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  1. ओई की रोटी ओई की दार, ओई की टटिया लगी दुआर.यह एक बुन्देलखंडी पहेलीनुमा कहावत है जिस का उत्तर है चना. चने की रोटी चने की दाल से खाओ और चने का पर्दा (टट्टर) बना कर दरवाजे पर लगाओ. 
  2. ओखली में सर दिया तो मूसलों से क्या डरना.जब कोई कठिन काम हाथ में लिया है तो उस में आने वाली परेशानियों से क्या डरना.
  3. ओखली में हाथ डालेमूसली को दोष देवे.जाहिर है कि ओखली में हाथ डालोगे तो मूसल की चोट पड़ेगी. ऐसे में मूसल को क्या दोष देना. स्वयं गलती करके कष्ट उठाने वाला व्यक्ति यदि दूसरे को दोष दे तो.
  4. ओछा आते भी काटे और जाते भी काटे.दुष्ट सुनार लेते समय भी कम तौलता है और देते समय भी.
  5. ओछा आदमी निहोरे करने पर ज्यादा नखरे दिखाता है.ओछे आदमी से यदि किसी काम के लिए मनुहार करो तो वह और अधिक नखरे दिखाता है.
  6. ओछा ठाकुर मुजरे का भूखा. मुजरा – झुक कर सलाम करना. ठाकुर से तात्पर्य यहाँ सामंतशाही व्यवस्था के उन बड़े लोगों से है जो जनता को गुलाम बना कर रखना चाहते थे.
  7. ओछा बनियागोद का छोराओछे की प्रीतबालू की भीतकभी सुख नहीं देते.अर्थ स्पष्ट है. (गोद का छोरा – गोद लिया हुआ लड़का).
  8. ओछी नार उधार गिनावे.ओछी बुद्धि वाली स्त्री उधार दी हुई छोटी छोटी चीजों को गिनाती है.
  9. ओछी पूंजीखसमो खाए.गलत तरीके से कमाया गया धन व्यक्ति का सर्वनाश कर देता है.
  10. ओछी रांड उधार गिनावे.निकृष्ट किस्म की स्त्रियाँ हर समय अपने द्वारा किए गये एहसान गिनाती रहती हैं.
  11. ओछी लकड़ी झाऊ कीबिन बयार फर्राएओछों के संग बैठ केसुघड़ों की पत जाए.झाऊ का एक पेड़ होता है जो बिना हवा चले ही आवाज करता है, मतलब पेड़ बिना बात आवाज़ कर रहा है और हवा का नाम बदनाम हो रहा है. ओछे लोगों के साथ बैठ कर अच्छे लोगों का सम्मान कम होता है.
  12. ओछे की प्रीत, कटारी को मरबो.ओछे मनुष्य की प्रीति और कटारी से मरना दोनों समान होते हैं.
  13. ओछे की प्रीतबालू की भीत.ओछे आदमी की प्रीत, रेत की दीवार की भांति क्षणभंगुर है. (भीत – दीवार)
  14. ओछे की सेवा, नाम मिले न मेवा.ओछे आदमी की सेवा करने से कोई लाभ नहीं है. न तो नाम होगा और न ही कोई  इनाम मिलेगा.
  15. ओछे के घर खानाजनम जनम का ताना.छोटी सोच वाले व्यक्ति का एहसान नहीं लेना चाहिए, वह हमेशा आपको ताना मारता रहेगा.
  16. ओछे के पेट में बड़ी बात नहीं पचती.ओछी बुद्धि वाले व्यक्ति के पेट में कोई बात नहीं पचती इसलिए उस को कोई महत्वपूर्ण या रहस्य की बात नहीं बतानी चाहिए.
  17. ओछे के सर का जुआँ इतराए. ओछा  हाकिम स्वयं तो  अत्यधिक इतराता ही है उसके घर के सदस्य और नौकर चाकर और अपने  आपको तीसमारखां समझते हैं. 
  18. ओछे नर के पेट में रहे न मोटी बातआध सेर के पात्र में कैसे सेर समात.आमतौर पर इसका बाद वाला हिस्सा ही बोला जाता है. अर्थ है कि किसी मूर्ख व्यक्ति में अधिक ज्ञान कहाँ से समा सकता है, या ओछा अधिक आदमी धन पाने पर इतराने लगता है.
  19. ओछे पर एहसान करनाजैसे बालू में मूतना.बालू में पेशाब करने पर उसका निशान नहीं पड़ता इसी प्रकार ओछे व्यक्ति पर एहसान करो तो उस पर कोई असर नहीं होता.
  20. ओछो मन्‍त्री राजै नासैताल बिनासै काई, सुक्‍ख साहिबी फूट बिनासैघग्‍घा पैर बिवाई. ओछा मंत्री राज्य का विनाश कर देता है, तालाब को काई बिगाड़ देती है, राज्य और शासन को आपसी फूट खत्म कर देती है और बिबाई पैर को बेकार कर देती है.
  21. ओछों के ढिंग बैठ कर अपनी भी पत जाए.ओछे व्यक्तियों के साथ बैठ कर अपना स्वयं का मान सम्मान कम होता है.
  22. ओढ़नी की बतास लगी.स्त्री की गुलामी करने लगा. (ऐसे कहते हैं – फलाने को ओढ़नी की हवा लग गई है). बतास – हवा.
  23. ओनामासी धम बाप पढ़े न हम.ॐ नम: सिद्धं का अपभ्रंश. जो बच्चे पढ़ने से जी चुराते हैं उन के लिए.
  24. ओलती का पानी मंगरे पर नहीं चढ़ता.ओलती – छप्पर का किनारा जहाँ से वारिश का पानी नीचे गिरता है. मंगरा – छत या छप्पर का ऊपरी भाग. कोई उलटी बात कर रहा हो तो उसे समझाने के लिए.
  25. ओलती तले का भूतसत्तर पुरखों का नाम जाने.घर के अन्दर का आदमी घर का सब हाल जानता है.
  26. ओलों का मारा खेत, बाकी का मारा गाँव और चिलम का मारा चूल्हा कभी न पनपें.जो फसल ओले गिरने से बर्बाद हुई हो, जिस गाँव ने लगान न दी हो और जिस चूल्हे से कोयले निकाल कर बार बार चिलम भरी जाती हो, वे कभी नहीं पनपते.
  27. ओस चाटे प्यास नहीं बुझती.कहावत का अर्थ है किसी को आवश्यकता से बहुत कम चीज़ मुहैया कराना.
  28. ओस से घड़े नहीं भरते.अत्यंत सीमित साधनों से बड़े कार्य नहीं किए जा सकते. 

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