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थका ऊँट सराय ताकता. जब ऊँट थका हुआ होता है तो वह सराय की ओर ताकता है (कि कब मालिक सराय में पहुँचे और कब उसे विश्राम मिले).
थका घोड़ा रिसियाया चाकर, कभी इन पर विश्वास न कर. किसी कठिन काम के किए थके घोड़े पर भरोसा नहीं करना चाहिए और गुस्साए नौकर पर भी विश्वास नहीं करना चाहिए. ये दोनों कभी भी धोखा दे सकते हैं.
थका तैराक फेन चाटता है. परिस्थितियों से बाध्य हो कर मनुष्य को निम्नश्रेणी का कार्य भी करना पड़ता है.
थके (हारे) का सहारा, तम्बाकू बिचारा. तम्बाखू का सेवन करने वाले अपने को धोखा देने के लिए ऐसे बोलते हैं.
थके बैल को सूप भारी. बैल थका हो तो उसे सूप जैसी हल्की चीज़ भी भारी लगती है.
थके बैल गौन है भारी, अब क्या लादोगे व्यापारी. (गौन – एक प्रकार का थैला जिस में सामान रख कर बैलों पर लादते हैं). वृद्धावस्था के लिए कहा गया है, शरीर थक चुका है, पापों की गठरी पहले ही भारी हो चुकी है अब इस में और क्या लादोगे.
थके मनुष्य का भाग्य भी थक जाता है. जब तक मनुष्य उद्यम करता है तभी तक भाग्य उसका साथ देता है, उद्यम करना छोड़ने पर भाग्य भी उसका साथ छोड़ देता है.
थाली खोने पर गगरी में भी हाथ डाला जाता है. बदहवासी में या गरज पड़ने पर ऐसी जगह भी जाना पड़ता है जहाँ से काम पूरा होने की कोई आशा न हो.
थाली गिरी, झनकार हमने भी सुनी (थाली फूटी न फूटी झंकार तो हुई). इसको कुछ इस प्रकार से प्रयोग करते हैं – फलाने दो लोगों में शायद झगड़ा हुआ है. सम्बन्ध चाहे न टूटा हो पर कुछ तकरार तो हुई है.
थूक बिलोने से मक्खन नहीं निकलता. बिना साधन के कोई काम नहीं किया जा सकता.
थूक से चिपकाया कै दिन चलेगा. घटिया काम और झूठ बहुत दिन तक नहीं चलते.
थूक से सत्तू नहीं सनते. 1. सत्तू बनाने के लिए ठीक ठाक मात्रा में पानी चाहिए. बहुत थोड़े से पानी से सत्तू नहीं बनेगा. काम बड़ा और साधन बहुत कम हों तो. 2. अपमान जनक तरीके से किसी पर उपकार नहीं करना चाहिए.
थेथर बूंट, न दांते टूट, न भाड़े फूट. थेथर – ठस, बूंट – चना. जो चना ठुड्डी (कड़ा) होता है वह न दांत से टूटता है न भाड़ में फूटता है. कहावत में जिद्दी लोगों की तरफ संकेत किया गया है.
थैली की चोट बनिया जाने. पूंजी का नुकसान कितना बड़ा नुकसान होता है यह बनिया ही जान सकता है. (क्योंकि उसे केवल खर्च करने के लिए ही नहीं बल्कि व्यापार करने के लिए भी पूंजी चाहिए).
थैली बनाए हवेली. पैसे से बड़े बड़े काम किए जा सकते हैं.
थैली भरी तो सारी बात खरी. जिस के पास पैसा हो उस की सब बात ठीक है.
थैली में रुपया, मुँह में शक्कर. व्यापार के लिए ये दोनों आवश्यक हैं. थैली में रुपया अर्थात निवेश के लिए पूँजी और मुँह में शक्कर अर्थात मीठी बोली.
थैली लगावे सो थैला पावे. व्यापार में पूंजी लगाओगे तभी अधिक कमा पाओगे.
थोड़ धनी सुखिया, बहुत धनी दुखिया. जिस के पास थोड़ा धन हो वह सुखी रहता है और जिस के पास अधिक धन हो वह उस को संभाल कर रखने की चिंता में ही मरा जाता है.
थोड़ा कमावे खरचे घनो, पहला मूरख उस को गिनो. सबसे बड़ा मूर्ख वह है जो कमाए कम और खर्च अधिक करे.
थोड़ा करे कविता, बहुत करें व्याख्याकार. कविता के जितने अर्थ और बारीकियाँ व्याख्याकार बताते हैं उतने तो स्वयं कवि को भी नहीं मालूम होते.
थोड़ा करें गाज़ी मियाँ, ज्यादा गाएं डफाली. डफाली – डफली बजा कर गाने वाले. साधु महात्मा लोग थोड़ा सा भी कुछ करते हैं तो उनके प्रशंसक बहुत बढ़ा चढ़ा कर बताते है.
थोड़ा करें भवानी ढेर करे पंडा. पंडे लोग अपने अपने देवी देवताओं की महिमा खूब बढ़ा चड़ा कर बखान करते हैं. जिससे प्रभावित हो कर लोग अधिक से अधिक भेंट चढ़ाएं.
थोड़ा कहे से मरद बूझे, पूरा कहे से बरद. समझदार मनुष्य इशारे से ही समझ जाता है जबकि बैल (मूर्ख व्यक्ति) पूरी बात कहने से.
थोड़ा खरचे थोड़ा खाए, उस पर टोटा कभी न आए. समझदारी से खर्च करने और कम खाने वाले को धन का संकट कभी नहीं आता. कम खाने से धन की बचत भी होती है और बीमारी भी नहीं होती.
थोड़ा खाना, बनारस में बसना. बनारस में बसने का एक समय बड़ा महत्व था. भरपेट खाना न मिले तब भी लोग बनारस में बसने को लालायित रहते थे.
थोड़ा खावे अंग लगावे, ज्यादा खावे घूर बढ़ावे. थोड़ा खाया हुआ शरीर को लगता है और ज्यादा खाने से शरीर को कोई लाभ नहीं होता, केवल अधिक मल बनता है. घूर – घूरा (मल और कूड़े का ढेर).
थोड़ा खावे बहुत डकारे. काम थोड़ा और दिखावा बहुत करने वालों के लिए.
थोड़ा जितना मीठा, ज्यादा उतना ही कड़वा. जो वस्तु कम मात्रा में उपलब्ध होती है वह अच्छी लगती है. जो अधिक मात्रा में मिल जाए वह बेकार लगने लगती है.
थोड़ा थोड़ा खाय, न मरे न मुटाय. थोड़ा थोड़ा खाने वाला मोटा भी नहीं होता और जल्दी मरता भी नहीं है. (क्योंकि कम खाने से बीमारियाँ कम होती हैं). इस से मिलती जुलती कहावत है – खावे पौना, जीवे दूना.
थोड़ा थोड़ा जोड़ो, मुनाफ़ा कभी ना छोड़ो. बहुत ही व्यवहारिक सुझाव दिया गया है. छोटी बचत भी लम्बे समय में बड़ी राशि बन जाती हैं. दूसरी सलाह है कि व्यापार में जहाँ मुनाफा हो रहा हो वहाँ चूकना नहीं चाहिए.
थोड़ा पढ़े तो हर से गये, भौत पढ़े तो घर से गये. किसान के लड़के के लिए पढ़ना अच्छा नहीं. थोड़ा पढ़े तो खेती के काम (हल चलाने) का नहीं रहता, और बहुत पढ़ जाय तो नौकरी करने घर से बाहर चला जाता है.
थोड़ी आस मदार की बहुत आस गुलगुलों की. मदार – मुसलमानों के एक पीर जिनकी मकनपुर में दरगाह है. बहुत से लोगों को पीर के दर्शन से अधिक गुलगुलों के प्रसाद की आस होती है.
थोड़ी पूँजी खसमै खाय. कम पूँजी दूकानदार को ही बर्बाद कर सकती है. क्योंकि उससे लाभ कम होगा. यदि व्यापार की लागत अधिक हुई तो कम पूँजी का व्यापार नष्ट हो जाएगा.
थोड़ी सी बरसात भारी आंधी को रोक सकती है. समझदारी की थोड़ी सी बात बड़े झगड़े को शांत कर सकती है.
थोड़े नफे में अधिक कुसल. ज्यादा मुनाफे के चक्कर में रकम डूबे इससे अच्छा है कि कम नफा लिया जाए.
थोड़े लिखे को बहुत समझना. जिस जमाने में चिट्ठियाँ लिखने का रिवाज़ था तब यह वाक्य बहुत लिखते थे.
थोड़े ही धन, खल बौराए (थोड़े धन में खल इतराए). ओछी प्रवृत्ति का आदमी थोड़ा धन पा कर इतराने लगता है.
थोड़े ही में पाइए सब बातन को सार. व्यक्ति अपनी बात को जितने कम शब्दों में व्यक्त कर पाए उतना ही काबिल माना जाता है..
थोथा चना बाजे घना. कोई घड़ा यदि चनों से पूरा भरा हो तो हिलाने से आवाज़ नहीं आएगी, लेकिन यदि आधा भरा हो तो हिलाने से आवाज़ आएगी. दूसरे – घुना हुआ चना अधिक आवाज करता है. जिन लोगों को कम ज्ञान होता है वे अधिक बोलते है. इंग्लिश में कहावत है – The less men know, the more they talk.
थोथा फटके उड़ उड़ जाए. छाज (सूप) में अनाज फटकते समय जो खोखला अनाज होता है वह उड़ जाता है. जो व्यक्ति स्वभाव से गंभीर नहीं होता वह कठिनाइयों का सामना नहीं कर सकता.
थोथी आगे पोथी क्या करे. मूर्खतापूर्ण बातों के आगे पढ़े लिखे व्यक्ति को चुप हो जाना पड़ता है.
थोथे बांस कड़ाकड़ बाजें. बांस यदि ठोस हो तो उसे पटकने पर आवाज नहीं होती, पर यदि खोखला हो तो उसे पटकने पर जोर की आवाज होती है. कहावत में यह समझाया गया है कि अल्पज्ञानी व्यक्ति बहुत बोलता है.
थोथे बादर क्वार के, ज्यों रहीम घहरात, धनी पुरुष निर्धन भये, करै पाछिली बात. थोथे बादर – बिना पानी के बादल. जिस प्रकार क्वार के महीने में बिना पानी वाले बादल गरजते हैं, उसी प्रकार धनी लोग जब निर्धन हो जाते हैं तो अपने पिछले दिनों की बातें करते हैं.