओसारा – घर के बाहर का हिस्सा. अपनी बुनियादी जरूरतों का इंतजाम सभी करते हैं.
अपने अपने घर में सभी ठाकुर. यहाँ ठाकुर का अर्थ है स्वामी. हर आदमी अपने घर का स्वामी है, चाहे वह छोटा हो या बड़ा.
अपने ऊपर आवे घात, बामन मारे नाहीं पाप. वैसे तो ब्रह्म हत्या को महापाप माना गया है लेकिन यदि ब्राह्मण आप के प्राण लेने की कोशिश कर रहा हो तो उसकी हत्या भी पाप नहीं है.
अपने ऐब सब लीपते हैं. अपनी कमियाँ सब छिपाते हैं.
अपने किए का क्या इलाज. जो परेशानी हम ने खुद पैदा की है उस का इलाज करने की उम्मीद किसी और से कैसे कर सकते हैं.
अपने को आंक, फिर दरवाजा झाँक. पहले अपनी कमियाँ देखो फिर दूसरे के घर में झांको.
अपने को सूझता नहीं, औरों से बूझता नहीं. किसी ऐसे व्यक्ति के लिए जिसकी अपनी बुद्धि भी काम नहीं करती और वह औरों से पूछता भी नहीं है.
अपने खुजाए ही खुजली मिटती है. अपनी व्यक्तिगत आवश्यकताओं को व्यक्ति स्वयं ही पूरा कर सकता है.
अपने घर में बिलौटा बाघ. अपने इलाके में हर आदमी बहादुर होता है. (अपने घर में कुत्ता भी शेर).
अपने जोगी नंगा तो का दिए वरदान. जोगी खुद नंगे हैं तो किसी को क्या वरदान देंगे. जिसके पास खुद के लिए साधन ना हो वो आपको क्या देगा.
अपने पहरू, अपने चोर. खुद ही पहरेदार हैं और खुद ही चोर हैं. (जैसे आजकल के नेता)
अपने पूत कुआँरे फिरें, पड़ोसी के फेरे. अपने लड़कों की शादी नहीं हो रही है, पड़ोसियों के सम्बन्ध कराते घूम रहे है. उन लोगों के लिए कहा गया है जो अपने घर की समस्याएं सुलझा नहीं पाते और परोपकारी बने फिरते हैं.
अपने पूत को कोई काना नहीं कहता. अपने प्रिय लोगों की कमियों को सब छिपाते हैं.
अपने बच्चे को ऐसा मारूं कि पड़ोसन की छाती फटे (अपनी बेटी को ऐसा मारूं कि बहू सहम जाए). दूसरे के मन में डर बैठाने के लिए अपने पर जुल्म करना.
अपने बावलों रोइए गैर के बावलों हंसिए. यदि अपने घर में कोई पागल या मंदबुद्धि है तो आप उस पर रोते हैं और दूसरे के घर में है तो उस पर हँसते हैं.
अपने बिछाए कांटे अपने पैरों में ही गड़ते हैं. जो दूसरों के लिए षड्यंत्र रचते हैं वे स्वयं उनका शिकार होते हैं.
अपने मन के जौकी भात पकाए के लौकी. (भोजपुरी कहावत) अपने मन में जो आए वही करेंगे.
अपने मन के मौजी माँ को कहें भौजी. मनमौजी लोग कुछ भी कर सकते हैं.
अपने मन से जानिए पराए मन की बात. यदि आप दूसरे के मन की बात जानना चाहते हैं तो सोचिए कि यदि आप उस की जगह होते तो क्या चाहते.
अपने मन से पूछिए, मेरे मन की बात. यदि आप अपने मन में झाँक कर देखेंगे तो आप को समझ में आ जाएगा कि मैं क्या चाहता/चाहती हूँ. (अक्सर पत्नियाँ अपने पतियों से इस प्रकार से कहती हैं).
अपने मरे बिना स्वर्ग नहीं दीखता. 1. जब तक अपने पर न बीते तब तक दूसरों की परेशानी का एहसास नहीं होता. 2. खुद किए बिना कोई काम नहीं होता.
अपने मियाँ दर दरबार, अपने मियाँ चूल्हे भाड़. एक आदमी क्या क्या करे. उसी से दरबार जाने को कह रहे हो, उसी को चूल्हा फूँकने को भी कह रहे हो.
अपने मुंह मियाँ मिट्ठू. अपनी प्रशंसा स्वयं करना. इंग्लिश में कहावत है – To blow one’s own trumpet.
अपने मुंह शादी मुबारक. अपनी तारीफ़ खुद करना. अपने आप को शाबासी देना.
अपने लगे तो देह में, और के लगे तो भीत में. दूसरे के कष्ट की कोई परवाह न करना. अपने लगी तो कह रहे हैं हाय बहुत जोर से लगी, दूसरे के लगी तो कहते हैं तुम्हारे लगी ही कहाँ, दीवार में लगी.
अपने सुई भी न चुभे, दूसरे के भाले घुसेड़ दो. दूसरे के कष्ट की कोई परवाह न करना.
अपने से बचे तो और को दें (अपने से बचे तो बाप को दे). स्वार्थी लोगों के लिए कहा गया है.
अपने हाथ का काम, आधी रात का गहना. जो काम हम अपने हाथ से कर सकते हैं वह हमारे लिए हर समय सुलभ है.
अपने हाथों अपनी आरती. अपनी प्रशंसा स्वयं करना.
अपने हाथों अपने कान नहीं छेदे जाते. अपने कुछ काम ऐसे भी होते हैं जिन्हें हम अपने हाथ से नहीं कर सकते.
अपने ही जलते हैं. किसी की तरक्की देख कर सबसे अधिक अपने लोग ही जलते हैं. इंग्लिश में कहावत है – The worst hatred is that of relatives.
अपने हुनर में हर आदमी चोर है. अपने अपने व्यवसाय में हर व्यक्ति कुछ न कुछ हेराफेरी करने का जुगाड़ कर लेता है, और मज़े की बात यह है कि वह इस को जायज भी ठहराता है.
अपनो है फिर आपनो, जा में फेर न सार, गोड़ नमत निज उदर को, जानत सब संसार. घुटने जब मुड़ते हैं तो पेट की ओर ही जाते हैं. अपना अपना ही होता है. गोड़ – घुटना.
अपनों से सावधान. इंसान को सब से अधिक धोखा अपनों से ही मिलता है.
अफ़लातून के नाती बने हैं. अपने को बहुत अकलमंद समझने वाले के लिए. यूनान के प्रसिद्ध दार्शनिक अरस्तु (Aristotle) को अरबी में अफलातून कहते हैं.
अफवाहों के पंख होते हैं. अफवाहें बहुत तेज़ी से फैलती हैं. इंग्लिश में कहावत है – Nothing amongst mankind, swifter than rumour.
अफ़सोस कि दिल गड्ढे में. किसी बात पर अफ़सोस जाहिर करने का मज़ाकिया लहजा.
अफ़ीम या खाए अमीर या खाए फकीर. अफ़ीम महँगी है. या तो बहुत पैसे वाला खा सकता है, या मांगने वाला. इस में एक अर्थ यह भी है कि अफ़ीम आदमी को खाती है, या अमीर को या फकीर को.
अफ़ीमची तीन मंजिल से पहचाना जाता है. अपनी लड़खड़ाती चाल के कारण अफ़ीमची दूर से पहचान लिया जाता है.
अब आया ऊँट पहाड़ के नीचे. रेगिस्तान में सब तरफ रेत ही रेत होती है. कोई ऊंची चीज नहीं होती. इसलिए ऊंट यह समझता है कि वह सबसे ऊंचा है. लेकिन जब वह पहाड़ के नीचे पहुंचता है तो उसे अपनी औकात समझ में आती है. कोई आदमी जो अपने को बहुत शक्तिशाली और होशियार समझता हो जब उसका सामना अपने से ज्यादा ताकतवर आदमी से होता है तो यह कहावत कही जाती है.
अब की अब के साथ, जब की जब के साथ. वर्तमान में हमें क्या करना है इस पर ध्यान देने की सबसे अधिक आवश्यकता है. पहले क्या हुआ था या आगे क्या हो सकता है ये बातें इतनी महत्वपूर्ण नहीं हैं.
अब की छई की निराली बातें. आजकल की पीढ़ी की बातें निराली हैं.
अब की बार, बेड़ा पार. कोई काम करने के लिए बार बार प्रयास करना पड़े तो जोश दिलाने के लिए.
अब के बचे तो सब घर रचे. किसी बहुत बड़ी परेशानी या बीमारी के दौरान आदमी सोचता है कि इस से बाहर निकलूँ फिर सब ठीक कर लूँगा. (और उस परेशानी के बीतते ही सब भूल जाता है)
अब कै मारे तो जानूं. (हरयाणवी कहावत) कायर आदमी की ललकार. अब के मार लिया सो मार लिया, अब मार के देख.
अब तब काल सीस पर नाचे. मृत्यु हर व्यक्ति के सर पर हर समय नाचती रहती है.
अब दिल्ली दूर नहीं. अब काम पूरा होने ही वाला है.
अब पछिताए होत क्या, जब चिड़ियाँ चुग गईं खेत. खेती जब तैयार खड़ी होती है तो उसकी रखवाली करनी होती है वरना चिड़ियों का झुंड आकर फसल के दाने खा जाता है. यह कहावत ऐसे व्यक्ति के लिए कही जाती है जो आलस में समय पर जरूरी काम नहीं करता और जब काम बिगड़ जाता है तो पछताता है.
अब भी मेरा मुर्दा तेरे जिन्दा पर भारी है. मेरे हालात बिगड़ गए हैं तो क्या, मैं अब भी तुझ से बेहतर हूँ.
अब लौं नसानी अब न नसैहों. (अवधी कहावत) अब तक मैं ने समय नष्ट किया (जन्म बेकार गँवाया) अब नहीं गंवाऊंगा.
अब सतवंती होकर बैठी, लूट लिया सारा संसार. (अब सतवन्ती बनी, लूट खायो संसार.) कोई भ्रष्ट व्यक्ति अन्त समय में जन कल्याण की बातें करे तो.
अबरे के भैंस बियाए, सारा गाँव मटकी ले धाए (आंधर के गाय बियाइल, टहरी लेके दौरलन). (भोजपुरी कहावत)गरीब या अंधे आदमी की गाय भैंस बियाही है तो सारा गाँव मटकी ले कर दौड़ा चला आ रहा है. मजबूर आदमी की मजबूरी का सब फायदा उठाना चाहते हैं. टहरी – मटकी.
अबल पर सभी सबल. कमजोर पर सब जोर जमाते हैं.
अबला को सतावे उसे राम सतावे. जो निर्बल (विशेषकर स्त्री) को सताता है उसे ईश्वर दंड देता है.
अब्बर के हम जब्बर हैं, जब्बर के हम दास. निर्बल के ऊपर जोर जमाना और सबल की जी हुजूरी करना.
अभागा कमाए, भाग्यवान खाए. अभागा व्यक्ति बहुत मेहनत कर के पैसा कमाता है पर भाग्य में न होने के कारण उसकी मेहनत का लाभ उसे न मिल कर भाग्यवान को मिलता है. जो बहुत कंजूस है वह भी एक प्रकार से अभागा ही है.
अभागा पूत त्यौहार के दिन रूठे. त्यौहार के दिन रूठता है तो उस को अच्छे अच्छे पकवान खाने को नहीं मिलते.
अभागिये चोर पे बिल्ली भी भूंसे है. चोर की किस्मत खराब हो तो कुत्ता तो क्या बिल्ली भी उस पर गुर्राती है.
अभागे की जाई, गरीब के गले लगाई. अभागे व्यक्ति की बेटी की शादी गरीब से ही होती है.
अभागे को जैसा वार वैसा त्यौहार. जिस के भाग्य में सुख न लिखा हो उस के लिए त्यौहार भी सामान्य दिनों की भांति महत्वहीन होते हैं.
अभी एक बूंट की दो दाल नहीं हुई है. बूंट मने चना. चने को दल के दाल बनाई जाती है. अभी बूंट की दाल नहीं हुई है मतलब अभी मामला तय नहीं हुआ है.
अभी कै दिन कै रात. अधिकार पा कर इतराने वाले आदमी से सवाल – कितने दिन तुम्हारा यह रुआब चलेगा.
अभी क्या मियाँ मर गए के रोजे घट गए. अगर तुम वाकई कोई काम करना चाते हो तो अभी भी मौका है.
अभी तो बेटी बाप की है. अभी फैसला नहीं हुआ है/ बंटवारा नहीं हुआ है. अभी दिल्ली दूर है. अभी काम पूरा होने में समय लगेगा.
अभी सेर में पौनी भी नहीं कती. अभी काम पूरा नहीं हुआ है. रुई को कात के उसका सूत बनता है. एक सेर रुई में से अभी पौन सेर भी नहीं कती है. सूत कातने के लिए एक छोटी सी तकली होती थी या चरखे से सूत काता जाता था. (देखिये परिशिष्ट)
अमर सिंह को मरते देखा, धनपत मांगें भीख, लछमी कंडा बीनत फिरतीं, इसें नाम छुछइयाँ ठीक. एक आदमी का नाम छुछइयाँ था. इस बात से वह बहुत परेशान रहता था. एक बार वह इतना हताश हो गया कि उसने मरने की ठान ली. मरने के लिए चला तो एक शवयात्रा मिली. मरने वाले का नाम पूछा तो बताया अमर सिंह. आगे बढ़े तो एक आदमी भीख मांगते दिखा. नाम था धनपत. उसके आगे लक्ष्मी नाम की एक गरीब फटेहाल औरत कंडे बीनती मिली. तो उस की समझ में आया कि नाम से कुछ नहीं होता. अपना नाम छुछइयाँ हीठीक है.
अमली मिसरी छांड़ि के खैनी खात सराह. अमली – अमल (नशा) करने वाला, खैनी – एक प्रकार का तम्बाखू. जिसको तम्बाखू की लत होती है वह मिश्री जैसी स्वादिष्ट चीज़ को छोड़ कर तम्बाखू को शौक से खाता है.
अमानत में खयानत. किसी की चल अचल संपत्ति को नुकसान पहुँचाना.
अमीर का उगाल, गरीब का आधार. अमीर आदमी जिस चीज़ को तुच्छ समझ कर फेंक देता है गरीब के लिए वह भी आधार है.
अमीर का उतार गरीब का सिंगार. धनि व्यक्ति के लिए जो वस्तु अनुपयोगी हो जाती है वह भी गरीब के बहुत उपयोग में आ सकती है.
अमीर की बकरी मरी गाँव भर रोया, गरीब की बेटी मरी कोई न आया. अर्थ स्पष्ट है.
अमीर को जान प्यारी, ग़रीब को दम भारी. अमीर आदमी के पास सभी सुख सुविधाएँ होती हैं इसलिए वह अधिक दिन जीना चाहता है जबकि गरीब को जीवन बोझ लगता है.
अमीर ने पादा सेहत हुई, गरीब ने पादा बेअदबी हुई. अशिष्ट भाषा में आवाज़ के साथ गैस पास करने को पादना कहते है.लोक भाषा में कुछ इस प्रकार के शब्द अत्यधिक प्रचलन में होते हैं. अमीर आदमी कोई असामाजिक काम करे तो कोई आपत्ति नहीं करता, बल्कि कुछ लोग तारीफ भी कर देते हैं, गरीब कोई ऐसा काम करे तो उसे बुरा भला कहते हैं. इंग्लिश में कहावत है – One law for the rich and another for the poor.
अमीरी और फकीरी की बू चालीस बरस तक नहीं जाती. कोई अमीर अगर गरीब हो जाए या गरीब आदमी अमीर बन जाए तो उन की पुरानी आदतें लम्बे समय तक नहीं जातीं.
अमृत लागे राबड़ी जा में दांत हिले ना जाबड़ी. रबड़ी सबसे बढ़िया खाद्य पदार्थ है जिसे खाने में बिल्कुल मेहनत नहीं होती.
अम्बर के तारे हाथ से नहीं तोड़े जाते. बहुत बड़ी बड़ी हांकने वालों पर व्यंग्य.
अम्बर ने पटका और धरती ने झेला. किसी बहुत मनहूस व्यक्ति के लिए कही गई बात.
अम्बा झोर चले पुरवाई, तब जानो बरखा ऋतु आई. तेज पुरबाई चलने से आम झड़ने लगें तो समझो वर्षा ऋतु आने वाली है.
अयाना जाने हिया, सयाना जाने किया. अयाना – मासूम व्यक्ति, हिया – हृदय.छोटा बच्चा या मासूम व्यक्ति केवल प्रेम की भाषा समझता है जबकि सयाना व्यक्ति इस बात पर अधिक ध्यान देता है कि उस के ऊपर क्या उपकार किया गया है.
अरका नाइन, बांस की नहरनी (नई नाइन, बांस का नहन्ना.) नहरनी (नेहन्ना) नाखून काटने के औजार को कहते हैं जोकि लोहे का होता है. नई नई नाइन बांस की नहरनी ले कर आई है. नौसिखिए आदमी का मज़ाक उड़ाने के लिए. (देखिये परिशिष्ट)
अरजी हमारी आगे मरजी तिहारी है. किसी बड़े अधिकारी के सामने या ईश्वर के समक्ष कमज़ोर व्यक्ति की प्रार्थना.
अरध तजहिं बुद्ध सरबस जाता. (जब सारा धन जात हो, आधा देओ लुटाय) (सर्वनाश समुत्पन्ने, अर्ध त्यजहिं पंडित:) जब सारा माल जाने का खतरा हो तो बुद्धिमान लोग यह कोशिश करते हैं कि आधे को लुटा कर आधा बचा लो.
अरहर की टट्टी, गुजराती ताला. किसी सस्ती वस्तु की सुरक्षा के लिए महंगा इंतज़ाम. (देखिये परिशिष्ट)
अरे जौहरी बावले सुन मेरे दो बोल, बिन गाहक मत खोल तू गठरी रतन अमोल. जौहरी को सीख दी जा रही है कि तू बिना उपयुक्त ग्राहक के अपने अमूल्य रत्नों की गठरी मत खोल. अगर कोई मूर्खों के बीच में ज्ञान बांटने की कोशिश कर रहा हो तब भी ऐसा कहा जाता है.
अरे बिजूका खेत के काहे अपजस लेत, आप न खावे खेत को और न खाने देत. (बुन्देलखंडी कहावत) बिजूका – काकभगोड़ा. खेत में खड़े पुतले से कहा जा रहा है कि तू क्यों चिड़ियों की बद्दुआ ले रहा है, न खुद खाता है, न ही उन्हें खाने देता है. ईमानदार कर्मचारी से भी भ्रष्ट सहकर्मी ऐसा ही बोलते हैं.
अर्क तरुन की डाल तें, कहूँ गज बाँधे जांय. कच्चे पेड़ की डाल से हाथी नहीं बांधे जाते. अपर्याप्त साधनों से बड़े बड़े काम नहीं किए जा सकते. अर्क तरु – आक का पेड़.
अर्थ अनर्थ का मूल है. यहाँ अर्थ का अभिप्राय पैसे से है. दौलत सभी प्रकार के अनर्थ की जड़ है.
अर्ध रोग निद्रा हरे, सर्व रोग हरे भूख. यदि रोगी को नींद आने लगे तो इसका अर्थ है उसका आधा रोग दूर हो चुका है और भूख लगने लगे तो पूरा रोग.
अल गई, बल गई, जलवे के वक्त टल गई. बातें बहुत बनाना और काम के समय गायब हो जाना. जलवा – मुसलमानों में नई बहू की मुँह दिखाई. नई बहू को मुंह दिखाई के वक्त रूपये देने होते हैं. घर की कोई औरत बहुत बातें बना रही है, बहू की बलैयां ले रही है, पर मुंह दिखाई के समय गायब हो जाती है.
अलख राजी तो खलक राजी. जिस पर प्रभु प्रसन्न उस से दुनिया राजी है.
अलग हुआ बेटा पड़ोसी बराबर. जो बेटा संपत्ति में बंटवारा कर के अपना व्यवसाय व चूल्हा अलग कर ले वह पड़ोसी के समान हो जाता है.
अलबेली ने पकाई खीर, दूध के बदले डाला नीर. नौसिखिया लोगों का मज़ाक उड़ाने के लिए.
अला लूँ बला लूँ, थाली सरका लूँ. प्यार भरी बातों में फंसा कर थाली अपनी ओर सरका लेना. किसी को बेबकूफ बना कर अपना मतलब निकालना.
अलूनी सिल कुत्ता भी न चाटे. जिस काम से कुछ प्राप्त न हो उसे कौन करेगा.
अल्कस नींद मर्द को मारे, नार को मारे हांसी, अधिक ब्याज बनिए को मारे, चोर को मारे खांसी. पुरुष को आलस्य, स्त्री को हंसी मज़ाक, बनिये को अधिक ब्याज, (क्योंकि उसे न लौटा पाने से रकम डूब जाती है) और चोर को खांसी मार देती है.
अल्प विद्या भयंकरी. अधूरा ज्ञान हानिकारक होता है.
अल्पाहारी सदा सुखी. कम खाने वाला सुखी रहता है. (अधिक खाने से रोग होते हैं और घर का बजट भी बिगड़ता है).
अल्ला तेरी आस, नजर चूल्हे पास. ऊपर से दिखाने को कह रहे हैं कि अल्लाह तेरा आसरा है लेकिन नजर चूल्हे पर ही है.
अल्ला देवे खाने को तो कौन जाय कमाने को. यदि भगवान सब को बैठा कर खिलाएगा तो कोई मेहनत क्यों करेगा.
अवगुण तब अजमाइए जब गुण न पूछे कोय. जब आदमी के गुणों की कद्र न हो तो उसे गलत तरीके अपना कर काम निकालना पड़ता है.
अवसर और अंडा एक बार में एक ही आते हैं. मुर्गी एक बार में एक ही अंडा देती है. इसी प्रकार किसी व्यक्ति को एक बार में एक ही अवसर मिलता है. इंग्लिश में कहावत है – Blessings never come in pairs, misfortunes never come alone.
अवसर चूके, जगत थूके. जो सही अवसर को भुनाने में चूक जाता है उस की सभी लोग लानत मलानत करते हैं.
अवसर पर हाथ आए सो ही हथियार. हथियार वही काम का है जो मौके पर उपलब्ध हो.
अव्वल मरना आखिर मरना, फिर मरने से क्या है डरना. पहले मरें या बाद में, मरना एक दिन है ही तो डरना कैसा.
अशर्फियाँ लुटें, कोयलों पर मुहर. महत्वपूर्ण चीजों को लुटाना और महत्वहीन चीजों को संभाल कर रखना. इंग्लिश में कहावत है Penny wise pound foolish.
असल असल है, नकल नकल है. अर्थ स्पष्ट ही है.
असल कहे सो दाढ़ीज़ार. जो सच कहे वह बुरा है क्योंकि सच कड़वा होता है. (दाढ़ीज़ार – एक गाली)
असाढ़ चूका किसान और डाल चूका बंदर. आषाढ़ में जो किसान बुवाई करने से चूक जाता है वह पछताता ही रह जाता है (जिस प्रकार डाल से डाल पर छलांग लगाने वाला बन्दर डाल पकड़ने से चूक जाए तो पछताता है).
असाढ़ में खाद खेत में जावै, तब भरि मूठि दाना पावै. खाद को असाढ़ के महीने में डालने से फसलों में अच्छी पैदावार होती है.
अस्सी की आमदनी चौरासी का खर्चा. जब खर्च आमदनी से अधिक हो.
अस्सी की उमर, नाम मियां मासूम. नाम के विपरीत शख्सियत.
अस्सी बरस पूरे किये फिर भी मन फेरों में. 1. अस्सी साल के हो गए हैं फिर भी हेर फेर में ही मन लगता है. 2. अस्सी साल के हो गये हैं पर शादी करना चाह रहे हैं.
अहमक से पड़ी बात, काढ़ो सोटा तोड़ो दांत. मूर्ख से पाला पड़े तो डंडा निकालो और दांत तोड़ दो.
अहमद की दाढ़ी बड़ी या मुहम्मद की. बेकार की बहस.
अहमद की पगड़ी महमूद के सर. बेतुका काम या एक का नुकसान कर के दूसरे को लाभ पहुँचाना.
अहिंसा परमोधर्म: किसी के प्रति हिंसा न करना सबसे बड़ा धर्म है. लेकिन इसके आगे कहा गया है – धर्म हिंसा तथैव चाहिए, अर्थ धर्म की रक्षा के लिए हिंसा करनी पड़े तो उचित है.
अहिर मिताई कब करे जब सब मीत मरि जाए. (भोजपुरी कहावत) अहीर से दोस्ती तब करो जब सब दोस्त मर जाएँ.
अहिर मिताई बादर छाँई, होवे होवे नाहीं नाहीं. अहीर की दोस्ती बादलों की छाँव के समान क्षणिक होती है.
अहिर, बानिया, पुलिस, डलेवर, नहीं किसी के यारी, भीतरले में कपट राखल, मीठी बोली प्यारी. (भोजपुरी कहावत) अहीर, बनिया, पुलिस और ड्राइवर लोग किसी के दोस्त नहीं होते, ऊपर से मीठी बोली बोलते है पर भीतर से कपट रखते हैं.
अहिरे के बिटिया के लुरबुर जीव, कब जइहें सास कब चटिहूं घीव. अहीर की बेटी को घी खाने की आदत होती है. ससुराल में भी वह इसी जुगाड़ में रहती है कि कब घी चाटने को मिले.
अहीर अपने दही को खट्टा नहीं बताता. अपनी चीज़ की बुराई कोई नहीं करता.
अहीर का क्या जजमान, लप्सी का क्या पकवान. अहीर बहुत अच्छा जजमान नहीं है क्योंकि वह अधिक दक्षिणा नहीं दे सकता, उसी तरह जैसे लप्सी अच्छा पकवान नहीं है.
अहीर का पेट गहिर, बामन का पेट मदार. अहीर का पेट गड्ढा है और ब्राह्मण का पेट ढोल, अर्थात दोनों अधिक खाते हैं.
अहीर खड़ा सामने मैं रूखा खाऊँ. जब सुविधाएं उपलब्ध हों तो मैं परेशानी क्यों उठाऊं.
अहीर गड़रिया पासी तीनों सत्यानासी. पुरानी कहावतों में कुछ जातियों के विषय में आधारहीन बातें कही गई हैं, उन में से एक.
अहीर देख गड़रिया मस्ताना. अहीर को पिए देख कर गड़रिए ने भी चढ़ा ली. दूसरे की बुराई का गलत अनुसरण करना.
अहीर साठ बरिस तक नाबालिग रहें. अहीर के विषय में कहा गया है कि वह साठ साल की आयु तक भी समझदार नहीं होते.
अहीर से जब भेद मिले जब बालू से घी. बालू से घी कभी नहीं निकल सकता इसी प्रकार अहीर से उसके काम का भेद कोई नहीं पा सकता.
आ, आँ, आं
आ गई तो ईद बरात नहीं तो काली जुम्मेरात. भाग्य ने साथ दिया तो मौज ही मौज वरना परेशानी तो है ही.
आ झगड़ालू राड़ करें, ठाली बैठे क्या करें. कुछ लोगों को झगड़ा करने का शौक होता है, उन के लिए कही गई कहावत.
आ पड़ोसन लड़ें. जो लोग बिना बात लड़ने पर उतारू रहते हैं उनके लिए.
आ बला गले लग. जबरदस्ती मुसीबत बुलाना.
आ बे पत्थर पड़ मेरे गाँव. जबरदस्ती मुसीबत मोल लेना.
आ बैल मुझे मार, सींग से नहीं तो पूंछ से ही मार. जबरदस्ती मुसीबत मोल लेना. अधिकतर इस का पहला भाग ही बोला जाता है.
आ रे मेरे लाले, सेंत का चन्दन तू भी लगा ले, औरों को भी बुला ले. 1.जहाँ कोई कीमती चीज़ मुफ्त में मिल रही हो. 2. किसी दुखी बाप का नालायक बेटे से कथन.
आ रै मेरा सम्पटपाट, मैं तनै चाटूं, तू मनै चाट. (हरियाणवी कहावत) दो निकम्मे व्यक्तियों का समागम होना.
आँख एक नहीं, कजरौटा दस ठो. कजरौटा – काजल बना कर रखने की डिब्बी. आवश्यकता के बिना आडम्बर की वस्तुएं इकट्ठी करना. (देखिये परिशिष्ट)
आँख ओट पहाड़ ओट. जो आँखों से दूर हो जाता है वह बहुत दूर हो जाता है. इंग्लिश में इस तरह की कहावत है – out of sight, out of mind.
आँख और कान में चार अंगुल का फर्क. (अंतर अंगुली चार का आँख कान में होए). देखे और सुने में बहुत अंतर होता है. सुना हुआ अक्सर गलत हो सकता है इस लिए देखे बिना किसी बात पर विशवास नहीं करना चाहिए.
आँख का अंधा गाँठ का पूरा. यहाँ पर आँख का अंधा का अर्थ है मूर्ख. गाँठ का पूरा याने जिसकी धोती की गाँठ में खूब पैसे बंधे हों. धनी परन्तु मूर्ख व्यक्ति (जिसको आसानी से ठगा जा सके).
आँख की तिरिया गाँठ को दाम, बेई बखत पे आवें काम. जो पत्नी हर समय आँख के सामने रहती है और जो पैसा गाँठ में मौजूद है वे ही समय पर काम आते हैं.
आँख के अंधे नाम नयनसुख. गुण के विरुद्ध नाम.
आँख गई संसार गयो कान गयो सुख आयो. आँख की रोशनी चली जाना संसार का सब से बड़ा दुःख है और कान से सुनाई न पड़ना सुख है (न किसी के मुंह से अपनी बुराई सुनोगे न दुखी होगे).
आँख गई संसार गयो, कान गयो अहंकार गयो. आँख की रोशनी जाना संसार की सब से बड़ी हानि है, लेकिन सुनने की क्षमता जाने से नुकसान के साथ एक लाभ भी होता है कि मान अपमान और अहंकार से दूर हो जाता है (कुछ न सुन पाने के कारण).
आँख चौपट, अँधेरे नफरत. आँख है ही नहीं और कहते हैं कि हमें अँधेरे से नफरत है.
आँख देखे को पाप है. संसार में जाने क्या क्या अनर्थ हो रहे हैं जो हम देख लें उसी को हम पाप समझते है.
आँख न दीदा, काढ़े कसीदा. किसी काम को करने का सलीका और सामर्थ्य न होने पर भी वह काम करना. (देखिये परिशिष्ट)
आँख न नाक, बन्नी चाँद सी. अपनी चीज़ जैसी भी हो, बढ़ा चढ़ा के बताना. बन्नी माने ब्याह योग्य कन्या.
आँख नहीं पर काजर पारे. श्रृंगार करने लायक शक्ल नहीं हो पर श्रृंगार करने का बहुत शौक हो तब.
आँख नाक मोती करम ढोल बोल अरु नार, इनके फूटे न भला ढाल तोप तलवार. आँख, नाक, मोती, कर्म(भाग्य के लिए प्रयोग किया गया है), ढोल, वचन, नारी, ढाल, तोप और तलवार, इनका फूटना (खंडित होना) अच्छा नहीं होता.
आँख फड़के दहनी, लात घूँसा सहनी. स्त्रियों के लिए दाईं आँख फडकना अशुभ माना जाता है.
आँख फड़के दहिनी, मां मिले कि बहिनी, आँख फड़के बाँई, भाई मिले कि सांई. दाहिनी आँख फड़कती है तो माँ या बहन से मुलाकात होती है, बांयी आँख फड़के तो भाई या पति से.
आँख फूटी पीर गयी. किसी की आँख बहुत लम्बे समय से बहुत तकलीफ दे रही है और ठीक भी नहीं हो रही है. अंततः आँख की रौशनी चली जाती है पर तकलीफ ख़तम हो जाती है. उसे आँख जाने का दुःख तो है पर पीड़ा ख़तम होने का सुख भी है. कोई नालायक बेटा बहू माँ बाप को बहुत परेशान कर रहे हैं. अंत में वे अलग हो जाते हैं, ऐसे में पिता यह कहावत कहता है. इंग्लिश में कहावत है – Better a finger off than always aching. कहीं कहीं कहते हैं – फोड़ा फूटा पीर गई.
आँख फूटे भौंह नहीं भाती. जब तक आँखें होती हैं तब तक भौंह अच्छी लगती हैं, आँख फूट जाए तो भौंह भी अच्छी नहीं लगती. जैसे लड़की की म्रत्यु हो जाए तो दामाद अच्छा नहीं लगता.
आँख फूटेगी तो क्या भौं से देखेंगे. किसी अति महत्वपूर्ण वस्तु का कोई विकल्प नहीं होता.
आँख फेरे तोते की सी, बातें करे मैना की सी. मीठी बातें करने वाला धोखेबाज व्यक्ति.
आँख बची माल दोस्तों का. ऐसे धोखे बाज दोस्तों के लिए जो मौका मिलते ही चूना लगाने से बाज नहीं आते.
आँख मींचे अँधेरा होय. यदि कोई जान बूझ कर अनजान बन रहा हो तो.
आँख में अंजन दांत में मंजन, नितकर नितकर नितकर; कान में तिनका नाक में उँगली मतकर मतकर मतकर. बच्चों को दी जाने वाली सीख.
आँख में कीचड़ और नाम मृगनैनी. गुण के विपरीत नाम.
आँख वाले की लुगाई अंधा ले गया. किसी गप्प हाँकने वाले का मजाक उड़ाने के लिए.
आँख सुख कलेजे ठंडक. जिन चीजों को देखने से आँखों को सुख मिलता है उनसे हृदय को भी शान्ति मिलती है.
आँख से दूर, दिल से दूर. प्रेम बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि मिलते जुलते रहा जाए. बहुत दिन तक दूर रहने से स्नेह भी कम हो जाता है.
आँख ही फूटी तो अंजन क्या लगाएँ. जिस काम के लायक नहीं हैं वह काम क्यों करें.
आँखिन सों सब देखियत, आँखि न देखि जाहिं. आँखों से ही हम सब कुछ देखते हैं पर आँख स्वयं को नहीं देख सकती.
आँखें मन का दर्पण हैं. मनुष्य के मन में जैसे भाव होते हैं वही उसकी आँखों में प्रकट होते हैं. इंग्लिश में कहावत है – Eyes are windows of the soul.
आँखें मीचे रात नहीं होती. (आँखें मीच अँधेरा करना). जान बूझ कर अनजान बनने वाले के लिए.
आँखें हुईं चार तो मन में आया प्यार, आँखें हुईं ओट तो जी में आया खोट. व्यक्ति सामने हो तो प्यार जताना, पीठ पीछे उसका अहित करना.
आँखों का नूर, दिल की ठंडक. अत्यधिक प्रिय व्यक्ति.
आँखों के आगे नाक, तो सूझे क्या ख़ाक. विवेक के आगे जब व्यक्ति का अहम आ जाता है तो उसे कुछ भला बुरा नहीं दीखता. इसको मजाक में भी प्रयोग करते हैं – जब कोई चीज़ सामने रखी हो और आप उसे ढूँढ़ न पा रहे हों.
आँखों के आगे पलकों की बुराई. किसी व्यक्ति के सामने उसके बहुत प्रिय व्यक्ति की बुराई करना.
आँखों देखा भाड़ में जाए, मैंने कानों सुना था. जो आदमी आँखों देखी बात पर विश्वास न करे उसका मजाक उड़ाने के लिए.
आँखों देखी कानों सुनी. जो बात सुनी हुई भी हो और देखी हुई भी. सुनिश्चित.
आँखों देखी परसराम, कभी न झूठी होय. आँखों देखी बात कभी झूठी नहीं होती.
आँखों देखी प्रीत और मुँह देखा व्यवहार. जो लोग केवल सामने पड़ जाने पर प्रेम दिखाते हैं उन के लिए.
आँखों देखी साची, कानों सुनी काची. जो आँखों से देखते हैं वही सच है, कान से सुनी झूठी भी हो सकती है.
आँखों देखे सो पतियाय. स्वयं अपनी आंखों से देख कर ही किसी बात पर पूरी तरह से विश्वास किया जा सकता है. इंग्लिश में कहते हैं seeing is believing.
आँखों पर काजल का क्या बोझ (आँखों पर पलकों का बोझ नहीं होता). अपने प्रिय व्यक्ति के लिए कुछ करना पड़े तो हमें उसका बोझ नहीं लगता
आँखों से आंसू बहें, दिल में लड्डू फूटें. दिखावे का दुख (जैसा सासू के मरने पर होता है).
आँसू एक नहीं कलेजा टूक-टूक. दिखावटी शोक. शोक बहुत दिखा रहे हैं और आंसू एक भी नहीं आ रहा है.
आंखन अंजन, दांतन नोन, भूखों राखें चौथो कोन, ताजो खावे, बाएं सोय, ताको रोग कबहुं न होय. चौथो कोन – एक चौथाई. जो व्यक्ति आँखों में नित्य काजल डालता हो, दांतों में नमक से मंजन करता हो, भूख से पौना भोजन करे, ताजा खाना खाए और बाईं करवट सोए, वह बीमार नहीं पड़ता.
आंच के पास घी जरूर पिघलता है. युवक युवती साथ रहें तो काम भावनाएं उत्तेजित हो जाती हैं, इसलिए सावधानी बरतना आवश्यक है.
आंत भारी तो माथ भारी. पेट में भारीपन हो तो सर भी भारी होता है
आंधर कूकर, बतास भूँके. बतास – हवा. अंधा कुत्ता हवा चलने पर भौंकने लगता है. अंधा व्यक्ति शक्की हो जाता है (क्योंकि वह देख नहीं पाता इसलिए बात बात पर शक करता है). इस का अर्थ यह भी हो सकता है कि अन्धविश्वासी व्यक्ति को अनजाने भय बहुत सताते हैं (भूत प्रेत आदि).
आंधर कूटे, बहिर कूटे, चावल से काम. धान को कूट कर उससे छिलका अलग करते हैं और चावल अलग. चाहे अंधा व्यक्ति कूटे चाहे बहरा, हमें चावल से मतलब है. काम चाहे कैसे भी हो, चाहे कोई भी करे, काम होने से मतलब.
आंधी आई ही नहीं, हाहाकार पहले ही मच गया. कोई मुसीबत आये बिना उसकी आशंका से ही हाय तौबा मचाना.
आंधी आई है तो मेह भी आएगा. संकट से डरो नहीं, यह समाप्त अवश्य होगा. और हो सकता है यह किसी अच्छाई का संकेत हो.
आंधी आवे बैठ जाए, पानी आवे भाग जाए. सीख दी गई है – आंधी आने पर बैठ जाओ, खड़े रहने पर गिर सकते हो. पानी बरसे तो वहाँ से हट जाओ, खड़े हो कर भीगो नहीं.
आंधी का मेह, बैरी का नेह. दोनों स्थाई नहीं होते.
आंधी के आगे पंखे की हवा (आंधी के आगे बेने की बतास). उसी अर्थ में है जैसे कहते हैं – सूरज को दिया दिखाना.
आंधी के आम और ब्याह के दाम किसने गिने हैं. शादी में अनाप-शनाप खर्च होता है इस बात को आंधी में अनगिनत आम टूटते हैं इस बात की उपमा देकर बताया गया है.
आंधी के आम. आंधी आने पर एक साथ बहुत से आम गिर जाते हैं जिन्हें कम दाम पर बेचना पड़ता है. कोई वस्तु बहुत अधिक मात्रा में और कम दाम में मिल जाए तो.
आंधी में पेड़ गिर जाते हैं घास बच जाती है. जो लोग कठिन परिस्थितियों में लचीला रुख अपनाते हैं वह उन परिस्थितियों से सफलतापूर्वक बाहर निकल आते हैं जो अड़ियल रुख अपनाते हैं वे समाप्त हो जाते हैं.
आई तीज, बिखेर गई बीज, आई होली, भर ले गई झोली. अक्षय तृतीया के बाद एक के बाद एक त्यौहार होते है. होली के बाद जल्दी कोई त्यौहार नहीं होता.
आई तो रमाई, नहीं तो फ़कत चारपाई. मिल गया तो मौज कर लो नहीं तो शांति से बैठो. (रमाई मतलब धूनी रमाई, हुक्का चिलम आदि से तात्पर्य है).
आई तो रोजी नहीं तो रोजा. भाग्य ने साथ दिया तो रोजी रोटी मिल जाएगी नहीं तो भूखे रहना पड़ेगा. मुसलमानों में रमजान के महीने में रोजे (व्रत) रखे जाते हैं.
आई थी बिल्ली, पूंछ थी गीली. सास और बहू पास पास लेटी थीं. सास ने कहा, जरा देख बाहर वर्षा तो नहीं हो रही. बहू ने कहा अभी बिल्ली आई थी उसकी पूंछ गीली थी इसका मतलब वर्षा हो रही है. सास ने कहा जरा दीपक बुझा दे, बहू ने कहा आँखें बंद कर लो अंधेरा हो जाएगा. सास ने कहा जरा किवाड़ बंद कर दे, बहू ने कहा, दो काम मैंने कर दिए अब एक आप भी कर लो.
आई थी मांड को, थिरकन लगी भात को. अमीर लोगों के यहाँ जो चावल को मांड निकलता है उसे गरीब लोग मांग कर ले जाते हैं. कोई मांड मांगने आये और चावलों पर जोर जमाने लगे तब.
आई थी मिलने, बिठाली दलने. आप किसी से ऐसे ही मिलने जाएँ और वह आप को किसी काम में लगा ले. (दलने का मतलब दाल दलने से है).
आई न गई, कौन नाते बहिन. जबरदस्ती रिश्ता जोड़ने वाले के लिए.
आई न गई, कौले लग ग्याभन भई. कोई कुआंरी या विधवा स्त्री गर्भवती हो गई और अपने को निर्दोष बता रही है, तो अन्य स्त्रियाँ उस से पूछ रही हैं कि तू कहीं आई गई नहीं तो यह कैसे हो गया. कोई दोषी व्यक्ति अपने को निर्दोष सिद्ध करने का प्रयास करे तो. (कौले लग – गले लग के, ग्याभन – गर्भवती)
आई बहू आयो काम, गई बहू गयो काम. बहू के आते ही सारे काम दिखाई देने लगते हैं (बहू से कराने के लिए) और बहू के जाते ही काम दिखाई पड़ना बंद हो जाते हैं. संस्कृत में कहावत है – यावत् गृहणी तावत् कार्यं.
आई बहू, जन्मा पूत. दोहरी ख़ुशी. बहू घर में आई और पहली बार में ही पुत्र को जन्म दिया.
आई बी आकिला, सब कामों में दाखिला. कुछ लोग अपने को बहुत अक्लमंद समझते है और सब कामों में टांग अड़ाते हैं, उन का मजाक उड़ाने के लिए.
आई माई को काजर नहीं, बिलैय्या को भर मांग. बिलैया माने बिल्ली. यहाँ पराई औरत या दुष्ट पत्नी से तात्पर्य है. अपनी माँ के लिए काजल भी नहीं है और बिल्ली के लिए ढेर सारा सिंदूर. अपने लोगों की उपेक्षा कर के दूसरों के काम करना. मां की उपेक्षा कर के पत्नी की गुलामी करना.
आई मुझको, ले गई तुझको. किसी कम आयु के व्यक्ति की असमय मृत्यु हो जाए तो बड़े बुजुर्ग ऐसे बोलते हैं.
आई मौज फ़कीर की, दिया झोपड़ा फूँक. (दी मढैया फूँक) बेफिक्रा और मनमौजी आदमी कुछ भी कर सकता है.
आई है जान के साथ, जाएगी जनाज़े के साथ. कोई असाध्य बीमारी.
आऊँ न जाऊं घर बैठी मंगल गाऊं. जो लोग सामाजिक आयोजनों में कहीं आते जाते नहीं हैं उन पर व्यंग्य.
आए का मान करो, जाते का सम्मान करो. घर में कोई भी आए उसका मान करना चाहिए. कोई छोटा आदमी हो तो भी उससे उचित व्यवहार करना चाहिए. जब कोई जा रहा हो तो उसको सम्मान के साथ विदा करना चाहिए.
आए की खुशी न गए का गम. उन लोगों के लिए जोकोई चीज़ मिलने पर बहुत प्रसन्न नहीं होते और कुछ खोने पर बहुत दुखी भी नहीं होते.
आए गए से पूछे बात, करे न खेती अपने हाथ. जो अपने हाथ से खेती न करे और आए गए लोगों से ही खेती का हाल पूछता रहे उसकी खेती कभी सफल नहीं हो सकती.
आए चैत सुहावन, फूहड़ मैल छुड़ावन. ऐसे व्यक्ति के लिए कहा गया है जो जाड़े भर नहीं नहाता और चैत आने पर मैल छुड़ाने बैठा है. व्यवहार में ऐसे व्यक्ति के लिए प्रयोग करते हैं जो कभी कभी ही सफाई करता हो.
आए थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास. सांसारिकता में फंस कर अपने जीवन का उद्देश्य भूल जाना.
आए वीर, भागे पीर. 1.वीर पुरुषों के सामने भूत प्रेत सब भाग जाते हैं. 2. भूत प्रेत सब मन का वहम हैं जिन्हें वीर पुरुष नहीं मानते.
आए हैं सो जायेंगे, राजा, रंक, फ़कीर. (आया है तो जायगा क्या राजा क्या रंक.) सभी लोगों को इस दुनिया से जाना है. सीख यह है कि हमें अपने पद और धन का अहंकार नहीं करना चाहिए.
आओ तो घर आपका, जाओ तो वह रास्ता. प्रेम से आओ तो स्वागत है, रूठ कर जाओ तो रास्ता सामने है.
आओ निकम्मे कुछ तो करो, खाट उधेड़ कर रस्सी बुनो. निकम्मे आदमी को उलाहना देने के लिए.
आओ पूत सुलच्छने, घर ही का ले जाव. अपने कुपुत्र से दुखी होकर पिता कह रहा है कि तुम कुछ कमा कर तो नहीं ला सकते, घर का ही ले जाओ.
आओ बहन लड़ें, ठाली बैठी क्या करें. लड़ाकू स्त्रियों के लिए.
आओ बैठो गावो गीत, नहीं हमारे बताशों की रीत. जो लोग हमारे यहाँ विवाह आदि में आए हैं वो शौक से गाने वाने गाएं, हमारे यहाँ कुछ खिलाने पिलाने का रिवाज़ नहीं है.
आओ मित्तर जाओ मित्तर घर तुम्हारो है, चून होय तुम्हारे पास तो चूल्हा हमारो है. (बुन्देलखंडी कहावत) चतुर व्यक्ति आने वाले अतिथि को सीधे सीधे मना नहीं कर रहा है, कह रहा है कि हमारा चूल्हा तैयार है, बस आटा तुम ले आओ. चून – आटा.
आओ मियां खाना खावो, बिसमिल्ला झट हाथ धुलावो, आओ मियां बोझ उठावो, हम बूढ़ा कोई ज्वान बुलावो. खाने पीने के लिए फौरन तैयार परन्तु काम करने के लिए बहाने बनाना.
आओ मेरी हाट में, देऊं तेरी टाट में. लालची बनिया इस फ़िराक में रहता है कि कोई ग्राहक उसकी दूकान में आए और वह उसे ठगे.
आओ-आओ घर तुम्हारा, खाना माँगे दुश्मन हमारा. झूठा स्वागत सत्कार.
आक का कीड़ा आक में राजी, ढाक का कीड़ा ढाक में राजी. जो जिस परिवेश में रह रहा है वह उसी में संतुष्ट रहता है.
आक को सींचे पर पीपल को न सींचे. पक्षपात पूर्ण और बेढंगा काम.
आक में ईख और ईख में आक. निकृष्ट कुल में भी कभी कभी उच्च संस्कार वाले जन्म लेते हैं और उच्च कुल में नीच.
आकाश बांधू, पाताल बांधू, घर की टट्टी खुली. उन लोगों के लिए जो बड़ी बड़ी योजनाएं बनाते हैं और अपने घर में छोटा सा काम भी नहीं कर सकते. टट्टी का अर्थ है सींकों से बना हुआ पर्दा. (देखिए परिशिष्ट)
आकाश बिना खम्बों के खड़ा है. आकाश सत्य और धर्म के सहारे खड़ा है.
आकास बिजली चमके, गधा दुलत्ती झाड़े. जिस बात से कोई लेने देना नहीं और जिस में कुछ कर भी नहीं सकते उस पर बिना बात आक्रोश प्रकट करना.
आखिर शंख बजा लेकिन बाबाजी को पदा के. काम हुआ लेकिन कड़े परीश्रम के बाद.
आग और पानी को कम न समझें. थोड़ी सी भी आग बढ़ के विकराल रूप धारण कर सकती है और बाढ़ का पानी आज थोड़ा हो तो भी कल बढ़ कर बहुत नुकसान पहुँचा सकता है.
आग और वैरी को कम न समझो. आग और शत्रु को छोटा नहीं समझना चाहिए.
आग कह देने से मुँह नहीं जल जाता. अर्थ स्पष्ट है.
आग की लपटों को दीया जलाकर कौन देखे. जो सत्य स्वयं प्रकाशमान हो उसे सिद्ध करने की क्या आवश्यकता.
आग को दामन से ढकना. किसी खतरे को टालने के लिए ऐसा उपाय करना जिससे और बड़ा नुकसान हो सकता हो.
आग खाएगा तो अंगार उगलेगा. 1.गलत काम का नतीज़ा गलत ही होता है. 2.व्यक्ति अगर गलत शिक्षा ग्रहण करेगा तो गलत बातें ही बोलेगा.
आग खाओगे तो अंगार हगोगे. गलत तरीकों से कमाया हुआ धन अंततः व्यक्ति को कष्ट ही पहुंचाता है.
आग खाय मुँह जरे, उधार खाय पेट जरे. आग खाने से मुँह जल जाता है और उधार ले कर खाने पर उसे चुकाने की चिंता आदमी को ही जला देती है.
आग तापें चीलर मारें, एक साथ दो काम निबारें. होशियार लोग दो काम एक साथ कर लेते हैं.
आग बिना धुआँ नहीं. अगर कहीं धुआं दिख रहा है तो आग जरूर होगी. अगर किसी परिवार में या संगठन के लोगों में बाहर से ही कुछ खटपट दिख रही है तो इस का मतलब यह है कि अंदरूनी क्लेश अवश्य होगा. इंग्लिश में कहावत है – There is no smoke without fire.
आग में तप के सोना और खरा हो जाता है. गुणवान व्यक्ति कठिनाइयों से जूझ कर और निखर जाता है.
आग लगन्ते झोपड़ी, जो निकले सो लब्ध. झोंपड़ी में आग लग गई हो तो जो कुछ भी बचा कर निकाल सको उसी में अपने को भाग्यशाली मानना चाहिए.
आग लगाकर पानी को दौड़े. पहले स्वयं कोई परेशानी पैदा करना और फिर उस का हल खोजने के लिए दौड़ भाग करना.
आग लगे को धूल बतावे. आग लगने पर धुआँ उठ रहा है, उसे धूल बता कर लोगों को धोखा दे रहे हैं या खुद को धोखे में रख रहे हैं. जैसे देश पर बड़ा संकट हो और नेता लोगों को गुमराह करे.
आग लेने आए थे, क्या आए क्या चले. जब आग जलाने के लिए माचिस और लाइटर नहीं होते थे तब लोग पड़ोसी के घर से आग मांग कर लाते थे. (जलता हुआ कोयला या लकड़ी). जो आदमी बहुत जल्दी में आए और चला जाए उसके लिए मजाक.
आग लेने रोज आवे, पर उपला कभी न लावे. जब माचिस का आविष्कार नहीं हुआ था तो लोग आस पड़ोस से आग मांग कर लाते थे (कोई जलता हुआ कोयला या कंडे का टुकड़ा). कोई स्वार्थी व्यक्ति किसी के घर रोज आग मांगने जाए और उसी का कंडा रोज ले जाए तो.
आग से जले हुए जुगनुओं से डरते हैं. जो आग से जल चुका हो वह कोई भी चमकदार चीज़ देख कर डरता है.
आगामीर की दाई, सब सीखी सीखाई. अवध के नवाब गाजीउद्दीन के वजीर आगामीर एक बहुत चालाक आदमी थे. उनके नौकर चाकर भी बड़े खुर्रांट थे. किसी बड़े आदमी के शातिर नौकर पर व्यंग्य करने के लिए यह कहावत बोली जाती है.
आगाय सो सवाय (अगाई बोवाई, सवाई लवाई). समय से पूर्व खेती के काम करने से सवाया लाभ होता है.
आगे आगे बामना, नदी ताल बरजन्ते. जीमने और दक्षिणा समेटने में ब्राह्मण आगे रहते है, जहां खतरा हो (जैसे नदी तालाब पार करना हो) तो कहते हैं कि यह शास्त्र में वर्जित है.
आगे को सुख समझ होय, बीती जो बीती. जो बीत गई उस की चिंता छोड़ कर आगे मिलने वाले सुखों पर ध्यान केन्द्रित करो.
आगे जाएं घुटने टूटें, पीछे देखें आँखें फूटें. किसी काम के दो विकल्प हैं और दोनों में ही बराबर संकट है.
आगे दौड़, पीछे छोड़. आगे बढ़ने का प्रयास करो, पीछे जो गलतियाँ हुईं उनका दुःख मनाने में समय मत गंवाओ. बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले. इंग्लिश में कहावत है – Let bygones be bygones.
आगे नाथ न पीछे पगहा, सबसे भला कुम्हार का गदहा. बैल के नथुने में छेद कर के रस्सी डाल देते हैं जिसे नाथ (नथना) कहते है, हाथी के पिछले पैर में रस्सी या जंजीर बाँध देते हैं जिसे पगहा कहते हैं. गाय, भैंस, बैल और घोड़े के गले में बंधे रस्सी के फंदे को भी पगहा कहते है. धोबी के गधे को न तो नथा जाता है और न ही उस के पैर में पगहा पहनाया जाता है (क्योंकि वह स्वभाव से बहुत सीधा होता है). कहावत का प्रयोग उन लोगों के लिए करते हैं जिन पर परिवार का कोई बंधन न हो. भोजपुरी में इसे इस प्रकार बोला जाता है – आगे नाथ ना पीछे पगहा, खा के मोटा भइले गदहा.
आगे पग से पत बढ़े, पाछे से पत जाए. अपने मार्ग पर आगे बढ़ने से व्यक्ति का सम्मान बढ़ता है और पीछे हटने पर सम्मान कम होता है.
आगे बैजू पीछे नाथ. 1. जब कोई बिना सोचे समझे किसी का अंधानुकरण करे. 2. जब कोई बड़ा आदमी किसी छोटे का अनुसरण करे.
आगे हाथ, पीछे पात. अत्यधिक निर्धन व्यक्ति जो शरीर को हाथ और पत्तों से ढकता है.
आगे ही गधे आवें तो पीछे घोड़ों की क्या आस. सेना में या शोभायात्रा में आगे गधे चल रहे हों तो पीछे घोड़ों की क्या उम्मीद करें. जिस काम की शुरुआत ही बेकार हो उस में आगे क्या उम्मीद.
आछे दिन पाछे गये, गुरु (हरि) सों किया न हेत, अब पछितावे होत क्या, जब चिड़ियाँ चुग गईं खेत. आम तौर पर इसका बाद वाला हिस्सा ही बोला जाता है. यह कहावत ऐसे व्यक्ति के लिए कही जाती है जो आलस के कारण समय पर जरूरी काम नहीं करता और जब काम बिगड़ जाता है तो पछताता है.
आज का बनिया कल का सेठ. जो आज मेहनत करता है वही कल को बड़ा आदमी बन सकता है.
आज की कसौटी बीता हुआ कल है. कसौटी माने वह पत्थर जिस पर रगड़ कर सोने के असली होने की पहचान करते हैं, अर्थात किसी चीज़ को परखने का साधन. कोई व्यक्ति या समाज आज क्या है इसको परखने के लिए उसके बीते हुए कल को अवश्य देखना चाहिए.
आज की ठोकर, कल के गिरने से बचा सकती है. ठोकर लगने से इंसान सीखता है.
आज के थपे आज ही नहीं जलते. उपलों (गोबर से बने कंडे) को जिस दिन थापते (बनाते) हैं उसी दिन नहीं जलाते (पहले सूखने देते हैं). अर्थ है कि किसी काम का फल मिलने के लिए उतावलापन नहीं करना चाहिए कुछ समय प्रतीक्षा करनी चाहिए.
आज चुराए ककरी, कल चुराए बकरी. आज छोटी मोटी चोरी करने वाला कल बड़ी चीज़ चुराएगा.
आज नगद कल उधार. उधार देने से मना करने के लिए दुकानों पर अक्सर लोग यह लिख कर लगाते हैं.
आज निपूती कल निपूती, टेसू फूला सदा निपूती. निपूती – जिसके पुत्र न हो. बाँझ स्त्री के लिए अपमान जनक कथन.
आज मरे कल दिन दूसरा. किसी के जाने से दुनिया का कोई काम नहीं रुकता. दुनिया ऐसे ही चलती रहती है.
आज मरे, कल पितरों में. मृत्यु के बाद हम सभी को पूर्वजों में शामिल हो जाना है.
आज मेरी कल तेरी. स्वार्थी व्यक्ति कोई चीज़ बांटते समय दूसरे को समझा रहा है कि आज मैं ले लेता हूँ, तू कल ले लेना.
आज मेरी मँगनी, कल मेरा ब्याह, टूट गई टंगड़ी, रह गया ब्याह. हम भांति भांति की योजनाएं बनाते हैं, पर किसके साथ आगे क्या होना है यह कोई नहीं जानता.
आज राज सो राज. जिसका इस समय राज है उसी का हुक्म चलेगा.
आज हम पर तो कल तुम पर. हमारी दुर्दशा देख कर खुश मत हो, जो आज हम पर बीत रही है वह कल तुम पर भी बीत सकती है.
आज हमारी कल तुम्हारी, देखो लोगों फेरा फारी. संसार परिवर्तनशील है किसी को अपनी वर्तमान स्थिति पर न तो अहंकार करना चाहिए न अफ़सोस.
आजमाए को आजमावे, नामाकूल कहावे. जिसके साथ नुकसान उठा चुके हो उसको दोबारा आजमाने वाला मूर्ख कहलाता है. इंग्लिश में कहावत है – If a man deceives me once, shame on him; if he deceives me twice, shame on me.
आटा नहीं तो दलिया जब भी हो जाएगा. गेहूँ को चक्की में पीसते हैं तो अगर पूरी तरह पिस कर आटा नहीं बन पाया तब भी दलिया तो बन ही जाएगा. काम पूरी तरह नहीं होगा तो भी कुछ न कुछ तो निबट ही जाएगा. आजकल के लोगों ने चक्की ही नहीं देखी होगी. (देखिये परिशिष्ट)
आटा निबड़ा, बूचा सटका. बूचा माने कान कटा कुत्ता. खाना ख़तम होते ही कुत्ता अपनी राह निकल लेता है. यह कहावत स्वार्थी लोगों के लिए कही गई है.
आटे का चिराग, घर रखूँ तो चूहा खाए, बाहर रखूँ तो कौआ ले जाए. ऐसी चीज़ जिसकी सुरक्षा कठिन हो.
आटे के साथ घुन भी पीसा जाता है. दोषी व्यक्ति के साथ निर्दोष भी सजा पाता है.
आटे में नमक मिलाया जाता है नमक में आटा नहीं. झूठ उतना ही बोलो जितने चल जाए.
आठ कठौती मठा पिए, सोलह मकुनी खाय, उसके मरे न रोइए, घर का दलिद्दर जाए. आठ बड़े वाले बर्तन भर कर मट्ठा पीने वाला और सोलह मोटी रोटी खाने वाला (अर्थात बहुत अधिक खाने वाला) कोई घर का सदस्य यदि मर जाए तो रोओ नहीं. उस के मरने से घर का दुःख दारिद्र्य दूर हो जाएगा.
आठ कनौजिया नौ चूल्हे. जिस समाज के लोगों में एकता न हो.
आठ खावे नौ लटकावे. बहुत दिखावा करने वाले के लिए.
आठ जुलाहे नौ हुक्का, तिस पर भी थुक्कम थुक्का. जितने लोग हैं उससे अधिक उपयोग की वस्तुएं हैं, फिर भी आपस में लड़ रहे हैं.
आठ वार नौ त्यौहार. आठ दिन में नौ त्यौहार. सदा आनंद मनाना. हिन्दुओं में तीज त्यौहार बहुत होते हैं इसको लेकर मजाक.
आता तो सब ही भला, थोड़ा, बहुता, कुच्छ, जाते तो दो ही भले दलिद्दर और दुक्ख. आता तो सब अच्छा लगता है, थोड़ा आये या बहुत, जाती हुई दो ही चीज़ें अच्छी लगती हैं दुःख और दारिद्र्य.
आता हुआ सब को अच्छा लगता है, जाता हुआ किसी को नहीं. मनुष्य का स्वभाव है.
आता है हाथी के मुँह और जाता है चींटी के मुँह. कोई भी संकट आता बहुत तेजी से है और जाता बहुत धीरे धीरे है.
आता हो तो आने दीजे, जाता हो तो गम न कीजे. जो आता हो उसे छोड़ो नहीं, जो चला जाए उसका गम मत करो.
आती बहू जनमता पूत सबको अच्छा लगता है. घर में कोई खुशी हो तो सभी लोग आनंदित होते हैं लेकिन जो लोग बहू के आने पर या पुत्र के जन्म पर बहुत अधिक खुश हो रहे होते हैं उन्हें सयाने लोग यह सीख देते हैं कि जरूरत से ज्यादा खुश मत हो, आगे क्या होगा यह कोई नहीं जानता.
आतुर खेती, आतुर भोजन, आतुर कीजे बेटी ब्याह. खेती, भोजन और बेटी का ब्याह, इन तीनों कामों में शीघ्रता करनी चाहिए.
आते का बोलबाला, जाते का मुँह काला. अफसर आता है तो सब उस की चापलूसी करते हैं, जाते ही उसकी बुराई करने लगते हैं.
आते जाते मैना न फंसी, तू क्यों फंसा रे कौए. भोला भाला व्यक्ति तो फंसा नहीं तू इतना सयाना हो कर कैसे फंस गया. कोई धूर्त व्यक्ति धोखा खा जाए तो उस पर व्यंग्य..
आत्मघाती महापापी. आत्महत्या को महापाप माना गया है.
आत्मा में पड़े तो परमात्मा की सूझे. पेट में रोटी पड़े तभी भगवान की भक्ति कर सकते हैं.
आदमियों में नउआ, जानवरों में कउआ. जिस प्रकार जानवरों में कौए को धूर्त प्राणी माना जाता है उसी प्रकार मनुष्यों में नाई को चंट चालाक माना गया है. यहाँ नाई से तात्पर्य हज्जाम से नहीं बल्कि हिन्दुओं में रीति रिवाज़ कराने वाले नाई से है. (नरों में नाई, पखेरुओं में काग, पानी में कछुआ, तीनों दगाबाज).
आदमी अनाज का कीड़ा है. अन्न मनुष्य की प्रथम आवश्यकता है.
आदमी अपनी संगत से पहचाना जाता है. कोई आदमी कैसा है यह जानना हो तो यह देखिए कि उसके यार दोस्त कौन हैं. इंग्लिश में कहते हैं – Man is known by the company he keeps.
आदमी उपदेश का नहीं, तारीफ़ का भूखा है. उपदेश सुनना किसी को अच्छा नहीं लगता, पर प्रशंसा सुनना सबको अच्छा लगता है. इंग्लिश में कहावत है – The sweetest of all sounds is praise.
आदमी का आदमी ही शैतान. आदमी को सबसे अधिक हानि आदमी ही पहुँचाता है.
आदमी का तोल एक बोल में पहचानिए. अनुभवी लोग किसी मनुष्य से थोड़ी बहुत बात कर के ही उसकी वास्तविकता का अंदाज़ लगा लेते हैं.
आदमी की कदर मरे पर होती है. किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद ही उसकी विशेषताओं का बखान किया जाता है.
आदमी की दवा आदमी. मनुष्य के पास कितना भी कुछ हो, उसे दूसरे मनुष्यों का साथ चाहिए ही होता है. किसी भी आदमी की परेशानी या दुःख को कोई दूसरा आदमी ही ठीक कर सकता है.
आदमी की पेशानी, दिल का आईना है. पेशानी – माथा. व्यक्ति के हृदय में चिंता है या संतोष, यह उसके चेहरे पर प्रतिबिंबित हो जाता है.
आदमी की पैठ पुजती है. मनुष्य की नहीं उस की पहुँच की कद्र होती है.
आदमी के सौ कायदे, लुगाई का एक. पुरुष प्रधान समाज में पुरुष लोग अपनी अनियमितताओं को किसी भी तरह से सही साबित कर देते हैं, पर स्त्रियों से यह आशा की जाती है कि वे उनके बनाए नियमों पर ही चलें.
आदमी जन्म से नहीं कर्म से महान होता है. व्यक्ति ने किस कुल में जन्म लिया है इस से वह महान नहीं बनता, बल्कि अपने कार्यों से महान बनता है. इंग्लिश में कहावत है – Worth is more important than birth.
आदमी जाने बसे, सोना जाने कसे. सोना कसौटी पर कस के पहचाना जाता है और व्यक्ति को उसके साथ रह कर ही पहचाना जा सकता है.
आदमी नहीं कमाता, आदमी का भाग्य कमाता है. कहावतों में दोनों प्रकार की बातें सुनने को मिलती हैं. एक तो यह कि उद्यम करने से ही सब कुछ मिलता है और दूसरा यह कि कितना भी कुछ कर लो भाग्य से ही सब मिलता है.
आदमी पहले शराब पीता है, फिर शराब आदमी को पीती है. अधिकतर लोग पहले केवल शौक शौक में शराब पीते हैं. फिर वे उसके आदी हो जाते हैं और अपनी इज्जत, धन दौलत और स्वास्थ्य सब बर्बाद कर लेते हैं.
आदमी पेट का कुत्ता है. आदमी पेट का गुलाम है.
आदमी फूले भात खाकर, खेत फूले खाद खाकर. जिस प्रकार मनुष्य अच्छा भोजन कर के स्वस्थ होता है उसी प्रकार खेत उपयुक्त खाद लगाने से अच्छी उपज देता है.
आदमी भगवान और शैतान को एक साथ खुश नहीं कर सकता. पाप और पुन्य एक साथ नहीं किए जा सकते.
आदमी भूल चूक का पुतला है. भूल सभी से हो सकती है. कोई यह नहीं कह सकता कि उस ने कभी भूल नहीं की. इंग्लिश में कहते हैं – The Man is bundle of errors.
आदमी मान के लिए पहाड़ भी उठाता है. इंसान अपनी प्रतिष्ठा के लिए सामर्थ्य से बाहर का काम भी करता है.
आदमी लड़खड़ा कर ही चलना सीखता है. कोई भी नया काम करने में शुरू में परेशानियाँ आती ही हैं, उन से हतोत्साहित नहीं होना चाहिए. इंग्लिश में कहावत है – We learn to walk by stumbling.
आदमी सा पखेरू कोई नहीं. मनुष्य सभी प्राणियों में सबसे विशिष्ट है.
आदमी हो या घनचक्कर. मूर्ख व्यक्ति के लिए.
आदमी–आदमी अंतर, कोई हीरा कोई कंकर. सब मनुष्य एक से नहीं हो सकते. कुछ अच्छे, कुछ साधारण व कुछ बुरे भी हो सकते हैं.
आदर दिए कुजात को नाहीं होत सुजात. नीच आदमी आदर पा कर भी नीच ही रहता है.
आदर न भाव, झूठे माल खाव. छल प्रपंच कर के व्यक्ति माल खा सकता है पर आदर नहीं पा सकता.
आदर न मान, बार बार सलाम. सम्मान न मिलने पर भी घुसने की चेष्टा करना.
आदि बुरा तो अंत भी बुरा. यदि किसी काम की शुरुआत ही गड़बड़ हो तो काम ठीक से पूरा होने की संभावना बहुत कम होती है. इंग्लिश में कहते है – A bad beginning makes a bad ending.
आधा आप घर, आधा सब घर. स्वार्थी आदमी आधा खुद रख लेता है और आधे में सब को निबटा देता है. आजकल बहुत से नेता और अधिकारी इस तरह के होते हैं.
आधा ज्ञान, जी की हान. अधूरा ज्ञान खतरनाक है.
आधा तजे पंडित, सारा तजे गंवार. संकट के समय मूर्ख व्यक्ति सब कुछ गँवा देता है जबकि समझदार व्यक्ति आधे को दांव पर लगा कर आधा बचा लेता है.
आधा तीतर आधा बटेर. ऐसा व्यक्ति जिस का कोई एक मत या विचारधारा न हो.
आधा पाव की लोमड़ी, ढाई पाव की पूँछ. व्यक्ति छोटा, आडम्बर बहुत बड़ा.
आधा पाव भात लाई, बाहर से गाती आई. छोटे से कार्य का बहुत अधिक दिखावा.
आधा बगुला, आधा सुआ. सुआ – तोता. जिसका कोई एक मत न हो.
आधा साधे, कमर बांधे. कमर बांध लेने से ही आधा कार्य सिद्ध हो जाता है.
आधा सेर कोदों, मिरजापुर का हाट. थोड़ी सी चीज़ का बहुत अधिक दिखावा. कोदों – एक अनाज.
आधी छोड़ सारी को धावे, आधी मिले न सारी पावे (आधी छोड़ एक नै धावै, बाकी आधी मुंह से जावै). एक कुत्ते को आधी रोटी मिल गई. वह उसे मुँह में दबा कर नदी के किनारे जा रहा था कि उसे पानी में अपनी परछाईं दिखी. वह समझा कि यह दूसरा कुत्ता रोटी ले कर जा रहा है. उससे रोटी छीनने को झपटा तो मुँह की रोटी भी पानी में गिर गई.
आधी मार घरहरिया को. घरहरिया – बीच बचाव करने वाला. दो लोग लड़ रहे हों तो बीच बचाव करने वाले को भी काफी मार पड़ जाती है.
आधी रात को जम्भाई आए, शाम से मुंह फैलाए. कोई काम शुरू करने से बहुत पहले से ही दिखावा करने लगना.
आधी रोटी घर की भली. दूर देश जा कर अधिक कमाई होती हो, उस के मुकाबले घर रह कर कम कमाई अधिक अच्छी है.
आधी रोटी बस, कायस्थ हैं की पस (पशु). कायस्थों की तकल्लुफ बाजी पर व्यंग है – ये कायस्थ हैं कोई जानवर थोड़े ही हैं, इन्हें बस आधी रोटी परोसो.
आधे आंगन सासरो और आधे आंगन पीहर. मुसलमानों में बहुत निकट सम्बन्धियों में विवाह सम्बन्ध हो जाते हैं उस पर व्यंग्य. सासरो – ससुराल, पीहर – मायका.
आधे आसाढ़ तो बैरी के भी बरसे. आधे आषाढ़ तो वर्षा अवश्य होनी चाहिए.
आधे गाँव दीवाली आधे गाँव फाग. समाज के लोगों का एकमत न होना. फाग – होली.
आधे दादा आधे काका, कौन किससे काम को कहे. गाँव में सारे ही अपने बुजुर्ग हैं, काम के लिए किस से कहें.
आधे माघे, कंबली कांधे. आधा माघ बीत गया जाड़ा कम हो गया, अब कंबली ओढ़ो मत कंधे पर रख लो.
आधे में लोमड़ी और आधे में पूंछ. थोड़ी वास्तविकता पर थोड़ा आडम्बर भी.
आन के धन पर तीन टिकुली. आन का – दूसरे का. दूसरे का धन खर्च कर के माथे पर सोने की तीन टिकुली लटकाए है. दूसरे के धन की मूर्खता पूर्ण फिजूलखर्ची.
आन के धन पर तेल बुकुआ. बुकुआ – पीसी हुई गीली सरसों जिसे तेल के साथ शरीर पर मलते हैं. दूसरे का धन मिल रहा हो तो ऐय्याशी करना.
आन पड़ी सिर आपने, छोड़ पराई आस. अगर अपने ऊपर कोई मुसीबत पड़ी है तो खुद ही भुगतनी पड़ेगी, पराई आस छोड़ दो.
आन से मारे, तान से मारे, फिर भी न मरे तो रान से मारे. वैश्या के लिए कहा गया है. किसी चीज़ को प्राप्त करने के लिए जो लोग हद से अधिक गिर जाते हैं उन के लिए भी. रान – जांघ.
आप करे सो काम पल्ले हो सो दाम. काम वही अच्छा है जो हम अपने आप से कर सकें और पैसा वही अच्छा है जो हमारे पास हो.
आप काज सो महा काज. 1. जो अपना काम स्वयं करना जानता है वह सबसे अच्छा रहता है. 2. इसका उसका मुँह देखने की बजाए अपना काम अपने आप कर लो.
आप को जो चाहे बा को चाहिए हजार बार, आपको न चाहे बा के बाप को न चाहिए. जो आप से प्रेम करता हो उसी से प्रेम करिए.
आप खाय, बिलाई बताय. चालाक बच्चे ने खुद रबड़ी खा ली और बिल्ली का नाम लगा रहा है. खुद चोरी करके दूसरों पर इल्ज़ाम लगाने वाले लिए.
आप गुरु जी कांतल मारें, चेलों को परबोध सिखावें. गुरु जी खुद तो कांतल मार रहे हैं (जीव हत्या कर रहे हैं) और चेलों को अहिंसा परमोधर्म: का पाठ पढ़ा रहे हैं.
आप गुरुजी बैंगन खाएँ, औरों को उपदेश पिलाएँ. पुराने लोग बैंगन को कुपथ्य मानते थे (मालूम नहीं क्यों). कहावत उन गुरुओं के लिए है जो खुद गलत काम करते हैं और दूसरों को उपदेश देते हैं.
आप जिंदा जहान जिंदा. जब तक हम जीवित हैं (हमारे लिए) यह संसार भी तभी तक है. इस कहावत को इस प्रकार से भी कहा गया है – आप मरे जग परलै.
आप डुबन्ता पंडित, ले डूबे जजमान. भ्रष्ट पंडित यजमान को भी ले डूबता है.
आप डूबे तो जग डूबा. यदि किसी की इज्ज़त चली जाए तो संसार उसके लिए बेकार ही है.
आप डूबे बामना, जिजमाने ले डूबे. ऐसा ब्राह्मण जो खुद भी डूबे और यजमान को भी ले डूबे. भ्रष्ट व्यक्ति को गुरु नहीं बनाना चाहिए.
आप तो मियां हफ्ताहजारी, घर में रोए कर्मों की मारी. हफ्ताहजारी माने जिसकी एक हफ्ते में एक हजार रुपये की आमदनी हो, याने पुराने हिसाब से बहुत बड़ा आदमी. मियाँ तो बहुत बड़े आदमी हैं और घर में बीबी काम में पिस रही है और भाग्य को कोस रही है
आप धनी तो जग धनी. जिस के पास पैसा है उसी के लिए संसार सुखमय है.
आप न जाए सासुरे, औरन को सिख देय. खुद तो ससुराल जाने को मना कर रही है और दूसरी लड़कियों को ससुराल जाने को समझा रही हैं. इस प्रकार की दूसरी कहावत है – पर उपदेस कुसल बहुतेरे.
आप बड़े हम छोटे. विनम्रता सबसे बड़ा आभूषण है. अपने आप को छोटा मानना सबसे बड़ा बड़प्पन है.
आप बुआ जी नंगी फिरें, भतीजों को झबला टोपी. बुआ जी के पास खुद के पहनने के लिए ढंग के कपड़े नहीं हैं पर भतीजों के लिए कपड़े बना रही हैं. साधन हीन व्यक्ति परोपकार करे तो.
आप बुरा तो जग बुरा. यदि आप सब के बारे में बुरा सोचते हैं या बुरा चाहते हैं तो दुनिया भी आप के लिए बुरी है.
आप भला तो जग भला. आप सब की भलाई करते हैं तो दुनिया भी आप के लिए भली है. इंग्लिश में इस से मिलती जुलती एक कहावत है – Do good, have good.
आप भलो तो जग भलो, नहिं तो भला न कोय. जो लोग निर्मल चरित्र वाले होते हैं उन्हें संसार के अन्य लोग भी भले लगते हैं, जो स्वयं कुटिल होते हैं उन्हें कोई भला नहीं लगता.
आप मरता बाप किसे याद आवे. (राजस्थानी कहावत) जब आदमी स्वयं बहुत बड़ी मुसीबत में हो तो उस से सगे सम्बन्धियों के लिए कुछ करने की आशा नहीं करना चाहिए.
आप मरे जग परलै. किसी व्यक्ति की मृत्यु उसके लिए दुनिया ख़त्म होने के बराबर है. इंग्लिश में कहावत है – Death’s day is Dooms day.
आप महान हैं, प्रभु के समान हैं. अपने आप को बहुत महान समझने वाले व्यक्ति का मज़ाक उड़ाने के लिए.
आप मियाँ फज़ीहत, औरों को नसीहत. खुद गलत काम करते है और दूसरों को उपदेश देते हैं.
आप मियां मंगते, द्वार खड़े दरवेश. दरवेश – साधु. खुद मंगते (मांगने वाले) हैं और द्वार पर फकीर को भिक्षा देने के लिए बुलाया हुआ है. झूठी शान दिखाने वालों के लिए.
आप मिले तो दूध बराबर, मांग मिले तो पानी, कंह कबीर वह खून बराबर, जा में एंचातानी. जो अपने आप मिल जाए वह कीमती चीज़ है (दूध की तरह), जो मांग कर मिले वह पानी की तरह साधारण और जिसके मिलने में झंझट हो वह खून के बराबर है.
आप रहें उत्तर, काम करें पच्छम. बेतरतीब काम करने वाले के लिए.
आप लगावे आप बुझावे, आप ही करे बहाना, आग लगा पानी को दौड़े, उसका कौन ठिकाना. बहुत कुटिल व्यक्ति के लिए (जैसे आजकल के कुछ नेता, खुद दंगा कराते हैं और फिर खुद ही उसको नियंत्रित करने का श्रेय ले लेते हैं).
आप लिखे खुदा पढ़े. बहुत खराब लिखावट वालों के लिए.
आप सुखी जग सुखी. जब आप स्वयं सुखी होते हैं तो सारा संसार सुखी लगता है.
आप से आवे तो आने दे. जो चीज़ बिना कोई प्रयास किए मिल रही हो उसे मना मत करो.
आप हारे और बहू को मारे. अपनी हार का गुस्सा पत्नी/बहू पर निकालना.
आप ही उलझाए और आप ही सुलझाए. जो खुद ही समस्या पैदा करे और खुद उसका हल ढूँढे.
आप ही गावे और आप ही बजावे. जिसे सारा काम खुद करना पड़े उस के लिए.
आप ही मारे, आप ही चिल्लाए. धूर्त व्यक्ति, स्वयं किसी को मार रहा है और पीड़ित होने का दिखावा कर रहा है (जैसे समाज के कुछ विशेष वर्ग जो दंगा करते हैं).
आपकी अकल घोड़े से भी तेज दौड़ती है. अपने आप को बहुत अक्लमंद समझने वाले पर व्यंग्य.
आपके चेहरे पर लगी कालिख औरों को दिखती है आपको नहीं. अपने चरित्र पर धब्बा स्वयं को नहीं दिखता, औरों को दिखता है.
आपको न चाहे ताके बाप को न चाहिए. जो आपका आदर न करे आपको भी उसका आदर नहीं करना चाहिए.
आपज करियो कामड़ा, दई न दीजै दोस. अपने किये हुए अनर्थ के लिए दैव को दोषी नही ठहराना चाहिए.
आपत काल में सब जायज़. जब जान पर संकट आ पड़ा हो तो अपनी सुरक्षा के लिए सब कुछ जायज़ है.
आपन मामा मर मर गए, जुलहा धुनिया मामा भए. (भोजपुरी कहावत) अपने मामा मर गए उन्हें कभी पूछा नहीं, अब बेकार के लोगों से संबंध बनाते घूम रहे हैं.
आपन हाथ आपनी कुल्हाड़ी, जान बूझ के पैर में मारी. अपने हाथों अपना नुकसान कर के दुखी होने वाले के लिए.
आपबीती कहूँ कि जग बीती. दुनिया के बारे में क्या कहूँ, जो मुझ पर बीती है सो कहता हूँ.
आपम धाप कड़ाकड़ बीते, जो मारे सो जीते. एक तरह से बच्चों की कहावत. अर्थ है कि जो आगे बढ़ के मारता है वही जीतता है.
आपसे गया तो जहान से गया. जो अपनी नज़रों से गिर गया वह दुनिया की नज़रों से गिर जाता है.
आपा तजे तो हरि को भजे. अहं को छोड़ोगे तभी प्रभु को पा सकते हो.
आपे आपे जगत व्यापे, न कोई माई न कोई बापे. सब अपनी अपनी समस्याओं में व्यस्त हैं, माँ बाप की चिंता करनेवाला कोई नहीं है. भोजपुरी में इस प्रकार कहा गया है – आपे आपे लोग सियापे, केकर माई केकर बापे.
आफत में औ दुःख में, बुध नहिं तजें उछाह. बुद्धिमान लोगों का उत्साह दुख और संकट के समय कम नहीं होता.
आब गई, आदर गया, नैनन गया सनेह, यह तीनों तब ही गये, जबहिं कहा कुछ देह. जब आप किसी से कुछ मांगते हैं तो आपका सम्मान और आपसी प्रेम ख़त्म हो जाते हैं.
आबरू जग में रहे तो जान जाना पश्म है. सम्मान की रक्षा के लिए प्राण भी चले जाएं तो कोई बात नहीं. पश्म – तुच्छ वस्तु.
आबरू जग में रहे तो जानिए. सभी लोग चाहते हैं कि संसार में उनकी इज्जत बनी रहे.
आबरू वाला रोवे, बेआबरू वाला हंसे. जिसे अपना सम्मान प्यारा हो उसे ही सारे कष्ट उठाने पड़ते हैं, बेशर्म तो केवल मौज उड़ाता है.
आबरू वाले की हर तरफ मौत. इज्जतदार व्यक्ति को हर समय मुसीबतों का सामना करना पड़ता है.
आभ चमक्के बीजली, गधी मरोड़े कान. बिजली चमकने से गधी को बहुत डर लग रहा है. अज्ञानी लोग व्यर्थ की बातों से डरते हैं.
आम आयें चाहें जाए लबेदा. लबेदा – मोटा डंडा. बहुत से लोग डंडा फेंक कर आम तोड़ने की कोशिश करते हैं. (इस में इस बात का डर होता है कि डंडा खो सकता है). जो व्यक्ति छोटे लाभ के लिए बड़ा खतरा उठाने के लिए तैयार हो उसके लिए.
आम का बौर कलार की माया, जैसे आया वैसे गँवाया. कलार – शराब बेचने वाला. आम का पेड़ आरम्भ में बौर से लद जाता है पर बाद में सब बौर झड़ जाती है, उसी प्रकार शराब बेचने वाला खूब धन कमाता है पर अंत में सब गँवा देता है.
आम के आम गुठलियों के दाम. दोहरा लाभ.
आम खाने से काम, पेड़ गिनने से क्या फायदा. व्यक्ति को अपने काम से काम रखना चाहिए व्यर्थ की नुक्ताचीनी में नहीं पड़ना चाहिए.
आम खाय पाल का, खरबूजा खाय डाल का, पानी पिए ताल का. अर्थ स्पष्ट है.
आम टूट मस्तक पर पड़े, याको को जतन कहा कोऊ करे. आलसी व्यक्ति चाहता है कि बैठे बिठाए सब कुछ मिल जाए.
आम फले झुक जाए, अरंड फले इतराए. (आम फले नीचे झुके, ऐरण्ड ऊँचो जाए). समझदार व्यक्ति सफलता पाने पर विनम्र हो जाता है, छोटी बुद्धि वाला व्यक्ति सफलता पाने पर घमंड करने लगता है.
आम फले परवार सों, महुआ फले पत खोय, वा को पानी जो पिए, अकल कहाँ से होय. यहाँ पत का अर्थ पत्ते भी है और इज्जत भी. आम पत्तों सहित फल देता है लेकिन महुए पर पत्ते झड़ने के बाद (अर्थात प्रतिष्ठा खोने के बाद) फल आता है. महुए का पानी (अर्थात उस से बनने वाली शराब) जो पियेगा, उसकी अक्ल तो खराब होनी ही है.
आम बोओ आम खाओ, इमली बोओ इमली खाओ. जैसा करोगे वैसा ही फल पाओगे. इंग्लिश में कहावत है As you sow, so shall you reap.
आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया. आय से अधिक खर्च होना. जिन लोगों की आय तो सीमित है पर वे दिखावे के लिए खर्च अधिक करते हैं उनको सीख देने के लिए यह सरल गणित समझाई गई है. कुछ लोग इसके आगे भी बोलते हैं – नतीज़ा ठन ठन गोपाल.
आमदनी के सिर सेहरा. जिस व्यक्ति की आमदनी (आय) अच्छी हो उसी को श्रेष्ठ माना जाता है.
आमों की कमाई, नीबुओं में गँवाई. एक स्रोत से कमाया और दूसरे में उतना नुकसान कर बैठे.
आम्बा, नीबू, बनिया, ज्यों दाबो रस देयं, कायस्थ, कौआ किरकिटा (चींटी) मुर्दा हूँ से लेय. आम, नीबू और बनिया दबाने से रस देते हैं, कायस्थ, कौआ और चींटी मुर्दे को भी नोंच लेते हैं. बनिए डरपोक होते हैं, डरने पर पैसा निकालते हैं, कायस्थ कागज़ी कार्यवाही में फंसा कर मरने के बाद भी आदमी से कुछ न कुछ कमा लेते हैं. (आम ईख नीबू वणिक, दाबे ही रस देंय).
आया कनागत बंधी आस, बामन उछलें नौ नौ बांस. श्राद्ध पक्ष आने पर ब्राह्मण बहुत प्रसन्न होते हैं. कुछ लोग इसके आगे भी बोलते हैं – गया कनागत गई आस, बामन रोवें चूल्हे पास. कनागत – श्राद्ध पक्ष.
आया कर तू जाया कर, कुंडी मत खड़काया कर. किसी चरित्रहीन स्त्री का अपने यार से कथन. कोई सरकारी मुलाजिम रिश्वत खा कर अगर यह कहे कि तुम चुपचाप यह गलत काम कर लो तो यह कहावत कही जाएगी.
आया कातिक उठी कुतिया. निर्लज्ज और कामातुर स्त्री के लिए उपेक्षापूर्ण कथन.
आया कुत्ता खा गया तू बैठी ढोल बजा. लापरवाही में गृहस्थी का नुकसान करने वाली महिलाओं के लिए. यह कहावत अमीर खुसरो की एक कहानी पर आधारित है जिसमें वह एक ही कविता में चार महिलाओं की कविता सुनाने की फरमाइश पूरी करते हैं. एक बार अमीर खुसरो ने कुँए पर पानी भरने वाली महिलाओं से पीने को पानी माँगा. उन में से एक ने खीर पर, दूसरी ने चरखे पर, तीसरी ने कुत्ते पर और चौथी ने ढोल पर कविता सुनाने के लिए कहा. इस पर उन्होंने यह कविता सुनाई – खीर पकाई जतन से, चरखा दिया जला, आया कुत्ता खा गया, तू बैठी ढोल बजा.
आया चैत फूले गाल, गया चैत फिर वही हवाल. चैत में फसल आदि कटने से किसान भरपेट खाना खाता है और प्रसन्न व स्वस्थ हो जाता है. महीना बीतते बीतते लगान और उधारी चुका कर फिर वैसे का वैसा हो जाता है.
आया तो लाख का, नहीं आया तो सवा लाख का. कोई बड़ा मेहमान घर में आने वाला हो तो उस के आने पर अन्य लोगों के बीच आपका मान बढ़ जाता है और वह न आए तो चैन की सांस आती है.
आया बुढ़ापा आया बुढ़ापा, सौ तकलीफें लाया बुढ़ापा. बुढ़ापा अपने साथ बहुत सी परेशानियाँ ले कर आता है.
आया ब्याज कमाने को, मूल गंवा कर जाय. कुछ लाभ कमाने की इच्छा से आए थे और घाटा उठा कर जा रहे हैं.
आये हैं सो जाएँगे, राजा रंक फकीर, (एक सिंहासन चढ़ि चले, एक बँधा जंजीर). सभी लोगों को इस दुनिया से जाना है चाहे वह सिंहासन पर बैठा राजा हो या जंजीरों में बंधा फकीर. अर्थ यह है कि हमें अपने पद और धन का अहंकार नहीं करना चाहिए.
आयो रात, गयो परभात – रात में आया और सुबह ही चला गया. यदि कोई बिना रुके तुरंत चला जाए.
आर वाले कहें पार वाले अच्छे, पार वाले कहें आर वाले अच्छे. जो नदी के इस पार हैं उन्हें उस पार के लोग सुखी दिखाई देते हैं और जो इस पार हैं उन्हें इस पार वाले. किसी भी व्यक्ति को दूसरे लोग अपने से अधिक सुखी दिखाई देते हैं. इंग्लिश में कहते हैं – The grass is always greener on the other side of the court.
आरंभ सही तो आधा काम हुआ समझो. जिस कम की शुरुआत बिल्कुल ठीक हो वह बहुत शीघ्र पूरा हो जाता है. इंग्लिश में कहावत है Well begun is half done.
आरत कहा न करे कुकरमा. आरत – आर्त, कुकरमा – कुकर्म. आर्त व्यक्ति (अत्यधिक कष्ट में पड़ा हुआ व्यक्ति) कुछ भी गलत काम कर सकता है.
आरती वक्त सोवे, भोग वक्त जागे. स्वार्थी व्यक्ति के लिए जिसे पूजा आरती से कोई मतलब नहीं, केवल खाने पीने से मतलब है.
आराम बड़ी चीज़ है, मुँह ढक के सोइए. आलसी लोगों का ध्येय वाक्य.
आल तू जलाल तू, आई बला को टाल तू. कोई परेशानी आ पड़ने पर ईश्वर से सहायता मांगने के लिए. जलाल – ईश्वर का तेज (उर्दू)
आलमगीर सानी, चूल्हे आग न घड़े पानी. औरंगजेब के जमाने में प्रजा बड़े कष्ट में थी उसी पर यह कहावत कही गई.
आलस कबहु न करिए यार, चाहें काम परे हों हजार, मल की शंका तुरत मिटावे, वही सभी सुख पुनि पुनि पावे मलत्याग की इच्छा होते ही तुरंत उसके लिए चले जाना चाहिए, तभी स्वास्थ्य ठीक रहता है.
आलस नींद किसान को खोवे, चोर को खोवे खांसी, टक्को ब्याज मूल को खोवे, रांड को खोवे हांसी. किसान को निद्रा व आलस्य नष्ट कर देता है, खांसी चोर का काम बिगाड़ देती है, ब्याज के लालच से मूल धन भी है डूब जाता है और हंसी मसखरी विधवा को बिगाड़ देती है.
आलस नींद किसाने नासे, चोरे नासे खांसी, अँखियाँ कीच बेसवा नासे, साधु नासे दासी. किसान को आलस्य, चोर को खांसी, वैश्या को आँखों की कीचड़ (अर्थात गंदा रहना) और साधु को दासी नष्ट कर देते हैं.
आलस, निद्रा और जम्हाई, ये तीनों हैं काल के भाई. अधिक आलस्य और अधिक निद्रा रोग को बुलावा देते हैं.
आलसी को कुत्ता मोटो, मेहनती को बैल मोटो. आलसी आदमी खाने के सामान को ठीक से नहीं रखता इसलिए कुत्ते को खूब खाने को मिलता है, मेहनती आदमी अपने बैल को बड़े प्यार से खिलाता है.
आलसी गिरा कुएं में, कहा यहाँ ही भले. आलस की पराकाष्ठा.
आलसी बटाऊ असगुन की बाट जोहे. आलसी यात्री इस बात का इंतज़ार करता रहता है कि कोई अपशकुन हो जाए और उसे जाना न पड़े.
आलसी मर्द की नार चंचल. आम तौर पर देखा गया है कि आलसी पुरुषों की पत्नियां चंचल होती हैं.
आलसी सदा रोगी. आलसी आदमी कभी स्वस्थ नहीं रह सकता.
आलस्य दरिद्रता का मूल है. (दरिद्रता को मूल एक आलस बखानिए). बिलकुल स्पष्ट एवं सत्य. इंग्लिश में कहावत है – Idleness is the root of all evils.
आला दे निवाला. एक कहानी है कि एक राजा ने किसी भिखारी की बहुत सुंदर लड़की से शादी कर ली. महल में उस लड़की का भीख मांगने का बहुत मन करता था. तो वह चुपचाप दीवार में बने आले से रोटी का टुकड़ा मांगती थी. कहावत का अर्थ है कि कोई आदमी कहीं भी पहुँच जाए उसकी बुनियादी आदतें नहीं छूटतीं.
आवत आवत सब भले आवत भले न चार, विपत बुढ़ापा आपदा और अचीती धार. अचीती धार – अनायास संकट. और सब चीजों का आना अच्छा लगता है, इन चार के अतिरिक्त – विपत्ति, बुढ़ापा, बड़ी आपदा और अनायास संकट.
आवतो नहिं लाजे तो जावतो क्यूँ लाजे. (राजस्थानी कहावत) वैश्या के घर, या किसी भी गलत स्थान पर आते समय लाज नहीं आई तो जाते समय क्यों आ रही है.
आवश्यकता आविष्कार की जननी है. जिस चीज़ की आवश्कता होती है उसे ही बनाने के लिए मनुष्य प्रयास करता है. इंग्लिश में कहावत है – necessity is the mother of invention.
आवा का आवा ही कच्चा रह गया. कुम्हार के आवे में सारे ही बर्तन कच्चे रह गए. किसी घर या समाज में सारे सदस्य मूर्ख हों तो.
आवाज़े खलक को नक्कारा ए खुदा समझो. जनता की आवाज को ईश्वर की आज्ञा मानो.
आवे न जावे बृहस्पति कहावे. आता जाता कुछ नहीं है और खुद को बड़ा विद्वान घोषित करते हैं.
आशा अमर धन. आशावादी दृष्टिकोण व्यक्ति की ऐसी पूँजी है जो कभी समाप्त नहीं होती.
आशा जिए, निराशा मरे (आशा ही जीवन है). आशा और सकारात्मक सोच से ही आदमी जीवित रहता है, निराशा और नकारात्मक सोच मृत्यु को बुलावा देती हैं.
आशा, मान, महत्त्व अरु बालपने को नेहु, ये सबरे तबही गए जबहि कहा कछु देहु. जैसे ही आप किसी से कुछ मांगते हैं, वैसे ही उससे की हुई आशा, आपका सम्मान, महत्व और पुराने से पुराना प्रेम समाप्त हो जाता है.
आषाढ़ करै गांव गौतरी, कातिक खेलय जुआ, पास-परोसी पूछै लागिन, धान कतका हुआ. जो किसान आषाढ़ महीने में गांव-गांव मेहमानी करते हुए घूमता रहा और कार्तिक महीने में जुआ खेलता रहा, उसे उसके पड़ोसी व्यंग्य करते हुये पूछते हैं – कितना धान हुआ? गौतरी – मेहमानी.
आषाढ़ माह जो दिन में सोय, ओकर सिर सावन में रोय. (भोजपुरी कहावत) आषाढ़ में दिन में सोना हमारे स्वास्थ्य के लिए काफी हानिकारक है. आषाढ़ में दिन में सोने से सावन में सिर में पीड़ा होती है.
आस पराई जो तके, जीवत ही मर जाए. प्रत्येक व्यक्ति को प्रयास यही करना चाहिए कि अपना काम अपने आप ही करे. दूसरे का आसरा देखने वाले को अक्सर धोखा खाना पड़ता है.
आस पास बरसे, दिल्ली पड़ी तरसे. कहीं पर बहुतायत कहीं पर अभाव.
आसन बड़ा कि भक्ति. जिस मठ मन्दिर का नाम बहुत प्रसिद्द हो जाता है वहाँ जाना चाहिए या जहाँ अधिक भक्ति और ज्ञान मिले वहाँ.
आसन मारे क्या भया, मुई न मन की आस. अगर मन से लोभ नहीं गया तो आसन मार कर बैठने से भी क्या लाभ होगा.
आसमान के फटे को कहाँ तक थेगली (पैबंद) लगे. बहुत बिगड़ा हुआ काम कहाँ तक संभाला जा सकता है.
आसमान पर थूको तो मुँह पर ही आता है. किसी सज्जन और सच्चरित्र व्यक्ति पर लांछन लगाने वाला व्यक्ति अंत में स्वयं ही अपमानित होता है.
आसमान से गिरे खजूर में अटके. किसी एक परेशानी से निकल कर दूसरी में पड़ जाना.
आसा में भगवान का वासा. ईश्वर आशावादी व्यक्ति की ही सहायता करते हैं.
आहार चूके वह गया, व्यौहार चूके वह गया, दरबार चूके वह गया, ससुरार चूके वह गया. खाने पीने में, लोक व्यवहार में, दरबार में और ससुराल में जो संकोच करता है वह नुकसान में रहता है.
आहारे व्योहारे लज्जा न कारे. खाने में और लोक व्यवहार में लज्जा नहीं करनी चाहिए.
इ
इंचा खिंचा वह फिरे, जो पराए बीच में पड़े. जो दूसरों के मसलों में बीच में पड़ता है वह खुद ही परेशानी में पड़ जाता है (अपनी टांगें खिंचवाता है) .
इंतजार का फल मीठा. प्रतीक्षा करने के बाद जो चीज़ मिलती है वह अधिक अच्छी लगती है.
इंशाअल्लाहताला, बिल्ली का मुँह काला. मुसलमान लोगमुँह से कोई अशोभनीय बात निकल जाए तो ऐसा कहते हैं.
इंसान अपने दुःख से इतना दुखी नहीं है जितना औरों के सुख से है. अर्थ स्पष्ट है.
इंसान जन्म से नहीं कर्म से महान होता है. अर्थ स्पष्ट है.
इंसान बनना है तो दारू पियो, दूध तो साले कुत्ते भी पीते हैं. यूँ तो शराब पीने वाले अपने आप को सही ठहराने के लिए बहुत से बहाने बताते हैं पर इस से ज्यादा मजेदार शायद ही कोई होगा.
इक कंचन इक कुचन पे, को न पसारे हाथ. सोने पर और स्त्री के शरीर पर कौन हाथ नहीं पसारता. कुच – स्तन.
इक तो बड़ों बड़ों में नाँव, दूजे बीच गैल में गाँव, ऊपै भए पैसन से हीन, दद्दा हम पै विपदा तीन. कोई सज्जन अपनी तीन विपदाएं बता रहे हैं – एक तो लोग हमें धनी समझते हैं (इसलिए सहायता मांगने आते हैं), दूसरे मुख्य मार्ग पर गाँव स्थित है (इसलिए अधिक लोग हमारे घर आते हैं) और तीसरे यह कि अब हम पर अब धन नहीं रहा.
इक तो बुढ़िया नचनी, दूजे घर भया नाती. बुढ़िया नाचने की शौक़ीन थी और ऊपर से घर में पोते का जन्म हो गया तो वह नाचे ही जा रही है. किसी सुअवसर पर अधिक प्रसन्न होने वालों पर व्यंग्य.
इक नागिन अरू पंख लगाई. एक खतरनाक चीज़ जब और खतरनाक हो जाए.
इकली लकड़ी ना जले, नाहिं उजाला होय. अकेला व्यक्ति कोई महत्वपूर्ण काम नहीं कर सकता.
इक्का, वकील और गधा, पटना शहर में सदा. किसी भुक्तभोगी ने पटना शहर की तारीफ़ यह कह कर की है कि वहाँ इक्के, वकील और गधे हमेशा मिलते है.
इक्के चढ़ कर जाए, पैसे दे कर धक्के खाए. इक्के की सवारी में धक्के बहुत लगते थे, उस पर मजाक.
इज्जत भरम की, कमाई करम की, लुगाई सरम की. जो आदमी जितनी हवा बना कर रखता है उस की उतनी अधिक इज्जत होती है, कमाई अपने भाग्य से होती है या अपने कर्म से होती है (यहाँ करम का अर्थ कर्मफल अर्थात भाग्य से भी है और उद्यम से भी) और स्त्री लज्जाशील ही अच्छी होती है. भरम – भ्रम.
इज्जत वाले की कमबख्ती है. जिसकी कोई इज्जत नहीं उसे कोई चिंता नहीं, प्रतिष्ठित व्यक्ति को ही अपनी साख बचाने के लिए सब झंझट करने पड़ते हैं.
इडिल-मिडिल की छोड़ आस, धर खुरपा गढ़ घास. पहले जमाने में आठवाँ पास को मिडिल पास कहते थे. जिस का मन पढ़ाई में न लग रहा हो उस से बड़े बूढ़े कह रहे हैं कि तुम तो खुरपा पकड़ो और घास खोदो.
इतना ऊपर न देखो की सर पर रखा टोप ही नीचे गिर जाय. आदमी को अपनी हैसियत से ज्यादा का सपना नहीं देखना चाहिए.
इतना नफा खाओ जितना आटे में नोन. व्यापार में थोड़ा ही मुनाफा खाना चाहिए. ज्यादा मुनाफाखोरी से व्यापार चौपट हो सकता है और लोगों की हाय भी लगती है.
इतना हंसिए की रोना न पड़े. सफलता मिलने पर या किसी शुभ अवसर पर बहुत अधिक खुश नहीं होना चाहिए. समय बड़ा बलवान है, कभी भी पलट सकता है.
इतनी बड़ाई और फटी रजाई. जो लोग डींगें बहुत हांकते हैं और अन्दर से खोखले होते हैं.
इतनी सी जान गज भर की जबान. जब कोई लड़का या छोटा आदमी बहुत बढ़-चढ़ कर बातें करता है.
इत्तेफाक से कुतिया मरी, ढोंगी कहे मेरी बानी फली. कुतिया तो इत्तेफाक से मरी थी, ढोंगी बाबा को यह कहने का मौका मिल गया कि देखो मैंने श्राप दिया इसलिए मर गई. संयोग का फायदा उठाने वाले कुटिल लोगों के लिए.
इधर का दिन उधर उग आया. आशा के विपरीत लाभ किसी और को हो गया.
इधर काटा उधर पलट गया. सांप के लिए कहते हैं कि वह काटते ही पलट जाता है तभी उसका जहर चढ़ता है. इस कहावत को धोखेबाज आदमी के लिए प्रयोग करते हैं जो धोखा देता है और अपनी बात पर कायम नहीं रहता.
इधर कुआं उधर खाई. (आगे कुआं पीछे खाई) (इधर गिरूँ तो कुआं, उधर गिरूँ तो खाई). जब व्यक्ति किसी ऐसी परिस्थिति में फंस जाए जिसमें दोनों ही विकल्प खतरनाक हों तब यह कहावत प्रयोग की जाती है. इंग्लिश में कहते हैं Between the devil and the deep sea.
इधर तलैया उधर बाघ. दोनों ओर संकट का होना.
इधर न उधर यह बला किधर. जब कोई अत्यधिक बीमार व्यक्ति न मरे न ही ठीक हो, तब कहते हैं.
इन तिलों में तेल नहीं. निचुड़ा हुआ आदमी.
इन नैनन का यही विसेख, वह भी देखा यह भी देख. इन आँखों की विशेषता यही है कि ये अच्छा भी देखती हैं और बुरा भी. तात्पर्य है कि व्यक्ति को अच्छे बुरे सभी तरह के दिन देखने पड़ते हैं.
इनकी नाक पर गुस्से का मस्सा. जो लोग हर समय गुस्से में रहते हैं उन पर व्यंग्य.
इन्दर की जाई पानी को तिसाई. जाई – बेटी, तिसाई – प्यासी (तृषित). वर्षा के देवता इंद्र की पुत्री पानी को तरस रही है. जहाँ किसी वस्तु की अधिकता होनी चाहिए वहाँ उसकी कमी हो तो.
इन्दर राजा गरजा, म्हारा जिया लरजा. बरसात आने पर गल्ले का व्यापारी घबरा रहा है कि सामान कहाँ रखूँ, जो भीग कर खराब न हो. (कुम्हार के लिए भी).
इब्तदाये इश्क है रोता है क्या, आगे- आगे देखिए होता है क्या. किसी काम को शुरू करने पर जो लोग ज्यादा उत्साह दिखाते हैं या ज्यादा घबराते हैं उन के लिए.
इमली बूढ़ी हो जाए पर खटाई नहीं छोड़ती. बूढ़ा होने पर भी व्यक्ति का स्वभाव नहीं बदलता.
इराकी पर जोर न चला, गधी के कान उमेठे. इराकी – घुड़सवार. ताकतवर पर वश न चले तो कमज़ोर पर ताकत दिखाते हैं.
इर्ष्या द्वेष कभी न कीजे, आयु घटे तन छीजे. किसी से ईर्ष्या करने पर उसका कोई नुकसान नहीं होता, अपना स्वास्थ्य खराब होता है और आयु कम होती है. दूसरों की सुख समृद्धि देख कर जलना नहीं चाहिए, मन में संतोष रखना चाहिए.
इलाज से बड़ा परहेज. परहेज का महत्त्व दवा से भी अधिक है. इंग्लिश में कहावत है – Prevention is better than cure.
इल्म का परखना और लोहे के चने चबाना बराबर है. किसी की सही योग्यता जान पाना बहुत कठिन है.
इल्म थोड़ा, गरूर ज्यादा. अल्पज्ञानी और अहंकारी व्यक्ति के लिए.
इल्लत जाए धोए धाय, आदत कभी न जाए. गन्दगी तो धोने से छूट सकती है पर गन्दी आदत कभी नहीं छूटती. इंग्लिश में कहते हैं – Old habits die hard.
इल्ली मसलने से आटा वापस नहीं मिलता. इल्ली कहते हैं अनाज में पलने वाले लार्वा को. यह बहुत तेज़ी से अनाज को खाता है. लेकिन अगर हम गुस्से में इल्ली को मसल दें तो वह अनाज वापस नहीं मिल सकता. किसी ने हमारा नुकसान किया हो तो उस को मार देने से नुकसान की भरपाई नहीं की जा सकती.
इश्क और मुशक छिपाए नहीं छिपते. प्रेम और दुश्मनी छिपाने से नहीं छिपते (प्रकट हो ही जाते हैं). रहीम ने इसे और विस्तार से इस प्रकार कहा है – खैर, खून, खांसी, खुसी, बैर, प्रीत, मदपान; रहिमन दाबे न दबें, जानत सकल जहान. कत्थे का दाग, खून, खांसी, ख़ुशी, दुश्मनी, प्रेम और शराब पीना ये सब छिपाने से नहीं छिपते.
इश्क का मारा फिरे बावला. प्रेम का रोग जिसको लग जाए वह उचित अनुचित का बोध खो देता है.
इश्क की मारी कुतिया कीचड़ में लोटती है. विशेषकर दुश्चरित्र स्त्री की ओर संकेत है कि वह अपने प्रेमी को पाने के लिए कुछ भी कर सकती है.
इश्क की मारी गधी धूल में लोटे. गधी को भी इश्क हो जाए तो वह अपने काबू में नहीं रहती. प्रेम करने वालों पर व्यंग्य.
इश्क के कूचे में आशिक की हजामत होती है. प्रेम के चक्कर में आदमी लुट जाता है.
इश्क ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया, वरना हम भी आदमी थे काम के. इश्क के चक्कर में पड़ कर अच्छे खासे कामकाजी लोग भी बरबाद हो जाते हैं. प्रेम के अलावा कोई और परेशानी होने पर भी लोग मजाक में ऐसा बोलते हैं.
इश्क मुश्क खांसी ख़ुशी, सेवन मदिरा पान, जे नौ दाबे न दबें, पाप पुण्य औ स्यान. (बुन्देलखंडी कहावत) स्यान – चालाकी. प्रेम, शत्रुता, खांसी, ख़ुशी, मदिरा सेवन, पाप, पूण्य और चतुराई, ये सब छिपाने से नहीं छिपते.
इश्क में शाह और गधा बराबर. अर्थात दोनों की ही अक्ल घास चरने चली जाती है.
इस घर का बाबा आदम ही निराला है. किसी घर के रीति रिवाज़ दुनिया से अलग हों तो.
इस दुनिया के तीन कसाई, पिस्सू, खटमल, बामन भाई. ये तीनों ही लोगों का खून चूसते हैं.
इस देवी ने बहुत से भक्त तारे हैं. किसी कुलटा स्त्री के प्रति व्यंग्य.
इस मुर्दे का पीला पाँव, के पीछे पीछे तुम भी आओ. कुछ चोर सोने की मूर्ति चुरा कर उस की अर्थी बना कर ले जा रहे थे. संयोग से पैर के ऊपर ढंका कपड़ा कुछ उघड़ गया और मूर्ति का पैर दिखने लगा. किसी आदमी ने यह देख कर सवाल पूछा. चोरों को लगा कि इस आदमी को शक हो गया है तो उस से बोले कि तुम भी साथ आ जाओ, तुम्हें भी हिस्सा दे देंगे. किसी घोटाले के उजागर होने पर घोटाला करने वाला हिस्सा देने की बात कहे तो यह कहावत कही जाती है.
इस हाथ घोड़ा, उस हाथ गधा. जो आदमी जल्दी खुश हो जाए और उतनी ही जल्दी नाराज भी हो जाए.
इस हाथ ले, उस हाथ दे. इस का अर्थ दो प्रकार से है – एक तो यह कि धन संपत्ति के लिए अधिक लोभ और मोह नहीं करना चाहिए, यदि हम समाज से बहुत कुछ लेते हैं तो समाज को बहुत कुछ देना भी चाहिए. दूसरा यह कि उधार ली हुई रकम जितनी जल्दी हो सके लौटा देनी चाहिए. कुछ लोग पूरी कहावत इस प्रकार बोलते हैं – क्या खूब सौदा नकद है, इस हाथ ले उस हाथ दे.
इहाँ कुम्हड़बतिया कोऊ नाहीं, जे तर्जनी देखि मुरझाहीं. यहाँ कोई छुईमुई की पत्तियाँ नहीं है जो तुम्हारी उँगली देख कर मुरझा जाएंगी. राम ने जब शिवजी का धनुष तोड़ दिया तो परशुराम आ कर बहुत क्रोधित होने लगे. तब लक्ष्मण ने उन को ललकारते हुए यह कहा. कहावत का अर्थ है कि आप अपने को बहुत बलशाली समझते हो पर हम भी आप से कम नहीं है.
इहाँ न लागहिं राउर माया. यहाँ आप की जालसाजी नहीं चलेगी. राउर – आपकी.
ई
ई बुढ़िया बड़ी लबलोली, चढ़े को मांगे डोली. किसी अपात्र व्यक्ति द्वारा अनुचित सुविधाएं मांगने पर.
ईंट का घर, मिट्टी का दर. बेतुका काम. घर तो ईंट का बनाया पर दरवाज़ा मिट्टी का बना दिया.
ईंट की देवी, रोड़े का प्रसाद. जैसी देवी वैसा प्रसाद.
ईंट की लेनी पत्थर की देनी. कठोर बदला चुकाना, मुँह तोड़ जवाब देना.
ईंट खिसकी दीवार धसकी. एक ईंट खिसकने से ही दीवार गिर सकती है. समाज और संगठन में एक एक व्यक्ति महत्वपूर्ण है, इसलिए किसी की अवहेलना नहीं करना चाहिए.
ईंट मारेगा छींट खाएगा. (पाथर डारे कीच में उछरि बिगारे अंग). कीचड़ में ईंट फेंकने से अपने ऊपर छींटें आती हैं. नीच व्यक्ति को छेड़ने पर अपना ही नुकसान होता है.
ईख की गांठ में रस नहीं होता. गन्ना बहुत रस से भरा होता है पर उसकी भी गाँठ में रस नहीं होता. किसी भी व्यक्ति में सभी अच्छाईयाँ नहीं होतीं थोड़ी बहुत कमियाँ भी होती हैं..
ईतर के घर तीतर, बाहर बाधूँ कि भीतर (घड़ी बाहर घड़ी भीतर). किसी इतराने वाले व्यक्ति के हाथ कोई बड़ी चीज़ लग गई है. कभी घर में रखता है कभी बाहर सबको दिखाता घूमता है.
ईद खाई बकरीद खाई, खायो सारे रोजा, एक दिना की होरी आई, घर घर मांगे गूझा. मुसलमान के लिए व्यंग्य में कह रहे हैं कि उसने ईद पर, बकरीद पर और तीसों रोजों में खूब माल खाए. अब एक दिन की होली आई है तो घर घर जा कर गुझिया मांग रहा है.
ईद पीछे चाँद मुबारक. बेमौके काम.
ईन मीन साढ़े तीन. कोई बहुत छोटा परिवार या संस्था.
ईश रजाय सीस सबही के. ईश्वर सभी के सर झुकाता है.
ईश्वर उनकी सहायता करता है, जो अपनी सहायता स्वयं करते हैं. अर्थ स्पष्ट है.
ईश्वर की गति ईश्वर जाने. भगवान की माया वे स्वयं ही समझ सकते हैं. इंग्लिश में कहते हैं Mysterious are the ways of God.
ईश्वर की माया, कहीं धूप कहीं छाया. ईश्वर की बनाई दुनिया में कहीं ख़ुशी है कहीं दुःख.
ईश्वर देखा नहीं तो बुद्धि से तो जाना जा सकता है. ईश्वर का साक्षात दर्शन नहीं हो सकता, बुद्धि के द्वारा ही ईश्वर के अस्तित्व की पहचान हो सकती है.
ईश्वर राखे जैसे तैसे रहो खुश. अर्थ स्पष्ट है.
ईश्वर लड़ने की रात दे बिछड़ने का दिन न दे. घरवालों या दोस्तों से थोड़ी बहुत लड़ाई भले ही होती रहे, कभी बिछड़ना न पड़े.
ईस जाए पर टीस न जाए. किसी से ईर्ष्या न भी करो तो भी उस की सम्पन्नता देख कर मन में टीस तो होती है.
उ
उंगलियों से नाखून अलग नहीं होते. जो अपने हैं वे अपने ही रहते हैं.
उंगली पकड़ाई पाहुंचा पकड़ लिया. किसी की थोड़ी सी सहायता की तो वह पीछे ही पड़ गया.
उंगली सूज कर अंगूठा नहीं बन सकती. किसी वस्तु की मूलभूत प्रकृति नहीं बदल सकती.
उंगली हिलाने से किसी का भला होता हो तो मना क्यूँ करें. अपने बिना प्रयास किये किसी का भला होता हो तो क्या हर्ज़ है.
उगता नहीं तपा, तो डूबता क्या तपेगा. जिसने युवावस्था में कोई प्रसिद्धि पाने लायक कार्य नहीं किया वह वृद्धावस्था में क्या करेगा.
उगता सूरज तपे. जब व्यक्ति कामयाबी की सीढियों पर चढ़ रहा होता है वह बहुत रौब दिखाता है.
उगते सूरज को सभी नमस्कार करते हैं. जब व्यक्ति उन्नति कर रहा होता है तो सभी उसका आदर करते हैं.
उगले सो अंधा खाए तो कोढ़ी. (सांप छछूंदर की गति) किसी ऐसी स्थिति में फंस जाना जिस में दोनों प्रकार से संकट हो. (सांप के विषय में कहा जाता है कि यदि वह छछूंदर को पकड़ ले तो बहुत संकट में पड़ जाता है, यदि वह उसे उगल दे तो अंधा हो जाएगा और अगर निगल ले तो कोढ़ी हो जाएगा).
उगे सो अस्ते, जन्मे सो मरे. जो उदय होता है वह अस्त भी होगा (चाहे सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र हों या साम्राज्य) और जिसने जन्म लिया है वह मृत्यु को अवश्य प्राप्त होगा. अपने अच्छे समय में कभी अभिमान नहीं करना चाहिए.
उघरे अंत न होहि निबाहू, (कालनेमि जिमि रावन राहू). धोखे का काम अधिक समय नहीं चलता (अंत में खुल जाता है), जिस प्रकार कालनेमि, रावण और राहु के साथ हुआ.
उजड़े घर का बलेंड़ा. किसी बर्बाद हुए व्यापार या संस्था का एकमात्र जिम्मेदार आदमी. (बलेंड़ा – छप्पर में लगने वाली लम्बी लकड़ी).
उजड़े न टिड्डी का घर, नाम वीरसिंह. गुण के विपरीत नाम.
उजला उजला सभी दूध नहीं होता. सभी सफ़ेद चीज़ दूध नहीं होतीं. अर्थ है कि केवल देखने से किसी वस्तु के गुणों का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता. इंग्लिश में कहते हैं – All that glitters is not gold.
उजले उजले सब भले उजले भले न केस, नारि नवे न रिपु दबे न आदर करे नरेस. और सब चीजों का उज्ज्वल होना अच्छा है पर बालों का उजला (सफ़ेद) होना नहीं. बाल सफ़ेद हों तो स्त्री नहीं दबती, शत्रु भय नहीं खाते और राजा भी आदर नहीं करते.
उज्ज्वल बरन अधीनता, एक चरन दो ध्यान, हम जाने तुम भगत हो, निरे कपट की खान. बगुले के लिए कही गई पहेली नुमा कहावत. उजला रंग, एक पैर पर खड़े होकर दो चीज़ों में ध्यान लगाए हैं. देखने में भगत लगते हैं पर निरे कपट की खान हैं. ढोंगी साधुओं और नेताओं के लिए भी.
उज्ज्वलता मन उज्जवल राखे, वेद पुरान सकल अस भाखैं. चरित्र की शुद्धता से मन भी उज्ज्वल रहता है. वेद पुराण सभी ऐसा कहते हैं. भाखैं – भाषित करते हैं.
उठ दूल्हे फेरे ले, हाय राम मौत दे. आलसी होने की पराकाष्ठ. दूल्हे से कहा जा रहा है कि उठ फेरे ले, वह कह रहा है हाय राम! क्या मौत आ गई.
उठ बंदे, वही धंधे. सुबह सो कर उठते ही आदमी को काम धंधे की चिंता सताने लगती है.
उठ बे बंदर, बैठ बे बंदर. जोरू के गुलाम का मजाक उड़ाने के लिए.
उठती मालिन और बैठता बनिया. मालिन जब दुकान समेट कर घर जा रही होती है तो निबटाने के लिहाज से सामान सस्ता दे देती है, और बनिया जब दुकान खोलता है तो बोहनी के चक्कर में सामान सस्ता दे देता है.
उठी पैठ आठवें दिन ही लगती है. यहाँ पैठ का अर्थ साप्ताहिक बाज़ार से है. अवसर एक बार हाथ से निकल जाने पर दोबारा जल्दी हाथ नहीं आता.
उठो सासू जी आराम करो, मैं कातूं तुम पीस लो. बहू को सास के आराम का बड़ा ध्यान है. कह रही है, तुम आराम से चक्की पीसो, सूत कातने जैसा कठिन काम मैं कर लेती हूँ.
उड़ता आटा पुरखों को अर्पण. चक्की में से उड़ते आटे को पुरखों को अर्पण करने का ढोंग.
उड़ती उड़ती ताक चढ़ी. किसी उड़ती खबर को महत्त्व मिल जाना.
उड़द कहे मेरे माथे टीका, मुझ बिन ब्याह न होवे नीका. उड़द की दाल पर छोटा सा निशान होता है. उड़द के बिना बड़े और कचौड़ी नहीं बन सकतीं इसलिए कोई भी आयोजन फीका रहेगा.
उड़द लगे न पापड़ी, बहू घर में आ पड़ी. शादी विवाह जैसे समारोहों में बड़ियाँ व कचौड़ियाँ बनती हैं जिन में उड़द की दाल का प्रयोग होता है. किसी के विवाह आदि में कोई समारोह न किया जाए और लोगों को दावत न मिले तो लोग मजाक उड़ाने के लिए इस प्रकार बोलते हैं.
उढ़ली बहू बलैंड़े सांप दिखावे. उढ़ली माने दुश्चरित्रा स्त्री. इस प्रकार की बहू छप्पर में साँप बता कर लोगों का ध्यान उस तरफ लगा देती है और खुद घर से निकल जाती है. कोई कामचोर या बेईमान आदमी बहाने बनाए तो यह कहावत कही जाती है.
उत तेरा जाना मूल न सोहे, जो तुझे देख के कूकुर रोवे. यदि कहीं जाने पर आपको देख के कुत्ता रोता है तो इसे भारी अपशकुन मानें.
उत से अंधा आय है, इत से अंधा जाय, अंधे से अंधा मिला, कौन बतावे राय. जहाँ सारे लोग अज्ञानी हों वहाँ राह कौन दिखाएगा.
उतना खाए जितना पचे. खाने में संयम रखने के लिहाज से भी कहा गया है और रिश्वतखोरों को भी सलाह दी गई है.
उतर गई लोई तो क्या करेगा कोई. 1. एक बार बेज्जती हो गई तो फिर वह मान सम्मान लौट कर नहीं आ सकता. 2. जिस का सम्मान चला जाए वह कुछ भी कर सकता है.
उतरती नदी किनारे ढाए. बाढ़ के बाद जब नदी का पानी उतरता है तो किनारों को ढहा देता है. संकट खत्म होते होते भी हानि पहुँचा सकता है इसलिए संकट बिल्कुल समाप्त होने तक सावधान रहना चाहिए.
उतरा घांटी, हुआ माटी. स्वादिष्ट से स्वादिष्ट भोजन भी गले से नीचे उतर कर मिट्टी के समान महत्वहीन हो जाता है.
उतरा पातर, मैं मियां तू चाकर. पातर – कर्ज़. कर्ज़ उतारने के बाद अब मैं तुम से क्यों दबूं.
उतरा हाकिम कुत्ते बराबर (उतरा हाकिम चूहे बराबर). पद खोने के बाद हाकिम को कोई नहीं पूछता.
उतारने से ही बोझ उतरता है. सर पर रखा बोझ हो या कोई क़र्ज़, वह प्रयास करने से ही उतरता है.
उतावला दो बार फिरे. जल्दबाजी में आगे बढ़ने वाले को दो बार लौट के आना पड़ता है और अधिक समय लगता है.
उतावला सो बावला. धीरा सो गम्भीरा. जल्दबाजी करने वाला अक्सर मूर्खतापूर्ण कार्य कर देता है. धैर्य से काम करने वाला गंभीर व्यक्ति ही सफल होता है.
उतावली कुम्हारन, नाखून से मिट्टी खोदे. जल्दबाजी में फूहड़पन से काम करना.
उतावली नाइन उंगली काटे. नाई की कुशलता की परीक्षा नहरनी से नाखून काटने में होती है. नाइन अगर जल्दबाजी में काम करगी तो नाखून के साथ उंगली भी काट देगी.
उतावले मारे जाते हैं, वीरों के गाँव बसते हैं. जल्दबाजी करने वाले सही योजना न बनाने के कारण युद्ध में हार जाते हैं जबकि वीर पुरुष समझदारी से युद्ध जीत कर गाँव व शहर बसाते हैं.
उत्तम खेती जो हल गहा, मध्यम खेती जो संग रहा. जो खुद हल चलाता है उस की खेती सब से अच्छी होती है और जो हलवाहे के साथ में रहता है उसकी खेती मध्यम (कुछ कम सफल) होती है.
उत्तम खेती मध्यम बान, अधम चाकरी भीख निदान. घाघ के अनुसार खेती सर्वोत्तम कार्य है, व्यापार मध्यम और नौकरी निम्न श्रेणी का काम है और यदि कोई काम न कर सको तो भीख मांग कर काम चलाओ.
उत्तम गाना, मध्यम बजाना. गायकी सर्वश्रेष्ठ है, वाद्य बजाना उसके बाद आता है.
उत्तम विद्या लीजिए. तदपि नीच में होए. यदि किसी छोटे व्यक्ति में कोई गुण हो तो उससे सीखने में संकोच नहीं करना चाहिए.
उत्तम विद्या लीजिये जदपि नीच में होय, पड़यो अपावन ठौर में कंचन तजे न कोय. किसी निम्न कुल के व्यक्ति, निर्धन या अनपढ़ से भी यदि कोई उत्तम बात सीखने को मिले तो सीखनी चाहिए. सोना यदि गंदे स्थान पर पड़ा हो तो भी उसे छोड़ थोड़े ही देते हैं.
उत्तम से उत्तम मिले, मिले नीच से नीच, पानी में पानी मिले, मिले कीच में कीच. व्यक्ति अपनी संगत स्वयं ही ढूँढ़ लेता है. उत्तम व्यक्ति उत्तम लोगों की संगत पसंद करता है और नीच व्यक्ति नीच लोगों की संगत ढूँढता है.
उत्तर गुरु दक्खन में चेला, कैसे विद्या पढ़े अकेला. जब कोई दो व्यक्ति बहुत दूर दूर हों तो आपस में संवाद हीनता की स्थिति बन जाती है.
उत्तर जायं कि दक्खन, वे ही करम के लच्छन. जिन का भाग्य साथ नहीं देता वे बेचारे कहीं भी जाएँ असफल ही होते हैं.
उत्तर रखे बतावे दक्खन बाके अच्छे नाही लच्छन. जो व्यक्ति बात का उल्टा जवाब देता है वह विश्वास योग्य नहीं होता.
उथली रकाबी फुलफुला भात, लो पंचों हाथ ही हाथ. कंजूस की बेटी की शादी हुई तो उसने उथली प्लेट में फूला फूला भात परोस दिया ताकि देखने में ज्यादा लगे. कोई खिलाने पिलाने में कंजूसी करे तो यह कहावत कहते हैं.
उथले कहि के गहरे बोरें. उथला पानी बता कर गहरे में डुबो देने वालों के लिए.
उथले पानी की मछली. कम संसाधनों में परेशानी से गुजारा करने वाले के लिए.
उदधि बड़ाई कौन है, जगत पियासो जाय. समुद्र में कितना भी पानी क्यों न हो उससे किसी की प्यास नहीं बुझती. कोई व्यक्ति कितना भी धनवान या ज्ञानवान क्यों न हो, यदि किसी के काम न आ सके तो उसका बड़प्पन बेकार है.
उदधि रहे मर्याद में बहे उलटो नव नीर. समुद्र जिसमें अथाह जल है वह तो गंभीर रहता है पर बरसात में इकठ्ठा होने वाला पानी उल्टा सीधा बहता है. अर्थ है कि जो पुराने खानदानी धनवान या विद्वान होते हैं वे तो गंभीर होते हैं पर नया धन या नई विद्या अर्जित करना वाला व्यक्ति बहुत दिखावा करता है.
उद्यम के सर लक्ष्मी, पंखा कीसी ब्यार. उद्यमी व्यक्ति के सर पर लक्ष्मी स्वयं पंखा ले कर हवा करती है. (अर्थात उस की दासी बन कर रहती है)
उद्यम से दलिद्दर घटे. कर्म करने से ही दरिद्रता घटती है.
उद्यम ही सफलता की कुंजी है. कोई नया काम आरम्भ करे या किसी का कोई चलता हुआ काम हो, दोनों ही अवस्थाओं में उद्यम करने से ही सफलता मिलती है. इंग्लिश में कहावत है – Every man is the architecht of his own fortune.
उधार का खाना, फ़ूस का तापना. जैसे आग लगाने के बाद फूस एक दम ख़तम हो जाता है वैसे ही उधार के पैसे से यदि खाओगे पियोगे तो वह एक दम ख़तम हो जाएगा. अर्थ है कि उधार लेना व्यापार के लिए तो ठीक है (जिससे कमा कर आप वापस कर सकते हैं), पर उधार के पैसे से गुलछर्रे नहीं उड़ाने चाहिए.
उधार का गड्ढा समन्दर से गहरा. एक बार उधार ले कर उससे उऋण होना बहुत कठिन है.
उधार का बाप तकादा. उधार लोगे तो तकादा झेलना ही पड़ेगा. तकादा – पैसा वापस माँगना.
उधार काढ़ व्यौहार चलावे, छप्पर डारे ताला, साले संग बहिनी को पठावे, तीनहुं का मुँह काला. उधार ले कर सामाजिक लेन देन करना, छप्पर पर ताला डालना और साले के संग अपनी बहन को कहीं भेजना, ये तीनों मूर्खतापूर्ण कार्य हैं.
उधार की कोदों खाएं, ठसक से मरी जाएं. कोदों एक घटिया अनाज माना जाता है वह भी उधार ले कर खा रही हैं और घमंड दिखा रही हैं.
उधार की जूती, खैरात का नाड़ा, पढ़ दे मुल्ला ब्याह उधारा. गाँठ में कुछ नहीं है पर मियाँ जी ब्याह करने चले हैं. सब काम उधार हो रहा है. पास में पैसा न होने पर भी महंगे शौक करने वालों के लिए.
उधार दिया और ग्राहक गंवाया (उधार दिया, गाहक खोया). जिस ग्राहक को उधार दिया वह फिर दूकान पर नहीं आता (लौटाना न पड़े इस चक्कर में).
उधार दीजे, दुश्मन कीजे. किसी को उधार देना गलत है क्योंकि जब आप अपना पैसा वापस मांगेंगे तो वह आपका दुश्मन हो जाएगा. (उधार देना, लड़ाई मोल लेना). इंग्लिश में कहावत है – Borrowing is sorrowing.
उधार प्रेम की कैंची है. ऊपर वाली कहावत के समान.
उधार बड़ी हत्या है. उधार लेना और देना दोनों ही परेशानी का कारण बनते हैं.
उधार बेचें न मांगने जाएं. न उधार माल बेचेंगे, न तकादे करते फिरेंगे.
उधार लाएं और ब्याज पर दें. एक के बाद दूसरी उस से भी बड़ी गलती करना.
उधार लेना और देना दोनों फसाद की जड़. अपनी झूठी शान दिखाने के लिए उधार ले कर खर्च करने वाले लोग बाद में परेशानी उठाते हैं और उधार देने वाले उस की उगाही को ले कर परेशानी उठाते हैं. इंग्लिश में कहावत है – Neither a borrower nor a lender be.
उधारिया पासंग नहीं देखता. जो व्यक्ति माल उधार ले रहा है वह तोलने में थोड़ी बहुत बेईमानी को नजर अंदाज़ कर देता है. पासंग – तराजू के पल्लों को बराबर करने के लिए लगाया गया वजन.
उधेड़ के रोटी न खाओ, नंगी होती है. रोटी को उधेड़ कर नहीं खाना चाहिए इस बात को ज्यादा ही जोर दे कर कह दिया गया है. एक अर्थ यह भी हो सकता है कि जो भी खाते हो उसे दाब ढक कर खाओ दिखा कर नहीं.
उन धारी है देह वृथा जग में, जिन नेह के पंथ में पाँव न दीन्हों. जिनके मन में प्रेम नहीं है उनका जन्म लेना बेकार है.
उपजति एक संग जल माही, जलज जोंक जिमि गुण विलगाही. कमल का फूल और जोंक दोनों जल में उत्पन्न होते हैं पर उनके गुणों में जमीन आसमान का फर्क है. इसी प्रकार एक घर या एक समाज में पैदा होने वाले दो लोगों में बहुत अंतर हो सकता है.
उपदेश देना सरल है उपाय बताना कठिन. दूसरों की कमियाँ बताना बड़ा आसान है पर कठिन परिस्थिति में स्वयं आगे बढ़ कर समाधान करना बहुत कठिन है.
उपला जले गोबर हँसे. कंडे को जलता देख कर गोबर हँसता है. यह भूल जाता है कि कल उसे भी उपला बन कर जलना है.
उपास न त्रास, फलार की आस. उपास – उपवास, फलार – व्रत में खाया जाने वाला फलाहार. व्रत नहीं रखा, कोई कष्ट नहीं उठाया और बढ़िया फलाहार की उम्मीद लगाए बैठे हैं.
उपास से मेहरी के जूठ भला. (भोजपुरी कहावत) उपास – उपवास. भूखा रहने से अपनी पत्नी का जूठा खाना अच्छा.
उम्मीद पर दुनिया कायम है. व्यक्ति हमेशा अच्छे की आशा करता है इसी आशावाद पर संसार चल रहा है.
उलझना आसान, सुलझना मुश्किल. समस्याएं पैदा करना आसान होता है पर उनका हल निकालना मुश्किल.
उलटा पुलटा भै संसारा, नाऊ के सर को मूंडे लुहारा. संसार में बहुत कुछ उल्टा पुल्टा भी होता है, जैसे नाई का सर अगर लुहार मूंडे तो.
उलटी गंगा पहाड़ चली. 1. उलटी रीत. 2.असंभव सी बात. (हास्यास्पद भी)
उलटी बाकी रीत है, उलटी बाकी चाल, जो नर भौंड़ी राह में, खोवे अपना माल. अपनी मूर्खता से अपना माल गंवाने वाले व्यक्ति के लिए कहावत है.
उलटे बाँस बरेली को. एक समय में बरेली बांसों की मंडी थी. (कुछ हद तक अभी भी है). उस समय यदि कोई बांस ले कर बरेली आता तो यह कहावत कही जाती. कहावत का अर्थ है कि जहाँ जिस चीज़ की बहुतायत है वहाँ उसे ले कर जाना बेतुकी बात है.
उलटो जो बादर चढ़े, विधवा खड़ी नहाए, घाघ कहैं सुन भड्डरी, वह बरसे वह जाए. घाघ कवि कहते हैं कि यदि बादल हवा के विरुद्ध बह कर आ रहा है तो जरूर बरसेगा और यदि विधवा स्त्री खड़ी हो कर नहा रही है तो वह जरूर किसी के साथ भाग जाएगी. (पुराने समय में विधवा विवाह को समाज स्वीकार नहीं करता था).
उलायता चोर सही सांझे ऐड़ा. जल्दबाजी में आदमी गलत काम कर बैठता है. चोर जल्दबाजी कर रहा है तो शाम को ही चोरी करने निकल पड़ा. उलायता – जल्दबाज.
उल्टा चोर कोतवाल को डांटे. कोई आदमी गलत काम कर रहा है. आप टोकते हैं या समझाते हैं तो वह उल्टा आप से लड़ने लगता है. ऐसे में यह कहावत कही जाती है.
उल्लू के बेटा भया, गदहा नाम धरा. (भोजपुरी कहावत) मूर्ख लोगों की सन्तान भी मूर्ख ही होती हैं.
उसकी किस्मत क्या जागे जो काम करे से भागे. जो काम से जी चुराए उसकी किस्मत नहीं जाग सकती.
उस कूकुर से बच कर रहे, जा को जगत कटखना कहे. बदनाम और झगड़ालू व्यक्ति से बच कर रहना चाहिए.
उस को सीख न दो कभी जो हो मूरख नीच, लोह मेख नाहीं धंसे कबहूँ पाथर बीच. जो मूर्ख या नीच व्यक्ति हो उसे शिक्षा देने का प्रयास मत करो. पत्थर में कभी लोहे की कील नहीं धंस सकती.
उस जातक से करो न यारी, जिस की माता हो कलहारी. जिस बच्चे की माँ झगड़ालू हो उस से दोस्ती मत करो.
उस नर को न सीख सुहावे, प्रीत फंद में जो फंस जावे. जो इश्क के फंदे में फंस गया उसे सीख अच्छी नहीं लगती.
उस्ताद, हज्जाम, नाई, मैं और मेरा भाई, घोड़ी और घोड़ी का बछेड़ा और मुझको तो आप जानते ही हैं. कहीं कोई चीज़ बंट रही थी. वहाँ एक ही आदमी (नाई) कई नाम बता बहुत सारी लेने की कोशिश कर रहा है.
ऊ
ऊँच अटारी मधुर बतास, कहें घाघ घर ही कैलास. ऊंचा मकान और ठंडी हवा का आनंद जिस को प्राप्त हो उस के लिए घर पर ही कैलाश पर्वत है.
ऊँच नीच में बोई क्यारी, जो उपजी सो भई हमारी. ऊबड़ खाबड़ क्यारी में कुछ बोया है तो जो कुछ भी उग आए वही नफ़ा है.
ऊँची दुकान, फीके पकवान. जहाँ कहीं तड़क भड़क व दिखावा तो बहुत हो पर माल घटिया मिल रहा हो वहाँ इस कहावत का प्रयोग करते हैं.
ऊँचे चढ़ कर देखा, तो घर घर बाही लेखा. हर घर में कुछ न कुछ खटपट व कलह होती है. (चाहे बाहर से न दिखती हो).
ऊँट अपनी पूँछ से मक्खी नहीं उड़ा सकता. बड़े से बड़े व्यक्ति को भी अपने छोटे छोटे कामों के लिए किसी की सहायता लेनी पडती है.
ऊँट का मुँह ऊँट ही चूमे. बड़े आदमियों से बड़े ही संबंध बना सकते हैं.
ऊँट का रोग रैबारी जाने. रैबारी – ऊँटों का विशेषज्ञ. जो जिस काम का विशेषज्ञ है वही उस काम को ठीक से कर सकता है.
ऊँट का होंठ कब गिरे और कब खाऊँ. ऊँट का होंठ देख कर लगता है कि जैसे गिरने वाला है. लोमड़ी बैठी सोच रही है कि कब होंठ गिरे और कब खाने को मिले. व्यर्थ की आशा करने वालों पर व्यंग्य.
ऊँट की चोरी झुके-झुके. (ऊँट की चोरी निहुरे निहुरे). कोई छोटी सी चीज़ चुरा कर तो आप झुक कर भाग सकते हैं पर ऊँट की चोरी झुके झुके नहीं कर सकते. कोई चुपचाप बहुत बड़ी चोरी करने का प्रयास करे तो.
ऊँट के गले में बिल्ली. 1. बहुत लम्बा दूल्हा और छोटी सी दुल्हन. बेमेल जोड़ी. 2. ऊंट और बिल्ली की एक कहानी भी है. एक आदमी का ऊंट खो गया. उसने ऐलान करवाया कि अगर ऊंट मिल गया तो उसे लाने वाले के हाथों दो टके में बेच देगा. जिस आदमी को ऊंट मिला वह इस उम्मीद से उस के पास आया कि दो टके में ऊंट खरीद लेगा. पर वह आदमी बहुत चालाक था. उसने ऊंट के गले में एक बिल्ली बांध दी और कहा कि ऊंट के साथ बिल्ली को भी लेना जरूरी है जिसकी कीमत सौ अशर्फियाँ है. इस तरह उस ने अपना ऊंट बचा लिया. किसी अच्छी चीज़ के साथ एक ख़राब चीज़ जबरदस्ती लेनी पड़ रही हो तो यह कहावत कही जाएगी.
ऊँट के ब्याह में गधा गवैया. दो मूर्खों का समागम.
ऊँट के मुँह में जीरा. बहुत अपर्याप्त सामग्री.
ऊँट को उठते ही सरपट नहीं दौड़ना चाहिए. ऊँट बेडौल होता है इसलिए उठते ही भागेगा तो गिर जाएगा. किसी काम के आरम्भ में बहुत तेजी नहीं दिखानी चाहिए.
ऊँट को किसने छप्पर छाए. घोड़े के लिए घुड़साल और गाय के लिए गौशाला बनाई जाती हैं पर ऊंट को खुले में ही रहना होता है. किस को क्या मिलेगा यह उस के भाग्य पर निर्भर होता है.
ऊँट को निगल लिया और दुम को हिचके (ऊँट निगल जाए, दुम पे हिचकियाँ ले). बहुत बड़ा घोटाला करने वाला यदि छोटे से गलत काम को मना करे तो.
ऊँट गए सींग मांगे, कानौ खो आए. ऊंट के कान बहुत छोटे होते हैं. कहा जाता है कि ऊंट भगवान से सींग मांगने गया था और कान भी गंवा दिए.
ऊँट गुड़ दिए भी बर्राए, नमक दिए भी बर्राए. जिसकी आदत बड़बड़ाने की होती है वह हर परिस्थिति में शिकायत ही करता रहता है.
ऊँट चढ़ के मांगे भीख. जिस की भीख मांगने की आदत हो वह ऊंट पर चढ़ कर भी भीख ही मांगेगा.
ऊँट तेरी गर्दन टेढ़ी, कि मेरा सीधा क्या है. कुटिल व्यक्ति सब ओर से कुटिलता से भरा हुआ ही होता है.
ऊँट दुल्हा गधा पुरोहित. दो एक से बढ़ कर एक मूर्ख लोग मिल जाएं तो.
ऊँट न कूदे, बोरे कूदें, बोरों से पहले उपले कूदें. जहाँ अफसर कुछ न बोले लेकिन उस के नीचे के कर्मचारी ज्यादा तेजी दिखाएँ.
ऊँट रे ऊँट तेरी कौन सी कल सीधी. ऊंट कभी इस करवट बैठता है तो कभी उस करवट. उस से पूछ रहे हैं कि तेरी कौन सी करवट तेरे लिए सीधी है. (जैसे इंसान के लिए दाहिनी करवट सीधी मानी जाती है). ऐसे व्यक्ति के लिए जिस की हरकतें विश्वास योग्य न हों.
ऊँट लँगड़ाये और गधा दागा जाये. दागना – लोहे की छड़ गरम कर के शरीर के किसी हिस्से से छुआना. ऐसा माना जाता है कि ऊँट लंगड़ा हो जाय तो गधे को दागने से ठीक हो जाता है. किसी को लाभ पहुँचाने के लिए दूसरे का नुकसान करना.
ऊँट लदने से गया तो क्या पादने से भी गया. जो आदमी किसी काम का नहीं रहता वह फ़ालतू बकवास तो कर सकता है.
ऊँट लदे गधा मरा जाए. किसी दूसरे के कष्ट से व्यर्थ में परेशान होना.
ऊँट लम्बा पर पूँछ छोटी. कोई भी व्यक्ति सब तरह से पूर्ण नहीं हो सकता.
ऊंघते को ठेलते का बहाना. कोई व्यक्ति ऊंघता ऊंघता गिरने को हुआ. तब तक किसी का हल्का सा धक्का लग गया. अब वह गिर गया तो दूसरे को दोष दे रहा है कि तूने मुझे गिरा दिया. अपनी गलती से काम बिगड़े पर दूसरे को दोष देना.
ऊंचे कुल क्या जनमिया जो करनी उच्च न होय, कनक कलश मद सों भरी साधुन निंदे सोय. यदि करनी अच्छी न हो तो ऊँचे कुल में जन्म लेने का क्या लाभ. यदि सोने का घड़ा शराब से भरा हो तो साधु उसकी निंदा करते हैं.
ऊंचे गढ़ों के ऊंचे ही कंगूरे. बड़े लोगों की बड़ी बातें.
ऊंट का पाद, न जमीन का न आसमान का. किसी ऐसे आदमी के लिए जिस की गिनती किसी भी जमात में न हो सके. असभ्य भाषा है पर कहावतों में चलती है.
ऊंट का सुहाली से क्या भला होगा. सुहाली – मैदा की पतली पापड़ी. सुहाली कितनी भी अच्छी क्यों न हो ऊंट के लिए बेकार है क्योंकि न तो वह उसका स्वाद जानता है और न ही उसका सुहाली से पेट भरेगा.
ऊंट की पकड़, कुत्ते की झपट, खुदा इनसे बचाए. ये दोनों ही बहुत खतरनाक होती है.
ऊंट की बरसात में कमबख्ती. कीचड़ में चलने में ऊंट को बहुत परेशानी होती है इसलिए.
ऊंट को दगते देख मेंढकी ने भी टांग फैला दी. कहावत का अर्थ है किसी छोटे आदमी द्वारा अपने से बहुत बड़े आदमी की बराबरी करने की कोशिश करना.
ऊंट को बबूल प्यारा. घटिया सोच वाले व्यक्ति को घटिया वस्तुएं ही प्रिय होती हैं.
ऊंट घी देने पर भी बलाबलाए और फिटकरी देने पर भी बलबलाए. जिन की असंतुष्ट रहने की आदत है वे कैसे भी संतुष्ट नहीं होते.
ऊंट चढ़े पे कमरिया अपने आप मटके. (बुन्देलखंडी कहावत)ऊंट चलता है तो उस पर बैठे सवार की कमर न चाहते हुए भी मटकने लगती है. उच्च पद पाने पर व्यक्ति अपने आप ही इतराने लगता है.
ऊंट जब भागे तब पच्छम को. नासमझ और जिद्दी आदमी के लिए.
ऊंट न खाए आक, बकरी न खाए ढाक. सामान्य लोक विश्वास है कि ऊंट सब तरह के पेड़ पौधे खा लेता है पर आक के पेड़ को नहीं खाता. इसी प्रकार बकरी ढाक के पत्ते नहीं खाती.
ऊंट पर से गिरे, भाड़ेती से रूठे. अपनी असावधानी से ऊंट पर से गिर गए और भाड़े पर ऊंट देने वाले पर नाराज हो रहे हैं. अपनी कमी के लिए दूसरों को दोष देना.
ऊंट बलबलाता ही लदता है. जो लोग कोई काम करने में लगातार अनिच्छा और नाखुशी जाहिर करते रहते हैं उनके लिए.
ऊंट बहे, गधा थाह ले. नदी इतनी गहरी है कि ऊँट बह गया पर गधा यह जानने की कोशिश कर रहा है की पानी कितना गहरा है. जहाँ बड़े बड़े बुद्धिमान किसी समस्या का हल न खोज पा रहे हों वहाँ कोई मूर्ख व्यक्ति अपनी अक्ल लगाए तो.
ऊंट बुड्ढा हुआ पर मूतना न आया. उम्र बढ़ने के साथ भी यदि किसी व्यक्ति को काम करने का ढंग न आए तो यह कहावत कहते हैं.
ऊंट मरा, कपड़े के सिर. व्यापार में जो भी नुकसान होता है, उसे दाम बढ़ा कर ही वसूला जाता है. यदि कपडे के व्यापारी का ऊंट कपड़ा लाते समय रास्ते में मर गया तो उस की कीमत कपडे का दाम बढ़ा कर ही वसूल की जाएगी.
ऊजड़ खेड़ा, नाम निवेड़ा. बिलकुल निरक्षर व्यक्ति का नाम विद्याधर.
ऊजड़ हो घर सास का, बैर करे हर बार, पीहर घर सूयस बसे, जब लग है संसार. सास वैर करती है इसलिए उसका घर उजड़ जाए. पीहर (मायके) से इतना प्रेम है कि उसका सुयश जब तक संसार रहे तब तक रहने की कामना कर रही हैं. (इन्हें यह नहीं मालूम है कि सास का घर उजड़ेगा तो अपना भी तो नुकसान होगा).
ऊत के निन्नानवे, बारह पंजे साठ. मूर्ख आदमी के लिए. (उससे पूछा निन्यानवे कितने होते हैं – बोला बारह पंजे).
ऊत गाँव में कुम्हार ही महतो. सामान्यत: गाँव में कुम्हार की विशेष इज्जत नहीँ होती लेकिन मूरखों के गाँव में कुम्हार को भी बहुत महत्व दिया जा सकता है.
ऊत घोड़ी के घोंचू बछेड़े. माँ बाप मूर्ख हों तो सन्तान भी मूर्ख होती है.
ऊधो की पगड़ी माधो के सर. किसी की चीज़ किसी को देना या किसी का दोष किसी और के मत्थे मढ़ देना.
ऊधौ का लेना न माधौ का देना. झंझटों से मुक्त होना.
ऊन छीलते तेरह जगहे कटी बिचारी भेड़. गरीब आदमी को लोग लूटते भी हैं और चोट भी पहुँचाते हैं.
ऊपर भरे नीचे झरे, उसको गोरखनाथ क्या करे. (राजस्थानी कहावत) खाने पीने वाला परन्तु संयमहीन. पहले के लोग यह मानते थे कि चालीस सेर खाने से एक सेर खून बनता है और एक सेर खाने से एक बूँद वीर्य. जो संयम नहीं रख सकता वह कितना भी खा ले स्वस्थ नहीं हो सकता.
ऊपर वाले की लाठी में आवाज नहीं होती. ईश्वर जब पापों की सजा देता है तो व्यक्ति कुछ समझ ही नहीं पाता कि यह क्या हुआ कैसे हुआ.
ऊपर से बाबाजी दीखे नीचे खोज गधे के. खोज – पंजे के निशान. एक मठ के बाबाजी दिन में तो लोगों को उपदेश दिया करते थे और रात में खेतों में से ककड़ियां चुरा कर खाते थे. किसी को शक न हो इसके लिए उन्होंने विशेष प्रकार के जूते बनवाए थे जिनसे मिट्टी में गधे के पैर के निशान (खोज) बन जाते थे. एक दिन एक किसान रात में अपने खेत में छिप कर बैठ गया और उस ने बाबा जी को पकड़ लिया. जब कोई खुराफाती आदमी धर्मात्मा बनने का ढोंग करे तब यह कहावत कही जाती है.
ऊसर का खेत, जैसे कपटी का हेत. ऊसर खेत में फसल नहीं हो सकती और कपटी से मित्रता कभी सफल नहीं हो सकती. हेत – प्रेम.
ऊसर खेत में केसर. किसी असंभव बात के लिए यह कहावत कही जा सकती है.
ऊसर बरसे तृन न जमे. ऊसर खेत में वारिश हो तो भी कुछ पैदा नहीं होता. मूर्ख व्यक्ति को ज्ञान देने से कोई लाभ नहीं होता.
ए, ऐ
ए कूकुर तुम दुर्बल काही, दस घर की आवाजाही. कुत्ते से कोई पूछता है कि तुम दुबले क्यों हो, वह कहता है, क्या करूँ, पेट भरने के लिए दस घरों में आनाजाना पड़ता है.
ए माँ मक्खी, के बेटा उड़ा दे, माँ माँ दो हैं. बहुत ही आलसी व्यक्ति पर व्यंग्य.
एक अंडा, वह भी गंदा. कोई एक चीज़ हो वह भी खराब हो.
एक अकेला, दो ग्यारह (एक अकेला दो का मेला). यदि दो लोग मिल कर काम करें तो उनकी शक्ति कई गुना बढ़ जाती है.
एक अनार सौ बीमार. अधिकतर लोग भ्रमवश यह समझते हैं कि अनार बीमारियों को दूर करता है. कहावत का अर्थ है कि बीमारियों को दूर करने वाला अनार तो एक ही है पर बीमार बहुत सारे हैं, कैसे सब का इलाज हो? जहाँ आवश्यकता से बहुत कम साधन उपलब्ध हों वहाँ यह कहावत कही जाती है.
एक अहारी सदा व्रती, एक नारी सदा जती. दिन में एक बार भोजन करने वाला व्रती माना जाता है और एक ही स्त्री रखने वाला ब्रह्मचारी माना जाता है.
एक अहीर की एक ही गाय, ना लागे तो छूछी जाय. किसी अहीर के पास एक ही गाय है. वह किसी दिन दूध न दे तो बहुत परेशानी की बात है. जैसे घर में कोई एक ही कमाने वाला हो, जिस दिन काम नहीं कर पाया उस दिन फाका करना पड़ेगा.
एक आँख फूटे तो दूसरी पर हाथ रखते हैं. कोई एक बड़ा नुकसान होने पर व्यक्ति दूसरे नुकसान से बचने का उपाय तुरंत ही करता है.
एक आँख से रोवे, एक आँख से हँसे. झूठ बोलने वाले बहरूपिये व्यक्ति के लिए.
एक आंसू, लाख फ़साने. लाख बार अपना दुखड़ा सुनाने के मुकाबले एक आंसू अधिक बात कह देता है.
एक इतवार के व्रत से जनम का कोढ़ नहीं जाता. कोई एक व्रत या पूजा पाठ कर लेने से सारे संकट नहीं मिट जाते. (कुछ लोग मानते हैं कि इतवार के व्रत रखने से कुष्ठ रोग ठीक हो जाता है.
एक इल्ली सौ मन अनाज बिगाड़े. एक लार्वा बहुत सारे अनाज को बर्बाद कर सकता है, क्योंकि वह तेजी से अनाज को खाता है और गंदगी करता है. इसी प्रकार किसी भी संगठन या समाज को एक ही गलत आदमी बदनाम कर सकता है.
एक ओर चार वेद, एक ओर चतुराई. पोथियों का ज्ञान चतुराई की बराबरी नहीं कर सकता.
एक और एक ग्यारह होते हैं. इस कहावत का अर्थ है कि यदि दो लोग मिल कर काम करें तो उनकी शक्ति कई गुना बढ़ जाती है.
एक और एक तो दो होवें, पर एका हो तो ग्यारह हों. एकता में बहुत शक्ति है.
एक करे सब लाजैं. घर या समाज में एक आदमी की गलती से सब को लज्जित होना पड़ता है.
एक कहो न दस सुनो. यदि हम किसी को भला-बुरा न कहेंगे तो दूसरे भी हमें कुछ न कहेंगे.
एक की दारू दो. अकेलेपन की एक ही दवा है, एक से दो हो जाओ. दारु – दवा.
एक की सैर, दो का तमाशा, तीन का पिटना, चार का स्यापा. एक आदमी की मौज होती है, दो हो जाएं तो काम कुछ नहीं केवल तमाशा होगा, तीन में मार पीट झगड़ा और कहीं चार मिल गए तब तो रोने पीटने ही पड़ जाएंगे. यह कहावत उन कहावतों की एकदम उलट है जिनमें एक और एक ग्यारह और जमात में करामात जैसी बातें बताई गई हैं. इस बारे में एक कहानी कही जाती है. एक व्यक्ति के चार बेटे थे. उनको एकता का महत्त्व समझाने के लिए उसने उन चारों को एक एक लकड़ी दी और उसे तोड़ने कहा. सबने फ़ौरन लकड़ी तोड़ दी. फिर उसने चार लकड़ियाँ बाँध कर गट्ठर बना दिया और तब तोड़ने को कहा. तब उसे कोई नहीं तोड़ पाया. उसने लड़कों को समझाया कि मिल कर रहोगे तो सब का फायदा होगा. उसकी इस बात का जबाब देने के लिए छोटा लड़का पाँच गमले ले कर आया. एक गमले में चार छोटे छोटे सूखे सूखे पौधे लगे थे, और चार गमलों में एक एक भरा पूरा पौधा लगा था. उसने कहा – देखो बापू! अलग अलग रहने में ही तरक्की है.
एक की सैर, दो का तमाशा, तीन का मेला, चार का झमेला. एक काम को अधिक लोग करें तो काम नहीं होता.
एक कील ठोंके दूसरा टोपी टाँगे. पहले वाला आदमी कोई काम करता है और बाद वाले उसका फायदा उठाते हैं.
एक कुंजड़न नहीं आएगी तो क्या हाट नहीं भरेगा. कुंजड़न – सब्जी बेचने वाली. जो आदमी यह समझता हूं कि उसके न आने से सब काम रुक जाएंगे उसको सीख देने के लिए.
एक कुत्ते को रोता देख सब कुत्ते रोवें (कुत्ते को सुन कर कुत्ता रोवे). बिना सोचे समझे एक दूसरे की नकल करने वालों पर व्यंग्य.
एक के दूने से सौ के सवाए भले. अधिक लाभ के चक्कर में पड़ के धन गँवाने से अच्छा है कम लाभ वाला सुरक्षित निवेश.
एक खजेली कुतिया सौ कुत्तों को खजेला करे. एक कुतिया को खुजली हो तो उस से सौ कुत्तों को खुजली हो सकती है. समाज में एक गलत व्यक्ति अनेक लोगों को गलत रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित कर सकता है.
एक खम्बे से दो हाथी नहीं बंध सकते. कोई दो शक्तिशाली लोग एक व्यक्ति के अधीन नहीं रह सकते.
एक खसम नहिं होवे जिसके सहस खसम हो जाएं. जिस स्त्री का पति नहीं रहता उस पर जोर जमाने वाले हजार लोग हो जाते हैं. सहस – सहस्त्र, हजार.
एक खाए मलीदा, एक खाए भुस. अपना अपना भाग्य, एक व्यक्ति हलवा खा रहा है और एक भूसा खाने को बाध्य है.
एक गाँव में नकटा बसै, छिन में रोवै छिन में हंसै. नकटे व्यक्ति की मजाक उड़ाने के लिए बच्चों की कहावत.
एक घड़ी की नाक कटाई, सारे दिन की बादशाही (एक घड़ी की बेहयाई, सारे दिन का आराम). किसी काम के लिए मना कर देने में कुछ देर बेशर्मी दिखानी पड़ती है पर फिर बहुत आराम रहता है.
एक घर तो डायन भी छोड़ देती है. डायन के बारे में कहा जाता है कि वह बच्चों को खा जाती है, लेकिन एक घर वह भी छोड़ देती है. जो घूस खोर बिना घूस लिए कोई काम करने को राजी न हों उन्हें उलाहना देने के लिए यह कहावत कही जा सकती है.
एक घर में सौ मर्द खुशी से रह सकते हैं, दो औरतें चैन से नहीं रह सकतीं. स्त्रियों में आपसी डाह की प्रवृत्ति को दर्शाने के लिए.
एक चन्द्रमा नौ लख तारा, एक सखी और नग्गर सारा. असंख्य तारे होते हुए भी एक चन्द्रमा ही प्रकाश देता है. नगर में असंख्य लोग होते हुए भी एक सखी (दानी व्यक्ति) को ही कीर्ति मिलती है.
एक चादर जने पचास, सभी करें ओढ़न की आस. उपयोग में आने वाली वस्तुएँ कम और जरूरतमंद बहुत अधिक.
एक चुप सौ को हरावे. दस लोग आप को बुरा कह रहे हों, यदि आप चुप रहते हैं तो वे अंततः चुप हो जाते हैं.
एक चुप हजार सुख. कोई कितना भी क्रोध दिलाने की कोशिश करे यदि आप उस समय चुप रहते हैं तो बहुत सुखी रहते हैं. इंग्लिश में कहावत है – Silence is golden.
एक जंगल में दो शेर. दो दबंग लोग एक स्थान पर एक साथ नहीं रह सकते.
एक जना झख मार मरे, पांच का काम पांचै करें. जो काम पांच आदमियों के करने का है उसे एक आदमी कितना भी प्रयास करें नहीं कर सकता.
एक जना नाखून काटे, चार जने नेहन्ना लाएँ. नेहन्ना या नहरना एक लोहे का छोटा सा औजार होता था जिस से नाई लोग नाखून काटते थे. कहावत में कहा गया है कि छोटे से काम में फ़ालतू में बहुत से लोग लग रहे हैं. (देखिये परिशिष्ट)
एक जो होए सो बुद्धि सिखाइये, कूपहि में यहाँ भांग पड़ी है. जहाँ एक व्यक्ति मूर्खतापूर्ण हरकतें कर रहा हो वहाँ उसे बुद्धि सिखाने का कार्य किया जा सकता है, यहाँ तो ऐसा लगता है कि कुएं में ही भांग पड़ी है (सब के सब दीवाने हैं).
एक जोरू का जोरू, एक जोरू का भतार, एक जोरू का सीसफूल, एक टांग का बार. अलग अलग तरह के पति गिनाए गए हैं. एक पत्नी का गुलाम है एक स्वामी, एक पत्नी के लिए शीशफूल (माथे का गहना) के समान प्रिय और महत्वपूर्ण है और एक टांग के बाल की तरह तुच्छ और अवांछित.
एक जोरू सारे कुनबे को बस है. एक स्त्री पूरे परिवार को संभालती है.
एक झूठ के सबूत में सत्तर झूठ बोलने पड़ते हैं. झूठी बात को सिद्ध करने के लिए बहुत से झूठ बोलने पड़ते हैं. इंग्लिश में कहावत है – One lie makes many.
एक झूठ छिपाने के लिए दस झूठ बोलने पढ़ते हैं. एक झूठ को छिपाने के लिए दूसरा झूठ, फिर उसे छिपाने के लिए एक और झूठ, इस प्रकार झूठ पर झूठ बोलने पड़ते हैं.
एक टका दहेज, नौ टका दक्षिणा. विवाह में जितना दहेज दिया गया उससे कई गुना अधिक पंडित जी दक्षिणा मांग रहे हैं.
एक कौड़ी मेरी गांठी, चूड़ा बनवाऊं या माठी. मेरे पास बहुत थोड़े से पैसे हैं, उसमें क्या क्या अरमान पूरे कर लूँ. मेरी गांठी – मेरी गाँठ में (मेरे पास), माठी – बांह में पहनने वाला आभूषण.
एक टका मेरी गांठी, मगद खाऊं के माठी. मगद – शादी ब्याह में बनने वाले बेसन के बड़े लड्डू, माठी – बड़ी मठरी. जेब में थोड़े से पैसे हैं उसमें क्या क्या शौक पूरे कर लें.
एक ठौर बोली, एक ठौर गाली. वही बात कहीं पर सामान्य बोलचाल की भाषा मानी जाती है और कहीं पर गाली.
एक तरफ चार वेद एक तरफ चातुरी, एक तरफ सब मंतर एक तरफ गात्तरी. गात्तरी – गायत्री मंत्र. अर्थ स्पष्ट है.
एक तवे की रोटी क्या पतली क्या मोटी. (एक तवे की रोटी, क्या मोटी क्या छोटी). एक कुटुम्ब के मनुष्यों में बहुत कम अन्तर होता है.
एक तिनके से हवा का रुख मालूम हो जाता है. हवा किधर को चल रही है, यह मालूम करना है तो घास के तिनके को देखिये. वह उधर को ही झुका होगा.
एक तीर से दो शिकार. जब कोई एक ही काम करने से दो प्रयोजन सिद्ध हो जाएँ तो. इंग्लिश में कहावत है – To kill two birds with one stone.
एक तो अंधे को खिलाओ, फिर घर छोड़ के आओ. असहाय व्यक्ति की मदद करने की कोशिश करो तो उस में भी बड़ी मुसीबतें हैं.
एक तो कानी बेटी की माई, दूजे पूछने वालों ने जान खाई. बेटी कानी है इसी का माँ को बहुत कलेस है ऊपर से पूछने वाले और जान खाते रहते हैं.
एक तो गड़ेरन, दूसरे लहसुन खाए. एक तो गड़ेरन वैसे ही गन्दी रहती है ऊपर से लहसुन खाती है जिससे और बदबू आती है
एक तो डाकिन ऊपर से जरख पे चढ़ी. जरख – लकड़बग्घा. लोक विश्वास है कि डाकिन की सवारी लकड़बग्घा है इसीलिए उसे जरखवाहिनी भी कहते हैं. डाकिन अकेली ही बच्चों को खा जाती है ऊपर से लकड़बग्घे पर सवार हो तो क्या कहने.
एक तो डायन दूजे ओझा से ब्याह. एक तो डायन वैसे ही खतरनाक होती है ऊपर से ओझा से शादी करके और खतरनाक हो गई है.
एक तो डायन, दूसरे हाथ लुआठ (जलती हुई लकड़ी). भयंकर चीज़ का और भयंकर हो जाना. (इक नागन अरु पंख लगाईं).
एक तो था ही दीवाना, उस पर आई बहार. कोई आदमी वैसे ही पगलाया हुआ हो और ऊपर से बहार का मौसम आ जाए तो उसका बौरानापन और बढ़ जाता है.
एक तो भालू, दूसरे कांधे कुदाल. भयंकर चीज़ का और भयंकर हो जाना.
एक तो मियाँ बावले, दूजे खाई भाँग, तले हुआ सर, ऊपर हुई टांग. एक तो मियाँ वैसे ही पगले थे ऊपर से भांग खा ली तो बुरा हाल हो गया. समझदार व्यक्ति के मुकाबले यदि कोई कम अक्ल आदमी नशा कर ले तो बहुत अधिक नुकसान है.
एक तो शेर, ऊपर से बख्तर पहने. शेर वैसे ही इतना खतरनाक और अजेय ऊपर से कवच और पहन ले.
एक थैली के चट्टे बट्टे. एक ही परिवार के लोग एक से होते हैं.
एक दम में हजार दम. एक आदमी हजार लोगों का पेट पाल सकता है.
एक दम, हजार उम्मीद. जब तक सांस है तब तक हजार उम्मीदें रहती हैं.
एक दर बंद, हजार दर खुले. यदि किसी को सहायता देने का एक रास्ता बंद कर दिया जाए तो उसके लिए अन्य बहुत सी संभावनाओं के द्वार खुल जाते हैं.
एक दिन का दिखावा, हजार दिन का सियापा (एक दिन की शोभा, सहस दिन का रोबा). विवाह आदि बड़े आयोजन में लोग झूठी शान दिखाने के लिए क़र्ज़ ले कर अनाप शनाप खर्च करते हैं और फिर उन्हें बहुत समय तक उस की भरपाई करनी पड़ती है.
एक दिन पाहुना, दूजे दिन अनखावना, तीजे दिन अपने घर भला. अनखावना – खीझ पैदा करने वाला. कोई अतिथि पहले दिन प्रिय लगता है और दूसरे दिन उससे खीझ होने लगती है. तीसरे दिन उसे अपने घर चला ही जाना चाहिए.
एक दिन मेहमान, दो दिन मेहमान, तीजे दिन बलाए जान. घर आया हुआ मेहमान एक दिन अच्छा लगता है, दूसरे दिन भी झेल लिया जाता है, तीसरे दिन तो वह मुसीबत लगने लगता है. इंग्लिश में कहावत है – Two days guest, third day a pest.
एक दीप से जले दूसरा. (चिराग से चिराग जलता है). 1.ज्ञान के प्रकाश से प्रकाशित होने वाला एक व्यक्ति दूसरे को प्रकाशित करता है. 2.एक मनुष्य से दूसरा मनुष्य जन्म लेता है.
एक देखा राजा ढोर, मारे शाह और छोड़े चोर. भ्रष्ट शासक पर व्यंग्य.
एक देश का बगला, दूजे में बकलोल. एक ही व्यक्ति को कहीं पर बुद्धिमान समझा जाता है और कहीं पर मूर्ख.
एक न शुद दो शुद. जहां एक मुसीबत गले पड़ी है वहाँ एक और सही.
एक नकटा सौ को नकटा करे. यह कहावत एक कहानी पर आधारित है. एक व्यक्ति की नाक धोखे से कट गई. उसे बड़ी चिंता हुई कैसे सबको मुंह दिखाएगा. फिर उसने सोचा कि यदि सब नकटे हो जाएं तो उसे कोई नहीं चिढ़ाएगा. उसने सबसे कहना शुरू किया कि नाक कटने के बाद उसे स्वर्ग दिखाई दे रहा है. बहुत से लोगों ने स्वर्ग देखने के लालच में नाक कटवा ली. अब नकटे ने उन सब से कहा कि अगर तुम्हें बेइज्जती से बचना है तो सब से कहो कि तुम्हें भी स्वर्ग दिख रहा है जिससे सब लोग अपनी नाक कटा लें.
एक नजीर सौ नसीहत. सौ उपदेश देने के मुकाबले एक उदाहरण पेश कर के दिखाना अधिक कारगर होता है. इंग्लिश में कहावत है – Example is better than precept.
एक नथ और दो बहुएँ, बात कैसे पटेगी. चीज़ एक हो और दावेदार दो हों तो बहुत मुश्किल आती है.
एक नन्नो सौ लफड़ा टाले. किसी काम के लिए एक बार न कह देने से बहुत से झंझटों से बचा जा सकता है. नन्नो – ‘न’
एक नयन अमृत झरे, एक नयन में बिष भरे. मन में कुछ ऊपर से कुछ. लाड़ का दिखावा पर मन में जहर.
एक नाक दो छींक, काम बनेगा ठीक. किसी काम से पहले कोई छींक दे तो यह अपशकुन होता है पर यदि कोई व्यक्ति दो बार छींके तो वह शुभ शकुन माना जाता है.
एक नाहीं, सत्तर बला टाले (एक नाहीं, सौ दुःख हरे). किसी काम को मना कर देने से बहुत सी परेशानियाँ कम हो जाती हैं. इस कहावत में उन लोगों को नसीहत दी गई है जो किसी काम को मना न कर पाने के कारण मुसीबत में पड़ जाते हैं.
एक नींबू मनों दूध फाड़ देता है. 1. एक छोटी सी युक्ति बहुत बड़े बड़े काम कर सकती है. 2. एक कुटिल आदमी पूरे समाज को दो फाड़ कर सकता है.
एक नीम, सौ कोढ़ी. ऐसा मानते हैं कि नीम की पत्तियों को उबाल कर उसका पानी लगाने से कुष्ठ रोग में लाभ होता है. कहावत में कहा गया है कि नीम एक है और कोढ़ी बहुत सारे हैं. (एक अनार सौ बीमार).
एक नूर आदमी, हजार नूर कपड़ा. व्यक्ति की सुन्दरता में कपड़ों का बहुत अधिक महत्त्व है. इंग्लिश में कहावत है – Clothes make a man.
एक ने कही दूजे ने जानी, नानक कहें दोनों ज्ञानी. वैसे तो शाब्दिक अर्थ स्पष्ट है लेकिन इस बात को मजाक के रूप में प्रयोग करते हैं जैसे कोई मूर्ख व्यक्ति किसी दूसरे कम बुद्धि वाले व्यक्ति को कोई ऐसी बात बता रहा हो जिसे वह बड़े ज्ञान की बात समझता हो तो मजाक में यह कहावत कही जाती है.
एक पंथ दो काज. एक ही रास्ते पर जाने से दो काम हो जाएँ तो. एक काम से दो लाभ होना.
एक पग उठावे और दूसरे की आस नहीं. जीवन इतना क्षण भंगुर है कि एक पग रखने के बाद दूसरे का भी भरोसा नहीं है.
एक पजामा दो भाई, फेरा फेरी कचहरी जाई. अत्यधिक निर्धनता की स्थिति.
एक पड़े लोटते हैं, दूसरे चोखी मांगते हैं. दो शराबियों में से एक जमीन पर लोट रहा है, दूसरा और दारु मांग रहा है. दो नालायक लोग एक से बढ़ कर एक हों तो.
एक पहिए से गाड़ी नहीं चलती. घर गृहस्थी एक व्यक्ति से नहीं चल सकती.
एक पाख दो गहना, राजा मरे कि सेना. एक पाख (कृष्ण पक्ष या शुक्ल पक्ष) में दो ग्रहण पड़ें तो बहुत अशुभ होते हैं.
एक पापी सारी नाव डुबोए (एक के पाप से नाव डूबे). ऐसा मानते हैं कि नाव में कोई पापी बैठा हो तो उस के पाप के बोझ से नाव डूब जाती है. किसी एक व्यक्ति के कर्मों का फल बहुत से लोगों को भुगतना पड़े तो.
एक पूत को पूत और एक आँख को आँख नहीं कहा जाता. एक पुत्र होना और एक ही आँख पर्याप्त नहीं होते.
एक पूत मत जनियो माय, घर रहे या बाहर जाय. पुत्र एक से अधिक होना चाहिए. यदि एक पुत्र को काम के लिए परदेस जाना पड़े तो दूसरा तो साथ में रहेगा.
एक पूत, ढाई हाथ कलेजा. एक पुत्र होने से ही व्यक्ति की हिम्मत बहुत बढ़ जाती है.
एक पेड़ हर्रे, सब गाँव खांसी. ऐसा मानते हैं कि हरड़ (हर्र) खाने से खांसी कम हो जाती है. समस्या यह है कि हर्र का एक ही पेड़ है और सारे गाँव को खांसी है. आवश्यकता अधिक और साधन कम.
एक पैसे की खोज में चवन्नी का तेल जले. छोटे से लाभ के लिए उससे कई गुना खर्च.
एक प्राण दो पिंजर. एक दूसरे से अत्यधिक प्रेम करने वालों के लिए.
एक फूल खिलने से बहार नहीं आती. किसी एक घर में ख़ुशी हो इस का अर्थ यह नहीं होता कि समाज में सुख शान्ति है.
एक फूल से माला नहीं गूँथी जावे. 1.समाज के महत्वपूर्ण कार्य अकेला व्यक्ति नहीं कर सकता. 2 किसी आयोजन में अकेले आदमी से शोभा नहीं होती है.
एक फूहड़ दूजी के घर गई, जा कुठला सी ठाड़ी भई. कुठला – अनाज रखने का मिटटी का बड़ा सा बर्तन. फूहड़ स्त्रियों पर कटाक्ष किया गया है कि एक फूहड़ स्त्री दूसरी फूहड़ स्त्री के घर गई. न कोई आचार व्यवहार न कोई काम की बात बस फूहड़ की तरह खड़ी हो गई.
एक बंदरिया के रूठे क्या अयोध्या खाली होवे. कुछ लोग अपने को बहुत महत्वपूर्ण समझते हैं और सोचते हैं कि उन के चले जाने से सारे काम रुक जाएंगे, ऐसे लोगों को उनकी हैसियत बताने के लिए यह कहावत कही जाती है.
एक बनिये से बाजार नहीं बसता. समाज की अर्थ व्यवस्था एक व्यक्ति से नहीं चल सकती.
एक बांबी में दो सांप. दो दबंग लोग एक स्थान पर नहीं रह सकते.
एक बार खाय योगी, दो बार खाय भोगी, तीन बार खाय रोगी. पहले के लोगों का विश्वास था कि खाना जितनी कम बार खाया जाए उतना ही अच्छा है. सामान्य लोग दो बार खाना खाते थे, तीन बार खाना केवल राजा महाराजा ही खाते थे.
एक बार खावे नेमी धेमी, दो बार खावे बड़ा (व्यस्क), तीन बार खावें बालक बूलक, चार बार खावे गधा. नियम पालन करने वाले योगी दिन में एक बार भोजन करते हैं, सामान्य वयस्क लोग दो बार और बालक तीन बार. इस से अधिक बार तो केवल गधे ही खाते हैं.
एक बार जाय योगी, दो बार जाय भोगी, तीन बार जाय रोगी. खाने के अलावा शौच जाने में भी यही सिद्धांत लागू होता है.
एक बार ठगाए, सहस बुद्धि आए. धोखा खा कर ही व्यक्ति बुद्धिमान बनता है.
एक बार भूले सो भूला कहाए, बार बार भूले सो मूरख कहाए. भूल चूक सभी से हो सकती है लेकिन एक बार भूलकर जो उससे शिक्षा ले वह समझदार कहलाएगा और जो उसी गलती को बार बार करे वह मूर्ख कहलाएगा.
एक बिहारी सौ पर भारी. बिहार के लोगों ने अपने खुद की प्रशंसा की है.
एक बुरे से बुराई नहीं होती. आम तौर पर अकेला आदमी दुष्टता पूर्ण कार्य नहीं करता, बहुत से गलत लोग मिल कर गलत काम करते हैं.
एक बुलावे तेरह धावे. ब्राह्मणों के लिए कहा गया है, एक बुलाओ तो तेरह आते हैं.
एक बेटी लाइ, दूजी मिठाइ, तीसरी होय तो तीनों बलाइ. एक या दो बेटियां प्रिय लगती हैं लेकिन अगर तीन हो जाएं तो तीनों मुसीबत लगने लगती हैं.
एक बैल इक्यावन खूँटा. जब एक व्यक्ति से कई स्थानों पर काम करने को बोला जाए.
एक भेड़ कुएं में पड़े तो सौ जा पड़ें. जो लोग बिना अपनी बुद्धि का प्रयोग करे किसी का अंधानुसरण करते हैं उनके लिए (जैसे आजकल के कलियुगी बाबाओं के भक्त).
एक मखौल, सौ गाली. किसी को सौ गाली देने से अधिक बुरा है उसका मजाक उड़ाना.
एक मछली सारे तालाब को गंदा करती है. एक गलत व्यक्ति से सारा समाज बदनाम होता है. एक गलत व्यक्ति से बहुत से लोग गलत बातें सीखते हैं.
एक मरता सौ पर भारी. जो अपनी जान की परवाह किए बगैर लड़ता है वह अकेला ही सौ पर भारी होता है.
एक माला के मनके. सारे लोग एक से हों तो.
एक मास ऋतु आगे धावे. ऋतु बदलने से एक महीने पहले ही मौसम में उसके अनुरूप परिवर्तन दिखाई देने लगता है.
एक मुँह दो बात. अपनी बात पर स्थिर न रहना.
एक मुर्गी नौ जगह हलाल नहीं होती. एक कर्मचारी एक साथ कई जगह काम नहीं कर सकता. इसको इस तरह भी प्रयोग कर सकते हैं कि किसी एक आदमी से दफ्तर के हर कर्मचारी को रिश्वत नहीं मांगनी चाहिए.
एक मौनी सौ लबारों को हराए. लबार – अपनी झूठी तारीफ़ करने वाला. एक चुप रहने वाला सौ लबारों पर भारी पड़ता है.
एक म्यान में दो तलवारें नहीं समा सकतीं (एक म्यान में दो खड्ग, दीठा सुना न कान). एक घर में या एक संगठन में दो जबर लोग एक साथ नहीं रह सकते.
एक राम इक रावन्ना, एक छत्री इक बामन्ना, बा ने बा की त्रिया हरी, बा ने बा की लंक जरी, बात को बन गयो बातन्ना, तुलसी लिख गए पोथन्ना. रामायण का उदाहरण दे कर मजेदार ढंग से कहा गया है कि कैसे बात का बतंगड़ बन जाता है. एक राम थे और एक रावण, एक क्षत्रिय थे और एक ब्राह्मण. एक ने दूसरे की स्त्री का अपहरण किया तो दूसरे ने उसकी लंका जला दी. इतनी सी बात का बतंगड़ बना कर तुलसीदास पोथी लिख गये. कहावतों की बात का किसी को बुरा नहीं मानना चाहिए.
एक रोता सौ को रुलाए. एक व्यक्ति के दुःख को देख कर सौ व्यक्ति दुखी होते हैं.
एक लख पूत सवा लख नाती, ता रावण घर दिया न बाती. किसी अत्यंत ऐश्वर्यशाली किन्तु अहंकारी व्यक्ति के पूर्ण विनाश हो जाने पर इस लोकोक्ति का प्रयोग किया जाता है.
एक लिखा और सौ वाचा. सौ बार कही हुई बात का इतना मूल्य नहीं है जितना एक लिखी हुई बात का.
एक लोटा सात भाई, बेरा बेरी पैखाना जाई. अत्यंत निर्धनता की स्थिति. अत्यधिक कंजूस लो का मजाक उड़ाने के लिए भी इस प्रकार की कहावतकही जाती है.
एक शेर शिकार करे, सौ लोमड़ियाँ पेट भरें (एक शेर शिकार करे, बहुतों के पेट भरें). एक शक्तिशाली व्यक्ति बहुत से लोगों को आश्रय और जीविका दे सकता है.
एक सवार दो घोड़ों पर सवारी नहीं कर सकता. एक व्यक्ति दो विरोधाभासी संस्थाओं का सदस्य नहीं बन सकता.
एक सियार हुआँ हुआँ, सबहिं सियार हुआँ हुआँ. जंगल में जब एक सियार हुआ हुआ बोलता है तो सभी सियार बोलने लगते हैं. यदि किसी एक मूर्ख व्यक्ति की बात का समर्थन बहुत से मूर्ख लोग करें तो व्यंग में यह कहावत बोली जाती है. आजकल संसद की कार्यवाही के दौरान ऐसे दृश्य देखने को मिलते हैं.
एक से दो भले. कहीं जाना हो या कोई काम करना हो तो एक आदमी के मुकाबले दो अच्छे रहते हैं.
एक से भले दो, दो से भले चार. जितने अधिक लोग उतना अधिक आनंद आएगा और काम अच्छा होगा. इंग्लिश में कहावत है – The more, the merrier.
एक सेर की मुंडी हिले, एक तोले की जबान न हिले. जो लोग मुँह से बोले बिना सिर्फ सर हिला कर जवाब देते हैं उन के लिए.
एक हड्डी सौ कुत्ते (एक बोटी सौ कुत्ते). जहाँ पर आवश्यकता अधिक हो और उपलब्धता कम.
एक हरदसिया, सबरा गाँव रसिया. हरदसिया नाम की कोई एक ही सुंदर कन्या है और गाँव के सभी लड़के उसे वरना चाहते हैं. जहाँ मांग अधिक और उपलब्धता कम हो.
एक हल हत्या, दो हल काज, तीन हल खेती, चार हल राज. एक हल की खेती सत्यानाश, दो हल की काम चलाऊ, तीन हल सही सही और चार हल उत्तम.
एक हांडी तेरह चीजें मांगे. रसोई की एक हंडिया को पकाने के लिए तेरह प्रकार की वस्तुएं चाहिए होती हैं.
एक हाथ देना, दूजे हाथ लेना. किसी को कुछ देना और हाथ की हाथ बदले में कुछ और ले लेना.
एक हाथ से घर चले, सौ हाथ से खेती. घर का काम एक व्यक्ति के करने से पूरा हो सकता है परन्तु खेती में बहुत लोगों को लगना पड़ता है.
एक ही बिल के चूहे. एक घर के सभी सदस्य निकृष्ट वृत्ति के हों तो.
एक हुस्न आदमी, हजार हुस्न कपड़ा, लाख हुस्न जेवर, करोड़ हुस्न नखरा. व्यक्ति की सुन्दरता को अच्छे कपड़े हजार गुना बढ़ाते हैं, अच्छे गहने लाख गुना बढ़ाते हैं और उस की भाव भंगिमा करोड़ गुना बढ़ाती हैं.
एकनारी यथा ब्रह्मचारी. जो एक नारी तक सीमित रहते हैं वे भी ब्रह्मचारी के समान हैं. यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि जिनके लिए यह मजबूरी है (एक से अधिक नारी मिल ही नहीं सकती) उनकी कोई तारीफ़ नहीं है. जो लोग एक से अधिक नारियों के उपलब्ध होने पर भी एक तक ही सीमित रहते हैं उन्हीं को ब्रह्मचारी माना जाएगा.
एकला सो बेकला. बेकल – बेचैन. अकेला आदमी घबराहट और बेचैनी का शिकार हो सकता है इसलिए कोई भी काम मिल बांटकर करना चाहिए.
एकांत वासा, झगड़ा न झांसा. जो एकांत में रहते हैं उनके साथ झगड़े इत्यादि का कोई झंझट नहीं होता.
एकादशी की कसर द्वादशी को पूरी होती है. एकादशी के व्रत की कसर द्वादशी को खूब खा कर पूरी करते हैं.
एकै दार एकै चाउर, किसी को गुन, किसी को बाउर. वही दाल है और वही चावल, किसी को लाभ करता है और किसी को वायु पैदा करता है.
एकै नीम, सब घर सितलहा. चेचक को लोग शीतला माता का प्रकोप मानते हैं और नीम के पत्तों से झाड़ते हैं. कहावत में कहा गया है कि गाँव के सारे ग्नरों में चेचक निकली हुई है और एक ही नीम का पेड़ है. आवश्यकता बहुत अधिक और उपलब्धता बहुत कम.
एकै भले सपूत सों सब कुल भलो कहाय. एक योग्य संतान सारे कुल का नाम रोशन करती है.
एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय, (रहिमन सींचे मूल को, फूलै फलै अघाय). किसी भी कार्य के लिए सब से मुख्य जो व्यक्ति है उसी को साध लेने से सारा कार्य सिद्ध हो जाता है. जड़ को सींचने से पौधा फूलता फलता है, पत्तों पर पानी डालने से नहीं.
एकौ न आँख, कजरौठा नौ ठो. शक्ल सूरत कुछ भी नहीं है और सौन्दर्य प्रसाधन बहुत सारे इकट्ठे किए हैं. कजरौठा – काजल बना कर रखने की डिब्बी. (देखिये परिशिष्ट).
एक्के मियाँ खर खरिहान, एक्के मियाँ दर दोकान. जहाँ एक ही व्यक्ति पर बहुत सारी जिम्मेदारियां डाल दी जाएं.
एरे ताड़ वृक्ष, एतो बढ़ कर कहा कियो. ताड़ के पेड़ से पूछा जा रहा है कि तू ने इतना लम्बा हो कर क्या किया? ऊँचा पद पा कर किसी के काम न आने वालों के लिए व्यंग्य.
एहसान लीजे सब जहान का, न एहसान लीजे शाहेजहान का. राजा या बड़े अधिकारी का एहसान लेना ठीक नहीं.
ऐंचन छोड़ घसीटन में पड़े. ऐंचना माने खींचना, जैसे किसी को रस्सी का फंदा डाल कर खींचना. घसीटन माने घसीटना. कहावत का अर्थ है कि एक मुसीबत से निकल कर दूसरी में पड़ गए.
ऐब को हुनर चाहिए. कोई गलत काम करने के लिए भी होशियारी चाहिए. जैसे कहते हैं नक़ल के लिए भी अक्ल चाहिए.
ऐरे गैरे पचकल्यान (ऐरे गैरे नत्थू खैरे). फ़ालतू और अशुभ आदमी. पचकल्यान एक प्रकार के घोड़े को कहते हैं जो अशुभ माना जाता है.
ऐरे गैरे, फ़सल बहुतेरे. खाने को मिल रहा हो तो बहुत से आलतू फ़ालतू और मुफ्तखोरे इकट्ठे हो जाते हैं.
ऐसी करनी न करे, जो करके पछिताए. ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए जो कर के पछताना पड़े. तात्पर्य यह है कि सब काम सोच समझ कर ही करना चाहिए.
ऐसी कही कि धोए न छूटे. इतनी लगने वाली बात कही.
ऐसी छठी बलबल जाएं, नौ नौ पटरी भातें खायं. बच्चे की छठी पर किसी ने बहुत बड़ा भोज दिया है तो लोग आशीर्वाद दे रहे हैं. ऐसी छठी की बलिहारी जाएं जहां खूब सारा खाने को मिल रहा है.
ऐसी बहू सयानी, कि उधार मांगे पानी. बहू इतनी चालाक है कि किसी से पानी भी मांगती है तो उधार मांगती है जिससे लोग उससे ली हुई चीज़ तुरंत लौटा दें.
ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोय, (औरन को शीतल करे आपहु शीतल होय). हम सभी को ऐसी वाणी बोलना चाहिए जो अपने मन के अहम् को और दूसरे के मन के क्रोध को शांत करे.
ऐसी रातों के ऐसे ही सवेरे. ऐसी परिस्थितियों के ऐसे ही परिणाम होते हैं.
ऐसी सुहागन से तो रांड ही भली. दुष्चरित्र विवाहिता स्त्री के लिए कहा गया है की ऐसी विवाहिता से तो विधवा ही भली.
ऐसी होती कातनहारी तो काहे फिरती मारी मारी. इतनी होशियार होती तो मारी मारी क्यूँ फिरती. (कातनहारी – सूत कातने वाली).
ऐसे ऊत रिवाड़ी जाएं, आटा बेचें गाजर खाएं. रिवाड़ी राजस्थान में एक शहर है जहाँ गल्ले की मंडी लगती है. किसी मूर्ख व्यक्ति का मज़ाक उड़ाया जा रहा है कि ये अगर मंडी में जाएंगे तो आटा बेच कर गाजर खाएंगे.
ऐसे गायब हुए जैसे गधे के सर से सींग. गधे के सर पर सींग का नामोनिशान भी नहीं होता उसी को लेकर कहावत बनी है. कोई बिल्कुल ही गायब हो जाए तो.
ऐसे घूमे जैसे नाई बिगड़े ब्याह में. यदि किसी विवाह में वर और वधु पक्ष में अनबन हो जाए, और मारपीट की नौबत आ जाए तो सबसे बुरा हाल विवाह तय कराने वाले नाई का होता है. वह दोनों के गुस्से का शिकार बनता है. कोई आदमी बहुत परेशान सा इधर उधर घूम रहा हो तो उसका मजाक उड़ाने के लिए.
ऐसे दाता से सूम भला, जो फट देय जबाब. जो लोग देने की बात कर के टालते रहते हैं उन से वह कंजूस अच्छा है जो फट से मना कर देता है.
ऐसे बूढ़े बैल को कौन बाँध भुस देय. (कहावत का पूर्वार्ध इस प्रकार है – दांत घिसे और खुर घिसे, पीठ बोझ न लेय). जब कोई कर्मचारी किसी कार्य के योग्य नहीं रहता तो.
ऐसे ही हम ऐसा ही हमारा सगा, न हमारे सर पर टोपी न इस के तन पर झगा. जैसे हम वैसे ही हमारे रिश्तेदार. झगा – शरीर पर पहनने का कुर्ता नुमा वस्त्र.
ऐसो कोऊ नाहिं जग माहीं, जाको काम नचावे नाहीं. काम – कामदेव.इस संसार में ऐसा कोई नहीं है जिसे कामदेव न सताते हों.
ओ, औ
ओई की रोटी ओई की दार, ओई की टटिया लगी दुआर. यह एक बुन्देलखंडी पहेलीनुमा कहावत है जिस का उत्तर है चना. चने की रोटी चने की दाल से खाओ और चने का पर्दा (टट्टर) बना कर दरवाजे पर लगाओ.
ओखली में सर दिया तो मूसलों से क्या डरना. जब कोई कठिन काम हाथ में लिया है तो उस में आने वाली परेशानियों से क्या डरना.
ओखली में हाथ डाले, मूसली को दोष देवे. जाहिर है कि ओखली में हाथ डालोगे तो मूसल की चोट पड़ेगी. ऐसे में मूसल को क्या दोष देना. स्वयं गलती करके कष्ट उठाने वाला व्यक्ति यदि दूसरे को दोष दे तो.
ओछा आते भी काटे और जाते भी काटे. दुष्ट सुनार लेते समय भी कम तौलता है और देते समय भी.
ओछा आदमी निहोरे करने पर ज्यादा नखरे दिखाता है. ओछे आदमी से यदि किसी काम के लिए मनुहार करो तो वह और अधिक नखरे दिखाता है.
ओछा ठाकुर मुजरे का भूखा. मुजरा – झुक कर सलाम करना. ठाकुर से तात्पर्य यहाँ सामंतशाही व्यवस्था के उन बड़े लोगों से है जो जनता को गुलाम बना कर रखना चाहते थे.
ओछा बनिया, गोद का छोरा, ओछे की प्रीत, बालू की भीत, कभी सुख नहीं देते. अर्थ स्पष्ट है. (गोद का छोरा – गोद लिया हुआ लड़का).
ओछी नार उधार गिनावे. ओछी बुद्धि वाली स्त्री उधार दी हुई छोटी छोटी चीजों को गिनाती है.
ओछी पूंजी, खसमो खाए. गलत तरीके से कमाया गया धन व्यक्ति का सर्वनाश कर देता है.
ओछी रांड उधार गिनावे. निकृष्ट किस्म की स्त्रियाँ हर समय अपने द्वारा किए गये एहसान गिनाती रहती हैं.
ओछी लकड़ी झाऊ की, बिन बयार फर्राए, ओछों के संग बैठ के, सुघड़ों की पत जाए. झाऊ का एक पेड़ होता है जो बिना हवा चले ही आवाज करता है, मतलब पेड़ बिना बात आवाज़ कर रहा है और हवा का नाम बदनाम हो रहा है. ओछे लोगों के साथ बैठ कर अच्छे लोगों का सम्मान कम होता है.
ओछे की प्रीत, कटारी को मरबो. ओछे मनुष्य की प्रीति और कटारी से मरना दोनों समान होते हैं.
ओछे की प्रीत, बालू की भीत. ओछे आदमी की प्रीत, रेत की दीवार की भांति क्षणभंगुर है. (भीत – दीवार)
ओछे की सेवा, नाम मिले न मेवा. ओछे आदमी की सेवा करने से कोई लाभ नहीं है. न तो नाम होगा और न ही कोई इनाम मिलेगा.
ओछे के घर खाना, जनम जनम का ताना. छोटी सोच वाले व्यक्ति का एहसान नहीं लेना चाहिए, वह हमेशा आपको ताना मारता रहेगा.
ओछे के पेट में बड़ी बात नहीं पचती. ओछी बुद्धि वाले व्यक्ति के पेट में कोई बात नहीं पचती इसलिए उस को कोई महत्वपूर्ण या रहस्य की बात नहीं बतानी चाहिए.
ओछे के सर का जुआँ इतराए. ओछा हाकिम स्वयं तो अत्यधिक इतराता ही है उसके घर के सदस्य और नौकर चाकर और अपने आपको तीसमारखां समझते हैं.
ओछे नर के पेट में रहे न मोटी बात, आध सेर के पात्र में कैसे सेर समात. आमतौर पर इसका बाद वाला हिस्सा ही बोला जाता है. अर्थ है कि किसी मूर्ख व्यक्ति में अधिक ज्ञान कहाँ से समा सकता है, या ओछा अधिक आदमी धन पाने पर इतराने लगता है.
ओछे पर एहसान करना, जैसे बालू में मूतना. बालू में पेशाब करने पर उसका निशान नहीं पड़ता इसी प्रकार ओछे व्यक्ति पर एहसान करो तो उस पर कोई असर नहीं होता.
ओछो मन्त्री राजै नासै, ताल बिनासै काई, सुक्ख साहिबी फूट बिनासै, घग्घा पैर बिवाई. ओछा मंत्री राज्य का विनाश कर देता है, तालाब को काई बिगाड़ देती है, राज्य और शासन को आपसी फूट खत्म कर देती है और बिबाई पैर को बेकार कर देती है.
ओछों के ढिंग बैठ कर अपनी भी पत जाए. ओछे व्यक्तियों के साथ बैठ कर अपना स्वयं का मान सम्मान कम होता है.
ओढ़नी की बतास लगी. स्त्री की गुलामी करने लगा. (ऐसे कहते हैं – फलाने को ओढ़नी की हवा लग गई है). बतास – हवा.
ओनामासी धम बाप पढ़े न हम. ॐ नम: सिद्धं का अपभ्रंश. जो बच्चे पढ़ने से जी चुराते हैं उन के लिए.
ओलती का पानी मंगरे पर नहीं चढ़ता. ओलती – छप्पर का किनारा जहाँ से वारिश का पानी नीचे गिरता है. मंगरा – छत या छप्पर का ऊपरी भाग. कोई उलटी बात कर रहा हो तो उसे समझाने के लिए.
ओलती तले का भूत, सत्तर पुरखों का नाम जाने. घर के अन्दर का आदमी घर का सब हाल जानता है.
ओलों का मारा खेत, बाकी का मारा गाँव और चिलम का मारा चूल्हा कभी न पनपें. जो फसल ओले गिरने से बर्बाद हुई हो, जिस गाँव ने लगान न दी हो और जिस चूल्हे से कोयले निकाल कर बार बार चिलम भरी जाती हो, वे कभी नहीं पनपते.
ओस चाटे प्यास नहीं बुझती. कहावत का अर्थ है किसी को आवश्यकता से बहुत कम चीज़ मुहैया कराना.
ओस से घड़े नहीं भरते. अत्यंत सीमित साधनों से बड़े कार्य नहीं किए जा सकते.
औंघते को ठेलने का सहारा. जरा सी सलाह से असमंजस दूर हो जाना. जो आदमी सोया हो उसे तो जोर से धक्का दे कर उठाना पड़ता है पर जो ऊंघ रहा हो वह हलके से ठेलने से ही सावधान हो जाता है.
औंधी खोपड़ी उल्टा मत. मूर्ख का विचार उल्टा ही होता है.
औंधे घड़े का पानी, मूरख की कही कहानी. जिस प्रकार उलटे रखे हुए घड़े में पानी नहीं होता उसी प्रकार मूर्ख की बात में कोई सार नहीं होता.
औंधे मुँह गिरे तो दंडवत. बिगड़े हुए काम को संभालने की चतुराई. अचानक आई परेशानी से भी लाभ उठाने की कला.
औगुन ऊपर गुण करे, ताको नाम सपूत. सबसे श्रेष्ठ आदमी वही है जो बुराई का बदला भलाई से दे.
औघट चले न चौपट गिरे. गलत काम नहीं करोगे तो गिरने का डर नहीं होगा.
और किसहू की भूख न जानें, अपनी भूख आटा सानें. स्वार्थी व्यक्ति के लिए. और किसी की भूख की परवाह नहीं है, खुद को भूख लगी तो आटा मलने चले.
और की औषध है सजनी, सुभाव की औषध है न कछू. और बहुत सी बातों का इलाज है पर गलत स्वभाव का कोई इलाज नहीं है.
और की बुराई, अपने आगे आई. 1. किसी और द्वारा किये गये गलत काम का फल हमको मिला. 2. हमने दूसरे की बुराई की वही बाद में हमारे आगे आई.
और दिन खीर पूड़ी, परब के दिन दांत निपोड़ी. सामान्य दिनों में इतने गुलछर्रे उड़ाना कि त्यौहार के दिन जेब खाली रहे.
और बात खोटी, सही दाल रोटी. मनुष्य की सबसे प्रधान आवश्यकता भोजन है. जब तक पेट न भरे सारे नियम कायदे, धर्म अधर्म, रिश्ते नाते बेकार हैं.
औरत का काम प्यारा होता है चाम नहीं (चाम से क्या प्रीत, काम से प्रीत). स्त्री की सुन्दरता कुछ दिन तक सब को आकर्षित कर सकती है, अंततः उस का आदर उस के काम से ही होता है.
औरत का खसम मर्द, मर्द का खसम रोज़गार. स्त्री का सहारा उसका पति होता है और पति का सहारा उसका रोज़गार जिससे वह घर चलाता है.
औरतों की मति चोटी में होती है. किसी दिलजले मर्द का कथन.
औरों की नजर इधर उधर, चोर की नजर बकरी पर. चोर का ध्यान केवल उसी चीज़ पर रहता है जिसे वह चुरा सकता है.
औरों को नसीहत, खुद मियां फजीहत. खुद गलत काम करना व औरों को उपदेश देना.
औषध बाको दीजिये, जाके रोग शरीर. जिसको कोई बीमारी हो उसी को दवा देनी चाहिए.
औसत मेरा ज्यों का त्यों, कुनबा मेरा डूबा क्यों. गणित के एक शिक्षक अपने परिवार के साथ एक छोटी नदी पार कर रहे थे. नदी के बीच में पहुँच कर उन्होंने फीता निकाल कर नदी की गहराई नापी जो चार फुट थी. फिर उन्होंने अपनी, अपनी पत्नी की और बच्चों की लम्बाई नाप कर उसका औसत निकाला तो साढ़े चार फुट आया. उन्होंने सोचा सब निकल जाएंगे. परिवार जब नदी पार करने लगा तो पत्नी और बच्चे डूबने लगे. किनारे बैठे लोगों ने उन्हें बचाया. शिक्षक महोदय ने किनारे पहुँच कर सोचा कि हिसाब लगाने में कोई गलती तो नहीं हुई. फिर हिसाब जोड़ा तो वही साढ़े चार फुट आया. तब उन्होंने उपरोक्त बात कही. किसी पढ़े लिखे मूर्ख व्यक्ति द्वारा बिना बुद्धि का प्रयोग किए किताबी ज्ञान द्वारा कोई काम करने पर यह कहावत प्रयोग करते हैं.
औसर का चूका आदमी और डाल का चूका बन्दर फिर नहीं संभलते. बन्दर अक्सर एक डाल से दूसरी पर छलांग लगाते हैं. अगर कोई बन्दर डाल पकड़ने में चूक जाए तो संभल नहीं सकता. इसी का उदाहरण दे कर बताया गया है कि कोई व्यक्ति एक बार अवसर का लाभ उठाने से चूक जाए तो फिर वह अवसर हाथ नहीं आता.
औसर चूकी डोमनी, गावे ताल बेताल. यदि अवसर हाथ से निकल जाए तो व्यक्ति अत्यधिक परेशानी उठाता है. डोम जाति की स्त्रियाँ मांगलिक अवसरों पर गीत गा कर नेग माँगती हैं. अगर वह सही अवसर पर नहीं पहुँचे तो उसे कुछ इनाम नहीं मिलता.
औसर चूके, जगत थूके. यदि व्यक्ति सही अवसर पर चूक जाता है तो सभी उसकी थुक्का फजीहत करते हैं.
क
क, ख, ग के लूर ना, दे माई पोथी. (भोजपुरी कहावत) क ख ग जानते नहीं हैं और पोथी पढ़ने को मांग रहे हैं. जिस चीज को प्रयोग करना नहीं आता उस की मांग करना.
कंकड़ बीनते हीरा मिला. किसी बहुत छोटे काम को करते समय बड़ा लाभ हो जाना.
कंगाल की छोरी और लड्डू के लिए रूठे. व्यक्ति को उसी चीज की मांग करनी चाहिए जो उस की पहुँच में हो.
कंगाल छैल गाँव को भारी. जिसके पास पैसे न हों और तरह तरह के शौक करना चाहता हो वह चोरी ठगी करके अपने शौक पूरे करेगा.
कंगाली (गरीबी) में आटा गीला. एक अत्यधिक गरीब व्यक्ति बहुत मुश्किल से आटा ले कर आता है लेकिन पानी गिरने से वह आटा बेकार हो जाता है. यदि आप पहले से ही मुश्किल में हों और ऊपर से कोई और परेशानी खड़ी हो जाए तो.
कंचन जैसी ऊजली उत्तर बीच सुहाए, अग्गम देवे सूचना बेगी बरखा आए. यदि उत्तर दिशा में बादलों के बीच बिजली चमकती हो तो अच्छी वर्षा होगी.
कंजड़ की कुतिया कहाँ जा के ब्याहेगी. राजस्थान की घुमंतू जाति के लोगों को कंजड़ भी कहते हैं. उनका कोई एक ठिकाना नहीं होता यह बताने के लिए मजाक में इस प्रकार से कहा गया है.
कंडे बीनने जाय और जलेबी का तोसा. तोसा – खाना. कंडे बीनने जाने वाली को जलेबी रख कर नहीं दी जाएंगी.
कंत न पूछे बात, मेरा धरा सुहागन नाम. ऐसी स्त्री की बात की जा रही है जिसको उसका पति नहीं पूछता और वह अपने को सुहागन कहती है. जब किसी घर, विभाग या संगठन में किसी व्यक्ति की पूछ न हो रही हो और फिर भी वह अपना महत्त्व जताने की कोशिश करे तो.
काले कौए खा कर नहीं आया है. एक पुराना विश्वास है कि काले कौए खाने से आदमी अमर हो सकता है.
ककड़ी के चोर को कनेठी ही काफी है. कनेठी – कान उमेठना.छोटी चोरी के लिए छोटी सी सजा पर्याप्त है.
ककड़ी के चोर को फांसी नहीं दी जाती. छोटे अपराध के लिए बहुत बड़ी सजा नहीं दी जाती.
ककड़ी के चोर को लकड़ी. छोटे अपराध के लिए छोटी सी सजा (लाठी से पिटाई) ही काफी है.
कचरे से कचरा बढ़े. जहाँ एक बार कूड़ा डालना शुरू कर दो वहाँ और कूड़ा पड़ने लगता है.
कच्चा तो कचौड़ी मांगे, पूरी मांगे पूरा, नोन मिर्च तो कायस्थ मांगे, बामन मांगे बूरा. कच्चा माने छोटी उम्र का बालक, पूरा माने वयस्क. बालक कचौड़ी मांगता है, वयस्क पूड़ी खाना चाहता है, कायस्थ को मिर्च मसाले पसंद आते हैं और ब्राह्मण मीठे से प्रसन्न होता है. (ब्राह्मणं मधुर: प्रियं)
कच्चा बांस जिधर से नवाओ नव जाए. कच्चे बांस को मोड़ना आसान होता है. बच्चों को किसी संस्कार में ढालना आसान होता है.
कच्ची कली कनेर की तोड़त ही कुम्हलाए. जो बच्चे बहुत नाजों से पले होते हैं वे थोड़े से कष्ट से ही विचलित हो जाते हैं.
कच्ची शीशी मत भरो, जिसमें पड़ीं लकीर, बालेपन की आशिकी गले पड़ी जंजीर. बहुत छोटी आयु में इश्क प्रेम के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए.
कच्चे घड़े में पानी नहीं भर सकता. अपरिपक्व व्यक्ति कोई सार्थक कार्य नहीं कर सकता.
कछु कहि नीच न छेड़िए, भलो न वाको संग, पाथर डारै कीच मैं, उछरि बिगारै अंग. नीच को छेड़ने में अपने मान सम्मान को ही खतरा होता है. कीचड़ में पत्थर फेंको तो अपने ऊपर छींटें आती हैं.
कछु दिन जदपि लुभत संसार, सदा न निभे कपट व्यौहार. कपट पूर्ण व्यवहार कर के कुछ दिन आप संसार को लुभा सकते हैं लेकिन अंत में भेद खुल ही जाता है.
कछुए का काटा कठौती से डरे. कठौती – काठ का बर्तन जिस में पानी भर कर रखते हैं. किसी को कछुए ने काट लिया हो तो वह पानी भरे बर्तन से डरने लगता है.
कटखनी कुतिया मखमल की झूल. कोई बदतमीज आदमी बड़ा हाकिम बन जाए तो.
कटड़े की मां तलै नौ मन दूध, पर कटड़े का क्या. (हरयाणवी कहावत) गाय के थनों में नौ मन दूध है पर कटड़े को उस का कोई लाभ नहीं मिलता. कोई बड़ा आदमी अपने घर वालों के काम न आता हो तो.
कटरे धोए कहीं बछड़े हुआ करें. भैंस के बच्चे को कितना भी रगड़ रगड़ कर धो लो वह गाय का बछड़ा नहीं बन सकता. कितना भी प्रयास कर लीजिए अयोग्य व्यक्ति को योग्य नहीं बना सकते.
कड़की कहीं और गिरी कहीं. बिजली कहीं कड़कती है और कहीं गिरती है. अनिष्ट की आशंका कहीं और थी और हो कहीं और गया.
कड़वा बोली माई, मीठा बोले लोग, सच कहती थी माई, झूठ कहे थे लोग. माँ जब बचपन में डांटती थी तो उस की बात बहुत कड़वी लगती थी और अन्य लोगों की बातें अच्छी लगती थीं. बड़े हो कर समझ में आया कि माँ सच कहती थी और लोग झूठ बोलते थे.
कड़वी बेल की कड़वी तूमड़ी, अडसठ तीर्थ नहाई, गंग नहाई गोमती नहाई मिटी नहीं कड़वाई. तूमड़ी एक लौकी के समान फल होता है जिस को सुखा कर सन्यासी लोग कमंडल बना लेते हैं. सन्यासी के साथ तूमड़ी भी सब तीर्थों के जल में डुबकी लगा लेती है लेकिन उसकी कड़वाहट नहीं जाती. कहावत का अर्थ है कि अच्छी संगत पा कर और तीर्थ यात्रा कर के भी दुष्टों का स्वभाव नहीं बदलता. (देखिये परिशिष्ट).
कडवी बेल की तूमड़ी उस से भी कड़वी. किसी निम्न श्रेणी के परिवार का कोई व्यक्ति और अधिक ओछी हरकत करे तो.
कड़वी बेल तेज़ी से बढती है. जिस में बहुत से अवगुण हों वह तेजी से बढ़ता है. इंग्लिश में कहते हैं – An ill weed grows apace.
कड़वी भेषज बिन पिए, मिटे न तन का ताप. बुखार कड़वी दवा से ही उतरता है. किसी भी परेशानी को हल करने के लिए कुछ कष्ट उठाना पड़ता है.
कड़ी काट बेलन बनाया. पहले के मकानों में लकड़ी की छतें हुआ करती थीं. उन में लम्बी मजबूत लकडियाँ (कड़ियां) एक दीवार से दूसरी दीवार तक लगाते थे और उन पर तख्ते लगा कर छत बनाते थे. बेलन जैसी छोटी सी चीज़ को बनाने के लिए कड़ी जैसी बड़ी चीज़ को काट कर बर्बाद करना अर्थात बहुत मूर्खता पूर्ण कार्य.
कड़ुआ स्वभाव, डूबती नाव. जिस को मीठा बोलना न आता हो वह किसी काम में सफल नहीं हो सकता.
कड़ुए से मिल के रहो, मीठे से डर के रहो. कड़वा आदमी खरी लेकिन भले की बात कहता है. मीठा आदमी मीठी लगने वाली लेकिन झूठी बात कह कर आपको खुश करता है और आपको नुकसान पहुँचा सकता है.
कढ़ाई से निकले चूल्हे में पड़े (तवे से उतरी, चूल्हे में पड़ी, खटाई से निकले अमचूर में पड़े). एक मुसीबत से निकल कर दूसरी में पड़ जाना. (आसमान से गिरे खजूर में अटके). इंग्लिश में कहावत है – Out of frying pan, into the fire.
कण कण भीतर राम जी, ज्यूँ चकमक में आग. चकमक पत्थर को रगड़ने से आग निकलती है पर ऊपर से आग नहीं दिखती. इसी प्रकार कण कण में राम हैं जिन्हें हम देख नहीं पाते.
कण थोड़े और कंकड़ ज्यादा. अनाज के दाने कम और कंकड़ ज्यादा. उपयोगी वस्तुएं कम और फ़ालतू चीजें अधिक.
कतवारी को सुधरे, बतवारी को बिगड़े. कतवारी – सूत कातने वाली (काम करने वाली), बतवारी – बातें बनाने वाली. काम काज करने वाली स्त्री के बच्चे अच्छे निकलते हैं और बातें बनाने वाली और काम न करने वाली स्त्री के बच्चे बिगड़ जाते हैं.
कत्त्थर गुद्दर सोवैं, मरजाला बैठे रोवैं. कथरी गुदड़ी ओढ़ने वाला आराम से सो रहा है लेकिन फैशन के कपडे पहनने वाला परेशान बैठा है.
कथनी से करनी भली. केवल कहते रहने से कर के दिखाना बेहतर है. इंग्लिश में कहावत है – Actions speak louder than the words.
कथनी से न बहक, करनी को परख. कोई व्यक्ति बढ़ चढ़ कर बातें हांक रहा हो तो फौरन उस का विश्वास न करके उसके कृतित्व को देखना चाहिए.
कथरी ओढ़ के घी पिया. ऊपर से गरीबी का प्रदर्शन करना और अंदर ठाठ से रहना.
कदम कदम पर कुनबा डूबे, आगे धरमराज दरबार. किसी काम में नुकसान पर नुकसान हो रहा है, फिर भी आगे फायदे की आशा कर रहे हैं.
कदली और काँटों में कैसी प्रीत. केले और काँटों में प्रेम नहीं हो सकता. कांटे की प्रवृत्ति यही है कि वह केले को चुभ कर कष्ट पहुंचाएगा.
कदली काटे ही फले. केले का पेड़ काटने के बाद ही फल देता है. मूर्ख व दुष्ट व्यक्ति दंड मिलने पर ही कार्य करते हैं.
कद्र उल्लू की उल्लू जानता है. मूर्ख आदमी की कद्र मूर्ख ही कर सकता है.
कद्र खो देता है रोज का आना जाना. बार बार कहीं जाने से आदमी की कद्र कम हो जाती है. संस्कृत में कहावत है – अति परिचयादवज्ञा सतत गमनमनादरो सन्ति.
कद्रदान की जूतियाँ उठाइये, नाकद्रे को जूतियाँ मारने भी न जाइए. जो आपकी कद्र करता हो उसका हर काम करिए और जो कद्र न करता हो उसकी उपेक्षा कीजिए.
कन कन जोड़े मन जुड़े. एक एक कण जोड़ने से एक मन (चालीस सेर) इकठ्ठा हो सकता है. थोड़ा थोड़ा जोड़ने से बड़ी राशि इकठ्ठी की जा सकती है.
कन का चोर सो मन का चोर. चोर तो चोर है, कण भर चुराए या मन भर (चालीस सेर) चुराए.
कनखजूरे का एक पैर टूटने से वह लंगड़ा नहीं हो जाता (कनखजूरे के कै पाँव टूटेंगे). कनखजूरे के सैकड़ों पैर होते हैं, दो चार टूट जाएंगे तो क्या फर्क पड़ेगा. बहुत धनी व्यक्ति को थोड़ा बहुत नुकसान भी हो जाएगा तो उसे कोई फर्क नहीं पड़ेगा.
कनवा पांडे पांय लागूं, वेही लड़ाई के लच्छन (काणे दादा पांय लागूँ, वोहे लड़ाई के लच्छन). काने को काना कह के पुकारोगे तो लड़ाई तो होगी ही. किसी को उसकी कमी के बारे में सीधे सीधे नहीं बताना चाहिए.
कनवा बैल बयारे सनके. कनवा – काना, बयारे – हवा चलने से. काना बैल ठीक से देख नहीं पाता इसलिए हवा चलने से ही बिदक जाता है. जो व्यक्ति सही और गलत में भेद नहीं कर सकता वह बिना उचित कारण के बिदक जाता है.
कपटी की प्रीत, मरन की रीत. कपटी व्यक्ति से प्रेम करने पर बहुत कष्ट उठाना पड़ता है.
कपड़ा कहे तू मेरी इज्जत रख, मैं तेरी इज्जत रखूँ. कपड़े को संभाल कर पहना जाए तो वह व्यक्ति की शोभा बढ़ाता है.
कपड़ा पहने तीन वार, बुध, बृहस्पत, शुक्करवार. पुराने लोग मानते थे कि नए कपड़े को इन तीन दिन ही पहनना चाहिए.
कपड़े का पेट बड़ा. कपड़े के व्यापार में अधिक मुनाफे की गुंजाइश होती है.
कपड़े फटे हैं तो क्या, घर दिल्ली है. वास्तविकता कुछ भी हो अपने को बड़ा बताने की कोशिश करना.
कपड़ों के भीतर हर आदमी नंगा है. आदमी ऊपर से सभ्यता रूपी कितने भी कपड़े ओढ़ ले भीतर से हर आदमी के अन्दर आदिम प्रवृत्तियाँ जिन्दा रहती हैं.
कपूत कलाल के जावे और सपूत सुनार के. कपूत कलाल के यहाँ जा कर शराब पीने में पैसे उड़ाते हैं और सपूत सुनार के यहाँ जा कर गहने आदि बनवाते हैं जिनसे बरक्कत होती है.
कपूत न जायो भलो, न आयो. कुपुत्र न तो पैदा किया अच्छा होता है न गोद लिया हुआ. आया माने गोद लिया हुआ.
कपूत भी अरथी में कंधा देता है. कुपुत्र भी कभी न कभी काम आता है.
कपूत से तो निपूती भली. पुत्र कुपुत्र निकल जाए इससे तो निस्संतान होना अच्छा.
कपूतों की अलग बस्ती नहीं होती. समाज में अच्छे और बुरे लोग एक साथ मिल कर रहते हैं.
कफन में जेब ना दफन में मेव. ज्यादा जोड़ कर कहाँ ले जाओगे, कफन में जेब नहीं होती और कब्र की दीवार में आले नहीं होते.
कब दादा मरेंगे कब बेल बंटेगी. बेल एक तरह का नेग होता है जो गमी के अवसर पर नाई इत्यादि को दिया जाता है. किसी एक कार्य की वज़ह से बहुत से काम अटके पड़े हों तो.
कब बाँझ ब्यावे और कब ढोल बाजे. ऐसा काम जिसके कभी होने की उम्मीद ही न हो.
कब मरे कब कीड़े पड़ें. दिल से निकली हुई बद्दुआ.
कब मुआ, कब राक्षस हुआ. किसी बहुत दुष्ट आदमी को कोसने के लिए कहे जाने वाले शब्द.
कब से भैया राजा भये, कोदों के दिन बिसर गए. कोदों एक घटिया अनाज है जिसे गरीब लोग खाते हैं. कोई मामूली व्यक्ति बड़ा आदमी बन जाए और अपने पुराने दिन भूल जाए तो लोग ऐसा बोलते हैं.
कबड्डी खेल, नीम के तेल. नीम का तेल जैसे रोग निवारक होता और लाभदायक है, उसी तरह कबड्डी का खेल भी लाभदायक होता है.
कबहुं न धावे स्यार पर, बरु भूखो मृगराज. धावे – दौड़े, मृगराज – सिंह. शेर कितना भी भूखा क्यों न हो, सियार का शिकार नहीं करता. ऊंची प्रकृति के लोग निम्न कार्य नहीं करते.
कबहूँ नाहीं होते दूबर, रसोई के बामन, कसाई के कूकर. दूबर – दुर्बल. रसोइये का काम करने वाला ब्राह्मण और कसाई का कुत्ता कभी दुबले नहीं होते, क्योंकि उन्हें खूब खाने को मिलता है.
कबाड़ी के छप्पर पर फूस नहीं. जिस चीज़ की बहुतायत होनी चाहिए उसी का अकाल.
कबाब में हड्डी. अवांछनीय व्यक्ति. मांस को बारीक पीस कर उससे कबाब बनाए जाते हैं जो कि बहुत मुलायम होते हैं, यदि उस में हड्डी का टुकड़ा आ जाए तो कबाब का सारा मज़ा खराब कर देता है.
कबिरा आप ठगाइए, और न ठगिए कोय, आप ठगे सुख होत है, और ठगे दुख होय. कबीर कहते हैं कि कभी किसी को धोखा नहीं देना चाहिए, चाहे आपको कोई ठग ले. इंग्लिश में कहावत है – Better suffer ill than do ill.
कबिरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर, ना काहू से दोस्ती, न काहू से बैर. इस संसार में आकर कबीर बस यही चाहते हैं कि सबका भला हो. न किसी से अनावश्यक दोस्ती करते हैं न दुश्मनी.
कबिरा गरब न कीजिए, कबहूँ न हंसिए कोय (अजहूँ नाव समुद्र में क्या जाने क्या होय).हम को अपने धन या पद पर कभी घमंड नहीं करना चाहिए और किसी का उपहास नहीं करना चाहिए. किसी के साथ कभी भी कोई अनहोनी हो सकती है.
कबिरा जब पैदा हुए, जग हँस्या हम रोये, ऐसी करनी कर चलो, आप हँसे जग रोये. कबीर दास जी कहते हैं कि जब हम पैदा हुए थे उस समय सब खुश हुए और हम रो रहे थे. जीवन में कुछ ऐसा काम करके जाओ कि जब हम मरें तो दुनिया रोये और हम हँसें.
कबिरा यह संसार है, जैसो सेमल फूल, दिन दस के व्यवहार में, झूठे रंग न भूल. यह संसार सेमल के फूल की भांति रंग बिरंगा परन्तु क्षण भंगुर है.
कबिरा ये घर प्रेम का खाला का घर नांहि. खाला – मौसी. मौसी का घर वह स्थान है जहाँ सब तरह का आराम मिलता है (अपने घर पर तो डांट भी पडती है). प्रभु की भक्ति करनी है तो यह समझ लो कि यह मौसी का घर नहीं है. यहाँ केवल ईश्वर से प्रेम ही करना है, सारे आराम भूल जाओ. इसकी अगली पंक्ति है – सीस उतारे भुईं धरे, तो पैठे घर मांहि.
कबिरा वो दिन याद कर पग ऊपर तल शीश, मृत्यु लोक में आनकर भूल गया जगदीश. कबीर कहते हैं कि जब तू माँ के गर्भ में था तो पैर ऊपर और सर नीचे कर के कष्ट में रह रहा था. अब मृत्युलोक में आ कर मोह माया में तू भगवान को ही भूल गया है.
कबिरा संगत साधु की ज्यों गंधी को बास, जो कुछ गंधी दे नहीं तो भी बास सुबास. साधु की संगत वैसी ही है जैसे सुगंध बेचने वाले के पास बैठना. गंधी कुछ न भी दे तो भी सुगंध आती है. उसी प्रकार साधु के साथ बैठने से सुविचार आते हैं.
कबिरा सोई पीर है जो जाने पर पीर, जो पर पीर न जानहीं सो काहे को पीर. मुसलमानों में कुछ लोगों को पीर (पहुँचे हुए संत) का दर्जा दिया जाता है. कबीर दास जी कहते हैं कि जो इंसान दूसरे की पीड़ा को समझता है वही पीर है. जो दूसरे की पीड़ा ना समझ सके वह कैसा संत. पीर – पीड़ा.
कबीर कहा गरबियौ, ऊंचे देखि आवास, काल्हि परयौ भू लेटना ऊपरि जामे घास. कबीर कहते है कि ऊंचे भवनों को देख कर क्या गर्व करते हो. कल आप धरती पर लेट जाएंगे और ऊपर से घास उग आएगी.
कबीर सो धन संचये, जो आगे को होय, सीस चढ़ाए पोटली, जात न देख्यो कोय. कबीर कहते हैं कि उस धन को इकट्ठा करो जो भविष्य में (परलोक में) काम आए. सर पर धन की गठरी बाँध कर ले जाते तो किसी को नहीं देखा.
कबीरदास की उलटी बान, मूते इन्द्री बांधे कान. कबीरदास जी कहते हैं कि दुनिया में सब उल्टा पुल्टा है, मूत्र विसर्जन तो जननेन्द्रिय करती है पर बाँधा कान को जाता है (जो लोग जनेऊ बांधते हैं वे पेशाब करते समय जनेऊ को कान पर बाँध लेते हैं).
कबीरदास की उलटी बानी, बरसे कंबल भीगे पानी. दुनिया में कई चीजों का उल्टा चलन देख कर कबीरदास का व्यंग्य.
कबीरा खड़ा बाजार में लिए लुकाठी हाथ, जो घर फूंके आपना चले हमारे साथ. लुकाठी – लकड़ी. कबीरदास सांसारिक मोह माया से मुक्त है. उन के साथ चलना गृहस्थी में आग लगाने जैसा है.
कबूतर को कुआं ही दीखता है. जो जहाँ सुरक्षित हो वहीं जाना चाहता है.
कब्जा सच्चा, मुकदमा झूठा. जायदाद पर किसी का कब्ज़ा हो तो वह मुक़दमा जीतने से भी ज्यादा असर रखता है.
कब्र का मुंह झाँक कर आए हैं. मौत के मुँह से निकल कर आए हैं. बहुत गंभीर बीमारी से ठीक होना.
कब्र का हाल मुर्दा ही जानता है. कोईव्यक्ति कितनी कठिन परिस्थितियों में रह रहा है इसके बारे में वही जान सकता है.
कब्र देख सब्र आवे. कब्रिस्तान में जा कर ही इंसान को जीवन की वास्तविकता का ज्ञान होता है.
कब्र पर कब्र नहीं बनती. पुराने लोगों का विचार था कि विधवा को विवाह नहीं करना चाहिए, इस आशय का कथन. दूसरा अर्थ यह हो सकता है कि क़र्ज़ से दबे आदमी को और क़र्ज़ नहीं देना चाहिए.
कब्र में छोटे बड़े सब बराबर. अपने जीवन काल में हमें घमंड नहीं करना चाहिए इस को याद दिलाने के लिए बताया गया है कि मरने के बाद सब बराबर हो जाते हैं.
कब्र में पैर लटकाए बैठे हैं. मृत्यु के करीब हैं.
कब्र में रख के खबर को न आया कोई, मुए का कोई नहीं जीते का सब कोई. अपने लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए पाप कर्म नहीं करना चाहिए, आपके मरने के बाद कोई सगा सम्बन्धी आपको याद नहीं करेगा.
कभी कभी दर्द इलाज से बेहतर होता है. यदि इलाज बीमारी से अधिक कष्टदायक हो तो ऐसा सोचना पड़ता है. देश और समाज के सामने भी कभी कभी ऐसी परिस्थितियाँ आती हैं.
कभी के दिन बड़े, कभी की रात. सब दिन एक से नहीं होते.
कभी घी घना, कभी मुठ्ठी चना, कभी वह भी मना. मनुष्य का भाग्य सदा एक सा नहीं रहता. कभी खूब घी, पकवान खाने को मिलते हैं, कभी मुट्ठी भर चने पर गुज़ारा करना पड़ता है और कभी वह भी नहीं मिलता.
कभी दूध था, बूरा थी, कटोरा था, कटोरे में दूध ले कर उस में बूरा डाल कर उंगली से घोल कर पीते थे. अब तो बस उंगली ही बची है. पुराने दिनों की शान बघारने वालों का मजाक उड़ाने के लिए.
कभी न घोड़ा हींसिया, कभी न खींची तंग, कभी न कायर रण चढ़ा, कभी न बाजी बंब. जो कायर पुरुष कभी भी रण भूमि में नहीं गया, उसका मजाक उड़ाने के लिए. .
कभी नाव गाड़ी पर, कभी गाड़ी नाव पर. (कभी नाव गाड़ी में कभी गाड़ी नाव में). किसी का भी समय बदल सकता है. आज आप जिस को आसरा दे रहे हैं कल हो सकता है कि वह आप को आसरा दे.
कभी बिल्ली को मंगल गाते नहीं देखा. ओछे व्यक्ति कभी अच्छा काम नहीं कर सकते.
कभी बोरा गधे पर, कभी गधा बोरे पर. वक्त वक्त की बात है. कभी गधा बोरे पर बैठता है कभी बोरा गधे पर लादा जाता है.
कभी रंज, कभी गंज. गंज – बहुत सा. दुनिया में कभी बहुत कम मिलता है कभी बहुत अधिक मिल सकता है.
कम खाना और गम खाना अच्छा (कम खा लो, गम खा लो). कम खाओ और मन को समझा कर रखो यह अधिक अच्छा है. अधिक पाने की लिप्सा में आदमी गलत काम करता है और अधिक खाने के चक्कर में स्वास्थ्य खराब कर लेता है. कुछ लोग इस तरह से बोलते हैं – कम खाना, गम खाना और किनारे से चलना.
कम खानें और गम खानें, न हकीम के जाने, न हाकिम के जाने. (बुन्देलखंडी कहावत) कम खाओ और संतोष रखो तो न तो वैद्यों के चक्कर लगाने पड़ेंगे न कचहरी के.
कम जोर और गुस्सा ज्यादा, यही मार खाने का इरादा. कमजोर आदमी ज्यादा गुस्सा दिखाएगा तो पिटेगा.
कम मोल की और बहुत दुधारी. गाय की तारीफ़ में कही गई बात. कोई वस्तु कम कीमत की हो और बहुत उपयोगी हो तो यह कहावत कही जाती है. इससे मिलती जुलती एक कहावत है – कम खर्च बालानशीन.
कमउआ आवें डरते, निखट्टू आवें लड़ते. किसी घर में चार पुरुष हैं दो कमाने वाले हैं और दो निखट्टू हैं. जो कमाऊ हैं वे तो घर में गंभीर और चिंतित मुद्रा में घुसते हैं, क्योंकि उनके ऊपर जिम्मेदारियों का बोझ होता है. पर जो निखट्टू हैं वे झगड़ते हुए ही घर में घुसते हैं. हमारा फला काम क्यों नहीं हुआ. हमारे लिए फलानी चीज क्यों नहीं बनी. अमुक व्यक्ति की हमसे ऐसा बोलने की हिम्मत कैसे हुई वगैरा-वगैरा.
कमजोर देही में बहुत रीसि होला. (भोजपुरी कहावत) कमजोर शरीर में बहुत गुस्सा होता है. जो शक्तिशाली हैं वे गंभीर होते हैं.
कमबख्त गए हाट, न मिली तराजू न मिले बांट. भाग्य साथ न दे तो कहीं कुछ भी नहीं मिलता है.
कमबख्ती की निशानी, सूख गया कुएं का पानी. अभागा आदमी पानी पीने गया तो कुँए का पानी ही सूख गया.
कमर का मोल है, तलवार का नहीं. ताकत तलवार में नहीं उसे बांधने वाले में होती है.
कमर टूटे रंडी की और भडुवे ओढें दुशाला. वैश्या बेचारी नाच नाच कर अपनी कमर तोड़ लेती है (मेहनत करती है) और दलाल लोग (बिना कुछ किए) गुलछर्रे उड़ाते हैं.
कमर में तोसा, बड़ा भरोसा. तोसा – खाने का सामान. अपनी आवश्यकता का सामान अपने पास हो तो मन में बड़ी संतुष्टि और आत्म विश्वास रहता है.
कमर में लंगोटी, नाम पीताम्बरदास. नाम के विपरीत गुण.
कमला काहू की न भई. लक्ष्मी किसी की सदा के लिए नहीं होती.
कमला थिर न रहीम कहि यह जानत सब कोय, पुरुष पुरातन की वधू क्यों न चंचला होय. धन दौलत, माया किसी के पास स्थिर रूप से नहीं रहता.
कमला नारी कूपजल, और बरगद की छांय, गरमी में शीतल रहें शीतल में गरमाय. लक्ष्मी स्वरूपा स्त्री, कुएं का जल और बरगद की छाँव, ये गर्मी में शीतल रहते हैं और सर्दी में गर्म.
कमली ओढ़ने से कोई फ़कीर नहीं होता. साधुओं जैसा वेश धर लेने से कोई साधु नहीं हो जाता.
कमा कर खाने में दोष नहीं चुरा कर खाने में दोष है. पैसा कमाने के लिए यदि कोई छोटे से छोटा काम भी करना पड़े, तो वह चुरा कर खाने से अच्छा है.
कमाई में हाथ गंदे करने ही पड़ते हैं. केवल ईमानदारी से व्यापार नहीं किया जा सकता.
कमाई सब को दिखती है, दुख किसी को नहीं दिखता. कोई व्यक्ति दिन रात मेहनत कर के किसी मुकाम पर पहुँचा हो अभी भी तरह तरह के कष्ट उठा कर पैसा कमा रहा हो तो उस के कष्ट किसी को नहीं दीखते, बस उस की कमाई दिखती है.
कमाऊ खसम कौन न चाहे. सभी स्त्रियाँ चाहती हैं कि उन्हें अच्छा कमाने वाला पति मिले. लाभ के पद पर बैठे व्यक्ति से सब दोस्ती करना चाहते हैं.
कमाऊ पूत किसे अच्छा नहीं लगता. स्पष्ट.
कमाऊ पूत की दूर बला. कमाने वाला पुत्र सब परेशानियों से दूर रहता है.
कमाए थोड़ो खरचे घनो, पहलों मूर्ख उस को गिनो. जो व्यक्ति आमदनी से अधिक खर्च करता है वह सबसे बड़ा मूर्ख होता है.
कमान से निकला तीर और जुबान से निकली बात कभी वापस नहीं आती. बात सोच समझ कर बोलना चाहिए क्योंकि मुँह से निकली बात वापस नहीं ली जा सकती.
कमानी न पहिया, गाड़ी जोत मेरे भैया. साधन न होते हुए भी जबरदस्ती काम करने के लिए कहना.
कमाय न धमाय, मोको भूंज भूंज खाय. निठल्ले पति के लिए पत्नी का कथन, निठल्ले बेटे के लिए माँ या बाप का कथन.
कमावे तो वर, नहीं कुआंरा ही मर. कमाने की सामर्थ्य हो तभी विवाह करना चाहिए नहीं तो कुआंरा ही रहना चाहिए.
कमावे धोती वाला, उड़ावे टोपी वाला. कमाए कोई और उड़ाए दूसरा कोई. यहाँ पर अभिप्राय इस बात से भी है कि मेहनतकश (धोतीवाला) कमाए और नेता और अफसर (टोपीवाले) खाएं.
कर की नाड़ी कर ही जाने. हाथ की नब्ज़ को हाथ से ही टटोला जाता है.
कर तो डर, न कर तो भी खुदा के गज़ब से डर. यदि हम कोई काम गलत करते हैं तो हमें डरना चाहिए. यदि गलत काम नहीं भी करते हैं तो भी ईश्वर के कोप से डरना चाहिए.
कर भला हो भला. जो दूसरों का भला करता है उस का भला अवश्य होता है.
कर ले सो काम, भज ले सो राम. जो कुछ करना हो उसे शीघ्र कर लेना चाहिए, उसमें आलस्य नहीं करना चाहिए. कबीर दास जी ने भी कहा है काल्ह करे सो आज कर.
कर सेवा तो खा मेवा. (बिन सेवा मेवा नहीं). बड़ों की सेवा करने से ही फल मिलता है.
करके खाना और मौज उड़ाना. खूब मेहनत करो, खूब कमाओ और प्रसन्न रहो. मेहनत करे बिना ख़ुशी नहीं मिल सकती.
करघा छोड़ तमाशे जाए, करम की चोट जुलाहा खाए. पहले जमाने में जब टीवी, सिनेमा इत्यादि नहीं थे तो लोगों के मनोरंजन के मुख्य साधन मेला और तमाशा हुआ करते थे. भीड़ भाड़ वाले स्थान पर कुछ कलाकार इकट्ठे हो कर नाच गाना, नाटक, मदारी का खेल, नट का खेल, जादू इत्यादि दिखाते थे और उसके बाद लोगों से पैसा मांगते थे उसी को तमाशा कहते थे. कहावत में कहा गया है कि जो व्यक्ति अपना रोज़गार छोड़ कर तमाशा देखने जाएगा वह बहुत नुकसान उठाएगा.
करघा बीच जुलाहा सोहे, हल पर सोहे हाली, फौजन बीच सिपाही सोहे, बाग़ में सोहे माली. अपने अपने काम में हर व्यक्ति शोभा देता है. कहावत में यह सन्देश भी दिया गया है कि कोई काम छोटा नहीं होता, सब का अपना महत्त्व है. हाली – हल चलाने वाला.
करजदार, पत्थर खाए हर बार. कर्ज़दार व्यक्ति को बहुत जलालत झेलनी पड़ती है.
करजा भला ना बाप का बेटी भली ना एक, करमा के लेख उघाड़ उघाड़ देख. कर्ज हमेशा बुरा होता है (चाहे पिता से ही क्यों न लिया हो) और एक ही सन्तान हो वह भी बेटी यह भी अच्छा नहीं होता.
करत करत अभ्यास के जड़ मति होत सुजान. जड़ मति का अर्थ है कोई कम बुद्धि वाला अकुशल व्यक्ति. सुजान का अर्थ है चतुर और कार्य कुशल. कहावत का अर्थ स्पष्ट है. इस दोहे की अगली पंक्ति को आम तौर पर नहीं बोला जाता है. अगली पंक्ति है – रस्सी आवत जात से सिल पर परत निशान, कुँए में से पानी निकालने के लिए जो रस्सी बाल्टी में बाँधी जाती है उसकी रगड़ बार बार लगने से पत्थर पर निशान बन जाता है. इंग्लिश में इस कहावत को इस प्रकार कहते हैं – practice makes a man perfect.
करत न कूकर वृन्द की कछु गयंद परवाह. कूकर वृन्द – कुत्तों का झुण्ड, गयंद – हाथी. हाथी कुत्तों के झुण्ड की परवाह नहीं करता.
करता गुरु, न करता चेला. जो अभ्यास करता रहता है वह कुशल हो जाता है, जो अभ्यास नहीं करता वह कभी नहीं सीख सकता बल्कि सीखा हुआ भी भूल जाता है.
करता था सो क्यों किया, अब कर क्यों पछिताय, बोया पेड़ बबूल का, आम कहाँ से खाय. जब गलत काम कर रहे थे उस समय कुछ सोचा नहीं तो अब क्यों पछता रहे हो. बबूल का पेड़ बोया है तो आम खाने को कैसे मिल जाएगा.
करते से न करे वो बावला, न करते से करे वो भी बावला. अपने साथ बुरा करने वाले से जो बदला न ले वह मूर्ख है और जो बुरा न करने वाले के साथ बुरा करे वह और बड़ा मूर्ख है.
करना चाहे आशिकी और मामाजी से डरे. आशिकी करना चाह रहे हैं और घर के बड़े लोगों से डर भी लग रहा है. डर डर के काम करने वालों के लिए.
करना चाहे काम, बसना चाहे गाँव. अगर काम करना चाहते हो (व्यापार, खेती या नौकरी) तो घर पर मिलने वाली सुविधाओं का लालच छोड़ना पड़ेगा.
करनी न करतूत, कहलाएं पूत सपूत. पुत्र करते कुछ नहीं हैं पर माँ बाप उन की प्रशंसा में फूले नहीं समा रहे हैं.
करनी न करतूत, लड़ने को मजबूत. जो व्यक्ति काम तो कुछ न करे पर लड़ने- झगड़ने में तेज हो.
करनी न खाक की, बातें मारे लाख की. जो व्यक्ति करता धरता कुछ न हो और बातें बड़ी बड़ी बनाता हो.
करनी ना धरनी, धियवा ओठ बिदोरनी. (भोजपुरी कहावत) धियवा – बेटी, होठ बिदोरनी – मुँह बनाने वाली. कुछ काम भी न करना और दूसरे के काम में कमियाँ निकालना.
करनी ही संग जात है, जब जावे छूट शरीर, कोई साथ न दे सके, मात पिता सुत वीर. अंत समय पर कोई नाते रिश्तेदार साथ नहीं जाता केवल आपके सत्कर्म ही साथ जाते है.
करम और परछाई साथ कभी न छोड़ें. भाग्य और परछाईं कभी साथ नहीं छोड़ते.
करम करो सुख पाओ. सुख केवल कर्म कर के ही प्राप्त किया जा सकता है. यदि फल मिले तब तो सुख है ही और यदि फल न भी मिले तो इस बात का संतोष होता है कि हमने प्रयास तो किया.
करम की गति कोई न जाने. भाग्य की गति नहीं जानी जा सकती.
करम के बलिया, रांधी खीर हो गयो दलिया. कर्मों के बलिहारी जाएं. भाग्य से ही सब कुछ मिलता है. कर्महीन व्यक्ति ने खीर बनाई तो दलिया बन गया.
करम गति टारे नाहिं टरी. यह सही है कि मनुष्य को पुरुषार्थ के बिना कुछ नहीं मिलता पर यह भी सही है कि वह कितना भी पुरुषार्थ कर ले, अपने कर्मों के फल अर्थात प्रारब्ध को नहीं टाल सकता.
करम चले दो डग आगे. आप कहीं भी जाएँ, भाग्य उस से पहले ही वहाँ पहुँच जाता है.
करम छिपे न भभूत रमाए. दुष्कर्मी साधुओं के लिए कहा गया है. भभूत लगा लेने से उन की असलियत नहीं छिप जाती.
करम दरिद्री नाम चैनसुख. कहावतों में करम का अर्थ कर्म (पुरुषार्थ) से भी होता है और कर्मफल (भाग्य) से भी. किसी दरिद्र व्यक्ति का नाम चैनसुख है अर्थात गुण के विपरीत नाम.
करम फूटे का इलाज हो सकता है पर घर फूटे का कोई इलाज नहीं. भाग्य खराब हो इस का इलाज तो हो सकता है, पर घर में फूट पड़ जाए तो उस का कोई इलाज नहीं हो सकता.
करम फूटे को अकल फूटा मिल ही जाता है. जिसका भाग्य खराब हो उसे मूर्ख लोग ही मिलते हैं.
करम बिना नर कौड़ी न पावै. 1. कर्म किए बिना हम कुछ भी हासिल नहीं कर सकते. 2. भाग्य में न लिखा हो तो कुछ नहीं मिल सकता.
करम में कंकर लिखे और हीरों की चाह करे. भाग्य में कुछ न होते हुए भी बहुत इच्छाएँ रखना.
करम में कौए का पंजा. बिल्कुल भाग्यहीन व्यक्ति.
करम में लिख्या कंकर, तो के करें शिव शंकर. जिसके भाग्य में कुछ न मिलना लिखा हो उसकी सहायता ईश्वर भी नहीं करता.
करम से करम. करम – कर्म, करम – भाग्य. मनुष्य कर्म कर के ही भाग्य का निर्माण करता है.
करम हीन जब होत हैं, सबहु होत हैं बाम, छाँव जान जंह बैठते, तहां होत है घाम. जब भाग्य साथ न दे रहा हो तो सभी आपके विपरीत हो जाते हैं. जहाँ आप छाँव समझ कर बैठते हैं वहाँ कड़ी धूप आ जाती है.
करमहीन खेती करे, बैल मरे सूखा पड़े. भाग्य के बिना सफलता नहीं मिलती. अभागे व्यक्ति ने खेती करना चाही तो बैल मर गए और सूखा पड़ गया.
करमहीन लंबा जिए. अभागे व्यक्ति की उमर लम्बी होती है.
करमहीन सागर गए, जहां रतन को ढेर, कर छूअत घोंघा भए, यही करम को फेर. अभागा व्यक्ति समुद्र के किनारे गया, वहाँ रत्नों का ढेर लगा था. लेकिन कर्मों का फेर देखिये, हाथ लगते ही वे रत्न घोंघा बन गए. तात्पर्य यह है कि बिना भाग्य के किसी को कुछ नहीं मिल सकता.
करमू चले बरात, करम गत संगै जैहै. (बुन्देलखंडी कहावत) भाग्यहीन व्यक्ति कहीं भी चला जाए, कर्मों की गति उसका साथ नहीं छोड़ती (उसको बरात में भी अपमान झेलना पड़ता है).
करवा कुम्हार को, घी जजमान को, का लगे बाप को स्वाहा. करवा कुम्हार का है, घी जजमान का है, पंडित जी के बाप का क्या जा रहा है, खूब स्वाहा करो. दूसरों के माल को बेदर्दी से खर्च करने वालों के लिए.
करा नहीं तो कर देखो, जिसने किया उसका घर देखो. किसी का बुरा नहीं किया तो अब कर के देख लो. जिसने किसी का बुरा किया हो उसके घर जा कर उसका हाल देख लो.
करि कुचाल अंतहि पछतानी. कुचाल – नीच कार्य. निम्न श्रेणी के कार्य करोगे तो अंत में पछताना पड़ेगा.
करिया बादर जी डरियावे, भूरा बादर पानी लावे. काले बादल को देख कर डर जरूर लगता है पर वह वर्षा नहीं करता, वर्षा भूरे बादल से होती है.
करी भलाई आपनो चित सों दे बिसराय, मानो डारी कूप में काहू सों न जनाय. किसी के साथ भलाई कर के भूल जाना चाहिए, किसी को जताना नहीं चाहिए. इस कहावत को इस प्रकार भी कहते हैं – नेकी कर कूएँ में डाल.
करे एक, भरें सब. किसी एक व्यक्ति की गलती का खामियाजा बहुत से लोगों को उठाना पड़ता है.
करे कारिन्दा नाम बरियार का, लड़े सिपाही नाम सरदार का. छोटे लोग काम करते हैं परन्तु नाम उनके सरदार का होता है.
करे कोई भरे कोई. गलती किसी और की है नुकसान किसी दूसरे का हो रहा है.
करे दाढ़ीवाला, पकड़ा जाए मुँछोंवाला. अपराध कोई और कर रहा है, सजा किसी और को मिल रही है.
करे न धरे, सनीचर को दोस. कुछ काम नहीं करते हैं और भाग्य में शनि बैठा होने का बहाना करते हैं.
करे प्रपंच, कहलावे पंच. कहावत उन लोगों के लिए है जो छल कपट कर के भी समाज में सम्माननीय बने रहते है. भ्रष्ट न्याय व्यवस्था पर भी व्यंग्य है.
करे सो डरे. अर्थ दो प्रकार से है- 1. जो जिम्मेदार व्यक्ति होता है वह डरता है कि कहीं कुछ गलत न हो जाए. जो कुछ करे ही नहीं उसे किस बात का डर. 2. जो अपराध या पाप करता है वह डरता भी रहता है.
करे सो भरे, खोदे सो पड़े. जो किसी का बुरा करता है वह उसका दंड भरता है, जो दूसरों के लिए खाई खोदता है वह स्वयं उसमें गिरता है.
करें कल्लू, भरें लल्लू. गलती कोई और कर रहा है, खामियाजा कोई और भुगत रहा है.
करेगा टहल तो पाएगा महल. बड़े लोगों की सेवा करोगे तो उपयुक्त पुरस्कार पाओगे.
करेगा सो भरेगा. जो गलत काम करेगा वह उसका खामियाजा भी भुगतेगा.
करेला वो भी नीम चढ़ा (गिलोय और नीम चढ़ी). कोई मूर्ख या दुष्ट व्यक्ति और अधिक दुर्गुणों से लैस हो जाए तो.
करो खेती और भरो दंड. खेती करने वाला बेचारा खेती में भी पिसता है और लगान भी देता है. जो कुछ नहीं करते उन्हें कोई टैक्स वैक्स नहीं देना होता.
करो तो सबाब नहीं, न करो तो अजाब नहीं. अजाब – पाप का दंड. कोई ऐसा काम जिसे करने में पुण्य न मिले और न करने में पाप भी न हो.
क़र्ज़ काढ़ करे व्यवहार, मेहरारू से रूठे जो भतार, बेपूछे बोले दरबार, ये तीनों पूंछ के बार. यहाँ व्यवहार से मतलब है सामाजिक लेन देन. जो सामाजिक लेन देन के लिए क़र्ज़ लेता है, जो पति अपनी पत्नी से रूठता है और जो बिना पूछे दरबार में बोलता है, ये सब निकृष्ट लोग होते हैं.
क़र्ज़ बाप का भी बुरा. कर्ज पिता से भी नहीं लेना चाहिए.
कर्ज, मर्ज और फर्ज को कभी छोटा नहीं समझना चाहिए. क़र्ज़ न चुकाएँ तो ब्याज लग कर बढ़ता जाएगा इसलिए उसको हलके में न लें, बीमारी छोटी सी दिखती हो तो भी एकदम से बढ़ कर खतरनाक हो सकती है इसलिए हलके में नहीं लेना चाहिए और अपने कर्तव्य को भी कभी हलके में नहीं लेना चाहिए.
कर्ज, सात जनम का मर्ज. कोई व्यक्ति कर्ज लेता है तो उशकी कई पीढ़ियों को चुकाना पड़ सकता है.
कर्ज़दार छाती पर सवार. उलटी बात. जिसने आपसे क़र्ज़ लिया है वही आपकी छाती पर सवार है.
कर्ज़दार दो घरों को पालता है. कर्ज लेने वाला व्यक्ति व्यापार आदि कर के अपने परिवार को पालता है और ब्याज चुका कर साहूकार के परिवार को भी पालता है.
कर्ता से कर्तार हारे. परिश्रम करने वाले के आगे ईश्वर भी नतमस्तक हो जाते हैं.
कर्मे खेती कर्मे नार, कर्मे मिले कुटुम परिवार (सुजन दो चार). अच्छी खेती, अच्छी स्त्री और अच्छा परिवार भाग्य से ही मिलते हैं.
कल का लीपा देओ बहाय, आज का लीपा देखो आय. कल की बात को भूल जाओ. आज की योजना बनाओ. आजकल के लोगों को यह नहीं मालूम होगा कि पहले जमाने में चूल्हे चौके को मिट्टी या गोबर से लीपा जाता था.
कल के जोगी, पैर तक जटा. नए नए पैसे वाले अधिक शान शौकत दिखाएँ तो.
कल देवेगा कल पाएगा, कलपाएगा कल पाएगा. कल – चैन, कलपाना – तड़पाना. दूसरों को सुख चैन देगा तो खुद भी सुख चैन पाएगा. किसी को दुख देगा तो वैसा ही दुख कल को स्वयं भी पाएगा.
कल मरी सासू, आज आया आंसू. बनावटी दुःख.
कलकत्ता के कमाई जूता छाता में लगाई. बड़े शहरों में कमाई अधिक होती है लेकिन वहाँ का रहन सहन भी बहुत महंगा होता है.
कलकत्ते नहिं जाना, चाहे जहर खाय मर जाना. गाँव या छोटे शहर में रहने वाले सीधे साधे व्यक्ति से जब कहा जाता है कि बड़े शहर में जा कर जीविका कमाओ तो वह बहुत घबरा जाता है.
कलजुग के लइका करै कचहरी, बुढ़वा जोतै हल. कलियुग में लड़का संपत्ति के लिए कचहरी के चक्कर लगाता है और बूढ़े बाप को खेत मे हल चलाना पड़ता है.
कलम और तलवार वाले कभी भूखे नहीं मरते. पढ़े लिखे व्यक्ति और योद्धा को भूखे मरने की नौबत नहीं आती.
कलयुग के जोगी भाई भाई. कलयुग के साधु सब एक से.
कलयुग में झूठ ही फले. कलयुग में झूठ बोलने वाले मजे मार रहे हैं और सच बोलने वाले कष्ट झेल रहे हैं.
कलहारी कल कल करे, दूहारी छू होए, अपनी अपनी बान से कभी न चूके कोय. कलहारी (लड़ाका स्त्री) लड़ती रहती है और दूहारी (आपस में झगड़ा कराने वाली) झगड़ा करा के गायब हो जाती है. किसी की दुष्टता नहीं छूटती.
कलार की दुकान पर पानी पियो तो भी शराब का शक होता है. कलार – शराब बेचने वाला. अर्थ यह है कि बदनाम लोगों से किसी प्रकार का भी मेलजोल नहीं रखना चाहिए.
कलाली की बेटी डूबने चली, लोग कहें मतवाली (कलार का लड़का भूखा मरे और लोग कहें मतवाला). शराब बेचने वाले की बेटी डूबने चली तो लोग समझते हैं कि वह नशे में है. अगर आप गलत काम करते हैं या लोगों के साथ रहते हैं तो लोग हमेशा आप को गलत ही समझेंगे.
कवित्त सोहे भाट ने और खेती सोहे जाट ने. भाट को कविता पढ़ना शोभा देता है और जाट को खेती करना. सबको अपना अपना काम शोभा देता है.
कश्मीरी बेपीरी, जिनमें लज्ज़त न शीरीं. काश्मीरी लोग बेमुरव्वत होते हैं.
कश्मीरी से गोरा सो कोढ़ी. काश्मीरी लोग बहुत गोरे होते हैं. इसलिए ऐसा कहा गया कि उन से गोरा केवल कुष्ठ रोगी ही हो सकता है. सामान्य लोग कुष्ठ रोग और सफ़ेद दाग की बीमारी (leukoderma) में अंतर नहीं जानते इसलिए वे ल्यूकोडर्मा के रोगी को भी कोढ़ी समझ लेते हैं. कुष्ठ रोगियों में अलग प्रकार के हल्के रंग के दाग होते हैं.
कसम और तरकारी खाने के लिए ही बने हैं. कसम खा कर मुकर जाने वाला बेशर्म आदमी इस प्रकार बोलता है.
कसाई का अनाज और पाड़ा खा जाए. कसाई जैसे खतरनाक इंसान का अनाज बछड़े जैसा निरीह प्राणी कैसे खा सकता है.
कसाई का खूँटा और खाली रहे. कसाई के खूंटे पर लगातार कोई न कोई जानवर बंधा रहता है. किसी भी चलते हुए व्यापार में काम आने वाले उपकरण कभी खाली नहीं रहते.
कसाई की लौंडिया, छिछ्ड़ों की भूखी. जहाँ जिस चीज़ की बहुतायत होना चाहिए वहाँ उस का अभाव हो तो.
कसाई रोवे मांस को बकरा रोवे जान को. बकरा इस बात से परेशान है कि उस की जान जा रही है, कसाई इस बात से परेशान है कि बकरे में माल कम निकला. सब की अपनी अपनी परेशानी, सब के अपने अपने दृष्टिकोण.
कस्तुरी कुँडलि बसै, मृग ढूँढे बन माहिँ, ऐसे घट घट राम हैं, दुनिया देखे नाहिँ. कस्तूरी मृग की नाभि में कस्तूरी होती है पर वह उसे वन में ढूँढता फिरता है. इसी प्रकार ईश्वर सभी के भीतर विद्यमान हैं और मनुष्य सब जगह ढूँढता फिरता है.
कस्तूरी की गंध सौगंध की मोहताज नहीं. जो वास्तविक गुण होते हैं उन्हें किसी के द्वारा प्रमाणपत्र दिए जाने की आवश्यकता नहीं होती.
कह कर खाने वाली डायन नहीं कहलाती (कह कर खाए वो डायन कैसी). खुल्लम खुल्ला अनाचार करने वाले लोग भ्रष्ट नहीं कहलाते.
कहत बड़े जन सांच है, बात हवा ले जात. मुँह से निकली हुई बात बहुत तेज़ी से फैलती है.
कहना सरल है करना कठिन. अर्थ स्पष्ट है.
कहने से करना भला. जो लोग बातें बड़ी बड़ी करते हैं पर काम कुछ नहीं करते उनको सीख देने के लिए यह कहावत कही जाती है.
कहने से कुम्हार गधे पर नहीं चढ़ता है. बहुत से कुम्हार बर्तन वगैरह ढोने के लिए गधा पालते हैं कभी-कभी मस्ती लेने के लिए खुद भी गधे की सवारी कर लेते हैं. लेकिन यदि आप उससे कहें कि भैया जरा गधे पर चढ़ के दिखाओ तो वह गधे पर नहीं चढ़ता. यदि किसी व्यक्ति की ऐसी आदत हो कि वह कहने पर कोई काम न करे केवल अपने मन से ही करे तो उसका मजाक बनाने के लिए यह कहावत कही जाती है.
कहवे को अबला, बोलवे को सबला. लड़ाका स्त्रियों के लिए.
कहा न अबला करि सके, कहा न सिन्धु समाय, कहा न पावक में जरे, कहा काल न खाय. स्त्री अबला होते हुए भी क्या नहीं कर सकती (अर्थात सब कुछ कर सकती है), समुद्र में क्या नहीं समा सकता, आग में क्या नहीं जल जाता और काल किसे नहीं खा लेता? इसके उत्तर में किसी ने कहा है – सुत नहिं अबला करि सकै (पुरुष के बिना), मन नहिं सिन्धु समाय, धर्म न पावक में जरे, नाम काल नहिं खाय.
कहा भी न जाए चुप रहा भी न जाए. किसी परिस्थिति में जब आप कुछ कहने का साहस न जुटा पा रहे हों और चुप रहने में भी कष्ट हो रहा हो. भोजपुरी कहावत – का कहीं कुछ कही ना जाता अउरी कहले बिना रही ना जाता.
कहाँ कहाँ मन रुच करे, जीवन है छन भंग. (कहाँ कहाँ मन रुच करे, मिलो यो तन छन भंग). जीवन इतना छोटा है इस में व्यक्ति किस किस चीज़ में रूचि ले, कहाँ कहाँ मन लगाए.
कहाँ गरजा, कहाँ बरसा. बादल गरजा कहीं और बरसा कहीं और. कोई व्यक्ति गाली गलौज कहीं पर करे और मारपीट कहीं और तो.
कहाँ राजा भोज, कहाँ गंगू तेली. जब दो लोगों के सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक स्तर में बहुत अंतर हो तो.
कहाँ राम राम, कहाँ टांय टांय. तोता टांय टांय करता है पर सिखाने पर राम राम बोलने लगता है. असभ्य अशिक्षित व्यक्ति शिक्षा पा कर योग्य बन जाता है. इसका दूसरा अर्थ यह है कि तोते तोते में कितना फर्क होता है, एक राम राम कहता है और दूसरा टांय टांय ही करता है.
कहानी बिना कैसा व्रत. हर व्रत की कोई न कोई कहानी होती है. पहले के समय घर की बड़ी बूढियाँ, बहू बेटों पोतों को वे कहानियाँ सुनाया करती थीं.
कहीं आग कहीं पानी. कहीं लोग गर्मी से परेशान हैं कहीं अतिवृष्टि से. आग और पानी का अर्थ लड़ाई और शांति से भी हो सकता है.
कहीं आग कहीं शोले. आग कहीं और लगी है और उसका असर कहीं और हो रहा है.
कहीं की ईट कहीं का रोड़ा, भानु मती ने कुनबा जोड़ा. बिलकुल बेमेल चीजों को जोड़ कर कोई बेतुकी चीज़ बना देना.
कहीं डूबे भी तिरे हैं. जो डूब जाएँ वे फिर सतह पर नहीं आते. एक बार नाम और सम्मान खो जाने पर वापस नहीं आ सकता. व्यापार चौपट होने के बाद दोबारा खड़ा नहीं हो सकता.
कहीं तो सूहा चूनरी, और कहीं ढेले लात. अपना अपना भाग्य है, कहीं स्त्री को सुहाग का जोड़ा पहनने को मिल रहा है और कहीं लात घूंसे खाने पड़ रहे हैं. सूहा माने एक प्रकार का गहरा लाल रंग.
कहीं नाखून भी गोश्त से जुदा हुआ है. खून के रिश्ते, सच्चे प्रेमी और सच्चे मित्र अलग नहीं होते.
कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना. ऊपर से कुछ और दिखाना पर मन में कुछ और होना.
कहीं सूखे दरख़्त भी हरे हुए हैं. एक बार सूखने के बाद पेड़ दोबारा हरा भरा नहीं हो सकता. रिश्तों के विषय में और व्यक्ति के मान सम्मान के विषय में भी ऐसा ही कहा जाता है.
कहीं कल से तो कहीं बल से. कहीं युक्ति से काम होता है और कहीं ताकत से.
कहु रहीम कैसे निभै, बेर केर को संग, वे डोलत रस आपने, उनके फाटत अंग. केले का पेड़ बेर के पेड़ के पास लगा है. बेर हवा चलने पर झूमता है तो उसके काँटों से केले का कोमल तना फट जाता है. कहावत का अर्थ है कि दो विपरीत प्रकृति वाले लोगों का साथ नहीं निभ सकता.
कहूँ तो माँ मार खाय, न कहूँ तो बाप कुत्ता खाय. दुविधा की स्थिति. एक बार एक स्त्री ने बकरे के धोखे में (या जान कर) कुत्ते का मांस पका दिया. बेटे को यह बात मालूम थी. बाप खाना खाने बैठा तो बेटे के सामने यह दुविधा थी कि बता देता है तो बाप माँ को पीटेगा, और नहीं बताता है तो बाप को कुत्ता खाने का पाप लगेगा.
कहे से कोई कुँए में नहीं गिरता. कोई आपका कितना भी बड़ा समर्थक या प्रेमी क्यों न हो आपके कहने से कुँए में नहीं गिरेगा.
कहें खेत की, सुनें खलिहान की (कहें जमीन की, सुनें आसमान की) (कहें कुछ, सुनें कुछ). कुछ का कुछ सुनना.
कहें रणधीर, भाग जात पात खरके सों. अपने को बड़ा वीर बताते हैं और पत्ता खड़कने से भाग जाते हैं. (पात खरके – पत्ता खड़के)
कहो बात, कटे रात. एक दूसरे को ढाढस बंधाने से दुःख के दिन कट जाते हैं.
का टेसू के फूल, का हल्दी को रंग, का बदली की छाँव, का परदेसी को संग. यह सभी चीजें क्षणिक होती हैं. कहावत के द्वारा यह सन्देश दिया गया है कि परदेसियों से प्रेम नहीं करना चाहिए.
का बर्षा जब कृषी सुखानी, (समय चूकि पुनि का पछितानी). खेती के सूखने के बाद वर्षा हो तो उससे क्या फायदा. समय पर कोई काम नहीं किया तो अब क्यों पछताते हो.
काँटा बुरा करील का और बदली की घाम, सौत बुरी है चून की और साझे को काम. करील का काँटा बुरा होता है और बादलों के साथ जो धूप होती है वह बुरी होती है (क्योंकि वह बहुत तेज होती है). सौत चाहे आटे की बनी हुई क्यों न हो बुरी होती है और साझे का काम बुरा होता है (इस कहावत का सबसे मुख्य सन्देश यही है कि साझे का काम कभी नहीं करना चाहिए).
कांट कंटीली झांखड़ी, लागे मीठा बेर. बेर जैसा मीठा फल कंटीली झाड़ियों में ही लगता है.
कांटे से कांटा निकलता है. दुष्ट व्यक्ति को दुष्टता से ही ठीक किया जा सकता है.
कांटों से बाड़ और वचनों से राड़. काँटों से बाड़ बनती है और दुर्वचनों से राड़ (झगड़ा).
कांधिये किराए पर नहीं मिलते. कांधिये – अर्थी को कंधा देने वाले. जो लोग धन के घमंड में अपने नातेदारों का आदर नहीं करते उन्हें सीख देने के लिए.
कांधे डाली झोली, डोम छोड़ा न कोली. भीख मांगने वाले किसी को नहीं छोड़ते. डोम – श्मशान में काम करने वाले लोग. कोली – मछुआरा. आजकल के समाज में जाति सूचक शब्दों का प्रयोग बुरा माना जाता है, लेकिन कहावतें पुराने जमाने की हैं, उन को जैसा सुना वैसा लिख दिया गया है. इन में हमारी ओर से कुछ नहीं जोड़ा गया है.
कांसी, कुत्ती, कुभार्या, बिन छेड़े कूकंत. कांसे की थाली, कुतिया और झगड़ालू पत्नी बिना छेड़े ही बोलती हैं.
काक कहहिं पिक कंठ कठोरा. कौआ कह रहा है कि कोयल की आवाज कर्कश है. कोई मूर्ख व्यक्ति किसी विद्वान पर आक्षेप करे तो.
काका काहू के न भए. जो व्यक्ति अपने ही लोगों को धोखा दे उस के लिए मज़ाक में.
काका के हाथ में कुलहाड़ी हल्की मालूम होती है. जब खुद उठानी पड़े तो मालूम होता है कि कुलहाड़ी कितनी भारी है. बच्चों को पालने में माँ बाप को कितनी मेहनत पड़ती है यह तब मालूम पड़ता है जब खुद बच्चे पालने पड़ते हैं.
काका जी को मरता देख मरने से मन हट गया. जो लोग बात बात पर मरने की धमकी देते हैं उन पर व्यंग्य. दूसरा अर्थ है कि अपने किसी सगे सम्बंधी की मृत्यु होने पर मालूम पड़ता है कि मृत्यु कितना भयावह अनुभव है.
काग कुल्हाड़ी कुटिल नर काटे ही काटे, सुई सुहागा सत्पुरुष सांठे ही सांठे. कौवा, कुल्हाड़ी और दुष्ट पुरुष केवल काटना ही जानते हैं जबकि सुई सुहागा और सत्पुरुष केवल जोड़ते ही हैं.
काग पढ़ायो पीन्जरो, पढ़ गयो चारों वेद, समझायो समझो नहीं, रह्यो ढेढ को ढेढ. एक महात्मा जी ने कौवे को पिंजरे में बंद कर के अपनी विद्या के बल पर चारों वेद पढ़ा दिए. पर जैसे ही पिंजड़े का दरवाजा खोला वह बाहर निकल कर रैंट खाने को भागा.
कागज की नाव ज्यादा देर नहीं चलती (कागज़ की नाव, आज न डूबी कल डूबी). कागज़ की नाव पानी में अधिक देर नहीं चल सकती, कुछ देर बाद गल जाएगी. झूठ के सहारे या अपर्याप्त साधनों के सहारे खड़ा किया गया व्यापार अधिक दिन नहीं चल सकता.
कागज की भसम किन भस्मों में, बिन ब्याहा खसम किन खसमों में. कोई स्त्री बिना विवाह के किसी पुरुष को पति नहीं मान सकती. ऐसा सम्बन्ध उतना ही निरर्थक है जितनी कागज़ की राख.
कागज हो तो हर कोई बांचे, भाग न बांचा जाए. कागज पर लिखा हर कोई पढ़ सकता है पर भाग्य में क्या लिखा है यह कोई नहीं पढ़ सकता.
कागभगोड़ा न खावे न खावन दे. खेत में बांस की खपच्चियों को कुरता पहना कर उसके ऊपर उल्टा मटका रख देते हैं कि दूर से कोई आदमी खड़ा हुआ लगता है. इस को देख कर पक्षी आदि डर कर खेत में नहीं आते. कोई ईमानदार हाकिम न खुद रिश्वत लेता हो और न लेने देता हो तो उस के मातहत चिढ़ कर ऐसे बोलते हैं. (परिशिष्ट)
कागा कहा कपूर चुगाए, श्वान न्हवाए गंग. कौवे को कपूर खिलाओ और कुत्ते को गंगा में नहलाओ तो भी इनका स्वभाव नहीं बदलेगा.
कागा किस का धन हड़पे, कोयल किस को देय, मीठ बोल के कारने जग अपनो कर लेय. न कौवा किसी का कोई नुकसान करते है और न ही कोयल किसी को कुछ देती है. कौवे की बोली कर्कश है इसलिए सब उससे चिढ़ते हैं और कोयल मीठा बोलती है इसलिए सब को अपना बना लेती है.
कागा कूकुर और कुमानुस तीनों जात कुजात. कौवा, कुत्ता और कुमानुष तीनों ही निकृष्ट श्रेणी के जीव माने गए हैं.
कागा बोले, पड़ गए रौले. 1.भोर होते ही कागा बोलता है और दुनिया की दौड़ भाग शुरू हो जाती है. 2.कुटिल आदमी कुछ का कुछ बोल कर झगड़े शुरू करा देते हैं.
कागा रे तू मल मल नहाए, तेरी कालिख कभी न जाए. कौवा कितना भी मल मल कर नहा ले उस की कालिख कभी नहीं जाती.
काचर का बीज, एक ही काफी. काचर – एक छोटी ककड़ी जिस का बीज खट्टा और कड़वा होता है और एक ही बीज मनों दूध को फाड़ देता है.
काज परै कछु और है, काज सरै कछु और. ऐसे लोगों के लिए जिनका व्यवहार काम पड़ने पर कुछ और होता है और काम निकल जाने पर कुछ और होता है. (काम परे कछु और है, काम सरे कछु औ)र.
काजल की कोठरी में कैसो भी सयानो जाय, एक लीक काजल की लागे रे लागे रे भाई. गलत काम को आदमी कितनी भी होशियारी से करे कुछ न कुछ दाग लग ही जाता है.
काजल लगाते आँख फूटी. अच्छा काम करने की कोशिश में भारी नुकसान हो जाना.
काजी का प्यादा घोड़े पे सवार. अफसरों के मातहत अपने आपको अफसरों से कम नहीं समझते.
काजी की कुतिया कहाँ जा के ब्याहेगी. जो आदमी अपने को बहुत होशियार समझता हो और एक सामान खरीदने के लिए पच्चीसों दुकानें देखता हो उस का मजाक उड़ाने के लिए दुकानदार ऐसा बोलते हैं.
काजी की घोड़ी कोई घी थोड़े ही मूतती है. बड़े आदमी के नौकर चाकर जानवर सब अपने आप को वीआईपी समझने लगते हैं, उनका मजाक उड़ाने के लिए.
काजी की मारी हलाल होवे. मुसलमानों में किसी पशु का वध करने का खास तरीका होता है. उसी तरह करने पर उसके मांस को हलाल (धर्म सम्मत) माना जाता है नहीं तो वह हराम (निषिद्ध) हो जाता है. काजी (या कोई अति प्रभावशाली व्यक्ति) अगर किसी जानवर को मारे तो सब उसे हलाल मान लेते हैं चाहे उसने कैसे भी किया हो.
काजी की लौंडी मरी सारा शहर आया, काजी मरे कोई न आया. जब आदमी ऊँचे पद पर होता है तो उसके मातहतों तक की बड़ी पूछ होती है और जब वह पद पर नहीं रहता तो उसे भी कोई नहीं पूछता.
काजी के घर के चूहे भी सयाने. बड़े आदमी के नौकर, चाकर, चमचे आदि भी अपने को बहुत होशियार समझते हैं.
काजी के मरने से क्या शहर सूना हो जाएगा. कोई कितना बड़ा आदमी क्यों न हो, उसके मरने से संसार के कार्य रुकते नहीं हैं.
काजी जी दुबले क्यों, शहर के अंदेशे से. (काजी जी तुम क्यों दुबले, शहर का अंदेशा). जिम्मेदार व्यक्ति को हमेशा कोई न कोई चिंता लगी रहती है.
काजी जी पहले अपना आगा ढको, पीछे नसीहत देना. जो बड़े हाकिम खुद तो भ्रष्ट हों और दूसरों को ईमानदारी का उपदेश दे रहे हों, उन को आईना दिखाने के लिए यह कहावत कही जाती है.
काटने को आई चारा, खेत पर इजारा. इजारा – ठेका, पट्टा. चारा काटने को आई और खेत पर अपना दावा ठोंकने लगी. अनधिकार चेष्टा करने वालों के लिए.
काटने वाले को थोड़ा और बटोरने वाले को बहुत. अनाज की कटाई के बाद बचे खुचे गिरे हुए अनाज को बटोरने के लिए लोग लगाए जाते हैं. बटोरे हुए अनाज का कुछ हिस्सा बटोरने वालों को दे दिया जाता है. जहाँ मुख्य काम करने वाले को कम और आलतू फ़ालतू लोगों को ज्यादा मिल जाए वहां यह कहावत कहते हैं.
काटे कटे, न मारे मरे. आसानी से जो काम न हो. कोई आदमी बहुत प्रयास के बाद भी काबू न आए तो.
काटे न तो फुंकार जरूर मार दे. सांप काटेगा नहीं तब भी फुंकार जरूर मारेगा. दुष्ट कुछ न कुछ दुष्टता जरूर करेगा.
काठ की घोड़ी पाँवों नहीं चलती. बनावटी चीज़ असल की तरह काम नहीं कर सकती.
काठ की तलवार, क्या करेगी वार. उपरोक्त के सामान.
काठ की हांडी बार बार नहीं चढ़ती है. (फेर न ह्वैहैं कपट सों, जो कीजै ब्यौपार, जैसे हांडी काठ की, चढै न दूजी बार). अगर कोई हंडिया लकड़ी की बनी हो तो आप उस में बार बार खाना नहीं पका सकते. एक आध बार में ही वह जल जाएगी. कहावत का अर्थ है कि झूठ और बहाने बाजी से एकाध बार ही काम निकाला जा सकता है बार-बार नहीं.
काठ छीलो तो चिकना, बात छीलो तो रूखी. आपसी बातचीत में बहुत बहस नहीं करनी चाहिए और किसी से कोई बात बहुत खोद खोद कर नहीं पूछनी चाहिए (इससे संबंधों में रूखापन आ जाता है).
काणी अपनी टेंट न निहारे, दूजे को पर पर झाकें. जो लोग अपनी कमियाँ न देख कर दूसरे की गलतियाँ निकालते रहते हैं उनके लिए.
काणी का संग सहा न जाए, कानी बिना भी रहा न जाए. किसी व्यक्ति की पत्नी कानी है. अब उसके साथ रहने में भी परेशानी है और उसके बिना काम भी नहीं चलता.
काणी को सराहे काणी को बाप (कानी को सराहे कानी की माँ). औलाद कैसी भी हो माँ बाप हमेशा उसकी तारीफ़ ही करते हैं. क्योंकि उन्हें अपना बच्चा प्रिय होता है और इसलिए भी क्योंकि वे उसका उत्साह बढ़ाना चाहते हैं.
काणे की आंख में डाला घी और यूँ कहे मेरी फोड़ दी. (हरयाणवी कहावत) किसी का भला करने की कोशिश करो और वह आपसे लड़ने को आ जाए तो.
कातिक कुतिया, माघ बिलाई, चैते चिड़िया, सदा लुगाई. कुतिया कार्तिक माह में, बिल्ली माघ में और चिड़िया चैत्र में रजस्वला होती हैं जबकि मानव स्त्रियाँ प्रत्येक माह में रजस्वला होती हैं.
कातिक जो आंवर तले खाय, कुटुम समेत बैकुंठ जाय. आंवर – आंवला. कार्तिक माह में जो आंवले की पूजा करता है वह बैकुंठ जाता है.
कातिक मास रात हर जोतौ, टांग पसार घरै मत सोतौ. (बुन्देलखंडी कहावत) कार्तिक माह में घर पर न सो कर रात को भी हल जोतो तो जुताई पूरी हो पाती है.
कान छिदाय सो गुड़ खाय. पहले के समय में गुड़ भी नियामत होता था, कभी कभी ही खाने को मिलता था. कान छिदाने के लिए बच्चे को गुड़ का लालच दिया जाता था. जो बच्चा कान छिदवाएगा उसी को गुड़ खाने को मिलेगा. कहावत का अर्थ है जो कष्ट उठाएगा वही इनाम पाएगा.
कान प्यारे तो बालियाँ, जोरू प्यारी तो सालियाँ. मजाक की तुकबंदी है. कुछ लोग ऐसे भी बोलते हैं – कान से प्यारी बालियाँ, जोरू से प्यारी सालियाँ.
काना कुबड़ा तिरपटा, मूढ़ में गंजा होय, इन से बातें जब करो, हाथ में डंडा होय. (बुन्देलखंडी कहावत) तिरपटा – भेंगा, एंचा ताना. कुछ लोक विश्वास बड़े बेसिरपैर के होते हैं. इसी प्रकार का एक विश्वास यह भी है कि काना व्यक्ति, कुबड़ा, भेंगा और गंजा आदमी. ये सब दुष्ट होते हैं.
काना खसम भी घूर कर देखे. पति खुद काना है तब भी सुन्दर पत्नी पर रौब दिखा रहा है.
काना मुझको भाय नहीं, काने बिन भी सुहाय नहीं. किसी स्त्री का पति काना है. वह उसे सुहाता नहीं है लेकिन उसके बिना भी काम नहीं चलता. इसी प्रकार की दुविधा वाली परिस्थिति में कहावत का प्रयोग होता है.
कानी अपने मने सुहानी. कानी भी अपने आप को सुंदर समझती है.
कानी आँख देखे भले न, खटकती जरूर है. कानी आँख किसी काम की नहीं होती पर तकलीफ देती है. घर में कोई आदमी निकम्मा हो तो काम तो कुछ नहीं करेगा पर सब को परेशान जरूर करेगा.
कानी के ब्याह को नौ सौ जोखें (कानी के ब्याह में फेरों तक खोट). जोखें – जोखिम, परेशानियाँ. कानी लड़की की शादी करना बहुत मुश्किल काम है. किसी काम में बहुत सारी परेशानियाँ आ रही हों तो इस प्रकार से कहते हैं.
कानी को काजल न सुहाए. कानी को काजल अच्छा नहीं लगता (क्योंकि उस के लिए काजल की कोई उपयोगिता नहीं है).
कानी को काना प्यारा, रानी को राना प्यारा. अपना अपना सगा सम्बन्धी सब को प्यारा होता है.
कानी गदही सोने की लगाम. अपात्र के लिए विशेष सुविधाएँ.
कानी गाय के अलग बथान. कानी गाय अलग बंधना चाहती है क्योंकि उसे घास खाने में कठिनाई होती है. कमजोर बच्चा या व्यक्ति अलग से परवरिश चाहता है. इस से मिलती जुलती कहावत है – कानी बिलरिया के अलगे डेरा.
कानी गाय बाह्मन के दान. घटिया चीज़ दान कर के पुण्य कमाने की कोशिश करना.
कानी गीदड़ी का ब्याह. जब धूप भी निकल रही हो और पानी बरस रहा हो तो बच्चे कहते हैं कि कानी गीदड़ी का ब्याह हो रहा है. कुछ लोग काले चोर का ब्याह बोलते हैं.
कानी बिना रहा न जाये, कानी को देख के अंखियाँ पिराएँ. कानी को देख कर मन कुढ़ता भी है और उस के बिना काम भी नहीं चलता.
कानी बिल्ली घर में सिकार. बिल्ली कानी है (अपाहिज है) तो बाहर न जा कर घर में ही शिकार करेगी. कोई अयोग्य व्यक्ति घर वालों को ही धोखा दे तो.
कानून न कायदा, जी हुजूरी में फायदा. जो लोग कायदे और कानून की बात करते हैं वे पीछे रह जाते हैं और चमचागीरी करने वाले आगे बढ़ जाते हैं.
कानूनगो की खोपड़ी मरी भी दगा दे. कहावत कहने वाले के अनुसार कानूनगो इतने धोखेबाज़ होते हैं कि उनकी मरी हुई खोपड़ी भी इंसान के साथ दगा कर सकती है.
काने की एक रग सिवा होती है. काने के पास धोड़ी सी अतिरिक्त कुटिलता होती है.
काने पे अंधा हंसे. कोई मूर्ख व्यक्ति बुद्धिमान पर हंसे तो.
काने से काना कहो तब तो जानो टूटी, धीरे धीरे पूछो भैया कैसे तेरी फूटी. काने को अगर सीधे सीधे काना कह कर सम्बोधित करोगे तब तो समझो संबंध टूट ही जाएगा. उससे हलके से पूछो कि भैया तेरी आँख में क्या हुआ था. किसी की कमी के विषय में घुमा फिरा कर युक्तिपूर्वक बात करनी चाहिए.
काबुल में मेवा दई, ब्रज में दई करील. (काबुल में मेवा रच्यो, ब्रज में रच्यो करील). ईश्वर की अजीब माया है, काबुल जैसे गधों के देश में मेवा ही मेवा पैदा की है जबकि बृज जैसे पवित्र और प्रिय स्थान पर काँटों भरा करील का पेड़.
काबुल में सब गधे ही गधे. जहाँ सब एक से बढ़ कर एक मूर्ख भरे हों वहाँ के लिए.
काबू आई गूजरी, गहरा बर्तन लाओ. ग्वालन कब्जे में आ गई है, गहरा बर्तन लाओ, ज्यादा दूध मिल जाएगा. किसी से लाभ पाने का मौका हाथ आया हो तो.
काम का न काज का, दुश्मन अनाज का. जो काम काज कुछ न करे केवल खाने में होशियार हो.
काम काज को थर थर काँपे, खाने को मरदानी. काम करने के नाम पर कमजोरी और बुखार, खाने के लिए पूरी तरह तैयार.
काम की न काज की ढाई सेर अनाज की (मन भर अनाज की). जो काम काज कुछ न करे केवल खाने में होशियार हो.
काम को काम सिखाता है. अनुभव से ही काम करना आता है. इस को इस प्रकार भी कह सकते हैं कि एक व्यक्ति के अनुभव से बहुत से लोग सीखते हैं.
काम को सलाम है. काम की ही प्रशंसा होती है.
काम क्रोध मद लोभ की जौं लों मन में खान, का पंडित का मूरखा दोउ एक समान. जब तक मन में काम, क्रोध, अहंकार और लोभ हैं तब तक पंडित और मूर्ख सामान ही हैं. अर्थात इन को जीत कर ही व्यक्ति पंडित बन सकता है.
काम चोर, निवाले हाजिर. काम के नाम पर गायब और खाने के वक्त मौजूद.
काम जो आवे कामरी, का ले करे कुलांच. कुलांच – महंगा ऊनी वस्त्र. जहाँ कम्बल काम आना हो वहाँ कुलांच ले कर क्या करेंगे.
काम धाम में आलसी भोजन में होशियार. काम के नाम पर सबसे पीछे और खाने पीने में चौकस.
काम न कोउ का बनि जाय, काटी अँगुरी मूतत नाँय. यदि किसी की कटी हुई उँगली इनके मूतने से ठीक हो जाए तो ये वह भी नहीं करेंगे. अत्यधिक स्वार्थी लोगों के लिए. (पुराने लोग मानते थे कि छोटे मोटे घाव पर मूत्र लगा देने से वह ठीक हो जाता है).
काम न पड़ने तक सब दोस्त अच्छे हैं. सारे दोस्त व रिश्तेदार तभी तक आपकी आवभगत करते हैं जब तक उनसे किसी काम के लिए न कहा जाए.
काम पड़े ते जानिए जो नर जैसो होए. कौन व्यक्ति कैसा है यह तभी समझ में आता है जब उस से कोई काम पड़ता है.
काम पड़े मूर्ख से तो मौन गहे रहिए. मूर्ख व्यक्ति से काम पड़े तो चुप रहना चाहिए. अगर आप चुप रहेंगे तब तो वह शायद काम कर भी दे, पर कहने से कभी नहीं करेगा.
काम रहे तक काजी, न रहा तो पाजी. जब तक किसी से काम अटका रहा तब तक उस की जी हुजूरी करते रहे, काम निकलते ही गालियाँ देने लगे.
काम रहे तो काजी न रहे तो पाजी. जब तक व्यक्ति जीविका के लिए काम रहता है तब तक ही उस की इज्ज़त रहती है.
काम सरा दुख बीसरा, छाछ न देत अहीर. जब तक अहीर को आपसे काम था तब तक वह छाछ ला कर दे रहा था. अब काम निकल गया और उस की परेशानी दूर हो गई तो वह छाछ क्यों ला कर देगा.
काम ही करता तो घर ही बहुत काम था. कामचोर आदमी जो काम से बचने के लिए घर छोड़ कर भागा है उससे काम करने के लिए कहा जाए तो वह ऐसे बोलता है.
कामिनी मोहिनी रूप है. स्त्री अपने मोहपाश में सब को बाँध सकती है.
कामी की साख नहीं, लोभी की नाक नहीं. कामुक व्यक्ति का कोई सम्मान नहीं करता और लोभी का अपना कोई आत्मसम्मान नहीं होता. नाक से अर्थ यहाँ आत्मसम्मान से है.
कामी क्रोधी लालची, इनसे भक्ति न होय, भक्ति करे कोई सूरमा, जाति बरन कुल खोए. कबीर दास जी कहते हैं कि कामी, क्रोधी और लालची, ऐसे व्यक्तियों से भक्ति नहीं हो पाती. भक्ति तो कोई सूरमा ही कर सकता है जो अपनी जाति, कुल, अहंकार सबका त्याग कर देता है.
कायर का हिमायती भी हारा है (बुजदिल का हिमायती भी हारे). कायर आदमी कभी नहीं जीत सकता. यहाँ तक कि उसका पक्ष लेने वाला भी हार जाता है.
कायस्थ का बच्चा कभी न सच्चा. कायस्थों से अत्यधिक द्वेष रखने वाले (या सताए गए) व्यक्ति का कथन. समाज के सभी वर्गों के लोगों के लिए इस प्रकार की कहावतें मिलती हैं, और ये कहावतें सच भी नहीं होतीं इसलिए इनका बुरा नहीं मानना चाहिए..
कायस्थ का बेटा, पढ़ा भला या मरा भला. कायस्थों के यहाँ केवल नौकरी करने का रिवाज़ होता है जिसके लिए पढ़ना लिखना जरूरी है, जो नहीं पढ़ा वह मरे के समान.
कायस्थ मीत ना कीजिए, सुन कंता नादान, राजी हो तो धन हरें, बैरी हो तो जान. (हरयाणवी कहावत) कायस्थ से दोस्ती नहीं करनी चाहिए. वह दोस्ती का दिखावा कर के आपका धन हर लेगा और कहीं दुश्मनी हो गई तो जान ही ले लेगा.
कायस्थों की घुट्टी में भी शराब. कायस्थों में शराब के अत्यधिक चलन पर व्यंग्य. खुद हरिवंशराय बच्चन जी ने अपनी ‘मधुशाला’ में लिखा है – मैं कायस्थ कुलोद्भव मेरे पुरखों ने इतना ढाला, मेरे तन के लोहू में है पचहत्तर प्रतिशत हाला.
काया और माया का क्या भरोसा. शरीर और माया दोनों ही नश्वर हैं.
काया और माया का गर्व न करो (काया और माया का गर्व कैसा). ये दोनों क्षण भंगुर हैं. काया ढल जाती है और माया चली जाती है.
काया कष्ट है, जान जोखिम नहीं. ऐसी बीमारी जो जानलेवा न हो.
काया का पेट भर जाए पर माया का न भरे. शरीर की भूख मिट सकती है पर मन का लालच नहीं.
काया पापी अच्छा, मन पापी बुरा. सबको दिखा कर पाप करने वाला इतना बुरा नहीं जितना मन में पाप पालने वाला.
काया रहै निरोग जो कम खावै, उसका बिगड़ै ना काम जो गम खावै. कम खाने वाला स्वस्थ रहता है और संतोषी व्यक्ति का काम नहीं बिगड़ता.
काया राखे धर्म है. हम धर्म का पालन तभी कर सकते हैं जब शरीर स्वस्थ हो. इसलिए अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए. (शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनम्).
काया राखे धर्म, पूंजी रखे बनिज (व्यापार). काया को ठीक रखोगे तो धर्म कर्म कर पाओगे और धर्म तुम्हारी काया की रक्षा करेगा. इसी प्रकार पूंजी बना कर रखोगे तो व्यापार कर पाओगे और व्यापार पूंजी की रक्षा करेगा.
काया राम की माया राज की. शरीर भगवान का बनाया हुआ है इसलिए उस पर उन्हीं का अधिकार है, जब कि धन धान्य राज्य की संपत्ति है.
कारज पीछे कीजिए, पहले जतन विचारि. पहले सोच समझ कर तब कोई काम करना चाहिए.
कार्तिक की छांट बुरी, बनिये की नाट बुरी, भाइयों की आंट बुरी, हाकिम की डांट बुरी. कार्तिक महीने की वर्षा बुरी, उधार देने के लिए बनिए की मनाही बुरी, भाइयों की अनबन बुरी और हाकिम की डांट-डपट बुरी होती है.
काल आ जाए पर कल नहीं आता. ख़ास तौर पर उधार चुकाने के मामले में.
काल आ जाए पर कलंक न आए. सम्मानित लोग ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि मृत्यु भले ही आ जाए पर कलंक न लगे.
काल औ कर्ज़, किसान को खाएं. किसान को अकाल (अनावृष्टि) और कर्ज़ बर्बाद कर देते हैं.
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब, पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब. हर कार्य समय पर करना चाहिए, टालना नहीं चाहिए.
काल का मारा, सब जग हारा. काल के आगे सब बेबस हैं.
काल के मारे न मरें, बामन बकरी ऊंट, वो मांगे, वो इत उत चरे, वो चाबे सूखा ठूँठ. ब्राह्मण, बकरी और ऊंट अकाल पड़ने पर भी जीवित रहते हैं. ब्राह्मण भिक्षा मांग कर, बकरी इधर उधर कुछ भी चर के और ऊंट सूखे ठूँठ खा कर काम चला लेता है.
काल के हाथ कमान, बूढ़ा बचे न जवान. काल किसी को नहीं छोड़ता.
काल गया पर कहावत रह गई. समय बीत जाता है पर जो कुछ हम ने किया है (अच्छा या बुरा) उसकी कहानियाँ रह जाती हैं.
काल जाए पर कलंक न जाए. समय बीतने के बाद भी किसी के ऊपर लगा हुआ कलंक नहीं जाता.
काल टले कलाल न टले. आदमी मौत के पंजे से निकल सकता है पर शराब के पंजे से नहीं.
काल न छोड़े राजा, न छोड़े रंक. काल किसी को नहीं छोड़ता, न राजा को न गरीब को.
काल पड़े पे कोदो मीठ. यूँ तो कोदों एक घटिया अनाज माना जाता है लेकिन अकाल पड़ने पर वह भी अच्छा लगता है.
काला अक्षर भैंस बराबर. अनपढ़ व्यक्ति का मज़ाक उड़ाने के लिए यह कहावत बोली जाती है.
काला करम का धौला धरम का. जब तक बाल काले हैं (युवावस्था है) तब तक कर्म करना चाहिए, जब बाल सफ़ेद होने लगें तो धार्मिक कार्यों पर ध्यान देना चाहिए.
काला कुत्ता, मोती नाम. गुण के विपरीत नाम.
काला मुँह करील के दांत. अत्यधिक कुरूप व्यक्ति.
काला हिरन न मारियो, सत्तर होवें रांड. काला हिरन बहुत सी मादाओं के बहुत बड़े झुंड में अकेला नर होता है. कहावत का अर्थ है कि ऐसे व्यक्ति को बेसहारा मत करो या मत मारो जिस पर बहुत लोग आश्रित हों.
काली ऊन और कुमानुस चढ़े न दूजो रंग. काली ऊन पर दूसरा रंग नहीं चढ़ता, इसी प्रकार कुमानुष को अच्छे संस्कार नहीं दिए जा सकते.
काली घटा डरावनी और भूरी बरसनहार (करिया बादर जी डरपावे भूरा बादर पानी लावे). अर्थ स्पष्ट है.
काली भली न सेत, दोनहूँ मारो एकहि खेत. जब दोनों ही विकल्प खतरनाक हों तो दोनों से छुटकारा पा लेना चाहिए. एक राजा के दो रानियाँ थीं. राजा को नहीं मालूम था कि वे दोनों ही जादूगरनी थीं. एक बार दोनों आपस में लड़ रही थीं. एक ने सफ़ेद (श्वेत, सेत) चिड़िया का रूप बनाया और एक ने काली चिड़िया का और आसमान में उड़ कर एक दूसरे पर हमला करने लगीं. राजा को मालूम हुआ तो उसने मंत्री से पूछा इनमें से किस जादूगरनी को मार दूँ. इस पर मंत्री ने जवाब दिया कि काली और सफ़ेद दोनों ही खतरनाक हैं दोनों को एक साथ मार दो. कहीं कहीं इस कहानी में चार रानियों का जिक्र है – काली भली न कबरी, भूरी भली न सेत, चारों मारो एकहि खेत.
काली माई करिया, भवानी माई गोर. ईश्वर की हर रचना अपने आप में विशिष्ट है, काले भी अच्छे हैं और गोरे भी. हिन्दू लोग रंगभेद नहीं करते, काले और गोरे दोनों को पूजते हैं.
काली मिर्च कुलंजन सक्कर, तीनों पीसें भाग बरोबर, आधो तोला फंकी मारें, मानो कोकिल राग उचारें. (बुन्देलखंडी कहावत) उपरोक्त तीनों चीजों का सेवन करने से स्वर मधुर हो जाता है.
काली मुर्गियां भी सफ़ेद अंडे देती हैं. मुर्गी चाहे किसी भी रंग की हो, अंडा सफेद रंग का ही देती है. मनुष्य की उपयोगिता को उस के बाहरी रंग रूप या आकार से नहीं आँका जा सकता.
काली हांडी के पास बैठ कर कालिख जरूर लगती है. बदनाम लोगों की संगत में बदनामी अवश्य होती है.
काले कपड़े पर काला दाग नहीं दीखता. चरित्रहीन व्यक्ति कितने भी गलत काम करे उन पर कोई ध्यान नहीं देता.
काले का काटा पानी नहीं मांगता. काले नाग द्वारा डसा हुआ व्यक्ति तुरंत मर जाता है. बहुत धूर्त व्यक्ति के लिए कहावत कही गई है कि उस से धोखा खाया आदमी फिर उबर नहीं सकता.
काले का क्या काला होगा. कलुषित चरित्र वाले पर और अधिक कालिख क्या लगेगी.
काले काले किशन जी के साले. यूँ तो यह बच्चों की कहावत है, लेकिन बड़े लोगों के भी काम आ सकती है. काले लोगों को अपने को कम करके नहीं आंकना चाहिए.
काले काले राम के, भूरे भूरे हराम के. जो काले हैं वे भगवान राम के वंशज हैं, भूरे रंग के हैं वे अवश्य ही वर्ण संकर होंगे. हिन्दुस्तानी लोग अंग्रेजों के लिए इस प्रकार से बोलते थे.
काले के आगे दिया नहीं जलता. लोक विश्वास है कि काले नाग के आगे दिया नहीं जलता. (समीपे कृष्णसर्पस्य दीपो नैव प्रकाशते).
काले के काटे का यंत्र न तंत्र. काले नाग के काटने पर कोई तंत्र मंत्र काम नहीं करता.
काले के काला नही तो चितकबरा जरूर जन्मे. दुष्ट व्यक्ति की संतान पूरी दुष्ट न भी हो तो भी उस में कुछ न ओछापन तो अवश्य ही आ जाता है. संतान में माता पिता के कुछ गुण अवश्य आते हैं.
काले के संग बैठ कर कालिख ही लगती है. दुर्जन का संग करने से कलंकित होना पड़ता है.
काले को उजला कब सुहावे. बुरी मानसिकता वाले व्यक्ति को भले लोग अच्छे नहीं लगते.
काले फूल न पाया पानी, धान मरा अधबीच जवानी. जब धान के फूल काले होते हैं तब पानी देना आवश्यक होता है. उस समय पानी न देने से धान मर जाता है.
काले सर का एक न छोड़ा. यहाँ काले सर से अर्थ है जवान आदमी. दुश्चरित्र स्त्री के लिए कहा गया है.
काशी दुर्लभ ज्ञान पुंज, विश्वनाथ को धाम, मुअले पे गंगा मिले जीते लंगड़ा आम. काशी में रानी अहिल्याबाई होल्कर ने एक परम्परा शुरू की थी जो अब भी चालू है. सावन कृष्ण पक्ष एकादशी को बाबा विश्नाथ को 551 लंगड़े आमों का भोग लगाया जाता है. इसी पर यह कहावत बनी.
कासा भर खाना और आसा भर सोना. भर पेट खाना (कांसा भर) और इच्छानुसार सोना, मतलब बिलकुल आराम का जीवन.
काहु समय में दिन बड़ा. काहु समय में रात. मनुष्य के दिन सदा एक से नहीं रहते. कभी सुख अधिक होता है, कभी दुःख.
काहू पे हंसिये नहीं, हंसी कलह की मूल. किसी की हंसी नहीं उड़ानी चाहिए, क्योंकि इससे लड़ाई होने का डर रहता है. महाभारत का युद्ध भी इसी हंसी के कारण हुआ था.
काहे को अनका लड़का रुलाए, अपना गुड़ छुपा कर खाए. अनका – दूसरे का. अपने पास जो कुछ है उसका प्रदर्शन कर के दूसरों का दुख मत बढ़ाओ.
किए धरे पर गू का लीपा. अच्छा ख़ासा काम कर के सत्यानाश कर देना.
किच्ची किच्ची कौआ खाए, दूध मलाई मुन्ना खाए. कौवा नाक से निकलने वाली रैंट को खा जाता है. बच्चे की नाक साफ़ करते समय बच्चे का ध्यान बंटाने के लिए माँ बोलती हैं कि यह गंदगी तो कौवे के लिए है मेरा मुन्ना दूध मलाई खाएगा.
कित काशी, कित काश्मीर, खुरासान, गुजरात, दाना पानी परसुराम बांह पकड़ ले जात. मनुष्य अपनी इच्छा से कहीं नहीं जाता, दाना पानी उसे वहां ले जाता है.
कितनहिं चिड़िया उड़े अकास, फेरि करे धरती की आस. चिड़िया कितनी भी आकाश में उड़ ले, फिर धरती पर लौटने की इच्छा करती है. कोई व्यक्ति जीवन में कितना भी ऊँचा उठ जाए, अपनी जड़ों तक लौटने की इच्छा रखता है.
कितना अहिरा होय सयाना, लोरिक छोड़ न गावे गाना. लोरिक – अहीरों की वीरता का गीत.कहावतों में अहीरों का खूब मजाक उड़ाया जाता है. अहीर कितना भी होशियार क्यों न हो, लोरिक के अलावा कुछ नहीं गा सकता.
कितना भी धाओ, करम लिखा सो पाओ. व्यक्ति कितनी भी दौड़ भाग कर ले, जितना भाग्य में लिखा है उतना ही पाता है. धाओ – दौड़ो.
कितना सा सपना और कितनी सी रात. जीवन कितना छोटा सा है, इस में कितने सपने देख लोगे.
कितनो अहीर पढ़े पुरान, तीन बात से हीन, उठना बैठना बोलना, लिए विधाता छीन. अहीर कितना भी पढ़ लिख जाए सभ्य समाज के शिष्टाचार नहीं सीख सकता.
किया चाहे चाकरी, राखा चाहे मान. नौकरी करने में बहुत सम्मान नहीं मिल सकता. कहावत का अर्थ है की अगर आप नौकरी करना चाहते हैं तो व्यर्थ की हेकड़ी न रखें.
किलाकोट, मंदिर, महल, द्विज, छत्री, गज, बाज, ये दस ऊँचे चाहिए, बैद ईख अरु नाज. (बुन्देलखंडी कहावत) किले का परकोटा, मंदिर, महल, ब्राहण, क्षत्रिय, हाथी, घोड़ा, वैद्य, गन्ना, और अनाज के पौधे, ये दस चीजें जितनी ऊँची हों उतनी अच्छी मानी जाती हैं. बाज शब्द का अर्थ यहाँ घोड़े से है (घोड़े को बाजि भी कहते हैं). किलाकोट – किले का परकोटा.
किले के पीछे से और मंदिर के आगे से निकलना चाहिए. किले में आगे पहरेदार होते हैं जो आने जाने वालों से बदसलूकी करते हैं इसलिए किले के सामने से नहीं निकलना चाहिए. मंदिर के सामने से ही निकलना चाहिए जिससे भगवान के दर्शन हो सकें.
किस किस का मन राखिए, बीच राह में खेत. रास्ते से लगा हुआ खेत हो तो किसान की बड़ी मुसीबत होती है. रास्ता चलने वाले सभी परिचित लोग उस से कुछ न कुछ सुविधा चाहते हैं.
किस चक्की का पिसा आटा खाया है. मोटे आदमी का मजाक उड़ाने के लिए.
किस बिरते पर तत्ता पानी. आजकल तो सभी लोग गर्म पानी से नहाते हैं. पहले के जमाने में नहाने के लिए गरम पानी बिरले लोगों को ही मिलता था. कोई ऐरा गैरा आदमी गरम पानी मांग रहा है तो उस से पूछा जा रहा है कि तुम्हारे अंदर ऐसी क्या खास बात है कि जो तुम्हें गरम पानी दिया जाए. कोई अपात्र यदि विशेष सुविधाएँ मांगे तो.
किस में हिम्मत है जो छेड़े दिलेर को, गर्दिश में घेर लेते हैं कुत्ते भी शेर को. जब शेर के बुरे दिन आते हैं तो उसे कुत्ते भी घेर लेते हैं, वैसे मज़ाल है कोई उस के आस पास भी फटक जाए.
किसने खोदी और कौन पड़ा. खाई किसी और ने खोदी और कोई और. किसी के कुकर्मों का फल कोई और भुगते तो.
किसान उपजाय, बनिया पाय, बनिक पूत खाय. किसान मेहनत कर के फसल उगाता है, बनिया उसे उधार वसूली के बहाने हड़प लेता है लेकिन कंजूस होने के कारण वह उस का उपभोग नहीं करता. अंततः बनिए का बेटा उससे गुलछर्रे उड़ाता है.
किसान को जमींदार जैसे बच्चे को मसान. किसान के लिए जमींदार उतना ही डरावना होता है जितना बच्चों के लिए प्रेत.
किसान चाहे वर्षा, कुम्हार चाहे सूखा. संसार में सभी व्यक्ति केवल अपना ही हित चाहते हैं. किसान भगवान् से प्रार्थना करता है वर्षा करने के लिए और कुम्हार प्रार्थना करता है वर्षा न करने के लिए.
किसी का ऊँचा मस्तक देखकर अपना मस्तक मत फोड़ लो. किसी की उन्नति देख कर ईर्ष्या से मत जलो. भोजपुरी में कहावत है – केहू के ऊँच लिलार देखि के आपन लिलार फोड़ी नाहीं लेहल जाला.
किसी का घर जले कोई हाथ सेंके. नीच स्वार्थी लोगों के लिए जो दूसरों के कष्ट में अपना लाभ ढूँढ़ते हैं.
किसी का चाम घिसे, किसी के दाम घिसें. कोई शरीर से मेहनत करता है कोई पैसा खर्च कर के काम कराता है.
किसी का मुँह चले किसी का हाथ (किसी की जीभ चलती है, किसी के हाथ चलते हैं). जो बोलने में तेज होता है वह बोली द्वारा दूसरे को कष्ट पहुँचाता है. जो बोलने में नहीं जीत पाता वह खिसिया कर हाथ उठाता है.
किसी का लड़का, कोई मन्नत माने. दूसरे की चीज़ के लिए आवश्यकता से अधिक चिंतित होना.
किसी की जान गई, आपकी अदा ठहरी. जो लोग कुटिल चाल चल कर मासूम बनने की कोशिश करते हैं उन पर व्यंग्य.
किसी की जोरू मरे, किसी को सपने में आवे. दूसरे के कष्ट में अनावश्यक भागीदारी.
किसी की साई किसी को बधाई. साई माने वह रकम जो कोई काम करने से पहले पेशगी ली जाती है. मतलब पैसा किसी से लिया, काम किसी और का कर रहे हो.
किसी के लिए कुआं खोदो तो अपने लिए खाई तैयार समझो. (खाई खने जो और को ताको कूप तैयार). जो दूसरों का बुरा करते हैं उनका बुरा अवश्य होता है.
किसी को अपना कर लो या किसी के हो के रहो. संसार में जीने का सर्वोत्तम रास्ता है प्रेम और बंधुत्व का.
किसी को तवे में दिखाई देता है, किसी को आरसी में. अपनी अपनी सामर्थ्य के अनुसार ही कार्य करना चाहिए. अगर हमारे पास आरसी नहीं है तो हम तवे में मुँह देख कर काम चलाएं.
किसी को बैंगन बाबरे, किसी को पथ्य समान. एक ही चीज़ किसी के लिए हानिकारक को सकती है और किसी के लिए लाभकारी. इंग्लिश में कहावत है – One man’s meat is another man’s poison.
किस्मत और औरतें, बेबकूफों पर मेहरबान. जो लोग जीवन में असफल रहते हैं वे आम तौर पर यह कहते पाए जाते हैं कि भाग्य ने उनका साथ नहीं दिया और भाग्य केवल मूर्खों का साथ देता है. इसी प्रकार जो लोग स्त्रियों को प्रभावित नहीं कर पाते वे भी ऐसा ही बोलते हैं.
किस्मत किसी को तख़्त देती है किसी को तलवार. भाग्य से ही कोई सिंहासन पर बैठ जाता है और कोई तलवार के घाट उतार दिया जाता है. इस कहावत को इस प्रकार भी कहा गया है – तख़्त या तख्ता अर्थात भाग्य से ही सिंहासन और भाग्य से ही फांसी का तख्ता.
किस्मत दे यारी, तो क्यों हो ख्वारी. भाग्य से अच्छे मित्र मिल जाएँ तो बर्बादी क्यों हो.
किस्मत न दे यारी, तो क्यों करे फौजदारी. भाग्य में यदि दोस्ती नहीं लिखी है तो मारपीट तो मत करो.
किस्मत बहादुरों का साथ देती है. जो हिम्मत कर के आगे बढ़ता है, भाग्य भी उसी का साथ देता है.
किहूँ भांत सोहत नहीं, केहरि ससक विरोध. सोहत नहीं – शोभा नहीं देता, केहरि – सिंह, ससक – शशक (खरगोश). सिंह को खरगोश से लड़ना शोभा नहीं देता.
कीचड़ का आदी सूअर सफाई देख कर नाक भौं चढ़ाता है. जिस आदमी को गंदगी में रहने की आदत हो उसे सफाई अच्छी नहीं लगती. जिस आदमी के संस्कार घटिया हों उसे न्याय और धर्म की बातें अच्छी नहीं लगतीं.
कीड़ी (चींटी) को कन भर, हाथी को मन भर. ईश्वर सभी को उन की आवश्यकता के अनुसार देता है.
कीड़ी को तिनका पहाड़. चींटी के लिए तिनका भी पहाड़ के सामान है. छोटे आदमी के लिए छोटी छोटी समस्याएँ भी बहुत बड़ी होती हैं.
कीड़ी संचे तीतर खाय, पापी को धन पर ले जाय. चींटी जो इकठ्ठा करती है उसे तीतर खा जाता है. इसी प्रकार पापी का धन दूसरा ले जाता है. इस कहावत में एक बात गलत है. चींटी द्वारा मेहनत से इकट्ठे किए गए सामान की तुलना पापी के धन से की गई है.
कीर्ति के गढ़ कभी नहीं ढहते. ईंट पत्थर का बना किला समय के साथ ढह जाता है लेकिन सत्पुरुषों की कीर्ति अमर रहती है.
कुँआरे को भी ससुराल की याद आये. कोई व्यक्ति किसी ऐसी बात पर उदास हो रहा हो जिस से उसका कोई लेना देना न हो, तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.
कुँए की मिट्टी कुँए में ही लगती है. व्यापार से व्यक्ति धन कमाता है लेकिन उस में से अधिकतर धन व्यापार में ही लग जाता है.
कुँए की मेंढकी क्या जाने समन्दर का फांट. संकुचित बुद्धि वाले लोग व्यापक सोच वाली बात नहीं समझ सकते.
कुँए में की मेंढकी करे सिन्धु की बात. जब कोई बहुत छोटी बुद्धि वाला आदमी बहुत बड़ी बड़ी बातें करे तो.
कुँए में पानी बहुतेरा, जो निकालो सो ही अपना. प्रकृति में संसाधनों की कमी नहीं है, उनका उपयोग करने वाला चाहिए.
कुँए से कुआँ नहीं मिल सकता. दो बड़े व्यक्ति अपने अपने अहम के कारण एक दूसरे से न मिलते हों तो उन पर व्यंग्य.
कुंआरों का क्या अलग गांव बसता है. समाज में अलग अलग प्रकार के लोगों की बस्तियाँ अलग नहीं होतीं, सब मिल जुल कर एक साथ ही रहते हैं.
कुंजड़न अपने बेरों को खट्टा नहीं बतावे. अपने माल की बुराई कोई नहीं करता.
कुंजड़न की अगाड़ी और कसाई की पिछाड़ी. सब्जी वाली ताजी सब्जी आगे लगाती है इसलिए उससे आगे वाला माल लेना चाहिए. कसाई ताजा गोश्त पीछे लगाता है इसलिए उससे पीछे वाला माल लेना चाहिए.
कुंजड़े का गधा मरे और तेली सर मुंडाए. दूसरे के दुख में अनावश्यक दुखी होना.
कुंद हथियार और किया भतार किसी के काम नहीं आते. किया भतार – ऐसा पुरुष जिससे स्त्री का विधिवत विवाह न हुआ हो (केवल पति मान कर साथ रहती हो). जिस प्रकार बिना धार वाला हथियार किसी काम का नहीं होता, उसी प्रकार माना हुआ पति किसी काम का नहीं होता.
कुआँ पनघट बैठ के, गोड़ लिए लटकाय, पीठ मलावें सौत से, मरने करें उपाय. मूर्खतापूर्ण कार्य करने वालों के लिए. सौत अगर मौका पा कर जरा सा धक्का दे देगी तो सीधे कुएँ में जा पड़ेंगी.
कुआँ बेचा है कुएं का पानी नहीं बेचा. माल बेचने के बाद बेइमानी करना. इस के पीछे एक कहानी कही जाती है. गाँव के एक ठाकुर ने किसी बनिए को अपना कुआँ बेचा. जब बनिया कुँए से पानी निकालने पहुँचा तो ठाकुर ने कहा कि मैंने तुम्हें कुआँ बेचा है पानी नहीं बेचा है, पानी के लिए अलग से पैसा दो. बात पंचायत में पहुँची. सरपंच ने सारा माजरा समझ कर ठाकुर को सबक सिखाने के लिए फैसला दिया कि कुआँ बनिए का है और पानी ठाकुर का. ठाकुर को अपना पानी कुँए में रखने के लिए सौ रुपये रोज किराया देना होगा.
कुआं खुदाया बावड़ी, छोड़ गया परदेस. ऐसे व्यक्ति के लिए जिसने ऐश्वर्य के साधन जुटाए लेकिन छोड़ कर चला गया या जाना पड़ा.
कुआं तेरी माँ मरी, कुआं तेरी माँ मरी. कुएं में मुंह डाल कर जो बोलोगे वही आवाज कुएं में से आएगी. वह कुछ सोच समझ कर जवाब नहीं देता है. जो लोग बिना समझे दूसरों की बात दोहराते हैं उन पर व्यंग्य (जैसे आजकल सोशल मीडिया पर बिना सोचे समझे मैसेज फॉरवर्ड करने वाले लोग). बड़े गुम्बद में बोलने पर भी वही आवाज आती है.
कुआंरा सब से आला, जिसके लड़का न साला (कुआंरा सब से आला है, न जोरू है न साला है). कुआंरेपन का अपना अलग ही आनंद है.
कुआंरी को सदा बसंत. वैश्या के लिए व्यंग्य.
कुआंरी खाय रोटियाँ, ब्याही खाय बोटियाँ. लड़की की शादी के बाद माँ बाप की मुश्किलें और बढ़ जाती हैं. बेटी घर में हो तब तक तो केवल रोटी का ही खर्च होता है, उसकी शादी के बाद ससुराल वालों का पेट भरते भरते वे बर्बाद हो जाते हैं. (दुर्भाग्य से हिन्दुस्तान में आज भी ऐसे बहुत से घर हैं).
कुएँ में गिर कर कोई भी सूखा नहीं निकलता. उसी प्रकार जैसे काजल की कोठरी से कोई दाग लगाए बिना नहीं निकल सकता. संसार में आ कर सभी मोह माया में लिप्त हो ही जाते हैं.
कुएँ में नथ गिर गई, मैं जानूँ ननद को दे दी (खोई नथ ननद के खाते). खोई हुई चीज को दान किया हुआ मान लेना.
कुएं के मेंढक को कुआं जहान. संकुचित सोच वाला अपने संकुचित दायरे में ही खुश रहता है.
कुच बिन कामिनी, मुच्छ बिन जवान, ये तीनों फीके लगें, बिना सुपारी पान. स्त्री बिना स्तन के, युवा बिना मूँछ के और पान बिना सुपारी के आकर्षक नहीं लगते.
कुचाल संग फिरना, आप मूत में गिरना. गलत चाल चलन वाले के साथ रहने वाला अपनी दुर्गति स्वयं करता है.
कुचाल संग हांसी, जीव जाल की फांसी. गलत चाल चलन वाली स्त्री के साथ हंसी मज़ाक करना अपने लिए मुसीबत बन सकता है.
कुछ कमान झुके कुछ गोशा. गोशा – कमान का सिरा जिसमें तांत अटकाई जाती है. कोई कार्य करना हो या कोई मसला हल करना हो तो थोड़ी थोड़ी सब पक्षों को गुंजाइश करनी चाहिए.
कुछ कर्मों से हीन, कुछ लच्छनों से हीन. जिस आदमी का भाग्य भी साथ न दे रहा हो और जो मेहनत भी न करना चाहता हो.
कुछ काम करोगे ना जी, जलपान करोगे हाँ जी. काम करने के नाम बहाने, खाने पीने को मुस्तैद.
कुछ खो कर ही सीखते हैं. मनुष्य धोखा खा कर ही सीखता है.
कुछ तुम समझे, कुछ हम समझे. दो लोग एक दूसरे की चालाकी के बारे में समझ जाएं तो.
कुछ तुम समझो, कुछ हम समझें. 1.किसी के साथ कोई सौदा या साझा करने से पहले दोनों ही लोगों को एक दूसरे को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए. 2. दो लोगों में अनबन हो तो दोनों को ही एक दूसरे की बात समझ कर कुछ झुकना चाहिए.
कुछ तो खरबूजा मीठा, कुछ ऊपर से कंद. एक साथ दो दो अच्छाइयाँ.
कुछ तो खलल है जिस से यह खलल है. कहीं भी कोई खराबी पैदा हो रही है तो उस के पीछे कोई न कोई कारण जरूर होता है.
कुछ तो गेहूँ गीली, ऊपर से जिंदरी ढीली. गेहूँ गीला है इसलिए पिसने में दिक्कत है ऊपर से चक्की की कीली (जिंदरी) ढीली है इसलिए और नहीं पिस पा रहा है. परेशानी में परेशानी.
कुछ तो बावली, कुछ भूतों खदेड़ी. एक तो बावली ऊपर से भूत बाधा से ग्रस्त. जैसे कोई मानसिक रोग से ग्रस्त हो और ऊपर से व्यापार में घाटे का तनाव हो जाए.
कुछ दिए कुछ दिलाए, कुछ का देना ही क्या है. उधार लेकर न देने वालों का कथन.
कुछ पाने की इच्छा हो तो पहले उसके लायक बनो. आदमी बहुत कुछ पाने की इच्छा करता है पर पहले उस वस्तु का उपयोग करने लायक बनना आवश्यक है. इंग्लिश में कहावत है – First deserve and then desire.
कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है. जीवन में कुछ प्राप्त करने के लिए त्याग भी आवश्यक है. इंग्लिश में कहावत है – You can’t make an omlette without breaking eggs.
कुछ लेना न देना मगन रहना. संसार में जो लोग इस नीति पर चलते हैं वे ही सबसे प्रसन्न रहते हैं.
कुछ लोग पैसे के मालिक होते हैं, कुछ गुलाम. कुछ लोग पैसा कमाते हैं और उसे ठीक से उपयोग भी करते हैं, वे पैसे के मालिक कहलाते हैं, जबकि कुछ लोग केवल पैसे की रखवाली करते रहते हैं. कहावत के द्वारा यह बताने का प्रयास किया गया है कि मनुष्य को पैसे का गुलाम नहीं बनना चाहिए. इंग्लिश में कहावत है – If money is not thy servant, it will be thy master.
कुछ लोहा खोटा, कुछ लोहार खोटा. सामान भी घटिया हो और बनाने वाला भी अयोग्य हो तो माल कैसे बनेगा.
कुछ स्वार्थ कुछ परमार्थ. अपना भी ध्यान रखो और समाज के लिए भी करो. (घर में दिया जला कर मस्जिद में दिया जलाना). इस से मिलती जुलती एक कहावत इंग्लिश में भी है – Charity begins at home.
कुजात मनाया सर पर चढ़े, सुजात मनाया पांवों पड़े (सज्जन मनाए पैरों पड़े, दुर्जन मनाए सर चढ़े). नीच व्यक्ति की मान मनौवल करोगे तो और ऐंठ दिखाता है, सज्जन व्यक्ति को मनाओगे तो वह विनम्रता से झुक जाता है.
कुटनी से तो राम बचावे, प्यार दिखा कर पत उतरावे. दुश्चरित्र स्त्री से बच कर रहना चाहिए, वह प्यार दिखा कर आपकी इज्ज़त उतार सकती है.
कुठले में दाना, मूरख बौराना. कुठला – अनाज रखने का बर्तन, बौराना – घमंड में पागल. ओछा व्यक्ति थोड़ी सी धन दौलत से ही बौरा जाता है.
कुठाँव का घाव, ससुर ओझा (कुठौर फोड़ा, ससुर वैद्य). किसी स्त्री के निजी अंग में घाव या फोड़ा हो और उसका ससुर ही वैद्य हो तो कितनी कठिन परिस्थिति होगी.
कुतिया के छिनाले में फंसे हैं. छिनाला – दुश्चरित्रता. किसी दुश्चरित्र स्त्री के दुष्चक्र में फंसे व्यक्ति के लिए.
कुतिया के पिल्ले, सब एक जैसे. नीच माता पिता की संतानें निम्न प्रवृत्ति की ही होती हैं.
कुतिया क्यूँ भूंसे, टुकड़ों की खातिर. कोई हाकिम ज्यादा गुर्राता है तो लोग कहते हैं कि टुकड़ा डाल दो.
कुतिया गई और पट्टा भी ले गई. बड़े नुकसान के साथ एक छोटा नुकसान भी.
कुतिया गई काशी (कुतिया चली प्रयाग). कोई चरित्रहीन या पापी आदमी पुण्यात्मा बनने का ढोंग करे तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.
कुतिया बैठी नांद में, न खाए न खाने दे. भैंस की नांद में कुतिया आ कर बैठ गई है, न तो खुद भुस खाएगी न किसी को खाने देगी. कोई ईमानदार हाकिम जो खुद भी घूस न खाए और किसी को खाने भी न दे उस से परेशान लोगों का कथन.
कुतिया मिल गई चोर से तो पहरा किसका होए (चोरों कुतिया मिल गई, पहरा दे अब कौन). जिस को आप ने पहरेदारी के लिए पाला है वही चोर से मिल जाए तो पहरा कौन देगा. जिस को गद्दी पर बिठाया वही नेता अगर दुश्मन से मिल जाए तो देश की रक्षा कैसे होगी.
कुत्ता अपनी पूँछ को टेढ़ी कब कहता है (कुकुर सराहे अपनी पूँछ). कोई भी व्यक्ति अपनी वस्तु को घटिया नहीं बताता.
कुत्ता अपनी ही दुम के चक्कर लगाता फिरे. निकृष्ट प्रवृत्ति के लोग केवल अपने स्वार्थ के विषय में सोचते हैं.
कुत्ता कपास का क्या करे. कपास कितनी भी उपयोगी वस्तु क्यों न हो, कुत्ते के किसी काम की नहीं है. कोई मूर्ख या ओछा व्यक्ति किसी बहुमूल्य वस्तु का उपहास कर रहा हो तो.
कुत्ता काटे अनजान के और बनिया काटे पहचान के. कुत्ता अपरिचित को काटता है और बनिया पहचान वाले की जेब काटता है.
कुत्ता कुत्ता भूंसे, राजा राजा चुप. यह एक प्रकार से बच्चों की कहावत है. कुछ बच्चे मिलकर किसी एक को चिढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. वह यह कहावत कह कर सबको चुप कर देता है.
कुत्ता घास खाय तो सभी न पाल लें. कहावत उस समय की है जब घास बहुत सस्ती मिलती थी और अक्सर लोग मुफ्त में भी खोद लाते थे (अब तो घास भी बहुत महँगी है). कुत्ते को दूध, रोटी, अंडा, मांस वगैरा खिलाना पड़ता है इसलिए उसे कुछ ही लोग पाल सकते हैं. अगर कुत्ता घास खाता होता तो सब पाल लेते.
कुत्ता चौक चढ़ाए, चपनी चाटन जाए. (कुत्ता चौक चढ़ाइए चाकी चाटन जाए). चौक चढ़ाना – विवाह के समय वस्त्राभूषण पहनाने के लिए कन्या को मंडप के नीचे बिठाना. कुत्ते का कितना भी आदर सत्कार या लाड़ प्यार करो, वह मौका देखते ही थाली चाट लेता है. नीच व्यक्ति का कितना भी सम्मान करो वह नीचता से बाज नहीं आता.
कुत्ता टेढ़ी पूंछरी, कभी न सीधी होय. कुत्ते की टेढ़ी पूंछ बारह साल पाइप के अन्दर रखी फिर भी टेढ़ी निकली. कोई ढीठ आदमी लगातार दंड देने से भी ठीक न हो रहा हो तो.
कुत्ता देखे आइना, भूंक भूंक पगलाय (कुत्ते ने आईना देखा, भौंक भौंक के मर गया). कुत्ता दर्पण में अपना प्रतिबिम्ब देख कर उसे दूसरा कुत्ता समझ कर खूब भौंकता है. मूर्ख व्यक्तियों का मजाक उड़ाने के लिए.
कुत्ता न देख, कुत्ते के मालिक को देख. कुत्ते की अहमियत कुत्ते के मालिक की अहमियत के अनुसार आंकी जाती है.
कुत्ता न देखेगा न भौंकेगा. कहावत में कानून की नज़र बचा कर चुपचाप अपराध करने की सलाह दी गई है.
कुत्ता पाए तो सवा मन खाए, नहीं तो दिया ही चाट कर रह जाए. कुत्ते को मिल जाए तो ढेर सारा खा लेता है और न मिले तो बेचारा दिये में लगा तेल चाट कर ही रह जाता है. गरीब और बेसहारा लोग ऐसे ही जीवन काटते हैं.
कुत्ता पाले और पहरा दे. पहरा देने को कुत्ता पाला और खुद पहरा दे रहे हैं. मूर्ख लोगों के लिए. इस आशय की इंग्लिश में कहावत है – Do not keep a dog and bark yourself.
कुत्ता पाले वह कुत्ता, कुत्ता मारे वो कुत्ता, बहन के घर भाई कुत्ता, ससुरे के घर जमाई कुत्ता, सब कुत्तों का वह सरदार, जो रहे बेटी के द्वार. पहले जमाने में कुत्ता पालने को निकृष्ट कार्य माना जाता था. (लोग गाय पालना पसंद करते थे). कुत्ते जैसे निरीह पशु को मारना भी निकृष्ट काम माना गया है. शादी शुदा बहन के घर यदि भाई रहे और दामाद ससुराल में रहे तो उन का सम्मान नहीं होता इस लिए उन्हें निकृष्ट बताया गया है. इन सबसे अधिक घटिया आदमी वह है जो बेटी के घर में रहे.
कुत्ता भी दो घर छोड़ के मूतता है. पालतू कुत्ता अपने घर के आगे कभी नहीं मूतता.जो अपने ही लोगों को धोखा दे या अपने ही इलाके में गंदगी फैला रहा हो उसको उलाहना देने के लिए.
कुत्ता भी बैठता है तो दुम हिला कर बैठता है. कुत्ता बैठने के पहले पूंछ हिला कर जमीन की मिट्टी को झाड़ कर साफ़ करता है. गंदे और आलसी लोगों को उलाहना देने के लिए.
कुत्ता भूँके हजार, हाथी चले बजार. हाथी जब बाज़ार में निकलता है तो कुत्ते खूब भौंकते हैं लेकिन हाथी पर इसका कोई असर नहीं होता. जब महान लोग कोई बड़ा काम कर रहे हों और घटिया लोग उनका विरोध करें तो यह कहावत कही जाती है.
कुत्ता भौंक भौंक कर मरे, मालिक को परवाह ही नहीं. निष्ठुर लोगों को अपने सेवकों के कष्टों की कोई चिंता नहीं होती.
कुत्ता भौंके, काफ़िला सिधारे. काफिला निकलता है तो कुत्ते भौंकते हैं, पर काफिला अपने रास्ते चलता जाता है. सामाजिक कार्य करने वाले संगठन मूर्ख निंदकों की चिंता नहीं करते.
कुत्ता मरे अपनी पीर, मियाँ मांगे शिकार. बहुत से लोग शिकार के लिए कुत्ता पालते हैं. कहावत में कहा गया है कि कुत्ता तो दर्द से मर रहा है और मियाँ को सिर्फ शिकार से मतलब है. नौकरों की तकलीफ न देख कर केवल अपना स्वार्थ देखना.
कुत्ता मरे तो चीलर भी मरें. किसी की मृत्यु होने पर उस पर आश्रित लोग बेसहारा हो जाते हैं. वे आश्रित चाहे मरने वाले का खून चूसने वाले ही क्यों न हों.
कुत्ता मुँह लगाने से सर चढ़े. नीच व्यक्ति को मुँह लगाने से वह सिर पर चढ़ता है.
कुत्ता मूते जहाँ जहाँ, सौ सौ गाली पाए. (बुन्देलखंडी कहावत) कुत्ता कभी जमीन पर नहीं मूतता, किसी वस्तु पर ही मूतता है और गाली खाता है. फिर भी अपनी आदत नहीं छोड़ता.
कुत्ता हो कर भी न भौंके. कुत्ता यदि भौंकेगा ही नहीं तो किस काम का. कोई कामचोर कर्मचारी अपने लिए नियत किए गए काम को करने में हीला हवाला करे तो.
कुत्ते और गोती गाँव गाँव में मिलें. कुत्ते और अपने गोत्र वाले हर गाँव में मिल जाते हैं.
कुत्ते का जोर गली में. कुत्ते का अधिकार क्षेत्र अपनी गली तक ही सीमित होता है. बदमाश और रंगबाज अपने अपने इलाके में ही प्रभावी होते हैं.
कुत्ते की छूत, बिल्ली को नहीं लगती. कुत्ते को यदि कोई छूत की बीमारी है तो वह उस से बिल्ली में नहीं फैलती. गलत काम करने वालों के अलग अलग ढंग होते हैं, वे एक दूसरे से नहीं सीखते.
कुत्ते की पूँछ में कितना भी घी लगाइए, वह टेड़ी की टेड़ी ही रहेगी. नीच व्यक्ति की कितनी भी सेवा करो या मक्खन लगाओ, वह खुश नहीं होता.
कुत्ते की पूंछ पे गठरी बंधी है. जिस को धन को उपयोग करना नहीं आता उस के पास धन हो तो क्या लाभ. कंजूस आदमी पर व्यंग्य.
कुत्ते की मार अढ़ाई घड़ी. कुत्ता मार खाने के बाद बहुत जल्दी भूल जाता है, और फिर ड्योढ़ी पर आ कर बैठ जाता है. जो व्यक्ति अपमान के बाद भी किसी के पीछे लगा रहे उस पर व्यंग्य.
कुत्ते की मौत आए तो मस्जिद में मूते. कुत्ता यदि मस्जिद में पेशाब करेगा तो धर्मांध लोग उसे मार डालेंगे. कभी कभी छोटी सी गलती भी मृत्यु का कारण बन सकती है.
कुत्ते की मौत आती है तब खोपड़ी में कीड़े पड़ते हैं. शरीर में और जगह कीड़े पड़ें तो कुत्ता उन्हें चाट चाट कर साफ़ कर देता है. सर में कीड़े पड़ें तो नहीं चाट पाता है. कहावत का अर्थ इस प्रकार कर सकते हैं कि मूर्ख व्यक्ति का विनाश नजदीक आता है तो उस के दिमाग में तरह तरह के कीड़े कुलबुलाने लगते हैं.
कुत्ते की सी झपकी. (कुत्ते की नींद) अत्यधिक चौकन्नी नींद.
कुत्ते के पाँव जा, बिल्ली के पाँव आ. काम को जल्दी से जल्दी करने के लिए.
कुत्ते को आटा दोगे तो क्या रोटी पकाएगा. जिस वस्तु की किसी व्यक्ति के लिए कोई उपयोगिता नहीं है उसे देने से क्या लाभ.
कुत्ते को काम न धाम पर फुरसत नाहीं. जो लोग कोई ठोस काम नहीं करते पर अपने को बहुत व्यस्त दिखाते हैं, उनका मजाक उड़ाने के लिए.
कुत्ते को घी नहीं पचता (कुत्तों को घी हजम नहीं होता). नीच आदमी को उत्तम विचार समझ में नहीं आते.
कुत्ते को टुकड़ा डालते तो क्यूँ भूँकता. नीच हाकिम को रिश्वत दे देते तो वह तुम पर नहीं गुर्राता.
कुत्ते को मस्जिद से क्या काम. मस्जिद में कुत्ते को कुछ नहीं मिलेगा, बल्कि मार खाने का डर है. ऐसी जगह जाने से क्या लाभ.
कुत्ते को हड्डी का ही चाव (कुत्ते को हड्डी ही अच्छी लगती है). नीच व्यक्ति को घटिया बातें ही अच्छी लगती हैं. घूसखोर को केवल घूस ही चाहिए होती है.
कुत्ते डाली इलायची, सूँघ सूँघ मर जाए. (बुन्देलखंडी कहावत) कुत्ते के सामने इलायची डालोगे तो खाएगा नहीं, सूँघता ही रहेगा. जो पारखी न हो उसे उत्तम वस्तु नहीं देनी चाहिए.
कुत्ते तेरा लिहाज नहीं तेरे मालिक का लिहाज है (कुत्ते ये तेरा मुँह नहीं तेरे मालिक का मुँह है). कुत्ता अपने मालिक के बल पर ही भौंकता है. कुत्ते की अहमियत उस के मालिक के अनुसार ही होती है.
कुत्ते भूंकें तो चन्द्रमा को क्या. नीच और ओछे लोग कितनी भी आलोचना करें, बड़े लोगों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता.
कुत्ते वाली योनि पूरी कर रहा है. सनातन मान्यता के अनुसार मनुष्य को चौरासी लाख योनियों में भटक कर फिर मनुष्य का जन्म मिलता है. कोई व्यक्ति बहुत नीचता दिखा रहा हो तो लोग घृणा वश ऐसा बोलते हैं.
कुत्तों की टोली में आटे का दीपक कब तक टिके. कुत्ते मौका पा कर उसे खा ही जाएंगे.
कुत्तों के गाँव नहीं बसते. आपस में लड़ने झगड़ने के कारण. जो लोग आपस में बहुत लड़ते हों उन को उलाहना देने के लिए बड़े लोग ऐसा बोलते हैं.
कुत्तों के भौंकने से बादल नहीं बिखरते. क्षुद्र लोगों के शोर मचाने से बड़े बड़े काम नहीं रुकते.
कुत्तों को दूँ, पर तुझे न दूँ. किसी से बहुत घृणा करना.
कुत्तों में एका हो गंगा जी न नहा आवें. किसी भी समुदाय में एकता हो तो वे बड़े से बड़ा काम कर सकते हैं.
कुनबा खीर खाए और देवते राजी हों. श्राद्ध पक्ष में लोग पितरों को खुश करने की आड़ में खुद भी माल खाते हैं उस पर व्यंग्य.
कुबड़े वाली लात (कूबड़े लात, बन गई बात). किसी व्यक्ति ने गुस्से में आ कर कुबड़े की पीठ पर जोर से लात मारी तो उसकी कूबड़ ठीक हो गई. कोई किसी को नुकसान पहुँचाना चाहे और नुकसान के स्थान पर उस का काम बन जाय तब.
कुमानुस कहें काको, ससुराल में बसे बाको. एक बार भगवान राम अपनी ससुराल जनकपुरी गए. सास जी स्नेहवश उन्हें जाने नहीं दे रही थीं और इधर दशरथ जी को बेचैनी होने लगी. सीधे सीधे बुलावा भेजना मर्यादा के विरुद्ध था. तो जनक जी के पास एक चिट्ठी भेजी कि कृपया एक कुमानुष हमारे यहाँ भेज दीजिए. जनकजी के दरबार में तरह तरह के डोम, बहेलिए, भिश्ती, जुलाहे, सफाईकर्मी, मल्लाह इत्यादि बुलाए गए. सब ने कहा कि राजन, हम तो समाज के लिए बहुत उपयोगी मनुष्य हैं, हम कुमानुष कैसे हो सकते हैं. जनक जी ने पूछा, तो कुमानुष कौन हुआ. तब उन में से एक ने बताया – कुमानुस कहें काको, ससुरार में बसे ताको. राजा जनक फ़ौरन समझ गए कि राम का बुलावा है.
कुम्हार अपना ही घड़ा सराहता है. सब को अपना किया हुआ काम ही अच्छा लगता है.
कुम्हार का गधा, जिन के चूतड़ मिटटी देखे, उन्हीं के पीछे दौड़े. कुम्हार कच्ची जमीन पर बैठ कर काम करता है इसलिए उसके नितम्बों पर मिट्टी लग जाती है. कुम्हार के गधे ने किसी भी आदमी की धोती पे मिट्टी लगी देखी उसी को कुम्हार समझ कर उसके पीछे चल दिया. कहावत उन भोले भाले लोगों के लिए कही जा सकती है जो गेरुए वस्त्र पहनने वाले हर इंसान को महात्मा समझ कर उसके पीछे चल देते हैं.
कुम्हार की गधी, घर घर लदी (भाड़े की गधी, घर घर लदी). गरीब और लाचार आदमी पर सब काम लादते हैं.
कुम्हार के घर चुक्के का दुख (वासन का अकाल). जिस चीज़ की बहुतायत जहाँ होनी चाहिए उसी की कमी हो तो. चुक्का – कुल्हड़. वासन – बर्तन.
कुम्हार पे बस न चला, गधी के कान उमेठ दिए. सबल आदमी पर बस न चले तो निर्बल पर गुस्सा उतारना.
कुयश और मौत बराबर. इज्जतदार लोगों के लिए अपयश मृत्यु के समान है.
कुरमी कुत्ता हाथी, तीनो जात के घाती. कुर्मी, कुत्ता और हाथी अपनी जाति वालों को ही हानि पहुंचाते हैं.
कुल और कपड़ा रखने से. कुल और कपड़े की अगर देखभाल नहीं होगी तो वे नष्ट हो जाएँगे.
कुलटा के यहाँ छिछोरे पहुंचेंगे ही. गलत काम करने वाले के यहाँ उसी प्रकार के लोगों का जमावड़ा होता है.
कुलिया में गुड़ नहीं फूटता. कुलिया (छोटा कुल्हड़) में रख कर गुड़ को तोड़ने की कोशिश करोगे तो कुलिया ही टूट जाएगी. अपर्याप्त साधनों से बड़े काम नहीं किए जा सकते.
कुलेल में गुलेल. पक्षियों का जोड़ा पेड़ की डाल पर बैठा किलोल कर रहा है कि किसी ने गुलेल चला दी तो रंग में भंग हो गया.
कुल्हड़ भरा और सीधी मायके. गरीब घर की लड़की यदि धनवान ससुराल में पहुँच जाए तो अपने मायके वालों के लिए बहुत कुछ करना चाहती है.
कूटनवारी कूटी गई, सास पतोहू एक भई. कूटनवारी – अनाज कूटने वाली. सास बहू की लड़ाई में अनाज कूटने वाली बीच में बोल दी. सास बहू फिर एक हो गईं और कूटने वाली पिट गई. दो लड़ने वालों के बीच में न बोलने की सलाह.
कूड़े घर की गाय, फिर कूड़े घर में. जिसको गंदगी प्रिय है वह गंदगी में रहना ही पसंद करता है.
कूद कूद मछली बगुले को खाए. असंभव बात. कोरी गप्प.
कूदने से पहले चलना सीखो. अर्थ स्पष्ट है.
कूदा पेड़ खजूर से राम करे सो होय. कोई व्यक्ति यदि कोई दुस्साहसिक फैसला ले तो.
कूदे फांदे तोड़े तान, ताका दुनिया राखे मान. 1. जो दिखावा करने की कला में माहिर हो दुनिया उसी की इज्ज़त करती है. 2. नृत्य की वास्तविक कलाओं के मुकाबले आजकल भौंडे नाच और हू हा को ज्यादा लोकप्रियता मिलती है.
कूवत थोड़ी मंज़िल भारी. ताकत थोड़ी बची है जबकि मंजिल अभी दूर है. सामर्थ्य कम है और काम बड़ा है.
कृपण के धन और स्त्री के मन को कोई न जाने. कंजूस के पास कितना धन है यह कोई नहीं जान सकता और स्त्री के मन में क्या है यह भी कोई नहीं जान सकता.
कृष्ण चले बैकुंठ को राधा पकड़ी बांह, यहाँ तम्बाखू खाय लो वहाँ तम्बाखू नांह. तम्बाखू खाने वाले अपने आप को धोखा देने के लिए तरह तरह की बातें बनाते हैं.
के पालत माय, के पालत गाय. बच्चा माँ का दूध पी कर पलता है या गाय का दूध पी कर. इसी लिए हमारे देश में गाय को इतना महत्व दिया गया है.
केका केका लेवें नांव, कमली ओढ़े सारा गाँव. अलग से किस किस का नाम लें. यहाँ तो सभी गलत हैं.
केतनो अहिर पिंगल पढ़े, बात जंगल ही की बोले. (भोजपुरी कहावत) पिंगल – छंद शास्त्र. अहीर को कितनी भी उच्च शिक्षा दे दो वह जंगल की बात ही करेगा.
केरा केकड़ा बिच्छू बाँस, इन चारों की जमले नाश. (भोजपुरी कहावत) जमला – संतान. केला, केकड़ा, बिच्छू और बांस, इन चारों की सन्तान ही इन का नाश कर देती हैं.
केवल मूर्ख और मृतक अपने विचार नहीं बदलते. मूर्ख लोग अपनी बात पर अड़े रहते हैं इस बात को अधिक जोर दे कर कहने के लिए इस प्रकार से कहा गया है.
केसर की करिहे कहा कीमत, है न परख जहाँ हरदी की. जिन लोगों को हल्दी की परख तक न हो उनसे केसर की कीमत समझने की उम्मीद कैसे की जा सकती है.
केसव केसन अस करी, जो अरिहू न कराहिं, मधुर वचन मृग लोचनी, बाबा कहि कहि जाहिं. केशव दास हिंदी के आरंभिक कवियों में से एक हैं. उन के बाल जल्दी सफेद हो गये थे. एक बार कुछ सुंदर स्त्रियों ने उनके बाल देख कर उन्हें बाबा कह कर सम्बोधित किया तो उन्होंने यह कविता कही.
केहरि फंसा पींजरे में, क्या कर लेगा बल से. शेर यदि पिंजरे में फंस जाए तो अपनी ताकत से नहीं निकल सकता. जहाँ बुद्धि काम आती है वहाँ बल काम नहीं आता.
केहि की प्रभुता न घटी, पर घर गए रहीम. दूसरे के घर जा कर (विशेषकर कुछ मांगने के लिए) सभी का मान घट जाता है.
केहू खाए खाए मुए और केहू बिना खाए मुए. (भोजपुरी कहावत) कोई ज्यादा खाने से मरे और कोई खाने के बिना मरे. कहीं पर किसी वस्तु की अधिकता और कहीं पर बहुत कमी. केहू -कोई, मुए – मरे.
केहू खाना खाय, केहू पैखाना जाय. करे कोई भरे कोई.
केहू हीरा चोर, केहू खीरा चोर. (भोजपुरी कहावत) कोई बहुत बड़ी चीज़ का चोर है और कोई बहुत छोटी चीज़ का.
कै जागे जोगी कै जागे भोगी. योग साधना के लिए योगी जागता है और भोग भोगने के लिए भोगी जागता है.
कै जागे बेटी को बाप, कै जागे जाके घर में सांप. या तो वह व्यक्ति चिंता में जागता है जिस की बेटी ब्याह योग्य हो, या वह जागता है जिस के घर में सांप छिपा बैठा हो.
कै तो घोड़ा काटे नहीं, और काटे तो फिर छोड़े नहीं. सामर्थ्यवान व्यक्ति सामान्यत: क्रोध नहीं करता. और क्रोध करता है तो मटियामेट कर देता है.
कै तो जीभ संभाल, कै खोपड़ो संभाल. (हरयाणवी कहावत) जीभ उल्टा सीधा बोलती है तो खोपड़ी पिटती है. जीभ को संभाल लो वरना खोपड़ी को संभालना पड़ेगा.
कै तो बावली सिर खुजावै ना, खुजावै तो लहू चला ले. (हरयाणवी कहावत) बावला आदमी या तो कोई काम करेगा नहीं, और करेगा तो उसे रोकना मुश्किल.
कै तो बिगड़े कुपंथ से, कै बिगड़े कुपथ्य से. आदमी गलत राह पर चलने से विनाश को प्राप्त होता है या गलत भोजन से.
कै तो बिलुआ चले न, और चले तो मेंड़ की मेंड़ ढहावे. आजकल के लोगों ने हाथ से चलने वाली चक्की नहीं देखी होगी. चक्की चलती है तो उसके चारों तरफ आटे की ढेरी बनती जाती है और जैसे जैसे नया आटा पिस कर आता है पुरानी ढेरी ढह कर नई ढेरी बनती जाती है. ढेरी की तुलना यहाँ खेत की मेड़ से की गई है. कहावत में यह कहा गया है कि या तो चक्की का पाट चलता नहीं है और चलता है तो मेड़ की मेड़ ढहाता है. कोई भी काम शुरू तो बहुत मुश्किल से हो पर फिर खूब तेज़ी से चले तो यह कहावत कही जाती है. (देखिये परिशिष्ट)
कै तो लड़े कूकुर, कै लड़े गँवार. लड़ने भिड़ने का काम मूर्ख लोग ही करते हैं.
कै धन मिले धाए धाए, कै धन मिले पराया पाए, कै धन मिले नदी के कच्छ्न, कै धन मिले बहू के लच्छन. (बुन्देलखंडी कहावत) नदी के कच्छ्न – नदी किनारे की उपजाऊ जमीन. धन मिलता है या तो दौड़ भाग करने से, या कहीं पड़ा मिलने से, या नदी के कच्छ में खेती करने से, या अच्छे लक्षणों वाली बहू के घर में आने से.
कै मारे बदली की धूप, कै मारे बैरी को पूत. भादों की धूप मारती है या जिससे दुश्मनी हो उसकी संतान.
कै लड़े सूरमा, कै लड़े मूरख. आम तौर पर समझदार लोग लड़ाई भिड़ाई से दूर रहते हैं. या तो शूरवीर लोग लड़ना पसंद करते हैं या मूर्ख लोग जो अपना भला बुरा नहीं समझते.
कै सोवे राजा का पूत, कै सोवे योगी अवधूत. या तो राजा का पुत्र निश्चिन्त हो के सो सकता है (क्योंकि वह सब प्रकार से सुरक्षित होता है) या फिर योगी सन्यासी (क्योंकि उसे कोई सांसारिक चिंता नहीं होती).
कै हंसा मोती चुगे, कै भूखा रह जाए (लंघन करि जाय). ऐसा माना जाता है कि हंस केवल मोती चुगता है, गंदगी नहीं खाता. जो लोग उत्तम प्रकृति के होते हैं वे केवल उत्तम बातें ही ग्रहण करते हैं.
कैंची काटे ही काटे, सूई जोड़े ही जोड़े. जो लोग अच्छी मनोवृत्ति के है वे लोगों को जोड़ते हैं और जो दुष्ट प्रवृत्ति के होते हैं वे केवल लोगों में अलगाव पैदा करते हैं.
कैर का ठूंठ टूट जाए पर झुके नहीं. नासमझ लोग परिस्थितियों से समझौता करना नहीं जानते.
को कहि सके बड़ेन सों होत बड़ी नहिं भूल, दी ने दई गुलाब की इन डारन पर फूल. दी – दैव (ईश्वर).बड़े लोग भी कभी कभी भूल करते हैं. भगवान ने भी गुलाब की काँटों भरी डालियों में इतने सुंदर फूल दिए हैं.
को न कुसंगति पाय नसाई. कुसंगति पा कर सभी नष्ट हो जाते हैं. नसाई – नष्ट हो जाता है.
को नृप होहिं हमें का लाभ. कोई भी राजा हो हमें क्या फायदा होगा. हम दासी की जगह रानी तो नहीं बन जाएँगी. जिस जमाने में राजा चुनने में प्रजा का कोई हाथ नहीं होता था तब तो यह सोच ठीक थी पर अब लोकतंत्र के जमाने में भी लोग ऐसी सोच रखते हैं जोकि ठीक नहीं है.
को नृप होहिं हमें का हानि. चेरि छांड़ि नहिं होऊ रानी. उपरोक्त की भांति.
कोइरी की बिटिया के न मैके सुख न ससुरारे सुख. कोइरी – सब्जी बोने वाला किसान. गरीब की बेटी को सभी जगह काम अधिक करना पड़ता है और सुख सुविधाएं कहीं नहीं मिलतीं.
कोइरी सिपाही न बकरी मरखनी. किसान योद्धा नहीं बन सकता जैसे बकरी मरखनी नहीं हो सकती.
कोई आँख का अंधा, कोई हिए का अंधा. कोई आँख का अंधा है और कोई हृदय का (भावना शून्य व्यक्ति).
कोई ओढ़े शाल दुशाला, कोई ओढ़े कम्बल काला. भाग्य से किसी को कम और किसी को बहुत मिलता है.
कोई काम करे दाम से, कोई दाम करे काम से. कोई पैसा खर्च कर के लोगों से काम कराता है और कोई अपने हाथों से काम कर के पैसा कमाता है.
कोई खींचे लांग लंगोटी, कोई खींचे मूंछड़ियाँ, कोठे चढ़ कर देत दुहाई, कोऊ मत करियो दो जनियाँ. किसी व्यक्ति की दो पत्नियाँ हैं. वह छत पर चढ़ कर लोगों को समझा रहा है कि कोई दो बीबियाँ मत रखना. कोठा – छत
कोई तोलों कम, कोई मोलों कम, कोई मोल में भारी, कोई तोल में भारी. सभी प्रकार के लोग होते हैं. कोई तोल में कम है (उस में गुण कम हैं) कोई मोल में कम है (उसके पास धन दौलत कम है). इसी प्रकार किसी में गुण और गंभीरता अधिक हैं और किसी के पास पैसा अधिक है.
कोई न बैरी कूकर बैरी. आप लाख कोशिश करें कि किसी से आपकी दुश्मनी न हो लेकिन कोई न कोई आपसे वैर भाव रखने वाला निकल ही आएगा. और कुछ नहीं तो मोहल्ले का कुत्ता ही बिना बात आप पर भौंकेगा.
कोई न मिले तो अहीर से बतलाय, कुछ न मिले तो सतुआ खाय. सत्तू को घटिया खाद्य पदार्थ माना गया है. कुछ न मिले तो मजबूरी में सत्तू खा कर काम चलाना चाहिए. इसी प्रकार अहीर से तभी बात करना चाहिए जब और कोई न मिले.
कोई निरखे चूड़ी कंघी, कोई निरखे मनिहारी. मनिहारी – स्त्रियों के श्रृंगार आदि का सामान (विशेषकर चूड़ियाँ) बेचने वाली महिला. किसी की सामान देखने में रूचि है तो कोई मनिहारी को ही निहार रहा है.
कोई मरे कोई अर्थी बनाए. कहीं पर मृत्यु होने से मातम हो रहा है और किसी को उससे जीविका मिल रही है.
कोई मरे कोई जीवे, सुथरा घोल बताशा पीवे. स्वार्थी लोगों के लिए.
कोई माल मस्त, कोई हाल मस्त. कोई माल में मस्त, तो कोई ख़याल में मस्त. कोई धन संपदा में खुश है तो कोई कोरी कल्पनाओं में ही मस्त है.
कोई मुझे न मारे तो मैं किसी को नहीं छोड़ूँ. कायर आदमी का कथन.
कोई रोवे कोई मल्हार गावे (कोई मरे कोई मल्हार गावे). संसार में सब के दिन एक से नही होते. कोई प्रसन्न है तो कोई दुखी. इस कहावत का अर्थ इस प्रकार भी कर सकते हैं कि स्वार्थी लोगों को दूसरों का दुःख नहीं दिखता, वे अपने राग रंग में मस्त रहता हैं.
कोई लाख करे चतुराई, करम का लेख मिटे न रे भाई. व्यक्ति कितनी भी बुद्धिमत्ता दिखा ले, भाग्य के लिखे को नहीं मिटा सकता.
कोई साथ आवे नहीं कोई साथ जावे नहीं. इस संसार में न तो कोई साथ आता है, न कोई साथ जाता है.
कोई स्यान मस्त कोई ध्यान मस्त कोई हाल मस्त कोई माल मस्त. दुनिया में सब प्रकार के लोग हैं. कोई ख्यालों में ही मस्त है, कोई धन धान्य में खुश है, कोई जैसे भी हाल में है उसी में खुश है.
कोऊ काटे मेरी नाक और कान, मैं न छोडूँ अपनी बान. अत्यधिक हठी व्यक्ति.
कोऊ को कल्पाए के, कोउ कैसे कल पाए. कलपाना – पीड़ित करना, कल पाए – चैन पाए. किसी को पीड़ित कर के कोई कैसे चैन पा सकता है.
कोऊ लांगड़ कोऊ लूल, कोऊ चले मटकावत कूल. ऐसा समाज जहाँ सारे लोगों में कोई न कोई कमी हो.
कोख से जन्मा सांप भी माँ को प्यारा लगे. माँ को अपना बच्चा हमेशा प्यारा लगता है, चाहे वह कैसा भी हो.
कोटहिं रंग दिखावत है जब अंग में आवे भंग भवानी. भंग – भांग. भंगेड़ियों द्वारा भांग की महिमा का बखान.
कोटिन काजू दाख खवावे, ऊंटहिं काठ झंकाड़हि भावे. दाख – द्राक्ष (अंगूर, किशमिश). ऊंट को कितना भी काजू किशमिश खिलाओ उसे झाड़ झंखाड़ ही अच्छे लगते हैं. मूर्ख व्यक्ति उत्तम वस्तुओं का मोल नहीं जानता, उसे निकृष्ट वस्तुएं ही प्रिय होती हैं.
कोठी कुठले को हाथ न लगाओ, घरबार सब तुम्हारा. कोठी – अनाज रखने का मिटटी का बड़ा बर्तन. कुठला – पानी भरने का बड़ा बर्तन. मेहमान से कह रहे हैं कि खाने पीने की बात मत करो, घरबार सब तुम्हारा ही है. दिखावे का आतिथ्य. (देखिये परिशिष्ट)
कोठी धोए कीच हाथ लगे. अनाज रखने के बर्तन को धोने से कीचड़ हाथ लगती है. (लेकिन तब भी यह आवश्यक काम है)
कोठी में चावल, घर में उपवास. धन धान्य भरपूर मात्रा में है तब भी घर के लोग भूखे हैं. प्रबंधन (मैनेजमेंट) में गड़बड़ी.
कोठी में धान तो मूढ़ में ज्ञान. घर में अनाज भरपूर मात्रा में हो तभी ज्ञान की बातें समझ में आती हैं.
कोठी वाला रोवे, छप्पर वाला सोवे. पैसे वाला आदमी हर समय चिंता में दुबला होता रहता है जबकि झोंपड़ी वाला चैन से सोता है.
कोठे से गिरा संभल सकता है, नजरों से गिरा नहीं. कोठा – छत. छत से गिरा आदमी उठ कर खड़ा हो सकता है लेकिन जो एक बार नजरों से गिर जाए वह नहीं.
कोढ़ मिट जाए पर दाग न जाए. एक बार इज्जत चली जाए तो वह बात दोबारा नहीं आती.
कोढ़ में खाज. परेशानी में परेशानी.
कोढ़ी का टका भी मंदिर में चढ़ता है. 1. भगवान् के यहाँ सब बराबर हैं. 2. कोढ़ी से वैसे तो सब लोग छुआछूत मानते हैं पर पैसा उस के हाथ से भी ले लेते हैं.
कोढ़ी का दिल शहजादी पर. अपनी हैसियत से बहुत अधिक इच्छा रखना.
कोढ़ी के जूँ नहीं पड़ती. लोक विश्वास है कि कोढ़ से ग्रसित व्यक्ति को जूँ नहीं होतीं. हालांकि बीमारी एक ईश्वरीय प्रकोप है और इस में कोढ़ी की कोई गलती नहीं होती फिर लोग उसे गन्दा और नीच मानते हैं. कहावत का अर्थ है कि नीच आदमी को छोटे मोटे कष्ट नहीं सताते.
कोढ़ी डराए थूक से. नीच आदमी अपनी नीचता से डराता है.
कोढ़ी मरे संगाती चाहे. संगाती माने साथ जाने वाला. कोढ़ी चाहता है कि वह मरे तो उस के साथ रहने वाला भी उसके साथ परलोक जाए.
कोतवाल को कोतवाली ही सिखाती है. किसी भी व्यवसाय को करने वाला व्यक्ति उस काम को करके ही सीखता है.
कोदों का भात किन भातों में, ममिया सास किन सासों में. कोदों एक घटिया अनाज होता है. कोदों से बने भात की गिनती भातों में नहीं होती. इसी प्रकार ममिया सास जबरदस्ती की सास है, उसकी गिनती सासों में नहीं होती.
कोदों दे के नहीं पढ़े. कोदों जैसी घटिया चीज दे के पढ़े होते तो शिक्षक भी घटिया मिलता और शिक्षा भी घटिया मिली होती.
कोदों दे के पूत पढ़ाए, सोलह दूनी आठ. घटिया शिक्षा का घटिया फल.
कोदों परस के मट्ठे को गये. कोदों को पचाने के लिए मट्ठा आवश्यक होता है. कोई व्यक्ति कोदों को ठाली में परस कर मट्ठा मांगने गया है. ऐसे लोग जो योजना बना कर काम नहीं करते.
कोदों में घी खोवे, मूरख से दुख रोवे. कोदों जैसे घटिया अनाज में घी डालना बेकार है और मूर्ख व्यक्ति से अपना दुःख कहना भी बेकार है,
कोदों सबा अन्न न, धी दामाद धन्न न. कोदों और सबा घटिया प्रकार के अनाज हैं, जिन्हें लोग अन्न की श्रेणी में नहीं मानते हैं. कहावत में तुकबन्दी कर के दूसरी बात और बताई गई है जो इस से सम्बंधित नहीं है. पुत्री और दामाद व्यक्ति का धन नहीं होते (बेटी को पराया धन कहा गया है), जबकि पुत्र एक प्रकार का धन है.
कोपीन की गिनती पोशाकों में. कोपीन जैसे न्यूनतम वस्त्र की पोशाकों में गिनती कैसे हो सकती है. कोई बहुत क्षुद्र व्यक्ति अपने को महत्वपूर्ण समझता हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.
कोमल डार ज्यों नमावो त्यों नमे. पेड़ या पौधे की कोमल डाल को जिस प्रकार मोड़ो मुड़ जाती है. इसी प्रकार छोटे बच्चे का मन कोमल होता है उसे किसी भी रूप में ढाला जा सकता है.
कोयल अम्बहिं लेत है, काग निम्बौरी लेत. कोयल मीठा आम खाती है जबकि कौवा कड़वी निम्बौली खाता है. हर व्यक्ति अपनी रूचि के अनुसार चीज़ चुनता है.
कोयल काले कौवे की जोरू. 1.बेमेल जोड़ा, क्योंकि कोयल सुरीली है और कौआ कर्कश. 2.उपयुक्त जोड़ा, क्योंकि दोनों काले हैं. 3.जहाँ पति पत्नी किसी अवगुण में एक से बढ़ कर एक हों.
कोयल की बोली कोयल क्या जाने. कोयल को अपनी बोली का मोल नहीं मालूम.
कोयला गर्म हो तो हाथ जलाए, ठंडा हो तो हाथ काला करे. नीच मनुष्य का साथ हर परिस्थिति में दुखदाई होता है.
कोयला होय न ऊजला, सौ मन साबुन धोय. चाहे सौ मन साबुन से धो लो, कोयला सफ़ेद नहीं हो सकता. दुष्ट व्यक्ति को सुधारने का कितना भी प्रयास कर लो वह नहीं सुधर सकता.
कोयले की दलाली में हाथ काले. आप कोई गलत काम स्वयं न भी करें, अगर उसमें बीच में भी पड़ते हैं तो आपको भी कुछ न कुछ बदनामी होने की संभावना रहेगी.
कोयले से हीरा, कीचड़ से फूल. कोयले जैसी घटिया चीज़ में से हीरा प्राप्त होता है और कीचड़ की गंदगी में कमल का फूल खिलता है. अति निर्धन या पिछड़ी पृष्ठभूमि से निकला व्यक्ति यदि उच्च स्थान प्राप्त कर ले तो.
कोरी का ब्याह, कड़ेरा हाथ जोड़े फिरे. कोरी – बुनकर, कड़ेरा – धुनिया (रुई धुनने वाला). किसी दूसरे के काम में आवश्यकता से अधिक रूचि दिखाना.
कोरी ठकुराई और बगल में कंडा. झूठ मूठ के ठाकुर. राजस्थानी कहावत – ठाली ठकुराई कांख में छाण.
कोरी नून की पोवे. केवल नमक की रोटी बनाता है. जो बिल्कुल बिना सिर पैर की गप्प हाँकता हो.
कोल्हू के बैल को साथी की क्या दरकार. यदि एक ही आदमी से काम चलता हो तो दो लोग क्यों लगाए जाएँ.
कोल्हू से खल उतरी, भई बैलों जोग. तिल में से तेल निकलने के बाद खल बचती है जोकि केवल बैलों के खाने के काम आती है. महत्वपूर्ण व्यक्ति अपना पद खोने के बाद गरिमाहीन हो जाता है.
कोस कोस पर पानी बदले, बारह कोस पे बानी. हमारे देश में हर कोस पर पानी का स्वाद बदल जाता है और हर बारह कोस पर बोली में कुछ बदलाव आ जाता है.
कोस चली न, बाबा प्यासी. कोस भर भी नहीं चली और कहने लगी बाबा प्यास लग रही है. काम शुरू करते ही थकने का बहाना करना.
कोसे जिएँ, असीसे मरें. किसी को खूब कोसा गया फिर भी वह जीवित है, किसी को जुग जुग जीने की आशीष दी गई फिर भी वह मर गया. अर्थ है कि कोसने या असीस देने से कुछ नहीं होता, सब ईश्वर की मर्ज़ी से होता है.
कौआ अपने शिसुन को जानत सबसे सेत. सेत – श्वेत (यहाँ सुंदर से तात्पर्य है) कौए को अपने बच्चे सबसे सुंदर लगते हैं. हर जीव जन्तु को अपनी संतान प्रिय होती है (चाहे वह कैसी भी हो).
कौआ के कोसे ढोर न मरे. कौए के कोसने से ढोर (गाय, भैंस, बैल इत्यादि) नहीं मरते. उन अन्धविश्वासी लोगों को सीख दी गई है जो मंत्र तंत्र कर के किसी को हानि पहुँचाना चाहते हैं.
कौआ चला हंस की चाल, अपनी चाल भी भूल गया. दूसरों की नकल करने में हम उसके जैसा भी नहीं बन पाते हैं और अपनी वास्तविकता एवं मौलिकता को भी भूल जाते हैं.
कौआ जैसे पंख मोर का अपनी दुम में बांधे. फूहड़पने से किसी की नकल करना.
कौआ बोले बेसी, घर आवे परदेसी. कौवा यदि बार बार बोलता है तो घर में कोई मेहमान आता है.
कौए की चोंच में अंगूर, हूर के पहलू में लंगूर. यदि किसी लल्लू पंजू आदमी को बहुत सुंदर पत्नी मिल जाए तो दूसरे लोग ईर्ष्या वश यह कहावत कहते हैं.
कौए की दुम में अनार की कली. उपरोक्त के समान.
कौए की नजर तो रैंट पर ही. नीच व्यक्ति को निम्न कोटि की वस्तुएँ ही पसंद आती हैं. (कौआ नाक से निकली रैंट को बड़े शौक से खाता है).
कौए के साथ हंस का जोड़ा. बेमेल जोड़ा.
कौए को सोने के पिंजरे में मोती चुगाओ तो भी राजहंस नहीं हो सकता. अर्थ स्पष्ट है.
कौए धोए कहीं बगुले हुआ करें. किसी खुराफाती आदमी को सुधारने की बहुत कोशिश की गई पर वह खुराफाती ही रहा तो यह कहावत कही गई. कोई काला या असुंदर व्यक्ति सुंदर दिखने के लिए तरह-तरह के साबुन और लेप लगाए तो भी उसका मजाक उड़ाने के लिए यह कहावत कही जाती है.
कौए सब जगह काले ही काले. दुष्ट लोग सब जगह दुष्टता ही करते हैं.
कौए से भी गोरा. किसी अत्यधिक काले आदमी का मजाक उड़ाने के लिए.
कौओं के बजाए ढोल थोड़े ही फूटें. छोटे और महत्वहीन लोग बड़े व महत्वपूर्ण लोगों का कोई नुकसान नहीं कर सकते.
कौड़ी कौड़ी जोड़ के निधन होत धनवान, अक्षर अक्षर के पढ़े मूरख होत सुजान. अर्थ स्पष्ट है.
कौड़ी कौड़ी बचाओ, लाखों रूपए पाओ (कौड़ी कौड़ी धन जुड़े). छोटी छोटी बचत अंततः बहुत बड़ी बन जाती हैं.
कौड़ी गाँठ की, जोरू साथ की. कौड़ी वही काम की है जो गाँठ में हो (मतलब पैसा वही काम का है जो पास में हो), पत्नी तभी काम की है जब साथ हो.
कौड़ी नहीं गाँठ, चले बाग की सैर. अपने पास कुछ न होते हुए भी तरह तरह के शौक सूझना.
कौडी नाहीं गाँठ में, करे ऊँट की बात. पास में पैसा न होते हुए भी बड़ी बड़ी बातें करने वालों के लिए.
कौड़ी बिना दो कौड़ी का. जिस के पास पैसा न हो उसे कोई नहीं पूछता.
कौड़ी में हाथी बिकाय, पर कौड़ी तो हो. कोई महंगी चीज बहुत सस्ती मिल रही है लेकिन हमारे पास तो उतने पैसे भी नहीं हैं.
कौन कहे राजा जी नंगे हैं. एक राजा के दरबार में दो लोग आए और राजा से बोले कि वे देवताओं के वस्त्र बनाते हैं. राजा ने कहा कि मेरे लिए भी वस्त्र बनाओ. उन्होंने राजा से एक महीने का समय माँगा और बहुत सा सोना, हीरे जवाहरात और रेशम, मखमल वगैरा ले कर महल के एक कमरे में काम शुरू कर दिया. एक महीने बाद उन्होंने सभा बुलवाई और राजा से कहा कि हम आप को देवताओं के वस्त्र अपने हाथ से पहनाएंगे. वस्त्र तो ऐसे बने हैं कि जो देखेगा देखता रह जाएगा लेकिन इन वस्त्रों की एक विशेषता यह है कि ये उन्हीं लोगों को दिखाई देते हैं जो अपने बाप से पैदा हैं. उन्होंने राजा के कपडे उतरवाए और खाली मूली हवा में ही एक एक चीज़ राजा को पहनाने लगे. लीजिये महाराज यह मलमल का जांघिया, यह रेशम की धोती, यह हीरे मोती जड़ा कुर्ता आदि आदि. राजा को कुछ नहीं दिख रहा था लेकिन वह यह कैसे कहे. उसने सोचा कि हो न हो मैं अपने पिता महाराज की औलाद न हो कर किसी द्वारपाल की औलाद हूँ जो मुझे ये वस्त्र दिखाई नहीं दे रहे हैं. उन लोगों ने सब दरबारियों से पूछा कि कैसे लग रहे हैं महाराज के वस्त्र? सब ने एक स्वर से कहा अद्वितीय. जहाँ पर कोई गलत काम होता सब को दिख रहा हो पर कहने की हिम्मत कोई न जुटा पा रहा हो वहाँ यह कहावत कहते हैं.
कौन किसी के आवे जावे, दाना पानी खेंच लावे. कोई किसी के घर वैसे क्यों आएगा जाएगा, दाना पानी व्यक्ति को खींच लाता है.
कौन जाने किस विधि राजी राम. कोई नहीं जान सकता कि ईश्वर की इच्छा क्या है.
कौन सिखावत है कहो, राजहंस को चाल. राजहंस की चाल राजसी होती है. लेकिन यह उस का जन्मजात गुण है. हमारे कुछ गुण जन्मजात होते हैं.
कौन सुने किससे कहें, ऐसी आन पड़ी, किस किस को समझाइये, कूएँ भांग पड़ी. जहाँ सभी एक से बढ़ कर एक हों.
कौन से जनम का कर्म कौन से जनम में उघड़ आवे. कोई नहीं जानता कि किस जन्म में किया पाप या पुण्य किस जन्म में अपना फल दिखाएगा.
कौवा अपने बच्चों को ही सबसे सुंदर समझता है. अपने बच्चे सभी को सब से सुन्दर लगते हैं.
कौवा कहे कोयल काली. अपनी कमियों को न देख कर दूसरों की खामियाँ ढूँढना. इंग्लिश में कहावत है – The pot calls the kettle black.
कौवा कान ले गया. मूर्ख व्यक्ति से कुछ भी कहो वह विशवास कर लेता है. किसी व्यक्ति ने एक मूर्ख से कहा – देख! कौवा तेरा कान ले गया. मूर्ख तुरंत अपना कान टटोल कर देखने लगा या कौवे के पीछे दौड़ने लगा.
कौवा कोसे ढोर मरें तो रोज़ कोसे, रोज़ मारे, रोज़ खाए. कौए के कोसने से अगर ढोर (गाय भैंस आदि) मरने लगें तो कौया रोज कोस कोस कर उन्हें मार कर खाएगा. अन्धविश्वासी लोगों को सीख दी गई है.
कौवों की बरात में बड़े कौए की पूछ. निकृष्ट लोगों के यहाँ कोई आयोजन होता है तो सब से निकृष्ट आदमी की विशेष पूछ होती है.
क्या अंधे का सोना और क्या उसका जागना. अंधा व्यक्ति चाहे सोए चाहे जागे, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता.
क्या उल्लू और क्या उल्लू का पट्ठा. किसी मूर्ख व्यक्ति और उसकी मूर्ख संतान के लिए हिकारत भरे शब्द.
क्या करे नर बांकुरो, जब थैली को मुख सांकरो. धन के अभाव में योग्य व्यक्ति भी असहाय हो जाता है.
क्या कहूँ कछु कहा न जाए, बिन कहे भी रहा न जाए, मन की बात मन में ही रही, सात गाँव बकरी चर गई. एक चरवाहे ने किसी राजा की जान बचाई तो राजा ने उसे पत्ते पर सात गाँव का पट्टा लिख कर दे दिया. उसने यह बताने के लिए बड़ा खुश हो कर सब लोगों को इकठ्ठा किया. तब तक उसकी निगाह बचते ही बकरी उस पत्ते को खा गई.
क्या कुत्ते का मगज़ खाया है. कोई आदमी बहुत बकवास करे उसके लिए. (कुत्ता बहुत भौंकता है इसलिए).
क्या तत्ते पानी से घर जले है. गरम पानी से शरीर जल सकता है लेकिन घर नहीं जल सकता. छोटी छोटी चीजें बहुत बड़ा नुकसान नहीं कर सकती हैं.
क्या पता ऊँट किस करवट बैठे? अनिश्चितता की स्थिति में. (ऊँट के विशेष में यह नहीं पता होता कि वह किस तरफ बैठेगा).
क्या पिद्दी और क्या पिद्दी का शोरबा. पिद्दी एक छोटी सी चिड़िया होती है. किसी छोटे और कमजोर आदमी का मजाक उड़ाने के लिए.
क्या भरोसा है जिंदगानी का, आदमी बुलबुला है पानी का. जीवन का कोई भरोसा नहीं, पानी के बुलबुले की तरह क्षणभंगुर है. (पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात – कबीर)
क्या भूख को बासन. क्या नींद को ओढ़न. भूख लगी हो तो बिना बर्तनों के भी खाया जा सकता है और नींद आ रही हो तो बिना ओढ़नी के भी सोया जा सकता है.
क्या रखा इन बातों में, जूते ले लो हाथों में. जूते हाथों में लेने का अर्थ जूते ले कर भागने से भी है, जूते मारने से भी है. वैसे आम तौर पर इस कहावत को मजाक में प्रयोग करते हैं.
क्या ले गए राव और क्या ले गए उमराव. कोई कितना भी शक्तिशाली और सम्पन्न हो इस दुनिया से कुछ नहीं ले जा सकता.
क्या ले गया शेरशाह और क्या ले गया सलीमशाह. बड़े से बड़े लोग भी इस दुनिया से कुछ ले नहीं जा पाए. इसलिए किसी के साथ अन्याय करके धन कमाने का प्रयास नहीं करना चाहिए.
क्या सासू जी अटको मटको, क्या मटकाओ कूल्हा, डोली पर से जब उतरूंगी, जुदा करूंगी चूल्हा. जो महिलाएं बेटे की शादी में बहुत नाच कूद रही हों उन को सावधान किया गया है.
क्या सौ रुपये की पूंजी, क्या एक बेटे की औलाद. जैसे सौ रुपये की पूंजी नाकाफ़ी है वैसे ही संतान के रूप में एक ही बेटा होना पर्याप्त नहीं है.
क्या हंसिया को बेच खाए, क्या खुरपी को गिरवी रखे. हंसिया को बेचने और खुरपी को गिरवी रखने से कितना पैसा मिल जाएगा. बहुत निर्धन व्यक्ति के लिए.
क्या हल्दी को रंग और क्या परदेसी को संग. जिस प्रकार हल्दी का रंग स्थायी नहीं होता उसी प्रकार परदेसी की प्रीत भी क्षणभंगुर होती है.
क्या हिजड़ों ने राह मारी है. क्या हिजड़ों ने तुम्हारी राह रोक ली थी. कोई काम न करने के लिए व्यर्थ के बहाने बनाने पर.
क्यों अंधा न्योता और क्यों दो बुलाए. कोई ऐसा काम करना जिसमें अनावश्यक खर्च शामिल हो.
क्यों कही और क्यों कहाई. न तुम कुछ कहते और न तुम्हें इतना सुनना पड़ता.
क्रोध की सबसे अच्छी दवा मौन है. अर्थ स्पष्ट है.
क्रोध विवेक का दुश्मन है. क्रोध में आदमी विवेक भूल जाता है. इंग्लिश में कहावत है – Anger is a short madness.
क्वांरी कन्या को सौ घर और सौ वर (क्वांरी कन्या सहस वर). ब्याहता स्त्री का तो एक ही वर होता है लेकिन क्वांरी कन्या के लिए सैकड़ों सम्भावित वर होते हैं. वैश्या के लिए भी व्यंग्य में ऐसा कहते हैं.
क्वार करेला चैत गुड़, भादों मूली खाय, पैसा खरचै गांठ को, रोग बिसावन जाय. क्वार में करेला, चैत में गुड़ और भादों में मूली खाना हानिकारक है. पैसा खर्च होता है और रोग भी आते हैं. घाघ ने इस तरह की बहुत सी बातें लिखी हैं जो उस समय के लोगों की स्वास्थ्य सम्बंधी मान्यताओं को दर्शाती हैं. आज के वैज्ञानिक युग में इन में से अधिकतर का कोई आधार नहीं है.
क्वार का सा झल्ला, आया बरसा चल्ला. क्वार के महीने में बहुत हल्की सी वारिश होती है (बहुत थोड़े समय के लिए). कोई व्यक्ति बहुत थोड़े समय के लिए आए तो मज़ाक में कहते हैं.
क्वार जाड़े का द्वार. क्वार के महीने के बाद जाड़ा आता है.
क्वारी को अरमान, ब्याही परेशान. कुंआरी लड़की अपने विवाह को लेकर तरह तरह के सपने देख रही है, जबकि विवाहिता स्त्री गृहस्थी की मुसीबतों से परेशान है.
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ख
खंजर तले जो दम लिया तो क्या दम लिया. तलवार के साए में कौन चैन से बैठ सकता है.
खंबा गिरे छप्पर भारी. छप्पर को टिकाने वाला खंबा गिर जाए तो छप्पर भारी हो जाता है. घर के मुख्य कमाने वाले की मृत्यु हो जाए तो घर चलाना भारी पड़ने लगता है.
खग ही जाने खग की भाषा. चिड़िया की भाषा चिड़िया ही समझ सकती है. बच्चे की भाषा बच्चा समझ सकता है, जवान की भाषा जवान और बूढ़े की भाषा को बूढ़ा ही समझ सकता है.
खजुही कुतिया, मखमली झूल. खुजली वाली कुतिया के लिए मखमल की झूल. अपात्र को कोई बहुत बढ़िया चीज़ मिल जाना.
खजूर खाने हैं तो पेड़ पर चढ़ना पड़ेगा. कुछ पाने के लिए परिश्रम तो करना ही पड़ेगा.
खटमल के कारण खटिया मार खाय. खाट में खटमल हो जाएँ तो उन्हें निकालने के लिए जोर जोर से लाठी मारते हैं. गलत लोगों की संगत से मनुष्य हानि उठाता है.
खटिया में खटमल और गाँव में तुरक. खाट में खटमल और गाँव में मुसलमान परेशानी का कारण बनते हैं.
खट्टा खट्टा साझे में, मीठा मीठा न्यारा. जो फल खट्टा निकल गया उसको बाँट कर खाओ और जो मीठा है वह केवल मेरा है. निपट स्वार्थपरता.
खड़ा बनिया पड़े समान, पड़ा बनिया मरे समान. बनियों के डरपोक होने पे व्यंग्य.
खड़ा मूते लेटा खाय, उसका दलिद्दर कभी न जाय. जो आदमी खड़ा हो कर पेशाब करता है और लेट कर खाता है वह हमेशा दरिद्र ही रहेगा.
खड़ा स्वर्ग में गया. जिसकी मृत्यु चलते फिरते हो उसके लिए कहते हैं.
खड़ी आई, लेटी जाऊँगी. स्त्री का ससुराल वालों से कथन.
खड़ी खेती, गाभिन गाय, तब जानो जब मुँह में जाय. खेती पक कर तैयार खड़ी हो तो भी किसान बहुत खुश नहीं होता. जब फसल कट कर खलिहान में पहुँच जाए और खाने को मिल जाए तभी वह खुश होता है. इसी प्रकार गाय गर्भवती हो तो तब तक खुश नहीं होना चाहिए जब तक वह ब्याह न जाए और दूध पीने को न मिल जाए.
खतरा दो अंगुल, डर सौ अंगुल. खतरे से अधिक डर आदमी को परेशान करता है.
खता करे बीबी, पकड़ी जाए बांदी. इसका अर्थ दो तरह से है. एक तो यह कि गलती कोई और करे और सजा किसी और को मिले. दूसरा यह कि बीबी से कुछ कहने की हिम्मत नहीं है इसलिए उसकी गलती की सजा बांदी को दे रहे हैं.
खता लम्हों ने की, सजा सदियों ने पाई. कुछ देखने में छोटी लगने वाली गलतियाँ बहुत लम्बे समय तक दुःख पहुँचाती हैं. गलती तो थोड़ी देर में ही हो जाती है लेकिन उसके परिणाम दूरगामी होते हैं. आजादी मिलने के समय जो गलतियाँ उस समय के नेताओं ने कीं उस का खामियाजा देश अब तक भुगत रहा है.
खत्री पुत्रम् कभी न मित्रम् (जब मित्रम् तब दगा ही दगा).खत्रियों के विषय में किसी दिलजले का कथन.
खत्री से गोरा सो पिंड रोगी. खत्री से गोरा कोई दिखाई दे रहा है तो हो न हो पीलिया का रोगी होगा. खत्रियों के गोरे रंग पर कहावत.
खन में तत्ते खन में सीरे. खन – क्षण, तत्ता – गरम, सीरा – ठंडा. घड़ी घड़ी मिजाज़ बदलना.
खपरा फूटा, झगड़ा टूटा. जिस चीज को लेकर झगड़ा हो रहा है वह टूट जाए तो झगड़ा खत्म.
खर को गंग न्हवाइए, तऊ न छांड़े खार. कितना भी प्रयास करो, दुष्ट व्यक्ति अपनी दुष्टता नहीं छोड़ता.
खर, उल्लू औ मूरख नर सदा सुखी इस घरती पर. गधा, उल्लू और मूर्ख नर, इस धरती पर सदा सुखी हैं क्योंकि इन की कोई महत्वाकांक्षाएं नहीं होतीं.
खरचे से ठाकुर बने. ठकुराई करने के लिए कुछ शान शौकत दिखानी पड़ती है.
खरब अरब लौं लच्छमी, उदै अस्त लौं राज, तुलसी हरि की भक्ति बिन, जे आवें किस काज. कितना भी धन हो और कितना भी फैला हुआ राज पाट हो, हरि की भक्ति के बिना सब बेकार हैं.
खरबूजा खरबूजे को देख कर रंग बदलता है. जो लोग दूसरों को देख कर रंग बदलते हैं उनका मज़ाक उड़ाने के लिए.
खरबूजा चाहे घाम को आम चाहे मेह, औरत चाहे जोर को और बालक चाहे नेह. खरबूजा तेज धूप में मीठा होता है और आम बरसात में. स्त्री पौरुष को पसंद करती है और बालक स्नेह को.
खरा कमाय खोटा खाय. ईमानदार आदमी कमाता है और बेईमान बैठ कर खाता है.
खरा खेल फरुक्खाबादी. सच्ची बात और ईमानदारी का काम.
खरादी का काठ काटे ही से कटता है. धीरे धीरे ही सही, काम करने ही से निबटता है और ऋण चुकाने से ही चुकता है.
खराब किराएदार से खाली मकान बेहतर. गलत आदमी को मकान किराए पर देने में बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
खरी मजूरी चोखा काम. नगद और अच्छी मजदूरी देने से काम अच्छा होता है.
खरे को बरकत ओर खोटे को हरकत. ईमानदार की उन्नति होती है और बेईमान का विनाश.
खरे माल के सौ गाहक. अर्थ स्पष्ट है. कहावत के द्वारा दूकानदारों को अच्छी गुणवत्ता वाला माल बेचने को प्रेरित किया गया है.
खरे सोने को कसौटी का क्या डर. सोना यदि शुद्ध हो तो कसौटी पर खरा ही उतरेगा. जो व्यक्ति निर्दोष है वह किसी से नहीं डरता.
खर्चा घना पैदा थोड़ी, किस पर बांधूं घोड़ा घोड़ी. आमदनी से अधिक खर्च है, किस बूते घोड़ा पाल लूँ. (घोड़ा पालना बहुत महंगा शौक है)
खल की दवा पीठ की पूजा. दुष्ट लोग पीटने से ही ठीक रहते हैं.
खल खाई और कुत्तों की झूठी. (बुन्देलखंडी कहावत) वैश्या के यहाँ जाने वाले से ऐसा कहा जाता है.
खलक का हलक किसने बंद किया है. जनता की आवाज़ को कोई नहीं दबा सकता.
खलक की जुबान, खुदा का नक्कारा. जनता की बात ईश्वर की आज्ञा. इंग्लिश में कहावत है – The voice of the people is the voice of God.
खलक गाल भरावे, पेट नहीं भरावे. खलक – संसार. संसार के लोग मुँह देखी बातें करते हैं, पर पेट भरने वाला कोई नहीं होता.
खली गुड़ एक भाव (खांड़ खड़ी का एक भाव). भारी अव्यवस्था की स्थिति. (घोड़े गधे एक भाव, टके सेर भाजी टके सेर खाजा). खराब शासन व्यवस्था.
खसम का खाए, भाई का गाए. पति बेचारा सारी सुख सुविधाएं मुहैया करा रहा है लेकिन गुणगान भाई का ही करेंगी. उन स्त्रियों के लिए जो हमेशा अपने मायके की ही तारीफ़ करती हैं.
खसम किया सुख सोने को, कि पाटी लग के रोने को. ससुराल में जो लड़की सुखी नहीं है उसका कथन.
खसम देवर दोनों एक ही सास के पूत, यह हुआ या वह हुआ. पति के मरने पर स्त्री को देवर से विवाह करने के लिए प्रेरित करने का प्रयास.
खसम मरे का गम नहीं, घरवाली का सपना सच होना चाहिए. एक स्त्री को यह गलतफहमी थी कि उस के सपने अवश्य सच्चे होते हैं. एक बार उस ने सपना देखा कि उस के पति की मृत्यु हो गई है. जागने पर उसने अपने पति को जीवित पाया तो वह बहुत दुखी हुई. लोगों ने कहा कि तुम्हें तो खुश होना चाहिए. तो वह बोली पति को चाहे कुछ भी हो मेरा सपना सच होना चाहिये. कितना भी नुकसान हो, अपनी मूर्खतापूर्ण सोच से चिपके रहना
खसम मरे तो मरे सौतन विधवा होनी चाहिए. बहुत नीच प्रकृति के लोग हर हाल में दूसरे का बुरा चाहते हैं चाहे उस में अपना कितना बड़ा नुकसान क्यों न हो जाए.
खसम वाली रांड. ऐसी स्त्री जिसका पति उसकी कोई कद्र न करता हो.
खसम ही मारे तो किसके आगे पुकारे. अगर कोई स्त्री पर अत्याचार करता है तो वह सहायता के लिए अपने पति को पुकारती है, अगर पति ही उस पर अत्याचार करे तो वह किससे सहायता मांगे. यदि राजा या हाकिम ही अत्याचारी हो तो जनता किस की शरण में जाए.
खा के मुँह पोंछ लिया. गलत काम कर के उसे छिपाना या मुकर जाना.
खा चुके खिचड़ी, सलाम चूल्हे भाई. जिस से मतलब निकल गया उसको विदा की नमस्कार.
खांड की रोटी, जहाँ तोड़ो वहीँ मीठी. अच्छी वस्तु हर प्रकार से अच्छी ही है.
खांड़ खून्देगा तो खांड़ खाएगा. जो परिश्रम करेगा उसी को फल मिलेगा. (खांड बनाने के लिए उसे पैरों से खूँदना पड़ता है).
खांड दही जो घर में होय, बांके नैन परोसे जोय, बा घर ही बैकुंठा होय. घर में बढ़िया खाद्य सामग्री हो और आग्रह कर के खिलाने वाली पत्नी हो तो घर में ही बैकुंठ धाम है.
खांड बिना सब रांड रसोई. जब चीनी बनाने के परिष्कृत तरीके ईजाद नहीं हुए थे तब गन्ने के रस से गुड़ और खांड बनाई जाती थी. फिर खांड को शुद्ध कर के उस से बूरा बनाने का रिवाज़ शुरू हुआ. इन चीजों से ही मिठाई आदि बनती थी. इसी लिए कहा गया कि खांड के बिना रसोई बेकार है.
खांसी करूं खुर्रा करूं, फिर भी न मरे तो क्या करूं. बीड़ी व तम्बाखू का कथन.
खांसी, काल की मासी. लम्बे समय चलने वाली खांसी किसी गंभीर रोग का सूचक हो सकती है.
खाइए मन भाता, पहनिए जग भाता. इंसान को खाना तो अपने मन का खाना चाहिए पर पहनना वह चाहिए जो दूसरों को उसके ऊपर अच्छा लगे.
खाई दाल तबेले की, अक्कल होवे धेले की. तबेला माने घोड़ों के बाँधने का स्थान (अस्तबल). घोड़े को जब तबेला में रहने की आदत पड़ जाती है तो उस का दिमाग खराब हो जाता है. कहावत का अर्थ है कि सरकारी नौकरी लगते ही आदमी के दिमाग में सुरूर आ जाता है.
खाऊं कि न खाऊं तो न खाओ, जाऊं कि न जाऊं तो जरूर जाओ. जब मन में दुविधा हो कि इस समय खाना खाऊं या न खाऊं, तो उस समय नहीं खाना चाहिए. अगर यह दुविधा हो कि शौच जाऊं या न जाऊं तो चले जाना ज्यादा अच्छा है.
खाए के गाल और नहाए के बाल नहीं छिपते. जिस को भरपेट पौष्टिक आहार मिल रहा हो उस के गाल देख कर मालूम हो जाता है कि यह खाया पिया है. रिश्वत खाने वाले के लिए भी इस कहावत का प्रयोग कर सकते हैं. कहावत में तुक मिलाने के लिए नहाए हुए व्यक्ति के बाल भी नहीं छिपते यह भी जोड़ दिया गया है.
खाए गोप, कुटे जयपाल. अपराध कोई और करे, सजा किसी और को मिले.
खाए तो भेड़िए का नाम न खाए तो भेड़िए का नाम. कोई भी गलत काम हो तो लोग उन्ही पर शक करते है जो बदनाम हैं (चाहे उन्होंने वह काम किया हो या न किया हो).
खाए बकरी की तरह, सूखे लकड़ी की तरह. जो लोग खाते खूब हैं पर फिर भी दुबले पतले हैं उन के लिए.
खाए मुँह पचाए पेट, बिगड़ी बहू लजाए जेठ. गलत काम कोई करे और उस को सुधारने की कोशिश दूसरे को करनी पड़े तो. स्वाद के चक्कर में मुँह अंट शंट चीजें खाता है और पेट को वह सब पचाना पड़ता है, बहू गलत काम करती है और लज्जित जेठ को होना पड़ता है.
खाए सिपाही नाम कप्तान का. अधीनस्थ कर्मचारी रिश्वत लेते हैं तो भी हाकिम की बदनामी होती है.
खाए हुए को खिलाना आसान. 1.भरे पेट पर आदमी कम खाएगा. 2.जिस के विषय में पता हो कि वह रिश्वतखोर है उस को रिश्वत खिलाना आसान है.
खाएं भीम हगें शकुनि. काम कोई और करे, फल किसी और को मिले.
खाएगा तो हगेगा भी. कर्म का फल अवश्य मिलेगा.
खाओ तो कद्दू से न खाओ तो कद्दू से. किसी को कद्दू पसंद नहीं है पर खाने के लिए केवल कद्दू की सब्जी ही है, मजबूरी में वही खानी पड़ रही है. पसंद की चीज़ न मिले और मजबूरी में दूसरी चीजों से काम चलाना पड़े तब यह कहावत कही जाती है.
खाओ दाल रोटी चटनी, कमाई कितनी भी हो अपनी. आमदनी अधिक हो तब भी सादगी से रहना चाहिए.
खाओ न पिओ, जुग जुग जिओ. झूठा आशीर्वाद देने वालों के लिए.
खाओ पकोड़ी पेलो दंड. जीवन को बिंदास जीने का संदेश.
खाओ यहाँ तो पानी पियो वहां. बहुत जल्दी जाओ.
खाक डाले चाँद नहीं छिपता. धूल फेंकने से चंद्रमा नहीं छिपता. महापुरुषों पर बेकार के लांछन लगाने से उनकी महानता कम नहीं होती.
खाक न खटाई, मुंडो फिरे इतराई. किसी के पास कुछ भी न हो फिर भी वह बहुत घमंड करे तो यह कहावत कहते हैं. किसी स्त्री की शक्ल सूरत कुछ खास न हो पर वह अपने को बहुत सुंदर समझ कर घमंड करती हो तो भी यह कहावत कही जाती है.
खाकर आवे आलस, नहा के होवे चौकस. खाना खा कर आलस आता है और नहाने के बाद स्फूर्ति.
खाकर हगे, कबहुं न अघे. कुछ लोगों की खाना खाते ही शौच जाने की आदत होती है. ऐसे लोगों का पेट कभी नहीं भरता.
खाके जल्दी चलिए कोस, मरिए आप दैव के दोस. खाना खाके फ़ौरन लम्बी दूरी चलना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है. (ऐसा करने वाला व्यक्ति अपनी गलती से मरता है और ईश्वर को दोष देता है).
खाज चली जाय, खुजाने की आदत न जाय. खुजली की बीमारी खत्म भी हो जाए तब भी खुजाने की आदत नहीं जाती. किसी भी चीज की आदत आसानी से नहीं जाती है.
खाज पर उँगली सीधी जावे. जहाँ खुजली हो रही होती है उँगली सीधे वहीँ जाती है. इस के लिए किसी को सिखाना नहीं पड़ता. यह बात आदमी ही नहीं जानवरों पर भी लागू होती है. शरीर को अपनी नैसर्गिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना प्रकृति सिखाती है.
खाज से गंजी कुतिया, पूंछ में कंघी बांधे. जिस कुतिया के बाल खुजली के कारण गिर गए हैं वह पूंछ में कंघी बांधे घूम रही है. कोई व्यक्ति जिस शौक के लायक न हो उस तरह का शौक करे तो.
खाट खड़ी और बिस्तर गोल. किसी स्थान से कब्जा छोड़ने को मजबूर किया जाना. पहले जब चारपाई (खाट) का चलन था तो लोग चारपाई बिछा के उस पर बिस्तर बिछाया करते थे. चारपाई पर कब्ज़ा करने वाले आदमी को हटाने के लिए चारपाई खड़ी कर दी गई और बिस्तर को गोल कर दिया (लपेट दिया).
खाता जाए और खप्पर फोड़ता जाए. किसी चीज से अपना काम निकल जाने के बाद वह चीज किसी और के काम न आ जाए, ऐसी नीचता पूर्ण सोच रखने वाला.
खाता भी जाए और बड़बड़ाता भी जाए. जो लोग कभी खुश हो कर कोई काम नहीं करते, उन के लिए.
खातिन ईंधन को क्यूँ जाए, तेलिन रूखा क्यूँ खाए. खातिन – बढ़ई की पत्नी. बढ़ई को लकड़ी के छोटे टुकड़े और छीलन सहज ही उपलब्ध होती हैं और तेली को तेल की कमी नहीं होती.
खाते खाते भंडार नष्ट हो जाते हैं. अन्न या धन का कितना भी बड़ा भंडार हो, यदि आप उसमें कुछ जोड़ें नहीं और खर्च करते रहें तो वे एक दिन ख़त्म हो जाता है.
खाते पीते न मरे, आलस से मर जाए. कोई व्यक्ति अधिक खाने से चाहे न मरे पर आलस्य से जरूर मर जाएगा.
खाद पड़े तो खेत, नहीं तो कूड़ा रेत. खाद से ही खेत फलता फूलता है.
खान तो खान, जुलाहा भी पठान. मुसलामानों में खान और पठान ऊंची जात के लोग माने जाते हैं और जुलाहा नीची जात का. कोई निम्न कोटि का व्यक्ति अपने को उच्च कोटि का दिखाने की कोशिश करे तो.
खान पान में आगे, काम काज से भागे. जो लोग खाने में सबसे आगे रहते हैं और काम के समय गायब हो जाते हैं.
खानदान है कि शिव जी की बारात. शिव जी की बरात में भयंकर शक्लों वाले उन के भूत और गण गए थे. किसी खानदान के सभी लोग भयंकर शक्लों वाले हों तो.
खाना कुखाना उपासे भला, संगत कुसंगत अकेले भला. (भोजपुरी कहावत) कुपथ्य खाने से भूखा रहना अच्छा है और बुरी संगत से अकेला रहना अच्छा है.
खाना घर में, भौंकना सड़क पे (खाना मन्दिर में, भौंकना मस्जिद में). जो आजीविका दे रहा हो उसका काम न कर के दूसरे का काम करना.
खाना थाली का, परोसना साली का. जहाँ सब लोगों को पत्तल में खाना मिल रहा हो वहाँ थाली में खाना मिलना विशेष आवभगत का सूचक है (विशेषकर दामाद को ऐसी सुविधा मिलती है) और ऐसे में परोसने वाली साली हो तो सोने में सुहागा.
खाना पराया है पर पेट तो पराया नहीं है. मुफ्त का मिल रहा हो तो इस का अर्थ यह नहीं कि इतना खा लो कि बीमार हो जाओ.
खाना सीरा को, मिलना वीरा को. खाना शीरे (हलवे) का सबसे उत्तम होता है और मिलना भाई का.
खाना, तिरिया, रुपैय्या, तीनों रखो छुपाए. जो खाना आप खाते हैं वह दूसरों को दिखा कर नहीं खाना चाहिए, इसी प्रकार अपने घर की स्त्रियों का और अपने पैसे का प्रदर्शन नहीं करना चाहिए.
खाने को ऊँट (शेर), कमाने को बकरी (खाने को बाघ, कमाने को मुर्गी). अर्थ स्पष्ट है.
खाने को चटनी, पलंग पे नटनी. घर में ठीक से खाने को तो है नहीं लेकिन वैश्या वृत्ति का शौक सूझ रहा है.
खाने को दाम नहीं नाम करोड़ीमल. नाम कुछ असलियत कुछ.
खाने को शेर, कमाने को बकरी. खाने में मजबूत कमाने में फिसड्डी.
खाने को हम और लड़ने को हमारा भाई. स्वार्थी और अवसरवादी लोगों के लिए.
खाने में आगे, काम से भागे. ऐसे व्यक्ति के लिए जो खाने पीने के मौकों पर आगे रहता हो और काम पड़ने पर गायब हो जाता हो.
खाने में शरम क्या, और घूंसे में उधार क्या. खाने में शरम नहीं करनी चाहिए और मारपीट का बदला तुरंत चुकाना चाहिए.
ख़ामोशी नीम रज़ा. उर्दू में नीम का अर्थ है आधा और रज़ा का अर्थ है सहमति. यदि आप किसी बात का विरोध नहीं करते (विशेषकर अन्यायपूर्ण बात का) तो इसका अर्थ यह लगाया जाता है कि आप उससे सहमत हैं. इंग्लिश में कहावत है – Silence is half consent. संस्कृत में कहा गया है – मौन स्वीकृति लक्षणं.
खाय कै मूते सोवे बाऊँ, काय को वैद बसावे गाऊँ. स्वास्थ्य के विषय में बहुत से लोक विश्वास प्रचलित हैं जिन में से एक यह भी है – खाना खा कर तुरंत मूत्र त्याग करे और बायीं करवट सोए तो व्यक्ति स्वस्थ रहता है (फिर वह गाँव में वैद्य क्यों बसाएगा).
खाय चना, रहे बना. चना खाने वाला लम्बे समय तक स्वस्थ रहता है.
खाय तो घी से, नहीं तो जाय जी से. दाल और रोटी में घी के बिना कोई स्वाद नहीं है. घी न मिले इस से तो अच्छा है कि जान चली जाए.
खाय न खरचे सूम धन, चोर सबै ले जाय. सूम – कंजूस. कंजूस अपना धन खर्च नहीं करता. अंततः चोर सब धन ले जाता है.
खाय पिए रोवे, वो प्रभु को खोवे. जो लोग सब तरह से संपन्न हैं फिर भी रोते रहते हैं उनसे ईश्वर नाराज़ हो जाता है.
खाय भी गुर्राय भी. नीच प्रवृत्ति के कृतघ्न लोगों के लिए कहा जाता है. उन हाकिमों के लिए भी जो रिश्वत लेते हैं फिर भी गुर्राते हैं.
खाया पिया अंग लगेगा, दान धर्म संग चलेगा, धन पड़ा-पड़ा जंग लगेगा. आदमी को अधिक धन संग्रह के लालच में नहीं पड़ना चाहिए. अच्छा खाओगे तो शरीर स्वस्थ होगा, दान करोगे तो पुन्य मिलेगा जो कि परलोक में साथ जाएगा. इकठ्ठा किया हुआ पैसा केवल जंग खाएगा.
खाया पीया एक नाम, मारा पीटा एक नाम. किसी के घर चाहे थोड़ा खाओ या अधिक, खाने वालों में नाम तो हो ही जाता है. इसी तरह किसी को चाहे थोड़ा पीटो या अधिक, मारने वालों में नाम तो आ ही जाता है.
खाये बिना रहा जाय, पर कहे बिना न रहा जाय. जिन लोगों की बहुत बोलने की आदत होती है उन पर व्यंग्य.
खारा कड़वा गंधला, जो बरसेला तोय, खेती की हानी हुवे, देस नास भी होय. अगर कभी खारा, कड़वा या गंदा पानी बरसता है तो वह खेती को तो नुकसान करता ही है, देश के लिए भी यह अच्छा शगुन नहीं है. तोय – पानी.
खारे समन्दर में मीठा कुआं. बहुत से दुष्ट लोगों के बीच एक भला आदमी.
खाल उढ़ाए सिंह की, स्यार सिंह नहिं होए. अच्छे वस्त्र पहन लेने से या या दिखावा करने से कायर और मूर्ख पुरुष वीर या विद्वान नहीं बन सकते.
खाला खसम कराय दे, के मैं तो खुद हेरती फिरूं (खाला खसम करा दे, खाला खुद तलाश लें). खाला – मौसी., हेरती – ढूँढती. कोई लड़की मौसी से कह रही है कि मेरी शादी करा दो. मौसी कह रही हैं कि मैं तो खुद अपने लिए ढूँढ़ रही हूँ. जो स्वयं परेशानी में है वह दूसरे की सहायता क्या कर पाएगा.
खाली घर में चमगादड़ डेरा डाल लेते हैं. 1. खाली पड़ी जायदाद पर अनधिकृत लोग कब्ज़ा कर सकते है. 2. खाली दिमाग में तरह तरह के फितूर पैदा होते हैं.
खाली दिमाग शैतान का घर है. दिमाग अगर खाली होता है तो उसमें तरह-तरह के फितूर आते रहते हैं. इसलिए इंसान को कभी खाली नहीं बैठना चाहिए अगर आपके पास कोई धंधा पानी न हो तो कोई सामाजिक कार्य करें, भविष्य की योजना बनाएं, अच्छा साहित्य पढ़ें या किसी शौक में मन लगाएं. लंबे समय तक खाली न बैठें. इंग्लिश में इस प्रकार की कई कहावतें हैं – An idle brain is devil’s workshop. Idleness is mother of all evil.
खाली बर्तन खटकते हैं. निठल्ले लोग बैठे बिठाए झगड़ा ही किया करते हैं.
खाली बोरा सीधा खडा नहीं हो सकता. बोरे में कुछ गेहूँ चावल आदि भरा होगा तभी वह सीधा खड़ा हो पाएगा. कहावत का अर्थ है कि खाली पेट रहने वाला व्यक्ति ईमानदारी से काम नहीं कर सकता या स्वाभिमान से नहीं जी सकता.
खाली लल्ला ही सीखा है दद्दा नहीं सीखा. लल्ला – ‘ल’, दद्दा – ‘द’. ल से लेना, द से देना. जो लोग केवल लेना जानते हैं, देना नहीं जानते. कुछ लोग इस कहावत में आगे यह और जोड़ते हैं – दद्दा के डर से दिल्ली को भी हस्तिनापुर बोले.
खाली हाथ मुंह की तरफ नहीं जाता है. हाथ में कोई खाने की चीज़ होगी तो वह अवचेतन रूप से ही मुँह में जाता है. हाथ खाली होगा तो नहीं जाएगा. प्रकृति सभी जीवों को यह सिखाती है.
खाविंद राज बुलंद राज, पूत राज दूत राज. पति के राज में स्त्री को जितना सुख मिलता है उतना पुत्र के राज में नहीं मिलता.
खावे जैसो अन्न, होवे तैसो मन्न. बेईमानी से पैदा किया हुआ अन्न खाओगे तो बुद्धि भ्रष्ट होगी और ईमानदारी की रोटी खाओगे तो मन निर्मल रहेगा.
खावे पान, टुकड़े को हैरान. घर में खाने को नहीं है और पान खाने जैसा फालतू शौक करने की सूझ रही है.
खावे पूत, लड़े भतीजा. खाना पीना खाने और जायदाद का सुख भोगने के लिए तो बेटा है और खतरे उठाने के लिए भतीजे को आगे करना चाहते हैं.
खावे पौना, जीवे दूना. कोई व्यक्ति जितना खा सकता है उससे पौना (तीन चौथाई) ही खाने की आदत डाल ले तो वह लंबे समय तक जियेगा.
खावे मोट, तोड़े कोट. मोटा अनाज खाने से अधिक ताकत आती है. तोड़े कोट – किला तोड़ देते हैं.
ख़ास ख़ास को टोपली, बाकी को लंगोट. कुछ चुने हुए लोगों को टोपी दी गयी परन्तु शेष लोगों को लंगोट ही मिला. कुछ विशेष चयनित लोगों का तो सम्मान किया गया परन्तु शेष लोगों को जैसे-तैसे ही निपटा दिया गया.
खिचड़ी की तारीफ़ कर दी तो दांतों में चिपक गई. किसी की तारीफ़ करने से वह गले पड़ जाए तो.
खिचड़ी खाते नीक लागे और बटुली माजत पेट फटे. (भोजपुरी कहावत) खिचड़ी खाते समय अच्छी लगती है और बरतन धोते समय बहुत परेशानी होती है. सुविधाएँ सब चाहते हैं पर काम कोई नहीं करना चाहता.
खिचड़ी खाते पाहुंचा उतरा. बहुत नाज़ुक व्यक्ति का मज़ाक उड़ाने के लिए. पाहुंचा – कलाई.
खिचड़ी तेरे चार यार, घी, पापड़, दही, अचार. खिचड़ी खाने का असली मज़ा इन चार चीजों के साथ है.
खिदमत से अज़मत है. बड़ों की सेवा करके ही आप संपन्न बन सकते हैं. इसका अर्थ यह भी हो सकता है कि चमचागिरी कर के ही रुतवा मिल सकता है. (खुशामद से ही आमद है).
खिलाए का नाम नहीं, रूलाए का नाम. आप किसी के बच्चे को कितनी भी देर खिलाएं और बहलाएं उसका कोई श्रेय नहीं मिलता, अगर बच्चा रो दिया तो माँ कहेगी कि बच्चे को रुला दिया.
खिसियाई कुतिया भुस में ब्याई, टुकड़ा दिया काटने आई. कोई व्यक्ति खिसिया रहा हो और जो उस की सहायता करना चाहे उसी को बुरा भला कह रहा हो उस का मजाक उड़ाने के लिए.
खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचे. चूहा बिल्ली की पकड़ से निकल कर भाग गया तो बिल्ली खिसिया कर खम्बे को नोचने लगी. काम न होने पर कोई व्यक्ति खिसिया रहा हो तो यह कहावत बोलते हैं.
खीर खीचड़ी मंदी आंच. खीर और खिचड़ी मंदी आंच पर अच्छी बनती हैं.
खीर पूड़ी खाएं और देवता को मनाएं (घर वाले खीर खाएँ और देवता राजी हों). पहले के लोगों ने भगवान को प्रसन्न करने के लिए व्रत रखने का विधान बनाया जिसमें व्यक्ति दिन भर भूखा रह कर केवल एक बार रूखा सूखा भोजन करता था (यह एहसास करने के लिए कि गरीब कितनी कठिनाई से जीवन बिताते हैं). आजकल के ढोंगी भक्त व्रत रखने का नाटक करते हैं जिसमे वे दिन भर भी कुछ न कुछ खाते पीते रहते हैं और शाम को खूब पकवान खाते हैं.
खीरा खाए ओस में सोवे, ताको वैद कहां तक रोवे. खीरे को लोग ठंडी तासीर वाला मानते थे. कोई आदमी खीरा खा कर ओस में सो जाए तो बीमार पड़ेगा ही, वैद्य इसमें क्या कर सकता है.
खीरा सिर तें काटिए, मलियत नमक बनाय, रहिमन करुए मुखन को, चहिअत इहै सजाय. खीरे का सर काट के नमक लगा मलते हैं जिस से उसकी कड़वाहट दूर हो जाए. जो लोग कड़वा बोलते हैं उनके साथ भी ऐसा ही व्यवहार होना चाहिए.
खील बताशों का मेल. दो अच्छी चीजों का मेल.
खुजली तो खुजलाने से ही मिटती है. व्यक्तिगत आवश्यकताएं स्वयं अपने करने से ही पूरी होती हैं.
खुद करे तो खेती, नहीं तो बंजर हैती. खेती खुद करने से ही कामयाब होती है. दूसरों के ऊपर छोड़ देने से खेत बंजर हो जाता है.
खुद तो दान दे नहीं, देने में अड़ंगा लगाए. दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों के लिए.
खुद राह राह, दुम खेत खेत. खुद सड़क पर चल रहे हैं और पूँछ खेत में है. निहायत ही फूहड़ और बेतरतीब आदमी के लिए.
खुद ही नाचे खुद ही न्योछावर करे (बलैयां ले). अपनी प्रशंसा स्वयं करना.
खुदा का दिया कन्धों पर, पंचों का दिया सर पर. पंचों की आज्ञा ईश्वर की आज्ञा से बड़ी है.
खुदा का मारा हराम, अपना मारा हलाल. मांसाहारी लोग अपने आप से मरे हुए जानवर का मांस नहीं खाते बल्कि इंसान द्वारा मारे हुए जानवर का मांस ही खाते हैं.
खुदा किसी को लाठी ले कर नहीं मारता. ईश्वर किसी को दंड देता है तो लाठी ले कर नहीं मारता.
खुदा की खुदाई को कौन जाने. अकबर ने बीरबल के सामने ऐसा बोला तो बीरबल ने कहा, जहांपनाह मैं जानता हूँ. अकबर ने चिढ़ कर कहा, अच्छा! मुझे भी दिखाओ. बीरबल उसे यमुना के किनारे ले गए और यमुना की तरफ इशारा कर के बोले, हुजूर! यह खुदा ने खुदाई है या आप ने.
खुदा की चोरी नहीं तो बंदे का क्या डर. यदि हम ईश्वर के आगे सच्चे हैं तो मनुष्य से क्यों डरें.
खुदा की बातें खुदा ही जाने. ईश्वर के मन में क्या है यह ईश्वर ही जान सकता है.
खुदा के घर में चोर का क्या काम. चोर बदमाश लुटेरे आसानी से नहीं मरते (उनकी जरूरत वहाँ भी नहीं है).
खुदा दो सींग दे तो भी सहे जाते हैं. ईश्वर कुछ भी दे उसे सहर्ष स्वीकार करना पड़ता है.
खुदा ने गंजे को नाख़ून नहीं दिए हैं. वैसे तो इस कहावत का अर्थ स्पष्ट है लेकिन इसका एक बहुत आश्चर्यजनक पहलू भी है. एक बहुत बिरली बीमारी होती है Anonychiya जिसमें जन्म से नाखून नहीं होते. ऐसे ही एक बीमारी होती है जिसमें सर पर या सारे शरीर पर बाल नहीं होते (Alopecia totalis). ये बीमारियाँ जेनेटिक गड़बड़ी के कारण एक साथ भी हो सकती हैं. इस तरह के किसी बच्चे को देख कर किसी सयाने व्यक्ति ने मजाक में कहा होगा कि देखो इस गंजे को खुदा ने नाखून भी नहीं दिए हैं नहीं तो वह खुजा खुजा के अपनी खोपड़ी लहुलुहान कर लेता. तभी से यह कहावत बनी होगी.
खुदा ने जवाब दे दिया है, बेहयाई से जीते हैं. कोई अत्यधिक वृद्ध व्यक्ति परिवार और समाज पर बोझ बना हुआ हो तो यह कहावत कही जाती है.
खुदा मेहरवान तो गधा पहलवान (किस्मत मेहरबान तो गधा पहलवान). कोई पढ़ाई में पीछे रहने वाला बंदा यदि सिफारिश के बल पर अच्छी नौकरी पा जाए तो उससे ज्यादा काबिल लोग कुढ़ कर यह कहावत बोलते हैं. इंग्लिश में कहावत है – God sends fortune to fools.
खुदा लड़ने की रात दे, बिछड़ने का दिन न दे. पति पत्नी, दोस्त या रिश्तेदार आपस में थोड़ा लड़ लेते हैं पर बिलकुल बिछड़ना नहीं चाहते.
खुदी और खुदाई में बैर है. जिसके अन्दर अहम् है ईश्वर उससे प्रसन्न नहीं होता.
खुर तातो, खर मातो. बैसाख में मौसम बदलने के साथ जैसे ही गधे के खुर गरम होते हैं वैसे ही उस पर मस्ती छाने लगती है.
खुरचन मथुरा की, और सब नक़ल. खुरचन एक दूध की मिठाई का नाम है जोकि मथुरा की सबसे बढ़िया होती है. किसी बढ़िया और असली चीज़ की तारीफ़ करने के लिए यह कहावत कहते हैं.
खुले घर में धाड़ नहीं, निर्जन गांव में राड़ नहीं. (राजस्थानी कहावत)धाड़ – डाका, राड़ – झगड़ा. अर्थ स्पष्ट है.
खुले मांस पर मक्खी तो बैठेगी ही. अपनी चीज़ की परवाह नहीं करोगे तो अवांछित तत्व उस का फायदा उठाएंगे ही.
खुशामद किसे कड़वी लगती है. खुशामद और तारीफ़ सब को अच्छी लगती है. अगर आप यह जानते हैं कि सामने वाला अपने स्वार्थ के लिए आपकी खुशामद कर रहा है तब भी आप खुश होते हैं. राजस्थानी कहावत है – खुसामद किसे खारी लागै.
खुशामद खरा रोजगार. खुशामद सबसे सच्चा व्यापार और सफलता का मन्त्र है.
खुशामद से ही आमद है. जो दूसरों की खुशामद करना जानते हैं वही जीवन में सफल होते हैं.
खुशामद से ही आमद है, इसलिए बड़ी खुशामद है. खुशामद से सब कार्य सिद्ध हो जाते हैं, इसीलिए खुशामद बड़ी चीज है.
खुशामदी का मुँह काला. जो व्यक्ति अयोग्य होते हुए भी दूसरों की खुशामद कर के आगे बढ़ जाता है, उसे कभी न कभी नीचा देखना पड़ता है.
खुसरो दरिया प्रेम का उल्टी बाकी धार, जो उतरा सो डूब गया जो डूबा सो पार. प्रेम की गति अजीब होती है. (अमीर खुसरो ने हिंदी में बहुत सी लोकप्रिय पहेलियाँ लिखी हैं और कुछ कहावतें भी बनाई हैं जिनमें से एक यह भी है).
खूंटे के बल बछड़ा कूदे (खूंटे के बल बछड़ा नाचे). कमजोर आदमी दूसरे की शह पर ही बोलता है.
खूंटे बंधा बछड़ा गाय की राह देखे. जिसका जिससे कार्य सिद्ध होता हो वह उसी की राह देखता है.
खून सर चढ़ कर बोलता है. (खून वह जो सर चढ़ कर बोले). 1. किसी का खून किया गया हो तो सबूत अपने आप बोलते हैं. 2. खून के रिश्ते सर चढ़ के बोलते हैं.
खूब कीचड़ उछालो, दाग तो लगेगा ही. किसी के ऊपर बिना किसी सबूत के भी अगर खूब कीचड़ उछालोगे तो कुछ न कुछ दाग तो लगेगा ही. इंग्लिश में कहते हैं – Fling dirt enough and some will stick.
खूब गुजरेगी जब मिल बैठेंगे दीवाने दो. दो दोस्त मिल कर बैठते हैं तो खूब मस्ती होती है.
खूब दुनिया को आजमा देखा, जिसको देखा तो बेवफा देखा. ईमानदारी और कृतज्ञता बहुत कम लोगों में मिलती है.
खूबसूरती गहनों की मोहताज नहीं. जो वास्तव में सुन्दर है उसको सुन्दर दिखने के लिए आभूषणों की आवश्यकता नहीं होती.
खेत को खोवे गेली, साधु को खोवे चेली. गेली – खेत में से हो कर जाने वाला रास्ता. खेत अगर छोटा हो और उस में से भी रास्ता निकाल दिया जाए तो खेत में बचेगा ही क्या. कहावतों में तुक बंदी करने के लिए अक्सर कोई दूसरी बात साथ में जोड़ दी जाती है. इस कहावत में भी यह बात जोड़ दी गई है कि चेली के मोह में पड़ जाने से साधु की साख धूमिल हो जाती है.
खेत खाय गदहा, मार खाय जुलहा. गधा यदि किसी का खेत चरे तो उस को पालने वाले जुलाहे को मार पड़ती है. जब अपने से सम्बन्धित किसी व्यक्ति की गलती का दंड किसी को भुगतना पड़े तो.
खेत खाय पड़िया, भैंस का मुँह झकझोरा जाय. .बच्चों की गलती की सजा उन के माँ बाप को भुगतनी पडती है.
खेत बिगाड़े खरतुआ और सभा बिगाड़े दूत. दूत से अर्थ यहाँ चुगलखोर है. खरतुआ – खरपतवार जो खेत में अपने आप उगती है.
खेत बिगाड़े सौभना, गांव बिगाड़े बामना. सौभना – बन ठन के घूमने वाला. इसका अर्थ है कि जो व्यक्ति अपने कपड़ों पर ज्यादा ध्यान देता है वह व्यक्ति खेत को बिगाड़ देता है. कहावत की दूसरी उक्ति है कि ब्राह्मण गांव को बिगाड़ता है. यह उक्ति सम्पूर्ण ब्राहमण वर्ग के लिए न हो कर केवल लालची पंडितों को लक्ष्य कर के कही गई है.
खेत भला न झील का, घर अच्छा नहिं सील का. झील के किनारे का खेत अच्छा नहीं होता क्योंकि झील में पानी बढ़ने से उसके डूबने का डर रहता है. जिस घर में सीलन हो वह घर भी अच्छा नहीं होता.
खेत में तरकारी को बघार नहीं लगता. हर कार्य के लिए अलग अलग स्थान उपयुक्त होते हैं.
खेत में बुरी नाली और घर में बुरी साली. खेत में नाली का होना नुकसान की बात है और घर में साली का स्थायी रूप से रहना अच्छा नहीं है.
खेत रखे बाड़ को, बाड़ रखे खेत को. ये दोनों एक दूसरे की रक्षा करते हैं व एक दूसरे के पूरक हैं.
खेतिहर गये घर, दाएँ बाएँ हर. हर – हल. खेत का मालिक घर गया तो मजदूर हल छोड़ कर दाएँ बाएँ हो गए.
खेती उत्तम काज है, इहि सम और न कोय, खाबै को सब को मिले, खेती कीजे सोय. (बुन्देलखंडी कहावत) खेती सबसे अच्छा काम है जिससे अपना निर्वाह तो होता ही है, दूसरे प्राणियों को भी खाने को मिलता है.
खेती कर आलस करे, भीख मांग सुस्ताय, सत्यानास की क्या कहें, अठ्यानास हो जाए. (बुन्देलखंडी कहावत) खेती करने वाला यदि आलस करे और भीख मांगने वाला यदि सुस्ताने बैठ जाए तो इन का विनाश होना तय है.अठ्यानास – सत्यानाश से भी बड़ा नुकसान.
खेती कर कर हम मरे, बहुरे के कोठे भरे. किसान प्राण पण से खेती करता है और बदहाल रहता है. साहूकार और व्यापारी अपना घर भरते हैं.
खेती करे न बनिजे जाय, विद्या के बल बैठा खाय. बनिज (वणिज) – व्यापार. विद्वान व्यक्ति खेती या व्यापार करे बिना अपने ज्ञान के बल पर पैसा कमाता है.
खेती करे सांझ घर सोवे, काटे चोर हाथ धरि रोवे. खेती करने वाले को खेत की रखवाली करनी पड़ती है. अगर नहीं करेगा तो चोए काट के ले जाएंगे. कहावत का अर्थ सभी व्यापारों पर लागू होता है.
खेती करै वणिक को धावै, ऐसा डूबै थाह न पावै. खेती करने वाला यदि सूदखोर से उधार लेता है तो बहुत परेशानी में पड़ सकता है. वणिक – बनिया.
खेती खसम सेती. खेती या व्यापार में लाभ तभी होता है जब मालिक स्वयं उसकी देखरेख करे. खसम से अर्थ यहाँ मालिक से है.
खेती तो उनकी जो अपने कर हल हांकें, उनकी खेती कुछ नहीं जो सांझ सवेरे झांकें. जो किसान लग कर अपने हाथ से खेती करते हैं उन्हीं की खेती सफल होती है, जो सुबह शाम खेत का चक्कर लगा आएं उनकी खेती सफल नहीं होती.
खेती तो थोरी करे, मेहनत करे सिवाय, राम चहें बा मनुस को टोटो कबहुं न आए. (बुन्देलखंडी कहावत) खेती यदि थोड़ी भी हो तो भी मेहनत करने वाले व्यक्ति को धन की कमी नहीं होती.
खेती धन की नास, जो धनी न होवे पास, खेती धन की आस, धनी जो होवे पास. खेती करने वाले का वहीं रह कर खेती करना आवश्यक है. धनी से अर्थ यहाँ खेत के स्वामी से है.
खेती धान के नास, जब खेले गोसइयां तास. जब किसान ताश खेलता रहता है तो उसकी खेती स्वाभाविक रुप से नष्ट हो जाती है. गोसाईं – गोस्वामी, मालिक.
खेती बिनती पत्री और खुजावन खाज, घोड़ा आप संवारिये जो प्रिय चाहो राज. (बुन्देलखंडी कहावत) कुछ कार्य ऐसे हैं जो अपने हाथ से करने पर ही सफल होते हैं – खेती, अर्जी, चिट्ठी, खुजली और घोड़े की देखभाल.
खेती रहिके परदेस मां खाय, तेखर जनम अकारथ जाय. इसका अर्थ है कि जो व्यक्ति अपने पास खेत होते हुए भी पैसों के लिए परदेश जाता है उसका जन्म ही निरर्थक है.
खेती राज रजाए, खेती भीख मंगाए. फसल अच्छी हो जाए तो किसान राजा हो जाता है, चौपट हो जाए तो भीख मांगने की नौबत आ जाती है.
खेती हो चुकी, हल खूँटी ऊपर. काम ख़त्म हो गया अब औजार उठा कर रख दो.
खेती, पाती, बीनती, परमेसर को जाप, पर हाथां नहिं कीजिये, करिए आपहिं आप. खेती करना, किसी को चिट्ठी लिखना, अर्जी लिखना और ईश्वर की भक्ति अपने आप ही करना चाहिए.
खेती, पानी, बीनती (अर्ज़ी) औ घोड़े की तंग, अपने हाथ संभारिये लाख लोग हों संग. खेती के सारे काम, खेत में पानी देना, अर्जी लिखना और घोड़े की रास संभालना ये सारे काम अपने हाथ से ही करने चाहिए.
खेती, बेटी, गाभिन गाय, जो ना देखे उसकी जाय. खेती, बेटी और गाभिन गाय की देख-रेख करनी पड़ती है. यानि अगर आप इन तीनों पर नजर नहीं रखेंगे तो ये हाथ से निकल जाएंगी.
खेल खतम, पैसा हजम. खेल तमाशा देखने के लिए पैसा खर्च होता है. खेल ख़त्म होने के बाद जो पैसा आपने खर्च किया वह हज़म हो गया. पैसा खर्च करके आनंद उठाने के लिए यह कहावत बोलते हैं.
खेल खिलाड़ी का, पैसा मदारी का. काम कर्मचारी करते हैं और कमाई मालिक की होती है.
खेल में रोवे सो कौवा. जो बच्चा खेल खेल में खिसिया के रोने लगे उसे चिढ़ाने के लिए.
खेले कूदे होए खराब, पढ़े लिखे होए नबाव. (खेलोगे कूदोगे तो होगे खराब, पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नबाब). वैसे तो कहावत का अर्थ स्पष्ट है लेकिन यहाँ खेल से मतलब व्यर्थ के घटिया खेलों से है जो समय नष्ट करते हैं (जैसे गुल्ली डंडा, पतंगबाजी आदि). जो अच्छे प्रतिस्पर्धात्मक खेल हैं उन्हें खेलने से व्यक्तित्व का विकास होता है और उन में कैरियर भी बनाया जा सकता है.
खेले खाय तो कहाँ पिराए. यहाँ खेल से तात्पर्य अच्छे व्यायाम वाले खेलों से है और खाय का अर्थ पौष्टिक भोजन खाने से है. अच्छा व्यायाम और पौष्टिक भोजन करने वाले का शरीर कहीं से नहीं दुखता. पिराए – दर्द करे.
खेले न खेलन देय, खेल में मूत देय. दुष्ट प्रवृत्ति और खिसियाने वाले लोगों के लिए.
खैर का खूँटा. खैर की लकड़ी बहुत मजबूत होती है. इसमें दीमक या कीड़ा नहीं लगता. किसी दृढ़ निश्चयी व्यक्ति के लिए यह कहावत प्रयोग करते हैं.
खैर, खून, खांसी, खुसी, बैर, प्रीत, मदपान; रहिमन दाबे न दबें, जानत सकल जहान. कत्थे का दाग, बहता हुआ खून, खांसी, खुशी, वैर, प्रेम और शराब का नशा, ये दबाने से नहीं दबते (छिपाने से नहीं छिपते), सारा संसार इन्हें देख लेता है (जान जाता है).
खैरात के टुकड़े बाजार में डकार. दूसरों से दान लेकर दिखावा करना.
खोखला शंख पराई फूंक से ही बजता है. शंख क्योंकि खोखला होता है इसलिए अपने आप नहीं बोल सकता. दूसरे की फूंक से ही बोलता है. पुरुषत्व विहीन लोग अपने आप कुछ नहीं करते दूसरों के बल पर ही बोलते हैं.
खोखले अंडे की पैदाइश. तुच्छ व्यक्ति.
खोखले में तो उल्लू ही पैदा होते हैं. मूर्ख लोगों को अपनी जमात बढ़ाने के लिए समाज से अलग जगह चाहिए होती है.
खोटा खरा तो भी गाँठ का, भला बुरा तो भी पेट का. गाँठ का पैसा चाहे खोटा हो या खरा, अपने को प्रिय होता है. पेट का जाया चाहे सज्जन हो या दुर्जन, माँ को प्रिय होता है.
खोटा खाओ और खरा कमाओ. खाना कितना भी रूखा सूखा मिले, कमाई ईमानदारी से ही करनी चाहिए.
खोटा नारियल होली के लिए या पूजा के लिए. खोटे नारियल को लोग होली में जलने वाली वस्तुओं में डाल देते हैं या पूजा में चढ़ा देते हैं.
खोटा बेटा खोटा दाम, बखत पड़े पे आवे काम (खोटा बेटा और खोटा पैसा भी समय पर काम आता है). जिस जमाने में सिक्कों की बहुत कीमत हुआ करती थी तब लोग नकली सिक्के बना लिया करते थे (जैसे आजकल जाली नोट बना लेते हैं). बहुत मुसीबत के समय कभी कभी खोटा सिक्का भी धोखे से चल जाया करता था. इसी प्रकार नालायक बेटा भी मुसीबत में काम आ सकता है.
खोटी बात में हुंकारा भी पाप. कोई अन्यायपूर्ण बात कर रहा हो तो उस की हाँ में हाँ मिलाना भी पाप है. (उसका विरोध करना चाहिए).
खोटी संगत के फल भी खोटे. बुरे लोगों की संगत के बुरे परिणाम होते हैं.
खोटे की बुराई श्मशान में. दुष्ट व्यक्ति जब तक जीवित होता है तब तक किसी की उस को बुरा कहने की हिम्मत नहीं होती. उस के मरने के बाद लोग उसे खुले आम बुरा कहते हैं.
खोटे खाते में गवाही कौन दे. धोखाधड़ी वाले काम में गवाही देने के चक्कर में कभी नहीं पड़ना चाहिए.
खोटे खाते में मरे हुए की गवाही. बिलकुल फर्जी काम.
खोतों के सींग थोड़े ही होते हैं (वो ऐसे ही पहचाने जाते हैं). अगर कोई व्यक्ति समझदार लोगों के बीच बैठा बेवकूफी की हरकतें कर रहा हो तो यह कहावत कही जाती है. खोता माने होता है गधा. कहावत का अर्थ है कि गधों के सिर पर सींग नहीं होते. वे अपनी हरकतों से ही आदमियों के बीच अलग से पहचान लिए जाते हैं.
खोदा पहाड़ निकली चुहिया. बहुत अधिक श्रम करने के बाद बहुत कम लाभ होना या लाभ न होना. कुछ लोग इस बात में और वजन देने के लिए इस प्रकार कहते हैं – खोदा पहाड़ निकली चुहिया, वह भी मरी हुई.
खोदे चूहा और सोवे सांप. चूहा बड़े परिश्रम से बिल खोदता है और सांप उस पर कब्जा कर लेता है. यही समाज का नियम है.
खोया ऊंट घड़े में ढूंढे. ऊंट को घड़े में ढूँढना (मूर्खता पूर्ण कार्य).
खोवें आदर मान को दगा लोभ और भीख. धोखा करना, मन में लोभ रखना और किसी से भीख माँगना, ये तीनों बातें व्यक्ति के सम्मान को ख़त्म कर देती हैं.
ग
गँवार गन्ना न दे, भेली दे (गुड़ न दे भेली दे). मूर्ख व्यक्ति छोटी सी चीज़ देने में आनाकानी करता है जबकि बड़ी चीज़ दे देता है. भेली – गुड़ की भेली.
गंगा आवनहार, भगीरथ को जस. (गंगा आनहार भागीरथ के सिर पड़ी). गंगा को आना ही था, भगीरथ को यश प्राप्त हुआ. जैसे भारत को बहुत से कारणों से आज़ादी मिली नेहरू जी ने श्रेय ले लिया.
गंगा की राह किसने खोदी है. वेगवती नदी जब पहाड़ से उतरती है तो अपनी राह खुद बनाती है. उसके लिए कोई खोद के मार्ग नहीं बनाता. महान लोग जब किसी कार्य के लिए निकलते हैं तो अपना रास्ता खुद बनाते हैं.
गंगा की राह में पीर के गीत. गंगा नहाने जाएंगे तो गंगा के गीत गाए जाएंगे, पीर बाबा के नहीं.
गंगा के मेले में चक्की खोदने वाले को कौन पूछे. चक्की के पाटों में छोटे छोटे गड्ढे बना कर उन को खुरदुरा बनाया जाता है तभी पिसाई होती है. कुछ दिन चलाने के बाद पाट फिर चिकने होने लगते हैं तो उन्हें फिर खोदना पड़ता है. गंगा के मेले में लोग चक्की ले कर जाते ही नहीं हैं इसलिए वहां चक्की खोदने वाले का क्या काम. जिस माल की जहाँ खपत हो वहीं उस का व्यापार करना चाहिए.
गंगा गए तो गंगादास, जमुना गए तो जमुनादास. जैसी परिस्थिति देखी वैसे ही बन गए. इंग्लिश में कहावत है – When in Rome, do as Romans do.
गंगा जाते कोढ़ उभरा. पहले के लोग मानते थे कि गंगा में नहाने से कोढ़ ठीक हो जाता है. अगर गंगा जाते समय कोढ़ उभरा है तो चिंता की कोई बात ही नहीं है, हाथ की हाथ निवारण हो जाएगा.
गंगा जी के घाट पर बामन वचन प्रमान, गंगा जी को रेत को तू चंदन कर के मान. जाट गंगा नहाने गया तो एक पंडे ने उसे घेर लिया. हाथ में गंगाजल ले कर कुछ उलटे सीधे मन्त्र पढ़े, जाट को गंगा जी की रेत से तिलक लगाया और बोला बामन का वचन है, तू इस रेत को चंदन मान और जल्दी से इस बामन को गऊ दान कर दे. जाट उस से ज्यादा चतुर था. उस ने एक मेंढकी पकड़ी और पंडे से कहा, गंगा जी कै घाट पर जाट वचन परमान, गंगा जी की मेंढकी तू गऊ कर के जान (जाट के वचन को प्रमाण मानो और गंगा जी की मेंढकी को गऊ मान कर ग्रहण करो).
गंगा जी को नहायबो, बामन को व्योहार, डूब जाय तो पार है, पार जाए तो पार. गंगा में नहाने वाला डूब जाए तो यह मान कर संतोष कर लिया जाता है कि वह भवसागर से पार हो गया और तैर कर पार हो जाए तब तो पार है ही. इसी प्रकार ब्राह्मण को दिया गया ऋण वापस मिल जाए तो अच्छा है और न मिले तो दान पुण्य मान कर संतोष कर लेना चाहिए.
गंगा नहाए मुक्ति होय तो मेंढक मच्छियाँ, मूढ़ मुड़ाए सिद्धि होए तो भेड़ कपछियाँ. गंगा नहाने से मुक्ति होती तो मेढक मछलियाँ सबसे पहले मुक्त हो जाते, सर मुड़ाने से सिद्धि मिलती तो भेड़ें सबसे पहले सिद्ध हो जातीं क्योंकि वो तो हर साल मुंडती हैं.
गंगा नहाने से गधा घोड़ा नहीं बनता. गंगा नहाने से मूर्ख व्यक्ति योग्य नहीं हो जाता.
गंगा बही जाय, कलारिन छाती पीटे. कलारिन – शराब बनाने वाली. कलारिन को इस बात की चिंता हो रही है कि सारा पानी बह गया तो शराब कैसे बनाएगी.
गंगोत्री ही गन्दी हो तो गंगा में बदबू होगी ही. अर्थ स्पष्ट है. उदाहरण के तौर पर – जिस पकिस्तान का जन्म ही घृणा, उन्माद और हिंसा पर हुआ हो वहां आतंकवाद तो पनपेगा ही.
गंजा और कंकड़ों में कुलांचे खाए. गंजा कंकडों में कुलांचे खाएगा तो उसका सर लहूलुहान हो जाएगा. कोई व्यक्ति अपनी मूर्खता से अपने को नुकसान पहुँचा रहा हो तो.
गंजा मरा खुजाते खुजाते. कोई व्यक्ति कुछ दुर्भाग्य से और कुछ अपने कर्मों के कारण दुर्दशा को प्राप्त हुआ हो तो.
गंजी कबूतरी और महल में डेरा. अयोग्य व्यक्ति को उच्च स्थान प्राप्त होना.
गंजी को सर मुंडाने की क्यों पड़ी. अनावश्यक काम करने वाले पर व्यंग्य.
गंजी क्या मांग निकाले. जिसके बाल ही नहीं है वह मांग कैसे निकालेगी. कोई साधनहीन व्यक्ति सामर्थ्यवान की बराबरी करे तो.
गंजी देवी, ऊत पुजारी. जैसे देवता वैसे ही मानने वाले.
गंजी पनिहारी और गोखुरू का हंडुवा. पनिहारी अर्थात पानी भरने वाली. पहले गाँव की स्त्रियाँ कुँए या तालाब से मटके में पानी भर कर सर पर रख कर लाती थीं. सर पर मटके को बैलेंस करने के लिए कपड़े का गोल रिंग बना कर रखा जाता है जिसे हंडुवा या कुंडरी कहते हैं. कहावत का अर्थ है कि एक तो पानी भरने वाली गंजी है ऊपर से गोखुरू (एक प्रकार की कंटीली घास) का हंडुवा बना कर रखा गया है जिससे उसे और कष्ट हो रहा है. अपनी मूर्खता से कष्ट उठाना.
गंजे आदमी को नाई की क्या परवाह. जिस व्यक्ति से हमें कभी काम नहीं पड़ने वाला उसकी परवाह क्यों करें.
गंजे के भाग से ओले पड़ें. जब किसी गंजे के भाग्य में कष्ट उठाना लिखा होता है तब ओले पड़ते हैं.
गंजे को कौओं का डर. गंजे सर पर कौवा चोंच न मार दे इसलिए.
गंजे पर नाई का क्या एहसान. गंजे को नाई की जरूरत ही नहीं है, फिर वह उसका एहसान क्यों माने.
गंजे सर पानी पड़ा, ढल गया. वैसे बात तो गलत है पर यहाँ गंजे सर का अर्थ बेशर्म आदमी से है.
गंदला है तो भी गंगाजल. गंगाजल यदि थोड़ा गंदला भी हो जाए तो भी उसकी महिमा कम नहीं होती. उच्च चरित्र वाले किसी व्यक्ति पर थोड़े बहुत आक्षेप लग जाएँ तो भी उसका आदर कम नहीं होता.
गंधी बेटा टोटा खाए, डेढ़ा दूना कहीं न जाए. इत्र के व्यापार में कई गुना मुनाफा है. जब इत्र का व्यापारी यह कहता है कि उसे घाटा हुआ है तो इसका मतलब यह होता है कि उसे केवल डेढ़ दो गुना ही मुनाफा हुआ है.
गंवार अधेला न दे अधेली दे. अधेला माने आधा पैसा और अधेली माने अठन्नी. नासमझ व्यक्ति छोटी सी चीज़ देने में आनाकानी करता है पर लोग उस को बेवकूफ बना कर उस से बड़ी चीज़ ठग लेते हैं.
गंवार की अकल गुद्दी में. पुराने जमाने में गंवार शब्द को मूर्ख के लिए प्रयोग करते थे. मूर्ख व्यक्ति की बुद्धि दिमाग में न हो कर उसकी गर्दन में होती है.
गंवार की गाली, हंसी में टाली. मूर्ख व्यक्ति गाली दे तो हंसी में टाल देना चाहिए, दिल पे नहीं लेना चाहिए.
गंवार को पैसा दीजे पर अकल न दीजे. गंवार शब्द का प्रयोग बहुत स्थानों पर मूर्ख के लिए होता है. इस बात का ग्रामीण लोगों को बुरा नहीं मानना चाहिए. कहावत का अर्थ है कि मूर्ख व्यक्ति को अक्ल का उपदेश देना बेकार है.
गंवार खा के मरे या उठा के मरे. मूर्ख व्यक्ति या तो अधिक खाने से मरता है या क्षमता से अधिक बोझ उठाने से.
गया राज जहाँ चुगला पैठे, गया पेड़ जहाँ बगुला बैठे. भोजपुरी कहावत. चुगलखोर की जिस राजपरिवार में पैठ (पहुँच) होती है वह नष्ट हो जाता है और गिद्ध व बगुले जिस पेड़ पर बैठते हैं वह पेड़ भी ठूँठ हो जाता है.
गई आबरू वापस न आवे. एक बार इज्जत चली जाए तो वापस नहीं आती.
गई को जाने दे राख रही को. जो चला गया उसे भूल जाओ जो तुम्हारे पास है उसे संभालो. इसी प्रकार की दूसरी कहावत है – बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुधि लेय.
गई जवानी फिर न बहुरे, चाहे लाख मलीदा खाओ. मलीदा कहते हैं खूब घी से बनने वाले एक पकवान को. मनुष्य चाहे कितना प्रयास कर ले, बीता हुआ यौवन वापस नहीं आ सकता.
गई नार जो घर घर डोले, गया घर जहं उल्लू बोले, गया राज जहाँ माने गोले, गया वनिक जो कम कर तोले. पराए घरों में डोलने वाली स्त्री का सम्मान नहीं होता, जिस घर में उल्लू बोले उस का सर्वनाश हो जाता है, जिस राजा के यहाँ गोलों (दासों) की चलती हो वह भी नष्ट हो जाता है, जो बनिया कम तोलता है उस की साख भी समाप्त हो जाती है. गया – नष्ट हो गया.
गई परोथन लेने, कुत्ता आटा ले गया. किसी आवश्यक कार्य के बीच अनपेक्षित नुकसान हो जाना.
गई बला को कौन पुकारे. जो आफत अपने आप टल गई हो उसे वापस बुलाना मूर्खता ही कहलाएगी.
गई बात फिर हाथ न आवे. जो बात बिगड़ जाए वह दोबारा नहीं बनती.
गई भैंस पानी में. भैंस को यदि कहीं पानी भरा तालाब दिख जाए तो वह आपके रोकने के बावज़ूद उस में उतर जाती है. आपके कोशिश करने के बाद भी कोई बना बनाया काम बिगड़ जाए तो मज़ाक में यह बोलते हैं.
गई माँगने पूत, खो आई भतार. पुत्र मांगने गई थी, पति को खो आई. किसी लाभ की कोशिश में उससे भी बड़ा नुकसान उठाना.
गई साख फिर हाथ न आवे. जो साख चली जाए वो दोबारा नहीं आती.
गई सोभा दरबार की सब बीरबल के संग. बीरबल से ही अकबर के दरबार की शोभा थी. बीरबल की मृत्यु के बाद अकबर के दरबार में वह बात नहीं रही.
गऊ संतन के कारने, हरि बरसावें मेंह. अच्छे लोगों के हित के लिए प्रभु जो भी कृपाएं प्रदान करते हैं उनसे अच्छे बुरे सब का भला हो जाता है.
गए कटक, रहे अटक. बिना बात के किसी काम में फंस जाना.
गए को सबने सराहा है. व्यक्ति के मरने के बाद सब उसकी सराहना करते हैं.
गए गंगा जी और लाए बालू. किसी महत्वपूर्ण स्थान पर जा कर कोई क्षुद्र चीज ले आना.
गए थे रोजा छुड़ाने, उल्टे नमाज गले पड़ी (गए थे नमाज छुडाने, रोजे गले पड़े). एक छोटी मुसीबत से पीछा छुड़ाने की कोशिश कर रहे थे, उससे बड़ी मुसीबत गले पड़ गई.
गए बिचारे रोजे, और रहे दस बीस. कोई कठिन कार्य करना पड़ रहा हो तो मन में यह भाव रखना चाहिए कि काम बहुत कठिन नहीं है और अब थोड़ा ही तो बचा है, निबट जाएगा.
गए शेर को कंकड़ मारे. शेर चला गया तो उस के पीछे कंकड़ फेंक रहे हैं. बनावटी बहादुर.
गगरी दाना, सूत उताना. सूत – शूद्र. गगरी में अनाज होने पर तुच्छ व्यक्ति इतराने लगता है.
गज भर के गाजी मियाँ, नौ गज की पूंछ. बहुत अधिक तामझाम और दिखावा.
गज, गेंडा, कायर पुरुष, एकहि बार गिरन्त, छत्रिय सूर सपूत नर, गिर गिर उठत अनंत. (बुन्देलखंडी कहावत) हाथी, गेंडा और कायर पुरुष एक बार गिर कर फिर उठ नहीं पाते. क्षत्रिय, शूर वीर और सुपुत्र गिर कर भी बार बार उठते हैं.
गठरी बाँधी धूल की रही पवन से फूल, गाँठ जतन की खुल गई रही धूल की धूल. मानव जीवन की क्षणभंगुरता के विषय में सुन्दर कथन. मनुष्य का शरीर हवा से फूली हुई धूल की गठरी की तरह है. गाँठ खुलते ही केवल धूल ही बचती है.
गठरी संभाल, मधुरी चाल, आज न पहुंचब, पहुंचब काल. भोजपुरी कहावत. सामान संभाल कर रखो और आराम से चलो, भले ही थोड़ा देर से पहुँच जाओ.
गडर प्रावाही लोक (संसार भेड़चाल है). जैसे भेड़ें बिना सोचे समझे एक के पीछे एक चलती हैं वैसे ही संसार के लोग एक दूसरे की नकल करते हैं.
गढ़ की शान कंगूरे बताते हैं. कौन सा गढ़ कितना शानदार है यह उसके कंगूरे देख कर ही मालूम हो जाता है.
गढ़िया लोहार का गाँव क्या. महाराणा प्रताप के लिए हथियार बनाने वाले लुहार जाति के लोगों ने यह शपथ ली थी कि जब तक राणा को मेवाड़ का राज्य नहीं मिल जाता तब तक वे बस्तियों में नहीं बसेंगे. उन के वंशज (जोकि गढ़िया लोहार कहलाते हैं) अभी तक घुमंतू जीवन व्यतीत कर रहे हैं.
गढ़े कुम्हार भरे संसार. कुम्हार घड़ा बनाते हैं, सब लोग उससे पानी भरते हैं. एक आदमी की कृति से अनेक लोग लाभ उठाते हैं.
गढ़े सुनार, पहने संसार. सुनार सुंदर गहने बनाता है जिन्हें सारा संसार पहनता है. कार्य ऐसा ही करना चाहिए जिससे खुद की जीविका भी चले और संसार लाभान्वित भी हो.
गढ़ों और मठों के बंटवारे नहीं होते. जिस प्रकार वारिसों के बीच संपत्ति का बंटवारा होता है उस प्रकार से राज्य और मठ का बंटवारा न कर के किसी एक ही व्यक्ति को उत्तराधिकारी बनाया जाता है. बंटवारे से राजसत्ता और धर्मसत्ता कमजोर होती है.
गणेश के ब्याह में सौ विघ्न. जो व्यक्ति हमेशा दूसरों की सहायता करता हो, उसका खुद का कोई काम न हो रहा हो तो मजाक में यह कहावत कही जाती है.
गणेश को बुद्धि कौन दे. गणेश जी स्वयं बुद्धि के स्रोत कहलाते हैं, उन्हें बुद्धि कौन दे सकता है. बहुत विद्वान या समझदार व्यक्ति को कौन समझा सकता है.
गणेशजी का चौक पूजा, मेंढक जी आन विराजे. किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति के लिए कोई प्रबंध किया जाए और ओछा व्यक्ति उसका लाभ उठाए तो. जो व्यक्ति अपने को बहुत होशियार समझता हो उस का मजाक उड़ाने के लिए भी ऐसे बोला जाता है.
गदहा गावे, ऊंट सराहे. गदहा गा रहा है और ऊँट सराहना कर रहा है. जब एक मूर्ख व्यक्ति दूसरे मूर्ख की तारीफ़ करे तो. संस्कृत में इस प्रकार कहा गया है – उष्ट्रानां विवाहेषु गीत: गायन्ति गर्दभ:, परस्परं प्रशंशंति अहो रूप: अहो ध्वनि.
गदहा पीटे धूल उड़े. मूर्ख व ढीढ आदमी को दंड देने से कोई लाभ नहीं होता.
गदहा मरे कुम्हार का, और धोबन सती होए. किसी और के दुःख पर अनावश्यक शोक मनाना.
गधा अगर सोने से लदा, तो भी रहे गधे का गधा. कोई बहुत पैसे वाला व्यक्ति हो पर उसे बातचीत का सलीका न हो या व्यवहारिक ज्ञान न हो तो यह कहावत कही जाती है. इंग्लिश में कहावत है – An ass remains an ass, even if laden with gold.
गधा की पीठ गधा ही खुजावे. मूर्ख ही मूर्ख के काम आता है.
गधा क्या जाने कस्तूरी की गंध. मूर्ख व्यक्ति बहुमूल्य वस्तुओं का मूल्य नहीं समझ सकता.
गधा क्यों नहाए गंगा, घूरा ही चंगा. गधा गंगा में क्यों नहाएगा (उसे गंगाजी का महत्व क्या मालूम), वह तो घूरे में लोटने में ही खुश है. मूर्ख व्यक्ति को सत्पुरुषों की संगति अच्छी नहीं लगती.
गधा खेत खाय, कुम्हार मारा जाय. कोई मातहत गलती करे और मालिक उसका दंड भुगते तो.
गधा गंगाजल का माहात्म्य क्या जाने. मूर्ख व्यक्ति किसी अनमोल चीज़ का महत्व नहीं समझ सकता.
गधा गया दुम की तलाश में, कटा आया कान. चौबे जी छब्बे बनने गए, दुबे बन कर लौटे.
गधा गिरा पहाड़ से और मुर्गी के टूटे कान. किसी बिलकुल अनजान व्यक्ति की परेशानी से यदि कोई अत्यधिक दुखी हो रहा हो तो.
गधा घूरा देख कर ही रेंके. मूर्ख व्यक्ति निकृष्ट वातावरण में ही प्रसन्न होता है.
गधा घोड़ा एक भाव. जहाँ योग्य व्यक्ति की पूछ न हो.
गधा चरे खेत, न पाप न पुन्य, गाय चरे तो पुन्य तो होता. यदि किसी के खेत में गधा चर रहा हो तो वह उसे क्यों चरने दे. अगर गाय चर रही हो तो कम से कम पुन्य तो मिलेगा. कोई ऐसा आदमी आपकी पूँजी खा रहा हो जिससे आपको कोई फायदा न हो तो यह कहावत कही जाती है.
गधा धोने से बछड़ा नहीं हो जाता. कितना भी प्रयास करो मूर्ख आदमी अक्लमंद नहीं बन सकता.
गधा पानी पिए घंघोल के. गधा तो गधा ही है. गड्ढे में भरे पानी में गन्दगी बैठ जाती है और ऊपर साफ़ पानी होता है. बाकी जानवर ऊपर का साफ़ पानी पीते हैं, पर गधा पानी को जोर से हिला कर पीता है जिससे गन्दगी पानी में घुल जाती है. मूर्ख व्यक्तियों के मूर्खतापूर्ण कार्य के लिए कहावत.
गधा पीटे घोड़ा नहीं होता. कितना भी प्रयास करो मूर्ख व्यक्ति बुद्धिमान नहीं बन सकता.
गधे का जीना थोड़े दिन भला. गधे जैसी जिंदगी हो तो थोड़े दिन ही जीना बेहतर है.
गधे का पूत गधा. मूर्ख लोगों की संतान भी मूर्ख होती हैं.
गधे का मूंह कुत्ता चाटे तो क्या बिगड़े. दो मूर्ख या निकृष्ट लोग एक दूसरे से प्रेम करें या एक दूसरे को नुकसान पहुँचाएं, तो हमें क्या.
गधे की खातिर सर मुंडवाया. किसी मूर्ख व्यक्ति के प्रति अत्यधिक प्रेम प्रदर्शित करना.
गधे की पूँछ पकड़ाई. किसी को ऐसे फालतू के काम पर लगा देना, जिससे लाभ कुछ न हो बल्कि हानि की संभावना हो.
गधे की बगल में गाय बाँधी तो वह भी रेंकने लगी. संगत का असर (कुसंगति कथय किम् न करोति पुंसाम).
गधे की रेंक और ओछे की प्रीत घटती जाती है. दो बिल्कुल अलग दृष्टान्तों को जोड़ कर हास्यपूर्ण ढंग से कोई बात कहना कहावतों की विशेषता होती है. जैसे गधे की रेंक पहले तेज और बाद में धीमी हो जाती है वैसे ही ओछे व्यक्ति की प्रीत शुरू में अधिक और बाद में कम हो जाती है.
गधे के ऊपर वेद लदे, गधा न वेदी होय. गधे के ऊपर पुस्तकें लादने से वह ज्ञानी नहीं हो जाता.
गधे को गधा ही खुजाता है. मूर्ख व्यक्ति की जरूरतों को मूर्ख ही पूरा कर सकता है.
गधे को गुलकंद (गधे को जाफरान, गधे को हलुआ पूड़ी, गधे को अंगूरी बाग़). अयोग्य व्यक्ति को ऐसी वस्तु मिल जाना जिसके वह बिलकुल योग्य न हो.
गधे को दिया नोन, गधा कहे मेरे दीदे फोड़े. गधे को किसी ने नमक खाने को दिया. गधा तो गधा ही ठहरा. उसने नमक का हाथ आँख में लगा लिया. आँख में तकलीफ हुई तो नमक देने वाले को कोसने लगा कि तुमने मेरी आँख फोड़ दी. किसी के भले के लिए कोई काम करो और वह उल्टा आपको कोसे तो यह कहावत कहते हैं.
गधे गुड़ हगने लगें तो गन्ने कौन पेरे. (बुन्देलखंडी कहावत) आसानी से कोई चीज़ मिल जाए तो कोई मेहनत क्यों करेगा इस बात को मजेदार ढंग से कहा गया है.
गधे घोड़े एक भाव. जहाँ प्रतिभाशाली व्यक्ति की कोई कद्र न हो.
गधे पर जीन कसने से घोड़ा नहीं होता. मूर्ख व्यक्ति को अच्छे कपड़े पहना दो तो वह योग्य नहीं हो जाता.
गधे पर हाथी की झूल. बेमेल काम.
गधे में ज्ञान नहीं, मूसल की म्यान नहीं (मूरख के ज्ञान नहीं, दरांती के म्यान नहीं). गधे (मूर्ख व्यक्ति) में ज्ञान नहीं होता और मूसल या दरांती की म्यान नहीं होती.
गधे से गिरा और गाँव से रूठा. बिना बात रूठने वालों पर व्यंग्य.
गधे से हल चले तो बैल कौन बिसाय. बैल को पालना गधे के मुकाबले बहुत महंगा है. अगर गधा हल चला लेता तो बैल कौन पालता. अगर सस्ती चीज़ से काम चले तो कोई महंगी चीज़ क्यों लेगा.
गधे ही मुल्क जीत लें तो घोड़ों को कौन पूछे. गधे की कीमत भी घोड़े से बहुत कम होती है और रख रखाव भी बहुत सस्ता होता है, लेकिन युद्ध लड़ने के लिए घोड़े ही चाहिए जोकि बहुत महंगे होते हैं. अगर सस्ती चीज़ से पूरा काम निकल जाए तो महंगी चीज़ को कौन पूछेगा. (जो टट्टू जीते संग्राम, को खर्चे तुर्की को दाम).
गधों की यारी में लातों की तैयारी. गधे से दोस्ती करोगे तो दुलत्ती खानी पड़ेगी. मूर्ख व्यक्ति से दोस्ती करना खतरे से खाली नहीं है.
गधों के गले में गजरा. अयोग्य व्यक्ति को बहुमूल्य परन्तु बेमेल चीज़ मिल जाना.
गन्दी बोटी का गन्दा शोरबा. 1. घटिया कच्चा माल तो घटिया उत्पाद. 2. नीच मां बाप की नीच संतान.
गन्ना बहुत मीठा होता है तो उसमें कीड़े पड़ जाते हैं. ज्यादा सज्जनता मुसीबत बन जाती है.
गन्ने से गंडेरी मीठी, गुड़ से मीठा राला, भाई से भतीजा प्यारा, सब से प्यारा साला. रिश्तों की मिठास को प्रकट करने वाली कहावत.
गम न हो तो बकरी पाल लो. बकरी पालने में बहुत परेशानियाँ उठानी पडती हैं.
गया बदरी, काया सुधरी. बद्रीनाथ की यात्रा करने से स्वास्थ्य लाभ होता है.
गया मर्द जिन खाई खटाई, गई रांड जिन खाई मिठाई. पहले के लोग समझते थे कि खटाई खाने से पौरुष शक्ति कम हो जाती है और विधवाओं से यह अपेक्षा की जाती थी कि किसी प्रकार का सुख न भोगें.
गया माघ दिन उनतीस बाकी. माघ का एक दिन बीतने के बाद कह रहे हैं कि माघ खत्म हो गया, बस उन्तीस दिन बाकी हैं. अति उत्साह की मूर्खतापूर्ण पराकाष्ठा.
गया वक्त फिर हाथ नहीं आता. बीता हुआ समय और खोया हुआ अवसर पुन: हाथ नहीं आते.
गरज का क्या मोल (गरज दीवानी होय). किसी वस्तु की बहुत अधिक आवश्यकता होने पर उसकी मुंह मांगी कीमत देनी पड़ती है.
गरज का बावला अपनी गावे. जरूरतमंद आदमी अपनी ही कहता है.
गरज मिटी गूजरी नटी. दूध का काम करने वाले लोग अधिकतर गुर्जर जाति के होते थे. उनकी पत्नी गूजरी कहलाती थी. जब तक गूजरी को आप से कोई काम है वह रोज खीर खिलाती है. जैसे ही उस का काम निकल गया वह छाछ देने को भी मना कर देती है. (गरज दीवानी गूजरी, नित्य जिमावे खीर, गरज मिटी गूजरी नटी, छाछ नहीं रे बीर).
गरज रहे तो चाकर, गरज मिटी तो ठाकुर (गर्ज पड़े मन और है, गर्ज मिटे मन और). जब तक अपना स्वार्थ था तब तक जी हुजूरी करते रहे. स्वार्थ पूरा हो जाने के बाद ऐंठ दिखाने लगे.
गरब का बिरछा, कबहुं नहीं हरियाए. (बुन्देलखंडी कहावत) गरब – गर्व, घमंड, बिरछा – वृक्ष. घमंड का पेड़ कभी फलता फूलता नहीं है, अर्थात घमंड बहुत दिन नहीं टिकता.
गरीब का बेली राम. निर्धन का सहायक ईश्वर है.
गरीब की आहें मोटी होती हैं, बाहें नहीं. गरीब अपने सताने वाले को पीट नहीं सकता, केवल बद्दुआ दे सकता है. लेकिन उस में भी असर होता है.
गरीब की कौड़ी टेंट में. गरीब अपनी छोटी सी पूँजी को भी संभाल कर रखता है. टेंट – अंटी.
गरीब की खाय, जड़ मूल सों जाए. गरीब के हक को मारने वाला समूल नष्ट हो जाता है.
गरीब की जवानी, बहता पानी. गरीब की जवानी व्यर्थ ही चली जाती है.
गरीब की जोरू सब की भौजाई. गरीब पर सब जोर जमाते हैं.
गरीब की बछिया को रंभाना मना. गरीब को अपनी व्यथा कहने का भी अधिकार नहीं है.
गरीब की सच्ची गवाही भी झूठी. गरीब की बात पर कोई विश्वास नहीं करता.
गरीब की हाय, सरबस खाय. गरीब को नहीं सताना चाहिए, उस की हाय व्यक्ति को बर्बाद कर देती है. (कबीरदास ने कहा है – दुर्बल को न सताइए, जाकी मोटी हाय).
गरीब के लिए तो बाल-बच्चे ही धन है. अर्थ स्पष्ट है.
गरीब को मत सता गरीब रो देगा, गरीब की हाय पड़ी तो जड़ मूल खो देगा. अर्थ स्पष्ट है.
गरीब को मिट्टी भी भारी. गरीब को अपने सगों का अंतिम संस्कार करना भी बहुत भारी पड़ता है.
गरीब को मुहूर्त कैसा, जब चाहे चल पड़े. गरीब शगुन असगुन का विचार नहीं कर सकता. जब काम होगा उसे जाना ही पड़ेगा.
गरीब को सरग में भी बेगार. एक गरीब आदमी रोज की बेगार से तंग आ कर मरने की सोच रहा था, तो जमींदार ने कहा कि तुझे स्वर्ग में भी बेगारी में काम करना पड़ेगा, इससे अच्छा तू यहीं रह. (चमार को अर्श पे भी बेगार).
गरीब ने रोजे रखे तो दिन ही बड़े हो गए. गरीब कोई अच्छा काम करना चाहता है तो उसमें भी बहुत सी अड़चनें आती हैं.
गरीबी गुनाहों की जननी है. गरीब व्यक्ति मज़बूरी में अपराध करता है.
गरीबी तेरे तीन नाम लुच्चा, गुंडा, बेईमान; अमीरी तेरे तीन नाम परसा परसी परसराम. गरीब को सब लुच्चा, लफंगा और बेईमान कहते हैं जबकि वही अगर अमीर हो जाए तो उस से इज्ज़त से बात करने लगते हैं. गरीब को परसा कहते थे, उस पे थोड़ा पैसा आया तो परसी भाई कहने लगे और वह सम्पन्न हो गया तो परशुराम जी कहने लगे.
गरीबी से बढ़ कर कोई भाईचारा नहीं. गरीब लोग मुसीबत में एक दूसरे का साथ निभाते हैं, जबकि अमीर लोग आड़े समय में मुँह मोड़ लेते हैं.
गर्जमंद की अकल जाए, दर्दमंद की शकल जाए. जब व्यक्ति बहुत गर्जमंद होता है तो उस की अक्ल काम नहीं करती और जिस व्यक्ति को बहुत बड़ा शारीरिक कष्ट हो रहा हो उसकी सुन्दरता नष्ट हो जाती है.
गलमिल गलकट सुरसुर हाय हाय. मुसलमानों के चार मुख्य त्यौहारों पर कही गई कहावत. गलमिल – गले मिलने वाली मीठी ईद, गलकट- बकरा काटने वाली बकरीद, सुरसुर – पटाखे छोड़ने वाली शबेरात, हाय हाय – शोक मनाने वाली मुहर्रम.
गलियारे में टट्टी बैठे और उल्टे आँख दिखाए. गलियारे में शौच कर रहा है और मना करने पर अकड़ रहा है. चोरी और सीनाजोरी.
गले पड़ी, बजाए सिद्ध. कोई आदमी मजबूरी में कोई काम करे और लोग उसे महान समझ लें तो यह कहावत कही जाती है.
गले पड़े का सौदा. कोई जिम्मेदारी जबरदस्ती गले पड़ जाए तो.
गले में ढोल पड़ा, रो के बजाओ चाहे गा के (गले में ढोल पड़ा है बजाना ही पडेगा). जो जिम्मेदारी आप के ऊपर पड़ी है उसे निभाना तो पड़ेगा ही, हँस के निभाओ या रो कर यह आप के ऊपर है.
गले में सिगड़ी बंधी है. जो लोग हर समय गुस्से में रहते हैं उन का मजाक उड़ाने के लिए.
गहना चांदी का, नखरा बांदी का. गहना चांदी का अच्छा लगता है और दासी के नखरे अच्छे लगते हैं.
गहनों वस्त्र उधार को, कभी न धरिए अंग. उधार के वस्त्र और गहने कभी नहीं पहनने चाहिए.
गहरा बोने वाला और रिश्वत देने वाला, घाटे में नहीं रहते. बीज को गहरा बोने में मेहनत अधिक लगती है लेकिन उपज अच्छी होती है इसलिए सब वसूल हो जाता है. रिश्वत देने में पैसा खर्च होता है लेकिन व्यक्ति उस से अधिक लाभ कमा लेता है.
गहिर न जोते बोवे धान, सो घर कुठला भरे किसान. धान की बुआई के लिए खेत को गहरा नहीं जोतना होता है. (घाघ)
गाँठ का गवाऊँ न लोगों साथ जाऊँ. जो आदमी बिल्कुल जोखिम लेने को तैयार न हो.
गाँठ का जाए और जग हँसाई होय. जिस का नुकसान होता है उसी पर लोग हँसते हैं.
गाँठ का देय और बैरी होय. किसी को उधार दे कर आप उससे दुश्मनी पाल लेते हैं.
गाँठ का पैसा, साथ की जोरू, वक्त पर यही काम आते हैं. पैसा वही काम आता है जो अपने पास हो (उधार में बंटा हुआ न हो) और पत्नी वही काम आती है जो साथ रहती हो.
गाँठ का भरम क्यूँ गवाऊँ. बाजार में किसी की कितनी साख है यह इस बात पर निर्भर करता है कि उसके पास कितना नकद पैसा है. कुछ लोगों के पास पैसा न भी हो तब भी उनकी हवा बंधी रहती है. ऐसे किसी व्यक्ति का कथन.
गाँठ गिरह से मद पीवे, लोग कहें मतवाला. शराब ऐसी चीज़ है कि आदमी अपना पैसा खर्च कर के पीता है तो भी मतवाला समझा जाता है.
गाँठ में जमा रहे तो खातिर जमा. जिस व्यक्ति का धन उस के पास रहता है वह निश्चिंत रहता है.
गाँव करे सो पगली करे. जैसा सब गाँव के लोग करते हैं पगली उन की नकल करती है. बिना सोचे समझे किसी के नकल करने वाले पर व्यंग्य.
गाँव का छोरा छोरा, दूजे गाँव का दूल्हा. गाँव के लड़के की शादी होती है तो उसे दूल्हे वाली इज्जत नहीं मिलती, वह छोरा ही कहलाता है. दूसरे गाँव के लड़के को दूल्हे राजा और जमाई बाबू कह कर सत्कार किया जाता है.
गाँव की छवि चौक से और घर की छवि द्वार से. कोई गाँव कितना उन्नत और समृद्ध है यह उस के चौक को देख कर समझा जा सकता है, इसी प्रकार घर के द्वार को देख कर गृह स्वामी की हैसियत जानी जा सकती है.
गाँव के गडढे पोखर अंधा भी जाने. गाँव के लोग उन्हीं रास्तों पर चलते चलते इतने अभ्यस्त हो जाते हैं कि वे आँख बंद कर के भी चल सकते हैं.
गाँव जले, डोम त्यौहारी मांगे. किसी का कितना भी नुकसान हो रहा हो क्षुद्र लोगों को केवल अपने स्वार्थ से मतलब होता है.
गाँव जले, नंगे को क्या. यहाँ नंगे से तात्पर्य बेशर्म आदमी से भी हो सकता है और अत्यधिक गरीब से भी. गाँव के जलने का इन दोनों पर कोई फर्क नहीं पड़ता.
गाँव न माने पगले को और पगला न माने गाँव को. जो व्यक्ति स्वयं पागल या मूर्ख है वह और सब को पागल और मूर्ख समझता है.
गाँव बसा नहीं, बिलैंया लोटन लगीं. जब कोई नया गांव बसता है तो आसपास के जंगल से बिल्लियां आकर वहां डेरा डाल लेती हैं. इस कथन का शाब्दिक अर्थ है कि गांव के बसने से पहले ही बिल्लियां डेरा डाल रही हैं. कहावत का अर्थ है – कोई लाभप्रद काम होने से पहले ही फ़ालतू और मुफ्तखोरों का जमा हो जाना.
गाँव में धोबी का छैल. धोबी का बेटा गाँव में छैला बना घूमता है क्योंकि वह शहर के लोगों के कपड़े पहनता है (जो कपड़े लोग धोने के लिए देते हैं).
गाए गीत का गाना क्या, पके धान का पकाना क्या. किसी काम को बार बार करने में आनंद नहीं आता.
गागर में सागर. बहुत कम शब्दों में बहुत बड़ी बात कह देना.
गाजर की पूंगी, बजी तो बजी, नहीं तो तोड़ खाई. हर तरह से उपयोगी वस्तु.
गाजे न बाजे, दूल्हे राजा आय बिराजे. कोई बड़ा आदमी बिना किसी पूर्व सूचना और तैयारी के अचानक आ जाए तो.
गाडर (भेंड़) पाली ऊन को बैठी चरे कपास. भेड़ इसलिए पाली कि ऊन मिलेगी पर वह तो सारी कपास चर गई.
गाडर पाली ऊन को, बैठी चरे कपास, बहू लाया काम को, बैठी करे फरमास. उपरोक्त कहावत में यह बात जोड़ दी गई है कि बहू लाए थे यह सोच कर कि कुछ काम धाम करेगी, पर वह बैठ कर फरमाइशें कर रही है.
गाड़ी का पहिया और मर्द की जुबान फिरती ही अच्छी. जो मर्द अपनी बात पर कायम न रहें उन के लिए व्यंग्य.
गाड़ी का सुख गाड़ी भर, गाड़ी का दुख गाड़ी भर. गाड़ी जब तक चलती है तब तक बहुत सुख देती है, जब बिगड़ती है तो दुख भी बहुत देती है. यही बात गृहस्थी पर भी लागू होती है.
गाड़ी कुत्ते के बल नहीं चलती. एक कुत्ता बैलगाड़ी के नीचे चल रहा था. उसे यह गलतफहमी हो गई कि गाड़ी को वही चला रहा है. चलते चलते उसे गुस्सा आया कि वह गाड़ी क्यों चलाए. वह रुक गया. लेकिन गाड़ी ऊपर से निकल गई. कोई व्यक्ति बिना किसी उपयोगिता के अपने आप को बहुत महत्वपूर्ण सिद्ध करने की कोशिश कर रहा हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.
गाड़ी के पाड़ी बंधी हुई है. किसी व्यक्ति ने अपने पड़ोसी से कुछ देर के लिए बैलगाड़ी उधार मांगी. देने वाले का मन नहीं था तो उस ने बहाना बनाया कि गाड़ी में पड़िया बंधी हुई है इसलिए नहीं दे सकते.
गाड़ी तो चलती भली, ना तो जान कबाड़. गाड़ी जब तक चलती रहे तभी तक उपयोगी है, अन्यथा कबाड़ के समान है. यही बात मनुष्य पर भी लागू होती है.
गाड़ी देख लाड़ी के पावँ भारी. लाड़ली बेटी अच्छी खासी पैदल चल रही थी. तब तक रिक्शा दिख गया. उसको देख कर कहने लगी माँ मेरे पैरों में दर्द हो रहा है. कोई सुविधा उपलब्ध हो तो हर कोई उसे भोगना चाहता है.
गाड़ी पे सूप का क्या भार (चलती गाड़ी में चलनी का क्या भार) (गाड़ी भर नाज में टोकरी का क्या बोझ). जो व्यक्ति बहुत सी जिम्मेदारियाँ उठा रहा हो उस को छोटे मोटे काम से क्या परेशानी.
गाड़ी भर अनाज की मुट्ठी बानगी. गाड़ी में लदा हुआ अनाज कैसा है यह एक मुट्ठी देख कर ही जाना जा सकता है. किसी समाज के विषय में जानकारी उस के एकाध व्यक्ति को देख कर ही हो सकती है..
गाड़ी भर बोया, पल्लू भर पाया. बहुत अधिक परिश्रम का बहुत थोड़ा प्रतिफल.
गाड़ीवान की नार सदा दुखिया. गाड़ी चलाने वाले को अधिकतर घर से बाहर रहना पड़ता है इसलिए उस की पत्नी दुखी रहती है. ट्रकों पर भी अक्सर लिखा होता है – कीचड़ में पैर दोगी तो धोना पड़ेगा, ड्राइवर से शादी करोगी तो रोना पड़ेगा.
गाते गाते कीरतनिया हो जाते हैं. कीरतनिया – कीर्तन करने वाले. गाने का अभ्यास करते करते सभी अच्छे गायक बन जाते हैं.
गाना और रोना कौन नहीं जानता. ये मनुष्य के मूलभूत गुण हैं.
गाय का दूध सो माय का दूध. गाय का दूध मां के दूध के सामान गुणकारी है.
गाय का बछड़ा मर गया तो खलड़ा देख पनिहाय. खलड़ा – भूसा भरी हुई बछड़े की खाल (बछड़े का पुतला). पनिहाना – थन में दूध उतरना. किसी के प्रियजन की मृत्यु हो जाने पर उस से मिलती जुलती शक्ल सूरत वाले को देख कर भी प्रेम उमड़ता है. पशुओं में भी माँ की ममता की यही पराकाष्ठा देखने को मिलती है.
गाय की भैंस क्या लगे. किसी व्यक्ति से हमारा कोई संबंध नहीं है यह बताने का हास्यपूर्ण तरीका.
गाय को अपने सींग भारी नहीं होते. अपने प्रिय सगे सम्बन्धी कभी बोझ नहीं लगते.
गाय गुण बछड़ा पिता गुण घोड़ा, बहुत नहीं तो थोड़ा थोड़ा. गाय के बछड़े में माँ के गुण होते हैं जबकि घोड़े के बछड़े में पिता के गुण होते हैं.
गाय जने, बैल की दुम फटे (गाय बियाए पीर बैल को), (बिल्ली बच्चा जने, बिलौटे को पीर आवे). बच्चा जनना – बच्चा पैदा करना, पीर आना – दर्द होना. किसी दूसरे की परेशानी में अत्यधिक परेशान होने वाले पर व्यंग्य.
गाय तिरावे, भैंस डुवाबे. डूबता आदमी यदि गाय की पूँछ पकड़ ले तो गाय उसे पार करवा देती है, जबकि भैंस डुबो देती है.
गाय तैरी, भैंस तैरी, बकरी बिचारी डूब मरी. बड़ी आपदाओं को बड़े लोग तो झेल लेते हैं पर छोटे बेचारे मटियामेट हो जाते हैं.
गाय दुही और कुत्तों को पिलाया (गाय दुही और गधे को पिलाया). परिश्रम से अर्जित किए हुए धन को बर्बाद कर देना. घर के लोगों से छीन कर अपात्रों को बांटना.
गाय दूब से सलूक करे तो क्या खाय. गाय दूब का लिहाज करेगी तो क्या खाएगी. दूकानदार अगर सब ग्राहकों से दोस्ती कर लेगा तो पैसा किस से कमाएगा. (घोड़ा घास से यारी करेगा तो क्या खाएगा).
गाय न बच्छी, नींद आवे अच्छी. गाय पालना बहुत जिम्मेदारी का काम है. जिस व्यक्ति के पास ऐसी कोई जिम्मेदारी न हो वह चैन से सोता है.
गाय न हो तो बैल दुहो. कुछ न कुछ कर्म करो चाहे उससे कुछ हासिल न हो.
गाय बाँध के रखी जाए सांड नाहीं. 1. सारी बंदिशें स्त्रियों के लिए ही हैं, पुरुषों के लिए कुछ नहीं. 2. सीधे आदमी के लिए ही सब कानून हैं, दबंग के लिए नहीं.
गाय बैल मर गए, कुत्ते के गले घंटी. योग्य व्यक्तियों के न रहने पर अयोग्य लोगों की चांदी हो जाना.
गाय भी हाँ और भैंस भी हाँ. हर बात में हाँ में हाँ मिलाना.
गाय मार के जूता दान. बहुत बड़ा पाप कर्म कर के थोड़ा सा दान कर देना और पुण्यात्मा बनने का ढोंग करना.
गाय रतन निगल गई. अत्यधिक दुविधा की स्थिति. गाय को मार कर बहुमूल्य रत्न को निकाल भी नहीं सकते.
गायें तो मालिकों की हैं, ग्वाले का अपना तो फकत लट्ठ. गरीब और मजदूर का अपना कुछ नहीं होता.
गायों के भाग से बर्षा होवे. वर्षा होती है तो गायों को घास पत्ते आदि प्रचुर मात्रा में खाने को मिलते हैं. कहावत का अर्थ है कि गरीब और बेसहारा लोगों के लिए ही ईश्वर पानी बरसाते हैं मनुष्य के कर्म तो ऐसे हैं कि वर्षा हो ही न.
गायों को घास, कुतियों को मलीदा. अयोग्य व्यक्तियों को विशेष सुविधाएं.
गाल कट जाए पर चावल न उगले. बहुत कंजूस या बेशर्म आदमी के लिए.
गाल बजाए हू करैं गौरीकन्त निहाल. गाल बजाना – अपनी प्रशंसा स्वयं करना, गौरीकंत – भगवान शंकर. 1. ऐसे व्यक्तियों के लिए जो किसी की सहायता नहीं करते केवल बड़ी बड़ी बातें करते हैं और आश्वासन देते हैं. 2. इससे उलट इसका यह अर्थ भी हो सकता है कि जो व्यक्ति उदार होते हैं वे सहज में ही प्रसन्न हो जाते हैं.
गाल बजाने से कोई बड़ा नहीं हो जाता. गाल बजाना – अपनी बड़ाई करना. अपनी प्रशंसा स्वयं करने से कोई बड़ा नहीं हो जाता.
गाल वाला जीते, माल वाला हारे. जो बातें बनाने में तेज हो वह जीत जाता है और पैसे वाला उसके सामने हार जाता है.
गालियों से कोई गूमड़े पड़ते हैं. कोई आपको डंडा मार देगा तो सर पर गूमड़ा पड़ जाएगा, लेकिन गाली देगा तो कोई नुकसान थोड़े ही होगा, इसलिए कोई गाली दे तो मारपीट पर उतारू नहीं होना चाहिए.
गाली और तरकारी खाने के लिए ही बने हैं. कोई आप को गाली दे उसका बुरा नहीं मानना चाहिए.
गाली मत दे किसी को, गाली करे फसाद, गाली सूं लाखों हुए, लड़ भिड़ कर बरबाद. किसी को गाली देना शर्तिया लड़ाई का नुस्खा है.
गावे तो सीठना, लड़े तो गाली. सींठना – विवाह इत्यादि में गाई जाने वाली हंसी मजाक की गालियाँ. विशेष अवसर पर वही बात हंसी मजाक मानी जाती है जो लड़ाई के समय गाली मानी जाती है.
गिदधों को कौन न्योता देता है. गिद्धों को कोई निमंत्रण नहीं भेजता, वे तो लाश देख कर अपने आप चले आते हैं. दुष्ट और अवसरवादी लोगों को कोई बुलाने नहीं जाता, वे अपने आप पहुँच जाते हैं.
गिद्ध की आँख पिड़की निकाले. पिड़की जैसा छोटा सा पक्षी भी गिद्ध की आँख निकाल सकता है. किसी को बहुत कमज़ोर समझने की भूल नहीं करना चाहिए.
गिद्ध को मौत से प्यार. लाशों पर पलने वाले गिद्ध यही चाहते हैं कि आदमी और जानवर मरते रहें. घटिया नेताओं और पत्रकारों पर व्यंग्य.
गिनी गाय में चोरी नहीं हो सकती. अपनी धन संपदा का ठीक से हिसाब रखा जाए तो उसमें चोरी नहीं हो सकती.
गिनी बोटी, नपा शोरबा. जहाँ हिसाब किताब बिल्कुल साफ़ हो.
गिने को गिनावे, टोटा हो जावे. गिना हुआ धन बार बार गिनने से उसमें घाटा हो जाता है.
गिने गिनाए नौ के नौ. एक गाँव के नौ बुनकरों ने अच्छे अच्छे वस्त्र बुने और अच्छे पैसे मिलने की आशा में उन्हें ले कर शहर की ओर चले. रास्ते में जंगल में बेरों की झाड़ियों में पके हुए बेर देख कर सब का मन चल आया. बेर खाने के लिए सब इधर उधर बिखर गए. छक कर बेर खाने के बाद सब इकट्ठे हुए तो चलने से पहले मुखिया ने सब की गिनती की, लेकिन उसने अपने को नहीं गिना. कई बार गिना पर हर बार आठ ही निकले. वहाँ रोना पीटना पड़ गया. एक घुड़सवार उधर से निकला तो उन से पूछा क्या माजरा है. उन की समस्या सुन कर वह मन ही मन हँसा और बोला, अगर मैं तुम्हारा खोया हुआ आदमी ढूँढ़ दूँ तो क्या दोगे. बुनकर बोले हम ये सारे बहुमूल्य वस्त्र तुम्हें दे देंगे. घुड़सवार ने उन्हें लाइन से खड़ा किया और हर आदमी को कोड़ा मारते हुए पूरे नौ गिन दिए. वे सारे मूर्ख ख़ुशी ख़ुशी सारे वस्त्र उसे दे कर जान बचने की ख़ुशी मनाते हुए अपने गाँव लौट गए.
गिने पूए संभाल खाए. धन संपत्ति को ठीक से गिन कर रखा जाए तो उस का प्रबन्धन आसान हो जाता है..
गिरगिट की दौड़ बिटौरे तक. बिटौरा – कंडों का ढेर. तुच्छ आदमी की सोच सीमित ही होती है. (देखिये परिशिष्ट)
गिरता पत्ता यूं कहै, सुन तरुवर बनराय, अबका बिछड़ा कब मिलूं, दूर पड़ूँगा जाय. गिरता हुआ पत्ता कहता है कि हे तरुवर! अब दूर जा पडूंगा, पता नहीं बिछुड़ने पर फिर कब मिलना हो.
गिरधर वहां न बैठिए, जंह कोऊ दे उठाए. जहाँ सम्मान न हो उन लोगों के बीच नहीं बैठना चाहिए.
गिरा सत्तू पितरों को दान. सत्तू गिर गया, खाने लायक नहीं रहा तो पितरों को दान कर के पुण्य कमा रहे हैं. ढोंगी धर्मात्मा.
गिरी पहाड़ से रूठी भतार से. किसी की नाराजगी किसी और पर उतारना.
गिरे का क्या गिरेगा. जिसकी कोई इज्ज़त न हो उसकी क्या बेइज्ज़ती हो जाएगी. जो जमीन पर गिरा हुआ है उसका क्या सामान गिर जाएगा.
गिरे का क्या गिरेगा. जो आदमी पहले ही गिरा हुआ है उसके पास से क्या गिर सकता है. यहाँ गिरे हुए का अर्थ ओछे व्यक्ति से भी हो सकता है और अत्यधिक गरीब से भी.
गिरे तो देव के पगों में पड़े. गिरे तो लेकिन देवता के चरणों में गिरे. (ऐसे गिरने से कोई नुकसान नहीं हुआ बल्कि लाभ हो गया). नुकसान के साथ में ही भरपाई भी हो जाना.
गिरे पड़े वक्त का टुकड़ा. बुरे समय में काम आने के लिए बचा कर रखा गया धन या वस्तु.
गिरे पे चार लात जमाना. ऐसे बनावटी बहादुरों पर व्यंग्य जो लड़ने की हिम्मत नहीं रखते पर गिरे हुए पर लात जरूर जमाते हैं.
गिलहरी की दौड़ पीपल तक. छोटा व्यक्ति छोटी सोच ही रखता है.
गीदड़ की तावल से बेर नहीं पकते. तावल – उतावलापन, जल्दबाजी. गीदड़ के चाहने से बेर जल्दी नहीं पक जाते. उतावले लोगों को सीख देने के लिए.
गीदड़ की मौत आती है तो वह शहर की ओर भागता है. गीदड़ अगर शहर में घुसेगा तो मार दिया जायेगा. यदि कोई कमजोर और डरपोक व्यक्ति दुस्साहस दिखाने का प्रयास करता है तो उसकी मजाक उड़ाने के लिए यह कहावत कही जाती है.
गीदड़ गिरा गड्ढे में, आज यहीं रहेंगे. अपनी गलती से विपत्ति में पड़े व्यक्ति द्वारा यह दिखावा करना कि उसे कोई परेशानी नहीं है.
गीदड़ ने मारी पालथी, अब मेह बरसेगा तभी उठेगा. अत्यधिक गर्मी होने पर गीदड़ पालथी मार लेता है और पानी बरसने पर ही उठता है. कोई मूर्ख व्यक्ति अपनी बात पर अड़ जाए तो.
गीदड़ पट्टा. कुत्तों के डर से सियार बस्ती में जाने से डरते हैं. एक सियार को संयोग से एक पुराना कागज मिल गया तो उसने अपनी जमात इकट्ठी की. कागज दिखाकर बोला – मैंने गाँव का पटटा ले लिया है. अब कोई कुत्ता हम पर नहीं भौंक सकता. चलो गाँव चलते हैं. सबसे आगे मैं चलूँगा. सियारों की बिरादरी को पट॒टे वाली बात समझ में आ गई. वे सभी उसके पीछे-पीछे गॉव की ओर चले. पर गाँव में घुसते ही कुत्तों की फ़ौज भौंकते हुए उन पर टूट पड़ी. मुखिया सियार वापस भागने में सबसे आगे था. साथियों ने कहा – भाग क्यों रहे हो? गाँव का पट्टा दिखाओ. तब उस सियार ने और जोर से भागते हुए कहा – ये सभी अनपढ़ हैं, फिर किसे पट्टा दिखाऊँ. जान बचाकर भागो, वरना बेमौत मारे जाओगे.
गुजरे लोगन की निंदा अजोग है. मरे हुए लोगों की निंदा नहीं करना चाहिए. इंग्लिश में कहावत है – Speak well of the dead.
गुड़ अँधेरे में खाओ तो मीठा, उजाले में खाओ तो भी मीठा (गुड़ तो अंधेरे में भी मीठा लागे). अर्थ स्पष्ट है.
गुड़ कड़वा लगे तो जानो ज्वर का जोर. बिना बात मुँह कड़वा हो रहा हो तो बुखार की संभावना होती है.
गुड़ की चोट थैली जाने. थैली में रखे गुड़ को तोड़ने के लिए थैली को उठाकर पत्थर पर पटका जाता है. गुड़ मीठा होता है पर थैली पर भीतर से चोट तो करता ही है. कोई मीठा दिखने वाला व्यक्ति चुपचाप किसी को चोट पहुँचाए तो.
गुड़ खाए गुलगुलों से परहेज करे. जो लोग परहेज नहीं करते लेकिन परहेज का दिखावा बहुत करते हैं उनके लिए यह कहावत है.
गुड़ गुड़ कहने से मुंह मीठा नहीं होता. सिर्फ बातें बनाने से कोई काम नहीं होता.
गुड़ से मीठी क्या ईंटें. इस कहावत का प्रयोग उसी प्रकार किया जाता है जैसे – नेकी और पूछ पूछ.
गुड़ से मीठी जुबान. जुबान से बहुत मीठी बोली बोली जा सकती है.
गुड़ हर दफै मीठा ही मीठा. गुड़ को जितनी बार भी खाओगे मीठा ही लगेगा. जो फायदे की बात है वह हर समय अच्छी ही लगेगी.
गुड़ होता गुलगुले करती, आटा उधार मांग लाती, निगोड़ो तेल ही नाय है. पास में कुछ भी न हो तब भी मंसूबे बांधना.
गुड़ियों के ब्याह में चियों का नेग. चिया – इमली का बीज. जैसा बचकाना आयोजन, वैसी बचकानी भेंट.
गुण मिलें तो गुरु बनाए चित्त मिले तो चेला, मन मिलें तो मीत बनाए वरना रहे अकेला. गुरु उसी को बनाना चाहिए जिसमें बहुत से गुण हों, चेला उसी को बनाना चाहिए जिससे विचार मिलते हों और मित्र उसी को बनाना चाहिए जिससे मन मिलता हो.
गुणवान सब जगह पूजा जाता है. जबकि राजा केवल स्वदेश में पूजा जाता है.
गुणों के अनुसार प्रतिष्ठा होती है. अर्थ स्पष्ट है.
गुदड़ी से बीबी आईं, शेखजी किनारे हो. कोई ओछा व्यक्ति थोड़ा बहुत अधिकार पाकर अत्यधिक इतराने लगे तो.
गुनके गाहक सहस नर, बिन गुन लहै न कोय. गुणों की कद्र सभी लोग करते हैं. बिना गुणों के कोई आपको नहीं पूछता. (गिरधर की एक कुंडली से).
गुनवंती के नौ मायके, गली गली ससुराल. जिस में गुण होते हैं उस की सब जगह पूछ होती है.
गुनिया तो औगुन तजे, गुन को तजे गंवार. जो गुणवान है वह अपने अवगुणों को त्यागने का प्रयास करता है और जो मूर्ख है वह अपने भीतर छिपे गुणों को ही त्याग देता है.
गुनियां तो गुण कहे, निर्गुनिया देख घिनाय. गुणों को पहचानने वाला व्यक्ति हर चीज़ में गुण देखता है और जिस में स्वयं कोई गुण नहीं है या जिसे गुणों की पहचान नहीं है वह हर चीज़ को बेकार समझ कर घृणा करता है.
गुनियों की कमी नहीं, पारखियों की कमी है. गुणवान लोग बहुत हैं, उन्हें परखने वाले पारखी चाहिए.
गुपचुप बुलाई, ऊंट चढ़ी आई. गुप्त रूप से कोई काम करने लिए किसी को चुपचाप बुलाया और वह बेबकूफ दिखावा करता हुआ आया.
गुप्तदान महापुण्य. वैसे तो सभी प्रकार के दान करने से पुन्य मिलता है लेकिन गुप्त दान (बिना अपना नाम प्रदर्शित किए) सबसे बड़ा पुन्य है क्योंकि इस में व्यक्ति को अपने नाम की भूख नहीं होती.
गुबरारी की रानी भई, रानी की गुबरारी. (बुन्देलखंडी कहावत) गुबरारी – गोबर उठाने वाली. भाग्य से ही सब मिलता है. गोबर उठाने वाली रानी बन सकती है और रानी गोबर उठाने वाली.
गुबरैले के लिए तो गोबर ही गुड़. 1. जो जिस परिवेश में रहता है उसको वही अच्छा लगता है. 2. निकृष्ट व्यक्ति निकृष्ट परिवेश में ही खुश रहता है.
गुरु कहै सो करो, करे सो न करो. गुरु के उपदेशों का पालन करो, गुरु जो करते हैं उसकी नकल मत करो. (गुरु में कोई गलत आदत भी हो सकती है).
गुरु की चोट, विद्या की पोट. गुरु की मार से ही विद्या आती है.
गुरु की विद्या गुरु को फली. जहाँ कोई शिष्य गुरु से कोई विद्या सीख कर गुरु को लाभ पहुँचाए. (यदि अत्यधिक हानि पहुँचाए तो भी व्यंग्य में यह कहावत बोलते हैं).
गुरु कुम्हार सिष कुंभ है, गढ़ि-गढ़ि काढ़ै खोट, अन्तर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट. गुरु कुम्हार के समान है और शिष्य घड़े के समान. कुम्हार अन्दर से हाथ का सहारा देता है और बाहर से चोट कर के घड़े के टेढ़े पन को दूर करता है. इसी प्रकार गुरु शिष्य को सहारा भी देता है और दंड दे कर उसके दोष दूर करता है.
गुरु गुरु विद्या, सिर सिर ज्ञान. हर गुरु से विद्या ग्रहण की जा सकती है और हर व्यक्ति से ज्ञान.
गुरु तो ऐसा चाहिए ज्यों सिकलीगर होए, जनम जनम का मोरचा छिन में डाले खोए. सिकलीगर – छुरी कैंची पर धार रखने वाला. गुरु ऐसा होना चाहिए जैसा छुरी पर धार रखने वाला होता है. कितनी भी पुरानी जंग (अज्ञान) हो उसे साफ़ कर दे.
गुरु बिन मिले न ज्ञान, भाग बिन मिले न संपति. गुरु के बिना ज्ञान और भाग्य के बिना सम्पत्ति नहीं मिल सकती.
गुरु मारे धमधम, विद्या आवे छमछम. गुरु के धमाधम कूटने से ही विद्या आती है.
गुरु शुक्र की बादरी, रहे शनीचर छाए, कहे घाघ सुन घाघनी, बिन बरसे नहिं जाए. घाघ कवि के अनुसार बृहस्पति से शनिवार तक यदि बादल छाए रहें तो वर्षा अवश्य होती है.
गुरु से चेला सवाया. जब चेला गुरु से अधिक योग्य या दुष्ट हो तो.
गुरु से पहले चेला माल खाए. गुरु से पहले चेला माल खाता है क्योंकि उस के जरिये ही माल गुरु तक पहुँचता है. रिश्वतखोरों के दलालों के विषय में भी ऐसा ही कहा जा सकता है.
गुरु से पहले चेला मार खाए. जहाँ तक मार खाने (पिटने) का सवाल है तो वह भी गुरु से पहले चेला ही खाता है क्योंकि वह ज्यादा आसानी से उपलब्ध होता है और गुरु को बचाने की कोशिश भी करता है.
गुरु, बैद अरु जोतसी, देव, मंत्रि औ राज, इन्हें भेंट बिन जो मिले, होए न पूरन काज. गुरु, वैद्य, ज्योतिषी, देवता, मंत्री और राजा, इनसे जो भी बिना भेंट लिए मिलता है उसका कार्य पूर्ण नहीं हो सकता.
गुरू कीजै जान के, पानी पीजै छान के. किसी व्यक्ति के विषय में पूरी छानबीन कर के ही उसे अपना गुरु बनाना चाहिए, और पानी हमेशा छान कर पीना चाहिए.
गुरू गुड़ रह गए चेला चीनी हो गया. चेला गुरु से अधिक काबिल हो जाए तो.
गुरू से कपट मित्र से चोरी, या हो निर्धन या हो कोढ़ी. गुरु से कपट और मित्र से चोरी करने वाला या तो निर्धन हो जाएगा या कोढ़ी. यहाँ कोढ़ से आशय असाध्य बीमारी से है.
गुलगुला भावे, पर गुड़ घी आटा कहाँ से आवे. गुलगुले सब को अच्छे लगते है पर उनको बनाने के लिए सामान हर किसी को उपलब्ध नहीं है. अपनी हैसियत देख कर ही मन ललचाना चाहिए.
गुलाब में कांटे या कांटो में गुलाब. अपना अपना नज़रिया है, हाय गुलाब में कांटे हैं यह कह कर दुखी हो या काँटों जैसी विपरीत परिस्थितियों में भी गुलाब खिलते हैं, यह सोच कर आशान्वित हो.
गुस्सा बहुत, जोर थोड़ा, मार खाने की निशानी. किसी आदमी में ताकत तो है नहीं पर गुस्सा बहुत है तो मार तो खाएगा ही.
गू का कीड़ा गू में ही खुश रहता है. नीच आदमी अपने निकृष्ट परिवेश में ही खुश रहता है.
गू का पूत नौसादर. लोगों की धारणा है कि नौसादर मल से बनाया जाता है. किसी निम्न कुल में कोई सपूत पैदा हुआ हो तो यह कहावत कही जाती है.
गू का भाई पाद और पाद का भाई गू. दो निकृष्ट लोगों के लिए हिकारत भरा कथन.
गू के कीड़े को गुलाब जल में डालो तो मर जाए. निकृष्ट मनोवृत्ति वाले व्यक्ति को अच्छे परिवेश में रखो तो वह बहुत परेशान हो जाता है.
गू खाए तो हाथी का जो पेट तो भरे, बकरी की मींगनी क्या खाए जो दाढ़ भी न भरे. कहावत में शिक्षा दी गई है कि रिश्वत खाओ तो बड़ी खाओ, छोटी छोटी मत खाओ.
गू भी कहे कि गोबर में बदबू. अपने अवगुण न देख कर दूसरों में कमियाँ निकालना.
गू में कौड़ी गिरे तो दांतों से उठा ले. किसी महा कंजूस के लिए. आम तौर पर ऐसा कथन वे दिलजले लोग कहते हैं जो कंजूस के पास कुछ मांगने गये हों और उस ने देने से मना कर दिया हो.
गू में न ढेला डाले, न छींटें पड़ें. किसी नीच से बहस करना ऐसा ही है जैसा गू में ढेला डालना. गू में ढेला डालोगे तो छींटों से तुम्हारे ही कपड़े गंदे होंगे और नीच से बहस करोगे तो तुम्हारी ही बेइज्जती होगी.
गूँगे वाला गुड़ (गूँगे वाला सपना), (गूँगा गुड़ खाये और मन-ही-मन मुस्काये). जो व्यक्ति अपनी प्रसन्नता को व्यक्त न कर पा रहा हो.
गूंगा, अंधा, चुगदढ़िया और काना, कहें कबीर सुनो भई साधो, इनको नहिं पतियाना. गूंगा, अंधा, छोटी दाढ़ी वाला और काना, इनका विश्वास नहीं करना चाहिए. वैसे यह एक निरर्थक कथन है जोकि कबीरदास का कहा हुआ हो ही नहीं सकता.
गूंगी जोरू भली, गूंगा हुक्का न भला. हुक्का जब तक गुड़गुड़ न करे उसे पीने में मज़ा नहीं आता.
गूंगे का कोई दुश्मन नहीं. क्योंकि उस को कुछ भी कह लो वह जबाब नहीं देता.
गूंगे की सैन गूंगा जाने. सैन – इशारों की भाषा. गूंगे की भाषा गूंगा ही समझ सकता है.
गूंगे के बैन, माँ समझे या भैन (बहन). गूंगे की बात उसकी माँ और बहन ही समझ सकती हैं.
गूंगे के सैन को और न समझे कोय, या समझे माई या समझे जोय. गूंगे के इशारों को माँ समझती है या पत्नी.
गूंगे ने सपना देखा, मन ही मन पछताए. गूंगे ने सपना देखा, अब मन में परेशान हो रहा है कि सब को कैसे बताए. अपनी बात किसी को न समझा पाने का दर्द.
गूजर का दहेज़ क्या, बकरी या भेड़. गूजर दहेज़ में क्या देगा, भेड़ बकरी ही तो देगा. (उसका वही धन है).
गूजर किसके असामी, कलाल किसके मीत. गूजर बहुत अच्छे ग्राहक नहीं होते और शराब बेचने वाले किसी के दोस्त नहीं होते.
गूजर से ऊजड़ भली. गूजर के पड़ोस से उजाड़ अच्छा.
गूदड़ में गिंदौड़ा. गिंदौड़ा एक बढ़िया मिठाई का नाम है. कोई बहुत गुणवान व्यक्ति अत्यंत साधारण परिस्थितियों में रह रहा हो तो यह कहावत कहते हैं. (गुदड़ी का लाल).
गूदड़ में लाल नहीं छिपता. प्रतिभाशाली व्यक्ति गरीबी में भी अपनी प्रतिभा की पहचान करा देता है.
गृहस्थ का एक हाथ दुख में ओर एक हाथ सुख में. गृहस्थी में सुख और दुख दोनों बराबरी से लगे रहते हैं.
गृहस्थ के पास कौड़ी न हो तो दो कौड़ी का, साधु के पास कौड़ी हो तो दो कौड़ी का. गृहस्थ के पास पैसा न हो तो उसकी कोई कद्र नहीं है और साधु के पास पैसा हो तो वह साधु ही नहीं कहलाएगा.
गेंद खेल की और धन दोनों एक सुभाय, कर आवत छिन एक में छिन में कर से जाए. खेलने वाली गेंद और धन, इन दोनों का स्वभाव एक सा होता है. ये क्षण में आप के हाथ में आते हैं और क्षण में ही निकल जाते हैं.
गेंवड़े आई बरात, बहू को लगी हगास. गेंवड़ा – गाँव का बाहर का हिस्सा. गाँव के बाहर बरात आ गई है और बहू को शौच जाना है (बात उस समय की है जब शौच के लिए गाँव के बाहर जाना होता था). जरूरी काम के समय अगर कोई आदमी विकट समस्या ले कर बैठ जाए तो. (शिकार के वक्त कुतिया हगासी). हगास – शौच जाने की इच्छा.
गेंवड़े खेती हम करी, कर धोबन से हेत, अपनी करी का से कहें, चरो गधन ने खेत. (बुन्देलखंडी कहावत) गाँव के पास के हिस्से को गेंवड़ा कहते हैं. वहाँ के खेत को गाँव के आवारा पशु चर जाते हैं. ऊपर से धोबन से प्रेम कर लिया तो उस के गधे ने भी खेत चर लिया. अपनी गलतियों से कोई नुकसान उठाए तो यह कहावत कही जाती है.
गेंवड़े खेती, छप्पर सांप, भाई भयकरन, बादी बाप, ये अच्छे नहीं होते. गाँव से लगा खेत, छप्पर में सांप, डराने वाला भाई और मुकदमेबाज बाप ये अच्छे नहीं होते.
गेहूँ के साथ घुन भी पीसा जाता है. जब चक्की में गेहूं पीसा जाता है तो अगर कोई घुन भी गेहुओं के बीच हो तो पिस जाता है. जहां दोषी लोगों को सजा देने में कोई निर्दोष भी लपेटे में आ जाए तो यह कहावत कही जाती है.
गेहूं के साथ बथुए को भी पानी मिलता है. जब गेहूं की खेती की जाती है तो उसके बीच में जगह जगह पर बथुए के पौधे अपने आप निकल आते हैं. जब गेहूं जैसे महत्वपूर्ण पौधे को पानी दिया जाता है तो बथुए जैसे महत्व हीन पौधे को भी पानी मिल जाता है. आप अपने दोस्त के साथ उसकी ससुराल जाएं और वहां दामाद साहब के साथ आपकी भी खातिरदारी हो तो मजाक में यह कहावत कही जा सकती है.
गैब का धन ऐब में जाए ऐब का धन गैब में जाए. गैब – अदृश्य शक्ति. बिना मेहनत के मिला धन गलत आदतों में खर्च होता है और गलत तरीकों से कमाया धन ईश्वर छीन लेता है.
गैर का सिर कद्दू बराबर. दूसरे की जान को कोई जान नहीं समझता.
गों निकली, आँख बदली. गों माने स्वार्थ. स्वार्थ सिद्ध हो जाने पर लोगों की आँख बदल जाती हैं, कृतघ्न मनुष्यों के विषय में ऐसा कहा जाता है.
गोंद पंजीरी और ही खाएं, जच्चा रानी पड़ी कराहें. जच्चा रानी – प्रसूता स्त्री. जिसको प्रसव हुआ है वह तो पड़ी कराह रही है और उसके लिए बनी हरीरा पंजीरी और लोग उड़ा रहे हैं.
गोकुल गाँव को पैड़ों न्यारो. अनोखी रीति.
गोत्र वाली गाली तो कुत्ते को भी बुरी लगे. जाति सूचक गाली सभी को बुरी लगती है (कुत्ते को भी).
गोद का खिलाया गोद में नहीं रहता. छोटा बच्चा हमेशा छोटा नहीं रहता, कभी न कभी बड़ा होता ही है. बड़ा होने के बाद उसका व्यवहार भी बदल जाता है.
गोद में बैठ के आँख में उँगली (गोद में बैठ के दाढ़ी नोचे). अपने आश्रय देने वाले के साथ विश्वासघात करना.
गोद मोल का छोरा, निहाल किसको करे. गोद लिया हुआ या मोल लिया हुआ बेटा किसी को सुख नहीं दे सकता. जब वह बड़ा होता है तो लोग उसे बता देते हैं कि वह गोद लिया हुआ है इसलिए उस के मन में उतना प्रेम नहीं आ सकता.
गोद लड़ायो छोकरो, चढ़ा कचहरी जाट, पीहर लड़ाई पद्मिनी, तीनों बारहबाट. गोद लिया बेटा, कचहरी के चक्कर लगाने वाला जाट और मैके से लड़ कर आई स्त्री इन तीनों का भविष्य अच्छा नहीं होता.
गोद वाले की बात न पूछे, पेट वाले को पुचकारे. वर्तमान पर ध्यान न दे कर केवल भविष्य के विषय म