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  1. पंखे से कोहरा नहीं छंटता.छोटे साधन से बहुत बड़ा कार्य सिद्ध नहीं किया जा सकता.
  2. पंच कहें बिल्ली तो बिल्ली सही.पंचों की बात सब को माननी पड़ती है. किसी ने अपनी आँखों से देखा कि पडोसी के कुत्ते ने उसकी मुर्गी का शिकार किया, लेकिन यदि पंच कहते हैं कि जंगली बिल्ली ने किया है तो बिल्ली ने ही किया होगा.
  3. पंच जहाँ परमेश्वर.कोर्ट कचहरी जा कर बर्बाद होने के मुकाबले यदि गाँव के लोग अपने बीच से ही पांच लोगों को पंच बना कर फैसला कर लें तो सभी का फायदा है. इसीलिए कहा गया है कि जहाँ आपसी समझ बूझ से झगड़े निबटाने की व्यवस्था है वहाँ परमेश्वर का वास है.
  4. पंचों का कहना सर माथेलेकिन परनाला यहीं गिरेगा.किन्हीं दो पड़ोसियों के बीच इस बात पर झगड़ा हो रहा है कि छत से आने वाला परनाला नीचे कहाँ खुलेगा. झगड़ा निबटाने के लिए पंचायत होती है और पंच कुछ फैसला देते हैं. लेकिन जो दबंग आदमी है वह कहता है कि मैं पंचों की बात जरूर मानूँगा लेकिन परनाला जहाँ मैं कह रहा हूँ वहीँ गिरेगा. किसी व्यक्ति द्वारा अपनी ही शर्त पर समझौता करने की जिद करना. 
  5. पंचों का जूता और मेरा सिर.अगर मेरी बात गलत साबित हो तो पंच जो सजा दें मैं मानने को तैयार हूँ.
  6. पंज ऐब शरई.चोरी, व्यभिचार, शराब, जुआ और झूठ, इस्लाम  में ये पाँचों ऐब वर्जित हैं. किसी व्यक्ति में ये सारे ऐब हों और अपने को सच्चा मुसलमान बताता हो, उस के लिए व्यंग्य. शरई – शरिया को मानने वाला.
  7. पंडित और मसालची दोनों उल्टी रीतऔर दिखावें रोशनी आप अँधेरे बीच.मशालची औरों को रोशनी दिखाता है पर खुद अँधेरे में रहता है. पंडित औरों को ज्ञान देता है पर खुद उस पर अमल नहीं करता.
  8. पंडित की कथा कोरी बांच ले तो पंडित को कौन पूछे.कोरी – बुनकर. कोरी यदि कथा सुना ले और पूजा करा ले तो पंडित को कौन पूछेगा. कम्पाउंडर अगर इलाज कर ले तो डॉक्टर को कौन पूछेगा.
  9. पंडित केरा पोथड़ा ज्यों तीतर को ज्ञान, औरन सगुन बतात हैं, अपनों फंद न जान.तीतर का दिखाई पड़ना अच्छा शगुन माना जाता है, लेकिन तीतर को इस का ज्ञान नहीं होता. ऐसे ही पंडित अपने पोथे से औरों को मुहूर्त बताता है लेकिन अपने लिए मुहूर्त नहीं निकाल पाता.
  10. पंडित जी गए दारू पीए तो भठिए में लग गई आग.(भोजपुरी कहावत)पंडित जी दारु पीने गए तो भट्ठी में ही आग लग गई. कलियुगी ब्राह्मणों का मजाक उड़ाने के लिए.
  11. पंडित जी ने कौआ हग दिया.अफवाहों द्वारा बात का बतंगड बनना. एक पंडित जी जंगल में शौच के लिए गए और एक पेड़ के नीचे बैठ कर शौच करने लगे. पेड़ के ऊपर एक कौआ बैठा था. पंडित जी मलत्याग कर के उठे तभी संयोग से कौए का एक बड़ा सा पंख उन के मल पर आ कर गिर गया. पंडित जी की नज़र मल पर पड़ी तो उस में कौए का पंख दिखाई दिया. पंडित जी को यह वहम हो गया कि यह पंख उन के पेट से निकला है. घर आ कर उन्होंने पंडितानी को यह बात बताई. आधी अधूरी बात एक कामवाली के कानों में पड़ी. उसने किसी दूसरे को बताई, दूसरे ने तीसरे को बताई. उड़ते उड़ते यह बात फ़ैल गई कि पंडित जी ने कौआ हग दिया.
  12. पंडित जी बैंगन वातल हैमुझे नहीं औरों को.पंडित लोग अपने फायदे के लिए उपदेशों को घुमा फिरा लेते हैं. एक पंडित जी बैंगन की बहुत सी बुराइयाँ बताया करते थे. किसी जजमान के घर गए तो वहाँ बढ़िया घी में तर बैंगन का भर्ता बना था. भोजन करने बैठे तो जजमान ने उन्हें भर्ता नहीं परोसा. कहा – पंडित जी बैंगन तो वायु करता है. पंडित जी बोले – मुझे नहीं औरों को.
  13. पंडित बांचें पोथी लेखाकबिरा बांचें आँखों देखा.पंडित तो पोथी में लिखा हुआ पढ़ कर ज्ञान की बात करते हैं लेकिन कबीरदास आँखों से देख कर और अनुभव द्वारा प्राप्त ज्ञान की बात करते हैं. सही बात यही है कि पोथियों में लिखे ज्ञान के मुकाबले धरातल का व्यवहारिक ज्ञान अधिक महत्वपूर्ण है.
  14. पंडित भूलें तो राह कैसे मिले.मार्ग दिखाने वाला ही मार्ग भूल जाए तो रास्ता कैसे मिलेगा.
  15. पंडित सोई जो गाल बजावा.गाल बजाना – अपनी प्रशंसा करना. जो पंडित अपने बारे में बढ़ चढ़ कर हांकता है, उसे ही लोग विद्वान समझते हैं.  
  16. पंडित, सूर, सुजानवर, रूपवती तिय जान, जहाँ जहाँ ये पग धरें, वहाँ वहाँ सम्मान.विद्वान व्यक्ति, शूरवीर, बुद्धिमान व्यक्ति और रूपवती स्त्री का हर जगह सम्मान होता है.
  17. पंद्रह बुलाए आये बीस, घर के मिल कर हो गए तीस.घर के किसी आयोजन में थोड़े लोग बुलाओ तब भी बहुत लोग हो जाते हैं.
  18. पंसेरी में पांच सेर की भूल.पंसेरी माने पांच सेर. पांच सेर तोलने में दो चार छटांक की भूल हो जाए तो माफ़ की जा सकती है, लेकिन अगर पांच सेर की भूल हो तो कोई कैसे मान जाएगा. 
  19. पंसेरी वाली भी दुह लेता है और पाव वाली भी.जो भ्रष्ट हाकिम अमीर गरीब सब से रिश्वत ले लेता हो. पंसेरी वाली – पांच सेर दूध देने वाली गाय, पाँव वाली – पाँव भर दूध देने वाली गाय.
  20. पकाय सो खाय नहीं, खाय कोई औरदौड़े सो पाय नहीं, पाय कोई और.जिसने पकाया उसे नहीं मिला किसी और को खाने को मिला. जिसने दौड़ भाग की उसे नहीं किसी और को लाभ हो गया. जिसके भाग्य में कोई चीज़ नहीं होती वह उसे नहीं मिल सकती.
  21. पके आम सुहावन, पके मर्द छिनावन.आम पक कर मीठा और आकर्षक हो जाता है जबकि पुरुष पक कर (वृद्ध हो कर) अप्रिय हो जाता है.
  22. पक्का होना चाहे तो पक्के के संग खेलकच्ची सरसों पेर के खली होय न तेल.अगर आप किसी काम में दक्ष होना चाहते हैं तो अनुभवी व्यक्ति के साथ काम कीजिए, कोई खेल सीखना चाहते हैं तो अनुभवी खिलाड़ी के साथ खेलिए. बात को समझाने के लिए सरसों का उदाहरण दिया गया है. सरसों पक जाए तभी उसको पेरने से तेल और खली मिलती है.
  23. पक्के घड़े में जोड़ नहीं लगता.कच्चा घड़ा चटक जाए तो उस में जोड़ लगाया जा सकता है या टेढ़ा हो तो उसे सीधा किया जा सकता है लेकिन पक्के घड़े को न तो सीधा किया जा सकता है न ही उस में पैबंद लग सकता है. छोटे बच्चे के विचारों को प्रभावित किया जा सकता है, बड़े आदमी की मान्यताओं को नहीं.
  24. पग पवित्र तीरथ गवनकर पवित्र कछु दानमुख पवित्र तब होत हैभज ले जब भगवान.पैर तभी पवित्र होते हैं जब आप उन से चल कर तीर्थ करने जाते हैं, हाथ दान देने से पवित्र होते हैं और मुख तब पवित्र होता है जब आप भगवान का नाम लेते हैं.
  25. पग बिन कटे न पंथ.बिना पहला पग बढ़ाए रास्ता नहीं कटता है. अर्थात काम कितना भी बड़ा क्यों न हो जब तक आरम्भ ही न किया जाए, पूरा कैसे होगा.
  26. पगड़ी की साख से घाघरी की साख ज्यादा प्यारी.जिसे अपने कुल की साख से पत्नी और ससुराल अधिक प्यारी हो.
  27. पगड़ी गई ऐसी तैसी में, सिर तो बच गया.इज्जत चली गई तो क्या हुआ, जान तो बच गई. कुछ लोग इस के विपरीत सोचते हैं – सिर चला जाए, इज्ज़त नहीं जानी चाहिए. 
  28. पगड़ी दोनों हाथों से संभाली जाती है.बहुत मेहनत से इज्जत बचाई जाती है.
  29. पगड़ी रखघी चख. घी चखने का अर्थ है मौज उड़ाना. मौज उड़ाओ लेकिन पगड़ी सम्भाल कर (अपने सम्मान पर ठेस मत आने दो). 2. सम्मान की परवाह मत करो, पगड़ी नीचे रखो और मौज उड़ाओ..
  30. पगड़ी रहे या जाएसर सलामत रहना चाहिए.जहां इज्जत बचाने के चक्कर में जान जा रही हो वहाँ कुछ लोग तो कहते हैं कि जान जाए पर इज्ज़त न जाए. कुछ लोग कहते हैं कि यदि जान बची रहे तो प्रतिष्ठा तो फिर भी प्राप्त की जा सकती है इस लिए पहले जान बचाओ.
  31. पगले आग मत लगा देनाभली याद दिलाई.उल्टी खोपड़ी के आदमी से जिस काम के लिए मना करो वही करता है.
  32. पगले सबसे पहले. मूर्ख व्यक्ति भला बुरा विचार किये बिना हर काम में कूद पड़ता है. 2. कहीं भी कोई आयोजन हो रहा हो, उस में पगले लोगों को पहले पूछना चाहिए, क्योंकि वे रायता फैला सकते हैं. 
  33. पचै सो खाए, रुचै सो बोले.भोजन वही करना चाहिए जो आसानी से पच जाए. बोलना वही चाहिए जो सब को अच्छा लगे.
  34. पछवा चलेखेती फले.खेती के लिए पछवा हवा (पश्चिम से आने वाली शुष्क हवा) लाभदायक होती है.
  35. पछुआ हवा उसावे जोईघाघ कहें घुन कबहु न होई.ओसाना – अनाज को हवा में उड़ा कर भूसी को अलग करना. पछवा हवा में अनाज को ओसाया जाए तो उसमें घुन नहीं होता.
  36. पजामे का कोई जिकर नहीं.किसी व्यक्ति के घर उसका एक मित्र आया. मित्र को उस शहर में कुछ लोगों से मिलने जाना था लेकिन रास्ते में उसका पजामा कीचड़ से गंदा हो गया था. उस व्यक्ति ने नया पजामा मित्र को पहनने को दिया और दोनों लोग चल पड़े. रास्ते में उसे लगा कि मित्र का पजामा बहुत अच्छा लग रहा है जबकि उस का पजामा घटिया लग रहा है. जिन पहले सज्जन के घर ये लोग पहुँचे वहाँ उसने अपने मित्र का परिचय कराया कि ये मेरे मित्र फ़लाने फ़लाने हैं, अमुक शहर से आये हैं और ये जो पजामा पहने हैं ये मेरा है. मित्र ने बाहर निकल कर कहा, यार यह कहने की क्या जरूरत थी कि पजामा तुम्हारा है. दूसरे घर में गए तो वहाँ उन्होंने अपने मित्र का परिचय कराया और बोले कि जो पजामा ये पहने हैं ये इन्हीं का है. बाहर निकल कर मित्र ने फिर कहा कि यार यह अजीब बात है. यह कहने की क्या जरूरत है की पजामा मेरा है या तुम्हारा है. तीसरे घर में उन सज्जन ने मित्र का परिचय कराया और कहा कि ये पजामा न इनका है न मेरा है. मित्र बाहर निकल कर बहुत बिगड़े. बोले तुम पजामे का जिक्र ही क्यों करते हो. चौथे घर में उन्होंने मित्र का परिचय कराया कि ये श्री फलाने हैं, अमुक शहर से आए है और पजामे का कोई जिकर नहीं.
  37. पटको तुम, मूछें हम उखाड़ें.पुराने जमाने में मूंछें उखाड़ना किसी का सब से बड़ा अपमान माना जाता था. जानी दुश्मनों के साथ ही ऐसा बर्ताव किया जाता था. कोई चतुर व्यक्ति अपने साथ वालों को उकसा रहा है कि तुम फलाने को पटक दो तो हम उस की मूँछ उखाड़ देंगे. किसी को खतरनाक काम के लिए उकसाना और खुद उस का श्रेय लेना.
  38. पट्ठों की जान गईपहलवान का दांव ठहरा.पहलवान अपने चेलों और चमचों पर अपने दांव आजमाते हैं, उसी पर कहावत.
  39. पठान का पूतघड़ी में औलियाघड़ी में भूत.पठान का व्यवहार बड़ा विचित्र और अनुमान से परे होता है. वह कभी कुछ हो जाता है कभी कुछ.
  40. पठानों ने गाँव मारा, जुलाहों की चढ़ बनी.बहादुर लोग कोई वीरतापूर्ण काम करते हैं और कायर लोग उसका फायदा उठाते हैं. 
  41. पड़वा पाठ भुलावेछोरों को खिलावे.पुराने समय की मान्यता है कि पड़वा के दिन पढ़ाई करने से विद्यार्थी पाठ भूल जाता है. कुछ लोग केवल दीपावली की पड़वा के लिए ही ऐसा कहते हैं.
  42. पड़िया के साथ भैंस मुफ्त.आम तौर पर किसी बड़ी चीज़ के साथ छोटी चीज मुफ्त मिलती है. जहाँ छोटे लाभ के साथ बड़ा लाभ स्वत: ही हो रहा हो वहाँ यह कहावत कही जाती है. भोजपुरी में इस कहावत को इस प्रकार कहते हैं – पड़िया मोल भैंस सुगौना. 
  43. पड़ी लकड़ी कौन उठाए.व्यर्थ की मुसीबत कौन मोल ले.
  44. पड़ोसी के घर में बरसेगा तो बौछार यहाँ भी आयेगी.पड़ोसी की तरक्की से जलने के स्थान पर यह सोचना चाहिए कि पड़ोसी के घर समृद्धि आएगी तो हमें भी कुछ न कुछ लाभ होगा.
  45. पडोसी से प्रेम रखोपर बीच की दीवार न तोड़ो.पड़ोसियों से सद्भाव बना कर रखना चाहिए और उनके सुख दुःख में सम्मिलित भी होना चाहिए लेकिन थोड़ी दूरी भी बना कर रखना चाहिए.
  46. पढ़ा लिखा जाटसोलह दूनी आठ.पहले के जमाने में जाट लोगों में खेती का चलन ज्यादा था, पढ़ाई लिखाई का कम. इसी बात को लेकर लोगों ने उनका मजाक उड़ाने की कोशिश की है. व्यवहारिक रूप में इस कहावत का प्रयोग केवल जाटों के लिए नहीं करते हैं. कोई भी पढ़ा लिखा व्यक्ति यदि बचकाना और बेवकूफी की बात कर रहा हो तो यह कहावत कही जा सकती है.
  47. पढ़ि पढ़ि के पत्थर भया लिख लिख भया ज्यूँ ईंट, कहें कबीरा प्रेम की लगी न एको छींट.पढ़ लिख कर यदि मनुष्य ईंट पत्थर जैसा निर्बुद्धि बन जाए,  तो ऐसे ज्ञान का क्या लाभ.
  48. पढ़े घर की पढ़ी बिल्ली.जिस खानदान में कुछ लोग पढ़ लिख जाते हैं उस घर के सभी लोग अपने को बहुत काबिल समझने लगते हैं. उनका मज़ाक उड़ाने के लिए.
  49. पढ़े तो हैं गुने नहीं.गुनना – व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त करना. पढ़ा पर गुना नहीं हो तो किस काम का. किसी राज पुरोहित का बेटा काशी से पढ़ कर आया. राजा ने उस की योग्यता की परीक्षा लेने के लिए पूछा, बताओ मेरी मुट्ठी में क्या है. उसने अपनी विद्या के बल पर बताया, कोई सफ़ेद पत्थर की गोल चीज़ है जिसके बीच में छेद है. राजा ने कहा, क्या हो सकता है? वह बहुत देर तक सोचता रहा कि इस तरह की गोल चीज़ क्या हो सकती है, फिर बोला – आपके हाथ में चक्की का पाट होगा. राजा हँस पड़ा. उस ने मुट्ठी खोली, उस में एक मोती था. 
  50. पढ़े तोता पढ़े मैनाकहीं सिपाही का पूत भी पढ़ा है.एक बार को तोता और मैना पढ़ सकते हैं पर सिपाही का बेटा नहीं पढ़ के देता (वह रिश्वत की कमाई से बिगड़ जाता है और अपने पिता की ताकत के नशे में चूर रहता है).
  51. पढ़े न लिखेनाम विद्यासागर.गुण के विपरीत नाम.
  52. पढ़े फारसी बेचें तेलये देखो कुदरत का खेल.पहले जमाने में सामान्य लोग उर्दू पढ़ते थे. जिनको ज्यादा पढ़ना होता था वे उसके बाद फारसी पढ़ते थे. मतलब यह कि फारसी एक प्रकार की उच्च शिक्षा थी. फारसी पढ़ने के बाद लोगों को नौकरी इत्यादि मिल जाया करती थी. अब यदि कोई किस्मत का मारा फारसी पढ़ने के बाद भी तेल बेच रहा हो तो यह कहावत कही जाएगी. अर्थ है कि कोई उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति बदकिस्मती से बहुत छोटा मोटा काम करने पर मजबूर है.
  53. पढ़े वेदजोते खेत.उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद कोई छोटा मोटा काम करना.
  54. पढ़े से विद्या, किए से खेती.जिस प्रकार किसी दूसरे के पढ़ने से हमें विद्या नहीं आ सकती (अपने आप पढ़ने से ही आएगी) उसी प्रकार किसी दूसरे के करने से खेती नहीं हो सकती.
  55. पढे सो पंडित होय.जो पढ़े लिखेगा वही विद्वान बनेगा.
  56. पढों में अनपढ़जैसे हंसों में कौवा.बहुत से शिक्षित व्यक्तियों के बीच में एक अनपढ़ व्यक्ति वैसा ही है जैसे हंसों के बीच में कौवा.
  57. पतली देह अन्न की खान.जो आदमी दुबला पतला हो पर खाता अधिक हो.
  58. पति तो पूजे देव कोभूतन पूजे जोयएकै घर में दो मताकुसल कहाँ से होय.पति देवता की पूजा करता है और पत्नी भूतों की. जब पति पत्नी दोनों के मत और विश्वास एक दूसरे से एकदम उल्टे हों तो उन में नहीं निभ सकती.
  59. पति भूखा तो माथा दूखे, अपनी भूखों चूल्हा फूंके.उन कामचोर स्त्रियों के लिए जो पति का काम करने में बहाने बनाएँ और अपना स्वार्थ पूरा करती रहें. माथा दूखे – सर में दर्द. 
  60. पतिबरता भूखी मरे, पेड़े खाए छिनार.पतिव्रता स्त्री भूखी मरती है और चरित्रहीन स्त्रियों को पेड़े खाने को मिलते हैं. ईमानदार आदमी को रोटी मिलना मुश्किल है और धूर्त लोग मजे मार रहे हैं.
  61. पतीली न जाने खाने का स्वाद.पतीली सब के लिए खाना बनाती है पर स्वयं उस का स्वाद नहीं ले सकती. मेहनतकश लोग सुख सुविधा के सारे साधन बनाते हैं पर स्वयं उन का आनंद नहीं ले पाते हैं.
  62. पतुरिया का डेराजैसे ठगों का घेरा.पतुरिया – चरित्रहीन स्त्री. ऐसी स्त्री अपने मोहजाल में फंसा कर व्यक्ति का धन सम्मान सब ठग लेती है.
  63. पतुरिया रूठीधरम बचा.चरित्रहीन स्त्री अगर आपसे रूठ जाए तो यह समझो कि आपका धर्म बच गया (क्योंकि उसके चक्कर में पड़ कर तो धर्म भ्रष्ट होना ही था).
  64. पत्ता खटकाबंदा सटका.डरपोक लोगों के लिए जो पत्ता खड़कने की आवाज सुन कर ही सरक लेते हैं.
  65. पत्ता खड़कल बाभन हड़कल.(भोजपुरी कहावत) ब्राह्मण इतने डरपोक होते हैं कि पता खड़कने से भी डर जाते हैं.
  66. पत्थर को जोंक नहीं लगती.किसी भी समाज में मुफ्तखोर लोग जोंक के समान होते हैं जो कि समाज के अन्य लोगों का खून चूसते हैं. ये आपसे हर समय कुछ न कुछ सहायता मांगते रहते हैं और अगर आप मना करते हैं तो उलटे आपको ही पत्थर दिल कहते हैं. ऐसे लोगों से निबटने के लिए पत्थर दिल बनना ही अच्छा रहता है.
  67. पत्थर नीचे हाथ दबे, तो चतुराई से काढ़े.किसी बड़ी मुसीबत में फंसने पर बहुत होशियारी से उससे निकलने की कोशिश करना चाहिए. 
  68. पत्थर से पत्थर टकराता है तो चिंगारियां निकलती हैं.जब दो विकट योद्धा लड़ते हैं तो लड़ाई भीषण होती है.
  69. पर उपदेश कुशल बहुतेरे(जे आँचरन्हि ते नर न घनेरे).दूसरों को उपदेश देना बहुत आसान है. ऐसे लोग बहुत कम होते हैं जो स्वयं उन बातों पर अमल करें. अधिकतर इस कहावत का प्रथम भाग ही बोला जाता है.
  70. पर घर कूदें मूसरचंद.जो बिना निमन्त्रण किसी के घर जाएं या बिना सहायता मांगे सहायता करने पहुँच जाएँ.
  71. पर घर नाचें तीन जनकायस्थबैददलाल.कायस्थ (कचहरी में काम करने वाले पेशकार व अन्य मुलाजिम), वैद्य और दलाल ये दूसरों के धन पर ऐश करते हैं.
  72. पर धन बांधे मूरखचंद.(पर धन राखें मूरखचंद). पराई धरोहर की चौकीदारी करना मूर्खता का काम है. इससे आप को लाभ तो कुछ नहीं होता, उलटे खतरा और होता है.
  73. पर नारी पैनी छुरीमत कोई लावो संगदसों सीस रावन के ढह गएपर नारी के संग.पराई स्त्री पैनी छुरी की भाँति खतरनाक है. पराई स्त्री का अपहरण करने के कारण रावण के दसों सर कट गए.
  74. परखना हो किसी को तो उस के यार देख लो. यदि किसी व्यक्ति की सच्चाई जाननी हो तो यह मालूम करो कि उसके मित्र किस बौद्धिक और सामाजिक स्तर के हैं. इंग्लिश में इस आशय की एक कहावत है – Man is known by the company he keeps.
  75. परजा जड़ है राज कीराजा है ज्यों रूखरूख सूख कर गिर पड़ेजब जड़ जावे सूख.राजा को यह नहीं भूलना चाहिए कि यदि वह पेड़ के समान है तो प्रजा उसकी जड़ है. यदि प्रजा कष्ट में रहेगी तो राजा का उसी प्रकार नाश हो जाएगा जैसे जड़ सूख जाने से पेड़ सूख जाता है.
  76. परजा भागे छोड़ कर कुन्यायी का गामचहूँ ओर जग में करे फेर उसे बदनाम.अन्यायी राजा के राज्य को लोग छोड़ कर भागने लगते हैं और उसे बदनाम करते हैं.
  77. परदे की बीवी और चटाई का लहंगा.किसी कुलीन महिला द्वारा सस्ता और फूहड़ता से भरा पहनावा धारण करना.
  78. परदेशी की प्रीतफ़ूस का तापना.फूस में आग लगाते ही वह एकदम से जल उठता है और बहुत कम समय में खत्म हो जाता है. परदेसी आदमी की प्रीत भी इसी प्रकार अल्प कालिक होती है.
  79. परदेस कलेस नरेसन को. राजा और बड़े हाकिम दूसरे देश में परेशान रहते हैं क्योंकि उन की पूछ अपने देश में ही होती है.
  80. परदेस में पैसे पेड़ों पर नहीं लगते.जो लोग यह समझते हैं कि विदेश में बहुत कमाई है उन को सीख देने के लिए.
  81. पर नारी पैनी छुरीतीन ओर से खायधन छीजेजोवन हरेपत पंचों में जाय.पराई नारी से आसक्ति पैनी छुरी से खेलने के समान है. उससे धन और यौवन का ह्रास होता है और पंचों (समाज के प्रतिष्ठित लोगों) के बीच प्रतिष्ठा जाती है. कुछ लोग इस के आगे भी बोलते हैं – जीवत काढ़े कलेजा, अंत नरक ले जाय.
  82. परमात्मा गंजे को नाखून न दे.अगर गंजे के नाखून होंगे तो वह खुजा खुजा कर अपनी खोपड़ी लहूलुहान कर लेगा. (विस्तृत विवरण के लिए देखिए कहावत – खुदा ने गंजे को नाखून नहीं दिए).
  83. परवत पर खोदे कुआँ कैसे निकसे तोय.पर्वत पर कुआँ खोदने पर पानी नहीं मिल सकता. गलत स्थान पर उद्यम करना व्यर्थ जाता है.
  84. परसी थाली देख कर मत चूको बेईमान.बेईमान व्यक्ति बेईमानी करने का कोई मौका नहीं चूकता, ख़ास तौर पर अगर पकी पकाई मिल रही हो तो.
  85. परहथ बनिज संदेसे खेती, बिन वर देखे ब्याहें बेटी, द्वार पराए गाड़ें थाती, ये चारों मिल पीटें छाती.दूसरे के हाथों व्यापार करने वाला, संदेश भेज कर खेती कराने वाला, बिना वर को देखे कन्या का विवाह करने वाला और दूसरे के घर के बाहर अपना धन गाड़ने वाला, ये चारों लोग छाती पीटते हैं.
  86. परहित सरिस धर्म नहिं भाई.परोपकार के समान उत्तम कोई दूसरा धर्म नहीं है. व्यवहार में इतनी ही कहावत बोली जाती है. इसके आगे की पंक्ति इस प्रकार है – पर पीड़ा सम नहिं अधमाई.
  87. पराई आसानित उपवासा.दूसरों के भरोसे रहोगे तो भूखों मरोगे.
  88. पराई नौकरी सांप खिलाने के बराबर है.दूसरे की नौकरी में बहुत खतरे हैं (सब से बड़ा खतरा तो नौकरी जाने का ही है). इसके अलावा कोई भी अनहोनी हो तो उसका ठीकरा नौकर के सर पर ही फोड़ा जाता है.
  89. पराई पत्तल का भात मीठा.मनुष्य को हमेशा यह प्रतीत होता है कि दूसरे लोग उससे अधिक सुखी हैं.
  90. पराई बदशगुनी के वास्ते अपनी नाक कटाई.कुछ लोग इतने नीच प्रवृत्ति के होते हैं कि हमेशा दूसरों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करते हैं चाहे उस प्रयास में अपना नुकसान क्यों न हो जाए.
  91. पराई हंसी गुड़ से भी मीठी.दूसरा व्यक्ति यदि प्रसन्न दिखाई देता है तो हम सोचते हैं कि वह बहुत सुखी है (चाहे वास्तविकता इससे भिन्न हो).
  92. पराए घर में नौ खाटों पर कमर सीधी होती है (दूसरों के घर चार खाटों पर कमर खुले).अपने घर पर आदमी चाहे कैसे भी काम चला ले, दूसरे के घर जाता है तो उसे अतिरिक्त सुविधाएं चाहिए होती हैं.
  93. पराए दुःख में दुखी होने वाले कमपराए सुख में दुखी होने वाले ज्यादा मिलते हैं.किसी दूसरे के दुःख को बहुत कम लोग महसूस करते हैं और ज्यादातर लोग दूसरों को सुखी देख कर दुखी होते हैं.
  94. पराए धन पर धींगर नाचे.मुस्टंडे लोग दूसरों के धन पर मौज करते हैं. 
  95. पराए धन पर लक्ष्मी नारायण.दूसरों का धन बांट कर अपने को बड़ा दानी सिद्ध करना.
  96. पराए पीर को मलीदाघर के देव को धतूरा.दूसरों के लिए पूजनीय किसी व्यक्ति का सम्मान करना और अपने देवताओं का अपमान करना.
  97. पराए पूत किसको कमा कर देते हैं.किसी दूसरे को कमा कर देना कोई नहीं चाहता.
  98. पराए पूतन सपूती होए.दूसरे की संपत्ति से अपने को धनवान समझने की मूर्खता. पराए पूतन – दूसरे के पुत्रों से, सपूती – पुत्रवती.
  99. पराए भरोसे खेला जुआआज न मुआ कल मुआ.दूसरे पर विश्वास कर के जुआ खेलने वाला बर्बाद हो जाता है. पैसा उधार ले कर जुआ खेलने से भी मतलब हो सकता है.
  100. पराए माथे पर सिल फोड़े.अपना गुस्सा दूसरों पर निकालना.
  101. पराधीन दोनों सदाजग में बेटी बैल.बेटी सदा दूसरों के आधीन रहती है, पहले पिता के घर में और फिर ससुराल में. इसी प्रकार बैल भी अपनी जीविका के लिए दूसरों के आधीन होता है. ये दोनों ही अपनी मर्जी से कुछ नहीं कर सकते.
  102. पराधीन सपनेहूँ सुख नाहिं.दूसरे की गुलामी करने वाले को कभी सुख नहीं मिल सकता (सपने में भी नहीं). 
  103. पराया खाइए गा बजाअपना खाइए सांकल लगा.सांकल लगा कर कोई काम करने का अर्थ है घर के दरवाजे की कुंडी बंद कर के अर्थात बिना किसी को बताएकिसी दूसरे की दी हुई चीज़ खा कर खूब प्रशंसा कीजिए पर अपने घर में क्या खाते हैं यह किसी को नहीं बताना चाहिए.
  104. पराया धर थूकने में भी डरअपना घर हग जी भर.पराए घर में कोई भी काम डर डर कर करना पड़ता है, अपने घर में कोई भी काम हो और कैसा भी काम हो पूरी आज़ादी रहती है.
  105. पराया माल, जी का जंजाल.किसी दूसरे का कोई कीमती सामान अपने घर में रखना बहुत झंझट का काम है. उसकी बहुत चौकीदारी करनी पड़ती है और यदि खो जाए तो बहुत लानत मलानत होती है.
  106. पराया मालपूंछ का बाल.दूसरे की सम्पत्ति को उतना ही तुच्छ समझना चाहिए जितना किसी पशु की पूंछ का बाल. संस्कृत साहित्य में भी ‘परद्रव्येषु लोष्टवत्’ समझने की सीख दी गई है.
  107. परिवर्तन संसार का नियम है.संसार में हर वस्तु परिवर्तन शील है, कुछ भी स्थायी नहीं है. इंग्लिश में कहावत है – Change is the law of nature.
  108. पर्दा रहे तो पुन्य, खुल जाए तो पाप.ऐसे दिखावटी पुण्यात्मा लोगों के लिए जो परदे के पीछे पाप करते हैं. (जैसे आजकल के बहुत से ढोंगी धर्मगुरु).
  109. पल का चूका कोसों दूर.मौके पर जरा सी चूक हो जाने पर आदमी अपने लक्ष्य से बहुत दूर भटक सकता है. (जैसे आजकल वन वे ट्रैफिक में होता है, एक कट छूटा और मीलों का चक्कर).
  110. पल पखवाड़ाघड़ी महीनाचार घड़ी का सालकरजदार जब कल कहे तो ताको कौन हवाल.कर्जदार पैसा वापस करने की मियाद को टालता रहता है. वह एक पल कहता है तो पखवाड़ा निकाल देता है, एक घड़ी कह कर महीना बिता देता है और चार घड़ी कह कर साल निकाल देता है. अगर वह एक साल कह रहा है तब तो न जाने कभी देगा भी या नहीं.
  111. पल्ले में रुपया हो तो जंगल में मंगलजिसके पास धन है वह कहीं भी उत्सव मना सकता है.
  112. पशु का सतानानिरा पाप कमाना.बेजुबान पशुओं को सताने से बहुत पाप लगता है.
  113. पसु पच्छी हू जानिहैं अपनी अपनी पीर.अपनी अपनी पीड़ा को पशु पक्षी भी जानते हैं.
  114. पहने ओढ़े नारी, लीपे पोते घर.स्त्री पहन ओढ़ कर अच्छी लगती है और घर लीपने पोतेने के बाद.
  115. पहलवानी पचाय कीरईसी बचाय की.पहलवान वही बन सकता है जो अच्छी खुराक खाए और उसे पचा ले, धनवान वही बन सकता है जो अपनी कमाई में से बचत करे. 
  116. पहला सुख निरोगी कायादूजा सुख घर में हो मायातीजा सुख पतिव्रता नारीचौथा सुख सुत आज्ञाकारी.किसी भी मनुष्य के लिए चार सुख सबसे बड़े माने गए हैं – पहला स्वस्थ शरीर, दूसरा सुख घर में धन संपदा, तीसरा सुख पतिव्रता पत्नी और चौथा सुख आज्ञाकारी पुत्र. इन के ऊपर तीन सुख और बताए गए हैं – पांचवां सुख राज सम्माना, छटवां सुख कुटुम्बी नाना, सातवाँ सुख धरम रति होई, तासे स्वर्ग धरनि पर होई. 
  117. पहला सुख निरोगी काया.संसार में भांति भांति के सुख माने गए हैं पर सब से बड़ा सुख है स्वस्थ शरीर (क्योंकि स्वस्थ शरीर के बिना आप अन्य सभी सुखों का उपभोग नहीं कर सकते).
  118. पहले अपना आगा ढंकोपीछे किसी को नसीहत करो.पहले अपने अंदर जो कमियाँ हों उन्हें छिपाओ या दूर करो, फिर किसी को उपदेश दो.
  119. पहले आत्माफिर परमात्मा.पहले जीविका का प्रबंध करो, फिर भगवान की भक्ति करना संभव हो पाएगी.
  120. पहले आप पहले आप में गाड़ी छूटी.दो तकल्लुफी लोग गाड़ी पकड़ने के लिए गए. दोनों एक दूसरे से आग्रह करते रहे कि पहले आप चढ़ें. इसी औपचारिकता में गाड़ी छूट गई.
  121. पहले आपफिर बाप.आजकल की संतानें अपना पेट भरने के बाद ही माँ बाप के विषय में सोचती हैं.
  122. पहले गस्से में मक्खी (पहले गस्से में बाल).किसी कार्य के आरंभ में ही कोई अनर्थ हो जाए तो. मूलत: यह संस्कृत की कहावत है – प्रथम ग्रासे मक्षिका पात.
  123. पहले चारा भितरफिर देवता पितर.इंसान पहले खाने की चिंता करता है उसके बाद उसे देवता और पितृ याद आते हैं.
  124. पहले चुम्मे गाल काटा.आरंभ में ही धोखा दे दिया. चुम्मा – चुम्बन.
  125. पहले ढोर चराते थे अब कान काटते हैं.बहुत मामूली व्यक्ति यदि किसी महत्वपूर्ण और प्रभावी पद पर पहुँच जाए तो (जैसे कुछ क्षेत्रीय राजनीति करने वाले शातिर नेता).
  126. पहले तो वह रीझ थीअब क्यों ऐसी खीज.स्त्रियाँ अक्सर अपने पतियों से पूछती हैं कि पहले तुम्हें इतना प्रेम था कि तुम हर बात पर रीझ जाते थे, अब क्यों इतना खीजते हो.
  127. पहले तोलोपीछे बोलो.कोई बात बोलने से पहले उस पर मनन अवश्य कर लेना चाहिए.
  128. पहले दहीजमाय के पीछे कीन्ही गाय. दही जमाने का इंतजाम करने के बाद गाय पाल रहे हैं. बिना योजना के काम करना.
  129. पहले नेगपीछे गीत.विवाह आदि में जो लोग मंगल गीत आदि गाते हैं उन्हें विवाह के बाद नेग (रुपये, अनाज, कपड़े आदि) दिया जाता है. यदि कोई पहले नेग लेने की बात कहे तो यह उल्टी बात हुई.
  130. पहले पहरे हर कोई जागेदूजे पहरे भोगीपहर तीसरे चोर जागेचौथे पहर जोगी.रात्रि के चार प्रहर के बारे में बताया गया है, पहले प्रहर हर कोई जागता है, दूसरे प्रहर में भोगी लोग जाग कर भोग का आनंद उठाते हैं, तीसरे प्रहर सब गहरी नींद सोते हैं इसलिए चोर जाग कर चोरी करते हैं. चौथे प्रहर में योगी लोग जाग कर ध्यान और पूजन करते हैं.
  131. पहले पहुंचेमन भर खाए.दावत में जो पहले पहुँचता है उसे हमेशा लाभ होता है. इंग्लिश में कहते हैं -Early bird catches the worm. या First come first served.
  132. पहले पिए जोगी, बीच में भोगी, पीछे रोगी.योगी लोग खाना खाने के पहले पानी पीते हैं और भोगी लोग बीच में. जो खाने के बाद पानी पीते हैं वे सदैव रोगी रहते हैं.
  133. पहले पेट पूजाफिर काम दूजा.बिना पेट भरे कोई काम ठीक से नहीं हो सकता.
  134. पहले बोपहले काट.खेती में जो पहले बोता है वह पहले फसल भी काटता है. पहले काम करने वाला हमेशा लाभ में रहता है.
  135. पहले भात खवाय के पीछे मारी लात.पहले दिखावटी प्रेम दिखा के फिर अपमान करना.
  136. पहले भोजन फिर स्नानफिर टट्टी फिर सालिगराम.कायदे से हम पहले शौचादि से निवृत्त हो कर स्नान करते हैं, फिर भगवान की पूजा करते हैं और बाद में भोजन करते हैं. कहावत में आजकल की पीढ़ियों का जिक्र है जो सब काम उलटे करती हैं.
  137. पहले मार पीछे संवार.मौका मिलने पर पहले ठुकाई कर दो और बाद में बात को संभाल लो.
  138. पहले लिख ले पीछे देभूल पड़े कागज़ सूँ ले.किसी को रुपया पैसा या कोई चीज़ उधार देनी हो तो पहले लिख कर रखो उसके बाद दो. कभी भूल पड़े (आप स्वयं भूल जाओ या लेने वाला आनाकानी करे) तो यही लिखा हुआ काम आता है.
  139. पहलो मूरख फांदे कुआँदूजो मूरख खेले जुआतीजो मूरख बहन घर भाईचौथो मूरख घर जमाई.महा मूर्खों के चार प्रकार बताए गए हैं – पहला वह जो कुआँ फांदे (जरा सी चूक हुई और कुएँ में गया), दूसरा वह जो जुआ खेले (बर्बादी का पूरा प्रबंध), तीसरा वह जो विवाहित बहन के घर स्थायी रूप से रहे (उसकी कोई इज्ज़त नहीं होती) और चौथा वह जो घर जमाई बन कर ससुराल में रहे (घरेलू नौकर से भी बुरा हाल होता है).
  140. पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी पहाड़ के काम नहीं आते.पहाड़ का पानी नीचे को बह जाता है और पहाड़ी युवक काम की तलाश में मैदानी इलाकों में चले जाते हैं.
  141. पहाड़ दूर से ही सुहाने लगते हैं.जो लोग पहाड़ पर नहीं रहते उन्हें पहाड़ों पर जाना और घूमना बहुत अच्छा लगता है, पर जो लोग वहाँ रहते हैं उन्हें मालूम है कि पहाड़ का जीवन कितना कठिन है.
  142. पहाड़ भले ही टले फ़क़ीर न टले.भिखारी आसानी से नहीं हटता, कुछ ले कर ही टलता है.
  143. पहाड़ों से छाया नहीं होती.कहने को पहाड़ इतने बड़े होते हैं पर आप चाहें कि उन की छाया में खड़े हो जाएँ तो यह नहीं हो सकता. जो बड़ा आदमी किसी के काम न आता हो उस पर व्यंग्य.
  144. पहिला गाहक, परमेसुर बराबर.दुकानदार प्रत्येक दिन के अपने पहले ग्राहक को बहुत शुभ मानते है.
  145. पहिले जागे पहिले सोवेजो वह चाहे वाही होवे.जो पहले सोता है और पहले जागता है वह सदैव सफल होता है. इंग्लिश में कहावत है – Early to bed and early to rise, makes a man healthy wealthy and wise.
  146. पहिले दिन पहुना, दूसरे दिन ठेहुना, तीसरे दिन केहुना.इंग्लिश में कहावत है –Fish and guest, smell in three days.
  147. पहिले भातपीछे बात.पहले पेट भरेगा तभी कुछ बात समझ में आएगी.
  148. पाँच पंच मिल कीजे काजाहारे-जीते कुछ नहीं लाजा.बहुत से लोग मिल कर कोई काम करते हैं तो हानि लाभ की जिम्मेदारी किसी की नहीं होती.
  149. पाँच पहर धंधे गयातीन पहर गया सोयएक पहर हरिनाम बिनमुक्ति कैसे होय.दिन रात मिला कर आठ पहर (प्रहर) होते हैं. इन में से पांच पहर धंधे पानी में लगा दिए और तीन पहर सो गया. कुछ समय निकाल कर एक पहर तो अच्छे कामों में लगा, वरना मुक्ति कैसे होगी. 
  150. पाँच भाई पाँच ठौरमौका पड़े तो एक ठौर.आजकल के युग में सब भाइयों का एक ही घर में रहना तो संभव नहीं है पर समझदारी इस में है कि वे अलग अलग रहते हुए आवश्यकता होने पर एकजुट हो जाएं.
  151. पाँच महीने ब्याह के बीतेपेट कहाँ से लाई.गर्भवती स्त्रियों का पेट छह माह के गर्भ के बाद बाहर निकला दिखाई देता है. किसी स्त्री के विवाह को पाँच महीने ही हुए हैं और उस का पेट निकला दिखाई दे रहा है तो अन्य स्त्रियाँ उस से पूछ रही हैं. किसी को नौकरी करते हुए साल दो साल ही हुआ हो और वह बहुत पैसा इकठ्ठा कर ले मजाक में यह कहावत कही जा सकती है.
  152. पाँच साल की बाला का बेटा बारह साल का.असम्भव और हास्यास्पद बात.
  153. पाँचों उँगलियों से पाहुंचा भारी.एकता में शक्ति है.
  154. पाँचों उंगलियाँ एक सी नहीं होतीं.किसी घर में या समाज में सभी व्यक्ति एक से नहीं होते.
  155. पाँचों पांडव छठे नारायण. 1. जो समूह भगवान् की प्रेरणा से कार्य करे. व्यंग्य में – ये पांच पांडव क्या कम थे जो इन के गुरु घंटाल छठे नारायण और आ गए.
  156. पांच कोस प्यादा रुकेदस कोस असवारया तो नार कुभार्याया नामर्द भतार.कहीं बाहर से घर लौट कर आने वाला व्यक्ति घर पहुँचने के लिए बहुत उतावला होता है. लेकिन अगर पैदल चल कर घर लौटने वाला व्यक्ति (प्यादा) शाम होने के कारण घर से पांच कोस पहले ही रुक जाए, और घोड़े पर सवार हो कर आने वाला यदि दस कोस पहले रुक जाए तो इसका अर्थ यह है कि या तो पत्नी में या पति में कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है.
  157. पांच में तीन उठाऊं और दो में हिस्सा लूँ.कोई व्यक्ति हिस्से बांटे में दबंगई कर के ज्यादा हिस्सा हड़पना चाहता हो तो यह कहावत कही जाती है. 
  158. पांच रुपया शंकर और पच्चीस रूपये नंदी को.उलटी बात. कोई बड़े अफसर को कम रिश्वत दे और उसके मातहत को बहुत अधिक तो यह कहावत कही जाएगी.
  159. पांचो उँगलियाँ घी में.अत्यधिक लाभ की स्थिति. घी के डब्बे में से कम घी निकालने के लिए एक उंगली से घी निकाला जाता है. अगर कोई पाँचों उंगलियाँ डाल कर घी निकाल रहा हो तो इसका मतलब हुआ कि वह बहुत सम्पन्न है. किसी की सम्पन्नता देख कर कोई व्यक्ति ईर्ष्यावश उस से कहता है कि भई तुम्हारी तो पाँचों उँगलियाँ घी में हैं, तो वह जवाब में कहता है – हाँ भई पाँचों उँगलियाँ घी में, सर कढ़ाई में और पैर चूल्हे में हैं (क्योंकि कि उसे धन कमाने के लिए बहुत कष्ट उठाने पड़ते हैं).
  160. पांड़े के घर की बिल्ली भी भगतिन. घर के संस्कारों का असर सभी सदस्यों पर पड़ता है. 2. कपटी पंडित और उसके धूर्त चेलों पर व्यंग्य. 
  161. पांडे जी पछताएंगेवोई चने की खाएंगे (सूखे चने चबाएंगे). कहावत इस आशय में कही जाती है किशुरू में आप कितने भी नखरे करें अंत में मजबूर हो कर आप को यही काम करना पड़ेगा.
  162. पांत में दो भांत कैसी.भोजन करने के लिए पंगत बैठी है तो दो तरह की पंगत क्यों बनाई गई हैं? ऊँच नीच और जात पांत का विरोध करने के लिए.
  163. पांत, कचहरी, रेल में सबसे पहले जाए, जो न माने बात यह सो पाछे पछताए.पांत – पंगत (भोज). खाने की दावत, कचहरी के काम और रेल में चढ़ने के लिए सबसे पहले जाना चाहिए. 
  164. पाऊँ तो रस लाऊँनाहीं तो घर-घर आगी लगाऊँ.फलां चीज़ मुझे मिल जाएगी तो खुश होऊंगा, नहीं मिलेगी तो घर घर आग लगाऊंगा.
  165. पाक रहबेबाक रह.पाप से दूर रह कर पवित्र मन से काम कीजिए तो आप निडर हो कर काम कर सकते हैं.
  166. पके आम का क्या ठीककब टपक जाए.अधिक वृद्ध और बीमार लोगों के लिए ऐसे बोलते हैं.
  167. पागल और सांड के लिए रास्ता छोड़ देना चाहिए.कहावत के द्वारा यह सीख दी गई है कि पागल और सांड से नहीं उलझना चाहिए.
  168. पादें कम कांखें ज्यादा (हगें कम, कांखें ज्यादा).जो लोग काम कम करते हैं शोर ज्यादा मचाते हैं. कांखना – जोर लगाना.
  169. पान पीक सोहे अधर, काजर नैनन जोग.पान की पीक होठों पर ही अच्छी लगती है और काजल आँखों में ही. हर वस्तु अपनी जगह पर ही अच्छी लगती है. 
  170. पान सड़ा क्योंघोड़ा अड़ा क्योंफेरा न था.(यह अमीर खुसरो की एक विशेष प्रकार की पहेली नुमा कहावत है जिसमें दो प्रश्नों का एक ही उत्तर होता है). पान को लम्बे समय तक रखना हो तो उसे बार बार उलट पलट कर रखना होता है. इसे पान को फेरना कहते हैं. घोड़े की थकान दूर करने के लिए मिटटी का बना एक खुरदुरा खरहरा घोड़े के ऊपर फेरा जाता है, इससे घोड़े को बड़ा आराम मिलता है. 
  171. पान सड़ेघोड़ो अड़ेविद्या बीसर जाएरोटी जले अंगार पर, कहु चेला किन दायगुरु जी फेरा न था.ऊपर वाली कहावत में दो बातें और जोड़ दी गई हैं – विद्या क्यों बिसरी (भूली), क्योंकि फेरी नहीं थी (दोबारा नहीं पढ़ी) और रोटी क्यों जली. क्योंकि एक तरफ सिकने के बाद फेरी (पलटी) नहीं थी.
  172. पानी केरा बुदबुदाअस मानस की जातदेखत ही छिप जाएगाज्यों तारा परभात.मनुष्य देह पानी के बुलबुले के समान क्षण भंगुर है.
  173. पानी था सो निकल गयाअब क्या बांधे पाल.वर्षा के पानी को इकट्ठा करने के लिए पाल बांधते हैं. पानी बह जाने के बाद पाल बाँधने से कोई लाभ नहीं होगा. अवसर चूक जाने के बाद प्रयास क्यों कर रहे हो.
  174. पानी पी कर क्या जात पूछना (पानी पी घर पूछनो नाही भलो विचार)अपने स्वार्थ के लिए कुछ भी करना और बाद में भला बुरा विचारना. पहले के जमाने में लोग छुआछूत को बहुत मानते थे. तब उच्च जाति के लोग नीची जाति वाले के हाथ का छुआ हुआ पानी नहीं पीते थे. एक महात्मा जी एक बार प्यास से मर रहे थे, किसी ने उन्हें पानी दिया जो उन्होंने तुरन्त गटागट पी लिया. पानी पी कर पूछते हैं भैया कौन जात हो?
  175. पानी पीकर मूत तोले.बहुत अधिक स्यानपन दिखानेवाले के लिए. वैसे आजकल गुर्दे की बीमारी में ऐसा करना पड़ता है.
  176. पानी पीजेचार महीने डाल काचार महीने पाल काचार महीने ताल का.डाल का और पाल का ये शब्द आम तौर पर फलों के लिए प्रयोग करते हैं. डाल का फल अर्थात तुरंत का तोड़ा हुआ, पाल का मतलब रख कर पकाया हुआ. पानी के लिए कहा गया है कि चैत, बैशाख, जेठ और अषाढ़ घड़े का पानी पीजिए (पाल का). सावन, भादों, क्वार, कार्तिक नल का पानी पीजिए (डाल का) और बाकी चार महीने कुएँ या तालाब का पानी पीजिए (ताल का).
  177. पानी पीये छानकर और जीव मारे जानकर.ढोंगी महात्माओं के लिए.
  178. पानी बाढ़े नाव मेंघर में बाढ़े दामदोनों हाथ उलीचिएयही सयानो काम.यदि आप नाव में जा रहे हैं और उस में पानी भरने लगे तो तुरन्त दोनों हाथों से उसे उलीचना (बाहर फेंकना) आरम्भ कर दीजिए (वरना पानी भरने से नाव डूब जाएगी), इसी प्रकार यदि घर में आवश्यकता से अधिक धन इकट्ठा होने लगे तो उसे दान करना शुरू कर दीजिए.
  179. पानी मथे घी नहीं निकलता.बिना उचित साधनों के कोई कार्य सिद्ध नहीं होता. घी दही को मथने से निकलता है, पानी को मथने से नहीं.
  180. पानी में आग लगाय लुगाई.स्त्रियाँ कहीं भी झगड़ा करा सकती हैं.
  181. पानी में घुस कर कोई सूखा नहीं निकल सकता.इस संसार रूपी भवसागर में कोई व्यक्ति बिल्कुल निश्छल, निष्कपट, निष्पाप हो कर नहीं रह सकता.
  182. पानी में पखानभीगे पर छीजे नहींमूरख के आगे ज्ञानरीझे पर बूझे नही.पखान – पाषाण (पत्थर). पानी में पत्थर भीगता तो है पर गलता नही है. मूर्ख के आगे ज्ञान की बात करोगे तो वह खुश तो होगा, पर समझेगा कुछ नही. 
  183. पानी में पादोगे तो बुलबुले तो उठेंगे ही.कोई गलत काम कितना भी छिप कर करो तो भी औरों को दिखाई दे जाएगा. (भाषा में थोड़ी अभद्रता है पर बात सही है).
  184. पानी में मछली के नौ नौ हिस्सा.मछली अभी पकड़ी भी नहीं है (अभी पानी में ही है) और उस के हिस्से बांटे किए जा रहे हैं. काम पूरा होने से पहले ही लाभ के लिए झगड़ना.
  185. पानी में मीन पियासीमोहे देखत आवे हांसी.सब प्रकार की सुविधाओं के बीच रहते हुए भी मनुष्य की लालसा कम नहीं होती.
  186. पानी में हगा ऊपर आता है.कोई गलत काम छिप कर किया जाए तब भी अंततः सामने आ जाता है. भोजपुरी कहावत – भइंस पानी में हगी त उतरइबे करी.
  187. पाप का घड़ा कभी न कभी फूटता ही है.कोई अत्याचारी, अनाचारी कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो उसका अंत अवश्य होता है.
  188. पाप का घड़ा डूब कर रहता है. (पाप का घड़ा भर कर डूबता है).ऊपर वाली कहावत के समान.
  189. पाप का धनअकारथ जाए.पाप की कमाई अंततः व्यर्थ ही जाती है.
  190. पाप का बाप लोभ.लोभ से पाप पैदा होता है. लालच ही इंसान को पाप करने के लिए प्रेरित करता है. 
  191. पाप की कमाईकुत्ते-बिल्लियों ने खाई. पाप कर के कमाया हुआ धन अंतत: बर्बाद ही हो जाता है.
  192. पाप छिपाए न छिपेजस लहसुन की बास.जैसे लहसुन की गंध छिपाए नहीं छिपती वैसे ही पाप भी नहीं छिपता.
  193. पाप डुबोवे धरम तिरावेधरमी कभी नहीं दुःख पावे.पाप मनुष्य को डुबोता है जबकि धर्म मनुष्य को डूबने से बचाता है. धर्म पर चलने वाला अंततः सुख पाता अवश्य है.
  194. पाप मूल निंदा.किसी की निंदा करना पाप की जड़ है.
  195. पापियों के मारने को पाप महाबली.पापी व्यक्ति अंततः अपने पापों के कारण ही मारा जाता है.
  196. पापी की नावभर कर डूबे.पाप कर्म द्वारा जो सम्पत्ति कमाई जाती है वह अंततः डूब जाती है.
  197. पापी के मन में पाप ही बसे.अर्थ स्पष्ट है.
  198. पापी को माल अकारथ जाएदंड भरे या चोर लै जाए.पाप की कमाई व्यर्थ जाती है. दंड भरने में जाती है या चोर ले जाते हैं.
  199. पार कहें सो आर है आर कहें सो पारपकड़ किनारा बैठ रह यही पार यहि आर.नदी के किनारे बैठा आदमी अपने किनारे को आर कहता है और दूसरे किनारे को पार. दूसरी तरफ बैठा बंदा उस किनारे को आर कहता है और इस किनारे को पार. व्यर्थ के मोहजाल में मत उलझो. कोई एक किनारा पकड़ कर बैठ जाओ, यही आर है और यही पार. 
  200. पारसनाथ से चक्की भली जो आटा देवे पीसकूढ़ नर से मुर्गी भली जो अंडा देवे बीस.पारसनाथ – जैन धर्मावलम्बियों का तीर्थस्थल पारसनाथ पर्वत जो झारखंड में स्थित है. कहावत में कहा गया है कि किसी पवित्र पर्वत के मुकाबले साधारण चक्की अधिक अच्छी है जो आटा पीस देती है. इसी प्रकार किसी बेकार के मनुष्य के मुकाबले मुरगी अधिक अच्छी है जो अंडे देती है. जैन धर्म का मजाक उड़ाने के लिए किसी ने ऐसा कहा है.
  201. पाव की हंडिया में सेर नहीं समाता.छोटे आदमी की बुद्धि में बड़ी बात नहीं समा सकती. छोटी मानसिकता वाले व्यक्ति से किसी बड़े काम की आशा नहीं की जा सकती.
  202. पाव भरी की देवी और नौ पाव पूजा.देवी छोटी सी हैं और पूजा की सामग्री बहुत सारी है. किसी अपात्र का बहुत अधिक सत्कार करने पर.
  203. पावक, बैरी, रोग, रिनसेस राखिए नाहिंजे थोड़े हूँ बढ़त पुनि बड़े जतन सों जाहिं. (बुन्देलखंडी कहावत) आग, शत्रु और ऋण, इनको बिल्कुल समाप्त कर के छोड़ना चाहिए. ये थोड़े से भी बच जाएँ तो पुनः विकराल रूप धारण कर लेते हैं और फिर बड़ी कठिनाई से जाते हैं. 
  204. पावस देखि रहीम मनकोइल साधे मौनअब दादुर बक्‍ता भएहमको पूछत कौन.वर्षा ऋतु में कोयल चुप हो जाती है. वह सोचती है कि अब तो मेंढक बोल रहे हैं, उसे कौन पूछेगा. मूर्खों की भीड़ में कोई बुद्धिमान व्यक्ति बोलना पसंद नहीं करता.
  205. पास का कुत्ता न दूर का भाई.दूर रहने वाले भाई के मुकाबले पास रहने वाला कुत्ता अधिक मददगार होता है.
  206. पास की ससुरार, रात दिना की रार.ससुराल अगर बहुत पास में हो तो रोज कोई न कोई लफड़ा होता है, इसलिए ससुराल के पास नहीं रहना चाहिए. 
  207. पास जल सो जल, बांह बल सो बल.जो पानी हमारे आसपास उपलब्ध हो वही हमारे काम का है, जो बल हमारी बाहों में है वही हमारे काम का है.
  208. पासा पड़े अनाड़ी जीते.भाग्य साथ दे तो अनाड़ी व्यक्ति भी कामयाब हो जाता है.
  209. पासा पड़े सो दांवराजा करे सो न्याव.पासा जो भी पड़ा वही आपका दांव माना जाएगा, उसे आप बदल नहीं सकते. राजा जो कह दे वही न्याय माना जाएगा, उसे कोई बदल नहीं सकता. 
  210. पासों का सबसे अच्छा फेंकना यही है कि उनको फेंक ही दें. चौपड़ का खेल बर्बादी का पूरा इंतजाम है. उसमें पासे फेंक कर चाल चली जाती है. सयाने लोगों का कहना है पासे फेंकना है तो घर से बाहर फेंक दो वही सबसे अच्छी चाल है.
  211. पाहन में कौ मारबोचोखा तीर नसाय.पत्थर में मार कर अच्छा ख़ासा तीर क्यों खराब कर रहे हो. पाहन – पाषाण, पत्थर. चोखा – अच्छा, नसाय – नष्ट कर रहे हो. कोई आदमी किसी निष्ठुर व्यक्ति से सहायता प्राप्त करने की कोशिश में अपना समय नष्ट करे तो. (या विद्वान व्यक्ति किसी मूर्ख को समझाने की कोशिश कर रहा हो तो)
  212. पाहुने जीमते जाते हैं, रांडें रोती जाती हैं.वैसे तो रांड शब्द का अर्थ विधवा स्त्री होता है, पर कहावतों में कई स्थानों पर इस का प्रयोग धूर्त स्त्री के अर्थ में करते हैं. कहीं कोई शुभ कार्य होता देख कर धूर्त लोगों को कष्ट हो रहा हो तो यह कहावत कही जाती है. 
  213. पाहुनों से वंश नहीं चलता.किसी के घर में मेहमानों का जमघट लगा रहता हो पर उसकी अपनी कोई सन्तान न हो तो उस का वंश नहीं चल सकता. कोई व्यक्ति दुनियादारी में लगा रहे और अपने परिवार पर ध्यान न दे उसके लिए.
  214. पिए भैंस का दूध, रहे ऊत का ऊत.भैंस का दूध पीने से अक्ल मोटी हो जाती है (गाय का दूध पीने से बुद्धि तीव्र होती है).
  215. पिए रुधिर पय न पिएलगी पयोधर जोंक.जोंक यदि स्तन में लग जाए तो भी रक्त ही पीती है दूध नहीं. दुष्ट व्यक्ति को अच्छे परिवेश में रखो तब भी दुष्टता ही करता है.
  216. पिछली रोटी खायपिछली मति पाय.ऐसा विश्वास है कि आखिरी रोटी खाने से बुद्धि कम हो जाती है.
  217. पिछले गाँवों पिटकर आये, अगले गाँव में सिद्ध.धूर्त साधुओं के लिए.
  218. पिटा हुआ और जीमा हुआ भूलता नहीं.किसी के घर से पिट के आए हों तो नहीं भूल सकते और कहीं भरपेट स्वादिष्ट भोजन मिला हो तो नहीं भूल सकते.
  219. पितरन को पानी बामन को दान, आए दरवाजे को सदा रक्खें माने.पितरों को पानी देना, ब्राह्मण को दान देना और अतिथि को सम्मान देना सब का कर्तव्य है.  
  220. पितृ मुखी कन्या सुखी.जिस कन्या का चेहरा पिता से मिलता है वह सुखी रहती है.
  221. पिय वियोग सम दुख जग नाहीं.किसी भी स्त्री के लिए पति के वियोग जैसा कोई दुख नहीं है.
  222. पिया आगे राजपीछे चलनी न छाज.विधवा स्त्री का कथन, पति के सामने तो मैंने राज किया और अब चलनी और सूप जैसी छोटी छोटी चीजों के लिए मुहताज हूँ.
  223. पिया गए परदेशअब डर काहे का.पति बाहर गए हों तो स्त्रियाँ निरंकुश हो जाती हैं. यह पुराने जमाने की कहावत है, अब स्त्रियाँ मैके जाती हैं तो पति निरंकुश हो जाते हैं.
  224. पिया बिना कैसा त्यौहार.पति परदेश में हो तो सुहागिन को कोई त्यौहात अच्छा नहीं लगता.
  225. पिया मोरा आंधर (अंधा)मैं का पर करूं सिंगार.मेरा पति अंधा है मैं श्रृंगार किस के लिए करूँ. जहाँ आपकी योग्यता का कोई कद्रदान न हो वहाँ योग्यता किस को दिखाएँ.
  226. पिसनहारी को पूत, जो चबा ले सो लाभ (पिसनहारी के पूत को चना लाभ ही बहुत है).पिसनहारी – अनाज पीसने वाली. पिसनहारी वहाँ से कुछ ले तो नहीं जा सकती. उस का लड़का वहाँ बैठ कर जितना चबा ले वही उसके लिए बहुत बड़ा लाभ है. छोटे आदमी के लिए छोटे छोटे लाभ भी बहुत मायने  रखते हैं.
  227. पीठ की मार मारेपेट की न मारे.किसी ने गलती की हो तो उस को दंड कितना भी दे दो पर उस की रोजी रोटी मत छीनो.
  228. पीठ देख कर ही नजर लगे.अत्यंत सुंदर व्यक्ति. 2.अत्यंत भद्दे व्यक्ति पर व्यंग्य.
  229. पीठ पर मैल जम ही जाती है.शाब्दिक अर्थ तो स्पष्ट है, भावार्थ यह है कि जो स्थान हमारी देख रेख और कार्य क्षेत्र से दूर हो वहाँ गंदगी इकट्ठी हो जाती है.
  230. पीठ पीछे की छींक, संका ते मत झींक.यदि आपकी पीठ के पीछे कोई छींके तो यह अपशकुन नहीं माना जाता.
  231. पीतल की अँगूठी सोने का टांका, माँ छिनाल पूत बांका.किसी चरित्रहीन स्त्री का पुत्र बहुत बना ठना घूम रहा हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए. 
  232. पीतलकांसालौह में पड़े जंग चढ़ जाएजलधर आवे दौड़ताइस में संसै नाय.अगर घर में पड़े पीतल, कांसा या लोहे में जंग लग जाए तो इस का अर्थ है कि वर्षा होने वाली है. (जलधर – बादल)
  233. पीताम्‍बर ओच्‍छा भलासाबत भला न टाटऔर जात शत्रु भलीमित्र भला न जाट.पीला कपड़ा घटिया वाला हो तो भी टाट से अच्छा है. इसी प्रकार दूसरी जातियों के दुश्मन भी जाट दोस्त से बेहतर हैं. (जाट से दोस्ती खतरनाक है).
  234. पीपर तले हाँ करेकीकर तले नट जाए.पल पल में बात बदलने वाला आदमी जो अभी हाँ करे और अभी मुकर जाए.
  235. पीपल पूजन मैं गई अपने कुल की लाजपीपल पूजत हरि मिले एक पंथ दो काज.एक काम करने से दो लाभ होना.
  236. पीर की सगाई पीर के घर.विवाह इत्यादि सम्बन्ध अपनी बराबरी वालों में ही करना चाहिए.
  237. पीर को न शहीद को, पहले नकटे देव को.योग्य और पूज्य लोगों से पहले ओछे ओर बेशर्म आदमी को पूछना चाहिए, क्योंकि वह रायता फैला सकता है. 
  238. पीर जी की सगाईमीर जी के यहाँ.दोस्ती, दुश्मनी, व्यापार,विवाह इत्यादि अपनी बराबरी वालों में ही करना चाहिए
  239. पीला पीला सब सोना नहीं होता.ऊपरी दिखावे से जो चीज़ उत्तम प्रतीत होती है वह जरूरी नहीं कि वास्तव में उत्तम हो. इंग्लिश में कहते हैं – All that glitters is not gold.
  240. पीसे हुए को क्या पीसना.जो सताया हुआ हो उसे क्या सताना.
  241. पुचकारा कुत्ता सर चढ़े.कुत्ते को अधिक लाड़ करो तो वह सर पर चढ़ने लगता है. अपात्र को अधिक सुविधाएं दो तो वह उनका गलत लाभ उठाता है.
  242. पुजारी की पगड़ी, नामर्द की जोय, कायर की तलवार, पड़ी पुरानी होय.ये चीजें बिना उपयोग के व्यर्थ हो जाती हैं.
  243. पुजारी की पगड़ी, सिपाही की जोय, जुलाहे की जूती, पड़ी पुरानी होय.पुजारी अधिकतर समय पूजा पाठ के कारण पगड़ी नहीं पहनता, सिपाही ड्यूटी पर तैनात रहता है या युद्ध में मारा जाता है इस कारण वह पत्नी साथ समय नहीं बिता पाता, जुलाहा दिन रात बैठ कर काम करता है इसलिए जूती नहीं पहनता.
  244. पुड़किया बाज से कैसे जीत सकती है.पुड़किया – कबूतर की जाति का एक छोटा पक्षी. अर्थ स्पष्ट है.
  245. पुन्य करत होत यदि हानितऊ न छाड़िए पुन्य की बानि.पुन्य (किसी का भला) करने में यदि अपना कुछ नुकसान भी हो जाए तब भी पुन्य करने की आदत नहीं छोड़नी चाहिए.
  246. पुन्य की जड़ सदा हरी.पुन्य (परोपकार) करने वाले व्यक्ति की सदा उन्नति होती है.
  247. पुराना ठीकरा और कलई की भड़क.बुढापे में ज्यादा रंग रोगन लगा कर जवान दिखने की कोशिश. ठीकरा – टूटे हुए बर्तन का टुकड़ा.
  248. पुराना पंसारी, नया बजाज.पुराने पंसारी को बहुत सी वस्तुओं के विषय में अधिक जानकारी होती है इसलिए वह अधिक योग्य माना जाता है, नए बजाज को नए फैशन और स्टाइल के विषय में अधिक जानकारी होती है इसलिए नया बजाज अधिक अच्छा माना जाता है.
  249. पुराना वैद्य और नया ज्योतिषी अच्छा होता है.वैद्य पुराना अच्छा होता है क्योंकि जैसे जैसे वह पुराना होता जाता है उस का अनुभव बढ़ता जाता है, जबकि ज्योतिषी नया अच्छा होता है क्योंकि वह नए ज्योतिष शास्त्र की नई बातें सीख कर आता है.
  250. पुरुष के दुख और पशु की भूख का कुछ पता नहीं चलता.ये अपनी परेशानी कहना नहीं जानते.
  251. पुरुष पुरातन की वधू क्यों न चंचला होए.लक्ष्मी जी भगवान विष्णु की पत्नी हैं जोकि सृष्टि के सबसे पुरातन पुरुष हैं. शायद इसी लिए वह इतनी चंचल हैं. (लक्ष्मी अर्थात धन सम्पदा कभी किसी के पास ठहरती नहीं है इसलिए उन्हें चंचला कहा गया है).
  252. पुरुष बिचारा क्या करे जिस घर नार कुनारवो सीमे दो आंगुलीवो फाड़े गज चार.जिस घर में गृहणी दुष्ट स्वभाव की हो उस घर को अकेला पुरुष नहीं संभाल सकता. वह दो उँगली सी कर चुकता है तब तक वह दो गज और फाड़ देती है, अर्थात वह थोड़ी बहुत बात सम्भालता है तब तक वह बात को और बिगाड़ देती है. 
  253. पुल पार करने के लिए होता हैघर बनाने के लिए नहीं.जो चीज़ समाज के उपयोग की होती है उस पर किसी को कब्ज़ा नहीं ज़माना चाहिए.
  254. पुश्तों बाद कबूतर पाले, आधे गोरे आधे काले.किसी खानदान में कभी किसी ने कोई कायदे का काम न किया हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.
  255. पूंछकटा हर वक्त लड़ने को तैयार.जिस कुत्ते की पूंछ कटी हो तो वह हर समय लड़ने को तैयार रहता है. जिस आदमी की कोई इज्ज़त न हो उस के लिए.
  256. पूंजी से पूंजी उपजे.व्यापार में पूँजी लगाने से ही और पूँजी पैदा होती है. इंग्लिश में कहा गया है – Money begets money.
  257. पूछता नर पंडिता.(जो पूछे सो पंडित). औरों से पूछ पूछ कर ज्ञान प्राप्त करने वाला व्यक्ति पंडित बन जाता है. इंग्लिश में कहावत है – Curiosity is the mother of knowledge.
  258. पूछी खेत की बताई खलिहान की (पूछी जमीन कीबताई आसमान की).कुछ का कुछ जवाब देना.
  259. पूछी न काछीमैं दुल्हन की चाची.जबरदस्ती किसी से रिश्ता जोड़ना. मान न मान मैं तेरा मेहमान.
  260. पूजनीय गुण ते पुरुषवयस न पूजित होए.पुरुष अपन गुणों से पूजा जाता है न कि अधिक आयु से.
  261. पूड़ी न पापड़ी, पटाक बहू आ पड़ी.कहीं पर बिना किसी समारोह और दावत के कोई बड़ा काम (विवाह, बच्चे का जन्म आदि) हो जाए तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.
  262. पूत कपूत सुने बहुतेरेमां न सुनी कुमाता.ऐसे बहुत से नालायक पुत्र हो सकते हैं जो अपनी माँ का ध्यान न रखें पर ऐसी माँ कोई नहीं होती जो अपने पुत्र का ध्यान न रखे.
  263. पूत कमावे चार पहरब्याज कमावे आठ पहर.आदमी तो चार प्रहर काम कर के ही पैसा कमा सकता है पर ब्याज पर लगा पैसा आठों प्रहर पैसा कमाता है.
  264. पूत का मूत प्रयाग का पानी.कोई कम उम्र की बहू पहली बार मां बनी तो बच्चे की टट्टी पेशाब से घिनिया रही थी तो उसकी मां या सास ने उसको समझाने के लिए यह कहावत कही. कुछ पुरानी महिलाओं जो लड़की पैदा होने को बुरा समझती हैं, वे इस कहावत के आगे ये भी बोलती हैं – धी का मूत नरक की निशानी.धी – बेटी.
  265. पूत की जात को सौ जोखें.पुत्रों का शुरू से ही बहुत ध्यान रखा जाता है लेकिन तब भी उनको पालने में ज्यादा परेशानियाँ आती हैं, लड़कियां बेचारी बेकद्री का शिकार हो कर भी आसानी से पल जाती हैं.
  266. पूत के पाँव पालने में ही पहचान लिए जाते हैं.बच्चे के आरम्भिक लक्षण देख कर ही इस बात का अंदाज़ लग जाता है कि वह होनहार है.
  267. पूत के लक्षण पालने और बहू के लक्षण द्वार.पूत के लक्षण पालने में पहचान लिए जाते हैं यह तो सब जानते ही हैं, बहू के लक्षण तब ही पहचान लिए जाते हैं जब वह घर में प्रवेश करती है. 
  268. पूत तो गाय का और पूत किसका, राजा तो मेघराज और राज किसका.गाय का पूत – बैल, मेघराज – बादल. जब खेती बैलों से होती थी और वर्षा पर निर्भर थी तब किसान के लिए बैल और बादलों की बहुत कीमत थी.
  269. पूत न माने अपनी डांट, भाई लड़े कहे नित बाँट, तिरिया करकस कलही होय, नियरे बसें दुष्ट सब कोय, मालिक नाहीं करें विचार, सबै कहें ये विपत अपार.(बुन्देलखंडी कहावत)पाँच सबसे बड़े कष्ट इस प्रकार हैं – पुत्र आपकी डांट न माने, भाई सम्पत्ति बाँटने के लिए लड़े, स्त्री कर्कशा हो, आस पास दुष्ट लोग बसें और मालिक आपकी परेशानी को न समझे.
  270. पूत भए सयानेदुःख भए बिराने.पुत्र सयाने हो जाते हैं तो आदमी के दुःख दूर हो जाते हैं.
  271. पूत भी प्यारा भतार भी प्याराकिसकी सौगंध खाऊं.किसी के सर की कसम खाने में यदि कसम पूरी न हुई तो उस की जान को खतरा होता है. पुत्र और पति दोनों प्यारे हैं, किसकी कसम खाऊं. असमंजस की स्थिति. 
  272. पूत मांगे गई, भतार खो आई.पुत्र की कामना में कुछ ऐसी अनहोनी हो गई कि पति से हाथ धो बैठी.
  273. पूत मांगे गईभतार लेती आई.ऐसी स्त्रियों पर व्यंग्य जो पुत्र की कामना में दुराचारी पीर फकीरों की वासना का शिकार हो जाती हैं.
  274. पूत सपूत तो क्यों धन संचैपूत कपूत तो क्यों धन संचै.पहले के जमाने के लोग पैसा जोड़ने को बुरा समझते थे. तब ऐसा माना जाता था यदि व्यक्ति की आमदनी अच्छी हो तो उसे पैसा इकठ्ठा करने की बजाए सामाजिक कार्य में लगाना चाहिए. तर्क यह होता था कि बेटा अगर लायक है तो भी धन संचय मत करो क्योंकि वह बुढ़ापे में आपको सहारा देगा ही और अगर बेटा नालायक है तो भी धन संचय मत करो क्योंकि वह सब उड़ा देगा. हमारे विचार से आज के युग में इस को उल्टा करके बोलना चाहिए. पूत सपूत तो भी धन संचय, पूत कपूत तो भी धन संचय. बेटा अगर होनहार है तो उसे उच्च शिक्षा या व्यापार के लिए धन चाहिए होगा और अगर नालायक है तो आपको अपना बुढ़ापा इज्जत से काटने के लिए धन चाहिए होगा.
  275. पूता कारज करियो सोईजामें हंडिया खुदबुद होई.सयाने लोग बच्चों को समझाते हैं कि काम वही करो जिससे घर में खाने पीने का प्रबंध हो सके (रोजी रोटी चल सके).
  276. पूतों का क्या बुराबुरे वो जिन के पूत न हों.संतान को पालने में यदि कोई लोग परेशानी महसूस करते हैं तो बड़े बूढ़े उनको यह समझाते हैं.
  277. पूरब का बरधा, दक्खिन का चीरपच्छिम का घोड़ाउत्तर का नीर.दशहरे की पूजा में बनियों के प्रतिष्ठानों में बही खाते बदले जाते हैं और उस दिन का मुख्य वस्तुओं का भाव लिखा जाता है. इस के साथ क्या चीज़ कहाँ की अच्छी होती है यह भी लिखा जाता है. उसी क्रम में उपरोक्त कहावत लिखी जाती है. 
  278. पूरब के चाँद पश्चिम चले जाइहैंधी के दुलार बहू नहीं पाइहैं.चाहे दुनिया इधर से उधर हो जाए, जो प्यार लड़की को दिया जाता है वह बहू नहीं पा सकती.
  279. पूरा आसमान फटा है, थेगली कहाँ तक लगाऊं.थेगली – पैबंद. बहुत बड़ी गड़बड़ हो तो उस पर लीपा पोती नहीं की जा सकती. 
  280. पूरा तोल चाहे महंगा बेच.दुकानदार को हमेशा पूरा तोलना चाहिए चाहे सामान की कीमत औरों से कुछ अधिक ही क्यों न रखनी पड़े.
  281. पूरे घर में एक घाघरापहले उठे सो पहने.घोर अभाव की स्थिति. वस्तुएं कम हैं और उपभोक्ता अधिक हैं, जो पहले पहुंचेगा वह पाएगा.
  282. पूस न बइए, पीस खइए.पूस में गेहूँ बोने से फसल होने की सम्भावना कम है. इस से अच्छा तो उसे पीस कर खा लो. बइये – बोइये. 
  283. पेट काटे धन न जुड़े.जो गरीब व्यक्ति इतना कम धन कमा पा रहा हो कि केवल अपने परिवार का पेट भर सके वह धन नहीं जोड़ सकता. यदि वह भरपेट खाना नहीं खाएगा तो काम कैसे करेगा. पेट काटना – आवश्यकता से कम भोजन करना. 
  284. पेट की आग बुझते बुझते ही बुझती है.तेज भूख लगी हो तो धीरे-धीरे ही शांत होती है 2.यदि स्त्री के पेट का जाया बच्चा ना रहे तो उसका दुख धीरे-धीरे ही भूलता है
  285. पेट के आगे सब हेठ.सारे रिश्ते नाते, आदर्श और नैतिकता तभी अच्छे लगते हैं जब पेट भरा हो.
  286. पेट खाली ईमान खाली.आदमी भूखा हो तो ईमानदारी से काम नहीं कर सकता, पेट भरने के लिए कुछ न कुछ बेईमानी जरूर करेगा.
  287. पेट घुसे तो भेद मिले.किसी से मित्रता बढ़ा कर और अंतरंगता स्थापित कर के ही उस के मन का भेद लिया जा सकता है.
  288. पेट जो चाहे करावे.पेट की आग आदमी से सब प्रकार के गलत काम कराती है. संस्कृत में कहा गया है – बुभुक्षितः किं न करोति पापं.
  289. पेट नरमपैर गरमसर ठंडाजो आवे वैद तो मारो डंडा.पुराने जमाने में जब बहुत थोड़ी सी ही बीमारियां हुआ करती थी तो लोग यह मानते थे कि सर गर्म होना बुखार का लक्षण है, पेट का कड़ा होना या फूलना पेट की बीमारी का लक्षण है और पैर ठंडे होना किसी गंभीर बीमारी का लक्षण है. अगर किसी का पेट नरम है, पैर गर्म हैं और सर ठंडा है तो उसे कोई बीमारी नहीं है. ऐसे में यदि वैद्य देखने आए तो उसे डंडा मारकर भगा दो. इस कहावत से दो बात समझ में आती हैं एक तो यह कि रोजमर्रा में होने वाली छोटी मोटी बीमारियों के यही तीन मुख्य लक्षण होते थे और  दूसरी यह कि उस जमाने में भी ऐसे वैद्य होते होंगे जो झूठी मूठी बीमारी बताकर लोगों को बेवकूफ बनाते होंगे. कुछ कुछ इस आशय की इंग्लिश में एक कहावत है – Keep your feet warm and your head cool, then you may call your doctor a fool.
  290. पेट पालना कुत्ता भी जानता है.मनुष्य का जन्म मिला है तो केवल पेट के बारे में ही मत सोचो, इस से ऊपर उठ कर धर्म और समाज के विषय में भी कुछ सोचो. पेट तो कुत्ता भी भर लेता है. 
  291. पेट बुरी बला है.भूख आदमी से सारे पाप कराती है.
  292. पेट भर और पीठ लाद(पेट भेटकाज समेट). यदि किसी आदमी से भरपूर काम लेना है तो पहले उसका पेट भरो.
  293. पेट भरा जानो तब, कुत्ता कौरा पावे जब.भोजन पूरा हुआ तब मानना चाहिए जब कुत्ते को भी रोटी दे दी जाए. प्राणी मात्र पर दया करने वाली सनातन संस्कृति का यही आदर्श है.
  294. पेट भरा, नीयत नहीं भरी.यह तो मनुष्य की मूलभूत कमजोरी है कि पेट भरने के बाद भी नीयत नहीं भरती.
  295. पेट भरे के खोटे चाले. पेट भरा हो तो आदमी को खुराफात सूझती है. 2. पेट भरा हो तो आदमी काम नहीं करना चाहता.
  296. पेट भरे नीच और भूखे भलमानस से डरिये.नीच आदमी का पेट भरा हो तो उसे बदमाशी सूझती है. भलामानस भूखा हो तो मजबूरी में कुछ भी कर सकता है इसलिए इन से डरना चाहिए.
  297. पेट भरे पर सौ मस्ती सूझे (पेट में पड़ा चारा तो कूदन लगे विचारा).जब तक इंसान का पेट नहीं भरता उसको इसी की चिंता रहती है. एक बार पेट भर जाने के बाद उस का मन भांति भांति के आनंद पाने के लिए भटकने लगता है.
  298. पेट भरे पे सब खाने को पूछते हैं.कुछ ऐसा संयोग होता है कि जब आपका पेट भरा हो तो आप जहाँ भी जाएं, सब आपसे खाने के लिए पूछते हैं. कभी भूखे घर से निकल जाएं तो कोई नहीं पूछेगा.
  299. पेट भरे मन मोदक से कब.मन के लड्ड़ओं से भूख नहीं मिटती.
  300. पेट भूखा भले ही रखे, पीठ भूखी कोई नहीं रखता.निर्दयी लोग जानवर या मजदूर को खाना देने में कंजूसी करते हैं पर माल लादने में कंजूसी नहीं करते.
  301. पेट में आंत न मुंह में दांत.अत्यधिक बुढ़ापा, जरावस्था.
  302. पेट में न रोटी तो सारी बातें खोटी.मनुष्य भूख से व्याकुल हो तो उसे ज्ञान और आदर्श की सारी बातें बेमानी लगती हैं.
  303. पेट में पड़ गई रोटी तो फड़के बोटी बोटी.अर्थ स्पष्ट है. आमतौर पर बहुत छोटे बच्चों के लिए प्रयोग करते हैं जो दूध पीने के बाद हाथ पैर चलाने लगते हैं.
  304. पेट में पाप और गोमुखी में जाप.मन में पाप भरा है ऊपर से भक्ति दिखाते हैं.
  305. पेट से निकली, घर से न निकली.एक लड़की ससुराल में सताए जाने के कारण मायके में आ कर रह रही थी. उस की भाभी को यह बात बहुत नागवार गुजरती थी. एक दिन चिढ़ कर उसने अपनी ननद से कहा कि तू मां के पेट से तो निकली पर इस घर से न निकली.
  306. पेट-पीठ के कारने सब जग नाचे नाच. पेट भरने के लिए ही सब तरह के काम करने पड़ते हैं.
  307. पेटवा चाकरमुटवा घोड़खाएं ज्यादाकाम करें थोड़.पेटू (ज्यादा खाने वाला) नौकर और मोटा घोड़ा, खाते अधिक हैं और काम कम करते हैं.
  308. पेटू मरे पेट कोनामी मरे नाम को.जिसे केवल खाने का ही शौक है वह हर समय खाने की ही चिंता करता है, और जो नाम कमाना चाहता है वह केवल उसी विषय में सोचता रहता है.
  309. पेड़ फल से जाना जाता है.पेड़ का अपना कोई नाम नहीं होता, वह अपने फल के द्वारा ही जाना जाता है – जैसे आम का पेड़, जामुन का पेड़ आदि. इसी प्रकार व्यक्ति भी अपने कार्यों के द्वारा जाना जाता है.
  310. पेड़ में कटहल, होठों तेल.कटहल खाते समय होठों पर न चिपके इस के लिए कटहल खाने से पहले होठों पर तेल लगा लेते हैं. अगर कटहल पेड़ से तोड़ा ही नहीं गया है तो तेल लगाने की क्या जरूरत. बहुत जल्दबाजी मचाने वालों का मजाक उड़ाने के लिए यह कहावत कही जाती है. 
  311. पैंठ लगी नहीं गिरहकट पहले आ गए.पैंठ – बाजार. कोई काम शुरू होने से पहले ही अवांछित लोगों का आ जाना.
  312. पैदल और सवार का क्या साथ.मित्रता और सम्बन्ध अपने बराबर वालों से ही रखना चाहिए.
  313. पैर उठाते ही छींक दिया.यात्रा शुरू करने से पहले कोई छींक दे दो इसे अपशकुन मानते हैं. कोई काम शुरू करते ही कोई अपशकुन कर दे तो यह कहावत कही जाती है. 
  314. पैर का जूता पैर में ही ठीक रहता है (पैर की जूती पैर में ही अच्छी होती है).जो व्यक्ति जिस लायक हो उससे वैसा ही व्यवहार करना चाहिए. निम्न श्रेणी के व्यक्ति को दबा कर रखना ही ठीक रहता है.
  315. पैर की पूजा हुई है, पीठ की नहीं.कोई माननीय रिश्तेदार (फूफा या दामाद आदि) बहुत दुष्टता करे तो.
  316. पैर जलें तो जूती पहनो, धरती पर कालीन नहीं बिछेगी.आपकी व्यक्तिगत परेशान आपको स्वयं सुलझानी होगी, उसके लिए समाज में बदलाव नहीं लाया जाएगा.
  317. पैर में से काँटा निकालो तो भी पीड़ा होती है.अपना कोई सगा सम्बंधी कितना भी निकृष्ट क्यों न हो उससे संबंध तोड़ने में कष्ट होता है.
  318. पैरों से गाँठ लगाए जो हाथों से न खुले.बहुत धूर्त आदमी के लिए, जो सब के लिए उलझनें पैदा करता हो.
  319. पैरों से लंगड़ीनाम फुदकी.नाम के विपरीत गुण.
  320. पैसा आते भी दुःख देता है और जाते भी.पैसा कमाने के लिए बहुत से कष्ट उठाने ही पड़ते हैं, पैसा जब आ जाता है तो रखने की चिंता, और अगर चला जाए तब तो कष्ट ही कष्ट.
  321. पैसा करे कामबीबी करे सलाम.पैसे में बड़ी ताकत है. पैसे के बल पर आदमी के सारे काम हो जाते हैं और पत्नी भी उसकी इज्ज़त करती है.
  322. पैसा तो बेसवा भी कमा ले.(भोजपुरी कहावत) केवल पैसा कमाने के लिए काम नहीं करना चाहिए. पैसा तो लोग उल्टे सीधे और भ्रष्ट काम कर के भी कमा लेते हैं. बेसवा – वैश्या का अपभ्रंश.
  323. पैसा ना कौड़ीबाजार जाएँ दौड़ी (पैसा न कौड़ीबीच बाज़ार में दौड़ा दौड़ी).साधन हीन होने पर भी ख़याली पुलाव पकाना.
  324. पैसा पर्वत पे राह चलावे है.पैसे के बल पर कठिन काम भी आसान हो जाते हैं.
  325. पैसा पास काघोड़ी रान की.रान – जांघ. पैसा वही काम आता है जो हमारे पास हो (इधर उधर बंटा हुआ न हो), घोड़ी वही काम की है जिसकी हम सवारी कर सकें.
  326. पैसा फले न पेड़.पैसा पेड़ पर पैदा नहीं होता (परिश्रम कर के कमाया जाता है).
  327. पैसा माँ पैसा भाई, पैसे बिन न होय सगाई.सगाई माने आपसी प्रेम भी होता है और सगाई माने विवाह संबंध भी होता है.. आज के युग में पैसा ही सब कुछ है. उसी पर सारे सम्बन्ध टिके हैं.
  328. पैसा माईपैसा बापपैसे बिना बड़ा संताप.आज के समय में पैसा ही सब कुछ है, पैसे के बिना बड़ा कष्ट है.
  329. पैसा हाथ का मैल है.जिस प्रकार हाथ पर मैल लग जाए तो हम उसे धो कर साफ़ कर देते हैं उसी प्रकार अधिक पैसा हाथ में आने पर उसे बांट देना चाहिए. अधिक धन मनुष्य को पाप की ओर प्रवृत्त करता है.
  330. पैसे का कोई पूरा नहीं, अक्ल का कोई अधूरा नहीं.पैसा कितना भी अधिक हो किसी को पर्याप्त नहीं लगता और अपने अंदर अक्ल कितनी भी कम हो किसी को कम नहीं लगती.
  331. पैसे की आने की एक राहजाने की चार.पैसा कमाया बहुत मुश्किल से जाता है पर खर्च बड़ी जल्दी हो जाता है, आता एक स्रोत से है पर खर्च कई जगह होता है.
  332. पैसे की दाल और टके का बघार.एक पैसे की दाल में दो पैसे का छौंक. 
  333. पैसे को पैसा खींचता है.पूँजी से ही पूँजी कमाई जाती है.
  334. पैसे बिन माता कहे जाया पूत कपूतभाई भी पैसे बिना मारें सर लख जूत.पैसे के बिना माँ, बाप, भाई, बहन कोई सम्मान नहीं करते (माँ कहती है कि मैंने कुपुत्र पैदा किया है और भाई जूते मारते हैं).
  335. पैसे बिना बुद्धि बेचारी.आदमी कितना भी बुद्धिमान हो, धन के बिना अपनी बुद्धि का लाभ नहीं उठा सकता.
  336. पोटली में जितने सिक्के डालोगे उतने ही निकलेंगे.आपने जितना पैसा इकट्ठा किया है उतना ही तो आपके पास होगा, उससे कम या अधिक कैसे हो जाएगा. यही बात पाप और पुण्य के विषय में भी कही जा सकती है.
  337. पोतड़ों के अमीर. पोतड़े – नवजात शिशुओं के लंगोटे बिछौने आदि. जन्म से अमीर लोगों के लिए यह कहावत कही जाती है.
  338. पोतड़ों के नशेड़ी.जिस ने बाप दादों से नशा करना सीखा हो.
  339. पोतड़ों के बिगड़े, धोतड़ों में नहीं सुधरते.पोतड़े – बच्चों के लंगोटी बिछौने आदि, धोतड़े – पहनने के कपड़े (धोती इत्यादि) बचपन में जो खराब आदतें पड़ जाएँ वे बड़े होने पर भी नहीं सुधरतीं.
  340. पोथा सो थोथापाठे सो साथै.पोथियों में जो लिखा है वह हमारे लिए व्यर्थ है, जो हम ने पढ़ लिया व कंठस्थ कर लिया वही हमारे साथ रहने वाला है.
  341. पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआपंडित भय न कोयढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय.पोथियाँ पढ़ कर कोई पंडित नहीं बनता. जो मानव मात्र से प्रेम करना सीख ले वही सच्चा पंडित बनता है.
  342. पोपला और चने चाबे.अपनी सामर्थ्य से बाहर काम करने की कोशिश करना.
  343. प्याज को जितना छीलो उतनी ही बदबू आती है.पुरानी बातों को जितना उघाड़ो उतना ही मनमुटाव बढता है.
  344. प्यार करूं प्यार करूंचूतड़ तले अंगार धरूंजल जाए तो क्या करूं.कपटी मित्र या सम्बंधी के लिए जो ऊपर से प्रेम दिखाता है और चुपचाप आपको नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता है.
  345. प्यार दिए से बेटा बिगड़ेभेद दिए से नारीलोभ दिए से नौकर बिगड़ेधोखा दिए से यारी.अधिक लाड़ प्यार से बेटा बिगड़ जाता है, भेद की बात नारी को नहीं पचती, लालच देने से नौकर बिगड़ जाता है और धोखा देने से दोस्ती खत्म हो जाती है.
  346. प्यास से मरने के बाद हजार घड़ा पानी बेकार.अर्थ स्पष्ट है. 
  347. प्यासे के पास कुआँ चल कर नहीं आता है.सयाने लोग समझाने के लिए कहते हैं कि जिस चीज की आपको आवश्यकता है उसके लिए आपको ही प्रयास करना पड़ेगा. वह चीज बैठे-बैठे आपके पास चलकर नहीं आएगी.
  348. प्यासे को पिलाओ पानीचाहे हो जाए कुछ हानी.प्यासे को पानी अवश्य पिलाना चाहिए, चाहे इसमें कुछ हानि क्यों न उठानी पड़े.
  349. प्रजा मरनराजा को हाँसी.प्रजा कितनी भी त्रस्त हो, राजा लोग अपने आमोद, प्रमोद, हास्य, विनोद में व्यस्त रहते हैं.
  350. प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं हैजो सामने दिख रहा उस को सिद्ध करने के लिए प्रमाण की क्या आवश्यकता. संस्कृत में कहते हैं – प्रत्यक्षम् किम् प्रमाणं.
  351. प्रभुता पाई काहि मद नाहीं.प्रभुता का अर्थ यहाँ है धन, बल और अधिकार. कहावत का अर्थ है कि प्रभुता पा कर सभी को घमंड हो जाता है. तुलसीदास जी द्वारा रचित मूल कविता इस प्रकार है – नहिं कोई जन्मा इस जग माहीं, प्रभुता पाई जाहि मद नाहीं. इंग्लिश में कहावत है – Power always corrupts.
  352. प्रारब्ध पहले बनापीछे बना शरीर.व्यक्ति के जन्म लेने से पहले ही उसका भाग्य लिख दिया जाता है.
  353. प्रीत करी थी नीच से पल्ले आई कीचसीस काट आगे धरा अंत नीच का नीच.नीच व्यक्ति से प्रेम करने पर मुश्किल ही सामने आती है. चाहे कोई अपना सर काट कर सामने रख दे नीच व्यक्ति अपनी नीचता नहीं छोड़ता.
  354. प्रीत का निबाहना खांडे की धार है.खांडा – सीधी एवं चौड़ी तलवार. प्रीत का निबाहना उतना ही मुश्किल है जितना तलवार की धार पर चलना.
  355. प्रीत जहाँ परदा नहींपरदा जहां न प्रीत.जहाँ प्रेम होता है वहाँ कुछ दुराव छिपाव नहीं होता, और जहाँ दुराव छिपाव होता है वहाँ प्रेम नहीं हो सकता.
  356. प्रीत तो ऐसी कीजिए ज्यों हिन्दू की जोयजीते जी तो संग रहे मरे पे सत्ती होय.दूसरे धर्म के लोगों द्वारा हिन्दू स्त्रियों की प्रशंसा की गई है. हिन्दू स्त्री के समान प्रेम करो जो जीवन भर साथ निभाती है और पति के मरने पर सती हो जाती है.
  357. प्रीत न टूटे अनमिलेउत्तम मन की लागसौ जुग पानी में रहेचकमक तजे न आग.प्रेमी जन यदि आपस में न मिल पाएं तो भी उनके प्रेम में कमी नहीं आती. चकमक पत्थर युगों तक पानी में डूबा रहे तो भी बाहर निकालने पर आग पैदा करता है.
  358. प्रीत रीत जानी आसानमुस्किल पड़ी बात अब आन.सामान्य लोग समझते हैं कि प्रेम करना आसान है, पर जब उन्हें किसी से प्रेम होता है तो मालूम होता है कि इस में कितनी मुश्किलें हैं.
  359. प्रीत सीखिये ऊख सों, पोर पोर रसवान जहाँ गाँठ वहाँ रस नहीं, जेई प्रीत की बान.गन्ने में सब जगह रस होता है, केवल गाँठ में नहीं होता. इसी प्रकार प्रेम के संबंध में रस ही रस होता है, पर जहाँ मन में गाँठ पड़ जाती है वहाँ रस समाप्त हो जाता है.
  360. प्रीतम मिले उजाड़ मेंवही उजाड़ बजार.प्रीतम यदि उजाड़ में मिल जाएँ तो वही उजाड़ गुलज़ार हो जाता है.
  361. प्रीतम हरि से नेह करजैसे खेत किसानघाटा दे अरु दंड भरेफेरि खेत पे ध्यान.ईश्वर से उसी प्रकार प्रेम करो जैसे किसान अपने खेत से करता है. खेती में घाटा हो या दंड भरना पड़े तो भी किसान का ध्यान खेत में ही लगा रहता है.
  362. प्रेम और युद्ध में सब जायज है.अर्थ स्पष्ट है. इंग्लिश में कहते हैं – All is fair in love and war.
  363. प्रेम करि काहू सुख न लयो.मीराबाई ने यह बात स्वयं के परिप्रेक्ष्य में कही है पर यह बात सब पर लागू होती है कि प्रेम करने वाले को कभी सुख नहीं प्राप्त होता (हमेशा कष्ट मिलता है).
  364. प्रेम का पान हीरा समान.पान वैसे तो बहुत तुच्छ वस्तु है पर किसी ने प्रेम से दिया हो तो हीरे के समान है.
  365. प्रेम न डाली फलत हैप्रेम न हाट बिकाएप्रेम से खोजो प्रेम कोआपहि में मिल जाए.प्रेम पेड़ पर भी पैदा नहीं होता और बाजार में भी नहीं मिलता. अपने अंदर ही प्रेम को खोजना चाहिए.
  366. प्रेम में नेम कहाँ.नेम – नियम. प्रेम कोई नियम कानून नहीं मानता.

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