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अंग लगी मक्खियाँ पीछा न छोड़तीं. जो लोग कोई लाभ पाने के लिए किसी के पीछे ही पड़ जाएं उन के लिए यह कहावत प्रयोग करते हैं. जानवर के घाव पर अगर मक्खियाँ लग जायें तो उसकी जान तक ले लेती हैं.
अंगनवा न टेढ़ बहुरिया टेढ़. आंगन टेढ़ा नहीं है, बहू की चाल ही टेढ़ी है. इस से मिलती जुलती कहावत है – नाच न आवे आंगन टेढ़ा.
अंगिया का ही ओढ़ना, अंगिया का ही बिछौना. अत्यधिक निर्धनता एवं साधनहीनता की स्थिति.
अंगूर खट्टे हैं. जब कोई चीज प्रयास के बाबजूद प्राप्त न हो सके तो उसमे दोष निकालकर उस वस्तु की उपेक्षा कर देना. सन्दर्भ कथा – एक बार एक लोमड़ी अंगूरों के बाग से गुजर रही थी. अंगूरों को देखकर लोमड़ी के मुंह में बार-बार पानी भर आता था. लोमड़ी उछल कर अंगूरों के गुच्छों तक पहुंचने की कोशिश करने लगी. पर अंगूर के गुच्छे उसकी उछाल से कुछ ही दूर रह जाते थे. अंत में लोमड़ी थक हार कर अपने घर की ओर चल दी. पास ही में पेड़ पर बैठे एक कौवे ने पूछा, क्या बात है, अंगूर नहीं खाओगी? तो लोमड़ी तमक कर बोली, अरे भैया ये अंगूर खट्टे हैं. कौआ हंस कर बोला, जो वस्तु प्राप्त नहीं हो सकती उसे खराब बताना ही ठीक है. इसी प्रकार की एक कहावत है – हाथ न पहुंचे, थू कौड़ी.
अंग्रेजी राज, न तन को कपड़ा न पेट को नाज. अंग्रेजों के राज में भारतीयों की दशा बहुत खराब थी यह बताने वाली कहावत.
अंजन न सहें, आँख का जाना सह लें. काजल लगाने का कष्ट सहन नहीं करेंगे, आँख चली जाए वह मंजूर है. छोटे से कष्ट से बचने के लिए बड़ा खतरा मोल लेना.
अंटी तर, दिल चाहे सो कर. अंटी तर होना माने गाँठ में पैसा होना. पास में पैसा हो तो जो चाहे सो करो.
अंटी में न धेला, देखन चली मेला. पहले के लोग धोती या पाजामा पहनते थे जिस में जेब नहीं होती थी. पैसे इत्यादि को एक छोटी सी थैली में रख कर धोती की फेंट में बाँध लेते थे या पजामे में खोंस लेते थे. इसको बोलचाल की भाषा में अंटी कहते थे. धेला एक सिक्का होता था जो कि पैसे से आधी कीमत का होता था. कहावत का अर्थ है – रुपये पैसे पास नहीं हों फिर भी तरह तरह के शौक सूझना.
अंडा चींटी बाहर लावै, घर भागो अब वर्षा आवै. लोक मान्यता है कि चींटी अगर चींटी अगर अपने अंडे एक जगह से दूसरे स्थान पर ले जा रही हो तो वर्षा आने की अत्यधिक संभावना होती है.
अंडा पेट में, बच्चा निकल के उड़ गया. समय से बहुत पहले ही कोई काम करने की कोशिश करने वाले अति उत्साही व्यक्ति का मजाक उड़ाने के लिए.
अंडा सिखावे बच्चे को कि चीं चीं न कर. जब कोई आयु, बुद्धि या पद में छोटा व्यक्ति अपने से बड़े व बुद्धिमान व्यक्ति को कोई अनावश्यक सीख देता है तो यह कहावत कही जाती है.
अंडुवा बैल, जी का जवाल. स्वतंत्र और उच्छृंखल व्यक्ति को सांड के समान बताया गया है जिसे संभालना मुश्किल काम होता है. (अंडुवा – बिना बधियाया हुआ बैल अर्थात सांड. सांड से खेती नहीं कराई जा सकती इस लिए बछड़े के अंडकोष नष्ट कर के उसे बैल बना दिया जाता है जोकि नपुंसक और शांत स्वभाव का होता है).
अंडे सेवे कोई, बच्चे लेवे कोई. जब मेहनत कोई और करे और उसका लाभ कोई दूसरा उठाए तो यह कहावत कही जाती है. कोयल इतनी चालाक होती है कि कौए के घोंसले में अंडे दे आती है. कौआ उन्हें अपने अंडे समझ कर सेता है. अंडे में से बच्चे निकलते हैं तो मालूम होता है कि वे कोयल के बच्चे हैं. सन्दर्भ कथा 2. कौए और कोयल के विषय में एक कहानी कही जाती है. कोयल इतनी चालाक होती है कि खुद घोंसला नहीं बनाती है. जब अंडे देने का समय आता है तो वह कौए के घोंसले में अंडे दे आती है. कौआ बेचारा इतना मूर्ख होता है कि उन्हें अपने अंडे समझ कर सेता है और उन की रक्षा करता है. अंडे में से बच्चे निकलते हैं तो मालूम होता है कि वे कोयल के बच्चे हैं. जब मेहनत कोई और करे और उसका लाभ कोई दूसरा उठाए तो यह कहावत कही जाती है.
अंडे होंगे तो बच्चे बहुतेरे हो जाएंगे. इसका शाब्दिक अर्थ तो स्पष्ट ही है. इस का उदाहरण इस तरह दे सकते हैं- किसी व्यापार में बहुत नुकसान होता है लेकिन व्यापार बंद करने की नौबत नहीं आती. तो सयाने लोग बच्चों से कहते हैं – बेटा कोई बात नहीं! व्यापार बचा रहेगा तो बाद में बहुतेरा लाभ हो जाएगा.
अंत बुरे का बुरा. जो हमेशा सब का बुरा करता है उसका अंत भी बुरा ही होता है.
अंत बुरे का सब बुरा. अंत बढिया तो गुजरा हुआ सब बढिया अंत बुरा तो सब बुरा.
अंत भला तो सब भला. किसी कार्य में कितने भी उतार चढ़ाव या बाधाएं आएं, यदि अंत में कार्य सफलता पूर्वक संपन्न हो जाए तो यह कहावत कही जाती है. इंग्लिश में इस प्रकार कहा जाता है All is well that ends well.
अंत भले का भला. जो सब का भला करता है अंत में उसका भला अवश्य होता है.
अंतड़ी का गोश्त गोश्त नहीं, खुशामदी दोस्त दोस्त नहीं. जिस प्रकार आंत को गोश्त नहीं माना जाता उसी प्रकार खुशामद करने वाले को दोस्त नहीं माना जा सकता.
अंतड़ी में रूप, बकची में छब. अच्छा भोजन करने से रूप निखरता है और क्योंकि भोजन आँतों में पचता है इसलिए कहा गया है कि रूप आँतों में बसता है. छवि को निखारने वाले अच्छे कपड़े और गहने बक्से (बकची) में रखे जाते हैं इसलिए कहा गया कि छवि (सुन्दरता) बकची में बसती है.
अंतर अंगुली चार का झूठ सांच में होय. आँख और कान में चार अंगुल की दूरी होती है. आँख का देखा सच और कान का सुना झूठ. इंग्लिश में कहावत है – The eyes believe themselves, the ears believe others.
अंतर राखे जो मिले, तासों मिले बलाय. जो मन में अंतर रखता हो उस से मिलने की कोई जरूरत नहीं.
अंतरगति औरै कछू, मुख रसना कछु और, दादू करनी और कछु, तिनको नांही ठौर. रसना – जीभ, ठौर – स्थान. जिन के मन में कुछ, जबान पे कुछ और करनी कुछ और है उनको मुक्ति नहीं मिल सकती.
अंदर से काले, बाहर से गोरे. जो लोग अंदर से बेईमान और चरित्रहीन होते हैं और बाहर से बहुत ईमानदार होने का दिखावा करते हैं (सफेदपोश).
अंदर होवे सांच तो कोठी चढ़ के नाच. जिस के मन में सच हो उसे किसी का डर नहीं, वह छत पर चढ़ कर नाच सकता है. (कोठी, कोठा – छत).
अंध कंध चढ़ि पंगु ज्यों, सबै सुधारत काज. पंगु – लंगड़ा. अंधा देख नहीं सकता और लंगड़ा चल नहीं सकता. यदि अंधे के कंधे पर लंगड़ा बैठ जाए तो दोनों एक दूसरे के पूरक हो जाते हैं.
अंधरी गैया, धरम रखवाली. अंधी गाय धर्म की रक्षा करने वाली होती है, अर्थात उसकी सेवा से विशेष पुण्य मिलता है. भाव यह है कि जो अत्यधिक दीन-हीन हो उसकी सेवा से अधिक पुण्य मिलता है..
अंधा आगे ढोल बाजै, ये डमडमी क्या है. अंधे के आगे ढोल बजाओ तो वह कुछ नहीं समझ पाता. इसी प्रकार यदि किसी मूर्ख व्यक्ति के सामने कला का प्रदर्शन करने से कोई लाभ नहीं होता.
अंधा आगे रस्सी बंटे, पीछे बछड़ा खाए. अंधा आदमी बेचारा बैठा बैठा रस्सी बंट रहा है और पीछे से बछड़ा उसे खाता जा रहा है. जब मनुष्य अपने परिश्रम से उपार्जित धन की रक्षा न कर सके और दूसरे उसका उपभोग करें तब कहते हैं. सरकार अंधी हो तो जन हित के कामों का भी यही अंजाम होता है.
अंधा एक बार ही लकड़ी खोता है. अंधे की लकड़ी अगर खो जाए तो उसे इतनी परेशानी होती है कि वह आगे से उसका बहुत ध्यान रखता है. कोई बड़ी गलती एक बार हो जाने पर व्यक्ति आगे के लिए सतर्क हो जाता है.
अंधा और बदमिजाज. अंधा व्यक्ति काफी कुछ दूसरों की सहायता पर निर्भर होता है. यदि वह बदमिजाज होगा तो कोई उस की सहायता नहीं करेगा और वह ज्यादा दुख पाएगा. लाचार व्यक्ति को हमेशा विनम्र होना चाहिए.
अंधा कहे ये जग अंधा. जब किसी व्यक्ति में कोई कमी हो और वह बहस करे कि यह कमी तो सब में है.
अंधा किसकी तरफ उंगली उठाए. अंधा खुद कुछ नहीं देख सकता इसलिए किसी पर आरोप नहीं लगा सकता.
अंधा क्या चाहे दो आँखे. अंधे व्यक्ति की सबसे बड़ी इच्छा होती है की उसे दो आँखें मिल जाएं. व्यक्ति को जिस चीज़ की अत्यधिक आवश्यकता है यदि वही देने के लिए आप उससे पूछें तो यह कहावत कही जाएगी. रूपान्तर – लंगड़ा क्या चाहे, दुई गोड़. गोड़ – पैर.
अंधा क्या जाने बसंत की बहार. वसंत ऋतु में प्रकृति का सौंदर्य अद्भुत होता है, पर जो बेचारा अंधा है वह तो उसका आनंद नहीं ले सकता. उदाहरण के तौर पर श्री कृष्ण की बाल लीलाओं के वर्णन में जो रस की प्राप्ति होती है उसे अधर्मी और विधर्मी लोग कैसे जान सकते हैं.
अंधा खोदे काँदी, मेह गिने न आंधी. अंधा आदमी घास खोदते समय न तो मेह की परवा करता है, न आँधी की. भले बुरे की परवाह किए बिना आँख मूंद कर काम करना.
अंधा गाए बहरा बजाए. जहाँ दो अयोग्य व्यक्ति मिल कर कोई काम करें.
अंधा गुरू बहरा चेला, मागें गुड़ देवे ढेला (मांगे हरड़ दे बहेड़ा). जब दो विपरीत गुण वाले व्यक्ति एक साथ हो जाएँ. न गुरु को चेले में कोई कमी दिखती है, न चेले को गुरु की कोई बात समझ में आती है.
अंधा घोड़ा थोथा चना, जितना खिलाओ उतना घना (अंधा चूहा, थोथे धान). गरीब और अपाहिज व्यक्ति को जो कुछ भी मिल जाए वही उस के लिए बहुत है. (थोथा – घुना हुआ, खोखला), (घना – अधिक मात्रा में)
अंधा घोड़ा बहिर (बहरा) सवार, दे परमेसुर ढूँढ़नहार. घोड़ा अंधा होगा तो कहां का कहां पहुंचेगा, सवार बहरा होगा तो किसी से रास्ता कैसे पूछेगा, दो अयोग्य लोगों की जोड़ी की तो भगवान ही सहायता कर सकता है.
अंधा जाने आँखों की सार. आँखों की कीमत क्या है यह अंधा ही जान सकता है, आँख वाले नहीं. व्यक्ति को जो सुख सुविधाएँ मिली हुई हैं उनकी कीमत वह नहीं समझता.
अंधा जाने, अंधे की बला जाने. माना कि अंधे व्यक्ति को बहुत परेशानियाँ हैं लेकिन मैं भी किस किस के लिए और कहाँ तक परेशान होऊं. किसी की सहायता करते करते जब आप परेशान हो जाते हैं तब ऐसा बोलते हैं.
अंधा तब पतियाए जब दो आँखों देखे. पतियाना – विश्वास करना. अंधा व्यक्ति किसी बात पर तभी पूरी तरह विश्वास कर सकता है जब वह स्वयं उसे देख ले. अर्थ है कि मूर्ख को हर बात का प्रत्यक्ष प्रमाण चाहिए.
अंधा देखे आरसी, कानी काजल देय. अपात्र को कोई वस्तु मिल जाना. अंधे के लिए आरसी (छोटा दर्पण) और कानी के लिए काजल की कोई उपयोगिता नहीं है.
अंधा बगुला कीचड़ खाय. मजबूरी में इंसान को बहुत कुछ सहन करना पड़ता है. अंधा बगुला मछली नहीं पकड़ सकता इसलिए बेचारा कीचड़ खाने पर मजबूर हो जाता है.
अंधा बजाज कपड़ा तौल कर देखे. अंधा बजाज कपड़े को देख नहीं सकता तो हाथ में उठा कर उसके वजन से अंदाज़ लगाता है कि यह कौन सा कपड़ा है.
अंधा बांटे रेवड़ी फिर फिर अपनेहु देय. स्वार्थ में अंधा व्यक्ति जब कुछ भी बांटता है तो अपने को या अपनों को ही देता है. आजकल के राजनीतिज्ञों पर यह कहावत बिलकुल सही बैठती है.
अंधा मुर्गा थोथा धान, जैसा नाई वैसा जजमान. अंधे मुर्गे को खोखले धान ही खाने को मिलेंगे. नाई घटिया होगा तो उसे जजमान भी घटिया मिलेंगे.
अंधा मुल्ला, टूटी मस्जिद. मुल्ला जी अंधे होंगे तो मस्जिद में जो भी टूट फूट होगी उसे दिखाई नहीं देगी. यदि घर का मुखिया अयोग्य और लापरवाह है तो घर में सब ओर अव्यवस्था दिखाई देगी.
अंधा राजा बहिर पतुरिया, नाचे जा सारी रात. बहिर – बहरी, पतुरिया – वैश्या या नर्तकी. भारी अव्यवस्था की स्थिति. राजा अंधा है उसे कुछ दिखता नहीं है और नर्तकी बहरी है वह न संगीत सुन सकती है और न कोई आदेश. लोकतंत्र में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका सभी की कुछ ऐसी ही दशा है.
अंधा शक्की, बहरा बहिश्ती. बहिश्त माने स्वर्ग. बहरे को बहिश्ती कहा गया क्योंकि वह कुछ सुनता ही नहीं है, लिहाजा भलाई बुराई से दूर रहता है. अंधे को कुछ दिखाई नहीं देता इसलिए वह हर आहट पर शक करता है.
अंधा सिपाही कानी घोड़ी, विधि ने खूब मिलाई जोड़ी. दो अयोग्य व्यक्ति मिल कर कोई काम कर रहे हों तो उन का मज़ाक उड़ाने के लिए यह कहा जाता है.
अंधा हाथी अपनी ही फ़ौज को मारे (लेंड़ा हाथी अपनी ही फ़ौज मारे). लेंड़ा – डरपोक. हाथी अंधा होगा या डरपोक होगा तो इधर उधर भाग कर अपनी सेना को ही कुचलेगा.
अंधाधुंध की सायबी, घटाटोप को राज. सायबी – शासन. मूर्ख राजा के राज में कुटिल लोगों की बन आती है.
अंधाधुंध के राज में गधे पंजीरी खाएँ. जिस देश में बेईमानी और अराजकता हो वहाँ अयोग्य व्यक्तिओं की चांदी हो जाती है.
अंधाधुंध मनोहरा गाए. बिना किसी की परवाह किए कोई बेतुका काम करते जाना.
अंधियारे में परछाईं भी साथ छोड़ देती है. बुरे दिनों में निकट से निकट संबंधी और मित्र भी साथ नहीं देते.
अंधी आँख में काजल सोहे, लंगड़े पाँव में जूता. अपात्र को सुविधाएं मिलना.
अंधी घोड़ी खोखला चना, खावे थोड़ा बिखेरे घना. घोड़ी अंधी है इसलिए खा कम रही है, बिखेर ज्यादा रही है. (मूर्ख या अहंकारी व्यक्ति वस्तु का उपयोग कम और बर्बादी अधिक करता है).
अंधी देवियाँ, लूले पुजारी. अयोग्य गुरु या शासक और उसके उतने ही नालायक चमचे. आजकल के परिप्रेक्ष्य में कुछ राजनैतिक दलों के विषय में ऐसा कहा जा सकता है.
अंधी नाइन, आइने की तलाश. कोई आदमी ऐसी चीज़ मांग रहा हो जिस का उस के लिए कोई उपयोग न हो.
अंधी पीसे कुत्ते खाएँ. चाहे घर की व्यवस्था हो या व्यापार हो, यदि आप आँखें बंद किए रहंगे तो चाटुकार लोग, धोखेबाज लोग और नौकर चाकर सब खा जाएंगे.
अंधी पीसे पीसना, कूकुर घुस घुस खात, जैसे मूरख जनों का, धन अहमक ले जात. ऊपर वाली कहावत की भांति.
अंधी भैंस वरूँ में चरे. वरूँ – जहां घास कम हो. मूर्ख या अभागे आदमी को अच्छे अवसरों की पहचान नहीं होती इसलिए वह उनसे वंचित रहता है.
अंधी मां निज पूतों का मुँह कभी न देखे. किसी अभागे व्यक्ति के लिए कही जाने वाली कहावत.
अंधे अंधा ठेलिया दोनों कूप पड़ंत (अंधे को अंधा राह दिखाए तो दोनों कुँए में गिरते हैं). अर्थ स्पष्ट है. कम से कम एक तो आँख वाला होना चाहिए.
अंधे का हाथ कंधे पे. अंधे को हमेशा किसी का सहारा लेना पड़ता है.
अंधे की गुलेल कहीं भी लगे. अंधा गुलेल चलाएगा तो पत्थर किसी को भी लग सकता है. मूर्ख और अहंकारी अक्ल के अंधे व्यक्ति के हाथ में ताकत आ जाए तो वह किसी को भी कुछ भी नुकसान पहुँचा सकता है.
अंधे की जोरू का राम रखवाला. अत्यधिक दीन हीन व्यक्ति का ईश्वर ही सहारा होता है.
अंधे की दोस्ती, जी का जंजाल. अंधे से दोस्ती करो तो हर समय उस की सहायता करनी होती है. लाचार व्यक्ति की सहायता करने में बहुत मुसीबतें हैं.
अंधे की पकड़ और बहरे को बटको, राम छुड़ावे तो छुटे नहीं तो सर ही पटको. बटका – दांतों की पकड़. अंधा आदमी बहुत कस के पकड़ता है और बहरा आदमी बहुत जोर से काटता है.
अंधे की बीबी, देवर रखवाला. 1.अंधे की पत्नी की रखवाली अगर किसी भी पर पुरुष को सौंप दी जाएगी (चाहे वह देवर ही क्यों न हो) तो खतरा हो सकता है. 2. अंधे की पत्नी की रखवाले अंधे के छोटे भाई बन जाते हैं.
अंधे की मक्खी राम उड़ावे. निर्बल का सहारा भगवान.
अंधे की लुगाई, जहाँ चाहे रमाई. अंधे की पत्नी यदि कोई गलत कार्य करे तो अंधा उसे रोक नहीं सकता. यहाँ अंधे से अर्थ केवल आँख के अंधे से ही नहीं, अक्ल के अंधे से भी है.
अंधे कुत्ते को खोलन ही खीर. खोलन – मूर्ति पर चढ़ाया जाने वाला दूध मिला जल. मजबूर आदमी को जो मिल जाए उसी में संतोष करना पड़ता है.
अंधे के आगे दीपक. अंधे को दीपक दिखाना या मूर्ख को ज्ञान देने का प्रयास करना बराबर है.
अंधे के आगे रोवे, अपने नैना खोवे. यदि कोई व्यक्ति बहुत परेशानी में है और किसी के आगे रो रहा है तो उसको देख कर दूसरे को दया आ जाती है. लेकिन यदि आप किसी अंधे के सामने रोएंगे तो उसे कुछ दिखेगा ही नहीं. आप रो रो कर अपनी ही आँखें खराब करेंगे. कहावत के द्वारा यह समझाया गया है कि ऐसे आदमी के सामने फरियाद करने से कोई फायदा नहीं जो अक्ल का अंधा हो या अहंकार में अंधा हो.
अंधे के लिए हीरा कंकर एक बराबर. हीरे की चमक को आँखों से ही देखा जा सकता है, टटोल कर नहीं. कहावत का अर्थ है कि अक्ल के अंधे लोग उत्तम और निम्न प्रकार के मनुष्यों और वस्तुओं में भेद नहीं कर सकते.
अंधे के हाथ बटेर लगी. अंधा व्यक्ति लाख कोशिश करे बटेर जैसे चंचल पक्षी को नहीं पकड़ सकता. अगर किसी अयोग्य व्यक्ति को बैठे बिठाए, बिना प्रयास करे कोई बड़ी चीज़ मिल जाए तो ऐसा कहते हैं.
अंधे के हाथ में दरपन सोहे. किसी अपात्र के हाथ में कोई नायाब वस्तु होने पर व्यंग्य.
अंधे के हाथ से लकड़ी मरने पर ही छूटती है. बहुत आवश्यक वस्तु को जीवन भर साथ रखना व्यक्ति की मजबूरी है, जैसे अंधे के लिए लकड़ी, लंगड़े के लिए बैसाखी, दृष्टि बाधित के लिए चश्मा इत्यादि. आजकल के युग में दवाओं को भी इस श्रेणी में रख सकते हैं.
अंधे के हिसाब में दिन रात बराबर. शाब्दिक अर्थ स्पष्ट है. अंधे को क्योंकि दिन में भी नहीं दिखता इसलिए उसके लिए दिन और रात बराबर हैं. कोई मूर्ख व्यक्ति किन्हीं दो बिलकुल अलग अलग बातों में अंतर न समझ पा रहा हो तब भी मज़ाक में ऐसा कहा जाता है.
अंधे को अँधेरे में बहुत दूर की सूझी. कोई मूर्ख आदमी मूर्खतापूर्ण योजना बना रहा हो तो उसका मज़ाक उड़ाने के लिए ऐसा कहा जाता है.
अंधे को अंधा मिला, कौन दिखावे राह. अंधे को अंधा रास्ता नहीं दिखा सकता. अज्ञानी मनुष्य को कोई ज्ञानवान ही रास्ता दिखा सकता है.
अंधे को दीखे हजारीबाग. एक व्यक्ति हजारीबाग घूमने गया. संयोगवश वहां से लौट कर उसकी आँखों की रौशनी चली गई. अब उसके सामने किसी भी शहर की बात करो वह हजारीबाग का वर्णन करने लगता था. अपने सीमित ज्ञान के आधार पर कोई व्यक्ति हर बात में बोलने का प्रयास करे तो यह कहावत कही जाती है
अंधे को भागने की क्यों पड़ी. जो काम आप बिलकुल ही नहीं कर सकते उसे क्यों करना चाहते हैं.
अंधे को सूझे कंधेरे का घर. कंधेरा – जिस के कंधे पर हाथ रख कर चला जाए. अंधे को किसी के कंधे पर हाथ रख कर चलना पड़ता है. वह बेचारा अंधा होते हुए भी उस का घर ढूँढ़ लेता है. जिस से हमें सहारा मिलता है उसे हम कैसे भी खोज लेते हैं.
अंधे ने चोर पकड़ा, दौड़ियो मियां लंगड़े. असंभव और हास्यास्पद बात.
अंधे पूत से निस्संतान भला. आप का कोई ऐसा निकट सम्बन्धी हो जिस से कोई लाभ न हो केवल हानि ही हो, तो उस का न होना अच्छा.
अंधे बाबा राम राम, के आज तुम्हारे यहाँ ही जीमेंगे. किसी असहाय व्यक्ति से जरा सी भी सहानुभूति दिखाओ तो वह गले ही पड़ जाता है.
अंधे मामा से काना मामा अच्छा. कुछ नहीं से कुछ अच्छा. रूपान्तर – नहीं मामा से काना मामा अच्छा.
अंधे रसिया, आइने पे मरें. किसी व्यक्ति द्वारा ऐसी वस्तु की मांग करना जो उसके किसी उपयोग की न हों.
अंधे वाली सीध. किसी ने टेढ़ा मेढ़ा कुछ बनाया हो उस का मजाक उड़ाने के लिए.
अंधे ससुरे से घूँघट क्या. जब ससुर बहू को देख ही नहीं सकता तो बहू को घूँघट की क्या आवश्यकता.
अंधे से रास्ता क्या पूछना. जिसे स्वयं नहीं दिखता वह किसी को रास्ता क्या बताएगा. जो स्वयं मूर्ख होगा वह किसी को क्या ज्ञान देगा.
अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा. इस कहावत का प्रयोग किसी देश व समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, अन्याय और अराजकता को दर्शाने के लिए किया जाता है. संदर्भ कथा 4. एक बार एक सन्यासी अपने चेले के साथ घूमते हुए अंधेर नगरी नाम के एक ऐसे शहर में पहुंचे जहां की शासन व्यवस्था बड़ी अजीब थी. वहां पर मामूली सब्जियां भी एक टके में एक सेर मिल रही थीं और खाजा नाम की खोए से बनी एक बढ़िया मिठाई भी. यह देख कर चेला बहुत खुश हुआ और गुरु जी से बोला, गुरु जी यह तो बहुत अच्छी जगह है हम लोगों को यही रहना चाहिए. गुरुजी ने कहा वत्स, यह बहुत खतरनाक जगह है. यहां रहना खतरे से खाली नहीं है. लेकिन चेला नहीं माना और वहीं रुकने पर अड़ गया. गुरुजी ने कहा, ठीक है तुम रुको मैं जाता हूं. कभी किसी संकट में पड़ो तो मुझे याद करना.
चेला खुशी-खुशी वहां रहने लगा और टके सेर मिठाईयां खा- खा कर खूब मोटा हो गया. एक बार उस राज्य में ककड़ी की चोरी के अपराध में एक चोर पकड़ा गया. राजा ने उसे फांसी की सजा सुनाई और राज्य के लोगों को हुक्म दिया गया की फांसी वाले दिन सभी को वहां उपस्थित रहना है. जल्लाद जब चोर को फांसी पर चढ़ाने चला तो देखता क्या है कि चोर की गर्दन पतली है और फांसी का फंदा मोटा. उसने राजा से पूछा, हुजूर अब क्या करूं? राजा बोला कोई बात नहीं. भीड़ में से छांट लो, जिसकी गर्दन इस फंदे में फिट आ जाए उसे फांसी पर चढ़ा दो (अंधेर नगरी जो ठहरी). संयोग से चेले की गर्दन फंदे में बिल्कुल फिट आ गई तो उसे ही फांसी पर चढ़ाने की तैयारी होने लगी.
अब चेले ने घबरा कर गुरु जी को याद किया. गुरुजी सिद्ध पुरुष थे. उन्होंने जान लिया कि चेला संकट में है और फौरन वहां आ गए. वहां आकर उन्होंने चेले के कान में कुछ कहा. उसके बाद गुरु और चेला आपस में झगड़ने लगे कि फांसी पर मैं चढूँगा, नहीं मैं चढूँगा. मूर्ख राजा को इस बात पर बड़ा कौतूहल हुआ कि ऐसी क्या बात है जो दोनों ही फांसी पर चढ़ने पर आमादा हैं. उसने गुरुजी से पूछा तो गुरु जी ने बताया, महाराज इस समय ऐसा मुहूर्त है कि जो फांसी पर चढ़ेगा वह सीधा स्वर्ग जाएगा और स्वर्ग का राजा बनाया जाएगा. मूर्ख राजा तुरंत अपने सिंहासन से कूदा और जल्लाद से बोला, मुझे फौरन फांसी पर चढ़ा मैं स्वर्ग का राजा बनूंगा. इस तरह चेले की जान बची तो उसने कसम खाई कि अब कभी ऐसी अंधेर नगरी में नहीं रहेगा.
अंधेरी रात और साथ में रंडुआ. किसी भी स्त्री के लिए खतरनाक स्थिति. रंडुआ – अविवाहित या विधुर पुरुष. इस कहावत को इस प्रकार से भी कहा गया है – अंधेरी रात, रंडुए का साथ और जंगल की राह. किसी भी स्त्री के लिए तिहरी कठिन स्थिति. समाज में रंडुए पुरुष को एक स्त्री के प्रति कमजोर चरित्र का माना जाता है.
अंधेरी रात में मूंग काली. अंधेरे में हरी मूंग भी काली दिखाई देती है. अज्ञान के अंधेरे में भी मनुष्य को सत्य का भान नहीं हो पाता.
अंधेरी रैन में रस्सी भी सांप. अँधेरे में व्यक्ति डरने लगता है. व्यक्ति अगर अज्ञान रूपी अन्धकार से घिरा हो तब भी वह छोटी छोटी सांसारिक विपदाओं से और काल्पनिक चीजों जैसे भूत प्रेत इत्यादि से डरने लगता है.
अंधेरे घर में धींगर नाचें. 1. जहाँ न्याय व्यवस्था के अभाव में दबंग लोग मनमानी करें, (धींगर – लम्बा चौड़ा आदमी, भूत) 2. अवैज्ञानिक सोच और अज्ञान के अंधकार में तरह तरह के डर पैदा होते हैं.
अंधेरे घर में सांप ही सांप. इसका अर्थ भी ऊपर की दोनों कहावतों के समान ही है.
अंधेरे में भी हाथ का कौर कान में नहीं जाता. अंधेरे में भी ग्रास मुंह में ही जाता है. अपने स्वार्थ की बात हर परिस्थिति में ठीक से समझ में आती है.
अंधों की दुनिया में आइना न बेच. शाब्दिक अर्थ तो साफ़ ही है. यहाँ अंधे से अर्थ मूर्ख और अहंकारी लोगों से है. आइने में अपनी वास्तविक शक्ल दिखाई देती है जिसे मूर्ख और अहंकारी लोग देखना नहीं चाहते. यहाँ आइने से मतलब आत्म चिंतन से भी है जोकि अहंकारी लोग बिलकुल पसंद नहीं करते.
अंधों द्वारा हाथी का वर्णन. मूर्खो द्वारा किसी महान चीज़ को तुच्छ बताया जाना. देखिए सन्दर्भ कथा 3.
अंधों ने गांव लूटा, दौड़ियो बे लंगड़े. कोई मूर्खता पूर्ण अतिश्योक्ति कर रहा हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.
अंधों में काना राजा. जहाँ सभी लोग मूर्ख हों वहाँ थोड़ी सी अक्ल रखने वाले व्यक्ति की पूछ हो जाती है.
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अकड़ी खेती, तड़की गाय तब जानो जब मुँह में जाय. अकड़ी – जिस खेत में बालियाँ न हों अथवा सूख रही हों, तड़की – जो गाय बिगड़ैल हो, दूध ऊपर चढ़ा लेती हो. जिस खेत में बालियाँ एकदम मरी-मरी हों तथा गाय बिगड़ैल स्वभाव की हो उस खेती का अनाज एवं ऐसी गाय का दूध जब मुँह में जाए तभी मिला मानना चाहिए.
अकड़ी मकड़ी दूधमदार, नज़र उतर गई पल्ले पार. बच्चे की नजर उतारते समय महिलाएं ऐसा बोलती हैं.
अकरकर मकरकर, खीर में शकर कर, जितने में कुल्ला कर बैठूं, दक्षिणा की फिकर कर. यह कहावत उन ब्राह्मणों के लिए है जो उलटे सीधे मन्त्र बोलकर जल्दी जल्दी पूजा कराते हैं, और जिनका सारा ध्यान खाने पीने और दक्षिणा पर होता है.
अकल आसरे कमाई. बुद्धि के बल से ही कमाई की जा सकती है.
अकल और हेकड़ी एक साथ नहीं रह सकतीं. अक्ल और अकड़ एक साथ नहीं देखीं जातीं. अक्ल मतलब समझदारी. जो आदमी समझदार होगा वह हेकड़ी कभी नहीं दिखाएगा, हमेशा विनम्र ही होगा.
अकल का अंधा गांठ का पूरा. जिसके पास पैसा काफी हो पर समझदारी न हो. ऐसे आदमी को बेबकूफ बना कर उससे पैसा ऐंठना आसान होता है.
अकल का घर बड़ी दूर है. अक्ल बड़ी मुश्किल से आती है इसलिए यह कहावत बनाई गई है.
अकल की कोताही और सब कुछ बहुत. केवल अक्ल की कमी है, बाकी सब ठीक है.
अकल की बदहजमी. जो आदमी बहुत अकलमंदी दिखने की कोशिश में अपने ही जाल में फंस जाए उस का मजाक उड़ाने के लिए यह कहावत कही जाती है. रूपान्तर – अक्ल को अजीरन (अजीर्ण).
अकल के बोझ से मरा. जो व्यक्ति अति बुद्धिमत्ता में कोई मूर्खतापूर्ण कार्य कर दे.
अकल के लिए टके लगते हैं. अकल सेंत में नहीं मिलती. शिक्षा और अनुभव से अक्ल आती है. दोनों ही चीजों में पैसे खर्च होता है. रूपान्तर – अक्कल के पाँच टका लगत.
अकल तो अपनी ही काम आती है. आप की सहायता करने के लिए कितने भी लोग उपलब्ध हों जीवन में विशेष अवसरों पर अपनी बुद्धि ही काम आती है. रूपान्तर – अक्ल अपनी ही आड़े आवे. सन्दर्भ कथा – एक दिन एक तालाब में रहने वाला मगरमच्छ अच्छे भोजन की तलाश में निकला तो उसे एक फलदार जामुन का पेड़ दिखाई दिया. उसने पेड़ पर बैठे एक बंदर से कुछ जामुन तोड़ कर देने का आग्रह किया. बंदर ने मगर को खूब सारे जामुन खिलाए और दोनों के बीच दोस्ती हो गई. अब मगरमच्छ रोज जामुन खाने उसी पेड़ के नीचे आने लगा. एक दिन मगर ने अपनी पत्नी को जामुन ले जा कर खिलाए और बंदर और अपनी दोस्ती की कहानी सुनाई. मगरमच्छनी एक ही धूर्त थी. वह मगर से जिद कर बैठी कि जो बंदर इतने मीठे जामुन खाता है उसका जिगर कितना मीठा होगा. मेरे लिए बंदर का जिगर लेकर आओ. मगरमच्छ के लाख मना करने के बावजूद भी वह नहीं मानी.
हार कर मगरमच्छ बंदर के पास गया और बंदर से बोला कि तुम्हारी भाभी तुमसे मिलना चाहती है. तुम मेरी पीठ पर बैठ जाना और मैं तुम्हें उस के पास ले चलूँगा. जब दोनों बीच तालाब में पहुँच गए तो मगरमच्छ ने बंदर को जिगर वाली बात बताई. बंदर को मगरमच्छ की बात सुनकर बहुत ठेस पहुँची, लेकिन उसने चालाकी से काम लेते हुए कहा कि मित्र यह बात तुम्हें पहले बतानी चाहिए थी. समस्या यह है कि हम बंदर लोग अपना जिगर पेड़ की कोटर में रखते हैं. तुम मुझे जल्दी से उस पेड़ के पास ले चलो ताकि मैं अपना जिगर ला सकूं. बंदर की बातों में आकर मगरमच्छ उसे वापस ले गया और जैसे ही दोनों पेड़ के पास पहुँचे बंदर झट से पेड़ पर चढ़ गया और बोला मूर्ख क्या जिगर के बगैर कोई जीवित रहेगा.
अकल तो आई पर खसम के मरने के बाद. काम पूरा बिगड़ने के बाद अक्ल आई.
अकल दुनिया में डेढ़ ही है, एक आप में और आधी में सारी दुनिया. (आप से अर्थ अपने से है). जो आदमी अपने को बहुत अक्लमंद और दुनिया को तुच्छ समझता है उस पर व्यंग्य.
अकल न क्यारी ऊपजे, प्रेम (हेत) न हाट बिकाय. अक्ल खेत में नहीं उगती और प्रेम बाजार में नहीं बिकता.
अकल न सहूर, गौने जावै जरूर. जब किसी कन्या में ससुराल जाने लायक आवश्यक समझदारी न हो तो.
अकल बड़ी कि बहस. तर्क कुतर्क करने की बजाए अक्ल से काम लेना बेहतर है.
अकल बड़ी कि भाग्य. सच यह है कि दोनों का ही महत्व है.
अकल बड़ी के लाठी. कभी लाठी के आगे बुद्धि लाचार हो जाती है और कभी बुद्धि के आगे लाठी.
अकल बड़ी या नकल. नकल कर के कोई कार्य सिद्ध नहीं किया जा सकता. बुद्धि से ही काम बनते हैं.
अकल बड़ी या भैंस. कोई मूर्ख आदमी बेबकूफी की बात कर रहा हो और अपने को बहुत अक्लमंद समझ रहा हो तो उसका मज़ाक उड़ाने के लिए इस कहावत को बोलते हैं. कुछ लोग बोलते हैं ‘अक्ल बड़ी या बहस.’ कुछ अन्य लोग बोलते हैं – अक्ल बड़ी या वयस (आयु). अर्थात आयु उतनी महत्वपूर्ण नहीं है जितनी बुद्धि.
अकल बिन पूत लठेंगुर सौं, लछन बिन बिटिया डेंगुर सी (पूत बिना बहू डेंगुर सी). बुद्धि के बिना पुत्र बेकार है और सुलक्षणों के बिना पुत्री. लठेन्गुर – लकड़ी का लट्ठा, डेंगुर – पशुओं के गले में बंधा लकड़ी का टुकड़ा.
अकल मारी जाट की, रांघड़ राख़या हाली, वो उस को काम कहे, वो उस को दे गाली. (हरयाणवी कहावत) रांघड़ मुस्लिम राजपूतों की एक जाति है जो बहुत असभ्य मानी जाती है. किसी जाट ने रांघड़ को नौकरी पर रख लिया. जाट उससे किसी काम के लिए कहता था तो वह बदले में गाली देता था.
अकल से ही खुदा पहचाना जाए. ईश्वर किसी को दिखता नहीं है, बुद्धि के द्वारा ही महसूस किया जाता है.
अकल हाट बिके तो मूरख कौन रहे. अर्थ स्पष्ट है.
अकलमंद को इशारा ही काफी है. बुद्धिमान व्यक्ति हलके से इशारे से ही बात समझ लेता है. इस कहावत को इस प्रकार से भी कहा गया है – अकलमंद को इशारा ही काफी, मूर्ख को मुक्का भी कम.
अकलमन्द की दूर बला. जो बुद्धिमान होता है वह मुसीबतों से दूर रहता है.
अकलमन्द को इशारा, अहमक को फटकारा. अक्लमंद इशारे में ही समझ लेता है जबकि मूर्ख व्यक्ति को डांट कर समझाना पड़ता है. इंग्लिश में इसे इस तरह कहा गया है – A nod to the wise, rod to the foolish.
अकाल पड़े तो पीहर और ससुराल में साथ ही पड़ता है. अगर केवल ससुराल में अकाल पड़े तो स्त्री मायके में जा कर रह सकती है, लेकिन आम तौर पर अकाल दोनों जगह एक साथ पड़ता है, बेचारी कहाँ गुजारा करे. कहावत का अर्थ है कि मुसीबतें व्यक्ति को सब ओर से घेरती हैं. आजकल के लोगों को यह अंदाज़ नहीं होगा कि अकाल कितनी बड़ी आपदा होती थी. इंग्लिश में कहावत है – Misfortunes never come alone.
अकुलाए खेती, सुस्ताए बनिज. खेती में जल्दबाजी से काम करना चाहिए और व्यापार में धैर्यपूर्वक.
अकुलिन ब्याहे कुल उपहास. नीचे कुल में विवाह करने पर अपने कुल का उपहास होता है.
अकेला खाय सो मट्टी, बाँट खाय सो गुड़. बाँट कर खाने से ही खाने में स्वाद आता है.
अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता. भाड़ एक बड़ा सा तंदूर जैसा होता है जिस में चने मक्का इत्यादि भूने जाते हैं. कहावत का शाब्दिक अर्थ यह है कि एक चने के फटने से भाड़ नहीं फूट सकता. इसको इस प्रकार से प्रयोग करते हैं कि एक आदमी अकेला ही कोई बहुत बड़ा काम नहीं कर सकता.
अकेला चले न बाट, झाड़ बैठे खाट. इस कहावत में दो सीख दी गई हैं – कहीं लम्बे रास्ते पर अकेले नहीं जाना चाहिए (अचानक कोई परेशानी आ जाए तो एक से दो भले) और खाट को हमेशा झाड़ कर ही बैठना चाहिए (खाट में कोई कीड़ा मकोड़ा, बिच्छू सांप इत्यादि हो सकता है).
अकेला पूत कमाई करे, घर करे या कचहरी करे. जहाँ एक आदमी से बहुत सारी जिम्मेदारियां निभाने की अपेक्षा की जा रही हो.
अकेला पूत, मुँह में मूत (चूल्हे में मूत). अकेला बच्चा अधिक लाड़ प्यार के कारण बिगड़ जाता है.
अकेला हँसता भला न रोता भला. इकलखोरे लोगों को सीख देने के लिए यह कहावत कही गई है.
अकेला हसन, रोवे कि कबर खोदे. बेचारे हसन के किसी प्रियजन की मृत्यु हो गई है. वह अकेला रोए या कब्र खोदे. किसी व्यक्ति पर बहुत दुख और जिम्मेदारी एक साथ आ पड़े तो.
अकेली कुतिया भौंके या रखवाली करे. एक व्यक्ति से कितने काम कराए जा सकते हैं.
अकेली दुकान वाला बनिया, मनमाने भाव सौदा बेचे. यदि किसी गाँव या शहर में एक ही व्यापारी हो तो उस का एकाधिकार हो जाता है और वह मनमानी करता है.
अकेली लकड़ी कहाँ तक जले. कोई व्यक्ति लम्बे समय तक किसी कठिन काम को अकेले ही नहीं कर सकता.
अकेली लकड़ी न जले, न बरे, न बंधे. अकेली लकड़ी न तो ठीक से जलती है, न सुलगती है और न बंधती है. अनेक लोग मिल कर कार्य करें तो हमेशा अच्छा होता है.
अकेले की कहानी, गुड़ से मीठी. 1. जो लोग अलग अकेले रहना पसंद करते हैं उनके लिए. 2. हर व्यक्ति को अपनी खुद की कहानी सब से अच्छी लगती है.
अकेले बृहस्पति झूठे पड़ें. बृहस्पति जैसे सर्वज्ञानी भी अकेले पड़ जाएँ तो बहुत सारे दुष्ट लोग मिल कर उन्हें झूठा साबित कर देते हैं.
अकेले से झमेला भला. कई लोग साथ मिल कर रहें या कोई काम करें तो थोड़ा मतभेद या झगड़ा हो सकता है लेकिन ये अकेले रहने से अच्छा है.
अकेले से दुकेला भला. खाली समय बिताना हो या कोई काम करना हो, एक से दो आदमी हमेशा बेहतर होते हैं.
अक्कल बिना ऊँट उभाणे फिरै. उभाणे – नंगे पैर. जानवर नंगे पैर क्यों घूमते है, क्योंकि वे मनुष्य के समान समझदार नहीं हैं. जो बच्चे नंगे पैर घूमते हैं उन्हें उलाहना देने के लिए बड़े लोग ऐसे बोलते हैं.
अक्ल आप ही ऊपजे, दिए न आवे सीख. समझदारी अपने आप से ही आती है सिखाने से नहीं आ सकती.
अक्ल उधार नहीं मिलती. अपनी अक्ल से ही काम लेना होता है.
अक्ल उम्र की मोहताज नहीं होती. छोटी आयु का व्यक्ति अक्लमंद हो सकता है और बड़ी आयु वाला बेबकूफ.
अक्ल का नहीं दाना, खुद को समझे स्याना. किसी ऐसे व्यक्ति का मजाक उड़ाने के लिए जो मूर्ख हो और अपने को बहुत अक्लमंद समझता हो.
अक्ल का बंटवारा नहीं हो सकता. भाइयो में सम्पत्ति का बंटवारा हो सकता है पर बुद्धि का नहीं.
अक्ल किसी की बपौती नहीं होती. सम्पत्ति की तरह अक्ल विरासत में नही मिलती. बुद्धिमान पिता का बेटा महामूर्ख भी हो सकता है.
अक्ल की पूछ है आदमी की नहीं. अर्थ स्पष्ट है.
अक्ल के पीछे लट्ठ लिए फिरते हैं. कोई बार बार मूर्खता पूर्ण कार्य करता हो तब.
अक्ल के पोपट ज्ञान कहाँ पाए, पानी में भिगो के काहे न खाए. सन्दर्भ कथा – एक कछुए को किसी सियार ने पकड़ लिया. कछुए की कठोर खाल के कारण वह उसे खा नहीं पा रहा था. पेड़ पर बैठे कछुए के मित्र कौए ने कहा कि हे मूर्ख तू इसे पानी में भिगो कर क्यों नहीं खाता. सियार ने जैसे ही उसे तालाब के पानी में डाला. कछुआ तैर कर भाग निकला.
अक्लखुरा जग से बुरा. बुद्धिहीन व्यक्ति संसार में सब से गया बीता प्राणी है.
अक्लमंद के कान बड़े और जुबान छोटी. समझदार आदमी सबकी बात सुनता अधिक है और बोलता कम है.
अखाड़े का लतखौर पहलवान बनता है. अखाड़े में लात खा खा कर ही आदमी पहलवान बनता है. मनुष्य अपनी गलतियों से सीख कर ही कुछ बनता है.
अगड़म बगड़म काठ कठम्बर. फ़ालतू चीजों का ढेर.
अगर कुत्ता आप पर भौंके, तो आप उस पर न भौंको. कोई अपशब्द कहे तो बदले में अपशब्द न कह कर चुप रहना चाहिए. इंग्लिश में कहावत है – If a donkey brays at you, don’t bray at him.
अगर चावल न हो तो भात पका दो. मूर्खता पूर्ण बात.
अगर यह पेट न होता, तो काहू से भेंट न होता. पेट की खातिर ही आदमी सब से मिलता जुलता है.
अगला करे पिछले पर आवे. पहले वाला गलती कर गया, बाद वाला उसे भुगत रहा है.
अगला पाँव उठाइये, देख धरन का ठौर. पैर रखने का स्थान पहले से देख कर अगला पाँव उठाना चाहिए. संभावनाओं पर विचार कर के ही कोई कार्य करना चाहिए.
अगला पैर टिके तो पिछला पैर उठाओ. किसी काम का एक चरण पूरा हो जाए तभी दूसरा शुरू करो.
अगली खेती आगे आगे, पिछली खेती भागे भागे. समय से की गई खेती हमेशा लाभ देती है. समय निकल जाने पर बोया बीज भाग्य पर निर्भर होता है. भागे – भाग्य से.
अगली हो गई पिछली और पिछली हो गई प्रधान. जब बाद में आने वाली पत्नी या नौकर पहले वाले को हटा कर महत्त्वपूर्ण बन जाए तो.
अगले पानी पिछले कीच. जो पहले पानी भरने आता है उसे पानी मिलता है, बाद में आने वाले को कीचड़ मिलती है. तात्पर्य है कि यदि कुछ पाना चाहते हो तो आलस्य न कर के पहले आओ.
अगसर खेती अगसर मार, कहें घाघ तें कबहुँ न हार. जो पहले खेती करता है और जो लड़ाई में आगे बढ़ कर मारता है वह कभी नहीं हारता. (अगसर – आगे बढ़ कर. संभवत: संस्कृत शब्द अग्रसर से बना है)
अगहन आए, राड़ मोटाए. राड़ – छोटी जाति के लोग. अगहन में फसल कटती है इस लिए सब को भरपूर भोजन मिलता है. इस कारण से गरीब और मजदूर भी स्वस्थ दिखाई देते हैं.
अगहन की अमावस, चैत की आठ, जहाँ जहाँ मन चाहे वहाँ वहाँ काट. अगहन की अमावस्या से धान की और चैत्र कृष्णपक्ष अष्टमी से रबी की फसल कटना आरम्भ होती हैं.
अगहन दूना, पूस सवाई, माघ मास घरहूँ से जाई. अगहन में वर्षा हो तो दूनी फसल होती है, पूस में होने से सवाई और माघ के महीने में हो तो बीज भी नहीं लौटता. वैसे इस में बहुत मतभिन्नता है.
अगहन में मुसवौ के सात जोरू. (भोजपुरी कहावत) मुसवा – मूसा, चूहा. अगहन में धान कटने के कारण इतना अनाज होता है कि चूहा भी सात बीबियाँ रख सकता है.
अगहन राजपुत, अहीर अषाढ़, भादों भैंसा, चैत चमार. अगहन में अनाज आने से राजपूत लगान या चौथ वसूलते थे, अषाढ़ में दूध अधिक होने से अहीर और भादों में घास अधिक होने से भैंसा खुश रहता है, चैत्र में चमड़े को सुखाने व पकाने में मदद मिलती है इसलिए चर्मकार खुश रहता है.
अगाड़ी तुम्हारी, पिछाड़ी हमारी. 1. भैंस का बंटवारा. भैंस के अगले हिस्से में मुँह है जिससे वह खाती है और पिछले हिस्से से दूध और गोबर देती है. स्वार्थी लोग हर चीज़ में अपना फायदा ढूँढ़ते हैं. 2. कभी कभी लोग लड़ाई में धोंस भी देते हैं कि आगे तुम करो फिर पीछे हम करेंगे. सन्दर्भ कथा – आगे का हिस्सा तुम्हारा, पीछे का हमारा. दो भाइयों ने साझे में भैंस खरीदी. उनमें से एक बड़ा होशियार था. उसने दूसरे से कहा – देखो भाई, हम लोग इस भैंस का आधा आधा साझा कर लें तो हम लोगों में फिर कभी किसी बात का झगड़ा नहीं होगा. भैंस का आगे का हिस्सा तुम ले लो और पीछे का मुझे दे दो. दूसरे ने इस बँटवारे को स्वीकार कर लिया. उसके अनुसार वह तो भैंस को चारा दाना खिलाया करता और दूध दूसरा भाई दुह लिया करता.
अगिन, जवासा, गाड़ीवान, बकरी, छीपी, ऊँट, कुम्हार, बेस्या, बानर, बानिन, दस मलीन जो बरसै पानी. अगिन-आग, जवासा-एक प्रकार की घास, छीपी-छपाई करने वाले, वेस्या-वैश्या, बानिन-बनिये की स्त्री. घाघ का कथन है कि उपरोक्त दस लोग पानी बरसने से बेहद दुखी होते हैं क्योंकि उन्हें पानी बरसने से हानि की आशंका होती है.
अगिनकोन जौ वहै समीरा, पड़े अकाल दुख सहै सरीरा, उत्तर से जल फूह परै, चूहा, साँप दोनों अवतरैं. अग्निकोण –पूर्व-दक्षिण दिशा का कोना, अवतरै-पैदा हों. यदि वर्षाकाल में हवा पूर्व दक्षिण के कोने से बहती है तो अकाल पड़ने के लक्षण हैं. उत्तर दिशा में बूँदें पड़ें तो सांप चूहे दोनों बहुत बढ़ जाते हैं.
अगुवा सहे बाँस की मार. किसी भी मुहिम की अगुआई करने वाला सबसे अधिक मार झेलता है.
अग्गम बुद्धि बानिया, पच्छम बुद्धि जाट. बनिया बुद्धि में आगे होता है, जाट बुद्धि में पीछे होता है.
अग्नि और काल से कोई न बचे. आग सब कुछ भस्म कर देती है और काल सब को लील लेता है.
अग्र सोची सदा सुखी. पहले सोच कर काम करने वाला सदा सुखी रहता है.
अघाइल भैंसा, तबो अढ़ाई कट्टा. (भोजपुरी कहावत) भैंसे का पेट भरा हो तब भी वह ढाई कट्टा भूसा खा सकता है. बहुत खाने वाले व्यक्ति मजाक उड़ाने के लिए. रूपान्तर – अफरा नीलगाय बीघा भर चर जात.
अघाइल रांड और भुखाएल बाभन से न बोलो. (भोजपुरी कहावत) रांड का अर्थ विधवा से भी होता है और दुष्ट स्त्री से भी. पेट भरी हुई चालाक स्त्री और भूखे ब्राहण से बात करने में खतरा है.
अघाई मछुआरिन मछली से चूतड़ पोंछे. जिस का पेट भरा हो वह खाने की वस्तु की कद्र नहीं करता.
अघाए को ही मल्हार सूझे. पेट भरने के बाद ही मस्ती सूझती है.
अघाना बगुला, पोठिया तीत. (भोजपुरी कहावत) बगुले का पेट भरा है तो उसे पोठिया (एक प्रकार की मछली) कड़वी लग रही है. कहावत का अर्थ है कि कोई भी वस्तु भूख लगने पर ही स्वादिष्ट लगती है.
अघाया ऊँट टोकरी लुढ़कावे. ऊँट का पेट भरा हो तो वह टोकरी में रखी खाने की वस्तुओं की कद्र नहीं करता.
अच्छत थोर देवता बहुत. अच्छत – अक्षत, पूजा में प्रयोग होने वाला साबुत चावल, थोर – थोड़े. पूजन सामग्री कम है और देवता अधिक हैं.
अच्छर से भेंट नाहीं, नाम डाकखाना. अनपढ़ लोगों द्वारा चलाई जाने वाली संस्थाओं पर व्यंग्य.
अच्छर-अच्छर के पढ़े, मूरख होय सुजान, कौड़ी-कौड़ी जोड़ के निधन होय धनवान. अर्थ स्पष्ट है.
अच्छा बोओ अच्छा काटो. अच्छा बीज बोने पर अच्छी फसल मिलती है. अच्छे कर्म का अच्छा फल मिलता है.
अच्छी अच्छी मेरे भाग, बुरी बुरी बामन के लाग. यदि वर या कन्या अच्छे मिल गए तो हमारे भाग्य से और खराब मिले तो पंडित जी की मूर्खता से.
अच्छी जीन से कोई घोड़ा अच्छा नहीं हो जाता. केवल अच्छी जीन बाँधने से कोई घोड़ा अच्छा नहीं हो जाता. अच्छे साज श्रृगार से कोई व्यक्ति योग्य नहीं हो जाता.
अच्छी नीयत, अच्छी बरकत. अच्छी नीयत से किये काम में लाभ होता है.
अच्छी मति जो चाहो, बूढ़े पूछन जाओ. समझदारी भरी राय चाहिए हो तो बूढ़े लोगों के पास जाइए क्योंकि उन के पास लम्बा अनुभव होता है.
अच्छी सूरत से अच्छी सीरत भली. अच्छी शक्ल वाले के मुकाबले वह व्यक्ति अधिक अच्छा है जिसका व्यवहार अच्छा हो और नीयत अच्छी हो.
अच्छे की उम्मीद करो लेकिन बुरे के लिए तैयार भी रहो. अर्थ स्पष्ट है.
अच्छे फूल महादेव जी पर चढ़ें. ईश्वरीय कार्य में अच्छे लोग ही लगते हैं.
अच्छे भए अटल, प्राण गए निकल. अटल का एक अर्थ है अपनी बात पर अड़ने वाला. इस हिसाब से कहावत का अर्थ उस व्यक्ति के लिए है जो अपनी बात पर अड़ा रहा भले ही जान चली गई. अटल का दूसरा अर्थ है तृप्त. इस सन्दर्भ में इसे मथुरा के चौबे लोगों के लिए प्रयोग करते हैं जो खाते ही चले जाते हैं चाहे प्राण निकल जाएं.
अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम. (दास मलूका कह गए, सब के दाता राम) मलूक दास नाम के एक संत थे जिन्होंने ईश्वर की महत्ता बताने के लिए ऐसा कहा है. आजकल कामचोर लोग, भिखारी और ढोंगी साधु भी अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए ऐसा कहते हैं.
अजब तेरी कुदरत अजब तेरे खेल, छछूंदर भी डाले चमेली का तेल. किसी अयोग्य व्यक्ति को भाग्य से कोई नायाब वस्तु मिल जाने पर ऐसा बोला जाता है.
अजब तेरी माया, कहीं धूप कहीं छाया. ईश्वर की बनाई दुनिया में कहीं सुख है तो कहीं दुख.
अटकल पच्चू डेढ़ सौ. बिना सर पैर की बात के लिए कही गई कहावत.
अटका बनिया देय उधार (अटका बनिया सौदा दे). बनिया मजबूरी में माल दे रहा है, क्योंकि पिछला उधार निकालने का और कोई तरीका नहीं है. मजबूरी में कोई किसी का काम कर रहा हो तो यह कहावत कहते हैं.
अटकेगा सो भटकेगा. दो अर्थ हुए.1- जिस का कोई काम अटकेगा वह दौड़ भाग करेगा. 2- जो दुविधा में पड़ेगा वो भटकता रहेगा.
अटन की टटन में, टटन की अटन में. इधर की वस्तु उधर रखना. बे सिर पैर का काम करना.
अड़ते से अड़ो जरूर, चलते से रहो दूर. 1. जो लड़ने पर उतारू है उससे लड़ो जरूर पर जो अपने रास्ते जा रहा है उससे बिना बात मत उलझो. 2. स्थिर आदमी से लड सकते हो, चलते से मत लड़ो, चलता भाग जायेगा.
अड़ी घड़ी काजी के सर पड़ी. कोई भी परेशानी पड़े उसका दोष मुखिया या बिचौलिए को ही दिया जाता है.
अढ़ाई दिन की सक्के ने भी बादशाहत कर ली. अलिफ़ लैला में एक किस्सा है जिस में सक्का नामक एक भिश्ती को ढाई दिन की बादशाहत मिल गई थी. थोड़े समय के लिए सत्ता मिलने पर कोई रौब गांठे तो ऐसा कहते हैं.
अढ़ाई हाथ की ककड़ी, नौ हाथ का बीज. कोई असंभव सी बात. कोरी गप्प.
अति का फूला सैंजना, डाल पात से जाए. 1.सैजना एक पेड़ है जिसमें अत्यधिक फूल और फलियाँ लगती है और उसके बाद पतझड़ हो जाता है. धन या पद मिलने पर अहंकार नहीं करना चाहिए क्योंकि ये क्षणिक हैं. 2.लोग उसको इस लालच में डाल समेत तोड़ लेते हैं. फूल और फलियों के चक्कर में पेड़ अपने डाल पात से जाता है.
अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप (अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप). अति हर चीज़ की बुरी होती है. इस कहावत को ऐसे भी कहा गया है – न ढेर बलबल न ढेर चुप, न ढेर वरखा न ढेर धुप.
अति तातो पय जल पिए, तातो भोजन खाए, बाकी बत्तीसी सबहि, ज्वानी में झर जाए. बहुत गर्म पेय पदार्थ पीने और बहुत गर्म खाना खाने से दांत कमजोर हो जाते हैं.
अति पितवालों आदमी, सोए निद्रा घोर, अनपढ़िया आतम कही, मेघ आवे अति घोर. अत्यधिक पित्त प्रकृति वाला आदमी यदि दिन में घोर निद्रा में सोए तो अनपढ़ (पर अनुभव से भरपूर) आतम कहते हैं कि जोर से वर्षा होगी.
अति बड़ी घरनी को घर नहीं, अति सुंदरी को वर नहीं. बहुत बड़े घर की लड़की के लिए बराबर का घर मिलने में और अत्यधिक सुंदर कन्या के लिए सुयोग्य वर मिलने में कठिनाई आती है.
अति भक्ति चोर का लक्षण. कोई बहुत ज्यादा भक्ति दिखा रहा हो तो संशय होता है कि कहीं इस के मन में चोर तो नहीं है. संस्कृत में इस से मिलती जुलती कहावत है – अति विनय घूर्त लक्षणम्
अति हर चीज़ की बुरी है. अर्थ स्पष्ट है. संस्कृत में कहते हैं – अति सर्वत्र वर्जयेत.
अतिथि देवो भव. घर में आया अतिथि भगवान के समान है. शिक्षा यह दी गई है कि घर में आए किसी व्यक्ति का अनादर न करो.
अतिशय रगड़ करे जो कोई, अनल प्रकट चन्दन से होई. बहुत रगड़ने से चन्दन जैसी शीतल लकड़ी में से भी अग्नि पैदा हो जाती है. बहुत अधिक अन्याय करने पर सीधे साधे लोग भी विद्रोह पर उतारू हो जाते हैं
अतिशय लोभ न कीजिए लोभ पाप की धार, इक नारियल के कारने पड़े कुएं में चार. अधिक लोभ करने से अत्यधिक संकट उत्पन्न हो सकता है. सन्दर्भ कथा 8. अधिक लोभ करने से कितना संकट उत्पन्न हो सकता है इसके पीछे एक कहानी कही जाती है. एक कंजूस नारियल लेने बाज़ार में गया. दुकानदार ने कहा चार पैसे का है. उसने आगे बढ़ कर पूछा तो दूसरा दूकानदार बोला तीन पैसे का. और आगे बढ़ा तो दो पैसे, उससे आगे एक पैसे. कंजूस बोला कहीं मुफ्त में नहीं मिलेगा. दुकानदार ने कहा, आगे नारियल का पेड़ है खुद तोड़ लो.
कंजूस आगे जा कर नारियल के पेड़ पर चढ़ा और नारियल तोड़ कर उतरने लगा तभी उस का पैर फिसल गया. उसने एक डाल कस कर पकड़ ली और लटकने लगा. संयोग से नीचे एक कुआं भी था, याने अगर वह गिरता तो सीधे कुएं में जाता. डर के मारे उसे भगवान याद आने लगे. सोचने लगा कि कितने भी पैसे खर्च हो जाएँ, किसी तरह जान बच जाए. कुछ देर बाद ऊँट पर सवार एक आदमी उधर से निकला. कंजूस उससे बोला तुम मुझे उतार दो तो मैं सौ रूपये दूंगा. सौ रूपये उस समय बहुत ही बड़ी रकम थी. ऊँट सवार ने कंजूस को उतारने के लिए उस के पैर पकड़े तब तक ऊँट नीचे से चल दिया. अब दोनों कुँए के ऊपर लटकने लगे. इसी तरह एक और ऊंट सवार और उसके बाद एक घुड़सवार भी एक के बाद एक लटक गए. अधिक बोझ से पेड़ की डाल टूट गई और चारों कुँए में जा पड़े.
अतिसय लोभ बकुल ने कीन्हा, छन में प्राण केकड़ा लीन्हा. बकुल – बगुला. अधिक लोभ नहीं करना चाहिए. लोभ के कारण कैसे एक बगुले को केकड़े के हाथों जान गंवानी पड़ी यह जानने के लिए सन्दर्भ कथा 9. बकुल – बगुला. एक बूढा बगुला मछली पकड़ने में असमर्थ हो गया तो उसने एक योजना बनाई. वह तालाब के किनारे बैठ कर आंसू बहाने लगा. अन्य जीवों ने जब इस का कारण पूछा तो उस ने कहा कि अगले तीन वर्ष भयंकर अकाल पड़ेगा. इस तालाब का पानी सूख जाएगा और सारे जीव जन्तु मर जाएंगे. सब जंतु डर गए और बगुले से इसका उपाय पूछा. बगुले ने कहा कि यहाँ से थोड़ी दूर पर एक बहुत बड़ा तालाब है जिसका जल कभी नहीं सूखता. तुम लोग चाहो तो मैं एक एक कर के तुम सब को वहाँ पहुँचा दूँ. मैं बूढा हो गया हूँ अत: एक दिन में एक ही चक्कर लगा पाऊंगा.
सारे जलजन्तु इसके लिए तैयार हो गए. अब बगुला एक एक को ले कर जाता और थोड़ी दूर पर एक चट्टान पर बैठ कर आराम से उसे चट कर जाता. एक दिन एक केकड़े की बारी आई. बगुला उसे गले में लटका कर ले चला. जब वे उस चट्टान के पास पहुँचे तो चट्टान पर हड्डियों का ढेर देख कर केकड़े को शक हुआ. उसने बगुले से पूछा तो बगुले ने हँस कर उसे हकीकत बता दी. केकड़े ने तुरंत उस की गर्दन दबा दी जिससे वहीं उस के प्राण पखेरू उड़ गए.
अतिहिं दुलार अनूपा दाई, खाट चढ़े नेवता जाई. अत्यधिक सम्मान दिया गया तो अनूपा दाई खाट पर चढ़ कर नेवता देने जाने लगीं. अयोग्य व्यक्ति अधिक सम्मान के योग्य नहीं होता.
अते की पत, भगवान ही राखें. अति करने वाले का सम्मान भगवान ही बचा सकते हैं.
अतै सो खपै. अति करने वाले का विनाश हो जाता है.
अदरक के चन्दन, ललाट चिरचिराय. (भोजपुरी कहावत) अदरख का चन्दन बना कर लगाओगे तो माथे पर छरछराहट होगी. बदमिजाज आदमी को सर पर बिठाओ तो वह आपको कष्ट ही देगा.
अदरक गुड़ कपास, इन का नफा खाए बतास. ये तीनों चीजें अधिक हवा से खराब होती हैं. बतास – हवा.
अधकचरी विद्या दहे, राजा दहे अचेत, ओछे कुल तिरिया दहे, दहे कपास का खेत. अधूरी विद्या, लापरवाह राजा, निम्न संस्कारों वाली बहू और कपास की खेती विनाश का कारण बनते हैं
अधकुचले सांप सा खतरनाक. चोट खाए हुए सांप की भाँति चोट खाया हुआ प्रतिहिंसा में पागल व्यक्ति.
अधजल गगरी छलकत जाए (भरी न छलके, अधभरी छलके) (भरी गगरिया चुपके जाय). भरी हुई गागर ले कर चलने पर वह छलकती नहीं है, आधी भरी हुई छलकती है. इसी प्रकार जिस व्यक्ति को अधिक ज्ञान होता है वह कम बोलता है जबकि अधूरे ज्ञान वाला व्यक्ति बहुत बकबक करता है.
अधरम से धन होय, बरस पाँच या सात. पाप की कमाई जल्दी ही नष्ट हो जाती है.
अधिक कसने से वीणा का तार टूट जाता है. अधिक प्रशासनिक कड़ाई से जनता त्रस्त हो जाती है और विद्रोह कर सकती है. अधिक कड़े अनुशासन से विद्यार्थी नहीं पढ़ सकते.
अधिक खाऊं न बेवक्त जाऊं. न अधिक खाऊं न बेवक्त शौच के लिए जाऊं.
अधिक खाद औ गहरी फाल, ढो ढो नाज होय बेहाल. खाद अधिक देने और गहरा जोतने से फसल अच्छी होती है (इतनी अधिक कि किसान अनाज ढो ढो के थक जाए).
अधिक प्रेम टूटे, बड़ी आँख फूटे. किसी को बहुत अधिक प्रेम करने से प्रेम के टूटने का डर होता है. तुक मिलाने के लिए कहा गया है कि बहुत बड़ी आँख हो तो उस में चोट लगने का डर होता है.
अधिक संतान गृहस्थी का नाश, अधिक वर्षा खेती का नाश. यूँ तो वर्षा खेती के लिए आवश्यक है पर अधिक वर्षा खेती का सत्यानाश कर देती है. इसी प्रकार एक दो सन्तान होना प्रत्येक परिवार के लिए आवश्यक हैं पर अधिक संतान होने से गृहस्थी का नाश हो जाता है.
अधिक सयाना, तीन जगह सने (अधिक सयानो, जाय ठगानो). यदि किसी साधारण व्यक्ति का पैर मल के ऊपर पड़ जाए तो वह पैर को घसीट कर साफ़ करेगा और चला जाएगा, परन्तु जो ज्यादा सयाना है (व्यंग्य में) वह पहले ऊँगली से छू कर देखता है और फिर सूँघ कर देखता है कि यह क्या है, अर्थात पैर, उंगली और नाक तीन जगह सनता है. इस से मिलती जुलती कहावत है – सयाना कौवा गू खाता है.
अधिक स्याने की नाक जड़ से उड़ाई जात. अधिक स्याने की नाक जड़ समेत काटी जाती है. जो जितना चतुर बनता है उसकी उतनी ही अधिक बेइज्जती भी होती है.
अधीरे का लेवे नहीं, ओछे का खावे नहीं. उतावले से कभी ऋण न ले और ओछे का कभी अन्न ग्रहण न करे; क्योंकि उतावला आदमी जल्दी पैसा वापिस मांगेगा, और ओछा खिलाने-पिलाने का अहसान जतायेगा.
अधेले के नोन को जाऊं, ला मेरी पालकी. छोटे से काम के लिए बहुत आडम्बर करना. अधेला – आधा पैसा.
अनकर कपड़ा धोबिनियाँ रानी. दूसरे के कपड़े पहन कर धोबिन बनी ठनी घूमती है. अनकर – दूसरे का. दूसरों की संपत्ति पर ऐश करने वालों पर व्यंग्य.
अनकर करम कहाँ पाऊं, अपना करम माथे चढ़ाऊँ. दूसरे के भाग्य में जो है वह मैं कैसे पा सकता हूँ, जो मेरे भाग्य में है वही सर माथे.
अनकर किए पर जय जगन्नाथ. दूसरे के किए हुए कार्यों पर अपना ठप्पा लगाने की कोशिश.
अनकर खेती अनकर गाय, वह पापी जो मारन जाय. दूसरे का खेत है और किसी और की गाय चर रही है, तुम्हें क्या पड़ी है जो गाय को भगाने का पाप ले रहे हो. अर्थ है कि यदि कोई दूसरा व्यक्ति किसी तीसरे को कोई नुकसान पहुँचा रहा है तो उस में टांग नहीं अड़ानी चाहिए. अनकर – दूसरे की.
अनकर चुक्कर अनकर घी, पांडे बाप का लागा की. (भोजपुरी कहावत) आटा भी दूसरे का है और घी भी दूसरे का, कितना भी लगे, रसोइए के बाप का क्या जा रहा है. अनकर – पराया, चुक्कर – आटा.
अनकर धिया, पका आम और कसाई, कभी अपने नहीं होते. दूसरे की बेटी मुझे अपना क्यों मानेगी (हमेशा शक की निगाह से देखेगी), पके आम का क्या भरोसा कब टपक जाए और कसाई तो किसी के सगे नहीं होते.
अनकर मंडवा में भड़भड़. दूसरे के विवाह समारोह में गड़बड़ी फैलाने वालों के लिए.
अनकर मूड़ी बेल बराबर. दूसरे का सिर बेल के समान तुच्छ. अनकर – दूसरे का, मूड़ी – सिर (मुंड).
अनकर सेंदुर देख कर आपन कपार फोरें. (भोजपुरी कहावत) ईर्ष्यालु स्त्री दूसरी औरत की मांग में सिंदूर देख कर अपना सर फोड़ रही है. दूसरे के सुख से ईर्ष्या करना.
अनका खातिर कांटे बोए कांटा उनके गड़े. अनका – दूसरे का. जो दूसरों के लिए कांटे बोते हैं उनके पैर में काँटा जरूर गड़ता है.
अनका धन पर बिकरम राजा (आनक धन पर मदन गोपाल). दूसरे के धन पर दानी विक्रमादित्य बने हैं.
अनका धन पे रोवे अंखिया. अनका – दूसरे का. दूसरे के धन समृद्धि से दुखी होने वाले के लिए.
अनका बंसे बंस बनेला, अनका बंसे बंस डूबेला. दूसरे के अच्छे वंश के संयोग से अपना वंश भी उन्नत होता है और यदि दूसरे का वंश घटिया हो तो अपना वंश भी डूबता है. अंतरजातीय विवाह न करने की सलाह.
अनका बारी दुबको, अपनी बारी हड़पो. जब दूसरे को कुछ देने की बारी आए तो दुबक जाओ, और जब कुछ लेने की बारी आए तो सब हड़प लो.
अनके धन पर चोर राजा. दूसरे का धन चुरा कर चोर ऐश करता है.
अनके पनिया मैं भरूँ, मेरे भरे कहार. अपने घर में जो काम करने में हेठी समझे, वही दूसरे के घर में करना.
अनजान का अपराध नहीं माना जाता. मासूम व्यक्ति यदि अनजाने में कोई अपराध करता है तो उसे अपराध नहीं मानना चाहिए. समाज के नियमों में तो यह चल सकता है लेकिन कानून मे अज्ञानता मे हुए अपराध की क्षमा नहीं है. यदि कानून ने एस शुरू किया तो हर आदमी अपराध करेगा और खुद को अज्ञानी बताएगा.
अनजान की मिट्टी ख़राब. अज्ञानी की दुर्दशा ही होती है, क्योंकि वह दुनियादारी नहीं समझता.
अनजान पानी में न उतरो. जिस पानी की गहराई न मालूम हो उस में नहीं उतरना चाहिए. जिस काम के खतरे न मालूम हों उस को नहीं करना चाहिए.
अनजान सुजान, सदा कल्याण. जो बिलकुल अज्ञानी है वह सुखी रहता है क्योंकि उसे कोई चिंता नहीं होती, या फिर जो पूर्ण ज्ञानी है वह सुखी रहता है क्योंकि उसे कोई सांसारिक दुख नहीं व्यापता.
अनजाने को कांसा दीजे, वासा न दीजे. किसी अनजान व्यक्ति को धन या भोजन देकर उसकी सहायता कीजिए पर उसे घर में वास मत कराइए, बहुत बड़ा धोखा हो सकता है. कांसा एक मिश्र धातु है जिससे बर्तन बनते थे.
अनदेखा चोर राजा बराबर. जब तक चोर को चोरी करते न पकड़ लिया जाए तब तक चोर और राजा बराबर हैं. इस कहावत को इस प्रकार से भी कहा गया है – अनदेखा चोर साले बराबर.
अनपढ़ कमाए और जूता खाए (अभागा कमाय और जूता खाय). अभागा आदमी मेहनत से कमाता है फिर भी अपमान सहता है.
अनपढ़ जाट पढ़े बराबर, पढ़ा जाट खुदा बराबर. जाटों की चालाकी और गर्वीलेपन पर व्यंग्य.
अनपढ़ तो घोड़ी चढ़ें, पंडित मांगें भीख. जहाँ अंधेर गर्दी का राज्य हो वहाँ अनपढ़ लोगों को सत्ता मिल जाती है और ज्ञानवान लोग भीख मांग कर गुजारा करते हैं.
अनपढ़ भी पंडित के कान काट सकता है. जिसको व्यवहारिक ज्ञान अधिक हो वह अधिक सफल होता है.
अनमिले के सौ जती हैं. स्त्री न मिले तो सब योगी बन जाते हैं. जती – यती (सन्यासी). इसी प्रकार की दूसरी कहावत है – मजबूरी का नाम महात्मा गांधी.
अनरथ करत जाहि डर नाहीं, सो जइहैं थोरे दिन मांहीं. संसार में आकर जिस व्यक्ति को अन्याय, अनाचार करने में तनिक भी भय नहीं लगता उसका नाश बहुत थोड़े समय में ही हो जाता है.
अनरूच बहू के कड़वे बोल. जो अपने को पसंद नहीं है उसकी सभी बातें बुरी लगती हैं. अनरूच – जो रुचे नहीं.
अनर्थ अवसर की ताक में रहता है. कहावत का तात्पर्य है कि किसी के भी जीवन में कभी भी कोई अनहोनी घट सकती है, इसलिए मनुष्य को बुरे समय के लिए तैयार रहना चाहिए और अभिमान नहीं करना चाहिए.
अनहोत में औलाद. अनहोत – बुरा समय. बुरे समय में औलाद हो जाना. मुसीबत में मुसीबत.
अनहोनी होती नहीं, होती होवनहार (अनहोनी होनी नहीं, होनी हो सो होय). होनी बलवान है. जो नहीं होना है वह आपके लाख चाहने पर भी नहीं होगा और जो होना है वह हो के रहेगा.
अनाज खाओ पर बीज बचाओ. जीवित रहने के लिए अनाज खाना आवश्यक है पर बोने के लिए बीज बचाना भी जरूरी है, प्रकृति का दोहन भी करो और सरंक्षण भी.
अनाड़ियों को अनाड़ी ही सिखा सकता है (अनाड़ियों को अनाड़ी ही सुगम सिखाए). कम बुद्धि वाले को पढ़ाना बहुत कठिन काम है. तीव्र बुद्धि वाला तो यह काम बिलकुल नहीं कर सकता.
अनाड़ी का सोना बाराबानी (अनाड़ी का सोना हमेशा चोखा). सुनारों की भाषा में बाराबानी सोना कई बार शुद्ध किए गए सोने को कहते हैं. अनाड़ी आदमी सोना बेचने आया हो तो वह सोना बढ़िया ही होगा क्योंकि वह उस की कीमत ही नहीं जानता.
अनाड़ी का सौदा बारा बाट. जो नया बेचने वाला होता है या मूर्ख है, उसका सामान इधर-उधर बिखरा रहता है.
अनाड़ी के घी में भी कंकड़. अनाड़ी आदमी के हर काम में फूहड़पन रहता है.
अनाड़ी गया चोरी, छेड़न लगा छोरी. हर काम को करने के कुछ नियम कानून होते हैं. चोर लड़की छेड़ेगा तो पकड़ लिया जाएगा, चोरी कैसे करेगा.
अनोखी जुरवा, साग में शुरवा (नई बहू, करेले में झोर). जुरवा – जोरू, पत्नी. साग बनाते हैं तो उस में शोरबा नहीं बनाते. अनाड़ी पत्नी ने साग में भी शोरबा बना दिया. कोई अनाड़ी आदमी बेतुके ढंग से काम करे तो.
अनोखे गाँव में ऊँट आया, लोगों ने जाना परमेसुर आया. मूर्ख लोगों ने जो चीज़ न देखी हो उसको कुछ का कुछ समझ लेते हैं. रूपान्तर – बावले गाँव में ऊँट आया, कहें लम्बी गरदन के परमेसर.
अनोखे घर में नाती भतार. ऐसा घर जहाँ बाप दादा के मुकाबले पोते की बात अधिक मानी जाए. जहाँ बड़ों के मुकाबले छोटों की ज्यादा चले. भतार शब्द भर्ता का अपभ्रंश है जिसका अर्थ है घर का स्वामी.
अन्त बुरे का बुरा. अत्याचारी का अंत बुरा होता है.
अन्तकाल सुधरा तो सब सुधरा. किसी व्यक्ति ने जीवन भर बुरे कर्म किये हों पर यदि अंतिम समय में वह सुधर जाए तो लोग उसकी बुराइयों को भूल जाते हैं.
अन्ते गति सो मति. मरते समय व्यक्ति के मन में जो भाव हों वैसी ही उस की गति होती है. सन्दर्भ कथा 10. मरते समय व्यक्ति के मन में जो भाव रहते हैं वैसी ही उस की गति होती है. इस बारे में एक कहानी कही जाती है. एक ऋषि को वन में एक मृग शावक मिला जिसकी मां हिरनी उसे जन्म देते ही मृत्यु को प्राप्त हो गई थी. उन्होंने दयावश उसे अपने आश्रम में ला कर पाल लिया. उन्हें उस से इतना मोह हो गया कि अपने अंतिम समय पर भी वे उस की चिंता में ही डूबे रहे. इसके फलस्वरुप उन्हें हिरन की योनि में जन्म लेना पड़ा.
इस विषय में एक दूसरी कथा एक स्त्री के बारे में कही जाती है जो युवावस्था में ही विधवा हो गई थी. जब वह प्रौढावस्था में थी तो बहुत अधिक बीमार हो कर मृत्यु शैया पर पड़ी थी. उसको देखने एक युवा वैद्य आए. वैद्य ने जब नाड़ी देखने के लिए उसका हाथ पकड़ा तो उस स्त्री को एक अजीब सी सिहरन हुई और उस के मन में आया कि हाय मैं इस सुखद अनुभूति से कितनी वंचित रही. उसी समय उसका प्राणांत हो गया. अंतिम समय की उस अतृप्त इच्छा के कारण उसे एक वैश्या के घर में जन्म मिला.
अन्दर छूत नहीं, बाहर करें दुर दुर. केवल दिखावे के लिए छुआछूत करना. जहाँ अपना स्वार्थ हो वहाँ छुआछूत न करना.
अन्न अमृत, अन्न विष. अन्न जीवन के लिए आवश्यक भी है और अधिक खाने या गलत खाने से आदमी मरता भी है. अन्न जिलाता भी है, अन्न मारता भी है.
अन्न जल बड़ो बलवान, काल बड़ो शिकारी. अन्न और जल बड़े बलवान हैं मनुष्य को कहाँ कहाँ ले जाते हैं, भटकाते हैं और पाप भी कराते हैं. काल सबसे बड़ा शिकारी है जो हर जीव जन्तु का शिकार करता है.
अन्न जलाय के भाड़ा खातिर रार करे भड़भूजा. भाड़ा – मेहनताना, रार – झगड़ा. भाड़ भूनने वाले ने चने तो जला दिए और ऊपर से अपनी मजूरी मांग रहा है. यदि कोई आदमी काम बिगाड़े और ऊपर से झगड़ा करे.
अन्न जी का गाजा और अन्न जी का बाजा. संसार में सारी महिमा अन्न की ही है.
अन्न दान महा दान. किसी भूखे को खिलाना सबसे बड़ा पुण्य है.
अन्न देवता को माथे चढ़ा कर खाओ. अन्न को देवता मानना चाहिए और कभी उसका तिरस्कार नहीं करना चाहिए. माथे चढ़ाना – सम्मान करना.
अन्न धन अनेक धन, सोना रूपा कितेक धन. सबसे बड़ा धन अन्न है उसके सामने सोना चांदी भी कुछ नहीं. इस कहावत को इस प्रकार से भी कहा गया है – अन्न धन मूल धन, गहना धन आधा धन, वस्त्र धन फूसफास.
अन्न बिना कल नहीं, सैंया बिना पल नहीं. अन्न के बिना चैन नहीं आता और पति के बिना समय नहीं गुजरता.
अन्न मुक्ता, घी युक्ता. अन्न को भरपेट (मुक्त हो कर) खाना चाहिए और घी को सोच समझ कर खाना चाहिए. इस कहावत को इस प्रकार से भी कहा गया है – अन्न खाय मन भर, घी खाय दम भर.
अन्न से मरे काम से न मरे. अधिक खाने से आदमी मर सकता है पर अधिक काम से कोई नहीं मरता.
अन्न ही तारे, अन्न ही मारे. खाने से ही आदमी जिन्दा रहता है, और अधिक खाने से मरता भी है. अन्न को ले कर युद्ध भी होते हैं, जिनमें अनेक लोग मारे जाते हैं.
अन्न ही नाचे, अन्न ही कूदे, अन्न ही तोड़े तान. पेट भरा होने पर ही सब तरह की मस्ती सूझती है.
अन्न है तो टन्न है, नहीं तो सनासन्न है. टन्न – प्रसन्न, सनासन्न – शान्त. पेट भरा है तो मनुष्य खूब उत्साहित होता है और जब पेट खाली हो तो भूख के मारे बेसुध और शांत.
अन्यायी और सूरमा, जब चाले तब सगुन. अन्यायी लोग अत्याचार का कार्य करते समय सगुन असगुन नहीं विचारते. इसी प्रकार शूरवीर अपने अभियान से पहले मुहूर्त नहीं देखते.
अन्यायी के उलटे पैर. 1. अन्यायी व्यक्ति हर काम उलटे ढंग से करता है. 2. जब पीड़ित लोग प्रतिकार करते हैं तो अन्यायी बहुत जल्दी भाग खड़ा होता है.
अन्हरे सियार के पिपरे मेवा. (भोजपुरी कहावत) अंधे सियार को पीपल ही मेवा के समान है. मजबूर आदमी को जो मिल जाए वही उसके लिए बहुत है.
अपत भए बिन पाइए, को नव दल फल फूल. बिना पत्ते झड़े नए पत्ते और फल फूल कहाँ आते हैं. कुछ नया पाने के लिए पुराने को खोना पड़ता है.
अपना अपना घोलो अपना अपना पियो. सत्तू का उदाहरण दे कर कहा गया है कि अपनी व्यवस्था स्वयं करो.
अपना अपना, पराया पराया. थोड़ी बहुत खटपट भी हो जाए फिर भी अपना अपना ही रहता है. पराया आदमी कितना भी अच्छा हो अपने जैसा नहीं हो सकता.
अपना काम बनता भाड़ में जाये जनता. विशुद्ध स्वार्थ. (आजकल के नेताओं की तरह).
अपना काम बिगाड़े बिना दूसरे का काम नहीं सुधरता. दूसरों की सहायता करने के लिए अपना नुकसान (समय और पैसे का) करना पड़ता है.
अपना कुत्ता बरजो, हम भीख से बाज आये. भीख मांगने वाले पर यदि किसी का कुत्ता चढ़ दौड़े तो वह कहता है कि भाई साहब अपने कुत्ते को रोको, हम यहाँ आने की गलती कभी नहीं करंगे. यदि मनुष्य को थोड़ी सुविधा के लिये अधिक ख़तरा उठाना पड़े तो वह ऐसा बोल कर वहाँ से निकल लेता है.
अपना के जुरे न, अनका के दानी. (भोजपुरी कहावत) अपने घर में कुछ है नहीं, दूसरों को दान करने चले हैं.
अपना के बिड़ी बिड़ी, दुसरे के खीर पुड़ी. अपने आदमी को दुत्कार और दूसरों का सत्कार करना.
अपना के रोई रोई, भतार के मोटी पोई. स्त्री स्वयं खाये चाहे भूखी ही रह जाय मगर पति को तो मोटी रोटी बनाकर पेट भर खिला ही देती है. भारतीय नारी स्वयं भूखे रह कर भी अपने पति व पुत्र का पेट भरती है.
अपना कोढ़ बढ़ता जाए, औरों को दवा बताए. उन लोगों के लिए जो अपनी समस्याएँ नहीं सुलझा पाते और दूसरों की सहायता करने को आतुर रहते हैं.
अपना कोढ़ राजी बेराजी ओढ़. यदि अपने को कोई असाध्य बीमारी है तो उसको झेलना ही पड़ेगा. यदि अपना कोई सगा सम्बन्धी नालायक हो तो भी निभाना पड़ता है.
अपना कोसा अपने आगे आता है. जो गलत काम आप करते हैं उस के दुष्परिणाम कभी न कभी झेलने पड़ते हैं
अपना खिलाए और निहोरे कर के. किसी को अपनी जेब से खिलाओ भी और वह भी खुशामद कर के.
अपना घर दूर से सूझता है. अर्थ स्पष्ट है.
अपना चेता होत नहिं, प्रभु चेता तत्काल. मनुष्य जो चाहता है वह नहीं होता, ईश्वर जो चाहता है वह फ़ौरन हो जाता है. इंग्लिश में कहावत है – Man proposes, God disposes.
अपना छुटे न, पराया जुटे न. अपने आदमी से कुछ अनबन भी हो जाए तो भी नाता नहीं टूटता. पराये व्यक्ति के लिए कितना भी कुछ कर लो वह अपने के समान नहीं हो सकता.
अपना पूत पूत और सौत का पूत कपूत. केवल अपने सगे को महत्व दे कर दूसरे की उपेक्षा करना.
अपना पूत लाते, अनकर पूत भाते. 1. अपने पुत्र को लात मारेंगे तब भी अपना ही रहेगा, दूसरे के पुत्र को भात खिलाएंगे तो भी अपना नहीं होगा. 2. अपने पुत्र को कड़े अनुशासन से वश में रखना चाहिए और पराये पुत्र को खिला पिला कर.
अपना पूत सभी को प्यारा. अपना पुत्र चाहे कुरूप हो, मंदबुद्धि हो तब भी सब को प्यारा होता है.
अपना पूत, पराया डंगर. उन संकीर्ण दृष्टिकोण वाले लोगों के लिए जो अपने पुत्र को नाज़ों से पालें और दूसरे के पुत्र को जानवर तुल्य समझें.
अपना पेट भरे चाहे बेटी बेटा मरे. निकृष्टता की पराकाष्ठा.
अपना फटा सियें नहीं, दूसरे के फटे में पैर दें. अपनी समस्याएँ न सुलझाएं और दूसरों की परेशानियाँ हल करने की कोशिश करें.
अपना बिन सब सपना. यदि संसार में कोई अपना न हो तो यह संसार सपना ही है.
अपना बेटा, बिसखोपड़ा नाम. अपने बेटे का नाम मैं कुछ भी रख लूँ कोई क्या कर लेगा.
अपना बैल कुल्हाड़ी नाथब, दुसरे के बाप का क्या. हमारा बैल है हम चाहें कुल्हाड़ी से नाथें. कहावत का अर्थ है कि अपना काम हम चाहे जैसे करें किसी को क्या. शहर में रहने वाले लोग यह नहीं जानते होंगे कि बैल नाथने का अर्थ होता है, बैल के नथुने में छेद कर के उसमें रस्सी डालना.
अपना बोझा सबसे भारी. हर व्यक्ति को लगता है कि जो काम वह कर रहा है वो सब से कठिन है.
अपना मकान कोट (क़िले) समान. अपना घर सभी को बहुत अच्छा और सुरक्षित लगता है. इंग्लिश में कहावत है – There is no place like home.
अपना मरण, जगत की हँसी. अर्थ है कि हम मुसीबत में पड़े हैं और लोग हँस रहे हैं.
अपना मारे छाँव में डाले. माँ क्रोध में आ कर अपने बेटे को पीटती है. बेटा रोते रोते सो जाता है तो उसे उठा कर छाँव में लिटा देती है. क्रोध में भी माँ की ममता कम नहीं होती.
अपना माल अपनी छाती तले. अपने माल की सुरक्षा स्वयं ही करना चाहिए.
अपना मीठ, पराया तीत. अपना माल अच्छा और पराया बेकार. (मीठ – मीठा, तीत – कड़वा)
अपना मुँह चिकना किए फिरते हैं. केवल अपनी ही चिन्ता करना जानते हैं.
अपना मैला, पड़ोसी का नाम. अपने घर का कूड़ा बाहर फेंक कर पड़ोसी का नाम लगाना.
अपना रख पराया चख. अपना माल बचा कर रखो और दूसरे का माल हड़पने की कोशिश करो. निपट स्वार्थी लोगों का कथन.
अपना लड़का, दूसरे की मेहरारू, बहुत नीक लगत. अपना लड़का, दूसरे की स्त्री बहुत भले लगते हैं.
अपना लाल गँवाय के दर-दर माँगे भीख. (अपने नैन गवांय के दर दर मांगे भीख). अपनी कीमती वस्तु की रक्षा न करना और जरूरत पड़ने पर औरों से मांगते फिरना.
अपना वही जो आवे काम. जो आड़े समय में काम आये वही अपना हितैषी है.
अपना सर, सौ चोटी रखें तो कौन बरजे. हम जैसे चाहें रहें, कौन मना कर सकता है. बरजना – मना करना.
अपना सा मुँह ले कर रह गये. अर्थात् चुप हो गये. कुछ कहते नहीं बना.
अपना सूप मुझे दे, तू हाथों से फटक. शुद्ध स्वार्थ परता. (अनाज में से भूसी और छिलके हटाने के लिए उसे सूप में ले कर फटकते हैं).
अपना सो अपना, पराया सो सपना. समय पर अपना आदमी ही काम आता है, दूसरा नहीं.
अपना हाथ जगन्नाथ. जिनके पास अपने हाथ से काम करने का हुनर है वे सबसे अधिक भाग्यशाली हैं. संपत्ति छीनी जा सकती है पर हाथ का हुनर हमेशा आपके पास रहता है.
अपना ही माल जाए, आप ही चोर कहलाए. जिस का नुकसान हुआ हो उसी को चोर साबित करने की कोशिश की जाए तो ऐसा कहते हैं. हिन्दुस्तान की पुलिस अक्सर ऐसे कारनामे करती है.
अपना-अपना कमाना, अपना-अपना खाना. 1. आजकल की संस्कृति के ऊपर व्यंग्य. 2. इसका अर्थ इस प्रकार से भी है कि अपनी रोजी रोटी की चिंता सब को स्वयं ही करनी पड़ती है.
अपनी अकल और पराई दौलत सबको बड़ी मालूम होती है. सभी लोग अपने को दूसरों से अधिक अक्लमंद समझते हैं और दूसरों को अपने से अधिक धनवान समझते हैं.
अपनी अटके गधे से दद्दा कहना पड़े. गरज पड़ने पर छोटे आदमी को भी हाथ जोड़ने पड़ते हैं
अपनी अटके, सौत के मायके जाना पड़ता है. किसी स्त्री के लिए सबसे बुरा और अपमान जनक स्थान सौत का मायका ही हो सकता है. लेकिन काम अटकने पर वहाँ भी चले जाना चाहिए.
अपनी अपनी करनी अपने अपने साथ. अपने अपने कर्मो का फल सबको भोगना ही पड़ता है.
अपनी अपनी खाल में सब मस्त (अपनी अपनी खाल में सभी जीव खुशहाल). आम लोग अपने काम, अपने स्वार्थ और अपने परिवार की चिंता में ही व्यस्त रहते हैं. सन्दर्भ कथा 11. आम लोग अपने काम, अपने स्वार्थ और अपने परिवार की चिंता में ही व्यस्त रहते हैं. इस विषय में एक कथा कही जाती है. मृत्यु शैया पर पड़े एक धर्मात्मा राजा ने किसी सिद्ध मुनि से पूछा कि उसका अगला जन्म कहाँ होगा. मुनि ने बताया कि उसका अगला जन्म फलां स्थान पर फलां शूकरी के गर्भ से होगा.
राजा यह जान कर अत्यंत दुखी हुआ और उसने अपने पुत्र से कहा कि मेरी मृत्यु के कुछ दिन बाद तुम उस स्थान पर जा कर उस शूकरी के बच्चे को मार डालना जिससे उस योनि से मेरी जल्द मुक्ति हो जाए. राजा का पुत्र जब उस शूकर शावक को मारने गया तो उस ने राजकुमार को पहचान कर उससे कहा कि मैं इस हाल में भी बहुत खुश हूँ, अत: तुम मुझे मत मारो.
कुछ लोग इसे पूरा बोलते हैं – क्या सीपी क्या घूंघची, क्या मोती क्या लाल, अपनी अपनी खाल में सभी जीव खुशहाल.
अपनी अपनी खींचो और ओढ़ो. अपनी अपनी व्यवस्था खुद करो.
अपनी अपनी गरज को अरज करे सब कोई. अपने स्वार्थ की सिद्धि के लिए सभी लोग प्रयास करते हैं.
अपनी अपनी ढपली, अपना अपना राग. (अपनी अपनी तुनतुनी, अपना-अपना राग). यदि एक व्यक्ति ढपली बजा रहा हो और कुछ लोग उसकी ताल के साथ गा रहे हों तो सुनने में अच्छा लगता है. यदि चार लोग अलग अलग ढपली पर अलग ताल बजा कर अलग अलग राग गा रहे हों तो सुनने में कितना बुरा लगेगा. किसी एक बात पर बहुत से लोग एक ही समय पर अपनी अपनी अलग अलग राय दे रहे हों या अपनी बात मनवाने की कोशिश कर रहे हों तो यह कहावत कही जाती है.
अपनी अपनी तान में खोता भी मस्तान. मूर्ख लोग अक्सर आत्म मुग्धता के शिकार होते हैं.
अपनी अपनी धोती में सब नंगे (अपने जामे में सभी नंगे) (कपड़ों के भीतर हर आदमी नंगा है). आदमी ऊपर से सभ्यता रूपी कितने भी कपड़े ओढ़ ले भीतर से हर आदमी के अन्दर आदिम प्रवृत्तियाँ जिन्दा रहती हैं.
अपनी अपनी मूंछ पर, सब ही देवें ताव. हर व्यक्ति अपने को महत्वपूर्ण समझता है. आत्म सम्मान सब को प्यारा होता है.
अपनी आँख फूटी तो फूटी पड़ोसी का असगुन तो हुआ. दूसरे को नुकसान पहुँचाने की ललक में अपना चाहे कितना बड़ा नुकसान हो जाए. नीच प्रवृत्ति.
अपनी आँखें मुझे दे दे, तू घूम फिर कर देख. निपट स्वार्थपरता.
अपनी ओर निबाहिए, बाकी की वह जाने. आपका जो कर्तव्य है उसे आप निभाइए, बाकी ईश्वर के हाथ में है.
अपनी करनी अपने आगे. जो कर्म आपने किए हैं वही आपके आगे आते हैं.
अपनी करनी किससे कहे, पेट मसोसा दे दे रहे. अपने से कोई गलती हुई है तो किसी से कहते नहीं बन रहा है, पेट में मसोस दे दे कर रह जाना पड़ रहा है.
अपनी करनी पार उतरनी. परेशानियों से पार पाने के लिए अपना पुरुषार्थ ही काम आता है.
अपनी कोख का पूत नौसादर. नौसादर से तात्पर्य उत्कृष्ट वस्तु से है. अपनी सन्तान सब को अच्छी लगती है.
अपनी गई का कोई गम नहीं, जेठ की रही का गम है. अपनी चीज़ चोरी चली गई उसका इतना दुख नहीं है, जेठ की चोरी नहीं हुई इस का दुख अधिक है.
अपनी गरज बावली. स्वार्थ आदमी को अंधा बना देता है.
अपनी गरज से लोग गधे को भी बाप बनाते हैं (अपनी गरज लोग गदहा चरावत.). अर्थ स्पष्ट है.
अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है. सामान्य लोग वैसे तो डरपोक होते हैं पर अपने इलाके में बहादुरी दिखाते हैं उनके लिए यह कहावत कही जाती है.
अपनी गाँठ पैसा, तो पराया आसरा कैसा. पुराने लोग बाहर जाते समय रुपये पैसे को धोती की फेंट में गाँठ बाँध कर रखते थे. गाँठ में पैसा माने अपने पास पैसा होना. अपने पास ही पैसा होगा तो आवश्यकता पड़ने पर किसी का मुँह क्यों देखना पड़ेगा.
अपनी घानी पिर जाए, फिर चाहे तेली के बैल को शेर खा जाए. निपट स्वार्थ. अपना काम निकल जाए, फिर चाहे कोई मरे या जिए. घानी – कोल्हू, जिसमें सरसों को पेर कर तेल निकाला जाता है. देखिए परिशिष्ट.
अपनी चाल में गधा भी मस्ताना. अधिक इठला कर चलने वालों का मजाक उड़ाने के लिए.
अपनी चिलम भरने को मेरा झोपड़ा जलाते हो. अपने छोटे से फायदे के लिए किसी का बहुत बड़ा नुकसान करना महापाप है.
अपनी छाछ को कोई खट्टा नहीं कहता. अपनी चीज़ को कोई घटिया नहीं बताता.
अपनी छींक महा दुखदाई, अपनी छींक राम बन गयऊ, दसरथ मरन तुरंते भयऊ, सीता हरन तुरंते भयऊ. अन्धविश्वासी लोग छींक आने को लोग बहुत अशुभ मानते हैं. कहावत में कहा गया है कि छींक आने से जो अपशकुन हुआ उसी के कारण राम को वनवास जाना पड़ा, दशरथ की मृत्यु हुई और सीता का हरण हुआ.
अपनी छोड़ पराई तक्के, सो सब जाए गैब के धक्के. जो अपनी सम्पत्ति छोड़ कर दूसरे की चीज़ पर कुदृष्टि रखता है उस का सब कुछ ईश्वर छीन लेता है. गैब – अदृश्य शक्ति.
अपनी जांघ उघारिए, आपहिं मरिए लाज. आपसी झगडे में अपने घर का भेद दूसरों के सामने खोलने वाले को अंततः स्वयं ही लज्जित होना पड़ता है.
अपनी झोली के चने दूसरे की झोली में डाले. अपने लाभ की चीज़ अज्ञानतावश दूसरे को दे देना.
अपनी टेक भँजाई, बलमा की मूंछ कटाई. अपनी हठ को पूरा करने के लिए अपनों को हानि पहुँचाने वाले के लिए. एक बार स्त्री बीमारी का बहाना करके लेट गई. उसके पति ने बहुत इलाज किया, परन्तु आराम नहीं हुआ. एक दिन स्त्री ने कहा, तुम अपनी मूंछ मुड़ा डालो तो मैं अच्छी हो जाऊंगी. पति ने ऐसा ही किया। दूसरे दिन ही स्त्री चारपाई से उठ बैठी और मजे में चक्की पीस कर गाने लगी- अपनी टेक भँजाई, बलमा की मूंछ कटाई.
अपनी दाढ़ी की आग सब पहले बुझाते हैं. अपनी विपत्ति टालने का प्रयास पहिले किया जाता है.
अपनी नरमी दुश्मन को खाय. आप यदि झुक जाएँ तो दुश्मनी समाप्त हो सकती है. (हार मानी, झगड़ा टूटा).
अपनी नाक़ कटे तो कटे, दूसरे का सगुन तो बिगड़े. उन नीच प्रकृति के लोगों के लिए जो दूसरों को हानि पहुंचाने के लिए अपना नुकसान भी कर सकते हैं.
अपनी नाक पर मक्खी कोई नहीं बैठने देता. अपना अहं सभी को प्यारा होता है.
अपनी नींद सोना, अपनी नींद उठना. पूरी आज़ादी.
अपनी पगड़ी अपने हाथ. यहाँ पगड़ी का अर्थ मान सम्मान से है. कहावत का अर्थ है – आप का कितना आदर हो, यह आपके अपने हाथ में है. जैसा व्यवहार करोगे, वैसा ही सम्मान पाओगे.
अपनी पीठ खुद को न दिखाई दे. 1.अपनी कमियाँ किसी को नहीं दिखतीं. 2.आपकी पीठ पीछे लोग आपको क्या कहते हैं इसकी चिंता नहीं करना चाहिए.
अपनी फूटी न देखे, दूसरे की फूली निहारे. आँख की एक बीमारी होती है जिसमें आँख फूल जाती है और उस से दिखाई कम देता है. कहावत उन लोगों के लिए है जो अपनी फूटी हुई आँख (बहुत बड़ी कमी) नहीं देख रहे हैं दूसरे की फूली हुई आँख (छोटी कमी) के दोष गिना रहे हैं.
अपनी बारी घोलम घाला, हमरी बारी भूखम भाखा. अपनी बारी पर खूब माल खाए, हमारी बारी आई तो भूखा ही टरका दिया.
अपनी ब्याहता को लाने क्या जाना. अपने घर के लोगों की कद्र न करने वालों के लिए.
अपनी मां को डाकिन कौन बतावे. अपना संबंधी यदि बिल्कुल गलत भी हो तब भी कोई स्वीकार नहीं करता.
अपनी लिट्टी पर सबै आग धरत. लिट्टी – बाटी. अपने स्वार्थ के लिए हर कोई प्रयास करता है.
अपनी हंसी हंसना, अपना रोना रोना. केवल अपना स्वार्थ देखना. दूसरे के सुख दुख में शरीक न होना.
अपनी हैसियत से अतिथि का सत्कार करो, अतिथि की हैसियत से नहीं. यदि हमारे घर कोई ऐसा अतिथि आता है जो हमसे बहुत अधिक सम्पन्न है तो हमें उसके सत्कार में झूठे दिखावे के लिए अपनी हैसियत से अधिक खर्च नहीं करना चाहिए और यदि कोई छोटा व्यक्ति आए तो उस का भी भली प्रकार सत्कार करना चाहिए (छोटा आदमी समझ कर टरका नहीं देना चाहिए).
अपने अपने ओसरे कुँए भरे पनिहार. ओसरा या ओसारा – घर के बाहर का हिस्सा. अपनी बुनियादी जरूरतों का इंतजाम सभी करते हैं.
अपने अपने घर में सभी ठाकुर. यहाँ ठाकुर का अर्थ है स्वामी. हर आदमी अपने घर का स्वामी है, चाहे वह गरीब हो या धनवान.
अपने अपने भाग से खाते हैं सब कोय. सब अपने अपने भाग्य से अन्न जल पाते हैं. सन्दर्भ कथा 12. एक राजा के चार लड़के थे. एक दिन उसने उनको बुला कर पूछा – तुम सब किसके भाग्य से खाते हो. तीन ने उत्तर दिया – हम सब आपके भाग्य से खाते हैं. परन्तु चौथे ने उत्तर दिया – संसार में सब मनुष्य अपने भाग्य से खाते-पीते हैं. मैं भी अपने भाग्य से खाता हूँ. लड़के की यह बात राजा को बहुत बुरी लगी और उसे घर से निकाल दिया कि देखें तुम किस प्रकार अपने भाग्य से खाते हो.
लड़का कुछ दिनों इधर-उधर घूमने के पश्चात एक राजा के राज्य में पहुँचा जहाँ संयोग से उसकी पुत्री के साथ उसका विवाह हो गया और दहेज में आधा राज्य भी मिल गया. उसके पिता को जब यह समाचार मिला तो उसे स्वीकार करना पड़ा कि वास्तव में सब अपने-अपने भाग्य से खाते हैं.
अपने ऊपर आवे घात, बामन मारे नाहीं पाप. वैसे तो ब्रह्म हत्या को महापाप माना गया है लेकिन यदि ब्राह्मण आप के प्राण लेने की कोशिश कर रहा हो तो उसकी हत्या भी पाप नहीं है.
अपने ऐब सब लीपते हैं. अपनी कमियाँ सब छिपाते हैं.
अपने ओसारे, गोड़ पसारे. ओसारा – घर के बाहर का हिस्सा. अपने घर पर सब प्रकार की आजादी होती है.
अपने कहे, अपने ही समझे. ऐसे लोगों के लिए जो अपने आप कुछ बोलते हैं और अपने आप ही समझते हैं.
अपने किए का क्या इलाज. जो परेशानी हम ने खुद पैदा की है उस के लिए किसी और को दोष कैसे दे सकते हैं. सन्दर्भ के लिए – कहावतों की कहानियां. कथा संख्या 13. एक किसान को पास के जंगल में रहने वाली एक लोमड़ी पर बड़ा गुस्सा आता था क्योंकि वह अकसर घात लगा कर उसकी मुर्गियों को खा जाती थी. एक दिन किसान ने शिकंजा लगा कर उस लोमड़ी को पकड़ लिया. खूब कड़ी सजा देने के इरादे से किसान ने उसकी पूंछ में ढेर सा फटा-पुराना कपड़ा लपेटा, उस में मिटटी का तेल डाला और आग लगाकर उसे छोड़ दिया. लेकिन ये क्या! लोमड़ी तेजी से किसान के खेत की तरफ भागी. खेत में गेहूं की पकी फसल कटने को तैयार थी. लोमड़ी की पूंछ से फसल में आग लग गई और पूरी फसल जलकर खाक हो गई. अब तो किसान ने सिर पीट लिया, पर दोष किसे दे? इस तरह यह कहावत बन गई.
अपने कुचाल चलें, धी बहू को उपदेसें. उन स्त्रियों के लिए जिनका स्वयं का आचरण तो ठीक नहीं है पर बेटी और बहू को अच्छे आचरण के लिए उपदेश देती हैं. माँ बाप को पहले स्वयं अच्छा व्यवहार करना चाहिए.
अपने को आंक, फिर दरवाजा झाँक. पहले अपनी कमियाँ देखो फिर दूसरे के घर में झांको.
अपने को सूझता नहीं, औरों से बूझता नहीं. किसी ऐसे व्यक्ति के लिए जिसकी अपनी बुद्धि भी काम नहीं करती और वह औरों से पूछता भी नहीं है.
अपने खायें, औरों को ग्यारस बतायें. स्वयं तो ठूंस कर खायें, दूसरों से कहें एकादशी व्रत रखो.
अपने खुजाए ही खुजली मिटती है. अपनी व्यक्तिगत आवश्यकताओं को व्यक्ति स्वयं ही पूरा कर सकता है.
अपने गाँव आग लागे, आन गांवे धूआं. अपने घर में कोई अनर्थ होता है तो उस की प्रतिध्वनि दूर तक जाती है.
अपने घर की घरनी और चावल की चोरनी. अपने घर में ही कोई चोर हो तो उसे पकड़ना बहुत कठिन होता है.
अपने घर की पुरखिन, दूसरे के घर में बिलार. अपने घर में सम्मान पाने वाली कोई वयोवृद्ध स्त्री जब दूसरे घर में जाकर रहती है तो उसे अपमानित होकर भीगी बिल्ली बनकर रहना पड़ता है.
अपने घर की मोटी भली, दूसरे घर पतली नाहीं. अपने घर के मोटे अनाज की मोटी रोटी भली है, मगर दूसरे के घर की गेहूँ की पतली रोटी अच्छी नहीं है. अपने घर का खराब भोजन दूसरे घर से कहीं अच्छा होता है.
अपने घर खाना नहीं तो हमरे घर आना नहीं. तुम्हारे घर में खाना न हो तो हमारे घर भी मत आना. संकट के समय मदद मांगने वालों से पल्ला झाड़ना.
अपने घर में बिलौटा बाघ. अपने इलाके में हर आदमी बहादुर होता है. (अपने घर में कुत्ता भी शेर).
अपने घर सत्तू न, अनका घर मांगे पेड़ा. अपने घर में तो सत्तू तक नसीब नहीं है और दूसरे के घर में पेड़ा खाने की फरमाइश कर रहे हैं.
अपने जोगी नंगा तो का दिए वरदान. जोगी खुद नंगे हैं तो किसी को क्या वरदान देंगे. जिसके पास खुद के लिए साधन न हो वो आपको क्या देगा.
अपने देस के टूका भले, परदेस के समूच नाहीं. देश में रह कर आधी कमाई परदेस की पूरी कमाई से बेहतर है.
अपने पहरू, अपने चोर. खुद ही पहरेदार हैं और खुद ही चोर हैं. (जैसे आजकल के नेता)
अपने पूत कुआँरे फिरें, पड़ोसी के फेरे. अपने लड़कों की शादी नहीं हो रही है, पड़ोसियों के सम्बन्ध करा रहे है. उन लोगों के लिए कहा गया है जो अपने घर की समस्याएं सुलझा नहीं पाते और परोपकारी बने फिरते हैं.
अपने पूत को कोई काना नहीं कहता. अपने प्रिय लोगों की कमियों को सब छिपाते हैं.
अपने बच्चे को ऐसा मारूं कि पड़ोसन की छाती फटे (अपनी बेटी को ऐसा मारूं कि बहू सहम जाए). दूसरे के मन में डर बैठाने के लिए अपने पर जुल्म करना.
अपने बावलों रोइए गैर के बावलों हंसिए. यदि अपने घर में कोई पागल या मंदबुद्धि है तो आप उस पर रोते हैं और दूसरे के घर में है तो उस पर हँसते हैं.
अपने बिछाए कांटे अपने पैरों में ही गड़ते हैं. जो दूसरों के लिए षड्यंत्र रचते हैं वे स्वयं उनका शिकार होते हैं.
अपने मठा को कोऊ पतला नहीं कहत. अपनी वस्तु को कोई बुरा नहीं कहता.
अपने मन का मनुवा, चाहे रस पिये चाहै पनुवा. मनुवा – मनुष्य, पनुवा – गुड़ के कड़ाहे का धोवन. अपने मन के हैं, चाहे रस पियें, चाहे गुड़ के कड़ाहे का धोवन. मनमानी करने वाले को कौन मना कर सकता है.
अपने मन की बात, फकीर रोटी बनाए के भात. फकीर लोग अपनी मर्जी से ही चलते हैं.
अपने मन के जौकी, भात पकाए के लौकी. (भोजपुरी कहावत) अपने मन में जो आए वही करेंगे.
अपने मन के मौजी, माँ को कहें भौजी. मनमौजी लोग कुछ भी कर सकते हैं.
अपने मन से जानिए पराए मन की बात. यदि आप दूसरे के मन की बात जानना चाहते हैं तो सोचिए कि यदि आप उस की जगह होते तो क्या चाहते.
अपने मन से पूछिए, मेरे मन की बात. यदि आप अपने मन में झाँक कर देखेंगे तो आप को समझ में आ जाएगा कि मैं क्या चाहता/चाहती हूँ. (अक्सर पत्नियाँ अपने पतियों से इस प्रकार से कहती हैं).
अपने मने बिलाई परधान. बिलाई – बिल्ली. तुच्छ से तुच्छ व्यक्ति भी अपने को महत्वपूर्ण समझता है.
अपने मरे बिना स्वर्ग नहीं दीखता. 1. जब तक अपने पर न बीते तब तक दूसरों की परेशानी का एहसास नहीं होता. 2. खुद किए बिना कोई काम नहीं होता.
अपने मियाँ दर दरबार, अपने मियाँ चूल्हे भाड़. किसी ऐसे व्यक्ति का मजाक उड़ाने के लिए जो बड़ी पोस्ट पर हो और तब भी उसे घर के काम भी करने पड़ते हों.
अपने मुँह न बड़ाई छाजे. अपनी प्रसंसा स्वयं करना अच्छा नहीं लगता.
अपने मुंह मियाँ मिट्ठू. अपनी प्रशंसा स्वयं करना. इंग्लिश में कहावत है – To blow one’s own trumpet.
अपने मुंह शादी मुबारक. अपनी तारीफ़ खुद करना. रूपान्तर – अपने मुँह धनाबाई.
अपने लगे तो देह में, और के लगे तो भीत में. दूसरे के कष्ट की कोई परवाह न करना. अपने लगी तो कह रहे हैं हाय बहुत जोर से लगी, दूसरे के लगी तो कहते हैं तुम्हारे लगी ही कहाँ, दीवार में लगी.
अपने सर में सौ चोटी रखूँ, किसी को इससे क्या. मैं जैसे भी सिंगार करूँ मेरी मर्जी. समाज की सामान्य धारणाओं से अलग मूर्खतापूर्ण सोच.
अपने सुई भी न चुभे, दूसरे के भाले घुसेड़ दो. दूसरे के कष्ट की कोई परवाह न करना.
अपने से बचे तो और को दें (अपने से बचे तो बाप को दे). स्वार्थी लोगों के लिए कहा गया है.
अपने हाथ का काम, आधी रात का गहना. जो काम हम अपने हाथ से कर सकते हैं वह हमारे लिए हर समय सुलभ है और गहने की तरह कीमती भी है.
अपने हाथ की पोई, बलि-बलि जाऊँ, जैसे रुचे वैसे खाऊँ. बलि-बलि जाना – न्योछावर हो जाना. अपने हाथ का बनाया हुआ खाना इतना रुचिकर होता है कि जैसा मन भाये, जब मन चाहे बना के खाये.
अपने हाथों अपनी आरती. अपनी प्रशंसा स्वयं करना.
अपने हाथों अपने कान नहीं छेदे जाते. अपने कुछ काम ऐसे भी होते हैं जिन्हें हम अपने हाथ से नहीं कर सकते.
अपने ही जलते हैं. किसी की तरक्की देख कर सबसे अधिक अपने लोग ही जलते हैं. इंग्लिश में कहावत है – The worst hatred is that of relatives.
अपने हुनर में हर आदमी चोर है. अपने अपने व्यवसाय में हर व्यक्ति कुछ न कुछ हेराफेरी करने का जुगाड़ कर लेता है, और मज़े की बात यह है कि वह इस को जायज भी ठहराता है.
अपनो है फिर आपनो, जा में फेर न सार, गोड़ नमत निज उदर को, जानत सब संसार. घुटने जब मुड़ते हैं तो पेट की ओर ही जाते हैं. अपना व्यक्ति लौट कर अपने के पास ही आता है. गोड़ – घुटना.
अपनों से जले, पड़ोसियों से नाता, ऐसी बुद्धि न देय विधाता. भगवान ऐसी बुद्धि किसी को न दे कि वह अपनों से ईर्ष्या करे और पड़ोसियों से सम्बन्ध जोड़ता फिरे.
अपनों से सावधान. इंसान को सब से अधिक धोखा अपनों से ही मिलता है.
अपमान की चुपरी नाय, मान की सूखी खाय. अपमान के साथ मिलने वाली चुपड़ी रोटी के मुकाबले सम्मान के साथ मिलने वाली रूखी रोटी अच्छी है.
अप्रैल, नवम्बर, जून, सितम्बर चार महीने तीस, फरवरी अट्ठाइस उन्तीस, बाकी सब इक्तीस. अर्थ स्पष्ट है.
अफ़लातून के नाती बने हैं. अपने को बहुत अकलमंद समझने वाले के लिए. यूनान के प्रसिद्ध दार्शनिक अरस्तु (Aristotle) को अरबी में अफलातून कहते हैं.
अफवाहों के पंख होते हैं. अफवाहें बहुत तेज़ी से फैलती हैं. इंग्लिश में कहावत है – Nothing amongst mankind, swifter than rumour. इस कहावत को इस प्रकार से भी कहा गया है – अफवाहें बिना पंख के उड़ती हैं.
अफ़सोस कि दिल गड्ढे में. किसी बात पर अफ़सोस जाहिर करने का मज़ाकिया लहजा.
अफ़ीम या खाए अमीर या खाए फकीर. अफ़ीम महँगी है. या तो बहुत पैसे वाला खा सकता है, या मांगने वाला. इस में एक अर्थ यह भी है कि अफ़ीम आदमी को खाती है, या अमीर को या फकीर को.
अफ़ीमची तीन मंजिल से पहचाना जाता है. अपनी लड़खड़ाती चाल के कारण अफ़ीमची दूर से पहचाना जाता है.
अब आया ऊँट पहाड़ के नीचे. रेगिस्तान में सब तरफ रेत ही रेत होती है. कोई ऊंची चीज नहीं होती. इसलिए ऊँट यह समझता है कि वह सबसे ऊंचा है. लेकिन जब वह पहाड़ के नीचे पहुंचता है तो उसे अपनी औकात समझ में आती है. कोई आदमी जो अपने को बहुत शक्तिशाली और होशियार समझता हो जब उसका सामना अपने से ज्यादा ताकतवर आदमी से होता है तो यह कहावत कही जाती है.
अब कथाकारी भये हैं व्यापारी. 1. अब साहित्यकार अपनी कला का व्यापार करने लगे हैं. 2. धार्मिक कथाओं का आयोजन अब बहुत बड़ा व्यापार हो गया है.
अब की अब के साथ, जब की जब के साथ. वर्तमान में हमें क्या करना है इस पर ध्यान देने की सबसे अधिक आवश्यकता है. पहले क्या हुआ था या आगे क्या हो सकता है ये बातें इतनी महत्वपूर्ण नहीं हैं.
अब की छई की निराली बातें. आजकल की पीढ़ी की बातें निराली हैं.
अब की बार, बेड़ा पार. कोई काम करने के लिए बार बार प्रयास करना पड़े तो जोश दिलाने के लिए.
अब के बचे तो सब घर रचे. किसी बहुत बड़ी परेशानी या बीमारी के दौरान आदमी सोचता है कि इस से बाहर निकलूँ फिर सब ठीक कर लूँगा. (और उस परेशानी के बीतते ही सब भूल जाता है)
अब कै मारे तो जानूं. कायर आदमी की ललकार. अब के मार लिया सो मार लिया, अब मार के देख.
अब तब काल सीस पर नाचे. मृत्यु हर व्यक्ति के सर पर हर समय नाचती रहती है.
अब दिल्ली दूर नहीं. अब काम पूरा होने ही वाला है.
अब ना कुसल होई हो पिया, तुन ले आए जनक की धिया. मंदोदरी का रावण के प्रति कथन. कोई गलत काम करने वाले अपने निकट सम्बन्धी को चेताने के लिए यह कहावत कही जाती है.
अब पछिताए होत क्या, जब चिड़ियाँ चुग गईं खेत. खेती जब तैयार खड़ी होती है तो उसकी रखवाली करनी होती है वरना चिड़ियों का झुंड आकर फसल के दाने खा जाता है. यह कहावत ऐसे व्यक्ति के लिए कही जाती है जो आलस में समय पर जरूरी काम नहीं करता और जब काम बिगड़ जाता है तो पछताता है.
अब भी चेत जाओ तो पहला पन्ना फाड़ दिहें. किसी दोषी व्यक्ति प्रलोभन दिया जा रहा है कि अब भी संभल जाओगे तो पुराने आरोपों का लेखा जोखा हटा देंगे. आत्म समर्पण करने वाले डाकुओं से भी ऐसा कहा जाता है.
अब भी मेरा मुर्दा तेरे जिन्दा पर भारी है. मेरे हालात बिगड़ गए हैं तो क्या, मैं अब भी तुझ से बेहतर हूँ.
अब लौं नसानी अब न नसैहों. अब तक मैं ने समय नष्ट किया (जन्म बेकार गँवाया) अब नहीं गंवाऊंगा.
अब सतवंती होकर बैठी, लूट लिया सारा संसार. (अब सतवन्ती बनी, लूट खायो संसार.) कोई भ्रष्ट व्यक्ति अन्त समय में जन कल्याण की बातें करे तो.
अबर कुटनहार बार बार फटके. अबर – कमजोर, कुटनहार – कूटने वाली. कूटना मेहनत का काम है जब कि फटकना बहुत आसान. कमजोर कूटने वाली मेहनत से बचने के लिए कूटती कम है और फटकती अधिक है.
अबरे उनचास बयार. अबरे – कमजोर के लिए. पुराणों के अनुसार पवन उनचास प्रकार के होते है जो अलग अलग दिशाओं से आते हैं. कहावत का अर्थ है कि कमजोर के ऊपर सब दिशाओं से कष्ट आते हैं.
अबरे के भैंस बियाए, सारा गाँव मटकी ले धाए (आंधर के गाय बियाइल, टहरी लेके दौरलन). (भोजपुरी कहावत) गरीब या अंधे आदमी की गाय भैंस बियाही है तो सारा गाँव मटकी ले कर दौड़ा चला आ रहा है. मजबूर आदमी की मजबूरी का सब फायदा उठाना चाहते हैं. टहरी – मटकी.
अबल पर सभी सबल. कमजोर पर सब जोर जमाते हैं.
अबला को सतावे उसे राम सतावे. जो निर्बल (विशेषकर स्त्री) को सताता है उसे ईश्वर दंड देता है.
अब्बर पे हम जब्बर हैं, जब्बर के हम दास. निर्बल के ऊपर जोर जमाना और सबल की जी हुजूरी करना.
अभागा कमाए, भाग्यवान खाए. अभागा व्यक्ति बहुत मेहनत कर के पैसा कमाता है पर भाग्य में न होने के कारण उसकी मेहनत का लाभ उसे न मिल कर भाग्यवान को मिलता है. जो बहुत कंजूस है वह भी एक प्रकार से अभागा ही है.
अभागा गया ससुराल, वहाँ भी मठा भात. एक व्यक्ति अपने घर पर रोज रोज मट्ठा भात खा कर तंग आ गया तो कुछ अच्छा खाने की इच्छा ले कर ससुराल गया, लेकिन वहाँ भी उसे मट्ठा भात ही खाने को मिला.
अभागा पूत त्यौहार के दिन रूठे. त्यौहार के दिन रूठता है तो उस को अच्छे अच्छे पकवान खाने को नहीं मिलते.
अभागिये चोर पे बिल्ली भी भूंसे है. चोर की किस्मत खराब हो तो कुत्ता तो क्या बिल्ली भी उस पर गुर्राती है.
अभागी की पतरी में छेद. पतरी – पत्तल. भाग्यहीन को सब जगह विपत्ति भोगनी पड़ती है.
अभागे की जाई, गरीब के गले लगाई. अभागे व्यक्ति की बेटी की शादी गरीब से ही होती है.
अभागे को जैसा वार वैसा त्यौहार. जिस के भाग्य में सुख न लिखा हो उस के लिए त्यौहार भी सामान्य दिनों की भांति महत्वहीन होते हैं.
अभी एक बूंट की दो दाल नहीं हुई है. बूंट माने चना. चने को दल के दाल बनाई जाती है. अभी बूंट की दाल नहीं हुई है, मतलब अभी मामला तय नहीं हुआ है.
अभी कै दिन कै रात. अधिकार पा कर इतराने वाले आदमी से सवाल – कितने दिन तुम्हारा यह रुआब चलेगा.
अभी क्या मियाँ मर गए के रोजे घट गए. अगर तुम वाकई कोई काम करना चाते हो तो अभी भी मौका है.
अभी तो बेटी बाप की है. अभी फैसला नहीं हुआ है / बंटवारा नहीं हुआ है. जब तक फेरे पूरे सात नहीं हो जाते स्त्री अपने पति की नहीं होती बल्कि बाप की ही बेटी होती है.
अभी दिल्ली दूर है. अभी काम पूरा होने में समय लगेगा. सन्दर्भ कथा – ये एक पुरानी कहावत है जिसका इस्तेमाल हम तब करते हैं जब लक्ष्य प्राप्त करने में देरी हो. गयासुद्दीन तुग़लक़ के समय दिल्ली में हजरत निज़ामुद्दीन औलिया नाम के एक सूफी संत थे. किसी कारण से गयासुद्दीन तुग़लक़ निज़ामुद्दीन औलिया से नाराज हो गया और उन्हें दिल्ली छोड़ने का हुक्म दिया. इसी बीच उसे युद्ध के लिए बंगाल जाना पड़ा. लौटते समय उसने सन्देश भिजवाया कि उसके पहुँचने से पहले ही हजरत दिल्ली छोड़ दें. जवाब में हजरत ने फ़ारसी में कहा – हनोज दिल्ली दूरस्त (अभी दिल्ली दूर है). दिल्ली पहुँचने से चार मील पहले ही गयासुद्दीन तुगलक अपने बेटे मुहम्मद बिन तुगलक के षडयंत्र का शिकार हो कर मारा गया.
अभी पराई माँ का मुँह नहीं देखा. लाड़-प्यार से पली लड़की के प्रति माँ का कथन, कि मेरे पास मनमाना करती हो, सुराल जाओगी तब पता चलेगा, सास अक्ल दुरुस्त करेगी.
अभी लोटे को जलपात्र कहना बाकी है. एक अहीर अपनी ससुराल गया. वहाँ लोगों पर प्रभाव जमाने के लिए पानी को जल कहने लगा. सब लोगों ने उस के ज्ञान की प्रशंसा की तो फूल के कुप्पा होता हुआ बोला – अभी क्या, अभी तो लोटे को जलपात्र कहना बाकी है. अल्पज्ञानी बडबोले लोगों पर व्यंग्य.
अभी सेर में पौनी भी नहीं कती. अभी काम पूरा नहीं हुआ है. रुई को कात के उसका सूत बनता है. एक सेर रुई में से अभी पौन सेर भी नहीं कती है. सूत कातने के लिए एक छोटी सी तकली होती थी या चरखे से सूत काता जाता था. (देखिये परिशिष्ट)
अमर बेल बिन मूल की प्रतिपालत है ताहि. अमर बेल की कोई जड़ नहीं होती, फिर भी वह फलती फूलती है, इसी प्रकार ईश्वर सब को पोषण देता है.
अमर सिंह को मरते देखा, धनपत मांगें भीख, लछमी कंडा बीनत फिरतीं, इसें नाम छुछइयाँ ठीक. नाम से कुछ नहीं होता. माँ बाप प्यार से जो नाम रख दें वही अच्छा है. सन्दर्भ कथा – पहले के जमाने में यह प्रथा थी कि यदि किसी दंपत्ति की बहुत सी संतानें जन्म लेने के बाद मृत्यु को प्राप्त हो जाएं तो वे बचने वाली सन्तान का नाम ऐसा रखते थे जिससे उसे नजर न लगे (जैसे घूरेमल, मांगेराम आदि) ऐसे ही एक आदमी का नाम उसके माता पिता ने छुछइयाँ रखा था. इस बात से वह बहुत परेशान रहता था. एक बार वह इतना हताश हो गया कि उसने मरने की ठान ली. मरने के लिए चला तो रास्ते में उसे एक शवयात्रा मिली. उसने लोगों से मरने वाले का नाम पूछा तो लोगों ने बताया अमर सिंह. और आगे बढ़ा तो एक आदमी बड़ी दीन हीन अवस्था में भीख मांगते दिखा. उसका नाम पूछा तो मालूम हुआ उसका नाम था धनपत. उसके आगे लक्ष्मी नाम की एक गरीब फटेहाल औरत कंडे बीनती मिली. तो उस की समझ में आया कि नाम में कुछ नहीं रखा. तब उसने यह कहावत कही और बोला मेरा नाम छुछइयाँ ही ठीक है.
अमरौती खाके कौन आया. इस संसार में कोई अमृत पी के नहीं आया, सब को एक दिन मरना है.
अमली मिसरी छांड़ि के खैनी खात सराह. अमली – अमल (नशा) करने वाला, खैनी – एक प्रकार का तम्बाखू. जिसको तम्बाखू की लत होती है वह मिश्री जैसी स्वादिष्ट चीज़ को छोड़ कर तम्बाखू को शौक से खाता है. मूर्ख व्यक्ति संसार में उपलब्ध उत्तम वस्तुओं को छोड़ कर हानिकारक पदार्थों के पीछे भागता है.
अमानत में खयानत. किसी की चल अचल संपत्ति को नुकसान पहुँचाना. विश्वास घात. जब कोई आदमी किसी पर विश्वास करके उसके पास धरोहर के रूप मे कोई चीज छोड़ जाए तो उस आदमी को उसको अमानत की तरह रखना चाहिए. अगर उस व्यक्ति ने उस चीज का दुरुपयोग किया या क्षति पहुँचाई तो वह खयानत कहलाती है.
अमीन की बिगाड़ी जमीन और माँ बाप का बिगाड़ा नाम, बड़ी मुश्किल से सुधरें. सरकारी मुलाजिम जमीन के कागजों में हेर फेर कर देते हैं तो उसे ठीक करवाना बहुत कठिन होता है. इसी प्रकार माँ बाप बच्चे को जिस बिगड़े हुए नाम से पुकारते हैं वह बड़े होने पर भी उस का पीछा नहीं छोड़ता.
अमीर का उगाल, गरीब का आधार. अमीर आदमी जिस चीज़ को तुच्छ समझ कर फेंक देता है गरीब के लिए वह चीज़ भी बड़े काम की हो सकती है.
अमीर का उतार गरीब का सिंगार. धनी व्यक्ति के लिए जो वस्तु अनुपयोगी हो जाती है वह भी गरीब के बहुत उपयोग में आ सकती है. उतार – उतरन, पहन कर छोड़े हुए कपड़े.
अमीर की बकरी मरी गाँव भर रोया, गरीब की बेटी मरी कोई न आया. अर्थ स्पष्ट है.
अमीर को जान प्यारी, ग़रीब को दम भारी. अमीर आदमी के पास सभी सुख सुविधाएँ होती हैं इसलिए वह अधिक दिन जीना चाहता है जबकि गरीब को जीवन बोझ लगता है.
अमीर ने पादा सेहत हुई, गरीब ने पादा बेअदबी हुई. अशिष्ट भाषा में आवाज़ के साथ गैस पास करने को पादना कहते है. लोक भाषा में कुछ इस प्रकार के शब्द अत्यधिक प्रचलन में होते हैं. अमीर आदमी कोई असामाजिक काम करे तो कोई आपत्ति नहीं करता, बल्कि कुछ लोग तारीफ भी कर देते हैं, गरीब कोई ऐसा काम करे तो उसे बुरा भला कहते हैं. इंग्लिश में कहावत है – One law for the rich and another for the poor.
अमीरी और फकीरी की बू चालीस बरस तक नहीं जाती. कोई अमीर अगर गरीब हो जाए या गरीब आदमी अमीर बन जाए तो उन की पुरानी आदतें लम्बे समय तक नहीं जातीं.
अमृत लागे राबड़ी जा में दांत हिले ना जाबड़ी. रबड़ी सबसे बढ़िया खाद्य पदार्थ है जिसे खाने में बिल्कुल मेहनत नहीं होती.
अम्बर के तारे हाथ से नहीं तोड़े जाते. बहुत बड़ी बड़ी हांकने वालों पर व्यंग्य.
अम्बर ने पटका और धरती ने झेला. किसी बहुत मनहूस व्यक्ति के लिए कही गई बात.
अम्बा झोर चले पुरवाई, तब जानो बरखा ऋतु आई. तेज पुरबाई चलने से आम झड़ने लगें तो समझो वर्षा ऋतु आने वाली है.
अम्मा रहती तो दुख कह सुनाती, गंगा रहती तो पैठ नहाती. स्वर्गवासी माँ से मिलने की इच्छा और गंगा में नहाने की इच्छा हर स्त्री को होती है.
अयाना जाने हिया, सयाना जाने किया. अयाना – मासूम व्यक्ति, हिया – हृदय. छोटा बच्चा या मासूम व्यक्ति केवल प्रेम की भाषा समझता है जबकि सयाना व्यक्ति इस बात पर अधिक ध्यान देता है कि उस के ऊपर क्या उपकार किया गया है.
अरका नाइन, बांस की नहरनी (नई नाइन, बांस का नहन्ना.) नहरनी (नेहन्ना) नाखून काटने के औजार को कहते हैं जोकि लोहे का होता है. नई नई नाइन बांस की नहरनी ले कर आई है जिससे नाखून कट ही नहीं सकते. नौसिखिए आदमी का मज़ाक उड़ाने के लिए. (नहरने के चित्र के लिए देखिये परिशिष्ट)
अरका बामनी, तरवा तेल. नई नई ब्राह्मणी सर की जगह तलवों में तेल लगा रही है. कुछ नया करने की चाह में मूर्खतापूर्ण कार्य करने वालों पर व्यंग्य.
अरजी हमारी आगे मरजी तिहारी है. किसी अधिकारी के सामने या ईश्वर के समक्ष कमज़ोर व्यक्ति की प्रार्थना.
अरध तजहिं बुद्ध सरबस जाता. (जब सारा धन जात हो, आधा देओ लुटाय) जब सारा माल जाने का खतरा हो तो बुद्धिमान लोग यह कोशिश करते हैं कि आधे को लुटा कर आधा बचा लो.
अरहर की टट्टी, गुजराती ताला. किसी सस्ती वस्तु की सुरक्षा के लिए महंगा इंतज़ाम. (देखिये परिशिष्ट)
अरे जौहरी बावले सुन मेरे दो बोल, बिन गाहक मत खोल तू गठरी रतन अमोल. जौहरी को सीख दी जा रही है कि तू बिना उपयुक्त ग्राहक के अपने अमूल्य रत्नों की गठरी मत खोल. अगर कोई मूर्खों के बीच में ज्ञान बांटने की कोशिश कर रहा हो तब भी ऐसा कहा जाता है.
अरे बिजूका खेत के काहे अपजस लेत, आप न खावे खेत को और न खाने देत. (बुन्देलखंडी कहावत) बिजूका – काकभगोड़ा. खेत में खड़े पुतले से कहा जा रहा है कि तू क्यों चिड़ियों की बद्दुआ ले रहा है, न खुद खाता है, न ही उन्हें खाने देता है. ईमानदार कर्मचारी से भी भ्रष्ट सहकर्मी ऐसा ही बोलते हैं. देखिए परिशिष्ट.
अर्क तरुन की डाल तें, कहूँ गज बाँधे जांय. कच्चे पेड़ की डाल से हाथी नहीं बांधे जाते. अपर्याप्त साधनों से बड़े बड़े काम नहीं किए जा सकते. अर्क तरु – आक का पेड़.
अर्थ अनर्थ का मूल है. यहाँ अर्थ का अभिप्राय पैसे से है. दौलत सभी प्रकार के अनर्थ की जड़ है.
अर्ध रोग निद्रा हरे, सर्व रोग हरे भूख. यदि रोगी को नींद आने लगे तो इसका अर्थ है उसका आधा रोग दूर हो चुका है और भूख लगने लगे तो पूरा रोग.
अल गई, बल गई, जलवे के वक्त टल गई. बातें बहुत बनाना और काम के समय गायब हो जाना. जलवा – मुसलमानों में नई बहू की मुँह दिखाई. नई बहू को मुंह दिखाई के वक्त रूपये देने होते हैं. घर की कोई औरत बहुत बातें बना रही है, बहू की बलैयां ले रही है, पर मुंह दिखाई के समय गायब हो जाती है.
अलख राजी तो खलक राजी. जिस पर प्रभु प्रसन्न उस से दुनिया राजी है.
अलग हुआ बेटा पड़ोसी बराबर (न्यारा पूत पड़ोसी बराबर). जो बेटा संपत्ति में बंटवारा कर के अपना व्यवसाय व चूल्हा अलग कर ले वह पड़ोसी के समान हो जाता है.
अलबेली गुजरिया, कटहल का झुमका. फैशन के लिए पागल युवतियाँ जो न करें सो थोड़ा.
अलबेली ने पकाई खीर, दूध के बदले डाला नीर. नौसिखिया लोगों का मज़ाक उड़ाने के लिए.
अला बला बंदर के सर. कमजोर के सर दोष मढना.
अला लूँ बला लूँ, थाली सरका लूँ. प्यार भरी बातों में फंसा कर थाली अपनी ओर सरका लेना. किसी को बेबकूफ बना कर अपना मतलब निकालना.
अलूनी सिल कुत्ता भी न चाटे. जिस काम से कुछ प्राप्त न हो उसे कौन करेगा. जिस सिल पर कुछ पीसा गया हो उसे ही कुत्ता चाटेगा. (अलूनी सिल – जिस पर कोई अवशिष्ट न लगा हो).
अल्प विद्या भयंकरी. अधूरा ज्ञान हानिकारक होता है. (नीम हकीम खतरे जान)
अल्पविद्या महागर्वी. जिस को कम ज्ञान होता है वह अपने को बहुत विद्वान समझता है.
अल्पाहारी सदा सुखी. कम खाने वाला सुखी रहता है.(अधिक खाने से रोग होते हैं और घर का बजट बिगड़ता है).
अल्ला तेरी आस, नजर चूल्हे पास. ऊपर से दिखाने को कह रहे हैं कि अल्लाह तेरा आसरा है लेकिन नजर चूल्हे पर ही है.
अल्ला देवे खाने को तो कौन जाय कमाने को. यदि भगवान सब को खिलाएगा तो कोई मेहनत क्यों करेगा.
अल्लाह का घर सब जगह है. गुरुनानक जी ने काबा यात्रा के समय पोंगापंथी मुल्लाओं को यह सीख दी थी और प्रत्यक्ष ऐसा कर के दिखाया था. सन्दर्भ कथा – गुरुनानक देव जी एक बार यात्रा करते हुए मक्का पहुँचे. थके हुए होने के कारण अनजाने में ही वे काबा की ओर पैर कर के सो गए. एक मुल्ला ने जब ये देखा तो गुस्से में आकर उन्हें झकझोर कर जगाया और कहा – चल उठ! अल्लाह के घर की तरफ पैर करता है. नानक बोले – भाई! मुझे तो सारी दुनिया ही अल्लाह का घर नजर आती है. मुझसे उठा नहीं जा रहा, आप ही मेरे पैर घुमा दो. मुल्ला ने दूसरी ओर नानक के पैर घुमा दिए, पर देखता क्या है कि काबा उसी ओर दिख रहा है. हैरत में पड़ कर उसने पैर किसी और दिशा में घुमाए तो काबा उस ओर दिखने लगा. इस पर किसी ने लिखा है – मुल्ला बोला नानक से क्यूँ पैर उधर करता है, नानक बोले काबा तो सब ओर मुझे दिखता है.
अल्लाह यार है तो बेड़ा पार है. ईश्वर जिसका साथ दे उसका कोई काम कैसे रुक सकता है.
अल्लाह सींग दे दे तो वह भी कबूल है. खुदा की मर्जी है तो उसे मानना ही पड़ेगा.
अवगुण तब अजमाइए जब गुण न पूछे कोय. जब आदमी के गुणों की कद्र न हो तो उसे गलत तरीके अपना कर काम निकालना पड़ता है.
अवसर और अंडा एक बार में एक ही आते हैं. मुर्गी एक बार में एक ही अंडा देती है. इसी प्रकार किसी व्यक्ति को एक बार में एक ही अवसर मिलता है. इंग्लिश में कहावत है – Blessings never come in pairs.
अवसर चूके, जगत थूके. जो सही अवसर को भुनाने में चूक जाता है उस की सभी लानत मलानत करते हैं.
अवसर पर दुश्मन को न लगाया हुआ थप्पड़ अपने मुँह पर लगता है. अर्थ स्पष्ट है.
अवसर पर हाथ आए सो ही हथियार. हथियार वही काम का है जो मौके पर उपलब्ध हो.
अव्वल मरना आखिर मरना, फिर मरने से क्या है डरना. पहले मरें या बाद में, मरना एक दिन है ही तो डरना कैसा.
अशर्फियाँ लुटें, कोयलों पर मुहर. महत्वपूर्ण चीजों को लुटाना और महत्वहीन चीजों को संभाल कर रखना. इंग्लिश में कहावत है Penny wise pound foolish.
अस जोड़ा से निगोड़ा भला. जोड़ा – साथी, निगोड़ा- निकम्मा. जब कोई नारी अपने पति की दुष्टता, नीचता आदि से अत्यधिक परेशान हो जाती है तो कहती है कि इससे अच्छा तो कोई निकम्मा पति मिला होता.
असल असल है, नकल नकल है. अर्थ स्पष्ट ही है.
असल कहे सो दाढ़ीज़ार. जो सच कहे वह बुरा है क्योंकि सच कड़वा होता है. (दाढ़ीज़ार – एक गाली)
असाड़ को पैदा भयो, भादों कहे भौत बरसा भई. ऐसे अनुभवहीन व्यक्ति के लिए जिसने दुनिया में अभी कुछ देखा-सुना ही न हो. रूपान्तर – सावन में जन्मा सियार, भादों में आई बाढ़, बाप रे बाप ऐसी बाढ़ कबहुं न देखी.
असाढ़ चूका किसान और डाल चूका बंदर. आषाढ़ में जो किसान बुवाई करने से चूक जाता है वह पछताता ही रह जाता है (जिस प्रकार डाल से डाल पर छलांग लगाने वाला बन्दर डाल पकड़ने से चूक जाए तो पछताता है).
असाढ़ में खाद खेत में जावै, तब भरि मूठि दाना पावै. खाद को असाढ़ के महीने में डालने से फसलों में अच्छी पैदावार होती है.
असाढ़े जोतें लडके बारे, सावन भादों में हरवाहे, क्वार में जोतें घर के बेटा, तब हों ऊंचे होवनहारे. आषाढ़ मास में खेत जोतना आसान होता है इसलिए लड़के हल जोत सकते हैं, सावन भादों में हलवाहे मजदूर खेत जोत सकते हैं, पर सबसे कठिन क्वार में हल जोतना होता है जिसमें स्वयं घर के लोगों को लगना पड़ता है.
असोज (आश्विन) में बरसें मोती. क्वार के महीने में थोड़ी सी वारिश से खेती को बहुत लाभ होता है.
अस्सी की आमदनी चौरासी का खर्चा. जब खर्च आमदनी से अधिक हो.
अस्सी की उमर, नाम मियां मासूम. नाम के विपरीत शख्सियत.
अस्सी चुटकी नब्बे ताल, तब जानो खैनी के हाल. खाने वाली तम्बाखू को अस्सी बार चुटकी से मसला जाए और नब्बे बार ताली मारी जाए तो उसे खाने का मजा आता है. खैनी खाने वाले किसी अनुभवी व्यक्ति का कथन.
अस्सी बथुआ नब्बे पतार, जुग जुग जीए सनकसार. बथुए का बीज अस्सी वर्ष, पतार का नब्बे वर्ष और सनकसार का बीज युगों तक मिटटी में जीवित रहते हैं. ये सभी खेत में उगने वाले खर पतवार हैं.
अस्सी बरस पूरे किये फिर भी मन फेरों में. 1. अस्सी साल के हो गए हैं फिर भी हेर फेर में ही मन लगता है. 2. अस्सी साल के हो गये हैं पर शादी करना चाह रहे हैं.
अहंकार की अगिनि में जलत सकल संसार. सारा संसार अहंकार के रोग से ग्रस्त है.
अहमक से पड़ी बात, काढ़ो सोटा तोड़ो दांत. मूर्ख से पाला पड़े तो डंडा निकालो और दांत तोड़ दो.
अहमद की दाढ़ी बड़ी या मुहम्मद की. बेकार की बहस.
अहमद की पगड़ी महमूद के सर. बेतुका काम या एक का नुकसान कर के दूसरे को लाभ पहुँचाना.
अहिंसा परमोधर्म: किसी के प्रति हिंसा न करना सबसे बड़ा धर्म होना चाहिए. लेकिन इसके आगे कहा गया है – ‘धर्म हिंसा तथैव च’ जिसका अर्थ है – धर्म की रक्षा के लिए हिंसा करनी पड़े तो उचित है.
अहिर मिताई तब करे जब सब मीत मरि जाए. अहीर से दोस्ती तब करो जब सब दोस्त मर जाएँ. अन्य बिरादरी के लोग अहीरों को अनपढ़, अशिष्ट और स्वार्थी मानते हैं इसलिए ऐसी कहावतें बनी हैं.
अहिर, बानिया, पुलिस, डलेवर, नहीं किसी के यारी, भीतरले में कपट राखल, मीठी बोली प्यारी. अहीर, बनिया, पुलिस और ड्राइवर लोग किसी के दोस्त नहीं होते, ऊपर से मीठी बोली बोलते है पर भीतर से कपट रखते हैं.
अहिरे के बिटिया के लुरबुर जीव, कब जइहें सास कब चटिहूं घीव. अहीर की बेटी को घी खाने की आदत होती है. ससुराल में भी वह इसी जुगाड़ में रहती है कि कब सास जाए और घी चाटने को मिले.
अहीर अपने दही को खट्टा नहीं बताता. अपनी चीज़ की बुराई कोई नहीं करता. रूपान्तर –
अहीर का क्या जजमान, लप्सी का क्या पकवान. अहीर बहुत अच्छा जजमान नहीं है क्योंकि वह अधिक दक्षिणा नहीं दे सकता, उसी तरह जैसे लप्सी अच्छा पकवान नहीं है.
अहीर का पेट गहिर, बामन का पेट मदार. अहीर का पेट गड्ढा है और ब्राह्मण का पेट ढोल, अर्थात दोनों बहुत अधिक खाते हैं.
अहीर की नानी खुश भइली, मंडुआ की रोटी और छाछ देइली. अहीर खुश होगा तो क्या देगा, दूध या मट्ठा. छोटे लोगों का लेन देन भी क्षुद्र ही होता है.
अहीर की मिताई, बादलों की छाँव (अहिर मिताई बादर छाँई, होवे होवे नाहीं नाहीं). अहीर की मित्रता क्षण भंगुर होती है. रूपान्तर – अहीर की यारी, भादों की उजारी. उजारी – चांदनी.
अहीर के पिंडा, कतरा फूस. अहीर का पिंडदान घासफूस से ही करा दिया जाता है.
अहीर के भोज में क्या, दाल भात कुम्हड़ा. गरीब आदमी किसी को दावत भी देगा तो और क्या खिलाएगा.
अहीर को बुझावे सो मरद. असली मर्द वही है जो अहीर जैसे जटिल स्वभाव वाले को बातों से संतुष्ट कर सके.
अहीर खड़ा सामने मैं रूखा खाऊँ. जब सुविधाएं उपलब्ध हों तो मैं परेशानी क्यों उठाऊं.
अहीर देख गड़रिया मस्ताना. 1.अहीर को पिए देख कर गड़रिए ने भी चढ़ा ली. दूसरे की बुराई का गलत अनुसरण करना. 2.मिलते जुलते व्यवसाय वाले एक दूसरे को देख कर प्रसन्न होते हैं.
अहीर साठ बरिस तक नाबालिग रहें. अहीर के विषय में कहा गया है कि वह साठ साल की आयु तक भी समझदार नहीं होते.
अहीर से जब भेद मिले जब बालू से घी. बालू से घी कभी नहीं निकल सकता इसी प्रकार अहीर से उसके काम का भेद कोई नहीं पा सकता.
अहीर, गड़रिया, पासी तीनों सत्यानासी. पुरानी कहावतों में कुछ जातियों के विषय में आधारहीन बातें कही गई हैं, उन में से एक. पासी – ताड़ी निकालने वाले.
अहुवा महुवा ताल तराई, इनके भरोसे कर्ज न खाई. महुआ का पेड़, तालाब और तराई की जमीन, इनसे इतनी आमदनी की आशा नहीं कर सकते कि उसके भरोसे आप उधार ले सकें.
आँ, आं, आ
आँख एक नहीं, कजरौटा दस ठो. कजरौटा – काजल बना कर रखने की डिब्बी. आवश्यकता के बिना आडम्बर की वस्तुएं इकट्ठी करना. (देखिये परिशिष्ट)
आँख ओट पहाड़ ओट. 1.जो व्यक्ति आँखों से दूर हो जाता है वह बहुत दूर हो जाता है. 2. जो वस्तु आँखों के सामने नहीं है वह उतनी ही दूर मानी जाएगी जैसे कि पहाड़ के पीछे हो.
आँख और कान में चार अंगुल का फर्क. (अंतर अंगुली चार का आँख कान में होए). देखे और सुने में बहुत अंतर होता है. सुना हुआ अक्सर गलत हो सकता है इस लिए देखे बिना किसी बात पर विशवास नहीं करना चाहिए.
आँख का अंधा गाँठ का पूरा. यहाँ पर आँख का अंधा का अर्थ है मूर्ख. गाँठ का पूरा याने जिसकी धोती की गाँठ में खूब पैसे बंधे हों. धनी परन्तु मूर्ख व्यक्ति (जिसको आसानी से ठगा जा सके).
आँख का पानी गिर जाए तो कुछ न बचे. आँख का पानी – लज्जा. लाज चली जाए तो क्या बचेगा.
आँख की तिरिया गाँठ को दाम, बेई बखत पे आवें काम. जो पत्नी हर समय आँख के सामने रहती है और जो पैसा गाँठ में मौजूद है वे ही समय पर काम आते हैं.
आँख के अंधे नाम नयनसुख. गुण के विरुद्ध नाम. कोई ऐसा मूर्ख व्यक्ति जो अपने को बहुत बुद्धिमान समझता हो उस का मजाक उड़ाने के लिए भी यह कहावत बोली जाती है.
आँख गई संसार गयो कान गयो सुख आयो. आँख की रोशनी चली जाना संसार का सब से बड़ा दुख है और कान से सुनाई न पड़ना सुख है (बहरा आदमी परनिंदा, परचर्चा और प्रपंचों से दूर रहता है इसलिए सुखी रहता है).
आँख गई संसार गयो, कान गयो अहंकार गयो. ऊपर वाली कहावत से मिलती जुलती. आँख की रोशनी जाना संसार की सब से बड़ी हानि है, लेकिन सुनने की क्षमता जाने से नुकसान के साथ एक लाभ भी होता है कि मान अपमान और अहंकार से दूर हो जाता है (कुछ न सुन पाने के कारण).
आँख चौपट, अँधेरे नफरत. 1.आँख है ही नहीं और कहते हैं कि हमें अँधेरे से नफरत है. 2.आँख की रौशनी कम हो जाए तो अँधेरे से नफरत होने लगती है क्योंकि अँधेरे में और कम दिखता है.
आँख देखे को पाप है. 1.संसार में जाने क्या क्या अनर्थ हो रहे हैं जो हम देख लें उसी को हम पाप समझते है. 2.गलत काम होते देखो तो प्रतिकार या विरोध जरूर करो, अन्यथा अन्याय होते देखने पर पाप जरूर लगेगा.
आँख न दीदा, काढ़े कसीदा. किसी काम को करने का सलीका और सामर्थ्य न होने पर भी वह काम करना. कसीदा क्या होता यह जानने के लिए देखिये परिशिष्ट.
आँख न नाक, बन्नी चाँद सी. अपनी चीज़ जैसी भी हो, बढ़ा चढ़ा के बताना. बन्नी माने ब्याह योग्य कन्या.
आँख नहीं पर काजर पारे. श्रृंगार करने लायक शक्ल नहीं हो पर श्रृंगार करने का बहुत शौक हो तब.
आँख नाक मोती करम ढोल बोल अरु नार, इनके फूटे न भला ढाल तोप तलवार. आँख, नाक, मोती, कर्मफल (भाग्य), ढोल, वचन, नारी, ढाल, तोप और तलवार, इनका फूटना (खंडित होना) अच्छा नहीं होता.
आँख फड़के दहनी, लात घूँसा सहनी. स्त्रियों के लिए दाईं आँख फडकना अशुभ माना जाता है.
आँख फड़के दहिनी, मां मिले कि बहिनी, आँख फड़के बाँई, भाई मिले कि सांई. दाहिनी आँख फड़कती है तो माँ या बहन से मुलाकात होती है, बांयी आँख फड़के तो भाई या पति से. ऊपर वाली कहावत से एकदम अलग.
आँख फूटी पीर गयी. किसी की आँख बहुत लम्बे समय से बहुत तकलीफ दे रही है और ठीक भी नहीं हो रही है. अंततः आँख की रौशनी चली जाती है पर तकलीफ ख़तम हो जाती है. उसे आँख जाने का दुख तो है पर पीड़ा ख़तम होने का सुख भी है. कोई नालायक बेटा बहू माँ बाप को बहुत परेशान कर रहे हैं. अंत में वे अलग हो जाते हैं, ऐसे में पिता यह कहावत कहता है. इंग्लिश में कहावत है – Better a finger off than always aching. कहीं कहीं कहते हैं – फोड़ा फूटा पीर गई.
आँख फूटे भौंह नहीं भाती. जब तक आँखें होती हैं तब तक भौंह अच्छी लगती हैं, आँख फूट जाए तो भौंह भी अच्छी नहीं लगती. जैसे लड़की की म्रत्यु हो जाए तो दामाद अच्छा नहीं लगता.
आँख फूटेगी तो क्या भौं से देखेंगे. किसी अति महत्वपूर्ण वस्तु का कोई विकल्प नहीं होता.
आँख फेरे तोते की सी, बातें करे मैना की सी. मीठी बातें करने वाला धोखेबाज व्यक्ति.
आँख बची माल दोस्तों का (नजर फिरी नहीं कि माल यारों का). ऐसे धोखे बाज दोस्तों के लिए जो मौका मिलते ही चूना लगाने से बाज नहीं आते.
आँख मींचे अँधेरा होय. यदि कोई जान बूझ कर अनजान बन रहा हो तो.
आँख मूंदे भिन्सार होत. गरीब आदमी थक कर सोता है तो आँख मूँदते ही सवेरा हो जाता है.
आँख में अंजन दांत में मंजन, नितकर नितकर नितकर; कान में तिनका नाक में उँगली मतकर मतकर मतकर. बच्चों को दी जाने वाली सीख.
आँख में आंसू, दांत निपोरे. किसी के दुख में बनावटी आँसू टपकाने, पर मन में खुश होने वाले के लिए.
आँख में कीचड़ और नाम मृगनैनी. गुण के विपरीत नाम.
आँख वाले की लुगाई अंधा ले गया. किसी गप्प हाँकने वाले का मजाक उड़ाने के लिए.
आँख सुख कलेजे ठंडक. जिस वास्तु, व्यक्ति या दृश्य को देखने से आँखों को सुख मिलता है उनसे हृदय को भी शान्ति मिलती है.
आँख से दूर, दिल से दूर. प्रेम बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि मिलते जुलते रहा जाए. बहुत दिन तक दूर रहने से स्नेह भी कम हो जाता है. इसके विपरीत एक कहावत है – आँख की किरकिरी कलेजे का शूल.
आँख ही फूटी तो अंजन क्या लगाएँ. जिस चीज का हमारे लिए उपयोग ही नहीं है उसे क्यों प्रयोग करें.
आँखिन सों सब देखियत, आँखि न देखि जाहिं. आँखों से ही हम सब कुछ देखते हैं पर आँख स्वयं को नहीं देख सकती. शरीर से हम सारे महत्वपूर्ण कार्य करते हैं पर शरीर पर ही ध्यान नहीं देते.
आँखें मन का दर्पण हैं. मनुष्य के मन में जैसे भाव होते हैं वही उसकी आँखों में प्रकट होते हैं. इंग्लिश में कहावत है – Eyes are windows of the soul.
आँखें मीचे रात नहीं होती. (आँखें मीच अँधेरा करना). जान बूझ कर अनजान बनने वाले के लिए.
आँखें हुईं चार तो मन में आया प्यार, आँखें हुईं ओट तो जी में आया खोट. व्यक्ति सामने हो तो प्यार जताना, पीठ पीछे उसका अहित करना.
आँखों का काजल चुरावे. ऐसा चालाक है कि देखते देखते ही चोरी कर ले.
आँखों का नूर, दिल की ठंडक. अत्यधिक प्रिय व्यक्ति.
आँखों की सुइयाँ निकालना बाकी है. बस थोड़ा काम बाकी है. सन्दर्भ कथा – लोक-विश्वास है कि यदि आटे की मूर्ति बनाकर उस में जादू के जोर से शत्रु का नाम लेकर उसके मरने की कामना करते हुए सूइयां चुभो दी जाएं, और फिर उस मूर्ति को मरघट में रख दिया जाए, तो उस शत्रु के सर्वांग में उसी तरह की सूइयां चुभ जाएंगी और वह तड़प-तड़प कर मर जाएगा. पर अगर कोई तरकीब जानता हो, तो मंत्र पढ़ कर सूइयों को एक-एक करके अलग करके उसे जीवित भी किया जा सकता है. किसी ने उपर्युक्त रीति से एक व्यक्ति को मार डाला.
उस मृत पुरुष की स्त्री जादू जानती थी. पति को जीवित करने के लिए उसने एक-एक करके उसके शरीर की सारी सूइयां निकाल डालीं. किंतु जब केवल आंखों की सूइयां निकालनी शेष रहीं, तब उसे बाहर उठकर जाना पड़ा. उसी समय उसकी नौकरानी वहां पहुंच गई. उसने आंखों की सूइयां निकाल डालीं. ऐसा करते ही वह मनुष्य जीवित हो गया. यह समझ कर कि इस नौकरानी ने ही मेरी प्राणरक्षा की है, वह उस पर बहुत प्रसन्न हुआ और पत्नी को अलग करके उसके साथ विवाह कर लिया.
आँखों के आगे नाक, तो सूझे क्या ख़ाक. विवेक के आगे जब व्यक्ति का अहम आ जाता है तो उसे कुछ भला बुरा नहीं दीखता. इसको मजाक में भी प्रयोग करते हैं – जब चीज़ सामने रखी हो और आप उसे ढूँढ़ न पाएँ.
आँखों के आगे पलकों की बुराई. किसी व्यक्ति के सामने उसके बहुत प्रिय व्यक्ति की बुराई करना.
आँखों देखत कुँए में गिरे. जान-बूझ कर अपनी हानि की.
आँखों देखा भाड़ में जाए, मैंने कानों सुना था. जो आदमी आँखों देखी बात पर विश्वास न कर के सुनी सुनाई बात मानने के लिए अड़ा हुआ हो उसका मजाक उड़ाने के लिए.
आँखों देखी कानों सुनी. जो बात सुनी हुई भी हो और देखी हुई भी. सुनिश्चित.
आँखों देखी झूठी परी. आँखों देखी बात झूठी हुई.
आँखों देखी परसराम, कभी न झूठी होय. आँखों देखी बात कभी झूठी नहीं होती.
आँखों देखी पे क्या साख पूछूँ. जो चीज आँखों से देखी है, उसके लिए क्या साक्ष्य मांगूं.
आँखों देखी प्रीत और मुँह देखा व्यवहार. जो लोग केवल सामने पड़ जाने पर प्रेम दिखाते हैं उन के लिए.
आँखों देखी मानें, के कानों सुनी. आँखों देखी बात सच मानें या कानों सुनी.
आँखों देखी साची, कानों सुनी काची. जो आँखों से देखते हैं वही सच है, कान से सुनी झूठी भी हो सकती है.
आँखों देखे सो पतियाय. स्वयं अपनी आंखों से देख कर ही किसी बात पर पूरी तरह से विश्वास किया जा सकता है. इंग्लिश में कहते हैं seeing is believing.
आँखों पर काजल का क्या बोझ (आँखों पर पलकों का बोझ नहीं होता). अपने प्रिय व्यक्ति के लिए कुछ करना पड़े तो हमें उसका बोझ नहीं लगता
आँखों से आंसू बहें, दिल में लड्डू फूटें. दिखावे का दुख (जैसा सासू के मरने पर होता है).
आँसू एक नहीं कलेजा टूक-टूक. दिखावटी शोक. शोक बहुत दिखा रहे हैं और आंसू एक भी नहीं आ रहा है.
आंखन अंजन, दांतन नोन, भूखों राखें चौथो कोन, ताजो खावे, बाएं सोय, ताको रोग कबहुं न होय. चौथो कोन – एक चौथाई. जो व्यक्ति आँखों में नित्य काजल डालता हो, दांतों में नमक से मंजन करता हो, भूख से पौना भोजन करे, ताजा खाना खाए और बाईं करवट सोए, वह बीमार नहीं पड़ता.
आंखों के अंधे नाम रोशन. नाम के विपरीत गुण.
आंच के पास घी जरूर पिघलता है. युवक युवती साथ रहें तो काम भावनाएं उत्तेजित हो जाती हैं, इसलिए सावधानी बरतना आवश्यक है.
आंत भारी तो माथ भारी. पेट में भारीपन हो तो सर भी भारी होता है
आंधर कूकर, बतास भूँके. आंधर – अंधा, बतास – हवा. अंधा कुत्ता हवा चलने पर भौंकने लगता है. अंधा व्यक्ति शक्की हो जाता है (क्योंकि वह देख नहीं पाता इसलिए बात बात पर शक करता है). इस का अर्थ यह भी हो सकता है कि अन्धविश्वासी व्यक्ति को अनजाने भय बहुत सताते हैं (भूत प्रेत आदि).
आंधर कूटे, बहिर कूटे, चावल से काम. धान को कूट कर उससे छिलका अलग करते हैं और चावल अलग. चाहे अंधा व्यक्ति कूटे चाहे बहरा, हमें तो चावल चाहिए. काम चाहे कैसे भी हो, कोई भी करे, काम होने से मतलब.
आंधी आई नहीं, सूसाट मच गया. सूसाट – हाहाकार. कोई मुसीबत आये बिना आशंका से ही हाय तौबा मचाना.
आंधी आई है तो मेह भी आएगा, बहुत नहीं तो थोड़ा आएगा. संकट से डरो नहीं, यह समाप्त अवश्य होगा. और हो सकता है यह किसी अच्छाई का संकेत हो.
आंधी आवे बैठ जाए, पानी आवे भाग जाए. सीख दी गई है – आंधी आने पर बैठ जाओ, खड़े रहने पर गिर सकते हो. पानी बरसे तो वहाँ से हट जाओ, खड़े हो कर भीगो नहीं.
आंधी उड़ाए गरीब का घर. प्राकृतिक आपदाएँ भी गरीबों को ही अधिक सताती हैं.
आंधी का मेह, बैरी का नेह. दोनों स्थाई नहीं होते.
आंधी के आगे बेने की बतास (आंधी के आगे पंखे की हवा). बेना – हाथ का पंखा. आंधी चल रही हो तो हाथ का पंखा क्या करेगा. उसी अर्थ में है जैसे कहते हैं – सूरज को दिया दिखाना.
आंधी के आम. आंधी आने पर एक साथ बहुत से आम गिर जाते हैं जिन्हें कम दाम पर बेचना पड़ता है. कोई वस्तु बहुत अधिक मात्रा में और कम दाम में मिल जाए तो.
आंधी के आम और ब्याह के दाम किसने गिने हैं. शादी में अनाप-शनाप खर्च होता है इस बात को आंधी में अनगिनत आम टूटते हैं इस बात की उपमा देकर बताया गया है.
आंधी में पेड़ गिर जाते हैं घास बच जाती है. जो लोग कठिन परिस्थितियों में लचीला रुख अपनाते हैं वह उन परिस्थितियों से सफलतापूर्वक बाहर निकल आते हैं जो अड़ियल रुख अपनाते हैं वे समाप्त हो जाते हैं.
आंधी में बगुले की क्या बिसात. बड़ी प्राकृतिक आपदाओं के सामने छोटे जीव जंतुओं की क्या औकात है.
आ गई तो ईद बरात नहीं तो काली जुम्मेरात. भाग्य ने साथ दिया तो मौज ही मौज वरना परेशानी तो है ही.
आ झगड़ालू राड़ करें, ठाली बैठे क्या करें. कुछ लोगों को झगड़ा करने का शौक होता है, उन के लिए कही गई कहावत. रूपान्तर – आओ बहन लड़ें (आरी राड़ी राड़ करें), ठाली बैठी क्या करें.
आ पड़ोसन लड़ें. जो लोग बिना बात लड़ने पर उतारू रहते हैं उनके लिए.
आ बड़े घर की बेटी है, तो पंजा कर ले. एक स्त्री शान बघारने वाली दूसरी स्त्री को चुनौती देती है कि तू बहुत बड़े घर की बेटी बनती है तो मुझसे मिल कर पंजा लड़ा तो समझूँ कि तूने कितना खाया पीया है.
आ बला गले लग. जबरदस्ती मुसीबत बुलाना.
आ बे पत्थर पड़ मेरे गाँव. जबरदस्ती मुसीबत मोल लेना.
आ बैल मुझे मार, सींग से नहीं तो पूंछ से ही मार. जबरदस्ती मुसीबत मोल लेना. अधिकतर इस का पहला भाग ही बोला जाता है.
आ रे मेरे लाले, सेंत का चन्दन तू भी लगा ले, औरों को भी बुला ले. 1. जहाँ कोई कीमती चीज़ मुफ्त में मिल रही हो. 2. किसी दुखी बाप का नालायक बेटे से कथन.
आ रै मेरे सम्पटपाट, मैं तनै चाटूं, तू मनै चाट. (हरियाणवी कहावत) दो निकम्मे व्यक्तियों का समागम होना.
आई तीज, बिखेर गई बीज, आई होली, भर ले गई झोली. अक्षय तृतीया के बाद एक के बाद एक त्यौहार होते हैं अर्थात त्यौहारों के बीज पड़ जाते हैं. होली के बाद जल्दी कोई त्यौहार नहीं होता.
आई तो रमाई, नहीं तो फ़कत चारपाई. मिल गया तो मौज कर लो नहीं तो शांति से बैठो. (रमाई मतलब धूनी रमाई, हुक्का चिलम आदि से तात्पर्य है).
आई तो रोजी नहीं तो रोजा. भाग्य ने साथ दिया तो रोजी रोटी मिल जाएगी नहीं तो भूखे रहना पड़ेगा. मुसलमानों में रमजान के महीने में रोजे (व्रत) रखे जाते हैं.
आई थी बिल्ली, पूंछ थी गीली. किसी काम को टालने के लिए बहाने बनाना. सन्दर्भ कथा – सास और बहू पास पास लेटी थीं. सास ने बहू से कहा, जरा देख बाहर वर्षा तो नहीं हो रही. बहू ने कहा, माँ जी अभी बिल्ली आई थी उसकी पूंछ गीली थी इसका मतलब वर्षा हो रही है. थोड़ी देर बाद सास ने फिर कहा, बहू जरा दीपक बुझा दे, बहू ने कहा, माँ जी आँखें बंद कर लो अंधेरा हो जाएगा. सास ने कहा, अच्छा जरा किवाड़ तो बंद कर दे. बहू बोली, दो काम मैंने कर दिए अब एक कम तो आप भी कर लो.
आई थी मांड को, थिरकन लगी भात को. अमीर लोगों के यहाँ जो चावल को मांड निकलता है उसे गरीब लोग मांग कर ले जाते हैं. कोई मांड मांगने आये और चावलों पर जोर जमाने लगे तब.
आई थी मिलने, बिठाली दलने. आप किसी से ऐसे ही मिलने जाएँ और वह आप को किसी काम में लगा ले. (दलने का मतलब दाल दलने से है).
आई न गई, कौन नाते बहिन. जबरदस्ती रिश्ता जोड़ने वाले के लिए.
आई न गई, कौले लग ग्याभन भई. कोई कुआंरी या विधवा स्त्री गर्भवती हो गई और अपने को निर्दोष बता रही है, तो अन्य स्त्रियाँ उस से पूछ रही हैं कि तू कहीं आई गई नहीं तो क्या गले लगने से गर्भवती हो गई. कोई दोषी व्यक्ति अपने को निर्दोष सिद्ध करने का प्रयास करे तो. (कौले लग – गले लग के, ग्याभन – गर्भवती)
आई बहू आयो काम, गई बहू गयो काम. बहू के आते ही सारे काम दिखाई देने लगते हैं (बहू से कराने के लिए) और बहू के जाते ही काम दिखाई पड़ना बंद हो जाते हैं. संस्कृत में कहावत है – यावत् गृहणी तावत् कार्यं.
आई बहू, जन्मा पूत. दोहरी ख़ुशी. बहू घर में आई और पहली बार में ही पुत्र को जन्म दिया.
आई बी आकिला, सब कामों में दाखिला. कुछ लोग अपने को बहुत अक्लमंद समझते है और आते ही सब कामों में टांग अड़ा कर दूसरे लोगों को निर्देश देने लगते हैं, उन का मजाक उड़ाने के लिए.
आई माई को काजर नहीं, बिलैय्या को भर मांग. बिलैया माने बिल्ली. यहाँ पराई औरत या दुष्ट पत्नी से तात्पर्य है. अपनी माँ के लिए काजल भी नहीं है और बिल्ली के लिए ढेर सारा सिंदूर. अपने लोगों की उपेक्षा कर के दूसरों के काम करना. मां की उपेक्षा कर के पत्नी की गुलामी करना.
आई मुझको, ले गई तुझको. किसी कम आयु के व्यक्ति की असमय मृत्यु हो जाए तो बड़े बुजुर्ग ऐसे बोलते हैं.
आई मौज फ़कीर की, दिया झोपड़ा फूँक. (दी मढैया फूँक) बेफिक्रा और मनमौजी आदमी कुछ भी कर सकता है.
आई सतुअन की बहार, बालम मूँछें मुड़ा डारो. छोटे लाभ के लिए इतना बड़ा बलिदान करने को कहा जा रहा है. सत्तू खाते समय मूंछों में लग जाता है इसलिए मर्दानगी की प्रतीक मूंछों को ही साफ़ करा दो.
आई सौतन, करो सिंगार. घर में सौत आ गई है इसलिए अब अपने रंग रूप पर ध्यान देना पड़ेगा. किसी भी कार्यक्षेत्र में प्रतिद्वंद्वी के आ जाने पर अपनी गुणवत्ता को बढाना आवश्यक हो जाता है.
आई है जान के साथ, जाएगी जनाज़े के साथ. कोई असाध्य बीमारी.
आऊँ न जाऊं घर बैठी मंगल गाऊं. जो लोग सामाजिक आयोजनों में कहीं आते जाते नहीं हैं उन पर व्यंग्य.
आए का मान करो, जाते का सम्मान करो. घर में कोई भी आए उसका मान करना चाहिए. कोई छोटा आदमी हो तो भी उससे उचित व्यवहार करना चाहिए. जब कोई जा रहा हो तो उसको सम्मान से विदा करना चाहिए.
आए की खुशी न गए का गम. उन लोगों के लिए जो कोई चीज़ मिलने पर बहुत प्रसन्न नहीं होते और कुछ खोने पर बहुत दुखी भी नहीं होते. संतुलित व्यवहार करने वाले लोग.
आए गए से पूछे बात, करे न खेती अपने हाथ. जो किसान स्वयं खेत पर जा कर अपने खेत की देखभाल न करे और आए गए लोगों से ही अपनी खेती का हाल पूछता रहे उसकी खेती कभी सफल नहीं हो सकती.
आए चैत सुहावन, फूहड़ मैल छुड़ावन. ऐसे व्यक्ति के लिए कहा गया है जो जाड़े भर नहीं नहाता और चैत आने पर मैल छुड़ाने बैठा है. व्यवहार में ऐसे व्यक्ति के लिए प्रयोग करते हैं जो कभी कभी ही सफाई करता हो.
आए थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास. सांसारिकता में फंस कर अपने जीवन का उद्देश्य भूल जाना.
आए वीर, भागे पीर. 1. वीर पुरुषों के सामने भूत प्रेत सब भाग जाते हैं. 2. भूत प्रेत सब मन का वहम हैं जिन्हें वीर पुरुष नहीं मानते.
आए हैं सो जायेंगे, राजा, रंक, फ़कीर. (आया है तो जायगा क्या राजा क्या रंक.) सभी लोगों को इस दुनिया से जाना है. सीख यह है कि हमें अपने पद और धन का अहंकार नहीं करना चाहिए.
आओ तो घर आपका, जाओ तो वह रास्ता. प्रेम से आओ तो स्वागत है, रूठ कर जाओ तो रास्ता सामने है.
आओ निकम्मे कुछ तो करो, खाट उधेड़ कर रस्सी बुनो. निकम्मे आदमी को उलाहना देने के लिए.
आओ पूत सुलच्छने, घर ही का ले जाव. अपने कुपुत्र से दुखी होकर पिता कह रहा है कि तुम कुछ कमा कर तो नहीं ला सकते, घर का ही ले जाओ.
आओ बैठो गावो गीत, नहीं हमारे बताशों की रीत. जो लोग हमारे यहाँ विवाह आदि में आए हैं वो शौक से गाने वाने गाएं, हमारे यहाँ कुछ खिलाने पिलाने का रिवाज़ नहीं है.
आओ मित्तर जाओ मित्तर घर तुम्हारो है, चून होय तुम्हारे पास तो चूल्हा हमारो है. चतुर व्यक्ति आने वाले अतिथि को सीधे सीधे मना नहीं कर रहा है, कह रहा है कि हमारा चूल्हा तैयार है, बस आटा तुम ले आओ.
आओ मियां खाना खावो, बिसमिल्ला झट हाथ धुलावो, आओ मियां बोझ उठावो, हम बूढ़ा कोई ज्वान बुलावो. खाने पीने के लिए फौरन तैयार परन्तु काम करने के लिए बहाने बनाना.
आओ मेरी हाट में, देऊं तेरी टाट में. लालची बनिया इस फ़िराक में रहता है कि कोई ग्राहक उसकी दूकान में आए और वह उसे ठगे.
आओ-आओ घर तुम्हारा, खाना माँगे दुश्मन हमारा. झूठा स्वागत सत्कार.
आक का कीड़ा आक में राजी, ढाक का कीड़ा ढाक में राजी. जो जिस परिवेश में रह रहा है वह उसी में संतुष्ट रहता है.
आक को सींचे पर पीपल को न सींचे. उपयोगी वस्तुओं की उपेक्षा करना और फ़ालतू चीजों पर ध्यान देना.
आक में ईख और ईख में आक. निकृष्ट कुल में भी कभी कभी उच्च संस्कार वाले जन्म लेते हैं और उच्च कुल में नीच.
आक में तो अकौड़े ही लागे, आम कब लागे. (अकौड़े – आक के पेड़ पर लगने वाले फल जो किसी काम के नहीं होते). निकृष्ट लोगों के घर में निकृष्ट सन्तान ही पैदा होगी.
आकाश बांधू, पाताल बांधू, घर की टट्टी खुली. उन लोगों के लिए जो बड़ी बड़ी योजनाएं बनाते हैं और अपने घर में छोटा सा काम भी नहीं कर सकते. टट्टी का अर्थ है सींकों से बना हुआ पर्दा. (देखिए परिशिष्ट)
आकाश बिना खम्बों के खड़ा है. 1.आकाश सत्य और धर्म के सहारे खड़ा है. महान व्यक्तियों को किसी के सहारे की आवश्यकता नहीं होती.
आकास बिजली चमके, गधा दुलत्ती झाड़े. जिस बात से कोई लेने देना नहीं और जिस में कुछ कर भी नहीं सकते उस पर बिना बात आक्रोश प्रकट करना.
आखिर ऐसे कब तक, जब तक चले तब तक (ये अनीत कब तक, जब तक चले तब तक). किसी ने पूछा – यह अनीतिपूर्ण व्यवहार कब तक चलेगा. उत्तर मिला- जब तक चल सके ऐसे ही चलाओ. धोखे के व्यापार में व्यक्ति को रोटी मिलने लगती है तो उसके लिए उसको छोड़ना कठिन हो जाता है. सन्दर्भ कथा 19. कहीं चार ब्राह्मण भाई रहते थे. चारों भाई मूर्ख और गरीब थे. उनमें से एक कहीं रोजी की खोज में निकला. वह कुछ जप तप मन्त्र तो जानता नहीं था, इसलिए उसने एक राजा के महल के सामने बैठ कर मुँह ही मुँह में जाप जपो, जाप जपो बुदबुदाना शुरू कर दिया. राजा तक बात पहुँची तो उसने ने उसके रहने के लिए एक कुटिया बनवा दी और खाने पीने का प्रबंध करवा दिया. कुछ दिनों के बाद दूसरा भाई भी घूमते-फिरते वहाँ पहुंचा. उसने भी वही काम आरम्भ कर दिया. चूंकि, वह भी लिख-लोढ़ा पढ़-पत्थर था, इसलिए उसने जो भइया जपें, सो हम भी जपें का पाठ आरम्भ किया.
कुछ दिनों के बाद तीसरा भाई भी आया. अपने दोनों भाइयों के आग्रह पर वह भी उसी काम में रम गया, लेकिन उसे बराबर यह डर बना रहता था कि यह भेद एक न एक दिन खुलेगा अवश्य. इसलिए उसने जपना शुरू किया आखिर ऐसा कब तक. कुछ ही दिनों के बाद चौथा भाई भी आया और वह भी उसी काम में लग गया. उसने अपने तीसरे भाई के प्रश्न के उत्तर स्वरूप जब तक चले तब तक जपना आरम्भ कर दिया. धोखे के व्यापार में व्यक्ति को रोटी मिलने लगती है तो उसके लिए उसको छोड़ना कठिन हो जाता है.
आखिर शंख बजा, पांडेजी को पदा के, पंडाइन को रुला के. काम हुआ लेकिन कड़े परीश्रम के बाद.
आखिरी बार, बेड़ा पार. बहुत परिश्रम के बाद अंत में कार्य सम्पन्न हो गया.
आग और पानी को कम न आंक. थोड़ी सी भी आग बढ़ के विकराल रूप धारण कर सकती है और बाढ़ का पानी आज थोड़ा हो तो भी कल बढ़ कर बहुत नुकसान पहुँचा सकता है.
आग और वैरी को कम न समझो. आग और शत्रु को छोटा नहीं समझना चाहिए.
आग कह देने से मुँह नहीं जल जाता. अर्थ स्पष्ट है.
आग का जला आग से अच्छा होता है. ऐसा पुराने लोगों का विश्वास था. पता नहीं इस के पीछे क्या तर्क था.
आग की लपटों को दीया जलाकर कौन देखे. जो सत्य स्वयं प्रकाशमान हो उसे सिद्ध करने की क्या आवश्यकता.
आग को दामन से ढकना. किसी खतरे को टालने के लिए ऐसा मूर्खतापूर्ण उपाय करना जिससे और बड़ा नुकसान हो सकता हो.
आग खाएगा तो अंगार उगलेगा (आग खाओगे तो अंगार हगोगे). 1.गलत काम का नतीज़ा गलत ही होता है. 2.व्यक्ति अगर गलत शिक्षा ग्रहण करेगा तो गलत बातें ही बोलेगा.
आग खाय मुँह जरे, उधार खाय पेट जरे. आग खाने से मुँह जल जाता है और उधार ले कर खाने पर उसे चुकाने की चिंता आदमी को ही जला देती है.
आग जो अपना गुन छोड़ दे तौ भुनगा भी उस पर चढ़ जाय. अग्नि यदि जलाना छोड़ दे तो उससे कौन डरेगा. एक भुनगा तक उसके ऊपर चढ़ने के लिए तैयार हो जायेगा. यही बात शासकों पर लागू होती है.
आग तापें चीलर मारें, एक साथ दो काम निबारें. होशियार लोग दो काम एक साथ कर लेते हैं.
आग बिना धुआँ नहीं. अगर कहीं धुआं दिख रहा है तो आग जरूर होगी. अगर किसी परिवार में या संगठन के लोगों में बाहर से ही कुछ खटपट दिख रही है तो इस का मतलब यह है कि अंदरूनी क्लेश अवश्य होगा. इंग्लिश में कहावत है – There is no smoke without fire.
आग में गया फिर हाथ नहीं आता. नष्ट हुई वस्तु फिर नहीं मिलती.
आग में तप के सोना और खरा हो जाता है. गुणवान व्यक्ति कठिनाइयों से जूझ कर और निखर जाता है.
आग लगन्ते झोपड़ी, जो निकले सो लब्ध. झोंपड़ी में आग लग गई हो तो जो कुछ भी बचा कर निकाल सको उसी में अपने को भाग्यशाली मानना चाहिए.
आग लगाकर पानी को दौड़े. पहले स्वयं कोई परेशानी पैदा करना और फिर उस का हल खोजने के लिए दौड़ भाग करना.
आग लगे उस राण्ड को जो खसम से पहले खाय. पहले जमाने में स्त्री यदि पति से पहले खाना खा ले तो बहुत बुरा माना जाता था.
आग लगे को धूल बतावे. आग लगने पर धुआँ उठ रहा है, उसे धूल बता कर लोगों को धोखा दे रहे हैं या खुद को धोखे में रख रहे हैं. जैसे देश पर बड़ा संकट हो और नेता लोगों को गुमराह करे.
आग लगे तेरी पोथिन में, जिया धरो मेरो रोटिन में. भूख के सामने पढ़ना नहीं सूझता.
आग लगे मंडप, बज्र परे ब्याहे. ईर्ष्या और दुर्भावना के वश किसी को बद्दुआ देने के लिए कहते हैं, उसके मंडप में आग लगे, उसके विवाह में बिजली गिरे.
आग लगे मंडवा, वज्र पड़े कोहबर, हमें तो खीर पूड़ी से काम. मंडवा – मंडप, कोहबर – वर का कमरा. स्वार्थी बारातियों का कथन. विवाह बिगड़ जाए तो हमें क्या. हमें अपनी दावत मिलनी चाहिए.
आग लेने आए थे, क्या आए क्या चले. जब आग जलाने के लिए माचिस और लाइटर नहीं होते थे तब लोग पड़ोसी के घर से आग मांग कर लाते थे. (जलता हुआ कोयला या लकड़ी). जो आदमी बहुत जल्दी में आए और चला जाए उसके लिए मजाक.
आग लेने रोज आवे, पर उपला कभी न लावे. जब माचिस का आविष्कार नहीं हुआ था तो लोग आस पड़ोस से आग मांग कर लाते थे (कोई जलता हुआ कोयला या कंडे का टुकड़ा). कोई स्वार्थी व्यक्ति किसी के घर रोज आग मांगने जाए और उसी का कंडा रोज ले जाए तो.
आग से जले हुए जुगनुओं से डरते हैं. जो आग से जल चुका हो वह कोई भी चमकदार चीज़ देख कर डरता है.
आगा को आगे, पाछा को भागे. आगे रहने वालों को बहुत कुछ मिल जाता है, पीछे रहने वालों को भाग्य से ही कुछ मिलता है. भागे – भाग्य से.
आगामीर की दाई, सब सीखी सीखाई. अवध के नवाब गाजीउद्दीन के वजीर आगामीर एक बहुत चालाक आदमी थे. उनके नौकर चाकर भी बड़े खुर्रांट थे. किसी बड़े आदमी के शातिर नौकर पर व्यंग्य करने के लिए.
आगाय सो सवाय (अगाई बोवाई, सवाई लवाई). समय से पूर्व खेती के काम करने से सवाया लाभ होता है.
आगी होती तो का पाहुनो मूंछें लैके चलो जातो. हम समर्थ होते तो कुछ कर न दिखाते. सन्दर्भ कथा – कोई स्त्री पड़ौस में किसी दूसरी स्त्री के यहाँ आग लेने गयी. संयोग से उस समय उसके यहाँ आग नहीं थी, साथ ही उसके यहाँ कई दिन से एक मेहमान आया था जो बड़ी मुश्किल से अभी अभी घर से गया था. उसकी मेहमानदारी से वह झल्लायी बैठी थी, अतः उसने उत्तर दिया, आग घर में होती तो मैं उस निगोड़े मेहमान की मूंछें न जला देती.
आगे आगे बामना, नदी ताल बरजन्ते. जीमने और दक्षिणा समेटने में ब्राह्मण आगे रहते है, जहां खतरा हो (जैसे नदी तालाब पार करना हो) तो कहते हैं कि यह शास्त्र में वर्जित है.
आगे कह मृदु वचन बनाई, पाछें अनहित मन कुटिलाई, जाकर चित अहि-गति सम भाई, अस कुमित्र परिहरेहि भलाई. अहि – सांप, परिहरहिं – छोड़ने में. जो सामने मीठा बोलता है, पीठ पीछे हानि पहुँचाता है, जिसका मन सांप की चाल के समान टेढ़ा मेढ़ा है, ऐसे कपटी मित्र को छोड़ देने में ही भलाई है.
आगे की परसी थाली उठ गई. जब हाथ में आई कोई वस्तु अचानक चली जाती है तो कहावत कही जाती है.
आगे को सुख समझ, बीती जो बीती. जो बीत गई उस की चिंता छोड़ कर आगे मिलने वाले सुखों पर ध्यान केन्द्रित करो. यह मान कर चलो कि आगे सुख मिलेगा.
आगे चलो तो दांते काटै, पीछे चलो तो लातें मारै. किसी बहुत चिड़चिड़े स्वभाव के व्यक्ति का मजाक उड़ाने के लिए, कि इस के आगे चलो तो दांत से काट खाये और पीछे चलो तो पैर से लात मार देता है.
आगे चीकन, पीछे रूख, यह देखा बनियों का रूप. बनिए सामने तो मीठी मीठी बातें करते हैं लेकिन वास्तविकता में बड़े रूखे होते हैं, विशेषकर रूपये पैसे के मामले में.
आगे जाएं घुटने टूटें, पीछे देखें आँखें फूटें. किसी काम के दो विकल्प हैं और दोनों में ही बराबर संकट है.
आगे दौड़, पीछे छोड़. आगे बढ़ने का प्रयास करो, पीछे जो गलतियाँ हुईं उनका दुख मनाने में समय मत गंवाओ. रूपान्तर – बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले. इंग्लिश में कहावत है – Let bygones be bygones.
आगे नाथ न पीछे पगहा, सबसे भला कुम्हार का गदहा. बैल के नथुने में छेद कर के रस्सी डाल देते हैं जिसे नाथ (नथना) कहते है, हाथी के पिछले पैर में रस्सी या जंजीर बाँध देते हैं जिसे पगहा कहते हैं. गाय, भैंस, बैल और घोड़े के गले में बंधे रस्सी के फंदे को भी पगहा कहते है. धोबी के गधे को न तो नथा जाता है और न ही उस के पैर में पगहा पहनाया जाता है (क्योंकि वह स्वभाव से बहुत सीधा होता है). कहावत का प्रयोग उन लोगों के लिए करते हैं जिन पर परिवार का कोई बंधन न हो. भोजपुरी में इसे इस प्रकार बोला जाता है – आगे नाथ ना पीछे पगहा, खा के मोटा भइले गदहा (बिना छान के कूदे गदहा) (खा के घूर में लोटे गदहा). छान – बंधन.
आगे पग से पत बढ़े, पाछे से पत जाए. अपने मार्ग पर आगे बढ़ने से व्यक्ति का सम्मान बढ़ता है और पीछे हटने पर सम्मान कम होता है.
आगे बैजू पीछे नाथ. 1. जब कोई बिना सोचे समझे किसी का अंधानुकरण करे. 2. जब कोई बड़ा आदमी किसी छोटे का अनुसरण करे.
आगे मस्तानी तो पीछे पछतानी (आगे न चेते तो पीछे पछताए). प्रारम्भ से कड़ी मेहनत न करने वाले और मस्ती मारने वाले बाद में पछताते हैं.
आगे मिलइ बिप्र जो काना, बड़े भाग जो उबरै प्राना. यात्रा के समय निकलते ही यदि सामने काना मिले तो अपशकुन है ही और यदि कहीं काना ब्राह्मण हो तब तो बड़ा ही अपशकुन माना जाता है. कहते हैं बड़ा भाग्य हो तभी प्राण बचते हैं.
आगे से भारी, पीछे से हल्का. जो व्यक्ति प्रत्यक्ष में गंभीर बात करे पर पीठ पीछे घटिया बातें बोले.
आगे हाथ, पीछे पात. अत्यधिक निर्धन व्यक्ति जो शरीर को हाथ और पत्तों से ढकता है.
आगे ही गधे आवें तो पीछे घोड़ों की क्या आस. सेना में या शोभायात्रा में आगे गधे चल रहे हों तो पीछे घोड़ों की क्या उम्मीद करें. जिस काम की शुरुआत ही बेकार हो उस में आगे क्या उम्मीद.
आचार परमो धर्मा. बेहतर आचरण ही परम धर्म है.
आछे दिन पाछे गये, गुरु (हरि) सों किया न हेत, अब पछितावे होत क्या, जब चिड़ियाँ चुग गईं खेत. हेत – प्रेम. आम तौर पर इसका बाद वाला हिस्सा ही बोला जाता है. यह कहावत ऐसे व्यक्ति के लिए कही जाती है जो आलस के कारण समय पर जरूरी काम नहीं करता और जब काम बिगड़ जाता है तो पछताता है.
आज का बनिया कल का सेठ. जो आज मेहनत करता है वही कल को बड़ा आदमी बन सकता है.
आज की कसौटी बीता हुआ कल है. कसौटी माने वह पत्थर जिस पर रगड़ कर सोने के असली होने की पहचान करते हैं, अर्थात किसी चीज़ को परखने का साधन. कोई व्यक्ति या समाज आज क्या है इसको परखने के लिए उसके बीते हुए कल को अवश्य देखना चाहिए.
आज की ठोकर, कल के गिरने से बचा सकती है. ठोकर लगने से इंसान सीखता है.
आज की बिटिया कल की नानी. संसार का चक्र यूँ ही चलता है. जो आज बच्चा है वह कल बुजुर्ग हो जाएगा.
आज के थपे आज ही नहीं जलते. उपलों (गोबर से बने कंडे) को जिस दिन थापते (बनाते) हैं उसी दिन नहीं जलाते (पहले सूखने देते हैं). अर्थ है कि किसी काम का फल मिलने के लिए उतावलापन नहीं करना चाहिए कुछ समय प्रतीक्षा करनी चाहिए.
आज चुराए ककरी, कल चुराए बकरी. आज छोटी मोटी चोरी करने वाला कल बड़ी चीज़ चुराएगा.
आज नगद कल उधार. उधार देने से मना करने के लिए दुकानों पर अक्सर लोग यह लिख कर लगाते हैं.
आज नहीं कल. काम को या मुसीबत को टालने की कोशिश करना. सन्दर्भ कथा – एक मियाँ प्रतिदिन रात में एक पेड़ के नीचे जाकर ईश्वर से प्रार्थना किया करता था कि ऐ खुदा! मुझे अपनी मुहब्बत में खेंच. उसकी यह बात किसी मसखरे ने सुन ली और मजा लेने के लिए वह एक रात पहले से ही पेड़ पर चढ़ कर बैठ गया. जब उस मुसलमान ने पेड़ के नीचे आ कर वही वाक्य दोहराया तो उस ने पेड़ पर से रस्से का फंदा नीचे गिराकर उसे खींचना शुरू कर दिया. मियाँ घबरा कर बोला, ऐ खुदा आज नहीं कल.
आज निपूती कल निपूती, टेसू फूला सदा निपूती. निपूती – जिसके पुत्र न हो. परिवार में किसी बाँझ स्त्री के लिए पहले की स्त्रियाँ इस प्रकार के अपमान जनक कथन बोलती थीं.
आज मरे कल दिन दूसरा. किसी के जाने से दुनिया का कोई काम नहीं रुकता. दुनिया ऐसे ही चलती रहती है.
आज मरे, कल पितरों में. मृत्यु के बाद हम सभी को पूर्वजों में शामिल हो जाना है.
आज मेरी कल तेरी. स्वार्थी व्यक्ति कोई चीज़ बांटते समय दूसरे को समझा रहा है कि आज मैं ले लेता हूँ, तू कल ले लेना.
आज मेरी मँगनी, कल मेरा ब्याह, टूट गई टंगड़ी, रह गया ब्याह. हम भांति भांति की योजनाएं बनाते हैं, पर किसके साथ आगे क्या होना है यह कोई नहीं जानता.
आज राज सो राज. जिसका इस समय राज है उसी का हुक्म चलेगा. उन रिटायर्ड लोगों को सीख देने के लिए जो पद जाने के बाद भी अपनी हेकड़ी चलाने की कोशिश करते हैं.
आज हम पर तो कल तुम पर. हमारी दुर्दशा देख कर खुश मत हो, जो आज हम पर बीत रही है वह कल तुम पर भी बीत सकती है.
आज हमारी कल तुम्हारी, देखो लोगों फेरा फारी. संसार परिवर्तनशील है किसी को अपनी वर्तमान स्थिति पर न तो अहंकार करना चाहिए न अफ़सोस.
आजमाए को आजमावे, नामाकूल कहावे. जिसके साथ नुकसान उठा चुके हो उसको दोबारा आजमाने वाला मूर्ख कहलाता है. इंग्लिश में कहावत है – If a man deceives me once, shame on him; if he deceives me twice, shame on me.
आटा खाते भौंकते नहीं बनता. कुत्ता आटा खा रहा हो और हाकिम रिश्वत खा रहा हो तो गुर्रा नहीं पाता.
आटा नहीं तो दलिया तो हो ही जाएगा. गेहूँ को चक्की में पीसते हैं तो अगर पूरी तरह पिस कर आटा नहीं बन पाया तब भी दलिया तो बन ही जाएगा. काम पूरी तरह नहीं होगा तो भी कुछ न कुछ तो निबट ही जाएगा.
आटा निबड़ा, बूचा सटका. बूचा माने कान कटा कुत्ता. खाना ख़तम होते ही कुत्ता अपनी राह निकल लेता है. यह कहावत स्वार्थी लोगों के लिए कही गई है.
आटा भयो ढीला, बनत नहिं लोई, जोवन भयो ढीला, पूछत नहीं कोई. अर्थ स्पष्ट है.
आटे का चिराग, घर रखूँ तो चूहा खाए, बाहर रखूँ तो कौआ ले जाए. ऐसी नाजुक चीज़ जिसकी सुरक्षा कठिन हो.
आटे में नोन समा जात, पर नोन में आटा नहीं समात. झूठ उतना ही बोलना चाहिए जितना चल जाए
आठ कठौती मठा पिए, सोलह मकुनी खाय, उसके मरे न रोइए, घर का दलिद्दर जाए. आठ बड़े वाले बर्तन भर कर मट्ठा पीने वाला और सोलह मोटी रोटी खाने वाला (अर्थात बहुत अधिक खाने वाला) कोई घर का सदस्य यदि मर जाए तो रोओ नहीं. उस के मरने से घर का दुख दारिद्र्य दूर हो जाएगा.
आठ खावे नौ लटकावे. बहुत दिखावा करने वाले के लिए.
आठ जुलाहे नौ हुक्का, तिस पर भी थुक्कम थुक्का. जितने लोग हैं उससे अधिक उपयोग की वस्तुएं हैं, फिर भी आपस में लड़ रहे हैं.
आठ पहर लौं फूहर सोवै, लै झाडू अंगना में रोवै, पुरवा पछुवा तू मोरा भाय, अंगना का कूड़ा ले जा उड़ाय. फूहड़ स्त्री देर तक सोती रही और फिर आंगन में खड़ी रो रही है कि ऐ पुरबा और पछुवा हवा के झोंकों, तुम तो मेरे भाई हो, मेरे आंगन का कूड़ा उड़ा कर ले जाओ.
आठ माघ नौ कातिक नहावै, दस वैसाख अलौनौ खावै, सीधौ वैकुंठ जावै. कहावत में व्रत एवं स्नान की महत्ता बताई गई है. माघ और कार्तिक में स्नान और वैशाख में अलोना (बिना नमक का) खाने से बैकुंठ मिलता है.
आठ वार नौ त्यौहार. आठ दिन में नौ त्यौहार. सदा आनंद मनाना. हिन्दुओं में तीज त्यौहार बहुत होते हैं इसको लेकर मजाक.
आठों गाँठ कुम्मैत. एक विशेष प्रकार के घोड़े को कहते हैं जो सिर से पैर तक कुम्मैत रंग का हो. कहावत अत्यन्त चतुर और चालाक व्यक्ति के लिए प्रयोग की जाती है.
आता तो सब ही भला, थोड़ा, बहुता, कुच्छ, जाते तो दो ही भले दलिद्दर और दुक्ख. आता तो सब अच्छा लगता है, थोड़ा आये या बहुत, जाती हुई दो ही चीज़ें अच्छी लगती हैं दुख और दारिद्र्य.
आता हुआ सब को अच्छा लगता है, जाता हुआ किसी को नहीं. मनुष्य का स्वभाव है.
आता है हाथी के मुँह और जाता है चींटी के मुँह. कोई भी संकट आता बहुत तेजी से है और जाता है धीरे धीरे.
आता हो तो आने दीजे, जाता हो तो गम न कीजे. जो आता हो उसे आने दो, जो चला जाए उसका गम न करो.
आती बहू और जनमता पूत, जैसी लय लगाओ वैसी लग जाए. घर में आई नई बहू और जन्म लेने वाले बच्चे को शुरू से जैसी आदत डाल दो वैसी पड़ जाती है.
आती बहू जनमता पूत सबको अच्छा लगता है. घर में कोई खुशी हो तो सभी लोग आनंदित होते हैं लेकिन जो लोग बहू के आने पर या पुत्र के जन्म पर बहुत अधिक खुश हो रहे होते हैं उन्हें सयाने लोग यह सीख देते हैं कि जरूरत से ज्यादा खुश मत हो, आगे क्या होगा यह कोई नहीं जानता.
आती लच्छमी को ठुकरा देत. आती लक्ष्मी के लिए दरवाजा बंद करते हैं.
आतुर काम द्रव्य से होए. कोई काम जल्दी करना हो तो अधिक पैसे खर्च कर के ही किया जा सकता है.
आतुर खेती, आतुर भोजन, आतुर कीजे बेटी ब्याह. खेती, भोजन और बेटी का ब्याह, इन तीनों कामों में शीघ्रता करनी चाहिए.
आते का बोलबाला, जाते का मुँह काला. अफसर आता है तो सब उस की चापलूसी करते हैं, जाते ही उसकी बुराई करने लगते हैं.
आते जाते मैना न फंसी, तू क्यों फंसा रे कौए. भोला भाला व्यक्ति तो फंसा नहीं तू इतना सयाना हो कर कैसे फंस गया. कोई धूर्त व्यक्ति धोखा खा जाए तो उस पर व्यंग्य..
आत्मघाती महापापी. आत्महत्या को महापाप माना गया है.
आत्मा में पड़े तो परमात्मा की सूझे. पेट में रोटी पड़े तभी भगवान की भक्ति कर सकते हैं.
आदत बुरी बलाय. किसी चीज़ आदी हो जाना अच्छा नहीं है.
आदम आया, दम आया. 1.अब्राहमिक धर्मों के अनुसार सृष्टि का आरम्भ आदम के आने से हुआ. 2.किसी भयावह स्थान पर कोई व्यक्ति अकेला फंस जाए तो दूसरे इंसान को देखते ही जान में जान आ जाती है.
आदमियों में नउआ, जानवरों में कउआ. जिस प्रकार जानवरों में कौए को धूर्त प्राणी माना जाता है उसी प्रकार मनुष्यों में नाई को चंट चालाक माना गया है. यहाँ नाई से तात्पर्य हज्जाम से नहीं बल्कि हिन्दुओं में रीति रिवाज़ कराने वाले नाई से है. रूपान्तर – नरों में नाई, पखेरुओं में काग, पानी में कछुआ, तीनों दगाबाज. एक और – मानुस में इक नौआ देखा, पंछी में इक कौआ, पेड़ों में इक झौआ देखा, नौआ, कौआ, झौआ (झाऊ).
आदमी अनाज का कीड़ा है. अन्न मनुष्य की प्रथम आवश्यकता है.
आदमी अपनी संगत से पहचाना जाता है. कोई आदमी कैसा है यह जानना हो तो यह देखिए कि उसके यार दोस्त कौन हैं. इंग्लिश में कहते हैं – Man is known by the company he keeps.
आदमी उपदेश का नहीं, तारीफ़ का भूखा है. उपदेश सुनना किसी को अच्छा नहीं लगता, पर प्रशंसा सुनना सबको अच्छा लगता है. इंग्लिश में कहावत है – The sweetest of all sounds is praise.
आदमी कहीं भी जाए अपने आप से मुक्ति नहीं पा सकता. मनुष्य दुनिया से भाग सकता है पर स्वयं से नहीं.
आदमी का आदमी ही शैतान. आदमी को सबसे अधिक हानि आदमी ही पहुँचाता है.
आदमी का तोल एक बोल में पहचानिए. अनुभवी लोग किसी मनुष्य से थोड़ी बहुत बात कर के ही उसकी वास्तविकता का अंदाज़ लगा लेते हैं.
आदमी की कदर मरे पर होती है. किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद ही उसके गुणों का बखान किया जाता है.
आदमी की दवा आदमी. मनुष्य के पास कितना भी कुछ हो, उसे दूसरे मनुष्यों का साथ चाहिए ही होता है. किसी भी आदमी की परेशानी या दुख को कोई दूसरा आदमी ही ठीक कर सकता है. दो कहावतों को मिला कर इस प्रकार बोला जाता है – आदमी का शैतान आदमी है और आदमी की दवा आदमी.
आदमी की पेशानी, दिल का आईना है. पेशानी – माथा. व्यक्ति के हृदय में चिंता है या संतोष, यह उसके चेहरे पर प्रतिबिंबित हो जाता है.
आदमी की पैठ पुजती है. मनुष्य की नहीं उस की पहुँच की कद्र होती है.
आदमी के सौ कायदे, लुगाई का एक. पुरुष प्रधान समाज में पुरुष लोग अपनी अनियमितताओं को किसी भी तरह से सही साबित कर देते हैं, पर स्त्रियों से यह आशा की जाती है कि वे उनके बनाए नियमों पर ही चलें.
आदमी को आगे से और जानवर को पीछे से हांकना चाहिए (ढोर हांके पाछे से, आदमी हांके आगे से). आदमियों को चलाने के लिए आगे चल कर प्रेरित करना होता है. जानवर को पीछे से हांकना पड़ता है.
आदमी जन्म से नहीं कर्म से महान होता है. व्यक्ति ने किस कुल में जन्म लिया है इस से वह महान नहीं बनता, बल्कि अपने कार्यों से महान बनता है. इंग्लिश में कहावत है – Worth is more important than birth.
आदमी जाने बसे, सोना जाने कसे. सोना कसौटी पर कस के पहचाना जाता है और व्यक्ति को उसके साथ रह कर ही पहचाना जा सकता है.
आदमी नहीं कमाता, आदमी का भाग्य कमाता है. कहावतों में दोनों प्रकार की बातें सुनने को मिलती हैं. एक तो यह कि उद्यम करने से ही सब कुछ मिलता है और दूसरा यह कि कितना भी कुछ कर लो भाग्य से ही सब मिलता है. सच यह है कि दोनों ही महत्वपूर्ण हैं.
आदमी पहले शराब पीता है, फिर शराब आदमी को पीती है. अधिकतर लोग पहले केवल शौक शौक में शराब पीते हैं. फिर वे उसके आदी हो जाते हैं और अपनी इज्जत, धन दौलत और स्वास्थ्य सब बर्बाद कर लेते हैं.
आदमी पेट का कुत्ता है. आदमी पेट का गुलाम है.
आदमी फूले भात खाकर, खेत फूले खाद खाकर. जिस प्रकार मनुष्य अच्छा भोजन कर के स्वस्थ होता है उसी प्रकार खेत उपयुक्त खाद लगाने से अच्छी उपज देता है.
आदमी भगवान और शैतान को एक साथ खुश नहीं कर सकता. पाप और पुन्य एक साथ नहीं किए जा सकते.
आदमी भूल चूक का पुतला है. भूल सभी से हो सकती है. कोई यह नहीं कह सकता कि उस ने कभी भूल नहीं की. इंग्लिश में कहते हैं – The Man is bundle of errors.
आदमी मान के लिए पहाड़ भी उठाता है. इंसान अपनी प्रतिष्ठा के लिए सामर्थ्य से बाहर का काम भी करता है.
आदमी लड़खड़ा कर ही चलना सीखता है. कोई भी नई चीज़ सीखने में शुरू में परेशानियाँ आती ही हैं, उन से हतोत्साहित नहीं होना चाहिए. इंग्लिश में कहावत है – We learn to walk by stumbling.
आदमी सा पखेरू कोई नहीं. मनुष्य सभी प्राणियों में सबसे विशिष्ट है.
आदमी हो कि उठाऊ चूल्हा, किसी अस्थिर चित्त आदमी के लिए कहा गया है.
आदमी हो या घनचक्कर. मूर्ख व्यक्ति के लिए.
आदमी–आदमी अंतर, कोई हीरा कोई कंकर. सब मनुष्य एक से नहीं हो सकते. कुछ अच्छे, कुछ साधारण व कुछ बुरे भी हो सकते हैं.
आदर का सतुआ मीठ, निरादर का हलुआ ना. आदर के साथ खिलाया गया सत्तू, निरादर के साथ खिलाए गए हलवे से अच्छा है.
आदर दिए कुजात को नाहीं होत सुजात. नीच आदमी आदर पा कर भी नीच ही रहता है.
आदर न भाव, झूठे माल खाव. छल प्रपंच कर के व्यक्ति माल खा सकता है पर आदर नहीं पा सकता.
आदर न मान, बार बार सलाम. 1. सम्मान न मिलने पर भी घुसने की चेष्टा करना. 2. आदर नहीं करते, दिखावे को बार बार सलाम करते हैं.
आदि बुरा तो अंत भी बुरा. यदि किसी काम की शुरुआत ही गड़बड़ हो तो काम ठीक से पूरा होने की संभावना बहुत कम होती है. इंग्लिश में कहते है – A bad beginning makes a bad ending.
आधा आप घर, आधा सब घर. स्वार्थी आदमी आधा खुद रख लेता है और आधे में सब को निबटा देता है. आजकल बहुत से नेता और अधिकारी इस तरह के होते हैं.
आधा जेठ तो लबनी हेठ. लबनी – ताड़ के पेड़ से लटकाई जाने वाली मटकी जिस में ताड़ के पेड़ का स्राव इकठ्ठा होता है. आधा जेठ बीतने पर ताड़ के पेड़ पर लटकी लबनी उतार ली जाती है.
आधा ज्ञान, जी की हान. अधूरा ज्ञान खतरनाक है.
आधा तजे पंडित, सारा तजे गंवार. संकट के समय मूर्ख व्यक्ति सब कुछ गँवा देता है जबकि समझदार व्यक्ति आधे को दांव पर लगा कर आधा बचा लेता है. संस्कृत में कहा है – सर्वनाश समुत्पन्ने, अर्ध त्यजहिं पंडित:
आधा तीतर आधा बटेर. ऐसा व्यक्ति जिस का कोई एक मत या विचारधारा न हो.
आधा पाव की लोमड़ी, ढाई पाव की पूँछ. व्यक्ति छोटा, आडम्बर बहुत बड़ा.
आधा पाव भात लाई, बाहर से गाती आई. छोटे से कार्य का बहुत अधिक दिखावा.
आधा बगुला, आधा सुआ. जिस व्यक्ति का कोई एक मत न हो. सुआ – तोता.
आधा साधे, कमर बांधे. कमर बांध लेने से ही आधा कार्य सिद्ध हो जाता है.
आधा सेर कोदों, मिरजापुर का हाट. थोड़ी सी चीज़ का बहुत अधिक दिखावा. कोदों – एक अनाज.
आधी खाइ न जाए, पूरी को मुँह बाए. आधी रोटी तो खाई नहीं जा रही है पूरी खाने के लिए मुँह फैला रहे हैं.
आधी खाब परदेस न जाब (आधी रोटी घर की भली). अपना गांव छोड़कर दूसरे देशों में काम करने मत जाओ चाहे कम खाने को मिले.
आधी छोड़ सारी को धावे, आधी मिले न सारी पावे (आधी छोड़ एक नै धावै, बाकी आधी मुंह से जावै). जो मिला है उससे संतुष्ट न हो कर अधिक के लिए भागने वाला, मिली हुई चीज़ भी गंवा देता है. सन्दर्भ कथा – एक कुत्ते को कहीं से आधी रोटी मिल गई. वह उसे मुँह में दबा कर नदी के किनारे किनारे जा रहा था कि उसे पानी में अपनी परछाईं दिखी. वह समझा कि यह कोई दूसरा कुत्ता आधी रोटी ले कर जा रहा है. उस ने सोचा कि इस की आधी रोटी भी छीन लूँ तो मेरे पास पूरी रोटी हो जाएगी. वह उस के ऊपर गुर्रा कर रोटी छीनने को झपटा तो मुँह की आधी रोटी भी पानी में गिर कर बह गई.
आधी मार धरहरिया को (पहली मार धरहरिया खाय). धरहरिया – बीच बचाव करने वाला. दो लोग लड़ रहे हों तो बीच बचाव करने वाले को भी काफी मार पड़ जाती है. झगड़े में बीच बचाव करना खतरे से खाली नहीं है.
आधी रात को जम्भाई आए, शाम से मुंह फैलाए. कोई काम शुरू करने से बहुत पहले से ही दिखावा करने लगना.
आधी रोटी बस, कायस्थ हैं की पस (पशु). कायस्थों की तकल्लुफ बाजी पर व्यंग है – ये कायस्थ हैं कोई जानवर थोड़े ही हैं, इन्हें बस आधी रोटी परोसो. एक कायस्थ जिनकी खुराक ठीक थी, उन्हें जब यह कहावत कह कर आधी रोटी परोसी गई तो उनहोंने इसके आगे इस इस प्रकार कहा – तीन रोटी पुट्ठा, कायथ हैं के ठट्ठा.
आधे आंगन सासरो और आधे आंगन पीहर. मुसलमानों में बहुत निकट सम्बन्धियों में विवाह सम्बन्ध हो जाते हैं उस पर व्यंग्य. सासरो – ससुराल, पीहर – मायका. रूपान्तर – शेखों के कहीं समधियाने नहीं होते. मुसलमानों के यहाँ समधियाने कहाँ से हों जब वो घर में ही बच्चों की शादी कर लें.
आधे आसाढ़ तो बैरी के भी बरसे. आधे आषाढ़ तो वर्षा अवश्य होनी चाहिए.
आधे गाँव दीवाली आधे गाँव फाग. समाज के लोगों का एकमत न होना. फाग – होली.
आधे घर धूमधाम, आधे घर मातम. जिस घर के लोगों में एका न हो वे सुख दुख भी अलग अलग मनाते हैं.
आधे दादा आधे काका, किससे काम को कहे. गाँव में सारे ही अपने बुजुर्ग हैं, काम के लिए किस से कहें.
आधे माघे, कंबली कांधे. आधा माघ बीत गया जाड़ा कम हो गया, अब कंबली ओढ़ो मत कंधे पर रख लो.
आधे में काजी कुद्दू, आधे में बाबा आदम. कुरान और बाइबिल के अनुसार दुनिया के सारे मनुष्य आदम और हव्वा (Adem & Eve) की संतान हैं. एक काजी कुद्दू हुए हैं जिन के बहुत बच्चे थे और बच्चों के भी बहुत सारे बच्चे थे. लोग हँसी में कहते हैं कि हिस्सा बांटा हो तो दुनिया के आधे हिस्से में काजी कुद्दू के बच्चे और आधे में दुनिया के सारे आदमी आएंगे. किसी के बहुत बच्चे हों तो मजाक में यह कहावत कही जाती है.
आधे में लोमड़ी और आधे में पूंछ. थोड़ी वास्तविकता पर थोड़ा आडम्बर भी.
आन का आटा आन का घी, खाय लो खाय लो बाबा जी. आन का – दूसरे का. दूसरे का आटा, दूसरे का घी है, फिर संकोच किस बात का है, बाबा जी खूब प्रेम से खाओ.
आन का दाना तान के खाना, मर जाना परवाह नहीं. दूसरे का माल जम कर खाना चाहिए, चाहे जान ही क्यों न चली जाय. सन्दर्भ कथा – दूसरे का माल जम कर खाना चाहिए, चाहे जान ही क्यों न चली जाय. एक बार एक ब्राह्मण किसी के यहाँ निमंत्रण खाने गये. तो सास ने बहू से कहा कि बहू भइया का बिस्तर लगा दो, वे जैसे ही न्योता खाकर घर आयेंगे, वैसे ही तुरंत बिस्तर पर लेट जायेंगे. इस पर बहू जोर जोर से रोने लग गई. डरते हुए सास ने बहू से पूछा कि वह क्यों रो रही है तो बहू बोली, सास जी यह भला आपके यहाँ का क्या रिवाज है कि न्योता खाने वाले घर तक पैदल चल कर आते हैं. हमारे मैके में तो चारपाई भी साथ जाती है. न्योता खाने वाले को उसी पर चार लोग लेकर आते हैं.
आन के धन पर तीन टिकुली. आन का – दूसरे का. दूसरे का धन खर्च कर के माथे पर सोने की तीन टिकुली लटकाए है. दूसरे के धन की मूर्खता पूर्ण फिजूलखर्ची.
आन के धन पर तेल बुकुआ. बुकुआ – पीसी हुई गीली सरसों जिसे तेल के साथ शरीर पर मलते हैं. दूसरे का धन मिल रहा हो तो ऐय्याशी करना.
आन पड़ी सिर आपने, छोड़ पराई आस. अगर अपने ऊपर कोई मुसीबत पड़ी है तो खुद ही भुगतनी पड़ेगी, पराई आस छोड़ दो. अपनी मुसीबत से खुद ही निबटना का हौसला बनाना चाहिए.
आन से मारे, तान से मारे, फिर भी न मरे तो रान से मारे. वैश्या के लिए कहा गया है कि वह अपनी अदाओं (आन) से फंसाती है, संगीत (तान) से फंसाती है और फिर भी कोई न फंसे तो शरीर (रान – जांघ) से फंसाती है. किसी चीज़ को प्राप्त करने के लिए जो लोग हद से अधिक गिर जाते हैं उन के लिए भी व्यंग्य.
आनक धंधा आन करे, आंड दबे से बांदर मरे. जिस कार्य के विषय में कोई जानकारी न हो उसे नहीं करना चाहिए. सन्दर्भ कथा – एक बंदर एक बार एक लकड़ी के लट्ठे पर चढ़ गया जिसे आधा चीर कर एक लकड़ी की कील उस की दो फाड़ में फंसा दी गई थी. बंदर ने कौतूहलवश वह लकड़ी की कील खींच कर बाहर निकाल दी. बंदर के अंडकोष लकड़ी की दरार के बीच लटक रहे थे. उनके दबने से बंदर वहीं तड़प कर मर गया.
आप करे सो काम पल्ले पड़े सो दाम. काम वही अच्छा है जो हम अपने आप से कर सकें और जो पैसा अपनी जेब में आ जाए उसी को आमदनी मानना चाहिए.
आप काज सो महा काज. 1. जो अपना काम स्वयं करना जानता है वह सबसे अच्छा रहता है. 2. इसका उसका मुँह देखने की बजाए अपना काम अपने आप कर लो.
आप खाय, बिलाई बताय. चालाक आदमी ने खुद रबड़ी खा ली और बिल्ली का नाम लगा रहा है. खुद चोरी करके दूसरों पर इल्ज़ाम लगाने वाले लिए. रूपान्तर – अपना खाय बिलार बतावे, ओका जनम अकारथ जावे.
आप खायँ हरकत, बाँट खायँ बरकत. अकेले खाना ठीक नहीं, बाँट कर खाने से धन-दौलत की वृद्धि होती है.
आप गुरु जी कांतल मारें, चेलों को परबोध सिखावें. गुरु जी खुद तो कांतल मार रहे हैं (जीव हत्या कर रहे हैं) और चेलों को अहिंसा परमोधर्म: का पाठ पढ़ा रहे हैं.
आप गुरुजी बैंगन खाएँ, औरों को उपदेश पिलाएँ. पुराने लोग बैंगन को कुपथ्य मानते थे (मालूम नहीं क्यों). कहावत उन गुरुओं के लिए है जो खुद गलत काम करते हैं और दूसरों को उपदेश देते हैं.
आप चले तो पाती काय की. जब स्वयं ही जा रहे हैं तो पत्र की क्या आवश्यकता.
आप जिंदा जहान जिंदा. जब तक हम जीवित हैं, यह संसार भी तभी तक है. रूपान्तर – आप मरे जग परलै.
आप डूबा सो डूबा, औरों को भी ले डूबा. कुछ भ्रष्टाचारी लोग स्वयं तो फंसते ही हैं औरों को भी फंसा देते हैं.
आप डूबे तो जग डूबा. यदि किसी की इज्ज़त चली जाए तो संसार उसके लिए बेकार ही है.
आप डूबे बामना, जिजमाने ले डूबे (आप डुबन्ता पंडित, ले डूबे जजमान). ऐसा ब्राह्मण जो खुद भी डूबे और यजमान को भी ले डूबे. भ्रष्ट व्यक्ति को गुरु नहीं बनाना चाहिए.
आप तो मियां हफ्ताहजारी, घर में रोए कर्मों की मारी. हफ्ताहजारी माने जिसकी एक हफ्ते में एक हजार रुपये की आमदनी हो, याने पुराने हिसाब से बहुत बड़ा आदमी. मियाँ तो बहुत बड़े आदमी हैं और घर में बीबी काम में पिस रही है और भाग्य को कोस रही है
आप धनी तो जग धनी. जिस के पास पैसा है उसी के लिए संसार सुखमय है.
आप न काहू काम के, डार-पात, फल-फूल, औरन को रोकत फिरे, रहिमन पेड़ बबूल. बबूल के पेड़ के डाल, पत्ता, फल, फूल किसी काम में नहीं आते हैं, वह रास्ते में सब के लिए केवल काँटे बिछाता है. यह दोहा किसी ऐसे व्यक्ति के लिए है जो स्वयं किसी के काम नहीं आता बल्कि दूसरों के लिए परेशानियां खड़ी करता है.
आप न जाए सासुरे, औरन को सिख देय. खुद तो ससुराल जाने को मना कर रही है और दूसरी लड़कियों को ससुराल जाने को समझा रही हैं. इस प्रकार की दूसरी कहावत है – पर उपदेस कुसल बहुतेरे.
आप बड़े हम छोटे. विनम्रता सबसे बड़ा आभूषण है. अपने आप को छोटा मानना सबसे बड़ा बड़प्पन है.
आप बुआ जी नंगी फिरें, भतीजों को झबला टोपी. बुआ जी के पास खुद के पहनने के लिए ढंग के कपड़े नहीं हैं पर भतीजों के लिए कपड़े बना रही हैं. साधन हीन व्यक्ति परोपकार करे तो.
आप बुरा तो जग बुरा. यदि आप सब के बारे में बुरा चाहते हैं तो दुनिया भी आप के लिए बुरी है.
आप बेईमान तो जग बेईमान. जो लोग स्वयं बेईमान होते हैं वे सारी दुनिया को बेईमान समझते हैं.
आप भला तो जग भला. आप सब की भलाई करते हैं तो दुनिया भी आप के लिए भली है. इंग्लिश में इस से मिलती जुलती एक कहावत है – Do good, have good.
आप भले तो सबहि भलो है, बुरा न काहू कहिये. आप स्वयं भले हैं तो सब आपके लिए भले हैं, किसी को बुरा नहीं कहना चाहिए.
आप भलो तो जग भलो, नहिं तो भला न कोय. जो लोग निर्मल चरित्र वाले होते हैं उन्हें संसार के अन्य लोग भी भले लगते हैं, जो स्वयं कुटिल होते हैं उन्हें कोई भला नहीं लगता.
आप मरता बाप किसे याद आवे. (राजस्थानी कहावत) जब आदमी स्वयं बहुत बड़ी मुसीबत में हो तो उस से सगे सम्बन्धियों के लिए कुछ करने की आशा नहीं करना चाहिए.
आप मरे जग परलै. किसी व्यक्ति की मृत्यु उसके लिए दुनिया ख़त्म होने के बराबर है. इंग्लिश में कहावत है – Death’s day is Dooms day.
आप महान हैं, प्रभु के समान हैं. अपने आप को बहुत महान समझने वाले व्यक्ति का मज़ाक उड़ाने के लिए.
आप मियाँ उल्लू, पढ़ाने चले तोता. महामूर्ख शिक्षक यदि मेधावी विद्यार्थी को पढ़ाए तो.
आप मियाँ फज़ीहत, औरों को नसीहत. खुद गलत काम करते है और दूसरों को उपदेश देते हैं.
आप मियां मंगते, द्वार खड़े दरवेश. दरवेश – साधु. खुद मंगते (मांगने वाले) हैं और द्वार पर फकीर को भिक्षा देने के लिए बुलाया हुआ है. झूठी शान दिखाने वालों के लिए.
आप मियां मर गए, द्वारे खूंटा गाड़ गए. जब किसी आदमी के मरने के बाद भी उसके द्वारा उत्पन्न की गई बाधायें, बनाये गये अनर्गल नियम, लोगों के रास्ते के रुकावट हों.
आप मिले तो दूध बराबर, मांग मिले तो पानी, कंह कबीर वह खून बराबर, जा में एंचातानी. जो अपने आप मिल जाए वह कीमती चीज़ है (दूध की तरह), जो मांग कर मिले वह पानी की तरह साधारण और जिसके मिलने में झंझट हो वह खून के बराबर है.
आप रहें उत्तर, काम करें पच्छम. बेतरतीब काम करने वाले के लिए.
आप लगावे आप बुझावे, आप ही करे बहाना, आग लगा पानी को दौड़े, उसका कौन ठिकाना. बहुत कुटिल व्यक्ति के लिए (जैसे आजकल के कुछ नेता, खुद दंगा कराते हैं और फिर खुद उसको नियंत्रित करने का श्रेय लेते हैं).
आप लिखे खुदा पढ़े. बहुत खराब लिखावट वालों के लिए.
आप सुखी जग सुखी. जब आप स्वयं सुखी होते हैं तो सारा संसार सुखी लगता है.
आप से आवे तो आने दे. जो चीज़ बिना प्रयास किए मिल रही हो उसे मना मत करो. सन्दर्भ कथा – किसी मियाँ ने पक्षियों का मांस न खाने की कसम खा रखी थी. एक दिन उसकी औरत ने बहुत सा घी-मसाला डालकर मुर्गी पकाई. मियाँ को जब यह बात मालूम हुई तो बड़ा नाराज हुआ, किंतु बाद में बहुत कहने पर थोड़ा शोरबा लेने के लिए राज़ी हो गया. औरत ने सावधानी से बोटियों को अलग करके शोरबा परोसना शुरू किया, लेकिन परोसते समय एक बोटी नीचे गिरने लगी. औरत ने उसे रोकना चाहा. इस पर मियाँ ने कहा – आप से आवे तो आने दे. कहावत का शाब्दिक अर्थ है कि अपने आप आ रही वस्तु के लिए मना नहीं करना चाहिए लेकिन इसे उन लोगों का मजाक उड़ाने के लिए प्रयोग करते हैं जो ईमानदार होने का ढोंग करते हैं और भ्रष्टाचार करने से नहीं चूकते.
आप हारे और बहू को मारे. अपनी हार या असफलता का गुस्सा पत्नी/बहू पर निकालना.
आप ही उलझाए और आप ही सुलझाए. जो खुद ही समस्या पैदा करे और खुद उसका हल ढूँढे.
आप ही गावे और आप ही बजावे. जिसे सारा काम खुद करना पड़े उस के लिए.
आप ही मारे, आप ही चिल्लाए. धूर्त व्यक्ति, स्वयं किसी को मार रहा है और पीड़ित होने का दिखावा कर रहा है (जैसे समाज के कुछ विशेष वर्ग जो स्वयं दंगा करते हैं और अपने को ही पीड़ित बताते हैं).
आपकी अकल घोड़े से भी तेज दौड़ती है. अपने आप को बहुत अक्लमंद समझने वाले पर व्यंग्य.
आपकी ही जूतियों का सदका है. सदका – खैरात. विनम्रता पूर्वक दूसरे को बड़ा बताना. इसको अधिकतर मजाक में प्रयोग करते हैं. सन्दर्भ कथा – एक बार एक मुसलमान मसखरे ने दोस्तों को की दावत दी. जब सब लोग आकर भीतर बैठे तो उसने नौकर से चुपचाप उन सब के जूते बेच आने के लिए कहा. नौकर ने वैसा ही किया और दाम मालिक को लाकर दे दिए. दोस्तों ने दावत बहुत पसंद की और कहना शुरू किया, भाई आपने बड़ी तकलीफ की. दावत तो कमाल की थी. इस पर मसखरे ने हाथ जोड़कर कहा, यह सब आपकी ही जूतियों का सदका है. मैं भला किस लायक हूं.
आपके चेहरे पर लगी कालिख औरों को दिखती है आपको नहीं. अपने चरित्र पर धब्बा स्वयं को नहीं दिखता, औरों को दिखता है.
आपके नौकर हैं, न कि बैंगनों के. जैसा राजा बोलता है वैसा ही चाटुकार बोलते हैं. सन्दर्भ कथा – एक दिन किसी राजा ने अपने दरबारियों के सामने कहा कि बैंगन की तरकारी बहुत अच्छी होती है, वैद्यक में इसकी बड़ी प्रशंसा लिखी है. उसके खाने से तंदुरुस्ती बढ़ती है. दरबारियों ने कहा, जी हाँ हुजूर, तभी तो उसके सिर पर ताज धरा हुआ है. इसके बाद एक दिन फिर राजा ने कहा, भाई बैंगन तो बड़ी खराब चीज है. भूख मारता है, और वादी भी करता है. दरबारियों ने कहा, जी हाँ हुजूर, तभी तो इसका नाम बेगुन (बिना गुण वाला) रखा गया है. राजा बोला – उस दिन तो तुम बैंगनों की बड़ी प्रशंसा कर रहे थे, और आज निंदा करने लगे, ऐसा क्यों? इस पर दरबारियों ने जवाब दिया, हुजूर, हम आपके नौकर हैं, न कि बैंगनों के.
आपको न चाहे ताके बाप को न चाहिए. जो आपका आदर न करे आपको भी उसका आदर नहीं करना चाहिए. रूपान्तर – आप को जो चाहे बा को चाहिए हजार बार, आपको न चाहे बा के बाप को न चाहिए.
आपज करियो कामड़ा, दई न दीजै दोस. अपने किये हुए अनर्थ के लिए दैव को दोषी नही ठहराना चाहिए.
आपत काल में सब जायज़. जब जान पर संकट आ पड़ा हो तो अपनी सुरक्षा के लिए सब कुछ जायज़ है.
आपन आपन सब कोय कहें, दुख में नहीं संगाती. संगाती – साथ देने वाला. अपनी ही अपनी परेशानी सब कहते हैं. दुख के समय में कोई बात भी नहीं पूछता कि तुम्हें क्या कष्ट है.
आपन चूक केहि ते कहै, पेट मरोड़ा दे दे रहै. अपने द्वारा की गई गलती, अपनी चूक भला किससे कही जा सकती है. उसको सोच सोच कर बार बार मन में हूक उठती है.
आपन तिरिया मने ना भावे, आन की मेहर मीठी-मीठी. तिरिया – स्त्री, आन – अन्य, दूसरा, मेहर – स्त्री, पत्नी. जब किसी व्यक्ति को अपने घर के प्राणी से दूसरे के घर के लोग अधिक भले और सुन्दर प्रतीत हों.
आपन दे के बुड़बक बने के. आपन – अपना, बुड़बक – मूर्ख. अपना धन या वस्तु किसी को मंगनी या उधार देने वाला व्यक्ति बाद में पछताता है और मूर्ख कहलाता है.
आपन देखे जल मरे, पराया देख जुड़ाय. जुड़ाय- प्रसन्न हो. जब किसी व्यक्ति को अपनों को देखकर तो आग लग जाती हो मगर दूसरों को देख कर खुशी व अपनापन उमड़ पड़ता हो.
आपन मामा मर मर गए, जुलहा धुनिया मामा भए. (भोजपुरी कहावत) अपने मामा मर गए उन्हें कभी पूछा नहीं, अब बेकार के लोगों से संबंध बनाते घूम रहे हैं.
आपन हाथ आपनी कुल्हाड़ी, जान बूझ के पैर में मारी. अपने हाथों अपना नुकसान कर के दुखी होना.
आपबीती कहूँ कि जग बीती. दुनिया के बारे में क्या कहूँ, जो मुझ पर बीती है सो कहता हूँ.
आपम धाप कड़ाकड़ बीते, जो मारे सो जीते. एक तरह से बच्चों की कहावत. अर्थ है कि जो आगे बढ़ के मारता है वही जीतता है.
आपसे गया तो जहान से गया. जो अपनी नज़रों से गिर गया वह दुनिया की नज़रों से गिर जाता है.
आपा तजे तो हरि को भजे. अहं को छोड़ोगे तभी प्रभु को पा सकते हो.
आपुन ठाड़े गैल में, करें और की बात. स्वयं तो दुनिया से जाने की तैयारी में हैं दूसरों की चिन्ता करते हैं
आपे आपे जगत व्यापे, न कोई माई न कोई बापे. सब अपनी अपनी समस्याओं में व्यस्त हैं, माँ बाप की चिंता करनेवाला कोई नहीं है. भोजपुरी में इस प्रकार कहा गया है – आपे आपे लोग सियापे, केकर माई केकर बापे.
आपे कूटे आपे खाय, घर मेहरी नहिं आंगन माय. जिस बेचारे आदमी के घर में माँ और पत्नी न हो उसे खाना बनाने का प्रबंध स्वयं ही करना पड़ता है.
आफत में औ दुख में, बुध नहिं तजें उछाह. बुद्धिमान लोगों का उत्साह दुख और संकट में भी कम नहीं होता.
आब गई, आदर गया, नैनन गया सनेह, यह तीनों तब ही गये, जबहिं कहा कुछ देह. जब आप किसी से कुछ मांगते हैं तो आपका सम्मान और आपसी प्रेम ख़त्म हो जाते हैं.
आबरू जग में रहे तो जान जाना पश्म है. सम्मान की रक्षा के लिए प्राण भी चले जाएं तो कोई बात नहीं. पश्म – तुच्छ वस्तु. पश्म का शाब्दिक अर्थ है जननेंद्रियों के बाल.
आबरू जग में रहे तो जानिए. सभी लोग चाहते हैं कि संसार में उनकी इज्जत बनी रहे.
आबरू वाला रोवे, बेआबरू वाला हंसे. जिसे अपना सम्मान प्यारा हो उसे ही सारे कष्ट उठाने पड़ते हैं, बेशर्म तो केवल मौज उड़ाता है.
आबरू वाले की हर तरफ मौत. इज्जतदार व्यक्ति को हर समय मुसीबतों का सामना करना पड़ता है.
आबे दरिया बहे तो बेहतर, इन्सां रवाँ रहे तो बेहतर. नदी का जल बहता रहे, तो अच्छा और मनुष्य चलता
रहे तो ही अच्छा.
आभ चमक्के बीजली, गधी मरोड़े कान. बिजली चमकने से गधी को बहुत डर लग रहा है. अज्ञानी लोग व्यर्थ की बातों से डरते हैं.
आम आयें चाहें जाए लबेदा. लबेदा – मोटा डंडा. बहुत से लोग डंडा फेंक कर आम तोड़ने की कोशिश करते हैं. (इस में इस बात का डर होता है कि डंडा खो सकता है). जो व्यक्ति छोटे लाभ के लिए बड़ा खतरा उठाने के लिए तैयार हो उसके लिए.
आम उखड़ले दोबर, कटहल उखड़ले गोबर. आम का पौधा एक जगह से उखाड़ कर दूसरी जगह रोपने से दुगने फल देता है जबकि कटहल का पेड़ ऐसा करने से बेकार हो जाता है. कहावतों में खेती और बागवानी से संबंधित छोटी छोटी बातों को इस प्रकार आसान तरीके से समझाया गया है.
आम का बौर कलार की माया, जैसे आया वैसे गँवाया. कलार – शराब बेचने वाला. आम का पेड़ आरम्भ में बौर से लद जाता है पर बाद में सब बौर झड़ जाती है, उसी प्रकार शराब बेचने वाला खूब धन कमाता है पर अंत में सब गँवा देता है.
आम की तरह फलो, दूब की तरह फैलो. स्त्रियां बेटी-बहुओं को आशीर्वाद देते समय कहती हैं – ईश्वर करें जैसे आम में फल लगते हैं, उसी तरह फलो – फूलो और दूब जैसे धरती पर फैल जाती है, वैसे ही तुम भी फैलो.
आम के आम गुठलियों के दाम. दोहरा लाभ.
आम के बारह आना, गुठली के अठारह आना. मूल उत्पाद की कीमत कम और अपशिष्ट की अधिक.
आम खाने से काम, पेड़ गिनने से क्या फायदा. व्यक्ति को अपने काम से काम रखना चाहिए व्यर्थ की नुक्ताचीनी में नहीं पड़ना चाहिए.
आम खाय पाल का, खरबूजा खाय डाल का, पानी पिए ताल का. अर्थ स्पष्ट है.
आम टूट मस्तक पर पड़े, याको को जतन कहा कोऊ करे. आलसी व्यक्ति आम के पेड़ के नीचे लेटा है. एक आम टूट कर उसके मस्तक पर गिरता है अब वह चाहता है कि कोई उस को मुँह में आम निचोड़ दे.
आम पाल के, कटहल डाल के. आम पाल में अच्छा पकता है और कटहल डाल पर.
आम फले झुक जाए, अरंड फले इतराए. (आम फले नीचे झुके, ऐरण्ड ऊँचो जाए). समझदार व्यक्ति सफलता पाने पर विनम्र हो जाता है, छोटी बुद्धि वाला व्यक्ति सफलता पाने पर घमंड करने लगता है.
आम फले परवार सों, महुआ फले पत खोय, वा को पानी जो पिए, अकल कहाँ से होय. यहाँ पत का अर्थ पत्ते भी है और इज्जत भी. आम पत्तों सहित फल देता है लेकिन महुए पर पत्ते झड़ने के बाद (अर्थात प्रतिष्ठा खोने के बाद) फल आता है. महुए का पानी (अर्थात महुए की शराब) जो पियेगा, उसकी अक्ल तो खराब होनी ही है.
आम बोओ आम खाओ, इमली बोओ इमली खाओ. जैसा करोगे वैसा ही फल पाओगे. इंग्लिश में कहावत है As you sow, so shall you reap.
आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया. आय से अधिक खर्च होना. जिन लोगों की आय तो सीमित है पर वे दिखावे के लिए खर्च अधिक करते हैं उनको सीख देने के लिए यह सरल गणित समझाई गई है. कुछ लोग इसके आगे भी बोलते हैं – नतीज़ा ठन ठन गोपाल. कुछ लोग बोलते हैं – महीने के अंत में मैया मैया.
आमदनी के सिर सेहरा. जिस व्यक्ति की आमदनी (आय) अच्छी हो उसी को श्रेष्ठ माना जाता है.
आमों की कमाई, नीबुओं में गँवाई. एक स्रोत से कमाया और दूसरे में उतना नुकसान कर बैठे.
आम्बा, नीबू, बनिया, ज्यों दाबो रस देयं, कायस्थ, कौआ किरकिटा (चींटी) मुर्दा हूँ से लेय. आम, नीबू और बनिया दबाने से रस देते हैं, कायस्थ, कौआ और चींटी मुर्दे को भी नोंच लेते हैं. बनिए डरने पर पैसा निकालते हैं, कायस्थ कानून में फंसा कर मरे हुए से भी कमा लेते हैं. रूपान्तर – आम ईख नीबू वणिक, दाबे ही रस देंय.
आया कनागत बंधी आस, बामन उछलें नौ नौ बांस. श्राद्ध पक्ष आने पर ब्राह्मण बहुत प्रसन्न होते हैं. कुछ लोग इसके आगे भी बोलते हैं – गया कनागत गई आस, बामन रोवें चूल्हे पास. कनागत – श्राद्ध पक्ष.
आया कर तू जाया कर, कुंडी मत खड़काया कर. किसी चरित्रहीन स्त्री का अपने यार से कथन. कोई सरकारी मुलाजिम रिश्वत खा कर अगर यह कहे कि तुम चुपचाप यह गलत काम कर लो तो यह कहावत कही जाएगी.
आया कातिक उठी कुतिया. निर्लज्ज और कामातुर स्त्री के लिए उपेक्षापूर्ण कथन.
आया कुत्ता खा गया तू बैठी ढोल बजा. लापरवाही में गृहस्थी का नुकसान करने वाली महिलाओं के लिए. यह कहावत अमीर खुसरो की एक कहानी पर आधारित है. सन्दर्भ कथा – लापरवाही में गृहस्थी का नुकसान करने वाली महिलाओं के लिए यह कहावत कही जाती है. यह कहावत अमीर खुसरो की एक कहानी पर आधारित है जिसमें वह एक ही कविता में चार महिलाओं की कविता सुनाने की फरमाइश पूरी करते हैं. एक बार अमीर खुसरो को कहीं जाते हुए प्यास लग आई तो वह एक कुँए के पास पहुँछे. वहाँ पानी भर रही स्त्रियों से उन्हों ने पीने को पानी माँगा. उन में से एक ने उन्हें पहचान लिया और वे सब उन से कविता सुनाने की जिद करने लगीं. उन में से एक ने खीर पर, दूसरी ने चरखे पर, तीसरी ने कुत्ते पर और चौथी ने ढोल पर कविता सुनाने के लिए कहा. इस पर उन्होंने यह कविता सुनाई – खीर पकाई जतन से, चरखा दिया जला, आया कुत्ता खा गया, तू बैठी ढोल बजा और चारों को एक साथ निबटा दिया.
आया चैत फूले गाल, गया चैत फिर वही हवाल. चैत में फसल आदि कटने से किसान भरपेट खाना खाता है और प्रसन्न व स्वस्थ हो जाता है. महीना बीतते बीतते लगान और उधारी चुका कर फिर वैसे का वैसा हो जाता है. रूपान्तर – आया अगहन फूले गाल, माघ महीना फिर वहि हाल. अगहन में धान कटता है इसलिए.
आया तो नोश, नहीं तो फरामोश. नोश – ग्रहण करना. मिल गया तो खा लेंगे नहीं तो भूल जाएंगे(फरामोश).
आया तो लाख का, नहीं आया तो सवा लाख का. कोई बड़ा मेहमान घर में आने वाला हो तो उस के आने पर अन्य लोगों के बीच आपका मान बढ़ जाता है और वह न आए तो चैन की सांस आती है.
आया बुढ़ापा आया बुढ़ापा, सौ तकलीफें लाया बुढ़ापा. बुढ़ापा अपने साथ बहुत सी परेशानियाँ ले कर आता है.
आया ब्याज कमाने को, मूल गंवा कर जाय. कोई लाभ कमाने की इच्छा से आए और घाटा उठा कर जाए तो.
आयु तो बढ़े, पर रँड़ापा तो रोको. सभी चाहते हैं कि आयु लंबी हो जाए पर जीवन सुख से न बीते तो दीर्घायु किस काम की. पुरुष की आयु बढ़ने के साथ पत्नी की आयु भी बढनी चाहिए नहीं तो वह विधुर हो जाएगा.
आये बहन का भाई, भीतर जाय दनदनाई. भाई जब अपनी बहन की ससुराल जाता है तो बेरोक-टोक सीधा बहन के पास चला जाता है, किसी से कुछ पूछने की जरूरत नहीं समझता.
आये हैं सो जाएँगे, राजा रंक फकीर, (एक सिंहासन चढ़ि चले, एक बँधा जंजीर). सभी लोगों को इस दुनिया से जाना है चाहे वह सिंहासन पर बैठा राजा हो या जंजीरों में बंधा फकीर. अर्थ यह है कि हमें अपने पद और धन का अहंकार नहीं करना चाहिए.
आयो रात, गयो परभात – रात में आया और सुबह ही चला गया. यदि कोई बिना रुके तुरंत चला जाए.
आर वाले कहें पार वाले अच्छे, पार वाले कहें आर वाले अच्छे. जो नदी के इस पार हैं उन्हें उस पार के लोग सुखी दिखाई देते हैं और जो इस पार हैं उन्हें इस पार वाले. हर व्यक्ति को दूसरे लोग अपने से अधिक सुखी दिखाई देते हैं. इंग्लिश में कहते हैं – The grass is always greener on the other side of the court.
आरंभ सही तो आधा काम हुआ समझो. जिस कम की शुरुआत बिल्कुल ठीक हो वह बहुत शीघ्र पूरा हो जाता है. इंग्लिश में कहावत है – Well begun is half done.
आरत कहा न करे कुकरमा. आरत – आर्त, कुकरमा – कुकर्म. आर्त व्यक्ति (अत्यधिक कष्ट में पड़ा हुआ व्यक्ति) कुछ भी गलत काम कर सकता है.
आरत के हित रहे न चेतू, फिर फिर कहेऊ आपनो हेतु. आर्त (पीड़ित) व्यक्ति कुछ उचित अनुचित नहीं सोचता, लौट फेर कर केवल अपने हित की बात ही कहता है.
आरती वक्त सोवे, भोग वक्त जागे. स्वार्थी व्यक्ति के लिए जिसे पूजा आरती से कोई मतलब नहीं, केवल खाने पीने से मतलब है.
आरसी न फ़ारसी, निकाल सोंटा झारसी. जानता कुछ नहीं है केवल ढोंग कर रहा है, डंडा निकालो और इसका सारा ज्ञान झाड़ दो.
आराम बड़ी चीज़ है, मुँह ढक के सोइए. आलसी लोगों का ध्येय वाक्य. पूरी कहावत इस प्रकार है – किस किस को याद कीजिए, किस किस को रोइए, आराम बड़ी चीज़ है, मुँह ढक के सोइए.
आरोग्य महा भाग्य. निरोगी काया बड़े भाग्य से मिलती है.
आल तू जलाल तू, आई बला को टाल तू. कोई परेशानी आ पड़ने पर ईश्वर से सहायता मांगने के लिए. जलाल – ईश्वर का तेज (उर्दू)
आलमगीर सानी, चूल्हे आग न घड़े पानी. औरंगजेब के जमाने में प्रजा बड़े कष्ट में थी उसी पर कहावत.
आलस कबहु न करिए यार, चाहें काम परे हों हजार, मल की शंका तुरत मिटावे, वही सभी सुख पुनि पुनि पावे. मलत्याग की इच्छा होते ही तुरंत उसके लिए चले जाना चाहिए, तभी स्वास्थ्य ठीक रहता है.
आलस नींद किसाने नासे, चोरे नासे खांसी, अँखियाँ कीच बेसवा नासे, साधु नासे दासी. किसान को आलस्य, चोर को खांसी, वैश्या को आँखों की कीचड़ (अर्थात गंदा रहना) और साधु को दासी नष्ट कर देते हैं.
आलस नींद मर्द को खोवे, चोर को खोवे खांसी, टक्को ब्याज मूल को खोवे, रांड को खोवे हांसी. किसान को निद्रा व आलस्य नष्ट कर देता है, खांसी चोर का काम बिगाड़ देती है, ब्याज के लालच से मूल धन भी है डूब जाता है और हंसी मसखरी विधवा को बिगाड़ देती है.
आलस, निद्रा और जम्हाई, ये तीनों हैं काल के भाई. अधिक आलस्य और अधिक निद्रा रोग को बुलावा देते हैं.
आलसी के ढेर उपाय. आलसी व्यक्ति काम न करने के ढेर सारे बहाने जानता है.
आलसी को कुत्ता मोटो, मेहनती को बैल मोटो. आलसी आदमी खाने के सामान को ठीक से नहीं रखता इसलिए कुत्ते को खूब खाने को मिलता है, मेहनती आदमी अपने बैल को बड़े प्यार से खिलाता है.
आलसी गिरा कुएं में, कहा यहाँ ही भले. आलस की पराकाष्ठा.
आलसी बटाऊ असगुन की बाट जोहे. आलसी यात्री इस बात का इंतज़ार करता रहता है कि कोई अपशकुन हो जाए और उसे जाना न पड़े.
आलसी बैल फुन्कारे बहुत. आलसी बैल काम नहीं करना चाहिता इसलिए बहुत फुफकारता है.
आलसी मर्द की नार चंचल. आम तौर पर देखा गया है कि आलसी पुरुषों की पत्नियां चंचल होती हैं.
आलसी सदा रोगी. आलसी आदमी कभी स्वस्थ नहीं रह सकता.
आलस्य दरिद्रता का मूल है. (दरिद्रता को मूल एक आलस बखानिए). बिलकुल स्पष्ट एवं सत्य. इंग्लिश में कहावत है – Idleness is the root of all evils.
आला दे निवाला. एक कहानी है कि एक राजा ने किसी भिखारी की बहुत सुंदर लड़की से शादी कर ली. महल में उस लड़की का भीख मांगने का मन करता था. तो वह चुपचाप दीवार में बने आले में रोटी का टुकड़ा रख कर उससे भीख मांगती थी. कहावत का अर्थ है कि आदमी की बुनियादी आदतें नहीं छूटतीं. सन्दर्भ कथा 29. एक कहानी है कि एक राजा ने किसी भिखारी की बहुत सुंदर लड़की से शादी कर ली. वह लड़की रानी बन कर महल में तो आ गई पर भीख मांगे बिना उस को रोटी नहीं पचती थी. सब दस दासियों और अन्य रानियों के सामने वह ऐसा कोई काम भी नहीं कर सकती थी. तो उस ने चुपचाप भीख मांगने का एक तरीका निकाला. वह अपना कमरा बंद कर के दीवार में बने आले में रोटी का टुकड़ा रख देती और ‘आला दे निवाला’ कह कर उस से रोटी का टुकड़ा मांग कर खाती थी. कोई नीची मानसिकता वाला व्यक्ति यदि उच्च पद पर आसीन हो जाए और फिर भी ओछी हरकतें करे तो उस का मजाक उड़ाने के लिए यह यह कहावत कही जाती है. जात सुभाय न जाय कभी, माँगना ही भावै, रानी हो गई डोमनी, आले धर खावे.
आवत आवत सब भले आवत भले न चार, विपत बुढ़ापा आपदा और अचीती धार. अचीती धार – अनायास संकट. और सब चीजों का आना अच्छा लगता है, इन चार के अलावा – विपत्ति, बुढ़ापा, बड़ी आपदा और अनायास संकट.
आवत बरसे आदरा, जावत बरसे हस्त, केतनो राजा डांड़े बांधे, सुखी रहे गिरहस्त. आद्रा नक्षत्र के आरम्भ और हस्ति के अंत में यदि वर्षा हो तो खूब अनाज होता है. राजा कितना भी कर ले ले किसान सुखी रहता है.
आवतो नहिं लाजे तो जावतो क्यूँ लाजे. (राजस्थानी कहावत) वैश्या के घर, या किसी भी गलत स्थान पर आते समय लाज नहीं आई तो जाते समय क्यों आ रही है.
आवश्यकता आविष्कार की जननी है. जिस चीज़ की आवश्कता होती है उसे बनाने के लिए मनुष्य प्रयास करता है. इंग्लिश में कहावत है – necessity is the mother of invention.
आवश्यकता कोई क़ानून नहीं जानती. अर्थ स्पष्ट है. इंग्लिश में कहावत है – necessity knows no rules.
आवा का आवा ही कच्चा रह गया. कुम्हार के आवे में सारे ही बर्तन कच्चे रह गए. किसी घर या समाज में सारे सदस्य मूर्ख हों तो.
आवाज़े खलक को नक्कारा ए खुदा समझो. जनता की आवाज को ईश्वर की आज्ञा मानो.
आवे के अबेर, जावे के सवेर, खावे के कलेवा, तीन तीन बेर. कामचोर नौकर के लिए जो देर से आता है, जल्दी जाना चाहता है और तीन तीन बार नाश्ता मांगता है.
आवे तो भावे न, जावे तो मन पछतावे. कुछ चीजें ऐसी होती हैं कि जो हमारे पास आती हैं तो हम उनका महत्व नहीं समझते, पर हाथ से चली जाती हैं तो हम पछताते हैं.
आवे न जावे बृहस्पति कहावे. आता जाता कुछ नहीं है और खुद को बड़ा विद्वान घोषित करते हैं.
आवै कातिक जाय असाढ़, का करै गंधक हरताल. जाड़े और गर्मी में त्वचा की खुश्की के कारण कुछ लोगों को खुजली की बीमारी होती है. यह गंधक इत्यादि लगाने से नहीं जाती बल्कि वर्षा आरम्भ होने पर ही जाती है.
आशा अमर धन. आशावादी दृष्टिकोण व्यक्ति की ऐसी पूँजी है जो कभी समाप्त नहीं होती.
आशा जिए, निराशा मरे (आशा ही जीवन है). आशा और सकारात्मक सोच से ही आदमी जीवित रहता है, निराशा और नकारात्मक सोच मृत्यु को बुलावा देती हैं.
आशा, मान, महत्त्व अरु बालपने को नेहु, ये सबरे तबही गए जबहि कहा कछु देहु. जैसे ही आप किसी से कुछ मांगते हैं, वैसे ही उससे की हुई आशा, आपका सम्मान, महत्व और पुराने से पुराना प्रेम समाप्त हो जाता है.
आषाढ़ करै गांव गौतरी, कातिक खेलय जुआ, पास-परोसी पूछै लागिन, धान कतका हुआ. गौतरी – मेहमानी. जो किसान आषाढ़ महीने में गांव-गांव मेहमानी करते हुए घूमता रहा और कार्तिक महीने में जुआ खेलता रहा, उस से उसके पड़ोसी व्यंग्य करते हुये पूछते हैं – कितना धान हुआ?
आषाढ़ माह जो दिन में सोय, ओकर सिर सावन में रोय. (भोजपुरी कहावत) आषाढ़ में दिन में सोना हमारे स्वास्थ्य के लिए काफी हानिकारक है. आषाढ़ में दिन में सोने से सावन में सिर में पीड़ा होती है.
आस पराई जो तके, जीवत ही मर जाए. प्रत्येक व्यक्ति को प्रयास यही करना चाहिए कि अपना काम अपने आप ही करे. दूसरे का आसरा देखने वाले को अक्सर धोखा खाना पड़ता है.
आस पास बरसे, दिल्ली पड़ी तरसे. कहीं पर बहुतायत कहीं पर अभाव.
आसन दृढ़, आहार दृढ़, निद्रा दृढ़ जो होय, कहे भद्र रिषि वह कभी मरे न बूढ़ा होय. आसन – योग व्यायाम. जो नियमित व्यायाम करे, संतुलित व पौष्टिक आहार ले और पर्याप्त नींद ले वह सदा स्वस्थ रहता है.
आसन बड़ा कि भक्ति. जिस मठ मन्दिर का नाम बहुत प्रसिद्द हो जाता है वहाँ जाना चाहिए या जहाँ अधिक भक्ति और ज्ञान मिले वहाँ.
आसन बासन डासन जरूर दो. घर आए अतिथि को आसन (बैठने का स्थान), बासन (बर्तन, यानी खाने-पीने की व्यवस्था) और डासन (बिछौना, यानी सोने की व्यवस्था) अवश्य देना चाहिए.
आसन मारे क्या भया, मुई न मन की आस. मन से लोभ नहीं गया तो आसन मार कर बैठने से क्या लाभ होगा.
आसमान के फटे को कहाँ तक थेगली (पैबंद) लगे. बहुत बिगड़ा हुआ काम कहाँ तक संभाला जा सकता है.
आसमान पर थूको तो मुँह पर ही आता है. किसी सज्जन और सच्चरित्र व्यक्ति पर लांछन लगाने वाला व्यक्ति अंत में स्वयं ही अपमानित होता है.
आसमान से गिरे खजूर में अटके. किसी एक परेशानी से निकल कर दूसरी में पड़ जाना. कुछ लोग इसके आगे भी बोलते हैं – खजूर से निकले बबूल में लटके.
आसरे से सासरा लगे. लाभ की आशा से ही ससुराल का महत्व है.
आसा का मरे, निरासा का जिये. अधिक आशा करने से आदमी मरता है, परन्तु किसी से कोई आशा न रखे, तो सुखी रहता है.
आसा की बेल पहाड़े चढ़त. आशा की बेल पहाड़ पर चढ़ती है. आशा में बड़ी शक्ति है.
आसा त्रिसना लोक नसाय. आशा और तृष्णा संसार का नाश करती हैं.
आसा पे आसमान टंगा. आशा के बल पर ही आसमान टँगा है.
आसा में भगवान का वासा. ईश्वर आशावादी व्यक्ति की ही सहायता करते हैं.
आसानी से मिला आसानी से गया. सेंत में मिली चीज सेंत में ही जाती है.
आसिन महीना बहे ईसान, थर थर कांपें गाय किसान. आश्विन महीने में ईशान कोण से हवा चले और अधिक वर्षा हो तो मनुष्य और पशुओं को जाड़ा लगने लगता है.
आहार चूके वह गया, व्यौहार चूके वह गया, दरबार चूके वह गया, ससुरार चूके वह गया. खाने पीने में, लोक व्यवहार में, दरबार में और ससुराल में जो संकोच करता है वह नुकसान में रहता है.
आहारे व्योहारे लज्जा न कारे. खाने में और लोक व्यवहार में लज्जा नहीं करनी चाहिए.
इ
इंचा खिंचा वह फिरे, जो पराए बीच में पड़े. जो दूसरों के मसलों में बीच में पड़ता है वह खुद ही परेशानी में पड़ जाता है (अपनी टांगें खिंचवाता है) .
इंतजार का फल मीठा. जो उतावली न कर के प्रतीक्षा करता है उसे लाभ अवश्य मिलता है.
इंदर का बरसा, माता का परसा. खेत बादल बरसने से ही भरता है और पेट माँ के परसने से ही भरता है.
इंशाअल्लाहताला, बिल्ली का मुँह काला. मुस्लिम लोग मुँह से कोई गन्दी बात निकल जाए तो ऐसा कहते हैं.
इंसान अपने दुख से इतना दुखी नहीं है जितना औरों के सुख से है. अर्थ स्पष्ट है.
इंसान जन्म से नहीं कर्म से महान होता है. अर्थ स्पष्ट है. हिन्दू धर्म जन्म को नहीं कर्म को प्रधानता देता है.
इंसान बनना है तो दारू पियो, दूध तो साले कुत्ते भी पीते हैं. यूँ तो शराब पीने वाले अपने आप को सही ठहराने के लिए बहुत से बहाने बताते हैं पर इस से ज्यादा मजेदार शायद ही कोई होगा.
इक कंचन इक कुचन पे, को न पसारे हाथ. सोने पर और स्त्री के शरीर पर कौन हाथ नहीं पसारता. कुच – स्तन.
इक तो बड़ों बड़ों में नाँव, दूजे बीच गैल में गाँव, ऊपै भए पैसन से हीन, दद्दा हम पै विपदा तीन. कोई सज्जन अपनी तीन विपदाएं बता रहे हैं – एक तो लोग हमें धनी समझते हैं (इसलिए सहायता मांगने आते हैं), दूसरे मुख्य मार्ग पर गाँव स्थित है (इसलिए अधिक लोग आते हैं) और तीसरे यह कि अब हम पर अब धन नहीं रहा.
इक तो बुढ़िया नचनी, दूजे घर भया नाती. बुढ़िया नाचने की शौक़ीन थी और ऊपर से घर में पोते का जन्म हो गया तो वह नाचे ही जा रही है. किसी सुअवसर पर अधिक प्रसन्न होने वालों पर व्यंग्य.
इक नागिन अरू पंख लगाई. एक खतरनाक चीज़ जब और खतरनाक हो जाए.
इकली लकड़ी ना जले, नाहिं उजाला होय. अकेला व्यक्ति कोई महत्वपूर्ण काम नहीं कर सकता.
इक्का, वकील और गधा, पटना शहर में सदा. किसी भुक्तभोगी ने पटना शहर की तारीफ़ यह कह कर की है कि वहाँ इक्के, वकील और गधे हमेशा मिलते है.
इक्के चढ़ कर जाए, पैसे दे कर धक्के खाए. इक्के की सवारी में धक्के बहुत लगते थे, उस पर मजाक.
इक्के दुक्के का अल्लाह बेली. पुराने समय में यात्रा पर जाने वाले लोग समूह में तो सुरक्षित होते थे पर यदि वे अकेले दुकेले हों तो चोर डाकुओं के आतंक से भगवान ही उनका रक्षा कर सकता था. सन्दर्भ कथा – फरीदा नाम की एक बुढ़िया जंगल से होकर जाने वाली एक सड़क के किनारे अपने बदमाश लड़कों के साथ झोपड़ी डाल कर रहती थी. उस के लड़के दिन के समय पास के एक नाले के पीछे छिपे रहते थे. जब उस सड़क से कोई इक्का दुक्का मुसाफिर निकलते थे तो वह जोर से बोलती – इक्के दुक्के का अल्ला बेली. उसके डकैत बेटे समझ लेते कि कोई अकेला-दुकेला मुसाफिर है. वे नाले से निकलकर उसे लूट लेते थे. जब यात्री समूह में होते तो बुढ़िया पुकारती – जमात में करामात है. डकैत समझ जाते कि बहुत सारे हैं और छिपे रहते. इसी तरह बहुत दिनों तक चलता रहा. आखिर एक दिन उसके सब डाकू बेटे पकड़े गए और फांसी पर चढ़ा दिए गए. इस पर बुढ़िया को बड़ा पछतावा हुआ और अपने छली जीवन से उसे घृणा हो गई. अपने पास के पैसों से उसने उस नाले का पुल बनवा दिया. बुढ़िया के नाम पर उस जगह का नाम फरीदाबाद पड़ गया.
इज्जत भरम की, कमाई करम की, लुगाई सरम की. बाजार में जो आदमी जितनी हवा बना कर रखता है उस की उतनी अधिक इज्जत होती है, कमाई अपने भाग्य से होती है या अपने कर्म से होती है (यहाँ करम का अर्थ कर्मफल अर्थात भाग्य से भी है और उद्यम से भी) और स्त्री लज्जाशील ही अच्छी होती है. भरम – भ्रम.
इज्जत मांगने से नहीं मिलती. मान सम्मान मांगने से नहीं मिलता, कड़ी मेहनत से मिलता है. रूपान्तर – इज्जत हुकुम देने से नहीं मिलती. इंग्लिश में कहा है – Respect is earned not commanded.
इज्जत वाले की कमबख्ती है. जिसकी कोई इज्जत नहीं उसे कोई चिंता नहीं, प्रतिष्ठित व्यक्ति को ही अपनी साख बचाने के लिए सब झंझट करने पड़ते हैं.
इडिल-मिडिल की छोड़ो आस, लेऊ खुरपिया खोदो घास. पहले जमाने में आठवाँ पास को मिडिल पास कहते थे. जिस का मन पढ़ाई में न लग रहा हो उस से बड़े बूढ़े कह रहे हैं कि तुम तो खुरपा पकड़ो और घास खोदो.
इतना ऊपर न देखो की सर पर रखा टोप ही नीचे गिर जाय. आदमी को अपनी हैसियत से ज्यादा का सपना नहीं देखना चाहिए.
इतना कहना मान सहेली, पर नर संग न बैठ अकेली. पराए पुरुष के साथ में बैठने से स्त्री बदनाम हो जाती है.
इतना नफा खाओ जितना आटे में नोन. व्यापार में थोड़ा ही मुनाफा खाना चाहिए. ज्यादा मुनाफाखोरी से व्यापार चौपट हो सकता है और लोगों की हाय भी लगती है.
इतना हंसिए कि रोना न पड़े (इतना न हंसो कि रोना पड़े). सफलता मिलने पर या किसी शुभ अवसर पर बहुत अधिक खुश नहीं होना चाहिए. समय बड़ा बलवान है, कभी भी पलट सकता है.
इतनी चिकनी हांडी होती तो कुत्ते न चाट लेते. इतना आसान काम होता तो भी ऐरा गैरा भी कर लेता.
इतनी बड़ाई और फटी रजाई. जो लोग डींगें बहुत हांकते हैं और अन्दर से खोखले होते हैं.
इतनी सी जान गज भर की जबान. जब कोई लड़का या छोटा आदमी बहुत बढ़-चढ़ कर बातें करता है.
इत्तेफाक से कुतिया मरी, ढोंगी कहे मेरी बानी फली. कुतिया तो इत्तेफाक से मरी थी, ढोंगी बाबा को यह कहने का मौका मिल गया कि देखो मैंने श्राप दिया इसलिए मर गई. संयोग का फायदा उठाने वाले कुटिल लोगों के लिए.
इधर का दिन उधर उग आया. आशा के विपरीत लाभ किसी और को हो गया.
इधर काटा उधर पलट गया. सांप के लिए कहते हैं कि वह काटते ही पलट जाता है तभी उसका जहर चढ़ता है. इस कहावत को ऐसे आदमी के लिए प्रयोग करते हैं जो धोखा देता है और अपनी बात पर कायम नहीं रहता.
इधर कुआं उधर खाई. (आगे कुआं पीछे खाई) (इधर गिरूँ तो कुआं, उधर गिरूँ तो खाई). जब व्यक्ति किसी ऐसी परिस्थिति में फंस जाए जिसमें दोनों ही विकल्प खतरनाक हों तब यह कहावत प्रयोग की जाती है
इधर के बराती, न उधर के न्योतार. कहीं के भी नहीं.
इधर तलैया उधर बाघ. दोनों ओर संकट का होना.
इधर न उधर यह बला किधर. जब कोई अत्यधिक बीमार व्यक्ति न मरे न ही ठीक हो, तब कहते हैं.
इन तिलों में तेल नहीं. निचुड़ा हुआ आदमी.
इन नैनन का यही विसेख, वह भी देखा यह भी देख. इन आँखों की विशेषता यही है कि ये अच्छा भी देखती हैं और बुरा भी. तात्पर्य है कि व्यक्ति को अच्छे बुरे सभी तरह के दिन देखने पड़ते हैं.
इनकी नाक पर गुस्से का मस्सा. जो लोग हर समय गुस्से में रहते हैं उन पर व्यंग्य.
इनको भी लिखो. कोई व्यक्ति मूर्खतापूर्ण प्रश्न करे तो उस का मजाक उड़ाने के लिए. सन्दर्भ कथा – एक बार अकबर बादशाह ने बीरबल से पूछा कि संसार में अंधों की संख्या अधिक है या आंख वालों की. बीरबल ने जवाब दिया – जहांपनाह, अंधों की संख्या अधिक है. बादशाह ने कहा – साबित करो. बीरबल राज महल के दरवाजे पर बैठ गए और जूते गांठने लगे. एक मुंशी को उन्होंने अपनी बगल में बिठा लिया. वहाँ से निकलने वालों में जो यह पूछता कि आप यह क्या कर रहे हैं, उसका नाम तो अंधों में लिखवाते और जो पूछता कि आज आप जूते कैसे गाँठ रहे हैं, उनका नाम आँख वालों में. कुछ देर बाद अकबर वहाँ से गुजरे. उनहोंने भी पूछा बीरबल यह क्या कर रहे हो. बीरबल ने मुंशी से कहा, इनको भी लिखो. अकबर ने कहा, क्या मतलब? बीरबल ने तुरंत उनको अपनी लिस्ट दिखाई. अंधों की लिस्ट आँख वालों से बहुत लम्बी थी.
इन्दर की जाई पानी को तिसाई. जाई – बेटी, तिसाई – प्यासी (तृषित). वर्षा के देवता इंद्र की पुत्री पानी को तरस रही है. जहाँ किसी वस्तु की अधिकता होनी चाहिए वहाँ उसकी कमी हो तो.
इन्दर राजा गरजा, म्हारा जिया लरजा. बरसात आने पर गल्ले का व्यापारी घबरा रहा है कि सामान कहाँ रखूँ, जो भीग कर खराब न हो. (कुम्हार के लिए भी).
इब्तदाये इश्क है रोता है क्या, आगे- आगे देखिए होता है क्या. किसी काम को शुरू करने पर जो लोग ज्यादा उत्साह दिखाते हैं या ज्यादा घबराते हैं उन के लिए.
इमली के पत्ते पे कुलाबाती खाओ. इमली का पत्ता बहुत छोटा सा होता है, उस पर कुलाबाती (कलाबाजी, forward roll) करने का आशीर्वाद दिया जा रहा है. अवसर चूके व्यक्ति के लिए प्रायः व्यंग्य में प्रयुक्त.
इमली बूढ़ी हो जाए पर खटाई नहीं छोड़ती. बूढ़ा होने पर भी व्यक्ति का स्वभाव नहीं बदलता.
इराकी पर जोर न चला, गधी के कान उमेठे. इराकी – घुड़सवार. कायर लोग ताकतवर पर वश न चले तो कमज़ोर पर ताकत दिखाते हैं.
इर्ष्या द्वेष कभी न कीजे, आयु घटे तन छीजे. किसी से ईर्ष्या करने पर उसका कोई नुकसान नहीं होता, अपना स्वास्थ्य खराब होता है और आयु कम होती है. दूसरों की सुख समृद्धि देख कर जलना नहीं चाहिए..
इलाज से बड़ा परहेज. परहेज का महत्त्व दवा से भी अधिक है. इंग्लिश में – Prevention is better than cure.
इल्म का परखना और लोहे के चने चबाना बराबर है. किसी की सही योग्यता जान पाना बहुत कठिन है.
इल्म थोड़ा, गरूर ज्यादा. अल्पज्ञानी और अहंकारी व्यक्ति के लिए.
इल्लत जाए धोए धाय, आदत कभी न जाए. गन्दगी तो धोने से छूट सकती है पर गन्दी आदत कभी नहीं छूटती. इंग्लिश में कहते हैं – Old habits die hard.
इल्ली मसलने से आटा वापस नहीं मिलता. इल्ली कहते हैं अनाज में पलने वाले लार्वा को. यह बहुत तेज़ी से अनाज को खाता है. लेकिन अगर हम गुस्से में इल्ली को मसल दें तो वह अनाज वापस नहीं मिल सकता. किसी ने हमारा नुकसान किया हो तो उस को नुकसान पहुँचाने से अपने नुकसान की भरपाई नहीं की जा सकती.
इश्क और मुशक छिपाए नहीं छिपते. प्रेम और दुश्मनी छिपाने से नहीं छिपते (प्रकट हो ही जाते हैं). रहीम ने इसे और विस्तार से इस प्रकार कहा है – खैर, खून, खांसी, खुसी, बैर, प्रीत, मदपान; रहिमन दाबे न दबें, जानत सकल जहान. कत्थे का दाग, खून, खांसी, ख़ुशी, दुश्मनी, प्रेम और शराब पीना ये सब छिपाने से नहीं छिपते.
इश्क का मारा फिरे बावला. प्रेम का रोग जिसको लग जाए वह उचित अनुचित का बोध खो देता है.
इश्क की मारी कुतिया कीचड़ में लोटती है. विशेषकर दुश्चरित्र स्त्री की ओर संकेत है कि वह अपने प्रेमी को पाने के लिए कुछ भी कर सकती है.
इश्क की मारी गधी धूल में लोटे. गधी को भी इश्क हो जाए तो वह अपने काबू में नहीं रहती. प्रेम करने वालों पर व्यंग्य. ऊपर वाली कहावत में दुश्चरित्र स्त्री पर व्यंग्य किया गया है जबकि इस कहावत में मूर्ख स्त्री पर.
इश्क के कूचे में आशिक की हजामत होती है. प्रेम के चक्कर में आदमी लुट जाता है.
इश्क ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया, वरना हम भी आदमी थे काम के. इश्क के चक्कर में पड़ कर अच्छे खासे कामकाजी लोग भी बरबाद हो जाते हैं. कोई अन्य परेशानी होने पर भी लोग मजाक में ऐसा बोलते हैं.
इश्क मुश्क खांसी ख़ुशी, सेवन मदिरा पान, जे नौ दाबे न दबें, पाप पुण्य औ स्यान. (बुन्देलखंडी कहावत) स्यान – चालाकी. प्रेम, शत्रुता, खांसी, ख़ुशी, मदिरा सेवन, पाप, पूण्य और चतुराई, ये सब छिपाने से नहीं छिपते.
इश्क में शाह और गधा बराबर. अर्थात दोनों की ही अक्ल घास चरने चली जाती है.
इस गाँव की चिरई, उस गाँव उड़ान. कोई व्यक्ति दूर दूर तक हाथ पैर मारे तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.
इस घर का बाबा आदम ही निराला है. किसी घर के रीति रिवाज़ दुनिया से अलग हों तो.
इस दुनिया के तीन कसाई, पिस्सू, खटमल, बामन भाई. ये तीनों ही लोगों का खून चूसते हैं.
इस देवी ने बहुत से भक्त तारे हैं. किसी कुलटा स्त्री के प्रति व्यंग्य.
इस नदिया का यहि व्यौहार, खोलो धोती उतरो पार. कभी कभी व्यक्ति ऐसी परिस्थितियों में फंस जाता है कि उसे अपनी मर्यादा और गरिमा से नीचे जा कर भी काम करना पड़ता है.
इस मुर्दे का पीला पाँव, के पीछे पीछे तुम भी आओ. कुछ चोर सोने की मूर्ति चुरा कर अर्थी बना कर ले जा रहे थे. संयोग से मूर्ति का पैर दिखने लगा तो किसी आदमी ने यह सवाल पूछा. चोरों को लगा कि इस आदमी को शक हो गया है तो उस से बोले कि तुम भी साथ आ जाओ, तुम्हें भी हिस्सा दे देंगे. किसी घोटाले के उजागर होने पर घोटाला करने वाला हिस्सा देने की बात कहे तो यह कहावत कही जाती है. सन्दर्भ कथा 32. कुछ चोरों ने एक मंदिर से सोने की आदमकद मूर्ति चुराई. अब उसे शहर के बाहर अपने अड्डे तक ले कैसे जाएँ? तो उन्होंने इस के लिए एक नायाब तरीका निकाला. उन्होंने एक अर्थी बनाई और उस पर मूर्ति को रखा और बाकायदा कपड़ा ढक कर राम नाम सत्य बोलते हुए ले जाने लगे. राह में कुछ राहगीर भी अर्थी के साथ हो लिए.
संयोग से पैर के ऊपर ढंका कपड़ा कुछ उघड़ गया और मूर्ति का पैर दिखने लगा. किसी आदमी ने यह देखा तो पूछा कि इस मुर्दे का पाँव पीला कैसे है. चोरों को लगा कि इस आदमी को शक हो गया है तो उस से बोले कि तुम भी साथ आ जाओ, तुम्हें भी हिस्सा दे देंगे. किसी घोटाले के उजागर होने पर घोटाला करने वाला हिस्सा देने की बात कहे तो यह कहावत कही जाती है.
इस हाथ घोड़ा, उस हाथ गधा. जो आदमी जल्दी खुश हो जाए और उतनी ही जल्दी नाराज भी हो जाए.
इस हाथ ले, उस हाथ दे. इस का अर्थ दो प्रकार से है – एक तो यह कि धन संपत्ति के लिए अधिक लोभ और मोह नहीं करना चाहिए, यदि हम समाज से बहुत कुछ लेते हैं तो समाज को बहुत कुछ देना भी चाहिए. दूसरा यह कि उधार ली हुई रकम जितनी जल्दी हो सके लौटा देनी चाहिए. इस से मिलती जुलती कहावत है – क्या खूब सौदा नकद है, इस हाथ ले उस हाथ दे. अर्थात नकद सौदा है, इस हाथ पैसा दो उस हाथ माल लो.
इहाँ कुम्हड़बतिया कोऊ नाहीं, जे तर्जनी देखि मुरझाहीं. यहाँ कोई छुईमुई की पत्तियाँ नहीं है जो तुम्हारी उँगली देख कर मुरझा जाएंगी. राम ने जब शिवजी का धनुष तोड़ दिया तो परशुराम आ कर बहुत क्रोधित होने लगे. तब लक्ष्मण ने उन को ललकारते हुए यह कहा. कहावत का अर्थ है कि आप अपने को बहुत बलशाली समझते हो पर हम भी आप से कम नहीं है.
इहाँ न लागहिं राउरि माया. यहाँ आप की जालसाजी नहीं चलेगी. राउरि – आपकी.
इहाँ भी कद्दू उहाँ भी कद्दू, कद्दू की तरकारी, कौन घाट पे उतरा कद्दू, आय गया ससुरारी. एक व्यक्ति अपने घर में रोज रोज कद्दू की तरकारी खा के परेशान हो गया तो इस उम्मीद से ससुराल गया कि वहाँ कुछ अच्छा खाने को मिलेगा. लेकिन बदकिस्मती से उसे वहाँ भी कद्दू खाने को मिला.
इहि काल बली सौं बली नाहिं कोय. काल जितना बलवान कोई नहीं है.
इहे चाची झगड़ा लगाएँ, इहे चाची झगड़ा छुड़ाएं. उन धूर्त स्त्रियों के लिए जो परिवार के दो लोगों के बीच झगड़ा शुरू कराती हैं और फिर झगड़ा सुलटा कर सब की अच्छी बन जाती हैं.
ई
ई जवानी मोहे ना भावे, सींक डोले हँसी आवे. बूढ़े लोगों को इस बात पर बड़ी चिढ मचती है कि जवान लोग बिना बात इतना क्यों हँसते हैं. सींक जैसी भी कोई वस्तु हिलती है तो हँसी आने लगती है.
ई नहिं बूझो डाक निबुद्धि, नासे काल बिनासे बुद्धि. डाक – किसी व्यक्ति का नाम. यह मत समझो कि ‘डाक’ निबुद्धि, अर्थात् मूर्ख था. सच बात तो यह है कि ‘विनाशकाले विपरीतबुद्धिः सन्दर्भ कथा 33. मिथिला में ‘डाक’ नामक एक व्यक्ति रहता था. उसके विषय में ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की थी कि वह स्नान करते समय सिर का बाल उलझ जाने के कारण पानी में डूबकर मरेगा. फलस्वरूप, डाक ने बाल रखना और नदी तालाब में स्नान करना छोड़ दिया. उसके सर में, शिखा के रूप में, केवल एक ही लम्बा बाल था. एक दिन ऐसा संयोग हुआ कि वह पास के एक छोटे से पोखरे में स्नान करने गया, जिसमें बहुत थोड़ा पानी था. फिर भी, पोखरे के पाठ में अपने सिर का वही एक बाल उलझ जाने से बह पानी में डूबकर मर गया. कोई भी व्यक्ति मूर्ख नहीं होता, विनाश के समय उसको बुद्धि मारी आती है.
ई बुढ़िया बड़ी लबलोली, चढ़े को मांगे डोली. किसी अपात्र व्यक्ति द्वारा अनुचित सुविधाएं मांगने पर.
ईंट का घर माटी कर दिया. ईंट का घर मिट्टी कर दिया. बना बनाया काम बिगाड़ दिया.
ईंट का घर, मिट्टी का दर. बेतुका काम. घर तो ईंट का बनाया पर दरवाज़ा मिट्टी का बना दिया.
ईंट की देवी, रोड़े का प्रसाद. जैसी देवी वैसा प्रसाद.
ईंट की लेनी पत्थर की देनी. कठोर बदला चुकाना, मुँह तोड़ जवाब देना.
ईंट खिसकी दीवार धसकी. एक ईंट खिसकने से ही दीवार गिर सकती है. समाज और संगठन में एक एक व्यक्ति महत्वपूर्ण है, इसलिए किसी की अवहेलना नहीं करना चाहिए.
ईंट मारेगा छींट खाएगा. (पाथर डारे कीच में उछरि बिगारे अंग). कीचड़ में ईंट फेंकने से अपने ऊपर छींटें आती हैं. नीच व्यक्ति को छेड़ने पर अपना ही नुकसान होता है.
ईंट से ईंट बजा दी. किसी नगर को नष्ट भ्रष्ट कर दिया.
ईख की गांठ में रस नहीं होता. गन्ना बहुत रस से भरा होता है पर उसकी भी गाँठ में रस नहीं होता. किसी भी व्यक्ति में सभी अच्छाईयाँ नहीं होतीं थोड़ी बहुत कमियाँ भी होती हैं..
ईतर के घर तीतर, बाहर बाधूँ कि भीतर (घड़ी बाहर घड़ी भीतर). किसी इतराने वाले व्यक्ति के हाथ कोई बड़ी चीज़ लग गई है. कभी घर में रखता है कभी बाहर सबको दिखाता घूमता है.
ईद खाई बकरीद खाई, खायो सारे रोजा, एक दिना की होरी आई, घर घर मांगे गूझा. मुसलमान के लिए व्यंग्य में कह रहे हैं कि उसने ईद पर, बकरीद पर और तीसों रोजों में खूब माल खाए. अब एक दिन की होली आई है तो घर घर जा कर गुझिया मांग रहा है.
ईद पीछे चाँद मुबारक. बेमौके काम.
ईन मीन साढ़े तीन. कोई बहुत छोटा परिवार या संस्था.
ईमान है तो जहान है. जब तक ईमान सलामत है तभी तक संसार में रहना सार्थक है.
ईश रजाय सीस सबही के. ईश्वर सभी के सर झुकाता है.
ईश्वर उनहिं सहाय, जो सहायें स्वयं को. अर्थ स्पष्ट है. इंग्लिश में – God helps those who help themselves.
ईश्वर की गति ईश्वर जाने. भगवान की माया वे स्वयं ही समझ सकते हैं. इंग्लिश में कहते हैं – Mysterious are the ways of God.
ईश्वर की माया, कहीं धूप कहीं छाया. ईश्वर की बनाई दुनिया में कहीं ख़ुशी है कहीं दुख.
ईश्वर जो करता है अच्छा ही करता है. ईश्वर के सभी कार्यों में मनुष्यमात्र की भलाई छिपी होती है, वह चाहे हमें आज दिखे या कल. सन्दर्भ कथा – एक बार एक राजा अपने मंत्री और लाव-लश्कर के साथ शिकार के लिए गया. शिकार खेलते हुए राजा की ऊँगली कट गई, सब अफ़सोस ज़ाहिर करने लगे लेकिन मंत्री ने कहा, “ईश्वर जो करता है अच्छा ही करता है”. ये सुनकर राजा को बहुत गुस्सा आया और उसने मंत्री को जेल में डालने का हुक्म दे दिया.
कुछ दिनों बाद ही राजा फिर से शिकार पर गया और घने जंगलों में अपने साथियों से बिछड़ गया. उसे कुछ जंगली डाकुओं ने घेर लिया. डाकू उसे पकड़ कर अपने अड्डे पर ले गए और उसकी बलि चढाने की तैयारी कर रहे थे कि तभी उनका सरदार वहाँ आ गया. जैसे ही सरदार की नज़र राजा के हाथों की तरफ़ गई, उसने चिल्ला कर तुरंत बलि रोकने का हुक्म दिया. उसने ये कहकर राजा को छोड़ दिया कि किसी भी ऐसे व्यक्ति की बलि नहीं चढ़ाई जा सकती, जिसका कोई अंग कटा हुआ हो.
राजा को अपने मंत्री की बात याद आई. राजमहल पहुँचते ही उसने सबसे पहले अपने मंत्री को रिहा कर दिया और उससे माफ़ी मांगी. मंत्री ने फिर कहा “ईश्वर जो करता है अच्छा ही करता है”. इस पर राजा ने कहा कि तुम्हें जेल में रहना पड़ा इसमें क्या अच्छाई थी. मंत्री ने कहा राजन जब भी आप शिकार पर जाते हैं या कहीं भी बाहर जाते हैं तो मैं हमेशा साये की तरह आपके साथ रहता हूँ. अगर मैं जेल में नहीं होता तो आपके साथ होता. आप तो अपनी कटी हुई ऊँगली के कारण बच गये मगर मेरी बलि चढ़ाते हुए वे डाकू ज़रा भी नहीं झिझकते. इसीलिए मैं मानता हूँ कि “ईश्वर जो करता है अच्छा ही करता है.”
ईश्वर देखा नहीं तो बुद्धि से तो जाना जा सकता है. ईश्वर का साक्षात दर्शन नहीं हो सकता, बुद्धि के द्वारा ही ईश्वर के अस्तित्व की पहचान हो सकती है.
ईश्वर राखे जैसे तैसे रहो खुश. अर्थ स्पष्ट है.
ईश्वर लड़ने की रात दे बिछड़ने का दिन न दे. घरवालों या दोस्तों से थोड़ी बहुत लड़ाई भले ही होती रहे, कभी बिछड़ना न पड़े.
ईस जाए पर टीस न जाए. किसी से ईर्ष्या न करने की कितनी भी कोशिश करो दूसरों की सम्पन्नता देख कर मन में टीस तो होती है.
उ
उँगलियों से पाहुंचा भारी होत. संगठन में शक्ति है.
ऊँगलियाँ दसों चिराग. कारीगर और कलाकार की दसों उंगलियाँ चिराग के समान होती हैं.
ऊँगली पकड़ाई पाहुंचा पकड़ लिया. किसी की थोड़ी सी सहायता की तो वह पीछे ही पड़ गया.
ऊँगली सूज कर अंगूठा नहीं बन सकती. किसी वस्तु की मूलभूत प्रकृति नहीं बदल सकती.
ऊँगली हिलाने से किसी का भला होता हो तो मना क्यूँ करें. अपने बिना प्रयास किये किसी का भला होता हो तो क्या हर्ज़ है.
उकताने काम नसाने, धीरज धरें सयाने. उकताने – उतावलेपन से, नसाने – नष्ट हो जाता है. जल्दबाजी में काम बिगड़ता है, इसलिए धैर्य से काम लेना चाहिए.
उगत उगे तो सागर भरे, डूबत उगे तो अकाल पड़े. सूर्योदय के समय यदि इंद्रधनुष निकलता है तो खूब वर्षा होती है, सूर्यास्त के समय निकले तो अकाल पड़ता है
उगता नहीं तपा, तो डूबता क्या तपेगा. जिसने युवावस्था में कोई प्रसिद्धि पाने लायक कार्य नहीं किया वह वृद्धावस्था में क्या करेगा.
उगता सूरज तपे. जब व्यक्ति कामयाबी की सीढियों पर चढ़ रहा होता है वह बहुत गर्मी दिखाता है.
उगते के गावें गीत, ढलते का कोई न मीत. उन्नति करते हुए व्यक्ति कि सब प्रशंसा करते हैं, पर यदि उसके बुरे दिन आ जाएँ तो दोस्त भी साथ छोड़ देते हैं.
उगते को सब पांय लगते हैं (उगते सूरज को सभी नमस्कार करते हैं). व्यक्ति उन्नति कर रहा होता है तो सभी उसका आदर करते हैं.
उगले सो अंधा खाए तो कोढ़ी. (सांप छछूंदर की गति) किसी ऐसी स्थिति में फंस जाना जिस में दोनों प्रकार से संकट हो. (सांप के विषय में कहा जाता है कि यदि वह छछूंदर को पकड़ ले तो बहुत संकट में पड़ जाता है, यदि वह उसे उगल दे तो अंधा हो जाएगा और अगर निगल ले तो कोढ़ी हो जाएगा).
उगे चाँद तो लपकें पूड़ी. करवा चौथ व कुछ अन्य व्रतों में चंद्रमा के उदय होने के बाद व्रत खोला जाता है. व्रत रखने वाली स्त्रियाँ बड़ी बेसब्री से चाँद निकलने और पूड़ियाँ मिलने की प्रतीक्षा करती हैं.
उगे तारा तो चले सुनारा. सुनार लोग बड़े सवेरे उठ कर काम में लग जाते हैं.
उगे सो अस्ते, जन्मे सो मरे. जो उदय होता है वह अस्त भी होगा (चाहे सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र हों या साम्राज्य) और जिसने जन्म लिया है वह मृत्यु को अवश्य प्राप्त होगा. अपने अच्छे समय में कभी अभिमान नहीं करना चाहिए.
उघड़े मांस पर तो मक्खी बैठेगी ही. आपत्तिजनक आचरण करोगे तो लोग निंदा करेंगे ही.
उघरे अंत न होहि निबाहू, (कालनेमि जिमि रावन राहू). धोखे का काम अधिक समय नहीं चलता (अंत में खुल जाता है), जिस प्रकार कालनेमि, रावण और राहु के साथ हुआ.
उजड़े घर का बलेंड़ा. किसी बर्बाद हुए व्यापार या संस्था का एकमात्र जिम्मेदार आदमी. (बलेंड़ा – छप्पर में लगने वाली लम्बी लकड़ी).
उजड़े न टिड्डी का घर, नाम वीरसिंह. गुण के विपरीत नाम.
उजरी धोती मत पतियाओ तले लुगरी है. पतियाओ – विश्वास करो, लुगरी – पुरानी, चिथड़ा धोती. ऊपरी चमक-दमक पर विश्वास मत करो. अंदर की हालत देखने पर ही असलियत मालूम होती है.
उजला उजला सभी दूध नहीं होता. सभी सफ़ेद चीज़ दूध नहीं होतीं. अर्थ है कि केवल देखने से किसी वस्तु के गुणों का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता. इंग्लिश में कहते हैं – All that glitters is not gold.
उजली धोती मुँह में पान, घर के हाल जानें भगवान. घर में गरीबी होते हुए भी बन ठन के रहने वालों के लिए.
उजले उजले सब भले उजले भले न केस, नारि नवे न रिपु दबे न आदर करे नरेस. और सब चीजों का उज्ज्वल होना अच्छा है पर बालों का उजला (सफ़ेद) होना नहीं. बाल सफ़ेद हों तो स्त्री नहीं दबती, शत्रु भय नहीं खाते और राजा भी आदर नहीं करते.
उजाड़ गाँव में सियार राजा. खंडहर में तब्दील हो चुकी बस्ती में सियारों का राज हो जाता है.
उजाड़ चरें और पुआल खायें. उजाड़ – यहाँ इसका अर्थ है बिना रखवाली का खेत, पुआल – धान काटने के बाद बचा पौधा. दूसरों का खेत चरेंगे तो बढ़िया फसल खाएंगे, पुआल क्यों खायेंगे.
उजाड़ू के संग कपिला को नास. उजाड़ू – चोरी से दूसरों का खेत चरने वाली गाय, कपिला – सुलक्षणा गाय. बुरे व्यक्ति के साथ रहने पर सीधे आदमी को भी कष्ट भोगना पड़ता है.
उज्ज्वल बरन अधीनता, एक चरन दो ध्यान, हम जाने तुम भगत हो, निरे कपट की खान. बगुले के लिए कही गई पहेली नुमा कहावत. उजला रंग, एक पैर पर खड़े होकर दो चीज़ों में ध्यान लगाए हैं. देखने में भगत लगते हैं पर निरे कपट की खान हैं. ढोंगी साधुओं और नेताओं के लिए भी.
उज्ज्वलता मन उज्जवल राखे, वेद पुरान सकल अस भाखैं. चरित्र की शुद्धता से मन भी उज्ज्वल रहता है. वेद पुराण सभी ऐसा कहते हैं. भाखैं – भाषित करते हैं.
उठ दूल्हे फेरे ले, हाय राम मौत दे. आलसी होने की पराकाष्ठ. दूल्हे से कहा जा रहा है कि उठ फेरे ले, वह कह रहा है हाय राम! इससे अच्छा तो मौत ही आ जाए.
उठ बंदे, वही धंधे. व्यक्ति को समझाया जा रहा है कि सपनों के संसार से निकल कर कठोर वास्तविकताओं का सामना करो. सुबह सो कर उठते ही आदमी को काम धंधे की चिंता सताने लगती है.
उठ बहू साँस ले, चरखा छोड़ जांत ले. जांत – चक्की. सास बहू से कह रही है – उठ बहू, चरखा कातते कातते थक गई होगी. थोड़ा सुस्ता ले और फिर चक्की पीस. निर्बल पर अत्याचार के साथ झूठी सहानुभूति.
उठ बे बंदर, बैठ बे बंदर. जोरू के गुलाम का मजाक उड़ाने के लिए.
उठती जवानी, पाप की निशानी. नई नई युवावस्था में शक्ति और सौन्दर्य तो आ जाते हैं लेकिन समझदारी नहीं आ पाती इसलिए गलत रास्ते पर पड़ जाने की संभावना अधिक होती है.
उठती मालिन और बैठता बनिया. मालिन जब दुकान समेट कर घर जा रही होती है तो निबटाने के लिहाज से सामान सस्ता दे देती है, और बनिया जब दुकान खोलता है तो बोहनी के चक्कर में सामान सस्ता दे देता है.
उठते पाँव दुनिया तके. शक्ति खोने वाले पर सबकी दृष्टि रहती है. सब उसकी स्थिति से लाभ उठाना चाहते हैं.
उठते लात बैठते घूँसा. हर समय मारपीट करना.
उठाई जीभ तरुआ से दे मारी. तरुआ – तालू. बिना सोचे समझे जो मन में आया सो आया सो कह दिया.
उठाऊ का माल बटाऊ को जाए. उठाऊ – उठाईगीर, बटाऊ – राह चलता आदमी. चोर उचक्कों द्वारा चोरी किया गया अधिकतर माल दूसरे लोग ले जाते हैं, उनके हाथ विशेष कुछ नहीं आता.
उठी पैठ आठवें दिन ही लगती है. यहाँ पैठ का अर्थ साप्ताहिक बाज़ार से है. अवसर एक बार हाथ से निकल जाने पर दोबारा जल्दी हाथ नहीं आता.
उठो सासू जी सांस लो, मैं कातूं तुम पीस लो. बहू को सास के आराम का बड़ा ध्यान है. कह रही है, तुम आराम से चक्की पीसो, सूत कातने जैसा कठिन काम मैं कर लेती हूँ. ‘उठ बहू साँस ले’ वाली कहावत से उलट.
उड़ता आटा पुरखों को अर्पण. चक्की में से उड़ते आटे को पुरखों को अर्पण करने का ढोंग.
उड़ती उड़ती ताक चढ़ी. किसी उड़ती खबर को महत्त्व मिल जाना.
उड़ती चिरइयाँ परखत. उड़ती चिड़ियाँ परखता है अर्थात बहुत होशियार है.
उड़द कहे मेरे माथे टीका, मुझ बिन ब्याह न होवे नीका. उड़द की दाल पर छोटा सा निशान होता है. उड़द के बिना बड़े और कचौड़ी नहीं बन सकतीं इसलिए कोई भी आयोजन फीका रहेगा.
उड़द लगी न पापड़ी, बहू घर में आ पड़ी. शादी विवाह जैसे समारोहों में बड़ियाँ, कचौड़ियाँ व पापड़ बनते हैं जिन में उड़द की दाल का प्रयोग होता है. किसी के विवाह आदि में कोई समारोह न किया जाए और लोगों को दावत न मिले तो लोग मजाक उड़ाने के लिए इस प्रकार बोलते हैं.
उढ़ली बहू बलैंड़े सांप दिखावे. उढ़ली – दुश्चरित्रा स्त्री. इस प्रकार की बहू छप्पर में साँप बता कर लोगों का ध्यान उस तरफ लगा देती है और खुद घर से निकल जाती है. कोई कामचोर या बेईमान आदमी दूसरों का ध्यान भटका कर अपना स्वार्थ सिद्ध करे तो यह कहावत कही जाती है.
उत तेरा जाना मूल न सोहे, जो तुझे देख के कूकुर रोवे. यदि कहीं जाने पर आपको देख के कुत्ता रोता है तो इसे भारी अपशकुन मानें.
उत से अंधा आय है, इत से अंधा जाय, अंधे से अंधा मिला, कौन बतावे राय. जहाँ सारे लोग अज्ञानी हों वहाँ राह कौन दिखाएगा.
उतना खाए जितना पचे. खाने में संयम रखने के लिहाज से भी कहा गया है और रिश्वतखोरों से भी.
उतर गई लोई तो क्या करेगा कोई. 1. एक बार बेज्जती हो गई तो फिर वह मान सम्मान लौट कर नहीं आ सकता. 2. जिस का सम्मान चला जाए वह कुछ भी कर सकता है.
उतरती नदी किनारे ढाए. बाढ़ के बाद जब नदी का पानी उतरता है तो किनारों को ढहा देता है. संकट खत्म होते होते भी हानि पहुँचा सकता है इसलिए संकट बिल्कुल समाप्त होने तक सावधान रहना चाहिए.
उतरा घांटी, हुआ माटी. स्वादिष्ट से स्वादिष्ट भोजन भी गले से नीचे उतर कर मिट्टी के समान महत्वहीन हो जाता है. जिस चीज़ के लिए हम लालायित हों उसके मिल जाने पर उसका महत्व समाप्त हो जाता है.
उतरा पातर, मैं मियां तू चाकर. पातर – कर्ज़. कर्ज़ उतारने के बाद अब मैं तुम से क्यों दबूं.
उतरा हाकिम कुत्ते बराबर (उतरा हाकिम चूहे बराबर). पद खोने के बाद हाकिम को कोई नहीं पूछता.
उतरे जेठ जो बोले दादुर, कहै भड्डरी बरसै बादर. दादुर- मेढ़क. भड्डरी का कहना है कि जेठ मास समाप्त होते ही यदि मेढक बोलने लगें तो समझो कि वर्षा खूब जोरों की होगी.
उतारने से ही बोझ उतरता है. सर पर रखा बोझ हो या कोई क़र्ज़, वह प्रयास करने से ही उतरता है.
उतावला दो बार फिरे. जल्दबाजी में आगे बढ़ने वाले को दो बार लौट के आना पड़ता है और अधिक समय लग जाता है.
उतावला सो बावला. धीरा सो गम्भीरा. जल्दबाजी करने वाला अक्सर मूर्खतापूर्ण कार्य कर देता है. धैर्य से काम करने वाला गंभीर व्यक्ति ही सफल होता है.
उतावली कुम्हारन, नाखून से मिट्टी खोदे. जल्दबाजी में फूहड़पन से काम करना.
उतावली नाइन उंगली काटे. नाई की कुशलता की परीक्षा नहरनी से नाखून काटने में होती है. नाइन अगर जल्दबाजी में काम करगी तो नाखून के साथ उंगली भी काट देगी.
उतावले मारे जाते हैं, वीरों के गाँव बसते हैं. जल्दबाजी करने वाले सही योजना न बनाने के कारण युद्ध में हार जाते हैं जबकि वीर पुरुष समझदारी से युद्ध जीत कर गाँव व शहर बसाते हैं.
उत्तम खेती जो हल गहा, मध्यम खेती जो संग रहा. जो खुद हल चलाता है उस की खेती सब से अच्छी होती है और जो हलवाहे के साथ में रहता है उसकी खेती मध्यम (कुछ कम सफल) होती है. इसके बाद की पंक्ति इस प्रकार है – जो पूछेसि हरवाहा कहाँ, बीज बूड़िगे तिनके तहाँ. बूड़िगे – दूब गए, तिनके – उनके, तहाँ – वहाँ.
उत्तम खेती मध्यम बान, अधम चाकरी भीख निदान. घाघ के अनुसार खेती सर्वोत्तम कार्य है, व्यापार मध्यम और नौकरी निम्न श्रेणी का काम है और यदि कोई काम न कर सको तो भीख मांग कर काम चलाओ.
उत्तम गाना, मध्यम बजाना. गायकी सर्वश्रेष्ठ है, वाद्य बजाना उसके बाद आता है.
उत्तम जन सों मिलत ही, अवगुन हूँ गुन होय, घन संग खारो उदधि मिलि, बरसै मीठो तोय. उत्तम लोगों का संग मिलने से अवगुण भी गुण में बदल जाते हैं. समुद्र का पानी खारा होता है पर बादल की संगत में आ कर मीठा बन कर बरसता है.
उत्तम विद्या लीजिये जदपि नीच में होय, पड़यो अपावन ठौर में कंचन तजे न कोय. किसी निम्न कुल के व्यक्ति, निर्धन या अनपढ़ से भी यदि कोई उत्तम बात सीखने को मिले तो सीखनी चाहिए. सोना यदि गंदे स्थान पर पड़ा हो तो भी उसे छोड़ थोड़े ही देते हैं. अधिकतर इसे केवल आधा ही बोला जाता है.
उत्तम से उत्तम मिले, मिले नीच से नीच, पानी में पानी मिले, मिले कीच में कीच. व्यक्ति अपनी संगत स्वयं ही ढूँढ़ लेता है. उत्तम व्यक्ति उत्तम लोगों की संगत पसंद करता है और नीच व्यक्ति नीच लोगों की संगत ढूँढता है.
उत्तर इंसान के, पूरब किसान के, दक्खिन दीवान के, पच्छिम हैवान के. उत्तर रुख का घर वास्तु के अनुसार सभी मनुष्यों के रहने के लिए सर्वोत्तम माना गया है. किसान के लिए पूरब रुख का मकान अधिक अच्छा है. इस में सुबह से धूप आ जाती है व हवा ठीक से आती है इसलिए अन्न आदि रखने सुखाने में आसानी होती है. दक्षिण रुख के घर में देर तक रौशनी रहती है इसलिए लिखत पढ्त करने वालों के लिए बेहतर है. पश्चिम रुख का घर सब के लिए बेकार है
उत्तर गुरु दक्खन में चेला, कैसे विद्या पढ़े अकेला. जब कोई दो व्यक्ति बहुत दूर दूर हों तो आपस में संवाद हीनता की स्थिति बन जाती है.
उत्तर जायं कि दक्खन, वे ही करम के लच्छन. जिन का भाग्य साथ नहीं देता वे कहीं भी जाएँ सफल नहीं होते.
उत्तर रखे बतावे दक्खन बाके अच्छे नाही लच्छन. जो व्यक्ति बात का उल्टा जवाब देता है वह विश्वास योग्य नहीं होता.
उथला कहि के गहरे बोरे. उथला पानी बता कर गहरे में डुबो देने वालों के लिए.
उथली रकाबी फुलफुला भात, लो भई पंचों हाथ ही हाथ. कंजूस की बेटी की शादी हुई तो उसने उथली प्लेट में फूला फूला भात परोस दिया ताकि देखने में ज्यादा लगे. कोई खिलाने में कंजूसी करे तो यह कहावत कहते हैं.
उथले पानी की मछली. कम संसाधनों में परेशानी से गुजारा करने वाले के लिए.
उदधि रहे मर्याद में बहे उलटो नव नीर. समुद्र जिसमें अथाह जल है वह तो गंभीर रहता है पर बरसात में इकठ्ठा होने वाला पानी उल्टा सीधा बहता है. अर्थ है कि जो पुराने खानदानी धनवान या विद्वान होते हैं वे तो गंभीर होते हैं पर नया धन या नई विद्या अर्जित करना वाला व्यक्ति बहुत दिखावा करता है.
उद्यम के सर लक्ष्मी, पंखा कीसी ब्यार. उद्यमी व्यक्ति के सर पर लक्ष्मी स्वयं पंखा ले कर हवा करती है. (अर्थात उस की दासी बन कर रहती है)
उद्यम से दलिद्दर घटे. कर्म करने से ही दरिद्रता घटती है.
उद्यम ही सफलता की कुंजी है. कोई नया काम आरम्भ करे या किसी का कोई चलता हुआ काम हो, दोनों ही अवस्थाओं में उद्यम करने से ही सफलता मिलती है.
उधार का खाना आग खाने के बराबर. उधार ले कर खाना आग खाने के बराबर खतरनाक है.
उधार का खाना, फ़ूस का तापना. जैसे आग लगाने के बाद फूस एक दम ख़तम हो जाता है वैसे ही उधार के पैसे से यदि खाओगे पियोगे तो वह एक दम ख़तम हो जाएगा. अर्थ है कि उधार लेना व्यापार के लिए तो ठीक है (जिससे कमा कर आप वापस कर सकते हैं), पर उधार के पैसे से गुलछर्रे नहीं उड़ाने चाहिए.
उधार का गड्ढा समन्दर से गहरा. एक बार उधार ले कर उससे उऋण होना बहुत कठिन है.
उधार का बाप तकादा. उधार लोगे तो तकादा झेलना ही पड़ेगा. तकादा – पैसा वापस माँगना.
उधार का माल आग में जल जाए तो देनदारी खत्म नहीं होती. अर्थ स्पष्ट है.
उधार की कोदों खाएं, ठसक से मरी जाएं. कोदों एक घटिया अनाज माना जाता है वह भी उधार ले कर खा रही हैं और घमंड दिखा रही हैं. क़र्ज़ ले कर शान दिखाने वालों पर व्यंग्य.
उधार की जूती, खैरात का नाड़ा, पढ़ दे मुल्ला ब्याह उधारा. गाँठ में कुछ नहीं है पर मियाँ जी ब्याह करने चले हैं. सब काम उधार हो रहा है. पास में पैसा न होने पर भी महंगे शौक करने वालों के लिए.
उधार दिया और ग्राहक गंवाया (उधार दिया, गाहक खोया). जिस ग्राहक को उधार दिया वह फिर दूकान पर नहीं आता (लौटाना न पड़े इस चक्कर में).
उधार दीजे, दुश्मन कीजे (उधार देना, लड़ाई मोल लेना). किसी को उधार देना गलत है क्योंकि जब आप अपना पैसा वापस मांगेंगे तो वह आपका दुश्मन हो जाएगा. इंग्लिश में कहावत है – Borrowing is sorrowing.
उधार प्रेम की कैंची है. ऊपर वाली कहावत के समान.
उधार बड़ी हत्या है. उधार लेना और देना दोनों ही परेशानी का कारण बनते हैं.
उधार बेचें न मांगने जाएं. न उधार माल बेचेंगे, न तकादे करते फिरेंगे.
उधार लाएं और ब्याज पर दें. एक के बाद दूसरी उस से भी बड़ी गलती करना.
उधार लेना और देना दोनों फसाद की जड़. अपनी झूठी शान दिखाने के लिए उधार ले कर खर्च करने वाले लोग बाद में परेशानी उठाते हैं और उधार देने वाले उस की उगाही को ले कर परेशानी उठाते हैं. इंग्लिश में कहावत है – Neither a borrower nor a lender be.
उधारिया पासंग नहीं देखता. जो व्यक्ति माल उधार ले रहा है वह तोलने में थोड़ी बहुत बेईमानी को नजर अंदाज़ कर देता है. पासंग – तराजू के पल्लों को बराबर करने के लिए लगाया गया वजन.
उधेड़ के रोटी न खाओ, नंगी होती है. रोटी को उधेड़ कर नहीं खाना चाहिए इस बात को ज्यादा ही जोर दे कर कह दिया गया है. एक अर्थ यह भी हो सकता है कि जो भी खाते हो उसे दाब ढक कर खाओ दिखा कर नहीं.
उधेड़े पे सुधरे. सिले हुए कपड़े को ठीक करना है तो उधेड़ कर ही फिर से ठीक किया जा सकता है. किसी बिगड़े हुए काम को ठीक करने के लिए उसे पूरा ध्वस्त कर के फिर से बनाना पड़ता है.
उन के बगैर कौन मँड़वा अटको. उनके बिना क्या विवाह का मंडप गड़ने को रुका है. जब कोई रिश्तेदार ऐंठ दिखा रहा रहा हो और बुलाने से भी न आये तब प्रयुक्त
उन धारी है देह वृथा जग में, जिन नेह के पंथ में पाँव न दीन्हों. जिनके मन में प्रेम नहीं है उनका जन्म लेना बेकार है.
उनकी पकाई काऊ ने नई खाई. उनके हाथ की बनी रोटी कोई नहीं खा पाया. 1.बहुत बुरा खाना बनाने वाले के लिए. 2. बहुत धूर्त और स्वार्थी आदमी के लिए.
उपजति एक संग जल माही, जलज जोंक जिमि गुण विलगाही. कमल का फूल और जोंक दोनों जल में उत्पन्न होते हैं पर उनके गुणों में जमीन आसमान का फर्क है. इसी प्रकार एक घर या एक समाज में पैदा होने वाले दो लोगों में बहुत अंतर हो सकता है.
उपदेश देना सरल है उपाय बताना कठिन. दूसरों की कमियाँ बताना बड़ा आसान है पर कठिन परिस्थिति में स्वयं आगे बढ़ कर समाधान करना बहुत कठिन है.
उपला जले गोबर हँसे. कंडे को जलता देख कर गोबर हँसता है. यह भूल जाता है कि कल उसे भी उपला बन कर जलना है. किसी को कष्ट में देख कर हंसने वालों के लिए सीख.
उपास न त्रास, फलार की आस. उपास – उपवास, फलार – व्रत में खाया जाने वाला फलाहार. व्रत नहीं रखा, कोई कष्ट नहीं उठाया और बढ़िया फलाहार की उम्मीद लगाए बैठे हैं.
उपास से मेहरी के जूठ भला. उपास – उपवास. भूखा रहने से अपनी पत्नी का जूठा खाना अच्छा. रूपान्तर – उपास से पतोहू के जूठ भला. पतोहू – पुत्रवधू.
उम्मीद पर दुनिया कायम है. व्यक्ति हमेशा अच्छे की आशा करता है इसी आशावाद पर संसार चल रहा है.
उम्र पचपन की, अक्ल बचपन की. कोई वयस्क आदमी बचकानी बात करे तो.
उलझना आसान, सुलझना मुश्किल. समस्याएं पैदा करना आसान होता है पर उनका हल निकालना मुश्किल.
उलटा पुलटा भै संसारा, नाऊ के सर को मूंडे लुहारा. संसार में बहुत कुछ उल्टा पुल्टा भी होता है, जैसे नाई का सर अगर लुहार मूंडे तो.
उलटी खोपड़ी, औंधा ज्ञान. उलटी खोपड़ी में उल्टा ज्ञान ही समा सकता है, कोई अर्थपूर्ण बात नहीं.
उलटी गंगा पहाड़ चली. 1. उलटी रीत. 2. असंभव सी बात. (हास्यास्पद भी)
उलटी बाकी रीत है, उलटी बाकी चाल, जो नर भौंड़ी राह में, खोवे अपना माल. अपनी मूर्खता से अपना माल गंवाने वाले व्यक्ति के लिए कहावत है.
उलटे बाँस बरेली को. एक समय में बरेली बांसों की मंडी थी. (कुछ हद तक अभी भी है). उस समय यदि कोई बांस ले कर बरेली आता तो यह कहावत कही जाती. कहावत का अर्थ है कि जहाँ जिस चीज़ की बहुतायत है वहाँ उसे ले कर जाना बेतुकी बात है.
उलटो जो बादर चढ़े, विधवा खड़ी नहाए, घाघ कहैं सुन भड्डरी, वह बरसे वह जाए. घाघ कवि कहते हैं कि यदि बादल हवा के विरुद्ध बह कर आ रहा है तो जरूर बरसेगा और यदि विधवा स्त्री खड़ी हो कर नहा रही है तो वह जरूर किसी के साथ भाग जाएगी. (पुराने समय में विधवा विवाह को समाज स्वीकार नहीं करता था).
उलायता चोर सही सांझे ऐड़ा. जल्दबाजी में आदमी गलत काम कर बैठता है. चोर जल्दबाजी कर रहा है तो शाम को ही चोरी करने निकल पड़ा. उलायता – जल्दबाज.
उल्टा चोर कोतवाल को डांटे. कोई आदमी गलत काम कर रहा है. आप टोकते हैं या समझाते हैं तो वह उल्टा आप से लड़ने लगता है. ऐसे में यह कहावत कही जाती है.
उल्टा चोर बैकुंठे जाए. भ्रष्ट आदमी को प्रतिष्ठा मिलना.
उल्टा पैदा हुआ इसलिए सदा कर्म करे उल्टे. कोई व्यक्ति हमेशा उल्टे काम करता हो तो मजाक में कहते हैं कि ये तो पैदा ही उल्टा हुआ था.
उल्टा बायना, पुल्टा बायना, बाँझ के घर कैसा बायना. बायना – सगे सम्बन्धियों के घर त्यौहार पर भेजी जाने वाली भोजन सामग्री. सगे संबंधियों में इस प्रकार के सामन की अदला बदली होती है, लेकिन बाँझ स्त्री के घर कोई कुछ नहीं भेजता और न ही वह किसी के घर भेज सकती है.
उल्टी आँतें गले पड़ीं. सुलझने की कोशिश में उल्टे उलझ जाएँ तो
उल्लू के बेटा भया, गदहा नाम धरा. (भोजपुरी कहावत) मूर्ख लोगों की सन्तान भी मूर्ख ही होती हैं.
उस कूकुर से बच कर रहे, जा को जगत कटखना कहे. बदनाम और झगड़ालू व्यक्ति से बच कर रहना चाहिए.
उस को सीख न दो कभी जो हो मूरख नीच, लोह मेख नाहीं धंसे कबहूँ पाथर बीच. जो मूर्ख या नीच व्यक्ति हो उसे शिक्षा देने का प्रयास मत करो. पत्थर में कभी लोहे की कील नहीं धंस सकती.
उस जातक से करो न यारी, जिस की माता हो कलहारी. जिस बच्चे की माँ झगड़ालू हो उस से दोस्ती मत करो.
उस नर को न सीख सुहावे, प्रीत फंद में जो फंस जावे. जो इश्क के फंदे में फंसा उसे सीख अच्छी नहीं लगती.
उसकी किस्मत क्या जागे, जो काम करे से भागे. जो काम से जी चुराए उसकी किस्मत नहीं जाग सकती.
उसके पैर में जो रूप है, तुम्हारे मुँह में भी नहीं है. दूसरे को साधारण और अपने आप को बहुत सुंदर समझने वाले किसी व्यक्ति को उसकी औकात बताने के लिए.
उसी की टांगें उसी के गले में. किसी दुष्ट व्यक्ति को उसी के बनाए जाल में फंसा देना.
उस्ताद, हज्जाम, नाई, मैं और मेरा भाई, घोड़ी और घोड़ी का बछेड़ा और मुझको तो आप जानते ही हैं. कहीं कोई चीज़ बंट रही थी. वहाँ एक ही आदमी (नाई) कई नाम बता कर बहुत सारी लेने की कोशिश कर रहा है.
उही का तोरन, उही का बोरन, मियाँ जी खाएं कि रोवें. तोरन – तोड़ने वाली वस्तु जैसे रोटी, बोरन – बोरने वाली वस्तु जैसे दाल, सब्जी इत्यादि. जैसे चने की रोटी है, तो चने की दाल भी बनी है, किसी साग को काट कर यदि उसकी रोटी बनाई तो उसी का साग भी बना लिया है. कोई परवाह नहीं कि दोनों का स्वाद एक सा होगा.
ऊ
ऊँच अटारी मधुर बतास, कहें घाघ घर ही कैलास. ऊंचा मकान और ठंडी हवा का आनंद जिस को प्राप्त हो उस के लिए घर पर ही कैलाश पर्वत है.
ऊँच के बैठे, नीच के खाये, ये दोनों गये ढोल बजाये. अपने से बहुत ऊँचे लोगों के यहाँ अधिक उठने-बैठने वाला आदमी तथा अपने से बहुत निम्न श्रेणी के यहाँ खाना खाने वाला आदमी दोनों ही बर्बाद हो जाते हैं.
ऊँच नीच में बोई क्यारी, जो उपजी सो भई हमारी. ऊबड़ खाबड़ क्यारी में कुछ बोया है तो जो कुछ भी उग आए वही नफ़ा है.
ऊँची अटरिया खोखले बाँस, कर्जा खाएं बारह मास. ऊँची अट्टालिका में रहते हैं, लेकिन खोखले बांस की तरह अंदर से खाली हैं. बारहों महीने कर्ज ले कर खर्च चलाते हैं.
ऊँची दुकान, फीके पकवान. जहाँ कहीं तड़क भड़क व दिखावा तो बहुत हो पर माल घटिया मिल रहा हो वहाँ इस कहावत का प्रयोग करते हैं.
ऊँचे कुल क्या जनमिया जो करनी उच्च न होय, कनक कलश मद सों भरी साधुन निंदे सोय. यदि करनी अच्छी न हो तो ऊँचे कुल में जन्म लेने का क्या लाभ. सोने का घड़ा शराब से भरा हो तो साधु उसकी निंदा करते हैं.
ऊँचे गढ़ों के ऊंचे ही कंगूरे. बड़े और वज़नदार लोगों की सभी बातें बड़ी ही होती हैं.
ऊँचे चढ़ कर देखा, तो घर घर बाही लेखा. हर घर में कुछ न कुछ खटपट, कलह या गड़बड़ होती है. (चाहे बाहर से न दिखती हो). सन्दर्भ कथा 35. एक विधवा स्त्री अपने छोटे से लड़के के साथ रहती थी. वह दुश्चरित्रा थी, इस लिए काजल बिंदी वगैरह श्रृंगार तो किया ही करती, लेकिन दिखावे के लिए तिलक छापे भी लगाती और हाथ में माला लिये रहती. लड़का कुछ सयाना हुआ तो अपनी माँ के सारे करतब जान गया. एक दिन उसने अपनी मां से काजल बिंदी लगाने का कारण पूछा तो माँ ने नाराज होकर उसे एक गुरु को सौंप दिया. वह गुरु के घर पर रह कर ही पढने लगा.
लेकिन गुरु की स्त्री भी व्यभिचारिणी थी. एक दिन गुरु किसी दूसरे गाँव गया तो उसने अपने जार को घर पर बुलाया. उसने उसके लिए बैंगन की सब्जी बनाई, लेकिन वह बोला कि बैंगन मुझे वादी करता है, इसलिए यह सब्ज़ी मैं नहीं खाऊंगा. इस पर गुरु की स्त्री ने वह सब्जी उस लड़के को दे दी. लड़के को वह सब्ज़ी बहुत भाई और वह जोरों से बोल उठा, किसी को बैंगन वादी करे किसी को जाए जंच. गुरु की स्त्री समझ गई कि लड़का उस का राज जान गया है. उसने लड़के को घर से निकाल दिया. वहाँ से निकल कर वह किसी राजा की राजधानी में पहुँच गया और संयोग से राजा के यहाँ नौकर हो गया. राजा ने उसे अन्तःपुर की ड्योढी पर नियुक्त कर दिया. वहाँ रहते हुए उसे इस बात का पता चल गया कि राजा की रानी भी बदचलन है. उसने सोचा कि रंक से लगा कर राजा तक इसी प्रकार सभी की लुटिया डूबी हुई है और सहसा बोल उठा, ऊँचे चढ़ चढ़ देखा तो घर-घर वो ही लेखा.
ऊँचे चढ़ कर बैठना हो तो कोयल जैसा कुहुको. उच्च पद प्राप्त करना हो तो कोयल के समान मीठा बोलना सीखो.
ऊँट अपनी पूँछ से मक्खी नहीं उड़ा सकता. बड़े से बड़े व्यक्ति को भी अपने छोटे छोटे कामों के लिए किसी की सहायता लेनी पडती है.
ऊँट का पाद, न जमीन का न आसमान का. किसी ऐसे आदमी के लिए जिस की गिनती किसी भी जमात में न हो सके. असभ्य भाषा है पर कहावतों में चलती है.
ऊँट का मुँह ऊँट ही चूमे. बड़े आदमियों से बड़े ही संबंध बना सकते हैं.
ऊँट का रोग रैबारी जाने. रैबारी – ऊँटों का विशेषज्ञ. जो जिस काम का विशेषज्ञ है वही उस काम को ठीक से कर सकता है.
ऊँट का सुहाली से क्या भला होगा. सुहाली – मैदा की पतली पापड़ी. सुहाली कितनी भी अच्छी क्यों न हो ऊँट के लिए बेकार है क्योंकि न तो वह उसका स्वाद जानता है और न ही उसका सुहाली से पेट भरेगा.
ऊँट का होंठ कब गिरे और कब खाऊँ. ऊँट का होंठ देख कर लगता है कि जैसे गिरने वाला है. लोमड़ी बैठी सोच रही है कि कब होंठ गिरे और कब खाने को मिले. व्यर्थ की आशा करने वालों पर व्यंग्य.
ऊँट की चोरी झुके-झुके. (ऊँट की चोरी निहुरे निहुरे). कोई छोटी सी चीज़ चुरा कर तो आप झुक कर भाग सकते हैं पर ऊँट की चोरी झुके झुके नहीं कर सकते. कोई चुपचाप बहुत बड़ी चोरी करने का प्रयास करे तो.
ऊँट की पकड़, कुत्ते की झपट, खुदा इनसे बचाए. ये दोनों ही बहुत खतरनाक होती है.
ऊँट की बरसात में कमबख्ती. कीचड़ में चलने में ऊँट को बहुत परेशानी होती है इसलिए.
ऊँट के गले में बिल्ली. 1 बहुत लम्बा दूल्हा और छोटी सी दुल्हन. बेमेल जोड़ी. 2. किसी अच्छी चीज़ के साथ एक ख़राब चीज़ जबरदस्ती बेचने की कोशिश करना. सन्दर्भ कथा – किसी आदमी का ऊँट खो गया तो उसने घोषणा कर दी कि यदि उसका ऊँट मिल जाए तो वह उसे ढूंढ कर लाने वाले को दो टके में बेच देगा. जिस आदमी को ऊँट मिला, वह इस आशा से उसे उसके पास लाया कि वह ऊँट के मालिक से उसे दो पैसे में खरीद लेगा. लेकिन ऊँट के मालिक ने एक युक्ति निकाल ली. उसने ऊँट के गले में एक बिल्ली बांध दी और कहा कि यह बिल्ली भी खरीदनी होगी. ऊँट की कीमत तो मुताबिक दो टके ही रखी, लेकिन बिल्ली की कीमत ऊंट की कीमत से भी अधिक बतलाई. जाहिर सी बात है कि ऊँट किसी ने नहीं खरीदा और ऊँट वाले की चालाकी के कारण उसका ऊँट बिना कुछ खर्च किये उसे वापस मिल गया.
ऊँट के ब्याह में गधा गवैया. दो मूर्खों का समागम.
ऊँट के मुँह में जीरा. बहुत अपर्याप्त सामग्री. रूपान्तर – ऊँट के मुँह में जीरा, चमार के मुँह में खीरा.
ऊँट को उठते ही सरपट नहीं दौड़ना चाहिए. ऊँट बेडौल होता है इसलिए उठते ही भागेगा तो गिर जाएगा. किसी नए काम के आरम्भ में बहुत तेजी नहीं दिखानी चाहिए.
ऊँट को किसने छप्पर छाए. घोड़े के लिए घुड़साल और गाय के लिए गौशाला बनाई जाती हैं पर ऊँट को खुले में ही रहना होता है. किस को क्या मिलेगा यह उस के भाग्य पर निर्भर होता है.
ऊँट को दगते देख मेंढकी ने भी टांग फैला दी. कहावत का अर्थ है किसी छोटे आदमी द्वारा अपने से बहुत बड़े आदमी की बराबरी करने की कोशिश करना.
ऊँट को निगल लिया और दुम को हिचके (ऊँट निगल जाए, दुम पे हिचकियाँ ले). बहुत बड़ा घोटाला करने वाला यदि छोटे से गलत काम को मना करे तो.
ऊँट को बबूल प्यारा. घटिया सोच वाले व्यक्ति को घटिया वस्तुएं ही प्रिय होती हैं.
ऊँट गए सींग मांगे, कानौ खो आए. ऊँट के कान बहुत छोटे होते हैं. कहा जाता है कि ऊँट भगवान से सींग मांगने गया था और कान भी गंवा दिए. कुछ पाने की आशा में उल्टे कुछ खो देने वाले व्यक्ति के लिए.
ऊँट गुड़ दिए भी बर्राए, नमक दिए भी बर्राए (ऊँट घी देने पर भी बलाबलाए और फिटकरी देने पर भी बलबलाए). जिस की असंतुष्ट रहने की आदत है वह हर परिस्थिति में शिकायत ही करता रहता है.
ऊँट चढ़ के मांगे भीख. जिस की भीख मांगने की आदत हो उसको ऊँट दान में मिल जाए तो वह ऊँट पर चढ़ कर भी भीख ही मांगेगा. व्यक्ति का मूल स्वभाव बदलता नहीं है. रूपान्तर – ऊँट चढ़ के बूट मांगे.
ऊँट चढ़े पे कमरिया अपने आप मटके. (बुन्देलखंडी कहावत) ऊँट चलता है तो उस पर बैठे सवार की कमर न चाहते हुए भी मटकने लगती है. उच्च पद पाने पर व्यक्ति अपने आप ही इतराने लगता है.
ऊँट जब भागे तब पच्छम को. नासमझ और जिद्दी आदमी के लिए.
ऊँट तेरी गर्दन टेढ़ी, कि मेरा सीधा क्या है. कुटिल व्यक्ति सब ओर से कुटिलता से भरा हुआ ही होता है.
ऊँट दुल्हा गधा पुरोहित. दो एक से बढ़ कर एक मूर्ख लोग मिल जाएं तो.
ऊँट न कूदे, बोरे कूदें, बोरों से पहले उपले कूदें. जहाँ अफसर कुछ न बोले लेकिन उस के नीचे के कर्मचारी ज्यादा तेजी दिखाएँ.
ऊँट न खाए आक, बकरी न खाए ढाक. सामान्य लोक विश्वास है कि ऊँट सब तरह के पेड़ पौधे खा लेता है पर आक के पेड़ को नहीं खाता. इसी प्रकार बकरी ढाक के पत्ते नहीं खाती.
ऊँट पर से गिरे, भाड़ेती से रूठे. अपनी असावधानी से ऊँट पर से गिर गए और भाड़े पर ऊँट देने वाले पर नाराज हो रहे हैं. अपनी कमी के लिए दूसरों को दोष देना.
ऊँट बलबलाता ही लदता है. जो लोग कोई काम करने में लगातार अनिच्छा और नाखुशी जाहिर करते रहते हैं उनके लिए.
ऊँट बहे, गधा थाह ले. नदी इतनी गहरी है कि ऊँट बह गया पर गधा यह जानने की कोशिश कर रहा है कि पानी कितना गहरा है. जहाँ बड़े बड़े बुद्धिमान किसी समस्या का हल न खोज पा रहे हों वहाँ कोई मूर्ख व्यक्ति अपनी अक्ल लगाए तो.
ऊँट बुड्ढा हुआ पर मूतना न आया. उम्र बढ़ने के साथ भी यदि किसी व्यक्ति को काम करने का ढंग न आए तो यह कहावत कहते हैं.
ऊँट मरा, कपड़े के सिर. व्यापार में जो नुकसान होता है, उसे दाम बढ़ा कर ही वसूला जाता है. कपडे के व्यापारी का ऊँट कपड़ा लाते समय रास्ते में मर गया तो उस की कीमत कपडे का दाम बढ़ा कर ही वसूल की जाएगी.
ऊँट मरे तब पच्छिम को मुँह करे. अंत समय सभी को अपना घर याद आता है, इसलिए ऊँट के संबंध में ऐसा कहते हैं. जब कोई आदमी जाते जाते ऊट-पटांग काम करता है तब भी व्यंग्य में ऐसा बोलते हैं.
ऊँट मरे तो चींचड़ा भी मरे. ऊँट मरता है तो उस का खून चूसने वाले चींचड़ (परजीवी) भी मर जाते हैं. राजा मरता है तो उसके राज में मौज उड़ाने वाले दरबारी भी बर्बाद हो जाते हैं.
ऊँट रे ऊँट तेरी कौन सी कल सीधी. ऊँट कभी इस करवट बैठता है तो कभी उस करवट. उस से पूछ रहे हैं कि तेरी कौन सी करवट तेरे लिए सीधी है. (जैसे इंसान के लिए दाहिनी करवट सीधी मानी जाती है). ऐसे व्यक्ति के लिए जिस की हरकतें विश्वास योग्य न हों.
ऊँट लँगड़ाये और गधा दागा जाये. दागना – लोहे की छड़ गरम कर के शरीर के किसी हिस्से से छुआना. ऐसा माना जाता है कि ऊँट लंगड़ा हो जाय तो गधे को दागने से ठीक हो जाता है. किसी को लाभ पहुँचाने के लिए दूसरे का नुकसान करना.
ऊँट लदे गदा मरा जाय, राम जे बोझा कौन ले जाय. किसी दूसरे के कष्ट में अत्यधिक चिन्तित होना.
ऊँट लम्बा पर पूँछ छोटी. कोई भी व्यक्ति सब तरह से पूर्ण नहीं हो सकता.
ऊँट लादने से गया तो क्या पादने से भी गया. जो आदमी किसी काम का नहीं रहता वह फ़ालतू बकवास तो कर सकता है.
ऊंघते को ठेलते का बहाना. कोई व्यक्ति ऊंघता ऊंघता गिरने को हुआ. तब तक किसी का हल्का सा धक्का लग गया. वह गिर गया तो दूसरे को दोष दे रहा है.अपनी गलती से काम बिगड़ने पर दूसरे को दोष देना.
ऊंघतो बोले, जागतो न बोले. उलटी बात. जिससे सावधान होने की आशा नहीं वह तो सतर्क है और बोल रहा है, जिसे सावधान होना चाहिए वह चुप है.
ऊजड़ खेड़ा, नाम निवेड़ा. बिलकुल निरक्षर व्यक्ति का नाम विद्याधर.
ऊजड़ गांव फिर बसे, निर्धनिया धन होय, जोवन गया जो बावरे, पा न सके फिर कोय. अर्थ स्पष्ट है.
ऊजड़ हो घर सास का, बैर करे हर बार, पीहर घर सूयस बसे, जब लग है संसार. सास वैर करती है इसलिए उसका घर उजड़ जाए. पीहर (मायके) से इतना प्रेम है कि उसका सुयश जब तक संसार रहे तब तक रहने की कामना कर रही हैं. (इन्हें यह नहीं मालूम है कि सास का घर उजड़ेगा तो अपना भी तो नुकसान होगा).
ऊत के निन्नानवे, बारह पंजे साठ. मूर्ख आदमी के लिए. (उससे पूछा निन्यानवे कितने होते हैं, बोला बारह पंजे).
ऊत गाँव में कुम्हार ही महतो. सामान्यत: गाँव में कुम्हार की विशेष इज्जत नहीँ होती लेकिन मूरखों के गाँव में कुम्हार को भी बहुत महत्व दिया जा सकता है.
ऊत घोड़ी के घोंचू बछेड़े. माँ बाप मूर्ख हों तो सन्तान भी मूर्ख होती है.
ऊधो की पगड़ी माधो के सर. किसी की चीज़ किसी को देना या किसी का दोष किसी और के मत्थे मढ़ देना.
ऊधौ का लेना न माधौ का देना. झंझटों से मुक्त होना.
ऊन छीलते तेरह जगहे, कटी बिचारी भेड़. गरीब आदमी को लोग लूटते भी हैं और चोट भी पहुँचाते हैं.
ऊपर गलमिल नीचे टंगड़ी. ऊपर से प्रेम दिखाना और धूर्तता दिखा कर गिराने की कोशिश करना.
ऊपर चिकने भीतर रूखे (ऊपर मीठ, भीतर तीत). ऐसे लोगों के लिए जो ऊपर से मृदुभाषी होते हैं परन्तु वास्तव में रूखे और कड़वे स्वभाव के होते हैं.
ऊपर बरछी नीचे कुआँ, तासे बानिया फारख्त हुआ. विवश हो कर कोई काम करना. सन्दर्भ कथा 37. किसी व्यक्ति को एक बनिये का बहुत सा रुपया उधार देना था. ऋण चुका पाने का कोई उपाय न देख एक दिन उसने बनिये को अपने घर बुलाया और उसे कुँए की मुंडेर पर बैठा दिया. फिर उसने उसे बरछी दिखा कर मार डालने की धमकी दी और फारखती (कर्ज़ अदा होने की रसीद) लिखा ली. परन्तु बनिया बड़ा होशियार था. फारखती की पुर्जी की पीठ पर चुपचाप लिख दिया – ऊपर बरछी नीचे कुआँ, तासें बनिया फारखत हुआ. और बाद में अदालत में नालिश करके रुपये वसूल कर लिये.
ऊपर भरे नीचे झरे, उसको गोरखनाथ क्या करे. (राजस्थानी कहावत) खाने पीने वाला परन्तु संयमहीन. पहले के लोग यह मानते थे कि चालीस सेर खाने से एक सेर खून बनता है और एक सेर खाने से एक बूँद वीर्य. जो संयम नहीं रख सकता वह कितना भी खा ले स्वस्थ नहीं हो सकता.
ऊपर माला भीतर भाला. दिखाने के लिए माला जपना और दूसरों को चोट पहुँचाने की तैयारी रखना.
ऊपर वाले की लाठी में आवाज नहीं होती. ईश्वर जब पापों की सजा देता है तो व्यक्ति कुछ समझ ही नहीं पाता कि यह क्या हुआ कैसे हुआ.
ऊपर से बाबाजी दीखे नीचे खोज गधे के. खोज – पंजे के निशान. कोई खुराफाती आदमी धर्मात्मा बनने का ढोंग करे और चोरी करे तब यह कहावत कही जाती है. सन्दर्भ कथा 38. खोज – पैरों के निशाँ. एक साधु बाबा जंगल में कुटिया बना कर रहा करता था. उसकी कुटिया के पास ही एक किसान का खेत था. साधु रात को खड़ाऊँ पहन कर खेत में जाता और खेत में से खीरे आदि तोड़ कर ले जाता. खड़ाऊँ इस प्रकार बनाई गई थीं कि उनको पहन कर चलने पर पगचिन्ह गधे की तरह अंकित होते थे. प्रातः काल उन चिन्हों को देख कर किसान यही सोचता कि कोई गधा रात को खेत में घुस कर नुकसान पहुँचा जाता है. एक रात को किसान खेत में छुप कर बैठ गया. अपने निश्चित समय पर बाबाजी खड़ाऊँ पहन कर खेत में घुसे, लेकिन जब खीरे आदि तोड़ कर चलने को तैयार हुये तो किसान ने बाबाजी को पकड़ लिया और उनकी खूब मरम्मत की.
ऊपर से राम राम, भीतर कसाई के काम. पाखंडी आदमी.
ऊसर का खेत, जैसे कपटी का हेत. ऊसर खेत में फसल नहीं हो सकती और कपटी से मित्रता कभी सफल नहीं हो सकती. हेत – प्रेम.
ऊसर खेत में केसर. किसी दुष्ट और कंजूस व्यक्ति के घर में कोई दानी धर्मात्मा संतान हो तो.
ऊसर खेती, करम के नास. ऊसर धरती में खेती करने से परिश्रम और भाग्य दोनों का नाश होता है.
ऊसर बरसे तृन न जमे. ऊसर खेत में वारिश हो तो भी कुछ पैदा नहीं होता. मूर्ख व्यक्ति को ज्ञान देने से कोई लाभ नहीं होता.
ए, ऐ
ए माँ मक्खी, बेटा उड़ा दे, माँ माँ दो हैं. बहुत ही आलसी व्यक्ति पर व्यंग्य.
एक अंडा, वह भी गंदा. कोई एक चीज़ हो वह भी खराब हो.
एक अकेला, दो ग्यारह (एक अकेला दो का मेला). यदि दो लोग मिल कर काम करें तो उनकी शक्ति कई गुना बढ़ जाती है.
एक अनार सौ बीमार. बीमारियों को दूर करने वाला अनार तो एक ही है पर बीमार बहुत सारे हैं, कैसे सब का इलाज हो? जहाँ आवश्यकता से बहुत कम साधन उपलब्ध हों वहाँ यह कहावत कही जाती है.
एक अहारी सदा व्रती, एक नारी सदा जती. दिन में एक बार भोजन करने वाले को हमेशा व्रत रखने वाला (सदाव्रती) माना जाता है और एक ही स्त्री रखने वाला ब्रह्मचारी माना जाता है.
एक अहीर की एक ही गाय, ना लागे तो छूछी जाय. किसी अहीर के पास एक ही गाय है. वह किसी दिन दूध न दे तो बहुत परेशानी की बात है. जैसे घर में कोई एक ही कमाने वाला हो, जिस दिन काम नहीं कर पाया उस दिन फाका करना पड़ेगा.
एक आँख फूटे तो दूसरी पर हाथ रखते हैं. कोई एक बड़ा नुकसान होने पर व्यक्ति दूसरे नुकसान से बचने का उपाय तुरंत ही करता है.
एक आँख से रोवे, एक आँख से हँसे. झूठ बोलने वाले बहरूपिये व्यक्ति के लिए.
एक आंसू, लाख फ़साने. लाख बार अपना दुखड़ा सुनाने के मुकाबले एक आंसू अधिक बात कह देता है.
एक इतवार के व्रत से जनम का कोढ़ नहीं जाता. कोई एक व्रत या पूजा पाठ कर लेने से सारे संकट नहीं मिट जाते. (कुछ लोग मानते हैं कि इतवार के व्रत रखने से कुष्ठ रोग ठीक हो जाता है.
एक इल्ली सौ मन अनाज बिगाड़े. एक लार्वा बहुत सारे अनाज को बर्बाद कर सकता है, क्योंकि वह तेजी से अनाज को खाता है और गंदगी करता है. इसी प्रकार किसी भी संगठन या समाज को एक ही गलत आदमी बदनाम कर सकता है.
एक ओर चार वेद, एक ओर चतुराई. पोथियों का ज्ञान चतुराई की बराबरी नहीं कर सकता.
एक और एक ग्यारह होते हैं. इस कहावत का अर्थ है कि यदि दो लोग मिल कर काम करें तो उनकी शक्ति कई गुना बढ़ जाती है.
एक और एक तो दो ही हों, पर एका हो तो ग्यारह हों. एकता में बहुत शक्ति है.
एक कनक अरु कामनी, दोऊ अगिन की झाल, देखें हीं तन प्रज्जलै, परस्यां पैमाल. कबीर कहते हैं कि सोना और स्त्री दोनों आग के समान हैं. इनको देखने से ही शरीर जल जाता है और छूने से बर्बाद हो जाता है.
एक करे सब लाजें. घर या समाज में एक आदमी की गलती से सब को लज्जित होना पड़ता है.
एक कहो न दस सुनो. यदि हम किसी को भला-बुरा न कहेंगे तो दूसरे भी हमें कुछ न कहेंगे.
एक कान से दो कान, दो कान से बियाबान. कोई बात दूसरे व्यक्ति से कहते ही सारे में फ़ैल जाती है.
एक की दारू दो. दारु – दवा. अकेलेपन की एक ही दवा है, एक से दो हो जाओ.
एक की दो बनाए. एक की दो बनाने वाला. बात को बढ़ा चढ़ा कर कहने वाला. झूठा दोषारोपण करने वाला.
एक की सैर, दो का तमाशा, तीन का पिटना, चार का स्यापा. एक आदमी की मौज होती है, दो हो जाएं तो काम कुछ नहीं केवल तमाशा होगा, तीन में मार पीट झगड़ा और कहीं चार मिल गए तब तो रोने पीटने ही पड़ जाएंगे. यह कहावत उन कहावतों की उलट है जिनमें जमात में करामात जैसी बातें बताई गई हैं. सन्दर्भ कथा 39. एक आदमी की मौज होती है, दो हो जाएं तो काम कुछ नहीं केवल तमाशा होगा, तीन में मार पीट झगड़ा और कहीं चार मिल गए तब तो रोने पीटने ही पड़ जाएंगे. यह कहावत उन कहावतों की एकदम उलट है जिनमें एक और एक ग्यारह और जमात में करामात जैसी बातें बताई गई हैं. इस बारे में एक कहानी कही जाती है. एक व्यक्ति के चार बेटे थे. उनको एकता का महत्त्व समझाने के लिए उसने उन चारों को एक एक लकड़ी दी और उसे तोड़ने कहा. सबने फ़ौरन लकड़ी तोड़ दी. फिर उसने चार लकड़ियाँ बाँध कर गट्ठर बना दिया और तब तोड़ने को कहा. तब उसे कोई नहीं तोड़ पाया. उसने लड़कों को समझाया कि मिल कर रहोगे तो सब का फायदा होगा.
उसकी इस बात का जबाब देने के लिए छोटा लड़का पाँच गमले ले कर आया. एक गमले में चार छोटे छोटे सूखे सूखे पौधे लगे थे, और चार गमलों में एक एक भरा पूरा पौधा लगा था. उसने कहा – देखो बापू! जो साथ साथ रह रहे हैं उन में से कोई नहीं पनप पा रहा है, और जो अलग अलग रह रहे हैं वे सब तरक्की कर रहे हैं. रूपान्तर – एक की सैर, दो का तमाशा, तीन का मेला, चार का झमेला.
एक कील ठोंके दूसरा टोपी टाँगे. 1.पहले वाला आदमी कोई काम करता है और बाद वाले उसका फायदा उठाते हैं. 2. छोटे से काम में कई लोगों का लगना.
एक कुंजड़न नहीं आएगी तो क्या हाट नहीं भरेगा. कुंजड़न – सब्जी बेचने वाली. जो आदमी यह समझता हो कि उसके न आने से सब काम रुक जाएंगे, उसको सीख देने के लिए.
एक कुत्ता चोरी करे, कुत्ता जात बदनाम होए. किसी जाति या समाज का एक सदस्य चोरी करे तो सारा समाज बदनाम होता है.
एक कुत्ते को रोता देख सब कुत्ते रोवें (कुत्ते को सुन कर कुत्ता रोवे). बिना सोचे समझे एक दूसरे की नकल करने वालों पर व्यंग्य.
ए कूकुर तुम दुर्बल काही, दसियों घर की आवाजाही. कुत्ते से कोई पूछता है कि तुम दुबले क्यों हो, वह कहता है, क्या करूँ, पेट भरने के लिए दस घरों में आना जाना पड़ता है.
एक के दूने से सौ के सवाए भले. 1.अधिक लाभ के चक्कर में पड़ के धन गँवाने से अच्छा है कम लाभ वाला सुरक्षित निवेश. 2.बहुत कम पूँजी से व्यापार नहीं हो सकता. एक के दो भी होंगे तो लाभ का तो एक ही रुपया हुआ, उससे गृहस्थी नहीं चलेगी, अधिक पूँजी में सौ के सवाए भी होंगे तो पचीस रूपये से जीवन चल जाएगा.
एक के पुन्न से सब गाँव तर जात. एक आदमी के अच्छे काम का पूरे समाज पर प्रभाव पड़ता है.
एक को गड़ही, एक को गंगा. किसी के भाग्य में पोखरे के स्नान बदे होते हैं और किसी के में गंगा के.
एक कौड़ी मेरी गांठी, चूड़ा बनवाऊं या माठी. मेरे पास बहुत थोड़े से पैसे हैं, उसमें क्या क्या अरमान पूरे कर लूँ. मेरी गांठी – मेरी गाँठ में (मेरे पास), माठी – बांह में पहनने वाला आभूषण.
एक खजेली कुतिया सौ कुत्तों को खजेला करे. एक कुतिया को खुजली हो तो उस से सौ कुत्तों को खुजली हो सकती है. समाज में एक गलत व्यक्ति अनेक लोगों को गलत रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित कर सकता है.
एक खम्बे से दो हाथी नहीं बंध सकते. कोई दो शक्तिशाली लोग एक व्यक्ति के अधीन नहीं रह सकते.
एक खसम नहिं होवे जिसके सहस खसम हो जाएं. जिस स्त्री का पति नहीं रहता उस पर जोर जमाने वाले हजार लोग हो जाते हैं. सहस – सहस्त्र, हजार.
एक खाए मलीदा, एक खाए भुस. अपना अपना भाग्य, एक व्यक्ति हलवा खा रहा है और एक भूसा खा कर पेट भरने को बाध्य है. विस्तार – एक खावे घी मलीदा, एक खावे भुस्सा, अपना अपना भाग है, काहे करे गुस्सा.
एक गाँव में नकटा बसै, छिन में रोवै छिन में हंसै. नकटे व्यक्ति की मजाक उड़ाने के लिए बच्चों की कहावत.
एक गुना चूना, दो गुना कत्था, तीन गुना सुपारी लगे तब मिले रस. उत्तम पान का फार्मूला.
एक ग्रह के नौ अवसान. एक छोटी परेशानी के लिए बहुत से उपाय करना. अवसान – उपाय.
एक घंटा मांगे तो सवा सेर, दिनभर मांगे तो भी सवा सेर. मेहनत कितनी भी करो फल उतना ही मिले तो.
एक घड़ी का राग रंग, छोड़ सैंया मेरो संग. यदि तुम केवल एक घड़ी के राग रंग के लिए ही मेरे पास आना चाहते हो तो इससे अच्छा कि मेरा साथ छोड़ ही दो.
एक घड़ी की नाक कटाई, सारे दिन की बादशाही (एक घड़ी की बेहयाई, सारे दिन का आराम). किसी काम के लिए मना कर देने में कुछ देर बेशर्मी दिखानी पड़ती है पर फिर बहुत आराम रहता है.
एक घड़ी, आधी घड़ी, आधी में पुनि आध, तुलसी संगत साधु की, हरे लाख अपराध. एक घड़ी से भी कम समय यदि साधु की संगत की जाए तो लाख अपराध भी हरे जा सकते हैं.
एक घर तो डायन भी छोड़ देती है. डायन के बारे में कहा जाता है कि वह बच्चों को खा जाती है, लेकिन एक घर वह भी छोड़ देती है. जो घूस खोर बिना घूस लिए कोई काम करने को राजी न हों उन्हें उलाहना देने के लिए यह कहावत कही जा सकती है.
एक घर में सौ मर्द खुशी से रह सकते हैं, दो औरतें चैन से नहीं रह सकतीं. स्त्रियों में आपसी डाह की प्रवृत्ति को दर्शाने के लिए.
एक चन्द्रमा नौ लख तारा, एक सखी और नग्गर सारा. असंख्य तारे होते हुए भी एक चन्द्रमा ही प्रकाश देता है. नगर में असंख्य लोग होते हुए भी एक सखी (दानी व्यक्ति) को ही कीर्ति मिलती है.
एक चादर जने पचास, सभी करें ओढ़न की आस. उपयोग में आने वाली वस्तुएँ कम और जरूरतमंद बहुत अधिक.
एक चीज को तलाश करो तो दूसरी मिल जाती है. अक्सर ऐसा होता है कि हम कोई चीज़ तलाश रहे हों तो बहुत दिन से खोई हुई कोई और चीज़ मिल जाती है.
एक चुटकी सतुआ, गाँव भर को नेवता. बहुत थोड़े से साधन होते हुए भी बड़े बड़े मंसूबे बांधना.
एक चुप सौ को हरावे. दस लोग आप को बुरा कह रहे हों, यदि आप चुप रहते हैं तो वे अंततः चुप हो जाते हैं.
एक चुप हजार सुख. कोई कितना भी क्रोध दिलाने की कोशिश करे यदि आप उस समय चुप रहते हैं तो बहुत सुखी रहते हैं. इंग्लिश में कहावत है – Silence is golden.
एक जंगल में दो शेर. दो दबंग लोग एक स्थान पर एक साथ नहीं रह सकते.
एक जना झख मार मरे, पांच का काम पांचै करें. जो काम पांच आदमियों के करने का है उसे एक आदमी कितना भी प्रयास करें नहीं कर सकता.
एक जना नाखून काटे, चार जने नेहन्ना लाएँ. नेहन्ना या नहरना एक लोहे का छोटा सा औजार होता था जिस से नाई लोग नाखून काटते थे. कहावत में कहा गया है कि छोटे से काम में फ़ालतू में बहुत से लोग लग रहे हैं.
एक जनी आ गई, झगड़ा लगा गई, खुद गायब हो गई, सब को उलझा गई. जो धूर्त लोग दूसरों में झगड़ा करा कर स्वयं अलग हो जाते हैं, उनके लिए.
एक जो होए सो बुद्धि सिखाइये, कूपहि में यहाँ भांग पड़ी है. जहाँ एक व्यक्ति मूर्खतापूर्ण हरकतें कर रहा हो वहाँ उसे बुद्धि सिखाने का कार्य किया जा सकता है, यहाँ तो ऐसा लगता है कि कुएं में ही भांग पड़ी है (सब के सब दीवाने हैं).
एक जोरू का जोरू, एक जोरू का भतार, एक जोरू का सीसफूल, एक पशम का बार. अलग अलग तरह के पति गिनाए गए हैं. एक पत्नी का गुलाम है एक स्वामी, एक पत्नी के लिए शीशफूल (माथे का गहना) के समान प्रिय और महत्वपूर्ण है और एक पशम के बाल की तरह तुच्छ और अवांछित. पशम – जननेन्द्रियों का बाल.
एक जोरू सारे कुनबे को बस है. एक स्त्री पूरे परिवार को संभालती है.
एक झूठ के सबूत में सत्तर झूठ बोलने पड़ते हैं (एक झूठ छिपाने के लिए दस झूठ बोलने पढ़ते हैं). एक झूठी बात को सिद्ध करने के लिए बहुत से झूठ बोलने पड़ते हैं.
एक टका दहेज, नौ टका दक्षिणा. विवाह में जितना दहेज मिला उससे कई गुना पंडित जी दक्षिणा मांग रहे हैं.
एक टका मेरी गांठी, मगद खाऊं के माठी. मगद – शादी ब्याह में बनने वाले बेसन के बड़े लड्डू, माठी – बड़ी मठरी. जेब में थोड़े से पैसे हैं उसमें क्या क्या शौक पूरे कर लें.
एक ठौर बोली, एक ठौर गाली. वही बात कहीं पर सामान्य बोलचाल की भाषा मानी जाती है और कहीं पर गाली.
एक तरफ चार वेद एक तरफ चातुरी, एक तरफ सब मंतर एक तरफ गात्तरी. गात्तरी – गायत्री मंत्र. चार वेदों का ज्ञान रखने वाला भी चतुर व्यक्ति से हार जाता है. साथ में गायत्री मन्त्र की महिमा भी बताई गई ई.
एक तवे की रोटी क्या पतली क्या मोटी. (एक तवे की रोटी, क्या मोटी क्या छोटी). एक कुटुम्ब के मनुष्यों में बहुत कम अन्तर होता है.
एक तिनके से हवा का रुख मालूम हो जाता है. हवा किधर को चल रही है, यह मालूम करना है तो घास के तिनके को देखिये. वह उधर को ही झुका होगा. चुनाव आदि में केवल कुछ लोगों से बात कर के ही जनता का मन भांपा जा सकता है.
एक तीर से दो शिकार. जब कोई एक ही काम करने से दो प्रयोजन सिद्ध हो जाएँ तो. इंग्लिश में कहावत है – To kill two birds with one stone.
एक तो अंधे को खिलाओ, फिर घर छोड़ के आओ. असहाय व्यक्ति की मदद करने की कोशिश करो तो उस में भी बड़ी मुसीबतें हैं.
एक तो कानी बेटी की माई, दूजे पूछने वालों ने जान खाई. बेटी कानी है इसी का माँ को बहुत कलेस है ऊपर से पूछने वाले और जान खाते रहते हैं.
एक तो गड़ेरन, दूसरे लहसुन खाए. एक तो गड़ेरन वैसे ही गन्दी रहती है ऊपर से लहसुन खाती है जिससे और बदबू आती है.
एक तो गोरी अपने गोर, दुसरे लीन्ही कमरी ओढ़. किसी काली कलूटी स्त्री के लिए व्यंग्य में कहा जा रहा है कि एक तो वे स्वयं इतनी गोरी हैं और ऊपर से काली कमली ओढ़ ली है.
एक तो डाकिन ऊपर से जरख पे चढ़ी. जरख – लकड़बग्घा. लोक विश्वास है कि डाकिन की सवारी लकड़बग्घा है इसीलिए उसे जरखवाहिनी भी कहते हैं. डाकिन अकेली ही बच्चों को खा जाती है ऊपर से लकड़बग्घे पर सवार हो तो क्या कहने. देखिए परिशिष्ट.
एक तो डायन दूजे ओझा से ब्याह. एक तो डायन वैसे ही खतरनाक होती है ऊपर से ओझा से शादी करके और खतरनाक हो गई है.
एक तो डायन, दूसरे हाथ लुआठ (जलती हुई लकड़ी). भयंकर चीज़ का और भयंकर हो जाना.
एक तो था ही दीवाना, उस पर आई बहार. कोई आदमी वैसे ही पगलाया हुआ हो और ऊपर से बहार का मौसम आ जाए तो उसका बौरानापन और बढ़ जाता है.
एक तो बाई नाचनी और घुंघरू पहने बाजनी, एक तो नाचने का शौक, और ऊपर से पैरों में घुंघरू पहिन रखे हैं
एक तो भालू, दूसरे कांधे कुदाल. भयंकर चीज़ का और भयंकर हो जाना.
एक तो मियाँ अपने मिट्ठू, दूसरे खाई प्याज. एक तो मियाँ के मुँह से मीठी मीठी सुगंध (दुर्गन्ध के लिए व्यंग्य में) आती है, ऊपर से प्याज खा ली है.
एक तो मियाँ बावले, दूजे खाई भाँग, तले हुआ सर, ऊपर हुई टांग. एक तो मियाँ वैसे ही पगले थे ऊपर से भांग खा ली तो बुरा हाल हो गया. समझदार व्यक्ति के मुकाबले कोई मूर्ख नशा कर ले तो बहुत अधिक नुकसान है.
एक तो विदेसी, ऊपर से तोतला. एक तो विदेशियों की बोली वैसे ही समझ में नहीं आती, उपर से वह तोतला है.
एक तो शेर, ऊपर से बख्तर पहने. शेर वैसे ही इतना खतरनाक और अजेय ऊपर से कवच और पहन ले.
एक थैली के चट्टे बट्टे. एक परिवार के लोग यदि एक जैसे हों तो.
एक दम में हजार दम. एक आदमी हजार लोगों का पेट पाल सकता है.
एक दम, हजार उम्मीद. जब तक सांस है तब तक हजार उम्मीदें रहती हैं.
एक दर बंद, हजार दर खुले. यदि किसी को सहायता देने का एक रास्ता बंद कर दिया जाए तो उसके लिए अन्य बहुत सी संभावनाओं के द्वार खुल जाते हैं.
एक दाँत का मोल करा, बत्तीसों खोल दिये. व्यर्थ दाँत निकालने वालों का मजाक उड़ाने के लिए
एक दिन का दिखावा, हजार दिन का सियापा (एक दिन की शोभा, सहस दिन का रोबा). विवाह आदि बड़े आयोजन में लोग झूठी शान दिखाने के लिए क़र्ज़ ले कर अनाप शनाप खर्च करते हैं और फिर उन्हें बहुत समय तक उस की भरपाई करनी पड़ती है.
एक दिन पाहुना, दूजे दिन अनखावना, तीजे दिन अपने घर भला. अनखावना – खीझ पैदा करने वाला (अनखनाना माने खीजना) कोई अतिथि पहले दिन प्रिय लगता है और दूसरे दिन उससे खीझ होने लगती है. तीसरे दिन उसे अपने घर चला जाना चाहिए. रूपान्तर – एक दिना को पावनो, दो दिना को मुसाफिर, तीसरे दिन रहे तो बेसरम.
एक दिन मेहमान, दो दिन मेहमान, तीजे दिन बलाए जान. घर आया हुआ मेहमान एक दिन अच्छा लगता है, दूसरे दिन भी झेल लिया जाता है, तीसरे दिन तो वह मुसीबत लगने लगता है. इंग्लिश में कहावतें हैं – ‘Two days guest, third day a pest’ ; ‘Fish and guest smell in three days’.
एक दिन व्रत, नौ दिन उद्यापन. कुछ व्रत कई सप्ताह तक रखने के बाद उन का उद्यापन किया जाता है जिस में बहुत से लोगों को बुला कर खाने पीने का आयोजन किया जाता है. कहावत ऐसे लोगों के प्रति कही गई है जिनकी रूचि व्रत में नहीं केवल उद्यापन के दिन मिलने वाले खाने पीने में ही है.
एक दीप से जले दूसरा. (चिराग से चिराग जलता है). 1. ज्ञान के प्रकाश से प्रकाशित होने वाला एक व्यक्ति दूसरे को प्रकाशित करता है. 2. एक मनुष्य से दूसरा मनुष्य जन्म लेता है.
एक देखा राजा ढोर, मारे शाह और छोड़े चोर. भ्रष्ट शासक पर व्यंग्य.
एक देश का बगला, दूजे में बकलोल. एक ही व्यक्ति को कहीं पर बुद्धिमान समझा जाता है और कहीं पर मूर्ख.
एक धमकी सौ निहोरे. जो बार बार अनुरोध करने पर भी काम न कर रहा हो वह एक बार धमकाने से ही मान जाता है. निहोरे करना – अनुरोध करना.
एक न शुद दो शुद. क्या एक मुसीबत कम थी जो अब दूसरी भी गले पड़ गई. सन्दर्भ कथा 40. किसी व्यक्ति ने एक जादूगर से तीन मंत्र सीखे. एक से मृत को जीवित किया जा सकता था, दूसरे से उसके मन का हाल जाना जा सकता था और तीसरे से उसे फिर मृतक बनाया जा सकता था. इन मंत्रों की परीक्षा के लिए एक दिन उसने एक मुर्दे को जीवित किया और उसका सब हाल जान लिया. किंतु उसे फिर मृतक बनाने का मंत्र वह भूल गया. नतीजा यह हुआ कि उस मुर्दे का प्रेत उसके पीछे लग गया. इस मुसीबत से छुटकारा पाने के लिए उसने अपने मरे हुए गुरु (उस जादूगर) को मंत्र द्वारा जीवित किया, पर दुर्भाग्यवश वह इस बार दूसरा मंत्र भूल गया और जीवित को फिर मृतक बनाने का मंत्र नहीं जान सका. इस प्रकार एक के स्थान पर अब दो प्रेत उसके साथ लग गए.
एक नकटा सौ को नकटा करे. जिस व्यक्ति में कोई बहुत बड़ी कमी है वह चाहता है कि सब में वह कमी हो जाए तो उसे कोई कुछ नहीं कहेगा. सन्दर्भ कथा – एक व्यक्ति की नाक धोखे से कट गई. उसे बड़ी चिंता हुई कैसे सबको मुंह दिखाएगा. फिर उसने सोचा कि यदि सब नकटे हो जाएं तो उसे कोई नहीं चिढ़ाएगा. उसने सबसे कहना शुरू किया कि नाक कटने के बाद उसे स्वर्ग दिखाई दे रहा है. कुछ लोग उसकी बातों में आ गये और स्वर्ग देखने के लालच में उन्हों ने भी नाक कटवा ली. जब उन्हें स्वर्ग नहीं दिखा तो उन्होंने उस नकटे से शिकायत की. तो नकटे ने उन सब से कहा कि अगर तुम्हें बेइज्जती से बचना है तो सब से कहो कि तुम्हें भी स्वर्ग दिख रहा है जिससे बाकी सब लोग भी अपनी नाक कटा लें. अगर कोई धूर्त व्यक्ति स्वयं नुकसान उठाने के बाद दूसरे लोगों को भी नुकसान पहुँचाना चाहे तो यह कहावत कही जाती है.
एक नजीर सौ नसीहत. सौ उपदेश देने के मुकाबले एक उदाहरण पेश कर के दिखाना अधिक कारगर होता है. इंग्लिश में कहावत है – Example is better than precept.
एक नथ और दो बहुएँ, बात कैसे पटेगी. चीज़ एक हो और दावेदार दो हों तो बहुत मुश्किल आती है.
एक नयन अमृत झरे, एक नयन में बिष भरे. मन में कुछ ऊपर से कुछ. प्यार का दिखावा पर मन में जहर.
एक नाक दो छींक, काम बनेगा ठीक. किसी काम से पहले कोई छींक दे तो यह अपशकुन होता है पर यदि कोई व्यक्ति दो बार छींके तो वह शुभ शकुन माना जाता है.
एक नारी यथा ब्रह्मचारी. यदि किसी व्यक्ति के पास कई विवाह करने का विकल्प हो पर वह एक ही स्त्री से विवाह करे तो उसे भी ब्रह्मचारी ही माना जाता है. (मजबूरी में एक स्त्री रखने वाले को नहीं)
एक नाहीं, सत्तर बला टाले (एक नाहीं, सौ दुख हरे). किसी काम को मना कर देने से बहुत सी परेशानियाँ कम हो जाती हैं. इस कहावत में उन लोगों को नसीहत दी गई है जो किसी काम को मना न कर पाने के कारण मुसीबत में पड़ जाते हैं. रूपान्तर – एक नन्नो सौ लफड़ा टाले. नन्नो – ‘न’ का अक्षर.
एक नींबू मनों दूध फाड़ देता है. 1. एक छोटी सी युक्ति बहुत बड़े बड़े काम कर सकती है. 2. एक कुटिल आदमी पूरे समाज को दो फाड़ कर सकता है.
एक नीम, सौ कोढ़ी. ऐसा मानते हैं कि नीम की पत्तियों को उबाल कर उसका पानी लगाने से कुष्ठ रोग में लाभ होता है. कहावत में कहा गया है कि नीम एक है और कोढ़ी बहुत सारे हैं. (एक अनार सौ बीमार).
एक नूर आदमी, हजार नूर कपड़ा. व्यक्ति की सुन्दरता में कपड़ों का बहुत अधिक महत्त्व है.
एक ने कही दूजे ने जानी, नानक कहें दोनों ज्ञानी. वैसे तो शाब्दिक अर्थ स्पष्ट है लेकिन इस बात को मजाक के रूप में प्रयोग करते हैं जैसे कोई मूर्ख व्यक्ति किसी दूसरे कम बुद्धि वाले व्यक्ति को कोई ऐसी बात बता रहा हो जिसे वह बड़े ज्ञान की बात समझता हो तो मजाक में यह कहावत कही जाती है.
एक पंथ दो काज. एक ही रास्ते पर जाने से दो काम हो जाएँ तो. एक काम से दो लाभ होना.
एक पग उठावे और दूसरे की आस नहीं. जीवन इतना क्षण भंगुर है कि एक पग रखने के बाद दूसरे का भी भरोसा नहीं है.
एक पजामा दो भाई, फेरा फेरी कचहरी जाई. अत्यधिक निर्धनता की स्थिति. रूपान्तर – एक सारी, फेरा फारी.
एक पड़े लोटते हैं, दूसरे चोखी मांगते हैं. चोखी – शराब. दो शराबियों में से एक जमीन पर लोट रहा है, दूसरा और दारु मांग रहा है. दो नालायक लोग एक से बढ़ कर एक हों तो.
एक पहिए से गाड़ी नहीं चलती. घर गृहस्थी एक व्यक्ति से नहीं चल सकती.
एक पाख दो गहना, राजा मरे कि सेना. एक पाख (कृष्ण पक्ष या शुक्ल पक्ष) में दो ग्रहण पड़ें तो बहुत अशुभ होते हैं. वैसे यह बहुत मुश्किल है क्योंकि चन्द्रग्रहण पूर्णिमा को और सूर्यग्रहण अमावस्या को होता है.
एक पापी सारी नाव डुबोए (एक के पाप से नाव डूबे). ऐसा मानते हैं कि नाव में कोई पापी बैठा हो तो उस के पाप के बोझ से नाव डूब जाती है. किसी एक व्यक्ति के कर्मों का फल बहुत से लोगों को भुगतना पड़े तो.
एक पूत को पूत और एक आँख को आँख नहीं कहा जाता. एक पुत्र होना और एक ही आँख पर्याप्त नहीं होते.
एक पूत बिन जग अंधियार. जिसके एक भी पुत्र नहीं है उस के लिए संसार अंधियारा है.
एक पूत मत जनियो माय, घर रहे या बाहर जाय. पुत्र एक से अधिक होना चाहिए. यदि एक पुत्र को काम के लिए परदेस जाना पड़े तो दूसरा तो साथ में रहेगा. रूपान्तर – एक पूत से निपूत भला.
एक पूत, ढाई हाथ कलेजा. एक पुत्र होने से ही व्यक्ति की हिम्मत बहुत बढ़ जाती है.
एक पेड़ हर्रे, सब गाँव खांसी. ऐसा मानते हैं कि हरड़ (हर्र) खाने से खांसी कम हो जाती है. समस्या यह है कि हर्र का एक ही पेड़ है और सारे गाँव को खांसी है. आवश्यकता अधिक और साधन कम.
एक प्राण दो पिंजर. एक दूसरे से अत्यधिक प्रेम करने वालों के लिए.
एक फूल खिलने से बहार नहीं आती. किसी एक घर में ख़ुशी हो इस का अर्थ यह नहीं होता कि समाज में सुख शान्ति है.
एक फूल से माला नहीं गूँथी जावे. 1. समाज के महत्वपूर्ण कार्य अकेला व्यक्ति नहीं कर सकता. 2. किसी आयोजन में अकेले आदमी से शोभा नहीं होती है.
एक फूहड़ दूजी के घर गई, जा कुठला सी ठाड़ी भई. कुठला – अनाज रखने का मिटटी का बड़ा सा बर्तन. फूहड़ स्त्रियों पर कटाक्ष किया गया है कि एक फूहड़ स्त्री दूसरी फूहड़ स्त्री के घर गई. न कोई आचार व्यवहार न कोई काम की बात बस फूहड़ की तरह खड़ी हो गई.
एक बंदरिया के रूठे क्या अयोध्या खाली होवे. कुछ लोग अपने को बहुत महत्वपूर्ण समझते हैं और सोचते हैं कि उन के चले जाने से सारे काम रुक जाएंगे, ऐसे लोगों को मजाक मजाक में उनकी हैसियत बताने के लिए.
एक बढ़ई, दो लुहार, बाले बच्चे लगें कुम्हार. बढ़ई अकेला काम कर सकता है, लुहार को कम से कम दो लोग चाहिए, कुम्हार को तो पूरा परिवार ही लगाना पड़ता है तब उसका काम हो पाता है.
एक बनिये से बाजार नहीं बसता. समाज की अर्थ व्यवस्था एक व्यक्ति से नहीं चल सकती.
एक बांबी में दो सांप. दो दबंग लोग एक स्थान परएक साथ नहीं रह सकते.
एक बार खाय योगी, दो बार खाय भोगी, तीन बार खाय रोगी. पहले के लोगों का विश्वास था कि खाना जितनी कम बार खाया जाए उतना ही अच्छा है. सामान्य लोग दो बार खाना खाते थे, तीन बार खाना केवल राजा महाराजा ही खाते थे.
एक बार खावे नेमी धेमी, दो बार खावे बड़ा (व्यस्क), तीन बार खावें बालक बूलक, चार बार खावे गधा. नियम पालन करने वाले योगी दिन में एक बार भोजन करते हैं, सामान्य वयस्क लोग दो बार और बालक तीन बार. इस से अधिक बार तो केवल गधे ही खाते हैं.
एक बार जाय योगी, दो बार जाय भोगी, तीन बार जाय रोगी. खाने के अलावा शौच जाने में भी यही सिद्धांत लागू होता है.
एक बार ठगाए, सहस बुद्धि आए. धोखा खा कर ही व्यक्ति बुद्धिमान बनता है.
एक बार भूले सो भूला कहाए, बार बार भूले सो मूरख कहाए. भूल चूक सभी से हो सकती है लेकिन एक बार भूलकर जो उससे शिक्षा ले वह समझदार कहलाएगा और जो उसी गलती को बार बार करे वह मूर्ख कहलाएगा.
एक बार लाज टूटी सो टूटी. एक बार शर्म टूट जाए उसके बाद आदमी कुछ भी कर सकता है.
एक बिगड़े तो दस समझावें, दस बिगड़ें तो कौन समझावे. कोई एक व्यक्ति बिगड़ा हुआ हो तो बहुत से लोग मिल कर उसको समझा सकते हैं, बहुत से लोग बिगड़े हुए हों तो उन्हें कौन संभाल सकता है.
एक बिच्छू के नौ-नौ डंक. महादुष्ट आदमी बहुत तरह से परेशान कर सकता है.
एक बिछौना सोओ और अंग से अंग लगे नई. कोई गलत काम करे और उसके परिणाम से भी बचना चाहे तो.
एक बिहारी सौ पर भारी. बिहार के लोगों ने अपने खुद की प्रशंसा की है.
एक बुजदिल दस बुजदिल पैदा करता है. कायर व्यक्ति बहुत से लोगों के अंदर कायरता का भाव पैदा करता है.
एक बुरे से बुराई नहीं होती. आम तौर पर अकेला आदमी दुष्टता पूर्ण कार्य नहीं करता, बहुत से गलत लोग मिल कर गलत काम करते हैं.
एक बुलावे तेरह धावे. ब्राह्मणों के लिए कहा गया है, एक बुलाओ तो तेरह आते हैं.
एक बेटी लाइ, दूजी मिठाइ, तीसरी होय तो तीनों बलाइ. एक या दो बेटियां प्रिय लगती हैं लेकिन अगर तीन हो जाएं तो तीनों मुसीबत लगने लगती हैं.
एक बैल इक्यावन खूँटा. 1.जब एक व्यक्ति से कई स्थानों पर काम करने को बोला जाए. 2. आवश्यकता से बहुत अधिक साधन होना.
एक बोली तीन काम. केवल मीठा बोलने से ही बहुत सारे काम निकाले जा सकते हैं.
एक भेड़ कुएं में पड़े तो सब जा पड़ें. जो लोग बिना अपनी बुद्धि का प्रयोग करे किसी का अंधानुसरण करते हैं उनके लिए (जैसे आजकल के कलियुगी बाबाओं के भक्त).
एक मखौल, सौ गाली. किसी को सौ गाली देने से अधिक बुरा है उसका मजाक उड़ाना.
एक मछली सारे तालाब को गंदा करती है. एक गलत व्यक्ति से सारा समाज बदनाम होता है. एक गलत व्यक्ति से बहुत से लोग गलत बातें सीखते हैं.
एक मरता सौ पर भारी. जो अपनी जान की परवाह किए बगैर लड़ता है वह अकेला ही सौ पर भारी होता है.
एक माँ के पूत सात, सातों के सात भाग्य. एक ही माँ के पुत्र भी अलग अलग भाग्य ले कर आते हैं
एक माला के मनके. सारे लोग एक से हों तो.
एक मास ऋतु आगे धावे, आधा जेठ असाढ़ कहावे. ऋतु बदलने से एक महीने पहले ही मौसम में उसके अनुरूप परिवर्तन दिखाई देने लगता है.
एक मुँह दो बात. अपनी बात पर स्थिर न रहना.
एक मुर्गी नौ जगह हलाल नहीं होती. एक कर्मचारी एक साथ कई जगह काम नहीं कर सकता. इसको इस तरह भी प्रयोग कर सकते हैं कि किसी एक आदमी से दफ्तर के हर कर्मचारी को रिश्वत नहीं मांगनी चाहिए.
एक में आवा जाही, दूसर में बिछौना चाही. एक बार थोड़ी सुविधा दे दी तो घर में आना जाना शुरू कर दिया, दुबारा लिफ्ट देंगे तो बिछौना मांगेगा.
एक मौनी सौ लबारों को हराए. लबार – अपनी झूठी तारीफ़ करने वाला. एक चुप रहने वाला सौ लबारों पर भारी पड़ता है.
एक म्यान में दो तलवारें नहीं समा सकतीं (एक म्यान में दो खड्ग, दीठा सुना न कान). एक घर में या एक संगठन में दो जबर लोग एक साथ नहीं रह सकते.
एक राम इक रावन्ना, एक छत्री इक बामन्ना, बा ने बा की त्रिया हरी, बा ने बा की लंक जरी, बात को बन गयो बातन्ना, तुलसी लिख गए पोथन्ना. रामायण का उदाहरण दे कर मजेदार ढंग से कहा गया है कि कैसे बात का बतंगड़ बन जाता है. एक राम थे और एक रावण, एक क्षत्रिय थे और एक ब्राह्मण. एक ने दूसरे की स्त्री का अपहरण किया तो दूसरे ने उसकी लंका जला दी. इतनी सी बात का बतंगड़ बना कर तुलसीदास पोथी लिख गये. कहावतों में कही गई बात का किसी को बुरा नहीं मानना चाहिए.
एक रोता सौ को रुलाए. एक व्यक्ति के दुख को देख कर सौ व्यक्ति दुखी होते हैं.
एक लख पूत सवा लख नाती, ता रावण घर दिया न बाती. किसी अत्यंत ऐश्वर्यशाली किन्तु अहंकारी व्यक्ति के पूर्ण विनाश हो जाने पर इस लोकोक्ति का प्रयोग किया जाता है.
एक लड़की नौ दामाद, लड़ुआ खाए बड़ा सवाद. किसी ऐसे महानीच आदमी के लिए जो अपनी बेटी से वैश्यावृत्ति करा के गुलछर्रे उड़ा रहा हो.
एक लिखा और सौ वाचा. सौ बार कही हुई बात का इतना मूल्य नहीं है जितना एक लिखी हुई बात का.
एक लोटा सात भाई, बेरा बेरी पैखाना जाई. अत्यंत निर्धनता की स्थिति. अत्यधिक कंजूस लोगों का मजाक उड़ाने के लिए भी इस प्रकार की कहावत कही जाती है.
एक शेर शिकार करे, सौ लोमड़ियाँ पेट भरें (एक शेर शिकार करे, बहुतों के पेट भरें). एक शक्तिशाली व्यक्ति बहुत से लोगों को आश्रय और जीविका देता है.
एक सवार दो घोड़ों पर सवारी नहीं कर सकता. 1. एक व्यक्ति दो विरोधाभासी संस्थाओं का सदस्य नहीं बन सकता. 2. एक व्यक्ति दो महत्वपूर्ण और कठिन काम एक साथ नहीं कर सकता.
एक साँड़ के हगे बिटौरा नई जुरत. बिटौरा – कंडों का ढेर. एक साँड के गोबर से कंडों का ढेर इकट्ठा नहीं होता. एक आदमी के प्रयास से बड़े बड़े काम नहीं हो सकते इस बात को हास्यपूर्ण ढंग से कहा गया है.
एक सियार हुआँ हुआँ, सबहिं सियार हुआँ हुआँ. जंगल में जब एक सियार हुआ हुआ बोलता है तो सभी सियार बोलने लगते हैं. यदि किसी एक मूर्ख व्यक्ति की बात का समर्थन बहुत से मूर्ख लोग करें तो व्यंग में यह कहावत बोली जाती है. आजकल संसद की कार्यवाही के दौरान ऐसे दृश्य देखने को मिलते हैं.
एक से दो भले. कहीं जाना हो या कोई काम करना हो तो एक आदमी के मुकाबले दो अच्छे रहते हैं. सन्दर्भ कथा – एक लड़का कमाने लिए परदेस जाने लगा तो उसकी माँ ने उससे कहा कि अकेले जाना ठीक नहीं. एक की अपेक्षा दो अच्छे होते हैं. लेकिन और कोई उसके साथ जाने वाला नहीं था, अतः उसकी मां ने एक नेवले को उसकी पिटारी में रख दिया. रास्ते में लड़का एक वृक्ष के नीचे सोया तो एक सांप ने बांबी से निकल कर उसे डसना चाहा. लेकिन नेवले ने सांप के साथ युद्ध कर के उस को मार डाला
एक से भले दो, दो से भले चार. जितने अधिक लोग उतना अधिक आनंद आएगा और काम अच्छा होगा. इंग्लिश में कहावत है – The more, the merrier.
एक सेर की मुंडी हिले, एक तोले की जबान न हिले. जो लोग मुँह से बोले बिना सिर्फ सर हिला कर जवाब देते हैं उन का मजाक उड़ाने के लिए.
एक सो आधो, दो सो चार. एक है तो आधे के बराबर है, और यदि दो हो जायें तो चार की शक्ति आ जाती है.
एक हड्डी सौ कुत्ते (एक बोटी सौ कुत्ते). जहाँ पर आवश्यकता अधिक हो और उपलब्धता कम.
एक हरदसिया, सबरा गाँव रसिया. हरदसिया नाम की कोई एक ही सुंदर कन्या है और गाँव के सभी लड़के उसे वरना चाहते हैं. जहाँ मांग अधिक और उपलब्धता कम हो.
एक हल हत्या, दो हल काज, तीन हल खेती, चार हल राज. एक हल की खेती सत्यानाश, दो हल की काम चलाऊ, तीन हल सही सही और चार हल हों तो उत्तम.
एक हांडी तेरह चीजें मांगे. रसोई की एक हंडिया को पकाने के लिए तेरह प्रकार की वस्तुएं चाहिए होती हैं. घर गृहस्थी या व्यापार के किसी भी काम में बहुत सी वस्तुएं और व्यक्ति चाहिए होते हैं.
एक हाथ देना, दूजे हाथ लेना. किसी को कुछ देना और हाथ की हाथ बदले में कुछ और ले लेना.
एक हाथ से घर चले, सौ हाथ से खेती. घर का काम एक व्यक्ति के करने से पूरा हो सकता है परन्तु खेती में बहुत लोगों को लगना पड़ता है.
एक ही पत्थर से दो बार ठोकर खाना लज्जाजनक है. किसी गलती को दुबारा करना शर्म की बात है.
एक ही बिल के चूहे. एक घर के सभी सदस्य निकृष्ट वृत्ति के हों तो.
एक ही साड़ी में नौ रे नौ, कहे सुने न मनियो रीस, तोहे लगा के पूरे बीस. एक कीमती साड़ी दिखा कर नौ स्त्रियों से शादी करने वाले धूर्त व्यक्ति को अंततः उससे भी सयानी पत्नी मिली. सन्दर्भ कथा – एक व्यक्ति के पास कोई एक बेशकीमती साड़ी थी. उसे दिखा कर वह किसी स्त्री को फंसाता, उससे शादी कर के कुछ दिन बाद उसे छोड़ कर फिर नया शिकार तलाश करता. जब उसने नौवीं शादी की तो अपनी चालाकी पर खुश हो कर गुनगुनाने लगा, एक ही साडी में नौ रे नौ. पत्नी भी कुछ कम नहीं थी. सारा माजरा समझ के बोली, बुरा मत मानना तुम मेरे बीसवें पति हो. जब दो लोग एक से बढ़ कर एक धूर्त हों तब यह कहावत कही जाती है.
एक हुस्न आदमी, हजार हुस्न कपड़ा, लाख हुस्न जेवर, करोड़ हुस्न नखरा. व्यक्ति की सुन्दरता को अच्छे कपड़े हजार गुना बढ़ाते हैं, अच्छे गहने लाख गुना बढ़ाते हैं और उस की भाव भंगिमा करोड़ गुना बढ़ाती हैं.
एकला सो बेकला. बेकल – बेचैन. अकेला आदमी घबराहट और बेचैनी का शिकार हो सकता है इसलिए कोई भी काम मिल बांटकर करना चाहिए.
एकांत वासा, झगड़ा न झांसा. जो एकांत में रहते हैं उनके साथ झगड़े इत्यादि का कोई झंझट नहीं होता.
एकादशी की कसर द्वादशी को पूरी होती है. एकादशी के व्रत की कसर द्वादशी को खूब खा कर पूरी करते हैं.
एकै दार एकै चाउर, किसी को गुन, किसी को बाउर. वही दाल है और वही चावल, किसी को लाभ करता है और किसी को वायु पैदा करता है.
एकै नीम, सब गाँव सितलहा. चेचक को लोग शीतला माता का प्रकोप मानते हैं और नीम के पत्तों से झाड़ते हैं. कहावत में कहा गया है कि गाँव के सारे घरों में चेचक निकली हुई है और एक ही नीम का पेड़ है. आवश्यकता बहुत अधिक और उपलब्धता बहुत कम. सितलहा – शीतला माता का प्रकोप, चेचक.
एकै फूंक चांदी. चांदी एक बार तपाने से ही शुद्ध हो जाती है. कोई व्यक्ति एक ही बार की परीक्षा में खरा उतरता है तब यह कहावत कही जाती है.
एकै भले सपूत सों, सब कुल भलो कहाय. एक योग्य संतान सारे कुल का नाम रोशन करती है.
एकै लाठी सबै न हंकाय. किसी व्यापार में सब कर्मचारियों के साथ एक सा व्यवहार नहीं किया जा सकता.
एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय, (रहिमन सींचे मूल को, फूलै फलै अघाय). किसी भी कार्य के लिए सब से मुख्य जो व्यक्ति है उसी को साध लेने से सारा कार्य सिद्ध हो जाता है. जड़ को सींचने से पौधा फूलता फलता है, पत्तों पर पानी डालने से नहीं.
एकौ न आँख, कजरौठा नौ ठो. शक्ल सूरत कुछ भी नहीं है और सौन्दर्य प्रसाधन बहुत सारे इकट्ठे किए हैं. कजरौठा – काजल बना कर रखने की डिब्बी. (देखिये परिशिष्ट).
एक्के मियाँ खर खरिहान, एक्के मियाँ दर दोकान. जहाँ एक ही व्यक्ति पर बहुत सारी जिम्मेदारियां हों.
एरंड को मृदंग. बेतुका काम करना. एरंड की लकड़ी बड़ी कमजोर और रेशेवाली होती है. उसका मृदंग तो क्या कोई वस्तु नहीं बन सकती.
एरे ताड़ वृक्ष, एतो बढ़ कर कहा कियो. ताड़ के पेड़ से पूछा जा रहा है कि तू ने इतना लम्बा हो कर क्या किया? ऊँचा पद पा कर किसी के काम न आने वालों के लिए व्यंग्य. (बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर).
एहसान लीजे सब जहान का, न एहसान लीजे शाहेजहान का. राजा या बड़े अधिकारी का एहसान लेना ठीक नहीं.
ऐ मियाँ टेढ़े, तुम से हम डेढ़े. तुम अपने को टेढ़ा समझते हो तो हम तुम से डेढ़ गुने टेढ़े हैं.
ऐ मेरे करम, जहाँ टटोलो वहाँ नरम. कोई अत्यधिक अभागा व्यक्ति अपने लिए कह रहा है.
ऐंचन छोड़ घसीटन में पड़े. ऐंचना माने खींचना, जैसे किसी को रस्सी का फंदा डाल कर खींचना. घसीटन माने घसीटना. कहावत का अर्थ है कि एक मुसीबत से निकल कर दूसरी में पड़ गए.
ऐब को हुनर चाहिए. कोई गलत काम करने के लिए भी होशियारी चाहिए.
ऐरे गैरे पचकल्यान (ऐरे गैरे नत्थू खैरे). फ़ालतू और अशुभ आदमी. पचकल्यान एक प्रकार के घोड़े को कहते हैं जो अशुभ माना जाता है.
ऐरे गैरे, फ़सल बहुतेरे. खाने को मिल रहा हो तो बहुत से आलतू फ़ालतू और मुफ्तखोरे इकट्ठे हो जाते हैं.
ऐसा काम हमेशा कर जिसमें न होवे कुछ डर. सदैव ऐसे कर्म करना चाहिए जिनमें बदनामी का डर न हो.
ऐसा पूत पंडित भया, ईंट बाँध कचहरी गया (सब जजमानों को सरग ले गया). किसी योग्य पंडित या हुनरमंद व्यक्ति के मूर्ख पुत्र के लिए व्यंग्य में.
ऐसी करनी न करे, जो करके पछिताए. ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए जो कर के पछताना पड़े. तात्पर्य यह है कि सब काम सोच समझ कर ही करना चाहिए.
ऐसी कही कि धोए न छूटे. इतनी लगने वाली बात कही.
ऐसी छठी बलबल जाएं, नौ नौ पटरी भातें खायं. बच्चे की छठी पर किसी ने बहुत बड़ा भोज दिया है तो लोग आशीर्वाद दे रहे हैं. ऐसी छठी की बलिहारी जाएं जहां खूब सारा खाने को मिल रहा है.
ऐसी बहू सयानी, कि उधार मांगे पानी. बहू इतनी चालाक है कि किसी से पानी भी मांगती है तो उधार मांगती है जिससे लोग उससे ली हुई चीज़ तुरंत लौटा दें.
ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोय, (औरन को शीतल करे आपहु शीतल होय). हम सभी को ऐसी वाणी बोलना चाहिए जो अपने मन के अहम् को और दूसरे के मन के क्रोध को शांत करे.
ऐसी रातों के ऐसे ही सवेरे. जैसी परिस्थितियां बनती हैं, वैसे ही परिणाम सामने आते हैं.
ऐसी लक्ष्मी से निगोड़ा भला. बड़े घर की बदमिजाज बेटी से शादी करने के मुकाबले कुआंरा रहना अच्छा.
ऐसी सुहागन से तो रांड ही भली. दुष्चरित्र विवाहिता स्त्री के लिए कहा गया है की ऐसी विवाहिता से तो विधवा ही भली.
ऐसी होती कातनहारी तो काहे फिरती मारी मारी (काहे फिरती जांघ उघारी). इतनी होशियार होती तो मारी मारी क्यूँ फिरती और बेईज्ज़त क्यों होती.. (कातनहारी – सूत कातने वाली).
ऐसे ऊत रिवाड़ी जाएं, आटा बेचें गाजर खाएं. रिवाड़ी राजस्थान में एक शहर है जहाँ गल्ले की मंडी लगती है. किसी मूर्ख व्यक्ति का मज़ाक उड़ाया जा रहा है कि ये अगर मंडी में जाएंगे तो आटा बेच कर गाजर खाएंगे.
ऐसे गायब हुए जैसे गधे के सर से सींग. गधे के सर पर सींग का नामोनिशान भी नहीं होता उसी को लेकर कहावत बनी है. कोई बिल्कुल ही गायब हो जाए तो.
ऐसे घसकट्टा को ऐसी कमलगट्टा. घसकट्टा – घास काटने वाला, कमलगट्टा – कमल का फल. ऐसे रूखे और ताकतवर पुरुष के पल्ले ऐसी कोमल स्त्री पड़ गई है.
ऐसे घूमे जैसे नाई बिगड़े ब्याह में. यदि किसी विवाह में वर और वधु पक्ष में अनबन हो जाए, और मारपीट की नौबत आ जाए तो सबसे बुरा हाल विवाह तय कराने वाले नाई का होता है. वह दोनों के गुस्से का शिकार बनता है. कोई आदमी बहुत परेशान सा इधर उधर घूम रहा हो तो उसका मजाक उड़ाने के लिए.
ऐसे दाता से सूम भला, जो फट देय जबाब. जो लोग देने की बात कर के टालते रहते हैं उन से वह कंजूस अच्छा है जो फट से मना कर देता है.
ऐसे पिल्ले न पालियो जो जाड़े में रजाई मांगें. ऐसा नौकर मत रखो जो जरूरत से ज्यादा सुविधाएं मांगे.
ऐसे बूढ़े बैल को कौन बाँध भुस देय. (कहावत का पूर्वार्ध इस प्रकार है – दांत घिसे और खुर घिसे, पीठ बोझ न लेय). जब कोई कर्मचारी किसी कार्य के योग्य नहीं रहता तो.
ऐसे सुहाग से रंडापा भला. किसी अत्याचारी या निकम्मे पति से तंग आ कर उसकी पत्नी ऐसा बोलती है.
ऐसे ही हम ऐसा ही हमारा सगा, न हमारे सर पर टोपी न इस के तन पर झगा. जैसे हम गरीब वैसे ही हमारे रिश्तेदार. झगा – शरीर पर पहनने का कुर्ता नुमा वस्त्र.
ऐसे होते कंत तो काय को जाते अंत. अंत – अन्यत्र. यदि इतने योग्य होते तो घर छोड़ कहीं और क्यों जाते.
ऐसो कोऊ नाहिं जग माहीं, जाको काम नचावे नाहीं. काम – कामदेव. इस संसार में ऐसा कोई नहीं है जिसे कामदेव न सताते हों.
ऐसो बनिज साहु न करे, दाना खिलाय लीद घर भरे. साहु – बनिया, साहूकार. बनिया अपनी रकम के बदले घोड़ी कभी नहीं लेगा. बनिया ऐसा व्यापार नहीं करता जिस में लाभ के बजाय हानि हो. सन्दर्भ कथा – किसी व्यक्ति को एक बनिये का रुपया उधार देना था. उनके चुकावरे में उसने बनिये को अपनी घोड़ी देनी चाही. इस पर बनिये कहा कि भाई मुझे तो अपने रुपये चाहिए. मैं ऐसी वस्तु को लेकर क्या करूँगा कि गाँठ का दाना खिलाना पड़े और बदले में लीद मिले
ओ, औ
ओई की रोटी ओई की दार, ओई की टटिया लगी दुआर. यह एक बुन्देलखंडी पहेलीनुमा कहावत है जिस का उत्तर है चना. चने की रोटी को चने की दाल से खाओ और चने का पर्दा (टट्टर) बना कर दरवाजे पर लगाओ.
ओई बाँस के डला टोकरी, ओई के चलनी सूप. उसी बाँस के डलिया – टोकरी बनता हैं, और उसी के चलनी – सूप. दो सगे भाइयों अथवा भाई-बहिनों में परस्पर प्रेम जताने के लिए कहते हैं.
ओखली में सर दिया तो मूसलों से क्या डरना. जब कोई कठिन काम हाथ में लिया है तो उस में आने वाली परेशानियों से क्या डरना.
ओखली में हाथ डाले, मूसली को दोष देवे. जाहिर है कि ओखली में हाथ डालोगे तो मूसल की चोट पड़ेगी. ऐसे में मूसल को क्या दोष देना. स्वयं गलती करके कष्ट उठाने वाला व्यक्ति यदि दूसरे को दोष दे तो.
ओछा आते भी काटे और जाते भी काटे. दुष्ट सुनार लेते समय भी कम तौलता है और देते समय भी.
ओछा आदमी निहोरे करने पर ज्यादा नखरे दिखाता है. ओछे आदमी से यदि किसी काम के लिए मनुहार करो तो वह और अधिक नखरे दिखाता है.
ओछा ठाकुर मुजरे का भूखा. मुजरा – झुक कर सलाम करना. ठाकुर से तात्पर्य यहाँ सामंतशाही व्यवस्था के उन बड़े लोगों से है जो जनता को गुलाम बना कर रखना चाहते थे.
ओछा बनिया, गोद का छोरा, ओछे की प्रीत, बालू की भीत, कभी सुख नहीं देते. दुष्ट बनिया, गोद लिया हुआ लड़का, नीच व्यक्ति से प्रेम और बालू से बनी दीवार, कभी सुख नहीं देते,
ओछी पूंजी, खसमो खाए. गलत तरीके से कमाया गया धन व्यक्ति का सर्वनाश कर देता है. (खसम – स्वामी)
ओछी रांड उधार गिनावे. निकृष्ट किस्म की स्त्रियाँ हर समय अपने द्वारा किए गये एहसान गिनाती रहती हैं.
ओछी लकड़ी झाऊ की, बिन बयार फर्राए, ओछों के संग बैठ के, सुघड़ों की पत जाए. झाऊ का एक पेड़ होता है जो बिना हवा चले ही आवाज करता है, मतलब पेड़ बिना बात आवाज़ कर रहा है और हवा का नाम बदनाम हो रहा है. ओछे लोगों के साथ बैठ कर अच्छे लोगों का सम्मान कम होता है.
ओछे का ऋण नहिं खाए, अकुलीन की लड़की न ब्याहे. ओछे आदमी से ऋण नहीं लेना चाहिए, क्योंकि वह मौके बेमौके तकादा कर के परेशान करता है, नीचे कुल की लड़की से विवाह करने से वंश बिगड़ता है.
ओछे की प्रीत, कटारी को मरबो. ओछे मनुष्य की प्रीति और कटारी से मरना दोनों समान होते हैं.
ओछे की यारी, गधे की सवारी. ओछे से दोस्ती करोगे तो कभी न कभी ऐसे फंसोगे कि मुँह काला कर के गधे पर चढ़ा कर घुमाया जाएगा. रूपान्तर – ओछे की प्रीत, बालू की भीत.
ओछे की सेवा, नाम मिले न मेवा. ओछे आदमी की सेवा करने से कोई लाभ नहीं है. न तो नाम होगा और न ही कोई इनाम मिलेगा.
ओछे के घर खाना, जनम जनम का ताना. छोटी सोच वाले व्यक्ति से किसी प्रकार का सम्बन्ध नहीं रखना चाहिए. इसमें बदनामी होती है और ताने सुनने पड़ते हैं.
ओछे के पेट में बड़ी बात नहीं पचती. ओछी बुद्धि वाले व्यक्ति के पेट में कोई बात नहीं पचती इसलिए उस को कोई महत्वपूर्ण या रहस्य की बात नहीं बतानी चाहिए.
ओछे के सर का जुआँ इतराए. ओछा हाकिम स्वयं तो अत्यधिक इतराता ही है उसके घर के सदस्य और नौकर चाकर भी अपने आपको तीसमारखां समझते हैं.
ओछे को संग, रहिमन तजो अंगार ज्यों. ओछे आदमी की संगत को उसी प्रकार छोड़ देना चाहिए जैसे हाथ में यदि अंगारा आ जाए तो तुरंत हाथ झटक के छोड़ देते हैं.
ओछे नर के पेट में रहे न मोटी बात, आध सेर के पात्र में कैसे सेर समात. आमतौर पर इसका बाद वाला हिस्सा ही बोला जाता है. अर्थ है कि किसी मूर्ख व्यक्ति में अधिक ज्ञान कहाँ से समा सकता है, या ओछा अधिक आदमी धन पाने पर इतराने लगता है.
ओछे पर एहसान करना, जैसे बालू में मूतना. बालू में पेशाब करने पर उसका निशान नहीं पड़ता इसी प्रकार ओछे व्यक्ति का कितना भी बड़ा काम करो वह उसका एहसान नहीं मानता.
ओछो मन्त्री राजै नासै, ताल बिनासै काई, सुक्ख साहिबी फूट बिनासै, घग्घा पैर बिवाई. ओछा मंत्री राज्य का विनाश कर देता है, तालाब को काई बिगाड़ देती है, राज्य और शासन को आपसी फूट खत्म कर देती है और बिबाई पैर को बेकार कर देती है.
ओछों के ढिंग बैठ कर अपनी भी पत जाए. ओछे व्यक्तियों के साथ बैठ कर अपना स्वयं का मान सम्मान कम होता है.
ओझा कमिया, बैद किसान, आँड़ बैल अर खेत मसान. ओझागिरी करने वाला हलवाहा, वैद्य किसान, बिना बधिया किया बैल (सांड), और श्मशान का खेत, ये चारों विपत्ति के कारण होते हैं.
ओझा पूछे भूत, बैद पूछे रोग. किसी बीमार को ले कर ओझा के पास जाओ तो वह भूत प्रेत की बात करता है और वैद्य के पास जाओ तो वह शारीरिक बीमारी के लक्षण पूछता है.
ओढ़नी की बतास (हवा) लगी. स्त्री की गुलामी करने लगा. (कहते हैं– फलाने को ओढ़नी की हवा लग गई है).
ओनामासी धम बाप पढ़े न हम. ॐ नम: सिद्धं का अपभ्रंश. जो बच्चे पढ़ने से जी चुराते हैं उन के लिए.
ओलती का पानी मंगरे पर नहीं चढ़ता. ओलती – छप्पर का किनारा जहाँ से वारिश का पानी नीचे गिरता है. मंगरा – छत या छप्पर का ऊपरी भाग. कोई उलटी बात कर रहा हो तो उसे समझाने के लिए.
ओलती तले का भूत, सत्तर पुरखों का नाम जाने. घर के अन्दर का आदमी घर का सब हाल जानता है.
ओलों का मारा खेत, बाकी का मारा गाँव और चिलम का मारा चूल्हा कभी न पनपें. जो फसल ओले गिरने से बर्बाद हुई हो, जिस गाँव ने लगान न दी हो और जिस चूल्हे से कोयले निकाल कर बार बार चिलम भरी जाती हो, वे कभी नहीं पनपते.
ओस चाटे प्यास नहीं बुझती. कहावत का अर्थ है किसी को आवश्यकता से बहुत कम चीज़ मुहैया कराना. रूपान्तर – होंठ चाटने से प्यास नहीं बुझती.
ओस से घड़े नहीं भरते. अत्यंत सीमित साधनों से बड़े कार्य नहीं किए जा सकते.
औंघते को ठेलने का सहारा. जरा सी सलाह से असमंजस दूर हो जाना. जो आदमी सोया हो उसे तो जोर से धक्का दे कर उठाना पड़ता है पर जो ऊंघ रहा हो वह हलके से ठेलने से ही सावधान हो जाता है.
औंधी खोपड़ी उल्टा मत. मूर्ख का विचार उल्टा ही होता है.
औंधे घड़े का पानी, मूरख की कही कहानी. जिस प्रकार उलटे रखे हुए घड़े में पानी नहीं होता उसी प्रकार मूर्ख की बात में कोई सार नहीं होता.
औंधे मुँह गिरे तो दंडवत. कोई किसी के सामने अचानक औंधे मुँह गिर पड़ा तो बोला कि मैं दंडवत कर रहा हूँ. बिगड़े हुए काम को संभालने की चतुराई. अचानक आई परेशानी से भी लाभ उठाने की कला.
औगुन ऊपर गुण करे, ताको नाम सपूत. सबसे श्रेष्ठ आदमी वही है जो बुराई का बदला भलाई से दे.
औघट चले न चौपट गिरे. बहुत तेज या गलत तरीके से चलोगे तो धड़ाम से गिरोगे. गलत काम नहीं करोगे तो नुकसान होने का डर नहीं होगा.
और किसहू की भूख न जानें, अपनी भूख आटा सानें. स्वार्थी व्यक्ति के लिए. और किसी की भूख की परवाह नहीं है, खुद को भूख लगी तो आटा मलने चले.
और की औषध है सजनी, सुभाव की औषध है न कछू. और बहुत सी बातों का इलाज है पर गलत स्वभाव का कोई इलाज नहीं है.
और की बुराई, अपने आगे आई. 1. किसी और द्वारा किये गये गलत काम का फल हमको मिला. 2. हमने दूसरे का बुरा किया वही बाद में हमारे आगे आया.
और दिन खीर पूड़ी, परब के दिन दांत निपोड़ी. सामान्य दिनों में इतने गुलछर्रे उड़ाना कि त्यौहार के दिन जेब खाली रहे. (दांत निपोड़ना – खिसियाहट भरी हंसी हँसना).
और बात खोटी, सही दाल रोटी. मनुष्य की सबसे प्रधान आवश्यकता भोजन है. जब तक पेट न भरे सारे
औरत का काम प्यारा होता है चाम नहीं (चाम से क्या प्रीत, काम से प्रीत). स्त्री की सुन्दरता कुछ दिन तक सब को आकर्षित कर सकती है, अंततः उस का आदर उस के काम से ही होता है.
औरत का खसम मर्द, मर्द का खसम रोज़गार. स्त्री का सहारा उसका पति होता है और पति का सहारा उसका रोज़गार जिससे वह घर चलाता है.
औरत किसकी, जो पास रखे उसकी. स्त्री उसी को अपना समझती है जो सब प्रकार से उसका ध्यान रखे.
औरत की जात, केरा के पात. स्त्री जाति केले के पत्ते के समान कोमल होती है.
औरतों की मति चोटी में होती है. किसी दिलजले मर्द का कथन.
औरों की नजर इधर उधर, चोर की नजर बकरी पर. चोर का ध्यान केवल उसी चीज़ पर रहता है जिसे वह चुराना चाहता है.
औरों को नसीहत, खुद मियां फजीहत. खुद गलत काम करना व औरों को उपदेश देना.
औषध बाको दीजिये, जाके रोग शरीर. जिसको कोई बीमारी हो उसी को दवा देनी चाहिए.
औसत मेरा ज्यों का त्यों, कुनबा मेरा डूबा क्यों. किसी पढ़े लिखे मूर्ख व्यक्ति द्वारा बिना बुद्धि का प्रयोग किए किताबी ज्ञान द्वारा कोई काम करने पर यह कहावत प्रयोग करते हैं. सन्दर्भ कथा – गणित के एक शिक्षक अपने परिवार के साथ एक छोटी नदी पार कर रहे थे. नदी के बीच में पहुँचे तो पत्नी ने कहा, सुनो नदी गहरी है, कहीं हम डूब तो नहीं जाएंगे. इस पर उन्होंने फीता निकाल कर नदी की गहराई नापी जो चार फुट थी. फिर उन्होंने अपनी, अपनी पत्नी की और बच्चों की लम्बाई नाप कर उसका औसत निकाला तो साढ़े चार फुट आया. उन्होंने सोचा सब निकल जाएंगे.
परिवार जब नदी पार करने लगा तो पत्नी और बच्चे डूबने लगे. किनारे बैठे लोगों ने उन्हें बचाया. शिक्षक महोदय ने किनारे पहुँच कर सोचा कि हिसाब लगाने में कोई गलती तो नहीं हुई. फिर हिसाब जोड़ा तो वही साढ़े चार फुट आया. किसी पढ़े लिखे मूर्ख व्यक्ति द्वारा बिना बुद्धि का प्रयोग किए किताबी ज्ञान द्वारा कोई काम करने पर यह कहावत प्रयोग करते हैं.
औसर का चूका आदमी और डाल का चूका बन्दर फिर नहीं संभलते. बन्दर अक्सर एक डाल से दूसरी पर छलांग लगाते हैं. अगर कोई बन्दर डाल पकड़ने में चूक जाए तो संभल नहीं सकता. इसी का उदाहरण दे कर बताया गया है कि कोई व्यक्ति एक बार अवसर का लाभ उठाने से चूक जाए तो फिर वह अवसर हाथ नहीं आता.
औसर के गीत औसर पे गाये जात. अवसर के अनुकूल ही काम अच्छा लगता है
औसर चूकी डोमनी, गावे ताल बेताल. यदि अवसर हाथ से निकल जाए तो व्यक्ति अत्यधिक परेशानी उठाता है. सन्दर्भ कथा – डोमनियां डोम जाति की स्त्रियां होती हैं, जो शादी-ब्याह में लोगों के घर जाकर गाती-बजाती हैं और उसके लिए इनाम पाती हैं. अगर डोमनी मौके पर न पहुँच कर देर से पहुँचती है तो उसे इनाम नहीं मिलता. वह वहाँ इनाम लेने की जिद करती है और अंट शंट व बेसुरा गाने लगती है. कोई मौका हाथ से निकल जाने पर आदमी का दिमाग सही न रहे और वह अंड बंड काम करने लगे तब यह कहावत कही जाती है
औसर चूके, जगत थूके. यदि व्यक्ति सही अवसर पर चूक जाता है तो सभी उसकी थुक्का फजीहत करते हैं.
क
कंकड़ बीनते हीरा मिला. किसी बहुत छोटे काम को करते समय बड़ा लाभ हो जाना.
कंकड़ से गाड़ी अटक गई. नाम मात्र की बाधा से कार्य की प्रगति रुक गयी.
कंगाल का कलेजा कच्चा. गरीब बेचारा हर समय डर डर के जीता है.
कंगाल की छोरी और लड्डू के लिए रूठे. व्यक्ति को उसी चीज की मांग करनी चाहिए जो उस की पहुँच में हो.
कंगाल को महुआ मीठा. गरीब आदमी को जो भी खाने को मिल जाए उसी में आनंद अनुभव करता है.
कंगाल छैल गाँव को भारी. जिसके पास पैसे न हों और तरह तरह के शौक करना चाहता हो वह चोरी ठगी करके अपने शौक पूरे करता है इसलिए सारे समाज के लिए बोझ बन जाता है.
कंगाली (गरीबी) में आटा गीला. एक अत्यधिक गरीब व्यक्ति बहुत मुश्किल से आटा ले कर आता है लेकिन पानी गिरने से वह आटा बेकार हो जाता है. कोई व्यक्ति पहले से ही मुश्किल में हों और ऊपर से कोई और परेशानी खड़ी हो जाए तो यह कहावत कही जाती है.
कंचन जैसी ऊजली उत्तर बीच सुहाए, अग्गम देवे सूचना बेगी बरखा आए. यदि उत्तर दिशा में बादलों के बीच बिजली चमकती हो तो अच्छी वर्षा होने की संभावना होती है.
कंजड़ की कुतिया कहाँ जा के ब्याहेगी. राजस्थान की घुमंतू जाति के लोगों को कंजड़ भी कहते हैं. उनका कोई एक ठिकाना नहीं होता यह बताने के लिए मजाक में इस प्रकार से कहा गया है.
कंजूस कै धन सैतान खात. कंजूस के धन का इस्तेमाल कोई दूसरा दुष्ट व्यक्ति करता है, या बेकार जाता है.
कंठ मिलावै पिय को लाई, कांधे पड़य विजय दरसाई. कवि भड्डरी कहते हैं छिपकली यदि कंठ के ऊपर गिरती है तो प्रियतम से मिलन होता है, यदि कंधे के ऊपर गिरती है तो यह जीत होने का लक्षण है.
कंठी टीका मधुरी बानी, दगाबाज़ की यही निशानी. जो व्यक्ति गले में कंठी पहने हो, टीका लगाए हो और मीठा बोल रहा हो उससे सावधान रहिए.
कंडा कंडा जोड़े बिटौरा जुरत. बिटौरा – कंडों का ढेर. थोड़ा-थोड़ा इकट्ठा करके बहुत हो जाता है.
कंत न पूछे बात, मेरा धरा सुहागन नाम. कंत – पति. जब किसी घर, विभाग या संगठन में किसी व्यक्ति की पूछ न हो रही हो और फिर भी वह अपना महत्त्व जताने की कोशिश करे तो.
कंह कुम्भज, कंह सिन्धु अपारा. अगस्त्य मुनि को कुम्भ (घड़े) से उत्पन्न हुआ माना जाता है. उन के विषय में कहा जाता है कि उनहोंने समुद्र को पी लिया था. उन्हीं के ऊपर कहावत बनी है कि कहाँ एक मनुष्य और कहाँ अथाह समुद्र. कोई मनुष्य कोई असंभव सा लगने वाला काम करे या करने जा रहा हो तो ऐसा बोलते हैं.
क ख ग के लूर ना, दे माई पोथी. (भोजपुरी कहावत) क ख ग जानते नहीं हैं और पोथी पढ़ने को मांग रहे हैं. जिस चीज को प्रयोग करना नहीं आता उस की मांग करना.
ककड़ी के चोर को कनेठी ही काफी है. कनेठी – कान उमेठना. छोटी चोरी के लिए छोटी सी सजा पर्याप्त है. रूपान्तर – ककड़ी के चोर को लकड़ी. छोटे अपराध के लिए छोटी सी सजा (लाठी से पिटाई) ही काफी है.
ककड़ी के चोर को फांसी नहीं दी जाती. छोटे अपराध के लिए बड़ी सजा नहीं दी जाती. देखिए सन्दर्भ कथा 85.
कचरे से कचरा बढ़े. जहाँ एक बार कूड़ा डालना शुरू कर दो वहाँ और कूड़ा पड़ने लगता है.
कचहरी में दीवार भी हाथ फैलाती है. न्यायालयों में व्याप्त भ्रष्टाचार पर व्यंग्य.
कच्चा तो कचौड़ी मांगे, पूरी मांगे पूरा, नोन मिर्च तो कायस्थ मांगे, बामन मांगे बूरा. कच्चा माने छोटी उम्र का बालक, पूरा माने वयस्क. बालक कचौड़ी मांगता है, वयस्क पूड़ी खाना चाहता है, कायस्थ को मिर्च मसाले पसंद आते हैं और ब्राह्मण मीठे से प्रसन्न होता है. (ब्राह्मणं मधुर: प्रियं)
कच्ची कली कनेर की तोड़त ही कुम्हलाए. जो बच्चे बहुत नाजों से पले होते हैं वे थोड़े से कष्ट से ही विचलित हो जाते हैं.
कच्ची शीशी मत भरो, जिसमें पड़ीं लकीर, बालेपन की आशिकी गले पड़ी जंजीर. बहुत छोटी आयु में इश्क प्रेम के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए.
कच्चे घड़े में पानी नहीं भर सकता. अपरिपक्व व्यक्ति कोई सार्थक कार्य नहीं कर सकता.
कच्चे बांस का लवेदा. कमजोर साधन. लवेदा – डंडा.
कछु इन मूँछन की निभाओ. पति पत्नी से कह रहा है कि कुछ हमारी भी लाज रख लो.
कछु कहि नीच न छेड़िए, भलो न वाको संग, पाथर डारै कीच मैं, उछरि बिगारै अंग. नीच को छेड़ने में अपने मान सम्मान को ही खतरा होता है. कीचड़ में पत्थर फेंको तो अपने ऊपर छींटें आती हैं.
कछु दिन जदपि लुभत संसार, सदा न निभे कपट व्यौहार. कपट पूर्ण व्यवहार कर के कुछ दिन आप संसार को लुभा सकते हैं लेकिन अंत में भेद खुल ही जाता है.
कछु बसाय नहि सबल सों, करै निबल पर जोर, चलै न अचल उखारि तरु, डारत पवन झकोर. शक्तिशाली पर बस न चले तो दुर्बल पर सब जोर दिखाते हैं. पवन पर्वत को नहीं हिला सकता तो वृक्षों को ही उखाड़ देता है.
कछुए का काटा कठौती से डरे. कठौती – काठ का बर्तन जिस में पानी भर कर रखते हैं. किसी को कछुए ने काट लिया हो तो वह पानी भरे बर्तन से डरने लगता है.
कज़ा के आगे हकीम अहमक. किसी की मौत आ गई हो तो हकीम की क्या हैसियत है.
कटखनी कुतिया मखमल की झूल. कोई बदतमीज आदमी बड़ा हाकिम बन जाए तो.
कटखनी कुतिया मरखनी गाय, उस के द्वारे कोई न जाय. जिस के घर में काट खाने वाली कुतिया हो और सींग या लात मारने वाली गाय हो, उस के घर जाने से बचना चाहिए.
कटड़े की मां तलै नौ मन दूध, पर कटड़े का क्या. (हरयाणवी कहावत) गाय के थनों में नौ मन दूध है पर कटड़े को उस का कोई लाभ नहीं मिलता. कोई बड़ा आदमी अपने घर वालों के काम न आता हो तो.
कटरे धोए कहीं बछड़े हुआ करें. भैंस के बच्चे को कितना भी रगड़ रगड़ कर धो लो वह गाय का बछड़ा नहीं बन सकता. कितना भी प्रयास कर लीजिए अयोग्य व्यक्ति को योग्य नहीं बना सकते.
कटे पे नोन मिर्च मत बुरको. जले को और मत जलाओ.
कड़की कहीं और गिरी कहीं. बिजली कहीं कड़कती है और कहीं गिरती है. अनिष्ट की आशंका कहीं और थी और हो कहीं और गया. कर्कशा स्त्रियों का मजाक उड़ाने के लिए भी ऐसे बोलते हैं.
कड़वा बोली माई, मीठा बोले लोग, सच कहती थी माई, झूठ कहे थे लोग. माँ जब बचपन में डांटती थी तो उस की बात बहुत कड़वी लगती थी और अन्य लोगों की बातें अच्छी लगती थीं. बड़े हो कर समझ में आया कि माँ सच कहती थी और बाकी लोग झूठ बोलते थे.
कड़वी बात भी हँस कर कही जाय, तो मीठी हो जाती है. अर्थ स्पष्ट है. समझ सकें तो बहुत उपयोगी बात है.
कड़वी बेल की कड़वी तूमड़ी, अडसठ तीर्थ नहाई, गंग नहाई गोमती नहाई मिटी नहीं कड़वाई. तूमड़ी एक लौकी के समान फल होता है जिस को सुखा कर सन्यासी लोग कमंडल बना लेते हैं. सन्यासी के साथ तूमड़ी भी सब तीर्थों के जल में डुबकी लगा लेती है लेकिन उसकी कड़वाहट नहीं जाती. कहावत का अर्थ है कि अच्छी संगत पा कर और तीर्थ यात्रा कर के भी दुष्टों का स्वभाव नहीं बदलता. (देखिये परिशिष्ट).
कडवी बेल की तूमड़ी उस से भी कड़वी. किसी निम्न श्रेणी के झगड़ालू परिवार का कोई व्यक्ति और अधिक झगड़ालू हो तो.
कड़वी बेल तेज़ी से बढती है. जिस में बहुत से अवगुण हों वह तेजी से बढ़ता है. इंग्लिश में कहते हैं – An ill weed grows apace.
कड़वी भेषज बिन पिए, मिटे न तन का ताप. बुखार कड़वी दवा से ही उतरता है. किसी भी परेशानी को हल करने के लिए कुछ कष्ट उठाना पड़ता है.
कड़ी काट बेलन बनाया. पहले के मकानों में लकड़ी की छतें हुआ करती थीं. उन में लम्बी मजबूत लकडियाँ (कड़ियां) एक दीवार से दूसरी दीवार तक लगाते थे और उन पर तख्ते लगा कर छत बनाते थे. बेलन जैसी छोटी सी चीज़ को बनाने के लिए कड़ी जैसी बड़ी चीज़ को काट कर बर्बाद करना अर्थात बहुत मूर्खता पूर्ण कार्य.
कड़ुआ स्वभाव, डूबती नाव. जिस को मीठा बोलना न आता हो वह किसी काम में सफल नहीं हो सकता.
कड़ुए से मिल के रहो, मीठे से डर के रहो. कड़वा आदमी खरी लेकिन भले की बात कहता है. मीठा आदमी मीठी लगने वाली लेकिन झूठी बात कह कर आपको खुश करता है और आपको नुकसान पहुँचा सकता है.
कड़ेरे के ब्याह, कुँदेरो हात जोरत फिरे. कड़ेरा – हथियार बनाने वाली जाति, कुंदेरा – खराद आदि का काम
करने वाला व्यक्ति. कड़ेरे के यहाँ शादी और कुँदेरा हाथ जोड़ता फिर रहा है. बेमेल काम. रूपान्तर – कोरी का ब्याह, कड़ेरा हाथ जोड़े फिरे. कोरी – बुनकर.
कड़ेरे के लड़का, कुँदेरे को बधाई. कड़ेरे के घर बेटा हुआ और बधाई कुंदेरे को दे रहे हैं. बेमेल काम.
कढ़ाई से निकले चूल्हे में पड़े (तवे से उतरी, चूल्हे में पड़ी), (खटाई से निकले अमचूर में पड़े). एक मुसीबत से निकल कर दूसरी में पड़ जाना. इंग्लिश में कहावत है – Out of frying pan, into the fire.
कढ़ी हमें खान दो के फैलान दो. हमें नहीं मिलेगा तो हम किसी को नहीं मिलने देंगे. जबर्दस्ती गले पड़ना.
कण कण भीतर राम जी, ज्यूँ चकमक में आग. चकमक पत्थर को रगड़ने से आग निकलती है पर ऊपर से आग नहीं दिखती. इसी प्रकार कण कण में राम हैं जिन्हें हम देख नहीं पाते.
कण थोड़े और कंकड़ ज्यादा (कन थोड़ा कांकर घना). अनाज के दाने कम और कंकड़ ज्यादा. उपयोगी वस्तुएं कम और फ़ालतू चीजें अधिक. मतलब की बात कम और व्यर्थ की बकवास अधिक
कतवारी को सुधरे, बतवारी को बिगड़े. कतवारी – सूत कातने वाली (यहाँ काम करने वाली स्त्री से तात्पर्य है), बतवारी – बातें बनाने वाली. काम काज करने वाली स्त्री के बच्चे अच्छे निकलते हैं और बातें बनाने वाली व काम न करने वाली स्त्री के बच्चे बिगड़ जाते हैं.
कत्त्थर गुद्दर सोवैं, मरजादी बैठे रोवैं. मरजादी – प्रतिष्ठित व्यक्ति (मर्यादा से बना है). कथरी गुदड़ी ओढ़ने वाला आराम से सो रहा है लेकिन फैशन करने वाला परेशान बैठा है. अर्थ है कि सादा जीवन जीने वाले सुखी रहते हैं.
कथनी मीठी खांड़ सी, करनी विष की लोय. जो बातें मीठी मीठी करे और पीठ में छुरा भोंके.
कथनी से करनी भली. केवल कहते रहने से कर के दिखाना बेहतर है. इंग्लिश में कहावत है – Actions speak louder than the words. रूपान्तर – कथनी से करनी बड़ी.
कथनी से न बहक, करनी को परख. कोई व्यक्ति बढ़ चढ़ कर बातें हांक रहा हो तो फौरन उस का विश्वास न करके उसके कृतित्व को देखना चाहिए.
कथरी ओढ़ के घी पिया. ऊपर से गरीबी का प्रदर्शन करना और अंदर ठाठ से रहना.
कथा सुनी भागवत सुनी, भौत भई खुसी, हृदय ज्ञान लागो नहीं, चिन्ता राँड़ घुसी. सांसारिक चिन्ताओं से ग्रस्त आदमी को ज्ञान की कोई बात नहीं सुहाती.
कदम कदम पर कुनबा डूबे, आगे धरमराज दरबार. किसी काम में कदम कदम पर बाधाएं आने के कारण नुकसान हो रहा है, और आगे काम पूरा करके हिसाब देना है.
कदली और काँटों में कैसी प्रीत. केले और काँटों में प्रेम नहीं हो सकता. कांटे की प्रवृत्ति यही है कि वह केले को चुभ कर कष्ट पहुंचाएगा. (कह रहीम कैसे निभे केर बेर को संग)
कदली काटे ही फले. केले का पेड़ काटने के बाद ही फल देता है. मूर्ख व दुष्ट व्यक्ति दंड मिलने पर ही कार्य करते हैं.
कदली, सीप, भुजंग मुख, स्वाति एक गुण तीन. स्वाति नक्षत्र की बूंद केले पर गिरती है तो कपूर बनती है, सीप में गिरे तो मोती और सांप के मुँह में गिरे तो विष बनती है. अर्थात संगत से ही सब कुछ होता है. रूपांतर – स्वाति बूंद सीपी मुकुत, कदली भयो कपूर, कारे के मुख बिख भयो, संगति सोभा सूर.
कद्र उल्लू की उल्लू जानता है. मूर्ख आदमी की कद्र मूर्ख ही कर सकता है.
कद्र खो देता है रोज का आना जाना. बार बार कहीं जाने से आदमी की कद्र कम हो जाती है. संस्कृत में कहावत है – अति परिचयादवज्ञा सतत गमनमनादरो सन्ति.
कद्रदान की जूतियाँ उठाइये, नाकद्रे को जूतियाँ मारने भी न जाइए. जो आपकी कद्र करता हो उसका हर काम करिए और जो कद्र न करता हो उसकी उपेक्षा कीजिए.
कन कन जोड़े मन जुड़े, खावत निबड़े सोय. एक एक कण जोड़ने से एक मन (चालीस सेर) इकठ्ठा हो सकता है. थोड़ा थोड़ा जोड़ने से बड़ी राशि इकठ्ठी की जा सकती है. लेकिन बैठ कर खाने से सब समाप्त हो जाता है.
कन का चोर सो मन का चोर. चोर तो चोर है, कण भर चुराए या मन भर (चालीस सेर) चुराए.
कनक कनक तें सौ गुनी मादकता अधिकाय, वा खाये बौराय जग, या पाये बौराय. कनक– धतूरा, कनक– सोना. सोने में धतूरे से सौ गुना नशा है. धतूरे को खा कर आदमी बौराता है, सोने को तो पा कर ही बौरा जाता है.
कनखजूरे का एक पैर टूटने से वह लंगड़ा नहीं हो जाता (कनखजूरे के कै पाँव टूटेंगे). कनखजूरे के सैकड़ों पैर होते हैं, दो चार टूट जाएंगे तो क्या फर्क पड़ेगा. बहुत धनी व्यक्ति को थोड़ा बहुत नुकसान भी हो जाएगा तो उसे कोई फर्क नहीं पड़ता. कनखजूरे के चित्र के लिए देखिए परिशिष्ट.
कनवा पांडे पांय लागूं (काणे दादा पांय लागूँ), वोहे लड़ाई के लच्छन. काने को काना कह के पुकारोगे तो लड़ाई तो होगी ही. किसी को उसकी कमी के बारे में सीधे सीधे नहीं बताना चाहिए.
कनवा बैल बयारे सनके. कनवा – काना, बयारे – हवा चलने से. काना बैल ठीक से देख नहीं पाता इसलिए हवा चलने से ही बिदक जाता है. जो व्यक्ति सही गलत में भेद नहीं कर सकता वह बिना कारण के सनक जाता है.
कनवा से कनवा नहीं कहा जात. किसी को उसके मुँह पर उसकी कमी नहीं बताना चाहिए.
कन्या कानें जाड़, हथिया हस्ते जाड़, चित्रा चित्ते जाड़. जाड़े की तीव्रता राशि नक्षत्रों के अनुसार अलग अलग होती है. कन्याराशि के समय कानों में, हस्ति के समय हाथों में और चित्रा के समय चित्त (हृदय) में जाड़ा लगता है.
कन्या की बुआ और वर की मौसी. दोनों पक्षों से सम्बन्ध बताने वाले चतुर व्यक्ति के लिए.
कपटी की प्रीत, मरन की रीत. कपटी व्यक्ति से प्रेम करने पर बहुत कष्ट उठाना पड़ता है.
कपड़ा कहे तू मेरी इज्जत रख, मैं तेरी इज्जत रखूँ (कुल और कपड़ा रखने से रहें). कपड़े को संभाल कर रखा जाए व पहना जाए तो वह व्यक्ति की शोभा बढ़ाता है. रूपांतर – कपड़ा कहे तू मुझे कर तह, मैं तुझे दूँ शह.
कपड़ा पहने तीन वार, बुध, बृहस्पत, शुक्करवार. पुराने लोग मानते थे कि नए कपड़े को पहली बार इन तीन में से किसी दिन ही पहनना चाहिए.
कपड़ा मत देख मिजाज देख, देह मत देख दिमाग देख. किसी के कपड़े देख कर उसका आकलन नहीं करना चाहिए आचार व्यवहार देखना चाहिए एवं शरीर न देख कर बुद्धिमत्ता देखना चाहिए.
कपड़े का पेट बड़ा. कपड़े के व्यापार में अधिक मुनाफे की गुंजाइश होती है.
कपड़े फटे हैं तो क्या, घर दिल्ली है. वास्तविकता कुछ भी हो अपने को बड़ा बताने की कोशिश करना.
कपार फूटे तो फूटे, पेट न फूटे. चोरों को सिखाया जाता है कि कितनी भी मार कुटाई हो भेद नहीं बताना है.
कपास के खेत में गीदड़ गया, क्या ओढ़ेगा और क्या पहनेगा. वस्तु कितनी भी मूल्यवान क्यों न हो, जो उस का उपयोग नहीं कर सकता उसके लिए तो बेकार ही है.
कपास तो ओंटने को बनो. कपास तो ओटे जाने के लिए ही बना है. दीन-हीन तो पीड़ित होने के लिए ही बने हैं.
कपूत कलाल के जावे और सपूत सुनार के. कपूत कलाल के यहाँ जा कर शराब पीने में पैसे उड़ाते हैं और सपूत सुनार के यहाँ जा कर गहने आदि बनवाते हैं जिनसे बरक्कत होती है.
कपूत न जायो भलो, न आयो. कुपुत्र न तो पैदा किया अच्छा होता है न गोद लिया हुआ. जाया – पैदा किया हुआ. आया – गोद लिया हुआ.
कपूत बेटा मरा भला. कपूत बेटा कष्ट और बदनामी ही देगा इसलिए उस का मर जाना अच्छा.
कपूत भी अरथी में कंधा देता है. कुपुत्र भी कभी न कभी काम आता है.
कपूत से तो निपूती भली. पुत्र कुपुत्र निकल जाए इससे तो निस्संतान होना अच्छा.
कपूतन से पिंड की आस. पुत्र अयोग्य हो तो भी उससे मरणोपरांत पिंडदान की आशा तो रहती है.
कपूतों की अलग बस्ती नहीं होती. समाज में अच्छे और बुरे लोग एक साथ मिल कर रहते हैं.
कफन में जेब ना दफन में मेव. ज्यादा जोड़ कर कहाँ ले जाओगे, कफन में जेब नहीं होती और कब्र की दीवार में आले नहीं होते.
कब दादा मरेंगे कब बेल बंटेगी. बेल एक तरह का नेग होता है जो गमी के अवसर पर नाई इत्यादि को दिया जाता है. किसी एक कार्य की वज़ह से बहुत से काम अटके पड़े हों तो.
कब नटनी बांस चढ़े, कब भोजन पावे. मेहनतकश व्यक्ति मेहनत करके ही जी सकता है.
कब बाँझ ब्यावे और कब ढोल बाजे. ऐसा काम जिसके कभी होने की उम्मीद ही न हो.
कब मरे कब कीड़े पड़ें. दिल से निकली हुई बद्दुआ.
कब मुआ, कब राक्षस हुआ. किसी बहुत दुष्ट आदमी को कोसने के लिए कहे जाने वाले शब्द.
कब से भैया राजा भये, कोदों के दिन बिसर गए. कोदों एक घटिया अनाज है जिसे गरीब लोग खाते हैं. कोई मामूली व्यक्ति बड़ा आदमी बन जाए और अपने पुराने दिन भूल जाए तो लोग ऐसा बोलते हैं.
कबड्डी का खेल, नीम का तेल. नीम का तेल जैसे रोग निवारक होता और लाभदायक है, उसी तरह कबड्डी का खेल भी लाभदायक होता है.
कबहुं न धावे स्यार पर, बरु भूखो मृगराज. धावे – दौड़े, मृगराज – सिंह. शेर कितना भी भूखा क्यों न हो, सियार का शिकार नहीं करता. ऊंची प्रकृति के लोग निम्न कार्य नहीं करते.
कबहूँ नाहीं होते दूबर, रसोई के बामन, कसाई के कूकर. दूबर – दुर्बल. रसोइये का काम करने वाला ब्राह्मण और कसाई का कुत्ता कभी दुबले नहीं होते, क्योंकि उन्हें खूब खाने को मिलता है.
कबाड़ी के छप्पर पर फूस नहीं. जिस चीज़ की बहुतायत होनी चाहिए उसी का अकाल.
कबाब में हड्डी. अवांछनीय व्यक्ति. मांस को बारीक पीस कर उससे कबाब बनाए जाते हैं जो कि बहुत मुलायम होते हैं, यदि उस में हड्डी का टुकड़ा आ जाए तो कबाब का सारा मज़ा खराब कर देता है.
कबिरा आप ठगाइए, और न ठगिए कोय, आप ठगे सुख होत है, और ठगे दुख होय. कबीर कहते हैं कि कभी किसी को धोखा मत दो, चाहे आपको कोई ठग ले. इंग्लिश में कहावत है – Better suffer ill than do ill.
कबिरा खड़ा बाजार में लिए लुकाठी हाथ, जो घर फूंके आपना चले हमारे साथ. कबीर दास कहते हैं कि उनके साथ भक्ति के मार्ग पर चलना है तो अपनी गृहस्थी बर्बाद करनी पड़ेगी.
कबिरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर, ना काहू से दोस्ती, न काहू से बैर. इस संसार में आकर कबीर बस यही चाहते हैं कि सबका भला हो. न किसी से अनावश्यक दोस्ती करते हैं न दुश्मनी.
कबिरा गरब न कीजिए, कबहूँ न हंसिए कोय (अजहूँ नाव समुद्र में क्या जाने क्या होय). हम को अपने धन या पद पर कभी घमंड नहीं करना चाहिए और किसी का उपहास नहीं करना चाहिए. संसार में रहते हुए किसी के साथ कभी भी कोई अनहोनी हो सकती है.
कबिरा जब पैदा हुए, जग हँस्या हम रोये, ऐसी करनी कर चलो, आप हँसे जग रोये. कबीर दास जी कहते हैं कि जब हम पैदा हुए थे उस समय सब खुश हुए और हम रो रहे थे. जीवन में कुछ ऐसा काम करके जाओ कि जब हम मरें तो दुनिया रोये और हम हँसें.
कबिरा यह संसार है, जैसो सेमल फूल, दिन दस के व्यवहार में, झूठे रंग न भूल. यह संसार सेमल के फूल की भांति रंग बिरंगा परन्तु क्षण भंगुर है इसलिए धनदौलत और उच्च पद पर अभिमान मत करो.
कबिरा ये घर प्रेम का खाला का घर नांहि. खाला – मौसी. मौसी का घर वह स्थान है जहाँ सब तरह का आराम मिलता है (अपने घर पर तो डांट भी पडती है). प्रभु की भक्ति करनी है तो यह समझ लो कि यह मौसी का घर नहीं है. यहाँ केवल ईश्वर से प्रेम ही करना है, सारे आराम भूल जाओ. इसकी अगली पंक्ति है – सीस उतारे भुईं धरे, तो पैठे घर मांहि. अपना सर उतार कर भूमि पर रखो (अपना अहम छोडो) तभी यहाँ बैठो.
कबिरा वो दिन याद कर पग ऊपर तल शीश, मृत्यु लोक में आनकर भूल गया जगदीश. कबीर कहते हैं कि जब तू माँ के गर्भ में था तो पैर ऊपर और सर नीचे कर के कष्ट में रह रहा था. अब मृत्युलोक में आ कर मोह माया में तू भगवान को ही भूल गया है.
कबिरा संगत साधु की ज्यों गंधी को बास, जो कुछ गंधी दे नहीं तो भी बास सुबास. साधु की संगत वैसी ही है जैसे सुगंध बेचने वाले के पास बैठना. गंधी कुछ न भी दे तो भी सुगंध आती है. उसी प्रकार साधु के साथ बैठने से सुविचार आते हैं.
कबिरा सोई पीर है जो जाने पर पीर, जो पर पीर न जानहीं सो काहे को पीर. मुसलमानों में कुछ लोगों को पीर (पहुँचे हुए संत) का दर्जा दिया जाता है. कबीर दास जी कहते हैं कि जो इंसान दूसरे की पीड़ा को समझता है वही पीर है. जो दूसरे की पीड़ा ना समझ सके वह कैसा संत. पीर – पीड़ा.
कबीर कहा गरबियौ, ऊंचे देखि आवास, काल्हि परयौ भू लेटना ऊपरि जामे घास. कबीर कहते है कि ऊंचे भवनों को देख कर क्या गर्व करते हो. कल आप धरती पर लेट जाएंगे और ऊपर से घास उग आएगी.
कबीर पढ़िबा दूरि करि पुस्तक दे बहाइ, बाबन आखर सोधि करि ररै ममै चित लाइ. कबीर दास जी कहते हैं कि व्यर्थ की पढ़ाई बंद कर के केवल दो अक्षर ‘र’ और ‘म’ में मन लगाओ.
कबीर सो धन संचये, जो आगे को होय, सीस चढ़ाए पोटली, जात न देख्यो कोय. कबीर कहते हैं कि उस धन को इकट्ठा करो जो परलोक में काम आए. सर पर धन की गठरी बाँध कर ले जाते तो किसी को नहीं देखा.
कबीरदास की उलटी बान, मूते इन्द्री बांधे कान. कबीरदास जी कहते हैं कि दुनिया में सब उल्टा पुल्टा है, मूत्र विसर्जन तो जननेन्द्रिय करती है पर बाँधा कान को जाता है (जो लोग जनेऊ बांधते हैं वे पेशाब करते समय जनेऊ को कान पर बाँध लेते हैं).
कबीरदास की उलटी बानी, बरसे कंबल भीगे पानी. दुनिया का उल्टा चलन देख कर कबीरदास का व्यंग्य.
कबूतर को कुआं ही दीखता है. जो जहाँ सुरक्षित हो वहीं रहना चाहता है.
कब्जा सच्चा, मुकदमा झूठा. जायदाद पर किसी का कब्ज़ा हो तो आप बीसियों साल मुक़दमा लड़ कर भी उसे छुड़ा नहीं सकते. यह अपने देश की न्याय व्यवस्था पर बहुत सटीक व्यंग्य है.
कब्र का मुंह झाँक कर आए हैं. मौत के मुँह से निकल कर आए हैं. बहुत गंभीर बीमारी से ठीक होना.
कब्र का हाल मुर्दा ही जानता है. कोई व्यक्ति कितनी कठिन परिस्थितियों में रह रहा है इसके बारे में वही जान सकता है.
कब्र देख सब्र आवे. कब्रिस्तान में जा कर ही इंसान को जीवन की वास्तविकता का ज्ञान होता है.
कब्र पर कब्र नहीं बनती. पुराने लोगों का विचार था कि विधवा को विवाह नहीं करना चाहिए, इस आशय का कथन. दूसरा अर्थ यह हो सकता है कि क़र्ज़ से दबे आदमी को और क़र्ज़ नहीं देना चाहिए.
कब्र में छोटे बड़े सब बराबर. अपने जीवन काल में हमें घमंड नहीं करना चाहिए इस को याद दिलाने के लिए बताया गया है कि मरने के बाद सब बराबर हो जाते हैं.
कब्र में पैर लटकाए बैठे हैं. मृत्यु के करीब हैं.
कब्र में रख के खबर को न आया कोई, मुए का कोई नहीं जीते का सब कोई. अपने लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए पाप कर्म नहीं करना चाहिए, आपके मरने के बाद कोई सगा सम्बन्धी आपको याद नहीं करेगा.
कभी कभी तो गधे को भी गवास लगती है. किसी बहुत बेसुरे व्यक्ति का मजाक उड़ाने के लिए.
कभी कभी दर्द इलाज से बेहतर होता है. यदि इलाज बीमारी से अधिक कष्टदायक हो तो ऐसा सोचना पड़ता है. देश और समाज के सामने भी कभी कभी ऐसी समस्याएँ आती हैं.
कभी के दिन बड़े, कभी की रात. सब दिन एक से नहीं होते.
कभी घी घना, कभी मुठ्ठी चना, कभी वह भी मना. मनुष्य का भाग्य सदा एक सा नहीं रहता. कभी खूब घी, पकवान खाने को मिलते हैं, कभी मुट्ठी भर चने पर गुज़ारा करना पड़ता है और कभी वह भी नहीं मिलता.
कभी दूध था, बूरा थी, कटोरा था, कटोरे में दूध ले कर उस में बूरा डाल कर उंगली से घोल कर पीते थे. अब तो बस उंगली ही बची है. पुराने दिनों की शान बघारने वालों का मजाक उड़ाने के लिए.
कभी न घोड़ा हींसिया, कभी न खींची तंग, कभी न कायर रण चढ़ा, कभी न बाजी बंब. जो कायर पुरुष कभी भी रण भूमि में नहीं गया, उसका मजाक उड़ाने के लिए. .
कभी नाव गाड़ी पर, कभी गाड़ी नाव पर. (कभी नाव गाड़ी में कभी गाड़ी नाव में). किसी का भी समय बदल सकता है. आज आप जिस को आसरा दे रहे हैं कल हो सकता है कि वह आप को आसरा दे.
कभी बिल्ली को मंगल गाते नहीं देखा. ओछे व्यक्ति कभी किसी का भला नहीं सोच सकते.
कभी बोरा गधे पर, कभी गधा बोरे पर. वक्त वक्त की बात है. कभी गधा बोरे पर बैठता है कभी बोरा गधे पर लादा जाता है.
कभी बोरे बोरे नून, कभी रोटिहुँ पर नहिं नून (कहीं बोरी बोरी नोन, कहीं रोटी पर न नोन). कभी आवश्यक वस्तु की अधिकता कभी नितांत अभाव.
कभी रंज, कभी गंज. गंज – बहुत सा. दुनिया में कभी बहुत कम मिलता है कभी बहुत अधिक मिल सकता है.
कम खर्च, बालानशीन. जो वस्तु कम कीमत की लेकिन उच्च गुणवत्ता वाली हो. बालानशीन – उत्कृष्ट.
कम खाना और गम खाना अच्छा (कम खा लो, गम खा लो). कम खाओ और मन को समझा कर रखो यह अधिक अच्छा है. अधिक पाने की लिप्सा में आदमी गलत काम करता है और अधिक खाने के चक्कर में स्वास्थ्य खराब कर लेता है. कुछ लोग इस तरह से बोलते हैं – कम खाना, गम खाना और किनारे से चलना.
कम खानें और गम खानें, न हकीम के जाने, न हाकिम के जाने. (बुन्देलखंडी कहावत) कम खाओ और संतोष रखो तो न तो वैद्यों के चक्कर लगाने पड़ेंगे न कचहरी के.
कम जोर और गुस्सा ज्यादा, यही मार खाने का इरादा. कमजोर आदमी ज्यादा गुस्सा दिखाएगा तो पिटेगा.
कम मोल की और बहुत दुधारी. गाय की तारीफ़ में कही गई बात. कोई वस्तु कम कीमत की हो और बहुत उपयोगी हो तो यह कहावत कही जाती है.
कमउआ आवें डरते, निखट्टू आवें लड़ते. किसी घर में चार पुरुष हैं दो कमाने वाले हैं और दो निखट्टू हैं. जो कमाऊ हैं वे तो घर में गंभीर और चिंतित मुद्रा में घुसते हैं, क्योंकि उनके ऊपर जिम्मेदारियों का बोझ होता है. पर जो निखट्टू हैं वे झगड़ते हुए ही घर में घुसते हैं. हमारा फला काम क्यों नहीं हुआ. हमारे लिए फलानी चीज क्यों नहीं बनी. अमुक व्यक्ति की हमसे ऐसा बोलने की हिम्मत कैसे हुई वगैरा-वगैरा.
कमजोर काठ को कीड़ा खाय. दुष्ट और दुर्जन, कमजोर लोगों को ही सताते हैं.
कमजोर देही में बहुत रीसि होला. (भोजपुरी कहावत) कमजोर शरीर में बहुत गुस्सा होता है. जो शक्तिशाली हैं वे गंभीर होते हैं.
कमबख्त गए हाट, न मिली तराजू न मिले बांट. भाग्य साथ न दे तो कहीं कुछ भी नहीं मिलता है.
कमबख्ती की निशानी, सूख गया कुएं का पानी. अभागा आदमी पानी पीने गया तो कुँए का पानी ही सूख गया.
कमर का मोल है, तलवार का नहीं. ताकत तलवार में नहीं उसे बांधने वाले में होती है.
कमर टूटे रंडी की और भडुवे ओढें दुशाला. वैश्या बेचारी नाच नाच कर अपनी कमर तोड़ लेती है (मेहनत करती है) और दलाल लोग (बिना कुछ किए) गुलछर्रे उड़ाते हैं.
कमर न बूता, सांझे सूता. जो व्यक्ति पौरुष शक्ति न होने के कारण शाम को जल्दी सो जाता है.
कमर में तोसा, बड़ा भरोसा. तोसा – खाने का सामान. अपनी आवश्यकता का सामान अपने पास हो तो मन में बड़ी संतुष्टि और आत्म विश्वास रहता है.
कमर में लंगोटी, नाम पीताम्बरदास. नाम के विपरीत गुण.
कमरिया छोड़े तब तो हम छोड़ें. कमरिया–कम्बल. अनजाने में मुसीबत में फंस जाना. सन्दर्भ कथा – एक साधु अपने एक शिष्य के साथ कहीं जा रहा था. रास्ते में एक नदी मिली. नदी में एक भालू बहा जा रहा था. केवल उसकी पीठ नजर आ रही थी. साधु ने समझा कोई कम्बल बहा जा रहा है. उन्होंने अपने शिष्य को उसे लाने का आदेश दिया. शिष्य उनकी आज्ञा के पालन हेतु नदी में घुसा और भालू द्वारा पकड़ लिया गया. कुछ देर बीत जाने पर साधु ने कहा, देर क्यों हो रही है बेटा, अगर कम्बल नहीं आ पा रहा है, तो उसे छोड़ दो. इसपर शिष्य ने जवाब दिया, मैंने तो कम्बल छोड़ दिया है, लेकिन कम्बल मुझे छोड़े तब न.
कमला काहू की न भई. लक्ष्मी किसी की सदा के लिए नहीं होती.
कमला नारी कूपजल, और बरगद की छांय, गरमी में शीतल रहें सरदी में गरमाय. लक्ष्मी स्वरूपा स्त्री, कुएं का जल और बरगद की छाँव, ये गर्मी में शीतल रहते हैं और सर्दी में गर्म.
कमली ओढ़ने से कोई फ़कीर नहीं होता. साधुओं जैसा वेश धर लेने से कोई साधु नहीं हो जाता.
कमा कर खाने में नहीं चुरा कर खाने में दोष है. पैसा कमाने के लिए यदि कोई छोटे से छोटा काम भी करना पड़े, तो वह चुरा कर खाने से अच्छा है.
कमाई गैल समाई. आय के अनुसार ही खर्च होना चाहिए.
कमाई न धमाई, रोज चाहें मलाई. उन लोगों के लिए जो काम नहीं करना चाहते केवल मौज करना चाहते हैं.
कमाई में हाथ गंदे करने ही पड़ते हैं. केवल ईमानदारी से व्यापार नहीं किया जा सकता.
कमाई सब को दिखती है, दुख किसी को नहीं दिखता. कोई व्यक्ति दिन रात मेहनत कर के किसी मुकाम पर पहुँचा हो अभी भी तरह तरह के कष्ट उठा कर पैसा कमा रहा हो तो उस के कष्ट किसी को नहीं दीखते, बस उस की कमाई दिखती है.
कमाऊ खसम कौन न चाहे. सभी स्त्रियाँ चाहती हैं कि उन्हें अच्छा कमाने वाला पति मिले. लाभ के पद पर बैठे व्यक्ति से सब दोस्ती करना चाहते हैं.
कमाऊ पूत किसे अच्छा नहीं लगता. स्पष्ट.
कमाऊ पूत की दूर बला. कमाने वाला पुत्र सब परेशानियों से दूर रहता है.
कमाए के टका, उड़ाए के रुपया. जो व्यक्ति कमाए बहुत कम और फ़ालतू खर्च बहुत करे.
कमाए तो भात, बैठे तो उपास. काम धाम करोगे तो खाने को मिलेगा. बैठे रहोगे तो भूखों मरोगे.
कमाए थोड़ो खरचे घनो, पहलो मूरख उस को गिनो. जो व्यक्ति आमदनी से अधिक खर्च करता है वह सबसे बड़ा मूर्ख होता है.
कमाए न धमाए, बार बार देखन को धाए. ऐसा पति जो काम धाम कुछ नहीं करता, बार बार पत्नी का मुँह देखने को दौड़ दौड़ कर आता रहता है.
कमान से निकला तीर और जुबान से निकली बात कभी वापस नहीं आती. बात सोच समझ कर बोलना चाहिए क्योंकि मुँह से निकली बात वापस नहीं ली जा सकती.
कमानी न पहिया, गाड़ी जोत मेरे भैया. साधन न होते हुए भी जबरदस्ती काम करने के लिए कहना.
कमाय न धमाय, मोको भूंज भूंज खाय. निठल्ले पति के लिए पत्नी का कथन, निठल्ले बेटे के लिए माँ या बाप का कथन.
कमावे तो वर, नहीं कुआंरा ही मर. कमाने की सामर्थ्य हो तभी विवाह करना चाहिए नहीं तो कुआंरा ही रहना चाहिए.
कमावे धोती वाला, उड़ावे टोपी वाला. कमाए कोई और उड़ाए दूसरा कोई. यहाँ पर अभिप्राय इस बात से भी है कि मेहनतकश (धोतीवाला) कमाए और नेता और अफसर (टोपीवाले) खाएं.
कम्बल कम्बल में गाँठ नाहीं लगत. कम्बल कम्बल में गाँठ नहीं लगती. बड़ों में समझौता कराना कठिन होता है
कर की नाड़ी कर ही जाने. हाथ की नब्ज़ को हाथ से ही टटोला जाता है.
कर खेती परदेसे जाय, ताको जनम अकारथ जाय. खेती करके परदेश चला जाय उसकी खेती सफल नहीं होती.
कर तो डर, न कर तो भी खुदा के गज़ब से डर. यदि हम कोई काम गलत करते हैं तो हमें डरना चाहिए. यदि गलत काम नहीं भी करते हैं तो भी ईश्वर के कोप से डरना चाहिए. सन्दर्भ कथा – बुरा काम करे या न करे, पर हर हालत में ईश्वर के कोप से तो डरना ही चाहिए किसी जगह दो फकीर रहते थे. एक बार एक ने कहा, “कर तो डर, न कर तो भी डर.” दूसरा बोला, “मैं करूं नहीं तो डरूं क्यों.” पहला बिना कुछ कहे चला गया. इसके कुछ दिनों पश्चात राजा के महल में चोरी हुई. चोरों का उसूल था कि वे चोरी के माल में से एक एक वस्तु किसी फकीर को भेंट किया करते थे. उन्होंने एक सोने का हार ले जाकर उस फकीर के गले में डाल दिया. आंखें मूंदकर ध्यान-मग्न होने के कारण उसे इसका कुछ पता नहीं चला. दूसरे दिन जब उसके गले में हार पाया गया, तो उसे चोर समझकर फांसी की सज़ा दी गई.
कर देखो दगा, जो बच जाय पगा. पगा – पगड़ी. किसी को धोखा देने के बाद इज्जत बचना असंभव है.
कर भला हो भला. जो दूसरों का भला करता है उस का भला अवश्य होता है.
कर ले सो काम, भज ले सो राम. जो कुछ करना हो उसे शीघ्र कर लेना चाहिए, उसमें आलस्य नहीं करना चाहिए, और संसार में जो कुछ भी समय मिला है उसमें ईश्वर को भी याद करना चाहिए.
कर सेवा तो खा मेवा. (बिन सेवा मेवा नहीं). बड़ों की सेवा करने से ही फल मिलता है.
करके खाना और मौज उड़ाना. खूब मेहनत करो, खूब कमाओ और प्रसन्न रहो. यदि कोई अपनी मेहनत की कमाई खर्च कर के मौज उड़ा रहा है तो इसमें क्या बुराई है.
करघा छोड़ तमाशे जाए, करम की चोट जुलाहा खाए. पहले जमाने में जब टीवी, सिनेमा इत्यादि नहीं थे तो लोगों के मनोरंजन के मुख्य साधन मेला और तमाशा हुआ करते थे. भीड़ भाड़ वाले स्थान पर कुछ कलाकार इकट्ठे हो कर नाच गाना, नाटक, मदारी का खेल, नट का खेल, जादू इत्यादि दिखाते थे और उसके बाद लोगों से पैसा मांगते थे उसी को तमाशा कहते थे. कहावत में कहा गया है कि जो व्यक्ति अपना रोज़गार छोड़ कर तमाशा देखने जाएगा वह बहुत नुकसान उठाएगा.
करघा बीच जुलाहा सोहे, हल पर सोहे हाली, फौजन बीच सिपाही सोहे, बाग़ में सोहे माली. अपने अपने काम में हर व्यक्ति शोभा देता है. कहावत में यह सन्देश भी दिया गया है कि कोई काम छोटा नहीं होता, सब का अपना महत्त्व है. हाली – हल चलाने वाला.
करछुल रखें हाथ जलाने को कि हाथ बचाने को (करछुल राखा हाथ बचाए, करछुल हाथ जलाए). करछुल का प्रयोग हाथ को जलने से बचाने के लिए किया जाता है, यदि करछुल से हाथ जलने लगे तो उस का क्या लाभ.
करजदार, पत्थर खाए हर बार. कर्ज़दार व्यक्ति को बहुत जलालत झेलनी पड़ती है.
करजा भला ना बाप का बेटी भली ना एक, करमा के लेख उघाड़ उघाड़ देख. कर्ज हमेशा बुरा होता है (चाहे पिता से ही क्यों न लिया हो) और एक ही सन्तान हो वह भी बेटी यह भी अच्छा नहीं होता.
करत करत अभ्यास के जड़ मति होत सुजान. जड़ मति का अर्थ है कोई कम बुद्धि वाला अकुशल व्यक्ति. सुजान का अर्थ है चतुर और कार्य कुशल. कहावत का अर्थ स्पष्ट है. इस दोहे की अगली पंक्ति है – रस्सी आवत जात से सिल पर परत निशान. कुँए में से पानी निकालने वाली बाल्टी की रस्सी से पत्थर पर निशान बन जाता है. इंग्लिश में इस कहावत को इस प्रकार कहते हैं – practice makes a man perfect.
करत न कूकर वृन्द की कछु गयंद परवाह. कूकर वृन्द – कुत्तों का झुण्ड, गयंद – हाथी. हाथी कुत्तों के झुण्ड की परवाह नहीं करता. योग्य और उत्तम व्यक्ति बुरा भला कहने वालों की परवाह नहीं करते.
करतब की विद्या है. विद्या अभ्यास करने से ही आती है.
करता गुरु, न करता चेला. जो अभ्यास करता रहता है वह कुशल हो जाता है (गुरु बन जाता है), जो अभ्यास नहीं करता वह कभी नहीं सीख सकता बल्कि सीखा हुआ भी भूल जाता है (हमेशा चेला ही बना रहता है).
करता था सो क्यों किया, अब कर क्यों पछिताय, बोया पेड़ बबूल का, आम कहाँ से खाय. जब गलत काम कर रहे थे उस समय कुछ सोचा नहीं, अब पछता रहे हो. बबूल का पेड़ बोया है तो आम खाने को कैसे मिल जाएगा.
करते से न करे वो बावला, न करते से करे वो भी बावला. अपने साथ बुरा करने वाले से जो बदला न ले वह मूर्ख है और जो बुरा न करने वाले के साथ बुरा करे वह और बड़ा मूर्ख है.
करना चाहे आशिकी और मामाजी से डरे. आशिकी करना चाह रहे हैं और घर के बड़े लोगों से डर भी लग रहा है. डर डर के काम करने वालों के लिए.
करना चाहे काम, बसना चाहे गाँव. अगर काम करना चाहते हो (व्यापार, खेती या नौकरी) तो घर पर मिलने वाली सुविधाओं का लालच छोड़ना पड़ेगा.
करनी करे तो क्यों डरे, कर के क्या पछताए. कोई गलत काम किया है तो अब क्या डरना या पछताना.
करनी कुछ नहीं रुपया इनाम. बिना कुछ काम किए इनाम चाहने वालों के लिए.
करनी कुत्ते सी, नाम लछन देव. नाम के विपरीत गुण.
करनी के ओर न छोर. मनुष्य बहुत छोटे से ले कर बहुत बड़े काम तक कर सकता है.
करनी न करतूत, कहलाएं पूत सपूत. पुत्र करते कुछ नहीं हैं पर माँ बाप उन की प्रशंसा में फूले नहीं समा रहे हैं.
करनी न करतूत, लड़ने को मजबूत. जो व्यक्ति काम तो कुछ न करे पर लड़ने- झगड़ने में तेज हो.
करनी न खाक की, बातें मारे लाख की. जो व्यक्ति करता धरता कुछ न हो और बातें बड़ी बड़ी बनाता हो.
करनी ना धरनी, धियवा ओठ बिदोरनी. (भोजपुरी कहावत) धियवा – धी, बेटी, होठ बिदोरनी – मुँह बनाने वाली. कुछ काम भी न करना और दूसरे के काम में कमियाँ निकालना.
करनी ही संग जात है, जब जावे छूट शरीर, कोई साथ न दे सके, मात पिता सुत वीर. अंत समय पर कोई नाते रिश्तेदार साथ नहीं जाते केवल आपके सत्कर्म ही साथ जाते है.
करम और करम आधे आध. किसी की सफलता में कर्म (परिश्रम) और कर्म (कर्मफल, भाग्य) दोनों का आधा आधा महत्व है.
करम और परछाई साथ कभी न छोड़ें. भाग्य और परछाईं कभी साथ नहीं छोड़ते. करम – कर्मफल.
करम करो सुख पाओ. सुख केवल कर्म कर के ही प्राप्त किया जा सकता है. यदि फल मिले तब तो सुख है ही और यदि फल न भी मिले तो इस बात का संतोष होता है कि हमने प्रयास तो किया.
करम की गति कोई न जाने. भाग्य की गति नहीं जानी जा सकती.
करम के बलिया, रांधी खीर हो गयो दलिया. कर्मों के बलिहारी जाएं. भाग्य से ही सब कुछ मिलता है. कर्महीन व्यक्ति ने खीर बनाई तो दलिया बन गया.
करम गति टारे नाहिं टरी. यह सही है कि मनुष्य को पुरुषार्थ के बिना कुछ नहीं मिलता पर यह भी सही है कि वह कितना भी पुरुषार्थ कर ले, अपने कर्मों के फल अर्थात प्रारब्ध को नहीं टाल सकता.
करम चले दो डग आगे. आप कहीं भी जाएँ, भाग्य उस से पहले ही वहाँ पहुँच जाता है.
करम छिपे न भभूत रमाए. दुष्कर्मी साधुओं के लिए कहा गया है. भभूत लगा लेने से उन की असलियत नहीं छिप जाती.
करम दरिद्री नाम चैनसुख. कहावतों में करम का अर्थ कर्म (पुरुषार्थ) से भी होता है और कर्मफल (भाग्य) से भी. किसी दरिद्र व्यक्ति का नाम चैनसुख है अर्थात गुण के विपरीत नाम.
करम निगोड़िया, मन दरिया. करते धरते कुछ नहीं हैं पर बड़े दरियादिल हैं.
करम फूटे का इलाज हो सकता है पर घर फूटे का कोई इलाज नहीं. भाग्य खराब हो इस का इलाज तो हो सकता है, पर घर में फूट पड़ जाए तो उस का कोई इलाज नहीं हो सकता.
करम फूटे को अकल फूटा ही मिले. जिसका भाग्य खराब हो उसे मूर्ख लोग ही मिलते हैं.
करम बिना नर कौड़ी न पावै. 1. कर्म किए बिना हम कुछ भी हासिल नहीं कर सकते. 2. भाग्य में न लिखा हो तो कुछ नहीं मिल सकता.
करम में कंकर लिखे और हीरों की चाह करे. भाग्य में कुछ न होते हुए भी बहुत इच्छाएँ रखना.
करम में कौए का पंजा. बिल्कुल भाग्यहीन व्यक्ति.
करम में लिख्या कंकर, तो के करें शिव शंकर. जिसके भाग्य में कुछ न मिलना लिखा हो उसकी सहायता ईश्वर भी नहीं कर सकते. सन्दर्भ कथा – एक बूढा और उसकी बुढिया जंगल से लकड़ियाँ लाकर शहर में बेचते और अपने पेट पालते थे. एक दिन जिस रास्ते से वे लकड़ियों का गट्ठर लेकर जा रहे थे, उसी रास्ते से शिव-पार्वती भी गुजर रहे थे. उन दोनों की दशा देख कर पार्वती को बड़ी दया आई. उन्होंने शिवजी से कहा कि इन पर कृपा कर के आप इन्हें धन दे दीजिए.
शिवजी ने उत्तर दिया कि इनके भाग्य में धन लिखा ही नहीं है तो मैं कैसे दे दूँ? लेकिन पार्वती नहीं मानीं तो शिवजी ने रुपयों से भरी एक थैली उनकी राह में डाल दीउधर उन दोनों ने विचार किया कि हम बूढे तो हो गये लेकिन यदि अन्धे भी हो जाएँ तो कैसे चल पाएँगे. इस बात का अनुभव करने के लिए वे दोनों अंधे बन कर चलने लगे और रुपयों की थैली को लांघ कर निकल गये. इस पर शिवजी ने पार्वती से कहा कि देख लो, इनके भाग्य में ही धन नहीं है.
करम से करम. करम – कर्म, करम – भाग्य. मनुष्य कर्म कर के ही भाग्य का निर्माण करता है.
करम हीन जब होत हैं, सबहु होत हैं बाम, छाँव जान जंह बैठते, तहां होत है घाम. जब भाग्य साथ न दे रहा हो तो सभी आपके विपरीत हो जाते हैं. जहाँ आप छाँव समझ कर बैठते हैं वहाँ कड़ी धूप आ जाती है.
करमहीन को न मिले भली वस्तु का भोग. वैसे तो इस कहावत का अर्थ स्पष्ट है लेकिन इसे मजाक में भी प्रयोग करते हैं. जो बच्चे घर में भरपूर दूध फल इत्यादि होने पर भी खाने में आनाकानी करते हैं उनके माँ बाप मजाक में इस प्रकार बोलते हैं.
करमहीन खेती करे, बैल मरे सूखा पड़े. भाग्य के बिना सफलता नहीं मिलती. अभागे व्यक्ति ने खेती करना चाही तो बैल मर गए और सूखा पड़ गया.
करमहीन लंबा जिए. अभागे व्यक्ति को मौत भी जल्दी नहीं आती.
करमहीन सागर गए, जहां रतन को ढेर, कर छूअत घोंघा भए, यही करम को फेर. अभागा व्यक्ति समुद्र के किनारे गया, वहाँ रत्नों का ढेर लगा था. लेकिन कर्मों का फेर देखिये, हाथ लगते ही वे रत्न घोंघा बन गए.
करमू चले बरात, करम गत संगै जैहै. (बुन्देलखंडी कहावत) भाग्यहीन व्यक्ति कहीं भी चला जाए, कर्मों की गति उसका साथ नहीं छोड़ती (उसको बरात में भी अपमान झेलना पड़ता है).
करमे खेती, करमे नार, करमे मिलें हितू दो चार. हिंदी कहावतों में एक बड़ी मजेदार बात है कि यहाँ करम का अर्थ कर्म (उद्यम) से भी है और कर्मफल (भाग्य) से भी. संसार में सभी वस्तुएँ इन दोनों से ही मिलती हैं.
करवा कुम्हार को, घी जजमान को, का लगे बाप को स्वाहा. करवा कुम्हार का है, घी जजमान का है, पंडित जी के बाप का क्या जा रहा है, खूब स्वाहा करो. दूसरों के माल को बेदर्दी से खर्च करने वालों के लिए.
करा तो लीं पर ढकेगा कौन. आवारा कुत्तों को रोकने के लिए फूहड़ स्त्री के घर किवाड़ें लगवा भी ली गईं तो उन्हें बंद कौन करेगा? सन्दर्भ कथा – एक फूहड़ स्त्री के घर में किवाड़ नहीं थे, इसलिए उसके घर में कुत्ते बे रोक टोक आते-जाते थे और जो कुछ इधर-उधर रखा मिल जाता, खा जाते थे. उसका पति विदेश से आया तो घर की दुर्दशा देख कर उसे बड़ा अफसोस हुआ और उसने लकड़ी के किवाड़ बनवा दिये. इससे कुत्तों में बड़ी घबराहट फैल गई कि गाँव में उनका एक मात्र आश्रय-स्थल ही बंद हो गया और उन्होंने उस गाँव को छोड़कर रेवाड़ी जाने का निश्चय कर लिया.
जब वे चलने को हुए तो बूढ़े काने कुत्ते ने शकुन विचार कर शेष कुत्तों से कहा, यह तो ठीक है कि फूहड़ के घर में किवाड़ लग गये हैं, लेकिन उन्हें बंद कौन करेगा? वे तो सदा खुले ही पड़े रहेंगे और हम सब उसके घर में पहले की तरह ही आराम से आते जाते रहेंगे. इसलिए हमें कहीं भी जाने की आवश्यकता नहीं है. इसकी पूरी कविता इस प्रकार है – फूहड़ के घर लगीं किवाड़ी, सारे कुत्ते चले रिवाड़ी, काना कुत्ता तोड़ा मौन, करा तो लीं पर ढकेगा कौन.
करा नहीं तो कर देखो, जिसने किया उसका घर देखो. किसी का बुरा नहीं किया तो अब कर के देख लो. जिसने किसी का बुरा किया हो उसके घर जा कर उसका हाल देख लो.
करि कुचाल अंतहि पछतानी. कुचाल – नीच कार्य. निम्न श्रेणी के कार्य करोगे तो अंत में पछताना पड़ेगा.
करिया को मंत्र मिल जाए, पर गड़ंता को नाहिं मिलत. गड़ंता (करैत) एक जहरीला सर्प जो कि शान्त परन्तु अधिक जहरीला होता है और चुपचाप काटता है. काले सर्प (कोबरा) का मंत्र मिल जाता है, परन्तु गड़ंता का नहीं मिलता. धोखे से गहरी मार मारने वाले व्यक्ति के लिए कहावत का प्रयोग करते हैं. देखिए परिशिष्ट.
करिया बादर जी डरियावे, भूरा बादर पानी लावे (काली घटा डरावनी और भूरी बरसनहार). काले बादल को देख कर डर जरूर लगता है पर वह वर्षा नहीं करता, वर्षा भूरे बादल से होती है.
करी कमाई खो बैठे. परिश्रम व्यर्थ गया.
करी भलाई आपनो चित सों दे बिसराय, मानो डारी कूप में काहू सों न जनाय. किसी के साथ भलाई कर के भूल जाना चाहिए, किसी को जताना नहीं चाहिए. रूपान्तर – नेकी कर कूएँ में डाल.
करील का काँटा, साढ़े सोलह हाथ लम्बा. गप्प हाँकना.
करे एक, भरें सब. किसी एक व्यक्ति की गलती का खामियाजा बहुत से लोगों को उठाना पड़ता है.
करे कारिन्दा नाम बरियार का, लड़े सिपाही नाम सरदार का. छोटे लोग काम करते हैं परन्तु नाम उनके सरदार का होता है.
करे कोई भरे कोई. गलती किसी और की है भरपाई किसी दूसरे को करनी पड़ रही है.
करे गोत पर, पड़े पूत पर. जो अपनी जाति वालों के साथ धोखा करते हैं उनकी संतानों पर संकट आता है.
करे दाढ़ीवाला, पकड़ा जाए मुँछोंवाला. अपराध कोई और कर रहा है, सजा किसी और को मिल रही है.
करे न धरे, सनीचर को दोस. कुछ काम नहीं करते हैं और भाग्य में शनि बैठा होने का बहाना करते हैं.
करे पाप तो खावे धाप, करे धरम तो फूटे करम. कलियुग में पाप कर्म करने वाला मलाई खाता है और सत्कर्म करने वाला कष्ट उठाता है.
करे प्रपंच, कहलावे पंच. कहावत उन लोगों के लिए है जो छल कपट कर के भी समाज में सम्माननीय बने रहते है. भ्रष्ट न्याय व्यवस्था पर भी व्यंग्य है.
करे बनत या दिए बनत. कोई काम या तो स्वयं अपने हाथ से करने से होता है अथवा पैसा देने से.
करे सो डरे. अर्थ दो प्रकार से है- 1. जो जिम्मेदार व्यक्ति होता है वह डरता है कि कहीं कुछ गलत न हो जाए. जो कुछ करे ही नहीं उसे किस बात का डर. 2. जो अपराध या पाप करता है वह डरता भी रहता है.
करे सो भरे, खोदे सो पड़े. जो किसी का बुरा करता है वह उसका दंड भरता है, जो दूसरों के लिए खाई खोदता है वह स्वयं उसमें गिरता है.
करें कल्लू, भरें लल्लू. गलती कोई और कर रहा है, खामियाजा कोई और भुगत रहा है.
करेगा टहल तो पाएगा महल. बड़े लोगों की सेवा करोगे तो उपयुक्त पुरस्कार पाओगे.
करेगा सो भरेगा. जो गलत काम करेगा वह उसका खामियाजा भी भुगतेगा.
करेला वो भी नीम चढ़ा (गिलोय और नीम चढ़ी). कोई मूर्ख या दुष्ट व्यक्ति और अधिक दुर्गुणों से लैस हो जाए.
करो खेती और भरो दंड. खेती करने वाला बेचारा खेती में भी पिसता है और लगान भी देता है. जो कुछ नहीं करते उन्हें कोई टैक्स वैक्स नहीं देना होता.
करो तो सबाब नहीं, न करो तो अजाब नहीं. अजाब – पाप का दंड. कोई ऐसा काम जिसे करने में पुण्य न मिले और न करने में पाप भी न हो.
क़र्ज़ काढ़ करे व्यवहार, मेहरारू से रूठे जो भतार, बेपूछे बोले दरबार, ये तीनों पूंछ के बार. यहाँ व्यवहार से मतलब है सामाजिक लेन देन. जो सामाजिक लेन देन के लिए क़र्ज़ लेता है, जो पति अपनी पत्नी से रूठता है और जो बिना पूछे दरबार में बोलता है, ये सब निकृष्ट लोग होते हैं.
कर्ज काढ़ व्यौहार चलावे, छप्पर डारे ताला, साले संग बहिनी को पठावे, तीनहुं का मुँह काला. उधार ले कर सामाजिक लेन देन करना, छप्पर पर ताला डालना और साले के संग अपनी बहन को कहीं भेजना, ये तीनों मूर्खतापूर्ण कार्य हैं.
क़र्ज़ बाप का भी बुरा. कर्ज पिता से भी नहीं लेना चाहिए.
कर्ज, मर्ज और फर्ज को कभी छोटा नहीं समझना चाहिए. क़र्ज़ न चुकाएँ तो ब्याज लग कर बढ़ता जाएगा इसलिए उसको हलके में न लें, बीमारी छोटी सी दिखती हो तो भी एकदम से बढ़ कर खतरनाक हो सकती है इसलिए हलके में नहीं लेना चाहिए और अपने कर्तव्य को भी कभी हलके में नहीं लेना चाहिए.
कर्ज, सात जनम का मर्ज. कोई व्यक्ति कर्ज लेता है तो उसकी कई पीढ़ियों को चुकाना पड़ सकता है.
कर्ज़दार छाती पर सवार. उलटी बात. जिसने आपसे क़र्ज़ लिया है वही आपकी छाती पर सवार है.
कर्ज़दार दो घरों को पालता है. कर्ज लेने वाला व्यक्ति व्यापार आदि कर के अपने परिवार को पालता है और ब्याज चुका कर साहूकार के परिवार को भी पालता है.
कर्ता से कर्तार हारे. परिश्रम करने वाले के आगे ईश्वर भी नतमस्तक हो जाते हैं.
कर्मे खेती कर्मे नार, कर्मे मिले कुटुम परिवार (सुजन दो चार). अच्छी खेती, अच्छी स्त्री और अच्छा परिवार भाग्य से ही मिलते हैं.
कल का लीपा देओ बहाय, आज का लीपा देखो आय. कल की बात को भूल जाओ. आज की योजना बनाओ. पहले जमाने में चूल्हे चौके को और घर की दीवारों को मिट्टी या गोबर से लीपा जाता था.
कल के जोगी, पैर तक जटा. नए नए पैसे वाले अधिक शान शौकत दिखाएँ तो.
कल देवेगा कल पाएगा, कलपाएगा कल पाएगा. कल – चैन, कलपाना – तड़पाना. दूसरों को सुख चैन देगा तो खुद भी सुख चैन पाएगा. किसी को दुख देगा तो वैसा ही दुख कल को स्वयं भी पाएगा.
कल मरी सासू, आज आया आंसू. बनावटी दुख.
कलकत्ता की कमाई जूता छाता में लगाई. बड़े शहरों में कमाई अधिक होती है लेकिन वहाँ का रहन सहन भी बहुत महंगा होता है.
कलकत्ते का धारा, बाप से बेटा न्यारा. न्यारा – अलग. छोटे शहरों और गाँवों में रहने वालों को यह बात बहुत अजीब लगती है कि बड़े शहरों में बेटे माता पिता से अलग रहते हैं.
कलकत्ते नहिं जाना, चाहे जहर खाय मर जाना. गाँव या छोटे शहर में रहने वाले सीधे साधे व्यक्ति से जब कहा जाता है कि बड़े शहर में जा कर जीविका कमाओ तो वह बहुत घबरा जाता है.
कलजुग उपकार हत्या बरोबर. कलियुग में किसी का भला करना अपने लिए मुसीबत मोल लेना है.
कलजुग के लइका करै कचहरी, बुढ़वा जोतै हल. कलियुग में लड़का संपत्ति के लिए कचहरी के चक्कर लगाता है और बूढ़े बाप को खेत मे हल चलाना पड़ता है.
कलम और तलवार वाले कभी भूखे नहीं मरते. पढ़े लिखे व्यक्ति और योद्धा को भूखे मरने की नौबत नहीं आती.
कलयुग के जोगी भाई भाई. कलयुग के साधु सब एक से.
कलयुग में झूठ ही फले. कलयुग में झूठे लोग मजे मारते हैं और सच्चे कष्ट झेलते हैं. सन्दर्भ कथा – एक सेठ ने अपने एक गरीब मित्र को काम-धंधा करने के लिए दो हजार रुपये उधार दिये थे. कुछ समय बाद सेठ मर गया. उसके मरने के बाद शीघ्र ही उसका सारा कारोबार चौपट हो गया. सेठ की स्त्री और पुत्र को दो जून भोजन मिलना भी दूभर हो गया. उधर सेठ के उस गरीब मित्र के पास अपार सम्पदा हो गई.
एक दिन मृत सेठ की विधवा अपने पुत्र को साथ लेकर नये सेठ के यहाँ पहुँची और उससे अपने पति द्वारा दिये गये रुपयों की मांग की. नये सेठ ने उसे दुत्कारते हुए कहा कि मेरे पास रुपयों की क्या कमी थी जो मैं तुम्हारे पति से दो हजार रुपये उधार लेता. पास बैठे हुए लोगों ने सेठ की विधवा से कहा कि तुम्हारे पास कोई सबूत या लिखा-पढी हो तो दिखलाओ. विधवा ने उत्तर दिया कि मेरे पास कोई लिखा-पढी तो नहीं है, लेकिन यदि मैं झूठ बोलती होऊं तो मेरा यह इकलौता लड़का मर जाए. उसके इतना कहते ही लड़का तुरन्त मर गया और सभी लोग उसे झूठी मान कर उसकी भर्त्सना करने लगे.
वह बेचारी अपने भाग्य को कोसती हुई सेठ की हवेली से बाहर निकल रही थी कि उसे पुरुष वेशधारी ‘कलियुग’ मिला. विधवा ने उसके सामने अपना दुखड़ा रोया तो वह बोला कि तुमने सतयुग की बात कही, इसलिए तुम्हारा लड़का मर गया. यह युग मेरा है, इसमें झूठ बोलने से ही फल की प्राप्ति होती है. अब तुम पुन. सेठ के पास जाकर कहो कि मेरे पति ने तुम्हें बीस हजार रुपये दिये थे, मैंने भूल से दो हजार बतला दिये और इसीलिए मेरा लड़का मर गया. यदि मेरे पति ने तुम्हें बीस हजार रुपये दिये हों तो मेरा लड़का तुरन्त जी उठे. विधवा ने वैसा ही किया. उस के यह कहते ही लड़का जी उठा और नये सेठ को झख मार कर बीस हजार रुपये देने पड़े
कलहारी कल कल करे, दूहारी छू होए, अपनी अपनी बान से कभी न चूके कोय. कलहारी (लड़ाका स्त्री) लड़ती रहती है और दूहारी (आपस में झगड़ा कराने वाली) झगड़ा करा के गायब हो जाती है. इनमें से कोई कम नहीं है.
कलार की दुकान पर पानी पियो तो भी शराब का शक होता है. कलार – शराब बेचने वाला. इस कहावत में सीख दी गई है कि बदनाम लोगों से किसी प्रकार का भी मेलजोल नहीं रखना चाहिए.
कलाली की बेटी डूबने चली, लोग कहें मतवाली (कलार का लड़का भूखा मरे और लोग कहें मतवाला) (कलाल की लड़की को मिर्गी आवे, लोग कहें मस्त है). शराब बेचने वाले की बेटी डूबने चली तो लोग समझते हैं कि वह नशे में है. अगर आप गलत लोगों के साथ रहते हैं तो मुसीबत के समय भी लोग आप को गलत ही समझेंगे.
कवित्त सोहे भाट ने और खेती सोहे जाट ने. भाट को कविता पढ़ना शोभा देता है और जाट को खेती करना. सबको अपना अपना काम शोभा देता है.
कश्मीरी बेपीरी, जिनमें लज्ज़त न शीरीं. काश्मीरी लोग बेमुरव्वत होते हैं.
कश्मीरी से गोरा सो कोढ़ी. काश्मीरी लोग बहुत गोरे होते हैं. इसलिए ऐसा कहा गया कि उन से गोरा केवल कुष्ठ रोगी ही हो सकता है. सामान्य लोग कुष्ठ रोग और सफ़ेद दाग की बीमारी (leukoderma) में अंतर नहीं जानते इसलिए वे ल्यूकोडर्मा के रोगी को भी कोढ़ी समझ लेते हैं. कुष्ठ रोगियों में अलग प्रकार के दाग होते हैं.
कसम और तरकारी खाने के लिए ही बने हैं. कसम खा कर मुकर जाने वाला बेशर्म आदमी इस प्रकार बोलता है.
कसाई का अनाज और पाड़ा खा जाए. कसाई जैसे खतरनाक इंसान का अनाज बछड़े जैसा निरीह प्राणी कैसे खा सकता है.
कसाई का खूँटा और खाली रहे. कसाई के खूंटे पर लगातार कोई न कोई जानवर बंधा रहता है. किसी भी चलते हुए व्यापार में काम आने वाले उपकरण कभी खाली नहीं रहते.
कसाई की लौंडिया, छिछ्ड़ों की भूखी. जहाँ जिस चीज़ की बहुतायत होना चाहिए वहाँ उस का अभाव हो तो.
कसाई रोवे मांस को बकरा रोवे जान को. बकरा इस बात से परेशान है कि उस की जान जा रही है, कसाई इस बात से परेशान है कि बकरे में माल कम निकला. सब की अपनी अपनी परेशानी, सब के अपने अपने दृष्टिकोण.
कस्तुरी कुँडलि बसै, मृग ढूँढे बन माहिँ, ऐसे घट घट राम हैं, दुनिया देखे नाहिँ. कस्तूरी मृग की नाभि में कस्तूरी होती है पर वह सारे वन में ढूँढता फिरता है कि यह सुगंध कहाँ से आ रही है. इसी प्रकार ईश्वर सभी के भीतर विद्यमान हैं और मनुष्य सब जगह ढूँढता फिरता है.
कस्तूरी की गंध सौगंध की मोहताज नहीं. जो वास्तविक गुण होते हैं उन्हें किसी के द्वारा प्रमाणपत्र दिए जाने की आवश्यकता नहीं होती.
कह कर खाने वाली डायन नहीं कहलाती (कह कर खाए वो डायन कैसी). 1.खुल्लम खुल्ला अनाचार करने वाले लोग भ्रष्ट नहीं कहलाते (दुष्ट कहलाते हैं). 2.उन को भ्रष्ट कहने की हिम्मत कोई नहीं करता.
कहत बड़े जन सांच है, बात हवा ले जात. मुँह से निकली हुई बात बहुत तेज़ी से फैलती है.
कहना सरल है करना कठिन. अर्थ स्पष्ट है.
कहने को रानी, चुरावे चमरौधा. चमरौधा – जूता. कहने को तो बड़े आदमी की स्त्री हैं पर जूता चुराती हैं.
कहने से करना भला. 1.जो लोग बातें बड़ी बड़ी करते हैं पर काम कुछ नहीं करते उनको सीख देने के लिए यह कहावत कही जाती है. 2. उपदेश देने के मुकाबले किसी काम को कर के दिखाने से अधिक प्रभाव पड़ता है.
कहने से कुम्हार गधे पर नहीं चढ़ता है. बहुत से कुम्हार बर्तन वगैरह ढोने के लिए गधा पालते हैं कभी-कभी मस्ती लेने के लिए खुद भी गधे की सवारी कर लेते हैं. लेकिन यदि आप उससे कहें कि भैया जरा गधे पर चढ़ के दिखाओ तो वह गधे पर नहीं चढ़ता. यदि किसी व्यक्ति या बच्चे की ऐसी आदत हो कि वह कहने पर कोई काम न करे केवल अपने मन से ही करे तो उसका मजाक बनाने के लिए यह कहावत कही जाती है.
कहबे की लाज, न सुनबे की सरम. निर्लज्ज व्यक्ति के लिए.
कहवे को अबला, बोलवे को सबला. लड़ाका स्त्रियों के लिए.
कहा न अबला करि सके, कहा न सिन्धु समाय, कहा न पावक में जरे, कहा काल न खाय. स्त्री अबला होते हुए भी क्या नहीं कर सकती (अर्थात सब कुछ कर सकती है), समुद्र में क्या नहीं समा सकता, आग में क्या नहीं जल जाता और काल किसे नहीं खा लेता? इसके उत्तर में किसी ने कहा है – सुत नहिं अबला करि सकै (पुरुष के बिना), मन नहिं सिन्धु समाय, धर्म न पावक में जरे, नाम काल नहिं खाय.
कहा भयो जो धन भयो, आदर गुन ते होई. किसी के पास धन संपत्ति आ गई तो क्या हुआ, आदर तो गुणों से प्राप्त होता है.
कहा भी न जाए चुप रहा भी न जाए. किसी परिस्थिति में जब आप कुछ कहने का साहस न जुटा पा रहे हों और चुप रहने में भी कष्ट हो रहा हो. भोजपुरी कहावत – का कहीं कुछ कही ना जाता, कहले बिना रही ना जाता.
कहाँ कहाँ मन रुच करे, मिलो यो तन छन भंग. जीवन इतना छोटा है, इस में व्यक्ति किस किस चीज़ में रूचि ले, कहाँ कहाँ मन लगाए. रूपांतर – नन्हीं सी जान और इतने अरमान.
कहाँ गरजा, कहाँ बरसा. बादल गरजा कहीं और बरसा कहीं और. कोई व्यक्ति गाली गलौज कहीं पर करे और मारपीट कहीं और तो.
कहाँ रसे, कहाँ बसे, कहाँ आय के चूतड़ घिसे. 1.जीविका के लिए व्यक्ति को अपना जन्म स्थान छोड़ कर कहाँ कहाँ जाना पड़ता है. 2.अपना स्वार्थ साधने के लिए व्यक्ति बड़ी दूर दूर जा कर खुशामद करता फिरता है.
कहाँ राजा भोज, कहाँ गंगू तेली. जब दो लोगों के सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक स्तर में बहुत अंतर हो तो.
कहाँ राम राम, कहाँ टांय टांय. तोता टांय टांय करता है पर सिखाने पर राम राम बोलने लगता है. असभ्य अशिक्षित व्यक्ति शिक्षा पा कर योग्य बन जाता है. इसका दूसरा अर्थ यह है कि तोते तोते में कितना फर्क होता है, एक राम राम कहता है और दूसरा टांय टांय ही करता है.
कहानी बिना कैसा व्रत. हर व्रत की कोई न कोई कहानी होती है. पहले के समय घर की बड़ी बूढियाँ, बहू-बेटों पोती-पोतों को वे कहानियाँ सुनाया करती थीं.
कहावत भुला भले ही दी जाए, झुठलाई नहीं जा सकती. लोग कहावतों को भूलते जा रहे हैं पर इसका अर्थ यह नहीं है कि वे सारहीन हैं.
कहीं आग कहीं पानी. कहीं लोग गर्मी से परेशान हैं कहीं अतिवृष्टि से. आग और पानी का अर्थ लड़ाई और शांति से भी हो सकता है.
कहीं आग कहीं शोले. आग कहीं और लगी है और उसका असर कहीं और हो रहा है.
कहीं कल से काम हो तो कहीं बल से. कल – मशीन. कहीं युक्ति से काम होता है तो कहीं शक्ति से.
कहीं की ईट कहीं का रोड़ा, भानुमती ने कुनबा जोड़ा. बिलकुल बेमेल चीजों को जोड़ कर बेतुकी चीज़ बना देना.
कहीं जूतों से भी साँप मरे हैं. दुष्ट को समाप्त करने के लिए तो पूरे साधन चाहिए.
कहीं डूबे भी तिरे हैं. जो डूब जाएँ वे फिर सतह पर नहीं आते. एक बार नाम और सम्मान खो जाने पर वापस नहीं आ सकता. व्यापार चौपट होने के बाद दोबारा खड़ा नहीं हो सकता.
कहीं डूबे, कहीं निकले. दिखाना कुछ और, करना कुछ और.
कहीं तो सूहा चूनरी, और कहीं ढेले लात. सूहा – एक प्रकार का गहरा लाल रंग. अपना अपना भाग्य है, कहीं स्त्री को सुहाग का जोड़ा पहनने को मिल रहा है और कहीं लात घूंसे और पत्थर खाने पड़ रहे हैं.
कहीं नाखून भी गोश्त से जुदा हुआ है (उंगलियों से नाखून अलग नहीं होते). जो अपने हैं वे अपने ही रहते हैं.
कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना. ऊपर से कुछ और दिखाना पर मन में कुछ और होना.
कहीं भूखे मरें कहीं अन्न सड़े. कहीं अन्न का अभाव कहीं बर्बादी.
कहीं सूखे दरख़्त भी हरे हुए हैं. एक बार सूखने के बाद पेड़ दोबारा हरा भरा नहीं हो सकता. रिश्तों के विषय में और व्यक्ति के मान सम्मान के विषय में भी ऐसा ही कहा जाता है.
कहु रहीम कैसे निभै, बेर केर को संग, वे डोलत रस आपने, उनके फाटत अंग. केले का पेड़ बेर के पेड़ के पास लगा है. बेर हवा चलने पर झूमता है तो उसके काँटों से केले का कोमल तना फट जाता है. कहावत का अर्थ है कि दो विपरीत प्रकृति वाले लोगों का साथ नहीं निभ सकता.
कहूँ तो माँ मार खाय, न कहूँ तो बाप कुत्ता खाय. दुविधा की स्थिति. सन्दर्भ कथा – एक बार एक स्त्री ने अपने पति के खाने के लिए बकरे के धोखे में (या जान कर) कुत्ते का मांस पका दिया. उसके बेटे को यह बात मालूम थी. बाप खाना खाने बैठा तो बेटे के सामने यह दुविधा थी कि बाप को बता देता है कि यह कुत्ते का मांस है तो बाप माँ को पीटेगा, और नहीं बताता है तो बाप को कुत्ता खाने का पाप लगेगा. दुविधा की स्थिति में पड़े व्यक्ति के लिए यह कहावत कही जाती है
कहूँ तो मारी जाऊँ, न कहूँ तो इज्जत गवाऊँ. यदि घर का कोई सम्मानित व्यक्ति घर की किसी महिला के साथ अशोभनीय व्यवहार करता है तो उस के सामने इस प्रकार की द्विविधा होती है.
कहे कबीर दुई नाव चढ़िए, एक बूड़े तो दूजी से पार उतरिए. आम विश्वास यह है कि दो नावों पर सवार नहीं होना चाहिए. उस से उलट यह नये प्रकार की सोच है.
कहे से कोई कुँए में नहीं गिरता. कोई आपका कितना भी बड़ा समर्थक या प्रेमी क्यों न हो आपके कहने से कुँए में नहीं गिरेगा.
कहें खेत की, सुनें खलिहान की (कहें जमीन की, सुनें आसमान की) (कहें कुछ, सुनें कुछ). कुछ का कुछ सुनना.
कहें घाघ घाघिन से रोय, बहु संतान दरिद्री होय. अधिक संतानों को पालने में व्यक्ति दरिद्र हो जाता है.
कहें रणधीर, भाग जात पात खरके सों. अपने को बड़ा वीर बताते हैं और पत्ता खड़कने से भाग जाते हैं.
कहो बाई, काहे पे रूठीं, कही सूप छलनी पे. किसी ने पूछा – क्यों बहिन क्यों रूठी हो. कहा – सूप छलनी पर. व्यर्थ की बातों पर रूठनेवाली स्त्रियों पर व्यंग्य.
कहो बात, कटे रात. एक दूसरे की बात सुनने और ढाढस बंधाने से दुख के दिन कट जाते हैं.
का टेसू के फूल, का हल्दी को रंग, का बदली की छाँव, का परदेसी को संग. यह सभी चीजें क्षणिक होती हैं. कहावत के द्वारा यह सन्देश दिया गया है कि परदेसियों से प्रेम नहीं करना चाहिए.
का बर्षा जब कृषी सुखानी, (समय चूकि पुनि का पछितानी). खेती के सूखने के बाद वर्षा हो तो उससे क्या फायदा. समय पर कोई काम नहीं किया तो अब क्यों पछताते हो.
काँख पाद बहुतेरी, खाय के डेढ़ पसेरी. उन स्त्रियों के लिए जो काम करने के नाम पर तो कांखने लगती हैं और खाना पूरे डेढ़ पसेरी खा जाती हैं. कांखना – शौच के लिए जोर लगाना, पसेरी पांच सेर.
काँख बल सो निज बल. कांख – बगल. अपने शरीर का बल ही सच्चा बल है.
काँटा बुरा करील का और बदली की घाम, सौत बुरी है चून की और साझे को काम. करील का काँटा बुरा होता है और बादलों के साथ जो धूप होती है वह बुरी होती है (क्योंकि वह बहुत तेज होती है). सौत चाहे आटे की बनी हुई क्यों न हो बुरी होती है और साझे का काम बुरा होता है (इस कहावत का सबसे मुख्य सन्देश यही है).
कांकर तीत, कांकर के बियो तीत. कांकर – ककड़ी. बिया – बीज, तीत – कड़वा. किसी दुष्ट आदमी की औलादें भी दुष्ट हों तो.
कांट कंटीली झांखड़ी, लागे मीठा बेर. बेर जैसा मीठा फल कंटीली झाड़ियों में ही लगता है. मनचाही वस्तु को प्राप्त करने के लिए बहुत से संकटों से गुजरना पड़ता है.
कांटे से कांटा निकलता है (काँटे से काँटो निकरत). दुष्ट व्यक्ति को दुष्टता से ही ठीक किया जा सकता है.
कांटे से कांटो बिंधो. काँटे से काँटा बिंधा है (मामला अटक गया है). जैसे को तैसा मिल गया है.
कांटों से बाड़ और वचनों से राड़. काँटों से बाड़ बनती है और दुर्वचनों से राड़ (झगड़ा).
कांधिये किराए पर नहीं मिलते. कांधिये – अर्थी को कंधा देने वाले. जो लोग धन के घमंड में अपने नातेदारों का आदर नहीं करते उन्हें सीख देने के लिए.
कांधे डाली झोली, डोम छोड़ा न कोली. भीख मांगने वाले किसी को नहीं छोड़ते. डोम – श्मशान में काम करने वाले लोग. कोली – मछुआरा.
कांसी, कुत्ती, कुभार्या, बिन छेड़े कूकंत. कांसे की थाली, कुतिया और झगड़ालू पत्नी बिना छेड़े ही बोलती हैं.
कांसे को सुर कांसे में ही रहन दो. कांसा – मिश्र धातु जो ताँबा और जस्ते से मिल कर बनती है. इसके बने बर्तन थोड़ी सी ठोकर लगने से खनकते हैं. काँसे का सुर काँसे में ही रहने दो, अर्थात घर की बात घर में ही रहने दो.
काक कहहिं पिक कंठ कठोरा. कौआ कह रहा है कि कोयल की आवाज कर्कश है. कोई मूर्ख व्यक्ति किसी विद्वान पर आक्षेप करे तो.
काका काहू के न भए. जो व्यक्ति अपने ही लोगों को धोखा दे उस के लिए मज़ाक में.
काका की भैंस, भतीजा लड़े कुश्ती. अपने रिश्तेदारों के बल पर उछलने वाले व्यक्तियों के लिए.
काका के हाथ में कुलहाड़ी हल्की मालूम होती है. जब खुद उठानी पड़े तो मालूम होता है कि कुलहाड़ी कितनी भारी है. बच्चों को पालने में कितनी मेहनत पड़ती है यह तब मालूम पड़ता है जब खुद बच्चे पालने पड़ते हैं.
काका छबीली ने मोह लये. जब कोई अपने से बड़ा और समझदार व्यक्ति किसी स्त्री के मोहजाल में फंस जाए या दूसरों की बातों में आ जाय तब कहते हैं.
काका जी को मरता देख मरने से मन हट गया. जो लोग बात बात पर मरने की धमकी देते हैं उन पर व्यंग्य. दूसरा अर्थ है कि अपने किसी सम्बंधी की मृत्यु होने पर मालूम पड़ता है कि मृत्यु कितना भयावह अनुभव है.
काका ने पी, भतीजे को चढ़ी. जो लोग अपने रिश्तेदारों के बल पर ऐंठ दिखाते हैं उन पर व्यंग्य.
काग कुल्हाड़ी कुटिल नर काटे ही काटे, सुई सुहागा सत्पुरुष सांठे ही सांठे. कौवा, कुल्हाड़ी और दुष्ट पुरुष केवल काटना ही जानते हैं जबकि सुई, सुहागा और सत्पुरुष केवल जोड़ते ही हैं.
काग दाहिने खेत सुहाये, सुफल मनोरथ समझो भाये. यात्रा पर जाते समय यदि दाहिनी ओर खेत में कौवा दिखाई दे तो शुभ शगुन माना जाता है. सुहाये – शोभित हो.
काग पढ़ायो पीन्जरो, पढ़ गयो चारों वेद, समझायो समझो नहीं, रह्यो ढेढ को ढेढ. कहावत का अर्थ है कि कितना भी प्रयास करो मूर्ख आदमी मूर्ख ही रहता है. सन्दर्भ कथा – एक महात्मा जी अपनी विद्या पर बड़ा गुमान था. उन्होंने एक कौवे को पिंजरे में बंद कर के अपनी विद्या के बल पर चारों वेद पढ़ा दिए. पर जैसे ही पिंजड़े का दरवाजा खोला वह बाहर निकल कर विष्टा खाने को भागा.
कागज की नाव ज्यादा देर नहीं चलती (कागज़ की नाव, आज न डूबी कल डूबी). कागज़ की नाव पानी में अधिक देर नहीं चल सकती, कुछ देर बाद गल जाएगी. झूठ के सहारे या अपर्याप्त साधनों के सहारे खड़ा किया गया व्यापार अधिक दिन नहीं चल सकता.
कागज की भसम किन भस्मों में, बिन ब्याहा खसम किन खसमों में. कोई स्त्री बिना विवाह के किसी पुरुष को पति नहीं मान सकती. ऐसा सम्बन्ध उतना ही महत्वहीन है जितनी कागज़ की राख. आजकल बहुत सी लड़कियाँ किसी पुरुष के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहती हैं. उन के लिए सीख.
कागज थोड़ा प्रेम घना. कागज में स्थान इतना कम है कि लिख कर प्रेम प्रकट नहीं किया जा सकता.
कागज हो तो हर कोई बांचे, भाग न बांचा जाए. कागज पर लिखा हर कोई पढ़ सकता है पर भाग्य में क्या लिखा है यह कोई नहीं पढ़ सकता. रूपान्तर – चिठिया हो तो हर कोई बांचे, भाग न बांचे कोय.
कागभगोड़ा न खावे न खावन दे. खेत में बांस की खपच्चियों को कुरता पहना कर उसके ऊपर उल्टा मटका रख देते हैं कि दूर से कोई आदमी खड़ा हुआ लगता है. इस को देख कर पक्षी डर कर खेत में नहीं आते. कोई ईमानदार हाकिम न खुद रिश्वत लेता हो और न लेने देता हो तो उस के मातहत चिढ़ कर ऐसे बोलते हैं.
कागा कहा कपूर चुगाए, श्वान न्हवाए गंग. कौवे को कपूर खिलाओ और कुत्ते को गंगा में नहलाओ तो भी इनका स्वभाव नहीं बदलेगा.
कागा किस का धन हरे, कोयल किस को देय, मीठ बोल के कारने जग अपनो कर लेय. न कौवा किसी का कोई नुकसान करते है और न ही कोयल किसी को कुछ देती है. कौवे की बोली कर्कश है इसलिए सब उससे चिढ़ते हैं और कोयल मीठा बोलती है इसलिए सब को अपना बना लेती है.
कागा कूकुर और कुमानुस तीनों जात कुजात. कौवा, कुत्ता और कुमानुष तीनों ही निकृष्ट श्रेणी के जीव होते हैं.
कागा कोयल औ खरगोस, ये तीनहुँ नहिं मानें पोस. इन तीनों को पालतू नहीं बनाया जा सकता. इस से मिलती जुलती कहावत है – तुरुक तीतरा और खरगोस, ये तीनहुँ नहिं मानें पोस.
कागा बोले, पड़ गए रौले. 1.भोर होते ही कागा बोलता है और दुनिया की दौड़ भाग शुरू हो जाती है. 2.कुटिल आदमी कुछ का कुछ बोल कर झगड़े शुरू करा देते हैं.
कागा रे तू मल मल नहाए, तेरी कालिख कभी न जाए. कौवा कितना भी मल मल कर नहा ले उस की कालिख कभी नहीं जाती. कोई दुष्ट पापी व्यक्ति गंगा में स्नान कर रहा हो तो उस पर व्यंग्य.
काचर का बीज, एक ही काफी. काचर – एक छोटी ककड़ी जिस का बीज खट्टा और कड़वा होता है और एक ही बीज मनों दूध को फाड़ देता है. झगड़ा कराने वाले कुटिल व्यक्ति के लिए.
काछ काछें और, नाच नाचें और. काछ – पहनावा. दिखावा कुछ और करना, काम कुछ और करना.
काज परै कछु और है, काज सरै कछु और. ऐसे लोगों के लिए जिनका व्यवहार काम पड़ने पर कुछ और होता है और काम निकल जाने पर कुछ और होता है. रूपान्तर – काम परे कछु और है, काम सरे कछु और.
काज से काज कि बकबक से काज. कोई आदमी अच्छा काम करता हो लेकिन बकबक भी बहुत करता हो तो उस की बातों का बुरा न मान कर केवल उसके काम से काम रखना चाहिए.
काजर गया बिहार, बहुरिया निहुरी ही है. निहुरी – झुकी हुई. कोई व्यक्ति किसी वस्तु की प्रतीक्षा में बैठा रह जाय तो मजाक में कहा जाता है कि वह चीज तो बहुत दूर चली गई. तुम कब तक यूँ ही बैठे रहोगे.
काजल की कोठरी में कैसो भी सयानो जाय, एक लीक काजल की लागे रे लागे रे भाई. गलत काम को आदमी कितनी भी होशियारी से करे कुछ न कुछ दाग लग ही जाता है.
काजल लगाते आँख फूटी. अच्छा काम करने की कोशिश में भारी नुकसान हो जाना.
काजी का प्यादा घोड़े पे सवार. अफसरों के मातहत अपने आपको अफसरों से कम नहीं समझते.
काजी काज करें, निकम्मे छींटे कसें. काम करने वाले काम करते हैं तो निकम्मे लोग उन का मजाक उड़ाते हैं.
काजी की कुतिया कहाँ जा के ब्याहेगी. जो आदमी अपने को बहुत होशियार समझता हो और एक सामान खरीदने के लिए पच्चीसों दुकानें देखता हो उस का मजाक उड़ाने के लिए दुकानदार ऐसा बोलते हैं.
काजी की घोड़ी कोई घी थोड़े ही मूतती है. बड़े आदमी के नौकर चाकर जानवर सब अपने आप को वीआईपी समझने लगते हैं, उनका मजाक उड़ाने के लिए.
काजी की मारी हलाल होवे. मुसलमानों में किसी पशु का वध करने का खास तरीका होता है. उसी तरह करने पर उसके मांस को हलाल (धर्म सम्मत) माना जाता है नहीं तो वह हराम (निषिद्ध) हो जाता है. कोई अति प्रभावशाली व्यक्ति अगर किसी जानवर को मारे तो सब उसे हलाल मान लेते हैं चाहे उसने कैसे भी किया हो.
काजी की लौंडी मरी सारा शहर आया, काजी मरे कोई न आया. जब आदमी ऊँचे पद पर होता है तो उसके मातहतों तक की बड़ी पूछ होती है और जब वह पद पर नहीं रहता तो उसे भी कोई नहीं पूछता.
काजी के घर के चूहे भी सयाने. बड़े आदमी के नौकर, चाकर, चमचे आदि अपने को बहुत होशियार समझते हैं.
काजी के मरने से क्या शहर सूना हो जाएगा. कोई कितना बड़ा आदमी क्यों न हो, उसके मरने से संसार के कार्य रुकते नहीं हैं.
काजी जी दुबले क्यों, शहर के अंदेशे से. (काजी जी तुम क्यों दुबले, शहर का अंदेशा). जिम्मेदार व्यक्ति को हमेशा कोई न कोई चिंता लगी रहती है.
काजी जी पहले अपना आगा ढको, पीछे नसीहत देना. जो बड़े हाकिम खुद तो भ्रष्ट हों और दूसरों को ईमानदारी का उपदेश दे रहे हों, उन को आईना दिखाने के लिए यह कहावत कही जाती है.
काटन आई चारा, खेत पर इजारा. इजारा – ठेका, पट्टा. चारा काटने को आई और खेत पर अपना दावा ठोंकने लगी. अनधिकार चेष्टा करने वालों के लिए.
काटना छोड़ दिया तो फुंकारते तो जाओ (काटबो छोड़ दओ तो फुंकारत तौ जाओ). सीधे सरल व्यक्ति को लोग जीने नहीं देते. इसलिए कभी कभी थोड़ा-बहुत भय भी दिखाना पड़ता है. सन्दर्भ कथा – एक समय किसी सर्प ने एक साधू के उपदेश से काटना बिलकुल छोड़ दिया. इस पर लोग उसे बड़ा तंग करने लगे. जो आता ढेला मारता. गुरू को जब इसका पता चला तो उन्होंने कहा, भाई काटना छोड़ दिया, ठीक किया. परन्तु थोड़ा-बहुत फुंकारते जाया करो, जिससे लोग तुमसे डरते रहें, क्योंकि उसके बिना दुनिया में काम नहीं चलता.
काटने वाले को थोड़ा और बटोरने वाले को बहुत. अनाज की कटाई के बाद बचे खुचे गिरे हुए अनाज को बटोरने के लिए लोग लगाए जाते हैं. बटोरे हुए अनाज का कुछ हिस्सा बटोरने वालों को दे दिया जाता है. जहाँ मुख्य काम करने वाले को कम और आलतू फ़ालतू लोगों को ज्यादा मिल जाए वहां यह कहावत कहते हैं.
काटे कटे, न मारे मरे. आसानी से जो काम न हो. कोई आदमी बहुत प्रयास के बाद भी काबू न आए तो भी.
काटेहि पर कदरी फरे, कोटि जतन कोउ सींच, बिनय न मान खगेस सुनु, डाटेहि पइ नव नीच. केले के पेड़ को कितना भी सींचो, वह काटने पर ही फल देता है. नीच व्यक्ति विनम्रता से नहीं डांटने से ही मानता है.
काटो सांप जहाँ मन भावे. दुश्मन से परेशान होकर उसके हवाले अपने को सौंपना.
काठ की घोड़ी पाँवों नहीं चलती. बनावटी चीज़ असल की तरह काम नहीं कर सकती.
काठ की तलवार, क्या करेगी वार. उपरोक्त के सामान.
काठ की भवानी को मकरा के अच्छत. जो जैसा हो उसका सम्मान भी वैसा ही होता है. लकड़ी की प्रतिमा है तो मकरा (एक घटिया अनाज) का अच्छत चढ़ाकर ही पूजा की जाएगी.
काठ की हांडी बार बार नहीं चढ़ती है. (फेर न ह्वैहैं कपट सों, जो कीजै ब्यौपार, जैसे हांडी काठ की, चढै न दूजी बार). अगर कोई हंडिया लकड़ी की बनी हो तो आप उस में बार बार खाना नहीं पका सकते. एक आध बार में ही वह जल जाएगी. झूठ और बहाने बाजी से एकाध बार ही काम निकाला जा सकता है पर बार-बार नहीं.
काठ छीलो तो चिकना, बात छीलो तो रूखी. आपसी बातचीत में बहुत बहस नहीं करनी चाहिए और किसी से कोई बात बहुत खोद खोद कर नहीं पूछनी चाहिए (इससे संबंधों में रूखापन आ जाता है).
काणी अपनी टेंट न निहारे, दूजे को पर पर झांके. जो लोग अपनी कमियाँ न देख कर दूसरे की गलतियाँ निकालते रहते हैं उनके लिए.
काणी का संग सहा न जाए, कानी बिना भी रहा न जाए. किसी व्यक्ति की पत्नी कानी है तो उसके साथ रहने में भी परेशानी है और उसके बिना काम भी नहीं चलता.
काणी को सराहे काणी को बाप (कानी को सराहे कानी की माँ). औलाद कैसी भी हो माँ बाप हमेशा उसकी तारीफ़ ही करते हैं. क्योंकि उन्हें अपना बच्चा प्रिय होता है और इसलिए भी क्योंकि वे उसका उत्साह बढ़ाना चाहते हैं.
काणे की आंख में डाला घी और यूँ कहे मेरी फोड़ दी. (हरयाणवी कहावत) किसी का भला करने की कोशिश करो और वह आपसे लड़ने को आ जाए तो.
कातिक कुतिया, माघ बिलाई, चैते चिड़िया, सदा लुगाई. कुतिया कार्तिक माह में, बिल्ली माघ में और चिड़िया चैत्र में रजस्वला होती हैं जबकि मानव स्त्रियाँ प्रत्येक माह में रजस्वला होती हैं.
कातिक जो आंवर तले खाय, कुटुम समेत बैकुंठ जाय. आंवर – आंवला. कार्तिक माह में जो आंवले की पूजा करता है वह बैकुंठ जाता है.
कातिक मास रात हर जोतौ, टांग पसार घरै मत सोतौ. (बुन्देलखंडी कहावत) कार्तिक माह में घर पर न सो कर रात को भी हल जोतो तो जुताई पूरी हो पाती है.
कातिक में जो सीत पिये तो पावे लाभ, जो भादों में पिये कोऊ तो ताप चढ़ावे. सीत- मट्ठा. कार्तिक माह में मट्ठा पीने से लाभ होता है और यदि भादों के महीने में पियें तो बुखार हो सकता है.
कान छिदाय सो गुड़ खाय. पहले के समय में गुड़ भी नियामत होता था, कभी कभी ही खाने को मिलता था. कान छिदाने के लिए बच्चे को गुड़ का लालच दिया जाता था. जो बच्चा कान छिदवाएगा उसी को गुड़ खाने को मिलेगा. कहावत का अर्थ है जो कष्ट उठाएगा वही इनाम पाएगा.
कान धरी छेरी. छेरी – बकरी. बकरी का कान पकड़ लेने से वह फिर भागने नहीं पाती. ऐसा मनुष्य जो पूर्णरूप से दूसरे के वश में हो और जो कहा जाय वही करे. प्रायः क्वाँरी लड़की के लिए प्रयुक्त.
कान प्यारे तो बालियाँ, जोरू प्यारी तो सालियाँ. मजाक की तुकबंदी है. कुछ लोग ऐसे भी बोलते हैं – कान से प्यारी बालियाँ, जोरू से प्यारी सालियाँ.
काना कुबड़ा तिरपटा, मूढ़ में गंजा होय, इन से बातें जब करो, हाथ में डंडा होय. (बुन्देलखंडी कहावत) तिरपटा – भेंगा, एंचा ताना. कुछ लोक विश्वास बड़े बेसिरपैर के होते हैं. इसी प्रकार का एक विश्वास यह भी है कि काना व्यक्ति, कुबड़ा, भेंगा और गंजा आदमी. ये सब दुष्ट होते हैं.
काना खसम भी घूर कर देखे. पति खुद काना है तब भी सुन्दर पत्नी पर रौब दिखा रहा है.
काना भी आँख मारे. किसी काम के लायक न होने पर भी करने की कोशिश करने वाले पर व्यंग्य.
काना मुझको भाय नहीं, काने बिन भी सुहाय नहीं. किसी स्त्री का पति काना है. वह उसे सुहाता नहीं है लेकिन उसके बिना भी काम नहीं चलता. इसी प्रकार की दुविधा वाली परिस्थिति में कहावत का प्रयोग होता है.
काना, कंजा, तंग गर्दनिया, इन तीनों से हारी दुनिया. कुछ लोगों के अनुसार काना, भूरी आँख वाला और छोटी गर्दन वाला ये तीनों बहुत धूर्त माने जाते हैं.
कानाफूसी में ही खड़गपुर का राज गया. अंदरूनी लोगों के षड्यंत्र से ही बहुत से राज्यों का पतन हुआ है.
कानी अपने मने सुहानी. कानी भी अपने आप को सुंदर समझती है.
कानी आँख देखे भले न, खटकती जरूर है. कानी आँख किसी काम की नहीं होती पर तकलीफ देती है. घर में कोई आदमी निकम्मा हो तो काम तो कुछ नहीं करेगा पर सब को परेशान जरूर करेगा.
कानी की आँख में कुस गयो, कानी को मिस भयो. कानी की आँख में तिनका गया तो उसे बहाना मिल गया कि तिनके से मेरी आँख फूट गयी. अपनी कमी छिपाने के लिए बहाना ढूँढना.
कानी के ब्याह को नौ सौ जोखें (कानी के ब्याह में फेरों तक खोट), (कानी की बरात में सब असगुन असगुन). जोखें – जोखिम, परेशानियाँ. कानी लड़की की शादी करना बहुत मुश्किल काम है. किसी मुश्किलकाम में बहुत सारी परेशानियाँ आ रही हों तो इस प्रकार से कहते हैं.
कानी को काजल न सुहाए. कानी को काजल अच्छा नहीं लगता(उस के लिए काजल की कोई उपयोगिता नहीं है).
कानी को काना प्यारा, रानी को राना प्यारा. अपना अपना सगा सम्बन्धी सब को प्यारा होता है.
कानी कौड़ी पास नहीं, नाम करोड़ीमल. गुण के विपरीत नाम.
कानी गदही सोने की लगाम. अपात्र के लिए विशेष सुविधाएँ.
कानी गाय के अलग बथान. कानी गाय अलग बंधना चाहती है क्योंकि उसे घास खाने में कठिनाई होती है. कमजोर बच्चा या व्यक्ति अलग से परवरिश चाहता है. रूपान्तर – कानी बिलरिया के अलगे डेरा.
कानी गाय बाह्मन के दान. घटिया चीज़ दान कर के पुण्य कमाने की कोशिश करना.
कानी गीदड़ी का ब्याह. जब धूप भी निकल रही हो और पानी बरस रहा हो तो बच्चे कहते हैं कि कानी गीदड़ी का ब्याह हो रहा है. कुछ लोग काले चोर का ब्याह बोलते हैं.
कानी बिना रहा न जाये, कानी को देख के अंखियाँ पिराएँ. कानी को देख कर मन कुढ़ता भी है और उस के बिना काम भी नहीं चलता.
कानी बिल्ली घर में सिकार. बिल्ली कानी है (अपाहिज है) तो बाहर न जा कर घर में ही शिकार करेगी. कोई अयोग्य व्यक्ति घर वालों को ही धोखा दे तो.
कानून के हाथ लम्बे होते हैं. कानून से बचने के लिए कोई कितनी भी दूर भाग जाए, कहीं भी छिप जाए, कानून अंततः उसे पकड़ ही लेता है.
कानून न कायदा, जी हुजूरी में फायदा. जो लोग कायदे और कानून की बात करते हैं वे पीछे रह जाते हैं और चमचागीरी करने वाले आगे बढ़ जाते हैं.
कानूनगो की खोपड़ी मरी भी दगा दे. कहावत कहने वाले के अनुसार कानूनगो इतने धोखेबाज़ होते हैं कि उनकी मरी हुई खोपड़ी भी इंसान के साथ दगा कर सकती है.
काने का नाम कमलनयन. गुण के विपरीत नाम.
काने की एक रग सिवा होती है. काने के पास धोड़ी सी अतिरिक्त कुटिलता होती है.
काने पे अंधा हंसे. कोई मूर्ख व्यक्ति अपने से अधिक बुद्धि वाले पर हंसे तो.
काने से काना कहो तब तो जानो टूटी, धीरे धीरे पूछो भैया कैसे तेरी फूटी. काने को अगर सीधे सीधे काना कह कर सम्बोधित करोगे तब वह बहुत नाराज होगा (संबंध ही टूट जाएगा). उससे हलके से पूछो कि भैया तेरी आँख में क्या हुआ था. रूपान्तर – कनवाँ से कनवाँ कहो तुरतईं जावे रूठ, हाँ हाँ के पूछिये कैसे गई थी फूट.
काने, टूंडे और लंगड़े में एक ऐब फालतू पाया जाता है. क्योंकि ये सभी हीन भावना से ग्रस्त होते हैं.
कानों में भलामानुस बिरला ही होय. काने लोगों में भले लोग मुश्किल से ही मिलते हैं.
काबुल में मेवा दई, ब्रज में दई करील. (काबुल में मेवा रच्यो, ब्रज में रच्यो करील). ईश्वर की अजीब माया है, काबुल जैसे गधों के देश में मेवा ही मेवा पैदा की है जबकि बृज जैसे पवित्र और प्रिय स्थान पर काँटों भरा करील.
काबुल में सब गधे ही गधे. जहाँ सब एक से बढ़ कर एक मूर्ख भरे हों वहाँ के लिए.
काबू आई गूजरी, गहरा बर्तन लाओ. ग्वालन कब्जे में आ गई है, गहरा बर्तन लाओ, ज्यादा दूध मिल जाएगा. किसी से लाभ पाने का मौका हाथ आया हो तो.
काम और लाम में बैर है. लाम – जल्दबाजी. जल्दबाजी में काम बिगड़ना तय है.
काम करने से कराना कठिन. अपने हाथ से काम करना कहीं आसान है, दूसरों से कराना बहुत कठिन है.
काम काज को थर थर काँपे, खाने को मरदानी. काम करने के नाम पर कमजोरी और बुखार, खाने के लिए पूरी ताकत के साथ तैयार.
काम की न काज की ढाई सेर अनाज की (काम का न काज का, दुश्मन अनाज का). जो काम काज कुछ न करे केवल खाने में होशियार हो. जो स्त्रियाँ अधिक खाती हैं उनके लिए घर की अन्य महिलाएं ऐसा बोलती हैं.
काम को काम सिखाता है. अनुभव से ही काम करना आता है. इस को इस प्रकार भी कह सकते हैं कि एक व्यक्ति के अनुभव से बहुत से लोग सीखते हैं.
काम को सलाम है. काम की ही प्रशंसा होती है.
काम क्रोध मद लोभ की जौं लों मन में खान, का पंडित का मूरखा दोउ एक समान. जब तक मन में काम, क्रोध, अहंकार और लोभ हैं तब तक पंडित और मूर्ख सामान ही हैं. इन को जीत कर ही व्यक्ति पंडित बन सकता है.
काम चोर, निवाले हाजिर. काम के नाम पर गायब और खाने के वक्त मौजूद.
काम जो आवे कामरी, का ले करे किमखाब (कुलांच). कामरी – कम्बल, किमखाब, कुलांच – महंगा ऊनी वस्त्र. जहाँ कम्बल काम आना हो वहाँ कुलांच ले कर क्या करेंगे.
काम दाई का नाम भौजाई का. असल काम कोई और करे पर श्रेय किसी और को मिले तो.
काम धाम में आलसी भोजन में होशियार. काम के नाम पर सबसे पीछे और खाने पीने में चौकस.
काम न कोउ का बनि जाय, काटी अँगुरी मूतत नाँय (काटी उंगली पे न मूते). यदि किसी की कटी हुई उँगली इनके मूतने से ठीक हो जाए तो ये वह भी नहीं करेंगे. अत्यधिक स्वार्थी लोगों के लिए. (पुराने लोग मानते थे कि छोटे मोटे घाव पर मूत्र लगा देने से वह ठीक हो जाता है).
काम न धाम, साढ़े तीन हिस्सा. बिना कोई योगदान दिए बंटवारे में बहुत बड़ा हिस्सा माँगना.
काम न पड़ने तक सब दोस्त अच्छे. सारे दोस्त व रिश्तेदार तभी तक आपकी आवभगत करते हैं जब तक उनसे किसी काम के लिए न कहा जाए.
काम पड़े ते जानिए जो नर जैसो होए. कौन व्यक्ति कैसा है यह तभी समझ में आता है जब उस से कोई काम पड़ता है.
काम पड़े मूर्ख से तो मौन गहे रहिए. मूर्ख व्यक्ति से काम पड़े तो चुप रहना चाहिए. अगर आप चुप रहेंगे तब तो वह शायद काम कर भी दे, पर कहने से कभी नहीं करेगा.
काम रहे तक काजी, न रहा तो पाजी (काम रहे तो काजी न रहे तो पाजी). 1.जब तक किसी से काम अटका रहा तब तक उस की जी हुजूरी करते रहे, काम निकलते ही गालियाँ देने लगे. 2. जब तक व्यक्ति जीविका के लिए काम रहता है तब तक ही उस की इज्ज़त रहती है.
काम सरा दुख बीसरा, छाछ न देत अहीर. जब तक अहीर को आपसे काम था तब तक वह छाछ ला कर दे रहा था. अब काम निकल गया और उस की परेशानी दूर हो गई तो वह छाछ क्यों ला कर देगा.
काम ही करता तो घर ही बहुत काम था. कामचोर आदमी जो काम से बचने के लिए घर छोड़ कर भागा है उससे काम करने के लिए कहा जाए तो वह ऐसे बोलता है.
कामिनि गरभ औ खेती पकी, ये दोनों ही दुर्बल बदी. गर्भवती स्त्री और पक कर तैयार फसल, ये दोनों ही कमजोर माने जाते हैं. बच्चा सुरक्षित हो जाय व खेती का अनाज घर आ जाय तो समझो कि अब लाभ मिला.
कामिनी मोहिनी रूप है. स्त्री अपने मोहपाश में सब को बाँध सकती है.
कामी की साख नहीं, लोभी की नाक नहीं. कामुक व्यक्ति का कोई सम्मान नहीं करता और लोभी का अपना कोई आत्मसम्मान नहीं होता. नाक से अर्थ यहाँ आत्मसम्मान से है.
कामी क्रोधी लालची, इनसे भक्ति न होय, भक्ति करे कोई सूरमा, जाति बरन कुल खोए. कबीर दास जी कहते हैं कि कामी, क्रोधी और लालची, ऐसे व्यक्तियों से भक्ति नहीं हो पाती. भक्ति तो कोई सूरमा ही कर सकता है जो अपनी जाति, कुल, अहंकार सबका त्याग कर देता है.
कायथ के गाँव में धोबी पटवारी. उलटी बात. कायस्थों जैसे कानूनचियों के गाँव में घोबी जैसा अनपढ़ आदमी कैसे पटवारी बन सकता है.
कायर का हिमायती भी हारा है (बुजदिल का हिमायती भी हारे). कायर आदमी कभी नहीं जीत सकता. यहाँ तक कि उसका पक्ष लेने वाला भी हार जाता है.
कायस्थ का बच्चा कभी न सच्चा. कायस्थों से अत्यधिक द्वेष रखने वाले (या सताए गए) व्यक्ति का कथन. समाज के सभी वर्गों के लोगों के लिए इस प्रकार की कहावतें मिलती हैं, और ये कहावतें सच नहीं होतीं इसलिए इनका बुरा नहीं मानना चाहिए. कुछ लोग इसके आगे भी बोलते हैं – जब सच्चा तो – – – का बच्चा.
कायस्थ का बेटा, पढ़ा भला या मरा भला. कायस्थों के यहाँ केवल नौकरी करने का रिवाज़ होता है जिसके लिए पढ़ना लिखना जरूरी है, जो नहीं पढ़ा वह मरे के समान.
कायस्थ मीत ना कीजिए, सुन कंता नादान, राजी हो तो धन हरें, बैरी हो तो जान. कायस्थ से दोस्ती नहीं करनी चाहिए वह आपको कोर्ट कचहरी के दंड फंड में फंसा कर कुछ भी कर सकता है. वह दोस्ती का दिखावा कर के आपका धन हर लेगा और कहीं दुश्मनी हो गई तो जान ही ले लेगा.
कायस्थों की घुट्टी में भी शराब. कायस्थों में शराब के अत्यधिक चलन पर व्यंग्य. खुद बच्चन जी ने ‘मधुशाला’ में लिखा है – मैं कायस्थ कुलोद्भव मेरे पुरखों ने इतना ढाला, मेरे तन के लोहू में है पचहत्तर प्रतिशत हाला.
काया और माया का क्या भरोसा (काया और माया का गर्व कैसा). ये दोनों क्षण भंगुर हैं. काया ढल जाती है और माया चली जाती है.
काया कष्ट है, जान जोखिम नहीं. ऐसी बीमारी जो जानलेवा न हो.
काया का पेट भर जाए पर माया का न भरे. शरीर की भूख मिट सकती है पर मन का लालच नहीं.
काया पापी अच्छा, मन पापी बुरा. दिखा कर पाप करने वाला इतना बुरा नहीं जितना मन में पाप पालने वाला.
काया रहै निरोग जो कम खावै, उसका बिगड़ै ना काम जो गम खावै. कम खाने वाला स्वस्थ रहता है और संतोषी व्यक्ति का काम नहीं बिगड़ता. गम खाना – मन में संतोष रखना.
काया राखे धर्म है. हम धर्म का पालन तभी कर सकते हैं जब शरीर स्वस्थ हो. इसलिए अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए. संस्कृत में कहा गया है – शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनम्.
काया राखे धर्म, पूंजी राखे बनिज (व्यापार). काया को ठीक रखोगे तो धर्म कर्म कर पाओगे और धर्म तुम्हारी काया की रक्षा करेगा. इसी प्रकार पूंजी बना कर रखोगे तो व्यापार कर पाओगे और व्यापार पूंजी की रक्षा करेगा.
काया राम की माया राज की. शरीर भगवान का बनाया हुआ है इसलिए उस पर उन्हीं का अधिकार है, जब कि धन धान्य राज्य की संपत्ति है. मनुष्य का अपना कुछ नहीं है, न धन न शरीर.
कारज धीरे होत है काहे होत अधीर. कोई भी काम धीरे धीरे ही पूरा होता है, इसलिए बेचैन नहीं होना चाहिए.
कारज पीछे कीजिए, पहले जतन विचारि. पहले सोच समझ कर तब कोई काम करना चाहिए.
कारी कबरी कुछ तो करो. उजला काम न कर सको तो काला या चितकबरा कुछ तो करो. कुछ न करने से अच्छा है कि प्रयास करो चाहे गलत ही क्यों न हो जाए.
कार्तिक का मेह कटक बराबर. कटक – फ़ौज. कार्तिक कि वर्षा फसलों का उतना ही नुकसान करती है जितना वहाँ से गुजरने वाली फ़ौज.
कार्तिक की छांट बुरी, बनिये की नाट बुरी, भाइयों की आंट बुरी, हाकिम की डांट बुरी. कार्तिक महीने की वर्षा बुरी, उधार देने के लिए बनिए की मनाही बुरी, भाइयों की अनबन बुरी और हाकिम की डांट-डपट बुरी होती है.
काल आ जाए पर कल नहीं आता. ख़ास तौर पर उधार चुकाने के मामले में.
काल आ जाए पर कलंक न आए. सम्मानित लोग ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि मृत्यु भले ही आ जाए पर कलंक न लगे.
काल औ कर्ज़, किसान को खाएं. किसान को अकाल (अनावृष्टि) और कर्ज़ बर्बाद कर देते हैं.
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब, पल में परलय होएगी, बहुरि करैगो कब. हर कार्य समय पर करना चाहिए, टालना नहीं चाहिए. क्या मालूम कल क्या हो जाए.
काल कहीं नहीं जाता, हम ही चले जाते हैं. अत्यधिक स्वार्थी लोगों को सीख देने के लिए.
काल का मारा, सब जग हारा. काल के आगे सब बेबस हैं. इस से भिन्न एक और कहावत नीचे दी गई है –
काल का मारा, सब जगह हारा. समय का मारा व्यक्ति सब जगह नुकसान ही उठाता है.
काल के मारे न मरें, बामन बकरी ऊँट, वो मांगे, वो इत उत चरे, वो चाबे सूखा ठूँठ. ब्राह्मण, बकरी और ऊँट अकाल पड़ने पर भी जीवित रहते हैं. ब्राह्मण भिक्षा मांग कर, बकरी इधर उधर कुछ भी चर के और ऊँट सूखे ठूँठ खा कर काम चला लेता है.
काल के हाथ कमान, बूढ़ा बचे न जवान (काल न छोड़े राजा, न छोड़े रंक). काल किसी को नहीं छोड़ता, न बूढ़े को न न बच्चे को, न राजा को न गरीब को.
काल गया पर कहावत रह गई. समय बीत जाता है पर जो कुछ हम ने किया है (अच्छा या बुरा) उसकी कहानियाँ रह जाती हैं. जो कहावतें हम पढ़ रहे हैं यह भी काल के साथ समाप्त नहीं होतीं.
काल जाए पर कलंक न जाए. समय बीतने के बाद भी किसी के ऊपर लगा हुआ कलंक नहीं जाता.
काल टले कलाल न टले. आदमी मौत के पंजे से निकल सकता है पर शराब के पंजे से नहीं.
काल पड़े पे कोदो मीठ. यूँ तो कोदों एक घटिया अनाज माना जाता है लेकिन अकाल पड़ने पर वह भी अच्छा लगता है.
काला अक्षर भैंस बराबर. अनपढ़ व्यक्ति का मज़ाक उड़ाने के लिए यह कहावत बोली जाती है.
काला करम का धौला धरम का. जब तक बाल काले हैं (युवावस्था है) तब तक कर्म करना चाहिए, जब बाल सफ़ेद होने लगें तो धार्मिक कार्यों पर ध्यान देना चाहिए.
काला कुत्ता, मोती नाम. गुण के विपरीत नाम.
काला मुँह करील के दांत. अत्यधिक कुरूप व्यक्ति.
काला हिरन न मारियो, सत्तर होवें रांड. काला हिरन बहुत सी मादाओं के बहुत बड़े झुंड में अकेला नर होता है. कहावत का अर्थ है कि ऐसे व्यक्ति को बेसहारा मत करो या मत मारो जिस पर बहुत लोग आश्रित हों.
काली ऊन और कुमानुस चढ़े न दूजो रंग. काली ऊन पर दूसरा रंग नहीं चढ़ता, इसी प्रकार कुमानुष को अच्छे संस्कार नहीं दिए जा सकते.
काली भली न सेत, दोनहूँ मारो एकहि खेत. जब दोनों ही विकल्प खतरनाक हों तो दोनों से छुटकारा पा लेना चाहिए. सन्दर्भ कथा – जब दोनों ही विकल्प खतरनाक हों तो दोनों से छुटकारा पा लेना चाहिए. एक राजा के दो रानियाँ थीं. राजा को नहीं मालूम था कि वे दोनों ही जादूगरनी थीं. वे दोनों राजा को अपने वश में करना चाहती थीं. एक ने सफ़ेद (श्वेत, सेत) चिड़िया बन गई और एक काली और आसमान में उड़ कर एक दूसरे पर हमला करने लगीं. राजा को मालूम हुआ तो उसने मंत्री से पूछा इनमें से किस जादूगरनी को मार दूँ. इस पर मंत्री ने जवाब दिया कि काली और सफ़ेद दोनों ही खतरनाक हैं दोनों को एक साथ मार दो. कहीं कहीं इस कहानी में चार रानियों का जिक्र है – काली भली न कबरी, भूरी भली न सेत, चारों मारो एकहि खेत.
काली माई करिया, भवानी माई गोर. ईश्वर की हर रचना अपने आप में विशिष्ट है, काले भी अच्छे हैं और गोरे भी. हिन्दू लोग रंगभेद नहीं करते, काले और गोरे दोनों को पूजते हैं.
काली मिर्च कुलंजन सक्कर, तीनों पीसें भाग बरोबर, आधो तोला फंकी मारें, मानो कोकिल राग उचारें. (बुन्देलखंडी कहावत) उपरोक्त तीनों चीजों का सेवन करने से स्वर मधुर हो जाता है.
काली मुर्गियां भी सफ़ेद अंडे देती हैं. मुर्गी चाहे किसी भी रंग की हो, अंडा सफेद रंग का ही देती है. मनुष्य की उपयोगिता को उस के बाहरी रंग रूप या आकार से नहीं उसके कम से ही आँका जा सकता है.
काले कपड़े पर काला दाग नहीं दीखता. चरित्रहीन और बदनाम व्यक्ति कितने भी गलत काम करे उन पर कोई ध्यान नहीं देता.
काले का काटा पानी नहीं मांगता. काले नाग द्वारा डसा हुआ व्यक्ति तुरंत मर जाता है. बहुत धूर्त व्यक्ति के लिए कहावत कही गई है कि उस से धोखा खाया आदमी फिर उबर नहीं सकता. देखिए परिशिष्ट.
काले का क्या काला होगा. कलुषित चरित्र वाले पर और अधिक कालिख क्या लगेगी.
काले काले किशन जी के साले. यूँ तो यह बच्चों की कहावत है, लेकिन बड़े लोगों के भी काम आ सकती है. काले लोगों को अपने को कम करके नहीं आंकना चाहिए.
काले काले राम के, भूरे भूरे हराम के. जो काले हैं वे भगवान राम के वंशज हैं, भूरे रंग के हैं वे अवश्य ही वर्ण संकर होंगे. हिन्दुस्तानी लोग अंग्रेजों के लिए इस प्रकार से बोलते थे.
काले के आगे दिया नहीं जलता. लोक विश्वास है कि काले नाग के आगे दिया नहीं जलता. संस्कृत में इस कहावत को इस प्रकार से कहा गया है – समीपे कृष्णसर्पस्य दीपो नैव प्रकाशते.
काले के काटे का यंत्र न तंत्र. काले नाग के काटने पर कोई तंत्र मंत्र काम नहीं करता.
काले के काला नही तो चितकबरा जरूर जन्मे. दुष्ट व्यक्ति की संतान पूरी दुष्ट न भी हो तो भी उस में कुछ न ओछापन तो अवश्य ही आ जाता है. संतान में माता पिता के कुछ गुण अवश्य आते हैं.
काले के संग बैठ कर कालिख ही लगती है (काली हांडी के पास बैठ कर कालिख जरूर लगती है). बदनाम लोगों की संगत में बदनामी अवश्य होती है. दुर्जन का संग करने से कलंकित होना पड़ता है.
काले को उजला कब सुहावे. बुरी मानसिकता वाले व्यक्ति को भले लोग अच्छे नहीं लगते.
काले कौए खा कर नहीं आया है. एक पुराना विश्वास है कि काले कौए खाने से आदमी अमर हो सकता है. रूपान्तर – काले कौए खाए कोई अमर नहीं होता.
काले फूल न पाया पानी, धान मरा अधबीच जवानी. जब धान के फूल काले होते हैं तब पानी देना आवश्यक होता है. उस समय पानी न देने से धान मर जाता है.
काले सर का एक न छोड़ा. यहाँ काले सर से अर्थ है जवान आदमी. दुश्चरित्र स्त्री के लिए कहा गया है.
काल्ह कुँवर आज राकस भया. कल का राजकुमार आज राक्षस हो गया. कोई भला व्यक्ति अचानक अपना चरित्र बदल कर दुष्ट और आततायी बन जाए तो.
काशी दुर्लभ ज्ञान पुंज, विश्वनाथ को धाम, मुअले पे गंगा मिले जीते लंगड़ा आम. काशी में रानी अहिल्याबाई होल्कर ने काशी विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कर के एक परम्परा शुरू की थी जो अब भी चालू है. सन्दर्भ कथा – सावन कृष्ण पक्ष एकादशी को बाबा विश्नाथ को 551 लंगड़े आमों का भोग लगाया जाता है. इसी पर यह कहावत बनी कि काशी दुर्लभ ज्ञान का क्षेत्र है, बाबा विश्वनाथ का धाम है. यहाँ मरने पर गंगा मिलती हैं और जीते जी लंगड़ा आम. जिस प्रकार दशहरी आम लखनऊ का है उसी प्रकार लंगड़ा आम मूलत: बनारस का है इसीलिए उसे लंगड़ा बनारसी भी कहते हैं
कासा भर खाना और आसा भर सोना. भर पेट खाना (कांसा भर) और इच्छानुसार सोना, मतलब बिलकुल आराम का जीवन. कांसा एक मिश्र धातु है जिस से बर्तन बनाए जाते थे.
काहु समय में दिन बड़ा. काहु समय में रात. मनुष्य के दिन सदा एक से नहीं रहते. कभी सुख अधिक होता है, कभी दुख.
काहू पे हंसिये नहीं, हंसी कलह की मूल. किसी की हंसी नहीं उड़ानी चाहिए, क्योंकि इससे लड़ाई होने का डर रहता है. महाभारत का युद्ध भी इसी हंसी के कारण हुआ था.
काहे को अनका लड़का रुलाए, अपना गुड़ छुपा कर खाए. अनका – दूसरे का. अपने पास जो कुछ है उसका प्रदर्शन कर के दूसरों का दुख मत बढ़ाओ.
किए धरे पर गू का लीपा. अच्छा ख़ासा काम कर के सत्यानाश कर देना.
किच्ची किच्ची कौआ खाए, दूध मलाई मुन्ना खाए. कौवा नाक से निकलने वाली रैंट को खा जाता है. बच्चे की नाक साफ़ करते समय बच्चे का ध्यान बंटाने के लिए माँ बोलती हैं कि यह गंदगी तो कौवे के लिए है मेरा मुन्ना दूध मलाई खाएगा.
कित काशी, कित काश्मीर, खुरासान, गुजरात, दाना पानी परसुराम बांह पकड़ ले जात. मनुष्य अपनी इच्छा से कहीं नहीं जाता, दाना पानी उसे वहां ले जाता है.
कितनहिं चिड़िया उड़े अकास, फेरि करे धरती की आस. चिड़िया कितनी भी आकाश में उड़ ले, फिर धरती पर लौटने की इच्छा करती है. कोई व्यक्ति कितना भी ऊँचा उठ जाए, अपनी जड़ों तक लौटने की इच्छा रखता है.
कितना अहिरा होय सयाना, लोरिक छोड़ न गावे गाना. लोरिक – अहीरों की वीरता का गीत. कहावतों में अहीरों का खूब मजाक उड़ाया जाता है. अहीर कितना भी होशियार हो, लोरिक के अलावा कुछ नहीं गा सकता.
कितना भी धाओ, करम लिखा सो पाओ. धाओ – दौड़ो. व्यक्ति कितनी भी दौड़ भाग कर ले, जितना भाग्य में लिखा है उतना ही पाता है.
कितना सा सपना और कितनी सी रात. जीवन कितना छोटा सा है, इस में कितने सपने देख लोगे.
कितनो अहीर पढ़े पुरान, तीन बात से हीन, उठना बैठना बोलना, लिए विधाता छीन. अहीर कितना भी पढ़ लिख जाए सभ्य समाज के शिष्टाचार नहीं सीख सकता.
किनारे पर भी कई नाव डूबी हैं. कार्य पूरा होने से बिलकुल पहले भी बिगड़ सकता है, इसलिए कार्य सम्पूर्ण होने तक पूरी सावधानी रखनी चाहिए.
किया चाहे चाकरी, राखा चाहे मान. नौकरी करने में बहुत सम्मान नहीं मिल सकता. कहावत का अर्थ है की अगर आप नौकरी करना चाहते हैं तो व्यर्थ की हेकड़ी न रखें.
किया चाहे नौकरी, सोया चाहे घर. नौकरी करने वाला अपनी इच्छानुसार घर पर आराम नहीं कर सकता.
किरपन (कृपण) के दालद (दारिद्र्य) नहीं, नहिं सूरा के सीस, दातारों के धन नहीं, न कायर के रीस. कंजूस व्यक्ति दरिद्र नहीं हो सकता, शूरवीर अपना सर हथेली पर लिए घूमते हैं (अर्थात उनका सर नहीं होता), दानी लोगों के पास धन नहीं ठहरता और कायर लोग क्रोध एवं स्पर्धा नहीं कर सकते.
किलाकोट, मंदिर, महल, द्विज, छत्री, गज, बाज, ये दस ऊँचे चाहिए, बैद ईख अरु नाज. (बुन्देलखंडी कहावत) किले का परकोटा, मंदिर, महल, ब्राहण, क्षत्रिय, हाथी, घोड़ा, वैद्य, गन्ना, और अनाज के पौधे, ये दस चीजें जितनी ऊँची हों उतनी अच्छी मानी जाती हैं. बाज शब्द का अर्थ यहाँ घोड़े से है (घोड़े को बाजि भी कहते हैं).
किले के पीछे से और मंदिर के आगे से निकलना चाहिए. किले में आगे पहरेदार होते हैं जो आने जाने वालों से बदसलूकी करते हैं इसलिए किले के सामने से नहीं निकलना चाहिए. मंदिर के सामने से ही निकलना चाहिए जिससे भगवान के दर्शन हो सकें.
किस किस का मन राखिए, बीच राह में खेत. रास्ते से लगा हुआ खेत हो तो किसान की बड़ी मुसीबत होती है. रास्ता चलने वाले सभी परिचित लोग उस से कुछ न कुछ सुविधा चाहते हैं.
किस चक्की का पिसा आटा खाया है. मोटे आदमी का मजाक उड़ाने के लिए.
किस बिरते पर तत्ता पानी. आजकल तो सभी लोग गर्म पानी से नहाते हैं. पहले के जमाने में नहाने के लिए गरम पानी बिरले लोगों को ही मिलता था. कोई ऐरा गैरा आदमी गरम पानी मांग रहा है तो उस से पूछा जा रहा है कि तुम्हारे अंदर क्या खास बात है कि जो तुम्हें गरम पानी दिया जाए. कोई अपात्र विशेष सुविधाएँ मांगे तो.
किस में हिम्मत है जो छेड़े दिलेर को, गर्दिश में घेर लेते हैं कुत्ते भी शेर को. जब शेर के बुरे दिन आते हैं तो उसे कुत्ते भी घेर लेते हैं, वैसे मज़ाल है कोई उस के आस पास भी फटक जाए.
किसने खोदी और कौन पड़ा. खाई किसी और ने खोदी और उसमें गिरा कोई और. किसी के कुकर्मों का फल कोई दूसरा भुगते तो.
किसने तुम्हें पीले चावल दिए थे. ब्याह आदि में पीले चावल देकर सगे-संबंधियों को न्योतने की प्रथा है. तुम्हें यहाँ कौन बुलाने गया था. जब कोई अनधिकृत रूप से दूसरे के काम में हस्तक्षेप करने पहुँच जाय.
किसान उपजाय, बनिया पाय, बनिक पूत खाय. किसान मेहनत कर के फसल उगाता है, बनिया उसे उधार वसूली के बहाने हड़प लेता है लेकिन कंजूस होने के कारण वह उस का उपभोग नहीं करता. अंततः बनिए का बेटा उससे गुलछर्रे उड़ाता है.
किसान को जमींदार जैसे बच्चे को मसान. किसान के लिए जमींदार उतना ही डरावना होता है जितना बच्चों के लिए प्रेत.
किसान चाहे वर्षा, कुम्हार चाहे सूखा. संसार में सभी व्यक्ति केवल अपना ही हित चाहते हैं. किसान भगवान् से प्रार्थना करता है वर्षा करने के लिए और कुम्हार प्रार्थना करता है वर्षा न करने के लिए. सन्दर्भ कथा – एक महात्मा जी के दो बेटियाँ थीं. एक का विवाह किसान के साथ हुआ था और दूसरी का कुम्हार के साथ. एक बार वह अपनी बेटियों से मिलने के लिए निकले. पहले वह किसान परिवार से मिलने पहुँचे. समधी और दामाद ने उनका स्वागत किया लेकिन वे सभी वर्षा न होने से चिंतित थे. बेटी ने कहा, पिता जी आप भगवान से प्रार्थना कीजिए कि वे जल्दी ही वर्षा करें, नहीं तो हमें भूखे मरने की नौबत आ जाएगी.
महात्माजी मन ही मन वर्षा के लिए प्रार्थना करते हुए दूसरी बेटी के घर पहुंचे. वहाँ बहुत सारे मिटटी के बर्तन भांडे धूप में सूख रहे थे. उन की बेटी ने प्रसन्न होते हुए बोली कि वर्षा न होने से उन्हें बहुत लाभ हुआ है. उस ने पिता से कहा कि वे भगवान से प्रार्थना करें कि अभी एकाध महीने और वर्षा न हो. कहावत का अर्थ है कि संसार में सभी व्यक्ति केवल अपना ही हित चाहते हैं
किसी का ऊँचा मस्तक देखकर अपना मस्तक मत फोड़ लो. किसी की उन्नति देख कर ईर्ष्या से मत जलो. भोजपुरी में कहावत है – केहू के ऊँच लिलार देखि के आपन लिलार फोड़ी नाहीं लेहल जाला.
किसी का गीत किसी का राग. कहानी किसी और की सुना कोई और रहा है.
किसी का घर जले कोई हाथ सेंके. नीच स्वार्थी लोगों के लिए जो दूसरों के कष्ट में अपना लाभ ढूँढ़ते हैं. इस कहावत को इस प्रकार से भी कहा गया है – किसी का घर जले, गुंडे हाथ सेकें.
किसी का चाम घिसे, किसी के दाम घिसें. कोई शरीर से मेहनत करता है तो कोई पैसा खर्च कर के काम कराता है. दोनों का काम एक दूसरे से चलता है. यही समाज की कार्य प्रणाली है.
किसी का पेट दुखे किसी की पीठ दुखे. कोई पेट की भूख से परेशान है और किसी को लेट कर आराम करते करते पीठ में दर्द हो गया है. सब का अपना अपना प्रारब्ध है.
किसी का मुँह चले किसी का हाथ (किसी की जीभ चलती है, किसी के हाथ चलते हैं). जो बोलने में तेज होता है वह बोली द्वारा दूसरे को कष्ट पहुँचाता है. जो बोलने में नहीं जीत पाता वह खिसिया कर हाथ उठाता है.
किसी का लड़का, कोई मन्नत माने. दूसरे की चीज़ के लिए आवश्यकता से अधिक चिंतित होना.
किसी का हाथी मरा, किसी की हांडी फूटी, पंडा बोले काली चीजों पे ग्रह है. कहीं की बात कहीं जोड़ कर लोगों को मूर्ख बनाने वाले पंडितों पर व्यंग्य.
किसी की जान गई, आपकी अदा ठहरी. 1. जो लोग कुटिल चाल चल कर मासूम बनने की कोशिश करते हैं उन पर व्यंग्य. 2. कुछ लोग अपने भोलेपन में अनजाने ही किसी का नुकसान कर बैठते हैं.
किसी की जोरू मरे, किसी को सपने में आवे. दूसरे के कष्ट में अनावश्यक भागीदारी.
किसी की बहू, कोई बरा बदलावे. बरा – कोहनी से ऊपर हाथ में पहनने का आभूषण. किसी की बहू और कोई सर्राफ की दूकान पर उसका बरा बदलवाने जाय. जब कोई बुरी नीयत से किसी की सहायता को उद्यत हो.
किसी की साई किसी को बधाई. साई माने वह रकम जो कोई काम करने से पहले पेशगी ली जाती है. मतलब पैसा किसी से लिया, काम किसी और का कर रहे हो.
किसी के पौ बारह, किसी के तीन काने. चौपड़ के खेल में पाव बारह एक अत्यंत लाभ की स्थिति है जबकि तीन काने बहुत हानि की. संसार में कोई बहुत मजे में है और कोई बहुत कष्ट में है, इस के ऊपर कहावत.
किसी के लिए कुआं खोदो तो अपने लिए खाई तैयार समझो. (खाई खने जो और को ताको कूप तैयार). जो दूसरों का बुरा करते हैं उनका बुरा अवश्य होता है.
किसी को अपना कर लो या किसी के हो के रहो. संसार में जीने का सर्वोत्तम रास्ता है प्रेम और बंधुत्व का.
किसी को तवे में दिखाई देता है, किसी को आरसी में. अपनी अपनी सामर्थ्य के अनुसार ही कार्य करना चाहिए. अगर हमारे पास आरसी नहीं है तो हम तवे में मुँह देख कर काम चलाएं.
किसी को बैंगन बाबरे, किसी को पथ्य समान. एक ही चीज़ किसी के लिए हानिकारक को सकती है और किसी के लिए लाभकारी. इंग्लिश में कहावत है – One man’s meat is another man’s poison.
किस्मत और औरतें, बेबकूफों पर मेहरबान. जो लोग जीवन में असफल रहते हैं वे आम तौर पर यह कहते पाए जाते हैं कि भाग्य ने उनका साथ नहीं दिया या भाग्य केवल मूर्खों का साथ देता है. इसी प्रकार जो लोग स्त्रियों को प्रभावित नहीं कर पाते वे भी ऐसा ही बोलते हैं.
किस्मत किसी को तख़्त देती है किसी को तलवार. भाग्य से ही कोई सिंहासन पर बैठ जाता है और कोई तलवार के घाट उतार दिया जाता है. इस कहावत को इस प्रकार भी कहा गया है – तख़्त या तख्ता अर्थात भाग्य से ही सिंहासन और भाग्य से ही फांसी का तख्ता.
किस्मत दे यारी, तो क्यों हो ख्वारी. भाग्य से अच्छे मित्र मिल जाएँ तो बर्बादी क्यों हो.
किस्मत न दे यारी, तो क्यों करे फौजदारी. यदि कोई व्यक्ति आपसे दोस्ती करना नहीं कहता (भाग्य में उससे दोस्ती नहीं लिखी है) तो उससे मारपीट तो मत करो. एकतरफा प्रेम करने वालों के लिए सीख.
किस्मत बहादुरों का साथ देती है. जो हिम्मत कर के आगे बढ़ता है, भाग्य भी उसी का साथ देता है.
किस्सों में साग जल गया. कोई काम करने के बीच में कहानी किस्से शुरू हो जाएं तो काम बिगड़ जाता है.
किहूँ भांत सोहत नहीं, केहरि ससक विरोध. सोहत नहीं – शोभा नहीं देता, केहरि – सिंह, ससक – शशक (खरगोश). सिंह को खरगोश से लड़ना शोभा नहीं देता. दोहे की पहली पंक्ति-अपने ते जे छुद्र अति, तिन्ह पै करिउ न क्रोध.
कीचड़ का आदी सूअर सफाई देख कर नाक भौं चढ़ाता है. जिस आदमी को गंदगी में रहने की आदत हो उसे सफाई अच्छी नहीं लगती. जिस आदमी के संस्कार घटिया हों उसे न्याय और धर्म की बातें अच्छी नहीं लगतीं.
कीड़ी को कन भर, हाथी को मन भर. कीड़ी – चींटी. ईश्वर सभी को उन की आवश्यकता के अनुसार देता है.
कीड़ी को तिनका पहाड़. चींटी के लिए तिनका भी पहाड़ के सामान है. छोटे आदमी के लिए छोटी छोटी समस्याएँ भी बहुत बड़ी होती हैं.
कीड़ी चाली सासरे, नौ मन सुरमा डाल. नौ मन सुरमा आँखों में डाल कर चींटी ससुराल जा रही है. कोई लम्बी चौड़ी हाँक रहा हो तो उसका मजाक उड़ाने के लिए.
कीड़ी संचे तीतर खाय, पापी को धन पर ले जाय. चींटी जो इकठ्ठा करती है उसे तीतर खा जाता है. इसी प्रकार पापी का धन दूसरा ले जाता है. इस कहावत में एक बात गलत है. चींटी द्वारा मेहनत से इकट्ठे किए गए सामान की तुलना पापी के धन से की गई है.
कीर्ति के गढ़ कभी नहीं ढहते. ईंट पत्थर का बना किला समय के साथ ढह जाता है लेकिन सत्पुरुषों की कीर्ति अमर रहती है.
कुँआरे को भी ससुराल की याद आये. कोई व्यक्ति किसी ऐसी बात पर उदास हो रहा हो जिस से उसका कोई लेना देना न हो, तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.
कुँए की छाँई कुअई में रहत. कुएँ की छाया कुएं में ही रहती है. बुद्धिमान लोग मन की बात मन में ही रखते हैं. पूरा दोहा इस प्रकार है – बात प्रेम की राखिये अपने ही मन माँहि, जैसे छाया कूप की बाहर निकसत नाँहि.
कुँए की मिट्टी कुँए में ही लगती है. कुआँ खोदने में जो मिट्टी निकलती है वह कुएँ की मुंडेर और चबूतरा बनाने में लग जाती है. व्यापार से व्यक्ति धन कमाता है लेकिन उस में से अधिकतर धन व्यापार में ही लग जाता है.
कुँए की मेंढकी क्या जाने समन्दर का फांट. संकुचित बुद्धि वाले लोग व्यापक सोच वाली बात नहीं समझ सकते.
कुँए में की मेंढकी करे सिन्धु की बात. जब कोई बहुत छोटी बुद्धि वाला आदमी बहुत बड़ी बड़ी बातें करे तो.
कुँए में पानी बहुतेरा, जो निकालो सो ही अपना. प्रकृति में संसाधनों की कमी नहीं है, उनका उपयोग करने वाला पुरुषार्थ चाहिए.
कुँए से कुआँ नहीं मिल सकता. दो बड़े व्यक्ति अपने अपने अहम के कारण एक दूसरे से न मिलते हों तो उन पर व्यंग्य.
कुंआरों का क्या अलग गांव बसता है. समाज में अलग अलग प्रकार के लोगों की बस्तियाँ अलग नहीं होतीं, सब मिल जुल कर एक साथ ही रहते हैं.
कुंजड़न अपने बेरों को खट्टा नहीं बतावे. अपने माल की बुराई कोई नहीं करता.
कुंजड़न की अगाड़ी और कसाई की पिछाड़ी. सब्जी वाली ताजी सब्जी आगे लगाती है इसलिए उससे आगे वाला माल लेना चाहिए. कसाई ताजा गोश्त पीछे लगाता है इसलिए उससे पीछे वाला माल लेना चाहिए.
कुंजड़े का गधा मरे और तेली सर मुंडाए. दूसरे के दुख में अनावश्यक दुखी होना.
कुंद हथियार और किया भतार किसी के काम नहीं आते. किया भतार – ऐसा पुरुष जिससे स्त्री का विधिवत विवाह न हुआ हो (केवल पति मान कर साथ रहती हो). जिस प्रकार बिना धार वाला हथियार किसी काम का नहीं होता, उसी प्रकार माना हुआ पति किसी काम का नहीं होता. लिव इन रिलेशन वालों के लिए सीख.
कुआँ – बावरी लाँघत फिरत. मूर्खता के काम करते घूम रहे हैं और मारे-मारे फिर रहे हैं.
कुआँ पनघट बैठ के, गोड़ लिए लटकाय, पीठ मलावें सौत से, मरने करें उपाय. मूर्खतापूर्ण कार्य करने वालों के लिए. कुएँ में पैर लटकाए बैठी हैं और सौत से पीठ मलवा रही हैं. सौत अगर मौका पा कर जरा सा धक्का दे देगी तो सीधे कुएँ में जा पड़ेंगी.
कुआँ बेचा है कुएं का पानी नहीं बेचा. माल बेचने के बाद बेइमानी करना. सन्दर्भ कथा – गाँव के एक ठाकुर ने किसी बनिए को अपना कुआँ बेचा. जब बनिया कुँए से पानी निकालने पहुँचा तो ठाकुर ने कहा कि मैंने तुम्हें कुआँ बेचा है कुएं का पानी नहीं बेचा है, पानी के लिए अलग से पैसा दो. विवाद बढ़ा तो बात पंचायत में पहुँची. सरपंच ने जब सारी कहानी सुनी तो उस की समझ में सारा माजरा आ गया. उसने बेईमान ठाकुर को सबक सिखाने के लिए फैसला दिया कि कुआँ बनिए का है और पानी ठाकुर का. ठाकुर को अपना पानी कुँए में रखने के लिए सौ रुपये रोज किराया बनिए को देना होगा
कुआं खुदाया बावड़ी, छोड़ गया परदेस. ऐसे व्यक्ति के लिए जिसने ऐश्वर्य के साधन जुटाए लेकिन छोड़ कर चला गया या जाना पड़ा.
कुआं तेरी माँ मरी, कुआं तेरी माँ मरी. कुएं में मुंह डाल कर जो बोलोगे वही आवाज प्रतिध्वनि (echo) द्वारा कुएं में से आएगी. कुआँ कुछ सोच समझ कर जवाब नहीं देता है. जो लोग बिना समझे दूसरों की बात दोहराते हैं उन पर व्यंग्य (जैसे आजकल सोशल मीडिया पर बिना सोचे समझे मैसेज फॉरवर्ड करने वाले लोग).
कुआंरा सब से आला, जिसके लड़का न साला (कुआंरा सब से आला है, न जोरू है न साला है). कुआंरेपन का अपना अलग ही आनंद है.
कुआंरी को सदा बसंत. वैश्या के लिए व्यंग्य.
कुआंरी खाय रोटियाँ, ब्याही खाय बोटियाँ. लड़की की शादी के बाद माँ बाप की मुश्किलें और बढ़ जाती हैं. बेटी घर में हो तब तक तो केवल रोटी का ही खर्च होता है, उसकी शादी के बाद ससुराल वालों का पेट भरते भरते वे बर्बाद हो जाते हैं. (दुर्भाग्य से हिन्दुस्तान में आज भी ऐसे बहुत से घर हैं).
कुएँ में गिर कर कोई भी सूखा नहीं निकलता. संसार में आ कर सभी मोह माया में लिप्त हो ही जाते हैं.
कुएँ में नथ गिर गई, मैं जानूँ ननद को दे दी (खोई नथ ननद के खाते). खोई हुई चीज को दान किया हुआ मान लेना. इससे मन को संतोष मिलता है.
कुएं के मेंढक को कुआं जहान. संकुचित सोच वाला अपने संकुचित दायरे में ही खुश रहता है.
कुकुर की चले तौ कठौतिऐ खाय डारै. कठौता- लकड़ी का परातनुमा बर्तन. कुत्ते का बस चले तो वह कठौती में रखी खाने पीने की वस्तुएं तो क्या कठौती को ही खा ले. खाने के लालची व्यक्तियों पर व्यंग्य.
कुकृत्य से नाम या सुकृत्य से नाम. अच्छा काम करोगे तो भी नाम होगा और बुरा काम करोगे तो भी. वह अलग बात है कि बुरे काम से जो नाम होता है उसे बदनाम कहा जाता है.
कुच बिन कामिनी, मुच्छ बिन जवान, ये तीनों फीके लगें, बिना सुपारी पान. स्त्री बिना स्तन के, युवा बिना मूँछ के और पान बिना सुपारी के आकर्षक नहीं लगते. अपनी मूंछों पर गर्व करने वाले लोगों का कथन.
कुचाल संग फिरना, आप मूत में गिरना. गलत आचरण वाले के साथ रहने वाला अपनी दुर्गति स्वयं करता है.
कुचाल संग हांसी, जीव जाल की फांसी. गलत चाल चलन वाली स्त्री के साथ हंसी मज़ाक करना अपने लिए मुसीबत बन सकता है. इसी प्रकार गृहस्थ स्त्री को भी दुष्चरित्र आदमी से हंसी मजाक नहीं करना चाहिए.
कुछ कमान झुके कुछ गोशा. गोशा – कमान का सिरा जिसमें तांत अटकाई जाती है. कोई कार्य करना हो या कोई मसला हल करना हो तो थोड़ी थोड़ी सब पक्षों को गुंजाइश करनी चाहिए.
कुछ करनी, कुछ करमगति. कुछ अपना प्रयास और कुछ भाग्य, दोनों से मिला कर प्रारब्ध बनता है.
कुछ कर्मों से हीन, कुछ लच्छनों से हीन. जिस आदमी का भाग्य भी साथ न दे रहा हो और जो मेहनत भी न करना चाहता हो.
कुछ काम करोगे ना जी, जलपान करोगे हाँ जी. काम करने के नाम बहाने, खाने पीने को मुस्तैद.
कुछ खाना और कुछ बाँध कर ले जाना. ऐसे लोगों के लिए जो खाते हैं और घर के लिए भी ले जाते हैं.
कुछ खो कर ही सीखते हैं. मनुष्य धोखा खा कर ही सीखता है.
कुछ तुम समझे, कुछ हम समझे. दो चालाक लोग एक दूसरे की चालाकी के बारे में समझ जाएं तो.
कुछ तुम समझो, कुछ हम समझें. 1. किसी के साथ कोई सौदा या साझा करने से पहले दोनों ही लोगों को एक दूसरे को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए. 2. दो लोगों में अनबन हो तो दोनों को ही एक दूसरे की बात समझ कर कुछ झुकना चाहिए.
कुछ तो खरबूजा मीठा, कुछ ऊपर से कंद. एक साथ दो दो अच्छाइयाँ.
कुछ तो खलल है जिस से यह खलल है. कहीं भी कोई खराबी पैदा हो रही है तो उस के पीछे कोई न कोई कारण जरूर होता है.
कुछ तो गेहूँ गीली, ऊपर से जिंदरी ढीली. गेहूँ गीला है इसलिए पिसने में दिक्कत है ऊपर से चक्की की कीली (जिंदरी) ढीली है इसलिए और नहीं पिस पा रहा है. परेशानी में परेशानी.
कुछ तो बावली, कुछ भूतों खदेड़ी. एक तो बावली ऊपर से भूत बाधा से ग्रस्त. जैसे कोई व्यक्ति डिप्रेशन जैसे मानसिक रोग से ग्रस्त हो और ऊपर से व्यापार में घाटे का तनाव हो जाए.
कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना. आप कोई भी काम भी करिए, दुनिया के लोग उसमें कमियाँ जरूर निकालते हैं. उन के कहने में आ कर अपना काम नहीं बिगाड़ना चाहिए. सन्दर्भ कथा – एक बार एक बाप-बेटा एक गधे को लेकर जा रहे थे. उन्हें इस तरह खाली गधे को ले जाते देख रस्ते में कुछ लोग बोले, देखो, कैसे मूर्ख हैं. गधे को खाली लिए जा रहे हैं और खुद पैदल चल रहे हैं. यह सुनकर पिता बेटे से बोला कि तुम गधे पर बैठ जाओ. कुछ दूर बढ़े तो लोगों ने कहा, कैसा स्वार्थी और नाकारा बेटा है. बूढ़ा बाप बेचारा पैदल चल रहा है और ये खुद गधे पर सवार है. यह सुनकर बेटा उतर गया और पिता से बोला कि आप बैठ जाइए.
वो फिर कुछ दूर आगे बढ़े तो लोगों को बोलते सुना, कैसा जालिम बाप है. खुद गधे पर सवार है और बेटा बेचारा पैदल चल रहा है. यह सुनकर इस बार दोनों एक साथ गधे पर बैठ गए. अब लोगों ने ताने दिए, कितने निष्ठुर हैं, दोनों हट्टे-कट्टे एक साथ गधे पर सवार हैं. बेचारे, गधे की तो जान ही निकली जा रही है. ये तो इस लायक हैं कि गधे को भी लाद सकते हैं. अब तो दोनों बड़े परेशान हुए. बहुत सोच कर उन्होंने लोगों को खुश करने की खातिर गधे को एक लाठी से बाँध कर उल्टा लटका लिया और कन्धों पर लाद कर चलने लगे. आगे एक नदी का पुल आया. अचानक गधा जोर से मचला और उन दोनों की पकड़ से छूट कर नदी में जा गिरा
कुछ तोर कुछ मोर कुछ खा गए चोर. सरकारी दफ्तरों में रिश्वत का पैसा इस तरह बंटता है – कुछ अफसर को, कुछ मातहतों को और कुछ बिचौलियों को.
कुछ दिए कुछ दिलाए, कुछ का देना ही क्या है. उधार लेकर न देने वालों का कथन.
कुछ पाने की इच्छा हो तो पहले उसके लायक बनो. आदमी बहुत कुछ पाने की इच्छा करता है पर पहले उस वस्तु का उपयोग करने लायक बनना आवश्यक है. इंग्लिश में कहावत है – First deserve then desire.
कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है. जीवन में कुछ प्राप्त करने के लिए कुछ नुकसान भी उठाना पड़ सकता है. इंग्लिश में कहावत है – You can’t make an omlette without breaking eggs.
कुछ लेना न देना मगन रहना. संसार में जो लोग इस नीति पर चलते हैं वे ही सबसे प्रसन्न रहते हैं.
कुछ लोग पैसे के मालिक होते हैं, कुछ गुलाम. कुछ लोग पैसा कमाते हैं और उसे ठीक से उपयोग भी करते हैं, वे पैसे के मालिक कहलाते हैं, जबकि कुछ लोग केवल पैसे की रखवाली करते रहते हैं. कहावत के द्वारा यह बताने का प्रयास किया गया है कि मनुष्य को पैसे का गुलाम नहीं बनना चाहिए.
कुछ लोहा खोटा, कुछ लोहार खोटा. सामान भी घटिया हो और बनाने वाला भी अयोग्य हो तो माल कैसे बनेगा.
कुछ स्वार्थ कुछ परमार्थ. अपना भी ध्यान रखो और समाज के लिए भी करो. रूपान्तर – घर में दिया जला कर मस्जिद में दिया जलाना. इस से मिलती जुलती एक कहावत इंग्लिश में भी है – Charity begins at home.
कुजात मनाया सर पर चढ़े, सुजात मनाया पांवों पड़े (सज्जन मनाए पैरों पड़े, दुर्जन मनाए सर चढ़े). नीच व्यक्ति की मनौवल करोगे तो और ऐंठ दिखाता है, सज्जन व्यक्ति को मनाओगे तो वह विनम्रता से झुक जाता है.
कुटनी से तो राम बचावे, प्यार दिखा कर पत उतरावे. दुश्चरित्र स्त्री से बच कर रहना चाहिए, वह प्यार दिखा कर आपकी इज्ज़त उतार सकती है.
कुठले में दाना, मूरख बौराना. कुठला – अनाज रखने का बर्तन, बौराना – घमंड में पागल. ओछा व्यक्ति थोड़ी सी धन दौलत से ही बौरा जाता है.
कुठाँव का घाव, ससुर ओझा (कुठौर फोड़ा, ससुर वैद्य). किसी स्त्री के निजी अंग में घाव या फोड़ा हो और उसका ससुर ही वैद्य हो तो कितनी कठिन परिस्थिति होगी.
कुतिया के छिनाले में फंसे हैं. छिनाला – दुश्चरित्रता. किसी दुश्चरित्र स्त्री के दुष्चक्र में फंसे व्यक्ति के लिए.
कुतिया के पिल्ले, सब एक जैसे. नीच माता पिता की संतानें निम्न प्रवृत्ति की ही होती हैं.
कुतिया क्यूँ भूंसे, टुकड़ों की खातिर. कोई हाकिम ज्यादा गुर्राता है तो लोग कहते हैं कि टुकड़ा डाल दो.
कुतिया गई और पट्टा भी ले गई. बड़े नुकसान के साथ एक छोटा नुकसान भी.
कुतिया गई काशी (कुतिया चली प्रयाग नहाए). कोई चरित्रहीन या पापी आदमी पुण्यात्मा बनने का ढोंग करे तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.
कुतिया बैठी नांद में, न खाए न खाने दे. भैंस की नांद में कुतिया आ कर बैठ गई है, न तो खुद भुस खाएगी न किसी को खाने देगी. कोई ईमानदार हाकिम जो खुद भी घूस न खाए और किसी को खाने भी न दे उस से परेशान अन्य विभागीय लोगों का कथन.
कुतिया मिल गई चोर से तो पहरा किसका होए (चोरों कुतिया मिल गई, पहरा दे अब कौन). जिस को आप ने पहरेदारी के लिए पाला है वही चोर से मिल जाए तो पहरा कौन देगा. जिस को गद्दी पर बिठाया वही नेता अगर दुश्मन से मिल जाए तो देश की रक्षा कैसे होगी.
कुत्ता अपनी पूँछ को टेढ़ी कब कहता है (कुकुर सराहे अपनी पूँछ). अपनी वस्तु को घटिया कोई नहीं बताता.
कुत्ता अपनी ही दुम के चक्कर लगाता फिरे. निकृष्ट प्रवृत्ति के लोग केवल अपने स्वार्थ के विषय में सोचते हैं.
कुत्ता अपने मालिक पर नहीं भौंकता. कोई व्यक्ति कितना भी निकृष्ट क्यों न हो, उस को नुकसान नहीं पहुँचाता या बुरा भला नहीं कहता जिससे उसे लाभ होता हो.
कुत्ता कपास का क्या करे. कपास कितनी भी उपयोगी वस्तु क्यों न हो, कुत्ते के किसी काम की नहीं है. कोई मूर्ख या ओछा व्यक्ति किसी बहुमूल्य वस्तु का उपहास कर रहा हो तो.
कुत्ता काटे अनजान के और बनिया काटे पहचान के. कुत्ता अपरिचित को काटता है और बनिया पहचान वाले की जेब काटता है.
कुत्ता कुत्ता भूंसे, राजा राजा चुप. यह एक प्रकार से बच्चों की कहावत है. कुछ बच्चे मिलकर किसी एक को चिढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. वह यह कहावत कह कर सबको चुप कर देता है.
कुत्ता क्या कभी आग से जले. छोटी मोटी आपदाएँ ओछे व्यक्तियों को नुकसान नहीं पहुँचा सकतीं.
कुत्ता घसीटी में पड़े. ऐसे काम में पड़ना जिसमें व्यर्थ की खींचातानी सहनी पड़े.
कुत्ता घास खाय तो सभी न पाल लें. कहावत उस समय की है जब घास बहुत सस्ती मिलती थी और अक्सर लोग मुफ्त में भी खोद लाते थे (अब तो घास भी बहुत महँगी है). कुत्ते को दूध, रोटी, अंडा, मांस वगैरा खिलाना पड़ता है इसलिए उसे कुछ ही लोग पाल सकते हैं. अगर कुत्ता घास खाता होता तो सब पाल लेते.
कुत्ता चौक चढ़ाए, चपनी चाटन जाए. (कुत्ता चौक चढ़ाइए चाकी चाटन जाए). चौक चढ़ाना – विवाह के समय वस्त्राभूषण पहनाने के लिए कन्या को मंडप के नीचे बिठाना. कुत्ते का कितना भी लाड़ प्यार करो, वह मौका देखते ही थाली चाट लेता है. नीच व्यक्ति को कितना भी सम्मान दो या प्रेम करो वह नीचता से बाज नहीं आता.
कुत्ता टेढ़ी पूंछरी, कभी न सीधी होय. कुत्ते की टेढ़ी पूंछ बारह साल पाइप के अन्दर रखी फिर भी टेढ़ी निकली. कोई ढीठ आदमी लगातार दंड देने से भी ठीक न हो रहा हो तो.
कुत्ता देखे आइना, भूंक भूंक पगलाय (कुत्ते ने आईना देखा, भौंक भौंक के मर गया). कुत्ता दर्पण में अपना प्रतिबिम्ब देख कर उसे दूसरा कुत्ता समझ कर खूब भौंकता है. मूर्ख व्यक्तियों का मजाक उड़ाने के लिए.
कुत्ता न देख, कुत्ते के मालिक को देख. कुत्ते की अहमियत कुत्ते के मालिक के अनुसार आंकी जाती है.
कुत्ता न देखेगा न भौंकेगा. कहावत में कानून की नज़र बचा कर चुपचाप अपराध करने की सलाह दी गई है.
कुत्ता पाए तो सवा मन खाए, नहीं तो दिया ही चाट कर रह जाए. कुत्ते को मिल जाए तो ढेर सारा खा लेता है और न मिले तो बेचारा दिये में लगा तेल चाट कर ही रह जाता है. गरीब बेसहारा लोग ऐसे ही जीवन काटते हैं.
कुत्ता पाले और पहरा दे. पहरा देने को कुत्ता पाला और खुद पहरा दे रहे हैं. मूर्ख लोगों के लिए. इस आशय की इंग्लिश में कहावत है – Do not keep a dog and bark yourself.
कुत्ता पाले वह कुत्ता, कुत्ता मारे वो कुत्ता, बहन के घर भाई कुत्ता, ससुरे के घर जमाई कुत्ता, सब कुत्तों का वह सरदार, जो रहे बेटी के द्वार. पहले जमाने में कुत्ता पालने को अति निकृष्ट कार्य माना जाता था, इसलिए कुत्ता पालने वाले को कुत्ता कहा गया है.(कुत्ता प्रेमियों से क्षमा याचना सहित). कुत्ते जैसे निरीह पशु को मारना भी निकृष्ट काम माना गया है. शादी शुदा बहन के घर यदि भाई रहे और दामाद ससुराल में रहे तो उन का सम्मान नहीं होता इस लिए उन्हें निकृष्ट बताया गया है. इन सबसे अधिक घटिया आदमी वह है जो बेटी के घर में रहे.
कुत्ता भी दो घर छोड़ के मूतता है. पालतू कुत्ता अपने घर के आगे कभी नहीं मूतता. जो अपने ही लोगों को धोखा दे या अपने ही इलाके में गंदगी फैला रहा हो उसको उलाहना देने के लिए.
कुत्ता भी बैठता है तो दुम हिला कर बैठता है. कुत्ता बैठने के पहले पूंछ हिला कर जमीन की मिट्टी को झाड़ कर साफ़ करता है. गंदे और आलसी लोगों को उलाहना देने के लिए.
कुत्ता भौंक भौंक कर मरे, मालिक को परवाह ही नहीं. निष्ठुर लोगों को सेवकों के कष्टों की चिंता नहीं होती.
कुत्ता भौंके, काफ़िला सिधारे. काफिला निकलता है तो कुत्ते भौंकते हैं, पर काफिला अपने रास्ते चलता जाता है. सामाजिक कार्य करने वाले संगठन मूर्ख निंदकों की चिंता नहीं करते.
कुत्ता मरे अपनी पीर, मियाँ मांगे शिकार. बहुत से लोग शिकार के लिए कुत्ता पालते हैं. कहावत में कहा गया है कि कुत्ता तो दर्द से मर रहा है और मियाँ को सिर्फ शिकार से मतलब है. नौकरों की तकलीफ न देख कर केवल अपना स्वार्थ देखना.
कुत्ता मरे तो चीलर भी मरें. किसी की मृत्यु होने पर उस पर आश्रित लोग बेसहारा हो जाते हैं. भले ही वे आश्रित मरने वाले का खून चूसने वाले ही क्यों न हों. रूपान्तर – ऊँट मरे तो चींचड़ा भी मरे.
कुत्ता मरे पर किल्ली रहें. ऊपर वाली कहावत से उलट. बेचारा कुत्ता मर गया तो खून चूसने वाली किल्लियाँ दूसरे शिकार की तलाश में घूम रही हैं.
कुत्ता मुँह लगाने से सर चढ़े. नीच व्यक्ति को मुँह लगाने से वह सिर पर चढ़ता है.
कुत्ता मूते जहाँ जहाँ, सौ सौ गाली पाए. कुत्ता कभी जमीन पर नहीं मूतता, किसी वस्तु पर ही मूतता है और गाली खाता है. फिर भी अपनी आदत नहीं छोड़ता. गालियाँ खा कर भी गलत आदत न छोड़ने वालों के लिए.
कुत्ता हो कर भी न भौंके. कुत्ता यदि भौंकेगा ही नहीं तो किस काम का. कोई कामचोर कर्मचारी अपने लिए नियत किए गए काम को करने में हीला हवाला करे तो.
कुत्ते और गोती गाँव गाँव में मिलें. कुत्ते और अपने गोत्र वाले हर गाँव में मिल जाते हैं.
कुत्ते का जोर गली में. कुत्ते का अधिकार क्षेत्र अपनी गली तक ही सीमित होता है. बदमाश और रंगबाज अपने अपने इलाके में ही प्रभावी होते हैं.
कुत्ते की किल्ली काढ़ लीं, कहे हमारे मोती काढ़ लिए. कुत्ते के शरीर में चिपकी किल्लियों को निकाल दिया तो कहने लगा कि मेरे शरीर में मोती लगे थे उन्हें निकाल लिया. मूर्ख व्यक्ति का भला करो तो उल्टा समझता है.
कुत्ते की छूत, बिल्ली को नहीं लगती. कुत्ते को यदि कोई छूत की बीमारी है तो वह उस से बिल्ली में नहीं फैलती. गलत काम करने वालों के अलग अलग ढंग होते हैं, वे एक दूसरे से नहीं सीखते.
कुत्ते की पूँछ में कितना भी घी लगाइए, वह टेड़ी की टेड़ी ही रहेगी. नीच व्यक्ति की कितनी भी सेवा करो या मक्खन लगाओ, वह खुश नहीं होता.
कुत्ते की पूंछ पे गठरी बंधी है. जिस को धन को उपयोग करना नहीं आता उस के पास धन हो तो क्या लाभ. कंजूस आदमी पर व्यंग्य. कोई नीच प्रकृति का व्यक्ति धनवान बन जाए तब भी.
कुत्ते की मार अढ़ाई घड़ी. कुत्ता मार खाने के बाद बहुत जल्दी भूल जाता है, और फिर ड्योढ़ी पर आ कर बैठ जाता है. जो व्यक्ति अपमान के बाद भी किसी के पीछे लगा रहे उस पर व्यंग्य.
कुत्ते की मौत आए तो मस्जिद में मूते. कुत्ता यदि मस्जिद में पेशाब करेगा तो धर्मांध लोग उसे मार डालेंगे. कभी कभी छोटी सी गलती भी मृत्यु का कारण बन सकती है.
कुत्ते की मौत आती है तब खोपड़ी में कीड़े पड़ते हैं. शरीर में और जगह कीड़े पड़ें तो कुत्ता उन्हें चाट चाट कर साफ़ कर देता है. सर में कीड़े पड़ें तो नहीं चाट पाता है. कहावत का अर्थ इस प्रकार कर सकते हैं कि मूर्ख व्यक्ति का विनाश नजदीक आता है तो उस के दिमाग में तरह तरह के कीड़े कुलबुलाने लगते हैं.
कुत्ते की सी झपकी. (कुत्ते की नींद) अत्यधिक चौकन्नी नींद.
कुत्ते के पाँव जा, बिल्ली के पाँव आ. काम को जल्दी से जल्दी करने के लिए निर्देश.
कुत्ते को आटा दोगे तो क्या रोटी पकाएगा. जिस वस्तु की किसी व्यक्ति के लिए कोई उपयोगिता नहीं है उसे देने से क्या लाभ.
कुत्ते को खम्बा ही सूझे. (कुत्ता खम्बे पर पेशाब करता है) ओछे व्यक्ति को अपने मतलब की चीज़ ही दिखती है.
कुत्ते को घी नहीं पचता (कुत्तों को घी हजम नहीं होता). नीच आदमी को उत्तम विचार समझ में नहीं आते.
कुत्ते को टुकड़ा डालते तो क्यूँ भूँकता. नीच हाकिम को रिश्वत दे देते तो वह तुम पर नहीं गुर्राता.
कुत्ते को मस्जिद से क्या काम. मस्जिद में कुत्ते को कुछ नहीं मिलेगा, बल्कि मार खाने का डर है. ऐसी जगह जाने से क्या लाभ. मंदिर में जाएगा तो कुछ खाने को भी मिलेगा और सुरक्षित भी रहेगा.
कुत्ते को हड्डी का ही चाव (कुत्ते को हड्डी ही अच्छी लगती है). नीच व्यक्ति को घटिया बातें ही अच्छी लगती हैं. घूसखोर को केवल घूस ही चाहिए होती है.
कुत्ते डाली इलायची, सूँघ सूँघ मर जाए. (बुन्देलखंडी कहावत) कुत्ते के सामने इलायची डालोगे तो खाएगा नहीं, सूँघता ही रहेगा. जो पारखी न हो उसे उत्तम वस्तु नहीं देनी चाहिए.
कुत्ते तेरा लिहाज नहीं तेरे मालिक का लिहाज है (कुत्ते ये तेरा मुँह नहीं तेरे मालिक का मुँह है). कुत्ता अपने मालिक के बल पर ही भौंकता है. कुत्ते की अहमियत उस के मालिक के अनुसार ही होती है.
कुत्ते भूंकें तो चन्द्रमा को क्या. ओछे लोग कितनी भी आलोचना करें, बड़े लोगों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता.
कुत्ते वाली योनि पूरी कर रहा है. सनातन मान्यता के अनुसार मनुष्य को चौरासी लाख योनियों में भटक कर फिर मनुष्य का जन्म मिलता है. कोई व्यक्ति बहुत नीचता दिखा रहा हो तो लोग घृणा वश ऐसा बोलते हैं.
कुत्तों का एका हँड़िया पकने तक. जब तक गोश्त पकता है तब तक कुत्ते बड़े अनुशासित रह कर इंतज़ार करते हैं. परोसने की बारी आने पर उनमें झगड़ा शुरू होता है. दलों के गठबंधन में भी यही बात देखने को मिलती है.
कुत्तों की टोली में आटे का दीपक कब तक टिके. कुत्ते मौका पा कर उसे खा ही जाएंगे.
कुत्तों के गाँव नहीं बसते. आपस में लड़ने झगड़ने के कारण. जो लोग आपस में बहुत लड़ते हों उन को उलाहना देने के लिए बड़े लोग ऐसा बोलते हैं.
कुत्तों के भौंकने से बादल नहीं बिखरते. क्षुद्र लोगों के शोर मचाने से कोई बड़ा नुकसान नहीं हो सकता.
कुत्तों को दूँ, पर तुझे न दूँ. किसी से बहुत घृणा करना.
कुत्तों में एका हो गंगा जी न नहा आवें. किसी भी समुदाय में एकता हो तो वे बड़े से बड़ा काम कर सकते हैं.
कुनबा खीर खाए और पुरखे राजी हों. श्राद्ध पक्ष में लोग पितरों को खुश करने की आड़ में खुद भी माल खाते हैं उस पर व्यंग्य.
कुबड़े वाली लात (कूबड़े लात, बन गई बात). किसी व्यक्ति ने गुस्से में आ कर कुबड़े की पीठ पर जोर से लात मारी तो उसकी कूबड़ ठीक हो गई. कोई किसी को नुकसान पहुँचाना चाहे और नुकसान के स्थान पर उस का काम बन जाय तब.
कुमानुस कहें काको, ससुराल में बसे बाको. आदिकाल से ही ससुराल में बसने वाले पुरुष को अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जाता. देखिए सन्दर्भ कथा – एक बार भगवान राम अपनी ससुराल जनकपुरी गए. काफी दिन बीत गए पर सास जी स्नेहवश उन्हें जाने नहीं दे रही थीं. इधर दशरथ जी को भी प्रिय पुत्र और पुत्रवधू का मुँह देखे बिना बेचैनी होने लगी. सीधे सीधे बुलावा भेजना मर्यादा के विरुद्ध था. तो जनक जी के पास एक चिट्ठी भेजी कि कृपया एक कुमानुष हमारे यहाँ भेज दीजिए. जनकजी के दरबार में तरह तरह के डोम, बहेलिए, भिश्ती, जुलाहे, सफाईकर्मी, मल्लाह इत्यादि बुलाए गए.
उन सब ने कहा कि राजन, हम तो समाज के लिए बहुत उपयोगी मनुष्य हैं, हम कुमानुष कैसे हो सकते हैं. हार कर जनक जी ने उन लोगों से पूछा, तो कुमानुष कौन हुआ. तब उन में से एक ने बताया, कुमानुस कहें काको, ससुरार में बसे ताको. राजा जनक फ़ौरन समझ गए कि राम का बुलावा है और उन्हों ने प्रेमपूर्वक राम को विदा कर दिया
कुम्हार अपना ही घड़ा सराहता है. सब को अपना किया हुआ काम ही अच्छा लगता है.
कुम्हार कबहुँ साजे बासन में नहिं खात. साजे – साबुत, वासन – बर्तन. कुम्हार कभी साबुत बर्तन में खाना नहीं खाता. टूटे बर्तन में ही खाता है. अच्छे और साबित बर्त्तन वह बेचने के लिए रखता है.
कुम्हार का गधा, जिन के चूतड़ मिटटी देखे, उन्हीं के पीछे दौड़े. कुम्हार कच्ची जमीन पर बैठ कर काम करता है इसलिए उसके नितम्बों पर मिट्टी लग जाती है. कुम्हार के गधे ने किसी भी आदमी की धोती पे मिट्टी लगी देखी उसी को कुम्हार समझ कर उसके पीछे चल दिया. कहावत उन भोले भाले लोगों के लिए कही जा सकती है जो गेरुए वस्त्र पहनने वाले हर इंसान को महात्मा समझ कर उसके पीछे चल देते हैं.
कुम्हार की गधी, घर घर लदी (भाड़े की गधी, घर घर लदी). गरीब और लाचार आदमी पर सब काम लादते हैं.
कुम्हार के घर चुक्के का दुख (कुम्हार के घर वासन का अकाल). जिस चीज़ की बहुतायत जहाँ होनी चाहिए उसी की कमी हो तो. चुक्का – कुल्हड़. वासन – बर्तन.
कुम्हार ठीकरे में ही रांधे. (ठीकरा – बरतन का टुकड़ा). कुम्हार के घर बहुत से बर्तन होते हैं पर वह मिट्टी आदि सानने का काम टूटे हुए बर्तन में ही करता है.
कुम्हार पे बस न चला, गधी के कान उमेठ दिए. सबल आदमी पर बस न चले तो निर्बल पर गुस्सा उतारना.
कुयश और मौत बराबर. इज्जतदार लोगों के लिए अपयश मृत्यु के समान है.
कुरमी कुत्ता हाथी, तीनो जात के घाती. कुर्मी, कुत्ता और हाथी अपनी जाति वालों को ही हानि पहुंचाते हैं.
कुल और कपड़ा रखने से. कुल और कपड़े की अगर देखभाल नहीं होगी तो वे नष्ट हो जाएँगे.
कुलटा के यहाँ छिछोरे पहुंचेंगे ही. गलत काम करने वाले के यहाँ उसी प्रकार के लोगों का जमावड़ा होता है.
कुलिया में इतना तो हँड़िया में कितना. किसी व्यक्ति की सम्पन्नता को लक्ष्य कर के ऐसा कहा जाता है.
कुलिया में गुड़ नहीं फूटता. कुलिया (छोटा कुल्हड़) में रख कर गुड़ को तोड़ने की कोशिश करोगे तो कुलिया ही टूट जाएगी. अपर्याप्त साधनों से बड़े काम नहीं किए जा सकते.
कुलेल में गुलेल. पक्षियों का जोड़ा पेड़ की डाल पर बैठा किलोल कर रहा है कि किसी ने गुलेल चला दी तो रंग में भंग हो गया. खुशनुमा वातावरण में कोई विघ्न दाल दे तो. कुछ लोग कुलेल के स्थान पर कुरियाल बोलते हैं.
कुल्हड़ भरा और सीधी मायके. गरीब घर की लड़की यदि धनवान ससुराल में पहुँच जाए तो अपने मायके वालों के लिए बहुत कुछ करना चाहती है.
कुसमय करो शत्रु से हेत. जब समय खराब हो तो शत्रु से भी मिला कर चलना चाहिए. हेत – मित्रता.
कूटत कूटत हमार जान जाए, खावत खावत तोहार. गरीब आदमी काम की अधिकता व भरपेट खाना न मिलने से मरता है और अमीर भोजन की अधिकता से (मोटापे और बीमारियों से).
कूटनवारी कूटी गई, सास पतोहू एक भई. कूटनवारी – अनाज कूटने वाली. सास बहू की लड़ाई में अनाज कूटने वाली बीच में बोल दी. सास बहू फिर एक हो गईं और कूटने वाली पिट गई.
कूटें न पीसें न भरें पानी, बैठे खाएं मथुरा की रानी. मथुरा के पंडों के घर बैठे बिठाए इतनी दान दक्षिणा आ जाती है कि उनकी महिलाओं को कोई काम नहीं करना पड़ता.
कूड़े घर की गाय, फिर कूड़े घर में. जिसको गंदगी प्रिय है वह गंदगी में रहना ही पसंद करता है.
कूद कूद मछली बगुले को खाए. असंभव बात. कोरी गप्प.
कूदने से पहले चलना सीखो. अर्थ स्पष्ट है.
कूदा पेड़ खजूर से राम करे सो होय. कोई व्यक्ति यदि कोई दुस्साहसिक फैसला ले तो.
कूदे फांदे तोड़े तान, ताका दुनिया राखे मान. 1. जो दिखावा करने की कला में माहिर हो दुनिया उसी की इज्ज़त करती है. 2. नृत्य की वास्तविक कलाओं के मुकाबले आजकल भौंडे नाच को ज्यादा लोकप्रियता मिलती है.
कूवत थोड़ी मंज़िल भारी. ताकत थोड़ी बची है जबकि मंजिल अभी दूर है. सामर्थ्य कम है और काम बड़ा है.
कृपण के धन और स्त्री के मन को कोई न जाने. कंजूस के पास कितना धन है यह कोई नहीं जान सकता और स्त्री के मन में क्या है यह भी कोई नहीं जान सकता.
कृपण छिपावत दाम, चतुर छिपावत नाम. जिस प्रकार कंजूस आदमी अपने धन को औरों से छिपाता है, बुद्धिमान व सज्जन व्यक्ति किसी अच्छे काम में अपना नाम छिपाता है (उजागर करना नहीं चाहता).
कृष्ण चले बैकुंठ को राधा पकड़ी बांह, यहाँ तम्बाखू खाय लो वहाँ तम्बाखू नांह. तम्बाखू खाने वाले अपने आप को धोखा देने के लिए तरह तरह की बातें बनाते हैं. (भांग और शराब पीने वाले भी).
के पालत माय, के पालत गाय. बच्चा माँ का दूध पी कर पलता है या गाय का दूध पी कर. इसी लिए हमारे देश में गाय को गोमाता कह कर इतना महत्व दिया गया है.
केका केका लेवें नांव, कमली ओढ़े सारा गाँव. अलग से किस किस का नाम लें. यहाँ तो सभी गलत हैं.
केतनो अहिर पिंगल पढ़े, बात जंगल ही की बोले. (भोजपुरी कहावत) पिंगल – छंद शास्त्र. अहीर को कितनी भी उच्च शिक्षा दे दो वह जंगल की बात ही करेगा.
केतनौ भइया बैरी, तबहूं दाहिनी बाँह, केतनौ नीम कड़ुआ, तबहूँ सीतल छाँह. भाई कितना भी बैरी होगा, फिर भी वक्त पर दाहिने हाथ की तरह सहारा देगा. नीम कितना ही कड़वा होगा उसकी छाया एकदम ठंडी होगी.
केरा केकड़ा बिच्छू बाँस, इन चारों की जमले नाश. (भोजपुरी कहावत) जमला – संतान. केला, केकड़ा, बिच्छू और बांस, इन चारों की सन्तान ही इन का नाश कर देती हैं. देखिए परिशिष्ट.
केला काटने को ठीकरा ही काफी. केले जैसी नरम चीज को काटने के लिए टूटे घड़े का टुकड़ा ही काफी है. छोटे छोटे सरकारी मुलाजिम और छुटभैये बदमाश भी गरीब लोगों को खूब सताते हैं.
केवल मूर्ख और मृतक अपने विचार नहीं बदलते. मूर्ख लोग अपनी बात पर अड़े रहते हैं इस बात को अधिक जोर दे कर कहने के लिए इस प्रकार से कहा गया है.
केसन कहा बिगाड़िया, जो मूंडे सौ बार, मन को काहे न मूंडिए जामें विषै विकार. कबीरदास जी ने बाल मूंडने वाले सन्यासियों पर व्यंग्य किया है कि बालों ने क्या बिगाड़ा है जिन्हें बार बार मूंडते हो, मन को क्यों नहीं मूंडते जिसमें लोभ और मोह भरा हुआ है.
केसर की करिहे कहा कीमत, है न परख जहाँ हरदी की. जिन लोगों को हल्दी की परख तक न हो उनसे केसर की कीमत समझने की उम्मीद कैसे की जा सकती है.
केसव केसन अस करी, जो अरिहू न कराहिं, मधुर वचन मृग लोचनी, बाबा कहि कहि जाहिं. सन्दर्भ कथा – बालों ने वह किया जो शत्रु भी नहीं करेगा, मीठी बोली और हिरनी जैसी आँखों वाली बाबा कह कर जा रही हैं. केशव दास हिंदी के आरंभिक कवियों में से एक हैं. वे बहुत सौन्दर्य प्रेमी थे. उन के बाल जल्दी सफेद हो गये थे. एक बार कुछ स्त्रियों ने उनके बाल देख कर उन्हें बाबा कह कर सम्बोधित किया तो उन्होंने यह कविता कही
केहरि फंसा पींजरे में, क्या कर लेगा बल से. शेर यदि पिंजरे में फंस जाए तो अपनी ताकत से नहीं निकल सकता. जहाँ बुद्धि काम आती है वहाँ बल काम नहीं आता.
केहि की प्रभुता न घटी, पर घर गए रहीम. दूसरे के घर जा कर (विशेषकर कुछ मांगने के लिए) सभी का मान घट जाता है.
केहि न राजमद दीन्ह कलंकू. राजा होने पर किसे अहंकार नहीं होता, और अहंकार होने पर कलंक लगेगा ही.
केहू खाए खाए मुए और केहू बिना खाए मुए. (भोजपुरी कहावत) कोई ज्यादा खाने से मरे और कोई खाने के बिना मरे. कहीं पर किसी वस्तु की अधिकता और कहीं पर बहुत कमी. केहू – कोई, मुए – मरे.
केहू खाना खाय, केहू पैखाना जाय. केहू – कूई. करे कोई भरे कोई.
केहू हीरा चोर, केहू खीरा चोर. (भोजपुरी कहावत) कोई बहुत बड़ी चीज़ का चोर है और कोई बहुत छोटी चीज़ का.
कै जागे जोगी कै जागे भोगी. योग साधना के लिए योगी जागता है और भोग भोगने के लिए भोगी जागता है.
कै जागे बेटी को बाप, कै जागे जाके घर में सांप. या तो वह व्यक्ति चिंता में जागता है जिस की बेटी ब्याह योग्य हो, या वह जागता है जिस के घर में सांप छिपा बैठा हो.
कै तो घोड़ा काटे नहीं, और काटे तो फिर छोड़े नहीं. सामर्थ्यवान व्यक्ति सामान्यत: क्रोध नहीं करता. और क्रोध करता है तो मटियामेट कर देता है.
कै तो जीभ संभाल, कै खोपड़ो संभाल. (हरयाणवी कहावत) जीभ उल्टा सीधा बोलती है तो खोपड़ी पिटती है. जीभ को संभाल लो वरना खोपड़ी को संभालना पड़ेगा.
कै तो बावली सिर खुजावै ना, खुजावै तो लहू चला ले. (हरयाणवी कहावत) बावला आदमी या तो कोई काम करेगा नहीं, और करेगा तो उसे रोकना मुश्किल.
कै तो बिगड़े कुपंथ से, कै बिगड़े कुपथ्य से. आदमी गलत राह पर चलने से विनाश को प्राप्त होता है या गलत भोजन से.
कै तो बिलुआ चले न, और चले तो मेंड़ की मेंड़ ढहावे. हाथ से चलने वाली चक्की चलती है तो उसके चारों तरफ आटे की ढेरी बनती जाती है और जैसे जैसे नया आटा पिस कर आता है पुरानी ढेरी ढह कर नई ढेरी बनती जाती है. ढेरी की तुलना यहाँ खेत की मेड़ से की गई है. कहावत में यह कहा गया है कि या तो चक्की का पाट चलता नहीं है और चलता है तो मेड़ की मेड़ ढहाता है. कोई भी काम शुरू तो बहुत मुश्किल से हो पर फिर खूब तेज़ी से चले तो यह कहावत कही जाती है. (हाथ की चक्की के लिए देखिये परिशिष्ट के चित्र)
कै तो भर मांग सेंदुर, कै तो कतई रांड. कुछ लोग किसी काम को या तो पूरे जोर शोर से करते हैं, या बिलकुल कन्नी काट लेते हैं, उन्हीं पर व्यंग्य. सामान्यत: किसी भी परिस्थिति में मध्य मार्ग अपनाना चाहिए.
कै तो लड़े कूकुर, कै लड़े गँवार. लड़ने भिड़ने का काम मूर्ख लोग ही करते हैं.
कै दुख जाने दुखिया, कै दुखिया की माय, कै दुख जाने माछरी, जो थोरे जल मां सिराय. किसी के कष्टों को वह स्वयं समझ सकता है या उसकी माँ. जिस प्रकार पानी घटने के दुख को मछली ही समझ सकती है.
कै धन मिले धाए धाए, कै धन मिले पराया पाए, कै धन मिले नदी के कच्छ्न, कै धन मिले बहू के लच्छन. (बुन्देलखंडी कहावत) नदी के कच्छ्न – नदी किनारे की उपजाऊ जमीन. धन मिलता है या तो दौड़ भाग करने से, या कहीं पड़ा मिलने से, या नदी के कच्छ में खेती करने से, या अच्छे लक्षणों वाली बहू के घर में आने से.
कै बसे हजारी, कै बसे कबाड़ी. बड़े शहर में या तो धनाढ्य ही रह सकता है या फिर कबाड़ी.
कै मारे बदली की धूप, कै मारे बैरी को पूत. भादों की धूप मारती है या जिससे दुश्मनी हो उसकी संतान.
कै लड़े सूरमा, कै लड़े मूरख. आम तौर पर समझदार लोग लड़ाई भिड़ाई से दूर रहते हैं. या तो शूरवीर लोग लड़ना पसंद करते हैं या मूर्ख लोग जो अपना भला बुरा नहीं समझते.
कै सोवे राजा का पूत, कै सोवे योगी अवधूत. या तो राजा का पुत्र निश्चिन्त हो के सो सकता है (क्योंकि वह सब प्रकार से सुरक्षित होता है) या फिर योगी सन्यासी (क्योंकि उसे कोई सांसारिक चिंता नहीं होती).
कै हंसा मोती चुगे, कै भूखा रह जाए (लंघन करि जाय). ऐसा माना जाता है कि हंस केवल मोती चुगता है, गंदगी नहीं खाता. जो लोग उत्तम प्रकृति के होते हैं वे केवल उत्तम बातें ही ग्रहण करते हैं.
कैंची काटे ही काटे, सूई जोड़े ही जोड़े. जो लोग अच्छी मनोवृत्ति के है वे लोगों को जोड़ते हैं और जो दुष्ट प्रवृत्ति के होते हैं वे केवल लोगों में अलगाव पैदा करते हैं.
कैर का ठूंठ टूट जाए पर झुके नहीं. नासमझ लोग परिस्थितियों से समझौता करना नहीं जानते.
को कहि सके बड़ेन सों होत बड़ी नहिं भूल, दी ने दई गुलाब की इन डारन पर फूल. दी – दैव (ईश्वर). बड़े लोग भी कभी कभी भूल करते हैं. भगवान ने भी गुलाब की काँटों भरी डालियों में इतने सुंदर फूल दिए हैं.
को जग काम नचाव न जेही. संसार में ऐसा कोई नहीं जिसे कामदेव न नचाते हों.
को न कुसंगति पाय नसाई. कुसंगति पा कर सभी नष्ट हो जाते हैं. नसाई – नष्ट हो जाता है.
को नृप होहिं हमें का लाभ. कोई भी राजा हो हमें क्या फायदा होगा. जब राजा चुनने में प्रजा का कोई हाथ नहीं होता था तब तो यह सोच ठीक थी पर लोकतंत्र के जमाने में भी लोग ऐसी सोच रखते हैं ये ठीक नहीं है.
को नृप होहिं हमें का हानि. चेरि छांड़ि नहिं होऊ रानी. नृप – राजा, चेरी – दासी. कोई भी राजा हो. हमें क्या. हम दासी से रानी थोड़े ही हो जाएंगी.
कोइरिन हुई रानी, बैंगन को कहे टेंगन. किसी निम्न स्तर के व्यक्ति का ऊँचा पद पा जाने पर इतराना.
कोइरी की बिटिया के न मैके सुख न ससुरारे सुख. कोइरी – सब्जी बोने वाला किसान. गरीब की बेटी को सभी जगह काम अधिक करना पड़ता है और सुख सुविधाएं कहीं नहीं मिलतीं.
कोइरी के लड़का, करम के हीन, खुरपी ले के मोथा बीन. मोथा–एक खरपतवार. गरीब का भाग्य क्या होता है.
कोइरी सिपाही न बकरी मरखाही. किसान योद्धा नहीं बन सकता जैसे बकरी मरखनी नहीं हो सकती.
कोई अकल का यार, कोई रुपये का. कोई आदमी किसी से उसकी बुद्धि को देखकर मित्रता करता है और कोई पैसे को देखकर प्यार व मित्रता करता है.
कोई आँख का अंधा, कोई हिए का अंधा. कोई आँख का अंधा है और कोई हृदय का (भावना शून्य व्यक्ति).
कोई आइने में देखे तो कोई आरसी में देखे. कोई अपना मुख बड़े से शीशे में देखता है तो कोई छोटी सी आरसी में. दुनिया में सभी प्रकार के लोग हैं. किसी के पास वही वस्तु शानदार है, किसी के पास कामचलाऊ.
कोई ओढ़े शाल दुशाला, कोई ओढ़े कम्बल काला. भाग्य से किसी को कम और किसी को बहुत मिलता है.
कोई कह के सुनाये, कोई करके दिखाये. कोई ऐसे व्यक्ति हैं जो डींगें हांकते रहेंगे मगर काम नहीं करेंगे, कोई कहेंगे भी और काम भी करेंगे. पर कुछ तो ऐसे भी हैं जो बिना कुछ कहे सुने काम को पूरा करके रख देंगे.
कोई काम करे दाम से, कोई दाम करे काम से. कोई पैसा खर्च कर के लोगों से काम कराता है और कोई अपने हाथों से काम कर के पैसा कमाता है.
कोई खींचे लांग लंगोटी, कोई खींचे मूंछड़ियाँ, कोठे चढ़ कर देत दुहाई, कोऊ मत करियो दो जनियाँ. किसी व्यक्ति की दो पत्नियाँ हैं. वह छत पर चढ़ कर लोगों को समझा रहा है कि कोई दो बीबियाँ मत रखना. कोठा – छत
कोई घर रोवन कोई घर गीत, देखो रे दुनिया की रीत. दुनिया की यही रीत है कि कहीं दुख है और कहीं सुख.
कोई चढ़े हाथी-घोड़ा, कोई चढ़े भिटौरे. (भिटौरा – कंडों का ढेर). सब भाग्य का खेल है.
कोई तोलों कम, कोई मोलों कम, कोई मोल में भारी, कोई तोल में भारी. सभी प्रकार के लोग होते हैं. कोई तोल में कम है (उस में गुण कम हैं) कोई मोल में कम है (उसके पास धन दौलत कम है). इसी प्रकार किसी में गुण और गंभीरता अधिक हैं और किसी के पास पैसा अधिक है.
कोई दाब दाब भेंटै, कोई दूर-दूर भागे. अत्यधिक प्रेम दिखाने वाले से कोई दूर दूर भाग रहा हो तो.
कोई न दे तो जाए कहाँ, सब ही दें तो धरे कहाँ. गरीब मांगने वाला घर घर जा कर मांगता है. अगर उसे कोई कुछ न दे तो वह कहाँ जाएगा? और सब लोग दे दें तो वह रखेगा कहाँ?
कोई न बैरी कूकर बैरी. आप लाख कोशिश करें कि किसी से आपकी दुश्मनी न हो लेकिन कोई न कोई आपसे वैर भाव रखने वाला निकल ही आएगा. और कुछ नहीं तो मोहल्ले का कुत्ता ही बिना बात आप पर भौंकेगा.
कोई न मिले तो अहीर से बतलाय, कुछ न मिले तो सतुआ खाय. सत्तू को घटिया खाद्य पदार्थ माना गया है. कुछ न मिले तो मजबूरी में सत्तू खा कर काम चलाना चाहिए. इसी प्रकार अहीर से तभी बात करना चाहिए जब और कोई न मिले.
कोई नाचे कैसेई, ऊधौ नाचे वैसेई. कोई किसी प्रकार काम करे, ऊधौ अपने हिसाब से ही काम करेंगे.
कोई निरखे चूड़ी कंघी, कोई निरखे मनिहारी. मनिहारी – स्त्रियों के श्रृंगार आदि का सामान (विशेषकर चूड़ियाँ) बेचने वाली महिला. किसी की सामान देखने में रूचि है तो कोई मनिहारी को ही निहार रहा है.
कोई मरे किसी का घर भरे. किसी की हानि से किसी को लाभ होना
कोई मरे कोई अर्थी बनाए. कहीं पर मृत्यु होने से मातम हो रहा है और किसी को उससे जीविका मिल रही है.
कोई मरे कोई जीवे, सुथरा घोल बताशा पीवे. स्वार्थी लोगों के लिए.
कोई माँ के पेट से सीख के नहीं आता. अध्ययन और अभ्यास करने से ही सब काम आता है.
कोई माल में मस्त, तो कोई ख़याल में मस्त. कोई सम्पत्ति में खुश है तो कोई कोरी कल्पनाओं में ही मस्त है.
कोई मुझे न मारे तो मैं किसी को नहीं छोड़ूँ. कायर आदमी का कथन.
कोई राजा का भाई, कोई रानी का. कोई राजा का निकट संबंधी है तो कोई रानी का. किसको प्रसन्न किया जाय.
कोई रोवे कोई मल्हार गावे (कोई मरे कोई मल्हार गावे). 1.संसार में सब के दिन एक से नही होते. कोई प्रसन्न है तो कोई दुखी. 2. स्वार्थी लोगों को दूसरों का दुख नहीं दिखता, वे अपने राग रंग में मस्त रहता हैं.
कोई लाख करे चतुराई, करम का लेख मिटे न रे भाई. व्यक्ति कितनी भी बुद्धिमत्ता दिखा ले, भाग्य के लिखे को नहीं मिटा सकता.
कोई साथ आवे नहीं कोई साथ जावे नहीं. इस संसार में न तो कोई साथ आता है, न कोई साथ जाता है.
कोई स्यान मस्त कोई ध्यान मस्त कोई हाल मस्त कोई माल मस्त. दुनिया में सब प्रकार के लोग हैं. कोई ख्यालों में ही मस्त है, कोई धन धान्य में खुश है, कोई जैसे भी हाल में है उसी में खुश है.
कोऊ काटे मेरी नाक और कान, मैं न छोडूँ अपनी बान. अत्यधिक हठी व्यक्ति.
कोऊ को कल्पाए के, कोउ कैसे कल पाए. कलपाना – पीड़ित करना, कल पाए – चैन पाए. किसी को पीड़ित कर के कोई कैसे चैन पा सकता है.
कोऊ न काहू सुख दुख दाता. कोई किसी को सुख या दुख नहीं दे सकता, सब ईश्वर का दिया है.
कोऊ लांगड़ कोऊ लूल, कोऊ चले मटकावत कूल. ऐसा समाज जहाँ सारे लोगों में कोई न कोई कमी हो. लांगड़ – लंगड़ा, लूल – लूला (जिसका एक हाथ न हो). कूल से अर्थ यहाँ कूल्हे से है.
कोख से जन्मा सांप भी माँ को प्यारा लगे. माँ को अपना बच्चा हमेशा प्यारा लगता है, चाहे वह कैसा भी हो.
कोटहिं रंग दिखावत है जब अंग में आवे भंग भवानी. भंग – भांग. भंगेड़ियों द्वारा भांग की महिमा का बखान.
कोटिन काजू दाख खवावे, ऊँटहिं काठ झंकाड़हि भावे. दाख – द्राक्ष (अंगूर, किशमिश). ऊँट को कितना भी काजू किशमिश खिलाओ उसे झाड़ झंखाड़ ही अच्छे लगते हैं. मूर्ख व्यक्ति उत्तम वस्तुओं का मोल नहीं जानता, उसे निकृष्ट वस्तुएं ही प्रिय होती हैं.
कोठी कुठले को हाथ न लगाओ, घरबार सब तुम्हारा. कोठी – अनाज रखने का मिटटी का बड़ा बर्तन. कुठला – पानी भरने का बड़ा बर्तन. मेहमान से कह रहे हैं कि खाने पीने की बात मत करो, घरबार सब तुम्हारा ही है. दिखावे का आतिथ्य. (कोठी और कुठले के लिए देखिये परिशिष्ट)
कोठी धोए कीच हाथ लगे. अनाज रखने के बर्तन को धोने से कीचड़ हाथ लगती है.
कोठी में चावल, घर में उपवास. धन धान्य भरपूर मात्रा में है तब भी घर के लोग भूखे हैं. प्रबंधन में गड़बड़ी.
कोठी में धान तो मूढ़ में ज्ञान. घर में अनाज भरपूर मात्रा में हो तभी ज्ञान की बातें समझ में आती हैं.
कोठी वाला रोवे, छप्पर वाला सोवे. पैसे वाला आदमी हर समय चिंता में दुबला होता रहता है जबकि झोंपड़ी वाला चैन से सोता है.
कोठे से गिरा संभल सकता है, नजरों से गिरा नहीं. कोठा – छत. छत से गिरा आदमी उठ कर खड़ा हो सकता है लेकिन जो एक बार नजरों से गिर जाए वह नहीं.
कोड़े की मार घोड़ा सहे, शूल की मार हाथी. घोड़े को कोड़े से वश में लिया जाता है और हाथी को अंकुश से. अलग अलग व्यक्तियों को अलग अलग विधाओं से वश में किया जा सकता है.
कोढ़ मिट जाए पर दाग न जाए. एक बार इज्जत चली जाए तो वह बात दोबारा नहीं आती.
कोढ़ में खाज. परेशानी में परेशानी.
कोढ़ी का टका भी मंदिर में चढ़ता है. 1. भगवान् के यहाँ सब बराबर हैं. 2. कोढ़ी से वैसे तो सब लोग छुआछूत मानते हैं पर पैसा उस के हाथ से भी ले लेते हैं.
कोढ़ी का दिल शहजादी पर. अपनी हैसियत से बहुत अधिक इच्छा रखना.
कोढ़ी के जूँ नहीं पड़ती. लोक विश्वास है कि कोढ़ से ग्रसित व्यक्ति को जूँ नहीं होतीं. हालांकि बीमारी एक ईश्वरीय प्रकोप है और इस में कोढ़ी की कोई गलती नहीं होती फिर लोग उसे गन्दा और नीच मानते हैं. कहावत का अर्थ है कि नीच आदमी को छोटे मोटे कष्ट नहीं सताते.
कोढ़ी को दाल भात, कमाऊ सुत की जले आँत. कहावतों में कोढ़ी को ओछा और निकम्मा आदमी माना गया है (वैसे यह अनुचित है). जहाँ निकम्मे आदमी को बढ़िया भोजन मिले और पैसे कमाने वाले को कुछ भी नहीं.
कोढ़ी डराए थूक से. नीच आदमी अपनी नीचता से डराता है.
कोढ़ी मरे संगाती चाहे. संगाती – साथ जाने वाला. कोढ़ी चाहता है कि वह मरे तो उस के साथ रहने वाला भी उसके साथ परलोक जाए. नीच आदमी अपनी सहायता करने वाले का भी बुरा चाहता है.
कोतवाल को कोतवाली ही सिखाती है. किसी भी व्यवसाय को करने वाला व्यक्ति उस काम को करके ही उसकी बारीकियाँ सीखता है.
कोताही गर्दन, तंग पेसानी, दगाबाज की यही निसानी. पेसानी – माथा, कोताही – कम. कहावत के अनुसार छोटी गर्दन व कम मत्थे के आदमी बड़े खतरनाक, दगाबाज माने जाते हैं.
कोदों का भात किन भातों में, ममिया सास किन सासों में. कोदों एक घटिया अनाज होता है. कोदों से बने भात की गिनती भातों में नहीं होती. इसी प्रकार ममिया सास महत्वहीन सास है, उसकी गिनती सासों में नहीं होती.
कोदों की रोटी और काली लुगाई, पानी के दलिए में रामजी की क्या भलाई. कोदों की रोटी, काली स्त्री और दूध की जगह पानी में पका दलिया. यही सब मिलना है तो भला इसमें भी रामजी का क्या अहसान.
कोदों की रोटी पेट भरना, मरियल कंत करम ढकना. जिस प्रकार कोदों की रोटी केवल पेट भरने के लिए होती है, उसी प्रकार अत्यधिक दुर्बल पति भी केवल सौभाग्य की रक्षा के लिए होता है.
कोदों दे के नहीं पढ़े. हम मेहनत कर के पढ़े हैं, कोदों की रिश्वत दे कर नहीं. कोदों जैसी घटिया चीज दे के पढ़े होते तो शिक्षक भी घटिया मिलता और शिक्षा भी घटिया मिली होती.
कोदों दे के पूत पढ़ाए, सोलह दूनी आठ. घटिया शिक्षा का घटिया फल.
कोदों परस के मट्ठे को गये. कोदों को पचाने के लिए मट्ठा आवश्यक होता है. कोई व्यक्ति कोदों को थाली में परस कर मट्ठा मांगने गया है. ऐसे लोग जो योजना बना कर काम नहीं करते.
कोदों में घी खोवे, मूरख से दुख रोवे. कोदों जैसे घटिया अनाज में घी डालना बेकार है और मूर्ख व्यक्ति से अपना दुख कहना भी बेकार है,
कोदों सबा अन्न न, धी दामाद धन्न न. कोदों और सबा घटिया प्रकार के अनाज हैं, जिन्हें लोग अन्न की श्रेणी में नहीं मानते हैं. कहावत में तुकबन्दी कर के दूसरी बात और बताई गई है जो इस से सम्बंधित नहीं है. पुत्री और दामाद व्यक्ति का धन नहीं होते (बेटी को पराया धन कहा गया है), जबकि पुत्र एक प्रकार का धन है.
कोपीन की गिनती किन पोशाकों में. कोपीन जैसे न्यूनतम वस्त्र की पोशाकों में गिनती कैसे हो सकती है. कोई बहुत क्षुद्र व्यक्ति अपने को महत्वपूर्ण समझता हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.
कोपै दई मेघ न होय, खेती सूखे, नैहर जोय, पूत बिदेसे, खाट पे कंत, कहे घाघ ई बिपति का अंत. कोपै दई-दैव का कोप, जोय-पत्नी, दैव के कोप से वर्षा न हो, खेती सूख जाय, स्त्री मायके में हो, पुत्र परदेश में बस गया हो और घर का स्वामी बीमार हो कर खाट पर पड़ा हो, इससे बढ़कर दूसरी कोई भी विपत्ति नहीं हो सकती.
कोमल डार ज्यों नमावो त्यों नमे (कच्चा बांस जिधर को नवाओ नव जाए). पेड़ या पौधे की कोमल डाल को या कच्चे बांस को जिस प्रकार मोड़ो मुड़ जाते हैं. इसी प्रकार छोटे बच्चे का मन कोमल होता है उसे किसी भी रूप में ढाला जा सकता है.
कोयल अम्बहिं लेत है, काग निम्बौरी लेत. कोयल मीठा आम खाती है जबकि कौवा कड़वी निम्बौली खाता है. हर व्यक्ति अपनी रूचि के अनुसार चीज़ चुनता है.
कोयल काले कौवे की जोरू. 1. बेमेल जोड़ा, क्योंकि कोयल सुरीली है और कौआ कर्कश. 2. उपयुक्त जोड़ा, क्योंकि दोनों काले हैं. 3. जहाँ पति पत्नी किसी अवगुण में एक से बढ़ कर एक हों.
कोयल की बोली कोयल क्या जाने. कोयल को अपनी बोली का मोल नहीं मालूम.
कोयला गर्म हो तो हाथ जलाए, ठंडा हो तो हाथ काला करे. नीच मनुष्य का साथ हर प्रकार से दुखदाई होता है.
कोयला होय न ऊजला, सौ मन साबुन धोय. चाहे सौ मन साबुन से धो लो, कोयला सफ़ेद नहीं हो सकता. दुष्ट व्यक्ति को सुधारने का कितना भी प्रयास कर लो वह नहीं सुधर सकता.
कोयले की दलाली में हाथ काले. आप कोई गलत काम स्वयं न भी करें, अगर उसमें बीच में भी पड़ते हैं तो आपको भी कुछ न कुछ बदनामी होने की संभावना रहेगी.
कोयले से हीरा, कीचड़ से फूल. कोयले जैसी घटिया चीज़ में से हीरा प्राप्त होता है और कीचड़ की गंदगी में कमल का फूल खिलता है. इसलिए निर्धन या पिछड़ी पृष्ठभूमि के लोगों का भी सम्मान करना चाहिए.
कोरी का बेगारी कुचबंदिया. कुचबंदिया – एक घुमक्कड़ जाति जो मूँज की रस्सी, सींके तथा कूँच आदि बनाती है. गरीब व्यक्ति शोषण करने के लिए अपने से अधिक गरीब को पकड़ता है.
कोरी का सुआ क्या पढ़े, सूत और पौनी. सूआ – तोता. जो जिसका धंधा होता है उसके घर में उसी की चर्चा होती रहती है और उसके घर में रहने वाले वही बातें सीखते हैं.
कोरी की भैंस ने कब खेत चरे. कोरी की भैंस में इतना साहस कहाँ जो रात्रि में दूसरों के खेतों को चरने जा सके. समाज का वंचित वर्ग इतना दुस्साहस कार्य कैसे कर सकता है.
कोरी ठकुराई और बगल में कंडा. झूठ मूठ के ठाकुर. राजस्थानी कहावत – ठाली ठकुराई कांख में छाण.
कोरी नून की पोवे. केवल नमक की रोटी बनाता है. जो बिल्कुल बिना सिर पैर की गप्प हाँकता हो.
कोल्हू के बैल को साथी की क्या दरकार. यदि एक ही आदमी से काम चलता हो तो दो लोग क्यों लगाए जाएँ.
कोल्हू से खल उतरी, भई बैलों जोग. तिल में से तेल निकलने के बाद खल बचती है जोकि केवल बैलों के खाने के काम आती है. महत्वपूर्ण व्यक्ति अपना पद खोने के बाद गरिमाहीन हो जाता है.
कोस कोस पर पानी बदले, बारह कोस पे बानी. हमारे देश में हर कोस पर पानी का स्वाद बदल जाता है और हर बारह कोस पर बोली में कुछ बदलाव आ जाता है.
कोस चली न, बाबा प्यासी. कोस भर भी नहीं चली और कहने लगी बाबा प्यास लग रही है. काम शुरू करते ही थकने का बहाना करना.
कोस-कोस पे गोड़े धोवे, दो-दो कोस पे खाय, ऐसा बोले भड्डरी, चाहे जहाँ लौं जाय. गोड़े – पैर, लौं – तक. पैदल यात्रा में थोड़ी-थोड़ी दूर पर शीतल जल से पैर धोने और कुछ खा लेने से थकान दूर होती है.
कोसे जिएँ, असीसे मरें. किसी को खूब कोसा गया फिर भी वह जीवित है, किसी को जुग जुग जीने की आशीष दी गई फिर भी वह मर गया. अर्थ है कि कोसने या असीस देने से कुछ नहीं होता, ईश्वर की मर्ज़ी से होता है.
कौआ अपने सिसुन को जानत सबसे सेत. (कौवा अपने बच्चों को ही सबसे सुंदर समझता है. सेत – श्वेत (यहाँ सुंदर से तात्पर्य है), सिसुन – शिशु. कौए को अपने बच्चे सबसे सुंदर लगते हैं. हर जीव जन्तु को अपनी संतान प्रिय होती है (चाहे वह कैसी भी हो).
कौआ कांय कांय कर मरे, हंस अपनी चाल चले. हंस को देख कर कौआ कितना भी जले, कितनी भी कांव कांव करे, हंस शान से अपनी चाल चलता रहता है.
कौआ के कोसे ढोर न मरे (गीदड़ के मनाए ढोर नहीं मरते) (कसाई के सरापे गाय नहीं मरती). किसी के कोसने से कोई नहीं मरता. अन्धविश्वासी लोगों को सीख दी गई है जो मंत्र तंत्र कर के किसी को हानि पहुँचाना चाहते हैं. रूपान्तर– चमार के मनाए ढोर नहीं मरते (चमार मनाता है कि किसी का जानवर मरे तो उसे चमड़ा मिले)
कौआ चढ़ा छप्पर पे, अब उतरेगा कैसे. मूर्ख व्यक्ति की मूर्खता की कोई सीमा नहीं होती. वह यही सोच कर परेशान है कि कौआ छप्पर पर से कैसे उतरेगा. वह सोच ही नहीं सकता कि कौआ तो उड़ सकता है.
कौआ चला हंस की चाल, अपनी चाल भी भूल गया. दूसरों की नकल करने में हम उसके जैसा भी नहीं बन पाते हैं और अपनी वास्तविकता एवं मौलिकता को भी भूल जाते हैं.
कौआ जैसे पंख मोर का अपनी दुम में बांधे. फूहड़पने से किसी की नकल करना.
कौआ बोले बेसी, घर आवे परदेसी. कौवा यदि बार बार बोलता है तो घर में कोई मेहमान आता है.
कौए की चोंच में अंगूर, हूर के पहलू में लंगूर. यदि किसी लल्लू पंजू आदमी को बहुत सुंदर पत्नी मिल जाए तो दूसरे लोग ईर्ष्या वश यह कहावत कहते हैं.
कौए की दुम में अनार की कली. उपरोक्त के समान.
कौए की नजर तो रैंट पर ही. नीच व्यक्ति को निम्न कोटि की वस्तुएँ ही पसंद आती हैं. (कौआ नाक से निकली रैंट को बड़े शौक से खाता है).
कौए के साथ हंस का जोड़ा. बेमेल जोड़ा.
कौए को सोने के पिंजरे में मोती चुगाओ तो भी राजहंस नहीं हो सकता. अर्थ स्पष्ट है.
कौए धोए कहीं बगुले हुआ करें. किसी खुराफाती आदमी को सुधारने की बहुत कोशिश की गई पर वह खुराफाती ही रहा तो यह कहावत कही गई. कोई काला या असुंदर व्यक्ति सुंदर दिखने के लिए तरह-तरह के साबुन और लेप लगाए तो भी उसका मजाक उड़ाने के लिए यह कहावत कही जाती है.
कौए सब जगह काले ही काले. दुष्ट लोग सब जगह दुष्टता ही करते हैं.
कौए से भी गोरा. किसी अत्यधिक काले आदमी का मजाक उड़ाने के लिए.
कौओं के बजाए ढोल थोड़े ही फूटें. छोटे और महत्वहीन लोग बड़े लोगों का कोई नुकसान नहीं कर सकते.
कौड़ी कौड़ी जोड़ के निधन होत धनवान, अक्षर अक्षर के पढ़े मूरख होत सुजान. अर्थ स्पष्ट है.
कौड़ी कौड़ी बचाओ, लाखों रूपए पाओ (कौड़ी कौड़ी धन जुड़े). छोटी छोटी बचत अंततः बहुत बड़ी बन जाती हैं.
कौड़ी गाँठ की, जोरू साथ की. कौड़ी वही काम की है जो गाँठ में हो (मतलब पैसा वही काम का है जो पास में हो), पत्नी तभी काम की है जब साथ हो.
कौड़ी न चीन्हे बंधु अबंधु. धन अपना-पराया नहीं देखता. (उड़िया कहावत)
कौड़ी नहीं गाँठ, चले बाग की सैर. अपने पास कुछ न होते हुए भी तरह तरह के शौक सूझना.
कौडी नाहीं गाँठ में, करे ऊँट की बात. पास में पैसा न होते हुए भी बड़ी बड़ी बातें करने वालों के लिए.
कौड़ी बिना दो कौड़ी का. जिस के पास पैसा न हो उसे कोई नहीं पूछता.
कौड़ी में हाथी बिकाय, पर कौड़ी तो हो. कोई महंगी चीज बहुत सस्ती मिल रही है लेकिन हमारे पास तो उतने पैसे भी नहीं हैं.
कौन अकेली तुम्हारी माँ ने ही सोंठ पंजीरी खाई. अकेली तुम्हारी माँ ने ही सोंठ पंजीरी नहीं खायी है, हमारी माँ ने भी खायी है. हम भी कुछ बूता रखते हैं.
कौन ऐसा फूल जो शिव पर न चढ़े. किसी लालची हाकिम पर व्यंग्य जो सब तरह की रिश्वत ले लेता हो.
कौन कहे राजा जी नंगे हैं. जहाँ पर कोई गलत काम होता दिख रहा हो पर कहने की हिम्मत कोई न जुटा पा रहा हो वहाँ यह कहावत कहते हैं. सन्दर्भ कथा एक राजा के दरबार में दो लोग आए और राजा से बोले कि वे देवताओं के वस्त्र बनाते हैं. राजा लोग भी कैसे कैसे मूर्ख होते थे, उस ने उन लोगों की बात पर विश्वास भी कर लिया और उन से कहा कि मेरे लिए भी देवताओं जैसे वस्त्र बनाओ. उन्होंने राजा से एक महीने का समय माँगा और बहुत सा सोना, हीरे जवाहरात और रेशम, मखमल वगैरा ले कर महल के एक कमरे में काम शुरू कर दिया.
एक महीने बाद वे दरबार में आए और राजा से कहा कि हम आप को देवताओं के वस्त्र अपने हाथ से पहनाएंगे. वस्त्र तो ऐसे बने हैं कि जो देखेगा देखता रह जाएगा लेकिन इन वस्त्रों की एक विशेषता यह है कि ये उन्हीं लोगों को दिखाई देते हैं जो अपने बाप से पैदा हैं. उन्होंने राजा के कपडे उतरवाए और खाली मूली हवा में ही एक एक चीज़ राजा को पहनाने लगे. लीजिये महाराज यह मलमल का जांघिया, यह रेशम की धोती, यह हीरे मोती जड़ा कुर्ता आदि आदि. राजा को कुछ नहीं दिख रहा था लेकिन वह यह कैसे कहे. उसने सोचा कि हो न हो मैं अपने पिता महाराज की औलाद न हो कर किसी द्वारपाल की औलाद हूँ जो मुझे ये वस्त्र दिखाई नहीं दे रहे हैं.
राजा ने सब दरबारियों से पूछा कि कैसे लग रहे हैं मेरे नए वस्त्र? सब ने एक स्वर से कहा अद्वितीय महाराज, आप बिल्कुल देवता लग रहे हैं. हकीकत यह थी कि राजा बिल्कुल नंगा खड़ा था लेकिन कोई यह कह नहीं पा रहा था. जहाँ पर कोई गलत काम होता सब को दिख रहा हो पर कहने की हिम्मत कोई न जुटा पा रहा हो वहाँ यह कहावत कहते हैं. रूपान्तर-कौन राजा को कहै कि आपन ढांक के बइठौ.
कौन किसी के आवे जावे, दाना पानी खेंच लावे. कोई किसी के घर वैसे क्यों आएगा जाएगा, दाना पानी व्यक्ति को खींच लाता है.
कौन कौन गुन गायें अपने राम के. किसी की करतूतों का बखान करते समय व्यंग्य में कहा जाता है.
कौन जनम भरे की साई ली है. साई – पेशगी, बयाना. क्या काम करने का जन्म भर का ठेका लिया है.
कौन जाने किस विधि राजी राम. कोई नहीं जान सकता कि ईश्वर की इच्छा क्या है.
कौन तुम्हारी जमा गड़ी. अर्थात् यहाँ तुम्हारा क्या अधिकार
कौन पाप तुम किया पूत जो मोटी मिली जोय, सबरी खाट घेर सोएगी तुम्हरी क्या गति होय. जोय – पत्नी. किसी की पत्नी बहुत मोटी हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.
कौन सिखावत है कहो, राजहंस को चाल. राजहंस की चाल राजसी होती है. लेकिन यह उस का जन्मजात गुण है. हमारे कुछ गुण जन्मजात होते हैं.
कौन सुने किससे कहें, ऐसी आन पड़ी, किस किस को समझाइये, कूएँ भांग पड़ी. जहाँ सभी एक से बढ़ कर एक महान हों.
कौन से जनम का कर्म कौन से जनम में उघड़ आवे. कोई नहीं जानता कि किस जन्म में किया पाप या पुण्य किस जन्म में अपना फल दिखाएगा.
कौन हाथी मारे कौन दाँत उखाड़े. इतना कठिन काम कौन करे.
कौनो बात को दुख नाहीं, बस खर्चे से तंग हैं. सभी के लिए यही सब से बड़ा दुख है.
कौवा कहे कोयल काली. अपनी कमियों को न देख कर दूसरों की खामियाँ ढूँढना. इंग्लिश में कहावत है – The pot calls the kettle black.
कौवा कान ले गया. मूर्ख व्यक्ति से कुछ भी कहो वह विशवास कर लेता है. किसी व्यक्ति ने एक मूर्ख से कहा – कौवा तेरा कान ले गया. मूर्ख तुरंत अपना कान टटोल कर देखने लगा. सन्दर्भ कथा-बिना सोच-विचारे दूसरे की बात पर विश्वास कर लेना. किसी मूर्ख से एक व्यक्ति ने कह दिया कि तेरा कान कौवा ले गया. सुनते ही वह झट से कौवे के पीछे दौड़ पड़ा. लोगों ने जब पूछा कि क्या बात है, तो उसने जवाब दिया कि मेरा कान कौवा ले गया है. उसे छीनने के लिए मैं उसके पीछे जा रहा हूं. इस पर किसी ने कहा कि कान तो तेरे दोनों लगे हैं. कौवा कहां से ले जाएगा? जब उसने अपने कान टटोल कर देखे, तो वास्तव में दोनों जहां के तहां मौजूद थे. तब वह अपनी मूर्खता पर लज्जित होने की बजाए उस व्यक्ति से लड़ने लगा
कौवा कोसे ढोर मरें तो रोज़ कोसे, रोज़ मारे, रोज़ खाए. कौए के कोसने से अगर ढोर (गाय भैंस आदि) मरने लगें तो कौया रोज कोस कोस कर उन्हें मार कर खाएगा. अन्धविश्वासी लोगों को सीख दी गई है.
कौवे से कवेला चतुर. कवेला – कौए का बच्चा. बेटा अगर बाप से भी अधिक धूर्त हो तो.
कौवों की बरात में बड़े कौए की पूछ. निकृष्ट लोगों के यहाँ कोई आयोजन होता है तो सब से निकृष्ट आदमी की विशेष पूछ होती है.
क्या अंधे का सोना और क्या उसका जागना. अंधा व्यक्ति चाहे सोए चाहे जागे, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता.
क्या उल्लू और क्या उल्लू का पट्ठा. किसी मूर्ख व्यक्ति और उसकी मूर्ख संतान के लिए हिकारत भरे शब्द.
क्या करे नर बांकुरो, जब थैली को मुख सांकरो. धन के अभाव में योग्य व्यक्ति भी असहाय हो जाता है.
क्या कहूँ कछु कहा न जाए, बिन कहे भी रहा न जाए, मन की बात मन में ही रही, सात गाँव बकरी चर गई. एक चरवाहे को राजा ने एक पत्ते पर सात गाँव का पट्टा लिख कर दे दिया. उसने यह बताने के लिए सब लोगों को इकठ्ठा किया. तब तक निगाह बचते ही बकरी उस पत्ते को खा गई. देखिए सन्दर्भ कथा-एक बार एक राजा शिकार खेलते समय अपने दल से अलग हो कर कहीं जंगल में भटक गया. राजा भूख प्यास से बेहाल था और ऊपर से जंगली जानवरों और डाकुओं का डर भी था. ऐसे में एक चरवाहे ने पानी पिला कर और रास्ता दिखा कर उस की जान बचाई. राजा बहुत खुश हुआ और उस ने एक पत्ते पर सात गाँव का पट्टा लिख कर उसे दे दिया.
चरवाहा ख़ुशी ख़ुशी अपने घर आया और यह बताने के लिए उस ने सब लोगों को इकठ्ठा किया. तब तक उसकी निगाह बचते ही उसकी बकरी पत्ते को खा गई. तब उस ने रोते हुए यह कहा. क्या कहूँ कछु कहा न जाए, बिन कहे भी रहा न जाए, मन की बात मन में ही रही, सात गाँव बकरी चर गई. किसी को अप्रत्याशित रूप से बड़ा नुकसान हो जाए तो यह कहावत कही जाती है
क्या कहें करम की बात, बकरी को मुर्गी मारे लात. भाग्य साथ न दे तो बकरी को मुर्गी भी लात मार सकती है.
क्या कुत्ते का मगज़ खाया है. कोई आदमी बहुत बकवास करे उसके लिए. (कुत्ता बहुत भौंकता है इसलिए).
क्या खुदा तेरी खुदाई, मारनी थी गधी मर गई गाइ. दूसरे का बुरा चाहने वाले का खुद का नुकसान हो जाना. सन्दर्भ कथा एक मियां के घर के पास ही कुम्हार का घर था. मियां की कुम्हार से अनबन हो गई तो उसने खुदा से फरियाद की कि वह कुम्हार की गधी को मार दे. लेकिन अगले ही दिन उनकी स्वयं की गाय मर गई. इस पर मियां ने ख़ुदा को उपालंभ देते हुए कहा कि या ख़ुदा ये तूने क्या किया? तुझे खुदाई करते इतने जुग बीत गये लेकिन अभी तक गाय और गधी का फर्क भी मालूम न हुआ. मैंने पड़ोसी को गधी मारने के लिए अर्ज की थी और तूने मेरी ही गाय मार दी.
क्या तत्ते पानी से घर जले है. गरम पानी से शरीर जल सकता है लेकिन घर नहीं जल सकता. छोटी छोटी चीजें बहुत बड़ा नुकसान नहीं कर सकती हैं.
क्या तुम्हारे खोदने से गंगा आई हैं. कोई यह समझता हो कि उस के करने से ही सारा काम हुआ है तो उस को उस की वास्तविकता का अहसास कराने के लिए यह कहावत कही जाती है.
क्या पता ऊँट किस करवट बैठे? अनिश्चितता की स्थिति. ऊँट के विषय में यह नहीं पता होता कि वह किस तरफ बैठेगा.
क्या पिद्दी और क्या पिद्दी का शोरबा. पिद्दी एक छोटी सी चिड़िया होती है. उसको पका कर खाने की कोशिश करोगे तो कितना मांस मिलेगा और कितना शोरबा. किसी छोटे और कमजोर आदमी का मजाक उड़ाने के लिए.
क्या भरोसा है जिंदगानी का, आदमी बुलबुला है पानी का. जीवन का कोई भरोसा नहीं, पानी के बुलबुले की तरह क्षणभंगुर है. (पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात – कबीर)
क्या भूख को बासन. क्या नींद को ओढ़न. भूख लगी हो तो बिना बर्तनों के भी खाया जा सकता है और नींद आ रही हो तो बिना ओढ़नी के भी सोया जा सकता है.
क्या मरते ही कीड़े पड़ जाएंगे. अर्थात क्या कार्य इतने शीघ्र बिगड़ जायगा कि सँभाला न जा सके.
क्या रखा इन बातों में, जूते ले लो हाथों में. जूते हाथों में लेने का अर्थ जूते ले कर भागने से भी है, जूते मारने से भी है. वैसे आम तौर पर इस कहावत को मजाक में प्रयोग करते हैं.
क्या ले गए राव और क्या ले गए उमराव. (क्या ले गया शेरशाह और क्या ले गया सलीमशाह). बड़े से बड़े लोग भी इस दुनिया से कुछ ले नहीं जा पाए. इसलिए किसी के साथ अन्याय करके धन नहीं कमाना चाहिए.
क्या सासू जी अटको मटको, क्या मटकाओ कूल्हा, डोली पर से जब उतरूंगी, जुदा करूंगी चूल्हा. जो महिलाएं बेटे की शादी में बहुत नाच कूद रही हों उन को सावधान किया गया है.
क्या सूक सनीचर जैसे ठाढ़े भये हो. सूक – शुक्र ग्रह. किसी मंगल कार्य में कोई व्यक्ति मनहूस शक्ल बनाए खड़ा हो तो यह कहावत व्यंग्य में कही जाती है.
क्या सूप का लाल सूपे में रहिहैं. सूप – छाज, जिससे अनाज साफ किया जाता है. गांवों में जब बच्चा पैदा होता है तो उसे सबसे पहिले सूप में ही लिटाया जाता है. जब कोई बच्चा बहुत दिन बाद मिलता है तो उसे देखकर कहने में आता है कि अरे बहुत बड़ा हो गया, तो जवाब मिलता है कि क्या जैसे सूप में लेटा था वैसा ही रहेगा.
क्या सौ रुपये की पूंजी, क्या एक बेटे की औलाद. जैसे सौ रुपये की पूंजी नाकाफ़ी है वैसे ही संतान के रूप में एक ही बेटा होना पर्याप्त नहीं है.
क्या हंसिया को बेच खाए, क्या खुरपी को गिरवी रखे. हंसिया को बेचने और खुरपी को गिरवी रखने से कितना पैसा मिल जाएगा. बहुत निर्धन व्यक्ति के लिए.
क्या हल्दी को रंग और क्या परदेसी को संग. जिस प्रकार हल्दी का रंग स्थायी नहीं होता उसी प्रकार परदेसी की प्रीत भी क्षणभंगुर होती है.
क्या हिजड़ों ने राह मारी है. क्या हिजड़ों ने तुम्हारी राह रोक ली थी. व्यर्थ के बहाने बनाने वाले के लिए.
क्यों अंधा न्योता और क्यों दो बुलाए. कोई ऐसा काम करना जिसमें अनावश्यक खर्च शामिल हो. (हरियाणवी कहावत) अंधा न्यौतै और दो बुलावै अर तीसरा गैला आवै. गैला – फ़ालतू.
क्यों कही और क्यों कहाई. न तुम कुछ कहते और न तुम्हें इतना सुनना पड़ता.
क्रोध की सबसे अच्छी दवा मौन है. अर्थ स्पष्ट है.
क्रोध विवेक का दुश्मन है. क्रोध में आदमी विवेक भूल जाता है. इंग्लिश में कहावत है – Anger is a short madness.
क्वाँरी कन्या को बर और धरती को बीज मिलई जात. क्वाँरी कन्या के लिए वर और खेत में बोने के लिए बीज कहीं न कहीं से मिल ही जाते हैं.
क्वांरी कन्या को सौ घर और सौ वर (क्वांरी कन्या सहस वर). ब्याहता स्त्री का तो एक ही वर होता है लेकिन क्वांरी कन्या के लिए सैकड़ों सम्भावित वर होते हैं. वैश्या के लिए भी व्यंग्य में ऐसा कहते हैं.
क्वार करेला चैत गुड़, भादों मूली खाय, पैसा खरचै गांठ को, रोग बिसावन जाय. क्वार में करेला, चैत में गुड़ और भादों में मूली खाना हानिकारक है. पैसा खर्च होता है और रोग भी आते हैं. घाघ ने इस तरह की बहुत सी बातें लिखी हैं जो उस समय के लोगों की स्वास्थ्य सम्बंधी मान्यताओं को दर्शाती हैं. आज के वैज्ञानिक युग में इन में से अधिकतर का कोई आधार नहीं है. रूपान्तर – क्वार करेला, कातिक दही, मरे नहीं तौ परे सही.
क्वार का सा झल्ला, आया बरसा चल्ला. क्वार के महीने में बहुत हल्की सी वारिश होती है (बहुत थोड़े समय के लिए). कोई व्यक्ति बहुत थोड़े समय के लिए आए तो मज़ाक में कहते हैं.
क्वार की घाम में चमार का चाम पाके. क्वार की धूप भादों जैसी तेज तो नहीं होती लेकिन ठीक ठाक तेज होती है, और क्वार में वर्षा का डर भी नहीं होता, इसलिए चर्मकार को चमड़ा सुखाने में आसानी होती है.
क्वार चैत के भरोसे किसान कर्जा लेत. चैत तथा क्वार के महीने में किसान को खेत से अनाज मिलता है. इन दो माहों में रबी तथा खरीफ की फसलें कटती हैं. इसी आशा में किसान क़र्ज़ लेता है.
क्वार जाड़े का द्वार. क्वार के एक महीने के बाद जाड़ा आता है.
क्वारी को अरमान, ब्याही परेशान. कुंआरी लड़की अपने विवाह को लेकर तरह तरह के सपने देख रही है, जबकि विवाहिता स्त्री गृहस्थी की मुसीबतों से परेशान है.
ख
खंजर तले जो दम लिया तो क्या दम लिया. तलवार के साए में कौन चैन से बैठ सकता है.
खंडहर बता रहे हैं इमारत बुलंद थी. जिस प्रकार बड़ी इमारतों के भग्नावशेष बता देते हैं कि यह इमारत विशाल रही होगी, उसी प्रकार धनी व्यक्ति निर्धन हो जाए उसके तौर तरीके बता देते हैं कि वह कभी धनी था.
खंबा गिरे छप्पर भारी. छप्पर को टिकाने वाला खंबा गिर जाए तो छप्पर भारी हो जाता है. घर के मुख्य कमाने वाले की मृत्यु हो जाए तो घर चलाना भारी पड़ने लगता है.
खंबा देख के गड्ढा खोदा जाता है. जितना ऊँचा खंबा होता है, उस को खड़ा करने के लिए उतना ही गहरा गड्ढा खोदना पड़ता है. कार्य के अनुसार ही तैयारी की जाती है और साधन जुटाए जाते हैं.
खग ही जाने खग की भाषा. चिड़िया की भाषा चिड़िया ही समझ सकती है. बच्चे की भाषा बच्चा समझ सकता है, जवान की भाषा जवान और बूढ़े की भाषा को बूढ़ा ही समझ सकता है.
खजुही कुतिया, मखमली झूल. खुजली वाली कुतिया के लिए मखमल की झूल. अपात्र को कोई बहुत बढ़िया चीज़ मिल जाना.
खजूर खाने हैं तो पेड़ पर चढ़ना पड़ेगा. कुछ पाने के लिए परिश्रम तो करना ही पड़ेगा.
खटमल के कारण खटिया मार खाय. खाट में खटमल हो जाएँ तो उन्हें निकालने के लिए जोर जोर से लाठी मारते हैं. गलत लोगों की संगत से मनुष्य हानि उठाता है. खटमल के लिए देखिए परिशिष्ट.
खटमल मार के हाथ न गंदा करो. ओछे व्यक्ति को सजा देने की कोशिश में अपनी हानि होती है.
खटिया में खटमल और गाँव में तुरक. खाट में खटमल और गाँव में मुसलमान परेशानी का कारण बनते हैं.
खट्टा खट्टा साझे में, मीठा मीठा न्यारा. जो फल खट्टा निकल गया उसको बाँट कर खाओ और जो मीठा है वह केवल मेरा है. निपट स्वार्थपरता. न्यारा – अलग.
खड़ा बनिया पड़े समान, पड़ा बनिया मरे समान. बनियों के डरपोक होने पे व्यंग्य.
खड़ा मूते लेटा खाय, उसका दलिद्दर कभी न जाय. जो आदमी खड़ा हो कर पेशाब करता है और लेट कर खाता है वह हमेशा दरिद्र ही रहेगा.
खड़ा स्वर्ग में गया. जिसकी मृत्यु चलते फिरते हुई हो उसके लिए कहते हैं.
खड़ा होने दो, बैठे की जगह तो करइ लेव. खड़े होने को स्थान मिल जाए तो फिर बैठने की जगह तो बना लेंगे.
खड़ी आई, लेटी जाऊँगी. स्त्री का ससुराल वालों से कथन.
खड़ी खेती, गाभिन गाय, तब जानो जब मुँह में जाय. खेती पक कर तैयार खड़ी हो तो भी किसान बहुत खुश नहीं होता. जब फसल कट कर खलिहान में पहुँच जाए और खाने को मिल जाए तभी वह खुश होता है. इसी प्रकार गाय गर्भवती हो तो तब तक खुश नहीं होना चाहिए जब तक वह ब्याह न जाए और दूध न मिल जाए.
खतरा दो अंगुल, डर सौ अंगुल. खतरे से अधिक डर आदमी को परेशान करता है.
खता करे बीबी, पकड़ी जाए बांदी. इसका अर्थ दो तरह से है. एक तो यह कि गलती कोई और करे और सजा किसी और को मिले. दूसरा यह कि बीबी से कुछ कहने की हिम्मत नहीं है इसलिए उसकी गलती की सजा बांदी को दे रहे हैं.
खता लम्हों ने की, सजा सदियों ने पाई. कुछ देखने में छोटी लगने वाली गलतियाँ बहुत लम्बे समय तक दुख पहुँचाती हैं. गलती तो थोड़ी देर में ही हो जाती है लेकिन उसके परिणाम दूरगामी होते हैं. आजादी मिलने के समय जो गलतियाँ उस समय के नेताओं ने कीं उस का खामियाजा देश अब तक भुगत रहा है.
खत्री पुत्रम् कभी न मित्रम् (जब मित्रम् तब दगा ही दगा). खत्रियों के विषय में किसी दिलजले का कथन.
खत्री से गोरा सो पिंड रोगी. खत्री से गोरा कोई दिखाई दे रहा है तो हो न हो पीलिया का रोगी होगा. खत्रियों के गोरे रंग पर कहावत.
खन में तत्ते खन में सीरे. खन – क्षण, तत्ता – गरम, सीरा – ठंडा. घड़ी घड़ी मिजाज़ बदलना.
खपरा फूटा, झगड़ा टूटा. जिस चीज को लेकर झगड़ा हो रहा है वह टूट जाए तो झगड़ा खत्म.
खर को गंग न्हवाइए, तऊ न छांड़े खार. कितना भी प्रयास करो, दुष्ट व्यक्ति अपनी दुष्टता नहीं छोड़ता.
खर, उल्लू औ मूरख नर सदा सुखी इस घरती पर. गधा, उल्लू और मूर्ख नर, इस धरती पर सदा सुखी हैं क्योंकि इन की कोई महत्वाकांक्षाएं नहीं होतीं.
खरचा रहा न पास, यार मुख से न बोले. जब पास का धन समाप्त हो जाता है तो दोस्त मुँह चुराने लगते हैं.
खरचे से ठाकुर बने. ठकुराई करने के लिए कुछ शान शौकत दिखानी पड़ती है.
खरब अरब लौं लच्छमी, उदै अस्त लौं राज, तुलसी हरि की भक्ति बिन, जे आवें किस काज. कितना भी धन हो और कितना भी फैला हुआ राज पाट हो, हरि की भक्ति के बिना सब बेकार हैं.
खरबूजा खरबूजे को देख कर रंग बदलता है. जो व्यक्ति बिना अपनी बुद्धि प्रयोग किए अपनी जाति या समाज वालों की तरह व्यवहार करने लगे उसका मज़ाक उड़ाने के लिए.
खरबूजा चाहे घाम को आम चाहे मेह, औरत चाहे जोर को और बालक चाहे नेह. खरबूजा तेज धूप में मीठा होता है और आम बरसात में. स्त्री पौरुष को पसंद करती है और बालक स्नेह को.
खरा कमाय खोटा खाय. ईमानदार आदमी कमाता है और बेईमान बैठ कर खाता है.
खरा खेल फरुक्खाबादी. सच्ची बात और ईमानदारी का काम. फर्रुखाबाद के रुपये की चांदी किसी समय बहुत शुद्ध और खरी मानी जाती थी. उसी से कहावत चली.
खरादी का काठ काटे ही से कटता है. धीरे धीरे ही सही, कोई भी लम्बा काम करने ही से निबटता है और ऋण चुकाने से ही चुकता है. खराद एक मशीन होती है जिस पर धीरे धीरे लकड़ी की घिसाई और कटाई की जाती है.
खराब किराएदार से खाली मकान बेहतर. गलत आदमी को मकान किराए पर देने में बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. थोड़े से लाभ के लिए किसी बड़ी परेशानी को न्योता नहीं देना चाहिए.
खरी मजूरी चोखा काम. नगद और अच्छी मजदूरी देने से काम अच्छा होता है.
खरे को बरकत ओर खोटे को हरकत. ईमानदार की उन्नति होती है और बेईमान का विनाश.
खरे खोटे की राम जानें. किसी विषय की जिम्मेवारी न लेना.
खरे माल के सौ गाहक. अर्थ स्पष्ट है. कहावत के द्वारा दूकानदारों को अच्छी गुणवत्ता वाला माल बेचने को प्रेरित किया गया है.
खरे सोने को कसौटी का क्या डर. सोना यदि शुद्ध हो तो कसौटी पर खरा ही उतरेगा. जो व्यक्ति निर्दोष है और सच्चा है वह किसी से नहीं डरता.
खर्चा घना पैदा थोड़ी, किस पर बांधूं घोड़ा घोड़ी. आमदनी से अधिक खर्च है, किस बूते घोड़ा पाल लूँ. (घोड़ा पालना बहुत महंगा शौक है)
खल की दवा पीठ की पूजा. दुष्ट लोग पीटने से ही ठीक रहते हैं.
खल खाई और कुत्तों की झूठी. (बुन्देलखंडी कहावत) वैश्या के यहाँ जाने वाले से ऐसा कहा जाता है.
खलक का हलक किसने बंद किया है. जनता की आवाज़ को कोई नहीं दबा सकता.
खलक की जुबान, खुदा का नक्कारा. जनता की बात ईश्वर की आज्ञा. इंग्लिश में कहावत है – The voice of the people is the voice of God.
खलक गाल भरावे, पेट नहीं भरावे. खलक – संसार. संसार के लोग मुँह देखी बातें करते हैं, पर पेट भरने वाला कोई नहीं होता.
खलिहान और कुटुंब, सूना न छोड़ो. खलिहान को छोड़ कर जाने में चोरी का डर होता है और कुटुंब को छोड़ कर जाने में कुटुंब टूटने का डर होता है.
खली गुड़ एक भाव (खांड़ खड़ी का एक भाव). भारी अव्यवस्था की स्थिति. खराब शासन व्यवस्था.
खवैया के राम देवैया. हर भूखे मनुष्य को भगवान बोजन देते हैं. अकर्मण्य लोग अक्सर ऐसा बोलते हैं.
खसने न लजाई, हंसने लजाई. खसना – गिरना. कोई व्यक्ति चलते चलते गिर जाए तो लज्जित नहीं होता, अगर उसे गिरा हुआ देख कर कोई हंस दे तो लज्जित होता है.
खसम का खाए, भाई का गाए. उन स्त्रियों के लिए जो हमेशा अपने मायके की ही तारीफ़ करती हैं. पति बेचारा सारी सुख सुविधाएं मुहैया करा रहा है लेकिन गुणगान भाई का ही करेंगी.
खसम किया सुख सोने को, कि पाटी लग के रोने को. ससुराल में जो लड़की सुखी नहीं है उसका कथन.
खसम देवर दोनों एक ही सास के पूत, यह हुआ या वह हुआ. पति के मरने पर स्त्री को देवर से विवाह करने के लिए प्रेरित करने का प्रयास.
खसम मरे का गम नहीं, घरवाली का सपना सच होना चाहिए. एक स्त्री को यह गलतफहमी थी कि उस के सपने अवश्य सच्चे होते हैं. एक बार उस ने सपना देखा कि उस के पति की मृत्यु हो गई है. जागने पर उसने अपने पति को जीवित पाया तो वह बहुत दुखी हुई. लोगों ने कहा कि तुम्हें तो खुश होना चाहिए. तो वह बोली पति को चाहे कुछ भी हो मेरा सपना सच होना चाहिये. कितना भी नुकसान हो, अपनी मूर्खतापूर्ण सोच से चिपके रहना
खसम मरे तो मरे सौतन विधवा होनी चाहिए. बहुत नीच प्रकृति के लोग हर हाल में दूसरे का बुरा चाहते हैं चाहे उस में अपना कितना बड़ा नुकसान क्यों न हो जाए.
खसम वाली रांड. ऐसी स्त्री जिसका पति उसकी कोई कद्र न करता हो.
खसम ही मारे तो किसके आगे पुकारे. अगर कोई स्त्री पर अत्याचार करता है तो वह सहायता के लिए अपने पति को पुकारती है, अगर पति ही उस पर अत्याचार करे तो वह किससे सहायता मांगे. यदि राजा या हाकिम ही अत्याचारी हो तो जनता किस की शरण में जाए.
खा कचौड़ी ओढ़ दुशाला, रोय मरेगा देने वाला. उधार ले कर खूब बढ़िया खाओ और पहनो. पैसे वापस न मिलने पर तो साहूकार रो रो कर मरेगा, तुम्हारा कुछ नुकसान थोड़े ही होगा.
खा करजा जल्दी मर जा. करजा – कर्ज़, ऋण. क़र्ज़ ले कर खाने वाला चिंता के कारण जल्दी मरता है.
खा के मुँह पोंछ लिया. गलत काम कर के उसे छिपाना या मुकर जाना.
खा चुके खिचड़ी, सलाम चूल्हे भाई. जिस से मतलब निकल गया उसको विदा की नमस्कार.
खा लो पी लो सो अपनो. खाया पिया ही संसार में काम आता है और तो सब नष्ट हो जाता है.
खांड की रोटी, जहाँ तोड़ो वहीँ मीठी. अच्छी वस्तु हर प्रकार से अच्छी ही है.
खांड को खांड हरावे, रांड को रांड हरावे. खांड के व्यापारी तरह तरह की खांड को परख कर बताते हैं कि कौन सी अच्छी है, अर्थात खांड ही खांड को हराती है. इसी प्रकार ओछी मानसिकता वाली स्त्रियाँ भी दूसरी स्त्रियों को नीचा दिखाने की कोशिश करती रहती हैं.
खांड़ खून्देगा तो खांड़ खाएगा. परिश्रम करेगा तो फल मिलेगा. (खांड बनाने के लिए उसे पैरों से खूँदना पड़ता है).
खांड दही जो घर में होय, बांके नैन परोसे जोय, बा घर ही बैकुंठा होय. घर में बढ़िया खाद्य सामग्री हो और आग्रह कर के खिलाने वाली पत्नी हो तो घर में ही बैकुंठ धाम है. जोय – जोरू, पत्नी.
खांड बिना सब रांड रसोई. जब चीनी बनाने के परिष्कृत तरीके ईजाद नहीं हुए थे तब गन्ने के रस से गुड़ और खांड बनाई जाती थी. फिर खांड को शुद्ध कर के उस से बूरा बनाने का रिवाज़ शुरू हुआ. इन चीजों से ही मिठाई आदि बनती थी. इसी लिए कहा गया कि खांड के बिना रसोई बेकार है.
खांसी करूं खुर्रा करूं, फिर भी न मरे तो क्या करूं. बीड़ी व तम्बाखू का कथन.
खांसी हिचकी जम्हाई, तीनों रोग के भाई. खांसी ही नहीं, हिचकी और जम्हाई भी रोग के सूचक हो सकते हैं.
खांसी, काल की मासी. लम्बे समय चलने वाली खांसी किसी गंभीर रोग का सूचक हो सकती है.
खाइए मन भाता, पहनिए जग भाता. इंसान को खाना तो अपने मन का खाना चाहिए पर पहनना वह चाहिए जो दूसरों को उसके ऊपर अच्छा लगे. रूपान्तर – आप रुच भोजन, पर रुच सिंगार.
खाई दाल तबेले की, अक्कल होवे धेले की. तबेला माने घोड़ों के बाँधने का स्थान (अस्तबल). घोड़े को जब तबेला में रहने की आदत पड़ जाती है तो उस का दिमाग खराब हो जाता है. कहावत का अर्थ है कि सरकारी नौकरी लगते ही आदमी के दिमाग में सुरूर आ जाता है.
खाईं गकरियाँ गाये गीत, जे चले चैतुआ मीत. गकरियाँ – बाटी, चैतुआ – चैत की फसल काटने वाले मजदूर, जो फसल के दिनों में घरों से निकलते हैं, जहाँ तक काटने के लिए खड़ी फसल मिलती है आगे बढ़ते जाते हैं व कटाई का काम समाप्त हो जाने पर लौट जाते हैं. स्वार्थी अथवा निर्मोही व्यक्ति के लिए प्रयुक्त.
खाऊं कि न खाऊं तो न खाओ, जाऊं कि न जाऊं तो जरूर जाओ. जब मन में दुविधा हो कि इस समय खाना खाऊं या न खाऊं, तो उस समय नहीं खाना चाहिए. अगर यह दुविधा हो कि शौच जाऊं या न जाऊं तो चले जाना ज्यादा अच्छा है.
खाए कम और थूके ज्यादा. जो लोग काम कम करते हैं और शिकायतें ज्यादा करते हैं.
खाए के गाल और नहाए के बाल नहीं छिपते. जिस को भरपेट पौष्टिक आहार मिल रहा हो उस के गाल देख कर मालूम हो जाता है कि यह खाया पिया है. रिश्वत खाने वाले के लिए भी इस कहावत का प्रयोग कर सकते हैं. कहावत में तुक मिलाने के लिए नहाए हुए व्यक्ति के बाल भी नहीं छिपते यह भी जोड़ दिया गया है.
खाए खाए पहाड़ बिलात. बैठे-बैठे खाने से चाहे जितना धन क्यों न हो, एक न एक दिन खत्म हो जाता है.
खाए गोप, कुटे जयपाल. अपराध कोई और करे, सजा किसी और को मिले.
खाए तो भेड़िए का नाम न खाए तो भेड़िए का नाम. कोई भी गलत काम हो तो लोग उन्ही पर शक करते है जो बदनाम हैं (चाहे उन्होंने वह काम किया हो या न किया हो).
खाए पिये होओ तो बने रहो. अपने घर से खा-पी कर आये हो तो हमारे यहाँ आराम से रहो. जब घर आए किसी आदमी को खाने-पीने के लिए न पूछा जाय तब उसकी ओर से व्यंग्य में.
खाए बकरी की तरह, सूखे लकड़ी की तरह. जो लोग खाते खूब हैं पर फिर भी दुबले पतले हैं उन के लिए.
खाए मुँह पचाए पेट, बिगड़ी बहू लजाए जेठ. गलत काम कोई करे और उस को सुधारने की कोशिश दूसरे को करनी पड़े तो. स्वाद के चक्कर में मुँह अंट शंट चीजें खाता है और पेट को वह सब पचाना पड़ता है, बहू गलत काम करती है और लज्जित जेठ को होना पड़ता है.
खाए सिपाही नाम कप्तान का. अधीनस्थ कर्मचारी रिश्वत लेते हैं तो भी हाकिम की बदनामी होती है.
खाए हुए को खिलाना आसान. 1.भरे पेट पर आदमी कम खाएगा. 2.जिस को एक बार रिश्वत दे चुके हो उस को दुबारा रिश्वत खिलाना आसान है.
खाएं भीम हगें शकुनि. काम कोई और करे, फल किसी और को मिले.
खाएंगे तो चुपड़ी नहीं तो उपासे. अच्छा खाना खाएंगे, नहीं तो भूखे रहना मंजूर है.
खाएगा तो हगेगा भी. कर्म का फल अवश्य मिलेगा.
खाओ तो कद्दू से न खाओ तो कद्दू से. किसी को कद्दू पसंद नहीं है पर खाने के लिए केवल कद्दू की सब्जी ही है, मजबूरी में वही खानी पड़ रही है. पसंद की चीज़ न मिले और मजबूरी में दूसरी चीजों से काम चलाना पड़े तब यह कहावत कही जाती है.
खाओ दाल रोटी चटनी, कमाई कितनी भी हो अपनी. आमदनी अधिक हो तब भी सादगी से रहना चाहिए.
खाओ न पिओ, जुग जुग जिओ. घर आए मेहमान को खिलाना पिलाना कुछ नहीं. केवल झूठा आशीर्वाद देना.
खाओ पकौड़ी पेलो दंड. जीवन को बिंदास जीने का संदेश.
खाओ पीओ छको मत, चलो फिरो थको मत, बोलो चालो बको मत, देखो भालो तको मत. हर काम को समझदारी से और सीमा के अंदर करने का सुझाव.
खाओ पेट भर के और सोओ मुँह ढक के. सामान्य लोग जीवन का यही उद्देश्य मान कर चलते हैं.
खाओ यहाँ तो पानी पियो वहां. बहुत जल्दी जाओ.
खाक डाले चाँद नहीं छिपता. धूल फेंकने से चंद्रमा नहीं छिपता. महापुरुषों पर बेकार के लांछन लगाने से उनकी महानता कम नहीं होती.
खाक न खटाई, मुंडो फिरे इतराई. किसी स्त्री की शक्ल सूरत कुछ खास न हो पर वह अपने को बहुत सुंदर समझ कर घमंड करती हो तो यह कहावत कही जाती है. किसी के पास कुछ न हो फिर भी वह बहुत घमंड करे तो भी.
खाकर आवे आलस, नहा के होवे चौकस. खाना खा कर आलस आता है और नहाने के बाद स्फूर्ति.
खाकर हगे, कबहुं न अघे. कुछ लोगों की खाना खाते ही शौच जाने की आदत होती है. ऐसे लोगों का पेट कभी नहीं भरता. अघाना – तृप्त होना.
खाके जल्दी चलिए कोस, मरिए आप दैव के दोस. खाना खाके फ़ौरन लम्बी दूरी चलना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है. ऐसा करने वाला अपनी गलती से मरता है और ईश्वर को दोष देता है. एक कोस – दो मील.
खाज चली जाय, खुजाने की आदत न जाय. खुजली की बीमारी खत्म भी हो जाए तब भी खुजाने की आदत नहीं जाती. किसी भी चीज की आदत पड़ जाए तो आसानी से नहीं जाती है.
खाज पर उँगली सीधी जावे. जहाँ खुजली हो रही होती है उँगली सीधे वहीँ जाती है. इस के लिए किसी को सिखाना नहीं पड़ता. यह बात आदमी ही नहीं जानवरों पर भी लागू होती है.
खाज से गंजी कुतिया, पूंछ में कंघी बांधे. जिस कुतिया के बाल खुजली के कारण गिर गए हैं वह पूंछ में कंघी बांधे घूम रही है. कोई व्यक्ति जिस शौक के लायक न हो उस तरह का शौक करे तो.
खाट खड़ी और बिस्तर गोल. किसी स्थान से कब्जा छोड़ने को मजबूर किया जाना. पहले जब चारपाई (खाट) का चलन था तो लोग चारपाई बिछा के उस पर बिस्तर बिछाया करते थे. चारपाई पर कब्ज़ा करने वाले आदमी को हटाने के लिए चारपाई खड़ी कर दी गई और बिस्तर को गोल कर दिया (लपेट दिया).
खाता जाए और खप्पर फोड़ता जाए. किसी चीज से अपना काम निकल जाने के बाद वह चीज किसी और के काम न आ जाए, ऐसी नीचता पूर्ण सोच रखने वाला.
खाता भी जाए और बड़बड़ाता भी जाए. जो लोग कभी खुश हो कर कोई काम नहीं करते, उन के लिए.
खाता भी रहे ललचाता भी रहे. खाने को मिल जाए तब भी लालच करने वाले व्यक्ति के लिए. वैसे यह मनुष्य का स्वभाव है कि कितना भी मिल जाए, उसका लालच कम नहीं होता.
खातिन ईंधन को क्यूँ जाए, तेलिन रूखा क्यूँ खाए. खातिन – बढ़ई की पत्नी. बढ़ई को लकड़ी के छोटे टुकड़े और छीलन सहज ही उपलब्ध होती हैं. इसी प्रकार तेली को पत्नी को तेल की कमी नहीं होती.
खाते खाते भंडार नष्ट हो जाते हैं. अन्न या धन का कितना भी बड़ा भंडार हो, यदि आप उसमें कुछ जोड़ें नहीं और खर्च करते रहें तो वे एक दिन ख़त्म हो जाता है.
खाते पीते जग मिले, औसर मिले न कोय. सुख के दिनों में सब आप से मिलते जुलते हैं पर विपत्ति के अवसर पर कोई नहीं मिलता.
खाते पीते न मरे, आलस से मर जाए. कोई व्यक्ति अधिक खाने से चाहे न मरे पर आलस्य से जरूर मर जाएगा. आलस्य बीमारियों की जड़ है.
खाद पड़े तो खेत, नहीं तो कूड़ा रेत. खाद से ही खेत फलता फूलता है.
खान तो खान, जुलाहा भी पठान. मुसलामानों में खान और पठान ऊंची जात के लोग माने जाते हैं और जुलाहा नीची जात का. कोई निम्न कोटि का व्यक्ति अपने को उच्च कोटि का दिखाने की कोशिश करे तो.
खान पान में आगे, काम काज से भागे. जो लोग खाने में आगे रहते हैं और काम के समय गायब हो जाते हैं.
खान से जान रहे. अच्छे भोजन से ही शरीर में जान आती है, भोजन से ही प्राण बचते हैं.
खानदान है कि शिव जी की बारात. शिव जी की बरात में भयंकर शक्लों वाले उन के भूत और गण गए थे. किसी खानदान के सभी लोग भयंकर शक्लों वाले हों तो.
खाना कुखाना उपासे भला, संगत कुसंगत अकेले भला. (भोजपुरी कहावत) कुपथ्य खाने से भूखा रहना अच्छा है और बुरी संगत से अकेला रहना अच्छा है.
खाना घर में, भौंकना सड़क पे (खाना मन्दिर में, भौंकना मस्जिद में). जो आजीविका दे रहा हो उसका काम न कर के दूसरे का काम करना.
खाना जाने सो पचाना भी जाने. जो रिश्वत खाना जानता है, वह उसे हजम करना भी जानता है.
खाना थाली का, परोसना साली का. जहाँ सब लोगों को पत्तल में खाना मिल रहा हो वहाँ थाली में खाना मिलना विशेष आवभगत का सूचक है (विशेषकर दामाद को ऐसी सुविधा मिलती है) और ऐसे में परोसने वाली साली हो तो सोने में सुहागा.
खाना पराया है पर पेट तो पराया नहीं है. मुफ्त का मिल रहा हो तो इस का अर्थ यह नहीं कि इतना खा लो कि बीमार हो जाओ.
खाना पीना भाईचार, लेखा जोखा खरा व्यौहार. रिश्तेदारी और दोस्ती में खाना पीना तो खुले हृदय से करना चाहिए, लेकिन पैसे व जायदाद आदि में लेखा जोखा दुरुस्त रखना चाहिए.
खाना सीरा को, मिलना वीरा को. खाना शीरे (हलवे) का सबसे उत्तम होता है और मिलना भाई का.
खाना, तिरिया, रुपैय्या, तीनों रखो छुपाए. जो खाना आप खाते हैं वह दूसरों को दिखा कर नहीं खाना चाहिए, इसी प्रकार अपने घर की स्त्रियों का और अपने पैसे का प्रदर्शन नहीं करना चाहिए.
खाने को ऊँट (शेर), कमाने को बकरी (खाने को बाघ, कमाने को मुर्गी). अर्थ स्पष्ट है.
खाने को चटनी, पलंग पे नटनी. घर में ठीक से खाने को तो है नहीं लेकिन वैश्या वृत्ति का शौक सूझ रहा है.
खाने को दाम नहीं नाम करोड़ीमल. नाम कुछ असलियत कुछ.
खाने को निंबोली, बताने को दाख. दाख- द्राक्ष (किशमिश, अंगूर). कोई व्यक्ति अपने घर में खाता कुछ है बताता कुछ है तो उस पर व्यंग्य में कहा गया है कि खाते तो निंबोली हैं, और कहते हैं कि अंगूर खाता हूं.
खाने को भंग नहाने को गंग, चढ़न को तुरंग, ओढ़न को दुसाला. भंग – भाँग, तुरंग – घोड़ा, दुसाला – कीमती ऊनी वस्त्र जो जाड़ों में ओढ़ा जाता है. कहावत बाबा विश्वनाथ की पावन नगरी काशी के लिए कही गई है.
खाने को हम और लड़ने को हमारा भाई. स्वार्थी और अवसरवादी लोगों के लिए.
खाने में शरम क्या, और घूंसे में उधार क्या. खाने में शरम नहीं करनी चाहिए और मारपीट का बदला तुरंत चुकाना चाहिए.
ख़ामोशी नीम रज़ा. उर्दू में नीम का अर्थ है आधा और रज़ा का अर्थ है सहमति. यदि आप किसी बात का विरोध नहीं करते (विशेषकर अन्यायपूर्ण बात का) तो इसका अर्थ यह लगाया जाता है कि आप उससे सहमत हैं. इंग्लिश में कहावत है – Silence is half consent. संस्कृत में कहा गया है – मौन स्वीकृति लक्षणं.
खाय कै मूते सोवे बाऊँ, काय को वैद बसावे गाऊँ. स्वास्थ्य के विषय में लोक विश्वास – खाना खा कर तुरंत मूत्र त्याग करे और बायीं करवट सोए तो व्यक्ति स्वस्थ रहता है (फिर वह गाँव में वैद्य क्यों बसाएगा). कुछ ज्ञानी लोगों ने अन्य कहावतों द्वारा इस को और विस्तार दिया है – खा के सोवे चित्त, बैद बुलावे नित्त. खा के सोवे दहिने, बैद बुलावे तहिने. खा के सोवे पट्ट, बैद बुलावे झट्ट.
खाय को कठौती भर उठाने को सूप, सुपवे न उठे दीदी मो से. खाने को तो एक कठौता भरकर खा लेंगी और काम करने चलीं तो सूप जैसे हल्की चीज़ उठाई, उस पर भी नज़ाकत यह कि यह तो हमसे उठता ही नहीं.
खाय चना, रहे बना. चना खाने वाला लम्बे समय तक स्वस्थ रहता है.
खाय तो घी से, नहीं तो जाय जी से. दाल और रोटी में घी के बिना कोई स्वाद नहीं है. घी न मिले इस से तो अच्छा है कि जान चली जाए.
खाय न खरचे सूम धन, चोर सबै ले जाय. कंजूस आदमी खाने में व अन्य कार्यों में अपना धन खर्च नहीं करता. अंततः चोर सब धन ले जाता है. सूम – कंजूस.
खाय पिए रोवे, वो प्रभु को खोवे. जो लोग सब तरह से संपन्न हैं फिर भी रोते रहते हैं उनसे ईश्वर नाराज़ हो जाता है.
खाय पिये को रोसा बीबी, हल जोते को ताहिर. खिलाने पिलाने के लिये तो रोसा बीबी है और हल जोतने के लिये ताहिर. काम किसी और से लेना और लाभ किसी और को पहुँचाना.
खाय भी गुर्राय भी. नीच प्रवृत्ति के कृतघ्न लोगों के लिए कहा जाता है. उन हाकिमों के लिए भी जो रिश्वत लेते हैं फिर भी गुर्राते हैं.
खाय लो खाय लो, जब लौं धिया नहीं, पहन लो पहन लो, जब लौं बहू नहीं. धिया – बेटी, जब लौं – जब तक. जब तक लड़की नहीं है तभी तक खा पी लो और जब तक बहू नहीं तभी तक पहन लो. लड़की के होने के बाद उसके ब्याह की चिंता में पड़ जाओगी और बहू के आने के बाद अच्छे गहने कपड़े उस को देने पड़ेंगे.
खाया पिया अंग लगेगा, दान धर्म संग चलेगा, धन पड़ा-पड़ा जंग लगेगा. आदमी को अधिक धन संग्रह के लालच में नहीं पड़ना चाहिए. अच्छा खाओगे तो शरीर स्वस्थ होगा, दान करोगे तो पुन्य मिलेगा जो कि परलोक में साथ जाएगा. इकठ्ठा किया हुआ पैसा केवल जंग खाएगा.
खाया पिया साथ, हांड़ी मारा लात. काम निकल जाने पर किसी को तिरस्कृत करना. इस कहावत को इस प्रकार से भी कहा गया है – खाया भात, उड़ाया पात. खाना खा कर पत्ता फेंक दिया और चलते बने.
खाया पीया एक नाम, मारा पीटा एक नाम (जीमा जूठा एक नाम, मारा पीटा एक नाम). किसी के घर केवल मुँह जूठा किया या जम कर खाया, खाने का नाम तो हो ही गया. ऐसे ही किसी को एक थप्पड़ मारा या जम के ठुकाई की, मारने का नाम तो हो ही गया. इसलिए मौका मिले तो खूब खाओ और खूब पीटो.
खाये बिना रहा जाय, पर कहे बिना न रहा जाय. जिन लोगों की बहुत बोलने की आदत होती है उन पर व्यंग्य.
खारा कड़वा गंधला, जो बरसेला तोय, खेती की हानी हुवे, देस नास भी होय. अगर खारा, कड़वा या गंदा पानी बरसता है तो वह खेती को तो नुकसान करता ही है, देश के लिए भी यह अच्छा शगुन नहीं है. तोय – पानी.
खारे समन्दर में मीठा कुआं. बहुत से दुष्ट लोगों के बीच एक भला आदमी.
खाल उढ़ाए सिंह की, स्यार सिंह नहिं होए. अच्छे वस्त्र पहन लेने से या या दिखावा करने से कायर और मूर्ख पुरुष वीर या विद्वान नहीं बन सकते.
खाला खसम कराय दे, के मैं तो खुद हेरती फिरूं (खाला खसम करा दे, खाला खुद तलाश लें). खाला – मौसी., हेरती – ढूँढती. कोई लड़की मौसी से कह रही है कि मेरी शादी करा दो. मौसी कह रही हैं कि मैं तो खुद अपने लिए ढूँढ़ रही हूँ. जो स्वयं परेशानी में है वह दूसरे की सहायता क्या कर पाएगा.
खाली घर में चमगादड़ डेरा डाल लेते हैं. 1.खाली पड़ी जायदाद पर अनधिकृत लोग कब्ज़ा कर सकते है. 2.खाली दिमाग में तरह तरह के फितूर पैदा होते हैं.
खाली दिमाग शैतान का घर है (खाली बैठे अटपट सूझे). दिमाग अगर खाली होता है तो उसमें तरह-तरह के फितूर आते रहते हैं. इसलिए इंसान को कभी खाली नहीं बैठना चाहिए अगर आपके पास कोई धंधा पानी न हो तो कोई सामाजिक कार्य करें, भविष्य की योजना बनाएं, अच्छा साहित्य पढ़ें या किसी शौक में मन लगाएं. इंग्लिश में इस प्रकार कहा है – An idle brain is devil’s workshop. Idleness is mother of all evil.
खाली दिमाग से खाली जेब ज्यादा अच्छी. मूर्ख होने के मुकाबले निर्धन होना अच्छा है.
खाली बर्तन खटकते हैं. निठल्ले लोग बैठे बिठाए झगड़ा ही किया करते हैं.
खाली बोरा सीधा खडा नहीं हो सकता. बोरे में कुछ गेहूँ चावल आदि भरा होगा तभी वह सीधा खड़ा हो पाएगा. कहावत का अर्थ है कि भूखा व्यक्ति ईमानदारी से काम नहीं कर सकता या स्वाभिमान से नहीं जी सकता.
खाली लल्ला ही सीखा है दद्दा नहीं सीखा. लल्ला – ‘ल’, दद्दा – ‘द’. ल से लेना, द से देना. जो लोग केवल लेना जानते हैं, देना नहीं जानते. कुछ लोग यह और जोड़ते हैं – दद्दा के डर से दिल्ली को भी हस्तिनापुर बोले.
खाली हाथ आये, खाली हाथ जाना. संसार में न तो कोई कुछ लेकर आया और न कुछ लेकर जाएगा.
खाली हाथ मुंह की तरफ नहीं जाता है. हाथ में कोई खाने की चीज़ होगी तो वह अवचेतन रूप से ही मुँह में जाता है. हाथ खाली होगा तो नहीं जाएगा. प्रकृति सभी जीवों को यह सिखाती है.
खाविंद राज बुलंद राज, पूत राज दूत राज. पति के राज में स्त्री को जितना सुख मिलता है उतना पुत्र के राज में नहीं मिलता.
खावे के तीन बेर, ढोए के चलनी. खाने को दिन तीन बार चाहिए और वजन उठाने का काम आया तो चलनी जैसी हल्की चीज़ उठाएँगे. रूपान्तर – खाए में चट, उठावे में पट.
खावे को मलाई, बोले को म्याऊँ. खाने के लिए बढ़िया माल चाहिए काम के वक्त बहाने बनाना.
खावे जैसो अन्न, होवे तैसो मन्न. बेईमानी से पैदा किया हुआ अन्न खाओगे तो बुद्धि भ्रष्ट होगी और ईमानदारी की रोटी खाओगे तो मन निर्मल रहेगा.
खावे पान, टुकड़े को हैरान. घर में खाने को नहीं है और पान खाने जैसा फालतू शौक करने की सूझ रही है.
खावे पूत, लड़े भतीजा. खाना पीना खाने और जायदाद का सुख भोगने के लिए तो बेटा है और खतरे उठाने के लिए भतीजे को आगे करना चाहते हैं.
खावे पौना, जीवे दूना. कोई व्यक्ति जितना खा सकता है उससे पौना (तीन चौथाई) ही खाने की आदत डाल ले तो वह लंबे समय तक जियेगा.
खावे मोट, तोड़े कोट. मोटा अनाज खाने से अधिक ताकत आती है. तोड़े कोट – किला तोड़ सकता है.
खावें पीवें लड़का बिटियाँ, सत्त को डुकरियाँ. माल उड़ायें और मौज मनाएँ जवान लड़के लड़कियाँ, और व्रत-उपवास या कठिन कार्य के लिए बूढ़े आदमी. सत्त – धार्मिक कार्य, डुकरियाँ – बूढ़ी स्त्रियाँ.
खास खास को टोपली, बाकी को लंगोट. कुछ चुने हुए लोगों को टोपी दी गयी परन्तु शेष लोगों को लंगोट ही मिला. कुछ विशेष लोगों का तो सम्मान किया गया परन्तु शेष लोगों को जैसे-तैसे ही निपटा दिया गया.
खिचड़ी की तारीफ़ कर दी तो दांतों में चिपक गई. किसी की तारीफ़ करने से वह गले पड़ जाए तो.
खिचड़ी खाते नीक लागे और बटुली माजत पेट फटे. (भोजपुरी कहावत) खिचड़ी खाते समय अच्छी लगती है और बरतन धोते समय बहुत परेशानी होती है. सुविधाएँ सब चाहते हैं पर काम कोई नहीं करना चाहता.
खिचड़ी खाते पाहुंचा उतरा. बहुत नाज़ुक व्यक्ति का मज़ाक उड़ाने के लिए. पाहुंचा – कलाई.
खिचड़ी तेरे चार यार, घी, पापड़, दही, अचार. खिचड़ी खाने का असली मज़ा इन चार चीजों के साथ है.
खिदमत से अज़मत है. बड़ों की सेवा करके ही आप संपन्न बन सकते हैं. इसका अर्थ यह भी हो सकता है कि चमचागिरी कर के ही रुतवा मिल सकता है. रूपान्तर – खुशामद से ही आमद है. अज़मत – शान (उर्दू)
खिन हँसिवौ खिन रूसिवौ, चित्त चपल थिर नाहि, ताका मीठा बोलना, भयकारी मनमाहि. जो क्षण में हँसे क्षण में रूठे उसके मीठे बोलने से भी डर लगता है. खिन – क्षण, रूसिवां – रूठना, थिर – स्थिर.
खिलाए का नाम नहीं, रूलाए का नाम. आप किसी के बच्चे को कितनी भी देर खिलाएं और बहलाएं उसका कोई श्रेय नहीं मिलता, अगर बच्चा रो दिया तो माँ कहेगी कि बच्चे को रुला दिया.
खिलाए के न पिलाए के, मांग टीका धाए के. पत्नी के खाने पीने की चिंता नहीं है, बार बार भाग कर यह देखने आ रहे हैं कि उसने श्रृंगार कैसा किया है.
खिसियाई कुतिया भुस में ब्याई, टुकड़ा दिया काटने आई. कोई व्यक्ति खिसिया रहा हो और जो उस की सहायता करना चाहे उसी को बुरा भला कह रहा हो उस का मजाक उड़ाने के लिए.
खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचे. चूहा बिल्ली की पकड़ से निकल कर भाग गया तो बिल्ली खिसिया कर खम्बे को नोचने लगी. काम न होने पर कोई व्यक्ति खिसिया रहा हो तो यह कहावत बोलते हैं.
खीर खीचड़ी मंदी आंच. खीर और खिचड़ी मंदी आंच पर अच्छी बनती हैं.
खीर पूड़ी खाएं और देवता को मनाएं (घर वाले खीर खाएँ और देवता राजी हों). पहले के लोगों ने भगवान को प्रसन्न करने के लिए व्रत रखने का विधान बनाया जिसमें व्यक्ति दिन भर भूखा रह कर केवल एक बार रूखा सूखा भोजन करता था (यह एहसास करने के लिए कि गरीब कितनी कठिनाई से जीवन बिताते हैं). आजकल के ढोंगी भक्त व्रत रखने का नाटक करते हैं जिसमे वे दिन भर भी कुछ न कुछ खाते पीते रहते हैं और शाम को खूब पकवान खाते हैं.
खीर में साझा, महेरी में न्यारे. महेरी – मट्ठे और अनाज से बनने वाला साधारण भोजन, न्यारे – अलग. स्वार्थी व्यक्ति बढ़िया चीजों में साझा मांगता है और घटिया चीजें अलग रखना चाहता है.
खीरा खाए ओस में सोवे, ताको वैद कहां तक रोवे. खीरे को लोग ठंडी तासीर वाला मानते थे. कोई आदमी खीरा खा कर ओस में सो जाए तो बीमार पड़ेगा ही, वैद्य इसमें क्या कर सकता है.
खीरा सिर तें काटिए, मलियत नमक बनाय, रहिमन करुए मुखन को, चहिअत इहै सजाय. खीरे का सर काट के नमक लगा कर मलते हैं जिस से उसकी कड़वाहट दूर हो जाए. जो लोग कड़वा बोलते हैं उनके साथ भी ऐसा ही व्यवहार होना चाहिए.
खील बताशों का मेल. दो अच्छी चीजों का मेल.
खुजली तो खुजलाने से ही मिटती है. व्यक्तिगत आवश्यकताएं स्वयं अपने करने से ही पूरी होती हैं.
खुद करे तो खेती, नहीं तो बंजर हैती. खेती खुद करने से ही कामयाब होती है. दूसरों के ऊपर छोड़ देने से खेत बंजर हो जाता है.
खुद तो दान दे नहीं, देने में अड़ंगा लगाए. दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों के लिए.
खुद राह राह, दुम खेत खेत. खुद सड़क पर चल रहे हैं और पूँछ खेत में है. निहायत ही फूहड़ और बेतरतीब आदमी के लिए.
खुद ही नाचे खुद ही न्योछावर करे (बलैयां ले). अपने काम की प्रशंसा स्वयं करना.
खुदा का दिया कन्धों पर, पंचों का दिया सर पर. पंचों की आज्ञा ईश्वर की आज्ञा से बड़ी है.
खुदा का मारा हराम, अपना मारा हलाल. मांसाहारी लोग अपने आप से मरे हुए जानवर का मांस नहीं खाते. इंसान द्वारा मारे हुए जानवर का मांस ही खाते हैं.
खुदा किसी को लाठी ले कर नहीं मारता. ईश्वर किसी को दंड देता है तो लाठी ले कर नहीं मारता.
खुदा की खुदाई को कौन जाने. अकबर ने बीरबल के सामने ऐसा बोला तो बीरबल ने कहा, जहांपनाह मैं जानता हूँ. अकबर ने चिढ़ कर कहा, अच्छा! मुझे भी दिखाओ. बीरबल उसे यमुना के किनारे ले गए और यमुना की तरफ इशारा कर के बोले, हुजूर! यह खुदा ने खुदाई है या आप ने. सन्दर्भ कथा– एक दिन एक मियां नमाज पढ़ने के बाद कह रहा था कि या खुदा, तेरी खुदाई को कौन जानता है? वहीं एक जाट खड़ा था. उसने मियां से कहा कि मैं खुदा की खुदाई को जानता हूँ? मियां ने जाट की बात का प्रतिवाद किया तो दोनों में बहस हो गई. फैसला करवाने के लिए दोनों दिल्ली के बादशाह के दरबार में पहुँचे. जाट ने बादशाह से कहा कि हुजूर, मेरे साथ यमुना के किनारे चलें, वहीं मैं आपको ख़ुदा की खुदाई दिखलाऊगा. जब वे सब यमुना नदी के किनारे पर पहुँचे तो जाट ने नदी की ओर हाथ करके कहा कि यह खुदा की खुदाई है या इसे मियां के बाप- दादों ने. बादशाह को हँसी आ गई और उस ने जाट के हक में फैसला दे दिया.
खुदा की चोरी नहीं तो बंदे का क्या डर. यदि हम ईश्वर के आगे सच्चे हैं तो मनुष्य से क्यों डरें.
खुदा की बातें खुदा ही जाने. ईश्वर के मन में क्या है यह ईश्वर ही जान सकता है.
खुदा के घर में चोर का क्या काम. चोर बदमाश लुटेरे आसानी से नहीं मरते (उनकी जरूरत वहाँ भी नहीं है).
खुदा दो सींग दे तो भी सहे जाते हैं. ईश्वर कुछ भी दे उसे सहर्ष स्वीकार करना पड़ता है.
खुदा ने गंजे को नाख़ून नहीं दिए हैं. वरना वह अपनी खोपड़ी लहुलुहान कर लेता. सन्दर्भ कथा – वैसे तो इस कहावत का अर्थ स्पष्ट है लेकिन इसका एक बहुत आश्चर्यजनक पहलू भी है. एक बहुत बिरली बीमारी होती है Anonychiya जिसमें जन्म से नाखून नहीं होते. ऐसे ही एक बीमारी होती है Alopecia totalis जिसमें सर पर या सारे शरीर पर बाल नहीं होते. ये बीमारियाँ जेनेटिक गड़बड़ी के कारण एक साथ भी हो सकती हैं. इस तरह के किसी बच्चे को देख कर किसी सयाने व्यक्ति ने मजाक में कहा होगा कि देखो इस गंजे को खुदा ने नाखून भी नहीं दिए हैं नहीं तो वह खुजा खुजा के अपनी खोपड़ी लहुलुहान कर लेता. तभी से यह कहावत बनी होगी..
खुदा ने जवाब दे दिया है, बेहयाई से जीते हैं. कोई अत्यधिक वृद्ध व्यक्ति परिवार और समाज पर बोझ बना हुआ हो तो यह कहावत कही जाती है.
खुदा मेहरवान तो गधा पहलवान (किस्मत मेहरबान तो गधा पहलवान). कोई पढ़ाई में पीछे रहने वाला बंदा यदि सिफारिश के बल पर अच्छी नौकरी पा जाए तो उससे ज्यादा काबिल लोग कुढ़ कर यह कहावत बोलते हैं. इंग्लिश में कहावत है – God sends fortune to fools.
खुदा लड़ने की रात दे, बिछड़ने का दिन न दे. पति पत्नी, दोस्त या रिश्तेदार आपस में थोड़ा लड़ लेते हैं पर बिलकुल बिछड़ना नहीं चाहते.
खुदी और खुदाई में बैर है. जिसके अन्दर अहम् है ईश्वर उससे प्रसन्न नहीं होता.
खुर तातो, खर मातो. बैसाख में मौसम बदलने के साथ जैसे ही गधे के खुर गरम होते हैं वैसे ही उस पर मस्ती छाने लगती है. कोई मूर्ख व्यक्ति थोड़ी सुविधाएं पा कर खुश हो रहा हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.
खुरचन मथुरा की, और सब नक़ल. खुरचन एक दूध की मिठाई का नाम है जोकि मथुरा की सबसे बढ़िया होती है. किसी बढ़िया और असली चीज़ की तारीफ़ करने के लिए यह कहावत कहते हैं.
खुले घर में धाड़ नहीं, निर्जन गांव में राड़ नहीं. (राजस्थानी कहावत) धाड़ – डाका, राड़ – झगड़ा. अर्थ स्पष्ट है.
खुले मांस पर मक्खी तो बैठेगी ही. अपनी चीज़ की परवाह नहीं करोगे तो अवांछित तत्व उस का फायदा उठाएंगे..
खुशामद किसे कड़वी लगती है. खुशामद और तारीफ़ सब को अच्छी लगती है. अगर आप यह जानते हैं कि सामने वाला अपने स्वार्थ के लिए आपकी खुशामद कर रहा है तब भी आप यह सोच कर खुश होते हैं कि हम इस लायक हैं तभी तो हमारी खुशामद की जा रही है. राजस्थानी कहावत है – खुसामद किसे खारी लागै.
खुशामद खरा रोजगार. खुशामद सबसे सच्चा व्यापार और सफलता का मन्त्र है.
खुशामद से ही आमद है, इसलिए बड़ी खुशामद है. खुशामद से सब कार्य सिद्ध हो जाते हैं, इसीलिए खुशामद सबसे बड़ी चीज है.
खुशामदी का मुँह काला. जो व्यक्ति अयोग्य होते हुए भी दूसरों की खुशामद कर के आगे बढ़ जाता है, उसे कभी न कभी नीचा देखना पड़ता है.
खुस भई भिखना, दामाद लाया गाजर. गरीब आदमी बहुत छोटी सी भेंट से ही प्रसन्न हो जाता है.
खुसरो दरिया प्रेम का उल्टी बाकी धार, जो उतरा सो डूब गया जो डूबा सो पार. प्रेम की गति अजीब होती है. (अमीर खुसरो ने हिंदी में बहुत सी लोकप्रिय पहेलियाँ लिखी हैं और कुछ कहावतें भी बनाई हैं, उनमें से एक).
खुसामद से खुदा भी राजी. खुशामद से सबको अपने अनुकूल बनाया जा सकता है, भगवान को भी.
खूंटी हार लील गई. भाग्य साथ न दे तो बना बनाया काम बिगड़ जाता है. सन्दर्भ कथा – राजा विक्रमादित्य पर शनि की साढ़ेसाती लगी तो उन्हें अपना राज्य छोड़ना पड़ा. किसी मित्र के घर पर ठहरे थे तो वहाँ उन्होंने देखा कि आधी रात के समय एक खूँटी ने उस पर हीरों का हार निगल लिया. राजा पर उसकी चोरी का इल्जाम लगाया गया. आगे भी बहुत कुछ घटनाएं हुईं. साढ़ेसाती का समय पूरा होने पर सारे इल्जाम खत्म होते गए और खूँटी ने भी हार वापस उगल दिया.
खूंटे के बल बछड़ा कूदे (नाचे). कमजोर आदमी दूसरे की शह पर ही बोलता है.
खूंटे बंधा बछड़ा गाय की राह देखे. आदमी अपने कार्य के लिए जिस पर निर्भर होता है उसी की राह देखता है.
खून सर चढ़ कर बोलता है. (खून वह जो सर चढ़ कर बोले). 1. किसी का खून किया गया हो तो सबूत अपने आप बोलते हैं. 2. खून के रिश्ते सर चढ़ के बोलते हैं.
खूब कीचड़ उछालो, दाग तो लगेगा ही. किसी के ऊपर बिना किसी सबूत के भी अगर खूब कीचड़ उछालोगे तो कुछ न कुछ दाग तो लगेगा ही. जैसे आजकल बेईमान नेता ईमानदार नेताओं पर खूब कीचड़ उछाल कर जनता को भ्रमित करने में सफल हो जाते हैं. इंग्लिश में कहते हैं – Fling dirt enough and some will stick.
खूब गुजरेगी जब मिल बैठेंगे दीवाने दो. दो दोस्त मिल कर बैठते हैं तो खूब मस्ती होती है.
खूब दुनिया को आजमा देखा, जिसको देखा तो बेवफा देखा. निष्कपट प्रेम बहुत कम लोगों में मिलता है.
खूबसूरती गहनों की मोहताज नहीं. जो वास्तव में सुन्दर है उसको सुन्दर दिखने के लिए आभूषणों की आवश्यकता नहीं होती.
खेत को खोवे गेली, साधु को खोवे चेली. गेली – खेत में से हो कर जाने वाला रास्ता. खेत अगर छोटा हो और उस में से भी रास्ता निकाल दिया जाए तो खेत में बचेगा ही क्या. लोग फसल में छेड़छाड़ करेंगे सो अलग. इस कहावत में यह बात भी जोड़ दी गई है कि चेली के मोह में पड़ जाने से साधु की साख धूमिल हो जाती है.
खेत खाय गदहा, मार खाय जुलहा. गधा यदि किसी का खेत चरे तो उस को पालने वाले जुलाहे को मार पड़ती है. जब अपने से सम्बन्धित किसी व्यक्ति की गलती का दंड किसी को भुगतना पड़े तो.
खेत खाय पड़िया, भैंस का मुँह झकझोरा जाय. बच्चों की गलती की सजा उन के माँ बाप को भुगतनी पडती है.
खेत न जोते राड़ी, ना रखे मरद की छाँड़ी, न भैंस बिसाहे पाड़ी, ना बिपदा लेवे आड़ी. राड़ी – ऊसर, बिसाहे – खरीदे. ऊसर खेत नहीं जोतना चाहिए, दूसरे पुरुष की छोड़ी हुई स्त्री नहीं रखनी चाहिए, बिना गाभिन हुई भैंस नहीं खरीदनी चाहिए, और जान-बूझ कर कोई विपत्ति मोल नहीं लेनी चाहिए.
खेत बड़ा घर सांकड़ा. खेत तो जितना बड़ा हो उतना अच्छा, लेकिन घर छोटा ही अच्छा होता है.
खेत बिगाड़े खरतुआ और सभा बिगाड़े दूत. दूत से अर्थ यहाँ चुगलखोर है. खरतुआ – खरपतवार जो खेत में अपने आप उगती है. झूठी चुगली करने वाले लोग किसी भी संस्था को बिगाड़ सकते है.
खेत बिगाड़े सौभना, गांव बिगाड़े बामना. सौभना – बन ठन के घूमने वाला. इसका अर्थ है कि जो व्यक्ति अपने कपड़ों पर ज्यादा ध्यान देता है वह व्यक्ति खेत को बिगाड़ देता है. कहावत की दूसरी उक्ति है कि ब्राह्मण गांव को बिगाड़ता है. यह उक्ति ब्राहमण वर्ग के लिए न हो कर केवल लालची पंडितों को लक्ष्य कर के कही गई है.
खेत भला न झील का, घर अच्छा नहिं सील का. झील के किनारे का खेत अच्छा नहीं होता क्योंकि झील में पानी बढ़ने से उसके डूबने का डर रहता है. जिस घर में सीलन हो वह घर भी अच्छा नहीं होता.
खेत में तरकारी को बघार नहीं लगता. हर कार्य के लिए अलग अलग स्थान उपयुक्त होते हैं.
खेत में बुरी नाली और घर में बुरी साली. खेत में नाली का होना नुकसान की बात है और घर में साली का स्थायी रूप से रहना अच्छा नहीं है.
खेत रखे बाड़ को, बाड़ रखे खेत को. ये दोनों एक दूसरे की रक्षा करते हैं व एक दूसरे के पूरक हैं.
खेतिहर गये घर, दाएँ बाएँ हर. हर – हल. खेत का मालिक घर गया तो मजदूर हल छोड़ कर दाएँ बाएँ हो गए.
खेती उत्तम काज है, इहि सम और न कोय, खाबै को सब को मिले, खेती कीजे सोय. (बुन्देलखंडी कहावत) खेती सबसे अच्छा काम है जिससे अपना निर्वाह तो होता ही है, दूसरे प्राणियों को भी खाने को मिलता है.
खेती कर आलस करे, भीख मांग सुस्ताय, सत्यानास की क्या कहें, अठ्यानास हो जाए. खेती करने वाला आलस करे और भीख मांगने वाला सुस्ताने बैठ जाए तो इन का सत्यानाश से भी बड़ा नुकसान अठ्यानास होना तय है.
खेती कर कर हम मरे, बहुरे के कोठे भरे. किसान प्राण पण से खेती करता है और बदहाल रहता है. साहूकार और व्यापारी अपना घर भरते हैं.
खेती करे अधिया, बैल मरे न बधिया. अधिया – बटाई की खेती. ज़मीदार लोग किसान को जमीन खेती के लिए दे देते थे. जब अनाज निकलता था तो उसे ज़मीन का मालिक आधा बाँट लेता था. ऐसी खेती में मालिक को अपना बीज, खाद, बैल कुछ भी नहीं लगाना पड़ता इसलिए नुकसान की कोई संभावना नहीं होती.
खेती करे ऊख कपास, घर करे बोहरिया पास. खेती ऊख और कपास की करना चाहिए और घर साहूकार के पास बनाना चाहिए ताकि वह समय पर काम आ सके.
खेती करे न बनिजे जाय, विद्या के बल बैठा खाय. बनिज (वणिज) – व्यापार. विद्वान व्यक्ति खेती या व्यापार करे बिना अपने ज्ञान के बल पर पैसा कमाता है.
खेती करे सांझ घर सोवे, काटे चोर हाथ धरि रोवे. खेती करने वाले को खेत की रखवाली करनी पड़ती है. अगर नहीं करेगा तो चोर फसल काट के ले जाएंगे. कहावत का अर्थ सभी व्यापारों पर लागू होता है.
खेती करै बनिज को धावै, ऐसा डूबै थाह न पावै. बनिज – वाणिज्य, व्यापार. खेती करने वाला व्यापार में भी हाथ पैर फैलाता है तो बहुत परेशानी में पड़ सकता है.
खेती खसम सेती. खसम – स्वामी. खेती या व्यापार में लाभ तभी होता है जब मालिक स्वयं उसकी देखरेख करे.
खेती तो उनकी जो अपने कर हल हांकें, उनकी खेती कुछ नहीं जो सांझ सवेरे झांकें. जो किसान अपने हाथ से खेती करते हैं उन्हीं की खेती सफल होती है, जो सुबह शाम चक्कर लगा आएं उनकी खेती सफल नहीं होती.
खेती तो थोरी करे, मेहनत करे सिवाय, राम चहें बा मनुस को टोटो कबहुं न आए. (बुन्देलखंडी कहावत) खेती यदि थोड़ी भी हो तो भी मेहनत करने वाले व्यक्ति को धन की कमी नहीं होती.
खेती धन की नास, जो धनी न होवे पास, खेती धन की आस, धनी जो होवे पास. खेती करने वाले का वहीं रह कर खेती करना आवश्यक है. धनी से अर्थ यहाँ खेत के स्वामी से है.
खेती धन के नास, जब खेले गोसइयां तास. जब किसान ताश खेलता रहता है तो उसकी खेती स्वाभाविक रुप से नष्ट हो जाती है. गोसाईं – गोस्वामी, मालिक.
खेती न बारी हाकिम लगान मांगे. खेती बाड़ी कुछ नहीं हुई है और हाकिम लगान मांग रहा है. किसान का जीवन कितनी मुश्किलों से भरा है यह केवल किसान ही समझ सकता है.
खेती पितियावत न माने. पितिया – चचेरा (पितृव्य का अपभ्रंश). खेती चचेरे भाई जैसा व्यवहार नहीं मानती. उसकी सेवा तो सगे संबंधी के समान करनी होती है.
खेती बिनती पत्री और खुजावन खाज, घोड़ा आप संवारिये जो प्रिय चाहो राज. (बुन्देलखंडी कहावत) कुछ कार्य ऐसे हैं जो अपने हाथ से करने पर ही सफल होते हैं – खेती, अर्जी, चिट्ठी, खुजली और घोड़े की देखभाल.
खेती रहिके परदेस मां खाय, तेखर जनम अकारथ जाय. इसका अर्थ है कि जो व्यक्ति अपने पास खेत होते हुए भी पैसों के लिए परदेश जाता है उसका जन्म ही निरर्थक है.
खेती राज रजाए, खेती भीख मंगाए. फसल अच्छी हो जाए तो किसान राजा हो जाता है, चौपट हो जाए तो भीख मांगने की नौबत आ जाती है. रूपान्तर – बनिज राज रजाए, बनिज भीख मंगाए. बनिज – वाणिज्य, व्यापार.
खेती वह जो खड़े रखावे, सूनी खेती हिरना खावे. खेती असली माने में वही है जिसे वहीं उपस्थित रह कर देखा जाए. वरना खड़े खेत को जानवर खा डालते हैं.
खेती हो चुकी, हल खूँटी ऊपर. काम ख़त्म हो गया अब औजार उठा कर रख दो.
खेती होए मरदे से औ बरधे से. खेती का काम मर्द और बैल मिल कर ही कर सकते हैं.
खेती, पाती, बीनती, परमेसर को जाप, पर हाथां नहिं कीजिये, करिए आपहिं आप. खेती करना, किसी को चिट्ठी लिखना, अर्जी लिखना और ईश्वर की भक्ति अपने आप ही करना चाहिए.
खेती, पानी, बीनती (अर्ज़ी) औ घोड़े की तंग, अपने हाथ संभारिये लाख लोग हों संग. खेती के सारे काम, खेत में पानी देना, अर्जी लिखना और घोड़े की रास संभालना ये सारे काम अपने हाथ से ही करने चाहिए. रूपान्तर – पाती खेती पूत मवेसी औ घोड़े की तंग, अपने हाथ संभारिये लाख लोग हों संग.
खेती, बेटी, गाभिन गाय, जो ना देखे उसकी जाय. खेती, बेटी और गाभिन गाय की देख-रेख करनी पड़ती है. यानि अगर आप इन तीनों पर नजर नहीं रखेंगे तो ये हाथ से निकल जाएंगी.
खेल खतम, पैसा हजम. खेल तमाशा देखने के लिए पैसा खर्च होता है. खेल ख़त्म होने के बाद जो पैसा आपने खर्च किया वह हज़म हो गया. पैसा खर्च करके आनंद उठाने के लिए यह कहावत बोलते हैं.
खेल खिलाड़ी का, पैसा मदारी का. काम कर्मचारी करते हैं और कमाई मालिक की होती है.
खेल खेला बंगा में और कसम खाई गंगा में. बंगा – कपास. कपास के खेत में कुकर्म किया और गंगा में नहा कर शुद्ध आचरण की कसम खाई. लम्पट और झूठे व्यक्ति के लिए.
खेल न जाने मुर्गी का, उड़ाने चले बाज. थोड़ी सी भी जानकारी हुए बिना बड़ा काम करने का प्रयास.
खेल में काहे के लालाजी. बहुत से स्थानों में दामाद और देवर को लाला कहते हैं. खेल में छोटे-बड़े सब बराबर हैं. सूरदास जी ने भी लिखा है – खेलत में को काको गुसैंया, हरि हारे जीते श्रीदामा, बरबस ही कत करत रिसैंया.
खेल में रोवे सो कौवा. जो बच्चा खेल खेल में खिसिया के रोने लगे उसे चिढ़ाने के लिए.
खेलनी के खेल कुछ कहे न जाए, बार बार खेलनी पानी भरन जाए. मनचली स्त्री पानी भरने के बहाने बार बार घर से बाहर निकलती है.
खेले कूदे होए खराब, पढ़े लिखे होए नबाव. (खेलोगे कूदोगे तो होगे खराब, पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नबाब). वैसे तो कहावत का अर्थ स्पष्ट है लेकिन यहाँ खेल से मतलब व्यर्थ के घटिया खेलों से है जो समय नष्ट करते हैं (जैसे गुल्ली डंडा, पतंगबाजी आदि). जो अच्छे प्रतिस्पर्धात्मक खेल हैं उन्हें खेलने से व्यक्तित्व का विकास होता है और उन में कैरियर भी बनाया जा सकता है.
खेले खाय तो कहाँ पिराए. यहाँ खेल से तात्पर्य अच्छे व्यायाम वाले खेलों से है और खाय का अर्थ पौष्टिक भोजन खाने से है. व्यायाम और पौष्टिक भोजन करने वाले का शरीर कहीं से नहीं दुखता. पिराए – दर्द करे.
खेले न खेलन देय, खेल में मूत देय. दुष्ट प्रवृत्ति और खिसियाने वाले लोगों के लिए.
खैनी खाय न बीड़ी पिए, ऐसो मानुस कैसे जिए. तम्बाखू का सेवन करने वाले अपने को हमेशा सही ठहराते हैं. शराब पीने वाले भी ऐसा कहते पाए जाते हैं – पिएगा नहीं तो जिएगा कैसे.
खैर का खूँटा. खैर की लकड़ी बहुत मजबूत होती है. इसमें दीमक या कीड़ा नहीं लगता. किसी दृढ़ निश्चयी व्यक्ति के लिए यह कहावत प्रयोग करते हैं.
खैर, खून, खांसी, खुसी, बैर, प्रीत, मदपान; रहिमन दाबे न दबें, जानत सकल जहान. कत्थे का दाग, बहता हुआ खून, खांसी, खुशी, वैर, प्रेम और शराब का नशा, ये दबाने से नहीं दबते (छिपाने से नहीं छिपते), सारा संसार इन्हें देख लेता है (जान जाता है).
खैरात के टुकड़े बाजार में डकार. दूसरों से दान लेकर दिखावा करना.
खोखला शंख पराई फूंक से ही बजता है. शंख क्योंकि खोखला होता है इसलिए अपने आप नहीं बोल सकता. दूसरे की फूंक से ही बोलता है. पुरुषत्व विहीन लोग अपने आप कुछ नहीं करते दूसरों के बल पर ही बोलते हैं.
खोखले अंडे की पैदाइश. तुच्छ व्यक्ति.
खोखले में तो उल्लू ही पैदा होते हैं. मूर्ख लोगों को अपनी जमात बढ़ाने के लिए समाज से अलग जगह चाहिए होती है.
खोटा खरा तो भी गाँठ का, भला बुरा तो भी पेट का. गाँठ का पैसा चाहे खोटा हो या खरा, अपने को प्रिय होता है. पेट का जाया चाहे सज्जन हो या दुर्जन, माँ को प्रिय होता है.
खोटा खाओ और खरा कमाओ. खाना कितना भी रूखा सूखा मिले, कमाई ईमानदारी से ही करनी चाहिए.
खोटा नारियल होली के लिए या पूजा के लिए. खोटे नारियल को लोग होली में जलने वाली वस्तुओं में डाल देते हैं या पूजा में चढ़ा देते हैं.
खोटा बेटा खोटा दाम, बखत पड़े पे आवे काम (खोटा बेटा और खोटा पैसा भी समय पर काम आता है). जिस जमाने में सिक्कों की बहुत कीमत हुआ करती थी तब लोग नकली सिक्के बना लिया करते थे (जैसे आजकल जाली नोट बना लेते हैं). बहुत मुसीबत के समय कभी कभी खोटा सिक्का भी धोखे से चल जाया करता था. इसी प्रकार नालायक बेटा भी मुसीबत में काम आ सकता है.
खोटी बात में हुंकारा भी पाप. कोई अन्यायपूर्ण बात कर रहा हो तो उस की हाँ में हाँ मिलाना भी पाप है.
खोटी संगत के फल भी खोटे. बुरे लोगों की संगत के बुरे परिणाम होते हैं.
खोटे की बुराई श्मशान में. दुष्ट व्यक्ति जब तक जीवित होता है तब तक किसी की उस को बुरा कहने की हिम्मत नहीं होती. उस के मरने के बाद लोग उसे खुले आम बुरा कहते हैं.
खोटे खाते में गवाही कौन दे. धोखाधड़ी वाले काम में गवाही देने के चक्कर में कभी नहीं पड़ना चाहिए.
खोटे खाते में मरे हुए की गवाही. बिलकुल फर्जी काम.
खोतों के सींग थोड़े ही होते हैं (वो ऐसे ही पहचाने जाते हैं). अगर कोई व्यक्ति समझदार लोगों के बीच बैठा बेवकूफी की हरकतें कर रहा हो तो यह कहावत कही जाती है. खोता माने होता है गधा. कहावत का अर्थ है कि गधों के सिर पर सींग नहीं होते. वे अपनी हरकतों से ही आदमियों के बीच अलग से पहचान लिए जाते हैं.
खोदा पहाड़ निकली चुहिया. बहुत अधिक श्रम करने के बाद बहुत कम लाभ होना या लाभ न होना. कुछ लोग इस प्रकार से भी कहते हैं – खोदा पहाड़ निकली चुहिया, वह भी मरी हुई. सन्दर्भ कथा – एक छोटे से पहाड़ पर बनी एक गुफा में कुछ चोर अपना चोरी का माल छुपाते थे. एक दिन सारे चोर डाका डालने गए थे और एक चोर वहीं रहकर रखवाली कर रहा था. शाम के समय उस चोर को गुफा में छन-छन की आवाज़ सुनाई दी. उसे शक़ हुआ कि कोई चुपचाप गुफा में घुस आया है. जैसे ही उस के बाक़ी साथी चोर आए उसने सबको ये बात बताई, लेकिन उसकी बात सुनकर सबने उसका मज़ाक़ उड़ाया. अगले दिन पहरेदारी के लिए एक दूसरे चोर को गुफा में छोड़ा गया. शाम गहराते ही उसे भी वैसी ही आवाज़ सुनाई देने लगी. उसे लगा कि गुफा में कोई भूत प्रेत का साया है. चोरों के सरदार ने कहा कि एक ज़माने में लोग अपना धन सुरक्षित रखने के लिए ज़मीन के नीचे गाड़ दिया करते थे और धन अपनी जगह अपने आप जगह बदलता रहता था. ऐसा करते हैं इस पहाड़ की खुदाई करते हैं. चोरों ने मिलकर उस पहाड़ को खोदना शुरु कर दिया. कई घंटे गुज़र गए तभी किसी को एक छोटी सी चुहिया इधर-उधर फ़ुदकती हुई दिखी जिसके पैर में एक छोटा सा घुंघरु अटक रहा था. उनमें से एक चोर गुस्से में बोला – खोदा पहाड़ निकली चुहिया.
खोदे चूहा और सोवे सांप. चूहा बड़े परिश्रम से बिल खोदता है और सांप उस पर कब्जा कर लेता है. प्राचीन भारत के लोगों ने अत्यंत समृद्ध देश बनाया और दुष्ट बर्बर आक्रान्ताओं ने उस पर कब्जा कर लिया.
खोया ऊँट घड़े में ढूंढे. आदमी बदहवासी में ऊँट को घड़े में ढूँढने जैसा मूर्खता पूर्ण कार्य भी करता है.
खोवें आदर मान को दगा लोभ और भीख. धोखा करना, मन में लोभ रखना और किसी से भीख माँगना, ये तीनों बातें व्यक्ति के सम्मान को ख़त्म कर देती हैं.
ग
गँवार गन्ना न दे, भेली दे (गुड़ न दे भेली दे). मूर्ख व्यक्ति छोटी सी चीज़ देने में आनाकानी करता है जबकि बड़ी चीज़ दे देता है. भेली – गुड़ की भेली.
गंग सकल मुद मंगल मूला, सब सुख करनि हरनि सब सूला. पवित्र गंगा नदी सब प्रकार से सुख देती है और सब प्रकार के कष्ट दूर करती है.
गंगा आवनहार, भगीरथ को जस. (गंगा आनहार भागीरथ के सिर पड़ी). गंगा को आना ही था, भगीरथ को यश प्राप्त हुआ. जैसे भारत को बहुत से कारणों से आज़ादी मिली कुछ लोगों ने श्रेय ले लिया.
गंगा का कगार फटा, मोरे ऊपर छीट पड़ी. कोई बड़ा आदमी गप्प सुना रहा हो तो चमचे उसकी हाँ में हाँ मिलाते हैं. उसने कहा कि गंगा का कगार फटा तो चमचा कहता है हाँ मेरे ऊपर भी छींटा आया.
गंगा की गंगा सिवराजपुर की हाट. किसी काम में एक साथ दो लाभ. गंगा नहाना भी और बाजार भी.
गंगा की धार, हाकिम का न्याय जाना नाहीं जात. गंगा की धारा और हाकिम का निर्णय किस ओर जायेगा कहना संभव नहीं है.
गंगा की राह किसने खोदी है. वेगवती नदी जब पहाड़ से उतरती है तो अपनी राह खुद बनाती है. उसके लिए कोई खोद के मार्ग नहीं बनाता. महान लोग जब किसी कार्य के लिए निकलते हैं तो अपना रास्ता खुद बनाते हैं.
गंगा की राह में पीर के गीत. उल्टा काम. गंगा नहाने जाओ तो गंगा के गीत गाओ, पीर बाबा के नहीं.
गंगा के मेले में चक्की खोदने वाले को कौन पूछे. चक्की के पाटों में छोटे छोटे गड्ढे बना कर उन को खुरदुरा बनाया जाता है तभी पिसाई होती है. कुछ दिन चलाने के बाद पाट फिर चिकने होने लगते हैं तो उन्हें फिर खोदना पड़ता है. गंगा के मेले में लोग चक्की ले कर जाते ही नहीं हैं इसलिए वहां चक्की खोदने वाले का क्या काम. जहाँ माल की जहाँ खपत हो वहीं उस का व्यापार करना चाहिए.
गंगा गए तो गंगादास, जमुना गए तो जमुनादास. जैसी परिस्थिति हो वैसा ही बन जाना चाहिए. इंग्लिश में कहावत है – When in Rome, do as Romans do.
गंगा जाते कोढ़ उभरा. पहले के लोग मानते थे कि गंगा में नहाने से कोढ़ ठीक हो जाता है. अगर गंगा जाते समय कोढ़ उभरा है तो चिंता की कोई बात ही नहीं है, हाथ की हाथ निवारण हो जाएगा.
गंगा जी के घाट पर बामन वचन प्रमान, गंगा जी को रेत को तू चंदन कर के मान. सन्दर्भ कथा – जाट गंगा नहाने गया तो एक पंडे ने उसे घेर लिया. हाथ में गंगाजल ले कर कुछ उलटे सीधे मन्त्र पढ़े, जाट को गंगा जी की रेत से तिलक लगाया और बोला बामन का वचन है, तू इस रेत को चंदन मान और जल्दी से इस बामन को गऊ दान कर दे. जाट बहुत चतुर था. उस ने एक मेंढकी पकड़ी और पंडे से कहा, गंगा जी कै घाट पर जाट वचन परमान, गंगा जी की मेंढकी तू गऊ कर के जान (गंगा जी की मेंढकी को गऊ मान कर ग्रहण करो)..
गंगा जी को नहायबो, बामन को व्योहार, डूब जाय तो पार है, पार जाए तो पार. गंगा में तैरने वाला तैर कर पार हो जाए तब तो पार है ही और डूब जाए तो यह मान लिया जाता है कि वह भवसागर से पार हो गया. इसी प्रकार ब्राह्मण को दिया गया ऋण वापस न मिले तो दान पुण्य मान कर संतोष कर लेना चाहिए.
गंगा नहाए मुक्ति होय तो मेंढक मच्छियाँ, मूढ़ मुड़ाए सिद्धि होए तो भेड़ कपछियाँ. गंगा नहाने से मुक्ति होती तो मेढक मछलियाँ सबसे पहले मुक्त हो जाते, सर मुड़ाने से सिद्धि मिलती तो भेड़ें सबसे पहले सिद्ध हो जातीं क्योंकि वो तो हर साल मुंडती हैं.
गंगा नहाने से गधा घोड़ा नहीं बनता. गंगा नहाने से मूर्ख व्यक्ति योग्य नहीं हो जाता.
गंगा बही जाय, कलारिन छाती पीटे. कलारिन – शराब बनाने वाली. कलारिन को इस बात की चिंता हो रही है कि सारा पानी बह गया तो शराब कैसे बनेगी. व्यर्थ की आशंकाओं से ग्रस्त व्यक्ति का मजाक उड़ाने के लिए.
गंगाजी की धारा, पाप काटने का आरा. गंगा की महिमा का बखान.
गंगोत्री ही गन्दी हो तो गंगा में बदबू होगी ही. अर्थ स्पष्ट है. उदाहरण के तौर पर – जिस पकिस्तान का जन्म ही घृणा, उन्माद और हिंसा पर हुआ हो वहां आतंकवाद तो पनपेगा ही.
गंजा और कंकड़ों में कुलांचे खाए. गंजा कंकडों में कुलांचे खाएगा तो उसका सर लहूलुहान हो जाएगा. कोई व्यक्ति अपनी मूर्खता से अपने को नुकसान पहुँचा रहा हो तो.
गंजा मरा खुजाते खुजाते. जो व्यक्ति कुछ दुर्भाग्य से और कुछ अपने कर्मों के कारण दुर्दशा को प्राप्त हुआ हो.
गंजी कबूतरी और महल में डेरा. अयोग्य व्यक्ति को उच्च स्थान प्राप्त होना.
गंजी को सर मुंडाने की क्यों पड़ी. अनावश्यक काम करने वाले पर व्यंग्य.
गंजी क्या मांग निकाले. कोई साधनहीन व्यक्ति सामर्थ्यवान की बराबरी करे तो.
गंजी देवी, ऊत पुजारी. जैसे देवता वैसे ही मानने वाले.
गंजी पनिहारी और गोखुरू का हंडुवा. पनिहारी-पानी भरने वाली. पहले गाँव की स्त्रियाँ कुँए या तालाब से मटके में पानी भर कर सर पर रख कर लाती थीं. सर पर मटके को बैलेंस करने के लिए कपड़े का गोल रिंग बना कर रखा जाता है जिसे हंडुवा या कुंडरी कहते हैं. एक तो पानी भरने वाली गंजी है ऊपर से गोखुरू (एक प्रकार की कंटीली घास) का हंडुवा बना कर रख लिया है जिससे उसे और कष्ट हो रहा है. अपनी मूर्खता से कष्ट उठाना.
गंजे आदमी को नाई की क्या परवाह (गंजे पर नाई का क्या एहसान). जिस व्यक्ति से हमें कभी काम नहीं पड़ने वाला उसकी परवाह क्यों करें. गंजे को नाई की जरूरत ही नहीं है, फिर वह उसका एहसान क्यों माने.
गंजे के भाग से ओले पड़ें. जब किसी गंजे के भाग्य में कष्ट उठाना लिखा होता है तब ओले पड़ते हैं.
गंजे को कौओं का डर. गंजे सर पर कौवा चोंच न मार दे इसलिए.
गंजे रे गंजे टेरम टेर, लाठी ले के डंगर हेर. गंजे लोगों का मजाक उड़ाने वाली बच्चों की कहावत.
गंजे सर पानी पड़ा, ढल गया. वैसे बात तो गलत है पर यहाँ गंजे सर का अर्थ बेशर्म आदमी से है.
गंजेड़ी यार किसके, चिलम भरे उसके. नशेड़ी किस को अपना दोस्त मानते हैं, जो नशा करने में सहायक हो.
गंदला है तो भी गंगाजल. गंगाजल यदि थोड़ा गंदला भी हो जाए तो भी उसकी महिमा कम नहीं होती. उच्च चरित्र वाले किसी व्यक्ति पर थोड़े बहुत आक्षेप लग जाएँ तो भी उसका आदर कम नहीं होता.
गंधी बेटा टोटा खाए, डेढ़ा दूना कहीं न जाए. इत्र के व्यापार में कई गुना मुनाफा है. जब इत्र का व्यापारी यह कहता है कि उसे घाटा हुआ है तो इसका मतलब यह होता है कि उसे केवल डेढ़ दो गुना ही मुनाफा हुआ है.
गंवार अधेला न दे अधेली दे. अधेला माने आधा पैसा और अधेली माने अठन्नी. नासमझ व्यक्ति छोटी सी चीज़ देने में आनाकानी करता है पर लोग उस को बेवकूफ बना कर उस से बड़ी चीज़ ठग लेते हैं.
गंवार की अकल गुद्दी में. पुराने जमाने में गंवार शब्द को मूर्ख और नासमझ व्यक्ति के लिए प्रयोग करते थे. मूर्ख व्यक्ति की बुद्धि दिमाग में न हो कर उसकी गर्दन में होती है.
गंवार की गाली, हंसी में टाली. मूर्ख व्यक्ति गाली दे तो हंसी में टाल देना चाहिए, दिल पे नहीं लेना चाहिए.
गंवार को पैसा दीजे पर अकल न दीजे. कहावतों में गंवार शब्द का प्रयोग मूर्ख के लिए होता है. ग्रामीण लोगों को इस का बुरा नहीं मानना चाहिए. कहावत का अर्थ है कि मूर्ख व्यक्ति को अक्ल का उपदेश देना बेकार है.
गंवार खा के मरे या उठा के मरे. मूर्ख व्यक्ति अधिक खाने से मरता है या क्षमता से अधिक बोझ उठाने से.
गई आबरू वापस न आवे. एक बार इज्जत चली जाए तो वापस नहीं आती.
गई को जाने दे राख रही को. जो चला गया उसे भूल जाओ जो तुम्हारे पास है उसे संभालो.
गई जवानी फिर न बहुरे, चाहे लाख मलीदा खाओ. मलीदा कहते हैं खूब घी से बनने वाले एक पकवान को. मनुष्य चाहे कितना प्रयास कर ले, बीता हुआ यौवन वापस नहीं आ सकता.
गई नार जो घर घर डोले, गया घर जहं उल्लू बोले, गया राज जहाँ माने गोले, गया वनिक जो कम कर तोले. गया – नष्ट हो गया. पराए घरों में डोलने वाली स्त्री का सम्मान नहीं होता, जिस घर में उल्लू बोले उस का सर्वनाश हो जाता है, जिस राजा के यहाँ गोलों (दासों) की चलती हो वह भी नष्ट हो जाता है, जो बनिया कम तोलता है उस की साख भी समाप्त हो जाती है.
गई परोथन लेने, कुत्ता आटा ले गया. किसी आवश्यक कार्य के बीच अनपेक्षित नुकसान हो जाना.
गई बला को कौन पुकारे. जो आफत अपने आप टल गई हो उसे वापस बुलाना मूर्खता ही कहलाएगी.
गई बात फिर हाथ न आवे. जो बात बिगड़ जाए वह दोबारा नहीं बनती.
गई भैंस पानी में. भैंस को यदि कहीं पानी भरा तालाब दिख जाए तो वह आपके रोकने के बावज़ूद उस में उतर जाती है. आपके कोशिश करने के बाद भी कोई बना बनाया काम बिगड़ जाए तो मज़ाक में यह बोलते हैं.
गई माँगने पूत, खो आई भतार (मांगत पूत भतार गंवायो). पुत्र मांगने गई थी, पति को खो आई. किसी लाभ की कोशिश में उससे भी बड़ा नुकसान उठाना. रूपान्तर – कोख खातिर गई, मांग गंवा कर आई. इससे उलट एक कहावत है – मांग खातिर गई, कोख ही गँवा आई.
गई साख फिर हाथ न आवे. जो साख चली जाए वो दोबारा नहीं आती.
गई सोभा दरबार की सब बीरबल के संग. बीरबल से ही अकबर के दरबार की शोभा थी. बीरबल की मृत्यु के बाद अकबर के दरबार में वह बात नहीं रही.
गऊ संतन के कारने, हरि बरसावें मेंह. अच्छे लोगों के हित के लिए प्रभु जो भी कृपाएं प्रदान करते हैं उनसे अच्छे बुरे सब का भला हो जाता है.
गए कटक, रहे अटक. बिना बात के किसी काम में फंस जाना.
गए को सबने सराहा है. व्यक्ति के मरने के बाद सब उसकी सराहना करते हैं.
गए गंगा जी और लाए बालू. किसी महत्वपूर्ण स्थान पर जा कर कोई क्षुद्र चीज ले आना.
गए थे रोजा छुड़ाने, उल्टे नमाज गले पड़ी (गए थे नमाज छुडाने, रोजे गले पड़े). एक छोटी मुसीबत से पीछा छुड़ाने की कोशिश कर रहे थे, उससे बड़ी मुसीबत गले पड़ गई.
गए बिचारे रोजे, और रहे दस बीस. कोई कठिन कार्य करना पड़ रहा हो तो मन में यह भाव रखना चाहिए कि बस अब थोड़ा ही तो बचा है, निबट जाएगा.
गए शेर को कंकड़ मारे. 1.शेर चला गया तो उस के पीछे कंकड़ फेंक रहे हैं, बनावटी बहादुर. 2. मूर्ख आदमी जो गए हुए शेर को कंकड़ मार कर उकसा रहा है. यह नहीं सोचता कि यदि वह पलट गया तो खा जाएगा.
गगरी अनाज भया, जुलहे का राज भया. छोटे आदमी के पास तनिक भी संपत्ति हुई तो वह अपने को किसी राजा से कम नहीं समझता है. रूपान्तर – गगरी दाना, सूत उताना.
गज भर के गाजी मियाँ, नौ गज की पूंछ. बहुत अधिक तामझाम और दिखावा.
गज भर न फारे के, थान भर हारे के. मूर्ख आदमी कहने पर एक गज कपड़ा नहीं देगा, चाहे पूरा थान हार जाए.
गज, गेंडा, कायर पुरुष, एकहि बार गिरन्त, छत्रिय सूर सपूत नर, गिर गिर उठत अनंत. हाथी, गेंडा और कायर पुरुष एक बार गिर कर फिर उठ नहीं पाते. क्षत्रिय, शूर वीर और सुपुत्र गिर कर भी बार बार उठते हैं.
गठरी बाँधी धूल की रही पवन से फूल, गाँठ जतन की खुल गई रही धूल की धूल. मानव जीवन की क्षणभंगुरता के विषय में सुन्दर कथन. मनुष्य का शरीर हवा से फूली हुई धूल की गठरी की तरह है
गठरी संभाल, मधुरी चाल, आज न पहुंचब, पहुंचब काल. भोजपुरी कहावत. सामान संभाल कर रखो और आराम से चलो, भले ही थोड़ा देर से पहुँच पाओ.
गडर प्रावाही लोक (संसार भेड़चाल है). जैसे भेड़ें बिना सोचे समझे एक के पीछे एक चलती हैं वैसे ही संसार के लोग एक दूसरे की नकल करते हैं.
गड़रिया को दुसाला मिला तौ चूतड़ के तले धर के बैठा. व्यक्ति जिस चीज़ की कीमत नहीं जानता, उस का दुरूपयोग ही करता है. गड़रिये को बेशकीमती दुशाला मिला तो उसे भी जमीन पर बिछा कर बैठ गया.
गढ़ की शान कंगूरे बताते हैं. कौन सा गढ़ कितना शानदार है यह उसके कंगूरे देख कर ही मालूम हो जाता है.
गढ़िया लोहार का गाँव क्या. महाराणा प्रताप के लिए हथियार बनाने वाले लुहार जाति के लोगों ने यह शपथ ली थी कि जब तक राणा को मेवाड़ का राज्य नहीं मिल जाता तब तक वे बस्तियों में नहीं बसेंगे. उन के वंशज (जोकि गढ़िया लोहार कहलाते हैं) अभी तक घुमंतू जीवन व्यतीत कर रहे हैं.
गढ़े कुम्हार भरे संसार. कुम्हार घड़ा बनाते हैं, सब लोग उससे पानी भरते हैं. एक आदमी की कृति से अनेक लोग लाभ उठाते हैं.
गढ़े सुनार, पहने संसार. सुनार सुंदर गहने बनाता है जिन्हें सारा संसार पहनता है. कार्य ऐसा ही करना चाहिए जिससे खुद की जीविका भी चले और संसार लाभान्वित भी हो.
गढ़ों और मठों के बंटवारे नहीं होते. जिस प्रकार वारिसों के बीच संपत्ति का बंटवारा होता है उस प्रकार से राज्य और मठ का बंटवारा न कर के किसी एक ही व्यक्ति को उत्तराधिकारी बनाया जाता है. बंटवारे से राजसत्ता और धर्मसत्ता कमजोर होती है.
गणेश के ब्याह में सौ विघ्न. जो व्यक्ति हमेशा दूसरों की सहायता करता हो, उसका खुद का कोई काम न हो रहा हो तो मजाक में यह कहावत कही जाती है.
गणेश को बुद्धि कौन दे. गणेश जी स्वयं बुद्धि के स्रोत कहलाते हैं, उन्हें बुद्धि कौन दे सकता है. बहुत विद्वान या समझदार व्यक्ति को कौन समझा सकता है.
गणेशजी का चौक पूजा, मेंढक जी आन विराजे. किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति के लिए कोई प्रबंध किया जाए और ओछा व्यक्ति उसका लाभ उठाए तो.
गतानुगतिको लोक. संसार में सब एक दूसरे की नकल कर रहे हैं. रूपान्तर – संसार भेड़िया धसान है.
गदह पूंछ से लिखा लिलारा, का करिहैं अवधेश कुमारा. लिलारा – ललाट पर, अवधेश कुमारा – भगवान राम. जब गधे की पूंछ से भाग्य लिखा गया है तो राम जी इस में क्या कर सकते हैं.
गदहा गावे, ऊँट सराहे. गदहा गा रहा है और ऊँट सराहना कर रहा है. जब एक मूर्ख व्यक्ति दूसरे मूर्ख की तारीफ़ करे तो. संस्कृत में इस प्रकार कहा गया है – उष्ट्रानां विवाहेषु गीत: गायन्ति गर्दभ:, परस्परं प्रशंशंति अहो रूप: अहो ध्वनि. ऊँट के विवाह में गधा गीत गा रहा है. एक दूसरे की प्रशंसा कर रहे हैं, क्या रूप है, क्या ध्वनि है.
गदहा पीटे धूल उड़े. मूर्ख व ढीढ आदमी को दंड देने से कोई लाभ नहीं होता.
गदहा मरे कुम्हार का, और धोबन सती होए. किसी और के दुख पर अनावश्यक शोक मनाना.
गदहिया दुम हिलाती है, परी मालूम होती है. जवानी में गधी से दिल लगा तो परी उसके सामने क्या है.
गधा अगर सोने से लदा, तो भी रहे गधे का गधा. कोई बहुत पैसे वाला व्यक्ति हो पर मूर्ख हो तो यह कहावत कही जाती है. इंग्लिश में कहावत है – An ass remains an ass, even if laden with gold.
गधा क्या जाने कस्तूरी की गंध. मूर्ख व्यक्ति बहुमूल्य वस्तुओं का मूल्य नहीं समझ सकता.
गधा क्यों नहाए गंगा, घूरा ही चंगा. गधा गंगा में क्यों नहाएगा (उसे गंगाजी का महत्व क्या मालूम), वह तो घूरे में लोटने में ही खुश है. मूर्ख व्यक्ति को सत्पुरुषों की संगति अच्छी नहीं लगती. रूपान्तर – गधा गंगाजल का माहात्म्य क्या जाने. मूर्ख व्यक्ति किसी पवित्र चीज़ का महत्व नहीं समझ सकता.
गधा खेत खाय, कुम्हार मारा जाय. कोई मातहत गलती करे और मालिक उसका दंड भुगते तो.
गधा गया दुम की तलाश में, कटा आया कान. चौबे जी छब्बे बनने गए, दुबे बन कर लौटे.
गधा गया स्वर्ग तो छान लगा रह गया. छान – किसी जानवर के दो पैरों को आपस में बाँधने वाली रस्सी (जिससे वह भाग न पाए). मूर्ख आदमी कहीं भी जाए, उसकी मूर्खता की निशानी साथ लगी रहती है.
गधा गिरा पहाड़ से और मुर्गी के टूटे कान. किसी बिलकुल अनजान व्यक्ति की परेशानी से यदि कोई अत्यधिक दुखी हो रहा हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.
गधा घूरा देख कर ही रेंके. मूर्ख व्यक्ति निकृष्ट वातावरण में ही प्रसन्न होता है.
गधा चरे खेत, न पाप न पुन्य, गाय चरे तो पुन्य तो होता (गधा खाए खेत, न ईलोके न परलोके). यदि किसी के खेत में गधा चर रहा हो तो वह उसे क्यों चरने दे. अगर गाय चर रही हो तो कम से कम पुन्य तो मिलेगा. कोई ऐसा आदमी आपकी पूँजी खा रहा हो जिससे आपको कोई फायदा न हो तो यह कहावत कही जाती है.
गधा धोने से बछड़ा नहीं हो जाता. कितना भी प्रयास करो मूर्ख आदमी अक्लमंद नहीं बन सकता.
गधा न सही, रेंगटा सही. रेंगटा – गधे का बच्चा. व्यर्थ तर्क-वितर्क के समय प्रयुक्त.
गधा पानी पिए घंघोल के. गड्ढे में भरे पानी में गन्दगी बैठ जाती है और ऊपर साफ़ पानी होता है. बाकी जानवर ऊपर का साफ़ पानी पीते हैं, पर गधा पानी को जोर से हिला कर पीता है जिससे गन्दगी पानी में घुल जाती है.
गधा पीटे घोड़ा नहीं होता. कितना भी प्रयास करो या मारो पीटो, मूर्ख व्यक्ति बुद्धिमान नहीं बन सकता.
गधे का जीना थोड़े दिन भला. गधे जैसी जिंदगी हो तो थोड़े दिन ही जीना बेहतर है.
गधे का पूत गधा. मूर्ख लोगों की संतान भी मूर्ख होती हैं.
गधे का मूंह कुत्ता चाटे तो क्या बिगड़े. दो मूर्ख या निकृष्ट लोग एक दूसरे से प्रेम करें या एक दूसरे को नुकसान पहुँचाएं, तो हमें क्या.
गधे की खातिर सर मुंडवाया. किसी मूर्ख व्यक्ति के प्रति अत्यधिक प्रेम प्रदर्शित करना.
गधे की पीठ गधा ही खुजावे (गधे के कान गधा ही खुजाए). मूर्ख ही मूर्ख के काम आता है.
गधे की पूँछ पकड़ाई. किसी को ऐसे फालतू के काम पर लगा देना, जिससे लाभ कुछ न हो बल्कि हानि की संभावना हो.
गधे की बगल में गाय बाँधी तो वह भी रेंकने लगी. संगत का असर (कुसंगति कथय किम् न करोति पुंसाम).
गधे की रेंक और ओछे की प्रीत घटती जाती है. दो बिल्कुल अलग दृष्टान्तों को जोड़ कर हास्यपूर्ण ढंग से कोई बात कहना कहावतों की विशेषता होती है. जैसे गधे की रेंक पहले तेज और बाद में धीमी हो जाती है वैसे ही ओछे व्यक्ति की प्रीत शुरू में अधिक और बाद में कम हो जाती है.
गधे की लीद से पापड़ बने तो उड़द मूंग को कौन पूछे. अर्थ स्पष्ट है.
गधे के ऊपर वेद लदे, गधा न वेदी होय. गधे के ऊपर पुस्तकें लादने से वह ज्ञानी नहीं हो जाता.
गधे को गुलकंद (गधे को जाफरान), (गधे को हलुआ पूड़ी), (गधे को अंगूरी बाग़). अयोग्य व्यक्ति को ऐसी वस्तु मिल जाना जिसके वह बिलकुल योग्य न हो.
गधे को दिया नोन, गधा कहे मेरे दीदे फोड़े. गधे को किसी ने नमक खाने को दिया. गधा तो गधा ही ठहरा. उसने नमक का हाथ आँख में लगा लिया. आँख में तकलीफ हुई तो नमक देने वाले को कोसने लगा कि तुमने मेरी आँख फोड़ दी. किसी के भले के लिए कोई काम करो और वह उल्टा आपको कोसे तो यह कहावत कहते हैं.
गधे गुड़ हगने लगें तो गन्ने कौन पेरे. (बुन्देलखंडी कहावत) आसानी से कोई चीज़ मिल जाए तो कोई मेहनत क्यों करेगा इस बात को मजेदार ढंग से कहा गया है.
गधे घोड़े एक भाव. जहाँ प्रतिभाशाली व्यक्ति की कोई कद्र न हो.
गधे दाख खा गये. दाख – किशमिश. मूर्खो को खिलाने पिलाने में पैसा व्यर्थ ही खर्च हुआ.
गधे पर जीन कसने से घोड़ा नहीं होता. मूर्ख व्यक्ति को अच्छे कपड़े पहना दो तो वह योग्य नहीं हो जाता.
गधे पर हाथी की झूल. बेमेल काम.
गधे पे जैसे छै मन वैसे नौ मन. गरीब और लाचार आदमी जहाँ इतना काम करता है वहाँ थोड़ा और सही.
गधे में ज्ञान नहीं, मूसल की म्यान नहीं (मूरख के ज्ञान नहीं, दरांती के म्यान नहीं). गधे (मूर्ख व्यक्ति) में ज्ञान नहीं होता और मूसल या दरांती की म्यान नहीं होती. म्यान केवल तलवार की होती है. (देखिए परिशिष्ट)
गधे से गिरा और गाँव से रूठा. बिना बात रूठने वालों पर व्यंग्य.
गधे से हल चले तो बैल कौन बिसाय. बैल को पालना गधे के मुकाबले बहुत महंगा है. अगर गधा हल चला लेता तो बैल कौन पालता. अगर सस्ती चीज़ से काम चले तो कोई महंगी चीज़ क्यों लेगा.
गधे ही मुल्क जीत लें तो घोड़ों को कौन पूछे. गधे की कीमत भी घोड़े से बहुत कम होती है और रख रखाव भी बहुत सस्ता होता है, लेकिन युद्ध लड़ने के लिए घोड़े ही चाहिए जोकि बहुत महंगे होते हैं. अगर सस्ती चीज़ से पूरा काम निकल जाए तो महंगी चीज़ को कौन पूछेगा. रूपान्तर – जो टट्टू जीते संग्राम, को खर्चे तुर्की को दाम.
गधों की बातें और गीदड़ों की लातें. इन का कोई महत्व नहीं होता.
गधों की यारी में लातों की तैयारी. गधे से दोस्ती करोगे तो दुलत्ती खानी पड़ेगी. मूर्ख व्यक्ति से दोस्ती करना खतरे से खाली नहीं है. अवधी में इस को इस प्रकार से कहा गया है – गदहा कै दोस्ती, लातन कै सनसनाहट.
गधों के गले में गजरा. अयोग्य व्यक्ति को बहुमूल्य परन्तु बेमेल चीज़ मिल जाना.
गन्दी बोटी का गन्दा शोरबा. 1. घटिया कच्चा माल तो घटिया उत्पाद. 2. नीच मां बाप की नीच संतान.
गन्ना बहुत मीठा होता है तो उसमें कीड़े पड़ जाते हैं. ज्यादा सज्जनता मुसीबत बन जाती है.
गन्ने से गंडेरी मीठी, गुड़ से मीठा राला, भाई से भतीजा प्यारा, सब से प्यारा साला. रिश्तों की मिठास को प्रकट करने वाली कहावत.
गम न हो तो बकरी पाल लो. बकरी पालने में बहुत परेशानियाँ उठानी पडती हैं.
गया बदरी, काया सुधरी. बद्रीनाथ की यात्रा करने से स्वास्थ्य लाभ होता है.
गया मर्द जिन खाई खटाई, गई रांड जिन खाई मिठाई. पहले के लोग समझते थे कि खटाई खाने से पौरुष शक्ति कम हो जाती है और विधवाओं से यह अपेक्षा की जाती थी कि जीवन में किसी प्रकार का सुख न भोगें. अवधी में इस कहावत को अधिक विस्तार से कहा गया है – गवा मर्द जो खाय खटाई, गई नारि जो खाय मिठाई, गवा कुआं जा में पर गई काई, गई बहू जो हंसै ठठाई. ठठाई – ठहाके मार कर हंसना.
गया माघ दिन उनतीस बाकी. माघ का एक दिन बीतने के बाद कह रहे हैं कि माघ खत्म हो गया, बस उन्तीस दिन बाकी हैं. अति उत्साह की मूर्खतापूर्ण पराकाष्ठा.
गया राज जहाँ चुगला पैठे, गया पेड़ जहाँ बगुला बैठे. भोजपुरी कहावत. चुगलखोर की जिस राजपरिवार में पैठ (पहुँच) होती है वह नष्ट हो जाता है और गिद्ध व बगुले जिस पेड़ पर बैठते हैं वह पेड़ भी ठूँठ हो जाता है.
गया वक्त फिर हाथ नहीं आता. बीता हुआ समय और खोया हुआ अवसर पुन: हाथ नहीं आते.
गये हानी न मरे पछतानी. ऐसी वस्तु के लिए जिसके खो जाने या चले जाने से कुछ बिगड़ता न हो. ऐसे व्यक्ति के लिए भी जिसके मरने पर कोई रोने वाला न हो. रूपान्तर – चलने में कम नहीं, खो जाए गम नहीं.
गरज का क्या मोल (गरज दीवानी होय). किसी वस्तु की बहुत अधिक आवश्यकता होने पर उसकी मुंह मांगी कीमत देनी पड़ती है.
गरज का बावला अपनी गावे. जरूरतमंद आदमी अपनी ही कहता है.
गरज के बहुतेरे यार, कबहुं न लागे बेड़ा पार. जब आप के पास धन संपत्ति होता है तो बहुत दोस्त बन जाते हैं, लेकिन आड़े वक्त में वे कोई काम नहीं आते.
गरज परे पराई माँ से माँ कहने परत. गरज पड़ने पर दूसरे की मां से मां कहना पड़ता है.
गरज बुरी होत. गरज बुरी होती है. आवश्यकता पड़ने पर व्यक्ति को गलत काम भी करने पड़ते हैं.
गरज मिटी गूजरी नटी. दूध का काम करने वाले लोग अधिकतर गुर्जर जाति के होते थे. उनकी पत्नी गूजरी कहलाती थी. जब तक गूजरी को आप से कोई काम है वह रोज खीर खिलाती है. जैसे ही उस का काम निकल गया वह छाछ देने को भी मना कर देती है. रूपान्तर – गरज दीवानी गूजरी, नित्य जिमावे खीर, गरज मिटी गूजरी नटी, छाछ नहीं रे बीर.
गरज रहे तो चाकर, गरज मिटी तो ठाकुर (गर्ज पड़े मन और है, गर्ज मिटे मन और). जब तक अपना स्वार्थ था तब तक जी हुजूरी करते रहे. स्वार्थ पूरा हो जाने के बाद ऐंठ दिखाने लगे.
गरज सरे, वैद मरे. बीमारी ठीक हो गई तो अब वैद्य मर भी जाए तो क्या. नीच प्रवृत्ति.
गरब का बिरछा, कबहुं नहीं हरियाए. (बुन्देलखंडी कहावत) गरब – गर्व, घमंड, बिरछा – वृक्ष. घमंड का पेड़ कभी फलता फूलता नहीं है, अर्थात घमंड बहुत दिन नहीं टिकता.
गरब कोऊ को न रह्यो. गर्व किसी का नहीं रहा. रूपान्तर – गरब तौ रावन को भी नहीं रओ.
गरम खाय, ठंडा नहाय. भोजन थोड़ा गर्म खाना अच्छा होता है तथा स्नान ठंडे पानी से करना अच्छा होता है.
गरीब आदमी चंडाल बराबर. 1. गरीब आदमी की समाज में कोई इज्जत नहीं होती. उसे समाज का सबसे निम्न कोटि का व्यक्ति माना जाता है. 2. गरीबी में आदमी को मजबूरी में गलत काम भी करने पड़ते हैं.
गरीब का खाय, बाको सत्यानाश जाय. गरीब का हक छीनने वाले का सर्वनाश होता है. रूपान्तर – गरीब की खाय, जड़ मूल सों जाए. गरीब के हक को मारने वाला समूल नष्ट हो जाता है.
गरीब का दैव दूसरा, अमीर का दैव दूसरा. क्या भगवान भी ग़रीबों के तथा अमीरों के बँटे हुए हैं.
गरीब का बेली राम. निर्धन का सहायक ईश्वर है.
गरीब कितना दानी, धनी कितना सूम. गरीब कितना भी बड़े दिल वाला हो तब भी बहुत दान नहीं कर सकता, अमीर कितना भी कंजूस क्यों न हो थोड़ा भी दान करगा तो बहुत हो जाएगा.
गरीब की आहें मोटी होती हैं, बाहें नहीं. गरीब अपने सताने वाले को पीट नहीं सकता, केवल बद्दुआ दे सकता है. लेकिन उस में भी असर होता है.
गरीब की कौड़ी टेंट में. गरीब अपनी छोटी सी पूँजी को भी संभाल कर रखता है. टेंट – अंटी.
गरीब की जवानी, गरमी की घाम, जाड़े की चाँदनी, देय न काम. गरीब की जवानी कोई आनंद नहीं देती, नोन तेल की जुगाड़ में ही बेकार चली जाती है, इसी प्रकार गर्मी की धूप और जाड़े की चांदनी भी कोई आनंद नहीं देतीं. इस कहावत को इस प्रकार से भी कहा गया है – गरीब की जवानी, बहता पानी.
गरीब की जोरू सब की भौजाई. गरीब पर सब जोर जमाते हैं.
गरीब की बछिया को रंभाना मना. गरीब को अपनी व्यथा कहने का भी अधिकार नहीं है.
गरीब की सच्ची गवाही भी झूठी. गरीब की बात पर कोई विश्वास नहीं करता.
गरीब की हानि किया, अपजस का टीका लिया. किसी गरीब का नुकसान करने पर अपयश ही मिलता है.
गरीब की हाय, सरबस खाय. गरीब को नहीं सताना चाहिए, उस की हाय व्यक्ति को बर्बाद कर देती है. (कबीरदास ने कहा है – दुर्बल को न सताइए, जाकी मोटी हाय).
गरीब के लिए तो बाल-बच्चे ही धन है. अर्थ स्पष्ट है.
गरीब को क़र्ज़ ऐसा, मेंढक को सांप जैसा. जो आदमी गरीब होता है उसके लिये क़र्ज़ का तकाज़ा करने वाला साहूकार इतना भयानक होता है जितना मेढक के लिये सांप.
गरीब को मत सता गरीब रो देगा, गरीब की हाय पड़ी तो जड़ मूल खो देगा. अर्थ स्पष्ट है.
गरीब को मिट्टी भी भारी. गरीब को अपने सगों का अंतिम संस्कार करना भी बहुत भारी पड़ता है.
गरीब को मुहूर्त कैसा, जब चाहे चल पड़े. गरीब शगुन असगुन का विचार नहीं कर सकता. जब काम होगा उसे जाना ही पड़ेगा.
गरीब को सरग में भी बेगार. एक गरीब आदमी रोज की बेगार से तंग आ कर मरने की सोच रहा था, तो जमींदार ने कहा कि तुझे स्वर्ग में भी बेगारी में काम करना पड़ेगा, तू यहीं रह. रूपान्तर – चमार को अर्श पे भी बेगार.
गरीब ने रोजे रखे तो दिन ही बड़े हो गए. गरीब कोई अच्छा काम करना चाहता है तो उसमें भी बहुत सी अड़चनें आती हैं.
गरीबी गुनाहों की जननी है. गरीब व्यक्ति मज़बूरी में अपराध करता है.
गरीबी तेरे तीन नाम लुच्चा, गुंडा, बेईमान; अमीरी तेरे तीन नाम परसा परसी परसराम. गरीब को सब लुच्चा, लफंगा और बेईमान कहते हैं जबकि वही अगर अमीर हो जाए तो उस से इज्ज़त से बात करने लगते हैं. गरीब को परसा कहते थे, उस पे थोड़ा पैसा आया तो परसी भाई कहने लगे और वह सम्पन्न हो गया तो परशुराम जी.
गरीबी से बढ़ कर कोई भाईचारा नहीं. गरीब लोग मुसीबत में एक दूसरे का साथ निभाते हैं, जबकि अमीर लोग आड़े समय में मुँह मोड़ लेते हैं.
गर्ज को सहूर (शऊर) नहीं होता. जो व्यक्ति अत्यधिक गर्जमंद होता है तो शिष्टाचार नहीं निभाता.
गर्जमंद की अकल जाए, दर्दमंद की शकल जाए. जब व्यक्ति बहुत गर्जमंद होता है तो उस की अक्ल काम नहीं करती और जिस व्यक्ति को बहुत बड़ा शारीरिक कष्ट हो रहा हो उसकी सुन्दरता नष्ट हो जाती है.
गलतियाँ उसी से नहीं होंगी जो कभी कोई काम करे ही नहीं. अर्थ स्पष्ट है.
गलमिल गलकट सुरसुर हाय हाय. मुसलमानों के चार मुख्य त्यौहारों पर कही गई कहावत. गलमिल – गले मिलने वाली मीठी ईद, गलकट- बकरा काटने वाली बकरीद, सुरसुर – पटाखे छोड़ने वाली शबेरात, हाय हाय – मुहर्रम.
गलियारे में टट्टी बैठे और उल्टे आँख दिखाए. गलियारे में शौच कर रहा है और मना करने पर अकड़ रहा है. चोरी और सीनाजोरी.
गले पड़ी, बजाए सिद्ध. कोई आदमी मजबूरी में कोई काम करे और लोग उसे महान समझ लें तो यह कहावत कही जाती है. रूपान्तर – गले पड़ी बाजे है. सन्दर्भ कथा – एक रात को कुछ चोर एक गाने-बजाने वाले के घर में घुसे. वहाँ चोरों को और कुछ नहीं मिला तो एक ने ढोलक उठाली, दूसरे ने सारंगी और तीसरे ने इकतारा ले लिया. इतने में जाग हो गई और चोर भाग निकले. घर वालों ने और पास पड़ोस के लोगों ने उनका पीछा किया तो चोर एक खेत में घुस गये. खेत में फसल पकी खड़ी थी और बाजरे के सिट्टे इतने घने थे कि जैसे तैसे वे भागते, बाजरे के सिट्टे ढोलक पर तड़ातड़ पड़ते और ढोलक बजने लगती. उसके साथियों ने कहा कि तू ढोलक न बजा, ढोलक की आवाज से ही वे लोग हमारा पीछा कर रहे हैं. इस पर ढोलक वाले ने कहा कि मैं कहाँ बजा रहा हूँ, यह तो बिना बजाये ही बज रही है.
गले पड़े का सौदा. कोई जिम्मेदारी जबरदस्ती गले पड़ जाए तो.
गले में ढोल पड़ा, रो के बजाओ चाहे गा के (गले में ढोल पड़ा है बजाना ही पडेगा). जो जिम्मेदारी आप के ऊपर पड़ी है उसे निभाना तो पड़ेगा ही, हँस के निभाओ या रो कर यह आप के ऊपर है.
गले में सिगड़ी बंधी है. सिगड़ी – अंगीठी. जो लोग हर समय गुस्से में रहते हैं उन का मजाक उड़ाने के लिए.
गवन समय जौ स्वान, फरफराय दै कान. यात्रा पर जाते समय कुत्ता कान फटकारे तो अपशकुन माना जाता है.
गहना चांदी का, नखरा बांदी का. गहना चांदी का अच्छा लगता है और नखरे दासी के अच्छे लगते हैं.
गहना पहने अमीर की तरह, गहना रखे गरीब की तरह. जब तड़क भड़क दिखाने का मौका हो तो अमीर लोगों की तरह गहने पहनना चाहिए, लेकिन उस के बाद गहनों को गरीब आदमी की तरह सहेज कर रखना भी चाहिए.
गहना वस्त्र उधार का, कभी न धरिए अंग. उधार के वस्त्र और गहने कभी नहीं पहनने चाहिए.
गहने और अपने आड़े वक्त में काम आते हैं. बुरे वक्त में गहनों को बेच कर या गिरवी रख कर धन प्राप्त किया जा सकता है. अपने सगे सम्बंधी कैसे भी हों बुरे वक्त में काम आते हैं.
गहरा बोने वाला और रिश्वत देने वाला, घाटे में नहीं रहते. बीज को गहरा बोने में मेहनत अधिक लगती है लेकिन उपज अच्छी होती है इसलिए सब वसूल हो जाता है. रिश्वत देने में पैसा खर्च होता है लेकिन व्यक्ति उस से अधिक लाभ भी कमा लेता है.
गहिर न जोते बोवे धान, सो घर कुठला भरे किसान. धान की बुआई के लिए खेत को गहरा नहीं जोतना होता.
गा गा के भुवानी बुला लई. गाँव में जब किसी के सिर भवानी आने को होती हैं तो उसके पूर्व ढोल और झाँझ के साथ भजन गाये जाते हैं. गा-बजाकर कर देवी को बुला लिया अर्थात जान बूझ कर बैठे-ठाले विपत्ति मोल ले ली.
गाँजा पिये राजा, तमाकू पिये चोर, सूरती खाय चुगदिया, जो थूके चारों ओर. गांजा पीना महंगा शौक है जिसे केवल धनी लोग ही कर सकते हैं, तम्बाखू चोर लोग पीते हैं जिन्हें रात में जागना होता है, सुरती (खाने वाली तम्बाखू) केवल मूर्ख लोग खाते हैं जो सब ओर थूक थूक कर गंदगी करते हैं.
गाँजा पीये ज्ञान घटे, और घटे तन अंदर का, खों खों करते जान जात, मुँह दिखे जैसे बंदर का. गाँजा पीने से बुद्धि कम हो जाती है, शरीर खोखला हो जाता है, रात दिन खांसी आती है और शक्ल बंदर जैसी हो जाती है.
गाँठ का गवाऊँ न लोगों साथ जाऊँ. जो आदमी बिल्कुल जोखिम लेने को तैयार न हो.
गाँठ का जाए और जग हँसाई होय. जिस का नुकसान होता है उसी पर लोग हँसते हैं.
गाँठ का देय और बैरी होय. किसी को उधार दे कर आप उससे दुश्मनी पाल लेते हैं.
गाँठ का पैसा, साथ की जोरू, वक्त पर यही काम आते हैं. पैसा वही काम आता है जो अपने पास हो (उधार में बंटा हुआ न हो) और पत्नी वही काम आती है जो साथ रहती हो.
गाँठ का भरम क्यूँ गवाऊँ. बाजार में किसी की कितनी साख है यह इस बात पर निर्भर करता है कि उसके पास कितना नकद पैसा है. कुछ लोगों के पास पैसा न भी हो तब भी उनकी हवा बंधी रहती है. ऐसे व्यक्ति का कथन.
गाँठ खुले न, बहू दुबली. बहू को खिलाने में खर्च करते नहीं हैं और सब से कहते फिरते हैं कि बहू दुबली है.
गाँठ गिरह से मद पीवे, लोग कहें मतवाला. शराब ऐसी चीज़ है कि आदमी अपना पैसा खर्च कर के पीता है तो भी मतवाला समझा जाता है.
गाँठ न मुट्ठी, फड़फड़ाय उट्ठी. न अंटी में पैसे हैं न हाथ में, फिर भी खरीदारी को मन मचल रहा है.
गाँठ में जमा रहे तो खातिर जमा. जिस व्यक्ति का धन उस के पास रहता है वह निश्चिंत रहता है.
गाँव करे सो पगली करे. जैसा सब गाँव के लोग करते हैं पगली उन की नकल करती है. बिना सोचे समझे किसी के नकल करने वाले पर व्यंग्य.
गाँव का छोरा छोरा, दूजे गाँव का दूल्हा. गाँव के लड़के की शादी होती है तो उसे दूल्हे वाली इज्जत नहीं मिलती, वह छोरा ही कहलाता है. दूसरे गाँव के लड़के को दूल्हे राजा और जमाई बाबू कह कर सत्कार किया जाता है.
गाँव का धतूरौ काम आवत. अपने घर गाँव की बेकार समझी जानी वाली वस्तु भी कभी न कभी काम आ सकती है, इसलिए अपने आस पास पाई जानी वाली चीजों की बेकद्री नहीं करनी चाहिए.
गाँव का समधी, घूँघट की ओट. गाँव के समधी से कहाँ तक आचार व्यवहार किया जाए. ज्यादा अच्छा यह है कि सामना होने पर पीठ फेरो और निकल जाओ.
गाँव की छवि चौक से और घर की छवि द्वार से. कोई गाँव कितना उन्नत और समृद्ध है यह उस के चौक को देख कर समझा जा सकता है, इसी प्रकार घर के द्वार को देख कर घर की सुन्दरता को जाना जा सकता है.
गाँव की बेटी, बटठगनी. अपने गाँव की लड़की से विवाह नहीं करना चाहिए. गाँव के संबंधी उचित सम्मान नहीं करते. बटठगनी – रास्ता चलते ठगने वाली.
गाँव के गड्ढे पोखर अंधा भी जाने. गाँव के लोग उन्हीं रास्तों पर चलते चलते इतने अभ्यस्त हो जाते हैं कि वे आँख बंद कर के भी चल सकते हैं.
गाँव जमींदार का, तोंद दीवान की. गाँव तो जमींदार के नाम है, लेकिन माल दीवान जी खा रहे हैं.
गाँव जले, डोम त्यौहारी मांगे. किसी का कितना भी नुकसान हो रहा हो क्षुद्र लोगों को केवल अपने स्वार्थ से मतलब होता है.
गाँव जले, नंगे को क्या. यहाँ नंगे से तात्पर्य बेशर्म आदमी से भी हो सकता है और अत्यधिक गरीब से भी. गाँव के जलने का इन दोनों पर कोई फर्क नहीं पड़ता.
गाँव तुम्हारा, नाँव हमारा. झूठी प्रशंसा की इच्छा रखने वालों के लिए. गाँव भले ही तुम्हारा हो यहाँ नाम हमारा ही चलना चाहिए.
गाँव न माने पगले को और पगला न माने गाँव को. जो व्यक्ति स्वयं पागल या मूर्ख है वह और सब को पागल और मूर्ख समझता है.
गाँव बसा नहीं, बिलैंया लोटन लगीं. जब कोई नया गांव बसता है तो आसपास के जंगल से बिल्लियां आकर वहां डेरा डाल लेती हैं. इस कथन का शाब्दिक अर्थ है कि गांव के बसने से पहले ही बिल्लियां डेरा डाल रही हैं. कहावत का अर्थ है – कोई लाभप्रद काम होने से पहले ही फ़ालतू और मुफ्तखोरों का जमा हो जाना.
गाँव में धोबी का छैल. धोबी का बेटा गाँव में छैला बना घूमता है क्योंकि वह शहर के लोगों के कपड़े पहनता है.
गांठ दाम नाहीं पतुरिया देख रुलाई आवे. वेश्याओं के पास जाना एक बहुत महंगा शौक है. कहावत उन व्यक्तियों के लिए है जो पैसा न होते हुए भी बहुत महंगे शौक पालना चाहते हैं. पतुरिया – वैश्या.
गाए गीत का गाना क्या, पके धान का पकाना क्या. किसी काम को बार बार करने में आनंद नहीं आता.
गाए बजाए ब्याह होत. जो लोग शादी विवाह के आयोजन को ले कर बहुत तनाव में होते हैं उन्हें बड़े लोग समझाते हैं कि ये सब काम तो गाते बजाते ही संपन्न हो जाते हैं इसलिए हिम्मत नहीं हारो.
गागर में सागर. बहुत कम शब्दों में बहुत बड़ी बात कह देना.
गाजर की पूंगी, बजी तो बजी, नहीं तो तोड़ खाई. हर तरह से उपयोगी वस्तु. पुंगी – फूंक बजाने वाला बाजा.
गाजर मर्द औ मूली जोय, भटा खाय से हिजड़ा होय. मर्दों को गाजर खाने से लाभ होता है, जबकि स्त्रियों को मूली खाने से. बैंगन खाने से पुरुष के नपुंसक होने का डर होता है. बेसिर पैर के पुराने विश्वासों में से एक.
गाजरों की तुला दई, बिमान की बाट हेरें. गाजरों की तुला दी – अपने वजन के बराबर तोल कर गाजरें दान कीं. और अब स्वर्ग के विमान की राह देख रहे हैं. नाम मात्र का खर्च करके बड़े यश या लाभ की आशा करना.
गाजे न बाजे, दूल्हे राजा आन बिराजे. कोई बड़ा आदमी बिना किसी पूर्व सूचना के अचानक आ जाए तो.
गाडर (भेड़) पाली ऊन को बैठी चरे कपास. भेड़ इसलिए पाली कि ऊन मिलेगी पर वह तो सारी कपास चर गई.
गाडर पाली ऊन को, बैठी चरे कपास, बहू लाया काम को, बैठ करे फरमास. उपरोक्त कहावत में यह बात जोड़ दी गई है कि बहू लाए थे यह सोच कर कि कुछ काम धाम करेगी, पर वह बैठ कर फरमाइशें कर रही है.
गाड़ी का पहिया और मर्द की जुबान फिरती ही अच्छी. जो मर्द अपनी बात पर कायम न रहें उन के लिए व्यंग्य.
गाड़ी का सुख गाड़ी भर, गाड़ी का दुख गाड़ी भर. गाड़ी जब तक चलती है तब तक बहुत सुख देती है, जब बिगड़ती है तो दुख भी बहुत देती है. यही बात गृहस्थी पर भी लागू होती है.
गाड़ी कुत्ते के बल नहीं चलती. कोई व्यक्ति बिना किसी उपयोगिता के अपने आप को बहुत महत्वपूर्ण सिद्ध करने की कोशिश कर रहा हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए. सन्दर्भ कथा – एक बैलगाड़ी धीरे धीरे चल रही थी. एक कुत्ता उस बैलगाड़ी के नीचे चल रहा था. उसे यह गलतफहमी हो गई कि गाड़ी को वही चला रहा है. चलते चलते उसे गुस्सा आया कि वह गाड़ी क्यों चलाए. वह रुक गया, लेकिन गाड़ी ऊपर से निकल गई. कोई व्यक्ति बिना किसी उपयोगिता के अपने आप को बहुत महत्वपूर्ण सिद्ध कर रहा हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए यह कहावत कही जाती है.
गाड़ी के पाड़ी बंधी हुई है. किसी व्यक्ति ने अपने पड़ोसी से कुछ देर के लिए बैलगाड़ी उधार मांगी. देने वाले का मन नहीं था तो उस ने बहाना बनाया कि गाड़ी में पड़िया बंधी हुई है इसलिए नहीं दे सकते.
गाड़ी तो चलती भली, ना तो जान कबाड़. गाड़ी जब तक चलती रहे तभी तक उपयोगी है, अन्यथा कबाड़ के समान है. यही बात मनुष्य पर भी लागू होती है.
गाड़ी देख लाड़ी के पावँ भारी. लाड़ली बेटी अच्छी खासी पैदल चल रही थी. तब तक रिक्शा दिख गया. उसको देख कर कहने लगी माँ मेरे पैरों में दर्द हो रहा है. कोई सुविधा उपलब्ध हो तो हर कोई उसे भोगना चाहता है.
गाड़ी पे सूप का क्या भार (चलती गाड़ी में चलनी का क्या भार) (गाड़ी भर नाज में टोकरी का क्या बोझ). जो व्यक्ति बहुत सी जिम्मेदारियाँ उठा रहा हो उस को छोटे मोटे काम से क्या परेशानी.
गाड़ी भर अनाज की मुट्ठी बानगी. गाड़ी में लदा हुआ अनाज कैसा है यह एक मुट्ठी देख कर ही जाना जा सकता है. किसी समाज के विषय में जानकारी उस के कुछ व्यक्तियों को देख कर ही हो सकती है..
गाड़ी भर बोया, पल्लू भर पाया. बहुत अधिक परिश्रम का बहुत थोड़ा प्रतिफल.
गाड़ी से पाड़ा मत बाँधो. किसी भी जानवर को स्थायी खूंटे से ही बांधना चाहिए. बेतुका काम मत करो.
गाड़ीवान की नार सदा दुखिया. क्योंकि उसे घर से बाहर रहना पड़ता है इसलिए उस की पत्नी दुखी रहती है. ट्रकों पर अक्सर लिखा होता है – कीचड़ में पैर दोगी तो धोना पड़ेगा, ड्राइवर से शादी करोगी तो रोना पड़ेगा.
गाते गाते कीरतनिया हो जाते हैं. कीरतनिया – कीर्तन करने वाले. गाने का अभ्यास करते करते सभी अच्छे गायक बन जाते हैं.
गाना और रोना कौन नहीं जानता. ये मनुष्य के मूलभूत गुण हैं.
गाय और बामन चरने से ही जियें (गाय और बामन का घूमे से पेट भरे). चरना – घास चरना, चरना – विचरण करना, घूमना फिरना. ब्राह्मण को जीविका कमाने के लिए लोगों के घरों में जाना पड़ता है.
गाय का दूध सो माय का दूध (कै पालत माय, कै पालत गाय). गाय का दूध मां के दूध के सामान गुणकारी है.
गाय का बछड़ा मर गया तो खलड़ा देख पनिहाय. खलड़ा – भूसा भरी हुई बछड़े की खाल (बछड़े का पुतला). पनिहाना – थन में दूध उतरना. किसी के प्रियजन की मृत्यु हो जाने पर उस से मिलती जुलती शक्ल सूरत वाले को देख कर भी प्रेम उमड़ता है. पशुओं में भी माँ की ममता की यही पराकाष्ठा देखने को मिलती है.
गाय की भैंस क्या लगे. किसी व्यक्ति से हमारा कोई संबंध नहीं है यह बताने का हास्यपूर्ण तरीका.
गाय को अपने सींग भारी नहीं होते (भैंस के सींग भैंस को भारू नई होत). अपने प्रिय कभी बोझ नहीं लगते.
गाय गुण बछड़ा पिता गुण घोड़ा, बहुत नहीं तो थोड़ा थोड़ा. गाय के बछड़े में माँ के गुण होते हैं जबकि घोड़े के बछड़े में पिता के गुण होते हैं.
गाय जने, बैल की दुम फटे (गाय बियाए पीर बैल को), (बिल्ली बच्चा जने, बिलौटे को पीर आवे). बच्चा जनना – बच्चा पैदा करना, पीर आना – दर्द होना. किसी दूसरे की परेशानी में अत्यधिक परेशान होने वाले पर व्यंग्य.
गाय तिरावे, भैंस डुवाबे. डूबता आदमी यदि गाय की पूँछ पकड़ ले तो गाय उसे पार करवा देती है, जबकि भैंस डुबो देती है. गाय को परोपकारी और भैंस को दुष्ट व स्वार्थी माना गया है.
गाय तैरी, भैंस तैरी, बकरी बिचारी डूब मरी. बड़ी आपदाओं को बड़े लोग तो झेल लेते हैं पर छोटे बेचारे मटियामेट हो जाते हैं.
गाय दुही और कुत्तों को पिलाया (गाय दुही और गधे को पिलाया). 1. परिश्रम से अर्जित किए हुए धन को बर्बाद कर देना. 2. घर के लोगों से छीन कर अपात्रों को बांटना.
गाय दुहे, बिन छाने लावे, गरमा गरम तुरंत चढ़ावे, बाढ़े बल और बुद्धि भाई, घाघ कहे सच्ची बतलाई. पुराने लोगों की मान्यता थी कि तुरंत का दुहा हुआ गाय का दूध स्वास्थ्य वर्धक होता है.
गाय दूब से सलूक करे तो क्या खाय. गाय दूब का लिहाज करेगी तो क्या खाएगी. दूकानदार अगर सब ग्राहकों से दोस्ती कर लेगा तो पैसा किस से कमाएगा. रूपान्तर – घोड़ा घास से यारी करेगा तो क्या खाएगा.
गाय न बच्छी, नींद आवे अच्छी. गाय पालना बहुत जिम्मेदारी का काम है. जिस व्यक्ति के पास ऐसी कोई जिम्मेदारी न हो वह चैन से सोता है. रूपान्तर – बाल न बच्चा, सोवे वो अच्छा.
गाय न हो तो बैल दुहो. कुछ न कुछ कर्म करो चाहे उससे कुछ हासिल न हो.
गाय पहले भैंस दूसरे. गाय पहली बार ब्याहने पर ही खूब दूध देती है और भैंस दूसरी बार ब्याहने पर.
गाय बाँध के रखी जाए सांड नाहीं. 1. सारी बंदिशें स्त्रियों के लिए ही हैं, पुरुषों के लिए कुछ नहीं. 2. सीधे आदमी के लिए ही सब कानून हैं, दबंग के लिए नहीं.
गाय बैल मर गए, कुत्ते के गले घंटी. योग्य व्यक्तियों के न रहने पर अयोग्य लोगों की चांदी हो जाना.
गाय भी हाँ और भैंस भी हाँ. हर बात में हाँ में हाँ मिलाना.
गाय भैंस का मान नही है, जितना मान बकरिया का, माई बाप का मान नहीं है, जितना मान मेहरिया का. जो लोग पत्नी के आगे माँ बाप को नहीं पूछते उन की तुलना उस मूर्ख व्यक्ति से की गई है जो गाय भैंस से अधिक बकरी को महत्व देता है. मेहरिया – पत्नी.
गाय मरे घास मिली तो क्या फायदा. नुकसान होने के बाद कोई वस्तु मिले तो क्या लाभ.
गाय मार के जूता दान. बहुत बड़ा पाप कर्म कर के थोड़ा सा दान कर देना और पुण्यात्मा बनने का ढोंग करना.
गाय रतन निगल गई. अत्यधिक दुविधा की स्थिति. गाय को मार कर बहुमूल्य रत्न को निकाल भी नहीं सकते.
गायें तो मालिकों की हैं, ग्वाले का अपना तो फकत लट्ठ. गरीब और मजदूर का अपना कुछ नहीं होता.
गायों के भाग से बर्षा होवे. अर्थ है कि गरीब, बेसहारा और पुण्यात्मा लोगों के लिए ही ईश्वर पानी बरसाते हैं. वर्षा होती है तो गायों को घास खाने को मिलती है. आम स्वार्थी मनुष्य के कर्म तो ऐसे हैं कि वर्षा हो ही न.
गायों को घास, कुतियों को मलीदा. अयोग्य व्यक्तियों को विशेष सुविधाएं.
गाल कट जाए पर चावल न उगले. चाहे जितना भी नुकसान हो जाय मगर लालच के मारे चीज़ न छोड़े.
गाल बजाए हू करैं गौरीकन्त निहाल. गाल बजाना – अपनी प्रशंसा स्वयं करना, गौरीकंत – भगवान शंकर. 1. ऐसे व्यक्तियों के लिए जो किसी की सहायता नहीं करते केवल बड़ी बड़ी बातें करते हैं और आश्वासन देते हैं. 2. यह अर्थ भी हो सकता है कि जो व्यक्ति उदार होते हैं वे सहज में ही प्रसन्न हो जाते हैं जैसे भगवान शंकर.
गाल बजाने से कोई बड़ा नहीं हो जाता. गाल बजाना – अपनी बड़ाई करना. अपनी प्रशंसा स्वयं करने से कोई बड़ा नहीं हो जाता.
गाल वाला जीते, माल वाला हारे. जो बातें बनाने में तेज हो वह जीत जाता है और पैसे वाला उसके सामने हार जाता है.
गालियों से कोई गूमड़े पड़ते हैं. कोई आपको डंडा मार देगा तो सर पर गूमड़ा पड़ जाएगा, लेकिन गाली देगा तो कोई नुकसान थोड़े ही होगा, इसलिए कोई गाली दे तो मारपीट पर उतारू नहीं होना चाहिए.
गाली और तरकारी खाने के लिए ही बने हैं. कोई आप को गाली दे उसका बुरा नहीं मानना चाहिए.
गाली मत दे किसी को, गाली करे फसाद, गाली सूं लाखों हुए, लड़ भिड़ कर बरबाद. किसी को गाली देना शर्तिया लड़ाई का नुस्खा है.
गावे तो सीठना, लड़े तो गाली. सींठना – विवाह इत्यादि में गाई जाने वाली हंसी मजाक की गालियाँ. विशेष अवसर पर वही बात हंसी मजाक मानी जाती है जो लड़ाई के समय गाली मानी जाती है.
गिदधों को कौन न्योता देता है. गिद्धों को कोई निमंत्रण नहीं भेजता, वे तो लाश देख कर अपने आप चले आते हैं. दूसरों की आपदा में अवसर ढूँढने वाले दुष्ट लोगों को कोई बुलाने नहीं जाता, वे अपने आप पहुँच जाते हैं.
गिद्ध की आँख पिड़की निकाले. पिड़की जैसा छोटा सा पक्षी भी गिद्ध की आँख निकाल सकता है. किसी को बहुत कमज़ोर समझने की भूल नहीं करना चाहिए.
गिद्ध को मौत से प्यार. लाशों पर पलने वाले गिद्ध यही चाहते हैं कि आदमी और जानवर मरते रहें. घटिया नेताओं और पत्रकारों पर व्यंग्य.
गिनती जीते सूरां हारे. कोई कितना भी शूरवीर हो यदि शत्रु संख्या में बहुत अधिक हों तो वह हार जाता है.
गिनी गाय में चोरी नहीं हो सकती. अपनी धन संपदा का ठीक से हिसाब रखा जाए तो उसमें चोरी नहीं हो सकती.
गिनी बोटी, नपा शोरबा. जहाँ हिसाब किताब बिल्कुल साफ़ हो.
गिने को गिनावे, टोटा हो जावे. गिना हुआ धन बार बार गिनने से उसमें घाटा हो जाता है.
गिने गिनाए नौ के नौ. मूर्ख लोग कोई भी काम ठीक से नहीं कर सकते. सन्दर्भ कथा – . एक गाँव के नौ बुनकरों ने अच्छे अच्छे वस्त्र बुने और अच्छे पैसे मिलने की आशा में उन्हें ले कर शहर की ओर चले. रास्ते में जंगल में बेरों की झाड़ियों में पके हुए बेर देख कर बेर खाने के लिए सब इधर उधर बिखर गए. बेर खाने के बाद सब इकट्ठे हुए तो मुखिया ने सब की गिनती की, लेकिन उसने अपने को नहीं गिना. कई बार गिना पर हर बार आठ ही निकले. वहाँ तो रोना पीटना पड़ गया. इसी बीच एक घुड़सवार उधर से निकला. सब को इस तरह रोते देख कर उस ने उन से पूछा कि क्या माजरा है.
उनकी समस्या सुन कर वह मन ही मन हँसा और बोला, अगर मैं तुम्हारा खोया हुआ आदमी ढूँढ़ दूँ तो मुझे क्या दोगे. बुनकर बोले हम ये सारे बहुमूल्य वस्त्र तुम्हें दे देंगे. घुड़सवार ने उन्हें लाइन से खड़ा किया और हर आदमी को कोड़ा मारते हुए पूरे नौ गिन दिए. वे सारे मूर्ख ख़ुशी ख़ुशी सारे वस्त्र उसे दे कर जान बचने की ख़ुशी मनाते हुए अपने गाँव लौट गए
गिने पूए संभाल खाए. धन संपत्ति को ठीक से गिन कर रखा जाए तो उस का प्रबन्धन आसान हो जाता है..
गिरगिट की दौड़ बिटौरे तक (गिलहरी की दौड़ पीपल तक). बिटौरा – कंडों का ढेर. तुच्छ आदमी की सोच सीमित ही होती है. (परिशिष्ट में देखिये बिटौरे का चित्र)
गिरता पत्ता यूं कहै, सुन तरुवर बनराय, अबका बिछड़ा कब मिलूं, दूर पड़ूँगा जाय. गिरता हुआ पत्ता कहता है कि हे तरुवर! अब दूर जा पडूंगा, पता नहीं बिछुड़ने पर फिर कब मिलना हो. संसार में सब कुछ अनिश्चित है.
गिरधर वहां न बैठिए, जंह कोऊ दे उठाए. जहाँ सम्मान न हो उन लोगों के बीच नहीं बैठना चाहिए.
गिरा सत्तू पितरों को दान. सत्तू गिर गया, तो पितरों को दान कर के पुण्य कमा रहे हैं. ढोंगी धर्मात्मा.
गिरी अटारी मढ़ा बराबर. धनी आदमी जब बर्बाद होता है तो उसकी बर्बादी की कोई सीमा नहीं होती.
गिरी पहाड़ से रूठी भतार से. किसी की नाराजगी किसी और पर उतारना.
गिरे का क्या गिरेगा. जो आदमी पहले ही गिरा हुआ है उसके पास से क्या गिर सकता है. यहाँ गिरे हुए का अर्थ ओछे व्यक्ति से भी हो सकता है और अत्यधिक गरीब से भी.
गिरे को सब चार लातें मारें. व्यक्ति के बुरे दिन आते हैं तो कमजोर लोग भी उसे सताने से नहीं चूकते.
गिरे तो देव के पगों में पड़े. गिरे तो लेकिन देवता के चरणों में गिरे. (ऐसे गिरने से कोई नुकसान नहीं हुआ बल्कि लाभ हो गया). नुकसान के साथ में ही भरपाई भी हो जाना.
गिरे पड़े वक्त का टुकड़ा. बुरे समय में काम आने के लिए बचा कर रखा गया धन या वस्तु.
गीदड़ का जामिन लोमड़ भईले, हाँका पड़े दोनों वन में गइले. गीदड़ की जमानत लोमड़ी ने ली. शिकारियों ने हांका लगवाया तो दोनों जंगल में भाग निकले. निकृष्ट लोग हमेशा एक दूसरे की हिमायत करते हैं.
गीदड़ की तावल से बेर नहीं पकते. तावल – उतावलापन, जल्दबाजी. गीदड़ के चाहने से बेर जल्दी नहीं पक जाते. उतावले लोगों को सीख देने के लिए.
गीदड़ की मौत आती है तो वह शहर की ओर भागता है. गीदड़ अगर शहर में घुसेगा तो मार दिया जायेगा. यदि कोई कमजोर और डरपोक व्यक्ति दुस्साहस दिखाने का प्रयास करता है तो उसका मजाक उड़ाने के लिए.
गीदड़ गिरा गड्ढे में, आज यहीं रहेंगे. अपनी गलती से विपत्ति में पड़े व्यक्ति द्वारा यह दिखावा करना कि उसे कोई परेशानी नहीं है.
गीदड़ ने मारी पालथी, अब मेह बरसेगा तभी उठेगा. अत्यधिक गर्मी होने पर गीदड़ पालथी मार लेता है और पानी बरसने पर ही उठता है. कोई मूर्ख व्यक्ति अपनी बात पर अड़ जाए तो.
गीदड़ पट्टा. जो मूर्ख अपनी धाक जमाने के लिए कुछ भी करते हैं उन पर व्यंग्य. सन्दर्भ कथा – . कुछ लोग अपना महत्व दिखाने के लिए कुछ भी उल्टा सीधा करने को तैयार हो जाते हैं. इस के लिए वे झूठ भी बोल लेते हैं. हम सब जानते है कि कुत्तों के डर से सियार बस्ती में जाने से डरते हैं. एक सियार को संयोग से एक पुराना कागज मिल गया तो उसने अपनी जमात इकट्ठी की. कागज दिखाकर वह सब से बोला, मैंने गाँव का पटटा ले लिया है. अब कोई कुत्ता हम पर नहीं भौंक सकता. चलो गाँव चलते हैं. सबसे आगे मैं चलूँगा.
मूर्ख सियारों की बिरादरी ने पट्टे वाली बात सच मान ली. वे सभी उसके पीछे-पीछे गाँव की ओर चले. पर गाँव में घुसते ही कुत्तों की फ़ौज भौंकते हुए उन पर टूट पड़ी. मुखिया सियार तुरंत पलट कर तेजी से वापस भागने लगा. साथियों ने कहा, भाग क्यों रहे हो? गाँव का पट्टा दिखाओ. तब उस सियार ने और जोर से भागते हुए कहा, ये सभी अनपढ़ हैं, पढ़ना नहीं जानते. फिर किसे पट्टा दिखाऊँ. जान बचाकर भागो, वरना बेमौत मारे जाओगे
गीली सूखी सब जलती हैं. जब जलने का नंबर आता है तो लकड़ी गीली हों या सूखी, सब जलती हैं. अर्थात चीज अच्छी हो या बुरी सब काम आ जाती हैं.
गुजरे लोगन की निंदा अजोग है. मरे हुए लोगों की निंदा नहीं करना चाहिए. इंग्लिश में कहावत है – Speak well of the dead.
गुड़ अँधेरे में खाओ तो मीठा, उजाले में खाओ तो भी मीठा (गुड़ तो अंधेरे में भी मीठा लागे). अर्थ स्पष्ट है.
गुड़ कड़वा लगे तो जानो ज्वर का जोर. बिना बात मुँह कड़वा हो रहा हो तो बुखार की संभावना होती है.
गुड़ का बाप कोल्हू. गुड़ का महत्त्व है लेकिन गन्ने को पेरने वाले कोल्हू का महत्व उससे अधिक है. वस्तु से अधिक महत्व उस के स्रोत का होता है.
गुड़ का मुनाफा चींटी खाए. गुड़ में यदि चींटी लग जाएँ तो वह बेकार हो जाता है. अर्थात शुरू में कुछ मुनाफा होता दिखाई देता है पर चींटी लग जाने पर गुड़ बेचने लायक नहीं रहता इसलिए घाटा हो जाता है.
गुड़ की चोट थैली जाने. थैली में रखे गुड़ को तोड़ने के लिए थैली को उठाकर पत्थर पर पटका जाता है या ऊपर से लोढ़ा मार कर तोड़ा जाता है. गुड़ कितना भी मीठा हो थैली पर भीतर से चोट तो करता ही है. कोई मीठा दिखने वाला व्यक्ति चुपचाप किसी को चोट पहुँचाए तो.
गुड़ खाए गुलगुलों से परहेज करे. जो लोग परहेज नहीं करते लेकिन परहेज का दिखावा बहुत करते हैं उनके लिए.
गुड़ खाने अरु पाग राखने, जे हैं काम सुघर के. पाग – पगड़ी, पाग रखना – इज्जत रखना. बुद्धिमान व्यक्ति अच्छा खाता पीता भी है और अपनी इज्ज़त भी रखता है
गुड़ गुड़ कहने से मुंह मीठा नहीं होता. सिर्फ बातें बनाने से कोई काम नहीं होता.
गुड़ घी मिठाई, तेल फुलेल चिकनाई. गुड़ और घी से मिठाई बनती है व तेल फुलेल से शरीर चिकना होता है.
गुड़ भरी हंसिया न लीलत बने, न छोड़त बने. हंसिया में गुड़ लगा है, गुड़ खाने का लालच है, पर अगर गुड़ खाया जाएगा तो जीभ कट जाएगी. जिस काम को न करते बनता हो और न ही छोड़ते बनता हो.
गुड़ में ही मक्खियाँ लगती हैं (गुड़ पर मक्खी दौड़ी आवे). लाभ की वस्तु पाने के लिए सब दौड़े चले आते हैं.
गुड़ से मीठी क्या ईंटें. इस कहावत का प्रयोग उसी प्रकार किया जाता है जैसे – नेकी और पूछ पूछ.
गुड़ से मीठी जुबान. मीठी बोली का महत्व गुड़ से भी अधिक है.
गुड़ हर दफै मीठा ही मीठा. गुड़ को जितनी बार भी खाओगे मीठा ही लगेगा. जो फायदे की बात है वह हर समय अच्छी ही लगेगी.
गुड़ होता गुलगुले करती, आटा उधार मांग लाती, निगोड़ो तेल ही नाय है. गुड़, आता, तेल कुछ भी पास नहीं है, पर गुलगुले खाने को मन चल रहा है. पास में कुछ भी न हो तब भी मंसूबे बांधना.
गुड़ियों के ब्याह में चियों का नेग. चिया – इमली का बीज. जैसा बचकाना आयोजन, वैसी बचकानी भेंट.
गुण एकांत में बढ़े, व्यवहार संसार की भीड़ में. कला का अभ्यास और अध्ययन हमेशा अकेले में ही हो सकता है जबकि व्यवहार, आपसदारी व दुनियादारी की समझ हमेशा लोगों के बीच में रह कर ही आ सकती है.
गुण मिलें तो गुरु बनाए चित्त मिले तो चेला, मन मिलें तो मीत बनाए वरना रहे अकेला. गुरु उसी को बनाना चाहिए जिसमें बहुत से गुण हों, चेला उसी को बनाना चाहिए जिससे विचार मिलते हों और मित्र उसी को बनाना चाहिए जिससे मन मिलता हो.
गुणवान सब जगह पूजा जाता है. जबकि राजा केवल स्वदेश में पूजा जाता है.
गुणों के अनुसार प्रतिष्ठा होती है. अर्थ स्पष्ट है.
गुदड़ी से बीबी आईं, शेखजी किनारे हो. कोई ओछा व्यक्ति थोड़ा अधिकार पाकर अत्यधिक इतराने लगे तो.
गुदरी तो उजरी भली, बेटी तो सुंदरी भली, बेटा बुलन्ता भला, घोड़ा कुदन्ता भला. बिस्तर साफ सफ़ेद अच्छा होता है, बेटी यदि सुंदर हो तो उसके विवाह आदि में आसानी होती है, बेटा बोलचाल में तेज हो तभी जीवन में सफल हो सकता है और घोड़ा वह अच्छा जो बाधाओं को कूद कर पार कर जाए.
गुन के गाहक सहस नर, बिन गुन लहै न कोय. गुणों की कद्र सभी लोग करते हैं. बिना गुणों के कोई आपको नहीं पूछता. (गिरधर की एक कुंडली से).
गुन सीखे आप से, न माई से न बाप से. व्यक्ति गुण अपने परिश्रम व अनुभव से सीखता है वंश से नहीं.
गुनवंती के नौ मायके, गली गली ससुराल. जिस में गुण होते हैं उस की सब जगह पूछ होती है.
गुनिया तो औगुन तजे, गुन को तजे गंवार. जो गुणवान है वह अपने अवगुणों को त्यागने का प्रयास करता है और जो मूर्ख है वह अपने भीतर छिपे गुणों को ही त्याग देता है.
गुनियां तो गुण कहे, निर्गुनिया देख घिनाय. गुणों को पहचानने वाला व्यक्ति हर चीज़ में गुण देखता है और जिस में कोई गुण नहीं है या जिसे गुणों की पहचान नहीं है वह हर चीज़ को बेकार समझ कर घृणा करता है.
गुनियों की कमी नहीं, पारखियों की कमी है. गुणवान लोग बहुत हैं, उन्हें परखने वाले पारखी चाहिए. रूपान्तर – गुन न हिरानो, गुन गाहक हिराने हैं. हिराना – खोया हुआ.
गुपचुप बुलाई, ऊँट चढ़ी आई. गुप्त रूप से कोई काम करने लिए किसी को चुपचाप बुलाया और वह बेबकूफ दिखावा करता हुआ आया.
गुप्तदान महापुण्य. वैसे तो सभी प्रकार के दान करने से पुन्य मिलता है लेकिन गुप्त दान (बिना अपना नाम प्रदर्शित किए) सबसे बड़ा पुन्य है क्योंकि इस में व्यक्ति को अपने नाम की भूख नहीं होती.
गुबरारी की रानी भई, रानी की गुबरारी. (बुन्देलखंडी कहावत) गुबरारी – गोबर उठाने वाली. भाग्य से ही सब मिलता है. गोबर उठाने वाली रानी बन सकती है और रानी गोबर उठाने वाली.
गुबरैले के लिए तो गोबर ही गुड़. 1. जो जिस परिवेश में रहता है उसको वही अच्छा लगता है. 2. निकृष्ट व्यक्ति निकृष्ट परिवेश में ही खुश रहता है.
गुरु कहै सो करो, करे सो न करो. गुरु के उपदेशों का पालन करो, गुरु जो करते हैं उसकी नकल मत करो. (गुरु में कोई गलत आदत भी हो सकती है).
गुरु की चोट, विद्या की पोट. गुरु की मार से ही विद्या आती है.
गुरु की विद्या गुरु को फली. जहाँ कोई शिष्य गुरु से कोई विद्या सीख कर गुरु को लाभ पहुँचाए. (यदि अत्यधिक हानि पहुँचाए तो भी व्यंग्य में यह कहावत बोलते हैं).
गुरु कुम्हार सिष कुंभ है, गढ़ि-गढ़ि काढ़ै खोट, (अन्तर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट). गुरु कुम्हार के समान है और शिष्य घड़े के समान. कुम्हार अन्दर से हाथ का सहारा देता है और बाहर से चोट कर के घड़े के टेढ़े पन को दूर करता है. इसी प्रकार गुरु शिष्य को सहारा भी देता है और दंड दे कर उसके दोष दूर करता है.
गुरु गुरु विद्या, सिर सिर ज्ञान. हर गुरु से विद्या ग्रहण की जा सकती है और हर व्यक्ति से ज्ञान.
गुरु तो ऐसा चाहिए ज्यों सिकलीगर होए, जनम जनम का मोरचा छिन में डाले खोए. सिकलीगर – छुरी कैंची पर धार रखने वाला. गुरु ऐसा होना चाहिए जैसा छुरी पर धार रखने वाला होता है. कितनी भी पुरानी जंग (अज्ञान) हो क्षण मात्र में उसे साफ़ कर दे.
गुरु पादे नमोनमः, चेला पादे धत् सारे. गुरु के हवा खारिज हुई तो जय नमोनरायन की, अच्छी बात हुई. चेले की हवा खारिज हो गई तो कहा गया धत् साले की, यह क्या बुरा काम किया.
गुरु बिन ज्ञान भेद बिन चोरी, बहुत नहीं तो थोरी थोरी. गुरु के बिना ज्ञान नहीं मिल सकता और भेद के बिना चोरी नहीं हो सकती.
गुरु बिन मिले न ज्ञान, भाग बिन मिले न संपति. गुरु के बिना ज्ञान नहीं मिल सकता और भाग्य के बिना सम्पत्ति नहीं मिल सकती.
गुरु मारे धमधम, विद्या आवे छमछम. गुरु के धमाधम कूटने से ही विद्या आती है.
गुरु शिक्षा माने नहीं, ना काहू से नेह, कलह करे बिन बात ही, मूरख लक्षण एह. मूर्खों के लक्षण हैं – गुरु की शिक्षा न मानना, किसी से प्रेम की भावना न रखना और अकारण ही कलह फैलाना.
गुरु शुक्र की बादरी, रहे शनीचर छाए, कहे घाघ सुन घाघनी, बिन बरसे नहिं जाए. घाघ कवि के अनुसार बृहस्पति से शनिवार तक यदि बादल छाए रहें तो वर्षा अवश्य होती है.
गुरु से चेला सवाया. जब चेला गुरु से अधिक योग्य या दुष्ट हो तो.
गुरु से पहले चेला मार खाए. जहाँ तक मार खाने (पिटने) का सवाल है तो वह भी गुरु से पहले चेला ही खाता है क्योंकि वह ज्यादा आसानी से उपलब्ध होता है और गुरु को बचाने की कोशिश भी करता है.
गुरु से पहले चेला माल खाए. गुरु से पहले चेला माल खाता है क्योंकि उस के जरिये ही माल गुरु तक पहुँचता है. रिश्वतखोरों के दलालों के विषय में भी ऐसा ही कहा जा सकता है.
गुरु, बैद अरु जोतसी, देव, मंत्रि औ राज, इन्हें भेंट बिन जो मिले, होए न पूरन काज. गुरु, वैद्य, ज्योतिषी, देवता, मंत्री और राजा, इनसे जो भी बिना भेंट लिए मिलता है उसका कार्य पूर्ण नहीं हो सकता.
गुरू कीजै जान के, पानी पीजै छान के. किसी व्यक्ति के विषय में पूरी छानबीन कर के ही उसे अपना गुरु बनाना चाहिए, और पानी हमेशा छान कर पीना चाहिए. रूपांतर – शादी कीजे जान के, पानी पीजे छान के.
गुरू गुड़ रह गए चेला चीनी हो गया (गुरू से चेला सवाओ). चेला गुरु से अधिक काबिल हो जाए तो.
गुरू से कपट मित्र से चोरी, या हो निर्धन या हो कोढ़ी. गुरु से कपट और मित्र से चोरी करने वाला या तो निर्धन हो जाएगा या कोढ़ी. यहाँ कोढ़ से आशय असाध्य बीमारी से है.
गुलगुला भावे, पर गुड़ घी आटा कहाँ से आवे. गुलगुले सब को अच्छे लगते है पर उनको बनाने के लिए सामान हर किसी को उपलब्ध नहीं है. अपनी हैसियत देख कर ही मन ललचाना चाहिए.
गुलाब में कांटे या कांटो में गुलाब. अपना अपना नज़रिया है, हाय गुलाब में कांटे हैं यह कह कर दुखी हो या काँटों जैसी विपरीत परिस्थितियों में भी गुलाब खिलते हैं, यह सोच कर आशान्वित हो.
गुस्सा बहुत, जोर थोड़ा, मार खाने की निशानी. किसी आदमी में ताकत तो है नहीं पर गुस्सा बहुत है तो मार तो खाएगा ही.
गू का कीड़ा गू में ही खुश रहता है. नीच आदमी अपने निकृष्ट परिवेश में ही खुश रहता है.
गू का पूत नौसादर. लोगों की धारणा है कि नौसादर मल से बनाया जाता है. किसी निम्न कुल में कोई सपूत पैदा हुआ हो तो यह कहावत कही जाती है.
गू का भाई पाद और पाद का भाई गू. दो निकृष्ट लोगों के लिए हिकारत भरा कथन. असभ्य भाषा है लेकिन कहावतों में ऐसी भाषा अनेक बार प्रयोग की जाती है. रूपान्तर – गू का भाई मूत.
गू के कीड़े को गुलाब जल में डालो तो मर जाए. निकृष्ट मनोवृत्ति वाले व्यक्ति को अच्छे परिवेश में रखो तो वह बहुत परेशान हो जाता है.
गू भी कहे कि गोबर में बदबू. अपने अवगुण न देख कर दूसरों में कमियाँ निकालना.
गू में कौड़ी गिरे तो दांतों से उठा ले. किसी महा कंजूस के लिए. आम तौर पर ऐसा कथन वे दिलजले लोग कहते हैं जो कंजूस के पास कुछ मांगने गये हों और उस ने देने से मना कर दिया हो.
गू में न ढेला डाले, न छींटें पड़ें. किसी नीच से बहस करना ऐसा ही है जैसा गू में ढेला डालना. गू में ढेला डालोगे तो छींटों से तुम्हारे ही कपड़े गंदे होंगे और नीच से बहस करोगे तो तुम्हारी ही बेइज्जती होगी.
गूँगे वाला गुड़ (गूँगे वाला सपना), (गूँगा गुड़ खाये और मन-ही-मन मुस्काये). जो व्यक्ति अपनी प्रसन्नता को व्यक्त न कर पा रहा हो.
गूंगा, अंधा, चुगदढ़िया और काना, कहें कबीर सुनो भई साधो, इनको नहिं पतियाना. गूंगा, अंधा, छोटी दाढ़ी वाला और काना, इनका विश्वास नहीं करना चाहिए. वैसे यह निरर्थक कथन कबीरदास का कहा हुआ नहीं हो सकता.
गूंगी जोरू भली, गूंगा हुक्का न भला. जोरू यदि गूंगी हो तो कुछ लोग बहुत खुश होते हैं, क्योंकि वह व्यर्थ में दिमाग नहीं खाती. लेकिन हुक्का जब तक गुड़गुड़ न करे उसे पीने में मज़ा नहीं आता.
गूंगे का कोई दुश्मन नहीं. क्योंकि उस को कुछ भी कह लो वह जबाब नहीं देता.
गूंगे की सैन गूंगा जाने. सैन – इशारों की भाषा. गूंगे की भाषा गूंगा ही समझ सकता है.
गूंगे के बैन, माँ समझे या भैन (बहन). गूंगे की बात उसकी माँ और बहन ही समझ सकती हैं.
गूंगे के सैन को और न समझे कोय, या समझे माई या समझे जोय. गूंगे के इशारों को माँ समझती है या पत्नी.
गूंगे ने सपना देखा, मन ही मन पछताए. गूंगे ने सपना देखा, अब मन में परेशान हो रहा है कि सब को कैसे बताए. अपनी बात किसी को न समझा पाने का दर्द.
गूजर का दहेज़ क्या, बकरी या भेड़. गूजर दहेज़ में क्या देगा, भेड़ बकरी ही तो देगा. (उसका वही धन है).
गूजर किसके असामी, कलाल किसके मीत. गूजर बहुत अच्छे ग्राहक नहीं होते और शराब बेचने वाले किसी के दोस्त नहीं होते.
गूजर तके ऊजर. गूजर ऊज़ड़ स्थान में रहना पसंद करता है, जहाँ उसके ढोर बिना रोक-टोक चर सकें.
गूजर से ऊजड़ भली. गूजर के पड़ोस से उजाड़ अच्छा.
गूदड़ में गिंदौड़ा. गिंदौड़ा एक बढ़िया मिठाई का नाम है. कोई बहुत गुणवान व्यक्ति अत्यंत साधारण परिस्थितियों में रह रहा हो तो यह कहावत कहते हैं. (गुदड़ी का लाल).
गूदड़ में लाल नहीं छिपता. प्रतिभाशाली व्यक्ति गरीबी में भी अपनी प्रतिभा की पहचान करा देता है.
गृहस्थ का एक हाथ दुख में ओर एक हाथ सुख में. गृहस्थी में सुख और दुख दोनों बराबरी से लगे रहते हैं.
गृहस्थ के पास कौड़ी न हो तो दो कौड़ी का, साधु के पास कौड़ी हो तो दो कौड़ी का. गृहस्थ के पास पैसा न हो तो उसकी कोई कद्र नहीं है और साधु के पास पैसा हो तो वह साधु ही नहीं कहलाएगा.
गेंद खेल की और धन दोनों एक सुभाय, कर आवत छिन एक में छिन में कर से जाए. खेलने वाली गेंद और धन, इन दोनों का स्वभाव एक सा होता है. ये क्षण में आप के हाथ में आते हैं और क्षण में ही निकल जाते हैं.
गेंवड़े आई बरात, बहू को लगी हगास. गेंवड़ा – गाँव का बाहर का हिस्सा. गाँव के बाहर बरात आ गई है और बहू को शौच जाना है (बात उस समय की है जब शौच के लिए गाँव के बाहर जाना होता था). जरूरी काम के समय अगर कोई आदमी विकट समस्या ले कर बैठ जाए तो. हगास – शौच जाने की इच्छा.
गेंवड़े आई बरात, बौंडार कातने बैठे. बौंडार – कन्या के दहेज में दिये जाने वाले कपड़े. ऐन मौके पर काम करना.
गेंवड़े खेती हम करी, कर धोबन से हेत, अपनी करी का से कहें, चरो गधन ने खेत. (बुन्देलखंडी कहावत) गाँव के पास के हिस्से को गेंवड़ा कहते हैं. वहाँ के खेत को गाँव के आवारा पशु चर जाते हैं. ऊपर से धोबन से प्रेम कर लिया तो उस के गधे ने भी खेत चर लिया. अपनी गलतियों से कोई नुकसान उठाए तो.
गेंवड़े खेती, छप्पर सांप, भाई भयकरन, बादी बाप, ये अच्छे नहीं होते. गाँव से लगा खेत, छप्पर में सांप, डराने वाला भाई और मुकदमेबाज बाप ये अच्छे नहीं होते.
गेहूँ के साथ घुन भी पीसा जाता है. चक्की में गेहूं पीसा जाता है तो अगर कोई घुन भी गेहुओं के बीच हो तो पिस जाता है. जहां दोषी लोगों को सजा देने में कोई निर्दोष भी लपेटे में आ जाए तो यह कहावत कही जाती है.
गेहूँ खेत में, लड़का पेट में, छटी का दिन तय कर दओ. गेहूँ खेत में खड़े हैं, लड़का पैदा नहीं हुआ है, फिर भी छठी का दिन निश्चत कर दिया. किसी कार्य के प्रति मूर्खतापूर्ण उत्साह.
गेहूं के साथ बथुए को भी पानी मिलता है. जब गेहूं की खेती की जाती है तो उसके बीच में जगह जगह पर बथुए के पौधे अपने आप निकल आते हैं. जब गेहूं जैसे महत्वपूर्ण पौधे को पानी दिया जाता है तो बथुए जैसे महत्व हीन पौधे को भी पानी मिल जाता है. आप अपने दोस्त के साथ उसकी ससुराल जाएं और वहां दामाद साहब के साथ आपकी भी खातिरदारी हो तो मजाक में यह कहावत कही जा सकती है.
गैब का धन ऐब में जाए ऐब का धन गैब में जाए. गैब – अदृश्य शक्ति. बिना मेहनत के मिला धन गलत आदतों में खर्च होता है और गलत तरीकों से कमाया धन ईश्वर छीन लेता है.
गैया मोरी मैया, गोपाल मोरा भैया. सनातन धर्मावलम्बी गाय और उसे पालने वालों का बहुत आदर करते हैं.
गैर का सिर कद्दू बराबर. दूसरे की जान को कोई जान नहीं समझता.
गों निकली, आँख बदली. गों माने स्वार्थ. स्वार्थ सिद्ध हो जाने पर लोगों की आँख बदल जाती हैं.
गोंद पंजीरी और ही खाएं, जच्चा रानी पड़ी कराहें. जच्चा रानी – प्रसूता स्त्री. जिसको प्रसव हुआ है वह तो पड़ी कराह रही है और उसके लिए बनी हरीरा पंजीरी और लोग उड़ा रहे हैं.
गोकुल गाँव को पैड़ों न्यारो. अनोखी रीति. न्यारा – सब से अलग.
गोड़ लागे के बेटी, लात मारे के बेटा. लड़की पराया धन है इसलिए उसके पैर छूते हैं. लड़का पास रहता है इसलिए उसे अनुशासन में रखने के लिए लात भी मारनी पड़ती है.
गोत्र वाली गाली तो कुत्ते को भी बुरी लगे. जाति सूचक गाली सभी को बुरी लगती है (कुत्ते को भी).
गोद का खिलाया गोद में नहीं रहता. छोटा बच्चा हमेशा छोटा नहीं रहता, कभी न कभी बड़ा होता ही है. बड़ा होने के बाद उसका व्यवहार भी बदल जाता है.
गोद का छोड़ के पेट की आशा (गोद वाले की बात न पूछे, पेट वाले को पुचकारे). गोद के बच्चे का ख्याल न कर के गर्भ के शिशु की चिंता करना. वर्तमान का तिरस्कार कर के भविष्य की चिंता करना.
गोद में बैठ के आँख में उँगली (गोद में बैठ के दाढ़ी नोचे). अपने आश्रय देने वाले के साथ विश्वासघात करना.
गोद मोल का छोरा, निहाल किसको करे. गोद लिया हुआ या मोल लिया हुआ बेटा किसी को सुख नहीं दे सकता. वह बड़ा होता है तो लोग उसे बता देते हैं कि वह गोद लिया हुआ है इसलिए उस के मन में प्रेम नहीं आ सकता.
गोद लड़ायो छोकरो, चढ़ा कचहरी जाट, पीहर लड़ाई पद्मिनी, तीनहु बारहबाट. गोद लिया बेटा, कचहरी के चक्कर लगाने वाला जाट और मैके से लड़ कर आई स्त्री इन तीनों का भविष्य अच्छा नहीं होता.
गोनू झा की बिल्ली. चालाकी से काम निकालने वाले के लिए. सन्दर्भ कथा – गोनू झा एक राजा के दरबारी थे. राजा ने एक दिन सभी दरबारियों को एक-एक बिल्ली पालने को दी और साथ ही एक-एक ब्याई हुई भैंस भी. राजा ने दरबारियों से एक निश्चित तिथि के बाद अपनी-अपनी बिल्ली लाने को कहा और यह घोषणा की, कि जिसकी बिल्ली सबसे अधिक मोटी ताजी होगी, उसको पुरस्कार दिया जायगा. सभी दरबारी अपनी-अपनी बिल्ली लेकर घर गये और उन्हें भैंस का दूध पिला कर पालने लगे.
गोनू झा ने पहले ही दिन खूब गरम दूध में बिल्ली का मुँह डुबो दिया. बिल्ली का मुँह जल गया. दूसरे दिन से वह दूध देखते ही भाग खड़ी होने लगी. गोनू झा स्वयं भैस का दूध छककर पीने लगे. एक निश्चित तिथि पर सब दरबारी अपनी-अपनी बिल्ली लेकर पुरस्कार पाने की आशा में दरबार पहुंचे. सभी की बिल्लियाँ एक-से-एक मोटी ताजी हो गई थी. केवल गोनू झा की दुबली थी. राजा ने गोनू झा से इसका कारण पूछा. गोनू झा ने बताया कि उनकी बिल्ली दूध पीती ही नहीं. राजा ने इसकी परीक्षा ली. बिल्ली के सामने दूध रखा गया. बिल्ली ने दूध नहीं पिया. राजा गोनू झा की चालाकी समझ गये. उन्होंने पुरस्कार गोनू झा को ही दिया
गोनू झा की लाठी. गोनू झा एक लकड़ी को छील कर उससे लाठी बना रहे थे, एक तरफ छीलते तो दूसरी ओर की मोटी मालूम होती, दूसरी तरफ छीलते तो पहली ओर की मोटी मालूम होती. इस तरह छीलते छीलते लकड़ी समाप्त हो गई. अपनी मूर्खता और उतावलेपन से अपनी हानि करने वालों के लिए.
गोबर का पुतला भी पहन ओढ़ कर अच्छा लगता है. अच्छे कपड़ों से व्यक्तित्व में निखार आता है.
गोबर गणेश. मूर्ख व्यक्ति. ऐसा व्यक्ति जिस के दिमाग में गोबर भरा हो.
गोबर गिरत तो कुछ लेई के उठत. जब कोई निकृष्ट आदमी विवश होकर किसी के सामने झुकता है, अथवा किसी को कोई सुविधा प्रदान करता है, तो उससे भी वह अपना कोई न कोई मतलब निकाल ही लेता है.
गोबर में कीड़ा पड़ें, पपीहा मीठे बोल सुनाय, अफीम चमड़ा गीले होंय, वर्षा हो संशय न कोय. अर्थ स्पष्ट है.
गोबर में तो गुबरैले ही पैदा होंगे. खराब परिवेश में तो नीच लोग ही पनपेंगे.
गोबर, मैला, नीम की खली, या से खेती दूनी फली. जब कृत्रिम खाद का रिवाज़ नहीं था तो गोबर, मल और नीम की खली की खाद ही लगाई जाती थी. कहावत में कहा गया है कि इन से खेती दोगुनी हो जाती है.
गोबर, राखी, पाती सड़े, फिर खेती में दाना पड़े. गोबर, राख और पत्तियों को सड़ा कर उनकी खाद बना कर खेत में डालो, उस के बाद बीज बोओ. (घाघ)
गोर चमारन गरबे आन्हर. गरबे – गर्व से, आन्हर – अंधी. चर्मकार लोगों को धूप काम करना पड़ता है इसलिए अधिकतर का रंग काला होता है. उन में यदि कोई गोरा हो तो उसे अपने गोरेपन पर बड़ा घमंड होता है.
गोरख जगायो जोग, भगति भगायो लोग. गोरखनाथ ने योग क्या जगाया, लोगों को भक्ति से
विमुख ही कर दिया.
गोरस बेचन हरिमिलन, एक पंथ दो काज. गोरस–दूध, दही, माखन. एक काम करने से दो प्रयोजन सिद्ध हों तो.
गोरी तेरे संग में गई उमरिया बीत, अब चाली संग छोड़ के ये न प्रीत की रीत. मरणासन्न व्यक्ति अपनी आत्मा से ऐसे कहता है. कोई बूढ़ा व्यक्ति अपनी मरणासन्न पत्नी से भी ऐसे कह सकता है.
गोरे चमड़े पे न जा, वह है छछूंदर से बदतर. वेश्याओं से बचने के लिए सीख.
गोला और मूंज पराये बल ऐंठे. गोला – दास. दास अपने स्वामी के बल पर अकड़ता है और मूंज भी पानी का बल पाकर ही ऐंठती है.
गोली को घाव भर जाए, पर बोली को न भरे. कड़वी बोली और चुभने वाली बात कितना कष्ट पहुंचा सकती है इसको समझाने के लिए यह उदाहरण दिया गया है. रूपान्तर – गोली से बचे, पर बोली से न बचे.
गोह के जाए, सारे खुरदरे. गोह – छिपकली की जाति का बड़ा जानवर (बिस्खोपड़ी), जाए – पैदा किए हुए. गोह के सब बच्चे कुरूप ही होते हैं. कहावत का अर्थ है कि नीच लोगों की सभी संतानें नीच ही होती हैं.
गोहरा के पाप से पीपला जले. गोह को मारने के लिए लोग पीपल को जला देते हैं. दुष्ट व्यक्ति की संगत अनजाने में ही आप के लिए बहुत खतरनाक हो सकती है.
गौन के माल में गधे का क्या साझा (लदे माल में गधे का क्या साझा). जानवरों की पीठ पर जिस बोरे में भर कर माल लादा जाता है उसे गौन कहते हैं. जिस माल को गधा ढोता है उसमें गधे का कोई हिस्सा नहीं होता. मेहनत करने वाले को व्यापार के लाभ में हिस्सा नहीं मिलता. (गौन का चित्र परिशिष्ट में देखिए)
गौमुखा नाहर. (राजस्थानी कहावत) ऊपर से गाय की तरह सीधा, अंदर से शेर जैसा खतरनाक. नाहर – सिंह.
ग्रह बिना घात नहीं, भेद बिना चोरी नहीं. बुरे ग्रहों के प्रभाव से ही मृत्यु या कोई बड़ा नुकसान होता है और भेदिये द्वारा भेद देने से ही चोरी होती है.
ग्रहण का दान, गंगा का स्नान. ग्रहण के समय दान देने से विशेष पुण्य मिलता है.
ग्रहण तो लगा ही नहीं, डोम घूमने लगे. पुरानी मान्यता है कि ग्रहण पड़ता हो तो सफाई सेवकों और डोमों इत्यादि को दान देना चाहिए. इस प्रकार के लोग ग्रहण के समय बाहर निकल कर घूमने लगते हैं और आवाज लगाते हैं – दान करो, दान करो. बिना उपयुक्त अवसर के लाभ लेने का प्रयास करने वाले लोगों के लिए.
ग्रहण में डोमों की मौज. सामान्य जनता के लिए ग्रहण को अनिष्टकारी माना गया है, लेकिन डोमों को ग्रहण में खूब दान मिलता है.
ग्रहणे कासी, मकरे प्रयाग, चैते रामनवमी, दशहरा धोपाप. मकरे – मकर संक्रांति पर, धौपाप- ज़िला सुलतानपुर में गोमती के तट पर स्थित. (यहाँ भगवान् राम ने रावण का वध करने के बाद ब्रह्म हत्या का पाप धोने के लिए स्नान किया था. यहाँ जेठ शुक्ल दशमी को लोग स्नान करते हैं). कहावत में कहा गया है कि सूर्य या चन्द्र ग्रहण पर काशी में, मकर संक्रांति पर प्रयाग में और जेठ शुक्ल दशमी पर धौपाप में स्नान करना चाहिए.
ग्राहक और मौत का भरोसा नहीं होता. यह तो हर कोई जानता है की मौत का कोई भरोसा नहीं कब आ जाए. बुद्धिमान लोग व्यापार में लगे अपने से छोटे लोगों को यह सिखाते हैं कि दुकान छोड़कर गायब नहीं होना चाहिए. ग्राहक का कोई भरोसा नहीं कब आ जाए.
ग्राहक कभी गलत नहीं होता. व्यापार का नियम है कि ग्राहक की हाँ में हाँ ही मिलाना चाहिए. इंग्लिश में कहावत है – The customer is always right.
ग्वाले के घर दूध हो तो दूधन नहीं नहाए. अगर किसी के पास कोई वस्तु अधिक मात्रा में उपलब्ध हो तो वह उसका दुरूपयोग थोड़े ही करता है.
घ
घट तोला, मिठ बोला. जो कम तौलते हैं वे मीठा बोलते हैं.
घटिया चावल दाल खेसारी, मगध देश मत जइयो मुरारी. मगध वासियों के बुरे खानपान पर व्यंग्य.
घड़ा सोने का हो तो भी पेंदी पीतल की रहेगी. किसी भी समाज, संगठन या व्यवसाय में बड़े बड़े लोग कितने भी हों उस का आधार वही लोग होते हैं जो चमक धमक में न पड़ के मजबूती से काम करते हैं.
घड़ी घड़ी की मांगो खैर. कोई नहीं जानता कब क्या हो जाए, इसलिए ईश्वर को हमेशा याद करते रहना चाहिए और यह प्रार्थना करनी चाहिए कि सब कुशल रहे.
घड़ी घड़ी को रंग न्यारो. किसी का समय सदा एक सा नहीं रहता. न्यारा – अलग.
घड़ी न बीते बाजी लौटे. क्षण भर में कोई व्यक्ति या दल जीती हुई बाजी हार सकता है, इसलिए जीतने वाले को निरंतर सावधानी रखनी चाहिए.
घड़ी भर का पता नहीं, जनम भर के सौदे. मनुष्य के जीवन का एक क्षण का भी भरोसा नहीं है लेकिन वह लम्बे समय की योजनाएं बनाता है.
घड़ी भर की बेशर्मी, सारे दिन का आराम. कोई आप से किसी काम के लिए कहे और उस समय थोड़ी बेशर्मी दिखा कर मना कर दें तो फिर बड़ा आराम रहता है. (हांलाकि उस समय बुरा लगता है).
घड़ी भर में घर जले, अढ़ाई घड़ी भद्रा. घर जला जा रहा है और भद्रा लगी होने के कारण बुझा नहीं सकते. मुसीबत सर पे हो और अंधविश्वास के कारण सहायता मिलने में देर हो तो.
घड़ी में औलिया, घड़ी में भूत. औलिया – महात्मा, भूत भगाने वाला. ऐसा व्यक्ति जो कभी भूत जैसा व्यवहार करे और कभी भूत भगाने वाले का सा. बिलकुल अनिश्चित मूड वाला व्यक्ति.
घड़ी में तोला घड़ी में माशा. अर्थ ऊपर वाली कहावत की भांति. इस की पूरी कहावत इस प्रकार है – मिजाज क्या है तमाशा, घड़ी में तोला घड़ी में माशा. तोला और माशा जानने के लिए परिशिष्ट देखें.
घड़े को अरंड ही वज्र. अरंड की लकड़ी काफी कमजोर होती है परन्तु घड़े को फोड़ सकती है. गरीब आदमी को छोटी मोटी परेशानी भी बर्बाद कर सकती है.
घड़े में से घड़ा नहीं भरा जाता. घर में एक घड़ा भरा हुआ रखा हो तो दूसरा घड़ा बाहर से भर कर लाना चाहिए. एक घड़े से पानी लौट कर दूसरा भरा तो क्या फायदा होगा.
घड़े सरीखी ठीकरी, माँ सरीखी डीकरी. फूटे हुए घड़े का टुकड़ा भी घड़े के समान रंग रूप वाला होता है, इसी प्रकार बेटी भी माँ जैसी होती है.
घन की चोट निहाई जाने. घन – लोहे का हथौड़ा, निहाई – जिस पर रख कर लोहे को पीटा जाता है. जिस पर चोट पडती है वही उस चोट का दर्द जान सकता है.
घना कुनबा घना दुखी, घना कुनबा घना सुखी. बड़े परिवार की परेशानियाँ भी अधिक है और सुख भी बहुत हैं.
घनी सीधी छिपकली चुन–चुन कीड़े खाय. ऊपर से सीधा-सादा दिखलाई पड़ने वाला भी कभी-कभी भीतर से बड़ा घातक होता है.
घमंडी का सर नीचा. अहंकारी व्यक्ति को अंततः नीचा देखना पड़ता है.
घर आए कुत्ते का भी आदर होता है. अपने घर जो भी आए उसका अनादर नहीं करना चाहिए.
घर आए नाग न पूजिए, बाँबी पूजन जाए. घर पे जो नाग आया है उस की पूजा न करके दूर सांप की बांबी पूजने जा रहे हैं. अपने आस पास की उपयोगी वस्तुओं की उपेक्षा कर के दूर की चीजों को अधिक महत्व देना.
घर आएं तो माँ मारे, बाहर जाएं तो कुत्ता काटे. जब दोनों ओर संकट हो तो.
घर आया बैरी भी पाहुना (घर आए बैरी को भी न मारिए). अपने घर कोई अतिथि आया है तो वह वैरी हो तब भी उसका यथोचित सत्कार करना चाहिए.
घर कपड़ा और रोटी, और सब बात खोटी. मनुष्य की तीन मूलभूत आवश्यकताएँ हैं, रोटी कपड़ा और मकान.
घर कर घर कर, सत्तर बला सर पर. गृहस्थी बसाने का मतलब है अनेकों मुसीबतें सर पे लेना.
घर कहे मोहे बना देख, ब्याह कहे मोहे कर देख. घर को बनाने या मरम्मत करने और शादी विवाह आदि समारोहों में सदैव अंदाज से अधिक खर्च होता है.
घर का आदमी घर से बाहर भला. आदमी हमेशा घर से बाहर ही अच्छा रहता है. निठल्ला या लड़ाका हो तब तो घर से बाहर अच्छा है ही, कमाऊ हो तब भी घर से बाहर रहेगा तभी तो कमाएगा.
घर का कुआँ है तो क्या डूब कर मरोगे. घर में कोई सुविधा उपलब्ध है तो उसका मूर्खतापूर्ण दुरूपयोग मत करो.
घर का कोल्हू, तेली रूखी क्यों खाए. घर में तेल की भरमार हो तो कोई रूखा क्यों खाएगा.
घर का गांजा और घर की चिलम (घर की दारू, घरवाले ही पीने वाले). जब घर वाले ही अपनी संतान को गलत काम सिखा कर बर्बाद करें.
घर का गुड़ घर ही में फोड़ लो. जो बंटवारा करना है चुपचाप घर में ही कर लो, चार जनों के बीच तमाशा न बनाओ. घर का झगड़ा घर में ही निबटा लो.
घर का घर में ही सुलट लिया. चतुराई द्वारा बड़ी से बड़ी समस्या का हल हो सकता है. सन्दर्भ कथा – एक सियार और सियारी तालाब पर पानी पीने के लिये गये तो उन्होंने तालाव के किनारे एक शेर को बैठे देखा. दोनों बहुत प्यासे थे और प्यास के कारण उनकी जान निकली जा रही थी, इसलिये दोनों ने मिलकर एक युक्ति सोची. सियार को अपने पीछे लेकर सियारी ने शेर के पास जाकर स्त्रियोचित कोमलवाणी में कहा कि जेठजी आप हमारा न्याय कर दीजिये. शेर के पूछने पर सियारी ने अपनी बात को स्पष्ट करते हुये कहा कि हम पति-पत्नी अपना-अपना हिस्सा अलग कर रहे हैं. हमारे तीन बच्चे है, जिनमें से दो को सियार लेना चाहता है. लेकिन मैंने बच्चों को जन्म दिया है, उन्हें कष्ट उठा कर पाला-पोसा है, अतएव मुझे दो बच्चे मिलने चाहिए और सियार को एक. शेर ने सोचा कि दो तो ये हैं और तीन इनके बच्चे हैं, अतः पांचों को मिलाकर अच्छा नाश्ता हो जायेगा. इसलिये उसने सियारी से कि कहा तू जाकर तीनों बच्चों को यहाँ ले आ, मैं समुचित न्याय कर दूंगा. यह सुनकर सियारी वहाँ से चली और चलते समय पेट भरकर पानी भी पीती गई.
जब कुछ समय बीत गया और सियारी बच्चों को लेकर नहीं लौटी तो सियार ने नम्रता पूर्वक शेर से कहा कि हुजूर लगता है सियारी की नीयत में फर्क है. वह सोचती है कि जंगल के राजाजी कहीं सियार को दो बच्चे न दिलवा दें और इसीलिये वह बच्चों को लेकर यहाँ नहीं आई है. लेकिन मुझे आपसे न्याय की पूरी आशा है, अतः मैं जाकर अभी उन चारों को आपके पास ले आता हूँ. शेर ने आज्ञा दे दी और सियार भी पानी पीकर चलता बना. कुछ देर तक तो शेर प्रतीक्षा करता रहा. लेकिन जब भूख अधिक सताने लगी तो वह स्वयं ही चलकर सियार की मांद पर आया और दोनों को पुकार कर कहा कि तुम अपने तीनों बच्चों को लेकर शीघ्र या जाओ, मैं अभी तुम्हारा न्याय कर देता हूँ. शेर की बात सुनकर दोनों मन ही मन हँसे और सियारी ने मांद के अन्दर से ही जवाब दिया, जेठजी, हम ने तो अपने घर में ही सुलटा लिया है. सियार दो बच्चे मांगता है तो इसे दो दे दूँगी और मैं एक पर ही सन्तोष कर लूंगी. सियारी की बात सुनकर शेर अपना सा मुँह लेकर चला गया.
घर का जोगी जोगिड़ा, आन गाँव का सिद्ध. अपने घर या आस पास की उपयोगी वस्तुओं की उपेक्षा कर के दूर की चीजों को अधिक महत्व देना. घर में कोई साधु है उस का उपहास कर रहे हैं और दूसरे गाँव के महात्मा को सिद्ध बता रहे है. इंग्लिश में कहावत है – The prophet is not honoured at home.
घर का द्वार, खसम के हाथ. घर को गृह स्वामी ही चलाता है.
घर का परोसनियाँ और अँधेरी रात (मामा का ब्याह और माँ परोसन वारी). खाना परोसने वाला घर का आदमी है और अंधेरी रात है अत: कोई देख भी नहीं सकता कि वह किस को कितना परोस रहा है. मौज ही मौज.
घर का बच्चा, काना भी अच्छा. अपना बच्चा कुरूप हो तब भी प्यारा लगता है.
घर का बामन बैल बराबर. 1. घर में कोई विद्वान व्यक्ति हो तो उसकी कद्र नहीं होती. 2. सीधे व्यक्ति से घर में बहुत काम लिया जाता है.
घर का बालक चोरी करे, कहो राम घर कैसे चले. जब घर के लोग ही हानि पहुंचायें तो घर की रक्षा कैसे हो.
घर का भेद और दिल का दर्द हरेक के सामने न कहे. अर्थ स्पष्ट है.
घर का भेदी लंका ढाए. जब कोई व्यक्ति घर के भेद बाहर वालों को बताकर घर को नुकसान पहुंचाता है तब यह कहावत कही जाती है. सन्दर्भ कथा – भगवान राम की लंका पर विजय में विभीषण का बहुत योगदान था. लक्ष्मण को शक्ति लगने पर विभीषण ने ही सुषेण वैद्य को बुलाने की सलाह दी थी. मेघनाद का वध भी उन की बताई युक्ति से ही हुआ था और रावण की नाभि में अमृत की बात भी उन्होंने ही बताई थी. इन सब जान कारियों के बिना रावण पर विजय पाना असंभव था. भारतीय सेनाएँ भी कई बार घर के भेदियों के कारण ही मुगलों और अंग्रेजों से हारी थीं. रूपान्तर-घर का भेदी जो मिले, जरामूंर से लेय. जरामूर-जड़-मूल.
घर का लड़का चाकी चाटे, ओझा जी को सीधा. घर के लोग भूखों मर रहे हैं और झाड़ फूंक करने वालों पर धन बर्बाद किया जा रहा है.
घर का लड़का भूखा मरे, पड़ोसियों को खीर चूरमा. घर के लोगो की बेकदरी कर के बाहर के लोगों को खुश करना.
घर का ही देव, घर के ही पुजारी. जैसे आजकल के कुछ परिवार वादी राजनैतिक दल.
घर की आग ना देखे पहाड़ की आग देखे (घर जलता नजर न आए, पहाड़ की आग देखन जाए). अपना घर जल रहा है उसे नहीं देख रहे हैं, और कहीं आग लगी है वहाँ तमाशा देखने जा रहे हैं.
घर की कुरइया से ही आँख फूटत. कुरइया – छप्पर में लगने वाली लकड़ी जो प्राय: थोड़ी बाहर निकली रहती है और उसके आँख में लगने का डर रहता है. घर के आदमी से ही अधिक हानि पहुँचने का खतरा होता है.
घर की खांड किरकरी लागे, चोरी को गुड़ मीठा. जो चीज़ सहज ही उपलब्ध है वह अच्छी नहीं लगती. जो मुश्किल से मिले (चाहे चोरी करना पड़े) वह अच्छी लगती है. इंग्लिश में कहावत है – Stolen fruits are the sweetest.
घर की खाये, सदा सुख पाये. जो व्यक्ति अपने उपलब्ध संसाधनों में काम चलाता है वह सदा सुखी रहता है.
घर की गाय और घर के ही सांड. सब कुछ घर में ही उपलब्ध है, किसी पर आश्रित नहीं हैं.
घर की छिनार और गाँव का चोर, जल्दी नहीं पकड़ में आए. अपने घर में ही कोई व्यक्ति चरित्रहीन हो या अपने पड़ोस का व्यक्ति चोर हो तो उसे पकड़ना बहुत कठिन होता है.
घर की जोरू की चौकसी कहाँ तक. अगर घर का ही कोई व्यक्ति चोरी करने लग जाए तो चोरी से कैसे बचा जा सकता है.
घर की दाही वन गयी, वन में लागी आग, (वन बेचारा क्या करे जो कर्में लागी आग). अभागा और प्रताड़ित व्यक्ति कहीं भी जाए दुर्भाग्य उस का साथ नहीं छोड़ता. दाही – जली.
घर की धिया घुरहगनी. धिया बेटी, घुरहगनी – घूरे पर शौच करने वाली. घर का बालक बड़ा हो जाए तब भी उस का घर में कोई सम्मान नहीं होता. उस को लोग वही घूरे पर शौच करने वाला बालक ही मानते हैं.
घर की धुनियानी, धुने आग पानी. धुनिया उसे कहते हैं जो रुई धुनता है. घर में कोई रुई धुनने वाली होगी तो रुई न मिलने पर और चीजों को धुनने लगेगी.
घर की फूट केका भल भयहु, बाली रावन दोनूं गयहु. केका – किसका, भल – भला. घर की फूट से किसका भला हुआ है. रावण और बाली दोनों ही अपने भाइयों से बैर करने के कारण ही मारे गए.
घर की फूट घर को खाय. घर के लोगों में मतभेद और झगड़ा घर को बर्बाद कर देता है.
घर की फूट जगत की लूट. जिस घर के लोगों में आपसी झगड़े होते हैं उसे दुनिया के लोग लूट लेते हैं.
घर की फूट, लोक की हांसी (घर की हान लोक की हांसी). घर के लोग आपस में लड़ते हैं तो दुनिया तमाशा देखती है.
घर की बस मूंछें ही मूंछें हैं. जो लोग घर में काम कुछ नहीं करते केवल रौब दिखाते हैं.
घर की बिल्ली और घर ही में शिकार. अपने परिवार के लोगों को धोखा देना.
घर की बीबी हांडनी, घर कुत्तों जोग. घर की स्त्री बहुत बाहर घूमने वाली हो तो घर बरबाद हो जाता है.
घर की मुर्गी दाल बराबर. जो चीज़ घर में मौजूद हो उस की कीमत लोग नहीं समझते. कुछ लोग इस के आगे भी बोलते हैं – घर की मुर्गी दाल बराबर, घर की दाल गोबर बराबर.
घर के घर में न समायें, टटिंगर पाहुने आये. टटींगर – लम्बा चौड़ा आदमी. जब किसी के घर में इतने आदमी हों कि उनका निर्वाह होना कठिन हो, और ऊपर से लम्बे चौड़े मेहमान आ जायें तब कहते हैं.
घर के चोर के खोज कैसे मिलें. खोज – पैरों के निशान. कहीं पर चोरी होती है तो पैरों के निशान देख कर यह पता लगाया जाता है कि बाहर से कौन आया होगा. घर के किसी आदमी ने चोरी की हो तो पैरों के निशान से कोई सहायता नहीं मिलेगी. अर्थ है कि घर के चोर को पकड़ना मुश्किल है.
घर के जाए के दिन गिनो या दांत. जानवर की उम्र कितनी है इस का अंदाज़ उसके दांत गिन कर लगाया जाता है, लेकिन जो बछड़ा घर में पैदा हुआ है उस के दांत गिनने की क्या जरूरत. उस का जन्म तो याद ही होता है.
घर के दुलरुआ बाहर गए, मुँह सूख के चोंच भए. दुलरुआ – लाड़ प्यार में पला बच्चा. घर में रह कर बच्चे बहुत नाजुक हो जाते हैं. थोड़ी सी भी कठिनाई मिलने पर उनकी हालत खराब हो जाती है.
घर के देव ललचाएं, बाहर के पूजा मांगें. जहाँ घर के लोग अभाव में जी रहे हों वहाँ बाहर के लोगों के सहायता कैसे की जा सकती है.
घर के ना घाट के माई के न बाप के. नितांत आवारा.
घर के परसइया और पत्तल खाली. भाई भतीजावाद के इस युग में घर के लोग परोसने वाले हों और फिर भी पत्तल खाली हो यह तो ऐसा ही महुआ जैसे कोई ईमानदार हाकिम निकट संबंधियों का भी काम न करे.
घर के पीर को तेल का मलीदा. मलीदा एक विशेष प्रकार का पकवान है जो खूब सारा घी डाल कर बनता है. घर में कोई साधु संत है तो उस की कोई कद्र नहीं होती. उसे तेल से बना घटिया मलीदा खिलाया जा रहा है.
घर के बूढ़े दरवाजे की सांकल. घर के बड़े बूढ़े दरवाजे की सांकल के समान हैं उन से घर सुरक्षित रहता है.
घर के सरकंडे से आँख फूटी. यदि घर का ही कोई व्यक्ति बहुत बड़ा नुकसान पहुंचाए.
घर के सिंगार, लीपा पोता आंगन और पहनी ओढ़ी नार. घर कब अच्छा लगता है, जब आंगन लीपा पोता हो (पहले जमाने में सफाई करने के बाद आंगन को चिकनी मिट्टी से लीपते थे) और गृहणी अच्छे कपड़े पहने हो.
घर के ही नन्द बाबा और घर की ही यशोदा. जब नटखट कृष्ण कोई शैतानी करते थे तो गोप गोपियाँ नंद बाबा और यशोदा से ही शिकायत करने आते थे और यह जानते भी थे कि वे कुछ नहीं करेंगे. वास्तव में कृष्ण सभी के इतने प्रिय थे कि वे कितनी भी शैतानी करें,, लोग स्वयं भी नहीं चाहते थे कि कृष्ण का कुछ अहित हो.
घर के ही मर्द हैं. जो लोग केवल अपने घर में ही बहादुर होते हैं उन के लिए.
घर को आग लग गई, घर के चिराग से. जब घर का ही कोई सदस्य घर की बर्बादी का कारण बने.
घर खीर तो बाहर खीर. घर में आपकी पूछ होगी तभी बाहर भी होगी. बेटा घर से बाहर जा रहा था, माँ ने कहा कुछ खा के जा. बेटा बोला, माँ बहुत जगह जाना है सब जगह कुछ न कुछ खाना पड़ेगा. उस दिन कहीं कुछ खाने को नहीं मिला. लौट कर माँ को बताया तो माँ ने कहा, बेटा! घर खीर तो बाहर खीर.
घर घर कहें या नाइन से. हिन्दुओं में सभी रीति रिवाजों में नाई और नाइन को बुलाया जाता था और दूसरे घरों तक सन्देश पहुँचाया जाता था. मतलब के सन्देश के अलावा नाइन इधर की उधर भिड़ाने का काम भी करती थी.
घर घर के निपट लो, बराती भौत हैं. पहले चुपचाप अपना काम बनाओ, फिर दूसरों की चिन्ता करो.
घर घर मटियारे चूल्हे हैं. झगड़े झंझट हर घर में हैं. मटियारे – मिटटी के.
घर घर मित्र न कर सको तो गाँव गाँव में एक. (घर घर मीत न कीजे, तो गाँव गाँव तो कीजे). हर घर में मित्र न बना पाएं तो कम से कम हर गाँव में एक तो बनाएं.
घर घर शादी, घर घर गम (जहाँ ख़ुशी वहाँ रंज). यह संसार है, जहाँ ख़ुशी है वहाँ कुछ न कुछ दुख भी है.
घर घोड़ी पैदल चलै, बात लेत हैं छीन, थाती धरै दमाद घर, जग में भकुआ तीन. संसार में तीन प्रकार के बेवकूफ लोग हैं. एक वे जिनके पास सवारी हो फिर भी पैदल चलते हैं, दूसरे वे जो किसी की बात काट कर अपनी बात कहने लग जाते हैं. तीसरे वे हैं जो अपनी सम्पत्ति या ज़मीन दामाद के यहां गिरवी रखते हैं.
घर चैन तो बाहर चैन. घर में सुख होगा तभी व्यक्ति तनाव रहित हो कर बाहर भी चैन से काम कर पाएगा.
घर जल गया तब चूड़ियाँ पूछीं. अपनी चीज़ दिखने और दूसरे लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए किसी भी हद तक मूर्खता. सन्दर्भ कथा – किसी स्त्री ने नई चूड़ियां पहनीं. वह चाहती थी कि लोग उन्हें देखें और प्रशंसा करें. सुबह से शाम हो गई पर किसी का ध्यान उनकी ओर नहीं गया. हताश हो कर उसने अपने घर में आग लगा दी. लोगों की भीड़ इकट्ठा हो गई. वह हाथ उठा उठा कर जलते हुए घर की ओर इशारा करके कहने लगी, देखो मेरा घर जल रहा है. तब किसी की नज़र चूड़ियों पर पड़ गयी. उसने प्रश्न किया, अरे, ये चूड़ियां तुमने कब बनवाईं. तब उस ने उत्तर दिया, यह प्रश्न अगर तुमने पहले ही पूछ लिया होता, तो मेरा घर क्यों जलता.
घर जला कर उजाला कौन करता है. कोई कितना भी मूर्ख हो, उजाला करने के लिए अपना घर नहीं जलाएगा.
घर जला सो जला, चूहे तो ख़तम हुए. घर के जलने से वे भी जल गये अथवा भाग गये. जब कोई थोड़े से लाभ के लिए अपनी बड़ी हानि कर बैठे तब उस पर व्यंग.
घर जले घूरे की आग बुझावे. घूरा – कूड़े कर्कट का ढेर. घर जला जा रहा है और गृहस्वामी कूड़े कर्कट के ढेर की आग बुझाने को दौड़ रहा है. मूर्खतापूर्ण कुप्रबंधन.
घर जले तो सब कोई देखें, मन जले तो कोई न देखे. अर्थ स्पष्ट है.
घर जलेगा तो चूहे भी सुख नहीं पाएंगे. घर में आग लगती है तो घर को नुकसान पहुँचाने वाले चूहों को भी नुकसान ही होता है. देश विरोधी तत्वों को भी ऐसा सोच कर देश को आग में नहीं धकेलना चाहिए.
घर जाना हो तो पाँव नहीं दुखते. जब मन माफिक काम करना हो तो थकान नहीं होती.
घर तंग बहू जबरंग. घर में साधनों की कमी और बहू खर्चीली.
घर तो नागर बेल पड़ी, पड़ोसन का खोसै फूस. दुष्ट व्यक्ति अपने पास सब कुछ होते हुए भी दूसरे की तुच्छ वस्तुओं को भी हड़पता है.
घर पर काम, कूएँ पर विश्राम. 1. उल्टा काम. कायदे में कुएँ पर काम और घर पर आराम होना चाहिए. 2. घर पर काम करने को न कह दिया जाए इस डर से कोई आलसी व्यक्ति कुएँ पर जा कर लेटा है.
घर फूँक तमासा देखो. नामवरी के पीछे घर उजाड़ देना.
घर फूंक कर छत्ता जलाना (घर फूंक कर बर्रैया मारे). बर्र के छत्ते को जलाने के लिए घर में आग लगाने वाले के लिए. छोटी मुसीबत से छुटकारा पाने के लिए बहुत बड़ा नुकसान उठाना.
घर फूटे गँवार लूटे. अगर घर में फूट पड़ जाए मूर्ख से मूर्ख व्यक्ति भी आप को लूट सकता है. कुछ लोग इसके आगे इस प्रकार बोलते हैं – घर फूटे गंवार लूटे, गाँव फूटे जवार लूटे. जवार – आसपास के गाँव के लोग.
घर फूटे घर जाए. आपसी फूट से घर बर्बाद होता है.
घर बार तुम्हारा, ताला चाबी हमारा. किसी का झूठा आदर सत्कार करना. सास भी नई बहू से ऐसे ही कहती है.
घर बुद्धि बारह, बाहर बुद्धि तीन, सभा में वह भी विधाता छीन लीन (घर में तेरह, बाहर तीन, दरबार में एक बुद्धि). उन के लिए जो घर में बहुत सयाने बनते हैं और बाहर निकलते ही उन की बोलती बंद हो जाती है.
घर बेच तीरथ करे. एक लाभ के लिए दूसरी हानि करने वाला.
घर बैठे आधा भला. घर बैठे कुछ लाभ मिल जाए तो वह बाहर भटक कर मिलने वाले अधिक लाभ से अच्छा है.
घर बैठे गंगा आई. बड़े भाग्य से लोगों को गंगा में नहाने को मिलता है. किसी के घर में ही गंगा आ जाए तो इससे बड़ा भाग्य क्या होगा. बैठे बिठाए किसी को कोई बड़ी चीज़ मिल जाए तो यह कहावत कही जाती है.
घर भर दढ़ियल, चूल्हा कौन फूंके. दढ़ियल – दाढ़ी वाला. लम्बी दाढ़ी वाला व्यक्ति चूल्हा फूंकता है तो दाढ़ी में आग लगने का डर रहता है. घर के सभी लोगों में कोई न कोई ऐब है तो घर का काम कौन करेगा.
घर भाड़े, हाट भाड़े, पूंजी लागे ब्याज, मुनीम बैठा रोटी झाड़े, दीवाला निकले कैसी लाज. घर किराए का, दूकान किराए की, पूंजी उधार की जिस पर ब्याज लग रहा है, नौकर चाकरों को तनखाह भी दे रहे हैं, अब दीवाला निकलने में क्या देर है.
घर भी बैठो और जान भी खाओ. निकम्मे पति से परेशान महिला का कथन.
घर मिले तो वर न मिले और वर मिले तो घर न मिले. कन्या के लिए वर ढूँढने जाएँ तो यह ख़ास परेशानी होती है, जहाँ वर अच्छा हो वहाँ घर अच्छा नहीं होता और जहाँ घर अच्छा हो वहाँ वर अच्छा नहीं होता.
घर में अंधियारा, घुड़साल में दिया. (बुन्देलखंडी कहावत) 1. उल्टा काम, घर में अँधेरा है लेकिन घुड़साल में दिया जला रहे हैं. 2.(उल्टा अर्थ) घुड़साल जैसी महत्वपूर्ण जगह पर दिया जलाना आवश्यक है चाहे घर में अँधेरा हो.
घर में आई जोय, टेढ़ी पगड़ी सीधी होय. शादी के बाद टेढ़े भी सीधे हो जाते हैं.
घर में आई लुगाई, भूले बाप और माई. शादी होते ही माँ बाप का तिरस्कार करने वालों के लिए. इंग्लिश में कहावत है – A son is a son till he gets his wife, a daughter is a daughter all her life.
घर में आग लगी, चोरों की बन आई. किसी के घर में आग लगे या कोई प्राकृतिक आपदा हो तो अफरा तफरी के बीच चोरों को हाथ साफ़ करने का मौका मिल जाता है.
घर में उजियारी घरवाली से. घर की शोभा गृहिणी से ही होती है.
घर में कसाला. ओढ़े दुशाला. कसाला – तंगी, खाने की कमी. घर में तंगी होते हुए भी फिजूलखर्ची करना.
घर में कोल्हू, तेली खाय सूखा. जो तेली सब के लिए तेल निकालता है वही बेचारा रूखा सूखा खाता है. जहां चीज़ की बहुतायत होनी चाहिए वहीं उसका अभाव हो तो.
घर में खरच न, ड्योढ़ी पर नाच. कुछ न होते हुए भी दिखावा करना. (पहले जमाने में रईस लोग आम लोगों के मनोरंजन के लिए अपने घर के बाहर नाच आदि का आयोजन करते थे).
घर में खाने का टोटा, तिस पर पाहुनों की मार. घर में खाने की कमी, ऊपर से बहुत सारे मेहमान आ जाएँ तो.
घर में खाने को नहीं, छत पे धुंआ करें. केवल दिखावा करना. जिस से लोग समझें कि कुछ पक रहा है.
घर में खाने को नाहीं, नौ पड़ोसन न्योत आई. झूठ मूठ की शान दिखाने वाले मूर्ख लोगों के लिए.
घर में घर, लड़ाई का डर. एक घर में दो परिवार रहते हों तो लड़ाई होने की काफी संभावना रहती है.
घर में चाकी, घर में चूल्हा, पर घर पीसे जाय, पड़ोसन से लगी बतियाने, आटा कूकर खाय. जो लोग घर में साधन होते हुए दूसरों के यहाँ चक्कर लगाते है और बातें करने में समय गंवाते हैं उन का घर बर्बाद हो जाता है.
घर में चिराग नहीं, बाहर मशाल. घर में कुछ न होते हुए भी तडक भडक और दिखावा करना.
घर में चूहों की एकादशी. बहुत अधिक गरीबी. (चूहों तक को व्रत रखना पड़ रहा है).
घर में जनाना पैर तो पड़ा. नुकसान में भी फायदा ढूँढने वाले आशावादी लोगों के लिए. सन्दर्भ कथा – एक आदमी इस बात से बहुत परेशान था कि उस की शादी नहीं हो पा रही थी. एक बार पड़ोस की मुर्गी उस के घर में घुस गई. किसी ने आवाज़ दे कर उस से कहा कि तेरे घर में मुर्गी घुस गई है, जल्दी निकाल दे. वह बड़े इत्मीनान से बोला, कोई बात नहीं, अच्छा शगुन है, घर में कोई जनाना पैर तो पड़ा.
घर में जो शहद मिले, काहे को वन जाए. आवश्यकता की वस्तु घर में ही उपलब्ध हो तो बाहर क्यों भटकें.
घर में जोरू का नाम महारानी रख लो. अपने घर में कुछ भी करो, कौन रोकने वाला है. (जैसे एक सज्जन ने कोई समिति बनाई और अपने को उसका राष्ट्रीय अध्यक्ष बना लिया).
घर में तो फाका पड़े, साधू न्यौतन जाए. घर वालों को खाने के लाले पड़ रहे हैं और साधु को निमंत्रण देने जा रहे है. मूर्खता भी और अंधविश्वास भी.
घर में दवा, हाय हम मरे. सब कुछ होते हुए भी व्यर्थ का रोना.
घर में दिया जला कर चौराहे पर (मस्जिद में) दिया जलाना. सामाजिक कार्य करने से पहले अपने घर की न्यूनतम आवश्यकताएं पूरी करना चाहिए.
घर में दिया न बाती, मुंडो फिरें इतराती. घर में कुछ न होते हुए भी झूठी शान दिखाना.
घर में देखी छलनी न छाज, बाहर मियाँ तीरंदाज़. घर में कुछ नहीं है, बाहर तीस मार खां बने घूमते हैं.
घर में धन आता है, लोग हंसें तो हंसने दो, हलवा खाते दांत घिसें तो घिसने दो. कोई काम करने से घर में धन आता है और लोग उस पर हंसते हैं तो हंसने दो. किसी काम में अत्यधिक सुख मिलता है और थोड़ा सा नुकसान भी है तो होने दो.
घर में धान न पान, बीबी को बड़ा गुमान. घर में आवश्यकता की चीजें भी नहीं हैं पर बीबी को बड़ा घमंड है.
घर में नहीं तिनका, बिजली मेहमान. गरीब के घर अमीर मेहमान. बिजली का अर्थ यहाँ आलीशान से है.
घर में नहीं दाने, शादी चले रचाने. घर मे कुछ न होते हुए भी बड़े बड़े आयोजन करने की सोचना.
घर में नारी आंगन सोवे, रन में चढ़ के छत्री रोवे, रात को सतुआ करे बियारी, घाघ मरे तिन्ह की महतारी. जो घर में पत्नी के होते हुए आंगन में सोता है, जो क्षत्रिय रण में रोता है, जो कोई रात में सत्तू का सेवन करता है, इन सब की माएं रो रो के मर जाती हैं.
घर में नाहर, बाहर भेड़. नाहर – शेर. घर के लोगों पर रौब झाड़ना और बाहर भीगी बिल्ली बन जाना.
घर में नाहीं चून चने को ठाकुर बड़ियाँ खावें, मुझ दुखिया पे धोती नाहीं कुत्ता झूल सियावें. घर में चने का आटा तक नहीं है और ठाकुर को बड़ियाँ खाने की सूझ रही है, पत्नी के पास ढंग की धोती नहीं है और कुत्ते के लिए झूल सिलवा रहे हैं. जहाँ तंगी भी हो और कुप्रबंधन भी हो.
घर में बबूल बोए तो पांवों में कांटे तो गड़ेंगे ही. गलत काम का बुरा ही परिणाम.
घर में बीवी पान नरंगी, बाहर मियाँ कलुआ भंगी. घर में बीवी खूब बन ठन के रहती हैं और बाहर पति बड़ी दीन हीन हालत में काम कर रहा है. भंगी शब्द पर बहुत से लोगों को आपत्ति हो सकती है, पर इससे इतना तो मालूम होता ही है कि उस समय सफाई सेवकों की दशा खराब थी.
घर में ब्याह, बहू कंडों को डोले. घर में कोई बहुत बड़ा काम होना है और घर के महत्वपूर्ण व्यक्ति को छोटे से काम में लगा दिया है.
घर में ब्याह, बहू पीहर. विवाह जैसे महत्वपूर्ण समारोह में, जहाँ बहू का मुख्य काम होता है, अगर बहू अपने मायके में जा कर बैठ जाए तो बड़ी अटपटी बात है. महत्वपूर्ण कार्य में विशिष्ट व्यक्ति का अनुपस्थित होना.
घर में भई खटपट, चल जोगी के मठ पर. जो लोग घर में जरा सी नाराजगी होने पर घर छोड़ कर सन्यास लेने की धमकी देने लगते हैं उन का मजाक उड़ाने के लिए.
घर में भूँजी भाँग नहीं, बाहर करता नाच. घर में कुछ नहीं है, बाहर दिखावा करते घूम रहे हैं.
घर में मठा ना, बाहर मांगे दही. घर में कितनी भी गरीबी हो, बाहर सब बढ़िया से बढ़िया चाहिए.
घर में महुआ की रोटी, बाहर लम्बी धोती. घर में गरीबी का यह आलम है कि महुआ जैसे घटिया अनाज की रोटी खा रहे हैं, और बाहर दिखावे के लिए लम्बी धोती पहन रखी है.
घर में मूसे डंड मारें, ससुरार में हाथी मांगे. घर में तंगी है और ससुराल में अनाप शनाप दहेज़ मांग रहे हैं.
घर में मूसे दंड पेलें, बाहर मिर्ज़ा होली खेलें. घर में इतनी किल्लत है कि चूहों तक को खाने को नहीं मिल रहा है और गृहस्वामी बाहर होली खेल रहे हैं. रूपान्तर – बाहर बाबू मरें घमंड, घर में मुसरी खींचें डंड.
घर में मेहरारू ना, बाहर बेटे की कसम. झूठी कसम खाने वालों के लिए. शादी हुई नहीं है और बेटे की कसम खा रहे हैं.
घर में संटी, बच्चे पिटने को तरसें. घर में अनुशासन लागू न किया या जाए तो बच्चे बिगड़ जाते हैं. इंग्लिश में कहावत है – spare the rod and spoil your child.
घर में साला दीवार में आला, आज नहीं तो कल दीवाला (भीत में आला और घर में साला ठीक न होते). दीवार में आला होने से दीवार कमज़ोर होती है और घर में साले के रहने से घर कमजोर होता है. महाभारत का शकुनि सबसे बड़ा उदाहरण है.
घर में ही औलिया घर में ही भूत. औलिया – भूत भगाने वाला. बीमारी भी घर में है और डॉक्टर भी.
घर मेरो दूर गागर सिर भारी. काम मुश्किल भी है और जल्दी निबटने वाला भी नहीं है.
घर यार का, पूत भतार का. दुश्चरित्र स्त्री के लिए जो गैर पुरुष से संबंध रखे पर पुत्र को पति का बताए.
घर रहे घर को खाय, बाहर रहे तो भी घर को खाय. निठल्ले आदमी के लिए.
घर रहे न तीरथ गए, मूंड मुंड़ा के फजीहत भए. मूंड मुंडा के घर के भी नहीं रहे और न ही तीरथ कर के जोगी बन पाए. बेकार में अपनी फजीहत करा ली.
घर ला चीज़ उतनी, काम आवे जितनी. उतना ही सामान घर में लाना चाहिए जितना काम आए. अनावश्यक वस्तुओं का ढेर नहीं लगाना चाहिए. विशेषकर सेल इत्यादि के चक्कर में.
घर सब से उत्तम, पूरब हो के पच्छम. सबसे आराम दायक जगह घर ही है चाहे वह कहीं भी हो. इंग्लिश में कहावत है – East or west, home is the best.
घर सुधारयां गांव सुधरे. (राजस्थानी कहावत) हर व्यक्ति अपना घर संभाल ले तो पूरा गाँव ठीक हो जाएगा.
घर से खेत कितना, जितना खेत से घर. किसी बात का सीधा जवाब न देना.
घर से घर नहीं चलता. 1. आप किसी की सहायता कर सकते हैं पर उसका पूरा खर्च नहीं उठा सकते. 2. घर का मुखिया घर में ही बैठा रहेगा तो घर नहीं चल सकता.
घर से निकली बेटी को जम ले जाय या जमाई, वह घर लौट कर नहीं आती. पहले के जमाने में यह मान्यता थी की स्त्री की मायके से डोली उठनी चाहिए और ससुराल से सीधे अर्थी ही उठनी चाहिए.
घर ही में वैद, मरे कैसे. मूर्खता पूर्ण प्रश्न. मृत्यु तो अवश्यम्भावी है, खुद वैद्य को भी एक दिन मरना है.
घर हीना देना पर वर हीना मत देना. लड़की अपने माता पिता से कहती है कि एक बार को मुझे कमजोर घर में दे देना, पर निखट्टू वर को मत दे देना.
घर, खलिहान और पत्तल बड़े ही अच्छे. अर्थ स्पष्ट है.
घरई की अछरू माता, घरई के पंडा. जहाँ मालिक और नौकर मिलीभगत कर के हेर फेर कर रहे हों. अछरू माता का मंदिर टीकमगढ़ जिले में है जहाँ प्रतिवर्षं बड़ा मेला लगता है. यह स्थान एक जलाशय के लिए प्रसिद्द है जिसके संबंध में कहा जाता है कि पंडा से प्रसाद में जो वस्तु माँगो वही उसमें तैर कर ऊपर आ जाती है.
घरनी बिना घर कैसा (बिन घरनी घर भूत का डेरा). घर गृहणी से ही होता है.
घरवाले का एक घर, निघरे के सौ घर. गृहस्थ व्यक्ति का एक ही घर होता है, घर विहीन व्यक्ति के लिए हर जगह घर है.
घरै बाबरा, बाहर सयाना. ऐसे व्यक्ति के लिए जिस के गुणों की कद्र उस के घर वाले न करते हों.
घाघ बात अपने मन गुनहीं, ठाकुर भगत न मूसर धनुहीं. गुनहीं – समझ लेना, धनुहीं – रुई धुनने का अस्त्र. घाघ के अनुसार यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि ठाकुर ईश्वर भक्त नहीं हो सकता और मूसल से रुई नहीं धुन सकते. मूसल और धनुहीं के लिए देखिए परिशिष्ट.
घाघरे का चीलर, पालते बने न निकालते बने. घाघरे में चीलर लग जाए तो सब के सामने निकाल भी नहीं सकती और न निकाले तो वह काटता रहेगा. कोई निकट संबंधी यदि नीचता पर उतारू हो जाए तो.
घाघरे का रिश्ता. पत्नी की तरफ के रिश्तेदार.
घाट गया मुर्दा फिर नहीं आता. जो वस्तु एक बार जाने के बाद वापस न आये, उसके लिए.
घाट घाट का पानी पिये हैं. बड़े अनुभवी हैं, दुनिया देखे हुए हैं.
घाट-घाट का पानी पी के होखल बड़का संत. (भोजपुरी कहावत) जगह जगह मुंह मारते हैं और अपने को बड़ा संत घोषित करते हैं. चरित्रहीन साधुओं के लिए.
घाटा डेढ़ हजार का, नाम हजारी लाल. गुण के विपरीत नाम. कहावत तब की है जब हजार रूपये बहुत बड़ी थी.
घाटा तो नमक का भी बुरा. कितना भी मामूली नुकसान हो, नुकसान हमेशा बुरा ही होता है.
घाटी का पानी पहाड़ पर नहीं चढ़ता. कोई असम्भव बात कर रहा हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.
घाटे में बनिया बही टटोले. बनिया घाटे में चल रहा होता है तो अपना पुराना बही खाता टटोलता है कि शायद किसी पर लेनदारी निकल आए.
घायल की गति घायल जाने, और न जाने कोय. दुखी व्यक्ति की हालत दुखी ही जानता है.
घायल दुश्मनों में, साँस ले तो मरे, न ले तो मरे. घायल व्यक्ति दुश्मनों के बीच में सांस रोक के पड़ा है, अगर सांस लेगा तो दुश्मन समझ जाएंगे कि वह जिन्दा है और उसे मार डालेंगे. अगर सांस नहीं लेगा तब भी मर जाएगा. बहुत बड़ी दुविधा में फंसे व्यक्ति के लिए.
घाव भर जाता है पर निशान रह जाता है. किसी ने आप के साथ दुर्व्यवहार किया हो और समय के साथ आप उसे भूल जाएं तो भी उस की कसक मन में रहती है.
घाव से टीस बड़ी. जब शरीर के घाव से मन का घाव बड़ा हो.
घास काटने जाए और कसार का तोसा (कंडे बीनने जाय और जलेबी का तोसा). कसार – घी, आटे, बूरा और मेवा से बनने वाली मिठाई, तोसा – टिफिन. किसी काम में जितनी कमाई न हो उससे ज्यादा खर्च करना.
घास की छाया कितनी. छोटे आदमी से कितना सहारा हो सकता है.
घास खाये दिन कटे तो सबै खायँ. केवल घास पत्तियाँ खाकर मनुष्य जीवित नहीं रह सकता. अनाज उस की न्यूनतम आवश्यकताओं में से एक है.
घिनौना गीदड़ और छींट का जामा. किसी अत्यंत घटिया व्यक्ति को विशेष सुविधाएँ.
घिरी हुई बिल्ली कुत्ते से पंजा लड़ाती है. संकट में फंसा व्यक्ति अपने से अधिक ताकतवर से भी भिड़ जाता है.
घिस घिस कर ही गोल होता है. नदी के साथ बहने वाले पत्थर घिस कर गोल हो जाते हैं. कुछ बनने के लिए कष्ट उठाने पड़ते हैं.
घिसे बिना चमक कहाँ. लकड़ी और पत्थर को घिसने पर ही चमक आती है. उन्नति करने के लिए कष्ट उठाना आवश्यक है.
घी कबीरा खा गया, छाछ पाई संसार. ज्ञान का घी कबीर ने चख लिया, दुनिया को बची हुई छाछ ही मिली है.
घी कहाँ गया, खिचड़ी में, खिचड़ी कहाँ गई, पेट में. किसी वस्तु का सही काम में उपयोग हो जाना.
घी का चूरमा, भैरों जी को भाए न. भैरों जी को तेल का चूरमा ही चढ़ाया जाता है. अगर कोई बच्चा घर के स्वादिष्ट और स्वास्थ्य प्रद भोजन के स्थान पर बाजार की घटिया चीजें खाने को मांगे.
घी का लड्डू टेढ़ो भलो. उपयोगी वस्तु देखने में अच्छी न भी तो भी ठीक लगती है.
घी की हंडिया से बेटों को जिमाए, खट्टी छाछ बेटियों को खिलाए. पुराने समय में बेटों और बेटियों में बहुत भेदभाव होता था. बेटों को अच्छी चीजें खिलाई जाती थीं और बेटियों को घटिया.
घी के कुप्पा से लगे. ऐसे स्थान पर पहुँच गए जहाँ खूब तर माल खाने को मिलेगा. देखिए परिशिष्ट.
घी खाने से ताकत आती है, लगाने से नहीं. जो लोग घी को शरीर पर लगाने में बर्बाद करते हैं उन के लिए.
घी खावत बल तन में आवे, घी आँखों की जोत बढ़ावे. पहले के लोग मानते थे कि घी खाने से शरीर में ताकत आती है व आँखों की ज्योति बढ़ती है. आँखों की ज्योति वाली बात ठीक है क्योंकि घी में विटामिन ‘ए’ होता है.
घी खिचड़ी का मेल. एक दूसरे का महत्व बढ़ाने वाली दो चीजों का मेल.
घी गिर गया, मुझे रूखी भाती है. घी गिर गया तो समझदारी इसी में है कि यह कहें हमें तो रूखी रोटी पसंद है.
घी गुड़ आटा तेरा, फूंक आग और पानी मेरा. बिना लागत लगाए साझा करने की कोशिश करना.
घी गुड़ मीठा या दुलहन. बरातियों को अच्छा खाना प्रिय है पर दूल्हे को तो दुल्हन ही अधिक प्रिय है.
घी गुड़ हरदी, इन से छूटे सरदी. घी, गुड़ और हल्दी का सेवन जाड़े के प्रकोप को कम करता है.
घी जाट का और तेल हाट का. घी गाँव से लिया अच्छा होता है क्यों कि ताज़ा होता है और मिलावट की संभावना कम होती है, तेल बाजार से लिया अधिक अच्छा होता है क्यों कि साफ़ किया हुआ होता है.
घी जिमावे सास, पोतों की आस. सास बहू को घी खिलाती है, जिससे उसकी संतान (पोता) हृष्ट पुष्ट हो.
घी डालते कौन मना करता है. अपने भले के लिए कौन मना करता है.
घी डाले आग नहीं बुझती. आग में घी डालना एक मुहावरा है जिसका अर्थ है लड़ाई को और भड़काना. कहावत का अर्थ है कि लड़ाई को और भड़काने वाला काम करोगे तो लड़ाई कैसे शांत होगी.
घी तो निकल गया, छाछ ही बची है. किसी संगठन में से श्रेष्ठ व्यक्तियों के निकल जाने पर यह कहावत बोली जाती है.
घी न खाया, कुप्पा तो बजाया. कुप्पा – बड़ा मटका. कुप्पे को उंगली से बजा कर देखते हैं कि वह कितना भरा है. यह कहावत उसी प्रकार है जैसे ब्याह नहीं किया तो क्या, बारात तो गए हैं. कुप्पे के लिए देखिए परिशिष्ट.
घी नहीं है तो कुप्पा ही बजाओ. अभावों में समय काटना हो तो समझदारी इसी में है.
घी बिना रूखा कसार, बच्चों बिना सूना संसार. अर्थ स्पष्ट है.
घी भी खाएं तो खेसारी की दाल में. खेसारी की दाल घटिया मानी जाती है. उस में घी डाल कर खाना घी का अपमान और बर्बादी करना है.
घी भी खाओ और पगड़ी भी रखो (घी खाना है तो पगड़ी रख कर खाओ). अच्छा खाना सब चाहते हैं लेकिन उसके लिए अपनी प्रतिष्ठा पर आंच मत आने दो.
घी मिले तो गोड़ चलें. पुराने लोग मानते थे कि घी खाने से ही ताकत आती है. गोड़ – घुटने.
घी में तलो तेल में तलो, तबहुँ करेला तीत. करेले को चाहे घी में तलो चाहे तेल में, वह कड़वा ही रहेगा. दुष्ट व्यक्ति के साथ भला या बुरा कैसा भी व्यवहार करो, वह अपनी दुष्टता नहीं छोड़ता.
घी शक्कर और दूध की मलाई हो, सात भाइयों में कमाई सवाई हो, घर में सोना चांदी हो, बाजार में हुंडी चले, इतना दे दो प्रभु कुछ और मिले ना मिले. सब कुछ मांग रहे हैं और कह रहे हैं कि प्रभु बस इतना दे दो.
घी सम्हाले ताहरी, नाम बहू को होए (घी संवारे काम, बड़ी बहू को नाम). नई बहू से ताहरी बनाने के लिए कहा गया. उसने खूब सारा घी डाल कर बढ़िया ताहरी बना दी. सबने तारीफ़ की तो सास ने जल कर यह बात कही.
घुसिया हाकिम, रुसिया चाकर. हाकिम घूसखोर और उसका नौकर तुनक मिजाज है. रुसिया – गुस्सा करने वाला.
घूँघट का मर्म गँवार क्या जाने (घूँघट का भार, क्या जाने गंवार) (क्या जाने गंवार, औरत का प्यार). मूर्ख व्यक्ति स्त्री की मर्यादा और महत्व को नहीं समझ सकता.
घूँघट की मर्यादा तो मूँछ की भी मर्यादा (घूँघट का मान, मूँछों की शान). पुरुष यदि स्त्री का सम्मान करेगा तभी उसका सम्मान होगा.
घूँघट में मकखी गटके. पर्दे की ओट में गलत काम करने वालों के लिए.
घूँघट से सती नहीं, मूंड मुंडाए जती नहीं. घूँघट कर लेने मात्र से कोई स्त्री पतिव्रता नहीं बन जाती और सर मुंडा लेने से कोई योगी नहीं हो जाता.
घूमे सो चरे, बंधा भूखा मरे. जो जानवर आजाद है वह तो इधर उधर मुंह मार कर पेट भर लेता है पर जो खूंटे से बंधा है उसे खाना न मिले तो वह तो भूखा ही मरेगा. यही बात इंसानों पर भी ठीक बैठती है.
घूर में पड़ा हीरा भी कूड़ा. व्यक्ति का महत्व उसके स्थान से होता है.
घूरे का हंस (घूरे का रत्न). किसी गलत स्थान पर पड़ा हुआ कोई उत्तम वास्तु या व्यक्ति.
घूरे की गाय, कूड़ा ही खाय. ओछी संगत में पड़ कर श्रेष्ठ व्यक्ति भी ओछे काम ही करता है.
घूरे के साथ गोबर खुश. ओछा व्यक्ति उसी प्रकार के परिवेश में खुश रहता है.
घूरे पर उगा आम का पेड़. किसी निकृष्ट व्यक्ति के घर अच्छी संतान का जन्म लेना.
घूरे पर घूरा पड़ता है. जहाँ एक बार कूड़ा डालना शुरू कर दो वहाँ सभी लोग कूड़ा डालने लगते हैं. कोई व्यक्ति एक बार गलत काम करना शुरू कर दे तो उसे वैसा ही काम करने वाले लोग मिलने लगते हैं.
घूरे पर भी मेंह बरसे और महलों पर भी. ईश्वर की कृपा सब पर बराबर से बरसती है.
घूस चलती तो बनिया यमराज को भी घूस दे देता (घूस दिए मौत टले तो बनिया यमराज से भी न चूके). यदि परलोक में घूस देने की कोई व्यवस्था होती तो बनिया वहाँ भी घूस दे कर अपना काम निकाल लेता.
घोंघे का घर पीठ पर. बहुत कम साधनों में जीवन बिताने वालों के लिए.
घोंघे को न दूसरा ताल, थारु को न दूसरा देस. घोंघा एक तालाब छोड़ कर दूसरे में नहीं जा सकता और थारु जाति के लोग अपना स्थान छोड़ कर कहीं नहीं जा सकते.
घोड़ा और फोड़ा, जितना सहलाओ उतना बढ़ते हैं. फोड़े को सहलाना नहीं चाहिए यह सीख देने के लिए यह कहावत कही गई है. यह भी बताया गया है कि घोड़े का बच्चा भी मालिश करने से जल्दी बड़ा होता है.
घोड़ा कूदे घोड़ी कूड़े, बीच में बछेड़ी कूदे. दो बड़े लोगों की बात के बीच में बोलने वाले मूर्ख आदमी के लिए.
घोड़ा को चढ़इया चूक जात, राजा को सिपहिया चूक जात, धन को धरैय्या चूक जात, चूकत नहीं चुगला चुगलखोरी सों. (बुन्देलखंडी कहावत) घोड़े पर चढ़ने वाला घुड़सवार चूक सकता है, राजा का सिपाही चूक सकता है, धन को रखने वाला चूक सकता है, पर चुगलखोर चुगली करने से नहीं चूकता. रूपान्तर – चुगल चुगली से नाहीं चूकत.
घोड़ा गाड़ी नोना पानी, औ रंडी कै धक्का, इन तीनों से बचा रहै तो केलि करै कलकत्ता. घोड़ा गाड़ी, नमकीन पानी और वेश्याओं का मोहजाल, इन से यदि आदमी बचा रहे तो कलकत्ते जैसे शहर में मौज से रह सकता है.
घोड़ा घास से यारी करेगा तो खायगा क्या. यह एक बड़ी व्यवहारिक सी बात है की घोड़ा घास से दोस्ती नहीं कर सकता, वरना वह खाएगा क्या. रुपांतर – बकरी करे घास से यारी, तो चरने कहाँ जाए बिचारी.
घोड़ा घुड़साल में ही बिकता है. जिस काम के लिए जो स्थान उपयुक्त हो उसे वहीं करना चाहिए.
घोड़ा चले चार घड़ी, ब्याज चले आठ घड़ी. उधार के पैसे का ब्याज दिन दूना रात चौगुना बढ़ता है.
घोड़ा चाहिए विदा को, लौटते पे आना. जाने के लिए घोड़े की जरूरत है, जिससे मांगने गए वह कह रहा है कि लौटते पे ले लेना. जरूरत पर चीज़ न देने के लिए बहाना बनाना.
घोड़ा जोड़ा मिले भाग सों. सवारी के लिए घोड़ा और अच्छी स्त्री भाग्य से ही मिलती हैं.
घोड़ा दौड़े या घोड़ी दौड़े कौन जाने. बहुत सी बातों का अंदाज दूर से नहीं लगाया जा सकता.
घोड़ा पहचाने सवार को. कोई नया सवार जैसे ही घोड़े पर बैठता है घोड़ा उसके हावभाव से तुरंत पहचान लेता है कि सवार कितना काबिल है. ऐसे ही मातहत कर्मचारी नए हाकिम की आदतों को तुरंत भांप लेते हैं.
घोड़ा पालूं और पैदल चलूँ. अगर घोड़ा पालने के बाद भी पैदल चलना पड़े तो घोड़ा पालने का क्या फायदा हुआ.
घोड़ा भला न लांगड़ा, रूख भला न झांगड़ा. लंगड़ा घोड़ा अच्छा नहीं होता और पेड़ के नाम पर झाड़ झंखाड़ अच्छा नहीं होता.
घोड़ा भेज के वैद बुलाए, मर्ज घटा तो पैदल पठाए. वैद्य को बुलाने के लिए तो घोड़ा भेजा. मरीज कुछ ठीक हुआ तो वैद्य से पैदल वापस जाने के लिए कहा जा रहा है. काम निकल जाने के बाद कोई नहीं पूछता.
घोड़ा है पर सवार नहीं. साधन तो हैं पर उनका उपयोग करने वाला सही व्यक्ति कोई नहीं है.
घोड़ा, टट्टू, गज, गऊ, पूत, मीत, धन, माल, कोऊ संग न जात है, जब लै जिउ निकाल. जब यमराज प्राण लेने आते हैं तो किसी भी प्रकार का धन और मित्र व सम्बन्धी साथ नहीं जाते. जिउ – जीव, प्राण.
घोड़ा, मर्द और मकौड़ा, पकड़ने के बाद छोड़ते नहीं. अर्थ स्पष्ट है. कुछ लोग मर्द के स्थान पर जाट बोलते हैं.
घोड़ी के सींग थे. परिस्थिति के अनुसार यथा सम्भव बात को मोड़ देना. सन्दर्भ कथा – एक बनिये का लड़का अपने खेत की रखवाली कर रहा था कि एक चोर एक घोड़ी को चुरा कर उधर से गुजरा. पीछे-पीछे कोतवाल भी अपने सिपाहियों सहित वहाँ पहुँचा. उसने लड़के से पूछा कि क्या तुमने इधर से किसी को एक घोड़ी ले जाते हुये देखा है? लड़के ने कहा, जी हुजूर देखा है. इस पर कोतवाल ने लड़के से कहा कि तुम हमारे साथ चलो और पहचान कर बताओ.
लड़के ने सोचा कि यह तो बैठे बिठाए बिना बात की आफत आ गई. इसलिये उसने फौरन अक्ल लगाई और कोतवाल से कहा कि घोड़ी के बड़े-बड़े सींग थे और वह आदमी उसके सींगों में रस्सी बांध कर उसे इसी तरफ ले गया है, आप इसी रास्ते से चले जाएँ. इस पर कोतवाल ने सोचा कि लड़के ने घोड़ी नहीं, बल्कि गाय देखी है और वह अपने सिपाहियों सहित आगे बढ़ गया. कहावत को इस आशय में प्रयोग करते हैं जहाँ कोई परिस्थिति के अनुसार यथा सम्भव बात को इस तरह मोड़ दे कि सहज ही पीछा छूट जाए.
घोड़ी नहलाएँ या पानी पिलाएँ. काम करने में बहाने बनाने वालों के लिए.
घोड़े का गिरा संभल सकता है, नजरों का गिरा नहीं. एक बार किसी का विश्वास खो देने पर दोबारा लौट कर नहीं आ सकता.
घोड़े का हठ और औरत का हठ एक समान. अर्थ स्पष्ट है.
घोड़े की दुम बढ़ेगी तो अपनी ही मक्खियाँ उड़ाएगा. क्षुद्र मनोवृत्ति का व्यक्ति उन्नति करेगा तो खुद अपना ही भला करेगा, किसी और काम नहीं आएगा.
घोड़े की नालबाजी में गदही पैर बढ़ावे (घोड़े के नाल ठुकती देख मेंढकी ने भी पंजा बढ़ा दिया). घोड़ों के पैर सड़क पर दौड़ने से घिस न जाएं इसके लिए उनके पैर में लोहे की नाल ठोंकी जाती है. घोड़े के नाल ठुकती देख कर गदही या मेंढकी ने भी अपना पैर आगे कर दिया. कोई मूर्ख और कमजोर आदमी बुद्धिमान और शक्तिशाली आदमी की बराबरी करने की कोशिश करे तो यह कहावत कही जाती है.
घोड़े की पूँछ पकड़ूँ क्या दोगे, के घोड़ा खुद ही दे देगा. मूर्खतापूर्ण प्रश्न पूछने वालों पर व्यंग्य.
घोड़े की लात से घोड़े नहीं मरते. जबर लोग कमजोर को ही परेशान कर पाते हैं, दूसरे जबर को नहीं.
घोड़े की सवारी और गठरी सिर पर. कोई व्यक्ति घोड़े की पीठ पर बैठा हो और गठरी अपने सर पर रखे हो वह निपट मूर्ख ही कहा जाएगा.
घोड़े की सवारी, चलता जनाजा. घोड़े की सवारी बहुत खतरनाक होती है (मरने तक का डर होता है).
घोड़े को कोड़ा, बैल को पैना, भलमानस को बात, औरत को नैना. घोड़े को वश में करने के लिए कोड़ा मारना होता है और बैल को पैना. भला आदमी केवल बात कहने से मान जाता है और स्त्री आँख दिखाने से.
घोड़े को घी, मर्द को तमाखू. घोड़े से काम लेना हो तो उसे घी खिलाओ, मर्द से काम लेना हो तो तम्बाखू.
घोड़े को लात, आदमी को बात. घोड़े को लात की भाषा ही समझ में आती है (घोड़े को दौड़ाने के लिए एड़ लगाते हैं), जबकि मनुष्य को बातों से समझाया जा सकता है. यहाँ घोड़े से मतलब मूर्ख या नीच आदमी से भी है.
घोड़े घोड़े लड़ें, मोची का जीन टूटे. दो व्यक्तियों की लड़ाई में नुकसान किसी तीसरे का हो तो.
घोड़े तो असवारों से ही दबते हैं. घोड़ा कितना भी शक्तिशाली और उच्छ्रंखल क्यों न हो, अच्छे सवार उसे काबू कर लेते हैं.
घोड़े भैंसे की लाग. दो बड़े आदमियों की टक्कर.
घोड़े मर गए, गधों का राज आया. योग्य व्यक्ति नहीं रहे, अब मूर्खों का राज है.
घोड़े से गिर गिर कर ही घुड़सवार बनता है. चोट खा कर ही आदमी कुशल और मजबूत बनता है.
घोड़ों का घर कितनी दूर. यदि आप काम करना चाहते हैं तो साधन कितनी भी दूर क्यों न हो आप उस तक पहुँच जाएँगे, यदि नहीं करना चाहते हैं तो साधन कितनी भी पास क्यों न हो आप बहाने बनाते रहेंगे.
घोड़ों का दाना गधों को नहीं खिलाया जाता. उत्तम सुविधाएँ प्राप्त करने के लिए उनके योग्य होना जरूरी है.
घोड़ों की शोभा घुड़सवारों से. घोड़ा कितनी भी अच्छी नस्ल का क्यों न हो, उसकी शोभा अच्छे सवार से होती है.
घोर अनीत भूप को नासै, धन नासै बिनु धर्मा. अनीत – गलत काम. भूप – राजा, नासै – नाश होना. अनीति पूर्ण कामों से राजा का नाश होता है और धर्म का कार्य न करने पर धन का नाश हो जाता है.
च
चंचल नार की चाल छिपे नहिं, कोई नीच छिपे न बड़प्पन पाए, जोगी का भेस नीक धरो, कोई करम छिपे न भभूत रमाए. चंचल नार से अर्थ चरित्रहीन नारी से है. अर्थ है कि चरित्रहीन नारी का चाल चलन छिपता नही है, बड़ा पद पा लेने से नीच आदमी की असलियत नहीं छिपती, और भभूत रमाने से कोई धूर्त साधु नहीं छिपता.
चंचल नार छैल से लड़ी, खन अंदर खन बाहर खड़ी. दुश्चरित्र स्त्री का मिलन किसी मनचले (छैल) से हो गया है तो वह अपनी प्रसन्नता छिपा नहीं पा रही है.
चंडाल चौकड़ी. दुष्टों की जमात.
चंडी माई लीपेगी, न निगोड़े खोदुंगी. कुछ स्त्रियां बड़े कर्कश स्वभाव की होती हैं, कुछ पूछो तो हमेशा उल्टा जवाब देती हैं. बोलचाल की भाषा में इन्हें चंडीमाई कहते हैं. ऐसी किसी स्त्री से किसी भले मानुष ने पूछा – चंडीमाई चौका लीपने जा रही हो? चंडीमाई ने जवाब दिया – न निगोड़े! खोदने जा रही हूँ. पहले के जमाने में खाना बनाने के पहले रसोई को मिट्टी या गोबर का पतला घोल बना कर उससे लीपते थे. कुछ लोग इस कहावत को पूरा इस तरह बोलते हैं – चंडी माई लीपेगी, न निगोड़े खोदुंगी, चंडी माई खोदेगी, न निगोड़े लीपुंगी.
चंदन तरु की बास से सब चन्दन हुई जात, तैसेई एक सपूत से सबरो कुटुम अघात. जैसे एक चंदन के पेड़ की खुशबू से सारे पेड़ों में खुशबू आ जाती है, वैसे ही एक सुपुत्र से सारा कुटुंब धन्य हो जाता है.
चंदन धोई माछली, पर छूटी ना गंध. (राजस्थानी कहावत) मछली पर चंदन रगड़ो तब भी उस की गंध नहीं छूटती. निम्न कोटि का व्यक्ति अच्छी संगत पा कर भी नहीं सुधरता.
चंदन हूँ की आग से जरे देह तत्काल. चंदन की लकड़ी शीतल होती है पर जलती हुई चंदन की लकड़ी शरीर को जला देती है. कोई संत प्रकृति का व्यक्ति भी अगर क्रोध में है तो हानि पहुँचा सकता है.
चंद्र ग्रहण कुत्तों को भारी. चंद्र ग्रहण के दौरान डोम इत्यादि भीख माँगते हैं, तब गलियों में कुत्ते उन पर भौंकते हैं और अकारण ही पिट जाते हैं. दूसरों के कारण व्यर्थ कष्ट उठाने पर.
चंद्रमा में भी कलंक (दाग) हैं. कोई भी चीज़ पूर्णत: दोष रहित नहीं है.
चंपा के दस फूल चमेली की एक कली, मूरख की सारी रैन चातुर की एक घड़ी. जिस प्रकार चम्पा के दस फूल से चमेली की एक कली अधिक अर्थपूर्ण है उसी प्रकार मूर्ख की सारी रात की मेहनत के मुकाबले बुद्धिमान व्यक्ति का एक घड़ी का कार्य अधिक अर्थपूर्ण है.
चकमक दीदा, खाय मलीदा. जो स्त्री सब लोगों से नैन मटक्का करती है उसे गुलछर्रे उड़ाने को मिलते हैं.
चकरया चाकरी करके आप अपने हाथ बिकता है. किसी की नौकरी करने वाला स्वयं ही अपने आत्म सम्मान को उसके हाथ बेच देता है. (चकरया – चाकरी करने वाला)
चकवा चकवी दो जने, इन मत मारो कोय, ये मारे करतार के रैन बिछोहा होय. चकवा और चकवी को वैसे ही रात में अलग रहने का श्राप मिला हुआ है. इन में से किसी को मारने से पाप लगता है.
चक्की पर चक्की, मेरी कसम पक्की. बच्चों की कहावत. कसम खाने के लिए बच्चे ऐसे बोलते हैं.
चक्की पे घर तेरो, निकल सास घर मेरो. नई बहू सास को बता रही है कि तेरा काम अब केवल चक्की पीसना ही है. अब इस घर की मालकिन मैं हूँ.
चक्की में कौर डालोगे तो चून पाओगे. चक्की में गेहूँ डालोगे तभी आटा मिलेगा. पहले कुछ रुपया पैसा खर्च करोगे या पहले कुछ रिश्वत वगैरा दोगे तभी काम हो सकेगा.
चक्की में से साबुत निकल आवे. बहुत निर्लज्ज व्यक्ति (जो चलती हुई चक्की में से भी साबुत निकल आए).
चख ले माल धन को, कौड़ी न रख कफन को. बिंदास जीवन जीने वालों का कथन. सब कुछ अपने जीते जी खर्च कर लो, बचाने के चक्कर में मत पड़ो.
चचरे ममेरे, बड़तले बहुतेरे. बड़े लोगों से सब लोग अपनी रिश्तेदारी निकालते हैं.
चचा चोर भतीजा काजी. चाचा चोर है पर उसका भतीजा ही न्यायाधीश है, ऐसे में न्याय की क्या उम्मीद करें. कुछ राजनैतिक दलों और न्यायपालिका के कुछ भ्रष्ट सदस्यों के अनैतिक गठबन्धन पर व्यंग्य.
चट मंगनी पट ब्याह. तुरंत निर्णय लिया और तुरंत काम हो जाए तो यह कहावत कही जाती है.
चट मकई, पट सनई. जल्दी मक्का बो कर काट ली और सनई बो दी. बहुत जल्दी जल्दी काम निबटाने वाले लोगों के लिए.
चट मौत, पट शादी (चट रांड, पट सुहागन). स्त्री के पति की मृत्यु के बाद जल्दी दूसरा विवाह हो जाए तो.
चटनी बिन न रोटी सोहे, गूँधे बिन न चोटी सोहे (लवन बिना न सोहे रोटी, बिन गूँधे न सोहे चोटी). बाल खोल कर घूमने वाली लड़कियों को पहले फूहड़ माना जाता था. उनको सीख देने के लिए कहा गया है कि जिस प्रकार चटनी या नमक के बिना रोटी अच्छी नहीं लगती, उसी प्रकार गूँधे बिना चोटी अच्छी नहीं लगती. लवन – लवण.
चटोर का ब्याह, चोट्टी न्योते आई. चटोर – खाने पीने का शौक़ीन, चोट्टी – चोर. जैसा दूल्हा वैसे ही बाराती.
चटोर खोवे एक घर, बतोर खोवे दो घर. चटोरा व्यक्ति (खाने पीने का शौक़ीन) केवल अपना घर बर्बाद करता है (पैसा उड़ा कर), पर बातों का शौक़ीन दो घर बर्बाद करता है. अपना भी समय खराब करता है और दूसरे का भी.
चटोरा कुत्ता, अलोनी सिल. अलोनी सिल – ऐसी सिल जिस पर कुछ न पीसा गया हो. चटोरा कुत्ता ऐसी सिल क्यों चाटेगा जिस पर कुछ न लगा हो.
चटोरी जबान, दौलत की हान. चटोरी जबान वाले लोग खाने पीने में सब पैसा उड़ा देते हैं.
चढ़ जा बेटा सूली पर, भली करेंगे राम (भली करेगो अल्ला). किसी व्यक्ति को जोखिम भरे काम के लिए उकसाया जा रहा हो तो वह यह कहावत कहता है.
चढ़ मार, गूलर पक्के. आगे बढ़ के काम करो, सफलता अवश्य मिलेगी. गूलर के चित्र के लिए देखिए परिशिष्ट.
चढ़ती जवानी और भरी हुई अंटी क्या अनर्थ नहीं कराती. जवानी के जोश में भी बहुत से गलत काम होते हैं और पास में आवश्यकता से अधिक धन हो तो भी गलत काम किए जाते हैं, और दोनों चीजें हो तो क्या कहना.
चढ़ते पित्त उतरते बाय, ताते गोरख भूंज के खाय. भांग की महिमा बताई गई है. भांग चढ़ते समय पित्त को शांत करती है और उतरते समय वायु को. बाय – वायु रोग, ताते – इस कारण से.
चढ़ाई से उतराई महान. 1. पहाड़ पर चढ़ने से उतरना अधिक कठिन है. 2. किसी व्यक्ति की उन्नति हो रही हो तो बहुत अच्छा लगता है, पर जब उस की अवनति होती है तो उसकी कठिन परीक्षा होती है.
चढ़ी कढ़ाही तेल न आया तो कब आएगा. गृहणी ने कढ़ाही आग पर चढ़ा दी है और पति तेल लाने में आनाकानी कर रहा है. तो पत्नी पूछती है कि इस मौके पर तेल नहीं लाओगे तो कब लाओगे. आवश्यकता के समय काम न किए जाने पर.
चढ़े ऊँट, मांगे बूंट. मांगने वाला किसी भी स्थान पर पहुँच जाए उस की मांगने की आदत नहीं जाती. बूंट – चना.
चढ़े कचेहरी, बिके मेहरी. जो कचहरी के चक्कर में पड़ेगा उसका घर बार बिक जाएगा. मेहरी – स्त्री.
चढ़ेगा सो गिरेगा. 1.जो चढ़ेगा वही गिरेगा, जो चढ़ेगा ही नहीं उसे गिरने का क्या डर. 2. उन्नति करने पर बहुत खुश मत हो, कल को फिर नीचे गिर सकते हो. इंग्लिश में कहावत है – He that never climbed, never fell.
चढ़ो चाचा, चढ़ो ताऊ, येहि में घोड़ी खाली चले. एक दूसरे के शिष्टाचार में चाचा ताऊ दोनों पैदल चल रहे हैं और घोड़ी खाली चल रही है.
चतुर कन्या के राम ही रखवार. अपने आप को ज्यादा चतुर और सुंदर समझने वाली कन्या अंततः धोखा खाती है और उस के गलत हाथों में पड़ने का अत्यधिक खतरा होता है. ईश्वर ही उसकी रक्षा कर सकते हैं.
चतुर की चाकरी बुरी. यहाँ चतुर से अर्थ बहुत मीन मेख निकालने वाले व्यक्ति से है. ऐसे व्यक्ति की नौकरी करने में बहुत परेशानियाँ हैं.
चतुर के चार कान नहिं होत. चतुर व्यक्ति बहुत जल्दी बात को सुन और समझ लेता है, इसलिए नहीं कि उसके पास चार कान हैं. बल्कि इसलिए कि उसकी बुद्धि तीव्र होती है.
चतुर के सौदा मने मने. चतुर व्यक्ति अपना हिसाब किताब मन ही मन में करता है, ढोल नहीं पीटता.
चतुर चार जगह ठगा जाता है. जो अपने को ज्यादा होशियार बनता है वह अधिक नुकसान उठाता है.
चतुर नार नरकूढ़ से ब्याह होए पछताए, जैसे रोगी नीम को आँख मीच पी जाए. बुद्धिमती स्त्री मूर्ख व्यक्ति से विवाह हो जाने पर मन ही मन शोक के घूँट पी कर रह जाती है, जैसे रोगी नीम को आँख बंद कर के मजबूरी में पी लेता है.
चतुर शत्रु उपायहिं नासे. चतुर शत्रु को चालाकी से ही नष्ट किया जा सकता है, पराक्रम से नहीं.
चतुर सो गृही जो संचै कोषा. कोष – खजाना. वही गृहस्थ चतुर माना जाता है जो रुपया पैसा और अनाज आदि इकठ्ठा कर के रखता है.
चतुरा का काम न करे, हेजिये के बच्चे न खिलाए. जो स्त्री अपने को बहुत चतुर समझती हो उसका काम नहीं करना चाहिए (क्योंकि वह उसमें कमियाँ निकालने से बाज नहीं आएगी). इसी प्रकार जिसे अपने बच्चे का बहुत हेज (सयान) हो उसके बच्चे को नहीं खिलाना चाहिए (क्योंकि वह खिलाने वाले पर कुछ न कुछ इलज़ाम लगाएगी).
चतुरा तो पूतन को तरसे, फूहड़ जन जन हारी. प्रकृति की अजब माया है. समझदार और सम्पन्न स्त्री सन्तान के लिए तरस रही है और जो फूहड़ और गरीब स्त्री है, उसके धड़ाधड़ बच्चे हो रहे हैं.
चतुराई चूल्हे पड़ी. कोई चतुराई काम नहीं आयी.
चतुराई सब विद्या मूल. मनुष्य कितनी भी विद्याएँ सीख ले, बुद्धि के बिना सब बेकार हैं.
चना ऐसा जबरदस्त न हो जाये कि भाड़ फोड़ डाले. शासकों को हमेशा यह चिंता रहती कि प्रजा में से कोई क्षुद्र व्यक्ति विद्रोह कर के उनके शासन को न उखाड़ फेंके.
चना और चुगल को मुहँ नहीं लगाना चाहिए. (चना और चुगल मुँह लग जाए तो छूटता नहीं है). चुगल – जो दूसरों की बुराई (परनिंदा) करता हो. ऐसे व्यक्ति को मुँह नहीं लगाना चाहिए, क्योंकि फिर आपको भी परनिंदा में रस आने लगता है. कहावत को रुचिकर बनाने के लिए चने का उदाहरण जोड़ दिया गया है.
चना कूदे तो कितना कूदे, कढ़ाई से बाहर. छोटा आदमी बहुत बड़ा काम नहीं कर सकता.
चना मर्द नाज है. चना खाने से ताकत आती है, इसलिए ऐसा कहा गया है.
चना, चबेना, गंगजल जो पुरवे करतार, काशी कबहुँ न छाँड़िये विश्वनाथ दरबार. अर्थ स्पष्ट है.
चने चबाओ या शहनाई बजाओ. अगर शहनाई बजाना है तो चने नहीं चबा सकते. जब दो प्रिय कामों में से एक को चुनने की मज़बूरी हो तो.
चने चाब कर उँगलियाँ चाटने में क्या स्वाद आएगा. जब हम कोई स्वादिष्ट भोजन करते हैं तो उसके बाद उंगलियाँ चाटने में आनंद आता है, चने जैसी साधारण और बिना मसाले की चीज़ खा कर उँगली चाटने में क्या स्वाद आएगा.
चने चिरौंजी हो गए, गेहूँ हो गए दाख, घर में गहने तीन हैं, चरखा, पीढ़ी, खाट. अत्यधिक गरीबी. चने और गेहूँ मिलना इतने मुश्किल हो गए जैसे चिरौंजी और किशमिश. घर में जो मूल्यवान वस्तुएं बची हैं वे हैं चरखा, बैठने का पीढ़ा और खाट. (देखिए परिशिष्ट)
चन्दन की चुटकी भली, गाड़ी भरा न काठ. गाड़ी भर कर लकड़ी मिलने के मुकाबले चुटकी भर चन्दन बेहतर है. यह उन्हीं के लिए कहा गया है जो चन्दन की कीमत जानते हैं.
चप्पा भर की झोपड़ी नई हवेली नाम. नाम के विपरीत गुण. चप्पा – चार अंगुल के बराबर जगह.
चप्पे जितनी कोठरी और मियाँ मोहल्लेदार. बहुत छोटी से घर में रहते हैं और शान बघारते हैं. झूठी शान बघारने वालों के लिए. रूपान्तर – घर न बार, मियाँ मोहल्लेदार.
चबा के खाते तो हलक में क्यूँ फंसता. धैर्य पूर्वक काम करते तो परेशानी में क्यों पड़ते. रिश्वत लेने की उतावली में कोई कर्मचारी फंस जाए तो साथ वाले ऐसे बोलते हैं.
चबोकड़ सो लबोकड़. ज्यादा बातूनी आदमी झूठा होता है.
चमगादड़ के घर मेहमान आए, जैसे हम लटके वैसे तुम भी लटको भैया. गरीब के घर मेहमान आए तो वह कहता है कि भैया जिस तरह मैं काम चलाता हूँ वैसे ही तुम भी काम चलाओ.
चमचागिरी न करो न कराओ. न किसी की चमचागीरी करनी चाहिए और न ही चमचों को देख कर खुश होना चाहिए. ट्रकों पर भी इस प्रकार की बहुत सी मजेदार कहावतें लिखी होती हैं.
चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए. पैसे के आठवें भाग को दमड़ी कहते थे. ऐसा कंजूस व्यक्ति जो शरीर के अंगों को नुकसान होने की दशा में भी रत्ती भर पैसा इलाज में न खर्च करे.
चमड़े का जल दुनिया पीवे. पहले के जमाने में चमड़े के मशक में कुएं से पानी भर कर भिश्ती लोग घर घर जा कर घड़ों में पानी भरते थे. (देखिये परिशिष्ट)
चमड़े की चलनी और कुत्ता रखकार (चाम का चमोटा, कूकुर रखवाल). चमड़े की चलनी की रखवाली भला कुत्ता कैसे कर सकता है. वह तो मौका मिलते ही उसे चबा जाएगा.
चमड़े की देवी को जूतों की पूजा. जैसी देवी वैसी पूजा.
चमत्कार को नमस्कार. चमत्कार के आगे सब नतमस्तक होते हैं.
चमरिया को चाची कह दिया तो चौके में चली आई. किसी निम्न कुल की स्त्री को कुछ सम्मान दे दिया तो वह ज्यादा सर चढ़ गई. (कहावतें तत्कालीन समाज का दर्पण होती हैं. इस कहावत में उस समय व्याप्त छुआछूत और जात पांत का सटीक चित्रण है. यह कितना भी निन्दनीय क्यों न हो, उस समय की सच्चाई यही है).
चमार के मनाने से डांगर नहीं मरते. डांगर – गाय, भैंस, बकरी आदि. चमार के मनाने से पशु नहीं मरते. अर्थात किसी के चाहने से दूसरे का अनिष्ट नहीं हो जाता.
चमार चमड़े का यार. जिसका जो काम होता है उसको उसी से सम्बन्धित चीजों में रूचि होती है (चर्मकार को चमड़े में, लोहार को लोहे में, मिस्त्री को ईंट गारे में).
चमेली लाड़ में आई, घर भर साथ लाई. चमेली नाम की किसी घटिया स्त्री को दावत में बुला लिया तो वह सारे कुनबे को साथ ले आई. ओछे व्यक्ति से थोड़ा प्यार जता दो तो वह सर चढ़ जाता है.
चरणामृत के गटके, मिटें चौरासी योनि के भटके. चरणामृत पीने से मोक्ष प्राप्त हो जाता है. विशेषकर उन लोगों का कथन जिन्हें कथा से अधिक चरणामृत में रूचि होती है.
चर्बी छाई आंखन में तो नाचन लागी आँगन में. आँखों में चर्बी छाना – पैसे के प्रभाव से खा पी कर मोटा होना. पास में पैसा आया तो आंगन में नाचने लगीं.
चल चलन्ती, हग भरन्ती, जो रहन्ती, सो पोछन्ती. हग भरन्ती – विष्टा से भरना. निकृष्ट लोग अपना काम पूरा होने के बाद जब कोई स्थान छोड़ते हैं तो उसे गन्दा कर जाते हैं (जो आएगा वह साफ़ करेगा).
चल न सकूँ मेरा कूदन नाम. गुण के विपरीत नाम.
चल मरघट को लकड़ियाँ सस्ती हैं. कुछ लोग सस्ते के चक्कर में अनावश्यक सामान खरीद लेते हैं, उन का मज़ाक उड़ाने के लिए.
चलत फिरत धन पाइए, बैठे पावे कौन. कुछ परिश्रम करने से ही धन की प्राप्ति होती है. इंग्लिश में कहावत है – No gains without pains. सन्दर्भ कथा – किसी गाँव में एक धनाढ्य व्यक्ति रहता था. उसके पास अच्छी खासी जमीन थी और बहुत सी गायें भी थीं पर वह न तो खेती पर ध्यान देता था और न ही अपनी गायों पर. उस के पास धन की हमेशा तंगी रहती थी और उसका स्वास्थ्य भी खराब रहता था. एक बार उसके गाँव में एक महात्मा जी आए. वह उनके पास अपनी समस्याओं को दूर करने के लिए कोई उपाय पूछने पहुँचा. महात्मा जी ने उसे बताया कि सुबह मुँह अँधेरे स्वर्ग से एक हंस इस धरती पर आता है. जो कोई उस हंस को एक बार देख लेता है उस के जीवन में कभी कोई संकट नहीं आता.
दूसरे दिन पौ फटने से पहले ही वह व्यक्ति उठ कर उस हंस की तलाश में निकल पड़ा. गोशाला की ओर गया तो देखा कि ग्वाला गाय का दूध दुह कर अपने घर ले जा रहा है. मालिक को देख कर वह हड़बड़ा गया और क्षमा मांगने लगा. खलिहान के पास से निकला तो देखा कि उसका पुराना विश्वसनीय सेवक बोरी में अनाज भर रहा है. वह भी सिटपिटा गया और माफ़ी मांगने लगा. पूरे सप्ताह वह हंस की तलाश में घूमता रहा और जहाँ भी वह गया वहाँ कुछ न कुछ गड़बड़ी होती मिली. उसको अपने स्वास्थ्य में भी बहुत परिवर्तन महसूस हुआ. वह फिर उन महात्मा से मिलने गया और उन्हें बताया कि हंस तो उसे नहीं मिला पर हंस की खोज में जाने से लाभ बहुत हुआ. महात्मा जी ने कहा कि वत्स! परिश्रम ही वह हंस है.
चलता है तो चल निगोड़े, मैं तो गंगा नहाउंगी. पत्नी पति को धमकी दे रही है कि तुम्हें चलना है तो चलो, मैं तो गंगा नहाने अवश्य जाऊँगी. अपनी इच्छा दूसरों पर जबरदस्ती थोपना.
चलती का नाम गाड़ी, गाड़ी का नाम उखली. संसार के रीति रिवाज़ उलटे हैं. कबीर कहते हैं – रंगी को नारंगी कहते, नकद माल को खोया, चलती को तो गाड़ी कहते, देख कबीरा रोया.
चलती के पौ बारह. जिस की किस्मत चल रही हो वह अपने हर काम में सफल होता है.
चलती गाड़ी में तेल सब कोऊ देत. लाभ देने वाले व्यापार में सब पैसा लगाते हैं.
चलती चाकी देख के, दिया कबीरा रोय, दुइ पाटन के बीच में, साबित बचा न कोय. संसार की चक्की चलती देख कर कबीरदास को रोना आ रहा है. चाकी का एक पाट सांसारिक माया मोह है और दूसरा पाट भगवान की भक्ति है, इन के बीच में कोई भी साबुत नहीं बचता.
चलती में न चलाये वो बावला और न चलती में चलाये वो भी बावला. जो अवसर का लाभ न उठाए वह मूर्ख और जो बिना अवसर लाभ उठाने की कोशिश करे वह भी मूर्ख.
चलती रोजी पे लात मारत. मूर्खतावश बँधी- बँधायी नौकरी छोड़ना या चलते व्यापार को नुकसान पहुँचाना.
चलती हवा से लड़े. बहुत लड़ाका औरत के लिए.
चलते चाक से बड़े बड़े घड़े भी निकल आते हैं पर रुके हुए चाक से छोटा दिया भी नहीं. चलते हुए व्यापार में से कुछ भी बड़े खर्चे किये जा सकते हैं, पर व्यापार बंद हो जाए तो छोटे छोटे खर्चों के भी लाले पड़ जाते हैं.
चलते बरधा को डंडे नहीं मारे जाते (चलते घोड़े को चाबुक कैसा). जो कर्मचारी अच्छा काम करता हो उसे व्यर्थ में नहीं फटकारना चाहिए.
चलन न पावे कूदे नाला. चल तो पाते नहीं और चले हैं नाला कूदने. मूर्खतापूर्ण दुस्साहस.
चलना भला न कोस का, बेटी भली न एक, देना भला न बाप का, जो प्रभु राखे टेक. कोस भर चलना पड़े (सवारी न हो), एक ही संतान हो वह भी बेटी, पिता का ऋण बेटे को चुकाना पड़े, ईश्वर इन सब परेशानियों से बचाए. इस के उत्तर में किसी ने कहा है – चलनो भलो तो कोस को, दुहिता भली तो एक, मांगन भलो तो बाप सों, जो मांगे पर देत. थोड़ा बहुत चलना पड़े तो अच्छा, बेटी एक हो तो अच्छी, और माँगना ही पड़े तो ऐसे पिता से माँगना अच्छा जो आसानी से दे देता हो.
चलना है रहना नहीं, चलना बिस्वे बीस, ऐसे सहज सुहाग पर कौन गुंधावे सीस. संसार से सब को निश्चित रूप से जाना है तो ऐसे क्षणिक सुखों के लिए क्यों माथापच्ची करते हो. बिस्वे बीस – जैसे आजकल कहते हैं शत प्रतिशत, वैसे ही पहले के लोग कहते थे बिस्वे बीस (क्योंकि एक बीघे में बीस बिस्वे होते हैं).
चलनी चम्मा, घोड़ लगम्मा, कायस्थ गुलम्मा, ये तीनों नहिं कोऊ कम्मा (चलनी का चाम, घोड़े की लगाम, कायथ का गुलाम, तीनहुँ निकाम). चलनी का चमड़ा, घोड़े की लगाम और कायस्थ का नौकर, ये तीनों किसी और काम के लायक नहीं होते (कायस्थ आरामतलब और शौक़ीन मिजाज होते हैं इसलिए नौकर भी आलसी हो जाते हैं).
चलनी में दुहे और करम को टटोले. चलनी में दूध दुह रहे हैं और दूध इकट्ठा नहीं हो रहा है तो अपने भाग्य को रो रहे हैं. मूर्खतापूर्ण कार्य करना और भाग्य को दोष देना.
चलनी में न दाने, अम्मा चलीं भुनाने. पहले के लोग कभी भुने चने या मक्का खाने का मन हो उन को चलनी आदि किसी बर्तन में रख कर जाकर भाड़ में भुनवा लाते थे. कहावत का शाब्दिक अर्थ है कि चलनी में दाने तो है नहीं और अम्मा भुनाने चल दी हैं. अर्थात घर में कुछ नहीं है लेकिन तड़क-भड़क और दिखावा खूब है.
चला चली की राह में, भला भली कर लेहु (चला चली के मेले में, भला भली खरीदो). इस संसार से कब जाना पड़ जाए यह कोई नहीं जानता, इसलिए परोपकार अवश्य करो, वही साथ जाएगा.
चला जाए जी तो क्या करेगा घी. प्राण चले जाएंगे तो रखा हुआ घी किस काम आएगा. कंजूस लोगों पर व्यंग्य.
चले जब तक चलने दो. जब तक काम चले चलाना चाहिए.
चले तो अगाड़ी, ध्यान रहे पिछाड़ी. आगे को चलो लेकिन पीछे का भी ध्यान रखो.
चले तो चाकी, नहीं तो पत्थर. जो चीज जिस काम के लिए बनाई गई है वही नहीं करेगी तो वह बेकार है.
चले रांड का चरखा और चले चटोरे का पेट. विधवा स्त्री बेचारी पेट पालने के लिए लगातार चरखा चलाती है और चटोरे आदमी का पेट अंट शंट खाने के कारण खराब होता रहता है. पेट चलना – दस्त होना.
चले हल न चले कुदारी, बैठे भोजन दे मुरारी. आलसी और मुफ्तखोरों के लिए.
चश्मे बद्दूर, आँखें मोतीचूर. छोटी आँख वालों का मजाक उड़ाने के लिए. चश्मे बद्दूर उर्दू का शब्द है जिसका अर्थ है बुरी नजर दूर रहे. चश्म – आँख, बद – बुरी.
चस्का दिन दस का, पराया खसम किसका. दूसरी महिला के पति पर डोरे डालने वाली महिला को सीख दी जा रही है कि पराया पति तुम्हारा सगा नहीं होगा.
चाँद आसमान चढ़ा, सबने देखा. जब व्यक्ति उन्नति करता है तो उस पर सबकी निगाह पड़ती है.
चाँद उगेगा तो क्या आंचल में छुपेगा. चाँद उगेगा तो सारी दुनिया को दिखेगा. प्रतिभा छिपती नहीं है.
चाँद के ऊपर थूको तो वह अपने ऊपर ही आता है. महापुरुषों और महान कृतियों पर कीचड़ उछालने से अपनी ही छवि खराब होती है.
चाँद के सामने तारों की परवाह कौन करे. बड़े आदमी के सामने छोटों को कोई नहीं पूछता.
चाँद को भी ग्रहण लगता है. महान से महान व्यक्ति को भी कभी न कभी बदनामी झेलनी पड़ती है.
चाँद देखे चंद्रमुखी याद आए. परदेस में रहने वाले व्यक्ति को चाँद देख कर पत्नी/प्रेयसी की याद आती है.
चाँद में भी दाग है. (चंद्रमा में भी कलंक है). जब हम किसी बड़े आदमी की कोई कमी बताते हैं तो उसके प्रशंसक/समर्थक कहते हैं कि ऐसे तो हर व्यक्ति या वस्तु में कुछ न कुछ कमी होती है.
चांडालों के गाँव में कुत्ते भी खामोश. चांडाल – श्मशान में शवों का दाह संस्कार कराने वाला व्यक्ति. यह हमारे समाज की विकृति है कि चांडाल जैसा समाज के लिए आवश्यक मनुष्य घृणा का पात्र बना दिया गया है. उसको लोग निम्नतम श्रेणी का मनुष्य मानते हैं. कहावत में यह कहने की कोशिश की गई है कि नीच लोगों से सब डरते हैं, यहाँ तक कि कुत्ते भी.
चांदनी रात भाग्य में होती तो रतौंधी ही क्यों होती. रतौंधी – रात में दिखाई न देने की बीमारी, (विटामिन ए की कमी से होती है). जिन लोगों को यह बीमारी होती है उन्हें चांदनी रात में भी दिखाई नहीं देता. जिसके भाग्य में सुख न लिखा हो उसके लिए.
चांदनी से जले और हवा से उड़े. बहुत नाज़ुक आदमी.
चांदी का जूता सबके सर पर भारी. पैसे के बल पर सबको दबाया जा सकता है.
चांदी की चाबी सब द्वार खोले. पैसे से सब काम कराए जा सकते हैं.
चांदी की चोट पड़े तब सांड भी गाय हो जावे. पैसे के बल पर टेढ़े आदमियों को भी सीधा किया जा सकता है.
चांदी की मेख, खड़ी तमासा देख. जिस के पास पैसे की ताकत है वह सब कुछ कर सकता है.
चांदी देखे चेतना, मुख देखे व्यौहार. यहाँ चांदी से तात्पर्य चांदी के रुपयों से है. व्यापारी जब देख लेता है कि ग्राहक के पास रूपये हैं तभी माल दिखाने में रूचि लेता है, व्यक्ति को देख कर ही व्यवहार किया जाता है.
चाकर को उज्र नहीं, कूकुर को उज्र है. 1. नौकरी करने वाले को इस बात की स्वतंत्रता नहीं होती कि वह किसी काम को मना कर दे. उस से तो कुत्ता अधिक स्वतन्त्र होता है. 2. आप किसी बड़े आदमी से मिलना चाहते हैं. उसके नौकर को कोई आपत्ति नहीं है लेकिन उसका कुत्ता आप पर भौंके जा रहा है (या कोई महत्वहीन आदमी ख्वामखाह अड़ंगा डाल रहा है).
चाकर को चूकुर, चूकुर को पेसकार चाहिए. सरकारी नौकरी करने वाला चाहता है कि उसका काम कोई दूसरा कर दे. यही नहीं, उस दूसरे को भी कोई सहायक (पेशकार) चाहिए.
चाकर को ठाकुर बहुतेरे और ठाकुर को चाकर बहुतेरे. नौकरी करने वाले के लिए काम देने वालों की कमी नहीं है और काम देने वालों के लिए नौकरी करने वालों की कमी नहीं है.
चाकर चोर, राजा बेपीर, कहे घाघ को राखे धीर. बेपीर- निर्दयी. नौकर चोर हो और मालिक या राजा निर्दयी, तो भला आदमी कैसे धैर्य धारण कर सकता है.
चाकर से कूकुर भला जो सोये अपनी नींद. पहले के लोग नौकरी को बुरा समझते थे क्योंकि उस में किसी की गुलामी करनी पड़ती है. कहते थे कि नौकर से तो कुत्ता अधिक आजाद है.
चाकर है तो नाचा कर, ना नाचे तो ना चाकर. नौकरी करने वाले को मालिक की मर्ज़ी के अनुसार नाचना पड़ता है. जो नाचने को तैयार न हो वह नौकरी नहीं कर सकता. (चाकरी या तो ना करी, करी तो फिर ना नाकरी).
चाकरी में आकरी कैसी. नौकरी में अकड़ नहीं चल सकती.
चाकरी में न करी क्या. नौकरी करने वाला किसी काम को मना नहीं कर सकता.
चाकी फेरी, हुई चून की ढेरी. कोई काम शुरू करने की देर है, एक बार शुरू हो जाए फिर तो ढेर लग जाता है. चाकी फेरना – चक्की चलाना, चून – आटा.
चाचा पिए, भतीजे को चढ़े. जो लोग अपने रिश्ते दारों के बल पर ऐंठते फिरते हैं उन का मजाक उड़ाने के लिए.
चाची के मूंछें निकल आएं तो चाचा न कहलाएँ. कुछ काम ऐसे हैं जो चाचा ही कर सकते हैं. अगर चाची वो काम करने लगें तो चाचा और चाची में फर्क क्या रह जाएगा.
चातुर का काम नहीं पातुर से अटके. बुद्धिमान व्यक्ति वैश्या के चक्कर में नहीं पड़ता है.
चातुर की चेरी भली मूरख की नार से. कोई काम कराना हो तो बुद्धिमान व्यक्ति की नौकरानी से कहना बेहतर है बामुकाबले मूर्ख की स्त्री के.
चातुर को चिंता घनी, नहिं मूरख को लाज, सर औसर जाने नहीं, पेट भरे सो काज. घनी – बहुत अधिक, औसर – अवसर. समझदार व्यक्ति की बहुत सी चिंताएं होती हैं जबकि मूर्ख को कोई लाज शर्म नहीं होती. उसे केवल खाने से मतलब होता है.
चातुर को चौगुनी, मूरख को सौ गुनी. बुद्धिमान व्यक्ति इशारे में ही बात समझ लेता है, जबकि मूर्ख को बार बार समझाना पड़ता है.
चातुर तो चेरी भली, मूरख भली न नार. मूर्ख स्त्री से तो अक्लमंद दासी बेहतर होती है.
चातुर तो बैरी भलो, मूरख भलो न मीत (बुद्धिमान शत्रु से मूर्ख मित्र अधिक खतरनाक होता है). अर्थ स्पष्ट है. उदाहरण के लिए एक शिकारी, उसके शत्रु शेर और मित्र भालू की एक कथा है. सन्दर्भ कथा – एक शिकारी जंगल में शेर का शिकार करने गया. शेर बहुत चालाक था. वह झाडियों की ओट से हमला करता और फिर छुप जाता. शिकारी भी मंजा हुआ था. वह पूरी सावधानी से उस की हर हरकत पर नजर रखता और अपने आपको शेर के हमले से बचाता. सफलता न मिलते देख शिकारी ने अपनी सहायता के लिए एक भालू को शहद खिला कर उस से दोस्ती कर ली.
एक दिन शिकारी थक कर पेड़ के नीचे सोया था और भालू पास बैठ कर उस की रखवाली कर रहा था. एक मक्खी बहुत देर से शिकारी के मुँह पर बार बार बैठ जा रही थी. भालू बहुत देर तक उसे उड़ाता रहा. जब वह नहीं मानी तो भालू ने आव देखा न ताव मक्खी को मारने के लिए एक बड़ा सा पत्थर उठा कर शिकारी के मुँह पर दे मारा. बेचारा शिकारी बुद्धिमान शत्रु (शेर) के हाथों नहीं बल्कि मूर्ख मित्र (भालू) के हाथों मारा गया
चापलूसी का मुँह काला. चापलूसी करने वाले व्यक्ति से सावधान रहना चाहिए. चापलूसी कर के आगे बढ़ने वाले व्यक्ति का कोई सम्मान नहीं करता.
चाबी लागे ही ताला खुले. सही युक्ति से ही कोई कठिन काम पूरा किया जा सकता है.
चाबुक तो मिल गई, बस जीन, लगाम, घोड़ी ही बाकी है (रही बात थोड़ी, जीन लगाम घोड़ी). कोई व्यक्ति नाममात्र की वस्तु के मिलने से फूल उठे तब. किसी व्यक्ति को रास्ते में एक चाबुक पड़ी मिल गयी. इस पर उसने प्रसन्न होकर कहा – कि बस अब क्या है, जीन, लगाम, घोड़ी की कसर और रह गयी.
चाम प्यारा नहीं, दाम प्यारा है. जिसको अपने शरीर से पैसा अधिक प्यारा हो.
चामे तेल, गुलामे रोटी. तेल लगाने से जिस तरह चमड़ा मजबूत रहता है, उसी तरह भर पेट खाना खिलाने से नौकर भी ठीक काम करता है.
चार अफीमची तीन हुक्के. डिमांड अधिक हो और सप्लाई कम हो तो झगड़ा तो होगा ही.
चार आदमी चार मत. किसी भी बात पर हर व्यक्ति का मत भिन्न हो सकता है. प्रत्येक व्यक्ति के मत का सम्मान करना चाहिए.
चार आने का बाजरा, चौदह आने का मचान. चार आने के बाजरे की फसल की सुरक्षा के लिए चौदह आने का मचान बनाया है. छोटे से लाभ के लिए बहुत अधिक निवेश.
चार औरतें कजिए करें, तो कोई न कोई घर टूटे (औरतें इकटठी हों तो किसी का घर तोड़ती है). औरतें इकट्ठी होती हैं तो तरह तरह की बातें कर के एक दूसरे को भड़काती हैं और घरों में फूट डलवाती हैं.
चार कलेवा, आठ दुपर की, नौ ब्यारी को देओ गोपाला, इतने में कहुं फेर प्रे तो, जे लेओ अपनी कंठी माला. भोला भक्त भगवान से कह रहा है कि बस चार रोटी नाश्ते के लिए, आठ दोपहर में खाने के लिए और नौ रात के खाने के लिए दे दो. इतना भी न दे पाओ तो भजन पूजा किस काम की.
चार का मुँह कौन पकड़े. एक व्यक्ति की बात को दबाया जा सकता है, लेकिन यदि बहुत से लोग किसी बात को गलत बता रहे हों तो उन्हें चुप नहीं कराया जा सकता.
चार कान की बात ब्रह्मा भी नहीं छिपा सकता. कोई बात किसी एक व्यक्ति से कहो तो हो सकता है कि वह उसे अपने तक सीमित रखे, पर अगर दो लोगों से कह दी तब तो उसका फैलना तय है.
चार गोड़वा बांधा जाए, दो गोड़वा न बांधा जाए. चार पैर वाले (जानवर) को बांध कर रख सकते हैं दो पैर वाले (मनुष्य) को नहीं. गोड़ – पैर.
चार चोर चौरासी बनिया, एक एक कर लूटा. चार चोर, चौरासी बनियों (डरपोक लोगों) को एक एक कर के लूट सकते हैं. जब एक को लूट रहे हों तो बाकी चुपचाप देखते रहते हैं.
चार छावें, छह निरावें, तीन खाट, दो बाट. छप्पर छाने के लिए चार मनुष्य चाहिए, खेत निराने के लिए छह मनुष्य चाहिए, खाट बुनने के लिए तीन लोग चाहिए. राह चलने के लिए दो मनुष्य चाहिए।
चार जात गावें हरबोंग, अहीर, डफाली, धोबी, डोम. इन चार जातियों के लोग बेसुरा और बेतुका गाते हैं, अहीर, डफाली (डफली बजाने वाला), धोबी और डोम.
चार दिन का चस्का, फेर यार खिसका. स्वार्थी दोस्त तभी तक साथ रहते हैं जब तक आपके पास माल हो.
चार दिन की आइयाँ, और सोंठ बिसाइन जाईयां. अभी चार दिन आये हुए बीते हैं और सोंठ खरीदने चल दीं. सोंठ आमतौर पर प्रसव के बाद खिलाई जाती है. कोई नया आने वाला अधिक अधिकार जमाए तो.
चार दिन की चमर जोतिस. चमड़े का काम करने वाला कोई व्यक्ति ज्योतिषी बनने का ढोंग करके बैठा है. उसका यह ढोंग चार दिन में ही खुल जाएगा.
चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात (अंधियारी पाख). जब व्यक्ति को मालूम होता है कि कुछ दिनों की मौज मस्ती के बाद फिर परेशानी आनी है, तब वह यह कहावत कहता है.
चार दिन की छोरी को बेटा हुआ, गोड़ पे रक्खी चूहा ले गया. बहुत कम आयु की कन्या माँ बन जाए तो बच्चे की ठीक से देखभाल नहीं कर सकती, इस बात को हास्यपूर्ण ढंग से कहा गया है.
चार दिन के गईले, सुग्गा मोर बन के अईले. (भोजपुरी कहावत) कुछ दिन विदेश में कुछ दिन रह कर जो अपने को अंग्रेज समझने लगते हैं. सुग्गा – तोता. गइले – गया, अइले – आया.
चार दिन को महुआ हमें दे दो, फिर तो तुम्हारा ही है. महुओं में फूल आते हैं तब दस-पाँच दिन के भीतर ही टपक जाते हैं. उन्हीं दिनों के लिए कोई कहता है कि महुए हमें दे दो, फिर तो तुम्हारे हैं ही. निपट स्वार्थ सिद्धि.
चार पैर होते हुए भी घोड़ा ठोकर खा सकता है. साधन संपन्न और चतुर लोग भी धोखा खा सकते हैं.
चार बिछिये टन टन बाजें, नौ मन काजल नैन बिराजे, झीना घूँघट नखरा घना, थोथा चना बाजे घना. सुन्दर न होने पर भी बेतुका श्रृंगार कर के इतराने वाली स्त्रियों के लिए.
चार लठा के चौधरी पांच लठा के पंच, जिनके घर में छह लठा वो अंच गिनें न पंच. (बुन्देलखंडी कहावत) जिस घर के चार सदस्य लठैत हों वह गाँव का चौधरी बन जाता है, जहाँ पांच लाठी चलाने वाले हों वह पंच, जहाँ छह हों वह किसी को कुछ नहीं गिनता.
चार वेद और पांचवाँ लवेद. लवेद माने छड़ी. ज्ञान प्राप्त करने के लिए चार वेद चाहिए और पांचवीं छड़ी.
चार वेद चार ओर, ता बीच चतुरी, चारू वेद करना पड़े, चतुरी की चाकरी. चारों वेद के ज्ञान से बढ़ चतुराई महत्वपूर्ण है.
चार सुहाली, चौदह थाली, बाँटन वाली सत्तर जनी. सुहाली – मैदे की पापड़ी नुमा पूड़ी. काम बहुत कम, साधन अधिक और करने वाले बहुत लोग.
चारण मत कर चतुर्भज, नाई कीजे नाथ, आधी गद्दी बैठवों, माथा ऊपर हाथ. हे चतुर्भूज (भगवान विष्णु), मुझे चारण मत बनाना, नाई बनाना क्योंकि नाई राजा के पास गद्दी पर बैठता है और राजा के मस्तक पर हाथ रखता है. चारण – भाट (राजा की प्रशंसा के गीत गाने वाले).
चारा खरीदने के लिए गाय बेच दो. गाय का चारा खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं तो कुछ बेच कर पैसों का प्रबंध करना पड़ेगा. कोई मूर्ख व्यक्ति सलाह दे रहा है कि गाय बेच कर चारा खरीद लो. अरे भाई! जब गाय नहीं होगी तो चारे का करोगे क्या. किसी समस्या के समाधान के लिए मूर्खतापूर्ण सुझाव देने वालों पर व्यंग्य.
चारु सो भारु. 1.जो अधिक चारा खाता है वह बोझ बन जाता है. 2.बोझा ढोने वाला जानवर अधिक खाता है.
चारों धार दुहारी में पड़ें, तो भरती क्या देर लगे. दुहारी – दूध दुहने की बाल्टी. गाय को दुहते समय चारों थन का दूध बाल्टी में पड़े तो वह जल्दी भरेगी. काम करने वाले कई लोग हों तो काम निबटने में देर नहीं लगती.
चाल गड मगड, मतलब में चौकस. चाल ढाल में भोंदू लगते हैं पर अपने मतलब में होशियार हैं.
चाल चटके की, मौत पटके की. चाल फुर्ती भरी हो और मौत फटाफट वाली हो. प्रभु से मांगते हैं कि जब तक जिएँ स्वास्थ्य अच्छा रहे और जब मृत्यु आए तो तुरंत आ जाए, घिसटना न पड़े.
चाल चपल, मुख चरपरा, निपट निलज्जा होय, नाक काट गुद्दी धरे, करे दलाली सोय. तेज चलने वाला, अधिक बोलने वाला और निर्लज्ज व्यक्ति ही दलाली कर सकता है.
चाल रहे सादा तो निबहे बाप दादा. जो व्यक्ति सादा और सरल जीवन जीते हैं वे ही अपने कुटुंब की मर्यादा निभा पाते हैं.
चाल, सुभाव, बिबाई, तीनूं संगै जाई. जिस प्रकार व्यक्ति का चाल चलन और स्वभाव अंत तक साथ रहता है उसी प्रकार पैरों की बिबाई भी मृत्यु तक पीछा नहीं छोड़तीं.
चालाक पदनी पहले नाक दाबे. अपान वायु खारिज करने को बोलचाल की अशिष्ट भाषा में पादना कहा जाता है. पदनी का अर्थ है पादने वाली स्त्री. इस प्रकार की वायु में अक्सर दुर्गन्ध होती है. इसलिए चालाक लोग अपान वायु से पहले नाक बंद कर लेते हैं. कहावत का अर्थ है, चालाक आदमी कोई गलत काम करने से पहले अपने आप को बचाने का प्रबंध कर लेता है.
चालीस में चार कम हजाम, पंडित जी सलाम. चालीस में चार कम अर्थात छत्तीस. हज्जाम (नाई) छत्तीसा अर्थात बहुत चालाक होते हैं और पंडित को भी मूर्ख बना सकते हैं.
चालीस सेरा ऊत. मूर्ख व्यक्ति के लिए.
चालीस सेरी बात. बिलकुल ठीक बात, जिसमें लाग-लपेट न हो.
चाव घटे नित घर के जाए, भाव घटे कुछ मुँह के मांगे, रोग घटे औषधि के खाए, ज्ञान घटे कुसंगत पाए. बार बार कहीं जाने से मिलने की ललक कम हो जाती है, कुछ मांगने से सम्मान कम होता है, औषधि खाने से रोग कम होता है और कुसंगति से ज्ञान कम होता है.
चावल की कनी और भाले की अनी. पकने में चावल यदि कच्चा रह जाय तो उसकी कनी भाले की नोंक की तरह
हानिकर होती है.
चावल दाल मेरे पास, लकड़ी बिन करहूँ उपास. चावल और दाल जैसे मुख्य भोज्य पदार्थ मेरे पास हैं पर मैं जलाने की लकड़ी न होने के कारण भूखा हूँ. साधन कितना भी गौण क्यों न हो उस का भी महत्व होता है.
चावल बेच कोदों लई, जा अक्कल तोय कौन ने दई. महंगी चीज के बदले सस्ती चीज लेने वाले मूर्ख के लिए.
चाह करे ताकि चाकरी कीजे, अनचाहत का नाम न लीजे. जो प्रेम करे उसकी नौकरी करो और जो न करे उस का नाम भी न लो.
चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह, जिनको कछू न चाहिए, वे साहन के साह. जब तक मनुष्य कुछ पाने की इच्छा करता है तब तक वह चिंताओं से दबा रहता है. जब मनुष्य अपने को इन इच्छाओं से मुक्त कर लेता है तब वह शहंशाह बन जाता है.
चाह चमारी चूहड़ी, सब नीचन की नीच. चाह का अर्थ यहाँ लालच से है. चमारी – चर्मकार जाति की महिला, चूहड़ी – सफाईकर्मी महिला. पुराने जमाने में जब छुआछूत और सामाजिक विषमता का बोलबाला था, तब चर्मकार और सफाई कर्मियों को नीची जाति का कह कर अपमानित किया जाता था. उस समय की कहावत में लालच करने की वृत्ति को बहुत निम्न कोटि का बताने के लिए चमारी और चूहड़ी से उपमा दी गई है.
चाहले की भैंस. ऐसी स्थूलकाय स्त्री के लिए जिसका पति उसे खूब लाड़ प्यार से रखता हो.
चाहे गाड़ी भर दहेज़ मिल जाए, पर ऐसे घर में ब्याह न करे जहाँ साला न हो. सही बात है, सास ससुर के न रहने पर साले से ही ससुराल होती है.
चाहे जहाँ जाओ, अपने आप से मुक्ति नहीं पा सकते. आदमी दुनिया से भाग सकता है लेकिन अपनी अंतरात्मा से नहीं.
चाहे जितने आदमी काम पर लगाओ, बच्चा पैदा होने में नौ महीने ही लगेंगे. यह समझना जरूरी है कि कुछ काम ऐसे होते हैं जिनमें समय लगता ही है.
चाहे देकर भूल जाए, पर लेकर कभी न भूले. उधार दे कर वापस लेना भले ही भूल जाओ, लेकर वापस करना कभी नहीं भूलना चाहिए.
चाहे मार चाहे तार. ईश्वर के सब आधीन हैं, वह चाहे मारे चाहे तार दे.
चिंता ऐसी डाकिनी काट के जिउ को खाय, बैद बिचारा क्या करे कितनी दवा लगाय. डाकिनी – डायन, जिउ – मन. चिंता बहुत बुरी बीमारी है, मनुष्य को घुला देती है, इसकी कोई दवा भी नहीं है.
चिंता चिता समान है. चिता तो मृत देह को जलाती है पर चिंता जीवित व्यक्ति को ही जला डालती है.
चिंता ज्वाल सरीर वन, दाह लगे न बुझाय, प्रकट धुंआ न देखिये भीतर ही धुन्धुआए. शरीर रूपी वन के लिए चिंता दावानल (जंगल की आग) के सामान है जो बुझाए नहीं बुझती. फर्क यह है कि इस आग में धुंआ दिखाई नहीं देता, भीतर ही भीतर घुटता रहता है.
चिकना मुँह पेट खाली. देखने में अच्छा भला पर वास्तविकता में अभावग्रस्त. कुछ लोग इसे इस प्रकार बोलते हैं – दिल्ली की दलाली, मुँह चिकना पेट खाली. बड़े शहरों में रहने वाले आमतौर पर अभावग्रस्त होते हैं.
चिकना मुँह सब कोऊ देखत. चिकना मुँह माने संपन्न व्यक्ति. ऐसे व्यक्ति की तरफ सब की नजर जाती है.
चिकनाई बिना पहिया न चले. जिस प्रकार पहिए की धुरी में चिकनाई लगाए बिना गाड़ी नहीं चलती, उसी प्रकार सरकारी विभागों में बिना पैसा दिये काम नहीं होता.
चिकनियां फकीर, मखमल का लंगोट. अपने आप को अत्यंत सादा दिखाने वाले शौक़ीन व्यक्ति पर व्यंग्य.
चिकनी बातों मत पतियाओ. चिकनी चुपड़ी बातों पर विश्वास मत करो.
चिकने गाल तिलनियाँ के औ जरे भुजे भुरजनिया के. तेली की औरत के गाल चिकने हो जाते हैं और भड़भूंजे की औरत के गाल काले हो जाते हैं. अर्थात व्यक्ति जो काम करता है उसका असर उस के रंग रूप पर पड़ता है.
चिकने घड़े पर पानी नहीं ठहरता. बेशर्म आदमी को किसी भलाई बुराई से कोई फर्क नहीं पड़ता.
चिकने घड़े पर पानी नहीं ठहरता, पर मैल जम सकता है. ऊपर वाली कहावत को अधिक विस्तार से कहा गया है. बेशर्म आदमी कायदे की बात नहीं सीखता पर अनुचित बात फौरन सीख लेता है.
चिकने घाट बैठ कर उतरो. यदि नदी का घाट चिकना हो तो बैठ कर आगे बढ़ना चाहिए. प्रतिकूल परिस्थिति में अतिरिक्त सावधानी आवश्यक है.
चिकने मुँह को सब चूमते हैं. 1.संपन्न व्यक्ति की सब प्रशंसा करते हैं. 2.कमज़ोर का फायदा सब उठाते हैं.
चिकोटी काटो न बकोटे जाओ. किसी को चुटकी लोगे तो वह भी तुम्हें बकोटेगा (जोर से नोचेगा).
चिड़ा चिड़ी की क्या लड़ाई, चल चिड़े मैँ तेरे पीछे आई. चिड़िया व चिड़े की कैसी लड़ाई, पति-पत्नी के बीच का मनमुटाव क्षणिक होता है.
चिड़िया का धन चोंच. चिड़िया के लिए चोंच ही सबसे बड़ी संपत्ति है क्योंकि उसीसे वह खाती पीती है, और उसी से हाथ पैरों का काम भी लेती है. इसी प्रकार गरीब आदमी के हाथ ही उसका धन हैं.
चिड़िया की चोंच में चौथाई हिस्सा. जब किसी गरीब की कमाई में कोई हिस्सा मांगे.
चिड़िया की चोंच में सौ मन काठ. किसी गप्प मारने वाले का मजाक उड़ाने के लिए.
चिड़िया को बाज से क्या काम? सही बात है, भला शिकार को शिकारी से क्या काम हो सकता है. कोई भोला भाला व्यक्ति किसी दुष्ट के जाल में फंसने जा रहा हो तो उसे सावधान करने के लिए.
चिड़िया चाहे जितने प्यार से पाले, पंख लगते ही बच्चे उड़ जाते हैं. माँ बाप चाहे जितने प्यार से बच्चों को पालें, कमाना शुरू करते ही वे अलग हो जाते हैं.
चिड़ियों की मौत, गवारों की हंसी. मूर्ख और स्वार्थी लोग यह नहीं देखते कि उन के मनोरंजन में निरीह लोगों का कितना नुकसान हो रहा है.
चिड़ियों के शिकार में शेर का सामान. छोटे से काम के लिए बहुत टीम टाम.
चिड़ी चोंच भर ले चली, नदी न घट्यो नीर, धरम किए धन न घटे, कह गए दास कबीर. कहावत द्वारा दान धर्म के लिए प्रेरित किया गया है. भिखारी लोग इस तरह की बातें सुना कर लोगों को दान करने के लिए कहते हैं.
चिढ़े को चिढ़ाएंगे, हलुआ पूरी खाएंगे. जो चिढ़ने वाला हो उसे चिढ़ाने में सब को मज़ा आता है.
चित भी मेरी पट भी मेरी, अंटा मेरे बाप का. किसी भी सिक्के के एक साइड को चित और दूसरी साइड को पट कहते हैं. कई बार लोग किसी बात का फैसला सिक्का उछाल कर करते हैं. सिक्का उछालने से पहले ही एक व्यक्ति बोल देता है कि चित आने पर वह जीतेगा. लाख में एक चांस यह भी होता है कि सिक्का न चित पड़े न पट बल्कि खड़ा हो जाए. इसे अंटा कहते हैं. कोई किसी फैसले को अपने पक्ष में करने के लिए जोर जबरदस्ती कर रहा हो तो यह कहावत कहते हैं. इंग्लिश में कहावत है – Heads I win, Tails you lose.
चित्त चंदेरी, मन मालवे. चित्त तो चंदेरी में है और मन मालवे में. अस्थिर चित्त व्यक्ति.
चित्त लगा भोजन में कवित्त को कहवें. (बुन्देलखंडी कहावत) मन तो भोजन में लगा है और कविता सुनाने को कहा जा रहा है.
चिराग गुल, पगड़ी गायब. चोर और जेबकतरे निगाह बचते ही अपना काम कर जाते हैं.
चिराग तले अंधेरा. दीपक जलता है तो चारों ओर प्रकाश फैलता है पर दीपक के नीचे अँधेरा रहता है. कोई व्यक्ति देश या समाज के लिए बहुत कुछ कर रहा हो पर उसके अपने घर में अभाव हों तो यह कहावत कही जाती है.
चिराग में बत्ती और आँख में पट्टी. जो लोग बहुत जल्दी सो जाते हैं उनके लिए. जलते दिये को बुझाने के लिए लोग बत्ती को दीपक से बाहर कर देते थे जिससे तेल न मिलने के कारण वह बुझ जाए. बोलचाल की भाषा में इसे बाती बढ़ाना या दिया बाती करना कहते थे. विशेष रूप से यह कहावत उन पुरुषों का मजाक उड़ाने के लिए कही जाती है जो किन्हीं कारणों से दाम्पत्य सुख नहीं उठाते और दीपक बुझने के बाद फौरन सो जाते हैं. कुछ स्त्रियाँ अपने पतियों की इस आदत से बहुत परेशान भी रहती हैं. रूपान्तर – अँधेरा चढ़े, बिछौना पड़े.
चिवड़ा दही बारह कोस, पूड़ी अठारह कोस. पूड़ी के मुकाबले चिवड़ा दही जल्दी पच जाता है, इसलिए अगर अधिक दूर जाना है तो पूड़ी खा कर जाना चाहिए.
चिवड़ा मुर मुर दही खट्टा, सास बहू में हंसी ठठ्ठा. बच्चों की आपसी मजाक.
चिवड़े का गवाह दही. दही व चिवड़े को एक साथ खाया जाता है. दो लोगों में अटूट सम्बन्ध हो तो.
चींचड़ी को खाज (जूं के सिर में खाज). चीलर और जूँ जो सभी प्राणियों के शरीर में खुजली पैदा करती हैं उन्हें खुद ही खुजली हो जाए. कोई दुष्ट व्यक्ति अपनी दुष्टता के कारण किसी परेशानी में पड़ जाए तो.
चींटी की आवाज़ अर्श तक. निर्बल की पुकार ईश्वर सुनता है. अर्श माने आसमान.
चींटी की खाल निकालना. किसी बात में व्यर्थ की बारीकियाँ ढूँढना. बाल की खाल निकालना.
चींटी की मौत आती है तो उसके पंख निकल आते हैं (चींटी के पर निकले और मौत आई). छोटा आदमी बड़ा दुस्साहस करे तो उसकी बर्बादी निश्चित है.
चींटी के खाये पहाड़ घटे. विशाल पर्वत भी चींटी जैसे क्षुद्र प्राणी द्वारा नित्य खाए जाने पर धीरे धीरे समाप्त हो जाता है. छोटे छोटे नुकसान और चोरी भी बड़े से बड़े व्यवसाय को नष्ट कर सकते हैं.
चींटी के घर नित मातम. गरीब आदमी पर कोई न कोई दुख टूटता ही रहता है.
चींटी को अपने पैर भारी हाथी को अपने पैर भारी. बड़ा आदमी बड़ी मुसीबतों से परेशान होता है तो छोटे आदमी को उसकी छोटी परेशानियाँ भी उतना ही परेशान करती हैं.
चींटी को पेशाब की धार ही बहुत है. गरीब के लिए छोटी मोटी आपदा भी जानलेवा बन सकती है.
चींटी चली प्रयाग नहाने. दुस्साहस करने वाले क्षुद्र व्यक्ति के लिए.
चींटी चावल ले चली बिच में मिल गई दाल, कहें कबीर दोऊ ना चलें, इक ले दूजी डाल. चींटी चाल ले कर चली तो बीच में दाल मिल गई. दोनों नहीं ले जा सकती, एक को छोड़ना पड़ेगा. मनुष्य के लिए भी इस संसार में इसी प्रकार की दुविधा है. वासनाएं और भक्ति दोनों को ले कर नहीं चल सकता.
चींटी चाहे सागर थाह (चींटी लेत समुन्दर थाह). बहुत क्षुद्र व्यक्ति अपनी औकात से बहुत अधिक प्रयास करे तो.
चींटी जावे सासरे, नौ मन सुरमा डाल. 1.बच्चों द्वारा मजाक में बोली जाने वाली कहावत. 2.अधिक लीपापोती करने वाली महिलाओं का मजाक उड़ाने के लिए.
चींटी पे मनों का बोझ. असमर्थ पर बड़ा बोझ.
चींटी होके घुसे, मूसल होके निकले. छोटा सा मौका पा कर घुस जाना, और फिर मुश्किल से छोड़ना.
चीज़ के दाम और कीमत में पूरब पश्चिम का फर्क है. यहाँ कीमत से अर्थ उपयोगिता से है. चीज़ कितनी सस्ती या महंगी है इस का कोई संबंध इस बात से है कि उसकी उपयोगिता कितनी है.
चीज न राखे आपनी, चोरन गाली देय, चोर बिचारा क्या करे, पड़ी पाय सो लेय. यदि आपने अपनी चीज़ संभाल कर नहीं रखी और वह चोरी हो गई तो इस के लिए चोर को गाली न दें.
चीटा मारे पानी हाथ. गरीब को सताने से कुछ हासिल नहीं होता. रूपान्तर – बगुला मारे पखना हाथ.
चीरे चार बघारे पांच. थोड़ा काम कर के बहुत ज्यादा बताना. बघारना के दोनों अर्थ हैं – छौंक लगाना (जैसे तरकारी बघारना) एवं बढ़ा चढ़ा कर बताना (जैसे शान बघारना).
चील का मूत. असंभव वस्तु (जो चीज़ दुनिया में होती ही नहीं है).
चील के घर में मांस की धरोहर. (चील के घोंसले में मांस कहाँ). चील के घोंसले में मांस ढूँढना मूर्खता है. चील मांस छोड़ेगी ही नहीं. चोर उचक्कों की नगरी में आप कोई कीमती सामान भूल आएँ और उसे ढूँढने जाएँ तो.
चील रंग सब कोई, सियारी रंग कोई ना (चील्हो रंग सब कोय सियारो रंग कोय न). व्रत को भंग करने वाली स्त्रियों को जन्म जन्म तक उस पाप का फल भोगना पड़ सकता है. सन्दर्भ कथा – सब लोग चील्हो की तरह हों, सियारो की तरह कोई नहीं. चील्हो (चील) और सियारो (सियारिन) दो सहेलियाँ थीं. दोनों ने जीवत्पुत्रिका-व्रत किया. सियारिन को बड़ी भूख लग गई. वह अपनी माँद में, कहीं से हड्डी-सहित माँस का टुकड़ा लाकर खाने लगी. कट-कट की आवाज सुन, पेड़ पर बैठी चील ने पूछा, सखी, तुम्हारी माँद में से कट-फट की आवाज कैसी आ रही है. इस पर सियारिन ने जवाब दिया, भूख के मारे शरीर की हड्डियाँ पटपटा रही है. मृत्यु के बाद एक ही नगर में चील रानी के रूप में तथा सियारिन वणिक स्त्री के रूप में पैदा हुई. दोनों के सात-सात पुत्र हुए. संयोग ऐसा कि जब-जब चील के लड़कों की शादी होती, तब-तब सियारिन का एक लड़का मर जाता. सियारिन ने एक दिन चील से इसका कारण पूछा, तो चील ने उसे पूर्वजन्म की घटना बतलाते हुए कहा कि व्रतभंग के पाप के कारण तुम्हारे बच्चे मर जाते हैं.
चीलर मारे कुत्ता खाए. दुनिया को दिखाने के लिए चीलर मार रहा है और मौका मिलने पर कुत्ते को खा जाता है. ऐसे कुटिल व्यक्ति के लिए जो भलाई के छोटे मोटे काम कर के वाहवाही लूटे और मौका लगने पर बड़ी चीज़ पर हाथ साफ़ करे.
चीलर, जूँ और चिथरा, तीनूँ बिपत के बखरा. ये तीनों चीजें अत्यंत दयनीय हालत दर्शाती हैं.
चुंगी के डर से कोउ माल नाहीं फेंकत. यह सही है कि व्यापारी लोग चुंगी बचाना चाहते हैं लेकिन इतना भी मूर्ख कोई नहीं होता जो चुंगी न देने के चक्कर में अपना माल ही छोड़ कर भाग जाए.
चुका वायदा, दिखाया कायदा. काम निकल जाने के बाद नियम बताने लगना.
चुग गईं मोरनियाँ, फँस गयो मोर. होशियार आदमी काम बना कर चलता बना, सीधा आदमी चक्कर में आ गया.
चुगलखोर खुदा का चोर. चुगलखोर व्यक्ति भगवान की नजर में चोर के समान होता है.
चुगली लग जात, पर बिनती नाहिं लगत. चुगलखोर चुगली करके जो काम बना लेता है, वह गरीब आदमी द्वारा की गई अनुनय विनय से नहीं बनता. हाकिम लोगों के यहाँ चुगली सुनी जाती है पर विनती नहीं.
चुटके का खाए, उकटे का न खाए. चुटका – गरीब, उकटा – सहायता कर के एहसान जताने वाला.
चुटिया को तेल नहीं, पकौड़ी को जी चाहे. आज के जमाने में खाने के लिए भी तरह तरह के तेल उपलब्ध हैं और सर में डालने के लिए भी, पर पहले के जमाने में ले दे कर एक सरसों का तेल ही सब कामों में आता था. कहावत का अर्थ है कि सर में डालने लायक जरा सा तेल तक तो है नहीं और पकोड़ी खाने का मन कर रहा है जिसके लिए बहुत सारा तेल चाहिए. कुछ भी न होते हुए बहुत कुछ की इच्छा करना.
चुड़ैल पर दिल आ जाए तो वह भी परी है. जो चीज़ अपने को पसंद आ जाए वही अच्छी है. इस तरह की एक कहावत और है – दिल लगा गधी से तो परी क्या करे. माँ बाप बेटे की शादी अपनी पसंद की किसी घरेलू लड़की से करना चाहते हों पर लड़का किसी फैशनेबिल लड़की से शादी करने के लिए अड़ा हुआ हो तो.
चुप आधी मर्ज़ी. कोई बात सुन कर अगर आप चुप रहते हैं तो इस का मतलब यह है कि आप उससे काफ़ी कुछ सहमत हैं. इस कहावत को इस प्रकार से भी कहा गया है – खामोशी नीम रजा.
चुप चुपओ ब्याह, ढम ढमओ ब्याह. परिस्थितियों के अनुसार शादी विवाह या कोई भी आयोजन चुप चुपाते भी किए जाते हैं और ढोल बाजे बजा कर भी. मुगलों के समय लूटपाट के डर से चुपचाप रात में विवाह करने की प्रथा आरम्भ हुई थी. अन्यथा भारतीय संस्कृति में दिन में विवाह करने का चलन था.
चुप रहने का मौका कभी मत छोड़ो. चुप रहने से बहुत से विवाद और समस्याएँ हल हो जाते हैं.
चुपको रह चन्दन, यहाँ करीलन को वन है. चन्दन को समझाया जा रहा है कि यहाँ करील (कांटेदार झाड़ियाँ) का जंगल है. तुम चुप रहो. यहाँ तुम्हारी कोई कद्र नहीं होगी.
चुपड़ी और दो दो (चुपड़ के और चार ठो). गरीब आदमी के लिए चुपड़ी रोटी एक नियामत है और वो भी दो मिल जाएं तो क्या कहने. कोई अच्छी चीज़ मिल रही हो और वह भी उम्मीद से अधिक तो यह कहावत कही जाती है. इस प्रकार की दूसरी कहावत है – मीठा और भर कठौती.
चुप्पा आदमी गहरा होता है. बहुत बोलने वाला आदमी आमतौर पर हलकी मानसिकता का होता है जबकि चुप रहने वाले में गहराई होती है.
चुप्पा कुत्ता पहले काटे. जहाँ कई कुत्ते बैठे हों वहाँ जो कुत्ते बहुत भौंक रहे हों उनसे खतरा कम है. जो कुत्ता चुप बैठा हो वह पहले काटेगा. इसी तरह चुप रहने वाला आदमी भी अधिक खतरनाक होता है. इंग्लिश में कहावत है – Beware of silent dog and still waters.
चुप्पे का गुस्सा, भूसे में आग जैसा. भूसे में जब आग लगती है तो वह शुरू में धीरे सुलगती है पर कभी भी विकराल हो सकती है. ऐसे ही चुप रहने वाला व्यक्ति मन में क्रोध करता है जोकि बहुत खतरनाक होता है.
चुभने वाली कील हथोड़े से ठोंक दी जाती है. अधिक परेशान करने वाला व्यक्ति कड़ा दंड देने से ही सीधा होताहै.
चुरावे नथ वाली, नाम लगे चिरकुट वाली का. चिरकुट – कपड़े का चिथड़ा. पैसे वाला व्यक्ति गलत काम करता है और नाम गरीब का लगता है.
चुल्लू चुल्लू साधेगा, द्वारे हाथी बांधेगा. छोटी छोटी बचत से बड़ी राशि इकट्ठी की जा सकती है. इसके आगे एक पंक्ति और बोली जाती है ‘चुल्लू, चुल्लू खोवेगा, द्वारे बैठा रोवेगा.’
चुल्लू भर पानी में तंग जिंदगानी. अत्यधिक गरीबी.
चुल्लू में उल्लू करे, गाँठ कमाई खाय, मनुष जनावर बन चले, दारु बुरी बलाय. शराब बहुत बुरी चीज़ है, जो एक चुल्लू में ही आदमी को उल्लू बना देती है, जमा पूँजी खा जाती है और आदमी को जानवर बना देती है.
चुवना घर औ रोवनी बहुरिया, दोनों बहावें उल्टी बयरिया. चुवना- टपकने वाला. रोवनी – रोनेवाली, बयरिया- बयार, हवा. टपकने वाले घर में रहना बहुत कष्ट का काम है और हर समय रोनेवाली बहू कुलक्षणी होती है.
चुहिया का बच्चा कुहुकी दे. चुहिया के बच्चे को यह अहसास नहीं होता कि उसके चूँ चूँ करने से उसके स्थान का पता चल जाएगा और वह पकड़ा जाएगा. कोई मूर्ख व्यक्ति मूर्खतावश जानबूझ कर फंसने का काम करे तो.
चुहिया का शिकार और ग्यारह तोपें. छोटे से काम में बहुत बड़ा ताम झाम.
चूक अजाने से पड़े, बाँधे गाँठ सयान. नासमझ आदमी गलती करता है समझदार आदमी उससे सीख लेता है. इंग्लिश में कहावत है – Learn wisdom by the follies of others.
चूकी चोट निहाई पर. निहाई मजबूत लोहे की बड़ी सी वस्तु होती है जिस पर रख कर लोहे को पीटते हैं या काटते हैं. जिस चीज़ पर चोट करते हैं वह चूक जाए तो निहाई पर ही चोट पड़ती है. घर गृहस्थी में गलती कोई भी करे, जो जिम्मेदार व्यक्ति होता है उसी को खामियाजा भुगतना पड़ता है. (देखिये परिशिष्ट)
चूड़ियाँ लादीं टूट गईं, खाँड़ लादी बह गई. सब तरफ से दुर्भाग्य. किसी आदमी ने चूड़ियों का व्यापार किया तो लादने वाले बैल का पैर चट्टान से फिसलने से चूड़ियाँ गिर कर फूट गयीं. शक्कर लाद कर ले जा रहा था तो एक नदी पार करनी पड़ी और बैल के बिदकने से सब शक्कर पानी में गिर पड़ी और घुल गयी.
चून खाए मुसंड होवे, तला खाए रोगी. सादा भोजन करने से ताकत आती है, तला हुआ खाने से रोग होते हैं.
चूनी कहे मुझे घी से खाओ. चूनी – मटर का आटा. चूनी जैसे घटिया आटे का भी दिमाग हो गया है, कह रहा है मुझे घी से खाओ. साधारण आदमी अपनी हैसियत से बहुत ऊपर की बात करे तो.
चूरा झाड़ खाओ, लड्डू मत तोड़ो. अपनी मूल पूँजी खा के खत्म नहीं करनी चाहिए, उससे मिलने वाले ब्याज या कमाई को खर्च कर के काम चला लेना चाहिए.
चूल्हा खोदे खाट बिछे. घर में स्थान की इतनी कमी है कि चूल्हा खोद डालने पर ही खाट बिछ सकती है
चूल्हा चक्की, सबहि काम पक्की. ऐसी स्त्री जो खाना पकाने में भी होशियार हो और चक्की भी खूब चला ले. ऐसा व्यक्ति जो शारीरिक और मानसिक हर काम में होशियार हो.
चूल्हा झोंके चांवर हाथ. चांवर (चंवर) माने हाथ का छोटा पंखा. बीबीजी चूल्हे पे खाना बनाने बैठी हैं और चांवर हाथ में है. काम में नज़ाकत दिखाना. चंवर के लिए देखिए परिशिष्ट.
चूल्हा फूँके और दाढ़ी रखे. यदि आपकी दाढ़ी लम्बी होगी तो इस बात का बहुत खतरा है कि चूल्हा फूंकते हुए जल जाए. आप को सलाह दी गई है कि चूल्हा फूंकना है तो दाढ़ी न रखें और दाढ़ी रखना हो तो चूल्हा न फूँकें.
चूल्हे का राव लाव लाव ही पुकारे. चूल्हे का देवता हमेशा नोन तेल लकड़ी मांगता है. गृहस्थी की आवश्यकताएँ कभी पूरी नहीं हो सकतीं.
चूल्हे की रानी, सब पे हुकुम चलावे. जो स्त्री खाना बनाने बैठती है, वह सभी पर हुक्म चलाती है – पानी लाओ, फलां सामान लाओ, क्योंकि खाना बनाने का काम बड़े महत्व का माना जाता है.
चूल्हे की लकड़ी चूल्हेई में जलतीं. जहाँ की वस्तु वहीं काम आती है.
चूल्हे को आग से क्या डराना. जिन परेशानियों को कोई रोज झेलता हो, उनसे उसे क्या डराना.
चूल्हे पर तलवार चलाई, तोऊ चुहिया मार न पाई. किसी छोटे से काम को करने के लिए बहुत बड़ा और मूर्खतापूर्ण प्रयास करना.
चूल्हे में थूके और सुख की आस करे. चूल्हे में थूकना अर्थात किसी अत्यंत आवश्यक वस्तु का निरादर करना. ऐसा करने वाला व्यक्ति कभी सुखी नहीं हो सकता.
चूल्हे में बिलइयाँ डंडोत करें. घर में खाने को नहीं है.
चूहा छोटा और पूँछ बड़ी. अधिक दिखावा करने वाले छोटे व्यक्ति का मजाक उड़ाने के लिए.
चूहा बिल न समा सके कानौ बांधा छाज (पूँछ में बाँधा छाज). बिल इतना छोटा कि चूहा उस में घुस नहीं सकता है ऊपर से कान या पूँछ में छाज बाँध लिया. बहुत कम सामर्थ्य वाला व्यक्ति बहुत बड़ी जिम्मेदारी ले ले तो.
चूहा मारे खेत जलाया. खेत या खलिहान में चूहे अधिक हों तो उन्हें मारने के लिए यदि कोई खेत ही जला दे. जैसे विरोधियों को मात देने के लिए यदि कोई नेता देश में दंगे करा दे.
चूहे के चाम से जूते नहीं बनते. छोटे आदमी बड़ा काम नहीं कर सकते.
चूहे के जाए बिल ही तो खोदेगें. चूहे के जाए माने चूहे के बच्चे. कोई भी बच्चे वही काम करेंगे जो उन के माँ बाप करते आए हैं. किसी घटिया व्यक्ति के बच्चे कोई घटिया काम करें तो यह कहावत बोलते हैं.
चूहे के बिल में ऊँट नहीं समा सकता. किसी बहुत बड़े आयोजन के लिए बहुत छोटी जगह हो तो.
चूहे को गेहूँ मिलेगा तो कुतर कर ही खाएगा, पूड़ी नहीं बनाएगा. गरीब आदमी के पास आमोद प्रमोद मनाने के साधन नहीं होते. वह जैसे तैसे अपना पेट भरता है.
चूहे को सुपारी का टुकड़ा मिल गया तो खुद को पंसारी समझने लगा. पंसारी की दूकान में छोटी बड़ी सैकड़ों चीजें होती हैं जिनका वह हिसाब रखता है (यह बहुत कठिन काम है). चूहे को सुपारी का टुकड़ा मिल गया तो समझने लगा कि वह पंसारी से कम नहीं है. कोई छोटा सा ज्ञान या वस्तु मिल जाने पर अपने को बहुत काबिल या बहुत बड़ा समझने लगना. जैसे गूगल पर एक बीमारी के विषय में पढ़ कर लोग अपने को डॉक्टर समझने लगते हैं.
चूहों की मौत बिल्ली का खेल. अहंकारी और अत्याचारी लोग अपना पेट भरने या मन बहलाने के लोए गरीब की जान भी ले लेते हैं.
चेरी को चित्त महेरी में (कब बने और कब खाऊँ). महेरी – मट्ठे में बाजरा इत्यादि पका कर बनने वाला खाद्य.
चेले लावें मांग कर बैठा खाए महंत, राम भजन का नाम है पेट भरन का पंथ. ढोंगी साधु, महंतों के लिए.
चैत सोवे रोगी, बैसाख सोवे जोगी, जेठ सोवे राजा, असाढ़ सोवे अभागा. कहावत दिन के समय सोने पर कही गई है. चैतमाह में रोगी लोग दिन में सोते हैं. बैसाख में योगी लोग दिन में सोते हैं. जेठ में बड़े लोग दिन में सोते हैं(गर्मी के कारण). आषाढ़ में केवल अभागे लोग दिन में सोते हैं क्योंकि इस में काम ही काम होते हैं.
चैते गुर, बैसाखे तेल, जेठे महुआ, असाढ़े बेल, सावन भाजी, भादों मही, क्वॉर करेला, कातिक दही, अघने जीरो, पूसे धना, माघे मिसरी, फागुन चना, इतनी चीज खेहो सभी, मरहो नहीं तो परहो सही. इन इन महीनों में ये चीजें खाना निषिद्ध है. इन्हें खा कर अगर मरे नहीं तो बीमार तो जरूर पड़ोगे.
चैत्र चना, वैशाखे बेल, जेठ शयन अषाढ़े खेल. चैत में चना, वैशाख में बेल खाने तथा जेठ की दोपहरी में सोने एवं आषाढ़ में खेलकूद करने से शरीर स्वस्थ और निरोग रहता है.
चोखा माल टनाटन बोले. जो वस्तु बढ़िया होती है वह अलग ही दिखती है अर्थात अपने आप बोलती है.
चोट गोड़ में, मलहम मूड़ में. समस्या कहीं, समाधान कहीं. चोट लगी है पैर में, मलहम लगा रहे हैं सिर पर.
चोट तभी करो जब लोहा गरम हो. लोहे को किसी आकार में ढालना हो तो उस पर तभी चोट करते हैं जब वह खूब गर्म होता है. किसी आदमी को दूसरे के खिलाफ भड़काना हो तो उस से तभी बात करनी चाहिए जब वह गुस्से में हो. इंग्लिश में कहावत है – Strike the iron when it is hot.
चोट पर चोट, भाग्य का खोट. भाग्य खराब हो तो एक परेशानी में दूसरी जुड़ जाती है.
चोटी हाथ में है तो जायगा कहाँ. कोई आदमी किसी के पूर्ण नियंत्रण में हो तो.
चोट्टी कुतिया, जलेबियों की रखवाली (रहबर). जब कोई कीमती चीज़ किसी चोर प्रकृति के व्यक्ति को रखवाली के लिए दी जाए. जैसे भ्रष्ट नेता को सत्ता सौंपना.
चोर उचक्का चौधरी, कुटनी भई प्रधान. जब नीच और दुष्ट मनुष्यों के हाथ में सत्ता आ जाती है.
चोर और गठरी को कस कर बांधना चाहिए. चोर को पकड़ लिया जाए तो उस के हाथ पैर कस कर बांधना चाहिए नहीं तो वह मौका मिलते ही खोल कर भाग जाएगा. गठरी को कस कर नहीं बाँधोगे तो खुल जाएगी और सामान बिखर जाएगा. अवधी रूपांतरण – चोर औ मोट को कस के बांधा चाही. मोट – चमड़े का बड़ा सा थैला जिसे कुँए से पानी निकालने के काम में लाते थे. मोट को ढीला बांधेंगे तो मोट कुँए में गिर सकता है. (देखिए परिशिष्ट)
चोर और चाँद का बैर. चोर को चांदनी अच्छी नहीं लगती.
चोर और ढोर का नाहिं भरोसा. चोर और जानवर का विश्वास नहीं करना चाहिए (चोट पहुँचा सकते हैं).
चोर और ढोर दोनों हाजिर. चोर को चोरी के माल (चुराए हुए जानवर सहित) पकड़ना चाहिए.
चोर और सांप दबे पर चोट करते हैं. अर्थ तो स्पष्ट है, लेकिन जो सीख इस के द्वारा दी गई है वह याद रखने योग्य है. चोर व सांप को पकड़ते समय भी और पकड़ने के बाद सावधान रहना चाहिए.
चोर का क्या दीवाला. दीवाला निकलने का डर उसे होता है जो पूँजी लगा कर या उधार ले कर व्यापार करता है. चोर की कोई पूँजी थोड़े ही लगी है. यही बात दलाल के साथ भी होती है.
चोर का चावल टके सेर (चोरी का बाजरा टके धड़ी). चोरी का माल औने पौने दाम में बिकता है. धड़ी का अर्थ है पांच सेर. टका – दो पैसा. (देखिए परिशिष्ट)
चोर का माल चांडाल खाय. पुराने जमाने में चांडाल को सभी मनुष्यों में सब से निकृष्ट माना जाता था. कहावत में कहा गया है कि चोर से भी निकृष्ट आदमी चोर का माल खाएगा.
चोर का साथी गिरहकट (चोर का भाई गंठकटा) (चोर का गवाह गिरहकट). चोर की दोस्ती अपने जैसे लोगों से ही होती है. अलग अलग प्रकार के अपराधी एक दूरे का साथ देते हैं.
चोर की दाढ़ी में तिनका. जिसने चोरी की होती है उसके मन में चोर होता है. सन्दर्भ कथा – एक काजी का न्याय करने के मामले में दूर-दूर तक नाम था. एक बार उसके यहाँ एक अजीब मुकदमा आया. चोरी के शक में चार आदमियों को कचहरी में हाजिर किया गया था. गवाहों के बयान सुनने के बाद और सबूतों को देखने-समझने के बाद असली चोर का निर्णय नहीं हो पा रहा था. काजी ने ये सारे मुजरिमों को गौर से देखा. अचानक एक उपाय उसके दिमाग में एक विचार कौंध गया. उसने अँधेरे में एक तीर छोड़ा. मुजरिमों की ओर इशारा करते हुए वह जोर से बोला “चोर की दाड़ी में तिनका.” असली चोर ने सोचा कि कहीं मेरी दाढ़ी में तो तिनका नहीं है. यह सोचकर उसने दाढ़ी पर हाथ फेरा. दाढ़ी पर हाथ फेरते ही काजी ने कहा, चोर यही है, इसे गिरफ्तार कर लो और बाकी सबको छोड़ दो.
चोर की नज़र गठरी पर. चोर की नज़र उस माल पर ही रहती है जिसे वह चुरा सकता है.
चोर की नार जनम भर दुखिया. चोर की पत्नी हमेशा दुखी रहती है. क्योंकि पहली बात तो चोर रात रात भर बाहर रहता है और पकड़ा जाए तो उसे जेल या मृत्युदंड मिलता है.
चोर के घर चोरी करना चोरी नहीं कहलाता. अर्थ स्पष्ट है.
चोर के घर छिछोर. चोर के घर भी उठाईगीर घुस जाएँ तो यह एक आश्चर्य की ही बात है.
चोर के घर मोर. चोर के घर में कोई चोरी कर ले तो यह कहावत बोलते हैं. इस विषय में एक कथा है – एक बार एक चोर कहीं से सोने का हार चुराकर लाया तो उसे एक मोर ने निगल लिया. चोर छटपटाता ही रह गया.
चोर के पेट में गाय, आप ही आप रम्भाय. यहाँ चोर का अभिप्राय उस व्यक्ति से है जिसने चोरी से मांस खाया हो. उसे अपने पाप की सदैव ग्लानि रहती है.
चोर के पैर कितने. चोर बहुत डरपोक होता है.
चोर के हजार बुद्धि. चोर बनने के लिए बुद्धिमान होना जरूरी है.
चोर को कहे घुसो और कुत्ते को कहे भूँसो (चोर के संग चोर, पहरेदार के साथ पहरेदार). ऐसे बहरूपिये नेताओं के लिए जो अपराधियों से सांठ गांठ करते हैं और पुलिस प्रशासन को उनसे निपटने के लिए निर्देश देते हैं.
चोर को न मारो, चोर की माँ को मारो. चोर को मारने से अधिक लाभ नहीं होगा, नए चोर पैदा हो जाएंगे. समाज से उन कारणों को दूर करना चाहिए जिन से लोग चोर बनते हैं.
चोर को पकड़ने के लिए चोर रखो. किसी चोर को पकड़ना हो तो किसी ऐसे आदमी को इस का जिम्मा दो जो चोरी करने के सारे दांवपेंच जानता हो. इंग्लिश में कहावत है – Set a thief to catch a thief.
चोर को पकड़िये गाँठ से, छिनाल को पकड़िये खाट से. चोरी सिद्ध करनी हो तो चोर को चोरी के माल के साथ पकड़ना चाहिए और किसी किसी दुश्चरित्र स्त्री को पकड़ना हो तो उसे पर पुरुष के साथ ही पकड़ना चाहिए.
चोर को सूंघे चोर (चोर को चोर की गंध आती है) अर्थात चोर चोर को पहचान लेता है.
चोर गठरी ले गया, बेगारियों को छुट्टी मिली. जमींदारी के जमाने में गरीब लोगों को पकड़ कर उनसे मुफ्त में काम कराया जाता था जिसे बेगार करना कहते थे. जिस काम के लिए लोग पकड़ कर लाए गए थे उस से सम्बन्धित सामान चोर ले गए तो उन लोगों को काम से छुट्टी मिल गई.
चोर चढ़े फांसी तो नौ को और फँसाए. चोर जब फंसता है अपने साथ अपने कई मददगारों को ले डूबता है.
चोर चाहे हीरे का हो या खीरे का, चोर चोर ही होता है (चोरी तो चोरी है हीरे की हो या खीरे की). अर्थ स्पष्ट है.
चोर चूके उठाईगीर चूके पर चुगल न चूके. चोर चोरी करने से चूक सकता है, उठाईगीर सामान उठाने से चूक सकता है पर चुगलखोर चुगली करने से नहीं चूकता.
चोर चोर मौसेरे भाई. चोर लोग एक दूसरे से सहानुभूति रखते हैं. चोरों में आपस में मिलीभगत होती है.
चोर चोरी कर गया, मूसलों ढोल बजाय गया. जब कोई आदमी खुले आम चोरी कर ले जाता है तो कहते हैं कि चोर चुपके से नहीं बल्कि मूसल से ढोल बजा-बजाकर सब ले गया.
चोर चोरी से जाय, हेरा फेरी से न जाय. चोर सजा के डर से या समझाने से चोरी करना तो छोड़ सकता है लेकिन उसकी हेराफेरी करने की आदत नहीं जा सकती इस कहावत के द्वारा यह सीख भी दी गई है कि कोई चोर कितना भी कहे कि उसने चोरी छोड़ दी है उसका विश्वास नहीं करना चाहिए. सन्दर्भ कथा – एक चोर अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए साधु हो गया. पर उसकी पुरानी आदत ने उसका पीछा नहीं छोड़ा. रात में अपने सब साथियों के सो जाने पर चोरी करने की प्रबल इच्छा उसके मन में जाग्रत हो उठती. तब वह अपने एक साथी के सिर के नीचे की गठरी निकालकर दूसरे के सिर के नीचे और दूसरे की पहले के नीचे रख देता. एक दिन किसी ने उसे ऐसा करते पकड़ लिया. जब उस से ऐसा करने का कारण पूछा गया तो उस ने उक्त कहावत कही.
चोर जाने चोर की सार (चोर को चोर ही पहचाने). चोर को चोर ही सबसे जल्दी पहचान सकता है. चोर के भेद चोर ही जान सकता है.
चोर जुआरी गंठकटा, जार अरु नारि छिनार; सौ सौगंधें खायं जो, घाघ न कर एतबार. चोर, जुआरी, जेबकतरा, परस्त्रीगामी पुरुष (जार) और दुश्चरित्र स्त्री, ये अगर सौ कसमें खाएं तब भी इनका विश्वास नहीं करना चाहिए.
चोर न जाने मंगनी के वासन. चोर को चोरी से मतलब है, जिन बरतनों को वह चुरा रहा है वे मँगनई के हैं इससे उसे क्या मतलब.
चोर न प्यारी चाँदनी, माँगे कारी रात (चोरहिं चांदनी रात न भावे). चोरों को चांदनी अच्छी नहीं लगती. गलत काम करने वाले लोग ईमानदार को नहीं भ्रष्टाचारी शासक को पसंद करते हैं, जिससे उन्हें काम में आसानी हो.
चोर नारि जिमि प्रकट न रोई. चोर के पकड़े जाने पर या उसे सजा मिलने पर उसकी पत्नी सबके सामने रो भी नहीं सकती, छिप के रोती है. चोर से सहानुभूति रखने वाला खुल कर उसका समर्थन नहीं कर सकता.
चोर पेटी ले गया तो क्या हुआ, चाबी तो मेरे पास है. अपनी मूर्खतापूर्ण सोच से नुकसान न होने के प्रति आश्वस्त रहने वाले लोगों के लिए.
चोर बन्दीखाने, तलवार सिरहाने. चोर को बंदी बनाया हुआ है तो भी तलवार को सरहाने रख कर सतर्क रहो, चोर भागने की कोशिश में हमला कर सकता है.
चोर भी सुने धरम की कथा. कोई भ्रष्ट आदमी धर्मात्मा बनने का ढोंग कर रहा हो तो.
चोर में सात राजाओं की बुद्धि. सफल चोर के अंदर राजा से बहुत अधिक बुद्धि होती है.
चोर रे चोर तोहरे हाथी न तोहरे घोड़. 1.चोरी कर के कोई बहुत बड़ा आदमी नहीं बन सकता. 2. चोर कितना भी धन इकठ्ठा कर ले उस का प्रदर्शन नहीं कर सकता.
चोर लाठी दो जने और हम बाप पूत अकेले. कोई दो बाप बेटे चोर को देख कर वहाँ से भाग खड़े हुए. अब गाँव के लोगों को बता रहे हैं कि कितनी कठिन परिस्थिति थी – चोर के पास लाठी थी यानि वो दो जने थे और हम बाप बेटा अकेले थे. जब कोई व्यक्ति अपनी असफलता छिपाने के लिए परिस्थितियों को कठिन बता रहा हो.
चोर वही जो पकड़ा जाय. चोरी तो बहुत लोग करते हैं, जो पकड़ा जाए वही चोर कहलाता है.
चोर सब घर ले मरे. चोर अंत में खुद तो फंसता ही है सारे घर वालों को फंसा देता है.
चोर सब जग में चोरी करे पर घर में सच बोले. चोर सब जगह चोरी करता है पर अपने घर में सच बोलता है. भ्रष्टाचारी लोग कितने भी भ्रष्ट हों, अपने घर वालों के प्रति ईमानदार होते हैं.
चोर सबनि चोरै करि जाने, ज्ञानी मन सब ज्ञानी. चोर सबको चोर समझता है और ज्ञानी सब को ज्ञानी.
चोर सिपाई, भाई भाई. बहुत से अपराधों में अपराधियों और पुलिस की मिलीभगत होती है.
चोर से कही चोरी करियो, शाह से कही जागते रहियो. अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए सबसे अलग अलग तरह की बात करना. इंग्लिश में कहावत है – To run with the hare and hunt with the hound.
चोर ही जाने चोर की घात. चोर की चालाकी चोर ही समझ सकता है.
चोरी ऊपर से सीना जोरी (चोरी और मुंहजोरी). एक तो गलत काम करना और ऊपर से उसको सही ठहराने के लिए बहस करना.
चोरी करनी आसान, माल पचाना मुश्किल. चोरी के माल को ठिकाने लगाने में बहुत मुश्किलें आती हैं.
चोरी करी निहाई की, किया सुई का दान, ऊँचे चढ़ि चढ़ि देखता, केतिक दूरि विमान. आजकल के धनाढ्यों और महात्माओं के लिए यह कहावत है. समाज के लोगों को लूट कर धन इकट्ठा किया और उसमें से जरा सा दान कर दिया. अब ऊंचे चढ़ कर देख रहे हैं कि स्वर्ग से विमान आता होगा. निहाई – लोहे की बड़ी सिल.
चोरी का धन मोरी में जाता है (चोरी की कमाई, मोरी में गँवाई). मोरी – नाली. चोरी का धन व्यर्थ ही जाता है.
चोरी का माल सब कोई खाए, चोर की जान अकारथ जाए. चोरी के माल में से बहुत लोग खाते हैं (चोर के घर वाले, पुलिस वाले, चोरी का माल खरीदने वाले आदि), पर पकड़े जाने पर सजा अकेले चोर को मिलती है.
चोरी का माल, कुछ धर्म खाते बाकी हलाल. हलाल माने जो धर्म सम्मत हो. समाज में ढोंगी लोग चोरी के माल में से कुछ तथाकथित धार्मिक कार्यों में खर्च कर देते हैं और बाकी से अपनी तिजोरी भर लेते हैं.
चोरी के बाद चौकसी (चोरी पीछे हुशियारी). चोरी के बाद पहरेदारी करने से क्या फायदा.
चोरी तो चोरी है हीरे की हो या खीरे की. छोटी चोरी भी महत्वपूर्ण होती है लेकिन इतनी नहीं कि चोर को फांसी चढ़ा दो. सन्दर्भ कथा – एक राजा के दरबार में एक चोर को पकड़ कर लाया गया. राजा ने उसे सूली पर चढ़ाने का हुक्म दिया. चोर ने अनुनय भरे स्वर में कहा, महाराज मुझसे एक बहुत छोटी सी भूल हुई है कृपा करके इसके लिए मुझे इतनी बड़ी सजा न दें. राजा ने कड़क कर कहा, चोरी तो चोरी है हीरे की हो या खीरे की, उसके लिए सजा एक ही है. चोर ने कहा, ठीक है महाराज, आप मुझे अवश्य सूली पर चढ़ा दें, पर मरने से पहले मैं एक राज बताना चाहता हूँ मुझे एक विद्या आती है जिसके द्वारा सोने की खेती की जा सकती है. चोर की बात सुनकर महामंत्री गुस्से से बोले, महाराज यह झूठ बोल रहा है. अगर इसको सोने की खेती करना आती होती तो यह चोरियां क्यों करता. चोर बोला, अन्नदाता मैं गरीब आदमी, मेरे पास कोई जमीन नहीं, न ही इतने पैसे कि मैं सोने के बीज खरीद सकूं, और जब खेत में सोना उगे तो उसकी रखवाली कर सकूँ. राजा बोले, ठीक है तुम्हें एक मौका देते हैं, चोर को सख्त पहरे में एक कारागार में रखा गया और उससे सोने की खेती का प्रबंध करने को कहा गया. निश्चित दिन राजपुरोहित एवं विशिष्ट व्यक्ति बुलाए गए और तैयारी शुरू हुई. सबके आ जाने के बाद चोर बोला, महाराज मैं एक बात तो बताना भूल ही गया. बुवाई की एक शर्त है. बुवाई केवल वही कर सकता है जिसने अपने जीवन में कभी कोई छोटी सी चोरी भी न की हो. पहले मंत्र बोले जाएंगे, उसके बाद बुवाई करने वाले को ईश्वर की सौगंध खाकर यह कहना होगा कि उसने बचपन से लेकर अभी तक कोई छोटी से छोटी चोरी भी नहीं की है. मंत्र बोलने के बाद यदि कोई झूठी सौगंध खाएगा तो तुरंत उसकी मृत्यु हो जाएगी. महाराज मेरी प्रार्थना है कि आप से अधिक उपयुक्त इस कार्य के लिए कौन होगा.
यह बात सुनकर राजा पशोपेश में पड़ गए. अपने दिमाग पर काफी जोर देकर बोले, मैंने बचपन में अपने पिता महाराज के शाही पानदान से एक पान चुराकर खाया था. चोर महामंत्री की ओर मुड़ा और बोला – महामंत्री जी आप? मंत्री बोले, मैंने भी बचपन में अपने पिताजी की जेब में से एक पैसे का सिक्का चुराया था. अब चोर ने राजपुरोहित की ओर मुड़ कर उनसे कहा, आप तो स्वयं धर्म की मूर्ति हैं. आप ही यह कार्य करें. उसकी बात सुनकर राजपुरोहित पसीना पसीना हो गए और बोले कि मैंने भी बचपन में एक बार अपनी माता जी के प्रसाद के लड्डुओं में से एक लड्डू चुरा कर खाया था. चोर ने फिर सभी विशिष्ट जनों की ओर मुड़ कर कहा कि आप सब महानुभावों में से कोई तो ऐसा होगा जिसने बचपन से लेकर अभी तक कोई चोरी न की हो. आप में से कोई आगे आइए. सभी बगले झांकने लगे. तब चोर ने राजा से कहा, महाराज जब सभी लोगों ने कभी न कभी कोई छोटी मोटी चोरी की है तो सजा अकेले मुझको ही क्यों मिल रही है. उसकी यह बात सुनकर राजा लज्जा से पानी पानी हो गया. उसने छोटी चोरी पर मृत्युदंड देने का कानून समाप्त कर दिया. उसके बाद चोर को कुछ धन देकर मुक्त कर दिया और कहा कि वह चोरी करना छोड़ कर अपना कोई व्यापार करे.
चोरी न करी पर सीढ़ी तो पकड़ी. चोरी में सहायता करना भी अपराध की श्रेणी में आता है.
चोरी सा रुजगार नहीं जो मार न होवे, जुए सा व्यापार नहीं जो हार न होवे. अगर मार खाने का डर न हो तो चोरी जैसा कोई और रोजगार नहीं है और हारने का डर न हो तो जुए जैसा कोई व्यापार नहीं है.
चोरों की बरात में अपनी अपनी होशियारी. जहाँ सभी चोर हों वहाँ एक दूसरे से होशियार रहना पड़ता है.
चोरों के ब्याह में गिरहकट मेहमान. जैसा दूल्हा होगा वैसे ही बराती होंगे.
चोरों के रखवाले चोर. चोरों का साथ देने वाले भी चोर की श्रेणी में आते हैं.
चोरों के हवाले रखवाली. 1. रखवाली का काम चोर के हवाले कर दोगे तो चोरी होगी ही. 2. इस से उलट दूसरा अर्थ यह है कि जिस से चोरी का डर हो उससे ही रखवाली को कह दो तो चोरी नहीं होगी.
चोरों को सारे नजर आते हैं चोर. जो खुद चोर होते हैं वे सब को चोर समझते हैं.
चोरों में भी इमानदारी होती है. चोर भी अपने धंधे के प्रति ईमानदार होते हैं. इंग्लिश में कहावत है – There is honour among thieves.
चौक में जूता, गली में सलाम. भरी सभा में बेज्जती करना और अकेले में प्रेम दिखाना.
चौपड़ मीठी हार. जुआरी हारने पर भी क्रोध में चौपड़ खेलना नहीं छोड़ता बल्कि बराबर खेलता रहता है.
चौबे जी छब्बे बनने गए थे दुबे बन कर लौटे. जैसे थे उससे बड़ा बनने गए थे पर छोटे हो के लौटे. फायदे के लालच में नुकसान उठाना.
चौबे मरें तो बंदर हों, बंदर मरें तो चौबे हों. चौबे लोगों से चिढ़ने वाले किसी व्यक्ति का कथन.
चौमासे का गोबर, लीपने का न थापने का. (बिल्ली का गू, लीपने का न पोतने का). बरसात के मौसम में गाय भैंस कहीं गोबर करती हैं तो वह पानी के कारण फ़ैल जाता है और किसी काम का नहीं रहता. जो चीज़ किसी काम की न हो या व्यक्ति किसी काम का न हो उस के प्रति उपेक्षा पूर्ण कथन.
चौमासे का ज्वर और राजा का कर. इन दोनों से मुश्किल से निजात मिलती है.
चौमासे में लोमड़ी जो नहिं खोदे गेह, निस्चय करके जान लो नहिं बरसेगो मेह. चौमास आने पर यदि लोमड़ी खोद कर अपना घर नहीं बनाती तो समझ लो वर्षा नहीं होगी.
चौराहे पर बैठे लड़कों और सड़क पर बैठे कुत्तों को कभी न छेड़ें. अर्थ स्पष्ट है, बहुत व्यवहारिक बात है. कहावतों की उपमाएं भी कमाल की होती हैं.
छ
छंटाक भर चून चौबारे रसोई (छंटाक भर सतुआ और मथुरा में भंडारा). बहुत थोड़े साधन में बहुत अधिक दिखावा. घर में जरा सा आटा है और घर के बाहर रसोई लगा रखी है.
छछूंदर के सर में चमेली का तेल. अयोग्य व्यक्ति को विशेष सुविधाएं.
छज्जू गईले छौ जना, छज्जू अइले नौ जना. (भोजपुरी कहावत) छः आदमियों को ले कर गए और नौ को ले कर लौटे. व्यर्थ के लोगों को इकठ्ठा करने वाले के लिए.
छज्जे की बैठक बुरी, परछाईं की छाँह, धोरे का रसिया बुरा, नित उठ पकरे बांह. कारण कुछ भी हों पहले के लोग छज्जे पर बैठने को बुरा मानते थे. (छज्जा टूट कर गिरने का डर होता है, शोहदे वहाँ बैठ कर ओछी हरकतें करते हैं आदि). परछाईं की छाँव भी बुरी होती है क्योंकि वह स्थाई नहीं होती. धोरे का रसिया माने बगल में रहने वाला प्रेमी. वह इसलिए बुरा है क्योंकि वह जब तब उठ कर बांह पकड़ कर परेशान करता है.
छठ की सातें किये फिरते हैं. अनियमित काम करते हैं.
छठी का दूध याद आ गया. कुछ नवजात शिशुओं के स्तन से थोड़े से दूध का स्राव होता है. संभवत: जन्म से पहले माँ के रक्त से जो हॉर्मोन शिशु के रक्त में पहुँचते हैं उनके प्रभाव से ऐसा होता है. कहीं कहीं पर यह प्रथा है कि छठी संस्कार के समय शिशु के स्तनों को दबा कर इस दूध को निकाल देते हैं. इससे शिशु को दर्द होता है और वह रोता है. किसी व्यक्ति को बहुत अधिक परेशानी का सामना करना पड़े तो कहते हैं कि फलाने को छठी का दूध याद आ गया.
छठी की तेरईं हो गई. ख़ुशी अचानक मातम में बदल गई. रूपान्तर – ईद मुहर्रम हो गई.
छठी के राजा. जो छठी के दिन ही राजा बन गए. (जैसे किसी बड़े नेता या राजा का बेटा). इंग्लिश में कहते हैं – born with silver spoon in mouth.
छड़ी चौदहवाँ रत्न है. डंडा बड़ी अनमोल चीज़ है. डंडे के डर से ही सब काम करते हैं.
छड़ी मीठी कि गुड़ मीठा. एक माँ बच्चे को छड़ी की मार से लिखा पढ़ा कर होनहार बनाती है और दूसरी माँ गुड़ खिला कर उसकी आदतें खराब करती है. बच्चे के भविष्य के लिए क्या चीज़ अधिक मीठी है, छड़ी या गुड़.
छत्तीस प्रकार के व्यंजन में बहत्तर प्रकार के रोग. अधिक खाने और गरिष्ट भोजन खाने वालों को सावधान किया गया है कि ऐसे भोजन से तरह तरह के रोग होते हैं.
छत्रपती, घटे पाप बढ़े रती. बच्चों को छींक आने पर बोलते हैं. (रति का अर्थ प्रेम से है)
छत्री का शोहदा, कायस्थ का बोदा, बामन का बैल, बनिया का ऊत. क्षत्रिय का बेटा अगर लफंगा हो, कायस्थ का अनपढ़, ब्राह्मण का मूर्ख और बनिए का बेटा ऊत हो तो ये किसी काम के नहीं होते.
छत्री के छै बुधी, बामन के बारह, अहीर के एके बुधी, बोला तो मारूंगा. (भोजपुरी कहावत) क्षत्रिय के छः बुद्धि होती हैं और ब्राह्मण की बारह. अहीर की एक ही बुद्धि होती है, बोलोगे तो मारूँगा.
छदाम का छाज, छह टका गठाई. जब किसी चीज को ठीक कराने (repair) की कीमत वस्तु के मूल्य से अधिक मांगी जा रही हो तो. छाज (सूप) देखने के लिए परिशिष्ट देखें.
छदाम की लड़ाई में करो पैसे से भलाई. यदि झगड़ा छोटी राशि का है और उससे अधिक पैसा देने से शान्त हो सकता है तो ले देकर शान्त कर देना चाहिए. (एक पैसा = चार छदाम, देखिए परिशिष्ट)
छप्पन भोग छोड़ कर कूकुर, हड्डी को ही दौड़े. नीच प्रवृत्ति के मनुष्य को घटिया चीजें ही भाती हैं.
छप्पर पर फ़ूस नहीं, ड्योड़ी में नक्कारा. घर में कुछ नहीं है बाहर बहुत सा दिखावा कर रहे हैं. नक्कारा – नगाड़ा.
छलनी कहे सूईं से तेरे पेट में छेद. जिस छलनी में खुद बहुत सारे छेद हैं वह सुई से कह रही है कि तेरे पेट में छेद है. जिसमें खुद बहुत सी कमियाँ हों वह दूसरे की छोटी सी कमी का मज़ाक उड़ाए तो.
छाँव बट पीपर की, संगत बड़ों की. छाया तो बरगद और- पीपल की अच्छी होती है और संगत बड़ों की.
छांड़ शतरंज, जा में रंज बड़ो भारी है. रंज – दुख. शतरंज के खेल में समय बहुत नष्ट होता है और व्यायाम भी बिल्कुल नहीं होता, इसलिए इसको नहीं खेलना चाहिए.
छाछ भी दे और पाँव भी लगे. गाँव में जिन के पास अधिक गाय भैसें हों वे दही में से माखन निकाल कर छाछ बाँट दिया करते थे, पर वे छाछ लेने के लिए आने वाले गाँव के बुजुर्गों का पूरा आदर भी करते थे.
छाछ मांगन जाए और मलैया लुकाए. माँगना भी है पर मांगने में शर्म भी आती है. मलैया–मटकी, लुकाए–छिपाए.
छाजा जी का छाज करे, राजा जी का राज करे. छाज बनाने वाले अपने आप को श्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए बताते हैं कि एक बाप के दो बेटे थे छाजा और राजा. छाजा के वंशज छाज बनाते हैं और राजा के वंशज राज करते हैं.
छाती पर आम गिरा, कोई मुंह में डाल दे तो खा लूँ. आलसी होने की पराकाष्ठा.
छाती पे धर के कोऊ नहीं ले जात. धन के लिए कहा जाता है.
छाती पे पत्थर धर लिया. दुख सहने के लिए हृदय को कड़ा कर लिया.
छाती पे बाल नहीं, भालू से लड़ाई. अपने से बहुत अधिक शक्तिशाली से वैर मोल लेना.
छावा मंड़वा गावा गीत, पिय बिन लागै सब अनरीत. घर में या पड़ोस में किसी के ब्याह के लिए मंडवा बनाया गया है और गीत हो रहे हैं. जिस स्त्री का पति बाहर गया है उसे पति के बिना यह सब बुरा लग रहा है.
छिन में रानी, छिन में चेरी. जो आज रानी है वह कल दासी बन सकती है. पल भर में ही किसी का भाग्य बदल सकता है इसलिए मनुष्य को कभी अभिमान नहीं करना चाहिए.
छिनरा, चोर, जुआरी, इनसे गंगा हारीं. दुश्चरित्र व्यक्ति, चोर और जुआरी. इनके पाप गंगा जी भी नहीं धो सकतीं.
छिनरी का घर रहे बतकहनी का जाय. छिनरी – छिनाल, चरित्रहीन. औरत व्यभिचारिणी हो, उसका घर तो एक बार बच भी सकता है किंतु बातूनी औरत का घर तो बर्बाद हो ही जाता है.
छिनार की बुद्धि छिनार ही जाने (छिनाल का हाल दाढ़ीजार जाने). दुष्ट व्यक्ति के मन में क्या है यह दूसरा दुष्ट ही जान सकता है. दाढ़ीजार – धूर्त व्यक्ति.
छिनार लुगाई, चतुर सिपाही, दूर से लखि परत. आवारा स्त्री व अनुभवी सिपाही दूर से ही पहचान लिए जाते हैं.
छिनाल का बेटा, बबुआ रे बबुआ. चरित्रहीन स्त्री के बच्चे को सब खिलाते हैं (उससे बात करने का बहाना ढूँढने के लिए). यह भी हो सकता है कुछ लोगों को वह अपना बेटा लगता हो.
छिनाल डायन से भी बीस (डायन से छिनाल बुरी). डायन कितनी भी बुरी क्यों न हो, चरित्रहीन स्त्री उससे भी गई गुजरी होती है.
छिप के चलें छिपक के काटें, का जानें पर पीरा, जे दुई जात कहाँ से आईं कायथ और खटकीरा. खटकीरा – खटमल. कायस्थ की तुलना खटमल से की गई है जो छिप कर काटता है.
छिपाओ उमर और कमाई, चाहे पूछे सगा भाई. कहावत में कही गई हर बात को सच नहीं माना जा सकता. यह तो सही है कि अपनी वास्तविक कमाई किसी को नहीं बतानी चाहिए (सगे भाई को भी नहीं) लेकिन उमर छिपानी चाहिए इस बात में संशय है, विशेषकर भाई से आप उमर कैसे छिपा सकते हैं.
छिमा बड़न को चाहिए, छोटन को उत्पात (का रहीम हरि को घट्यो, जो भृगु मारी लात). छोटे लोग कोई गलती करें या उद्दंडता करें तो बड़े व्यक्ति का बड़प्पन इसी में है कि उन्हें क्षमा कर दे, जिस प्रकार भगवान विष्णु ने भृगु ऋषि को सीने पर लात मारने पर भी क्षमा कर दिया था.
छिरिया का चरा बन, बिटिया का चरा घर, नहीं रह जात. जैसे बकरी धीरे धीरे सारे जंगल को चर जाती है, उसी प्रकार लड़की के दहेज में और विवाह के बाद के लेन देन में घर का सारा पैसा उठ जाता है.
छिरिया का दूध छत्तिस रोग मारत. बकरी जो जंगलों में तमाम तरह की पत्तियाँ खाया करती है उस के दूध में प्रत्येक तरह प्राकृतिक तत्व होते हैं, इसलिए उसका दूध अत्यन्त लाभकारी होता है. छिरिया – बकरी.
छींकत नहाइए, छींकत खाइए, छींकत रहिए सोए, छींकत पर घर न जाइए, चाहे सुवर्ण का होए. छींकते हुए और सब काम किए जा सकते हैं पर छींक आ जाने पर किसी के घर नहीं जाना चाहिए (चाहे वह सोने का बना हुआ ही क्यों न हो). पहले के लोग कहीं जाने से पहले छींक आने को बड़ा भारी अपशगुन मानते थे.
छींकते की नाक नहीं काटी जाती. किसी छोटी सी गलती के लिए बड़ी सजा नहीं दी जाती (विशेषकर छींक आ जाना तो किसी के वश में भी नहीं है).
छींकते गए, झींकते आए. किसी काम के लिए जाते समय छींक आ जाए तो जाना नहीं चाहिए. चले गए तो काम नहीं होता और झींकते हुए लौटना पड़ता है.
छींकते ही नाक कटी. किसी छोटी सी गलती से बहुत बड़ा नुकसान हो जाना.
छींका ऊँचा हो तो बिल्ली भी ईमानदार. उन लोगों पर व्यंग्य जो चोरी न कर सकने के कारण मजबूरी में इमानदार बने हुए हैं.
छींका टूटा और बिल्ली लपकी. दुष्ट लोग मौका देखते ही अपना दाँव लगाते हैं.
छीकें कोई, नाक कटावे कोई. गलती कोई करे और सजा कोई और भुगते.
छी-छी गप-गप. किसी खाने की चीज़ को देख कर घिनिया भी रहे हैं और गपा गप खाए भी जा रहे हैं. किसी वस्तु को खराब भी कहना और उसका भरपूर उपयोग भी करना.
छीपा, बकरी, ऊँट, कुम्हार, पीलवान औ गाड़ीवान, आक, जवासा, वेस्या, बानी, दसौ दुःखी जो बरसै पानी. छीपा – रंगरेज, पीलवान – महावत, आक-मदार का पेड़, जवासा-एक कंटीला पेड़ जो बरसात में जल जाता है, बानी – बनिया. ये छह प्रकार के व्यक्ति, दो पशु और दो प्रकार के पेड़ (ये सभी दस) वर्षा में दुःखी हो जाते हैं.
छुटी घोड़ी भुसौरे खड़ी. घोड़ी छूटते ही भूसे की कोठरी पर जा कर खड़ी हो जाती है. यह सभी प्राणियों का नैसर्गिक गुण है कि वे अपने लाभ के स्थान को पहचानते हैं.
छुपा रुस्तम. ऐसा व्यक्ति जिसके गुणों का लोगों को पता न हो. छिपे हुए धूर्त लोगों के लिए भी व्यंग्य में कहा जाता है. रुस्तम इस्लाम पूर्व फारस की लोककथाओं का एक शूरवीर नायक था.
छुरी गिरी खरबूजे पर तो खरबूजा हलाल, खरबूजा गिरा छुरी पर तो भी खरबूजा हलाल. शाब्दिक अर्थ तो स्पष्ट है. कहावत के रूप में अर्थ यह है कि कुछ भी होनी या अनहोनी हो नुकसान हमेशा कमज़ोर आदमी का होता है, जबर को कुछ नहीं होता.
छुरी छड़ी छतरी छलो, सदा राखिए संग. छलो – छल्ला. ये चारों चीजें संकट में काम आती हैं इसलिए हमेशा साथ रखना चाहिए. छल्ले के साथ रस्सी भी हो तभी उसकी उपयोगिता है.
छुरी न कटारी, बोले के हजारी. पास में छोटा मोटा हथियार भी नहीं है लेकिन अपने को हजार रूपये पाने वाला बड़ा सिपहसालार बताते हैं. पहले के जमाने में हजार रूपये बहुत ही बड़ी रकम होती थी.
छूछा कोई न पूछा. गरीब आदमी का आदर-सत्कार कोई नहीं करता.
छूछी हांडी बजे टना टन. खाली हंडिया पर हाथ मारो तो आवाज करती है. जिसमें ज्ञान न हो वह व्यर्थ की बकवास बहुत करता है.
छूछे फटके उड़ उड़ जाए. किसी कठिनाई का सामना करने में जो अंदर से खोखला है वह असफल हो जाएगा. जैसे सूप से फटकने पर खोखला अनाज और छिलके उड़ जाते हैं.
छूट परे गंगा, चुराय खाय बामन. गंगा जी में कोई वस्तु यदि गिर गई या किसी ब्राह्मण ने आपका कुछ चुराकर खा लिया तो वह अकारथ नहीं जाता है. उसकी एवज में कुछ न कुछ पुण्य-लाभ अवश्य मिल जाता है.
छूटा सो बैल भुसौडी में. इसका शाब्दिक अर्थ है कि कोल्हू में जुता हुआ बैल छूटते ही भूसे की कोठरी की ओर भागता है. तात्पर्य है कि मेहनत मजदूरी करने वाले को भी भूख लगती है, वह कोई मशीन नहीं होता.
छेरी के कान मालिक के हाथ. बकरी जैसी निरीह प्राणी पूर्णतया अपने मालिक के वश में रहती है. वह जब चाहे उसे जहाँ ले जाए और जब चाहे उसका गला काट दे.
छेरी भेड़ी से हल चले तो बैल कौन रखे. बकरी और भेड़ हल चला लें तो बैल पर कौन पैसा खर्च करेगा.
छै चावल और नौ मशक पानी. मशक एक चमड़े की बहुत बड़ी थैली होती थी जिस में पानी भर के भिश्ती (पानी भरने वाले) लोग कमर से बाँध के ले जाते थे. कहावत का अर्थ है छोटे से काम में बहुत लागत लगाना.
छै महीना के कुत्ता, बारह बरस के पूता. कुत्ता छै महीने की आयु में और मर्द बारह बरस की आयु में समझदार हो जाता है.
छै महीने का सबेरा करते हैं. वादाखिलाफी करना. समय पर काम करके न देना.
छोकरा दिखाय के डोकरा ब्याह दियो. धोखे का काम. जवान लड़का दिखाया और शादी बुड्ढे से कर दी.
छोटा बच्चा दिलदर्द, बड़ा बच्चा सरदर्द. छोटे बच्चे से इतना प्यार होता है कि उसे जरा भी कष्ट हो तो दिल दुखी होता है, जबकि बड़े बच्चे अपनी हरकतों से परेशान करते हैं.
छोटा बर्तन जल्दी गर्म होता है. कम बुद्धि वाला व्यक्ति जल्दी क्रोधित हो जाता है.
छोटा मुँह, बड़ा निवाला. 1.कोई छोटा आदमी बड़ा काम करने की कोशिश करे तो. 2. कोई अदना सा कर्मचारी बड़ी रिश्वत मांगे तो.
छोटा मुंह और ऐंठा कान, यही बैल की है पहचान. अच्छे बैल के लक्षण हैं कि उसका मुंह छोटा और कान मुड़े हुए होते हैं.
छोटा सबसे खोटा (छोटा उतना ही खोटा). एक आम विश्वास है कि नाटा आदमी दुष्ट होता है.
छोटा सा छेद जहाज डुबावे. एक छोटी सी गलती बहुत बड़े काम को बिगाड़ सकती है.
छोटा सैंया कैसा सैंया, वो तो बस गोड़जतना. छोटे कद का पति केवल पैर दबाने का काम कर सकता है.
छोटी ननदी जहर की पुड़िया. ननद छोटी भी हो तब भी भाभी को बहुत परेशान करती है.
छोटी भेंट दोनों घर लजाए. भेंट अगर अवसर और मर्यादा के अनुकूल न हो तो देने वाला और लेने वाला दोनों को शर्मिंदा करती है.
छोटी मछली उछले कूदे, बड़ी जाल में फंसे (छोटी मछली उछले कूदे, रोहू पकड़ी जाय). किसी तालाब में मछलियाँ होने की सूचना छोटी मछलियों की उछल कूद से मिलती है, पर जाल डाला जाता है तो फंसती हैं बड़ी मछलियाँ.
छोटी मोटी कामिनी, सब ही विष की बेल, बैरी मारे दांव से, यह मारे हँस खेल. स्त्री से धोखा खाए हुए किसी दिलजले का कथन. औरत चाहे छोटी हो या मोटी, सब विष की बेल होती हैं. दुश्मन तो आपको दाँव से मारता है पर ये हँस खेल के मारती हैं.
छोटी सी गौरैया, बाघन से नज़ारा मारे. नज़ारा मारे – मुकाबला करे, बाघन से – बाघों से. कोई बहुत छोटा आदमी बड़े आदमी से दुश्मनी मोल ले तो.
छोटी हो या बड़ी, मिर्च तो तीखी ही होती है. कहावत के द्वारा स्त्री जाति पर व्यंग्य किया गया है.
छोटे बच्चे माँ को चूसते हैं, बड़े बच्चे बाप को. बच्चे जब छोटे होते हैं तो माँ को ही उन की अधिकतर आवश्यकताएँ पूरी करनी होती हैं, बड़े होने पर पिता को.
छोटे बिगड़ें, देख बड़ों को. बड़े लोगों को कोई गलत काम करने से पहले यह ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे वही सीखते हैं जो वे बड़ों को करते देखते हैं.
छोटे मुँह बड़ी बात. कोई छोटा बच्चा या छोटा आदमी बड़ों जैसी बात कहे तो. अपनी विनम्रता दिखाने के लिए भी लोग इस तरह बोलते हैं कि साहब! छोटे मुँह बड़ी बात कह रहा हूँ.
छोटे सींग औ छोटी पूंछ, ऐसा बरधा लो बेपूछ. बरधा – बैल. अच्छे बैल की पहचान बताई गई है.
छोटे से गाजी मियाँ लम्बी सी पूँछ. 1.अधिक आडम्बर करने वाले व्यक्ति के लिए, विशेषकर उस व्यक्ति के लिए जिसके साथ चमचों की लम्बी फ़ौज हो. 2. एक पहेली जिसका उत्तर है सुई धागा.
छोटे-बड़े करते क्वाँरे रह गये. पहिले उम्र में छोटे होने के कारण विवाह नहीं हो सका, फिर विवाह की उम्र निकल गई इसलिए नहीं हो सका, इस प्रकार छोटे-बड़े करते ही क्वाँरे रह गये.
छोटे-बड़े, सब के दो कान. क्या छोटे, क्या बड़े, सब बराबर होते हैं. सबके दो कान हैं.
छोटो बरतन छन में छलके. छन – क्षण. जिस प्रकार छोटे बर्तन में थोड़ा भी पानी हो तो छलकने लगता है उसी प्रकार छोटे व्यक्ति के पास थोड़ा धन या थोड़ा सा ज्ञानआ जाए तो वह बहुत दिखावा करने लगता है.
छोड़ चले बंजारे की सी आग. बंजारे कुछ समय एक स्थान पर रह कर फिर दूसरे स्थान के लिए चले जाते हैं. जाते समय वे कुछ टूटी फूटी वस्तुएँ और कहीं कहीं जलती हुई आग और राख छोड़ जाते हैं. कोई व्यक्ति कुछ दिन कहीं रुके और फिर कुछ निशानियाँ छोड़ कर चला जाए तो यह कहावत कही जाती है.
छोड़ जाट, पराई खाट. जाटों से मालूम नहीं लोगों को क्यों दुश्मनी थी, उनका मजाक उड़ाने वाली बहुत सी बेतुकी कहावतें बनाई गई हैं. जाट से कहा जा रहा है कि दूसरे की चीज़ पर कब्ज़ा छोड़ दे.
छोड़ झाड़, मुझे डूबन दे. एक महिला तालाब में डूब कर जान देने का नाटक कर रही है. वहाँ कुछ लोग उसे बचाने आ जाते हैं, तो उन्हें यह दिखा रही है कि वह झाड़ में अटक गई है और झाड़ से कहती है झाड़ मुझे छोड़ दे, मुझे डूबने दे. नाटकबाज लोगों के लिए.
छोड़िये न जबान, खींचिये न कमान, खेलिये न जुआ, फाँदिये न कुआँ. अपनी बात पर कायम रहो, बिना आवश्यकता लड़ाई मोल मत लो, जुआ कभी मत खेलो और कुआँ मत फांदों.
छोड़ी राम अजुध्या, जो चाहे सो लेय. मोह माया छोड़ कर झगड़े से अलग होना.
छोड़े खाद जोत गहराई, फिर खेती का मज़ा दिखाई. खेत को गहरा जोत कर उस में खाद डालनी चाहिए तभी खेती का मजा आता है.
छोड़े गाँव से नाता क्या. जो जगह छूट गई उससे मोह नहीं करना चाहिए.
ज
जंगल देख के गूजर नाचे, चंग देख बैरागी, खीर देख के बामन नाचे, तन मन होवे राजी. गूजर जंगल देख कर खुश होता है क्योंकि उसे जानवर चराने होते हैं, बैरागी चंग नामक वाद्य यंत्र से प्रसन्न होता है और ब्राह्मण खीर देख कर. अपनी अपनी रूचि और अपने अपने लाभ के अनुसार व्यक्ति प्रसन्न होता है.
जंगल में मंगल, बस्ती में कड़ाका. उपयुक्त स्थान पर उपयुक्त काम न होना. जंगल में उत्सव हो रहा है और बस्ती में सन्नाटा है.
जंगल में मंगल, बस्ती में वीरान, जा घर भांग न संचरे, ता घर भूत समान (होत मसान). भांग खाने वालों द्वारा भांग का गुणगान.
जंगल में मोर नाचा किसने देखा. यदि कोई प्रतिभाशाली व्यक्ति ऐसी जगह अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करे जहाँ कोई देखने वाला ही न हो.
जंगली हाथी, हाकिम, चोर, इन के बिगड़े ओर न छोर. जंगली हाथी, सरकारी अधिकारी और चोर लुटेरे जब बिगड़ते हैं तो बहुत नुकसान कर सकते हैं.
जंगी घोड़े का भंगी असवार. युद्ध के घोड़े पर कोई अदना सा सफाई सेवक सवारी कर रहा है. बेमेल काम.
जंह जंह पाँव पड़े सन्तन के, तंह तंह बंटाढार. किसी व्यक्ति के आने से काम बिगड़ जाए तो मज़ाक में ऐसा कहते हैं. कलियुगी संतों के लिए भी कह सकते हैं.
जंह जंह संत मठा को गए, भैंस पड़ा दोउ मर गए. जब आपके भाग्य में कुछ न हो तो कहीं भी जाएं कुछ नहीं मिलने वाला. ऐसे संत जहाँ भी मट्ठा मांगने गए वहाँ भैंस और उस का कटरा दोनों मर गए.
जग कैसो, जग मों सो. जैसा मेरा चिंतन है संसार मुझे वैसा ही दिखाई देता है. तुलसीदास जी ने ईश्वर के लिए भी ऐसा ही कुछ कहा है – जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी.
जग जानी देश बखानी. कोई बात जो सर्व विदित हो.
जग जीतना आसान पर मन जीतना मुश्किल. संसार को जीतना इतना कठिन नहीं है जितना अपने मन को.
जग जीता मोरी कानी, वर ठाड़ होए तब जानी. जब दो चतुर लोग एक दूसरे को बेबकूफ बनाने की कोशिश करें और दोनों ही बेबकूफ बन जाएं तो. एक साथ दो सन्दर्भ कथाएँ – कुछ लोगों ने धोखा देकर एक कानी लड़की का ब्याह एक लड़के के साथ तय कर दिया. वर पक्ष के लोगों को जब इसका पता चला, तो वे एक लंगड़े को दूल्हा बनाकर ले गए. ब्याह हो जाने पर कन्या के पिता ने कहा- ‘जग जीता मोरी कानी’, तब वर पक्ष की ओर से जवाब मिला ‘वर ठाढ़ होय तब जानी.’ अर्थात दूल्हा जब खड़ा हो, तब तुम्हें पता चलेगा कि जीत किसकी रही, तुम्हारी कानी लड़की की या हमारे लंगड़े वर की. इसी प्रकार की एक और कहानी है. एक लड़के वाले बिना बताए अपने काने लडके की शादी करवा कर बड़े खुश हो रहे थे. तो लड़की वालों ने कहा कि तुन चतुर हो तो हम भी होशियार हैं, कल सुबह अपनी बहू की आँख में ढेंढ देख लेना. ये भयो वो भयो, मेरो काना बेटा ब्याह गयो, तुम चतुर हम सुजान, बहू की ढेंढ निरखना विहान. ढेंढ – भेंगापन, विहान – सुबह.
जग में देखत ही का नाता. दुनिया में जो भी नाते हैं वे सब जब तक मनुष्य रहता है तभी तक हैं.
जगत कहे भगत पगला, भगत कहे जगत पगला. भक्त को देखकर संसार के लोग सोचते है कि यह व्यक्ति तो पागल है. और इधर भक्त संसार के लोगो को देखकर सोचता है कि ये सब लोग पागल है.
जगन्नाथ का भांटा, जिसमें झगड़ा न टांटा. जगन्नाथ जी का भात का प्रसाद सब के लिए समान रूप से सुलभ है, इसमें जाति वर्ण का कोई झगड़ा नहीं है. अर्थ है कि ईश्वर के दरबार में सब बराबर हैं.
जगन्नाथ को भात, जगत पसारे हाथ. उड़ीसा के जगन्नाथ जी के मन्दिर में सभी को भात का प्रसाद मिलता है. अर्थ है कि ईश्वर के सम्मुख सभी हाथ फैलाते हैं.
जजमान के जौ, जजमान का घी, बोल बराहमन स्वाहा. दूसरे के माल को बर्बाद करने में कष्ट न होना.
जजमान चाहे स्वर्ग जाए या नरक को, मुझे अपनी दही पूड़ी से काम. स्वार्थी ब्राह्मणों के लिए.
जटा बढ़ाए हरि मिले तो बरगद स्वर्ग सिधाये. हिन्दू धर्म के अंध विश्वास पर व्यंग्य.
जड़ काटते जाएं, पानी देते जाएं. (जड़ खोदते जाएं, पानी देते जाएं) (नीचे से जड़ खोदें, ऊपर से पानी दें). मूर्खता पूर्ण कार्य के लिए भी कह सकते हैं और धोखेबाज़ के लिए भी कह सकते हैं जो भीतर से आपकी जड़ काटता है और ऊपर से दिखाने के लिए पानी देता है.
जड़ काटे वा डार की, बैठे जाही डार. जिस डाल पर बैठा है उसी की जड़ काट रहा है. मूर्ख व्यक्ति.
जड़ खोद के मठा डाले. सर्वनाश पर उतारू व्यक्ति. चाणक्य ने नंदवंश का नाश करने की ठानी और यह प्रण किया कि जब तक नंद वंश का नाश न कर लूंगा शिखा नहीं बांधूंगा. एक दिन उनके पैर में कुश चुभ गया. उन्होंने उस कुश की जड़ को खोदकर मट्ठा डाल दिया ताकि फिर उगने की संभावना समाप्त हो जाए.
जड़ पकड़ो, तना पकड़े से क्या होये. कोई काम हो तो उस से संबंधित मूल व्यक्ति को ही पकड़ना चाहिए.
जड़ से बैर, पत्तों से यारी. मूर्खता पूर्ण सोच. अगर जड़ को नुकसान पहुँचाओगे तो पत्ते अपने आप खत्म हो जाएंगे.
जतिया से पतिया बड़ भारी. जतिया – जाति, पतिया – पत, प्रतिष्ठा. प्रतिष्ठित व्यक्ति की जाति कोई नहीं देखता.
जदपि जग दारुन दुख नाना, सब तें कठिन जाति अपमाना. जाति सूचक गाली दे कर किसी का अपमान नहीं करना चाहिए. नाना प्रकार के – बहुत से.
जनते समय मरे तो जमाई के सर न पड़े. किसी स्त्री की ससुराल में रहते हुए मृत्यु हो जाए तो उसके माता पिता दामाद को ही दोषी मानते हैं. केवल एक अपवाद है, यदि मृत्यु प्रसव के समय हो.
जननी जन तो पूत जन कै दाता कै सूर, कै तो रह जा बाँझ ही काहे गंवाए नूर. महिलाओं से कहा जा रहा है कि पुत्र उत्पन्न करो तो ऐसा करो जो दाता हो या शूरवीर हो. वरना बाँझ रहना अच्छा है, प्रसव कर के अपना सौन्दर्य मत गंवाओ.
जनम का बिगड़ा क्या सुधरे. जो बचपन से गलत संगत में पड़ जाए उसका बड़े होने पर भी सुधरना मुश्किल है.
जनम की धुनियाइन, अब बन बैठी पंडिताइन. धुनियाइन – रुई धुनने वाली. कोई बहुत छोटा आदमी उच्च पद पर पहुँच कर घमंड करे तो.
जनम के कमबख्त नाम बख्तावर सिंह. गुण के विपरीत नाम. बख्तावर – भाग्यवान.
जनम के कोढ़ी. प्रायः ऐसे आदमी के लिए प्रयुक्त जो अपने बुरे कर्मों का फल भोग रहा हो
जनम के दुखिया करम के हीन, तिनको दैव तिलंगवा कीन. तिलंगा – अंग्रेजी फ़ौज का हिन्दुस्तानी सिपाही. जो हिन्दुस्तानी लोग अंग्रेजों की फ़ौज में नौकरी करते थे उनसे देशभक्त हिन्दुस्तानी लोग घृणा करते थे.
जनम के दुखिया, नाम सदासुख. नाम के विपरीत गुण.
जनम के मंगता, नाम दाताराम. ऊपर वाली कहावत की भांति.
जनम के साथी हैं, करम के साथी नहीं. जन्म एक ही घर में हुआ है तो भी कर्म अलग अलग होते हैं.
जनम को कंटक टरौ. सदा की विपत्ति टली. किसी अवांछनीय व्यक्ति या वस्तु से पिंड छूटने पर.
जनम जनम का मारा बनिया, अजहूँ पूर न तौले. पाप कर्म करने के चक्कर में बनिये को बार बार जन्म लेना पड़ता है पर वह अब भी पूरा नहीं तौल रहा. खाली बनिया ही नहीं संसार के हर व्यक्ति के साथ यह समस्या है.
जनम देत माई बाप, करम होत अपना. माँ बाप जन्म दे सकते हैं, किसी को उसका भाग्य नहीं दे सकते.
जनम न देखी बोरिया, सुपने आई खाट. जिस गरीब ने जन्म से बोरी भी नहीं देखी वह खाट के सपने देख रहा है. अपनी हैसियत से बहुत ऊंचे सपने देखना. बोरी और खाट देखने के लिए देखिये परिशिष्ट.
जनम भरे में रूप धरा वो भी कोढ़ी का. भूले-बिसरे कोई अच्छा काम करने बैठे तो वह भी बेतुका.
जनमत होरिल पैठत बहुरिया. होरिल – नवजात शिशु, पैठत – आती हुई. बच्चे के जन्म के बाद और बहू के आने के बाद एक वर्ष तक घर में जो भी अच्छा बुरा होता है उस का सम्बन्ध बच्चे के जन्म या बहू के आने से जोड़ लिया जाता है. लोग कहते हैं कि बच्चे या बहू के पैर अच्छे हैं (या बुरे हैं).
जने–जने की लकड़ी, एक जने का बोझ. सब लोग मिल कर थोड़ी थोड़ी सहायता करें तो एक व्यक्ति की बहुत बड़ी सहायता हो जाती है. इंग्लिश में कहावत है – Many hands make work light.
जने-जने से मत कहो, कार भेद की बात. अपने रोजगार और भेद की बात हर एक व्यक्ति से नहीं कहनी चाहिए.
जन्म के दुखी, नाम चैनसुख. गुण के विपरीत नाम.
जप माला छापा तिलक, सरे न एको काम, मन काँचे नाचे वृथा, साँचे राँचे राम. यदि मन में राम न हों और मन इधर उधर भटकता हो तो जप करने, माला जपने और तिलक लगाने से कोई लाभ नहीं है.
जब अपना पैसा खोटा तो परखैय्या का क्या दोष (अपना सोना खोटा तो सुनार का क्या दोष). एक जमाना था जब सिक्कों की बड़ी कीमत हुआ करती थी. उस समय धातु के सिक्कों की नकल में रांग के नकली सिक्के बनाए जाते थे, जो खोटे सिक्के कहलाते थे. समझदार लोग फौरन यह परख लिया करते थे कि यह सिक्का खोटा है या खरा. यदि आपके मित्र या संबंधी में कुछ कमियां हो और कोई उसे बुरा कह रहा हो तो.
जब अपनी उतार ली तो दूसरे की उतारने में क्या लगता है. जिस की खुद की इज्जत उतर चुकी हो उसे दूसरे की इज्जत उतारने में देर नहीं लगती.
जब अपनेई लड़के में लच्छन नहिं तब दहेज़ की आसा क्या करना. जब अपना लड़का ही निकम्मा है तब दहेज की क्या आशा की जाय.
जब आया देही का अन्त, जैसा गदहा वैसा सन्त. सज्जन और दुर्जन, मूर्ख और ज्ञानी, सभी को मरना पड़ता है और मरते समय सब एक से हो जाते है.
जब आवे बरसन को चाव, पुरबा गिने न पछवा बाव. जब पानी बरसने को आता है तो पुरवा पछवा कोई भी हवा हो, बरसता ही है. बाव – वायु.
जब आवे संतोष धन सब धन धूरि समान. व्यक्ति के पास कितनी भी सम्पत्ति हो उसे सुख नहीं मिल सकता. सुख तभी मिलता है जब मन में संतोष करने की प्रवृत्ति हो. इसकी प्रथम पंक्ति है – गोधन, गजधन, बाजिधन और रतन धन खान (गाय, हाथी, घोड़े और जवाहरात).
जब एक कलम घसके तब बावन गाँव खसके. कचहरी और कायस्थों के लिए कहा गया है कि उनकी कलम चलने से कुछ का कुछ अनर्थ हो सकता है.
जब काम का बान प्रचण्ड चले, तब ग्यान हलक में घुस जाए. जब कोई ज्ञानी व्यक्ति काम वासना से उत्तेजित होता है तो सारा ज्ञान और उपदेश वापस उस के गले में घुस जाते हैं.
जब किस्मत मारे जोर, तब खेत निराएं चोर. भाग्य साथ दे तो चोर भी खेत निराते हैं. सन्दर्भ कथा – एक गरीब किसान अपने खेत की निराई के लिए परेशान था. अकेले वह पूरा खेत निरा नहीं सकता था और मजदूर बहुत महंगे थे. तभी कुछ चोर, सिपाहियों से बचते हुए उसके खेत में आ छिपे. किसान ने उन्हें ललकारा तो उन्होंने हाथ जोड़ते हुए कहा कि हम आप का खेत निरा देते हैं, आप सिपाहियों से कह देना कि हम मजदूर हैं. इस तरह किसान का काम मुफ्त में हो गया.
जब कुर्सी अफसर पर सवार तब उल्टी गंगा बहे. जब अफसर पर पद का अहंकार हावी हो जाता है तो वह सारी मर्यादाएँ भूल जाता है.
जब गुण को गाहक मिले, तब गुण लाख बिकाई, जब गुण को गाहक नहीं, कौड़ी बदले जाई. कबीर कहते हैं कि जब गुण को परखने वाला ग्राहक मिल जाता है तो गुण की कीमत होती है. पर जब ऐसा ग्राहक नहीं मिलता, तब गुण कौड़ी के भाव चला जाता है.
जब जंगल जावे, तभी लोटा याद आवे. जंगल जाना – शौच के लिए खुले में जाना. आवश्यकता होने पर ही कोई चीज़ याद आती है यह कहने का हास्यप्रद तरीका.
जब जागो तभी सवेरा. अगर कोई गलती से गलत रास्ते पर चल पड़ा हो तो निराश नहीं होना चाहिए. अच्छा जीवन कभी भी शुरू किया जा सकता है.
जब जैसो तब तैसो. जब जैसा समय हो तब वैसा ही करना चाहिए.
जब डाकनवारो चढ्यो सर पे तब लाज कहाँ खर पे चढ़िबै की. डाकनवारो – बुलाने वाला, खर – गधा. प्रियतम से मिलने की धुन सर पे सवार है तो गधे पर चढ़ने में भी कैसी शर्म.
जब तक ओझा के सर देवता अइहैं, तब तक लड़का मर जइहै. किसी गंभीर मसले में अनावश्यक देरी होने पर यह कहावत कही जाती है. ओझा से झाड़ फूंक कराने वाले उस के सर पर देवता के आने का इन्तजार करते हैं.
जब तक करूं बाबू बाबू, तब तक करूं अपने काबू (जब तक करूँ पूता पूता, तब तक कर लूँ अपने बूता). किसी काम को करने के लिए जब तक दूसरों की मनुहार करना पड़ेगी तब तक तो मैं खुद ही उस काम को कर लूँगा.
जब तक गंग जमुन जल धारा. जब तक गंगा व यमुना में जल रहेगा तब तक (अनंत काल तक).
जब तक जवान करे लोट पोट, तब तक बूढ़ा मारे तीन चोट. जब तक जवान आदमी हंसी मजाक में समय नष्ट करता है या सोचता है कि करूँ न करूँ, तब तक बूढ़ा (और अनुभवी आदमी) बहुत सा काम निबटा देता है.
जब तक जान तब तक साँसत, जब तक धन तब तक आफत. जब तक जीवन है तब तक मुसीबतें झेलनी पड़ेंगी. जब तक व्यक्ति के पास धन है तब तक उसको संभालने की आफत उठानी पड़ेगी.
जब तक जीना तब तक सीना. जब तक मनुष्य जीवित रहता है तब तक उसे कुछ न कुछ करना ही पड़ता है. सीना – सिलाई करना.
जब तक तेरे पुन्य का बीता नहीं करार, तब तक तुझ को माफ़ है औगुन करे हजार. जब तक पिछले जन्मों के पुण्य समाप्त नहीं हो जाते तब तक ही तुम पाप कर्म कर के भी सुरक्षित हो. (इसके बाद दंड अवश्य मिलेगा)
जब तक दम है, तब तक गम है. जब तक जीवन है तब तक कुछ न कुछ दुख लगे ही रहते हैं.
जब तक पढ़बै क ख खइय्या, तब तक जोतबै तीन हरय्या. कहावत उस समय की है जब गांवों में पढ़ाई लिखाई का कोई महत्व नहीं था. बड़े लोग कहते थे जब तक क, ख, ग पढोगे तब तक तीन बार हल जोत लोगे.
जब तक पैसा गाँठ में, तब तक यार हजार. पैसा पास हो तो बहुत दोस्त बन जाते हैं.
जब तक लालाजी पाग संभालेंगे, तब तक दरबार उठ जाएगा. श्रृंगार करने और तैयार होने में बहुत देर लगाने वालों पर व्यंग्य. रूपान्तर – जब तक कानी का सिंगार होगा, मेला उठ जाएगा.
जब तक साँस, तब तक आस (जबलग सांसा, तबलग आसा). कोई व्यक्ति गम्भीर रूप से बीमार हो तो यह कहावत कही जाती है, जब तक उस की सांस चल रही है तब तक उस के ठीक होने की आशा लगी रहती है.
जब दम लगा घटने, तो खैरात लगी बंटने. जब मृत्यु निकट आती है तो आदमी को दान धर्म सूझने लगता है.
जब दाँत न थे तब दूध दियो अब दाँत भए का अन्न न देहें. नवजात शिशु (जिसके दांत नहीं होते) उसके लिए जिस ईश्वर ने दूध की व्यवस्था की है (माँ का दूध) वह दांत वालों को अन्न भी देगा.
जब दांत थे तब चने न थे, जब चने भए तो दांत नहीं. जब शरीर स्वस्थ होता है तो मनुष्य के पास आनन्द उठाने के साधन नहीं होते और जब तक साधन इकट्ठे हो पाते हैं तब तक शरीर अशक्त हो चुका होता है.
जब बरखा चित्रा में होए, सगरी खेती जावे खोय. घाघ कहते हैं कि यदि चित्रा नक्षत्र में वर्षा होती है तो खेती नष्ट हो जाती है.
जब बरसे तो बांधे क्यारी, बड़ा किसान जो हाथ कुदारी, पानी बरसे बह न पावे, तौ खेती का मजा दिखावे. जो किसान कुदाली ले कर अपने हाथ से काम करे और वर्षा के पानी को सहेज ले, वही असली किसान है.
जब बरसेगा उत्तरा, नाज न खावे कुत्तरा. उत्तरा नक्षत्र में वर्षा हो तो इतना अन्न पैदा होता है कि कुत्ते भी खाते खाते थक जाएं.
जब बांझ बिआनी तो सोंठ हेरानी. बिआनी – बच्चा पैदा हुआ, हेरानी – खो गई. बच्चा पैदा होने पर सोंठ खिलाना आवश्यक माना जाता था. बड़ी मुश्किल से बाँझ स्त्री के बच्चा हुआ तब तक सोंठ खो गई. कोई काम बड़ी मुश्किल से संपन्न हुआ हो और उसमें कोई व्यवधान हो जाए तो मजाक में यह कहावत कही जाती है.
जब बाप का जूता बेटे के पैर में आ जाए तो उसको दोस्त समझना चाहिए. जब बेटा जवान हो जाए तो उससे मित्रवत व्यवहार करना चाहिए. रूपान्तर – बाप का जूता बेटे के पैर में आ जाए तो उसकी शादी कर दो.
जब बिगड़े तब सुघड़ नर, क्या बिगड़ेगा कूढ़, मट्ठे का क्या बिगड़ना, जब बिगड़े तब दूध. जिसके पास कुछ है ही नहीं उसका क्या बिगड़ेगा. रूपान्तर – जब बिगड़े तो सुघड़ नारी, फूहड़ क्या बिगड़े बेचारी.
जब बूढा भया शेर तो कौवे मंडराय लागे. जब शेर बूढ़ा व कमज़ोर हो जाता है तो कौवे भी उसको तंग करते हैं और वह चुपचाप बैठा देखता रहता है. शरीर अशक्त होने के बाद हर व्यक्ति मजबूर हो जाता है.
जब बोलो तब राम ही राम, ठाली जिव्हा कौने काम. खाली जीभ के लिए सबसे अच्छा काम यह है कि वह बार बार राम राम बोले.
जब भए सौ तो भाग गया भौ. जब बहुत से लोग इकट्ठे होते हैं तो भय भाग जाता है. भौ – भय.
जब भूख लगी भड़ुए को तो तंदूर की सूझी और पेट भरा तो दूर की सूझी. आम सांसारिक लोग पहले भूख और खाने की ही चिंता करते हैं. जब पेट भर जाए तो तभी कुछ और सोच पाते हैं.
जब माँ की चूड़ी बेटी के हाथ में आ जाए तो उसकी शादी कर देनी चाहिए. अर्थ स्पष्ट है.
जब मैं था तब गुरु नहीं, अब गुरु हैं मैं नाहिं, प्रेम गली अति सांकरी, जा में दो न समाहिं. जब मेरे अंदर अहंकार था तब मैं किसी को गुरु नहीं बना पाया, अब मुझे गुरु मिले हैं तो मेरा अहंकार चला गया है. प्रेम की गली बहुत पतली है, इस में गुरु और अहंकार दोनों नहीं समा सकते. मैं – अहंकार, सांकरी – संकरी, पतली.
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नांहि (सब अँधियारा मिट गया, दीपक रेखा मांहि). कबीर दास जी कहते हैं कि जब मेरे अंदर अहंकार (मैं) था, तब मेरे हृदय में ईश्वर का वास नहीं था. और अब मेरे हृदय में ईश्वर का वास है तो अहंकार नहीं है.
जब राम तकें सब दुख भागें. जब भगवान की कृपा दृष्टि होती है तो सब दुख दूर हो जाते हैं.
जब लक्ष्मी तिलक करती हो, तब मुहँ धोने नहीं जाना चाहिए. अवसर को खोने की मूर्खता नहीं करना चाहिए.
जब लग खुद को न पहचानो, सभी साधना झूठी. जब तक व्यक्ति स्वयं को न पहचाने (अपने जीवन का उद्देश्य न जाने और अपनी कमियों को न पहचाने) तब तक साधना करने का कोई लाभ नहीं है.
जब लग चलें हाथ और पाँव, तब लग पूजे सारा गाँव. जब तक व्यक्ति के हाथ पाँव चलते हैं तभी तक उसका सम्मान होता है.
जब लाद ली तब लाज क्या. जब बेशर्मी लाद ली तो शर्म किस बात की.
जब लौं निर्धन तब लौं सधुआई, धन के पाये साधु बौराई. जब तक आदमी के पास ऐश आराम के साधन न हों तब तक वह साधु रहता है किन्तु जैसे ही संपन्नता आती है, वैसे ही वह बौरा जाता है.
जब सब कोई सोवें तो परदेसी चूल्हा फूंके. परदेस में रह कर काम करने वाले को स्वयं खाना भी बनाना पड़ता है. काम से लौटने के बाद जब सब लोग आराम करते हैं तब वह बेचारा चूल्हा फूंकता है.
जब साजन की होए लुगाई, तोड़े कोट और फांदे खाई. प्रेम में व्यक्ति किला तोड़ सकता है, खाई फांद सकता है.
जब से उगे बाल, तब से यही हवाल. जब से वयस्क हुए तब से यही बुरा हाल है.
जब से जानी तब से मानी. किसी बात की पूर्ण जानकारी होने पर उसे माना जा सकता है.
जब हांडी पे ढकना न होवे तो बिलैया की लाज काहे चाहो. हंडिया पे ढक्कन न होगा तो बिल्ली दूध पीने में शरम क्यों करेगी. अपनी चीज की सुरक्षा नहीं करोगे तो चोर चोरी क्यों नहीं करेगा.
जब ही तब ही दंडै करे, ताल नहाय ओस में परै, दैव न मारे आपै मरे. जो कभी कभी ही व्यायाम करता है और तालाब में नहा कर ओस में लेटता है उसे भगवान नहीं मारते, वह खुद ही मर जाता है. (घाघ कवि)
जब होवें करमन के फेर, मकड़ी जाल में फंस जाए शेर. (बुन्देलखंडी कहावत) भाग्य का फेर हो तो शेर भी मकड़ी के जाल में फंस सकता है. भाग्य सब से प्रबल है.
जब होवें बिधना विपरीत तब ऊँट चढ़े पर कूकर काटे. जब भाग्य विपरीत हो तो ऊँट पर बैठे व्यक्ति को भी कुत्ता काट सकता है.
जबर की जोय महतारी लागे, निबल की जोय मोरी साली. बलवान की पत्नी माँ जैसी लगती है और निर्बल की पत्नी साली. अर्थ है कि कमजोर को सब दबाते हैं.
जबर के जबरई, अबरा के नियाव. (भोजपुरी कहावत) दबंग अपनी जबरदस्ती पर विश्वास रखता है और कमजोर न्याय तन्त्र का मुँह देखता है (यह अलग बात है कि न्याय उसे वहाँ भी नहीं मिलता).
जबर मेहरारू कुल की नास. जबरदस्ती अपनी बात मनवाने वाली स्त्री कुटुंब का नाश करती है.
जबरदस्त के दो भाग. किसी चीज़ के कई हिस्से किये जाएँ तो ताकतवर आदमी उसमें से दो हिस्से लेता है.
जबरदस्त के बीसों बिस्वे. जो जबरदस्त है वह सारा हिस्सा खुद लेना चाहता है. एक बीघे में बीस बिस्वे होते हैं.
जबरदस्त सबका जमाई. जैसे जमाई की सबको इज्ज़त करनी पडती है वैसे ही दबंग आदमी से सबको दबना पड़ता है.
जबरदस्ती का ठेंगा सिर पर. अर्थ ऊपर वाली दोनों कहावतों के समान.
जबरा की जोरू, गाँव भर की ताई. दबंग व्यक्ति के नाते रिश्तेदारों से भी सब डरते हैं.
जबरा मारे और रोने न दे. जो जबरदस्त होता है वह मारता है और किसी से फ़रियाद भी नहीं करने देता.
जबरा हारे तो भी मारे, न हारे तो भी मारे. दबंग व्यक्ति हार जाए तो भी अपने को हारा हुआ नहीं मानता और मार पीट पर उतारू हो जाता है और जीत जाए तब तो परेशान करता ही है.
जबरे की जात कोई न पूछे. पहले के जमाने में लोग जात पांत का बहुत विचार करते थे. ऊँची जाति वालों का सम्मान और निम्न जाति वालों का अपमान आम बात थी. पर उस समय भी जो ताकतवर होता था उसकी जाति कोई नहीं पूछता था. नीची जाति वालों को कुएँ से पानी नहीं भरने देते थे पर म्लेच्छों से कुछ नहीं कहते थे.
जबरे को जबरा ही मारे, या मारे करतार. आतताई को दूसरा आतताई ही मार सकता है या ईश्वर.
जबरे ने दी गाली तो मजाक में टाली. दबंग आदमी गाली देता है तो लोग हँस के टाल देते हैं.
जबलग सनहकी में भात, तब लग तेरो मेरो साथ. जब तक तुम्हारे यहाँ खाने पीने की जुगाड़ है तब तक का ही तुम्हारा मेरा साथ है. निपट स्वार्थ. सनहकी – खाना पकाने का बर्तन.
जबान को लगाम चाहिए. जो कुछ हम बोलते हैं उस पर हमारा पूरा नियन्त्रण होना चाहिए.
जबान से ही घर उजड़ते हैं, जबान से ही घर बसते हैं. मीठी बोली प्रेम सम्बंध बना कर घर बसा सकती है और कड़वी बोली दुश्मनी करवा कर घर उजाड़ सकती है.
जबान हारी तो सब हारा. वचन दिया तो सर्वस्व दिया.
जबान ही हलाल है, जबान ही मुरदार है. जिस जानवर को इस्लामिक विधि से मारा गया हो उसे खाना मुसलमान हलाल (धर्मसंगत) मानते हैं और जो अपनी मौत मरा हो (मुरदार) उसे खाना पाप मानते हैं. कहावत में यह कहा गया है कि जीभ ही धर्म की बात करती है और जीभ ही अधर्म की.
जबान ही हाथी चढ़ाए, ज़बान ही सिर कटाए. बात को चतुराई से कहने पर हाथी इनाम में मिल सकता है और मूर्खता से कहने पर सर काटने की सजा मिल सकती है. (बातन हाथी पाइए, बातन हाथीपाँव).
जम की भैन बरात. बारात की खातिरदारी करना बड़ा ही खतरनाक काम है. इसीलिए बारात को यमराज की बहन कहा गया है.
जम के पानी बरसे स्वाती, कुरमिनि पहिरै सोने की पाती. स्वाति नक्षत्र में पानी बरसे तो किसान को बहुत लाभ होता है (उसकी पत्नी सोने के गहने बनवाती है).
जम से जबर बनिया. बनिया उधार की उगाही करने के मामले में यमराज से भी अधिक खतरनाक होता है.
जमा लगे सरकार की और मिर्ज़ा खेलें फाग. सरकार के धन का दुरुपयोग करने वालों के लिए.
जमाई के घर घोड़ा और सास हिनहिनाए. कोई व्यक्ति साधन सम्पन्न हो तो उस के सगे सम्बन्धी भी इतराने लगते हैं. ऐसे लोगों का मजाक उड़ाने के लिए यह कहावत कही जाती है.
जमाई जम का भाई (जमाई जम के समान होता है). दामाद यमराज की तरह डरावना और खतरनाक होता है.
जमाई तो रूठा ही भला. दामाद के रूठने से बड़ा फायदा है, न बार बार घर आएगा, न खातिर करनी पड़ेगी.
जमाई रूठे घर बसे, बेटा रूठे घर खसे. जमाई रूठता है तो लेन देन में होने वाला खर्च बच जाता है, इसलिए घर भरता है. बेटा रूठे तो घर में कमाई देना बंद कर देता है इसलिए घर डूब जाता है.
जमात में करामात. संगठन में शक्ति है.
जमीं जोरू जोर की, जोर हटया और की (खेती जोरू जोर की, जोर घट्या तो और की). जायदाद और स्त्री बलवान के पास ही ठहर सकती है. बल घटते ही दूसरे बलवान लोग उसे छीन लेते हैं.
जमींदार की जड़ हरी. जमींदार हमेशा फलता फूलता है.(अकाल पड़ेगा तो किसान मरेगा, जमींदार फिर भी फलेगा).
जयपुर जइयो तो एक चक्की ले अइयो. कहीं जाने वाले व्यक्ति को अपने फालतू के काम बताना. काम बताने वाला यह भी नहीं सोचता कि चक्की ले कर आना कितना कठिन काम है.
जर का जर्रा भी आफताब है, बेजर की मिट्टी खराब है. जर – खजाना, आफताब – सूर्य, बेजर – निर्धन. धन का कण भी सूर्य के समान तेजवान लगता है. जिस के पास धन नहीं है उस की कोई पूछ नहीं है.
ज़र का जोर पूरा है, और सब अधूरा है. पैसे में जितनी ताकत है उतनी किसी चीज़ में नहीं है.
जर का मर्द नाहर, चाहे घर रहे या बाहर, बेजर का मर्द बिल्ली, चाहे घर रहे या दिल्ली. जर – संपत्ति, नाहर – शेर, बेजर – संपत्ति हीन. जो मर्द पैसे वाला है वह चाहे घर रहे या परदेश में, वह हमेशा शेर की तरह रहता है और जो पैसा नहीं कमा पा रहा है, वह चाहे कहीं भी रहे, भीगी बिल्ली बना रहता है.
ज़र गया ज़र्दी छाई, ज़र आया सुर्खी आई. धन न रहने पर आदमी उदास हो जाता है और धन आ जाने से प्रसन्न. (जर्दी – पीलापन, सुर्खी – ललामी)
जर नेस्त, इश्क टें टें. जर – खजाना, नेस्त – समाप्त. पैसा खत्म तो प्रेम भी खत्म.
जर पल्ले तो उजाड़ में चल्ले (उजाड़ में बल्ले बल्ले). पैसा पास हो तो आदमी जंगल में मंगल कर सकता है.
जर है तो घर है, नहीं तो खंडहर है. जर – धन. पास में पैसा हो तभी घर बस सकता है और चल सकता है.
जर है तो नर है नहीं तो पंछी बेपर है. रुपया पैसा पास हो तभी आदमी की इज्जत है.
जर है तो नर, नहीं तो पूरा खर. पैसा पास हो तो आदमी नहीं तो गधे के बराबर.
जरा जरा सा कर लिया और अपना पल्ला भर लिया. थोड़ी थोड़ी बचत भी बहुत महत्वपूर्ण होती है.
जरा सा खावे बहुत बतावे वह है बहू सुघड़ेली, ज्यादा खावे कम बतलावे वह बहुतहि बिगड़ेली. जो बहू सुघड़ होती है वह कम खाती है और कहती है कि उसने बहुत खा लिया है, जो बहू बिगडैल होती है वह अधिक खाती है और कहती है कि उसे कुछ नहीं मिला.
जरा सा मुँह, बड़ा सा पेट. जो बोलता कम हो और पेट में ज्यादा बात रखता हो. उसके लिए भी जो देखने में दुबला पतला हो पर खाता अधिक हो.
जरूरत पड़ने पर लोग गधे को भी बाप बना लेते हैं. स्वार्थ सिद्धि की लिए मनुष्य कुछ भी कर सकता है.
जल और कुल मिलते देर नहीं लगती. पानी और एक कुल के आदमियों को परस्पर मिलने में देर नहीं लगती. आजकल कुल से अधिक काम महत्वपूर्ण है. दो डॉक्टर या दो वकील कहीं मिलते हैं तो फौरन घुल मिल जाते हैं.
जल की मछलिया जल में ही प्यासी. जिस चीज़ की बहुतायत होनी चाहिए उसी की कमी हो तो.
जल की मछली जल ही में भली. जो जहाँ का होता है उसे वहीं अच्छा लगता है.
जल में खड़ी प्यासों मरे. साधन सम्पन्न होने पर भी परेशान होना.
जल में जो मूते वही जाने. नदी या तालाब में नहाते समय किसने पानी के अंदर पेशाब की है यह केवल करने वाला ही जान सकता है. जो गलत काम छिप के किया जाता है उसे केवल करने वाला ही जान सकता है.
जल में डूबा तैर निकले, तिरिया में डूबा बह जाए. एक बार को पानी में डूबा आदमी तैर कर निकल सकता है पर जो स्त्री के मोह में डूब गया वह निश्चित रूप से बह जाता है.
जल में रहे मगर से बैर. जहां आप रहते हैं वहाँ रहने वाले शक्तिशाली लोगों से दुश्मनी मोल नहीं लेना चाहिए.
जल लकीर जिमि जीवनों है, स्थिर रह्यो नाहिं. जीवन पानी पर खींची लकीर की भांति क्षणभंगुर है.
जल सूर बामन, रन सूर छत्री, कलम सूर कायस्थ और डर सूर खत्री. ब्राह्मण ठन्डे पानी में रोज नहाता है (जल शूर), क्षत्रिय युद्ध करने (रण) में शूर होता है, कायस्थ कलम का वीर होता है और खत्री महा डरपोक होता है. कहावत तो कहावत है, खत्रियों से निवेदन है कि इस का बुरा न मानें.
जलता घर भगवान् को अर्पण. जो चीज़ हाथ से जा रही हो उस को भगवान को अर्पण कर के भक्त होने का नाटक करना.
जली तो जली पर सिकी खूब. काम बिगड़ तो गया पर आनंद खूब आया.
जले को क्या जलाना. 1. जो कष्ट में हो उसे और कष्ट नहीं देना चाहिए. 2. कोई आपसे ईर्ष्या करता हो तो उसके सामने ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिए जिससे वह और अधिक जले.
जले घर की बलेंडी. बलेंडी – छप्पर की लम्बी लकड़ी. व्यापार में बहुत नुकसान हुआ पर जो कोई एक बड़ा अदद बच गया उस के लिए ऐसा कहते हैं.
जले पराया घी और हंसें बटाऊ लोग. दूसरे का नुकसान होते देख कर कुछ लोग आनंद लेते हैं. बटाऊ – राहगीर.
जले पांव की बिल्ली. ऐसा व्यक्ति जो घर घर घूम कर झगड़े की आग लगा देता है. सन्दर्भ कथा – किसी गाँव के साहूकार ने एक बिल्ली पाल रखी थी. एक बार बिल्ली के पाँव में चोट लग गई तो साहूकार ने मिट्टी के तेल में कपड़ा भिगोकर उस के पाँव में पट्टी बाँध दी. अचानक वह बिल्ली रसोई घर में चूल्हे के पास चली गई तो उस कपड़े में आग लग गई. आग लगने से वह बिल्ली घर में इधर-उधर भागने लगी. साहूकार के घर में कई अन्य व्यापारियों के कपड़े के गट्ठर और रुई रखी थी जिनमें आग लग गई. इसके बाद बिल्ली बदहवासी में घर से बाहर निकल गई और उस ने इधर उधर भागते हुए कई घरों में आग लगा दी. कहावत किसी ऐसे व्यक्ति के लिए प्रयोग की जाती है जो अपनी धूर्तता द्वारा सब जगह झगड़े की आग लगा देता है.
जलेबी की तरह सीधा. जलेबी बहुत टेढ़ी मेढ़ी होती है. अगर कोई धूर्त व्यक्ति अपने को सीधा बताने का प्रयास करता है तो उस के लिए मजाक में ऐसे बोलते हैं.
जलो मगर दीपक की तरह. जो लोग दूसरों की सफलता और सम्पन्नता से जलते हैं उन को सीख दी गई है कि अगर जलना ही है तो दीपक की तरह जलो जो स्वयं जल कर औरों को प्रकाश देता है.
जलो मत रीस करो. रीस – स्पर्धा. किसी की सम्पन्नता से जलने की बजाय उससे स्वस्थ प्रतिस्पर्धा करना और उस के बराबर बनने की कोशिश करना चाहिए. इंग्लिश में कहावत है – Envy never enriched any man.
जल्दबाजी करो तो भी धीरे धीरे. कभी कोई काम जल्दी में करना पड़े तो भी जितना संयम हो सके रखना चाहिए.
जल्दबाजी काम शैतान का, सुघड़ काम रहमान का. जल्दबाजी में काम खराब हो जाता है.
जवान जाए पताल, बुढ़िया मांगे भतार. बुढ़िया कह रही है कि जवान स्त्री भाड़ में जाए मुझे ब्याह करना है. बुढ़ापे में कुछ लोग बहुत स्वार्थी हो जाते हैं, उनके लिए.
जवान डरे भगने से, बूढ़ा डरे मरने से. जवान युद्ध भूमि से भागने से डरता है और बूढ़ा मरने से डरता है.
जवान रांड, बूढ़े सांड. 1. जवान विधवा को देख कर बूढ़े लोग नीयत खराब कर रहे हों तब. 2. दुश्चरित्र जवान स्त्री और रंगीन मिजाज बूढ़े लोगों का गठबंधन.
जवानी के सौ यार. युवतियों को सावधान करने के लिए कहा गया है.
जवानी में गधी पर भी जोवन होता है. स्त्री कुरूप हो तब भी युवावस्था में उस पर भी मद छाता है.
जवानी में शादी, नहीं तो बरबादी. युवावस्था में विवाह न हो पाए तो आदमी बर्बाद हो जाता है.
जवानी में हाजी, बुढ़ापे में पाजी. जो व्यक्ति जवानी में धर्मात्मा हो पर बुढ़ापे में दुश्चरित्र हो जाए.
जवानी मौत अच्छी, जवानी अधपेटा न अच्छी. जवानी में भरपेट खाने को न मिले इससे तो मृत्यु अच्छी.
जवानों को चला चली, बुढ़िया को ब्याह की पड़ी. जवानों की तो जान जोखिम में है और बुढिया को ब्याह करने का शौक सूझ रहा है. बुढ़ापे में मनुष्य स्वार्थी हो जाता है इस पर व्यंग्य.
जस केले के पात में पात पात में पात, तस ग्यानी की बात में बात बात में बात. जैसे केले के एक पत्ते में बहुत से पत्ते होते हैं वैसे ही ज्ञानी आदमी की बात में गूढ़ अर्थ छिपे होते हैं.
जस दुल्हा तस बनी बराता. जैसा नायक वैसे ही अनुयायी, जैसा नेता वैसी जनता, जैसा राजा वैसी प्रजा.
जस मतंग तस पादन घोड़ी, बिधना भली मिलाई जोड़ी. एक साथ काम करने वाले दो लोग जब एक से बढ़ कर एक निकम्मे हों तो. मतंग – कोई (मूर्ख) व्यक्ति, पादन घोड़ी – पादने वाली घोड़ी, बिधना – ईश्वर.
जस-जस बिटिवा बाढ़े, तस-तस गुन काढ़े. जब कोई मूर्ख कन्या बड़ी होने के साथ-साथ और अधिक मूर्खता के काम करने शुरू कर देती है तब व्यंग्य में यह कहावत कहते हैं
जहँ आपा तहँ आपदा, जहँ संशय तहँ रोग. जहाँ स्वार्थ और अहंकार का बोलबाला है वहाँ संकट है और जहाँ शंकालु प्रवृत्ति है वहाँ आप स्वस्थ मन से काम नहीं कर सकते.
जहँ एका तहँ लक्ष्मी, जहाँ कलह वहाँ काल. घर हो व्यापार हो या समाज, जहाँ लोगों में एकता है वहाँ उन्नति है, जहाँ लड़ाई झगड़े है वहाँ दुर्गति.
जहँ लूट पड़ी वहां टूट पड़ी जहँ मार पड़ी वहां भाग पड़ी. जहाँ माल की खुल्लम खुल्ला लूट मच रही हो वहाँ कायर और लालची लोग टूट पड़ते हैं और जहाँ मार पड़ने का डर हो वहाँ से भाग खड़े होते हैं.
जहर को जहर ही मारता है. दुष्ट का नाश दुष्टता से ही किया जा सकता है. (संस्कृत – विषस्य विषं औषधम् ).
जहर खाने की फुर्सत नहीं. काम से बिलकुल अवकाश नहीं होना.
जहाँ अचानक होत है, अति आदर सम्मान, तहाँ सदा संकित रहे, जो चाहे कल्यान. जहां पर सदैव आदर होता हो वहाँ तो ठीक है पर यदि कहीं अचानक से सम्मान होने लगे तो सावधान हो जाना चाहिए.
जहाँ कलह तहँ सुख नहीं कलह सुखनि को सूल. जहाँ झगड़ा है वहाँ सुख शान्ति नहीं हो सकती. सूल – शूल.
जहाँ का पीवे पानी, वहीं की बोले बानी. जहाँ रहो वहीं के अनुकूल बात करनी चाहिए.
जहाँ काम, वहीं राम. जहाँ उद्यम है, वहीं ईश्वर का वास है.
जहाँ के ठाकुर अइसन, वहाँ के दलिद्दर कइसन. अइसन – ऐसे, कइसन – कैसे. जहाँ के गणमान्य लोग ऐसे गये गुजरे हैं वहाँ के निम्न वर्ग के लोग कैसे होंगे.
जहाँ के मुरदे तहाँ ही गड़ते हैं. जो काम जहां का है उसे वहीं निबटाना चाहिए.
जहाँ खर्च नहीं वहाँ हर एक गाँठ का पूरा. जहाँ लोगों की आदत व्यर्थ खर्च करने की नहीं होती वहाँ हर व्यक्ति सम्पन्न होता है.
जहाँ खैरात बंटे वहाँ मंगते अपने आप पहुँचें. अर्थ स्पष्ट है.
जहाँ गंग, वहाँ रंग. जहाँ गंगा है, वहाँ आनंद हैं. प्राचीन समय में नदियों के किनारे ही नगर बसते थे.
जहाँ गंगा तहाँ झाऊ, जहां बाभन तहाँ नाऊ. जिस प्रकार नदियों के पास झाऊ के पेड़ अवश्य पाए जाते हैं उसी प्रकार धार्मिक कर्मकांडों में पंडितों के साथ नाई भी अवश्य पाए जाते हैं. देखिए परिशिष्ट.
जहाँ गंज, वहाँ रंज. जहाँ ख़ुशी है वहाँ दुख भी अवश्य है.
जहाँ गाय वहाँ बछड़ा, जहाँ गुरु वहाँ चेला. जैसे बछड़ा गाय पर पूरी तरह निर्भर है वैसे ही चेला भी पूरी तरह गुरु पर आश्रित है.
जहाँ चने हैं वहाँ दांत नहीं, जहाँ दांत हैं वहाँ चने नहीं. जहाँ सुविधाएँ उपलब्ध हैं वहाँ उन्हें भोगने वाले नहीं हैं, जहाँ भोगने वाले बहुतेरे हैं वहाँ सुविधाएँ नहीं हैं.
जहाँ चार गगरी तहाँ लड़बे करी. (भोजपुरी कहावत) जहाँ चार पनिहारिनें होंगी वहाँ आपस में लड़ाई तो होगी ही. स्त्रियों की बिना कोई ठोस कारण आपस में लड़ने की आदत पर व्यंग्य.
जहाँ चार रजपूत, वहाँ बात मजबूत. राजपूत अकेला हो तो भी अपनी बात का पक्का होता है, और अगर चार राजपूत मिल जाएं तो क्या कहना.
जहाँ जाएं बाले मियाँ तहाँ जाए पूँछ. चमचों पर व्यंग्य करने के लिए.
जहाँ जाट, वहाँ ठाठ. जाट बड़े दरियादिल और मस्त माने जाते हैं उसी पर बनी कहावत.
जहाँ तेल देखा वहीँ जनने को बैठ गई. बच्चे का जन्म कराने के लिए दाइयों को तेल की आवश्यकता होती थी. एक ऐसी स्त्री का ज़िक्र किया गया है जो कहीं पर तेल देख कर बच्चे का प्रसव करने बैठ जाती है. कहावत उस निर्लज्ज व्यक्ति के लिए कही गई है जो मुफ्त की चीज पाने के लिए कुछ भी कर सकता है.
जहाँ दया तहँ धर्म है, जहाँ लोभ तहँ पाप, जहाँ क्रोध तहँ ताप है, जहाँ क्षमा तंह आप. जहाँ दया है वहाँ धर्म, जहाँ लोभ है वहाँ पाप. जो लोग क्रोध करते हैं वे कष्ट उठाते हैं और जहाँ क्षमा वहाँ ईश्वर का वास होता है.
जहाँ दूल्हा वहीँ बरात. जो महत्वपूर्ण व्यक्ति है उसी के इर्द गिर्द सब लोग रहना चाहते हैं.
जहाँ नहीं पेड़ वहाँ अरंड ही पेड़ (जहाँ रूख नहीं वहाँ अरंडा ही रूख). अरंड का पेड़ बहुत घटिया पेड़ माना जाता है. लेकिन जहाँ पेड़ ही न हों वहाँ अरंड को ही पेड़ मान सकते हैं. काम चलाने वाली बात.
जहाँ नाश वहाँ सवा सत्यानाश. जहाँ नुकसान हो रहा है वहाँ थोड़ा और नुकसान सही. इस को इस प्रकार भी कहते हैं – जहाँ लादी वहाँ सवा लादी.
जहाँ पड़े मूसल, वहीं क्षेम कुशल. 1.मूसल से मसाले कूटे जाते हैं और चूरमा बनता है, इसलिए जहाँ खुशहाली हो वहीं मूसल का प्रयोग होता है. 2. कुटाई के डर से ही सारी व्यवस्थाएं सुचारू रूप से चलती हैं. (देखिए परिशिष्ट)
जहाँ पाँच पंच तहाँ परमेश्वर. जहाँ पांच पंच मिल कर न्याय करते हैं वहाँ अन्याय की गुंजाइश कम हो जाती है.
जहाँ फूल वहाँ काँटा (जहाँ गुलाब, वहाँ कांटे). ईश्वर ने जहाँ सुख दिए हैं वहाँ कुछ न कुछ दुख भी दिए हैं. इंग्लिश में कहावत है – There are no rose without thorns.
जहाँ बस्ती होती है वहाँ कुत्ते भी होते हैं. 1. अच्छे इंसानों के बीच बुरे लोग भी अवश्य होते हैं. 2. जहाँ सम्पन्नता होती है वहाँ उस का लाभ लेने वाले बहुत से निम्न श्रेणी के लोग पहुँच जाते हैं.
जहाँ बहू का पीसना, वहीं ससुर की खाट. जहाँ बहू चक्की पीस रही है वहीं ससुर खाट डाले बैठे हैं. बेतुका काम.
जहाँ बूढ़ न होंय, उहां भिनसार (सुबह) न होय. जहां बुजुर्ग न हों वहां घर के लोग देर तक सोते ही रह जाएंगे.
जहाँ मिले पाँच माली, वहाँ बाग़ सदा खाली. साझे का काम हमेशा गड़बड़ होता है. रूपान्तर – ज्यादा जोगी मठ उजाड़. इंग्लिश में कहावत है – Too many cooks, spoil the broth.
जहाँ रहे गुनवन्त नर, ताकी शोभा होत, जहाँ धरे दीपक तहाँ, निहचै करत उदोत. निहचै – निश्चय ही, उदोत – प्रकाश. गुणी मानव दीपक के सामान होता है, जहाँ भी रहे अवश्य ही वहाँ प्रकाश करता है.
जहाँ लाख, वहाँ सवा लाख. जहाँ बहुत अधिक खर्च हो रहा हो वहाँ थोड़ा और सही.
जहाँ साहुओं का घर, वहीं चोरों का डेरा. 1, साहू – सेठ. जहाँ व्यापारी बसते हैं, वहीं पर चोरों का बसना स्वाभाविक ही है. 2. भले लोगों के बीच में चोरों का रहना अभिशाप सा लगता है.
जहाँ हाथी तुलें, वहाँ गधे पासंग. कोई सामान तोलने से पहले तराजू के हल्के पलड़े में थोड़ा वजन बाँध कर दोनों पलड़ों को बराबर करते हैं. इसे पासंग कहते हैं. जहाँ हाथी जैसी बड़ी चीज़ तोलने का काम हो रहा वहाँ गधे की औकात पासंग जितनी ही है.
जहां काम आवे सुई, कहा करे तलवार. आपके सम्बन्ध कितने भी बड़े बड़े लोगों से क्यों न हों आपको छोटे लोगों को भी सम्मान और महत्त्व देना चाहिए. सन्दर्भ कथा – एक शेर अपनी मांद में सो रहा था. तभी भूल से एक चूहा उसके ऊपर चढ़ गया. शेर जाग गया और उस ने चूहे को पकड़ लिया. चूहा गिड़गिड़ाया, मालिक मैं अनजाने में आपके ऊपर चढ़ गया था. मुझे छोड़ दीजिये, हो सकता है मैं कभी आपके काम आऊँ. शेर को हंसी आ गई.
जहां गड्ढा होता है पानी वहीँ भरता है. इस का शाब्दिक अर्थ तो स्पष्ट है पर कहावत के रूप में इसका अर्थ थोड़ा सूक्ष्म है. कहीं चार लोग बैठे हों तो आप किसी एक राजनैतिक दल की बुराई करना शुरू कर दीजिए. जो उस दल का समर्थक होगा उसे बुरा लगेगा और वह फ़ौरन विरोध करेगा. आप सोशल मीडिया पर किसी ग्रुप में किसी एक व्यवसाय की बुराई कीजिए. उस ग्रुप में उस व्यवसाय से संबंधित जो लोग होंगे वे फौरन आपत्ति करेंगे. इसे कहते हैं जहां गड्ढा होता है वहीं पानी भरता है.
जहां गुड़ होगा वहां मक्खियाँ आयेंगी ही (जहां मीठा होइ, उहाँ चिउंटी लगबे करी). जिसके पास धन व अधिकार हो उसके बहुत से मित्र बन जाते हैं. जहाँ लाभ होने की संभावना होती है वहाँ बहुत से लाभार्थी पहुँच जाते हैं.
जहां चाह वहां राह. व्यक्ति यदि कोई कार्य करना मन से चाहता है तो उसके लिए रास्ता निकाल लेता है. इंग्लिश में कहावत है – Where there is a will, there is a way.
जहां जाय भूखा, वहां पड़े सूखा. अभागा व्यक्ति कहीं भी जाए दुर्भाग्य उसका साथ नहीं छोड़ता.
जहां जाये दूला रानी, वहाँ पड़े पाथर पानी. पाथर पानी – ओला वृष्टि. किसी अभागे व्यक्ति पर व्यंग्य है कि वह जहाँ जाता है वहाँ कुछ न कुछ अनर्थ हो जाता है.
जहां ढेर मउगी, तहँ मरद उपास. (भोजपुरी कहावत) ढेर – बहुत सारी, मउगी – पत्नी, उपास – उपवास. जिस आदमी की कई पत्नियाँ होती हैं उसे भूखा रहना पड़ता है. (क्योंकि सभी एक दूसरे पर काम टालती हैं).
जहां देखी रोटी, वहीं मुड़ाई चोटी. चोटी कटाने से दोनों अर्थ हो सकते हैं, सिर मुंडा कर सन्यासी बनना या चोटी कटा कर सन्यासी से पुनः सांसारिक बनना. अर्थ यह है कि रोटी के कारण व्यक्ति कुछ भी कर सकता है.
जहां देखे तवा परात, वहीँ बितावे सारी रात. जहाँ खाने पीने का इंतजाम हो वहीँ रहने की इच्छा करने वाले लोग.
जहां दो बर्तन होते हैं, खड़कते ही हैं (जहाँ चार बासन होत सो खटकतई हैं). जहाँ चार आदमी इकट्ठे रहते हैं वहाँ आपस में खटपट हो ही जाती है. जब दो लोग एक साथ रहते हैं तो कभी न कभी मनमुटाव हो ही जाता है.
जहां धुंआ वहां आग जरूर होगी. (आग बिन धुंआ नहीं). अगर कहीं धुंआ दिखाई दे रहा है तो इसका अर्थ यह है कि कहीं न कहीं आग जरूर लगी हुई है. अगर दो लोगों के रिश्तों में तनाव दिखाई दे रहा है तो इसका अर्थ यह है कि अंदरखाने कुछ मनमुटाव जरूर होगा.
जहां न जाए रवि, वहां जाए कवि (जहां न पहुंचे रवि, वहां पहुंचे कवि). कवियों की कल्पना के विषय में कहा गया है कि वह कहाँ नहीं पहुँच सकती.
जहां न जाए रेलगाड़ी, वहां जाए मारवाड़ी. मारवाड़ी लोग दूर दूर तक व्यापार करते हैं उसके लिए मजाक.
जहां बालों (बालकों) का संग वहां बाजे मृदंग, जहां बुड्ढों का संग वहां खरचे से तंग. जहां बालक होते हैं वहां मौज मस्ती होती है और जहां केवल बूढ़े लोग हों वहां केवल परेशानियों की चर्चा होती है.
जहां मुर्गा नहीं होता वहां क्या सवेरा नहीं होता. मुर्गे को यह गलतफहमी होती है कि उसके बांग देने से ही सवेरा होता है. इसी प्रकार कुछ लोगों को यह भ्रान्ति होती है कि अमुक संस्था उन के कारण से चल रही है. ऐसे लोगों को उनकी हैसियत बताने के लिए यह कहावत कही जाती है.
जहां मेरो सैयां, वहां मेरो गइयां. मेरा गाँव वहीँ है जहां मेरा पति रहता है. सुहागिन स्त्रियों का कथन. गइंया–गाँव.
जहां राजा बसे, वहीं राजधानी. महत्वपूर्ण व्यक्ति जहाँ रहेगा वही स्थान महत्वपूर्ण हो जाएगा.
जहां रोजगार, वहीं घरबार. व्यक्ति को जहाँ रोजगार मिलता है वह वहीँ घर बसाता है.
जहां शहद वहां माखी. जो लाभ का स्थान होगा वहाँ बहुत से लोभी लोगों का जुटना स्वाभाविक ही है.
जहां सुमति तंह सम्पति नाना. जहाँ अच्छी मति होगी वहाँ सब प्रकार के सुख होंगे.
जहाज का घाटा चरखे से पूरा नहीं होता. बहुत बड़े व्यापार का घाटा छोटे छोटे कामों से पूरा नहीं हो सकता.
जा कान सुनी बा कान निकार दई. एक कान से सुनी दूसरे से निकाल दी. किसी बात पर ध्यान न देना.
जा के रखवाल गोपाल धनी ताको बलभद्र कहा डर रे. जिसके रखवाले स्वयं श्रीकृष्ण हों, उस को बलराम से क्या डर. जिसके रखवाले स्वयं ईश्वर हों उसे किसी मनुष्य से क्या डरना. देखिए सन्दर्भ कथा 91.
जा घट प्रेम न संचरै, ता घट जानि मसान. जिस व्यक्ति के हृदय में प्रेम का वास नहीं है वह प्रेत के समान है. जिस स्थान पर प्रेम का वास नहीं है वह श्मशान के समान है.
जा घर के सब नकटई नकटा. किसी घर में एक से निर्लज्ज व्यक्तियों का होना.
जा मन होय मलीन, सो पर सम्पदा सहे ना. जिस के मन में ईर्ष्या की भावना होटी है उसे पराई सम्पत्ति देख कर कष्ट होता है.
जा मुख राम न उच्चरे, वा मुख लोह जड़ाइ. जिस मुख से राम का नाम न निकले उस को लोहे की कीलों से जड़ देना चाहिए. उच्चरे – उच्चारित हो, जड़ाई – जड़ दें.
जा री बिल्ली, कुत्ते को मार. किसी गरीब और छोटे आदमी को जबरदस्ती मुसीबत में धकेलना.
जाँते पे बैठ के सब गाते हैं. जांता – हाथ की चक्की. चक्की पर बैठ कर सबको गाना सूझता है. इसका कारण यह भी है कि गाना गाने से थकान और ऊब कम होती है.
जाँतो फूटो, नातो टूटो. लड़की की मृत्यु हो जाने पर उसकी ससुराल वालों से फिर कोई विशेष संबंध नहीं रहता.
जाइए दुख में पहले, सुख में पीछे. किसी की यहां कोई दुख का अवसर हो उस में फौरन जाना चाहिए चाहें सुख के प्रसंग में बाद में चले जाएं.
जाए जान, रहे ईमान. चाहे जान चली जाए पर ईमान नहीं जाना चाहिए.
जाए लाख, रहे साख (लाख जाए पर साख न जाए). चाहे लाखों रुपये खर्च हो जाएं अपनी साख नहीं जानी चाहिए.
जाएँ उत्तर, बतायें दक्खिन. कुछ का कुछ बताना
जाएगा तो मालिक का, रहेगा तो भी मालिक का. स्वार्थी नौकरों का कथन.
जाओ चाहे नेपाल, साथ जायगा कपाल (जावो कलकत्ते से आगे, करम साथ में जावे). चाहे कहीं भी चले जाओ, भाग्य आपके साथ जाएगा.
जाका ऊंचा बैठना, जाका खेत निचान, ताका बैरी क्या करे, जाका मीत दिवान. जिस का बड़े लोगों में उठना बैठना हो, खेत नीची जगह पर हो और मंत्री या कोतवाल जिसके मित्र हों उसका कोई क्या बिगाड़ सकता है.
जाका कोड़ा ताका घोड़ा. घोड़ा उसी का है जिसके पास कोड़ा है. जिसके पास ताकत है उसी का संपत्ति पर अधिकार होता है. इस प्रकार की दूसरी कहावत है – जिसकी लाठी उसकी भैंस.
जाका गुरु भी अँधला, चेला खरा निरंध, अंधहि अंधा ठेलिया, दोनों कूप पडंत. यदि गुरु भी अँधा हो और चेला भी अँधा हो तो दोनों कुँए में गिरते हैं.
जाकी अच्छी सास बाका ही घर वास, जाकी सास नकारा, ताका कहाँ गुजारा. जिस बहू की सास अच्छी हो उसका घर स्वर्ग है और सास अगर दुष्ट हो तो जीवन काटना मुश्किल है.
जाकी अपकीरति छाय रही जग, सो यमलोक गयो न गयो. जिसकी समाज में बदनामी हो जाए वह जिन्दा भी मरे के बराबर है.
जाकी छाति न एकौ बार, उनसे सब रहियो हुशियार (जाकी छाती जमे न बार, उनसे रहना तुम होशियार). एक पुरानी सोच है कि जिनकी छाती पर बाल नहीं होते वे कुटिल प्रवृत्ति के होते हैं.
जाकी छाया रहिए, ताकी हीसी कहिए. जिसकी संरक्षता में रहना हो उसी के मन की बात करना चाहिए.
जाकी जात के जौन हैं ताकी पाँत के तौन, बाघ बाज के पूत को मार सिखावत कौन. (बुन्देलखंडी कहावत) जौन – जो भी, तौन – वही. जो जिस जाति के हैं उस के गुण अपने आप विकसित कर लेते हैं. शेर और बाज के बच्चों को शिकार करना कौन सिखाता है.
जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी. जब भगवान राम सीता स्वयम्बर में धनुष तोड़ने के लिए उठे तो अलग अलग लोगों को उनके अलग अलग रूप दिखाई दिए. कहावत का अर्थ है कि आप किसी को उसी रूप में देखते हैं जैसी आप के मन में उसके प्रति भावना होती है.
जाके कारन पहनी सारी, वही लगा अब टांग उघारी. प्राय: लडकियां शादी के पहले कुर्ता सलवार आदि पहनती थीं और शादी के बाद साड़ी. इस आशय में साड़ी पहनने का अर्थ विवाह करने से है. जिससे विवाह किया वही बदनाम करने पर तुला हुआ है.
जाके घर में नौ सौ गाय, सो क्यों छाछ पराई खाय. जिस के घर में बहुत सारी गाएं हों वह दूसरे से मांग कर छाछ क्यों खाएगा. जो स्वयं साधन सम्पन्न है वह दूसरों से कुछ क्यों मांगेगा.
जाके घर में माई, ताकी राम बनाई. जिस घर में माँ होती है वह स्वर्ग हो जाता है.
जाके ढिंग माल है ताकी न्योती चूल, जाके ढिंग कछु नहीं ताकी गई सुध भूल. चूल न्योतना – घर भर को भोजन के लिए आमंत्रित करना. पैसे वाले का सब आदर-सत्कार करते हैं.
जाके पाँव न फटी बिबाई, वो क्या जाने पीर पराई. पैर की एड़ी और तलवे में खाल के फटने से जो गहरी दरारें हो जाती हैं उन्हें बिवाई कहते हैं. इनमें बहुत दर्द होता है. जिनके पैर में बिबाई ना हुई हो वे उसका दर्द नहीं जान सकते. जो खुद किसी खास परेशानी से न गुजरा हो वह दूसरे को होने वाले कष्ट को कैसे जान सकता है.
जाके पास रहिए, ताकी ही सी कहिए. जैसा परिवेश हो वैसी ही बात कहनी चाहिए.
जाके सिर पे बोझ है, सोई करे निबाह. जिस के ऊपर पड़ती है उसी को निभाना पड़ता है.
जाके हित चोरी करों, सोई बनावे चोर. जिसको लाभ पहुँचाने के लिए चोरी की, वही आपको चोर ठहरा रहा है.
जाको जहं स्वारथ सधे, सोई ताहि सुहात, चोर न प्यारी चांदनी, जैसी कारी रात. जिसका स्वार्थ जहाँ पूरा होता है उसको वहीं अच्छा लगता है. चोर को चांदनी नहीं काली रात अच्छी लगती है.
जाको जेहिपर सत्य सनेहू, सो तेहि मिलेहि न कछु सन्देहू. जो सच्चे मन से किसी को चाहता है उसे वह जरूर मिलता है. विशेषकर ईश्वर के मिलने के लिए कहा गया है.
जाको जौन स्वभाव जाय नहिं जी से, नीम न मीठा होय सींचो गुड़ घी से. व्यक्ति के स्वभाव को नहीं बदला जा सकता. नीम को गुड़ घी से सींचो तब भी कड़वा ही रहता है. आमतौर पर बाद वाला भाग ही बोला जाता है.
जाको डंडा ताकी गाय, करो न कोई हाय हाय. जिसके पास डंडा होगा वही गाय को ले जाएगा, इसमें किसी को आपत्ति नहीं होना चाहिए. अर्थ है कि सम्पत्ति पर अधिकार बलवान का ही होता है. जिसकी लाठी उसकी भैंस.
जाको प्रभु दारुण दुख देहीं, ताकी मति पहले हर लेहीं. जिसको प्रभु दुख देना चाहते हैं उसकी बुद्धि भ्रष्ट कर देते हैं. यदि कोई व्यक्ति इस प्रकार के काम कर रहा हो जिस से वह बहुत परेशानी में पड़ सकता है (और समझाने पर मान भी न रहा हो) तो यह कहावत कही जती है.
जाको मारा चाहिए बिन मारे बिन घाव, बाको यही बताइये घुइंया पूरी खाव. पुराने लोग मानते थे कि घुइंया (अरबी) बहुत बादी होती है और नुकसान करती है, और अगर पूड़ी के साथ खाई जाए तब तो और भी अधिक. घाघ कवि कहते हैं कि जिस को आप बिना घाव के मारना चाहते हैं उसे घुइंया पूड़ी खाने की सलाह दीजिये.
जाको राखे सांइयाँ मार सके न कोय, बाल न बांका करि सकै जो जग बैरी होय. ईश्वर जिसका रखवाला हो उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता. आमतौर पर इसका पहले वाला भाग ही बोला जाता है.
जाको राम रक्खे, ताको कौन चक्खे. (जाका राम रच्छक, ताको कौन भच्छक). जिसका राम रखवाला हो उसका कौन भक्षण कर सकता है.
जाग मछन्दर गोरख आयो. मछन्दर नाथ (शुद्ध नाम मत्स्येन्द्र नाथ) गोरख़ नाथ के गुरु थे. एक बार मत्स्येन्द्र नाथ आसक्ति में पड़ गए तो गोरखनाथ ने आ कर उन्हें बोध कराया. आम तौर पर गुरु शिष्य को रास्ता दिखाते हैं पर यदि शिष्य को यह काम करना पड़े तो यह कहावत कही जाती है.
जागते को कौन जगाए. सोते हुए को जगाया जा सकता है पर जो स्वयं जाग रहा हो उसे कौन जगा सकता है.
जागे जिस के देह में दूख, जागे जिस को लागे भूख. जिस के शरीर में कोई कष्ट होता है वह जागता है या जो भूखा होता है वह जागता है.
जागे जो हो धन का धनी, जागे जिसको चिंता घनी. जिसके पास अधिक धन हो वह उस को सम्भालने की फ़िक्र में नहीं सो पाता है या जिस को कोई बड़ी चिंता हो वह नहीं सो पाता है.
जाट एक दमड़ी पे लहू-लुहान, बानिया सौ पे भी न खींचा-तान. जाट छोटी सी रकम के नुकसान पर भी मार काट पर उतारू हो जाता है, जबकि बनिया बड़े नुकसान को भी शान्ति से सहन कर लेता है.
जाट कहे शरमाय, पर लड़े न शरमाए. जाट बोलने में शर्माता है पर लड़ने में नहीं.
जाट कहे सुन जाटनी तोको इसी गाँव में रहना, ऊँट बिलाई लै गई तो हांजी हांजी कहना. जाट अपनी पत्नी को समझा रहा है की तुझे इसी गाँव में रहना है. कोई प्रभावशाली आदमी अगर यह कहे कि बिल्ली ऊँट को उठा ले गई, तो भी उसकी हाँ में हाँ मिलाना. जिस समाज में आप रह रहे हैं वहाँ की बहुत सी गलत बातें न चाहते हुए भी स्वीकारनी पड़ती हैं.
जाट का बैरी जाट, काठ का बैरी काठ. जाटों के आपसी वैमनस्य के ऊपर कहावत है. बात को समझाने के लिए लकड़ी का उदाहरण दिया गया है. लकड़ी को काटने वाली कुल्हाड़ी का बट लकड़ी का ही बना होता है
जाट किसी को घी-दूध खिलावे तो गले में रस्सा डाल के. जाट जिस किसी पर अहसान करता है, उसे गुलाम बना कर रखना चाहता है.
जाट की पंचायत और ऊँटनी का गर्भ छिपते नहीं हैं. जाटों की पंचायत में शोर शराबा और तू तड़ाक बहुत होती है इसलिए वह छिपती नहीं है. ऊँटनी का पेट ऊँचाई पर होता है और सब को दिखाई देता है इसलिए उस का गर्भ भी नहीं छिपता.
जाट की हांसी आम आदमी की पसली चटका दे. जाट का अट्टाहस इतना खतरनाक होता है कि सामान्य व्यक्ति की पसली ही चटक जाए.
जाट को मारै जाट या मारे करतार. जाट को विश्वासघाती जाट मार सकता है या फिर ईश्वर ही मार सकता है.
जाट क्या जाने लौंग का भाव. जाट दिल के कितने भी साफ़ हों, स्वभाव से थोड़े अक्खड़ होते हैं. जाटों में नज़ाकत का अभाव होता है इसी को ले कर यह कहावत बनाई गई है.
जाट जब आपे से बाहर हो जाए तो खुदा ही उसे थाम सके. अर्थ स्पष्ट है.
जाट जाट को मारता यही है भारी खोट, ये सारे मिल जायें तो अजेय इनका कोट. जाट वीर होते हैं पर आपसी रंजिश के चलते मात खाते हैं. अगर इन में एकता हो जाए तो ये अजेय हो जाएँ. कोट – किला.
जाट जाटनी से पार न पावे तो बैल को चाबुक मारे. बलवान पर बस न चले तो लोग कमजोर पर गुस्सा उतारते हैं. रूपान्तर – कुम्हार पे बस न चला तो गधे के कान मरोड़े.
जाट बुढ़ापे में बिगड़ा करे. (हरयाणवी कहावत) जाट बूढ़े होने पर ज्यादा मनचले हो जाते हैं.
जाट मरा तब जानिये, जब तेरई हो जाए (जब चालीसा होए). जाटों की तरक्की से जलने वाले दूसरी जातियों के लोग तरह तरह से उनका मजाक उड़ाते हैं. इस कहावत का शाब्दिक अर्थ तो यह है कि जाट का मरना आसान नहीं होता. जब उसकी तेरहवीं हो जाए तो समझो कि जाट वाकई मर गया. इस कहावत का प्रयोग इस प्रकार करते हैं कि कोई भी काम तब तक पूरा हुआ मत मानो जब तक उस से सम्बन्धित सारे काम पूरे न हो जाएं.
जाट रांडा मरे वो दुर्भागा, बामन भूखा मरे वो दुर्भागा. जाट का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है उसकी शादी न होना और ब्राह्मण का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है उसे भोजन न मिलना.
जाट रे जाट तेरे सर पे खाट, तेली रे तेली तेरे सर पे कोल्हू. किसी तेली ने जाट का मजाक उड़ाने के लिए कहा कि रे जाट तेरे सिर पर खाट. जाट ने तुरंत जवाब दिया कि तेली तेरे सिर पर कोल्हू. तेली बोला जाट भाई कुछ तुकबंदी नहीं बनी, जाट बोला तो क्या हुआ, तू बोझ से तो मरा.
जाट से यारी और शेर की सवारी. दोनों एक सी खतरनाक हैं.
जाट, जमाई, भांजा और सुनार, कभी न होवे आपनो कर देखो उपकार. कहावत का अर्थ स्पष्ट है. किसी सयाने ने अपने व्यक्तिगत अनुभव को सब के साथ साझा करने का प्रयास किया है. इससे सहमत होना जरूरी नहीं है.
जाट, बैरागी, नटवा, चौथा राज-दरबार, ये चारों बांधे भले, खुल्ले करें बिगाड़. अर्थ स्पष्ट है.
जाट-जाट का दुश्मन, इस से जाट की छत्तीस कौम दुश्मन. जाटों में एका नहीं होता इसलिए अन्य जातियां जाटों से दुश्मनी करने का साहस कर पाती हैं.
जाड़ कहे हम तोड़ें हड्डी, आग करे धरहरिया. जाड़ा धमकी देता है कि मैं तुम्हारी हड्डियाँ तोड़ दूंगा तो आग बीच बचाव करती है. धरहरिया – बीच बचाव करने वाला.
जाड़ लाग, जाड़ लाग जड़नपुरी, बुढ़िया का हगास लागि बिपति परी. जाड़े के मारे सबकी हालत खराब है और ऐसे जाड़े की रात में बुढ़िया अम्मा को शौच लग रही है. बड़ी विपत्ति आ पड़ी है कि उसे लेके बाहर कौन जाए.
जाड़ा गए रजाई और जोवन गए भतार. जाड़ा बीतने के बाद रजाई मिले तो किस काम की और स्त्री का यौवन बीतने के बाद पति मिले तो किस काम का.
जाड़ा जाए रुई से या दुई से. जाड़ा या तो रुई के गद्दे व रजाई से जाएगा या दो लोग एक साथ सोएं तो जाएगा.
जाड़ा जाड़ा कहाँ चले, गोरे को काला करने, काले को और खराब करने. जाड़े का कहना है कि जो गोरी चमड़ी के हैं उन्हें काला करने जा रहा हूँ और जो काले हैं उनको और ज्यादा खराब करने.
जाड़ा न पाला कथरिया ओढ़े लाला. कम सर्दी या बिना सर्दी कोई अधिक वस्त्र पहने या ओढ़े तो.
जाड़े की क्यों करे चिरौरी, कम्बल पर जब होय पिछौरी. कम्बल पर ऊपर से डालने के लिए एक चादर हो तो जाड़े के निहोरे क्यों किए जाएँ. पिछौरी – बहू को पीछे से उढ़ाने वाली चादर.
जाड़ो ठाड़ो खेत में, सुन रे मेरे लाल, मोरे दुसमन तीन हैं, रुई, आग और प्याल. खेत में खड़ा जाड़ा कह रहा है कि मेरे तीन दुश्मन हैं – रुई, अलाव और पुआल.
जात का छोटा होना अच्छा, जूते का नहीं. छोटी कद काठी होने के मुकाबले छोटी जाति का होना बेहतर है.
जात का बामन. करम कसाई. उच्च जाति में जन्म लेने वाला कोई निम्न श्रेणी का निर्दयी व्यक्ति.
जात की बैरी जात. अधिकतर जाति के लोगों में अपनी ही जाति के दूसरे लोगों की काट करने की प्रवृत्ति पाई जाती है.
जात के खाए दाम, कुत्ता के खाए चाम. अपने सगे सम्बन्धी ने जो धन खा लिया हो वह, और कुत्ते ने जो चमड़ा खा लिया हो वह, वापस मिलने की आशा नहीं होती.
जात के बामन, करनी चमार की. मुगलों और अंग्रेजों ने हिन्दुओं को बांटने का जो काम किया उस से समाज के विभिन्न वर्गों के बीच गहरी खाई बन गई. मेहनतकश गरीब लोगों को निम्न कुल का माना जाने लगा. उस समय ब्राह्मण कितना भी धूर्त हो उसे उच्च कुल का और चर्मकार कितना भी सज्जन हो उसे नीच माना जाता था.
जात खाय या जाँत खाय. जाँत – चक्की. घर का अनाज जात बिरादरी के लोग खाते हैं या चक्की खाती है. कई जातियों में हर छोटे-छोटे अवसर पर(मृत्यु पर भी) पूरी बिरादरी वालों को खिलाना पड़ता है, उसी से अभिप्राय है.
जात पांत पूछे नहिं कोई, वर्दी पहिन सिपहिया होई. जो व्यक्ति सिपाही बन जाता है उस की जाति कोई नहीं पूछता. वह किसी भी जाति का क्यों न हो, सब के लिए आदरणीय हो जाता है.
जात पात पूछे नहिं कोई, हरि को भजे सो हरि का होई. हमारे समाज में जाति भेद की बुराई कितनी भी व्याप्त हो ईश्वर के दरबार में सब बराबर हैं. संत रैदास जाति के चमार थे लेकिन सब उन का आदर करते थे.
जात सुभाय न जाय कभी, माँगना ही भावै, रानी हो गई डोमनी, आले धर खावे. मनुष्य का जातिगत स्वभाव कभी जाता नहीं है. डोमनी रानी बन गई तो बीमार रहने लगी. फिर उसने अपने लिए एक अलग महल बनवाया. वहां वह खाने के टुकड़े कर के आले में रख देती थी और आले से मांग कर खाती थी.
जात सुभाव ना छूटे, कुकुर टाँग उठा के मूते. व्यक्ति के जन्मजात स्वभाव छूटते नहीं हैं (जिस प्रकार कुत्ता टांग उठा कर ही मूतता है, चाहे वह कितने भी बड़े आदमी के यहाँ पल रहा हो).
जाति न पूछो साधु की, पूछि लीजिए ज्ञान, मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान. व्यवहार में इस कहावत को आधा ही बोला जाता है. साधु की जाति नहीं पूछनी चाहिए ज्ञान देखना चाहिए. इस कहावत से यह बात भी सिद्ध होती है कि हमारे देश में तथाकथित नीची जाति के साधु संतों को भी पूरा सम्मान मिलता था
जातो गंवाए, भातो न खाए. बात उस समय की है जब देश में जात पाँत और छुआछूत का काफी जोर था. यदि कोई उच्च कुलीन व्यक्ति नीची जाति वाले के साथ खाना खा ले तो वह जाति से निकाल दिया जाता था. कहावत में ऐसे व्यक्ति का ज़िक्र किया गया है जो बढ़िया बढ़िया खाना भी नहीं खा पाया और नीची जाति वाले के साथ बैठने के कारण जाति से निकाल दिया गया. कोई व्यक्ति अनुचित लाभ उठाने के लिए अपने स्तर से नीचे गिर कर काम करे और उसे वह लाभ भी न मिल पाए तो यह कहावत कही जाएगी.
जादू टोना हे सखी भूल करो मत कोय, पिया कहे सो कीजिए आपहि बस में होय. पति को वश में करना है तो उसके लिए जादू टोना न करो बल्कि जो पति कहे वह करो.
जादू वह जो सर चढ़ कर बोले. असली जादू वह है जिसकी अनायास ही हर कोई प्रशंसा करे.
जान की जान गई, ईमान का ईमान. बहुत से लोग जान दे कर ईमान की रक्षा करते हैं और कुछ लोग जान बचाने के लिए ईमान बेच देते हैं, पर अगर कोई व्यक्ति अपनी मूर्खता से दोनों ही चीज़ गंवा दे तो.
जान के साथ जेवड़ा. यह जंजीर जिन्दगी भर पड़ी रहेगी. जेवड़ा, जेवड़ी – जंजीर.
जान को देत सुजान को देत अजान को देत सो तोहू को देहै. जो ईश्वर ज्ञानी, अज्ञानी मनुष्यों और पशुओं को भोजन देता है वह तुम्हें भी देगा. (कामचोर लोगों का कथन)
जान जाए पर माल न जाए. कंजूस व्यक्ति के लिए.
जान जाय तो जाय, जबान न जाय. प्राण जाई पर वचन न जाई.
जान जाय पर हक़ न जाय. जो लोग अपना अधिकार, अपना हिस्सा नहीं छोड़ना चाहते उन पर व्यंग्य.
जान न पहचान, खाला बड़ी सलाम. अपने मतलब के लिए किसी से जबरदस्ती जान पहचान निकालना.
जान न पहचान, मैं तेरा मेहमान (मान न मान मैं तेरा मेहमान). ऊपर वाली कहावत की भांति.
जान बची तो लाखों पाए, लौट के बुद्धू घर को आए. कोई व्यक्ति कुछ काम करने गया. काम तो नहीं हुआ उलटे खतरे में फंसते फंसते बचा, तो लौट के आने पर और लोग उसका मजाक उड़ाने के लिए यह कहते हैं.
जान बची, लाखों पाए. किसी आदमी पर कोई खतरा आया और टल गया तो यह कहावत बोली जाती है.
जान भले ही जाए पर रोजी न जाए (जी जाए जीविका न जाए). जीविका का छिन जाना, मृत्यु से भी अधिक दुखदायी है.
जान मारे बनिया, पहचान मारे चोर. बनिया जानने वाले को चूना लगाता है और चोर पहचान की जगह पर चोरी करता है.
जान लीन्ह बामन के लच्छन, बाप का नाम फीरोज़ अली. कोई मुसलमान ब्राहण का बहरूप बनाए और पकड़ा जाए तो. आजकल के एकाध प्रसिद्ध नेताओं पर भी यह कहावत फिट बैठती है.
जान समझ के कुएँ में ढकेल दिया. प्रायः लड़की के लिए कहते हैं कि जान-समझ कर अयोग्य वर को सौंप दी.
जान है तो जहान है. जब तक हम जीवित हैं तभी तक संसार है. कोई काम करने में बहुत लाभ होने की सम्भावना हो पर जान का खतरा भी हो तो बुज़ुर्ग लोग उस काम के लिए मना करते हुए यह कहावत बोलते हैं.
जानहार पैसा मुट्ठी में से चलो जात. जो हानि होने वाली होती है वह होकर रहती है.
जानहार बहू, बलेंडे को दोष. बलेंडा – वह लट्ठा जिस पर छप्पर के छावन की लकड़ियाँ रखी जाती हैं. बहू तो मरने को थी, दोष देते हैं बलेंडे को, कि उसके गिरने से मरी. होनहार के लिए दूसरे को दोष देना.
जाना अपने बस, आना पराए बस. आप कहीं भी जाते तो अपनी इच्छा से हैं पर लौटना अपने वश में नहीं होता. जिसके यहाँ गए हैं उसकी इच्छा क्या है और ईश्वर की इच्छा क्या है दोनों पर निर्भर करता है.
जाना चोर ही सेंध लगाए. जो व्यक्ति घर के राज जानता है उसे मालूम होता है कि सेंध कहाँ लगानी है.
जाना है रहना नहीं, मोए अंदेसा और, जगह बनाई है नहीं बैठेगा किस ठौर. इस संसार में सदा के लिए किसी को नहीं रहना है, इसलिए कुछ ऐसे कर्म अवश्य करने चाहिए जिनसे परलोक में जगह मिल सके.
जानि गरल जे संग्रह करहीं, कहहु उमा ते काहे न मरहीं. गरल – विष. शंकर जी पार्वती से कहते हैं कि जो मनुष्य जानबूझ कर विष का संग्रह करेगा अर्थात् बुराई में लिप्त रहेगा वह अपने कर्मों से मरेगा.
जानि न जाय निसाचर माया. दुष्ट मनुष्य का भेद जानना कठिन होता है.
जाने को बकरी आने को ऊँट. अगर कोई घर से जाते समय ना नुकुर कर कर रहा हो और वापस आते समय तेजी से आए तो. जो लोग घर से जाना नहीं चाहते उन का मजाक उड़ाने के लिए.
जाने चोंच दी वही चुग्गा देगा. जिसने हमें जन्म दिया वही हमें भोजन भी देगा. आलसी एवं अकर्मण्य लोगों का कथन. रोजी रोटी के लिए बहुत प्रयास करने पर भी यदि सफलता न मिले तो निराशा से उबारने के लिए भी सयाने लोग ऐसा बोलते हैं.
जाने न बूझे, कठौती से जूझे. बिना किसी काम के विषय में जाने उस में सर खपाना.
जाने वाली चीज के पाँव निकल आते हैं. जो नुकसान होना होता है उसके हज़ार बहाने बन जाते हैं.
जाने वाले के हज़ार रास्ते, ढूँढने वाले का एक. खोए हुए व्यक्ति या वस्तु को ढूँढना बहुत कठिन है यह बताने के लिए यह कहावत कही जाती है.
जाने वाले को भूल जाएं पर आने वालों को नहीं भूलते. जिस की मृत्यु हो जाए उसे लोग भूल जाते हैं, पर उस समय जो लोग आ कर दुख में सम्मिलित होते हैं उन्हें लोग याद रखते हैं.
जानो नहिं जिस गाँव में कहा बूझनो नाम, तिन सखान की क्या कथा जिनसों नहिं कछु काम. जिस जगह जाना नहीं है उसका पता पूछ कर समय क्यों नष्ट करें और जिन लोगों से कुछ काम नहीं उन की चर्चा क्यों करें.
जाप की ओट में पाप. ढोंगी और पापी महात्माओं के लिए.
जामिन हो मत चोर का, सींग पकड़ मत ढोर का. चोर की जमानत मत दो और जानवर का सींग मत पकड़ो. जामिन – जमानत देने वाला.
जामिन होना, धन का खोना. किसी की जमानत देने में अपना धन खोना पड़ सकता है.
जाया नाम जनम से हो तो रहना किस विधि होय. जाया का अर्थ उत्पन्न हुआ (संतान) भी है और जाया का अर्थ व्यर्थ में बर्बाद करने से भी है.
जाये की पीर मताई को होत. जाया – संतान, मताई – माँ. संतान के सुख-दुख की चिन्ता माता को ही होती है.
जालिम गुजर जाए, जुल्म बाकी रह जाए (जालिम मर जाता है पर कानून छोड़ जाता है). अत्याचारियों के मरने के बाद भी उन के बनाए कानून बाकी रह जाते हैं और दुष्टता की कथाएँ रह जाती हैं.
जासु राज में प्रजा दुखारी, सो नृप अवसि नरक अधिकारी. जासु – जिसके, अवसि – अवश्य. जिस राजा के राज में प्रजा कष्ट पाती है वह नर्क में जाता है.
जासे जाको काम, सोई ताको राम. जिससे आपका काम बनता हो वही आपके लिए ईश्वर के बराबर है.
जासों खाना पीना नहिं तासों कौन प्रीत रे. प्रीति के छह लक्षण हैं-लेना, देना, गुप्त बातें सुनना व सुनाना, भोजन करना व कराना. कहावत का अर्थ है जिससे खाना पीना, उठना बैठना नहीं है, उससे कैसी प्रीति.
जासौ निबहे जीविका, करिए सो अभ्यास, वैश्या राखे लाज तो कैसे पूरे आस. जो भी जीविका का साधन हो उस में सहायक बनने वाली आदतें डालनी चाहिए. वैश्या लज्जावान होगी तो कैसे जीविका कमाएगी.
जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिए. जिन परिस्थितियों में व्यक्ति रहता है उन्हीं में संतोष करना सीखना चाहिए. पुराने लोग इसके पहले ‘सीताराम सीताराम सीताराम कहिए’ भी बोलते हैं.
जिंदगी जिन्दादिली का नाम है, मुर्दादिल क्या ख़ाक जिया करते हैं. अर्थ स्पष्ट है. यह उर्दू का एक प्रसिद्ध शेर है जो कहावत की तरह प्रयोग होता है.
जिए बाप को कोई न पूछे, मुए बाप पे छाती पीटे. उन लोगों पर व्यंग्य जो जिन्दा माँ बाप की कद्र नहीं करते और उनके मरने पर दिखावे के लिए छाती पीटते हैं.
जितना अधिक धन उतनी अधिक चिंता. धन आने के साथ उसको संभालने की चिंता भी बढ़ती जाती है.
जितना कमावे मेरो परदेसिया, उतने के चाबे पान. पति पैसा कमाने के लिए परदेस गया है, लेकिन जो कुछ भी वहाँ कमाता है उतना फिजूलखर्ची में उड़ा भी देता है. किसी गृहस्थिन का अपने उड़ाऊ पति पर व्यंग्य.
जितना करम में लिखा उतना ही मिलेगा. जितना भाग्य में लिखा है उतना ही मिलेगा.
जितना खाबे सारी बरात, उतना खाबे दूल्हे का बाप. किसी एक आदमी के आदर-सत्कार में बहुत खर्च हो जाना.
जितना खाय, उतना ललचाय. मनुष्य को जितना प्राप्त होता है उतना ही उसका लालच बढ़ता जाता है.
जितना खावे उतना परसावे. जितना खा सके उतना ही भोजन परसवाना चाहिए. भोजन फेंकना महापाप है.
जितना गधा बनोगे उतने ही लादे जाओगे (अपने आप को गधा बना लोगे तो और लादे जाओगे). जो लोग सिधाई से और ईमानदारी से काम करते हैं उन्हीं पर और काम लादा जाता है.
जितना गर्माएगा, उतना ही बरसेगा (जितना तपेगा, उतना बरसेगा). बरसात के मौसम में पानी बरसने से पहले गर्मी और उमस हो जाती है. जितनी अधिक गर्मी होती है उतनी ही अधिक वारिश होती है. इस कहावत का दूसरा अर्थ यह भी है कि आपसी वाद विवाद में जितनी अधिक गरमा गरमी होगी उतने ही परिणाम बुरे होंगे.
जितना गहिरा जोते खेत, बीज परे फल अच्छा देत. खेत को जितना गहरा जोतें उतनी अच्छी फसल होती है.
जितना गुड़ डालोगे उतना ही मीठा होगा. जितना खर्च करोगे उतना ही अच्छा काम होगा. रूपान्तर – जितना घी डालोगे उतना स्वाद होगा.
जितना छानो, उतना ही किरकिरा. जितनी मीन मेख निकालोगे, उतने ही दोष नज़र आएँगे.
जितना छोटा, उतना ही खोटा. छोटे कद वालों का मजाक उड़ाने के लिए.
जितना जाने उतना बखाने. किसी भी विषय में व्यक्ति जितना जानता है उतनी ही बात कर सकता है.
जितना तवा गरम रहे, उतनी जल्दी रोटी निकलें. जितना उत्साह होता है उतनी ही शीघ्र कार्य होता है.
जितना तेल उतना खेल. जितने साधन होंगे उतना ही काम होगा. इसका दूसरा अभिप्राय नटों के खेल से है. नट अपनी छोटी बच्चियों को खूब तेल पिलाते थे और तेल की मालिश करते थे जिससे उन के अंग लचीले हो जाएँ.
जितना नींबू निचोड़ो, उतना तीता होय. नींबू को बहुत अधिक निचोड़ो तो कड़वा हो जाता है. किसी भी व्यक्ति को सीमा से अधिक परेशान करो तो वह क्रोधित हो जाता है.
जितना पुरखे दान दीन, लड़के उतनी भीख मांगीन. पुरखों ने जितना दान दिया, लड़कों ने उतनी भीख माँगी.
जितना बादल गरजे, उतना बरसे नहीं. उन लोगों के लिए जो बोलते बहुत हैं पर काम कम करते हैं.
जितना भोग, उतना सोग. सोग – शोक, दुख. भोग में जितना लिप्त होगे उतना ही दुख उठाना पड़ेगा.
जितना मुटाय, उतना मिमियाय. बकरा जितना मोटा होता जाता है उतना ही में में करता है. मनुष्य के पास भी जितना धन बढ़ता जाता है वह उतनी अधिक मैं मैं करता है (अहंकारी होता जाता है). मैं – अहंकार.
जितना लंबा सांप, उतनी ही गोह चौड़ी. जब दो धूर्त एक से बढ़ कर एक हों तो (गोह – बिस्खोपड़ी).
जितना लाभ उतना लोभ (जितनी आमद, उतना लालच). जैसे जैसे व्यापार में लाभ होता है. वैसे वैसे व्यापारी का लोभ बढ़ता जाता है. किसी भी व्यक्ति की जितनी जितनी आय बढ़ती है उतना ही लालच बढ़ता जाता है.
जितना सयाना, उतना दीवाना (वहमी). 1.जो व्यक्ति जितना अनुभवी होता है वह उतना ही अधिक किसी बात के भले बुरे पहलू पर विचार करता है. अपने आप को बहुत बुद्धिमान समझने वाले नौसिखिये लोग उसे दीवाना और वहमी करार देते है. 2. जो जितना बड़ा मूर्ख होता वह अपने को उतना ही होशियार समझता है.
जितना सरे, उतना करे. जितनी सामर्थ्य हो उतना ही काम करना चाहिए. सरे – कर मिले.
जितनी भेड़ नाहीं उतने गड़ेर. काम कम, करने वाले अधिक. गड़ेर – गड़रिया.
जितनी मियां की लंबी दाढ़ी, उतना गांव गुलजार. मियांओं की दाढ़ियाँ इतनी लंबी हैं तो अवश्य ही गाँव फला-फूला होगा. सलीके से रखी हुई लम्बी दाढ़ी व्यक्ति की सम्पन्नता का प्रतीक है.
जितनी मोटी मुर्गी, उतने अंडे कम. जैसे जैसे व्यक्ति धनवान होता जाता है, वैसे वैसे कंजूस होता जाता है.
जितनी विरह, उतना सनेह. जितना लंबा बिछोह का समय होगा, उतना ही प्रेम उमड़ेगा.
जितने का बबुआ नहीं, उतने का झुनझुना. मूल वस्तु की कीमत कम और रखरखाव की ज्यादा.
जितने काले, मेरे बाप के साले. जितने भी चोर बदमाश हैं सब मेरे रिश्तेदार हैं. जैसे आजकल के कुछ नेता.
जितने की ताल नहीं बजी उतने का मंजीरा फूट गया. जितना लाभ नहीं कमाया, उससे अधिक नुकसान हो गया.
जितने के बबुआ नाहीं, उतने के झुनझुना. (भोजपुरी कहावत) वस्तु की कीमत कम, रख रखाव का खर्च अधिक.
जितने ठाकुर मरें, उतने जुहार कम हों. जुहार – झुक कर सलाम कटना. मुगलों और अंग्रेजों के जमाने में लोगों को ठाकुरों और जमीदारों को झुक कर सलाम करना पड़ता था. ऐसा कोई सताया हुआ व्यक्ति ठाकुरों के मरने की कामना कर रहा है, जिस से उसे जुहार कम करनी पड़ें.
जितने नर उतनी बुद्धि. हर आदमी के अलग-अलग विचार होते हैं. शक्ल मिल सकती है, अक्ल नहीं.
जितने फेरे उतनी वसूली. हाकिम जितनी बार अपने क्षेत्र में जाएगा उतनी ही उगाही कर के लाएगा.
जितने बड़के गाजी मियाँ, उतना बड़की मोंछ. अधिक तड़क भड़क और दिखावा करने वालों पर व्यंग्य.
जितने भाई, उतने घर. आज के जमाने में एक ही घर में कई भाइयों का रहना संभव नहीं है. हर एक भाई को अलग घर चाहिए.
जितने मानुस उतनी राह. हर आदमी के अपने अलग-अलग रास्ते होते हैं.सभी के विचार अलग-अलग होते हैं.
जितने मुहँ उतनी बातें. यदि किसी विषय में बहुत से लोगों की अलग अलग राय हों तो.
जित्तो करम में लिखो उत्तो कऊँ नाहिं जात. जितना भाग्य में लिखा है उतना मिल कर ही रहता है.
जिद पर आई दुगुना पीसे. कुछ लोग या तो काम करते नहीं हैं, और जिद पर आ जाएँ तो अनावश्यक रूप से करते ही चले जाते हैं.
जिधर जलता देखें, उधर तापें. जहाँ भी लाभ की संभावना हो वहाँ जाने वाले लोगों के लिए.
जिधर रब, उधर सब. जिसके साथ ईश्वर की कृपा है, उस का सब साथ देते हैं.
जिन की यहाँ जरूरत, उन की वहाँ भी जरूरत (जिनकी यहाँ चाह, उनकी वहाँ भी चाह). अच्छे लोगों की इस दुनिया में भी जरूरत है और उस दुनिया में भी, इसीलिए अच्छे लोगों की मृत्यु जल्दी हो जाती है. इंग्लिश में कहावत है – Heaven gives its favourites early death.
जिन के दामन में दाग हों वे दूसरों पर कीचड़ न उछालें. जिनके अंदर खुद कमियां हैं उन्हें दूसरों को बुरा भला नहीं कहना चाहिए.
जिन के पास न हो कौड़ी, वो कौड़ी के तीन. जिन के पास पैसा न हो उन की कोई इज्ज़त नहीं है.
जिन खोजा तिन पाइयाँ, गहरे पानी पैठ (मैं बपुरा बूड़न डरयो, रहा किनारे बैठ). जो हिम्मत करता है और परिश्रम करता है वही फल पाता है. पैठना – नीचे बैठना, बपुरा – बेचारा, बूड़ना – डूबना.
जिन घर साधु न पूजिये घर की सेवा नांहि, ते घर मरघट जानिए, भूत बसे तिन मांहि. (कबीर) जिस घर में साधु की पूजा नहीं होती, वह घर तो मरघट के समान है.
जिन जाए उन्हहिं लजाए. जिन जाए – जिन्होंने पैदा किया. अपने मां बाप को लज्जित करने वाला.
जिन पायन पनही नहीं, उन्हें देत गजराज, विष देते विषया मिले, साहब गरीब नवाज. पनहीं – जूता, जिनके पांव में जूता नहीं उसे भगवान हाथी देते हैं और जिसे विष देने को कहा जाता है, उस से लड़की से विवाह करवा देते हैं. सन्दर्भ कथा – पायन – पैरों में. पनहीं – जूता. जिनके पांव में जूता नहीं उसे भगवान हाथी देते हैं और जिसे विष देने को कहा जाता है, उस से लड़की का विवाह करवा देते हैं. एक सेठ के पास एक भिखारी नित्य भीख मांगने आया करता था. तंग आकर एक दिन सेठ ने आढ़तियों को लिख दिया कि इसे विष दे दो. आढ़तिये की बेटी का नाम विषया था. वह समझा कि सेठ जी ने विषया को देने के लिए लिखा है. उसने बड़े प्रेम से अपनी पुत्री का विवाह भिखारी के साथ करके उसे हाथी पर चढ़ाकर विदा कर दिया.
जिन मोलों आई, उन्हीं मोलों गंवाई. कोई चीज़ बहुत सस्ते में मिली थी और सस्ते में ही हाथ से निकल गई.
जिनके घर शीशे के बने हैं वे दूसरों पर पत्थर नहीं फेंकते. शाब्दिक अर्थ है कि यदि आप कांच से बने घर में रह रहे हैं तो आप दूसरों पर पत्थर न फेंके क्योंकि यदि उसने पत्थर फेंक दिया तो आपका घर टूट जाएगा. तात्पर्य है कि जिनके अंदर खुद कमियां हैं उन्हें दूसरों को बुरा भला नहीं कहना चाहिए.
जिनके पशु प्यासे बंधे, तिरियां करें कलेश, उनकी रक्षा ना करें, ब्रह्मा विष्णु महेश. जिन घरों में पालतू पशुओं की देखभाल न हो (पशु प्यासे बंधे हो) और स्त्रियाँ कलेश करती हों, उनकी ईश्वर भी रक्षा नहीं करते.
जिनके बड़े बिछाई खाट, उनका कुनबा बारह बाट. जिस खानदान में बड़े लोग खाट बिछा कर बैठ जाएं (अर्थात कुछ काम न करें) उसका सत्यानाश होना तय है.
जिनके मर गए बादशाह, रोते फिरें वजीर. जब राजा की मृत्यु हो जाती है तो उसके अधीनस्थ कर्मचारियों की दशा बहुत दयनीय हो जाती है.
जिनके मुच्छ नहीं उनके कुच्छ नहीं. जिन लोगों को बड़ी बड़ी मूंछें रखने का शौक होता है वे बिना मूंछ वालों को हिकारत की नजर से देखते हैं और यह कहावत बोलते हैं.
जिनके लाड़ घनेरे, उनको दुख बहुतेरे. जो बच्चे अधिक लाड़ प्यार में पलते हैं, वे अधिक दुखी रहते हैं.
जिनके होंगे पूत, वो पूजेगें भूत. कोई व्यक्ति कितना भी वैज्ञानिक सोच वाला और नास्तिक क्यों न हो जब अपना बच्चा बीमार हो तो वह भूत प्रेतों और ग्रह नक्षत्रों को मानने लगता है.
जिनको चाव घनेरा, उनको दुख बहुतेरा. जितनी अधिक अपेक्षाएं उतना अधिक दुख.
जिन्दगी अचरजों का मेला है. जीवन में एक से एक आश्चर्य देखने को मिलते हैं. इंग्लिश में इस प्रकार की एक कहावत है – Life is a series of surprizes.
जिन्ने न पी गांजे की कली, उस लड़के से लड़की भली. (बुन्देलखंडी कहावत) नशा करने वाले मूर्ख लोग अपने को बड़ा मर्द समझते हैं, उनके अनुसार नशा न करने वाले लोग नामर्द होते हैं.
जिन्ह सन करत सनेहु, तिन्ह की सब सहि लेहु. (बुन्देलखंडी कहावत) जिन से प्रेम हो उनकी अच्छी बुरी सब बात सहन कर ली जाती है. सनेहू – स्नेह, प्रेम.
जिन्हें जल्दी थी वो चले गये. सड़क पर चलने में जो बहुत जल्दबाज़ी करते हैं वे दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं.
जिन्हें मुस्कुराना नहीं आता, उन्हें व्यापार नहीं करना चाहिए. व्यापार चलाने के लिए व्यक्ति को हंसमुख होना आवश्यक है.
जिब्बो चलेगी, चन्दो पिटेगी. (जिब्बो – जिव्हा, जीभ. चन्दो – चांद, खोपड़ी). जीभ जितना अधिक अंट शंट बोलेगी खोपड़ी उतना ही पिटेगी.
जिभ्या रोगों की जड़ है. जीभ के स्वाद के लिए मनुष्य आलतू फ़ालतू चीजें खाता है और बीमार पड़ता है, इसलिए जीभ ही रोगों की जड़ है. जीभ अंट शंट बोलती है इसलिए फसादों की जड़ भी है.
जिम्मेदारी ले उतनी, संभल सके जितनी. जितनी जिम्मेदारी संभाल पाओ उतनी ही लेनी चाहिए.
जिय बिनु देह नदी बिन वारी, तैसेहि नाथ पुरुस बिनु नारी. जैसे आत्मा के बिना शरीर और पानी के बिना नदी अर्थहीन है वैसे ही पति के बिना स्त्री है.
जियत पिता की करी न सेवा, बाद मरन के लड्डू मेवा. जब माता पिता जीवित थे तब उनकी सेवा नहीं की और उनके मरने के बाद उन्हें प्रसन्न करने का ढोंग कर रहे हैं.
जियत पिता की पूछी न बात, मरे पिता को दूध और भात. जो लोग जीवित माता पिता को नहीं पूछते और उनके मरने पर श्राद्ध करने का ढोंग करते हैं उन पर व्यंग्य.
जियत पिता से जंगम जंगा, बाद मरन के हर हर गंगा. जीवित माता पिता से झगड़ा करते रहे और उनके मरने के बाद उन्हें गंगा ले जा कर उनके भक्त होने का नाटक कर रहे हैं.
जियेगा नर तो फिर बसाएगा घर. कितनी भी बड़ी आपदा आए, यदि मनुष्य जीवित रहेगा तो फिर से घर बसाएगा. इसीलिए कहते हैं कि विषम परिस्थितियों में जीवन रक्षा पर ध्यान देना चाहिए.
जियो और जीने दो. जिस प्रकार आप स्वयं एक अच्छा जीवन जीना चाहते हैं उसी प्रकार औरों को भी जीने दें. इंग्लिश में कहावत है – Live and let live.
जिस आंगुली चोट लगे, दर्द उसी में होय. बात बड़ी स्पष्ट है, अपना अपना दर्द सबको स्वयं ही झेलना पड़ता है, कोई उसको बंटा नहीं सकता.
जिस का अगुआ अंधा, उसका लश्कर कुआं में. लश्कर माने सेना. सेना अपने नायक के पीछे आँख बंद कर के चलती है. यदि नायक अंधा होगा तो कुँए में गिरेगा और पीछे पीछे सेना भी कुँए में गिरेगी. अर्थ है कि यदि नेता मूर्ख हो तो जनता को ले डूबता है और गुरु मूर्ख हो तो शिष्यों को ले डूबता है.
जिस का आँडू बिके, वह बधिया क्यों करे. गाय का बछड़ा बड़ा हो कर सांड बनता है जोकि स्वेच्छाचारी होता है और खेती के काम नहीं आ सकता, केवल प्रजनन के काम आता है (इसलिए बिकता भी नहीं है). बचपन में ही उस के अंडकोष नष्ट कर दिए जाते हैं जिससे वह बधिया हो जाता है और बैल बन कर खेती के काम आता है. आँडू का अर्थ है सांड (जिसके अंडकोष सलामत हैं) और बधिया का अर्थ है बैल. किसी का घटिया उत्पाद बिक रहा हो तो वह उस को बढ़िया बनाने की कोशिश क्यों करेगा.
जिस का काम उसी को साजे, और करे तो डंडा बाजे. जो काम जिसके करने का वही करे तो ठीक रहता है, और कोई करे तो उस को मुसीबतों का सामना करना पड़ता है. देखिए सन्दर्भ कथा 94.
जिस का खसम पूछा न करे, उस की मांग में भर भर सिन्दूर. (भोजपुरी कहावत) जिस स्त्री का पति उसको नहीं पूछता वह औरों को दिखाने के लिए अपनी मांग में अधिक सिदूर भरती है.
जिस का खा कर आओगे उसे खिलाना भी पड़ेगा. किसी के यहाँ विवाह आदि आयोजन में दावत खाओगे उसे फिर अपने यहाँ भी आमंत्रित करना पड़ेगा. किसी का एहसान लोगे तो उसको चुकाना भी पड़ेगा.
जिस का खाओ, उसका गाओ (जिसका खाना उसका बजाना). जिससे लाभ होता हो उसी की प्रशंसा करनी चाहिए.
जिस का खावै टीकड़ा, उसका गावै गीतड़ा. (हरयाणवी कहावत) जिसकी रोटी खाओ, उसके गीत गाओ.
जिस का गुइंया नहीं उसका कूकुर गुइयां. जिसका कोई दोस्त नहीं उसका कुत्ता ही दोस्त होता है. गुइंया – दोस्त.
जिस का चाम, उसी की सीवन. पहले के समय में चमड़े को सिलने के लिए चमड़े की ही डोरी बनाई जाती थी. अर्थ है कि जिस प्रकार के लोगों से काम लेना हो उसी प्रकार का कर्मचारी रखना चाहिए.
जिस का जाए, वही चोर कहलाए. हिन्दुस्तान में कुछ भी हो सकता है. यहाँ यह भी हो सकता है कि जिसके घर में चोरी हो उसी को पुलिस या आम जनता चोर ठहरा दे.
जिस का जूता उसी का सर (मियां की जूती मियां के सर) मेरी ही चीज़ से कोई मुझे ही नुकसान पहुंचाए तो.
जिस का ढुलक जाय, सो रूखा खाय. जिसका घी गिर जाता है वही रूखा खाता है. जिसकी हानि वही भुगते.
जिस का नहीं साला, उसके घर में ताला. कुछ कहावतें केवल आपसी हंसी मजाक के लिए बनाई गई हैं.
जिस का पल्ला भारी, उसी के साथ यारी. विशद्ध स्वार्थ. जो जीत रहा हो उसी के साथ दोस्ती करना.
जिस का बनिया यार, उसे दुश्मन की क्या दरकार. बनियों के बारे में कहा गया है कि वे अपने दोस्तों तक की जेब काट लेते हैं. इसी बात पर किसी ने कहा है कि जिस का बनिया दोस्त हो उसे दुश्मनों की क्या जरूरत.
जिस का बाप बिजली से मरे, वो कड़क देख के डरे. अर्थ स्पष्ट है.
जिस का ब्याह उसी के गीत (जिस का मंड़वा, उसके गीत). समय देख कर ही काम करना चाहिए. जिस से लाभ हो उसी की प्रशंसा करो. जैसा परिवेश हो वैसी ही बात करनी चाहिए. मंडवा – विवाह का मंडप.
जिस का मरा सो रोवे, गंगादास सुख से सोवे. जो लोग कोई सामाजिक सरोकार नहीं रखते उन पर व्यंग्य. समाज का नियम तो यह है कि चाहे ख़ुशी में किसी के घर न जाओ, पर दुख में अवश्य जाओ.
जिस का लेना कभी न देना, क्या जग में फिर आना है. चार्वाकवादी किसी व्यक्ति का कथन. उधार ले कर खाओ पिओ और मौज करो. वापस करने की चिंता मत करो. इस संसार में दुबारा किस को आना है.
जिस की आँख में तिल, वह बड़ा बेदिल. जिसकी आँख में तिल होता है वह निष्ठुर होता है.
जिस की खाओ बाजरी, उसकी भरो हाजरी. जिसका अन्न खाओ उसी का काम करो.
जिस की खातिर नाक कटाई, वो ही कहे नकटा. जिस को लाभ पहुंचाने के लिए कोई गलत काम किया, वही आप को गलत ठहरा रहा हो तो यह कहावत कही जाती है.
जिस की गाड़ी रेत में उसी का बुद्धू नाम. जिस की गाड़ी रेत में फंस जाए उसी को लोग बुद्धू समझते हैं. जिस का काम बिगड़ जाए उसे ही सब मूर्ख कहते हैं.
जिस की गूजर खीर खाए, उसी की भैंस चुरा ले जाए. कहावत में गूजर को कृतघ्न बताया गया है.
जिस की गोद में बैठे उसी की दाढ़ी नोचे. आश्रय देने वाले को नुकसान पहुँचाने वाला.
जिस की छाती बार नाहीं, उस का एतबार नाहीं. यह भी एक पुरानी मान्यता है.
जिस की जीभ चलती है उसके नौ हल चलते हैं. जो जबान का धनी है वह अपने सब काम करा लेता है.
जिस की तेग उसकी देग. जिसके पास ताकत होगी वही खाद्य सामग्री और अन्य संसाधनों पर कब्ज़ा कर लेगा. तेग – तलवार (युद्ध करने की क्षमता), देग – बड़ी हंडिया (भोजन का प्रबंध). (देखिए परिशिष्ट)
जिस की देग, उसकी तेग. देग माने भोजन पकाने का बड़ा बर्तन. जिसके पास फ़ौज को खिलाने का इंतज़ाम होगा वही युद्ध जीतेगा.
जिस की फ़िक्र, उसका ज़िक्र. हम जिस के विषय में हर समय सोचते हैं उसी की बात करते हैं.
जिस की बंदरी वही नचावे, और नचावे तो काटन धावे. जो जिस का काम है वही उस को काम को करे तो काम ठीक से होता है, दूसरा उसे करने की कोशिश करे तो काम बिगड़ जाता है.
जिस की बहिन अंदर उस का भाई सिकंदर. जिस भाई की बहन किसी बड़े नेता या अधिकारी के घर ब्याही हो वह बेखौफ उस घर में आता जाता है. रूपान्तर – जिस की जोरू अंदर, उसका नसीबा सिकन्दर. जिस आदमी की पत्नी को बड़े लोगों के घर में नौकरी मिल जाए उस को बहुत सी सुविधाएं मिल जाती हैं.
जिस की बीवी से पहचान, उसकी लौंडी से क्या काम. जहाँ बड़े हाकिम से जान पहचान हो वहाँ चपरासी को क्यों पूछें. (लौंडी – दासी).
जिस की महल में मैया, मांगे पैसा मिले रुपैय्या. महल में नौकरी करने वालों की बड़ी ऐश होती है. महल में नौकरी करने वाली किसी महिला का बच्चा खर्चे के लिए पैसा माँग रहा है तो माँ उसे रुपया दे रही है. आजकल भी लाभ के पदों पर सरकारी नौकरी करने वालों का काफ़ी कुछ यही हाल है.
जिस की लाठी उसकी भैंस. यहाँ लाठी का अर्थ ताकत से और भैंस का अर्थ चल अचल संपत्ति से है. जिसके पास ताकत होती है वह संपत्ति पर कब्ज़ा कर लेता है. सन्दर्भ कथा. – एक ब्राह्मण को कहीं से यजमानी में एक भैंस मिली. उसे लेकर वह घर की ओर रवाना हुआ. सुनसान रास्ते में उसे एक चोर मिला. उसके हाथ में मोटा डण्डा था और शरीर से भी वो अच्छा तगड़ा था. उसने ब्राह्मण को देखते ही कहा, क्यों ब्राह्मण देवता, दक्षिणा अच्छी मिली लगती है, पर यह भैंस तो मेरे साथ जाएगी. ब्राह्मण ने कहा, क्यों भाई? चोर बोला, क्यों क्या? भैंस छोड़ कर चुपचाप यहाँ से चलते बनो, वरना लाठी देखी है, तुम्हारी खोपड़ी के टुकड़े-टुकड़े कर दूँगा. अब तो ब्राह्मण को काटो तो खून नहीं. पर खाली हाथ वह करे भी तो क्या.
विपरीत समय में उसने बुद्धिबल से काम लिया. बोला, ठीक है भाई, भैंस भले ही ले लो, पर ब्राह्मण की चीज यों छीन लेने से तुम्हें पाप लगेगा. बदले में कुछ देकर भैंस लेते तो पाप से बच जाते. चोर बोला, यहाँ मेरे पास देने को धरा क्या है? ब्राह्मण ने झट कहा, और कुछ न सही, भैंस के बदले में लाठी ही दे दो. चोर ने खुश हो कर लाठी ब्राह्मण को पकड़ा दी और भैंस पर दोंनो हाथ रख कर खड़ा हो गया. तभी ब्राह्मण कड़क कर बोला, चल हट भैंस के पास से, नहीं तो अभी खोपड़ी के दो टुकड़े कर दूंगा चोर ने पूछा, क्यों? ब्राह्मण बोला, क्यों क्या? जिस की लाठी उस की भैंस. चोर को अपनी बेवकूफी समझ आ गयी और उसने वहाँ से भागने में ही भलाई समझी.
जिस की सीरत अच्छी, उसकी सूरत भी अच्छी. जो आदत का अच्छा होता है वह अपने सौम्य स्वभाव के कारण देखने में भी अच्छा लगने लगता है.
जिस के एक खसम न हो उसके सौ खसम हो जाते हैं. जिस स्त्री का पति न रहे सभी लोग उस पर अपनी हुकूमत चलाते हैं या उस का शोषण करना चाहते हैं.
जिस के कारण हिस्से किए वही आया हिस्से. जिस चीज़ से परेशान हो कर बंटवारा किया वही हिस्से में आई.
जिस के कारन जोगन भई, वह सैंया परदेस. जिसके कारण घर परिवार छोड़ा वही छोड़ कर चला गया.
जिस के घर में बेरी का पेड़ है, उसके घर में ढेले आयेंगे ही. यदि आपके पास कोई नायाब चीज़ है और आप ठीक से उसकी रक्षा नहीं कर सकते तो लोग उस पर कुदृष्टि तो रखेंगे ही.
जिस के जहां सींग समाए. जिस को जहाँ स्थान मिला.
जिस के पास न पैसा, वह भलामानस कैसा. जिसके पास धन होता है उसको लोग भलामानस समझते हैं, निर्धन को लोग भलामानस नहीं समझते.
जिस के पास पूत नहीं, वह क्या जाने माया. जिनके संतान नहीं होती वे पैसे के महत्व को नहीं समझते (पैसे को महत्वपूर्ण नहीं मानते).
जिस के पुरखे मांगें भीख, वो क्या जाने धरम की रीत. जिसके बड़े बुजुर्ग भीख मांगकर जीवनयापन करते रहें, वह दान पुण्य क्या करेगा. किसी नवधनाढ्य के घर से कोई याचक खाली हाथ लौटे तो ऐसे बोलता है.
जिस के माथे परत सोई जानत. जिस पर बीतती है वही जानता है.
जिस के राम धनी, उसे कौन कमी. जो भगवान के भरोसे रहता है, उसे किसी चीज की कमी नहीं होती.
जिस के लिए चोरी की वही कहे चोर. कभी कभी मजबूरी में अपने किसी बहुत प्रिय व्यक्ति की खातिर आपको गलत काम करना पड़ता है. जिसके लिए ऐसा काम किया वही आपको चोर कहने लगे तो.
जिस के वास्ते रोए, उसकी आँखों में आंसू नहीं. जिस से हमदर्दी जताने के लिए आप रो रहे हैं वह अपने दुख से इतना दुखी नहीं है.
जिस के सर पर ताज, उसके सर में खाज. किसी भी परिवार या संगठन में जो मुखिया होता है उसी को सारे झंझट झेलने पड़ते हैं.
जिस के हाथ डोई उसका सब कोई. डोई – करछी. यहाँ डोई का तात्पर्य खाने पीने की सुविधा से है. अर्थ है कि सब लोग सामर्थ्यवान का साथ देते हैं और उसी की खुशामद करते हैं.
जिस के होय न पैसा पास, उस को मेला लगे उदास. मेले में मस्ती करनी हो तो खर्च करने के लिए पैसा चाहिए. जिसके पास पैसा न हो उसे मेला उदास लगता है.
जिस को आदत है मेहनत की, उसको कमी नहीं है दौलत की. जो मेहनत करते हैं वे इतना पैसा तो कमा ही लेते हैं कि उनको अभावों में न रहना पड़े.
जिस को चलना हो बाट, उसे कैसे सुहावै खाट. जिसको दूर जाना है वह खाट पर आराम कैसे कर सकता है.
जिस को न दे मौला, उसको दे आसफुद्दौला. आसफुद्दौला लखनऊ के एक प्रसिद्द नवाब हुए हैं जो बड़े दानी माने जाते थे. उन्ही के लिए यह कहावत प्रसिद्द थी.
जिस को पिया चाहे वही सुहागन. 1. केवल विवाह कर लेने मात्र से कोई स्त्री सुहागिन नहीं हो जाती. सही मानों में सुहागिन वही है जिसका पति उसे प्रेम करता हो. 2. जिस मातहत पर हाकिम की कृपादृष्टि हो जाए उसी की मौज है.
जिस को लगे उसी को दुखे. जिसको चोट लगती है वही उस के कष्ट को जान सकता है. वह चोट चाहे शरीर पर लगी हो या मन पर.
जिस खेती पे खसम न जावे, वह खेती खसम को खावे. जिस खेती का मालिक स्वयं अपनी खेती को देखने नहीं जाता, वह खेती मालिक को ही खा लेती है.
जिस गाँव जाना नहीं, उसके कोस क्या गिनने (जिस राह ही नहीं चलना उसके कोस गिनने से क्या काम). जो काम करना ही नहीं है उसके नुकसान फायदे गिनने में समय क्यों खपाएं.
जिस घर जाई, उसी घर ब्याई. मुसलमानों में बहुत निकट सम्बन्धियों में विवाह सम्बन्ध हो जाते हैं उस पर व्यंग्य. जाई – पैदा हुई, ब्याई – विवाह हो कर गई.
जिस घर दूहे काली, उस घर नित दीवाली. जिस घर में काली गाय दूध दे रही हो वहाँ नित्य ही उत्सव का माहौल रहता है. वैसे काली तो भैंस भी होती है, लेकिन कहावतों में भैंस को इतना महत्त्व नहीं दिया जाता.
जिस घर नारी फूहड़, वह घर जानो कूहड़. जिस घर में गृहणी फूहड़ होती है वह कूड़े का ढेर हो जाता है.
जिस घर बड़े न बूझिए, दीपक जले न सांझ, वह घर ऊजड़ जानिए, जाकी तिरिया बाँझ. जिस घर में बड़े लोगों से सलाह नहीं ली जाती, शाम से दीपक नहीं जलाया जाता और स्त्री बाँझ है उस घर का उजड़ना निश्चित है.
जिस घर बड्डा ना मानिये ढोरी पड़ै ना घास, सास-बहू की हो लड़ाई उज्जड़ हो-ज्या बास. (हरयाणवी कहावत) जिस घर में बड़ों की बात नहीं मानी जाती, जानवरों को समय पर दाना पानी नहीं डाला जाता और सास बहू में लड़ाई होती है, वह घर उजड़ जाता है.
जिस घर में खाना, उसी में आग लगाना. निकृष्ट और कृतघ्न लोगों के लिए. जैसे देश में रहने वाले कुछ लोग यहाँ का खाते हैं और देश की अर्थ व्यवस्था को नुकसान पहुंचाने का प्रयास करते रहते हैं.
जिस घर में नहिं बूढा, वो घर जानो बूड़ा. बूढ़ा – वृद्ध, बुजुर्ग, बूड़ा – डूबा. जिस घर में बुजुर्ग लोग न हों वह उचित सलाह के अभाव में ड़ूब जाता है.
जिस घर में संपत नहीं, तासे भला विदेस. घर में बहुत अधिक गरीबी हो तो परदेस जा कर जीविका तलाशना अधिक अच्छा है.
जिस घर विजया ना बसे वो घर भूत समान. विजया – भांग. भांग पीने वाले कहते हैं कि जिस घर में भांग नहीं पी जाती, वह घर भूतों के डेरे के समान है.
जिस घर सौंफ महकनी उस घर जीरा कौन लिवाल, जिस घर सास मटकनी, उस घर बहू को कौन हवाल. बेटे की शादी हो जाए और बहू घर में आ जाए उस के बाद भी कुछ औरतें बहुत चटक मटक से रहती हैं, उन्हीं के ऊपर व्यंग्य. लिवाल – लेने वाला.
जिस घर होए कुचलिया नारी, सांझ भोर हो उसकी ख्वारी. घर में स्त्री बदचलन हो तो बर्बादी होना तय है.
जिस घर होवे पुरुष कुचलिया, उस घर होवे खीर का दलिया. जिस घर में पुरुष दुश्चरित्र हो वहाँ पूरी अर्थ व्यवस्था बिगड़ जाती है.
जिस तन लागे वह तन जाने (जिस पे बीते सोई जाने). जिस को कष्ट उठाना पड़ता है वही जान सकता है.
जिस थाली में खाए उसी में हगे (जिस पत्तल पर खाए उसी पत्तल पर हगे). अत्यंत नीच और कृतघ्न व्यक्ति.
जिस थाली में खाये उसी में छेद करे. जिस के बूते खाना पानी मिल रहा हो उसी को नुकसान पहुँचाना.
जिस दिन हँसे नहीं वह दिन बर्बाद समझो. जीवन में सुखी रहने के लिए हँसना जरूरी है. हंसने के लिए कोई न कोई बहाना ढूँढना चाहिए.
जिस ने दिया तन को देगा वही कफन को. जिसने शरीर के निर्वाह के लिए साधन दिए हैं वही कफन का इंतजाम भी करेगा. आलसी लोगों का कथन.
जिस ने देखी ना दिल्ली, वो कुत्ता न बिल्ली. जिसने दिल्ली नहीं देखी वह कुत्ते बिल्ली से भी गया बीता है.
जिस ने पढ़ा गीता, उसने घर में दिया पलीता. वैसे यह बात गीता के मुकाबले महाभारत के साथ अधिक सही बैठती है. जो महाभारत पढ़ता है वह घर में भी वैसे ही लड़ाई झगड़े करता है. इसीलिए पुराने लोग लोगों को महाभारत नहीं बल्कि रामायण पढने की सलाह देते हैं. गीता पढ़ने से भी लोगों के मन में वैराग्य का भाव आ सकता है जो कि गृहस्थ के लिए अच्छा नहीं माना जाता है.
जिस ने वैश्या को चाहा वह भी तबाह और जिसे वैश्या ने चाहा वह भी तबाह. वेश्याओं के चक्कर में पड़ने से हर तरह से बर्बादी ही बर्बादी है.
जिस पर पड़े वही दुख जाने, और लोग सब धोखा मानें. जिस पर दुख पड़ता है वही उस को समझ सकता है.
जिस पेड़ की छाँव में बैठा, उसी की डाल काटे. उपकार करने वाले को नुकसान पहुँचाने वाला कृतघ्न व्यक्ति.
जिस वन सुआ न सारिका, वहाँ कौए खाएं कपूर. जिस वन में तोता मैना न हों वहाँ कौओं को कपूर खाने को मिलता है. जहाँ योग्य व्यक्ति न हों वहाँ अयोग्य व्यक्तियों की मौज हो जाती है. सुआ-तोता, सारिका–मैना.
जिस से चोरी का डर हो उसी से कहो रखवाली करे. बहुत ही व्यवहारिक सुझाव है.
जिस हंडिया में हमारा हिस्सा नहीं, वह भले ही चूल्हे पर चढ़ते ही टूटे. जिस आयोजन से हमें कोई लाभ नहीं होने वाला वह पूरा हो या उसका बंटाढार हो जाए, हमें क्या.
जिसका घर उसी की जुगत. अपने घर में कहाँ क्या युक्ति काम करेगी यह घरवाला ही जान सकता है.
जिसका धन जाता है उसका धर्म भी चला जाता है. इसका एक अर्थ यह है कि गरीब को लोग धर्मात्मा नहीं मानते, झूठा और लुच्चा ही मानते है. दूसरा अर्थ है कि धन जाने पर आदमी उसे वापस पाने के लिए अनैतिक कार्य भी करता है. रूपान्तर – धन जाए तो धरम भी जाए.
जिसका पेट पिराय सो अजवाइन ढूँढे. जिसे जिस वस्तु की आवश्यकता होती है वह उसे स्वयं खोजता फिरता है. ऐसा माना जाता है कि अजवाइन वायु रोग को कम करती है.
जिसकी कोठरी में धान, उसकी खोपड़ी में ज्ञान. जो धन धान्य से पूर्ण है वही ज्ञानी माना जाता है.
जिसकी जुबान झूठी उसका करार क्या, जिसका पिया परदेस उसका सिंगार क्या. अर्थ स्पष्ट है.
जिसके कारन आँख फूटी, वही कहे काना. जिस का भला करने के लिए इतना बड़ा नुकसान उठाया वही कमी निकाल रहा है.
जिसके घेंघा वो न रोवे, देखने वाले रोवें. जिस में कमी है वह परेशान नहीं है, दूसरे उस से अधिक परेशान हैं.
जिसके लिए बकरी मारी, वो हड्डी पे रूठा. जिस को खुश करने के लिए इतना बड़ा पाप किया, वह छोटी सी बात पर रूठ गया.
जिसके लिए मरे वही लाठी ले के दौड़े. जिसके लिए सब कुछ गंवाया वह मारने दौड़ रहा है.
जिसके हाथ जोर, उसके हाथ बटोर. जिसके बल व पुरुषार्थ है वही धन-संपदा समेट पाता है.
जिसके हाथ हांडी डोई, वो ही मरे भूखा. जो सब को खिला रहा है वह बेचारा खुद भूखा मर रहा है.
जिससे रखिए घनी प्रीत, उससे रखिए लेखा नीत. लेखा जोखा सही हो तभी प्रेम निभता है.
जिसे आकाश में खोजा वह धरती पर मिला. कोई व्यक्ति बहुत ढूँढने के बाद मिले तो.
जिसे खाने को मिले यूँ, वह कमाने जाए क्यूँ. जिसे घर बैठे खाने को मिले वह पैसा कमाने के लिए मेहनत क्यों करेगा. मुफ्त की रेवड़ियों का लालच दे कर जनता को अकर्मण्य नहीं बनाना चाहिए.
जिसे मरने का डर नहीं, उसे मारने वाला कोई नहीं. युद्ध में जो व्यक्ति जीवन का मोह छोड़ कर लड़ता है उसे हराना बहुत मुश्किल है.
जिस्म तोड़े तो घर बने. घर बनाने के लिए अत्यधिक श्रम करना पड़ता है.
जी कहीं लगता नहीं, जब जी कहीं लग जाए है. किसी से प्रेम हो जाए तो कहीं मन नहीं लगता. यह प्रेम स्त्री पुरुष का भी हो सकता है और आत्मा परमात्मा का भी.
जी कहो जी कहलाओ (जी न कहो तो जी न सुनोगे). यदि तुम दूसरों का आदर करोगे, तो लोग भी तुम्हारा आदर करेंगे.
जी का बैरी जी. 1. मनुष्य स्वयं अपना सबसे बड़ा शत्रु है. 2. जीव ही जीव का शत्रु है. इंग्लिश में कहावत है – Man is his own worst enemy.
जी के बदले जी. 1.जान के बदले जान लेने की इच्छा. बदला लेने की भावना. 2.प्रेम के बदले प्रेम मिलता है.
जी चाहे बैराग को, कुनबा छोड़े नाहिं. 1. कोई व्यक्ति वास्तव में वैराग्य लेना चाहता है लेकिन कुटुम्ब के लोग उसे छोड़ नहीं रहे हैं. 2. कोई व्यक्ति वैराग्य लेने का ढोंग रच रहा है और कह रहा है कि मैं तो वैराग्य लेना चाहता हूँ पर क्या करूँ परिवार के लोग जाने नहीं दे रहे हैं.
जी जाए, घी न जाए. चाहे जान चली जाए पर घी खर्च न हो. महा कंजूस व्यक्ति का मजाक उड़ाने के लिए.
जी बहुत चलता है मगर टट्टू नहीं चलता. बुढ़ापे में इन्द्रियाँ कमज़ोर हो जाने पर.
जी से जीविका प्यारी. रोजगार प्राणों से प्यारा होता है.
जी ही से जहान है. यदि जीवन है तो सब कुछ है. इसलिए सब तरह से प्राण-रक्षा की चेष्टा करनी चाहिए.
जी हुजूरी को कभी जोखिम नहीं. चमचागिरी करने में नफा ही नफा है, जोखिम कोई नहीं.
जीजा के माल पे साली मतवाली. अपने रिश्तेदारों के बल पर घमंड करना.
जीजा हमारे इत्ते शर्मीले, इक परसो दो छोड़त हैं. (बुन्देलखंडी कहावत) खाने पीने में ज्यादा तकल्लुफ करने वाले लोगों पर हास्य पूर्ण व्यंग्य.
जीततों में अगाड़ी, हारतों में पिछाड़ी. ऐसे स्वार्थी लोगों के लिए जो जीतने वाली फ़ौज में आगे दिखाई देते हैं और हारती हुई फ़ौज में सबसे पीछे.
जीता सो भी हारा, और हारा सो मुआ. मुकदमा जीतने वाला इंसान भी बहुत परेशानी उठाता है (अत्यधिक मानसिक तनाव और खर्च के कारण) और अगर हार गया तब तो बिलकुल ही मरा. जुए के खेल में भी ऐसा ही है. जीतने वाला भी पैसे को ऐसे ही बर्बाद कर देता है और अगर हार गया तब तो बर्बाद होना ही है.
जीती मक्खी कोई न निगले. कोई अपमानजनक या घृणित चीज़ अनजाने में तो आप सह सकते हैं पर जानते बूझते कोई नहीं सह सकता.
जीते आसा, मुए निरासा. जीवन के साथ आशा की डोर बंधी है जो मरते ही समाप्त हो जाती है. इस का अर्थ यह भी हो सकता है कि आशावादी व्यक्ति की जीत होती है और निराशावादी मरे हुए के समान है.
जीते चाव चाव, मुए दाब दाब. जीवित व्यक्ति से सब प्रेम रखते हैं पर उसके मरते ही दफनाने की जल्दी होने लगती है.
जीते जी पुजवायें औ मर कर भी पुजवायें, जीते जी भी खाएँ और मरने पर भी खाएँ. (भोजपुरी कहावत) ब्राह्मणों के ऊपर व्यंग्य. जब मनुष्य जीवित होता है तब भी इनको पूजे और मरे तो भी इन को पूजे. जीवित हो तब भी इन को खिलाए और मरे तो भी इन को खिलाए.
जीते तो हाथ काला, हारे तो मुँह काला. जुआरियों के लिए. जीतेंगे तो धन उड़ा देंगे, हारेंगे तो बेइज्ज़त होंगे.
जीते थे तो लीखों भरे, मर गए तो मोतियों जड़े. लीख कहते हैं जूँ के अंडे को. जीते जी तो माँ बाप की इतनी बेकदरी कि उन के सर में जूएँ पड़ गईं और उन के मरने के बाद उनकी मोतियों जड़ी तस्वीरें लगाई जा रही हैं.
जीना कठिन है पर मरना और भी ज्यादा कठिन. अर्थ स्पष्ट है.
जीने के लिए खाओ, खाने के लिए मत जिओ. कुछ लोग हर समय खाने के विषय में ही सोचते हैं. उनके लिए यह शिक्षा है कि उतना ही खाना चाहिए जितना स्वस्थ जीवन जीने के लिए आवश्यक है.
जीभ और थैली को बंद ही रखना अच्छा है. कम बोलने, कम खाने और कम खर्च करने से बड़ा लाभ होता है.
जीभ की सी कहूँ या तलवे की सी. द्विविधा की स्थिति. सन्दर्भ कथा – एक बार एक काजी की अदालत में एक मुकदमा पहुँचा. मुकदमा लड़ने वालों में से एक ने काजी के घर पाँच सेर बढ़िया मिठाई भेज दी. दूसरे पक्ष के व्यक्ति ने काजी के जूते के नीचे एक सोने की मोहर रख दी. काजी ने दूसरे व्यक्ति के पक्ष में फैसला सुना दिया. पहले व्यक्ति ने जब काजी को अपनी मिठाई की याद दिलाई तो काजी ने जवाब दिया, जीभ की सी कहूँ या तलवे की सी.
जीभ भी जली और स्वाद भी न पाया. जब कोई काम करने में आनंद भी नहीं मिला और नुकसान अलग हुआ.
जीभ में ही अमृत बसे और जीभ में ही जहर. मीठी बोली द्वारा किसी मृतप्राय व्यक्ति को जिलाया जा सकता है, और कड़वी बोली द्वारा किसी को मृत्यु जैसी प्रताड़ना दी जा सकती है.
जीम के छोड़े पाहुना, प्रान ले छोड़े व्याधि. पाहुना भोजन करके और पुराना रोग प्राण लेकर ही पिंड छोड़ता है.
जीमना और झगड़ना पराए घर ही अच्छे लगते हैं. जो मजा दूसरे के घर पर जीमने (खाने) में है वह अपने घर पर खाने में नहीं है. इसी तरह झगड़ा करने का मजा भी दूसरे के घर पर ही आता है.
जीमना न जूठना, न कंघी न खाट, साँपों के ब्याह में बस जीभों की लपलपाट. दुष्टों के जमावड़े में कोई एक दूसरे की आवभगत नहीं करता, सब एक दूसरे को निगल जाने की फ़िराक में रहते हैं.
जीवे मेरा भाई, गली गली भौजाई. ननद की भाभी से लड़ाई हुई तो वह कहती है कि मेरा भाई जीता रहे, तेरे जैसी भाभियाँ तो गली गली में मिल जाएंगी.
जुआरी का खर्चा बादशाह भी पूरा नहीं कर सकता (जुआरी हमेशा मुफ़लिस). जुआरी के पास कितना भी पैसा हो, वह सब जुए में हार सकता है. अगर जीत जाए तो पैसे को उड़ा देता है, और हार जाए तो कंगाल हो जाता है.
जुआरी को अपना ही दांव सूझता है. स्वार्थी आदमी अपना स्वार्थ ही देखता है.
जुए में हारा और मेहरारू का मारा भेद न खोले. जुए में हारा हुआ व्यक्ति और पत्नी से मार खाया हुआ व्यक्ति किसी को अपना भेद बताता नहीं है. रूपान्तर – आपन हारे मेहरी के मारे, केहू से न कहे, जो कहे सो भंडुआ.
जुए से बैल भी हारा है. जुआ सभी के लिए बुरा है चाहे आदमी हो या जानवर, इसको अलंकारिक रूप में इस तरह कहा गया है. क्योंकि कि जुए का एक अर्थ वह लकड़ी भी है जिसके द्वारा बैल हल से बांधे जाते हैं.
जुओं के मारे सर कौन कटाए. छोटी परेशानी से बचने के लिए बहुत बड़ा नुकसान कौन करता है.
जुग जुग जीओ, दूध बतासा पीओ. बड़े लोगों का बच्चों को प्यार भरा आशीर्वाद.
जुगनू बोले सूर्य सों हम बिन जग अंधियार. किसी महत्वहीन व्यक्ति द्वारा अपने को बहुत महत्वपूर्ण बता कर अहंकार करना.
जुगल जोड़ी सलामत रहे. पति पत्नी को एक साथ दिया जाने वाला आशीवाद.
जुड़ती नहीं धुर की टूटी, धरी रहें सब दारु बूटी. धुर की टूटी का अर्थ है जिस गाड़ी की धुरी टूटी गई हो. यहाँ इशारा किसी ऐसी बीमारी से है जो शरीर को बिलकुल तोड़ दे. ऐसी बीमारी का इलाज नहीं हो पाता.
जुड़े मांड़ न, खोजें ताड़ी (जुड़े मियाँ के मांड़ न, ताड़ी की फरमाइश). चावल का मांड़ तक उपलब्ध नहीं है और ताड़ी पीने को मांग रहे हैं. ताड़ी – ताड़ के दूध को फर्मेंट कर के बनने वाला अल्कोहलिक पेय पदार्थ.
जुत जुत मरें बैलवा बैठे खाएं तुरंग. बैल बिचारे हल जोत जोत कर जान देते हैं और घोड़े बैठे बैठे खाते हैं. मेहनतकश लोग मेहनत करते हैं और धनी लोग व हाकिम लोग उसका लाभ उठाते हैं.
जुते बैल हांफे कुत्ता. मेहनत कोई और करे परेशान कोई दूसरा हो तो.
जुबान बिना हड्डी की, फिरने में क्या देर लगे. जो लोग अपनी बात पर कायम नहीं रहते उन के ऊपर व्यंग्य.
जुबान में ही रस, जुबान में ही विष. जुबान से ही मीठी बोली बोली जाती है और जुबान से ही कड़वी बोली.
जुमा छोड़ सनीचर नहाए, उसका सनीचर कभी न जाए. लोक विश्वास है कि जो व्यक्ति शुक्रवार को न नहा कर शनिवार को नहाता है उसके सर से शनिश्चर नहीं हटता.
जुलाहा क्या जाने जौ की कटाई. जो जिसका कार्य है वही उसे कर सकता है. सन्दर्भ कथा – एक बार एक काजी की अदालत में एक मुकदमा पहुँचा. मुकदमा लड़ने वालों में से एक ने काजी के घर पाँच सेर बढ़िया मिठाई भेज दी. दूसरे पक्ष के व्यक्ति ने काजी के जूते के नीचे एक सोने की मोहर रख दी. काजी ने दूसरे व्यक्ति के पक्ष में फैसला सुना दिया. पहले व्यक्ति ने जब काजी को अपनी मिठाई की याद दिलाई तो काजी ने जवाब दिया, जीभ की सी कहूँ या तलवे की सी.
जुलाहे का बेगारी पठान. असंभव और हास्यास्पद बात. बेगारी अपने से कमजोर व्यक्ति से कराई जाती है.
जूँ बिना खाज नहीं, कुल बिना लाज नहीं. दोनों बातों का आपस में सम्बंध नहीं है, केवल तुकबंदी करने के लिए साथ कही गई हैं. सर में खुजली जूँ के कारण से होती है और लज्जा कुलीन लोगों में ही पाई जाती है.
जूं के कारण गुदड़ी नहीं फेंकी जाती. किसी छोटी सी कमी के कारण उपयोगी वस्तु या व्यक्ति का तिरस्कार नहीं करना चाहिए. रूपान्तर – चीलरन के दुख कथरी नईं छोड़ी जात.
जूठा खाए मीठे को. (जूठा खाए मीठे के लालच). मीठा खाने के लालच में मनुष्य झूठा भी खा लेता है. मनुष्य नीच काम तभी करता है जब लाभ अधिक हो.
जूठे हाथ से कुत्ता भी नहीं मारते. 1. किसी छोटे से छोटे व्यक्ति को भी अपमानित नहीं करना चाहिए. 2. अत्यधिक कंजूस व्यक्ति के लिए.
जूता मारे और कहे बनारसी है. निर्लज्जता पूर्ण तरीके से किसी का अपमान करना.
जूती तंग और रिश्तेदार नंग, सारी जगह चुभें. नंग – बेशर्म. तंग जूता और बेशर्म संबंधी बहुत कष्ट देते हैं.
जूती तो हमेशा पाँव के नीचे ही रहेगी. जो लोग स्त्री को पाँव की जूती समझते हैं (पुरुष से बहुत नीचा समझते हैं) और दबा कर रखना चाहते हैं वे इस प्रकार से बोलते हैं.
जूते का घाव, मियाँ जाने या पाँव. जूते से होने वाले घाव की पीड़ा वही जान सकता है जिस पर बीतती है.
जूते का मारा ऊपर को और टुकड़े का मारा नीचे को देखता है. जिस को जूता मारोगे वह आक्रोश दिखाएगा, जिस को टुकड़ा पकड़ा दोगे वह निगाह झुका लेगा.
जूते दान करने के लिए गाय की हत्या. अपने किसी छोटे से स्वार्थ के लिए किसी का बहुत बड़ा नुकसान करना.
जे खाय गाय के गोश्त, ते कैसे हिन्दू के दोस्त. जो गाय का मांस खाते हैं वे हिन्दुओं के दोस्त कैसे हो सकते हैं (दोस्ती में दूसरों की भावनाओं का ध्यान रखना आवश्यक होता है).
जे गरीब पर हित करैं, ते रहीम बड़ लोग, कहाँ सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग. व्यवहार में इसका पूर्वार्ध ही बोला जाता है. वास्तव में वही लोग बड़े कहलाने योग्य हैं जो निर्धन का हित करते हैं. (श्री कृष्ण का उदाहरण दिया गया है जिन्होंने राजा होते हुए भी अत्यंत निर्धन सुदामा से मित्रता निभाई).
जे न मित्र दुख होहिं दुखारी, तिन्हहिं विलोकति पातक भारी. जो मित्र के दुख में दुखी नहीं होते उन्हें देखने मात्र से ही भारी पाप लगता है.
जे परनारी लावे दीठी, लाल लोह से दागो पीठी. जो पराई स्त्री को बुरी नजर से देखे, उसको कड़ा दंड देना चाहिए. (गरम लोहे से उनकी पीठ दागना चाहिए).
जेठ के भरोसे पेट. जब कोई मनुष्य बहुत निर्धन होता है (या उस की मृत्यु हो जाए) और उसके परिवार का पालन उसका बड़ा भाई (स्त्री का जेठ) करता है तब कहते हैं.
जेठ के सो पेट के. जेठ के पुत्र भी अपने बेटों जैसे हैं.
जेठ चले पुरवाई, सावन सूखा जाई. अगर जेठ के महीने में पुरबाई चले तो सावन में वारिश नहीं होती. रूपान्तर – जै दिन जेठ चलै पुरवाई, तै दिन भादौ सूखा जाई.
जेठ भया हेठ, बैसाख भया ऊपर. जहाँ बड़ों की उपेक्षा कर के छोटों को प्राथमिकता दी जाए.
जेठा बेटा भाई बराबर. बड़े बेटे को भाई की तरह महत्व देना चाहिए. जेठा – ज्येष्ठ, बड़ा.
जेठे लड़का लड़की की शादी जेठ में न करो. पुरानी मान्यता है कि बड़े लड़के या लड़की की शादी जेठ के महीने में नहीं करना चाहिए, अनिष्ट हो सकता है.
जेते जग में मनुज हैं तेते अहैं विचार. संसार में सभी मनुष्यों की प्रकृति, प्रवृत्ति तथा अभिरुचि भिन्न-भिन्न हुआ करती है.
जेते मुख तेती वार्ता. (जितने मुंह उतनी बात). सभी लोगों का सोचने का ढंग अलग अलग होता है.
जेब खाली तो काजी बहरा. न्याय व्यवस्था पर व्यंग्य है. जिस के पास पैसा न हो उसकी कोई सुनवाई नहीं.
जेब जितनी भारी, दिल उतना हल्का. पैसा आने के साथ आदमी और अधिक स्वार्थी और कंजूस होता जाता है.
जेर से ही सेर होवे. आज का बालक कल बलवान बन सकता है. इसलिए बच्चों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए.
जेवड़ी से नाड़ घिसनी है. जिसका परिस्थिति से निजात नहीं मिल सकती उस को सहन करना ही होगा. (पालतू जानवर जिस जेवरी (रस्सी) से बंधे रहते हैं, उसी से अपनी गर्दन घिसते रहते हैं).
जेहि घर साला सारथी, अरु तिरिया की हो सीख, सावन में बिन हल रहे, तीनहु मांगें भीख. जो घर साले की सलाह से चले, जिस घर में पत्नी की चले एवं जो किसान सावन में बिना हल के रहे इन तीनों की बर्बादी निश्चित है. रूपान्तर – बैरी को मत मानबो, अरु तिरिया की सीख, क्वार करे हल जोतनी, तीनहुं मांगें भीख.
जेहि घर हींग न हरदा, तेहि घर जीमे बरधा. हरदा – हल्दी, बरधा – बैल. जिसके घर में खाने में हल्दी हींग आदि का प्रयोग नहीं होता उसके घर खाना आदमी नहीं बैलों के खाने योग्य होता है.
जेहि पर कृपा राम की होई, तेहि पर कृपा करें सब कोई. अर्थ स्पष्ट है.
जेहि महतारी सो ही बाप की मेहरारू. एक ही बात को शिष्ट और अशिष्ट दोनों ढंगों से कहा जा सकता है. माँ कहना आदर प्रदर्शित करता है और बाप की जोरू कहना अनादर. रूपान्तर – जो मामा वही बाप का साला.
जेहिं घर दीया जले सबेरा, वह घर लछमी लेय बसेरा. सबेरा – जल्दी ही. जिसके घर में दीप जल्दी जलता है उसके घर में लक्ष्मी सदैव निवास करतीं है .
जै कन्हैया लाल की, मदन गोपाल की, लड़कों को हाथी घोड़ा, बूढ़ों को पालकी. छोटे बच्चों को खिलाने के लिए.
जै घर में सुरती नहीं, नहीं पान सैं हेत, ते घर ऐसे जाएंगे, ज्यों मूली को खेत. सुरती – तम्बाखू. तम्बाखू प्रेमी कहते हैं कि जिस घर में पान तम्बाखू से प्रेम नहीं होता वह मूली के खेत की तरह नष्ट हो जाता है.
जै दिन जेठ चले पुरवाई, तै दिन सावन धूल उड़ाई. जेठ के महीने में पुरवाई चले तो सावन में सूखा पड़ता है.
जै दिन भादों बहे पछार, तै दिन पूस में पड़े तुसार. जितने दिन भादों माह में पछुवा हवा बहती है उतने दिन पूस माह में पाला पड़ता है, ऐसा घाघ कवि का कहना है.
जैसन को तैसन, सुकटी को बैंगन. किसी दुबली पतली लड़की की शादी काले मोटे लड़के से हो जाए तो.
जैसन देखे गाँव की रीत, तैसन करे लोग से प्रीत. जैसी परिस्थितियाँ और परिवेश हों वैसा ही व्यवहार करना चाहिए.
जैसा अंश, वैसा वंश. माता पिता का जैसा अंश बच्चों में आता है वैसा ही उनका वंश बनता है. आधुनिक विज्ञान का आनुवंशिकता का सिद्धांत भी यही कहता है.
जैसा अन्न खावे, वैसी डकार आवे. आदमी जिस प्रकार का कार्य करता है उसके वैसे ही परिणाम होते हैं.
जैसा ऊँट लम्बा, वैसा गधा खवास. जब एक ही प्रकार के दो मूर्खों का साथ हो.
जैसा कन भर, वैसा मन भर. जैसे बोरी में से एक चावल देखकर चावल की क्वालिटी मालूम हो जाती है, वैसे ही व्यक्ति के एक काम को देख कर उसके विषय में अंदाज़ लग जाता है.
जैसा करेगा, वैसा भरेगा. व्यक्ति जैसे कार्य करता है वैसा ही फल पाता है.
जैसा काछ काछे वैसा नाच नाचे. काछ – परिधान (विशेषकर नटों या अभिनेताओं द्वारा धारण किया हुआ वेष). कहावत का अर्थ यह भी हो सकता है कि नट लोग जैसा वेश पहनते हैं वैसा ही अभिनय करते हैं और यह भी हो सकता है कि जैसा परिवेश हो वैसा ही व्यवहार हमें करना चाहिए.
जैसा काम तैसा दाम. काम के अनुसार दाम दिये जाते हैं.
जैसा खुदा, वैसे ही फ़रिश्ते. जब कोई अफसर या नेता भ्रष्ट हो और उसके मातहत भी बेईमान हों.
जैसा जामन वैसा दही. 1. जामन अगर अच्छा होगा तो दही भी अच्छा जमेगा. जितना अच्छे साधन होंगे उतना ही अच्छा कार्य होगा. 2. बच्चे को जैसे संस्कार दोगे वह वह वैसा ही बनेगा.
जैसा जिसका सुभाव, वैसा उसका निभाव. जिसका जैसा स्वभाव हो, उससे वैसा ही निर्वाह किया जाता है.
जैसा ढोर वैसी घास. जैसा अतिथि उसका वैसा ही सत्कार. जैसा हाकिम वैसी रिश्वत.
जैसा तेरा ताना-बाना वैसी मेरी भरनी. जैसा व्यवहार तुम मेरे साथ करोगे, वैसा ही मैं तुम्हारे साथ करूँगा. ताना बाना और भरनी कपड़ा बुनने में प्रयोग होने वाले शब्द हैं.
जैसा दिया वैसा पाया. जब कोई व्यक्ति किसी को धोखा देने की कोशिश करे और बदले में खुद भी धोखे का शिकार हो जाए. सन्दर्भ कथा – एक चालाक अहीर पांच सेर की एक मटकी में नीचे साढ़े चार सेर गोबर और ऊपर से खूब अच्छा आधा सेर ताजा घी फैलाकर बेचने चला. रास्ते में उसे एक आदमी मिला, जो एक चमकीली तलवार को बाजार में बेचने जा रहा था. वह तलवार दरअसल लकड़ी की थी जिसके ऊपर उसने रुपहली पत्ती चिपका रखी थी. अहीर ने सोचा घी के बदले में यह खूबसूरत तलवार मिल जाए तो मेरे भाग्य खुल जाएं. उस ने कहा, एक तलवार तो मुझे भी खरीदनी थी, लेकिन सौदा करूंगा घी बिकने पर. तलवार वाले ने सोचा, तलवार के बदले में अगर यह घी की मटकी मुझे मिल जाए तो खूब घी-खिचड़ी का मजा आएगा. अहीर से बोला, मुझे भी तलवार बेचकर घी ही लेना है, आओ सौदा कर लें. मैं तुम्हें घी के बदले तलवार दे दूँगा. दोनों ने मन में सोचा कि हम सामने वाले को उल्लू बना रहे हैं. घर जाकर जब दोनों ने असलियत जानी तो समझ गये – जैसा दिया वैसा पाया.
जैसा दुद्ध, वैसी बुद्ध. जैसा दूध पिया वैसी ही बुद्धि बनेगी ( लोक विश्वास है कि भैंस का दूध पीने से भैंस जैसी बुद्धि बनेगी और गाय का दूध पीने से गाय जैसी).
जैसा दूध धौला, वैसी छाछ धौली. 1. जितना अच्छा दूध होगा उतनी ही अच्छी छाछ बनेगी. जितना उच्च कोटि का कच्चा माल होगा उतना ही अच्छा उत्पाद (product) होगा. 2. योग्य माँ बाप की योग्य संतान के लिए.
जैसा देवर वैसी भौजी. (भोजपुरी कहावत) जैसा देवर वैसी भाभी. दोनों एक से ठिठोली करने वाले.
जैसा देवे वैसा पावे, पूत भतार के आगे आवे. कोई स्त्री दूसरी से कह रही है कि जैसे सब के साथ करोगी वैसा ही तुम्हारे साथ होगा. औरों के साथ बुरा करोगी तो तुम्हारे पुत्र और पति के साथ बुरा होगा. सन्दर्भ कथा – किसी स्त्री ने एक साधु से छुटकारा पाने के लिए दो रोटियों में विष मिलाकर उसे दे दीं. उसने उन रोटियों को अपनी कुटी में ले जाकर रख छोड़ा. संयोग से उसी स्त्री का पति और लड़का कहीं से थके-हारे उस स्थान पर आ पहुंचे और साधु से पानी मांगा. साधु ने उन्हें भूखा जानकर वे दोनों रोटियां उन्हें खिला दीं, और पानी पिला दिया. वे दोनों रोटियां खाकर मर गए.
जैसा देस वैसा भेस. जहां रहो वहीँ के हिसाब से अपने को ढाल लो.
जैसा पशु, तैसा पगहा. पगहा माने जानवर के पिछले पैर या गले में बांधे जाने वाली रस्सी या जंजीर. जितना शक्तिशाली और गुस्सैल जानवर होता है उतने ही मजबूत पगहे से उस को बाँधा जाता है. समाज के लोगों के साथ व्यवहार में भी इसी सिद्धांत का प्रयोग किया जाता है. कौन से अफसर, सरकारी मुलाजिम या बदमाश से कैसे निबटना है इस के लिए भी यही कहावत चरितार्थ होती है.
जैसा पीवे पानी, वैसी बोले वानी. व्यक्ति का खान पान जैसा होता है उसका व्यवहार भी वैसा ही हो जाता है.
जैसा पैसा गाँठ का, तैसा मीत न कोय (जैसी गठरी आपनी, वैसो मीत न कोय). अपने पास का पैसा ही सबसे अच्छा मित्र है.
जैसा बाप वैसा पूत. 1. पुत्र अमूमन पिता के आदर्शों पर ही चलते हैं. 2. अगर कोई बाप बेटा एक से बढ़ कर एक हों तो (चाहे खुराफाती हों या बुद्धिमान).
जैसा बीज वैसा फल. जैसे कार्य करोगे वैसा ही फल मिलेगा. बोया बीज बबूल का आम कहाँ से खाय.
जैसा बेटा रानी का, वैसा बेटा कानी का. सभी स्त्रियों को अपना पुत्र प्यारा होता है.
जैसा बोओगे वैसा काटोगे. जैसा व्यवहार औरों के साथ करोगे वैसा ही फल आपको मिलेगा. यदि दूसरों के खिलाफ़ षड्यंत्र रचोगे तो खुद भी किसी षड्यंत्र का शिकार होगे.
जैसा बोले डोकरा, वैसा बोले छोकरा (जो घर में बोलें डोकरा, सो बाहर बोले छोकरा). घर के बड़े बूढ़े जैसी बोली बोलते हैं वैसी ही बोली बच्चे सीख जाते हैं. (डोकरा – बूढ़ा आदमी)
जैसा ब्याह वैसा नेग. जैसा अवसर वैसा ही ईनाम.
जैसा मन हराम में वैसा हरि में होए, चला जाए बैकुंठ को रोक सके न कोए. जितना मन खुराफात में लगता है उतना अगर ईश्वर की भक्ति में लगाएं तो मोक्ष मिल जाएगा.
जैसा माल वैसा मोल. जैसा माल होगा वैसा ही उसका मूल्य मिलेगा.
जैसा मुँह वैसा थप्पड़ (जैसा मुंह वैसी चपेट). गलती की सजा भी व्यक्ति का मुँह देख कर दी जाती है.
जैसा मुँह, वैसा तिलक. व्यक्ति की हैसियत के अनुसार उसका सम्मान होता है.
जैसा सांचा वैसा ढांचा. जैसा सांचा होगा चीज वैसी ही बनेगी. जैसा साधन, वैसा उत्पादन.
जैसा साजन वैसा भोजन. अतिथि की योग्यता के अनुसार ही उसका सम्मान होता है.
जैसा सूत वैसा फेंटा, जैसा बाप वैसा बेटा. जिस गुणवत्ता का कच्चा माल होगा, उसी के अनुरूप उत्पाद होगा.
जैसा सोचे, वैसा पावे. जो बड़ी सोच रखते हैं वे बड़ी उपलब्धियाँ पा जाते हैं, जो छोटी सोच रखते हैं उनकी उपलब्धियाँ भी सीमित होती हैं.
जैसा सोता वैसी धारा. जैसा स्रोत होगा वैसी ही जल की धारा होगी. कोई संगठन या परिवार जिन विचारों से प्रेरित होगा वैसे ही कार्य करेगा. घृणा और हिंसा फैलाने वाले देशों में आतंकवादी ही पैदा होंगे.
जैसी कमाई वैसी समाई. समाई – खर्च. कमाई जितनी हो खर्च भी उतना ही करना चाहिए.
जैसी करनी वैसी भरनी. जैसे कर्म करोगे वैसे ही फल भुगतने पड़ेंगे. कुछ लोग इस के आगे बोलते हैं – जैसी करनी वैसी भरनी, न माने तो कर के देख.
जैसी खान वैसा ही हीरा, ऐसी बहन का ऐसा ही वीरा. हीरों की कुछ खानें उच्च कोटि के हीरों के लिए प्रसिद्ध हैं, अर्थात उच्च कोटि की खान से निकला हीरा भी उच्च कोटि का होगा. जैसे योग्य माता पिता वैसा ही योग्य पुत्र, जैसी योग्य बहन, वैसा ही योग्य भाई.
जैसी गंगा नहाए, तैसी सिद्धि पाए. जैसी पूजा वैसा फल.
जैसी छिनरी आप छिनार, वैसा जाने सब संसार. जो स्त्री दुश्चरित्र होती है वह सब को दुश्चरित्र समझती है.
जैसी जाकी चोट पिराय, वैसे हरदी मोल बिकाय. जिसकी जैसी आवश्यकता होती है उसी के हिसाब से वस्तु का मूल्य बढ़ता है. किसी ने पूछा कि हल्दी का क्या भाव है? तो दुकानदार ने कहा- जैसी जिसके चोट लगी हो.
जैसी जाकी पांयलगी, वैसा आसीर्वाद. कोई श्रद्धा से झुककर प्रणाम और चरण स्पर्श करता है तो कोई केवल पाँव छूने का दिखावा करता है. उसी के अनुसार आशीर्वाद भी मिलता है. पांयलगी – पैर छूना.
जैसी जाकी बुद्धि है, तैसी कहै बनाय, ताको बुरा न मानिए, लेन कहाँ सो जाय. यदि कोई मूर्खतापूर्ण बात करता है तो उसका बुरा मत मानिए. जिस के पास जैसी बुद्धि है वह वैसी ही बात कर सकता है. रूपान्तर – जामें जित्ती बुद्धि है उत्ती देय बताय, बाको बुरौ न मानिये, और कहाँ से लाय.
जैसी जाकी भावना तैसी ताकी सिद्धि. जिसकी जैसी भावना होती है उसको वैसी ही सिद्धि मिलती है. दुष्ट प्रकृति के लोग नीच शक्तियाँ सिद्ध करते हैं, उत्तम प्रकृति के लोग परोपकारी भावनाओं को सिद्ध करते हैं. राक्षस लोग तपस्या करते थे तो भगवान से शक्तियाँ और दिव्यास्त्र मांगते थे, ऋषि मुनि तपस्या करते थे तो लोक कल्याण के साधन मांगते थे.
जैसी जात वैसी बात. आदमी अपनी जात के अनुसार ही बात करता है. इस बात को जातिवाद (जन्म के अनुसार जो जाति है) से जोड़ कर नहीं देखना चाहिए. यह सच है कि जो व्यक्ति जैसे माहौल में पैदा हुआ और पला बढ़ा है वह अधिकतर अपने उसी परिवेश के अनुरूप ही बात करता है.
जैसी झूठी बधाई, वैसी कड़वी मिठाई. आपने किसी को झूठी बधाई दी. बदले में उसने आप को जो मिठाई खिलाई वह आपको कड़वी लगी तो शिकायत किस बात की.
जैसी तेरी तिल चावली, वैसे मेरे गीत. विवाह या संतान जन्म पर जो स्त्रियाँ गीत गाती है उन्हें तिल चावल भेंट में दिए जाते हैं. यदि गाने वालियों को घटिया तिल चावल मिला तो वे बेकार के गीत गायेंगी.
जैसी देखी गाँव की रीती वैसी उठाईं अपनी भीती. जैसी गाँव की रीति देखें वैसी अपनी दीवार बनाएँ. माहौल को देखते हुए काम करना चाहिए. रूपान्तर – जैसी देखे गाँव की रीत, वैसी करिए लोगों से प्रीत.
जैसी देवी तैसे पंडा. जैसे नेता वैसे चमचे, जैसा हाकिम वैसा नौकर. एक से लोगों का मिल जाना.
जैसी देवी सीतला वैसा वाहन खर. शीतला माता को खतरनाक देवी माना गया है क्योंकि उन के प्रकोप से चेचक निकलती है. जैसी देवी हैं वैसा ही उनका वाहन है गधा. हाकिम और मातहत दोनों ही अजीबोगारीब हों तब.
जैसी धूप वैसी छतरी. जैसी परिस्थिति हो वैसा ही प्रबंध करना चाहिए.
जैसी नाच कूद, वैसी वार फेर. जैसा नाचोगे वैसी न्यौछावर मिलेगी. वारना – न्यौछावर करना.
जैसी नीयत, वैसी बरकत. जैसी जिसकी मनोवृत्ति हो उसी हिसाब से उसकी उन्नति या पतन होता है.
जैसी पड़े मुसीबत, वैसी सहे शरीर. जैसी परेशानी आती है शरीर वैसा ही अपने को ढालता है.
जैसी बंदगी, वैसा ईनाम. बंदगी शब्द के अर्थ में पूजा, सलाम और गुलामी का मिश्रण है. जितनी लगन और सच्चाई से बंदगी की जाएगी उतना ही अच्छा इनाम मिलेगा.
जैसी बहे बयार, पीठ तब तैसी कीजे. जैसा माहौल हो उसी के अनुसार व्यवहार कीजिए.
जैसी भाई की प्रीत, वैसे बहन के गीत. भाई के यहाँ कोई शुभ कार्य होता है तो बहनें बड़े चाव से गीत गाती हैं. यदि भाई की प्रीत में खोट होगा तो बहनों के गीत भी फीके होंगे.
जैसी मति, तैसी गति. जैसी व्यक्ति की मति (सोच) होती है उसको वैसी ही गति (परिणति) प्राप्त होती है.
जैसी माई वैसी धिया, जैसी काकड़ वैसी बिया. (भोजपुरी कहावत) धिया – बेटी, बिया – बीज, काकड़ – ककड़ी. जैसी माँ वैसी ही बेटी, जैसी ककड़ी वैसा बीज.
जैसी माई, वैसी जाई. जाई माने बेटी. जैसी माँ वैसी बेटी.
जैसी रूह वैसे फ़रिश्ते. व्यक्ति ने जैसे कर्म किए हों उसे वैसा ही फल मिलेगा. दुष्ट आत्माओं को लेने के लिए दुष्ट फरिश्ते आएँगे और नेक आत्माओं को लेने अच्छे फरिश्ते आएँगे.
जैसी संगत बैठिये, तैसो ही गुण होत (जैसी संगत, वैसी रंगत). व्यक्ति वैसे ही गुण सीखता है जैसी उसकी संगत होती है. व्यक्ति जैसे लोगों के साथ रहता है वैसे ही उस के आचार विचार हो जाते हैं.
जैसी होत होतव्यता, तैसी उपजे बुद्धि, होनहार हिरदै बसे, बिसर जाए सब सुद्धि. जैसी होनहार होती है वैसी ही आदमी की बुद्धि हो जाती है. जब कुछ अनिष्ट होने वाला होता है तो आदमी सारी समझदारी भूल जाता है.
जैसे उदई वैसे भान, ना इनके चुनई ना उनके कान. दो मूर्ख एक सा व्यवहार करते हैं.
जैसे उदई वैसेहि खान, न उनके चुटिया, न उनके ईमान. जो लोग अपने धर्म में आस्था न रखते हों उनके लिए. ऊदई कोई हिन्दू हैं जो चुटिया नहीं रखते और खान कोई मुसलमान हैं जो अपने धर्म पर ईमान नहीं रखते.
जैसे उधौ वैसे माधौ. जब दो मूर्ख एक से हों तो.
जैसे कंता घर रहे वैसे रहे विदेस, जैसे ओढ़ी कामली वैसे ओढ़ा खेस. पत्नी को प्रेम न करने वाला पति या निकम्मा पति घर में रहे या विदेश में पत्नी को कोई फर्क नहीं पड़ता. कम्बल ओढ़ो या सूती चादर क्या फर्क पड़ता है. राजस्थान में इस का दूसरा प्रारूप भी प्रचलित है – कदे न हँस कर कुच गह्यो, कदे न रिस कर केस, जैसे कंता घर रह्यो, वैसे ही परदेस (पति ने कभी हँस कर शरीर को हाथ नहीं लगाया और न ही क्रोध में बाल पकड़े, जैसे परदेस में रहा वैसे ही घर में रहा).
जैसे कुम्हड़ा छप्पर पर, वैसे कुम्हड़ा नीचे. स्थान या पद बदलने के बाद भी यदि व्यक्ति की हैसियत वही रहे तो मजाक में ऐसे कहा जाता है.
जैसे को तैसा मिला ज्यों बामन को नाई, इनने आशीर्वाद कही उन आरसी काढ़ दिखाई. ब्राह्मण किसी को आशीर्वाद देते हैं तो बदले में दक्षिणा की आशा रखते हैं. नाई जब किसी को आरसी में मुँह दिखाता है तो बदले में इनाम की आशा करता है. ब्राह्मण देवता ने दक्षिणा की जुगाड़ में नाई को आशीर्वाद दिया तो नाई ने बदले में आरसी निकाल कर दिखा दी. दो कुटिल व्यक्ति एक दूसरे को कुटिलता दिखाएं तो यह कहावत कही जाएगी.
जैसे को तैसा मिला, मिली खीर में खाँड़, तू जात की बेड़नी, मैं जात का भाँड़. एक दूसरे को धोखा देना. ग्रामीण वैश्या ने ब्राह्मण के धोखे में भांड को भोजन करा दिया. देखिए सन्दर्भ कथा 98.
जैसे को तैसा मिले सुन रे राजा भील, लोहे को चूहा खा गया लड़का ले गई चील. कुटिल व्यक्ति को कुटिलता से ही ठीक किया जा सकता है. सन्दर्भ कथा – जैसे को तैसा मिले सुन रे राजा भील, लोहे को चूहा खा गया लड़का ले गई चील. एक व्यक्ति ने अपने किसी मित्र से लोहे के बर्तन उधार लिए. जब लौटाने का वक्त आया तो वह यह कह कर मुकर गया कि बर्तनों को चूहा खा गया. उधार देने वाला समझ गया कि मित्र के मन में खोट आ गया है, पर वह उस समय कुछ नहीं बोला.
कुछ दिन बाद उस ने इसी मित्र के बेटे को अपने घर बुलाया और छिपा लिया. बहुत देर तक जब लड़का घर नहीं पहुँचा तो मित्र उसे ढूँढता हुआ आया. इस व्यक्ति ने कहा कि लड़के को चील ले गई है. मित्र बिगड़ कर बोला कि यह कैसे संभव है. तुम झूठ बोल रहे हो. झगड़ा बढ़ा तो बात राजा के पास पहुँची. उस समय राजा भील नाम का राजा राज्य करता था. राजा के पास पहुँच कर उस व्यक्ति ने कहा कि महाराज और कुछ नहीं जैसे को तैसा मिल गया है, जब लोहे को चूहा खा सकता है तो लड़के को चील क्यों नहीं ले जा सकती
जैसे को तैसा मिले, मिले कुल्हाड़ी बेंट, कानी को काना मिले, लिए आँख में टेंट. जिस की जैसी प्रवृत्ति होती है उस को वैसा ही साथ मिल जाता है.
जैसे को तैसा. कोई व्यक्ति किसी के साथ धूर्तता करे और दूसरा व्यक्ति उसी की भाषा में उसका जवाब दे तो.
जैसे गनू ओझा पान के खवइया, वैसा उन का चमड़े का पानदान. घटिया लोगों का सामान घटिया ही होता है.
जैसे गुरू तैसे चेला. जहाँ गुरु और चेला एक से बढ़ कर एक हों.
जैसे जल, वैसे मच्छ. जितनी बड़ी नदी, तालाब या समुद्र होगा उतनी ही बड़ी मछलियाँ और मगरमच्छ उसमे होंगे. बड़े शहर में बड़े व्यापारी और बड़े अपराधी होंगे.
जैसे तेरी बाँसुरी, वैसे मेरे गीत. जैसे साधन तुम मुझे उपलब्ध कराओगे वैसा ही काम मैं कर के दूंगा.
जैसे नब्बे तैसे सौ. जहाँ अधिक खर्च हो रहा है वहाँ थोड़ा और सही.
जैसे नाग नाथ वैसे साँप नाथ. दो कुटिल लोग एक से मिल जाएँ तो.
जैसे नीमनाथ, वैसे बकायननाथ. बकायन – नीम की जाति का एक पेड़, महानिम्ब. यह भी नीम जैसा कड़वा होता है. कोई दो व्यक्ति एक से बढ़ कर एक बदमिजाज हों तो.
जैसे फूल गुलाब का सूखे तऊं बसाय, तैसी प्रीत सुशील की दिन पर दिन अधिकाय. बसाय – बास (सुगंध) देता है. जैसे गुलाब का फूल सूख कर भी सुगंध देता है, वैसे ही सुशील व्यक्ति की प्रीति समय के साथ बढ़ती है.
जैसे बाई के कोदों, तैसी हींग हमार. जैसा घटिया कोदों अनाज तुमने दिया वैसी घटिया हींग हम ने दी.
जैसे बाबा आप लबार, वैसा उनका कुल परिवार. लबार – झूठ बोलने वाला, गप्पें हांकने वाला. घर का बड़ा बूढ़ा झूठ बोलने वाला हो तो सारा घर वैसा ही हो जाता है.
जैसे मुर्दे पर सौ मन मिट्टी वैसे हजार मन. मुर्दे के ऊपर सौ मन मिटटी हो या हजार मन, मुर्दे को क्या फर्क पड़ता है. काम में पिसने वाली घर की महिला या काम के बोझ से दबे कर्मचारी पर जब और काम लादा जाता है तो वह ऐसे बोलता है. क़र्ज़ के बोझ तले दबा आदमी और अधिक क़र्ज़ लेने के लिए भी ऐसे बोलता है.
जैसे लहंगा ऊपर सारी, वैसे दुसरी मेहर प्यारी. लहंगा खोने के बाद साड़ी पहनने को मिल जाए तो ज्यादा अच्छी लगती है, उसी प्रकार से एक पत्नी की मृत्यु हो जाने पर दूसरी पत्नी अधिक प्रिय लगती है.
जैसे साजन आए, तैसे बिछौना बिछाए (जैसे साजन आए, तैसी सेज बिछाए). जैसा मेहमान वैसा सत्कार.
जैसो पावणों, वैसो ही जीमावणों. (राजस्थानी कहावत) जैसा मेहमान वैसा ही सत्कार. पावणा – पाहुना, अतिथि, जिमावणा – जीमाना, खाना खिलाना.
जो अति आतप व्याकुल होई, तरु छाया सुख जाने सोई : आतप – सूर्य का ताप. जब व्यक्ति तेज धूप से व्याकुल होता है तभी उसे पेड़ की छाया का महत्व समझ में आता है. व्यक्ति जितनी बड़ी विपत्ति का सामना करता है उतना ही अधिक वह विपत्ति हटने पर आनंद पाता है.
जो अनमनी सासरे जावे, वो क्या निहाल करे. जो लड़की ससुराल जाने में आनाकानी करे वह ससुराल जा कर कैसे निभेगी. कार्य के आरम्भ में ही जो कोई अनिच्छा जाहिर करे वह उस काम को पूरा कैसे करेगा.
जो अपने काम न आए, सो चूल्हे भाड़ में जाए. कोई कितना भी बड़ा या महत्वपूर्ण व्यक्ति क्यों न हो, हमारे काम न आए तो उस का बड़प्पन हमारे किस काम का. इस से मिलती जुलती कहावत है – बारह गाँव का चौधरी, अस्सी गाँव का राय, हमारे काम न आए तो ऐसी तैसी में जाए.
जो अपने पर विश्वास नहीं करता, वह किसी पर विश्वास नहीं कर सकता. अर्थ स्पष्ट है.
जो आ के न जाय वो बुढ़ापा, जो जा के न आय वो जवानी. अर्थ स्पष्ट है.
जो आया है वह खाएगा जो कमायेगा वह खिलाएगा. इस संसार में जिसने जन्म लिया है उसको भोजन मिलना चाहिए. यदि किसी के पास खाने को नहीं है तो सम्पन्न लोगों का कर्तव्य है कि उस की सहायता करें.
जो इच्छा करिहौं मन माहिं, हरि कृपा कछु दुर्लभ नाहिं. आप मन में कोई भी इच्छा कर लीजिए, ईश्वर की कृपा हो तो कुछ भी दुर्लभ नहीं है.
जो ऊँट की पीठ पे न लदे वो उसके गले बंधे. यदि कोई सामान ऊँट की पीठ पर नहीं लद पाता है तो उसे ऊँट के गले में बाँध कर लटका देते हैं. काम को हर हाल में गरीब आदमी पर ही लादा जाता है.
जो एक ऊँगली दिखाए, उसको दो दिखाओ. ईंट का जवाब पत्थर से.
जो कबीर काशी में मरिहें, रामहिं कौन निहोरा. काशी में मरने से स्वर्ग जाने की गारंटी हो तो भगवान का इस में क्या एहसान.
जो करता है वह कहता नहीं फिरता, जो कहता फिरता है वह करता नहीं. अर्थ स्पष्ट है.
जो करे धरम, उसके फूटे करम, जो करता है पाप कमाई, वो खाता है दूध मलाई. कलियुग की सच्चाई यही है.
जो करे फाटका, घर का रहे न घाट का. (फाटका – सट्टा) सट्टेबाजी करने वाले कि सारी कमाई डूब जाती है.
जो करे बिरानी आस, वो जीते जी मर जाय. दूसरों पर आश्रित होना, जीते जी मरने के समान है.
जो करे शरम उसके फूटे करम, जो करता है बेशर्माई वो खाता है दूध मलाई. यह कहावत आधी भी बोली जाती है और पूरी भी. संकोच करने वाला सदा नुकसान में रहता है.
जो करे होड़, सो मरे सिर फोड़. अपनी क्षमताओं और सीमाओं को जाने बिना दूसरों से होड़ करने वाला व्यक्ति हमेशा पछताता है.
जो कहुं माघे बरसे जल, सब नाजों में होगा फल. माघ के महीने में जल बरसता है तो सभी अनाजों की पैदावार अच्छी होती है. माघ की वर्षा को आम भाषा में महोटे कहते हैं.
जो काम हिकमत से निकलता है वो हुकूमत से नहीं निकलता. युक्ति द्वारा जो काम किया जा सकता है वह तानाशाही और जोर जबरदस्ती से नहीं किया जा सकता.
जो किसी से न हारे वो अपने से हारे. अपने से – स्वयं से, अपने से – अपनों से. 1. गलत काम कर के आगे बढ़ने वाला अंततः अपनी अंतरात्मा को जवाब नहीं दे पाता. 2. जो किसी से नहीं हारता है उसे किसी अपने (सगे) से हारना पड़ता है. एक से एक वीर पुरुष अपनों के द्वारा ही धोखे से मरवाए गए.
जो कोऊ जिये सो खेले होरी (जीयेगा तो खेलेगा फाग). जीवन का आनंद लेने के लिए जीवित रहना जरूरी है.
जो कोऊ हमें देख के जरे बरे, ओकी आंखन में राई नोन परे. जलने वाले को लानत भेजने के लिए ऐसा बोला जाता है. कहीं कहीं महिलाएं राई और नमक से बच्चों की नजर उतारते समय इस प्रकार बोलती हैं.
जो कोसत बैरी मरे, मन चितवे धन होय, जल में घी निकसन लगे तो रूखा खाय न कोय. शत्रु अगर कोसने से मर जाए, इच्छा करने से धन मिल जाए, पानी मथने से घी निकल आए तो सभी सुखी हो जाएंगे.
जो खड़े मूते उसे छींटों का क्या डर. जान बूझ कर गलत काम करने वाले को उसके दुष्परिणामों और लोकनिंदा की चिंता नहीं होती.
जो खाते में लजाए, वो जाते में पछताए. दावत में जो शर्म के कारण ठीक से नहीं खाता,वह बाद में पछताता है.
जो खेत में मोती फरे, तबहूँ बनिया न खेती करे. बनिए बहुत चालाक होते हैं, वे खेती जैसा मेहनत और खतरे से भरा काम कभी नहीं करते.
जो गंवार पिंगल पढ़े, तीन वस्तु से हीन, बोली, चाली, बैठकी, लीन्ह विधाता छीन. गंवार यदि पढ़ लिख भी जाए तो भी उसकी बोली और चाल ढाल संभ्रान्त लोगों जैसी नहीं हो सकती. पिंगल का अर्थ है छंद शास्त्र.
जो गरजते हैं वो बरसते नहीं. (गरजें सो बरसें नहीं) (गरजता बादल बरसता नहीं, बरसता है सो गरजता नहीं). बादलों के विषय में कहा जाता है कि गरजने वाले बादल बरसते नहीं हैं. कहावत के रूप में इस का अर्थ यह है कि जो बहुत बढ़ चढ़ कर बोलते हैं वे कुछ कर के नहीं दिखाते.
जो गुड़ देने से मर जाए, उसे जहर क्यों दिया जाए (रस के मरे को विष क्यों देय). जो मीठी बातों में फंस कर आपका काम कर दे उस के साथ रुखाई क्यों की जाए. रूपान्तर – सुख दिखाय दुख दीजिये, खल सों लरिये नाहि, जो गुर दीने ही मरे, क्यों विष दीजे ताहि.
जो घर चलावे सो घर का बैरी, जो गॉव चलावे सो गाँव का बैरी (घर का अगुआ घर का बैरी, गाँव का अगुआ गाँव का बैरी). घर का मुखिया सभी का हित चाहता है लेकिन सब उससे नाराज रहते हैं. प्रत्येक व्यक्ति को लगता है कि उसी के साथ अन्याय हो रहा है. यही बात गाँव और देश के मुखिया पर भी लागू होती है.
जो चढ़ेगा सो गिरेगा. इसका अर्थ दो तरह से है – 1. जो उन्नति करता है वह कभी न कभी गिरेगा भी. 2. जो चढ़ने का साहस करेगा वही तो गिरेगा. जो चढ़ेगा ही नहीं वह गिरेगा क्या.
जो चोरी करता है, मोरी देख के रखता है. चोर चोरी करने से पहले अपने निकलने की जगह देख कर रखता है.
जो छावे सो सुख पावे. छावे से अर्थ यहाँ छप्पर छाने से है. जो समय रहते अपने सुरक्षित आवास की व्यवस्था कर लेता है वही सुख पाता है.
जो जाके मन में बसे सो सपने दर्शाए (जो मन में बसे सो सुपने दसे). आपके मन में जो विचार होते हैं वही आपको सपने में दिखते हैं.
जो जाने जाड़े को भेद, सो ढांके कंबल को छेद. जिसको मालूम है कि कम्बल में छेद हो तो उससे जाड़ा दूर नहीं हो सकता वह समय रहते कम्बल के छेद को ढक देता है.
जो जीता वही सिकंदर. जब दो धुरंधरों में लड़ाई होती है तो जो जीतता है वही श्रेष्ठ कहलाता है चाहे वह अपनी वीरता से जीता हो, अधर्म और कुटिलता से जीता हो या धुप्पल में जीत गया हो.
जो जैसा करता है, वो वैसा भरता है (जैसा करोगे वैसा भरोगे). अर्थ स्पष्ट है.
जो जैसी करनी करे सो तैसो फल पाए, बेटी पहुँची राजमहल साधु बंदरा खाए. धूर्त साधु ने राजकुमारी को हथियाने का षड्यंत्र किया जिस की उसी उचित सजा मिली. सन्दर्भ कथा – एक बार एक साधु किसी राजा के महल में गया. राजा ने उसका बड़ा सत्कार किया. राजा की सुंदर बेटी को देख कर साधु के मन में पाप आ गया. बहुत सोच कर उसने एक चाल चली. उसने राजा से कहा कि ये कन्या बहुत अशुभ है, ये सारे कुल के नाश का कारण बनेगी. राजा घबरा गया और साधु से इस से बचने का उपाय पूछने लगा. साधु ने कहा, इसे लकड़ी के बक्से में रख कर नदी में बहा दो. राजा उस की बातों में आ गया और उस ने ऐसा ही किया. साधु की योजना यह थी कि वहाँ से काफी दूर नदी किनारे बने अपने आश्रम में जल्दी जल्दी पहुँच जाए और नदी में बह कर आने वाले बक्से को नदी से निकाल कर राजकुमारी को अपने कब्जे में ले ले. तेज चाल से चल कर वह अपने आश्रम में पहुँच गया और बक्से के आने का इंतज़ार करने लगा.
उधर बीच जंगल में शिकार पर निकले एक राजकुमार ने नदी में बहते बक्से को देखा तो कौतूहल वश उसे बाहर निकाल कर खोला. बक्से में से राजकुमारी ने बाहर निकल कर उसे साधु की चालबाजी की सारी कहानी बताई. राजकुमार ने एक कटखना बंदर पकड़ा और उसे बक्से में बंद कर के बक्सा नदी में बहा दिया. साधु तो बेसब्री से बक्से का इंतज़ार कर ही रहा था. जैसे ही बक्सा बहता हुआ उसके आश्रम के पास पहुँचा उसने झट उसे निकाल कर खोला. खिसियाये हुए बंदर ने उसे काट काट कर लहुलुहान कर दिया. दुष्टता करने वाले को उसकी करनी का फल मिले तो यह कहावत बोली जाती है
जो जो धरें धरम पथ पाँव, उनको लगे कलेजे घाव. जो धर्म के कार्य करना चाहते हैं वे बहुत कष्ट उठाते हैं.
जो ज्यादा करीब सो ज्यादा रकीब. जो आपके अधिक निकट है वही अधिक स्पर्धा और ईर्ष्या करता है. सगे भाइयों में भी अक्सर एक दूसरे के प्रति बहुत ईर्ष्या देखी जाती है. (रकीब – प्रतिद्वंद्वी).
जो ज्यादा काम करता है उसी पर और लादा जाता है. जो अधिक काम करता है और ठीक काम करता है, सब उसी से काम करवाना चाहते हैं. एक प्रकार से यह भलमनसाहत का नुकसान है.
जो टट्टू जीते संग्राम, क्यों खरचें तुर्की के दाम. टट्टू और खच्चर सामान ढोने वाले सस्ते जानवर होते हैं जबकि तुर्की उन्नत किस्म का लड़ाई में काम आने वाला घोड़ा होता है जो कि बहुत महंगा होता है. कहावत का अर्थ है कि यदि सस्ती और कामचलाऊ चीज़ से काम चल जाए तो महंगी चीज़ क्यों खरीदी जाएगी.
जो डरता है उसे और डराया जाता है, जो चिढ़ता है उसे और चिढ़ाया जाता है. अर्थ स्पष्ट है.
जो तिल हद से ज्यादा हुआ सो मस्सा हुआ. अति हर चीज़ की बुरी होती है. तिल चेहरे की सुन्दरता बढ़ाता है और मस्सा बुरा लगता है.
जो तीन पाव से गया वह तीन लोक से गया. जिसने कभी किसी भूखे को भरपेट (तीन पाव) भोजन नहीं कराया, उस का जन्म व्यर्थ है. उसका लोक परलोक सब गया.
जो तुम करन फैसला चाहो, दोउ जने गम खाओ. गम खाना – कष्ट सहना. दो लोगों में विवाद हो और फैसला कराना चाह रहे हों, तो दोनों को थोड़ा थोड़ा दबना पड़ता है.
जो तुम्हें कह गया, वह मुझे भी कह गया. जिसने तुम्हें सद्बुद्धि दी उसी ने मुझे भी दी. एक बुढ़िया और घुड़सवार की कहानी. सन्दर्भ कथा – एक राह चलती बुढ़िया ने किसी घुड़सवार से अपनी पोटली ले चलने के लिए कहा. घुड़सवार ने यह कहकर इनकार कर दिया कि घोड़े के सवार और बुढ़िया माई का क्या साथ. कुछ आगे चलकर सवार ने सोचा कि अच्छा होता यदि मैं उस बुढ़िया की पोटली ले लेता, उसमें जो कुछ है उसे आसानी से हथिया लेता. वह लौट पड़ा और बुढ़िया के पास पहुँचकर कहने लगा – ला माई पोटली, तुझे कष्ट हो रहा होगा. मैं घोड़े की पीठ पर लाद लेता हूँ.
इधर बुढ़िया के दिल में भी यह सदबुद्धि जागृत हो गई थी कि अच्छा हुआ जो मैं ने अपनी पोटली घुड़सवार को न दी, कहीं वह लेकर चम्पत हो जाता तो मैं क्या करती. किसी अनजान का विश्वास ही क्या. बुढ़िया ने उत्तर दिया – जो तुम्हें कह गया, वह मुझे भी कह गया.
जो तेजी से जले वो जल्दी बुझे. जो वस्तु जल्दी आग पकड़ती है वह जल्दी बुझ भी जाती है. जो लोग जल्दी क्रोध में आ जाते हैं वे जल्दी ठंडे भी हो जाते हैं. जो जल्दी उत्तेजित होते हैं वे जल्दी स्खलित भी होते हैं.
जो तोकु कांटा बुवे, ताहि बोय तू फूल, (तोकू फूल के फूल है, बाकू है त्रिशूल). जो तुम्हारे साथ बुराई करे उसके साथ भी भलाई करो. आप भलाई कर के खुश रहोगे, वह बुराई कर के मन में परेशान रहेगा.
जो दम गुजरे सो गनीमत. संसार में रहते हुए जितना समय आसानी से निकल जाए उतना ही गनीमत समझो.
जो दिया खाया सोई अपना. जो दूसरों को दिया अथवा स्वयं खाया वही सार्थक, जो जोड़ कर रखा वह बेकार.
जो दूसरों के लिए कुआं खोदते हैं उनके लिए पहले ही खाई खुद जाती है. (खाई खने जो और को, बाको कूप तैयार) जो दूसरों को हानि पहुंचाने के लिए षड्यंत्र रचते हैं वे स्वयं भी किसी न किसी प्रकार से उसी षड्यंत्र (या किसी और परेशानी) का शिकार हो जाते हैं.
जो दे उसका भी भला, जो न दे उसका भी भला. भीख मांगने वाले ऐसा बोल कर सब को खुश करते हैं.
जो देखे चौथी का चंद, बिन चोरी के लागे फंद. मान्यता है कि गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा को देखने से चोरी का झूठा कलंक लगता है. इस दिन चंद्रमा देखने से कृष्ण पर स्यमंतक मणि की चोरी का इल्जाम लगा था.
जो देगा वह गाएगा, जो लेगा वह छिपाएगा. जो किसी को कुछ देता है वह सब लोगों से कहना चाहता है जिससे सब उस की बड़ाई करें. जो लेने वाला है वह छिपाना चाहता है क्योंकि उसे इसमें अपना अपमान लगता है.
जो धन दीखे जात, आधा दीजे बाँट. यदि धन जाता दिखे तो उसमें से आधा लुटा कर बाकी को बचाने का प्रयास करना चाहिए.
जो धरती पे आया, उसे धरती ने ही खाया. जो भी इस मिटटी से पैदा हुआ है उसे इस मिटटी में ही मिलना है.
जो धार पर चले, सो फूलों पर सोए. यहाँ धार पर चलने का अर्थ है तलवार की धार पर चलना. जो कठिन परिश्रम करता है और खतरों से खेलता है वही उसके बाद सुख भोगता है.
जो धावे सो पावे, जो सोवे वो खोवे. जो कुछ पाने के लिए दौड़ भाग करता है वही कुछ पाता है, जो सोता रहता है (आलस करता है) उसे कुछ नहीं मिलता.
जो न करे माँस आहारा, चौंसठ जन्म गिद्ध अवतारा. मांस भक्षी लोग कहते हैं कि जो लोग इस जन्म में मांस नहीं खाएंगे उन्हें दंड स्वरूप गिद्ध की योनी में चौंसठ बार जन्म लेना पड़ेगा.
जो न भावे आप, सो देय बहू के बाप. जो वस्तु स्वयं अच्छी न लगे उसे दूसरे के मत्थे मढ़ना.
जो न मानें बड़न की सीख, ले खपरिया मांगें भीख. जो बड़ों की सीख नहीं मानते, उन्हें खप्पर ले कर भीख मांगनी पड़ती है.
जो न मिले तिरलोक से, सो मिले संतोख से. जो तीन लोकों में न मिले वह संतोष से प्राप्त हो सकता है.
जो नंगी नाचै, सोई पूतै खाय. सच्चा व्यक्ति बेशर्म नहीं हो सकता, दुष्ट ही हो सकता है. सन्दर्भ कथा – किसी मनुष्य के दो स्त्रियां थीं. बड़ी की गोद में छ: महीने का बालक था. जिसे देख कर छोटी बहुत कुढ़ती थी. एक दिन मौका पाकर छोटी ने उस बच्चे को गला दबा कर मार डाला और कहना शुरू कर दिया कि बड़ी ने मुझे बदनाम करने के लिए यह काम किया है. बड़ी ने लोगों के सामने रोकर कहा,कोई मां होकर अपने लड़के को कैसे मार डालेगी. अंत में मामला गांव के मुखिया के पास पहुँचा.
उसने दोनों स्त्रियों को बुला कर कहा, अच्छी बात है मैं अभी इस बात का फैसला करता हूँ कि लड़के को किसने मारा. तुम दो में से जो स्त्री हम लोगों के सामने बिलकुल नंगी होकर नाचे उसी को हम निर्दोष समझ लेंगे. सुन कर बड़ी ने कहा, मेरा लड़का भी गया और ऊपर से अपनी लाज शरम भी खोऊँ. ऐसा मैं नहीं कर सकती भले ही आप मुझे अपराधी समझ लें. छोटी ने कहा, मैंने जब कोई बुरा काम किया ही नहीं तो मुझे नंगी होकर नाचने में क्या डर, और वह कपड़े उतारने के लिए तैयार हो गयी. यह देख कर मुखिया ने तुरंत कहा, बस बस फैसला हो गया. यही असली अपराधिनी है
जो नर वचनों से फिरे वह पत देत गंवाए. जो अपना वचन नहीं निभाते उन का कोई सम्मान नहीं करता.
जो नवे सो भारी (जो पल्ला भारी सो झुके). तराजू का जो पलड़ा झुक जाता है वही भारी माना जाता है. आपसी मतभेद में जो व्यक्ति अधिक वजनदार (गंभीर) है उसी को झुकना पड़ता है.
जो नहिं सीखा बोलना, सब सीखा बेकार. संसार में वही व्यक्ति दूसरे लोगों को प्रभावित कर सकता है जिसे बोलने की कला आती हो.
जो निकले सो भाग धनी के. खेती करने वाला मजदूर कहता है कि जो उपज होगी वह मालिक के भाग्य से होगी. हमें तो फ़कत बंधी हुई मजदूरी मिलनी है.
जो निर्दोष को देवे दोष, उसकी होय गति न मोक्ष. जो स्वयं बचने के लिए निर्दोष व्यक्ति को फंसाता है वह अत्यधिक पाप का भागी बनता है.
जो पंडित विवाह कराता है वही पिंडदान भी. यह संसार का चक्र है, जिसका जन्म हुआ उसको जीवन के विभिन्न संस्कारों से गुजरना होता है और अंत में उसकी मृत्यु भी होती है. बेचारे पंडित को यर सभी काम कराने होते हैं.
जो पकड़ा गया सो ही चोर. चोरी तो बहुत से लोग करते हैं, जो पकड जाए वही चोर कहलाता है.
जो पजामा सिलाता है, वो मूतने का रास्ता रख लेता है. समझदार आदमी कोई भी काम करता है तो उसमें होनी वाली संभावित परेशानियों का हल पहले ही सोच कर रखता है.
जो पहले कीजे जतन सो पाछे फल दाए, आग लगे खोदे कुआँ कैसे आग बुझाए. आम तौर पर इसका बाद वाला हिस्सा बोला जाता है. यदि पहले से प्रयास किया जाए तभी समय पर कार्य सिद्ध होता है. आग लगने पर कुआं खोदना आरम्भ करोगे तो आग कैसे बुझेगी. इंग्लिश में कहावत है – Dig a well before you are thirsty.
जो पहले मारे सो मीर. लड़ाई में जो पहले मारता है वह मनोवैज्ञानिक बढ़त हासिल कर लेता है.
जो पुरवा पुरबाई पावे, झूरी नदिया नाव चलावे. पूर्वा नक्षत्र में पुरबाई हवा चले तो सूखी नदी में भी नाव चलने लगेगी, अर्थात बहुत वर्षा होगी. (घाघ की कहावतें)
जो पूत दरबारी भए, देव पितर सब से गए. मुगलों के दरबार में नौकरी करने वालों के लिए कहा गया है कि वे सब संस्कार हीन हो जाते थे.
जो प्रतिपाले सोई नरेसू. जो प्रजा का पालन करे वही राजा कहलाने योग्य है.
जो फल चक्खा नहीं वही मीठा. जो चीज़ अपने को उपलब्ध नहीं है उसको हम बहुत अच्छा समझते हैं.
जो बन आवे सहज में, वाही में चित देय. जो काम आसानी से सिद्ध हो उसी पर ध्यान देना चाहिए.
जो बल से न हो वह कल से हो जावे. कुछ काम ऐसे होते हैं जो कितना भी बल प्रयोग करो नहीं होते, लेकिन युक्ति से या मशीन से फौरन हो जाते हैं.
जो बात से नहीं मरा, वह लात से क्या मरेगा (जो नजर से न मरे वो मार से का मरे). जो सज्जन व्यक्ति है वह केवल अपना दोष बताए जाने से ही लज्जित हो जाता है. जो निर्लज्ज है उसको आप कितना भी बुरा भला कह लो, डांट फटकार लो या लात भी मार लो उस पर कोई असर नहीं होता.
जो बामन की जीभ पर सो बामन की पोथी में. जिस बात से पंडित को लाभ होता हो वही वह पोथी में देख कर बताता है.
जो बिगड़ी बनावे सो बनिया. बनिए जुगाड़ करने में बहुत तेज होते हैं. कोई सामान खराब हो रहा हो उस से भी पैसा कमा लेते हैं.
जो बिजया की निन्दा करे, उसे भखे कालका माई, सिद्धों मरदों पियो प्याला, कूद जाओ नदिया नाला. भंगेड़ी लोग भांग की प्रशंसा में इस प्रकार की बातें करते हैं.
जो बिल्ली पहने दस्ताने, तो चूहे पकड़े कौन. कहावत के द्वारा यह बताया गया है कि घर गृहस्थी या व्यापार के काम नजाकत से नहीं किए जा सकते.
जो बीत गई सो बात गई. जो बात बीत गई उसे भूल जाना चाहिए. (जो चला गया उसे भूल जा).
जो बैरी हों बहुत से और तू होवे एक, मीठा बन कर निकस जा यही जतन है नेक. अगर बहुत से शत्रुओं के बीच फंस जाओ तो मीठी बातें कर के उन्हें खुश करो और वहाँ से सुरक्षित निकल लो.
जो बोले सो कुंडी खोले. घर के भीतर कई लोग बैठे हों और कोई बाहर से दरवाज़ा खटखटाए, तो जो बोलेगा वही कुण्डी खोलेगा. कोई काम करने के लिए कई लोग उपलब्ध हों तो जो आगे बढ़ कर अपनी राय देगा उससे ही काम करने को कहा जाएगा. रूपान्तर – जो बोले सो बछड़ा खोले.
जो बोले सो घी को जाय. किसी काम में मूर्खतापूर्ण हठ की पराकाष्ठ. मजेदार सन्दर्भ कथा – एक बार चार मूर्खों ने मिलकर रसोई बनाने का इरादा किया. अब इस बात को लेकर उन चारों में झगड़ा होने लगा कि घी कौन लाए. अंत में उन्होंने तय किया कि जो पहले बोलेगा, उसी को घी लाने जाना पड़ेगा. वे चारों मौन साधे बैठे थे तभी एक पहरेदार वहां आ गया. उसने पूछा, तुम लोग कौन हो, यहां क्या कर रहे हो आदि. अपने प्रश्नों का कोई उत्तर न पाकर वह उन्हें पकड़ कर कोतवाली ले गया. वहां कोतवाल के पूछने पर भी जब उन लोगों ने कोई जवाब नहीं दिया, तो उन्हें कोड़े लगाने का हुक्म मिला. उनमें से एक कोड़ा लगते ही जोर से रो उठा. तब बाकी तीनों बोल उठे, बस तुम्हीं घी लेने जाओ.
जो भादों में बरखा होए, काल पछोतर जाकर रोए. भादों में वर्षा हो तो अकाल पिछवाड़े जा कर रोता है अर्थात खूब फसल होती है.
जो भावे न आप को, सो देऊ बहू के बाप को. जो चीज अपने काम की नहीं है वह किसी को उपहार में दे दो. निम्न कोटि की सोच.
जो भौंकते हैं वो काटते नहीं. जो अधिक शोर मचाते हैं वे उतना नुकसान नहीं पहुँचाते.
जो मना करे उसे ही मनुहार कर के खिलाया जाता है. अर्थ स्पष्ट है.
जो माँ से ज्यादा चाहे सो डायन. माँ से अधिक अपनी संतान को कोई नहीं चाह सकता. यदि कोई स्त्री उससे अधिक प्रेम दिखा रही है तो अवश्य ही उस के मन में कपट है.
जो मालिक को काटे वो बटाऊ को क्या बख्शे. मालिक को काटने वाला कुत्ता राहगीर का क्या लिहाज करेगा. अपने स्वामी से विश्वासघात करने वाला सेवक किसी अन्य को क्यों छोड़ेगा.
जो मीठा खाएगा वह कडुआ भी खाएगा. जो किसी चीज़ का लाभ उठाएगा उसे उस से संबंधित कुछ न कुछ कष्ट भी सहने पड़ेंगे.
जो मुसीबतें ढूँढ़ता रहता है, उसे वे मिल भी जाती हैं. जो जान बूझ कर बेबकूफियों के काम करता है वह अंततः परेशानी में जरूर पड़ता है.
जो मैं ऐसा जानती प्रीत किये दुख होए, नगर ढिंढोरा पीटती प्रीत न करियो कोए. प्रेम कर के दुख उठाने वाली स्त्री का कथन.
जो मोय जोते तोड़ मरोड़, बाकी कुठिया देहों फोड़. खेत कहता है, जो किसान मुझे अच्छी तरह तोड़-मरोड़ कर जोतता है, उसको मैं इतनी फसल देता हूँ कि अनाज रखने वाली कुठिया ही टूट जाए.
जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग, (चंदन विष व्यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग). व्यवहार में इसकी केवल पहली पंक्ति ही बोली जाती है. जो लोग उच्च और दृढ़ चरित्र वाले होते हैं उन पर बुरी संगत का कोई कुप्रभाव नहीं पड़ता. चन्दन के पेड़ पर सांप लिपटे रहते हैं लेकिन उस में विष नहीं फैलता.
जो रहीम ओछो बढ़ै, तौ अति ही इतराय, प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ों टेढ़ो जाय. रहीम के नीति के दोहे एक से बढ़ कर एक हैं. अधिकतर दोहों में पहली पंक्ति में कोई नीति का उपदेश होता है और दूसरी पंक्ति में उदाहरण दे कर उसे सिद्ध किया जाता है. शतरंज के खेल में जो पैदल मोहरा (प्यादा) होता है वह एक बार में केवल एक घर चल सकता है वह भी सीधा. वही पैदल आखिरी खाने में पहुंच जाए तो वज़ीर (फरजी) बन जाता है और फिर वह आड़ा तिरछा कई घर चल सकता है. कहावत में कहा गया है कि तुच्छ मानसिकता वाले व्यक्ति को यदि बड़ा पद मिल जाए तो वह बहुत इतराने लगता है.
जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय, बारे उजियारी करे बढ़े अंधेरो होय. इस दोहे में बारे के दो अर्थ है – बालपन और जलना. इसी प्रकार बढ़े के दो अर्थ हैं – बड़ा होना और बुझना (दीपक को बुझाने के लिए बाती को बढ़ा देते हैं). कुपुत्र दीपक की भाँति होता है. दीपक जलता है तो प्रकाश देता है बुझता है तो अँधेरा हो जाता है. कुपुत्र बालपन में उल्लास रूपी प्रकाश देता है और बड़े होने पर घर में निराशा रूपी अँधेरा देता है.
जो राजपूत की तलवार से न मरे वह कायस्थ की कलम से मर जाए. एक समय था जब कोर्ट कचहरी का सारा काम कायस्थों के कब्जे में था. वे जिसको चाहे कानूनी दांवपेंचों में फंसा देते थे.
जो राह बताए सो आगे चले. जो किसी परेशानी का हल सुझाए उसे ही आगे कर दिया जाता है.
जो रुचे सो पचे. जो अच्छा लगता है वही पचता है और वही शरीर को लगता है.
जो रोज मरे, उसे कहाँ तक रोए. जिस के दुखों का कोई अंत न हो उस की कितनी सहायता की जा सकती है.
जो वर देख ताप मोहे आवे, सोई वर मोहे ब्याहने आवे. कहावत का शाब्दिक अर्थ है कि जिस वर को देख कर मुझे बुखार चढ़ जाता है (कष्ट होता है या गुस्सा आता है) वही मुझसे शादी करने आ रहा है. अर्थात जिस काम से मैं हर हाल में बचना चाहती हूँ वही मुझे करना पड़ रहा है.
जो विधि लिखी ललाट पर, मेट सके न कोय. विधि ने जो भाग्य में लिख दिया है उसे कोई मिटा नहीं सकता.
जो विषया संतन तजी, मूढ़ ताहि लपटाय, ज्यों नर डारत वमन कर, स्वान स्वाद सों खाय. संत लोग जिन विषय भोग की वस्तुओं को त्याग देते हैं, मूर्ख सांसारिक लोग उन्हीं में लिपटे रहते हैं. जैसे मनुष्य जो भोजन उल्टी कर देता है कुत्ता उसे स्वाद से खाता है.
जो सबको हुइये, सो हमरो हुइये. जो सबका होगा सो हमारा होगा. सबके साथ हम परिणाम भुगतने को तैयार हैं.
जो सिर उठा कर चलेगा सो ठोकर खाएगा. यहाँ सर उठा कर चलने से अर्थ है अपने चाल चलन में अहंकार प्रदर्शित करना. अर्थ है कि जो अहंकार दिखाएगा उसे नीचा देखना पड़ेगा. चलते समय नीचे देख कर चलना चाहिए अर्थात विनम्र व्यवहार करना चाहिए.
जो सुख चाहो देह का चीजें त्यागो चार, चोरी, चुगली, जामनी और पराई नार. जामनी – किसी की जमानत देना. चैन से रहना चाहते हो तो इन चार चीजों को त्याग दो.
जो सुख छज्जू के चौबारे में, सो न बलख बुखारे में. जो सुख अपने घर और गाँव के लोगों के बीच में मिलता है वह किसी सम्पन्न विदेश में नहीं मिल सकता.
जो सेर से मरे उसे पसेरी क्या मारना. जब छोटे साधन से काम चल सकता हो तो बड़े की क्या जरूरत है.
जो सोवेगा सो खोवेगा, जो जागेगा सो पावेगा. चाहे पढ़ाई हो या व्यापार, जो आलस करेगा और सोएगा उसे कुछ प्राप्त नहीं होगा. जो जागेगा, उद्योग करेगा वही कुछ पाएगा.
जो हतिया पूँछ डुलावे, तौ पैसा पैली बिकावे. हस्त नक्षत्र के जाते समय वर्षा होने पर रबी की फसल को इतना लाभ होता है कि पैसा डोलचों में भर कर मिलता है. पैली – अनाज नापने का नपना.
जो हमरे, सो तुमरे, काहे दांत निपोरे. कोई जब बिना बात किसी को नीचा दिखाना चाहता है तो उस से कहा जाता है कि किसलिये हंस रहे हो. जो मेरे पास है, वही तुम्हारे पास भी है, फिर क्यों मज़ाक बनाते हो.
जो हल जोतै खेती वाकी, और नहीं तो जाकी ताकी. खेती का लाभ उसी को हो सकता है जो स्वयं खेती करे. दूसरों पर खेती छोड़ने से दूसरे लोग ही उसका लाभ उठाते हैं.
जो हांडी में होगा सो रकाबी में आएगा. कुछ लोग बहुत उतावले होते हैं. कहीं भी कोई काम हो रहा हो वे बार बार पूछते हैं कि क्या हो रहा है, आगे क्या होने वाला है आदि. उनको समझाने के लिए यह कहावत कही जाती है. रकाबी – तश्तरी, थाली.
जोंक की कौन माई कौन बाप. खून चूसने वाले लोग किसी को नहीं छोड़ते व कोई रिश्ता नहीं मानते.
जोंक को जोंक नहीं लगती (जोंक से जोंक न सटे). समाज के परजीवी लोग केवल मेहनत कर के कमाने वालों का ही खून चूसते हैं, दूसरे परजीवियों का नहीं.
जोग में भोग की आस. ऐसे बनावटी साधुओं पर व्यंग्य जो सुख भोगने की लालसा रखते हैं.
जोगी का बेटा खेलेगा तो साँप से. संपेरे को जोगी भी बोलते हैं. बच्चा अपने घर परिवेश में जो देखता है वही करता है. संपेरे का बेटा सांप से ही खेलेगा. आतंकवादियों के बच्चे बंदूकों से ही खेलते हैं.
जोगी किसके पाहुने, राजा किसके मीत. पाहुना माने अतिथि. सन्यासी किसी के घर टिकते नहीं हैं, वे तो आज यहाँ तो कल वहाँ. ऐसे ही राजा और हाकिम किसी के सगे नहीं होते, जब आपका काम पड़े तो वे काम नहीं आते. इंग्लिश में कहावत है – Kings are always ungrateful.
जोगी किसके मीत और पातुर किसकी नार. पातुर – वैश्या. जोगी किसी के मित्र नहीं होते और वैश्या किसी की पत्नी नहीं होती.
जोगी किसके मीत कलंदर किसके साथी, (जोगी काके मीत, कलन्दर किसके भाई). हिन्दुओं में साधुओं को जोगी कहा जाता है और मुसलमानों में फकीरों और सूफियों को कलंदर कहा जाता है. कहावत का अर्थ है कि ये किसी के मित्र नहीं होते.
जोगी की प्रीत क्या. जोगी से दिल लगाना ठीक नहीं (क्योंकि वह आज यहाँ तो कल और कहीं).
जोगी को बैल बला. जोगी को बैल दान में दे दिया जाए तो वह उस के लिए मुसीबत ही होगा.
जोगी जुगत जानी नहीं, कपड़े रंगे तो क्या हुआ. केवल भगवा कपड़े पहनने से कोई जोगी नहीं हो जाता, उसके लिए योग करना और ज्ञान होना आवश्यक है.
जोगी जुगत से जुग जुग जिए. योगी अपने संयमित जीवन और योग द्वारा लम्बे समय तक जीते हैं.
जोगी जोग को मरे, भोगी भोग को मरे. अर्थ स्पष्ट है.
जोगी जोगी लड़े खप्परों की हानि, (जोगियों की लड़ाई में खप्पर फूटते हैं). खप्पर – मिट्टी का बना भिक्षा मांगने का पात्र, खोपड़ी को भी खप्पर कहते हैं. कहावत का अर्थ है कि यदि किसी संगठन या परिवार के सदस्य आपस में लड़ते हैं तो घर और संगठन की हानि होती है.
जोगी था सो उठ गया आसन रही भभूत. भभूत – जो राख जोगी लोग अपने शरीर पर लगाते हैं (संभवतः विभूति का अपभ्रंश है). किसी व्यक्ति के चले जाने के बाद उसके अवशेष और स्मृतियाँ रह जाते हैं.
जोगी बढ़े, तूमड़ी बोवे (जोगी मंत्री, बुवाए तुम्बी). कोई छोटा आदमी यदि बड़े पद पर पहुँच जाए तो भी उस की सोच नहीं बदलती. जोगी को यदि बड़ी जायदाद मिल जाए तो वह उसमें तूमड़ी (तुम्बी) की खेती करेगा.
जोगी मारे छार हाथ. छार – राख, भभूत. जोगी को मारने से क्या मिलेगा, बस राख ही हाथ आएगी.
जोड़ जोड़ मर जाएंगे, माल जमाई खाएंगे. जो लोग दिन रात पैसा कमाने में लगे रहते हैं उन को समझाया गया है कि तुम तो पैसा जोड़ जोड़ कर मर जाओगे, ये सारा माल तुम्हारे उत्तराधिकारी खाएंगे.
जोड़ना जोड़े, भोगना भोगे. जिस को पैसा जोड़ने की लिप्सा हो वह पैसा जोड़ने में लगा रहता है, जिसे भोग की लालसा हो वह भोग में लगा रहता है.
जोड़ने में बनिया, पहनने में पठान, खाने में बामन, झेलने में किसान. बनिया पैसा जोड़ने में, पठान कपड़े पहनने में, ब्राहण खाने में और किसान मुसीबतों को झेलने में सबसे माहिर होते हैं.
जोड़ी टूटे गोटी पिटे. लूडो और चौपड़ के खेल में जब एक खाने में दो गोटियाँ होती हैं तो उन्हें कोई नहीं पीट सकता. जोड़ी में से एक गोटी चलनी पड़ जाए तो अकेली गोटी को पीटा जा सकता है. संगठन में शक्ति है.
जोतेगा हल पावेगा फल. जो खेती में मेहनत करेगा उसी को लाभ मिलेगा.
जोर बादशाह और दाँव वजीर. कुश्ती लड़ने वालों का कथन. ताकत (बादशाह) भी जरुरी है और दाँव (वजीर) भी.
जोरू का मरना और जूती का टूटना बराबर है. कुछ लोगों की सोच इतनी निकृष्ट होती है कि वे पत्नी को जूती के बराबर समझते हैं. वे समझते हैं कि जैसे जूती टूटने पर नई जूती खरीद ली जाती है वैसे ही पत्नी के मरने पर दूसरी पत्नी लाई जा सकती है.
जोरू खसम की लड़ाई, दूध की मलाई. पति पत्नी की लड़ाई मलाई की भांति मजेदार और अस्थायी होती है.
जोरू चिकनी मियाँ मजूर. जहाँ पत्नी बहुत बन ठन कर रहती हो और पति बेचारा काम में पिसता रहता हो.
जोरू टटोले गठरी, माँ टटोले अंतड़ी. पत्नी इस बात की चिंता करती है कि आदमी क्या कमा कर लाया है जबकि माँ इस बात की चिंता करती है कि बेटे ने कुछ खाया है कि नहीं.
जोरू न जाता, अल्लाह मियां से नाता. उन लोगों का मज़ाक उड़ाया गया है जिनके बीबी और औलाद न होने के कारण वे अल्लाह से नाता जोड़ लेते है. तुलसी दास जी ने भी ऐसे लोगों के लिए कहा है – नारी मुई भई सम्पति नासी, मूढ़ मुड़ाए भए सन्यासी.
जोवन था तब रूप था, ग्राहक था सब कोय, जोवन रतन गवांय के, बात न पूछे कोय. जब तक रूप और यौवन था तब तक सब कोई पूछते थे, यौवन बीत जाने के बाद अब कोई नहीं पूछता.
जौ की रोटी गबर गबर, सास से पतोहू जबर. बच्चों का मजाक.
जौ लों भूत गंगाजी गये, तौ लों मरघटा जुत गये. जब तक भूत प्रेत गंगा किनारे वाले श्मशान में गए, तब तक किसी ने मरघट को जोत कर सपाट कर दिया. जब तक एक काम पूरा करते तब तक दूसरा चौपट हो गया.
जौक में शौक दस्तूरी में लड़का. शौक का शौक किया लड़का इनाम में मिल गया. जब अपने मनोरंजन के लिए किए जा रहे किसी काम में अनचाहा लाभ ऊपर से मिल जाए.
ज्यादा खाय जल्द मरि जाय, सुखी रहे जो थोड़ा खाय. जो ज्यादा खाता है वह बीमार हो कर जल्दी मर जाता है, जो कम खाता है वह सुखी रहता है. आज की दुनिया में मोटापा सब से बड़ी बीमारी है.
ज्यादा जोगी मठ उजाड़. (बहुते जोगी मठ उजाड़). अधिक जोगी इकट्ठे हो जाएं तो मठ उजड़ जाता है. ज्यादा हिस्सेदार हों तो व्यापार चौपट हो जाता है. अधिक राय देने वाले हों तो काम चौपट हो जाता है.
ज्यादा दाइयां पेट फाड़ें. प्रसव कराने के लिए पहले दाइयां ही बुलाई जाती थीं. एक से ज्यादा दाइयां हों तो उससे लाभ होने की संभावना कम और खतरा अधिक होता है.
ज्यादा नौकर, घर उजाड़. ज्यादा नौकर हों तो एक दूसरे से हिर्स करते हैं और एक दूसरे पर काम टालते हैं. घर की अर्थव्यवस्था भी बिगड़ती है.
ज्यादा पढ़े तो घर सों गए, थोड़ा पढ़े सो हर सों गए. हर – हल. ज्यादा पढ़ लिख कर बच्चे बाहर नौकरी करने चले जाते हैं याने घर से जाते हैं और थोड़ा बहुत पढ़ जाएँ तो हल चलाने में शर्म महसूस करने लगते हैं.
ज्यादा बहुएं बटाऊओं की खातिर थोड़े ही हैं. अगर हमारे घर में अधिक बहुएं हैं तो राहगीरों की सेवा करने के लिए थोड़े ही हैं. चंदा मांगने वाले लोग धनी लोगों से कहते हैं कि आप के पास क्या कमी है. कोई व्यक्ति सम्पन्न है तो इसका अर्थ यह नहीं है कि वह अपना धन आलतू फ़ालतू अनजान लोगों में बांट दे.
ज्यादा मरोड़ने से लोहा भी टूट जाता है. धीर वीर पुरुष भी अत्यधिक अत्याचार या वेदना से टूट जाते हैं.
ज्यादा मेहनत से गधा हो जाता है. इतना अधिक परिश्रम नहीं करना चाहिए कि आदमी गधे से भी गया गुजरा हो जाए.
ज्यादा रंभाने वाली गाय दूध कम देती है. जो लोग शोर अधिक मचाते है वे काम कम करते हैं.
ज्यादा लज्जा करे छिनाल. चरित्रहीन स्त्री अधिक लज्जावान होने का दिखावा करती है.
ज्यादा लाड़ से बालक बिगड़े. बच्चों को लाड़ प्यार करना चाहिए लेकिन इतना अधिक नहीं कि वे बिगड़ जाएँ.
ज्यादा सेवा ओछा फल. किसी की भी सेवा एक सीमा तक ही करना चाहिए. फ़ालतू की चमचागिरी वाली सेवा का फल अच्छा नहीं होता.
ज्यादा हाथ अच्छे, ज्यादा मुँह नहीं अच्छे. काम में हाथ बताने वाले जितने अधिक हों उतना अच्छा, खाने वाले और बातें करने वाले जितने अधिक हों उतना बुरा. (मुँह से अर्थ खाने से भी है और बातें बनाने से भी).
ज्यादा होशियार ज्यादा ठगा जाता है. जो अपने को अधिक बुद्धिमान समझता है और किसी पर विश्वास नहीं करता वह अधिक ठगा जाता है.
ज्यों ज्यों कंचन तापिए, त्यों त्यों निर्मल होए. सोने को जितना तपाएं उतना शुद्ध हो जाता है. श्रेष्ठ लोग कठिनाइयों से जूझ कर और महान हो जाते हैं.
ज्यों ज्यों बड़ा हो त्यों त्यों पत्थर पड़ें. यहाँ पत्थर पड़ने से अर्थ अक्ल पर पत्थर पड़ने से है. ऐसा व्यक्ति जो बड़ा होने के साथ और अधिक मूर्खतापूर्ण व्यवहार करे.
ज्यों ज्यों बाय बहे पुरवाई, त्यों त्यों घायल अति दुख पाई. पुरबाई हवा चलने से चोटों का दर्द बढ़ जाता है.
ज्यों ज्यों मुर्गी मोटी होए, त्यों त्यों दुम सिकुड़े. जैसे जैसे व्यक्ति के पास पैसा बढ़ता है, वह कंजूस हो जाता है.
ज्यों तिल मांही तेल है, ज्यों चकमक में आग, तेरा सांई तुझमें, जाग सके तो जाग. तिल में तेल होता है पर ऊपर से नहीं दिखता, चकमक में से आग पैदा होती है पर चकमक के अंदर दिखाई नहीं देती. इसी प्रकार ईश्वर मनुष्य के मन में होता है पर वह उसे देख ही नहीं पाता.
ज्यों नकटे को आरसी देख होत है क्रोध. आरसी का अर्थ है छोटा दर्पण. नकटे को कोई शीशा दिखाए तो उसे गुस्सा आता है. किसी को उसकी कमी का एहसास कराओ तो उसे गुस्सा आता है.
ज्यों-ज्यों भीजे कामरी त्यों-त्यों भारी होय. 1.कम्बल जैसे जैसे भीगता है वैसे वैसे भारी होता जाता है. इसी प्रकार अधिक हठ या बहस करने से नाराजगी बढ़ती जाती है. 2. मनुष्य संसार में जितना ही लिप्त होकर रहता है उतना ही पाप का बोझ बढ़ता जाता है. इसकी पहली पंक्ति है – अति हठ मत कर हठ बढे, बात न करिहै कोय.
ज्वर, याचक और पाहुना, करजा मांगनहार, लंघन तीन कराए दो, फेर न आवें द्वार. लंघन कराना – भूखा रखना. पहले के लोग मानते थे कि भूखा रहने से ही बुखार उतरता है. कहावत में यह सुझाव दिया गया है कि कर्ज़ मांगने वाले, भीख मांगने वाले और मेहमान को तीन-चार बार टरका दो तो वह फिर नहीं आएगा.
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झगड़ा झूठा कब्जा सच्चा. जायदाद पर जिसका कब्ज़ा है वही एक प्रकार से उसका मालिक है. एक तो इसलिए कि वह उसे काम में ले रहा है यानि उसका फायदा उठा रहा है, दूसरे इस लिए कि उससे खाली कराने के लिए दूसरे पक्षकार को बीसियों साल तक मुकदमा लड़ना पड़ेगा.
झगड़ा न द्वन्द, हुक्का पानी काहे बंद. जब तुम से कोई झगड़ा नहीं है तो हमारा सामाजिक वहिष्कार क्यों.
झगड़ा भतार से, रूठीं संसार से. ऐसी स्त्री का मजाक उड़ाने के लिए जो पति से झगड़ा होने पर सब से रूठ कर मुँह फुलाए बैठी है.
झगड़े की जड़ सूपनखा. दुष्ट स्त्रियाँ ज्यादातर झगड़े कराती हैं. राम रावण युद्ध भी शूर्पनखा के कारण हुआ था.
झगड़े की तीन जड़, जोरू जमीन और जर. तीन चीजें ऐसी हैं जिनके कारण सबसे अधिक सबसे अधिक झगड़े, मुकदमे और कत्ल आदि होते हैं – स्त्री, जमीन जायदाद और रुपया पैसा.
झटपट की घानी, आधा तेल आधा पानी. घानी – कोल्हू. जल्दीबाज़ी में कोल्हू चलाओगे तो तेल में आधा पानी मिल जाएगा. जल्दबाज़ी का काम बुरा होता है.
झटपट खेती, झटपट न्याव, झटपट कर कन्या को ब्याव. खेती तभी सफल होती है जब समय से की जाए, न्याय तभी न्याय माना जाता है जब समय से मिल जाए, इसलिए ये दिनों कार्य झटपट करना चाहिए. कन्या के विवाह में भी बिलकुल विलम्ब नहीं करना चाइए.
झरबेरी अरु काँस में खेत करौ मत कोय, बैला दोऊ बेच के करो नौकरी सोय. झरबेरी और काँस जहाँ हों वहाँ खेती नहीं करनी चाहिए. इससे अच्छा तो बैल बेच कर नौकरी कर लो.
झरबेरी के जंगल में बिल्ली शेर. झरबेरी के जंगल में बिल्ली भी शेर के समान खतरनाक हो सकती है. कहावत का अर्थ है कि परिस्थियाँ अनुकूल हों तो छोटा अपराधी भी खतरनाक हो सकता है.
झांसी गले की फांसी, दतिया गले का हार, ललितपुर तब तक न छोडिए, जब तक मिले उधार. पुराने शहरों के विषय में बहुत से लोक कथन हैं, उन्हीं में से एक.
झाड़ को जेरी, गंवार को लठा, कोदों की रोटी को भैंस का मठा. जेरी (जेली) – झाड़ियाँ आदि हटाने का औजार. झाड़ से निबटने को जेली की जरूरत होती है, मूर्ख व्यक्ति से निबटने को लट्ठ और कोदों की रोटी पचाने के लिए भैंस के दूध का मट्ठा जरूरी होता है.
झाडूं फूंकूँ चंगा करूं, दैव ले जाए तो मैं क्या करूं. झाड़ फूंक करने वाला (या अन्य इलाज करने वाला) व्यक्ति कह रहा है कि मैं तो झाड़ फूंक कर ठीक कर देता हूँ, पर ईश्वर के घर से बुलावा आ जाए तो मैं क्या करूं.
झार बिछाई कामरी, रहे निमाने सोई. किसी के लिए कंबल झाड़ के बिछाया पर वह फर्श पर सो गया. जिसके लिए इंतजाम किया उसे ही पसंद नहीं आया.
झिलंगा खटिया, वातल देह, तिरिया लम्पट, हाटै गेह, भाई बिगर के मुद्दई मिलंत, घाघ कहै ई विपति कै अंत. वातल – वायु रोग से ग्रस्त. घाघ कवि ने पांच सब से बड़ी विपत्तियाँ यूँ गिनाई हैं – ढीली खाट, वायु रोग से ग्रस्त शरीर, दुश्चरित्र पत्नी, बाज़ार में घर होना और भाई का बिगड़ कर मुकदमा करने वाले दुश्मन से मिल जाना.
झुक के रहे तो सुख से रहे. विनम्रता से रहने वाला व्यक्ति सुखी रहता है.
झुके पेड़ पर बकरी भी चढ़ जाती है. आदमी की विनम्रता का लाभ कमजोर लोग भी उठा लेते हैं.
झूठ कहना और झूठा खाना बराबर है. अर्थ स्पष्ट है.
झूठ कहे सो लड्डू खाए, सांच कहे सो मारा जाए. जो झूठ बोलता है और तरह तरह के प्रपंच करता है उसे माल खाने को मिलता है, जो सच बोलता है वह नुकसान उठाता है.
झूठ की टहनी कभी फलती नहीं, नाव कागज़ की सदा चलती नहीं. झूठ बहुत समय तक नहीं टिकता.
झूठ की दौड़ छत तक होती है. झूठ अधिक नहीं चल सकता
झूठ की नाव मंझधार में डूबती है. झूठ बहुत दिन तक नहीं चलता.
झूठ के पाँव कहाँ. झूठ बहुत दिन नहीं टिक सकता. इंग्लिश में कहावत है – A lie has no legs.
झूठ तितौंही बोलिए, ज्यों आटे में नोन. झूठ उतना ही बोलना चाहिए जितना आटे में नमक डाला जाता है.
झूठ न बोले तो अफर जाए. बहुत से लोग ऐसे होते हैं जो अगर झूठ न बोलें तो उनका पेट फूल जाता है. रूपान्तर – झूठ न बोले तौ खाई रोटी न पचे.
झूठ नौ कोस, सच सौ कोस. झूठ अधिक दूर नहीं जा सकता, सच्ची बात दूर दूर तक जाती है.
झूठ बात सच होले, जो दस आदमी बोलें. दस आदमी मिल कर कोई झूठ बात जोर जोर से बोलें तो उस के सच होने का भ्रम होता है. राजनीति में ऐसा अक्सर देखने को मिलता है.
झूठ बोलना पाप है, नदी किनारे सांप है. बच्चों की कहावत. झूठ बोलने से मना करने का बाल सुलभ तरीका.
झूठ बोलने के लिए अच्छी याददाश्त चाहिए. झूठ बोलने वाले को याद रखना पड़ता है कि किस से क्या कहा.
झूठ बोलने में सरफ़ा क्या. झूठ बोलने में कुछ खर्च नहीं होता, इसलिए झूठ बोलने में क्या हर्ज़ है.
झूठ बोलने वाले को पहले मौत आती थी, अब बुखार भी नहीं आता. पहले के लोग कहते थे कि झूठ बोलने वाले को मौत आ जाती है. अब तो लोग इतने बेशर्म हैं कि झूठ बोलने वाले को बुखार तक नहीं आता.
झूठ बोलो पर झूठ में उलझो नहीं. कभी मजबूरी में थोडा झूठ बोलना पड़े तो उतना ही झूठ बोलना चाहिए जितना आवश्यक हो, अधिक झूठ बोल कर फंसने वाला काम नहीं करना चाहिए.
झूठइ लेना झूठइ देना, झूठइ भोजन झूठ चबेना. 1. अत्यधिक झूठे व्यक्ति के लिए (जैसे आजकल के कुछ नेता). 2. संसार के मिथ्या होने का ज्ञान. यहाँ लेन देन, खाना पीना सब मिथ्या है.
झूठा भले ही खा लो पर झूठी बात कभी मत करो. किसी का झूठा खाना बहुत बुरी बात मानी जाती है पर झूठ बोलना उससे भी बुरा है.
झूठा मरे शहर पाक होए. झूठे व्यक्ति के मरने पर शहर शुद्ध हो जाता है.
झूठे की कोई पत नहीं, मूरख का कोई मत नहीं. झूठ बोलने वाले व्यक्ति की कोई इज्ज़त नहीं होती, इसी प्रकार मूर्ख व्यक्ति के मत का कोई सम्मान नहीं होता.
झूठे की क्या दोस्ती, लंगड़े का क्या साथ, बहरे से क्या बोलना, गूंगे से क्या बात. जो आदमी झूठा हो उससे दोस्ती क्या करना (वह कभी दोस्ती नहीं निभाएगा), लंगड़े के साथ चलना कैसा, बहरे को कुछ सुनाने से क्या फायदा और गूंगे से बात क्या करना.
झूठे की क्या पहचान, वह बात बात पर कसम खाता है. जो आदमी बात बात पर कसम खाता है, यकीन मानिए वह सबसे बड़ा झूठा होता है.
झूठे के आगे सच्चा रो मरे. सच्चे व्यक्ति के लिए झूठ बोलने वाले से पार पाना बहुत कठिन है.
झूठे के सींग पूँछ थोड़े ही होते हैं. कौन आदमी सच्चा है और कौन झूठा यह जानना बहुत कठिन होता है.
झूठे को घर तक पहुँचाना चाहिए. झूठे से तब तक तर्क-वितर्क करना चाहिए जब तक वह सच न कह दे.
झूठे को झूठा मिले, दूना बढ़े सनेह, झूठे को साँचा मिले तब ही टूटे नेह. जब झूठे आदमी को दूसरा झूठा आदमी मिलता है तो दूना प्रेम बढ़ता है. पर जब झूठे को सच्चा आदमी मिलता है तो प्रेम टूट जाता है.
झूठे घर को घर कहें, सच्चे घर को गोर. गोर माने कब्र. आदमी जिस घर में कुछ दिन के लिए रहने को आया है उसे अपना घर समझने लगता है. उसका सच्चा घर तो वह है जिसे वह कब्र कहता है और जहाँ उसे सैकड़ों साल रहना है. मुस्लिम व इसाई मानते हैं कि कयामत आने तक उन्हें सैकड़ों साल कब्र में रहना है.
झूठे जग पतियाए, सच्चा मारा जाए. झूठे व्यक्ति का लोग आसानी से विश्वास कर लेते हैं और सच्चे व्यक्ति को बहुत कष्ट उठाने पड़ते हैं.
झूठे ब्याव, साँचे न्याव. विवाह झूठ बोल कर होता है जबकि न्याय में सत्य से काम लेना पड़ता है.
झूठे मीठे वचन कहि ऋण उधार ले जाय, लेत परम सुख ऊपजै लैके दियो न जाय. उधार लेने वाले झूठ बोल कर उधार ले लेते हैं. लेते समय तो वे बड़े प्रसन्न होते हैं पर ले कर देना नहीं चाहते.
झूठे सुख को सुख कहै, मानत है मन मोद, जगत चबेना काल का, कछु मुख में कछु गोद. जिस व्यक्ति के पास धन दौलत, जायदाद पत्नी बच्चे इत्यादि सांसारिक सुख हैं वह मन में बड़ा प्रसन्न होता है, पर वह यह भूल जाता है कि ये सब क्षण भंगुर हैं.
झूठों में झूठा मिले हांजी हांजी होए, झूठों में सच्चा मिले तुरत लड़ाई होए. झूठे धोखेबाज और चापलूस लोगों में आपस में खूब बनती है लेकिन सच्चा आदमी उनके बीच क्षण भर भी नहीं रह सकता.
झोपड़ी में रहें, महलों के ख्वाब देखें. जो अपनी वास्तविकता भूल कर बड़े बड़े सपने देखता है.
ट
टंटा विष की बेल है. जब तक राजी खुशी काम चले तब तक झगड़ा नहीं करना चाहिए. झगड़े से आपसी सम्बन्ध खराब होते हैं. झगड़ा बढ़े तो जान माल का नुकसान, मारपीट मुकदमेदारी की संभावना होती है. इस की पूरी कहावत इस प्रकार है – टंटा मत कर जब तलक बिन टंटे हो काम, टंटा बिस की बेल है, या का मत ले नाम.
टका धरो, पैसा उठाओ. टका – दो पैसे का सिक्का. टका रखो और पैसा उठाओ. किसी को मूर्ख बनाने का प्रयास.
टका धर्म: टका कर्म: टका देवो महेश्वर:, टका कर्ता टका हर्ता टका मोक्ष विधायका. टके का अर्थ यहाँ रपये पैसे से है. पैसे की ही सारी महिमा है. कुछ लोग इसके आगे बोलते हैं – टका सर्वत्र पूज्यते, बिन टका टकटकायते.
टका न खरचें गाँठ को नित्त बराते जायें. मुफ्तखोरों के लिए.
टका सा मुँह ले के रह गये. चुप हो गये, कुछ कहते नहीं बना.
टका है जिसके हाथ में, वही बड़ा है जात में. जिसके पास पैसा है उसकी जाति कोई नहीं पूछता.
टका हो जिसके हाथ में, वही बड़ा है बात में. जिसके पास पैसा हो उस की बात बड़ी मानी जाती है.
टके का सब खेल है. सारा खेल पैसे का है. पैसा है तो आप सारे साधन जुटा सकते हैं.
टके की तरकारी और रूपये का तड़का. बहुत सस्ती चीज़ को बनाने में बहुत अधिक खर्च आ रहा हो तो यह कहावत कही जाती है.
टके की बुढ़िया, नौ टका मूड़ मुड़ाई. चीज़ तो बहुत सस्ती पर रखरखाव की कीमत (मेंटेनेंस कॉस्ट) बहुत अधिक.
टके की मुर्गी छै टके महसूल. माल बहुत सस्ता पर टैक्स बहुत अधिक. महसूल – टैक्स.
टके की लौंग बनियानी खाय, कहो घर रहे के जाय. बनिए की पत्नी ने टके की लौंग खा ली तो बनिया पूछता है कि इस तरह घर कैसे चलेगा.
टके के वास्ते मस्जिद ढहाना. छोटे से लाभ के लिए बहुत बड़ा अपराध करना.
टके बिना टुकुर टुकुर ताकते रहो (टके बिना टकटकी लगा के देखते रहो). जिस के पास पैसा नहीं है उसे किसी भी काम के लिए दूसरों का आसरा देखना पड़ता है.
टके भर की कमाई नहीं और पल भर की फुरसत नहीं. यह कहावत ऐसे लोगों पर व्यंग्य है जो कोई ठोस कार्य नहीं करते और अपने को बहुत व्यस्त दिखाते हैं. रूपान्तर – कुत्ते को काम न धाम पर फुरसत नाहीं.
टके वाली का बालक झुनझुना बजाएगा. पैसा देने वाले का ही काम होता है. सन्दर्भ कथा एक आदमी मेले में जा रहा था. पास पड़ोस की स्त्रियां उससे कहने लगीं कि मेरे लड़के के लिए मेले से अमुक चीज लाना, मेरे लड़के के लिए अमुक चीज लाना. लेकिन पैसा किसी ने भी नहीं दिया. तब एक स्त्री ने उसके हाथ एक टका देते हुए कहा कि मेरे लड़के के लिए एक झुनझुना ले कर आना. इस पर उस आदमी ने कहा कि अन्य स्त्रियों की फरमाइशें तो पूरी नहीं होंगी, लेकिन तुने टका दिया है, इसलिए तेरा मुन्ना अवश्य झुनझुना बजायेगा.
टटींगर काहे मोटा, लाभ गने न टोटा. आवारा आदमी मोटा इसलिए है क्योंकि उसे लाभ हानि की कोई चिंता नहीं है. टटींगर – मोटा ताजा आवारा आदमी.
टट्टर खोल निखट्टू आया. टट्टर – लोहे या बांस के जाल से बना दरवाजा. कोई निखट्टू व्यक्ति आवारागर्दी कर के घर लौटता है तो घर के लोग उपेक्षा से ऐसे बोलते हैं.
टट्टी की ओट शिकार. छिप कर बुरा काम करना. टट्टी माने सींको का बना पर्दा या चटाई.
टट्टू को कोड़ा और ताज़ी को इशारा. टट्टू बोझा धोने वाला सस्ता जानवर है और ताज़ी उन्नत किस्म का युद्ध में काम आने वाला अरबी घोड़ा. कहावत का अर्थ है कि मंदबुद्धि व अड़ियल व्यक्ति को मार कर काम कराना पड़ता है जबकि बुद्धिमान को इशारा काफी होता है.
टट्टू मारे घोड़ा काँपे (ताजी मारे तुर्की काँपे). किसी एक को सजा मिले तो दूसरों के मन में भी डर बैठ जाता है.
टहल करो माँ बाप की हो समपूरन आस, टहल करे से जो फिरे नरक उन्हीं का वास. माँ बाप की सेवा करने से सारी आशाएं पूरी होती हैं और उन का दिल दुखाने से नरक मिलता है.
टहल न टकोरी, लाओ मजूरी मोरी. काम धाम कुछ नहीं, मजदूरी मांगने में सबसे आगे.
टहलुए को टहल सोहे, बहलिए को बहल सोहे. जो जिसका काम है वह उसी को करता हुआ अच्छा लगता है.
टाँग तले हो कर निकल जाएंगे. हार मान लेंगे, तुम्हारे चाकर बन जायेंगे. रूपान्तर – टांग के नीचे से निकाल दिया. नीचा दिखा दिया, काबू में कर लिया.
टांका पाना मिल गया. समझौता हो गया, दो आदमियों में आपस का झगड़ा ख़त्म हो गया और वे फिर मित्र बन गए. टांका पाना – कपड़े का जोड़ सीवन.
टांग उठे न, चढ़ना चाहे हाथी. टांग उठती नहीं है और हाथी पर चढ़ना चाहते हैं, अपनी औकात से बहुत अधिक इच्छा रखना.
टांग लम्बी धड़ छोटा, वोही आदमी खोटा. एक लोक विश्वास है कि जिस आदमी की टांगें लम्बी और धड़ छोटा होता है वह आदमी खोटा (मक्कार) होता है.
टांटे से नाटा भला, जो तुरत दे जवाब, वह टांटा किस काम का जो बरसों करे खराब. टांटा – झगड़ा या मुकदमा करने वाला, नाटा – वायदा कर के नट जाने (मुकर जाने) वाला.
टाट का लंगोटा, नबाब से यारी. खुद इतने गरीब हैं कि टाट का लंगोटा पहने हैं पर दोस्ती बड़े बड़े लोगों से कर रखी है.
टाट के अंगिया, मूंज की तनी, देख मेरे देवरा मैं कैसी बनी. कोई फूहड़ स्त्री भद्दा श्रृंगार कर के अपनी तारीफ़ करवाना चाह रही हो तो. टाट – पटसन से बना मोटा कपड़ा जिससे बोरी बनाते हैं, मूँज – सरकंडे के रेशों से बनी पतली रस्सी जो खाट बुनने के काम आती है. आजकल फटी हुई जींस पहन कर घूमने वाले लोगों के लिए भी कहा जा सकता है.
टाट पर मूँज का बखिया. घटिया माल बनाने के लिए घटिया सामान का ही प्रयोग किया जाएगा.
टाल बता उसको न तू जिससे किया करार, चाहे हो बैरी तेरा चाहे होवे यार. यदि किसी को कोई वचन दिया है तो उसका पालन अवश्य करें, चाहे वह आपका शत्रु क्यों न हो.
टालम टोला मत करे, किये बचन भुगताय, जो नर बचनों से गिरे, वह पत देय गवाँय. जो व्यक्ति अपने वचन को नहीं निभाता वह सम्मान खो देता है.
टिकटिक समझे, आ आ समझे, कहे सुने से रहे खड़ा, कहे कबीर सुनो भई साधो, अस मानुस से बैल भला. जैसे बैल केवल टिकटिक और आ आ की भाषा समझता है वैसे ही मूर्ख मनुष्य इसी प्रकार की भाषा समझते हैं. कबीर कहते हैं कि ऐसे मनुष्य से तो बैल ही भला.
टिटहरी समझे कि आकाश उसी पे टिका है. टिटहरी पक्षी मनुष्यों की भांति जमीन पर पीठ के बल सोती है और पैर ऊपर रखती है. एक मजाक भरा लोक विश्वास है कि टिटहरी समझती है आसमान उसके पैरों पर टिका है. कोई छोटी हैसियत वाला व्यक्ति अपने को बहुत महत्वपूर्ण बता रहा हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.
टिड्डी का आना, काल की निशानी. जब टिड्डियों का कोई इलाज नहीं था तब टिड्डी दल देखते देखते पूरे के पूरे खेत खा जाते थे. उस समय टिड्डी दल को अकाल की निशानी मानते थे.
टीले ऊपर चील बोले, गली गली में पानी डोले. घाघ कवि कहते हैं कि यदि चील टीले के ऊपर बैठ कर बोले तो समझ लो बहुत वारिश होगी.
टुकड़ा डालने पर कुत्ता भी पूँछ हिलाता है. घटिया किस्म के रिश्वतखोर सरकारी मुलाजिमों पर व्यंग्य.
टुकड़े दे दे बछड़ा पाला, सींग लगे तब मारन चाला. गाय के बछड़े को टुकड़े दे कर पाला, अब उसके सींग निकल आये तो मारने चला है. आपका आश्रित कोई व्यक्ति थोड़ा सा समर्थ होने पर आपको ही हानि पहुँचाने लगे तो.
टूटते हुए आकाश को खम्भों से नहीं रोका जा सकता. बहुत बड़ी आपदा को छोटे प्रयासों से नहीं टाला जा सकता.
टूटने से झुकना बेहतर. कभी कभी परिस्थितियों को देख कर अपमान जनक समझौता भी करना पड़ता है.
टूटा औजार और खोटा बेटा भी समय पर काम आते हैं (टूटा हथियार और लूला बेटा भी समय पर काम आवे). जिस चीज़ को हम बेकार समझते हैं वह आड़े समय में काम आ सकती है, किसी की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए.
टूटी की बूटी नहीं, नहीं काल की टाल. रिश्ते टूट जाए तो फिर जुड़ नहीं सकते (इसलिए कभी किसी से सम्बन्ध तोड़ने नहीं चाहिए) और मृत्यु को कोई टाल नहीं सकता. बूटी – दवा.
टूटी की बूटी बता दो हकीम जी. अर्थ ऊपर वाली कहावत की भांति.
टूटी टांग पाँव न हाथ, कहे चलूं घोड़ों के साथ. क्षमता न होने पर भी अपने से बहुत अधिक क्षमता वान लोगों की बराबरी करना.
टूटी तान कसौरिया पे. देहाती बाजों के साज में मृदंग और इकतारे के साथ काँसे की एक कटोरी भी रहती है, जो एक छोटी लकड़ी से बजायी जाती है. यह कसावरी कहलाती है और उसे बजाने वाला कसौरिया. बेसुरा तो हुआ कोई, परन्तु सारा गुस्सा उतरा कसौरिया पर. काम तो किसी से बिगड़ा और दोष मढ़ा गया किसी दूसरे के सिर.
टूटी नाड़ बुढ़ापा आया टूटी खाट दलिद्दर छाया. गर्दन हिलने लगती है तो इसका अर्थ यह है कि बुढ़ापा आ गया है और अगर खाट टूटी हुई है तो इसका अर्थ यह है कि घर में दलिद्दर छाया हुआ है.
टूटी बांह गले पड़ी. बांह टूट जाती है तो कपड़े की पट्टी के सहारे उसे गले से लटका देते हैं. कोई असहाय सगा सम्बन्धी किसी पर आश्रित हो जाए तो यह कहावत कही जाएगी.
टूटे पीछे फिर जुड़े, गाँठ गंठीली होय. जिस प्रकार धागा टूटने के बाद जोड़ा जाए तो उसमें गाँठ पड़ जाती है, उसी प्रकार सम्बन्ध टूटने के बाद जोड़ा जाए तो उसमें भी गाँठ पड़ जाती है. रहीम ने इस को इस प्रकार कहा है – रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाए, टूटे से फिर न जुड़े, जुड़े गाँठ पड़ जाए.
टूटे सुजन मनाइए, जौ टूटे सौ बार, रहिमन फिरि फिरि पोहिए, टूटे मुक्ताहार. यदि आप की मोतियों की माला टूट जाए तो आप बड़े यत्न से उसे दुबारा पिरो लेते हैं. इसी प्रकार यदि कोई स्वजन आपसे रूठ जाए तो उसे यत्न कर के मना लीजिए.
टूटै टूटनहार तरु वायुहिं दीजत दोष. कमजोर वृक्ष अपने आप टूट जाते हैं पर वायु चलने को दोष देते हैं.
टेंट आँख में मुँह खुरदीला, कहे पिया मोरा छैल छबीला. जो स्त्री अपने कुरूप पति की बहुत शेखी बघारती हो. टेंट आँख में – भेंगापन.
टेंटी बेर काल के मीत, खाएँ किसान और गावें गीत. टेंटी और बेर जैसे फल अकाल के दिनों में ग़रीबों के काम आते हैं.
टेक उन्हीं की राखे साईं, गरब कपट नहिं जिनके माहीं. ईश्वर उन्हीं की सहायता करता है जिन के अंदर कपट और अहंकार नहीं है.
टेढ़ी उँगली से ही घी निकलता है. केवल सिधाई से काम नहीं निकलता कुछ टेढ़ा होना पड़ता है.
टेढ़ी खीर. अज्ञानता के कारण कुछ का कुछ समझ लेना. सन्दर्भ कथा – एक आदमी ने किसी अंधे को अपने घर खीर खाने की दावत दी. अंधे ने पूछा खीर कैसी होती है? वह आदमी बोला मीठी-मीठी बिल्कुल सफेद रंग की. अंधे ने पूछा सफेद रंग कैसा होता है? वह आदमी बोला बगुले जैसा. अंधे ने फिर पूछा बगुला कैसा होता है? उस आदमी ने कहा लंबी लंबी टेढ़ी गर्दन वाला. अंधे ने कहा मैं कुछ समझा नहीं कैसी लंबी लंबी टेढ़ी गर्दन? उस आदमी ने अपने एक हाथ को दूसरे हाथ में फंसा कर चुल्लू जैसा बनाया और कहा इस तरह की. अंधे ने उसके हाथ को टटोलकर देखा और बोला अरे बाप रे ऐसी होती है खीर, इतनी टेढ़ी. मैं नहीं खाऊंगा, मेरे गले में फंस जाएगी. कोई काम मुश्किल हो तो उसे टेढ़ी खीर कहा जाता है. इसको मुहावरे के रूप में भी प्रयोग करते हैं जिसका अर्थ है बहुत मुश्किल कार्य.
टेढ़ी खुरपी को टेढ़ो बेंट. 1. खुरपी जैसे खुद टेढ़ी होती है वैसा ही टेढ़ा उसमें बट लगाया जाता है टेढ़े आदमी से काम लेने के लिए टेढ़ा ही होना पड़ता है. 2. दुष्ट लोगों की मित्रता दुष्टों से ही होती है.
टेढ़े देवता को सब नमते हैं (टेढ़े से सब डरें). दुष्ट व्यक्ति को सब नमस्कार करते हैं. सूर्य और वरुण की पूजा चाहे कोई न भी करे, शनि और राहू को सब पूजते हैं.
टेढ़े पेड़ की छाया टेढ़ी. दुष्ट व्यक्ति की कृपा भी बुरी होती है.
टेढ़े फंसे को काट कर निकाला जाए. जब सर्जरी द्वारा बच्चे का प्रसव कराने की सुविधा उपलब्ध नहीं हुई थी तब यदि कोई बच्चा टेढ़ा फंस जाए तो उसे काट कर निकाला जाता था. आजकल के लोगों को यह बात बड़ी वीभत्स लग सकती है लेकिन उस समय ऐसा करना मजबूरी थी. कहावत का अर्थ है कि जो सीधी तरह न माने उस को कैसा भी दंड देना पड़ सकता है.
टेढ़ों के निकले नाम, सीधों ने मारे दांव. कई बार ऐसा होता है कि सीधे माने जाने वाले लोग चुपचाप दांव मार लेते हैं और आरोप उन्हीं पर आता है जो टेढ़े समझे जाते हैं.
टेर टेर के रोवे, अपनी लाज खोवे. अपनी परेशानी का रोना सबके आगे रोने से अपनी इज्ज़त ही कम होती है.
टोटा तेरे तीन नाम, लुच्चा गुंडा बेईमान. टोटा – घाटा. जिस आदमी को व्यापार में घाटा हो जाता है वह लोगों का पैसा वापस नहीं कर पाता और सब उसे लुच्चा लफंगा बेईमान कहने लगते हैं.
टोलन में घर टोल भला, सब बाजों में ढोल भला. टोल माने मोहल्ला. सब मोहल्लों में वह मोहल्ला सबसे अच्छा है जहाँ अपना घर है. बाद की पंक्ति तुकबंदी के लिए जोड़ी गई है.
ठ
ठंडा लोहा गरम लोहे को काट देता है. यदि दो लोगों में लड़ाई हो तो जीत उस की होती है जो ठंडा (संयत) रहता है. जो अधिक गरम हो जाता है (आपा खो देता है) वह हार जाता है.
ठंडो नहावे तातो खावे, ऊ घर वैद कबहुं न जावे. जो ठंडे पानी से नहाए और गर्म खाना खाए, वह बीमार नहीं पड़ता.
ठकुर सुहाती सब कहें, जब कछु लेनो होय. ठकुर सुहाती – मालिक को सुहाने वाली बात (चापलूसी भरी बात). जब व्यक्ति का स्वार्थ होता है तो वह चापलूसी भरी बातें करता है.
ठग कसाई, चोर सुनार, खाऊ बामन, बली लुहार. विभिन्न जातियों की विशेषताएं बताई गई हैं. कसाई लोगों को ठगता है, सुनार गहनों में से कुछ न कुछ चुराता है, ब्राह्मण खाता बहुत है और लोहार बलशाली होता है.
ठग की कौन मौसी. धूर्त लोग अपने सगे सम्बन्धियों को भी नहीं बख्शते.
ठग को ठगने में दुगुना मजा है. जो सब को धोखा देता हो उसे मूर्ख बनाने का मजा ही अलग है.
ठग न देखा देख कसाई, शेर न देखा देख बिलाई. किसी ने ठग न देखा हो तो कसाई को देख लो जो कि उस से भी बढ़ कर है. शेर न देखा हो तो बिल्ली को देख लो जो उसी के समान शिकार करने वाली होती है.
ठग ही जाने ठग की भाषा. चोर उचक्कों ठगों की अलग ही भाषा होती है जिसे वही लोग समझ सकते हैं.
ठगा कर ठाकुर बने (ठगाने से ठाकुर कहाता है). धोखा खा कर बुद्धि आती है.
ठठेरे ठठेरे बदलाई. बचपन में हम ने ‘ठ’ से ठठेरा पढ़ा था. आजकल के लोग नहीं जानते होंगे कि बर्तन बनाने वाले को ठठेरा कहते हैं. ठठेरा अगर दूसरे ठठेरे से कोई बर्तन लेता है तो बदले में पैसे नहीं बर्तन ही देता है. वाणिज्य में इसे वस्तु विनिमय कहते हैं.
ठठेरों की बिल्ली खटपट से नहीं डरती. ठठेरा बर्तन बनाने में लगातार खटपट करता रहता है, इसलिए उसकी पालतू बिल्ली खटर पटर की आदी हो जाती है. इसी प्रकार सीमा पर स्थित गाँवों के लोग गोलीबारी से नहीं डरते.
ठहर ठहर के चालिए जब हो दूर पड़ाव, डूब जात मंझधार में दौड़ चले जो नाव. जब दूर की मंजिल तय करनी हो तो बीच बीच में ठहर कर चलना चाहिए. जो नाव तेज़ दौड़ कर चलती है वह मंझधार में डूब जाती है.
ठहरे रस्सी, बैठे कोस, खाए पिए अढ़ाई कोस. रस्सी – पचहत्तर हाथ जितनी दूरी. राह चलते जरा सा ठहर जाओ तो रस्सी भर, बैठ कर जरा सुस्ता लो तो एक कोस और खाना पीना करो तो ढाई कोस का अंतर पड़ जाता है.
ठाँड़ो बैल खूँदे सार. उपद्रवी बैल बँधा हुआ हो तो अपने बँधने के स्थान को ही खोदता है. दुष्ट व्यक्ति खाली हो तो उसे व्यर्थ के उपद्रव सूझते हैं. सार – बैलों के बाँधने का स्थान.
ठांव गुन काजल, ठांव (कुठाँव) गुन कालिख. ठांव माने स्थान (place). तेल को जला कर उसका धुआँ इकठ्ठा कर के काजल बनाया जाता है जो आँखों के लिए श्रृंगार है. वही धुंआ दीवारों पर जम जाता है तो उसे कालिख कह कर साफ़ करते हैं. व्यक्ति और वस्तु का महत्त्व उसके स्थान से होता है.
ठाकुर की बेटी ब्याहे, हिजड़े अड़ंगा लगाएँ. किसी भले आदमी के काम में बदमाश लोग अड़ंगा लगाएं तो.
ठाकुर गया, ठग रह्या, रह्या मुलक का चोर, वे ठकुरनियाँ मर गईं, जे जनतीं ठाकुर और. (राजस्थानी कहावत) वीर पुरुष अब नहीं रहे, केवल धूर्त लोग ही बचे हैं. वीर माताएं भी नहीं रहीं जो वीर पुरुषों को जन्म देती थीं.
ठाकुर चाकर दोऊ नीके. जब मालिक और नौकर (या हाकिम और मातहत) दोनों एक से बढ़ कर एक हों तो.
ठाकुर पत्थर, माला लक्कड़, गंगा जमना पानी, जब लग मन में साँच न उपजे, चारों वेद कहानी. भक्ति करने चले हो तो यह समझ लो कि जब तक मन सच्चा न हो तब तक शालिग्राम जी केवल पत्थर हैं, तुलसी की माला बेजान लकड़ी मात्र है, गंगा जमना का जल मात्र पानी है और वेदों में लिखा हुआ केवल कहानी के समान है.
ठाकुर बाल सफेद हो गए हैं और मैदान से भागते हो, के भाग भाग कर ही तो बाल सफेद किए हैं वरना काले में ही मारे जाते. ठाकुर साहब से कोई कह रहा है कि तुम्हारे बाल सफेद हो गए हैं, बूढ़े हो गए हो, फिर भी मैदान छोड़कर भागते हो. तो ठाकुर जवाब देते हैं कि मैदान से भागे ना होते तो काले बाल रहते हुए ही मारे गए होते.
ठाड़ा मारे और आगे धर ले. दबंग और दुस्साहसी लोग अपराध कर के उसे छिपाने की कोशिश नहीं करते.
ठाड़ा मारे तो गरीब कोसने से भी गया. दबंग आदमी किसी गरीब को मारे तो बेचारा गरीब उसे कोस भी नहीं सकता (वरना वह और मारेगा).
ठाड़े की बहू सबकी दादी, माड़े की बहू सबकी भाभी. दबंग आदमी की बीबी का सब सम्मान करते हैं और गरीब की बीबी से सब मजाक करते हैं.
ठाड़े के धन को जोखिम नहीं होता. जो आदमी जबर होता है उसकी संपत्ति को हाथ लगाने की कोई हिम्मत नहीं करता.
ठाढ़ा तिलक मधुरिया बानी (लंबा टीका मधुरी बानी), दगाबाज की यही निशानी. अगर कोई अधिक लम्बा टीका लगाये है और ज्यादा मीठा बोल रहा है तो उस से सावधान रहिए. उसके कपटी होने की बहुत संभावना है.
ठाली नाइन बछड़े को मूंड़े. नाई की पत्नी खाली हो तो अपनी गाय के बछड़े के ही बाल काटने लगती है. उद्यम शील व्यक्ति कभी खाली नहीं बैठता.
ठाली बनिया क्या करे, इस कोठी का धान उस कोठी में दे. बनिया कभी खाली नहीं बैठता, कुछ न कुछ उद्योग करता ही रहता है. रूपान्तर – ठाली बनिया क्या करे, सेर बाँटई तौले.
ठाली बहू नोन में हाथ. जो काम करने वाली बहू होती है वह कभी खाली नहीं बैठती. नोन – नमक.
ठिकाने ठाकुर पूजा जाय (ठिकाने से ठाकुर). ठाकुर की इज्ज़त केवल उसके प्रभाव क्षेत्र में होती है.
ठीकरा हाथ में और उसमें बहत्तर छेद. छेदों वाला ठीकरा हाथ में होगा और भीख मांगोगे. एक प्रकार का श्राप. किसी को कोसना. इससे संबंधित मिर्ज़ा ग़ालिब का एक किस्सा है. सन्दर्भ कथा – किसी को कोसना कि तू छेदों वाला ठीकरा हाथ में लेकर भीख मांगेगा. उर्दू के मशहूर शायर मिर्ज़ा ग़ालिब ने ठीकरे के बारे में एक रोचक घटना लिखी है. उन्होंने एक दिन अपने नौकर को ठीकरे में से अंगारे उठाकर चिलम में रखते देखा. वह अपने मालिक के लिए तमाखू भर रहा था और बड़बड़ाता जाता था. मिर्जा ने उससे पूछा कि तू ठीकरे के सामने क्या कह रहा था? नौकर बोला, यही कह रहा था कि आठ महीने से तनख्वाह नहीं मिली, मैं खाऊं क्या? मिर्जा ने फिर पूछा, ठीकरे ने तुझे क्या जवाब दिया? नौकर बोला, ठीकरे ने मुझसे कहा कि कोई फ़िक्र नहीं, मैं तुम्हारे साथ हूं अर्थात मुझे हाथ में लेकर तुम भीख मांगना.
ठीकरी के ठाकुर जी को थूक का तिलक. ठीकरी – फूटे हुए घड़े का टुकड़ा. निकृष्ट मूर्ति की भ्रष्ट पूजा ही की जाएगी. जो जिस योग्य हो उस का वैसा ही सत्कार करना चाहिए.
ठुमकी गैया सदा कलोर. नाटा व्यक्ति सदा युवा लगता है.
ठेस लगे बुद्धि बढ़े. धोखा खाने से आदमी सीखता है.
ठोक पीट कर वैद्यराज. चिकित्सा के छात्र को खूब ठोका पीता जाता है तभी वह योग्य चिकित्सक बनता है.
ठोक बजा ले चीज, ठोक बजा दे दाम. चीज़ को खूब देख परख कर लो और पैसा भी ठीक से मोल भाव कर के और ठीक से गिन कर दो.
ठोकर खावे बुद्धी पावे (ठोकर लगे तब आँख खुले). ठोकर खा कर ही इंसान को अक्ल आती है. इंग्लिश में कहावत है – There is no education like adversity. रूपान्तर – उपेटो लगत सो आँख खोल के चलत.
ठोकर मारने से धूल भी सर की ओर आती है. छोटे से छोटे व्यक्ति का भी अपमान नहीं करना चाहिए. जिस का अपमान करोगे वह आपको किसी न किसी प्रकार से नुकसान पहुँचा सकता है.
ठोकर लगी पहाड़ की, तोड़े घर की सिल. पहाड़ से ठोकर लगी, उसका तो कुछ बिगाड़ नहीं सकते तो घर की सिल को तोड़ कर अपना गुस्सा निकाल रहे हैं. बड़े आदमी का कुछ न बिगाड़ पाओ तो छोटों पर गुस्सा उतारना.
ड
डंक मारना बिच्छू का सुभाव. दुष्ट व्यक्ति के स्वभाव में ही दुष्टता होती है, उसे उसके लिए कोई योजना नहीं बनानी होती.
डंडा सब का पीर. शरीफ लोग तो डंडे से डरते ही हैं, जो दुष्ट या कामचोर लोग होते हैं वे भी डंडे से डरते हैं. अर्थात डंडा सबको सीख देने में सक्षम है.
डंडी मारे साहु कहावे, हर हांके सो चोर, चुपर चुपर के बाबा खाबें, जिनके ओर न छोर. तराजू की डंडी मार कर पैसा कमाने वाले तो साहूकार कहलाते हैं, साधू-सन्यासी, जिनके घरबार का ठिकाना नहीं, घी चुपड़ी खाते हैं, और हल हाँकने वाला किसान, जो परिश्रम की रोटी खाता है, चोर समझा जाता है.
डकैतों ने माल लूटा, बेगारियों का पिंड छूटा (ले गए गठरी चोर चुराई, सकल बेगारन छुट्टी पाई). बेगारी – बिना पैसा दिए किसी से मजदूरी कराना. गरीब लोगों को गाँव के जमींदार का सामान ढोना पड़ रहा है (बिना मजदूरी मिले). डकैत वह सामान लूट लेते हैं तो उन बेचारों को छुट्टी मिल जाती है.
डर के पास जाने से ही डर निकलता (मिटता) है. दूर से हम किसी बात से डरते हैं पर जब उसके पास पहुँच जाते हैं तो वह उतनी डरावनी नहीं लगती. इस प्रकार की एक राजस्थानी कहावत है – डर कने गियां डर मिटे.
डरपोक का बेली तो राम भी नहीं. कायर व्यक्ति की भगवान भी सहायता नहीं करता.
डरा सो मरा (जो डर गया सो मर गया). किसी संकट से मुकाबला करना हो तो जो डर जाता है वह मुकाबला करने से पहले ही हार जाता है.
डरें लोमड़ी से, नाम शेर खां (दिलेर खां). गुण के विपरीत नाम.
डांवाडोल सदा मोहताज. जिसमें निर्णय लेने की क्षमता न हो वह जीवन में कुछ नहीं बन सकता.
डाकिनी (डायन) खाय तो मुँह लाल न खाय तो मुँह लाल. डायन के विषय में लोगों को अंधविश्वास है कि वह बच्चों को खा जाती है. मुँह पर खून लगा रहने की वजह से उसका मुँह लाल ही रहता है. कहावत का प्रयोग इस अर्थ में करते हैं कि जो बदनाम है वह गलत काम करे या न करे, सब उसी पर शक करते हैं.
डाकिनों के ब्याह में मेहमान ही गटके जाएं. डाकिन के घर में कोई समारोह होगा तो कोई भरोसा नहीं कि वह मेहमानों को ही खा जाए. दुष्ट व्यक्तियों से दूर ही रहना चाहिए.
डायन किसकी मौसी. दुष्ट और अत्याचारी लोग किसी सामाजिक रिश्ते को नहीं मानते.
डायन की गोद में बच्चा डाल दिया. जान बूझ कर अपने किसी प्रिय को मौत के मुँह में धकेलना.
डायन के यार भूतन. दुष्ट लोग दुष्टों से ही दोस्ती करते हैं.
डायन को ख़्वाब में भी कलेजे. दुष्ट व्यक्ति को हर समय अपना स्वार्थ ही सूझता है.
डायन को भी दामाद प्यारा. अपना दामाद सबको प्यारा होता है, डायन को भी.
डायन को मौसी कहे सो बचे. अपनी जान बचाने के लिए कभी कभी दुष्ट लोगों से आत्मीयता भी दिखानी पड़ सकती है.
डायन भी अपने बच्चे को नहीं खाती. अपना बच्चा सब को प्यारा होता है. कोई व्यक्ति कितना भी दुष्ट और निर्दयी क्यों न हो, अपने बच्चे से सबको ममता होती है.
डायन भी दस घर छोड़ कर खाती है. कोई अपनों को ही धोखा दे तो. कोई भ्रष्ट हाकिम अपने निकट के किसी व्यक्ति से रिश्वत मांगे तो यह कहावत कही जाती है.
डायन मरे न मांचा छोड़े. मांचा – खाट. कोई अधिक आयु का व्यक्ति बीमार हो कर खाट पर पड़ा हो तो उससे परेशान परिजन ऐसा कहते हैं (विशेषकर बहू बूढ़ी सास के लिए).
डायन से पूतों की रखवाली. बच्चों को खाने वाली डायन से ही अगर आप बच्चों की रखवाली करने को कहेंगे तो यह मूर्खता ही कही जाएगी. भ्रष्ट नेताओं से देश की अर्थव्यवस्था की रखवाली की आशा करना भी कुछ ऐसा है.
डायनों को पराए न मिलें तो अपनों को ही गटकें. जिसको अपराध करने की लत और गलत आदतें लग जाती हैं वह बाहर कुछ न मिले तो घर वालों को ही अपना शिकार बनाता है.
डाल का चूका बंदर और बात का चूका आदमी, ये फिर नहीं संभलते. अर्थ स्पष्ट है.
डाले दाढ़ में तो आवे हाड़ में. उपयुक्त भोजन करने से ही स्वस्थ शरीर बनता है
डालें वही खाना, भेजें वहीं जाना. घर के बड़े जो थाली में डालें वही खाना चाहिए और जो काम बताएँ वह जरूर करना चाहिए.
डींग हांकनी है तो हल्की फुल्की क्यों हांकें. अर्थ स्पष्ट है. डींग हांकना – अपनी झूठी प्रशंसा करना.
डील डौल गुम्बद, आवाज़ फिस्स. बहुत मोटे तगड़े आदमी की बहुत हलकी आवाज़ हो तो.
डुग डुग बाजे बहुत नीको लागे, नाऊ नेग मांगे तो बगलें झांके. घर में कोई मंगल कार्य हो, ढोल बज रहे हो तो बड़ा अच्छा लगता है, पर जब दक्षिणा मांगने वाले पंडित और नेग मांगने वाले नाई, कर्मचारी, हिजड़े वगैरा इकट्ठे हो जाते हैं तो आदमी बगलें झांकता है.
डुबकी मार के पानी पिया, एकादशी के बाप को भी न पता चला. चुपके चुपके चोरी करने वालों के लिए.
डूब जात आधी चले, झपट चले जो नाव. जो नाव बहुत तेज चलने की कोशिश करती है वह आधे रास्ते में ही डूब जाती है.
डूबते को तिनके का सहारा. किसी बड़ी मुसीबत में फंसे व्यक्ति को थोड़ा सा भी सहारा मिल जाए तो उसे बहुत लगता है. इंग्लिश में कहावत है – A drowning man will cathch at a straw.
डूबते जहाज में से चूहे बाहर कूद जाते हैं. जब समुद्री जहाज डूब रहा होता है तो उस में रहने वाले चूहे बाहर कूदने लगते हैं (हालांकि बाहर कूद कर भी उन्हें मरना ही है). जब कोई राजनैतिक दल डूब रहा होता है तो उसके सदस्य छोड़ कर भागने लगते हैं.
डूबते हाथी को मेंढक भी लात मारता है. जब व्यक्ति अपना पद और मान खो देता है तो छोटे से छोटे लोग भी उसे अपमानित करने से नहीं चूकते.
डूबी कन्त भरोसे तेरे. कोई स्त्री पति के भरोसे पानी में उतरी पर जब डूबने लगी तो पति ने उसको नहीं बचाया. जिस पर आप विश्वास करें वह संकट में आप का साथ न दे तो.
डेढ़ ईंट की अलग मस्जिद. सबसे अलग नियम कायदे बनाना.
डेढ़ चावल की अलग खिचड़ी. सबसे अलग और हास्यास्पद तरीके से काम करना.
डेढ़ पाव आटा, पुल पर रसोई. अपने पास साधन न होते हुए भी बहुत दिखावा करना.
डेरे हिरन दाहिने जाएँ, लंका जीत राम घर आएँ. यात्रा में हिरन दाहिनी ओर जाते मिलें तो कार्य सफल होता है.
डोई क्या जाने पकवान का स्वाद. डोई – करछुली. हँड़िया में जो कुछ पक रहा है उसका स्वाद करछुली नहीं ले सकती. जो ऐश की वस्तुएँ गरीब आदमी बड़े लोगों के लिए तैयार करता है उनका आनंद वह स्वयं नहीं ले सकता.
डोकरी को राजकथा से क्या मतलब. आम आदमी को राजा रजवाड़ों की बातों से क्या लेना देना.
डोम के घर ब्याह, मन आवे सो गा. डोम लोग अपने घरों पर बहुत अश्लील गीत गाते हैं क्योंकि वहाँ कोई टोकने वाला नहीं होता.
डोम डोली पंडित प्यादा. डोम डोली पर सवार है और पंडित उस के यहाँ नौकरी कर रहा है. उल्टी रीत.
डोम हारे अघोरी से. डोम को काफी निम्न श्रेणी का मनुष्य माना गया है पर अघोरी उस से भी निम्न होता है.
डोमन बजावे चपनी, जात बतावे अपनी. डोमनी(गाने बजाने वाली स्त्री) चपनी (तश्तरी) बजा के गाती है तो हर कोई जान जाता है कि उस की जात क्या है. व्यक्ति के कार्य कलापों से उसकी जाति का पता चल जाता है.
डोमनी के रोने में भी राग. डोमनियां घर घर जा कर बधाई गाती हैं. वे रोती हैं तो उस में भी गाना होता है. कोई भी काम जो हम लगातार करते हैं वह हमारी आदत में शुमार हो जाता है.
डोली आई डोली आई मेरे मन में चाव, डोली में से निकल पड़ा भोंकड़ा बिलाव. बच्चों का मजाक. गाँव के बच्चे कहीं खेल रहे हैं कि कोई डोली आ कर रूकती है. बच्चे बड़ी उत्सुकता से देखते हैं कि उस में से सजी धजी दुल्हन निकलेगी, पर उस में से कोई मोटी तोंद वाले हाकिम उतरते हैं.
डोली न कहार, बीबी जाने को तैयार. कोई बिना निमंत्रण जाने को तैयार हो तो.
डोली में बैठ के कंडे बीनें. अत्यधिक नजाकत दिखाने वालों पर व्यंग्य. उन लोगों पर भी व्यंग्य जो वातानुकूलित कमरों में बैठ कर लोक कल्याणकारी काम करने का दिखावा करते हैं.
ढ
ढंग से करो तो गेंडे को भी गुदगुदी होती है. गेंडे की खाल इतनी मोटी होती है कि उसे गुदगुदी होना असंभव सी बात है, लेकिन युक्ति पूर्वक करने से उसे भी गुदगुदी हो सकती है. कहावत में हास्य का सहारा ले कर यह बताया गया है कि प्रयास करने पर कठोर हृदय और नीरस व्यक्तियों की भावनाओं को भी जगाया जा सकता है. ऐसे भी कह सकते हैं कि प्रयास करने पर कंजूस आदमी से भी खर्च कराया जा सकता है.
ढका हुआ ना उघाड़ बहू, घर तेरा ही है. बहू ससुराल वालों की बुराई कर रही है तो सास बहू को सीख दे रही है कि घर की बदनामी वाली कोई बात मत उघाड़ो. अब यह घर तुम्हारा ही है.
ढपोर शंख. ढपोर शंख की कथा कही जाती है कि उस से कोई एक चीज़ मांगो तो वह कहता था कि मैं तुम्हें दो दूँगा, पर देता कुछ नहीं था. आजकल के बहुत से नेता भी ऐसे ही हैं. सन्दर्भ कथा – एक समय एक ब्राह्मण गरीबी के कारण भिक्षाटन से अपने परिवार का पेट पालता था. जब भुखमरी की नौबत आ गयी तो किसी ने बताया कि समुद्र देवता यदि प्रसन्न हो जाएं तो उसकी गरीबी दूर हो जाएगी. ब्राह्मण समुद्र के तट पर पहुँच कर तपस्या करने लगा. समुद्र देवता तपस्या से प्रसन्न हुए और प्रकट होकर वरदान माँगने को कहा. ब्राह्मण ने अपनी व्यथा बताई तो. समुद्र देव ने ब्राह्मण को एक शंख दिया और कहा कि रोज स्नानादि करने के बाद पूजा-पाठ से निवृत्त होकर जो भी इस शंख से मांगोगे वह मिल जाएगा. ब्राह्मण प्रसन्न होकर घर की ओर चल पड़ा. रास्ते में शाम हो गयी, और उसे एक वणिक के घर रुकना पड़ा. रात में ब्राह्मण ने शंख से भोजन प्रदान करने की प्रार्थना की. तत्काल ब्राह्मण और वणिक के परिवार के लिए स्वादिष्ट भोजन का आ गया. चमत्कृत वणिक ने पूछा तो ब्राह्मण ने पूरी कहानी उसे सुना दी. लालची वणिक के मन में लोभ का संचार हो गया. उसने रात में सो रहे ब्राह्मण की पोटली से शंख चुराकर दूसरा साधारण शंख रख दिया.
ब्राह्मण ने घर पहुँचकर झट स्नान और पूजा कर के शंख से भोजन मांगा. जब कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो उसने उल्टे पाँव वणिक के पास पहुँच कर अपनी विपदा सुनायी. चतुर वणिक ने कहा कि यह गड़बड़ जरूर समुद्र ने की होगी. हो सकता है वह शंख एक बार प्रयोग हेतु ही बना रहा हो. भोला ब्राह्मण फिर समुद्र तट पर जा पहुँचा और तपस्या प्रारम्भ कर दी. समुद्र देव प्रकट हुए तो ब्राह्मण ने पूरी कहानी सुनाई, और समस्या के स्थायी समाधान की प्रार्थना की सबकुछ जानकर समुद्र देवता ने एक दूसरा शंख दिया और बोले, इसे ले जाओ पर घर जाने से पहले पोटली से बाहर मत निकालना. इससे जो भी मांगोगे हर बार उससे दूना देने को तैयार रहेगा. ब्राह्मण दूनी प्रसन्नता से घर की ओर चला. उसी वणिक के घर रुका. लालची वणिक ने उसका खूब सत्कार किया. ब्राह्मण ने पूरी बात बतायी और यह भी बता दिया कि दूसरा शंख घर ही जाकर बाहर निकालेगा. दूना देने की बात भी बता दी. लोभी वणिक ने ब्राह्मण के सो जाने के बाद पोटली से शंख निकाला और उसके स्थान पर पहले वाला शंख रख दिया
ब्राह्मण सुबह उठकर अपने घर के लिए चल दिया.वणिक ने अगले दिन जल्दी-जल्दी स्नान करके नया शंख निकाला और पूजा कर के शंख से माँगना शुरू किया, महल जैसा मकान दें. शंख से आवाज आयी, एक नहीं दो ले लो. वणिक प्रसन्न होकर मांगने लगा, अप्सरा जैसी पत्नी दें, फिर आवाज आयी, एक नहीं दो ले लो, सर्वगुण सम्पन्न पुत्र दें, एक नहीं दो ले लो, सात घोड़ों वाला रथ दें. एक नहीं दो ले लो. काफी समय बीत गया पर सामान कोइ प्रकट नहीं हुआ. परेशान होकर वणिक ने शंख से पूछा, आप कैसे दाता हैं जी, पहले वाले शंख ने तो जो भी मांगा, तुरन्त दे दिया था. शंख हँसकर बोला, अरे मूर्ख, देने वाला शंख तो वही था जिसे उसका असली अधिकारी ले गया. मैं ढपोर शंख हूँ, लेना देना कुछ नहीं, हामी भरूँ करोड़
ढब से खेती, ढब से न्याव, ढब से होवे बूढ़े कौ ब्याव. खेती, न्याय और बूढ़े का विवाह करने में बुद्धिमत्ता से काम लेना पड़ता है. ढब – काम करने का बुद्धिमत्ता पूर्ण सलीका.
ढाई आखर प्रेम को पढ़े सो पंडित होय, (पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय). जिसने मनुष्य मात्र के प्रति प्रेम का भाव जगा लिया वही सच्चा पंडित है.
ढाई दिन की बादशाहत. यह कहावत अलिफ़ लैला के किस्सों के किसी किरदार पर आधारित है जिसे ढाई दिन की बादशाहत मिली थी. कोई छोटी मानसिकता वाला व्यक्ति थोड़े समय के लिए कोई महत्वपूर्ण पद मिल जाने पर इतराए तो लोग यह बोल कर उसे उसकी हैसियत याद दिलाते हैं.
ढाक के वही तीन पात. ढाक के एक पत्ते में तीन पत्तियाँ होती हैं. आप कितना भी ढूँढिए सारे पेड़ में तीन पत्तियों की तिकड़ी ही मिलेंगी, किसी में चार या पांच पत्तियाँ नहीं मिलेंगी. काफ़ी प्रयास करने के बाद भी समस्या वहीँ की वहीँ रहे तो यह कहावत कही जाती है.
ढाक तले की फूहड़, महुए तले की सुघड़. ढाक के पेड़ में न छाँव है न फल. उसके नीचे केवल मूर्ख स्त्री ही खड़ी होगी. महुए में छाँव भी है और फल भी इसलिए समझदार स्त्री उसी के नीचे खड़ी होगी.
ढाल तलवार सिरहाने और चूतड़ बन्दीखाने. कायर व्यक्ति के लिए. ढाल तलवार दिखाने के लिए रखी हुई है और खुद युद्ध भूमि में जाने की बजाए बन्दीखाने में बैठे हैं.
ढाल देख कर दौड़ने का मन करता है. यह एक मनुष्य की स्वभावगत कमजोरी है, जो कार्य आसानी से हो जाए उसे करने का सब का मन करता है.
ढीलों का भाग्य भी ढीला. (राजस्थानी कहावत) जो लोग अकर्मण्य होते हैं, उनका भाग्य भी साथ नहीं देता.
ढुलमुल बेंट कुदारी और हँस के बोले नारी. कुदाली की बेंट हिलती हुई हो और नारी हँस के बोले, इन दोनों से खतरा होता है.
ढेढ़ ढेढ़ई से मानत. मूर्ख को मूर्ख ही समझा सकता है. ढेढ़ – मूर्ख व्यक्ति.
ढोर को क्या पता कि खेत रिश्तेदारों का है. जानवर को जहाँ मौका मिलता है वह किसी भी खेत में घुस कर फसल खाना शुरू कर देता है, फिर वह खेत चाहे उसके मालिक के रिश्तेदार का ही क्यों न हो. कोई नासमझ आदमी अनजाने में ही अपने किसी आदमी को नुकसान पहुँचाए तो.
ढोर को समझाना आसान, मूर्ख को समझाना मुश्किल. एक बार को जानवर को समझाया जा सकता है पर मूर्ख व्यक्ति को समझाना बहुत कठिन है. (क्योंकि वह अपने को बहुत बुद्धिमान समझता है).
ढोर मरे कूकुर हरषाय. जानवर के मरने पर कुत्ता खुश होता है क्योंकि उसे मांस हड्डी आदि मिलती है. किसी की विपत्ति में कोई दुष्ट व्यक्ति प्रसन्न हो या लाभ उठाए तो यह कहावत कही जाती है.
ढोल के भीतर पोल. ढोल देखने में कितना भी बड़ा हो अंदर से खोखला होता है. जब किसी चीज़ में आडम्बर बहुत हो पर वास्तविकता में वह कुछ भी न हो तो यह कहावत कही जाती है.
ढोल गले पड़ गया, बजाओ चाहे न बजाओ. कोई अनचाही जिम्मेदारी आ पड़ी है, अब यह आपके ऊपर है कि निभाएँ या मना कर दें.
ढोल में पोल है, बजे जितना बजा लो (भरोसा नहीं कब फूट जाए, इसलिए जब तक हो सके मौके का फायदा उठालो). जहाँ कोई सरकारी ठेकेदार अफसरों से मिलीभगत कर के घटिया निर्माण करा रहा हो वहाँ यह कहावत कही जा सकती है.
ढोलक न झांझ, चलो फाग गाएँ. बिना साधन के कोई काम करने की सोचना.
त
तंग जूतियों से नंगे पांव रहना भला है. दैनिक प्रयोग की वस्तु यदि कष्टकारक है तो उसका न होना अच्छा.
तंग मोहरी जंग लड़ावै. तंग मोहरी के चूड़ीदार पैजामे को पहनने में बड़ी मशक्कत करनी पडती है.
तंगी में कौन संगी. जब आदमी परेशानी में होता है तो कोई साथ नहीं निभाता.
तंदुरस्ती हजार नियामत (सेहत हजार नेमत). नियामत का अर्थ है वह चीज़ जिसको पाने की आपकी बहुत इच्छा हो पर उसको पाना कठिन हो, जैसे धन दौलत, उच्च पद आदि. कहावत में बताया गया है कि अच्छा स्वास्थ्य इस प्रकार की हजार नियामतों के बराबर है. स्वास्थ्य ही ठीक नहीं होगा तो ये सब नियामतें किस काम आएँगी.
तक तिरिया को आपनी, पर तिरिया मत ताक, पर नारी के ताकने, पड़े सीस पर ख़ाक. केवल अपनी स्त्री की और निगाह उठा कर देखो, पराई स्त्री को नहीं. पराई स्त्री को ताकने से इज्जत मिट्टी में मिल जाती है.
तकदीर के आगे तदबीर नहीं चलती (तकदीर के लिखे को तदबीर क्या करे). भाग्य में नहीं हो तो किसी भी युक्ति से हम कोई चीज़ प्राप्त नहीं कर सकते. तदबीर – युक्ति, प्रयास.
तकदीर चलती है तो दुनिया जलती है. किसी का भाग्य साथ दे तो लोग उसे देख कर जलते हैं.
तकदीर बड़ी के तदबीर. भाग्य बड़ा है या परिश्रम. सत्य यह है कि दोनों का महत्व है.
तकदीर सीधी तो सब कछू. भाग्य प्रबल है तो सब कुछ हो सकता है.
तकल्लुफ में है तकलीफ सरासर. संकोच करने वालों को बहुत परेशानी उठानी पड़ती है. इसका पूरा शेर इस प्रकार है – ऐ जौक तकल्लुफ़ में है तकलीफ़ सरासर, आराम से वो है जो तकल्लुफ़ नहीं करता. सन्दर्भ कथा 137.
तकाज़ा नहीं किया तो भरपाई नहीं समझो. बिना तकाज़ा किए कोई उधार की रकम नही लौटाता.
तख्ती पर तख्ती और मियाँ जी की आई कमबख्ती. साधन कम और काम बहुत ज्यादा. कुछ जगहों पर तख्ती पर तख्ती रखने को मास्टर साहब के लिए अशुभ माना जाता है, इस सन्दर्भ में भी बच्चे ऐसा बोलते हैं.
तजी प्रतिज्ञा मोर मैं तोर प्रतिज्ञा काज. तुम्हारी बात का मान रखने के लिए मैंने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी. महाभारत के युद्ध में कृष्ण ने भीष्म की प्रतिज्ञा का मान रखने के लिए अपनी शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा तोड़ दी थी.
तड़के का मेंह और सांझ का बटेऊ टला नहीं करते. सुबह सुबह जो बादल घिर कर आता है वह बरसता जरूर है (टलता नहीं है). जो अतिथि शाम को घर आता है वह टिकता जरूर है (टलता नहीं है).
ततड़ी ने दिया जनमजली ने खाया, जीभ जली स्वाद भी न पाया. ततड़ी माने जली हुई या दुखियारी. जनम जली माने अभागन स्त्री. जब दो अभागे लोग एक दूसरे की सहायता करने की कोशिश करें तो.
ततैया से नचत फिरत. ततैया – मधुमक्खी. बहुत व्याकुल और क्रोध में.
तत्ता कौर, न निगलने का न उगलने का. कभी धोखे से बहुत गरम कौर मुँह में रख लिया जाए तो बड़ी दुविधा की स्थिति हो जाती है, गरम की वज़ह से निगल भी नहीं सकते, मुँह में रखे रहें तो मुँह जलता है और थूक दें तो असभ्यता होती है.
तत्ता खाए भर नींद सोवे, ताका दुखवा वन वन रोवे. जो ताजा खाना खाते हैं और पूरी नींद सोते हैं उन के हिस्से का दुख वनों में भटकता है, अर्थात उन्हें परेशान नहीं कर पाता.
तत्ते पानी से क्या घर जलते हैं. दुर्वचनों से किसी का अनिष्ट नहीं होता.
तन उजला मन सांवला, बगुले का सा भेक, तोसे तो कागा भला, बाहर भीतर एक. जो लोग देखने में भलेमानस लगते हैं पर मन के काले होते हैं उन के लिए कहा गया है कि आप तो बगुले की तरह बाहर से सफ़ेद और भीतर से काले अर्थात धूर्त हो. आप से तो कौआ अच्छा है जो बाहर से भी काला है और भीतर से भी.
तन कसरत में, मन औरत में. जो लोग व्यायाम तो करते हैं पर उनका ध्यान भोग वासनाओं में लगा रहता है उनका शरीर स्वस्थ नहीं हो सकता.
तन की तनक सराय में, नेक न पावो चैन, सांस नकारा कूच का, बाजत है दिन रैन. शरीर रूपी छोटी सी सराय में सांस रूपी नकारा बजता रहता है. जाने की तैयारी हर समय है इस लिए चैन से न बैठो.
तन तकिया मन विश्राम, जहाँ पड़े वहीं आराम. परिश्रमी व्यक्ति को बढ़िया बिस्तर और तकिये की आवश्यकता नहीं है. उसका शरीर ही तकिया है और हर स्थान उस के विश्राम के लिए उपयुक्त है.
तन ताजा तो कलन्दर ही राजा. शरीर स्वस्थ हो तो फ़कीर भी राजा है. कलन्दर – मस्त, फक्कड़.
तन दे मन ले. अपने शरीर द्वारा किसी की सहायता कर के ही आप उस का मन जीत सकते हैं.
तन पर चीर न घर में नाज, दद ससुरे का रोपा काज. घर में घोर गरीबी है और ददिया ससुर का श्राद्ध करने जा रहे हैं जो सामर्थ्य से बाहर भी है और बिलकुल अनावश्यक भी है.
तन पर नहीं लत्ता मिस्सी मले अलबत्ता. मिस्सी – लेप करने वाली प्रसाधन सामग्री. शरीर पर ढंग के कपड़े नहीं हैं और सुगन्धित लेप लगा रहे हैं. साधन न होने पर भी अनावश्यक खर्च करना.
तन पर नहीं लत्ता, पान खाएँ अलबत्ता. साधन न होने पर भी अनावश्यक शौक करना.
तन पिंजरा मन तीतरा सांस जीव का मूल, जब तीतर उड़ जात है होता पिंजर धूल. शरीर पिंजरा है और मन उसमें रहने वाला पक्षी है. जब पक्षी उड़ जाता है तो पिंजरा मिटटी हो जाता है.
तन पुतला है ख़ाक का इसे देख मत फूल, इक दिन ऐसा आएगा मिले धूल से धूल. शरीर मिटटी का पुतला है. इस के ऊपर घमंड मत करो. एक दिन ऐसा आएगा जब यह धूल का पुतला धूल में मिल जाएगा.
तन फूहड़ का भैंस सा भारी, कहे कहो मोहे नाजो प्यारी. फूहड़ स्त्री भैंस सी मोटी है लेकिन पति से कहती है कि मुझे सुकुमारी पुकारो.
तन मोर सा मन चोर सा. जो व्यक्ति देखने में सौम्य और आकर्षक हो पर अंदर से चोर हो.
तन शीतल हो शीत सों, मन शीतल हो मीत सों. शरीर तो ठन्डे मौसम और ठंडी हवा से शीतल होता है परन्तु मन मित्र का साथ मिलने पर शीतल होता है.
तन सुखी तो चैन है, वरना दुख दिन रैन है. शरीर निरोग हो तभी मनुष्य को चैन मिलता है, वरना हर समय दुख ही दुख है.
तन सुखी तो मन सुखी, मन सुखी तो तन सुखी. शरीर स्वस्थ हो व कोई रोग न हो तो मन भी सुखी रहता है और मन प्रसन्न हो तो शरीर भी सुखी रहता है.
तनक को मनक करत. थोड़े का बहुत करते हैं. बात का बतंगड़ बनाते हैं.
तनक तमाखू गजब करावे, जगन्नाथ को भात, जिनके पुरखन भीख न माँगी, सोई बढ़ावें हाथ. तम्बाखू खाने वाले तलब लगने पर दूसरे तम्बाखू खाने वाले अनजान आदमी के सामने भी हाथ फैला देते हैं (भीख मांगते हैं) इस पर व्यंग्य. जगन्नाथ जी के भात के प्रसाद की तरह छोटे बड़े सब तम्बाखू के लिए हाथ फैलाते हैं.
तपे जेठ तो बरखा हो भरपेट. जेठ में अधिक गरमी हो तो वर्षा अच्छी होती है.
तपे मृगशिरा जोय, तो बरखा पूरन होय. मृगशिरा नक्षत्र में अधिक गर्मी पड़े तो पूर्ण वर्षा होती है.
तब के बूढ़े अब के ज्वान, अब के हुइहैं और निकाम. पुरानी पीढ़ी के बूढ़े लोगों का स्वास्थ्य जितना अच्छा है उतना आज कल के नौजवानों का नहीं, और अब जो लड़के हैं उनका स्वास्थ्य आगे चल कर और भी खराब होगा.
तब रहे ढेलिया अब ढेलाचंद, तब रहे लुगरी अब बाजूबंद. जब पैसा पास नहीं था तो लोग ढेलिया कहते थे, पैसा आने के बाद ढेलाचंद कहने लगे. तब पुरानी धोती की तरह तिरस्कृत थे अब बाजूबंद बन गए.
तब लग झूठ न बोलिए, जब लग पार बसाय. जब तक बहुत मज़बूरी न हो, झूठ नहीं बोलना चाहिए.
तबेले की बला बंदर के सर. पुराने लोग मानते थे कि तबेले में घोड़ों के साथ बन्दर पाले जाएं तो घोड़ों पर आने वाली बला बंदरों पर आ जाती है. सन्दर्भ कथा – पुराने लोग मानते थे कि तबेले में घोड़ों के साथ बन्दर पाले जाएं तो घोड़ों पर आने वाली बला बंदरों पर आ जाती है. एक राजा की घुड़साल के पास बहुत से बन्दर रहते थे. उन में से कुछ युवा बन्दर बहुत शैतान थे. वे सैनिकों का सामान चुरा कर भाग जाया करते थे. सयाने बन्दर उन्हें बहुत समझाते थे कि राजा के आदमियों से पंगा मत लो, पर वे एक न मानते थे. एक बार एक शैतान बन्दर कहीं से जलती हुई लकड़ी उठा लाया और फूस की झोंपड़ी के पास गिरा दी. उससे अस्तबल में आग लग गई और बहुत से अच्छी नस्ल के कीमती घोड़े जल गए. घोड़ों के वैद्य ने बताया कि घोड़ों के घावों को ठीक करने के लिए बन्दर के मांस का लेप करना होगा. इस इलाज के चक्कर में बेचारे बहुत से बन्दर मुफ्त में मारे गए. तभी से यह कहावत बनी.
तमाम रात पीसा और नाली में सकेला. किसी मूर्ख स्त्री ने रात भर मेहनत कर के कोई चीज़ पीसी और सुबह नाली में बहा दी. कोई व्यक्ति किसी काम के लिए बहुत मेहनत करे और अंत में उस चीज़ को व्यर्थ गंवा दे तो.
तय की तेरी, हाथ की मेरी. जो बंटवारा तय हुआ है वह तुम बाद में ले लेना, अभी जो हाथ में है वह मेरा है.
तरकारी को खेत में बघार नाहीं लगत. जहाँ का काम वहीं किया जाता है. बघार हँड़िया में लगता है, खेत में नहीं.
तरघुन्ना से काम पड़ा. ऐसे आदमी से काम पड़ा है, जिसके मन की बात जानना कठिन है
तरवर तास बिलम्बिए, बारह मास फलंत, सीतल छाया गहर फल, पंछी केलि करंत. कबीर कहते हैं कि ऐसे वृक्ष के नीचे विश्राम करो, जो बारहों महीने फल देता हो. जिसकी छाया शीतल हो, खूब फल लगते हों और पक्षी क्रीडा करते हों. यहाँ वृक्ष से अर्थ सज्जन पुरुष से भी है.
तरवर बिना सरबर सूना. (राजस्थानी कहावत). तालाब के पास पेड़ अवश्य होने चाहिए. पर्यावरण के हिसाब से भी दोनों एक दूसरे के पूरक हैं.
तरुवर अच्छा छांवला और रूप सुहाना सांवला. पेड़ वही अच्छा है जो छाँव देता हो और रूप सबसे मोहक वही होता है जो सांवला हो. सांवले व्यक्ति को सांत्वना देने के लिए.
तरुवर फल नहिं खात हैं, सरबर पियहिं न पान, कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान. वृक्ष कभी फल नहीं खाते और तालाब खुद पानी नहीं पीते. सज्जन लोग अपने द्वारा संचित किये गए धन को परोपकार के लिए ही प्रयोग करते हैं.
तलवार का खेत हरा नहीं होता. जोर जबरदस्ती से कराई गई खेती सफल नहीं हो सकती.
तलवार किस की, जो मारे उस की. तलवार उसी की है जो उस का उचित उपयोग समय पर कर पाता है.
तलवार के सहारे जीने वाले तलवार ही से मरते हैं. जिनकी जीविका युद्धों से ही चलती है, उनकी मौत भी युद्ध में ही होती है.
तलवार गिरी और परजा फिरी. हाकिम का आतंक खत्म होते ही प्रजा मनमानी करने लगती है. इसका अर्थ यह भी हो सकता है कि जो प्रजा विद्रोह पर उतारू है वह तलवार का वार होते ही वापस घरों में दुबक जाती है.
तलवार मारे एक बार, एहसान मारे बार बार. तलवार तो इंसान को एक ही बार में मार देती है लेकिन किसी का एहसान बार बार आदमी को मारता है (लज्जित करता है).
तलवार म्यान में ही अच्छी. तलवार बाहर निकलती है तो खून खराबा करती है. यहाँ तलवार से अर्थ विवादित मुद्दों से भी है.
तलवों की सी कहूँ या जीभ की सी. एक हाकिम ने मुक़दमे के दोनों पक्षों से रिश्वत खाई, एक ने मिठाई भेंट की और दूसरे ने पैर तले अशर्फी सरका दी. अब हाकिम परेशानी में कि तलवे की बात मानें या जीभ की.
तले तले दही चिवड़ा, ऊपर से एकादसी. व्रत में छुप के खाने वालों पर व्यंग्य.
तले धरती ऊपर राम. शपथ के समय कहते हैं
तले पड़ा हूँ पर टांग तो मेरी ही ऊपर है. कुश्ती में जिस की पीठ जमीन से लग जाए वह हारा हुआ मान लिया जाता है. कोई हारा हुआ पहलवान कह रहा है कि मैं नीचे पड़ा हूँ तो क्या हुआ, मेरी टांग तो ऊपर है. हार कर भी हार न मानना.
तले पड़ी का मोल क्या. 1. जो वस्तु आसानी से उपलब्ध हो उस की कदर नहीं होती. 2. कोई वस्तु बेकद्री से पड़ी हो तो मूल्यहीन हो जाती है और वही वस्तु अच्छे रख रखाव से मूल्यवान बन जाती है.
तवा चढ़ा बैठी मिसरानी, घर में नाज, अगन न पानी. मिसरानी – मिश्रानी, ब्राह्मणी, खाना बनाने वाली. घर में कुछ साधन न होते हुए भी बड़ा काम करने के लिए तैयार होना.
तवा न तगारी, काहे की भटियारी. न तवा है न थाली, तो तुम संपन्न घर की कहां से हो गईं.
तवायफ के बिछौने पर बना है काम सोने का, न ठहरेगा मुलम्मा है, अबस है ज़र के खोने का. तवायफ – वैश्या, मुलम्मा – बारीक परत. वैश्या के बिछौने पर सोने की कारीगरी किस काम की? बहुत से व्यक्तियों के सम्पर्क में आने के कारण वह जल्द ही बेकार हो जाएगी. कहावत का अर्थ है कि कोई नाज़ुक चीज़ ऐसे स्थान पर प्रयोग करना बेकार है जहाँ उस का रुखाई से प्रयोग हो.
तसलवा तोर कि मोर. जबरदस्ती हर चीज़ पर अपना हक जमाना. सन्दर्भ कथा – भोजपुरी क्षेत्र के लोग दूसरे की भी वस्तु को अपना कहकर जबरदस्ती उससे छीन लेते है. वे किसी व्यक्ति से उसकी वस्तु के विषय में पूछते हैं कि वह किसकी है. यदि वह व्यक्ति कहता है कि उक्त वस्तु मेरी है, तो वे उसे जबरदस्ती छीन लेते है और यदि वह यह जवाब देता है कि आपकी है, तो भी वे उससे यह कहकर ले लेते हैं कि जब मेरी है, तब मुझे दे दो.
तस्वीह फेरूँ, किस को घेरुं. तस्वीह – फेरने वाली मनकों की माला. ढोंगी भगत के लिए जो दिखावे के लिए माला फेर रहा है और मन में सोच रहा है कि किस को घेरूं.
ताँबे की मेख, तमासो देख. पैसे के जोर से संभव-असंभव सब कुछ हो सकता है (पैसा ताँबे का ही बनता है).
तांक झाँक कर मत चले, ये है बुरा सुभाव, जार कहें या चोट्टा या फिर ऊदबिलाव. जार माने व्यभिचारी. दूसरों के घरों में ताँक झाँक करने वाले को चरित्रहीन या चोर समझा जाता है या ऊदबिलाव कह कर गाली दी जाती है.
तांत बजी राग पहचाना. किसी चीज़ की शुरुआत होते ही फौरन पहचान लेना.
तांत सी देह, पाँव न हाथ, लड़न चली सूरन के साथ. (वाद्य यंत्रों में बंधने वाले पतले तार को तांत कहते हैं). किसी बहुत दुबले पतले कमजोर परन्तु दुस्साहसी व्यक्ति के लिए. लड़न चली सूरन के साथ अर्थात शूरवीरों के साथ लड़ने चली है.
तांबा देख व्यापार, मुँह देख व्यवहार. तांबे से अर्थ यहाँ रूपये पैसे से है. किसी के पास कितना पैसा है यह देख कर व्यापार किया जाता है (नकद ले रहा है या उधार, उधार लेगा तो चुका पाएगा या नहीं) और व्यक्ति से व्यवहार उस की हैसियत के अनुसार किया जाता है.
ताक पे बैठा उल्लू, माँगे भर भर चुल्लू. जब कोई बेशर्म हाकिम अधिक रिश्वत मांगे या कोई छोटा आदमी बड़े पर हुक्म चलाए तो.
ताकत कमर में चाहिए औलाद के लिए, रखते नहीं हैं सिर्फ भरोसा मदार का. शाह मदार मुस्लिमों के एक प्रसिद्ध संत हुए हैं जिनके आशीर्वाद से संतान प्राप्ति होती है. कहावत में कहा गया है कि संतान प्राप्त करने के लिए खाली शाह मदार का आशीर्वाद ही नहीं पौरुष शक्ति भी चाहिए. किसी भी कार्य को सिद्ध करने के लिए केवल पूजा पाठ ही नहीं पुरुषार्थ भी आवश्यक है.
ताकन, तड़कन, दिलटूक औ दंतचियार, चार तरह के रिश्तेदार. रिश्तेदार चार प्रकार के होते हैं, ताकन – जो हर समय कुछ लेने की ताक में रहते हैं, जैसे भांजा और नवासा. तड़कन – जो तड़क (धौंस) भी दिखाएँ और माल भी समेटें, जैसे बहनोई और दामाद, दिलटूक – जो दिल के टुकड़े यानी खासमखास हों जैसे साला साली व सलहज, और दंतचियार जो काम धाम कुछ न करें केवल दांत निपोरें, जैसे साढू.
ताका भैंसा गादर बैल, नारि कुलच्छन बालक छैल, इनसे बचें चतुरा लोग, राज छोड़कर साधें जोग. ताका – तिरछा देखने वाला, गादर – चलते-चलते बैठ जाने वाला, छैल – शौकीन स्वभाव का. जो भैंसा तिरछा ताकता हो, जो बैल बैठ जाने वाला हो, नारी दुश्चरित्र हो, जो बालक गलत शौक रखता हो, इन सब से पाला पड़े तो अच्छा यही है कि घरबार छोड़ कर जोगी बन जाओ.
ताज़ी पर बस न चला तुर्की के कान काटे. ताज़ी और तुर्की घोड़ों की नस्लें हैं. कहावत उन लोगों पर कही गई है जो किसी एक पर बस न चले तो दूसरे पर उसका गुस्सा उतारते हैं.
ताज़ी मार खाय, तुरकी माल खाय. भाग्य से बहुत कुछ होता है. एक ही जगह रहने वाले दो लोगों में से एक मार खाता है और एक माल खाता है.
ताड़ पेड़ के नीचे दूध भी पिए तो लोग समझें कि ताड़ी पिए है. बुरी संगत में रह कर अच्छा काम भी करोगे तो लोग गलत ही समझेंगे.
ताड़ने वाले कयामत की नज़र रखते हैं. कोई काम कितना भी छिप कर करो, होशियार लोग देख ही लेते हैं.
ताता खाए छाँव में सोए, उस के पीछे बैद रोए. जो गर्म खाना खाता है और छाँव में सोता है वह बीमार नहीं पड़ता (इस कारण वैद्य को रोना पड़ता है).
ताती रोटी और ठंडा पानी, सब तरह से सुख. ताज़ी गरम रोटी और ताजा ठंडा पानी, ऐसा सुख सब के भाग्य में नहीं होता.
ताते दूध बिलाई नाचे. कटोरे में तेज़ गरम दूध रखा हो तो बिल्ली उसे पी भी नहीं पाएगी और वहाँ से हटेगी भी नहीं, उसके चारों ओर नाचती रहेगी. जरूरत मंद मनुष्य भी अपनी जरूरत की चीज़ के लिए इसी प्रकार का व्यवहार करता है.
तार टूटा और राग पूरा हुआ. यदि उपकरण खराब होने से ठीक पहले कार्य पूरा हो गया (जिससे काम रुका नहीं) तो यह कहावत कही जाती है.
तारीफ़ बुरे आदमी को और बुरा बना देती है. दुष्ट आदमी की प्रशंसा करो तो वह अपने आप को और अधिक काबिल समझने लगता है और उसकी दुष्टता बढ़ जाती है.
तारे रौशनी करें तो चन्द्रमा क्या झख मारे. अगर छोटे लोग ही सारा काम कर लें तो बड़ों को कौन पूछेगा.
ताल तो भोपाल ताल, और सब तलैयां, गढ़ तो चित्तौड़गढ़, और सब गढ़ैयां. जिस ने भोपाल की झील देखी है वह इस कथन से जरूर सहमत होगा. चित्तौड़गढ़ के भग्नावशेष देख कर भी यह समझा जा सकता है की अपने समय में यह अद्वितीय रहा होगा. साथ ही बर्बर असभ्य मुगलों से घृणा भी होगी जिन्होंने इस प्रकार की उत्कृष्ट कृतियों को नष्ट किया.
ताल न तलैया, सिंघाड़े बुवैया. तालाब है नहीं और सिंघाड़े बोने की सोच रहे हैं. बिना साधन काम करने की योजना बनाने वालों के लिए.
ताल बजा कर मांगे भीख, उसका जोग रहा क्या ठीक. योगी वह है जो केवल ईश्वर की आराधना में ध्यान लगाए और जो कुछ भी रूखा सूखा मिल जाए वही खा के काम चलाए. गाना गा गा कर भीख मांगने वाले को योगी या साधु कैसे मान सकते हैं.
ताल में चमके ताल मछरिया, रन चमके तलवार, तम्बुआ चमके सैंया पगड़िया, सेज पे बिंदिया हमार. हर चीज़ अपनी अपनी जगह शोभा पाती है और उचित स्थान पर ही उसकी कीमत होती है.
ताल में पानी नहीं हाथी को नेवता. साधन न होते हुए भी बहुत बड़ा काम करने की मूर्खता करना.
ताल सूख चौरस भयो, हंसा कहीं न जाए, मरे पुरानी प्रीत को, कंकर चुन चुन खाए. तालाब सूख गया है लेकिन हंस कहीं और ठिकाना ढूँढने नहीं जा रहा है. तालाब के प्रति अपने पुराने प्रेम के कारण वह जान देने को तैयार है और कंकड़ खा रहा है. इस कहावत को प्रेम के प्रति त्याग के महान आदर्श के रूप में भी प्रयोग कर सकते हैं और व्यक्ति के मूढ़ प्रेम एवं अनावश्यक आसक्ति के लिए भी प्रयोग कर सकते हैं.
ताल से तलैया गहरी, सांप से संपोला जहरी. संपोला माने सांप का बच्चा, ताल माने बड़ा तालाब और तलैया माने छोटा सा तालाब. जहाँ बेटा बाप से भी ज्यादा खुराफाती हो वहाँ यह कहावत कही जाती है.
तालाब के भरोसे घड़ा नही फोड़ा जाता. तालाब और घड़ा, दोनों का अपना महत्त्व है. तालाब में कितना भी पानी हो, उसे भर कर ले जाने के लिए घड़ा भी चाहिए. इसी प्रकार समाज में छोटे बड़े सभी लोगों का महत्व होता है. यदि हमारे सम्बन्ध किसी बड़े आदमी से हों तो अपने निकटवर्ती छोटे लोगों को छोड़ नहीं देना चाहिए.
तालाब खुदा नहीं घड़ियालों ने डेरा डाल लिया. कोई काम होने से पहले ही उससे लाभ लेने वालों का इकट्ठा होना. (तालाब खुदने के बाद जब पानी से भर जाता है तो घड़ियाल उस में रहने के लिए आ जाते हैं).
तालाब प्यासो और बरात भूखो. जो व्यक्ति तालाब के पास रह कर प्यासा रहे और बरात में जा कर भी भूखा रहे. मूर्ख या दुर्भाग्य का मारा व्यक्ति.
ताली एक हाथ से नहीं बजती (ताली दोउ कर बाजे) (ताली दोनों हाथसे बजती है). जब दो लोगों में झगड़ा होता है तो दोनों ही यह सिद्ध करने की कोशिश करते हैं कि उन की रत्ती भर भी गलती नहीं है, दूसरे ने ही झगड़ा किया है. ऐसे में सयाने लोग समझाते हैं कि देखो ताली तभी बजेगी जब दोनों हाथ एक दूसरे से टकराएंगे. कुछ न कुछ गलती दूसरे की भी होती है. इंग्लिश में कहावत है – It takes two to quarrel.
ताली बिन कैसा ताला, जोरू बिन कैसा साला. चाबी के बिना ताला बेकार है और पत्नी के बिना साले की कोई अहमियत नहीं है.
ताले बनियों के लिए होते हैं, चोरों के लिए नहीं. अर्थ स्पष्ट है. हम लोग ताला लगा कर निश्चिन्त हो जाते हैं, पर चोर के लिए ताले की कोई बिसात नहीं है.
तावल मत कर काज में धीरे धीर चला, ताता भोजन बालके देउत जीभ जला. तावल – उतावलापन, ताता – गरम. काम में उतावलापन न कर के धीरे धीरे चलो. बच्चा गरम खाने को मुंह में रख कर जीभ जला लेता है.
ताश पर मूंज का बखिया. ताश – सलमा सितारों वाला बारीक काम, मूंज – खाट बुनने वाला बान. सलमा सितारे वाले बारीक काम में कोई मूंज का बखिया लगा कर सिल दे तो यह अत्यधिक फूहड़पन कहलाएगा.
तिनका उतारे का भी एहसान होता है. किसी ने आपका बहुत छोटा सा काम भी किया हो (सर पे से तिनका हटा दिया हो) तो उसका भी एहसान मानना चाहिए.
तिनका ओट तो पहाड़ ओट. कोई मनुष्य जब तक आँख के सामने रहता है तभी तक हमें उसका ध्यान रहता है.
तिनका कबहुँ न निंदिये, जो पाँयन तर होय, कबहुँ उड़ आँखिन परे, पीर घनेरी होय. तिनका यदि पैरों के नीचे हो तो उस की निंदा मत करो, यदि वह उड़ कर आँख में गिर गया तो बहुत कष्ट देगा. अर्थ यह है कि कोई व्यक्ति कितना भी छोटा क्यों न हो उसका अपमान मत करो.
तिनका गिरा गयंद मुख तनिक न घटा अहार, सो ले चली पिपीलिका पालन को परिवार. गयंद – हाथी, पिपीलिका – चींटी. हाथी के मूंह से तिनका गिरा तो उसका भोजन तो जरा भी कम नहीं हुआ लेकिन उससे चींटी के पूरे परिवार का पालन हो गया. अमीर लोग चाहें तो थोड़े से प्रयास से ही गरीबों की बहुत सहायता कर सकते हैं.
तिनका हो तो तोड़ लूँ प्रीत न तोड़ी जाए, प्रीत लगी टूटत नहीं जब लग मौत न आए. किसी से सच्चा प्रेम हो तो आसानी से नहीं टूटता.
तिनके की ओट पहाड़. 1. छोटा सा तिनका भी आँख के सामने हो तो पहाड़ को ढंक सकता है. 2. पास की छोटी सी चीज़ भी दूर की बड़ी चीज़ से अधिक महत्वपूर्ण हो सकती है.
तिनके की चटाई, नौ बीघा फैलाई. थोड़ा काम कर के बहुत दिखावा करना.
तिनब्याहे का बढ़िया भाग, दो ले जाएँ अरथी और इक ले जाए आग. जो आदमी तीन शादियाँ करे उसका मजाक उड़ाने के लिए. ऐसा व्यक्ति जीते जी मर जाता है.
तिरिया चरित औ चोर की घात, कोऊ न पाया कह गये नाथ. स्त्री का चरित्र और चोर की चालबाजी का अंदाजा कोई नहीं लगा सकता.
तिरिया जने बार बार, जबान जने एक बार. स्त्री बार बार संतान को जनती है (पैदा करती है) पर जबान को एक ही बार बात जननी चाहिए. जबान से निकली बात बदलनी नहीं चाहिए.
तिरिया तुझ में तीन गुन, औगुन हैं लख चार, मंगल गावे, सत रचे, कोखन उपजें लाल. स्त्री में लाख अवगुण होते हुए भी तीन गुण अनमोल हैं, मंगल गाना, सदाचार से रहना और पुत्र उत्पन्न करना.
तिरिया तुझ से जो कहे, उसको तू मत मान, तिरिया मत पर जो चले, वह नर है निर्ज्ञान. जो पुरुष अपने विवेक का उपयोग न कर के केवल स्त्रियों के कहने पर चलते हैं वे निरे मूर्ख होते हैं.
तिरिया तेग तुरंग अरु परजा का साथ, ये सब नाहीं आपने परे पराये हाथ. स्त्री, तलवार, घोड़ा और प्रजा का साथ, ये दूसरे के हाथ में पड़ जाएँ तो उसी के हो जाते हैं.
तिरिया तेरह मर्द अठारह. कहावत उस समय की है जब कम आयु में ही विवाह हो जाते थे. कहावत के अनुसार विवाह के लिए लड़की की आयु कम से कम तेरह वर्ष और लड़के की कम से कम अठारह वर्ष होनी चाहिए.
तिरिया तेल हमीर हठ, चढ़े न दूजी बार. राजस्थान के वीर हम्मीर देव चौहान के विषय में कहावत है कि वे जो हठ कर लेते थे उससे हटते नहीं थे. पूरी कहावत इस प्रकार है – सिंह सुवन, सत्पुरुष वचन, कदली फले इक बार, तिरिया तेल हमीर हठ चढ़े न दूजी बार. अर्थात सिंह एक ही संतान को जन्म देता है, सत्पुरुष अपने वचन पर अडिग रहता है, केला एक ही बार फल देता है, स्त्री पर तेल व उबटन एक ही बार चढ़ता है (अर्थात उस का विवाह एक ही बार होता है) और हम्मीर एक ही बार हठ करता है. सन्दर्भ कथा – सिंह सुवन, सत्पुरुष वचन, कदली फलै इक बार, तिरिया तेल, हमीर हठ, चढ़ै न दूजी बार. सिंह एक ही बार संतान को जन्म देता है. सच्चे लोग बात को एक ही बार कहते हैं. केला एक ही बार फलता है. स्त्री को एक ही बार तेल एवं उबटन लगाया जाता है अर्थात उसका विवाह एक ही बार होता है. ऐसे ही राव हमीर का हठ है. वह जो ठानते हैं, उस पर दुबारा विचार नहीं करते. अलाउद्दीन की सेना ने गुजरात पर आक्रमण किया था. वहां से लूट का बहुत सा धन दिल्ली ला रहे थे. मार्ग में लूट के धन के बंटवारे को लेकर कुछ सेनानायकों ने विद्रोह कर दिया. वे विद्रोही सेनानायक राव हम्मीरदेव की शरण में रणथम्भौर आ गए. सुल्तान अलाउद्दीन ने राव हम्मीर से इन विद्रोहियों को सौंप देने की मांग की. क्षत्रिय धर्म का पालन करते हुए राव हम्मीर ने शरण में आए हुए सैनिकों को नहीं लौटाया. इस पर अलाउद्दीन ने क्रोधित होकर रणथम्भौर पर हमला कर दिया. इसके बाद अलाउद्दीन खिलजी व हम्मीर देव के बीच घोर युद्ध हुआ जिस में हम्मीर देव शहीद हुए.
तिरिया तो है शोभा घर की जो हो लाज रखावा नर की. वही स्त्री घर की शोभा होती है जो पुरुष की लाज रखे.
तिरिया बिन तो नर है ऐसा, राह बटाऊ होवे जैसा. स्त्री के बिना पुरुष ऐसा ही है जैसा राह में चलता हुआ राहगीर (जो हमेशा अपनी मंजिल की तलाश में रहता है). बटाऊ – राहगीर.
तिरिया बिस की बेल है, या सूं बच कर चाल, याका नेहा खोत है, दीन धरम धन माल. स्त्री विष की बेल है इससे बच कर चलो, इसका प्रेम धोखा है और आपके दीन, धर्म, धन और माल के लिए खतरा है.
तिरिया भी बिन नर है ऐसी, बिना धनी के खेती जैसी. स्त्री भी पुरुष के बिना सब तरह से असुरक्षित है.
तिरिया रोवे गेह बिना, खेती रोवे मेह बिना. स्त्री घर के लिए तरसती है और खेती वर्षा के लिए.
तिरिया सके न बात पचाय (तिरिया से राज छिपे न छिपाए). अर्थ स्पष्ट है. सन्दर्भ कथा – एक व्यक्ति को अपनी पत्नी से बहुत प्रेम था. वह उस पर पूरा विश्वास करता था. वह जानता था कि उसके माता-पिता बड़े सीधे और सरल हैं, लेकिन जब कोई मौका आता, तो पत्नी का ही पक्ष लेता था. वह उनको कोई राज की बात नहीं बताता था पर अपनी पत्नी को सब-कुछ बता देता था. एक दिन वह घूमता हुआ गांव के एक अनुभवी व्यक्ति के पास गया. उनको वह काका बोलता था. काका बहुत अनुभवी व्यक्ति थे और उसके पिता के पक्के दोस्त थे. उसने काका से अपनी पत्नी की प्रशंसा की और बताया कि जो भी राज की बात होती है वह माता पिता को नहीं बताता पर पत्नी को अवश्य बताता है. काका ने कहा, जो तुम कर रहे हो, यह सही नहीं है. अपनी पत्नी तुम्हें विश्वास अवश्य करना चाहिए, पर याद रखना, स्त्रियाँ कोई राज की बात छिपा कर नहीं रख पाती हैं. किसी समय परीक्षा लेकर देखो. यह सुनकर वह अधीर हो उठा. उसने जल्दी से जल्दी पत्नी की परीक्षा लेनी चाही.
काका ने उससे एक नाटक रचने को कहा और उसे विस्तार से समझा दिया. एक दिन रात के समय वह एक कटा तरबूज अंगोछे में लपेट कर लाया. उसकी पत्नी ने देखा अंगोछे में कोई गोल चीज़ है जिस से टपककर लाल बूंदे गिर रही हैं. यह अपनी पत्नी से बोला, देख किसी से कहना मत. मैंने एक आदमी का सिर काट लिया है. इसे छिपाना है, नहीं तो मुझे सिपाही पकड़ लेंगे और मुझे फांसी की सजा मिलेगी. उसने अपनी पत्नी से एक फावड़ा मंगवाया और घर के पिछवाड़े में एक पेड़ के नीचे गड्ढा खोदा और उसमें उस तरबूज को अंगोछे सहित गाड़ दिया. ऊपर से मिट्टी डालकर वह जगह समतल बना दी.
उसकी पत्नी इस घटना से बेचैन हो उठी. उसने अपने पति से कुछ नहीं कहा, पर अंदर-ही-अंदर वह घुटन महसूस कर रही थी. एक दिन जब उससे रहा नहीं गया तो उसने अपनी पक्की दोस्त पड़ोसन को यह बात सुना दी और कहा, देख बहन, किसी से कहना मत, नहीं तो मेरे पति को फांसी हो जाएगी. उस महिला को भी वह बात नहीं पची. उसने अपनी पक्की दोस्त पड़ोसन महिला को यह घटना सुनाई और कहा, देख बहन, किसी से कहना मत. नहीं तो उसके पति को फांसी हो जाएगी. इसी प्रकार यह खबर पूरे गांव में फैल गई. बहुत-सी औरतों ने यह घटना अपने आदमियों से भी कही.
एक दिन ऐसा आया जब यह खबर इलाके के थाने में पहुंच गई. फिर क्या था? सुबह तड़के दरोगा और सिपाही उसके घर जा पहुंचे. जब गांव वालों को पता चला तो गांव के तमाम लोग भी आ गए. काका भी उसके घर पहुंच गए थे. दरोगा ने सबसे पहले उसकी औरत को धमकाकर पूछा, बता तेरे आदमी ने सिर कहां गाड़ा है? नहीं तो तुझे भी फांसी हो जाएगी. उसने डर के मारे वह स्थान इशारा करके दिखा दिया. जब उस स्थान को खोदा गया तो अंगोछे में लिपटा हुआ एक कटा तरबूज निकला. दरोगा ने उस आदमी को डांटा, तो उसने पूरी घटना कह सुनाई. काका ने भी कहा कि इसने अपनी पत्नी की परीक्षा लेने के लिए यह किया था.
तिरिया सरम की, कमाई करम की. करम – कर्म, भाग्य. स्त्री वही अच्छी जो लज्जाशील हो. कमाई अपने उद्यम और भाग्य दोनों से होती है.
तिल गुड़ भोजन नीच मिताई, आगे मीठ पाछे कडुआई. तिल गुड़ से बनी मिठाई आप खाते हैं तो पहले मीठी लगती है पर बाद में मुँह में कड़वाहट आ जाती है, इसी प्रकार नीच से मित्रता शुरू में अच्छी लगती है पर बाद में परेशानी का कारण बनती है.
तिल गुड़ भोजन, तुरक मिताई, गेंवड़े खेती, गाँव सगाई, पहले सुख पीछे दुखदाई, मतकर भाई मतकर भाई. तिल गुड़ से बनी मिठाई, मुसलमान की दोस्ती, गाँव के पास खेती और अपने ही गाँव में सगाई यह सब शुरू में अच्छे लगते हैं पर बाद में कष्ट देते हैं.
तिल चोर सो बज्जुर चोर. चोर तो चोर है चाहे बड़ी चीज़ चुराने वाला हो या तिल जैसी छोटी चीज़.
तिल तिल खाए, पहाड़ बिलाय. कितना भी धन इकट्ठा हो यदि उसमें से थोड़ा-थोड़ा लगातार खर्च करते रहोगे और उसमें जोड़ोगे नहीं तो कभी न कभी वह खर्च हो जाएगा.
तिल रहे तो तेल निकले. अर्थ है कि व्यापार की पूँजी ही खा जाओगे तो व्यापार क्या करोगे.
तिल, तीखुर और दाना, घी शक्कर में साना, खाय के बूढ़ा होय जवाना. तीखुर – हल्दी की प्रजाति का एक पौधा जिस की जड़ का सत हलुआ खीर आदि बनाने के काम आता है, दाना – पोस्त का दाना. तिल, तीखुर और पोस्त को घी शक्कर के साथ खाने से बूढ़े भी जवान हो जाते हैं.
तिलचट्टे को मारने से हाथ ही गंदा होता है. नीच को दंड देने की कोशिश में अपना ही नुकसान हो सकता है.
तिलों की परख तो तेली ही जानता है. हर व्यक्ति अपने अपने व्यवसाय से सम्बंधित चीजों के विषय में जानकार होता है.
तिसरी पीढ़ी सुधरे या तिसरी पीढ़ी बिगड़े. जो आज निर्धन है उस की तीसरी पीढ़ी धनवान हो सकती है, और जो आज सम्पन्न है उस की तीसरी पीढ़ी निर्धन हो सकती है. ऐसा इसलिए होता है कि निर्धन परिवार में अधिकतर बच्चे विनम्र और परिश्रमी होते हैं, जबकि धनी के बच्चे आलसी और नकचढ़े.
तीखी हु नीकी लगे कहिए समय बिचारि, सबके मन हर्षित करे ज्यों विवाह में गारि. उचित समय पर कही हुई तीखी बात भी अच्छी लगती है, जिस प्रकार विवाहादि में गाई जाने वाली गालियाँ (हंसी मज़ाक के लोक गीत) भी अच्छी लगती हैं.
तीतर की बोली बटेर क्या जाने. किसी समुदाय की भाषा उसी समुदाय के लोग समझ सकते हैं.
तीतर के मुँह लक्ष्मी. हाकिम कितना भी निकृष्ट क्यों न हो उस की जवान में बहुत ताकत होती है.
तीतर जाने तीतर की, मैं जानूँ तेरे भीतर की. जैसे तीतर की बात तीतर ही जान सकता है वैसे ही मैं तेरे सारे भेद जानता हूँ. मूलत: बच्चों की कहावत.
तीन कचौड़ी नौ बराती खाओ ठूसमठूस, वाह भटियारिन तेरे घर ब्याह है या है लूटमलूट. किसी कंजूस महिला का मजाक उड़ाया गया है. अपने घर शादी में वह लोगों से कह रही है कि नौ बरातियों के बीच में तीन कचौड़ियाँ हैं, खूब ठूँस ठूँस कर खाओ. इस के जवाब में दूसरी महिला व्यंग्य कर रही है कि भई कमाल है, तेरे घर की शादी में तो लूट मची हुई है.
तीन कनौजिया तेरह चूल्हे. कनौजिया लोगों के बारे में कहा जाता है कि वे कभी मिल कर नहीं रह सकते. सब के चूल्हे अलग ही जलते हैं. रूपान्तर – आठ कनौजिया नौ चूल्हे.
तीन का टट्टू तेरह का जीन. चीज़ की कीमत तो कम हो पर उसके साथ प्रयोग में आने वाला तामझाम महंगा हो तो.
तीन कोस तक मिले जो काना, लौट पड़े सो बड़ा सयाना. पहले के लोग शगुन अपशगुन का बहुत विचार करते थे. किसी कार्य के लिए जाते समय यदि काना दिख जाए तो बड़ा अपशकुन होता है. बुद्धिमान व्यक्ति तो तीन कोस जा चुका हो तब भी काना दिख जाने पर लौट आता है. (वैसे यह काने व्यक्ति के साथ बहुत अन्याय है).
तीन गुनाह तो खुदा भी माफ़ करता है (तीन गुनाह खुदा भी बख्शता है). अपराध करने वाले अक्सर यह कह कर सजा से बचना चाहते हैं. किसी को क्षमादान के लिए प्रेरित करना हो तो भी ऐसे बोला जाता है.
तीन गेहूँ खेत ऊसर, तीन कपास खेत उर्वर. तीन बार लगातार गेहूँ की फसल लेने से खेत ऊसर हो जाता है और तीन बार लगातार कपास बोने से खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ जाती है.
तीन जात अलगरजी, नाऊ, धोबी, दर्जी. हज्जाम, धोबी और दर्जी किसी की परवाह नहीं करते (स्वार्थी होते हैं).
तीन जात हड़बोंग, राजपूत अहीर डोम. बहुत से लोक विश्वासों में से एक.
तीन टांग की घोड़ी, नौ मन की लदान. किसी अक्षम व्यक्ति पर बहुत सा काम लाद दिया जाए तो.
तीन टेढ़े बरात में. बरात में तीन चीजें टेढ़ी होती हैं, तुरही, पालकी का बांस और लड़के का बाप.
तीन तिकट महा विकट, चार का मुँह काला, पाँच हो तो आला. तीन लोग हों तो कोई काम नहीं होता और चार हों तो सब का मुँह काला होता है, पाँच हों तो बढ़िया काम होता है.
तीन तिगाड़ा काम बिगाड़ा. लोक विश्वास है कि तीन लोग मिल कर कोई काम करें तो काम बिगड़ जाता है.
तीन दिए और तेरह पाए, कैसे लोभ ब्याज का जाए. ब्याज पर रुपये देने से बहुत मोटा मुनाफा होता है इसलिए लोग ब्याज का लालच नहीं छोड़ पाते हैं.
तीन देय तेरह चिल्लावे, तो कलजुग में लेखा पावे. यदि तीन की रकम उधार दी है तो उसको बढ़ा चढ़ा कर तेरह दिए हैं ऐसा चिल्लाने पर ही अपनी पूरी सही रकम मिल पाती है.
तीन पाव की तीन पकाई सवा सेर की एक, जेठ निपूता तीन खा गया मैं संतोखन एक. किसी किसी पुरानी कहावत में उच्च कोटि का हास्य व्यंग्य देखने को मिलता है. कोई महिला बता रही है कि तीन पाव आटे से तीन रोटी पकाईं और सवा सेर आटे से एक. जेठ लालची और खाऊ था (एक एक पाव की) तीन रोटी खा गया और मुझ बेचारी को (सवा सेर की) एक खा कर संतोष करना पड़ा. खुद को मासूम सिद्ध करने वाले परले दर्जे के शातिर लोग. रूपान्तर – सात पाव की सात पकाईं चौदह पाव की एक, तू कुलबोरन सातों खा गया मैं कुलवंती एक, तू कुलबोरन बढ़िया खाया नोन तेल मिरचाई, मैं कुलवंती रूखा खाया चिवड़ा दही मिठाई. कुलबोरन – खानदान को डुबोने वाला, कुलवंती – उच्च कुल की स्त्री.
तीन पेड़ बकायन के, मियाँ बागवान. बकायन – नीम की जाति का एक पेड़. अर्थ स्पष्ट है.
तीन बराती नौ पाहुने. महत्वपूर्ण लोग कम और फ़ालतू लोग अधिक.
तीन बामन जहाँ, बिपत पड़े वहाँ (बज्जर परे तहाँ). जहाँ तीन ब्राह्मण इकट्ठे हो जाएँ वहाँ विपत्ति आना तय है.
तीन बुलाए तेरह आए देखो यहाँ की रीत, बाहर वाले खा गए घर के गावें गीत. अनुमान से अधिक मेहमान आ जाएँ तो ऐसा होता है. रूपान्तर- एक बुलावें चौदह धावें, ये है यहाँ की रीत, बाहर वाले खा गए, घर के गावें गीत.
तीन बुलाए तेरह आए, दे दाल में पानी. किसी ने घर में दावत आयोजित की. जितने लोग बुलाए थे उससे बहुत अधिक लोग आ गए. खाना कम पड़ने की नौबत आ गई. तो बेचारे ने दाल में पानी मिलाकर उसे पतला किया. किसी भी कार्य में यदि अनुमान से बहुत अधिक खर्च होने की नौबत आने लगे तो जुगाड़ करनी पड़ती है.
तीन में घंटा चलें, तीन में तलवार, तीनइ में पैना चलें, आलीपुर दरबार. आलीपुर राज में घंटा बजाने वाले पुजारी, तलवार चलाने वाले सिपाही और हल चलाने वाला किसान सभी को तीन रुपया वेतन मिलता है. अंधेरगर्दी.
तीन में न तेरह में, न सेर भर सुतली में, न करवा भर राई में. ऐसा व्यक्ति जो किसी गिनती में न हो लेकिन अपने को बहुत महत्वपूर्ण समझता हो. सन्दर्भ कथा – (ऐसा व्यक्ति जो किसी गिनती में न हो). किसी मशहूर वेश्या ने अपने प्रेमियों को अलग-अलग कई श्रेणियों में बांट रखा था. पहली श्रेणी में तीन व्यक्ति थे, जिन्हें वह सबसे अधिक चाहती थी. फिर तेरह थे जो उसे अच्छे उपहार इत्यादि देते थे. फिर वे थे जिनकी गिनती उसने सेर भर सुतली में गांठें लगाकर कर रखी थी. सबसे अंत में थे वे साधारण व्यक्ति जिनसे मिलने के बाद उनके नाम का राई का एक दाना वह एक करवे में डाल दिया करती थी. एक सेठ का पुत्र उसे बहुत चाहता था और वह यह समझता था कि वैश्या भी उसे चाहती है.
एक बार व्यापार के सिलसिले में सेठ के पुत्र को लम्बे समय के लिए बाहर जाना पड़ा. वहाँ से उसने वैश्या के लिए एक कीमती उपहार किसी के हाथ भिजवाया और कहा यह कह कर देना कि तुम्हें सब से अधिक चाहने वाले ने यह उपहार भेजा है. वेश्या ने उसे नाम से नहीं पहचाना और अपने नौकर से कहा कि देखो यह नाम कौन सी सूची में है. तब नौकर ने जवाब दिया, तीन में न तेरह में, न सेर भर सुतली में, न करवा भर राई में.
तीन में न तेरह में, मृदंग बजाएं डेरे में. उपेक्षित होते हुए भी अपने को ख़ास समझना. सन्दर्भ कथा – जब किसी आदमी की कोई कदर न हो, परन्तु फिर भी बिना पूछे वह अपनी राय देने के लिए आ जाये. एक बार बानपुर के महाराज यज्ञ किया. ठाकुरों में बुन्देला, पँवार और धंधेरे ये तीन कुरी वाले श्रेष्ठ माने जाते हैं. इनके अतिरिक्त तेरह कुरी के ठाकुर और होते हैं. उक्त यज्ञ में इन तीन और तेरह कुरी के ठाकुरों को छोड़ कर एक ऐसे सज्जन पधारे जो इन सबसे बाहर थे और साधारण समझे जाते थे. यज्ञ के भोज में यह समस्या उपस्थित हुई कि अन्य बड़ी कुरी के ठाकुरों के साथ उनको कहाँ और किस प्रकार बिठाया जाय. बहुत सोच-विचार के पश्चात अंत में निश्चय यह हुआ कि उनको डेरे पर ही रखा जाय और वहीं उनके लिए भोजन आदि की व्यवस्था कर दी जाय. तभी से कहावत चल पड़ी कि तीन में न तेरह में, मृदंग बजावें डेरा में
तीन रांडें मुझे रंडुआ कर गईं, एक रांड तो मैं भी करूँगा. किसी व्यक्ति की एक के बाद तीन पत्नियों की मृत्यु हो गई. वह चौथा विवाह करने चला तो लोगों ने कहा कि अब अधेड़ावस्था में विवाह क्यों कर रहे हो. तब उसने चिढ़ कर ऐसा कहा. केवल अपना स्वार्थ देखने वाले स्वार्थी व्यक्ति के लिए.
तीन लोक से मथुरा न्यारी. 1. अति प्रिय स्थान. 2. ऐसी जगह जिस के सब नियम कायदे अलग ही हों.
तीनों पन नहिं एक समान. तीनों पन अर्थात जीवन की तीन अवस्थाएं.
तीर न कमान, काहे के पठान. पठान से पूछा जा रहा है कि अगर तुम्हारे पास तीर कमान नहीं हैं तो काहे के योद्धा बने फिर रहे हो.
तीर न तरकस, चचा तीसमारखां. अपनी बहादुरी की गप्प हांकने वालों का मजाक उड़ाने के लिए.
तीर नहीं तो तुक्का ही सही. तुक्का माने बिना फलक का तीर. कहावत का प्रयोग इस तरह करते हैं कि यदि किसी बात का प्रमाण न हो तो अंदाज़ से कुछ भी बोल दो. तुक्के के चित्र के लिए देखिये परिशिष्ट.
तीर, तुरमती (बाज), इस्तिरी छूटत बस न आएं, झूठ जो मानें ये वचन ते नर कूढ़ कहाएं. तीर, बाज और स्त्री एक बार हाथ से निकल जाएँ तो दोबारा हाथ नहीं आते.
तीरथ गए से एक फल, संत मिले फल चार, सतगुरु मिले अनेक फल, कहे कबीर विचार. अच्छे गुरु का मिल जाना तीर्थ जाने और संतों के साथ सत्संग करने से भी कई गुना फलदायक है.
तीरथ गएसु तीन जन, चित चचरा मन चोर, एको पाप न काटया, सौ मन लादे और. चंचल चित्त और चोर मन वाले जो लोग तीर्थ करने जाते हैं, उनका कोई पाप नहीं कटता, बल्कि और पाप लद जाते हैं.
तीसरी बार खीर भी बेसवाद लगती है. कोई खाने की चीज कितनी भी प्रिय क्यों न हो, पहली बार बहुत अच्छी लगती है, दूसरी बार कुछ कम अच्छी और तीसरी बार बेस्वाद लगने लगती है.
तीसरे दिन मुरदा भी हलाल है. मुसलमान अपने आप मरे हुए जानवर को खाना हराम मानते हैं. लेकिन अगर कोई मुसलमान तीन दिन से भूखा हो तो मरे हुए जानवर को खाना भी हलाल (धर्म सम्मत) मान लिया जाता है. आशय है आपातकाल में धर्म अधर्म नहीं देखा जाता.
तीसौ दिन दिया दिया, दीवाली को दिया नाहीं. कहावत उन लोगों के लिए कही गई है जो रोज फ़ालतू खर्च करते हैं और त्यौहार के दिन खाली हाथ हो जाते हैं (रोज दिया जलाते थे, दीवाली के दिन खाली हाथ बैठे हैं).
तुझको पराई की क्या पड़ी, अपनी निबेड़ तू. जो खुद परेशानी में हो और दूसरों की परेशानी में टांग अड़ा रहा हो उस को सीख दी गई है.
तुझे हुकहुकी आवे तो मुझे डुबडुबी आवे. दुष्ट को दुष्टता से ही सबक सिखाना चाहिए. सन्दर्भ कथा – कोई किसी धूर्त व्यक्ति को उसकी धूर्तता का मजा चखाए तो. नदी के इस पार रहने वाले एक सियार और ऊंट में बड़ी दोस्ती थी. ऊँट सरल हृदय था, जबकि सियार धूर्त था. नदी के उस पार खरबूजे के खेत थे. सियार का मन खरबूजे खाने के लिए करता था लेकिन वह नदी को पार नहीं कर सकता था. उसने ऊंट को इस बात के लिए पटाया कि वह उस को अपनी पीठ पर बैठा कर उस पार ले जाए तो दोनों खूब खरबूजे खाएंगे.
ऊँट राजी हो गया और दोनों उस पार पहुंच गए. वहां खूब खरबूजे खाने के बाद सियार बोला कि मुझे हुकहुकी आ रही है (अर्थात मेरा मन हुआ हुआ करने को कर रहा है). ऊँट ने कहा, भाई ऐसा मत करना. अभी खेत का मालिक आ जाएगा और हमें मारेगा. पर सियार नहीं माना और हुआ हुआ करने लगा. आवाज सुन कर खेत के रखवाले डंडा लेकर आए तो सियार झाड़ियों में छुप गया. ऊँट आसानी से पकड़ में आ गया सो उन्होंने ऊँट को खूब मारा.
ऊंट को बहुत गुस्सा आया पर वह उस समय कुछ नहीं बोला. लौटते समय नदी की बीच धार में ऊंट बोला कि मुझे डुबडुबी आ रही है (अर्थात मेरा मन डुबकी लगाने का कर रहा है). सियार बोला भाई ऐसा मत करना, मैं मर जाऊंगा. लेकिन ऊँट नहीं माना. उसके डुबकी लगाते ही सियार नदी की तेज धार में बह गया
तुम एक लेते नहीं, मैं दो देता नहीं. तुम कम लेने को तैयार नहीं हो और ज्यादा मैं दूंगा नहीं. मोल भाव के समय का आम दृश्य.
तुम काटो मेरी नाक और कान, मैं न छोडूँ अपनी बान. अत्यंत हठी व्यक्ति के लिए.
तुम तो मुझे छेड़ोगे. झूठमूठ का नख़रा करना. सन्दर्भ कथा – झूठमूठ का नख़रा करना. एक ज्यादा नाज नखरे करने वाली स्त्री अपने सिर पर एक खाली घड़ा रखे जा रही थी. रास्ते में एक पुरुष मिला जो अपने दोनों हाथों में दो कबूतर लिए आ रहा था. स्त्री ने उसे देखते ही कहा, देखो जी, मुझे छूना या छेड़ना नहीं. पुरुष ने कहा, मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है. और मैं यह कर भी कैसे सकता हूं, मेरे हाथों में तो कबूतर हैं. स्त्री ने जवाब दिया- मैं सब जानती हूँ. तुम उन्हें मेरे घड़े में रख दोगे और फिर मुझे छेड़ोगे.
तुम रूठे हम छूटे. कोई व्यक्ति आप से अक्सर अपने काम के लिए कहता है और आप को भी उसका काम करना पड़ता है. फिर वह कोई एकाध काम न होने से नाराज हो जाता है तब यह कहावत कही जाती है.
तुमको हम सी अनेक हैं हम को तुम सा एक, रवि को कमल अनेक हैं कमलन को रवि एक. इस कहावत को यदि कृष्ण और गोपियों का उदाहरण दे कर समझा जाए तो आसानी से समझ आएगी.
तुम्हरे भतार न हमरे जोय, अस कुछ करो कि बेटवा होय. एक विधुर व्यक्ति किसी विधवा स्त्री से विवाह का प्रस्ताव रखने के लिए घुमा फिरा कर कह रहा है, तुम्हारे पति नहीं है और हमारी पत्नी नहीं है, कुछ ऐसा क्यों न करें कि हम दोनों के बेटा हो जाए. मतलब की बात को घुमा फिरा कर कहना.
तुम्हारा हमारा क्या रूठना. यह बात वह लोग कहते हैं जो काम के समय रूठ जाते हैं और खाने के समय मान जाते हैं. जिससे आप रूठे हुए हों उससे काम पड़ जाए तो भी ऐसे बोलना पड़ता है.
तुम्हारी दाढ़ी जले तो जले, हमारा दिया बलने दो. तुम्हारा कुछ भी नुकसान हो, हमारा काम होना चाहिए.
तुम्हारी बराबरी वह करे जो टांग उठा कर मूते. किसी को गाली देने के लिए सीधे सीधे कुत्ता कहने की बजाए घुमा फिर कर कहा गया है.
तुम्हारे मरे देस पाक, हमारे मरे देस ख़ाक. आज कल के नेता एक दूसरे के लिए ऐसा कहते हैं, तुम मरोगे तो देश में से गंदगी कम होगी और हम मर गए तो देश बर्बाद हो जाएगा.
तुम्हारे मुंह में घी शक्कर. कोई बहुत अच्छी बात बोले तो ऐसा कहा जाता है.
तुम्हें और नहीं हमें ठौर नहीं (न मुझे और न तुझे ठौर). मजबूरी में एक दूसरे का साथ निभाना, जैसे आजकल के राजनैतिक गठबंधन.
तुरक काके मीत, सरप से क्या प्रीत. तुर्क से दोस्ती क्या और सर्प से प्रीत क्या.
तुरक की यारी, तूम्बे की तरकारी, अंत खारी की खारी. तुर्क से दोस्ती करोगे तो शुरू में चाहे ठीक लगे पर बाद में पछताना पड़ेगा. इसी प्रकार तूम्बे की सब्जी खाने के बाद कड़वी लगती है. तुरक – तुर्क. मुग़ल लोग तुर्की से नहीं आये थे लेकिन आम बोल चाल की भाषा में उन्हें भी तुर्क कहा जाता था. तरकारी – सब्जी.
तुरक, ततैया, तोतरा जे सब किसके मीत, भीर परत मुख मोड़ लें राखें नाहीं प्रीत. तुर्क, ततैया और तोता ये किसी के मित्र नहीं होते. संकट के समय मुँह मोड़ लेते हैं.
तुरत की पोई तुरत ही खाओ, बासी खा मत तोंद बढ़ाओ. रोटी ताज़ी बनी हुई ही खानी चाहिए. बची हुई रोटी को उठा कर रखने और वक्त बेवक्त खाने से तोंद बढ़ती है.
तुरत दान महा कल्याण. किसी काम को तुरंत निपटाना ही सबसे अच्छा रहता है.
तुरत फुरत हों सगरे काम, जब होवें मुट्ठी में दाम. पैसा पास हो तो सारे काम तुरंत होते हैं.
तुर्कनी के पकाए में क्या कसर. पहले के समय में हिंदू स्त्रियां खाना बनाने के बाद पहले भगवान को भोग लगाते थीं, फिर घरवालों को खिलाती थीं उस के बाद खाती थीं. वे खाना बनाते समय चखती नहीं थीं जिससे खाना झूठा न हो जाए. इसलिए यह संभावना रहती थी कि खाने में कोई कमी रह जाए. लेकिन मुसलमान स्त्रियाँ क्योंकि बीच-बीच में चख कर देख लेती हैं इसलिए उनके बनाए खाने में कोई कमी नहीं होती.
तुलसी अच्छे वचन सों सुख उपजे चहुँ ओर, बसीकरण यह तंत्र है तज दे वचन कठोर. सत्य और मधुर बोलने से सब ओर सुख पैदा होता है. यही सच्चा वशीकरण यंत्र है.
तुलसी अपने राम को रीझ भजो के खीझ, खेत पड़े सब ऊपजें औंधे सीधे बीज. राम नाम को जाहे खुश रह कर भजो खीझ कर, उसका फल अवश्य मिलता है. खेत में बीज चाहे सीधा पड़ा हो चाहे उल्टा, पौधा सब से निकलता है. ऐसा माना जाता है कि महाकवि वाल्मीकि पहले डाकू थे. उनको नारद मुनि ने राम नाम जपने का उपदेश दिया तो वह अपनी पाप वृत्ति के कारण राम राम नहीं बोल पा रहे थे. तब नारद जी ने उनको मरा मरा जपने की सलाह दी. मरामरामरामरा बार बार बोलने से भी राम का नाम निकलता है.
तुलसी अपनों आचरण, भलो न लागत काहु. अपना आचरण सभी को महान लगता है.
तुलसी अवसर के पड़े, को न सहे दुख द्वन्द. सभी को कभी न कभी दुख सहना पड़ता है.
तुलसी ऐसे पतित को बार बार धिक्कार, राम भजन को आलसी खाने को तैयार. ऐसे पतित व्यक्ति को धिक्कार है जो राम का नाम भजने में आलस करे और खाने को हर समय तैयार रहे.
तुलसी ऐसे मीत के कोट फांद कर जाए, आवत ही तो हंस मिले चलत बेर मुरझाए. कोट – किला या किले की चारदीवारी. जो मित्र आपके आते ही हँस कर मिलता है और बिछड़ते समय उदास हो जाता है वही सच्चा मित्र है. ऐसे मित्र से मिलने के लिए किले की दीवार फांद कर भी जाना पड़े तो भी जाना चाहिए.
तुलसी कर से कर्म कर मुँह से भज ले राम, ऐसो समय न आएगो लाखों खरचो दाम. जब तक शरीर स्वस्थ है मनुष्य को कर्म करते रहना चाहिए और साथ साथ मुँह से राम का भजन करते रहना चाहिए. ऐसा अवसर दोबारा नहीं मिलेगा.
तुलसी कलयुग के समय देखो यह करतूत, राम नाम को छांड़ि के पूजन लागे भूत. तुलसी दास जी को इस बात का बहुत दुख है कि कलयुग में लोग राम नाम को छोड़ कर भूतों की पूजा करने लगे हैं. सब से बुरी बात तो यह है कि लोग मजारों की पूजा करने लगे हैं.
तुलसी के पत्ता छोट बड़ बरोबर होवे. जो वस्तु पवित्र है वह छोटी या बड़ी, पवित्र ही मानी जाती है.
तुलसी जग में दो बड़े, कै रुपया कै राम. तुलसी का नाम ले कर किसी ने कहा है कि संसार में या तो राम बड़े हैं या रुपया. इस प्रकार की तुच्छ बात तुलसीदास नहीं कह सकते.
तुलसी तहाँ न जाइए, जहाँ जनम की ठांव, भाव भगति का मरम न जानें, धरा तुलसिया नाँव. तुलसीदास का नाम ले कर संभवतः किसी और ने कहा है कि जिस गाँव में आपका जन्म हुआ है वहाँ न जाएँ. वे लोग आपका महत्व नहीं समझेंगे, आदर नहीं करेंगे और नाम भी बिगाड़ कर तुलसी के स्थान पर तुलसिया पुकारेंगे.
तुलसी दया न छाँड़िये जब लग घंट में प्रान. कबहूँ दीन दयाल के भनक परेगी कान. अर्थ स्पष्ट है.
तुलसी धीरज के घरे कुंजर मन भर खाय. टूक टूक के कारने स्वान घरोघर जाय. तुलसीदास जी कहते हैं कि धैर्य रखने के कारण हाथी एक मन खाना खा लेता है, जबकि अधीर होने के कारण कुत्ता घर घर भटकता रहता है.
तुलसी पैसा पास का सब से नीको होय, होते के सब कोय हैं, अनहोते की जोय. तुलसी का नाम ले कर किसी ने कहा है कि जिस प्रकार पास का पैसा ही आदमी के काम आता है उसी प्रकार परेशानी में पत्नी ही काम आती है. (अन्य लोग तो केवल अच्छे दिनों के साथी होते हैं). आम तौर पर केवल बाद वाला हिस्सा ही बोलते हैं.
तुलसी बिरवा बाग़ के सींचत ही कुम्हलाएँ, राम भरोसे जो रहे परवत पे लहराए. ईश्वर की ऐसी महिमा है कि पर्वत पर भी पेड़ लहराता है जबकि बाग़ में लगा पौधा सींचने के बाद भी कुम्हला सकता है.
तुलसी मन शुद्ध भए जिनके वे तीरथ तीर रहे न रहे. जिनके मन शुद्ध हैं उन्हें तीर्थ के किनारे जा कर रहने की जरूरत नहीं है. (उनकी मुक्ति वैसे ही हो जाएगी).
तुलसी मीठे वचन सों सुख उपजत चहुँ ओर. मीठे वचन से सब ओर सुख फैलता है.
तुलसी मूढ़ न मानिहै जब लग खता न खाय, जैसे विधवा इस्तिरी गरभ रहे पछताय. मूर्ख व्यक्ति जब तक धोखा नहीं खाता तब तक नहीं मानता. जैसे विधवा स्त्री जिसका चाल चलन ठीक न हो गर्भ रह जाने पर पछताती है.
तुलसी या संसार में पांच रतन हैं सार, साधुमिलन अरु हरि भजन, दया, धर्म, उपकार. इस संसार में पाँच रत्न हैं, साधुओं से मिलना, ईश्वर का भजन करना, सब पर दया करना, धर्म पर चलना और परोपकार करना.
तुलसी या संसार में पाखंडी को मान, सीधों को सीधा नहीं झूठों को सम्मान. इस संसार में पाखंडियो को ही सम्मान मिलता है. सीधे लोगों को तो भरपेट भोजन भी नहीं मिलता जबकि झूठे लोगों को सम्मान मिलता है.
तुलसी रामहुँ ते अधिक राम भगत जिय जान. तुलसी दास जी का सुझाव है कि राम से अधिक राम के भक्त को हृदय से लगाओ, क्योंकि वही राम को पाने का मार्ग दिखा सकता है.
तुलसी वह दोउ गए पंडित और गृहस्थ, आते आदर न कियो जात दियो न हस्त. जो आते ही अतिथि का सत्कार नहीं करते और उसके जाते समय हाथ में कुछ देते नहीं हैं, ऐसे लोग मुक्ति नहीं पा सकते.
तुलसी विलम्ब न कीजिए लेते हरी को नाम. ईश्वर का नाम लेने में आलस्य नहीं करना चाहिए.
तुलसी वैश्या देख के करन लगे तकझाँक, आवत देखे संत को मुँह लीन्हों झट ढांक. कहावत उन लोगों के लिए कही गई है जो वैश्या को आते देख कर तांक झांक करते हैं और संत को आते देख कर झट से मुँह ढक लेते हैं.
तुलसी हरि की भगति बिन, धिक दाढ़ी धिक मूँछ, पशु गढ़न्ते नर बनो, बिना सींग और पूंछ. हरि की भक्ति के बिना दाढ़ी मूंछें बढ़ा लेने पर धिक्कार है. ऐसे लोग बिना सींग और पूंछ के पशुओं के समान हैं.
तू अपना काम कर, तबलया भूँसन दे. तू अपना काम करता रह तबेले में बैठे कुत्ते को भौंकने दे. आलोचकों से बिना डरे काम करने की सलाह.
तू कबर खोद मोकों, मैं गाड़ आऊँ तोको. तू मेरे लिए कब्र क्या खोदेगा मैं ही तुझे गाड़ दूंगा.
तू खेला आन से, हम खेली मान से, कुत्ता खेला पिसान से. पिसान – आटा. पति-पत्नी में व्यभिचार में मस्त हों तो घर चोर उचक्कों के हवाले हो जाता है. सन्दर्भ कथा – कहीं एक पति-पत्नी बहते थे. दोनों दुश्चरित्र थे. एक दिन पत्नी बैठकर आटा गूंध रही थी. पति भी वहीं बैठा था. इतने में पति की प्रेमिका उधर से गुजरी, जिसे देखकर पति वहाँ से उठकर चलता बना. उसके चले जाने पर पत्नी भी अपने प्रेमी से मिलने चली गई. इघर सारा आटा कुत्ता खा गया. पति ने घर लौटकर पूछा कि आटा क्या हुआ. इसपर पत्नी ने उत्तर दिया हम तुम अपने अपने खेल में मस्त रहे तो कुत्ता आटे के साथ खेल लिया.
तू गधी कुम्हार की, तुझे राम से क्या. बात ठीक ही है, कुम्हार की गधी को राम से क्या काम. जिसके अंदर कोई आध्यात्मिक चिंतन न हो, केवल अपना पेट भरने के लिए किसी की गुलामी कर रहा हो उस के लिए.
तू चाहे मेरे जाये को, मैं चाहूँ तेरी खाट के पाए को. पुरुष पुत्र की इच्छा करता है और स्त्री साथ रहने की. इससे उलट एक दूसरी कहावत है – मैं चाहूँ तेरे जाए को, तू चाहे मेरी खाट के पाए को. स्त्री की रूचि पुत्र को पालने में है और पुरुष की रूचि संसर्ग में.
तू डार डार मैं पात पात. तुम डालों पर चलोगे तो मैं पत्तों पर चलूँगा अर्थात मैं तुम से अधिक चालाक हूँ.
तू डाल मेरे मुँह में उँगली, मैं डालूँ तेरी आँख में. तू मेरा नुकसान करेगा तो मैं तेरा उससे बड़ा नुकसान करूंगा.
तू तेली का बैल, तुझे क्या सैर, लगा रह घानी से. जो व्यक्ति दिन रात काम में पिसता रहता है उस का मजाक उड़ाने के लिए. घानी – कोल्हू.
तू देवरानी मैं जेठानी, तेरे आग न मेरे पानी. जब दो बराबर के शातिर लोग मिल जाएँ.
तू बोल हमरी ओर, हम बोलें तोहरी ओर. तुम हमारे फायदे की बात बोलो तो हम भी तुम्हारे फायदे की बात कहें.
तू भी ऐंठा मैं भी ऐंठी कैसे होए निबाह. चाहे विवाह का सम्बंध हो या दोस्ती का, किसी विवाद पर कोई भी झुकने को तैयार न हो तो निर्वाह नहीं हो सकता.
तू भी रानी मैं भी रानी, कौन भरेगा पानी. जहाँ सभी अपनी अपनी ऐंठ में हों वहाँ काम कौन करेगा.
तू मेरा लड़का खिला, मैं तेरी खिचड़ी पकाऊँ. बहू का सास या ससुर से कथन. तुम मुझे सहयोग करो तो मैं तुम्हें सहयोग करूँ.
तू मेरी ढपली बजा, मैं तेरा राग अलापूं. तुम मुझसे सहमत हो तभी मैं तुम्हारी इच्छा के अनुसार बोलूंगा.
तू मेरी पीठ खुजला, मैं तेरी पीठ खुजलाऊँ. पीठ खुजलाना एक ऐसा काम है जो हम खुद से नहीं कर सकते. इस तरह के सभी कामों में एक दूसरे की मदद करना चाहिए.
तू मेरे घूँघट की रख, मैं तेरी मूंछों की रक्खूँ. पत्नी का पति से कथन – तुम मेरी स्त्री सुलभ लज्जा और मर्यादा का ध्यान रखो, मैं तुम्हारे पुरुषत्व का मान रखूँगी.
तू मेरे बारे को चाहे, मैं तेरे बूढ़े को चाहूँ. बहू सास से कह रही है कि तुम मेरे बच्चे का ध्यान रखोगी तो मैं तुम्हारे बुढ़ऊ का ध्यान रखूँगी.
तू सच्चा तेरा पीर सच्चा. जो लोग अपनी आस्थाओं के प्रति बहुत हठी होते हैं उन से पीछा छुड़ाने के लिए ऐसा कहा जाता है.
तूने की रामजनी, मैंने किया रामजना. रामजनी माने वैश्या. वेश्यागामी पति से परेशान कोई स्त्री उस से कह रही है कि तू वैश्या के यहाँ जाता है तो जा, मैं ने भी एक यार पाल लिया है.
तूम्बी का क्या मीठा. जो व्यक्ति हर तरह से केवल कड़वा ही हो.
तूम्बी तिरे, तूम्बी तारे, तूम्बी कभी न भूखा मारे. जो साधु बन गया वह कभी भूखा नहीं मरता.
तूम्बे की बेल पर तो तूम्बे ही लगेंगे. यदि किसी कर्कश स्त्री के बच्चे असभ्य हों तो यह कहावत कही जाएगी.
तूल, तेल, तापना, जाड़ मास हो आपना. तूल – रुई के बने कपड़े. जाड़े के मौसम में यदि पहनने को रुई के कपड़े, लगाने और खाने को तेल एवं तापने को आग जलाने का इंतजाम हो तो समझो कि जाड़ा बहुत अच्छा है.
तृन समूह को छिन भर में, जारत तनिक अंगार. छोटा सा अंगारा तिनकों के ढेर को क्षण भर में जला देता है. ज्ञान की छोटी सी बात, शंकाओं के समूह को भस्म कर देती है.
तृस्ना केहि न कीन्ह बौराहा. तृष्णा किसे पागल नहीं कर देती.
तेजाब के डूबे हैं. खूब खरे रुपये हैं. तेजाब में डुबो कर परीक्षा कर ली गयी है. अनुभवी व्यक्ति के लिए प्रयुक्त.
तेजी का बोलबाला, मंदी का मुँह काला. व्यापारी लोग सब से अधिक मन्दी से डरते हैं.
तेतरी बेटी राज रजावे, तेतरा बेटा भीख मंगावे. तेतरी बेटी – दो बेटों के बाद होने वाली बेटी. दो बेटों के बाद बेटी हो तो शुभ होती है और बेटा हो तो अशुभ.
तेते पाँव पसारिए जेती लम्बी सौर. सौर – ओढ़ने की चादर. जितनी लम्बी आपकी चादर है उतने ही पैर फैलाओ. चादर छोटी हो तो पैर समेट के लेटो. जितनी व्यक्ति की सामर्थ्य हो उतना ही खर्च करना चाहिए.
तेरह के तीन ही देना, पर नाम दरोगा रख देना. कुछ लोग ऐसी नौकरी चाहते हैं जिसमें वेतन चाहे कम हो लेकिन रौब दाब अधिक हो (चाहे बनावटी रौब ही क्यों न हो).
तेरह बरस की तिरिया पन्द्रह बरस का पुरख, अक्ल आई तो आई नहीं तो रहा जरख. स्त्री में यदि तेरह वर्ष की आयु तक और पुरुष में पंद्रह वर्ष की आयु तक अक्ल न आये तो वह जानवर के समान है. जरख – लकडबग्घा.
तेरा तो घड़ा ही फूटा, मेरा तो बना बनाया घर ही ढह गया. किसी भी परिस्थिति में मूर्ख आदमी से अपना कोई काम नहीं करवाना चाहिए. सन्दर्भ कथा = एक तेली तेल से भरा घड़ा ले कर शहर की ओर चला तो रास्ते में एक हट्टा कट्टा शेखचिल्ली (निहायत मूर्ख आदमी) मिला. तेली थक गया था, उस ने शेखचिल्ली से कहा कि मेरा घड़ा लाद कर ले चलो तो मैं तुम्हें दो आने दूंगा (पहले के जमाने में दो आने बड़ी रकम थी). शेखचिल्ली ने घड़ा लाद लिया और जोर जोर से बोलते हुए चलने लगा, मैं इन दो आनों से अंडे खरीदूँगा, उन से मुर्गियाँ निकलेंगी, उन्हें बेच कर बकरी खरीदूँगा, फिर कई बकरियाँ हो जाएंगी तो भैंस खरीदूँगा, उस का दूध बेच कर शादी करूंगा, फिर मेरे खूब सारे बच्चे होंगे, मेरा कहना नहीं मानेंगे तो यूँ उठा के पटक दूंगा, और उसने घड़ा पटक दिया. तेली ने कहा कि तूने मेरा तेल से भरा घड़ा क्यों तोड़ दिया, तो शेखचिल्ली बोला तेरा तो घड़ा ही फूटा है, मेरा तो बना बनाया घर ही उजड़ गया. अर्थ है कि मूर्ख आदमी से अपना कोई काम नहीं करवाना चाहिए.
तेरा माल सो मेरा माल, मेरा माल सो हें हें. तेरा माल भी मेरा है और जो मेरा है वह तो मेरा है ही. धूर्त व्यक्ति का कथन.
तेरा यार मर गया, कौन सी गली का. किसी ने वैश्या से कहा, तेरा यार मर गया. वैश्या ने पूछा, कौन सी गली का? वेश्याओं के सभी ग्राहक अपने आप को उसका खास दोस्त समझते हैं. उनकी नासमझी पर व्यंग.
तेरी आँखों में राइ नोन. किसी से बहुत नाराज होने पर उसे कोसने के लिए कहा जा रहा है कि तेरी आँखों में राई और नमक पड़ जाए. किसी की नजर लगने की आशंका हो तो भी उस का नाम ले कर फिर यह बोलते हैं.
तेरी इज्ज़त धेले की कर दूंगा, के अच्छी बात है, अभी तो कौड़ी की भी नहीं है. किसी ने एक बेशर्म आदमी को धमकी दी कि तेरी इज्जत धेले के बराबर कर दूँगा. बेशर्म बोला यह तो बड़ा अच्छा होगा, अभी तो मेरी कोई इज्जत ही नहीं है. धेला और कौड़ी के लिए देखिए परिशिष्ट.
तेरी करनी तेरे आगे, मेरी करनी मेरे आगे. अपनी अपनी करनी सब के आगे आनी है. कोई आप के साथ अन्याय कर रहा है और आप का कुछ बस नहीं चल रहा तो आप उसे ऐसा बोल कर मन में संतोष कर लेते हैं.
तेरी कुदरत के आगे कोई जोर किसी का चले नहीं, चींटी पर हाथी चढ़ बैठे फिर भी चींटी मरे नहीं. ईश्वर की लीलाएं निराली हैं. ईश्वर चाहे तो ऐसा भी हो सकता है कि चींटी के ऊपर हाथी पैर रख दे फिर भी चींटी न मरे.
तेरी गठरी में लागा चोर, मुसाफिर जाग जरा. वासना रूपी चोर तेरे शरीर रूपी गठरी के पीछे लगा है. मनुष्य को इस सांसारिक यात्रा में जाग कर सावधान रहने की सलाह दी गई है.
तेरी गाली, मेरे कान की बाली. जिससे प्रेम हो उसकी हर बात अच्छी लगती है.
तेरी मेरी बने नहीं, तेरे बिना सरे नहीं. उन लोगों के लिए जिनमें आपस में बनती नहीं है पर एक दूसरे के बिना काम भी नहीं चलता.
तेरी मेरी बोली में बस इतना ही फरक, तू तो कहे फ़रिश्ता मैं कहूँ था जरख. जरख – लकड़बग्घा. किसी मुसलमान की कब्र खोद कर लकडबग्घा उस की लाश को ले गया. एक जाट ने यह देख लिया. उसने जब मुसलमान के घरवालों को यह बात बताई तो वे बोले कि वह तो लकड़बग्घा नहीं फ़रिश्ता था.
तेरे जौ तेरी दरांती, जैसे चाहे काट. मनुष्य को इस बात की पूरी स्वतन्त्रता है कि वह अपनी चीज़ को जिस तरह चाहे प्रयोग करे.
तेरे मेरे सदके में, उसकी जोरू पेट से. कोई स्त्री पराए आदमी को मना न कर पाने का खामियाजा भुगत रही है (उसे गर्भ ठहर गया है). इसी प्रकार की दूसरी कहावत है – मुरव्वत में मातियन गाभिन हो गई.
तेरो राम बसत है मन में, तू कहे को डोले वन में. तेरा ईश्वर तेरे मन में बसता है, तू उसे ढूँढने के लिए वन वन क्यों भटक रहा है?
तेल की जलेबी मुआ दूर से दिखाए. एक तो घटिया चीज़ है (तेल से बनी जलेबी) ऊपर से नालायक आदमी खिलाने की बजाए दूर से दिखा रहा है.
तेल जले बाती जले नाम दिए का होए, बेटा तो तिरिया जने नाम पिया का होए. देश और समाज के कामों में त्याग व बलिदान कोई और करता है पर नाम किसी और का होता है.
तेल डाल कमली का साझा. किसी आदमी ने काफी मेहनत और लागत लगा कर कम्बल बनाया और उसे चिकना करने के लिए तेली से तेल मांगा. तेली ने कहा मेरा इस में आधे का साझा होना चाहिए.
तेल तिल से निकलता है, खली से नहीं. जब तिल में से तेल निकाल लिया जाता है तो जो बचता है उसे खली कहते हैं. उस खली में से फिर तेल नहीं निकल सकता. आप सेल में कपड़ा खरीदें और दुकानदार से उस पर भी छूट देने को कहें तो वह यह कहावत बोलेगा.
तेल तेली का नाम भगत जी का. भगत जी ने आरती में सौ दिए जलाए. तेल तो बेचारे तेली का खर्च हुआ और तारीफ़ भगत जी की हुई. किसी और के काम का श्रेय कोई दूसरा ले ले तो.
तेल देखो तेल की धार देखो. 1. किसी बड़े बर्तन से छोटी शीशी में तेल डालना हो तो बड़े धैर्य से तेल की धार को ध्यान से देखते हुए तेल डालना होता है. कहावत का अर्थ है कि कोई कठिन काम पूरा होने में समय लगता है उसके लिए धैर्य रखना चाहिए. 2. हर व्यक्ति अपनी औकात के अनुसार राय देता है. सन्दर्भ कथा – किसी राजकुमार के चार मित्र थे – सिपाही, ब्राह्मण, उंटेरा (ऊंट पालने वाला) और तेली. जब वह पिता के मरने पर गद्दी पर बैठा, तो उसने उन चारों को अपना मंत्री बनाया. पड़ोस के एक राजा ने जब उसे मूर्ख मंत्रियों से घिरा और भोग-विलास में डूबा पाया, तो उस पर चढ़ाई कर दी. राजकुमार ने तब अपने चारों मंत्रियों को बुलाया और इस बारे में उनकी राय मांगी. जो सिपाही था, उसने तुरंत लड़ने को कहा. ब्राह्मण ने कहा, जैसे भी हो सुलह कर लो. उंटेरे ने कहा, जल्दी किस बात की है, देखिए, ऊंट किस करवट बैठता है. तेली ने तब उसी का समर्थन करते हुए कहा, घबड़ाइए नहीं, अभी तेल देखिए, तेल की धार देखिए. अर्थ है कि हर व्यक्ति अपनी औकात के अनुसार ही सोच सकता है, उससे अधिक कुछ नहीं.
तेल न मिठाई, चूल्हे धरी कढ़ाई. साधन न होते हुए भी कोई काम करने की कोशिश करना या दिखावा करना.
तेल पिला कर घी निकाले. गाय भैंस से अधिक घी प्राप्त करने के लिए उन्हें तिल और बिनौले की खली खिलाई जाती है. जो व्यापार में लाभ प्राप्त करना चाहता है वह लागत भी लगाता है.
तेल में घी की मिलावट कोई नहीं करता. सस्ती चीज़ में महंगी की मिलावट कोई नहीं करता.
तेलिन रूठी, अँधेरे में बैठी. तेलिन रूठ के काम नहीं करेगी (तेल नहीं निकालेगी) तो अपना ही नुकसान करेगी. तेल न होने पर उसे अँधेरे में बैठना पड़ेगा. आशय है कि रूठने वाला अपना ही नुकसान करता है.
तेलिन से न धोबिन (मोचिन) घाट, इनके मोगरी उनके लाठ. घाट – घटी हुई (कम). तेली की स्त्री धोबिन या मोची की स्त्री से किसी प्रकार कम नहीं है. उसके पास मूसल है तो इन के पास लट्ठ. जब दो लोग इस बात पर बहस कर रहे हो कि उन में से कौन बड़ा है तो उन का मजाक उड़ाने के लिए.
तेली का काम तमोली करे, चूल्हे में से आग उठे. तमोली माने पान बेचने वाला. किसी का काम कोई और करे तो कुछ का कुछ हो सकता है. रूपान्तर – तेली कौ काम तमोली करे, बारह बरस लौं गढ़ा में परे.
तेली का तेल गिरा हीना हुआ, बनिए का नून गिरा दूना हुआ. तेली का तेल जमीन पर गिर जाए तो बेकार हो जाता है, बनिए का नमक गिर जाए तो वह उस को उठा लेता है और धूल मिट्टी मिल कर नमक दूना हो जाता है. मतलब बनिया कभी नुकसान नहीं उठाता.
तेली का तेल जले, मशालची का दिल जले. कोई खर्च कर रहा है और परेशानी किसी और को हो रही है.
तेली का बैल बना कर राखो. रात दिन काम लेते हैं.
तेली का हुनर तमोली क्या समझेगा. तमोली – पान बेचने वाला (ताम्बूल से बना है). व्यवसाय करने वाला व्यक्ति अपने काम को करते करते उसमें पारंगत हो जाता है. कोई दूसरा उसके हुनर को नहीं समझ सकता.
तेली के घर तेल तो चुपड़े नहीं पहाड़. तेली के घर तेल उपलब्ध है तो वह उससे पहाड़ थोड़े ही चुपड़ेगा. यदि हमारे पास किसी चीज़ की बहुतायत है तो हम उसका दुरुपयोग थोड़े ही करेंगे.
तेली के बैल को घर ही कोस पचास. तेली का बैल कोल्हू से बंधा हुआ दिन भर उसी के चक्कर लगाता रहता है और दिन भर में कई कोस के बराबर चल लेता है. कहावत ऐसे लोगों के लिए कही जाती है जिन्हें घर में रह कर भी बहुत मेहनत करनी पड़ती है.
तेली के माथा में तेल. व्यक्ति जिस चीज का व्यवसाय करता है वह उसे सहज ही उपलब्ध होती है.
तेली खसम किया, फिर भी रूखा खाया. तेली से शादी की फिर भी रूखा खाना खाया. जो सुविधा पाने के लिए कोई समझौता किया वही आप को नहीं मिली तो यह कहावत कही जाती है.
तेली रोवे तेल को मकसूद रोवे खली को. तेली को तेल की जरूरत है तो वह तेल के लिए परेशान है. दूसरे व्यक्ति मकसूद को खली चाहिए तो वह खली की चिन्ता में परेशान है. सबको अपनी-अपनी चिन्ता होती है.
तैरता सो डूबता. (तैरेगा सो डूबेगा). जो तैरेगा वही तो डूबेगा, जो डर के मारे किनारे बैठा रहेगा वह थोड़े ही डूबेगा.
तैराक की मौत पानी में ही होती है. अति आत्म विश्वास अंतत: मनुष्य को ले डूबता है.
तो सम पुरुष न मो सम नारी, यह संयोग विधि रचा विचारी. सूपनखा ने लक्ष्मण जी से ऐसा कहा था. जो स्त्रियाँ अपनी शक्ल सूरत और आयु न देख कर पुरुषों के सामने तरह तरह की अदाएँ दिखाती हैं उन का मजाक उड़ाने के लिए यह कहावत कही जाती है.
तोको न मोको ले भाड़ में झोंको. जिस चीज पर दो लोग अधिकार जमा रहे हों उस का अंतिम फैसला ऐसे होता है. यानी न तुम्हारे काम आये, न हमारे काम आये तो इसको लेकर भाड़ में झोंक दो.
तोको पीर न मोको आपदा. इस काम में न तुझे कोई कष्ट है न मुझे, अर्थात यह काम कर लेना चाहिए.
तोड़ने आए चारा और खेत पर इजारा. इजारा – अधिकार. आपने किसी को अपने खेत में उगा हुआ चारा तोड़ने की इजाज़त दे दी और वह खेत पर ही अधिकार जमाने लगे तो यह कहावत कही जाएगी. जैसे कुछ निर्लज्ज कृतघ्न लोग शरणार्थी बन कर दूसरे देश में जाते हैं और फिर वहां के संसाधनों पर अपना हक जमाने लगते हैं.
तोप के धमाकों में ताली की क्या बिसात. जहाँ बहुत बड़े बड़े लोग बोल रहे हों, वहाँ छोटे आदमी की कौन सुनेगा.
तोला के पेट में घुंघची. घुंघची – रत्ती (एक तोले में 96 रत्ती होती हैं). अर्थ है कि बड़ी चीज़ में छोटी चीज़ समा जाती है. (देखिये परिशिष्ट)
तोला भर की आरसी, नानी बोले फ़ारसी. पहले के जमाने में दर्पण बहुत कम लोगों के पास होते थे. गरीब लोग पानी में शक्ल देख कर काम चला लेते थे. कुछ लोगों के पास एक छोटा सा शीशा होता था जिसे आरसी कहते थे. जैसे आज कल अंग्रेज़ी बोलना संभ्रांत होने का पर्यायवाची है वैसे ही उस जमाने में संभ्रांत लोग फ़ारसी बोलते थे. कहावत का अर्थ है कि बिलकुल छोटी सी चीज़ पर नानी इतरा रही हैं.
तोला भर की तीन कचौड़ी, खुरमा माशे ढाई का, लालाजी ने ब्याह रचाया, लहंगा बेच लुगाई का. अति कंजूस लोगों की मज़ाक उड़ाने के लिए. लाला जी ने एक तोला आटे से तीन कचौड़ी बनाईं और ढाई माशे से खुरमा (शक्करपारा). पत्नी का लहंगा बेच कर बाकी पैसे इकट्ठा किये और शादी करने चले हैं. बहुत जुगाड़ कर के लोगों को बेवकूफ बनाने वाले लोगों के लिए भी यह कहावत कही जा सकती है. तोला व माशा के लिए देखिए परिशिष्ट.
तोले भर की तीन चपाती, चले जिमाने घोड़े हाथी. बिना साधन के बड़ा काम करने की मूर्खता करना.
तोहरा बैल मोरा भैंसा, हम दोनों में संगत कैसा. व्यर्थ की बातों पर लड़ाई.
तौबा तेरी छाछ से, मुझे इन कुत्तों से छुड़ा. सम्पन्न लोग अक्सर दही में से मक्खन निकाल कर उसकी छाछ को बांटने के लिए गरीब लोगों को बुलाते हैं. ऐसे किसी गरीब आदमी को रहीस के कुत्तों ने घेर लिया तो वह बेचारा परेशान हो कर ऐसे बोल रहा है. किसी छोटी चीज के लालच में आदमी बड़ी मुसीबत में फंस जाए तो.
थ
थका ऊँट सराय ताकता. जब ऊँट थका हुआ होता है तो वह सराय की ओर ताकता है (कि कब मालिक सराय में पहुँचे और कब उसे विश्राम मिले).
थका घोड़ा रिसियाया चाकर, कभी इन पर विश्वास न कर. किसी कठिन काम के किए थके घोड़े पर भरोसा नहीं करना चाहिए और गुस्साए नौकर पर भी विश्वास नहीं करना चाहिए. ये दोनों कभी भी धोखा दे सकते हैं.
थका तैराक फेन चाटता है. परिस्थितियों से बाध्य हो कर मनुष्य को निम्नश्रेणी का कार्य भी करना पड़ता है.
थके (हारे) का सहारा, तम्बाकू बिचारा. तम्बाखू का सेवन करने वाले अपने को धोखा देने के लिए ऐसे बोलते हैं.
थके बैल को सूप भारी. बैल थका हो तो उसे सूप जैसी हल्की चीज़ भी भारी लगती है.
थके बैल गौन है भारी, अब क्या लादोगे व्यापारी. (गौन – एक प्रकार का थैला जिस में सामान रख कर बैलों पर लादते हैं). वृद्धावस्था के लिए कहा गया है, शरीर थक चुका है, पापों की गठरी पहले ही भारी हो चुकी है अब इस में और क्या लादोगे.
थके मनुष्य का भाग्य भी थक जाता है. जब तक मनुष्य उद्यम करता है तभी तक भाग्य उसका साथ देता है, उद्यम करना छोड़ने पर भाग्य भी उसका साथ छोड़ देता है.
थाली खोने पर गगरी में भी हाथ डाला जाता है. बदहवासी में या गरज पड़ने पर ऐसी जगह भी जाना पड़ता है जहाँ से काम पूरा होने की कोई आशा न हो.
थाली गिरी, झनकार हमने भी सुनी (थाली फूटी न फूटी झंकार तो हुई). इसको कुछ इस प्रकार से प्रयोग करते हैं – फलाने दो लोगों में शायद झगड़ा हुआ है. सम्बन्ध चाहे न टूटा हो पर कुछ तकरार तो हुई है.
थूक बिलोने से मक्खन नहीं निकलता. बिना साधन के कोई काम नहीं किया जा सकता.
थूक से चिपकाया कै दिन चलेगा. घटिया काम और झूठ बहुत दिन तक नहीं चलते.
थूक से सत्तू नहीं सनते. 1. सत्तू बनाने के लिए ठीक ठाक मात्रा में पानी चाहिए. बहुत थोड़े से पानी से सत्तू नहीं बनेगा. काम बड़ा और साधन बहुत कम हों तो. 2. अपमान जनक तरीके से किसी पर उपकार नहीं करना चाहिए.
थेथर बूंट, न दांते टूट, न भाड़े फूट. थेथर – ठस, बूंट – चना. जो चना ठुड्डी (कड़ा) होता है वह न दांत से टूटता है न भाड़ में फूटता है. कहावत में जिद्दी लोगों की तरफ संकेत किया गया है.
थैली की चोट बनिया जाने. पूंजी का नुकसान कितना बड़ा नुकसान होता है यह बनिया ही जान सकता है. (क्योंकि उसे केवल खर्च करने के लिए ही नहीं बल्कि व्यापार करने के लिए भी पूंजी चाहिए).
थैली बनाए हवेली. पैसे से बड़े बड़े काम किए जा सकते हैं.
थैली भरी तो सारी बात खरी. जिस के पास पैसा हो उस की सब बात ठीक है.
थैली में रुपया, मुँह में शक्कर. व्यापार के लिए ये दोनों आवश्यक हैं. थैली में रुपया अर्थात निवेश के लिए पूँजी और मुँह में शक्कर अर्थात मीठी बोली.
थैली लगावे सो थैला पावे. व्यापार में पूंजी लगाओगे तभी अधिक कमा पाओगे.
थोड़ धनी सुखिया, बहुत धनी दुखिया. जिस के पास थोड़ा धन हो वह सुखी रहता है और जिस के पास अधिक धन हो वह उस को संभाल कर रखने की चिंता में ही मरा जाता है.
थोड़ा कमावे खरचे घनो, पहला मूरख उस को गिनो. सबसे बड़ा मूर्ख वह है जो कमाए कम और खर्च अधिक करे.
थोड़ा करे कविता, बहुत करें व्याख्याकार. कविता के जितने अर्थ और बारीकियाँ व्याख्याकार बताते हैं उतने तो स्वयं कवि को भी नहीं मालूम होते.
थोड़ा करें गाज़ी मियाँ, ज्यादा गाएं डफाली. डफाली – डफली बजा कर गाने वाले. साधु महात्मा लोग थोड़ा सा भी कुछ करते हैं तो उनके प्रशंसक बहुत बढ़ा चढ़ा कर बताते है.
थोड़ा करें भवानी ढेर करे पंडा. पंडे लोग अपने अपने देवी देवताओं की महिमा खूब बढ़ा चड़ा कर बखान करते हैं. जिससे प्रभावित हो कर लोग अधिक से अधिक भेंट चढ़ाएं.
थोड़ा कहे से मरद बूझे, पूरा कहे से बरद. समझदार मनुष्य इशारे से ही समझ जाता है जबकि बैल (मूर्ख व्यक्ति) पूरी बात कहने से.
थोड़ा खरचे थोड़ा खाए, उस पर टोटा कभी न आए. समझदारी से खर्च करने और कम खाने वाले को धन का संकट कभी नहीं आता. कम खाने से धन की बचत भी होती है और बीमारी भी नहीं होती.
थोड़ा खाना, बनारस में बसना. बनारस में बसने का एक समय बड़ा महत्व था. भरपेट खाना न मिले तब भी लोग बनारस में बसने को लालायित रहते थे.
थोड़ा खावे अंग लगावे, ज्यादा खावे घूर बढ़ावे. थोड़ा खाया हुआ शरीर को लगता है और ज्यादा खाने से शरीर को कोई लाभ नहीं होता, केवल अधिक मल बनता है. घूर – घूरा (मल और कूड़े का ढेर).
थोड़ा खावे बहुत डकारे. काम थोड़ा और दिखावा बहुत करने वालों के लिए.
थोड़ा जितना मीठा, ज्यादा उतना ही कड़वा. जो वस्तु कम मात्रा में उपलब्ध होती है वह अच्छी लगती है. जो अधिक मात्रा में मिल जाए वह बेकार लगने लगती है.
थोड़ा थोड़ा खाय, न मरे न मुटाय. थोड़ा थोड़ा खाने वाला मोटा भी नहीं होता और जल्दी मरता भी नहीं है. (क्योंकि कम खाने से बीमारियाँ कम होती हैं). इस से मिलती जुलती कहावत है – खावे पौना, जीवे दूना.
थोड़ा थोड़ा जोड़ो, मुनाफ़ा कभी ना छोड़ो. बहुत ही व्यवहारिक सुझाव दिया गया है. छोटी बचत भी लम्बे समय में बड़ी राशि बन जाती हैं. दूसरी सलाह है कि व्यापार में जहाँ मुनाफा हो रहा हो वहाँ चूकना नहीं चाहिए.
थोड़ा पढ़े तो हर से गये, भौत पढ़े तो घर से गये. किसान के लड़के के लिए पढ़ना अच्छा नहीं. थोड़ा पढ़े तो खेती के काम (हल चलाने) का नहीं रहता, और बहुत पढ़ जाय तो नौकरी करने घर से बाहर चला जाता है.
थोड़ी आस मदार की बहुत आस गुलगुलों की. मदार – मुसलमानों के एक पीर जिनकी मकनपुर में दरगाह है. बहुत से लोगों को पीर के दर्शन से अधिक गुलगुलों के प्रसाद की आस होती है.
थोड़ी पूँजी खसमै खाय. कम पूँजी दूकानदार को ही बर्बाद कर सकती है. क्योंकि उससे लाभ कम होगा. यदि व्यापार की लागत अधिक हुई तो कम पूँजी का व्यापार नष्ट हो जाएगा.
थोड़ी सी बरसात भारी आंधी को रोक सकती है. समझदारी की थोड़ी सी बात बड़े झगड़े को शांत कर सकती है.
थोड़े नफे में अधिक कुसल. ज्यादा मुनाफे के चक्कर में रकम डूबे इससे अच्छा है कि कम नफा लिया जाए.
थोड़े लिखे को बहुत समझना. जिस जमाने में चिट्ठियाँ लिखने का रिवाज़ था तब यह वाक्य बहुत लिखते थे.
थोड़े ही धन, खल बौराए (थोड़े धन में खल इतराए). ओछी प्रवृत्ति का आदमी थोड़ा धन पा कर इतराने लगता है.
थोड़े ही में पाइए सब बातन को सार. व्यक्ति अपनी बात को जितने कम शब्दों में व्यक्त कर पाए उतना ही काबिल माना जाता है..
थोथा चना बाजे घना. कोई घड़ा यदि चनों से पूरा भरा हो तो हिलाने से आवाज़ नहीं आएगी, लेकिन यदि आधा भरा हो तो हिलाने से आवाज़ आएगी. दूसरे – घुना हुआ चना अधिक आवाज करता है. जिन लोगों को कम ज्ञान होता है वे अधिक बोलते है. इंग्लिश में कहावत है – The less men know, the more they talk.
थोथा फटके उड़ उड़ जाए. छाज (सूप) में अनाज फटकते समय जो खोखला अनाज होता है वह उड़ जाता है. जो व्यक्ति स्वभाव से गंभीर नहीं होता वह कठिनाइयों का सामना नहीं कर सकता.
थोथी आगे पोथी क्या करे. मूर्खतापूर्ण बातों के आगे पढ़े लिखे व्यक्ति को चुप हो जाना पड़ता है.
थोथे बांस कड़ाकड़ बाजें. बांस यदि ठोस हो तो उसे पटकने पर आवाज नहीं होती, पर यदि खोखला हो तो उसे पटकने पर जोर की आवाज होती है. कहावत में यह समझाया गया है कि अल्पज्ञानी व्यक्ति बहुत बोलता है.
थोथे बादर क्वार के, ज्यों रहीम घहरात, धनी पुरुष निर्धन भये, करै पाछिली बात. थोथे बादर – बिना पानी के बादल. जिस प्रकार क्वार के महीने में बिना पानी वाले बादल गरजते हैं, उसी प्रकार धनी लोग जब निर्धन हो जाते हैं तो अपने पिछले दिनों की बातें करते हैं.
द
दई – दिवाई खली न खाय, पीछे कोल्हू चाटन जाय. बैल दी हुई खली तो नहीं खाता, पर बाद में कोल्हू चाटता फिरता है. ऐसे लोगों के लिए जो कहने और मनाने से काम नहीं करते, फिर झख मार के वही काम करते हैं.
दगा किसी का सगा नहीं, कर के देखो भाई, चिट्ठी उतरी बामन ऊपर, नाई नाक कटाई. किसी को धोखा दे कर आप फायदा नहीं उठा सकते. सन्दर्भ कथा – एक पंडित नित्य राजा को कथा सुनाने जाया करता था. एक दिन राजा ने पंडित से कहा कि आज कथा सुनने के लिए मेरे पास अधिक समय नहीं है इसलिये आप मुझे सार रूप में ही कथा सुना दें. पंडितजी सार रूप में दो बातें कह दीं – दगा किसी का सगा नहीं, करंता सो भोगता. राजा ने उसे सोने की एक मोहर दे दी. फिर जब भी कभी राजा के पास समय नहीं होता तो पंडित उसे यही दो पंक्तियाँ सुनाता और राजा उसे एक मोहर दे देता.
यह देख कर राजा के नाई को बड़ी डाह हुई. उसने पंडित का पत्ता काटने की युक्ति सोची और अगले ही दिन उसने पंडित को बरगलाने के लिए कहा कि तुम काहे के पंडित हो? राजा मांस खाता है, शराब पीता है और तुम उसके मुँह में मुँह दिये रहते हो. उसके मुँह की हवा तुम्हारे मुंह में जाती है, जिससे तुम्हारा भी धर्म भ्रष्ट होता है. कल से मुंह पर पट्टी बांध कर आया करो. पंडित को ये बात उपयुक्त लगी. उधर नाई ने राजा से कहा कि महाराज! आपने यह कैसा पंडित रख रखा है? यह तो कहता है कि राजा के मुँह से बड़ी दुर्गन्ध आती है, इसलिए कल से मुँह पर पट्टी बांध कर आया करूंगा.
अगले दिन पंडित अपने मुँह पर पट्टी बांध कर आया. यह बात राजा को बड़ी नागवार गुजरी और उसने पंडित को दण्ड देने का निश्चय कर लिया. जब पंडित कथा सुना कर जाने लगा तो राजा ने उसे एक की बजाय दो मोहरें दीं और साथ ही उसे एक चिट्ठी भी दी कि यह चिट्ठी अभी कोतवाली जाकर कोतवाल को दे देना. पंडित बाहर निकला तो दरवाजे के बाहर ही उसे नाई मिला. उसने एक मोहर नाई को दे दी और उससे कहा कि यह चिट्ठी तुम कोतवाल को दे आओ. नाई खुश हो गया और चिट्ठी लेकर कोतवाली गया. कोतवाल ने चिट्ठी पढ़ी और नाई को पकड़ कर झट से उसकी नाक काट ली, क्योंकि चिट्ठी में राजा यही आदेश लिखा था कि चिट्ठी लाने वाले की नाक तुरन्त काट ली जाए. इस प्रकार नाई को दगा करने का फल मिल गया. अर्थ है कि किसी को धोखा दे कर आप फायदा नहीं उठा सकते.
दगाबाज किसी का सगा नहीं. धोखेबाज़ आदमी किसी का सगा नहीं होता.
दगाबाज दूना नवे, चीता चोर कबाण. चीता, चोर, धनुष और दगाबाज व्यक्ति जितना झुकते हैं उतना ही अधिक नुकसान पहुँचाते हैं. इस आशय की एक और कहावत है – नमनि नीच की अति दुखदाई.
दब कर रहना ही बड़ा दाँव. व्यवहार कुशलता का सबसे बड़ा गुर है दब कर रहना. विनम्रता पूर्ण व्यवहार से बड़े से बड़े शक्तिशाली लोगों को भी वश में किया जा सकता है.
दबा बनिया पूरा तौले. बनिये की अटकी होती है तो वह पूरा तौलता है वरना डंडी मारने की फिराक में रहता है.
दबा हाकिम मातहतों से दबे (दबा हाकिम महकूम के ताबे). कमजोर अधिकारी (या रिश्वतखोर अधिकारी) अपने मातहतों और जनता से दबता है. हाकिम – अधिकारी, महकूम – जिन पर हुकूमत की जाए.
दबाने पर चींटी भी चोट करती है. अधिक अत्याचार करने से दुर्बल व्यक्ति भी हिंसक हो सकता है.
दबी आग और दबी बहू. जो लोग घर की बहू को दबा कर रखते हैं उन्हें सीख दी गई है कि दबी हुई बहू, दबी हुई आग के समान खतरनाक है जो मौका पड़ने पर घर को जलाने से नहीं चूकती.
दबी बिल्ली चूहों से कान कतरवाती है. शक्तिशाली व्यक्ति जब संकट में होता है तो उसे कमज़ोर लोगों से दबना पड़ता है.
दबे को सब दबाते हैं. मजबूर और लाचार इंसान पर सब रौब जमाते हैं.
दम भाई सगे भाई, और भाई घसर पसर. नशा करने वालों में बड़ा तगड़ा भाईचारा होता है.
दम है तो क्या गम है. 1. अपने अंदर शक्ति है और आत्मविश्वास है तो कोई काम कठिन नहीं है. 2. नशा करने के बाद सारे दुख भूल जाते हैं.
दमड़ी का उपला, धुआंधार मचाए. कोई सस्ती चीज बहुत बड़ा काम कर दे या बहुत अव्यवस्था फैला दे तो.
दमड़ी का भजन गाया, छै आने का मंजीरा फोड़ा. बेकार भजन गाया और इतना कीमती मंजीरा ही फोड़ डाला. अनावश्यक उपलब्धि के लिए कोई बड़ा नुकसान कर लेना.
दमड़ी का सौदा, बाजार ढिंढोरा. छोटे से काम का बहुत भारी दिखावा.
दमड़ी की अरहड़, सारी रात खड़खड़. पुरानी मुद्रा में दमड़ी माने पैसे का आठवाँ भाग. बहुत कम कीमत की अरहर काट के लाए हैं और उसे रखने के लिए रात भर उठा पटक कर रहे हैं. छोटे से काम में बहुत दिखावा करना.
दमड़ी की उगाही में दस चक्कर. थोड़े से लाभ के लिए बहुत अधिक परिश्रम करना पड़े तो.
दमड़ी की खोज में चवन्नी का तेल जले. छोटे से लाभ के लिए उससे कई गुना खर्च.
दमड़ी की घोड़ी, छै पसेरी दाना. पसेरी माने पाँच सेर (कहीं कहीं ढाई सेर को भी पसेरी कहते हैं). घोड़ी तो बहुत कम कीमत की है पर दाना बहुत पैसों का खा रही है. किसी सस्ती चीज़ का रख रखाव बहुत महंगा हो तो.
दमड़ी की दाल, बुआ पतली न हो. कामवाली को जरा सी दाल बनाने के लिए दी है और कह रही हैं दाल पतली नहीं होनी चाहिए.
दमड़ी की निहारी में टाट के टुकड़े. निहारी माने नाश्ता (निराहार का अपभ्रंश है). बहुत सस्ते नाश्ते में टाट के टुकड़े निकल आए तो शिकायत कैसी. सस्ते में कोई चीज़ बनाई जाए तो उसकी गुणवत्ता तो कम हो ही जाएगी.
दमड़ी की पगड़ी, अधेली का जूता. दमड़ी-पैसे का आठवाँ हिस्सा, अधेली-अठन्नी. पहले पगड़ी शान की चीज़ मानी जाती थी और जूते को लोग हिकारत की नजर से देखते थे. उस समय के हिसाब से पगड़ी में कम और जूते में ज्यादा खर्च यानि उल्टा काम. अब पगड़ी लोग पहनते नहीं हैं और जूते में हजारों रूपये खर्च करते हैं.
दमड़ी की बछिया जनम की हत्या. बछिया सस्ती मिल रही थी तो ले ली. उसको पालना इतना मुश्किल है यह मालूम ही नहीं था. और अगर मर गई तो गोहत्या का पाप लगेगा. रूपान्तर – छोटी सी बछिया, बड़ी सी हत्या.
दमड़ी की बुलबुल, टका हलाली. दमड़ी माने पैसे का आठवाँ हिस्सा और टका माने दो पैसा (अधन्ना). सामान बहुत सस्ता लेकिन बनाने का खर्च बहुत अधिक हो तो. हलाली – मुसलमानों का जानवर मारने का तरीका.
दमड़ी की भाजी, घर भर राजी. गरीब आदमी की आवश्यकताएँ बहुत कम होती हैं. कंजूस के लिए व्यंग्य भी.
दमड़ी की मुर्गी, नौ टका पकड़ाई. सामान बहुत सस्ता पर सामान लाने का खर्च बहुत अधिक है.
दमड़ी की सुई, सवा मन मलीदा. (मलीदा – एक प्रकार का बढ़िया व महंगा खाद्य पदार्थ). अनहोनी और उलटी बात, छोटी सी सस्ती सी सुई के लिए कोई सवा मन मलीदा क्यों देगा.
दमड़ी की हंडिया गई सो गई, कुत्ते की जात तो पहचानी गई. कोई सज्जन अच्छी नस्ल का समझ कर एक महंगा कुत्ता खरीद कर लाए. एक दिन मौका मिलते ही कुत्ता आंगन में रखी हंडिया ले कर भाग गया तो ऐसा सोच कर उन्होंने संतोष किया. आपका कोई दोस्त, रिश्तेदार या नौकर धोखा दे तब भी यह कहावत कही जाती है.
दमड़ी न कौड़ी, रानी से मटकौअल. पास में कौड़ी नहीं है और रानी जी से नैन मटक्का करने चले हैं.
दमदमे में दम नहीं, खैर मांगो जान की. दमदमा – मोर्चाबंदी. जिसकी सेना कमजोर हो वह यह बात कहता है.
दमा दम के साथ जाता है. दमे की बीमारी ठीक नहीं होती, प्राण निकलने पर ही रोगी का पीछा छोड़ती है.
दमी यार किसके, दम लगाया खिसके. गांजा, सुल्फा, चरस और स्मैक आदि पीने वाले नशेड़ी लोगों को दमी (दम लगाने वाला) कहा जाता है. जहाँ कहीं नशे के अड्डे होते हैं वहाँ ये लोग पहुँच जाते हैं और दम लगा कर वहाँ से खिसक लेते हैं. कहावत स्वार्थी लोगों के लिए कही गई है जो अपना स्वार्थ पूरा होते ही वहाँ से निकल लेते हैं.
दया धर्म को मूल है पाप मूल अभिमान, तुलसी दया न छोड़िये जब लग घट में प्रान. सभी प्राणियों पर दया करना सनातन धर्म का मूल घटक है और अपने ऊपर अभिमान करना पाप की जड़ है. जब तक मनुष्य जीवित है उसे दया नहीं छोड़नी चाहिए.
दया धर्म नहिं मन में, मुखड़ा क्या देखे दर्पन में. यदि तुम्हारे मन में दया और धर्म नहीं है तो दर्पण में अपना रूप देख कर प्रसन्न मत हो.
दया धर्म हिरदै बसै, बोले अमृत बैन, तेई ऊँचे जानिये, जिनके नीचे नैन. जिनके मन में दया और धर्म है, बोली मीठी है और व्यवहार विनम्र है (नीचे नैन अर्थात विनम्रता) वही उच्च कोटि के मनुष्य हैं. रहीम के विषय में एक कहानी कही जाती है कि वे बहुत दानी पर विनम्र स्वभाव के व्यक्ति थे. किसी ने उन्हें लिख कर भेजा – सीखी कहाँ रहीम ज्यू ऐसी देनी देन, ज्यौं ज्यौं कर ऊंचे करो, त्यौं त्यौं नीचे नैन. रहीम ने जवाब में लिखा – देनहार कोऊ और है, भेजत है दिन रैन, लोग भरम मो पे करें, तासे नीचे नैन.
दया बिनु संत कसाई. जिस संत के मन में दया नहीं है वह कसाई के समान है.
दरदी ही जाने दरदी की गति (दर्द को वह समझे जो खुद दर्दमंद हो). दूसरे का कष्ट वही जान सकता है जिसने स्वयं वह कष्ट झेला हो.
दरबार गये घरबार न सूझे. जिनको ऊँचा सरकारी पद मिल जाता है वे फिर अपने घरवालों को ही नहीं पूछते.
दरबार तक पहुँच हो तो दरबारी के पास क्यों जाए. बड़े आदमी से सीधे सम्बंध हों तो चमचों के पास क्यों जाएं.
दरया पर जाना और प्यासे आना. यदि किसी याचक को बहुत सम्पन्न व्यक्ति के यहाँ से खाली हाथ लौटना पड़े तो यह कहावत कहते है.
दरवाजे पर आई बरात, समधन को लगी हगास. जब बरात किसी के घर आती है तो द्वारचार में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका लड़की की मां की होती है. उस समय अगर उस को शौच लगने लगे तो बड़ी परेशानी होगी, ख़ास तौर पर उस जमाने में जब शौच के लिए लोटा ले कर बाहर जाना होता था. किसी अति आवश्यक कार्य के समय महत्वपूर्ण व्यक्ति के साथ कोई परेशानी आ जाए तो यह कहावत बोलते हैं.
दरवे से सरवे, चहबे सो करवे. दरवे – द्रव्य, धन; सरवे – सर्व, सब कुछ; चहबे – जो चाहो; करवे – करो. धन से ही सब कुछ है. धन पास में हो तो जो चाहे कर सकते हो. संस्कृत में कहा है – अर्थस्य सर्वे वशा:
दरिद्दर से परोसवाए न, किरपन से कहलवाए न. भूखे आदमी से खाना परोसवाने का काम नहीं करना चाहिए और कंजूस से कुछ देने के लिए किसी से कहलवाना नहीं चाहिए. ये दोनों ही काम निरर्थक सिद्ध होते हैं.
दरिद्र का लड़का रोटी के सपने देखे. गरीब का बेटा बेचारा सपने भी बहुत बड़े देखना नहीं जानता.
दरिद्रता को मूल एक आलस बखानिए. आलसी व्यक्ति हमेशा दरिद्र ही रहता है.
दरिया यहु संसार है, राम नाम निज नाव, दादू ढील न कीजिये, यहु औसर यहु दाव. दादू के अनुसार यह संसार एक बड़ी नदी के समान है और राम का नाम हमारी नाव है. इस नाव को निरंतर चलाओ तभी पार पहुंचोगे.
दर्जी का क्या सामान और क्या मुकाम. कहावत उस समय की है जब बड़ी बड़ी टेलर शॉप नहीं हुआ करती थीं और दर्जी लोग अपना सुई धागा ले कर घर घर घूम कर काम करते थे.
दर्जी की सुई, कभी रेशम में कभी टाट में. दर्जी की सुई कीमती रेशम को भी सिलती है और घटिया टाट को भी. किसी ऐसे व्यक्ति या उपकरण के लिए कहावत कही जाती है जो सभी तरह के काम करता हो.
दर्शन मोटे, करतब खोटे. तड़क भड़क और दिखावा अधिक, काम बहुत कम या बहुत गलत काम.
दलाल का दिवाला क्या मस्जिद का ताला क्या. जिस व्यापार में पूंजी लगाई गई हो उस में अत्यधिक घाटा हो जाने पर दीवाला निकलने का डर रहता है. लेकिन दलाली एक ऐसा धंधा है जिस में व्यक्ति की स्वयं की पूंजी नहीं लगती इस लिए उस में दीवालिया होने का कोई डर नहीं है. इसी प्रकार किसी भी इमारत में कोई न कोई सामान अंदर रखा होता है जिस की चोरी न हो इसलिए ताला लगाया जाता है. मस्जिद एक ऐसी इमारत है जहाँ कोई सामान नहीं होता इस लिए ताले की कोई जरूरत नहीं है.
दलाली बेशरम की, सर्राफी भरम की, दौलत करम की, बात मरम की. दलाली का काम करने के लिए काफी बेशर्मी करनी पड़ती है, सर्राफ वही बड़ा बनता है जो बाजार में अपना भरम बना कर रखे, धन वही कमा सकता है जो कर्म करता हो, बात वही दमदार होती है जिसमें कुछ मर्म हो.
दलिद्दर घर में नोन पकवान. घोर गरीबी में रहने वाले इंसान के लिए नमक भी पकवान के समान है.
दलिद्दर बहुत दुखदाई. दलिद्दर – दारिद्र्य. दरिद्रता बहुत दुख देती है.
दलिद्दर से जंजाल भला (कंगाल से जंजाल भला). दलिद्दर माने दरिद्रता, गरीबी. धन कमाने के लिए बहुत से जंजाल झेलने पड़ते हैं. लेकिन घोर गरीबी में जीने के मुकाबले यह जंजाल झेलना अधिक अच्छा है.
दवा की दवा और गिज़ा की गिज़ा. ऐसी वस्तु जिससे पेट भरे, ताकत आए और रोग भी ठीक हों. जैसे दूध से बनी चीजें, फल और मेवे.
दवा भीतर, दम बाहर. नीम हकीमों की खतरनाक दवा पर व्यंग्य.
दशहरे के नीलकंठ. ऐसा व्यक्ति जो बहुत मुश्किल से दिखायी दे. दशहरे के दिन प्रातःकाल नीलकंठ के दर्शन शुभ माने जाते हैं. लोग उसे इधर-उधर खोजते फिरते हैं और दैवयोग से ही उसके दर्शन होते हैं.
दस टके न इतराई, दस संगे इतराई. किसी के पास दस रूपये आ जाएँ तो उसे नहीं इतराना चाहिए, यदि किसी के साथ दस लोग हों तो उसे इतराना चाहिए.
दस पाँच लड़के इक संतोस, गदहा मारे कुछ नहिं दोस. अपराध करने वालों में कोई अपना भी शामिल होता है तो नियम कानून बदल जाते हैं. सन्दर्भ कथा – दस-पाँच लड़कों के साथ संतोष भी है, तो गदहा मारने में कोई दोष नहीं. एक बार कुछ लड़कों ने मिल कर एक गदहे को मार डाला. जब यह बात गाँव में फैली तो लड़कों के माँ बाप घबरा कर पण्डित जी के पास यह जानने के लिए गये कि गदहा मारने पर क्या दोष लगता है. पण्डित जी ने उसे महापाप बतलाते हुए, उससे मुक्ति के लिए अनेक लम्बे-चौड़े विधान बताये. तभी किसी ने कहा कि पण्डित जी, आपका लड़का संतोष भी इसमें शामिल था. पण्डितजी फौरन अपनी बात से पलट गए. बोले गदहा मारने से कोई दोष नहीं लगता, दोष केवल गाय को मारने में होता.
दस भाइयों की बहन कुँवारी डोले. ज्यादा भाई होते हैं तो एक दूसरे पर बहन के विवाह की जिम्मेदारी डाल देते हैं. इस प्रकार की दूसरी कहावत है – सात बेटों की माँ गंगा न पावे.
दस भोला भाला, बीस बावला, तीस तीखा, चालीस चोखा, पचास पका, साठ थका, सत्तर भूला, अस्सी लूला, नब्बे नागो और सौ भागो. हर अवस्था के व्यक्ति की विशेषता बताई गई है. 10 वर्ष की आयु में भोला भाला, 20 वर्ष की आयु में जुनूनी, 30 वर्ष की आयु में तेजतर्रार और कड़क, 40 वर्ष की आयु में अनुभवी, 50 वर्ष की आयु में परिपक्व, 60 वर्ष की आयु तक थोड़ा थकने लगता है, 70 वर्ष में भूलना शुरू हो जाता है, 80 में चलना फिरना मुश्किल, 90 में अपनी देखभाल स्वयं नहीं कर सकता इसलिए नंगा रहता है और 100 वर्ष की अवस्था का मतलब अब संसार से कूच का समय आ गया.
दस्तरखान के बिछाने में सौ ऐब, न बिछाने में एक ऐब. खाने की मेज पर जो कपड़ा बिछाया जाता है उसे दस्तरखान कहते हैं. आप दस्तरखान बिछाते हैं तो उस में बहुत सी कमियाँ निकाली जाती हैं, मसलन – गंदा है, छोटा है, ठीक से नहीं बिछाया वगैरा. लेकिन अगर आप नहीं बिछाते हैं तो एक ही बात रह जाती है कि दस्तरखान नहीं बिछाया. जहाँ यह संभावना हो कि काम में कमियाँ निकाली जाएंगी वहाँ काम न करना ही अच्छा है.
दही के धोखे चूना खा गये. ठगे गये. अपनी नासमझी से लाभ के बदले उल्टी हानि उठा गये.
दही परोसत खोंप लगी. नाजुकपने की हद. हाथ से दही निकालने में हाथ कट गया.
दही में मूसर पटक दओ. मूसर – मूसल. शुभ कार्य में विघ्न डाल दिया. बना बनाया काम चौपट कर दिया.
दाँत टूटा साँप जोर से फू-फू करता है. दांत टूटने के बाद सांप जोर से फुफकार कर डराने की कोशिश करता है. शक्ति छिन जाने के बाद दुष्ट व्यक्ति अधिक भयंकर दिखने की कोशिश करता है.
दाँत दाँत तुम बत्तीस, हमरी तुमरी कौन रीस, हम कमायें तुम बैठे खाओ, मरती बेराँ संग न जाओ. दाँतों के संबंध में बूढ़े आदमियों का कथन. रीस – बराबरी, मरती बेराँ – मरते समय.
दाँतों पसीना आ जायगा. अत्यन्त परिश्रम साध्य कार्य के लिए कहा जाता है.
दाँया धोए बांये को और बाँया धोए दांये को. कोई भी हाथ स्वयं अपने आप को नहीं धो सकता. दायें हाथ को धोने के लिए बायाँ हाथ जरूरी है और बाएँ को धोने के लिए दाहिना. समाज में सभी लोग एक दूसरे पर निर्भर होते हैं इसलिए सब को साथ मिल कर चलना चाहिए और एक दूसरे की मदद करना चाहिए.
दांत आते भी दुख दें और जाते भी दुख दें. शाब्दिक अर्थ तो स्पष्ट है. कहावत के द्वारा ऐसे लोगों पर व्यंग्य किया गया है जो आते समय भी और जाते समय भी दुख देते हैं.
दांत कुरेदने को तिनका नहीं बचा. आग या बाढ़ आदि आपदाओं में सब कुछ नष्ट हो जाने पर.
दांतले खसम का ना रोते का पता चले न हंसते का. (हरयाणवी कहावत) जिस आदमी के दांत बाहर हों उस का मजाक उड़ाने के लिए. यह पता लगाना मुश्किल होता है कि वह हँस रहा है या रो रहा है.
दांतों का काम आँतों से नहीं लेना चाहिए. भोजन को पीसने का काम दांतों का है और पचाने का काम आँतों का. कहावत द्वारा उन लोगों को सीख दी गई है जो लोग भोजन को बिना ठीक से चबाए निगल जाते हैं.
दांव में आई, मरे बिलाई. बिल्ली जैसा चालाक प्राणी भी कभी कभी दांव में फंस जाता है. कोई कितना भी धूर्त हो कभी न कभी दांव में फंस सकता है.
दाई से क्या पेट छिपाना. जो जिस विषय का जानकार है उस से संबंधित राज नहीं छिपाना चाहिए.
दाउ दयाल ब्रज के राजा, भांग पीवे तो मथुरा (या स्थान का नाम) आजा. भांग पीने वालों का कथन.
दाख छुआरा छांड़ि अमर फल, विष कीड़ा विष खात. विषैले फल खाने वाला कीड़ा, किशमिस छुआरा आदि छोड़ कर विष खाता है.यह उसी प्रकार है जैसे दुनिया में एक से एक स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक चीजों के होते हुए भी शराब व तम्बाखू आदि का सेवन करने वाले उन्हीं के पीछे भागते हैं.
दाख पके जब काग के होय कंठ में रोग. जब अंगूर पक कर तैयार हुए तो कौवे के गले में ऐसी बीमारी हो गई कि वह उन्हें खा ही नहीं सकता. जब कोई चीज प्राप्त करने में दुर्भाग्य आड़े आ जाए.
दाग लगाए लँगोटिया यार. जिगरी दोस्त आपकी बहुत बदनामी कर सकता है (क्योंकि वह सब राज जानता है).
दाढ़ी मूंछ मर्द, सीगीं पूंछ बर्द. मर्द की पहचान है दाढ़ी और मूंछ तथा बैल की पहचान है सींग और पूंछ.
दाता कहने से बनिया गुड़ देता है. यदि किसी से कोई काम निकालना हो तो उसकी प्रशंसा करनी चाहिए. बनिए से कहोगे कि भाई आप बड़े दानी दाता हो तो वह खुश हो कर गुड़ दे देगा.
दाता की नाव पहाड़ चढ़े. दाता के सब काम आसानी से हो जाते हैं.
दाता के घर लच्छमी ठाड़ी रहत हजूर, जैसे गारा राज को भर भर देत मजूर. दानी व्यक्ति पर लक्ष्मी की विशेष कृपा रहती है. लक्ष्मी उस को इस प्रकार भर भर कर सम्पत्ति देती है जैसे मजदूर राज मिस्त्री को भर भर कर गारा देता है.
दाता के तीन गुण, दे, दिलावे, छीन ले. दाता स्वयं भी देता है और दूसरों से दिलाता भी है, पर जब क्रुद्ध होता है तो छीन भी लेता है. यहाँ दाता का अर्थ ईश्वर से है.
दाता को राम छप्पर फाड़ कर देता है. दानी व्यक्ति को ईश्वर भरपूर मदद देता है.
दाता दाता मर गए, रह गए मक्खीचूस. कोई जरूरतमंद व्यक्ति कई स्थानों से निराश होने के बाद कुढ़ कर यह बात कहता है.
दाता दातार सुथनी उतार. उच्च कोटि का दाता अपने कपड़े भी उतार कर दे देता है. सुथनी – पायजामा.
दाता दान से फले, सूम अदावत से जले. दाता अपनी सम्पत्ति में से दान दे कर भी फलता फूलता है और कंजूस बेवजह उस से दुश्मनी मान कर जलता रहता है (और इस इर्ष्या में अपना ही नुकसान करता है).
दाता दानी सूर नृप, मंत्री बैद सचान, जे सब निर्भय चाहिये, जामिन, जुआ, किसान. सचान – बाज पक्षी, जामिन – जमानत देने वाला. ये सभी लोग साहसी हों तभी काम होता है.
दाता दे भण्डारी का पेट फटे (दाता दे, भंडारी पेट फाड़े). भंडारी वह व्यक्ति होता है जो अनाज आदि के भंडारों का रख रखाव करता है. कहावत में कहा गया है कि दान तो दाता दे रहा है और भंडारी को कष्ट हो रहा है.
दाता देवे और शरमावे, पानी बरसे और गरमावे. जो सच्चे दानवीर होते हैं वे दान दे कर उस पर अहंकार नहीं करते बल्कि लज्जा और विनम्रता प्रकट करते हैं. तुक बंदी करने के लिए एक बिलकुल असम्बद्ध बात जोड़ दी गई है कि पानी बरसने के बाद गर्मी बढ़ जाती है.
दाता पुन्न करे, कंजूस जोड़ जोड़ मरे. जो लोग अपनी सम्पत्ति में से यथाशक्ति दान करते हैं वे पुन्य कमाते हैं जबकि कंजूस लोग जोड़ जोड़ कर ही मर जाते हैं.
दाता से सूम कहे हमहूँ राजकुमार. दाता को धन देते देखकर कोई कंजूस कह रहा है कि हम भी तुम्हारी तरह राजकुमार हैं. झूठे बड़प्पन की कामना करना.
दाद खाज अरु सेउआ बड़भागी के होंय, पड़े खुजावें खाट पर बड़ी अनंदी होय. जो बेचारे दाद, खाज और खुजली से परेशान हों उन का मजाक उड़ाने के लिए यह कहावत कही गई है (कि वे बड़े भाग्यवान हैं जो खाट पर पड़े खुजाने का आनंद ले रहे हैं).
दाद, खाज और राज, बड़भागी को ही मिलते हैं. कोई खुजली से मरा जा रहा हो तो उस के जले पर नमक छिड़कने के लिए. दाद और खाज की तुलना राज्य मिलने से की गई है.
दादा कहे सरसों ही लादना. दादाजी ने कहा था कि सरसों का ही व्यापार करना तो केवल वही करेंगे. बिना अपनी बुद्धि प्रयोग करे लकीर के फकीर बनना.
दादा की बेटी लुगरी और भाई की बेटी चुनरी. लुगरी – फटी पुरानी धोती. बुआ की कोई इज्जत नहीं और भतीजी से प्यार.
दादा के भरोसे फौजदारी. मूर्खता पूर्ण कार्य. दादा कितने भी प्रभावशाली क्यों न हों, उन के भरोसे मार पीट नहीं करनी चाहिए. दादा के न रहने पर कौन बचाने आएगा. फौजदारी – मारपीट.
दादा खरीदे और पोता बरते. कोई चीज़ बहुत टिकाऊ है यह बताने के लिए यह कहावत कही जाती है.
दादा मर गया रोता, मरने के बाद हुआ पोता. जब किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उस की इच्छा पूरी हो.
दादा मरिहैं तो भोज करिहैं. किसी काम को लम्बे समय के लिए टालना (किसी से दावत मांगी जा रही है तो कह रहा है कि दादा मरेंगे तो भोज करेंगे).
दादी को मत सिखलाओ कि जच्चगी कैसे होती है. अपने से अधिक अनुभवी व्यक्ति को सिखाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए.
दादू दावा छोड़ दे, निरदावा दिन काट, केतेक सौदा कर गए, पंसारी की हाट. संत दादू कहते हैं कि दुनिया की मोह माया पर दावा करना छोड़ दो. जाने कितने यहाँ आए और चले गए. इस बाज़ार में सौदा सब करते हैं पर कोई कुछ ले कर नहीं गया.
दादो घी खायो, म्हारो हाथ सूँघ ल्यो. हमारे दादा बहुत घी खाते थे, हमारा हाथ सूँघ कर देख लो. जिन के बाप दादे बड़े आदमी थे पर वे वर्तमान में कुछ भी नहीं हैं, वे लोग हर समय अपने बाप दादाओं का बखान करते हैं.
दान की गाय है तो क्या चलनी में दुहेंगे. दान में मिली हुई चीज को व्यर्थ ही बर्बाद नहीं किया जाता. चलनी में दूध दुहने का अर्थ है दूध को ऐसे ही बहा देना.
दान की बछिया के दांत नहीं गिने जाते. जब आप गाय की बछिया खरीदने जाते हैं तो उसके दांत गिन के देखते हैं कि वह उत्तम प्रजाति की है या नहीं. लेकिन अगर बछिया दान में मिली है तो यह सब थोड़े ही देखा जाता है. अगर कोई व्यक्ति मुफ्त में मिली चीज में मीन मेख निकालता है तो यह कहावत कही जाती है.
दान दहेज़ बह जाएगा, छाती कूटता रह जाएगा. जो लोग दान दहेज़ के चक्कर में रहते हैं उन्हें सीख दी गई है कि यह सब मिला हुआ धन नष्ट हो जाएगा और पैसे वाले घर की नकचढ़ी लड़की अपने घर में ला कर जीवन भर पछताना पड़ेगा.
दान दीन को दीजिए, मिटे दीन की पीर, औषध बाको दीजिए जा के रोग शरीर. जो गरीब है उसी को धन का दान दीजिए. उसी प्रकार जैसे औषधि केवल उसी को दी जाती जो रोगी है.
दान में से दान देय, तीन लोक जीत लेय. जो व्यक्ति स्वयं दीन हीन होते हुए दान में मिले हुए पैसे में से दूसरों को दान दे उससे बढ़ कर संसार में कोई नहीं.
दान वित्त समान. 1. जरूरत मंदों को दान देना एक उत्तम निवेश है. यही वह धन है जो आपके साथ जाएगा. 2. अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान देना चाहिए.
दाना खाए न पानी पीवे, ऐसन आदमी कैसे जीवे. कुछ लोग चाहते हैं कि अपने कर्मचारी या मजदूर को खाने पीने न दें बस काम में जोते रहें. ऐसे लोगों के लिए.
दाना न घास, खरहरा छ: छ: बार. खरहरा कहते हैं खुरदुरी चीज़ से घोड़े की मालिश करने को जो दिन में एक बार करना पर्याप्त रहता है. अपने कर्मचारी को आवश्यक वस्तुए न दे कर फ़ालतू की चीजें देते रहना.
दाना न घास, घोड़ी तेरी आस. घोड़ी को खिलाने के लिए न दाना है न घास लेकिन घोड़ी पालने की इच्छा रखते हैं. साधन न होते हुए भी दिवास्वप्न देखना.
दाने को टापे, सवारी को पादे. ऐसे घोड़े के विषय में कहा गया है जो दाना खाने की जुगत में हर समय रहता है, पर सवारी बैठाने के नाम पर पादने लगता है.
दाने दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम. जो जिस के भाग्य में लिखा है वह उसी को मिलेगा.
दाम करे सब काम, बीवी करे सलाम. पैसा हो तभी पत्नी भी आदर करती है.
दाम दीजे, काम लीजे. मुँह मांगा पैसा दीजिये और मनमाफ़िक काम लीजिए.
दाम देओ चक्कर खाओ, टूटे हिंडोला जान से जाओ. मेले में लगने वाले झूले में गाँठ के दाम दो और चक्कर खाओ, हिंडोला टूटे तो जान से हाथ धोओ. व्यर्थ का काम जिसमें खर्च भी हो और खतरा भी उठाना पड़े.
दाम बनावे काम (दाम सँवारे काम) (लगे दाम बने काम). पैसा हर काम बना देता है.
दामाद का झोला कभी नहीं भरता. जमाई को कितना भी दो वह संतुष्ट नहीं हो सकता.
दामों रूठा बातों नहीं मानता. जो पैसे के लेनदेन पर रूठा हो वह केवल बातों से नहीं मानता.
दारा, सुत, बित, बंधु सब, नदी नाव संबंध. दारा – स्त्री, सुत – पुत्र, बित – वित्त, धन. संसार के सारे रिश्ते और धन उसी प्रकार अस्थायी हैं जिस प्रकार से नदी और नाव का सम्बन्ध होता है.
दारु तो हाथी को भी पटक देती है. हाथी जैसा ताकतवर प्राणी भी यदि शराब पी लेगा तो नशे में ढेर हो जाएगा. कहावत द्वारा शराब से बचने की सलाह दी गई है.
दाल भात चोखा, कबहुं न करे धोखा. दाल भात से यहाँ अर्थ है सादा और पौष्टिक भोजन. सादा भोजन सबसे अच्छा है, जिससे स्वास्थ्य अच्छा रहता है और उसे कमाने के लिए गलत काम भी नहीं करने पड़ते.
दाल भात तरकारी, सब माल सरकारी. दूसरों के माल पर मौज उड़ाने वालों पर व्यंग्य.
दाल भात में मूसर चंद. किसी आनन्ददायक काम में विघ्न डालने वाला. किसी बने बनाए काम को गुड़ गोबर करने वाला.
दाल भात लंबा जैकारा, ए बाई परताप तुम्हारा. कोई व्यक्ति यदि अपनी जवान बेटी को किसी बूढ़े को ब्याह दे तो बेटी की ससुराल में उसकी खूब खातिरदारी होती है. ऐसे किसी व्यक्ति का कथन.
दाल में कुछ न कुछ काला है. जहाँ कुछ गड़बड़ी की आशंका हो वहाँ यह कहावत कही जाती है.
दाल में नमक, सच में झूठ. जितना दाल में नमक होता है उतना सच में झूठ चल जाता है.
दावत नहीं, अदावत है. अदावत – झगड़ा, दुश्मनी. 1. दावत देने से कुछ लोग तो खुश होते हैं पर बहुत से लोग नाराज़ भी हो जाते है. (यहाँ तक कि कुछ लोग दुश्मनी तक मानने लगते हैं). 2. अधिक लोगों की दावत करना बहुत झंझट का काम है.
दावत में सबसे पहले पहुँचो और लड़ाई में सबसे बाद. दावत में पहले पहुँचने का फायदा यह है कि सबसे बढ़िया और ताज़ा माल खाने को मिलता है, जहाँ लड़ाई हो रही हो वहाँ बाद में इसलिए पहुँचो कि तब तक खतरा टल चुका होता है.
दावा किया, तकादा गया. जब आप अपने रुपए की वसूली के लिए किसी के ऊपर मुकदमा कर देते हैं तो फिर उस से तकादा नहीं कर सकते.
दासा सदा उदासा. जो किसी का दास हो वह कभी सुखी नहीं रह सकता.
दासी करम, कहार से नीचे. किसी एक व्यक्ति की नौकरानी बन के काम करना सबसे खराब काम है. उस से अच्छी कहारिन है जो घर घर जा कर काम करती है लेकिन किसी की गुलामी नहीं करती.
दाहिने काग सुखेन सुहावा, नकुल दरस सब काहू पावा. नकुल – नेवला. यात्रा के समय यदि दाहिनी तरफ खेत में कौवा दिखाई पड़े तो बड़ा शुभ माना जाता है. और नेवला दिख जाए तब तो सब कुछ मिल जाता है.
दिन अस्त, मजूर मस्त. दिन भर काम में खपने वाला मजदूर शाम होने पर सुख की सांस लेता है.
दिन आया रावण मरे. बुरा समय आने पर रावण जैसा सर्वशक्तिमान व्यक्ति भी मारा गया.
दिन ईद, रात शबेरात. हर समय मौज ही मौज.
दिन कटे काम से, रात कटे नींद से, राह कटे साथ से. अर्थ स्पष्ट है.
दिन के पीछे रात और रात के पीछे दिन. कहावत के द्वारा यह सीख दी गई है कि जिस प्रकार दिन के बाद रात अवश्य आती है और रात के बाद दिन, उसी प्रकार जीवन में सुख के बाद दुख अवश्य आता है और दुख के बाद सुख. इसलिए दुख में दुखी मत हो और सुख में घमंड न करो.
दिन चोखे होवें व्यापार चले और न्यौते आवें, दिन आड़े होवें तो माल घटे और पाहुने आवें. अच्छे दिन होते हैं तो व्यापार भी चलता है, आमदनी होती है और निमंत्रण मिलते हैं. दिन बुरे होते हैं तो व्यापार भी नहीं चलता, घाटा होता है और घर में मेहमान भी आ जाते हैं जिन के ऊपर खर्च भी करना पड़ता है.
दिन दस आदर पाए के करनी आप बखान, जब लौं काग सराध पख तब लग को सन्मान. बहुत से लोगों का विश्वास है कि पितृ लोग श्राद्ध पक्ष में कौवे का रूप धर कर भोजन करने आते हैं, इसलिए लोग कौवों को भोजन कराते हैं. यह सम्मान केवल श्राद्ध पक्ष समाप्त होने तक ही मिलता है. थोड़े समय के लिए सत्ता या अधिकार पा जाने पर जो लोग इतराने लगते हैं उनको सीख देने के लिए यह कहावत कही गई है.
दिन दीखे न फूहड़ पीसे. जब तक उजाला नहीं होता तब तक फूहड़ स्त्री यही सोचती है कि अभी रात है और गृह कार्य करना आरम्भ नहीं करती.
दिन नीके कंकर मोती (दिन अच्छे होते हैं तो कंकड़ जवाहर हो जाते हैं). भाग्य साथ देता है तो हर काम में लाभ होता है. अच्छे दिन आते हैं तो कंकड़ मोती बन जाते हैं.
दिन बुरे आते हैं तो सोने में हाथ डालो मिट्टी हो जाता है, दिन भले आते हैं तो मिट्टी छूने से सोना बन जाती है. अर्थ स्पष्ट है.
दिन भर ऊनी ऊनी, रात को चरखा पूनी. दिन में समय बर्बाद करती रही और रात में चरखा और पूनी (रूई का गोला) ले कर बैठी. समय पर काम न कर के अंत में बेसमय उल्टा सीधा काम करने वाले लोगों के लिए.
दिन भर खेली आले माले, जूआँ ढूँढे दिया उजाले (कातन बैठी दिया उजाले). दिन भर इधर उधर खेलती रही और रात में दीये के उजाले में जूएँ बीनने बैठी. अर्थ ऊपर वाली कहावत की भांति.
दिन भर घूमें यहाँ वहाँ. रात में कहें मैं लेटू कहाँ. आवारा और मटरगश्ती करने वाले लड़कों के लिए.
दिन भले आएँगे तो घर पूछते चले आएंगे. जब आदमी के अच्छे दिन आने होते हैं तो उसे कोई प्रयास नहीं करना पड़ता वे अपने आप चले आते हैं.
दिन में गर्मी रात में ओस, कहे घाघ वर्षा सौ कोस. अगर दिन में गर्मी हो और रात में ओस गिरे तो घाघ कवि कहते हैं कि दूर दूर तक वर्षा की कोई संभावना नहीं है.
दिन में बादल रात में तारे, चलो कंत कहीं करें गुजारे. यदि चौमासे में कभी दिन में बादल छाए रहें पर रात में तारे दिखने लगें तो यह वर्षा न होने (अकाल पड़ने) के लक्षण हैं. ऐसे में किसान की स्त्री अपने पति को सुझाव दे रही है कि गुजारा करने के लिए कहीं और चलो. रूपान्तर – दिन को बादर रात तरैया, ना जाने प्रभु काह करैया
दिन में भैया, रात में सैंया. चरित्रहीन स्त्रियाँ सबको धोखा देने के लिए अपने यार को भाई बताती हैं.
दिन में सोवे, रोजी खोवे. जो दिन में सोता है वह अपनी जीविका खो देता है.
दिनन के फेर से सुमेरू होत माटी को. जब बुरा समय आता है तो बड़े बड़े लोग मिट्टी में मिल जाते हैं (सुमेरु जैसा विशालकाय पर्वत भी मिट्टी हो जाता है).
दिया कलेजा काढ़, हुआ नहिं आपना. अपना कलेजा निकाल कर दे दिया फिर भी वह अपना न हुआ.
दिया तो मुंह चाँद था, न दिया तो सियार की मांद था. जब तक किसी को कुछ देते रहो वह आपकी बड़ाई करता है (आपके मुँह को चाँद सा बताता है) और न दो तो गाली देने से बाज भी नहीं आता (आपकी शक्ल को सियार की मांद जैसा बताने लगता है).
दिया न बाती, बांदी फिरे इतराती. कुछ न होते हुए भी घमंड करना.
दिया भूलो, लिया कभी न भूलो. इस का अर्थ दो तरह से किया जा सकता है. 1. किसी को धन या कोई वस्तु उधार दिया हो तो भले ही भूल जाओ पर उधार ले कर कभी नहीं भूलना चाहिए. 2. किसी पर उपकार किया हो तो जताओ नहीं और कुछ पाने की अपेक्षा मत करो. किसी ने आप पर उपकार किया हो तो उसके कृतज्ञ रहो.
दिया लिया सब बह गया, रह गई कानी बहू. किसी ने अधिक दहेज़ के लालच में कानी लड़की से शादी कर ली. रुपया पैसा तो थोड़े दिनों में ही खर्च हो गया, पर अब कानी बहू को जीवन भर झेलना पड़ेगा.
दिया लिया ही काम आता है. दिया हुआ दान परलोक में काम आता है.
दिये का प्रकाश धरती पर, दिए का प्रकाश स्वर्ग तक. दिये का (दीपक का) प्रकाश धरती पर ही फैलता है जबकि दिए का (दान का) प्रकाश स्वर्ग तक साथ चलता है.
दियो संत-संताप भल, बुरो दुष्ट सनमान. संतों के द्वारा दिया गया संताप भी भला होता है और दुष्टों के द्वारा दिया गया सम्मान भी बुरा होता है.
दिल का रास्ता पेट से हो कर जाता है. किसी को खुश करना हो तो उसे अच्छी अच्छी चीजें खिलाना चाहिए.
दिल को होए करार तब सूझे त्यौहार. मन में चैन हो तभी उत्सव इत्यादि अच्छे लगते हैं.
दिल जाने सो ही दिलदार. वही सच्चा मित्र या प्रेमी है जो आपके दिल का हाल जानता है और समझता है.
दिल मिले की यारी. दिल मिलते हैं तभी दोस्ती होती है.
दिल में न हो रार, तबहिं मने त्यौहार. किसी से कोई लड़ाई, झगड़ा न हो तभी त्यौहार मनाने का मन करता है.
दिल में रहम हो, जुबान नरम हो, आँखों में शरम हो, तो सब कुछ तुम्हारा है. स्पष्ट है.
दिल में हो आग तो शब्द बनें शोले. जला भुना आदमी जली कटी बातें बोलता है.
दिल लगा गधी से तो परी क्या करे (दिल लगा मेंढकी से तो पद्मिनी क्या चीज़ है). आदमी को जिस स्त्री से प्रेम हो जाए उसके आगे सब बेकार लगती हैं.
दिल से दिल को राह है. एक दूसरे से मन मिल जाना ही सब से बड़ा सुख है.
दिलेरी मर्दों का गहना है. स्त्रियाँ के शरीर पर बहुत से गहने अच्छे लगते हैं पर पुरुषों के लिए तो साहस और शूरता ही सबसे बड़े गहने हैं.
दिलों में ख़ाक उड़ती है, फकत मुँह पर सफाई है. दिल में ख़ाक उड़ने का अर्थ दुखी होने से भी है और ईर्ष्या में जलने से भी. जहाँ लोग ऊपर से ख़ुशी जाहिर करते हैं पर अंदर से दुखी हैं वहाँ यह कहावत कही जाती है.
दिल्लगी अच्छी भी है और बुरी भी है. मजाक करने के अपने कुछ लाभ हैं पर बहुत से खतरे भी हैं.
दिल्ली की कमाई, दिल्ली में ही गंवाई. बड़े शहरों में कमाई तो अच्छी होती है पर खर्च भी बहुत होता है.
दिल्ली की गद्दी लई, सुरा सुन्दरी राग. दिल्ली की गद्दी पर बैठने वाले सुरा, सुंदरी और संगीत के चक्कर में पड़ कर गद्दी की रक्षा नहीं कर पाए.
दिल्ली की तुर्कनो मरे और बूंदी का राजपूत सिर मुंडाए. किसी अनजान व्यक्ति के दुख में अनावश्यक दुखी होना. तुर्कनो – मुस्लिम स्त्री.
दिल्ली की बेटी गोकुल की गाय, करम फूटे तो बाहर जाय. दिल्ली में पली बढ़ी लड़की को दिल्ली के बाहर कहीं अच्छा नहीं लगता. उसकी शादी कहीं बाहर हो जाए तो उसे लगता है कि उस के करम फूट गए. इसी प्रकार गोकुल में पलने वाली गाय गोकुल से बाहर जा कर खुश नहीं रह सकती.
दिल्ली के बांके, जूती में सौ सौ टाँके. दिल्ली वालों का मज़ाक उड़ाने के लिए कहा गया है. (अपने आप को बड़ा भारी अफलातून समझते हैं और जूते में मार तमाम टांके लगे हुए हैं).
दिल्ली के लड्डू, जो खाय सो पछताय, जो न खाय सो पछताय. दिल्ली से बाहर रहने वाले दिल्ली में रहने के लिए लालायित रहते हैं, पर जो दिल्ली में रहते हैं वे जानते हैं कि दिल्ली में रहना कितना कठिन काम है.
दिल्ली में क्या दीवालिए नहीं रहते. कोई स्थान कितना भी सम्पन्न क्यों न हो, वहाँ रहने वाले सभी लोग धनी नहीं होते.
दिल्ली में दरबारी से अपने गाँव की लंबरदारी भली. राजा के दरबार में दरबारी बनने के मुकाबले गाँव की जमींदारी ज्यादा अच्छी है. यहाँ आप अपने मालिक खुद हैं जबकि वहाँ किसी के गुलाम हैं.
दिल्ली शहर दिल वालों का, मुंबई पैसे वालों का, कोलकाता कंगालों का. अर्थ स्पष्ट है. कलकत्ते वालों से निवेदन है कि कहावत का बुरा न मानें. मालूम नहीं क्यों कोई व्यक्ति भूखा हो तो उसे भूखा बंगाली कहा जाता है.
दिल्ली से हींग आई, तब बड़े पके. किसी काम में आडम्बर के कारण अनावश्यक देर लगना.
दिवस जात नहिं लागहिं बारा. अच्छे दिन हों या बुरे, अंततः सब बीत जाते हैं.
दिवाली के बोये दिवालिया. दीवाली के बाद खेत बोया जाय तो अनाज की कोई उम्मीद नहीं करनी चाहिए.
दिवाले में डेढ़ हिस्सा. जिसे हर काम में घाटा ही घाटा होता हो.
दीन की सेवा ही दीनबंधु की सेवा है. दीन हीन व्यक्ति की सेवा ही ईश्वर की सच्ची सेवा है.
दीन दुनिया की खबर नइयाँ. किसी बात का पता न रखना. दुनिया से बेखबर रहना.
दीन सबन को लखत है, दीनहिं लखै न कोय, जो रहीम दीनहिं लखै, दीनबंधु सम होय. दीन हीन व्यक्ति सब की ओर आशा भरी नजरों से देखता है लेकिन उसकी ओर कोई नहीं देखता. जो दीन की ओर ध्यान देता है वह दीनबंधु ईश्वर के समान होता है.
दीन से दुनिया रखनी मुश्किल है. दीन – धर्म (उर्दू). धर्म पर चलो तो दुनिया में रहना मुश्किल है.
दीन से दुनिया है. धर्म पर ही संसार टिका है.
दीमक का खाया पेड़ और चिंता का खाया शरीर किसी काम के नहीं रहते. जिस पेड़ के तने को दीमक खा ले वह सूख जाता है, इसी प्रकार चिंताओं का मारा व्यक्ति भी किसी काम का नहीं रहता.
दीये की बाती जो सरकाए, उसका भी हाथ चिकना हो जाए. दिया बुझने लगता है तो उस की बत्ती को हल्के से बाहर सरकाना होता है. अच्छे काम में जो हाथ बंटाता है उस को भी कुछ न कुछ लाभ हो जाता है.
दीरघ सांस न लेय दुख, सुख साईँ न भूल, दई दई का करत है, दई दई सो कबूल. दई – दैव, दई – दिया है. दैव – दैव क्यों चिल्लाते हो. दैव (ईश्वर) ने जो दिया है उसे स्वीकार करो.
दीवानी आदमी को दीवाना कर देती है. दीवानी – मुकदमेदारी. मुकदमेदारी आदमी को पागल कर देती है.
दीवाने को बात बताई, उसने ले छप्पर चढ़ाई. मूर्ख आदमी को गोपनीय बात बताओगे तो वह सारे में फैला देगा.
दीवार खाई आलों ने, घर खाया सालों ने. दीवार में आले अधिक हों तो दीवार कमज़ोर हो जाती है. घर में सालों का दखल हो तो घर कमज़ोर हो जाता है. महाभारत का शकुनि इस का सबसे बड़ा उदाहरण है.
दीवारों के भी कान होते हैं. घर की अंदर गुपचुप की गई बात भी जाने कैसे बाहर पहुँच जाती है. इसीलिए कहते हैं कि दीवारों के भी कान होते हैं.
दीवाल रहेगी तो पलस्तर बहुतेरे चढ़ जाएंगे. शरीर जीवित रहेगा तो चर्बी मांस सब बाद में चढ़ जाएगा.
दीवाली की कुलिया. देखने में आकर्षक चीज़ जो बाद में किसी काम न आए.
दीवाली के खाये पड़वा न मोटाये. दीवाली के एक दिन ढेर सारा खाने पर अगले दिन पड़वा को कोई मोटा नहीं हो जाएगा. किसी भी आदमी को लगातार पौष्टिक भोजन मिलना चाहिये तभी स्वास्थ्य अच्छा हो सकता है.
दीवाली जीत, साल भर जीत. दीवाली पर जुए में जीतना शुभ माना जाता है.
दीवे को परवा नहीं, जल जल मरे पतंग. एकतरफा प्रेम करने वालों के लिए यह कहावत कही जाती है.
दुई दिन दौड़े इक दिन खाए, अहमक होय बराते जाए. बरात में एक दिन दावत खाने को मिलती है पर उसके लिए दो दिन फ़ालतू में दौड़ना पड़ता है. इस कारण से बरात में जाना कोई समझदारी का काम नहीं है.
दुकान को एक घड़ी को भूलो, तो दुकान कहे मैं तोहे सब दिन को भूलूँ. दुकानदार को अपनी दूकान छोड़ कर एक क्षण को भी नहीं जाना चाहिए.
दुकान सी दाता न घर सा भिखारी. व्यापार हमें जीवन भर कुछ न कुछ देता रहता है, अर्थात उस के जैसा दाता कोई नहीं है. गृहस्थी हर समय कुछ न कुछ मांगती रहती है अर्थात उसके जैसा भिखारी कोई नहीं है.
दुकानदारी नरम की, बहू बिटिया सरम की, सिपाईगिरी गरम की (बनिया नरम के, नारी सरम के और सासन गरम के). दुकानदार वही जो विनम्र हो, बहू-बेटी वही जो लज्जाशील हो, और सिपाही वही जो तेज-तर्रार हो.
दुख कहने के लिए नहीं सहने के लिए होता है. जब आप पर कोई दुख पड़े तो चुपचाप उसे सहना चाहिए, सब के सामने उसका रोना नहीं रोना चाहिए. इंग्लिश में कहावत है – What cannot be cured must be endured.
दुख जाने दुखिया या दुखिया की माँ. किसी व्यक्ति के दुख को वह स्वयं समझ सकता है या उसकी माँ समझ सकती है, और कोई नहीं समझ सकता.
दुख पीछे सुख होत है ज्यों निशि बीते भोर. जिस प्रकार अँधेरी रात के बाद सुबह आती है उसी प्रकार दुख के बाद सुख अवश्य आता है.
दुख मरें बी फाख्ता, कौवे मेवें खाएं. शरीफ लोग दुखी रहते हैं और धूर्त लोग मौज करते हैं.
दुख मिटा बिसरे राम. जब तक व्यक्ति परेशानी में होता है तब तक वह ईश्वर को याद करता है, दुख समाप्त होते ही वह ईश्वर को भूल जाता है. इंग्लिश में कहावत है – The danger past and god forgotten.
दुख में जनम हुआ, दुख में ही ब्याह हुआ, दुख ही बराती, दुख ही साथी. गरीब आदमी की व्यथा.
दुख में सुख की कदर मालूम होती है. आज यदि हमें सब प्रकार की सुविधाएँ मिली हुई हैं तो हम उन की कदर नहीं करते. कल जब हम पर दुख पड़ता है तो हमें इस चीजों की कीमत मालूम पडती है.
दुख में सुमरिन सब करें, सुख में करे न कोय (जो सुख में सुमिरन करे, दुख कहे को होए). दुख में सभी लोग ईश्वर को याद करते हैं और सुख में कोई नहीं करता. अगर सुख के दिनों में ईश्वर को याद करें तो दुख होगा ही क्यों. रूपान्तर – सुख में सुमिरन न किया, दुख में किया याद, रहिमन ऐसे नरन की कौन सुने फ़रियाद.
दुख सुख निसदिन संग हैं मेट सके न कोय, जैसे छाया देह की अलग कभी न होय. मनुष्य को सुख और दुख दोनों मिलना अवश्यम्भावी है. जैसे शरीर की छाया को शरीर से अलग नहीं किया जा सकता वैसे ही सुख और दुख को अलग नहीं किया जा सकता. जो व्यक्ति सुख में रह रहा है उसे घमंड नहीं करना चाहिए और जो दुख में जी रहा है उसे निराश नहीं होना चाहिए.
दुखती चोट, काने से भेंट. कुछ लोग काने व्यक्ति को देखना बहुत अपशकुन मानते हैं. कहावत में कहा गया है कि किसी की चोट दुख रही है ऊपर से काना आदमी दिख गया, याने दुख में दुख.
दुखते दांत को उखाड़ना ही अच्छा. जो चीज़ स्थायी दुख का कारण बन जाए उसे नष्ट कर देना चाहिए.
दुखिया का घर जले, सुखिया पीठ सेंके. स्वार्थी लोग किसी के दुख में भी अपना उल्लू सीधा कर लेते हैं.
दुखिया का दुख दुखिया जाने और न जाने कोय. दुखी व्यक्ति का दुख वह स्वयं ही जान सकता है, और कोई उसे नहीं समझ सकता.
दुखिया की पीड़ा दुखिया ही सुनता है. जिसने स्वयं दुख झेला हो वही दूसरों का दुखड़ा सुन सकता है.
दुखिया दुख को रोवे, सुखिया उसकी जेब टोवे. दुखिया अपना दुख सुना रहा होता है और सुखिया यह देखने की कोशिश करता है कि उस से कितना पैसा उगाहा जा सकता है.
दुखिया रोवे, सुखिया सोवे. जिसको कोई दुख है वह अपने दुख से परेशान है जबकि जो सुखी है वह चैन की नींद सोता है.
दुखे पेट, कूटे माथा (पिराए पेट, फोड़े माथा). किसी और की परेशानी के लिए किसी और को प्रताड़ित करना.
दुखों का भंडार नाम सदासुखराय. गुण के विपरीत नाम.
दुधारू गाय की लात भली (दूध देने वाली गाय की लात भी सही जाती है) (लात खाए पुचकारिए होए दुधारू धेनु). दूध देने वाली गाय लात भी मार दे तो उसे पुचकारा जाता है. जिससे आपका स्वार्थ सिद्ध होता है उसके अवगुण भी सहन किए जाते हैं.
दुधारू भी उतना खाय, जितना खाय बाँझ. घर व समाज के लिए जो उपयोगी व्यक्ति है उस पर जितना खर्च होता है उतना ही खर्च निठल्ले (अनुपयोगी) व्यक्ति पर भी होता है.
दुनिया का मुँह कौन पकड़े. यदि आप में कोई कमी है तो दुनिया के लोग कुछ न कुछ जरूर बोलेंगे. उन्हें कोई रोक नहीं सकता.
दुनिया खाये बिना रह जाए, पर कहे बिना नहीं रहती. लोगों को सबसे अधिक रस परनिंदा करने में मिलता है.
दुनिया ठगिये मक्कर से रोटी खाइए शक्कर से. आज कल की दुनिया में धूर्त और ठग लोग ही मजे मार रहे हैं.
दुनिया दुरंगी मकारा सराय कहीं खैर खूबी कहीं हाय हाय. मकारा सराय – मक्कारों की सराय. दुनिया में कहीं ख़ुशी का रंग है तो कहीं दुख का रंग है.
दुनिया पराए सुख दुबली है (दुनिया पराए सुख से परेशान है). दूसरे का सुख देख कर हर किसी को ईर्ष्या होती है. रूपांतरण – आदमी अपने दुख से इतना दुखी नहीं है जितना दूसरे के सुख से है.
दुनिया मुर्दापरस्त है. दुनिया मरे हुए लोगों की ही प्रशंसा करती है.
दुनिया में दो ही गरीब या बेटी या बैल. दुनिया में सबसे अधिक सताए हुए दो ही प्राणी हैं, बेटी और बैल.
दुनिया से कौन जीते. दुनिया वाले आप के बारे में क्या कहते हैं इस से अधिक परेशान नहीं होना चाहिए. जिस काम में आपको लाभ हो व सुविधा हो वह काम करना चाहिए. देखिए सन्दर्भ कथा 59 ‘कुछ तो लोग कहेंगे’
दुबला कुनबा सराप की आस. दुर्बल आदमी की एक ही ताकत है उसका श्राप, जिससे सबल लोग भी डरते हैं.
दुबला जेठ देवर बराबर. परिवार का कोई बड़ा बूढ़ा व्यक्ति यदि साधन सम्पन्न न हो तो उस की कोई इज्जत नहीं होती. जेठ यदि गरीब है तो उससे देवर जैसा व्यवहार किया जाता है.
दुबली और दो असाड़, चरन गई दूर हार. गाय एक तो दुबली, फिर एक की जगह दो असाढ़ होने से पानी का अधिक बरसना, उस पर भी जंगल में दूर चरने के लिए जाना. विपत्ति पर विपत्ति.
दुबली बिटिया को घाघरा भारी. दुबले पतले लोगों का मजाक उड़ाने के लिए.
दुबली बिल्ली को जुआँ भी भारी. दुर्बल व्यक्ति को छोटी से छोटी चीज़ भी परेशान कर सकती है.
दुबली बिल्ली भी अपशकुन करती है. दुबली बिल्ली चाहे शिकार न कर पाए, पर यदि रास्ता काट जाएगी तो अपशकुन तो पूरा ही करेगी. दुष्ट व्यक्ति कमजोर हो तो भी नुकसान पूरा पहुँचा सकता है.
दुबले कलावंत की कौन सुने. गरीब कलाकार को कोई नहीं पूछता.
दुबले को दुख बहुत. दुबले से अर्थ यहाँ शारीरिक रूप से दुर्बल व्यक्ति से भी है और आर्थिक रूप से दुर्बल से भी. दुर्बल व्यक्ति को दुख ही दुख हैं.
दुबले ढोर को चीचड़ें भौत लगतीं. चीचड़ें – खून चूसने वाली किल्लियाँ. कमजोर को ही सब सताते हैं
दुबले पर दो लदें. कमजोर को सभी सताते हैं.
दुबले से भिड़ो नहीं, मोटे से डरो नहीं. दुबले आदमी को कमजोर समझ कर उससे भिड़ने की गलती नहीं करना चाहिए (हो सकता है कि वह लड़ने में तेज हो), और मोटे आदमी को तगड़ा समझ कर उससे डरना नहीं चाहिए.
दुम पकड़ी भेड़ की आर हुए न पार. गाय की पूँछ पकड़ कर आप नदी पार कर सकती हैं, भेड़ की पूँछ पकड़ कर नहीं. संकट से पार पाने के लिए किसी समर्थ व्यक्ति का ही सहारा लेना चाहिए.
दुरंगी छोड़ दे एक रंग हो जा, सरासर मोम हो या संग हो जा. मोम – मोम की तरह मुलायम, संग – पत्थर (पत्थर की तरह सख्त). दो तरह का व्यक्तित्व मत पालो, या विनम्र बनो या सख्त. इस को इस प्रकार भी कहते हैं – दो रंगी छोड़ दे एक रंग हो जा, या किनारे हो ले या संग हो जा.
दुराए दुरे नहीं, नाह को नेह, सुगंध की चोरी. स्वामी किसी को प्रेम करता हो तो यह बात छिप नहीं सकती (व्यवहार में प्रकट हो जाती है), इसी प्रकार सुगंध की चोरी छिप नहीं सकती (हाथ में सुगंध आ जाती है).
दुर्घटना से देर भली. कहीं पहुँचने की जल्दी में दुर्घटना का शिकार होने के मुकाबले देर से पहुँचना अच्छा है. इंग्लिश में कहावत है – Better late than never.
दुर्बल को न सताइए, जाकी मोटी हाय, (मुई खाल की सांस सौं, लौह भसम हुई जाय). लोहार की भट्टी की आग बढ़ाने के लिए धौंकनी से हवा फूँकते हैं. धौंकनी बकरे की खाल से बनती है. कबीर दास ने कहा है कि दुर्बल व्यक्ति को मत सताओ. जिस प्रकार मरे हुए जानवर की खाल की सांस से लोहा भस्म हो जाता है उसी प्रकार दुर्बल व्यक्ति की हाय से बड़े से बड़ा व्यक्ति भी मिट्टी में मिल सकता है. धौंकनी के लिए देखिए परिशिष्ट.
दुर्बल घोड़ी, सांझे पयान. घोड़ी दुबली है तो यात्रा करने में अधिक समय लगेगा, तो शाम से ही यात्रा शुरू कर दो. साधन कम हों तो कार्य करने में समय अधिक लगता है. कार्य की योजना इस हिसाब से ही बनानी चाहिए.
दुर्बल पड़वा छत्तिस रोग. दुर्बल बच्चे को कोई न कोई बीमारी लगी ही रहती है.
दुलहिन नहीं देखी तो देख उसका भाई, बाघ नहीं देखा तो देख ले बिलाई. दुल्हन के भाई को देखने से दुल्हन की सूरत का अनुमान लगाया जा सकता है. इसी तरह बिल्ली को देखने से बाघ का अनुमान लगाया जा सकता है.
दुलारी धिया का कनकटनी नाम. 1. कुछ लोग अधिक लाड़ में बच्चों के ऊलजलूल नाम रख देते हैं, उन पर व्यंग्य. 2. अधिक लाड़ प्यार से बच्चे बदतमीज हो जाते हैं.
दुलारी बिटिया, ईंटे का लटकन. ज्यादा लाड़ प्यार से बिगड़ी हुई बिटिया फूहड़ पने से फैशन कर रही है (हास्यपूर्ण ढंग से कहा गया है कि ईंट का झुमका पहने है).
दुल्हिन वही जो पिया मन भाए. कोई स्त्री कितनी भी सुंदर या गुणवान क्यों न हो यदि पति उसे पसंद नहीं करता तो सब बेकार है. इसी प्रकार जिसे मालिक पसंद करे वही कर्मचारी योग्य माना जाता है.
दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम. अधिकतर मनुष्य सांसारिक सुखों (माया) का आनन्द लेते हैं और कुछ ईश्वर की भक्ति (राम) में लीन हो कर परम सुख प्राप्त करते हैं, पर जो लोग दुविधा में रहते हैं उन्हें दोनों में से कुछ नहीं मिलता.
दुशाले में लपेट कर मारो. किसी का अपमान करना है तो भी शालीनता के साथ करो.
दुश्मन एक भी हो तो बहुत, दोस्त अनेक भी हों तो कम. दुश्मन कोई न हो तो अच्छा, दोस्त जितने अधिक हों उतना अच्छा.
दुश्मन की किरपा बुरी, भली मित्र की त्रास. दुश्मन की कृपा से तो मित्र द्वारा दिया गया कष्ट अच्छा है.
दुश्मनों की कमी है तो उधार दे के देखो. कहावत में यह सीख दी गई है कि जिसको आप उधार देते हैं वह (उधार वापस मांगने पर) आपका दुश्मन हो जाता है. इसलिए उधार देने से बचना चाहिए.
दुश्मनों में यूँ रहो, जैसे दांतों में जीभ. दांतों के बीच जीभ बड़ी युक्ति पूर्वक रहती है क्योंकि उस को हर समय कटने का खतरा होता है.
दुष्ट न छोड़े दुष्टता, दे कैसी सिख कोय, धोए हू सौ बार के स्वेत न काजर होय. कितना भी समझाने की कोशिश करो, दुष्ट व्यक्ति दुष्टता नहीं छोड़ता (जैसे सौ बार धोने पर भी काजल सफेद नहीं होता).
दुष्ट नारि और मित्र शठ परै जानिए जाय, बसे सर्प घर बीच ही जाने कब उठ खाय. (बुन्देलखंडी कहावत) दुष्ट नारी और कपटी मित्र को घर में नहीं बसाना चाहिए. इनको घर में रखना सांप पालने के बराबर है.
दुष्ट सास और बदमाश बहू राम रूठें तभी मिलें. दुनिया में ये दोनों कष्ट सबसे बड़े हैं. भगवान जिससे नाराज हों उसे ही ऐसा कष्ट देते हैं.
दुहा दूध थन में न समाय, कही बात वापस न आय. जिस प्रकार थन में से निकला दूध दुबारा थन में नहीं समा सकता. इसी प्रकार मुँह से निकली बात वापस नहीं ली जा सकती.
दूज का बायना, तीज को फेर दिया. बायना – वह मिठाई जो उत्सव आदि के अवसर पर सगे-संबंधियों को भेजते हैं. दूज का जो उपहार आया उसके बदले तीज को उपहार भेज दिया. किसी का कोई निहोरा नहीं रखा.
दूजिये की जोरू, शैतान का घोड़ा, जितना कूदे उतना थोड़ा. दूजिया – पहली पत्नी की मृत्यु (या तलाक) के बाद दूसरा विवाह करने वाला. कोई दूजिया यदि कुँवारी लड़की से विवाह करता है तो उसे उसके बहुत नखरे उठाना पड़ते हैं. (शैतान के घोड़े से तुलना की गई है).
दूतों से भींते हिल जाती हैं. कुटिल और चुगलखोर लोगों की करतूतों से राजमहलों की दीवारें (भीतें) हिल जाती हैं, अर्थात शासन अस्थिर हो जाते हैं. कुटिल लोगों की बातों में आने से घर परिवार और सम्बन्ध टूट जाते हैं, इसलिए सुनी सुनाई बातों में न आ कर अपने विवेक से काम लेना चाहिए.
दूध और पूत किस्मत से मिलते हैं. दूध केवल सम्पन्न लोगों को ही मिलता है अर्थात जो भग्यवान हैं वही पी सकते हैं. किसी के घर में पुत्र का जन्म भी भाग्य से ही होता है.
दूध कलारी कर गहे मद समझे सब कोए. कलारी – शराब बेचने वाली. शराब बेचने वाली स्त्री अगर दूध का गिलास भी पकड़े हो तो सब उसे शराब ही समझते हैं. जिस व्यक्ति की समाज में गलत छवि बनी हुई हो वह यदि अच्छा काम भी करे तो लोग बुरा ही समझते हैं.
दूध का उफान ठन्डे जल के छींटे से दबे. कोई व्यक्ति बहुत क्रोध में हो तो बदले में क्रोध करने से नहीं बल्कि शांत व्यवहार करने से वह शांत होता है.
दूध का जला छाछ भी फूँक फूँक कर पीता है (फूँके तक्र दूध को दाह्यो). तक्र – मट्ठा. गर्म दूध पीने से कोई जल गया हो तो वह डर के कारण मट्ठे को भी पीने से पहले फूंक मार कर ठंडा करता है. एक बार धोखा खाया हुआ व्यक्ति दोबारा कुछ अधिक ही सावधानी से काम करता है.
दूध का दूध पानी का पानी 1. हंस के विषय में कहा जाता है की वह दूध और पानी को अलग कर देता है और केवल दूध ग्रहण करता है. संस्कृत में इसे नीर क्षीर विवेक कहते हैं, अर्थात अशुद्धियों को अलग कर के शुद्ध वस्तु या शुद्ध ज्ञान ग्रहण करना. 2. दूध और पानी को अलग करना बहुत कठिन कार्य है. किसी उलझे हुए कठिन मसले को तर्क पूर्ण ढंग से सुलझाना. 3. इन दोनों से अलग एक अर्थ को एक कहानी द्वारा समझा जा सकता है. बंदरिया कहे गूजरी सयानी, दूध का दूध और पानी का पानी. सन्दर्भ कथा – एक दूधवाली गूजरी दूध में आधा पानी मिलाती थी पर ग्राहकों से पूरे पैसे वसूलती थी. एक बार वह अपनी कमाई के रुपयों की पोटली ले कर कहीं जा रही थी. नदी किनारे वह एक पेड़ के नीचे कुछ देर सुस्ताने के लिए बैठ गई तो उस की आँख लग गई. इसी बीच एक बंदरिया उस की रुपयों की पोटली उठा ले गई. वह पेड़ की डाल पर बैठ कर पोटली में से निकाल कर एक रुपया नदी में डाल देती और एक जमीन पर फेंक देती. अपनी कमाई को इस प्रकार लुटता देख दूध वाली जोर जोर से रोने लगी. इस पर पास खड़े एक आदमी ने कहा कि बंदरिया दूध की कमाई तुझे दे रही है और पानी की कमाई पानी में डाल रही है.
दूध की मलाई, रखवाली में बिल्ली बिठाई. मूर्खतापूर्ण कार्य. बिल्ली मौका मिलते ही मलाई को चट कर जाएगी.
दूध के दाँत नहीं झड़े. अभी तक बचपन है.
दूध के धोये हैं न नीबू के मांजे हैं. अपने को सत्यवादी व ईमानदार कहने वाले बेईमान लोगों पर व्यंग्य.
दूध दही का पाहुना छाछ से अनखावना. जिस मेहमान को दूध दही की आदत पड़ी हो उसे छाछ दी जाए तो वह नाराज हो जाता है.
दूध दही मीठा, गोबर कुट्टी तीता. गाय भैंस का दूध दही तो सब को अच्छा लगता है, लेकिन गोबर साफ़ करने और कुट्टी काटने में सब को मुसीबत आती है.
दूध पीती बिल्ली कुत्तों में जा पड़ी. कोई बेचारा सुख में जीवन व्यतीत कर रहा हो और अचानक बहुत बड़ी मुसीबत में फंस जाए. जैसे घर पर नाजों में पला बच्चा कॉलेज जा कर रैगिंग करने वालों के बीच फंस जाए.
दूध बेचा, मानो पूत बेचा. गाँव के लोगों में आज भी दूध को बेचना अच्छा नहीं माना जाता. अपने बच्चे दूध पीने वाले हों तो लोग कहते हैं कि अगर तुम ने दूध बेचा तो यह बच्चे के साथ बहुत बड़ा अन्याय है.
दूध में की मक्खी, किसने चक्खी. दूध में यदि मक्खी गिर जाए तो मक्खी चखना तो बहुत दूर की बात है उस दूध को भी कोई नहीं पीता. जान बूझ कर किसी गलत व घृणित बात को कोई स्वीकार नहीं करता.
दूध रहे तो मटकी बहुत मिलिहैं. आवश्यकता की वस्तु उपलब्ध हो तो रखने की व्यवस्था हो ही जाएगी.
दूध-पूत मांगें नई मिलत. धन और संतति भाग्य से ही मिलती है, माँगने से नहीं.
दूध-भात छोड़े, पर संग न छोड़े. यात्रा में यदि कोई साथी मिल रहा हो तो दूध-भात का खाना भले ही छोड़ दे पर उसका साथ न छोड़े, अर्थात् तुरंत उसका साथ पकड़ लेना चाहिए.
दूधों नहाओ, पूतों फलो. स्नेह से दिया गया आशीर्वाद. दूध से नहाओ अर्थात तुम्हारे घर में खूब सम्पन्नता हो, पूतों फलो अर्थात तुम्हारे घर में बहुत से पुत्र जन्म लें.
दूब जल गई जड़ न गई. विपरीत परिस्थितियों में भी अपने अस्तित्व को बनाए रखने का गुण.
दूब तो चरने के लिए ही होती है. आतताइयों का मानना है कि कमजोर लोग सताने के लिए ही बने हैं.
दूर की गंगा से घर का पोखर भला. कोई भी चीज़ कितनी भी अच्छी क्यों न हो यदि हमारी पहुँच से बाहर हो तो हमारे लिए बेकार है. जो सहज उपलब्ध हो वह अधिक अच्छी है.
दूर के ढोल सुहावने होते हैं. बहुत सी वस्तुएँ दूर से अच्छी लगती हैं परन्तु पास जा कर मालूम होता है कि वे इतनी अच्छी नहीं हैं. रूपान्तर – दूर के ढोल सुहावने, नीयरे के ढप ढप होयें.
दूर जमाई फूल बराबर गावँ जमाई आदो, घर जमाई गधे बराबर जितना चाहे लादो. जो दामाद दूर रहता है वह फूल के समान प्रिय होता है, जो उसी गाँव में रहे वह कुछ कुछ प्रिय और सम्माननीय होता है, पर जो ससुराल में रहे वह गधे के समान लादा जाता है.
दूर देस से साजन आया, ऊंची मैंड़ी पलंग बिछाया, खाय पीय कर रहिया सोय, लेना एक न देना दोय. 1. किसी ऐसे व्यक्ति के लिए जिसे अपनी पत्नी से कोई आसक्ति न हो. 2. किसी विशिष्ट अतिथि के लिए अच्छा प्रबंध करो और वह कोई तवज्जो न दे तो.
दूर पर्वत सुंदर, दूर बंधु सुंदर. दूर के पहाड़ अच्छे, दूर के बंधु अच्छे. (उड़िया लोकोक्ति)
दूर युद्ध से भागते, नाम रखा रणधीर. गुण के विपरीत नाम.
दूर रहे से हेत बढ़े. दूर रहने से प्रेम बढ़ जाता है.
दूल्हा और दूल्हे का भाई, लंगड़ी घोड़ी और काना नाई. जहाँ बरात में बहुत कम लोग हों और वो भी एक से बढ़ कर एक कार्टून हों तो.
दूल्हा ढाई दिन का बादशाह. ढाई दिन की बादशाहत का मुहावरा अलिफ़ लैला के एक किस्से से आया है जिसमें किसी गरीब आदमी को ढाई दिन के लिए बादशाह बना दिया गया था. दूल्हे की शान भी केवल ढाई दिन की होती है, बारात लौटने के बाद उसे कोई नहीं पूछता.
दूल्हा तो आया नहीं और फेरों की तैयारी. सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति के बिना कोई कार्यक्रम कैसे हो सकता है.
दूल्हा दुल्हन मिल गए, झूठी पड़ी बरात. दूल्हे को दुल्हन से मिलवाने के लिए ही विवाह नाम का बड़ा भारी आयोजन किया जाता है. अब अगर दूल्हा दुल्हन अपने आप से ही मिल जाएँ तो बारात को कौन पूछेगा. इस का दूसरा अर्थ यह है कि यदि दो व्यक्ति आपस में दुश्मनी रखते हों तो उनके समर्थक भी लड़ने लगते हैं. अब यदि वे दोनों आपस में मिल जाएँ तो समर्थक कहीं के नहीं रहते.
दूल्हे के मुंह से लार गिरे तो बाराती क्या करें. मुंह से लार गिरने का अर्थ है मंद बुद्धि होना. दूल्हा मंद बुद्धि है इस में बारातियों का क्या दोष है.
दूल्हे के सो जाने से ब्याह नहीं टलता. जब बाल विवाह होते थे तब यह समस्या आती होगी कि कोई कोई दूल्हा विवाह के बीच में ही सो जाता होगा. तभी यह कहावत बनी होगी. बड़े आयोजन किसी एक महत्वपूर्ण व्यक्ति की अनुपस्थिति से भी रुकते नहीं हैं, इस आशय में यह कहावत कही जाती है.
दूल्हे के ही साथ बरात. बारात दूल्हे के ही साथ चलती है, इसी प्रकार सेना सरदार के साथ और जनता अपने नेता के साथ चलती है.
दूल्हे को पत्तल नहीं, बजनिये को थाल. महत्वपूर्ण व्यक्ति की अनदेखी कर के महत्वहीन लोगों की आवभगत करना. (दूल्हे को पत्तल भी नहीं मिल रही है और बाजा बजाने वाले को थाल में भोजन परोसा जा रहा है).
दूल्हे को मिली दुल्हन, समधी को मिला दहेज़, बुड़बक बराती क्यों करें परहेज. शादी ब्याह में कोई व्यक्ति खाने में संकोच कर रहा हो तो साथ के बराती मजाक में ऐसा बोलते हैं.
दूसरे का पाऊँ, तो ज्वर होने पर भी खाऊं. पहले के लोग मानते थे कि बुखार होने पर खाना बिलकुल नहीं खाना चाहिए. मुफ्त का माल मिले तो स्वार्थी लोग बुखार होने पर भी खाने को तैयार रहते हैं.
दूसरे की थाली में घी घना दीखे. मनुष्य को सदैव ऐसा लगता है कि दूसरे लोग उससे अधिक सुखी हैं. ऐसा लगता है कि दूसरे की थाली में घी अधिक है (एक जमाने में घी अधिक होना अच्छे खाने का मानक था).
दूसरे की थाली में लड्डू बड़ा दीखे. दूसरे की सुख समृद्धि हमेशा अपने से अधिक लगती है. इंग्लिश में कहावत है – The grass is always greener on the other side of court.
दूसरे की पत्तल, लंबा-लंबा भात. चावल जितना लम्बा हो उतना ही उच्च कोटि का माना जाता है. हर व्यक्ति को ऐसा लगता है कि दूसरे को उस से अच्छा भात मिला है. अर्थ ऊपर वाली दोनों कहावत की भांति.
दूसरे की पीठ खुजलाने से अपनी खुजली नहीं मिटती है. दूसरों के काम करते रहने से अपनी आवश्यकताएं पूरी नहीं होतीं. इसका अर्थ यह नहीं है कि दूसरों के लिए कुछ नहीं करना चाहिए. व्यक्ति को अपनी आवश्यकताओं और समाज के कार्यों में संतुलन बना कर चलना चाहिए. (घर में दिया जला कर चौराहे पर दिया जलाओ).
दूसरे की बहू और अपनी बेटी सबको अच्छी लगती है. अधिकतर महिलाओं को अपनी बहू में बुराइयाँ ही बुराइयाँ और अपनी बेटी में अच्छाइयाँ दिखाई पडती है, साथ ही दूसरों की बहू बहुत सुशील और गुणवान नज़र आती हैं.
दूसरों को लड़ाने वाले खुद कभी नहीं लड़ते. कुछ लोग इतने शातिर होते हैं कि दूसरे लोगों को तो लड़ाते हैं पर खुद कभी लड़ाई में हिस्सा नहीं लेते.
दे गया सो ले गया, जमा किया सो गवां दिया. जो धन दान दिया वह आपके साथ परलोक जाएगा, जो जमा करते रहे वह सब यहीं रह जाएगा.
दे दुआ समधियाने को, नहिं फिरती दाने दाने को. लड़के की ससुराल से मिले माल पर कोई औरत घमंड कर रही है तो दूसरी उसे आइना दिखा रही है.
दे दे बारूद में आग, किसकी रही और किस की रह जाएगी. 1.खूब खाओ और मौज उड़ाओ. यहाँ क्या बचना है. 2. किसी को लड़ने के लिए उकसाना.
देकर कोई नहीं भूलता. व्यक्ति कोई वस्तु ले कर भूल सकता है पर दे कर कभी नहीं भूलता.
देख तिरिया के चाले, सिर मुंडा मुंह काले, देख मर्दों की फेरी, मां तेरी कि मेरी. स्त्री अगर चालाक होती है तो पुरुष उस से भी बढ़ कर होता है. सन्दर्भ कथा – कोई चालाक औरत बीमारी का बहाना करके लेट गई और अपने पति से बोली कि जब तक तुम अपनी माँ को सिर मुड़ाकर गधे पर सवार कराके नहीं लाओगे तब तक मैं ठीक नहीं हो सकती. पति भी बड़ा होशियार था. वह अपनी ससुराल पहुंचा और सास से बोला कि तुम्हारी लड़की बहुत बीमार है. अब अगर तुम सिर मुड़ाकर और गधे पर सवार होकर उसके सामने पहुंचो तभी वह अच्छी हो सकती है. माँ बेचारी सीधी-सादी थी. लड़की की ख़ातिर वह ऐसा करने को तैयार हो गई. जब वह उसके दरवाज़े पर आई तो लड़की इस हालत में अपनी माँ को नहीं पहचान पाई और उसे अपनी सास समझ कर मन ही मन बहुत प्रसन्न हुई. उसने कहा, देख तिरिया के चाले, सिर मुंडा मुंह काले. किंतु जब जवाब में उसके पति ने दूसरी आधी पंक्ति कही, तो वह खिसिया कर रह गई.
देख पराई चूपड़ी जा पड़ बेईमान, एक घड़ी की सरमा सरमी दिन भर को आराम. कहीं खाने पीने का बढ़िया इंतजाम हो तो बिना शर्म किये वहाँ जा कर पड़ जाओ. एक घड़ी की बेशर्मी और सारे दिन का आराम.
देखत के हम ऊजरे, ऊसर मेरो नाँव, मोरे भरोसे रहियो ना, काढ़ बिरानो खाव. ऊसर भूमि में खेती करने की अपेक्षा ऋण लेकर खाना अच्छा. ऊजरे – उज्जवल, ऊसर – बंजर, नाँव – नाम, काढ़ बिरानो – दूसरे से लेकर.
देखती आँखों और चलते घुटनों. सभी लोग यह चाहते हैं कि जब इस संसार से जाने का समय आए तब तक आँखों से दिखता रहे और पैर चलते रहें (किसी का मोहताज न होना पड़े).
देखते हैं ऊँट किस करवट बैठता है. ऊँट जब बैठता है तो पहले से यह बताना संभव नहीं होता कि वह दाएं या बाएं किस तरफ बैठेगा. जब किसी व्यक्ति के विषय में यह अनुमान लगाना कठिन होता है कि वह आगे क्या निर्णय लेगा तो यह कहावत कही जाती है. सन्दर्भ कथा – एक गांव में हर सात दिन बाद हाट (बाजार) लगती थी. हाट में खेती, कारोबार और गृहस्थी संबंधी सभी सामान बिकने आता था. आस-पास के छोटे गांवों के लोग भी सामान लेने और बेचने आते थे. पास के एक गांव से एक कुंजड़ा और कुम्हार भी अपना सामान हाट में ले जाते थे. कुंजड़ा फल-सब्जिया आदि ले जाता था और कुम्हार अपने मिट्टी के बरतन. इनको सामान का भाड़ा इतना देना पड़ता कि मुनाफा बहुत कम रह जाता था. उसी गांव में एक ऊंटवाला भी था जो हाट में दुकानदारों का सामान लाता ले जाता था. कुंजड़ा और कुम्हार ने तय किया कि हम अपना सामान ऊंट पर रख कर ले चलते हैं जो किराया आएगा उसको आधा-आधा बाँट लेंगे. हाट के दिन ऊँट की पीठ पर रखे थैले में एक ओर कुम्हार ने अपने बरतन लादे और दूसरी ओर कुंजड़े ने अपनी सब्जियाँ. दोनों हाट को चल दिए.
रास्ता चलते समय ऊंट ने एक बार अपनी गरदन पीछे की और घुमाई, तो उसे सब्जी के पत्ते लटकते दिखाई दिए. ऊंट ने लंबी गरदन करके सब्जी के कुछ पत्ते खींच लिए और खा गया. जब ऊंट ने दोबारा सब्जियों के पत्तों में मुंह मारा तो कुंजड़े ने कहा, ऊंटवाले भैया, डोरी जरा खींचकर रखो. ऊंट सब्जियों में मुह मार रहा है. लेकिन ऊँट कहाँ मानने वाला था. कुंजड़े का नुकसान देखकर कुम्हार हँसते हँसते लोटपोट हुआ जा रहा था. इस पर कुजड़े ने कहा, भैया हंसो नहीं, देखो आगे क्या होता है. ऊँट के हाट तक पहुँचते पहुँचते सब्जियाँ काफी कम हो गईं, इसलिए कुम्हार के बर्तन बोझ के कारण दूसरी ओर लटक गए. सुविधा के अनुसार ऊंट उसी करवट बैठा. ऊँट के बोझ से दब कर कुम्हार के बहुत से बरतन टूट गए. तभी से यह कहावत बनी.
देखन के बौरहियाँ, मतलब में चौकस (देखन के बौराहिया, आवें पांचो पीर). कहावत उन लोगों के लिए जो देखने में बुद्धू लगते हैं पर अपने मतलब में होशियार होते हैं. राजस्थान में पाँच महापुरुषों को पंचपीर माना गया है – रामदेवजी, गोगाजी, पाबूजी, हड़बूजी और मेहाजी. ये गुणी लोगों के ऊपर आ कर कार्य सिद्ध करवाते हैं.
देखा देखी करत सब, भेड़ चाल संसार. संसार में सब लोग दूसरों की नकल करते हैं (भेड़ों के सामान).
देखा देखी पाप और देखा देखी धरम. दूसरों को देख कर ही आदमी पाप और पुण्य करना सीखता है.
देखा देखी साधे योग, छीजे काया बाढ़े रोग. बिना योग्य गुरु से सीखे किसी की नकल कर के योग करने से शरीर को हानि हो सकती है.
देखा देस बंगाला, जहाँ दांत लाल मुँह काला. बंगाल के लोगों के सांवले रंग और पान खाने की आदत पे व्यंग्य.
देखा न भाला, सदके गई खाला. बिना देखे किसी की बड़ाई करना.
देखा बाप घर, करे आप घर. लड़की ने जो अपने मायके में देखा होता है वही ससुराल में करना चाहती है.
देखी अनदेखी भई. आँखों से देखी बात भी झूठी पड़ गयी.
देखी तेरी कालपी, बावनपुरा उजाड़. कालपी में पुराने महलों और किलों के खंडहर बहुत हैं इस पर व्यंग्य.
देखे में छोटा, काम करे मोटा. जो आदमी छोटा कद होते हुए भी खूब काम करता हो.
देखो खेल खुदाय का क्या क्या पलटे रंग, खानजादा खेती करे, तेली चढ़े तुरंग. एक नवाब ने तेली की रूपवती लड़की से शादी कर ली तो तेली जाति के लोगों की महल में बहुत पूछ हो गई और नवाब के अपने खानदानी खेती कर के पेट पालने पर मजबूर हो गए. तुरंग – घोड़ा.
देना और मरना बराबर है. कंजूस के लिए कथन.
देना थोड़ा, दिलासा बहुत. देना कुछ ख़ास नहीं केवल बातों से ढाढस बंधाना.
देनी पड़ी बुनाई तो घटा बतावें सूत. एक जमाने में लोग सूत कात कर जुलाहों को बुनने के लिए देते थे. किसी ऐसे आदमी की बात हो रही है कि जब बुनाई (जुलाहे की मजदूरी) देने का नम्बर आया तो बोले मेरा सूत कम हो गया है. कामगार को पैसा देने में हीला हवाली करना.
देने का बाट और, लेने का बाट और. बनिए को जब माल देना होता है तो वह कम तोलता है और जब लेना होता है तो ज्यादा तोलता है. बाट के लिए देखिए परिशिष्ट.
देने के लिए दीवालिया और लेने के लिए शाह. जब उधार वापस करने की बात आती है तो अपने को दीवालिया बताते हैं और जब किसी से उधार लेना होता है तो अपने को बहुत बड़ा आदमी बताते हैं.
देने को प्रभु देत हैं जहाँ तहाँ से आन, लेवें तो सब लेत हैं खेत और खलिहान. भगवान जब देने पे आते हैं तो कहाँ कहाँ से ला कर देते हैं और लेने पे आते हैं तो खेत खलिहान सब ले लेते हैं.
देने को लेने को राम जी का नाम है. सन्यासियों व अत्यधिक निर्धन लोगों के लिए के लिए.
देने लेने जस, नून तेले रस. जस – यश. देने लेने से ही यश मिलता है और नमक तेल से ही स्वाद.
देने वाले से दिलाने वाले को ज्यादा सबाब है. परोपकार करने वाले से परोपकार करवाने वाले को अधिक पुन्य मिलता है.
देर आए, दुरुस्त आए. गलत काम करने वाला कोई आदमी थोड़ी देर से सही पर सही राह पर आ जाए तो.
देव न मारे डेंग से कुमति देत चढ़ाय. ईश्वर किसी को दंड देना चाहता है तो डंडा नहीं मारता, उसकी बुद्धि भ्रष्ट कर देता है.
देवता का माहात्म्य, पुजारी के हाथ. पुजारी जितना अधिक देवता का गुणगान करेगा उतनी अधिक लोग देवता की भक्ति करेंगे. महात्माओं और नेताओं के चमचे भी इसी प्रकार से उनका प्रचार करते हैं.
देवता तो भावना के भूखे हैं. देवता कुछ खाते नहीं. वे तो सच्चे विश्वास से ही प्रसन्न होते हैं.
देवदार औ चन्दन टोरा खस का इत्र मिलावें, करें उबटनों देह लगा के गरमी में सुख पावें. (बुन्देलखंडी कहावत) देवदार, चंदन और खस को मिला कर उबटन करने से ठंडक पड़ती है.
देवन चढ़ी सोहारी, कुकुर खांय या बिलारी. सोहारी – पूड़ी. अपनी तरफ से पूड़ी बनाकर देवी को चढ़ाकर आई हूँ. अब चाहे चढ़ी पूड़ी को कुत्ते खांय या बिल्ली, हमसे क्या मतलब.
देवर से परदा जेठ से ठिठोली. उल्टा काम. आम तौर पर स्त्रियाँ जेठ से पर्दा करती हैं और देवर से हंसी मजाक कर लेती हैं.
देवी दिन काटें, लोग परिचै मांगें. देवी खुद परेशानी में हैं और किसी तरह दिन काट रही हैं, लोग उनसे आग्रह कर रहे हैं कि अपनी महिमा दिखाइये. कोई व्यक्ति स्वयं परेशानी में हो और उससे सहायता मांगी जाए तब.
देवी दे तो दे नहीं तो भैरों तैयार है. जहाँ पर मांगने वाले के पास बहुत सारे विकल्प हों.
देवेगा सो पावेगा, बोवेगा सो काटेगा. जैसा व्यवहार दूसरों को दोगे वैसा ही पाओगे.
देवों से दानव बड़े. भले लोगों के मुकाबले दुष्ट लोग अधिक प्रभावशाली हों तो.
देश छोड़ो, वेश न छोड़ो. यदि किसी कारण से विदेश में बसना पड़े तो भी अपनी संस्कृति और मूल्यों को नहीं छोड़ना चाहिए.
देशी गधा पूर्वी रेंक (देसी गधा पंजाबी रेंक). कोई फूहड़ व्यक्ति अधिक फैशन करे या अनपढ़ व्यक्ति ज्यादा अंग्रेज़ी बोले तो.
देशी मुर्गी विलायती बोल (देसी कुतिया विलायती बोली). अनपढ़ व्यक्ति ज्यादा अंग्रेज़ी बोले तो.
देस चाकरी, परदेस भीख. अपने शहर या गाँव में व्यक्ति लज्जा के कारण भीख नहीं मांग सकता, इसलिए नौकरी ही कर सकता है. लेकिन परदेस में (जहाँ उसे कोई जानता न हो) भीख मांग सकता है.
देस चोरी परदेस भीख. बहुत भूखा होने पर आदमी परदेस में तो भीख मांग कर काम चला लेता है पर अपने गाँव या शहर में लज्जा के कारण भीख नहीं मांग पाता, लिहाजा चोरी करता है.
देस पर चढ़ाव, सर दुखे न पाँव. परदेस से घर वापस आना हो तो न थकान होती है न पैर दुखते हैं.
देसी गधी, पूरवी चाल. मूर्ख व्यक्ति अधिक इतराए तो.
देसे देसे चाल, कुले कुले व्यवहार. अलग अलग देशों के लोगों का चाल चलन भिन्न होता है और अलग अलग कुल के लोगों के रीति रिवाज भिन्न होते हैं.
देह घरे को फल पाओ. जब किसी को कष्ट होता है तो बड़े लोग समझाते हैं कि मनुष्य योनि में जन्म लिया है तो इस प्रकार के कष्ट तो सहने ही पड़ेंगे.
देह धरे का दंड है, हर काहू को होय, ज्ञानी काटे ज्ञान से, मूरख काटे रोय. मानव शरीर मिला है तो कुछ न कुछ कष्ट तो मिलेगा ही. ज्ञानी लोग समझदारी से कष्ट सह लेते हैं जबकि मूर्ख रोते रहते हैं.
देह पर बाल न, तीन पाव का उस्तरा. अनावश्यक साज सामान. उस्तरे के लिए देखिए परिशिष्ट.
देह में दम ना बजार में धक्का. शरीर में शक्ति न होते हुए भी तरह तरह के शौक सूझना.
देहरी को दीपक, ज्यौं घर को त्यौं आँगन को. देहरी पर रखा हुआ दीपक घर को भी रौशनी देता है और आंगन को भी. समझदार लोग घर और समाज के कामों में संतुलन बना कर चलते हैं.
देहरी लांघने का पाप लगा. सामाजिक रूप से निषिद्ध किसी स्थान पर जाने भर से बुराई हाथ आयी.
दैव दैव आलसी पुकारा. उद्यमी लोग कर्म करते हैं जिसका उन्हें फल मिलता है जबकि आलसी लोग ईश्वर से ही मांगते रहते हैं.
दो कहे तो चार सुने. यदि किसी की बुराई में दो बातें कहोगे तो चार सुननी भी पड़ेंगी. कहावत में यह सीख दी गई है कि यदि अपनी बुराई सुनना नहीं चाहते तो किसी को बुरा भी न कहो.
दो खरगोशों के पीछे दौड़ने वाला एक को भी नहीं पकड़ सकता. दो मंजिलें एक साथ पाने की कोशिश करने वाला, एक मंजिल भी नहीं पा सकता.
दो खसम की जोरू, चौसर की गोट. जिस स्त्री के दो पति हों वह हर दम दोनों के इशारों पर नाचने को मज़बूर रहती है. दो हाकिमों के बीच कोई एक ही मातहत हो तो दोनों उस पर अपना जोर जमाते हैं.
दो गांव की उहा पाही, लड़के मर गये आवा जाही. जब दो गांवों में घर हों या दूर दूर घर हों तो बच्चे बेचारे इधर उधर सामान और सन्देश पहुंचाने में ही अधमरे हो जाते हैं.
दो घर का पाहुना, भूखा ही रह जाए. यदि कोई व्यक्ति दो घरों का मेहमान हो तो दोनों यह सोचते हैं कि उसने दूसरी जगह खा लिया होगा, इस चक्कर में वह भूखा ही रह जाता है. दो लोगों के चक्कर में कोई काम न हो पा रहा हो तो यह कहावत कही जाती है. रूपान्तर – दो घर का पाहुना खाते खाते मरे, के उपास करे. कभी कभी दो जगह के मेहमान को दोनों लोग आग्रहपूर्वक इतना खिलाते हैं कि वह खाते खाते अधमरा हो जाता है.
दो घर डूबते तो एक ही डूबा. जहाँ पति पत्नी दोनों ही निकम्मे और झगड़ालू हों वहाँ यह बात कही जाती है कि इन की शादी अलग अलग हुई होती तो दो घर डूबते. इनकी आपस में हुई है तो गनीमत है एक ही घर डूबा.
दो घर मुसलमानी, तिसमें भी आनाकानी. किसी एक जाति के बहुत थोड़े से लोग हों और उन में भी आपस में खींच तान हो तो.
दो घोड़ों पर सवारी खोटी. कहावत में यह सीख दी गई है कि किसी लक्ष्य को पाने का पूरे मन से प्रयास करो, अधूरे मन से कई सारे लक्ष्यों के पीछे भागने से कुछ भी हासिल नहीं होगा.
दो जोरुओं का खसम फूंके चूल्हा. जिस आदमी के दो पत्नियाँ हों उसे खुद ही खाना बनाना पड़ता है (बल्कि कभी कभी तो पत्नियों के लिए भी बनाना पड़ता है), क्योंकि दोनों पत्नियाँ आपस में हिर्स करती हैं.
दो तरबूज एक हथेली पर नहीं सधते. एक व्यक्ति से एक साथ दो बहुत बड़े काम नहीं लिए जा सकते.
दो दिन की मुसलमानी अल्लाह अल्लाह पुकाऱै. जो नया मुसलमान बना हो वह अधिक दिखावा करता है.
दो नाव में चढ़ना, छाती फाड़ के मरना. यदि कोई व्यक्ति दो नावों में पैर रख कर नदी पार करना चाहेगा तो बीच मंझदार अवश्य डूबेगा. कोई व्यक्ति एक साथ दो कठिन काम करना चाह रहा हो और कोई भी काम ठीक से न कर पा रहा हो तो उसे नसीहत देने के लिए.
दो पाटन के बीच में साबत बचा न कोए. संसार रूपी चक्की के दो पाट हैं, माया मोह और ईश्वर की भक्ति. बेचारा आदमी इन दोनों के बीच पिसता रहता है.(इसकी पहली पंक्ति है – चलती चाकी देख के दिया कबीरा रोय).
दो बेटों की माँ दुखिया (दो बेटा की माई, कुतिया की नांई). दो बेटों की माँ की हालत दयनीय हो जाती है. जब भाई अलग हो जाते हैं तो वह माह में पन्द्रह दिन एक भाई और पन्द्रह दिन दूसरे भाई के टुकड़ों पर पलती है.
दो मुल्लो में मुर्गी हराम. अगर जानवर को एक ही वार में ठीक तरह से जिबह न किया गया तो उसका मांस हराम हो जाता है. दो मुल्ले करेंगे तो मुर्गी ठीक तरह से हलाल नहीं होगी.
दो मुल्लों में मुर्गी हलाल. दो मुल्लों की आपसी लड़ाई और हिर्स में मुर्गी बेचारी मुफ्त में मारी जाती है.
दो लड़ें तीसरा ले उड़े (दो की लड़ाई, तीजे की मौज). जब दो लोग लड़ते हैं तो तीसरा उसका लाभ उठाता है. सन्दर्भ कथा – दो बिल्लियों को एक बार कहीं से एक रोटी मिल गई. दोनों आपस में झगड़ने लगीं कि मुझे मिली है, मैं खाऊँगी. अंत में तय हुआ कि किसी तीसरे व्यक्ति से इसका फैसला करा लिया जाए. रोटी को ले कर दोनों बंदर के पास गईं. बंदर ने कहा, देखो लड़ो नहीं. दोनों को मिली है इसलिए आधी आधी बाँट लो. मैं बंटवारा कर देता हूँ. दोनों तैयार हो गईं.
बंदर एक तराजू ले कर आया. उसने जानबूझ कर इस तरह रोटी के दो टुकड़े किए कि एक टुकड़ा छोटा और एक बड़ा था. तराजू के दोनों पलड़ों में एक एक टुकड़ा रखा. फिर बराबर करने के लिए जो टुकड़ा बड़ा था उसमें से कुछ हिस्सा तोड़ा और खा लिया. अब वह वाला टुकड़ा छोटा हो गया. अब उसने उस टुकड़े में से एक हिस्सा तोड़ा और खा लिया जिससे वह टुकड़ा दूसरे से छोटा हो गया. इस तरह उस ने एक एक हिस्सा कर के पूरी रोटी खा ली और बोला, बहनों ये रोटी तो खतम हो गई, अब तुम लोग एक और रोटी ढूँढ़ कर लाओ. उस में से बराबर हिस्से कर दूंगा. दुष्ट अंग्रेजों ने इसी तरह भारतीय राजाओं को मूर्ख बना कर पूरे भारत का राज्य हड़प लिया था. आज भी राजनैतिक दल इसी तरह लोगों को मूर्ख बना कर अपना उल्लू सीधा करते हैं.
दो लड़ेंगे तो एक गिरेगा भी. जब दो लोग लड़ेंगे तो कोई न कोई तो गिरेगा ही.
दो शरीर एक प्राण. अत्यधिक प्रेम.
दो हाथ दो पाँव मिलें तो चौपाया भी बन सकते हैं और चतुर्भुज भी. दो लोग मिल कर काम करें तो महान काम भी कर सकते हैं (भगवान के समान चतुर्भज बन सकते हैं) और नीचता की पराकाष्ठा भी कर सकते हैं (पशुओं के समान चौपाए बन सकते हैं).
दोउ बेर जो घूमे फिरे, तीन बेर जो खाए, सदा निरोगी चंग रहे, जो प्रातः उठ न्हाए. जो व्यक्ति सुबह शाम सैर को जाता है (अर्थात व्यायाम करता है), तीन बार से अधिक भोजन नहीं करता है और प्रातः उठ कर नहाता है वह सदा निरोगी रहता है.
दोऊ पलीतन दे दो तेल, तुम नाँचो, हम देखें खेल. पलीता – पटाखों में लगायी जाने वाली तेल की बत्ती. जब कोई दो मनुष्यों में झगड़ा करा कर उनका पैसा खर्च कराये और तमाशा देखे, साथ ही अपना उल्लू भी सीधा करे.
दोनों दीन से गए पांड़े, हलुआ मिला न मांड़े. मांड़े माने पतली रोटी. पांडे जी दोनों चीजें खाने के चक्कर में थे हलुआ भी और रोटी भी. अंततः दोनों ही नहीं मिलीं. रूपांतर – दुविधा में दोनों गए, माया मिली न राम.
दोनों पलीतों में दे दो तेल, तुम नाचो हम देखें खेल. दो लोगों में लड़ाई करा कर तमाशा देखने वालों के लिए.
दोनों वक्त मिले सियोगे तो सूरज की आँख फूट जाएगी. पुराने लोगों की आदत थी कि किसी काम को मना करना हो तो उस के साथ कोई लोक विश्वास जोड़ दो. इसी प्रकार का एक बच्चों को समझाने वाला लोक विश्वास. दोनों वक्त मिले का अर्थ है दिन और रात के मिलने का समय – गोधूलि.
दोनों हाथ मिल कर ही धुलते हैं. मिल कर काम करने में सभी का भला है.
दोनों हाथों में लड्डू हैं. दोनों ओर से लाभ होना.
दोष कहा वा कुब्जा को सखि अपनो श्याम खोटो. कंस के बुलाने पर जब कृष्ण मथुरा गए तो वहां उन्होंने एक कुबड़ी स्त्री को स्पर्श कर के परम रूपवती में बदल दिया. गोपियों को जब यह बात मालूम हुई तो उन्हें बड़ी जलन हुई. वे आपस में बात कर रही हैं कि इस में कुब्जा का कोई दोष नहीं है कृष्ण के मन में ही खोट है.
दोस पराए देख करि, चला हसन्त हसन्त, आपने याद न आवई, जिनको आदि न अन्त. सभी लोग पराए दोष को देख कर हँसते हैं लेकिन अपने दोष कोई नहीं देखता.
दोस्त के मुँह पर कहिए और दुश्मन की पीठ पर. कहावतें नीति संबंधी ज्ञान का खजाना हैं. कितनी व्यवहारिक बात बताई गई है – दोस्त को उसकी कोई कमी बतानी हो तो उसके मुँह पर बताओ, पीठ पीछे किसी से उसकी बुराई मत करो. दुश्मन की कमी बतानी हो उस के मुँह पर कुछ न कह कर पीठ पीछे उसकी बुराई करो.
दोस्त बने दुश्मन से सावधान रहिए. कोई दुश्मन यदि आप का दोस्त बन जाता है तो उस पर पूरा विश्वास नहीं करना चाहिए. हो सकता है वह आपकी पीठ में छुरा भोंकना चाहता हो, इसलिए सावधान रहना चाहिए.
दोस्त मिलें खाते, दुश्मन मिलें रोते. आशीर्वाद के रूप में कहा जाता है.
दोस्ती टूटे बहुत ज्यादा मिलने से या बहुत कम मिलने से. बहुत अधिक मिलने से अनादर होता है. संस्कृत में कहावत है ‘अति परिचयात अवज्ञा, सतत गमनं अनादरम्’. बहुत कम मिलने से भी प्रेम कम हो जाता है. इंग्लिश में कहावत है ‘out of sight, out of mind.’
दोस्ती में लेन देन बैर का मूल. जहाँ तक हो दोस्तों से लेन देन नहीं करना चाहिए.
दोस्तों का हिसाब दिल में. जहां सच्ची दोस्ती हो वहां लिखत पढ़त की जरूरत नहीं पड़ती.
दोस्तों के झगड़े में दुश्मनों की दावत. जब दोस्तों में झगड़ा होता है तो दुश्मनों की मौज हो जाती है.
दोस्तों से रखिएगा लेन देन साफ़, कायम अगर आपको रखनी है दोस्ती. दोस्ती चाहे कितने भी पक्की क्यों न हो आपसी हिसाब किताब साफ़ रखना चाहिए, क्या मालूम कब किस के मन में कोई खटास पैदा हो जाए.
दौंदर बड़ा के लाबर. दौंदर – जोर-जोर से बोलने वाला, उपद्रवी, लाबर – झूठ बोलने वाला, लबार. वैसे तो दोनों ही महान होते हैं पर तुलना ही जाए तो संभवतः लाबर की अपेक्षा दौंदर ही बड़ा होता है.
दौड़ चले सो औंधा गिरे. किसी भी काम को करने में जो बहुत तेजी दिखाने की कोशिश करता है वह परेशानी में जरूर पड़ता है.
दौड़े दौड़े जाइए, भाग बिना क्या पाइए. कितनी भी दौड़ भाग कर लो (प्रयास कर लो) भाग्य के बिना कुछ नहीं मिलता. (बहुत से आलसी लोग यह सोच कर प्रयास ही नहीं करते). वैसे सयाने लोग इस आशय में भी इस कहावत को कहते हैं कि पूरा प्रयास करने के बाद यदि सफलता न मिले तो निराश मत हो, यह मान लो कि अमुक वस्तु तुम्हारे भाग्य में ही नहीं थी.
दौलत पाय न कीजिए सपनेहूँ में अभिमान, (चंचल जल दिन चारिको, ठाउं न रहत निदान). लक्ष्मी चंचला है, किसी के पास ठहरती नहीं है, इसलिए धन दौलत पा कर घमंड नहीं करना चाहिए, सपने में भी नहीं.
द्वार धनी के पड़ रहे, धक्का धनी के खाय, कबहूँ धनी नवाजिहैं, जो दर छांड़ि न जाए. धनवान के द्वार पर पड़े रहो चाहे वह धक्का ही क्यों न दे. अगर आशा ले कर पड़े रहेगो तो कभी न कभी उसकी कृपा हो जाएगी.
द्वारिका जी जरे, तो कहीं भी मरे. ऐसा विश्वास है कि जो द्वारिका जी में अपनि बांह पर गरम लोहे से दगवाते हैं, उनकी मृत्यु कहीं भी हो उन्हें स्वर्ग मिलता है.
द्वारे लगी बरात तो कुम्हड़ा बोने चले. बरात द्वार पर आ गई तो बरातियों के भोजन के लिए कद्दू बोने की सोच रहे हैं. अंत समय पर कोई काम करना आरम्भ करने वालों पर व्यंग्य.
ध
धंधा थोड़ा धांधल घनी. जहाँ काम कम और धांधलेबाजी ज्यादा होती है. जैसे सरकारी कार्यालय. घनी – अधिक.
धक्के में धक्का लगत. हानि में और हानि होती है.
धतूरे के गुण महादेव जानें. जो जिस चीज का सेवन करता है वही उस के गुण जान सकता है.
धन और कन्दुक खेल की दोनों एक सुभाय, कर आवत छिन एक में छिन में कर से जाय. कन्दुक – गेंद. धन और गेंद दोनों का एक सा स्वभाव है, हाथ में आते ही तुरंत निकल जाते हैं.
धन का धन गया, मीत का मीत गया. (धन का धन गया, मीत की प्रीत गयी). दोस्ती और रिश्तेदारी में पैसा उधार देने में यह खतरा हमेशा रहता है कि पैसा भी वापस न मिले और सम्बंध भी खराब हो जाएँ.
धन का बढ़ना अच्छा है, मन का बढ़ना नाहीं. रहीम ने इस विषय में रूपक अलंकार से युक्त एक बहुत उच्च कोटि की बात कही है – बढ़त बढ़त सम्पति सलिल, मन सरोज बढ़ जाहिं, घटत घटत पुनि न घटे, बरु समूल कुम्ह्लाहिं (तालाब में पानी बढ़ने के साथ कमल की नाल लम्बी होती जाती है पर पानी कम होने पर फिर छोटी नहीं होती, बल्कि कमल मुरझा जाता है. इसी प्रकार संपत्ति के बढ़ने से व्यक्ति का मन बढ़ जाता है और संपत्ति कम होने से मन कम नहीं होता बल्कि व्यक्ति ही नष्ट हो जाता है).
धन के आगे मक्कर नाच. पैसे के लिए आदमी सौ तरह की चालबाजियाँ करता है.
धन के तेरह मकर पचीस, दिन जाड़े दो कम चालीस. चिल्ला जाड़ा अड़तीस दिन का होता है.
धन के पन्द्रा मकर पचीस, चिल्ला जाड़ा दिन चालीस. राशि के हिसाब से बताया गया है कि धन राशि के पन्द्रह दिन और मकर राशि के पच्चीस दिन बहुत जाड़ा पड़ता है.
धन के बिना नाथिया और धनी हुए तो नाथू लाल. किसी व्यक्ति का नाम नत्थू है. जब वह गरीब था तो सब उसे नाथिया कह कर बुलाते थे, धनी हो गया तो नाथू लाल कहने लगे.
धन खेती धिक चाकरी, धन धन बणिज व्यापार. खेती धन्य है और नौकरी को धिक्कार है. व्यापार में धन ही धन है इसलिए वह भी धन्य है.
धन गया कुछ नहीं गया, स्वास्थ्य गया कुछ गया, चरित्र गया सब कुछ गया. अर्थ स्पष्ट है.
धन जोबन और माया, तीन दिनां की छाया. धन, यौवन और माया अधिक समय तक नहीं ठहरते (इसलिए इनके होने पर अभिमान नहीं करना चाहिए).
धन दे जी को राखिए, जी दे राखे लाज. धन खर्च कर के प्राणों की (स्वास्थ्य की) रक्षा कीजिए और प्राण दे कर आत्मसम्मान की.
धन बढ़े, मन बढ़े. जब व्यक्ति के पास धन बढ़ता है तो मन भी भांति भांति की इच्छाएँ करने लगता है.
धन यौवन और ठाकरी, तिस पर हो अविवेक, ये चारों मिल जाएं तो अनरथ करें अनेक. पास में धन हो, बंदा जवान हो, अधिकार मिले हुए हों और विवेक हीनता की स्थिति हो, तो व्यक्ति कुछ भी अनर्थ कर सकता है.
धन रखे से धरम, काया रखे से करम. धन कमाना भी आवश्यक है क्योंकि उसी से आप धार्मिक कार्य कर सकते हैं, शरीर को स्वस्थ रखना भी आवश्यक है क्योंकि उस से आप कर्म करते हैं.
धन रहा तो धनराज बहू, धन घटा तो धनइया. जब तक धन रहा तब तक धनराज की बहू कह कर आदर पाती थी, धन जाने के बाद धनइया कह कर पुकारी जाने लगी.
धन से लखपति दिल से भिखारी. धनी परन्तु कंजूस व्यक्ति के लिए.
धनबल जनबल बुद्धि अपार, सदाचार बिन सब बेकार. सदाचार के बिना सारे धन और बुद्धि बेकार हैं.
धनवंती के कांटा लगा पूछे सब कोय, निर्धन गिरा पहाड़ से पूछे ना जोय (धनवंती के काँटा लगा, दौड़े लोग हजार, निर्धन गिरा पहाड़ से, कोउ न करे विचार). धनवान को जरा सा भी कष्ट हो तो सब पूछने आते हैं, गरीब को कितना भी बड़ा कष्ट हो, कोई नहीं पूछता. (यहाँ तक कि पत्नी भी नहीं पूछती). जोय – जोरू, पत्नी.
धनि बगुला भक्तन की करनी, हाथ सुमरनी बगल कतरनी. धनि – धन्य है, सुमरनी – जपने वाली माला, कतरनी – कैंची. हे बगुला भक्तों, तुम्हारी करनी धन्य है. तुम हाथ में माला ले कर भक्त बने हुए हो और बगल में जेब काटने वाली कैंची रखे हुए हो. कहीं कहीं पर केवल ‘हाथ सुमरनी बगल कतरनी’ बोला जाता है.
धनि रहीम जल पंक को लघु जिय पियत अघाय, उदधि बड़ाई कौन है जगत पियासो जाय. रहीम कहते हैं कि छोटे तालाब का जल धन्य है जिस से लोगों की प्यास बुझती है. समुद्र इतना बड़ा है लेकिन उस से किसी की प्यास नहीं बुझती. बड़े का बड़प्पन तभी माना जाएगा जब किसी को उससे लाभ होगा.
धनि वह राजा धनि वह देस, जहवाँ बरसे अगहन सेस, पूस में दूना माघ सवाई, फागुन बरसे तो घर से जाई. वह देश और उस का राजा भाग्यशाली हैं जहाँ अगहन माह शेष रहते हुए वर्षा होती है. पूस में वर्षा हो तो फसल दूनी होती है, माघ में हो तो सवाई, और फागुन में वर्षा हो तो घर का अन्न भी चला जाता है.
धनी बाप के काने बेटे भी ब्याहे जाते हैं. पैसे वाले लोगों के अयोग्य और कुरूप बेटों की भी शादी हो जाती है.
धन्य भाग जहाँ बरसे क्वारा. क्वार में वर्षा बड़े भाग्य से होती है.
धन्य मेरी बालकी, जिन बाप चढ़ाए पालकी. बेटी के कारण प्रतिष्ठा पाने वाले के लिए प्रशंसा या व्यंग्य में कही गई बात. बालकी – पुत्री.
धर जाए, मर जाए, बिसर जाए. दूसरे का माल हड़प जाने की इच्छा रखने वालों पर व्यंग्य, जो सोचते हैं कि कोई उसके पास धरोहर रख जाय और मर जाय, तथा दूसरे लोग भी भूल जायें, तो सब माल उनका हो जाय.
धरती ठौर नई देत. संसार में कहीं आसरा न मिले तो. अत्यंत दीन और दुखी व्यक्ति के लिए कहते हैं.
धरती माता तुम बड़ीं, तुम से बड़ा न कोय, जब धरती पर पग धरूँ, बैकुंठ सवेरा होय. सुबह उठ कर धरती पर पाँव रखने से पहले बोली जाने वाली पंक्तियाँ.
धरती सबका भार सँभारें. चाहे कोई पापी हो या पुण्यात्मा, धरती सबका भार सँभाले हुए है.
धरने को मियाँ, सुलगाने को मियाँ, पीने को आप, टिकाने को मियाँ. हुक्के से मतलब है, कि भरने के लिए मियाँ, सुलगाने के लिए मियाँ, पीने को आप और फिर टिकाने को भी मियाँ. काम करें हम, लाभ लें आप.
धरम करत में होवे हानि, तबहूँ न छोड़े धरम की बानि. धर्म का कार्य करने में यदि हानि भी ही तो भी धर्म करने की आदत नहीं छोड़नी चाहिए.
धरम का धरम, करम का करम. सर्वोत्तम कार्य वह है जिसमें धर्म का पालन भी हो और रोजी रोटी भी चले.
धरम के दूने. किसी व्यापार में इमानदारी से दुगुना लाभ होता हो तो. धोखाधड़ी का व्यापार करने वाले बगुला भगत के लिए भी व्यंग्य में ऐसा बोलते हैं.
धरम रहे तो ऊसर में उगे. धर्म प्रबल हो तो बंजर धरती में भी खेती हो सकती है.
धरा पाताल में, लिखा ललाट पे. खज़ाना कहीं तहखाने में हो तो भी उसका असर चेहरे पर दिखाई देता है.
धर्म की जड़, सदा हरी (धर्म की जड़ पाताल में). धर्म पर चलते वाला धनवान न भी हो तब भी सुखी रहता है.
धर्म की राह में भी ठेलम ठेला. अगर आप कोई परोपकार का कार्य भी करना चाहते हैं तो भी बहुत जद्दोजहद करनी पडती है और लोगों के आक्षेप सुनने पड़ते हैं.
धर्म धीरा, पाप अधीरा. धर्म पर चलने वाला व्यक्ति धैर्यवान होता है जबकि पाप कर्म करने वाला सब कुछ पा लेने के चक्कर में अधीर होता है.
धर्म भी छूटा, तुम्बा भी फूटा. तुम्बा – कड़वे कद्दू को सुखा कर बनाया गया पात्र जिसे साधु लोग प्रयोग करते हैं. कोई व्यक्ति धर्म से विमुख हो जाए तो.
धर्मी धर्म करे और पापी पेट पीटे. कोई धर्मात्मा परोपकार के कार्य करता है तो दुष्ट लोगों को कष्ट होता है.
धर्मो रक्षति रक्षित: तुम धर्म की रक्षा करो तो धर्म तुम्हारी रक्षा करेगा.
धाओ धाओ, करम लिखा सो पाओ. धाओ – दौड़ो. कितना भी दौड़ लो, जो भाग्य में लिखा है वही मिलेगा.
धाकड़ चोर, सेंध में गावे. आमतौर पर चोर सेंध लगा कर जल्दी से चोरी कर के भाग जाते हैं. परन्तु जो चोर आत्म विश्वास से भरा होता है उसे कोई जल्दी नहीं होती. कोई सरकारी कर्मचारी बिना किसी से डरे घर जा कर रिश्वत मांगे और धौंस दिखाए तो भी यह कहावत कह सकते हैं.
धान का कूटना और कांख का ढांकना, दोनों साथ नहीं होते. यदि कोई स्त्री धान कूटती है तो उसे पूरा हाथ ऊपर की तरफ उठाना होता है. ऐसे में वह भला कांख (बगल) को कैसे ढंक पायेगी. गृहस्थी के आवश्यक काम करने के लिए लाज शर्म छोड़नी पडती है. व्यापार में पुरुषों को भी कई अशोभनीय काम करने पड़ते हैं.
धान का गाँव पुआल से जाना जाता है. यदि गाँव में पुआल का प्रयोग अधिक दिखाई दे तो समझ लो यहाँ धान की खेती होती है. अर्थ है कि परिवेश को देख कर किसी स्थान के विषय में बहुत कुछ जाना जा सकता है.
धान गिरे बढ़ भाग, गेहूँ गिरे दुरभाग. खेत में अगर धान की खड़ी फसल गिरती है तो धान की उपज अच्छी होती है लेकिन गेहूँ की फसल गिर जाए तो उपज अच्छी नहीं होती. गिरी हुई धान की फसल के दाने निरोग और बड़े होते हैं जबकि गेहूँ गिर जाए तो उसके दाने छोटे-छोटे हो जाते हैं।
धान पान ऊखेरा, तीनों पानी के चेरा. धान, पान और गन्ने की फसल को बहुत पानी चाहिए होता है.
धान पान पनिआए, बाभन खूब खिलाए, कायथ घूस दिलाए, नान्ह जात लतिआए. उपरोक्त कहावत को और विस्तार से बताया गया है. धान और पान के पौधे खूब पानी देने से खुश होते हैं (तेजी से बढ़ते हैं), ब्राह्मण खूब खिलाने से, कायस्थ घूस देने से और छोटी जात के लोग लात खा कर खुश रहते हैं. यह एक कडवा सच है कि सामंत शाही व्यवस्था में तथाकथित उच्च जाति के लोग वंचितों पर बहुत अत्याचार करते थे.
धान पान पनियावले, दुष्ट जात लतियावले. (भोजपुरी कहावत) धान और पान अधिक पानी से ठीक रहते हैं और दुष्ट जात लतियाने (लात मारने) से.
धान पान पानी, कातिक स्वाद जानी. धान, पान और पानी का स्वाद कार्तिक माह में ही अच्छा होता है. धान कार्तिक में तैयार हो जाता है. पान भी इसी मास में अच्छे हो जाते हैं और पानी भी स्वच्छ हो जाता है.
धान पान, नित अस्नान. धान और पान को बराबर पानी से नहलाना चाहिए.
धान पुराना घी नया और कुलवंती नार, चौथी पीठ तुरंग की सरग निसानी चार. चावल पुराना अच्छा माना जाता है और घी नया. ये चीजें भाग्य से ही मिलती हैं. इनके अतिरिक्त कुल की लाज रखने वाली स्त्री और घोड़े की सवारी भी बड़े भाग्य से मिलती हैं इसलिए इन चारों चीजों को स्वर्ग की निशानी बताया गया है.
धाये धन, न माँगे पूत. दौड़-धूप करने से धन और माँगने से लड़का नहीं मिलता. भाग्य में हो तभी मिलता है.
धी छोड़ दामाद प्यारा. लड़की मायके में अपने पति की बुराई कर रही है. मां बाप समझाते हैं कि पति के बारे में ऐसा नहीं कहते, तो लड़की बोलती है कि अच्छा अब तुम्हें लड़की से दामाद ज्यादा प्यारा हो गया.
धी जमाई ले गए, बहू ले गईं पूत, चरनदास हम बुड्ढे बुढ़िया रहे ऊत के ऊत. धी माने बेटी. जमाई लोग लड़कियों को ले गए और लड़कों को बहुएं ले गईं. बेचारे पति पत्नी बुढ़ापे में अकेले रह गए.
धी ताको कहूँ, बहुरिया तू कान धर. कोई औरत बहू पर रोब जमाने के लिए लड़की को डांट रही है (जिससे बहू यह न कहे कि लड़की को कुछ नहीं कहतीं), और इस तरह बोल रही है कि बहू भी सुन कर सावधान हो जाए.
धी दस कोस, पूत पड़ोस. धी – बेटी. 1. लड़की को अपने घर से थोड़ा दूर बसाना चाहिए और पुत्र को बगल में. 2. लड़की दूर रहती है इसलिए समय पर काम नहीं आ सकती, पुत्र पड़ोस में रहता है इसलिए काम आता है.
धी न धियाना, आप ही कमाना, आप ही खाना. ऐसे इकलखोर निस्संतान व्यक्ति के लिए जो कोई सामाजिक सरोकार न रखता हो.
धी पराई, आँख लजाई. कोई व्यक्ति कितना भी बड़ा क्यों न हो, कितना भी अहंकारी क्यों न हो, बेटी की शादी के बाद उसे विनम्र होना पड़ता है.
धी ब्याही तब जानिये जब घर से डोली जावे. बेटी के विवाह में तरह तरह के संकट आते हैं. जब उस की डोली विदा हो जाए तभी मानना चाहिए कि विवाह सम्पन्न हो गया है.
धी मेरी मर गई दामाद मेरा क्या, पूत मेरा मर गया पतोहू मेरी क्या. धी – बेटी, पतोहू – पुत्रवधू. दामाद या बहू से रिश्ते अपने बेटे बेटी से ही जुड़ते हैं. उनके न रहने पर रिश्ते का क्या अर्थ.
धींगे की धरती है. धींगामुश्ती करने वाला आदमी ही दुनिया में आराम से रह सकता है.
धीमे नाचो, नंगे दिख जाओगे. अति उत्साह में आ कर ज्यादा उछल कूद करने से आपकी असलियत सामने आ जाने का खतरा होता है.
धीया न पूता, मुँह चाटे कूता. धीया, धी – बेटी, पूता – पुत्र. जिनके कोई संतान न हो बुढापे में उनकी बहुत मिट्टी खराब होती है (कुत्ते मुँह चाटते हैं).
धीरज धरिअ उतरिये पार, नाहीं बूड़त सब परिवार. बूड़ना – डूबना. जो लोग धैर्य रख कर नदी पार करते हैं, उनका परिवार बीच नदी में नहीं डूबता. रूपांतर- धीरज करे तो उतरे पारा, नहीं तो बूड़े सब संसारा.
धीरज धर्म मित्र अरू नारी, आपत काल परखियेहीं चारी. कोई व्यक्ति कितना धैर्यवान है, कितना अपने धर्म पर अडिग है, कोई मित्र कितना सच्चा हितैषी है और कोई नारी कितनी पतिव्रता है, इन सब की परख आपत्ति काल में ही हो सकती है.
धीरज बनिज, उतावल खेती. व्यापार में धैर्य की आवश्यकता होती है और खेती में जल्दी निर्णय ले कर पहले काम करने की.
धीरज सुधारे कारज. धैर्यपूर्वक कार्य करने से सारे कार्य ठीक से हो जाते हैं.
धुली धुलाई भेड़ कीचड़ में गिरी. भेड़ को नहलाना कितना कठिन होता है, और नहलाने के बाद अगर वह कीचड़ में गिर जाए तो नहलाने वाले को कितना कष्ट होगा. मेहनत से किया हुआ काम मिट्टी में मिल जाए तो.
धूप रहते मेंह बरसे, काले चोर का ब्याह. लोक विश्वास है कि धूप और वर्षा एक साथ हो तो काले चोर का ब्याह हो रहा होगा. कहीं कहीं भूत भूतनी का ब्याह भी मानते हैं.
धूल उड़ाने से सूरज नहीं छिपता. किसी महापुरुष की निंदा करने से उसकी महानता कम नहीं हो जाती.
धूल छाने कंकड़ हाथ. व्यर्थ के काम से कुछ हासिल नहीं होता. धूल को छानोगे तो कंकड़ ही हाथ लगेंगे.
धूल पड़े वा काम में एक चित्त दो ठौर. काम कहीं और कर रहे हैं और मन कहीं और है तो काम में सफलता नही मिल सकती.
धूल से ढका हो तो भी सूरज सूरज ही रहता है. किन्हीं कारणों से यदि किसी महान व्यक्ति की महानता सामने नहीं आ पा रही है तब भी वह महान ही रहेगा.
धेला न कौड़ी, कान छिदाने दौड़ी. कर्ण छेदन संस्कार में काफी खर्च होता है. पैसा पास न होने पर भी यदि कोई बड़ा कार्य करना चाह रहा हो तो यह कहावत कही जाती है.
धेले की नथनी पर इतना गुमान, सोने की होती तो चढ़ती आसमान. बहुत छोटी छोटी चीजों पर घमंड करने वालों का मजाक उड़ाने के लिए यह कहावत कही गई है.
धेले की बुढ़िया टका सर मुड़ाई. किसी सस्ती चीज़ का रखरखाव महंगा हो तो.
धैया छूने आये थे. बच्चों के खेल में किसी एक स्थान को धैया मान लेते हैं. बच्चे दौड़ कर धैया छूते हैं और लौट कर वापस आते हैं. कोई आप के घर आते ही जाने के लिए कहे तो मजाक में यह कहावत बोली जाती है.
धोपे धापे भीत, जोड़े जाड़े गीत. थोड़ी थोड़ी ईंटें व मिट्टी थोप कर दीवार बन जाती है और छोटे छोटे छंद जोड़ कर गीत बन जाता है.
धोबियों से कौन सा घाट छिपा है. हर व्यापारी को अपने व्यवसाय से सम्बन्धित बारीकियाँ मालूम होती हैं.
धोबी अपने गदहे को भी बाबू कहे. 1. जिस से काम लेना है उस से अच्छा व्यवहार करना चाहिए. 2. घर में पलने वाला जानवर पुत्र के समान प्यार पाता है (घर के बच्चे को लोग प्यार से बाबू कहते हैं).
धोबी अहीर की कौन मिताई, इनके गदहा उनके गाई. दो अलग प्रवृत्ति या व्यवसाय वाले लोगों में मित्रता नहीं हो सकती इस बात को मजेदार ढंग से कहा गया है. धोबी के पास गदहा है और अहीर के पास गाय, इनमें मित्रता कैसे हो सकती है.
धोबी कभी अपने कपड़े नहीं फाड़ता. लोग लापरवाही से दूसरों का काम तो बिगाड़ देते हैं, अपना काम नहीं बिगड़ने देते. (धोबी अपने ग्राहकों के कपड़े अक्सर लापरवाही के कारण फाड़ देते हैं).
धोबी का कुत्ता, न घर का न घाट का. धोबी का कुत्ता धोबी के साथ घाट पर जाता है और घाट पर कपड़े सूखते छोड़ कर धोबी के साथ ही घर आ जाता है. अर्थात वह न तो घर की रखवाली कर पाता है और न ही घाट की. किसी ऐसे व्यक्ति के लिए जिस से कोई भी एक काम ढंग से न लिया जाए (और इस कारण उस की कोई कद्र न हो). इस से मिलती जुलती भोजपुरी कहावत है – घर के ना घाट के माई के न बाप के.
धोबी का गधा, साधु की गाय और राजा का नौकर किसी और काम के नहीं रहते. इनकी आदतें बहुत बिगड़ी हुई होती हैं इसलिए ये कहीं और काम नहीं कर सकते.
धोबी का छैला (बेटा), आधा उजला आधा मैला. धोबी का बेटा आधे कपड़े अपने पहनता है जो मैले होते हैं और आधे कपडे ग्राहकों के पहनता है जो उजले होते हैं.
धोबी का साथी पत्थर. धोबी को दिन भर पत्थर पर कपड़े कूटने होते हैं इसलिए पत्थर को उसका साथी मानना ठीक है. जब मजबूरी में किसी को साथी मानना पड़े तो.
धोबी की भाजी गधा भी खाए (धोबी का श्राद्ध गधा भी खाए). भाजी – विवाह में रिश्तेदारों को बंटने वाली मिठाई. पालतू जानवर परिवार के सदस्य जैसा हो जाता है.
धोबी के घर पड़े चोर, वह न लुटा लुटे और. धोबी के घर चोरी होगी तो नुकसान धोबी का नहीं उन लोगों का होगा जिनके कपड़े धोबी धोने के लिए ले कर आया है.
धोबी के घर ब्याह, गधे का छुट्टी भइल. (भोजपुरी कहावत) धोबी के घर में ब्याह है. कपड़े नहीं धुलने इस लिए गधे को छुट्टी मिल गई है. किसी असम्बद्ध कारण से किसी को लाभ मिलने पर.
धोबी के घर में आग लगी, न हरष न बिषाद. धोबी के घर में आग लगी तो उसे कोई चिंता ही नहीं है, क्योंकि जो कपड़े जलेंगे वे उसके हैं ही नहीं.
धोबी के बसे या कुम्हार के, गधा तो लदेगा ही. गरीब और असहाय आदमी कहीं भी रहे उस पर काम तो लादा ही जाएगा.
धोबी के ब्याह, गधे के माथे मोर. धोबी के घर में ब्याह है तो गधे को भी सजने को मिल रहा है. घर में कोई उत्सव हो तो नौकर चाकर, पालतू जानवर सभी की मौज हो जाती है.
धोबी छोड़ भिश्ती किया, रही घाट के पास. धोबी घाट पर कपड़े धोता है और भिश्ती पानी भरता है. किसी स्त्री ने धोबी को छोड़ कर भिश्ती से शादी कर ली, तो भी उसे घाट पर ही रहना पड़ा. स्थान या व्यवसाय बदल कर भी किसी व्यक्ति की स्थिति न सुधरे तो यह कहावत कही जाती है.
धोबी पानी में रह कर भी प्यासा मरे. धोबी जहाँ कपड़े धोता है वहाँ पानी गंदा होता है इसलिए. कोई व्यक्ति साधनों की प्रचुरता के बीच अभावग्रस्त हो तो यह कहावत कहते हैं.
धोबी बस के क्या करे, दिगम्बरन के गाँव. दिगम्बर – दिक्+अम्बर, दिशाएँ जिनका वस्त्र हैं अर्थात पूर्णतया निर्वस्त्र रहने वाले साधु लोग (जैन मुनियों का एक वर्ग). जो लोग कपड़े ही नहीं पहनते उनके गाँव में बस कर धोबी क्या करेगा. जहाँ किसी चीज़ की बिलकुल माँग न हो वहाँ उस का व्यापार करने की क्या तुक.
धोबी रोवे धुलाई को, मियाँ रोवे कपड़े को. धोबी इस बात को रोता है कि धुलाई के पैसे कम मिल रहे हैं और मियाँ इस बात को रो रहे हैं कि कपड़े साफ़ नहीं धुले या फट गए. सब अपनी अपनी परेशानी को रोते हैं.
धौले पर दाग लगे. सफेद पर ही दाग लगता है, काले या गहरे रंग पर दाग दिखाई नहीं पड़ते. सच्चरित्र और प्रतिष्ठित व्यक्ति जरा सी भी गलती करे तो उस की बदनामी बहुत जल्दी हो जाती है.
धौले भले हैं कापड़े, धौले भले न बार, काली भली है कामली, काली भली न नार. कपड़े सफेद अच्छे लगते हैं पर सफ़ेद बाल अच्छे नहीं लगते, कमली (छोटा कम्बल) तो काली अच्छी लगती है पर स्त्री काली अच्छी नहीं लगती.
न
न अंधे को न्योता देते न दो जने आते. अंधे को बुलाओगे तो अंधा खुद तो आएगा ही, किसी को साथ में ले कर भी आएगा. ऐसा कोई काम करो ही क्यों जिसमें उम्मीद से अधिक खर्च हो.
न अधिक खा के मरो, न उपवास कर के मरो. अति हर चीज की बुरी है.
न इतना मीठा बन कि चट कर जाएं भूखे, न इतना कड़वा बन कि जो चक्खे वो थूके. समाज में अपना व्यवहार कैसा रखना चाहिए इसके लिए बड़ा सुंदर सुझाव है. अगर बहुत मीठा बनोगे तो लोग आप से बहुत अपेक्षाएं करेंगे और आपको चैन से जीने नहीं देंगे. अगर बहुत कड़वा बनोगे तो आप के नाम पर थूकेंगे. इसलिए न बहुत मीठा और न बहुत कड़वा, संतुलित व्यवहार करना चाहिए.
न कहते लाज न सुनते लाज. बेहया आदमी न कहते शर्म करता है और न सुनने में बुरा मानता है.
न कूटे के न पीसे के न डारे के पिसान, ऐसे घरे बियाहो बाबा, सोय- सोय करूँ बिहान. (भोजपुरी कहावत) लड़की पिता से कह रही है कि मेरी शादी ऐसे घर में करना जहां पर न कूटना पड़े, न पीसना पड़े और न गाय-भैंस को सानी, पानी डालना पड़े. बस मैं रात दिन सो-सो कर सबेरा करूं. बिहान – सवेरा.
न खाता न बही, जो हम कहें वही सही. जबरदस्ती अपनी बात मनवाने वालों के लिए.
न खुदा ही मिला न बिसाले सनम, न इधर के रहे न उधर के रहे. बिसाले सनम – प्रिय से मिलना (उर्दू). कहावत का अर्थ स्पष्ट है. इस प्रकार की दूसरी कहावत है – दुविधा में दोनों गए, माया मिली न राम.
न खोटा करें न हाथ जोड़ें. जब हम कोई गलत काम नहीं करते तो हम किसी के आगे हाथ क्यों जोड़ें.
न गदहे को दूजा मालिक, न धोबी को जानवर दूजा. जहाँ दो व्यक्ति मजबूरी में एक दूसरे से गठबंधन किए हों और निभा रहे हों.
न गाय के थन, न किसान के भांडे. जहाँ पर किसी काम का कोई सूत कपास ही नहीं है.
न घर चैन, न बाहर चैन. बहुत चिन्ता ग्रस्त व्यक्ति.
न चलनी में पानी आएगा, न चोकर की रस्सी बनेगी. जैसे को तैसा. सन्दर्भ कथा – भोजपुरी की प्रसिद्द लोकगाथा लोरिकायन के नायक लोरिक की बरात में कन्या के पिता ने बारातियों की परीक्षा लेने के लिए एक के बाद कई शर्तें रखीं. उन में से एक में उनहों ने गेहूँ का महीन चोकर भेजा और उस की रस्सी बंटने को कहा. बदले में लोरिक पक्ष के बुद्धिमान लोगों ने उनसे चलनी में पानी भर के देने की शर्त रखी जिससे वे रस्सी बंट सकें. इसी पर यह कहावत बनी.
न ढेर बलबल न ढेर चुप, न ढेर बरखा न ढेर धुप. अति किसी भी चीज़ की बुरी होती है.
न तुम जीते न हम हारे. आपसी विवाद को समझदारी से सुलझाने की कला.
न तू मोरी कहे खीस निपोरी, न मैं तोरी कहूँ दाँत निपोरी. न तू खीसें निपोर कर मेरी बदनामी कर और न मैं दांत निपोर कर और रस ले ले कर तेरी बदनामी करूँ. परस्पर व्यवहार की बात. रूपान्तर – न तू कहे मेरी न मैं कहूं तेरी, जो तू कहे मेरी तो मैं कहूं तेरी.
न तोहरे सूप न हमरे चलनी, चल पड़ोसन लड़ाई करें. एक पड़ोसिन दूसरी से कहती है कि इस समय हम दोनों के पास छानने पछोरने को कुछ नहीं है. जब कोई काम नहीं है तो आओ हम लड़ें.
न दीन का न दुनिया का. दीन – धार्मिक आस्था. कोई दुविधा ग्रस्त व्यक्ति जो न साधु सन्यासी बन पा रहा हो और न दुनियादारी निभा पा रहा हो.
न देने के नौ बहाने (ना देवे की सौ बातें). कोई वस्तु देने का मन न हो तो बहुत से बहाने बनाए जा सकते हैं.
न दौड़ चलेंगे, न ठेस लगेगी. दौड़ने में ठोकर लगने का डर है, हम दौड़ कर चलेंगे ही नहीं तो ठेस क्यों लगेगी.
न धान बोवो न बादल ताको. जब सिंचाई के साधन नहीं थे तब धान बोने वाले किसान बादल आने की बाट देखते रहते थे. कहावत में यह सीख दी गई है कि ऐसा काम मत करो जिसमें दूसरों पर आश्रित रहना पड़े.
न नाम लेवा, न पानी देवा. किसी का पूरा खानदान नष्ट हो जाना. न तो कोई नाम लेने वाला बचा, न पितरों को तर्पण देने वाला.
न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी. राधा नाम की एक लड़की से नाचने के लिए कहा गया. उसने कहा नौ मन तेल के दिए जलाओ तो मैं नाचूँगी. यहाँ नौ मन तेल का अर्थ है कोई असंभव सी शर्त. किसी काम को करने के लिए कोई बहुत बड़ी और अव्यावहारिक शर्त रखे तो यह कहावत कही जाती है.
न बढ़ के बोले न आन की बिपदा खोले. न तो अपनी बात को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर बोलना चाहिये और न किसी के पाप व कष्ट को सबके सामने कहना चाहिये. आन की – दूसरे की.
न बात बिरानी कहिए, न ऐंचातानी सहिए. बिरानी – पराई. दूसरे की बुराई करोगे तो परेशानी में पड़ोगे, इसलिए दूसरों के कजिए किस्से (परनिंदा परचर्चा) नहीं करने चाहिए. सन्दर्भ कथा – न व्यर्थ दूसरे की बात किसी से कहो और न इँचे-खिंचे फिरो. एक बार किसी सियार की स्त्री ने एक शेर की माँद में जाकर बच्चे दिये. उस समय शेर बाहर था. परन्तु जब सियार और सियारनी ने शेर को वापस आते देखा तो वे बड़े घबराये. कोई और उपाय न देख सियार ने एक योजना बनाई. शेर जब मांड के निकट आया तो सियारनी बच्चों को रुला दिया. सियार ने आवाज बदल कर पूछा, रानी चकचुइया, बच्चे रोते क्यों हैं? सियारनी बोली, राजा शालिवाहन! वे भूखे हैं, शेर का ताजा मांस खाने को माँगते हैं. सियार बोला, अच्छी बात है! इस जंगल में शेरों की क्या कमी. एक नहीं, अभी दस मार कर लाता हूँ. शेर ने उन दोनों की इस प्रकार की बातचीत सुनी तो डर के मारे उल्टे पैरों भाग खड़ा हुआ.
रास्ते में उसे एक दूसरा सियार मिला. उसके पूछने पर कि महाराज आप इस तरह तेजी से कहाँ भागे जा रहे हैं, शेर ने सारा किस्सा बताया. सुन कर सियार ने हँस कर कहा, महाराज आप भी किसकी बातों में आ गए, वह तो हमारी बिरादरी का ही एक सियार है. उसकी स्त्री ने वहाँ बच्चे दिये हैं. विश्वास न हो तो चल कर देख लीजिए. शालवाहन यहाँ कहाँ रखे. परन्तु शेर को इसका विश्वास नहीं हुआ. तब सियार ने कहा अच्छी बात है. आप अगर समझते हो कि मैं आपको धोखा दे रहा हूँ तो मैं आपकी पूँछ से अपनी पूंछ बाँध लेता हूँ जिसमें मैं कहीं भागकर जा न सकूं. बात झूठ निकले तो आप जो समझो सो करना. शेर इस बात पर राजी हो गया. पूंछ से पूंछ बाँध कर दोनों माँद की तरफ चल पड़े.
इधर पहले सियार ने जब उनको इस प्रकार आते देखा तो उसने तुरंत बुद्धि लगाईं और मांद के भीतर से ही चिल्ला कर कहा, शाबाश! तुम अच्छे मौके से आये. मैं स्वयं शेर के शिकार के लिए जा ही रहा था. परन्तु यह क्या? मैंने तुमसे दो शेर पकड़ कर लाने को कहा था. परन्तु तुम एक ही लाये? सियार की यह बात सुन कर शेर वहाँ से प्राण लेकर भागा. दूसरा सियार चिल्लाता ही रहा कि महाराज, ठहरिये, ठहरिये, मुझे कम से कम अपनी पूँछ तो छुड़ा लेने दीजिये. परन्तु शेर ने एक नहीं सुनी, बराबर भागता ही गया और सियार भी उसके पीछे-पीछे बड़ी दूर तक घिसटता गया. लगातार झटके लगने से बेचारे की पूंछ टूट गयी और कई जगह सिर में चोट भी आयी.
न बासी बचे, न कुत्ता खाय. किसी काम को बहुत किफायत से करना जिसमें चीज़ खराब न जाए.
न बेटा न बेटी, बेट होए. कोई व्यक्ति किसी बात का गोल मोल जवाब दे तो यह कहावत कही जाती है. सन्दर्भ कथा – एक ढोंगी महात्मा से किसी गर्भवती स्त्री ने पूछा कि उसके बेटा होगा या बेटी. महात्मा जी को कोई विद्या तो आती नहीं थी. वह तो केवल गोल मोल बातें बना कर लोगों को ठगते थे. उनके चेले ने महिला को बताया कि आज महात्मा जी मौन व्रत रखे हैं, केवल दो शब्द बोलेंगे. महात्मा जी बोले – बेट होए.
न ब्याये, न बराते गये. न तो विवाह किया और न किसी की बारात में ही गये. नितांत अनुभवहीन व्यक्ति.
न भटों में, न भाजी में. भटा – बैंगन. जो किसी गिनती में न हों.
न माई का बच्चा थामे न हरवाहे की मूंठ, न रांड़ की कुटिया बैठे न रेंड़ की ठूंठ. बच्चेवाली मां का बच्चा थामा तो वह जल्दी बच्चा वापस नहीं लेगी और बच्चा रो दिया तो गाली खाओगे. हलवाहे का हल थामोगे तो वह वापस जल्दी हल नहीं संभालेगा. विधवा स्त्री की कुटिया में बैठने में कलंक लगने का भय रहता है एवं रेंड़ के पेड़ में छाया ही नहीं होती तो धूप से नहीं बच सकते. इसलिए इन चारों कामों से बचना चाहिए.
न मिली तो त्यागी, मिल गई तो वैरागी. स्त्री नहीं मिली तो त्यागी बन गए, मिल गई तो वैरागी बन गए. वैरागी वैष्णवों का एक सम्प्रदाय है जिसमें स्त्री रख सकते हैं, त्यागी नहीं रखते.(अनमिले त्यागी, राँड़ मिले बैरागी)
न मैं जलाऊं तेरी, न तू जलाए मेरी. न मैं तुम्हें बुरा भला कह कर गुस्सा दिलाऊं, न तुम मुझे.
न मैके में सुख, न ससुराल में. जिस स्त्री को कहीं सुख न मिले.
न रहेगा बाँस न बजेगी बांसुरी. सभी जानते हैं कि बांसुरी बांस से बनती है (उसका नाम बांसुरी इसीलिए है). अब अगर बांस नहीं होगा तो बांसुरी बन ही नहीं पाएगी. जिस वस्तु के द्वारा काम होना हो उसे ही नष्ट कर देना.
न रांड कहो, न निपूती सुनो. न किसी से बुरी बात कहो, और न उससे अधिक बुरी सुनो.
न लड़का दिया कहे, न सोना होवे. लोक विश्वास है कि यदि छः महीने का दूध पीता बालक मुँह से ‘दिया’ कह दे तो मिट्टी का दीपक सोने का हो जाएगा. ऐसी शर्त बताना जो कभी पूरी नहीं हो सकती हो.
न सुनोगे सीख, तो मांगोगे भीख. बड़ों की सीख नहीं सुनोगे तो जीवन में कुछ नहीं बन पाओगे, भीख मांगने की नौबत आ जाएगी.
न सूप दूसे जोग, न चलनी सराहे जोग. दूसे जोग – दोष देने योग्य, सराहे जोग – सराहने योग्य. सूप और चलनी में से कोई भी प्रशंसा या बुराई करने योग्य नहीं है. जब दो चीजें या दो व्यक्ति एक से हों तो.
न हगे न राह छोड़े. कहावत बेशर्म आदमी के लिए कही गई जो मार्ग में शौच करने बैठ गया है. न शौच कर रहा है, न ही वहाँ से हट रहा है. कोई आदमी ढिठाई से गलत काम कर रहा हो तो.
न हाथ काला न मुँह काला. काम आसानी से निबट गया. न कोई गलत काम करना पड़ा, न बदनामी हुई.
नंग न लुटे हजारन में. हजारों चोर लुटेरे मौजूद हों तब भी, नंगे को कोई क्या लूटेगा.
नंग बड़े परमेश्वर से. यहाँ नंगे से अर्थ निर्लज्ज व्यक्ति से है. निर्लज्ज व्यक्ति से सबको डरना चाहिए (चाहे एक बार को आप परमात्मा से मत डरो).
नंगई तेरहवां रत्न है. बेशर्म आदमी से सब डरते हैं इस आशय में यह कहावत कही जाती है.
नंगई तेरा ही सहारा. निर्लज्ज व्यक्ति का सब से बड़ा हथियार निर्लज्जता ही है.
नंगन के नंग आये, पैरें बैठे झंग. नंगे के घर झीना कपड़ा पहने आदमी आया है. जैसे के यहाँ तैसे ही आते हैं.
नंगा क्या ओढ़े क्या बिछाए. सभ्य समाज के लोगों की कुछ न्यूनतम आवश्यकताएँ होती हैं, जैसे ओढ़ने और बिछाने के कपड़े. जिसके पास कुछ भी नहीं है वह बेशर्म हो जाता है.
नंगा क्या नहाए और क्या निचोड़े. जो नंगा है वह नहा कर क्या करेगा, और नहा भी लेगा तो उसे कौन से कपड़े निचोड़ने हैं. जिसके पास कुछ भी न हो उसका भद्दे तरीके से मज़ाक उड़ाने के लिए..
नंगा खड़ा बजार में, है कोई कपड़े ले. नंगा बीच बाज़ार में खड़ा पूछ रहा है कोई कपड़े लेगा. जो कंजूस और निर्लज्ज आदमी अपने आप को बहुत दानी बताता हो उस का मजाक उड़ाने के लिए.
नंगा ठाँड़ो गैल में चोर बलैयाँ लेय. नंगा सड़क पर खड़ा है तो चोर उस पर न्योछावर हो रहा है कि भैया तुम मुझ से भी गए गुजरे हो, तुम्हारा मैं क्या चुरा सकता हूँ. रूपान्तर – नंगे का क्या चुरा लोगे.
नंगा नाचे खोवे क्या. जो निर्लज्ज है वह कुछ भी बेहयाई कर सकता है. रूपान्तर – नंगो न्हावै बीच बजार.
नंगा साठ रुपये कमाए, तीन पैसे खाए. बहुत कंजूस आदमी के लिए.
नंगा सो चंगा. जिसके पास कुछ नहीं (या जो निर्लज्ज है) वह सदैव मजे में है.
नंगी नाचे, धमाको होय. निर्लज्ज जब निर्लज्जता पर उतर आता है तो सब सन्न रह जाते हैं.
नंगी ने घाट रोका, नहावे न नहाने दे. कोई बेशर्म स्त्री नंगी हो कर घाट पर खड़ी हुई है, खुद भी नहीं नहा रही है और लज्जा के मारे दूसरे लोग भी नहीं नहा पा रहे हैं. कोई नीच व्यक्ति खुद भी कोई काम न करे और दूसरों को भी न करने दे तो.
नंगी हो के काता सूत, बूढ़ी होके जाया पूत. उचित समय पर कोई काम न करना. जब कपड़े बिलकुल फट गए तो कपड़ा बुनने के लिए सूत कातने बैठीं, और जवानी में न करके बुढापे में पुत्र पैदा किया.
नंगे का आग में क्या जले. जिसके पास कुछ नहीं है उसका किसी प्राकृतिक आपदा में क्या बिगड़ेगा.
नंगे का पाला उघाड़े से पड़ा. उघाड़ा – अपने अंगों को उघाड़ कर दिखाने वाला बेशर्म आदमी. अर्थ स्पष्ट है.
नंगे के नौ हिस्से. उद्दंड और निर्लज्ज व्यक्ति किसी चीज के बंटवारे में अधिक से अधिक हिस्सा चाहता है.
नंगे के संग नाचे बिना हिस्सा नाहिं मिलत. नंगे के साथ नंगा हो कर नाचना पड़ता है तभी काम बनता है.
नंगे को लुटने का क्या डर. 1. जो व्यक्ति एकदम कंगाल हो उस से कोई क्या लूट लेगा. 2. जो व्यक्ति एकदम बेशर्म हो उस की कोई क्या बेइज्जती कर लेगा. इंग्लिश में कहते हैं – Beggars are never robbed.
नंगे को लोटा मिल्यो, बार बार हगन गयो. नंगे को लोटा मिल गया (जो उसके लिए बहुत बड़ी चीज़ है) तो वह दूसरों को लोटा दिखाने के लिए बार बार दिशा मैदान (खुले में शौच करने) जा रहा है. तुच्छ मानसिकता वाले व्यक्ति को छोटी सी चीज़ मिल जाए तो वह बहुत दिखावा करता है.
नंगे पाँव ही जाएंगे, राजा और कंगाल. अंतिम यात्रा सभी को नंगे पाँव ही करनी है.
नंगे बादशाह से भी न्यारे (नंगे लुच्चे सब से उच्चे). बेशर्म आदमी सब से ऊपर है.
नंगे सर न नौ लेना न नौ देना. पहले के जमाने में सम्भ्रान्त लोगों के लिए टोपी या पगड़ी पहनना आवश्यक माना जाता था. बिलकुल निम्न वर्ण के लोग या बहुत गरीब लोग ही नंगे सर रहते थे. कहावत में बताया गया है कि निम्न श्रेणी के या बहुत गरीब लोगों को सामाजिक जिम्मेदारियों की कोई चिंता नहीं सताती.
नंगे से तो गंगा भी हारी है. 1.निर्लज्ज व्यक्ति से सब हार मान लेते हैं. 2.महापापी लोगों के पाप गंगा मैया भी नहीं धो सकतीं.
नंगे से दूर भला. निर्लज्ज और ओछे आदमी से जितना दूर रहो उतना अच्छा.
नंगों की बस्ती में धोबी का क्या काम. जहाँ कोई कपड़े ही नहीं पहनता, वहाँ धोबी क्या करेगा. यहाँ नंगों से अर्थ बेशर्मों और धोबी से अर्थ सुधारक से भी है.
नई कहानी, गुड़ से मीठी. पुराने समय में जब मनोरंजन के और कोई साधन नहीं थे तो किस्से कहानियों से ही मन बहलाया जाता था. बड़े लोग एक ही कहानी को बार बार सुनाते थे और बच्चे शौक से सुनते थे. उस समय नई कहानी का बहुत अधिक महत्व हुआ करता था.
नई घोड़ी चाल दिखाएगी. बच्चों की कहावत. कुछ बच्चे चोर सिपाही खेल रहे हों तो जो नया बच्चा खेल में शामिल होने आएगा उसे चोर बनना पड़ेगा.
नई दुकान, तिबरसी गुड़ माँगें. तिबरसी – तीन साल पुराना. नई दुकान और तीन वर्ष का पुराना गुड़ माँगते हैं.
नई दुलहन, कान में नथनी. कोई नौसिखिया आदमी किसी काम को गलत ढंग से कर रहा हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.
नई धोबनिया लुगरी में साबुन. लुगरी – फटी पुरानी धोती. पुराने जमाने में साबुन महंगा होता था और केवल कीमती कपड़ों को धोने में प्रयोग होता था. कोई अनुभव हीन व्यक्ति घटिया काम में अधिक खर्च करे तो यह कहावत कही जाएगी.
नई नई दुल्हन की नई नई चाल. जब किसी समूह में नया आने वाला व्यक्ति कुछ नई निराली रीत चलाने की कोशिश करे तो.
नई नवेली के नौ फेरे. अल्हड़ व नौसिखिए लोगों का मजाक उड़ाने के लिए.
नई बहू का आल्हा गावें. आल्हा – प्रशस्ति गान. किसी नई वस्तु की बार-बार और अनावश्यक प्रशंसा करना. (आल्हा और ऊदल दो महान वीर थे जिनके प्रशस्ति गान को आल्हा कहते हैं).
नई बहू का दुलार नौ दिन (नई बहू नौ दिन की). किसी भी नए काम का उत्साह थोड़े दिन ही रहता है. फिर सब उस के अभ्यस्त हो जाते हैं और उस में कमियाँ भी दिखने लगती हैं.
नई बहू के नए चाव. 1.किसी भी नए काम को करने में लोगों में अधिक उत्साह होता है. 2. जब कोई व्यक्ति नई जगह पहुँचता है तो अधिक उत्साह से काम करता है.
नई बहू को पालागन. पालागन – पांय लगना. नए और छोटे व्यक्ति को अनुचित आदर देना.
नई बहू, कुठौर घाव. नयी बहू को यदि अंदरूनी अंग में कष्ट हो जाए तो बेचारी शर्म के मारे किस से कहे.
नई बात नौ दिना. किसी नयी बात की चर्चा दस पाँच दिन ही रहती है. फिर वह पुरानी पड़ जाती है.
नई बोतल में पुरानी शराब. किसी पुरानी घिसी पिटी बात या चीज़ को नए कलेवर में पेश करना.
नई मांग सेंदुर देंय मांग चर्राय. चर्राना – खिंचाव लगना. किसी नये काम में थोडा कष्ट तो उठाना ही पड़ता है.
नउआ के घर चोरी भइल, तीन बोरा बाल गइल. (भोजपुरी कहावत) नाई के घर चोरी हुई तो तीन बोरा बाल चोरी गए. जिस के पास कोई कीमती चीज़ नहीं है उसके पास से क्या चुरा लोगे.
नए चिकनियाँ, अंडी का फुलेल. कहावत उन के लिए है जिन्हें नया नया फैशन का शौक चढ़ा हो लेकिन शऊर न हो. ऐसे कोई साहब अंडी के तेल को इत्र समझ कर लगा रहे हैं.
नए नए कानून, नए नए तोड़. सरकारें नए नए कानून बनाती हैं पर होशियार लोग उससे पहले ही उन के तोड़ ढूँढ़ लेते हैं. इंग्लिश में कहावत है – Laws catch flies, but let hornets free. (hornet – ततैय्या)
नए नए हाकिम, नई नई बातें. नए हाकिम अपनी ऐंठ में नए कायदे लागू करने की कोशिश करते हैं (और बरसों से वहाँ जमे लोग इस तरह से उनका मजाक उड़ाते हैं).
नए सिपाही, मूंछ में ढांटा. ढाटा – चेहरे पर बाँधने वाला कपड़ा. नया अधिकार मिलने पर व्यक्ति बौरा जाता है.
नकटा जीवे बुरे हवाल. दुर्भाग्य वश नकटे व्यक्ति को समाज में अशुभ माना जाता है. इसलिए बेचारा नकटा आदमी बुरी स्थिति में जीता है.
नकटा बूचा सबसे ऊँचा. बूचा माने कान कटा कुत्ता (जो काफी मनहूस माना जाता है). और अगर वह नकटा भी हो तो क्या कहने. कुल मिला कर यहाँ नकटा बूचा का अर्थ महा निर्लज्ज और मनहूस आदमी से है. इस प्रकार के आदमी से सब डरते हैं. (नंग बड़े परमेश्वर से)
नकटा ससुर निर्लज्ज बहू, आ रे ससुर कहानी कहूँ. रिश्तों की मर्यादा न जानने वाले निर्लज्ज लोगों का मजाक उड़ाने के लिए. ससुर और बहू दोनों बेशर्म हैं इसलिए साथ बैठ कर हंसी ठट्ठा कर रहे हैं.
नकटी के सामने नाक न पकड़ो. नकटी के सामने कोई नाक पकड़े तो वह समझती है कि उसे चिढा रहा है.
नकटी नथ का क्या करे (नकटी को भी नथ की चाह). जिसकी नाक ही नहीं है वह नथ का क्या करेगी.
नकटे का खाइए, उकेटे का न खाइए. उकेटा – दे कर एहसान जताने वाला आदमी. यहाँ नकटे का अर्थ है जिसकी कोई इज्जत न हो. किसी भी व्यक्ति का एहसान ले लो पर जो दे कर एहसान जताए उस का एहसान मत लो.
नकटे की नाक कटी, सवा गज और बढ़ी. जिसकी कोई इज्जत न हो उस की क्या बेइज्जती कर लोगे.
नकटे को आइना मत दिखाओ. 1. नकटे को आइना दिखाने का अर्थ है उसके नकटेपन को लेकर उसे चिढ़ाना. किसी व्यक्ति में कोई कमी हो तो उस को ले कर उसे अपमानित नहीं करना चाहिए. 2. निर्लज्ज आदमी से कभी यह नहीं कहना चाहिए कि उस की कोई इज्ज़त नहीं है.
नकद को छोड़ नफे को न दौड़िए. जो लाभ नकद मिल रहा हो वह अधिक अच्छा है. उस को छोड़ कर अधिक लाभ के पीछे भागने में खतरा अधिक है. (नौ नकद न तेरह उधार)
नकल को भी अकल चाहिए. किसी की नकल करने के लिए भी इतनी बुद्धि तो होना ही चाहिए कि नकल करने में हमारा भला बुरा क्या होगा यह समझ सके. इंग्लिश में कहावत है – Imitation needs intelligence.
नकल में भी असल की कुछ न कुछ बू आ ही जाती है. नकल कर के बनी हुई चीज़ में भी कुछ कुछ असली चीज़ का असर आ जाता है.
नकलची बन्दर. बंदर की आदत होती है कि वह इंसान की नकल करता है. इंसानों में कोई किसी की नकल करता हो तो उसे नकलची बन्दर कह कर चिढ़ाते हैं. विशेष कर बच्चों की कहावत. सन्दर्भ कथा – बंदर की आदत होती है कि वह इंसान की नकल करता है. इंसानों में कोई किसी की नकल करता हो तो उसे नकलची बन्दर कह कर चिढ़ाते हैं. विशेष कर बच्चों में यह कहावत खूब बोली जाती है एक टोपी बेचने वाला गाँव से शहर जा रहा था. रास्ते में वह थक कर एक पेड़ के नीचे सो गया. पेड़ पर बहुत सारे बन्दर रहते थे, वे उसकी गठरी खोल कर उस में से टोपियाँ उठा उठा कर ले गए. जागने पर जब उसने यह दृश्य देखा तो उसकी बुद्धि चकरा गई. फिर उसे एक तरकीब सूझी. उसने एक टोपी अपने सर पर लगा ली. बंदरों ने भी सर पर टोपी लगा ली. अब उसने सर से टोपी उतार कर जमीन पर फेंक दी, तो बंदरों ने भी अपने अपने सर से टोपियाँ उतार कर नीचे फेंक दीं.
नक्कार खाने में तूती की आवाज. नक्कारखाना – जहाँ बहुत से नगाड़े रखे जाते हों या बजाए जाते हों, तूती – शहनाई की तरह का एक बाजा. जहाँ बड़े बड़े नगाड़े बज रहे हों वहाँ तूती की आवाज क्या सुनाई देगी. कहावत का अर्थ है कि बड़े बड़े लोगों के बीच किसी महत्व हीन आदमी की आवाज कोई नहीं सुनता. (देखिये परिशिष्ट)
नखरे दिखावे मुर्गी, बल बल जावे कौवा. कुछ फूहड़ लडकियाँ जो अपने को अधिक सुंदर समझती हैं, नखरे दिखाती हैं और छिछोरे लड़के उन नखरों पर बलिहारी जाते हैं, इस प्रकार के जोड़ों का मजाक उड़ाने के लिए. रूपान्तर – लाड़ में आवे कुकड़ी, बल बल जाए कागा.
नगर नष्ट सरिता बिना, धाम नष्ट बिन कूप, पुरुष नष्ट बिनु सील के, नारि नष्ट बिन रूप. जिस नगर में नदी न हो, जिस घर के आसपास कुआं न हो, जिस पुरुष में शील न हो और नारी में रूप न हो, वह बेकार होते हैं.
नचनवारी के कूल्हे फरकत. नाचने वाले के कूल्हे फरकते हैं. गुणी आदमी का गुण छिपा नहीं रहता, उसकी किसी न किसी चेष्टा से वह प्रगट हो जाता है. रूपान्तर – नचैया के पाँव आप थिरकत.
नट के घर के चूहे भी कलाबाज. संगत का असर अवश्य पड़ता है इस बात को मजेदार ढंग से कहा गया है.
नट विद्या पाई जाय, जट विद्या न पाई जाय. अभ्यास करने से कोई नटों के समान कलाबाजी खाने जैसा कठिन काम सीख सकता है, परन्तु जाटों की चतुराई नहीं सीख सकता.
नटनी जब बाँस पर चढी तो घूंघट क्या. नटनी बांस पर चढ़ कर करतब दिखाती है तो उस का सारा शरीर ही दिखाई देता है. अब ऐसे में अगर वह घूँघट करे तो क्या फायदा. कोई व्यक्ति सामजिक प्रतिष्ठा के प्रतिकूल कोई छोटा काम कर रहा हो और लोगों से छिपाने की कोशिश कर रहा हो तो.
नटे सो नाक कटाय. नटना – अपनी बात से मुकर जाना, नाक कटाना – बेइज्जती कराना. जो अपनी बात से मुकर जाए उसका कोई सम्मान नहीं करता.
नदियाँ नाले बह जैहें, निमान को पानी निमाने रहे. छोटे नदी-नाले तो बह कर निकल जायेंगे, परन्तु धरती के नीचे का पानी नीचे ही रहेगा. 1. सामयिक सुविधाओं के आगे स्थाई सहायकों की उपेक्षा नहीं करना चाहिए. 2. ओछी प्रकृति के लोग जो इतरा कर चलते हैं नष्ट हो जाते हैं, परन्तु गंभीर पुरुष अपनी जगह पर टिके रहते हैं.
नदी किनारे घर किया, क़र्ज़ काढ़ कर खाएं, जब कोई आवे मांगने, गड़प नदी में जाएं. उधार ले कर छिप के घूमने वालों का मजाक उड़ाने के लिए.
नदी किनारे दी है साखी, सोलह में तीन दिए तेरह बाकी. सोलह में से तीन दिए हैं, तेरह बाकी हैं. सरकारी मुलाजिम जनता का किस प्रकार शोषण करते हैं इसका एक उदाहरण. सन्दर्भ कथा – साखी – साक्ष्य, गवाही. किसी अनपढ़ भोले भाले मल्लाह ने अपना टैक्स दे दिया था पर पटवारी ने उससे पैसे वसूलने के चक्कर में जान बूझ कर रसीद नहीं दी थी. एक बार पटवारी को नदी पार करनी थी तो मल्लाह ने कहा कि जब तक रसीद नहीं दोगे नदी पार नहीं कराऊँगा. इस पर पटवारी ने अनपढ़ मल्लाह को उपरोक्त बात लिख कर दे दी. सरकारी मुलाजिम अनपढ़ जनता का किस प्रकार शोषण करते हैं इसका एक उदाहरण.
नदी किनारे बगुला बैठो, चुन चुन मछरी खाय. धूर्त आदमी को लक्ष्य करके कहते हैं.
नदी किनारे रूखडा, जब तब होय बिनास. रूखड़ा – रूख, पेड़. नदी के किनारे उगे पेड़ को हर समय इस बात का खतरा होता है कि मिट्टी कटने से वह नदी में गिर सकता है. सदैव खतरे के साये में पलने वाले ले लिए.
नदी नाव संयोग. थोड़े समय का मेल. इस संसार में हमारे जो नाते हैं वे नदी नाव संयोग की भांति क्षणिक हैं.
नदी में जाना और प्यासे आना. जहाँ जा कर आप का काम हो जाना चाहिए था अगर वहाँ से आप खाली हाथ लौट आते हैं तो यह कहावत कही जाएगी.
नदीदी का खसम आया, भरी दोपहरी दिया जलाया. नदीदी – छोटी सोच वाली स्त्री. अपनी ख़ुशी दिखने को ऊटपटांग हरकतें करने वाले के लिए.
नदीदी ने कटोरा पाया, पानी पी पी पेट फुलाया (नदीदी को लोटा मिल्यो, रातों उठ उठ पानी पियो). यदि किसी ओछी मानसिकता वाले व्यक्ति को कोई साधारण चीज भी मिल जाए तो वह बहुत इतराता है.
ननद का नन्दोई, गले लाग रोई. जिस से बहुत दूर का संबंध हो उस से बहुत आत्मीयता और सहानुभूति दिखाना.
ननद का नन्दोई, मेरो लगे न कोई. ऊपर वाली कहावत से उलट. दूर के संबंधी के लिए उपेक्षा में ऐसा कहते हैं.
ननद के फंद ननद ही जानत. नंद की चालबाजियाँ नंद ही जान सकती है.
ननद भाभी में आग-पानी का बैर. ननद भाभी एक दूसरे को फूटी आँखों देखना पसंद नहीं करतीं.
ननदों के घर भी ननद होती है. किसी स्त्री को उस की ननद बहुत परेशान कर रही हो तो वह यह सोच कर संतोष करती है कि यह जब ससुराल जाएगी और इसकी ननद भी इसे परेशान करेगी तो मजा आएगा.
ननुआ के ननुआ भयो, ननुआ का नाम ननुआ रह्यो. माँ बाप अक्सर छोटे बच्चे को नन्नू, नन्हा आदि कह कर बुलाते हैं. ऐसा कोई बच्चा बड़ा हो गया और उस के बाल बच्चे भी हो गये, पर उसका नाम ननुआ ही रहा.
नन्ही सी नाक, नौ सेर की नथनी. ऐसा भारी भरकम श्रृंगार जिसका कोई औचित्य न हो.
नन्हीं सी जान और इतने अरमान. किसी छोटे आदमी या कम आयु के व्यक्ति की बहुत बड़ी महत्वाकांक्षाएं होना.
नपना बिन उपवास. खाने पीने का सामन तो है पर नापने का नपना नहीं है इसलिए खाने को नहीं मिल रहा है. कई बार पर्याप्त साधन होते हुए भी लोग बेतुके सरकारी नियमों के कारण परेशानी उठाते हैं, उस पर व्यंग्य.
नफरी में नखरा क्या. नफरी – दिहाड़ी, एक दिन की मजदूरी. जब दैनिक वेतन तय है तो उस में क्या नखरा.
नफा घाटा भाई भाई. व्यापार में लाभ भी होता है और हानि भी. इन दोनों को ही स्वीकार करना चाहिए.
नफे को धावे, मूल गंवावे. अधिक लाभ के लालच में व्यक्ति मूल धन भी गंवा बैठता है.
नमक गिराओगे तो आँखों से उठाना पड़ेगा. यह एक लोक विश्वास है. लोक विश्वासों के पीछे अक्सर कोई कारण भी होता है. एक समय में समुद्र के पानी से नमक नहीं बनाया जाता था बल्कि पहाड़ से बड़ी मुश्किल से सेंधा नमक लाया जाता था. उस समय साधन सम्पन्न लोग नमक को बर्बाद न करें इसलिए उनके मन में इस प्रकार का डर बैठाया गया होगा.
नमक फूट फूट कर निकले. यदि किसी विश्वासघाती आदमी की फोड़े आदि निकलने से दुर्दशा हो रही हो तो लोग इस प्रकार से बोलते हैं.
नमक हरामी नर से तो कूकर ही भलो. नमक हराम माने कृतघ्न और धोखेबाज, इस प्रकार के आदमी से तो कुत्ता अधिक अच्छा है.
नमनि नीच की अति दुखदाई. नीच व्यक्ति यदि झुके (नम्रता दिखाए) तो समझ लो कि धोखा देने वाला है.
नमे सो जमे. स्वभाव का नम्र आदमी ही फलता-फूलता है.
नमे सो भारी होए. कपड़ा भीगने से भारी होता है. जैसे जैसे व्यक्ति की विनम्रता बढ़ती है वैसे वैसे वह गंभीर और वज़नदार हो जाता है. नमे से अर्थ नमन करने अर्थात झुकने से भी है और नम होने अर्थात भीगने से भी.
नमो नारायन बाबा, बच्चा आज भोजन तेरे ही घरे. किसी साधू बाबा से किसी ने रास्ते चलते प्रणाम किया, तो उसने उत्तर दिया – जीते रहो बेटा, आज भोजन तेरे ही घर. जबर्दस्ती मुसीबत को गले लगाना.
नया नया राज, ढब ढब बाज. नया राजा आता है तो तरह तरह के फरमान जारी करता है. ढब ढब बजने का अर्थ है ढिंढोरा पीट कर राजाज्ञा का ऐलान करना.
नया नवाब, आसमान पर दिमाग. नए हाकिम अपने को तुर्रम खां समझते हैं.
नया नौ दिन, पुराना सौ दिन. जब हम किसी से नया नया सम्बंध बनाते हैं तो हमें वह व्यक्ति बहुत अच्छा लगता है और उस के सामने हम पुरानों की उपेक्षा करने लगते हैं, लेकिन कुछ दिन बाद हमें उसमें कमियाँ नज़र आने लगती हैं और पुराना अच्छा लगने लगता है. इसी कारण सयाने लोग यह सीख देते हैं कि नए के कारण पुराने की उपेक्षा मत करो. इंग्लिश में कहावत है – old is gold.
नया नौकर तीरंदाज़. नया नौकर अपने को ज्यादा होशियार सिद्ध करने की कोशिश करता है.
नया बैल खूंटा तोड़ता है. नए बैल को बंधने की आदत नहीं होती इसलिए बन्धनमुक्त होने का प्रयास करता है. धीरे धीरे उसे समझ में आ जाता है कि अब यही उस की नियति है.
नया मुल्ला ज्यादा जोर से बांग देता है. किसी को कोई नया काम मिलता है तो वह अधिक जोर शोर और दिखावे के साथ उस काम को करता है.
नया मुल्ला प्याज ज्यादा खाता है. कहावत उस समय की जब हिन्दुओं (विशेषकर ब्राह्मण व बनियों में) प्याज खाने को बहुत बुरा माना जाता था और प्याज को मुसलमानों के खाने की चीज़ मानते थे. आज अधिकतर लोग प्याज खाने लगे हैं लेकिन पूजा और व्रत के दिन अब भी बहुत से लोग प्याज नहीं खाते. कहावत में कहा गया है कि जो नया नया मुसलमान बना है वह ज्यादा प्याज खाता है अर्थात कोई व्यक्ति जो भी नया काम शुरू करता है उसका दिखावा अधिक करता है.
नया साधू, कमंडल में पादे. नए आदमी के हर काम में अनाड़ी पन एवं अव्यवस्था होती है यह कहने का असभ्य तरीका. कहावतों में अक्सर इस प्रकार की असभ्य भाषा देखने को मिलती है.
नया हकीम, देवे अफीम. नया हकीम बीमारी के बारे में कम जानता है इसलिए मरीज को आराम पहुँचाने के लिए उसे नशे की दवा दे कर सुलाए रखता है.
नयी घोसन, उपलों का तकिया. घोसन – दूध का काम करने वाले घोसी की पत्नी. दूध का नया काम शुरू करने वाली स्त्री अपने काम को महत्वपूर्ण सिद्ध करने के लिए गोबर के कंडों (उपलों) का तकिया लगाती है.
नये जोगी गाजर को संख. नए लोग उतावलेपन में हास्यास्पद काम करते हैं.
नये नमाजी, बोरी का तहमद. नया काम करने वाले अधिक जोश में ऊटपटांग हरकतें करते हैं.
नर जाने दिन जात हैं, दिन जाने नर जाय. मनुष्य समझता है कि समय जा रहा है, परन्तु यह तो समय ही जानता है कि वास्तव में मनुष्य ही अपने दिन पूरे कर रहा है.
नर बिन तिरिया, ज्यों अन्न बिन देह, खेती बिन मेह. मेह – वर्षा. पुरुष बिना स्त्री उसी प्रकार असहाय है जैसे अन्न के बिना मानव शरीर और वर्षा के बिना खेती.
नरको में ठेलाठेली. (भोजपुरी कहावत) नरक में भी जीवन आसान नहीं है, वहाँ भी बड़ा कम्पटीशन है.
नरम नरम ही खाई है, कभी दांत तले कांकड़ी नहीं आई है. उन लोगों के लिए कहा जाता है जिन्होंने जीवन में हमेशा सुख देखा है, कभी विपरीत परिस्थितियाँ नहीं देखीं.
नर्मदा के कंकर, सब ही शिव शंकर. मध्यप्रदेश में नर्मदा नदी को अत्यधिक पवित्र मानते हैं. (वहाँ बहुत से लोग आपसी अभिवादन में नर्मदे नर्मदे बोलते हैं). इसके उलट दूसरी कहावत – नर्मदा के सब पत्थर शंकर नहीं होते.
नशा उसने पिया, खुमार तुम्हें चढ़ा. जब किसी बड़े अधिकारी या नेता का भाई भतीजा ज्यादा अकड़ दिखाए तो.
नशेड़ी को नशेड़ी मिल ही जाता है. (शक्करखोरे को शक्करखोरा मिल ही जाता है). ऐबी आदमी, लोगों की भीड़ में भी अपने जैसा ऐबी ढूँढ़ लेता है.
नसकट खटिया ढुलकत घोड़, नारि कर्कसा बिपत के छोर. जिस छोटी खाट पर सोने में पैर की नस कटती हो, जो घोड़ा चलने में ढुलकता हो और जो नारी कर्कश हो, ये सब विपत्ति उत्पन्न करते हैं.
नसकट पनही, बतकट जोय, जो पहलौठी बिटिया होए; तातरि कृषि, बौरहा भाई, घाघ कहें दुख कहाँ समाय. घाघ ने पाँच दुख महा दुख बताए हैं – जूता (पनही) छोटा हो जो पैर की नस को काटता हो, स्त्री (जोय) जो पति की हर बात काटती हो, पहली सन्तान यदि बेटी हो (पहले पुत्र होना अत्यधिक आवश्यक मानते थे), खेती के लिए बहुत थोड़ी (तातरि) जमीन और बौरहा भाई. बौरहा का अर्थ पागल भी होता है और गूंगा बहरा भी.
नहर का मुर्दा और शहर का फ़क़ीर, इनका क्या ठिकाना. नहर में यदि कोई लाश पड़ी हो तो कुछ नहीं कह सकते कि वह बह कर कहाँ से कहाँ पहुँच जाए और फ़क़ीर भी शहर में आज एक जगह है तो कल पता नहीं कहाँ मिले.
नहरनी तेज होगी तो क्या पेड़ काटेगी (नहन्नी से बरगद नहीं काटा जाता). नहरनी – नाखून काटने का औजार. नहरनी की धार कितनी भी तेज हो, उस से पेड़ नहीं कट सकता. हर काम के लिए अलग साधन चाहिए होता है.
नहाए के बाल और खाए के गाल अलग नजर आ जाते हैं. जो व्यक्ति नहाया हुआ हो उसके बाल देख कर ही फौरन समझ में आ जाता है. इसी प्रकार जो ठीक से खाता पीता हो उसके गाल देख कर समझ में आ जाता है.
नहाने को सब कहें, तेल साबुन कोई न दे. उपदेश सब देते हैं, सहायता कोई नहीं करता.
नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए, मीन सदा जल में रहे, धोये बास न जाए. कबीर दास जी कहते हैं कि कितना भी नहा धो लो, अगर मन साफ़ नहीं हुआ तो ऐसे नहाने का क्या फायदा. मछली हमेशा पानी में रहती है लेकिन फिर भी उस में से बदबू आती है.
नहीं मामा से काना मामा अच्छा. किसी का मामा काना हो यह थोड़ी परेशानी की बात है लेकिन मामा हो ही न इससे तो अच्छा है. कोई चीज़ बिलकुल न हो इसके मुकाबले थोड़ी सी त्रुटि वाली हो वह बेहतर है.
नहीं मिली नारी तो सदा ब्रह्मचारी. नारी न मिलने पर मजबूरी में ब्रह्मचारी बनने वालों पर व्यंग्य.
ना अच्छा गीत गाऊँगा ना दरबार पकड़कर जाऊँगा. काम से बचने के लिए जानबूझकर गलत काम ही करना.
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर. जो लोग समाज में किसी एक विचारधारा से न जुड़ कर तटस्थ रहते हैं. यह कबीर के दोहे की दूसरी पंक्ति है. पहली है – कबिरा खड़ा बजार में, मांगे सब की खैर.
ना गाऊँ, गाऊं तो बिरहा गाऊँ. गाने में नखरा कर रहे हैं, और गाएंगे तो बिरहा ही गाएँगे. या तो काम करेंगे नहीं और करेंगे तो अपने मन से ही करेंगे. बिरहा – विशेष प्रकार के विरह के (दुखभरे) लोकगीत.
ना बारे की माँ मरे, ना बूढ़े की जोय. बालक की माँ न मरे औए बूढ़े की स्त्री न मरे. बच्चा अपनी माँ के बिना और बूढ़ा व्यक्ति अपनी पत्नी के बिना बिल्कुल बेसहारा हो जाता है.
ना बोले में नौ गुण. चुप रहने के बहुत लाभ हैं. इससे किसी से लड़ाई नहीं होती और व्यक्ति यदि मूर्ख है तो उस की मूर्खता जाहिर नहीं होती..
नाइन सबके गोड़े धोए, अपने धोने में लजावे. (सबके पाँव नइनियाँ धोए, धोवत आप लजाए). हम दूसरों के यहाँ जो काम करते हैं वही काम अपने यहाँ करने में शर्म महसूस करते हैं.
नाई किसका काम सुधारे. हिंदू रीति-रिवाजों में चाहे विवाह हो या अंतिम संस्कार, पंडित के साथ नाई का भी विशेष महत्व होता है. बहुत से ऐसे भी हैं जो केवल काम नाई को ही करने होते हैं. नाई को बहुत चालाक व धूर्त माना गया है. इस कहावत में भी यही दर्शाया गया है.
नाई की दूकान में बारै बार. जो जिसका काम करेगा उसकी दुकान में व्ही चीज मिलेगी. बजाज की दूकान में कपड़ा और सुनार की दुकान में सोना चांदी जैसी कीमती चीजें मिलेंगी, और बेचारे नाई की दूकान में केवल बाल.
नाई की परख नाखूनों में. पहले जमाने में जब नेल कटर का आविष्कार नहीं हुआ था तो नाई नहन्ने से नाखून काटते थे. जरा सी असावधानी होने पर उंगली कटने का डर होता था, इसलिए नाई की योग्यता की परीक्षा नाखून काटने में ही होती थी.
नाई की बरात में सब ही ठाकुर. सब की बारात में नाई प्रमुख सेवक के रूप में होता है और कुछ लोग विशेष माननीय (ठाकुर) होते हैं. नाई की बरात में सभी माननीय हैं.
नाई के नौ बुद्धि, ठाकुर के एक ही. नाई बहुत चतुर (और धूर्त) होता है और ठाकुर मंदबुद्धि (व लट्ठमार).
नाई देख कांख में बाल. कांख – बगल. नाई को देख कर बगल के बाल याद आ गए. (बहुत से लोग बगल के बाल नाई से साफ़ करवाते हैं). मौका देख कर अपना काम करा लेना. भोजपुरी में इस प्रकार की एक कहावत है – नउआ के देखि के हजामत बड़ी जाला.
नाई नाई की बारात, टिपारा कौन धरे. टिपारा – मुकुट. औरों की बारात में तो नाई दूल्हे को मुकुट पहनाता है, नाई की बारात में मुकुट कौन पहनाएगा. हरयाणवी कहावत – नाइयों की बारात मां सारे ठाकर, हुक्का कौन भरै.
नाई नाई बाल कितने, जजमान अभी सामने आ जाएँगे (हमरे माथे में कितने बाल, मालिक आगे ही गिरेंगे). जो काम अभी तुरंत होने वाला है उसमें पहले से अनुमान लगा कर बहस क्या करना. एग्जिट पोल देख कर लोग बहस करते हैं तो उन से यही कहना चाहिए कि नतीजे दो दिन में आने वाले हैं, अभी बहस क्यों कर रहे हो.
नाई पुराना घोबी नया. नाई पुराना और अनुभवी अच्छा होता है जबकि धोबी नया अच्छा होता है क्योंकि उस के हाथों में ताकत और काम का उत्साह अधिक होता है.
नाई से सयाना सो कौवा. मनुष्यों में सब से चालाक नाई को माना जाता है.
नाई, दाई, बैद, कसाई, इनका सूतक कभी न जाई. पुरानी मान्यता के अनुसार घर में बच्चे का जन्म होने पर दस दिन तक सूतक काल होता है जिस में कोई धार्मिक कार्य नहीं करना होता है, इसी प्रकार घर में किसी की मृत्यु होने पर तेरह दिन का सूतक काल होता है. कहावत में कहा गया है कि नाई, बच्चे का जन्म कराने वाली दाई, वैद्य (डॉक्टर) और कसाई ये सूतक के बंधन से मुक्त हैं.
नाक कटी पर घी तो चाटा. अपमान हो कर कुछ इनाम मिले उस पर भी खुश होने वाले के लिए.
नाक कटी पर हठ न हटी. कुछ लोग कितना भी अपमान झेलना पड़े अपना हठ नहीं छोड़ते.
नाक कटी बला से, दुश्मन की बदसगुनी तो हुई. अपना नुकसान हुआ फिर भी खुश हैं क्योंकि दुश्मन का भी नुकसान हो गया.
नाक कटे मुबारक, कान कटे सलामत. निर्लज्ज आदमी के लिए, जिसका कितना भी अपमान हो, उसे कोई फर्क नहीं पड़ता.
नाक काट रेशम से पोंछत. नाक काट कर रेशमी रूमाल से पोंछते हैं. हानि पहुँचा कर झूठी सहानुभूति दिखाना.
नाक की नकटी, गले में नजरबट्टू. कोई बहुत सुंदर दिखता हो तो उसको नजर से बचाने के लिए काला टीका लगाते हैं या गले में कोई ताबीज़ इत्यादि पहना देते हैं. इसे नजरबट्टू कहते हैं. कहावत में उन स्त्रियों का मजाक उड़ाया गया है जो कुरूप होते हुए भी अपने आप को सुंदर समझती हैं.
नाक छिदाउन गई, कान छिदा के आ गई. गये किसी कार्य के लिए, कोई दूसरा कार्य करके आ गये.
नाक तक अफरे बैठे. खूब तृप्त हैं. व्यंग्य में कहा जाता है.
नाक दबाने से ही मुहँ खुलता है. हिस्टीरिया नाम की बीमारी से ग्रस्त लोग कई बार आँखे बंद कर के और दांत भींच कर बेहोश होने का नाटक करते हैं (विशषकर महिलाएँ अपनी बात मनवाने के लिए). वे वाकई में बेहोश हैं या नहीं यह देखने के लिए उन की नाक को कुछ देर के लिए दबा दिया जाता है. साँस बंद होने पर वे घबरा कर मुँह खोल देते हैं. कहावत का अर्थ है कि दुष्ट लोगों को समझाने के लिए सख्ती करनी पड़ती है.
नाक पकौड़ा, माथा चौड़ा. हास्यास्पद रूप से कुरूप व्यक्ति.
नाक पर मक्खी न बैठन दे. ऐसा व्यक्ति जो थोड़ा सा भी अपमान बर्दाश्त न करे.
नाक हो तो नथिया सोहे. सभी स्त्रियाँ अच्छे गहने पहनना चाहती हैं पर चेहरा भी तो इस लायक होना चाहिए.
नाग मरा तब गोह गद्दी पर बैठी. किसी शक्तिशाली दुष्ट शासक के मरने के बाद पर उतना ही दुष्ट दूसरा शासक गद्दी पर बैठ जाए तो.
नागों के ब्याह में गोहरे बराती. दुष्टों के आयोजन में दुष्ट ही शामिल होते हैं.
नाच न आवे आँगन टेढ़ा. एक महिला को नाचने के लिए कहा गया. वह नाच नहीं पाई तो कहने लगी कि यह आँगन टेढ़ा है इसलिए वह नृत्य नहीं कर पा रही है. जो लोग कोई काम न कर पाने पर संसाधनों में कमी निकालते हैं उनके लिए यह कहावत कही जाती है. इंग्लिश में कहावत है – A bad worksman always blames his tools.
नाच पड़ोसन मोरे, तौ मैं ठाँड़ी नाचों तोरे. तू मेरे घर नाच तो मैं तेरे घर खूब नाचूंगी. परस्पर व्यवहार की बात.
नाच बंदरिया नाच, पैसा दूँगा पांच. छोटा सा लालच दे कर काम कराना.
नाचने निकली तो घूँघट क्या. जब कोई ओछा काम कर रहे हो तो शर्म क्या करना.
नाचने वाली तो बस घुंघरू ही मांगे. आदमी को जिस चीज का शौक हो उसी से सम्बंधित वस्तुएँ मांगता है.
नाचने वाले के पाँव थिरकते हैं. जहाँ संगीत बज रहा हो वहाँ नाचने वाला स्वयं को रोक नहीं सकता.
नाचे कूदे वानरा, माल मदारी खाय. (खेल खिलाड़ी का, पैसा मदारी का). मेहनत कश लोग मेहनत करते हैं और बड़े लोग उसका फ़ायदा उठाते है.
नाज बौहरौ ले गयौ, भुस ले गयी बयार. बोहरा – उधार देने वाला बनिया. खेती करने वाले किसान को कुछ हाथ नहीं आता. फसल कटने पर अनाज तो सूदखोर ले जाता है और भूसा हवा में उड़ जाता है.
नाजो नाज बिना रह जाए, काजल टीके बिना नहीं रहती. ज्यादा श्रृंगार और नखरे करने वाली स्त्रियों पर व्यंग्य. नाज से अर्थ अनाज से भी हो सकता है और नखरे से भी.
नाटा सबसे टांटा. टांटा – झगड़ा (टंटा) करने वाला. बौना आदमी झगड़ालू होता है (संभवतः हीन भावना के कारण).
नाटे खोटे बेच के चार धुरंधर लेहु, आपन काम बनाय के औरन मंगनी देहु. छोटे कद के कामचोर बहुत सारे बैलों को बेच कर चार तगड़े बैल लो. अपना काम भी पूरा करो और जरूरत पर औरों को भी दो. (घाघ कवि)
नाड़ी की कुछ समझ नहीं है, दवा सभों की करते हैं, वैदों का क्या जाता है, बीमार बिचारे मरते हैं. नीम हकीम और झोला छाप डाक्टरों के विषय में कहा गया है.
नात का न गोत का, बांटा मांगे पोथ का. न नाते में कुछ हैं न गोत्र में, पर जायदाद में हिस्सा मांग रहे हैं.
नाता न गोता, खड़ा हो के रोता. न कोई रिश्ता है और न ही उस गोत्र के हैं पर किसी के दुख में बहुत अधिक दुखी हो रहे हैं. गोता शब्द गोत्र का अपभ्रंश है.
नाता न गोता, नेवता ताबड़तोड़. आजकल विवाह आदि समारोहों में लग्गे पत्ते के लोगों को भी अंधाधुंध निमंत्रण बांटे जाते हैं उस पर व्यंग्य. नेवता – न्यौता, निमंत्रण.
नातिन तो कुआँरी फिरे, नानी के नौ नौ फेरे. जहाँ घर के छोटे सदस्यों की मूलभूत आवश्यकताओं पर ध्यान न दे कर बड़े लोग अपने शौक पूरे करने में लगे हों.
नातिन सिखावे दादी को, बारह ड्योढ़े आठ. अपने को बहुत होशियार समझ कर बड़ों को सिखाने की कोशिश कर रहे हैं और वह भी गलत पढ़ा रहे हैं. (बारह ड्योढ़े आठ बता रहे हैं जबकि आठ ड्योढ़े बारह होता है). अपने को बुद्धिमान समझने वाले पढ़े लिखे मूर्ख युवा लोगों के लिए.
नाती तो नाती बाबा खड़ा मूते. पहले के लोग खड़े हो कर पेशाब करने को बहुत असभ्यता मानते थे. कहावत ऐसे स्थान पर कही जाती है जहाँ बच्चे और बड़े सभी असभ्य व्यवहार करते हों.
नाती माँगे पूत मिलत. ईश्वर से बहुत माँगो तब थोड़ा मिलता है.
नाती सिखावैं नानी को चलोगी नानी गौने. कायदे में नानी धेवती को ससुराल जाने के लिए समझाती हैं. यहाँ धेवता या धेवती नानी को सीख दे रहे हैं कि ससुराल जाओगी कि नहीं. कोई छोटा और कम अक्ल आदमी अपने से बड़े और समझदार व्यक्ति को अक्ल सिखा रहा हो तो.
नाती से कौन नाता. बेटी का बेटा दूसरे घर का माना जाता है इसलिए.
नाथे बगैर भैंसा जबर. भैंसे और बैल जैसे शक्तिशाली पशुओं को वश में रखने के लिए उन की नाक में रस्सी डालते हैं जिसे नाथना कहते हैं. बिना नाथे ये पशु कठिनाई से काबू में आते हैं.
नादां की दोस्ती, जी का जंजाल. मूर्ख से दोस्ती करने में बड़ी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है.
नानक दुखिया सब संसार. कोई अपने दुखों का रोना रो रहा हो तो उसको समझाने के लिए यह कहावत कही जाती है कि संसार में सभी प्राणियों को कोई न कोई दुख है.
नानक नन्हा हो रहो जैसे नन्ही दूब, बड़े पेड़ गिर जाइहैं दूब खूब की खूब. गुरु नानक देव कहते हैं कि व्यक्ति को विनम्र और छोटा बन कर रहना चाहिए. जब आंधी आती है तब बड़े पेड़ गिर जाते हैं लेकिन दूब पर कोई असर नहीं होता. इंग्लिश में कहावत है – Oaks may fall, when reeds stand the storm.
नाना की दौलत पर, नवासा ऐंड़ा फिरे. (नाना के धन पर धेवता ऐंठे). जो खुद तो किसी काबिल न हो पर अपने पूर्वजों की कमाई हुई दौलत पर घमंड करे.
नानी का धन, बेइमानी का धन और जजमानी का धन नाहीं पचे. ननिहाल से मिले धन, बेइमानी से कमाए धन और यजमानी में मिले धन से कोई तरक्की नहीं कर सकता.
नानी के आगे ननसाल की बातें. नानी को जा कर बता रहे हैं कि ननसाल में क्या क्या होता है. अल्पज्ञानी होते हुए भी किसी जानकार व्यक्ति के सामने अपना ज्ञान बघारना.
नानी के टुकड़े खावे, दादी का पोता कहावे. लाभ किसी और से पाते हैं, गुण किसी और के गाते हैं.
नानी के बिना ननिहाल कैसा. ननिहाल का आनंद तो नानी के होने पर ही आता है. नानी ही सबसे अधिक स्नेह करती है.
नानी क्वारी मर गयी, नवासे के नौ नौ ब्याह. खानदान में किसी ने कुछ देखा नहीं, पर खुद तीसमारखां बने हैं.
नानी खसम करे, धेवती दंड भरे (नानी फंड करै, धेवता डंड भरै). खसम करे अर्थात शादी कर ले. खानदान के बड़े लोग कोई गलती करें और बच्चे उसका नुकसान उठाएँ तो.
नानी मरी, नाता टूटा. ननसाल विशेष रूप से नानी से ही होती है. नानी के न रहने पर ननसाल का आकर्षण ख़त्म हो जाता है.
नाप न तोल, भर दे झोल. ईश्वर जो देता है उसकी नाप तोल नहीं करता, भरपूर देता है.
नापे सौ गज, फाड़े नौ गज. जो बातें बहुत करता है और काम कम करता है.
नाम कपूरचंद, गोबर की गंध. नाम के विपरीत गुण.
नाम काल नहीं खाय. हर मनुष्य को अंततः काल के गाल में समाना है. लेकिन यह भी सच है कि काल कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो किसी के नाम को नहीं खा सकता.
नाम कुमारी, काम सतभतारी. अत्यधिक चरित्रहीन स्त्री के लिए. सतभतारी – सात भतार (पतियों) वाली.
नाम के पेड़ काटे न कटें. धन दौलत समाप्त हो जाता है पर ख्याति जल्दी समाप्त नहीं होती.
नाम क्या शकरपारा, रोटी कितनी खाई दस बारा, पानी कितना पिया मटका सारा, काम कितना करोगे, मैं तो लड़का बेचारा. छोटे और पेटू लोगों के लिए जो खाते बहुत हैं पर काम कुछ नहीं करना चाहते.
नाम गंगादास कमण्डल में जल ही नहीं. गुण के विपरीत नाम.
नाम गंगाधर, नहाए ना सारी उमर. गुण के विपरीत नाम.
नाम गांव इतना, पतोहू पहने पोतना. गाँव में बड़ा नाम है और पुत्रवधू के पास पहनने के लिए ढंग के कपड़े भी नहीं हैं. झूठ मूठ अपनी हवा बना कर रखने वालों के लिए.
नाम तो नन्ही बहू, और ऊंची हैं ताड़ सी. नाम के विपरीत गुण.
नाम बड़ा ऊँचा, कान दोनों बूचा. नाम बहुत ऊंचा है और कान कटे हुए हैं (हैसियत कुछ नहीं है).
नाम बड़े और दर्शन छोटे. (नाम मोटा, दरशन खोटा). नाम अधिक हो पर वास्तव में कुछ भी न हों तो. इस कहावत को इस प्रकार से भी कहा गया है – नाम ऊंचा काम बूचा.
नाम बढ़ावे दाम. जिसका अधिक नाम हो जाता है उसकी कीमत बढ़ जाती है. आजकल भी बड़ी बड़ी ब्रांड अपने नाम का खूब फायदा उठाती हैं.
नाम बिगाड़े माई बाप, पेट बिगाड़े बासी भात. माँ बाप नाम बिगाड़ते हैं और बासी भात पेट खराब करता है.
नाम मोटा, घर में टोटा. नाम तो बहुत है पर घर में अभाव ही अभाव हैं.
नाम राखें, गीत या भीत. मरने के बाद या तो गीतों से नाम अमर रहता है या भवन निर्माण से.
नाम लखन देइ मुँह कुतिया सा. नाम के विपरीत गुण.
नाम शेरसिंह, चूहे से डरें. नाम के विपरीत गुण.
नाम से काम नहीं, काम से नाम है. केवल किसी की ख्याति होने से कोई काम नहीं होता, काम करने से से ही काम होता है और उसी से ख्याति भी होती है.
नामरदी तो खुदा की देन है, मार मार तो कर. किसी कायर पुरुष को उलाहना दी जा रही है कि खुदा ने तुझे नामर्द (कायर) बनाया है, तू आगे बढ़ कर मार नहीं सकता तो मार मार चिल्ला तो सकता है.
नामी चोर मारा जाए, नामी शाह कमा खाए (नामी बनिया बैठा खाय, नामी चोर बांधा जाय). जो चोर अधिक प्रसिद्ध हो जाता है वह अंततः मारा जाता है (क्योंकि वह प्रशासन की निगाह में आ जाता है), जबकि जो बनिया अधिक नामी होता है वह अपने नाम के बल पर खूब कमाता है.
नामी बनिया का नाम बिकता है. जिस व्यापारी का नाम हो जाता है उस के नाम से माल बिकता है. आजकल के लोग तो खास तौर पर ब्रांड के पीछे पागल रहते हैं. रूपान्तर – नामो बनिये की मूँछ बिकाय.
नार सुलक्खनी कुटुम छकावे, आप तले की खुरचन खावे. सुलक्षणा नारी पहले सारे कुटुंब को खिला देती है उसके बाद जो बचता है उसे खा कर संतोष कर लेती है.
नारि कर्कशा कटहा घोर, हाकिम होइ के खाय अँकोर, कपटी मित्र पुत्र हो चोर, घघ्घा इनको गहि के बोर. कर्कशा-झगड़ालू, घोर–घोड़ा, कटहा-काट खाने वाला, अंकोर–घूस, गहि के–पकड़ के, बोर- डुबा दो. कर्कशा स्त्री, काटनेवाला घोड़ा, घूसखोर हाकिम, कपटी मित्र तथा चोर पुत्र इन सबको पकड़कर डुबो देना चाहिए.
नारि धर्म पति देव न दूजा. नारी के लिए पति से बड़ा कोई देवता नहीं है.
नारी अति बल होत है, अपने कुल की नाश. जिस कुल में नारी को अत्यधिक अधिकार दे दिए जाएं उस कुल का नाश हो जाता है.
नारी के बस भए गुसाईं, नाचत हैं मर्कट की नाईं. गुसाईं – साधु सन्यासी (गोस्वामी का अपभ्रंश है), मर्कट – बंदर. नकली साधु का मज़ाक उड़ाने के लिए (जो स्त्री के वश में हो कर बंदर की तरह नाच रहे हैं).
नारी जो उठ जाय सबेरे घर में बसे लच्छमी नेरे. नेरे – निकट. कहा गया है कि जो नारी सवेरे उठ कर घर के काम में लग जाती है उसके घर में लक्ष्मी का बास रहता है.
नारी तो हैं सीपियां इनका मोल न तोल, न जाने किस कोख में छिपा रत्न अनमोल. नारी का सम्मान करने के बहुत से कारण गिनाए गए हैं उनमे से एक यह भी है कि नारियाँ ही उत्तम श्रेणी के पुरुषों को जन्म देती हैं. रूपान्तर – नारी नर का नूर है, नारी जग का मान, नारी से नर ऊपजे, ध्रुव प्रहलाद समान.
नारी मुई भई सम्पति नासी, मूड़ मुड़ाए भए सन्यासी. तुलसीदास जी ने दो तरह के सन्यासियों का वर्णन किया है. एक वे जो सत्य की खोज के लिए संसार को त्याग कर सन्यासी बन जाते हैं, दूसरे वे जो स्त्री के मरने और सम्पत्ति के नाश के कारण मजबूरी में सर मुंडा कर सन्यासी बन जाते हैं.
नाली की ईंट कोठे चढ़ी, फिर भी गंध आती है. किसी निम्न श्रेणी के इंसान को उच्च पद मिल जाए तो भी उस का नीचपन नहीं छूटता.
नाली के कीड़े नाली में ही खुश रहते हैं (नाली का कीड़ा बाहर निकले तो मर जाए). ओछी मानसिकता वाले लोग अपने गंदे परिवेश में ही खुश रहते हैं.
नाव चड़े झगड़ाल आवें, तैरत आवें साखी. साखी – साक्षी, गवाह. वादी और प्रतिवादी तो आराम से नाव पर चढ़ कर आ रहे हैं और गवाह खतरे और कष्ट उठा कर तैरते हुए आ रहे हैं. जब कोई आदमी व्यर्थ दूसरों के लिए कष्ट उठाये और घिसटा-घिसटा फिरे तब.
नाव चढ़े पहुँचे जब पारा, केवट तब लागे मोरा सारा. सारा – साला. नदी पार हो गये तो केवट से रिश्ता जोड़ने लगे कि तुम तो मेरे रिश्ते से साले लगते हो. काम निकलने के बाद पैसे न देने के लिए बहाने बनाना.
नाव से नाव बंधी. एक दूसरे पर आश्रित हैं. नाव से नाव बँधी होने पर एक के डूबने पर दूसरी भी डूबेगी.
नासमझ को कुछ नहीं, समझदार की मौत. जो समझदार होता है और जिम्मेदारी से काम करता है उसी को सारी परेशानी झेलनी पड़ती है.
नाहीं चीन्ह तो नाया कीन्ह. (भोजपुरी कहावत) जिस काम की समझ नहीं है उसे मत करो.
निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छबाय, बिन साबन पानी बिना, निर्मल करे सुभाय. आम आदमी अपनी निंदा सुनना नहीं चाहता लेकिन कबीरदास कहते हैं कि निंदा करने वाले को अपने घर में कुटी बना कर उसमें रखो. जो निंदा वह करे उससे सीख ले कर अपने स्वभाव को निर्मल बनाया जा सकता है.
निकल दलिद्दर लक्ष्मी आई. दीवाली के दिन बहुत से घरों में घर की महिलाएं कांसे का सूप हाथ से बजा बजा कर घर के हर कोने में जा कर ऐसे बोलती हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से दरिद्रता घर से दूर हो जाती है.
निकली हलक, पडी खलक (निकली होंठों, हुई पोटों). हलक – गला, खलक – ब्रह्मांड. बात मुँह से निकल जाए तो सारे में फ़ैल जाती है.
निकली होंठों, चढी कोंठों. मुंह से निकले बात तुरन्त सारे में फ़ैल जाती है (इसलिए मनुष्य को सोच समझ कर बोलना चाहिए). कोठा माने छत.
निकौड़िये गए हाट, ककड़ी देखे जियरा फाट. निकौड़िए – जिनके पास कौड़ी भी न हो. बिना पैसा कौड़ी के बाज़ार गए. वहाँ ककड़ी देख के हृदय फट रहा है (खाने का मन है पर खरीद नहीं सकते).
निखट्टू भाई, नित उठ कर हलुआ मांगे. जो कोई काम नहीं करते वे अधिक सुविधाएं मांगते हैं.
निज कवित्त केहि लागि न नीका, सरस होहि अथवा अति फीका. अपनी कविता (या अपने द्वारा बनाई गई कोई भी चीज़) कितनी भी बेकार क्यों न हो सभी को अच्छी लगती है.
निज सुगंध गुण मृग नहिं जानत. कस्तूरी मृग अपनी नाभि में छुपी कस्तूरी के विषय में नहीं जानता.
निज हित अनहित पशु पहिचाना. पशुओं को भी अपने अच्छे बुरे की पहचान होती है.
निठल्ले सुहाग से तो रंडापा ही अच्छा. पति निठल्ला और आवारा हो इस से तो विधवा होना अच्छा.
नित चंदन, नित पानी, सालिगराम घुल गये तब जानी. अनावश्यक रूप से बार-बार करने से काम बिगड़ जाना. बार बार चन्दन पानी लगाने से देवता को भी हानि हो सकती है. सन्दर्भ कथा एवं परिशिष्ट – एक सेठ जी शालिग्राम के बड़े भक्त थे और दिन भर उनकी पूजा किया करते थे. उनकी स्त्री इस बात से काफी तंग थी. एक दिन उसने उनके इस अभ्यास को छुड़ाने के लिए शालिग्राम की मूर्ति के स्थान पर एक बड़ा सा जामुन लाकर रख दिया. नित्यप्रति की तरह सेठ जी पूजा करने बैठे तो नहलाते समय उँगली की रगड़ से जामुन घुल गया. सेठ जी ने घबरा कर अपनी स्त्री को बुलाया और कहा, देखो आज हमारे शालिग्राम जी को क्या हो गया है? स्त्री ने कहा, हो क्या गया. दिन भर पानी से नहलाते थे, इसलिए घुल गये हैं. इतनी पूजा मत किया करो.
निन्यानवे के फेर में जो पड़ा वो दीन दुनिया से गया. थोड़ा पाने के बाद और अधिक पाने की लालसा आदमी को कहीं का नहीं छोडती. सन्दर्भ कथा – कहानी है. एक नेक लकड़हारा जंगल से लकड़ियाँ बीन कर दो पैसे रोज कमाता था और उनसे अपने परिवार का पेट पालता था. वह हर समय भगवान का नाम लेता था और बड़ा खुश रहता था. एक दिन भगवान विष्णु ने नारद जी से कहा कि देखो यह मेरा सबसे बड़ा भक्त है, इतनी कठिन परिस्थितियों में भी मेरा नाम लेता है और खुश रहता है. नारद जी बोले ठीक है प्रभु, कल से नहीं रहेगा. उस रात नारद जी ने एक थैली में निन्यानवे रुपये रख कर उस के आंगन में डाल दिए. सुबह पति पत्नी उठे तो रुपयों की थैली देखी. जल्दी जल्दी गिने, निन्यानवे थे. अब वे दोनों भजन कीर्तन भूल कर इसी फेर में लग गए कि एक एक पैसा बचा कर कैसे सौ रुपये पूरे कर लें. तब से यह कहावत बनी.
निपट कठिन हठ मोसे कीन्हीं रे सैयां. किसी चाहने वाले ने कोई बहुत कठिन शर्त रख दी हो तो.
निपूतिये का धन फलता नहीं है. नि:सन्तान व्यक्ति के मरने के बाद सम्पत्ति की बन्दर बाँट होती है.
निपूती का घर सूना, मूरख का हृदय सूना, दरिद्री का सब कुछ सूना. निपूती – निस्संतान. जिसके कोई संतान न हो उसका घर सूना होता है, मूर्ख व्यक्ति का हृदय सूना होता है (क्योंकि उस में भावनाएँ नहीं होतीं) पर दरिद्र व्यक्ति का सब कुछ सूना है.
निपूती का मुँह देख सात उपास. निपूती – जिसके पुत्र न हों. पहले जमाने में लोग निस्संतान स्त्रियों को बहुत उपेक्षा की दृष्टि से देखते थे. यहाँ तक कहा गया है कि निस्संतान स्त्री को देख लो तो सात दिन खाना नहीं मिलेगा.
निपूते को धन प्यारा, कोढ़ी को जीवन. जिसके कोई सन्तान नहीं होती उसको भी धन प्यारा होता है और कोढ़ी का जीवन कितना भी कष्टमय क्यों न हो उसे भी जीवन से प्यार होता है.
निबल जानि कीजे नहीं काहु से वाद-विवाद, जीते कछु सोभा नहीं हारे निंदा वाद. किसी को कमजोर समझ कर उससे लड़ना नहीं चाहिए. जीत जाते हैं तो आपकी कोई तारीफ़ नहीं है और हार जाएं तो बहुत बड़ा अपमान.
निर्जलिया एकादशी, करवा चौथ, शिवरात, इन तीनों से कठिन है, लाला की बरात. बनियों की कंजूसी पर व्यंग्य. जिस प्रकार मनुष्य को उपरोक्त व्रतों में दिनभर कुछ खाने को नहीं मिलता, सीधे रात में ही खाने को मिलता है वैसे ही बनिया की बारात में भी कुछ नहीं मिलता.
निर्धन के धन गिरधारी (निर्बल के बल राम). जिसके पास कोई धन नहीं, ईश्वर उसका धन है.
निर्धन निर्बल पर सभी करें घात प्रतिघात, जैसे टूटी डाल पर, पाँव धरत सब जात. जो गरीब और कमजोर होता है उसे सब सताते हैं, जैसे पेड़ से टूटी डाल पर सब पैर रख कर जाते हैं.
निर्धन होय सासरे मत जाई, पीठ पीछे नार पराई. निर्धन व्यक्ति को ससुराल में सहायता मांगने नहीं जाना चाहिए, विशेषकर जब पत्नी वहाँ रह रही हो. मायके में रह रही पत्नी पराई हो जाती है.
निर्बल को दैव भी सतावे. कमजोर व्यक्ति को विधाता भी सताता है.
निष्ट देव की भिष्ट पूजा. (दुष्ट देव की भ्रष्ट पूजा). जैसे निकृष्ट देवता वैसी भ्रष्ट उनकी पूजा.
निसि में दीपक चन्द्रमा, दिन में दीपक सूर, सर्व लोक दीपक धरम, कुल दीपक सुत सूर. रात्रि को चन्द्रमा एवं दिन को सूर्य प्रकाशित करते हैं, सब लोकों को धर्म और कुल को शूरवीर पुत्र प्रकाशित करते हैं.
निहाई की चोरी, सुई का दान. निहाई – पक्के लोहे की बड़ी सी सिल जिस पर रख कर लोहे को काटते व पीटते हैं. कहावत ऐसे ढोंगी दाताओं के लिए कही गई है जो अपने काले धंधों से खूब पैसा कमाते हैं और दिखावे के लिए उसमें से जरा सा दान कर देते हैं. पूरी कहावत देखने के लिए देखिये – चोरी करी निहाई की . .
नींद न जाने टूटी खाट, प्यास न जाने धोबी घाट, भूख न जाने कच्चा भात, प्रीत न जाने जात कुजात. पहले के जमाने में समाज में यह नियम था कि विवाह सम्बन्ध अपनी जाति वालों से ही करना चाहिए. उस समय दूसरी जाति में विवाह करना (विशेषकर नीची जाति में) बहुत आपत्तिजनक माना जाता था. तब यह कहावत बनाई गई कि प्यार करने वाले ऊंची नीची जाति नहीं देखते. इस कथन को अधिक प्रभावी और मनोरंजक बनाने के लिए अन्य तीन बातें भी जोड़ दी गईं कि नींद आ रही हो आदमी टूटी खाट नहीं देखता, प्यास लगी हो तो धोबीघाट का गंदा पानी भी पी लेता है और भूख लगी हो तो कच्चा भात भी खा लेता है.
नींद बैरन हो गई. चिन्ता के कारण नींद न आने पर.
नीक लगे ससुरार की गारी. 1.विवाह और प्रसव आदि शुभ अवसरों पर ससुराल पक्ष द्वारा गाई जाने वाली गालियाँ भी अच्छी लगती हैं. 2. ससुराल भक्त दामादों पर व्यंग्य.
नीकी हूँ फीकी लगे बिन अवसर की बात, जैसे बरनत युद्ध में रस शृंगार कोऊ भाट. कोई कितनी भी अच्छी बात हो यदि गलत अवसर पर कही जाए तो बेकार लगती है.
नीके को सब लागत नीको. 1. जो लोग अच्छा हृदय रखते हैं उन्हें सब अच्छे लगते हैं. 2. जो अपने को अच्छा लगता है, उस की हर बात अच्छी लगती है.
नीको हू फीको लगै, जो जाके नहि काज. कोई चीज कितनी भी अच्छी क्यों न हो, यदि हमारे काम की न हो तो हमारे लिए बेकार है.
नीच की दोस्ती पानी की लकीर, शरीफ की दोस्ती पत्थर की लकीर. नीच की दोस्ती पानी की लकीर की तरह क्षण भंगुर होती है जबकि सज्जन की दोस्ती अमिट होती है.
नीच के साथ छक कर जीमो या उंगली भर चाखो बात एक ही है. नीच व्यक्ति के साथ थोड़ा बहुत संबंध भी नहीं रखना चाहिए (बदनामी तो पूरी होती है).
नीच जात छछून्दरी नाक धरे पछताए. छछून्दरी में स्वयं बहुत दुर्गन्ध होती है. उसकी नाक उसके लिए ही मुसीबत बन जाती है. किसी गंदे रहने वाले आदमी पर हास्य पूर्ण कटाक्ष.
नीच न छोड़े निचाई, नीम न छोड़े तिताई. जिस प्रकार नीम अपना कड़वापन नहीं छोड़ सकता, उसी प्रकार नीच आदमी नीचता नहीं छोड़ सकता.
नीच निचाई नहिं तजे, सज्जनहु के संग, तुलसी चंदन बिटप बसि, विष नहीं तजत भुजंग. चंदन के पेड़ पर रहने पर भी सांप अपना ज़हर नहीं छोड़ता, उसी प्रकार दुष्ट लोग सज्जनों के साथ रह कर दुष्टता नहीं छोड़ते.
नीचन कूटन, देवन पूजन. नीच आदमी पिट कर ठीक रहता है और देवता पूजा से प्रसन्न रहते है.
नीचे की सांस नीचे ऊपर की सांस ऊपर. भय मिश्रित अचम्भे वाली स्थिति.
नीचे पंच ऊपर परमेसुर. छोटे मोटे स्थानीय झगड़ों को निबटाने के लिए गाँवों में पांच आदमियों की समिति बनाई जाती थी जिन्हें पंच कहते थे. इस प्रकार की न्याय व्यवस्था का सब बहुत आदर करते थे.
नीम गुन बत्तीस, हर्र गुन छत्तीस. नीम बत्तीस रोगों में काम आता है और हर्र छत्तीस रोगों में.
नीम न मीठा होए चाहे सींचो गुड़ घी से. (इसकी पहली पंक्ति इस प्रकार है – जाको जौन स्वभाव मिटे नहिं जी से). नीम के पेड़ को गुड़ और घी से सींचो तब भी मीठा नहीं हो सकता. किसी भी व्यक्ति का (विशेषकर कडवे व्यक्ति का) स्वभाव बदला नहीं जा सकता.
नीम पै तो निम्बोली ही लागैंगी. (हरयाणवी कहावत) जिसका जैसा स्वभाव होगा वह वैसा ही काम करेगा.
नीम हकीम खतरा-ए-जान, भीतर गोली बाहर प्रान. अधकचरे हकीम या डॉक्टर से इलाज कराने में जान का खतरा होता है. हो सकता है कि गोली भीतर जाए तो प्राण बाहर आ जाएं.
नीम हकीम खतरा-ए-जान, नीम मुल्ला खतरा-ए-ईमान. उर्दू में नीम का मतलब है आधा. नीम हकीम याने अधूरी जानकारी रखने वाला हकीम. उससे इलाज कराने में जान का खतरा है. नीम मुल्ला माने धर्म के विषय में अधूरी जानकारी रखने वाला धर्मगुरु. उससे आप धर्म की शिक्षा लेंगे तो धर्म का सत्यानाश हो जाएगा.
नीयत तेरी अच्छी है तो किस्मत तेरी दासी है, कर्म तेरे अच्छे हैं तो घर में मथुरा काशी है. कोई भी काम अच्छी नीयत से किया जाए तो सफलता निश्चित रूप से मिलती है. व्यक्ति अगर अच्छे कर्म करता है तो उसका घर ही तीर्थ बन जाता है.
नीयत सही तो मंजिल आसान. इरादा नेक हो तो मंजिल अवश्य मिलती है.
नीयत से बरकत होत. नीयत को साफ़ रखने से व्यापार मुनाफे में रहता है.
नीर और नारी ढरकत देरी न लागे. पानी को ढलकने में और नारी को बहकने में देर नहीं लगती.
नीर निमाने, अन्न कुठारे. पानी निम्न-स्थल का अर्थात गहराई का, और अन्न कुठिया में रखा निर्दोष रहता है.
नील का टीका, कोढ़ का दाग, ये कभी नहीं छूटते. धोबी लोग कपड़े पर निशान लगाने के लिए जो स्याही प्रयोग करते हैं उस का दाग छूटता नहीं है और कुष्ठरोग का सफ़ेद दाग भी नहीं छूटता. कहावत उस समय की है जब कुष्ठ रोग का कोई इलाज नहीं था, पहले के लोग सफ़ेद दाग (ल्यूकोडर्मा) को भी कुष्ठ रोग समझते थे..
नीलकंठ कीड़ा भखें, मुखहिं विराजे राम, खोट कपट क्या देखिए, दर्शन से है काम. नीलकंठ (एक पक्षी जिस का गला नीला होता है) को देखना शुभ माना जाता है (क्योंकि शिव जी को भी नीलकंठ कहा जाता है). नीलकंठ पक्षी कीड़े मकोड़े खाता है लेकिन ईश्वर का प्रतिबिम्ब मान कर लोग उस के दर्शन करते हैं. कहावत का तात्पर्य यह है कि किसी के खोट (कमियाँ) न देख कर उस के गुण देखना चाहिए.
नीलकंठ जिस सिर मंडरावे, मुकुटपति सों लाभ वो पावे. जिस के सर पर नीलकंठ मंडरा जाए उसके राजा होने का योग होता है.
नीला कंधा बैंगन खुरा, कभी न निकले बरधा बुरा. जिस बैल के कंधे नीले और खुर बैंगनी हों वह निश्चित रूप से अच्छा ही होता है. (घाघ की कहावतें)
नेक अंदर बद, बद अंदर नेक. अच्छे से अच्छे आदमी के अंदर भी कुछ बुराइयाँ होती हैं और बुरे से बुरे में भी कुछ न कुछ अच्छाई होती है.
नेक की बनी देख नीच जलें. सज्जन व्यक्ति को उन्नति करते देख कर नीच लोग ईर्ष्या करते हैं.
नेक रहें करम, तो का करिहें बरम. (भोजपुरी कहावत) बरम – देवता (संभवतः ब्रह्म का अपभ्रंश है). यदि व्यक्ति नेक कर्म करता है तो देवता भी उस का कुछ नहीं बिगाड़ सकते.
नेकनामी देर से, बदनामी जल्दी. प्रसिद्धि मुश्किल से और देर से मिलती है जबकि बदनामी जल्दी.
नेकी और पूछ पूछ. कोई व्यक्ति किसी भिखारी के पास जाकर पूछे, क्यों भैया सौ रूपए लोगे क्या? तो वह कहेगा – क्या बाबूजी! नेकी और पूछ पूछ.
नेकी कर कुँए में डाल. यदि आप किसी के ऊपर उपकार करते हैं तो उसे करके भूल जाइए उससे यह अपेक्षा मत करिए कि उसे आपका एहसान मानना चाहिए या एहसान चुकाना चाहिए. आजकल के लोग नेकी कम करते हैं या नहीं करते हैं पर उसका विज्ञापन जरूर करते हैं. उनके लिए यह कहावत इस प्रकार होनी चाहिए – नेकी कर न कर, अखबार (या फेसबुक) में जरूर डाल.
नेकी करो, खुदा से पाओ. किसी के साथ अच्छाई करने का प्रतिफल भगवान देता है.
नेकी का फल बदी. जब कोई किसी का उपकार करे और बदले में उल्टे बुराई हाथ लगे तो.
नेकी नौ कोस, बदी सौ कोस. आप जो नेकी करोगे उसकी कहानी तो नौ कोस तक ही कही जाएगी पर अगर किसी के साथ कोई बदी की है (बुरा किया है) तो उसके किस्से सौ कोस तक फ़ैल जाएंगे.
नेकी बदी साथ जाला. (भोजपुरी कहावत) जो कुछ भी भलाई बुराई (पाप, पुण्य) मनुष्य करता है सब परलोक में उस के साथ जाती हैं.
नेकी बर्बाद, गुनाह लाजिम. किसी का भला किया उस की कोई कद्र नहीं ऊपर से अपराधी ठहरा दिए जाएं तो यह कहावत कही जाती है.
नेम न धरम चमड़ी पाक. उन लोगों के लिए जो नियम धर्म नहीं मानते लेकिन अपने को पाक साफ़ बताते हैं.
नेह फंद में जो फंस जावे, उस नर को न सीख सुहावे. जो मनुष्य प्रेम के फंदे में फंस जाता है उसे सीख अच्छी नहीं लगती.
नेहन्ना देख नाखून बढ़े. नाखून काटने वाले नेहन्ने को देख कर नाखून बढ़े होने की याद आई. कोई सुविधा मिलती देख उसका फायदा उठाने की जुगत.
नैन लगे तब चैन कहाँ है. नैन लगना – प्रेम हो जाना. किसी से प्रेम हो जाए तो मन को चैन नहीं रहता.
नैना देत बताय सब हिय को हेत अहेत, जैसे निर्मल आरसी भली बुरी कहि देत. हिय – हृदय. आप हृदय से किसी का भला चाहते हैं या बुरा यह आँखें बोल देती हैं, जिस प्रकार नाई की आरसी में अच्छा बुरा सब दिख जाता है.
नैहर की अल्हड़, ससुराल की ढीठ, राह चलत नहिं ढाकें पीठ. मायके में अल्हड़पने और ससुराल में ढिठाई से रहने वाली स्त्री सामाजिक वर्जनाओं का आदर नहीं करती (रास्ता चलते समय पीठ नहीं ढकती).
नैहर जइबे नौ दिन रहिबे, पूड़ी पोइबे जी भर खइबे. ससुराल में हर समय मन मार कर रहने वाली बहू सोचती है कि मैके जाऊंगी और नौ दिन रहूंगी. वहां अपनी मनपसंद की चीजें बना-बना कर खाऊंगी.
नैहर में छिया-छिया, सासरे न पूछे पिया. दुखी लड़की बेचारी मायके में नहीं रह सकती (सब लोग थू थू करते हैं) और ससुराल में पति उसकी कद्र नहीं करता.
नैहर रहा न जाय, सासरा सहा न जाय. मायके में रहना अच्छा नहीं समझा जाता, इसलिए मायके में रह नहीं सकती, और ससुराल में रहना सहन नहीं होता. नैहर – मायका, पीहर; सासरा – ससुराल.
नोन का पुतला, लेने चला समुन्दर की थाह. कोई बहुत कमजोर व्यक्ति बहुत बड़ा दुस्साहस करे तो. भला नमक का बना पुतला समुद्र में डुबकी लगा कर उस की गहराई नाप सकता है.
नोन न तेल रूखा धकेल. खाने में कोई स्वाद तो है ही नहीं, भला रूखे खाने को कैसे निगला जाए.
नौ की लकड़ी नब्बे खर्च. चीज़ सस्ती हो पर लाने में खर्च अधिक हो रहा हो तो.
नौ जाने छौ जनबे न करे. (भोजपुरी कहावत) छह की गिनती नौ से पहले आती है. जाहिर सी बात है कि जिसे नौ की गिनती आती है उसे छह की तो जरूर आनी चाहिए. कोई अगर नौ जानता है और छह नहीं जानता (अर्थात आरम्भिक ज्ञान नहीं है पर आगे का ज्ञान है) तो यह कहावत कही जाती है.
नौ दिन चले अढ़ाई कोस. बहुत धीमी गति से काम होना.
नौ नकटों में एक नाक वाला भी नकटा. बहुत सारे योग्य व्यक्तियों के बीच रहने से योग्य आदमी भी अयोग्य बन जाता है.
नौ नगद न तेरह उधार. कोई व्यक्ति तेरह रूपये बाद में देने को कहे उस के मुकाबले अगर नौ रूपये नकद मिल रहे हों तो अधिक अच्छे हैं. इंग्लिश में कहावत है – One in the hand is better than two in the bush.
नौ नेजा पानी चढ़ो, तऊ न भींजी कोर. नौ बर्छा पानी ऊपर चढ़ गया, फिर भी कोर नहीं भीगी. निर्लज्ज के लिए.
नौ नौ अठारा, और दो मिला के बीस. किसी के अधिक और किसी के कम योगदान से बड़ा काम हो जाता है.
नौ पुरबिया तेरह चौके (तीन कनौजिया तेरह चूल्हे). पुरबिया लोगों में एकता नहीं होती इस पर व्यंग्य.
नौ महीने माँ के पेट में कैसे रहा होगा. अत्यंत शैतान बालक या चंचल चित्त वाले व्यक्ति के लिए.
नौ रोटी सेर भर मट्ठा, कोइरी हूँ कि ठट्ठा. कोइरी – सब्जी बोने वाला किसान. शारीरिक श्रम करने वाले को अधिक खुराक लेना आवश्यक होता है.
नौ लावे तेरह की भूख. मनुष्य को जब थोड़ा सा मिल जाता है तो उसे और अधिक की लालसा होती है.
नौ सौ चूहे खाय बिलैया हज को चली. (नौ सौ चूहे खाय बिलाई बैठी तप पे) यदि किसी व्यक्ति ने जीवन भर खूब कुकर्म किए हो और बाद में वह धर्म-कर्म का नाटक करने लगे तो यह कहावत कही जाती है. भोजपुरी में कहावत है – सत्तर मुस खाइके बिलाइ भईली भगतीन. सन्दर्भ कथा – एक बार एक बिल्ली बूढ़ी हो जाने पर गंगा जी के तट पर सर के बल खड़ी हो कर तपस्या करने का ढोंग करने लगी और कहने लगी कि मैं ने जीवन भर बहुत पाप किए हैं. अब मैं उन का प्रायश्चित करना चाहती हूँ. वहाँ आस पास कुछ चूहे रहते थे. उन्हें उस बिल्ली पर विश्वास हो गया और उनहोंने बिल्ली से कहा कि आप छोटे मोटे शत्रुओं से हमारी रक्षा करें, हम भी आपकी यथाशक्ति सेवा करेंगे. बिल्ली ने कहा कि तुम में से दो लोग मुझे रोज शाम गंगा जी के तट पर पहुँचा दिया करो. वहाँ मैं संध्यावंदन कर के वापस आ जाया करूंगी और बाकी समय तुम लोगों की रक्षा करूंगी. चूहे मान गए. बिल्ली मौका मिलते ही चूहों पर हाथ साफ़ करने लगी. कुछ दिनों बाद एक बूढ़े चूहे ने सब को बुला कर कहा कि ये बिल्ली दिन पर दिन मोटी होती जा रही है और हमारी संख्या कम होती जा रही है. मुझे शक है कि यही चुपचाप हमारे साथियों को खा गई है. यहाँ से भाग चलो. उसके सुझाव पर वे सब वहाँ से भाग गए और बिल्ली अपना सा मुँह ले कर रह गई.
नौकर ऐसा चाहिए कबहूँ घर न जाय, काम करे सब ताव से भीख मांग कर खाय. सभी लोग ऐसा नौकर चाहते हैं जो कभी छुट्टी न ले और न ही घर जाए. काम पूरे जोश से करे पर तनख्वाह न ले.
नौकर का चाकर, चाकर का कूकुर. बड़े हाकिमों के महकमे के जो छोटे से छोटे कर्मचारी भी अपने को तुर्रमखां समझने लगते हैं, उन की हैसियत जताने के लिए. साहब के नौकर के नौकर और उस के कुत्ते जितनी तुम्हारी औकात है, अपने को ज्यादा मत समझो. जो लोग इस के इसके आगे बोलते हैं – और कूकुर की पूंछ का बाल. कहीं कहीं अशिष्ट भाषा में चाकर का कूकुर के स्थान पर चाकर का चूतड़ बोला जाता है.
नौकरी की जड़ आसमान में. (नौकरी की जड़ धरती से सवा हाथ ऊंची). नौकरी का कोई भरोसा नहीं होता कब चली जाए.
नौकरी की जड़ जुबान में. मीठा बोलने वाले को नौकरी में आसानी होती है और कड़वा बोलने वाले को मुश्किल.
नौकरी ताड़ की छांव. ताड़ के पेड़ की छाया बहुत थोड़ी और अपर्याप्त होती है. इसी प्रकार नौकरी की कमाई अपर्याप्त होती है (पहले के समय में नौकरी में बहुत कम वेतन मिलता था). रिश्वत लेने वाले कर्मचारी रिश्वत को सही ठहराने के लिए भी ऐसा कहते हैं.
नौकरी तौ नौकरी, ना करी तो ना करी, हाँ करी तो हाँ करी. नौकरी करना है तो किसी काम के लिए ना नहीं कर सकते. ना करने का मतलब है कि नौकरी नहीं करनी है. नौकरी करनी है तो हर काम को हाँ करो.
नौकरी न कीजिए घास खोद खाइए, और खोदें आस पास आप दूर जाइए. नौकरी करने से अच्छा है घास खोद कर अपना काम चलाया जाए. आस पास न मिले तो चाहे दूर जा कर खोदना पड़े.
नौकरी में सात खाविंद रिझाने पढ़ते हैं. बहुत सी स्त्रियों को यह शिकायत होती है कि उन्हें अपने पति को खुश रखने के लिए बहुत यत्न करने पड़ते हैं. उन स्त्रियों को समझाने के लिए पति यह बताते हैं कि नौकरी करना इतना कठिन है जितना एक दो नहीं सात पतियों को खुश करना.
नौकरी है के भाईबंदी. जब नौकर बहुत गैरहाजिरी करे अथवा ठीक ढंग से काम न करे तब.
न्याव को और भाव को कोउ भरोसा नाहिं. राजा के न्याय और बाजार के भाव के विषय में कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता.
न्यौता बामन, शत्रु बराबर. ब्राहण को न्यौता देना अपने लिए मुसीबत बुलाना है. (उनके अधिक खाने पर व्यंग्य).
प
पंख देख के नाचे मोर, पैर देख के रोये. मोर अपने सुंदर पंखों को देख कर बहुत खुश होता है लेकिन बद्सूरत पैरों को देख कर रोता है. हम सब को यह जानना आवश्यक है कि कोई भी व्यक्ति सम्पूर्ण नहीं हो सकता.
पंखे से कोहरा नहीं छंटता. छोटे साधन से बहुत बड़ा कार्य सिद्ध नहीं किया जा सकता.
पंच और पसेरी कहीं बाँध के नहीं ले जाए जाते. न्याय करने वाले पंच उसी स्थान के होते हैं जहाँ पंचायत होनी हो, इसी प्रकार भारी बांट भी अपने साथ बाँध कर नहीं ले जाए जाते.
पंच कहें बिल्ली तो बिल्ली सही. पंचों की बात सब को माननी पड़ती है. किसी ने अपनी आँखों से देखा कि पडोसी के कुत्ते ने उसकी मुर्गी का शिकार किया, लेकिन यदि पंच कहते हैं कि जंगली बिल्ली ने किया है तो बिल्ली ने ही किया होगा.
पंच जहाँ परमेश्वर. कोर्ट कचहरी जा कर बर्बाद होने के मुकाबले यदि गाँव के लोग अपने बीच से ही पांच लोगों को पंच बना कर फैसला कर लें तो सभी का फायदा है. इसीलिए कहा गया है कि जहाँ आपसी समझ बूझ से झगड़े निबटाने की व्यवस्था है वहाँ परमेश्वर का वास है.
पंचों का कहना सर माथे, लेकिन परनाला यहीं गिरेगा. किन्हीं दो पड़ोसियों के बीच इस बात पर झगड़ा हो रहा है कि छत से आने वाला परनाला नीचे कहाँ खुलेगा. झगड़ा निबटाने के लिए पंचायत होती है और पंच कुछ फैसला देते हैं. लेकिन जो दबंग आदमी है वह कहता है कि मैं पंचों की बात जरूर मानूँगा लेकिन परनाला जहाँ मैं कह रहा हूँ वहीँ गिरेगा. किसी व्यक्ति द्वारा अपनी ही शर्त पर समझौता करने की जिद करना.
पंचों का जूता और मेरा सिर. अगर मेरी बात गलत साबित हो तो पंच जो सजा दें मैं मानने को तैयार हूँ.
पंचों में परमेसर बोले. पंचों की वाणी को ईश्वर की वाणी माना गया है. इसलिए पञ्च पर भी बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है कि वह अपने स्वार्थों से ऊपर उठ कर समुचित न्याय करे.
पंज ऐब शरई. चोरी, व्यभिचार, शराब, जुआ और झूठ, इस्लाम में ये पाँचों ऐब वर्जित हैं. किसी व्यक्ति में ये सारे ऐब हों और अपने को सच्चा मुसलमान बताता हो, उस के लिए व्यंग्य. शरई – शरिया को मानने वाला.
पंडित और मसालची दोनों उल्टी रीत, और दिखावें रोशनी आप अँधेरे बीच. मशालची औरों को रोशनी दिखाता है पर खुद अँधेरे में रहता है. पंडित औरों को ज्ञान देता है पर खुद उस पर अमल नहीं करता.
पंडित की कथा कोरी बांच ले तो पंडित को कौन पूछे. कोरी – बुनकर. कोरी यदि कथा सुना ले और पूजा करा ले तो पंडित को कौन पूछेगा. कम्पाउंडर अगर इलाज कर ले तो डॉक्टर को कौन पूछेगा.
पंडित की बहू भद्रा ब्याहे. वर्ष के दिनों में कुछ समय भद्रा का प्रभाव होता है जिस में शुभ कार्य वर्जित होते हैं. पंडित जी जो सब को भद्रा का डर दिखा कर उगाही करते हैं उनके घर में भद्रा में पुत्र जन्म हो रहा है.
पंडित केरा पोथड़ा ज्यों तीतर को ज्ञान, औरन सगुन बतात हैं, अपनों फंद न जान. तीतर का दिखाई पड़ना अच्छा शगुन माना जाता है, लेकिन तीतर को इस का ज्ञान नहीं होता. ऐसे ही पंडित अपने पोथे से औरों को मुहूर्त बताता है लेकिन अपने लिए मुहूर्त नहीं निकाल पाता.
पंडित जी गए दारू पीए तो भठिए में लग गई आग. (भोजपुरी कहावत) पंडित जी दारु पीने गए तो भट्ठी में ही आग लग गई. कलियुगी ब्राह्मणों का मजाक उड़ाने के लिए.
पंडित जी ने कौआ हग दिया. अफवाहों द्वारा बात का बतंगड बनना. सन्दर्भ कथा – अफवाहों द्वारा बात का बतंगड किस प्रकार बनता है, इस के पीछे एक कहानी कही जाती है. एक पंडित जी जंगल में शौच के लिए गए और एक पेड़ के नीचे बैठ कर शौच करने लगे. पेड़ के ऊपर एक कौआ बैठा था. पंडित जी मलत्याग कर के उठे तभी संयोग से कौए का एक बड़ा सा पंख उन के मल पर आ कर गिर गया. पंडित जी की नज़र मल पर पड़ी तो उस में कौए का पंख दिखाई दिया. पंडित जी को यह वहम हो गया कि यह पंख उन के पेट से निकला है. घर आ कर उन्होंने पंडितानी को यह बात बताई. आधी अधूरी बात एक कामवाली के कानों में पड़ी. उसने किसी दूसरे को बताई, दूसरे ने तीसरे को बताई. उड़ते उड़ते पूरे गाँव में यह बात फ़ैल गई कि पंडित जी ने कौआ हग दिया.
पंडित जी बैंगन वातल है, मुझे नहीं औरों को. पंडित लोग अपने फायदे के लिए उपदेशों को घुमा फिरा लेते हैं. एक पंडित जी बैंगन की बहुत सी बुराइयाँ बताया करते थे. किसी जजमान के घर गए तो वहाँ बढ़िया घी में तर बैंगन का भर्ता बना था. भोजन करने बैठे तो जजमान ने उन्हें भर्ता नहीं परोसा. कहा – पंडित जी आप कह रहे थे कि बैंगन वायु करता है. पंडित जी बोले – मुझे नहीं औरों को.
पंडित बांचें पोथी लेखा, कबिरा बांचें आँखों देखा. पंडित तो पोथी में लिखा हुआ पढ़ कर ज्ञान की बात करते हैं लेकिन कबीरदास आँखों से देख कर और अनुभव द्वारा प्राप्त ज्ञान की बात करते हैं. सही बात यही है कि पोथियों में लिखे ज्ञान के मुकाबले धरातल का व्यवहारिक ज्ञान अधिक महत्वपूर्ण है.
पंडित भूलें तो राह कैसे मिले. मार्ग दिखाने वाला ही मार्ग भूल जाए तो रास्ता कैसे मिलेगा.
पंडित से पूछो तो ग्रह, ओझा से पूछो तो डायन. पंडित से किसी संकट का कारण पूछो तो किसी ग्रह का दोष बताता है, ओझा से पूछो तो डायन का.
पंडित सोई जो गाल बजावा. गाल बजाना – अपनी प्रशंसा करना. जो पंडित अपने बारे में बढ़ चढ़ कर हांकता है, उसे ही लोग विद्वान समझते हैं.
पंडित, सूर, सुजानवर, रूपवती तिय जान, जहाँ जहाँ ये पग धरें, वहाँ वहाँ सम्मान. विद्वान व्यक्ति, शूरवीर, बुद्धिमान व्यक्ति और रूपवती स्त्री का हर जगह सम्मान होता है.
पंद्रह बुलाए आये बीस, घर के मिल कर हो गए तीस. घर के किसी आयोजन में थोड़े लोग बुलाओ तब भी बहुत लोग हो जाते हैं.
पंसेरी में पांच सेर की भूल. पंसेरी माने पांच सेर. पांच सेर तोलने में दो चार छटांक की भूल हो जाए तो माफ़ की जा सकती है, लेकिन अगर पांच सेर की भूल हो तो कोई कैसे मान जाएगा.
पंसेरी वाली भी दुह लेता है और पाव वाली भी. जो भ्रष्ट हाकिम अमीर गरीब सब से रिश्वत ले लेता हो. पंसेरी वाली – पांच सेर दूध देने वाली गाय, पाव वाली – पाव भर दूध देने वाली गाय.
पइसा के लाने सबरे करम करने परत. (भोजपुरी कहावत) पैसा कमाने के लिए सब कर्म करने पड़ते हैं.
पकाय सो खाय नहीं, खाय कोई और, दौड़े सो पाय नहीं, पाय कोई और. भाग्य के कारण जिसने पकाया उसे नहीं मिला किसी और को खाने को मिला. जिसने दौड़ भाग की उसे नहीं किसी और को लाभ हो गया.
पके आम का क्या ठीक, कब टपक जाए (पके आम टपकने का डर). अधिक वृद्ध और बीमार लोगों के लिए.
पके आम सुहावन, पके मर्द छिनावन. आम पक कर मीठा और आकर्षक हो जाता है जबकि पुरुष पक कर (वृद्ध हो कर) अप्रिय हो जाता है.
पके पे निम्बौली मिठात. अनुभवी होने के साथ व्यक्ति का स्वभाव मृदु होता जाता है.
पक्का होना चाहे तो पक्के के संग खेल, कच्ची सरसों पेर के खली होय न तेल. अगर आप किसी काम में दक्ष होना चाहते हैं तो अनुभवी व्यक्ति के साथ काम कीजिए, कोई खेल सीखना चाहते हैं तो अनुभवी खिलाड़ी के साथ खेलिए. बात को समझाने के लिए सरसों का उदाहरण दिया गया है. सरसों पक जाए तभी उसको पेरने से तेल और खली मिलती है कच्ची सरसों पेरने पर नहीं.
पक्के घड़े में जोड़ नहीं लगता. कच्चा घड़ा चटक जाए तो उस में जोड़ लगाया जा सकता है या टेढ़ा हो तो उसे सीधा किया जा सकता है लेकिन पक्के घड़े को न तो सीधा किया जा सकता है न ही उस में पैबंद लग सकता है. छोटे बच्चे के विचारों को प्रभावित किया जा सकता है, बड़े आदमी की मान्यताओं को नहीं.
पक्षे चोरी, पक्षे न्याय, पक्ष बिना सो मारो जाय. दुनिया में सब काम दूसरों के बल या तरफदारी से ही होते हैं.
पग पवित्र तीरथ गवन, कर पवित्र कछु दान, मुख पवित्र तब होत है, भज ले जब भगवान. पैर तभी पवित्र होते हैं जब आप उन से चल कर तीर्थ करने जाते हैं, हाथ दान देने से पवित्र होते हैं और मुख तब पवित्र होता है जब आप भगवान का नाम लेते हैं.
पग पूजे सिर कूटे. 1. पद या आयु में बड़ा व्यक्ति यदि निकृष्ट आचरण करे तो उस की भी धुनाई करो. 2. किसी ऐसे व्यक्ति के लिए जो आप का आदर करने का दिखावा करे और आपको नुकसान पहुँचाए.
पग बिन कटे न पंथ. बिना पहला पग बढ़ाए रास्ता नहीं कटता है. अर्थात काम कितना भी बड़ा क्यों न हो जब तक आरम्भ ही न किया जाए, पूरा कैसे होगा.
पगड़ी की साख से घाघरी की साख ज्यादा प्यारी. जिसे कुल की साख से पत्नी और ससुराल अधिक प्यारी हो.
पगड़ी दोनों हाथों से संभाली जाती है. बहुत मेहनत से इज्जत बचाई जाती है.
पगड़ी रख, घी चख. घी चखने का अर्थ है मौज उड़ाना. 1. मौज उड़ाओ लेकिन पगड़ी सम्भाल कर (अपने सम्मान पर ठेस मत आने दो). 2. सम्मान की परवाह मत करो, पगड़ी नीचे रखो और मौज उड़ाओ..
पगड़ी रहे या जाए, सर सलामत रहना चाहिए (पगड़ी गई ऐसी तैसी में, सिर तो बच गया). जहां इज्जत बचाने के चक्कर में जान जा रही हो वहाँ कुछ लोग तो कहते हैं कि जान जाए पर इज्ज़त न जाए. कुछ लोग कहते हैं कि यदि जान बची रहे तो प्रतिष्ठा तो फिर भी प्राप्त की जा सकती है इस लिए पहले जान बचाओ.
पगले आग मत लगा देना, भली याद दिलाई. दुर्बुद्धि आदमी से जिस काम के लिए मना करो वही करता है.
पगले सबसे पहले. 1. मूर्ख व्यक्ति भला बुरा विचार किये बिना हर काम में कूद पड़ता है. 2. कहीं भी कोई आयोजन हो रहा हो, उस में पगले लोगों को पहले पूछना चाहिए, क्योंकि वे रायता फैला सकते हैं.
पचै सो खाए, रुचै सो बोले. भोजन वही करना चाहिए जो आसानी से पच जाए. बोलना वही चाहिए जो सब को अच्छा लगे.
पछवा चले, खेती फले. खेती के लिए पछवा हवा (पश्चिम से आने वाली शुष्क हवा) लाभदायक होती है.
पछुआ में पुरवाई बहे, फिर फिर ताके नार, जे ना जाए बिन बरसे, वो दूसर करे भतार. पछुआ हवा के बीच पुरवाई चले तो वर्षा अवश्य होती है और राह चलती नारी घूम घूम कर देखे तो दूसरा पति अवश्य करती है.
पछुआ हवा उसावे जोई, घाघ कहें घुन कबहु न होई. ओसाना – अनाज को हवा में उड़ा कर भूसी को अलग करना. पछवा हवा में अनाज को ओसाया जाए तो उसमें घुन नहीं होता.
पजामे का कोई जिकर नहीं. दूसरे का भला करने के चक्कर में अपना नुकसान हो जाए तो कहते भी नहीं बनता और चुप रहते भी नहीं बनता. सन्दर्भ कथा – किसी व्यक्ति के घर उसका एक मित्र आया. मित्र को उस शहर में कुछ लोगों से मिलने जाना था लेकिन रास्ते में उसका पजामा कीचड़ से गंदा हो गया था. उस व्यक्ति ने नया पजामा मित्र को पहनने को दिया और दोनों लोग चल पड़े. रास्ते में उसे लगा कि मित्र का पजामा बहुत अच्छा लग रहा है जबकि उस का पजामा घटिया लग रहा है. वह मन ही मन इस बात पर बहुत परेशान हुआ. वह कुछ कह नहीं पाया पर मन में कसमसाता रहा.
जिन पहले सज्जन के घर ये लोग पहुँचे वहाँ उसने अपने मित्र का परिचय कराया कि ये मेरे मित्र फ़लाने फ़लाने हैं, अमुक शहर से आये हैं और ये जो पजामा पहने हैं ये मेरा है. मित्र ने बाहर निकल कर कहा, यार यह कहने की क्या जरूरत थी कि पजामा तुम्हारा है. दूसरे घर में गए तो वहाँ उन्होंने अपने मित्र का परिचय कराया और बोले कि जो पजामा ये पहने हैं ये इन्हीं का है. बाहर निकल कर मित्र ने फिर कहा कि यार यह अजीब बात है. यह कहने की क्या जरूरत है की पजामा मेरा है या तुम्हारा है. तीसरे घर में उन सज्जन ने मित्र का परिचय कराया और कहा कि ये जो पजामा पहने हैं वह न इनका है न मेरा है. मित्र बाहर निकल कर बहुत बिगड़े. बोले तुम पजामे का जिक्र ही क्यों करते हो.
चौथे घर में उन्होंने मित्र का परिचय कराया कि ये श्री फलाने हैं, अमुक शहर से आए है और भाई पजामे का कोई जिकर नहीं. जहाँ कोई व्यक्ति बिना किसी उचित कारण बार बार अपना महत्व जताने की कोशिश कर रहा हो वहाँ मजाक में यह कहावत कही जाती है.
पटको तुम, मूछें हम उखाड़ें. पुराने जमाने में मूंछें उखाड़ना किसी का सब से बड़ा अपमान माना जाता था. जानी दुश्मनों के साथ ही ऐसा बर्ताव किया जाता था. कोई चतुर व्यक्ति अपने साथ वालों को उकसा रहा है कि तुम फलाने को पटक दो तो हम उस की मूँछ उखाड़ देंगे. किसी को खतरनाक काम के लिए उकसाना और खुद उस का श्रेय लेना. रूपान्तर – धर तौ पटको, चढ़बे हम ठाँड़े. पटको तो सही, चढ़ बैठने को हम खड़े हैं.
पट्ठों की जान गई, पहलवान का दांव ठहरा. पहलवान अपने चेलों और चमचों पर अपने दांव आजमाते हैं, उसी पर कहावत.
पठान का पूत, घड़ी में औलिया, घड़ी में भूत. पठान का व्यवहार बड़ा विचित्र और अनुमान से परे होता है. वह कभी कुछ हो जाता है कभी कुछ.
पठानों ने गाँव मारा, जुलाहों की चढ़ बनी. बहादुर लोग कोई वीरतापूर्ण काम करते हैं और कायर लोग उसका फायदा उठाते हैं.
पड़वा पाठ भुलावे, छोरों को खिलावे. पुराने समय की मान्यता है कि दीपावली के अगले दिन पड़वा को पढ़ाई करने से विद्यार्थी पाठ भूल जाता है. इस के पीछे चित्रगुप्त जी सम्बंधित एक कथा कही जाती है.
पड़िया के साथ भैंस मुफ्त. आम तौर पर किसी बड़ी चीज़ के साथ छोटी चीज मुफ्त मिलती है. जहाँ छोटे लाभ के साथ बड़ा लाभ स्वत: ही हो रहा हो वहाँ यह कहावत कही जाती है. भोजपुरी में इस कहावत को इस प्रकार कहते हैं – पड़िया मोल भैंस सुगौना.
पड़ी बिछौना फूहड़ सोवे, राँधा कुत्ता खाए. निकम्मी और आलसी स्त्री के लिए.
पड़ी लकड़ी कौन उठाए. व्यर्थ की मुसीबत कौन मोल ले.
पड़ोसन को देख पड़ोसन जल मरे. स्त्रियों में दूसरे की सम्पत्ति से ईर्ष्या करने की प्रवृत्ति बहुत अधिक होती है.
पड़ोसी के घर में बरसेगा तो बौछार यहाँ भी आयेगी. पड़ोसी की तरक्की से जलने के स्थान पर यह सोचना चाहिए कि पड़ोसी के घर समृद्धि आएगी तो हमें भी कुछ न कुछ लाभ होगा.
पडोसी से प्रेम रखो, पर बीच की दीवार न तोड़ो. पड़ोसियों से सद्भाव बना कर रखना चाहिए और उनके सुख दुख में सम्मिलित भी होना चाहिए लेकिन थोड़ी दूरी भी बना कर रखना चाहिए.
पढ़ ले बेटा फ़ारसी, तले पड़े सो हारसी. किसी जमाने में फ़ारसी पढ़ना एक प्रकार से उच्च शिक्षा प्राप्त करना था. बच्चों को समझाया जा रहा है कि पढ़ लो, नहीं पढ़े तो जीवन में हार जाओगे.
पढ़तव्यं सो भी मरतव्यं, ना पढ़तव्यं सो भी मरतव्यं, जिभ्या सांसत किम कर्तव्यं. पढूंगा तो भी मरूंगा, नहीं पढूंगा तो भी मारूंगा, तो जीभ को कष्ट क्यों दूँ. पढ़ाई से भागने वाले छात्र का हास्यपूर्ण कथन.
पढ़ा लिखा जाट, सोलह दूनी आठ. पहले के जमाने में जाट लोगों में खेती का चलन ज्यादा था, पढ़ाई लिखाई का कम. इसी बात को लेकर लोगों ने उनका मजाक उड़ाने की कोशिश की है. व्यवहारिक रूप में इस कहावत का प्रयोग केवल जाटों के लिए नहीं करते हैं. कोई भी पढ़ा लिखा व्यक्ति यदि बचकाना और बेवकूफी की बात कर रहा हो तो यह कहावत कही जा सकती है.
पढ़ाई लिखाई की ऐसी तैसी, खोदो घास चराओ भैंसी. जब कोई बच्चा पढ़ने लिखने से आना-कानी करता है तो बड़े उलाहना में कहते हैं, क्या करोगे पढ़-लिखकर चलो घास खोदो और भैंस चराओ.
पढ़ाए पढ़े ना खूसर, नवाए नवे ना मूसर. मूर्ख पढ़ाने से नहीं पढ़ता, जैसे मूसल झुकाने से नहीं झुकता.
पढ़ाया लिखाया बेटा वानर हो गया. किसी धूर्त व्यक्ति को उसी की भाषा में जवाब. सन्दर्भ कथा – एक पंडितजी ने एक साहूकार के यहाँ अपना कुछ रुपया धरोहर रखा था. कुछ दिनों के बाद जब पंडितजी ने उससे अपना रुपया मांगा, तब साहूकार ने बतलाया कि पंडितजी वह रुपया तो कोयला हो गया. इसके कुछ दिनों के बाद साहूकार ने अपना एक लड़का पंडितजी को पढ़ाने को दिया. पंडितजी ने लड़के को कहीं छिपा दिया और उसकी जगह एक बंदर को बाँध दिया. जब साहूकार अपना लड़का लेने गया तो पण्डित जी ने उसे वह बंदर दिखा कर कहा कि यही तुम्हारा लड़का है. इस पर साहूकार झगड़ा करने लगा तो मामला मुखिया तक पहुँचा. मुखिया ने सारी बात समझ कर पंडित जी के रूपये ब्याज समेत वापस दिलवाए. तब पंडित जी ने लड़का भी वापस कर दिया.
पढ़ि पढ़ि के पत्थर भया लिख लिख भया ज्यूँ ईंट, कहें कबीरा प्रेम की लगी न एको छींट. पढ़ लिख कर यदि मनुष्य ईंट पत्थर जैसा निर्बुद्धि और निष्ठुर बन जाए तो ऐसे ज्ञान का क्या लाभ.
पढ़े घर की पढ़ी बिल्ली. जिस खानदान में कुछ लोग पढ़ लिख जाते हैं उस घर के सभी लोग अपने को बहुत काबिल समझने लगते हैं. उनका मज़ाक उड़ाने के लिए.
पढ़े तो हैं गुने नहीं. व्यवहारिक ज्ञान नहीं पाया हो तो किस काम का. सन्दर्भ कथा – (गुनना – व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त करना). शिक्षा ली हो पर व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त न किया हो तो वह शिक्षा किसी काम की नहीं होती. किसी राज पुरोहित का बेटा काशी से बहुत सारी विद्याएँ पढ़ कर आया. राजा ने उस की योग्यता की परीक्षा लेने के लिए अपनी मुट्ठी में कोई चीज़ बंद कर ली और पूछा, बताओ मेरी मुट्ठी में क्या है. उसने अपनी विद्या के बल पर बताया, कोई सफ़ेद पत्थर की गोल चीज़ है जिसके बीच में छेद है. राजा ने कहा, क्या हो सकता है? वह बहुत देर तक सोचता रहा कि ऐसी चीज़ क्या हो सकती है जो पत्थर की हो, सफेद हो और जिसके बीच में छेद भी हो. फिर बोला, चक्की का पाट. राजा हँस पड़ा. उस ने मुट्ठी खोली, उस में एक मोती था. कोई पढ़ा लिखा व्यक्ति मूर्खता पूर्ण और अव्यवहारिक बात करे तो यह कहावत कही जाती है.
पढ़े तोता पढ़े मैना, कहीं सिपाही का पूत भी पढ़ा है. एक बार को तोता और मैना पढ़ सकते हैं पर सिपाही का बेटा नहीं पढ़ता (वह रिश्वत की कमाई से बिगड़ जाता है और अपने पिता की ताकत के नशे में चूर रहता है).
पढ़े न लिखे, नाम विद्यासागर. गुण के विपरीत नाम.
पढ़े फारसी बेचें तेल, ये देखो कुदरत का खेल. पहले जमाने में सामान्य लोग उर्दू पढ़ते थे. जिनको ज्यादा पढ़ना होता था वे उसके बाद फारसी पढ़ते थे. मतलब यह कि फारसी एक प्रकार की उच्च शिक्षा थी. यदि कोई उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी बहुत छोटा मोटा काम करने पर मजबूर हो तो यह कहावत कही जाती है.
पढ़े लिखे की चार आँखें होतीं. पढ़ा-लिखा आदमी अधिक समझदार होता है.
पढ़े लिखे बिन कौन अकाजू, जोते हल घर भरूँ अनाजू. पढ़ाई से भागने वाले किसान के बेटे का कथन. बिना पढ़े लिखे मैं बेकार थोड़े न हो जाऊँगा. हल जोत कर घर को अनाज से भर दूंगा.
पढ़े लिखे मूसर. पढ़े लिखे पर व्यवहारिक ज्ञान से शून्य व्यक्ति के लिए उपेक्षापूर्ण कथन.
पढ़े वेद, जोते खेत. उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद कोई छोटा मोटा काम करना पड़े तो.
पढ़े से विद्या, किए से खेती. जिस प्रकार किसी दूसरे के पढ़ने से हमें विद्या नहीं आ सकती (अपने आप पढ़ने से ही आएगी) उसी प्रकार किसी दूसरे के करने से खेती नहीं हो सकती.
पढे सो पंडित होय. जो पढ़े लिखेगा वही विद्वान बनेगा.
पढ़ो पट्टू सीताराम, कही हम तो पढ़े पढ़ाये हैं. मूर्ख व्यक्ति अपने को बहुत बुद्धिमान समझता है.
पढों में अनपढ़, जैसे हंसों में कौवा. बहुत से शिक्षित व्यक्तियों के बीच में एक अनपढ़ व्यक्ति वैसा ही दिखाई देता है जैसे हंसों के बीच में कौवा.
पतली देह अन्न की खान. जो आदमी दुबला पतला हो पर खाता अधिक हो.
पतली पतली पोवे पीहर को रोवे, मोटी मोटी पोवे चैन से सोवे. जो बहू पतली पतली रोटियाँ बनाती है वह रसोई में ही खटती रहती है. जो मोटी रोटियाँ बनाती है वह चैन से सोती है. शिक्षा यह दी गई कि ज्यादा सुघड़ता से काम करने के चक्कर में पड़ोगे तो पिसते रहोगे. काम चलाऊ काम करो और मस्त रहो.
पति तो पूजे देव को, भूतन पूजे जोय, एकै घर में दो मता, कुसल कहाँ से होय. पति देवता की पूजा करता है और पत्नी भूतों की. जब पति पत्नी दोनों के मत और विश्वास एक दूसरे से उल्टे हों तो उन में नहीं निभ सकती.
पति भूखा तो माथा दूखे, अपनी भूखों चूल्हा फूंके. उन कामचोर स्त्रियों के लिए जो पति का काम करने में बहाने बनाएँ और अपना स्वार्थ पूरा करती रहें. माथा दूखे – सर में दर्द.
पति से रूठी, गाँव से बोलती नहीं. उन लोगों पर व्यंग्य जो छोटी छोटी बात पर अधिक गुस्सा दिखाते हैं.
पतिबरता को कपड़ा नाहीं, बेसवा ओढ़े थान. पतिबरता – पतिव्रता स्त्री, बेसवा – वैश्या. जो पतिपरायणा है उनके लिये तो पहनने को कपड़ा तक नहीं है और वेश्या को कपड़े का थान मिल रहा है. अधर्म की पराकाष्ठा. इस कहावत को इस प्रकार से भी कहा गया है – पतिबरता भूखी मरे, पेड़े खाए छिनार.
पतीली न जाने खाने का स्वाद. पतीली सब के लिए खाना बनाती है पर स्वयं उस का स्वाद नहीं ले सकती. मेहनतकश लोग सुख सुविधा के सारे साधन बनाते हैं पर स्वयं उन का आनंद नहीं ले पाते हैं.
पतुरिया का डेरा, जैसे ठगों का घेरा. पतुरिया – चरित्रहीन स्त्री, वैश्या. ऐसी स्त्री अपने मोहजाल में फंसा कर व्यक्ति का धन सम्मान सब ठग लेती है.
पतुरिया रूठी, धरम बचा. चरित्रहीन स्त्री अगर आपसे रूठ जाए तो यह समझो कि आपका धर्म बच गया (क्योंकि उसके चक्कर में पड़ कर तो धर्म भ्रष्ट होना ही था).
पतोहू मरे भागवान की, दमाद मरे अभागे का. यदि बहू मर जाती है तो बेटे का दूसरा ब्याह कर के कमी पूरी की जा सकती है मगर दामाद के मरने पर लड़की जीवन भर विधवा हो कर आँखों के सामने रहती है.
पत्ता खटका, बंदा सटका. डरपोक लोगों के लिए जो पत्ता खड़कने की आवाज सुन कर ही सरक लेते हैं.
पत्ता खड़कल बाभन हड़कल. (भोजपुरी कहावत) ब्राह्मण इतने डरपोक होते हैं कि पता खड़कने से डर जाते हैं.
पत्थर को जोंक नहीं लगती. किसी भी समाज में मुफ्तखोर लोग जोंक के समान होते हैं जो कि समाज के अन्य लोगों का खून चूसते हैं. ये आपसे हर समय कुछ न कुछ सहायता मांगते रहते हैं और अगर आप मना करते हैं तो उलटे आपको ही पत्थर दिल कहते हैं. ऐसे लोगों से निबटने के लिए पत्थर दिल बनना ही अच्छा रहता है.
पत्थर क्या पसीजे. अत्यंत कठोर चित्त से दया या कंजूस से दान की आशा नहीं की जा सकती.
पत्थर खुद की करे बड़ाई, हम हैं महादेव के भाई. किसी बड़े आदमी का सगा सम्बन्धी उससे रिश्ता बता कर अपनी शान झाड़ रहा हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.
पत्थर नीचे हाथ दबे, तो चतुराई से काढ़े. किसी बड़ी मुसीबत में फंसने पर बहुत होशियारी से उससे निकलने की कोशिश करना चाहिए.
पत्थर पे नाव चलावे. असंभव या अनहोना कार्य करना.
पत्थर से पत्थर टकराता है तो चिंगारियां निकलती हैं. जब दो विकट योद्धा लड़ते हैं तो लड़ाई भीषण होती है और आसपास के लोगों का नुकसान हो सकता है.
पनिहारी की लेज से, सहजे कटे पखान. लेज – डोरी, पखान – पाषाण. कुँए की पत्थर की चरखी पर पानी भरने वाली डोलची की रस्सी से निशान पड़ जाते हैं. नित्य प्रयास करने से कठिन काम भी संभव हो जाते हैं.
पर उपदेश कुशल बहुतेरे, (जे आँचरन्हि ते नर न घनेरे). दूसरों को उपदेश देना बहुत आसान है. ऐसे लोग बहुत कम होते हैं जो स्वयं उन बातों पर अमल करें. अधिकतर इस कहावत का प्रथम भाग ही बोला जाता है.
पर की पीर न जानें चार, राजा, दुखिया, याचक, नार. चार प्रकार के लोग दूसरे की पीड़ा को नहीं समझते हैं. राजा जो अपने अभिमान में चूर रहता है, दुखिया जो स्वयं दुखी है, याचक जो मांगते समय किसी का सुख दुख नहीं देखता और नारी जो आमतौर पर दूसरों के कष्टों के प्रति संवेदनहीन होती हैं.
पर घर कूदें मूसरचंद. जो बिना निमन्त्रण किसी के घर जाएं या बिना सहायता मांगे सहायता करने पहुँच जाएँ.
पर घर नाचें तीन जन, कायस्थ, बैद, दलाल. कायस्थ (कचहरी में काम करने वाले पेशकार व अन्य मुलाजिम), वैद्य और दलाल ये दूसरों के धन पर ऐश करते हैं.
पर धन बांधे मूरखचंद. (पर धन राखें मूरखचंद). पराई धरोहर की चौकीदारी करना मूर्खता का काम है. इससे आप को लाभ तो कुछ नहीं होता, उलटे खतरा और होता है.
पर नारी पैनी छुरी, तीन ओर से खाय, धन छीजे, जोवन हरे, पत पंचों में जाय. पराई नारी से आसक्ति पैनी छुरी से खेलने के समान है. उससे धन और यौवन का ह्रास होता है और पंचों (समाज के प्रतिष्ठित लोगों) के बीच प्रतिष्ठा जाती है. कुछ लोग इस के आगे भी बोलते हैं – जीवत काढ़े कलेजा, अंत नरक ले जाय.
पर नारी पैनी छुरी, मत कोई लावो संग, दसों सीस रावन के ढह गए, पर नारी के संग. पराई स्त्री पैनी छुरी की भाँति खतरनाक है. पराई स्त्री का अपहरण करने के कारण रावण के दसों सर कट गए.
परखना हो किसी को तो उस के यार देख लो. यदि किसी व्यक्ति की सच्चाई जाननी हो तो यह मालूम करो कि उसके मित्र किस बौद्धिक और सामाजिक स्तर के हैं. इंग्लिश में इस आशय की एक कहावत है – Man is known by the company he keeps.
परजा जड़ है राज की, राजा है ज्यों रूख, रूख सूख कर गिर पड़े, जब जड़ जावे सूख. राजा को यह नहीं भूलना चाहिए कि यदि वह पेड़ के समान है तो प्रजा उसकी जड़ है. यदि प्रजा कष्ट में रहेगी तो राजा का उसी प्रकार नाश हो जाएगा जैसे जड़ सूख जाने से पेड़ सूख जाता है.
परजा भागे छोड़ कर कुन्यायी का गाम, चहूँ ओर जग में करे फेर उसे बदनाम. अन्यायी राजा के राज्य को लोग छोड़ कर भागने लगते हैं और उसे बदनाम करते हैं.
परदे की बीवी और चटाई का लहंगा. किसी कुलीन महिला द्वारा सस्ता और फूहड़ पहनावा धारण करना.
परदेशी की प्रीत, फ़ूस का तापना (परदेसी की प्रीत, रैन का सपना). फूस में आग लगाते ही वह एकदम से जल उठता है और बहुत कम समय में खत्म हो जाता है. इसी प्रकार रात्रि में देखा गया सपना भी एकदम खत्म हो जाता है. परदेसी आदमी की प्रीत भी इसी प्रकार अल्प कालिक होती है.
परदेस कलेस नरेसन को. राजा और बड़े हाकिम दूसरे देश में परेशान रहते हैं क्योंकि उन की पूछ अपने देश में ही होती है.
परदेस में पैसे पेड़ों पर नहीं लगते. जो लोग समझते हैं कि विदेश में बहुत कमाई है उन को सीख देने के लिए.
परमात्मा गंजे को नाखून न दे. अगर गंजे के नाखून होंगे तो वह खुजा खुजा कर अपनी खोपड़ी लहूलुहान कर लेगा. (विस्तृत विवरण के लिए देखिए सन्दर्भ कथा 67 – खुदा ने गंजे को नाखून नहीं दिए).
परवत पर खोदे कुआँ कैसे निकसे तोय. पर्वत पर कुआँ खोदने पर पानी नहीं मिल सकता. गलत स्थान पर उद्यम करना व्यर्थ जाता है.
परसी थाली देख कर मत चूको बेईमान. बेईमान व्यक्ति बेईमानी करने का कोई मौका नहीं चूकता, ख़ास तौर पर अगर पकी पकाई मिल रही हो तो.
परहथ बनिज संदेसे खेती, बिन वर देखे ब्याहें बेटी, द्वार पराए गाड़ें थाती, ये चारों मिल पीटें छाती. दूसरे के हाथों व्यापार करने वाला, संदेश भेज कर खेती कराने वाला, बिना वर को देखे कन्या का विवाह करने वाला और दूसरे के घर के बाहर अपना धन गाड़ने वाला, ये चारों लोग छाती पीटते हैं. रूपान्तर – परहथ बनिता, साझे खेती. (अपनी स्त्री को दूसरे को सौंपना).
परहथ विद्या परहथ धन, न वो विद्या न ये धन. दूसरे के पास जो विद्या या धन है वह हमारे किस काम का.
परहित सरिस धर्म नहिं भाई. परोपकार के समान उत्तम कोई दूसरा धर्म नहीं है. व्यवहार में इतनी ही कहावत बोली जाती है. इसके आगे की पंक्ति इस प्रकार है – पर पीड़ा सम नहिं अधमाई.
पराई आसा, नित उपवासा (पराई आसा, मरै उपासा). दूसरों के भरोसे रहोगे तो भूखों मरोगे.
पराई नौकरी सांप खिलाने के बराबर है. दूसरे की नौकरी में बहुत खतरे हैं (सब से बड़ा खतरा तो नौकरी जाने का ही है). इसके अलावा कोई भी अनहोनी हो तो उसका ठीकरा नौकर के सर पर ही फोड़ा जाता है.
पराई पत्तल का भात मीठा. मनुष्य को हमेशा यह प्रतीत होता है कि दूसरे लोग उससे अधिक सुखी हैं.
पराई बदशगुनी के वास्ते अपनी नाक कटाई. कुछ लोग इतने नीच प्रवृत्ति के होते हैं कि हमेशा दूसरों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करते हैं चाहे उस प्रयास में अपना नुकसान क्यों न हो जाए.
पराई हंसी गुड़ से भी मीठी. दूसरा व्यक्ति यदि प्रसन्न दिखाई देता है तो हम सोचते हैं कि वह बहुत सुखी है (चाहे वास्तविकता इससे भिन्न हो).
पराए कंधे पे रख के बंदूक चलाना. अर्थ स्पष्ट है.
पराए खसम के लिए सत्ती होवे. किसी दूसरे के कष्ट में अत्यधिक व्यथित होना.
पराए घर में नौ खाटों पर कमर सीधी होती है (दूसरों के घर चार खाटों पर कमर खुले). अपने घर पर आदमी चाहे कैसे भी काम चला ले, दूसरे के घर जाता है तो उसे अतिरिक्त सुविधाएं चाहिए होती हैं.
पराए दुख में दुखी होने वाले कम, पराए सुख में दुखी होने वाले ज्यादा मिलते हैं. किसी दूसरे के दुख को बहुत कम लोग महसूस करते हैं. ज्यादातर लोग दूसरों को सुखी देख कर दुखी होते हैं.
पराए धन पर धींगर नाचे. मुस्टंडे लोग दूसरों के धन पर मौज करते हैं.
पराए धन पर लक्ष्मी नारायण. दूसरों का धन बांट कर अपने को बड़ा दानी सिद्ध करना.
पराए धन से फलहार, लेवें न डकार. मुफ्त का माल खाने को मिल जाए तो आदमी डकार तक नहीं लेता.
पराए पीर को मलीदा, घर के देव को धतूरा. दूसरों के लिए पूजनीय किसी व्यक्ति का सम्मान करना और अपने देवताओं का अपमान करना.
पराए पूत किसको कमा कर देते हैं. किसी दूसरे को कमा कर देना कोई नहीं चाहता.
पराए पूतन की आसा (पराये पूतन सपूती होवे). दूसरे के लड़के से सहायता की आशा करना. दूसरे की संपत्ति से अपने को धनवान समझने की मूर्खता. पराए पूतन – दूसरे के पुत्रों से, सपूती – पुत्रवती.
पराए भरोसे खेला जुआ, आज न मुआ कल मुआ. दूसरे पर विश्वास कर के जुआ खेलने वाला बर्बाद हो जाता है. पैसा उधार ले कर जुआ खेलने से भी मतलब हो सकता है.
पराए माथे सिल फोड़े. दूसरों को संकट में डाल कर अपना काम बनाना.
पराधीन दोनों सदा, जग में बेटी बैल. बेटी सदा दूसरों के आधीन रहती है, पहले पिता के घर में और फिर ससुराल में. इसी प्रकार बैल भी अपनी जीविका के लिए दूसरों के आधीन होता है. ये दोनों ही अपनी मर्जी से कुछ नहीं कर सकते.
पराधीन सपनेहूँ सुख नाहिं. दूसरे की गुलामी करने वाले को कभी सुख नहीं मिल सकता (सपने में भी नहीं).
पराया खाइए गा बजा, अपना खाइए सांकल लगा. सांकल लगा कर कोई काम करने का अर्थ है घर के दरवाजे की कुंडी बंद कर के अर्थात बिना किसी को बताए. किसी दूसरे की दी हुई चीज़ खा कर खूब प्रशंसा कीजिए पर अपने घर में क्या खाते हैं यह किसी को नहीं बताना चाहिए.
पराया धर थूकने में भी डर, अपना घर हग जी भर. पराए घर में कोई भी काम डर डर कर करना पड़ता है, अपने घर में कोई भी काम हो और कैसा भी काम हो पूरी आज़ादी रहती है.
पराया माल, जी का जंजाल. किसी दूसरे का कोई कीमती सामान अपने घर में रखना बहुत झंझट का काम है. उसकी बहुत चौकीदारी करनी पड़ती है और यदि खो जाए तो बहुत लानत मलानत होती है.
पराया माल, पूंछ का बाल. दूसरे की सम्पत्ति को उतना ही तुच्छ समझना चाहिए जितना किसी पशु की पूंछ का बाल. संस्कृत साहित्य में भी ‘परद्रव्येषु लोष्टवत्’ समझने की सीख दी गई है.
पराया मूंड पसेरी सा. दूसरे के सर को पसेरी के बाट के बराबर समझना.
परिचय और मारपीट करने से ही होवे. कहावतों का सबसे सशक्त पक्ष होता है उन में छिपा हास्य. दूसरों से परिचय आगे बढ़ कर करने से ही होता है, इस में मारपीट भी करने से ही होती है यह जोड़ दिया गया है.
परिवर्तन संसार का नियम है. संसार में हर वस्तु परिवर्तन शील है, कुछ भी स्थायी नहीं है. इंग्लिश में कहावत है – Change is the law of nature.
परी गरज मन और है, सरी गरज मन और. गरज पड़ने पर आदमी का मन जैसा रहता है वैसा गरज पूरी होने पर वैसा नहीं रहता.
पर्दा रहे तो पुन्य, खुल जाए तो पाप. ऐसे दिखावटी पुण्यात्मा लोगों के लिए जो परदे के पीछे पाप करते हैं. (जैसे आजकल के बहुत से ढोंगी धर्मगुरु).
पल का चूका कोसों दूर. मौके पर जरा सी चूक हो जाने पर आदमी अपने लक्ष्य से बहुत दूर भटक सकता है. (जैसे आजकल वन वे ट्रैफिक में होता है, एक कट छूटा और मीलों का चक्कर).
पल पखवाड़ा, घड़ी महीना, चार घड़ी का साल, करजदार जब कल कहे तो ताको कौन हवाल. कर्जदार पैसा वापस करने की मियाद को टालता रहता है. वह एक पल कहता है तो पखवाड़ा निकाल देता है, एक घड़ी कह कर महीना बिता देता है और चार घड़ी कह कर साल निकाल देता है. अगर वह एक दिन कह रहा है तब तो न जाने कभी देगा भी या नहीं.
पलटनमारवा पलटन में ही रहत. धोखे से फ़ौज को मरवाने वाला देशद्रोही फ़ौज में ही रहता है. सेना जैसी महत्वपूर्ण संस्थाओं में सावधानी अति आवश्यक होती है.
पल्ले में रुपया हो तो जंगल में मंगल. जिसके पास धन है वह कहीं भी उत्सव मना सकता है.
पशु का सताना, निरा पाप कमाना. बेजुबान पशुओं को सताने से बहुत पाप लगता है.
पसु पच्छी हू जानिहैं अपनी अपनी पीर. अपनी अपनी पीड़ा को पशु पक्षी भी जानते हैं.
पहचाना चोर जान से मारे. कोई व्यक्ति यदि चोर या डाकू को पहचान ले तो चोर उसे जान से मार देता है. इसलिए यदि कभी चोर को पहचान भी लें तो जताना नहीं चाहिए.
पहने ओढ़े नारी, लीपे पोते घर. स्त्री पहन ओढ़ कर अच्छी लगती है और घर लीपने पोतेने के बाद.
पहलवानी पचाय की, रईसी बचाय की. पहलवान वही बन सकता है जो अच्छी खुराक खाए और उसे पचा ले, धनवान वही बन सकता है जो अपनी कमाई में से बचत करे.
पहला कसूर भगवान भी करें माफ़. पहला अपराध करने वाले यह कह कर सजा से बचने की कोशिश करते हैं.
पहला ताप तुरइया बसे, खीरा देखे खिलखिल हँसे, जब लिया फूट का नाँव, डंका बजा के घेरा गाँव. ज्वर का पहला आगमन तुरई के साथ होता है, खीरा देख कर वह बहुत प्रसन्न होता है और फूट का नाम लेते ही डंके की चोट गाँव घेर लेता है. लोक विश्वास है कि तुरई, खीरा और फूट के खाने से ज्वर फैलता है. ताप – बुखार.
पहला पानी भर जाए ताल, घाघ कहै अब परे अकाल. जब वर्षा के पहले पानी के बरसने पर ही ताल भर जाय तो समझो कि अब इस के बाद अकाल पड़ जायेगा.
पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में हो माया, तीजा सुख पतिव्रता नारी, चौथा सुख सुत आज्ञाकारी. किसी भी मनुष्य के लिए चार सुख सबसे बड़े माने गए हैं – पहला स्वस्थ शरीर, दूसरा सुख घर में धन संपदा, तीसरा सुख पतिव्रता पत्नी और चौथा सुख आज्ञाकारी पुत्र. इन के ऊपर तीन सुख और बताए गए हैं – पांचवां सुख राज सम्माना, छटवां सुख कुटुम्बी नाना, सातवाँ सुख धरम रति होई, तासे स्वर्ग धरनि पर होई.
पहली बहुरिया, दूसरी पतुरिया, तीसरी कुकुरिया. पहली पत्नी को लोग घर की बहू की तरह रखते हैं, दूसरी को वैश्या की तरह और तीसरी का हाल कुतिया जैसा होता है.
पहले अपना आगा ढंको, पीछे किसी को नसीहत करो. पहले अपने अंदर जो कमियाँ हों उन्हें छिपाओ या दूर करो, फिर किसी को उपदेश दो.
पहले अपनी आँख का मूसर तो निकालो, फिर दूसरे की आँख का तिनका निकालियो. पहले अपनी बड़ी विपत्ति से छुटकारा तो पाओ फिर दूसरे की छोटी मोटी विपत्ति दूर करने की सोचना.
पहले अपनी दाढ़ी की आग बुझाई जात. अपने ऊपर आई आफत से निबट कर तब दुनिया के बारे में सोचो.
पहले आत्मा, फिर परमात्मा. पहले जीविका का प्रबंध करो, फिर भगवान की भक्ति करना संभव हो पाएगी.
पहले आप पहले आप में गाड़ी छूटी (तकल्लुफ़ में है तकलीफ़ सरासर). औपचारिकता में काम बिगड़ जाना. सन्दर्भ कथा – दो शरीफ़ आदमी रेल का सफर करने के लिए स्टेशन पर पहुंचे और टिकट कटा लिए. रेल भी प्लेटफार्म पर आ पहुंची. एक ने दूसरे के प्रति शिष्टाचार दिखाने के लिए कहा, हज़रत सवार होइए. दूसरे ने कहा, नहीं, क़िबला पहले आप. पहले ने कहा, नहीं, नहीं, पहले आप बैठिए, तब मैं बैठूंगा. तब तक रेल छूट गई
पहले आप, फिर बाप. आजकल की संतानें अपना पेट भरने के बाद ही माँ बाप के विषय में सोचती हैं.
पहले आरसी में अपना मुँह तो देखो. कुछ भी इच्छा करने से पहले व्यक्ति को अपनी हैसियत समझ लेना चाहिए.
पहले का झगड़ा अच्छा, पीछे का झगड़ा बुरा. जो कुछ भी संशय या मतभेद हों उन्हें काम शुरू करने के पहले ही सुलझा लेना चाहिए.
पहले गस्से में मक्खी (पहले गस्से में बाल). किसी कार्य के आरंभ में ही कोई अनर्थ हो जाए तो. मूलत: यह संस्कृत की कहावत है – प्रथम ग्रासे मक्षिका पात.
पहले चारा भितर, फिर देवता पितर. इंसान पहले खाने की चिंता करता है उसके बाद उसे देवता और पितृ याद आते हैं. रूपान्तर – पाँच कौर भीतर, फिर देवता पीतर.
पहले चुम्मे गाल काटा. आरंभ में ही धोखा दे दिया. चुम्मा – चुम्बन.
पहले ढोर चराते थे अब कान काटते हैं. बहुत मामूली व्यक्ति यदि किसी महत्वपूर्ण और प्रभावी पद पर पहुँच जाए तो (जैसे कुछ क्षेत्रीय राजनीति करने वाले शातिर नेता).
पहले तो वह रीझ थी, अब क्यों ऐसी खीज. स्त्रियाँ अक्सर अपने पतियों से पूछती हैं कि पहले तुम्हें इतना प्रेम था कि तुम हर बात पर रीझ जाते थे, अब क्यों इतना खीजते हो.
पहले तोलो, पीछे बोलो. कोई बात बोलने से पहले उस पर मनन अवश्य कर लेना चाहिए.
पहले दही जमाय के पीछे कीन्ही गाय. दही जमाने का इंतजाम करने के बाद गाय पाल रहे हैं. बिना योजना के काम करना.
पहले नेग, पीछे गीत. विवाह आदि में जो लोग मंगल गीत आदि गाते हैं उन्हें विवाह के बाद नेग (रुपये, अनाज, कपड़े आदि) दिया जाता है. यदि कोई पहले नेग लेने की बात कहे तो यह उल्टी बात हुई.
पहले पहरे हर कोई जागे, दूजे पहरे भोगी, पहर तीसरे चोर जागे, चौथे पहर जोगी. रात्रि के चार प्रहर के बारे में बताया गया है, पहले प्रहर हर कोई जागता है, दूसरे प्रहर में भोगी लोग जाग कर भोग का आनंद उठाते हैं, तीसरे प्रहर सब गहरी नींद सोते हैं इसलिए चोर जाग कर चोरी करते हैं. चौथे प्रहर में योगी लोग जाग कर ध्यान और पूजन करते हैं.
पहले पहुंचे, मन भर खाए. दावत में जो पहले पहुँचता है उसे हमेशा लाभ होता है. इंग्लिश में कहते हैं -Early bird catches the worm. या First come first served.
पहले पिए जोगी, बीच में भोगी, पीछे रोगी. योगी लोग खाना खाने के पहले पानी पीते हैं और भोगी लोग बीच में. जो खाने के बाद पानी पीते हैं वे सदैव रोगी रहते हैं.
पहले पीये मूरख, फिर पीये तमखुवा, पीछे पीवे चिलमचट्ट. चिलम भरते समय पीनेवाले मूर्ख होता है, बीच में तम्बाकू के स्वाद को जानने वाला पीता है, अंत में जब केवल राख बचती है तो चिलमचट्ट सुट्टा लगाता है.
पहले पेट पूजा, फिर काम दूजा. बिना पेट भरे कोई काम ठीक से नहीं हो सकता.
पहले बो, पहले काट. खेती में जो पहले बोता है वह पहले फसल भी काटता है. पहले काम करने वाला हमेशा लाभ में रहता है.
पहले भात खवाय के पीछे मारी लात. पहले दिखावटी प्रेम दिखा के फिर अपमान करना.
पहले भाव, पीछे भोजन. मान सम्मान हो तभी भोजन करना चाहिए.
पहले भोजन फिर स्नान, फिर टट्टी फिर सालिगराम. कायदे से हम पहले शौचादि से निवृत्त हो कर स्नान करते हैं, फिर भगवान की पूजा करते हैं और बाद में भोजन करते हैं. कहावत में आजकल की पीढ़ियों का जिक्र है जो सब काम उलटे करती हैं.
पहले मनना, फिर गनना. विवाह के लिए वर कन्या मानें तभी जन्मपत्री, ज्योतिष गणना आदि करना चाहिए.
पहले मार पीछे संवार. मौका मिलने पर पहले ठुकाई कर दो और बाद में बात को संभाल लो.
पहले लिख ले पीछे दे, भूल पड़े कागज़ सूँ ले. किसी को रुपया पैसा या कोई चीज़ उधार देनी हो तो पहले लिख कर रखो उसके बाद दो. कभी भूल पड़े (आप स्वयं भूल जाओ या लेने वाला आनाकानी करे) तो यही लिखा हुआ काम आता है.
पहले सोच विचार के पीछे कीजे काज. कोई भी कार्य करने से पहले लाभ हानि का आकलन कर लेना चाहिए.
पहलो मूरख फांदे कुआँ, दूजो मूरख खेले जुआ, तीजो मूरख बहन घर भाई, चौथो मूरख घर जमाई. महा मूर्खों के चार प्रकार बताए गए हैं – पहला वह जो कुआँ फांदे (जरा सी चूक हुई और कुएँ में गया), दूसरा वह जो जुआ खेले (बर्बादी का पूरा प्रबंध), तीसरा वह जो विवाहित बहन के घर स्थायी रूप से रहे (उसकी कोई इज्ज़त नहीं होती) और चौथा वह जो घर जमाई बन कर ससुराल में रहे (घरेलू नौकर से भी बुरा हाल होता है).
पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी पहाड़ के काम नहीं आते. पहाड़ का पानी नीचे को बह जाता है और पहाड़ी युवक काम की तलाश में मैदानी इलाकों में चले जाते हैं.
पहाड़ दूर से ही सुहाने लगते हैं. जो लोग पहाड़ पर नहीं रहते उन्हें पहाड़ों पर जाना और घूमना बहुत अच्छा लगता है, पर जो लोग वहाँ रहते हैं उन्हें मालूम है कि पहाड़ का जीवन कितना कठिन है.
पहाड़ भले ही टले फ़क़ीर न टले. भिखारी आसानी से नहीं हटता, कुछ ले कर ही टलता है.
पहाड़ों से छाया नहीं होती. कहने को पहाड़ इतने बड़े होते हैं पर आप चाहें कि उन की छाया में खड़े हो जाएँ तो यह नहीं हो सकता. जो बड़ा आदमी किसी के काम न आता हो उस पर व्यंग्य.
पहिला गाहक, परमेसुर बराबर. दुकानदार प्रत्येक दिन के अपने पहले ग्राहक को बहुत शुभ मानते है.
पहिले जागे पहिले सोवे, जो वह चाहे वाही होवे. जो पहले सोता है और पहले जागता है वह सदैव सफल होता है. इंग्लिश में कहावत है – Early to bed and early to rise, makes a man healthy wealthy and wise.
पहिले दिन पहुना, दूसरे दिन ठेहुना, तीसरे दिन केहुना. इंग्लिश में कहावत है –Fish and guest, smell in three days.
पहिले भात, पीछे बात. पहले पेट भरेगा तभी कुछ बात समझ में आएगी.
पाँच पंच मिल कीजे काजा, हारे-जीते कुछ नहीं लाजा. बहुत से लोग मिल कर कोई काम करते हैं तो हानि लाभ की जिम्मेदारी किसी की नहीं होती.
पाँच पहर धंधे गया, तीन पहर गया सोय, एक पहर हरिनाम बिन, मुक्ति कैसे होय. दिन रात मिला कर आठ पहर (प्रहर) होते हैं. इन में से पांच पहर धंधे पानी में लगा दिए और तीन पहर सो गया. कुछ समय निकाल कर एक पहर तो अच्छे कामों में लगा, वरना मुक्ति कैसे होगी.
पाँच भाई पाँच ठौर, मौका पड़े तो एक ठौर. आजकल के युग में सब भाइयों का एक ही घर में रहना तो संभव नहीं है पर समझदारी इस में है कि वे अलग अलग रहते हुए आवश्यकता होने पर एकजुट हो जाएं.
पाँच महीने ब्याह के बीते, पेट कहाँ से लाई. गर्भवती स्त्रियों का पेट छह माह के गर्भ के बाद बाहर निकला दिखाई देता है. किसी स्त्री के विवाह को पाँच महीने ही हुए हैं और उस का पेट निकला दिखाई दे रहा है तो अन्य स्त्रियाँ उस से पूछ रही हैं. किसी को नौकरी करते हुए साल दो साल ही हुआ हो और वह बहुत पैसा इकठ्ठा कर ले तो मजाक में यह कहावत कही जा सकती है.
पाँच साल की बाला का बेटा बारह साल का. असम्भव और हास्यास्पद बात.
पाँचे मित्र, पचासे ठाकुर, सौ में जमाई, एक में चाकर. पाँच रुपये में मित्र, पचास में जमीदार, सौ में दामाद, और एक रुपये में नौकर को संतुष्ट किया जा सकता है.
पाँचों उँगलियों से पाहुंचा भारी. एकता में शक्ति है.
पाँचों उंगलियाँ एक सी नहीं होतीं. किसी घर में या समाज में सभी व्यक्ति एक से नहीं होते.
पाँचों पांडव छठे नारायण. 1. जो समूह भगवान् की प्रेरणा से कार्य करे. 2. व्यंग्य में – ये पांच पांडव क्या कम थे जो इन के गुरु घंटाल छठे नारायण और आ गए.
पांच कोस प्यादा रुके, दस कोस असवार, या तो नार कुभार्या, या नामर्द भतार. कहीं बाहर से घर लौट कर आने वाला व्यक्ति घर पहुँचने के लिए बहुत उतावला होता है. लेकिन अगर पैदल चल कर घर लौटने वाला व्यक्ति (प्यादा) शाम होने के कारण घर से पांच कोस पहले ही रुक जाए, और घोड़े पर सवार हो कर आने वाला यदि दस कोस पहले रुक जाए तो इसका अर्थ यह है कि या तो पत्नी में या पति में कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है.
पांच में तीन उठाऊं और दो में हिस्सा लूँ. कोई व्यक्ति हिस्से बांटे में दबंगई कर के ज्यादा हिस्सा हड़पना चाहता हो तो यह कहावत कही जाती है.
पांच रुपया शंकर और पच्चीस रूपये नंदी को. उलटी बात. कोई बड़े अफसर को कम रिश्वत दे और उसके मातहत को बहुत अधिक तो यह कहावत कही जाएगी.
पांच वर्ष लौं लाड़िये, दस लौं ताड़न देय, सुत को सोलह साल में, मित्र सरिस गिन लेय. लाड़िये–लाड़ प्यार करिये, ताड़न–प्रताड़ना, सरिस–तरह, गनि लेय–गिन लीजिये. बच्चे को पांच वर्ष तक खूब लाड़ करना चाहिए, पांच से दस वर्ष के बीच उसे मार-पीट कर सीख देनी चाहिए, सोलह साल के लड़के से मित्रवत् व्यवहार करना चाहिये.
पांच शनीचर, पांच रबि, पांच मंगल जो होय, छत्र टूटि धरनी परै, अन्नौ मंहगा होय. यदि एक माह में पांच इतवार, पांच शनि, व पांच मंगल पड़ें तो समझो कि राजवंश का अशुभ होगा और अनाज बेहद महंगा. (भड्डरी)
पांचे आम, पचीसे महुवा, तीस बरस पर इमली. आम का पेड़ पाँच वर्ष पर, महुआ पच्चीस वर्ष पर और इमली तीस वर्ष पर फल देती है.
पांचो उँगलियाँ घी में. अत्यधिक लाभ की स्थिति. घी के डब्बे में से कम घी निकालने के लिए एक उंगली से घी निकाला जाता है. अगर कोई पाँचों उंगलियाँ डाल कर घी निकाल रहा हो तो इसका मतलब हुआ कि वह बहुत सम्पन्न है. किसी की सम्पन्नता देख कर कोई व्यक्ति ईर्ष्यावश उस से कहता है कि भई तुम्हारी तो पाँचों उँगलियाँ घी में हैं, तो वह जवाब में कहता है – हाँ भई पाँचों उँगलियाँ घी में, सर कढ़ाई में और पैर चूल्हे में हैं (क्योंकि कि उसे धन कमाने के लिए बहुत कष्ट उठाने पड़ते हैं).
पांड़े के घर की बिल्ली भी भगतिन. 1. घर के संस्कारों का असर सभी सदस्यों पर पड़ता है. पंडित जी के घर मांस मछली नहीं मिलता इसलिए बिल्ली दूध रोटी खाती है. 2. कपटी पंडित और उसके धूर्त चेलों पर व्यंग्य.
पांडे जी पछताएंगे, वोई चने की खाएंगे (सूखे चने चबाएंगे). कहावत इस आशय में कही जाती है कि शुरू में आप कितने भी नखरे करें अंत में मजबूर हो कर आप को यही काम करना पड़ेगा.
पांड़े मरें जान से, पंडाइन मथें मट्ठा. पांडे जी तो बेहद तकलीफ में हैं और पड़ाइन घर के काम काज में व्यस्त हैं. कुशल गृहिणी को सभी कामों में संतुलन बना कर चलना चाहिए.
पांत में दो भांत कैसी. भोजन करने के लिए पंगत बैठी है तो दो तरह की पंगत क्यों बनाई गई हैं? ऊँच नीच और जात पांत का विरोध करने के लिए.
पांत, कचहरी, रेल में सबसे पहले जाए, जो न माने बात यह सो पाछे पछताए. पांत – पंगत (भोज). खाने की दावत, कचहरी के काम और रेल में चढ़ने के लिए सबसे पहले जाना चाहिए.
पांव में भौंरी है. ऐसे आदमी के लिए कहते हैं जो किसी एक स्थान पर जम कर न बैठ सके.
पांव में सनीचर है. जो व्यक्ति जहाँ जाए वहाँ काम बिगड़ जाए, उसके लिए.
पांवों में क्या मेंहदी रचाये हो. कहीं आने जाने में असमर्थता व्यक्त करने पर.
पाऊँ तो रस लाऊँ, नाहीं तो घर-घर आगी लगाऊँ. फलां चीज़ मुझे मिल जाएगी तो आपकी तारीफों के पुल बांधूगा, नहीं मिलेगी तो घर घर आपकी बुराई करता घूमूँगा.
पाक रह, बेबाक रह. पाप से दूर रह कर पवित्र मन से काम कीजिए तो आप निडर हो कर काम कर सकते हैं.
पागल और सांड के लिए रास्ता छोड़ देना चाहिए. कहावत के द्वारा यह सीख दी गई है कि पागल और सांड से नहीं उलझना चाहिए.
पादें कम कांखें ज्यादा (हगें कम, कांखें ज्यादा). जो लोग काम कम करते हैं शोर ज्यादा मचाते हैं. कांखना – जोर लगाना.
पान पीक सोहे अधर, काजर नैनन जोग. पान की पीक होठों पर ही अच्छी लगती है और काजल आँखों में ही. हर वस्तु अपनी जगह पर ही अच्छी लगती है.
पान सड़ा क्यों, घोड़ा अड़ा क्यों, फेरा न था. (यह अमीर खुसरो की एक विशेष प्रकार की पहेली नुमा कहावत है जिसमें दो प्रश्नों का एक ही उत्तर होता है). पान को लम्बे समय तक रखना हो तो उसे बार बार उलट पलट कर रखना होता है. इसे पान को फेरना कहते हैं. घोड़े की थकान दूर करने के लिए मिटटी का बना एक खुरदुरा खरहरा घोड़े के ऊपर फेरा जाता है, इससे घोड़े को बड़ा आराम मिलता है.
पान सड़े, घोड़ो अड़े, विद्या बीसर जाए, रोटी जले अंगार पर, कहु चेला किन दाय, गुरु जी फेरा न था. ऊपर वाली कहावत में दो बातें और जोड़ दी गई हैं – विद्या क्यों बिसरी (भूली), क्योंकि फेरी नहीं थी (दोबारा नहीं पढ़ी) और रोटी क्यों जली. क्योंकि एक तरफ सिकने के बाद फेरी (पलटी) नहीं थी.
पानी उतर गया. इज्जत – आबरू चली गयी.
पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात, देखत ही छिप जाएगा, ज्यों तारा परभात. मनुष्य देह पानी के बुलबुले के समान क्षण भंगुर है.
पानी गरम हो, तो भी आग बुझाए. बहुत अधिक क्रोध करने वाले को कम क्रोध करने वाला शांत कर सकता है.
पानी था सो निकल गया, अब क्या बांधे पाल. वर्षा के पानी को इकट्ठा करने के लिए पाल बांधते हैं. पानी बह जाने के बाद पाल बाँधने से कोई लाभ नहीं होगा. अवसर चूक जाने के बाद प्रयास क्यों कर रहे हो.
पानी पी कर क्या जात पूछना (पानी पी घर पूछनो नाही भलो विचार). अपने स्वार्थ के लिए कुछ भी करना और बाद में भला बुरा विचारना. पहले के जमाने में लोग छुआछूत को बहुत मानते थे. तब उच्च जाति के लोग नीची जाति वाले के हाथ का छुआ हुआ पानी नहीं पीते थे. एक महात्मा जी एक बार प्यास से मर रहे थे, किसी ने उन्हें पानी दिया जो उन्होंने तुरन्त गटागट पी लिया. पानी पी कर पूछते हैं भैया कौन जात हो?
पानी पीकर मूत तोले. बहुत अधिक स्यानपन दिखानेवाले के लिए. वैसे गुर्दे के मरीज के लिए यह जरूरी होता है. गुर्दे की बीमारी में डॉक्टर लोग यह सलाह देते है कि आपको जितना मूत्र हो रहा हो उतना ही पानी पीना है.
पानी पीजे, चार महीने डाल का, चार महीने पाल का, चार महीने ताल का. डाल का और पाल का ये शब्द आम तौर पर फलों के लिए प्रयोग करते हैं. डाल का फल अर्थात तुरंत का तोड़ा हुआ, पाल का मतलब रख कर पकाया हुआ. पानी के लिए कहा गया है कि चैत, बैशाख, जेठ और अषाढ़ घड़े का पानी पीजिए (पाल का). सावन, भादों, क्वार, कार्तिक नल का पानी पीजिए (डाल का) और बाकी चार महीने कुएँ या तालाब का पानी पीजिए (ताल का).
पानी पीये छानकर और जीव मारे जानकर. ढोंगी महात्माओं के लिए.
पानी बरसे आधे पूस, आधा दाना, आधा फूस. जब आधे पूस में पानी बरसता है तो अनाज में आधा अन्न व आधा भूसा होता है.
पानी बाढ़े नाव में, घर में बाढ़े दाम, दोनों हाथ उलीचिए, यही सयानो काम. यदि आप नाव में जा रहे हैं और उस में पानी भरने लगे तो तुरन्त दोनों हाथों से उसे (बाहर फेंकना) आरम्भ कर दीजिए (वरना नाव डूब जाएगी), इसी प्रकार यदि घर में आवश्यकता से अधिक धन इकट्ठा होने लगे तो उसे दान करना शुरू कर दीजिए.
पानी बिन जिन्दगानी कौन काम की. मान-सम्मान के बिना जीवन किस काम का.
पानी मथे घी नहीं निकलता. बिना उचित साधनों के कोई कार्य सिद्ध नहीं होता. घी दही को मथने से निकलता है, पानी को मथने से नहीं.
पानी में आग लगाय लुगाई. स्त्रियाँ कहीं भी झगड़ा करा सकती हैं.
पानी में घुस कर कोई सूखा नहीं निकल सकता. इस संसार रूपी भवसागर में कोई व्यक्ति बिल्कुल निश्छल, निष्कपट, निष्पाप हो कर नहीं रह सकता.
पानी में पखान, भीगे पर छीजे नहीं, मूरख के आगे ज्ञान, रीझे पर बूझे नही. पखान – पाषाण (पत्थर). पानी में पत्थर भीगता तो है पर गलता नही है. मूर्ख के आगे ज्ञान की बात करोगे तो वह खुश तो होगा, पर समझेगा कुछ नही.
पानी में पादोगे तो बुलबुले तो उठेंगे ही. कोई गलत काम कितना भी छिप कर करो तो भी औरों को दिखाई दे जाएगा. (भाषा में थोड़ी अभद्रता है पर बात सही है).
पानी में पैर नहीं, बड़ी मछली मेरी है. किसी कार्य में योगदान दिए बिना हिस्सा माँगना, वह भी औरों से अधिक.
पानी में मछली के नौ नौ हिस्सा. मछली अभी पकड़ी भी नहीं है (अभी पानी में ही है) और उस के हिस्से बांटे किए जा रहे हैं. काम पूरा होने से पहले ही लाभ के लिए झगड़ना.
पानी में मीन पियासी, मोहे देखत आवे हांसी. सब प्रकार की सुविधाओं के बीच रहते हुए भी मनुष्य की लालसा कम नहीं होती.
पानी में हगा ऊपर आता है. कोई गलत काम छिप कर किया जाए तब भी अंततः सामने आ जाता है. भोजपुरी कहावत – भइंस पानी में हगी त उतरइबे करी.
पानी से पतला क्या. किसी ढीले चरित्र वाले का मजाक उड़ाने के लिए.
पाप ऊंचे चढ़ के चिल्लात (पाप पहाड़ पे चढ़ के पुकारे). पापी का पाप छिपाने से नहीं छिपता.
पाप का घड़ा कभी न कभी फूटता ही है (पाप का घड़ा डूब कर रहता है) (पाप का घड़ा भर कर डूबता है). कोई अत्याचारी, अनाचारी कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो उसका अंत अवश्य होता है.
पाप का धन, अकारथ जाए. पाप की कमाई अंततः व्यर्थ ही जाती है.
पाप का बाप लोभ. लालच ही इंसान को पाप करने के लिए प्रेरित करता है. सन्दर्भ कथा – एक व्यक्ति अपनी सारी शिक्षा संपन्न करके घर आया. माता पिता ने आनन फानन में उसकी शादी करा दी. उसकी पत्नी ने उससे एक प्रश्न पूछा कि बताओ कि पाप का बाप कौन है. तो वह विद्वान व्यक्ति हैरानी में पड़ गया. कहने लगा कि मैंने अपने सारे अध्ययन में पाप के बारे में तो पढ़ा है पर ये पाप का बाप कौन है यह नहीं जाना. पाप के बाप को जानने के लिए वह अपने गुरु जी से मिलने चल दिया.
चलते चलते रास्ते में एक वैश्या का घर पड़ा. उस वेश्या ने यूं ही कहा राम राम महाशय! कहां जा रहे हैं आप? वह बोला, अपने गुरु से यह पूछने जा रहा हूँ कि पाप का बाप कौन है. वैश्या बोली, यह तो मैं आपको बता सकती हूँ. वह व्यक्ति बोला, यह तो बड़ा अच्छा होगा, कृपया जल्दी बताइए. वैश्या बोली बता तो दूंगी लेकिन आपको मेरे यहाँ भोजन करना पड़ेगा. वह व्यक्ति कहने लगा, नहीं नहीं, वैश्या का भोजन खाने से मुझे पाप लगेगा. रहने दो मैं अपने गुरुजी से ही पूछ लूँगा. वैश्या ने कहा, मेरे यहाँ खाना खाओगे तो मैं तुम्हें एक सोने का सिक्का भी दूंगी.
सिक्का देख कर उस व्यक्ति के मन में लोभ आ गया और वह वैश्या के यहाँ खाना खाने के लिए तैयार हो गया. फिर जब वैश्या खाना बना कर लाई तो उसने कहा कि अगर आपको ऐतराज न हो तो मैं आपको अपने हाथों से ही खाना खिला दूं. उस व्यक्ति ने फिर ऐतराज जताया तो फिर से वैश्या ने फिर उसे सोने का सिक्का दिया. अब वह व्यक्ति उसके हाथ से खाना खाने को भी तैयार हो गया. वैश्या ने भोजन का एक निवाला विद्वान के मुख की तरफ बढ़ाया और उस के मुंह खोलते ही उसके गाल पर जोरदार एक थप्पड़ जड़ दिया और बोली, यह लोभ ही है पाप का बाप
पाप की कमाई, कुत्ते-बिल्लियों ने खाई. पाप कर के कमाया हुआ धन अंतत: बर्बाद ही हो जाता है.
पाप छिपाए न छिपे, जस लहसुन की बास. जैसे लहसुन की गंध छिपाए नहीं छिपती वैसे ही पाप भी नहीं छिपता.
पाप डुबोवे धरम तिरावे, धरमी कभी नहीं दुख पावे. पाप मनुष्य को डुबोता है जबकि धर्म मनुष्य को डूबने से बचाता है. धर्म पर चलने वाला अंततः सुख पाता अवश्य है.
पाप मूल निंदा. किसी की निंदा करना पाप की जड़ है.
पाप-पुन्न का कोई भागी नहिं होत. पाप-पुण्य का फल अपने ही को मिलता है.
पापी का मन शंका में. पाप करने वाला मनुष्य हमेशा चिन्ता में रहता है क्योंकि वह स्वयं भी जानता है कि यह गलत काम है.
पापी की नाव, भर कर डूबे. पाप कर्म द्वारा जो सम्पत्ति कमाई जाती है वह अंततः डूब जाती है.
पापी के मन में पाप ही बसे. अर्थ स्पष्ट है.
पापी को मारने को पाप महाबली. पापी अंततः अपने पापों के कारण ही मारा जाता है.
पापी को माल अकारथ जाए, दंड भरे या चोर लै जाए. पाप की कमाई व्यर्थ ही जाती है. दंड भरने में जाती है या चोर ले जाते हैं.
पापी पेट सब कराए. पेट के लिए उचित अनुचित सब करना पड़ता है.
पापी सहाय पापी को. एक पापी दूसरे पापी की सहायता करता है (जैसे आजकल के भ्रष्ट नेता).
पार उतरना चाहे, तो केवट से मिल राहे. कोई काम करना हो तो उस से संबंधित व्यक्ति को पटाओ.
पार उतरूँ तो बकरा दूँ (सकरें देबी सुमिरों तोय, मुकते खबर बिसर गई मोय). मुसीबत में पड़ने पर इष्टदेव को भेंट देने की मनौती मानना और मुसीबत दूर होने पर मुकर जाना. सन्दर्भ कथा – जब कोई मुसीबत के समय तो देवी देवता से मन्नत मांगे, पर छुटकारा पाने पर मुकरजाए. कोई मियाँ नाव में बैठकर नदी पार कर रहा था. बीच में पहुंचा, तो बड़े जोर का तूफ़ान आया. उसने किसी पीर की मिन्नत मानी कि यदि सकुशल पार पहुंच जाऊं तो बकरा चढ़ाऊंगा. तूफान जब बंद हुआ, तो उसे बकरे का मोह हुआ और उसने कहा कि अगर बकरा नहीं चढ़ा सका तो मुर्गी अवश्य चढ़ाऊंगा. अंत में जब वह राजी-खुशी पार पहुंच गया, तो मुर्गी के लिए भी उसका मन कलपने लगा. अपने वादे को पूरा करने के लिए उसने कपड़ों में से एक चीलर निकाल कर मार डाला और बोला, जान के बदले में मैंने जान तो दे ही दी.
पार कहें सो आर है आर कहें सो पार, पकड़ किनारा बैठ रह यही पार यहि आर. नदी के किनारे बैठा आदमी अपने किनारे को आर कहता है और दूसरे किनारे को पार. दूसरी तरफ बैठा बंदा उस किनारे को आर कहता है और इस किनारे को पार. मोहजाल में मत उलझो. एक किनारा पकड़ कर बैठ जाओ, यही आर है और यही पार.
पारसनाथ से चक्की भली जो आटा देवे पीस, कूढ़ नर से मुर्गी भली जो अंडा देवे बीस. पारसनाथ – जैन धर्मावलम्बियों का तीर्थस्थल पारसनाथ पर्वत जो झारखंड में स्थित है. कहावत में कहा गया है कि किसी पवित्र पर्वत के मुकाबले साधारण चक्की अधिक अच्छी है जो आटा पीस देती है. इसी प्रकार किसी बेकार के मनुष्य के मुकाबले मुरगी अधिक अच्छी है जो अंडे देती है. जैन धर्म का मजाक उड़ाने के लिए किसी ने ऐसा कहा है.
पाव की हंडिया में सेर नहीं समाता. छोटे आदमी की बुद्धि में बड़ी बात नहीं समा सकती. छोटी मानसिकता वाले व्यक्ति से किसी बड़े काम की आशा नहीं की जा सकती.
पाव भरी की देवी और नौ पाव पूजा. देवी छोटी सी हैं और पूजा की सामग्री बहुत सारी है. किसी अपात्र का बहुत अधिक सत्कार करने पर. रूपान्तर – पाव भर के बाबा जी, सवा सेर को संख.
पावक, बैरी, रोग, रिन सेस राखिए नाहिं, जे थोड़े हूँ बढ़त पुनि बड़े जतन सों जाहिं. (बुन्देलखंडी कहावत) आग, शत्रु और ऋण, इनको बिल्कुल समाप्त कर के छोड़ना चाहिए. ये थोड़े से भी बच जाएँ तो पुनः विकराल रूप धारण कर लेते हैं और फिर बड़ी कठिनाई से जाते हैं. रूपान्तर – पावक, बैरी, रोग, रिस, इन्हें न बढ़ने देय.
पावस देखि रहीम मन, कोइल साधे मौन, अब दादुर बक्ता भए, हमको पूछत कौन. वर्षा ऋतु में कोयल चुप हो जाती है. वह सोचती है कि अब तो मेंढक बोल रहे हैं, उसे कौन पूछेगा. मूर्खों की भीड़ में कोई बुद्धिमान व्यक्ति बोलना पसंद नहीं करता.
पास का कुत्ता न दूर का भाई. दूर रहने वाले भाई के मुकाबले पास रहने वाला कुत्ता अधिक मददगार होता है.
पास की ससुरार, रात दिना की रार. ससुराल अगर बहुत पास में हो तो रोज कोई न कोई लफड़ा होता है, इसलिए ससुराल के पास नहीं रहना चाहिए.
पास जल सो जल, बांह बल सो बल. जो पानी हमारे आसपास उपलब्ध हो वही हमारे काम का है, जो बल हमारी बाहों में है वही हमारे काम का है.
पास रहे तो मन को न भाए, चला जाए तो मन पछताए. कोई वस्तु जब सहज उपलब्ध होती है तब हम उस का महत्व नहीं समझते. जब वह हाथ से निकल जाती है तो मन पछताता है.
पासा पड़े अनाड़ी जीते. भाग्य साथ दे तो अनाड़ी व्यक्ति भी कामयाब हो जाता है.
पासा पड़े सो दांव, राजा करे सो न्याव. पासा जो भी पड़ा वही आपका दांव माना जाएगा, उसे आप बदल नहीं सकते. राजा जो कह दे वही न्याय माना जाएगा, उसे कोई बदल नहीं सकता.
पासी, चरवाहे और गाड़ीवान की मेहरारू रांड़े होंहि. पासी को ताड़ के पेड़ पर चढ़ना होता है जिस से गिर के जान जाने का खतरा है, चरवाहा जंगली जानवरों का शिकार बन सकता है और गाड़ीवान चोर डाकुओं का. इन कारणों से इनकी पत्नियों के विधवा होने का डर रहता है. इसके अलावा इन को बहुधा घर से बाहर ही रहना होता है.
पासों का सबसे अच्छा फेंकना है कि उनको फेंक ही दो. चौपड़ का खेल बर्बादी का पूरा इंतजाम है. उसमें पासे फेंक कर चाल चली जाती है. सयाने लोगों का कहना है पासे फेंकना है तो सबसे अच्छी चाल है बाहर फेंक दो.
पाहन में कौ मारबो, चोखा तीर नसाय. पत्थर में मार कर अच्छा ख़ासा तीर क्यों खराब कर रहे हो. पाहन – पाषाण, पत्थर. चोखा – अच्छा, नसाय – नष्ट कर रहे हो. कोई आदमी निष्ठुर व्यक्ति से सहायता प्राप्त करने की कोशिश में अपना समय नष्ट करे तो (या कोई व्यक्ति किसी मूर्ख को समझाने की कोशिश कर रहा हो तो).
पाहुना पहले दिन सोना, दूसरे दिन चांदी और तीसरे दिन कचरा. अतिथि का आना शुरू में अच्छा लगता है पर बहुत जल्दी वह बोझ लगने लगता है (इसलिए किसी के घर अधिक दिन नहीं ठहरना चाहिए).
पाहुने और मौत का भरोसा नहीं होता. अतिथि और मृत्यु कब आ जाएँ किसी को नहीं पता होता.
पाहुने जीमते जाते हैं, रांडें रोती जाती हैं. वैसे तो रांड शब्द का अर्थ विधवा स्त्री होता है, पर कहावतों में कई स्थानों पर इस का प्रयोग धूर्त स्त्री के अर्थ में करते हैं. कहीं कोई शुभ कार्य होता देख कर धूर्त लोगों को कष्ट हो रहा हो तो यह कहावत कही जाती है.
पाहुनों से वंश नहीं चलता. किसी के घर में मेहमानों का जमघट लगा रहता हो पर उसकी अपनी कोई सन्तान न हो तो उस का वंश नहीं चल सकता. कोई व्यक्ति दुनियादारी में लगा रहे और अपने परिवार पर ध्यान न दे उसके लिए.
पिंड में सो ब्रह्माण्ड में. मनुष्य का शरीर जिन पांच तत्वों से बना है वही ब्रह्मांड में व्याप्त हैं.
पिए भैंस का दूध, रहे ऊत का ऊत. भैंस का दूध पीने से अक्ल मोटी हो जाती है (गाय का दूध पीने से बुद्धि तीव्र होती है).
पिए रुधिर पय न पिए, लगी पयोधर जोंक. जोंक यदि स्तन में लग जाए तो भी रक्त ही पीती है दूध नहीं. दुष्ट व्यक्ति को अच्छे परिवेश में रखो तब भी दुष्टता ही करता है.
पिछली रोटी खाय, पिछली मति पाय. ऐसा विश्वास है कि आखिरी रोटी खाने से बुद्धि कम हो जाती है.
पिछले गाँवों पिटकर आये, अगले गाँव में सिद्ध. धूर्त साधुओं के लिए.
पिटा हुआ और जीमा हुआ भूलता नहीं. किसी के घर से पिट के आए हों तो नहीं भूल सकते और कहीं भरपेट स्वादिष्ट भोजन मिला हो तो नहीं भूल सकते.
पितरन को पानी बामन को दान, आए दरवाजे को सदा रक्खें माने. पितरों को पानी देना, ब्राह्मण को दान देना और अतिथि को सम्मान देना सब का कर्तव्य है.
पितृ मुखी कन्या सुखी. जिस कन्या का चेहरा पिता से मिलता है वह सुखी रहती है.
पिय वियोग सम दुख जग नाहीं. किसी भी स्त्री के लिए पति के वियोग जैसा कोई दुख नहीं है.
पिया आगे राज, पीछे चलनी न छाज. विधवा स्त्री का कथन, पति के सामने तो मैंने राज किया और अब चलनी और सूप जैसी छोटी छोटी चीजों के लिए मुहताज हूँ.
पिया गए परदेश, अब डर काहे का. पति बाहर गए हों तो स्त्रियाँ निरंकुश हो जाती हैं. यह पुराने जमाने की कहावत है, अब इसका उल्टा है. स्त्रियाँ मैके जाती हैं तो पति निरंकुश हो जाते हैं.
पिया बिना कैसा त्यौहार (सजन बिन ईद कैसी). पति के बिना कोई त्यौहार अच्छा नहीं लगता.
पिया मोरा आंधर (अंधा), मैं का पर करूं सिंगार. मेरा पति अंधा है मैं श्रृंगार किस के लिए करूँ. जहाँ आपकी योग्यता का कोई कद्रदान न हो वहाँ योग्यता किस को दिखाएँ.
पिसनहारी को पूत, जो चबा ले सो लाभ (पिसनहारी के पूत को चना लाभ ही बहुत है). पिसनहारी – अनाज पीसने वाली. पिसनहारी वहाँ से कुछ ले तो नहीं जा सकती. उस का लड़का वहाँ बैठ कर जितना चबा ले वही उसके लिए बहुत बड़ा लाभ है. छोटे आदमी के लिए छोटे छोटे लाभ भी बहुत मायने रखते हैं.
पीठ की मार मारे, पेट की न मारे. किसी ने गलती की हो तो उस को दंड कितना भी दे दो पर उस की रोजी रोटी मत छीनो.
पीठ देख कर ही नजर लगे. 1. अत्यंत सुंदर व्यक्ति. 2. अत्यंत भद्दे व्यक्ति पर व्यंग्य.
पीठ पर मैल जम ही जाती है. शाब्दिक अर्थ तो स्पष्ट है, भावार्थ यह है कि जो स्थान हमारी देख रेख और कार्य क्षेत्र से दूर हो वहाँ गंदगी इकट्ठी हो जाती है.
पीठ पीछे की छींक, संका ते मत झींक. यदि आपकी पीठ के पीछे कोई छींके तो यह अपशकुन नहीं माना जाता.
पीठ पीछे परजा, राजा को गरियावत. कोई कितना शक्तिशाली क्यों न हो, पीठ पीछे उसे भी गालियाँ मिलती हैं.
पीठ में लट्ठ भवानी करें, सबरो घर पूजा को चले. आपत्ति आने पर ही लोग भगवान का स्मरण करते हैं.
पीतल की अँगूठी में सोने का टांका, माँ छिनाल पूत बांका. किसी चरित्रहीन स्त्री का पुत्र बहुत बना ठना घूम रहा हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.
पीतल, कांसा, लौह में पड़े जंग चढ़ जाए, जलधर आवे दौड़ता, इस में संसै नाय. अगर घर में पड़े पीतल, कांसा या लोहे में जंग लग जाए तो इस का अर्थ है कि वर्षा होने वाली है. (जलधर – बादल)
पीताम्बर ओछा भला, साबत भला न टाट, और जात शत्रु भली, मित्र भला न जाट. पीला कपड़ा घटिया वाला हो तो भी टाट से अच्छा है. दूसरी जाति के दुश्मन भी जाट दोस्त से बेहतर हैं. (जाट से दोस्ती खतरनाक है).
पीपर तले हाँ करे, कीकर तले नट जाए. पल में बात बदलने वाला आदमी. अभी हाँ करे और अभी मुकर जाए.
पीपर पात सरिस मन डोला. पीपर – पीपल, पात – पत्ता, सरिस – तरह. मन की चंचल स्थिति के प्रति कहावत.
पीपल काटे, पाल बिनासे, भगवा भेस सतावे, काया गढ़ी में दया न ब्यापे, जड़ मूल से जावे. पाल–खेत की मेंड़ जो वर्षा का पानी रोकने को बनाई जाती है, जो पीपल को काटता है, मेंड़ काटता है, साधुओं को सताता है और जिसके मन में दया नहीं है उसका सर्वनाश हो जाता है. हिन्दुओं में पीपल के पेड़ को काटना निषिद्ध मानते हैं.
पीपल पूजन मैं गई अपने कुल की लाज, पीपल पूजत हरि मिले एक पंथ दो काज. कृष्ण भक्त गोपी का कथन. एक काम करने से दो लाभ होना. केवल ‘एक पंथ दो काज’ को भी कहावत की तरह बोला जाता है.
पीर को न शहीद को, पहले नकटे देव को. योग्य और पूज्य लोगों से पहले ओछे ओर बेशर्म आदमी को पूछना चाहिए, क्योंकि वह रायता फैला सकता है.
पीर जी की सगाई, मीर जी के यहाँ (पीर की सगाई पीर के घर). दोस्ती, दुश्मनी, व्यापार, विवाह इत्यादि अपनी बराबरी वालों में ही करना चाहिए
पीला पीला सब सोना नहीं होता. ऊपरी दिखावे से जो चीज़ उत्तम प्रतीत होती है वह जरूरी नहीं कि वास्तव में उत्तम हो. इंग्लिश में कहते हैं – All that glitters is not gold.
पीसने को चोकर, गाने को सीता हरन. दिखावट तो बहुत, परंतु सार कुछ नहीं.
पीसे हुए को क्या पीसना. 1. जो सताया हुआ हो उसे क्या सताना. 2. कही हुई बात बार बार क्या कहना.
पुचकारा कुत्ता सर चढ़े. कुत्ते को अधिक लाड़ करो तो वह सर पर चढ़ने लगता है. अपात्र को अधिक सुविधाएं दो तो वह उनका गलत लाभ उठाता है.
पुजारी की पगड़ी, सिपाही की जोय, जुलाहे की जूती, पड़ी पुरानी होय. पुजारी अधिकतर समय पूजा पाठ के कारण पगड़ी नहीं पहनता, सिपाही ड्यूटी पर तैनात रहता है या युद्ध में मारा जाता है इस कारण वह पत्नी साथ समय नहीं बिता पाता, जुलाहा दिन रात बैठ कर काम करता है इसलिए जूती नहीं पहनता. इस से मिलती जुलती कहावत है – पुजारी की पगड़ी, नामर्द की जोय, कायर की तलवार, पड़ी पुरानी होय.
पुड़किया बाज से कैसे जीत सकती है. पुड़किया – कबूतर की जाति का एक छोटा पक्षी. अर्थ स्पष्ट है.
पुन्न ही आड़े आवे. पुण्य ही समय पर मनुष्य की रक्षा करता है.
पुन्नी अरजे पापी खाय, पुन्नी का जनम अकारथ जाए. पुण्यात्मा लोग जो धन इत्यादि अर्जित करते हैं उसे पापी लोग खाते हैं. हमारे देश ने जो कुछ धन सम्पदा अर्जित की थी, वह सब मुगलों और अंग्रेजों ने लूट कर खाई.
पुन्य करत होत यदि हानि, तऊ न छाड़िए पुन्य की बानि. पुन्य (किसी का भला) करने में यदि अपना कुछ नुकसान भी हो जाए तब भी पुन्य करने की आदत नहीं छोड़नी चाहिए.
पुन्य की जड़ सदा हरी (पुण्य की जड़ पाताल तक). परोपकार करने वाले व्यक्ति की सदा उन्नति होती है.
पुरवा के बहे से चोट पिराय. पुरवा हवा के बहने से पुरानी से पुरानी चोट भी दर्द करती है.
पुराना कपड़ा और बेईमान आदमी का क्या ठिकाना. पुराना कपड़ा कभी भी फट सकता है और बेईमान आदमी कभी भी धोखा दे सकता है.
पुराना ठीकरा और कलई की भड़क. बुढापे में ज्यादा रंग रोगन लगा कर जवान दिखने की कोशिश. ठीकरा – टूटे हुए बर्तन का टुकड़ा. रूपान्तर – पुराने मठ पे कलई.
पुराना पंसारी, नया बजाज. पुराने पंसारी को बहुत सी वस्तुओं के विषय में अधिक जानकारी होती है इसलिए वह अधिक योग्य माना जाता है, नए बजाज को नए फैशन और स्टाइल के विषय में अधिक जानकारी होती है इसलिए नया बजाज अधिक अच्छा माना जाता है.
पुराना वैद्य और नया ज्योतिषी अच्छा होता है. वैद्य पुराना अच्छा होता है क्योंकि जैसे जैसे वह पुराना होता जाता है उस का अनुभव बढ़ता जाता है, जबकि ज्योतिषी नया अच्छा होता है क्योंकि वह नए ज्योतिष शास्त्र की नई बातें सीख कर आता है.
पुराना सो सयाना. व्यापार में पुराने अनुभवी लोगों को हमेशा तवज्जो देनी चाहिए. सन्दर्भ कथा – एक सेठ का विदेश में बहुत अच्छा कारोबार था. सेठ की मृत्यु हो जाने पर उसके बेटे ने नये-नये आदमियों को रख लिया और पुराने मुनीमों की छुट्टी कर दी. वे सारे नौसिखिये थे और सेठ के बेटे को भी कारोबार को संभालने का कोई अनुभव नहीं था, अतः कारोबार चौपट होने लगा. एक दिन उसके ऊपर एक बड़ी हुंडी आई. हुंडी दर्शनी थी, अतः उसके रुपये तत्काल दिये जाने आवश्यक थे. लेकिन रोकड़ में रुपये नहीं थे. हुंडी न देने का मतलब था दिवालिया घोषित हो जाना. तब सेठ के लड़के ने अपनी मां के कहने से पुराने मुनीम को बुलाया. जाड़े की ऋतु थी, मुनीम काफी वृद्ध था और जाड़े के कारण कांप रहा था. सेठ ने उसके तापने के लिए अंगीठी मंगवाई. इतने में हुंडी वाले का आदमी भुगतान लेने के लिए आ गया.
वृद्ध मुनीम हुंडी को पढ़ने लगा और पढ़ते पढ़ते ही उसने अपने कांपते हाथों से हुंडी अंगीठी में डाल दी. फिर मुनीम ने अफसोस प्रकट करते हुए हुंडी वाले से कहा कि भैया हुंडी तो आग में जल गई, तुम इसकी पैठ (नकल) मंगवा लो. वह बोला कि कोई बात नहीं, पैठ मंगवा ली जाएगी. मुनीम की इस चतुराई से सेठ के बेटे को रुपया एकत्र करने के लिए समय मिल गया.
जब बैंक नहीं होते थे तो लोग धनराशि को इधर से उधर ले जाने के स्थान पर हुंडियों का प्रयोग करते थे. यह एक प्रकार का बैंक ड्राफ्ट होता था. किसी एक सेठ के यहाँ रूपये जमा कर के उससे हुंडी लिखवा ली जाती थी और दूसरे दूसरे सेठ के यहाँ उस का भुगतान ले लिया जाता था. वे सेठ लोग अपने आपसी व्यापार में उनका जमा खर्च कर लेते थे. मियादी हुंडी का भुगतान हुंडी में लिखी मियाद पूरी होने पर किया जाता था, लेकिन दर्शनी हुंडी का भुगतान तत्काल करना होता था. यदि कोई सेठ हुंडी का भगतान न कर पाए तो बाजार में उसकी भद पिट जाती थी और उस का दीवाला निकला मान लिया जाता था. हुंडी के गुम हो जाने या नष्ट हो जाने पर उसकी पैठ लिखी जाती थी.
पुरुष की माया, बिरछ की छाया. पुरुष की छत्रछाया में ही यह संसार-चक्र चल रहा है.
पुरुष के दूख और पशु की भूख का कुछ पता नहीं चलता. ये अपनी परेशानी कहना नहीं जानते.
पुरुष पुरातन की वधू क्यों न चंचला होए. लक्ष्मी जी भगवान विष्णु की पत्नी हैं जोकि सृष्टि के सबसे पुरातन पुरुष हैं. शायद इसी लिए वह इतनी चंचल हैं. (लक्ष्मी अर्थात धन सम्पदा कभी किसी के पास ठहरती नहीं है इसलिए उन्हें चंचला कहा गया है). इस दोहे की पहली पंक्ति है कमला थिर न रहीम कहि यह जानत सब कोय.
पुरुष बिचारा क्या करे जिस घर नार कुनार, वो सीमे दो आंगुली, वो फाड़े गज चार. जिस घर में गृहणी दुष्ट स्वभाव की हो उस घर को अकेला पुरुष नहीं संभाल सकता. वह दो उँगली सी कर चुकता है तब तक वह दो गज और फाड़ देती है, अर्थात वह थोड़ी बहुत बात सम्भालता है तब तक वह बात को और अधिक बिगाड़ देती है.
पुरुष ही पारस है. एक मनुष्य ही दूसरे को अच्छा बनाता है.
पुल पार करने के लिए होता है, घर बनाने के लिए नहीं. जो चीज़ समाज के उपयोग की होती है उस पर किसी को कब्ज़ा नहीं ज़माना चाहिए.
पुल बंधावै सास जाय, पतोहू खेले कजरिया धाय. सास तो पुल बाँधने जैसा कठिन और खतरनाक काम करने में लगी है और बहू कजरी खेल रही है. नई पीढ़ी के गैर जिम्मेदाराना व्यवहार के लिए कहावत कही गई है.
पुश्तों बाद कबूतर पाले, आधे गोरे आधे काले. किसी खानदान में कभी किसी ने कोई कायदे का काम न किया हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.
पूंछकटा हर वक्त लड़ने को तैयार. जिस कुत्ते की पूंछ कटी हो तो वह हर समय लड़ने को तैयार रहता है. जिस लड़ाका आदमी की कोई इज्ज़त न हो उस के लिए.
पूंजी से पूंजी उपजे. व्यापार में पूँजी लगाने से ही और पूँजी पैदा होती है.
पूछत पूछत लंका चले जात. कोई स्थान कितना भी अपरिचित हो आदमी पूंछते-पूछते वहाँ पहुँच जाता है.
पूछता नर पंडिता. (जो पूछे सो पंडित). औरों से पूछ पूछ कर ज्ञान प्राप्त करने वाला व्यक्ति पंडित बन जाता है. इंग्लिश में कहावत है – Curiosity is the mother of knowledge.
पूछने में का लगत. पूँछने में क्या लगता है. किसी से कोई बात पूछने में संकोच क्या.
पूछी खेत की बताई खलिहान की (पूछी जमीन की, बताई आसमान की). कुछ का कुछ जवाब देना.
पूछी न काछी, मैं दुल्हन की चाची. जबरदस्ती किसी से रिश्ता जोड़ना. मान न मान मैं तेरा मेहमान.
पूछे न ताछे, बड़बड़ करे. कुछ लोग कोई बात समझ में न आने पर या कोई परेशानी होने पर किसी से पूछने की बजाय बड़बड़ाते रहते हैं. उन का मजाक उड़ाने के लिए.
पूजनीय गुण ते पुरुष, वयस न पूजित होए. पुरुष अपन गुणों से पूजा जाता है न कि अधिक आयु से.
पूजा के दिन बकरी हेरान. हेरान – खो गई. किसी ख़ास मौके पर सबसे महत्वपूर्ण वस्तु का खो जाना.
पूजा से दंडवत भारी, 1.पूजा करना आसान है पर दंडवत लगा कर परिक्रमा करना कठिन. 2.किसी की चमचागीरी करना आसन है पर नेताओं के गुलामों की तरह चप्पलें उठाना और पैरों में लेटे रहना बहुत मुश्किल है.
पूजे से देवता नाहीं तो भूत. यदि भक्त न पूजें तो कोई कैसे देवता बन सकता है.
पूड़ी न पापड़ी, पटाक बहू आ पड़ी. कहीं पर बिना किसी समारोह और दावत के कोई बड़ा काम (विवाह, बच्चे का जन्म आदि) हो जाए तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.
पूत आंधर पतोहू काजय देय. पुत्र तो अंधा है तो बहू किस को दिखाने के लिए काजल लगाकर बैठी है.
पूत कपूत सुने बहुतेरे, मां न सुनी कुमाता. ऐसे बहुत से नालायक पुत्र हो सकते हैं जो अपनी माँ का ध्यान न रखें पर ऐसी माँ कोई नहीं होती जो अपने पुत्र का ध्यान न रखे.
पूत कमावे चार पहर, ब्याज कमावे आठ पहर. आदमी तो चार प्रहर काम कर के ही पैसा कमा सकता है पर ब्याज पर लगा पैसा आठों प्रहर पैसा कमाता है.
पूत का मूत प्रयाग का पानी. कोई कम उम्र की बहू पहली बार मां बनी तो बच्चे की टट्टी पेशाब से घिनिया रही थी. उसकी मां या सास ने उसको समझाने के लिए यह कहावत कही. कुछ पुरानी महिलाएं जो लड़की पैदा होने को बुरा समझती हैं, वे इस कहावत के आगे ये भी बोलती हैं – धी का मूत नरक की निशानी. धी – बेटी.
पूत की जात को सौ जोखें. पुत्रों का शुरू से ही बहुत ध्यान रखा जाता है लेकिन तब भी उनको पालने में ज्यादा परेशानियाँ आती हैं, लड़कियां बेचारी बेकद्री का शिकार हो कर भी आसानी से पल जाती हैं.
पूत के पाँव पालने में ही पहचान लिए जाते हैं. बच्चे के आरम्भिक लक्षण देख कर ही इस बात का अंदाज़ लग जाता है कि वह होनहार है. रूपान्तर – ललना के लच्छन पलना में दिख जात.
पूत के लक्षण पालने और बहू के लक्षण द्वार. पूत के लक्षण पालने में पहचान लिए जाते हैं यह तो सब जानते ही हैं, बहू के लक्षण भी तब ही पहचान लिए जाते हैं जब वह घर में प्रवेश करती है.
पूत तो गाय का और पूत किसका, राजा तो मेघराज और राज किसका. गाय का पूत – बैल, मेघराज – बादल. जब खेती बैलों से होती थी और वर्षा पर निर्भर थी तब किसान के लिए बैल और बादलों की बहुत कीमत थी.
पूत न भतार, अनायासे छाती पे सवार. 1.जब कोई स्त्री जबरदस्ती किसी के सर हो रही हो तो वह यह कहता है कि न तो मैं तुम्हारा पुत्र हूँ, न ही पति. व्यर्थ में क्यों मेरी छाती पर सवार हो रही हो. 2. जिस स्त्री के पति और पुत्र न हों और वह जबरदस्ती किसी के सर हो रही हो.
पूत न माने अपनी डांट, भाई लड़े कहे नित बाँट, तिरिया करकस कलही होय, नियरे बसें दुष्ट सब कोय, मालिक नाहीं करें विचार, सबै कहें ये विपत अपार. पाँच सबसे बड़े कष्ट इस प्रकार हैं – पुत्र आपकी डांट न माने, भाई सम्पत्ति बाँटने के लिए लड़े, स्त्री कर्कशा हो, आस पास दुष्ट लोग बसें और मालिक आपकी परेशानी को न समझे.
पूत भए सयाने, दुख भए बिराने. बिराने – पराये. पुत्र सयाने हो जाते हैं तो आदमी के दुख दूर हो जाते हैं.
पूत भी प्यारा भतार भी प्यारा, किसकी सौगंध खाऊं. किसी के सर की कसम खाने में उस की जान को खतरा होता है. पुत्र और पति दोनों प्यारे हैं, किसकी कसम खाऊं. असमंजस की स्थिति.
पूत मांगे गई, भतार लेती आई. ऐसी स्त्रियों पर व्यंग्य जो पुत्र की कामना में दुराचारी पीर फकीरों की वासना का शिकार हो जाती हैं.
पूत शोक सहा जाए, धन शोक न सहा जाए. दुनिया में सबसे बड़ा शोक पुत्रशोक माना गया है. लेकिन कुछ लोगों के लिए धन का जाना इससे भी बड़ा दुख का कारण है.
पूत सपूत तो क्यों धन संचै, पूत कपूत तो क्यों धन संचै. पहले के जमाने के लोग पैसा जोड़ने को बुरा समझते थे. तब ऐसा माना जाता था यदि व्यक्ति की आमदनी अच्छी हो तो उसे पैसा इकठ्ठा करने की बजाए सामाजिक कार्य में लगाना चाहिए. तर्क यह होता था कि बेटा अगर लायक है तो भी धन संचय मत करो क्योंकि वह बुढ़ापे में आपको सहारा देगा ही और अगर बेटा नालायक है तो भी धन संचय मत करो क्योंकि वह सब उड़ा देगा. हमारे विचार से आज के युग में इस को उल्टा करके बोलना चाहिए. पूत सपूत तो भी धन संचय, पूत कपूत तो भी धन संचय. बेटा अगर होनहार है तो उसे उच्च शिक्षा या व्यापार के लिए धन चाहिए होगा और अगर नालायक है तो आपको अपना बुढ़ापा इज्जत से काटने के लिए धन चाहिए होगा.
पूता कारज करियो सोई, जामें हंडिया खुदबुद होई. सयाने लोग बच्चों को समझाते हैं कि काम वही करो जिससे घर में खाने पीने का प्रबंध हो सके (रोजी रोटी चल सके).
पूतों का क्या बुरा, बुरे वो जिन के पूत न हों. संतान को पालने में यदि कोई लोग परेशानी महसूस करते हैं तो बड़े बूढ़े उनको यह समझाते हैं.
पूरब का बरधा, दक्खिन का चीर, पच्छिम का घोड़ा, उत्तर का नीर. दशहरे की पूजा में बनियों के प्रतिष्ठानों में बही खाते बदले जाते हैं और उस दिन का मुख्य वस्तुओं का भाव लिखा जाता है. इस के साथ क्या चीज़ कहाँ की अच्छी होती है यह भी लिखा जाता है. उसी क्रम में उपरोक्त कहावत लिखी जाती है.
पूरब के चाँद पश्चिम चले जाइहैं, धी के दुलार बहू नहीं पाइहैं. चाहे दुनिया इधर से उधर हो जाए, जो प्यार लड़की को दिया जाता है वह बहू नहीं पा सकती.
पूरब से चला तमाखू रहा बंगाले छाय, जिनके तन पे लत्ता नाहीं वोहू तमाखू खाएँ. तम्बाखू खाने की लत पूरब से चली और पूरे बंगाल में छा गई. गरीब से गरीब आदमी भी इसकी गिरफ्त में है.
पूरा आसमान फटा है, थेगली कहाँ तक लगाऊं. थेगली – पैबंद. बहुत बड़ी गड़बड़ हो तो उस पर लीपा पोती नहीं की जा सकती.
पूरा तोल चाहे महंगा बेच. दुकानदार को हमेशा पूरा तोलना चाहिए चाहे सामान की कीमत औरों से कुछ अधिक ही क्यों न रखनी पड़े.
पूरी खेती काकी, जो हाथ करे ताकी, आधी खेती काकी, जो देखे आवै ताकी, डंगरा विकै काके, जो पूछ आवै ताके. खेती में पूरा लाभ किसे होता है – जो अपने हाथ से करे, आधा लाभ किसे होता है – जो जाकर देखता रहे, जानवर किसके बिक जाते हैं (अत्यधिक घाटा) – जो खाली आने जाने वालों से पूछ ताछ करता है.
पूरे घर में एक घाघरा, पहले उठे सो पहने. घोर अभाव की स्थिति. वस्तुएं कम हैं और उपभोक्ता अधिक हैं, जो पहले पहुंचेगा वह पाएगा.
पूस न बइए, पीस खइए. पूस में गेहूँ बोने से फसल होने की सम्भावना कम है. इस से अच्छा तो उसे पीस कर खा लो. बइये – बोइये.
पेट काटे धन न जुड़े. जो गरीब व्यक्ति इतना कम धन कमा पा रहा हो कि केवल अपने परिवार का पेट भर सके वह धन नहीं जोड़ सकता. यदि वह भरपेट खाना नहीं खाएगा तो काम कैसे करेगा. पेट काटना – आवश्यकता से कम भोजन करना.
पेट की आग पेटहि जानत. पेट की आग पेट ही जानता है. भूखे का कष्ट भूखा ही जानता है.
पेट की आग बुझते बुझते ही बुझती है. 1. तेज भूख लगी हो तो धीरे-धीरे ही शांत होती है 2. यदि स्त्री के पेट का जाया बच्चा ना रहे तो उसका दुख धीरे-धीरे ही भूलता है
पेट के आगे सब हेठ. सारे रिश्ते नाते, आदर्श और नैतिकता तभी अच्छे लगते हैं जब पेट भरा हो.
पेट के पत्थर भी प्यारे. पेट के पत्थर भी प्यारे होते हैं, फिर पुत्र चाहे जैसा निकम्मा हो, वह तो प्यारा होगा ही. जिन लोगों के पित्ते या गुर्दे की पथरी निकाली जाती हैं वे उन्हें बड़ी संभाल कर रखते हैं.
पेट खाली ईमान खाली. आदमी भूखा हो तो ईमानदारी से काम नहीं कर सकता, पेट भरने के लिए कुछ न कुछ बेईमानी जरूर करेगा.
पेट घुसे तो भेद मिले. किसी से मित्रता बढ़ा कर और अंतरंगता स्थापित कर के ही उस के मन का भेद लिया जा सकता है.
पेट जो चाहे करावे (पेट जो न कराए). पेट की आग आदमी से सब प्रकार के गलत काम कराती है. संस्कृत में कहा गया है – बुभुक्षितः किं न करोति पापं.
पेट न परजा का भरे, दैव करे वह राजा मरे. ऐसे राजा से क्या लाभ जो प्रजा का पेट न भर पाये.
पेट नरम, पैर गरम, सर ठंडा, जो आवे वैद तो मारो डंडा. पुराने जमाने में जब बहुत थोड़ी सी ही बीमारियां हुआ करती थी तो लोग यह मानते थे कि सर गर्म होना बुखार का लक्षण है, पेट का कड़ा होना या फूलना पेट की बीमारी का लक्षण है और पैर ठंडे होना किसी गंभीर बीमारी का लक्षण है. अगर किसी का पेट नरम है, पैर गर्म हैं और सर ठंडा है तो उसे कोई बीमारी नहीं है. ऐसे में यदि वैद्य देखने आए तो उसे डंडा मारकर भगा दो. इस कहावत से दो बात समझ में आती हैं एक तो यह कि रोजमर्रा में होने वाली छोटी मोटी बीमारियों के यही तीन मुख्य लक्षण होते थे और दूसरी यह कि उस जमाने में भी ऐसे वैद्य होते होंगे जो झूठी मूठी बीमारी बताकर लोगों को बेवकूफ बनाते होंगे. कुछ कुछ इस आशय की इंग्लिश में एक कहावत है – Keep your feet warm and your head cool, then you may call your doctor a fool.
पेट पड़ी गुन देतीं. बच्चे घर से बाहर जाते हैं तो माँ कहती है, बेटा रोटी खा कर जाओ, पेट पड़ी काम देंगी.
पेट पालना कुत्ता भी जानता है. मनुष्य का जन्म मिला है तो केवल पेट के बारे में ही मत सोचो, इस से ऊपर उठ कर धर्म और समाज के विषय में भी कुछ सोचो. पेट तो कुत्ता भी भर लेता है.
पेट पीठ के कारने सब जग नाचे नाच. पेट भरने और सोने के लिए ही सब तरह के काम करने पड़ते हैं.
पेट बुरी बला है. भूख आदमी से सारे पाप कराती है.
पेट भर और पीठ लाद (पेट भेंट, काज समेट). यदि किसी आदमी से भरपूर काम लेना है तो पहले उसका पेट भरना जरूरी है.
पेट भर जाने पर सूअर नांद को उलट देता है. पेट भर जाने के बाद मूर्ख और धूर्त व्यक्ति को खुराफात सूझती है. नांद उलटते समय वह यह नहीं सोचता कि कल मुझे फिर इसी नांद में खाना है.
पेट भरा जानो तब, कुत्ता कौरा पावे जब. भोजन पूरा हुआ तब मानना चाहिए जब कुत्ते को भी रोटी दे दी जाए. प्राणी मात्र पर दया करने वाली सनातन संस्कृति का यही आदर्श है(पहली रोटी गाय को पिछली रोटी कुत्ते को).
पेट भरा, नीयत नहीं भरी. यह तो मनुष्य की मूलभूत कमजोरी है कि पेट भरने के बाद भी नीयत नहीं भरती.
पेट भरे कपाल भारी. आलसी लोग जब तक भोजन नहीं करते तब तक भूख का बहाना कर के काम नहीं करते, खाने के बाद सर भारी होने का बहाना कर के पड़ जाते हैं.
पेट भरे के खोटे चाले. 1. पेट भरा हो तो आदमी को खुराफात सूझती है. 2. पेट भरा हो तो आदमी काम नहीं करना चाहता. इस कहावत को इस प्रकार से भी कहा गया है – पेट भरे के गून.
पेट भरे नीच और भूखे भलमानस से डरिये. नीच आदमी का पेट भरा हो तो उसे बदमाशी सूझती है. भलामानस भूखा हो तो मजबूरी में कुछ भी कर सकता है इसलिए इन से डरना चाहिए.
पेट भरे पर सौ मस्ती सूझे (पेट में पड़ा चारा तो कूदन लगे विचारा). जब तक इंसान का पेट नहीं भरता उसको इसी की चिंता रहती है. एक बार पेट भर जाने के बाद उस का मन भांति भांति के आनंद पाने के लिए भटकने लगता है.
पेट भरे पे सब खाने को पूछते हैं. कुछ ऐसा संयोग होता है कि जब आपका पेट भरा हो तो आप जहाँ भी जाएं, सब आपसे खाने के लिए पूछते हैं. कभी भूखे घर से निकल जाएं तो कोई नहीं पूछेगा.
पेट भरे बामन से भूखे गरीब को खिलाना अच्छा. कर्मकांडी लोग ब्राह्मणों को ही खिलाना चाहते हैं चाहे उन का पेट कितना भी भरा हुआ क्यों न हो. उन को सलाह दी गई है कि भूखे को खिलाने से अधिक पुण्य मिलेगा.
पेट भरे मन मोदक से कब. मन के लड्ड़ओं से भूख नहीं मिटती.
पेट भरो तो पीठ लादो. जिस पर बोझा लादना हो उसे पहले भरपेट खिलाना चाहिए (मनुष्य हो या पशु).
पेट भी खाली गोद भी खाली. न गोद में बच्चा, न गर्भ में.
पेट भूखा भले ही रखे, पीठ भूखी कोई नहीं रखता. निर्दयी लोग जानवर या मजदूर को खाना देने में कंजूसी करते हैं पर माल लादने में कंजूसी नहीं करते.
पेट में आंत न मुंह में दांत. अत्यधिक बुढ़ापा, जरावस्था.
पेट में उरद से पक रहे (पेट में रई सी फिर रही). अनिष्ट की आशंका, हृदय धड़कना, घबराहट होना.
पेट में न रोटी तो सारी बातें खोटी. मनुष्य भूख से व्याकुल हो तो उसे ज्ञान और आदर्श की सारी बातें बेमानी लगती हैं.
पेट में पड़ गई रोटी तो फड़के बोटी बोटी. अर्थ स्पष्ट है. आमतौर पर बहुत छोटे बच्चों के लिए प्रयोग करते हैं जो दूध पीने के बाद हाथ पैर चलाने लगते हैं.
पेट में पाप और गोमुखी में जाप. (गोमुखी – ऊन आदि से बनी हुई थैली जिस में हाथ डाल कर जप करने वाली माला से जाप करते हैं) मन में पाप भरा है ऊपर से भक्ति दिखाते हैं उन लोगों के लिए.
पेट लगा फटने तो खैरात लगी बटने. आपत्ति में पड़ने पर ही मनुष्य दान-पुण्य करता है.
पेट सब कराए. पेट के लिए अच्छे-बुरे सब कर्म करने पड़ते हैं.
पेट से कोई सीख के नहीं आता. परिश्रम और अभ्यास से ही मनुष्य सब सीखता है.
पेट से निकली, घर से न निकली. एक लड़की ससुराल में सताए जाने के कारण मायके में आ कर रह रही थी. उस की भाभी को यह बात बहुत नागवार गुजरती थी. एक दिन चिढ़ कर उसने अपनी ननद से कहा कि तू मां के पेट से तो निकली पर इस घर से न निकली.
पेट है या बेईमान की कब्र. इसका कोई विशेष अर्थ नहीं है, शब्दों का हेर फेर अधिक है.
पेटवा चाकर, मुटवा घोड़, खाएं ज्यादा, काम करें थोड़. पेटू (ज्यादा खाने वाला) नौकर और मोटा घोड़ा, खाते अधिक हैं और काम कम करते हैं.
पेटू मरे पेट को, नामी मरे नाम को (लोभी मरे लोभ को,नामी मरे नाम को). जिसे केवल खाने का ही शौक है वह हर समय खाने की ही चिंता करता है, और जो नाम कमाना चाहता है वह केवल उसी विषय में सोचता है.
पेड़ फल से जाना जाता है. पेड़ का अपना कोई नाम नहीं होता, वह अपने फल के द्वारा ही जाना जाता है – जैसे आम का पेड़, जामुन का पेड़ आदि. इसी प्रकार व्यक्ति भी अपने कार्यों के द्वारा जाना जाता है.
पेड़ में कटहल, होठों तेल. कटहल खाते समय होठों पर न चिपके इस के लिए कटहल खाने से पहले होठों पर तेल लगा लेते हैं. अगर कटहल पेड़ से तोड़ा ही नहीं गया है तो तेल लगाने की क्या जरूरत. किसी काम के लिए बहुत जल्दबाजी मचाने वालों का मजाक उड़ाने के लिए यह कहावत कही जाती है.
पेड़ लगा नहीं मकौडों ने डेरा डाल लिया. मकौड़ा – लकड़ी खाने वाला कीड़ा. किसी काम की अभी योजना ही बनी है, काम हुआ भी नहीं है, और लाभार्थियों ने डेरा डाल लिया.
पेड़ सबको छाया देता है, काटने वाले को भी. जो सत्पुरुष हैं वे सबका भला करते हैं, जो उन्हें नुकसान पहुंचाए उन का भी.
पेड़ से गिरा और मूसल की मार पड़ी. दोहरी मुसीबत झेलना.
पेड़ से बैर, पत्तों से नाता. मुख्य व्यक्ति से बैर बांधना और गौण व्यक्तियों को महत्व देना.
पैंठ लगी नहीं गिरहकट पहले आ गए. पैंठ – बाजार, गिरहकट – जेबकतरे. कोई काम शुरू होने से पहले ही अवांछित लोगों का आ जाना.
पैदल और सवार का क्या साथ. मित्रता और सम्बन्ध अपने बराबर वालों से ही रखना चाहिए.
पैदा हुआ नापैद के लिए. नापैद – विनष्ट. जिसने जन्म लिया उसकी मृत्यु अवश्यम्भावी है.
पैर उठाते ही छींक दिया. यात्रा शुरू करने से पहले कोई छींक दे दो इसे अपशकुन मानते हैं. कोई काम शुरू करते ही कोई अपशकुन कर दे तो यह कहावत कही जाती है.
पैर का जूता पैर में ही ठीक रहता है (पैर की जूती पैर में ही अच्छी होती है). जो व्यक्ति जिस लायक हो उससे वैसा ही व्यवहार करना चाहिए. निम्न श्रेणी के व्यक्ति को दबा कर रखना ही ठीक रहता है.
पैर की पूजा हुई है, पीठ की नहीं. कोई माननीय रिश्तेदार (फूफा या दामाद आदि) बहुत दुष्टता करे तो.
पैर जलें तो जूती पहनो, धरती पर कालीन नहीं बिछेगी. आपकी व्यक्तिगत परेशानी आपको स्वयं सुलझानी होगी, उसके लिए समाज के नियमों में बदलाव नहीं लाया जाएगा.
पैर बना रहे तो जूती हजार मिलिहैं. खतरनाक काम कर के पैसा कमाने की चाह रखने वाले युवाओं को बुजुर्ग लोग समझाते हैं कि जान सलामत रहेगी तो धन और सुख सुविधा के साधन बहुत मिल जाएंगे.
पैर में से काँटा निकालो तो भी पीड़ा होती है. अपना कोई सगा सम्बंधी कितना भी निकृष्ट क्यों न हो उससे संबंध तोड़ने में कष्ट होता है.
पैरों से गाँठ लगाए जो हाथों से न खुले. बहुत धूर्त आदमी के लिए, जो सब के लिए उलझनें पैदा करता हो.
पैरों से लंगड़ी, नाम फुदकी. नाम के विपरीत गुण.
पैसा आते भी दुख देता है और जाते भी. पैसा कमाने के लिए बहुत से कष्ट उठाने ही पड़ते हैं, पैसा जब आ जाता है तो रखने की चिंता, और अगर चला जाए तब तो कष्ट ही कष्ट.
पैसा करे काम, बीबी करे सलाम. पैसे में बड़ी ताकत है. पैसे के बल पर आदमी के सारे काम हो जाते हैं और पत्नी भी उसकी इज्ज़त करती है.
पैसा तो बेसवा भी कमा ले. (भोजपुरी कहावत) बेसवा – वैश्या का अपभ्रंश. केवल पैसा कमाने के लिए काम नहीं करना चाहिए. पैसा तो लोग उल्टे सीधे और भ्रष्ट काम कर के भी कमा लेते हैं.
पैसा ना कौड़ी, बाजार जाएँ दौड़ी (पैसा न कौड़ी, बीच बाज़ार में दौड़ा दौड़ी). साधन हीन होने पर भी ख़याली पुलाव पकाना.
पैसा पर्वत पे राह चलावे है. पैसे के बल पर कठिन काम भी आसान हो जाते हैं.
पैसा पास का, घोड़ी रान की. रान – जांघ. पैसा वही काम आता है जो हमारे पास हो (इधर उधर बंटा हुआ न हो), घोड़ी वही काम की है जिसकी हम सवारी कर सकें (जो हमारी जांघ के नीचे हो).
पैसा फले न डाल. पैसा पेड़ पर पैदा नहीं होता (परिश्रम कर के कमाया जाता है).
पैसा माई पैसा भाई, पैसे बिन न होय सगाई. सगाई माने आपसी प्रेम भी होता है और सगाई माने विवाह संबंध भी होता है. आज के युग में पैसा ही सब कुछ है. उसी पर सारे सम्बन्ध टिके हैं.
पैसा माई, पैसा बाप, पैसे बिना बड़ा संताप. आज के समय में पैसा ही सब कुछ है, पैसे के बिना बड़ा कष्ट है.
पैसा हाथ का मैल है. जिस प्रकार हाथ पर मैल लग जाए तो हम उसे धो कर साफ़ कर देते हैं उसी प्रकार अधिक पैसा हाथ में आने पर उसे बांट देना चाहिए. अधिक धन मनुष्य को पाप की ओर प्रवृत्त करता है.
पैसे का कोई पूरा नहीं, अक्ल का कोई अधूरा नहीं. पैसा कितना भी अधिक हो किसी को पर्याप्त नहीं लगता और अपने अंदर अक्ल कितनी भी कम हो किसी को कम नहीं लगती.
पैसे की आने की एक राह, जाने की चार. पैसा कमाया बहुत मुश्किल से जाता है पर खर्च बड़ी जल्दी हो जाता है, आता एक स्रोत से है पर खर्च कई जगह होता है.
पैसे की दाल और टके का बघार. एक पैसे की दाल में दो पैसे का छौंक.
पैसे के सब साथी (पैसे के सब सगे) (पैसे के सौ गुलाम) (पैसे का सब खेल). अर्थ स्पष्ट है.
पैसे को पैसा खींचता है. जिस के पास पैसा है उसी के पास और पैसा इकठ्ठा होता है.
पैसे बिन माता कहे जाया पूत कपूत, भाई भी पैसे बिना मारें सर लख जूत. पैसे के बिना माँ, बाप, भाई, बहन कोई सम्मान नहीं करते (माँ कहती है कि मैंने कुपुत्र पैदा किया है और भाई लाख जूते मारते हैं).
पैसे बिना बुद्धि बेचारी. आदमी कितना भी बुद्धिमान हो, धन के बिना अपनी बुद्धि का लाभ नहीं उठा सकता. रूपान्तर – पैसे से सारी अक्कल आऊत.
पोटली में जितने सिक्के डालोगे उतने ही निकलेंगे. आपने जितना पैसा इकट्ठा किया है उतना ही तो आपके पास होगा, उससे कम या अधिक कैसे हो जाएगा. यही बात पाप और पुण्य के विषय में भी कही जा सकती है.
पोठिया कन्या झींगवा वर. पोठिया – एक छोटी मछली, झींगवा – झींगा. छोटी कन्या और वर के लिए मजाक में.
पोतड़ों के अमीर. पोतड़े – नवजात शिशुओं के लंगोटे बिछौने आदि. जन्म से अमीर लोगों के लिए यह कहावत कही जाती है. इंग्लिश में कहावत है – born with silver spoon in mouth.
पोतड़ों के नशेड़ी. जिस ने बाप दादों से नशा करना सीखा हो.
पोतड़ों के बिगड़े, धोतड़ों में नहीं सुधरते. पोतड़े – बच्चों के लंगोटी बिछौने आदि, धोतड़े – पहनने के कपड़े (धोती इत्यादि) बचपन में जो खराब आदतें पड़ जाएँ वे बड़े होने पर भी नहीं सुधरतीं.
पोथा सो थोथा, पाठे सो साथै. पोथियों में जो लिखा है वह हमारे लिए व्यर्थ है, जो हम ने पढ़ लिया व कंठस्थ कर लिया वही हमारे साथ रहने वाला है.
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भय न कोय, ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय. पोथियाँ पढ़ कर कोई पंडित नहीं बनता. जो मानव मात्र से प्रेम करना सीख ले वही सच्चा पंडित बनता है.
पोपला और चने चाबे. अपनी सामर्थ्य से बाहर काम करने की कोशिश करना.
पोपाबाई को राज. कहा जाता है कि पोपाबाई गुजरात के एक छोटे प्रदेश की रानी थीं. उनके राज्य में इतना अंधेरखाता था कि वह कुशासन और कुव्यवस्था का प्रतीक बन गया है और उपर्युक्त कहावत चल पड़ी है.
पोला पहने खेत जोते, कुरता पहन निरावे, घाघ कहें ये तीनहुं भकुआ सिर बोझा ले गावे. पोला – एक प्रकार की खड़ाऊँ, भकुआ – मूर्ख. खड़ाऊँ पहन कर खेत जोतने वाला, कुरता पहन कर निराई करने वाला और सर पर बोझा रख कर गीत गाने वाला, ये तीनों मूर्ख होते हैं
प्याज को जितना छीलो उतनी ही बदबू आती है. पुरानी बातों को जितना उघाड़ो उतना ही मनमुटाव बढता है.
प्यार करूं प्यार करूं, चूतड़ तले अंगार धरूं, जल जाए तो क्या करूं. कपटी मित्र या सम्बंधी के लिए जो ऊपर से प्रेम दिखाता है और चुपचाप आपको नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता है.
प्यार दिए से बेटा बिगड़े, भेद दिए से नारी, लोभ दिए से नौकर बिगड़े, धोखा दिए से यारी. अधिक लाड़ प्यार से बेटा बिगड़ जाता है, भेद की बात नारी को नहीं पचती, लालच देने से नौकर बिगड़ जाता है और धोखा देने से दोस्ती खत्म हो जाती है.
प्यास से मरने के बाद हजार घड़ा पानी बेकार. अर्थ स्पष्ट है.
प्यासे के पास कुआँ चल कर नहीं आता है. सयाने लोग समझाने के लिए कहते हैं कि जिस चीज की आपको आवश्यकता है उसके लिए आपको ही प्रयास करना पड़ेगा. वह चीज बैठे-बैठे आपके पास चलकर नहीं आएगी.
प्यासे को पिलाओ पानी, चाहे हो जाए कुछ हानी. प्यासे को पानी अवश्य पिलाना चाहिए, चाहे इसमें कुछ हानि क्यों न उठानी पड़े.
प्रजा मरन, राजा को हाँसी. प्रजा कितनी भी त्रस्त हो, राजा लोग अपने आमोद-प्रमोद और हास्य-विनोद में व्यस्त रहते हैं.
प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं है. जो सामने दिख रहा उस को सिद्ध करने के लिए प्रमाण की क्या आवश्यकता. संस्कृत में कहते हैं – प्रत्यक्षम् किम् प्रमाणं.
प्रभु प्रताप तें गरुड़हि खाइ परम लघु व्याल. ईश्वर की महिमा से छोटा सा सांप भी गरुड़ को खा सकता है.
प्रभुता पाई काहि मद नाहीं. प्रभुता का अर्थ यहाँ है धन, बल और अधिकार. कहावत का अर्थ है कि प्रभुता पा कर सभी को घमंड हो जाता है. तुलसीदास जी द्वारा रचित मूल कविता इस प्रकार है – नहिं कोई जन्मा इस जग माहीं, प्रभुता पाई जाहि मद नाहीं. इंग्लिश में कहावत है – Power always corrupts.
प्रात समै खटिया से उठिकै, पीवै ठंडा पानी, ता घर वैद कबौ नहिं आवै, बात घाघ की मानी. जो प्रात:कल उठते ही ठंडा पानी (फ्रिज का नहीं) पीते हैं वे कभी बीमार नहीं होते.
प्रारब्ध पहले बना, पीछे बना शरीर. व्यक्ति के जन्म लेने से पहले ही उसका भाग्य लिख दिया जाता है.
प्रीत करी थी नीच से पल्ले आई कीच, सीस काट आगे धरा अंत नीच का नीच. नीच व्यक्ति से प्रेम करने पर मुश्किल ही सामने आती है. चाहे कोई अपना सर काट कर सामने रख दे नीच व्यक्ति अपनी नीचता नहीं छोड़ता.
प्रीत का निबाहना खांडे की धार है. खांडा – सीधी एवं चौड़ी तलवार. प्रीत का निबाहना उतना ही मुश्किल है जितना तलवार की धार पर चलना.
प्रीत जहाँ परदा नहीं, परदा जहां न प्रीत. जहाँ प्रेम होता है वहाँ कुछ दुराव छिपाव नहीं होता, और जहाँ दुराव छिपाव होता है वहाँ प्रेम नहीं हो सकता.
प्रीत तो ऐसी कीजिए ज्यों हिन्दू की जोय, जीते जी तो संग रहे मरे पे सत्ती होय. दूसरे धर्म के लोगों द्वारा हिन्दू स्त्रियों की प्रशंसा की गई है. हिन्दू स्त्री के समान प्रेम करो जो जीवन भर साथ निभाती है और पति के मरने पर सती हो जाती है.
प्रीत न टूटे अनमिले, उत्तम मन की लाग, सौ जुग पानी में रहे, चकमक तजे न आग. प्रेमी जन यदि आपस में न मिल पाएं तो भी उनके प्रेम में कमी नहीं आती. चकमक पत्थर युगों तक पानी में डूबा रहे तो भी बाहर निकालने पर आग पैदा करता है.
प्रीत रीत जानी आसान, मुस्किल पड़ी बात अब आन. सामान्य लोग समझते हैं कि प्रेम करना आसान है, पर जब उन्हें किसी से प्रेम होता है तो मालूम होता है कि इस में कितनी मुश्किलें हैं.
प्रीत सीखिये ऊख सों, पोर पोर रसवान, जहाँ गाँठ वहाँ रस नहीं, जेई प्रीत की बान. गन्ने में सब जगह रस होता है, केवल गाँठ में नहीं होता. इसी प्रकार प्रेम के संबंध में रस ही रस होता है, पर जहाँ मन में गाँठ पड़ जाती है वहाँ रस समाप्त हो जाता है.
प्रीतम मिले उजाड़ में, वही उजाड़ बजार. प्रीतम यदि उजाड़ में मिल जाएँ तो वही उजाड़ गुलज़ार हो जाता है.
प्रीतम हरि से नेह कर, जैसे खेत किसान, घाटा दे अरु दंड भरे, फेरि खेत पे ध्यान. ईश्वर से उसी प्रकार प्रेम करो जैसे किसान अपने खेत से करता है. खेती में घाटा हो या दंड भरना पड़े तो भी किसान का ध्यान खेत में ही लगा रहता है.
प्रेम और युद्ध में सब जायज है. अर्थ स्पष्ट है. इंग्लिश में कहते हैं – All is fair in love and war.
प्रेम करि काहू सुख न लयो. मीराबाई ने यह बात स्वयं के परिप्रेक्ष्य में कही है पर यह बात सब पर लागू होती है कि प्रेम करने वाले को कभी सुख नहीं प्राप्त होता (हमेशा कष्ट मिलता है).
प्रेम का पान हीरा समान. पान वैसे तो बहुत तुच्छ वस्तु है पर किसी ने प्रेम से दिया हो तो हीरे के समान है.
प्रेम न डाली फलत है, प्रेम न हाट बिकाए, प्रेम से खोजो प्रेम को, आपहि में मिल जाए. प्रेम पेड़ पर भी पैदा नहीं होता और बाजार में भी नहीं मिलता. अपने अंदर ही प्रेम को खोजना चाहिए.
प्रेम प्रीति से जो मिलै, तासों मिलिये धाय, अंतर राखे जो मिलै, तासों मिलै बलाय. जो प्रेमपूर्वक मिले उससे दौड़ कर मिलना चाहिए. जो मन में द्वेष रखता हो वह ऐसी तैसी में जाए.
प्रेम में नेम कहाँ. नेम – नियम. प्रेम कोई नियम कानून नहीं मानता.
फ
फकत ताबीज़ से काम नहीं चलता, कुछ कमर में भी बूता चाहिए. सन्तान मांगने (या और किसी काम) के लिए पीरों फकीरों के यहाँ चक्कर लगाने वालों के लिए कथन.
फकीर अपनी कमली में मस्त. जो सही माने में फकीर होते हैं उन्हें धन व ऐश्वर्य की परवाह नहीं होती.
फकीर की जुबान किसने कीली है. कीलना – किसी चीज़ को कील ठोंक कर स्थिर कर देना. फकीर की जबान को कोई नहीं रोक सकता क्योंकि उसे किसी का डर नहीं होता.
फकीर की झोली में सब कुछ. सच्चे फकीर की दुआ में बहुत ताकत होती है, वह सब कुछ दे सकता है.
फकीर की सूरत ही सवाल है. जरूरत मंद कुछ न भी मांगे तो भी उसकी सूरत देख कर ही अंदाजा हो जाता है कि वह जरूरत मंद है.
फकीर, कर्ज़दार और लड़के तीनों नाहीं समझें. फकीर कर्ज़दार और बच्चे समय असमय नहीं देखते, कभी भी कुछ भी मांग बैठते हैं.
फटक चंद गिरधारी, न लोटा न थारी. ऐसे व्यक्ति के लिए जिसके पास कुछ भी न हो.
फटी जेब में पैसा डालना बेकार. जो व्यक्ति धन को संभालना और ठीक से खर्च करना न जानता हो उसको धन देना बेकार है (दान देना भी और उधार देना भी). फटी जेब में कुछ भी डालोगे तो निकल जाएगा.
फटे कपड़े को पैबंद लग सकता है फूटे भाग्य को नहीं. किसी का भाग्य ही फूटा हो तो वह लाख प्रयास कर के भी आप उस की कोई सहायता नहीं कर सकते.
फटे को सियो और रूठे को मनाओ. जितना आवश्यक फटे हुए कपड़े को सिलना है उतना ही आवश्यक है रूठे हुए मित्र और सम्बन्धियों को मनाना (अपने अहं को अलग रख कर).
फटे पजामें में गोटे का नाड़ा. बेमेल काम.
फटे में पाँव, दफ्तर में नाँव. दूसरे के फटे में टांग अड़ाने वाला अपने को झंझट में डाल लेता है (दफ्तरों और कचहरी के चक्कर लगाने पड़ते हैं).
फटे से न लाजे, मैले से लाजे. कपड़े फटे होना किसी की मजबूरी हो सकती है, उसमें शर्म कैसी. कपड़ा गन्दा हो तो लज्जा आनी चाहिए.
फतह और शिकस्त, खुदा के हाथ. हार जीत ईश्वर के हाथ में है (हमें केवल प्रयास करना चाहिए).
फन फन मणि नहिं होत. हर सांप के फन में मणि नहीं होती. हर व्यक्ति योग्य नहीं होता.
फल बिचारि कारज करो करहु न व्यर्थ अमेल, तिल ज्यों बारहुँ पेरिए नाही निकसे तेल. कोई कार्य करने से क्या लाभ हो सकता है यह पहले सोच कर ही कार्य करना चाहिए. तिल को बार बार पेरने से तेल नहीं निकलता.
फल लगने पर पेड़ झुक जाता है. जिस प्रकार फल लगने के बाद पेड़ झुक जाता है उसी प्रकार संतान होने के बाद अहंकारी व्यक्ति भी विनम्र हो जाता है.
फलाने की मां ने खसम किया बड़ा बुरा किया, कर के छोड़ दिया और बुरा किया. खसम किया अर्थात किसी को अपना पति बना लिया (विवाह कर लिया). किसी विधवा ने (जिसके एकाध बच्चा भी है) किसी पुरुष से विवाह कर लिया यह पुराने जमाने के हिसाब से बुरी बात हुई. लेकिन विवाह कर के फिर छोड़ दिया यह और भी बुरी बात हुई. समाज इस बात की अनुमति नहीं देता कि विवाह को हंसी खेल समझ लिया जाए.
फलेगा सो झड़ेगा. जिस पेड़ में फल आयेंगे उस पर अंततः पतझड़ भी आएगी, यह कालचक्र है.
फांदिये न कुआं, खेलिए न जुआ. कोई आदमी कितनी भी लंबी छलांग क्यों न लगा लेता हो, कुआँ फांदने की कोशिश कभी नहीं करनी करने चाहिए. जरा सा धोखा होते ही कुएं में गिरने का डर है. इसी प्रकार जुआ भी कभी नहीं खेलना चाहिए, जीवन भर की कमाई लुट सकती है.
फाग की फाग खेल लई और अंग बचा लए. होली भी खेल ली और किसी छिछोरे को अपने अंग भी नहीं छूने दिए. बिना बदनाम हुए दुनिया का आनंद उठा लिया. फाग – होली (फागुन में होती है इसलिए).
फाग के कुटे और दिवाली के लुटे को कोऊ नई पूछत. होली के हुल्लड़ में यदि कोई पिट जाय और दिवाली में जुए में हार जाय तो कोई उसका बुरा नहीं मानता.
फाग खेले और अंग बचाए. जो व्यक्ति चाहता हो कि होली भी खेले और रंग भी न लगे. 1.झगड़े में पड़ना भी चाहते हैं और अपने को अलग भी रखना चाहते हैं. 2.संसार का आनंद भी लेना चाहते हैं और सांसारिकता में पड़ना भी नहीं चाहते, ये दोनों बातें कैसे संभव हैं.
फागुन का मेह बुरो, बैरी का नेह बुरो. फागुन के महीने की वारिश नुकसानदायक होती है (क्योंकि फसल पक कर खड़ी होती है या कट कर खेत में पड़ी होती है). इसी प्रकार शत्रु का प्रेम बुरा होता है. शत्रु अगर आप से प्रेम दर्शा रहा हो तो सतर्क रहना चाहिए. बुन्देलखंड में पूरी कहावत इस प्रकार बोली जाती है – फागुन का मेह बुरो, बैरी का नेह बुरो, साला घर बीच बुरो, बिगड़ा भानेज बुरो (घर में साला बुरा और नाराज भांजा बुरा).
फागुन मर्द, ब्याह लुगाई. होली के त्यौहार पर पुरुष लोग हंसी ठिठोली में महिलाओं को रंग लगाते हैं और शादी ब्याह में स्त्रियां हल्दी की रस्म में पुरुषों की पीठ पर हल्दी रेंज हाथ से धप्पी लगाती हैं.
फागुन में ससुरा देवर लागे. जब होली होती है तो माहौल में ऐसी मस्ती छाती है कि ससुर भी देवर लगते हैं.
फाटक टूटा, गढ़ लूटा. अर्थ स्पष्ट है. किला तभी तक सुरक्षित है जब तक फाटक न टूटे.
फाटे पीछे न मिलें (जुड़ें), मन मानिक औ दूध. मन, माणिक और दूध फट जाएँ तो फिर नहीं मिलते. कहावत में यह सीख दी गई है कि छोटी छोटी बातों पर मनमुटाव नहीं करना चाहिए. आपसी संबंधों को सहेजना चाहिए.
फ़ारस गए फ़ारसी पढ़ आए बोले वहीँ की बानी, आब आब कह पुतुआ मर गए खटिया तरे धरो रहो पानी. विदेशी भाषा बोलने में अपनी शान समझने वालों का मजाक उड़ाने के लिए. सन्दर्भ कथा – मुगलों के जमाने में पढ़े लिखे लोग फ़ारसी पढ़ा करते थे (फ़ारसी एक प्रकार की उच्च शिक्षा थी, जैसे आजकल इंग्लिश है). फ़ारसी में पानी को आब कहते हैं. फ़ारसी का ज्ञान बघारने वाले लोगों का मजाक उड़ाने के लिए यह कहावत कही गई है कि प्यास लगने पर वह आब आब चिल्लाते रहे, कोई समझा ही नहीं कि वह पानी मांग रहे हैं. वह बेचारे प्यास से मर गए जब कि खाट के नीचे पानी रखा था. आजकल इंग्लिश बोलने में अपनी शान समझने वालों पर यह कहावत लागू की जा सकती है.
फालूदा खाते दांत टूटे. किसी बहुत नाजुक आदमी का मजाक उड़ाने के लिए.
फावड़ा न कुदार, बड़ा खेत हमार. मिथ्या अभिमान. फावड़ा और कुदाली न होते हुए भी बड़ा खेत होने का दावा.
फ़िक्र बुरी फ़ाका भला, फ़िक्र फकीरै खाय. फाका – उपवास. चिंता करने के मुकाबले भूखा रहना कम नुकसानदायक है. चिंता तो फ़क़ीर को भी खा लेती है.
फ़िक्र से हाथी भी घुल जाता है. चिंता से हाथी भी दुबला हो जाता है.
फिजूलखर्ची से फकीरी. जो आज फिजूलखर्ची कर रहा है वह कल फकीर बनने पर मजबूर हो जाएगा.
फिसल पड़े तो हर गंगा. जिस काम से आप बचना चाहते हैं अगर मजबूरी में वह काम करना पड़ जाए तो यह दिखावा करना चाहिए कि आप प्रसन्नता से वह काम कर रहे हैं. कोई सज्जन नदी में नहाने से बचना चाह रहे थे, इसलिए लोगों की निगाह बचा कर किनारे खड़े थे. पर अचानक पैर फिसलने से नदी में गिर पड़े तो जोर जोर से हर हर गंगे चिल्लाने लगे जैसे नहाने में बड़ा आनंद आ रहा हो.
फुरसत घड़ी की नहीं, कमाई कौड़ी की नहीं (धेले भर का काम नहीं, घड़ी भर की फुरसत नहीं). ऐसे लोगों का मजाक उड़ाने के लिए जो कोई ठोस कार्य नहीं करते और अपने को बहुत व्यस्त दिखाते हैं.
फूँक मार कर धूल उड़ाएँ, हम ऐसे बलवान. कायर लोगों का मजाक उड़ाने के लिए.
फूंक देय तौ उड़ि जांय. किसी दुर्बल व्यक्ति का मजाक उड़ाने के लिए.
फूंकने से पहाड़ नहीं उड़ते. बेबकूफी के प्रयासों से बहुत बड़े काम नहीं किये जा सकते.
फूंके के न फांके के, टांग उठा के तापे के. अलाव जलाने में कोई सहयोग नहीं कर रहे हैं बस टांग उठा के ताप रहे हैं. कोई सामाजिक सरोकार न रख कर केवल अपना स्वार्थ सिद्ध करने वालों के लिए.
फूटा घड़ा आवाज से पहचाना जाता है (जर्जर घड़े की आवाज भी जर्जर). फूटे घड़े में दरार दिखाई न भी दे तो ठोंक कर देखने पर उसकी आवाज से मालूम हो जाता है. इसी प्रकार चरित्रहीन मनुष्य के व्यवहार में उसकी असलियत झलक जाती है.
फूटा भाग फ़क़ीर का भरी चिलम गिर जाए. भाग्य साथ न दे तो बना बनाया काम बिगड़ जाता है. फकीर के लिए भरी हुई चिलम का गिर जाना भी बहुत बड़ा दुर्भाग्य है.
फूटी तो सहें, अंजन न सहें. आँख फूट जाय वह स्वीकार, परन्तु काजल डालने का कष्ट सहना स्वीकार नहीं.
तुलसीदास ने कहा है – लोकरीत फूटी सहै, अंजन सहैं न कोइ, तुलसी जो अंजन सहै, सो अंधो न होइ.
फूटी देगची और कलई की भड़क. देगची – एक प्रकार का पतीला. पतीला तो फूटा हुआ है पर उस पर कलई कर के चमकाया गया है. बेकार की चीज की बनावटी दिखावट.
फूटे घड़े में पानी नहीं टिकता. जिस के भाग्य फूटे हों या बुद्धि भ्रष्ट हो उस के पास धन नहीं टिक सकता.
फूटे लड्डू में सबका हिस्सा. लड्डू जब तक बंधा हुआ होता है तब तक एक ही आदमी के हिस्से में आता है, पर अगर फूट जाए तो लूट मच जाती है. एकता में ही शक्ति है.
फूटे से बहि जातु है ढोल, गँवार, अंगार, फूटे से बनि जातु है, फूट, कपास, अनार. ढोल फूट जाए तो बेकार, अंगारा फूट जाए तो राख, और मूर्ख व्यक्ति के मुँह से बोल फूटे तो बेकार (उस की असलियत प्रकट हो जाती है), जबकि फूट नाम का फल, कपास और अनार फूट कर ही उपयोगी बनते हैं.
फूफा रूठेगा तो बुआ को रखेगा. फूफा रूठेंगे तो हद से हद क्या करेंगे, बुआ को नहीं आने देंगे. फूफाओं के नखरों से तंग किसी व्यक्ति का कथन.
फूफी नाते लेना, भतीजे नाते देना. एक रिश्ते से लेना और दूसरे रिश्ते से देना.
फूल आये हैं तो फल भी लगेंगे. कहावत ऐसे परिप्रेक्ष्य में कही जाती है कि यदि देश, समाज या किसी व्यक्ति में कोई सकारात्मक बदलाव हुआ है तो उसके अच्छे परिणाम अवश्य आएंगे.
फूल की डाल नीचे को झुकती है. परिपक्वता आने पर व्यक्ति विनम्र हो जाता है.
फूल की बैरन धूप, घी का बैरी कूप. फूल धूप में कुम्हला जाता है और घी कुप्पे में रखा रखा सड़ जाता है. घी को अधिक दिन कुप्पे में नहीं रखना चाहिए, खा पी कर खत्म करो या बाँट दो.
फूल झड़े तो फल लगे. कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है. फूल झड़ने के बाद ही फल लगता है.
फूल न पाती, देवी हा हा. जिस देवी की पूजा ही न होती हो वह देवी कैसी.
फूल नहीं पंखुड़ी ही सही. बहुत न सही, थोड़ा ही सही.
फूल फूल करके चंगेर भरती है. चंगेर – बांस की डलिया. एक एक फूल इकट्ठा कर के ही डलिया भरती है. थोड़ा थोड़ा करके ही अधिक इकट्ठा हो सकता है.
फूल से फांस लगे और दिए से लू. नज़ाकत की पराकाष्ठा.
फूल सोई जो महेसहिं चढ़े. फूल वही सार्थक है जो शिवजी पर चढ़े.
फूलहिं फलहिं न बेंत, जदपि सुधा बरसहिं जलद, मूरख हृदय न चेत, जो गुरु मिलहिं बिरंचि सम. सुधा – अमृत, जलद – बादल, बिरंचि – ब्रह्मा. बादल कितना भी अमृत बरसाएं, बेंत फलता नहीं है. इसी प्रकार गुरु के रूप में ब्रह्मा भी मिल जाएं तब भी मूर्ख व्यक्ति ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता.
फूले न फले, पत्तों से ढके. पत्तों से ढका है पर फल फूल कुछ नहीं लगते. बातें बनाने वाले अकर्मण्य लोगों पर व्यंग्य जो न कुछ कमाते हैं और न किसी के काम आते हैं.
फूले फूले फिरत हैं आज हमारो ब्याव, तुलसी गाय बजाय के देत काठ में पाँव. विवाह के समय व्यक्ति बहुत प्रसन्न होता है, वह यह नहीं जानता कि इस तरह गा बजा के वह पिंजरे में फंसने जा रहा है.
फूहड़ करे सिंगार, मांग ईंटों से फोड़े. फूहड़ स्त्री कुछ भी कर सकती है, माँग में सिंदूर लगाने के लिए ईंट से सर भी फोड़ सकती है.
फूहड़ का माल, सराह सराह खाइए. मूर्ख व्यक्ति की तारीफ़ करते जाइए और उस का माल खाते जाइए. इस कहावत को इस प्रकार भी बोलते हैं. मूरख का माल खुशामद से खाइए. देखिए सन्दर्भ कथा 165.
फूहड़ का मैल फागुन में उतरे. जो लोग जाड़े के मौसम में बहुत कम नहाते हैं उन पर व्यंग्य.
फूहड़ के घर उगी चमेली, गोबर मांड़ उसी पर गेरी. फूहड़ व्यक्ति किसी गुणवान चीज़ की कद्र नहीं जानता. उस के घर चमेली का पेड़ उग आया तो उसने उसी पर गोबर और मांड गिरा दिया.
फूहड़ के तीन काम हगे, समेटे और गेरन जाए. (हरयाणवी कहावत) फूहड़ व्यक्ति की परिभाषा थोड़े हास्य पूर्ण ढंग से बताई गई है. पहले काम बिगाड़ता है और फिर समेटता है.
फूहड़ चली रसोइया तो कुसल करे गोसइयाँ. फूहड़ स्त्री खाना बनाने रसोई में चली तो भगवान ही मालिक है.
फूहड़ चलीं देवता मनावै, देवता लोट लोट जायँ. 1.फूहड़ स्त्री देवता पूजने चलीं तो उनकी फूहड़ता देख कर देवता भी हँस कर लोट पोट हो रहे हैं. 2. फूहड़ पूजा करने चलीं तो उन्होंने देवता को ही लुढ़का दिया.
फूहड़ चले, नौ घर हिले. कहावत को मजेदार बनाने के लिए अतिशयोक्ति द्वारा हास्य उत्पन्न किया गया है. फूहड़ आदमी इतने फूहड़ पने से चलता है कि नौ घर हिलते हैं.
फूहर पोते चूल्हा, औ मटकावे कूल्हा. फूहड़ स्त्री कोई भी काम फूहड़पन से ही करती है.
फेरन पे हगास लगी. हगास – शौच जाने की इच्छा. यदि किसी दुल्हन को फेरों के दौरान शौच जाने की इच्छा हो तो कितनी बड़ी परेशानी खड़ी हो जाएगी. किसी अति आवश्यक कार्य के बीच व्यर्थ की परेशानी खड़ी हो जाना.
फेरफार चुटिया पे हाथ. घुमा-फिरा कर फिर वही बात.
फ़ोकट का चन्दन, घिस मेरे नंदन. कोई कीमती चीज़ मुफ्त में मिल जाए तो आदमी उस की कद्र नहीं करता.
फोकट का मिले तो हमको भी लाइयो. मुफ्त में मिल रहा हो तो हमारे लिए भी ले आना.
फोकट के कारन चोकट पिट गए. 1. किसी की गलती थी, पिट गया कोई दूसरा. 2. मुफ्त का माल खाने के चक्कर में कोई मार खाए तो.
फ़ौज की अगाड़ी, आंधी की पिछाड़ी, जे न संभारे ते अनाड़ी. फ़ौज जब हमला करती है तो उस के सामने पड़ना खतरनाक है और आंधी आती हो तो उस के पीछे या आसपास रहना खतरनाक है.
ब
बंके को तिरबंका मिल ही जाता है. धूर्त व्यक्ति को अपने से बड़ा धूर्त कभी न कभी मिल जाता है.
बंद है मुठ्ठी तो लाख की, खुल गई तो फिर ख़ाक की. जब तक कोई रहस्य खुलता नहीं है तब तक लोगों को उसके विषय में उत्सुकता रहती है. रहस्य खुलने के बाद उसकी पूछ कम हो जाती है. सन्दर्भ कथा – जब तक कोई रहस्य खुलता नहीं है तब तक लोगों को उसके विषय में उत्सुकता रहती है. रहस्य खुलने के बाद उसकी पूछ खत्म हो जाती है. एक बार एक राजा ने घोषणा की कि वह अमुक मंदिर में पूजा करने के लिए अमुक दिन जाएगा. इतना सुनते ही मंदिर के पुजारी ने मंदिर की सजावट करना शुरू कर दिया जिस के लिए उसने छः हजार रुपये का कर्ज भी लिया. तय दिन पर राजा मंदिर में ए पहुंचे. जब राजा के सामने आरती की थाली लाई गई तो राजा ने उस में चार आने रखे और प्रस्थान कर गए.
पुजारी को इस पर बड़ा गुस्सा आया. उसे चिंता भी सताने लगी कि वह अपना क़र्ज़ कैसे भरेगा. फिर उसने एक तरकीब निकाली. उसने आस पास के क्षेत्र में ढिंढोरा पिटवाया कि वह राजा की दी हुई वस्तु को नीलाम कर रहा है. नीलामी की बोली लगाते समय उसने अपनी मुट्ठी बंद रखी. लोग समझे कि राजा की दी हुई वस्तु बहुत अमूल्य होगी इसलिए बोली दस हजार रूपये से शुरू हुई और बढ़ते बढ़ते पचास हजार तक पहुंच गई. पुजारी ने उस समय नीलामी स्थगित कर दी और दूसरे दिन नीलामी को पचास हजार से आगे बढ़ाने की बात कही. इसी बीच यह बात राजा के कानों तक पहुंच गई कि पुजारी उस की दी हुई चीज़ को नीलाम कर रहा है. राजा ने अपने सैनिकों को भेज कर पुजारी को बुलवाया और कहा कि मेरी वस्तु को नीलाम न करो, मैं तुम्हें लाख रुपए देता हूं. इस प्रकार राजा ने अपनी इज्जत को बचाया और पुजारी को भी बहुत बड़ा लाभ हो गया. तब से यह कहावत बनी.
बंदर का गुस्सा तबले पर. 1. बंदर को गुस्सा आता है तो वह तबले को पीटता है. तबला बजता है तो उसे और गुस्सा आता है, वह और जोर से तबले को पीटता है. खिसियाने वाले का मजाक उड़ाने के लिए. 2. बंदर ने कोई नुकसान पहुँचाया. बंदर का कुछ नहीं कर सकते तो तबले को पीट रहे हैं.
बंदर का गुस्सा तबेले पर. तबेला – घुड़साल. पुराने विश्वास के अनुसार घुड़साल के आसपास बंदर पाले जाते हैं जिससे कि घोड़ों पर आने वाली बला बंदरों पर आ जाए. इस बात से नाराज होकर कोई बंदर घुड़साल का क्या बिगाड़ सकता है. क्षुद्र व्यक्ति यदि किसी बड़ी चीज़ पर गुस्सा करे तो यह कहावत कही जाती है.
बंदर के हाथ में आइना. बंदर आइने की कद्र नहीं जान सकता, उसमें अपनी शक्ल देख कर उसे दूसरा बंदर समझ कर तोड़ देगा. मूर्ख व्यक्ति बहुमूल्य वस्तु का मोल नहीं समझ सकता.
बंदर के हाथ में उस्तरा. किसी नासमझ व्यक्ति के हाथ में कोई छोटा सा अस्त्र भी बहुत खतरनाक हो जाता है. वह औरों को भी बहुत हानि पहुँचा सकता है और अपने को भी चोट मार सकता है. उस्तरे से पहले नाई लोग हजामत बनाते थे.(देखिये परिशिष्ट)
बंदर क्या जाने अदरख का स्वाद. अगर आप बंदर को अदरक खाने को दें तो वह यह नहीं समझेगा कि यह कोई नायाब चीज है. वह उसे कड़वा और चरपरा समझ कर थूक देगा. किसी नासमझ आदमी को कोई अक्ल की बात बताई जाए या कोई बढ़िया चीज दी जाए और वह उसकी कद्र न करे तो यह कहावत कही जाती है.
बंदर दारू पी कर सिकंदर बन जाता है. कोई मूर्ख आदमी नशा कर ले तो अपने आप को राजा समझता है.
बंदर नाचे, ऊँट जल मरे. बन्दर को आज़ादी से नाचता देख कर ऊँट को बहुत जलन होती है, क्योंकि वह न तो आज़ाद है, न ही उसे नाचना आता है. दूसरे को प्रसन्न देख कर परेशान होना.
बंदर बूढ़ा हो जाए फिर भी छलांग लगाना नहीं भूलता. बूढ़ा होने के बाद भी आदमी की खुराफातें कम नहीं होतीं.
बंदरों के बीच में गुड़ की भेली. बंदरो के झुंड में अगर गुड़ की भेली रख दी जाए तो वे उस पर कब्जा करने के लिए आपस में बुरी तरह लड़ते हैं. अपात्र लोग किसी चीज के लिए झगड़ रहे हों तो यह कहावत कही जाती है.
बकरा मुटाय, तब लकड़ी खाय. बकरा ज्यादा मोटा हो जाता है तो लड़ाका हो जाता है, इसलिए पिटता है.
बकरिया पागुर करे, डायन बोले मुझे बुरा कहे. कमजोर व्यक्ति पर जबरदस्ती दोष लगा कर उसका शोषण करना.
बकरी के मुँहे कुम्हड़ा नाहीं समात. जब कोई आदमी कोई असंभव बात कहे, तो कहावत कही जाती है.
बकरी खटीक से ही बहलती है. खटीक – चमड़ा निकाल कर बेचने वाली एक जाति. बकरी यह नहीं जानती कि यह खटीक ही उसे मार कर उसकी खाल उतार लेगा. वह उसी का कहना मानती है. जो लोग भ्रष्ट, अराजक और लुटेरे नेताओं को अपना शुभचिंतक समझते हैं उन्हें सीख देने के लिए.
बकरी खाए न खाए पर मुँह तो जरूर मारे. बकरी की एक ख़ास आदत होती है कि उस का पेट कितना भी भरा हुआ हो, यदि उसके सामने पत्ते लाए जाएं तो वह उन में मुँह जरूर मारती है. यदि कोई व्यक्ति बिना जरूरत किसी काम में टांग अड़ाए तो भी यह कहावत कही जा सकती है. सन्दर्भ कथा – बकरी की एक ख़ास आदत होती है कि उस का पेट कितना भी भरा हो, यदि उसके सामने पत्ते लाए जाएं तो वह उन में मुँह जरूर मारती है (भले ही खाए न). अकबर के दरबार में एक बार इस को ले कर बहस हो रही थी. सभी दरबारी कह रहे थे कि बकरी की इस आदत को कोई नहीं बदल सकता. बादशाह ने बीरबल को चुनौती दी कि बीरबल भी ऐसी कोई बकरी ढूँढ़ कर नहीं ला सकते जो पत्तों में मुँह न मारे. बीरबल ने इस काम के लिए एक सप्ताह का समय माँगा.
एक सप्ताह बाद बीरबल दरबार में एक बकरी ले कर आए. बकरी के सामने पत्ते लाए गये. सारे दरबारी मन ही मन खुश हो रहे थे कि आज बीरबल की भद्द जरूर पिटेगी. लेकिन घोर आश्चर्य. बकरी ने मुँह एक तरफ मोड़ लिया. हमेशा की तरह बीरबल शर्त जीत गये थे. बादशाह ने कहा बीरबल शर्त तो तुम जीत गए, पर यह बताओ कि यह हुआ कैसे? बीरबल बोले हुजूर! इस के लिए मैं ने संटी उपचार किया. मैं बकरी के सामने एक लम्बी सी संटी ले कर बैठ गया. बकरी को पहले भरपेट घास खिलाई. फिर उस के सामने पत्ते रखे, जैसे ही बकरी ने पत्तों में मुँह मारा, एक संटी सूत के उस के मुँह पर मारी. यह प्रक्रिया दिन में कई बार दुहराई गई. धीरे धीरे बकरी को समझ आ गया कि वह घास चाहे जितनी खा ले, उसे पत्ते बिलकुल नहीं खाने हैं.
बकरी जान से गई, राजा कहें नमक कम है. किसी गरीब का बहुत बड़ा नुकसान कर के यदि बड़ा आदमी कहे कि उसका मतलब हल नहीं हुआ तो यह कहावत कही जाती है.
बकरी दूध तो दे पर मींगनी कर के. किसी का कोई काम करने के साथ में अशोभनीय व्यवहार करना.
बकरी मार घरैया खाई, पाहुने पे हत्या लगाई (मांस भात घरवइया खाएं, हत्या ले कर पाहुना जाए). किसी दूसरे की आड़ में स्वयं को लाभ पहुँचाना और दूसरे पर दोष लगाना. (मेहमान के बहाने खुद बकरी खा रहे हैं)
बकरी से हल चलता तो बैल कौन रखता. कम लागत से व्यापार हो तो अधिक लागत क्यों लगाई जाएगी.
बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी. जब कोई अप्रिय घटना होना अटलनीय हो. (जैसे बकरा तो कभी न कभी कटना ही है, उसकी माँ कब तक खैर मनाएगी).
बखत चूके जुगन को फेर. समय पर थोड़ा सा चूक जाओ तो युगों का अंतर पड़ जाता है. बीता अवसर दुबारा जल्दी हाथ नहीं आता.
बख्शो बी बिल्ली, चूहा लंडूरा ही जिएगा. लंडूरा – दुमकटा. एक बिल्ली ने चूहे पर झपट्टा मारा तो चूहे की पूँछ कट के उस के हाथ में आ गयी. चूहा जल्दी से बिल में घुस गया. बिल्ली बोली – चूहे राजा, बाहर आ जाओ, पूँछ जोड़ दूंगी. चूहा बोला, मुझे बख्शो बड़ी बी, मैं दुमकटा ही अच्छा. कोई दुष्ट व्यक्ति किसी को लालच दे कर फंसाने की कोशिश करे तो वह आदमी यह कहावत बोलेगा.
बगल में कटारी, चोर को घूंसों से मारे. 1. मूर्खता पूर्ण काम. कटारी होते हुए घूंसे मारना. 2. समझदारी भी कह सकते हैं. कटारी से मारने में इस बात का डर है कि अगर चोर मर गया तो उल्टे लेने के देने पड़ जायेंगे.
बगल में छोरा शहर में ढिंढोरा. ढिंढोरा – बड़ा ढोल. पहले के जमाने में कोई बात आम जनता को बताने से पहले ढोल बजा कर (ढिंढोरा पीट कर) लोगों का ध्यान आकर्षित करते थे. कहावत में कहा गया है कि लड़का तो बगल में मौजूद है और शहर में ढिंढोरा पीट कर उसे ढूँढा जा रहा है. पास में उपलब्ध किसी चीज़ को अन्यत्र ढूँढना.
बगल में तोशा, किसका भरोसा (अपना तोसा अपना भरोसा). जरूरत का सामान अपने साथ हो तो किसी पर निर्भर नहीं होना पड़ता. तोशा – खाने का सामान, टिफिन.
बगुला धोबी का भाई. बगुला और धोबी दोनों को ही पानी में खड़े रहना पड़ता है इसलिए.
बगुला मारे पखना हाथ. मुर्गा या बत्तख मारने पर तो मांस हाथ आएगा पर यदि बगुले को मारोगे तो केवल पंख हाथ लगेंगे. कहावत का अर्थ है कि किसी गरीब आदमी को सताने से क्या हासिल होगा.
बगुले से मछली की यारी. मूर्ख व्यक्ति अपना शोषण करने वाले ढोंगी लोगों को ही अपना मित्र समझते हैं. मूर्ख जनता अपने को लूटने वाले भ्रष्ट नेताओं को अपना हितैषी समझ कर वोट देती है (अधिकतर अपनी जाति का).
बगुलों की लड़ाई में चोंचों की खटखट. दो डरपोक लोग आपस में लड़ रहे हों और एक दूसरे को नुकसान पहुँचाने की हिम्मत न कर पा रहे हों तो उन का मजाक उड़ाने के लिए.
बचपन में खिलाए दूध औ भात, बड़ा हुआ तो मारे लात (बच्चे पाले दूधों भात, बड़े हुए तो मारें लात). जिस बच्चे को अत्यधिक लाड़ प्यार से पाला, वही बड़ा हो कर दुत्कारे तो माँ बाप को बहुत कष्ट होता है.
बचाया सो कमाया. धन बचाना भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना धन कमाना. क्रिकेट के खेल में भी कहते हैं runs saved are runs made.
बचे नर, हजार घर. आदमी की जान बची रहे तो घर तो बहुत से मिल जाएंगे.
बच्चा जने कोई, गोंद मखाने खाए कोई. पहले जमाने में स्त्रियों को प्रसव के बाद गोंद, मखाने, घी, मेवा (हरीरा, पंजीरी) इत्यादि खाने को मिलते थे. कहावत में कहा गया है कि प्रसव का कष्ट किसी और ने उठाया, और गोंद मखाने किसी और को खाने को मिल रहे हैं.
बच्चा बूढ़ा एक समान. बूढ़ा आदमी भी बच्चों के समान जिद्दी और मनचला हो जाता है. अधिक बूढ़ा होने पर मल मूत्र पर भी उसका नियंत्रण नहीं रहता.
बच्चा हुआ न, दर्दों मरी. गर्भ ही नहीं है और प्रसव पीड़ा का दिखावा कर रही है. बहरूपिनी स्त्रियों के लिए.
बच्चे तो पेट में भी लातें मारते हैं. बच्चों की शैतानियों पर कही गई कहावत.
बच्चे रोवें तब फूहड़ पोवे. जब बच्चे भूख से रोने लगते हैं तो फूहड़ स्त्री रोटी बनाने बैठती है.
बच्चे ही गरीब की अमानत हैं. गरीब का धन उसकी संतानें ही होती हैं, कमाने के लिए भी और मुसीबत में साथ देने के लिए भी.
बच्चों और मूर्खो के पेट में बात नहीं पचती. अर्थ स्पष्ट है.
बच्चों के पैर और बुड्ढों के मुँह खुजलाते हैं. बच्चों के पैर खुजलाते हैं अर्थात बच्चे एक जगह बैठते नहीं हैं, बुड्ढों के मुँह खुजलाते हैं मतलब बुड्ढे लोग चुप नहीं बैठते.
बच्चों के बिना घर कैसा. बच्चों से ही घर में रौनक होती है.
बच्चों से बोलूं नहीं, जवान मेरो भैया, बुड्ढन को छोडूँ नहीं चाहें ओढ़ें दस रजैयाँ (चाहें करें दय्या मैया). जाड़े का मौसम ऐसा कहता है.
बछवा बैल जुताय जो, न हल बहे न खेती हो. घाघ कहते हैं कि जो बछवा बैल (कम आयु का अनुभवहीन बैल) से हल जोतने की कोशिश करेगा वह खेती नहीं कर पाएगा.
बछवा बैल बहुरिया जोय, न घर चले न खेती होय. अनुभवहीन नये बैल से खेती नहीं हो सकती और अनुभवहीन नई बहू गृहस्थी नहीं संभाल सकती.
बछिया के बाबा, पड़िया के ताऊ. किसी मूर्ख व्यक्ति के लिए संबोधन. बछिया के ताऊ भी कहते हैं.
बछिया मरी तो मरी कलकत्ता तो देखा. कुछ नुकसान हुआ तो कुछ फायदा भी हो गया.
बजरंग बली का सोटा, फूट जाए भंगेड़ी का लोटा. भांग पीने वाले को डराने के लिए.
बजा दे बेटा ढोलकी, मियाँ खैर से आए. किसी काम में असफल हो कर कोई जान बचा कर लौट आया हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.
बजाज की गठरी का झींगुर मालिक (झींगुर बैठा थान पर तो बजाज बन बैठा). दूसरों के माल को अपना समझ कर घमंड करने वालों के लिए.
बजार लगा नहीं, उचक्कों ने डेरा डाल दिया. वस्तु तो तैयार नहीं, चाहने वाले पहिले से आ गये.
बज्जड़ परे कहाँ, तीन कायथ जहाँ. बज्जड़ – वज्र. जहाँ तीन कायस्थ हों वहाँ बर्बादी होना तय है. कायस्थों को कचहरी का पर्यायवाची माना जाता था.
बटिया खेती सांट सगाई, जा में नफा कौन ने पाई. बटिया खेती – बटाई की खेती, अधिया खेती. खेती को बटाई पे करने पर नफा नहीं मिलती और सांटे की सगाई (जिस घर में लड़की दी जाए उसी घर की लड़की को बहू बना कर अपने घर में लाया जाए) में दहेज़ आदि नहीं मिलता.
बटेऊ खांड मांडे खाए, कुतिया की जीभ जले. बटेऊ – राहगीर, मांडे – पतली रोटी. राह चलता आदमी कोई अच्छी चीज़ खा रहा है, उसे देख कर कुतिया की जीभ जल रही है. दूसरे की ख़ुशी देख कर जलना.
बड़ खुस बनिया, दमड़ी दान. बनियों की कंजूसी पर व्यंग्य. बनिया बहुत खुश होगा तो दमड़ी दान में देगा.
बड़ संग रहियो तो खइयो बीड़ा पान, छोट संग रहियो तो कटइयो दुनु कान. (भोजपुरी कहावत) सज्जन का संग अच्छा है जबकि दुष्टों का संग करने से हानि होती है. पूरब में अतिथि को पान खिलाने की प्रथा थी. किसी बड़े आदमी के साथ कहीं जाओगे तो पान खाने को मिलेगा और नीच आदमी के साथ जाओगे तो दोनों कान कटेंगे.
बड़का दुश्मन कौन, माँ का पेट. माँ का पेट – माँ के पेट से उत्पन्न दूसरी सन्तान अर्थात भाई. जायदाद के लिए भाइयों में दुश्मनी हो जाती है.
बड़गांव की भागवत शुरू ही से. प्रभावशाली लोगों के कारण बार बार कथावाचक को भागवत शुरू से सुनानी पड़ी. बिना किसी उचित कारण के किसी काम का बार बार रुकना. सन्दर्भ कथा – बड़गाँव का भागवत है, जो आरम्भ ही होता रहेगा. चम्पारन जिले में बड़गाँव नामक एक गाँव है. एक बार वहाँ एक कथावाचक आये. उन्होंने श्रीमद्भागवत की कथा आरम्भ की. कुछ देर के बाद एक बाबू साहब आये और उन्होंने पण्डितजी से आग्रह किया कि वे आरम्भ से ही कथा कहें. पण्डितजी भला उनकी बात कैसे टालते. उन्होंने पुनः आरम्भ से हो कथा शुरू की. थोड़ी देर बाद एक दूसरे महाशय आये और उन्होंने भी पण्डितजी से वैसा ही आग्रह किया. पण्डितजी फिर आरम्भ से ही कथा कहने लगे. इसी प्रकार एक-एक कर लोग आते और पण्डितजी को उनकी बात रखने के लिए बार-बार आरम्भ से ही कथा कहने को विवश होना पड़ता. फलस्वरूप, कई दिनों तक कथा का आरम्भ ही होता रह गया. उसी समय से यह घटना कहावत बन गई.
बड़न की बात बड़े पहचाना. बड़े लोगों की बातें बड़े ही समझ सकते हैं. इसको मज़ाक में अधिक प्रयोग करते हैं (दो मूर्ख लोग एक दूसरे की बड़ाई कर रहे हों तो). सन्दर्भ कथा – पूरी कहावत इस प्रकार है – काँधे धनुष, हाथ में बाना, कहाँ चले दिल्ली सुल्ताना, बन के राव विकट के राना, बड़न की बात बड़े पहचाना. एक बार एक धुनिया (रुई धुनने वाला) अपना धनुष जैसा औजार लिए जंगल में हो कर जा रहा था. एक सियार ने उसे देखा तो उसे शिकारी समझ कर डर गया. सियार ने उस की चापलूसी करने के लिए कहा कि कंधे पर धनुष और हाथ में वाण ले कर दिल्ली के सुल्तान, आप कहाँ जा रहे हैं? धुनिया ने कभी सियार नहीं देखा था, वह उसे शेर समझ कर डर गया और उसे मक्खन लगाने के लिए बोला कि हे जंगल के स्वामी, बड़े लोगों को बड़े ही पहचानते हैं. धुनिया और उस के औजार के लिए देखिये परिशिष्ट.
बड़न के साझे खेती करी, भुस बाँटन में मुस्किल परी. बड़े आदमियों के साझे में कोई काम नहीं करना चाहिए. कोई विवाद होने पर उनसे कुछ कहा नहीं जा सकता और अंत में अपने को ही हानि उठानी पड़ती है.
बड़न को बड़ो पेट. बड़े आदमियों का पेट भी बड़ा होता है. जो जितना बड़ा हाकिम होगा वह उतनी ही बड़ी रिश्वत मांगेगा. बड़े वकीलों की फीस बहुत ज्यादा होती है.
बड़सिंगा मत लीजो मोल, कुएं में डारौ रुपया खोल. बड़े सींग वाला बैल ठीक से काम नहीं करता. उसे खरीदना कुएं में रूपये डालने जैसा है. (घाघ की कहावतें)
बड़ा टूट कर भी बड़ा ही रहता है. बड़े आदमी को कुछ घाटा भी हो जाए तब भी वह छोटा नहीं हो जाता.
बड़ा धोता बड़ा पोथा, पंडिता पगड़ा बड़ा, अक्षरं नैव जानामि, स्वाहा स्वाहा करोम्यहम. पाखंडी पंडितों के लिए. बड़ी धोती, बड़ी पगड़ी पहन कर बड़ी पोथी हाथ में लिए हैं. मंत्र वंत्र कुछ नहीं जानते हैं, केवल कुछ बुदबुदा कर जोर से स्वाहा स्वाहा करते हैं.
बड़ा निवाला खाइए, बड़ा बोल न बोलिए. यदि आप सम्पन्न हैं तो अच्छा खाइये पर अहंकार मत करिए.
बड़ा बिस बिसधर के चलत है सीस नवाय, थोड़ा बिस बिच्छू के चलत है दुम अलगाय. सर्प के पास अधिक विष होता है मगर वह सिर झुकाकर चलता है, बिच्छू के पास थोड़ा विष होता है वह डंक को उठाकर चलता है.
बड़ा मरे बड़ाई को, छोटा मरे लाड़ को. वयस्क लोग जीवन में कुछ बनने के लिए संघर्ष कर रहे होते हैं. बच्चों को इस से कोई मतलब नहीं होता उन्हें केवल लाड़ प्यार ही चाहिए.
बड़ा रन जीत आये (बड़ा जस कर लओ) (बड़ौ यज्ञ कर लओ). किसी छोटे काम का बड़ा ढिढोरा पीटना.
बड़ा रोवे बड़ाई को, छोटा रोवे पेट को. बड़ा आदमी अपना बड़प्पन सिद्ध करने लिए परेशान रहता है और छोटा आदमी पेट भरने के लिए.
बड़ा लाड़ मोरी मौसी करें, छिनक छिनक सब कोने भरें. मेरी मौसी ने बड़ा लाड़-प्यार किया, तो नाक छिनक छिनक कर घर के सारे कोने भर दिये. बुजुर्ग लोगों के साथ कुछ अलग ही परेशानियाँ झेलनी पडती हैं.
बड़ा शोर सुनते थे कि हाथी की पूंछ है, पास जाके देखा तो सुतली बंधी थी. अर्थ स्पष्ट है. किसी स्थान या व्यक्ति के बारे में बहुत तारीफ सुनी हो और पास जाकर देखने पर वास्तविकता कुछ और निकले तो.
बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर (पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर). कोई व्यक्ति बड़ा अधिकारी, नेता या अमीर बन गया पर आम लोगों की पहुँच से दूर है उस के लिए कहा गया है.
बड़ी असामी, बड़ी फरमाइश.1.बड़े लोगों की फरमाइशें बड़ी होती हैं. 2.बड़ी असामी से बड़ी रिश्वत मांगी जाती है.
बड़ी नाकवाले बने फिरत. बड़ी इज्जत वाले बनते हैं.
बड़ी नाव की बड़ी विपदा. जो काम जितना बड़ा होगा उस में आने वाली विपत्ति भी उतनी ही कठिन होगी.
बड़ी पत्तल का बड़ा बरा. बड़े आदमी का अधिक आदर-सत्कार होता है.
बड़ी बड़ी बात बगल में हाथ. जो लोग बातें बड़ी बड़ी करते हैं पर काम कुछ नहीं करते.
बड़ी बड़ी में नोन नाही पड़े. एक एक बड़ी में नमक नहीं डाला जाता बल्कि दाल को फेंटते समय पूरी दाल में डाला जाता है. हर काम को करने का एक तरीका होता है उसी तरह से काम को करना चाहिए.
बड़ी बहू को बड्डा भाग, छोटो बनड़ो घनो सुहाग. (राजस्थानी कहावत) अगर पत्नी की उम्र पति से अधिक है तो उसे भाग्यशाली मानते हैं, पति आयु में छोटा होगा तो पत्नी से अधिक दिन जीएगा एवम् पत्नी सुहागन रहेगी.
बड़ी बहू, बड़ा भाग. अर्थ ऊपर वाली कहावत की भाँति.
बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है. जिस प्रकार बड़ी मछली छोटी मछली को निगल जाती है उसी प्रकार बड़े व्यापार छोटे व्यापार को और बड़े अपराधी छोटे अपराधियों को निगल जाते हैं.
बड़ी मार करतार की, चित से दिये उतार. ईश्वर किसी पर कुपित होता है तो उसे मन से उतार देते हैं.
बड़ी रातों के बड़े ही सवेरे. अधिक कष्ट के बाद सुख भी अधिक ही मिलता है.
बड़ी हैं जेठानी तो रखें अपना पानी. यहाँ पानी का अर्थ मान सम्मान से है. जो बड़े हैं उन्हें अपने बड़प्पन का ध्यान स्वयं रखना चाहिए (ऐसा व्यवहार करना चाहिए कि छोटे स्वयं उनका सम्मान करें).
बड़े आदमी का कुत्ता भी घमंडी. जिस के पास सत्ता या ताकत हो उस को अहंकार हो जाना स्वाभाविक है, लेकिन देखा यह गया है कि उसके नौकर चाकर, रिश्तेदार और चमचे भी अहंकारी हो जाते हैं.
बड़े आदमी की एक बात, बड़े घोड़े की एक लात. (बुन्देलखंडी कहावत) अर्थ स्पष्ट है.
बड़े आदमी के चेले बनो कंगाल के दोस्त नहीं. कंगाल से दोस्ती करोगे तो उस की सहायता करने में ही उमर बीत जाएगी. बड़े आदमी के चेले बनने से खुद बड़ा बनने की संभावना हो जाती है.
बड़े आदमी ने साग खाया तो कहा सादा मिजाज़ है, गरीब ने साग खाया तो कहा कंगाल है. अर्थ स्पष्ट है. नेताजी खद्दर पहनते हैं तो उनकी महानता मानी जाती है, गरीब आदमी पहनता है तो उसका मजाक उड़ाया जाता है.
बड़े कढ़ाई में तले जाते हैं. सीधा अर्थ तो यह है कि कढ़ाई में तल कर दाल के बड़े बनाए जाते हैं. श्लेष अर्थ यह है कि घर के बड़ों को बहुत कष्ट उठाना पड़ता है.
बड़े की पीठ काली करें, छोटे का मुहँ काला. लोग बड़े आदमी की बुराई तो उसकी पीठ पीछे ही करते हैं लेकिन छोटे आदमी को उसके मुँह पर बुरा कहते हैं.
बड़े की बड़ाई न छोटे की छुटाई. 1. ऐसे व्यक्ति के लिए जो न बड़ों का सम्मान करता हो और न ही छोटों को स्नेह करता हो. 2. बड़े अपने बड़प्पन का ध्यान नहीं रखेंगे तो छोटे भी उनका सम्मान नहीं करेंगे.
बड़े गाँव जाऊं, बड़ा लड्डू खाऊं. बड़ी जगह पर कमाई अधिक होने की संभावना अधिक होती है.
बड़े घड़े के ठीकरे किस काम के. टूटे घड़े के टुकड़े किसी काम के नहीं होते, छोटे घड़े के हों या बड़े खड़े के.
बड़े घर पड़ी, पत्थर ढो ढो मरी. लड़की ऐसे घर में ब्याह के गई जहाँ बहुत बड़ा परिवार था. बेचारी काम करते करते मर गई.
बड़े घर में बेटी दी, उससे मिलना भी मुश्किल. बेटी के घर खाली हाथ नहीं जाते हैं. बेटी बड़े घर की बहू है, हर बार उसी के अनुरूप भेंट ले कर जाना पड़ेगा.
बड़े घोड़े की बड़ी चाल. बड़े लोगों का चाल चलन अलग ही होता है.
बड़े चोर का बड़ा हिस्सा. लूट या चोरी के माल में बड़े अपराधी को अधिक हिस्सा मिलता है. रिश्वत का पैसा जब कर्मचारियों में बंटता है तो भी यह नियम लागू होता है.
बड़े न बूड़न देत हैं जाकी पकड़ी बांह, जैसे लोहा नाव में तिरत रहे जल मांह (लोहा तिरे काठ के संग). बड़े लोग जिसकी बांह पकड़ लेते हैं उसको डूबने नहीं देते, जैसे लकड़ी के साथ लोहा भी पानी में तैरता रहता है.
बड़े पेड़ों की बड़ी शाखें. बड़े संगठनों या प्रतिष्ठानों की शाखाएं भी बड़ी होती हैं.
बड़े बचन पलटें नहीं कही निबाहें धीर, कियो विभीषन लंकपति पाय विजय रघुवीर. बड़े लोग अपने वचन से पलटते नहीं हैं, उसे निबाहते हैं. राम ने लंका विजय के बाद विभीषण को ही लंका का राजा बनाया.
बड़े बड़ाई ना करैं, बड़ो न बोलैं बोल, (हीरा कब मुख ते कहै, लाख टका मेरो मोल). जो लोग वास्तव में महान होते हैं वे अपने मुँह से अपनी बड़ाई नहीं करते. हीरा अपने मुँह से नहीं कहता कि उसका मोल लाख रुपये है.
बड़े बड़े नाग पड़े, ढोंढ मांगे पूजा. ढोंढ – एक छोटा विषहीन सर्प. छोटा कर्मचारी अधिक रिश्वत मांगे तो.
बड़े बड़े बादल टकराते हैं तो बिजली चमकती है. बड़े लोगों की लड़ाई के परिणाम भयानक हो सकते हैं.
बड़े बड़े भूत कदम्ब तले रोवें, मूआ मांगे पूआ. कदम्ब के पेड़ के नीचे बड़े बड़े भूत बैठे रो रहे हैं, उन्हें कोई नहीं पूछ रहा, और ये मुर्दा पुए खाने को मांग रहा है. कोई महत्वहीन व्यक्ति अनुचित मांग करे तो.
बड़े बर्तन की खुरचन ही बहुत होती है. शाब्दिक अर्थ तो स्पष्ट है, कहावत का अर्थ यह है कि बड़े लोगों के यहाँ का बचा खुचा भी गरीब के लिए बहुत है. रूपान्तर – बड़े बर्तन की खुरचन बड़ी.
बड़े बात से, छोटे लात से. बड़े लोगों को बातचीत द्वारा समझाया जा सकता है किन्तु नीच लोगों को दंड दे कर ही समझाया जा सकता है.
बड़े बे आबरू होके, तेरे कूचे से हम निकले. अपमानित हो कर कहीं से निकलना पड़े तो.
बड़े बोल का सिर नीचा (बड़े बोल का मुँह काला) (घमंडी का सिर नीचा). अहंकारी कितनी भी बड़ी बड़ी बातें करे, उस को कभी न कभी नीचा देखना पड़ता है.
बड़े मरें बड़ाई को, छोटे मरें दुलार को. बड़े लोग प्रशंसा व प्रसिद्धि चाहते हैं और छोटे बच्चे केवल लाड़ प्यार.
बड़े मियाँ तो बड़े मियाँ छोटे मियाँ सुभान अल्लाह. जब कोई बड़े ओहदे वाला आदमी गड़बड़ियां करने वाला हो और उसके नीचे काम करने वाले और अधिक खुराफाती हों तब यह कहावत कही जाती है.
बड़े मियाँ बड़ा नाम, हिले दाढ़ी डोले गाँव. प्रभावशाली लोगों से सारा गाँव डरता है. विशेषकर मुगलों के शासनकाल में इस प्रकार का अन्याय बहुत अधिक था.
बड़े रईसों के मर्दन मान, घूरे पर की ठीकरी भई प्रधान. बड़े लोगों के घमंड को तोड़ कर कोई बहुत छोटा व्यक्ति महत्वपूर्ण पद पर पहुँचा जाए तो. घूरा – कूड़े का ढेर, ठीकरी – टूटे घड़े का टुकड़ा.
बड़े लोगों की डांट दूध मलाई होती है. बुजुर्गों की डांट का बुरा बिल्कुल नहीं मानना चाहिए. इससे केवल हमारी भलाई ही होती है.
बड़े लोगों के कान होते हैं आँखें नहीं. बड़े लोग केवल अपने चापलूसों की बातें सुन कर विश्वास कर लेते हैं, स्वयं देख कर सच्चाई जानने की कोशिश नहीं करते.
बड़े शहर का बड़ा ही चाँद. बड़े शहरों की हर बात निराली होती है.
बड़े सपूत करौ रुजगार, सोलह सौ के करे हजार. लड़के ने सोलह सौ रूपये लगा कर व्यापार किया तो हजार रूपये रह गये. संतान की अनुभवहीनता से किसी काम में नुकसान हो जाने पर.
बड़े होंए न नेक भी, कितनेहु फाड़ो नैन. कितना भी आँखें फाड़ो, छोटी आँख बड़ी नहीं हो सकती.
बड़ों का बड़ा मुँह. बड़े लोगों की मांग भी बड़ी होती है (वे अधिक मुँह फैलाते हैं).
बड़ों की आस सब करत. 1.बड़ों से सब आशा रखते हैं. 2.अच्छी चीजें (दही बड़े) सब खाना चाहते हैं.
बड़ों की जितनी आमदनी उतना खर्च. बड़ों की आमदनी अधिक होती है तो खर्च भी अधिक होता है.
बड़ों की बड़ी बात. 1. बड़े लोगों की बड़ी बड़ी बातें होती हैं. छोटे लोग उन से बराबरी करने की कोशिश में नुकसान उठाते हैं. 2. बुजुर्ग लोगों की सलाह बड़े काम की होती है.
बड़ों के कहे और आंवलों के खाए का पीछे ही स्वाद आता है. आंवला खाओ तो पहले कड़वा लगता है बाद में उसका स्वाद आता है, बड़े लोगों की सलाह पहले बुरी लगती है पर बाद में उसका महत्व मालूम पड़ता है.
बड़ों के पाँव सिर पर. बड़ों की आज्ञा शिरोधार्य करनी चाहिए.
बड़ों के बड़े हाथ. बड़ा आदमी किसी की बहुत सहायता कर सकता है.
बड़ों के भाग में सब का भाग. बड़ों के भाग्य से दूसरे लोग भी खाते-पीते हैं. माता पिता बूढ़े हो जाएँ और कुछ कमाने लायक ना रहें, तो भी उन का अनादर नहीं करना चाहिए.
बड़ों को टोपी नहीं, कुत्ते को पजामा. घर के बड़ों की अनदेखी कर के आलतू फ़ालतू लोगों को लाभ पहुँचाना.
बड़ों को बड़े ही कलेस. बड़ों की समस्याएं भी बड़ी होती हैं.
बड़ों को लड़ा कर बच्चे फिर एक हो जाते हैं. बच्चों की लड़ाई में बड़े शामिल हो जाते हैं और आपसी रंजिश पाल लेते हैं, जबकि बच्चे फिर एक हो जाते हैं.
बड़ों को होवे दुख बड़ा, छोटों से दुख दूर, तारे तो न्यारे रहें गहे राहु ससि सूर. बड़े लोगों की परेशानियाँ भी बड़ी होती हैं, जबकि छोटे लोग उन विपदाओं से दूर रहते हैं. राहु, सूर्य और चन्द्रमा को ही ग्रसता है तारों को नहीं.
बढ़िया मिल गया तो बिटिया के भाग, न मिला तो नाऊ बामन मारियो. (हरियाणवी कहावत) पहले के जमाने में नाई और ब्राह्मण रिश्ते करा दिया करते थे. बढ़िया रिश्ता मिल गया तो कहेंगे हमारी बेटी का भाग्य अच्छा था, और खराब मिला तो नाई और पंडित को मारो.
बढ़े बाल औ मैले कपड़े और करकसा नार, सोने को धरती मिले नरक निसानी चार. कहावत में घोर दुर्दशा के चार लक्षण बताए हैं – बढ़े हुए बाल (पहले जमाने में बढ़े हुए बालों को बहुत बुरा माना जाता था), मैले कपड़े, कर्कश पत्नी और जमीन पर सोना.
बढ़ें तो अमीर, घटें तो फकीर, मरें तो पीर. मुसलमानों के विषय में अन्य धर्म वालों का व्यंग्य – वे तरक्की करते हैं तो अमीर बन जाते हैं, नुकसान हो जाए तो फकीर बनने का नाटक कर के मौज करते हैं और मर जाएं तो पीर बन कर अपनी पूजा करवाते हैं. मतलब हर परिस्थिति का लाभ उठाते हैं.
बतख तिरे तो तिरन दे, तू क्यों डूबे काग (बत्तख की नकल करने में कौआ डूब जाता है). दूसरों की नकल करने में अपना नुकसान नहीं करना चाहिए. (विशेषकर यदि कोई गरीब आदमी किसी अमीर की नकल करे तो). पूरी कहावत इस प्रकार है – बत्तख तिरती देख के तू क्यूँ डूबे कग्ग, होड़ पराई जो करे तले मुंडी ऊपर पग्ग.
बत्तीस दाँतन में जैसे जीभ. बहुत सतर्क होकर चलना.
बद अच्छा बदनाम बुरा. बहुत से लोग वाकई में बुरे होते हैं लेकिन लोग उनके बारे में सच नहीं जानते इसलिए उन्हें अच्छा समझते हैं (बद होते हुए भी अच्छे), कुछ लोग इतने बुरे नहीं होते पर किसी कारणवश बदनाम हो जाते हैं और लोग उन्हें बुरा ही समझते हैं (कोई भी गलत काम हो उनका ही नाम लगाते हैं).
बद बदी से न जाए तो नेक नेकी से भी न जाए. अगर बुरा आदमी बुराई नहीं छोड़ सकता तो अच्छे आदमी को अच्छाई भी नहीं छोड़नी चाहिए.
बदनाम भी होंगे तो क्या नाम न होगा. कुछ लोगों को नाम की इतनी भूख होती है कि वे उसके लिए गलत काम करने को भी तैयार हो जाते हैं, उन्हें बदनामी में भी अपनी प्रसिद्धि दिखाई देती है.
बदबू को जितना छिपाओ उतनी ही फैले. अर्थ स्पष्ट है.
बदरकट्टू घाम और अछरकट्टू पंडित बड़े खतरनाक. बादलों को फाड़ कर निकलने वाली धूप और गलत अक्षर और मन्त्र बोलने वाले पंडित बड़े खतरनाक होते हैं.
बदरी हो गई सांझ, फूहर जाने भई भिनसार. बदरी – बादल, भिनसार – सुबह. फूहड़ स्त्री सांझ के समय आकाश में घिरे बादलों को देखकर सुबह होने का अंदाज लगा रही है.
बदली की छाँव क्या. बादल अभी यहाँ तो कुछ देर बाद कहीं और होता है, उसकी छाँव पर आप भरोसा नहीं कर सकते. जो भी चीज़ क्षण भंगुर है उस के सहारे नहीं बैठना चाहिए.
बन आई कुत्ते की जो पालकी बैठा जाए. किसी दुष्ट व्यक्ति को या बड़े आदमी के मुंहलगे नौकर को ठाठ बाट से रहता देख कर आम आदमी के उद्गार.
बन के जाये, बन ही में नाहिं रहत. जाए – पैदा हुए. आदमी के दिन सदा एक से नहीं रहते. किसी राजा ने अपनी एक रानी को घर से निकाल दिया. जंगल में उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ. संयोग से एक साधू वहाँ जा पहुँचा. उसने रानी को अपनी बेटी की तरह रखा और उसके पुत्र का पालन पोषण किया. बड़ा होने पर वह लड़का एक बड़े राज्य का राजा बन गया, और एक राजा की बेटी से उसका विवाह भी हो गया.
बन गई तो लालाजी, बिगड़ गई तो बुद्धू. काम बन जाए तो व्यक्ति बुद्धिमान माना जाता है, न बने तो मूर्ख.
बन में अहीर, नैहर में जोय, जल में केवट, काऊ के न होय. अहीर जब जंगल में हो, पत्नी अपने मायके में हो और केवट जल में नाव खे रहा हो, ये तीनों उस समय किसी के सगे नहीं होते.
बन में उपजे सब कोई खाए, घर में उपजे घर खा जाए. यह एक पहेलीनुमा कहावत है जिसका उत्तर है – फूट (खरबूजे की जाति का फल जो पकने पर अपने आप फूट जाता है). कहावत में कहा गया है कि फूट अगर वन में उगती है तो उसे सब कोई खाते हैं और अगर घर में उगती है (आपसी फूट) तो घर को खा जाती है.
बन में बेर पके, कौवा के कौन काम के. (भोजपुरी कहावत) वन में बेर पक रहे हैं तो कौवे को उससे कोई लाभ नहीं होने वाला, क्योंकि वह तो शहर में रहने लगा है.
बन में ही रहना भला, बन पशुओं के साथ, मूरख के संग स्वर्ग में अच्छा नहीं निवास. अर्थ स्पष्ट है.
बनज में भाई बंदी क्या. बनज – वाणिज्य, व्यापार. व्यापार में भाई बन्धु नहीं देखे जाते.
बनते देर लगती है, बिगड़ते नहीं लगती. अर्थ स्पष्ट है.
बनल काम में बाधा डालो कुछ तो पंच दिलाएगा. (भोजपुरी कहावत) बनते काम में बाधा डालो. झगड़ा निपटाने की एवज में कुछ न कुछ तो मिल जाएगा.
बनिए का बहकावा और जोगी का फिटकारा. इनसे बचना मुश्किल है. फिटकारा – श्राप.
बनिए का बेटा कुछ देख कर ही गिरता है. बनिये इतने चालाक माने गये हैं कि अगर गिरते भी हैं तो कुछ देख कर उसे उठाने के लिए गिरने का बहाना करते हैं.
बनिए का लिखा बनिया बांचे. किसी कारोबार के रहस्य दूसरा कारोबारी ही समझ सकता है.
बनिए की उचापत घोड़े की दौड़ सी. बनिए का उधार घोड़े की तरह तेज दौड़ता है.
बनिए की कमाई उसके चूतड़ों में होती है. बनिया गद्दी से चिपक कर बैठता है तभी कुछ कमा पाता है.
बनिए की सलाम बेगरज नहीं होती. बनिया अगर किसी को सलाम कर रहा है तो उस का कुछ न कुछ स्वार्थ अवश्य होगा.
बनिए तेरी बान, कोई सके न जान, पानी पीवे छान, लहू पिए बिन छान. बनिए मौका मिलते ही चूना लगा देते हैं और क़र्ज़ वसूलने में बड़े निर्दयी होते हैं.
बनिक पुत्र जाने कहा गढ़ लेवे की बात. बनिए का बेटा किला खरीदने की बात नहीं सोच सकता. छोटी सोच रखने वाला व्यक्ति बहुत बड़ा काम नहीं कर सकता.
बनिया अपना गुड़ छिपा कर खाता है. बनिया अपने धन का दिखावा नहीं करता.
बनिया अपने बाप को भी ठगे. कुछ कहावतों में बनिए को बहुत स्वार्थी और धूर्त माना गया है.
बनिया कब कबूले कि नफा बहुत है. बनिया अपने मुँह से कभी नहीं कहता कि उसे व्यापार में बहुत लाभ है.
बनिया को सखरच, ठाकुर को हीन, वैद्य पूत व्याध नहिं चीन्ह, पंडित चुप चुप, बेसवा (वैश्या) मईल, घाघ कहहिं पांचो घर गइल. बनिए का बेटा खर्चीला हो, ठाकुर का बेटा तेजहीन हो, वैद्य अपने पुत्र की बीमारी न समझ पाए (या वैद्य पुत्र को बीमारियों की पहचान न हो), पंडित चुप रहने वाला हो और वैश्या मैले वस्त्र पहनने वाली हो, ये पाँचों घर चले जाते हैं अर्थात व्यवसाय नहीं कर पाते हैं.
बनिया खाट में तो बामन ठाठ में, बनिया ठाठ में तो बामन खाट में. बनिया बीमार होगा तो पूजा पाठ करेगा जिससे पंडित की मौज होगी और बनिया ठाठ में होगा तो पंडित भूखा मरेगा.
बनिया गम खाने में सयाना. गम खाना – कष्ट को सह लेना. बनिया व्यापार में होने वाले भांति भांति के नुकसान झेल कर परेशानियों का अभ्यस्त हो जाता है.
बनिया गुड़ न दे गुड़ की सी बात तो करे. एक बनिए से किसी ने थोड़ा गुड़ मांगा. बनिए ने कहा, चलो आगे बढ़ो, चले आते हैं मुफ्त में मांगने. उसने कहा भैया गुड़ न दो गुड़ जैसी मीठी बात तो बोल सकते हो. व्यापार में बुजुर्ग लोग बच्चों को समझाते हैं कि हर एक से मीठा बोलना सीखो. किसी को मना करो तो भी मिठास के साथ.
बनिया चाहे बैठा खाए, मूल धन कहीं न जाए. बनिया ही क्यों, हम सभी यह चाहते हैं कि हमें बैठे बैठे (बिना काम किए) खाने को मिलता रहे और हमारी पूँजी कम न हो.
बनिया दिवाला भी निकालेगा तो कुछ रखकर ही निकालेगा. जिसका दीवाला निकलता है उस की देनदारी बहुत कम हो जाती है (उसकी बची हुई सम्पत्ति के अनुपात में). बनिया चालाक होता है, अपने को दीवालिया घोषित करने और बची हुई सम्पत्ति घोषित करने से पहले काफी कुछ धन निकाल लेता है.
बनिया बामन बन जाए तो सौदा तौले कौन. समाज में जिसका जो काम उसे वही करना चाहिए तभी समाज की व्यवस्था सुचारू रूप से चलती है. बनिया ब्राह्मण बन जाएगा तो जरूरत के सामान कौन बेचेगा.
बनिया मारे जान, ठग मारे अनजान. बनिया जानने वाले को ठगता है और ठग अनजान व्यक्ति को.
बनिया मीत न बेसवा सत्ती, सुनार साँच न एको रत्ती. बनिया किसी का दोस्त नहीं हो सकता, वैश्या पतिव्रता नहीं हो सकती और सुनार सच्चा नहीं हो सकता. एको रती – रत्ती भर भी.
बनिया मीत न वेश्या सती, कागा हंस न गदहा जती. ऊपर वाली कहावत से कुछ हट कर. बनिया किसी का मित्र नहीं हो सकता, वैश्या सती सावित्री नहीं हो सकती, कौवा हंस नहीं हो सकता और गधा सन्यासी नहीं हो सकता.
बनिया मेवे का रूख. बनिए को खुश करो तो बहुत कुछ मिल सकता है.
बनिया या तो आंट मे दे या खाट में दे. आंट – परेशानी. बनिया मुसीबत में फंसता है तो पैसा खर्च करता है, या बीमार पड़ता है तो करता है.
बनिया रीझे तो हँस के दांत दिखावे. बनिया खुश होता है तो देता कुछ नहीं है, केवल हँस के दांत दिखा देता है.
बनिया रीझे, हर्रे दे. बनिया किसी से खुश होगा तो क्या देगा – हर्र. हर आदमी की अपनी अलग मानसिकता होती है जिस के अनुसार ही वह कुछ दे सकता है.
बनिया लड़ेगा भी तो गढ़ी ईंट को ही उखाड़ेगा. 1. बनियों की कंजूसी पर व्यंग्य है. 2. बनिया लड़ता है तो पुराने बही खाते निकाल कर देनदारी दिखाता है.
बनिया लिखे पढ़े करतार. कुछ तो बनिए की लिखावट वैसे ही गंदी होती है, कुछ वह जान बूझ कर गंदा लिखता है जिसे कोई पढ़ न पाए. पहले के जमाने में बही खाते लिखने में मुंडी भाषा का प्रयोग होता था जिसमें मात्राएँ नहीं होती थीं इसलिए उसे पढ़ना और मुश्किल होता था.
बनिया हाट न छेडिये, जाट जंगल के बीच. अपने अपने स्थान पर सब मजबूत होते हैं. बनिए को बाज़ार में मत छेड़ो और जाट को जंगल में.
बनिये का जी धनिये बराबर. बनियों की कायरता और कंजूसी पर व्यंग्य. कुछ लोग इसके आगे इस प्रकार से बोलते हैं – बनिए का जी धनिया, बनियाइन बड़ी उदार, अर्थात बनिया कंजूस है पर उसकी पत्नी उदार है.
बनिये को पसंगे की आस. अधिक लाभ कमाने के लिए बनिए अपने तराजू में पासंग की जुगाड़ कर लेते हैं जिस से तराजू कम तौलता है.
बनिये से सयाना, सो दीवाना. बनिये से चतुर कोई नहीं होता.
बनी के सौ साले, बिगड़ी का एक बहनोई भी नहीं (बनी के सब संघाती, बिगड़ी का कोई नहीं). आपके अच्छे दिनों में बहुत लोग आपसे रिश्ते निकाल लेते हैं. बुरे दिनों में कोई पास नहीं फटकता.
बनी को बनावे सो बनिया. बने हुए काम को और अधिक अच्छा बना कर दिखाये वही सच्चा वैश्य है.
बनी को सब सराहें. बने काम की सब सराहना करते हैं.
बनी न बिगारी तो बुंदेला काहे के. (बुन्देलखंडी कहावत) बुंदेले लोगों को यह कहने में गर्व होता है कि वे किसी की बनी बनाई बात को बिगाड़ने की क्षमता रखते हैं.
बनी फिरे बेसवा, खोले फिरे केसवा. पहले के जमाने में स्त्रियों के लिए बाल खोल कर घूमना बहुत निर्लज्जता की निशानी मानी जाती थी, केवल वैश्याएं ही ऐसा कर सकती थीं. बेसवा – वैश्या.
बनी बनावे बानिया, बनी बिगाड़े जाट, मूंड़ें सीस सराह के, डोम कवी अरु भाट. बनिया बनी हुई बात को और बनाता है जबकि जाट बनी हुई को बिगाड़ देता है. डोम, कवि और भाट आपकी प्रशंसा कर के आपको मूँड़ते हैं. मूंड़ें सीस – सर मूंडते हैं, सराह के – प्रशंसा कर के.
बनी बनी के सब कोई साथी, बिगड़ी के कोई नाहीं (बनी के सब यार हैं). जब आप के दिन अच्छे होते हैं तो सब आपके दोस्त होते हैं.
बनी सो हमारी, बिगड़ी सो तुम्हारी. काम बन जाए तो उसका श्रेय हम लेंगे, बिगड़ जाए तो जिम्मेदारी तुम्हारी.
बने को सब ही सराहें, बिगड़े को कहें कमबख्त. जिसका काम बन जाए उसकी सब सराहना करते हैं. जिसका बिगड़ जाए उसे मूर्ख और अभागा कहते हैं.
बने तो इंद्रजाल, बिगड़े तो जी का जंजाल. जो लोग जादू टोना करने में विश्वास रखते हैं उन को सीख दी गई है कि यही जादू टोना यदि बिगड़ जाए तो उल्टा उन के ऊपर पड़ सकता है.
बने पे यार बिगड़े पे भकुआ. आपके अच्छे दिनों में आपको दोस्त बताने वाले लोग आपके बुरे दिनों में आपको मूर्ख बताने लगते हैं.
बन्दर एक निसाचरी लाया कर अपनी अर्धंगी, लालदास रघुनाथ कृपा से पैदा हुए फिरंगी. राम की सेना के एक वानर ने एक राक्षसी से शादी कर ली, उनसे जो संतानें पैदा हुईं वही फिरंगी (अंग्रेज़) हुए. इसके पीछे यह किंवदन्ती भी है कि भगवान राम ने वानरों को वरदान दिया था कि उनके वंशज कलियुग में संसार पर राज करेंगे.
बन्दर कभी गुलाटी मारना नहीं भूलता. धूर्त व्यक्ति कभी धूर्तता करने से बाज नहीं आता.
बन्दर का जखम जल्दी न भरे. क्योंकि बन्दर उसे हर समय नोचता खुजाता रहता है. कहावत इस आशय में प्रयोग करते हैं कि मूर्ख आदमी के नुकसान की भरपाई आसानी से नहीं होती.
बन्दर का हाल मुछंदर जाने. मुछन्दर बंदरों के सरदार को कहते हैं. जो सच्चा नेता है वही जनता का हाल जान सकता है.
बन्दर की आशनाई, घर में आग लगाई) (बन्दर की दोस्ती, जी का जियान). बंदर से प्रेम करने का अर्थ है अपना घर बर्बाद करना. कहावत का अर्थ है कि अपात्र से प्रेम नहीं करना चाहिए. आशनाई – प्रेम.
बन्दर के गले में मोतियों का हार. किसी अपात्र को बहुमूल्य चीज़ मिल जाना (जैसे किसी कुरूप व्यक्ति को बहुत सुंदर पत्नी मिल जाना).
बन्दर के हाथ में नारियल. किसी मूर्ख व्यक्ति को कोई ऐसी चीज़ मिल जाना जिसका वह उपयोग न कर सकता हो (बंदर नारियल को तोड़ नहीं पाता है).
बन्दर घाव से न मरे, पुरसाहाली से मरे (वानर की फुंसी देखादेखी गइल). बन्दर के घाव हो जाता है तो दूसरे बन्दर उससे सहानुभूति दिखाते हुए उसके घाव को कुरेद कुरेद कर देखते हैं. इससे घाव और बड़ा होता जाता है और बन्दर मर जाता है. सहानुभूति दिखाने वाले अक्सर लाभ के मुकाबले नुकसान अधिक करते हैं.
बन्दा जोड़े पली पली और राम लुढ़ावे कुप्पा. पली – एक प्रकार का चमचा जो कुप्पे या पीपे में से घी, तेल निकालने के काम आता है, कुप्पा – बड़ा मटका. आदमी चमचा चमचा भर के इकट्ठा करता है, ईश्वर एक साथ कुप्पा ही लुढ़का देता है. पली और कुप्पे का चित्र देखने के लिए देखिए परिशिष्ट.
बर मरे चाहे कन्या, हमें तो दच्छना से काम. स्वार्थी पंडित के लिए.
बरखा हो तो खेलूं खाऊँ, काल पड़े घर जाऊं. वर्षा हो और अच्छी खेती हो तो तुम्हारे यहाँ मौज करेंगे, अकाल पड़ा तो घर चले जाएंगे. विशुद्ध स्वार्थ.
बरगद का भार जटाएँ झेलती हैं. बरगद का वृक्ष जब बहुत फ़ैल जाता है तो उसका तना पूरा भार नहीं संभाल पाता. बरगद की जो जड़ें (जटाएं) पेड़ से लटकती हैं वे जमीन तक पहुँच जाती हैं और मोटी हो कर तने के समान पेड़ का भार संभालती हैं. इसी प्रकार बड़े परिवार में एक बुजुर्ग पर सारी जिम्मेदारी न डाल कर और सदस्यों को भी परिवार का भार उठाना चाहिए.
बरगद के नीचे पेड़ नहीं बढ़ते. बड़े पेड़ की छाँव में पेड़ नहीं बढ़ते. बच्चों को सीख देने के लिए यह कहावत कही जाती है कि हमेशा माँ बाप के साए में रहने वाला बच्चा स्वतंत्र रूप से कुछ नहीं बन सकता.
बरगद बोलते बोलते पीपल बोलने लगे. बात बदलने वाला व्यक्ति.
बरतन से बरतन खटकता ही है (जहां चार बर्तन होंगे वहां खटकेंगे भी). जब चार लोग साथ रहते हैं तो कभी कभार उनमें थोड़ा बहुत मन मुटाव हो जाना स्वाभाविक है.
बरधा सींग का, मरद लंगोट का. कुछ लोग कहते हैं कि बैल वही अच्छा है जिसके सींग मजबूत हों और मर्द वही अच्छा है जो पौरुष शक्ति से भरपूर हो. इसके जवाब में ज्ञानी लोग कहते हैं – बरधा कांध का, मरद जुबान का, अर्थात बैल वह अच्छा जिसके कंधे मजबूत हों और मर्द वह अच्छा जो जुबान का पक्का हो.
बरसा पानी बह न पावे, तब खेती के मजा देखावे. वर्षा के पानी को सहेजने से ही खेती अच्छी हो सकती है.
बरसात बर के साथ. वर्षा का आनंद पति के साथ ही आता है.
बरसात में घोंघे का मुँह भी खुल जाता है. कोई मूर्ख व्यक्ति अचानक किसी बात के बीच में बोल पड़े तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.
बरसे सावन तौ होय पांच के बावन. सावन की वर्षा खेती के लिये विशेष रूप से लाभकर होती है.
बरसें कम, गरजें ज्यादा. जो लोग बातें बढ़ बढ़ कर करते हैं और काम कम करते हैं उनके लिए.
बरसेगा मेह होंगे अनंद, तुम साह के साह हम नंग के नंग. वर्षा होगी, खेती फले फूलेगी, अमीर आदमी और अमीर हो जाएगा, पर गरीब गरीब ही रहेगा.
बरसो राम कड़ाके से, बुढ़िया मर गयी फाके से. तेज वारिश में बच्चे खुश हो कर बोलते हैं कि हे भगवान जोर से पानी बरसाओ जिससे बुढ़िया भूख से मर जाए. बच्चों को बुड्ढे लोगों से कुछ विशेष बैर होता है.
बरसौ राम जगै दुनिया, खाय किसान मरै बनिया. किसान भगवान से वर्षा के लिए प्रार्थना करते हुए ऐसा कहता है. बरसात से किसान को लाभ और बनिए को घाटा होता है.
बरात की सोभा बाजा, अर्थी की सोभा स्यापा. बरात में जितने अधिक बाजे हों उसे उतना ही प्रभाव छोड़ने वाली माना जाता है, अर्थी में जितना अधिक क्रन्दन हो उसे उतना ही प्रभावी माना जाता है. (स्यापा – रोना पीटना)
बराबर से लड़े और ऊपर से रोवे. कुछ लोग लड़ाई पूरी लड़ते हैं पर साथ में अपने को सताया हुआ दिखाने के लिए रोते भी जाते हैं.
बराबरों से कीजिए ब्याह, बैर औ प्रीत. विवाह आदि संबंध और प्रेम अपने से बराबर वालों में करना चाहिए, दुश्मनी भी अपने से बराबर वालों से करना चाहिए. अपने से बहुत बड़े से दुश्मनी करोगे तो बर्बाद हो जाओगे, बहुत छोटे से दुश्मनी करोगे तो आप को शोभा नहीं देगा.
बरी रे बरी कहां जा के परी, का करै बरी तवा के तरे धरी. कभी-कभी हम सामान को ऐसी जगह रखकर भूल जाते हैं कि स्वयं ही नहीं पाते. बड़ी को तवे से ढंक के रख दिया है और ढूँढ़ पुकार पड़ी हुई है.
बर्र और बालक एक समान. बच्चों के स्वभाव की तुलना मधुमक्खियों से की गई है (एकदम सब ओर फ़ैल जाना, एकदम गुस्से से काट लेना). रूपान्तर – वानर बालक एक सुभाऊ. बालकों का स्वभाव वानरों से भी मिलता है.
बर्र के छत्ते में हाथ कौन डाले. बहुत चिडचिडे स्वभाव के व्यक्ति से बात कहने की हिम्मत किसी को नहीं होती.
बल बुद्धी की बोरियां, बिकें न हाट बजार. बल और बुद्धि बाजार में बोरियों में भर कर नहीं मिलते. ये परिश्रम से और भाग्य से ही मिलते हैं.
बलि का बकरा भी हँसे, ओछी पूजा देख. 1. कहीं पर कोई अधकचरा पंडित गलत सलत पूजा करा रहा हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए. 2. न्यायालयों में भ्रष्टाचार और गलत सलत निर्णय देख कर वादी और प्रतिवादी भी विद्रूप की हंसी हँस कर रह जाते हैं.
बलि के समय बकरा गायब. किसी समारोह में उपयुक्त समय पर यदि मुख्य व्यक्ति अनुपस्थित हो मजाक में यह बात कही जाती है (जैसे विवाह में दूल्हा ही गायब हो जाए).
बस कर मियाँ बस कर, देखा तेरा लश्कर. जो अपनी बहादुरी की झूठी शान बघार रहा हो उसके लिए.
बस हो चुकी नमाज, मुसल्ला बढ़ाइये. मुसल्ला – नमाज के लिए बिछाई जाने वाली दरी. काम पूरा हो जाने के बाद किसी से जाने के लिए कहने का एक तरीका यह भी है.
बसत ईस के सीस तऊ, भयो न पूर्ण मयंक. ईस के सीस – भगवान (शंकर) के माथे पर, मयंक – चंद्रमा. चंद्रमा शिवजी के माथे पर बसता है लेकिन तब भी पूर्ण नहीं है. हर किसी में कोई न कोई कमी अवश्य होती है.
बसाव शहर का और खेत नहर का. शहर में बसना अच्छा होता है (शहर में अधिक सुविधाएं होने के कारण) और नहर किनारे का खेत अच्छा होता है. नहर किनारे के खेत में सिंचाई में आसानी होती है.
बसि कुसंग चाहत कुसल, यह रहीम जिय सोस, (महिमा घटी समुद्र की, रावन बस्यो परोस). रहीम इस बात पर अफ़सोस करते हैं कि व्यक्ति बुरी संगत में रह कर भी अपनी कुशल चाहता है. रावण के पड़ोस में रहने के कारण समुद्र को अपमानित होना पड़ा था.
बसे बुराई जासु तन, ताही को सन्मान. यहाँ सम्मान का अर्थ हृदय से किया गया सम्मान नहीं बल्कि मजबूरीवश किया गया दिखावटी सम्मान है. इस प्रकार का सम्मान दुष्ट लोगों को ही मिलता है. सूर्य चन्द्रमा की पूजा न कर के लोग शनि और राहु की ही पूजा करते हैं.
बस्ती ऊजड़ को खावे. जब बस्तियों का विस्तार होता है तो जंगल काटे जाते हैं और बस्तियों में रहने वाले मनुष्य वनों का अत्यधिक दोहन भी करते हैं.
बस्ती की लोमड़ी बाघ को डराती है. बस्ती में रहने वाला कमजोर प्राणी भी सुविधाएँ मिलने के कारण और सुरक्षा के कारण शक्तिशाली हो जाता है.
बहता पानी निर्मला, खड़ा सो गंदा होय, (साधू जन रजता भला, दाग लगे न कोय). बहता हुआ पानी स्वच्छ रहता है और यदि कहीं इकट्ठा हो जाए तो गंदा होने लगता है. इसी प्रकार साधु चलते फिरते ठीक रहते हैं, यदि एक स्थान पर रुक जाएं तो उनके चरित्र को दाग लग सकता है.
बहती गंगा में हाथ धो लोगों (बहते दरिया में चुल्लू भर लो). मुफ्त में कोई सुविधा मिल रही हो तो उस का लाभ उठाने की सलाह दी गई है.
बहन के घर भाई कुत्ता, ससुरे के घर जमाई कुत्ता. विवाहित बहन के घर भाई को स्थाई रूप से नहीं रहना चाहिए और ससुराल में दामाद को घर जमाई बन कर नहीं रहना चाहिए. दोनों ही परिस्थितियों में व्यक्ति का कोई सम्मान नहीं होता. इस की पूरी कहावत देखिये – कुत्ता पाले वह कुत्ता.
बहन बत्तीस, भाई छत्तीस. जब भाई बहन एक से बढ़ कर एक हों तो. सन्दर्भ कथा – एक भाई अपनी बहिन के घर गया. बहन बड़ी कंजूस थी. जब भोजन का समय हुआ तो उसने उसके लिए खाना नहीं बनाया और एक थाली में थोड़े से गेहूं और एक पानी का लोटा भिजवा दिया. भाई के पूछने पर बहन ने कहा कि सारी चीजें गेहूं से ही बनती हैं, इसलिये यों समझो कि मैंने तुम्हारे लिये सभी खाद्य पदार्थ सुलभ कर दिये हैं. भाई उस समय कुछ नहीं बोला. कुछ समय बाद बहन की लड़की का विवाह निश्चित हुआ. भाई भात भरने आया तो उसने एक थाली में थोड़ी सी धुनी हुई रूई रख कर बहन को दे दी. बहन के पूछने पर भाई ने उत्तर दिया कि सारे वस्त्र रूई से ही तो बनते है, इसलिये रूई के रूप में मैं तुम्हारे लिए घाघरा, ओढ़नी आदि सारे वस्त्र ले आया हूँ.
बहन मरी तो जीजा किसके. जीजा से रिश्ता बहन के कारण ही होता है. बहन की मृत्यु हो जाए तो रिश्ते का आधार ही क्या रहा. इस प्रकार की एक कहावत है – बेटी मरी जमाई चोर.
बहरा पति और अंधी पत्नी, सदा सुखी जोड़ा. पति अगर बहरा हो तो पत्नी की हर समय की बक बक से परेशान नहीं होगा, और पत्नी अंधी हो तो हर समय कुछ न कुछ देख कर शक नहीं करेगी.
बहरा सुने धर्म की कथा. बहरा व्यक्ति प्रवचन सुने तो बेकार है. जिस ज्ञान को कोई ग्रहण ही नहीं कर सकता वह उस के लिए बेकार है.
बहरा सो गहरा. बहरा आदमी प्राय: गंभीर प्रवृत्ति का होता है.
बहरे आगे गावना, गूंगे आगे गल्ल, अंधे आगे नाचना, तीनों अल्ल बिलल्ल. गल – बात (पंजाबी). बहरे के आगे गाना, गूंगे से बात करने की कोशिश करना और अंधे के आगे नृत्य करना ये तीनों मूर्खतापूर्ण कार्य हैं.
बहसू के नौ ठो हल, खेत में गया एको नहीं. बहसू – बहस करने वाला. बहुत बहस करने वाला व्यक्ति केवल बहस करना जानता है, अपने संसाधनों से काम लेना नहीं जानता.
बहादुरी का काम, चाहे नहीं नाम. जो सही मानों में बहादुर होते हैं वे नाम के लिए काम नहीं करते.
बहादुरी तो बैरी की भी सराही जाती है. शत्रु भी अगर वीर हो तो उस की वीरता की प्रशंसा करनी चाहिए.
बहिर कुत्ता बतासे धावे, न एहर पावे ना ओहर पावे. बहरा कुत्ता हवा चलने पर ही आशंका से ग्रस्त हो कर इधर उधर भागता है पर कुछ पाता नहीं है. बतास–हवा, धावे–दौड़े. नासमझ लोग व्यर्थ की आशंकाओं से ग्रस्त रहते हैं.
बहु ऋणी, बहु धन्धी, बहु बेटियों का बाप, इन्हें कबहुं न मारिए, ये मर जाएँ आप. बहुत से लोगों से उधार लेने वाला, बहुत से व्यवसाय करने वाला और बहुत सी बेटियों का बाप, इनको कभी न मारो. ये बेचारे तो अपने आप मर जाते हैं.
बहु गुणी, बहु दुखी. जिसमें जितने अधिक गुण होते हैं वह उतना अधिक दुखी होता है (उन के पास काम बहुत होते हैं पर समय सीमित होता है). जो मूर्ख व्यक्ति है वह सबसे अधिक सुखी होता है.
बहु निबल मिल बल करें, करैं जो चाहे सोइ. कमजोर लोग यदि संगठित हो कार्य करें तो जो चाहें कर सकते हैं.
बहु भोग, बहु रोग. जो जितना अधिक भोग विलासिता में पड़ेगा, उसे उतने ही अधिक रोग होंगे.
बहु संन्यासी भजन नाशा. बहुत सारे लोग मिल कर कोई काम करें तो उसका सत्यानाश हो जाता है.
बहुत करे सो और को, थोड़ी करे सो आप. जो व्यक्ति थोड़ा काम करता है वह जीवन का आनंद ले पाता है. जो बहुत ज्यादा करता है तो समझो कि दूसरों के लिये कर रहा है. उसकी मेहनत पर दूसरे मजा मारेंगे.
बहुत गया, थोड़ा है बाकी, अब मत बात बिगाड़ो साथी. उम्र के आखिरी पड़ाव में नाराज होने वाले मित्र या जीवनसाथी से कही जाने वाली बात.
बहुत चले सो बीर न होई. बहुत काम करने वाला नहीं, योजना बना के काम करने वाला व्यक्ति वीर माना जाता है. युद्ध कैसे भी जीता जाए, जीतने वाले को ही वीर माना जाता है. इंग्लिश में कहावत है – Smart work is better than hard work.
बहुत बोलना मूरखताई. बहुत बोलना मूर्खता की निशानी है.
बहुत मरद वहाँ बरद उपास, बहु तिरिया तहाँ मरद उपास. जहाँ बहुत लोग बैलो की देखभाल करने वाले हो वहाँ दूसरों पर काम टालने के कारण बैल भूखे मरते हैं और जहाँ बहुत सारी स्त्रियाँ हों वहाँ पुरुष भूखे रहते हैं.
बहुत सयानी चचिया सासू, कंडा लेके पोंछे आँसू. बहू से चचिया सास ने बड़ा प्रेम दिखाया तो कंडा लेकर आंसू पोंछने लगीं. दिखावटी प्रेम.
बहुत सी कथनी से थोड़ी सी करनी भली. बहुत अधिक हांकने के मुकाबले थोड़ा काम कर के दिखाना अच्छा है.
बहुता जाइए, भरम गंवाइए. किसी व्यक्ति को आपके बारे में यह भ्रम हो कि आप बहुत योग्य हैं या बहुत धनी हैं तो उस के घर बार बार मत जाइए. उस के घर अधिक आने जाने से यह भ्रम टूट सकता है.
बहू आई सास हरखी, पैर लगी तो परखी. बहू के आने पर सास को एकदम से बहुत खुश नहीं होना चाहिए, जब उस के लक्षण देख ले तब खुश होना चाहिए.
बहू और भैंस का खिलाया बेकार नहीं जाता. बहू को अच्छा खाने को मिलेगा तो घर का काम भी ठीक से कर पाएगी और स्वस्थ संतान को जन्म देगी. भैंस को ठीक से खिलाया जाएगा तो दूध अच्छा देगी.
बहू के तीते तीनों तीत, पूत भी तीत नाती भी तीत. तीत – कड़वा होना. बहू कड़वी (दुर्व्यवहार करने वाली) हो तो पुत्र और नाती का व्यवहार भी बदल जाता है. अवधी कहावत.
बहू के हाथ चोर मरवाए, चोर बहू का भाई. बहू से कहा गया कि चोर को मारो, यह किसी को मालूम ही नहीं कि चोर तो बहू का भाई है. जिस से सजा देने को कह रहे हो वह तो अपराधियों से मिला हुआ है.
बहू चुस्त और कूआं पास. बहू काम में मुस्तैद हो और कुआँ भी पास हो तो काम में आसानी ही आसानी है. सारी बातें अनुकूल हों तो काम आसानी से होता है.
बहू नवेली और गऊ दुधेली. नई बहू और दुधारी गाय सबको अच्छी लगती हैं.
बहू ने कूटा पीसा, सास ने हाथ साने. एक आदमी मेहनत कर रहा हो और दूसरा केवल दिखावा, तब यह कहावत कही जाती है.
बहू परोसा खाएगा जीते जी मर जाएगा. बहू अपने सास ससुर को पौष्टिक खाना क्यों खिलाएगी?
बहू बिना कैसा आंगन. घर के आंगन की शोभा बहू और बच्चों से ही होती है.
बहू लाली, धन घर खाली. बहू श्रृंगार करने की शौक़ीन (खर्चीली) हो तो धन और घर खाली कर देती है.
बहू सरम की बिटिया करम की. बहू वही अच्छी है जो लज्जावान हो, बेटी वही अच्छी है जो कामकाजी हो.
बा अदब बा नसीब, बे अदब बे नसीब. दूसरों का सम्मान करने वालों का भाग्य साथ देता है, जो दूसरों का सम्मान नहीं करते वे भाग्य हीन हो जाते हैं.
बाँझ का नाम छूटे, भले राम वन जाएँ. राम के जन्म से पहले कौशल्या को बताया गया था कि उनके पुत्र को वन जाना पड़ेगा. पर उन्होंने सोचा कि पुत्र वियोग जैसे तैसे सह लेंगी लेकिन बांझ होने का कलंक तो छूटेगा.
बाँझ के घरै बिलार का दुलार. जिस स्त्री के कोई सन्तान नहीं होती वह कुत्ते बिल्लियों पर लाड़ जताती है.
बाँझ क्या जाने प्रसव की पीड़ा. जिसने कभी बच्चा नहीं जना वह स्त्री प्रसव की पीड़ा को नहीं समझ सकती. जो कष्ट आपने स्वयं नहीं झेला उसकी परेशानी को आप नहीं समझ सकते.
बाँझ गाय द्वार की सोभा. जो गाय दूध नहीं देती वह भी द्वार की शोभा तो बढ़ाती ही है. घर के बड़े बूढों के लिए भी यही बात कही जा सकती है.
बाँझ गाय से घी की आस. गाय बाँझ होगी तो दूध ही नहीं देगी, फिर घी कैसे मिलेगा. किसी ठप पड़े व्यवसाय से कोई लाभ की आशा कर रहा हो तो.
बाँझ बंझौटी, शैतान की लँगोटी. बाँझ – जिस के संतान न हो. पहले के जमाने में लोग संतान न होने पर केवल स्त्री को ही दोषी मानते थे और प्रताड़ित करते थे (पुरुष अपनी जांच ही नहीं कराते थे). ऐसे ही लोगों का कथन.
बाँट कर खाना, स्वर्ग में जाना. अपनी कमाई को बाँट कर खाने वाले को स्वर्ग में भी स्थान मिलता है और इस धरा पर भी उस के लिए स्वर्ग है.
बाँट खाओ या सांट खाओ. सांट – अदला बदली (वस्तु विनिमय). भोजन को बाँट कर खाना चाहिए या अदला बदली कर के. बाँट कर खाने से परोपकार होता है और एक दूसरे से अदला बदली करने से सभी प्रकार के तत्व भोजन से प्राप्त हो जाते हैं.
बाँध के मारे, कहे भौत सऊत है. सऊत – सहनशील. बाँध कर पीट रहे हैं. भाग नहीं रहा है तो कहते हैं – बहुत सहनशील है. जबर लोगों के अत्याचार पर व्यंग्य.
बाँबी में हाथ तू डाल मंत्र मैं पढूं. सांप को पकड़ने के लिए मन्त्र पढ़ते हैं और हाथ से उसे पकड़ते हैं. मन्त्र पढने में तो कोई खतरा नहीं है पर बांबी में हाथ डालने में बहुत खतरा है. जब कोई धूर्त व्यक्ति लाभ पाने के लिए साथी को खतरे में डाल रहा हो तो.
बांट खाय, सदा अघाय. अघाय – तृप्त हो जाए. अकेले खाने से पेट भर सकता है पर आत्मा तृप्त नहीं होती.
बांटने से ज्ञान बढ़ता है. ज्ञान को बांटने से ज्ञान और बढ़ता है.
बांटने से सुख दूना होता है और दुख आधा. खुशियों को सबके साथ मिल कर मनाना चाहिए क्योंकि इस से खुशियाँ बढ़ती हैं. दुख को भी दूसरों के साथ साझा करना चाहिए क्योंकि इस से दुख कम हो जाता है.
बांटल भाई, पड़ोसी बराबर. जिस भाई से बंटवारा हो चुका हो वह पड़ोसी के बराबर ही है.
बांदी के आगे बांदी, मेह गिने न आंधी. नौकर के नीचे का नौकर बहुत काम करता है.
बांध कुदारी खुरपी हाथ, लाठी हंसिया राखे साथ, काटे घास औ खेत निरावे, सो पूरा किसान कहलावे. जो अपने साथ कुदाली, खुरपी, लाठी और हंसिया रखता है, अपने हाथ से घास काटता है और खेत निराता है वही वास्तविक किसान कहलाता है.
बांधा बरधा रहे मठाय, बैठा जवान जाय तुन्दियाय. बैल बंधे बंधे सुस्त हो जाता है और जवान आदमी कुछ न करे तो उस की तोंद निकल आती है. (घाघ कवि)
बांधे बनिया बजार नहीं लगावत. किसी से कोई काम जबरदस्ती नहीं कराया जा सकता है.
बांबी ढिंग मरे, सांप का नाम. कोई अगर सांप की बांबी के पास मरता है तो सब लोग सांप पर ही शक करते हैं. जो बदनाम होता है उसका नाम कई बार बिना कुछ किए भी घसीटा जाता है.
बांस की कोख से रेड़ पैदा हुआ है. रेड़ – अरंड. किसी सज्जन व्यक्ति के घर कुपुत्र पैदा हो जाए तो.
बांस चढ़ी गुड़ खाए. नटनी बांस पर चढ़ कर करतब दिखाती है तभी उसे पारिश्रमिक मिलता है. अर्थ है कि जो प्रयास करेगा वही फल पाएगा.
बांस चढ़ी नटनी कहे, होत न नटियो कोय, मैं नट कर नटनी बनी, नटे सो नटनी होय. नट जाना – मना करना, मुकर जाना. बांस पर चढ़ी नटनी कह रही है कि पैसा होते हुए भी देने को मना मत करना. मैंने मना किया था तो मैं नटनी बनी, जो मना करेगा वह नटनी बनेगा.
बांस डूबें, बौरा थाह मांगे. पानी इतना गहरा है कि बांस डूब जाए और मूर्ख व्यक्ति यह जानने की कोशिश कर रहा है कि पानी कितना गहरा है. रूपान्तर – हाथी घोड़ा डूब गए, गदहा पूछे कित्तो पानी.
बांस बढ़े झुक जाए, एरंड बढ़े टूट जाए. सज्जन व्यक्ति की उन्नति होती है तो वह विनम्र हो जाता है. घमंडी व्यक्ति की उन्नति होती है तो वह ऐंठ में रहता है और अंततः टूट जाता है या तोड़ दिया जाता है.
बांह गहे की लाज, बात कहे की लाज. किसी की बांह पकड़ी है (सहारा दिया है) तो निभाओ जरूर, या सहारा ही मत दो. इसी प्रकार जो बात कही है उसे भी अवश्य पूरा करो, या कहो ही मत.
बाई के बेर अढ़ाई सेर. बाई – बहिन-बेटी. किसी अपने व्यक्ति की वस्तुओं का उचित मूल्य न आँकना.
बाई खा लें तो बामनों को दें. स्वार्थी लोगों के लिए कहा गया है जो पहले खुद खा कर बचा हुआ दान करते हैं. कायदे में तो पहले ब्राह्मणों को दान दे कर या भोजन करा के तब स्वयं खाना चाहिए.
बाको अच्छा मत कहो, जो तेरे धोरे आय, करे बुराई और की, अपने तईं बधाय. जो आप के घर आ कर औरों की बुराई करे और अपनी प्रशंसा करे वह अच्छा व्यक्ति नहीं है.
बाग और वन दोनों को रखना चाहिए. बाग और वन दोनों की उपयोगिता अलग अलग है. दोनों आवश्यक हैं.
बाघ और बाकी, जब चाहे तब खाए. बाघ और ऋण, इंसान को कभी भी खा सकते हैं.
बाघ न चीन्हे बामन के पूत. बाघ जब इंसान का शिकार करता है तो यह नहीं देखता कि वह ब्राह्मण का पुत्र है या चरवाहे का. जात पांत का भेद केवल इंसान ही करते हैं.
बाघ ने मारी बकरी और कुत्ते हड्डी खाएँ. 1. शक्तिशाली लोग कोई उद्यम करते हैं तो समाज के कमजोर लोगों को भी उस का लाभ मिलता है. 2. बड़े अपराधी बड़े अपराध करते हैं और छोटे अपराधी उनके साए में फलते फूलते हैं.
बाघ मार नदी में डारा, बिलाई देख डरानी. कोई ऐसी स्त्री अपनी बहादुरी के किस्से सुना रही थी कि उसने बाघ को मार कर नदी में डाल दिया था. अचानक बिल्ली आ गई तो डर वह गई. झूठी शेखी बघारने वालों के लिए.
बाघ से लड़ने के लिए बघनखा. बघनखा एक खतरनाक अस्त्र होता है जिसे उँगलियों में पहन कर मुट्ठी बाँध ली जाती है. उस के मुड़े हुए काँटों से किसी का भी पेट फाड़ा जा सकता है. कहावत का अर्थ है कि खतरनाक दुश्मन से लड़ने के लिए खतरनाक अस्त्र ही चाहिए. शिवाजी ने दुष्ट अफज़ल खां का पेट बघनखे से ही फाड़ा था.
बाज के बच्चे मुंडेरी पर नहीं उड़ा करते. बाज अपने बच्चे को बहुत कठिन शिक्षा दे कर उड़ना सिखाता है जिससे वह शिकारी पक्षी बन सके. कहावत में बताया गया है कि बहादुर लोग कड़ी मेहनत से ही उंचाई पर पहुँचते हैं.
बाजार का सत्तू, बाप भी खाए, बेटा भी खाए (बाज़ार की मिठाई, जिसने चाही उसने खाई). वैश्या के लिए कहा गया है. वैश्या बाजार में बिकने वाली वस्तु की तरह है जिसे जो भी चाहे दाम दे कर खरीद सकता है.
बाजार किसका, जो लेकर दे उसका (बाज़ार उसका जो ले के दे). जो उधार ले कर समय से वापस करे उसी की बाजार में साख है.
बाजार के दोनवा चाटे गुजर न होई. (भोजपुरी कहावत) दोनवा – दोने, पत्ते. कोई व्यक्ति चाहे कि रोज बाजार की चाट पकौड़ी खा कर काम चला लेगा तो ऐसा नहीं हो सकता. इस में अत्यधिक खर्च भी है और बीमार होने का डर भी. कहावत के द्वारा वैश्यावृत्ति के प्रति भी आगाह किया गया है.
बाड़ के सहारे दूब बढ़ती है (बाड़ बिना बेल नहीं चढ़ती). कमजोर व्यक्ति को आगे बढ़ने के लिए किसी का सहारा चाहिए होता है.
बाड़ लगाईं खेत को बाड़ खेत को खाय, राजा हो चोरी करे कौन करे फिर न्याय (बाड़ ही जब खेत को खाए तो रखवाली कौन करे). खेत की रक्षा करने को बाड़ लगाई और बाड़ ही खेत को खाने लगी. जब राजा ही चोरी करेगा तो न्याय कौन करेगा. आजकल के भ्रष्ट नेताओं पर भी व्यंग्य.
बाड़ी बारह, हाट अठारह, घर बैठे चौबीस. खेत से कोई चीज़ बारह रूपये में मिलती है तो बाज़ार में अठारह की और घर बैठे मंगाना चाहो चौबीस की पड़ती है. कहावत में जो अनुपात बताया गया है वास्तविकता में उस से भी बहुत अधिक अंतर होता है.
बाढ़े पूत पिता के धरमे, खेती उपजे अपने करमे. पुत्र पिता के धर्म कर्म से बढ़ता है और खेती अपने कर्म से.
बात एक ही है साँपनाथ कहो या नागनाथ. दुष्ट को किसी भी नाम से पुकारो, वह दुष्ट ही रहेगा.
बात कम हुई, बदनामी ज्यादा हुई. किसी स्त्री ने पड़ोस के पुरुष से जरा सी बात कर ली तो लोगों ने दोनों को खूब बदनाम किया. किसी बहुत छोटी सी बात पर अनावश्यक रूप से अधिक बदनामी होना.
बात करे तो सज्जन से, सज्जन समझे बात, बात करे न गदहे से, जो घुमा के मारे लात. बात केवल सज्जन लोगों से ही करना चाहिए, मूर्खों से नहीं जो केवल नुकसान पहुँचाना ही जानते हैं.
बात कहन की रीत में है अन्तर अधिकाय, एक वचन तै रिस बढ़े एक वचन ते जाय. बात को भड़काने वाले ढंग से कहें तो झगड़ा हो जाता है और प्रेम से कहें तो झगड़ा खत्म हो जाता है.
बात कहिए जगभाती, रोटी खाइए मनभाती. बोली ऐसी बोलनी चाहिए जो सब को प्रिय लगे. खाना वह खाना चाहिए जो अपने को अच्छा लगे.
बात कही और पराई हुई. बात जब मुँह से निकल जाती है तो आप के वश में नहीं रहती.
बात की बात खुराफ़ात की लात, बकरी के सींगों को चर गए बेरी के पात (इमली के पत्ते पे ठहरी बरात). पहले के जमाने में कहानियाँ सुनाने का बहुत रिवाज़ था. एक विशेष प्रकार की कहानियाँ होती थीं गप्प. उन्हीं गप्पों की शुरुआत इस तरह से होती थी. कहावत का अर्थ है कोई असम्भव बात.
बात गई फिर हाथ न आती. 1.मुँह से निकली बात वापस नहीं आती. 2.सम्मान चला जाए तो वापस नहीं आता.
बात चूका लात खाय. जो अपनी बात पर कायम नहीं रहता वह लात खाता है (प्रताड़ित किया जाता है).
बात छीले रूखड़ी औ काठ छीले चीकना. बात छीलने का यहाँ पर अर्थ है अनावश्यक बहस करना. काठ को छीलो तो चिकना होता है पर ज्यादा खोद खोद कर बात पूछने से या बहस करने से आपस में रुखाई होती है.
बात पर बात याद आती है. अर्थ स्पष्ट है.
बात पूछे, बात की जड़ पूछे. बहुत खोद खोद के कोई बात पूछने वाला.
बात बिगारे तीन, अगर मगर लेकीन. शंका और संशय से बनते काम बिगड़ जाते हैं.
बात मानूँगा लेकिन खूँटा यहीं गाड़ा जाएगा. (भोजपुरी कहावत). सबकी सुनना लेकिन अपने मन की ही करना.
बात में हुँकारा और फौज में नगाड़ा. ये दोनों चीजें लोगों में जोश भरने का काम करती हैं.
बात है कि घोड़े का पाद. बिलकुल निरर्थक बात करने वाले का मजाक उड़ाने के लिए.
बात है तो जात है. अपनी बात अडिग रहने वाला व्यक्ति ही उच्च कुल का माना जाता है.
बातन में फूल झरत. बातों में फूल झरते हैं, मधुरभाषी के लिए.
बातन से पेट नाहिं भरत. केवल बातों से काम नहीं चलता, पेट भरने के लिए रोटी चाहिए.
बातन हाथी पाइए, बातन हाथी पाँव. (बातों हाथी पायं, बातों हाथी पायं). एक ही बात को कहने का तरीका इतना फर्क हो सकता है कि राजा खुश हो कर हाथी इनाम में दे दे या नाराज हो कर हाथी के पैर तले कुचलवा दे. रूपान्तर – बात बात में भाँत है और भाँत भाँत की बात, बातन हाती पाइये बातन हाती लात.
बातें कम, लातें ज्यादा. मूर्ख लोग स्वस्थ तर्क वितर्क के मुकाबले लातों घूंसों में विश्वास रखते हैं.
बातें करे मैना की सी, आँखें फेरे तोते की सी. जो मीठी मीठी बातें करे और जरूरत के समय आँखें फेर ले. (तोता बोलते बोलते अचानक दूसरी ओर गर्दन घुमा लेता है).
बातें चीतें हमसे लेओ, खसम को रोटी तुम पै देओ. दुनिया भर की बातें और कजिए किस्से तो हम से कराओ और कोई काम आ पड़े तो तुम करो.
बातों की बुढ़िया करतब की ख्वार. जो बातें बहुत बड़ी बड़ी बनाए पर काम चौपट कर दे.
बातों के राजा, नहीं होय काजा. जो लोग बातें बहुत करते हैं पर काम कुछ नहीं करते.
बातों चीतों मैं बड़ी, करतब बड़ी जिठानी. बातें बनाने में तो मैं बड़ी हूँ और कोई काम आ पड़े तो जिठानी बड़ी हैं.
बातों तिमिर न भाजई, दीवा बाती तेल. अँधेरा केवल बातों से नहीं भागता. उसे भगाने के लिए दीपक जलाना पड़ता है जिसके लिए तेल और बत्ती भी चाहिए होता है.
बातों से पनही और बातों से पान (बातहिं से लात मुक्का, बातहिं से पान). बात करने के ढंग से ही जूते खाने पड़ सकते हैं और बातों से ही पान खाने को मिल सकता है.
बादल की छाया से कै दिन काम सरे. अस्थिर वृत्ति (चलायमान प्रकृति) वाले व्यक्ति पर निर्भर नहीं रहा जा सकता. बादल की छाया अभी है अभी खत्म हो जाएगी.
बादल देख कर ही घड़ा फोड़ दिया. मूर्खतापूर्ण और अदूरदर्शितापूर्ण काम. बादल आए हैं तो क्या मालूम बरसेंगे भी या नहीं, और बरसेंगे तब भी घड़ा तो चाहिए ही होगा. रूपान्तर – बादल देख घड़ा नहीं फोड़ा जात.
बादलों को थेगली. बादलों में पैबंद लगाना. असम्भव काम.
बानिये की बान न जाए, कुत्ता मूते टांग उठाए. बान-आदत, बानिया-आदत से मजबूर आदमी. जिस व्यक्ति की जो आदत होती है वह जाती नहीं है (जिस प्रकार कुत्ता टांग उठा कर ही मूतता है).
बाप ओझा, मां डायन. विचित्र संयोग. माँ डायन है और बाप डायन को भगाने वाला ओझा है.
बाप कमाए बेटा खाए, कलजुग चाहे जो न कराए. बेटा जब बड़ा हो जाता है तो बूढ़े बाप को कमा कर खिलाता है. लेकिन कलयुग में यह भी देखना पड़ रहा है कि बेटा बैठा बैठा बाप की कमाई खा रहा है.
बाप कर गए मजा, बेटा पावे सजा. बाप ने गलत काम कर के या उधार ले कर गुलछर्रे उडाए हों और बेटे को उस का भुगतान करना पड़े तो यह कहावत कही जाती है.
बाप का किया बेटे के आगे आता है (बाप की कमाई बेटे के आगे आए). मनुष्य जो भी अच्छा या बुरा करता है उसका लाभ और हानि उसकी संतानों के आगे आती है..
बाप का नाम दमड़ी, बेटे का नाम पचकौड़िया, नाती का नाम दोकौड़िया, तीन पुरसें बीतीं छदाम न पूरा हुआ. दमड़ी = 12 कौड़ी, छदाम = 24 कौड़ी. किसी निम्न कोटि के खानदान का मजाक उड़ाने के लिए.
बाप का पोखर है तो क्या कीच खानी है. कोई चीज़ पुरखों से मिली है तो उसका गलत प्रयोग थोड़े ही करोगे.
बाप का मरना, और अकाल का पड़ना. विपत्ति पर विपत्ति आना.
बाप का सर काटे, पूत से हाथ मिलावे. ऐसे व्यक्ति के लिए जो परिवार के एक सदस्य को अत्यधिक हानि पहुँचाए और दूसरे से दोस्ती करे.
बाप की कमाई पर तागड़धिन्ना. जो लोग अपने आप कुछ नहीं करते और पैतृक सम्पत्ति पर ऐश करते हैं, उन पर व्यंग्य.
बाप की टांग तले आई, और माँ कहलाई. बाप की रखैल के लिए.
बाप के गले लबनी, पूत के गले रुद्राच्छ. लबनी – ताड़ी इकठ्ठा करने वाली हांडी. बाप महा कुकर्मी है और पुत्र रुद्राक्ष की माला पहने साधु बना घूम रहा है.
बाप को पूत पढ़ावे, सोलह दूनी आठ. बाप से लड़का बढ़ कर मूर्ख हो तब.
बाप जिन्न और बेटा भूत. जहाँ बाप बदमाश हो और बेटा उस से भी बढ़ कर हो.
बाप जिसका मरा वो खाय मांस भात, पड़ोसी जाए गया. जिसके पिता की मृत्यु हुई है वह तो सारे अधर्म कर रहा है, और पड़ोसी गया जा कर पिंडदान कर रहा है. दूसरे की परेशानी में व्यर्थ परेशान होने वालों के लिए.
बाप देवता पूत राक्षस. पिता बहुत भला आदमी था पर बेटा उतना ही दुष्ट.
बाप न दादे, सात पुश्त हरामज़ादे. किसी नीच व्यक्ति को गाली देने के लिए (इसके केवल बाप और दादा ही नहीं सात पीढियां धूर्त हैं).
बाप न मारी मेंढकी, बेटा तीरंदाज. बाप ने कभी मेंढकी भी नहीं मारी और बेटा अपने को योद्धा समझता है. शेखी खोरों का मजाक उड़ाने के लिए.
बाप नरकटिया, पूत भगतिया. नरकटिया – कीड़े मकौड़ों जैसे आचरण वाला क्षुद्र व्यक्ति (नरकीट). बाप नरकीट है और बेटा भगत बना हुआ है. रूपान्तर – बाप कामी, पूत ब्रह्मचारी.
बाप पदहिन न जाने, पूत शंख बजावे. बाप पादना नहीं जानते और पुत्र शंख बजा रहा है.
बाप पूत कीर्तनिया, बेटी भई नचनिया. पिता और भाई का क्षुद्र आचरण देख कर बेटियाँ भी वैसी बन जाती हैं.
बाप पेट में, पूत ब्याहने चला. उचित समय से बहुत पहले कोई काम करने की कोशिश की जाए तो उसका मजाक उड़ाने के लिए यह अतिश्योक्ति पूर्ण बात कही जाएगी (बाप अभी पैदा भी नहीं हुआ है और बेटा विवाह करने चला है). इससे भी आगे बढ़ कर एक और कहावत है – बाप अभी पेट में, पूत चला ‘गया’ करने. पिता अभी पैदा नहीं हुआ और पुत्र उसका तर्पण करने गया जा रहा है.
बाप बड़ा न मैया सबसे बड़ा रुपैया (गुरू न गुरु भैया, सब से बड़ो रुपैया). रुपया सब सम्बन्धों से बड़ा है.
बाप बनिया, पूत नवाब. बाप बनिए जैसा कंजूस और शातिर हो और बेटा नवाबों जैसा दरियादिल, तो यह कहावत कही जाती है.
बाप बेटा पंच, बैल का दाम तीन टका. बाप और बेटा ही पंच हैं इसलिए बैल को सस्ते में खरीदवा रहे हैं. न्यायपालिका में व्याप्त भ्रष्टाचार पर भी व्यंग्य.
बाप बेटा बाराती, माँ बेटी गीतहारिन (बाप पूत जेवनहार, माई धिया गितहारिन). किसी विवाह आदि में बहुत कम लोग बुलाए गये हों तो जो लोग नहीं बुलाए गए हैं वे ऐसा कहते हैं.
बाप भिखारी पूत भंडारी. किसी गरीब पिता का पुत्र धनवान हो जाए और अपने धन का प्रदर्शन करने लगे तो लोग व्यंग्य में ऐसा कहते हैं.
बाप मरिहैं, तब पूत राज करिहैं. बाप के मरने के बाद ही बेटा राजा बनेगा. कोई बाधा दूर होने तक प्रतीक्षा करनी ही पड़ेगी.
बाप मरे अँधेरा में, बेटवा पावरहाउस. बाप अँधेरे में मर गए और बेटा अपने को पावर हाउस समझता है. पिता कुछ भी न रहा हो और बेटा अपने को बहुत तीसमारखां समझता हो तो उस पर व्यंग्य.
बाप मरे घर बेटा हुआ, इसका टोटा उस में गया. एक नुकसान और एक फायदा हो तो नुकसान की भरपाई मान ली जाती है.
बाप मारे पूत साखी दे. साखी – साक्षी, गवाही. पिता ने कोई अपराध किया हो और पुत्र को गवाही के लिए बुलाया जाए तो न्याय कैसे होगा.
बाप राज बलीराज, भैया राज निरधन राज. पिता के होते हुए बेटियों को मायके में सब कुछ मिलता है, भाई के राज में कुछ नहीं.
बाप से बेटा सयानो, जेहि में गाँव नसानो. बाप से बेटा अधिक चतुर है, गाँव इसी इसी में नष्ट हुआ. बड़े-बूढ़ों के आगे जहाँ लड़के हर बात अपनी चलाते हों वहाँ कहते हैं. नसानो – नष्ट हुआ.
बाप से बैर पूत से सगाई. घर में किसी एक व्यक्ति से दुश्मनी और दूसरे से दोस्ती. सगाई – प्रेम संबंध.
बाबरे गाँव में ऊँट पाहुना. मूर्खों के बीच में कुछ भी संभव है (वे ऊँट को भी सम्मानित अतिथि मान सकते हैं).
बाबली गीदड़ी के पकड़े कान. न छोड़े जाएँ, न पकड़े राखे जाएँ. (हरियाणवी कहावत) पागल गीदड़ी के कान धोखे से पकड़ लिए हैं, अब छोड़ते हैं तो वह काट खाएगी और पकड़े रहेंगे तो आखिर कब तक पकड़े रहेंगे. जिस काम को करते रहने और छोड़ने दोनों में परेशानी हो.
बाबले कुत्ते हिरनों के पीछे भागें. हिरन जैसे तेज प्राणी को कुत्ते कभी नहीं पा सकते. अपनी पहुँच से बाहर कोई लक्ष्य पाने का प्रयास करना.
बाबा कमावे, बेटा उड़ावे. नालायक बेटे बाप दादों की मेहनत की कमाई को उड़ा देते हैं.
बाबा की बातें, कुत्ता चले बरातें. बाबा जी आप भी क्या बात करते हैं, कुत्ते भी कहीं बरात में चलते हैं? बड़े बुज़ुर्ग कभी कभी गप्पें हांकते हैं तो बच्चे इस प्रकार उनका मजाक उड़ाते हैं.
बाबा के ब्याह में नाती बराती. अधिक आयु का व्यक्ति यदि विवाह करे तो उस पर व्यंग्य.
बाबा घर आना चाहिए, चाहे गली गली आए चाहे छप्पर फाड़ के आए. कैसे भी हो काम होना चाहिए.
बाबा जी कूदे तो सीधे बैकुंठ के अन्दर. बाबा जी खतरनाक काम करने की सोच रहे हैं तो उन को मजाक के लहजे में चेताया जा रहा है कि यहाँ से कूदे तो सीधे स्वर्ग सिधार जाओगे.
बाबा जी के दाना, हक लगा के खाना. अपनी पुश्तैनी संपत्ति का उपभोग करने का व्यक्ति को पूरा अधिकार है.
बाबा जी चेले बहुत हो गए हैं, बच्चा भूखों मरेंगे तो आप चले जाएंगे. जिम्मेदारियों से तनावग्रस्त न हो कर मस्त रहना.
बाबा जी जाड़े से मरें, गीदड़ बांधे धोती. जिस को मिलना चाहिए उसे न मिल कर अपात्र को सुविधा मिलना.
बाबा बैठे ई घर में, पाँव पसारें ऊ घर में. 1.बाबा बैठते हैं इस घर में, और पाँव पसारते हैं उस घर में. जब कोई आदमी ज़बर्दस्ती दूसरे के काम में हस्तक्षेप करे. 2. यह एक पहेली भी है जिस का उत्तर है – दीपक.
बाबा मरे नाती जन्मा, वही तीन के तीन. घर या समूह में से कोई कम हुआ तो कोई बढ़ गया. खर्च के लिए उतने ही लोग रहे.
बाभन कुत्ता नाई, जात देख गुर्राई/घिनाई. ब्राह्मण, कुत्ता और नाई (हज्जाम नहीं कर्मकांड कराने वाला नाई) अपनी जाति वालों से ही शत्रुता रखते हैं/घृणा करते हैं.
बाभन कुत्ता भाट, जात जात के काट. ब्राह्मण कुत्ता और भाट अपनी जाति वालों की काट करते हैं.
बाभन को घी देव बाभन झल्लाय. किसी को लाभ पहुँचाने की कोशिश करो और वह नाराजगी दिखाए तो यह कहावत कही जाती है.
बामन औ सांड इक्यावन खूँटा. ब्राह्मण का एक स्थान पर रह कर काम नहीं चल सकता. उसे रोजी रोटी के लिए कई घरों में भटकना पड़ता है. सांड भी एक जगह न बंध कर जगह जगह मुँह मारता घूमता है.
बामन का क्रोध सवा पहर. ब्राह्मण अपनी जीविका के लिए दूसरों पर आश्रित है इसलिए क्रोध नहीं करता.
बामन का बनाया बामन खाए न तो बैल खाए. ब्राह्मणों की बनाई खराब रसोई का मजाक उड़ाने के लिए.
बामन का बेटा, बावन बरस तक पोंगा. ब्राहण का बेटा काफ़ी आयु तक पिता का पिछलग्गू रहता है.
बामन का मन लड्डू में. अर्थ स्पष्ट है.
बामन कुत्ता हाथी, ये न जात के साथी (तीनों जात के घाती). ब्राहण, कुत्ता और हाथी अपनी जाति वाले का साथ नहीं देते.
बामन को दी बूढ़ी गाय, धरम न होय दलिद्दर जाय (बूढ़ी गाय बमने जाय, पुन्न होय और टले बलाय). ब्राह्मण को बूढ़ी गाय दान कर के बड़े खुश हैं, पुण्य न भी मिले तो भी कम से कम उसे खिलाने का झंझट तो गया.
बामन को बामन मिला, मुख देखे व्यौहार, लेन देन को कुछ नहीं नमस्कार ही नमस्कार. ब्राह्मण यदि समाज के किसी अन्य वर्ग के व्यक्ति से मिलते हैं तो आशीर्वाद देते हैं और बदले में कुछ पाने की आशा करते हैं. यदि दूसरा ब्राह्मण ही मिल जाए तो कोई लेन दन कुछ नहीं होता बस नमस्कार होती है. एक समय में ब्राह्मणों की ऐसी छवि बन गई थी कि वे भांति भांति से लोगों को ठगते हैं, उसी पर व्यंग्य.
बामन को लरिका मूलन में नाहिं होत. ब्राहण लोग आम लोगों को तरह तरह के भय दिखा कर धन ऐंठते हैं. इसी प्रकार का एक भय है मूल नक्षत्र का. मूल नक्षत्र को अशुभ बता कर उसमें जन्म लेने वाले बच्चों के लिए पूजा पाठ कराने का प्रावधान रखा गया है. कहावत में कहा गया है कि ब्राह्मण का बेटा मूलों में नहीं होता क्योंकि उस को मूल नक्षत्र का बता कर किस से धन ऐठेंगे.
बामन को साठ बरस पे बुद्धि आवे, और तब वह मर जावे. (राजस्थानी कहावत) साठ वर्ष का होके तो ब्राह्मण को बुद्धि आती है और उसके बाद वह मर जाता है.
बामन खा मरे, तो जाट उठा मरे. ब्राह्मण ज्यादा भोजन करने से मरता है और जाट ज्यादा बोझ उठाने से.
बामन जात अँधेरी रात, एक मुट्ठी चावल पे दौड़े जात. ब्राह्मणों को लोग लालची कहते हैं लेकिन यह उनकी मजबूरी है कि उन्हें छोटी छोटी चीज के लिए भी दौड़ना पड़ता है. उन के पास खेती या व्यापार थोड़े ही है.
बामन जीमे ही पतियाय. ब्राह्मण जब भर पेट खाना खा लेता है तभी किसी का विश्वास करता है.
बामन नाई कूकरो, जात देख गुर्राएं, कायथ कागो कूकड़ो, जात देख हरषाएं. ब्राह्मण, नाई और कुत्ता, अपनी जाति वाले को देख कर गुर्राते हैं. कायस्थ, कौवा और मुर्गा अपनी जाति वालों को देख कर खुश होते हैं.
बामन नाचे, धोबी देखे. उल्टी रीत.
बामन बनिया पनिया सांप, न उन में रिस न इन में बिस. (बुन्देलखंडी कहावत) ब्राह्मण और बनिया पानी के सांप के समान हैं. वे क्रोध (रिस) नहीं करते और इन में विष नहीं होता.
बामन बांधे छुरा तो बड़ा बुरा. ब्राह्मण से यह आशा नहीं की जाती कि वह छुरा रखेगा.
बामन बेटा लोटे पोटे, मूल ब्याज दोनहूँ घोटे. ब्राह्मण का बेटा कुछ न कुछ उलट फेर कर के मूल धन और ब्याज दोनों ही पचा लेता है.
बामन हाथी चढ़ कर भी मांगे. आदमी की आदत नहीं जाती. ब्राह्मण को हाथी मिल गया तो उस पर चढ़ कर भिक्षा मांग रहा है.
बामन हो मंत्री भाट हो ख़ास, उस राजा का होवे नास. जिस राजा का मंत्री ब्राह्मण हो और भाट सलाहकार हो उसका नाश होना निश्चित है.
बामन, कुक्कुर, घोड़िया, जात देखि नरियाए. ब्राह्मण, कुत्ता और घोड़ा अपनी ही जाति के दुश्मन होते हैं.
बामनों में तिवारी, कटहल की तरकारी और हैजा की बीमारी ये तीनों खतरनाक होते हैं. तिवारी लोगों से परेशान किसी व्यक्ति का कथन.
बाय बह जाएगी और बात रह जाएगी. समय और परिवेश बदल जाते हैं पर व्यक्ति की बात रह जाती है.
बायस पालहिं अति अनुरागा, होय निरामिष कबहुं कि कागा. बायस – कौवा, निरामिष – शाकाहारी. कौवा को कितने भी प्रेम से दूध रोटी खिलाकर पालो, वह अपनी आदत के अनुसार बिना मांस खाये मान नहीं सकता.
बार बार चोर की तो एक बार शाह की. चोर बार बार चोरी कर के राजा को परेशान करता है पर राजा जब एक बार चोर को पकड़ लेता है तो उसी एक बार में सारा हिसाब पूरा कर देता है.
बारह गाँव का चौधरी, अस्सी गांव का राय, अपने काम न आए तो ऐसी तैसी में जाए. अँगरेज़ लोग अपने चाटुकार लोगों को तरह तरह के इनाम और ओहदे दिया करते थे. किसी चाटुकार को चौधरी साहब की पदवी दे कर बारह गाँव की जमींदारी दे दी तो उस से बड़े चाटुकार को अस्सी गाँव का पट्टा दे कर राय साहब बना दिया. कहावत में कहा गया है कि कोई कितना भी बड़ा आदमी हो अगर हमारे काम नहीं आता तो ऐसी तैसी में जाए.
बारह बरस का कोढ़ी, एक ही इतवार पाक. चर्मरोग से मुक्ति पाने के लिए सूर्य भगवान की उपासना करते हैं और इतवार का व्रत रखते हैं. कहावत में कहा गया है कि बहुत पुराना कुष्ठ रोगी है जिसे कई इतवार के व्रत की जरूरत है, लेकिन एक ही इतवार ऐसा पड़ रहा है. आवश्यकताएँ बहुत अधिक हों और साधन सीमित हों तो.
बारह बरस की कन्या और छठी रात का वर, मन माने तो कर. कन्या बारह बरस की है और वर छह दिन का है. समझ में आता हो तो शादी करो वरना नहीं. कहावत का अर्थ है कि काम बड़ा बेमेल है, मर्जी हो तो करो.
बारह बरस तप किया, जुलहा भतार मिला. बारह साल कन्या ने व्रत तपस्या की लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ, शादी गरीब जुलाहे से हुई. रूपान्तर – बड़े तप से मिला भतार, सो भी मिला जात का चमार.
बारह बरस बाद घूरे के भी दिन फिरते हैं. घूरा – कूड़े का ढेर. बेकार से बेकार व्यक्ति या स्थान का भाग्य कभी न कभी बदलता है.
बारह बरस में बाँझ ब्याही, पूत ब्याही लंगड़ा. बहुत दिनों में कोई काम किया और वह भी ढंग का नहीं किया.
बारह बरस में बाबा बोले, बोले पड़ेगा अकाल. बाबा बारह बरस बाद तो बोले, और बोले भी तो इतनी अशुभ बात कि अकाल पड़ेगा.
बारह बरस लौं कूकुर जीवे, अरु तेरह तक जिए सियार, बरस अठारह छत्री जीवे, आगे जीवन को धिक्कार. कुत्ता बारह साल तक जीवित रहता है और सियार तेरह साल तक. मनुष्य की आयु सौ बर्ष मानी गयी है परन्तु क्षत्रिय योद्धा अठारह बरस तक ही जीते हैं (इसके बाद युद्ध में मारे जाते हैं) इसलिए इसके आगे यदि वे जिएँ तो वे कायर माने जाएंगे (क्षत्रिय युवकों को युद्ध में जाने के लिए उकसाने हेतु कथन).
बारह बरस सेई कासी, मरने को मगहर की माटी. ऐसा माना जाता था की काशी में मरने वाला निश्चित रूप से स्वर्ग जाता है और काशी के पास मगहर नामक स्थान में मरने वाला निश्चित रूप से नर्क में जाता है. कबीरदास इस प्रकार के अंधविश्वासों के कट्टर विरोधी थे. वे जीवन भर काशी में रहे और मृत्यु निकट आने पर जानबूझ कर मगहर चले गए थे. एक तो उन के लिए विशेष रूप से यह कहावत कही गई है. दूसरे ऐसे लोगों के लिए जिनका जीवन अच्छा कटा हो पर मृत्यु के समय जिनकी दुर्गति हुई हो.
बारह बामन बारह बात, बारह खाती (बढ़ई) एक ही बात. आप किसी समस्या का हल पूछेंगे तो बारह ब्राह्मण बारह तरह की बात कहेंगे और बारह बढ़ई एक ही हल बताएंगे. पंडितों में एक राय नहीं हो सकती.
बारह वर्ष रामायण सुनी, पूछते हैं राम राक्षस था या रावण. जो लोग पूरी बात सुनने के बाद उससे सम्बंधित कोई मूर्खतापूर्ण प्रश्न पूछते हैं उनका मजाक उड़ाने के लिए.
बारह साल दिल्ली में रहे पर भाड़ ही झोंका. अच्छी से अच्छी परिस्थितियों में रह कर भी कोई प्रभावशाली कार्य नहीं कर पाए.
बाराती किनारे हो जइहैं, काम दूल्हा दुल्हन से पड़िहैं (बाराती जीम के जाते धाम, दूल्हा दुल्हन से पड़ता काम). किसी भी आयोजन में इकठ्ठी हुई भीड़ आप के किसी काम की नहीं है. काम मुख्य लोगों से ही पड़ेगा.
बाल की खाल, हिंदी की चिंदी. व्यर्थ की नुक्ताचीनी.
बाल गए सिंगार गया, दांत गए स्वाद गया. बाल स्त्री के मुख की शोभा है. बाल झड जाएं तो श्रृंगार का कोई अर्थ ही नहीं रहता. इसी प्रकार दांत गिर जाने के बाद खाने का मज़ा ही खत्म हो जाता है.
बाल जंजाल, बाल सिंगार. बालों को धोना, काढ़ना, सुलझाना और समय समय पर कटवाना ये सब जी का जंजाल हैं पर बाल मनुष्य का श्रृंगार भी हैं. किसी भी चीज़ से हानि लाभ दोनों ही होते हैं.
बाल दोस गुन गनहिं न साधू. सज्जन लोग बच्चों के दोष नहीं गिनते (क्षमा कर देते हैं).
बाल नोचने से ऊँट नहीं मरते. बड़े लोगों को छोटे मोटे नुकसान से कोई फर्क नहीं पड़ता.
बाल मराल कि मंदर लेहीं. हंस का बच्चा कहीं मंदराचल पर्वत को उठा सकता है? यह प्रसंग राम चरित मानस का है. जब ऋषि विश्वामित्र ने जनक जी के धनुष यज्ञ में राम से धनुष उठाने को कहा तो वहाँ उपस्थित स्त्रियाँ कहने लगीं कि यह सुकोमल बालक इस धनुष को कैसे उठा सकता है?
बाल सा बारीक और मूसल सा भारी. बहुत तीक्ष्ण बुद्धि और बात में वजन रखने वाला व्यक्ति.
बाल हठ, तिरिया हठ, राज हठ. तीन हठ प्रसिद्ध हैं, बच्चों का हठ, स्त्रियों का हठ और राजा का हठ.
बालक हो बुद्धिमान सो बड़ा नर जान तू, बूढ़ा हो अज्ञानी सो पशु समान मान तू. बालक यदि बुद्धिमान हो तो उसे व्यस्क मानो और बूढ़ा अगर अज्ञानी हो तो उसे पशु समान मानो.
बालक, मूंछ अरु नारी, बारे से जाय संवारी. बालक, मूँछ और स्त्री ये प्रारंभ से सँभालने पर ही सँभलते हैं.
बालू की भीत, ओछे का संग, पतुरिया की प्रीत, तितली के रंग. रेत की दीवार, धूर्त व्यक्ति का साथ, चरित्रहीन स्त्री का प्रेम और तितली के रंग ये सब स्थायी नहीं होते.
बालू जैसी भुरभुरी, धौली जैसी धूप, मीठी ऐसी कुछ नहीं, जैसी मीठी चूप. चूप–मौन, धौली–श्वेत, धवल. मौन रहना बहुत बड़ा गुण है (इससे सब झगड़े शांत हो जाते हैं). इस को इस प्रकार भी कहते हैं – सब से मीठी मौन.
बालों हाथ छिनाला और कागों हाथ संदेसा. किसी चरित्रहीन स्त्री द्वारा बच्चे के साथ व्यभिचार करना सफल नहीं हो सकता और कोई व्यक्ति कौवे के हाथ संदेश भेजना चाहे तो सफल नहीं हो सकता.
बावन बुद्धि बकरिया में, छप्पन बुद्धि गड़रिया में. गड़रिये में बकरी से कुछ ही ज्यादा बुद्धि होती है.
बावन बुद्धि बानिया, तरेपन बुद्धि सुनार, सबको ठगे बनिया, बनिया को ठगे सुनार. बनिया जितना होशियार होता है, सुनार उससे भी अधिक चालाक होता है.
बावली को आग बताई, उसने ले घर में लगाई. पहले के जमाने में माचिस और लाइटर की उपलब्धता न होने के कारण लोग एक दूसरे के घर से जलता हुआ कोयला या लकड़ी मांग कर लाते थे. कहावत में कहा गया है कि मूर्ख स्त्री को आग दी तो उस ने घर में ही आग लगा दी. मूर्ख व्यक्ति की सहायता भी सोच समझ कर ही करें.
बावली खाट के बावले पाए, बावली रांड के बावले जाए. जहाँ माँ भी मूर्ख हो और बच्चे भी उस बढ़ कर मूर्ख हों. तुकबंदी के लिए खाट और पायों का ज़िक्र कर दिया गया है.
बावले मर गए औलाद छोड़ गए. किसी मूर्ख व्यक्ति की मूर्ख संतान का मजाक उड़ाने के लिए.
बासी कढ़ी उबाला आया. बुढापे में जोश आना.
बासी चावल बासी साग, अपने घर खाए क्या लाज. अपने घर पर कुछ भी खाओ, उसमें कोई शरम नहीं होती.
बासी भात पे बेनिया डुलाए. बेनिया – बेना, हाथ का पंखा. मिथ्या आडम्बर करने वालों के लिए.
बासी भात में अल्ला मियाँ का कौन निहोरा (बासी भात में ठाकुर साहब का कौन निहोरा). बासी भात खा कर किसी तरह पेट भर रहे हैं, तो इस में अल्ला मियाँ या ठाकुर साहब की क्या मेहरबानी मानें.
बासी मुंह फीका पानी औगुन करे है. बहुत से लोग खाली पेट पानी पीना ठीक नहीं मानते. ऐसे लोग पहले कुछ मीठा खा कर तब पानी पीते हैं. कहीं कहीं (विशेषकर पूर्वी उत्तरप्रदेश में) यह रिवाज होता है कि यदि कोई कामवाला भी पानी मांगे तो उसे पहले कुछ मीठा खाने को देते हैं.
बाहर की चुपड़ी से घर की रूखी सूखी भली. 1. घर में जो कुछ भी रूखा सूखा उपलब्ध हो वही खा कर व्यक्ति को संतोष करना चाहिए, बाहर चुपड़ी खाने के प्रयास में धन और स्वास्थ्य दोनों की हानि होती है. 2. बाहर रह कर अधिक आय होती हो उस के मुकाबले कम आय हो पर घर में रहने को मिले तो बेहतर है.
बाहर खुशबू, भीतर बदबू. ढोंगी सफेदपोश लोगों के लिए.
बाहर टेढ़ो फिरत है, बाँबी सूधो साँप. सांप दुनिया भर में टेढ़ा टेढ़ा चलता है लेकिन अपनी बांबी में सीधा ही घुसता है. कोई व्यक्ति दुनिया के लिए कितना भी दुष्ट क्यों न हो घर में सीधा ही रहता है.
बाहर त्याग, भीतर सुहाग. ऐसे लोगों के लिए जो त्यागी होने का ढोंग करते हैं और वास्तव में भोगी होते हैं.
बाहर मियाँ झंगझंगाले, घर में नंगी जोय. जोय – जोरू, पत्नी. घर से बाहर पतिदेव खूब चौकस कपड़े पहने घूम रहे हैं और घर में बीबी फटे पुराने और अपर्याप्त कपड़े पहन रही है.
बाहर मियाँ पंजहजारी, घर में बीबी कर्मों मारी. पंज हजारी – पांच हजार रूपये वेतन पाने वाला (पुराने समय में एक अत्यधिक बड़ी रकम). पति बड़े ओहदे पर काम कर रहा है और पत्नी घर के कामों में पिस रही है.
बाहर मियाँ सूबेदार, घर में बीबी झोंके भाड़. घर से बाहर पति बड़े अधिकारी बने रौब गाँठ रहे है और घर में बीबी चूल्हा झोंक रही है.
बाहर वाले खा गए, घर के गावें गीत. बाहर के लोग दावत खा गए और घर वाले गीत गाते ही रह गए. बिना सही योजना बनाए अव्यवस्था पूर्ण कार्य करने वालों के लिए.
बिंध गया सो मोती, रह गया सो पत्थर. जिस का काम बन गया वह बड़ा आदमी बन गया और जिसका काम नहीं बना वह बेचारा गरीब ही रह गया.
बिआवत दुख, बिहावत दुख. बेटी के बारे में यह कहावत कही गई है कि जब पैदा होती है तब भी दुख और जब शादी होकर चली चली जाती है, तब भी दुख।
बिगड़ी तो चेली बिगड़ी, बाबा जी तो सिद्ध के सिद्ध. बाबा जी और चेली के बीच कोई अनैतिक सम्बन्ध हुआ तो चेली की ही बदनामी होती है.
बिगड़ी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय, (रहिमन फाटे दूध के मथे न माखन होय). बिगड़ी बात फिर नहीं बनती चाहे कितना भी प्रयास करो (फटे हुए दूध को मथने से माखन नहीं निकलता).
बिगड़ी रसोई सुधरती नहीं. इसी प्रकार जो बात बिगड़ जाए वह सुधर नहीं सकती.
बिगड़ी लड़ाई सिपाहियों के सिर. हारी हुई लड़ाई का ठीकरा सिपाहियों के सर फोड़ा जाता है. कोई पार्टी चुनाव हारती है तो कार्यकर्ताओं पर दोष डालती है.
बिगड़ेगा बस सुगढ़ नर क्या बिगड़ेगा कूढ़, क्या बिगड़ेगा मट्ठा बिगड़ेगा बस दूध. जो सज्जन और सम्पन्न व्यक्ति है उसे ही हानि होने का डर होता है, जो मूर्ख और विपन्न है उसे क्या हानि होगी.
बिच्छू का काटा चोर, न हूँ कर सकै न चूँ. चोरी करते समय यदि किसी चोर को बिच्छू काट ले तो वह बेचारा दर्द से बिलबिलाते हुए भी चिल्ला नहीं सकता.
बिच्छू का काटा रोवे, साँप का काटा सोवे. बिच्छू का काटा व्यक्ति भयानक दर्द से रोता है जबकि सांप का काटा व्यक्ति विष के प्रभाव से मूर्च्छित होने लगता है.
बिच्छू का मंत्र जाने नहीं, साँप के बिल में हाथ डाले. जब बिच्छू और सांप के काटे का कोई इलाज उपलब्ध नहीं था तो लोग झाड़ फूँक किया करते थे. अगर सांप जहरीला नहीं हुआ या अधिक विष शरीर में नहीं पहुँचा तो मरीज़ बच जाता था और लोग समझते थे कि मन्त्र से ठीक हो गया. कहावत ऐसे व्यक्ति के विषय में कही गई है जो बिना किसी जानकारी के किसी खतरनाक काम में हाथ डाल रहा है.
बिच्छू के डर से भागे, सांप के मुँह में पड़े. छोटी परेशानी से बचने के प्रयास में बड़े संकट में पड़ जाना.
बिच्छू के मंत्र से सांप का जहर नहीं उतरता. हर संकट का हल एक ही तरीके से नहीं किया जा सकता. अलग अलग परेशानियों के लिए अलग अलग हल खोजने होते हैं.
बिछौना देख थकावट लगे. अर्थ स्पष्ट है.
बिछौने से लग गये. बहुत दुर्बल हो गये हैं; बचना कठिन है.
बिजया पीवे खटिया सोवे, ताके बैद पिछाड़ी रोवे. बिजया – भांग. जो भंग पीकर सो जाता है, उसको बैद्य भी नहीं बचा सकता (उस के मरने पर रोता है).
बिजली का मारा, लुआठ देख भागे. लुआठ – जलती लकड़ी. जो बिजली गिरने से जला हो, वह जलती हुई लकड़ी को देखकर भी डर जाता है.
बिजली कांसे पर ही गिरती है. कांसा क्योंकि बिजली का अच्छा चालक (conductor) होता है इसलिए बिजली कांसे पर गिर कर धरती में समाती है. कांसा अन्य धातुओं से महंगा होता है. कहावत को इस अर्थ में प्रयोग कर सकते हैं कि आपदा बड़े आदमी पर ही आती है या किसी बिगड़े काम की गाज़ बड़े आदमी पर ही गिरती है.
बिटिया तेरो ब्याह कर दें, मैं कैसे कहूँ. किसी व्यक्ति से ऐसे विषय पर चर्चा करना जो उस के लिए लज्जा का विषय हो. पुराने समय में विवाह की बात पर लड़कियाँ शर्माती थीं.
बिटिया बिआनी ड्यौढ़ी पे बैठी, उतर गई सबके मन से, बेटा बिआनी पलंग चढ़ बैठी, हुकुम चलावे सब घर पे. बेटी को जन्म दिया तो सब के मन से उतर गई और घर की ड्योढ़ी पर बैठी है, और बेटा हुआ तो इतनी इज्ज़त कि सब घर वालों पर हुक्म चला रही है. ये सामाजिक कुरीतियाँ अब भी बहुत जगह विद्यमान हैं.
बिटिया सोहे ससुराल, हाथी सोहे हथसाल. लड़की तो ससुराल में ही शोभा देती है और हाथी हथसाल में.
बिटोरे में से तो उपले ही निकलेंगे. बिटोरा – गोबर के कंडों (उपलों) का ढेर. बिटोरे में से तो उपले ही निकलेंगे, कोई लकड़ियाँ थोड़े ही निकलेंगी. कोई घटिया आदमी गालियाँ दे रहा हो तो यह कहावत कही जा सकती है.
बित्ते भर की छोकरी गज भर की जीभ. कोई छोटा बच्चा बहुत बढ़ चढ़ कर वयस्कों जैसी बातें कर रहा हो तो.
बिदा होउ तौ रोउन बैठें, नहीं तो कंडन को जायें. बिदा हो रही हो तो रोने बैठ जायें, नहीं तो कंडा थोपने जायें. कोई आवश्यक काम हो तो यहाँ बैठें, अन्यथा अपना दूसरा काम देखें.
बिन कुत्तों के गाँव, बिल्ली अलबेली डोले. दो परस्पर विरोधी अर्थ 1. समाज में जागरूक लोगों की कमी हो तो धूर्त लोगों की बन आती है. 2. समाज में गुंडे और दबंग लोग न हों तो कमजोर भी चैन से रह सकता है.
बिन खाए छुधा न बुताए, बिन देखे नयन न जुड़ाय. बिना भोजन किए भूख नहीं मिटती और अपने प्रिय व्यक्ति को सामने देखे बिना आँखें तृप्त नहीं होतीं.
बिन घरनी घर भूत का डेरा. बिना पत्नी घर भूत के डेरे के समान है.
बिन जाटों के किसने पानीपत जीते. पानीपत के सारे युद्धों में जाटों का प्रमुख योगदान रहा है.
बिन देखे राजा भी चोर. अपनी आँख से देखे बिना किसी बात पर विश्वास नहीं करना चाहिए.
बिन निरधार न हो सके सांच झूठ को न्याव. निरधार – निर्धारण करने वाला. बिना उचित निर्धारण करने वाले के सच और झूठ का न्याय नहीं हो सकता.
बिन पंखन के उड़े चाहें. बिना पंखों के उड़ना चाहते हैं. पर्याप्त साधन के बिना काम करना चाहते हैं.
बिन पैसों का तमाशा. ऐसा लड़ाई-झगड़ा जिसमें देखने वाले आनंद लें.
बिन पैसों के परखें मोल, तिनको नाम संखढपोल. बिना पैसों के जो किसी वस्तु को खरीदने की इच्छा करते हैं वे ढपोर शंख कहलाते हैं.
बिन बंसे निरबंस, बहु बंसे निरबंस. निरबंस – निर्वंश, संतानहीन. जिस के कोई पुत्र न हो वह तो संतानहीन कहा ही जाता है, जिस के अधिक पुत्र हों वह भी एक प्रकार से संतानहीन है क्योंकि सारे पुत्र एक दूसरे पर जिम्मेदारी डाल के उस की देखभाल नहीं करते.
बिन बिचौलिया छिनाला नहीं. कोई भी अनैतिक काम जैसे चोरी, डकैती, रिश्वतखोरी, वैश्या वृत्ति आदि दलालों के बिना नहीं होते.
बिन बुलाए अहमक, ले दौड़े सहनक. सहनक – भोजन का थाल. बिना बुलाए दूसरे के यहाँ जा कर भोजन करना.
बिन बैलन खेती करे, बिन भैय्यन के रार, बिन मेहरारू घर करे, चौदह साख गंवार. जो बिना बैलों के खेती करने चले, बिना भाइयों की सहायता के किसी से दुश्मनी मोल ले और बिना पत्नी के घर बनाए ये सब गंवार होते हैं.
बिन ब्याही बेटी मरे, ठाड़ी ऊख बिकाय, बिन मारे मुद्दई मरे, तीन काल टर जाए. बेटी की शादी में और शादी के बाद भी कितनी मुसीबतें होती हैं यह सब जानते हैं, गन्ने को काटना और बेचना भी बहुत कठिन काम है और मुकदमा ठोकने वाला भी बहुत परेशान करता है. इसलिए यह कहा गया है कि यदि अविवाहित बेटी की मृत्यु हो जाए, खेत में खड़ी गन्ने की फसल बिक जाए और मुकदमा ठोकने वाला बिना मारे मर जाए तो यह मानना चाहिए कि बहुत बड़ी मुसीबत टल गई. (वैसे हमारे हिसाब से बेटी के मरने पर खुश होना उचित बात नहीं हैं).
बिन माँगे मोती मिले, मांगे मिले न भीख. माँगना बहुत बुरा है यह समझाने के लिए.
बिन विद्या नर नार, जैसे गधा कुम्हार. विद्या के बिना नर और नारी कुम्हार के गधे के समान हैं.
बिन स्वारथ कैसे सहे कोऊ करवे बैन, लात खाय पुचकारिए होए दुधारू धेनु. अपने स्वार्थ के लिए आदमी कड़वे बोल भी सह लेता है, दूध देने वाली गाय की लात खा कर भी उसे पुचकारते हैं.
बिन हरवाहे हर कैसा, बिना घरनी घर कैसा. बिना हलवाहे के हल का क्या काम और बिना गृहिणी घर कैसा.
बिन हिम्मत किस्मत नहीं. जो लोग साहस नहीं दिखाते उनका भाग्य भी साथ नहीं देता.
बिना असल के नकल नहीं होती. नकल करने के लिए कोई न कोई असली चीज़ तो होना ही चाहिए.
बिना कष्ट उठाए कोई सफलता नहीं मिलती. अर्थ स्पष्ट है.
बिना खटाई के भटा और बिना बाप के बेटा. बिना खटाई के बैंगन अच्छा नहीं बनता और बिना बाप के बेटा.
बिना खाए की डकार. खाली मूली नाटक करने वालों के लिए.
बिना चाह का पाहुना, घी डालूं या तेल. जो अतिथि अपने मन को न भाता हो, उसका सत्कार भी काम चलाऊ ढंग से किया जाता है.
बिना झूठ बोले कबीरदास की कमरिया नाहिं बिकी. बिना थोड़ा बहुत झूठ बोले व्यापार नहीं किया जा सकता.
बिना दबाए तिल से तेल नहीं निकलता. बिना भय दिखाए कोई काम नहीं करता.
बिना नून का रांधे साग, बिना पेंच की बांधे पाग, बिना कंठ के गाए राग, न वो साग, न पाग, न राग. बिना नमक के साग बनाओ तो वह बेकार ही बनेगा, इसी प्रकार बिना पेंच के बंधी पगड़ी और बिना मधुर कंठ के गाया राग भी बेकार ही माना जाएगा.
बिना पथ्य के दवा और बिना सत्य के बात. बिना परहेज के दवा उतनी ही निरर्थक है जितनी बिना सत्य के कोई बात.
बिना पेंदी का लोटा चाहे जिधर लुढ़क जाए. जिस व्यक्ति की अपनी कोई विचारधारा न हो.
बिना बाप का छोरा बिगड़े, बिना माई की छोरी. बिना बाप का बेटा बिगड़ जाता है (अनुशासन के अभाव में) और बिना माँ की बेटी बिगड़ जाती है (माँ की सीख के अभाव में).
बिना बिचारे जो करे सो पाछे पछिताए, (काम बिगारे आपनो जग में होत हंसाय). (गिरधर की कुंडलियों से) जो बिना सोचे विचारे जल्दबाजी में काम करता है उसे बाद में पछताना पड़ सकता है. उसका काम भी बिगड़ता है और दुनिया के लोग उस पर हंसते भी हैं. इस कहावत को आम तौर पर केवल आधा ही बोला जाता है.
बिना बुद्धि जरे विद्या. बुद्धि के बिना विद्या बेकार है.
बिना बुलाई आवे, टांय टांय गावे. विवाह आदि अवसरों पर कुछ विशेष जातियों की स्त्रियाँ आ कर गीत गाती हैं और नेग मांग कर घर वालों का मूड खराब करती हैं. किसी ऐसे व्यक्ति के लिए भी कहावत प्रयोग की जा सकती है जो बिना बुलाए आया हो और जबरदस्ती अपनी सलाह दे रहा हो.
बिना बुलाए आदर नहीं चाहे जा देखे, पेट भरे स्वाद नहीं चाहे खा देखे. अर्थ स्पष्ट है.
बिना बुलाए तो राम के घर भी नहीं जाएंगे. बिना बुलाए कहीं नहीं जाना चाहिए.
बिना बुलाए मत जइयो गौरा, आदर न हुइहैं तुम्हार. सती के पिता दक्ष प्रजापति ने अपने यहाँ यज्ञ में शिवजी को नहीं बुलाया, लेकिन सती (गौरा) तब भी जाना चाहती थीं. शिव जी ने यह कह कर उन्हें जाने से मना किया था. कहीं कोई बुना बुलाए जाने को तैयार हो तो उसे यह कह कर सावधान किया जाता है.
बिना बुलावे कुकुर धावे. बिना बुलाए कुत्ता ही जाता है. कहावत का अर्थ है कि बिना बुलाए कहीं नहीं जाना चाहिए.
बिना माँगे सलाह देने से बाज आइए. बिना मांगे किसी को सलाह नहीं देना चाहिए (ऐसी सलाह का कोई मोल नहीं होता).
बिना मारे की तौबा. कोई बिना कष्ट के कोई चिल्ला रहा हो तो.
बिना मिर्च के घोटे भंग, बिन भाइन के रोपे जंग, ले वैश्या जो न्हावे गंग, ना वह भंग न जंग न गंग. कहावत में तीन अलग अलग बातें तुकबन्दी कर के एक साथ बताई गई हैं – बिना मिर्च के भांग का सेवन करने से हानि हो सकती है, जिसका परिवार मजबूत न हो वह किसी से लड़ाई मोल ले तो मार खा सकता है, वैश्या को साथ ले कर कोई गंगा नहाएगा तो पुण्य की जगह पाप मिलेगा.
बिना मेह के जोतना, घोड़ा बिना लगाम, फ़ौज बिना सरदार के, तीनों भए निकाम. बिना वर्षा के खेत जोतना, बिना लगाम का घोड़ा और बिना सरदार की सेना ये किसी काम के नहीं हैं. रूपान्तर – बिनु सरदारे सेना नास.
बिना रोए माँ भी दूध नहीं पिलाती. जब तक अपनी परेशानी बताओगे नहीं, कोई तुम्हारी सहायता कैसे करेगा. इस कहावत को इस प्रकार से भी कहा गया है – ‘बिना रोये न लड़का दूध पावे, बिना रोये न माई गोद उठावै.
बिना लाग खेले जुआ, आज न मुआ कल मुआ. लाग माने चालाकी, युक्ति. जिस के अंदर चालाकी नहीं है वह अगर जुआ खेलेगा तो निश्तित रूप से बर्बाद हो जाएगा.
बिना सींग पूँछ का बरद. किसी ताकतवर किन्तु मूर्ख व्यक्ति का मजाक उड़ाने के लिए. बरद – बैल.
बिनु मेहरी ससुरारै जाय, बिना माघ घी खिचरी खाय, बिन भादों पिन्हाए पउआ, घाघ कहै ये तीनहुं कउआ. मेहरी – पत्नी, पिन्हाए पउआ का अर्थ संभवतः झूला झूलने से है. ससुराल पत्नी के साथ ही जाना अच्छा होता है. घी मिली हुई खिचड़ी को माघ के महीने में खाना ही ठीक माना गया है. जो बिना पत्नी ससुराल जाए, माघ के महीने अलावा घी खिचड़ी खाए और भादों के अलावा झूला झूले वह कौए के समान निर्बुद्धि है.
बिनु सत्संग विवेक न होई. सत्संग का अर्थ है अच्छी संगत. कहावत का अर्थ है कि बुद्धिमान लोगों के साथ रहने से ही बुद्धि और विवेक जागृत होता है. (आम तौर पर लोग सत्संग का अर्थ केवल भगवान् का कीर्तन करना और धार्मिक उपदेश सुनना ही समझते हैं). इस कहावत की अगली पंक्ति इस प्रकार है – बिनु सत्संग विवेक न होई, राम कृपा बिनु सुलभ न सोई. अर्थात अच्छी संगत भी भगवान् की कृपा से मिलती है.
बिनु हरि भजन न जाहि कलेसा. हरि की भक्ति के बिना संसार के कष्ट दूर नहीं हो सकते.
बिनौलों की लूट में बरछी का घाव. बहुत छोटा अपराध करते समय बहुत बड़ी हानि.
बिपत संगाती तीन जन, जोरू बेटा भाई. संगाती – साथ देने वाला. विपत्ति में तीन ही लोग साथ देते हैं, पत्नी, पुत्र और भाई.
बिपद के पीछे बिपद और धन के पीछे धन. विपत्ति के ऊपर विपत्ति आती हैं और धन के ऊपर धन.
बिपद बराबर सुख नही, जो थोड़े दिन होय. विपत्ति यदि थोड़े दिन के लिए आए तो लाभकारी हो सकती है. यह मालूम हो जाता है कि कौन सच्चा मित्र है और बहुत कुछ सीखने को मिलता है.
बिरादरी का मुखिया, दुखिया ही दुखिया. किसी भी समाज का मुखिया होना बहुत तनाव का काम है.
बिरादरी को न खिलाया, चार कांधी ही जिमा दिए. किसी व्यक्ति की जा रही है जिसने अपने घर में किसी की मृत्यु होने पर बिरादरी की दावत नहीं की केवल अर्थी को कंधा देने वाले लोगों को ही जिमाया (भोजन कराया). देहाती समाज की यह बहुत बड़ी कुरीति है कि किसी की मृत्यु के बाद सारी बिरादरी को दावत देनी पड़ती है चाहे मरने वाला घर का इकलौता कमाने वाला ही क्यों न रहा हो और चाहे इस के लिए कर्ज़ ही क्यों न लेना पड़े.
बिराने धन को रोवे चोर. चोर पराये धन को पाने के लिए ही सब जुगत करता है.
बिल खोद चूहा मरे, मौज उड़ावे सांप. चूहा मेहनत कर के बिल खोदता है और सांप उस में रहने आ जाता है. किसी गरीब के परिश्रम का लाभ कोई दबंग व्यक्ति उठाए तो.
बिलइया अपनो एक दाँव तो छिपा राखत (बिल्ली वाली चाल तो सिखलाई ही नहीं). अपने चेले को इतना होशियार नहीं बनाना चाहिए कि वह गुरु का ही गला दबा दे. शेर व बिल्ली की कहानी के लिए देखिए सन्दर्भ कथा 148.
बिलइया के दाँत बिलइया को नाहिं लगत. एक चालाक की चालाकी दूसरे पर नहीं चलती.
बिलइया दंडौत करना. झूठा सम्मान करना. विवश होकर किसी के हाथ-पैर जोड़ना.
बिलाई का मन मलाई में. ओछे लोग हर समय अपने स्वार्थ के विषय में सोचते रहते हैं.
बिल्ली और दूध की रखवाली? बिल्ली से दूध की रखवाली कौन करा सकता है.
बिल्ली की नज़र बस चूहे पे (बिलैया की नज़र मुसवे पर). धूर्त व्यक्ति केवल अपने लाभ की बात देखता है.
बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे. सुझाव सब देते हैं पर खतरा उठा कर काम करना कोई नहीं चाहता. रूपान्तर – म्याऊँ का ठौर कौन पकड़े. इंग्लिश में कहावत है – Who will bell the cat. सन्दर्भ कथा – एक घर में सैकड़ों चूहे रहते थे. वे आज़ादी से पूरे घर में टहलते थे. अचानक एक दिन उस घर में कहीं से एक बिल्ली आ गई. बिल्ली को देखते ही सारे चूहे तेजी से अपने-अपने बिल में छिप गए. लेकिन जब चूहे बाहर निकलते, बिल्ली उन पर झपट्टा मारती और एकाध को खा जाती. धीरे-धीरे चूहों की संख्या कम होने लगी थी. तो इस समस्या का हल निकालने के लिए चूहों ने एक सभा बुलाई. सभी ने अपने अपने सुझाव दिए लेकिन कोई सुझाव ऐसा नहीं था, जिससे बिल्ली का आंतक रोका जा सके.
अचानक एक जवान चूहे ने सुझाव दिया कि यदि हम बिल्ली के गले में घंटी बांध दें तो जब वह आएगी हमें खतरे के बारे में पता चल जाएगा और हम लोग भाग कर अपनी बिल में छिप जाएंगे. यह सुझाव सुन कर सभी चूहे खुशी से झूमने लगे. अचानक एक अनुभवी चूहा उठ खड़ा हुआ. उस ने कहा कि यह बताओ कि आखिर बिल्ली के गले में घंटी बांधेगा कौन? सभा में सन्नाटा छा गया. इसी बीच बिल्ली के आने की आहट पाते ही सभी चूहे भागकर अपने-अपने बिल में जाकर छिप गए.
बिल्ली के भागों छींका टूटा. अचानक बिना उम्मीद के कोई वांछित वस्तु मिल जाना. रूपान्तर – छींके की टूटन, बिलइया की लपकन.
बिल्ली के सपने में चूहा. धूर्त व्यक्ति को सपने में भी अपने फायदे की बात ही दिखती है.
बिल्ली के सरापे छींका नहीं टूटता. सरापे – श्राप देने से, कोसने से. धूर्त व्यक्ति द्वारा कोसे जाने से किसी का नुकसान नहीं होता. (कौआ कोसे ढोर नहीं मरते).
बिल्ली के सिरहाने दूध नहीं जमता. बिल्ली दूध को इतनी देर छोड़ेगी ही कहाँ कि दूध जम पाए. जिस से चोरी का डर हो उसके आसपास कोई चीज़ कैसे सुरक्षित रह सकती है.
बिल्ली को ख़्वाब में भी छिछ्ड़े नजर आते हैं. धूर्त व्यक्ति सोते जागते हर समय केवल अपने लाभ के विषय में ही सोचते हैं. इंग्लिश में कहावत है – A sleeping fox counts hens in her sleep.
बिल्ली को दूध औटाने का काम. किसी काम में जिस व्यक्ति से खतरा हो उसी को वह काम सौंपना. यह मूर्खतापूर्ण भी हो सकता है और समझदारी भरा भी.
बिल्ली को पहले दिन ही मार देना चाहिए. 1. अप्रिय और अशुभ वस्तु को पहले दिन ही दूर कर देना चाहिए. 2.एक आदमी ने शादी के पहले दिन ही एक बिल्ली को मार दिया ताकि पत्नी के मन में आतंक बैठ जाए.
बिल्ली क्या जाने पंचामृत का दूध. बिल्ली क्या जाने कि दूध पंचामृत के लिए रखा है, वह तो मौका पाते ही पी जाएगी. दुष्ट व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए उचित अनुचित विचार क्यों करेगा.
बिल्ली क्या जाने मोल का दही. गाँव के लोग अधिकतर गाय भैंस पालते हैं और दूध दही खरीदने से बचते हैं. बिल्ली को इस बात से क्या मतलब कि घर का है या खरीदा हुआ है. रूपान्तर – बिल्ली को खाने से काम, मोल का हो या मुफ्त का.
बिल्ली खाएगी नहीं तो लुढ़का ही देगी. दुष्ट लोग अपना लाभ न ले पाएँ तो दूसरे का काम बिगाड़ कर ही खुश हो लेते हैं. इस कहावत को इस प्रकार से भी कहा गया है – खा न पाए तो लुढका दे.
बिल्ली गई चूहों की बन आयी. बिल्ली चली जाए तो चूहों की मौज हो जाती है. सख्त हाकिम के जाने के बाद चोर उचक्कों की बन आती है. इंग्लिश में कहावत है – When the cat is away, the mice are at play.
बिल्ली पूज के आये हैं. किसी को गलत तरीकों से अप्रत्याशित सफलता मिलने पर ऐसा कहते हैं.
बिल्ली बाज़ार तो खूब कर ले पर कुत्ते करने दें तब न. कमजोर आदमी बहुत से काम कर सकता है लेकिन जबर उसे नहीं करने देते.
बिल्ली भई मुखिया, गीदड़ करमचारी. जहाँ हाकिम और मातहत सभी धूर्त हों.
बिल्ली भी चूहा खुदा के वास्ते नहीं मारती. हर आदमी अपने स्वार्थ के लिए काम करता है, बिल्ली भी परोपकार करने के लिए चूहा नहीं मारती (अपना पेट भरने के लिए मारती है).
बिल्ली भी दब कर हमला करती है. इसका अर्थ दो प्रकार से हो सकता है – 1. बिल्ली झुक कर हमला करती है अर्थात धूर्त व्यक्ति अगर विनम्रता दिखा रहा हो तो सावधान हो जाएँ, हो सकता है कि हमला करने वाला हो. 2. दबाने पर बिल्ली भी हमला करती है अर्थात कमजोर को अधिक न दबाओ.
बिल्ली भैंस न पाले पर खाए केवल मलाई. धूर्त लोग स्वयं कोई काम न कर के भी मजे मारते हैं.
बिल्ली वाली चाल तो सिखलाई ही नहीं. किसी को शिक्षा दो तो सोच समझ कर. सन्दर्भ कथा – एक बार एक शेरनी ने अपने बच्चे को शिकार आदि की चाल (पैंतरे) सिखलाने की जिम्मेदारी बिल्ली मौसी को सौंपी. बिल्ली ने उसे शिकार करने के अनेक दांव-पेंच सिखला दिये. लेकिन जब शेरनी का बच्चा कुछ बड़ा हुआ तो वह एक दिन बिल्ली पर ही झपटा. बिल्ली झट से उछल कर पेड़ पर चढ गई. शेर का बच्चा देखता ही रह गया और उसने नाराजगी के स्वर में बिल्ली से कहा कि मौसी, तूने यह चाल तो मुझे सिखलाई ही नहीं. इस पर बिल्ली ने उत्तर दिया कि मैंने इसी दिन के लिए इसे रोक कर रखा था.
बिल्ली से छिछड़ों की रखवाली. चोर से किसी चीज़ की पहरेदारी करने को कैसे कहा जा सकता है.
बिस का कीड़ा बिस में ही मानत. दुष्ट व्यक्ति घटिया परिवेश में ही प्रसन्न रहता है.
बिसधर पकड़ जहर को चाट, परनारी संग चले न बाट. एक बार को सांप को पकड़ के उसका जहर चाट ले, लेकिन परनारी के साथ रास्ता न चले.
बिस्वा को कौन आसन सिखावे. बिस्वा – वैश्या. जो सब सीखा सीखाया हो उसे कौन सिखा सकता है.
बिस्वा बिस की गाँठ. वैश्या विष की गाँठ होती है.
बीघे बीघे भूत, बिस्वे बिस्वे सांप. राजस्थान की मरुभूमि में हर बीघे पर भूत और हर बिस्वे पर सांप रहते हैं. एक बीघे में बीस बिस्वे होते हैं. देखिए परिशिष्ट.
बीच की उँगली बड़ी होती है. किसी भी विवाद के निवारण के लिए बीच का मार्ग सबसे अच्छा होता है.
बीज बोया नहीं, खेत का दुख. जिस काम से कोई सरोकार न हो उस के लिए दुखी होने वालों का मजाक उड़ाने के लिए. रूपान्तर – शादी हुई नहीं, ससुराल का दुख.
बीती ताहि बिसारि दे, आगे की सुधि लेइ, (जो बनि आवै सहज में, ताही में चित देइ). जो बीत गया उसका पश्चाताप करने की बजाए आगे क्या करना है यह सोचो. जो काम आसानी से हो सके उस में मन लगाओ. आम तौर पर इसका पहला भाग ही बोला जाता है.
बीननहारी बीन कपास, तेरी मेरी एक ही सास. सलैज और नंदोई की मजेदार कहानी. सन्दर्भ कथा – एक आदमी मेहमानी में किसी गाँव में गया. वहां गाँव के बाहर कुछ महिलाएं कपास के खेत में कपास बीन रही थीं. उन में से एक महिला को वह पहचानता था पर वह महिला उसे नहीं जानती थी. उसने महिला से उस के घर का पता पूछा. महिला ने पूछा आप कौन हैं? वह आदमी बोला, बीननहारी बीन कपास, तेरी मेरी एक ही सास. तब भी वह महिला नहीं समझी तो उस आदमे ने बताया कि वह उसका नन्दोई है. इस प्रकार से यह एक कहावत भी है और पहेली भी.
बीबी को बांदी कहा हंस दी, बांदी को बांदी कहा रो दी. घर के किसी व्यक्ति को नौकर कहोगे तो मज़ाक समझ कर हँस देगा पर नौकर को नौकर कहोगे तो बुरा मानेगा.
बीबी नेकबख्त, दमड़ी की दाल तीन वक्त. बीबी बहुत उदार हैं जो दमड़ी की दाल में तीन बार का खाना बनवाती हैं. बहुत कंजूस लोगों का मजाक उड़ाने के लिए.
बीबी बच्चे भूखों मरे और भड़वे लड्डू खाएँ. अपने घर वालों की बेकद्री कर के आलतू फ़ालतू लोगों पर खर्च करने वालों के लिए.
बीबी बीबी ईद आई, चल हरामजादी तुझे क्या. कंजूस से खर्चे की बात कहो तो चिढ़ता है. नौकरानी मालकिन से कह रही है कि ईद आ गई है (अर्थात उसे इनाम चाहिए) तो कंजूस मालकिन चिढ़ रही है.
बीबी वारे बांदी खाए, घर की बला कहीं न जाए. बच्चे की नज़र उतारने के लिए बीबी आटे की लोई को वार के (बच्चे के सिर के चारों और घुमा के) बाहर फेंक देती हैं जहां उसे कुत्ता इत्यादि खा लेता है और घर की बला बाहर चली जाती है. अब अगर वह बांदी को ही खिला देंगी तो घर की बला बाहर कैसे जाएगी. दान पुन्य के नाम पर अगर घर के लोगों को ही खिलाया पिलाया जाए तो परोपकार नहीं माना जाएगा.
बीबी हैं भरमाली, कान पीतर की बाली. अपने पास बहुत छोटी सी कोई चीज़ हो तो भी दिखावा करना.
बीमार की राय बीमार. अस्वस्थ आदमी की राय मानने लायक नहीं होती (क्योंकि उसकी दिमागी हालत ठीक नहीं होती और उसकी सोच भी नकारात्मक हो जाती है).
बीमारी की रात पहाड़ बराबर. बीमारी में दिन तो फिर भी कट जाता है रात काटना बहुत मुश्किल होता है (बात उस समय की है जब न तो टीवी था न स्मार्ट फोन और न ही दर्द निवारक व नींद की दवाएँ थीं).
बीरन बिन नैहर न जांव, पिया बिन सासुरे न ठांव. बीरन-भाई, ठांव-जगह. बिना भाई के मैके में कोई इज्जत नहीं होती इसलिए वहाँ जाने का मन नहीं करता और बिना पति के ससुराल में जगह नहीं मिल पाती.
बीरबल की खिचड़ी. कोई काम बहुत धीमे और हास्यास्पद ढंग से करने पर. सन्दर्भ कथा – एक बार सर्दी के मौसम में अकबर के दरबार में चर्चा हो रही थी कि आजकल यमुना का पानी बहुत ठंडा है और खासकर रात में तो बहुत ही ज्यादा ठंडा हो जाता है. अकबर ने कहा कि अगर कोई व्यक्ति यमुना के पानी में कमर तक डूब कर रात भर खड़ा रह कर दिखाए तो उसे एक हजार अशरफियां इनाम में दी जाएंगी. इस बात की मुनादी करवा दी गई. एक बेचारा गरीब आदमी जो कि कर्ज के बोझ से लगा हुआ था, उसने सोचा क्यों न जान की बाजी लगाकर ऐसा करके देख लूं. हद से हद जान ही तो जाएगी. मुगलों के जमाने में आम आदमी विशेषकर हिन्दुओं की जान की वैसे भी कोई कीमत नहीं थी. वह बेचारा रात भर कमर तक डूब कर यमुना के ठंडे पानी में खड़ा रहा. किनारे पर गश्त लगा रहे सिपाही बीच-बीच में आकर उसको देखते भी रहे.
सुबह जब वह अकबर के दरबार में इनाम लेने पहुंचा तो अकबर ने उससे पूछा कि भाई तुम्हें इतने ठंडे पानी में खड़े रहने की ताकत कहां से मिली. वह बोला जहांपनाह आपके महल में एक दिया जल रहा था मैं उसी को ताकता रहा और हिम्मत करके खड़ा रहा. अकबर बोला, तो यह कहो कि तुम्हें उस दीपक से गर्मी मिलती रही, तो इसमें कौन सी बहादुरी है. तुम्हें कोई इनाम नहीं मिलेगा. अकबर के इस कमीनेपन को देखकर बीरबल को बहुत कष्ट हुआ. अगले दिन बीरबल दरबार में नहीं आए. अकबर को बेचैनी होने लगी. उसने आदमी भेज कर बीरबल को दरबार में बुलवाया. उस आदमी ने लौटकर बताया की हुजूर बीरबल खिचड़ी पका रहे हैं और पकते ही उसे खाकर दरबार में हाजिर होंगे. काफी देर बीत गई और बीरबल नहीं आए.
अकबर खुद देखने गया तो देखता क्या है कि बीरबल ने तीन बांसों के ऊपर ऊंचाई पर एक हडिया टांग रखी है और नीचे जमीन पर थोड़ी सी आग जला रखी है. अकबर तमक कर बोला, यह क्या तमाशा है बीरबल, ऐसे भी कोई खिचड़ी पकती है? बीरबल बोले, जी हां जहांपनाह, जरूर पकेगी. जब दूर महल में जल रहे दीपक से ठंडे पानी में खड़े एक इंसान को गर्मी मिल सकती है तो ऐसे खिचड़ी क्यों नहीं पक सकती.
बीरबल लाओ ऐसा नर, पीर बाबर्ची भिश्ती खर. ऐसा व्यक्ति जो सारे काम कर सकता हो. सन्दर्भ कथा – एक बार अकबर ने बीरबल से ऐसा कोई आदमी लाने को कहा जो सारे काम कर सकता हो – पीर भी बन जाए अर्थात धर्म का ज्ञान भी दे सके, बाबर्ची का काम कर ले अर्थात खाना भी पका ले, भिश्ती का काम भी कर ले अर्थात पानी भी भर लाए और बोझ भी ढो ले. तो बीरबल ने उनके सामने एक ब्राह्मण को ले जा कर खड़ा कर दिया. वास्तव में मुगल काल में ब्राह्मणों की दशा बड़ी खराब थी. जीविका चलाने के लिए उन्हें छोटे से छोटे काम करने पड़ते थे.
बीस पचीस के अंदर में जो पूत सपूत हुआ सो हुआ. पुत्र लायक है या नालायक यह बात बीस पचीस साल की आयु तक स्पष्ट हो जाती है.
बुआ के पास गहने तो भतीजी को क्या. किसी निकट संबंधी के पास धन हो, उससे हमें क्या लाभ होने वाला.
बुआ जाऊं जाऊं करे थी, फूफा लेने आ गया. बिना उम्मीद के कोई काम आसानी से हो जाना.
बुखार हाथी के भी हाड़ तोड़ देता है. बीमारी बड़े से बड़े शक्तिशाली लोगों को भी त्रस्त कर देती है.
बुझने से पहले दीपक की लौ तेज हो जाती है. शाब्दिक अर्थ तो स्पष्ट है. कहावत का प्रयोग इस प्रकार करते हैं कि मृत्यु से पहले मनुष्य की स्मृतियाँ अधिक जागृत हो जाती हैं.
बुड़बक का पैसा अकलमंद खाए (बुड़बक का धन, होशियार की चटनी). (भोजपुरी कहावत) बुड़बक – मूर्ख व्यक्ति. मूर्खों का धन होशियार लोगों के लिए मुफ्त में मिली स्वादिष्ट चटनी के समान है.
बुड़बक गए मछली मारे, काँटा आए गंवाय. मूर्ख व्यक्ति कोई काम करने गया तो अपने औजार ही गंवा आया.
बुड़बक दूल्हा, अँधेरे में आँख मारे (बुड़बक रसिया, अँधेरे घर में मटकें). मूर्ख व्यक्ति को परिस्थिति और परिवेश के अनुसार कहाँ पर क्या करना चाहिए और क्या नहीं इस बात का ज्ञान नहीं होता.
बुड़बक मरे बिरानी चिंता. मूर्ख व्यक्ति दूसरों की चिंता में ही दुबला होता रहता है. बिरानी – दूसरों की.
बुड़बक वर के सांझे बिछौना. 1. मूर्ख व्यक्ति को समाज क्या कहेगा इस की चिंता नहीं होती. वह शाम से ही पत्नी के साथ सोना चाहता है. 2. मूर्ख व्यक्ति वैवाहिक सुखों को नहीं जानता, शाम से ही सो जाता है.
बुड़बक वर, बचपने ब्याह. वर अगर मंदबुद्धि है तो उस की शादी बचपन में ही कर देना चाहिए, जिससे उसकी मूर्खता बचपने की आड़ में छिप जाए.
बुड्ढा ब्याह करे, पड़ोसियों को सुख. वैसे यह कोई न्यायपूर्ण और अच्छी बात तो नहीं है पर कटु सत्य तो है. कहावत में सीख दी गई है कि बूढ़े व्यक्ति को युवा स्त्री से विवाह नहीं करना चाहिए.
बुड्ढी बकरी और हुंडार (भेड़िया) से ठट्ठा. अपने से बहुत अधिक शक्तिशाली शत्रु से पंगा लेना.
बुड्ढी भैंस का दूध शक्कर का घोलना, बुड्ढे मर्द की जोरू गले का ढोलना. बुड्ढी भैंस का दूध मीठा होता है, बूढ़े व्यक्ति को अपनी पत्नी बहुत प्रिय होती है. (गले का ढोलना – गले में लटका तावीज़).
बुढ़वा भतार पर पाँच टिकुली. टिकुली – माथे का टीका (सोने का), भतार – पति. बूढ़े पति को प्रसन्न करने के लिए पाँच टिकुली लगाए हैं. अनावश्यक साज सज्जा.
बुढ़वा भतार पे इतना गुमान, लड़का जो होता तो चलती उतान. अधिक आयु वाला पति होने पर भी कोई स्त्री घमंड दिखा रही है तो अन्य स्त्रियाँ कहती हैं कि यदि इसको युवा पति मिल जाता तो ये कितना उड़ती.
बुढ़ापा दूसरा लड़कपन है. बुढापे में व्यक्ति बच्चों के समान जिद्दी और खाने पीने का लालची हो जाता है.
बुढ़ापा बड़ा कमीना. 1.बुढ़ापे में कष्ट ही कष्ट हैं. 2. बुढापे में आदमी बहुत स्वार्थी हो जाता है.
बुढ़ापा माने बुरा आपा. बूढ़ा होने पर शरीर में सौ बुराइयाँ आ धमकती हैं.
बुढ़ापे की औलाद ज्यादा प्यारी लगे. अर्थ स्पष्ट है.
बुढ़ापे में आदमी की मत मारी जाती है. अर्थ स्पष्ट है.
बुढ़ापे में ऐसा तो जवानी में कैसा. जो आदमी बुढापे में इतना रंगीनमिजाज है वह जवानी में कैसा रहा होगा.
बुढ़ापे में मिट्टी खराब. किसी का सारा जीवन अच्छा कटा हो पर बुढ़ापे में बहुत कष्ट हो रहे हों तो. (बड़ी बीमारी हो जाए, सन्तान नालायक निकल जाए या किसी प्रियजन की मृत्यु हो जाए).
बुढ़िया आई लगाया रगड़ा, सास बहू में हो गया झगड़ा. इधर उधर की लगा कर झगड़ा कराने वालियों के लिए.
बुढ़िया के कहे खीर कौन रांधे (बुढ़िया के लिए खीर कौन पकाए). आम घरों में लोग बुजुर्गों की फरमाइशों पर ध्यान नहीं देते.
बुढ़िया को पैठ बिना कब सरे. पैठ माने बाज़ार. बुढ़िया का बाज़ार जाए बिना काम नहीं चलता. (किसी की बुढापे में भी सैर सपाटे और खाने पीने की आदत न छूट रही हो तो व्यंग्य).
बुढ़िया गजब की पुड़िया (बुढ़िया जहर की पुड़िया). धूर्त बूढ़ी स्त्री के लिए.
बुढ़िया दासी मालिक को काम बतावे. घर में काम करने वाली पुरानी कामवालियां घर के सदस्य की तरह हो जाती हैं और सभी उनका सम्मान करते हैं. वे गृहस्वामी को भी आदेश देने से नहीं चूकतीं.
बुढ़िया मरी कैसे, बोले सांस नहीं आई. किसी बात का सीधा उत्तर न देना.
बुढ़िया मरी तो मरी आगरा तो देखा. कुछ लोग घर की बड़ी बूढ़ी का इलाज कराने आगरा गए. बूढ़ी अम्मा तो नहीं बचीं पर इस बहाने आगरे की सैर हो गई. कहावत का अर्थ है कि जहाँ एक ओर कुछ काम बिगड़ा वहीं दूसरी ओर कुछ लाभ भी हो गया.
बुढ़िया मरी, खटोला मिला. किसी के नुकसान में अपना फायदा ढूँढने वालों के लिए.
बुढ़िया मरे का गम नहीं, पर जम घर देख गए. बुढ़िया मर गई इस बात का गम नहीं है पर इस बात की चिंता है कि यमदूत घर देख गए (अब दोबारा जल्दी न आ धमकें).
बुढ़िया मिर्ची की पुड़िया. लड़ाकू बुढ़िया के लिए.
बुद्धि बिना बल बेकार. कोई कितना भी बलवान क्यों न हो अगर उसमें बुद्धि न हो तो सब बेकार है. शेर, हाथी, घोड़ा कितने भी बलवान क्यों न हों, मनुष्य अपनी बुद्धि से उन्हें वश में कर लेता है.
बुद्धि बिना विद्या बेकार (बुद्धि बिना विद्या बेचारी). कोई कितनी भी विद्याएँ सीख ले, जब तक अपने अंदर बुद्धि न हो वे किसी काम की नहीं हैं.
बुध कहै मैं बड़ा सयाना, मेंरे दिन मत करो पयाना, कौड़ी से ना भेंट कराऊँ, क्षेम कुशल से घर पहुँचाऊँ. पयाना – प्रयाण. बुध के दिन यात्रा करने वाला सकुशल घर तो आ जायेगा मगर लाभ एक पैसे का भी न होगा.
बुरा कब्र तक कोसा जाए. बुरे व्यक्ति को लोग मरने के बाद तक कोसते हैं.
बुरा जो देखन मैं चली, बुरा न मिलिया कोय, जो दिल खोजो आपनो, मुझसे बुरा न कोय. दूसरों में बुराई ढूँढने की बजाए अपनी बुराइयों को ढूँढ़ कर उन्हें ठीक करना चाहिए.
बुरी नज़र वाले तेरा मुँह काला. ट्रकों के पीछे लिखा जाने वाली सबसे प्रचलित कहावत.
बुरी नज़र वाले तेरे बच्चे जीयें, बड़े हो कर तेरा खून पीएँ. ट्रकों के पीछे लिखी जाने वाली मजेदार कहावत.
बुरी बात सच्ची हो जाती है, भली बात सच्ची नहीं होती. यदि हम बुरी बुरी आशंकाएं करते हैं तो उन में से कुछ सच हो जाती हैं. इसीलिए पुराने लोग कहते थे, बुरा मत सोचो.
बुरी संगत से अकेला भला (कुसंग से इकंत भली) (बुरी सोहबत से तन्हाई अच्छी). बुरे लोगों के साथ रहने से अकेला रहना अधिक अच्छा है. इंग्लिश में कहावत है – Better be alone than in a bad company.
बुरे का साथ दे वो भी बुरा. बुरा तो बुरा होता ही है, जो उसका साथ दे वह भी बुरा. द्रोणाचार्य और भीष्म पितामह जैसे प्रतापी और विद्वान् लोग इस लिए बुरे बने क्योंकि उन्होंने दुर्योधन का साथ दिया.
बुरे काम का बुरा नतीजा (बुरे काम का बुरा हवाल). किसी के साथ बुराई करने का परिणाम बुरा ही होता है.
बुरे दिन आते हैं तो पूछकर नहीं आते. कोई व्यक्ति कितना भी शक्तिशाली या सम्पन्न क्यों न हो, हर किसी को यह सोचना चाहिए कि उस पर भी कभी बुरे दिन आ सकते हैं. इसलिए जब अच्छे दिन हों तो भी सब से आदर और प्रेम रखना चाहिए.
बुरे लगत सिख के बचन, हिए बिचारो आप, करुवे भेषज बिन पिये, मिटै न तन को ताप. सिख के वचन – सीख, शिक्षा की बात, हिए – हृदय, भेषज – दवा, तन को ताप – बुखार. कड़वी दवाई से बुखार उतरता है इसलिए हमें दवा पीने में बुरा नहीं मानना चाहिए. इसी प्रकार सीख देने वाली बात कड़वी लगे तब भी बुरा न मानें.
बुरे वक्त का अल्लाह बेली. समय कठिन होनेपर ईश्वर ही सहायक होता है.
बुरे से देव डरावें. बुरे आदमी से भगवान भी डरता है.
बुरो प्रीति को पंथ, बुरो जंगल को बासो, बुरो नारि को नेह, बुरो मूरख सों हाँसो. प्रेम की राह में खतरे बहुत हैं, जंगल में कोई सुविधाएँ नहीं मिलतीं, परनारी से प्रीत में बदनामी होती है व मूर्ख से मजाक खतरनाक होता है.
बुर्के वाली बूआ, पीछे पीछे चूहा. बच्चों की आपसी मजाक.
बुलाई न चलाई, मैं दूल्हे की ताई. जबरदस्ती किसी से संबंध जोड़ने वालों के लिए.
बुलाये न बैठाये, मेरे तीन हिस्सा. कोई जबरदस्ती आ कर अधिक हिस्सा मांगे तो यह कहावत कही जाती है.
बूँद का चूका, घड़े छ्लकावे. 1.छोटा सा अवसर चूक जाने पर फिर उस की भरपाई करने के लिए बहुत प्रयास करना पड़ता है. 2. जिस का छोटा सा नुकसान हुआ हो वह ईर्ष्यावश दूसरों का बड़ा नुकसान करना चाहता है.
बूँद बूँद से सागर भरता है. सागर में अथाह जल है लेकिन वह बूँद बूँद कर के ही इकठ्ठा हुआ है. छोटी छोटी बचत एक बड़ी राशि बन सकती है.
बूंद बूंद सों घट भरे, टपकत रीतो होए. बूँद बूँद कर के घड़ा भरता है और बूँद बूँद टपकने से खाली भी हो जाता है. थोड़ी थोड़ी बचत कर के निर्धन व्यक्ति धनवान बन सकता है और थोड़ा थोड़ा धन गंवा के धनी व्यक्ति कंगाल हो सकता है.
बूचा सबसे ऊँचा. बूचा – कान कटा कुत्ता (जिसे मनहूस माना जाता है). निर्लज्ज व्यक्ति सबसे बड़ा होता है.
बूची को और ताव, कानी को और ताव. बूची – जिसका कान कटा हुआ हो, ताव – गुस्सा या जोश. बूची और कानी दोनों को ही अशुभ माना जाता है. रूपान्तर – बूची को कुंडल को ताव, कानी को कजरा को ताव. जब कोई अयोग्य व्यक्ति ऐसी वस्तु को पाने की इच्छा करे जो उस के किसी काम की नहीं है.
बूढ़ा कुत्ता, पिलवा नाम. बेमेल नाम (बूढ़ा कुत्ता है और नाम है पिल्ला).
बूढ़ा गिना न बालका, सुबहा गिनी न सांझ, जन जन का मन राखते, वैश्या रह गई बाँझ. वैश्या ने जो भी उसके पास आया, जिस समय भी आया, सबका मन रखा, इसलिए खुद वह बाँझ रह गई. (वैश्या गर्भधारण से बचने के लिए कुछ दवाएँ खाती है). रूपान्तर – जने जने का मन रखते वैश्या हो गई बाँझ.
बूढ़ा बैल और बूढ़े माँ बाप जितना काम कर दें उतना ही नफा. बैल बूढ़ा हो जाए तो उसे खिलाना तो पड़ता है पर वह खेती के काम का नहीं रहता, अर्थात उस का रख रखाव बहुत महंगा पड़ता है. इसी प्रकार बूढ़े माँ बाप घर के काम में या खेती व्यापार आदि में हाथ तो नहीं बंटा पाते पर उन पर खर्च पूरा होता है. इस प्रकार के लोग काम में जितना भी सहयोग कर दें वह एक प्रकार का बोनस है.
बूढ़ा बैल बिसाय के झीना कपड़ा लीन्ह, पतुरिया को ब्याह के दोस करम को दीन्ह. बैल बूढ़ा खरीद कर जुताई में लगाया और झीना व कमजोर कपड़ा खरीदा, ऊपर से वैश्या को ब्याह कर लाए, और भाग्य को दोष दे रहे हो.
बूढ़ा बैल ब्याह गया है. कोई असम्भव सी बात. जैसे कोई बहुत कंजूस आदमी बड़ी रकम दान कर दे तो.
बूढ़ा रहे घर, न फिकर न डर. घर में कोई बुजुर्ग आदमी रहता हो तो घर सुरक्षित रहता है.
बूढ़ी गाय को सोहराई की आस. सोहराई – दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा पर घर के पशुओं को सजाने का उत्सव. बूढ़ी गाय भी गोवर्धन के दिन सजना संवरना चाह रही है. फैशन करने वाली बूढ़ी स्त्रियों पर व्यंग्य.
बूढ़ी घोडी लाल लगाम (बूढ़ा बैल, रेशम की नाथ). किसी बूढ़े व्यक्ति को फैशन सूझ रहा हो तो या फिर किसी पुरानी चीज़ में कोई नया पुर्जा लगा दिया गया हो तो.
बूढ़ी बकरी को बहकावे भेड़िया, चल नाले पर हरी हरी खाने को मिलेगी. बूढ़ी बकरी भेड़िये की बातों में नहीं आने वाली. किसी अनुभवी व्यक्ति को कोई बहकाने की कोशिश करे तो यह कहावत कही जाती है.
बूढ़ी वैश्या बनी साध्वी. जिसने जीवन भर कुकर्म किए हों वह बुढापे में साधु बने तो उस पर व्यंग्य.
बूढ़ी हुई बिल्ली, चूहे उड़ावें खिल्ली (जब बूढ़ी भई बिलारी, तब मूस बजावें तारी). जब कोई आततायी शक्तिहीन हो जाता है, तो कमजोर लोग भी उसका मजाक उड़ाने लगते हैं.
बूढ़े और बालक का मन एक सा होवे. अर्थ स्पष्ट है.
बूढ़े की जबान में जोर होता है. बूढ़े आदमी के हाथ पैर नहीं चलते लेकिन जबान बहुत चलती है.
बूढ़े को बूढ़ा कहो तो चिढ़ मरे. सत्य कहने से दोषी आदमी चिढ़ता है.
बूढ़े गवइया के, कौन सुने गीत. जब आदमी बूढ़ा हो जाता है तो उसके हुनर की कोई कद्र नहीं की जाती.
बूढ़े तो सबकी करें, उनकी करे न कोय. बूढ़े लोग सब की फ़िक्र करते हैं लेकिन उनकी फ़िक्र कोई नहीं करता.
बूढ़े तोते भी कही पढ़ते हैं (बूढ़ सुआ राम राम थोरै पढ़िहैं). 1. बूढ़े लोग नहीं पढ़ सकते. इंग्लिश में कहावत है – You can not teach an old dog new tricks. 2. बूढ़े लोगों को पढ़ाने की कोशिश मत करो (उनका अनुभव किताबी ज्ञान से कम मूल्यवान नहीं है).
बूढ़े बैल से भली कुदारी. बूढ़ा बैल किसी काम का नहीं होता क्योंकि वह हल नहीं चला सकता. उससे अधिक उपयोगी तो कुदाली है.
बूढ़े मुंह मुंहासे, लोग आए तमासे. मुँह पर मुँहासे जवानी में निकलते हैं अगर बुढापे में निकलें तो आश्चर्य की बात होगी. बूढों को यदि जवानी चढ़ने लगे तो उनका मजाक उड़ाने के लिए.
बूढ़ो खाय, गांठ को जाय. जो आदमी किसी काम का न हो उस को खिलाना घाटे का सौदा है.
बूढ़ों की सीख, करे काम को ठीक. बूढ़े लोगों के पास लंबा अनुभव होता है जिस से बहुत कुछ सीख सकते हैं.
बूढ़ों से बरकत. घर में मार्ग दिखाने वाले बूढ़े लोग हों तभी समृद्धि आती है.
बे औसर को बाजो, साजो नाहिं लगत. बाजो-बाजा, साजो-उचित. बेअवसर का काम अच्छा नहीं लगता.
बेइज्जत की पूरी से इज्जत की आधी भली. सम्मान के साथ थोड़ा भी मिले तो बेहतर है.
बेकार न बैठ कुछ किया कर, कपड़े ही उधेड़ कर सिया कर. आदमी को कभी खाली नहीं बैठना चाहिए. चाहे किसी काम को दोबारा करना पड़े.
बेकार से बेगार भली. बेकार होने का अर्थ है कोई काम न करना और बेगार का अर्थ है ऐसा काम करना जिसमें कोई मेहनताना या पैसा न मिले. कहावत का अर्थ है कि बेकार बैठने के मुकाबले कुछ न कुछ करना अच्छा है चाहे उससे कोई आर्थिक लाभ न भी हो. सयाने लोग कहते हैं कि खाली बैठोगे तो खाली दिमाग शैतान का घर है. कुछ काम करोगे तो पैसा न भी मिले कुछ अनुभव और ज्ञान मिलेगा, किसी की दुआ भी मिलेगी.
बेकारी महकमे का जमादार. कोई बिलकुल बेकार आदमी. जमादार का अर्थ यहाँ सफाई सेवक से भी हो सकता है और नायक से भी.
बेगानी खेती पर झींगुर नाचे. दूसरे की चीज़ पर जबरदस्ती कब्जा करने वालों के लिए.
बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना. अनजान लोगों की ख़ुशी में जबरदस्ती खुश होने वाला मूर्ख व्यक्ति.
बेच खाओ बैल को मंगनी मत दो. बैल को मंगनी ले जाने लोग उसको खिलाने पिलाने का ध्यान नहीं रखते थे, लेकिन उन से काम बहुत लेते थे. इसलिए यह सुझाव दिया गया है.
बेचे के साग, करे मोती का मोल. हैसियत तो है साग बेचने की, दाम मोतियों का पूछते हैं.
बेटा अभी हुआ नहीं, ढोल बजने लगे (बेटा हुआ नहीं, ढोल पीटने लगे). उचित अवसर से पहले ही ख़ुशी मनाना.
बेटा ऊपर बेटी ललाट पर का मोती, छोड़ पिया खेती, खिलाओ मोरी बेटी. बेटे के ऊपर की बेटी बड़ी लाड़ली होती है. स्त्री पति से कह रही है कि ऐ प्रियतम! खेती-बाड़ी का काम छोड़कर मेरी बेटी को खिलाओ.
बेटा एक कुल की लाज रखता है और बेटी दो कुल की. पुत्र को केवल अपने पिता के कुल की मर्यादा का पालन करना होता है जबकि पुत्री को अपने पिता और पति दोनों कुलों की मर्यादा निभानी होती है.
बेटा और लोटा बाहर ही चमकते हैं. जैसे लोटा अंदर बदरंग होता है और बाहर चमकता है वैसे ही घर में बेटे की कदर नहीं होती, वह घर के बाहर ही प्रशंसा पाता है.
बेटा खाय, बाप लखाय, कलजुग अपना बल दिखलाय. बेटा खा रहा है और बाप बेचारा बैठा देख रहा है, यह कलियुग का लक्षण है.
बेटा बन के सबने खाया, बाप बनके कोऊ न पाया. मीठी बात से जो काम निकलता है वह रोब जमाने से नहीं.
बेटा बेटी बस का अच्छा. बेटा और बेटी वही अच्छे हैं जो माता पिता की बात मानें.
बेटा ब्याहा बुढ़ौती की ताईं, आई बहू टूट गया नाता, मत कर राम बुढ़ौती की आसा. बेटे का जन्म हुआ तो यह आशा की थी कि वह बुढापे में सहारा देगा, लेकिन बहू के आने के बाद वह पराया हो गया.
बेटा ब्याहे झुक के रहे, गहने पहने ढंक के रहे. बेटा होने के बाद घमंड नहीं करना चाहिए बल्कि विनम्रता से रहना चाहिए. गहने पहने हों तो उन का दिखावा न कर के ढक कर रखना चाहिए.
बेटा राजी किससे, जो खिलाए उससे. शिशु किस से प्रसन्न होता है, जो उसे खिलाता है उस से.
बेटा से बेटी भली जो कुलवन्तिन होय. जो बेटा कुल की मर्यादा का ध्यान न रखे उस से वह बेटी अच्छी है जो कुल की लाज रखे.
बेटा हुआ गोद ले, बेटी हुई फेंक दे. सनातन संस्कृति में बेटियों का बहुत मान होता था लेकिन मुगलों के समय बेटियों की सुरक्षा एक बहुत बड़ी समस्या थी, इसलिए लोगों में यह प्रवृत्ति पैदा हुई कि बेटी होने पर उसे फेंक दो. सौभाग्यवश अब इस निकृष्ट सोच का लगभग अंत हो चुका है.
बेटा हुआ तब जानिए जब पोता खेले द्वार. पहले के जमाने में संक्रामक रोगों के कारण बहुत से बच्चों की अकाल मृत्यु हो जाया करती थी. इसलिए यह कहा गया है कि बेटा होने की ख़ुशी तब मनाओ जब बेटे का बेटा हो जाए.
बेटा है तो बहुएँ भौत आ जइहें. लड़का है तो बहुएँ बहुत आ जायेंगी. साधन है तो काम भी हो जायगा.
बेटा होवे सयाना, दलिद्दर जाए पुराना. बेटे बड़े हो जाएँ और कमाने लगें तो घर की दरिद्रता दूर हो जाती है.
बेटी और घूरा, बहुत जल्दी बढ़ते हैं. कहावतों की एक विशेषता यह होती है कि उसे मजेदार बनाने के लिए दो बिल्कुल अलग चीजों को एक साथ मिला कर एक कहावत बना दी जाती है. कहीं पर कूड़ा डालना शुरू करो तो बहुत से लोग वहाँ कूड़ा डालने लगते हैं और घूरा बन जाता है जोकि बहुत तेजी से बढ़ता है. बेटी भी बहुत जल्दी बड़ी होती है और उसके विवाह की चिंता करनी पड़ती है.
बेटी और दामाद तो रूठे हुए ही अच्छे. बेटी और दामाद जितनी बार घर आते हैं उतनी बार उनकी खातिरदारी करनी होती है और उपहार इत्यादि देना पड़ता है. इसलिए इनका रूठना अच्छा है.
बेटी कंगाल की नाम राजरानी. 1. गुण के विपरीत नाम. 2. गरीब से गरीब आदमी को भी संतान प्यारी होती है.
बेटी का भला चाहे तो बोल जमाई लाल की जै. बेटी को सुखी रखना हो तो दामाद की जय बोलना जरूरी है.
बेटी की माँ, बुढ़ापे में पानी भरे. जिस माँ के सब बेटियाँ ही होती हैं उसे बुढ़ापे में सारे काम करने पड़ते हैं, क्योंकि बेटियाँ अपने घर चली जाती हैं. वैसे अब उल्टा हो गया है. किसी के चार बेटे हों वे सेवा नहीं करेंगे (आपस में हिर्स करेंगे), एक बेटी हो तो वह सेवा करेगी.
बेटी के बेटा कौनो काम, खइहें यहाँ और जइहें गाँव. (भोजपुरी कहावत) बेटी के बेटे किस काम के, खाएँगे यहाँ जाएँगे अपने गाँव. दूर रहनेवाले समय पर काम नहीं आते.
बेटी गई बहू आई, भात उतना ही पकेगा. अर्थ स्पष्ट है.
बेटी तू क्यों रोवे है, जो तुझको ब्याहेगो वो रोवेगा. एक समय था जब विवाह के समय लड़की के माँ बाप चिंता करते थे कि मालूम नहीं लड़का और उसके घर वाले कैसे निकलेंगे. अब तो लड़के वाले अधिक चिंता करते हैं कि मालूम नहीं बहू कैसी निकलेगी.
बेटी दे कंजूस को, बेटी ले उदार की. कंजूस के घर में बेटी की शादी करने से खर्च कम करना पड़ता है और उदार व धनवान व्यक्ति की बेटी से शादी करने पर माल खूब मिलता है.
बेटी ने किया कुम्हार और मां ने किया लुहार, न तुम चलाओ हमार न हम चलाएं तुम्हार. बेटी ने कुम्हार से शादी कर ली और माँ ने लुहार से. अब दोनों एक दूसरे से कह रही हैं कि तुम हमारे बारे में कुछ न कहो, हम तुम्हारे बारे में कुछ नहीं कहेंगे. जब दो अपराधी एक दूसरे का अपराध छिपाएं तो.
बेटी मरी जमाई चोर, टूट गई डाली उड़ गया मोर. जिस डाली पर मोर बैठा है वह टूट जाए तो मोर को वहाँ से उड़ जाना पड़ता है. बेटी के मरने पर दामाद उस घर में एक अवांछित व्यक्ति बन जाता है.
बेटी माँ के पेट में समाती है पर बाप के आंगन में नहीं समाती. बेटा और बेटी दोनों माँ की कोख से पैदा होते हैं पर बेटी को अपना आंगन छोड़ कर जाना पड़ता है.
बेटे का मरना ठीक है, विश्वास का उठना ठीक नहीं. बेटे की मृत्यु किसी व्यक्ति के लिए सब से बड़ा दुख माना जाता है, लेकिन लोगों का आप पर से विश्वास उठ जाए यह उस से भी बड़ा दुख है.
बेटे को खिलाऊँगी तगड़ा हो जाएगा, आदमी को खिलाऊँगी खूब कमाएगा, बूढ़े को खिलाऊँगी सो बेकार जाएगा. स्वार्थी बहुओं का कथन. रूपान्तर-बूढ़े को खिलाना, गठरी का डुबाना. बूढ़े आदमी पर अधिक पैसा खर्च मत करो.
बेटे से घर भरे, बेटी से सूना होय. बेटी कितनी भी अच्छी हो एक दिन मजबूरी में घर को सूना कर के चली जाती है, बेटा कम अच्छा भी हो तब भी बहू और बच्चों से घर गुलजार रहता है.
बेटे से बेटी भली जो कोई होय सपूत. नालायक बेटे से तो योग्य बेटी अधिक अच्छी.
बेटों को घी भरपूर और बेटियों को खट्टी छाछ. पुराने समय में बेटे बेटी में बहुत भेदभाव होता था.
बेड़ी सोने की भी बुरी. सोने की बेड़ी अर्थात खूब सुख सुविधाओं वाली गुलामी. गुलामी हमेशा बुरी ही होती है, चाहे उसमें कितनी भी सुविधाएं क्यों न हों.
बेदिल नौकर, दुश्मन बराबर. जो नौकर अपनेपन से काम न करे वह दुश्मन जैसा है (उसे मालिक के हानि लाभ की कोई परवाह नहीं होती).
बेबकूफ किस्मत के धनी होते हैं. यदि किसी बेबकूफ आदमी को अच्छी सुविधाएं मिल रही होती हैं तो अक्लमंद लोग कुढ़ कर यह बात बोलते हैं. (खुदा मेहरबान तो गधा पहलवान)
बेबकूफों की कमी नहीं है, एक ढूँढो हजार मिलते हैं. मूर्ख लोग इस दुनिया में बहुतायत में पाए जाते हैं.
बेबकूफों की बात खुदा ही समझे. बेवकूफ लोग अपनी बात को बहुत महत्वपूर्ण समझते हैं, लिहाजा उन का मजाक उड़ाने के लिए यह कहावत कही जाती है.
बेर खावे गीदड़ी, डंडे खावे रीछ. अपराध कोई और करे, दंड कोई और पाए.
बेल कच्चा या पका, कौवों के बाप का क्या. बेल पका हो या कच्चा हो कौवे को इससे फर्क नहीं पड़ता क्योंकि वह बेल खा ही नहीं सकता (कठोर छिलके में अपनी चोंच से छेद नहीं कर सकता). जिस चीज़ से हमें कोई नफा नुकसान न हो उस में हम क्यों सर खपाएँ.
बेल के मारे बबूल तले, बबूल के मारे बेल तले. बेल के पेड़ के नीचे खड़े थे तो सर पे बेल गिरा और सर फट गया, वहां से भाग कर बबूल के पेड़ के नीचे खड़े हुए तो कांटे चुभ गए तो फिर भाग कर बेल के नीचे आए. अभागे व्यक्ति के लिए.
बेलज्जी बहुरिया पर घर नाचे. निर्लज्ज बहू दूसरों के घरों पर घूमती फिरती है.
बेलाग बेबाक. जिसे कोई लाग लपेट न हो वह बात कहने में नहीं डरता. बेलाग – निस्वार्थ, बेबाक – स्पष्टवादी.
बेलाग से बोलो, भितरघुन्ने से अलगे रहो. जो लोग स्वच्छ हृदय और स्पष्टवादी होते हैं उन्हीं से बात करनी चाहिए, जो मन के काले होते हैं उनसे बचना चाहिए.
बेवकूफ की सबसे बड़ी समझदारी चुप रहना है. बेवकूफ आदमी जब तक चुप रहता है तब तक उसमें और समझदार आदमी में अंतर करना मुश्किल होता है, पर जैसे ही वह बोलता है उसकी असलियत सामने आ जाती है. एक मंदबुद्धि लड़के को देखने के लिए लड़की वाले आ रहे थे. सब लोग उसे समझा रहे थे कि लड़की वाले ऐसा पूछे तो यह जवाब देना, वैसा पूछे तो वह जवाब देना आदि. तब एक बुजुर्ग ने कहा कि बेटा सब से बड़ी समझदारी यह होगी कि तुम चुप रहना.
बेवक्त की शहनाई, मुए कूढ़ ने बजाई. कोई मूर्ख व्यक्ति बेअवसर की बात करे तो. (कूढ़ – मूर्ख व्यक्ति, इसको कुछ लोग कूढ़ मगज़ भी कहते हैं). शहनाई कुछ ख़ास अवसरों पर ही अच्छी लगती है, उस के अलावा कोई बजाए तो गुस्सा आता है.
बेवारिसी नाव डांवाडोल. हर काम के लिए योग्य नेतृत्व की आवश्यकता होती है. बिना मल्लाह की नाव डांवाडोल रहती है.
बेशरम को दुख नहीं, कंजूस को सुख नहीं. बेशर्म आदमी मान अपमान से परे होता है इसलिए उसे कोई दुख नहीं होता. कंजूस कभी अपने ऊपर खर्च नहीं करता इसलिए उसे कोई सुख नहीं होता.
बेशर्म का नंगे से पाला पड़ा है. जब एक बेशर्म आदमी का अपने से बड़े बेशर्म से पाला पड़े तो.
बेशर्मों के पूँछ थोड़े ही होती है. बेशर्म लोग देखने में इंसान ही होते हैं. उन के कोई सींग पूँछ नहीं होते. बस उनकी हरकतें उन्हें औरों से अलग करती हैं.
बेसवा का जाया, किसको बाप कहे. वैश्या के बेटे के सामने यह समस्या होती है कि वह किसी को अपना बाप नहीं कह सकता.
बेहया की पीठ पर रूख जमा, उसने जाना छाँव हुई. बेशर्म आदमी की पीठ पर पेड़ उग आया, बात बहुत परेशानी की है पर वह खुश हो रहा है कि चलो छाया हो गई. बेशर्म आदमी के लिए मान अपमान एक समान है. इसको कुछ अश्लील ढंग से ऐसे भी कहा गया है – बेहया के चूतड़ में पेड़ उगा, आओ लोगों छाँव में बैठो.
बेहया बेहया वहाँ कैसे रहे, मार गाली खाय बड़े सुख से रहे. बेशर्म आदमी से पूछा गया कि फलाँ जगह कैसे रहे. विषय कहता है कि मार और गाली खा कर बड़े आराम से रहे.
बैठने को जगह दे दो, लेटने को खुद ही कर लेंगे. जो लोग थोड़ी सी सुविधा मिलने पर अपना अधिकार जमा लेते हैं उनके लिए.
बैठा अहीर गोबर, उठता अहीर बाघ. अहीर बैठा हो तो किसी काम का नहीं होता, पर यदि खड़ा हो तो बाघ की तरह फुर्तीला और शक्तिशाली होता है.
बैठा बनिया क्या करे, बाट तराजू तौले. बनिया बहुत उद्यमशील होता है, वह खाली बैठने की बजाए कुछ न कुछ करता रहता है.
बैठाई ड्योढ़ी पे, खिसक पहुँची रसोई में. किसी को ड्योढ़ी पर बैठने की छूट दे दी तो वह खिसक खिसक कर रसोई में पहुँच गई. ऊँगली पकड़ कर पाहुंचा पकड़ना.
बैठी बुढ़िया मंगल गाए. समझदार आदमी कभी खाली नहीं बैठता. वह ऐसा कुछ न कुछ काम करता रहता है जो दूसरों को अच्छा लगे.
बैठे देवल सिखर पर, बायस गरुड़ न होय. देवल – देवालय, बायस – कौवा. यदि कौवा मंदिर के शिखर पर बैठ जाए तो वह गरुड़ नहीं बन जाता. नीच व्यक्ति उच्च पद पर बैठ कर कुलीन नहीं बन जाता.
बैठे बैठे तो कारूँ का खजाना भी खाली हो जाता है. कारूँ – मुस्लिम कथाओं में एक अति धनवान और कंजूस व्यक्ति जो हज़रत मूसा का चचेरा भाई था. इंसान यदि कोई काम न करे तो उसने कितना भी धन जोड़ कर रखा हो सब खत्म हो जाता है.
बैठो अक्लमंद के साथ, चलो जनता के साथ. मित्रता हमेशा बुद्धिमान व्यक्ति से ही करना चाहिए, जबकि काम जनता को खुश करने वाला करना चाहिए.
बैद्य, धनी, राजा, नदी, अरु पंडित नहिं होय, जहाँ पाँच ये न हुए, वहाँ बसो न कोय. (बुन्देलखंडी कहावत) किसी भी समाज के अस्तित्व के लिए ये पांच आवश्यक हैं, जहाँ ये न हों वहाँ जीवन जीना कठिन है.
बैरी को मत मानवो, उर तिरिया की सीख, क्वांर करें हर जोतनी, तीनऊ माँगें भीख. जो वैरी की सलाह माने, स्त्री के कहने पर चले, और क्वार में खेतों की जोताई करे, ऐसे तीनों आदमी भीख मांगते हैं.
बैरी लायो गेह में, किया कुटुम पर रोस, आप कमाया कामड़ा, दई न दीजे दोस (बैरी न्यूत बुलाइयाँ कर भायां से रोस). दई – दैव,ईश्वर; कामड़ा – दुर्भाग्य, दुर्दशा. घर वालों से बदला लेने के लिए बैरी को घर में बुलाया. अब मेरी बारी भी आ गई है. दुर्दशा को मैंने खुद बुलाया है, भाग्य का इस में दोष नहीं है. सन्दर्भ कथा – एक कुएं में बहुत से मेंढक रहते थे. एक बार उनमें आपस में लड़ाई हो गई तो एक मेंढक दूसरों से बदला लेने के लिए एक सांप को बुला लाया. सांप ने एक एक कर के सब मेंढकों को खा लिया. अंत में उस मेंढक की भी बारी आ गई. पृथ्वीराज चौहान से बदला लेने के लिए जयचंद ने मोहम्मद गोरी को बुलाया. बाद में गोरी ने कन्नौज पर आक्रमण कर के जयचंद को भी मार डाला.
बैरी संग न बैठिए पीकर मद और भांग. किसी प्रकार का नशा कर के अपने शत्रु के साथ कभी नहीं बैठना चाहिए. आप नशे में कोई भेद की बात उसे बता कर अपना नुकसान कर सकते हैं और नशे की हालत में वह आपको शारीरिक नुकसान भी पहुँचा सकता है.
बैरी से बच, प्यारे से रच. शत्रु से बच कर रहो और प्रेम करने वाले से प्रेम करो.
बैरी सोवे, न सोवे देय. दुश्मन न तो खुद ही चैन लेता है और न चैन लेने देता है.
बैल अकेला किस काम का. अकेला बैल हल भी नहीं चला सकता और गाड़ी भी नहीं जोत सकता.
बैल कहीं भी जाए, हल में जोता जाए. गरीब और लाचार व्यक्ति जहाँ भी जाए उसे काम में लगा दिया जाता है.
बैल का बैल गया, नौ हाथ का पगहा भी गया. किसी बड़े नुकसान के साथ एक छोटा नुकसान और होना. बैल तो चोरी हुआ है साथ में बैल को बाँधने वाली रस्सी भी चोरी हो गई.
बैल न कूदा, कूदी गौन, (ऐसा तमाशा देखे कौन). गौन – बैल के ऊपर रखी जाने वाली अनाज की बोरी. बोरी रखने पर बैल ने तो कोई आपत्ति नहीं की, बोरी ही उछल कूद मचाने लगी. जिस से कोई चुभती बात कही गई वह तो कुछ न बोला, दूसरा कोई लड़ने को तैयार हो गया.
बैल बेच घंटी पर रार (भैंस बेच पगहे पर झगड़ा). बड़ा सौदा कर के छोटी सी बात पर लड़ना. रार – झगड़ा. पगहा – गाय भैंस को बाँधने की रस्सी.
बैल ब्याहे तो नहीं पर बूढ़ा तो होगा ही. बैल की शादी भले ही न हो बैल बूढ़ा तो होगा ही. शादी न कर के कोई व्यक्ति समाज के नियम को टाल सकता है पर प्रकृति के नियम को नहीं टाल सकता.
बैल भड़कना टूटी नाव, कभी न कभी ये लेवें दांव. भड़कने वाला बैल और टूटी हुई नाव, ये काम में आ सकते हैं लेकिन ये कभी न कभी बहुत बड़ा धोखा देते हैं.
बैल मरखना चमकुल जोय, बा घर रोना नित ही होय. जिस का बैल मरखना (सींग मारने वाला) हो और पत्नी चमक धमक से रहने वाली हो, उस के घर में नित्य ही मातम होता है.
बैल सरकारी, यारों की टिटकारी. सरकारी सम्पत्ति या किसी भी मुफ्त की चीज़ का लोग खूब दुरूपयोग करते हैं.
बैल सिंगहारो, जवान मुछारो, गेहूँ जवारो, घी रवारो. बैल तो सींगोंवाला, मर्द मूंछोंवाला, गेहूँ का पौधा बाल वाला और घी रवादार अच्छा होता है.
बैले दीजे जायफल, क्या तौले क्या खाय. जायफल सुपारी की जाति का एक फल होता है जिसका प्रयोग कुछ औषधियों और गरम मसाले में किया जाता है. बैल को जायफल दिया जाए तो न तो उस का पेट भरेगा और न ही वह उस के गुणों को समझेगा.
बैलों से खेती घोड़ों से राज, मर्दों से सुधरें सिगरे काज. खेती के लिए बैल आवश्यक हैं, शासन चलाने के लिए घोड़े और सभी प्रकार के कामों के लिए पुरुष आवश्यक हैं.
बोए कोई काटे कोई. इस कहावत का प्रयोग दो प्रकार से हो सकता है – मेहनत किसी और ने की और फल किसी और को मिला, या गलती किसी और ने की खामियाजा किसी और ने भुगता.
बोटी देकर बकरा लेवें. छोटी चीज़ दे कर बड़ी वस्तु ठग लेना.
बोटी नहीं तो शोरबा ही सही. जो मिल जाए वही गनीमत.
बोया गेहूँ, उपजा जौ. भाग्य साथ न दे तो कोई काम ठीक नहीं होता.
बोया न जोता, अल्ला मियाँ ने दिया पोता. बिना मेहनत करे अचानक कोई चीज़ मिल जाए तो.
बोया पेड़ बबूल का, तो आम कहाँ से खाय. सब के साथ बुरा करोगे तो तुम्हारे साथ भलाई कैसे होगी.
बोलने वाले का भुस बिकाय, न बोलने वाले का धान सड़ाय. जिसके अंदर बोलने की कला है वह अपना घटिया उत्पाद भी बेच लेता है और जो नहीं बोल पाता है वह अच्छा उत्पाद भी नहीं बेच पाता है. आजकल के युग में विज्ञापन भी यही काम करते हैं.
बोलबो न सीख्यो तो सब सीख्यो गयो धूल में. आप कितना भी ज्ञान प्राप्त कर लें यदि आप को ठीक से बोलना नहीं आता (अभिव्यक्ति का गुण नहीं है) तो सब ज्ञान बेकार है.
बोली एक अमोल है, जो कोइ बोलै जानि, हिये तराजू तौल के, तब मुख बाहर आनि. बोली अनमोल वस्तु है इसलिए जो कुछ भी बोलो पहले अपने हृदय में उसे तोल लेना चाहिए.
बोली गधे चढ़ावे, बोली घोड़े चढ़ावे. जहाँ एक ओर खराब बोली बोलने पर किसी को मुंह काला कर के गधे पर बिठाया जाता है, वहीं दूसरी ओर अच्छी बोली बोल कर राजा के यहाँ अच्छा पद और सुविधाएं मिल जाती हैं.
बोली तो तब बोलो, जब बोलन की बुध होय. बात तभी करो जब समझ कर बोलना आता हो.
बोली बोली तो ये बोली कि मेरी जूती बोले. लड़ाका स्त्री के लिए जो गुस्से में मुँह फुलाए है और कुछ बोल नहीं रही है, बोलती है तो बस यह कहती है कि मेरी जूती बोलेगी.
बोली से ही पान मिले और बोली से ही पन्हैया. अच्छी बोली बोलने से पान खिला कर सम्मान किया जाता है और बुरी बोली बोलने से जूते खाने पड़ते हैं. पन्हैया – जूता.
बोले सो तेल को जाए. चुप रहना सबसे अच्छा है. जो बोलेगा वही तेल लेने जाएगा. (जो बोले सो कुण्डी खोले).
बोहरे का भाई, गाँव का साला. 1. सूदखोर के भाई की गाँव में सब इज्जत करते हैं. 2. सूदखोर के भाई को गाँव में सब गाली देते हैं (साला एक प्रकार से गाली भी है).
बोहरे की बकरी, सो बरस सखरी. सखरी – अच्छी, स्वस्थ, बोहरा – सूदखोर. सूदखोर के असामी ही उस के भेड़ बकरी हैं जो पीढ़ियों तक कर्ज़ भरते हैं.
बोहरे की राम राम, जम का संदेसा. बोहरा – सूदखोर बनिया. बोहरा नमस्कार कर के अपने पैसे मांगता है, इसलिए उस की नमस्कार भी मौत का संदेश है.
बौना छूने चला अकास. कोई व्यक्ति अपनी औकात से बहुत बड़ा कोई काम करने की कोशिश करे तो.
बौना, जोरू का खिलौना. ठिगने कद के व्यक्ति को चिढ़ाने के लिए.
बौनी तिरिया के घुटने में बुद्धि. बौनी स्त्री पर व्यंग्य. घुटने में बुद्धि का अर्थ मूर्ख भी होता है और धूर्त भी.
बौरी बिस्तुइया, बाघन से नज़ारा. बिस्तुइया – बिस्खोपड़ी, गोह (छिपकली की जाति का एक बड़ा प्राणी जो उस से काफी बड़ा होता है). गोह पगला गई है जो बाघों से भिड़ रही है. कोई अपने से बहुत बड़े दुश्मन से भिड़े तो.
ब्याज कमाने आया, मूल गवां के जाए. किसी काम में लाभ के स्थान पर हानि हो जाना.
ब्याज बढ़ावे धन घना रार बढ़ावे छोय, जैसे गंधक आग में गिरे सो दूनी होय. छोह – क्षोभ. ब्याज से धन बढ़ता है और झगड़ा बढ़ाने से क्षोभ बढ़ता है (जिस प्रकार गंधक आग में गिर कर दूनी हो जाती है).
ब्याज मोटा, मूल का टोटा. ज्यादा मोटा ब्याज वसूलने के चक्कर में कभी कभी मूलधन भी मारा जाता है.
ब्यारी कबहुं न छोडिये, बिन ब्यारी बल जाए, जो ब्यारी औगुन करे दुपरै थोड़ो खाएँ.(बुन्देलखंडी कहावत) ब्यारी – रात का भोजन. मेहनतकश आदमी को रात का भोजन अवश्य करना चाहिए. अगर रात में खाने से पेट में भारीपन लगे तो दोपहर में खाना थोड़ा कम कर देना चाहिए.
ब्याह गाये गाये को और खाये खाये को. विवाह में गाना-बजाना और खाना-पीना ही मुख्य है.
ब्याह जैसी ख़ुशी नहीं, मरने जैसा शोक नहीं. अर्थ स्पष्ट है.
ब्याह तो बिगड़ गया, घर के तो जीमो. किसी विवाह में कन्या और वर पक्ष के बीच बात बिगड़ जाने से बारात वापस चली गई, तो कन्या का पिता कह रहा है कि घर के लोग तो भोजन करो. कोई काम बिगड़ जाने के बाद भी दुनिया रुक नहीं जाती, चलती रहती है.
ब्याह न सगाई, तू मेरी लुगाई. जबरदस्ती किसी से सम्बन्ध होने का दावा करना.
ब्याह नहीं किया तो क्या, बारात तो गए हैं. कोई कार्य हमें स्वयं करने का अनुभव नहीं है तो क्या हुआ हमने औरों को करते देख कर ही सीख लिया है.
ब्याह नहीं रुकेगा, बात कहने को रह जाएगी. कोई रिश्तेदार विवाह में जाने में नखरे दिखा रहा हो तो लोग समझाते हैं कि तुम्हारे न जाने से विवाह नहीं रुकेगा लेकिन लोग कहेंगे कि तुमने अवसर पर साथ नहीं दिया
ब्याह पीछे पत्तल भारी. किसी बड़े कार्य में आप कितना भी खर्च कर लें उस के बाद छोटे खर्च भी भारी लगते हैं. विवाह में चाहे हजार लोगों को खिला दिया हो पर उसके बाद एक आदमी को भोजन कराना भी भारी लगता है.
ब्याह पीछे बरात, बरात पीछे धौंसा. धौंसा – ढोल नगाड़ा. जो काम पहले करना चाहिए वह बाद में करना. विवाह के बाद बारात निकालना और बारात निकलने के बाद बैंड बाजा बजाना.
ब्याह बिगाड़ें दो जने, या मूंजी या मेह. दो चीजें विवाह में व्यवधान डालती हैं, पैसे का लालची व्यक्ति या बरसात. किसी भी आयोजन के लिए उचित खर्च करना जरुरी होता है और प्रकृति का सहयोग भी.
ब्याह में गाए गीत, सारे साँची न होते. विवाह में लोग अच्छे अच्छे गीत गाते हैं वे सब सच नहीं होते. हम भविष्य के बारे में बहुत सी आशाएं संजोते हैं, पर वे सब सच नहीं होतीं.
ब्याह, सगाई, नौकरी, राजी ही से होय. विवाह, प्रेम और नौकरी आपसी सहमति से ही हो सकते हैं.
ब्याह से विधि विधान भारी. विवाह में खाना पीना, नाच कूद और दुल्हन का घर आना तो अच्छा लगता है लेकिन उस के रीति रिवाज पूरे करना बहुत भारी लगता है.
ब्याह हुआ नहीं, गौने का झगड़ा. किसी काम को आरम्भ किए बिना उस के परिणाम को लेकर झगड़ा करना. गौना विवाह के बाद होने वाली रस्म है जिसमें वर वधू को विदा करा के अपने घर ले जाता है. किसी किसी समाज में गौना विवाह के काफी दिन बाद होता है.
ब्याही धिया पड़ोसिन की नाईं. जब लड़की की शादी हो जाए तब वह पड़ोसिन की तरह हो जाती है. वह केवल बुलाए जाने पर ही मायके में आ सकती है.
ब्याही मरी क्वाँरी के भाग. किसी की मृत्यु किसी के सौभाग्य का रास्ता खोल सकती है.
ब्याहे की एक बहू, अनब्याहे की सौ बहू. जिस का विवाह हो गया उस के लिए एक ही पत्नी है, जिसका विवाह नहीं हुआ उस के लिए सैकड़ों स्त्रियाँ संभावित पत्नियां हैं. रूपान्तर – क्वांरी कन्या सहस वर.
ब्याहे न बरात गए. नितांत अनुभवहीन व्यक्ति.
ब्रह्मा के अक्षर. बिलकुल पक्की बात.
ब्राह्मण और धान की जातियाँ अनंत हैं. जिस प्रकार धान की बहुत सारी प्रजातियाँ होती हैं उसी प्रकार ब्राह्मणों में भी बहुत सी उपजातियाँ होती हैं.
ब्राह्मण हो चोरी करे, विधवा पान चबाय, क्षत्री हो रण से भगे, जन्म अकारथ जाय. ब्राह्मण यदि चोरी करे, विधवा यदि पान चबाए (पान चबाना विलासिता का प्रतीक है जबकि विधवा स्त्रियों से बिलकुल सादा जीवन जीने की अपेक्षा की जाती थी) और क्षत्रिय हो कर रणभूमि से भाग जाए, इन सब का जीवन बेकार है.
भ
भंग कहे मैं रंगी जंगी पोस्ता कहे मैं साहजहां. भांग पीने वाला कहता है मैं रंगीन पहलवान हूं. पोश्ता (अफीम) का नशा करने पर नशेबाज अपने को शाहजहां बादशाह से कम नहीं समझता है.
भंडुवे की जात क्या, झूठे की बात क्या. भंडुवे की जात और झूठे की बात का कोई महत्व नहीं है.
भंवरा जाने सर्व रस, जिन चाखी वनराय, घुन क्या जाने बापुरो, सूखी लकड़ी खाय. भंवरा भांति भांति के फूलों का पराग चखता है इस लिए उसे सारे रसों का ज्ञान होता है, घुन बेचारा केवल सूखी लकड़ी खाता है इसलिए कुछ नहीं जानता. भँवरे का अर्थ यहाँ विलासी व्यक्ति से है और घुन का अर्थ गरीब मेहनतकश से.
भई गति साँप छछूंदर केरी (धरम सनेह उभय मति घेरी). सांप के विषय में कहा जाता है कि यदि वह छछूंदर को पकड़ ले तो बहुत संकट में पड़ जाता है, यदि वह उसे निगल ले तो अंधा हो जाएगा और अगर उगल दे तो कोढ़ी हो जाएगा. इस संसार में मनुष्य के लिए ऐसी ही स्थिति होती है एक तरफ धर्म होता है और दूसरी तरफ स्नेह करने वाले स्वजन होते हैं.
भए विधि विमुख विमुख सब कोऊ. भाग्य साथ न दे तो बंधु, बांधव, मित्र सभी मुँह मोड़ लेते हैं.
भक्त तो भगवान से भी बड़ा होता है. भक्ति सच्ची हो तो भगवान भी वश में हो जाते हैं.
भक्ति नहीं भाव नहीं, नेह नहीं माला में, अढाई सेर हँस के सुत गये धरमसाला में. ऐसे लोगों के लिए जिन के मन में कोई भक्ति भाव नहीं होता और जो मंदिर में जा कर भी हंसी ठठ्ठा करते हैं. जैसे आजकल के तीर्थयात्री जो दर्शन करने नहीं बल्कि सैर सपाटे के लिए तीर्थ करने जाते हैं.
भगत भौत बैकुंठ संकरो. जब किसी जगह लोगों के बैठने के लिए स्थान की कमी हो तब.
भगवान के राज्य में देर है अंधेर नहीं (भगवान के घर देर है अंधेर नहीं है). ईश्वर सभी के साथ न्याय करता है चाहे वह कुछ देर से क्यों न हो.
भगवान तो भाव के भूखे हैं (भगवान भावना के भूखे हैं). भगवान सवा मन लड्डू या सवा सेर सोना चढ़ाने से प्रसन्न नहीं होते, वे तो भक्त की भावना देखते हैं.
भगवान दयालु हैं पर छोटी नाव में नाचो नहीं. भगवान कितने भी दयालु क्यों न हों मूर्ख लोगों की सहायता करने नहीं आते.
भगवान देता है तो छप्पर फाड़ के देता है. ईश्वर जब कृपा करता है तो भरपूर देता है. अवधी में इस को और विस्तार से कहा गया है – दैव देत है तो छप्पर फाड़ के देत है, नहीं तो चमड़ी उधेड़ लेत है.
भगवान पर विश्वास रखो, पर अपनी सुरक्षा स्वयं करो. भगवान् पर विश्वास रखना चाहिए लेकिन अंधविश्वास न कर के अपने कार्य स्वयं करना चाहिए. रूपान्तर – भगवान पर विश्वास रखो पर कुण्डी जरूर लगाओ.
भगवान मुझे अपनों से बचाए शत्रुओं से मैं अपनी रक्षा आप कर लूँगा. शत्रुओं से अधिक खतरा उन लोगों से है जो अपना होने का दिखावा करते हैं और मौका पाते ही पीठ में छुरा भोंक देते हैं.
भगवान से प्रार्थना करो पर चप्पू चलाते रहो. भगवान से प्रार्थना जरूर करो पर हाथ पर हाथ धर कर न बैठो. अपना पूरा प्रयास भी करते रहो..
भगाओ मन के डर को, बुड्ढे वर को. मन के डर को भगाओ (जो डरता है वह कुछ नहीं कर सकता) और अगर कोई बुड्ढा किसी युवा लड़की से शादी करने को आए तो उसे भगा दो.
भगोड़ा सिपाही पलटन की बुराई करता है. कोई भी कर्मचारी जहाँ से काम छोड़ता है (या निकाला जाता है) वहाँ की बुराई करता है.
भज कलदारं, भज कलदारं, कलदारं भज मूढमते. कलदार – रुपया. इस कलयुग में रुपया ही सब कुछ है. यह कहावत श्री कृष्ण भजन – भज गोविन्दं मूढ़मते की तर्ज पर बनाई गई है.
भजन और भोजन एकान्त में भला. भजन एकांत में इसलिए करना चाहिए जिससे मन इधर उधर न भटके, और भोजन एकांत में इसलिए करना चाहिए जिससे औरों की नज़र न लगे.
भटा भर्ता न खाए, तो दुनिया में काहे को आए. भटा – बैंगन. बुन्देलखंड में बैगन के भर्ते को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. वहाँ के लोगों का कहना है कि बैंगन का भर्ता नहीं खाया तो मनुष्य का जन्म लेना बेकार है.
भड़क भारी, जेब खाली. पैसा पास न होते हुए भी अत्यधिक दिखावा करने वालों के लिए.
भड़भड़िया अच्छा, पेट पापी बुरा. जो ऊपर से शांत दीखता है पर उसके मन में पाप है उस के मुकाबले जल्दी मचाने वाला व्यक्ति अच्छा है. भड़भड़िया – जल्दी मचाने वाला.
भड़भूँजा की छोकरी और केसर का तिलक. अयोग्य व्यक्ति को बहुमूल्य वस्तु मिल जाना. भड़भूँजा – भाड़ में अनाज इत्यादि भूनने वाला (पहले जमाने में निचली श्रेणी के लोगों में से एक).
भडुए को भी मुंह पर भडुआ नहीं कहते. नीच व्यक्ति को भी उस मुँह पर नीच नहीं कहना चाहिए. भडुआ – वेश्याओं का दलाल या साज बजाने वाला.
भद्रा वा घर होयँगे जिनके हैं नौ निद्ध, अष्ट कपाली दारिद्री जब चालै तब सिद्ध. भद्रा-एक अशुभ ग्रह, नौ निद्ध–नौ निधि (नौ प्रकार के ऐश्वर्य). शकुन अपशकुन का विचार धनवान लोग करते हैं. बेचारा गरीब तो जब आवश्यकता होती है चल पड़ता है.
भय और प्रेम एक जगह नहीं रहते. जहाँ प्रेम है वहाँ भय का कोई स्थान नहीं है और जो भय दिखाता है उस से प्रेम नहीं हो सकता.
भय बिन भाव न ऊपजै, भय बिन होय न प्रीति. बिना डर के किसी के प्रति आदर का भाव नहीं पैदा होता और बिना डर के प्रीति भी नहीं होती.
भय बिनु होहि न प्रीत. बिना डर के आदमी कोई काम नहीं करता. सन्दर्भ कथा – . भगवान् राम को जब लंका पहुँचने के लिए समुद्र को पार करना था तो उन्होंने तीन दिन तक समुद्र से मार्ग देने के लिए प्रार्थना की. जब समुद्र पर इसका कोई असर नहीं हुआ तो राम ने कुपित हो कर समुद्र को अग्नि वाण से सुखाने के लिए धनुष उठाया. इस पर समुद्र हाथ जोड़ता हुआ उनकी शरण में आया. इस पर य[ह कहावत बनी कि ओछे लोग बिना भय दिखाए प्रेम नहीं करते. तुलसीदास जी ने राम चरित मानस में इस प्रकरण को इस प्रकार कहा है – विनय न मानत जलधि जड़ गए तीनु दिन बीत, बोले राम सकोप तब भय बिनु होहि न प्रीत.
भर घर देवर, जेठ से ठट्ठा. सामाजिक वर्जनाओं के हिसाब से अनुचित काम. घर में बहुत से देवरों के होते हुए भी यदि कोई स्त्री जेठ से मजाक करे.
भर दे भर पावे, काल कंटक पास न आवे. अधिक दान पुण्य करने वाले को अधिक फल की प्राप्ति होती है. ऐसे दानी व्यक्ति के पास कालसर्प जैसी बाधा नहीं आती.
भर फगुआ बुढ़उ देवर लागेंले. (भोजपुरी कहावत) होली के मौसम में इतनी मस्ती छाती है कि स्त्रियाँ ससुर से भी देवर के समान मजाक कर लेती हैं. फगुआ – फाग, होली.
भरम की ही रोटी है. व्यापार में ही वही सफल होता है जो बाजार में अपने विषय में भ्रम बना कर रखता है.
भरम गओ तो सब गओ. एक बार घर या व्यापार का भेद खुलने से सब इज्जत आवरू चली जाती है.
भरम भारी, पिटारा खाली. जहाँ किसी बात का बहुत भारी भ्रम फैलाया जा रहा हो और वास्तविकता में कुछ न हो (बंद पिटारा दिखा कर लोगों को मूर्ख बनाया जा रहा है जबकि पिटारा अंदर से खाली है).
भरम मारे, भरम जियावे. भ्रम (अनावश्यक डर) ही व्यक्ति को मारता है और भ्रम (आशा) ही व्यक्ति को जीने की और कर्म करने की इच्छा प्रदान करता है.
भरा कहार और खाली कुम्हार तेज जाते हैं. कहार के कन्धों पर बोझ होता है इसलिए जल्दी पहुँचने के लिए तेजी से चलता है. कुम्हार को बर्तन ले कर धीमे चलना पड़ता है इसलिए जब वह खाली होता है तो तेज चलता है.
भरा पेट जाट का, तो हाथी को भी गधा बतावे. पेट भरने के बाद जाट पर मस्ती छाने लगती है.
भरी जवानी पैसा पल्ले, राम चलाए तो सीधा चल्ले. जवानी में यदि दौलत हाथ लग जाए तो व्यक्ति के पथभ्रष्ट होने की बहुत संभावना होती है.
भरी जवानी मांझा ढीला. मांझा – शरीर में कमर और नितम्बों का भाग. युवावस्था में यौनेच्छा की कमी या अशक्ति.
भरी जवानी में बुढ़ापे का मजा. कोई जवानी में ढीला ढाला, कमजोर और आलसी हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए ऐसे बोलते हैं.
भरी नाव में सूप भी भारी. जो व्यक्ति या संस्थान काम के बोझ से लदा हुआ है उस को थोड़ा सा भी अतिरिक्त काम भारी लगता है. जरा सा भी अतिरिक्त बोझ कभी कभी नाव को डुबाने के लिए काफी होता है.
भरी सभा में गूंगा बोले. अयोग्य आदमी के बीच में बोलने की धृष्टता करने पर कहते हैं.
भरी सभा में साख भरें, उनके पुरखा नरक गिरें. जो सब के बीच झूठी गवाही देते हैं उनके पुरखे नरक जाते हैं.
भरे को सब भरें. जो सब प्रकार से सम्पन्न है उसी को सब लोग भेंट और सम्मान देते हैं, जो वास्तव में जरूरतमंद है उसे कोई नहीं देना चाहता.
भरे पेट शक्कर खारी. जब पेट भरा हो तो अच्छे खाद्य पदार्थ भी स्वादिष्ट नहीं लगते, जबकि भूखे पेट पर सादा भोजन भी स्वादिष्ट लगता है.
भरे समंदर में घोंघा प्यासा. समस्त सुविधाओं के बीच रहने वाला व्यक्ति ही अगर उनसे वंचित हो.
भरे समुन्दर घोंघा हाथ. जहाँ से अधिक लाभ की आशा हो वहाँ से बहुत कम लाभ प्राप्त होना.
भरोगे सो आप, न माई न बाप. कोई गलत काम करोगे तो उस का दंड स्वयं भुगतना पड़ेगा. माँ बाप इस में कोई सहायता नहीं कर पाएंगे.
भरोसे की भैंस, पड़ा बियानी. (बुन्देलखंडी कहावत) भैंस की पड़िया की कीमत पड्ढे के मुकाबले बहुत अधिक होती है. जिस भैंस पर विश्वास था कि वह पड़िया जनेगी उसी ने पड्डा पैदा कर दिया. कोई विश्वास पात्र व्यक्ति ही धोखा दे जाए तो यह कहावत कही जाती है.
भलमानस घर में पड़ा, मवाली ने जाना मुझसे डरा. शांति प्रिय व्यक्ति चुपचाप अपने घर में रह रहा है तो गुंडे बदमाश समझ रहे हैं कि उन से डर गया है.
भला किया सो खुदा ने, बुरा किया सो बंदे ने. किसी के साथ कुछ अच्छा घटित हो जाए तो कहता है कि ईश्वर की कृपा से हुआ है और बुरा हो जाए तो किसी न किसी इंसान को दोष देता है.
भला हुआ ननद गौने गई, ननद की साड़ी मोको भई. किसी के जाने से किसी का फ़ायदा. ननद के ससुराल जाने से भाभी इसलिए खुश है कि ननद की साड़ी उसे पहनने को मिल गई.
भला हुआ सैंया को बाघ ले गया, बेगारी से तो बचा. गरीब आदमी के लिए बेगारी (बिना मजदूरी काम) कितनी बड़ी समस्या है इस का अनुमान इस कहावत से लगाया जा सकता है. उसकी पत्नी बेगारी से इतनी दुखी है कि पति को बाघ ले गया इस बात पर भी राजी है क्योंकि उस बेचारे को बेगारी से छुट्टी मिल गई.
भली कहन क्या जात. भली बात कहने में क्या खर्च होता है.
भले आदमी की मुर्गी टके टके. भले आदमी के माल को सब सस्ते में हासिल करना चाहते हैं.
भले के भाई, बुरे के जंवाई. जो हमारे साथ शराफ़त से पेश आएगा उस के लिए हम शरीफ़ हैं और जो हमारे साथ बुरा करेगा उस के लिए हम बुरे है. यहाँ जंवाई का अर्थ है जो खून चूसे तब भी उस की इज्जत करनी पड़े.
भले को नाम रह जात. सज्जन व्यक्ति संपत्ति भले ही न जोड़ पाए, लोग उस का नाम लेते हैं.
भले घोड़े को एक चाबुक, भले आदमी को एक इशारा काफी है. अर्थ स्पष्ट है.
भले दिन का मेहमान, बुरे दिन का दुश्मन. जब व्यक्ति सम्पन्न होता है तो घर आया मेहमान अच्छा लगता है. जब व्यक्ति परेशानी में होता है तो घर आया मेहमान दुश्मन लगता है.
भले बुरे का साथ क्या. भले और बुरे व्यक्ति का कोई साथ नहीं हो सकता.
भलो भयो मेरी मटकी फूटी, मैं दही बेचन से छूटी. चाहे नुकसान हो जाए पर काम न करना पड़े ऐसा सोचने वाले व्यक्ति के लिए.
भलो भयो मेरी माला टूटी राम जपन की किल्लत छूटी. उपर्युक्त कहावत की भांति.
भलो, भलो कह छांड़िए, खोटे ग्रह जप दान (दुष्ट ग्रहों को ही पूजा जाता है). किसी भी घर, खानदान या संगठन में भले लोगों को तो यह कह कर उपेक्षित कर दिया जाता है कि ये तो भले आदमी है मान जाएंगे. जो दुष्ट और दुराग्रही हैं उन्हें मनाने की कोशिश की जाती है. इसका दृष्टांत इस कहावत में इस प्रकार दिया गया है कि सूर्य और बृहस्पति की पूजा कोई नहीं करता, शनि और राहु को शांत करने के लिए दान और हवन किए जाते हैं. इसकी पहली पंक्ति है – बसे बुराई जासु तन, ताही को सन्मान.
भवन बनावत दिन लगे, ढावत लगे न देर. मनुष्य बड़ी मेहनत से महीनों सालों में कोई भवन बनाता है या व्यापार खड़ा करता है, पर जब दुर्भाग्य आता है तो कुछ क्षणों में ही सब ढह जाता है.
भवानी निबल बकरे सबल. देवी कमजोर हैं और उनको बलि चढ़ाने के लिए लाए गए बकरे ताकतवर हैं. जहाँ शासन प्रशासन कमज़ोर और अपराधी मजबूत हों.
भाँड़ डूबा जाय, लोग कहें स्वांग करत है. भाँड़ (नाटक में काम करने वाला कलाकार) तो पानी में डूबा जा रहा है, देखने वाले कह रहे हैं कि देखो कितनी अच्छी एक्टिंग कर रहा है.
भाँड़ो संग खेती की, गा बजा के छीन ली. भांड – हिजड़े. निम्न श्रेणी के लोगों के साथ साझे में कोई काम नहीं करना चाहिए, वे नंगई दिखा कर व्यापार का सारा लाभ छीन सकते हैं.
भांग खाए गंवार, तो खाए हँड़िया भर भात. मूर्ख व्यक्ति भांग खा ले तो उसकी तरंग में बहुत खाना खाता है.
भांग भखन तो सुगम है, लहर कठिन कैंह होय. भांग खाना आसान है भांग की तरंग झेलना मुश्किल है.
भांग मांगे भूगड़ा, सुल्फा मांगे घी, दारू मांगे खूंसड़ा, खुसी आवे तो पी. भूंगड़ा – भुने चने, खूंसड़ा – जूता. भांग की तरंग मसाले दार भुने चने खाने से कम होती है और सुल्फे की खुश्की घी से, दारू पी के जो दिमाग फिरता है वह जूते लगने से ठीक होता है, जिसको जिसमें ख़ुशी हो वही पियो.
भांड की कौन बुआ, सांप की कौन मौसी. निकृष्ट लोग कोई सामाजिक रिश्ता नहीं मानते.
भाई का भाई बाहर बैठ जाए, जोरू का भाई चौके तक जाए. महिलाएँ पति के भाई को घर में बैठाती तक नहीं हैं, लेकिन अपने भाई को चौके में बैठा कर प्रेम से खाना खिलाती हैं.
भाई दूर पड़ोसी नियरे. पड़ोसी का बहुत महत्व है. मुसीबत के वक्त भाई तो दूर होगा पर पड़ोसी पास होगा.
भाई बराबर बैरी नहीं, भाई बराबर प्यारा नहीं. भाई सब से प्यारा भी होता है और जायदाद के झगड़े के कारण भाई सब से बड़ा दुश्मन भी बन जाता है.
भाई भतीजा भांजा, भाट भांड भुइंहार, इतने भ को छोड़ के फेरि करो व्यापार (भइअन छओ भकार से, सदा रहो होसियार). भ अक्षर से शुरू होने वाले इन सब लोगों के साथ व्यापार नहीं करना चाहिए. ये छः लोग कभी भी धोखा दे सकते हैं.
भाई भले ही मरे, भाभी का घमंड टूटना चाहिए. मूर्खता पूर्ण स्वार्थपरता की पराकाष्ठा.
भाई लड़ें तो माँ भी दो हो जाएँ. भाइयों में लड़ाई होती है तो बेचारी माँ के सामने यह दुविधा हो जाती है कि वह क्या बोले. दोनों को लगता है कि माँ दूसरे का पक्ष ले रही है.
भाई सीधा और भाभी चंट, उधर की कसर इधर पूरी. किसी घर में पति सीधा हो और पत्नी चालाक तो लोग पति के सीधेपन का नाजायज फायदा नहीं उठा पाते हैं. ऐसी परिस्थिति में यह कहावत कही जाती है.
भाखा न जाने ताहि शाखामृग जानिए. भाखा – भाषा, शाखामृग – वानर. जो लिखना पढ़ना और बोलना नहीं जानता वह वानर के समान है.
भाग बिना भोगे नहीं भली वस्तु का भोग, (दाख पके जब काग के होत कंठ में रोग). भाग्य के बिना हम किसी वस्तु का उपभोग नहीं कर सकते. लोक मान्यता है कि जब अंगूर पकते हैं तो कौए के गले में रोग हो जाता है और वह अंगूर नहीं खा सकता. दाख – द्राक्ष (अंगूर).
भागते भूत की लंगोटी ही भली. जब कोई बड़ा नुकसान हो रहा हो तो जो कुछ भी बच जाए वही अच्छा. कुछ लोग इसे भागते चोर की लँगोटी भी भली बोलते हैं. रूपान्तर – भागे भूत की मूंछें भली – सन्दर्भ कथा – अंधेरी रात में एक चोर ने एक बनिये के घर में पिछवाड़े से सेंध लगाई. जैसे ही वह सामान लेकर चला, कोई चीज गिरने से बनिया जाग गया और अंदर कमरे की ओर दौड़ा. चोर सामान लेकर सेंध में से निकल ही रहा था कि बनिये ने पीछे से उस की कमर पकड़ ली. चोर निकल तो गया पर उस की लंगोटी बनिये के हाथ में आ गई. बनिये ने शोर मचाया तो तमाम लोग इकट्ठे हो गए. जब उसने लंगोटी लोगों को दिखाई तो गांव के दर्जी ने पहचान लिया कि यह किसकी है. उस लंगोटी के जरिए ही वे लोग चोर तक पहुंचे और तब से यह कहावत बनी.
भागतों के आगे और मारतों के पीछे. डरपोक लोगों के लिए. जहाँ मैदान छोड़ कर भागने की बात आएगी वहाँ सबसे आगे होंगे, और जहाँ आगे बढ़ कर मारने की बात आएगी वहाँ सब से पीछे होंगे.
भागने वाली को दहेज नहीं मिलता. जो लड़की घर से भाग कर शादी करती है उसे दहेज़ नहीं मिलता.
भागने से पहले चलना सीखो. किसी काम को सीखने में जल्दबाजी न करो.
भागलपुर के भागलिए कहलगाँव के ठग, पटना के दिवालिए ये तीनों नामज़द. स्थान विशेष के ऊपर बनाई गई कहावतें जो कभी किसी कारण से बनती हैं और कभी बेसिरपैर की भी होती हैं.
भागलपुर जाइए न, जाइए तो कुछ लाइए न और लाइए तो रोइए न. कहावत में कहा गया है कि भागलपुर में मिलने वाला सामान घटिया होता है. सत्य मालूम नहीं क्या है.
भाग्य और परछाई कभी साथ नहीं छोड़ते. जिस प्रकार परछाईं आदमी का साथ कभी नहीं छोड़ती, उसी प्रकार भाग्य भी हमेशा साथ लगा रहता है (व्यक्ति कहीं भी जाए).
भाग्य की बलिया, रांधी खीर हो गयो दलिया. भाग्य में न हो तो आदमी जो भी काम करे कुछ का कुछ हो जाता है (खीर बनाई तो दलिया बन गया).
भाग्य छोट अभिलाष बड़. भाग्य साथ नहीं देता पर इच्छाएँ बड़ी बड़ी हैं.
भाग्य दो कदम आगे चलता है. जब व्यक्ति का भाग्य खराब होता है तो वह कहीं भी जाए उसे सफलता नहीं मिलती. उसका दुर्भाग्य उससे पहले ही वहाँ पहुँच जाता है.
भाग्यवान का पड़ोसी नरक में जाता है. क्योंकि वह ईर्ष्या से जलता भुनता रहता है.
भाग्यवान के भूत कमावें (भाग्यवान का हल भूत जोतते हैं). जब आदमी का भाग्य प्रबल होता है तो उस के सारे काम अपने आप होते चले जाते हैं. रूपान्तर – भाग्यवान का एक हल आसमान में रहता है.
भाट, कलारिन, वैस्या, तीनों जात कुजात, आते का आदर करें, जात न पूछें बात. ये तीनों केवल आते समय आदर देते हैं जाते समय नहीं. भाट – यशगान सुनाकर इनाम मांगने वाले, कलारिन – शराब बेचने वाली स्त्री.
भाड़ में जावे दुनिया, हम बजावें हरमुनिया. दुनिया भाड़ में जाए, हम अपने राग रंग में मस्त हैं. हरमुनिया – हारमोनियम.
भाड़ लीप कर हाथ काला किया. अपनी हैसियत के अनुकूल काम न करके प्रतिष्ठा को बट्टा लगाया.
भाड़ा, ब्याज, दच्छना, पीछे मिले कुच्छ ना. किराया, ब्याज और दक्षिणा तुरंत ले लेना चाहिए (और हो सके तो पेशगी ले लेना चाहिए). बाद में कुछ नहीं मिलता.
भाड़े के घोड़े, खाएं बहुत चलें थोड़े. किराए पर लिए गए घोड़े खाते अधिक हैं और काम कम करते हैं. जब तक किसी काम में व्यक्ति का अपना नफा नुकसान नहीं होता तब तक वह काम नहीं करता.
भात खाते हाथ पिराए. अत्यधिक नजाकत, चावल खाने में हाथ में दर्द होना.
भात छोड़ दो साथ न छोड़ो (भात छूटे तो छूटे साथ न छूटे). 1.चाहे एक बार को भोजन छोड़ दो पर किसी अपने का साथ न छोड़ो. 2.किसी अपने से अनबन हो जाने पर साथ खाना पीना बंद कर दें पर उस का साथ न छोड़ें.
भात पच जाए बात न पचे. किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में जो खाने पीने में तो तेज हो पर पेट का हल्का हो.
भात बिना है रांड रसोई, खांड बिना अनपूती, बिन घी के जिन खाई रोटी, मानो खाई जूती. चावल और खांड के बिना रसोई बिल्कुल निरर्थक है. घी के बिना रोटी खानी पड़े तो उसे बेइज्जती मानना चाहिए.
भात होगा तो कौवे बहुत आ जाएंगे. आपके पास धन और सत्ता हो उस का लाभ उठाने के लिए बहुत लोग आ जाएंगे (और धन एवं सत्ता के जाते ही ये सब गायब भी हो जाएंगे).
भादों की घाम और साझे का काम देहि तोड़ा करें (या बैरी भादों की घाम, या बैरी साझे का काम). भादों की धूप बहुत तेज़ होती है इसलिए शरीर को तोड़ देती है, साझे के काम में मेहनत करना सबको भारी लगता है इसलिए शरीर टूटता है.
भादों की छाछ जूतों को, कातक की छाछ पूतों को. भादों में छाछ हानिकारक मानी जाती है और कार्तिक में गुणकारी (खाद्य पदार्थों के बारे में ऐसे बहुत से बेतुके अंधविश्वास पहले के लोगों में भी पाए जाते थे और अब भी पाए जाते हैं). कहीं कहीं जूतों के स्थान पर भूतों भी बोला जाता है.
भादों की धूप में हिरन काले हो जाते हैं. भादों की धूप बहुत तेज होती है इसलिए.
भादों की बरखा, एक सींग गीला एक सींग सूखा. भादों की वारिश कहीं होती है और कहीं नहीं होती, इस बात को हास्यपूर्ण ढंग से कहा गया है (बैल के एक सींग पर वर्षा हुई और दूसरे पर नहीं हुई).
भादों की बरखा, जेठ की धूप, बाहर के वकता, घर के चूप. बाहर बोलना अच्छा होता है और घर में चुप रहना.
भादों भैंसा चैत चमार. भादों के महीने में भैंसा सुखी रहता है (पर्याप्त घास और ढंडक के कारण) और चैत्र में चमार सुखी रहता है (चमड़ा सूखने में आसानी होने के कारण).
भानु उदय दीपक किहिं काजा. सूर्य उदय होने के बाद दीपक का क्या काम.
भाभी लीपती जाय, देवर खेलता जाय. भाभी बेचारी आंगन लीप रही है और देवर खेल कर उसे गंदा करता जा रहा है. कोई आदमी मेहनत कर के काम बना रहा हो और दूसरा उसे बिगाड़ता जा रहा हो तो.
भार घसीटत और को, रहे ऊँट के ऊँट. जो लोग अपने दिमाग से काम नहीं करते वे जानवरों के समान दूसरों का बोझ ही ढोते रहते हैं.
भारी पत्थर न उठा तो चूम कर छोड़ दिया. कोई चालाक आदमी भारी पत्थर उठाने की कोशिश कर रहा था. नहीं उठा तो चूम कर छोड़ दिया, यह जताने के लिए कि उठाने की कोशिश नहीं कर रहे थे, हम तो पत्थर को चूम रहे थे. कोई काम न कर पाओ तो चालाकी दिखा कर उस से हाथ खींच लेना.
भारी ब्याज मूल को खाय. ज्यादा मोटा ब्याज वसूलने के चक्कर में कभी कभी मूलधन भी मारा जाता है.
भाव बढ़ा नीक, तौल घटी नाहिं नीक. नीक – उचित. चीज को चाहे कीमत बढ़ा कर बेचो, तौल नहीं घटानी चाहिए.
भाव बिना भक्ति नहीं, भाग बिना धन मान. जब तक भगवान के प्रति समर्पण का भाव न हो तब तक भक्ति नहीं होती और भाग्य के बिना धन व सम्मान नहीं मिलते.
भाव राखे सो भाई. असल भाई वही है जो मन में प्रेम का भाव रखे.
भावज की थैली, सर्राफी करे देवर. दूसरों के धन पर व्यापार करने वालों के लिए.
भावी के वश सब संसार. सारा संसार भविष्य के वश में है.
भिखारी का क्या दीवाला. जिस व्यापार में पूँजी लगती है उस में दीवाला निकलने का डर रहता है. भिखारी की कोई पूँजी दांव पर नहीं लगती.
भिच्छु जो लछमी पाइहै, सीधे परत न पाँव. भिखारी को धन मिल जाए तो बहुत इतराने लगता है.
भिश्ती को बादशाहत मिली तो चमड़े के सिक्के चला दिए. भिश्ती – पानी भर कर लाने वाला व्यक्ति. कहावत का अर्थ है कि बहुत क्षुद्र मानसिकता वाला व्यक्ति अधिकार पा कर भी नहीं बदलता. सन्दर्भ कथा – शेरशाह सूरी से हारने के बाद हुमायूं जब भाग रहा था तो एक भिश्ती ने उसकी जान बचाई थी. हुमायूं ने उससे वादा किया कि जब उसका राज्य वापस मिल जाएगा तो वह उस भिश्ती को एक दिन के लिए बादशाह बना देगा. हुमायूं ने राज्य वापस पाने के बाद अपना वादा पूरा किया और एक दिन के लिए उसे बादशाह बना दिया. कहते हैं भिश्ती ने उस एक दिन में चमड़े के सिक्के चलवा दिए थे. पहले के जमाने में भिश्ती लोग चमड़े से बनी मशक में पानी भर कर सब स्थानों पर पहुँचाते थे. (देखिए परिशिष्ट)
भीख की हँड़िया छींके पर नहीं चढ़ती. भीख मांग कर बमुश्किल गुजारा किया जा सकता है, इतना माल नहीं इकठ्ठा किया जा सकता जो जोड़ कर रख लिया जाए. रूपान्तर – भीख से भंडार नहीं भरते.
भीख के टुकड़े बाजार में डकार. अपने पास कुछ न होते हुए भी दिखावा करना.
भीख न दे माई, मेरो खप्पर तो मत फोड़े. भले ही मेरे ऊपर कुछ उपकार न करो, मुझे नुकसान तो न पहुँचाओ.
भीख भी न मिले तो वैद्यगीरी सीख ले. कहावत में उन झोलाछाप वैद्यों का मजाक उड़ाया गया है जो किसी भी काम में सफल न होने के कारण वैद्य बन कर लोगों को ठग रहे हैं.
भीख माँगे आँख दिखावे. निर्लज्ज भिखारी, भीख मांग रहा है और आँखें दिखा रहा है. (पड़ोसी देश की तरह).
भीख मांगे और पूछे गाँव की जमा. गाँव भर से जो लगान इत्यादि जमींदार लोग जमा करते थे उसे गाँव की जमा कहते थे. कोई भीख मांगने वाला गाँव की जमा पूछे यह बेतुकी बात है.
भीख में पछोड़ क्या (भीख में मांगें पछोर पछोर). भीख का अनाज साफ़ कर के नहीं मिलता. इंग्लिश में कहावत है – Beggars can’t be choosers.
भीगे कान, हुआ स्नान. 1. कुछ लोग केवल कान धो लेने को ही नहाना मान लेते हैं (विशेषकर जाड़ों में इस तरह के शार्टकट बहुत मारे जाते हैं). 2. नदी में नहाते समय जब कान पानी में डूबें तभी नहाना माना जाता है.
भीड़ में सिर बहुत, दिमाग एको नहीं. भीड़ में विवेक नहीं होता.
भीत टले पर बान न टले. एक बार को दीवार अपनी जगह से हट सकती है पर बुरी आदत नहीं छूटती.
भीतर का घाव, रानी जाने या राव. घर की अंदरूनी समस्याओं को घर के मुखिया ही जानते हैं.
भीतर के पट तब खुलें जब बाहर के पट देय. बाहरी संसार से नाता तोड़ने पर ही अंतर्चक्षु खुलते हैं.
भील का घर टोकरी में. बहुत गरीब आदमी के पास इतना कम सामान होता है कि एक टोकरी में आ सकता है.
भीषण सिंधु तरंग में पहले पैठे कौन. समुद्र में भयंकर लहरें उठ रही हों तो पहले कौन उस में उतरेगा. किसी खतरनाक काम को पहले करने का बीड़ा कोई नहीं उठाना चाहता.
भुइंहार के अंतरी उनचास हाथ. भूमिहार भूमि के स्वामी ब्राह्मण जाति को कहते हैं. गरीब लोग कहते हैं कि उनकी आंत उनचास हाथ की होती है अर्थात सब कुछ पचा लेती है.
भुस के मोल मलीदा. मलीदा – एक कीमती मिठाई. जब कोई बहुत कीमती चीज़ बहुत सस्ते में मिल रही हो.
भुस में आग लगाए जमालो दूर खड़ी (भुस में अंगरा डार मलंगो दूर भई). दो लोगों में लड़ाई करवा के दूर से तमाशा देखना. अंगरा – अंगारा.
भूख गए भोजन मिले, जाड़ो गए रजाई, जोवन गए तिरिया मिले, कौन काम को भाई. भूख खत्म होने के बाद भोजन, जाड़ा खत्म होने के बाद रजाई और यौवन बीत जाने के बाद स्त्री मिले तो किस काम के.
भूख में किवाड़ पापड़ होते हैं (भूख में गूलर ही पकवान). बहुत भूख लगी हो तो जो भी खाने को मिले अच्छा लगता है.
भूख में चने बादाम (भूख में चना चिरौंजी) (भूख में चने भी मखाने) भूख में चना भी मेवे जैसा लगता है.
भूख लगी तो घर की सूझी. आवारा आदमी और बालक इनको भूख लगने पर घर ही याद आता है.
भूखा आदमी क्या पाप नहीं करता. भूखा आदमी अपनी भूख मिटाने के लिए कुछ भी पाप करने को तैयार हो जाता है. संस्कृत में कहावत है – बुभुक्षित: किम न करोति पापं.
भूखा खाए तो पतियाए (भूखा तो भोजन से ही पतियाए). भूखे को कितने भी आश्वासन देते रहो, उसे विश्वास तभी होगा जब भर पेट खाने को मिल जाएगा.
भूखा गया जोय बेचने, अघाना कहे बंधक रखो. अघाना – जिस का पेट भरा हुआ हो. गरीब आदमी भूख के कारण अपनी स्त्री को बेचने धनी के पास गया, धनी कहता है मैं खरीदूंगा नहीं मेरे पास गिरवी रख दो. किसी की मजबूरी का अनुचित लाभ उठाना.
भूखा चाहे रोटी दाल, अघाया कहे मैं जोडूं माल. भूखा आदमी भोजन के लिए परेशान है और धनी आदमी (अघाया हुआ, पेट भरा हुआ) माल जोड़ने की चिंता में है.
भूखा पूछे जोतसी, अघाया पूछे वैद. भूख से परेशान गरीब आदमी ज्योतिषी के पास जाता है और पूछता है कि उस के दिन कब फिरेंगे. अधिक खाने से परेशान संपन्न आदमी वैद्य से पूछता है कि खाना कैसे पचाया जाए.
भूखा बंगाली भात ही भात पुकारे. भूखा आदमी भोजन भोजन ही पुकारता है (अगर बंगाली होगा तो भात पुकारेगा क्योंकि भात उसका मुख्य भोजन है). बंगालियों को भूखा बंगाली कह कर उनका मजाक भी उड़ाते हैं.
भूखा बामन सिंह बराबर. भूखा ब्राह्मण हिंसक हो जाता है.
भूखा बामन सोवे, भूखा जाट रोवे, भूखा बनिया हंसे, भूखा रांगड़ कसे. ब्राह्मण भूखा होता है तो चुपचाप सो जाता है, जाट भूखा होने पर रोता है, बनिया भूखा हो तो पागलों जैसी हरकतें करने लगता है और रांगड़ (मुस्लिम राजपूतों की एक जाति) लूटपाट के लिए कमर कस लेता है.
भूखा मरे कि सतुआ खाए. किसी को सत्तू बिलकुल पसंद नहीं है लेकिन खाने के लिए केवल सत्तू ही है. अब वह परेशान है कि भूखा मरे या सत्तू से पेट भरे. मजबूरी में कोई काम करना पड़े तो.
भूखा मरे तो सत्तू खाए, मरी बहू के नैहर जाए. दो काम ऐसे हैं जोकि बिलकुल भूखा मरने की नौबत हो तो करने पड़ते हैं, सत्तू खाना और मरी हुई पत्नी के मायके जाना.
भूखा सिंह न तिनका खाय. शेर कितना भी भूखा क्यों न हो, घास नहीं खा सकता. वीर पुरुष कितने भी संकट में हों, अपने आदर्शों से समझौता नहीं करते.
भूखा सो जाना, पर जौ का दलिया नहीं खाना. सम्भवतः जौ का दलिया बहुत बेस्वाद होता है.
भूखा सो रूखा. भूखे आदमी से मधुर व्यवहार और विनम्रता की आशा नहीं करना चाहिए.
भूखे का पेट बातों से नहीं भरता. भूखे व्यक्ति को आदर्श वाद की बातें नहीं समझाना चाहिए. इंग्लिश में कहावत है – Hungry bellies have no ears.
भूखे की कोई जात नहीं होती. भूखा आदमी किसी भी जात का हो, समान रूप से त्रस्त होता है.
भूखे की पीड़ा अफरा क्या जाने. जिसका पेट भरा है वह भूखे की वेदना को क्या समझे.
भूखे को अन्न प्यासे को पानी, जो दे सो ही दानी. अर्थ स्पष्ट है.
भूखे को क्या न्योता. भूखा आदमी निमंत्रण की प्रतीक्षा नहीं करता.
भूखे को क्या रूखा, थके को क्या तकिया. भूख लगी हुई तो रूखा सूखा भोजन भी अच्छा लगता है, आदमी थका हुआ हो तो बिना तकिये के सो सकता है.
भूखे को भोजन थके को विश्राम. भूखे को भोजन और थके हुए व्यक्ति को विश्राम सबसे अधिक प्यारा होता है. इस को इस प्रकार भी कह सकते हैं कि भूखे को भोजन और थके को विश्राम कराने से बड़ा पुण्य मिलता है.
भूखे ने भूखे को मारा, दोनों को गश आ गया. दो कमजोर आदमी लड़ें तो दोनों का नुकसान होता है.
भूखे बेर, अघाने गाड़ा, ता ऊपर मूली का डांड़ा. भूखे पेट पर बेर खाना चाहिए, पेट भरने के बाद गन्ना और उसके ऊपर मूली का सेवन करना चाहिए.
भूखे भजन न होय गोपाला, ये लो अपनी कंठी माला. भूखा आदमी भजन नहीं कर सकता.
भूखे से पूछा दो और दो क्या, बोला चार रोटियाँ. भूखे व्यक्ति को केवल भोजन ही दिखाई पड़ता है.
भूत की दवा कुत्ते का गू. एक नई नवेली बहू अपने ऊपर भूत आने का नाटक कर के बेहोश पड़ी थी. किसी सयानी स्त्री ने कहा भूत भगाने के लिए कुत्ते का गू मुँह में डाल दो. यह सुनते ही बहू को फौरन होश आ गया.
भूत को पत्थर की चोट नहीं लगती. भूत क्योंकि वास्तव में कुछ नहीं होता इसलिए.
भूत जान न मारे, सता मारे (भूत प्रान नहिं लेत पर हलकान तो कर लेत). 1. दुष्ट के लिए कहते हैं कि वह जान से न भी मारे तो भी परेशान बहुत कर सकता है. 2. भूत किसी को जान से कैसे मार सकता है. जो लोग भूत प्रेतों को मानते हैं वे भांति भांति की कल्पनाएँ कर के डरते रहते हैं (केवल डर से ही सताए जाते हैं).
भूत न मारे, मारे भय. भूत प्रेत कुछ नहीं होता, केवल उसके भय से लोग मर जाते हैं. सन्दर्भ कथा – एक पढ़ा लिखा व्यक्ति भूत प्रेत को बिलकुल नहीं मानता था. किसी ने उसे चुनौती दी कि वह आधी रात में श्मशान में स्थित पीपल के पेड़ पर कोयले से अपना नाम लिख कर दिखाए तो उस को मान जाएँ. उसने चुनौती स्वीकार कर ली और आधी रात में श्मशान स्थित पीपल के पेड़ की ओर चला. श्मशान का वातावरण डरावना तो होता ही है, ऊपर से उस के अवचेतन मस्तिष्क में कुछ न कुछ भय भी था. वह पेड़ पर लिख कर लौटने लगा तभी उसका कुरता पेड़ पर लगी कील में फंस गया. उसे लगा कि भूत ने उसे पकड़ लिया है और इस सदमे से वह वहीँ गिर कर मर गया.
भूत मरे, पलीत जागे. एक मुसीबत समाप्त नहीं हुई कि दूसरी खड़ी हो गई.
भूत माटी का भी डराता है. इंसान भूत के नाम से ही डरता है.
भूतों के घर बालक और हिजड़ों के घर लुगाई. असंभव और बेमेल बात.
भूतों के घर सालिग्राम. किन्हीं निकृष्ट लोगों के घर में कोई अच्छा व्यक्ति जन्म ले तो.
भूतों को कलाबाजी दिखाना. व्यर्थ है, क्योंकि इसमें तो वे स्वयं दक्ष होते हैं.
भूमि न भुमिया छोड़िये, बड़ो भूमि को वास, भूमि विहीनी बेल ज्यों, पल में होत बिनास. (बुन्देलखंडी कहावत) आजकल बहुत से किसान जमीन बेच कर शहरों में बसना चाहते हैं. कहावत में सलाह दी गई है कि किसान को अपनी जमीन नहीं छोड़नी चाहिए. बिना भूमि की बेल का पल भर में ही विनाश हो जाता है.
भूमि परन भूखे मरन, जेहि बरात को हेत. जमीन पर लेटना और भूखों मरना यही बारात का सुख है. लोग बड़ी आशा लेकर बरात में जाते हैं पर कई बार वास्तविकता उसके उलट होती है.
भूमियाँ तो भू पे मरी, तू क्यों मरी बटेर. भूस्वामी तो जमीन के लिए लड़ते हैं, बटेर तू क्यों मरी जा रही है. जब बड़े लोगों की लड़ाई में कोई छोटा आदमी बिना बात शामिल हो रहा हो तो. धूर्त नेता तो सत्ता के लिए लड़ रहे होते हैं पर उनके जो समर्थक बिना बात अपनी जान देते हैं उन को समझाने के लिए.
भूरा भैंसा, चंदली जोय, पूस में वारिश, बिरले होय. भूरे भैंसे, गंजी स्त्री और पूस के महीने में वारिश ये बहुत कम पाए जाते हैं.
भूल का टका भूल में गया. व्यापार में भूल से कुछ पैसा आ भी जाता है और कुछ पैसा चला भी जाता है.
भूल गई चतुर नार हींग डारी भात में. होशियार आदमी से भी कभी कभी बेढंगी भूल हो जाती है.
भूल गए राग रंग भूल गए छकड़ी, तीन चीज याद रहीं नोन तेल लकड़ी (घर करू घर करू घर बड़ा रगड़ी, तीन चीज जान मारे नून तेल लकड़ी). शादी के पहले मस्त रहने वाले लोगों का गृहस्थी संभालने के बाद का कथन.
भूल चूक का पैसा कमाई में नहीं गिना जाता. भूल चूक में कुछ पैसा यदि आ जाए तो उसे कमाई में नहीं गिनते.
भूल चूक लेनी देनी. व्यापारी लोग हिसाब में छोटी मोटी भूल चूक को आपसी सहमति से नज़र अंदाज कर देते हैं, उसी के लिए कथन. इंग्लिश में कहते हैं – Errors and omissions accepted.
भूला फिरे किसान जो कातिक मांगे मेंह. कार्तिक की वर्षा से कोई लाभ नहीं होता.
भूले चूके दंड नहीं. अनजाने में किसी से भूल हो गई हो तो उसे दंड नहीं देना चाहिए.
भूले बनिया भेड़ खाई (भूले बामन गाय खाई), अब खाऊं तो राम दुहाई. धोखे से कोई गलत काम हो गया है, अब आगे से किसी हाल में नहीं करूंगा.
भूले बिसरे राम सहाई. जो वंचित लोग समाज द्वारा उपेक्षित हैं उन की सहायता ईश्वर करता है.
भूसी बहुत आटा थोड़ा. कायदे में आटे में थोड़ी सी ही भूसी (चोकर) होना चाहिए. अगर भूसी अधिक और आटा कम है तो उसे घटिया माना जाएगा.
भेजा खाय, खोपड़ी सहलाय. किसी को बहुत परेशान करने के साथ बहलाना भी.
भेड़ की खाल में भेड़िया. कोई बहुत दुष्ट आदमी सज्जन बनने का ढोंग कर रहा हो तो.
भेड़ की लात घुटनों तक. कमजोर आदमी किसी को अधिक नुकसान नहीं पहुँचा सकता. भेड़ किसी को लात भी मारेगी तो टांगों पर ही मार पाएगी (जबकि गधे घोड़े पेट और मुँह पर भी लात मार सकते हैं.
भेड़ क्या जाने पुआल का मरम. भेड़ के शरीर पर खुद की इतनी ऊन होती है कि उसे पुआल की कोई आवश्यकता नहीं है, इसलिए वह पुआल को भाव नहीं देती
भेड़ क्या जाने सुपारी का स्वाद. मूर्ख व्यक्ति किसी उत्तम वस्तु के गुण नहीं समझ सकता.
भेड़ जहां जाएगी वहीं मुंड़ेगी. सीधा साधा आदमी जहाँ जाएगा वहीं ठगा जाएगा.
भेड़ पर ऊन किसने छोड़ी. कमजोर को सब लूटते हैं.
भेड़ पूंछ भादों नदी को गहि उतरे पार. भादों की उफनती नदी है. भेड़ की पूंछ पकड़ कर कैसे पार हो सकती है. किसी बड़ी मुसीबत को छोटे आदमी के सहारे पार नहीं किया जा सकता.
भेड़ भगतिन बन गई और पूंछ में डाली माला. बनावटी साधुओं पर व्यंग्य.
भेड़ भेड़ तुझे कंबल उढ़ाउंगा, के ऊन कहाँ से लाएगा. जनता को मुफ्त में उपहार बांटने का नाटक करने वाले नेताओं से जनता को यह प्रश्न पूछना चाहिए कि तुम ये सब कहाँ से लाओगे. सब पैसा है तो जनता का ही.
भेड़िया आया, भेड़िया आया. गंभीर सामाजिक मसलों में ठिठोली नहीं करनी चाहिए. सन्दर्भ कथा – एक चरवाहा दूर जंगल में भेड़ें चराया करता था. एक दिन वह मज़ाक मजाक में चिल्लाने लगा – भेड़िया आया, भेडिया आया. आसपास के लोग उसकी मदद के लिए दौड़े तो देखा कि वह झूठ मूठ चिल्ला रहा है. लोगों से मज़ा लेने के लिए उसने दो तीन बार फिर यही हरकत की. हर बार लोग आते और वापस लौट जाते. एक दिन सचमुच में भेड़िया आ गया और उस की एक भेड़ को उठा कर ले जाने लगा. अब की बार वह बहुत चिल्लाया पर लोगों ने सोचा कि वह फिर से मज़ाक कर रहा होगा इसलिए कोई उस की मदद को नहीं आया.
भेड़िये रे भेड़िये, बकरी चराएगा. किसी दुष्ट आदमी से ऐसे काम के लिए पूछना जिसमें उसका बहुत फायदा हो.
भेड़ियों के जरख ही पाहुने. जरख – लकड़बग्घा. नीच लोगों के संबंध नीच लोगों से ही होते हैं.
भेड़ियों को आँसू नहीं आते. कठोर हृदय मनुष्य को दया नहीं आती.
भेदिया सेवक, सुंदर नार, जीरन पट, कुराज, दुख चार. कहावत कहने वाले को चार दुख सबसे बड़े लगते हैं. – नौकर जो आपके भेद और लोगों को बताता हो, सुन्दर नारी (यदि वह काम न करती हो और हर समय उसके नखरे उठाने पड़ते हों), फटे कपड़े और बुरा राज (राजकीय अराजकता).
भेदी चोर, उजाड़े गाँव. भेद जानने वाला चोर सबसे अधिक नुकसान करता है.
भैंस अपना रंग न देखे, छतरी को देख के बिदके. कोई व्यक्ति अपनी बड़ी कमी न देखे और दूसरों की छोटी छोटी कमियों पर दुर्व्यवहार करे तो.
भैंस का गोबर, भैंस के चूतड़ों को ही लग जाता है. बड़े व्यापार में कमाई तो होती है पर उसके अपने खर्चे भी बहुत होते हैं.
भैंस की सगी भैंस. कम बुद्धि वाले लोग अपनी जाति वाले को ही अपना सगा मानते हैं.
भैंस के आगे पढ़ें भागवत, भैंस खड़ी रम्भाए. मूर्ख व्यक्ति के सामने ज्ञान की बात करना बेकार है.
भैंस के आगे बीन बजाई, गोबर का ईनाम. भैंस के आगे बीन बजाई तो उस ने गोबर कर दिया. जो कला का पारखी नहीं है उस के आगे कला प्रदर्शित करोगे तो क्या होगा.
भैंस के आगे बीन बजाओ, भैंस खड़ी पगुराए. यदि आप किसी मूर्ख व्यक्ति के सामने ज्ञान की बातें कर रहे हैं और उस पर कोई असर नहीं हो रहा है, या किसी ऐसे व्यक्ति के सामने अपनी कला प्रदर्शित करें जो उसको समझ न पा रहा हो तो यह कहावत बोलते हैं.
भैंस को पड़िया ही जननी चाहिए और बहू को बेटा. भैंस से तो यह उम्मीद करते हैं कि वह पड़िया ही जने (क्योंकि पड़िया की कीमत बछड़े से बहुत अधिक होती है), पर घर की बहू से यह चाहते हैं कि वह बेटा ही जने.
भैंस चढ़ी बबूल पे, तकि तकि गूलर खाए. कोई व्यक्ति असम्भव और हास्यास्पद बात कह रहा हो तो उसका मजाक उड़ाने के लिए.
भैंस दूध जो काढ़ के पीवे, ताकत घटे न जब लग जीवे. जो आदमी भैंस के दूध को स्वयं दुह के पीता है वह सदा बलवान रहता है. यहाँ ध्यान देने लायक बात यह है कि भैंस का दूध दुहने में व्यायाम भी हो जाता है.
भैंस ने मारी डुबकी तो मेंढक पड़े किनारे. भैस तालाब में डुबकी मारती है तो पानी के उछाल के साथ बेचारे मेंढक किनारे जा पड़ते हैं. प्रभावशाली लोगों के कारण गरीब लोगों को बिना किसी गलती के कष्ट उठाने पड़ते हैं.
भैंस पकोड़े हग गई. किसी को अचानक बिना उम्मीद के बड़ा लाभ हो जाए और वह उस का भेद न बता रहा हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.
भैंस पूछ उठाएगी तो गाना नहीं गाएगी गोबर करेगी. कोई मूर्ख या निकृष्ट आदमी मुँह खोलेगा तो निकृष्ट बात ही बोलेगा.
भैंस सुखी जब ताल परै, रांड़ सुखी जब सबका मरै. भैंस तब प्रसन्न होगी जब कीचड़ वाले पानी में बैठे और विधवा स्त्री तब प्रसन्न होगी जब सब स्त्रियों के पति मर जाएं.
भैंस हमें चाहिए थुरमोलू और उधार, पड़िया उसके तले हो, होवे बहुत दुधार. कोई ग्राहक ऐसा सामान मांग रहा हो जिस की कीमत भी कम हो और उस में सारी खूबियाँ भी हों, साथ में कोई चीज़ मुफ्त भी हो और उधार में भी मिल जाए. थुरमोलू – कम कीमत की.
भैंसा मार के मसाले की कंजूसी. बहुत बड़ा खर्च कर के छोटे मोटे खर्च में आनाकानी करना.
भैंसा, मेंढा, बकरा, चौथी विधवा नार, ये चारों पतले भले मोटा करें बिगाड़. अर्थ स्पष्ट है.
भैया जी कितने भी डंड मलवाएं, बंदा पहलवान नहीं बनने का. आप लोग कितनी भी कोशिश कर लो मैं पहलवान (या डॉक्टर या आईएएस) नहीं बन सकता.
भैया होय अबोलना तो भी अपनी बाँह. भाई से बोलचाल न भी हो तो भी वह सहारा देता है.
भैरों (भूतों) के लड्डुओ में इलायची का क्या स्वाद. जो लड्डू भैरों देवता (या भूतों) पर चढ़ाने के लिए बनाने हैं उनमें इलायची जैसी नजाकत वाली चीज़ डालने का क्या औचित्य.
भोंदू भाव न जानें, पेट भरे से काम. मूर्ख को खिलाने वाले की भावना से नहीं, केवल पेट भरने से काम होता है.
भोथर चटिया, बस्ता मोट (बुड़बक विद्यार्थी के गत्ता मोट). मंद बुद्धि बालक का बस्ता अधिक मोटा होता है.
भोर का मुर्गा बोला, पंछी ने मुँह खोला. भोर होते ही पंछी भोजन की जुगाड़ में लग जाते हैं. छोटा बच्चा जब उठते ही दूध मांगता है तो दादी नानी प्यार से ऐसे बोलती हैं.
भौंकते कुत्ते को रोटी का टुकड़ा. जो हाकिम ज्यादा गुर्राता है उसे दक्षिणा दे कर चुप किया जाता है.
भौंके न बर्राय (गुर्राय), चुपके से काट खाय. जो आदमी बोले कुछ नहीं और चुपचाप भरी नुकसान पहुँचा दे.
भौंर न छाँड़े केतकी, तीखे कंटक जान. केतकी के फूल के साथ कांटे होते हैं पर भौंरा उसे नहीं छोड़ता. अपने मतलब की वस्तु हासिल करने के लिए (या जिससे प्रेम होता है उसे पाने के लिए) व्यक्ति खतरा भी उठाता है.
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मंगती और छुआ छूत करे. मांगने वाले को यह अधिकार नहीं होता कि वह छुआछूत करे.
मंगते से माँगना जैसे बुढ़िया से सगाई. भिखारी से भीख माँगना और बूढ़ी औरत से विवाह करना एक समान हैं.
मंगनी का बैल चांदनी रात, जोत बड़े भाई सारी रात (मांगे का बैल, मशक्कत से जोतो). (बुन्देलखंडी कहावत). दूसरे की चीज को लोग बेरहमी से प्रयोग करते हैं.
मंगनी की मिर्च है तो क्या आँखों में लगाओगे. मुफ्त की चीज का दुरूपयोग करने वालों के लिए.
मंगनी के बैल के दांत नहीं देखे जाते. बैल अच्छे गुण वाला है या नहीं इसकी पहचान उसके दांत देख कर की जाती है. अब अगर आप किसी से बैल मांग कर ला रहे हैं तो उसके दांत थोड़े ही गिनेंगे. मांगी हुई वस्तु में गुण दोष नहीं देखे जाते.
मंगनी के सतुआ, सास के पिंडा. मंगनी के सत्तू से सास का पिंडदान. पहली बात तो यह है कि सास का पिंडदान आप क्यों कर रहे हैं, साले को करना चाहिए. दूसरी बात आप के पास पैसा नहीं है तो दूसरों से माँग कर क्यों कर रहे हैं. अपनी सामर्थ्य न होने पर भी किसी अनावश्यक कार्य में टांग अड़ाने की मूर्खता करने वाले के लिए.
मंगनी के हल बैल मंगनी के बीया, हुआ तो हुआ नहीं तो बला से गया. मुफ्त की चीजों से व्यापार किया है तो हानि हो या लाभ, हमारी बला से. बीया – बीज.
मंगलवार परै दीवारी, हँसे किसान मरे व्यापारी. यदि दीपावली मंगलवार को पड़े तो फसल अच्छी होती है.
मंजिल पे पहुँच के लुटा कारवाँ. कार्य समाप्त होने से बिल्कुल पहले बिगड़ जाना.
मंडप में बैठी भैंस भी सुंदर लगती है. विवाह के समय सज संवर के सभी लड़कियां अच्छी लगती हैं.
मंडुए की रोटी पर चावल की खीर. बेढंगा काम. मंडुए की रोटी जैसी घटिया चीज के साथ चावल की खीर जैसे उत्कृष्ट खाद्य पदार्थ का क्या काम.
मंडुए के आटे में शर्त क्या. छोटी मोटी सस्ती चीज उधार देने में दुकानदार शर्तें नहीं रखता.
मकोड़ा कहे मां गुड़ की भेली उठा लाऊं, के अपनी कमर तो देख. अपनी सामर्थ्य देखे बिना कोई काम करने की योजना बनाने वालों के लिए यह कहावत कही जाती है.
मक्का मदिना द्वारिका, बद्री औ केदार, बिना दया सब झूठ है, कहै मलूक विचार. जिसके मन में दया नहीं है वह कितने भी तीर्थ कर ले, सब बेकार है.
मक्के गए न मदीने गए, बीच ही बीच में हाजी भए. कोई कार्य न कर के केवल उसका दिखावा करना और उससे लाभ लेने की कोशिश करना.
मक्के में रहते हैं पर हज नहीं करते. सारी सुविधाएँ उपलब्ध होते हुए भी कोई अच्छा काम न करना या फिर जो चीज़ सहज ही उपलब्ध हो उसकी कद्र न करना.
मक्खी उड़ाने बैठे, संग जीमने लगे. सौंपा गया काम न कर के अपना स्वार्थ सीधा करना.
मक्खी खोजे घाव, दुश्मन खोजे दाँव. मक्खी अपने बैठने के लिए घाव ढूँढती है और दुश्मन वार करने के लिए मौका ढूँढ़ता है.
मक्खी छोड़े हाथी निगले. दिखावे के लिए छोटा मोटा लाभ छोड़ कर चुपचाप बड़ा घोटाला करना.
मक्खी बैठी शहद पर पंख लिए लपटाए, हाथ मले और सर धुने लालच बुरी बलाए. लालच में प्राणी की दुर्गति हो जाती है. लालच वश मक्खी शहद पर बैठ गई और शहद पंखों पर लग गया. अब वह कभी उड़ नहीं सकती.
मक्खी भी कुछ देख कर बैठती है. हर व्यक्ति अपना स्वार्थ देख कर ही कोई काम करता है.
मक्खी मारी पंख उखाड़े चींटे से रण जीता, मैं तो बहुत वीर मज़बूता. वीरता की डींग हांकने वाले डरपोक आदमी पर व्यंग्य. रूपान्तर – मक्खी मारुं पंख उखाडूँ, तोडूँ कच्चा सूत, लात मार कर पापड़ तोडूँ, मैं बनिए का पूत.
मखमल के परदे पर टाट का पैबंद. कीमती और सुरुचिपूर्ण वस्तुओं के बीच में कोई बदनुमा चीज़.
मगध देश कंचन पुरी, देश अच्छा भाषा बुरी. बिहार के लोगों की भाषा का मजाक उड़ाने के लिए.
मगर को डुबकी सिखाए वो मूर्ख. मगरमच्छ स्वयं डुबकी लगाने में माहिर होता है. जो उसे डुबकी लगाना सिखाने की कोशिश करेगा मगर उसे ही खा जाएगा.
मगहर मरे सो गदहा होय (नरक में पड़े). लोक विश्वास है कि काशी में जो मरता है वह स्वर्ग जाता है जबकि पास के मगहर नामक स्थान में जो मरता है वह नर्क में जाता है या अगले जन्म में गदहा बनता है.
मगही पान औ पतली तिरिया, मिलें बड़े ही भाग. मगही पान को सब से उत्तम माना जाता है. मगही पान और तन्वंगी पत्नी बड़े भाग्य से मिलते हैं.
मच्छर को हमला भयो, हाथी ऊपर आज. हाथी के ऊपर मच्छर का हमला, हास्यास्पद बात.
मच्छर मार के ऐंठा सिंह. कोई कायर व्यक्ति अपनी बहादुरी के किस्से सुनाए तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.
मछली के जाए किन्ने तैराए. जाए – उत्पन्न किए हुए, बच्चे. मछली के बच्चे को तैरना कौन सिखाता है? (वे खुद ही तैरना सीखते हैं). युवाओं को यह सीख देने के लिए कि तुम्हें सब कुछ सिखाया पढ़ाया नहीं जाएगा, अपनी निर्णय लेने की क्षमता भी विकसित करो.
मछली के ठेके पे बिलाई रखवार (मांस के ढेर पे गिद्ध रखवार). बिल्ली को मछली के ठेके पर और गिद्ध को मांस के ढेर की पहरेदारी का काम देने की मूर्खता.
मछली खा के बगुला ध्यान. उन लोगों के लिए जो धार्मिक होने का ढोंग करते हैं और धार्मिकता की आड़ में चुपचाप गलत काम करते हैं.
मछली तालाब में, मसाले कुटन लागे. किसी काम के प्रति अदूरदर्शिता और मूर्खतापूर्ण उत्साह.
मछली दे दो पर कहाँ से मिली ये न बताओ. अपनी आमदनी में से किसी की सहायता भले ही कर दो पर अपने व्यापार के भेद किसी को मत बताओ.
मजनू को लैला का कुत्ता भी प्यारा. यदि कोई व्यक्ति आपको प्रिय हो तो उस की हर चीज़ अच्छी लगती है.
मजबूर को उलाहना, ज्यूँ घाव पर ठेस. किसी मजबूर आदमी को बुरा भला कहना किसी के घाव पर नमक छिडकने जैसा है.
मजबूरी का नाम महात्मा गांधी. महात्मा गांधी जी से प्रभावित होकर बहुत से संपन्न लोगों ने सादा जीवन शैली अपनाई थी. बहुत से लोग ऐसे भी थे जिनके पास कुछ नहीं था इसलिए वे साधारण तरीके से रहने को मजबूर थे. उनमें से बहुत से लोग यह कहा करते थे कि हम महात्मा गांधी के चेले हैं इसलिए बहुत सादगी से रहते हैं.
मजा मारें गाजी मियां, धक्का खाएं मुजाहिर. मुजाहिर – रक्षक. पीर लोग तो ऐश करते हैं और उनके रक्षक धक्के खाते हैं. यही बात राजनैतिक दलों पर भी लागू होती है. नेता मजे मारते हैं और समर्थक धक्के खाते हैं.
मजूरी में क्या हुजूरी. जो मेहनत मजदूरी करके पेट पालता है वह किसी की जी हुजूरी क्यों करेगा.
मजे के लिए चाचा, सलाह के लिए बाबा. मौज मस्ती चाचा के साथ अच्छी लगती है लेकिन गंभीर विषयों पर सलाह बाबा से ही ली जाती है. परिवार में हर व्यक्ति का अलग महत्व है.
मज्जन फल पेखिअ तत्काला, काक होहिं पिक बकहिं मराला. सत्संग रूपी गंगा में स्नान करने का फल तत्काल ही देखा जा सकता है, इसके प्रभाव से कौआ कोयल और बगुला हंस बन जाता है.
मझधार में नाव नहीं बदलनी चाहिए. कोई काम जब नाज़ुक मोड़ पर हो तो उस समय अपने साधन बदलने से बचना चाहिए. उदाहरण के लिए जब गंभीर मरीज आधा ठीक हो चुका हो तो डॉक्टर नहीं बदलना चाहिए.
मटका में पानी गरम, चिड़ी न्हावे धूर, चिऊंटी अंडा ले चले, तो वर्षा भरपूर. घाघ कवि ने अनुभव के आधार पर ऐसी बहुत सी कहावतें कही हैं. उनके अनुसार यदि मटके में पानी ठंडा नहीं हो रहा है, चिड़िया धूल में नहा रही है और चींटी अपना अंडा लेकर जा रही है तो भरपूर वर्षा होगी.
मट्ठा मांगन चली, और मलैया पीछे लुकाई. मलैया – छोटी मटकी, लुकाई – छिपाई. माँगने भी जा रही हैं और शर्म भी आ रही है.
मढ़ो दमामा जात नहिं सौ चूहों के चाम. बहुत सारे छोटे लोग मिल कर भी बड़ा काम नहीं कर सकते. सौ चूहों का चमड़ा भी लगा दिया जाए तो भी दमामा (बहुत बड़ा वाला ढोल) नहीं मढ़ा जा सकता. इस दोहे की पहली पंक्ति इस प्रकार है – रहिमन छोटे नरन सों बड़ो बनत नहिं काम.
मत कर सास बुराई, तेरे भी आगे जाई. बहू सास को सावधान कर रही है कि तू मेरे साथ बुरा व्यवहार मत कर. तेरी लड़की को भी ससुराल जाना है. जाई माने पुत्री.
मत चूको चौहान. किसी को सही काम के लिए जोश दिलाना हो तो यह कहावत कही जाती है. सन्दर्भ कथा – इस विषय में एक कथा कही जाती है (पता नहीं यह सच है या नहीं). पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गोरी को कई बार युद्ध में हराया लेकिन हर बार छोड़ दिया. अंत में एक बार गोरी धोखे से जीत गया तो उस ने पृथ्वीराज को बंदी बना कर उसकी आँखें फोड़ दीं और अपने साथ मुल्तान ले गया. पृथ्वीराज के दरबारी कवि चंदवरदाई ने गोरी से बदला लेने की योजना बनाई. उस ने गोरी के दरबार में जा कर कहा कि सम्राट पृथ्वीराज शब्दवेधी बाण चला सकते हैं.
गोरी ने इस चमत्कार को देखने के लिए पृथ्वीराज को अपने दरबार में बुलाया. बात यह तय हुई कि एक घंटे पर हथौड़े से चोट की जाएगी और पृथ्वीराज उस घंटे पर तीर चला कर दिखाएंगे. चंदवरदाई ने पृथ्वीराज से कहा – चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान. इससे पृथ्वीराज ने गोरी की स्थिति का अनुमान लगा लिया. घंटे की आवाज के बाद जैसे ही गोरी ने कहा बाण चलाओ, पृथ्वीराज ने उसकी आवाज पर लक्ष्य कर के तीर चला दिया और गोरी मारा गया. इसके तुरंत बाद चंदवरदाई ने पृथ्वीराज के सीने में कटार घोंप दी और अपने पेट में भी कटार मार ली.
मतलब की मनुहार, जगत जिमावे चूरमा. अपना मतलब होता है तो संसार के लोग चूरमे जैसा उत्कृष्ट खाद्य पदार्थ भी खिलाते हैं.
मतलब के दो बोल ही बहुत हैं. व्यर्थ की लम्बी चौड़ी बातों के मुकाबले अर्थ पूर्ण दो बातें अधिक उपयोगी हैं.
मतलब बनता लोग हंसे तो हंसने दो. अपना काम निकलता हो तो लोगों के हंसी उड़ाने की परवाह मत करो.
मद पिए जात लखाय. दारु पी कर आदमी अपना भेद खोल देता है. कोई व्यक्ति सम्भ्रांत लोगों के बीच रहता है और लोग उसे कुलीन समझते हैं. एक दिन वह सब के बीच बैठ कर शराब पी लेता है और नशे में उगल देता है कि वह किसी नीचे कुल का है या आपराधिक इतिहास वाला है.
मदिरा मानत है जगत, दूध कलाली हाथ. शराब बेचने वाले के हाथ में दूध का पात्र होगा तब भी लोग मदिरा ही समझेंगे. रूपान्तर – दूध कलारी कर गहे, मद समझे सब कोय.
मद्धिम आंचे रोटी मीठ. धैर्य और सलीके से किया गया काम अच्छा होता है. धीमी आंच में सिकी रोटी अधिक स्वादिष्ट होती है.
मधुर वचन ते जात मिट, टंटा अरु अभिमान, तनिक सीत जल सों मिटै जैसे दूध उफान. मीठा बोलने से झगड़े और अभिमान मिट जाते हैं, जैसे थोड़े से ही शीतल जल से दूध का उफान शांत हो जाता है.
मधुर वचन सौ क्रोध नसाही. मधुर वचन बोलने से सौ क्रोध नष्ट हो जाते हैं.
मधुर वचन है औषधी, कटुक वचन है तीर. मधुर वचन घाव भर सकते हैं जबकि कड़वे वचन घाव कर सकते हैं.
मन करे कि पहनें हार, करम न लिखे भेड़ के बार. मन कुछ भी कहे, भाग्य में लिखे बिना मिलता कहाँ है. रूपान्तर – मन कहे बैठें चौतार, करम लिखे भेड़ी के बार. चौतार – कालीन.
मन का अंकुस ज्ञान. हाथी को वश में रखने के लिए महावत के पास जो औजार होता है उसे अंकुश कहते हैं. स्वेच्छाचारी मन को काबू में रखने के लिए ज्ञान अंकुश के समान है.
मन का अटका तन का झटका. जो मन में हार मान ले वह शरीर से भी हार जाता है. जो समय पर सही निर्णय नहीं ले पाता उसे धन व स्वास्थ्य सभी की हानि होती है.
मन का घाटा कि धन का. धन चला जाए तो इतना नुकसान नहीं होता, मन में घाटा मानो तभी घाटा होता है.
मन की मारी का से कहूँ, पेट मसोसा दे दे रहूँ. जब आप मन की बात किसी से न कह पा रहे हों और मन ही मन घुट रहे हों.
मन के मते न चालिए, मन के मते अनेक, जो मन पर अधिकार है, है कोई साधू एक. मन के कहने पर मत चलिए क्योंकि मन तरह तरह की बातें समझाता है. जो विवेकी पुरुष हैं वही मन पर अधिकार रख पाते हैं.
मन के मते न चालिए, मन है पक्का धूत. कहावत में यह समझाया गया है कि मन पक्का धूर्त होता है. मन के कहने पर चलेंगे तो यह आपको बहकाता रहेगा. अर्थात मनुष्य को संयम और विवेक से काम लेना चाहिए. इस दोहे की अगली पंक्ति है – ले डूबे मंझधार में, जाय हाथ से छूट.
मन के लड्डू फीके क्यूँ, मीठे हैं तो कमती क्यूँ. मन के लड्डू का अर्थ है केवल किसी बात की कल्पना कर के खुश होना. यदि लड्डुओं की कल्पना ही कर रहे हो तो फीके लड्डुओं की क्यों, खूब मीठे की करो और थोड़े क्यों, खूब ज्यादा की करो.
मन के हारे हार है, मन के जीते जीत (मन जीते जग जीत). कहावत का अर्थ है कि जो अपने मन में हार मान लेता है वह निश्चित रूप से हार जाता है और जो जीत के लिए दृढ़ निश्चय कर लेता है वह अंततः जीत जाता है. कुछ लोग इसके पहले एक पंक्ति और बोलते हैं – यही जगत की रीत है यही जगत की नीत.
मन चंगा तो कठौती में गंगा. (कठौती – लकड़ी से बना पानी रखने का बर्तन). गंगा नहाने को बहुत से लोग बड़े पुण्य का काम मानते हैं. लेकिन सब लोगों को तो गंगा नहाना नसीब नहीं होता. उन लोगों को दिलासा देने के लिए कहा जाता है कि यदि तुम्हारा मन शुद्ध है तो तुम्हारे लिए कठौती के पानी से नहाना ही गंगा नहाने के समान है. जैसे किसी बूढ़े या बीमार व्यक्ति के लिए तीर्थ यात्रा पर जाना संभव नहीं है तो उसके लिए घर के मंदिर में पूजा करना ही तीर्थ है. इसके पीछे संत रैदास जी की एक कहानी भी है. सन्दर्भ कथा – कठौती कहते हैं लकड़ी से बने पानी रखने के बर्तन को. कहते हैं कि एक बार संत रैदास ने कुछ यात्रियों को गंगास्नान के लिए जाते देख, उन्हें कुछ कौड़ियां देकर कहा कि उन्हें गंगा जी की भेंट कर देना, परंतु देना तभी जब गंगा जी साक्षात प्रकट होकर उन्हें ग्रहण करें. यात्रियों ने गंगा के समीप पहुंच कर कहा कि ये कौड़ियां संत रैदास ने दी हैं, आप इन्हें स्वीकार कीजिए. गंगा ने हाथ बढ़ाकर कौड़ियां ले लीं और उनके बदले में एक सोने का कंगन रैदास जी को देने के लिए दे दिया.
यात्री वह कंगन रैदास जी के पास न ले जाकर राजा के पास ले गए और उन्हें भेंट कर दिया. रानी उस कंगन को देखकर इतनी विमुग्ध हुई कि उसकी जोड़ का दूसरा कंगन मंगाने का हठ कर बैठीं. पर जब बहुत प्रयत्न करने पर भी उस तरह का कंगन नहीं बन सका, तो राजा हारकर रैदास के पास गए और उन्हें सब वृत्तांत सुनाया. रैदास जी ने तब गंगा का स्मरण करके अपनी कठौती में से, जिसमें चमड़ा भिगोने के लिए पानी भरा रहता था, उस कड़े की जोड़ी निकाल कर दे दी.
मन चले कौ सौदा. जिसे जो वस्तु अच्छी लगती है वही खरीदता है.
मन चाहे हाथी चढ़ूँ, मोती पहनूँ कान, हाथ कतरनी राम के, कितना दे सन्मान. मनुष्य का मन तो सब प्रकार के सुख भोगने के लिए लालायित रहता है पर मिलता ईश्वर की इच्छा के अनुरूप ही है.
मन तो चले, पर टट्टू न चले. कुछ कार्य करने का मन तो बहुत कर रहा है पर शरीर साथ नहीं दे रहा. यौन शक्ति के सम्बन्ध में भी यह कहावत कही जाती है.
मन थिर किए सिद्धि सब पावे. मन को स्थिर करने पर ही सिद्धि पाई जा सकती है.
मन बिना मेल नहीं बाड़ बिना बेल नहीं. मेल तभी बढ़ता है जब मन मिलते हैं, बेल तभी बढ़ती है जब बाड़ का सहारा मिलता है.
मन भर धावे, करम भर पावे. व्यक्ति कितना भी प्रयास कर ले, पाएगा उतना ही जितना भाग्य में है.
मन भाए तो ढेला सुपारी (ढेला भी गुड़). कोई व्यक्ति किसी रद्दी चीज़ को स्वाद ले कर खा रहा हो तो.
मन मन भावे, मूढ़ हिलावे. कोई काम करने का या कुछ खाने का आपका अंदर से बहुत मन कर रहा है पर ऊपर से आप मना कर रहे हैं तो यह कहावत कही जाती है. कहीं-कहीं पूरी कहावत इस प्रकार कही जाती है – मन मन भावे मूढ़ हिलावे, साजन से कहियो मोहे लेने को आवे.
मन मलीन तन सुन्दर कैसे, विष रस भरा कनक घट जैसे. किसी का शरीर सुन्दर हो पर मन मैला हो तो वह उसी प्रकार है जैसे विष से भरा हुआ सोने का घड़ा.
मन माने का मेला, नहिं तो सब से भला अकेला. जिसकी कहीं आने जाने में रूचि न हो उसे अकेले में ही अच्छा लगता है.
मन मारे औ पेट सुखावे, तब टका से भेंट करावे. रुपया कमाने के लिए इच्छाओं को मारना पड़ता है और भूखे प्यासे रहना पड़ता है.
मन मिले का मेला, चित्त मिले का चेला. दोस्ती और मौज मस्ती उसी के साथ की जा सकती है जिससे मन मिलता हो, शिष्य उसी को बनाया जा सकता है जिससे विचार मिलते हों.
मन में आए बेहयाई, तब ही खावें दूध मलाई. बेशर्म बन कर ही मौज उड़ाई जा सकती है.
मन में आन, बगल में छूरी, जब चाहे तब काटे मूरी. जिनके मन में कुछ और ही बात (ओछी बात) रहती है वे बगल में छुरी दबाए घूमते हैं, जिससे वे जब चाहे तब किसी का सिर काट सकें. मूरी – मूंड़, सर.
मन में बसे सो सुपने दसे. जो बातें हमारे मन में होती हैं वही सपने में दिखती हैं.
मन में मारीच कीन्ह विचारा, दौऊ भांत से मरन हमारा. मारीच से जब रावण ने स्वर्ण मृग बनने के लिए कहा तो मारीच ने सोचा कि उसे दोनों प्रकार से मरना ही है. स्वर्ण मृग बनेगा तो राम के हाथों शिकार होगा, नहीं बनेगा तो क्रोध से रावण मार देगा. किसी काम को करने या न करने में बराबर संकट हो तो.
मन मोतियों ब्याह, मन चावलों ब्याह. (मन – चालीस सेर) विवाह में सभी यथाशक्ति खर्च करते हैं. जिसके पास अथाह धन है वह मन भर मोती लुटाता है, जिसके पास कम पैसा है वह मन भर चावल खर्च करता है.
मन मोदक नहिं भूख बुझावें. मन के लड्डुओं से भूख नहीं मिटती.
मन मौजी, जोरू को कहे भौजी. मन मौजी का कोई भरोसा नहीं, वह पत्नी को भाभी भी कह सकता है.
मन राजा करम दरिद्री. मन तो बहुत बड़ी बड़ी बातें सोचता है पर भाग्य में नहीं है.
मन साँचा तो जग साँचा (मन साँचा तो सब साँचा). आप अपने मन में सत्य का अनुसरण करते हैं तो आप को संसार भी सच्चा लगता है.
मन सुखी तो तन सुखी. मन में आनंद हो तो शरीर भी स्वस्थ रहता है.
मन के मेड़ नहीं होती. मन पर कोई बंदिशें नहीं होतीं, वह किसी भी बात के लिए मचल सकता है.
मन, मोती औ दूध रस इनका एक सुभाय, फाटे पे जुड़ते नहीं कोटिन करो उपाय. मन रूपी मोती और दूध का स्वभाव एक सा होता है, ये एक बार फट जाएँ तो फिर नहीं जुड़ते.
मना करने वाले की खिचड़ी में ही घी डाला जाता है. जो मना करे उसी का अधिक आतिथ्य किया जाता है.
मनुज बली नहिं होत है समय होत बलवान, भीलन लूटीं गोपियाँ वहि अर्जुन वहि बान. समय अच्छा हो तो मनुष्य बलवान हो जाता है. समय खराब आने पर वही मनुष्य निर्बल हो जाता है. सन्दर्भ कथा – मनुष्य कितना भी योग्य और शूरवीर क्यों न हो समय उससे अधिक बलवान होता है. भगवान कृष्ण के गोलोक गमन और यादव पुरुषों के मारे जाने के बाद अर्जुन द्वारिका की स्त्रियों की सुरक्षा के लिए उन को अपने साथ हस्तिनापुर ले कर जा रहे थे. रास्ते में भीलों ने उन पर आक्रमण कर के उन स्त्रियों को लूट लिया. महाभारत के युद्ध को जीतने वाले अर्जुन, अपने उसी धनुष गांडीव और उन्हीं वाणों के होते हुए भी कुछ नहीं कर पाए.
मनुज मनोरथ छांड़ि दे, तेरा किया न होइ, पानी मैं घी नीकसै, रूखा खाइ न कोइ. मनुष्य को अपनी सभी इच्छाएँ पूरी करने की आशा छोड़ देनी चाहिए. पानी में घी निकलने लगे तो रूखा कोई नहीं खाएगा.
मनुवा जंजाली, तू कौन चिरैया पाली. हे मन! तूने यह कौन सी बला मोल ले ली. गृहस्थी के जंजाल के लिए.
मनुष्य अपना भाग्य स्वयं बनाता है. परिश्रम और व्यवहार मनुष्य के अपने हाथ में हैं, इन से ही सफलता मिलती है. इंग्लिश में कहावत है – Every man is the architect of his destiny.
मनुहार से बूढ़े नहीं ब्याहे जाते. बूढ़े आदमी से कोई युवा लड़की मान मनुहार से शादी नहीं कर लेती है, उस के लिए साम दाम दंड भेद प्रयोग करना पड़ता है.
मनौती सौ बार, पूजा एक बार. उन स्वार्थी भक्तों के लिए जो कोई काम अटका होने पर बार बार ईश्वर से कुछ चढ़ाने का वादा कर के मनौती मांगते हैं और काम पूरा होने के बाद मुकर जाते हैं.
मर जैहें पर टरिहैं नाहीं. (भोजपुरी कहावत) मर जाएंगे पर अपनी बात पे अड़े रहेंगे.
मर पड़ कर तो खसम किया, और वह भी हिजड़ा निकला. किसी तरह तो शादी की और पति हिजड़ा निकला. बहुत मुश्किल से कोई काम हुआ हो और उस में भी धोखा हो जाए तो.
मरखना बैल और टिमकुल जनी, इनके मारे रोवे धनी. टिमकुल – सजने धजने वाली, जनी – स्त्री. जिस किसान का बैल मरखना और स्त्री बनाव श्रृंगार करने वाली होती है वह सदैव कष्ट भोगता है.
मरखना बैल गली संकरी. अत्यंत संकट पूर्ण स्थिति. जैसे आप पतली गली में जा रहे हों और सामने से मरखना बैल आ जाए.
मरखना बैल भला, के सूनी सार. सार – पशुशाला. सार सूनी रहे इससे तो मरखना बैल अच्छा.
मरखनी के संग सीधी गाय, दोनों मार बराबर खाएँ. दुष्ट लोगों के साथ रहने में सीधे लोग भी दंड पाते हैं.
मरखनी गाय के गले में लटकन. गाय भैंस मरखनी या उद्दंड हो तो उस के गले में लकड़ी लटका देते हैं, उस को शांत करने के लिए भी और उस की पहचान के लिए भी.
मरघट को गओ कौन लौटत. मरघट का गया कौन लौटता है. गयी बात फिर हाथ नहीं आती.
मरता क्या न करता. जब मजबूरी में कोई ऐसा काम करना पड़े जो आप सामान्य परिस्थितियों में करना पसंद नहीं करते.
मरते के साथ कोई नहीं मरता (मरते के साथ आप न मरो). किसी प्रिय व्यक्ति की मृत्यु पर यदि कोई बहुत अधिक शोक ग्रस्त हो जाए तो उसे समझाने के लिए.
मरते मियाँ मल्हारें गाएं. मल्हार सावन में गाए जाने वाले मस्ती भरे गीतों को कहते हैं. उसी पर आधरित एक राग है मेघ मल्हार. किसी बहुत बीमार आदमी को शौक या मस्ती सूझ रही हो तो यह कहावत बोली जाती है.
मरते मूसे को गोबर सुंघा दिया. ऐसा मानते हैं कि मरते हुए चूहे को गोबर सुंघा दो तो वह जिन्दा हो जाता है. यदि आप किसी अयोग्य व अपात्र व्यक्ति को सजा मिलने से बचा लें तो व्यंग्य में यह कहावत कही जाएगी. भोजपुरी कहावत है – गोबर सुंघला से मुसरी जीओ.
मरद की बात और गाड़ी का पहिया आगे को ही चलते हैं. सच्चा मर्द अपनी बात से पीछे नहीं हटता.
मरद के चाकर मरें, औरत के चाकर जीएँ. आदमी लोग नौकरों से बहुत काम लेते हैं जबकि औरतें उन का ध्यान रखती हैं.
मरद तो जुबान बांका, कोख बांकी गोरियां, गाय तो दुधार बांकी, तेज बांकी घोड़ियाँ. बांके से अर्थ यहाँ श्रेष्ठ से है. पुरुष वही श्रेष्ठ है जो जुबान का पक्का हो, स्त्री वह जो श्रेष्ठ संतान को जन्म दे, गाय वह अच्छी है जो दूध अधिक दे और घोडी वह अच्छी है जो तेज चले.
मरन चली तो बदसगुनी हो गई. कोई स्त्री मरने के लिए जाने का नाटक कर रही है कि बिल्ली रास्ता काट जाती है. वह कहती है कि अपशकुन हो गया, अब मैं नहीं जाऊँगी. झूठ मूठ का नाटक करने वाली महिलाओं के लिए.
मरन पीछे बैद आए, मुँह बनाए घर गए. यदि वैद्य या डॉक्टर मरीज के मरने के बाद पहुँचता है तो उसे कोई नहीं पूछता. उसे चुपचाप लौट जाना होता है.
मरना भला बिदेस में जहां न अपना कोय, माटी खाए जनावरा उनका उत्सव होय. साधु प्रवृत्ति के व्यक्ति का कथन, मरना विदेश में अच्छा है जहाँ कोई जानता न हो, पशु पक्षी शरीर को खा लें, उनका भी भला हो जाए.
मरने के डर रोटी खावे. अत्यंत आलसी आदमी. रोटी खाने जितनी मेहनत भी इस लिए करता है कि नहीं खाएगा तो मर जाएगा.
मरने के बाद डोम भी राजा. मरने के बाद सभी की तारीफ की जाती है चाहे डोम हो या राजा. रूपान्तर – मरे पीछे डोम राज. मरने के बाद दुनिया खत्म हो जाती है. फिर चाहे डोम का राज हो क्या फर्क पड़ता है.
मरने के बाद बाबा को घी पिलाने से क्या लाभ. जो लोग जीवित माता पिता की सेवा नहीं करते और उनके मरणोपरांत कर्मकांड करते हैं उन पर व्यंग्य.
मरने को जी करे, कफन का टोटा. जो लोग बात बात पर मरने की धमकी देते हैं उन पर व्यंग्य.
मरने से पहले ही भूतनी हो गई. किसी बहुत दुष्ट स्त्री पर व्यंग्य.
मरा मुर्दा आँख मारे. कहावतों में मिलने वाला उच्च कोटि का हास्य. उदाहरण के तौर पर कोई नखरे दिखाने वाली स्त्री किसी बहुत बूढ़े आदमी पर उसे छेड़ने का इल्जाम लगाए तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.
मरा रावन फजीहत होके. कोई दुष्ट हाकिम काफी लानत मलानत होने के बाद पद से हटा हो तो.
मरी बछिया बामन को दान. जो चीज़ किसी काम की न हो उसे दान कर के दानवीर बनना.
मरी सौत सतावे, काठ की ननद चिढावे. सौत इतनी बुरी होती है कि मर के भी परेशान कर सकती है और ननद इतनी बुरी होती है कि लकड़ी की बनी हो तब भी भाभी को लगता है कि मुँह चिढा रही है.
मरे का कोई नहीं सब जीते जी के साथ हैं. व्यक्ति के जीवित रहते जो लोग हर समय आगे पीछे घूमते हैं वे मरने के बाद उसे नहीं पूछते.
मरे कुत्ते को कोई लात नहीं मारता. मरे हुए कुत्ते को लात मारने में किसी का अहम संतुष्ट नहीं होता. जिन्दा कुत्ते को लात मारने से (विशेषकर अगर वह किसी बड़े आदमी का कुत्ता हो तो) अपने अहम की तुष्टि होती है.
मरे को क्या मारना. जो स्वयं ही पीड़ित है उसे पीड़ा देना ठीक नहीं है.
मरे को मारे शाह मदार. (दुबले मारे शाह मदार) पीर और शाह भी दुर्बल को ही सताते हैं.
मरे कोई और, स्वर्ग मैं जाऊं. निकृष्ट स्वार्थपरता.
मरे ढोर को किल्ली भी छोड़ देती हैं. जिससे कुछ मिलने की आशा नहीं होती परजीवी लोग उसे त्याग देते हैं.
मरे तो शहीद, मारे तो गाजी. मुस्लिमों को जिहाद (धर्म युद्ध) के लिए उकसाने के लिए कहा जाता है कि यदि तुम काफिरों (दूसरे धर्म वालों, विशेषकर मूर्तिपूजकों) से लड़ते हुए मारे गए तो तुम्हें जन्नत में शहीद का दर्ज़ा मिलेगा और काफिर को मार दोगे तो जिन्दा रहते हुए गाज़ी की उपाधि मिलेगी.
मरे न जिए, हुकुर हुकुर करे (मरे न जिए, खों खों करे). कोई बूढ़ा और बीमार व्यक्ति ठीक भी न हो रहा हो और मर भी न रहा हो तो अंततः प्रियजन भी तंग आ जाते हैं. इस से मिलती जुलती एक और कहावत है – मरे न खाट खाली करे.
मरे न मूसा सिंह से, मारे ताहि बिलार. (बिलार – बिल्ली). चूहे को शेर नहीं मार सकता, बिल्ली ही मार सकती है. कोई व्यक्ति कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, हर काम के लिए उपयुक्त नहीं हो सकता.
मरे बाघ की मूँछ उखाड़े. कायर लोगों पर व्यंग्य. जो जीवित बिल्ली से भी डरते हों वे मरे हुए बाघ की मूंछें उखाड़ कर बहादुरी दिखाते हैं.
मरे बाबा के बड़े बड़े दीदे. बाबा जब तक जिन्दा थे तब तक तो उन्हें कोई पूछता नहीं था, अब उनके मरने के बाद उनकी छोटी छोटी खूबियाँ गिनाई जा रही हैं, जैसे कोई कह रहा है कि उन की आँखें बड़ी बड़ी थीं.
मरे मुक्ति केहि काज. मर कर कष्टों से मुक्ति मिले तो किस काम की.
मरे लौं को नातो, मरे लों को बैर. मरने तक ही दुनिया से नाता रहता है और मरने तक ही किसी से बैर भाव.
मरे सरदार, लुटे भंडार. फ़ौज का सरदार मर जाए तो फ़ौज हार मान लेती है और दुश्मन सब लूट लेता है.
मरे हुए आदमी को मार कर कुछ नही मिलता. कमजोर को सताने से कुछ हासिल नहीं होता.
मर्ज बढ़ता ही गया ज्यों ज्यों दवा की. किसी समस्या को हल करने का प्रयास करने पर भी यदि वह बढ़े तो.
मर्द का एक कौल होता है. जो सही मानों में मर्द होते हैं वे अपनी बात पर अडिग रहते हैं.
मर्द का नहाना और औरत का खाना, किसी ने जाना किसी ने न जाना. दोनों काम बहुत जल्दी होते हैं
मर्द को गर्द जरूरी है. पुरुषों के लिए शारीरिक श्रम करना आवश्यक है.
मर्द को गर्द में रहना, हिजड़े की हवेली में नहीं. मर्द को शोभा देता है धूल मिट्टी में काम करना (मेहनत करना) न कि हिजड़ों के साथ रह कर बेशर्मी की कमाई खाना.
मर्द गया खटाई में, औरत गई ढिठाई में, दूकान गई ठठाई में. पहले के लोग मानते थे कि खटाई खाने से पुरुषों की यौनशक्ति कम हो जाती है इसलिए ऐसा कहा गया है कि मर्द ने खटाई खाई तो काम से गया, औरतें ढिठाई (हठ, त्रिया हठ) में जाती हैं और दूकान के बाहर यदि चार लोग खड़े हो कर हंसी ठठ्ठा करने लगें तो व्यापार चौपट हो जाता है.
मर्द तो मर्द है पांच का हो या पचास का. स्त्रियों को सलाह दी जाती है कि वे घर से बाहर जाएं तो किसी मर्द को साथ ले कर जाएँ. वे अगर किसी बच्चे को साथ ले जाएँ तो मजाक में यह बात कही जाती है.
मर्द बिगाड़े ताड़ी, खेत बिगाड़े राड़ी. मर्द को ताड़ी का नशा बर्बाद करता है और खेत को राड़ी नाम की घास.
मर्द मरे कर्जे से तिरिया मांगे गहना. पति बेचारा कर्ज चुकाने में मर रहा है और पत्नी गहने मांग रही है.
मर्द मरे नाम को, नामर्द मरे नान को. यहाँ नान से त्तात्पर्य रोटी से है. मर्द लोग (वीर पुरुष, सत्पुरुष) नाम कमाने के लिए परिश्रम करते हैं और नामर्द (कापुरुष) केवल रोटी (सांसारिक साधनों) के लिए.
मर्द वो हैं जो जमाने को बदल देते हैं. पुरुषार्थी व्यक्ति दुनिया को बदलने की क्षमता रखते हैं.
मर्द साठा सो पाठा, औरत बीसी सो खीसी. पुरुष साठ साल की आयु में परिपक्व होता है और स्त्री बीस के बाद ढलने लगती है.
मल-मल धोए शरीर को, धोए न मन का मैल, नहाए गंगा-गोमती, रहे बैल के बैल. अर्थ स्पष्ट है.
मलयगिरी की भीलनी चन्दन देत जलाय (अति परिचय ते होत है अरुचि अनादर भाय). जहाँ जो चीज़ अधिक मात्रा में और सहज उपलब्ध होती है वहाँ उस चीज़ की कद्र नहीं होती.
मल्लाह का लंगोटा ही भीगता है. क्योंकि वह केवल लंगोट ही पहनता है. जिसके पास खोने के लिए अधिक कुछ न हो उसका अधिक नुकसान नहीं होता.
मसालची मरे तो पटबीजना हो, यहाँ भी चमके वहां भी चमके. पटबीजना – जुगनू. मशालचियों के सम्बन्ध में एक कथन है कि वे मरने के बाद जुगनू बन के जन्म लेते हैं (पता नहीं यह तारीफ़ है या व्यंग्य).
मस्जिद से नजदीक खुदा से दूर. कट्टर मुस्लिम धर्मावलम्बियों पर व्यंग्य. इंग्लिश में इस के समकक्ष एक कहावत है – The nearer to church, the farther from God.
मस्तराम मस्ती में, आग लगे बस्ती में. समाज के प्रति बिल्कुल गैर जिम्मेदाराना व्यवहार.
महतो घुसे पुआल तले, कह के बैरी होए कौन. महतो पुआल के तले छिपे हुए हैं यह भेद बता कर महतो से बैर कौन मोल ले. प्रभावशाली व्यक्ति गर्दिश में हो तब भी उस से कोई बैर मोल लेना नहीं चाहता.
महादेव को मन्त्र कौन सिखाए. जो सब कुछ जानता हो उसे कौन सिखा सकता है.
महावत से यारी और दरवाजा संकरा. सीमित साधन होते हुए भी अपने से बहुत बड़े लोगों से दोस्ती करना.
महि, मेधा, घोड़ा औ धान, मोर, पपीहा, भैंस, किसान, बाढ़ी नदी, मच्छ लपटानी, दस अनंद जो बरसे पानी. महि – पृथ्वी, मेधा – मेढक, मच्छ – मछली. वर्षा होने पर उपरोक्त दस हर्षित होते हैं.
महुअन के टपके धरती नहीं फटत. महुआ के फूलों के टपकने से धरती नहीं फटती. तुच्छ आदमी बड़ा अहित नहीं कर सकता.
महुआ मेवा, बेर कलेवा, गुलगुच बड़ी मिठाई, इतनी चीजें चाहो तो गोंडवाने करो सगाई. गुलगुच – महुए का पका फल. बुन्देलखंड के गोंडवाना क्षेत्र में महुआ और बेर के पेड़ बहुत हैं. वहाँ के लोगों को ये बहुत प्रिय हैं.
माँ उठाए गोबर, पूत बिटौरे बख्शे. बिटौरा – कंडों का ढेर. जहाँ माँ बाप बहुत गरीब हों और बेटा बहुत दानी बना फिरता हो. माँ कंडे थापने के लिए गोबर उठा रही है और पुत्र कंडों का ढेर दान दे रहा है. रूपान्तर – माँ तो उपलों को तरसे, बेटी बिटौड़े के बिटौड़े बख्शे. माँ छोटी छोटी चीजों को तरस रही है और बेटी दानी बनी हुई है.
माँ एली, बाप तेली, बेटा शाखे जाफ़रान. माँ बाप कुछ न हों और बेटा कुछ बन जाए तो. (ज़ाफ़रान माने केसर).
माँ कहे तो राजी, बाप की जोरू कहे तो पाजी. एक ही बात को कहने का सभ्य और असभ्य तरीका होता है.
माँ कहे धिया धिया, धिया कहे छिया छिया. माँ बेटी के लिए मरी जा रही है और उसके भले की बात समझा रही है. पर बेटी को माँ की बात बहुत बुरी लग रही है और वह माँ को धिक्कार रही है.
माँ का ऋण चुके न चुकाए. अर्थ स्पष्ट है.
माँ का पेट कुम्हार का आवा, कोई गोरा कोई काला रे. किसी माँ के कई बच्चों में कोई गोरा और कोई काला हो तो उन्हें समझाने के लिए यह कहावत कही जाती है. कुम्हार के आवे (बर्तन पकाने की भट्टी) में से भी कोई बर्तन पक कर सामान्य रंग का निकलता है जबकि कोई काला हो जाता है).
माँ का प्यार, बेटी की खराबी. माँ के अधिक लाड से बेटी बिगड़ जाती है.
माँ की सौत, न बाप से यारी, किस नाते बन गई महतारी. जब कोई जबरदस्ती रिश्तेदारी निकाल कर अपना अधिकार जमा रहा हो तो.
माँ के पेट से सीख कर कोई नहीं आता. जो कुछ भी हम सीखते हैं सब इस संसार में रह कर अपने अध्ययन और अनुभवों द्वारा ही सीखते हैं.
माँ के सराहे पूत सराहनीय नहीं हो जाता. कोई माता पिता अपने बच्चे की बहुत प्रशंसा करते हों तो इसका अर्थ यह नहीं है कि बच्चा बहुत योग्य है.
माँ को मारे, सासू को सिंगारे. ऐसे निकृष्ट बेटे के लिए जो माँ को प्रताड़ित करे और सास की गुलामी करे.
माँ डायन हो तो क्या बच्चे ही को खाएगी. कोई व्यक्ति कितना भी नीच और पापी क्यों न हो अपनी सन्तान का अहित नहीं कर सकता (हालांकि बच्चे मां बाप का अहित कर सकते हैं).
माँ तिताई, बहन मिरचाई, जोरू मिठाई. पत्नी के प्रेम में अंधे को माँ कड़वी और बहन तीखी लगने लगती है.
माँ दूसरी तो बाप तीसरा. सौतेली माँ के आने बाद पिता भी पराया हो जाता है (बच्चे के प्रति पिता का व्यवहार भी बदल जाता है). रूपान्तर – सतमाय कारने वादी बाप. सतमाय – सौतेली माँ, वादी – दुश्मन.
माँ धोबन, पूत बजाजी. जहाँ माँ बाप कुछ न हों और बेटा कुछ बन जाए (तो लोग व्यंग्य में ऐसा कहते हैं).
माँ न माँ का जाया, सब ही लोक पराया. माँ का जाया माने भाई. जब आप किसी ऐसी जगह रह रहे हों जहाँ आप का कोई न हो. कुछ लोग इसे ऐसे भी बोलते हैं – न तो माँ न ही भाई का साया. यदि किसी कारण से घर के लोग किसी व्यक्ति का साथ छोड़ दें तब भी यह कहावत कही जा सकती है.
माँ पिसनहारी बाप कंजर और बेटा मिरजा संजर. माँ अनाज पीसने वाली (मेहनत मजदूरी करने वाली) और बाप घर घर घूमने वाला कंगाल आदमी पर बेटा बड़ा आदमी बन गया है.
माँ बाप जनम दिया, करम नाहिं दिया. मां-बाप जन्म देते हैं, परन्तु सब अपना-अपना भाग्य लेकर आते हैं.
माँ बेटी गाने वाली, बाप पूत बराती. जब कोई अपने सगे सम्बन्धियों को बिना बुलाए घर में ही कोई आयोजन कर ले तो तो सगे संबंधी कुढ़ कर यह बात कहते हैं.
माँ बेटी गौरा को पूजें, अपना अपना सुहाग मांगें. संसार में सभी लोग अपने अपने स्वार्थ के लिए कार्य करते हैं. माँ और बेटी दोनों पार्वती जी से अपने अपने सुहाग की रक्षा करने की प्रार्थना कर रही हैं.
माँ भटियारी, पूत फ़तेह खां. भटियारी – कामवाली. यदि किसी परिवार में माँ बाप बहुत गरीब हों, पर उनका बेटा कोई बड़ा पद पा जाए तो लोग ईर्ष्यावश तरह तरह की बातें बोलते हैं.
माँ मर गई तो मर गई खीर तो खाली. नीच और स्वार्थी व्यक्ति. माँ के मरने का दुख नहीं है, मृत्युभोज में खीर खाने को मिल रही है, इस बात से खुश हैं.
माँ मर गई नंगी, बेटी का नाम चंगी. जहाँ माँ बाप कुछ न हों, बेटी कुछ बन जाए और घमंड करने लगे तो.
माँ मर गई, बहन मर गई, दवा फेंट में धरी रह गई. फेंट – धोती का फेंट. दवा पास में थी लेकिन आवश्यकता के समय मरीज को नहीं खिलाई. अज्ञानतावश पास में मौजूद सामान का समय पर सदुपयोग न कर पाना.
माँ मरे धिया के लिए, धिया मरे यार के लिए. धिया – धी, पुत्री. माँ तो बेटी के लिए मरी जा रही है और बेटी को इसकी परवाह ही नहीं है. उसे केवल अपना यार प्यारा है. उन लड़कियों के लिए जो अपनी नादानी में किसी धूर्त प्रेमी के चक्कर में (या लव जिहाद में) फंस कर अपना जीवन बर्बाद कर लेती हैं.
माँ मारे और माँ ही माँ पुकारे. माँ और बच्चे के बीच सच्चा प्रेम है. माँ जब बच्चे को मारती है तो बच्चा माँ को ही पुकारता है. माँ की मार में भी उस का प्रेम छिपा है और बच्चा भी पिट कर माँ की गोद में ही चढ़ता है. ईश्वर और सच्चे भक्त का प्रेम भी ऐसा ही होता है.
माँ मारे पर दूसरे को मारन न दे. माँ स्वयं तो बच्चे को दंड दे सकती है पर दूसरे को ऐसा नहीं करने देती. माँ की मार में भी स्नेह होता है.
माँ ही मारे, माँ ही पुचकारे. माँ अपने बच्चे को मारती भी है और पुचकारती भी है. सच तो यह है कि माँ की मार में भी उसकी ममता ही होती है.
माँगन मरन समान है, मति माँगो कोई भीख, माँगन से मरना भला, यह सतगुरु की सीख. माँगना और मरना समान है बल्कि मांगने से मरना अच्छा है.
माँगना न आवे भीख, तो सुरती खाना सीख. तंबाखू खाने वाला कितना भी धनी हो तब भी तंबाखू मांग के खाना सीख जाता है, उसी पर व्यंग्य.
माँगने से तो मौत भी नहीं मिलती. मांगने से कुछ नहीं मिलता, इसलिए कुछ माँगना चाहिए ही नहीं. इस बात को जोर दे कर कहने के लिए यह कहावत कही जाती है.
माँगे की मठा मोल से महंगी. मांगी हुई वस्तु मँहगी पड़ती है, देने वाले के सौ नखरे सहो और एहसान अलग.
माँगे पे जाट गंडा भी न दे, बिन मांगे भेली दे दे. गंडा – गन्ने की पोई. मांगने पर जाट छोटी सी चीज़ भी नहीं देता पर बिना माँगे (और बिना जरूरत) बड़ी चीज़ भी दे देता है.
माँगे बिन महतारी भी न दे. जो आपका अधिकार है उसे मांग कर लेना चाहिए. बिना मांगे तो माँ भी दूध नहीं पिलाती.
माँगे हरड़, दे बहेड़ा. कोई भी काम ठीक से न करने वाला इंसान.
मांग के खाए, रूठ कर न जाए. यदि आप किसी सगे सम्बन्धी के घर जाएँ और वह आप से खाने को न पूछे तो इस बात पर रूठना नहीं चाहिए. उसको अपना समझ कर आवश्यकता अनुसार उससे माँग लेना चाहिए.
मांग के खाना, मस्जिद में सोना. बिलकुल साधनहीन व्यक्ति.
मांग के खाय, बहन के द्वारे न जाय. कभी बहुत अधिक आर्थिक संकट आ जाए तो चाहे मांग कर खाना पड़ जाए पर शादीशुदा बहन के घर सहायता मांगने नहीं जाना चाहिए.
मांग में तेल न, टांग में तेल. सर में तेल नहीं है, पैर में तेल लगा रहे हैं. फूहड़पना.
मांगता जीए, करता मुए. मांगने वाला बिना कोई काम करे आराम से जिन्दा है और काम करने वाला काम कर कर के अपना शरीर घुला रहा है और मरा जा रहा है.
मांगन भलो न बाप सों ईश्वर राखे टेक. हे ईश्वर तू हमारी इज्ज़त बचाए रख, हमें कभी अपने पिता से भी न माँगना पड़े.
मांगने वाले के सौ घर, कोई न दे तो जाए कहाँ, सब दे दें तो धरे कहाँ. मांगने वाला बहुत से घरों से मांगता है, कोई भी न दे तो बेचारा जाएगा कहाँ (कैसे जिन्दा रहेगा), और सब कुछ न कुछ दे दें तो इतना सामान हो जाएगा कि बेचारा रखेगा कहाँ.
मांगे कोइरी साग न दे, बांधे कोइरी सब कुछ दे. कोइरी – सब्जी बोने वाला. गरीब लोगों को सताने वाले दबंग लोग उन्हें पीड़ित कर के उन से सब कुछ छीन लेते हैं.
मांगे तांगे काम चले तो ब्याह क्यों करें. अगर मांगने से स्त्री का साथ मिल जाए तो इंसान विवाह क्यों करे. अगर मांगने से ही गृहस्थी चल जाए तो इंसान व्यापार या नौकरी का झंझट क्यों करे.
मांगे बनिया गुड़ ना देय, मारे घूंसा भेली देय. बनिया कंजूस भी होता है और डरपोक भी. उससे मांग कर थोड़ा कुछ भी पा लेना तो असंभव है पर हड़का कर बहुत कुछ लिया जा सकता है. रूपान्तर – मांगे बनिया भीख ना देय, मारे घूंसा सरबस देय. सरबस-सर्वस्व.
मांगे मान न पाइए, सक्ति सनेह न होय. मांगने से सम्मान नहीं मिल सकता और जबरदस्ती किसी का प्रेम नहीं पाया जा सकता. सक्ति – शक्ति. इंग्लिश में कहावत है – Respct is earned, not commanded.
मांगे मिलें न चार, पूर्ब जनम के पुन्न बिन, इक विद्या इक संपति, नारी नेह सरीर सुख. विद्या, संपत्ति, स्त्री का प्रेम और शरीर का सुख, ये चारों वस्तुएँ पूर्व जन्म के सत्कर्मों से ही मिलती हैं.
मांगो उसी से, जो दे ख़ुशी से, कहे ना किसी से. यदि माँगना भी पड़े तो उसी से मांगो जो ख़ुशी से दे और सब जगह गाता न फिरे.
मांस खाए मांस बढ़े, घी खाए खोपड़ी, दूध पिए तो चल पड़े, अस्सी बरस की डोकरी. (बुन्देलखंडी कहावत) डोकरी – बुढ़िया. कहावत का अर्थ एकदम स्पष्ट है.
माई का दूध छोड़, आज सब में मिलावट है. आज माता के दूध को छोड़कर सभी वस्तुओं में मिलावट है.
माई का मनवा गाय जैसा और पूत का मनवा कसाई जैसा. माँ दयालु और पुत्र निर्दयी.
माई घूमे गली गली, बेटा बने बजरंगबली. माँ तो महा गरीब थी पर बेटा अपने को बड़ा आदमी समझने लगा है.
माई बाप के लातन मारे, मेहरी देख जुड़ाए, चारों धामे जो फिरि आवे तबहूँ पाप न जाए. माँ, बाप को लात मारे और पत्नी को देख कर खुश हो, ऐसा व्यक्ति चारों धाम की यात्रा कर आए तब भी उसके पाप दूर नहीं हो सकते.
माई मासे, बाप छमासे, और लोग सब बारह मासे. बच्चा एक महीने को होने पर माँ को पहचानने लगता है, छह महीने में पिता को और बाकी सब लोगों को बारह महीने का होने पर.
माई रोवे तीर के घाव, बाप रोवे तलवार के घाव. जब किसी का पुत्र नालायक निकल जाता है तो माता-पिता को इतना कष्ट होता है जितना तीर और तलवार के घाव लगने पर होता होगा.
माघ का जाड़ा, जेठ की धूप, बड़े कष्ट से उपजे ऊख. गन्ने की खेती में बहुत मेहनत करनी पड़ती है, माघ का जाड़ा और जेठ की धूप सहन करनी पड़ती है.
माघ के टूटे मरद और भादो के टूटे बरध कभी नहीं जुड़ते. बरध – बैल. माघ में जिस आदमी का शरीर कमजोर हो गया और भादों में जिस बैल का शरीर कमजोर हो गया उनका स्वास्थ्य फिर नहीं सुधरता.
माघ जाड़ा न पूस जाड़ा, जो चले बतास तो जाड़ा. बतास – हवा. माघ हो या पूस हो, जाड़ा तभी ज्यादा सताता है जब हवा चलती है.
माघ तिलै तिल बाढ़े, फागुन गोड़ पसारे. माघ माह से तिल तिल करके दिन बढ़ते-बढ़ते फागुन माह तक काफी बड़ा होने लग जाता है. गोड़ पसारना – पैर फैलाना.
माघ नंगे वैशाख भूखे. बहुत अधिक वंचित. (माघ की ठंड में भी जो नंगा रहे और बैसाख में नया गेहूँ आने के बाद भी भूखा रहे).
माघ पंद्रह और पूस पचीस, चिल्ला जाड़ा दिन चालीस. अत्यधिक ठंड (चिल्ला जाड़ा) चालीस दिन पड़ता है, पन्द्रह दिन माघ महीने के और पच्चीस दिन पूस के.
माघ मास की बादरी और क्वार की घाम, ये दोनों जो कोई सहै करै परायो काम. पराए खेत में मजदूरी वही कर सकता है जो माघ की वर्षा और क्वार की धूप सहन कर ले. (घाघ की कहावतें)
माघ मास जो परै न सीत, महंगा नाज जान्यो मेरे मीत. माघ मास में जो ठंडक न पड़े तो समझना अनाज महंगा बिकेगा.
माघ में बादर लाल घिरे, साँची मानो पाथर परै. माघ में यदि लाल बादल घिर कर आए तो निश्चित समझो कि ओला गिरेगा. (घाघ की कहावतें)
माघ सवेरे, जेठ दुपहरे, भादों आधी रात, जिसको जंगल लागे उसकी छाती फाट. जब लोग शौच के लिए जंगल आदि में जाते थे तो शौच कर्म को जंगल जाना कहते थे. माघ मास की ठिठुरन भरी सुबह में, जेठ मास की दुपहरी में तथा भादों मास की वर्षा वाली अंधेरी आधी रात में जिसको शौच लगी उसका कलेजा बैठ जाता है.
माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय, एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूंगी तोय. मिटटी कुम्हार से कह रही है कि तू मुझे क्या रौंद रहा है, एक दिन मैं तुझे रौंदूंगी. जो लोग अपने धन और पद का घमंड कर के दूसरों को परेशान करते हैं उन को सीख देने के लिए.
माटी का घोड़ा, सूत की लगाम. अत्यधिक कच्चा काम.
माटी की मूरत भी पहनी ओढ़ी अच्छी लगती है. अच्छे कपड़े पहनने का बड़ा महत्व है.
माटी के देवता जल चढ़ाने में खतम हो गए. देवता की मूर्ति मिट्टी की बनी थी, लोग उन पर जल चढाने लगे. बेचारे देवता पानी के साथ बह गए. कमजोर नेताओं और अफसरों पर व्यंग्य.
माटी छू दे तो सोना हो जाय. जो व्यक्ति कम साधनों से बहुत लाभ अर्जित कर के दिखाए. रूपान्तर – मिट्टी पकड़े सोना होय. अत्यधिक भाग्यवान व्यक्ति.
मात पिता कुल तारन को जो ‘गया’ न गया सो कहीं न गया. जो पुत्र पितरों का तर्पण करने ‘गया’ नहीं गया उसके सारे तीर्थ बेकार हैं. गया – बिहार में एक तीर्थ स्थान जहाँ पितरों का तर्पण किया जाता है.
माता जैसी ममता, सौतन जैसा बैर, दूजा राखे न कोई, देखा सांझ सवेर. अर्थ स्पष्ट है.
माता न परसे भरे न पेट, भादों न बरसे भरे न खेत. जब तक माँ न खिलाए तब तक पेट नहीं भरता और जब तक भादों में वर्षा न हो तब तक खेत में पानी पूरा नहीं पड़ता.
माते की लगुन में लगुन. बड़े आदमी के काम के साथ अपना भी काम बन जाना.
माथे पर चोट, बसंत के गीत. मारना भी और खुश करने की कोशिश भी करना.
मान का तो मुट्ठी भर चना ही बहुत है. सम्मान सहित मुट्ठी भर चना मिले तो भी से अच्छा है.
मान का पान भला न अपमान का लड्डू. व्यक्ति का सम्मान सबसे अधिक महत्वपूर्ण है. सम्मान के साथ मिलने वाला पान, अपमान हो कर मिलने वाले लड्डू से बेहतर है.
मान का माहुर न अपमान का लड्डू. माहुर – विष. अपमान सह कर लड्डू खाने की अपेक्षा सम्मान सहित जहर पीना श्रेयस्कर है.
मान घटे नित के घर जाए. बार बार कहीं जाने से सम्मान कम होता है. (कद्र खो देता है रोज़ का आना जाना). संस्कृत में कहते हैं – अति गमनं अनादरं. इस कहावत को अधिक विस्तार में इस प्रकार से कहा गया है –
मान घटे नित के घर जाए, ज्ञान घटे कुसंगत पाए, भाव घटे कुछ मुंह के मांगे, रोग घटे कुछ औषध खाए. किसी के घर बार बार जाने से सम्मान कम होता है, बुरे लोगों के साथ रहने से ज्ञान कम होता है, किसी से कुछ मांगने से प्रेम भाव कम होता है और दवा खाने से रोग कम होता है.
मान न मान, मैं तेरा मेहमान. जबरदस्ती किसी के गले पड़ना.
मान बड़ा कि दान. किसी को दान देने के मुकाबले सम्मान देना अधिक अच्छा है.
मान मनाई खीर न खाई, झूठी पातर चाटन आई. सम्मान के साथ परोसी गई खीर नहीं खाई और अब झूठी पत्तल चाटने आई हो. जो व्यक्ति उचित समय पर मिलने वाले सम्मान को ठुकरा दे और फिर घटिया काम कर के अपनी बेइज्जती कराए उस के लिए.
मान सहित विष खाय के शम्भु भए जगदीश, बिना मान अमृत पिए, राहू कटायो शीश. सम्मान सहित विष पान कर के शंकर जी को महादेव की उपाधि मिली, और चोरी से अमृत पीने वाले राहु का सिर काटा गया.
माने तो देवता नहीं तो पत्थर. किसी पत्थर की मूर्ति को देवता मान लो तो वह देवता बन जाती है और नहीं मानो तो पत्थर है.
मानो चाहे न मानो हम तुम्हारे पंच. जबरदस्ती किसी का भाग्य विधाता बनना.
मानों तो देव, नहीं तो भीत को लेव. दीवार में उकेर कर किसी ने देवता की मूर्ति बनाई हुई है. अगर मानो तो वह देवता है और न मानो तो दीवार का पलस्तर है.
मापा, कनिया और पटवारी, भेंट लिए बिन करें न यारी. मापा – भूमि नापने वाला अमीन, कनिया – कानूनगो. ये सभी राजस्व कर्मचारी बिना भेंट लिए काम नहीं करते.
मामू के कान में बालियाँ, भांजा ऐंड़ा ऐंड़ा फिरे. अपने किसी रिश्तेदार की समृद्धि पर घमंड करना.
मायके का कुत्ता भी प्यारा होता है. स्त्रियों को मायके की हर चीज़ प्यारी होती है. रूपान्तर – मैके के महुए मीठ.
माया का डर, काया का क्या डर. जिस के पास धन दौलत है उसे उस के चोरी होने या छिन जाने का डर है, जिस के पास कुछ नहीं है (केवल शरीर है) उसे क्या डर.
माया के भी पाँव होते हैं, आज मेरे पास कल तेरे पास. माया किसी की नहीं होती, चलती फिरती रहती है. इसलिए धन सम्पदा को अपना मान कर अधिक खुश नहीं होना चाहिए.
माया गंठी, विधा कंठी. पैसा वह काम आता है जो हमारे पास मौजूद हो (उधार में बंटा पैसा या बाद में मिलने वाला पैसा वक्त पर काम नहीं आता). विद्या वही काम आती है जो हमें कंठस्थ हो.
माया चलती फिरती छाया. माया किसी की नहीं होती, चलती फिरती रहती है.
माया छाया एक सी, बिरला जाने कोय, भगता के पीछे लगे, सम्मुख भागे सोय. माया और छाया एक सी होती हैं यह बात बहुत कम लोग जानते हैं, जो इनसे दूर भागता है उसके पीछे भागती हैं और जो इनके पीछे भागता है उससे दूर भागती हैं.
माया तजी तो क्या भया, मान तजा नहिं जाय. बहुत से लोग सांसारिक मोह माया का त्याग कर के साधु बन जाते हैं पर अहंकार नहीं छोड़ पाते, उन पर व्यंग्य.
माया तू है सुलक्खनी, नाम हुआ जगराम, एही आंगन फिर गया, धरा झोकिया नाम. पैसा पास न हो तो आदमी की कोई इज्जत नहीं रहती. सन्दर्भ कथा – एक सेठ के जगराम नाम का एक ही लड़का था. घर में लक्ष्मी का ठाट-बाट था और उस की शादी भी सम्पन्न घर में हुई थी. लेकिन पिता के मरने पर जगराम ने कुसंगति में पड़ कर सारी सम्पत्ति नष्ट कर डाली. उसकी स्त्री बच्चों को ले कर अपने पीहर चली गई. तंग आकर जगराम भी मजदूरी की तलाश में निकला और भटकते भटकते अपनी सुसराल पहुँच गया. इस हाल में सुसराल वालों ने भी उसे नहीं पहचाना और उसे नौकर रख लिया. वह पानी लाने, आग में लकड़ी झोंकने आदि का काम करने लगा और उसका नाम झोकिया पड़ गया.
एक दिन जगराम की स्त्री अपनी माँ से कह रही थी कि तुम्हारे दामाद ने और सब कुछ तो बर्बाद कर डाला, लेकिन मेरी सास ने मुँह दिखलाई में मुझे जो चार बहुमूल्य लाल दिये थे, वे उसके हाथ नहीं लगे, क्योंकि उनको मैंने अमुक स्थान पर छिपा दिया था. झोकिया रूपी जगराम ने उन दोनों की बात सुन ली. वह नौकरी छोड़कर अपने घर आ गया. उसने चारों लाल निकाले और उन्हें बेचकर पुनः कारोबार प्रारम्भ किया तथा शीघ्र ही पहले की तरह मालदार बन गया. अब वह अपनी स्त्री को लेने सुसराल पहुँचा तो सुसराल वालों ने उसकी खूब खातिर की. इस पर वह बोला- माया तू है सुलक्खनी, नाम हुआ जगराम, एही आंगन फिर गया, धरा झोकिया नाम.
माया बादल की छाया. बादल एक स्थान पर स्थिर नहीं रहता इसलिए उस की छाया भी स्थिर नहीं रहती. इसी प्रकार माया भी एक स्थान पर स्थिर नहीं रहती.
माया महा ठगिनी, हम जानी. जो ज्ञानी लोग हैं वही समझ पाते हैं कि माया केवल सबको ठगती है, किसी की हो कर नहीं रहती.
माया मिल गई सूम को, न खरचे न खाय. कंजूस के पास रखा धन बेकार ही है, न तो वह खुद खाएगा और न ही परोपकार में खर्च करेगा.
माया मुई न मन मुआ, मरि मरि गये शरीर, (आशा तृष्णा ना मुई, यों कह गये कबीर). माया इसी संसार में रहती है जबकि उसे जोड़ने की इच्छा करने वाले चले जाते हैं. सब जानते हुए भी मनुष्य की तृष्णा नहीं मिटती.
माया से छाया भली. पैसा अपने पास रखे रहने से भवन बनवाना और पेड़ लगवाना अधिक अच्छा है.
माया से माया मिले कर कर लम्बे हाथ, तुलसी दास गरीब की कोई न पूछे बात. जिनके पास घन सम्पत्ति है उन्हीं के पास और धन इकट्ठा होता जाता है, गरीब को कोई नहीं पूछता.
माया हुई तो क्या हुआ हिरदा हुआ कठोर, नौ नेजा पानी चढ़ा तऊ न भीजी कोर. नेजा – बांस. बहुत धनी परन्तु कंजूस और निर्दयी व्यक्ति के लिए कहा गया है कि उस के पास माया आई तो किसी को क्या लाभ हुआ, उसका हृदय और कठोर हो गया. पत्थर के ऊपर नौ बांस की ऊँचाई के बराबर पानी भी चढ़ जाए तो भी उसका अंदरूनी हिस्सा नहीं भीगता.
मार के आगे भूत भी भागता है. कोई आदमी अपने ऊपर भूत आने का नाटक कर रहा था. गाँव के एक सयाने ने कहा कि दस कोड़े मारने से भूत भाग जाएगा. दो कोड़े खाने के बाद ही उस ने हाथ जोड़ दिए. तभी से यह कहावत बनी. इस विषय में एक मजेदार कथा भी है. सन्दर्भ कथा – एक किसान की पत्नी वड़ी लड़ाका थी. वह नित्य प्रति अपने पति को घर के आंगन में बिठा कर इक्कीस जूते लगाया करती थी. इससे तंग आकर वह एक दिन भाग निकला और पास के नगर में चला गया. लेकिन वह औरत भी एक ही थी. वह जिस जगह पर अपने पति को बिठा कर जूते मारा करती थी, अब उस खाली जगह पर ही उसके नाम से जूते मार कर अपने नियम का निर्वाह करने लगी. उस स्थान के नीचे एक हँडिया गड़ी हुई थी, जिसमें मंत्र बल से एक भूत को बन्द किया हुआ था. अब वे जूते उसी भूत के सिर पर पड़ने लगे. जूतों की मार से भूत बेचैन हो उठा, लेकिन वह क्या कर सकता था. फिर एक दिन जूतों की मार से वह हँडिया फूट गई तो भूत उसमें से निकल कर बेतहाशा भागा और उसी नगर में जा पहुँचा.
एक दिन उसे वही किसान दिखलाई पड़ा तो भूत ने उससे कहा, जूत भाई, राम राम. किसान के पूछने पर उसने आप बीती सुनाते हुए कहा कि हम दोनों ने एक ही औरत के हाथ से जूते खाये हैं, इसलिए हम जूत भाई हैं. किसान बोला कि मुझे यहाँ प्राये इतने दिन हो गये, लेकिन कोई अच्छी आय नहीं हुई. भूत ने कहा कि इसका उपाय मैं किये देता हूँ. मैं अभी जाकर अमुक सेठ के बेटे के शरीर में प्रवेश करता हूँ और किसी के निकाले नहीं निकलूंगा. लेकिन जब तुम आओगे तो तुरन्त निकल जाऊंगा. इस काम के बदले तुम सेठ से मोटी रकम वसूल कर लेना. लेकिन इस वात को याद रखना कि मैं दोबारा किसी के शरीर में प्रवेश करूं तो वहां भूल कर भी न आना. यदि आओगे, तो तुम्हें जान से मार डालूंगा.
किसान ने यह बात स्वीकार कर ली और योजनानुसार किसान को सेठ से मुँह मांगी रकम प्राप्त हो गई.अगली बार भूत ने राजा के पुत्र के शरीर में प्रवेश किया और किसी के निकाले नहीं निकला. राजा को पता चला कि अमुक किसान ने सेठ के बेटे का भूत भगाया था तो उसने किसान को तत्काल ही बुला भेजा. किसान दुविधा में फँस गया. न जाए तो राजा मारे और जाए तो भूत मारे. अन्ततः उसने एक युक्ति निकाली. उसने अपनी घोती ऊपर कर के बाँधी, जूतियां हाथ में लीं और बड़े जोरों से भागता हुआ राजा के बेटे के पास यह कहता हुआ पहुँचा, भूत भाई, रांड आई, अर्थात् वह जूते लगाने वाली औरत यहाँ भी आ पहुँची है. इतना सुनते ही भूत के होश फाख्ता हो गये और वह अविलम्ब ही राजकुमार के शरीर से निकल कर भाग गया.
मार खाए और कहे मार के देख. कायर आदमी के लिए.
मार गुसैंया तेरी आस. जब स्त्रियाँ पूरी तरह पति पर आश्रित थीं तो पति यदि उन्हें मारे पीटे तब भी यह कहती थीं, कि तू चाहें हमें मार ले तब भी तेरे ही आसरे हैं. जब राजा और जमींदार लोग गरीब पर अत्याचार करते हैं तो वह भी ऐसा ही बोलता है. मनुष्य के ऊपर जब भी कोई घोर कष्ट उसे हमें ईश्वर से यही कहना चाहिए.
मार पीछे पुकार होती रहे. मौके पर आगे बढ़ कर मार लो उसके बाद चीख पुकार होती रहे.
मार बिना गदहा ढीठ. मार खाए बिना गदहा भी ढीठ हो जाता है.
मार मार कर कोई हकीम नहीं बनता. जिस के अंदर लगन हो और मेहनत करने का जज़्बा हो वही बड़ा विद्वान बन सकता है, किसी को मार मार कर होशियार नहीं बनाया जा सकता.
मारकेस से सब डरात. बुरे ग्रहों से सब डरते हैं. इसी प्रकार बुरे लोगों से सब डरते हैं.
मारते का हाथ पकड़ा जाए, बोलते की जबान थोड़े ही न पकड़ी जाए. मारने वाले को रोका जा सकता है पर कड़वी बात कहने वाले या अपशब्द कहने वाले को रोकना कठिन है.
मारने वाले से जिलाने वाला बड़ा दाता है. कोई ऐसा हाकिम जो केवल लोगों को पीड़ित कर सकता हो उसके मुकाबले ऐसे व्यक्ति का स्थान बहुत बड़ा है जो दूसरों को जीवन दे सके या सुख दे सके.
मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है (मारने वाले से बचाने वाले के हाथ लंबे होते हैं). अर्थ स्पष्ट है.
मारा कब, चोट लगी कब. जबरदस्ती पिटाई और चोट लगने का स्वांग करने वालों के लिए.
मारा घोंटू फूटी आँख. चोट किसी और पर नुकसान किसी और का.
मारा चोर, उपासा पाहुना, लौटता नहीं. उपासा – उपवास कराया हुआ. मार खाया हुआ चोर और भूखे लौटाया हुआ अतिथि दोबारा नहीं आते.
मारा जाय अगाड़ी या मारा जाय पिछाड़ी. फ़ौज में सामने से आक्रमण होने पर आगे वाले मारे जाते हैं और पीछे से आक्रमण होने पर सावधान न होने के कारण पीछे वाले मारे जाते हैं. बीच वाले सबसे सुरक्षित रहते हैं.
मारा लेकिन लाल जूते से. किसी की पिटाई तो की लेकिन इज्जत के साथ.
मारि के टरि जाए, खाय के परि जाए. कहीं मार पीट करनी पड़े तो मारने के बाद के वहाँ से भाग लेना श्रेयस्कर है और भोजन कर के आराम करना अच्छा है.
मारे आप लगावे ताप. काल किसी को तलवार ले कर नहीं मारता, बुखार आदि कोई बीमारी लगा देता है. रूपान्तर – मारे राम लगाए बहाना. ईश्वर किसी को मृत्यु देता है तो बीमारी आदि के जरिये देता है.
मारे घुटना, फूटे ललाट. लात से किसी को मारोगे तो दूसरा आप का सर फोड़ेगा.
मारे छोहन छाती फटे और आँसू के ठिकाने नाहीं. (भोजपुरी कहावत) बिछड़ते समय बहुत दुखी होने का दिखावा कर रहे हैं लेकिन आँसू बिल्कुल नहीं आ रहे हैं.
मारे माई जिलावे मौसी, आधी रात खिलावे मौसी. मौसी माँ से भी अधिक प्यार करती है. माँ मारती है तो मौसी बचाती है और आधी रात को उठ कर भी खिलाती है.
मारे सिपाही नाम सरदार का. बेचारे सिपाही खतरा उठा के आगे बढ़ के दुश्मन को मारते हैं और जंग जीतने पर नाम सरदार का होता है. किसी भी बड़े उद्योग में मेहनत मजदूर करते हैं और नाम मैनेजर का होता है या लाभ मालिक को होता है.
मारें मक्खी नाम तीसमारखां. एक सज्जन ने एक ही वार से तीस मक्खियाँ मार दीं, जिसके बाद वह अपने को तीसमारखां कहने लगे थे.
माल के नुकसान में जान की खैर. अगर किसी के माल का नुकसान हुआ तो यही कहने में आता है कि चलो माल चला गया कोई बात नहीं जान तो बच गई.
माल से चाल आवे. धन आता है तो आदमी की चाल बदल जाती है.
माला फेरत जुग गया, गया न मन का फेर, कर का मनका डारि दे, मन का मनका फेर. कहावत उन लोगों के लिए है जो दिखाने के लिए माला फेरते हैं पर उन का मन प्रपंचों में लगा रहता है. उनसे कहा गया है की माला को छोड़ो और अपने मन को प्रपंचों से हटा कर भगवान में लगाओ. इसी प्रकार का एक दोहा और भी है – माला तो कर में फिरे जीभ फिरे मुख मांहि, मनुआ तो चंहु दिसि फिरे ये तो सुमिरन नांहि.
माला फेरूँ, किस को घेरूँ. ढोंगी साधु के लिए जो माला फेरते समय हिसाब लगाता रहता है कि किसे घेरा जाए.
मालिक मालिक एक से. जैसे मालिक लोग मिल कर नौकरों की बेबकूफियों की बातें करते हैं वैसे ही नौकर भी जब आपस में मिलते हैं तो अपने मालिकों की बेबकूफियों और ज्यादतियों की चर्चा करते हैं.
माली आवत देख के, कलियाँ करें पुकार, फूले-फूले चुन लिए, काल्ह हमारी बार. माली को आता देख कर कलियाँ डर रही हैं कि आज यह फूल चुन रहा है, कल हमारी बारी आएगी. मनुष्य को सावधान करने के लिए.
माली के घर बकरी बलाय, जुलाहे के घर वानर बलाय. माली अगर बकरी पालेगा तो वह उसकी सारी पौध खा जाएगी. जुलाहे के घर में बन्दर करघे को तोड़ फोड़ देगा.
माली चाहे बरसना, धोबी चाहे धूप, साहू चाहे बोलना, चोर चाहे चूप. हर व्यक्ति यह चाहता है कि दुनिया का हर काम उसकी सुविधा के अनुसार होना चाहिए.
माली सींचे नौ घड़ा, रुत आवे फल होय. माली चाहे पेड़ में नौ घड़े पानी डाल दे, फल ऋतु आने पर ही लगेगा. प्रयत्न चाहे कितना भी करो, समय आने पर ही कार्य होता है (धीरे धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय).
माले मुफ्त, दिल बेरहम. मुफ्त के माल को आदमी बेरहमी से खर्च करता है.
माहे गेहूँ, जेठ गुड़, भादों मास कपास, बहू मायके, धी घरै, राखे होय बिनास. (बुन्देलखंडी कहावत) माघ के महीने में गेहूँ, जेठ में गुड़ और भादों में कपास घर में रखने से हानि होती है. इसी प्रकार बहू को मायके में रखने और बेटी को घर में रखने से हानि होती है.
मिजाज बादशाह का, औकात भड़भूंजे की. भड़भूंजा – भाड़ भूनने वाला. हैसियत कुछ नहीं दिमाग आसमान पर.
मिट्टी की ढांड़, लोहे की किवाड़. बेतुका काम. मिट्टी की दीवारों में लोहे का किवाड़ लगाने से क्या लाभ होगा.
मिट्टी की दीवार को गिरते देर नहीं लगती. कमजोर व्यापार और कमजोर संबंध टूटते देर नहीं लगती.
मिट्टी के माधो. जो किसी काम के न हों.
मित्र का बैरी बैरी, बैरी का बैरी मित्र. जो हमारे मित्र का दुश्मन है वह हमारा भी दुश्मन हुआ और जो हमारे शत्रु का शत्रु है वह हमारे काम आ सकता है इसलिए हमारे मित्र के समान है.
मित्र को मिलाप अति आनंद को कंद है. बिछड़े हुए मित्र से मिलना दुनिया के सबसे बड़े सुखों में से एक है.
मित्र वही जो विपत्ति में काम आए. वैसे तो हर व्यक्ति के बहुत से मित्र होते हैं पर उनमें से सच्चा मित्र कौन है इसकी पहचान तभी होती है जब कोई विपत्ति आती है.
मियाँ का मैल ईद में उतरे. मुसलमानों के कम नहाने पर व्यंग्य.
मियाँ की जूती, मियाँ के सर. किसी की खुद की चीज़ से उसी को नुकसान पहुँचाना.
मियाँ की दाढ़ी तावीजों में गई (मियां की दाढ़ी वाहवाही में गई) (मुल्ला की दाढ़ी तबर्रुक में गई). कहीं कहीं रिवाज़ होता है कि मुल्ला लोग अपनी दाढ़ी का बाल तावीज़ में रख कर देते हैं. अपनी तारीफ़ करवाने के चक्कर में मुल्ला जी की पूरी दाढ़ी ही नुच गई. सन्दर्भ कथा – कहीं एक मौलवी साहब रहते थे. वे लड़कों को पढ़ाया करते थे. एक बार वे घर गये तो उन्होंने अपनी जगह एक दूसरे मौलवी को रख दिया. जब वे लौटकर आये, तब देखा कि नये मौलवी ने चालाकी से गाँव के लोगों को अपने वश में कर लिया है. उनसे किसी ने बात तक नहीं की. उन्होंने बुद्धिमानी से काम लेने की सोची. वे वहीं रहने लगे और नये मौलवी की तारीफ करनी शुरू की.
नये गैलवी फूलकर कुप्पा होने लगे. एक दिन जुमा के नमाज के लिए गाँव भर के मुसलमान एकत्र थे. पुराने मौलवी नए मौलवी की तारीफ़ में कहने लगे – आपने अपनी दाढ़ी का एक बाल जिसे दे दिया, वह मालामाल हो गया, रोगी स्वस्थ हो गया आदि. पूरी प्रशंसा के बाद पुराने मौलवी ने नये मौलवी से अपने लिए भी एक बाल माँगा. नये मौलवी तो प्रशंसा सुनकर फूले ही थे. झट उन्होंने अपनी दाढ़ी से नोंचकर एक बाल दे दिया. यह देख अन्य व्यक्ति भी उनसे एक-एक बाल मांगने लगे. अब मौलवी साहब चक्कर में पड़ गए. इतने में सभी उनपर टूट पड़े और एक-एक बाल कर के उनकी समूची दाढ़ी नोंच ली. वे बेचारे उसी रात को वहाँ से भाग गये.
मियाँ घर नहीं बीवी को डर नहीं. पति बाहर गया हो तो पत्नियाँ आज़ाद हो जाती हैं. इस कहावत को इस तरह भी बोलते हैं – सैयां गए परदेस तो अब डर काहे का. (यह पुराने जमाने की बात है जब पत्नियां पतियों से डरती थीं. अब कुछ लोग इस कहावत को इस तरह कहते हैं – बीवी घर नहीं मियाँ को डर नहीं).
मियाँ तो छोड़त बीबी नहीं छोड़तीं. जब कोई आदमी किसी को छोड़ना चाहे पर दूसरा गले पड़ जाये तो.
मियाँ नाक काटने को फिरें, बीवी कहे नथ गढ़ा दो. मियाँ इतने गुस्से में हैं कि बीवी की नाक काटने पर उतारू हैं और बीवी कह रही है कि मेरे लिए नाक की नथ बनवा दो. बिना वक्त की नजाकत देखे कोई बात कहना.
मियाँ फिरें लाल गुलाल, बीबी के हैं बुरे हवाल. जहाँ पति सजधज के छैला बने घूमते हों और पत्नी घर के कामों में ही पिसती रहती हो.
मियाँ बीवी राजी तो क्या करेगा काजी. मुगल शासन काल में शहर में काजी की एक पोस्ट हुआ करती थी जो उस समय का मजिस्ट्रेट होता था. शादी करवाना, तलाक करवाना, झगड़े निपटाना आदि उसके काम हुआ करते थे. जब मियां बीवी आपस में राजी हो तो काजी का क्या काम. जब किसी झगड़े में शामिल दो लोग आपस में सुलह कर ले तो किसी न्यायाधीश या मध्यस्थ की क्या आवश्यकता? सन्दर्भ कथा – एक जाट और मियां दोस्त थे. मियां की शादी थी. जाट भी उसमे शरीक होने के लिए पहुँचा. लेकिन निकाह करवाने वाला काजी नाराज होने के कारण नही आया. तब जाट ने कहा कि इस में क्या बड़ी बात है. निकाह मैं करवा देता हूं. जाट ने मियां और बीवी को पास-पास विठलाया और बोला- मियाँ बीबी राजी, के करैगो काजी, हांडी में दही, निकाह होवै सही.
मियाँ भए गोर जोग, बीवी लाए घर योग. गोर – कब्र. मियाँ बहुत बूढ़े हो गए हैं (कब्र में जाने योग्य), और बीबी लाये हैं जवान (गृहस्थी योग्य). कोई अधिक आयु का व्यक्ति कम आयु की स्त्री से विवाह करे तो.
मियाँ मरें, न रोजे टरें. गले पड़ी मुसीबत के लिए. न मियाँ मरने वाले हैं न ही रोजे टलने वाले हैं.
मियाँ रिसाने मुर्गी मारी. मियाँ जी को बहुत गुस्सा आया तो और तो किसी का कुछ नहीं बिगाड़ पाए, मुर्गी मार दी. कमजोर पर गुस्सा निकालना.
मियाँ रोते क्यूँ हो, क्या करें सूरत ही ऐसी है. कुछ लोग शक्ल से ऐसे लगते हैं जैसे अभी रो पड़ेंगे. ऐसे ही लोगों के लिए कहावत.
मिरग बांदरा तीतर मोर, ये चारों खेती के चोर. हिरन, बन्दर, तीतर और मोर ये चारों खेत को हानि पहुँचाते हैं.
मिरजापुरी बगल में छुरी, खाते पीते नीयत बुरी. मिर्जापुर में रहने वालों पर कही गई कहावत. इस तरह की कहावतें कहाँ से उत्पन्न होती हैं यह पता लगाना कठिन है.
मिल गए तो राम राम. वैसे याद नहीं करते हैं, सामने दिख गए तो राम राम कर ली. दिखावे की दोस्ती.
मिल जुल कर रहो मगर हिसाब साफ़ रखो. दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ मिल जुल कर रहना चाहिए, पर पैसे खर्चे का हिसाब साफ़ रखना चाहिए. हिसाब में गड़बड़ी होने से गाँठ पड़ जाती है.
मिलन भलो बिछुड़न बुरो, मत मिल बिछड़ो कोय. अपने प्रिय व्यक्ति से मिलना जितना अच्छा लगता है उससे अधिक बुरा बिछड़ना लगता है.
मिलन लगे दूध भात, बिसर गए माई बाप. जब व्यक्ति को सब सुख सुविधाएं मिलने लगती हैं तो वह माँ बाप को भूल जाता है.
मिलें न सूखी, चुपड़ के मांगें. सूखी रोटी की जुगाड़ नहीं हो रही है और घर वाले चुपड़ के मांग रहे हैं.
मिलेंगे ऊत बजेंगे जूत. मूर्ख लोग मिलते हैं तो जूतम पैजार करते हैं.
मिस्सों से पेट भरता है किस्सों से नहीं. पेट अनाज से भरता है कोरी बातों से नहीं. इंग्लिश में कहावत है – Give me some francs, not thanks.
मीठा और भर कठौती. एक तो मन माफिक चीज़ और वह भी खूब सारी. रूपान्तर – चुपड़ी और दो दो.
मीठा खातिर जूता खाय. छोटे लाभ के लिए बड़ा अपमान झेलना. रूपान्तर – मीठा खातिर झूठा खाय.
मीठा निवाला और कड़वे बोल कोई नहीं भूलता. जिस प्रकार आदमी स्वादिष्ट मिठाई का स्वाद नहीं भूलता उसी प्रकार वह कड़वे बोल की कड़वाहट भी कभी नहीं भूलता. इसलिए किसी से कड़वे बोल नहीं बोलना चाहिए.
मीठा मीठा हप्प, कड़वा कड़वा थू. हम में से अधिकतर लोग केवल अच्छा अच्छा ही प्राप्त करना चाहते हैं, जो हमें बुरा लगता है उससे दूर भागते हैं. किसी व्यक्ति में या किसी काम में अच्छाइयों के साथ कुछ बुराइयाँ भी हैं तो हमें उन्हें भी सहन करना सीखना चाहिए.
मीठी छुरी, जहर की भरी. जो लोग बोलते तो मीठा हैं पर उन के मन में कपट होता है, उन के लिए.
मीठी बातन पेट नहिं भरत. मीठी बातों से पेट नहीं भरता.
मीठी मीठी बात से बनते बिगड़े काम. मीठी बोली से बिगड़ी हुई बात बन जाती है.
मीठे के लिए जूठा खाए. अल्पकालिक लाभ के लिए जो गलत काम करे उस के लिए कहा गया है (विशेषकर वैश्यागामियों के लिए).
मीत बनाए न बनें, बैरी, सिंह और नाग, जैसे कभी न हो सकें एक ठौर जल आग. शत्रु, सिंह और सांप प्रयास करने पर भी मित्र नहीं बन सकते (जैसे आग और पानी एक साथ नहीं रह सकते).
मीर साहब की जात आली है, मुँह चिकना है पेट खाली है. जो लोग बड़े लोगों की जमात में शामिल होने के लिए दिखावा बहुत करते हैं पर अंदर से खाली होते हैं, उनके लिए.
मुँड़ी हुई भेड़ की तरह अमीर. आपसी हास्य व्यंग्य में इस तरह की विरोधाभासी बात बोली जाती है. किसी दोस्त ने दूसरे से कहा कि तुम बहुत पैसे वाले हो, तो वह मजाक में कहता है कि हाँ उतना ही जितनी मुंडी हुई भेड़.
मुँह आया कौर भी अपनो नहिं होत. मुँह तक आया कौर भी कभी-कभी हाथ से छिन जाता है.
मुँह काला, वक्त उजाला. नीच परन्तु अच्छे भाग्य वाला व्यक्ति, जिसका समय अच्छा चल रहा हो.
मुँह के चिकने, पेट के काले. जो लोग ऊपर से मीठी मीठी बातें करते हैं और अंदर से जहर से भरे होते हैं उनके लिए कही जाने वाली कहावत. रूपान्तर – मुँह मीठी और पेट कसाइन.
मुँह खाए, आँख लजाए (खाए जीभ, लजाए आँख). किसी से एहसान लेने के बाद व्यक्ति को थोड़ा लज्जित होना पड़ता है. कोई हाकिम जिस से रिश्वत ले लेता है उस से नज़र बचाता है.
मुँह खाय पेट ललचाय. किसी को खाता देख कर जब कोई सगा संबंधी ललचा रहा हो तो.
मुँह गंधाय मांग सेंदुर देय. फूहड़ स्त्रियों पर व्यंग्य. मुँह से दुर्गन्ध आ रही है और श्रृंगार करे घूम रही हैं.
मुँह देख कर तिलक. जैसी आदमी की हैसियत होती है वैसा ही उसका सत्कार होता है.
मुँह देख कर बीड़ा और कमर देखकर पीढ़ा. आदमी की हैसियत देख कर ही उस का मान सम्मान किया जाता है. असभ्य भाषा में रूपान्तर – मुंह देख के बीड़ा और चूतड़ देख के पीढ़ा. बीड़ा–पान, पीढ़ा–सींकों का बना हुआ या बुना हुआ छोटा स्टूल. (देखिए परिशिष्ट)
मुँह देख बात, सर देख सलाम. व्यक्ति की हैसियत देख कर ही बात की जाती है और सलाम किया जाता है.
मुँह देखी सब कहत (मुँह देखा व्यवहार). मुँह देखी सब कहते हैं. झूठा शिष्टाचार निभाना.
मुँह देखे की उल्फ़त. वैसे याद नहीं करते हैं, सामने दिख गए तो कुछ प्रेम भरी बात कर ली. दिखावे की दोस्ती.
मुँह धो रखो. अर्थात तुम जो चाहते हो वह नहीं हो सकता, अथवा तुम इसके योग्य नहीं.
मुँह न धोवे से ओझा कहावे. ओझागीरी करने वाले बहुत गंदे रहते हैं उन पर व्यंग्य.
मुँह पर कहे मूंछ के बाल, पीछे कहे पूंछ के बाल. ऐसा व्यक्ति जो सामने तारीफ़ करता है और पीठ पीछे गालियाँ देता है. अगली कहावत में इस का रूपान्तर कर के अलग अर्थ में प्रयोग किया गया है –
मुँह पर कहे सो मूंछ का बाल, पीछे कहे सो पूंछ का बाल. किसी की बुराई उस के मुंह पर करने वाला बहादुर होता है और पीठ पीछे बुराई करने वाला कायर. मूँछ का बाल गर्व का प्रतीक है और पूँछ का बाल लज्जा का.
मुँह पर पूत, पीछे हरामी भूत. जो लोग सामने बेटा कह कर प्रेम जताते हैं और पीठ पीछे गालियाँ देते हैं.
मुँह पर मुमानी, पीठ पीछे सूअरखानी. ऊपर वाली कहावत की तरह. सामने मुमानी (मुसलमानों में मामी को मुमानी कहते हैं) कह कर प्यार जता रहे हैं और पीठ पीछे सूअर खाने वाली कह रहे हैं (मुसलमानों में सूअर खाना हराम है इसलिए किसी को सूअर खाने वाली कहना बहुत बड़ी गाली है).
मुँह बंधा कुत्ता क्या शिकार करेगा. किसी हाकिम को अधिकार ही नहीं दोगे तो वह काम कैसे करेगा.
मुँह में आया कौर फिसल गया. हाथ में आई वस्तु निकल गयी.
मुँह में राम बगल में छुरी. देखने में धर्मात्मा और अंदर से कपटी.
मुँह रहते नाक से पानी पिये. बेतुका काम.
मुँह लगाई डोमनी, बाल बच्चों समेत आए. छोटे आदमी को थोड़ी सी तवज्जो दे दो तो सर चढ़ जाता है.
मुँह सुपारी, पेट पिटारी. (मुंह सुई, पेट कुई) (मुंह बाछी सा, पेट हाथी सा). मुँह छोटा पर पेट बड़ा. जो आदमी देखने में छोटा हो पर खाता बहुत हो. कोई हाकिम या बाबू बातें मीठी करता हो पर रिश्वत बहुत मांगता हो.
मुँह से चावल हजार खाए, नाक से एको न खाए. (भोजपुरी कहावत). जिस काम का जो कायदा होता है उसी से किया जाता है.
मुंगरिया सड़ गई तोऊ भड़ाफोड़ लायक रही. मोंगरी सड़ गयी है, फिर भी मिट्टी के बर्तन फोड़ने के लायक है. बड़ा आदमी कितना भी बिगड़ जाए, छोटों को अच्छी खासी हानि पहुँचा सकता है. मुंगरिया – लकड़ी का डंडा.
मुंगेरी लाल के हसीन सपने. कोई अयोग्य व्यक्ति बहुत बड़े बड़े सपने देखे तो.
मुंडा योगी और पिसी दवा का क्या ठीक. दोनों को पहचानना मुश्किल है.
मुआ घोड़ा भी कहीं घास खाता है. मरा हुआ घोड़ा घास नहीं खाता. पितरों को श्राद्ध करने पर व्यंग्य. रिटायर्ड रिश्वतखोर अफसरों पर भी व्यंग्य.
मुए और मूरख कभी न बदलें. जो मर चुका है वह अपने विचार नहीं बदल सकता. इसी प्रकार मूर्ख लोग भी अपने विचारों पर अड़े रहते हैं.
मुए शेर से जीती बिल्ली भली. मरे हुए शेर से जीवित बिल्ली अच्छी है. किसी रिटायर्ड बड़े अफ़सर के मुकाबले नौकरी कर रहा क्लर्क अधिक काम का है.
मुए सांप पर कीड़ियों का हमला. सांप जब मर जाता है तो चींटियां उस पर हमला कर देती हैं. जब व्यक्ति के पास धन या सत्ता की शक्तियाँ नहीं रहतीं तो छोटे से छोटा आदमी भी उस पर हमलावर हो जाता है.
मुकदमा और पीपल का लासा, लग जाएँ तो जल्दी न छूटें. लासा – पेड़ का चिपचिपा स्राव. अर्थ स्पष्ट है.
मुकद्दर किसी की जागीर नहीं. भाग्य किसी को विरासत में नहीं मिल सकता.
मुकुत माल बानर लिये, वेद लिये अज्ञान, परम सुंदरी जोगी लिये, कायर लिये कमान. बंदर के पास मोतियों की माला, अज्ञानी के पास वेद, योगी के पास परम सुन्दरी और कायर के पास धनुष होना बेकार है.
मुख दरसावे दुख. इंसान का दुख चेहरे पर प्रकट हो जाता है.
मुद्दई लाख बुरा चाहे तो क्या होता है, वही होता है जो मंजूरे खुदा होता है. इंसान लाख किसी का बुरा चाहे, होगा वही जो ईश्वर की इच्छा होगी. आम तौर पर केवल बाद वाला हिस्सा ही बोला जाता है.
मुद्दई सुस्त गवाह चुस्त. मुद्दई – मुकदमा करने वाला. किसी परेशानी का सब से ज्यादा असर जिस पर पड़ रहा है वह इतनी दौड़ भाग नहीं कर रहा है, जिनसे सहायता मांगी गई है वे ज्यादा परेशान हैं.
मुफलिस का चिराग रोशन नहीं होता. गरीब के पास इतने साधन नहीं होते कि वह सामाजिक कार्य कर सके.
मुफलिस से माँगना हराम है. गरीब से कुछ नहीं माँगना चाहिए.
मुफलिसी सब बहार खोती है, मर्द का ऐतबार खोती है. मुफलिसी – गरीबी. 1.बहार आती है तो गरीब को उससे क्या लाभ. 2. गरीब आदमी पर कोई विश्वास भी नहीं करता.
मुफ्त का चंदन घिस रे लाला, तू भी घिस, घरवालों को भी बुला ला. कोई चीज मुफ्त में मिल रही हो तो सब उस का दुरूपयोग करते हैं.
मुफ्त का सिरका, शहद से मीठा. मुफ्त की चीज़ सदैव अच्छी लगती है.
मुफ्त की गंगा में हराम के गोते. मुफ्त में मिली चीज़ का मज़ा सब लूटना चाहते हैं.
मुफ्त की मिर्ची है तो क्या आँखों में लगाऊं. कोई चीज मुफ्त में मिल गई है तो उससे नुकसान तो नहीं करेंगे.
मुफ्त की शराब काजी को भी रवां है. काजी जी लाख सब को समझाएँ कि शराब बुरी चीज़ है, पर जब मुफ्त में मिल जाए तो खुद भी हाथ साफ़ करने से नहीं चूकते.
मुफ्त में निकले काम तो काहे को दीजे दाम. जहाँ मुफ्त में काम बन रहा हो वहां पैसे खर्च करना मूर्खता ही कहलाएगी.
मुरगी की अजान कौन सुनता है. गरीब की आवाज़ कोई नहीं सुनता.
मुरगे की एक ही टांग थी. जब कोई आदमी सरासर झूठ बोलकर उसे सही साबित करने की कोशिश करे तब. सन्दर्भ कथा – कोई बावर्ची अपने मालिक के लिए खाना पकाकर लाया. उसमें मुर्गे की एक ही टांग थी. एक टांग बावर्ची ने चुपचाप खा ली थी. मालिक ने पूछा-इसकी दूसरी टांग कहां गई. बावर्ची ने जवाब दिया, हुजूर, किसी किसी मुर्गे के सिर्फ एक ही टांग होती है. संयोगवश किसी दिन एक मुर्गा कूड़े के ढेर पर एक टांग से खड़ा था. बावर्ची ने मुर्गे की ओर इशारा करके कहा, हुजूर, एक टांग के मुर्गे को देखिए. मालिक ने ताली बजाई, तो मुर्गे ने झट दूसरा पैर जमीन पर रख दिया. तो उसने बावर्ची से कहा, देख, इसके दोनों पैर हैं कि एक. इस पर बाबर्ची ने जवाब दिया, हुजूर, ताली बजाने से दो पैर दीख पड़े. अगर उस समय भी आपने ताली बजाई होती, तो दूसरा पैर भी सामने आ जाता.
मुरदे के साथ कांधिये नहीं जलते. कांधिये – अर्थी को कंधा देने वाले. कोई मरने वाले का कितना भी सगा सम्बंधी क्यों न हो, चिता पर साथ कोई नहीं चढ़ता.
मुरदे पर सौ मन मिट्टी तो एक मन और सही. जहाँ किसी पर बहुत सारी मुसीबतें टूट पड़ी हों वहाँ एक और आ जाएगी तो क्या फर्क पड़ेगा.
मुरव्वत में मातियन गाभिन हो गई. मातियन – नाइन. एक नाई काफी लम्बे समय के लिए परदेस गया. लौट के आया तो देखा कि पत्नी गर्भवती है. उसने पूछा कि यह कैसे हुआ. तो नाइन बोली कि वह संकोच में मना नहीं कर पाई. यदि कोई संकोच के कारण बहुत बड़ा नुकसान उठाए तो यह कहावत कही जाती है. 164
मुर्गा बांग न देगा तो क्या सवेरा न होगा. मुर्गे को एक बार यह अहंकार हो गया कि उसके बांग देने से ही सूरज उगता है. ऐसे ही कुछ लोग यह समझते हैं कि उनके बिना कोई काम नहीं हो सकता. ऐसे लोगों को हंसी हंसी में उनकी औकात बताने के लिए यह कहावत कही जाती है.
मुर्गी का घर घूर, वहीं खाय वहीं हगे. घूर – जहां पर कूड़ा डाला जाता है. मुर्गी घूरे पर रहती है, वहीं दाने बीनकर खाती है और वहीं टट्टी भी करती है. अपने चारों ओर गन्दगी बना कर रखने वालों पर व्यंग्य.
मुर्गी की दौड़ घूरे तक. छोटी सोच वाले लोग घटिया काम ही कर सकते हैं.
मुर्गी की नजर में हीरे से अच्छा घास का कीड़ा. हीरा चाहे कितना भी कीमती क्यों न हो मुर्गी के लिए उसकी कोई कीमत नहीं है. कोई चीज़ किसी के लिए मूल्यवान हो सकती है पर दूसरे के लिए बेकार भी हो सकती है.
मुर्गी को तकुआ का घाव ही बहुत है. छोटे आदमी को छोटा मोटा नुकसान भी बहुत बड़ा लगता है. तकुआ – चरखे से लगी लोहे की सलाई जिस पर सूत लपेटते हैं.
मुर्गी जान से गई, मुल्ला को मजा नहीं आया. जब किसी बड़े को खुश करने के लिए छोटा आदमी बहुत नुकसान उठाए और बड़ा खुश न हो.
मुर्गी बीमार और भैंस की बलि. छोटी सी परेशानी को हल करने के लिए बहुत महंगा उपाय करना.
मुर्गी रहे महमूद के, अंडे देवे मसूद के. खाए किसी और का, लाभ किसी और को पहुँचाए. जैसे देश में रहने वाले कुछ कृतघ्न लोग खाते यहाँ का हैं और लाभ पड़ोसी देशों को पहुँचाते हैं.
मुर्गे को कलगी का गुमान. अपने रूप पर वही लोग घमंड करते हैं जो मुर्गे की भांति छोटी सोच वाले होते हैं.
मुर्गों की लड़ाई में कबूतरों को फायदा. दो शक्तिशाली लोगों की लड़ाई में तीसरे को फायदा होता है (वह कमजोर हो तब भी).
मुर्दे को कफन और देना पड़ता है. घर के किसी व्यक्ति की मृत्यु होना अपने आप में इतना बड़ा नुकसान है, ऊपर से उसके अंतिम संस्कार और मृत्यु भोज में और खर्च करना पड़ता है.
मुर्दे को बैठ कर रोते हैं, रोजगार को खड़े हो कर. अच्छा काम हो या बुरा, सामाजिक हो या असामाजिक, समाज में हर काम को करने का एक ढंग होता है.
मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक. छोटी सोच वाले लोग छोटा ही सोच सकते हैं (छोटा काम ही कर सकते हैं).
मुसलमान भी हुए तो जुलाहे के घर. किसी बड़े आदमी के घर होते तो खूब गोश्त बिरयानी उड़ाते. कोई गलत काम भी किया और उस की एवज़ में भरपूर आनन्द भी नहीं उठाया.
मुसल्ला पसार, बगल में यार. मुसल्ला – नमाज पढने वाली दरी. नमाज पढ़ने जा रहे हैं और बगल में यार (प्रेमिका या वैश्या) को लिए हैं. ढोंगी नमाजी.
मुसाफिर प्यासा क्यों, गदहा उदासा क्यों, लोटा न था. अमीर खुसरो की खास तरह की पहेली नुमा कहावत जिसमें दो सवालों का एक ही उत्तर होता है. पहले के जमाने में लोग सफर में लोटा और डोरी साथ रखते थे जिससे कुँए से पानी निकाल कर पी सकें. मुसाफिर के पास लोटा नहीं था इसलिए प्यासा रह गया. गधा कुछ देर जमीन में लोटता है तभी उसका मन खुश होता है. गधा उदास क्यों था क्योंकि उसे लोटने को नहीं मिला था.
मुसीबत ढूँढने वाले को मुसीबत मिल ही जाती है. उन लोगों पर व्यंग्य जो बैठे बिठाए मुसीबत मोल लेते हैं.
मुसीबत में काम आवे सो ही सगा. अर्थ स्पष्ट है.
मुसीबत सब पे आती है, भाग्यवान के मांस पर बीतती है, अभागे के हाड़ पर बीतती है. मांस पर बीतने का अर्थ है ऐसी परेशानी जो ठीक हो जाए (बीमारी में मांस सूख जाएगा तो ठीक होने के बाद दोबारा आ जाएगा), हाड़ पर बीतने का अर्थ है स्थाई नुकसान (हड्डी चली जाएगी तो दोबारा नहीं आ सकती).
मुहर्रम की पैदाइश. मनहूस आदमी.
मूँछ उखाड़े मुर्दा हल्का न होय. बहुत छोटा सा नुकसान पहुँचा कर किसी बड़े आदमी का कुछ नहीं बिगाड़ लोगे.
मूँछ बिचारी क्या करे जब हाथ न फेरा जाए. मूंछ रखने का फायदा तभी है जब उस पर हाथ फेरा जाए. मूँछ पर हाथ फेरने को मर्दानगी का प्रतीक माना गया है.
मूँछ रहे खड़ी, चाहे छोटी हो या बड़ी. खड़ी मूँछ को मर्दानगी का प्रतीक माना गया है.
मूँछें की मूँछें और छलनी की छलनी. बड़ी मूंछ वालों का मजाक उड़ाने के लिए कहते हैं. दूध पीते समय दूध की मलाई मूंछों में अटक जाती है. इसलिए मूँछ को छलनी कहा गया है.
मूंग और मोठ में कौन बड़ा कौन छोटा. व्यर्थ की बहस.
मूंगफली ऊपर पानी पी लो खांसी हो जाएगी, काने से ब्याह कर लो हांसी हो जाएगी. किसी लड़की की काने से शादी हो जाए तो वह सबकी हँसी का पात्र बन जाती है. तुक मिलाने के लिए मूंगफली के ऊपर पानी का जुमला जोड़ दिया गया है.
मूंड़ कटाए बाल की रच्छा. बालों की रक्षा करने के लिए सर कटवा लेना. छोटे नुकसान से बचने के लिए बहुत बड़ा नुकसान उठाना.
मूंड़ न सही कपार सही. घुमा फिर कर वही बात कहना.
मूंड़ मुंड़ाए सिगरे गाँव, कौन कौन का लीजे नाँव. जहां सभी लोग एक से बढ़ कर एक हों.
मूंड़ मुंड़ाए हरि मिलें तो सब ही लेंय मुंड़ाय, बार बार के मूंड़ने, भेड़ न बैकुंठ जाय. कबीर दास ने कहा है कि सर गंजा कराने से प्रभु नहीं मिलते. यदि मिलते होते तो सबसे पहले भेड़ बैकुंठ जाती.
मूंड़ मुंड़ाए, जटा रखाए, नगन फिरें ज्यों भैंसा, खलड़ी ऊपर राख लगाए, मन जैसे को तैसा. ढोंगी साधुओं के लिए. मूंछ मुंडाए हैं, जटाएं बढ़ाए हैं, भैंसे की तरह नंगे घूम रहे हैं, तन पर राख मल रखी है, पर मन शुद्ध नहीं है.
मूंड़ मुड़ाये तीन गुन गई माथ की खाज, बाबा होय के जग फिरे खाय पेट भर नाज. सर मुंडाने के तीन लाभ हैं. सिर की खुजली चली जाती है, साधु बन सभी स्थान पर आदर मिलता है और पेट भर खाने को मिलता है.
मूंड़ मुड़ाये तीन नफा, गर्दन मोटी सिर सफा, कंघी, सीसा तेल बचा. सर मुंडाने वालों पर व्यंग्य.
मूजी को टरकाइए, हाथ पाँव बचाइये. (मूजी – दुष्ट और धूर्त व्यक्ति). कोई दुष्ट व्यक्ति यदि आप के पास किसी काम से आये या आप की सहायता करने का प्रस्ताव भी रखे तो उसे टाल देना चाहिए. धूर्त व्यक्ति हमेशा आप को नुकसान पहुँचाएगा.
मूजी को नमाज छोड़ के मारे. मूजी – दुष्ट, कंजूस और धूर्त. ऐसे व्यक्ति को जरूरी से जरूरी काम छोड़ कर पीटना चाहिए.
मूतते पे छदाम मिला, पौन पैसा कम ही सही. (छदाम – पैसे का चौथाई हिस्सा) बिना प्रयास किए छोटी से छोटी चीज़ भी मिल जाए तो नफा ही है.
मूरख का बल मौन. मूर्ख व्यक्ति की सबसे बड़ी ताकत उस के चुप रहने में ही है (बोलते ही उस की पोल खुल जाती है).
मूरख का माल खुशामद से खाइए. मूर्ख व्यक्ति की प्रशंसा करो तो वह बड़ा प्रसन्न होता है. उसकी प्रशंसा कर के उसे बेवकूफ बनाया जा सकता है और उससे जो चाहे कराया जा सकता है. सन्दर्भ कथा – एक कौवे को कहीं से रोटी का एक बड़ा सा टुकड़ा मिल गया. वह उसे चोंच में दबा कर कर पेड़ की डाल पर जा बैठा. एक लोमड़ी ने उधर से जाते हुए कौवे की चोंच में रोटी का टुकड़ा देखा तो उस के मुँह में पानी आ गया. वह उसे हथियाने की जुगाड़ सोचने लगी. अचानक उसे एक तरकीब सूझी. पेड़ के नीचे आ कर वह कौवे से बोली, कौवे भाई तुम कितने अच्छे गायक हो. तुम्हारी मधुर आवाज सुने हुए कितने दिन हो गए. जरा एक अच्छा सा गाना सुनाओ न. कौवा अपनी प्रशंसा सुन कर ख़ुशी से फूल उठा. उसने जैसे ही गाने के लिए मुँह खोला, रोटी का टुकड़ा नीचे गिर गया. इससे पहले कि कौवा कुछ समझ पाता, लोमड़ी वह टुकड़ा ले कर भाग गई. तभी से यह कहावत बनी. कहीं कहीं बोलते हैं – फूहड़ का माल सराह सराह खाइए.
मूरख की सारी रैन, छैल की एक घड़ी (मूरख की सारी रैन, सयाने की एक घड़ी). मूर्ख व्यक्ति बहुत समय लगा कर भी जो काम नहीं कर सकता उसी काम को चंट चालाक या बुद्धिमान व्यक्ति तुरंत कर लेता है.
मूरख को दियो पान, वो लगो रोटी संग खान. मूर्ख व्यक्ति को पान खाने को दिया तो वह उसे सब्जी की तरह से रोटी के साथ खाने लगा. कोई व्यक्ति मूर्खतावश किसी दी हुई चीज़ का गलत प्रयोग करे तो.
मूरख को समझाय, ज्ञान गाँठ को जाय. मूर्ख को समझाने की कोशिश में अपना ज्ञान कम होता है.
मूरख भीजे गेंवड़े. गेंवड़ा – गाँव के बाहर का हिस्सा. जो व्यक्ति गाँव के पास पहुँच कर भी बाहर खड़ा भीग रहा हो वह मूर्ख ही माना जाएगा.
मूरख मारे लट्ठ से ऊपर ही दरसाए, ज्ञानी मारे ज्ञान से रोम रोम भिद जाए. किसी को दंड देना हो तो मूर्ख व्यक्ति तो लाठी से मारता है जिसकी चोट केवल शरीर को लगती है, पर ज्ञानी आदमी आपके अंतर्मन को चोट पहुंचाने वाली बात कहता है.
मूरख मिले मौन हो जईयो, ऊसर बीज न बईयो जी (मूर्खों के बीच मौन रह जाना अच्छा है). जिस प्रकार बंजर जमीन में बीज नहीं बोना चाहिए उसी प्रकार मूर्ख व्यक्ति को ज्ञान की बात समझाने का प्रयास नहीं करना चाहिए. इंग्लिश में कहावत है – You can never counsel a fool. सन्दर्भ कथा – गधे ने बाघ से कहा कि घास नीले रंग की होती है. बाघ ने कहा नहीं घास का रंग हरा है. दोनों के बीच बहस हो गई. इस विवाद को समाप्त करने के लिए, दोनों जंगल के राजा शेर के पास गए. बाघ के कुछ कहने से पहले ही गधा चिल्लाने लगा. महाराज यह बाघ नीली घास को हरी बता रहा है. इसे ठीक से इसकी सजा दी जाए. शेर ने तुरंत घोषणा की, बाघ को एक हफ्ते की जेल होगी. बाघ शेर के पास गया और पूछा, क्यों महाराज! घास हरी है, क्या यह सही नहीं है. शेर ने कहा, हाँ घास हरी है. मगर तुम को सज़ा उस मूर्ख गधे के साथ बहस करने के लिये दी गई हैं.
मूरख मूढ़ गंवार को सीख न दीजो कोय, कूकुर वर्गी पून्छड़ी कभी न सीधी होय. जैसे कुत्ते की पूँछ कभी सीधी नहीं हो सकती वैसे ही मूर्ख व्यक्ति लाख सीख देने से भी बुद्धिमान नहीं बन सकता.
मूरख वैद से मौत भली. मूर्ख वैद से इलाज कराने में जान तो जाएगी ही और धन भी जाएगा. संस्कृत में इस प्रकार से कहा गया है – वैद्यराज नमस्तुभ्यं, यमराजस्य सहोदर:, यम हरति प्राणानि, त्वं प्राण धनानि च. हे वैद्यराज! आपको नमस्कार. आप यमराज के भाई हैं. वे प्राण हरते हैं पर आप प्राण के साथ धन भी हर लेते हैं.
मूरख से दुख रोओ, रोटा से घी खोओ. मूर्ख के सामने अपना दुखड़ा रोना उसी तरह व्यर्थ है जैसे मोटे अनाज की रोटी के साथ घी बरबाद करना.
मूर्ख अपने को अकलमंद समझते हैं और अकलमंद अपने को अज्ञानी. मूर्ख व्यक्ति कभी अपने को मूर्ख मानने को तैयार नहीं होते, वे समझते हैं कि उन्हें सब कुछ आता है. जो सही मानों में समझदार हैं वे यह समझते हैं कि दुनिया में जानने के लिए बहुत कुछ है जिसमें से वे बहुत कम जान पाए हैं. उदाहरण के तौर पर जो लोग धर्म की एक ही पुस्तक पढ़ते हैं वे अपने को सर्वज्ञ समझते हैं जबकि भारतीय धर्म दर्शन के सैकड़ों ग्रन्थों का अध्ययन करने वाला विद्वान अपने को अज्ञानी मानता है.
मूर्ख के तरकस में तीर नहीं टिकते. क्योंकि मूर्ख व्यक्ति अपने संसाधनों को ठीक से प्रयोग नहीं करता. तरकश के चित्र के लिए देखिये परिशिष्ट.
मूर्ख को कभी मूर्ख न कहो क्योंकि वह मूर्ख है. एक बार को बुद्धिमान व्यक्ति को मूर्ख कहने पर वह बुरा नहीं मानेगा पर अगर आपने मूर्ख को उस के मुँह पर मूर्ख बोल दिया तो शामत आई जान लो.
मूर्ख होने से कायर होना बेहतर. मूर्ख होना बुरा है पर कायर होना उससे भी बुरा है.
मूर्खों के पटाखे दीवाली से पहले ही ख़तम हो जाते हैं. जो लोग सही से खर्च करना नहीं जानते वे समय से पहले ही अपनी सारी सम्पत्ति गंवा देते हैं और जरूरत के वक्त खाली हाथ होते हैं.
मूर्खों के बीच अकल की बात करना मूर्खता. मूर्ख तो मूर्ख होते ही हैं, उन से बड़ा मूर्ख वह है जो उन के बीच अक्ल की बात करे.
मूल पलटे तो नाचे साहू. किसी व्यापार में लगा हुआ या उधार पर दिया हुआ मूल धन भी लौट कर आ जाए तो बनिया बहुत खुश होता है.
मूल से ब्याज प्यारा होता है. 1. अपनी पूँजी (मूलधन) तो सब को प्यारी होती ही है उस पर मिलने वाला ब्याज और अधिक प्यारा होता है. 2. अपनी सन्तान से अधिक अपने नाती पोते प्यारे होते हैं.
मूली को अपने ही पत्ते भारी. जो व्यक्ति स्वयं ही जिम्मेदारियों के बोझ से दबा हुआ हो वह किसी की सहायता कैसे कर सकता है.
मूस मोटइहें लोढ़ा हुइहें, न हाथी न घोड़ा हुइहें. चूहा कितना भी मोटा क्यों न हो जाए, हाथी या घोड़ा नहीं बन सकता. कोई ओछा आदमी धन या अधिकार पा कर महान नहीं बन सकता.
मूसर से मूंड़ मारे. मूर्ख के साथ समय नष्ट करने वाले व्यक्ति के लिए.
मूसर होता तो पाहुना क्या रिस के चला जाता. मूसल होता तो क्या मेहमान क्या नाराज होकर चला जाता. घर में जब कोई वस्तु न हो और उसके लिए किसी को इन्कार करना पड़े तब विनोद में प्रयोग करते हैं.
मूसे और बिलार में कबहुं प्रीत न होय. चूहे और बिल्ली में कभी प्रेम नहीं हो सकता. शोषक और शोषित में कभी मधुर संबंध नहीं हो सकते.
मूसे ने पाई खाकी कत्तर, तो वो थानेदार बन बैठा. ओछी बुद्धि के आदमी को छोटी सी चीज़ मिल जाए तो अपने आप को बहुत बड़ा समझने लगता है.
मृत्यु सारे दुखों का अंत है. अर्थ स्पष्ट है. इंग्लिश में कहावत है – Death is the grand leveler.
मेंढकी को जुकाम, हँसें लोग तमाम. ज्यादा नज़ाकत दिखाने या बीमारी का दिखावा करने वालों के लिए.
मेंह, लड़का और नौकरी घड़ी घड़ी नहीं होते. वारिश होना, पुत्र का पैदा होना और नौकरी मिलना, ये बहुत जल्दी जल्दी नहीं होते.
मेघ बरसे एक पहर, पेड़ बरसे तीन पहर. वर्षा तो एक पहर हो कर रुक जाती है पर पेड़ से पानी की बूँदें लम्बे समय तक टपकती रहती हैं.
मेघ समान जल नहीं, आप समान बल नहीं. अपने बल जैसा उपयोगी और कुछ नहीं है.
मेढ़ा जब पीछे हटे, बैरी जब मीठा बोले. मेढ़ा जब पीछे हटे तो समझ लो कि टक्कर मारने वाला है, शत्रु जब मीठा बोले तो समझ लो कि नुकसान पहुँचाने वाला है.
मेरा कुत्ता मुझी पे भौंके. किसी के टुकड़ों पर पलने वाला व्यक्ति यदि उसी पर आक्रामक हो जाए तो.
मेरा पेट हाऊ, मैं न देहूं काऊ. अत्यधिक लालची व्यक्ति के लिए. मेरा पेट बहुत बड़ा है, मैं किसी को नहीं दूंगा.
मेरा बैल कानून नहीं पढ़ा है. वकीलों का मजाक उड़ाने के लिए. सन्दर्भ कथा – किसी वकील ने एक तेली से पूछा कि तुम लोग अपने बैल के गले में घंटी क्यों बांधते हो? तेली ने जवाब दिया कि जब हम बैल के पास नहीं होते हैं, तो हमें घंटी के शब्द से मालूम हो जाता है कि बैल खड़ा नहीं है और काम कर रहा है. इस पर वकील नें कहा कि यदि वह बैल यों ही खड़ा होकर अपना सिर हिलाए और घंटी बजाता रहे, तो तुम्हें कैसे पता चलेगा कि बैल काम कर रहा है. इस पर तेली ने हंसकर जवाब दिया, जनाब! मेरा बैल कानून नहीं पढ़ा है.
मेरी एक आंख फूटे कोई गम नहीं, पडोसी की दोनों फूटनी चाहिए. ईर्ष्या की पराकाष्ठा. दूसरे को नुकसान पहुंचाने के लिए खुद कितना भी बड़ा नुकसान उठाने को तैयार रहने वाले ईर्ष्या में अंधे व्यक्ति के लिए यह कहावत कही जाती है. सन्दर्भ कथा – एक व्यक्ति को अपने पड़ोसी से बड़ी ईर्ष्या थी. वह सोते जागते हर समय अपने पड़ोसी को नुकसान पहुँचाने के विषय में सोचता रहता था. जब उस का वश नहीं चला तो उस ने कड़ी तपस्या कर के भगवान को प्रसन्न किया. भगवान ने उससे कहा कि वत्स, जो वर मांगोगे मैं तुम्हें दूँगा, पर तुम्हारा पड़ोसी भी मेरा भक्त है और बहुत भला आदमी है इसलिए मेरी शर्त यह है कि तुम्हें जो दूंगा, तुम्हारे पड़ोसी को उससे दुगुना दूँगा. तब काफी सोच समझ कर उसने माँगा कि मेरी एक आँख फूट जाए.
मेरी तौबा, मेरे बाप की तौबा. किसी काम से तौबा करना (वैसा काम कभी न करने की कसम खाना).
मेरी नाजो को कहाँ कहाँ दुखता है, जहाँ जहाँ सहलाओ वहाँ वहाँ दुखता है. अधिक नाज नखरे दिखाने वाली स्त्रियों और उन के नखरे उठाने वालों पर व्यंग्य.
मेरे और मौसी के इक्कीस रूपये. किसी आयोजन में देने के लिए मौसी ने इक्कीस रूपये दिए हैं. धूर्त व्यक्ति उन रुपयों को देते समय अपना नाम जोड़ रहा है.
मेरे घर ही बरसे मेह, मेरे घर ही खेती फले. निकृष्ट स्वार्थी व्यक्ति.
मेरे पूत निकम्मा को ढेर सारे कम्मा. जो लोग कोई ठोस काम नहीं करते और आलतू फ़ालतू कामों में व्यस्त रहते हैं या व्यस्त रहने का दिखावा करते हैं उन के लिए.
मेरे बांट मुझी को ठगें. बांट – बटखरे. मेरी वस्तु से मुझे ही धोखा देना.
मेरे मन कछु और है साईं के कछु और. मैं अपने मन में कुछ भी चाहूँ यदि ईश्वर की इच्छा कुछ और है तो मेरा चाहा हुआ नहीं हो सकता. रूपान्तर – अपना चाहा होत नहिं, प्रभु चाहा तत्काल.
मेरे मियां के दो कपड़े एक पैजामा, एक नाड़ा. किसी महिला द्वारा अपने पति की गरीबी का मजाक उड़ाया जाना. कोई पुरुष अपनी वस्तुओं का रख रखाव न करता हो तो भी महिलाएं मजाक में ऐसा बोलती हैं.
मेरे लला की उलटी रीत, सावन मास चुनावे भीत. सावन की वर्षा में दीवार चुनवाना मूर्खतापूर्ण काम ही तो है.
मेरे लला के कौन कौन यार, धुनिया, जुलहा और मनिहार. एक माँ का कथन जो कि अपने पुत्र की घटिया मित्र मंडली से दुखी है.
मेले में झमेला. आनंद पूर्ण माहौल में व्यवधान पड़ जाना.
मेव का पूत बारह बरस में बदला लेता है. मेव – राजपूतों की एक जाति जो अपनी वीरता और प्रतिहिंसक प्रवृत्ति के लिए प्रसिद्ध हैं. कहते हैं कि इस जाति में पिता की हत्या का बदला पुत्र बारह साल बाद भी ले सकता है.
मेह वहाँ ही बरसे, जहाँ राजी होवें राम. पानी वहीं बरसता है जहाँ ईश्वर की कृपा होती है. (जब तक सिंचाई के अन्य साधन नहीं थे तब तक खेती और अर्थव्यवस्था वर्षा पर ही निर्भर थी.
मेहनत आराम की कुंजी है. सुनने में उलटी बात लगती है पर सही बात है. 1. मेहनत कर के जो बच्चे अपना भविष्य संवार लेते हैं वे फिर आराम का जीवन बसर करते हैं. 2. मेहनत कर के हम समय से काम निबटा लें तो फिर निश्चिंत हो कर आराम कर सकते हैं.
मेहनत मेरी रहमत तेरी. मेहनत मनुष्य करता है लेकिन ईश्वर की कृपा भी आवश्यक है.
मेहमानों से घर नहीं बसता. अतिथि कितना भी प्रिय क्यों न हो, उससे घर नहीं बस सकता. घर तो घर के सदस्यों से ही बसता है. (इसलिए मेहमानों के लिए घर वालों का अनादर नहीं करना चाहिए).
मेहरिया के आगे सगुन भी असगुन. मेहरिया – स्त्री. स्त्रियाँ इतनी अधिक वहमी और शंकालु होती हैं कि अच्छे शगुन में भी अपशगुन होने की बात सोच कर चिंता करती हैं.
मेहरी जस बैरी न मेहरी जस मीत. पत्नी से बड़ा मित्र कोई नहीं हो सकता, और अगर वह दुश्मनी पर उतर आए तो उस से बड़ा शत्रु भी कोई नहीं हो सकता.
मेहरी भतार का झगरा, बीच में बोले सो लबरा. लबरा – झूठ बोलने वाला, मेहरी भतार – पति पत्नी. पति पत्नी में झगड़ा हो रहा तो बीच में नहीं बोलना चाहिए. पति पत्नी फिर एक हो जाते हैं, बेचारा बीच में बोलने वाला झूठा सिद्ध हो जाता है.
मैं कब कहूँ तेरे बेटे को मिरगी आवे है. किसी को उसकी कमी बताना और यह भी कहना कि मैं तो ऐसा कुछ नहीं कह रहा हूँ.
मैं करूँ तेरी भलाई, तू करे मेरी आँखों में सलाई. भलाई के बदले में बुराई करने वाले के लिए.
मैं की गर्दन पर छुरी. जो बकरी मैं मैं करती है उसकी गर्दन काटी जाती है. रूपान्तर – मैं गला कटाए. अहं का भाव (अहंकार) सर्वनाश कर देता है.
मैं क्या तुमसे पतला मूतता हूँ. मैं तुमसे किसी तरह कम नहीं हूँ यह कहने का अश्लील तरीका.
मैं सच्चा, मेरा पीर सच्चा. जबरदस्ती अपनी बात मनवाना, जो मैं कह रहा हूँ वही ठीक है.
मैं सुंदर मोरा पिया सुंदर, गाँव के लोग बंदरी बंदर. अपने आप को बहुत सुंदर समझने वाली स्त्री के लिए.
मैं ही पाल करा मुस्टंडा, मोहे ही मारे लेके डंडा. मैंने ही जिसे पाल पोस कर बड़ा किया वही (कृतघ्न पुत्र या आश्रित) अब मुझे डंडा ले कर मार रहा है. रूपान्तर – टुकड़े दे दे बछड़ा पाला, सींग लगे तब मारन चाला.
मैके के महुए मीठे. मायके की हर वस्तु स्त्रियों को प्रिय लगती है.
मैना जो मैं ना कहे, दूध भात नित खाय, बकरी जो मैं मैं करे, उलटी खाल खिंचाय. मैना कहती है मैं ना (मैं कुछ नहीं हूँ), उसे दूध भात मिलता है. बकरी कहती है मैं मैं (मैं ही सब कुछ हूँ), उस की खाल खींची जाती है.
मैला कपड़ा पतली देह, कुत्ता काटे कौन संदेह. गरीब दुर्बल गाँव वालों को दुष्ट सरकारी कर्मचारी परेशान करते हैं उसके ऊपर व्यंग्य.
मैले कपड़े बिड़रे बार, वही नार कुलवंती नार. जो स्त्री अपने साज श्रृंगार पर ध्यान न दे कर घर के काम में व सब की देखभाल में लगी रहती है, उसके बाल फैले और कपड़े मैले होते हैं. वही कुलवंती स्त्री मानी जाती है.
मोकों मिले न तोकों, ले चूल्हे में झोंको. जिस चीज़ पर लड़ाई हो रही है वह अगर मुझे नहीं मिल सकती तो तुझे भी न मिले, चाहे चूल्हे में झोंक दो.
मोची की जोरू और फटी जूती. जहाँ पर किसी चीज की बहुतायत होनी चाहिए, वहीं पर उस की कमी हो तो यह कहावत कही जाती है.
मोची की नजर जूते पर ही पड़ती है. मोची – जूते बनाने वाला. (आजकल इस नाम की एक बड़ी ब्रांड भी है). जिसका जो काम होता है वह उससे सम्बन्धित चीजों पर ही गौर करता है.
मोज़े का घाव, मियाँ जाने या पाँव. मोज़े से जो घाव लगता है वह बाहर दिखाई नहीं देता, जिस को घाव लगा है वही जान सकता है. कोई अन्तरंग व्यक्ति यदि किसी को चोट पहुँचाता है तो वह किसी से कह भी नहीं सकता.
मोटी दातुन जो करे, नित उठ हर्रे खाए, बासी पानी जो पिए, वा घर बैद न जाए. स्वास्थ्य संबंधी विश्वास.
मोठों का पीसना क्या और सास का रूसना क्या. दबंग बहू का कथन जो सास के रूठने की परवाह नहीं करती.
मोती बोए न ऊपजे कंचन लगे न डार, रूप उधारी ना मिले भटकत फिरे गंवार. मोती बोने से नहीं उगते, सोना पेड़ की डाल पर नहीं लगता और सुन्दरता उधार नहीं मिलती. मूर्ख लोग इन दुराशाओं में भटकते रहते हैं.
मोदक मरे जो ताहि माहुर न मारिए. जो लड्डू खाने से मरे उसे जहर मत दीजिए. जो मीठी बातों से वश में आ जाए उस के लिए कड़वी बात या दंड का प्रयोग क्यों किया जाए.
मोम का हाकिम लोहे के चने चबावे. जो हाकिम कोमल हृदय होता है वह प्रशासन चलाने में परेशानी उठाता है.
मोर पिया चिकनियां पचास बीड़ा खायं, आगे-पीछे रिनिया, दीवाने बन जायं. चिकनियां–छैल, बीड़ा–पान, रिनिया–ऋण देने वाले. क़र्ज़ लेकर वापस न करने वाले व्यक्ति की पत्नी का अपने फिजूलखर्च पति के लिए कथन.
मोर भुखिया मोर माई जाने, कठवत भर पिसान साने. कठवत–लकड़ी का बर्तन, पिसान–आटा. मेरी माँ ही जानती है कि मेरी खुराक कितनी है, इसलिए कठौता भर के आटा सानती है. बच्चे कि भूख माँ ही समझ सकती है.
मोरी की ईंट चौबारे चढ़ी. (नाली की ईंट कोठे चढ़ी). मोरी–नाली, चौबारे–चौपाल. कोई निम्न कोटि का व्यक्ति उच्च पद पा जाए कोई छोटे खानदान की लड़की बड़े घर में ब्याहे जाने पे घमंड करे तो लोग ऐसे बोलते हैं.
मोल में ठग लो, माल में मत ठगो. व्यापारियों के लिए बहुत ही उपयोगी सुझाव ही, किसी माल के दाम भले ही अधिक ले लो पर माल घटिया मत दो.
मोह न अंध कीन्ह कहि केही. मोह किसको अँधा नहीं कर देता. अर्थात मोह हर किसी को अंधा कर देता है.
मोहिनी देख मुनिवर चले. ढोंगी मुनि के लिए जो सुंदर स्त्री को देख कर तपस्या छोड़ उसकी ओर चल देते हैं.
मोहे न नारि, नारि के रूपा. स्त्री को दूसरी स्त्री का सौन्दर्य मोहित नहीं करता.
मौके का घूँसा तलवार से बढ़ कर. सटीक मौके पर दी गई छोटी चोट भी बड़ा काम कर देती है.
मौत कभी रिश्वत नहीं लेती. अर्थ स्पष्ट है.
मौत दीजो पर मंदी न दीजो. व्यापारी मंदी से सबसे अधिक घबराते हैं.
मौत न जाने बेला कुबेला. मृत्यु किसी व्यक्ति का हित अहित और समय असमय नहीं देखती.
मौत मांदगी मुकद्दमा मंदी मांगनहार ये पाँचों मम्मा बुरे भली करे करतार. मांदगी – बीमारी, मम्मा – ‘म’ अक्षर से आरम्भ होने वाले शब्द. अर्थ स्पष्ट है.
मौत या तो बहुत जल्दी आती है या बहुत देर से. मृत्यु कभी भी मनुष्य की इच्छानुसार नहीं आती. या तो व्यक्ति की असामयिक मृत्यु होती है या मौत आती ही नहीं है (परिवार वाले इंतज़ार करते रहते हैं).
मौत सारे कर्ज चुका देती है. मृत्यु के बाद आदमी की सारी देनदारियाँ खत्म हो जाती हैं.
मौत हराए, भूख नवाए. बड़े से बड़ा शूरवीर भी मौत से हार जाता है और पेट की भूख अच्छे अच्छे गर्वीले लोगों को झुका देती है.
मौन स्वीकृति लक्षणं (मौन सम्मति लक्षणं) यदि कोई अन्याय होता देख कर आप चुप रह जाते हैं तो इसे आपकी स्वीकृति माना जाएगा.
मौला यार तो बेड़ा पार. ईश्वर प्रसन्न हो तो हर काम आसान है.
मौसी के मूंछें होतीं तो उन्हें भी मामा कहता. रिश्तों की आपसी मजाक.
म्याऊँ के ठौर को कौन पकडे. शाब्दिक अर्थ के लिए देखिए – बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे. कहावत का प्रयोग इस प्रकार करते हैं कि क्रोधी हाकिम या झगड़ालू व्यक्ति से काम के लिए कौन कहे.
य
यकीन बड़ा रहबर है. विश्वास सबसे बड़ा मार्गदर्शक है.
यथा नाम तथा गुण. किसी व्यक्ति का नाम उसके गुणों से मेल खाता हो तो.
यथा राजा तथा प्रजा. जैसा राजा होता है प्रजा भी वैसी ही हो जाती है. राजा ईमानदार व न्यायप्रिय हो तो प्रजा भी ईमानदार हो जाती है, राजा भ्रष्ट हो तो प्रजा भी भ्रष्ट हो जाती है.
यह घोड़ा किसका, जिसका मैं नौकर हूँ, तू नौकर किसका, जिसका ये घोड़ा है. बात का सीधा जवाब न देना.
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान, शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान. कबीर दास जी कहते हैं कि यह जो शरीर है वो विष से भरा हुआ है और गुरु अमृत की खान हैं. अगर अपना सर देने के बदले में आपको कोई सच्चा गुरु मिले तो भी बहुत सस्ता है.
यह बात वह बात टका धर मोरे हाथ. 1. पंडित लोग पूजा कराते समय बात बात पर कुछ दक्षिणा रखने को कहते हैं. 2. सरकारी मुलाजिम किसी काम को करने में तरह तरह के बहाने बनाता है और इशारा करता है कि कुछ दो तभी काम होगा.
यह संसार काल का खाजा, जैसा कुत्ता तैसा राजा. खाजा – एक प्रकार की मिठाई. संसार में सभी प्राणी काल का भोजन हैं, चाहे राजा हो या कुत्ता.
यहाँ का मुर्दा यहीं जलेगा, वहाँ का मुर्दा वहीँ. जो काम जहाँ के लिए उपयुक्त है उसे वहीं करना चाहिए.
यहाँ क्या तेरी नाल गड़ी है. हिन्दुओं में जब घर पर प्रसव कराने की प्रथा थी और घर कच्चे हुआ करते थे तो बच्चे के पैदा होने के बाद उसकी नाल वहीं गाड़ने का रिवाज़ था. यदि कोई व्यक्ति किसी जगह पर अपना अधिकार जता रहा हो तो यह कहावत कही जाती है.
यहाँ तो हम दोनों मेहमान, ना कोई पंडित न जजमान. एक बार एक हवालात में एक पंडित जी और उनके जजमान दोनों को बंद किया गया. जजमान ने कहा पंडित जी पांय लागूं. तब पंडित जी ने ऐसा बोला.
यही तो बीमारी थी. अचानक कोई विकट परिस्थिति आने पर प्रत्युत्पन्नमति द्वारा उसका सामना करना. सन्दर्भ कथा – एक बार अकाल पड़ा तो गाँव में रहने वाला एक गरीब किन्तु चालाक बनिया पास के शहर में गया और एक विधुर सेठ के साथ अपनी लड़की का विवाह करना तय करके उससे पांच हजार रुपये ले आया. विवाह के लिए निश्चित तिथि के दिन उसने अपने घर में बहुत ऊंचा झंडा लगवा दिया. सेठ की बारात उसी को लक्ष्य करके उस घर की ओर बढने लगी. लेकिन बनिये के तो कोई लड़की थी ही नही. इसलिए उस के घर वालों ने एक कुतिया को मार कर उसकी अर्थी बांधी और उसे कंधों पर उठा कर बारात के सामने चले. बारात वालों के पूछने पर उन्होंने गहरा दुःख प्रकट करते हुए कहा कि जिस लड़की की शादी होनी थी, वह अचानक मर गई. इस बात को सुन कर वे सब सकते में आ गये. लेकिन अर्थी जल्दी में बांधी गई थी, इसलिए कुतिया की पूंछ नीचे की ओर लटकती रह गई थी. बरातियों में से किसी ने पूछ लिया, यह क्या है ? बनिये ने प्रत्युत्पन्न मति का परिचय देते हुए तत्काल ही उत्तर दिया कि यही तो बीमारी थी. कल अचानक लड़की के पूँछ निकल आई, जिससे वह इतनी जल्दी मर गई. इस पर प्रौढ़ दूल्हा मन मार कर बरात सहित अपने घर की ओर लोट पड़ा.
या अघाए रोटी से, या अघाए सोटी से. सोटी – छोटा डंडा. ओछा आदमी पेट भरने पर मानता है या मार खा के मानता है.
या अल्ला घर से बाहर भला. गृहस्थी के झंझटों से तंग आने वाले व्यक्ति की आर्त पुकार.
या अल्लाह, गौड़ों में भी कौन गौड़. एक बार एक मुसलमान दावत खाने के लालच में ब्राह्मण का बहरूप बना कर किसी विवाह समारोह में शामिल हो गया. उसके हाव भाव देख कर किसी को शक हुआ तो उस से पूछा – कौन जात हो भाई? उसने कहा ब्राह्मण, कौन सा गोत्र? वह बोला गौड़, पूछने वाले ने फिर पूछा कौन से गौड़? तो उस के मुँह से निकला या अल्लाह, गौड़ों में भी कौन से गौड़.
या करे दर्दमंद, या करे गर्जमंद. जो कष्ट में होगा या जो जिस को अत्यधिक आवश्यकता होगी वही किसी से फ़रियाद करेगा या किसी की खुशामद करेगा.
या तो नहलाए दाई, या नहलाएं पांच भाई. जो लोग बहुत कम नहाते हैं उन के ऊपर व्यंग्य. या तो पैदा होने पर दाई ने नहलाया या मरने पर पांच भाइयों ने.
या तो नाम सपूतों से, या फिर नाम कपूतों से. कुछ लोगों का नाम उनके सुपुत्रों द्वारा रोशन होता है और कुछ कुपुत्रों के कारण बदनाम होते हैं.
या तो पगली सासरे जावे न, और जावे तो लौट के आवे न. मंदबुद्धि आदमी या तो काम करेगा नहीं और करेगा तो करता ही चला जाएगा, मना करने पर भी नहीं मानेगा.
या तो पेट पाल लो या बेटा पाल लो. बड़ी बूढ़ी महिलाएं नवजात शिशु की माँ से ऐसे बोलती हैं. प्रसूता स्त्री (जो बच्चे को अपना दूध पिला रही हो) को अपने खान पान का बहुत ध्यान रखना पड़ता है, अपने स्वाद को भूल कर वही चीजें खानी होती हैं जो बच्चे को नुकसान न दें.
या तो भर मांग सिंदूर, या निपट ही रांड. जो लोग हर काम की अति करते हैं उन के लिए.
या तो लड़ें कूकर, या लड़ें गंवार. बिना बात लड़ने भिड़ने का काम केवल मूर्ख लोग ही करते हैं.
या तो स्वामी धन को खाय, या धन स्वामी को खा जाय. जो लोग पैसे को खर्च नहीं करते, वे उसे संभाल कर रखने की चिंता में ही मर जाते हैं, या धन के लालच में मार दिए जाते हैं.
या दुनिया दो रोज की, मत कर यासो हेत, गुरु चरनन चित लाइये, जो पूरन सुख देत. इस संसार का झमेला दो दिन का है, इससे मोह सम्बन्ध न जोड़ो. सद्गुरु के चरणों में मन लगाओ, उसी में सच्चा सुख है.
या दुनियाँ में आइ के, छाँड़ि दे तू ऐंठ, लेना हो सो लेइले, उठी जात है पैंठ. पैंठ – बाज़ार. इस संसार में आ कर अहंकार मत करो. अच्छे कर्म कर लो, यह जन्म समाप्त होने वाला है.
या बेईमानी, तेरा ही आसरा. धूर्त लोगों के लिए.
या भैंसा भैंसों में या कसाई के खूंटे पे. भैंसे को लोग इसलिए पालते हैं ताकि भैंसें हरी होती रहें. जब भैंसा इस काम के उपयुक्त नहीं रहता तो उसे कसाई को बेच दिया जाता है. गरीब कामगार को लोग बुरी तरह काम में जोते रहते हैं और जब वह काम करने लायक नहीं रहता तो उसे निकाल कर बाहर कर देते हैं.
या मारे भादों की घाम या मारे साझे को काम. भादों की धूप बहुत तेज होती है इसलिए मारती है, और साझे के काम में किसी की जिम्मेदारी नहीं होती इसलिए वह सफल नहीं होता.
यार का गुस्सा, भतार के ऊपर. दुराचारिणी स्त्री प्रेमी का गुस्सा पति पर निकालती है.
यार की यारी से काम, उस की बुराई से क्या काम. हमारे मित्र में यदि कुछ बुराइयां हैं तो हमें कोई फर्क नहीं पड़ता. हमारे लिए वह प्रिय है.
यार के घर खीर पके तो जरूर चाखिए, यार के घर आग लगे पड़े पड़े ताकिए. स्वार्थी दोस्त्तों के लिए जो दोस्त का माल खाने के लिए हर समय तैयार रहते हैं पर मुसीबत में उसके काम नहीं आते.
यार को खीर, खसम को दलिया. दुश्चरित्र स्त्री के लिए, जो पति से अधिक अपने मित्र को चाहती है.
यार डोम ने बनिया कीन्हा, दस ले कर्ज़ सैकड़ा दीन्हा. डोम ने बनिए से दोस्ती की तो दस रूपये उधार लिए. ब्याज सहित सौ रूपए चुकाने पड़े. सीख यह है कि दोस्ती सोच समझ कर करनी चाहिए और दोस्त पर आँख मूँद कर विश्वास नहीं करना चाहिए.
यार वही है पक्का, जिसने दिल यार का रक्खा. जो दोस्त का दिल रखे वही सच्चा दोस्त है.
यार से यारी, भतार की भी प्यारी. ऐसी धूर्त स्त्री जो अपने यार से यारी करती है और पति की नजरों में भी अच्छी बनी रहती है.
यारां चोरी न पीरां दगाबाजी. दोस्तों से चोरी नहीं करनी चाहिए और साधु संतों को धोखा नहीं देना चाहिए.
यारी करें सो बावरे, कर के छोड़ें कूर, या तो छोर निबाहिए, या फिर रहिए दूर. सच्ची दोस्ती बावले लोग ही कर सकते हैं. जो दोस्ती कर के छोड़ दें वे क्रूर होते हैं. दोस्ती या तो करो ही नहीं या अंत तक निभाओ.
यारी का घर दूर है. प्रेम और मित्रता करके निभाना बहुत होता मुश्किल है इस पर यह कहावत बनी है.
यारी में ख्वारी. 1. कोई व्यक्ति यदि अपने किसी मित्र की मूर्खता के कारण नुकसान उठाए तो. 2. मित्र के साथ धोखेबाजी करना.
यूँ मत जान रे बावरे कि पाप न पूछे कोय, साईं के दरबार में इक दिन लेखा होय. यह मत सोचो कि तुम पाप करते रहोगे और कोई पूछेगा नहीं, ईश्वर के दरबार में एक दिन सबका न्याय होगा.
ये ऊँगली कटे तो भी अपने घाव, वो ऊँगली कटे तो भी अपने घाव. कोई सी भी ऊँगली कटे, घाव अपने ही होगा.
ये काम कब होगा, अँधेरी पूरनमासी को (जे दिन घोड़ी पागुर करी). जिस काम को करने का मन न हो या सामर्थ्य न हो उस के लिए कोई असंभव सी शर्त रखना. न तो पूर्णिमा अँधेरी होती है, न घोड़ी पागुर करती है.
ये पुर पट्टन ये गली, बहुरि न देखे आई. अपना देश छोड़ कर जाना पड़े या संसार छूट रहा हो तो मन में अजीब सी टीस होती है.
ये पूत पैदा हुआ होगा तो भी थाली बजी होगी. किसी बहुत निकृष्ट या अभागे व्यक्ति को देख कर यह कहा जाता है कि जब यह पैदा हुआ होगा तब भी खुशियाँ मनाई गई होंगी.
ये मुँह और मसूर की दाल, (वाह रे वाह मेरे बांके लाल). किसी का मज़ाक उड़ाने के लिए.
ये लड्डू हैं रेत के लोभी मन ललचात, खाए तो पछतात है न खाए पछतात. विवाह के लिए. इस से मिलती जुलती इंग्लिश में कहावत है – Who marries, does well; who marries not, does better.
ये लो जी घोड़ों का पारखी, पूंछ ऊंची कर के दांत देखे. उन लोगों पर व्यंग्य जो कुछ न जानते हुए भी अपने को बड़ा पारखी बताते हैं. ऐसे किसी सज्जन से घोड़े की नस्ल परखने के लिए कहा गया. उन्होंने सुन रखा था कि घोड़े के दांत देख कर उसकी पहचान करते हैं, पर घोड़े के दांत कहाँ होते हैं यह मालूम ही नहीं था. तो घोड़े की पूंछ उठा कर उसके दांत ढूँढ़ रहे थे.
ये वो गुड़ नहीं जो चींटे खाएँ (यह गुड़ इतना गीला नहीं कि चींटे खाएँ). यह कहावत इस आशय में कही जाती है कि हम इतने मूर्ख नहीं हैं कि हमारा माल ऐरे गैरे हजम कर जाएँ.
ये ही जमाई है तब तो खिला लिया धेवता. किसी दुबले पतले कमजोर आदमी को देख कर कटाक्ष किया जा रहा है कि यह क्या बच्चा पैदा करेगा.
ये ही मेरे आसरा, या पीहर या सासरा. स्त्री के दो ही आश्रय होते हैं, मायका और ससुराल. इन के अतिरिक्त और कहीं वह सुरक्षित महसूस नहीं करती.
यौवन लुगाई का बीस या तीस, और बैल चलै नौ साल, मरद और घौड़ा कदे हो ना बूढ़ा, जै मिलता रहवै माल. (हरयाणवी कहावत) स्त्री का यौवन बीस या तीस साल का ही होता है और बैल नौ साल तक ही मेहनत कर सकता है. पर मर्द और घोड़ा कभी बूढ़े नहीं होते यदि उन्हें माल खाने को मिलता रहे.
र
रंक रीझे तो रो दे. गरीब बेचारा किसी बात पर बहुत खुश भी होता है तो केवल रो ही सकता है.
रंग कौए का, नाम महताब कुंवर. रूप के विपरीत नाम (रंग एकदम काला है और नाम है चाँद).
रंग फूल का तीन दिनां, फिर बदरंग. फूल का रंग केवल तीन दिन स्थिर रहता है. मनुष्य का यौवन और जीवन भी इसी प्रकार क्षणभंगुर है.
रंग में भंग. जहाँ कोई आनंद दायक कार्य चल रहा हो वहाँ यदि अचानक कोई विघ्न बाधा उपस्थित हो जाए तो यह कहावत कही जाती है.
रंग लाती है हिना पत्थर पे घिसने के बाद. मेहँदी पत्थर पर घिसने के बाद ही रंग लाती है. संघर्षों के बाद ही आदमी निखरता है.
रंडियों की खरची और वकीलों का खरचा पेशगी ही दिया जाता है. वेश्याएं और वकील अपनी फीस पहले ही ले लेते हैं क्योंकि बाद में लोग मुकर जाते हैं.
रंडी पैसे की यार. अत्यधिक धन के लोभियों के लिए तिरस्कार पूर्वक ऐसे बोला जाता है.
रंडी मांगे रूपया, ले ले मेरी मैया, फक्कड़ मांगे पैसा, आगे बढ़ो भैया. वैश्या रुपये (अधिक धन) मांगती है तो ख़ुशी से दे देते हैं और भिखारी पैसा (छोटी सी राशि) मांगता है तो उसे टरका देते हैं.
रंडुआ गया सगाई को, खुद को लाभ या भाई को. विधुर आदमी (विशेषकर अधिक आयु का विधुर) शादी कर रहा है. इसका लाभ उसे अधिक होगा या उसके छोटे भाई को? बात सामाजिक मर्यादा के विरुद्ध है लेकिन कहावत में यह सीख दी गई है कि अधिक आयु के व्यक्ति को कम आयु की कन्या की मजबूरी का फायदा उठा कर उस से विवाह नहीं करना चाहिए.
रंडुए की बिटिया और रांड का लड़का, जे दोनुहिं बिगड़ जात. क्योंकि बेटी को माँ संभालती है और पुत्र को पिता.
रंधे भात को क्या रांधिये और गाये गीत को क्या गाइये. कही बात को बार-बार क्या कहना.
रख पत, रखा पत. अपनी प्रतिष्ठा के अनुकूल व्यवहार करोगे तभी लोग सम्मान करेंगे.
रखे तो प्रीत, नहीं तो पलीत. मुझसे प्रेम मानते हो तो मैं भी प्रेम रखूँगा, नहीं तो तुम मेरे लिए प्रेत समान हो.
रघुकुल रीत सदा चलि आई, प्राण जाई पर वचन न जाई. दशरथ जी ने कैकेयी को दिया वचन निभाने में अपने प्राण त्याग दिए क्योंकि वचन को निभाना उन के कुल की रीत थी (उनके पूर्वज महान राजा रघु के कारण उनके कुल को रघुकुल कहा गया है). जो लोग अपने कहे पर अडिग रहते हैं वे यह कहावत बोलते हैं.
रटंत विद्या, खोदन्त पानी. रटते रटते विद्या आती है और खोदते खोदते भूमि में से पानी निकल आता है. लगातार चेष्टा करने से ही सफलता मिलती है.
रण जीत लिया. बड़ा काम कर लिया. कोई छोटा सा काम कर के खुश हो रहा हो तो व्यंग्य में.
रत्तियों जोड़े तोलों खोवे, बाको लाभ कहाँ से होवे. जो व्यक्ति जोड़े तो बहुत कम और गंवाए बहुत ज्यादा , उसे लाभ कहाँ से हो जाएगा. 1 तोला = 96 रत्ती.
रत्ती देकर मांगे तोला, नाम बतावे अपना भोला. अपने आप को बहुत भोला भाला बता कर दूसरों को ठगने का प्रयास करने वालों के लिए. रत्ती भर चीज़ दे कर उसके बदले में तोला भर मांग रहे हैं.
रत्ती भर सगाई न गाड़ी भर आशनाई (राई भर नाता न पेटहा भर प्रीत). बहुत थोड़ा प्रेम भी नहीं और बहुत सारा प्रेम भी नहीं. आपसी रिश्तों में संतुलित व्यवहार करना चाहिए.
रत्ती रत्ती साधे तो द्वारे हाथी होय, रत्ती रत्ती खोवे तो द्वारे बैठा रोय. छोटी छोटी बचत कर के बहुत बड़ी राशि इकट्ठी की जा सकती है और छोटी छोटी रकम गंवा कर कोई रईस आदमी भी कंगाल बन सकता है.
रन जीता जाए, जन नहीं जीता जाए. आततायी राजा युद्ध जीत सकता है पर जनता का मन नहीं.
रन्दा गये वसूला आये. रंदा – जिस औजार से बढ़ई लकड़ी रेतते हैं, वसूला – जिस से बढ़ई लकड़ी छील कर सुडौल बनाते हैं. जब कोई बुरा आदमी जाए और उसकी जगह उससे भी कहीं ज्यादा बुरा आदमी आ जाए तो.
रमता जोगी बहता पानी. घूमता हुआ योगी बहते पानी के समान निर्मल रहता है. जैसे ठहरा पानी गंदा हो जाता है वैसे ही योगी कहीं ठहर जाए तो उसके पतित होने की सम्भावना हो जाती है.
रवि जल उखरे कमल को मारत जारत जात. सूर्य को देख कर कमल खिलता है, लेकिन जल कम होने पर वही सूर्य कमल को जला कर मार देता है. जारत – जला देता है. अपने को प्रेम करने वाले के साथ बुरा व्यवहार.
रवि नहिं लखियत बारि मसाल. लखियत – देखते हैं. बारि – जला कर. सूर्य को देखने के लिए मशाल नहीं जलानी पड़ती. महापुरुषों की महानता किसी परिचय या प्रशंसा की मोहताज नहीं होती.
रवि हू की इक दिवस में तीन अवस्था होए. कोई कितना भी बड़ा आदमी क्यों न हो, उतार चढ़ाव सभी के जीवन में होते हैं. सब को प्रकाश देने वाले सर्वशक्तिमान सूर्य को भी एक दिन में तीन अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है.
रस में बिस घोल दिया. रंग में भंग कर दिया.
रस में विष, सुरजन में दुरजन. अच्छे लोगों के बीच कोई बुरा आदमी. भले परिवार में जन्मा कोई नीच व्यक्ति.
रसोई का वामन, कसाई का कूकुर. रसोई बनाने वाले ब्राह्मण और कसाई के कुत्ते को मुफ्त माल खूब खाने को मिलता है.
रस्सी जल गयी ऐंठ न गयी. रस्सी के दो हिस्से होते हैं जिन्हें बट के रस्सी बनाई जाती है. रस्सी के बट को उसकी ऐंठ कहते हैं. यदि रस्सी को जला दिया जाए तो भी उसकी ऐंठ वैसी ही बनी रहती है. यह कहावत उन अहंकारी लोगों के लिए कही जाती है जो धन व पद न रहने पर भी अहंकार (ऐंठ) नहीं छोड़ते.
रहट की हंडिया भरी आए और खाली जाए. रहट की गति भी इस संसार के चक्र के समान है.
रहट के बारह मास, इन्दर की दो घड़ी. रहट जितना पानी बारह महीने में नहीं निकाल पाता, इंद्र देवता उससे अधिक पानी दो घड़ी में बरसा देते हैं. रहट उस यंत्र को कहते हैं जिसकी सहायता से कुएं से सिंचाई के लिए पानी निकाला जाता था. रहट देखने के लिए परिशिष्ट देखिये.
रहना है तो कहना नहीं, कहना है तो रहना नहीं. अगर तुम्हें शक्तिशाली और दबंग लोगों के बीच रहना है तो कुछ कहना नहीं है (किसी बात पर कोई आपत्ति नहीं करनी है), कुछ कहोगे तो तुम्हें यहाँ रहने नहीं दिया जाएगा.
रहम दिली बड़ाई की निशानी है. दूसरों पर दया करना और दूसरों की सहायता करना ये बड़प्पन की निशानी है.
रहमन सोई मीत है भीर परे ठहराय. मित्र वही है जो विपत्ति में साथ खड़ा हो. भीर – विपत्ति.
रहा निकम्मा तो घर गया, गया निकम्मा तो घर गया. निकम्मा आदमी घर में रहे तो भी घर की हानि करता है, चला जाए तो भी हानि कर के ही जाता है. जैसे शराबी आदमी पहले शराब पी कर घर बर्बाद करता है, फिर बीमारी में सारा घर बिकवा कर मरता है.
रहिए भुक्ख तो रहिए सुक्ख. भूख से कम खाने वाला व्यक्ति सुखी रहता है.
रहिमन अँसुआ नैन ढरि, जिय दुख प्रगट करेइ, जाहि निकारो गेह ते, कस न भेद कहि देइ. रावण ने विभीषण को घर से निकाला तो उस ने लंका के सारे भेद श्री राम को जा कर बता दिए. इसी प्रकार आंसू भी आँख से निकाले जाते हैं तो हृदय का भेद (दुख) सब पर प्रकट कर देते हैं.
रहिमन असमय के परे, हित अनहित होई जाय. रहीम कवि कहते हैं कि बुरा समय आने पर मित्र भी शत्रु हो जाते हैं.
रहिमन ओछे नरन सों बैर भला न प्रीत, काटे चाटे स्वान के दोहु भांत विपरीत. ओछी प्रकृति के व्यक्ति से प्रेम भी नहीं करना चाहिए और दुश्मनी भी नहीं. कुत्ते से दुश्मनी करोगे तो आपको काट लेगा, प्यार जताओगे तो मुँह चाट लेगा. रूपान्तर-हितहू भलो न नीच को, नाहें भलो अहेत, चाट अपावन तन करे, काट स्वान दुख देत.
रहिमन चाक कुमार का माँगे दिया न देय, छेद में डंडा डार के चहे नाँद ले लेय. कुम्हार का चाक मांगने से एक दिये जैसी छोटी चीज़ भी नहीं देता और डंडा मारने पर नांद जैसी बड़ी चीज़ भी दे देता है.
रहिमन छोटे नरन सों बड़ो बनत नहीं काम. बहुत सारे छोटे लोग मिल कर भी कोई बड़ा काम नहीं कर सकते.
रहिमन जिह्वा बावरी, कहि गइ सरग पताल, आपु तो कहि भीतर रही, जूती खात कपाल. जीभ कुछ भी बोल कर चुपचाप मुँह के अंदर चली जाती है और सर उसके बदले में जूते खाता है.
रहिमन तीन प्रकार ते हित अनहित पहिचान, पर बस परे, परोस बसि, परे मामला जान. कोई आपका हितैषी है या नहीं इसकी पहचान तीन परिस्थितियों में होती है – आप को कहीं पराधीन होना पड़े उस स्थिति में उस का व्यवहार कैसा है, या फिर उसके पड़ोस में रह कर, या जब उससे कोई काम अटके.
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि, जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तलवारि. कितने भी बड़े लोगों से आपके सम्बन्ध क्यों न हों, छोटे लोगों का अनादर और उपेक्षा नहीं करना चाहिए. जो काम सुई करती है तलवार नहीं कर सकती.
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय, टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय. आवेश में आ कर किसी के साथ सम्बन्ध तोड़ना नहीं चाहिए. जिस प्रकार धागा टूटने के बाद जोड़ा जाए तो उसमें गाँठ पड़ जाती है, उसी प्रकार सम्बन्ध टूटने के बाद जोड़ा जाए तो उसमें भी गाँठ पड़ जाती है.
रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय, सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय. अपने मन की व्यथा को अपने तक सीमित रखना चाहिए दूसरों से नहीं कहना चाहिए. दूसरे लोग सुन कर हंसते हैं, कोई आपका दुख नहीं बांटता.
रहिमन नीचन संग बसि, लगत कलंक न काहि, दूध कलारी कर गहे, मद समुझै सब ताहि. नीच लोगों के संग रहने से कलंक लगने का खतरा रहता है. शराब बेचने वाली स्त्री अगर दूध का गिलास भी पकड़े हो तो सब उसे शराब ही समझते हैं. (कलारी – शराब बेचने वाली).
रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून. बिना स्वाभिमान के मनुष्य बेकार है. इसके आगे की पंक्ति है – पानी गए न ऊबरे, मोती मानुस चून.
रहिमन बहु भेषज करत, ब्याधि न छाँड़त साथ, खग मृग बसत अरोग बन, हरि अनाथ के नाथ. मनुष्य बीमार होने पर तरह तरह की दवाएं करता है लेकिन बीमारी ठीक नहीं होती, जबकि पशु पक्षी वन में निरोग रहते हैं (क्योंकि प्रभु उन सब के रक्षक हैं जिन का कोई नहीं है).
रहिमन बिपदाहू भली, जो थोरे दिन होय, हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय. विपत्ति यदि थोड़े दिन की हो तो उस से एक लाभ भी होता है. यह पता चल जाता है कि मुसीबत में कौन हमारा साथ देने वाला है. इस कहावत को इस प्रकार से भी कहा गया है – बिपद बराबर सुख नही, जो थोड़े दिन होय.
रहिमन मोहिं न सुहाए, अमिय पियावत मान बिनु, जो विष देत बुलाय, मान सहित मरिवो भलो. अपमान सह कर अमृत पीने के मुकाबले सम्मान सहित विष पीना बेहतर है.
रहिमन या संसार में, सब सौं मिलिये धाइ, ना जानैं केहि रूप में, नारायण मिलि जाइ. इस संसार में सब से आदर पूर्वक मिलना चाहिए. क्या मालूम प्रभु कौन सा रूप धर कर हमारी परीक्षा ले लें. भक्त नामदेव ने रोटियाँ सेंक कर रखीं तो कुत्ता उन्हें ले कर भागा. नामदेव कुत्ते के पीछे घी का डब्बा ले कर दौड़े, प्रभु घी तो लगवा लो.
रहिमन रहिला हूँ भली जो परसै चित लाय, परसत मन मैला करै सो मैदा जरि जाय. रहिला – चना. रहीम कहते हैं कि प्रेम से परोसा हुआ सूखा चना, अनमने से परोसी गई मैदा से अच्छा है.
रहिमन वे नर मर चुके जे कहुं मांगन जाएं, उनते पहले वे मुए जिन मुख निकसत नाहिं. किसी से मांगना बहुत निकृष्ट कार्य है लेकिन मांगने वाले को मना करना उस से भी निकृष्ट है.
रहिमन यह तन सूप है, लीजे जगत पछोर, हलुकन को उड़ि जान दे, गरुए राखि बटोर. यह शरीर सूप के समान है जिससे दुनिया में जो कुछ भी है उसे पछोर लेना (फटक लेना) चाहिए. जो हल्का अर्थात सारहीन हो, उसे उड़ जाने दो, और जो भारी अर्थात् सारमय हो, उसे रख लो.
रहिये लटपट काट दिन, बरु घामें मा सोय, छाँय न बाकी बैठिये जो तरु पतला होय. किसी प्रकार दिन काट लीजिये, भले ही धूप में सोना पड़े, लेकिन पतले पेड़ की छाँव में मत बैठिये. ओछे का सहारा नहीं लेना चाहिए.
रहे अंत मोची के मोची. सदा दुर्दशा में रहना.
रहे के ठेकान ना पंड़ाइन मांगस डेरा. भोजपुरी कहावत. अपने रहने का ठिकाना नहीं है और पंडितानी घर में रहने को कह रही हैं.
रहे जीव तो खाए घीव. जान रहेगी तभी तो घी खाओगे. स्वास्थ्य का ध्यान रखना सभी के लिए आवश्यक है.
रहे तो आप से, नहीं तो जाय सगे बाप से. 1. स्त्री सच्चरित्र रह सकती है तो अपने आप ही, अन्यथा अपने बाप के साथ भी बिगड़ सकती है. 2. स्त्री सच्चरित्र रह सकती है तो अपने आप ही अपने बाप के कहने से नहीं.
रहे निरोगी जो कम खाय, बिगरे काम न, जो गम खाय. जो कम खाते हैं वे जल्दी बीमार नहीं पड़ते. जो संतोष करना जानते हैं उनके काम नहीं बिगड़ते.
रहे बजावत दुंदुभी, दसकंधर के द्वार, कलजुग में वो ही भए, जात बंस भुमिहार. भूमिहार – मुख्यत: बिहार में बसने वाली खेतिहर ब्राह्मणों की एक उपजाति, दसकंधर – रावण. भूमिहारों से द्वेष रखने वाले लोगों का कथन है कि ये लोग रावण के द्वार पर दुंदुभी बजाने वालों के वंशज हैं.
रहै का कोरियाने भूँके का चमराने. ऐसा कुत्ता जो रहता और खाता कोरी के घर है और पहरेदारी चमार की करता है. कृतघ्न लोगों के लिए कही कहावत. कोरियाना – बुनकरों की बस्ती. चमराना – चमारों का गाँव.
राँड़ मांड ही में मगन. मांड – उबले हुए चावल को छानने के बाद बचने वाला स्टार्च युक्त पानी. गरीब और वंचित व्यक्ति को जो मिल जाए उसी में खुश हो जाता है.
रांघड़ गूजर दो, कुत्ता बिल्ली दो, ये चारों न हों तो खुले किवाड़ों सो. रांघड़ – मुस्लिम राजपूतों की एक जाति, गूजर – कुछ संपन्न और कुछ खानाबदोश जाति के लोग (कहावत में खानाबदोश गूजरों से ही तात्पर्य है). रांघड़ और गूजरों पर अक्सर चोरियां करने का इल्जाम लगाया जाता है. कहावत में भी यही कहा गया है कि ये दोनों न हों और कुत्ते बिल्लियाँ न हों तो आप किवाड़ खोल कर भी सो सकते हैं.
रांड और खांड का जोवन रात को. दुश्चरित्र स्त्री और मिठाई रात में अपने यौवन पर आती हैं.
रांड का रोना और पुरबा का बहना व्यर्थ नहीं जाते. यदि पुरबा हवा बहे तो वर्षा अवश्य होती है और विधवा स्त्री विलाप करे (दुखी हो कर श्राप दे) तो अमंगल अवश्य होता है).
रांड के रोने में भी बान. विधवा स्त्री विलाप करती है तो भी कुल की मर्यादा का ध्यान रखती है.
रांड को साँड़. विधवा का लड़का, जो पिता के न होने से प्रायः उच्छृंखल बन जाता है.
रांड नानी के घर नाती भतार. विधवा नानी के घर पर धेवता ही घर का मालिक बन जाता है.
रांड रंडापा तब काटे, जब रंडुए काटन देंय. कोई युवा विधवा स्त्री मर्यादा के भीतर रह कर संयम के साथ अपने वैधव्य के दिन काट रही है लेकिन आस पड़ोस के मनचले कुंवारे लड़के उसके आस पास मंडराते रहते हैं और उसको उकसाते रहते हैं. कोई डायबिटीज़ का मरीज़ बेचारा परहेज़ करना चाहता है लेकिन और लोग उससे जिद करते रहते हैं कि यह खा लो वह खा लो.
रांड रोवे मांग खातिर, निपूती रोवे कोख खातिर. विधवा स्त्री सुहाग के लिए तरसती है और निस्संतान स्त्री संतान के लिए. इस संसार में सब के अपने अपने दुख हैं.
रांड रोवे, कुँवारी रोवे, साथ लगी सतखसमी रोवे. विधवा स्त्री अपने कष्टों के कारण रो रही है, साथ में कुँवारी भी मन में डर के कारण रो रही है लेकिन ये सात पतियों वाली क्यों रो रही है.
रांड, भांड और सांड बिगड़े बुरे. दुश्चरित्र स्त्री, हिजड़े और सांड, बिगड़ें तो बहुत नुकसान पहुँचा सकते है.
रांड, सांड और नकटा भैंसा, ये बिगड़ें तो होवे कैसा. दुश्चरित्र स्त्री, सांड और नाथने वाली रस्सी से नाक कटा हुआ भैंसा, ये बिगड़ जाएं बहुत नुकसान कर सकते हैं. हिंसक प्रवृत्ति के पुरुषों के लिए भी प्रयोग करते हैं.
रांड, सांड, सीढ़ी, सन्यासी, इनसे बचे तो देखे काशी. काशी में बहुत सी विधवा स्त्रियाँ स्थान स्थान से आ कर रहती हैं और भिक्षा मांग कर गुजारा करती हैं, वहाँ की तंग गलियों में सांड भी खूब घूमते हैं, काशी के घाटों की सीढ़ियाँ खतरनाक रूप से टूटी फूटी और फिसलन भरी हैं जिनसे आसानी से कोई दुर्घटना का शिकार हो सकता है और काशी में सन्यासी भी बहुत हैं जिनमें से अधिकतर भिक्षा मांगते हैं. इन सब से बचे तो काशी घूमे.
रांडें रोवें सेर सेर, सुहागिन रोवें दो दो सेर. दुखियों का रोना ठीक है, पर जो सुखी हैं वे उनसे भी अधिक रोते हैं.
राई घटे न तिल बढ़े, बेमाता का लेख. (बेमाता – विधाता). विधाता के लिखे को कोई थोड़ा नहीं बदल सकता.
राई सों परवत करे परवत राई माहिं. ईश्वर सर्वशक्तिमान है, वह राई को पर्वत और पर्वत को राई बना सकता है. इसकी पहली पंक्ति है – साईँ से सब होत है बंदे ते कछु नाहिं.
राख से आग नहीं छिपती. किसी ज्वलंत समस्या को ऊपर से ढंकने की कोशिश करो तो भी छिपती नहीं है.
राखन हार भए भुज चार, तो क्या बिगड़े दो भुज के बिगाड़े. चतुर्भुज भगवान जिस की रक्षा करने वाले हों उसका दो भुजाओं वाला मनुष्य क्या बिगाड़ सकता है.
राखो लाख कपूर में हींग न होय सुगंध. हींग को कपूर में कितना भी रख लो उसमें सुगंध नहीं आ सकती. दुष्ट व्यक्ति सज्जनों के बीच रह कर भी नहीं सुधर सकता.
राग ताल का नाम न जाने दोऊ हाथ मजीरा. कुछ भी ज्ञान न होते हुए भी दिखावा करना.
राग, रसायन, नृत्य शास्त्र, नटबाजी, वैद्यंग; अश्वारोहण, व्याकरण ज्ञान, जाने ज्योतिष अंग; धनुष वाण, रथ हांकना, चितचोरी, ब्रह्मज्ञान; जल तैरना घीरज वचन चौदह विद्या निधान. जो मनुष्य इन चौदह विद्याओं में निष्णात हो वह पुरुषोत्तम माना जाता है.
राग, रसोई, पागड़ी, कभी कभी बन पाए. गाने वाला कितना भी कुशल हो राग कभी कभी ही बहुत अच्छा निकल पाता है. इसी प्रकार रसोई कभी कभी ही अच्छी बनती है और पगड़ी कभी कभी ही बहुत अच्छी बंध पाती है.
राज का राज में, ब्याज का ब्याज में, नाज का नाज में. राजा जितना धन इकट्ठा करता है वह सब राजकाज में लग जाता है, सूदखोर जितना ब्याज से कमाता है वह फिर से ब्याज पर चढ़ा देता है और किसान जितना खेती से कमाता है वह सब फिर खेती में लग जाता है.
राज के लुटे और फागुन के कुटे को कोई न पूछत. राजा के द्वारा लूटे गये और होली के अवसर पर पिट गये व्यक्ति से कोई सहानुभूति नहीं दिखाता.
राज सफल तब जानिए, प्रजा सुखी जब होय. कोई भी राज तभी सफल माना जाता है जब प्रजा सुखी हो.
राज हंस बिन को करे, नीर छीर को दोय. राज हंस ही दूध और पानी को अलग कर सकता है. विवेकी व्यक्ति ही गलत सही का उचित मूल्यांकन कर सकता है.
राजा का एक राज, प्रजा के सौ राज. राजा के लिए एक ही राज्य होता है जबकि जनता कहीं भी बस सकती है.
राजा का ओढ़ना, धोबी का बिछौना. किसी व्यक्ति के लिए मूल्यवान कोई वस्तु दूसरे के लिए साधारण वस्तु हो सकती है. राजा जिस ओढ़ने को संभाल कर ओढ़ता है धोबी जब उसे धोने ले जाता है तो उसे बेकद्री से बिछा लेता है. रूपान्तर – सासू का ओढ़ना, बहू का नकपोंछना. नकपोंछना – नाक पोंछने का कपड़ा.
राजा का जी चेरी में, चेरी का जी महेरी में. हर आदमी की रूचि और स्वार्थ अलग अलग वस्तुओं से सिद्ध होते हैं. राजा दासी को भोगना चाहता है और दासी की रुचि पेट भरने में है. महेरी – एक खाद्य पदार्थ.
राजा का दान, प्रजा का स्नान. 1. प्राचीन काल में अच्छे राजा प्रजा के हित के लिए कुँए तालाब आदि खुदवाते थे. 2. राजा का थोड़ा सा दान भी प्रजा के लिए बहुत साबित होता है.
राजा का धन तीन खाएँ, घोड़ा, रोड़ा और दंत निपोड़ा. घोड़ा – फ़ौज, रोड़ा – ईंट, पत्थर, बिल्डिंग (महल, किले आदि) और दंत निपोड़ा – दांत निपोरने वाला,चापलूस. इन्हीं तीनों पर राजा धन लुटाता है.
राजा का परचाना और सांप का खिलाना बराबर है. परचाना – परिचय. राजा से घनिष्ठता बढ़ाना खतरनाक हो सकता है (राजा नाराज हो गया तो सीधे प्राणदण्ड ही देगा).
राजा की कुतिया को कुतिया दीदी कहना पड़ता है. (बुन्देलखंडी कहावत) अर्थ स्पष्ट है. राजा से संबंधित हर चीज का जबरदस्ती आदर करना पड़ता है.
राजा की बेटी से मंगते का ब्याह. भाग्य से कुछ भी हो सकता है.
राजा की सभा नरक को जाए. राजा की सभा में अधिकतर लोग चाटुकार होते हैं जो अन्याय का विरोध न कर के केवल राजा की हाँ में हाँ मिलाते हैं. इसलिए ये सभी लोग नरक के भागी होते हैं.
राजा के घर मोतियों का अकाल? जिस चीज़ की बहुतायत होनी चाहिए उस की कमी हो तो.
राजा के दरबार में रोता जाए वो भी मार खाए, हँसता जाए वो भी मारा जाए (राजा के हुआ बेटा, राजा का मरा बाप, न हंसते बने, न रोते बने). दुविधा की स्थिति हो तो बुद्धि से काम लेना चाहिए. सन्दर्भ कथा – किसी दिन एक राजा की माँ मर गई. ठीक उसी दिन उसको प्रथम बार पुत्र पैदा हुआ. अब उसके यहाँ माँ की मृत्यु के कारण, जो रोता हुआ जाता, उसे भी वह दंड देता था और जो पुत्र-जन्म की खुशी में हंसता हुआ जाता, उसे भी. अन्त में एक चतुर भाट विचित्र भाव-भंगिमा बनाये, अस्त-व्यस्त अवस्था में वहाँ पहुँचा. राजा ने उसकी ऐसी स्थिति का कारण पूछा, तो उसने बताया – सुना है, सरकार की माँ मर गई हैं और उसी समय सरकार को पुत्र भी पैदा हुआ है. ऐसी दशा में समझ नहीं आ रहा कि में हँसू या रोऊँ. राजा उसके ऐसे स्पष्टीकरण से बहुत प्रसन्न हुआ और उसने उसे पर्याप्त पुरस्कार दिया.
राजा के दुआरे दावत भई, कुकुर की जान ख़ुसी में गई. राजा के घर में दावत हुई तो कुत्ते ने सोचा कि खूब सारी झूठन खाने को मिलेगी. ख़ुशी के मारे ही वह मर गया. नदीदे लोगों का मजाक उड़ाने के लिए.
राजा के नौकर महाराज. राजा के नौकर अपने को राजा से बढ़ कर समझते हैं.
राजा को दूसरो, अरंड को मूसरो और बकरिया को तीसरो, ये कमजोर रहते हैं. राजा अपना राज्य और सारे अधिकार बड़े बेटे को देता है इसलिए दूसरा बेटा कमजोर रहता है, अरंड की लकड़ी कमजोर होती है इसलिए उस का डंडा मजबूत नहीं होता और बकरी के दो थन होते हैं लिहाजा तीसरे बच्चे को दूध नहीं मिल पाता, इसलिए वह कमज़ोर रहता है.
राजा को पतै नहीं, बनजारे बन बांट लिहै. राजा को पता ही न चल पाया और बंजारों ने वन आपस में बांट लिया. सरकारी संपत्ति के कुप्रबंधन पर व्यंग्य. आज भी सरकारी भूमि पर गाँव और कालोनियां बन जाती हैं.
राजा गए बिदेसवा मैं कहाँ कहाँ जाऊं, सासु गई हाट मैं क्या क्या खाऊं. बहू कहती है कि पति परदेस गए हैं, मैं कहाँ कहाँ घूम लूँ, और सास बाजार गई हैं तो क्या-क्या बनाकर खा लूं.
राजा छुए और रानी होय. जिस पर राजा की कृपादृष्टि हो जाए उस की मौज है.
राजा दुखिया, प्रजा दुखिया, जोगी का दुख दूना. संसार में सबको अपने अपने दुख हैं लेकिन जोगी को इन सब से ज्यादा दुख है क्योंकि वह सारे संसार के दुख में दुखी है.
राजा नटे तो किससे कहे. जब न्याय देने वाला राजा ही अपनी बात से मुकर जाए तो किससे गुहार लगाएँ.
राजा नल पर बिपत परी, भूनी मछली जल में तिरी. जब व्यक्ति पर विपत्ति आती है तो कुछ भी अनर्थ हो सकता है. राजा नल पर विपत्ति पड़ी तो भूनी हुई मछली वापस जल में तैर गई. सन्दर्भ कथा – बुरे दिन आने पर सभी बातें उल्टी हो जाती हैं. जब राजा नल जुए में अपना राजपाट हार गए, तो रानी दमयंती को लेकर जंगल में चले गए. वहां एक दिन उन्हें कुछ खाने को नहीं मिला, तब भूख से व्याकुल होकर उन्होंने तालाब में से मछली पकड़ी और उसे आग में भूना. यह देखकर कि उसमें बहुत राख लगी है, रानी जब उसे पानी में धोने गई, तो वह ज़िंदा हो गई और तैर कर चली गई
राजा फल मांगता है तो दरबारी पेड़ उखाड़ लाते हैं. चाटुकार लोग अपने मालिक को खुश करने के लिए आगे से आगे बढ़ कर काम करते हैं. कुछ नेताओं के चमचे भी ऐसी हरकतें करते हैं.
राजा बांधे दल, बैद बांधे मल. राजा लोगों के दल को बाँध कर (संगठित कर के) सेना का गठन करता है और वैद्य दवाओं द्वारा मल को बाँध कर दस्तों को रोकने का काम करता है.
राजा बुलावे, ठाड़े आवे. राजा के बुलाने पर हर आदमी को दौड़ कर आना पड़ता है.
राजा माने सो रानी, और भरें सब पानी. राजा के रनिवास में अनेक रानियाँ होती हैं. जो राजा को सबसे प्रिय हो वही महारानी बनती है, और सब को उस की गुलामी करनी पड़ती है. इसी प्रकार किसी भी महकमे में जिस पर बड़े हाकिम मेहरबान हो उसी कर्मचारी की मौज है.
राजा रिसियाये राज लेय, क्या किसी का भाग लेय. रिसियाये – नाराज हो जाए. राजा यदि नाराज होगा तो अपने राज्य से निकाल देगा या दी हुई सुविधाएं वापस ले लेगा, किसी की किस्मत थोड़े ही ले लेगा. इस कहावत को इस प्रकार से भी कहा गया है – राजा रूठेगा (रूसेगा) तो अपनी नगरी लेगा, किसी का भाग तो नहीं लेगा.
राजा रीझे तो दोनों कान सोन, बनिया रीझे तो छटांक भर नोन. राजा खुश होगा तो दोनों कानों में सोने के कुंडल पहना देगा, बनिया खुश होगा तो छटांक भर नमक दे देगा. अपना अपना दिल, अपनी अपनी औकात.
राजा, योगी, अग्नि, जल इनकी उलटी रीति, डरते रहियो परसुराम थोड़ी राखें प्रीति. परसुराम नाम के कोई सयाने व्यक्ति यह बता रहे हैं कि राजा, योगी, अग्नि और जल ये किसी से अधिक प्रीति नहीं रखते (कभी भी अत्यधिक नुकसान पहुँचा सकते हैं), इसलिए इन से डर कर रहना चाहिए.
राजी बिरजी दो जनें, झक मारें सौ जनें. दो आदमी किसी मामले में राजी हों तो कोई क्या कर सकता है.
राजी से सब कोउ नवे, जबरन नवे न कोय. आपसी सहमति और प्रेम से सब का विश्वास जीता जा सकता है, जबरदस्ती से नहीं.
राड़ में जाए न रण में जूझे, अपनी कहे न पराई बूझे. दूसरों से कोई सरोकार न रखने वाला व्यक्ति.
राड़ से बाड़ भली (रार से दीवार भली). घर में रोज रोज के झगड़े के मुकाबले दीवार खींच कर घर अलग कर लेना अधिक अच्छा है.राड़ – झगड़ा, बाड़ – दीवार.
राड़म् रेड़म् पवित्रम् राड़ – झगड़ालू व्यक्ति, रेड़ – पिटाई. दुष्ट लोग मारने पीटने से ही राह पर आते हैं.
रात की कमाई, पड़ी पाई. रात तो सोने में ही नष्ट हो जाती है इसलिए रात में यदि कोई लाभदायक काम कर लिया तो यह समझो जैसे कोई चीज पड़ी मिल गई.
रात की नीयत हराम. रात में अनैतिक काम और अपराध अधिक होते हैं इसलिए ऐसा कहा गया है.
रात को झाड़ू देनी मनहूस है. पुराने लोग कहते हैं कि रात को झाडू नहीं देनी चाहिए, इससे लक्ष्मी घर से चली जाती है. इस प्रकार की पुरानी बातों के पीछे अक्सर कोई तर्क छिपा होता है. दिए की मद्धिम रोशनी में ईंटों के फर्श पर झाड़ू लगाने में इस बात का खतरा था कि यदि कोई बहुमूल्य वस्तु जमीन पर गिर गई होगी तो दिखाई नहीं देगी और कूड़े के साथ चली जाएगी.
रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय, हीरा जन्म अमोल सा, कौड़ी बदले जाय. कबीर दास जी कहते हैं कि रात सो कर गँवा दी और दिन खाते खाते गँवा दिया. जो ये अनमोल जीवन मिला है वो कोड़ियों में जा रहा है.
रात गई बात गई. रात में जो भी कोई अप्रिय घटना, मनमुटाव, क्लेश इत्यादि हुआ हो उसको रात बीतने के साथ भुला दो. नए दिन को नई सोच के साथ आरंभ करो.
रात थोड़ी कहानी बड़ी (रात थोरी, स्वाँग भौत). स्वांग – नाटक. समय कम है काम बहुत है.
रात नर्बदा उतरीं, दिन को कुआँ देख डरीं. रात समय तो नर्मदा नदी तैर कर पार उतर गई और दिन को कुंआ देखकर डर गई. अपनी बहादुरी की झूठी डींगें हांकने वालों का मजाक उड़ाने के लिए.
रात पिया गोद सोवे तो दिन घूँघट कैसा. रात को पति की गोद में सोई तो दिन में पति से पर्दा क्यूँ. छिप कर भ्रष्टाचार करने और बाहर से अपने को सज्जन और संकोची प्रदर्शित करने वालों के लिए.
रात भर गाई बजाई, लड़के के नूनी ही नहीं. नूनी – लिंग. लड़का पैदा होने की ख़ुशी में रात भर गा बजा लिए, सुबह देखा कि लड़का तो शिखंडी है. एक जमाने में समाज का यह नियम था कि जिन बच्चों का लिंग निर्धारण न हो पा रहा हो (कि वह लड़का है या लड़की) उसको परिवार के लोग नहीं रख सकते थे. उसको हिजड़ों को सौंपना होता था. कोई काम ठीक से पूरा हुआ या नहीं यह जाने बिना बहुत जल्दी खुश नहीं होना चाहिए.
रात भर मिमियाई, एको न ब्याही. बकरी रात भर में में करती रही और एक बच्चा भी नहीं ब्याहा. शोर बहुत मचाया, काम कुछ नहीं किया.
रात भरे दिन रीते, इन पेटन ने जग जीते. रात को भर पेट खाना मिल भी जाए तो दिन में फिर पेट खाली हो जाता है. पेट भरने के लिए व्यक्ति को निरंतर प्रयास करना पड़ता है. पेट ने दुनिया को गुलाम बना कर रखा है.
रात में बोलै कागला, दिन में बोलै स्याल, तो यूँ भाखै भड्डरी, निशचै पड़े अकाल. भड्डरी कवि कहते हैं कि रात में कौआ बोले और दिन में सियार बोले तो अकाल पड़ना निश्चित है. भाखे – बोले.
रातों रोई एक न मरा. बहुत कोसा पर किसी का कुछ नहीं बिगड़ा.
राधे राधे रटत हैं आक ढाक अरु कैर, तुलसी या ब्रजभूमि में कहा राम से बैर. ब्रजभूमि में पेड़ पौधे तक राधे राधे रटते हैं. तुलसी को इस बात का आश्चर्य है कि यहाँ राम का नाम कोई नहीं लेता. तुलसी दास चाहते थे कि सभी हिन्दू लोग प्रभु राम से प्रेरणा ले कर अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करें. उन्होंने वृन्दावन में भगवान कृष्ण की मूर्ति देख कर कहा था – कहा कहूँ छवि आप की भले बने हो नाथ, तुलसी मस्तक जब नवे, धनुष वान लेउ हाथ.
रानी को कानी कौन कहे. जो सामर्थ्यवान है (विशेषकर जो आपको नुकसान पहुंचा सकता है) उसकी बुराई कोई नहीं कर सकता.
रानी को कौन कहे आगा ढक. जो शक्तिशाली है उसे नसीहत देने में खतरा है.
रानी को राना प्यारा, कानी को काना प्यारा. सभी स्त्रियों को अपना पति प्यारा होता है (वह कैसा भी हो).
रानी गईं हाट, लाईं रीझ कर चक्की का पाट. रानी बाज़ार गईं तो लोग सोच रहे थे कि कोई बड़ी नायाब चीज़ लाएंगी, पर वह चक्की का पाट ले कर आयीं. बड़ा आदमी कोई छोटा और तुच्छ काम करे तो.
रानी जी जब तक सिंगार करेंगी, तब तक राजा जी सो जाएंगे. राजा को रिझाने के लिए रानी श्रृंगार ही करती रहीं और राजा जी सो गए. किसी काम में इतनी देर लगा देना कि उस का लाभ ही न रहे.
रानी जी राग गावें तो सौ जनी सिर हिलावें. रानी कोई भी काम करें तो उसकी तारीफ़ करनी पड़ती है.
रानी दीवानी हुईं, औरों को पत्थर, अपनों को लड्डू मारें. बनावटी पागल. कोई स्त्री पागल होने का नाटक कर रही है, औरों को तो पत्थर मार रही है और अपने लोगों पर लड्डू फेंक रही है.
रानी रूठेंगी अपना सुहाग लेंगी, कोई भाग तो न लेंगी. राजा रानी किसी स्त्री से उसका धन, घरबार या पति छीन सकते हैं, उसका भाग्य नहीं छीन सकते. कुछ लोग रानी का अर्थ पार्वती देवी से बताते हैं.
राम कहो आराम मिलेगा. शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार के कष्ट राम का नाम लेने से कम महसूस होते हैं. कुछ लोग बोलते हैं – राम कहो आराम मिलेगा, कृष्ण कहो कुछ और मिलेगा.
राम का खाये, रावण का गीत गाये. जो लाभ किसी सज्जन से प्राप्त करे और प्रशंसा किसी दुर्जन की करे. जैसे देश में रहने वाले कुछ लोग जो सरकारी लाभ प्राप्त करने में आगे रहते हैं पर भला पड़ोसी देशों का चाहते हैं.
राम का नाम प्रात की बेरा. सुबह सुबह राम का नाम ही लेना चाहिए, किसी का बुरा नहीं सोचना चाहिए एवं कोई अशुभ बात या अपशब्द नहीं बोलना चाहिए.
राम की भी जय और रावण की भी जय. जो लोग अपने स्वार्थ के लिए अच्छे बुरे सब से मिला कर चलते हैं.
राम के दिन भले बन जइहें, सीता के दिन वियोगे जइहें. कष्ट के दिनों में व्यक्ति को दिलासा देने के लिए.
राम के भगत काठ के गुरिया, दिन भर माला रात के घुसकुरिया. उन पाखंडी साधुओं के लिए जो दिन में माला जपते हैं और रात में घर में घुस कर मौज मनाते हैं.
राम के लिखल रहे वन, और कैकयी के अपजस. (भोजपुरी कहावत) भाग्य से ही सब होता है. राम के भाग्य में वनवास लिखा था और कैकेयी के भाग्य में अपयश.
राम झरोखा बैठ कर सबका मुजरा लेय, जैसी जाकी चाकरी वैसा बाको देय. ईश्वर सब कुछ देखता है कि कौन क्या कर रहा है और उसी के अनुसार सब को उसका फल देता है.
राम न जाते हिरन संग सीय न रावन साथ, जो रहीम भावी कतहुं होत आपने हाथ. भविष्य में क्या होने वाला है यह कोई नहीं जान सकता. यदि जान सकते होते तो ऐसा होने ही क्यों देते.
राम न रूठे, सब जग रूठे. हम सब यही चाहते हैं कि ईश्वर हम पर कुपित न हों.
राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट, अंत काल पछताएगा, जब प्राण जाएंगे छूट. राम नाम का खजाना खुला हुआ है, इस जग में रहते हुए जितना लूट सको उतना लूट लो. प्राण छूटने के बाद पछताओगे कि समय रहते यह काम क्यों नहीं किया.
राम नाम के कारने सब धन डारो खोय, मूरख जाने खो गया दिन दिन दूना होय. ईश्वर की भक्ति में अपना सब धन लुटा दो. मूर्ख लोग समझते हैं उनका धन खो गया, जबकि ज्ञानी लोग जानते हैं कि धन दूना हो रहा है.
राम नाम जपना (राम राम जपना), पराया माल अपना, जो लोग धर्म-कर्म और पूजा पाठ का दिखावा तो बहुत करते हैं लेकिन लोगों के साथ धोखाधड़ी और ठगी करते हैं उनके लिए यह कहावत है.
राम नाम में आलसी भोजन में होशियार, तुलसी ऐसे जीव को बार बार धिक्कार. ऐसे लोगों को धिक्कारा गया है जिनको प्रभु का नाम लेने में आलस आता है पर खाने पीने में सबसे आगे रहते हैं.
राम नाम लड्डू, गोपाल नाम घी, हर का नाम मिश्री, तू घोल घोल पी. भगवान के नाम में बहुत मिठास है इस को पीने वाला ही जान सकता है.
राम नाम ले सो धक्का पावे, चूतड़ हिलावे सो टक्का पावे. आजकल के समय में भगवान का भजन करने वाला तो धक्के खा रहा है और फूहड़ पन से नाचने वाला (जैसे सिनेमा के नायक नायिकाएँ) पैसा कमा रहा है.
राम नाम सत्य है, सत्य बोले मुक्ति है. वैसे तो बिलकुल सामान्य सा कथन है लेकिन क्योंकि अर्थी ले जाते समय इस कथन का उच्चारण बार बार किया जाता है इसलिए लोकभाषा में इस का प्रयोग मृत्यु होने के लिए ही करते हैं. अर्थ यह है कि जीवन में कुछ भी करें, अंतिम सत्य राम का नाम ही है.
राम बढ़ावे सो बढ़े, बल कर बढ़ा न कोय, बल करके रावन बढ़ा, छिन में डाला खोय. मनुष्य ईश्वर की कृपा से बड़ा बनता है अपने बल से नहीं. बल से बड़ा बनने की कोशिश करने वाले रावण के समान नष्ट हो जाते हैं.
राम बिना दुख कौन हरे, माता बिन भोजन कौन धरे, बरखा बिन सागर कौन भरे, नारी बिन धीरज कौन धरे. राम के अतिरिक्त दुख कौन हर सकता है, माँ के अतिरिक्त भोजन कौन करा सकता है, वर्षा न हो तो सागर को कौन भर सकता है और नारी के सामान धीरज कौन धर सकता है.
राम बुलावा भेजिया, दिया कबीरा रोय, जो सुख साधू संग में, सो बैकुंठ न होय. जब मृत्यु का समय नजदीक आया तो कबीर दास जी रो पड़े क्यूंकि जो आनंद संतों की संगति में है वह आनंद तो स्वर्ग में भी नहीं होगा.
राम भये जेहि दाहिने, सबै दाहिने ताहि. जिस के सहायक ईश्वर हैं उसके सब सहायक हो जाते हैं.
राम भरोसे जो रहें परवत पर हरियाएं (तुलसी बिरवा बाग़ के सींचत हूँ कुम्हलाएँ). बाग़ में लगे पौधे सींचने के बाद भी मुरझा सकते हैं और प्रभु की कृपा पा कर पर्वत पर भी पेड़ लहरा सकते हैं. इस कहावत में यह सीख भी है कि बच्चों का बहुत लाड़ कर के कोमल नहीं बनाना चाहिए, कुछ आत्म निर्भर और मजबूत भी बनाना चाहिए.
राम मरे तो मैं मरूं मरे मेरी बलाय, अविनासी का बालका कभी ने मारा जाए. यदि कोई मेरे मरने की कामना करता है तो यह उसकी मूर्खता है. जैसे ईश्वर अजर अमर है वैसे ही मेरी आत्मा अजर अमर है.
राम मिलाइ जोड़ी इक अंधा इक कोढ़ी. दो एक से मूर्ख या बेकार लोगों की जोड़ी.
राम राम कहते रहो, जब लग घट में प्रान, कबहुं तो दीनदयाल के भनक परेगी कान. जब तक शरीर में प्राण है राम का नाम जपते रहो, कभी न कभी तो ईश्वर आपकी प्रार्थना सुनेंगे.
राम रूठे तो हो वो दुनिया खोटी, रुपया रूठे तो इस जग में मिले न रोटी. परलोक सुधारने के लिए ईश्वर की कृपा हो यह तो आवश्यक है ही लेकिन सांसारिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए धन भी आवश्यक है.
राम वाम तो सभै वाम. वाम – प्रतिकूल. ईश्वर रुष्ट हों तो अपने सगे संबंधी भी प्रतिकूल हो जाते हैं.
राम विमुख सिधि सपनेहूं नाहीं. जो राम की भक्ति नहीं करता वह सपने में भी सफलता नहीं प्राप्त कर सकता.
रामजी की चिरई, राम जी का खेत, खा ले चिरई भर भर पेट. दूसरे के खेत को चिड़ियाँ चुग रही हैं तो हमें कोई चिंता नहीं है.
रामलली के तीन सौ, रामलाल के तीन. 1. रामलली कोई नर्तकी हैं जिनको देखने तीन सौ लोग आते हैं. रामलाल रामकथा सुनाते हैं जिस में तीन लोग आते हैं. 2. नर्तकी को तीन सौ रूपये मेहनताना मिलता है और कथावाचक को तीन रूपये. जिन्होंने प्रेमचन्द की कहानी ‘रामलीला‘ पढ़ी है वे इस बात को भलीभांति समझ सकेंगे.
रार (राड़) के सर पैर नहीं होते. झगड़े के सर पैर नहीं होते. वह बिना बात पैदा होता है और बिना बात बढ़ता है.
राव न जाने भाव. 1.राजा लोग चीजों के दाम की क्या चिंता करें. 2.राजा किसी की भावना की कद्र नहीं करता.
रावन ने जब जनम लिया, थीं बीस भुजा दस सीस, मात अचम्भे हो रही, किस मुख में दूँ खीस. 1. विचित्र समस्या से पाला पड़ना. 2. बहुत सारी समस्याएँ एक साथ आ जाएं तो किससे पहले निबटें?
रास्ता न मालूम हो तो धीरे चलो. जिस काम का पर्याप्त अनुभव न हो उस में जल्दबाजी नहीं करना चाहिए.
राह के पत्थर पे बंदूक का पहरा. मूर्खतापूर्ण कार्य. जो पत्थर रास्ते में पड़ा है, उस की सुरक्षा की क्या जरूरत है.
राह न हारे, चलने वाला हारे. किसी ने पूछा – यह रास्ता कहाँ जाता है, जवाब मिला – रास्ता कहीं नहीं जाता, चलने वाले जाते हैं. रास्ते कभी ख़त्म नहीं होते, चलने वाले ही हार कर रुक जाते हैं.
राह बतावे सो आगे चले. जो रास्ता बताता है उसी से आगे चल कर राह दिखाने को कहा जाता है.
रिन के सोच न धन के सोच, वे धमधूसर काहे न मोट. रिन – ऋण (कर्ज), धमधूसर – मस्त और मोटा आदमी. जिसको न धन की चिंता है और न कर्ज अदायगी की वह खा के मोटा क्यों न होगा.
रिनकर्ता पिता शत्रु. ज्यादा ऋण लेने वाला पिता शत्रु के समान है क्योंकि संतान को वह ऋण चुकाना पड़ता है.
रियासत के बगैर सियासत नहीं होती. 1. राजनीति में पाँव जमाने के लिए धन बल एवं जन बल का होना आवश्यक है. 2. राज्य हथियाने के लिए ही राजनीति की जाती है.
रिश्ता कीजे जानकर और पानी पीजे छानकर. कहीं शादी ब्याह का रिश्ता करना हो तो पहले पूरी छानबीन कर लेनी चाहिए और पानी हमेशा छान कर पीना चाहिए.
रिश्वत के चार भेद, नज़राना, शुक्राना, मेहनताना और जबराना. रिश्वत चार प्रकार की होती है. होली दीवाली हाकिम को भेंट दे आओ यह नज़राना, काम कराने के बाद अपने मन से कुछ भेंट दे आओ यह शुक्राना, काम कराने के बाद काम के हिसाब से पैसा दो यह मेहनताना और हाकिम या बाबू ये कहे कि तू रिश्वत नहीं देगा तो काम नहीं करूंगा तो यह जबराना.
रिश्वत लेता पकड़ा गया, रिश्वत दे कर छूट गया. रिश्वत की महिमा न्यारी है. जो रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ पकड़ा गया हो वह भी रिश्वत ही दे कर ही छूटता है.
रिस खाय आप को, बुद्धि खाय आन को. रिस – क्रोध, आप – स्वयं, आन – अन्य. क्रोध करके व्यक्ति केवल अपने तन मन को नुकसान पहुँचाता है और बुद्धि का प्रयोग करके दूसरे को नुकसान पहुँचा सकता है.
रिस मारे रसायन पैदा होता है. द्वेष और क्रोध को मारने से ही प्रेम भाव पैदा होता है.
रीछ का एक बाल भी बहुत है. 1. पुराना विश्वास है कि रीछ के बाल को तावीज़ में रख कर पहनाने से नज़र नहीं लगती. 2. बड़े लोगों की छोटी सी अनुकम्पा भी गरीब के लिए बहुत माने रखती है.
रीझे तो निहाल करे खीजे तो पैमाल. यह बात राजा और ईश्वर दोनों के लिए कही जा सकती है कि वे अगर प्रसन्न हों तो निहाल कर दें और नाराज़ हो जाएँ तो दुर्दशा कर दें.
रीता थोथा लाड़ बंदरिया का. बंदरिया अपने बच्चे को छाती से चिपकाए रहती है लेकिन अगर वह खाने को मांगता है तो कुछ नहीं देती. दिखावटी प्यार के लिए इस कहावत को प्रयोग करते हैं.
रीता प्रेम हत्या बराबर. दिखावटी प्रेम बहुत बड़ा पाप है.
रीती भरे भरी ढुलकावे, मेहर करे तो फेरि भरावे. रीता–खाली, मेहर-कृपा. ईश्वर जब कृपा करता है तो खाली कुप्पे को भर देता है, जब कुपित होता है तो भरे हुए को लुढ़का देता है, फिर प्रसन्न होता है तो फिर भर देता है.
रीते कुँए पत्तों से नहीं भरते. बहुत बड़ी डिमांड को थोड़ी सी सप्लाई से पूरा नहीं किया जा सकता. लालची व्यक्ति थोड़े में संतुष्ट नहीं होते.
रीस अच्छी, हौंस बुरी. रीस – स्पर्धा, हौंस – ईर्ष्या. किसी की उन्नति देख कर स्वयं उस के जैसा बनने के प्रयास करना चाहिए, उस से ईर्ष्या नहीं करना चाहिए.
रीस करता आगे बढ़े, दिलजला जल कर मरे. किसी को आगे बढ़ता देख कर जो स्वस्थ प्रतिस्पर्धा करता है वह आगे बढ़ता है, जो ईर्ष्या करता रहता है वह जल कर मरता रहता है.
रुके हुए काम तो रावण के भी रह गए थे. रावण आकाश तक जाने वाली सीढियां बनाना चाहता था और सोने में सुगंध मिलाना चाहता था लेकिन नहीं कर पाया.
रुपया परखे बार बार, आदमी परखे एक बार. चाहे रूपये को बार बार परखो (कि असली है या नहीं) पर आदमी को एक ही बार में परख लेना चाहिए कि वह विश्वसनीय है या नहीं.
रुपया है तो शेख, नहीं तो जुलाहा. धन से ही आदमी की इज्ज़त होती है.
रुपये को रूपया खींचता है. पूँजी से ही पूँजी पैदा होती है. सन्दर्भ कथा – किसी मूर्ख व्यक्ति ने यह सुन रखा था कि रुपया ही रुपये को खींचता है. उसने इसका प्रयोग करना चाहा. उसने कहीं कुछ व्यक्तियों को रुपये गिन-गिनकर थोक में रखते देखा. वह वहीं थोड़ी दूर पर बैठ गया और अपनी टेंट से एक रुपया निकालकर रुपये की थोक के आमने- सामने दिखाने लगा. वह बहुत देर तक वैसा करता रहा, लेकिन थोक से निकलकर एक भी रुपया उसके पास नहीं आया. रुपये गिनने वालों ने उसे ऐसा करते हुए देखा तो वे समझे कि उस ने इन्हीं रुपयों में से चोरी कर ती है और दो चपत्त लगाते हुए उसका रुपया छीनकर रुपयों को थोक में रख दिया. उस मूर्ख व्यक्ति ने रोते-गिड़गिड़ाते हुए अपने प्रयोग को पूरी कहानी कह सुनाई. इस पर वे लोग बोले तुमने ठीक ही तो सुना है कि रुपया को रुपया खींचता है. इसी का यह फल है कि तुम्हारा रुपया खिंच कर रुपयों की थोक में आ मिला.
रूख बिना न नगरी सोहे, बिन बरगे नहिं कड़ियाँ, पूत बिना न माता सोहे, लख सोने में जड़ियाँ. रूख – वृक्ष, बरगे – कड़ियों पर रखे जाने वाले लकड़ी के तख्ते. वृक्षों के बिना नगर शोभा नहीं देता और तख्तों के बिना छत की कड़ियाँ शोभा नहीं देतीं. इसी प्रकार स्त्री की शोभा पुत्र से ही है (सोने के गहने लादने से नहीं).
रूखा खाना, धरती सोना, नहिं आसान है फक्कड़ होना. फाकेमस्त होना आसान नहीं है. खाने को रूखा-सूखा मिलता है, जमीन पर सोने को मिलता है, कोई आराम की जिन्दगी नहीं होती.
रूखा भोजन भूत भोजन. रूखा भोजन करना बहुत कष्टकर कार्य है.
रूखा-सूखा खाना और खरा कमाना. सबसे अच्छा सिद्धांत है ईमानदारी से काम करके पैसा कमाना, चाहे रूखा सूखा ही खाने को मिले.
रूखी खाएँ, मूछन को घी चुपरें. मूर्खतापूर्ण कार्य. खाना चाहे रूखा खाना पड़े अकड़ पूरी रहना चाहिए.
रूठे बाबा, दाढ़ी हाथ. बूढ़ा आदमी नाराज होता है तो अपनी दाढ़ी पकड़ता है. इस को इस तरह भी कह सकते हैं कि बूढ़े आदमी की घर में कोई पूछ नहीं है, वह रूठेगा भी तो अपनी ही दाढ़ी नोचेगा.
रूठे भगवान, तो दे खोटी संतान. भगवान नाराज होते हैं और दंड देना चाहते हैं तो खोटी संतान दे देते हैं.
रूप की काली नाम कनको बाई. किसी महिला का रंग अच्छा खासा काला है. देखने में थोड़ी कुरूप भी है. पर नाम है कनक बाई (कनक माने सोना). जहां नाम, रूप व गुण में बहुत अंतर हो.
रूप की रोवे कर्मों की खाय, राजा की बेटी लकड़हारे को जाय. केवल रूप गुण ही व्यक्ति का भविष्य तय नहीं करते, भाग्य का भी उसमें बड़ा हाथ होता है. एक रूपवती राजकुमारी का उदाहरण दिया गया है जिसको उसके दुर्भाग्य के कारण (पिछले जन्म के कर्मों के फल कारण) लकड़हारे से शादी करनी पड़ती है.
रूप की रोवे, करमों की हँसे. 1. यहाँ कर्मों का अर्थ भाग्य (पिछले जन्म के कर्मों के अनुसार) समझें तो अर्थ यह हुआ कि जिस लड़की का भाग्य अच्छा न हो वह रूपवती हो कर भी दुखी रह सकती है और भाग्यवान रूपवती न हो तब भी खुशहाल हो सकती है. 2. करमों का अर्थ कामकाजी होने से समझें तो अर्थ हुआ कि रूप की नहीं कामकाज की कद्र होती है. (औरत का काम प्यारा होता है चाम नहीं).
रूप को क्या आभूषण. जो सही मानों में सुंदर हो उसे आभूषणों की क्या आवश्यकता.
रूप तो भगवान ने संवारा, बुद्धि से भी दुश्मनी. किसी कुरूप और मूर्ख व्यक्ति के लिए.
रूप देख रीझे सो पाछे पछताए. जो लोग केवल सुन्दरता देख कर विवाह कर लेते हैं वे बाद में पछताते हैं.
रूप लाल जी गुरू बाकी सब चेला. रुपया सब का गुरु है.
रूपये की जड़ कलेजे में होती है. रुपया सब को जान से भी प्यारा होता है.
रूपये वाले को रूपये की, पर मोको राम की आस. धनी को हर काम के लिए पैसे की आस होती है पर गरीब को तो भगवान का ही सहारा है.
रे मन अधिक न बोलिए, अति बोले पत जाए. अधिक बोलने वाले का लोग सम्मान नहीं करते.
रेंकते गधे को चोर ले गये. कोई चीज़ खुले आम सब के देखते देखते चोरी हो जाए तो.
रेशम कितना भी फट जाए, कहलाएगा रेशम ही. अर्थ स्पष्ट है.
रेशम पहन के भी बकरी बकरी ही रहती है. अच्छे कपड़े पहनने से कोई इज्ज़तदार नहीं हो जाता.
रैन गई अरु भोर भई, सुख नींद सोया के माला जपी. रात बीत गई है और सुबह हो गई है. बता तूने भगवान को याद किया कि नहीं (अब तो याद कर ले या सांसारिक सुखों में ही डूबा रहेगा).
रैन गई तो जान दे सजनी, दिन मत खोवे री. जो दुख के दिन बीत गए तो उन को याद कर कर के अब सुख के दिनों को मत खोवो.
रो के पूछ ले हंस के उड़ाता फिरे. ऐसा व्यक्ति जो सहानुभूति दिखा के किसी मन का भेद ले ले और फिर सब के बीच उसकी हंसी उड़ाए.
रो रो खाई, धो धो जाई. रो रो कर खाओगे तो शरीर को नहीं लगेगा, बार बार शौच जाओगे. जो भी खाने को मिले प्रसन्न मन से खाना चाहिए.
रोइ रोइके पाइये, रुपिया जिसका नाम, जब जाये फिर रोइये, इह सुख किसको काम. रुपया आता भी रो रो के है और जाता है तो भी आदमी को रुलाता है. ऐसा सुख किस काम का.
रोई काहे, कही नंद ने देख लिया. कोई स्त्री अकेले में भले ही अपने पति के हाथ से पिटती रहे, परन्तु कोई यदि देख ले, विशेषकर देखने वाली ननद हो, तो वह रो पड़ेगी. दूसरे के सामने अपमान बर्दाश्त नहीं होता.
रोउनी पतोहू, चुअना घर, नीक न होय कही बात खर. रोउनी-हर समय रोने वाली, पतोहू–पुत्र वधू, चुअना-जो घर पानी बरसने से टपकता हो. घर में हर समय रोने वाली बहू तथा घर की टूटी छत बुरे लक्षण हैं.
रोए पीटे जन पतियाएँ. जो अधिक रोता पीटता है उसे ही लोग दुखी मानते हैं.
रोग और राजा निर्बल को ही दबाते हैं. रोग भी कमज़ोर आदमी को जल्दी होता है और राजा भी निर्बल लोगों पर ही अपनी ताकत दिखाता है.
रोग का घर खांसी, लड़ाई का घर हाँसी. इस कहावत में एक सीख तो यह दी गई है कि यदि किसी को लगातार खांसी आती हो तो उसे कोई गंभीर बीमारी हो सकती है. दूसरी एक बहुत महत्वपूर्ण सीख दी गई है कि किसी की हंसी उड़ाना लड़ाई को न्योता देने के समान है. सन्दर्भ कथा – धृततराष्ट्र ने हस्तिनापुर का बंटवारा किया तो पांडवों को जंगल वाला हिस्सा दे दिया था. पांडवों ने अपनी कर्मठता से उसे बहुत सुंदर बना लिया और कौरव भाइयों को अपने यहाँ निमंत्रण दिया. वहाँ एक स्थान पर दुर्योधन भूमि के धोखे में पानी में गिर पड़ा तो द्रोपदी ने हंसकर कहा “अंधे का पुत्र अंधा.” महाभारत के युद्ध की जड़ यही हंसी थी
रोग गए वैद्य वैरी. रोग ठीक होने के बाद वैद्य (या डॉक्टर) दुश्मन लगने लगता है (उस की फीस भी भारी लगती है और वह परहेज वगैरा भी बताता है इसलिए).
रोग जिन बनायो तिन औषधी बनाई है. जिन प्रभु ने रोग बनाया है, उन्होंने उसकी दवा भी बनाई है. जब व्यक्ति रोग से पीड़ित हो कर निराश होता है तो उसे सांत्वना देने के लिए.
रोग, दोस, दुस्मन को कभी छोटा न समझो. अपने शरीर के रोग, अपने दोष और अपने शत्रु को कभी छोटा समझ कर नजरअंदाज़ नहीं करना चाहिए.
रोगिया भावे सो बैद बतावे. रोगी को जो अच्छा लगे चालाक वैद्य वही बताते हैं.
रोगी आधा बैद होय. बीमार व्यक्ति दवा खाते-खाते आधी दवाइयां खुद ही जान जाता है.
रोगी को रोगी मिला कहा नीम पी. दो रोगी मिलते हैं तो बीमारी और इलाज की ही बातें करते हैं.
रोगी ठगा जाए या भोगी ठगा जाए. रोगी को बीमारी का डर दिखा कर चिकित्सक और पंडे पुरोहित या झाड़ फूँक करने वाले ठगते हैं, भोगी को व्यापारी और दलाल लोग भांति भांति के आनंदों का लालच दे कर ठगते हैं.
रोगी बियाहा बैद के भरोसे. घर में वैद्य है इस का अर्थ यह नहीं है कि रोगी से विवाह कर लो.
रोज कुआं खोदे, रोज पानी पीवे. दिहाड़ी मजदूर. जो जीविका के लिए अपने रोज के काम पर निर्भर हैं.
रोज के टपके से पत्थर भी घिस जाते हैं. पत्थर पर जिस जगह पानी टपकता है वह हिस्सा धीरे धीरे घिस जाता है. कोई कितना भी कठोर क्यों न हो लगातार प्रयास करने से उसको भी प्रभावित किया जा सकता है.
रोज़गार और दुश्मन बार बार नहीं मिलते. रोजगार (नौकरी या व्यापार करने का मौका) बार बार नहीं मिलता इसलिए जब मिले चूकना नहीं चाहिए. दुश्मन भी बार बार नहीं मिलता इसलिए जब मिले ठोक देना चाहिए.
रोज-रोज की दवाइ खुराक बन जात. छोटी-मोटी बीमारियों में रोज रोज दवा खाने की आदत नहीं डालनी चाहिए, व्यायाम और परहेज पर अधिक ध्यान देना चाहिए जिससे बीमारी हो ही नहीं.
रोजी का मारा दर-दर रोवे, पूत का मारा बैठ के रोवे. रोजी रोटी के लिए आर्त व्यक्ति दर दर भटकता और रोता है, पुत्र के द्वारा मारा हुआ पिता बैठ कर अपने दुर्भाग्य पर रोता है.
रोजे मेरी किस्मत में कहाँ, पर सहरी खा सकता हूँ. रोजे से बचना चाह रहे हैं इसलिए बहाना बना रहे हैं कि रोजे मेरी किस्मत में ही नहीं हैं. लेकिन सहरी के लिए बने माल भी खाना चाह रहे हैं. कष्ट बिना उठाए सुविधाएं चाहने वालों के लिए.
रोट से दिन छोट. रोट – मीठी पूड़ी. भादों के महीने में रोट का त्योहार पड़ता है जिसमें रोट बनाकर हनुमान जी को चढ़ाते हैं. तभी से दिन छोटा होना शुरू हो जाता है.
रोटी आधी कीजिए सब्जी को दोगुना, पानी तिगुना कीजिए हांसी को चौगुना. अच्छे स्वास्थ्य के लिए उपयोगी सुझाव है. रोटी जितनी खाते हैं उससे आधी खाएं और सब्जी दोगुनी खाएं, पानी तीन गुना पियें और खूब हंसें.
रोटी करो, सत्तू करो, भात बरोबर नाहीं, मौसी करो फूफी करो, माई बरोबर नाहीं. रोटी और सत्तू से पेट भरा जा सकता है लेकिन ये भात के बराबर नहीं हो सकते, मौसी और बुआ प्यार से रख सकती हैं पर माँ के बराबर फिर भी नहीं हो सकतीं.
रोटी कहे मंजिल पहुंचाऊं, बाटी कहे फेर ले आऊँ, भात कहे मेरा हल्का खाना मेरे भरोसे कहीं न जाना. भात सबसे जल्दी पच जाता है, रोटी उस से देर तक पेट में रहती है और बाटी सब से देर में पचती है.
रोटी कारन छोड़ कर कुटुम देस परिवार, लाख कोस जाकर बसें रोटी ढूंढनहार. रोटी कमाने के लिए आदमी क्या क्या नहीं करता. जीविका ढूँढने के लिए आदमी को परिवार और देश को छोड़ दूर देश जा कर बसना पड़ता है.
रोटी कारन जाल में फंसे पखेरू आए, रोटी कारन आदमी लाखों पाप कमाए. भोजन के लालच में पक्षी जाल में आ कर फंसता है, पेट भरने के लिए आदमी क्या क्या पाप नहीं करता.
रोटी कारन लश्करी रन में सीस कटाए, रोटी कारन रैन दिन गीत गवेसर गाए. जीविका के लिए सैनिक रणभूमि में शीश कटवाता है, जीविका के ही लिए गायक दिन रात गाना गाता है. लश्करी – लश्कर में रहने वाला सिपाही.
रोटी किस्मत की, हुक्का पाँव दौड़ी का. रोटी किस्मत से मिलती है जबकि समाज में इज्जत परिश्रम करने से मिलती है. पुराने समय में लोग अतिथि का स्वागत हुक्का पिला कर करते थे.
रोटी खाते भौंकते नहीं बनता. कुत्ता जब रोटी खा रहा होता है तो भौंक नहीं पाता. कोई हाकिम रिश्वत ले रहा होता है तो गुर्रा नहीं पाता.
रोटी गई मूँ में, जात गई गू में. पेट भरने के लिए आदमी जात पाँत सब भूल जाता है.
रोटी न कपड़ा, सेंत का भतार. पत्नी के लिए रोटी कपड़े का प्रबंध न करे तो पति किस बात का.
रोटी पकाने से कुछ न, नोन लगाने से सब कुछ. जिसने रोटी पकाने जैसा महत्वपूर्ण काम किया उसे कोई श्रेय नहीं मिला, जिसने बाद में थोड़ा नमक लगा दिया वह सारा श्रेय ले गया.
रोटी बनाने वाले की नाक पोंछने परत. जिस आदमी से काम लेना हो उसकी खुशामद करनी पड़ती है. रोटी बनाने वाले के हाथ आटे से सने रहते हैं, यदि उसकी नाक आ जाय तो दूसरे आदमी को पोंछनी पड़ती है.
रोटी बिन भोंड़े लगें सकल कुटुम के लोग, रोटी ही को जान लो ठेठ मिलन का जोग. रोटी का जुगाड़ न हो तो परिवार के लोग भी बुरे लगने लगते हैं, रोटी ही परिवार में मेल रखने का माध्यम है.
रोटी मोटी, जोय छोटी. जोय – जोरू,पत्नी. रोटी मोटी ही अच्छी होती है और स्त्री छोटे कद की भली होती है.
रोटी सांटे रोटी, क्या पतली क्या मोटी. रोटी के बदले रोटी देनी हो तो मोटी पतली क्या देखना.
रोता जाए और मारता जाए. कुछ लोग ऐसे होते हैं जो खुद गलत काम करते हैं और खुद को सताया हुआ सिद्ध करने के लिए रोते जाते हैं. इससे मिलती जुलती कहावत है – लड़े बराबर रोवे दून.
रोती को पुचकारा तो कहा साथ ले चलो (रोती को चुपाया तो साथ चलने को तैयार). किसी मुसीबत में पड़े व्यक्ति को ढाढस बंधाओ और वह पीछे ही पड़ जाए तो यह कहावत कही जाती है.
रोते हुए गए मरे की खबर लाए. जो लोग हमेशा अनिष्ट की आशंका से ग्रस्त रहते हैं उनका अनिष्ट ही होता है.
रोने को तो थी ही, इतने में आ गए भैया. कोई लड़की ससुराल में परेशान हो कर रुआंसी हो रही थी पर सास के डर से रो नहीं पा रही थी. इतने में उसका भाई मिलने आ गया तो वह भाई के सहारे फूट फूट कर रोने लगी. कोई काम करने का बहाना मिल जाए तो.
रोने से रोजी नहीं मिलती. रोने से नहीं मेहनत और दौड़भाग करने से रोजगार मिलता है.
रोम जल रहा था, नीरो बंसी बजा रहा था. रोम में नीरो नाम का एक राजा हुआ है जिसके बारे में यह कहा जाता है कि जब रोम अत्यधिक संकट से गुजर रहा था तब वह बांसुरी बजा रहा था. संकट के समय अपना उत्तरदायित्व न निभाने वाले व्यक्ति के लिए.
रोवनी को दाल भात, हंसनी को उपास. जो भूख लगने पर रोए उसे बढ़िया चीजें खाने को मिलती हैं, जो हँसता रहे उसे कोई खाने को नहीं पूछता. उपास – उपवास.
रोवे गावे तूरे तान, ओकर दुनिया राखे मान. निर्लज्ज होकर हंगामा करनेवाले की बात सब लोग मान लेते हैं. जो अपनी परेशानियों को लेकर ज्यादा रोता गाता है उस से सब को सहानुभूति हो जाती है.
रौन गौरई की कुतिया. कोई व्यक्ति दो स्थान पर लाभ लेने की कोशिश करे और कहीं कुछ न मिले तो यह कहावत कही जाती है. सन्दर्भ कथा – रौन और गौरई बुंदेलखंड में दो गाँव हैं जिनके बीच में ठीक ठाक दूरी है. एक कुतिया को खबर लगी कि दोनों गांवों में दावत है. उस के मन में लड्डू फूटने लगे. सोचा दोनों जगह खूब माल मिलेगा. वह पहले रौन गाँव में गई, वहाँ खाना शुरू होने में देर थी तो उसने सोचा कि गौरई जा कर माल उड़ा लूँ, फिर यहाँ आ जाऊँगी. गाँव दूर था, जब तक वहाँ पहुँची वहाँ सब निबट चुका था. लौट कर फिर रौन गाँव आई तो वहाँ भी सब निबट चुका था. टांगें भी टूटीं और भूखी भी रही.
ल
लंका के छोटे वीर, वो भी उन्चास हाथ के. किसी परिवार या समाज में छोटे व बड़े सभी लोग धूर्त हों तो.
लंका जीत आये. बड़ा काम कर आये.
लंका में सब बावन गज के. जहां सभी लोग एक से बढ़कर खुराफाती हों वहां यह कहावत प्रयोग की जाती है.
लंगड़ी गिलहरी, आसमान में घोंसला. अपनी हैसियत से बहुत बड़ा कोई काम करने की कोशिश.
लंगड़ी घोड़ी मसूर का दाना. अपात्र व्यक्ति को अनुचित सुविधाएँ.
लंगड़ी डाकिन, घरालों को ही खाए. लोक विश्वास है कि डाकिन आदमियों को खा जाती है. डाकिन लंगड़ी हो तो कहीं नहीं जा पाएगी और घर वालों को ही खाएगी. कोई निकृष्ट प्रवृत्ति वाला घर वालों को ही हानि पहुंचाए तो.
लंगड़ी बाई फूस बुहारो, कि दो जने पाँव उठाओ. बहुत कमजोर या गरीब आदमी से काम कराना चाहो तो उस में भी बहुत मुश्किलें हैं. लंगड़ी से झाड़ू लगवानी है तो दो लोग उस का पैर उठाने के लिए चाहिए.
लंगड़े लूले गए बरात, दो दो जूते दो दो लात. जो व्यक्ति काम का न हो उसकी कहीं इज्जत नहीं होती.
लंगोटी में फाग खेलें. बहुत गरीब हो कर भी उत्सव मनाना.
लंबा घूँघट, धीमी चाल, भीतर-ही-भीतर बहुत पंपाल. जो स्त्री लंबा घूँघट किए हो और धीमे चल रही हो वह आवश्यक नहीं कि लज्जावती ही हो, वह लड़ाका या चरित्रहीन भी हो सकती है.
लंबा पर सही रास्ता ही ठीक. हमेशा सही रास्ते पर ही चलना चाहिए चाहे वह लंबा ही क्यों न हो. सीढ़ियाँ चाहे कितनी भी घुमावदार क्यों न हों, हम सीढियों से ही उतारते हैं, जल्दी के चक्कर में छत से कूद नहीं पड़ते.
लंबी धोती मुख में पान, घर के हाल गुसैंया जान. रहन सहन ठाठ बात वाला है, घर का हाल भगवान ही जाने.
लंबी बांह दूर तक पसरे. उदार लोग दूर वालों की भी सहायता करते हैं.
लंबे की अक्ल घुटनों में. अधिक लम्बे पर कम बुद्धि वाले आदमी का मजाक उड़ाने के लिए.
लकड़ी की आग सुलगते सुलगते सुलगे. जो लोग हर कार्य में जल्दबाजी मचाते हैं उन्हें समझाने के लिए.
लकड़ी के बल बन्दर नाचे (लाठी के डर वानर नाचे). दंड के डर से ही आदमी काम करता हैं.
लकीर के फकीर. जो लोग अपनी मान्यताओं को बिलकुल बदलना नहीं चाहते (चाहे वे गलत ही क्यों न हों).
लक्खु या भिक्खु, दो ही सुखी. दुनिया में दो ही तरह के लोग सुखी हैं, लखपति या भिखारी.
लक्ष्मी आए, दलिद्दर जाए. दीवाली पर घर की सफाई करते समय घर की महिलाएं यह कामना करती हैं.
लक्ष्मी आते भी मारे और जाते भी मारे. धन आता है तो उसको संभालने की चिंता में आदमी मरता रहता है (सरकारी महकमे भी उसका तरह तरह से खून पीते हैं) और चला जाए तो उसके दुख में मरता है.
लक्ष्मी उद्यमी की चेरी होती है. लक्ष्मी उद्यम करने वाले की दासी बन कर रहती है.
लक्ष्मी और सरस्वती में बैर है. जो लोग विद्या अध्ययन को जीवन का लक्ष्य बनाते हैं वे अधिक धन नहीं कमा पाते.
लक्ष्मी किसी के यहाँ पीढ़ा डाल कर नहीं बैठती. धन किसी के पास नहीं रुकता. पीढ़े के लिए देखिए परिशिष्ट.
लक्ष्मी तेरे काज, काहे आवे लाज. धन कमाने के लिए कोई भी काम करना पड़े उस में लज्जा कैसी.
लक्ष्मी बिन आदर कौन करे. धन के बिना व्यक्ति का सम्मान नहीं होता.
लग गई जूती उड़ गई खेह, फूल पान सी हो गई देह. निर्लज्ज व्यक्ति के लिए. बेशर्म आदमी को जूते मारो तो कहता है कि मेरी धूल उड़ गई और शरीर हल्का हो गया.
लग जाय तो तीर, नहीं तो तुक्का. तुक्का – बिना फलक का तीर. जब कोई व्यक्ति अंदाज़े से कोई बात कहता है (कि ठीक बैठ जाए तो अच्छा है, नहीं तो कोई बात नहीं).
लगन में बिघन. शुभकार्य में विघ्न.
लगन लगी तब लाज कहां है. जब किसी से सच्चा प्रेम हो जाए तो लाज शर्म खत्म हो जाती है, प्रेम चाहे मनुष्य से हो या ईश्वर से (ईश्वर से प्रेम का सबसे बड़ा उदाहरण मीरा बाई हैं).
लगाओ तो बुझाओ. आग लगाईं है तो बुझाओ भी. तुम्हीं ने झगड़ा शुरू किया है तुम्हीं निबटाओ.
लगी में और लगती है. बुरे समय में और मुसीबतें आती हैं.
लगे उसी का नाम औषध. जिससे रोग अच्छा हो वही दवा मानी जाती है.
लगे को बिगाड़ो न, बिन लगे को हिलाओ न. जिससे अपना सम्बंध है उससे बिगाड़ो नहीं और जो अनजान है उस को सर पर मत चढ़ाओ. हिलाने से तात्पर्य यहाँ पालतू बनाने से है.
लगे खुशामद सब को प्यारी. खुशामद सबको अच्छी लगती है.
लगे दम, मिटे गम. नशा करने वाले यह कहते हुए पाए जाते हैं कि दम लगाने से दुख मिट जाते हैं.
लगे रगड़ा, मिटे झगड़ा. भांग पीने वालों का कथन. भांग को घोट कर (रगड़ कर) तैयार करते हैं इसलिए.
लगे सो दवा और रीझे सो देव. बीमारी को ठीक करने के लिए भांति भांति की चीजें प्रयोग की जाती हैं. जिससे बीमारी ठीक हो जाए, वही दवा मानी जाएगी. इसी प्रकार बहुत देवी देवता हैं, जिस की पूजा करने से आप का काम बन जाए उसी को आप देवता मान लेंगे.
लघुता ते प्रभुता मिले, प्रभुता ते प्रभु दूर, चिट्टी सक्कर लै चली, हाथी के सिर धूर. छोटा बनने से (विनम्रता से) आदमी बड़ा बनता है. छोटी सी चीटी शक्कर ले जाती है और बड़े हाथी के सर पे धूल होती है.
लछमी जाए तो लच्छन भी जाएं. धन जब तक रहता है व्यक्ति संभ्रांत माना जाता है, धन जाते ही वह घटिया लोगों की श्रेणी में मान लिया जाता है. (उस के व्यवहार में स्वाभाविक रूप से बदलाव भी आ जाता है).
लजाउर बहुरिया, सराय में डेरा. सराय इस प्रकार का स्थान होता था जहाँ यात्री लोग ठहरते थे. वहाँ पर अक्सर चोर बदमाश और वेश्यागामी लोगों का भी डेरा होता था. ऐसे स्थान में लज्जावान कुलवधू का क्या काम.
लजाया लड़का ढोंढी टटोले. बच्चे को शर्म आती है तो अपनी नाभि टटोलता है.
लटा हाथी बिटौरे बराबर. बिटौरा – कंडों का ढेर. हाथी कमज़ोर हो जाए तो उसकी हैसियत कंडों के ढेर के बराबर हो जाती है.
लड़का जने बीबी, पट्टी बांधें मियाँ. कष्ट पत्नी को हो रहा है और दिखावा पति कर रहा है.
लड़का ठाकुर बूढ़ दीवान, मामला बिगड़े सांझ विहान. (भोजपुरी कहावत) जहाँ उच्छ्रंखल युवा शासक बन जाते हैं वहाँ समझदार और अनुभवी कर्मचारियों को कोई नहीं पूछता वहाँ अराजकता फ़ैल जाती है. विहान – सवेरा.
लड़का रोवे बालों को, नाई रोवे मुड़ाई को. लड़का कह रहा है कि मेरे बाल ठीक से नहीं कटे और नाई कह रहा है कि मुझे पैसे कम मिले. सबको अपनी ही चिंता है.
लड़की और ककड़ी जल्दी बढती हैं. जैसे ककड़ी बहुत तेजी से बढती है वैसे ही लड़की बहुत जल्दी बड़ी हो जाती है (और माँ बाप के मन में उसकी शादी की चिंता हो जाती है).
लड़के की यारी, गदहे की सवारी. दोनों समान रूप से निरर्थक हैं. लड़के से अर्थ यहाँ नादान से है.
लड़के के भाग से लड़कोरी जीवे. लड़कोरी–बच्चे की माँ. बच्चे के भाग्य का लाभ उस की माँ को भी मिलता है.
लड़के को अंगोछा नहीं, बिलाई को कुर्ती. घर के आदमी को न पूछ कर बाहर के फालतू लोगों को लाभ पहुँचाना.
लड़के को जब भेड़िया ले गया, तब टट्टी बांधी. नुकसान उठाने के बाद बचाव का प्रबंध करना. टट्टी – सींकों का पर्दा या दीवार.
लड़के को मुंह लगाओ तो दाढ़ी नोचे, कुत्ते को मुंह लगाओ तो मुंह चाटे. छोटे बच्चे और कुत्ते को अधिक सर नहीं चढ़ाना चाहिए.
लड़कों का मन बादशाह जैसा. बच्चे बिलकुल दरियादिल होते हैं
लड़कों की आँख में भूख, पेट में नाहीं. बच्चों को खाने पीने की चीजें देख कर ही भूख लग आती है.
लड़कों में लड़का, बुड्ढों में बुड्ढा. जो व्यक्ति बच्चों में बच्चा बन जाए और बड़ों के बीच में बड़ा.
लड़ना दे पर बिछुड़ना न दे. दोस्तों और रिश्तेदारों से थोड़ा बहुत झगड़ा या कहासुनी हो जाये तो कोई बात नहीं है पर ईश्वर करे कभी कोई किसी से बिछड़े नहीं.
लड़ाई और आग का भड़काना क्या. ये अपने आप भड़कती हैं.
लड़ाई का मुँह काला. युद्ध हमेशा दुखदायी ही होता है.
लड़ाई के मैदान से दूर, सभी बहादुर. अपने अपने घरों में बैठ कर सभी लोग बहादुरी की बातें हांकते हैं. विशेष तौर पर ऐसे वीर पुरुष आजकल सोशल मीडिया पर बहुत देखने को मिलते हैं.
लड़ाई पीछे सबहिं सूरमा. लड़ाई खत्म होने के बाद सब अपनी अपनी बहादुरी की डींगें हांकने लगते हैं.
लड़ाई में तो सिर ही फूटते हैं, लड्डू थोड़े ही फूटते हैं. मन में लड्डू फूटना एक मुहावरा है जो सुखद अनुभव के लिए प्रयोग करते हैं और सर फूटना भी एक मुहावरा है जो भयंकर लड़ाई के प्रयोग करते हैं.
लड़ाई में लड्डू नहीं बंटते हैं. लड़ाई कोई आनंद का विषय नहीं है. इस में दोनों पक्षों को बहुत हानि होती है.
लड़ाई लड़ाई माफ़ करो, कुत्ते का गू साफ़ करो. बच्चों की कहावत. बच्चों की आपस की लड़ाई इस कहावत से खत्म हो जाती है.
लड़ाका के चार कान होत. लड़ाका व्यक्ति कुछ का कुछ सुन कर जबरदस्ती लड़ने के बहाने ढूँढ़ता है.
लड़ें न भिड़ें, तरकस पहने फिरें. युद्ध में कभी नहीं गए पर तरकश बांधे ऐसे घूमते हैं जैसे बहुत बड़े योद्धा हों. दिखाने के वीर. (तरकश में तीर रखे जाते है – देखिए परिशिष्ट)
लड़ें लोह पाहन दोउ, बीच रुई जल जाए. लोहा और पत्थर टकराते हैं तो चिंगारी निकलती है जिस से रूई में आग लग जाती है. दो शक्तिशाली लोगों की लड़ाई में कमजोर लोग बेकार में मारे जाते हैं.
लड़ो सर फोड़ के, खाओ मुहँ जोड़ के. जहां घर में कई लोग होते हैं वहां थोड़े बहुत मतभेद या खटपट होना स्वाभाविक है. लेकिन लड़ाई चाहे जितनी भी हो तीज त्यौहार साथ मनाना चाहिए, और सुख दुख में साथ निभाना चाहिए. इससे परिवार में एकता बनी रहती है.
लड्डू पर तो भगवान का भी मन चले. एक बार लड्डू भगवान के पास अपनी फरियाद ले कर गया कि सब मुझे खाना चाहते हैं, मैं क्या करूँ. भगवान बोले – तुम हो ही इतने अच्छे. मेरा मन भी चल रहा है.
लड्डू लड़ें, चूरा झड़े. जब दो व्यक्ति आपस में लड़ते हैं तो दोनों का ही नुकसान होता है.
लड्डू लुढ़क रहे हैं. घुल मिल कर बड़े प्रेम की बातें हो रही हैं.
लत लागत लागत लागे, भय भागत भागत भागे. किसी चीज की लत धीमे धीमे ही लगती है और मन का डर भी धीरे धीरे ही भागता है.
लदनिये ही लादे जाते हैं. जो अधिक काम करते हैं उन पर ही काम लादा जाता है.
लपकी गाय गुलेंदे खाय, दौड़ दौड़ महुआ तले जाय. गुलेंदा – महुआ का फल. जिस गाय को गुलेंदे खाने की लत लग जाती है वह दौड़ दौड़ कर महुआ के पेड़ तक जाती है. जिस चीज़ का शौक लग जाए उस के लिए इंसान दौड़ भाग करता है.
लबार, सौगंध खाए हजार. कोई इंसान बहुत कसमें खा रहा हो तो समझ लो कि झूठा है.
लम्पट कुतिया के लम्पट पिल्ले. किसी चरित्रहीन स्त्री के बच्चे भी उसी की तरह हों तो.
लला को सिर पर बिठावो तो वह कानहिं मूतिहै. (भोजपुरी कहावत) बच्चे को सर पर बिठाओगे तो वह कान में ही मूतेगा. अधिक लाड़ प्यार से बच्चे बिगड़ जाते हैं इस बात को मजेदार ढंग से कहा गया है.
ललाट की फूटी अच्छी, हिय की फूटी बुरी. लड़ाई किसी भी प्रकार की अच्छी नहीं होती लेकिन यदि लड़ना ही हो तो दिलों में दरार पैदा करने के मुकाबले हाथ पैर से लड़ना और सर फोड़ना बेहतर है.
लहंगे का नाड़ा ढीला हो तो नाचना नहीं चाहिए. जब अपनी स्थिति कमजोर हो तो ज्यादा इतराना नहीं चाहिए.
लहकाया कुत्ता टंगड़ी पकड़े. जो लोग किसी के उकसाने से बिना भला बुरा सोचे कुछ भी गलत सही करने पर उतारू हो जाते हैं उन पर व्यंग्य.
ला साले मेरी चने की दाल. किसी छोटे से मूर्खतापूर्ण कार्य का बहुत एहसान जताना. सन्दर्भ कथा – यह कहावत बच्चों की एक कहानी में से निकली है. एक शेखचिल्ली ने एक सिपाही से दोस्ती कर ली. दोनों साथ साथ कहीं जा रहे थे. एक स्थान पर शेखचिल्ली को चना पड़ा हुआ मिला. उसने आधा चना खुद खा लिया और आधा सिपाही को खिला दिया (आधे चने को चने की दाल कहते हैं). दोनों आगे चले तो शेखचिल्ली ने सिपाही से कोई मूर्खतापूर्ण काम करने के लिए कहा. सिपाही ने मना किया तो शेखचिल्ली बोला – ला साले मेरी चने की दाल. सिपाही ने मजबूरी में वह काम कर दिया. उस के बाद जब भी सिपाही किसी काम के लिए मना करता, शेखचिल्ली उसे धौंस देता – ला साले मेरी चने की दाल. कोई मूर्ख व्यक्ति किसी का बहुत छोटा सा कार्य कर के बहुत एहसान जता रहा हो तो मजाक में यह कहावत कही जाती है.
लाएगा दारा तो खाएगी दारी, न लाएगा दारा तो होगी ख्वारी. पति कमा कर लाएगा तो पत्नी खाएगी. नहीं लाएगा तो झगड़े होंगे.
लाओ तामझाम. मूर्खतापूर्ण व व्यर्थ की शान दिखाना. एक मूर्ख व्यक्ति को दहेज़ में पालकी और कहार मिल गए तो वह छोटे से छोटे काम के लिए भी पालकी पर चढ़ कर ही जाता था.
लाख कमाया जो जीता लौट आया. कोई व्यक्ति धन कमाने के लिए बाहर जाए और वहाँ किसी खतरे में फंस जाए तो उसके सही सलामत लौट आने को लाखों कमाने से बेहतर मानना चाहिए.
लाख का घर ख़ाक कर दिया. यहाँ लाख का अर्थ लाख रूपये भी हो सकता है और सील लगाने वाली लाख से भी हो सकता है जो बहुत जल्दी आग पकड़ती है. (पांडवों को जला कर मारने के लिए दुर्योधन ने लाक्षागृह बनवाया था). कोई व्यक्ति अपनी मूर्खताओं से बना बनाया काम या घर बर्बाद कर दे तो.
लाख चुरा लो मोती, कफ़न में जेब नहीं होती. आदमी कितनी भी पाप की कमाई कर ले अपने साथ कुछ ले नहीं जा सकता. इंग्लिश में कहावत है – Our last garment is made without pockets.
लाख जाए पर साख न जाए. पैसा कितना भी खर्च हो जाए साख नहीं जानी चाहिए.
लाचारी पर्वत से भारी. लाचारी किसी भी इंसान के लिए सबसे बड़ा बोझ है.
लाचारी में विचार क्या. जब व्यक्ति बहुत अधिक मजबूरी में हो तो उसे अच्छे बुरे का ज्यादा विचार नहीं करना चाहिए. इस कहावत को इस प्रकार से भी कहा गया है – लाचार के बिचार क्या.
लाज की आँख, जहाज से भारी. पहले के जमाने में पानी का जहाज दुनिया की सबसे भारी चीज हुआ करता था इसलिए उसका उदाहरण दिया गया है. यदि किसी ने आप पर एहसान किया है या आप के किसी निकट सम्बन्धी ने कोई बहुत गलत काम किया है तो आप की आँख शर्म से झुक जाती है. कहावत में कहा गया है कि ऐसी हालत में आँखों पर जो शर्म का बोझ होता है वह जहाज के बोझ से भी ज्यादा होता है.
लाज तो आँखों की होती है. कोई स्त्री घूँघट या पर्दा न भी करे तो भी उसकी भाव भंगिमा से यह मालूम हो जाता है कि वह लज्जाशील है या नहीं.
लाजू मरे, ढीठू जिए. ढीठू-ढीठ. संकोची और सज्जन व्यक्ति परेशान रहते हैं और निर्लज्ज लोग मौज करते हैं.
लाजे भावज बोले न और सवादे जेठ छोड़े न. लज्जा के कारण छोटे भाई की पत्नी कुछ बोल नहीं पा रही है तो जेठ उस के साथ अमर्यादित आचरण कर रहा है. किसी की शराफत का नाजायज फायदा उठाना.
लाठी कपाल पे लगी नहीं, झूठ मूठ बाप रे बाप. नुकसान न होने पर भी बहुत हाय तौबा करना. (भोजपुरी में इस कहावत को इस प्रकार से कहा गया है – लाठी कपारे भेंट नाहीं अउरी बाप-बाप चिल्ला).
लाठी के हाथ मालगुजारी बेबाक. मालगुजारी – जमीन का लगान. पहले जमाने में लाठी डंडे के जोर से जमीन का कर वसूल किया जाता था. शासन का काम भय दिखाए बिना नहीं हो सकता.
लाठी टूटे न भांडा फूटे. बर्तन पर इस तरह लाठी मारी जा रही है कि लाठी भी न टूटे और बर्तन भी न फूटे. दिखावटी लड़ाई, जिसमे किसी का भी नुकसान न हो. (नूरा कुश्ती).
लाठी पकड़ी जा सकती है, जीभ नहीं पकड़ी जा सकती. किसी को शारीरिक बल प्रयोग से रोका जा सकता है, कटु वचन बोलने से नहीं.
लाठी बल बिनु काम न आवे, बैरी छीन तुझे हड़कावे. यदि आप में शक्ति और कौशल न हो तो लाठी आप के किसी काम की नहीं. दुश्मन आप से लाठी छीन कर आप को ही हड़काएगा.
लाठी मारने से पानी अलग नहीं होता. जोर जबरदस्ती से परस्पर प्रेम करने वाले लोगों को अलग नहीं किया जा सकता (चाहे सच्चे दोस्त हों, प्रेमी हों या निकट सम्बन्धी हों).
लाठी मारे ना मरें, फूल मारे मर जायें. जो प्रताड़ना से नहीं डरते, उन्हें प्रेम से वश में किया जा सकता है.
लाठी में गुन बहुत हैं, सदा राखिए संग. गाँव के लोग जिन विषम परिस्थितियों में रहते हैं उनके लिए लाठी एक बहुत उपयोगी वस्तु है. (गिरधर कवि की कुंडलियों से, यह पूरी कविता बहुत सुंदर और व्यवहारिक है)
लाठी हाथ की, भाई साथ का. लाठी वह काम की है जो हर समय आपके हाथ में हो और भाई वह अच्छा है जो हर समय साथ खड़ा हो.
लाठी हाथ में तो सब साथ में. जिस के पास शक्ति है उस का सब समर्थन करते हैं.
लाड़ला लड़का जुआरी, लाड़ली लड़की छिनाल. ज्यादा लाड़ला बेटा बुरी संगत में पड़ कर जुआ खेलना सीख जाता है और ज्यादा लाड़ली बेटी गलत हाथों में पड़ कर चरित्रहीन हो जाती है.
लातों के भूत बातों से नहीं मानते. जो लात खा कर काम करने के आदी हैं वे सिर्फ कहने से काम नहीं करते. इंग्लिश में कहावत है – Rod is the logic of fools.
लाद दे लदावन दे हांकने वाला साथ दे (लाद दे लदवा दे, घर तक पहुँचा दे). बेशर्म मांगने वालों के लिए (हमें फलाना सामान दो, सामान लादने वाला दो, साथ में गाड़ी और हांकने वाला भी दो).
लापरवाई सदा दुखदाई. किसी भी काम में लापरवाही बहुत दुखदाई होती है.
लाभे लोहा ढोइये, बिन लाभ न ढोए रुई. यदि किसी को कोई लाभ हो रहा होगा तो वह भारी वजन का लोहा भी ढोने को तैयार हो जाएगा और लाभ नहीं होगा तो हल्की सी रूई भी नहीं ढोएगा.
लाम और काम का बैर है. जल्दबाजी से काम बिगड़ जाता है. लाम – जल्दबाजी.
लारा लीरी का यार, कभी न उतरे पार. लारा लीरी – ऊहापोह. जो व्यक्ति अनिर्णय की स्थिति में रहता है, वह कभी कोई ठोस काम नहीं कर सकता.
लाल किताब उठ बोली यों, तेली बैल लड़ाया क्यों, खिला खिला कर किया मुसंड, बैल का बैल और दंड का दंड. लाल किताब-संविधान की किताब. न्याय व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार पर व्यंग्य. सन्दर्भ कथा – खबर आई कि किसी तेली के बैल ने एक काज़ी के बैल को मार डाला. इस पर काज़ी ने तेली से कहा कि तुम ने अपने बैल को खिला-पिलाकर मुसंड बनाया जिससे मेरा बैल मारा गया. अब तुम्हें मेरा बैल और जुर्माना दोनों देना होगा. बाद में पता चला कि काजी के ही बैल ने तेली के बैल को मार डाला है, तो उसने यह कहकर मामले को खत्म कर दिया कि जानवर ही तो था वह बेचारा क्या जाने. न्याय व्यवस्था में आदिकाल से व्याप्त भ्रष्टाचार पर व्यंग्य. लाल किताब से अर्थ संविधान की किताब से है
लाल गुदड़ी में भी नहीं छिपते. जो होनहार होते हैं वे अभावों में पल कर भी अपनी पहचान बना लेते हैं.
लाल प्यारा लाल का ख्याल प्यारा. अपना बच्चा बहुत प्यारा होता है,उस के बारे में सोच कर भी सुख मिलता है.
लाल बुझक्कड़ बूझिए और न बूझा कोय, कड़ी बरंगा टार के ऊपर ही को लेय. कोई अपने को अक्लमंद समझने वाला जब किसी समस्या का मूर्खतापूर्ण हल सुझाता है तो यह कहावत कही जाती है. सन्दर्भ कथा – आज कल के बच्चे लाल बुझक्कड़ का अर्थ नहीं जानते होंगे. किसी गाँव में लाल नाम के सज्जन थे जो नितांत मूर्ख गाँव वालों के बीच थोड़े से बुद्धिमान अर्थात अंधों में काने राजा थे. लोग उनके पास समस्याएँ ले कर आते थे और वह अपनी बुद्धि के अनुसार उनका हल निकालते थे. (गाँव की भाषा में हल निकालने को बूझना भी कहते हैं इस लिए उन का नाम लाल बुझक्कड़ पड़ गया). एक बार गाँव में झोपड़ी के अंदर एक बच्चा बल्ली को पकड़े खड़ा था. किसी ने उसे चने दिए तो बच्चे ने बल्ली के दोनों ओर हाथ किये किये दोनों हाथों का चुल्लू बना कर उस में चने ले लिए. तभी बच्चे की माँ ने उससे घर चलने के लिए कहा. अब बच्चा अगर बंधे हुए हाथ खोलता है तो चने गिर जाएंगे, और हाथ नहीं खोलता है तो जाएगा कैसे, लिहाजा वह चीख चीख कर रोने लगा. सारा गाँव इकट्ठा हो गया, सब एक से बढ़ कर एक मूर्ख अपनी अपनी राय देने लगे. और कोई रास्ता समझ नहीं आया तो यह तय हुआ कि लड़के के हाथ काटने पड़ेंगे. तब तक लाल बुझक्कड़ आ गए. वह इस बात से बहुत नाराज हुए. उन्होंने ने राय दी कि छप्पर की कड़ियाँ और फूस हटा कर लडके को बल्ली के सहारे सहारे ऊपर उठाओ और बल्ली से बाहर निकाल दो.
लाल बुझक्कड़ बूझिए और न बूझा कोय, हो न हो अल्लाह की सुरमादानी होय. सन्दर्भ कथा – एक गाँव के लोगों ने कभी ओखली मूसल नहीं देखा था. एक बार सुबह सुबह गाँव का कोई व्यक्ति गाँव के बाहर गया तो उसे वहाँ ओखली मूसल रखा दिखाई दिया. वह चक्कर में पड़ गया कि यह क्या चीज़ हो सकती है. उसने अन्य गाँव वालों को इकठ्ठा किया और सब के सब यह कयास लगाने लगे कि यह क्या हो सकता है. कोई हल न निकलने पर लाल बुझक्कड़ बुलाए गए. उनहोंने बहुत सोच कर यह राय दी कि हो न हो यह अल्लाह मियाँ की सुरमे दानी होगी
लाल बुझक्कड़ बूझिए, और न बूझा कोय; पाँव में चाकी बाँध के, हिरना कूदा होय. सन्दर्भ कथा – एक बार किसी गाँव के पास से रात में कोई हाथी निकल कर गया. उस गाँव के लोगों ने कभी हाथी नहीं देखा था. सुबह उठ के लोगों ने हाथी के पैरों के बड़े बड़े गोल निशान देखे. सब लोग कौतूहलवश इकट्ठे हो गए. तरह तरह के अनुमान लगने लगे. किसी की समझ में कुछ नहीं आया तो लाल बुझक्कड़ बुलाए गए. लाल बुझक्कड़ ने दिमाग लगा कर इस पहेली को बूझा, बोले पैर में चक्की बाँध के हिरन कूदा होगा.
लाल, पीयर जब होय अकास, तब नइखे बरसा के आस. (भोजपुरी कहावत) अगर आकाश का रंग लाल और पीला हो तो बारिश की संभावना नहीं होती.
लालच बस परलोक नसाया. लालच में पड़ कर आदमी गलत काम करता है और अपने परलोक का सत्यानाश कर लेता है.
लालच बुरी बलाए. बला माने कोई मुसीबत, दैवी आपदा. लालच सबसे बुरी बला है.
लाला का घोड़ा, खाए बहुत चले थोड़ा. लाला के घोड़े को खाने को खूब मिलता है और काम कोई ख़ास होता नहीं है इसलिए उस की आदतें खराब हो जाती हैं. बड़े आदमियों के नौकर चाकरों के लिए यह कहावत कही जाती है.
लाला जी तोर बतिया कहि देब. यदि किसी के मन में चोर हो तो कोई सामान्य रूप से कही गई बात भी उस को रहस्य खोलने की धमकी लग सकती है. सन्दर्भ कथा – कोई लालाजी बेर के पेड़ के नीचे बैठ कर शौच कर रहे थे. तभी पेड़ से एक पका हुआ बेर टूट कर उनके सामने गिरा. लाला जी से नहीं रहा गया. उनहोंने वह बेर उठा कर खा लिया. उसी दिन उस गाँव में एक बरात आई थी. बरात की महफिल में एक वैश्या गाने लगी, लाला जी तोर बतिया कहि देब. वहाँ बैठे लालाजी ने समझा कि वैश्या ने पाखाना करते समय उन को बेर खाते देख लिया है. अतः लालाजी वैश्या के सम्मुख रुपये फेंकने लगे, ताकि वह चुप हो जाय.
वैश्या ने समझा कि लालाजी को उसका गाना खूब पसंद आ रहा है अतः वह बार-बार वही पद दुहराती रही और लालाजी रुपयों की वर्षा करते रहे. अन्त में तंग भाकर लालाजी ने कहा, ‘क्या कहेगी, यही न कि मैं सुबह पाखाना करते समय बेर खा रहा था. कह दे, अब मैं और रूपये नहीं दूंगा. तात्पर्य है कि दोषी व्यक्ति को अपने-आप पर सदैव शंका बनी रहती है
लिखतम के आगे बकतम नहीं चलती. लिखा-पढ़ी के सामने जबानी बात नहीं चल सकती.
लिखना आवे नहीं, मिटावें दोनों हाथ. खुद काम करना आता नहीं है, दूसरों का किया काम बिगाड़ते हैं.
लिखना न आवे कलम टेढ़ी. लिखना नहीं आता है तो कलम को टेढ़ी बता रहे हैं. (नाच न आवे आंगन टेढ़ा).
लिखना पढ़ना सीखे जोई, गाड़ी घोड़ा पावे सोई. पढ़ लिख कर ही कोई व्यक्ति उन्नति कर सकता है.
लिखे न पढ़े, ऊपर चढ़े. जो लोग अनपढ़ होते हुए भी तिकड़म से अच्छा स्थान प्राप्त कर लें उन पर व्यंग्य.
लिखे न पढ़े, कान में कलम. झूठा दिखावा करने वालों के लिए.
लिखे न पढ़े, नाम मुहम्मद फाजिल. फ़ाज़िल – विद्वान. गुण के विपरीत नाम.
लिखे मूसा पढ़े ईसा. बहुत गंदी लिखावट.
लिखे लोढ़ा पढ़े पत्थर, सोलह दूनी आठ. अनपढ़ मूर्ख व्यक्ति का मजाक उड़ाने के लिए.
लिवा भैया लाए, पर काम तो भौजाई से परे. ससुराल से मायके आयी लड़की से कहा जा रहा है कि तुम्हें भैया लिवा लाये हैं पर काम तो भावज से ही पड़ेगा. जब कोई किसी एक के बूते पर दूसरे की अवज्ञा करना चाहे तब.
लीक लीक गाड़ी चले, लीकहिं चले कपूत, लीक छोड़ तीनहिं चलें, शायर सूर सपूत. पहले के जमाने में जब कच्ची सड़कें हुआ करती और घोड़ागाड़ी व बैलगाड़ियों में लकड़ी के पहिए हुआ करते थे तो सड़क पर पहियों की लकीरें खुद जाती थीं जिन्हें लीक कहते थे. ज्यादातर गाड़ियाँ लीक में ही चलती थीं. इसी प्रकार समाज के अधिकतर लोग समाज की बनी बनाई मान्यताओं का ही अनुसरण करते हैं केवल कुछ लोग ही उस से अलग हट कर चलने का प्रयास करते हैं. (शायर, शूरवीर और योग्य पुत्र).
लुगरी में डोरे की हानि. पुराने कपड़े को सिलने की कोशिश करने में धागा ही नष्ट होता है. बिगड़े हुए काम को संवारने की कोशिश में जो भी लागत लगती है, वह सब व्यर्थ ही जाती है.
लुगाई एक घर के दो करा दे. झगड़ालू स्त्रियाँ घर का बंटवारा करा देती हैं. लुगाई – स्त्री.
लुगाई की लाज घूँघट में. हमारे देश में लम्बे घूँघट का प्रचलन पहले नहीं था. घूँघट का सामान्य अर्थ था सर और माथे पर हल्का सा पल्लू डाल कर बड़ों के प्रति आदर दिखाना और बाहरी लोगों से दूरी बनाना. कामुक, लुटेरे, वहशी आक्रान्ताओं के कारण यहाँ की महिलाओं को परदे में कैद होना पड़ा.
लुगाई के पेट में बच्चा समा जाता है बात नहीं समा सकती. स्त्रियाँ नौ महीने बच्चे को पेट में रख सकती हैं पर दो मिनट कोई बात उनके पेट में नहीं पच सकती.
लुगाई बूढ़ी हो जावे तो भी पीहर की याद आवे. स्त्री बूढ़ी हो जाए तो भी मायके को याद करती है.
लुगाई से उसकी उमर न पूछो. स्त्री से उसकी आयु पूछना बहुत असभ्यता की निशानी है.
लुच्चे की जोरू को सदा तलाक. चरित्रहीन व्यक्ति की पत्नी को सदा इस बात का डर सताता है कि उसका पति उसे छोड़ कर नई स्त्री ला सकता है. मुस्लिम स्त्रियाँ भी सदैव इसी प्रकार के डर में जीती हैं.
लुटने के बाद क्या डर (डर कैसा). जिस के पास कोई कीमती सामान हो उस को लुटने का डर होता है. अगर उसका वह माल छिन जाए तो फिर किस बात का डर.
लुटने के बाद डोमनी बारह कोस भागी. नुकसान उठाने के बाद बचने का उपाय करना.
लुटा बनिया और पिटा ठाकुर ये राज नहीं खोलते. बनिया कहीं से लुट कर या ठग कर आया हो और ठाकुर पिट कर आया हो तो ये किसी को बताते नहीं हैं (क्योंकि लोग इन पर हंसते हैं).
लुटिया चोर, टिकिया चोर, बड़ा चोर. जो चोर आज लोटे और साबुन की टिकिया जैसी छोटी चीज़ चुरा रहा है वही कल को बड़ा चोर बन जाता है.
लूट का क्या भाव, मरने का क्या चाव. लूटी हुई चीज या चोरी की हुई चीज़ का कोई भाव नहीं होता (वह जितने में भी बिक जाए). इसके साथ एक असम्बद्ध बात जोड़ दी गई है कि मरने का किसी को शौक नहीं होता.
लूट का चरखा भी नफ़ा (लूट का मूसल भी भला). चरखा या मूसल वैसे तो बहुत सस्ती चीज़ है लेकिन लूट में मिल जाए तो क्या बुरा है.
लूली लीपे तो दो जनें उसकी कमर थामें. लूली – ऐसी स्त्री जिसके हाथ न हों या कमजोर हों. अपंग या कमजोर आदमी से कोई काम कराओ तो उसे सहारा देने के लिए दो लोग और चाहिए.
ले दे के उतरे गंगा पार. जैसे तैसे काम बन गया.
लेकर दिया, कमा कर खाया वो क्या झख मारने जग में आया (लेकर दिया तो जनम काहे को लिया). उधार ले कर वापस कर दिया और खुद कमा कर खाया तो दुनिया में आने का फायदा ही क्या हुआ.
लेखनी, पुस्तक, नारी पराए हाथ न दो. फाउंटेन पेन को दूसरा व्यक्ति चलाए तो उस की निब खराब हो जाती है इसलिए किसी को नहीं देना चाहिए. पुस्तक को कुछ लोग बड़ी बेकद्री से रखते हैं इसलिए किसी को नहीं देना चाहिए और स्त्री को किसी के सुपुर्द करने के विषय में सोचना भी नहीं चाहिए.
लेखा चोखा, प्रेम चौगुना (लेखे का नाम चोखा). व्यापार हो या आपसी व्यवहार, लिखत पढ़त और लेन देन ठीक रखा जाए तो प्रेम बना रहता है.
लेखा जौ जौ, बख्शी सौ सौ. जहाँ बात लिखत पढ़त की आती है वहाँ जौ का भी हिसाब रखना चाहिए, चाहे आप उस सैकड़ों रुपये बख्शीश में दे देते हों. आपस दारी में भी जब बात हिसाब किताब की आती है तो छोटी छोटी चीजों का भी पूरा हिसाब रखना चाहिए. इस को इस प्रकार भी कहते हैं – हिसाब बाप बेटे का, बख्शीश लाख की.
लेते लेते जनम बिताया, लिया है फिर लेंगे, देने का अक्षर न जानें दिया है न देंगे. विशुद्ध स्वार्थ.
लेन देन पर ख़ाक, मुहब्बत रक्खो पाक. इस कहावत को दो प्रकार से प्रयोग करते हैं – 1. थोड़े बहुत लेन देन के पीछे प्रेम सम्बन्ध नहीं तोड़ना चाहिए. 2. जो लोग क़र्ज़ ले कर वापस नहीं करना चाहते वे इस प्रकार की बहाने बाजी करते हैं. रूपान्तर – लेने देने के मुंह में ख़ाक, मुहब्बत बड़ी चीज़ है.
लेन देन में थोड़मथोड़, पांय लगन में ताबड़तोड़. ऐसे लोगों के लिए जो आपसी लेन देन में अधिक विश्वास नहीं रखते लेकिन दिखावटी आदर करने और मक्खन लगाने में बहुत माहिर होते हैं.
लेनदेन में लाज कैसी. लेन देन के मामले में औपचारिकता नहीं करनी चाहिए, लिखत पढ़त पूरी करनी चाहिए.
लेना एक न देना दो. 1. जिस चीज़ से कोई सम्बन्ध न हो, न कुछ लेना हो न कुछ देना हो. 2. ऐसा व्यक्ति जिसे सांसारिकता से कोई मतलब न हो.
लेना देना कुछ नहीं लड़ने को मौजूद. जो लोग फ़ालतू की बात पर लड़ने को तैयार रहते हैं उन के लिए.
लेना देना साढ़े बाईस. व्यर्थ का मोल भाव करना.
लेना न देना बजाओ जी बजाओ. मांगलिक अवसरों पर ढोल शहनाई आदि बजाने वालों को ईनाम दिया जाता है. जहाँ पर ईनाम कोई न दे रहा हो और काम करने को कहा जा रहा हो वहाँ यह कहावत कही जाती है.
लैनो करके देनों करिये, मरत न होओ तो वैसेहि मरिये. जो किसी एक से ऋण लेकर किसी दूसरे को ऋण देता है वह बेमौत मरता है.
लैला की खूबसूरती देखनी हो तो मंजनू की निगाह से देखो. जिस को आप प्रेम करते हैं वह आप को बहुत सुंदर दिखाई देता है.
लोक वाणी सो देव वाणी. 1.जनता जिस भाषा को समझती है वही देवताओं की वाणी मानी जानी चाहिए. 2. जनता के मत को ईश्वर की आज्ञा मानना चाहिए.
लोग राजा रामचन्द्र के भी न हुए. जनता किसी की सगी नहीं होती और किसी का उपकार नहीं मानती.
लोटा ले के हगन गए और टट्टी हो गई बंद, भजो राधे गोविन्द. कोई बड़बोला आदमी बड़े ताव में आ कर कोई काम करने जाए और असफल हो कर लौटे तो बाकी लोग उस का मज़ाक उड़ाने के लिए बोलते है.
लोढ़ा डूबे, सिल तिरे. उल्टी बात. कायदे में सिल लोढ़े से भारी होती है इसलिए पहले डूबना चाहिए.
लोबान जले और मुरदा चेते. स्वार्थ की बात सुन कर मुर्दा भी सजग हो जाता है.
लोभ का पेट सदा खाली. लोभी व्यक्ति को कितना भी मिल जाए उसकी भूख कभी मिटती नहीं है.
लोभी का माल झूठा खाए (लोभी जहाँ बसते हैं वहाँ झूठे भूखों नहीं मरते) (लोभी के घर ठग उपास ना करे). लोभी को झूठ बोल कर ठगना आसान होता है. वह लालच के कारण आसानी से प्रलोभन में आ जाता है.
लोभी गुरू लालची चेला, दोनों नरक में ठेलम ठेला. अर्थ स्पष्ट है.
लोभी घर में ठग उपास. ऊपर वाली कहावत से उलट. लोभी के घर में ठग को भी कुछ खाने को नहीं मिलता. लालची व्यक्ति के सामने ठग की भी दाल नहीं गलती.
लोमड़ी के ब्याह में गीदड़ गीत गावें. ओछे लोगों के घटिया लोग ही मित्र होते हैं.
लोमड़ी के लाख उपाय. धूर्त आदमी कुछ न कुछ तिकड़म कर के अपना काम निकाल ही लेता है.
लोमड़ी के शिकार को जाओ तो भी शेर के लायक सामान लाओ. छोटे काम के लिए जाओ तो भी तैयारी पूरी करनी चाहिए (क्या मालूम अचानक से कोई बड़ी विपदा आ जाए).
लोमड़ी ने पादा ओर सियार ने हामी भरी. धूर्त लोग आपस में एक दूसरे के हर सही या गलत क्रियाकलाप का बिना शर्त समर्थन करते हैं.
लोहा जाने लुहार जाने, धौंकने वाले की बला जाने. धौंकनी से हवा फूँकने वाले को इस बात से मतलब नहीं है कि लोहे का क्या हो रहा है और लोहार सही कर रहा है या गलत, उसे तो जो काम मिला है वह कर रहा है.
लोहा जाने लुहार जाने, बढ़ई की बला जाने. कोई चीज बनाने में कहाँ से कच्चा माल आया, कितनी परेशानी से उसे बनाया गया, इस सब से हमें क्या लेना देना. हमें तो इस्तेमाल करने से मतलब है.
लोहार की झाड़ू, आग पानी दोनों में. कोई व्यक्ति सब प्रकार की परिस्थितियों में काम आता हो तो.
लोहारिक का बैल, कुम्हारिन ले के सती होए. लोहार का बैल मर गया, कुम्हार की पत्नी उसे ले कर सती हो रही है. किसी असंबंधित व्यक्ति के दुख में बहुत अधिक दुखी होना.
लोहू लगा कर शहीदों में दाखिल. शहीद होने का नाटक करना (लड़ाई होती देख कर छिप गए और बाद में कपड़ों पर किसी घायल का खून लगा कर बताने लगे कि मैं बहुत बहादुरी से लड़ा).
लोहे की मंडी में मार ही मार. लोहे की मंडी में सब तरफ ठोक पीट और उठा पटक की आवाजें आती हैं. जिस स्थान पर बहुत शोर शराबा और गतिविधियाँ हों वहाँ के लिए.
लोहे को लोहा काटता है (लोहे को लोहा ही पकड़े). लोहे को पकड़ने और काटने के लिए लोहा ही काम आता है. जो जैसा हो उस उसी प्रकार की युक्ति से हराया जा सकता है. रूपान्तर – लोहे को लोहा काटे और जात को जात.
लौंडी की जात क्या, रंडी का साथ क्या, भेड़ की लात क्या, औरत की बात क्या. लौंडी – दासी. चार अलग अलग बातें तुकबन्दी के साथ बताई गई हैं. दासी किसी भी जाति की हो उससे क्या अंतर पड़ता है, वैश्या किसी का साथ नहीं देती, भेड़ की लात से चोट नहीं लगती और स्त्री की बात का कोई महत्व नहीं है.
लौंडी बन कर कमाओ और बीबी बन कर खाओ. मेहनत कर के और छोटा बन कर कमाओ तो बड़े बन जाओगे और इज्ज़त से खाने को मिलेगा.
लौटो बराती और गुजरो गवाह, जे फिर नहीं पूछे जाते. बरात में बारातियों की बड़ी पूछ होती है. लड़के वाला और लड़की वाला दोनों ही बड़ा ध्यान रखते हैं. बरात से लौटने के बाद भी वे उसी प्रकार के व्यवहार की उम्मीद करते हैं पर फिर कोई उन्हें नहीं पूछता. ऐसे ही किसी मुकदमे में कोई गवाह होता है तो गवाही होने तक उसकी बड़ी पूछ होती है, बाद में उसे कोई नहीं पूछता. काम निकलने के बाद किसी की पूछ नहीं होती.
व
वकीलों का हाथ पराई जेब में. वकील सदैव अपने मुवक्किलों की जेब से पैसा निकालने की फिराक में रहते हैं.
वक्त आने पर कौओं की भी पूछ होती है. कौवे को वैसे तो बहुत निकृष्ट प्राणी माना गया है लेकिन श्राद्ध पक्ष में उनकी भी कद्र हो जाती है. समय समय की बात है.
वक्त उड़ जाता है, बुलंदी रह जाती है. समय चला जाता है, व्यक्ति का नाम रह जाता है.
वक्त का रोना वेवक्त के हंसने से बेहतर है. गलत समय पर हंसना एक अत्यंत अशोभनीय और आपत्तिजनक व्यवहार है जबकि मुसीबत के समय रोना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है.
वक्त की बलिहारी. अच्छा या बुरा, सब समय से ही होता है. समय सबसे बलवान है.
वक्त की हर शै गुलाम. समय बहुत बलवान है, कोई भी व्यक्ति या वस्तु समय के साथ कुछ का कुछ बन और बिगड़ सकते हैं.
वक्त गुलाम और वक्त बादशाह है. समय चाहे तो राजा को रंक और रंक को राजा बना दे.
वक्त निकल जाता है, बात रह जाती है. समय बीत जाता है पर कही हुई बात का असर हमारे दिलों में बहुत समय तक रहता है (इसलिए सोच समझ कर ही बोलना चाहिए).
वक्त पड़े बांका, तो गधे से कहिए काका. बांका – टेढ़ा. कठिन समय हो तो अपना मतलब निकालने के लिए किसी को भी मक्खन लगाना पड़ सकता है (गधे से काका कहना पड़ सकता है).
वक्त पर एक टांका नौ का काम देता है. सही समय पर किया हुआ छोटा सा काम आगे आने वाली बड़ी परेशानी से बचा सकता है. इंग्लिश में कहावत है – A stitch in time saves nine.
वक्त पे बोए तो उपजें मोती. समय पर फसल बोने और देखभाल करने से भरपूर फसल होती है.
वक्त बड़े से बड़े घाव को भर देता है. समय सब घावों को भर देता है. कोई बात कितना भी कष्ट दे समय के साथ सब उसे भूल जाते हैं.
वक्त बुरा आवे, तो तन का कपड़ा भी बैरी हो जावे. बुरा समय आता है तो निकट से निकटतम लोग भी नुकसान पहुँचा सकते हैं, तन का कपड़ा भी, जो हमारे शरीर के सबसे निकट होता है.
वक्र चंद्रमहिं ग्रसे न राहू. जो टेढ़ा होता है उसे कोई कुछ नहीं कहता. राहु भी गोल चन्द्रमा को ग्रसता है टेढ़े को नहीं (चंद्रग्रहण केवल पूर्णिमा के दिन पड़ता है).
वचन हेत दशरथ दयो रतन सुतहि बनवास. वचन की रक्षा के लिए दशरथ ने अपने राम को वनवास दिया था.
वचन हेतु नृप बलि दयो विष्णुहि सरबस दान. वचन निभाने के लिए ही राजा बलि ने विष्णु भगवान को अपना सर्वस्व दान कर दिया था.
वचन हेतु हरिचंद नृप भये चंडाल के दास. सत्पुरुषों के लिए वचन की रक्षा प्राणों से बढ़ कर होती है. अपना वचन निभाने के लिए राजा हरिश्चन्द्र चांडाल के दास बन गये थे.
वचनों का बांधा खड़ा है आसमान. जो लोग अपना वचन निभाते हैं उन्ही के बल पर आसमान टिका हुआ है.
वज़ा कहे जिसे आलम उसे वज़ा समझो. संसार जिसे ठीक माने उसे ठीक मानो.(पूर्णतया ठीक न भी हो तब भी).
वणज करेंगे बानियाँ और करेंगे रीस, वणज किया जो जाट ने रह गए सौ के तीस. जो जिस का काम होता है वही उसे ठीक से कर पाता है. बनिए ने व्यापार किया तो तरक्की की, जाट ने किया तो सौ के तीस रह गए.
वन, बालक, भैंस औ ऊख, जेठ मास ये चारों दूख. अर्थ स्पष्ट है.
वर का यह हाल तो बरात का क्या होगा. जब मुखिया ही निम्न कोटि का हो तो वह जमात कैसी होगी.
वर के अंगना बन्ने के गीत, कन्या के अंगना बन्नी के गीत. परिस्थिति के अनुसार कार्य करना चाहिए.
वर न विवाह, छठी के धान कूटे. लड़के की शादी का अभी आता पता नहीं है, पोते की छठी के लिए धान कूटे जा रहे हैं. किसी कार्य को करने के लिए मूर्खता पूर्ण उतावलापन.
वर ही बुड़बक तो दहेज़ कैसे मिले. लड़का मूर्ख हो तो उसे कन्या ही नहीं मिलेगी, दहेज़ तो बहुत दूर की बात है.
वरदान भगवान देते हैं, पुजारी नहीं. जब वरदान भगवान देते हैं तो पुजारी की पूजा क्यों की जाए.
वस्त्र से ही खूँटी शोभती है. 1. खूँटी की अपनी कोई शोभा नहीं होती, वह वस्त्र से ही शोभा देती है. अच्छे वस्त्र पहनने से हमारे व्यक्तित्व में चार चांद लगते हैं. 2. जिसका जो काम है उसको करे तभी उसकी पूछ होती है.
वह कीमियागर कैसा, जो मांगे पैसा. कीमियागीरी – अन्य धातुओं से सोना चांदी बनाने की विद्या. जो आदमी सोना चांदी बना सकता हो वह दूसरे से पैसा क्यों मांग रहा है. आज के जमाने में भी हम अक्सर ऐसे समाचार पढ़ते हैं कि सोना दुगुना करने का लालच दे कर किसी से जेवर ठग लिए गए.
वह कौन सी किशमिश है जिस में तिनका नहीं. हर अच्छी चीज़ में कुछ न कुछ कमी अवश्य होती है.
वह तिरिया पत नांहि गंवावे, जाकी बर बर आँख लजावे. वह स्त्री अपना सम्मान और मर्यादा नहीं खोती जिस की आँखों में लज्जा होती है.
वह दिन गए जब भैंस पकौड़े हगती थी. वह दिन गए जब मुफ्त की कमाई आया करती थी. रिश्वतखोर हाकिम के रिटायर होने के बाद.
वह नर कैसे जिए जाहि मन व्यापे चिंता. (गिरधर की कुंडलियों से) मन में चिंता हो तो मनुष्य कैसे जिए.
वह पानी मुल्तान गया. वह अवसर हाथ से निकल गया. सन्दर्भ कथा – एक बार कबीरदास रैदासजी के पास सत्संग हेतु पहुंचे और पीने के लिए पानी माँगा. रैदास जी ने तुरंत चमड़ा भिगोने की कठौती से थोड़ा सा पानी दे दिया. कबीर दास जी ने सोचा कि मना करेंगे तो रैदास जी का अपमान होगा. लिहाजा पानी को इस प्रकार लिया कि सारा पानी हथेलियों से होता हुआ नीचे गिरा दिया. मुंह में एक बूंद भी नहीं जाने दी. घर लौट कर कबीर दास जी ने अंगरखी धोने के लिए अपनी पुत्री कमाली को दे दी. अंगरखी में कोई दाग छूट नहीं रहा था तो कमाली कपड़े को दातों से चूस कर दाग छुड़ाने लगी, पानी का कुछ अंश मुंह में जाते हि कमाली त्रिकालदर्शी हो गई.
कुछ समय बाद कमाली अपने ससुराल मुल्तान चली गई. एक दिन कबीरदास अपने गुरु रामानंद जी के साथ कहीं जा रहे थे. बीच में कमाली की ससुराल पड़ी. दोनों कमाली के घर पहुंचे तो यह देखकर आश्चर्य में पड़ गए कि कमाली ने दोनों के लिए भोजन तैयार कर के दो आसन लगा रखे थे. गुरु जी के पूछने पर कमाली ने अंगरखी वाली पूरी घटना सुना दी. अब तो कबीरदास अपनी अल्पज्ञता पर बहुत पछताये. वे लौटकर रैदासजी के पास पहुंचे और पानी पिलाने का आग्रह किया. रैदासजी पूरी घटना जान चुके थे, कहने लगे– पाया था तो पिया नहीं, जब मन में अभिमान किया, अब पछताए होत क्या, वह पानी मुल्तान गया.
वहम की दवा हकीम लुकमान के पास भी नहीं थी. हकीम लुकमान अकबर के समय में एक बहुत प्रसिद्ध हकीम हुए हैं. कहते हैं कि उन के पास हर मर्ज़ का इलाज था. लेकिन अगर किसी को वास्तविक बीमारी न हो कर केवल वहम हो तो उसका इलाज उन के पास भी नहीं था.
वही किसानों में है पूरा, जो छोड़े हड्डी को चूरा. घाघ को यह बात मालूम थी कि हड्डी का चूरा डालने से खेती अच्छी होती है. हड्डियों में फॉस्फेट अधिक मात्र में होता है इस लिए यह बात विज्ञान सम्मत भी है.
वही जोरू का भाई वही साला. एक ही बात को कोई व्यक्ति दो तरह से कहे तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.
वही तीन बीसी वही साठ, वही चारपाई वही खाट. कोई अंतर नहीं, वही बात है. आप तीन बीसी कहो या साठ कहो एक ही बात है, चारपाई कहो या खाट कहो एक ही बात है. तीन बीसी – तीन बार बीस, अर्थात साठ.
वही मुँह पान, वही मुँह पनही. अच्छे काम करने पर उसी मुँह का पान दे कर सत्कार किया जा सकता है, बुरे काम करने पर उसी को जूते मारे जा सकते हैं. पनही – जूता.
वही होता है जो मंजूरे खुदा होता है. जो कुछ होता है ईश्वर की इच्छा से ही होता है. कुछ लोग इस को पूरा इस तरह बोलते हैं – मुद्दई लाख बुरा चाहे तो क्या होता है, वही होता है जो मंजूरे खुदा होता है
वा तिरिया संग बैठ न भाई, जाको जगत कहे हरजाई. जिस स्त्री को सब लोग धोखेबाज और विश्वास न करने योग्य मानते हों उस से मेलजोल नहीं बढ़ाना चाहिए.
वा पुरखा की दिन दिन ख्वारी, जाकी तिरिया हो कलहारी. जिस पुरुष की स्त्री लड़ाका हो उस की मिटटी ख्वार हो जाती है. पुरखा – पुरुष, तिरिया – त्रिया, स्त्री.
वा सोने को जारिए, जासौं फाटें कान. सोने के आभूषण किसे अच्छे नहीं लगते लेकिन जिस सोने से कान कट जाएँ ऐसा सोना किस काम का (उसे जला दो).
वायु न बयार, अनरीत की बरखा. अनरीत – बिना नियम कायदे. बिना ठंडी हवा चले अचानक वर्षा. जब कोई काम बिना किसी पूर्व अंदेशे के अचानक हो जाए तो.
वार बड़ा कि त्यौहार. कोई कोई काम सप्ताह के किसी विशेष दिन निषिद्ध होते हैं (जैसे मंगलवार को बाल नहीं कटवाते), लेकिन अगर उस दिन कोई त्यौहार हो तो यह निषेध नहीं माना जाता.
वासन विलाय जात, रह जात वासना. शरीर नष्ट हो जाता है इच्छाएँ रह जाती हैं.
वाह बहू तेरी चतुराई, देखा मूसा कहे बिलाई. अर्थ स्पष्ट है, सास बहू को ताना दे रही है. मूसा – चूहा.
विदा के समय सभी कंठ लगावें. मन मुटाव हो तब भी जाते समय सब का सत्कार करना चाहिए.
विद्या और समुद्र के जल का पार नहीं है. मनुष्य के जानने के लिए इतना ज्ञान उपलब्ध है जिसकी सीमा नहीं है, उसी प्रकार जैसे समुद्र के जल की कोई सीमा नहीं है.
विद्या तिरिया बेल जे, नहिं जानें कुल जात, जे जाके ढिंग में रहें ताहि सों लपटात (विद्या वनिता बेल नृप ये नहिं जात गिनन्त, जो ही इनसे प्रेम करे ताही से लिपटन्त). (बुन्देलखंडी कहावत) विद्या, स्त्री, बेल और राजा, बिना कुल और जाति देखे जिस के पास रहते हैं उसी को अपना लेते हैं (लिपट जाते हैं).
विद्या तो वो माल है, खरचत दूना होए, राजा, डाकू, चोट्टा, छीन सके न कोय. विद्या ऐसा धन है जो खर्च करने से दुगुना होता है और राजा या चोर डाकू कोई आपसे छीन नहीं सकता.
विद्या धन उद्यम बिना, कहो तो पावे कौन, बिना डुलाए न मिले, ज्यों पंखे की पौन (पवन). जैसे बिना पंखा डुलाए हवा नहीं मिल सकती वैसे ही प्रयत्न किए बिना विद्या नहीं मिल सकती. (विद्या लोहे के चने जैसी)
विद्या पढ़ी संजीवनी, निकले मति से हीन, ऐसे निर्बुद्धी जने, सिंह ने खा लये तीन. विद्या प्राप्त करने के साथ बुद्धि होना आवश्यक है, वरना विद्या पाना खतरनाक हो सकता है. सन्दर्भ कथा – एक बार तीन युवक संजीवनी विद्या पढ़ कर लौट रहे थे. रास्ते में जंगल में उन्होंने सिंह की हड्डियाँ पड़ी देखीं. उन्होंने सोचा क्यों न अपनी विद्या को यहाँ आजमाया जाए. एक ने अस्थियों को जोड़ कर अस्थिपंजर बनाया, दूसरे ने उस पर मांस चढाया और तीसरे ने उस में प्राण डाल दिए. सिंह जिन्दा होते ही उन तीनों को खा गया.
विद्या में विवाद बसे. जहाँ विद्या होगी वहाँ विवाद भी होगा.
विद्या ले मर जाय पर मूरख को नहिं देय, सारे गुन जब जान ले अंत बैर कर लेय. विद्या ले कर चाहे मर जाओ पर मूर्ख को मत दो, वह सारी विद्या सीखने के बाद आप को ही मात देने की कोशिश करेगा.
विद्या लोहे के चने हैं. विद्या प्राप्त करना आसान नहीं है, लोहे के चने चबाने जैसा है.
विद्या सबसे बड़ा धन है. विद्या स्वयं भी बहुत बड़ा धन है और धन कमाने का साधन भी है.
विधवा की बेटी, रास्ते की खेती. विधवा की बेटी समाज में असुरक्षित जीवन जीती है.
विधवा बेचारी क्या करे, भीतर रहे तो घुट घुट मरे, बाहर रहे तो सुन सुन मरे. पहले के जमाने में जब विधवा विवाह को बुरा समझा जाता था तो विधवा स्त्रियों का जीवन बहुत कष्टप्रद होता था.
विधवा मरे न खंडहर ढहे. विधवा स्त्री को जल्दी मृत्यु नहीं आती (यह उस समय की बात है जब प्रसव के समय मृत्यु होना बड़ी आम बात थी और विधवा को प्रसव होना नहीं था), और भवनों के ढह जाने के बाद जो खंडहर बच जाते हैं वे जल्दी नहीं ढहते. वस्तुत: विधवा भी एक खण्डहर के समान ही होती थी.
विधवा संग रखवाले और दुल्हन जाए अकेली. उल्टा काम. विधवा स्त्री जिस को कोई डर नहीं है उस के साथ तो रखवाले जा रहे हैं, और दुल्हन अकेली जा रही है.
विधवा हो के करे सिंगार, ता से रहियो सब हुसियार. विधवा स्त्री को श्रृगार करने का कोई अधिकार नहीं था. यदि वह श्रृंगार कर रही है तो उस से सावधान रहने को कहा गया है.
विधा कंठी, दाम अंटी. विद्या वही काम की है जो आप को कंठस्थ हो और पैसा वही काम का है जो नकद आपके पास हो (ब्याज आदि पर बंटा हुआ न हो).
विधि की निराली माया, किसी ने कमाया किसी ने खाया. भाग्य की गति विचित्र है, कोई परिश्रम कर के कमाता है और कोई बैठा बैठा खाता है. दूसरा अर्थ है कि किसी की कमाई को कोई खाता है.
विधि की लिखी ललाट पे ना कोऊ मेटनहार (विधि को लिखो को मेटन हारो). ईश्वर ने भाग्य सबके माथे पर लिख दिया है, उसे मिटाने वाला कोई नहीं है.
विधि प्रपंच गुन अवगुन साना. ईश्वर ने मनुष्य में गुण अवगुण का मिश्रण बनाया है.
विधि रचल बुधि साढ़े तीन, तेहि में जगत आधा आपन तीन. (भोजपुरी कहावत) जो व्यक्ति अपने को बहुत बुद्धिमान समझते हैं उनका मजाक उड़ाने के लिए. उनसे कहा जा रहा है कि यदि ईश्वर ने साढ़े तीन बुद्धि बनाई है, तो आधे में से सारे जगत को बांटी है और तीन आपको दी हैं.
विनाश काले विपरीत बुद्धि. जब व्यक्ति के विनाश का समय आता है तब उसकी बुद्धि फिर जाती है (जैसे रावण की बुद्धि फिरी और वह सीता को हर लाया).
विपत पड़ी तब भेंट मनाई, मुकर गया जब देने आई. जब विपत्ति आई तो देवता को कुछ भेंट करने की कसम खाई और जब विपत्ति टल गई तो मुकर गया. इस से मिलती जुलती कहावत है – पार उतरूँ तो बकरा दूँ.
विपत पड़े जो कर गहे, सोई साँचो मीत. विपत्ति के समय जो आपका हाथ पकड़ता है अर्थात सहायता करता है, वही सच्चा मित्र है. (कर गहे – हाथ पकड़े)
विपति पड़े पर जानिए, को बैरी को मीत. विपत्ति पड़ने पर ही मालूम होता है कि कौन सच्चा मित्र है, कौन बनावटी मित्र है और कौन शत्रु है. इंग्लिश में कहावत है – A friend in need is a friend indeed.
विपति परे पै द्वार मित्र के न जाइए. 1. जब आप विपत्ति में हों तो मित्र से सहायता मांगने मत जाइए. वह सहायता करे या न करे आपकी इज्ज़त जरुर चली जाती है. 2. यदि मित्र सच्चा है तो आपकी विपति का समाचार सुन कर स्वयं सहायता करने आएगा.
विपत्ति कभी अकेली नहीं आती. मनुष्य को अक्सर एक के बाद एक विपत्ति का सामना करना पड़ता है.
विपत्ति में क्या मोल भाव. विपत्ति से बचने के लिए जो भी चीज़ चाहिए होती है उसका दाम नहीं देखा जाता.
विपत्ति शूरवीर की कसौटी है. कोई व्यक्ति सही मानों में शूरवीर है या नहीं इसकी परख तभी होती है जब वह विपत्तियों से हो कर गुजरता है.
विफलता ही सफलता का पथ प्रशस्त करती है. विफल होने पर हमें अपनी गलतियों का एहसास होता है जिनसे सीख कर हम सफलता की ओर बढ़ते हैं.
विरह से प्रेम बढ़ता है. जो सच्चा प्रेम होता है वह दूर रहने से कम नहीं होता अपितु बढ़ता है.
विलायत में क्या गधे नहीं होते. मूर्ख लोग सब जगह पाए जाते हैं.
विवशता का नाम कर्तव्य परायणता है. बहुत से लोग ऐसे होते हैं जो कर्तव्य परायण दिखाई देते हैं पर उनकी वास्तविकता कुछ और होती है. वे मजबूरी वश ऊपर से अच्छे बने होते हैं. (मजबूरी का नाम महात्मा गांधी).
विविधता में ही जीवन का आनंद है. व्यक्ति के पास कितना भी धन क्यों न हो, यदि जीवन में विविधता न हो तो वह ऊब जाता है. इंग्लिश में कहावत है – Man is always in search of novelty.
विश्वासघातकी महापातकी (विश्वासघाती महापापी). विश्वासघात करने वाला महापापी होता है.
विष को सोने के बरतन में रखने से अमृत नहीं हो जाता. दुष्ट व्यक्ति को कितने भी अच्छे वातावरण में रखो वह दुष्टता नहीं छोड़ता.
विष दे दो, विश्वास न तोड़ो. किसी का विश्वास तोड़ना उसे विष देने से भी बुरा है.
विष निकल्यो अति मथन सों रत्नाकर हूँ मांहि. किसी को बहुत अधिक सताने पर वह हिंसक हो सकता है. समुद्र जो कि रत्नों का भंडार है उसे भी जब बहुत अधिक मथा गया तो उसमें से विष निकल आया.
विषय में विष है. भोग विलास मनुष्य के लिए विष के समान हैं.
वीर एक बार मरता है जबकि कायर सौ बार. वीर पुरुष एक ही बार मरता है और उसे प्रसिद्धि भी मिलती है, कायर डर डर के बार बार मरता है और बदनाम भी होता है.
वीर भोग्या वसुंधरा. जो वीर होते हैं वही धरती का उपभोग करते हैं.
वृक्ष कबहुँ नहि फल भखे, नदी न संचै नीर, परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर. पेड़ कभी अपने फल स्वयं नहीं खाता और नदी अपना जल संचय नहीं करती. इसी प्रकार साधु लोग भी अपने शरीर का उपयोग केवल परोपकार के लिए करते हैं.
वृन्दावन सो वन नहीं, नंदगाम सो गाम, बंसीवट सो तट नहीं, कृष्ण नाम सों नाम. कृष्ण भक्तों के लिए ब्रजभूमि और कृष्ण से बढ़ कर कुछ भी नहीं है.
वे दिन हवा हुए जब पसीना गुलाब था. लाड़ प्यार के दिन गए.
वे ही मियाँ जाएं दरबार, वे ही मियाँ झोकें भाड़. एक ही आदमी से सब तरह के काम लिए जाएँ तो.
वेद पुरान पढ़त अस पांडे, खर चंदन जस भारा (राम नाम सत समझत नांहीं, अंत पड़े मुख छारा). उन लोगों पर व्यंग्य जो बिना अर्थ जाने वेद पुराण पढ़ते हैं, जैसे गधा चंदन का भार बिना उसका महत्व जाने ढोता है.
वैद करे वैदाई, चंगा करे खुदाई. वैद्य केवल मरीज़ का इलाज कर सकता है, ठीक करना या न करना ईश्वर के हाथ में है. बहुत से डॉक्टर अपने यहाँ लिख कर लगाते हैं – I treat, He cures.
वैद धनंतर मरि गया, पलटू अमर न कोय, सुर नर मुनि जोगी जती, सबै काल बस होय. पलटू (एक विचारक संत) कहते हैं कि धन्वन्तरी जैसे वैद्य भी मृत्यु को प्राप्त हो गए. इस संसार में सभी काल के वश में हैं.
वैदयिकी हिंसा हिंसा नहीं होती. कभी कभी रोगी को मृत्यु से बचाने के लिए वैद्य को हिंसा करनी पडती है (मरीज का हाथ या पैर काटना पड़ सकता है). इसे हिंसा नहीं माना जाता.
वैद्य का घोड़ा, व्यर्थ न चले. पहले जमाने में वैद्य घोड़े या ताँगे पर चढ़ कर मरीज देखने जाते थे. व्यवसायी के पास जो भी साधन होते हैं उन का उपयोग वह अधिकतर अपने व्यवसाय के लिए ही करता है.
वैद्य का बैरी वैद्य. चिकित्सक एक दूसरे की बखिया उधेड़ते हैं, इस पर बनी कहावत.
वैद्य का यार रोगी, पंडित का यार सोगी, वैश्या का यार भोगी. सोगी – शोक करने वाला. वैद्य की संगत में रहने वाले को अपने अंदर सारे रोग दिखाई देने लगते हैं, पंडित का मित्र ग्रह नक्षत्रों के चक्कर में पड़ कर तरह तरह की आशंकाओं से ग्रस्त हो जाता है और वैश्या का मित्र भोग विलास में डूब जाता है.
वैद्य के घर क्या मौत नहीं आती. मृत्यु अवश्यम्भावी है, जो वैद्य सब को जीवन दान देता है उसके घरवालों और स्वयं उसे भी एक दिन मरना है.
वैर, मित्रता, और विवाह बराबरी वालों से ही करना चाहिए. दोस्ती भी बराबरी वालों से करो और दुश्मनी भी. अपने से बहुत बड़े आदमी से दोस्ती करोगे तो उसके जैसा स्तर बनाने की कोशिश में बर्बाद हो जाओगे. किसी बहुत बड़े आदमी से दुश्मनी करोगे तो बर्बादी होगी और बहुत छोटे से दुश्मनी करोगे तो जग हंसाई होगी.
वैरागिन बाई को जेठ की क्या लाज. जो स्त्री वैराग्य ले चुकी है वह अपने जेठ से पर्दा क्यूँ करेगी.
वैराग्य का क्या मुहूर्त. एक सज्जन झूट मूट बात बात पर सन्यास लेने की धमकी देते थे. उन से पूछा गया कि संन्यास कब ले रहे हो, तो बोले शुभ मुहूर्त ढूँढ़ रहा हूँ.
वैश्या और वैद्य खाट पर पड़े हुए से भी वसूल लेते हैं. अगर देखा जाए तो वैश्या के काम में और वैद्य के काम में कोई समानता नहीं है, लेकिन कहावत को मजेदार बनाने के लिए इन दोनों का ज़िक्र एक साथ किया गया है. सही बात तो यह है कि ये दोनों खाट पर पड़े हुए से ही वसूलते हैं.
वैश्या कब सती हो. सुहागिन स्त्रियों में से कुछ अपने पति की मृत्यु के बाद उस के साथ चिता में जल जाती थीं (सती हो जाती थीं). वैश्या का कोई सुहाग नहीं होता, इसलिए वह सती नहीं होती.
वैश्या का भतार पैसा. वैश्या के लिए पैसा ही सब कुछ है.
वैश्या किसकी जोरू और भड़वे किसके साले. वैश्या किसी की पत्नी नहीं हो सकती और उनके दलाल किसी के सम्बन्धी नहीं हो सकते.
वैश्या की कमाई जाए, साड़ी में या गाड़ी में. वैश्या की कमाई अच्छे से अच्छे कपड़े खरीदने में खर्च होती है या घोड़ागाड़ी आदि में. दोनों ही चीजें उस के व्यवसाय के लिए आवश्यक हैं.
वैश्या के घर का कुत्ता भी गायक. घर के माहौल का असर प्रत्येक सदस्य पर पड़ता है.
वैश्या के नाम लिखवा लिया तो क्या मोटी और क्या पतली. वैश्या के यहाँ जा रहे हैं तो वह चाहे मोटी हो या पतली, क्या फर्क पड़ता है. गलत राह पर जा रहे हैं तो राह छोटी हो या लम्बी, क्या फर्क पड़ता है.
वैश्या को एकादशी क्या. सुहागिन स्त्रियाँ अपने पति और बच्चों की मंगल कामना के लिए एकादशी का व्रत रखती है, वैश्या क्यों रखेगी.
वैश्या चली सासरे, सात घरे संताप. किसी वैश्या की शादी हो रही है तो बहुत से लोग दुखी हो रहे हैं (जो इस वैश्या के प्रेमी या ग्राहक हैं).
वैश्या बरस घटावहिं, जोगी बरस बढाएं. वैश्या अपनी आयु कम बताती हैं और साधु सन्यासी अपनी आयु ज्यादा बताते हैं.
वैश्या रूठे धर्म बचे. कोई कुकर्मी आदमी आप से रूठ जाए तो बड़ा फायदा है. अपना धर्म और सम्मान बचता है.
वैश्या, पहलवान और गाड़ी के बैल का बुढापा बुरा होता है. अर्थ स्पष्ट है.
वो घर आए हमारे ख़ुदा की क़ुदरत, कभी हम उनको कभी घर को देखते हैं. उर्दू के कुछ शेर इतने अधिक प्रचलित हो गये हैं कि कहावत बन गए हैं. कोई बड़ा आदमी छोटे व्यक्ति के घर पहुंचे तो.
वो दिन गए जब खलील खां (बड़े मियाँ) फ़ाख्ता उड़ाया करते थे. फाख्ता उड़ाने का अर्थ है निठल्ला होना. कोई आरामतलब जीवन गुजार रहा हो और अचानक उसे काम में पिलना पड़े तो यह कहावत कही जाती है.
वो ही नार सुलच्छनी जाकी कोठी धान. कोठी, कुठला बड़े बड़े बर्तन होते थे जिनमें अनाज भर कर रखते थे. जो स्त्री अपने घर में अनाज का भंडार भर कर रखती है वही सुलक्षणा मानी जाती है.
वो ही पूत पटेलों में और वो ही गोबर चुगवा में. जब एक ही आदमी से बिल्कुल अलग अलग तरह के काम कराए जाएं. उसी को सरकारी मुलाजिम बना रखा है और वो ही गोबर उठा रहा है.
वोट और बेटी तो जात में ही. पुरानी मान्यता है कि बेटी का ब्याह अपनी जात बिरादरी में ही करना चाहिए. अब वोट डलवाने के लिए भी नेता यही समझाते हैं (लोकतंत्र की विडंबना).
व्यक्ति पतित के वंश पतित. किसी एक व्यक्ति के पतित होने से पूरे वंश को पतित मान लेना गलत है.
व्यापारी अरु पाहुना तिरिया और तुरंग, ज्यों ज्यों ये ठनगन करें त्यों त्यों बाढ़े रंग. बुन्देलखंडी भाषा में नखरे को ठनगन बोला जाता है. व्यापारी, अतिथि, स्त्री और घोड़ा, यदि नखरे दिखाएँ तो इनकी और अधिक पूछ होती है.
व्यापारी अरु पाहुनो, तिरिया और तुरंग, अपने हाथ संवारिये, लाख लोग हों संग. अपने पास जो व्यापारी व्यापार करने आया हो, घर में अतिथि आया हो, अपनी स्त्री और अपना घोड़ा, इनकी देखभाल स्वयं ही करना चाहिए, चाहे लाख लोग आपके संग क्यों न हों.
श
शंकर सहाय तो भयंकर क्या करे. भगवान भोले नाथ सहायता करें तो भूत पिशाच कुछ नहीं बिगाड़ सकते.
शंका डायन मनसा भूत. भूत प्रेत मन की उपज होते हैं. मनसा का अर्थ इच्छा भी होता है. कहावत का अर्थ यह भी हो सकता है कि शंकाएं और इच्छाएँ, मनुष्य के शत्रु हैं. देखिए सन्दर्भ कथा 156– भूत न मारे, मारे भय.
शकल भले ही मिले दो आदमियों की, अकल नहीं मिलती. अर्थ स्पष्ट है.
शकल भूत की सी, नाम अलबेले लाल. गुण के विपरीत नाम.
शक्करखोरे को शक्कर, मक्करखोरे को मक्कर. जो जैसा हो उस के साथ वैसी ही नीति अपनानी चाहिए.
शक्ल चुड़ैलों की मिजाज परियों के. कुछ स्त्रियाँ शक्ल सूरत अच्छी न होने पर भी बहुत अदाएँ दिखाती हैं, उनके लिए कहावत.
शक्ल से मोमन, करतूत से काफिर. मोमिन माने सच्चा मुसलमान काफिर माने गैर मुस्लिम. कोई व्यक्ति देखने में धार्मिक प्रवृत्ति का हो लेकिन काम अधर्मियों वाले करे तो.
शठ सन विनय, कुटिल सन प्रीती. दुष्ट व्यक्ति के समक्ष प्रार्थना और ओछे से प्रेम निरर्थक हैं.
शठे शाठ्यम समाचरेत. धूर्त व्यक्ति के साथ धूर्तता से ही पेश आना चाहिए.
शतरंज नहीं शत रंज है. शतरंज बहुत बेकार खेल है (सौ दुखों के बराबर है), इसमें समय की बहुत बर्बादी होती है और व्यायाम भी बिल्कुल नहीं होता. प्रेमचन्द की कहानी शतरंज के खिलाड़ी इसका सबसे अच्छा उदाहरण है.
शत्रु का शत्रु मित्र होता है. जो हमारे शत्रु का शत्रु है वह हमारे काम का आदमी हो सकता है.
शत्रु मरन सुन हर्ष न करो, तुम क्या सदा अमर ही रहोगे. शत्रु की मृत्यु की बात सुन कर खुश मत हो, मृत्यु सब को आनी है.
शत्रु लघु गनिये नहीं. शत्रु को कभी छोटा नहीं समझना चाहिए.
शनि सोमवारे पूरब जाए, बिन अपराधे धक्का खाए. मुहूर्त विचार करने वाले कहते हैं कि शनिवार और सोमवार को पूर्व दिशा में यात्रा नहीं करनी चाहिए.
शरन गुरु की आय के जो सुमिरे सियराम, यहाँ रहे आनंद से अंत बसे हरि धाम. जो गुरु की शरण में आ कर राम का नाम जपता है वह इस दुनिया में भी आनंद से रहता है और अंत में प्रभु के धाम में स्थान पाता है.
शरम की बहू नित भूखी मरे. संकोच करने वाला व्यक्ति भूखा ही रह जाता है.
शरमदार बोली से ही मर जाए, बेशरम गोली से भी न मरे. अर्थ स्पष्ट है.
शराफत की मार सबसे बुरी. किसी को बुरा भला कहना हो तो यह न कहो कि तुम बुरे आदमी हो, बल्कि यह कहो कि तुम जैसे शरीफ आदमी से यह उम्मीद नहीं थी तो वह अधिक लज्जित होगा.
शराब ख्वार, हमेशा ख्वार. शराब पीने वाले की हमेशा दुर्दशा होती है.
शराब भीतर, बुद्धि बाहर. शराब पीते ही विवेक नष्ट हो जाता है.
शराबी के दो ठिकाने, ठेके पै जावै या थाने. (हरयाणवी कहावत) शराबी या तो ठेके पर दिखता है या थाने में (शराब पी कर मारपीट करने या गाड़ी चलाने पर).
शहर की सलाम, देहात का दाल भात. शहर के लोग कोरा नमस्कार, हलो हाय करते हैं जबकि देहात के लोग प्रेम से खाना खिलाते हैं.
शांति में लक्ष्मी बसती है. जिस घर, समाज और देश में शांति होती है वहीं अर्थ व्यवस्था का विकास होता है.
शादी एक जुआ है. शादी से पहले वर या वधू पक्ष के लोग कितनी भी तहकीकात कर लें, शादी के बाद उन में कैसा सामंजस्य होगा यह कोई नहीं बता सकता. इंग्लिश में कहावत है – Marriage is a lottery.
शादी खाना आबादी. विवाह के बाद ही घर बसता है.
शान्त की बेर ज्यों दीपक की द्युति. बुझने से पहले दीपक की लौ तेज हो जाती है. मृत्यु से पहले मनुष्य को पुरानी स्मृतियाँ याद आती हैं.
शाम के मरे को कब तक रोवे. घर में किसी की मृत्यु होने पर अर्थी उठने तक रोना धोना चलता रहता है. अगर किसी की मृत्यु शाम को हुई हो और अर्थी अगले दिन उठनी हो तो कब तक कोई रो सकता है. किसी भी बात का दुख कब तक मनाया जा सकता है. रूपान्तर – सांझ के मरे को कब तक रोये, फटे कपड़े को कब तक सिए.
शाम भई दिन ढल गया, चकवी दीन्ही रोय, चल चकवे वा देस में जहं शाम कभी न होय. शाम होने पर चकवा चकवी को अलग होना पड़ता है इसलिए.
शालीनता बिना मोल मिलती है पर उससे सब कुछ खरीदा जा सकता है. अर्थ स्पष्ट है. इंग्लिश में कहावत है – All doors open to courtesy.
शाह की मुहर आने आने पर, खुदा की मुहर दाने दाने पर. पुराने जमाने में शासक लोग अपना स्वामित्व दिखाने के लिए सिक्कों पर अपनी मोहर लगवाते थे. लेकिन वे यह भूल जाते थे कि ईश्वर की मोहर दाने दाने पर है.
शाह खानम की आँखें दुखती हैं, शहर के दिए गुल कर दो. राजा की आँखों को रोशनी चुभती है इसलिए शहर में अँधेरा कर दो. सामंतशाही का कड़वा सच.
शिकार के वक्त कुतिया हगासी. जरूरी काम के समय कोई नौकर चाकर बहाना बनाए तो. इस से मिलती एक और कहावत है – भांवरों की बेर कन्या हगासी.
शिकार को गए और खुद शिकार हो गए. दूसरे का अहित करने की कोशिश में स्वयं नुकसान उठाया.
शिकारी शिकार करें, चुगदिये साथ फिरें. शातिर लोग अपना काम करते है और जिन्हें कोई काम नहीं है ऐसे बेबकूफ और फ़ालतू लोग बिना किसी फायदे के साथ में घूमते रहते हैं. जैसे कुछ नेता और कलियुगी बाबा बड़े बड़े माल पर हाथ साफ करते हैं, और उनके समर्थक बिना किसी लाभ के उन के पीछे घूमते रहते हैं.
शीतला माँ घोड़ा देना, कि मैं खुद ही गधे पर सवार हूँ. चेचक की देवी शीतला माता का वाहन गधे को माना गया है. कोई उन से घोड़ा देने की याचना कर रहा है तो वह हँस कर कह रही हैं कि मैं तो खुद गधे पर सवार हूँ. किसी की हैसियत से बड़ी चीज कोई मांगे तो मजाक में यह कहावत कही जाती है.
शीतला माता रुष्टे तो चेचक, तुष्टे तो खाज. चेचक से बचने के लिए शीतला माता की पूजा तो की जाती है पर उस में श्रद्धा कम भय अधिक है. कहा जाता है कि यदि शीतला माता कुपित होती हैं तो चेचक निकलती है और प्रसन्न होती हैं तो खुजली होती है. जो हाकिम हर परिथिति में जनता का बुरा ही करता हो उसके लिए.
शीलवंत गुण न तजे, औगुण तजे न नीच. साधु प्रकृति का व्यक्ति अपने गुण नहीं छोड़ता और नीच व्यक्ति अपने अवगुण नहीं छोड़ता.
शुक मैना राखें सबै काक न राखे कोय, मान होत है गुनन से गुन बिन मान न होय. गुणों से ही सम्मान होता है, तोता मैना को सब पालते हैं कौवे को कोई नहीं पालता.
शुभस्य शीघ्रम्. शुभ काम जल्दी से जल्दी करना चाहिए.
शुरुआत अच्छी तो काम आधा हुआ समझो. जो काम सोच समझ कर और भली प्रकार आरंभ किया गया हो उसे पूरा होने में देर नहीं लगती. (Well begun is half done).
शूर न देखे शकुन न पूछे पंचांग. शूर वीर शकुन अपशकुन नहीं देखते और मुहूर्त नहीं पूछते, अपनी वीरता और साहस के बल पर काम करते हैं.
शूर वे ही सच्चे, जिनका बैरी करें बखान (रहमन साँचे सूर को बैरी करत बखान). सच्चे शूरवीर की प्रशंसा शत्रु भी करता है.
शूरवीर की मौत कायर के हाथ होवे. क्योंकि कायर सामने से नहीं लड़ता, पीठ में छुरा भोंकता है. भारत के इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण हैं. वीर अमर सिंह राठौर की हत्या एक कायर रिश्तेदार ने ही की थी. गुरु गोविन्द की मृत्यु भी एक पठान द्वारा धोखे से चाक़ू मारे जाने के कारण हुई थी.
शूरा सो पूरा. वीर मनुष्य ही पूर्ण मनुष्य है.
शेखी सेठ की, धोती भाड़े की. सेठ की तरह शेखी बघार रहे हैं जबकि धोती किराए पर लाए हैं. झूठी शान बघारना.
शेखीखोर का मुंह काला. जो बिना किसी योग्यता के शेखी मारता है उस को अंत में नीचा देखना पड़ता है.
शेर का एक ही भला. जिनके कम बच्चे होते हैं वे ज्यादा बच्चे वालों पर व्यंग्य कर के ऐसा कहते हैं.
शेर का खाजा बकरी. खाजा – एक उत्कृष्ट मिठाई. बकरी शेर के लिए मिठाई है.
शेर का झूठा गीदड़ खाय. नेताओं और बड़े आदमियों के चमचों पर व्यंग्य.
शेर का भाई बघेरा, वो कूदे नौ, और वो कूदे तेरा. बघेरा–बाघ. जहाँ दो खुराफाती लोग एक से बढ़ कर एक हों.
शेर की आँख स्यार पहचाने. शेर के मनोभाव को सियार ही पहचानता है (क्योंकि वह शेर के शिकार पर ही निर्भर रहता है). आजकल इसे इस प्रकार कह सकते हैं कि नेता या हाकिम का मूड चमचा पहचाने.
शेर की खाल ओढ़ लेने से गधा शेर नहीं बन सकता. देखिए सन्दर्भ – एक गधे को जंगल में किसी मृत शेर की खाल पड़ी मिल गई तो वह उसे ओढ़ कर जंगल का राजा बन बैठा. लेकिन गीदड़ ने एक दिन उसे घास चरते देख लिया और फिर उसके पद चिन्ह देखने पर तो उसे निश्चय हो गया कि यह तो गधा ही है. उसने अन्य जानवरों से भी यह बात कही, लेकिन जंगल के राजा का सामना करने की हिम्मत किसी में नहीं हुई. तब गीदड़ एक गधी को ‘जंगल के राजा’ के दरबार में लाया. जेठ का महीना था, गधी को जैसे ही मस्ती चढ़ी वह रेंकने लगी. अब जंगल का राजा भी अपने को न रोक सका और वह भी जोरों से रेंकने लगा. गीदड़ ने लपक के शेर वाली खाल खींच ली तो जंगल का राजा बने गधे का असली रूप सामने आ गया और सब जानवरों ने मिलकर उसे मार डाला.
शेर की भला किस जानवर से यारी. जो समर्थ होते हैं वे किसी से गठबंधन नहीं करते.
शेर की मांद खाली नही रहती. सत्ता का सिंहासन कभी खाली नहीं रहता. कोई दूसरा शेर नहीं होगा तो कोई चालाक गीदड़ ही कब्ज़ा जमा लेगा.
शेर चूहों का शिकार नहीं करते (शेर भैंसे को मारेगा खरगोश को नहीं). 1. वीर पुरुष निर्बलों पर अपना बल नहीं दिखाते. 2. बड़े हाकिम छोटी मोटी रिश्वत नहीं खाते.
शेर पर चढ़ा नर, उतरे तो मरे न उतरे तो मरे. विकट परिस्थिति.
शेर पूत एकहि भलो, सौ सियार के नाहिं. सौ कायर पुत्रों के मुकाबले एक शूरवीर पुत्र अच्छा है.
शेर बकरी एक घाट पर पानी पीते हैं. राम राज्य, जहाँ किसी को किसी से डर न हो.
शेर भूखा रह जाय पर घास न खाय. जिन लोगों की पसंद ऊंची होती है वे किसी वस्तु के बिना काम चला लेते हैं पर घटिया वस्तु प्रयोग नहीं करते.
शेरशाह की दाढ़ी बड़ी या सलीम शाह की. व्यर्थ की बहस.
शेरों के मुहँ किसने धोए हैं. जंगल में रहने वाले शेर सुबह उठकर मुंह नहीं धोते न ही खाने के पहले दांत साफ करते हैं. कुछ माताएं सुबह सुबह उठकर बिना कुल्ला मंजन कराए बच्चे को दूध पिला देती हैं और टोकने पर यह कहावत कहती हैं. घर में सुबह सुबह आया मेहमान खाने पीने को मना करे तो भी यह कहावत कहते हैं.
शैतान का नाम लिया शैतान हाज़िर. किसी का ज़िक्र हो रहा हो और वह अचानक आ जाए तो मजाक में यह कहावत कही जाती है. इंग्लिश में कहावत है – Think of the devil and there he is.
शैतान के कान बहरे. अत्याचारी को सताए हुए लोगों का आर्तनाद सुनाई नहीं देता.
शैतान के मुँह पुरान. 1. शैतान वेद पुराण की बात करे यह हैरानी की बात है. 2. शैतान लोगों को धोखा देने के लिए वेद पुराण की बातें करता है जबकि उस के मन में मार काट और हत्या की बातें रहती हैं.
शैतान जान न मारे, हैरान तो जरुर करे. दुष्ट व्यक्ति किसी को जान से न मारे तब भी परेशान तो करता ही है.
शैतान भी लडकों से पनाह मांगता है. बच्चों की शैतानियों से त्रस्त बुजुर्गों का कथन. सन्दर्भ कथा – किसी शैतान को लड़कों के साथ खेलने में बड़ा आनंद मिलता था. एक दिन वह गदहे के रूप में उनके बीच खेलने आया. लड़कों ने उसे देखते ही उस पर सवारी गांठनी शुरू कर दी. चार लड़के तो आसानी से उसकी पीठ पर बैठ गए, पर जब पांचवें को कहीं जगह नहीं, मिली, तो वह उसकी दुम में बांस बांध कर बैठ गया. शैतान के लिए यह असह्य हो गया. वह फ़ौरन वहां से रफूचक्कर हुआ और फिर कभी लड़कों के पास नहीं आया.
शोरबा गले में अटकता है, हड्डी को हाथ फैलाते हैं. सामर्थ्य से बहुत अधिक मांग करना.
शौक़ीन चढ़वैया, पालकी पर अंगीठी. अत्यधिक नाजुक और विलासिता प्रिय लोगों के लिए.
शौक़ीन बुढ़िया, चटाई का लहंगा. बेढंगा शौक, फूहड़पन.
शौकीनों की क्या पहचान, कंघी शीशा सुरमादान. आजकल सुरमेदानी की जगह लिपस्टिक ने ले ली है.
श्मशान में गई लकड़ियाँ वापस नहीं आतीं. जिन लकड़ियों पर यह ठप्पा लग जाता है कि वे श्मशान में काम आनी हैं, उन्हें किसी और काम में नहीं लाया जाता.
श्याम गौर सुंदर दोउ जोरी, निरखत छवि जननी तृन तोरी. शाब्दिक अर्थ तो यह है कि सांवले और गोरे दो सुंदर पुत्रों (राम लक्ष्मण या कृष्ण बलराम) की सुंदर छवि देख कर माता तिनका तोड़ रही हैं (जिससे उन्हें नजर न लगे). महिलाएं नज़र उतारते समय ऐसे बोलती हैं.
श्रादध का अफरा नवरात्रि में उतरता है. श्राद्ध पक्ष में ब्राह्मण लोग बहुत ठूंस कर खा लेते हैं इस पर व्यंग्य. नवरात्रि के व्रतों में उन की अपच दूर होती है.
श्री मद वक्र न कीन्ह केहि. धन के मद ने किसको टेढ़ा नहीं कर दिया. (श्री का अर्थ है लक्ष्मी).
श्वास का क्या विशवास. जीवन का कोई विश्वास नहीं है.
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संकट काल में मर्यादा नहीं देखी जाती. जब जान पर बनी हो तो व्यक्ति का पहला धर्म है प्राणों की रक्षा करना. इसी को आपद्धर्म कहा गया है. संस्कृत में कहावत है – आपात्काले मर्यादा नास्ति.
संक्रांत को थापे हुए होली में काम आवें. गोबर से कंडे (उपले) बनाने को कंडे थापना कहते हैं. संक्रांति पर थापे हुए उपले होली पर काम आते हैं. कहावत के द्वारा सीख दी गई हैं कि 1. कल जिस वस्तु की आवश्यकता होगी उसे आज बना कर रखो. 2. कोई चीज़ बनते ही तुरंत काम में नहीं ली जा सकती इसलिए धैर्य रखो.
संख के भरोसे घोंघा भी टेढ़ो चलत. किसी बड़े आदमी के भरोसे छोटा भी ऐंठ दिखाए तो.
संख बाजे, सत्तर बला भाजे. शंख बजाने से सत्तर बलाएं दूर होती हैं. शंख बजाने का एक अर्थ तो पूजा पाठ से है जिससे मन को शान्ति मिलती है और सहारा मिलता है. दूसरा लाभ यह है कि सांस का व्यायाम होता है जिससे बीमारियाँ दूर होती हैं. कुछ लोग इसके आगे भी बोलते हैं – मुद्दई के मुख कालिख लागे.
संग लगी लंगड़ी दीवार फांदने जाए. पैर वालों के साथ लंगड़ी भी दीवार फांदने की कोशिश कर रही है. कोई व्यक्ति दूसरों की देखा देखी अपनी सामर्थ्य से बाहर का काम करने की कोशिश करे तो.
संग सोई तो लाज क्या. जब किसी के साथ सो लीं तो लज्जा कैसी. गलत काम में किसी का सहयोग किया है तो छिपाना कैसा.
संगठन में शक्ति होती है. अर्थ स्पष्ट है.
संगत अच्छी बैठ के खैये नागर पान, छोटी संगत बैठ के कटें नाक और कान. नागर पान एक अच्छी किस्म का पान होता है. अच्छी संगत बैठने वाले को सम्मान मिलेगा और बुरी संगत बैठ कर नाक कटेगी.
संगत की फूट का अल्ला बेली. संगठित समाज में फूट पड़ जाए तो ईश्वर ही मालिक है.
संगत कीजे साधु की हरे और की व्याधि, ओछी संगत नीच की आठों पहर उपाधि. साधु की संगत दूसरों का दुख दूर करती है और नीच की संगत से हर समय संकट बना रहता है.
संगत बड़ों की कीजिए, बढ़त बढ़त बढ़ जाए, बकरी हाथी पर चढ़ी, चुन चुन कोंपल खाए. बड़ों की संगत से लाभ होता है. बकरी हाथी पर चढ़ जाए तो पेड़ की कोमल पत्तियाँ जो ऊँचाई पर लगी होती हैं उनको खा सकती है.
संगत सार अनेक फल. अलग अलग संगत से अलग अलग फल प्राप्त होता है.
संगत से सब होत है, वही तिली वहि तेल, जांत पांत सब छोड़ के पाया नाम फुलेल. संगत से व्यक्ति का चरित्र बदल जाता है. तिली के तेल को इत्र की संगत मिल जाती है तो वह तिली का तेल न रह कर इत्र हो जाता है.
संगत से सांसत. गलत संगत में पड़ कर व्यक्ति कष्ट उठाता है.
संगत से सुधरें कम और बिगड़ें ज्यादा. गुणों की अपेक्षा अवगुणों की छूत जल्दी लगती है.
संगत ही गुण उपजे, संगत ही गुण जाय. अच्छी संगत से व्यक्ति गुण ग्रहण करता है और बुरी संगत में पड़ कर गुणों को गंवा देता है. रूपान्तर – संगत से फल होत है, संगत से फल जाए.
संगे बियाह भया संग संग गौना, सबके धिया पूत हमार सैंया बौना. किसी स्त्री का पति बौना है तो वह सन्तान न होने के लिए पति के बौना होने को दोष दे रही है. सत्य यह है कि छोटे कद के लोग नपुंसक नहीं होते.
संझा की झड़ी और सुबह का झगड़ा. ये जल्दी नहीं रुकते. शाम को यदि वर्षा आरम्भ हो तो जल्दी नहीं रूकती. झगड़ा यदि सुबह को शुरू हो तो जल्दी समाप्त नहीं होता. कहावतों की यह विशेषता है कि उन्हें रुचिकर बनाने के लिए दो अलग बातों को एक साथ जोड़ कर बोला जाता है.
संत हंस गुण गहहिं पय, परिहरि वारि विकार. पय-दूध, वारि-पानी. संत हंस के समान हैं जो विकारों को छोड़ कर गुणों को ग्रहण कर लेते हैं (जिस प्रकार हंस पानी को छोड़ कर दूध को ग्रहण कर लेता है).
संतन की बानी सुने प्रेम सहित जो कोय, गंगादिक सब तीर्थ फल बिन अस्नाने होय. जो कोई प्रेम सहित संतों की वाणी सुनता है उसे बिना गंगा आदि नहाए ही सब तीर्थों का फल प्राप्त हो जाता है.
संतों को कैसा स्वाद, अनबिलोया ही आने दे. जो व्यक्ति भोला बनकर अपनी स्वार्थ-सिद्धि करना चाहता हो उस के लिए. सन्दर्भ कथा – एक महात्मा किसी के घर भिक्षा मांगने गये. घरवाली दही बिलो (मथ) रही थी. घरवाली ने कहा, थोड़ा ठहरिये, बिलोना हो जाए तो छाछ देती हूँ. महात्मा जी बोले – हम संत-महात्माओं को कैसा स्वाद, अनबिलोया ही आने दे. वास्तविकता यह है कि छाछ की बजाय अनबिलोया दही ज्यादा स्वादिष्ट होता है. इसी तरह एक और महात्मा जी को सत्तू देते समय गृहिणी ने गुड़ न होने की बात कही तो वह बोले – साधु को स्वाद से क्या, गुड़ नहीं बताशा ही सही.
संतों संसार कैसा, कि अपने मन जैसा. व्यक्ति की भावना जैसी होती है उसको संसार वैसा ही दिखता है.
संतोष कड़वा पर फल मीठा (संतोष का फल मीठा). जब व्यक्ति को कोई चीज़ न मिलने पर संतोष करना पड़ता है तो उसे मन में कष्ट होता है लेकिन बाद में समझ आता है कि संतोष करने से ही वह सुखी रहा.
संतोष की डाल में मेवा फले (संतोखे घर मेवा). संतोष करने वाले को अंततः सुख मिलता है.
संतोषी सदा सुखी. जिस हाल में हम हैं उसी में संतोष करना सीखें तो हम सदा सुखी रह सकते हैं.
संपत की जोरू, विपत का यार. पत्नी सम्पत्ति होने पर ही साथ देती है जबकि मित्र हर प्रकार की विपत्ति में.
संपति जाए, मति न जाए. बुद्धिमान लोग ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि हम पर संकट आए तो धन भले ही चला जाए हमारी बुद्धि न जाए (बुद्धि सलामत रहेगी तो धन फिर कमा लेंगे).
संवर जाय सो काम, पल्ले पड़े सो दाम. जो काम सही समय से सफलता पूर्वक सम्पन्न हो जाए वही काम कहलाएगा और व्यापार करने पर जो पैसा जेब में आ जाए वही लाभ माना जाएगा.
संवरे तो सपूत, बिगड़े तो कपूत. कोई कितनी भी मेहनत से काम करे, काम अच्छा हो जाए तो काम करने वाले को सपूत कहते हैं और काम बिगड़ जाए तो उसे कपूत कहने से नहीं चूकते.
संसार तो असार, या में सुकृत ही सार है. संसार में केवल अच्छे कर्म ही काम आते हैं और सब सारहीन है.
संसार भेड़िया धसान है. संसार में सभी बिना सोचे समझे एक दूसरे के पीछे भाग रहे हैं.
सकल तीर्थ कर आई तुमडि़या तौ भी न गयी तिताई. जन्मजात स्वभाव बदलता नहीं है. (तूमड़ी- लौकी की जाति का एक फल जो बहुत कड़वा होता है. साधु लोग इससे पानी भरने या खाना रखने का पात्र बनाते हैं).
सकल न सूरत, सनीचर जैसी मूरत. बहुत कुरूप और मनहूस आदमी.
सकल पदारथ है जग माही कर्म हीन नर पावे नाही. संसार में सभी वस्तुएँ मौजूद हैं, भाग्य के बिना वह कुछ लोगों को मिल नहीं पातीं.
सकल भूमि गोपाल की यामें अटक कहाँ. सारी सृष्टि ईश्वर के आधीन है, इस में किसी को कोई संशय नहीं होना चाहिए.
सकल वस्तु संग्रह करो, कबहुं आइहैं काम, समय पड़े पे ना मिले, माटी खरचे दाम. (बुन्देलखंडी कहावत) किसी वस्तु को बिल्कुल बेकार नहीं समझना चाहिए. मिट्टी भी कभी कभी खरीदनी पड़ती है. इंग्लिश में कहावत है – Keep a thing seven years, and you will find a use.
सकलदीपी तीन तरह के, पढ़ल-लिखल पंडित, कम पढ़ल जोतसी बैद और अनपढ़ ओझा गुनी. सकलदीपी ब्राह्मणों के बारे में लोक विश्वास. सकलदीपी – बिहार में एक प्रकार के ब्राह्मण.
सकुची पूँछ बसत विष, मस्तक बसे भुजंग, केहरि के नख में बसे, तिरिया आठों अंग. सकुची – एक जहरीली मछली. किसी दिलजले व्यक्ति का कथन. सकुची नामक मछली की पूंछ में विष होता है, सांप के सर में और शेर के नाखून में. लेकिन स्त्री के सारे शरीर में विष होता है.
सखी और सूम साल भर में बराबर हो रहते हैं. सखी – दानी, सूम – कंजूस. जो अपने धन का काफी हिस्सा दान करता है और जो कंजूस है उनकी सम्पत्ति में कोई ख़ास फर्क नहीं होता (दानी को आत्मिक सुख मिलता है इसलिए वह अधिक कार्य कर पाता है एवं ईश्वर भी उसकी मदद करता है).
सखी का खजाना कभी खाली नहीं होता. सखी – दानी. परोपकारी व्यक्ति का खजाना कभी खाली नहीं होता. ईश्वर किसी न किसी बहाने स्वयं उसे भरता रहता है.
सखी का बेड़ा पार, सूम की मट्टी ख्वार. दानी अपने सत्कर्मों के कारण भव सागर को पार कर जाता है, कंजूस किसी का भला न करने के कारण कर्म बंधन में बंधा रहता है.
सखी का बोलबाला, सूम का मुँह काला. दानी व्यक्ति की सब बड़ाई करते हैं और कंजूस को सब बुरा कहते हैं.
सखी का सर बुलंद, मूजी की गोर तंग. सखी – दानी, मूजी – कंजूस, गोर – कब्र. दानी व्यक्ति शान से सर उठा कर जीता है जबकि कंजूस को कब्र में भी ठीक से लेटने को जगह नहीं मिलती.
सखी की नाव पहाड़ चले. दानी के सब काम आसानी से हो जाते हैं.
सखी के माल पर पड़े, सूम की जान पर. 1.दानी व्यक्ति का तो दान देने में केवल धन खर्च होता है, कंजूस का धन खर्च हो तो उस की जान निकल जाती है. 2.धन की रखवाली में ही कंजूस का सारा जीवन लग जाता है.
सगरा खीरा खा के बोले कड़वा है. किसी का पूरा माल डकार कर बाद में कहना कि अच्छा नहीं था.
सगाई ठगाई है. सगाई के दो अर्थ हैं इसलिए इस कहावत के भी दो अर्थ हैं. 1. विवाह संबंध – रिश्ता तय करते समय दोनों पक्ष एक-दूसरे से कई बातें छिपाकर रखते हैं और अपने विषय में अत्यधिक बढ़ा चढ़ा कर बताते हैं. यह ठगाई नहीं तो क्या है. 2. प्रेम – वास्तविक प्रेम कुछ नहीं होता, यह केवल धोखा है.
सगाई दो जनां, ब्याह सौ जनां. किसी कंजूस आदमी का मजाक उड़ाने के लिए जिसने बहुत कम लोगों को न्यौता दिया हो.
सगों बिन सगाई कैसी, भलों बिन भलाई कैसी. 1.सगे सम्बन्धियों को साथ लिए बिना विवाहादि कोई भी कार्य नहीं हो सकते और समाज के भले लोगों को साथ लिए बिना परोपकार का कोई कार्य नहीं हो सकता. 2. अपने मित्र और सम्बन्धियों से ही प्रेम (सगाई) किया जा सकता है और भले लोगों से ही भलाई की जा सकती है
सच और झूठ में चार अंगुल का फर्क (अंतर अंगुली चार का सांच झूठ में होई). आँख और कान में केवल चार अंगुल की दूरी होती है. आँखों देखा सच और कानों सुना झूठ.
सच कहइया मारा जाए, झूठा भडुआ लड्डू खाए (सच कहे तो मारा जाए). सच बोलना खतरा मोल लेना है. सच कहने वाला विपत्ति में पड़ जाता है और झूठ बोलने वाला ऐश करता है.
सच कहना आधी लड़ाई मोल लेना है. किसी के मुँह पर सच बोल देने से लड़ाई होने की सम्भावना होती है.
सच बोल पूरा तोल, मन चाहे जहाँ डोल. जो व्यापारी ग्राहकों से सच बोलता है और पूरा तोलता है उसे किसी का डर नहीं होता.
सच्चा जाय रोता आए, झूठा जाय हंसता आए. अदालतों में मिलने वाले झूठे न्याय के बारे में कहावत.
सच्चाई में खुदा की सूरत है. सत्य आचरण ईश्वर के समान है.
सच्ची बात और गधे की लात झेलने वाले बहुत कम मिलते हैं. अर्थ स्पष्ट है.
सच्ची बात सहदुल्ला कहें, सबके दिल से उतरे रहें. जो सच्ची और खरी बात कहता है वह सब के दिल से उतरा हुआ रहता है (उसे लोग पसंद नहीं करते).
सच्चे का बोलबाला, झूठे का मुँह काला. सच्चे व्यक्ति का सब आदर करते हैं और झूठे से सब नफरत करते हैं.
सच्चे प्रभु को छोड़ के पूजें कबरें भूत, जो बेचारे मर गए उनसे मांगें पूत. मजारों पर जा कर मन्नत मांगने वाले और भूत प्रेत को मानने वाले लोगों के लिए नसीहत.
सच्चे लोग कसम नहीं खाते. केवल झूठे लोग ही बार बार कसमें खाते हैं.
सजन तुम झूठ मत बोलो, खुदा को सांच प्यारा है, कहावत है बड़ों की यूं, कभी न सांच हारा है. अर्थ स्पष्ट है.
सजन सकारे जाएंगे, नैन मरेंगे रोय, बिधना ऐसी रैन कर, भोर कबहुं न होय. सकारे – सवेरे, बिधना – विधाता. किसी स्त्री के पति को सुबह उठ कर परदेस जाना है, वह ईश्वर से मांग रही है कि सुबह कभी न हो.
सजनी के होठों पर इनकार है, साजन काहे घोड़े पे सवार है. किसी के मना करने के बावजूद भी यदि कोई जबरदस्ती गले पड़ रहा हो तो यह कहावत कही जाती है.
सज्जन जन चित ना धरें दुर्जन जन के बोल, पाथर मारे वृक्ष में तउ फल देत अमोल. दुष्ट लोग बुरा भला कहें तब भी सज्जन लोग उनका भला ही करते हैं. वृक्ष में पत्थर मारो तो भी वह फल ही देता है.
सज्जन बैठें आठ, तऊ न टूटे खाट, दुर्जन बैठे एक, टूटें खाट अनेक. एक खाट पर आठ तमीजदार लोग बैठ जाएँ तब भी खाट नहीं टूटेगी, और एक बेढंगा आदमी अपने बेढंगेपन से अनेकों खाटें तोड़ सकता है.
सटटे की कमाई और तेल की मिठाई. दोनों ही खराब हैं, अत: इनसे बचना चाहिए.
सठ सनेह, जीरण वसन, जतन करंता जाय, सजन सनेह, रेसम लछा, घुलत घुलत घुल जाए. धूर्त व्यक्ति का प्रेम और जीर्ण वस्त्र, यत्न करने पर भी नष्ट हो जाते हैं. सज्जन व्यक्ति का प्रेम और रेशम का लच्छा समय के साथ घुल मिल जाते हैं. सठ – शठ, दुष्ट, जीरण – जीर्ण, वसन – वस्त्र.
सठ सुधरहिं सत्संगति पाई. दुष्ट व्यक्ति भी अच्छी संगत में रह कर सुधर जाता है.
सठ सेवक, नृप कृपन, कुनारी, कपटी मित्र, शत्रु सम चारी. धूर्त नौकर, कंजूस राजा, चरित्रहीन स्त्री और कपटी मित्र ये चारों शत्रु के समान हैं. कहीं कहीं शत्रु के स्थान पर सूल (शूल) भी लिखा गया है.
सड़ पक जाए, गोतिया न खाए, गोतिया खाएगा तो अकारथ जाएगा. अत्यंत स्वार्थी लोगों के लिए. चीज़ चाहे सड़ जाए और फेंकनी पड़े, पर अपनी जाति का कोई दूसरा व्यक्ति न खा ले.
सड़ा सूत दर्जी को खोर. सड़ा हुआ कपड़ा और दर्जी को दोष देना. अपनी त्रुटि कोई नहीं देखता.
सत डिगा जहान डिगा. सत – सत्य, अहिंसा, प्रेम, शील इत्यादि सद्गुण. इन्हीं सद्गुणों पर संसार टिका हुआ है.
सत नहिं छोड़े सूरमा, सत छोड़े पत जाए. सत – सत्य, श्रेष्ठता, धर्म. वीर पुरुष धन का मोह छोड़ देते हैं पर सत को नहीं छोड़ते क्योंकि सत को छोड़ने से उनका मान चला जाता है.
सत मत छोड़े हे पिया सत छोड़े पत जाए, सत की मारी लच्छमी फेर मिलेगी आए. वीर पुरुष धन छोड़ देते हैं पर सत को नहीं छोड़ते क्योंकि सत को छोड़ने से उनका मान चला जाता है. यदि आप सत पर अडिग रहोगे तो लक्ष्मी फिर आपके पास आ जाएगी.
सतगुर की महिमा अनंत, अनंत किया उपगार, लोचन अनंत उघाड़िया, अनंत दिखावणहार. सतगुरु का उपकार बहुत बड़ा है जिसने ईश्वर से साक्षात्कार कराया है.
सतलड़ी मिलने वाली है. कोई चीज न होने पर भी उसके लिए झगड़ा करना. सन्दर्भ कथा – दो नशेबाज बैठे गपशप कर रहे थे. एक ने कहा कि यदि इस वक्त मुझे एक सतलड़ी (सात लड़ियों की माला) मिल जाए तो कैसा रहे? दूसरा बोला कि सतलड़ी मिल जाए तो चार मेरी और तीन तुम्हारी. इसी बात को लेकर दोनों में तकरार बढ़ गई और दोनों सर फुटौवल करने लगे. दोनों की बात सुन कर किसी ने पूछा कि वह सतलड़ी हैं कहाँ, जिसके लिए लड़ रहे हो? इस पर दोनों बोले कि सतलड़ी अभी मिली कहाँ है, लेकिन अगर मिल जाए तो सात में से चार मैं ही लूँगा.
सतवंती के लाज बड़ छिनाली के बात बड़. (भोजपुरी कहावत) सतवंती नारी के लिए उसकी लाज बड़ी चीज़ है और चरित्रहीन नारी के लिए उसकी बात.
सती अंग, भुजंगमणि, केहरिकेस, गजदंत, सूर कटारी, विप्र धन, हाथ लगें जब अंत. इन छः चीजों को कोई इनके जीवित रहते हाथ नहीं लगा सकता – सती का शरीर, नाग की मणि, सिंह के बाल, हाथी के दांत, शूर पुरुष की कटारी और ब्राह्मण का धन.
सती के रोवले देव रोवें. (भोजपुरी कहावत) पतिव्रता स्त्री के रोने से देवता भी दुखी होते हैं.
सती के वस्त्र झीर-झीर, वैश्या को रेशम का चीर. पतिव्रता स्त्री को फटे हुए कपड़े और वैश्या को बहुमूल्य वस्त्र मिलते हैं, समाज की यही विडंबना है.
सती सराप देवे नही, छिनाल को सराप लगे नहीं. सराप – श्राप. पतिव्रता नारी किसी से नाराज होने पर भी उस को श्राप नहीं देती, और कुलटा स्त्री के श्राप का कोई असर नहीं होता.
सत्तर करता सात के और सोलह के सौ, ब्याज बुरा रे बालके इससे राखे भौ (भय). ब्याज पर पैसा लेने से डरो, इसमें सात के सत्तर और सोलह के सौ वापस करने पड़ते हैं.
सत्तू खा के शुक्रिया क्या. छोटे से उपकार का क्या शुक्रिया करना.
सत्तू मनभत्तू जब घोले तब खइबे तब जइबे, धान बिचारे भल्ले कूटे खाए चल्ले. किसी को मूर्ख बना कर अपना घटिया माल उसे भिड़ा देना और उसका अच्छा माल उस से ठग लेना. सन्दर्भ कथा – गाँव के कुछ लोग किसी काम से शहर जा रहे थे. रास्ते में खाने के लिए एक की पत्नी ने सत्तू साथ में बाँध दिया. दूसरे के घर में और कुछ नहीं था सो उस की पत्नी ने थोड़े से धान बाँध दिये. धान को खाना बड़ा मुश्किल काम है, पहले कूट कर छिलका अलग करो, फिर पीसो और फिर खाओ. जिस के पास धान थे वह बहुत चालाक था. उस ने सत्तू वाले को बातों में फंसा लिया कि सत्तू के साथ कितनी मुश्किल है, पहले पानी लाओ, फिर घोलो, फिर बैठ के खाओ तब कहीं जा पाओगे. धान बिचारा तो फटाफट कूटो खाओ चलो. सत्तू वाला आदमी भोला भाला था, उसने अपना सत्तू दे कर धान ले लिया. जब खाने बैठा तो मालूम हुआ कि वह मूर्ख बन गया है. तब तक दूसरा आदमी सत्तू खा कर वहाँ से निकल लिया था.
सत्य कहे कवि नार सुभाऊ, सब विधि अगम अगाध दुराऊ. स्त्री के स्वभाव को कोई नहीं जान सकता.
सत्य की जड़ पाताल तक. सत्य कभी नष्ट नहीं होता.
सत्य नारायण की कथा में गधे का क्या काम. जहाँ धर्म कर्म का काम हो रहा हो वहाँ मूर्खों का क्या काम.
सत्यमेव जयते. झूठ कितना भी प्रबल क्यों न हो अंतत: सत्य की ही विजय होती है. संस्कृत में पूरा कथन है – सत्यमेव जयते नानृतं (सत्य की ही जय होती है झूठ की नहीं).
सत्रह को पेशगी ओर तेरह को बधाई. उल्टा काम. विवाहादि समारोहों में बधाई गाने के लिए जो लोग बुलाए जाते हैं उन्हें पहले ही पेशगी (अग्रिम धनराशि) दी जाती है.
सत्रह पटेलों से बिगड़े गाँव. ज्यादा जमींदार हों तो गाँव का विकास न हो कर विनाश हो जाता है.
सदा एक ही रुख नाव नहीं चलती. नाव सदैव एक दिशा में नहीं चलती. जीवन में सुख दुख दोनों आते हैं.
सदा की पदनी, उरदों दोष. सदा पादने वाली स्त्री उरद की दाल को दोष दे रही है कि उस से वायु हो गई. अपनी कमी छिपा कर दूसरों को दोष देना. (असभ्य भाषा है लेकिन कहावतों में चलती है).
सदा के उजड़े, नाम बस्ती खां. गुण के विपरीत नाम.
सदा के दुखिया, नाम चंगे खां. गुण के विपरीत नाम.
सदा दिवाली संत घर, जो घी मैदा होए (सदा दीवाली साधु की, जो घर गेहूँ होए). संत के घर खाद्य सामग्री उपलब्ध हो तो सदा उत्सव का सा माहौल रहता है क्योंकि वहाँ दीन दुखियों की भीड़ लगी रहती है.
सदा न काहू की रही, प्रीतम के गल बांह, ढलते ढलते ढल गई, तरुवर की सी छाँह. यौवन और वैवाहिक जीवन का सुख सदैव नहीं रहता है.
सदा न फूले केतकी, सदा न सावन होए, सदा न जोवन थिर रहे, सदा न जीवे कोय. संसार में कोई वास्तु सदैव नहीं रहती. केतकी पर हमेशा फूल नहीं आते, सावन बारह महीने नहीं रहता, यौवन सदैव स्थिर नहीं रहता और कोई व्यक्ति इस धरा पर सदैव नहीं रहता. व्यवहार में इस में से आधा भी बोला जाता है.
सदा न संग सहेलियाँ सदा न राजा देस, सदा न जग में जीवनां सदा न कारे केस. संसार में कोई भी चीज सदैव नहीं रहती. किसी कन्या की सखियाँ सदा साथ नहीं रहतीं, कोई राजा अनंतकाल राज्य नहीं करता, कोई व्यक्ति अमर नहीं है और बाल सदा काले नहीं रहते (बुढापा सभी को आता है).
सदा भवानी दाहिने, सम्मुख रहें गनेश, पांच देव रक्षा करें, ब्रह्मा विष्णु महेश. किसी काम को आरम्भ करने से पहले बोली जाने वाली प्रार्थना.
सन के डंठल खेत छिटावे, तिनते लाभ चौगुनो पावे. खेत में सन के डंठल छिटकाने से खेती अच्छी होती है.
सन्त न छाड़ै सन्तई, कोटिक मिलें असंत, मलय भुजंगहिं बेधिया, शीतलता न तजन्त. संत पुरुष अपनी सज्जनता नहीं छोड़ते चाहे करोड़ों दुष्ट क्यों न मिलें. चन्दन पर सांप लिपटे रहते हैं पर वह अपनी शीतलता नहीं छोड़ता.
सन्मुख गाय पियावहीं बाछा, यही सगुन है सबसे आछा. जो लोग कोई काम करने से पहले शगुन अपशकुन का विचार करते हैं वे ऐसा मानते हैं कि यदि गाय बछड़े को दूध पिलाती दिख जाए तो यह सबसे अच्छा शगुन है.
सपना, सगुन, सिद्ध का वाचा, कोई झूठा कोई साँचा. सपनों के फल, शगुन अशगुन और साधु लोगों की वाणी, इन पर अधिक विश्वास नहीं करना चाहिए क्योंकि ये अक्सर झूठे निकलते हैं.
सपने की सौ मोहर से कौड़ी सरे न काम. सपने में हमारे पास कितना भी धन हो वह हमारे किसी काम का नहीं होता. इसी प्रकार इस संसार में कोई कितना भी धन इकठ्ठा कर ले, परलोक में उसका कोई मोल नहीं है.
सपने तो सोने के बाद ही आते हैं. जागृत व्यक्ति कभी व्यर्थ की कल्पनाएँ नहीं करता. जो सोए हुए हैं (वास्तविकता से मुँह मोड़े हुए हैं) वे ही भांति भांति के सपने देखते हैं.
सपने में राजा भए, जागत भए फ़कीर. जो आज अपने राजा होने पर घमंड कर रहा है उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि यह स्वप्न के समान क्षण भंगुर अवस्था है.
सपूत एक ही भला और कपूत सात भी खोटे. सुपुत्र एक ही काफी है और कुपुत्र सात हों तो भी बेकार हैं.
सपूत का बाप, कपूत की माई, होत की बहन, अनहोत का भाई. बाप केवल सपूत का ही सगा होता है जबकि माँ सपूत कपूत सभी से प्रेम करती है. बहन अच्छे दिनों में साथ देती है, जबकि भाई बुरे दिनों में भी साथ देता है.
सपूत की कमाई में सब का हिस्सा. सपूत सभी के ऊपर खर्च करता है.
सपूत तो पड़ोसी का भी अच्छा, जो वक्त पर काम आए. अच्छा बेटा किसी का भी हो वक्त पर काम आता है.
सपूती रोवे टूकों को, निपूती रोवे पूतों को. टूकों – टुकड़ों (छोटी छोटी चीजों को). जिसके कई सारे पुत्र हैं वह टुकड़ों की मोहताज है और जिसके पुत्र नहीं है वह पुत्र की कामना में मरी जा रही है.
सपूतों के कपूत और कपूतों के सपूत होते आए हैं. जरूरी नहीं कि दुष्ट लोगों के यहाँ दुष्ट संतानें ही पैदा हों. दुष्टों के यहाँ सज्जन भी पैदा हो सकते हैं और सज्जनों के यहाँ दुष्ट भी जन्म ले सकते हैं.
सफ़ेद बाल, जवानी का जवाल. जवाल – क्षय. बाल सफेद होना जवानी के ढलने का लक्षण है.
सफ़ेद भैंस काली दही, हाकिम जो कहें वही सही. हाकिम कुछ भी कहें उस को सही मानना पड़ता है. अगर वह कहें कि भैंस सफ़ेद है और दही का रंग काला है तो भी मानना पड़ेगा.
सब उस्तरे बांधो कोई तलवार न बांधो, कर दो ये मुनादी कोई दस्तार न बांधो. दस्तार – पगड़ी. सिखों द्वारा कायर हिन्दू जातियों पर किया गया व्यंग्य. हिन्दू लोग दाढ़ी बनाते हैं इसलिए उस्तरे का जिक्र किया गया है.
सब काम धक्का, तो बुरा काम तक्का. सब काम कर के हार गये तो मजबूरी में गलत काम किया. तक्का-देखा.
सब काम दाई का, नाम भौजाई का. काम कोई और करे व श्रेय कोई और ले तो. दाई – प्रसव कराने वाली.
सब की बारी अंडे, हमारी बारी कुडुक. भाग्य साथ न देना. औरों की बारी थी तो मुर्गी ने अंडे दिए और हमारी बारी आई तो मुर्गी कुडुक हो गई.
सब की मैया सांझ. सांझ की गोद में सब को विश्राम मिलता है.
सब कीजे, तिरिया भेद न दीजे. स्त्रियों को भेद की बात न बताओ. (वे अपने पेट में कोई बात नहीं पचा सकतीं).
सब कुत्ते गया को जाएं तो पत्ते कौन चाटेगा (सब बिल्लियाँ स्वर्ग को जाएं तो कढ़ाई कौन चाटेगा). सभी लोग बड़े और महत्वपूर्ण बन जाएँ तो छोटे काम कौन करेगा.
सब के द्वार गोपीचंद मांग तांग खाना, बहिनी दुआरे मत जाना. प्रसिद्ध लोकगाथा गोपीचंद में योगी बने गोपीचंद को बहन के घर भिक्षा लेने जाने को मना किया गया है. उसी से कहावत बनी. खराब स्थिति में यदि भाई बहन के घर सहायता लेने जाता है तो एक तो बहन को बहुत दुख होता है, दूसरे घरवाले भी उस पर तंज करते हैं.
सब के भले में अपना भी भला. देश उन्नति करेगा तो सभी धर्मों और जातियों के लोगों को को लाभ होगा.
सब को अति प्यारा लगे, जो नर शील स्वभाव. जो स्वभाव से सुशील होता है वह सबको अच्छा लगता है.
सब को पंडित साइत दें, खुद चल देवें भद्रा में. पंडित लोग सब को शगुन अपशगुन बताते हैं पर स्वयं उस को नहीं मानते. असल में वे यह जानते हैं कि इन सब का कोई वास्तविक महत्व नहीं होता.
सब कोई पायल पहनें, लंगड़ी कहे हमहूँ. किसी वस्तु के योग्य न होने पर भी उसकी इच्छा करना.
सब गदहे बैकुण्ठ जाएंगे तो लाद कौन ढोएगा. सब का विकास हो जाएगा तो मेहनत वाले काम कौन करेगा.
सब गहनों में चंदनहार. स्त्रियाँ सभी गहनों में चन्दनहार (चन्द्रहार) को सर्वश्रेष्ठ मानती हैं.
सब गुण की आगर धिया, नाक बिना बेहाल. आगर – खजाना, धिया – बेटी. एक कन्या सब प्रकार से गुणवान है पर उसकी नाक चपटी है तो सब गुण बेकार हैं. सर्वगुण संपन्न व्यक्ति में कोई एक अक्षम्य अवगुण हो तो.
सब गुण भरी बैंतला सोंठ. बैंतला सोंठ नामकी औषधि में बहुत से गुण होते हैं. किसी एक व्यक्ति में बहुत से गुण हों तो उस के लिए यह कहावत प्रयोग की जाती है. व्यंग्य में चालू स्त्री के लिए भी इसे प्रयोग करते हैं.
सब गुन भरे ठकुरवा मोर, आपे पहरू आपे चोर. मेरे मालिक सर्व गुण सम्पन्न हैं. खुद ही पहरेदार हैं और खुद ही चोर. आजकल के नेताओं और भ्रष्ट नौकरशाहों पर व्यंग्य.
सब घटा देते हैं मुफलिस के गरज़ माल का मोल. गरीब जब जरूरत के वक्त अपनी कोई चीज़ बेचना चाहता है तो लोग उस की मजबूरी का फायदा उठाते हुए चीज़ की कम कीमत लगाते हैं.
सब घर अंधा, द्वारे कुआं. घर के सब लोग अंधे हैं और दरवाजे पर ही कुआँ है. किसी घर या समाज के लोग आसन्न खतरे के प्रति बेपरवाह हों तो यह कहावत कही जाती है.
सब जग रूठा रूठन दे, वह एक न रूठा चाहिए. सारा संसार रूठ जाए तो कोई बात नहीं, बस एक परमात्मा नहीं रूठना चाहिए.
सब जीते जी के झगड़े हैं यह तेरा है यह मेरा है, जब चल बसे इस दुनिया से न तेरा है न मेरा है. जब तक इंसान जीवित रहता है तब तक तेरा मेरा करता रहता है, दुनिया से जाते ही सब खत्म हो जाता है.
सब जोगिया मरें, मोर खपरवा भरे. स्वार्थी जोगी सोचता है कि सारे जोगी मर जाएँ, केवल मुझे भिक्षा मिले.
सब झगड़े की जड़ दौलत. अर्थ स्पष्ट है.
सब ते कठिन राज मद भाई. सता का नशा सब से बड़ा नशा है.
सब दाढ़ी वाले हों तो चूल्हा कौन फूंकेगा. चूल्हा फूँकने में दाढ़ी जलने का डर रहता है. सभी दाढ़ी वाले हों तो चूल्हा कौन फूंकेगा. सब अपनी कोई न कोई मजबूरी बता रहे हैं तो काम कैसे होगा.
सब दिन चंगे, त्यौहार के दिन नंगे. उन लोगों के लिए जो अपने खर्चों का ठीक प्रकार से नियोजन नहीं करते, अन्य दिनों में फिजूलखर्ची करते हैं और त्यौहार के दिन खाली हाथ हो जाते हैं.
सब दिन जात न एक समान. किसी के भी सब दिन एक से नहीं होते. जो आज विपन्न है वह कल सम्पन्न हो सकता है और जो आज धनी है वह कल निर्धन हो सकता है.
सब दिन साहू के एक दिन चोर का. साहूकार अपनी मक्कारी से सब दिन पैसे जोड़ता रहता है और चोर मौका लगते है एक ही दिन में सब साफ़ कर देता है.
सब धन धाम शरीर से ही. शरीर ठीक हो तभी घन कमाया जा सकता है और तीर्थ किए जा सकते हैं. संस्कृत में कहावत है – शरीरमाद्यम् खलु धर्म साधनम्. रूपान्तर – काया राखे धर्म है.
सब धान बाइस पसेरी. अच्छी बुरी हर चीज़ का एक ही भाव लगाना.
सब में है और सब से न्यारा. ईश्वर सब में होते हुए भी सब से अलग है.
सब मेहरारू दुनिया की कहें, कानी अपने भतार की कहे (आनों को आन की चिंता, कानी को भतार की चिंता). सारी स्त्रियाँ दुनिया भर के लोगों की बातें करती हैं, लेकिन कानी केवल अपने पति की बात करती है (जिससे लोग समझें कि उसका पति उसे बहुत चाहता है). आनों को – दूसरी स्त्रियों को, आन की – दूसरों की.
सब रस नोनै है. खाने का सारा स्वाद नमक में ही है. चेहरे के लावण्य के लिए भी ऐसा कह सकते हैं.
सब रामायण सुन कहें, सीता किसकी जोय. पूरी बात सुनने के बाद कोई मूर्खतापूर्ण प्रश्न पूछना. सारी रामायण सुन कर पूछ रहे हैं कि सीता किस की पत्नी थीं.
सब सच कहने लायक नहीं होते. कुछ सच बहुत अप्रिय होते हैं इसलिए उन्हें बोलने से बचना चाहिए. संस्कृत में कहा गया है – सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात्, न ब्रूयात् सत्यं अप्रियं.
सब से न्यारा बाल हठ. तीन प्रकार के हठ प्रसिद्ध हैं, बाल हठ, त्रिया हठ और राज हठ. इन में बाल हठ (बच्चों की जिद) सबसे अलग ही है. सन्दर्भ कथा – एक बार अकबर के दरबार में बालहठ पर चर्चा हो रही थी. बीरबल ने कहा कि बच्चे की जिद कोई पूरा नहीं कर सकता. अकबर इस बात से चिढ़ कर बोला कि मैं किसी की भी कोई भी जिद पूरी कर सकता हू. अकबर के कहने पर एक बच्चे को बुलाया गया. अकबर ने उससे कहा कि तुम कुछ भी माँगो तुम्हें मिलेगा. वह बच्चा बोला मुझे हाथी चाहिए. तुरंत एक हाथी मंगवाया गया. फिर वह बोला मुझे लोटा चाहिए. लोटा भी फौरन हाजिर कर दिया गया. अकबर ने बीरबल की तरफ व्यंग्य भरी नजर से देखा. तब तक वह बच्चा बोला, इस हाथी को लोटे में डाल दो. अकबर ने उसे समझाने की कोशिश की कि ऐसा नहीं हो सकता तो वह जोर जोर से रोने लगा. हार कर अकबर को यह मानना पड़ा कि बालहठ कोई पूरा नहीं कर सकता.
सब से भला किसान, खेती करे और घर रहे. सब से अच्छा किसान है जिसे कम से कम घर पर रहने को तो मिलता है. व्यापार में व्यक्ति को सामान लाने व तकादे करने के लिए कहाँ कहाँ भटकना पड़ता है और नौकरी में तो हमेशा तबादले की तलवार लटकी रहती है.
सब से मीठी भूख. सबसे स्वादिष्ट क्या है – भूख, क्योंकि तेज भूख लगी हो तो हर चीज़ स्वादिष्ट लगती है. इंग्लिश में कहावत है – Hunger is the best sauce. रूपान्तर – भूख मीठी या खीर.
सब से हिलमिल चालिए जब लग पार बसाए, मिष्ट वचन मुख बोलिए नेकी ही रह जाए. जब तक सम्भव हो सब से हिलमिल कर रहना चाहिए और मीठे वचन बोलना चाहिए. हमारे जाने के बाद हमारे नेक व्यवहार की याद ही लोगों के मन में रह जाएगी.
सब से हिलिए सब से मिलिए सब से कीजे चाव, हांजी हांजी सबसे कीजे बसिए अपने गाँव. मेल जोल सबसे कीजिए, सबकी हाँ में हाँ मिलाइए लेकिन करिए वही जो आप को ठीक लगे.
सबको ठेल, मैं अकेल. स्वार्थी व्यक्ति.
सबते भले वे मूढ़ मति, जिन्हें न व्यापे जगत गति. व्यक्ति जितना बुद्धिमान होता जाता है सांसारिक समस्याओं के प्रति उतनी ही उसकी चिंताएं बढती जाती हैं, मूर्ख लोग सबसे भले हैं जिन्हें संसार की चिंताएं नहीं सतातीं. इंग्लिश में कहावत है – Ignorance is a bliss, more you know more you suffer.
सबसे तेज चले वो ही जो चले अकेला. अकेला काम करने वाला व्यक्ति सबसे जल्दी काम निबटा पाता है, सबके साथ के चक्कर में काम आगे नहीं बढ़ता.
सबसे प्यारा पेट (सब से दुलारा पेट). संसार में सारे अच्छे बुरे काम पेट की खातिर ही किए जाते हैं.
सबसे भली चुप. चुप रहना सबसे अच्छा है. इससे सब झगड़े निबट जाते हैं. (अव्वल तो झगड़े होते ही नहीं हैं).
सबसे भले भीख के रोट. कामचोर भिखारियों का कथन.
सबसे भले हैं मूसर चंद, करें न खेती भरें न दंड. मूसरचंद – जो किसी काम के योग्य न हो. ऐसे लोग सब से भले हैं, उन्हें न खेती करनी है न कोई टैक्स देना है. रूपान्तर – करी न खेती, परे न फंद, घर घर डोलें मूसरचंद.
सबसे सेवक धर्म कठोरा. गोस्वामी जी ने कहा है कि सेवा का काम सबसे कठिन होता है.
सबहि नचावत राम गोसाईं. इस संसार में सब प्राणियों की डोर प्रभु के हाथ में है.
सबहिं जात भगवान की, तीन जात बेपीर, दांव पड़े चूकें नहीं, बामन बनिक अहीर. भगवान ने सभी जातियों को बनाया है लेकिन ब्राह्मण, बनिया और अहीर ये तीन जातियाँ दूसरों का दुख दर्द नहीं समझतीं.
सबही जात चमार की बिना चाम नहिं कोय, बिना चाम वह आप है जिसको लखै न कोय. किसी को चमार कह कर हिकारत की नज़र से मत देखो क्योंकि हम सभी चमड़ी वाले हैं (अर्थात चमार हैं). बिना चमड़ी वाला तो केवल एक ईश्वर है जिसे हम देख नहीं सकते.
सबाब न अजाब, कमर टूटी मुफ्त में. सबाब – पुण्य, अजाब – पाप का दंड. किसी काम में लाभ या हानि कुछ नहीं हुआ, मेहनत बेकार गई.
सबै वस्तु का मोल है, समय अमोल पहचान, समय व्यर्थ खोते नहीं सो जन चतुर सुजान. समय का लाभ उठा लेना चाहिए. गया समय दुबारा हाथ नहीं आता है.
सबै सहायक सबल के कोऊ न निबल सहाय. (पवन जगावत आग कौं, दीपहिं देत बुझाय) सभी लोग बलवान की सहायता करते हैं, निर्बल की सहायता कोई नहीं करता बल्कि उसे और दबाते हैं. हवा आग को और भड़काती है जबकि दीपक को बुझा देती है.
सब्र की डाल में मेवा फलता है (सब्र का फल मीठा). संतोष से बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है. इंग्लिश में कहावत है – Everything comes if a man can only wait. रूपान्तर – सब्र की दाद खुदा देगा.
सभा बिगारें तीन जन, चुगल, चुगद औ चोर. तीन लोग सभा को बिगाड़ते हैं, चुगलखोर, मूर्ख आदमी और चोर.
सभा सुहाते बोलिये जासों रीझे राय. सभा में ऐसी बात बोलनी चाहिए जो सबको अच्छी लगे.
सभागिया की जीभ और अभागिया के पाँव. भाग्यशाली व्यक्ति जुबान से बोल कर ही सारे काम करा लेता है और अभागा आदमी दौड़ भाग के भी अपना काम नहीं करा पाता.
सभागिया की बेटी मरे, अभागिया का जंवाई. बेटी के मरने का दुख तो बहुत होता है, पर दामाद के मरने और बेटी विधवा होने का दुख उससे भी बहुत बड़ा होता है (क्योंकि विधवा बेटी हमेशा आँखों के सामने रहती है).
सभागिया को जंगल में ही मंगल, निरभागिया बस्ती में भी भूखा मरे. जो भाग्यवान है उसे हर परिस्थिति में आनंद मिल जाता है, जो अभागा है वह कहीं सुख नहीं पा सकता.
सभी औरतों के मैके में छप्पर पर छप्पन मन पोदीना होता है. सभी स्त्रियाँ अपने मैके के बारे में बढ़ा चढ़ा के बताती हैं. इंग्लिश में कहावत है – In my father’s house are many mansions.
सभी झुकते हुए पलड़े के साझी हैं. जो जीतता हुआ होता है सब उसी का साथ देना चाहते हैं.
सभी सुपात्र हों कुपात्र एक, जैसे सोने के थाल में लोहे की मेख. किसी घर में सभी लोग बहुत अच्छे हों लेकिन केवल एक व्यक्ति खराब हो तो सारा कुनबा बेकार हो जाता है. एक थाल पूरा सोने का बना हो पर उसमें एक कील लोहे की लगी हो तो पूरा थाल बेकार हो जाता है.
सभी से दोस्ती करने वाला किसी का दोस्त नहीं. जो सभी से मित्रता रखना चाहता है वह किसी एक का घनिष्ठ मित्र नहीं हो सकता.
समंदर में खसखस के दाने की क्या बिसात. इस असीम ब्रह्मांड में एक मनुष्य की कोई बिसात नहीं है.
समंदर में साझा और पोखर में नहाये. किसी व्यक्ति का समुद्र के अथाह जल में साझा है परन्तु वह तालाब में नहा रहा है. जैसे कोई सनातन जैसे वृहत धर्म का मानने वाला मजार पर माथा टेकने जाए.
समंदर में सूखा पड़ गया (समुन्दर पाट दिया). अनहोनी बात, असंभव कार्य.
समझ के खर्चे सोच के बोले. पैसा खर्च करने से पहले ठीक से समझ लेना चाहिए कि वस्तु इतने दाम के योग्य है या नहीं. इसी प्रकार बोलने से पहले भी सोचना जरूर चाहिए.
समझदार को इशारा काफी है. समझदार आदमी हलके से इशारे से ही बात समझ लेता है.
समझने वाले की मौत है. 1.समझदार पर ही सब जिम्मेदारी आकर पड़ती है. 2. समझदार चुप नहीं रह पाता, और अगर वह अपनी राय जाहिर कर देता है, तो उसकी मुसीबत आ जाती है. सन्दर्भ कथा – एक बार अकबर बादशाह के दरबार में किसी अच्छे गवैये का गाना हो रहा था. उसे सुनकर सब अपना सिर हिला रहे थे. बादशाह ने बीरबल से पूछा, ये सब लोग गाना समझते हैं क्या? बीरबल ने उत्तर दिया, इसका पता अभी लगाए देता हूं. उन्होंने दरबारियों को संबोधित करके कहा कि आप लोगों का जहांपनाह के सामने इस तरह सिर हिलाना अच्छा नहीं मालूम देता. अब कोई ऐसी गुस्ताखी करेगा, तो उसका सिर कलम कर दिया जाएगा. इस पर सब संभलकर बैठ गए, और गाना चलता रहा. थोड़ी देर में एक बूढ़े दरबारी के मुंह से निकल पड़ा, हे भगवान समझदार की मौत है. बीरबल ने पूछा, क्यों भाई, क्या बात है? तब उस दरबारी ने जवाब दिया, क्या बताऊं, गाना सुनकर मैं सिर हिलाए बिना नहीं रह सकता और आपने उसके लिए मना कर दिया. तब बीरबल ने बादशाह से कहा कि जहांपनाह यही एक साहब हैं जो गाना समझते हैं. बाकी तो सब यों ही सिर हिला रहे हैं.
समझे न बूझे, खूँटा ले के जूझे. जबरदस्ती जिद करने वाले नासमझ आदमी के लिए.
समझे मीत, मीत के बैन. मित्र की बात को मित्र ही समझ सकता है.
समधियाने और पखाने के पास न बसे. पहले के लोग मानते थे कि शौचालय घर के अंदर या घर के पास नहीं होना चाहिए. इसी प्रकार लोगों का मानना है कि बेटे या बेटी की ससुराल घर के पास नहीं होनी चाहिए.
समधी चाहें दान दहेज़, लड़का चाहे जोय, सभी बराती चाहें केवल अच्छी खातिर होय. संसार में हर व्यक्ति को केवल अपना ही हित सूझता है.
समधी समरथ कीजिये, जब तब आवे काम. समर्थ लोगों से ही संबंध जोड़ना चाहिए, वे आड़े वक्त में काम आ सकते हैं.
समय करे वह बैरी भी न करे. समय मनुष्य के साथ इतना बुरा कर सकता है जितना शत्रु भी नहीं कर सकता.
समय का भरोसा कोनी, कब पलटी मार जावे. (राजस्थानी कहावत) समय का कोई भरोसा नहीं, कब बदल जाए.
समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता. सभी काम समय आने पर ही होते हैं, समय किसी के लिए रुकता भी नहीं है. इंग्लिश में कहावत है – Time and tide wait for none.
समय की फेरी, सास बहू की चेरी. समय बदल गया है. अब सास को बहू की गुलामी करनी पड़ती है.
समय के बाजे समय पर ही सुहाते हैं (समय समय की राग रागिनी, बेवक्त की शहनाई). जो बाजे मांगलिक अवसरों पर अच्छे लगते हैं, वही दुख और चिंता के क्षणों में बहुत बुरे लगने लगते हैं.
समय दसा कुल देखि के, सबै करत सनमान. व्यक्ति का सम्मान समय, दशा और कुल देख कर होता है.
समय धराए तीन नाम, परसा परसू परशुराम. परशुराम नाम का एक व्यक्ति जब बहुत गरीब था तो उसको लोग परसा कह कर बुलाते थे, जब उस पर कुछ पैसा हुआ तो उसे परसू कहने लगे और जब वह सम्पन्न हो गया तो परशुराम जी कहने लगे.
समय पड़े की बात, बाज पर झपटे बगुला. बाज का समय खराब होता है तब बगुला भी उस पर झपट लेता है.
समय परे ओछे बचन, सबके सहउ रहीम. रहीम कहते हैं कि यदि आपका समय खराब है तो सबके कड़वे वचन भी चुपचाप सुन लेना चाहिए.
समय पाय तरूवर फले, केतिक सींचो नीर. कोई भी काम समय आने पर ही होता है उसके पहले चाहे कितना प्रयास करो. पेड़ को कितना भी सींचो वह फलेगा समय आने पर ही.
समय पाय फल होत है, समय पाय झरि जाय, सदा रहे नहिं एक सी, का रहीम पछिताय. समय के अनुसार ही पेड़ पर फल लगता है और समय के अनुसार ही झड़ जाता है. सदा किसी का समय एक सा नहीं रहता इसलिए इसका दुख नहीं करना चाहिए.
समय बड़ा बलवान. समय व्यक्ति को कुछ का कुछ बना देता है.
समय बिताने के लिए करना है कुछ काम, शुरू करो अंताक्षरी ले कर हरि का नाम. अंताक्षरी शुरू करने से पहले बोलने वाली कहावत.
समय संपत्ति है. समय का सदुपयोग करने वाला ही धनवान बन सकता है.
समय सब घावों का मरहम है. समय सब घावों को भर देता है. इंग्लिश कहावत – Time is the great healer.
समय समय का बाना न्यारा. बाना – वेश, न्यारा – अलग. अवसर के अनुसार उचित वस्त्र पहनना चाहिए.
समय समय को देखिये, समय समय की बात, काहु समय में दिन बड़ा, काहु समय में रात. सब दिन एक से नहीं रहते. कभी सुख मिलता है कभी दुख.
समय समय सुन्दर सभी, रूप कुरूप न कोय. समय के अनुसार ही व्यक्ति सुंदर या असुन्दर होता है. कोई सदैव रूपवान या सदैव कुरूप नहीं होता.
समरथ कहं नहिं दोस गोसाईं, रबि, पावक, सुरसरि की नाई. किसी बलवान व्यक्ति को उसके कर्म के लिये दोषी नहीं कहा जाता है चाहे उस के कारण कितना ही कष्ट क्यों न हुआ हो. सूर्य के ताप से प्राणी व्याकुल हो जाते हैं, आग लगने से और नदी में बाढ़ आने से कितना नुकसान होता है, लेकिन इन का दोष कोई नहीं मानता.
समाचार मड़वा के पाये, जब लहकौरे बैंगन खाये. लहकौर-विवाह की रीति जिसमें वर कन्या एक दूसरे के मुँह में कौर देते हैं. लहकौर में बैंगन का साग आया तो पता चल गया कि लड़की वाले बरात का कैसा स्वागत करेंगे.
समुद्र और श्मशान किसी को इंकार नहीं करते. समुद्र में कितना भी कुछ डाल दो वह मना नहीं करता, इसी प्रकार श्मशान में कितनी भी अर्थियां आ जाएँ किसी को मना नहीं किया जाता.
समुद्र सूखेगा तो भी घुटनों तक पानी रहेगा. जहाँ बहुत बड़ा भंडार भरा हुआ है वहाँ कम भी होगा तो कितना.
समुद्र सोख को दरिया क्या. बहुत बड़े काम करने वाले के लिए छोटा काम क्या चीज़ है. जो समुद्र को सोख सकता है उसके लिए नदी क्या है.
सम्पत होय थोड़ी तो गाय रखो न कि घोड़ी. जिस के पास कम पैसा हो उस की समझदारी गाय पालने में है जिसमें खर्च कम और लाभ अधिक है. कम संपत्ति वाले को घोड़ी नहीं पालना चाहिए जिसमें अनाप शनाप खर्च है और उपयोगिता भी कम है.
सम्पति और विपत्ति को दोनों सम कर राख, चार दिनां की चांदनी फिर अँधेरी पाख. अच्छे और बुरे दोनों समय में मन को स्थिर रखना चाहिए, सुख के कुछ दिनों के बाद दुख भी आता है. इस दोहे का बाद वाला हिस्सा कहावत के रूप में अत्यधिक प्रचलन में है.
सम्पत्ति के सब ही हितु, विपदा में सब दूर. मनुष्य के पास संपत्ति हो तो सब मित्र बन जाते हैं.
सम्मुख छींक लड़ाई भासैं, छींक पाछिली सुख अभिलासैं, छींक दाहिनी धन को नासैं, वाम छींक सुख सदा प्रकासैं. (बुन्देलखंडी कहावत) किसी के सामने छींक आ जाए तो लड़ाई होती है, पीठ पीछे छींक आए तो अच्छा शकुन मानते हैं, दाहिनी ओर कोई छींक दे तो धन का नाश होता है और कोई बायीं ओर छींके तो शुभ होता है.
सयाना आदमी लीक नहीं पीटता. लीक – कच्ची सड़क पर गाड़ियों के चलने से बने निशान. बुद्धिमान व्यक्ति बिना सोचे समझे पुरानी परम्पराओं पर नहीं चलता. सन्दर्भ कथा – किसी मंदिर में एक अंधा पुजारी पूजा किया करता था. वह दो रोटी बना कर भगवान् को भोग लगा देता और फिर उन रोटियों को स्वयं खा लिया करता. एक बार मंदिर में एक बिल्ली हिल गई और जैसे ही पुजारी भगवान की मूर्ति के आगे रोटियां रखकर हाथ जोड़ता, वैसे ही वह रोटियों को उठाकर भाग जाती. पुजारी भूखा रह जाता. तब उसने एक युक्ति निकाली. उसने लकड़ी की एक बड़ी खूँटी बनवाई और जब वह भोग लगाता तो उस खूँटी को राटियों में ठोंक देता, जिससे बिल्ली उन्हें नहीं लेजा पाती. सूरदास की मृत्यु के बाद उसका एक चेला पूजा करने लगा. वह अंधा नहीं था लेकिन गुरु की परिपाटी को निभाने के लिए वह भी रोटियों में खूँटी अवश्य ठोंकता. उसके बाद तीसरा पुजारी प्राया. वह कुछ समझदार था. उसने किसी वयोवृद्ध से खूँटी ठोंकने का रहस्य पूछा और सारी बात जानकर उसने रोटियों में खूँटी ठोंकना बंद कर दिया
सयाना कौआ विष्टा खाता है. जो धूर्त व्यक्ति अपने को ज्यादा बुद्धिमान समझता है वह अंत में हानि उठाता है. कौवे को धूर्त प्राणी माना गया है इसलिए उसका उदाहरण दिया गया है.
सयानी चली ससुराल और बावरी सीख दे. अपने से अधिक बुद्धि वाले को सीख देने की कोशिश करना.
सयाने के सवाये, कमबख्त के दूने. सयाना व्यापारी कम मुनाफा लेता है और सफलता पूर्वक व्यापार करता है. मूर्ख व्यापारी दुगुना करने के चक्कर में धन गंवा देता है.
सयाने को जरा इशारा, मूरख को कोड़ा सारा. समझदार व्यक्ति थोड़े से इशारे से समझ जाता है और मूर्ख आदमी डांट फटकार से समझता है. रूपान्तर – अकलमन्द को इशारा, अहमक को फटकारा.
सर गंजा और दो जोड़ी कंघा. जिस वस्तु की बिल्कुल आवश्यकता न हो उस को अधिक मात्रा में रखना.
सर तोड़ मेहनत और मुँह तोड़ जवाब. कस कर मेहनत करने वाला किसी से नहीं डरता.
सर बड़ा सरदार का, पैर बड़ा गंवार का. एक आम विश्वास है कि बुद्धिमान व्यक्ति का सर बड़ा होता है और मूर्ख का पैर. किसी का पैर बड़ा हो तो मजाक में भी कहते हैं. रूपान्तर – सर बड़ा सपूत का, पैर बड़ा कपूत का.
सर भले ही कट जाए, नाक नहीं कटनी चाहिए. जान भले ही चली जाए, इज्जत नहीं जानी चाहिए.
सर मुंडाते ही ओले पड़े. काम पूरा करते ही उससे सम्बंधित कोई ऐसी मुसीबत आ जाए जिससे नुकसान हो जाए.
सर मुंड़े उस रांड का जो खसम से पहले खाए. लोक मान्यता है कि स्त्री को पति को खिलाने बाद ही भोजन करना चाहिए. अगर वह पहले खा ले तो उसका सर मूंड देना चाहिए.
सर सलामत तो पगड़ी हजार. जान बची रहेगी तो मान सम्मान बाद में भी कमा लेंगे.
सर सहलाएं भेजा खाएँ. थोड़ा प्रेम दिखा कर बहुत परेशान करने वालों के लिए.
सरक बुआ भतीजी आई. जहाँ छोटे लोग बड़ों की अवमानना करें.
सरकार के मुँह में गया पैसा और भैंस के मुंह में गया भूसा फिर नहीं लौटते. सरकार के यहां दिया गया पैसा तथा भैंस के मुंह में गया भूसा भला कैसे वापस आ सकता है.
सरकारी सांड. ऐसे सरकारी मुलाजिम जो काम कुछ न करें और लोगों पर रौब गांठते फिरें.
सरके तो सरकाइये, नहीं तो आप सरक जाइए. काम होता दिखे तो लगे रहिये, वरना चुपचाप निकल लीजिये.
सरनाम बनिया और बदनाम चोर. दोनों अच्छा पैसा कमाते हैं. नामी बनिया अच्छा पैसा कमाता है क्योंकि लोग उस के नाम से माल खरीदते हैं. बदनाम चोर पैसा कमाता है क्योंकि लोग उसके नाम से डरते हैं.
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है. अमर क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल द्वारा लिखी गई यह अमर रचना कहावत की भाँति आज भी जन जन की जबान पर है. उन्होंने अंग्रेज सरकार के खिलाफ यह बात कही थी, लेकिन अब कहीं भी अत्याचार के खिलाफ लोग ऐसा बोलते हैं.
सरम की बांधी सात घर करे (सरम की मां गोड़ा रगड़े). शर्म की बँधी सात घर करती है. मजबूरी के कारण व्यक्ति को छोटे छोटे काम या गलत काम भी करने पड़ते हैं.
सरम के आंसू निकल गये. किसी के अत्यधिक बेशरम बन जाने पर कहते हैं कि इसे देख कर शर्म भी रो दी.
सरमदार अपनी सरम से मरा, बेसरम ने कही मुझ से डरा. शर्मंदार ने तो दूसरे का लिहाज किया, परन्तु बेशर्म ने समझा कि यह मुझसे डर गया.
सराय का कुत्ता, हर मुसाफिर का यार. जो लोग अपने स्वार्थ के लिए सब से दोस्ती गाँठ लेते हैं उन के लिए.
सराहल धिया डोम घरे जाय. (भोजपुरी कहावत) ज्यादा प्रशंसा करने से बेटी बिगड़ सकती है और उसे अपने भले बुरे का ज्ञान नहीं रहता. ऐसी बहुत सी लड़कियां आजकल लव जिहाद का शिकार हो रही हैं.
सरिता, कूप, तड़ाग नृप, जे कम कभी न देत, करम कुम्भ जाको जितै, सो उतना भर लेत. नदी, कुआं, तालाब और राजा, ये देने में कंजूसी नहीं करते. जिसका कर्म व भाग्य रूपी घड़ा जितना बड़ा है वह उतना भर लेता है.
सर्दियों का सवेरा, गर्मियों की दोपहर और चौमासे की रात. ये सभी कष्टप्रद होने के कारण लंबे महसूस होते हैं.
सर्दी भोगी की और गर्मी योगी की. भोगी के लिए जाड़े अधिक उपयुक्त रहते हैं और योगी के लिए गर्मी का मौसम. जब तक एयर कंडिशनर का आविष्कार नहीं हुआ था, धनी और भोगी लोग गर्मी में परेशान रहते थे.
सर्मीलो मांगे नहीं, गर्वीलो देय नहीं. जिसे आत्म सम्मान प्यारा है वह किसी से कुछ मांगता नहीं और जिसे अपनी सम्पन्नता पर अभिमान है वह बिना मांगे (बिना नीचा दिखाए) किसी को कुछ देता नहीं.
सर्राफ की थैली में खोटा खरा एक. सर्राफ की थैली से निकली हर चीज़ को लोग असली समझ कर विश्वास कर लेते हैं (सर्राफ इस का गलत फायदा भी उठाते हैं).
सलाम के लिए मियाँ को क्यूँ नाराज करो. अगर मियाँ सलाम करने से खुश होता है तो कर लो, इतनी छोटी सी बात के लिए किसी से क्यूँ बिगाड़ो. (कहावत मुग़लकाल की है जब हिन्दुओं को मुसलामानों से दबना पड़ता था).
सवाल दीगर, जवाब दीगर. सवाल कुछ और, जवाब कुछ और.
सवेरे का टहलना, दिन भर की खुशी. सुबह उठ कर टहलने से व्यक्ति दिन भर प्रसन्नचित्त रहता है.
ससुर के प्राण जाए, पतोहू करे काजर. दूसरे के कष्ट को न समझ कर अपने स्वार्थ में लगे रहना. ससुर के प्राण जा रहे हैं और पुत्रवधू साज सिंगार करने में व्यस्त है.
ससुर को पड़ी हल बैल की, बहू की पड़ी नोन तेल की. सब को अपने अपने काम की चिंता होती है.
ससुर जेठ का डर नहीं, जिससे डरे वो घर नहीं. किसी अनुशासनहीन स्त्री के लोकविरुद्ध आचरण पर व्यंग्य.
ससुर पकड़े साड़ी, तो बहू क्यों छोड़े दाढ़ी. ससुर अगर मर्यादा का उल्लंघन कर के बहू की साड़ी पकड़े तो बहू को भी दाढ़ी पकड़ के उस की पिटाई करने का पूरा हक है.
ससुरार पियारि लगी जब से, रिपु रूप कुटुम्ब भयो तब से. रिपु रूप – दुश्मन जैसा. जो लोग ससुराल के भक्त हो जाते हैं उन्हें अपना परिवार दुश्मन लगने लगता है.
ससुरार सुख की सार, जो रहे दिन दो चार. जो रहे दिन दस बारा, हाथ में खुरपी बगल में चारा. ससुराल बड़े सुख की जगह है अगर वहाँ दो चार दिन रहो तो. अगर ज्यादा दिन रहोगे तो काम पकड़ा दिया जाएगा (खुरपी लो और चारा काट कर लाओ).
ससुराल का वास, कुल का नाश. कोई व्यक्ति ससुराल में रहता है तो उस के कुल की मर्यादाओं का सत्यानाश हो जाता है (क्योंकि हर कुल की परम्पराएं अलग अलग होती हैं).
ससुराल जाने वाली, छिनाल नहीं कहलाती. कोई मनचले स्वभाव की लड़की जब ससुराल चली जाती है और वहाँ रम जाती है तो लोग उसके पूर्व के चरित्र पर ऊँगली नहीं उठाते.
ससुराल बसे दोनहुँ कुल नास. कोई पुरुष अगर अपनी ससुराल में रहता है तो उस के पिता और श्वसुर दोनों के कुल का नाश होता है.
ससुराल में रहना, गधे पर चढ़ना. ससुराल में रहने पर उतनी ही बेईज्ज़ती होती है जितनी गधे पर चढने से.
ससुराल में सुहाय नहीं, पीहर में समाय नहीं. बहुत सी स्त्रियों को ससुराल में अच्छा नहीं लगता, लेकिन मायके में भी उन के लिए स्थान नहीं है.
ससुराल में सौ बंधन. स्त्रियों को तो ससुराल में तरह तरह के बंधन होते ही हैं, जो पुरुष ससुराल में रहते हैं वे भी आजादी से नहीं रह सकते.
सस्ता ऊँट, महंगा पट्टा. ऊँट तो सस्ता है पर उसका पट्टा महंगा है. किसी वस्तु का रखरखाव वस्तु की कीमत से अधिक महंगा हो तो.
सस्ता माल और बहता पानी. इनका कोई भरोसा नहीं. (आज के जमाने में चाइनीज़ माल).
सस्ता माल पाऊँ, तो नौ मन तुलवाऊँ. सस्ते के चक्कर में अनावश्यक खरीदारी करने वालों पर व्यंग्य.
सस्ता रोवे बार बार, मंहगा रोवे एक बार. कोई अच्छी चीज़ थोड़ी महंगी मिले तो खरीदते समय एक बार कष्ट होता है लेकिन सस्ते के चक्कर में घटिया माल उठा लाए तो बार बार रोना पड़ता है.
सस्ती भेड़ की पूँछ, सब उठा उठा देखें (सस्ती भैंस की पूँछ उठा कर देखी जाए). सस्ते माल की कोई कद्र नहीं करता और सब को यह डर भी होता है कि कहीं यह घटिया न हो.
सहज पके सो मीठा (धीमा पके सो मीठा होए). इत्मीनान से किया गया काम अच्छा होता है.
सहरी खाए सो रोजा रक्खे. जो किसी काम में होने वाला लाभ उठाए उसे उस काम में होने वाले कष्ट भी झेलने चाहिए. रमजान के दिनों में रोज़ा रखने वालों को सहरी (सुबह के खाने) में बढ़िया माल खाने को मिलते हैं. जो लोग रोज़ा नहीं रखते वे भी माल खाने की जुगत में रहते हैं. सहरी का माल दूसरे लोग खा गए और रोज़ा रखने को किसी दूसरे से कहा जा रहा है, तो वह यह बात कहता है. सन्दर्भ कथा – रोज़े के दिनों में मुसलमान सूर्योदय के पहले ही खूब जम कर खाना खा लेते हैं. फिर दिन भर कुछ नहीं खाते पीते. शाम को इफ्तार होने पर ही कुछ खाते हैं. सुबह का वह भोजन सहरी कहलाता है. एक मियां के पास एक कुत्ता था. एक दिन उस कुत्ते ने उनकी सहरी खा डाली. इस पर मियां ने नाराज़ होकर उसे एक खंभे से बांध दिया और कहा कि बस अब आज मेरे बदले यह कुत्ता ही रोज़ा रखेगा, क्योंकि इसने ही सहरी खाई है. इस प्रकार मियां ने अपने को रोज़ा रखने की मुसीबत से बचा लिया
सहरी भी न खाऊं तो काफिर न हो जाऊं. जो लोग रोज़ा रखना नहीं चाहते लेकिन सहरी खाने की जुगाड़ में रहते हैं उनका तर्क. सन्दर्भ कथा – एक समय बहुत से मुलमान इकट्ठे होकर सहरी खा रहे थे. उनमें एक मुसलमान ऐसा भी था, जो रोज़ा नहीं रखे हुए था. उसे अपनी पंक्ति में देखकर सबके सब कह उठे कि तुम क्यों सहरी खा रहे हो? तुम क्या रोजा रख रहे हो? इस पर उसने जवाब दिया, मैं तो नमाज भी नहीं पढ़ता, न ही रोज़ा रखता हूं, अब अगर सहरी भी न खाऊं तो काफिर नहीं हो जाऊंगा?
सहस डुबकियां मैं लई मोती कर नहिं लाग, सागर को क्या दोष है जो नहिं मेरे भाग. मैंने हजार डुबकियाँ लगाएँ लेकिन एक भी मोती हाथ नहीं आया. मेरे भाग्य में नहीं है तो मैं सागर को क्यों दोष दूँ.
सहसा करि पछताएं विमूढ़ा. नासमझ लोग जल्दबाजी में गलत काम कर बैठते हैं और फिर पछताते हैं.
सहस्त्र गोपी एक कन्हैया. जहाँ एक व्यक्ति के चाहने वाले बहुत से लोग हों.
सही गए, सलामत आए. किसी काम में असफल होकर लौटने वाले पर व्यंग्य.
सही सवेरे सूम का नाम लो तो रोटी नहीं मिलती. पुराना विश्वास है कि यदि सुबह सुबह कंजूस का नाम ले लोगों तो उस दिन रोटी नहीं मिलती.
साँई ते सब होते है, बन्दे से कुछ नाहिं, राई से पर्वत करे, पर्वत राई माहिं. सब कार्य ईश्वर के करने से ही होते हैं, मनुष्य के करने से कुछ नहीं होता. ईश्वर चाहे तो राई को पर्वत बना दे और पर्वत को राई.
साँच कहा माने नहीं, झूठ से जग पतियाये. इस संसार में सच्ची बात को कोई नहीं मानता, सब झूठे लोगों का ही विश्वास करते हैं. रूपान्तर – साँच कहे जग मारन जाय, झूठे जग पतियाय.
साँचे तो फाके करें, लाबर लड्डू खायें. लाबर – झूठे. सच बोलने वाले भूखे मरते हैं, झूठे मौज उड़ाते हैं.
साँप के बच्चे सपोले ही कहलाएगें (सांप के सांपै होत). 1. व्यक्ति में अपने वंश के गुण अवश्य आते हैं. नीच व्यक्ति की संतानें नीच ही होती हैं. 2. व्यक्ति कुछ भी बन जाए वंश का नाम उस का पीछा नहीं छोड़ता.
साँप को दूध पिलाओगे तो भी जहर ही उगलेगा. दुष्ट व्यक्ति की सहायता करोगे तो भी वह आपको नुकसान ही पहुंचाएगा. इस कहावत को इस प्रकार से भी कहा गया है – साँप को दूध पिलाने से विष बढ़ता है.
साँप निकल गया लकीर पीटते रहो. नुकसान होने के बाद बेकार की जांच पड़ताल करने से क्या लाभ.
साँप मरे न लाठी टूटे. (साँप भी मरे लाठी भी न टूटे). अपना काम भी हो जाए और कुछ गंवाना भी न पड़े.
साँप सर पे बूटी पहाड़ पे. सांप तो सर पे है लेकिन सांप का विष उतारने की बूटी दूर पहाड़ी पर है. खतरा सर पर मंडरा रहा हो और उस से बचने का उपाय पास न हो तो.
साँपों की सभा में जीभों की लपालप. जहाँ दुष्ट लोगों का जमावड़ा होगा वहाँ सब जहरीली बोली ही बोलेंगे.
सांई अपने चित्त की भूल न कहिये कोय, तबलगि मन में राखिये जब लगि काम न होय. जब तक काम न हो जाए तब तक किसी को अपनी कार्य योजना और आशंकाओं के विषय में नहीं बतानी चाहिए.
सांई अवसर के पड़े को न सहे दुख द्वंद, जाए बिकाने डोम घर राजा श्री हरिश्चन्द्र. कठिन समय आता है तब बड़े लोगों को भी दुख झेलने पड़ते हैं. राजा हरिश्चन्द्र पर जब दुख आया तो उन्हें डोम के हाथों बिकना पड़ा था.
सांई इतना दीजिये, जा में कुटुम समाय, मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय. हे ईश्वर मुझे इतना दीजिए जिसमें मेरे परिवार का पालन भी हो जाए और कोई याचक मेरे द्वार से भूखा न जाए.
सांई ऐसे पुत्र से बाँझ रहे बरु नारि, बिगरौ बेटो बाप से जाय रहे ससुरारि. जो बेटा बाप से बिगड़ कर ससुराल जा कर रहने लगे ऐसा बेटा होने के मुकाबले तो स्त्री बाँझ रहे वह ज्यादा अच्छा.
सांई का घर दूर है जैसे पेड़ खजूर, चढ़े तो चाखे प्रेम रस गिरे तो चकनाचूर. ईश्वर का घर दूर भी है और वहाँ जाने के प्रयास में खतरे भी हैं, जैसे खजूर के पेड़ पर चढ़ पाए तो मीठे खजूर चखने को मिलेंगे और गिर गए तो हड्डियाँ चूर हो जाएँगी.
सांई का रख आसरा वाही का ले नाम, दोउ जग भरपूर हों तेरे सगरे काम. ईश्वर का आसरा रखने पर लोक परलोक के सारे काम सही हो जाते हैं.
सांई के सब खेल हैं. दुनिया के सारे कार्य ईश्वर के खेल मात्र हैं.
सांई घोड़े मर गए गदहन आयो राज, काग हाथ पै लेत हैं दूर कियो है बाज. निकम्मे या दुष्ट राजा के लिए – घोड़े मर गए हैं और गधों का राज आ गया है जिन्होंने बाज को हटा कर कौवे को हाथ पर बिठाया हुआ है.
सांई या संसार में भांत भांत के लोग, सब से मिलकर बैठिये नदी नाव संयोग. संसार में तरह तरह के लोग हैं और हमें बहुत कम समय ही रहना है इसलिए सबसे मिलाकर रखना चाहिए.
सांई या संसार में मतलब को व्यवहार, जब लग पैसा गाँठ में तब लग ताको यार. संसार में सब अपना स्वार्थ देखते हैं, जब तक आपके पास धन है तभी तक आपसे दोस्ती करते हैं.
सांच कहे तो साथ छुटे. सच बोलने से साथ छूटने का डर रहता है.
सांच को आँच नहीं. सत्य बात अंततः सिद्ध हो ही जाती है. सन्दर्भ कथा – किसी नगर में एक जुलाहा रहता था. वह बहुत बढ़िया कम्बल तैयार करता था. उसका धंधा सच्चा था. एक दिन उसने एक साहूकार को दो कम्बल दिए. साहूकार ने दो दिन बाद उनका पैसा ले जाने को कहा. दो दिन बाद जब जुलाहा अपना पैसा लेने आया तो साहूकार ने कहा, मेरे यहां आग लग गई और उसमें दोनों कम्बल जल गए, अब मैं पैसे क्यों दूं? जुलाहा बोला, यह नहीं हो सकता मेरा धंधा सच्चाई पर चलता है. असली कम्बल में कभी आग नहीं लग सकती. जुलाहे के कंधे पर एक कम्बल पड़ा था उसे सामने करते हुए उसने कहा, यह लो, लगाओ इसमें आग. साहूकार ने कम्बल को जलाने कि काफी कोशिश की लेकिन कम्बल नहीं जला. तब जुलाहे ने कहा, याद रखो सांच को आंच नहीं. (कहानी में यह माना गया है कि असली कम्बल आग नहीं पकड़ता)
सांच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप, जाके हिरदै सांच है, ताके हिरदै आप. सच बोलने में बहुत से कष्ट झेलने पड़ते हैं इसलिए सच बोलना एक तपस्या है. झूठ के बराबर कोई पाप नहीं है. जो सच बोलता है उस के हृदय में स्वयं भगवान निवास करते हैं. (कहीं कहीं पर झूठ बराबर ताप भी लिखा मिलता है जिसका अर्थ है कि झूठ बोलने में भी मनुष्य को मानसिक संताप होता है). आजकल इसके उलट एक कहावत कही जाती है – झूठ बराबर तप नहीं, सांच बराबर ताप, जाके हिरदै सांच है, बैठा बैठा टाप.
सांची कहे, खुश रहे. सच बोलो तभी मन प्रसन्न होता है.
सांची कहें तो मौसी का काजल. सच बात कहने से कोई तिनक उठे तब. सन्दर्भ कथा – एक सज्जन बड़े मुँहफट और स्पष्टवादी थे. इस कारण उनका नाम ‘साँचेरैया’ पड़ गया था. एक बार वह अपनी मौसी के यहाँ गये. धीरे से दरवाजा खोल कर भीतर पहुँचे तो देखा कि मौसी बड़ी ठसक से श्रृंगार कर रही हैं और वहीं मौसा भी खड़ें हैं. वे उल्टे पैरों बाहर लौट आये और चुपचाप दरवाजे पर बैठ गये. थोड़ी देर बाद मौसी बाहर निकली तो उन्हें बैठा देख कर पूछा, अरे, तू कब आया? साँचेरैया ने तुरंत उत्तर दिया, जब तुम काजल लगा रही थीं और मौसा खड़े हँस रहे थे. सुनते ही मौसी आग बबूला हो गयी और – अरे तेरो सत्यानास जाए, मौसी से हँसी करता है, कह कर उसे मारने दौड़ी. साँचेरैया वहाँ से भाग निकले. इसके पश्चात सच बोलने के कारण जब कभी कोई विपत्ति आती है तो वे यही कहते हैं कि सांची कहें तो मौसी का काजल.
सांचे का रंग रूखा. सच्चा व्यक्ति अक्सर रूखा होता है.
सांचे गुरु का चेला, मरे न मारा जाय. सच्चे गुरु के शिष्य को कोई विपत्ति नहीं आती.
सांचे रांचे राम. सत्य में ही राम बसते हैं.
सांझ जाये भोर आये, कैसे न छिनार कहाये. जो स्त्री शाम को कहीं जाए और सवेरे घर लौट कर आये उसे चरित्रहीन ही माना जाएगा.
सांझे धनुष सकारे मोर, ये दोनों पानी के बोर. सकारे – सुबह को. शाम को इन्द्रधनुष दिखाई दे और सुबह को मोर, तो वर्षा अवश्य होगी.
सांटे की सगाई और ब्याज के रूपये का अहसान क्या. सांटे की सगाई – अदला बदली वाली शादी (जहाँ अपनी बेटी दूसरे घर में शादी हो कर जाए और उस घर की बेटी अपने घर में आए). ऐसी शादी में किसी का किसी पर अहसान नहीं होता. इसी प्रकार उधार लिए धन का ब्याज अदा करने पर भी कोई एहसान नहीं माना जाता.
सांड़ों की लड़ाई में बाड़ का नुकसान (लड़ें सांड बाड़ी का भुरकस). घर के दो लोग आपस में लड़ते हैं तो घर का ही नुकसान होता है. कहीं कहीं बोलते हैं – सांड़ों की लड़ाई में बछड़े का भुरकस.
सांड़ों से हल नहीं चलते. मुफ्तखोर और अनुशासनहीन लोगों से काम नहीं लिया जा सकता.
सांप और चोर की धाक बड़ी होती है. इन से सभी डरते हैं.
सांप का काटा बच सकता है पर इंसान का काटा नहीं. सांप के काटे का इलाज संभव है पर इंसान के धोखे और विश्वासघात का नहीं.
सांप का काटा बिच्छू से क्यों डरे. जो बड़ी बड़ी मुसीबतें झेल चूका हो वह छोटी मुसीबतों से क्यों डरेगा.
सांप का डसा रस्सी से भी डरता है. अर्थ स्पष्ट है (दूध का जला छाछ भी फूँक फूँक कर पीता है).
सांप का दांव नेवला जाने. सांप के दांव को इंसान नहीं समझ सकता, नेवला ही समझ सकता है.
सांप का मंतर खाट की बानि, अनका लाभ आपनी हानि. अनका–दूसरों का. सांप का मन्त्र जानने वाले को समय असमय सांप का जहर उतारने यहाँ वहाँ जाना पड़ता है, जिसमें उसका समय खराब होता है. खाट बुनने वाले को बेगारी में लोगों की खाटें बुनने जाना पड़ता है, जिसमें उसका समय खराब होता है और उंगलियाँ छिल जाती हैं.
सांप काटना छोड़ दे पर फुफकारना न छोड़े. दुष्ट अपनी दुष्टता को पूर्णतया नहीं छोड़ सकता.
सांप की क्या मौसी, सुनार की क्या साख. साँपों में कोई किसी का रिश्तेदार नहीं होता, सब एक दूसरे को खा जाने को तैयार रहते हैं. इसी तरह सुनार की कोई साख नहीं होती कि फलां सुनार बड़ा ईमानदार है.
सांप की तो भाप भी बुरी. दुष्ट आदमी से जितना दूर रहो उतना अच्छा.
सांप के घर पावने, फन से फन मिलावने. (बुन्देलखंडी कहावत) पावने – पाहुने, अतिथि. 1. जहाँ मेजबान और मेहमान एक से बढ़ कर एक हों. 2. दुष्ट लोगों के ख़ुशी प्रकट करने के तरीके भी निराले होते हैं.
सांप के डसे को इतवार कब आवे. सांप ने आज काटा है और झाड़ने वाला कह रहा है कि जहर इतवार को ही उतारा जाता है.
सांप के पैर सांप को ही दिखाई देते हैं (सांप के पाँव पेट में होते हैं). दुष्ट व्यक्ति के पास क्या क्या शक्तियाँ व सामर्थ्य हैं यह वही जानता है.
सांप के फन से देह खुजाएँ. जानबूझ कर अनर्थ करने वाले के लिए.
सांप के संपोले का क्या छोटा और क्या बड़ा. सांप के बच्चे सभी जहरीले होते हैं, चाहे छोटा हो या बड़ा.
सांप को सांप भाई जान कहोगे तब भी काटेगा. आप कितनी भी नम्रता और आदर से बोलिए, दुष्ट अपनी दुष्टता नहीं छोड़ता.
सांप चलती हुई मौत है. अर्थ स्पष्ट है.
सांप डँसे और बोले, मेरे ऊपर मत गिरना. दुष्ट व्यक्ति सबको नुकसान पहुँचाता है और यह भी कहता जाता है कि मुझे कोई हानि मत पहुँचाना.
सांप निकल गया लकीर रह गई. 1. किसी परंपरा के लुप्त होने के बाद भी रूढ़ियों का बंधन रह जाता है. 2. डर मिटने के बाद भी आशंका नहीं मिटती.
सांप मार के संपोला न पालो. शत्रु को समाप्त करने के बाद उस के उत्तराधिकारी पर दया दिखाने की भूल नहीं करना चाहिए. वह कभी भी बदला लेने की कार्यवाही कर सकता है.
सांप लहरा के बिल में घुसे, तो बारह जगह से छिले. सांप बाहर लहरा के चलता है पर बांबी में सीधा घुसता है. दुष्ट व्यक्ति अपने घर में दुष्टता नहीं दिखाता, यदि दिखाएगा तो नुकसान उठाएगा.
सांपों के डर गोगा पूजे (सांप नहीं होते तो गोगा जी को कौन पूछता). राजस्थान में गोगा देव को साँपों का देवता मान कर पूजा जाता है. दुष्टों से बचने के लिए कभी कभी अवांछित लोगों की भी शरण लेनी पडती है.
सांबा खेती अहीर मीत, कभी कभी ही होवें हीत. सांबा एक प्रकार का घटिया अनाज होता है जिसकी खेती लाभदायक नहीं होती. इसी प्रकार अहीर से मित्रता करने से भी कोई लाभ नहीं होता. हीत – हितकर.
सांभर जाय, अलोना खाय (सांभर में नोन का टोटा). अलोना – बिना नमक का. जहां जिस चीज़ की बहुतायत होनी चाहिए वहाँ उस चीज़ का अभाव. सांभर झील के पानी में नमक बहुत है इसलिए उससे नमक बनाते हैं.
सांभर पड़ा सो लून. सांभर झील में जो कुछ डालो वह गल कर नमक बन जाता है. किसी दूसरे समाज के साथ रहने वाला व्यक्ति अपनी पहचान खो कर उनके जैसा ही बन जाता है.
सांस बटाऊ पाहुना, आये या न आए. सांस एक राहगीर और अतिथि के समान है जिसका कोई भरोसा नहीं होता कि वह आएगा या नहीं आएगा.
साइत से सुतार भलो. किसी काम का मुहूर्त्त देखने की अपेक्षा उसका ठीक से प्रबंध करना अच्छा.
साईसों का अकाल और मुंशियों की बहुतायत. विशेष कामों में माहिर लोगों की कमी और पढ़े लिखे बेरोजगारों की बहुतायत. साईस – घोड़ों की देखभाल करने वाला. आजकल भी कुछ ऐसा ही माहौल है.
साख के हिसाब से उधार. बाज़ार में आदमी की जैसी साख होती है उसे वैसा ही उधार मिलता है.
साख लाख से अच्छी. लाखों रूपये पास हों लेकिन प्रतिष्ठा न हो तो बेकार है.
साग अच्छा तोरी का, गुड़ अच्छा चोरी का, राग अच्छा होरी का. अर्थ स्पष्ट है. होरी – होली के गीत.
सागर में पानी बरसे, मरुभूमि बूँद को तरसे. जिस के पास धन और साधनों की बहुतायत है उसी के पास और धन इकठ्ठा होता जाता है, निर्धन बेचारा तरसता रहता है.
साझा उधार दोऊ अशुभ, घर अंधियारी लाय. साझे का काम और उधार लेना या देना अशुभ काम हैं. इन से घर में अंधियारा आता है.
साझा जोरू, खसम ही का भला. पत्नी साझे की होगी तो किसी की जिम्मेदारी नहीं होगी.
साझा तो भगवान का भी बुरा. साझा किसी से भी नहीं करना चाहिए, भगवान से भी नहीं.
साझा तो सिर्फ अपना ही भला. अपने अलावा किसी से साझा नहीं करना चाहिए. सुनने में बात अटपटी लगती है, लेकिन यह भी संभव है. एक ही व्यक्ति अलग अलग नामों से प्रतिष्ठान बना कर साझेदारी कर सकता है.
साझा निभे न बाप का. साझा कभी नहीं निभता (चाहे पिता और पुत्र के बीच क्यों न हो).
साझा बाप न रोए कोई. जिस बाप के कई बेटे हों (साझे का बाप) उनमें कोई बाप के मरने पर दुखी नहीं होता. सब इसी उधेड़बुन में रहते हैं कि सम्पत्ति का बंटवारा कैसे हो. बाप की सेवा को सब एक दूसरे पर टालते हैं.
साझे की खेती गदहे खाएं. साझे की खेती में कोई रखवाली नहीं करता इसलिए छुट्टे जानवर खेत खा जाते हैं.
साझे की तो होली ही अच्छी होती है (साझे की होली सबसे भली). साझे का कोई काम अच्छा नहीं होता, केवल होली ही साझे की (सब मिल कर जलाएं तो) अच्छी होती है.
साझे की नाव, पार नहीं उतारती. साझे का काम किसी भी संकट से बाहर नहीं निकालता.
साझे की माँ गंगा न पावे. साझे के काम में सब एक दूसरे पर काम टालते रहते हैं इसलिए काम नहीं होता. जिस माँ के कई बेटे हैं उसे मरने के बाद कोई भी बेटा गंगा नहीं पहुंचाता. इंग्लिश में कहावत है – Everybody’s business is nobody’s business.
साझे की सुई भी ठेले पर लदती है. साझे के काम में आदमी को पैसे का दर्द नहीं होता इसलिए फिजूलखर्ची बहुत होती है.
साझे की हांडी चौराहे पर फूटी. साझे का काम फेल होता है और जग हंसाई भी होती है.
साझे के देव को भोग नहीं मिलता. किसी भी काम की जिम्मेदारी बहुत से लोगों पर डाल दी जाए तो वह काम नहीं होता (चाहे देवता को भोग लगाने का काम ही क्यों न हो).
साझे के बाप को खाएँ सियार. कई बेटे होते हैं तो बाप का क्रिया कर्म भी ठीक से नहीं होता.
साझे में व्यापार करेगा तो संन्यासी बनेगा. साझे के काम में घाटा होना निश्चित है.
साठ सास ननद हों सौ, माँ से होड़ न इनकी हो. साठ सासें और सौ ननदें मिल कर भी माँ की बराबरी नहीं कर सकतीं.
साठा सो पाठा. साठ वर्ष की आयु में आ कर आदमी परिपक्व हो जाता है.
साठी बुद्धि नाठी. साठ साल का होने पर बुद्धि नष्ट हो जाती है. ऊपर वाली कहावत से उलट.
सात घर की कुतिया. जगह जगह मुँह मारने वालों के लिए.
सात पूतों से न अघाए, कानी धिया देख जले. अपने सात पुत्रों से तृप्त नहीं हो रही है, पड़ोसन की कानी लड़की को देख कर ईर्ष्या कर रही है. अपनी सम्पन्नता न देख कर दूसरे की छोटी सी चीज़ से ईर्ष्या करना.
सात बैद रोगी को मारें. बहुत सारे वैद्यों से इलाज कराने वाला मरीज कभी ठीक नहीं होता.
सात मामा का भांजा, भूखा ही सो जाए. एक लड़का ननसाल गया. उसके सात मामा थे. वह एक-एक करके सब के घर गया. सातों मामा यह सोचते रहे कि वह दूसरे के घर से खाना खाकर आया होगा इसलिए किसी ने उससे खाने के लिए नहीं पूछा. अंततः उस बेचारे को भूखा ही सोना पड़ा. जब एक काम की जिम्मेदारी बहुत सारे लोगों को दे दी जाती है तो वह काम नहीं हो पाता.
सात हाथ हाथी से रहिए, पांच हाथ सिंगहारे से, बीस हाथ नारी से रहिए, तीस हाथ मतवारे से. हाथी से सात हाथ दूर, सींग वाले जानवर से पांच हाथ, स्त्री से बीस हाथ और पागल या नशेड़ी से तीस हाथ दूर रहना चाहिए.
सातवें आसमान पे धोती सुखाएं. जब कोई आदमी बेहद घमंड में रहता है तो यह कहावत कही जाती है.
सातों माँगी घाघरी घर डूबा डूबा, सातों काती पूनरी घर ऊबा ऊबा. एक आदमी की सात बहुएँ थीं. सातों ने घाघरी मांगी (खर्च करवाया) तो घर डूब गया और सातों ने छोटा छोटा काम किया (सूत काता) तो घर उबर गया.
साथ छोड़ मत मीत का राह भीर के बीच, एक अकेले मनुख को सूझे ऊंच न नीच. भीड़ के बीच मित्र का साथ नहीं छोड़ना चाहिए, अकेले इंसान को सही और गलत की पहचान नहीं हो पाती. मीत के स्थान पर कुछ लोग साथ छोड़ मत टोल का भी कहते हैं. टोल – टोली, समूह.
साथ भी सोवे और मुंह भी छिपावे. जिस के साथ गलत काम कर रहे हो उस से क्या मुँह छिपाना.
साथ सोई, बात खोई. किसी परपुरुष के साथ सोने से स्त्री का सम्मान खत्म हो जाता है.
सादा जीवन, उच्च विचार. स्पष्ट. इंग्लिश में कहावत है – To be simple is to be great.
साध से सिद्धि नहीं मिलती. केवल चाहने भर से सिद्धि नहीं मिल जाती. इसके लिए साधना करनी पड़ती है.
साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय, सार-सार को गहि रहे, थोथा देइ उड़ाय. साधु (सज्जन पुरुष) सार्थक बात को ग्रहण करते हैं और निरर्थक बातों पर ध्यान नहीं देते (जिस प्रकार सूप अनाज को रोक कर भूसी को उड़ा देता है). (देखिये परिशिष्ट)
साधु का बेटा सवादू. चरित्रवान पिता का पुत्र लम्पट हो तो. सवादू – स्वाद लेने वाला.
साधु को दासी, चोर को खांसी, प्रेम विनास हांसी, उसकी बुध्दि विनासी, खाय जो रोटी बासी. दासी से साधु का विनाश होता है (साधु उस के मोह में फंस कर पतित हो जाता है), खांसी से चोर का (खांसने पर चोर पकड़ा जाता है), किसी की हंसी उड़ाने से प्रेम का विनाश होता है और बासी रोटी खाने से बुद्धि का.
साधु को स्वाद से क्या, गुड़ नहीं बताशा ही सही. आजकल के धूर्त साधुओं पर व्यंग्य. देखिए सन्दर्भ कथा 186.
साधु भूखा भाव का धन का भूखा नाहिं, (धन का भूखा जो फिरै सो तो साधु नाहिं) साधु का मन भाव का भूखा होता है, वह धन का लोभी नहीं होता. जो धन का लोभी है वह तो साधु नहीं हो सकता.
साधु मिलन अरु हरि भजन, दया धरम उपकार, तुलसी या संसार में पांच रतन हैं सार. अर्थ स्पष्ट है.
साधु संत दें जिन्हें असीस, सुखी रहें वे बिस्वे बीस. साधु संत जिन्हें आशीर्वाद देते हैं वे सदा सुखी रहते हैं. यहाँ साधु से अर्थ असली साधु से है, गेरुए वस्त्र पहन कर भीख मांगने वालों से नहीं. बिस्वे बीस-देखिए परिशिष्ट.
साधुन पीई संतन पीई पीई कुंवर कन्हाई, जो विजया की निंदा करें उन्हें खाय कालिका माई. विजया माने भांग. भांग पीने वाले इस तरह भांग की बड़ाई करते हैं.
साधु पुरुष देखी कहैं, सुनी कहैं नहि कोय. साधु पुरुष सुनी हुई बात नहीं कहते, देखी हुई को ही मानते हैं.
साधू जन रमते भले, दाग लगे न कोय. साधु को कहीं ठहरना नहीं चाहिए, ठहरने से उस पर कलंक लगने का डर रहता है.
साधू निकरे सैर को दोइ दीन की खैर, ना काऊ से दोस्ती, ना काऊ से बैर. भीख मांगते समय साधू कहते हैं. आम तौर पर इसका बाद वाला भाग बोला जाता है.
साने सदा स्नेह में, जीभ न चकनी होय. लगातार घी लगाओ तब भी जीभ चिकनी नहीं होती. ओछे व्यक्ति को कितना भी स्नेह दो वह कृतज्ञ नहीं होता. स्नेह – प्रेम, स्नेह – चिकनाई (घी, तेल)
साबित कदम को सब जगह ठाँव. परिश्रमी और ईमानदार व्यक्ति का स्वागत सब लोग करते हैं.
साबित नहीं कान, बालियों (झुमके) का अरमान. किसी वस्तु के योग्य न होने पर भी उसकी इच्छा करना.
साम दाम दंड भेद. किसी चीज़ को पाने के लिए उचित अनुचित सब प्रकार की तिकड़म करना. इंग्लिश में कहावत है – By hook or by crook.
सामने पड़ जाए काना, तो बैकुंठ भी नहीं जाना. एक जमाने में ऐसा माना जाता था कि यदि आप कहीं जा रहे हों और काना व्यक्ति दिख जाए, तो भारी अपशकुन होता है.
सामने सांप और पीछे बाघ. विकट परिस्थिति, जहाँ दोनों ओर एक से बढ़ कर एक संकट हों.
सार पराई पीर की क्या जाने बेपीर. जो कष्ट किसी ने स्वयं न झेला हो उस के बारे में वह नहीं जान सकता.
सारा गाँव जल गया, काले मेघा पानी दे. मुसीबत आने पर स्वयं प्रयास न कर के दूसरों का मुँह ताकते रहना.
सारा गांव जल गया, फूहड़ कहे कहूँ लत्ता गंधाय. लत्ता – कपड़ा, गंधाय – गंध आना. पूरा गाँव जल गया किन्तु मूर्ख स्त्री को लग रहा है कि कहीं से कपड़ा जलने की गंध आ रही है.
सारा शहर जल गया, बीबी फ़ातिमा को खबर ही नहीं. अपने चारों तरफ के हालात से अनजान रहना.
सारी ईद मुहर्रम हो गई. एक झटके में सारी ख़ुशी गम में बदल गई. रूपान्तर – छठी की तेरईं हो गई.
सारी खुदाई एक तरफ जोरू का भाई एक तरफ. अगर घर में शान्ति चाहिए तो पत्नी के भाई को अति महत्वपूर्ण व्यक्ति का दर्ज़ा देना पड़ेगा.
सारी चोट निहाई के सिर. जिम्मेदार व्यक्ति को सब मुसीबतें झेलनी पडती हैं. निहाई पक्के लोहे की एक बड़ी सिल जैसी होती है जिस पर रख कर लोहे को काटा पीटा जाता है. लोहे पर जितनी चोट की जाती हैं वे सब निहाई पर ही पड़ती हैं. रूपान्तर – चूकी चोट निहाई के सर. निहाई के लिए देखिए परिशिष्ट.
सारी देग में एक ही चावल टटोला जाता है. किसी घर या समाज के एक ही आदमी को देख कर यह अंदाजा लगाया जाता है कि वह घर या समाज कैसा होगा.
सारी रात पीसा पर ढकना भी न भरा. बहुत मेहनत की पर फल कुछ नहीं मिला.
सारे जहां का दर्द हमारे जिगर में है. जो लोग व्यर्थ में ही सभी की परेशानियों में परेशान होते रहते हैं उनका मज़ाक उड़ाने के लिए.
साला तीरथ, ससुरा तीरथ, तीरथ छोटी साली, मात पिता की बात न पूछे, तीरथ है घरवाली. उन लोगों पर व्यंग्य जो ससुराल को सब कुछ मानते हैं और माता पिता की सेवा नहीं करते हैं.
सालिग्राम की बटिया, जैसी छोटी वैसी बड़ी. शालिग्राम चाहे छोटे हों या बड़े, पूजे ही जाएंगे. गुणवान व्यक्ति की आयु कुछ भी हो, कद काठी कैसी भी हो, उसका सम्मान ही होगा.
साली न सलहैज, सास से मसखरी. मूर्खता पूर्ण और बचकाना काम.
साली निहाली, चाहे ओढ़ी, चाहे बिछा ली. साली से मज़ाक का रिश्ता होता है इसलिए कुछ भी कहा जा सकता है. निहाली – निहाल करने वाली. निहाली माने रजाई भी होता है.
साले की चूल्हे में जड़. साले को जीजा के घर में कभी खाने पीने की कमी नहीं हो सकती.
सावन की छाछ भूतों को, जेठ की छाछ पूतों को. पुराने लोग मानते थे कि सावन के महीने में छाछ (मट्ठा) नुकसान करता है और जेठ में बहुत लाभ करता है.
सावन की तीज, पड़े खेत में बीज. सावन की तीज को खेत में खरीफ की बुआई शुरू करने का रिवाज़ रहा होगा.
सावन की ना सीत भली, जातक की ना प्रीत भली. सीत – ओस, जातक – संन्यासी. सावन माह की ओस नुकसान देह होती है और साधु के साथ प्रेम करना बुरा होता है. सीत माने मट्ठा भी होता है.
सावन के अंधे को हरा ही हरा सूझता है. इस कहावत को कुछ इस तरह प्रयोग करते हैं कि लालची व्यक्ति को हर समय पैसा ही पैसा दिखाई देता है.
सावन के चिकनियाँ, अगहन में भीख मांगें. सावन में जो खेत में काम नहीं करते और साफ़ सुथरे बने घूमते रहते हैं, उन्हें अगहन में फसल कटने के समय भीख मांगनी पडती है.
सावन के रपटे और हाकिम के डपटे में कुछ बुरा नहीं. सावन में कीचड़ में फिसलना बहुत आम बात है इसलिए उस से ज्यादा परेशान नहीं होना चाहिए. इसी तरह हाकिम अगर डांट दे तो उसका बुरा नहीं मानना चाहिए क्योंकि यह तो हाकिमों की आम आदत होती है.
सावन केरे प्रथम दिन उगत न दीखे भान, चार महीना पानी बरसे जानो इसे प्रमान. सावन के पहले दिन यदि सूर्य बादलों में छिपा रहे तो चार महीने अच्छी वर्षा होगी. (घाघ और भड्डरी की कहावतें)
सावन घोड़ी भादों गाय, माघ मास जो भैंस बियाय, जेठे बहू असाढ़े सास, सो घर होवे बाराबाट. (बुन्देलखंडी कहावत) सावन में घोड़ी, भादों में गाय और माघ के महीने में भैंस का ब्याहना अशुभ होता है. इसी प्रकार जेठ में बहू और आषाढ़ में सास को प्रसव हो तो घर में बर्बादी आती है. निचली कहावत इस से मिलती जुलती है.
सावन घोड़ी, भादों गाय, माघ मास में भैंस बियाय, जी से जाय या खसमहिं खाय. इन महीनों में प्रसव होने से ये मर सकती हैं या इनके मालिक का अनिष्ट हो सकता है.
सावन पछुआ भादों पुरवा क्वार बहे इशान, कातिक कंता सींक न डोले, कहाँ रखोगे धान. सावन में पछुआ, भादों में पुरवाई और आश्विन में ईशान कोण से हवा चले और कार्तिक में बिलकुल हवा न चले (सींक भी न हिले) तो इतना धान होगा कि रखने की जगह कम पड़ जाएगी.
सावन ब्यारी जब तब कीजे, भादों बाको नाम न लीजे, क्वार मास के दो पखवारे, जतन जतन से टारो प्यारे, आधे कातिक होय दिवारी, ठेलमठेला करो ब्यारी. ब्यारी – रात का भोजन. सावन में ब्यारी कभी कभी ही करनी चाहिए, भादों में उसका नाम भी नहीं लेना चाहिए, क्वार में बहुत सँभल कर रहना चाहिए, उसके बाद आधा कार्तिक बीतने पर जब दिवाली हो जाय, तब खूब पेट भर भी ब्यारी करें.
सावन मास बहे पुरवैया, बेचे बरधा लेवे गैया. सावन में पुरवाई चलने से वर्षा नहीं होती. ऐसे में बैल बेच कर गाय खरीद लेना चाहिए जिससे गुजर हो सके.
सावन में गधा उदासा. कोई व्यक्ति बहुत सी सुविधाएं मिलने के बाद भी उदास हो तो यह कहावत कहकर उसका मजाक उड़ाया जाता है. सन्दर्भ कथा – सावन में जब गधा सब तरफ़ बहुत सारी खास देखता है तो तनाव में आ जाता है कि मैं इतनी सारी घास कैसे खाऊंगा. इसलिए वह उदास हो जाता है. वैशाख के महीने में जब मैदान सूख जाते हैं तो गधा बड़ा खुश होता है कि मैंने सारी घास खा ली. इसीलिए गधे को वैशाख नंदन कहते हैं.
सावन सूखे न भादों हरे (सावन हरे न भादों सूखे). यदि कोई व्यक्ति ऐसा काम कर रहा हो जिसमें न कभी अधिक लाभ होने की संभावना हो और न अधिक हानि (जैसे नौकरी करने वाले लोग).
सास का धन, जमाई पुन्न करे. दूसरे का धन खर्च कर के पुण्यात्मा बनने वाले लोगों पर व्यंग्य.
सास की चेरी, सबकी जिठेरी. सास की मुंहलगी नौकरानी से सब बहुएं डरती हैं.
सास की रीस, पतोहू के माथे. बहू आने से सास की पूछ कम हो जाती है इसलिए सास बहू से ईर्ष्या करती है.
सास के साथ निबाही तो क्या निबाही, बहू के साथ निबाहो तो जानें. जो इस समय सास हैं वे पहले बहू थीं. उस समय सास बहुओं में निभ जाती थी. आजकल की बहुओं के साथ निभाना बहुत कठिन है.
सास को पड़ी भाजर की, बहू को पड़ी काजर की. भाजर – गृहस्थी का सामान. सास को घर गृहस्थी का सामान जुटाने की चिंता है और बहू को अपने श्रृंगार की.
सास को न भावे, सो बहू को टिकावे. अपने को कोई चीज पसंद न आने पर उसे दूसरों के मत्थे मढ़ना.
सास गई गाँव, बहू कहे मैं क्या क्या खाऊं. पुराने जमाने में बहुएं सास से डरती थीं और सास के सामने अपने मन की चीज़ें नहीं खा सकती थीं. सास बाहर गई है तो बहू के ठाठ हो रहे हैं. (अब इसका उल्टा हो गया है).
सास घरुआरी, बहू दरबारी. उलटी बात. सास को घर सम्भालना पड़ रहा है और बहू बाहर के काम कर रही है. वैसे आजकल ये आम रिवाज हो गया है.
सास छोटी और बहू बड़ी. जिस घर में बड़े लोगों की पूछ न हो उस के लिए कही जाने वाली कहावत.
सास ताके टुकुर टुकुर, बहू चली बैकुंठ. 1. घर में किसी अत्यधिक वृद्ध व्यक्ति के जीवित रहते यदि किसी कम आयु वाले की मृत्यु हो जाए तो. 2. सास को छोड़ कर बहू तीर्थ यात्रा पर जाए तो.
सास तो मरी हुई ही अच्छी. सास कैसी भी हो बुरी ही होती है, सास के मरने पर ही चैन की सांस आती है.
सास न नन्दी, आप ही आनंदी. जिस बहू के घर में सास और ननद नहीं होतीं वह खुश रहती है (कोई रोकने टोकने वाला नहीं होता). रूपान्तर – जिन घर सास न नंदा, तिन घर बड़े अनंदा.
सास ने बहू से कही, बहू ने कुत्ते से कही, कुत्ते ने पूँछ हिला दी. एक दूसरे पर काम टालने वालों के लिए यह कहावत कही जाती है.
सास बहू की एकहिं सोड़ (सौर), लक्ष्मी जाए छत को फोड़. (बुन्देलखंडी कहावत) सास बहू को अगर एक साथ प्रसव हो तो यह घर के लिए अशुभ है (लक्ष्मी रूठ जाती है).
सास बहू की हुई लड़ाई, करे पड़ोसन हाथापाई (सास बहू की हुई लड़ाई, सिर को फोड़ मरी हमसाई). सास बहू की में लड़ाई पड़ोसन को बीच में नहीं पड़ना चाहिए. वह जिस के अनुकूल नहीं बोलेगी उसी से दुश्मनी हो जायेगी.
सास बिना ससुरार न भावे, लाभ बिना रोजगार न भावे. अर्थ स्पष्ट है. सास के बिना ससुराल में कौन पूछेगा और जिस में लाभ ही न हो ऐसा रोजगार कौन करेगा.
सास मर गई कट गई बेड़ी, बहू चढ़ गई हर की पैड़ी. सास के मरने से बहू बहुत आजाद महसूस कर रही है.
सास मर गई ससुरा जिए, नई बहुरिया के राज भए. सास मर गई और ससुर जीवित है तो नई बहू का घर पर राज हो जाता है. रसोई और घर चलाने के लिए सब उस पर निर्भर हो जाते हैं.
सास मर गई, तूम्बे में आत्मा. सास के मरने के बाद भी बहू को डराती रहती है. सन्दर्भ कथा – कोई बूढ़ी औरत अपनी बहू को बहुत तंग किया करती थी. जब वह मरने लगी तो बहू से बोली कि देखो, मरने के बाद मैं अपनी आत्मा घर में रखे तूम्बे में बंद कर जाऊंगी. तुम उस तूम्बे को ही सास समझना और हर काम उससे पूछकर किया करना. उसके मर जाने पर बहू के मन में सास का इतना खौफ था कि ऐसा ही करने लगी. एक दिन जब यह तूम्बे के पास खड़ी होकर कुछ पूछ रही थी, तब उसकी पड़ोसिन संयोग से वहां आ गई. उसने जो यह तमाशा देखा, तो तूम्बे को लेकर जमीन पर पटक चकनाचूर कर दिया. उस दिन के बाद से बहू आनंदपूर्वक रहने लगी.
सास मेरी घर नहीं, मुझे किसी का डर नहीं. सास के बाहर जाने पर बहू की मौज. कोई कड़क हाकिम छुट्टी पर हो तो कर्मचारियों की मौज हो जाती है.
सास मोरी अन्हरी, ससुर मोरा अन्हरा, जिस से बियाही वोही चक्चुन्हरा, के को दिखाने को डालूँ मैं कजरा. (भोजपुरी कहावत) अन्हरी – अंधी, अन्हरा – अंधा, चक्चुन्हरा – जिसकी आंखें रौशनी से चकाचौंध हो कर बार बार बंद होती हों. ससुराल में किसी को कुछ दिखता ही नहीं है तो बहू श्रृंगार किस को दिखाने के लिए करे.
सास से तोड़ बहू से नाता. घर में किसी एक से नाता तोड़ कर दूसरे से जोड़ना. यहाँ सास बहू का उदाहरण ख़ास तौर पर इसलिए दिया गया है क्योंकि उन में थोड़ी अनबन और एक दूसरे को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति होती है.
सास से बैर, पड़ोसन से नाता. अपने घर के सगे सम्बन्धियों से अधिक पड़ोसियों को तवज्जो देना.
सास से हुई अलग, तो हिस्से आई ननद. जिस परेशानि से बचने के लिए बंटवारा किया, वही हिस्से में आई.
सास, कोठे पर की घास. सास को बहुत तुच्छ चीज़ समझना. कोठे पर की घास – छत पर उगी घास.
सासरे का दुख और पीहर के बोल. औरत के लिए कहीं भी सुख नहीं है. ससुराल में हरदम सास और ननद का कोंचना. मायके में भौजाइयों का राज होने पर वे भी ताने मारती रहती हैं.
सासरो सुख वासरो, दो दिनां को आसरो. पुरुषों के लिए ससुराल में दो दिन रहना ही अच्छा लगता है.
सासू का ओढ़ना, पतोहू का नक्पोछना. सास जिस चीज़ को जीवन भर संभाल कर इस्तेमाल करती है, पुत्रवधू उसकी बेकद्री करती है (सास के ओढ़ने को बहू नाक पोंछने के लिए प्रयोग कर रही है).
सासू कुत्ती दूर हट, धोबिन माई पांय लागूं (सास से रूठना और धोबिन मैया पांय लागी). ऐसी दुष्ट बहू के लिए जो सास का अपमान करती है और दूसरी औरतों व कामवालियों का दिखावटी आदर करती है.
सासू गटके पाहुना, बहू बटाऊ खाय. सास शातिर है, मेहमानों को खा जाती है, पर बहू तो और बढ़ कर है, राह चलते लोगों को पकड़ कर खा लेती है. जहाँ सास भी धूर्त हो और बहू उस से बढ़ कर धूर्त हो.
सासू जी की सीख घर के द्वार तक. सास की सीख बहू घर में ही मानती है, जैसे ही घर से निकली आजाद हुइ.
साह का दांव हाट में, चोर का दांव बाट में. व्यापारी का दांव मंडी में काम करता है और चोर का सुनसान में.
साह का साथ भला और रात का घात भला. किसी का साथ करना हो तो सुरक्षा की दृष्टि से सब से अच्छा साथ राजा या किसी बड़े आदमी का है, और किसी पर हमला करना हो तो रात का समय सब से अच्छा है.
साहब की सलाम दूर की भली (साहब से सलाम दूर की). हाकिमों से जितना दूर रहो उतना अच्छा.
साहू बनज न कीजिए जो दरबार बिकात, गाँठ लेत देते कटे विनती में दिन रात. (बुन्देलखंडी कहावत) व्यापारियों को सलाह दी गई है कि सरकारी विभागों को कोई सामान नहीं बेचना चाहिए. वे भुगतान भी पूरा नहीं करेंगे, रिश्वत मांगेंगे और दिन रात चक्कर भी लगवाएंगे.
सिंधु तैर कर सरस्वती में डूबा. बहुत बड़ा कार्य कर के छोटे से काम को न कर पाना.
सिंह अकेला मारे खाए. शेर को शिकार के लिए किसी सहायक की आवश्यकता नहीं होती. वीर पुरुष अकेले ही कार्य करते हैं.
सिंह के वंश में उपजा स्यार. वीर पुरुषों के वंश में कोई व्यक्ति कायर निकल जाए तो.
सिंह चढ़ी देवी मिले, गरुड़ चढ़े भगवान, बैल चढ़े सिव जी मिलें, अड़े संवारे काम. यदि स्वप्न में सिंह पर सवार देवी, गरुण पर सवार विष्णु जी या बैल पर चढ़े शंकर जी दिखाई पड़ जाएं तो सभी कार्य संवर जाते हैं.
सिंह चाहे वन को और वन चाहे सिंह को. शेर के लिए जंगल आवश्यक है और जंगल के लिए शेर. प्रकृति का संतुलन इसी प्रकार से बनता है. जंगल नहीं होगा तो शेर और सारे जानवर कहाँ रहेंगे. यदि शेर शाकाहारी जंतुओं का शिकार नहीं करेगा तो उनकी संख्या बहुत बढ़ जाएगी और वे जंगल को खा जाएंगे.
सिंह नहीं देखा तो देख ले बिलाई, जम नहीं देखा तो देख ले जमाई. किसी ने शेर नहीं देखा तो बिल्ली को देख लो जिस में शेर के बहुत से गुण हैं, और यमराज को न देखा हो तो दामाद को देख लो. वैसे यह बात आज के समय में सच नहीं है. आजकल अधिकतर दामाद बेटों से ज्यादा सेवा करते हैं.
सिंह पराये देस में, नित मारे नित खाय. वीर पुरुष जहाँ जाते हैं वहाँ अपना साम्राज्य कायम कर लेते हैं.
सिंहनी एक सपूत जन सोवत पाँव पसार, दसेक पूत जन के गधी लादे धोबी भार. समझदार और बहादुर लोग कम बच्चे पैदा करते हैं और सुख से रहते हैं, जबकि मूर्ख लोग ज्यादा बच्चे पैदा कर के गरीबी में पिसते हैं.
सिंहासन छोड़ घूरे पर बैठा. कोई व्यक्ति मूर्खतावश आदर का स्थान छोड़ अपमान जनक स्थान पर पहुँचा जाए.
सिंहों के नहिं लेह्ड़े, हंसों की नहिं पांत, लालन की नहिं बोरियां, साधु न चलें जमात. शेरों के झुंड नहीं होते, हंसों की पंक्तियाँ नहीं होतीं, लाल इतने सारे नहीं होते कि बोरियों में भरे जाएं और साधु इतने अधिक नहीं होते कि समुदाय बना कर चलें. ये सब बिरले ही होते हैं.
सिकंदर जब चला दुनिया से, दोनों हाथ खाली थे. कोई कितना भी शक्तिशाली और दौलतमंद क्यों न हो इस दुनिया से सब को खाली हाथ जाना है.
सिखाई बुद्धि अढाई घड़ी. सिखाई हुई बुद्धि थोड़ी देर ही काम आ सकती है, सारे जीवन नहीं.
सिखाए पूत दरबार नहीं चढ़ते. जिसमें अपनी कोई बुद्धि न हो वह केवल सिखाने से ही योग्य नहीं बन सकता. राजा के दरबार में वही लोग जा पाते थे जो बहुत योग्य होते थे.
सिखाने से घर उजड़ते हैं, सिखाने से ही घर बसते हैं. गलत बातें सिखाने से घर उजड़ते हैं और अच्छी सकारात्मक बातें सिखाने से घर बसते हैं.
सिखैया नाऊ का काटेगा बटाऊ का. सीखने वाला नाई अनजान लोगों की ही खाल काटता है. बटाऊ – राहगीर. इस कहावत को इस प्रकार से भी कहा गया है – अहीर के कपार पर सीखे नाऊ.
सिद्ध को साधक पुजाते हैं (सिद्धों की महिमा साधकों से). किसी तथाकथित सिद्ध आदमी की महत्ता उस को पूजने वाले लोग ही निर्माण करते हैं. जितने अधिक मानने वाले होते हैं उतना ही सिद्ध पुरुष पूजा जाता है.
सिपाही की जोरू हमेशा रांड. सिपाही लड़ाई पर जाता है तो भी बेचारी अकेली रहती है, और अगर लड़ाई में मारा जाए तब तो विधवा हो ही जाती है.
सिपाही की रोटी जान बेचे की. सिपाही अपनी जान खतरे में डालने की रोटी खाता है.
सियार औरों को शगुन दे, आप कुत्तों से डरे. यात्रा में सियार का मिलना अच्छा शगुन माना जाता है. सियार बेचारा औरों के लिए तो अच्छा शगुन है लेकिन खुद कुत्तों से डरता है.
सियार के मुंहें मंगल नहीं निकलते. जिस व्यक्ति के मुंह से हमेशा बुरे वचन ही निकलते हों उस पर व्यंग्य.
सियार के शिकार को शेर नहीं खाता है. योग्य और वीर पुरुष घटिया लोगों द्वारा अर्जित की हुई संपत्ति से लाभ नहीं उठाते.
सियार ने कहा और लोमड़ी ने गवाही दी. धूर्त लोग आपस में बिना शर्त एक दूसरे का समर्थन करते हैं, जैसे आजकल के कुछ नेता.
सिर का नहाया पाक. 1. सर धो कर नहाने को ही स्नान माना जाता है. 2. केवल सर धोना.
सिर का बोझ पैर पर आवे. बोझ चाहे सर पर रखा हो, पैरों को ही सारा बोझ उठाना पड़ता है. परिवार का सारा भार अंततोगत्वा मुखिया पर ही आता है.
सिर की पगड़ी हाथ, कर ले दो दो हाथ. सिर की पगड़ी से अर्थ अपनी इज्ज़त से है. अपनी इज्ज़त हाथ में ले ली तो फिर गाली गलौज या लड़ने से क्या डरना.
सिर चला जाए, आन न जाए. जान चली जाए पर सम्मान नहीं जाना चाहिए.
सिर झाड़, मुँह पहाड़. कुरूप और बेतरतीव व्यक्ति.
सिर नकद, नौकरी उधार. जी जान से काम करने पर भी पर्याप्त प्रतिफल न मिलना.
सिर पर आरे चल गए, फिर भी मदार ही मदार. जान पर बनी है फिर भी स्वयं कोई प्रयास न कर के पीर मदार को मदद के लिए पुकार रहे हैं. अंधविश्वासी और आलसी लोगों पर व्यंग्य.
सिर पर जूती, हाथ में रोटी. बहुत अपमान सह कर रोजी रोटी कमाना.
सिर फोड़े को मुंह फोड़ा ही भाता है. निम्न वृत्ति के लोगों को अपने जैसे लोग ही पसंद आते हैं.
सिर बड़ा सपूत का, पांव बड़ा कपूत का. लोक मान्यता है कि योग्य लोगों का सिर बड़ा होता है और मूर्ख लोगों के पाँव.
सिर मुड़ा के क्या घुटना मुड़ाएगा. सिर मुड़ाने वालों पर व्यंग्य. सिर मुड़ा कर कुछ काम नहीं बना तो क्या अब घुटने को मुड़ाओगे.
सिर सजदे में, मन बोटियों में. झूठी इबादत.
सिर से उतरे बाल, गू में जाएं या मूत में. बाल कितने भी प्रिय हों सिर से उतरने के बाद कहीं भी फेंक दिए जाते हैं (उन्हें कोई नहीं पूछता). समाज की निगाहों से उतरे हुए सम्मानित व्यक्ति का भी यही हाल होता है.
सिरहाना किधर भी करो, चूतड़ तो बीच में ही रहेंगे. सत्ता किसी के भी पास जाए, बिचौलिए मजे में रहते हैं.
सिर्फ ताबीज़ से ही काम नहीं होता, कुछ कमर में भी दम चाहिए. विशेष तौर पर यह कहावत संतान मांगने वालों के लिए कही गई है. लेकिन अन्य स्थानों पर भी प्रयोग कर सकते हैं कि पूजा पाठ, गंडे तावीज़ के सहारे मत बैठे रहो, कर्म करो.
सिलाई दोगे या ब्योंत में निकाल लूँ. ब्योंत – कतरन. दरजी को सिलाई का पूरा पैसा नहीं देना चाहोगे तो वह कपड़ा बचा कर कसर पूरी करेगा. जिसका जो काम है उसे उसका पूरा मेहनताना देना चाहिए, वरना वह हेर फेर करने पर मजबूर हो जाता है.
सिवइयों बिन ईद कैसी. बढ़िया खाना, मिठाई और कपड़े आदि न मिलें तो त्यौहार कैसा.
सींग कटा बछड़ों में मिले. कोई बड़ी उम्र का व्यक्ति बच्चों के बीच बच्चा बन जाए तो.
सींग पकड़े तो टूटा हुआ, पूँछ पकड़े तो कटी हुई. जो व्यक्ति बात-बात में बदल जाय. जिससे कुछ भी कबूलवाना मुश्किल हो. जैसे कुछ धूर्त नेता.
सींग मुड़े, माथा उठा, मुंह होवे गोल, रोम नरम, चंचल करन, तेज बैल अनमोल. आज की खेती में बैल का महत्व समाप्त हो गया है लेकिन एक जमाने में खेती के लिए बैल अपरिहार्य होता था. उस समय सयाने लोग अच्छे बैल की बहुत सी पहचान बताया करते थे.
सीख उसी को दीजिए जाको सीख सुहाए, सीख जो दीन्ही बांदरा चिड़िया का घर जाए. सीख उसी को देनी चाहिए जिसे सीख अच्छी लगे. जो सीख सुन कर खिसियाए उसे सीख नहीं देनी चाहिए. सन्दर्भ कथा – हम सभी ने देखा है कि बया कितने बढ़िया तरीके से घोंसला बनाती है. उस में गर्मी से, सर्दी से, बरसात से सब से बचने का इंतजाम होता है. एक बार जाड़े की बरसात के दौरान एक बया अपने घोसले से बाहर निकली तो क्या देखती है कि एक बंदर पेड़ की डाल पर बैठा वारिश में भीग कर थरथर काँप रहा है. उसे बंदर की हालत पर दया भी आई और उसकी नासमझी पर गुस्सा भी. उसने बंदर को नसीहत देने की कोशिश की – मानुष जैसे हाथ पांव हैं, मानुष जैसी काया, चार महीने वर्षा बीती, छप्पर क्यों नहीं छाया. बंदर गुस्से में उस पर झपटा. बया ने उड़ कर अपनी जान तो बचा ली पर बंदर ने खिसिया कर उस का घर तोड़ दिया.
सीख देत औरों को पांडे, आप भरें पापों के भांडे. पंडित लोग औरों को शिक्षा देते हैं और अपने आप गलत काम कर के पाप के घड़े भरते हैं.
सीख बाप की, अकल आप की. पिता की शिक्षा काम आती है पर अपनी अक्ल होना भी बहुत आवश्यक है.
सीख सड़प्पे तो लाला जी के साथ गए, अब तो देखो और खाओ. कंजूसी की पराकाष्ठा. सन्दर्भ कथा – किसी कंजूस ने अपने घर में यह नियम बना रखा था कि घी के बर्तन में सींक डुबाने से जितना घी निकले, उतना ही हर आदमी ले लिया करे. जब वह मर गया, तो उसका लड़का उससे भी बढ़कर कंजूस निकला. उसने घी के बर्तन का मुंह बंद करके उस पर पक्की डाट लगा दी और घरवालों से कहा कि देखो, लाला जी के ज़माने में तुम लोगों ने सींक डुबो-डुबो कर खूब घी खाया, अब तो बस घी को देखो और खाओ. इसी प्रकार एक बंगाली कंजूस की भी कथा है कि वह नदी किनारे बैठकर भात खाया करता था और प्रत्येक कौर के साथ नदी की ओर हाथ बढ़ाकर कहता था ‘ऊ मशली, ई भात.’ इस प्रकार वह मछली खाने का आनंद उठा लिया करता था.
सीख सरीरां ऊपजै देई न आवे सीख. जिसके अंदर सीखने की इच्छा हो वही कुछ सीख सकता है, जबरदस्ती किसी को कुछ नहीं सिखाया जा सकता.
सीख सीख पड़ोसी से सीख, छोटे से सीख बड़े से सीख. जिस से जहाँ कुछ ज्ञान मिले ले लेना चाहिए.
सीढ़ी दर सीढ़ी छत पर चढ़ते हैं. कोई भी कठिन कार्य एक एक पायदान चढ़ कर ही पूरा होता है.
सीतल, पातल, मंद गत, अल्प अहार, निरोस, ये तिरिया में पांच गुन, ये तुरिया में दोस. शीतल स्वभाव, पतला शरीर, मंद गति, कम खाना और निरोष (क्रोध रहित) होना, स्त्री में ये पाँचों गुण हैं जबकि घोड़ी में हों तो अवगुण माने जाते हैं. तिरिया शब्द स्त्री का अपभ्रंश है. तुरिया माने घोड़ी.
सीता सुकुमारी जैमाल श्री राम गले डाले. विवाह में जयमाल के समय बड़ी बूढ़ियाँ यह मंगल गीत गाती हैं.
सीधी उँगली से घी नहीं निकलता है. पहले के जमाने में चम्मच का प्रयोग नहीं होता था. यदि थोड़ा सा घी निकालना हो महिलाएं डब्बे में उँगली डाल कर उससे घी निकाल लेती थीं. अब जाहिर सी बात है कि अगर सीधी उंगली डालोगे तो घी कहाँ निकलेगा. कहावत का अर्थ है कि केवल सिधाई से काम नहीं निकलता.
सीधे का मुंह कुत्ता चाटे. जो आदमी सीधा होता है उसका सब नाजायज़ फायदा उठाते हैं.
सीधे को सौ दुख. सीधे आदमी के लिए इस स्वार्थी और कपटी संसार में दुख ही दुख हैं.
सीधे घोड़े पर दो सवार होते हैं (सीधे पर दो लदें). सीधे की सिधाई का सब फायदा उठाते हैं.
सीधे पेड़ काटे जाते हैं, टेढ़े खड़े रहते हैं. सब सीधे लोगों पर अत्याचार करते हैं, दुष्ट लोगों पर नहीं.
सीना तान के क्यों चलते हो, हमारे भैया पहलवान हैं. रिश्तेदारों के बल पर अकड़ दिखाने वालों पर व्यंग्य.
सीपी से समुन्दर उलीचत. सीपी से समुद्र उलीचते हैं. असंभव कार्य
सील बिना डील बेकार है. किसी मनुष्य का शरीर कितना भी लंबा-चौड़ा क्यों न हो यदि उसमें शील और सहृदयता जैसे गुण नहीं है तो सब बेकार है.
सीलवंत गुन न तजे, औगुन तजे न गुलाम, हरदी जरदी न तजे, खटरस तजे न आम. जो शीलवान व्यक्ति है वह अपने गुणों का त्याग नहीं करता और जो बुरी आदतों का गुलाम है वह अपनी बुरी आदतें नहीं छोड़ता. जिस प्रकार हल्दी अपना पीलापन नहीं छोड़ती और कच्चा आम अपना खट्टापन नहीं छोड़ता.
सीलवंत पुरुष भिखार, सीलवंत नारी छिनार. अत्यधिक शीलवान पुरुष हमेशा निर्धन रहता है. शीलवंती नारी सब से ठीक से बात करती है तो लोग इसका गलत अर्थ लगाते हैं और उसे चरित्रहीन कह कर बदनाम करते हैं.
सुअर का बन्दा, क्या साफ़ क्या गन्दा. गंदे आदमी की संतानें भी गंदी ही होती हैं.
सुअरी को सिंदूर, गिरगिट को माला नहीं सुहाते. ओछे लोगों को उच्चस्तरीय रहन सहन अच्छा नहीं लगता.
सुई कहे मैं छेदूं छेदूं पहले छेद कराए. सुई सब को छेदने से पहले अपने अंदर छेद कराती है. दूसरों को नसीहत देने से पहले स्वयं उसका पालन करना चाहिए.
सुई का भाला हो गया. छोटी सी मुसीबत बहुत बड़ी बन गई.
सुई चोर सो बज्जर चोर. चोर तो चोर है, चाहे वह सुई चुराए या कोई बड़ी चीज़ चुराए.
सुई जहां न जाए वहाँ सूजा घुसेड़ते हैं. जहाँ सिधाई से काम न चले वहाँ बल प्रयोग करना पड़ता है.
सुई टूटी कसीदे से छूटी. सुई टूटने से कामचोर महिला खुश हो रही है कि चलो अब कढ़ाई करने से मुक्ति मिली. कामचोर लोग काम से बचने के बहाने ढूँढते हैं.
सुई से बोले छलनी, तेरे सर में छेद. अपने अंदर बहुत कमियाँ होते हुए भी दूसरे की कमी का मजाक उड़ाना.
सुई, कतरनी, गज, उंगलेटा, रक्खे सो दरजी का बेटा. सुई, कैंची, नापनेवाला गज और सुई की चुभन से बचने के लिए उंगली में पहनने वाला उँगलेटा. जो यह सामान रखे वही असली दर्जी माना जाएगा.
सुकर्म से नाम और कुकर्म से भी नाम, एक नाम और दूजा बदनाम. अर्थ स्पष्ट है.
सुख और दुख एक सिक्के के दो पहलू हैं. हमें इन दोनों को ही स्वीकार करना सीखना चाहिए.
सुख कहना जन से, दुख कहना मन से. अपना सुख सब से बांटो लेकिन दुख को मन में ही रखो.
सुख की कदर दुख में ही मालूम होती है. जब तक इंसान को सुख ही सुख मिलता है वह उस की कदर नहीं जानता. जब दुख मिलता है तभी समझ में आता है कि सुख कितना कीमती है.
सुख के बड़े जोधा रखवाली हैं. सुख किसी किले में बंद है और बहुत से योद्धा उस की रखवाली कर रहे हैं. सुख के आस पास पहुँचना बहुत कठिन है. इंग्लिश में कहावत है – Pleasure has a sting in its tail.
सुख के माथे सिल परै नाम हिए ते जाय, बलिहारी वा दुख की पल-पल नाम रटाय. सिल – पत्थर (शिला), हिए – हृदय. जिस सुख के कारण प्रभु का नाम भूल जाता है उस सुख के माथे पर पत्थर पड़ें. उस दुख की बलिहारी जिस के कारण प्रभु का नाम याद रहता है.
सुख के सब साथी, दुख में न कोय. जब व्यक्ति सुख में होता है तो दूर दूर के दोस्त रिश्तेदार भी अपने होते हैं, दुख आते ही सब गायब हो जाते हैं.
सुख बढ़े, मुटापा चढ़े. जब व्यक्ति सुख में होता है तो उस पर मोटापा चढ़ने लगता है.
सुख मानो तो सुक्ख है, दुख मानो तो दुक्ख, सच्चा सुखिया वही है, जो माने सुख न दुक्ख. सुख और दुख केवल हमारी सोच के परिणाम हैं, जो इनसे से प्रभावित नहीं होता वही वास्तव में सुखी है. सन्दर्भ कथा – एक आदमी अपनी छोटी सी झोपड़ी में अपने परिवार के साथ रहता था. उसकी एक पत्नी थी और सात बच्चे थे. उसने कुछ मुर्गियां भी पाल रखी थी जिन्हें वह जंगली जानवरों और चोरों के डर से अपनी झोपड़ी के अंदर ही रखता था. वे सारी मुर्गियां दिन भर कुटकुट करके शोर मचातीं और गंदगी फैलाती थीं. बरसात के दिनों में झोपड़ी में पानी टपकता था जिससे जिंदगी और भी दूभर हो जाती थी. उसके पास एक बकरी भी थी जिसको वह मजबूरी में बाहर ही बांध देता था.
उस गांव के पास जंगल में एक सिद्ध महात्मा रहते थे जिनके पास लोग अपनी समस्याओं के समाधान के लिए जाया करते थे. एक दिन वह आदमी बहुत परेशान होकर उन महात्मा जी के पास गया और रो-रो कर उन को बताया कि उसकी जिंदगी बिल्कुल नर्क है. एक छोटी सी झोंपड़ी में नौ परिवार के लोग, बारह मुर्गियां और दो मुर्गे. महात्मा जी ने उसकी पूरी बात सुनी और बोले, जो मैं कहूंगा वह करोगे? उस आदमी ने कहा जी महाराज बिल्कुल करूंगा. महात्मा जी ने कहा, बकरी को भी अंदर बांध लो. वह बोला, महात्मा जी फिर तो हम लोग बिल्कुल ही मर जाएंगे. महात्मा जी ने कहा, जैसा मैं कह रहा हूं वैसा ही करो और एक हफ्ते बाद मेरे पास आओ.
एक हफ्ते बाद वह आदमी महात्मा जी के पास रोता हुआ आया और उनके पैर पकड़ कर लेट गया. बोला, महात्मा जी हम सब वाकई मर जाएंगे. झोपड़ी में वैसे ही जगह नहीं थी, अब यह बकरी और अंदर आ गई. यह बदबू करती है, इस ने मिंगनी करके सारी झोपड़ी भर दी है. अब तो बिल्कुल नहीं रहा जाता. महात्मा जी बोले, ठीक है बकरी को बाहर बांध दो और एक हफ्ते बाद मेरे पास आकर बताओ कि जिंदगी कैसी चल रही है. एक हफ्ते बाद वह आदमी फिर से महात्मा जी के पास आया तो काफी खुश नजर आ रहा था. महात्मा जी ने पूछा, कहो क्या हाल है. वह बोला, बहुत अच्छे हैं महाराज जी, कोई बकरी सकरी नहीं केवल हम नौ लोग और थोड़ी सी मुर्गियाँ. हम सब बहुत सुखी हैं.
सुख में आए करमचंद, लगे मुड़ावन गंज. करमचन्द ज्यादा पैसे वाले हो गए तो अपने गंजे सर को मुंडवाने लगे. मूर्खतापूर्ण दिखावा और फिजूलखर्ची.
सुख में निद्रा, दुख में राम. सुख में व्यक्ति चैन की नींद सोता है, दुख में उसे भगवान याद आते हैं.
सुख में सिंगार, दुख में ढाल. आभूषणों के लिए ऐसा कहा गया है. सुख के दिनों में श्रृंगार करने के काम में आते हैं और दुख के दिनों का सहारा बनते हैं (इन को बेच कर काम चलाया जा सकता है).
सुख में सुमिरन ना किया, दुख में किया याद, कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद. जो लोग सुख में भगवान को याद नहीं करते केवल दुख में ही याद करते हैं उनकी प्रार्थना भगवान क्यों सुनेंगे.
सुख सोवे कुम्हार जाकी चोर न लेवे मटिया. कुम्हार को चोरी का कोई डर नही है (उसकी मिट्टी कौन चुराएगा), इसलिए वह सुख से सोता है. सम्पन्नता के साथ ही चिंताएँ आती हैं.
सुखिया सब संसार है, खावै और सोवे, दुखिया दास कबीर है, जागै अरु रौवे. जो लोग अज्ञानी हैं वे सुख से खा रहे हैं और सो रहे हैं क्योंकि उन्हें संसार की कोई चिंता नहीं है और अपना भविष्य वे जानते नहीं हैं. जिनके ज्ञान चक्षु खुल गए हैं (जो जाग गए हैं) वे क्षणभंगुर संसार की वास्तविकता जान कर दुखी होते हैं.
सुखिया सुख के आगे, दुखिया का दुख क्या जाने. जो सब प्रकार से सुखी और संपन्न है (जिसने कभी कष्ट नहीं भोगा) वह दुखी लोगों के कष्ट को नहीं समझ सकता.
सुखी सुख देवे, दुखी दुख देवे. सुखी व्यक्ति सुख बाँटता है और दुखी व्यक्ति दुख बाँटता है. दुखी व्यक्ति हमेशा अपनी परेशानियों का रोना रोता है और मदद चाहता है.
सुखे सिहुला दुखे दिनाइ, करम फूटे तो फटे बिबाई. सिहुला – छीप (एक प्रकार का फंगल इन्फेक्शन जिस में खुजली नहिं होती, केवल हल्के रंग के छोटे छोटे गोल चकत्ते बन जाते हैं), दिनाई – दाद. जिन को सिहुला होता है उन्हें कोई कष्ट नहीं होता, जिन्हें दाद होता है उन्हें खुजली के कारण कुछ कष्ट (दुख) होता है पर जिनके पैर में बिबाई फट जाएँ उन्हें बहुत अधिक कष्ट होता है.
सुघड़ बलैयां ससुरा ले, बैल मांग बहू को दे. होशियार और आदर करने वाली बहू की ससुर हर संभव सहायता करता है. बहू को बैलों की जरूरत हो तो दूसरों से बैल मांग कर लाता है.
सुघड़ भलाई ससुरा ले, बैल खोल बहू के दे. ऊपर वाली कहावत से एकदम अलग. कुछ लोगों में अपनी प्रशंसा करवाने की बड़ी ललक होती है. ऐसे ही एक ससुर लोगों से प्रशंसा पाने के लिए इतने लालायित हैं कि बहू के बैल खोल कर उधार दे दे रहे हैं. (अपनी तारीफ़ के लिए दूसरे का नुकसान करना).
सुघड़ी की बिटिया भली, कुघड़ी का बेटा नाहीं. अच्छी साइत की जन्मी कन्या भली है मगर खराब नक्षत्र का जन्मा लड़का नहीं. ऐसा लड़का परिवार के लिए अशुभ हो सकता है.
सुदिन का सिंगार, कुदिन का आहार. गहने इत्यादि अच्छे दिनों में शरीर का श्रृंगार करते हैं और बुरे दिनों में घर की अर्थ व्यवस्था को संभालने के काम आते हैं.
सुधरने में देर लगती है, बिगड़ने में नहीं. व्यक्ति हो या कोई काम बिगड़ बहुत जल्दी जाता है पर सुधरता बहुत मुश्किल से है.
सुधा सराहिअ अमरता, गरल सराहिअ मीचु. अमृत अमरता प्रदान करता है और विष मृत्यु प्रदान करता है. जैसी जिसकी प्रवृत्ति हो वह वैसा ही कार्य करता है. मीचु – मृत्यु.
सुन ऐ माटी के लोला, कायथ सुनार कहीं भगत होला. (भोजपुरी कहावत) कायस्थ और सुनार लोगों से त्रस्त कोई व्यक्ति बता रहा है कि ये लोग कभी सच्चे नहीं होते.
सुन रे ढोल, बहू के बोल. किसी को दूसरे व्यक्ति के प्रति आगाह करने के लिए. सन्दर्भ कथा – कोई बूढ़ी औरत अपने लड़के से उसकी बदचलन स्त्री की हमेशा शिकायत किया करती थी. पर लड़के ने कभी उस पर ध्यान नहीं दिया. कुछ दिनों बाद वह स्त्री बहुत बीमार पड़ी. कुल पुरोहित ने आकर उससे कहा कि तुम्हारा अंतिम समय निकट है. तुमने जितने अपराध किए हैं, उन्हें स्वीकार कर लो तो नरक से बच जाओगी. स्त्री जब ऐसा करने चली तो बुढ़िया ने अपने लड़के को एक बड़े ढोल में छिपा दिया, जो वहीं रोगी के पास रखा हुआ था. इधर स्त्री अपने किए सभी दुष्कर्मों को एक-एक करके पुरोहित के सामने स्वीकार कर रही थी, उधर उसकी सास उक्त वाक्य कहकर ढोल बजाती जाती थी, जिससे उसका लड़का अपनी दुराचारिणी स्त्री के सभी कर्मों को ध्यान से सुन ले
सुन सुन गीता फूटे कान, तऊ न उपजो रंचक ग्यान. रंचक – रंच मात्र. गीता को सुनते सुनते कान फूट गए, लेकिन थोडा सा ज्ञान भी नहीं मिला.
सुना था तो डरे, जब पड़ा तो किए (सुनी थी तो डरी थी, पड़ी थी तो सही थी). जब हम किसी कठिन परिस्थिति के विषय में सुनते हैं तो डरते हैं, पर जब आ कर पड़ती है तो उसे सहते भी हैं और उससे निबटते भी हैं.
सुनार अपनी माँ की नथ में से भी चुराता है (सुनार तो माँ की हंसुली में से भी निकाल ले). अर्थ स्पष्ट है. सुनार बेचारे इतने बदनाम हैं कि उन के बारे में यहाँ तक कहा गया है. सन्दर्भ कथा – एक बार किसी बादशाह ने सुनार से पूछा कि तुम रुपए में कितना खा सकते हो? सुनार ने जवाब दिया- ‘सोलह आने तक.’ बादशाह इस बात से चिढ़ गया और कहा कि तुम्हें इस को साबित करना होगा. बादशाह ने कहा कि तुम्हें एक सोने की मूर्ति राजमहल में बैठकर ही बनानी होगी और साथ ही उस पर कड़ा पहरा बिठा दिया. राजमहल में जाकर काम शुरू करने के पहले सुनार ने अपने घर पर ही एक पीतल की ठीक वैसी ही मूर्ति बना ली और उसे अपनी स्त्री के पास दही की मटकी में डालकर छोड़ दिया. राजमहल में जब सब के सामने स्वर्णमूर्ति बनकर तैयार हो गई तो उसने कहा कि इसे अब खटाई में साफ करना होगा.
उसी समय उसकी स्त्री, जिसे उसने पहले से सिखा-पढ़ा रखा था, ‘दही लो, दही लो’ की आवाज़ करती हुई निकली. सुनार ने यह कहकर कि खटाई के लिए इसका दही ख़रीद लिया जाए, उसे बुला लिया, और उसकी मटकी लेकर उसमें सोने की मूर्ति डाल दी और उसके स्थान पर पीतल की मूर्ति, जो उसमें पड़ी हुई थी, निकाल कर राजा को दे दी. इस प्रकार सोने की मूर्ति उसके घर पहुंच गई और बादशाह के सामने उसने अपनी बात रख ली.
सुनार कहे गहना बनवाओ मत पर देखने तो दो. सुनार इतना चतुर होता है कि गहना देखने के बहाने भी उस में से कुछ निकाल सकता है. इसीलिए उसे पश्यतोहर (देख कर हरण करने वाला) कहा गया है.
सुनार का बेटा सुरूप भी सस्ता, बनिए का बेटा कुरूप भी महंगा. सुनार का बेटा सुंदर हो तब भी दहेज़ कम ही मिलेगा और बनिये का बेटा कुरूप हो तब भी अच्छा दहेज़ मिलेगा.
सुनार की खटाई और दर्ज़ी के बंद. काम को टालने वालों के लिए. सुनार और दर्ज़ी कभी समय पर काम कर के नहीं देते. सुनार के पास जाओ तो कहेगा कि सामान तैयार है बस खटाई में डालना है. दर्जी के पास जाओ तो कहेगा कि कपड़ा तैयार है बस बंद (बटन) लगाने हैं.
सुनार जी थोड़ा सोना दे दो, सोना क्या मांगे से मिले, मांगे से तो न मिले पर ठाली जिभ्या क्या करे. सुनार से किसी ने सोना माँगा, तो सुनार ने कहा कि सोना क्या माँगने से मिलता है. माँगने वाला कहता है कि मुझे मालूम है मांगने से नहीं मिलता है, पर खाली जीभ क्या करे, कुछ तो चलनी चाहिए.
सुनार ही जाने सुनार की माया. सुनार किस प्रकार से लोगों को ठगता है यह दूसरा सुनार ही जान सकता है.
सुनिए दो और कहिए एक. सुनो अधिक और बोलो कम.
सुनो भई गप्प सुनो भई सप्प, नाव में नदिया डूबी जाए. कोई बड़ी बड़ी गप्पें हांक रहा हो तो उस का मज़ाक उड़ाने के लिए.
सुनो सब की करो मन की. यदि आपको कोई सलाह देता है तो धैर्य पूर्वक सुनना चाहिए पर बिना सोचे समझे उसे मानना नहीं करना चाहिए. सब की सलाह पर मनन करके और अपने विवेक से सोच कर कार्य करना चाहिए.
सुन्दरता को सिंगार की जरूरत नहीं. जो वास्तव में सुंदर है उसे श्रृंगार की आवश्यकता नहीं है.
सुबह का भूला शाम को घर लौट आए तो भूला नहीं कहलाता. यदि कोई व्यक्ति कुछ गलतियाँ करे पर बाद में उन्हें सुधार ले तो उसका दोष नहीं माना जाता.
सुबह होने पर जुगनू कहते हैं कि उन्होंने दुनिया में उजाला फैलाया. उन लोगों पर व्यंग्य जो स्वत: होने वाले कार्य का भी श्रेय लेने की कोशिश करते हैं. जैसे अंग्रेजों को द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण मजबूरी में भारत छोड़ना पड़ा और कुछ लोग दावा करते है कि उनहोंने भारत को आजाद कराया.
सुबेला का पाहुना, कुबेला का बैरी. सही समय पर आया अतिथि अच्छा लगता है और असमय आया अतिथि दुश्मन लगता है. सुबेला – उपयुक्त समय, कुबेला – गलत समय, पाहुना – अतिथि.
सुभाग तब जानी, जो घर जले आग, घड़े में रहे पानी. सुभाग – सौभाग्य. जब घर में आग जले और घड़े में भरपूर पानी हो, तभी समझो कि भाग्य अच्छा है. रोजी-रोटी का ठिकाना ही सौभाग्य की पहली मांग है.
सुमरने मरे, बिसरने जिए. जो लोग पुरानी बातों को याद कर के दुखी और लज्जित होते रहते हैं वे परेशान रहते हैं, जो उन्हें भुला कर आगे बढ़ते हैं वे सुखी रहते हैं.
सुर नर मुनि सब की यह रीती, स्वारथ लागि करें सब प्रीती. चाहे देवता हों, मनुष्य हों या मुनि हों, सब अपने स्वार्थ के लिए ही प्रेम करते हैं.
सुरतीला सो फुर्तीला. सुरती खाने वाला ही चपलता से काम कर सकता है. तम्बाखू खाने वालों का कथन.
सुरमा सबहिं लगात, पर चितवन भांत भांत. श्रृंगार सब करते हैं पर सब सुंदर नहीं दिखते.
सुलगती में फूंक मत दो. यदि दो लोगों में कुछ अनबन चल रही हो तो ऐसी कोई बात मत कहो जिससे आग भड़क जाए.
सुहागन का पूत पिछवाड़े खेले है. सुहागिन का अगर लड़का मर जाए, तो यह समझना चाहिए कि वह कहीं गया नहीं, बल्कि पिछवाड़े ही खेल रहा है. तात्पर्य यह कि उसे फिर भी पुत्र उत्पन्न होने की उम्मीद रहती है.
किसी अच्छी आमदनी वाले का जब कोई नुकसान हो जाता है, तब बड़े लोग यह भाव प्रकट करने के लिए कि चिंता की और कोई बात नहीं, घाटा शीघ्र पूरा हो जाएगा इस वाक्य का प्रयोग करते है.
सुहाते की लात, न सुहाते की बात. जो अपने को अच्छा लगता है उसकी लात भी सही जाती है लेकिन जो बुरा लगता है उसकी बात भी बुरी लगती है.
सूंड कटे गणेश. बहुत मोटे व्यक्ति का मजाक उड़ाने के लिए.
सूअर की नजर पड़ेगी तो गू पर ही. जो व्यक्ति जिस प्रवृत्ति का होता है वह वैसे ही गुण दोष ढूँढ लेता है. सूअर के सामने तरह तरह के व्यंजन रखे हों और कोने में कहीं विष्टा पड़ी हो तो वह विष्टा की ओर ही भागेगा. विधर्मी लोग आर्य सनातन धर्म की हजार विशेषताओं को न देख कर एकाध छोटी मोटी कमी का ही मजाक उड़ाते हैं.
सूअर को गू पकवान. निकृष्ट व्यक्ति को निकृष्ट वस्तुएँ ही अच्छी लगती हैं.
सूअर चरें, कटरे मार खाएँ. किसी के अपराध की सजा दूसरे को मिले तो.
सूअर तो गू से भी पेट भरे पर गाय क्या करे. गंदगी में रहने और निकृष्ट पदार्थ खाने वाले व्यक्ति कैसे भी जीवन काट सकते हैं पर स्वच्छता प्रेमी को ऐसी परिस्थितियों में बहुत परेशानी होती है.
सूई भी साथ नहीं जाएगी. जो लोग धन दौलत इकट्ठी करने के पीछे पागल रहते हैं उन को बार बार यह समझाया जाता है कि तुम यहाँ से सुई भी साथ नहीं ले जा सकते.
सूखा कसार खा के तो ऐसे ही सपूत पैदा होंगे. किसी स्त्री का शिशु कमजोर था. पड़ोसियों ने टोका तो बहू ने सास पर कटाक्ष किया कि गर्भावस्था में अच्छी खिलाई पिलाई न हो तो ऐसे ही बच्चे होंगे,
सूखी के संगै गीली भी जलें. सूखी लकड़ियों के साथ गीली भी जल जाती हैं. समाज में उत्साही लोगों के साथ सुस्त लोग भी कुछ न कुछ कर दिखाते हैं.
सूखी तलइया में मेंढक करे टर-टर. बिना उपयुक्त अवसर के खुश होने वाले व्यक्ति के लिए.
सूखे कुएं से घड़ा नहीं भरता. जिस के पास स्वयं कुछ न हो वह किसी को कैसे कुछ दे सकता है.
सूखे धानों पानी पडा. 1. जिस वस्तु की अत्यधिक आवश्यकता थी वही मिल गई. इसके विपरीत अर्थ – 2. जब धान सूख गए तब पानी पड़ा जोकि किसी काम का नहीं.
सूखो भोजन, कुलरिनी, औ कुलच्छनी नार, पाँव पन्हैया है नहीं, नरकों के फल चार. (बुन्देलखंडी कहावत) कुलरिनी – जिसको बाप दादों का कर्ज उतारना हो. यह चार चीजें धरती पर ही नरक भोगने की निशानी हैं – रूखा सूखा भोजन, बाप दादाओं की कर्जदारी, चरित्रहीन पत्नी और बिना जूते के पैर.
सूझे न बिटौरा और गुलेल का शौक. कंडों के ढेर जैसी बड़ी चीज नहीं दिखती और गुलेल चलाने का शौक रखते हैं. बिना सामर्थ्य के कोई काम करने की कोशिश करने वाले के लिए.
सूझे न बिटौरा, चाँद से राम राम. किसी व्यक्ति को पास की चीज़ भी ठीक से न दिखती हो और वह बहुत दूर देखने की कोशिश करे तो.
सूत न कपास, जुलाहे से लठ्ठम लठ्ठा. पहले के लोग कपास ला कर सूट कातते थे और जुलाहे को दे कर उससे कपड़ा बुनवाते थे. बुनाई की मजदूरी कितनी हो या सूत कम हो गया इस बात पर झगड़ा भी होता था. किसी के पास न सूत है न कपास फिर भी जुलाहे से लड़ रहा है. बिना किसी बात के झगड़ा करने वाले के लिए.
सूद के पैसा दोबर, ना तो गोबर. ऊंचे ब्याज पर दिया धन दुगुना हो जाता है या मारा जाता है.
सूधी छिपकली घणे माछर खावै. (हरियाणवी कहावत) छिपकली देखने में सीधी सादी लगती है पर ढेर सारे मच्छर खा जाती है. कहावत ऐसे लोगों पर फिट बैठती है जो देखने में सीधे लगते हैं और खूब हेर फेर कर लेते हैं.
सूनी सार भली के मरखना बैल. सार – बैल बाँधने का स्थान. बैल न होने से मरखना बैल होना अच्छा.
सूने घर चोरों का राज (चूहों का राज). सूने घर पर अवांछित तत्व कब्जा कर लेते हैं, इसलिए घर को कभी खाली नहीं छोड़ना चाहिए.
सूने घर में सियार ब्याये. जिस घर की चौकसी नहीं की जाती, उसका प्रयोग अवांछित लोग करने लगते हैं.
सूप उतार लो, नाव हलकी हो जाय. मूर्खतापूर्ण बात. सूप हटाने से नाव के बोझ पर क्या फर्क पड़ेगा.
सूप के बजाने से ऊँट नहीं भागते. बहुत छोटे साधन से बड़े काम नहीं होते.
सूप बोले तो बोले, साथ में छलनी भी बोले, जामें बहत्तर छेद. सूप में अनाज को फटक कर उसमें से भूसी आदि अलग करने का काम किया जाता है. सूप एक बड़ा आइटम है जबकि छलनी छोटी सी चीज है. छलनी में बहुत सारे छेद भी होते हैं. अगर कोई बड़ा आदमी कोई आपत्तिजनक बयान दे और साथ में उसका चमचा टाइप का कोई आदमी भी बोलने लगे तो यह कहावत कही जाती है.
सूप में रखा बैंगन, जिधर चाहो उधर लुढ़काओ. अवसरवादी लोग, जैसे आजकल के नेता.
सूप से कहीं सूरज ढकता है. सूप जैसे छोटे से साधन से सूर्य ढकने जैसा बहुत बड़ा काम नहीं किया जा सकता.
सूप हँसे चलनी पे कि तुझ में बहत्तर छेद. जिस व्यक्ति में दोष ही दोष हों वह अपने से कम दोषों वाले व्यक्ति पर हँसे तो.
सूम का खर्च दूना. कंजूस आदमी मौके पर खर्च नहीं करता पर कभी न कभी वह ऐसा फंसता है कि उसे कई गुना अधिक खर्च करना पड़ता है.
सूम का धन बिरथा जाय. कंजूस आदमी का धन व्यर्थ ही जाता है, क्योंकि वह उसका स्वयं भी उपभोग नहीं करता और किसी को दान भी नहीं करता. कहावत को इस प्रकार से भी कहा गया है – सूम का धन सैतान खाय.
सूम के घर कुत्ता न जाय. कंजूस के घर जाना कोई पसंद नहीं करता, क्योंकि वहाँ कुछ नहीं मिलता.
सूमन पूछे सूम से, कासे मुक्ख मलीन, कै गांठी से गिर पड़ो, कै काहू को दीन्ह, ना गांठी से गिर पड़ो, ना काहू को दीन्ह, देवत देखा और को, तासे मुक्ख मलीन. कंजूस घर आया तो बड़ा उदास था. पत्नी ने पूछा, उदास क्यों हो. क्या गाँठ में से कुछ गिर पड़ा, या किसी को कुछ देना पड़ा. कंजूस बोला, ऐसा कुछ नहीं है, किसी और को कुछ दान करते देख लिया, उससे मन में हौला बैठ गया.
सूमी का धन अइसे जाय, जइसे कुंजर कैथा खाय. कहते हैं कि हाथी कैथे के फल को साबुत खा लेता है पर उसे पचा नहीं पाता और साबुत कैथा मल में निकल जाता है. कंजूस का धन भी इसी प्रकार व्यर्थ जाता है.
सूर समर करनी करहिं, कहि न जनावहिं आप, (विद्यमान रण पाय रिपु, कायर करहिं प्रलाप). सूर – शूरवीर, समर – युद्ध. वीर पुरुष युद्ध में ही वीरता दिखाते हैं, अपने आप उस का ढिंढोरा नहीं पीटते.
सूरज का क्या दोष जो उल्लू को न दीखे. कहते हैं कि उल्लू हो सूर्य के प्रकाश में नहीं दिखता. अब इस में सूर्य का तो कोई दोष नहीं माना जा सकता. यदि किसी मूर्ख को ज्ञानी की बात समझ में नहीं आती हो तो इस में ज्ञानी का क्या दोष.
सूरज के शनीचर. जब किसी बहुत नेक इंसान का पुत्र दुष्ट हो तो. शनिदेव सूर्य के पुत्र हैं. सूर्य देव सौभाग्य और यश के दाता हैं जबकि शनि अमंगलकारी.
सूरज बैरी ग्रहन है, दीपक बैरी पौन, जी का बैरी काल है, आवत रोके कौन. ग्रहण सूरज का वैरी है और पवन दीपक का. इसी प्रकार काल जीवन का वैरी है इन्हें आने से कोई नहीं रोक सकता.
सूरत को क्या चाटें, जब सीरत ही नहीं है. किसी सुंदर व्यक्ति या स्त्री का व्यवहार अच्छा न हो तो सुंदरता का कोई मूल्य नहीं है.
सूरत देखकर गधे बिदकते है. किसी कुरूप (परन्तु घमंडी) व्यक्ति का मजाक उड़ाने के लिए.
सूरत न शकल, भाड़ में से निकल. किसी व्यक्ति की शक्ल सूरत अच्छी न हो पर वह अपने को बहुत सुन्दर और काबिल समझता हो उससे चिढ़ने वाले ऐसा बोल कर मन की भड़ास निकालते हैं.
सूरत में जैसे, सीरत में तैसे. उन लोगों की शक्ल सूरत भी अच्छी नहीं होती और व्यवहार भी खराब होता है, उन के लिए.
सूरत से कीरत बड़ी, बिना पंख उड़ जाए, सूरत तो जाती रहे, कीरत कभी न जाए. अच्छी शक्ल सूरत से कीर्ति बेहतर है जो दूर तक फैलती है और अमर रहती है.
सूरत से सीरत भली. शक्ल अच्छी हो पर व्यवहार बुरा हो तो आदमी बेकार है, सूरत अच्छी न हो पर व्यवहार अच्छा हो तो आदमी अच्छा है. इंग्लिश में भी एक कहावत है – Hamdsome is that handsome does.
सूरत है लंगूर की बस दुम की कसर है. किसी को चिढ़ाने के लिए बच्चों की कहावत.
सूरदास की काली कमरिया, चढे न दूजो रंग. काले कंबल पर दूसरा रंग नहीं चढ़ सकता. सूरदास जी ने इसे भक्ति के आशय में प्रयोग किया है अर्थात सूरदास जी कृष्ण की भक्ति में इतने डूबे हुए हैं कि उन पर कोई और रंग नहीं चढ़ सकता. जहां कोई व्यक्ति अपने कट्टर विश्वास के आगे कुछ मानने को तैयार न हो.
सूरदास जे मन के खोटे, अवसर परे जाहिँ पहिचाने. जो लोग भीतर से कपटी हैं वे अवसर पड़ने पर काम नहीं आते इसलिए पहचान लिए जाते हैं.
सूरा सो पूरा. जो शूरवीर है वही सम्पूर्ण व्यक्ति है.
सूर्य अस्त पहाड़ मस्त. पहाड़ पर शराब के अत्यधिक चलन के ऊपर कहावत.
सेंत की गंगा, हराम के गोते. मुफ्त की वस्तु का दुरूपयोग हर कोई करता है.
सेंत के धान मौसा कौ सराध. मुफ्त का राशन मिल गया है तो मौसा का श्राद्ध कर रहे हैं.
सेंदुर न लगाएं तो भतार का मन कैसे रखें. सिंदूर न लगाएँ तो पति को प्रसन्न कैसे करें. मालिक के मनपसंद काम करना ही पड़ेगा.
सेज की तो मक्खी भी बुरी. सौतिया डाह की पराकाष्ठा.
सेज चढ़ते ही रांड हुई. विवाह होते ही विधवा हो गई. कोई काम होते ही बिगड़ गया हो तो.
सेठ के पेट में पापों की पोटली. अधिकतर लोग यह मानते हैं कि धनवान लोगों की कमाई पाप की होती है.
सेनापति को सेना का जोर और सेना को सेनापति का जोर. सैनिक वीर और बुद्धिमान हों तो सेनापति की शक्ति बहुत बढ़ जाती है, सेनापति वीर और बुद्धिमान हो तो सेना का मनोबल और शक्ति बहुत बढ़ जाता है.
सेर को सवा सेर. किसी चालाक आदमी का उससे भी चालाक से पाला पड़े तो.
सेर भरे के बाबाजी, सवा सेर का शंख. यदि उपकरण बड़ा हो और उसे प्रयोग करने वाला छोटा, तो मजाक में ऐसा कहते हैं.
सेर मरद पसेरी बरद. बरद – बैल, पसेरी – पांच सेर. मेहनतकश आदमी की खुराक एक सेर अनाज की होती है और बैल की पांच सेर की.
सेवा करोगे तो मेवा मिलेगी. सेवा किसी की भी करो, हमेशा अच्छा फल ही मिलता है.
सेही का काँटा घर में मत रखो, लड़ाई होगी. यह एक लोक विश्वास है.
सैंया की सी कहूँ तो पीहर से नाता टूटे, भैया की सी कहूँ तो सेजिया छूटे. पति के पक्ष में बोलने पर भाई से नाता टूटता है, भाई के पक्ष में बोलूँ तो पति का घर छूटता है. स्त्रियों के लिए दुविधा की स्थिति.
सैंया के मन मुँह पाईं तो सासू के झोंटा नेवाईं. (भोजपुरी कहावत). पति के मन की थाह मिले और समर्थन मिले तो सास के बाल नोचूँ.
सैंया गए आँख लाने, कानी मन पतियाए. किसी ने कानी से कहा कि तुम्हारा पति तुम्हारे लिए आँख लेने गया है, तो कानी उस पर विश्वास कर लेती है. मजबूर आदमी किसी असंभव बात पर भी विश्वास कर लेता है.
सैंया गए परदेस तो अब डर काहे का. जो मनचली स्त्री पति से डरती हो वह उसके बाहर जाने पर निरंकुश हो जाती हैं. कड़क हाकिम के बाहर जाने पर उसके अधीनस्थ कर्मचारी भी मस्त हो जाते हैं.
सैंया ने इस दुनिया में लाखों किए इकट्ठे, कबहिं न लाए लड्डू पेड़े बेर खिलाए खट्टे. कंजूस पति के लिए.
सैंया भए कोतवाल तो अब डर काहे का. यदि किसी का निकट संबंधी किसी अच्छी पोस्ट पर हो और वह उस के बल पर इतराए तो यह कहावत कही जाती है. रूपान्तर – सैंया भए कोतवाल तो हम नंगे सोयेंगे.
सैयां से फुरसत नाहिं, देवर मांगे आंचल की छांह. पति से तो फुर्सत नहीं मिलती और छोटा देवर लाड़ प्यार मांग रहा है. परिवार की जिम्मेदारियों के बीच संतुलन रखने का संकट.
सो घर सत्यानाश जहां है अति बल नारी. जिस घर में स्त्री की सत्ता चलती है उस का सत्यानाश हो जाता है.
सो ताको सागर जहां जाकी प्यास बुझाए. जिसकी जहां प्यास बुझे उसके लिए वही सागर है.
सो पंछी पिंजरे परै जो बोले बहु मीठ (मीठी बानी बोलि कै, परत पींजरा कीर). कीर – तोता. तोता मीठी बोली बोलता है इसलिए पिंजरे में बंद कर के रखा जाता है. अधिक मीठा होना भी खतरनाक है.
सो फल कोई न ले सके, जहाँ कंटीली डार. जो फल कंटीली डाल पर लगता है उस को तोड़ने की जल्दी कोई हिम्मत नहीं करता. तात्पर्य है कि वस्तु सुरक्षित तभी रहती है जब उस तक पहुँचने में संकट उत्पन्न किए जाएँ.
सोंठ सुहागा सेंधा हींग, सहजन के रस बांधो मींग, सत्तर सूल बहत्तर बाय, खाते छूमंतर हो जाए. वायु रोग के लिए घरेलू नुस्खा. ऐसे नुस्खों की कोई प्रामाणिकता तो नहीं है पर वे प्रचलन में हैं
सोच कर चलना मुसाफिर, यह ठगों का गाँव है. संसार में तरह तरह के प्रलोभन हैं, उनसे सावधान रहो.
सोच करन्ता पुरषा हारे, मर्द वही जो पहले मारे. लड़ाई होने पर जो सोचता ही रहता है वह हार जाता है, वीर पुरुष वही है जो पहले बढ़ कर मारे. रूपान्तर – ज्ञान गिने सो मूरख हारे, वो जीते जो पहले मारे.
सोचो आज, बोलो कल. बोलने से पहले भली भांति सोचना चाहिए.
सोचो साथ क्या जाएगा. इंसान कितना भी कुछ इकट्ठा कर ले अपने साथ कुछ भी नहीं ले जा सकता.
सोटे चल, अब तेरी बारी. सोटा – डंडा. जहाँ बातचीत से मसला हल न हो और बल प्रयोग की नौबत आ जाए.
सोते का मुंह कुत्ता चाटे. जो सचेत नहीं है उसको कोई भी नुकसान पहुँचा सकता है या कोई भी उसका अनुचित लाभ उठा सकता है.
सोते को जगावे, स्वांग करते को क्या जगावे. जो सो रहा हो उसे जगाया जा सकता है, जो सोने का नाटक कर रहा हो उसे कैसे जगा सकते हैं. स्वांग – नाटक.
सोते को सोता कब जगाता है. जो स्वयं चौकन्ना नहीं है वह दूसरे को सचेत कैसे कर सकता है.
सोते शेर को मत जगाओ (सोते नाग को मत छेड़ो) (सोती बर्रों को मत छोड़ो). शेर या नाग कितने भी खतरनाक हों अगर सो रहे हैं तो आप का कुछ नहीं बिगाड़ते इस लिए उन्हें सोने दो. कोई शक्तिशाली व्यक्ति, समाज या देश अगर सोया पड़ा है तो ऐसा कोई काम न करो जिससे उसके जागने का खतरा हो. अंग्रेजों ने भारत पर कब्जा कर लिया पर चीन को कभी नहीं छेड़ा. वे यही कहावत कहते थे.
सोना चांदी आग में ही परखे जाते हैं. उच्च गुणों वाले व्यक्ति मुसीबत पड़ने पर ही परखे जाते हैं.
सोना छुए तो मिट्टी हो. अत्यंत भाग्यहीन व्यक्ति.
सोना जाने कसे, आदमी जाने बसे. कसौटी नाम का एक विशेष प्रकार का पत्थर होता है जिस पर सोने को घिसकर देखा जाता है कि वह शुद्ध है या मिलावटी. इस प्रक्रिया को कसौटी पर कसना कहते हैं. इस कहावत की पहली पंक्ति यह बताती है कि सोना कैसा है यह कसने से ही जाना जा सकता है. दूसरी पंक्ति का अर्थ है कि आदमी की पहचान उसके पास बसने यानी साथ रहने से ही हो सकती है.
सोना तौले ओर ईंटो का धड़ा करे. महा मूर्खतापूर्ण कार्य. कोई सामान तोलने से पहले तराजू के दोनों पलड़ों को बराबर किया जाता है. इस के लिए जो पलड़ा हल्का है उस तरफ कुछ रख कर दोनों को बराबर करते हैं. इस प्रक्रिया को धड़ा करना कहते हैं. सोना तोलने में खसखस के दानों से धड़ा करते हैं.
सोना पाना और खोना दोनों बुरा. सोने जैसी मूल्यवान चीज का खोना तो बुरा है ही, कहीं पड़ा हुआ या गड़ा हुआ सोना मिलना भी बुरा समझा जाता है क्योंकि वह लड़ाई झगड़े और यहाँ तक कि लूट और हत्याकांड का कारण बन सकता है.
सोना बिगड़े सुनार घर, बिटिया बिगड़े बाप घर. सोना सुनार के घर जाने से बिगड़ जाता है (वह उसमें खोट मिला देता है). लड़की बाप के घर रहने से बिगड़ती है क्योंकि मायके में उस पर विशेष नियंत्रण नहीं रह पाता.
सोना मिट्टी में भी चमकता है. उत्तम गुणों वाले व्यक्ति सभी परिस्थितियों में अपनी अलग पहचान बना लेते हैं.
सोना लेने पिय गए सूना कर गए देस, सोना मिला न पिय मिले चांदी हो गए केस. पति पैसा कमाने विदेश चले गए. बेचारी पत्नी को न पैसा मिला, न पति मिले, प्रतीक्षा में बाल सफ़ेद हो गए. व्यापार के सिलसिले में जो, लोग लम्बे समय तक बाहर रहते हैं उन के लिए.
सोना सज्जन साधुजन, टूट जुड़ें सौ बार, दुर्जन कुम्भ कुम्हार के, एकै धके दरार. सोना और साधु प्रवृत्ति के लोग बार बार टूटने के बाद भी जुड़ जाते हैं जबकि दुर्जन लोग कुम्हार के घड़े के समान होते हैं जोकि एक ही धक्के से टूट जाते हैं और फिर कभी नहीं जुड़ते.
सोने का घर माटी कर दिया. बना बनाया काम बिगाड़ दिया.
सोने का निवाला खिलाइए और शेर की निगाह से देखिये. खिलाने पिलाने में बच्चे का खूब लाड़ प्यार करें पर उस पर कड़ी नज़र भी रखें.
सोने की कटारी कोई पेट में नहीं मारता. कटारी सोने की हो या हीरे मोती जड़ी हो, अपने पेट में थोड़ी मार ली जाएगी. किसी बहुमूल्य वस्तु को कोई अपने नुकसान के लिए प्रयोग कर रहा हो तो.
सोने की कटोरी में कौन भीख न देगा. चंदा भी मांगने वाले की हैसियत देख कर दिया जाता है.
सोने की खोट तो सुनार ही जाने. किसी काम की बारीकियों को उस से संबंधित व्यक्ति ही जान सकता है.
सोने की बलेंडी और फूस का छप्पर. बलेंडी उस बल्ली को कहते हैं जिस पर छप्पर रखा जाता है. बलेंडी सोने की है और उस पर फूस का घटिया छप्पर रखा है – बेमेल और घटिया चीज़ (मखमल में टाट का पैबंद).
सोने के अंडे देने वाली मुर्गी का पेट न फाड़ो. नासमझी और जल्दबाजी खतरनाक होती हैं. सन्दर्भ कथा – एक आदमी के पास एक ऐसी मुर्गी थी जो रोज सोने का एक अंडा देती थी. उस अंडे को बेच कर उस की अच्छी आय हो जाती थी. एक दिन उसने सोचा कि रोज रोज मुर्गी की देखभाल करने और एक एक अंडा प्राप्त करने की बजाए एक ही दिन में सारे अंडे क्यों न निकाल लूँ. यह सोच कर उसने छुरा ले कर मुर्गी का पेट फाड़ दिया. लेकिन अंदर तो कुछ मिला ही नहीं, और मुर्गी भी मर गई. यह कहावत उन लोगों के लिए कही जाती है जो जल्दी लाभ उठाने के चक्कर में नुकसान उठाते हैं और फिर पछताते हैं.
सोने को जंग नहीं लगता. उत्तम लोगों को दोष नहीं व्यापते. खरे व्यक्ति को कलंक नहीं लगता.
सोने को मुलम्मे की जरूरत नहीं होती. चांदी या अन्य धातुओं को सोने जैसा दिखाने के लिए उन पर सोने की बहुत बारीक पर्त चढ़ाई जाती है जिसे मुलम्मा कहते हैं. जो खुद असली सोना है उसे मुलम्मे की क्या जरूरत. जो स्वयं गुणों से भरपूर है उसे आडम्बर या किसी और के नाम की क्या आवश्यकता.
सोने में सुगंध (सोने में सुहागा). अच्छे में और अच्छाई. अच्छा संयोग जुटना.
सोने वाले की भैंस पाड़ा ही जनेगी (सोने वाले को पड़वा और जागने वाले को पड़िया) (जो सोवेगा वो खोवेगा, जो जागेगा सो पावेगा). जो चौकन्ना होगा वह हमेशा फायदे में रहेगा, जो सोएगा वह नुकसान में रहेगा. सन्दर्भ कथा – दो पड़ोसियों की भैसें साथ-साथ ब्याहने वाली थीं. दोनों उनके ब्याहने की प्रतीक्षा कर रहे थे. रात अधिक हो गई तो एक ने कहा कि दोनों के जागने से क्या लाभ? एक आदमी सो जाए और भैंस जब ब्याहने को हो तो उसे भी जगा लिया जाए. ये कह कर वह सो गया और दूसरा जागता रहा. इत्तेफाक से थोड़ी देर बाद दोनों भैसें एक साथ ही ब्याह गईं. जो जाग रहा था, उसकी भैंस ने पाड़ा प्रसव किया और सोने वाले की भैस ने पाड़ी. लेकिन चूंकि पाड़ी की कीमत अधिक होती है इसलिए उसने पाड़े को दूसरी भैंस के साथ लगा दिया और पाड़ी को अपनी भैंस के साथ. फिर उसने अपने साथी को जगाया. जागने पर उसने पाड़ी को देख कर कहा कि इसकी शक्ल तो मेरी भैंस से मिलती है, लेकिन दूसरे ने कहा, नहीं, तुम्हारी भैंस तो पाड़ा ही ब्याई है.इतने में एक तीसरा आदमी वहां आ गया और सारी स्थिति जानकर उसने कहा, सच चाहे जो हो, सोने वालों की भैंस तो पाड़ा ही जनती है.
सोने से गढ़ावल महंगी. जहाँ कच्चा माल तो महंगा हो ही पर उत्पादन की लागत और भी अधिक हो.
सोम भूखे न मंगल अघाए. जिस की स्थिति सदा एक सी रहती हो. अघाए – भरे पेट.
सोमे खेती बुधे घर, जो न जाने सो भी कर. सोमवार को खेती का काम और बुधवार को घर बनवाने का काम शुरू किया जा सकता है. इसके लिए किसी मुहूर्त की आवश्यकता नहीं होती.
सोया और मुआ बराबर. सोता व्यक्ति मरे के समान है. यहाँ सोये से तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से भी हो सकता है जो अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति सचेत न हो.
सोये घूरे पर और सपने देखे महलों के. अत्यंत निर्धनता में रहने वाला व्यक्ति यदि अत्यधिक धनवान बनने के सपने देखे तो.
सोलह सयान, बीस ज्ञान, पचीसे भान. सोलह वर्ष में लड़का सयाना हो जाता है, बीस में उसे बोध होता है, और पच्चीस वर्ष में संसार का अनुभव होने लगता है.
सोलह सिंगार किया, एक पैर में महावर दिया. फूहड़ नारी श्रृंगार करने में भी फूहड़पन दिखाती है.
सोलह हाथ साड़ी, आधी पिंडली उघाड़ी. जिस फूहड़ औरत को कपड़े पहिनने का शऊर न हो. बहुत लम्बी साड़ी होते हुए भी ऐसे बांधी है कि आधी पिंडली दिख रही है.
सोलहों सिंगार, घेंघा दिया बिगाड़. थाइरॉइड ग्रंथि के अत्यधिक बढ़ जाने से गले में घेंघा रोग हो जाता है जोकि देखने में बहुत बुरा लगता है. ऐसी कोई स्त्री कितना भी श्रृंगार कर ले, वह सुंदर नहीं लग सकती.
सोवन को कुम्भकरन, भोजन को भीम. जो आदमी सोता भी बहुत हो और खाता भी बहुत हो.
सौ अजान, एक सुजान. सौ कमअक्ल लोगों के मुकाबले एक चतुर व्यक्ति का साथ अधिक अच्छा है.
सौ इलाज एक परहेज (सौ दवा, एक परहेज) (सौ औषधि, एक पथ्य). परहेज इतना कारगर है कि सौ दवाओं से अधिक असर कारक है. इसको इस प्रकार भी कह सकते हैं कि परहेज़ न करो तो सौ दवाएं बेकार हैं.
सौ ऐबों का एक ऐब गरीबी. 1. गरीबी आदमी से मजबूरी में बहुत से गलत काम कराती है. 2. गरीब कितना भी ईमानदार हो लोग उसे चोर कह कर अपमानित करते हैं.
सौ कपूत से एक सपूत भला. बहुत सारे पुत्र हों और माँ बाप का ध्यान न रखें उन से एक ऐसा पुत्र बेहतर है जो उनका ध्यान रखे और संसार में माता पिता का यश फैलाए.
सौ का भाई साठ. बेतुके तर्क द्वारा किसी को मूर्ख बनाना. सन्दर्भ कथा – गाँव के साहूकार का एक जाट पर सौ रुपये का ऋण था. बार-बार टोकने पर भी जब उस जाट ने ऋण अदा नही किया तो बनिया उसके घर गया और बोला कि आज तुम्हें रुपये देने ही पड़ेंगे. इस पर जाट बोला कि आप सौ रुपये मागते है, लेकिंन सौ और साठ तो भाई भाई हैं, इसलिए मुझे साठ रुपये ही देने हैं. लेकिन इन साठ में आधे रुपये छूट के रहेंगे. इस प्रकार शेष तीस रुपये देने रहे. इन में से दस रुपये तो फिर कभी दे दूंगा, दस किसी से दिलवाउंगा और दस का क्या देना-लेना, चलो हिसाब चुकता हुआ.
सौ कालियों पर एक काला. कालिया नाग के सौ फनों को एक ही कृष्ण (काले) ने कुचल दिया. जब एक शूरवीर अपने युद्ध कौशल से अनेकों शत्रुओं को नष्ट कर दे तो.
सौ की हानी, सहस बखानी. कुछ लोग थोड़े से नुकसान को बहुत बढ़ा चढ़ा कर बताते हैं उनके लिए (सौ की हानि हुई तो हजार बता रहे हैं).
सौ कौवों में एक बगला भी नरेस. जहाँ सभी अयोग्य हों वहाँ थोड़ी सी योग्यता रखने वाला भी राजा बन जाता है इस से मिलती जुलती कहावत है – अंधों में काना राजा.
सौ खोटों का वह सरदार, जिसकी छाती एक न बार. जिस पुरुष की छाती पर एक भी बाल न हो उसे बहुत धूर्त माना जाता है. (लोक विश्वास)
सौ गज नापूँ और गज भर न फाडूँ. जो बातें बहुत करे और काम कुछ न करे.
सौ गज पानी में रहे, मिटे न चकमक आग. चकमक पत्थर एक विशेष प्रकार का पत्थर होता है जिसको आपस में रगड़ने पर चिंगारी निकलती है. जब माचिस का आविष्कार नहीं हुआ था तो लोग चकमक रगड़ कर उससे सूखे घास फूस में आग पैदा करते थे. चकमक पत्थर को सौ गज पानी के नीचे डूबा कर रखो तब भी बाहर निकालने पर वह आग पैदा करता है. व्यक्ति में जो मौलिक गुण होता है वह विपरीत परिस्थियों में रहने पर भी नष्ट नहीं होता.
सौ गाथा सूआ पढ़े, अंत बिलाई खाय. तोते को कितना भी कुछ भी बोलना सिखा दो अंत में वह बिल्ली का भोजन बन जाता है. जो व्यक्ति स्वयं योग्य न हो केवल रट कर ही कुछ बोल लेता हो वह अपनी रक्षा स्वयं नहीं कर सकता. विस्तार – चतुराई क्या कीजिये, जो नहि सब्द समाय, कोटिक गुन सूआ पढ़े, अंत बिलाई खाय.
सौ गुंडा न एक मुछमुंडा. किसी किसी समाज में जो लोग मूंछ मुंडवा देते हैं उन्हें लफंगा समझा जाता है. ऐसे ही समाज का कथन.
सौ घोड़ा सौ करहला पूत सपूती जोय, मेहा तो बरसत भला होनी हो सो होय. करहला – ऊँट. वर्षा की बाढ़ से किसी के सौ घोड़े, सौ ऊँट और स्त्री पुत्र बह गए तो भी उस ने कहा कि भले ही मेरा सर्वस्व बह गया पर मैं यही कहूँगा कि वर्षा होनी तो आवश्यक है (मनुष्य मात्र की भलाई के लिए).
सौ चंडाल न इक कंगाल. पुराने जमाने में श्मशानघाट में काम करने वाले व्यक्ति को समाज का सबसे निकृष्ट सदस्य माना जाता था और उसे चंडाल कहते थे. सभी वर्णों के लोग उस बेचारे से छुआछूत मानते थे. कंगाल आदमी को उससे भी गया गुज़रा बताया गया है.
सौ चाकर तबहुँ घर सूना. घर में कितने भी नौकर चाकर हों, अपने प्रिय व्यक्तियों के बिना घर सूना है.
सौ चोर न एक उठाईगीर. उठाईगीर चोरों से भी अधिक खतरनाक होता है.
सौ ज्योतिषी और एक बुढ़िया. सौ भविष्यवक्ताओं के किताबी ज्ञान की तुलना में एक अनुभवी व्यक्ति की बात ज्यादा सही और वजनदार होती है.
सौ डंडी एक बुन्देलखंडी. सौ कसरती जवानों की बराबरी एक बुन्देलखंडी करता है. (आत्म प्रशंसा का रोग)
सौ दवा एक हवा. प्रदूषण मुक्त शुद्ध वातावरण में रहना सौ दवा खाने के बराबर है.
सौ दिन का चोर एक दिन जरूर धराई. चोर कितना भी शातिर क्यों न हो और कितनी भी चोरियां क्यों न कर ले, एक दिन जरूर पकड़ा जाता है (जैसे आजकल के कुछ भ्रष्ट नेता).
सौ दिन सासू के एक दिन बहू का. सास बहू को तरह तरह से परेशान करती रहती है पर जब बहू का दांव लगता है तो वह एक ही बार में हिसाब बराबर कर लेती है.
सौ नकटों में एक नाक वाला नक्कू. जहां गलत विचारों के लोगों का बाहुल्य हो वहाँ पर सही विचार वाले हास्य व्यंग्य के पात्र बन जाते हैं।
सौ पट्टा और एक लट्ठा. किसी स्थान पर मालिकाना हक जताने वाले सौ पट्टे दार हों, उन पर एक ही लठैत भारी होता है. रूपान्तर – कब्ज़ा सच्चा मुकदमा झूठा.
सौ बरस का कारीगर, और बारह वर्ष का मालिक. जहाँ कम आयु वाले अनुभवहीन लोगों के नीचे अधिक आयु वाले अनुभवी लोगों को काम करना पड़े. जैसे कुछ परिवारवादी राजनैतिक दलों में अनुभवहीन लडके अध्यक्ष बन जाते हैं और बुजुर्ग कार्यकर्ता उनके जूते उठाते हैं.
सौ बार चोर की, एक बार शाह की. चोर कितनी भी चोरियाँ कर ले अंततः पकड़ा जाता है और फिर उसे सारी कसर चुकानी पडती है. सन्दर्भ कथा – एक लड़का किसी बनिए की दूकान पर नौकर था. उसे रोज घड़े में से गुड़ चुराकर खाने की आदत पड़ गई थी. एक दिन बनिए ने अनुभव किया कि कोई गुड़ चुराकर खा लेता है, क्योंकि घड़ा बहुत खाली था. चोर को पकड़ने की गरज़ से उसने गुड़ के घड़े को अलग रख दिया और उसके स्थान पर बिरोजे से भरा एक दूसरा घड़ा रख दिया. दूसरे दिन रोज की तरह लड़का वहां पहुंचा और गुड़ के धोखे बिरोजा निकालकर मुँह में रख लिया, जिससे उसका मुंह चिपक गया. इस तरह बनिये को चोर का पता चल गया और लड़के की उसने खूब मरम्मत की.
सौ बार तेरी, एक बार मेरी. 1. बार बार तेरी बात मानी जाती है एक बार मेरी भी मानी जानी चाहिए. 2. तूने सौ बार मुझे धोखा दिया है, अब एक बार तू मेरा दांव देख.
सौ भैंसियों में एक पाड़ा, राकड़सिंह नाम. सौ मूर्खों में एक बुद्धिमान बड़े ठाट से उन पर रुआब जमाता है.
सौ मन अनाज की एक मुट्ठी बानगी. जिस प्रकार किसी अनाज की गुणवत्ता जानने के लिए उस के ढेर में से एक मुट्ठी अनाज पका कर देखते हैं (इसे बानगी कहते हैं), उसी प्रकार किसी जाति या समाज के बारे में जानने के लिए कुछ लोगों से ही बात कर के जानकारी प्राप्त की जा सकती है.
सौ मन इल्म एक मन अकल. सौ विद्याओं से एक बुद्धि बड़ी है.
सौ मन का कुठला भर जाय पर सवा सेर का पेट नही भरता. मनुष्य का लालच इतना बड़ा है कि उसे कितना भी मिल जाए, उसका पेट नहीं भरता.
सौ मारे और एक गिने (सौ मारूँगा और एक गिनूँगा). बेहिसाब मारने वाला.
सौ में फुली सहस में काना, सवा लाख में एंचकताना, एंचकताना करे पुकार, मैं मानी कैरा से हार, कैरा बुद्धि बिनासी, करे बाप की हांसी, जिनकी नइयाँ छतियन बार, उनसे कैरा मानी हार. (बुन्देलखंडी कहावत) फुली – जिसकी आँख में फुल्ली की बीमारी हो, एन्चकताना – भेंगा (टेपंखा), कैरा – कंजा (भूरी आँख वाला). लोक विश्वास है कि उपरोक्त सभी प्रकार के लोग धूर्त होते हैं. सौ लोगों में एक की आँख में फुल्ली होती है, हजार में एक काना होता है और सवा लाख में एक एन्चकताना. कंजा आदमी एन्चकताने से भी अधिक धूर्त होता है और जिसकी छाती पर बाल न हों उस से कंजा भी हार मान लेता है.
सौ में शूर और हजार में दानवीर. सौ में कोई एक व्यक्ति वीर होता है और हजार में एक दानवीर.
सौ में सती, लाख में जती. सैकड़ों स्त्रियों में एक सती (पतिव्रता) होती है, और लाखों पुरुषों में एक यती (योगी).
सौ में सूर सहस में काना, एक लाख में ऐंचक ताना, ऐचंक ताना करे पुकार, कंजा से रहियो हुशियार, जाके हिये न एकहु बार, ताको कंजा ताबेदार, छोट गर्दना करे पुकार, कहा करे छाती को बार. अर्थ ऊपर वाली कहावत की भांति. फुल्ली के स्थान पर अंधे का वर्णन है. छोटी गर्दन वाला इन सभी से अधिक धूर्त बताया गया है.
सौ लावे राँड़ी, एक न लावे छाँड़ी. सौ विधवा भले ही रख ले, परन्तु किसी की छोड़ी हुई स्त्री कभी न रखे.
सौ सयाने एक मत. बुद्धिमान लोगों का किसी विषय पर एक ही मत होता है. सन्दर्भ कथा – निन्नानवे घड़े दूध में एक घड़ा पानी क्या जाना जाय? एक बार अकबर बादशाह ने बीरबल से पूछा कि किस जाति के लोग सबसे अधिक चतुर होते हैं. बीरबल ने जवाब दिया ‘ग्वाले’. अकबर ने कहा, सिद्ध करो. बीरबल ने अपने कथन की सत्यता को सिद्ध करने के लिए आगरे के सब ग्वालों को बुलवाया और उनसे कहा कि एक बड़े हौज़ को रात में दूध से भरना है, इस के लिए हर ग्वाले को एक घड़ा दूध हौज में डालना है. हरेक ग्वाले ने अपने मन में सोचा कि सब लोग तो दूध डालेंगे ही, यदि वह उसमें एक घड़ा पानी डाल देगा तो किसी को पता नहीं चलेगा. यही समझकर सबने दूध की जगह पानी ही डाला और जब दूसरे दिन सुबह बादशाह और बीरबल हौज़ को देखने गए, तो उसे पानी से भरा पाया.
सौ सुनार की, एक लोहार की. (खुट खुट सुनार की, एक चोट लोहार की). 1. छोटे व्यापारी थोड़ा थोड़ा कमाते हैं, बड़ा व्यापारी एक ही सौदे में सारी कसर पूरी कर लेता है. 2.कोई दुश्मन को थोड़ा थोड़ा नुकसान पहुँचा रहा हो और दुश्मन एक ही वार में काम तमाम कर दे. भोजपुरी – सोनरवा की ठुक ठुक, लोहरवा की धम्म.
सौ सौ जूते खाएं, तमासा घुस कर देखें. ऐसे बेशर्म लोगों के लिए जो कितना भी अपमान सह कर तमाशा देखने के लिए कहीं भी घुस जाते हैं.
सौ सौ तरह के नाच नचाती हैं रोटियाँ. जीविका के लिए आदमी को क्या क्या नहीं करना पड़ता.
सौ हत्या पे बाघ भी मरे. अत्याचारी कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, जब अत्याचार की अति हो जाती है तो कभी न कभी वह भी मारा जाता है.
सौत का गुस्सा कठौत पर. कठौत – लकड़ी का बर्तन. गुस्सा किसी और का और निकालना किसी और पर.
सौत की मूरत भी बुरी (सौत तो चून की भी बुरी). सौत कभी अच्छी हो ही नहीं सकती हमेशा बुरी ही होती है.
सौत मरी हुई भी सताती है. किसी स्त्री की सब से बड़ी शत्रु उस की सौत होती है. जीवित सौत तो परेशान करती ही है, पति के मन में बसीं पूर्व पत्नी की स्मृतियाँ भी नई पत्नी के लिए परेशानी का कारण बनती हैं.
सौतों में खटपट, सास बदनाम. सौतों में आपस में खटपट होती रहती है, सास बेचारी बेकार में बदनाम होती है.
सौदा बिक गया, दूकान रह गई. वैश्या के बुढापे के लिए मजाक में ऐसा कहा जाता है.
सौदा लाभ का, राजा दाब का. सौदा वही अच्छा है जिसमें लाभ हो, राजा वही अच्छा जो रौब दाब रखता हो.
सौदा लीजे देख कर और रोटी खाइए सेंक कर. कोई भी चीज़ देख परख कर ही लेना चाहिए और रोटी को ठीक से सेंक कर ही खाना चाहिए.
सौर की टूटी मेहरारू, कातिक के टूटे बरधा, नहीं संभरते. बच्चा होने के बाद स्त्री की और कार्तिक की कठिन मेहनत के बाद बैलों की ढंग से खिलाई-पिलाई न की जाए तो उनका शरीर हमेशा के लिए दुर्बल हो जाता है.
स्यार आपनी खोह में परे परे सरि जाहिं, सिंह पराए देस में जहं मारे तहं खाए. सियार (कायर व्यक्ति) अपने घर में डर कर घुस के बैठा रहता है और सिंह (वीर पुरुष) दूसरे देश में भी अपना शिकार ढूँढ लेता है.
स्याही गई सफेदी आई, तो भी तुझे समझ ना आई. बाल काले से सफेद हो गए (उम्र बढ़ गई) फिर भी अक्ल नहीं आई.
स्याही बालों की गई, दिल की आरज़ू न गई. बूढ़े हो गए पर मनचलापन नहीं गया.
स्वर्ग की गुलामी से नरक का राज भला (स्वर्ग की मातहती से नरक की दरोगाई भली). गुलामी किसी भी हालत में स्वीकार्य नहीं है.
स्वांग बहुत रात थोड़ी. स्वांग भरना माने नाटक करना. पहले के लोग मनोरंजन के लिए चौराहों पर रात में इस प्रकार के कार्यक्रम करवाते थे. काम बहुत हो और समय बहुत कम तो यह कहावत कही जाती है.
स्वांग भी लाए तो कौड़ी का. बहुत छोटी सोच रखना.
स्वान धुनें जो अंग, अथवा लोटे भूमि पे, तो निज कारज भंग, अति ही असगुन मानिए. जो लोग शगुन अपशगुन विचार करते हैं उनके लिए कहावत है कि यदि आप किसी काम के लिए निकलें और कुत्ता जमीन पर लोटता दिख जाए तो काम नहीं होगा. (घाघ और भड्डरी की कहावतें)
स्वामी होनो सहज है दुर्लभ होनो दास. सच्चे अर्थों में किसी का दास बन कर रहना बहुत कठिन है.
स्वारथ के सब ही सगे, बिन स्वारथ कोउ नाहिं, सेवें पक्षी सरस तरु, निरस भये उड़ जाहिं. जब तक व्यक्ति के पास साधन रहते हैं, सब उससे मित्रता करते हैं. हरे पेड़ पर पक्षी निवास करते हैं, पेड़ सूखने पर उड़ जाते हैं.
स्वारथ न परमारथ. जो व्यक्ति न अपने लाभ के ले काम करे न समाज के लिए. उदासीन व इकलखोर.
स्वार्थ आदमी को अंधा बना देता है. अर्थ स्पष्ट है.
ह
हँड़िया चढ़ा नोन को रोवे. अदूरदर्शी लोगों के लिए यह कहावत कही गई है. हँड़िया को चूल्हे पर चढ़ा कर नमक ढूँढ़ रहे हैं.
हँड़िया पकने तक कुत्तों में गजब एका. जब तक हँड़िया में गोश्त पक रहा होता है तब तक कुत्ते बड़े अनुशासन से प्रतीक्षा करते हैं, हँड़िया खुलते ही उन में छीन झपट मचती है और वे एक दूसरे के जानी दुश्मन बन जाते हैं.
हँड़िया में भात नहीं, चलो समधी जीमने. साधन न होते हुए भी बड़प्पन दिखाना.
हँड़िया है सरमदार, छह महीना में पके दार, पाहुना है गमखोर, बरस भर न छोड़े दोर. किसी फालतू मेहमान से घर की मालकिन ने कहा, भोजन आपको बहुत विलंब से मिलेगा, मेरी हाँड़ी बहुत शर्मीली है. उसमें छह महीने में दाल पकती है. इस पर मेहमान ने उत्तर दिया, मैं भी बड़ा गमखोर हूँ. एक वर्ष तक तुम्हारा घर नहीं छोडूंगा.
हँसता ठाकुर खांसता चोर, इनका समझो आया छोर. ठाकुर को अपने मातहतों से काम लेना होता है इसलिए उसका रोबीला और सख्त होना जरुरी है, हंसने वाला ठाकुर किसी काम का नहीं. इसी प्रकार चोर को खांसी हो जाए तो वह पकड़ जाएगा.
हँसती हँसती कूएँ में जा पड़ी. रंग में भंग होना. हँसी मजाक के बीच में कोई हादसा हो जाना.
हँसते हँसते घर बसता है. 1. घर के लोग खुशमिजाज़ हों तो घर बस जाता है और झगड़ालू या शक्की हों तो घर उजड़ जाता है. 2. लड़का लड़की साथ बैठ कर हंसें बोलें तो उन में प्रेम हो जाता है.
हँसना ठाकुर, खंसना चोर, अनपढ़ कायस्थ, कुल का बोर. ऊपर वाली कहावत की भांति. इसमें यह और जोड़ दिया गया है कि कायस्थ अगर पढ़ा लिखा नहीं होगा तो बेकार है.
हँसिए दूर पड़ोसी नांही. दूर बैठे व्यक्ति की कितनी भी हंसी उड़ा लें पड़ोसी की हँसी नहीं उड़ानी चाहिए (सामने सामने किसी के ऊपर हँसने से दुश्मनी हो जाती है).
हँसी की खसी हो जाती है. हँसी का परिणाम अकसर झगड़ा होता है. इस आशय की इंग्लिश में एक कहावत है – Better lose a jest, than a friend.
हँसी तो फँसी. लडकियों को यह कह कर सावधान किया गया है.
हँसी-हँसी में हसनगढ़ बस ग्या. (हरयाणवी कहावत) खुश रह कर काम करो तो बड़े बड़े काम हो जाते हैं.
हँसुआ के ब्याह में खुरपी के गीत. बेमेल काम. ब्याह तो हंसुआ (हँसिया) का हो रहा है और गीत खुरपी के गाए जा रहे हैं.
हँसे फँसे, मुस्कुराए जेब में आए. अजनबियों को देख कर ज्यादा मुस्कुराना नहीं चाहिए, आप किसी के जाल में फंस सकते हैं.
हँसे रोवे गावे गीत, उस तिरिया की नहिं परतीत. जो स्त्री थोड़े ही समय में कभी हंसे, कभी रोए और कभी गीत गाने लगे, उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता.
हंते को हनिये, पाप दोष न गनिये. हत्यारे की हत्या करने में पाप नहीं लगता.
हंस की चाल टिटहरी चली, टांग उठा के भू में पड़ी. बिना सोचे समझे किसी की नकल करने से नुकसान उठाना पड़ता है.
हंस के मंत्री कौआ. जहाँ राजा अच्छा हो पर मंत्री धूर्त हों, हाकिम अच्छा हो पर उसके मातहत बदमाश हों.
हंस बरन बैठक भई, सुआ बरन किलकोट, सिंह बरन गर्जन भई, गधा बरन भई लोट. (बुन्देलखंडी कहावत). बरन – के समान. कहावत में शराबियों की महफ़िल का वर्णन है- शुरुआत में हंसों की तरह शालीनता से बैठते हैं, फिर तोतों की तरह कोलाहल करते हैं, फिर और नशा चढने पर शेरों की तरह लड़ते भिड़ते हैं और अंत में गधों के समान लोट जाते हैं.
हंसा थे सो उड़ गए, कागा भए दीवान. योग्य व्यक्ति के जाने के बाद यदि मूर्ख और धूर्त व्यक्ति को पद मिल जाए तो. सन्दर्भ कथा – एक गरीब ब्राह्मण के घर में इतनी तंगी थी कि भूख से मरने की नौबत आ गई. उसने सोचा कि भूख से मरने से बेहतर है कि किसी जंगली जानवर द्वारा खा लिया जाऊं. यह सोच कर वह सिंह की मांद में गया. सिंह ने देखते ही उसे पकड़ लिया. उस समय सिंह का मंत्री एक हंस था. उसने ब्राह्मण देवता के प्राण बचाने के उद्देश्य से सिंह को समझाया कि ये आपके पुरोहित हैं और आप इनके जजमान, इनको मारना ठीक नहीं. सिंह ने हंस की बात मान ली और उस की मांद में मृत मनुष्यों के जो धन व गहने इत्यादि पड़े थे उन्हें भी ले जाने दिया.
ब्राह्मण के कुछ दिन उस धन से अच्छी तरह कट गए. उस के बाद ब्राह्मण फिर उसी आशा में सिंह की मांद में पहुंचा. उस समय एक कौवा सिंह का मंत्री हो गया था. उसने सिंह को ब्राह्मण को मार डालने की सलाह दी. तब सिंह ने हंस की बात याद करके ऊपर की पंक्तियां ब्राह्मण से कहीं.
हंसिया रे तू टेढ़ा काहे, अपने मतलब से. हंसिए से किसी ने पूछा कि तू टेढ़ा क्यों है. उसने कहा टेढ़ा हुए बिना मेरा काम कहाँ चलेगा.
हंसों को सरवर बहुत, सरवर हंस अनेक. यह सही है कि दोनों को एक दूसरे की आवश्यकता है पर उन के पास विकल्प भी हैं.
हग न सकें पेट को पीटें. अपनी अयोग्यता का दोष किसी और को देना.
हगन की बेला गाँठ संभाले. किसी को जोर से शौच लगी हो और पजामे के नाड़े में कस कर गाँठ लगी हो तो बड़ी परेशानी हो जाती है. परेशानी खड़ी होने से पहले ही उस के निस्तारण का प्रबंध करना चाहिए.
हगासा और उमगासा रोके नहीं रुकते. जिसे जोर से शौच लग रही हो और जो किसी काम को करने की ठान ले, ये दोनों रुकते नहीं हैं.
हगासा लड़का नथनों से पहचाना जाता है. बहुत से छोटे बच्चे शौच लगने पर नथुने फुलाते हैं. अनुभवी लोग बहुत सी बातें शारीरिक भाषा (body language) से पहचानते हैं.
हज का हज, वनिज का वनिज. एक सयाना व्यक्ति हज करने गया. वहाँ से कुछ सामान ले आया जिसे उसने यहाँ आ कर बेच लिया और मुनाफ़ा कमा लिया. एक पन्थ दो काज.
हजार आफतें हैं एक दिल लगाने में. किसी से प्रेम करने में बहुत सी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है.
हजार जूतियाँ लगीं और इज्ज़त न गई. बहुत बेशर्म आदमी के लिए.
हजार झूठ बोलो पर किसी की शादी करा दो. किसी की शादी कराना बहुत पुण्य का काम माना गया है.
हजार बरस खड़ा, हजार बरस पड़ा और हजार बरस में सड़ा. सखुआ (साल) के पेड़ के विषय में कहा जाता है कि वह हजार वर्ष तक खड़ा रहता है, हजार वर्ष बिना क्षति के धरती पर पड़ा रह सकता है और फिर हजार वर्ष में गल कर समाप्त होता है. इसकी लकड़ी खिड़की दरवाजे आदि बनाने के काम आती है.
हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले. जब व्यक्ति की बहुत सारी इच्छाएँ हों और कोई भी पूरी होने की संभावना न हो.
हजारों छेनी सह के महादेव बनत. जब किसी पत्थर को हजारों बार छेनी से तराशा जाता है तो किसी प्रतिमा का जन्म होता है और वह पूजने के योग्य बनती है.
हज्जाम के आगे सबका सिर झुकता है. मौके पर सभी को सर झुकाना पड़ता है.
हड़बड़ का काम गड़बड़. जल्दबाजी के काम में गड़बड़ होने की संभावना बहुत होती है.
हड़बड़ी ब्याह, कनपटी सिन्दूर. जल्दबाजी का काम बुरा होता है. हड़बड़ी में शादी कर रहे हैं तो सिंदूर मांग में लगाने की बजाए कनपटी पर लगा रहे हैं. रूपांतर – बिना मन के बिआह कनपट्ट्टी पर सेनुर.
हड्डी खाना आसान पर पचाना मुश्किल. गलत काम करना आसान है पर उससे होने वाले खतरे झेलना मुश्किल है. रिश्वतें ले कर काला धन कमाना आसान है पर उसे सफेद करना मुश्किल है.
हड्डी मिलने पर कुत्ते का कोई दोस्त नहीं. कुत्ते से आप कितनी भी दोस्ती करो, हड्डी मिलते ही वह सब भूल कर उस की तरफ लपकेगा. ओछी प्रवृत्ति के लोग अपने स्वार्थ के आगे कोई दोस्ती या रिश्तेदारी नहीं देखते हैं.
हत्यारी कुतिया, ग्यारस उपासी. ग्यारस – एकादशी. हत्यारी कुतिया एकादशी का व्रत कर रही है. कोई दुर्जन यदि धर्मात्मा बनने का ढोंग करे तो.
हथकड़ी तो सोने की भी बुरी. कैदखाने में कितने भी आराम हों कैद बुरी ही होती है.
हम करें तो कायदा. जो हम कर रहे हैं वही सही है.
हम करें तो पाप, कृष्ण करें तो लीला. बहुत से काम ऐसे हैं जो महान लोग करते हैं तो उनकी महानता मानी जाती है और आम आदमी करे तो अपराध माना जाता है.
हम क्यूँ कहें राजा के बेटे ने बछिया मारी है. दूसरे पर दोषारोपण भी करना यह भी कहना कि हम तो ऐसा नहीं कह रहे हैं. वैसे भी राजा के बेटे का सीधे सीधे दोष बताना खतरे से खाली नहीं है.
हम गए धान से तो तुम गए पुआल से. पुआल (पुवाल, प्याल) – धान के पौधे का अवशिष्ट जो जानवरों के खाने के और जाड़ों में बिछाने के काम आता है. धान की फसल मारी जाती है तो सब का नुकसान होता है.
हम चरावें दिल्ली, हमें चरावे गाँव की बिल्ली. हम इतने होशियार हैं कि दिल्ली वालों को उल्लू बना लेते हैं और ये गाँव की छोरी हमें बेवकूफ बना रही है.
हम तो डूबे हैं सनम तुमको भी ले डूबेंगे. जो अपने डूबने के साथ दूसरों को भी डुबो देता हो.
हम ने कौन तुम्हारे हाथ के काले तिल खाये. हम तुम्हारे वश में नहीं आने वाले. लोक विश्वास है कि किसी मनुष्य या ढोर को काले तिल खिलाने से वह सदैव के लिए वश में हो जाता है.
हम बैठाया बूढ़ा जान, बुढ़ऊ सो गए चादर तान. हम ने बूढ़ा समझ कर दयावश बैठा लिया तो उसका गलत फायदा उठा कर वह यहीं सो गया. उंगली पकड़ाई पाहुंचा पकड़ लिया.
हम भी खेलेंगे, नहीं तो खेल बिगाड़ेंगे. वैसे तो यह बच्चों की कहावत है लेकिन दुष्ट प्रवृत्ति के बड़े लोगों पर भी सही बैठती है.
हम रोटी नहीं खाते, रोटी हमको खाती है. परिवार के लिए रोटी कमाने की चिंता इंसान को खा जाती है.
हमपेशा सदा बैरी. एक ही पेशे के लोग सदैव एक दूसरे की काट करते हैं.
हमाम में सभी नंगे. अरब देशों में पानी की बहुत कमी होने के कारण सामूहिक स्नानघरों (हमाम) का रिवाज़ था. जापान में भी ऐसे हमाम हुआ करते थे. कहावत को इस प्रकार प्रयोग करते हैं कि एक ही पेशे में काम करने वाले लोग या एक ही संगठन के लोग एक दूसरे की पोलें जानते हैं और यह जानते हैं कि ऊपर से संभ्रांत दिखने वाले लोग अंदर से कितने भ्रष्ट हैं.
हमारी बिल्ली हमीं से म्याऊँ. जब आपकी छत्रछाया में पलने वाला कोई व्यक्ति आपको ही आंखें दिखाएं तो यह कहावत कही जाती है. रूपान्तर – मेरी खिलाई हुई लोमड़ी और मुझसे ही चालबाजी.
हमारे घर आओगे क्या लाओगे, तुम्हारे घर आएंगे क्या खिलाओगे. केवल अपना स्वार्थ देखना.
हमारे साथ रहोगे तो मजे में रहोगे. आपसी हंसी मजाक में बोली जाने वाली कहावत. सन्दर्भ कथा – एक जाट शेखचिल्ली के साथ कहीं जा रहा था. रास्ते में सड़क पर एक मूंगफली पड़ी दिखी. शेखचिल्ली ने जाट से कहा, इसे उठाओ, जाट ने उठा लिया, फिर कहा अब छीलो, जाट ने छील दिया, फिर बोला अब खा लो. जाट ने मूंगफली खा ली और बोला अब क्या? शेखचिल्ली बोला अब क्या, हमारे साथ रहोगे तो मजे में रहोगे. कोई बहुत छोटा सा काम कर के किसी पर एहसान जता रहा हो तो मजाक में यह कहावत कही जाती है.
हमीं से आग मांग लाए, नाम रखा वसुन्धर. यहाँ वसुंधर शब्द संभवत: वैश्वानर का अपभ्रंश है जिसका अर्थ दिव्य अग्नि है. हमारे घर से आग मांग कर वैश्वानर नाम रख लिया है.
हमेशा बचाएं, समय, पैसा, ईमान. अर्थ स्पष्ट है.
हम्माम की लुंगी, जिसने चाहा बाँध ली. सामूहिक उपयोग की वस्तु. वैश्या के लिए भी कहा गया है.
हर आदमी बुद्धिमान है, जब तक वह बोलता नहीं. जब तक कोई आदमी बोलता नहीं है, उस के विषय में अनुमान नहीं लगाया जा सकता कि वह कितना बुद्धिमान है. कहावत के द्वारा यह सन्देश दिया गया है कि व्यक्ति को कम बोलना चाहिए और तोल कर बोलना चाहिए. यदि आप अधिक बोलते हैं तो इस बात की संभावना अधिक है कि आप बेबकूफ सिद्ध हो जाएं. इंग्लिश में कहावत है – Better be silent and pretend ignorance, than speaking out and proving it.
हर आदमी सोचता है कि दुनिया उसके बिना नहीं चल सकती. हर व्यक्ति अपने को अति महत्वपूर्ण समझता है.
हर एक के कान में शैतान ने फूंक मार दी, है तेरे बराबर कोई नहीं. शैतान के बारे में यह माना जाता है कि वह आदमी के दिमाग में गलत बातें भर कर लड़ाई झगड़े कराता है.
हर चिड़िया को अपना घोंसला प्यारा. हर जीव जन्तु को अपना घर प्यारा होता है.
हर दे हरवाहा दे और गाड़ी हांके के डंडा दे. (भोजपुरी कहावत) हल, हलवाहा और डंडा सब दीजिए. जो सब कुछ दूसरे से ही अपेक्षा करते हैं उनके लिए कहा गया है.
हर निवाले बिस्मिल्ला. उन लोगों के लिए जो हमेशा खाने को तैयार रहें, पर काम कुछ न करें.
हर बूँद मोती नहीं बनती. कोई कोई लोग ही उत्तम गुण विकसित कर पाते हैं.
हर मरीज ठीक होने के बाद डॉक्टर हो जाता है. इलाज से ठीक हुए लोग अपने आप को डॉक्टर से भी अधिक होशियार समझने लगते हैं.
हर रात का एक सवेरा. संकट कितना भी बड़ा हो, कभी न कभी समाप्त होता है.
हर राह की दो दिशाएँ. किसी भी रास्ते पर चलो, अच्छे और बुरे विकल्प हर जगह हैं.
हर शाख पे उल्लू बैठा है, अंजामे गुलिस्तां क्या होगा. यह उर्दू के एक प्रसिद्ध शेर की दूसरी लाइन है. (पहली लाइन है – बर्बाद गुलिस्ताँ करने को बस एक ही उल्लू काफी था). चाहे कोई शेर, दोहा, चौपाई, श्लोक या सुभाषित हो, लोगों की जबान पर चढ़ जाए तो कहावत बन जाता है. किसी सरकारी दफ्तर में या राजनैतिक दल में सब एक से बढ़ कर एक हों तो यह कहावत कही जाती है.
हर सीप में मोती नहीं मिलता. सभी व्यक्तियों में उत्तम गुण नहीं होते और हर घर में गुणवान लोग नहीं मिलते.
हर हाल में माला, फूलों की या जूतों की. जीत कर आयेंगे तो लोग फूल मालाओं से स्वागत करेंगे, हार कर आयेंगे तो जूतों की माला पहनाएंगे.
हरजोता भूखा मरे, रांड मलीदा खायं. गरीब मेहनतकश हल जोतने वाला भूखा मर रहा है और चरित्रहीन स्त्रियाँ बढ़िया माल खा रही हैं. रूपान्तर – हर हाँकेँ भूखे मरे, बाबा लड्डू खायँ.
हरफनमौला, हरफन अधूरा. जो हर काम में टांग अड़ाता हो और कोई काम ठीक से न कर पाता हो उस के लिए.
हराम का खाना और शलजम. हराम में खाने को मिल रहा हो तो शलजम क्यों खाएंगे.
हराम की कमाई हराम में गँवाई. किसी का गलत तरीकों से कमाया गया धन बर्बाद हो जाए तो दूसरे लोग मजा लेने के लिए ऐसे बोलते हैं. (हराम का माल हराम में जाता है). इंग्लिश में कहते हैं – ill gotten, ill spent.
हराम की कमाई, धरमखाते में लगाईं. कुछ लोग गलत तरीकों से हासिल किए गए धन को धार्मिक कार्यों में लगा कर धर्मात्मा होने का ढोंग करते हैं.
हराम चालीस घर ले के डूबता है. जो हराम की कमाई करता है वह खुद तो डूबता ही है, साथ में और बहुत से लोगों को भी ले डूबता है जो जाने अनजाने उस कमाई में साझेदार होते हैं.
हरामजादे से खुदा भी डरता है. बेशर्म आदमी से भगवान भी डरते हैं. रूपान्तर – नंग बड़े परमेश्वर से.
हरि अनंत हरिकथा अनंता (कहहिं सुनहिं एहि विधि सब संता). ईश्वर अनंत है और ईश्वर की कथा का भी कोई आदि व अंत नहीं है.
हरि बड़े कि हिरण बड़ा, शगुन बड़ा कि श्याम. किसी काम के लिए जाओ तो हिरन का दिखना बदशगुनी माना जाता है. हिरन को देख कर अर्जुन युद्ध के लिए जाने को मना करने लगा तो भगवान कृष्ण ने कहा कि मैं तुम्हारा रथ हांक रहा हूँ तो अपशकुन तुम्हारा क्या बिगाड़ लेगा.
हरि रूठे गुरु देत मिलाय, गुरु रूठे हरि सकत न पाय. भगवान रुष्ट हो जाएँ तो गुरु उनसे मिला सकते हैं पर गुरु ही नाराज हो जाएँ तो कोई सहायता नहीं कर सकता. इसलिए गुरु को नाराज नहीं करना चाहिए.
हरि सेवा सोलह बरस, गुरु सेवा पल चार, तो भी नहीं बराबरी, वेदों किया बिचार. भगवान की भक्ति सोलह वर्ष करने में जो पुण्य मिलता है उससे ज्यादा पुण्य चार पल गुरु की सेवा करने से मिलता है.
हरी करी सो खरी. ईश्वर ने जो किया वह अच्छा ही किया है.
हरी हरी घास पे गधे चर रहे हैं, आता जाता कुछ नहीं अन्ताक्षरी कर रहे हैं. अन्ताक्षरी जैसे फ़ालतू और समय नष्ट करने वाले काम में लगे लोगों पर व्यंग्य.
हरे पेड़ तले सब बैठते हैं. समृद्ध और परोपकारी व्यक्ति की छत्र छाया में सब रहना चाहते हैं.
हरे राम तो देवे कौन, देवे राम तो हरे कौन. राम छीने तो कौन दे सकता है, राम दे तो छीन कौन सकता है.
हर्दी न छोड़े ज़र्दी, बुलबुल न छोड़े रंग. व्यक्ति का स्वभाव नहीं बदलता. हर्दी – हल्दी, जर्दी – पीला रंग.
हर्र बहेड़ा आंवला, घी शक्कर संग खाए, हाथी दाबे कांख में, साठ कोस ले जाए. लोक विश्वास है कि हरड़, बहेड़ा और आंवले को घी व चीनी के साथ खाने से बहुत ताकत आती है.
हर्र लगे न फिटकरी रंग चोखा आय. बिना कुछ लागत लगे बढ़िया काम हो जाए तो.
हल का बैल खल खाए, बकरी अचार खाए. काम करने वालों को रूखा सूखा और बेकार लोगों को दावत.
हल चलाए बैल और हांफे कुत्ता. परिश्रम कोई करे पर दिखावा कोई और, तो यह कहावत कही जाती है.
हल दादा के, बैल दादा के, टिकटिक करने में क्या लगे. दूसरों की वस्तु प्रयोग करने में गाँठ का क्या जाता है.
हल हांकें और ढोर चरावें, ब्यारी न करें तो मरहि न जावें. ब्यारी–रात का भोजन. ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकतर लोग दो बार भोजन करते हैं, अधिक शारीरिक श्रम करने वालों के लिए तीसरी बार भोजन करना आवश्यक है.
हलक का न तालू का, ये माल मियां लालू का. नंबर दो का धन.
हलके ही छलकें. जो हलके अर्थात कम भरे हुए पात्र होते हैं वे ही छलकते हैं. कम बुद्धि लोग अधिक बोलते हैं.
हलवा खाने को मुंह चाहिए. अगर आप बढ़िया भोजन करना चाहते हों, बढ़िया वस्त्राभूषण पहनना चाहते हों तो अपने को उसके लायक बनाएं.
हलवा पूड़ी नौकर खाए, पोता फेरने बीबी जाए. नौकर को अनावश्यक तवज्जो देना और घर वालों से काम करवाना.
हलवाई का बिलौटा (हलवाई की बिलइया हो रहे). मुफ्त का माल खा कर मुस्टंडा होने वाला व्यक्ति.
हलवाई की जाई, सोवे साथ कसाई. जाई – बेटी. हलवाई की बेटी कसाई के साथ सोए तो यह घोर अनैतिक काम माना जाएगा.
हलाल में हरकत, हराम में बरकत. आज के समय में ईमानदारी से काम करने में बहुत सी परेशानियाँ हैं और नुकसान भी होता है जबकि बेईमानी करने में नफा ही नफा है.
हलुवा भी बादी करे, देख दैव का खेल. ईश्वर का यह कैसा खेल है कि गरीब तो अच्छी चीजें इसलिए नहीं खा सकता क्योंकि उसे खाने को नहीं मिलतीं और धनी लोग सब कुछ होते हुए भी अपच के कारण नहीं खा पाते.
हल्का सवार घोड़ा मारे दुलत्ती. कमजोर व्यक्तियों का सम्मान कोई नहीं करता.
हाँई को मरे, नाँई को जिये. किसी आदमी से ‘हाँ’ कह देने पर बाद में काम न हो पाए तो वह दुख से मरता है और कहने वाला शरम से मरता है. परन्तु पहले से ही किसी को ‘ना’ कर दी जाय तो कोई हानि नहीं होती.
हाँके से टट्टू चले, सूँघे इतर बसाए, पूछे बेटा जानिये, तीनों दे बहाय. जो टट्टू केवल हांकने से चले, जो इत्र पास ला कर सूंघने से महसूस हो, जिस बेटे के पिता का नाम पूछना पड़े (उस के रूप रंग और गुणों से न मालूम पड़े) ये तीनों ही बहा देने योग्य हैं.
हाँजी हाँजी सबकी कीजै, करिए अपने मन की. बेशक सब की हाँ में हाँ मिलाइए पर कीजिए अपने मन की.
हांक लगाने से कुआं नहीं खुदता. केवल बातें करने से बड़े काम नहीं होते, उसके लिए परिश्रम करना पड़ता है.
हांके दस गज फाड़ें एक गज. जो लोग हांकते बहुत हैं और काम बहुत कम करते हैं.
हांडी जैसा ठीकरा, बाप जैसा डीकरा. मिट्टी के घड़े का टुकड़ा (ठीकरा) भी घड़े की तरह का ही होता है, इसी प्रकार बेटा भी पिता जैसा ही होता है.
हांडी न डोई, घर घर हमारी रसोई. मांग कर खाने वालों के लिए यह कहावत कही जाती है.
हांडी में होगा सो डोई में आप ही आएगा. डोई माने करछी. हांडी में क्या पक रहा है यह जानने के लिए अधिक बेचैन मत होइए, वह करछी में आ जाएगा.
हांसी बैरी नार की, खांसी बैरी चोर की. हँसी स्त्री को ले डूबती है और खांसी चोर को. (हरयाणवी कहावत – चोर नै फंसावै खांसी और छोरी नै फंसावै हांसी).
हाकिम की अगाडी और घोड़े की पिछाडी से बचना चाहिए. हाकिम के सामने खड़े रहोगे तो कुछ न कुछ काम बताता रहेगा. एक तो काम में पिसना पड़ेगा, ऊपर से अगर काम कुछ गड़बड़ हो गया तो नाराजगी अलग. इसलिए उसके सामने ही मत पड़ो. घोड़े के पीछे नहीं खड़ा होना चाहिए क्योंकि उस में दुलत्ती खाने का डर है. रूपान्तर – मर्द की अगाड़ी और घोड़े की पिछाड़ी से बचना चाहिए. कुछ लोग इस को और बढ़ा कर बोलते हैं – हाकिम की अगाड़ी, घोड़े की पिछाड़ी, छिनरे की छाया, सबसे बचो. छिनरा – चरित्रहीन व्यक्ति.
हाकिम के आँख नहीं होतीं, कान होते हैं. हाकिम केवल सुनी हुई बात मान लेते हैं, खुद नहीं कुछ देखते हैं.
हाकिम के तीन, अधीनों के नौ. रिश्वत के तीन हिस्से हाकिम तक पहुँचते हैं, नौ भाग नीचे के लोग खा जाते हैं.
हाकिम के मूंड में न्याय. हाकिम जो कह दें वही सब को मानना पड़ता है.
हाकिम गरीब ताकी धाक न परत है. हाकिम गरीब हो तो लोग उसका रुआब नहीं मानते.
हाकिम चून का भी बुरा. कुछ लोग मानते हैं कि हाकिम केवल बुरा ही होता है. वह जनता और मातहतों का अच्छा कभी सोच भी नहीं सकता.
हाकिम टले, हुकुम न टले. हाकिम चला भी जाए तो भी उसका हुकुम बरकरार रहता है.
हाकिम वैद्य रसोइया, नट वैश्या और भट, इनसे कपट न कीजिए, इनका रचा कपट. इन सब लोगों से कपट नहीं करना चाहिए क्योंकि ये हर दांवपेंच जानते हैं.
हाकिम से दूर, चिंता से दूर. हाकिम से जितना दूर रहोगे चिंता से उतना ही दूर रहोगे.
हाकिम से बैर कैसा. हाकिम से वैर नहीं करना चाहिए. अगर वह बुरा भी है तो भी उसको निभाने का रास्ता निकालना चाहिए.
हाकिम हारे, मुंह पर मारे. 1. हाकिम अगर कोई शर्त इत्यादि हार जाए तो भी जबरदस्ती अपनी बात मनवाना चाहता है. 2. हाकिम यदि अपने से बड़े हाकिम से डांट खाता है तो अधीनस्थों पर गुस्सा निकालता है.
हाकिमी गरम की, दुकनदारी नरम की, दलाली बेसरम की, सराफी भरम की, दौलत करम की और बात मरम की. हुकूमत करनी को तो कड़क स्वभाव होना जरूरी है और व्यापार करना हो तो बोली नरम होनी चाहिए, दलाली करनी हो तो बेशरम होना जरूरी है, सर्राफ को अपनी हवा बना कर रखना जरूरी है, दौलत कर्म और भाग्य से होती है और बात अर्थपूर्ण ही करना चाहिए. रूपान्तर – हाकिमी गरमाई की, हाट नरमाई की.
हाजिर पावे, गाफिल रोवे. हाजिर – जो मौजूद हो, गाफिल – जो अपने आस पास ध्यान न दे. जो समय पर मौजूद है और सतर्क है वह तो अपना हिस्सा पा जाता है और जो चूक गया वह फिर रोता है.
हाजिर में हुज्जत क्या. जो सामान सामने मौजूद है उस में क्या बहस करना.
हाजिर में हुज्जत नहीं, गैर में तकरार नहीं. जो मेरे पास है वह मैं फ़ौरन दे सकता हूँ, जो मेरे पास नहीं है उस का मैं कोई वादा नहीं करता.
हाजिर सो वजीर. जो व्यक्ति मौके पर उपस्थित हो उसी की पौ बारह होती है.
हाजिर सो ही हथियार. जो हथियार आवश्यकता के समय अपने पास उपलब्ध हो वही हथियार माना जाता है.
हाट गाई, बाट गाई, सभा बीच न गाई. हाट–बाजार, बाट–रास्ता. जब कोई व्यक्ति अपने मन से कोई काम कहीं भी कर लेता है लेकिन जब विशेष समय करने को कहा जाय तो नहीं करता तो ये कहावत कही जाती है.
हाट जा बाजार जा, चाहे ला कर चोरी, कमाने का बूता नहीं, तो काहे ब्याही गोरी. निठल्ले पति से तंग आई पत्नी का कथन.
हाट भली न सीर की, संगत भली न वीर की. हाट – दुकान, सीर – साझा. साझे की दुकान हमेशा घाटा देती है और वीर पुरुष के साथ रहने पर जान जोखिम में डालनी पडती है.
हाड़ रहेगा तो मांस बहुतेरा हो जाएगा. जान बची रहेगी तो शरीर तो बाद में स्वस्थ हो ही जाएगा. व्यापार बचा रहेगा तो बाद में कमाई बहुतेरी हो जाएगी.
हातिम की गोर (कब्र) पर लात मारी. गोर – कब्र. हातिम ताई यमन का एक प्रसिद्ध राजा हुआ है जोकि शूरवीर और दानी था. उसकी कब्र पर वही लात मारेगा जो मूर्ख और अहंकारी होगा.
हाथ आई बिल्ली छोड़ के म्याऊं म्याऊँ करना. हाथ आया अवसर गंवा कर फिर पछताना.
हाथ और हथियार, पेट के आधार. कामगार लोगों के हाथ और औजार ही उनका पेट पालने के साधन हैं.
हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े लिखे को फ़ारसी क्या. बात उस समय की है जब दर्पण (आइने) बहुत महंगे और बहुत कम होते थे. एक छोटे से दर्पण को आरसी कहा जाता था. हाथ में पहनने वाले कंगन में आरसी से भी छोटे शीशे जड़े जाते थे. उस समय हिंदी और उर्दू बोलचाल की भाषा थी और ज्यादा पढ़े लिखे लोग फारसी पढ़ा करते थे. कहावत का अर्थ है जिसके हाथ में कंगन हो उसके लिए आरसी क्या बड़ी चीज है और जो पढ़ा लिखा है उसके लिए फारसी कौन बड़ी चीज है. कुछ लोग इस का अर्थ इस प्रकार करते हैं कि हाथ में कंगन है यह तो सामने ही दिख रहा है, इसको देखने के लिए आरसी की क्या जरूरत.
हाथ करे सो हाथ सोहे पाँव करे सो पाँव. हाथ का काम हाथ को शोभा देता है और पाँव का काम पाँव को. इसी प्रकार समाज में जो जिस का काम है वही करे तो संतुलन बना रहता है.
हाथ कसीदा, आसमान दीदा. जो काम हाथ में है उस पर ध्यान न दे कर फालतू चीजों पर ध्यान केंद्रित करना.
हाथ का चूहा, बिल में बैठा. हाथ आई चीज हाथ से निकल जाए तो.
हाथ का दिया ही साथ जाता है. दिया हुआ दान (पुण्य) ही परलोक में साथ जाता है.
हाथ की लकीरें, मिटाए नहीं मिटतीं. कोई अपने भाग्य को नहीं बदल सकता.
हाथ कौड़ी, न बाज़ार लेखा. पास में कुछ भी नहीं और बाज़ार में भी किसी पर रकम उधार नहीं है. (तो व्यापार किसके बूते करें).
हाथ न पहुंचे, थू कौड़ी. जो चीज़ हमारी पहुँच से बाहर है उस पर थू. रूपान्तर – अंगूर खट्टे हैं.
हाथ पर दही नहीं जमता. जो काम सम्भव नहीं है उसके लिए कहा गया है. (हथेली पर सरसों नहीं जमती).
हाथ पसारने से पैर पसारना अच्छा. हाथ पसारना – माँगना, पैर पसारने से यहाँ अर्थ है मृत्यु होना. किसी से कुछ माँगना पड़े इससे तो मौत अच्छी.
हाथ पाँव की काहिली, मुँह में मूंछें जायं. आलस के मारे अपने शरीर तक की देखभाल ठीक से न करना.
हाथ पाँव सुटुकिया, पेट मटुकिया. दुबला-पतला आदमी जिसका पेट बड़ा हो, अथवा जो बहुत खाता हो.
हाथ बेचा है कोई जात नहीं बेची. यदि हम किसी के यहाँ नौकरी कर रहे हैं तो इस का मतलब यह नहीं है कि हमारा दीन, ईमान, इज्ज़त कुछ भी नहीं है.
हाथ में न गात में, मैं धनवंती जात में. गात – शरीर. ऐसी स्त्री जिसके पास न पैसा है, न देखने में आभिजात्य वर्ग की लगती है, मगर कहती है कि जात मेरी धनवानों की है. बड़े आदमियों में मेरी गिनती है.
हाथ में पैसा रहे, तभी बुद्धि काम करे. (भोजपुरी कहावत) हाथ में पैसा रहने पर ही बुद्धि काम करती है.
हाथ में माला और पेट में कुदाला. ईश्वर भक्ति का ढोंग करने वाले कपटी लोगों के लिए.
हाथ में लिया कांसा, तो पेट का क्या सांसा. भीख मांगने का तय कर लिया तो पेट तो भर ही जाएगा.
हाथ सुमरनी बगल कतरनी, पढ़े भागवत गीता रे, औरों को तो ज्ञान बतावे, आप रहे खुद रीता रे. ढोंगी साधु के लिए. सुमरनी – जपने वाली माला, कतरनी – कैंची, रीता – खाली.
हाथ से मारे, भात से न मारे. किसी कर्मचारी को उसकी गलती के लिए प्रताड़ित करना हो तो हाथ से मार लो, उसकी जीविका (रोटी) मत छीनो. रूपान्तर – पीठ की मार मारे पेट की न मारे.
हाथिन के साथे गन्ना खाये. हाथी के साथ खेत में घुसकर कमजोर जानवर भी गन्ने खा जाते हैं. इसी प्रकार नेताओं और माफियाओं की शह पर कमजोर लोग भी अपराध करने से नहीं चूकते.
हाथियों से हल नहीं चलवाए जाते. हर मनुष्य, पशु और वस्तु की उपयोगिता अलग अलग होती है. हाथी की सवारी की जा सकती है, हाथी युद्ध में काम आ सकता है पर हल नहीं चला सकता.
हाथी अपनी हथियाई पे आ जाए तो आदमी भुनगा है. अति बलवान व्यक्ति अगर अपना बल दिखाने लगे तो छोटे लोगों को बर्बाद कर सकता है.
हाथी अपने सिर पर ही धूल डालता है. हर कोई अपना स्वार्थ ही देखता है.
हाथी आया हाथी आया, हाथी ने किया भौं. किसी के आने से पहले बहुत महिमामंडन किया जा रहा हो और जब वह आए तो मालूम हो कि यह तो कुछ भी नहीं है तो यह कहावत कही जाती है.
हाथी का जग साथी, कीड़ी पायन पीड़ी. हाथी पर बैठना सब चाहते हैं और चींटी को पैरों से कुचल देते हैं. बड़े के सब यार हैं.
हाथी का दांत, कुत्ते की पूँछ और चुगलखोर की जीभ सदा टेढ़ी रहती है. चुगलखोर कभी सीधी बात नहीं बोलता, हमेशा कुछ न कुछ हेर फेर कर के लोगों की निंदा करता रहता है.
हाथी का दांत, घोड़े की लात और मूंजी का चंगुल, इनसे बचना चाहिए. मूंजी–जालिम और कंजूस. अर्थ स्पष्ट है.
हाथी का पीर अंकुश. हाथी जैसे बड़े जानवर को अंकुश जैसी छोटी सी चीज़ से नियंत्रित किया जा सकता है.
हाथी का बोझ हाथी ही उठा सकता है. बड़े आदमी का बोझ बड़ा आदमी ही उठा सकता है.
हाथी कितना भी घटे भैंसा थोड़े ही हो जाएगा. किसी बहुत धनी व्यक्ति को अगर व्यापार में नुकसान हो जाए तो ऐसा कहा जाता है.
हाथी की खा जो पेट तो भरे, गधे की मत खा जो पोंकता फिरे. रिश्वत ही खानी है तो बड़े मामले में खाओ जिस से पेट तो भरे. रूपान्तर – गू खाए तो हाथी का जो पेट तो भरे, बकरी की मींगनी क्या खाए जो दाढ़ भी न भरे.
हाथी की झूल गधे पर नहीं लादी जाती. जिस वस्तु का जहाँ उपयोग हो वहीं करना चाहिए.
हाथी की टक्कर हाथी ही संभाले. बड़े की टक्कर बड़ा ही सम्भाल सकता है.
हाथी की पीठ पर रूई का फाहा. किसी हृष्ट पुष्ट व्यक्ति को बहुत हल्का काम बताया जाए तो.
हाथी के दाँत, मरद की बात. जिस प्रकार हाथी के खाने के दांत अंदर होते हैं और दिखाने के दांत बाहर, उसी प्रकार मर्द मन में कुछ और रखते हैं और ऊपर से बोलते कुछ और हैं.
हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और. जो लोग ईमानदारी या धार्मिकता का दिखावा तो बहुत करते हैं पर उनकी असलियत कुछ और होती है, उनके लिए यह कहावत प्रयोग की जाती है.
हाथी के पाँव में सबका पाँव. यदि हाथी के पांव का निशान बना हो तो सारे जानवरों के पांव के निशान उसके भीतर समा जाएंगे. इस कहावत का प्रयोग हंसी मजाक में करते हैं. जैसे कहीं दावत में घर का एक बड़ा आदमी चला जाए तो सबका जाना मान लिया जाएगा.
हाथी के पेट में टोना पचे. शक्तिशाली और आत्मविश्वासी लोग झाड़ फूंक और जादू टोनों से नहीं डरते.
हाथी के पेट में लक्कड़ भी पचे. बड़े हाकिम और भ्रष्ट नेता बड़ी से बड़ी रिश्वतें आसानी से पचा लेते हैं.
हाथी के पेट से जाड़ा. हस्ति नक्षत्र से जाड़ा शुरू होता है.
हाथी खरीदना आसान है पर पालना मुश्किल. किसी चीज़ की कीमत कितनी भी हो, उससे अधिक महत्वपूर्ण यह है कि उस का रख रखाव का खर्च हम उठा पाएंगे कि नहीं. सन्दर्भ कथा – एक बार जमीदार के यहां एक आदमी हाथी बेचने आया. जमीदार के लड़के ने पूछा, हाथी कितने का? वह आदमी बोला एक रूपए का. लड़के ने जमीदार की तरफ प्रश्नवाचक निगाह से देखा. जमीदार बोले, भाई बहुत महंगा है नहीं ले पाएंगे. छः महीने बाद कोई दूसरा आदमी हाथी बेचने आया. लड़के ने फिर पूछा, हाथी कितने का. वह आदमी बोला एक लाख का. जमीदार लड़के से बोले खरीद लो, काम आएगा. लड़का बोला पिता जी तब तो आपने एक रूपए में हाथी लेने को मना कर दिया था, अब एक लाख में लेने को कह रहे हैं, ऐसा क्यों? जमींदार बोले, बेटा तब हाथी को खिलाने के लिए पैसे नहीं थे, इसलिए हाथी बहुत महंगा था. इस कहावत में यह सीख दी गई है कि कोई चीज खरीदने से पहले यह गणित अवश्य लगाओ कि उसके रख रखाव में जो खर्च होगा वह हम कर पाएंगे या नहीं.
हाथी घोड़ा डूब गए, गदहा पूछत कित्तो पानी. जिस काम में बड़े बड़े दिग्गज फेल हो गए हों उसे करने के लिए कोई बेबकूफ सा आदमी अपनी अक्ल लगाए तो. किसी मरीज की जटिल बीमारी का डॉक्टर पता न लगा पा रहे हों और कोई मूर्ख सा व्यक्ति पूछे कि इन्हें क्या बीमारी है तो डॉक्टर ऐसा बोलते हैं.
हाथी चले जाते हैं, कुत्ते भौंकते रह जाते हैं. (हाथी चले बजार, कुकुर भौंके हजार) कोई सामाजिक रूप से महत्वपूर्ण व्यक्ति कोई बड़ा काम कर रहा हो और लोग उसका मजाक उडाएं या उसे गालियां दें, फिर भी वह उनकी परवाह किए बगैर अपने काम में लगा रहे, तो यह कहावत कही जाती है.
हाथी जाए गाँव गाँव, जिसका हाथी उसका नाँव (नाम). हाथी जहाँ जाता है वहाँ के लोग जान जाते हैं कि हाथी किसका है अर्थात वे उस की रईसी के बारे में जान जाते हैं.
हाथी निकल गया पूंछ रह गई. काम पूरा होते होते अंत में अटक जाना.
हाथी पर चढ़ कर गधे पे क्या चढ़ना. बड़ी उपलब्धि हासिल करने के बाद छोटा काम क्यों करना.
हाथी पर मक्खी का क्या बोझ. बहुत बड़े लोगों पर छोटे मोटे लोगों की सहायता करने में कोई बोझ नहीं पड़ता.
हाथी बहुत भरकम पर कभी तो मरेगा. कोई व्यक्ति कितना भी शक्तिशाली या सम्पन्न क्यों न हो कभी न कभी उस का भी अंत होगा.
हाथी बेच कर अंकुश पे लड़ाई. बड़े बड़े सौदे कर के छोटी सी बात पर लड़ना.
हाथी बैठा हुआ भी गधे से ऊँचा. अर्थ स्पष्ट है.
हाथी मरा हुआ भी सवा लाख का. सभी लोग जानते हैं कि हाथी की कीमत बहुत अधिक होती है. यहां मजाक में धनी लोगों की तुलना हाथी से की गई है. उसके बाद उनका मजाक उड़ाने के लिए यह कहावत कही गई है.
हाथी से मेढ़ा लड़े, अपना घर बर्बाद करे. भेड़ों के नर को मेढ़ा कहते हैं. मेढ़ा बड़े लड़ाकू किस्म का होता है इसलिए पुराने जमाने में लोग मेढ़ों की टक्कर का खेल खेलते थे. मेढ़ा कितना भी जुझारू क्यों न हो उसे मेढ़ों से ही लड़ना चाहिए हाथी से नहीं. कोई छोटी हैसियत का आदमी अपने से बहुत बड़े आदमी से लड़ेगा तो बर्बाद हो जाएगा. इंग्लिश में कहावत है – Be careful in choosing your enemies.
हाथी हजार का, महावत कौड़ी चार का. हाथी की कीमत बहुत अधिक होती है लेकिन उसे हांकने वाले महावत की कीमत बहुत कम.
हाथी हजार लटा, तो भी सवा लाख टके का (हाथी लटेगा भी तो कितना). बहुत धनी व्यक्ति को यदि व्यापार में नुकसान हो जाए तो भी वह धनी ही रहता है.
हाथी हाथी कह कर गदहा मत ले आना. बहुत बड़ा आश्वासन दे कर छोटी चीज न ले आना.
हाथों की लकीर पर विश्वास न करो, तकदीर तो उनकी भी होती है जिनके हाथ नहीं होते. जो लोग यह अंध विश्वास रखते हैं कि मनुष्य का भाग्य उस के हाथ की रेखाओं में लिखा होता है उनको सीख देने के लिए.
हाथों से लगावे, पैरों से बुझावे. खुद ही आग लगाना और फिर बुझाने का नाटक करना.
हानि दोनों ओर की होती कलह में सर्वदा. झगड़े में हमेशा दोनों पक्षों की हानि होती है.
हानि लाभ जीवन मरण जस अपजस विधि हाथ. व्यापार में हानि होगी या लाभ होगा, जीवन कब तक है और मृत्यु कब आएगी, व्यक्ति को कब और कितना यश या अपयश मिलेगा ये सब ईश्वर के हाथ में है.
हाय जवानी बावरी, एक बार फिरि आव. बूढ़े लोग कहते हैं कि जवानी एक पागलपन है, फिर भी दोबारा जवान होने के लिए लालायित रहते हैं.
हार मानी झगड़ा टूटा. जब दो लोगों में झगड़ा हो रहा होता है तो उन में जो समझदार होता है वह बात को बढ़ाने की बजाए हार मान लेता है. इससे झगड़ा तुरंत समाप्त हो जाता है.
हार मानी, झगड़ा जीता. दो लोगों के झगड़े में सही मानों में जीत उसी की होती है जो हार मान कर झगड़ा समाप्त करा देता है. इंग्लिश में कहावत है – Sometimes the best gain is to loose.
हारा सिपाही, चोट खाये नाग जैसा. हारा हुआ सिपाही इतना खूंखार हो जाता है कि जैसे दबा हुआ नाग. जो दबने के बाद जिसको भी पाता है डस लेता है.
हारा जुआरी दूना दांव लगाता है. जुए में हारने वाले इंसान को हार कर सद्बुद्धि नहीं आती बल्कि वह हारी हुई रकम वसूलने के लिए दुगुना दांव लगाता है. (महाभारत का उदाहरण सब को याद ही होगा).
हारिल की लकड़ी, पकड़ी सो पकड़ी. हारिल नाम का कबूतर की प्रजाति का एक पक्षी होता है जो हर समय अपने पंजे में लकड़ी को जकड़े रहता है. ऐसे व्यक्ति के लिए जो अपनी बात या विश्वास से हटने को तैयार न हो.
हारी नारी के मुँह में गारी. कमजोर व्यक्ति हारने पर गालियों का सहारा लेता है.
हारे का सहारा, तम्बाखू बेचारा. तम्बाखू खाने वाले अपने आप को धोखा देने के लिए इस प्रकार बोलते हैं.
हारे भी हार और जीते भी हार. झगड़े या बहस में यदि आप हार जाते हैं तब तो हार है ही और अगर जीत जाते हैं तो भी एक प्रकार से हार जाते हैं, क्योंकि आप एक मित्र को खो देते हैं या उस व्यक्ति से हमेशा के लिए सम्बन्ध खराब कर लेते हैं. इंग्लिश में कहावत है – when you win an argument, you lose a friend.
हारे हुए जुआरी का कौन साथी. हारे हुए जुआरी से सब कन्नी काट लेते हैं.
हाल जाए हवाल जाए पर बन्दे का खेल न जाए. सब कुछ चला जाए तो भी धूर्त लोगों की फितरत नहीं बदलती.
हाली का पेट सुहाली से नहीं भरता. हाली – हल चलाने वाला (किसान), सुहाली – मैदा की पापड़ी. मेहनत करने वाले का पेट थोड़ा खाने से नहीं भरता.
हिकमत से हुकूमत. शासन केवल डंडे के जोर पर नहीं बल्कि युक्ति से चलाना होता है.
हिजड़े की कमाई, हजामतों में गई. अपने चेहरे को चिकना रखने के लिए उसे रोज़ हजामत बनवानी पड़ती है. तात्पर्य है कि गलत तरीकों से कमाया धन रुकता नहीं है.
हिजड़े के घर बेटा हुआ है. कोई असम्भव सी बात. जैसे कोई महा कंजूस आदमी लोगों को अपने घर दावत पर बुलाए तो लोग मजाक में यह कहावत कहेंगे.
हिजड़े मजबूरन ब्रहमचारी. कोई यौन शक्ति से सम्पन्न व्यक्ति यदि ब्रह्मचर्य का व्रत धारण करे तो उसे ब्रह्मचारी मानते हैं. कोई नपुंसक व्यक्ति यदि अपने को ब्रह्मचारी बताए तो यह कहावत कही जाएगी.
हिजड़ों के घर लुगाई. बेमेल बात. हिजड़ों के घर स्त्री का क्या काम.
हिजड़ों के बिना ब्याह थोड़ी रुकता है. जो लोग हर काम में अपने को महत्वपूर्ण साबित करने की कोशिश करते हैं उन का मजाक उड़ाने के लिए.
हिजड़ों ने कभी काफिला लूटा है. कायर लोग कभी बहादुरी का काम नहीं कर सकते. सन्दर्भ कथा – एक गाँव से थोड़ी ही दूरी पर एक ऐसा रास्ता निकलता था, जहाँ से होकर काफिले गुजरा करते थे. उस गाँव के कुछ बदमाश लोग उधर से गुजरने वाले काफिलों को लूटने का ही काम किया करते थे. उनकी देखा-देखी उस गाँव में रहने वाले हिजड़ों ने भी आपस में सलाह कर के काफिलों को लूटने का निश्चय किया. योजनानुसार उन्होंने रात्रि को डाकुओं का वेश बनाया और जैसे हथियार मिल सके उन्हें लेकर वे सब उस रास्ते पर जा खड़े हुए.
आधी रात के बाद एक काफिला उधर से गुजरा तो उन्होंने काफिले वालों को डपटते हुए कहा कि जान प्यारी हो तो ऊंटों को यहीं छोड़ कर भाग जाओ. उस स्थान का ऐसा आतंक छाया हुआ था कि ऊंट पर सवार एक राजपूत को छोड़ कर शेष सारे लोग भाग गये. डाकू वेशधारी हिजड़ों ने उस राजपूत से भी भाग जाने को कहा. लेकिन वह तलवार निकाल कर अपनी जगह पर डटा रहा और उन्हें ललकारते हुए बोला कि तुम सामने आ जाओ, मैं तुम्हारी तरह हिजड़ा नहीं हूँ जो भाग जाऊं. उस ने तो कायर के अर्थ में हिजड़ा शब्द का प्रयोग किया था पर हिजड़ों ने समझा कि इसने हमें पहचान लिया है. उनकी हिम्मत टूट गई और वे तालियां बजाते हुए और खूब पहचाना जी, खूब पहचाना जी कहते हुए वहां से भाग निकले.
हित अनहित पसु पच्छिऊ जाना, मानुस तनु गुन ज्ञान निधाना. पसु पच्छिऊ – पशु पक्षी भी. अपना भला बुरा तो पशु पक्षी भी समझ लेते हैं, मनुष्य का जन्म तो गुण और ज्ञान की प्राप्ति के लिए मिला है.
हिन्दी न फारसी, मियाँ जी बनारसी. पढ़े लिखे कुछ नहीं हैं और अपने को बहुत होशियार समझते हैं.
हिमायती की गधी, हाथी को लात मारे. जिस कर्मचारी का हाकिम पक्ष लेता है वह निरंकुश हो जाता है.
हिमायती की घोडी, ऐराकी को लात मारे. हिमायती – पक्ष लेने वाला, ऐराकी – घुड़सवार. मालिक किसी नौकर को अधिक सर चढ़ाता है तो वह घर के सदस्यों पर ही रौब गांठने लगता है.
हिम्मत के हिमायती राम. साहसी लोगों का ईश्वर भी साथ देता है. (Fortune favours the brave).
हिय को हो करार, तो सूझें सब त्यौहार. मन में शान्ति हो तभी त्यौहार अच्छे लगते हैं.
हिरण ऊँचा कूदता है तो भी पाँव नीचे ही टिकते हैं. कोई व्यक्ति शक्ति मिलने पर ज्यादा उछल रहा हो तो उस को उस की हैसियत याद दिलाने के लिए यह कहावत कही जाती है.
हिरन अपनी घात, शिकारी अपनी घात. शिकारी यदि अपने दांव में है तो हिरन भी अपनी दांव में सचेत है.
हिरन का बैरी उसका मांस, औरत का बैरी उसका रूप. हिरन को अपने कोमल मांस के कारण शिकारी पशुओं और मनुष्यों से खतरा है एवं औरत को अपने रूप के कारण काम पिपासु वहशी लोगों से खतरा है.
हिरनों के सींग गीदड़ों को कब सुहाते हैं. हिरन अपने सींगों से आत्म रक्षा कर सकता है इसलिए गीदड़ों को हिरन के सींग नहीं सुहाते. आम मनुष्य अपनी रक्षा के लिए जो उपाय करता है वह चोर लुटेरों को नहीं अच्छे लगते.
हिल्ले रोजी, बहाने मौत. रोजगार से रोजी मिलती है और जब मौत आना होती है तो उसका कोई न कोई बहाना बन जाता है (जैसे कोई बीमारी या दुर्घटना आदि).
हिसाब किताब तो बाप बेटे में भी जायज़ है. निकट से निकट सम्बन्ध में भी हिसाब किताब पूरा रखना चाहिए.
हिस्ट्री ज्योग्राफी बड़ी बेवफा रात को रटो और सुबह को सफा. इतिहास और भूगोल की पढ़ाई बच्चों को बहुत अरुचिकर लगती है.
हींग जाए पर बास न जाए. किसी डिब्बी में हींग कुछ समय के लिए रख दी जाए तो उस को निकालने के बाद भी हींग की गंध आती रहती है. किसी व्यक्ति की सम्पन्नता चली जाए तब भी उसकी बू नहीं जाती.
हीरा हीरे को काटता है. चतुर को चतुर ही हरा सकता है.
हीरे की कदर, जौहरी जाने. अनमोल चीजों की कदर पारखी लोग ही जान सकते हैं.
हुई फज़र, चूल्हे पर नज़र. फज़र – सुबह. हर समय खाने की चिंता करने वालों पर व्यंग्य.
हुकुम हमारा जोर तुम्हारा. 1. कमजोर हाकिम अपने मातहतों से कहता है कि हम ने तो हुकुम दे दिया तुम में ताकत हो तो तामील करवा लो. इससे उलट 2. यह हमारा हुक्म है, तुम में हिम्मत हो तो रोक लो.
हुकुम हाकिम का मौत के समान. छोटे आदमी के लिए किसी अधिकारी का हुक्म मौत के बराबर होता है.
हुकूमत की घोड़ी, छै पसेरी दाना. सरकारी कामों में फालतू खर्च बहुत होते हैं.
हुक्का चार वक्त अच्छा, सो के, मुँह धो के, खा के और नहा के ; हुक्का चार वक्त बुरा, आंधी में, अँधेरे में, भूख में और धूप में. धूम्रपान किसी भी रूप में हो बुरा ही होता है, पर हुक्का पीने वाले अपने हिसाब से चलते हैं.
हुक्का हर का लाड़ला रक्खे सब का मान, भरी सभा में यूँ फिरे ज्यों गोपिन्ह में कान्ह. नशा करने वाले अपने अपने नशे को उचित ठहराने का प्रयास करते हैं. उसी की एक बानगी.
हुक्का हुकम खुदा का, चिलम बहिश्त का फूल, पीयें बन्द खुदा के, घूरें नामाकूल. हुक्का और चिलम पीने वाले इस प्रकार से अपने को धोखा देते हैं. बहिश्त – स्वर्ग, नामाकूल – नालायक.
हुक्का, सुंघनी, वैश्या, गूजर, तुरक औ जाट, इनमें छूआ छूत कहाँ, जगन्नाथ का भात. जिस प्रकार जगन्नाथ जी के चावल के पसाद में कोई छुआछूत नहीं मानी जाती वैसे ही इन सब सभी चीजों में छुआछूत नहीं मानी जाती.
हुनरमंद हर हाल में खुश. जिसके हाथ में हुनर है उसे किसी चीज़ की कमी नहीं रहती.
हुसियार लइका हगते चिन्हाला. (भोजपुरी कहावत) चिन्हाला – पहचान लिया जाता है. होशियार लड़का शौच करते समय भी पहचान लिया जाता है.
हूर भी सौतन तो डायन से बुरी है. वैसे तो सभी लोग हूरों और फरिश्तों से दोस्ती करना चाहते हैं, पर हूर अगर सौत बन जाए तो डायन से भी बुरी है.
हृदय प्रीत, मुख वचन कठोरा. माता पिता बालक से प्रेम रखते हैं पर उसके भले के लिए कठोर वचन बोलते हैं.
हृदय में गाँठ तो चाल में आँट. मन में खोट हो तो व्यक्ति की चाल बदल जाती है.
हेजिए के बच्चे और नदीदी के खसम से बात करना भी बुरा. हेजिया – जिसे अपने बच्चों का बहुत हेज (मूर्खता की हद तक लाड़) हो, नदीदी – ओछी सोच वाली स्त्री. ये दोनों बिना बात लड़ने को तैयार रहते हैं.
हेमदान गजदान से बड़ा दान सनमान. किसी को हाथी, घोड़ा, सोना, चांदी दान देने से भी बड़ा दान है सम्मान देना. हेम – सोना.
है घरनी घर हाँसे है, नै घरनी घर नासै है. गृहिणी के होने से घर मुस्कुराता है और न होने से नष्ट हो जाता है.
है तो पागल, पर बात पते की कहता है (पागल है पर बेबकूफ नहीं है). बहुत से लोग बुद्धिमान होते हैं पर पागल होने की हद तक सनकी होते हैं. पागल होना और मूर्ख होना दो अलग बातें हैं.
है सबका गुरुदेव रुपैया. आज के भौतिक वादी युग में रुपया सब का गुरु है.
हैं मर्द वही पूरे जो हर हाल में खुश हैं. जो हर हाल में खुश रहना जानते हैं वही सच्चे मर्द हैं.
हो गईं ढड्ढो, ठुमक चाल कैसी. जो स्त्री बूढ़ी होने पर भी बन ठन के रहे. ढड्ढो – बूढ़ी औरत.
होएं भले के अनभले, होएं दानी के सूम, होएं कपूत सपूत के, ज्यों पावक में धूम. भले लोगों के घर में दुष्ट, दानी के घर कंजूस और सपूत के घर कपूत उत्पन्न हो सकता है. यह उसी प्रकार है जैसे पवित्र और तेजवान अग्नि में से काला धुआं उत्पन्न हो सकता है.
होठ हिले न जिभ्या डोली, फिर भी सास कहे बड़बोली. बहू बेचारी कुछ नहीं बोलती है तब भी सास उसे बड़बोली (बहुत बोलने वाली) कहती है.
होड़ लीजे जोड़, उधार दीजे छोड़. बाजी में जीता हुआ जरूर ले लेना चाहिए चाहे उधार दिया हुआ धन छोड़ दें.
होत का बाप, अनहोत की माँ. होत-अच्छा समय, अनहोत-बुरा समय. सुख के समय पिता और और दुख के समय माँ काम आती है. कुछ लोग इस के आगे बोलते हैं – आस की बहन, निरास को यार.
होत की जोत है. अच्छे दिन होते हैं तो सब कुछ अच्छा ही अच्छा होता है.
होत की धोती, अनहोत की लँगोटी. अच्छे दिनों में धोती पहन ली, बुरे में लँगोटी से ही काम चला लिया.
होत की बहिन, अनहोत का भाई, पीठ पीछे नार पराई. बहने अच्छे दिनों में ही साथ देती है जबकि भाई बुरे दिनों में भी साथ देता है. पति की अनुपस्थिति में स्त्री भी पराई हो जाती है.
होत परायो आपनो शस्त्र परायो हाथ. अपना शस्त्र अगर दूसरे के हाथ में है तो अपने किसी काम का नहीं है.
होत में बैरी भी साथी, अनहोत में साथी भी बैरी. अच्छे दिनों में दुश्मन भी दोस्त बन जाता है और बुरे दिनों में दोस्त भी दुश्मन.
होत सुसंगत सहज सुख, दुख कुसंग के साथ. अच्छी संगत में बिना प्रयास किए स्वत: ही सुख प्राप्त होता है जबकि बुरी संगत में केवल दुख ही मिलता है.
होता आया है कि अच्छों को बुरा कहते हैं. अच्छों को बुरा कहना दुनिया की पुरानी आदत है.
होते के सब साथी, अनहोत का कोई नहीं. अच्छे दिनों के सब साथी होते हैं, बुरे दिनों में कोई नहीं.
होते ही मर जाता तो कफन भी थोड़ा लगता. दुष्ट संतान से पीड़ित माता पिता के उद्गार.
होनहार फिरती नहीं, होवे बिस्वे बीस (होनी तो हो के रहे, मेट सके न कोय) (होनहार होके टले) (होनी हो सो होय). जो होना है हो के रहता है. बिस्वे बीस का अर्थ है शत प्रतिशत.
होनहार बिरवान के होत चीकने पात. आम तौर पर जंगली पौधों की पत्तियाँ खुरदुरी होती हैं जबकि सुन्दर सजावटी पौधों की पत्तियाँ चिकनी होती हैं. जब कोई पौधा छोटा सा होता है तो उसके पत्तों से पहचाना जा सकता है कि वह जंगली झाड़ झंकाड़ बनेगा या सुन्दर पौधा. किसी छोटे बच्चे में यदि कोई विलक्षण प्रतिभा देखने को मिलती है तो यह कहावत कही जाती है.
होनहार हिरदै बसे, बिसर जाए सब सुद्ध, जैसी हो होतव्यता, तैसी होवे बुद्ध. जब व्यक्ति का बुरा होना होता है तो उसकी सुध (और बुद्धि) वैसी ही हो जाती है.
होनी थी सो हो ली. भाग्य में लिखा था इसलिए ऐसा हुआ.
होनी माता को नमस्कार है. विधाता को होनी माता (बेमाता) भी कहा गया है.
होम करते हाथ जले. किसी भले कार्य में नुकसान हो जाना.
होय भिन्सार बड़ी बिल खोदब. (अवधी कहावत). भिन्सार – सुबह. महत्वपूर्ण काम को किसी न किसी बहाने टालने वालों के लिए यह कहावत कही जाती है. सन्दर्भ कथा – जाड़े की रातों में जब लोमड़ी को ठंड लगती है तो वह ठिठुरते हुए सोचती है कि सुबह होने पर बड़ा बिल खोदुंगी और उस में घुस कर ठण्ड से बचूँगी. सुबह धूप निकल आती है और उसे गर्मी मिलती है तो उसे इतना बड़ा काम करने में आलस आने लगता है.
होली के भड़ुआ, बेचें तेल कड़ुआ. होली जैसे उत्सव के दिन जो दुकानदारी करे वह भड़ुआ ही कहलाएगा.
होली तो कपूतों से ही मने. होली के हुड़दंग में तो शैतान लड़कों से ही रंग जमता है.
हौज भरे तो फव्वारे छूटें. जब सारे साधन (रुपया, पैसा व अन्य सामान) पूरे होंगे तभी तो कार्य सिद्ध होगा. पहले के जमाने में पानी फेंकने के लिए मोटर नहीं हुआ करते थे. फव्वारे चलाने के लिए भिश्ती लोग हौज में पानी भरते थे जिसके दवाब से फव्वारे चलते थे.
क्ष त्र ज्ञ
क्षमा बड़न को चाहिए, छोटन को उत्पात. जो धीर गम्भीर और बड़े लोग हैं उन्हें अपने से छोटों की उद्दंडता को क्षमा कर देना चाहिए.
क्षिति जल पावक गगन समीरा, पञ्च तत्व से बना सरीरा. यह शरीर पांच तत्वों से मिल कर बना है – धरती, जल, अग्नि, आकाश और वायु.
क्षुद्र नदी जल भर उतराई. छोटी पहाड़ी नदी पानी भरने से उफन जाती है. ओछा व्यक्ति थोड़ा धन या ज्ञान पा कर इतराने लगता है.
क्षुधा कारने मर्यादाहीन. भूख के आगे मर्यादा भुलानी पड़ती है.
त्रियाचरित्र न जानै कोय. खसम मारि कै सत्ती होय. स्त्री के चरित्र को कोई नहीं जान सकता, वह किस बात पर जान की दुश्मन हो जाए और किस बात पर जान दे दे (पति को मार कर फिर उस के साथ सती हो जाए).
ज्ञान गले फंस जात, जब घर में ना हो नाज. यदि घर में खाने को अनाज न हो तो ज्ञान ध्यान सब गले की फांस बन जाता है.
ज्ञान गिने सो मूरख हारे, वो जीते जो पहले मारे. जो व्यक्ति तरह तरह की नीति अनीति की बात सोचता रहता है वह हार जाता है, जो पहले बढ़ कर मारता है वही जीतता है.
ज्ञान घटे जड़ मूढ़ की संगत, ध्यान घटे बिन धीरज लाए. मूर्ख व्यक्ति की संगत करने से ज्ञान घटता है और धैर्य न रखने से ध्यान नहीं लगा सकते.
ज्ञान ध्यान सबै बिसरौ जब हाथ पड़ी हल की मुठिया. हल चलाने जैसा कठिन काम करना पड़े तो ज्ञान ध्यान सब भूल जाता है.
ज्ञान बटोल लीजिए लेकिन पहले टटोल लीजिए. ज्ञान कहीं से भी मिले उसे ग्रहण करना चाहिए, लेकिन उसे आत्मसात करने से पहले उस के अच्छे बुरे पहलुओं पर विचार कर लेना चाहिए.
ज्ञान बढ़े सोच से, रोग बढ़े भोग से. चिंतन करने से ज्ञान बढ़ता है और भोग से रोग बढ़ते हैं. अर्थात आध्यात्मिक चिंतन वाला व्यक्ति ज्ञानी बनता है और भोग में फंसे रहने वाला व्यक्ति रोगी बन जाता है.
ज्ञान मुक्ति को द्वार है, मोह बंध को मूल. ज्ञान से मुक्ति मिलती है जबकि मोह बंधन की जड़ है.
ज्ञानी को ज्ञानी मिलै, रस की लूटम लूट, आनी को आनी मिलै, हौवै माथा कूट. ज्ञानी को ज्ञानी मिलता है तो ज्ञान की चर्चा में रस की धार बहती है, अहंकारी को अहंकारी मिलता है तो दोनों में अहं का टकराव होता है.
ज्ञानी से ज्ञानी मिले करे ज्ञान की बात, गदहे से गदहा मिले मारें लातई लात. ज्ञानी से ज्ञानी मिलता है तो दोनों ज्ञान की चर्चा करते हैं. गधे से गधा मिलता है तो एक दूसरे को लात मारते हैं.