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धंधा थोड़ा धांधल घनी. जहाँ काम कम और धांधलेबाजी ज्यादा होती है. जैसे सरकारी कार्यालय. घनी – अधिक.

धक्के में धक्का लगत. हानि में और हानि होती है.

धतूरे के गुण महादेव जानें. जो जिस चीज का सेवन करता है वही उस के गुण जान सकता है.

धन और कन्दुक खेल की दोनों एक सुभाय, कर आवत छिन एक में छिन में कर से जाय. कन्दुक – गेंद. धन और गेंद दोनों का एक सा स्वभाव है, हाथ में आते ही तुरंत निकल जाते हैं.

धन का धन गया, मीत का मीत गया. (धन का धन गया, मीत की प्रीत गयी). दोस्ती और रिश्तेदारी में पैसा उधार देने में यह खतरा हमेशा रहता है कि पैसा भी वापस न मिले और सम्बंध भी खराब हो जाएँ.

धन का बढ़ना अच्छा है, मन का बढ़ना नाहीं. रहीम ने इस विषय में रूपक अलंकार से युक्त एक बहुत उच्च कोटि की बात कही है – बढ़त बढ़त सम्पति सलिल, मन सरोज बढ़ जाहिं, घटत घटत पुनि न घटे, बरु समूल कुम्ह्लाहिं (तालाब में पानी बढ़ने के साथ कमल की नाल लम्बी होती जाती है पर पानी कम होने पर फिर छोटी नहीं होती, बल्कि कमल मुरझा जाता है. इसी प्रकार संपत्ति के बढ़ने से व्यक्ति का मन बढ़ जाता है और संपत्ति कम होने से मन कम नहीं होता बल्कि व्यक्ति ही नष्ट हो जाता है).

धन के आगे मक्कर नाच. पैसे के लिए आदमी सौ तरह की चालबाजियाँ करता है.

धन के तेरह मकर पचीस, दिन जाड़े दो कम चालीस. चिल्ला जाड़ा अड़तीस दिन का होता है.

धन के पन्द्रा मकर पचीस, चिल्ला जाड़ा दिन चालीस. राशि के हिसाब से बताया गया है कि धन राशि के पन्द्रह दिन और मकर राशि के पच्चीस दिन बहुत जाड़ा पड़ता है. 

धन के बिना नाथिया और धनी हुए तो नाथू लाल. किसी व्यक्ति का नाम नत्थू है. जब वह गरीब था तो सब उसे नाथिया कह कर बुलाते थे, धनी हो गया तो नाथू लाल कहने लगे. 

धन खेती धिक चाकरी, धन धन बणिज व्यापार. खेती धन्य है और नौकरी को धिक्कार है. व्यापार में धन ही धन है इसलिए वह भी धन्य है.

धन गया कुछ नहीं गया, स्वास्थ्य गया कुछ गया, चरित्र गया सब कुछ गया.  अर्थ स्पष्ट है.

धन जोबन और माया, तीन दिनां की छाया. धन, यौवन और माया अधिक समय तक नहीं ठहरते (इसलिए इनके होने पर अभिमान नहीं करना चाहिए). 

धन दे जी को राखिए, जी दे राखे लाज. धन खर्च कर के प्राणों की (स्वास्थ्य की) रक्षा कीजिए और प्राण दे कर आत्मसम्मान की.

धन बढ़े, मन बढ़े. जब व्यक्ति के पास धन बढ़ता है तो मन भी भांति भांति की इच्छाएँ करने लगता है.

धन यौवन और ठाकरी, तिस पर हो अविवेक, ये चारों मिल जाएं तो अनरथ करें अनेक. पास में धन हो, बंदा जवान हो, अधिकार मिले हुए हों और विवेक हीनता की स्थिति हो, तो व्यक्ति कुछ भी अनर्थ कर सकता है.

धन रखे से धरम, काया रखे से करम. धन कमाना भी आवश्यक है क्योंकि उसी से आप धार्मिक कार्य कर सकते हैं, शरीर को स्वस्थ रखना भी आवश्यक है क्योंकि उस से आप कर्म करते हैं.

धन रहा तो धनराज बहू, धन घटा तो धनइया. जब तक धन रहा तब तक धनराज की बहू कह कर आदर पाती थी, धन जाने के बाद धनइया कह कर पुकारी जाने लगी.

धन से लखपति दिल से भिखारी. धनी परन्तु कंजूस व्यक्ति के लिए.

धनबल जनबल बुद्धि अपार, सदाचार बिन सब बेकार. सदाचार के बिना सारे धन और बुद्धि बेकार हैं.

धनवंती के कांटा लगा पूछे सब कोय, निर्धन गिरा पहाड़ से पूछे ना जोय (धनवंती के काँटा लगा, दौड़े लोग हजार, निर्धन गिरा पहाड़ से, कोउ न करे विचार). धनवान को जरा सा भी कष्ट हो तो सब पूछने आते हैं, गरीब को कितना भी बड़ा कष्ट हो, कोई नहीं पूछता. (यहाँ तक कि पत्नी भी नहीं पूछती). जोय – जोरू, पत्नी.

धनि बगुला भक्तन की करनी, हाथ सुमरनी बगल कतरनी. धनि – धन्य है, सुमरनी – जपने वाली माला, कतरनी – कैंची. हे बगुला भक्तों, तुम्हारी करनी धन्य है. तुम हाथ में माला ले कर भक्त बने हुए हो और बगल में जेब काटने वाली कैंची रखे हुए हो. कहीं कहीं पर केवल ‘हाथ सुमरनी बगल कतरनी’ बोला जाता है.

धनि रहीम जल पंक को लघु जिय पियत अघाय, उदधि बड़ाई कौन है जगत पियासो जाय. रहीम कहते हैं कि छोटे तालाब का जल धन्य है जिस से लोगों की प्यास बुझती है. समुद्र इतना बड़ा है लेकिन उस से किसी की प्यास नहीं बुझती. बड़े का बड़प्पन तभी माना जाएगा जब किसी को उससे लाभ होगा.

धनि वह राजा धनि वह देस, जहवाँ बरसे अगहन सेस, पूस में दूना माघ सवाई, फागुन बरसे तो घर से जाई. वह देश और उस का राजा भाग्यशाली हैं जहाँ अगहन माह शेष रहते हुए वर्षा होती है. पूस में वर्षा हो तो फसल दूनी होती है, माघ में हो तो सवाई, और फागुन में वर्षा हो तो घर का अन्न भी चला जाता है.

धनी बाप के काने बेटे भी ब्याहे जाते हैं. पैसे वाले लोगों के अयोग्य और कुरूप बेटों की भी शादी हो जाती है. 

धन्य भाग जहाँ बरसे क्वारा. क्वार में वर्षा बड़े भाग्य से होती है.

धन्य मेरी बालकी, जिन बाप चढ़ाए पालकी. बेटी के कारण प्रतिष्ठा पाने वाले के लिए प्रशंसा या व्यंग्य में कही गई बात. बालकी – पुत्री.

धर जाए, मर जाए, बिसर जाए. दूसरे का माल हड़प जाने की इच्छा रखने वालों पर व्यंग्य, जो सोचते हैं कि कोई उसके पास धरोहर रख जाय और मर जाय, तथा दूसरे लोग भी भूल जायें, तो सब माल उनका हो जाय.

धरती ठौर नई देत. संसार में कहीं आसरा न मिले तो. अत्यंत दीन और दुखी व्यक्ति के लिए कहते हैं.

धरती माता तुम बड़ीं, तुम से बड़ा न कोय, जब धरती पर पग धरूँ, बैकुंठ सवेरा होय. सुबह उठ कर धरती पर पाँव रखने से पहले बोली जाने वाली पंक्तियाँ.

धरती सबका भार सँभारें. चाहे कोई पापी हो या पुण्यात्मा, धरती सबका भार सँभाले हुए है.

धरने को मियाँ, सुलगाने को मियाँ, पीने को आप, टिकाने को मियाँ. हुक्के से मतलब है, कि भरने के लिए मियाँ, सुलगाने के लिए मियाँ, पीने को आप और फिर टिकाने को भी मियाँ. काम करें हम, लाभ लें आप.

धरम करत में होवे हानि, तबहूँ न छोड़े धरम की बानि. धर्म का कार्य करने में यदि हानि भी ही तो भी धर्म करने की आदत नहीं छोड़नी चाहिए.

धरम का धरम, करम का करम. सर्वोत्तम कार्य वह है जिसमें धर्म का पालन भी हो और रोजी रोटी भी चले.

धरम के दूने. किसी व्यापार में इमानदारी से दुगुना लाभ होता हो तो. धोखाधड़ी का व्यापार करने वाले बगुला भगत के लिए भी व्यंग्य में ऐसा बोलते हैं.

धरम रहे तो ऊसर में उगे. धर्म प्रबल हो तो बंजर धरती में भी खेती हो सकती है.

धरा पाताल में, लिखा ललाट पे. खज़ाना कहीं तहखाने में हो तो भी उसका असर चेहरे पर दिखाई देता है.

धर्म की जड़, सदा हरी (धर्म की जड़ पाताल में). धर्म पर चलते वाला धनवान न भी हो तब भी सुखी रहता है.

धर्म की राह में भी ठेलम ठेला. अगर आप कोई परोपकार का कार्य भी करना चाहते हैं तो भी बहुत जद्दोजहद करनी पडती है और लोगों के आक्षेप सुनने पड़ते हैं.

धर्म धीरा, पाप अधीरा. धर्म पर चलने वाला व्यक्ति धैर्यवान होता है जबकि पाप कर्म करने वाला सब कुछ पा लेने के चक्कर में अधीर होता है.

धर्म भी छूटा, तुम्बा भी फूटा. तुम्बा – कड़वे कद्दू को सुखा कर बनाया गया पात्र जिसे साधु लोग प्रयोग करते हैं. कोई व्यक्ति धर्म से विमुख हो जाए तो.

धर्मी धर्म करे और पापी पेट पीटे. कोई धर्मात्मा परोपकार के कार्य करता है तो दुष्ट लोगों को कष्ट होता है.

धर्मो रक्षति रक्षित: तुम धर्म की रक्षा करो तो धर्म तुम्हारी रक्षा करेगा.

धाओ धाओ, करम लिखा सो पाओ. धाओ – दौड़ो. कितना भी दौड़ लो, जो भाग्य में लिखा है वही मिलेगा. 

धाकड़ चोर, सेंध में गावे. आमतौर पर चोर सेंध लगा कर जल्दी से चोरी कर के भाग जाते हैं. परन्तु जो चोर आत्म विश्वास से भरा होता है उसे कोई जल्दी नहीं होती. कोई सरकारी कर्मचारी बिना किसी से डरे घर जा कर रिश्वत मांगे और धौंस दिखाए तो भी यह कहावत कह सकते हैं.

धान का कूटना और कांख का ढांकना, दोनों साथ नहीं होते. यदि कोई स्त्री धान कूटती है तो उसे पूरा हाथ ऊपर की तरफ उठाना होता है. ऐसे में वह भला कांख (बगल) को कैसे ढंक पायेगी. गृहस्थी के आवश्यक काम करने के लिए लाज शर्म छोड़नी पडती है. व्यापार में पुरुषों को भी कई अशोभनीय काम करने पड़ते हैं.    

धान का गाँव पुआल से जाना जाता है. यदि गाँव में पुआल का प्रयोग अधिक दिखाई दे तो समझ लो यहाँ धान की खेती होती है. अर्थ है कि परिवेश को देख कर किसी स्थान के विषय में बहुत कुछ जाना जा सकता है.

धान गिरे बढ़ भाग, गेहूँ गिरे दुरभाग. खेत में अगर धान की खड़ी फसल गिरती है तो धान की उपज अच्छी होती है लेकिन गेहूँ की फसल गिर जाए तो उपज अच्छी नहीं होती. गिरी हुई धान की फसल के दाने निरोग और बड़े होते हैं जबकि गेहूँ गिर जाए तो उसके दाने छोटे-छोटे हो जाते हैं।

धान पान ऊखेरा, तीनों पानी के चेरा. धान, पान और गन्ने की फसल को बहुत पानी चाहिए होता है.

धान पान पनिआए, बाभन खूब खिलाए, कायथ घूस दिलाए, नान्ह जात लतिआए.  उपरोक्त कहावत को और विस्तार से बताया गया है. धान और पान के पौधे खूब पानी देने से खुश होते हैं (तेजी से बढ़ते हैं), ब्राह्मण खूब खिलाने से, कायस्थ घूस देने से और छोटी जात के लोग लात खा कर खुश रहते हैं. यह एक कडवा सच है कि सामंत शाही व्यवस्था में तथाकथित उच्च जाति के लोग वंचितों पर बहुत अत्याचार करते थे.

धान पान पनियावले, दुष्ट जात लतियावले. (भोजपुरी कहावत) धान और पान अधिक पानी से ठीक रहते हैं और दुष्ट जात लतियाने (लात मारने) से.

धान पान पानी, कातिक स्वाद जानी. धान, पान और पानी का स्वाद कार्तिक माह में ही अच्छा होता है. धान कार्तिक में तैयार हो जाता है. पान भी इसी मास में अच्छे हो जाते हैं और पानी भी स्वच्छ हो जाता है.

धान पान, नित अस्नान. धान और पान को बराबर पानी से नहलाना चाहिए.

धान पुराना घी नया और कुलवंती नार, चौथी पीठ तुरंग की सरग निसानी चार. चावल पुराना अच्छा माना जाता है और घी नया. ये चीजें भाग्य से ही मिलती हैं. इनके अतिरिक्त कुल की लाज रखने वाली स्त्री और घोड़े की सवारी भी बड़े भाग्य से मिलती हैं इसलिए इन चारों चीजों को स्वर्ग की निशानी बताया गया है.

धाये धन, न माँगे पूत. दौड़-धूप करने से धन और माँगने से लड़का नहीं मिलता. भाग्य में हो तभी मिलता है.

धी छोड़ दामाद प्यारा. लड़की मायके में अपने पति की बुराई कर रही है. मां बाप समझाते हैं कि पति के बारे में ऐसा नहीं कहते, तो लड़की बोलती है कि अच्छा अब तुम्हें लड़की से दामाद ज्यादा प्यारा हो गया.

धी जमाई ले गए, बहू ले गईं पूत, चरनदास हम बुड्ढे बुढ़िया रहे ऊत के ऊत. धी माने बेटी. जमाई लोग लड़कियों को ले गए और लड़कों को बहुएं ले गईं. बेचारे पति पत्नी बुढ़ापे में अकेले रह गए.

धी ताको कहूँ, बहुरिया तू कान धर. कोई औरत बहू पर रोब जमाने के लिए लड़की को डांट रही है (जिससे बहू यह न कहे कि लड़की को कुछ नहीं कहतीं), और इस तरह बोल रही है कि बहू भी सुन कर सावधान हो जाए.

धी दस कोस, पूत पड़ोस.  धी – बेटी. 1. लड़की को अपने घर से थोड़ा दूर बसाना चाहिए और पुत्र को बगल में. 2. लड़की दूर रहती है इसलिए समय पर काम नहीं आ सकती, पुत्र पड़ोस में रहता है इसलिए काम आता है.

धी न धियाना, आप ही कमाना, आप ही खाना. ऐसे इकलखोर निस्संतान व्यक्ति के लिए जो कोई सामाजिक सरोकार न रखता हो.

धी पराई, आँख लजाई. कोई व्यक्ति कितना भी बड़ा क्यों न हो, कितना भी अहंकारी क्यों न हो, बेटी की शादी के बाद उसे विनम्र होना पड़ता है. 

धी ब्याही तब जानिये जब घर से डोली जावे. बेटी के विवाह में तरह तरह के संकट आते हैं. जब उस की डोली विदा हो जाए तभी मानना चाहिए कि विवाह सम्पन्न हो गया है.

धी मेरी मर गई दामाद मेरा क्या, पूत मेरा मर गया पतोहू मेरी क्या. धी – बेटी, पतोहू – पुत्रवधू. दामाद या बहू से रिश्ते अपने बेटे बेटी से ही जुड़ते हैं. उनके न रहने पर रिश्ते का क्या अर्थ.

धींगे की धरती है. धींगामुश्ती करने वाला आदमी ही दुनिया में आराम से रह सकता है.

धीमे नाचो, नंगे दिख जाओगे. अति उत्साह में आ कर ज्यादा उछल कूद करने से आपकी असलियत सामने आ जाने का खतरा होता है.

धीया न पूता, मुँह चाटे कूता.  धीया, धी – बेटी, पूता – पुत्र. जिनके कोई संतान न हो बुढापे में उनकी बहुत मिट्टी खराब होती है (कुत्ते मुँह चाटते हैं).

धीरज धरिअ उतरिये पार, नाहीं बूड़त सब परिवार. बूड़ना – डूबना. जो लोग धैर्य रख कर नदी पार करते हैं, उनका परिवार बीच नदी में नहीं डूबता. रूपांतर- धीरज करे तो उतरे पारा, नहीं तो बूड़े सब संसारा.

धीरज धर्म मित्र अरू नारी, आपत काल परखियेहीं चारी. कोई व्यक्ति कितना धैर्यवान है, कितना अपने धर्म पर अडिग है, कोई मित्र कितना सच्चा हितैषी है और कोई नारी कितनी पतिव्रता है, इन सब की परख आपत्ति काल में ही हो सकती है.

धीरज बनिज, उतावल खेती. व्यापार में धैर्य की आवश्यकता होती है और खेती में जल्दी निर्णय ले कर पहले काम करने की. 

धीरज सुधारे कारज. धैर्यपूर्वक कार्य करने से सारे कार्य ठीक से हो जाते हैं.

धुली धुलाई भेड़ कीचड़ में गिरी. भेड़ को नहलाना कितना कठिन होता है, और नहलाने के बाद अगर वह कीचड़ में गिर जाए तो नहलाने वाले को कितना कष्ट होगा. मेहनत से किया हुआ काम मिट्टी में मिल जाए तो.

धूप रहते मेंह बरसे, काले चोर का ब्याह. लोक विश्वास है कि धूप और वर्षा एक साथ हो तो काले चोर का ब्याह हो रहा होगा. कहीं कहीं भूत भूतनी का ब्याह भी मानते हैं.

धूल उड़ाने से सूरज नहीं छिपता. किसी महापुरुष की निंदा करने से उसकी महानता कम नहीं हो जाती.

धूल छाने कंकड़ हाथ. व्यर्थ के काम से कुछ हासिल नहीं होता. धूल को छानोगे तो कंकड़ ही हाथ लगेंगे.

धूल पड़े वा काम में एक चित्त दो ठौर. काम कहीं और कर रहे हैं और मन कहीं और है तो काम में सफलता नही मिल सकती.

धूल से ढका हो तो भी सूरज सूरज ही रहता है. किन्हीं कारणों से यदि किसी महान व्यक्ति की महानता सामने नहीं आ पा रही है तब भी वह महान ही रहेगा.

धेला न कौड़ी, कान छिदाने दौड़ी. कर्ण छेदन संस्कार में काफी खर्च होता है. पैसा पास न होने पर भी यदि कोई बड़ा कार्य करना चाह रहा हो तो यह कहावत कही जाती है.    

धेले की नथनी पर इतना गुमान, सोने की होती तो चढ़ती आसमान. बहुत छोटी छोटी चीजों पर घमंड करने वालों का मजाक उड़ाने के लिए यह कहावत कही गई है. 

धेले की बुढ़िया टका सर मुड़ाई. किसी सस्ती चीज़ का रखरखाव महंगा हो तो.

धैया छूने आये थे. बच्चों के खेल में किसी एक स्थान को धैया मान लेते हैं. बच्चे दौड़ कर धैया छूते हैं और लौट कर वापस आते हैं. कोई आप के घर आते ही जाने के लिए कहे तो मजाक में यह कहावत बोली जाती है.

धोपे धापे भीत, जोड़े जाड़े गीत. थोड़ी थोड़ी ईंटें व मिट्टी थोप कर दीवार बन जाती है और छोटे छोटे छंद जोड़ कर गीत बन जाता है.

धोबियों से कौन सा घाट छिपा है. हर व्यापारी को अपने व्यवसाय से सम्बन्धित बारीकियाँ मालूम होती हैं.

धोबी अपने गदहे को भी बाबू कहे. 1. जिस से काम लेना है उस से अच्छा व्यवहार करना चाहिए. 2. घर में पलने वाला जानवर पुत्र के समान प्यार पाता है (घर के बच्चे को लोग प्यार से बाबू कहते हैं). 

धोबी अहीर की कौन मिताई, इनके गदहा उनके गाई. दो अलग प्रवृत्ति या व्यवसाय वाले लोगों में मित्रता नहीं हो सकती इस बात को मजेदार ढंग से कहा गया है. धोबी के पास गदहा है और अहीर के पास गाय, इनमें मित्रता कैसे हो सकती है.

धोबी कभी अपने कपड़े नहीं फाड़ता. लोग लापरवाही से दूसरों का काम तो बिगाड़ देते हैं, अपना काम नहीं बिगड़ने देते. (धोबी अपने ग्राहकों के कपड़े अक्सर लापरवाही के कारण फाड़ देते हैं).

धोबी का कुत्ता, न घर का न घाट का. धोबी का कुत्ता धोबी के साथ घाट पर जाता है और घाट पर कपड़े सूखते छोड़ कर धोबी के साथ ही घर आ जाता है. अर्थात वह न तो घर की रखवाली कर पाता है और न ही घाट की. किसी ऐसे व्यक्ति के लिए जिस से कोई भी एक काम ढंग से न लिया जाए (और इस कारण उस की कोई कद्र न हो). इस से मिलती जुलती भोजपुरी कहावत है – घर के ना घाट के माई के न बाप के.

धोबी का गधा, साधु की गाय और राजा का नौकर किसी और काम के नहीं रहते. इनकी आदतें बहुत बिगड़ी हुई होती हैं इसलिए ये कहीं और काम नहीं कर सकते.

धोबी का छैला (बेटा), आधा उजला आधा मैला. धोबी का बेटा आधे कपड़े अपने पहनता है जो मैले होते हैं और आधे कपडे ग्राहकों के पहनता है जो उजले होते हैं.

धोबी का साथी पत्थर. धोबी को दिन भर पत्थर पर कपड़े कूटने होते हैं इसलिए पत्थर को उसका साथी मानना ठीक है. जब मजबूरी में किसी को साथी मानना पड़े तो.

धोबी की भाजी गधा भी खाए (धोबी का श्राद्ध गधा भी खाए). भाजीविवाह में रिश्तेदारों को बंटने वाली मिठाई. पालतू जानवर परिवार के सदस्य जैसा हो जाता है. 

धोबी के घर पड़े चोर, वह न लुटा लुटे और. धोबी के घर चोरी होगी तो नुकसान धोबी का नहीं उन लोगों का होगा जिनके कपड़े धोबी धोने के लिए ले कर आया है.

धोबी के घर ब्याह, गधे का छुट्टी भइल. (भोजपुरी कहावत) धोबी के घर में ब्याह है. कपड़े नहीं धुलने इस लिए गधे को छुट्टी मिल गई है. किसी असम्बद्ध कारण से किसी को लाभ मिलने पर.

धोबी के घर में आग लगी, न हरष न बिषाद. धोबी के घर में आग लगी तो उसे कोई चिंता ही नहीं है, क्योंकि जो कपड़े जलेंगे वे उसके हैं ही नहीं. 

धोबी के बसे या कुम्हार के, गधा तो लदेगा ही. गरीब और असहाय आदमी कहीं भी रहे उस पर काम तो लादा ही जाएगा.

धोबी के ब्याह, गधे के माथे मोर. धोबी के घर में ब्याह है तो गधे को भी सजने को मिल रहा है. घर में कोई उत्सव हो तो नौकर चाकर, पालतू जानवर सभी की मौज हो जाती है.

धोबी छोड़ भिश्ती किया, रही घाट के पास. धोबी घाट पर कपड़े धोता है और भिश्ती पानी भरता है. किसी स्त्री ने धोबी को छोड़ कर भिश्ती से शादी कर ली, तो भी उसे घाट पर ही रहना पड़ा. स्थान या व्यवसाय बदल कर भी किसी व्यक्ति की स्थिति न सुधरे तो यह कहावत कही जाती है.  

धोबी पानी में रह कर भी प्यासा मरे. धोबी जहाँ कपड़े धोता है वहाँ पानी गंदा होता है इसलिए. कोई व्यक्ति साधनों की प्रचुरता के बीच अभावग्रस्त हो तो यह कहावत कहते हैं.

धोबी बस के क्या करे, दिगम्बरन के गाँव. दिगम्बर – दिक्+अम्बर, दिशाएँ जिनका वस्त्र हैं अर्थात पूर्णतया निर्वस्त्र रहने वाले साधु लोग (जैन मुनियों का एक वर्ग). जो लोग कपड़े ही नहीं पहनते उनके गाँव में बस कर धोबी क्या करेगा. जहाँ किसी चीज़ की बिलकुल माँग न हो वहाँ उस का व्यापार करने की क्या तुक.

धोबी रोवे धुलाई को, मियाँ रोवे कपड़े को. धोबी इस बात को रोता है कि धुलाई के पैसे कम मिल रहे हैं और मियाँ इस बात को रो रहे हैं कि कपड़े साफ़ नहीं धुले या फट गए. सब अपनी अपनी परेशानी को रोते हैं.

धौले पर दाग लगे. सफेद पर ही दाग लगता है, काले या गहरे रंग पर दाग दिखाई नहीं पड़ते. सच्चरित्र और प्रतिष्ठित व्यक्ति जरा सी भी गलती करे तो उस की बदनामी बहुत जल्दी हो जाती है.

धौले भले हैं कापड़े, धौले भले न बार, काली भली है कामली, काली भली न नार. कपड़े सफेद अच्छे लगते हैं पर सफ़ेद बाल अच्छे नहीं लगते, कमली (छोटा कम्बल) तो काली अच्छी लगती है पर स्त्री काली अच्छी नहीं लगती.

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