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  1. ग के लूर नादे माई पोथी.(भोजपुरी कहावत) क ख ग जानते नहीं हैं और पोथी पढ़ने को मांग रहे हैं. जिस चीज को प्रयोग करना नहीं आता उस की मांग करना.
  2. कंकड़ बीनते हीरा मिला.किसी बहुत छोटे काम को करते समय बड़ा लाभ हो जाना.
  3. कंगाल की छोरी और लड्डू के लिए रूठे.व्यक्ति को उसी चीज की मांग करनी चाहिए जो उस की पहुँच में हो.
  4. कंगाल छैल गाँव को भारीजिसके पास पैसे न हों और तरह तरह के शौक करना चाहता हो वह चोरी ठगी करके अपने शौक पूरे करेगा.
  5. कंगाली (गरीबी) में आटा गीला.एक अत्यधिक गरीब व्यक्ति बहुत मुश्किल से आटा ले कर आता है लेकिन पानी गिरने से वह आटा बेकार हो जाता है. यदि आप पहले से ही मुश्किल में हों और ऊपर से कोई और परेशानी खड़ी हो जाए तो. 
  6. कंचन जैसी ऊजली उत्तर बीच सुहाएअग्गम देवे सूचना बेगी बरखा आए.यदि उत्तर दिशा में बादलों के बीच बिजली चमकती हो तो अच्छी वर्षा होगी. 
  7. कंजड़ की कुतिया कहाँ जा के ब्याहेगी.राजस्थान की घुमंतू जाति के लोगों को कंजड़ भी कहते हैं. उनका कोई एक ठिकाना नहीं होता यह बताने के लिए मजाक में इस प्रकार से कहा गया है. 
  8. कंडे बीनने जाय और जलेबी का तोसा.तोसा – खाना. कंडे बीनने जाने वाली को जलेबी रख कर नहीं दी जाएंगी.
  9. कंत न पूछे बातमेरा धरा सुहागन नाम.ऐसी स्त्री की बात की जा रही है जिसको उसका पति नहीं पूछता और वह अपने को सुहागन कहती है. जब किसी घर, विभाग या संगठन में किसी व्यक्ति की पूछ न हो रही हो और फिर भी वह अपना महत्त्व जताने की कोशिश करे तो.
  10. काले कौए खा कर नहीं आया है.एक पुराना विश्वास है कि काले कौए खाने से आदमी अमर हो सकता है. 
  11. ककड़ी के चोर को कनेठी ही काफी है.कनेठी – कान उमेठना.छोटी चोरी के लिए छोटी सी सजा पर्याप्त है.
  12. ककड़ी के चोर को फांसी नहीं दी जाती.छोटे अपराध के लिए बहुत बड़ी सजा नहीं दी जाती.
  13. ककड़ी के चोर को लकड़ी.छोटे अपराध के लिए छोटी सी सजा (लाठी से पिटाई) ही काफी है.
  14. कचरे से कचरा बढ़े.जहाँ एक बार कूड़ा डालना शुरू कर दो वहाँ और कूड़ा पड़ने लगता है.
  15. कच्चा तो कचौड़ी मांगेपूरी मांगे पूरानोन मिर्च तो कायस्थ मांगेबामन मांगे बूरा.कच्चा माने छोटी उम्र का बालक, पूरा माने वयस्क. बालक कचौड़ी मांगता है, वयस्क पूड़ी खाना चाहता है, कायस्थ को मिर्च मसाले पसंद आते हैं और ब्राह्मण मीठे से प्रसन्न होता है. (ब्राह्मणं मधुर: प्रियं)
  16. कच्चा बांस जिधर से नवाओ नव जाए.कच्चे बांस को मोड़ना आसान होता है. बच्चों को किसी संस्कार में ढालना आसान होता है.
  17. कच्ची कली कनेर की तोड़त ही कुम्हलाए.जो बच्चे बहुत नाजों से पले होते हैं वे थोड़े से कष्ट से ही विचलित हो जाते हैं.
  18. कच्ची शीशी मत भरोजिसमें पड़ीं लकीरबालेपन की आशिकी गले पड़ी जंजीर.बहुत छोटी आयु में इश्क प्रेम के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए.
  19. कच्चे घड़े में पानी नहीं भर सकता.अपरिपक्व व्यक्ति कोई सार्थक कार्य नहीं कर सकता.
  20. कछु कहि नीच न छेड़िएभलो न वाको संगपाथर डारै कीच मैंउछरि बिगारै अंग.नीच को छेड़ने में अपने मान सम्मान को ही खतरा होता है. कीचड़ में पत्थर फेंको तो अपने ऊपर छींटें आती हैं.
  21. कछु दिन जदपि लुभत संसारसदा न निभे कपट व्यौहार.कपट पूर्ण व्यवहार कर के कुछ दिन आप संसार को लुभा सकते हैं लेकिन अंत में भेद खुल ही जाता है.
  22. कछुए का काटा कठौती से डरे.कठौती – काठ का बर्तन जिस में पानी भर कर रखते हैं. किसी को कछुए ने काट लिया हो तो वह पानी भरे बर्तन से डरने लगता है. 
  23. कटखनी कुतिया मखमल की झूल.कोई बदतमीज आदमी बड़ा हाकिम बन जाए तो.
  24. कटड़े की मां तलै नौ मन दूधपर कटड़े का क्या.(हरयाणवी कहावत) गाय के थनों में नौ मन दूध है पर कटड़े को उस का कोई लाभ नहीं मिलता. कोई बड़ा आदमी अपने घर वालों के काम न आता हो तो.
  25. कटरे धोए कहीं बछड़े हुआ करें.भैंस के बच्चे को कितना भी रगड़ रगड़ कर धो लो वह गाय का बछड़ा नहीं बन सकता. कितना भी प्रयास कर लीजिए अयोग्य व्यक्ति को योग्य नहीं बना सकते.
  26. कड़की कहीं और गिरी कहीं.बिजली कहीं कड़कती है और कहीं गिरती है. अनिष्ट की आशंका कहीं और थी और हो कहीं और गया.
  27. कड़वा बोली माईमीठा बोले लोगसच कहती थी माईझूठ कहे थे लोग.माँ जब बचपन में डांटती थी तो उस की बात बहुत कड़वी लगती थी और अन्य लोगों की बातें अच्छी लगती थीं. बड़े हो कर समझ में आया कि माँ सच कहती थी और लोग झूठ बोलते थे.
  28. कड़वी बेल की कड़वी तूमड़ीअडसठ तीर्थ नहाईगंग नहाई गोमती नहाई मिटी नहीं कड़वाई.तूमड़ी एक लौकी के समान फल होता है जिस को सुखा कर सन्यासी लोग कमंडल बना लेते हैं. सन्यासी के साथ तूमड़ी भी सब तीर्थों के जल में डुबकी लगा लेती है लेकिन उसकी कड़वाहट नहीं जाती. कहावत का अर्थ है कि अच्छी संगत पा कर और तीर्थ यात्रा कर के भी दुष्टों का स्वभाव नहीं बदलता. (देखिये परिशिष्ट).
  29. कडवी बेल की तूमड़ी उस से भी कड़वी.किसी निम्न श्रेणी के परिवार का कोई व्यक्ति और अधिक ओछी हरकत करे तो.
  30. कड़वी बेल तेज़ी से बढती है.जिस में बहुत से अवगुण हों वह तेजी से बढ़ता है. इंग्लिश में कहते हैं – An ill weed grows apace.
  31. कड़वी भेषज बिन पिए, मिटे न तन का ताप.बुखार कड़वी दवा से ही उतरता है. किसी भी परेशानी को हल करने के लिए कुछ कष्ट उठाना पड़ता है.
  32. कड़ी काट बेलन बनाया.पहले के मकानों में लकड़ी की छतें हुआ करती थीं. उन में लम्बी मजबूत लकडियाँ (कड़ियां) एक दीवार से दूसरी दीवार तक लगाते थे और उन पर तख्ते लगा कर छत बनाते थे. बेलन जैसी छोटी सी चीज़ को बनाने के लिए कड़ी जैसी बड़ी चीज़ को काट कर बर्बाद करना अर्थात बहुत मूर्खता पूर्ण कार्य.
  33. कड़ुआ स्वभावडूबती नाव.जिस को मीठा बोलना न आता हो वह किसी काम में सफल नहीं हो सकता.
  34. कड़ुए से मिल के रहोमीठे से डर के रहो.कड़वा आदमी खरी लेकिन भले की बात कहता है. मीठा आदमी मीठी लगने वाली लेकिन झूठी बात कह कर आपको खुश करता है और आपको नुकसान पहुँचा सकता है.
  35. कढ़ाई से निकले चूल्हे में पड़े (तवे से उतरीचूल्हे में पड़ीखटाई से निकले अमचूर में पड़े).एक मुसीबत से निकल कर दूसरी में पड़ जाना. (आसमान से गिरे खजूर में अटके). इंग्लिश में कहावत है – Out of frying pan, into the fire.
  36. कण कण भीतर राम जीज्यूँ चकमक में आग.चकमक पत्थर को रगड़ने से आग निकलती है पर ऊपर से आग नहीं दिखती. इसी प्रकार कण कण में राम हैं जिन्हें हम देख नहीं पाते.
  37. कण थोड़े और कंकड़ ज्यादा.अनाज के दाने कम और कंकड़ ज्यादा. उपयोगी वस्तुएं कम और फ़ालतू चीजें अधिक. 
  38. कतवारी को सुधरेबतवारी को बिगड़े.कतवारी – सूत कातने वाली (काम करने वाली), बतवारी – बातें बनाने वाली. काम काज करने वाली स्त्री के बच्चे अच्छे निकलते हैं और बातें बनाने वाली और काम न करने वाली स्त्री के बच्चे बिगड़ जाते हैं.
  39. कत्त्थर गुद्दर सोवैंमरजाला बैठे रोवैं.कथरी गुदड़ी ओढ़ने वाला आराम से सो रहा है लेकिन फैशन के कपडे पहनने वाला परेशान बैठा है.
  40. कथनी से करनी भली.केवल कहते रहने से कर के दिखाना बेहतर है. इंग्लिश में कहावत है – Actions speak louder than the words.
  41. कथनी से न बहक, करनी को परख.कोई व्यक्ति बढ़ चढ़ कर बातें हांक रहा हो तो फौरन उस का विश्वास न करके उसके कृतित्व को देखना चाहिए.
  42. कथरी ओढ़ के घी पिया.ऊपर से गरीबी का प्रदर्शन करना और अंदर ठाठ से रहना.
  43. कदम कदम पर कुनबा डूबे, आगे धरमराज दरबार.किसी काम में नुकसान पर नुकसान हो रहा है, फिर भी आगे फायदे की आशा कर रहे हैं.
  44. कदली और काँटों में कैसी प्रीत.केले और काँटों में प्रेम नहीं हो सकताकांटे की प्रवृत्ति यही है कि वह केले को चुभ कर कष्ट पहुंचाएगा.
  45. कदली काटे ही फले.केले का पेड़ काटने के बाद ही फल देता है. मूर्ख व दुष्ट व्यक्ति दंड मिलने पर ही कार्य करते हैं.
  46. कद्र उल्लू की उल्लू जानता है.मूर्ख आदमी की कद्र मूर्ख ही कर सकता है.
  47. कद्र खो देता है रोज का आना जाना.बार बार कहीं जाने से आदमी की कद्र कम हो जाती है. संस्कृत में कहावत है – अति परिचयादवज्ञा सतत गमनमनादरो सन्ति.
  48. कद्रदान की जूतियाँ उठाइयेनाकद्रे को जूतियाँ मारने भी न जाइए.जो आपकी कद्र करता हो उसका हर काम करिए और जो कद्र न करता हो उसकी उपेक्षा कीजिए.
  49. कन कन जोड़े मन जुड़े.एक एक कण जोड़ने से एक मन (चालीस सेर) इकठ्ठा हो सकता है. थोड़ा थोड़ा जोड़ने से बड़ी राशि इकठ्ठी की जा सकती है. 
  50. कन का चोर सो मन का चोर.चोर तो चोर है, कण भर चुराए या मन भर (चालीस सेर) चुराए.
  51. कनखजूरे का एक पैर टूटने से वह लंगड़ा नहीं हो जाता (कनखजूरे के कै पाँव टूटेंगे).कनखजूरे के सैकड़ों पैर होते हैं, दो चार टूट जाएंगे तो क्या फर्क पड़ेगा. बहुत धनी व्यक्ति को थोड़ा बहुत नुकसान भी हो जाएगा तो उसे कोई फर्क नहीं पड़ेगा.
  52. कनवा पांडे पांय लागूं, वेही लड़ाई के लच्छन (काणे दादा पांय लागूँ, वोहे लड़ाई के लच्छन).काने  को काना कह के पुकारोगे तो लड़ाई तो होगी ही. किसी को उसकी कमी के बारे में सीधे सीधे नहीं बताना चाहिए. 
  53. कनवा बैल बयारे सनके.कनवा – काना, बयारे – हवा चलने से. काना बैल ठीक से देख नहीं पाता इसलिए हवा चलने से ही बिदक जाता है. जो व्यक्ति सही और गलत में भेद नहीं कर सकता वह बिना उचित कारण के बिदक जाता है.
  54. कपटी की प्रीतमरन की रीत.कपटी व्यक्ति से प्रेम करने पर बहुत कष्ट उठाना पड़ता है.
  55. कपड़ा कहे तू मेरी इज्जत रखमैं तेरी इज्जत रखूँ.कपड़े को संभाल कर पहना जाए तो वह व्यक्ति की शोभा बढ़ाता है.
  56. कपड़ा पहने तीन वारबुधबृहस्पतशुक्करवार.पुराने लोग मानते थे कि नए कपड़े को इन तीन दिन ही पहनना चाहिए.
  57. कपड़े का पेट बड़ा.कपड़े के व्यापार में अधिक मुनाफे की गुंजाइश होती है.
  58. कपड़े फटे हैं तो क्याघर दिल्ली है.वास्तविकता कुछ भी हो अपने को बड़ा बताने की कोशिश करना.
  59. कपड़ों के भीतर हर आदमी नंगा है.आदमी ऊपर से सभ्यता रूपी कितने भी कपड़े ओढ़ ले भीतर से हर आदमी के अन्दर आदिम प्रवृत्तियाँ जिन्दा रहती हैं.
  60. कपूत कलाल के जावे और सपूत सुनार के.कपूत कलाल के यहाँ जा कर शराब पीने में पैसे उड़ाते हैं और सपूत सुनार के यहाँ जा कर गहने आदि बनवाते हैं जिनसे बरक्कत होती है.
  61. कपूत न जायो भलोन आयो.कुपुत्र न तो पैदा किया अच्छा होता है न गोद लिया हुआ. आया माने गोद लिया हुआ. 
  62. कपूत भी अरथी में कंधा देता है. कुपुत्र भी कभी न कभी काम आता है.
  63. कपूत से तो निपूती भली.पुत्र कुपुत्र निकल जाए इससे तो निस्संतान होना अच्छा.
  64. कपूतों की अलग बस्ती नहीं होती.समाज में अच्छे और बुरे लोग एक साथ मिल कर रहते हैं. 
  65. कफन में जेब नादफन में मेव. ज्यादा जोड़ कर कहाँ ले जाओगे, कफन में जेब नहीं होती और कब्र की दीवार में आले नहीं होते. 
  66. कब दादा मरेंगे कब बेल बंटेगी.बेल एक तरह का नेग होता है जो गमी के अवसर पर नाई इत्यादि को दिया जाता है. किसी एक कार्य की वज़ह से बहुत से काम अटके पड़े हों तो.
  67. कब बाँझ ब्यावे और कब ढोल बाजे.ऐसा काम जिसके कभी होने की उम्मीद ही न हो.
  68. कब मरे कब कीड़े पड़ें.दिल से निकली हुई बद्दुआ.
  69. कब मुआकब राक्षस हुआ.किसी बहुत दुष्ट आदमी को कोसने के लिए कहे जाने वाले शब्द.
  70. कब से भैया राजा भये, कोदों के दिन बिसर गए.कोदों एक घटिया अनाज है जिसे गरीब लोग खाते हैं. कोई मामूली व्यक्ति बड़ा आदमी बन जाए और अपने पुराने दिन भूल जाए तो लोग ऐसा बोलते हैं.
  71. कबड्डी खेल, नीम के तेल.नीम का तेल जैसे रोग निवारक होता और लाभदायक है, उसी तरह कबड्डी का खेल भी लाभदायक होता है.
  72. कबहुं न धावे स्यार पर, बरु भूखो मृगराज.धावे – दौड़े, मृगराज – सिंह. शेर कितना भी भूखा क्यों न हो, सियार का शिकार नहीं करता. ऊंची प्रकृति के लोग निम्न कार्य नहीं करते.
  73. कबहूँ नाहीं होते दूबर, रसोई के बामन, कसाई के कूकर.दूबर – दुर्बल. रसोइये का काम करने वाला ब्राह्मण और कसाई का कुत्ता कभी दुबले नहीं होते, क्योंकि उन्हें खूब खाने को मिलता है.
  74. कबाड़ी के छप्पर पर फूस नहीं.जिस चीज़ की बहुतायत होनी चाहिए उसी का अकाल.
  75. कबाब में हड्डी.अवांछनीय व्यक्ति. मांस को बारीक पीस कर उससे कबाब बनाए जाते हैं जो कि बहुत मुलायम होते हैं, यदि उस में हड्डी का टुकड़ा आ जाए तो कबाब का सारा मज़ा खराब कर देता है.
  76. कबिरा आप ठगाइएऔर न ठगिए कोयआप ठगे सुख होत हैऔर ठगे दुख होय.कबीर कहते हैं कि कभी किसी को धोखा नहीं देना चाहिए, चाहे आपको कोई ठग ले. इंग्लिश में कहावत है – Better suffer ill than do ill.
  77. कबिरा खड़ा बाज़ार मेंमांगे सबकी खैरना काहू से दोस्तीन काहू से बैर.इस संसार में आकर कबीर बस यही चाहते हैं कि सबका भला हो. न किसी से अनावश्यक दोस्ती करते हैं न दुश्मनी.
  78. कबिरा गरब न कीजिएकबहूँ न हंसिए कोय(अजहूँ नाव समुद्र में क्या जाने क्या होय).हम को अपने धन या पद पर कभी घमंड नहीं करना चाहिए और किसी का उपहास नहीं करना चाहिए. किसी के साथ कभी भी कोई अनहोनी हो सकती है.
  79. कबिरा जब पैदा हुएजग हँस्या हम रोयेऐसी करनी कर चलोआप हँसे जग रोये.कबीर दास जी कहते हैं कि जब हम पैदा हुए थे उस समय सब खुश हुए और हम रो रहे थे. जीवन में कुछ ऐसा काम करके जाओ कि जब हम मरें तो दुनिया रोये और हम हँसें.
  80. कबिरा यह संसार हैजैसो सेमल फूलदिन दस के व्यवहार मेंझूठे रंग न भूल.यह संसार सेमल के फूल की भांति रंग बिरंगा परन्तु क्षण भंगुर है.
  81. कबिरा ये घर प्रेम का खाला का घर नांहि.खाला – मौसी. मौसी का घर वह स्थान है जहाँ सब तरह का आराम मिलता है (अपने घर पर तो डांट भी पडती है). प्रभु की भक्ति करनी है तो यह समझ लो कि यह मौसी का घर नहीं है. यहाँ केवल ईश्वर से प्रेम ही करना है, सारे आराम भूल जाओ. इसकी अगली पंक्ति है – सीस उतारे भुईं धरे, तो पैठे घर मांहि.
  82. कबिरा वो दिन याद कर पग ऊपर तल शीश, मृत्यु लोक में आनकर भूल गया जगदीश.कबीर कहते हैं कि जब तू माँ के गर्भ में था तो पैर ऊपर और सर नीचे कर के कष्ट में रह रहा था. अब मृत्युलोक में आ कर मोह माया में तू भगवान को ही भूल गया है.
  83. कबिरा संगत साधु की ज्यों गंधी को बासजो कुछ गंधी दे नहीं तो भी बास सुबास.साधु की संगत वैसी ही है जैसे सुगंध बेचने वाले के पास बैठना. गंधी कुछ न भी दे तो भी सुगंध आती है. उसी प्रकार साधु के साथ बैठने से सुविचार आते हैं.
  84. कबिरा सोई पीर हैजो जाने पर पीर, जो पर पीर न जानहीं  सो काहे को पीर. मुसलमानों में कुछ लोगों को पीर (पहुँचे हुए संत) का दर्जा दिया जाता है. कबीर दास जी कहते हैं कि जो इंसान दूसरे की पीड़ा को समझता है वही पीर है. जो दूसरे की पीड़ा ना समझ सके वह कैसा संत. पीर – पीड़ा.
  85. कबीर कहा गरबियौऊंचे देखि आवास, काल्हि परयौ भू लेटना ऊपरि जामे घास.कबीर कहते है कि ऊंचे भवनों को देख कर क्या गर्व करते हो. कल आप धरती पर लेट जाएंगे और ऊपर से घास उग आएगी.
  86. कबीर सो धन संचयेजो आगे को होय, सीस चढ़ाए पोटलीजात न देख्यो कोय.कबीर कहते हैं कि उस धन को इकट्ठा करो जो भविष्य में (परलोक में) काम आए. सर पर धन की गठरी बाँध कर ले जाते तो किसी को नहीं देखा.
  87. कबीरदास की उलटी बान, मूते इन्द्री बांधे कान.कबीरदास जी कहते हैं कि दुनिया में सब उल्टा पुल्टा है, मूत्र विसर्जन तो जननेन्द्रिय करती है पर बाँधा कान को जाता है (जो लोग जनेऊ बांधते हैं वे पेशाब करते समय जनेऊ को कान पर बाँध लेते हैं).
  88. कबीरदास की उलटी बानीबरसे कंबल भीगे पानी.दुनिया में कई चीजों का उल्टा चलन देख कर कबीरदास का व्यंग्य. 
  89. कबीरा खड़ा बाजार में लिए लुकाठी हाथजो घर फूंके आपना चले हमारे साथ.लुकाठी – लकड़ी. कबीरदास सांसारिक मोह माया से मुक्त है. उन के साथ चलना गृहस्थी में आग लगाने जैसा है.
  90. कबूतर को कुआं ही दीखता है.जो जहाँ सुरक्षित हो वहीं जाना चाहता है.
  91. कब्जा सच्चामुकदमा झूठा.जायदाद पर किसी का कब्ज़ा हो तो वह मुक़दमा जीतने से भी ज्यादा असर रखता है.
  92. कब्र का मुंह झाँक कर आए हैं.मौत के मुँह से निकल कर आए हैं. बहुत गंभीर बीमारी से ठीक होना.
  93. कब्र का हाल मुर्दा ही जानता है.कोईव्यक्ति कितनी कठिन परिस्थितियों में रह रहा है इसके बारे में वही जान सकता है.
  94. कब्र देख सब्र आवे.कब्रिस्तान में जा कर ही इंसान को जीवन की वास्तविकता का ज्ञान होता है.
  95. कब्र पर कब्र नहीं बनती.पुराने लोगों का विचार था कि विधवा को विवाह नहीं करना चाहिए, इस आशय का कथन. दूसरा अर्थ यह हो सकता है कि क़र्ज़ से दबे आदमी को और क़र्ज़ नहीं देना चाहिए.
  96. कब्र में छोटे बड़े सब बराबर.अपने जीवन काल में हमें घमंड नहीं करना चाहिए इस को याद दिलाने के लिए बताया गया है कि मरने के बाद सब बराबर हो जाते हैं.
  97. कब्र में पैर लटकाए बैठे हैं.मृत्यु के करीब हैं.
  98. कब्र में रख के खबर को न आया कोईमुए का कोई नहीं जीते का सब कोई.अपने लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए पाप कर्म नहीं करना चाहिए, आपके मरने के बाद कोई सगा सम्बन्धी आपको याद नहीं करेगा.
  99. कभी कभी दर्द इलाज से बेहतर होता है.यदि इलाज बीमारी से अधिक कष्टदायक हो तो ऐसा सोचना पड़ता है. देश और समाज के सामने भी कभी कभी ऐसी परिस्थितियाँ आती हैं. 
  100. कभी के दिन बड़ेकभी की रात.सब दिन एक से नहीं होते.
  101. कभी घी घनाकभी मुठ्ठी चनाकभी वह भी मना.मनुष्य का भाग्य सदा एक सा नहीं रहता. कभी खूब घी, पकवान खाने को मिलते हैं, कभी मुट्ठी भर चने पर गुज़ारा करना पड़ता है और कभी वह भी नहीं मिलता.
  102. कभी दूध था, बूरा थी, कटोरा था, कटोरे में दूध ले कर उस में बूरा डाल कर उंगली से घोल कर पीते थे. अब तो बस उंगली ही बची है. पुराने दिनों की शान बघारने वालों का मजाक उड़ाने के लिए.
  103. कभी न घोड़ा हींसिया, कभी न खींची तंग, कभी  न कायर  रण चढ़ा, कभी  न बाजी बंब. जो कायर पुरुष कभी भी रण भूमि में नहीं गया, उसका मजाक उड़ाने के लिए. .
  104. कभी नाव गाड़ी परकभी गाड़ी नाव पर. (कभी नाव गाड़ी में कभी गाड़ी नाव में).किसी का भी समय बदल सकता है. आज आप जिस को आसरा दे रहे हैं कल हो सकता है कि वह आप को आसरा दे.
  105. कभी बिल्ली को मंगल गाते नहीं देखा.ओछे व्यक्ति कभी अच्छा काम नहीं कर सकते.
  106. कभी बोरा गधे परकभी गधा बोरे पर.वक्त वक्त की बात है. कभी गधा बोरे पर बैठता है कभी बोरा गधे पर लादा जाता है.
  107. कभी रंजकभी गंज.गंज – बहुत सा. दुनिया में कभी बहुत कम मिलता है कभी बहुत अधिक मिल सकता है.
  108. कम खाना और गम खाना अच्छा (कम खा लोगम खा लो)कम खाओ और मन को समझा कर रखो यह अधिक अच्छा है. अधिक पाने की लिप्सा में आदमी गलत काम करता है और अधिक खाने के चक्कर में स्वास्थ्य खराब कर लेता है. कुछ लोग इस तरह से बोलते हैं – कम खाना, गम खाना और किनारे से चलना.
  109. कम खानें और गम खानें, न हकीम के जाने, न हाकिम के जाने.(बुन्देलखंडी कहावत) कम खाओ और संतोष रखो तो न तो वैद्यों के चक्कर लगाने पड़ेंगे न कचहरी के.
  110. कम जोर और गुस्सा ज्यादायही मार खाने का इरादा.कमजोर आदमी ज्यादा गुस्सा दिखाएगा तो पिटेगा.
  111. कम मोल की और बहुत दुधारी.गाय की तारीफ़ में कही गई बात. कोई वस्तु कम कीमत की हो और बहुत उपयोगी हो तो यह कहावत कही जाती है. इससे मिलती जुलती एक कहावत है – कम खर्च बालानशीन.
  112. कमउआ आवें डरतेनिखट्टू आवें लड़ते.किसी घर में चार पुरुष हैं दो कमाने वाले हैं और दो निखट्टू हैं. जो कमाऊ हैं वे तो घर में गंभीर और चिंतित मुद्रा में घुसते हैं, क्योंकि उनके ऊपर जिम्मेदारियों का बोझ होता है. पर जो निखट्टू हैं वे झगड़ते हुए ही घर में घुसते हैं. हमारा फला काम क्यों नहीं हुआ. हमारे लिए फलानी चीज क्यों नहीं बनी. अमुक व्यक्ति की हमसे ऐसा बोलने की हिम्मत कैसे हुई वगैरा-वगैरा. 
  113. कमजोर देही में बहुत रीसि होला. (भोजपुरी कहावत)कमजोर शरीर में बहुत गुस्सा होता है. जो शक्तिशाली हैं वे गंभीर होते हैं.
  114. कमबख्त गए हाटन मिली तराजू न मिले बांट.भाग्य साथ न दे तो कहीं कुछ भी नहीं मिलता है.
  115. कमबख्ती की निशानीसूख गया कुएं का पानी.अभागा आदमी पानी पीने गया तो कुँए का पानी ही सूख गया.
  116. कमर का मोल हैतलवार का नहीं.ताकत तलवार में नहीं उसे बांधने वाले में होती है.
  117. कमर टूटे रंडी की और भडुवे ओढें दुशाला.वैश्या बेचारी नाच नाच कर अपनी कमर तोड़ लेती है (मेहनत करती है) और दलाल लोग (बिना कुछ किए) गुलछर्रे उड़ाते हैं.
  118. कमर में तोसाबड़ा भरोसा.तोसा – खाने का सामान. अपनी आवश्यकता का सामान अपने पास हो तो मन में बड़ी संतुष्टि और आत्म विश्वास रहता है.
  119. कमर में लंगोटीनाम पीताम्बरदास.नाम के विपरीत गुण.
  120. कमला काहू की न भई.लक्ष्मी किसी की सदा के लिए नहीं होती.
  121. कमला थिर न रहीम कहि यह जानत सब कोयपुरुष पुरातन की वधू क्यों न चंचला होय.धन दौलत, माया किसी के पास स्थिर रूप से नहीं रहता.
  122. कमला नारी कूपजलऔर बरगद की छांयगरमी में शीतल रहें शीतल में गरमाय.लक्ष्मी स्वरूपा स्त्री, कुएं का जल और बरगद की छाँव, ये गर्मी में शीतल रहते हैं और सर्दी में गर्म.
  123. कमली ओढ़ने से कोई फ़कीर नहीं होता.साधुओं जैसा वेश धर लेने से कोई साधु नहीं हो जाता.
  124. कमा कर खाने में दोष नहीं चुरा कर खाने में दोष है.पैसा कमाने के लिए यदि कोई छोटे से छोटा काम भी करना पड़े, तो वह चुरा कर खाने से अच्छा है.
  125. कमाई में हाथ गंदे करने ही पड़ते हैं.केवल ईमानदारी से व्यापार नहीं किया जा सकता.
  126. कमाई सब को दिखती है, दुख किसी को नहीं दिखता.कोई व्यक्ति दिन रात मेहनत कर के किसी मुकाम पर पहुँचा हो अभी भी तरह तरह के कष्ट उठा कर पैसा कमा रहा हो तो उस के कष्ट किसी को नहीं दीखते, बस उस की कमाई दिखती है.
  127. कमाऊ खसम कौन न चाहे.सभी स्त्रियाँ चाहती हैं कि उन्हें अच्छा कमाने वाला पति मिले. लाभ के पद पर बैठे व्यक्ति से सब दोस्ती करना चाहते हैं.
  128. कमाऊ पूत किसे अच्छा नहीं लगता.स्पष्ट.
  129. कमाऊ पूत की दूर बला.कमाने वाला पुत्र सब परेशानियों से दूर रहता है.
  130. कमाए थोड़ो खरचे घनो, पहलों मूर्ख उस को गिनो.जो व्यक्ति आमदनी से अधिक खर्च करता है वह सबसे बड़ा मूर्ख होता है.
  131. कमान से निकला तीर और जुबान से निकली बात कभी वापस नहीं आती.बात सोच समझ कर बोलना चाहिए क्योंकि मुँह से निकली बात वापस नहीं ली जा सकती.
  132. कमानी न पहियागाड़ी जोत मेरे भैया.साधन न होते हुए भी जबरदस्ती काम करने के लिए कहना.
  133. कमाय न धमायमोको भूंज भूंज खाय.निठल्ले पति के लिए पत्नी का कथन, निठल्ले बेटे के लिए माँ या बाप का कथन.
  134. कमावे तो वरनहीं कुआंरा ही मर.कमाने की सामर्थ्य हो तभी विवाह करना चाहिए नहीं तो कुआंरा ही रहना चाहिए.
  135. कमावे धोती वालाउड़ावे टोपी वाला.कमाए कोई और उड़ाए दूसरा कोई. यहाँ पर अभिप्राय इस बात से भी है कि मेहनतकश (धोतीवाला) कमाए और नेता और अफसर (टोपीवाले) खाएं.
  136. कर की नाड़ी कर ही जाने.हाथ की नब्ज़ को हाथ से ही टटोला जाता है.
  137. कर तो डरन कर तो भी खुदा के गज़ब से डर.यदि हम कोई काम गलत करते हैं तो हमें डरना चाहिए. यदि गलत काम नहीं भी करते हैं तो भी ईश्वर के कोप से डरना चाहिए.
  138. कर भला हो भला. जो दूसरों का भला करता है उस का भला अवश्य होता है.
  139. कर ले सो कामभज ले सो राम.जो कुछ करना हो उसे शीघ्र कर लेना चाहिए, उसमें आलस्य नहीं करना चाहिए. कबीर दास जी ने भी कहा है काल्ह करे सो आज कर.
  140. कर सेवा तो खा मेवा. (बिन सेवा मेवा नहीं).बड़ों की सेवा करने से ही फल मिलता है.
  141. करके खाना और मौज उड़ाना.खूब मेहनत करो, खूब कमाओ और प्रसन्न रहो. मेहनत करे बिना ख़ुशी नहीं मिल सकती.
  142. करघा छोड़ तमाशे जाएकरम की चोट जुलाहा खाए.पहले जमाने में जब टीवी, सिनेमा इत्यादि नहीं थे तो लोगों के मनोरंजन के मुख्य साधन मेला और तमाशा हुआ करते थे. भीड़ भाड़ वाले स्थान पर कुछ कलाकार इकट्ठे हो कर नाच गाना, नाटक, मदारी का खेल, नट का खेल, जादू इत्यादि दिखाते थे और उसके बाद लोगों से पैसा मांगते थे उसी को तमाशा कहते थे. कहावत में कहा गया है कि जो व्यक्ति अपना रोज़गार छोड़ कर तमाशा देखने जाएगा वह बहुत नुकसान उठाएगा.
  143. करघा बीच जुलाहा सोहेहल पर सोहे हालीफौजन बीच सिपाही सोहेबाग़ में सोहे माली.अपने अपने काम में हर व्यक्ति शोभा देता है. कहावत में यह सन्देश भी दिया गया है कि कोई काम छोटा नहीं होता, सब का अपना महत्त्व है. हाली – हल चलाने वाला.
  144. करजदारपत्थर खाए हर बार.कर्ज़दार व्यक्ति को बहुत जलालत झेलनी पड़ती है.
  145. करजा भला ना बाप काबेटी भली ना एककरमा के लेख उघाड़ उघाड़ देख. कर्ज हमेशा बुरा होता है (चाहे पिता से ही क्यों न लिया हो) और एक ही सन्तान हो वह भी बेटी यह भी अच्छा नहीं होता.
  146. करत करत अभ्यास के जड़ मति होत सुजान.जड़ मति का अर्थ है कोई कम बुद्धि वाला अकुशल व्यक्ति. सुजान का अर्थ है चतुर और कार्य कुशल. कहावत का अर्थ स्पष्ट है. इस दोहे की अगली पंक्ति को आम तौर पर नहीं बोला जाता है. अगली पंक्ति है – रस्सी आवत जात से सिल पर परत निशान, कुँए में से पानी निकालने के लिए जो रस्सी बाल्टी में बाँधी जाती है उसकी रगड़ बार बार लगने से पत्थर पर निशान बन जाता है. इंग्लिश में इस कहावत को इस प्रकार कहते हैं – practice makes a man perfect. 
  147. करत न कूकर वृन्द की कछु गयंद परवाह.कूकर वृन्द – कुत्तों का झुण्ड, गयंद – हाथी. हाथी कुत्तों के झुण्ड की परवाह नहीं करता.
  148. करता गुरुन करता चेला.जो अभ्यास करता रहता है वह कुशल हो जाता है, जो अभ्यास नहीं करता वह कभी नहीं सीख सकता बल्कि सीखा हुआ भी भूल जाता है.
  149. करता था सो क्यों कियाअब कर क्यों पछितायबोया पेड़ बबूल काआम कहाँ से खाय.जब गलत काम कर रहे थे उस समय कुछ सोचा नहीं तो अब क्यों पछता रहे हो. बबूल का पेड़ बोया है तो आम खाने को कैसे मिल जाएगा.
  150. करते से न करे वो बावलान करते से करे वो भी बावला.अपने साथ बुरा करने वाले से जो बदला न ले वह मूर्ख है और जो बुरा न करने वाले के साथ बुरा करे वह और बड़ा मूर्ख है.
  151. करना चाहे आशिकी और मामाजी से डरे.आशिकी करना चाह रहे हैं और घर के बड़े लोगों से डर भी लग रहा है. डर डर के काम करने वालों के लिए.
  152. करना चाहे कामबसना चाहे गाँव.अगर काम करना चाहते हो (व्यापार, खेती या नौकरी) तो घर पर मिलने वाली सुविधाओं का लालच छोड़ना पड़ेगा.
  153. करनी न करतूतकहलाएं पूत सपूत.पुत्र करते कुछ नहीं हैं पर माँ बाप उन की प्रशंसा में फूले नहीं समा रहे हैं.
  154. करनी न करतूतलड़ने को मजबूत.जो व्यक्ति काम तो कुछ न करे पर लड़ने- झगड़ने में तेज हो.
  155. करनी न खाक कीबातें मारे लाख की.जो व्यक्ति करता धरता कुछ न हो और बातें बड़ी बड़ी बनाता हो.
  156. करनी ना धरनीधियवा ओठ बिदोरनी.(भोजपुरी कहावत)  धियवा – बेटी, होठ बिदोरनी – मुँह बनाने वाली. कुछ काम भी न करना और दूसरे के काम में कमियाँ निकालना.
  157. करनी ही संग जात हैजब जावे छूट शरीरकोई साथ न दे सकेमात पिता सुत वीर.अंत समय पर कोई नाते रिश्तेदार साथ नहीं जाता केवल आपके सत्कर्म ही साथ जाते है.
  158. करम और परछाई साथ कभी न छोड़ें.भाग्य और परछाईं कभी साथ नहीं छोड़ते.
  159. करम करो सुख पाओ.सुख केवल कर्म कर के ही प्राप्त किया जा सकता है. यदि फल मिले तब तो सुख है ही और यदि फल न भी मिले तो इस बात का संतोष होता है कि हमने प्रयास तो किया.
  160. करम की गति कोई न जाने.भाग्य की गति नहीं जानी जा सकती.
  161. करम के बलियारांधी खीर हो गयो दलिया.कर्मों के बलिहारी जाएं. भाग्य से ही सब कुछ मिलता है. कर्महीन व्यक्ति ने खीर बनाई तो दलिया बन गया.
  162. करम गति टारे नाहिं टरी.यह सही है कि मनुष्य को पुरुषार्थ के बिना कुछ नहीं मिलता पर यह भी सही है कि वह कितना भी पुरुषार्थ कर ले, अपने कर्मों के फल अर्थात प्रारब्ध को नहीं टाल सकता. 
  163. करम चले दो डग आगे.आप कहीं भी जाएँ, भाग्य उस से पहले ही वहाँ पहुँच जाता है.
  164. करम छिपे न भभूत रमाए.दुष्कर्मी साधुओं के लिए कहा गया है. भभूत लगा लेने से उन की असलियत नहीं छिप जाती.
  165. करम दरिद्री नाम चैनसुख.कहावतों में करम का अर्थ कर्म (पुरुषार्थ) से भी होता है और कर्मफल (भाग्य) से भी. किसी दरिद्र व्यक्ति का नाम चैनसुख है अर्थात गुण के विपरीत नाम. 
  166. करम फूटे का इलाज हो सकता है पर घर फूटे का कोई इलाज नहीं.भाग्य खराब हो इस का इलाज तो हो सकता है, पर घर में फूट पड़ जाए तो उस का कोई इलाज नहीं हो सकता.
  167. करम फूटे को अकल फूटा मिल ही जाता हैजिसका भाग्य खराब हो उसे मूर्ख लोग ही मिलते हैं.
  168. करम बिना नर कौड़ी न पावै. कर्म किए बिना हम कुछ भी हासिल नहीं कर सकते. 2. भाग्य में न लिखा हो तो कुछ नहीं मिल सकता. 
  169. करम में कंकर लिखे और हीरों की चाह करे.भाग्य में कुछ न होते हुए भी बहुत इच्छाएँ रखना.
  170. करम में कौए का पंजा.बिल्कुल भाग्यहीन व्यक्ति.
  171. करम में लिख्या कंकरतो के करें शिव शंकर.जिसके भाग्य में कुछ न मिलना लिखा हो उसकी सहायता ईश्वर भी नहीं करता.
  172. करम से करम.करम – कर्म, करम – भाग्य. मनुष्य कर्म कर के ही भाग्य का निर्माण करता है.
  173. करम हीन जब होत हैंसबहु होत हैं बामछाँव जान जंह बैठतेतहां होत है घाम.जब भाग्य साथ न दे रहा हो तो सभी आपके विपरीत हो जाते हैं. जहाँ आप छाँव समझ कर बैठते हैं वहाँ कड़ी धूप आ जाती है.
  174. करमहीन खेती करेबैल मरे सूखा पड़े.भाग्य के बिना सफलता नहीं मिलती. अभागे व्यक्ति ने खेती करना चाही तो बैल मर गए और सूखा पड़ गया.
  175. करमहीन लंबा जिए.अभागे व्यक्ति की उमर लम्बी होती है.
  176. करमहीन सागर गएजहां रतन को ढेरकर छूअत घोंघा भएयही करम को फेर.अभागा व्यक्ति समुद्र के किनारे गया, वहाँ रत्नों का ढेर लगा था. लेकिन कर्मों का फेर देखिये, हाथ लगते ही वे रत्न घोंघा बन गए. तात्पर्य यह है कि बिना भाग्य के किसी को कुछ नहीं मिल सकता.
  177. करमू चले बरातकरम गत संगै जैहै.(बुन्देलखंडी कहावत) भाग्यहीन व्यक्ति कहीं भी चला जाए, कर्मों की गति उसका साथ नहीं छोड़ती (उसको बरात में भी अपमान झेलना पड़ता है). 
  178. करवा कुम्हार कोघी जजमान कोका लगे बाप को स्वाहा.करवा कुम्हार का है, घी जजमान का है, पंडित जी के बाप का क्या जा रहा है, खूब स्वाहा करो. दूसरों के माल को बेदर्दी से खर्च करने वालों के लिए.
  179. करा नहीं तो कर देखोजिसने किया उसका घर देखो.किसी का बुरा नहीं किया तो अब कर के देख लो. जिसने किसी का बुरा किया हो उसके घर जा कर उसका हाल देख लो.
  180. करि कुचाल अंतहि पछतानी.कुचाल – नीच कार्य. निम्न श्रेणी के कार्य करोगे तो अंत में पछताना पड़ेगा.
  181. करिया बादर जी डरियावेभूरा बादर पानी लावे.काले बादल को देख कर डर जरूर लगता है पर वह वर्षा नहीं करता, वर्षा भूरे बादल से होती है.
  182. करी भलाई आपनो चित सों दे बिसरायमानो डारी कूप में काहू सों न जनाय.किसी के साथ भलाई कर के भूल जाना चाहिए, किसी को जताना नहीं चाहिए. इस कहावत को इस प्रकार भी कहते हैं – नेकी कर कूएँ में डाल.
  183. करे एकभरें सब.किसी एक व्यक्ति की गलती का खामियाजा बहुत से लोगों को उठाना पड़ता है.
  184. करे कारिन्दा नाम बरियार कालड़े सिपाही नाम सरदार का.छोटे लोग काम करते हैं परन्तु नाम उनके सरदार का होता है.
  185. करे कोई भरे कोई.गलती किसी और की है नुकसान किसी दूसरे का हो रहा है.
  186. करे दाढ़ीवालापकड़ा जाए मुँछोंवाला.अपराध कोई और कर रहा है, सजा किसी और को मिल रही है.
  187. करे न धरे, सनीचर को दोस.कुछ काम नहीं करते हैं और भाग्य में शनि बैठा होने का बहाना करते हैं. 
  188. करे प्रपंचकहलावे पंच.कहावत उन लोगों के लिए है जो छल कपट कर के भी समाज में सम्माननीय बने रहते है. भ्रष्ट न्याय व्यवस्था पर भी व्यंग्य है.
  189. करे सो डरे.अर्थ दो प्रकार से है- जो जिम्मेदार व्यक्ति होता है वह डरता है कि कहीं कुछ गलत न हो जाए. जो कुछ करे ही नहीं उसे किस बात का डर. 2. जो अपराध या पाप करता है वह डरता भी रहता है.
  190. करे सो भरेखोदे सो पड़े.जो किसी का बुरा करता है वह उसका दंड भरता है, जो दूसरों के लिए खाई खोदता है वह स्वयं उसमें गिरता है.
  191. करें कल्लूभरें लल्लू.गलती कोई और कर रहा है, खामियाजा कोई और भुगत रहा है.
  192. करेगा टहल तो पाएगा महल.बड़े लोगों की सेवा करोगे तो उपयुक्त पुरस्कार पाओगे.
  193. करेगा सो भरेगा.जो गलत काम करेगा वह उसका खामियाजा भी भुगतेगा.
  194. करेला वो भी नीम चढ़ा (गिलोय और नीम चढ़ी).कोई मूर्ख या दुष्ट व्यक्ति और अधिक दुर्गुणों से लैस हो जाए तो.
  195. करो खेती और भरो दंड.खेती करने वाला बेचारा खेती में भी पिसता है और लगान भी देता है. जो कुछ नहीं करते उन्हें कोई टैक्स वैक्स नहीं देना होता. 
  196. करो तो सबाब नहीं, न करो तो अजाब नहीं.अजाब – पाप का दंड. कोई ऐसा काम जिसे करने में पुण्य न मिले और न करने में पाप भी न हो.
  197. क़र्ज़ काढ़ करे व्यवहारमेहरारू से रूठे जो भतारबेपूछे बोले दरबारये तीनों पूंछ के बार.यहाँ व्यवहार से मतलब है सामाजिक लेन देन. जो सामाजिक लेन देन के लिए क़र्ज़ लेता है, जो पति अपनी पत्नी से रूठता है और जो बिना पूछे दरबार में बोलता है, ये सब निकृष्ट लोग होते हैं. 
  198. क़र्ज़ बाप का भी बुरा.कर्ज पिता से भी नहीं लेना चाहिए.
  199. कर्जमर्ज और फर्ज को कभी छोटा नहीं समझना चाहिए.क़र्ज़ न चुकाएँ तो ब्याज लग कर बढ़ता जाएगा इसलिए उसको हलके में न लें, बीमारी छोटी सी दिखती हो तो भी एकदम से बढ़ कर खतरनाक हो सकती है इसलिए हलके में नहीं लेना चाहिए और अपने कर्तव्य को भी कभी हलके में नहीं लेना चाहिए. 
  200. कर्ज, सात जनम का मर्ज. कोई व्यक्तिकर्ज लेता है तो उशकी कई पीढ़ियों को चुकाना पड़ सकता है.
  201. कर्ज़दार छाती पर सवार.उलटी बात. जिसने आपसे क़र्ज़ लिया है वही आपकी छाती पर सवार है.
  202. कर्ज़दार दो घरों को पालता है.कर्ज लेने वाला व्यक्ति व्यापार आदि कर के अपने परिवार को पालता है और ब्याज चुका कर साहूकार के परिवार को भी पालता है.
  203. कर्ता से कर्तार हारे.परिश्रम करने वाले के आगे ईश्वर भी नतमस्तक हो जाते हैं.
  204. कर्मे खेती कर्मे नार, कर्मे मिले कुटुम परिवार (सुजन दो चार).अच्छी खेती, अच्छी स्त्री और अच्छा परिवार भाग्य से ही मिलते हैं.
  205. कल का लीपा देओ बहायआज का लीपा देखो आय.कल की बात को भूल जाओ. आज की योजना बनाओ. आजकल के लोगों को यह नहीं मालूम होगा कि पहले जमाने में चूल्हे चौके को मिट्टी या गोबर से लीपा जाता था.
  206. कल के जोगीपैर तक जटा.नए नए पैसे वाले अधिक शान शौकत दिखाएँ तो.
  207. कल देवेगा कल पाएगा, कलपाएगा कल पाएगा.कल – चैन, कलपाना – तड़पाना. दूसरों को सुख चैन देगा तो खुद भी सुख चैन पाएगा. किसी को दुख देगा तो वैसा ही दुख कल को स्वयं भी पाएगा.
  208. कल मरी सासूआज आया आंसू.बनावटी दुःख.
  209. कलकत्ता के कमाई जूता छाता में लगाई.बड़े शहरों में कमाई अधिक होती है लेकिन वहाँ का रहन सहन भी बहुत महंगा होता है. 
  210. कलकत्ते नहिं जानाचाहे जहर खाय मर जाना.गाँव या छोटे शहर में रहने वाले सीधे साधे व्यक्ति से जब कहा जाता है कि बड़े शहर में जा कर जीविका कमाओ तो वह बहुत घबरा जाता है.
  211. कलजुग के लइका करै कचहरीबुढ़वा जोतै हल.कलियुग में लड़का संपत्ति के लिए कचहरी के चक्कर लगाता है और बूढ़े बाप को खेत मे हल चलाना पड़ता है.
  212. कलम और तलवार वाले कभी भूखे नहीं मरते.पढ़े लिखे व्यक्ति और योद्धा को भूखे मरने की नौबत नहीं आती.
  213. कलयुग के जोगी भाई भाई.कलयुग के साधु सब एक से.
  214. कलयुग में झूठ ही फले.कलयुग में झूठ बोलने वाले मजे मार रहे हैं और सच बोलने वाले कष्ट झेल रहे हैं.
  215. कलहारी कल कल करेदूहारी छू होएअपनी अपनी बान से कभी न चूके कोय.कलहारी (लड़ाका स्त्री) लड़ती रहती है और दूहारी (आपस में झगड़ा कराने वाली) झगड़ा करा के गायब हो जाती है. किसी की दुष्टता नहीं छूटती.
  216. कलार की दुकान पर पानी पियो तो भी शराब का शक होता है.कलार – शराब बेचने वाला. अर्थ यह है कि बदनाम लोगों से किसी प्रकार का भी मेलजोल नहीं रखना चाहिए.
  217. कलाली की बेटी डूबने चलीलोग कहें मतवाली (कलार का लड़का भूखा मरे और लोग कहें मतवाला).शराब बेचने वाले की बेटी डूबने चली तो लोग समझते हैं कि वह नशे में है. अगर आप गलत काम करते हैं या लोगों के साथ रहते हैं तो लोग हमेशा आप को गलत ही समझेंगे.
  218. कवित्त सोहे भाट ने और खेती सोहे जाट ने.भाट को कविता पढ़ना शोभा देता है और जाट को खेती करना. सबको अपना अपना काम शोभा देता है.
  219. कश्मीरी बेपीरीजिनमें लज्ज़त न शीरीं.काश्मीरी लोग बेमुरव्वत होते हैं.
  220. कश्मीरी से गोरा सो कोढ़ी.काश्मीरी लोग बहुत गोरे होते हैं. इसलिए ऐसा कहा गया कि उन से गोरा केवल कुष्ठ रोगी ही हो सकता है. सामान्य लोग कुष्ठ रोग और सफ़ेद दाग की बीमारी (leukoderma) में अंतर नहीं जानते इसलिए वे ल्यूकोडर्मा के रोगी को भी कोढ़ी समझ लेते हैं. कुष्ठ रोगियों में अलग प्रकार के हल्के रंग के दाग होते हैं.
  221. कसम और तरकारी खाने के लिए ही बने हैं.कसम खा कर मुकर जाने वाला बेशर्म आदमी इस प्रकार बोलता है.
  222. कसाई का अनाज और पाड़ा खा जाए.कसाई जैसे खतरनाक इंसान का अनाज बछड़े जैसा निरीह प्राणी कैसे खा सकता है. 
  223. कसाई का खूँटा और खाली रहे.कसाई के खूंटे पर लगातार कोई न कोई जानवर बंधा रहता है. किसी भी चलते हुए व्यापार में काम आने वाले उपकरण कभी खाली नहीं रहते.
  224. कसाई की लौंडियाछिछ्ड़ों की भूखी.जहाँ जिस चीज़ की बहुतायत होना चाहिए वहाँ उस का अभाव हो तो.
  225. कसाई रोवे मांस को बकरा रोवे जान को.बकरा इस बात से परेशान है कि उस की जान जा रही है, कसाई इस बात से परेशान है कि बकरे में माल कम निकला. सब की अपनी अपनी परेशानी, सब के अपने अपने दृष्टिकोण.
  226. कस्तुरी कुँडलि बसैमृग ढूँढे बन माहिँऐसे घट घट राम हैंदुनिया देखे नाहिँ.कस्तूरी मृग की नाभि में कस्तूरी होती है पर वह उसे वन में ढूँढता फिरता है. इसी प्रकार ईश्वर सभी के भीतर विद्यमान हैं और मनुष्य सब जगह ढूँढता फिरता है.
  227. कस्तूरी की गंध सौगंध की मोहताज नहीं.जो वास्तविक गुण होते हैं उन्हें किसी के द्वारा प्रमाणपत्र दिए जाने की आवश्यकता नहीं होती.
  228. कह कर खाने वाली डायन नहीं कहलाती (कह कर खाए वो डायन कैसी).खुल्लम खुल्ला अनाचार करने वाले लोग भ्रष्ट नहीं कहलाते. 
  229. कहत बड़े जन सांच हैबात हवा ले जात.मुँह से निकली हुई बात बहुत तेज़ी से फैलती है.
  230. कहना सरल है करना कठिन.अर्थ स्पष्ट है.
  231. कहने से करना भला.जो लोग बातें बड़ी बड़ी करते हैं पर काम कुछ नहीं करते उनको सीख देने के लिए यह कहावत कही जाती है. 
  232. कहने से कुम्हार गधे पर नहीं चढ़ता है.बहुत से कुम्हार बर्तन वगैरह ढोने के लिए गधा पालते हैं कभी-कभी मस्ती लेने के लिए खुद भी गधे की सवारी कर लेते हैं. लेकिन यदि आप उससे कहें कि भैया जरा गधे पर चढ़ के दिखाओ तो वह गधे पर नहीं चढ़ता. यदि किसी व्यक्ति की ऐसी आदत हो कि वह कहने पर कोई काम न करे केवल अपने मन से ही करे तो उसका मजाक बनाने के लिए यह कहावत कही जाती है.
  233. कहवे को अबलाबोलवे को सबला.लड़ाका स्त्रियों के लिए.
  234. कहा न अबला करि सकेकहा न सिन्धु समायकहा न पावक में जरेकहा काल न खाय.स्त्री अबला होते हुए भी क्या नहीं कर सकती (अर्थात सब कुछ कर सकती है), समुद्र में क्या नहीं समा सकता, आग में क्या नहीं जल जाता और काल किसे नहीं खा लेता? इसके उत्तर में किसी ने कहा है – सुत नहिं अबला करि सकै (पुरुष के बिना), मन नहिं सिन्धु समाय, धर्म न पावक में जरे, नाम काल नहिं खाय.
  235. कहा भी न जाए चुप रहा भी न जाए.किसी परिस्थिति में जब आप कुछ कहने का साहस न जुटा पा रहे हों और चुप रहने में भी कष्ट हो रहा हो. भोजपुरी कहावत – का कहीं कुछ कही ना जाता अउरी कहले बिना रही ना जाता.
  236. कहाँ कहाँ मन रुच करेजीवन है छन भंग. (कहाँ कहाँ मन रुच करे, मिलो यो तन छन भंग). जीवन इतना छोटा है इस में व्यक्ति किस किस चीज़ में रूचि ले, कहाँ कहाँ मन लगाए.
  237. कहाँ गरजा, कहाँ बरसा.बादल गरजा कहीं और बरसा कहीं और. कोई व्यक्ति गाली गलौज कहीं पर करे और मारपीट कहीं और तो.
  238. कहाँ राजा भोजकहाँ गंगू तेली.जब दो लोगों के सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक स्तर में बहुत अंतर हो तो.
  239. कहाँ राम रामकहाँ टांय टांय.तोता टांय टांय करता है पर सिखाने पर राम राम बोलने लगता है. असभ्य अशिक्षित व्यक्ति शिक्षा पा कर योग्य बन जाता है. इसका दूसरा अर्थ यह है कि तोते तोते में कितना फर्क होता है, एक राम राम कहता है और दूसरा टांय टांय ही करता है.
  240. कहानी बिना कैसा व्रत.हर व्रत की कोई न कोई कहानी होती है. पहले के समय घर की बड़ी बूढियाँ, बहू बेटों पोतों को वे कहानियाँ सुनाया करती थीं.
  241. कहीं आग कहीं पानी.कहीं लोग गर्मी से परेशान हैं कहीं अतिवृष्टि से. आग और पानी का अर्थ लड़ाई और शांति से भी हो सकता है.
  242. कहीं आग कहीं शोले.आग कहीं और लगी है और उसका असर कहीं और हो रहा है.
  243. कहीं की ईट कहीं का रोड़ाभानु मती ने कुनबा जोड़ा.बिलकुल बेमेल चीजों को जोड़ कर कोई बेतुकी चीज़ बना देना.
  244. कहीं डूबे भी तिरे हैं.जो डूब जाएँ वे फिर सतह पर नहीं आते. एक बार नाम और सम्मान खो जाने पर वापस नहीं आ सकता. व्यापार चौपट होने के बाद दोबारा खड़ा नहीं हो सकता.
  245. कहीं तो सूहा चूनरीऔर कहीं ढेले लात.अपना अपना भाग्य है, कहीं स्त्री को सुहाग का जोड़ा पहनने को मिल रहा है और कहीं लात घूंसे खाने पड़ रहे हैं. सूहा माने एक प्रकार का गहरा लाल रंग.
  246. कहीं नाखून भी गोश्त से जुदा हुआ है.खून के रिश्ते, सच्चे प्रेमी और सच्चे मित्र अलग नहीं होते.
  247. कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना.ऊपर से कुछ और दिखाना पर मन में कुछ और होना.
  248. कहीं सूखे दरख़्त भी हरे हुए हैं.एक बार सूखने के बाद पेड़ दोबारा हरा भरा नहीं हो सकता. रिश्तों के विषय में और व्यक्ति के मान सम्मान के विषय में भी ऐसा ही कहा जाता है.
  249. कहीं कल से तो कहीं बल से. कहीं युक्ति से काम होता है और कहीं ताकत से.
  250. कहु रहीम कैसे निभैबेर केर को संगवे डोलत रस आपनेउनके फाटत अंग.केले का पेड़ बेर के पेड़ के पास लगा है. बेर हवा चलने पर झूमता है तो उसके काँटों से केले का कोमल तना फट जाता है. कहावत का अर्थ है कि दो विपरीत प्रकृति वाले लोगों का साथ नहीं निभ सकता.
  251. कहूँ तो माँ मार खायन कहूँ तो बाप कुत्ता खाय.दुविधा की स्थिति. एक बार एक स्त्री ने बकरे के धोखे में (या जान कर) कुत्ते का मांस पका दिया. बेटे को यह बात मालूम थी. बाप खाना खाने बैठा तो बेटे के सामने यह दुविधा थी कि बता देता है तो बाप माँ को पीटेगा, और नहीं बताता है तो बाप को कुत्ता खाने का पाप लगेगा.
  252. कहे से कोई कुँए में नहीं गिरता.कोई आपका कितना भी बड़ा समर्थक या प्रेमी क्यों न हो आपके कहने से कुँए में नहीं गिरेगा.
  253. कहें खेत कीसुनें खलिहान की (कहें जमीन कीसुनें आसमान की) (कहें कुछसुनें कुछ).कुछ का कुछ सुनना.
  254. कहें रणधीर, भाग जात पात खरके सों.अपने को बड़ा वीर बताते हैं और पत्ता खड़कने से भाग जाते हैं. (पात खरके – पत्ता खड़के)
  255. कहो बात, कटे रात.एक दूसरे को ढाढस बंधाने से दुःख के दिन कट जाते हैं.
  256. का टेसू के फूल, का हल्दी को रंग, का बदली की छाँव, का परदेसी को संग.यह सभी चीजें क्षणिक होती हैं. कहावत के द्वारा यह सन्देश दिया गया है कि परदेसियों से प्रेम नहीं करना चाहिए. 
  257. का बर्षा जब कृषी सुखानी(समय चूकि पुनि का पछितानी).खेती के सूखने के बाद वर्षा हो तो उससे क्या फायदा. समय पर कोई काम नहीं किया तो अब क्यों पछताते हो.
  258. काँटा बुरा करील का और बदली की घामसौत बुरी है चून की और साझे को काम.करील का काँटा बुरा होता है और बादलों के साथ जो धूप होती है वह बुरी होती है (क्योंकि वह बहुत तेज होती है). सौत चाहे आटे की बनी हुई क्यों न हो बुरी होती है और साझे का काम बुरा होता है (इस कहावत का सबसे मुख्य सन्देश यही है कि साझे का काम कभी नहीं करना चाहिए).
  259. कांट कंटीली झांखड़ी, लागे मीठा बेर.बेर जैसा मीठा फल कंटीली झाड़ियों में ही लगता है.
  260. कांटे से कांटा निकलता है.दुष्ट व्यक्ति को दुष्टता से ही ठीक किया जा सकता है.
  261. कांटों से बाड़ और वचनों से राड़.काँटों से बाड़ बनती है और दुर्वचनों से राड़ (झगड़ा).
  262. कांधिये किराए पर नहीं मिलते.कांधिये – अर्थी को कंधा देने वाले. जो लोग धन के घमंड में अपने नातेदारों का आदर नहीं करते उन्हें सीख देने के लिए.
  263. कांधे डाली झोलीडोम छोड़ा न कोली.भीख मांगने वाले किसी को नहीं छोड़ते. डोम – श्मशान में काम करने वाले लोग. कोली – मछुआरा. आजकल के समाज में जाति सूचक शब्दों का प्रयोग बुरा माना जाता है, लेकिन कहावतें पुराने जमाने की हैं, उन को जैसा सुना वैसा लिख दिया गया है. इन में हमारी ओर से कुछ नहीं जोड़ा गया है. 
  264. कांसीकुत्तीकुभार्याबिन छेड़े कूकंत.कांसे की थाली, कुतिया और झगड़ालू पत्नी बिना छेड़े ही बोलती हैं.
  265. काक कहहिं पिक कंठ कठोरा.कौआ कह रहा है कि कोयल की आवाज कर्कश है. कोई मूर्ख व्यक्ति किसी विद्वान पर आक्षेप करे तो.
  266. काका काहू के न भए.जो व्यक्ति अपने ही लोगों को धोखा दे उस के लिए मज़ाक में.
  267. काका के हाथ में कुलहाड़ी हल्की मालूम होती है.जब खुद उठानी पड़े तो मालूम होता है कि कुलहाड़ी कितनी भारी है. बच्चों को पालने में माँ बाप को कितनी मेहनत पड़ती है यह तब मालूम पड़ता है जब खुद बच्चे पालने पड़ते हैं.
  268. काका जी को मरता देख मरने से मन हट गया.जो लोग बात बात पर मरने की धमकी देते हैं उन पर व्यंग्य. दूसरा अर्थ है कि अपने किसी सगे सम्बंधी की मृत्यु होने पर मालूम पड़ता है कि मृत्यु कितना भयावह अनुभव है.
  269. काग कुल्हाड़ी कुटिल नर काटे ही काटेसुई सुहागा सत्पुरुष सांठे ही सांठे.कौवा, कुल्हाड़ी और दुष्ट पुरुष केवल काटना ही जानते हैं जबकि सुई सुहागा और सत्पुरुष केवल जोड़ते ही हैं.
  270. काग पढ़ायो पीन्जरोपढ़ गयो चारों वेदसमझायो समझो नहींरह्यो ढेढ को ढेढ.एक महात्मा जी ने कौवे को पिंजरे में बंद कर के अपनी विद्या के बल पर चारों वेद पढ़ा दिए. पर जैसे ही पिंजड़े का दरवाजा खोला वह बाहर निकल कर रैंट खाने को भागा. 
  271. कागज की नाव ज्यादा देर नहीं चलती (कागज़ की नावआज न डूबी कल डूबी).कागज़ की नाव पानी में अधिक देर नहीं चल सकती, कुछ देर बाद गल जाएगी. झूठ के सहारे या अपर्याप्त साधनों के सहारे खड़ा किया गया व्यापार अधिक दिन नहीं चल सकता.
  272. कागज की भसम किन भस्मों में, बिन ब्याहा खसम किन खसमों में.कोई स्त्री बिना विवाह के किसी पुरुष को पति नहीं मान सकती. ऐसा सम्बन्ध उतना ही निरर्थक है जितनी कागज़ की राख.
  273. कागज हो तो हर कोई बांचे, भाग न बांचा जाए.कागज पर लिखा हर कोई पढ़ सकता है पर भाग्य में क्या लिखा है यह कोई नहीं पढ़ सकता.
  274. कागभगोड़ा न खावे न खावन दे.खेत में बांस की खपच्चियों को कुरता पहना कर उसके ऊपर उल्टा मटका रख देते हैं कि दूर से कोई आदमी खड़ा हुआ लगता है. इस को देख कर पक्षी आदि डर कर खेत में नहीं आते. कोई ईमानदार हाकिम न खुद रिश्वत लेता हो और न लेने देता हो तो उस के मातहत चिढ़ कर ऐसे बोलते हैं. (परिशिष्ट)
  275. कागा कहा कपूर चुगाएश्वान न्हवाए गंग.कौवे को कपूर खिलाओ और कुत्ते को गंगा में नहलाओ तो भी इनका स्वभाव नहीं बदलेगा.
  276. कागा किस का धन हड़पेकोयल किस को देयमीठ बोल के कारने जग अपनो कर लेय.न कौवा किसी का कोई नुकसान करते है और न ही कोयल किसी को कुछ देती है. कौवे की बोली कर्कश है इसलिए सब उससे चिढ़ते हैं और कोयल मीठा बोलती है इसलिए सब को अपना बना लेती है.
  277. कागा कूकुर और कुमानुस तीनों जात कुजात.कौवा, कुत्ता और कुमानुष तीनों ही निकृष्ट श्रेणी के जीव माने गए हैं.
  278. कागा बोले, पड़ गए रौले.भोर होते ही कागा बोलता है और दुनिया की दौड़ भाग शुरू हो जाती है. 2.कुटिल आदमी कुछ का कुछ बोल कर झगड़े शुरू करा देते हैं.
  279. कागा रे तू मल मल नहाएतेरी कालिख कभी न जाए.कौवा कितना भी मल मल कर नहा ले उस की कालिख कभी नहीं जाती. 
  280. काचर का बीज, एक ही काफी.काचर – एक छोटी ककड़ी जिस का बीज खट्टा और कड़वा होता है और एक ही बीज मनों दूध को फाड़ देता है.
  281. काज परै कछु और हैकाज सरै कछु और.ऐसे लोगों के लिए जिनका व्यवहार काम पड़ने पर कुछ और होता है और काम निकल जाने पर कुछ और होता है. (काम परे कछु और है, काम सरे कछु औ)र
  282. काजल की कोठरी में कैसो भी सयानो जायएक लीक काजल की लागे रे लागे रे भाई.गलत काम को आदमी कितनी भी होशियारी से करे कुछ न कुछ दाग लग ही जाता है.
  283. काजल लगाते आँख फूटी.अच्छा काम करने की कोशिश में भारी नुकसान हो जाना.
  284. काजी का प्यादा घोड़े पे सवार.अफसरों के मातहत अपने आपको अफसरों से कम नहीं समझते.
  285. काजी की कुतिया कहाँ जा के ब्याहेगी.जो आदमी अपने को बहुत होशियार समझता हो और एक सामान खरीदने के लिए पच्चीसों दुकानें देखता हो उस का मजाक उड़ाने के लिए दुकानदार ऐसा बोलते हैं.
  286. काजी की घोड़ी कोई घी थोड़े ही मूतती है.बड़े आदमी के नौकर चाकर जानवर सब अपने आप को वीआईपी समझने लगते हैं, उनका मजाक उड़ाने के लिए.
  287. काजी की मारी हलाल होवे.मुसलमानों में किसी पशु का वध करने का खास तरीका होता है. उसी तरह करने पर उसके मांस को हलाल (धर्म सम्मत) माना जाता है नहीं तो वह हराम (निषिद्ध) हो जाता है. काजी (या कोई अति प्रभावशाली व्यक्ति) अगर किसी जानवर को मारे तो सब उसे हलाल मान लेते हैं चाहे उसने कैसे भी किया हो.
  288. काजी की लौंडी मरी सारा शहर आयाकाजी मरे कोई न आया.जब आदमी ऊँचे पद पर होता है तो उसके मातहतों तक की बड़ी पूछ होती है और जब वह पद पर नहीं रहता तो उसे भी कोई नहीं पूछता.
  289. काजी के घर के चूहे भी सयाने.बड़े आदमी के नौकर, चाकर, चमचे आदि भी अपने को बहुत होशियार समझते हैं.
  290. काजी के मरने से क्या शहर सूना हो जाएगा.कोई कितना बड़ा आदमी क्यों न हो, उसके मरने से संसार के कार्य रुकते नहीं हैं.
  291. काजी जी दुबले क्योंशहर के अंदेशे से. (काजी जी तुम क्यों दुबलेशहर का अंदेशा).जिम्मेदार व्यक्ति को हमेशा कोई न कोई चिंता लगी रहती है.
  292. काजी जी पहले अपना आगा ढको, पीछे नसीहत देना.जो बड़े हाकिम खुद तो भ्रष्ट हों और दूसरों को ईमानदारी का उपदेश दे रहे हों, उन को आईना दिखाने के लिए यह कहावत कही जाती है.
  293. काटने को आई चाराखेत पर इजारा.इजारा – ठेका, पट्टाचारा काटने को आई और खेत पर अपना दावा ठोंकने लगी. अनधिकार चेष्टा करने वालों के लिए.
  294. काटने वाले को थोड़ा और बटोरने वाले को बहुत.अनाज की कटाई के बाद बचे खुचे गिरे हुए अनाज को बटोरने के लिए लोग लगाए जाते हैं. बटोरे हुए अनाज का कुछ हिस्सा बटोरने वालों को दे दिया जाता है. जहाँ मुख्य काम करने वाले को कम और आलतू फ़ालतू लोगों को ज्यादा मिल जाए वहां यह कहावत कहते हैं.
  295. काटे कटेन मारे मरे.आसानी से जो काम न हो. कोई आदमी बहुत प्रयास के बाद भी काबू न आए तो.
  296. काटे न तो फुंकार जरूर मार दे.सांप काटेगा नहीं तब भी फुंकार जरूर मारेगा. दुष्ट कुछ न कुछ दुष्टता जरूर करेगा.
  297. काठ की घोड़ी पाँवों नहीं चलती.बनावटी चीज़ असल की तरह काम नहीं कर सकती.
  298. काठ की तलवारक्या करेगी वार.उपरोक्त के सामान.
  299. काठ की हांडी बार बार नहीं चढ़ती है.(फेर न ह्वैहैं कपट सोंजो कीजै ब्यौपारजैसे हांडी काठ कीचढै न दूजी बार). अगर कोई हंडिया लकड़ी की बनी हो तो आप उस में बार बार खाना नहीं पका सकते. एक आध बार में ही वह जल जाएगी. कहावत का अर्थ है कि झूठ और बहाने बाजी से एकाध बार ही काम निकाला जा सकता है बार-बार नहीं.
  300. काठ छीलो तो चिकनाबात छीलो तो रूखी.आपसी बातचीत में बहुत बहस नहीं करनी चाहिए और किसी से कोई बात बहुत खोद खोद कर नहीं पूछनी चाहिए (इससे संबंधों में रूखापन आ जाता है).
  301. काणी अपनी टेंट न निहारेदूजे को पर पर झाकें.जो लोग अपनी कमियाँ न देख कर दूसरे की गलतियाँ निकालते रहते हैं उनके लिए.
  302. काणी का संग सहा न जाएकानी बिना भी रहा न जाए.किसी व्यक्ति की पत्नी कानी है. अब उसके साथ रहने में भी परेशानी है और उसके बिना काम भी नहीं चलता.
  303. काणी को सराहे काणी को बाप (कानी को सराहे कानी की माँ).औलाद कैसी भी हो माँ बाप हमेशा उसकी तारीफ़ ही करते हैं. क्योंकि उन्हें अपना बच्चा प्रिय होता है और इसलिए भी क्योंकि वे उसका उत्साह बढ़ाना चाहते हैं.
  304. काणे की आंख में डाला घी और यूँ कहे मेरी फोड़ दी.(हरयाणवी कहावत) किसी का भला करने की कोशिश करो और वह आपसे लड़ने को आ जाए तो.
  305. कातिक कुतियामाघ बिलाईचैते चिड़ियासदा लुगाई.कुतिया कार्तिक माह में, बिल्ली माघ में और चिड़िया चैत्र में रजस्वला होती हैं जबकि मानव स्त्रियाँ प्रत्येक माह में रजस्वला होती हैं.
  306. कातिक जो आंवर तले खायकुटुम समेत बैकुंठ जाय.आंवर – आंवला. कार्तिक माह में जो आंवले की पूजा करता है वह बैकुंठ जाता है.
  307. कातिक मास रात हर जोतौ, टांग पसार घरै मत सोतौ.(बुन्देलखंडी कहावत) कार्तिक माह में घर पर न सो कर रात को भी हल जोतो तो जुताई पूरी हो पाती है.
  308. कान छिदाय सो गुड़ खाय.पहले के समय में गुड़ भी नियामत होता था, कभी कभी ही खाने को मिलता था. कान छिदाने के लिए बच्चे को गुड़ का लालच दिया जाता था. जो बच्चा कान छिदवाएगा उसी को गुड़ खाने को मिलेगा. कहावत का अर्थ है जो कष्ट उठाएगा वही इनाम पाएगा.
  309. कान प्यारे तो बालियाँजोरू प्यारी तो सालियाँ.मजाक की तुकबंदी है. कुछ लोग ऐसे भी बोलते हैं – कान से प्यारी बालियाँ, जोरू से प्यारी सालियाँ.
  310. काना कुबड़ा तिरपटा, मूढ़ में गंजा होय, इन से बातें जब करो, हाथ में डंडा होय.(बुन्देलखंडी कहावत) तिरपटा – भेंगा, एंचा ताना. कुछ लोक विश्वास बड़े बेसिरपैर के होते हैं. इसी प्रकार का एक विश्वास यह भी है कि काना व्यक्ति, कुबड़ा, भेंगा और गंजा आदमी. ये सब दुष्ट होते हैं.
  311. काना खसम भी घूर कर देखे.पति खुद काना है तब भी सुन्दर पत्नी पर रौब दिखा रहा है. 
  312. काना मुझको भाय नहींकाने बिन भी सुहाय नहीं.किसी स्त्री का पति काना है. वह उसे सुहाता नहीं है लेकिन उसके बिना भी काम नहीं चलता. इसी प्रकार की दुविधा वाली परिस्थिति में कहावत का प्रयोग होता है.
  313. कानी अपने मने सुहानी.कानी भी अपने आप को सुंदर समझती है. 
  314. कानी आँख देखे भले नखटकती जरूर है.कानी आँख किसी काम की नहीं होती पर तकलीफ देती है. घर में कोई आदमी निकम्मा हो तो काम तो कुछ नहीं करेगा पर सब को परेशान जरूर करेगा.
  315. कानी के ब्याह को नौ सौ जोखें (कानी के ब्याह में फेरों तक खोट)जोखें – जोखिम, परेशानियाँ. कानी लड़की की शादी करना बहुत मुश्किल काम है. किसी काम में बहुत सारी परेशानियाँ आ रही हों तो इस प्रकार से कहते हैं.
  316. कानी को काजल न सुहाए.कानी को काजल अच्छा नहीं लगता (क्योंकि उस के लिए काजल की कोई उपयोगिता नहीं है).
  317. कानी को काना प्यारारानी को राना प्यारा.अपना अपना सगा सम्बन्धी सब को प्यारा होता है.
  318. कानी गदही सोने की लगाम.अपात्र के लिए विशेष सुविधाएँ.
  319. कानी गाय के अलग बथान.कानी गाय अलग बंधना चाहती है क्योंकि उसे घास खाने में कठिनाई होती है. कमजोर बच्चा या व्यक्ति अलग से परवरिश चाहता है. इस से मिलती जुलती कहावत है – कानी बिलरिया के अलगे डेरा.
  320. कानी गाय बाह्मन के दान.घटिया चीज़ दान कर के पुण्य कमाने की कोशिश करना.
  321. कानी गीदड़ी का ब्याह.जब धूप भी निकल रही हो और पानी बरस रहा हो तो बच्चे कहते हैं कि कानी गीदड़ी का ब्याह हो रहा है. कुछ लोग काले चोर का ब्याह बोलते हैं.
  322. कानी बिना रहा न जायेकानी को देख के अंखियाँ पिराएँ.कानी को देख कर मन कुढ़ता भी है और उस के बिना काम भी नहीं चलता.
  323. कानी बिल्ली घर में सिकार.बिल्ली कानी है (अपाहिज है) तो बाहर न जा कर घर में ही शिकार करेगी. कोई अयोग्य व्यक्ति घर वालों को ही धोखा दे तो.  
  324. कानून न कायदा, जी हुजूरी में फायदा.जो लोग कायदे और कानून की बात करते हैं वे पीछे रह जाते हैं और चमचागीरी करने वाले आगे बढ़ जाते हैं.
  325. कानूनगो की खोपड़ी मरी भी दगा दे.कहावत कहने वाले के अनुसार कानूनगो इतने धोखेबाज़ होते हैं कि उनकी मरी हुई खोपड़ी भी इंसान के साथ दगा कर सकती है.
  326. काने की एक रग सिवा होती है.काने के पास धोड़ी सी अतिरिक्त कुटिलता होती है.
  327. काने पे अंधा हंसे.कोई मूर्ख व्यक्ति बुद्धिमान पर हंसे तो.
  328. काने से काना कहो तब तो जानो टूटीधीरे धीरे पूछो भैया कैसे तेरी फूटी.काने को अगर सीधे सीधे काना कह कर सम्बोधित करोगे तब तो समझो संबंध टूट ही जाएगा. उससे हलके से पूछो कि भैया तेरी आँख में क्या हुआ था. किसी की कमी के विषय में घुमा फिरा कर युक्तिपूर्वक बात करनी चाहिए.
  329. काबुल में मेवा दईब्रज में दई करील. (काबुल में मेवा रच्यो, ब्रज में रच्यो करील). ईश्वर की अजीब माया है, काबुल जैसे गधों के देश में मेवा ही मेवा पैदा की है जबकि बृज जैसे पवित्र और प्रिय स्थान पर काँटों भरा करील का पेड़.
  330. काबुल में सब गधे ही गधे.जहाँ सब एक से बढ़ कर एक मूर्ख भरे हों वहाँ के लिए.
  331. काबू आई गूजरीगहरा बर्तन लाओ.ग्वालन कब्जे में आ गई है, गहरा बर्तन लाओ, ज्यादा दूध मिल जाएगा. किसी से लाभ पाने का मौका हाथ आया हो तो.
  332. काम का न काज कादुश्मन अनाज का.जो काम काज कुछ न करे केवल खाने में होशियार हो.
  333. काम काज को थर थर काँपे, खाने को मरदानी.काम करने के नाम पर कमजोरी और बुखार, खाने के लिए पूरी तरह तैयार.
  334. काम की न काज की ढाई सेर अनाज की (मन भर अनाज की). जो काम काज कुछ न करे केवल खाने में होशियार हो.
  335. काम को काम सिखाता है.अनुभव से ही काम करना आता है. इस को इस प्रकार भी कह सकते हैं कि एक व्यक्ति के अनुभव से बहुत से लोग सीखते हैं.
  336. काम को सलाम है.काम की ही प्रशंसा होती है. 
  337. काम क्रोध मद लोभ की जौं लों मन में खानका पंडित का मूरखा दोउ एक समान.जब तक मन में काम, क्रोध, अहंकार और लोभ हैं तब तक पंडित और मूर्ख सामान ही हैं. अर्थात इन को जीत कर ही व्यक्ति पंडित बन सकता है.
  338. काम चोरनिवाले हाजिर.काम के नाम पर गायब और खाने के वक्त मौजूद.
  339. काम जो आवे कामरीका ले करे कुलांच.कुलांच – महंगा ऊनी वस्त्र. जहाँ कम्बल काम आना हो वहाँ कुलांच ले कर क्या करेंगे.
  340. काम धाम में आलसी भोजन में होशियार.काम के नाम पर सबसे पीछे और खाने पीने में चौकस.
  341. काम न कोउ का बनि जाय, काटी अँगुरी मूतत नाँय.यदि किसी की कटी हुई उँगली इनके मूतने से ठीक हो जाए तो ये वह भी नहीं करेंगे. अत्यधिक स्वार्थी लोगों के लिए. (पुराने लोग मानते थे कि छोटे मोटे घाव पर मूत्र लगा देने से वह ठीक हो जाता है).
  342. काम न पड़ने तक सब दोस्त अच्छे हैंसारे दोस्त व रिश्तेदार तभी तक आपकी आवभगत करते हैं जब तक उनसे किसी काम के लिए न कहा जाए.
  343. काम पड़े ते जानिए जो नर जैसो होए.कौन व्यक्ति कैसा है यह तभी समझ में आता है जब उस से कोई काम पड़ता है.
  344. काम पड़े मूर्ख से तो मौन गहे रहिए.मूर्ख व्यक्ति से काम पड़े तो चुप रहना चाहिए. अगर आप चुप रहेंगे तब तो वह शायद काम कर भी दे, पर कहने से कभी नहीं करेगा.
  345. काम रहे तक काजीन रहा तो पाजी.जब तक किसी से काम अटका रहा तब तक उस की जी हुजूरी करते रहे, काम निकलते ही गालियाँ देने लगे.
  346. काम रहे तो काजी न रहे तो पाजी.जब तक व्यक्ति जीविका के लिए काम रहता है तब तक ही उस की इज्ज़त रहती है.
  347. काम सरा दुख बीसराछाछ न देत अहीर.जब तक अहीर को आपसे काम था तब तक वह छाछ ला कर दे रहा था. अब काम निकल गया और उस की परेशानी दूर हो गई तो वह छाछ क्यों ला कर देगा.
  348. काम ही करता तो घर ही बहुत काम था.कामचोर आदमी जो काम से बचने के लिए घर छोड़ कर भागा है उससे काम करने के लिए कहा जाए तो वह ऐसे बोलता है.
  349. कामिनी मोहिनी रूप है.स्त्री अपने मोहपाश में सब को बाँध सकती है. 
  350. कामी की साख नहीं, लोभी की नाक नहीं.कामुक व्यक्ति का कोई सम्मान नहीं करता और लोभी का अपना कोई आत्मसम्मान नहीं होता. नाक से अर्थ यहाँ आत्मसम्मान से है.
  351. कामी क्रोधी लालचीइनसे भक्ति न होय, भक्ति करे कोई सूरमाजाति बरन कुल खोए.कबीर दास जी कहते हैं कि कामी, क्रोधी और लालची, ऐसे व्यक्तियों से भक्ति नहीं हो पाती. भक्ति तो कोई सूरमा ही कर सकता है जो अपनी जाति, कुल, अहंकार सबका त्याग कर देता है.
  352. कायर का हिमायती भी हारा है (बुजदिल का हिमायती भी हारे).कायर आदमी कभी नहीं जीत सकता. यहाँ तक कि उसका पक्ष लेने वाला भी हार जाता है.
  353. कायस्थ का बच्चा कभी न सच्चा.कायस्थों से अत्यधिक द्वेष रखने वाले (या सताए गए) व्यक्ति का कथन. समाज के सभी वर्गों के लोगों के लिए इस प्रकार की कहावतें मिलती हैं, और ये कहावतें सच भी नहीं होतीं इसलिए इनका बुरा नहीं मानना चाहिए..
  354. कायस्थ का बेटापढ़ा भला या मरा भला.कायस्थों के यहाँ केवल नौकरी करने का रिवाज़ होता है जिसके लिए पढ़ना लिखना जरूरी है, जो नहीं पढ़ा वह मरे के समान.
  355. कायस्‍थ मीत ना कीजिएसुन कंता नादानराजी हो तो धन हरेंबैरी हो तो जान.(हरयाणवी कहावत) कायस्थ से दोस्ती नहीं करनी चाहिए. वह दोस्ती का दिखावा कर के आपका धन हर लेगा और कहीं दुश्मनी हो गई तो जान ही ले लेगा.
  356. कायस्थों की घुट्टी में भी शराब.कायस्थों में शराब के अत्यधिक चलन पर व्यंग्य. खुद हरिवंशराय बच्चन जी ने अपनी ‘मधुशाला’ में लिखा है – मैं कायस्थ कुलोद्भव मेरे पुरखों ने इतना ढाला, मेरे तन के लोहू में है पचहत्तर प्रतिशत हाला.
  357. काया और माया का क्या भरोसा.शरीर और माया दोनों ही नश्वर हैं.
  358. काया और माया का गर्व न करो (काया और माया का गर्व कैसा).ये दोनों क्षण भंगुर हैं. काया ढल जाती है और माया चली जाती है.
  359. काया कष्ट हैजान जोखिम नहीं.ऐसी बीमारी जो जानलेवा न हो.
  360. काया का पेट भर जाए पर माया का न भरेशरीर की भूख मिट सकती है पर मन का लालच नहीं.
  361. काया पापी अच्छामन पापी बुरा.सबको दिखा कर पाप करने वाला इतना बुरा नहीं जितना मन में पाप पालने वाला.
  362. काया रहै निरोग जो कम खावैउसका बिगड़ै ना काम जो गम खावै.कम खाने वाला स्वस्थ रहता है और संतोषी व्यक्ति का काम नहीं बिगड़ता.
  363. काया राखे धर्म है.हम धर्म का पालन तभी कर सकते हैं जब शरीर स्वस्थ हो. इसलिए अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए. (शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनम्).
  364. काया राखे धर्मपूंजी रखे बनिज (व्यापार).काया को ठीक रखोगे तो धर्म कर्म कर पाओगे और धर्म तुम्हारी काया की रक्षा करेगा. इसी प्रकार पूंजी बना कर रखोगे तो व्यापार कर पाओगे और व्यापार पूंजी की रक्षा करेगा.
  365. काया राम की माया राज कीशरीर भगवान का बनाया हुआ है इसलिए उस पर उन्हीं का अधिकार है, जब कि धन धान्य राज्य की संपत्ति है.
  366. कारज पीछे कीजिएपहले जतन विचारि.पहले सोच समझ कर तब कोई काम करना चाहिए.
  367. कार्तिक की छांट बुरी, बनिये की नाट बुरी, भाइयों की आंट बुरी, हाकिम की डांट बुरी.  कार्तिक महीने की वर्षा बुरी, उधार देने के लिए बनिए की मनाही बुरी, भाइयों की अनबन बुरी और हाकिम की डांट-डपट बुरी होती है.
  368. काल आ जाए पर कल नहीं आता.ख़ास तौर पर उधार चुकाने के मामले में.
  369. काल आ जाए पर कलंक न आएसम्मानित लोग ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि मृत्यु भले ही आ जाए पर कलंक न लगे.
  370. काल औ कर्ज़किसान को खाएं.किसान को अकाल (अनावृष्टि) और कर्ज़ बर्बाद कर देते हैं.
  371. काल करे सो आज करआज करे सो अबपल में परलय होएगीबहुरि करेगा कब.हर कार्य समय पर करना चाहिए, टालना नहीं चाहिए.
  372. काल का मारासब जग हारा.काल के आगे सब बेबस हैं.
  373. काल के मारे न मरेंबामन बकरी ऊंटवो मांगेवो इत उत चरेवो चाबे सूखा ठूँठ.ब्राह्मण, बकरी और ऊंट अकाल पड़ने पर भी जीवित रहते हैं. ब्राह्मण भिक्षा मांग कर, बकरी इधर उधर कुछ भी चर के और ऊंट सूखे ठूँठ खा कर काम चला लेता है.
  374. काल के हाथ कमानबूढ़ा बचे न जवान.काल किसी को नहीं छोड़ता.
  375. काल गया पर कहावत रह गई.समय बीत जाता है पर जो कुछ हम ने किया है (अच्छा या बुरा) उसकी कहानियाँ रह जाती हैं.
  376. काल जाए पर कलंक न जाएसमय बीतने के बाद भी किसी के ऊपर लगा हुआ कलंक नहीं जाता.
  377. काल टले कलाल न टले.आदमी मौत के पंजे से निकल सकता है पर शराब के पंजे से नहीं.
  378. काल न छोड़े राजान छोड़े रंक.काल किसी को नहीं छोड़ता, न राजा को न गरीब को.
  379. काल पड़े पे कोदो मीठ.यूँ तो कोदों एक घटिया अनाज माना जाता है लेकिन अकाल पड़ने पर वह भी अच्छा लगता है.
  380. काला अक्षर भैंस बराबर.अनपढ़ व्यक्ति का मज़ाक उड़ाने के लिए यह कहावत बोली जाती है. 
  381. काला करम का धौला धरम का.जब तक बाल काले हैं (युवावस्था है) तब तक कर्म करना चाहिए, जब बाल सफ़ेद होने लगें तो धार्मिक कार्यों पर ध्यान देना चाहिए.
  382. काला कुत्ता, मोती नाम.गुण के विपरीत नाम.
  383. काला मुँह करील के दांत.अत्यधिक कुरूप व्यक्ति. 
  384. काला हिरन न मारियोसत्तर होवें रांड.काला हिरन बहुत सी मादाओं के बहुत बड़े झुंड में अकेला नर होता है. कहावत का अर्थ है कि ऐसे व्यक्ति को बेसहारा मत करो या मत मारो जिस पर बहुत लोग आश्रित हों.
  385. काली ऊन और कुमानुस चढ़े न दूजो रंग.काली ऊन पर दूसरा रंग नहीं चढ़ता, इसी प्रकार कुमानुष को अच्छे संस्कार नहीं दिए जा सकते.
  386. काली घटा डरावनी और भूरी बरसनहार(करिया बादर जी डरपावे भूरा बादर पानी लावे). अर्थ स्पष्ट है.
  387. काली भली न सेतदोनहूँ मारो एकहि खेत.जब दोनों ही विकल्प खतरनाक हों तो दोनों से छुटकारा पा लेना चाहिएएक राजा के दो रानियाँ थीं. राजा को नहीं मालूम था कि वे दोनों ही जादूगरनी थीं. एक बार दोनों आपस में लड़ रही थीं. एक ने सफ़ेद (श्वेत, सेत) चिड़िया का रूप बनाया और एक ने काली चिड़िया का और आसमान में उड़ कर एक दूसरे पर हमला करने लगीं. राजा को मालूम हुआ तो उसने मंत्री से पूछा इनमें से किस जादूगरनी को मार दूँ. इस पर मंत्री ने जवाब दिया कि काली और सफ़ेद दोनों ही खतरनाक हैं दोनों को एक साथ मार दो. कहीं कहीं इस कहानी में चार रानियों का जिक्र है – काली भली न कबरी, भूरी भली न सेत, चारों मारो एकहि खेत.
  388. काली माई करियाभवानी माई गोर.ईश्वर की हर रचना अपने आप में विशिष्ट है, काले भी अच्छे हैं और गोरे भी. हिन्दू लोग रंगभेद नहीं करते, काले और गोरे दोनों को पूजते हैं.
  389. काली मिर्च कुलंजन सक्कर, तीनों पीसें भाग बरोबर, आधो तोला फंकी मारें, मानो कोकिल राग उचारें.(बुन्देलखंडी कहावत) उपरोक्त तीनों चीजों का सेवन करने से स्वर मधुर हो जाता है.
  390. काली मुर्गियां भी सफ़ेद अंडे देती हैं.मुर्गी चाहे किसी भी रंग की हो, अंडा सफेद रंग का ही देती है. मनुष्य की उपयोगिता को उस के बाहरी रंग रूप या आकार से नहीं आँका जा सकता.
  391. काली हांडी के पास बैठ कर कालिख जरूर लगती है.बदनाम लोगों की संगत में बदनामी अवश्य होती है.
  392. काले कपड़े पर काला दाग नहीं दीखता.चरित्रहीन व्यक्ति कितने भी गलत काम करे उन पर कोई ध्यान नहीं देता.
  393. काले का काटा पानी नहीं मांगता.काले नाग द्वारा डसा हुआ व्यक्ति तुरंत मर जाता है. बहुत धूर्त व्यक्ति के लिए कहावत कही गई है कि उस से धोखा खाया आदमी फिर उबर नहीं सकता.
  394. काले का क्या काला होगाकलुषित चरित्र वाले पर और अधिक कालिख क्या लगेगी.
  395. काले काले किशन जी के साले.यूँ तो यह बच्चों की कहावत है, लेकिन बड़े लोगों के भी काम आ सकती है. काले लोगों को अपने को कम करके नहीं आंकना चाहिए.
  396. काले काले राम के, भूरे भूरे हराम के.जो काले हैं वे भगवान राम के वंशज हैं, भूरे रंग के हैं वे अवश्य ही वर्ण संकर होंगे. हिन्दुस्तानी लोग अंग्रेजों के लिए इस प्रकार से बोलते थे. 
  397. काले के आगे दिया नहीं जलता.लोक विश्वास है कि काले नाग के आगे दिया नहीं जलता. (समीपे कृष्णसर्पस्य दीपो नैव प्रकाशते).
  398. काले के काटे का यंत्र न तंत्र.काले नाग के काटने पर कोई तंत्र मंत्र काम नहीं करता.
  399. काले के काला नही तो चितकबरा जरूर जन्मे. दुष्ट व्यक्ति की संतान पूरी दुष्ट न भी हो तो भी उस में कुछ न ओछापन तो अवश्य ही आ जाता है. संतान में माता पिता के कुछ गुण अवश्य आते हैं.
  400. काले के संग बैठ कर कालिख ही लगती है.दुर्जन का संग करने से कलंकित होना पड़ता है.
  401. काले को उजला कब सुहावे.बुरी मानसिकता वाले व्यक्ति को भले लोग अच्छे नहीं लगते.
  402. काले फूल न पाया पानी, धान मरा अधबीच जवानी.जब धान के फूल काले होते हैं तब पानी देना आवश्यक होता है. उस समय पानी न देने से धान मर जाता है.
  403. काले सर का एक न छोड़ा.यहाँ काले सर से अर्थ है जवान आदमी. दुश्चरित्र स्त्री के लिए कहा गया है.
  404. काशी दुर्लभ ज्ञान पुंज, विश्वनाथ को धाम, मुअले पे गंगा मिले जीते लंगड़ा आम.काशी में रानी अहिल्याबाई होल्कर ने एक परम्परा शुरू की थी जो अब भी चालू है. सावन कृष्ण पक्ष एकादशी को बाबा विश्नाथ को 551 लंगड़े आमों का भोग लगाया जाता है. इसी पर यह कहावत बनी.
  405. कासा भर खाना और आसा भर सोना.भर पेट खाना (कांसा भर) और इच्छानुसार सोना, मतलब बिलकुल आराम का जीवन.
  406. काहु समय में दिन बड़ा. काहु समय में रात.मनुष्य के दिन सदा एक से नहीं रहते. कभी सुख अधिक होता है, कभी दुःख.
  407. काहू पे हंसिये नहीं, हंसी कलह की मूल.किसी की हंसी नहीं उड़ानी चाहिए, क्योंकि इससे लड़ाई होने का डर रहता है. महाभारत का युद्ध भी इसी हंसी के कारण हुआ था.
  408. काहे को अनका लड़का रुलाए, अपना गुड़ छुपा कर खाए.अनका – दूसरे का. अपने पास जो कुछ है उसका प्रदर्शन कर के दूसरों का दुख मत बढ़ाओ.
  409. किए धरे पर गू का लीपा.अच्छा ख़ासा काम कर के सत्यानाश कर देना.
  410. किच्ची किच्ची कौआ खाएदूध मलाई मुन्ना खाए.कौवा नाक से निकलने वाली रैंट को खा जाता है. बच्चे की नाक साफ़ करते समय बच्चे का ध्यान बंटाने के लिए माँ बोलती हैं कि यह गंदगी तो कौवे के लिए है मेरा मुन्ना दूध मलाई खाएगा.
  411. कित काशीकित काश्मीरखुरासानगुजरातदाना पानी परसुराम बांह पकड़ ले जात.मनुष्य अपनी इच्छा से कहीं नहीं जाता, दाना पानी उसे वहां ले जाता है.
  412. कितनहिं चिड़िया उड़े अकासफेरि करे धरती की आस.चिड़िया कितनी भी आकाश में उड़ ले, फिर धरती पर लौटने की इच्छा करती है. कोई व्यक्ति जीवन में कितना भी ऊँचा उठ जाए, अपनी जड़ों तक लौटने की इच्छा रखता है.
  413. कितना अहिरा होय सयाना, लोरिक छोड़ न गावे गाना.लोरिक – अहीरों की वीरता का गीत.कहावतों में अहीरों का खूब मजाक उड़ाया जाता है. अहीर कितना भी होशियार क्यों न हो, लोरिक के अलावा कुछ नहीं गा सकता. 
  414. कितना भी धाओकरम लिखा सो पाओ.व्यक्ति कितनी भी दौड़ भाग कर ले, जितना भाग्य में लिखा है उतना ही पाता है. धाओ – दौड़ो.
  415. कितना सा सपना और कितनी सी रातजीवन कितना छोटा सा है, इस में कितने सपने देख लोगे.
  416. कितनो अहीर पढ़े पुरानतीन बात से हीन, उठना बैठना बोलनालिए विधाता छीन.अहीर कितना भी पढ़ लिख जाए सभ्य समाज के शिष्टाचार नहीं सीख सकता.
  417. किया चाहे चाकरीराखा चाहे मान.नौकरी करने में बहुत सम्मान नहीं मिल सकता. कहावत का अर्थ है की अगर आप नौकरी करना चाहते हैं तो व्यर्थ की हेकड़ी न रखें.
  418. किलाकोटमंदिरमहलद्विज, छत्रीगजबाजये दस ऊँचे चाहिएबैद ईख अरु नाज.(बुन्देलखंडी कहावत) किले का परकोटा, मंदिर, महल, ब्राहण, क्षत्रिय, हाथी, घोड़ा, वैद्य, गन्ना, और अनाज के पौधे, ये दस चीजें जितनी ऊँची हों उतनी अच्छी मानी जाती हैं. बाज शब्द का अर्थ यहाँ घोड़े से है (घोड़े को बाजि भी कहते हैं). किलाकोट – किले का परकोटा.
  419. किले के पीछे से और मंदिर के आगे से निकलना चाहिए.किले में आगे पहरेदार होते हैं जो आने जाने वालों से बदसलूकी करते हैं इसलिए किले के सामने से नहीं निकलना चाहिए. मंदिर के सामने से ही निकलना चाहिए जिससे भगवान के दर्शन हो सकें.
  420. किस किस का मन राखिए, बीच राह में खेत.रास्ते से लगा हुआ खेत हो तो किसान की बड़ी मुसीबत होती है. रास्ता चलने वाले सभी परिचित लोग उस से कुछ न कुछ सुविधा चाहते हैं.
  421. किस चक्की का पिसा आटा खाया है.मोटे आदमी का मजाक उड़ाने के लिए.
  422. किस बिरते पर तत्ता पानी.आजकल तो सभी लोग गर्म पानी से नहाते हैं. पहले के जमाने में नहाने के लिए गरम पानी बिरले लोगों को ही मिलता था. कोई ऐरा गैरा आदमी गरम पानी मांग रहा है तो उस से पूछा जा रहा है कि तुम्हारे अंदर ऐसी क्या खास बात है कि जो तुम्हें गरम पानी दिया जाए. कोई अपात्र यदि विशेष सुविधाएँ मांगे तो.
  423. किस में हिम्मत है जो छेड़े दिलेर कोगर्दिश में घेर लेते हैं कुत्ते भी शेर को.जब शेर के बुरे दिन आते हैं तो उसे कुत्ते भी घेर लेते हैं, वैसे मज़ाल है कोई उस के आस पास भी फटक जाए.
  424. किसने खोदी और कौन पड़ा.खाई किसी और ने खोदी और कोई और. किसी के कुकर्मों का फल कोई और भुगते तो. 
  425. किसान उपजाय, बनिया पाय, बनिक पूत खाय.किसान मेहनत कर के फसल उगाता है, बनिया उसे उधार वसूली के बहाने हड़प लेता है लेकिन कंजूस होने के कारण वह उस का उपभोग नहीं करता. अंततः बनिए का बेटा उससे गुलछर्रे उड़ाता है.
  426. किसान को जमींदार जैसे बच्चे को मसान.किसान के लिए जमींदार उतना ही डरावना होता है जितना बच्चों के लिए प्रेत.
  427. किसान चाहे वर्षाकुम्हार चाहे सूखा.संसार में सभी व्यक्ति केवल अपना ही हित चाहते हैं. किसान भगवान् से प्रार्थना करता है वर्षा करने के लिए और कुम्हार प्रार्थना करता है वर्षा न करने के लिए.
  428. किसी का ऊँचा मस्तक देखकर अपना मस्तक मत फोड़ लो.किसी की उन्नति देख कर ईर्ष्या से मत जलो. भोजपुरी में कहावत है – केहू के ऊँच लिलार देखि के आपन लिलार फोड़ी नाहीं लेहल जाला.
  429. किसी का घर जले कोई हाथ सेंके.नीच स्वार्थी लोगों के लिए जो दूसरों के कष्ट में अपना लाभ ढूँढ़ते हैं.
  430. किसी का चाम घिसे, किसी के दाम घिसें.कोई शरीर से मेहनत करता है कोई पैसा खर्च कर के काम कराता है.
  431. किसी का मुँह चले किसी का हाथ(किसी की जीभ चलती है, किसी के हाथ चलते हैं). जो बोलने में तेज होता है वह बोली द्वारा दूसरे को कष्ट पहुँचाता है. जो बोलने में नहीं जीत पाता वह खिसिया कर हाथ उठाता है.
  432. किसी का लड़काकोई मन्नत माने.दूसरे की चीज़ के लिए आवश्यकता से अधिक चिंतित होना.
  433. किसी की जान गईआपकी अदा ठहरी.जो लोग कुटिल चाल चल कर मासूम बनने की कोशिश करते हैं उन पर व्यंग्य.
  434. किसी की जोरू मरे, किसी को सपने में आवे.दूसरे के कष्ट में अनावश्यक भागीदारी.
  435. किसी की साई किसी को बधाई.साई माने वह रकम जो कोई काम करने से पहले पेशगी ली जाती है. मतलब पैसा किसी से लिया, काम किसी और का कर रहे हो.
  436. किसी के लिए कुआं खोदो तो अपने लिए खाई तैयार समझो.(खाई खने जो और को ताको कूप तैयार). जो दूसरों का बुरा करते हैं उनका बुरा अवश्य होता है.
  437. किसी को अपना कर लो या किसी के हो के रहो.संसार में जीने का सर्वोत्तम रास्ता है प्रेम और बंधुत्व का.
  438. किसी को तवे में दिखाई देता हैकिसी को आरसी में.अपनी अपनी सामर्थ्य के अनुसार ही कार्य करना चाहिए. अगर हमारे पास आरसी नहीं है तो हम तवे में मुँह देख कर काम चलाएं.
  439. किसी को बैंगन बाबरेकिसी को पथ्य समान.एक ही चीज़ किसी के लिए हानिकारक को सकती है और किसी के लिए लाभकारी. इंग्लिश में कहावत है – One man’s meat is another man’s poison.
  440. किस्मत और औरतेंबेबकूफों पर मेहरबान.जो लोग जीवन में असफल रहते हैं वे आम तौर पर यह कहते पाए जाते हैं कि भाग्य ने उनका साथ नहीं दिया और भाग्य केवल मूर्खों का साथ देता है. इसी प्रकार जो लोग स्त्रियों को प्रभावित नहीं कर पाते वे भी ऐसा ही बोलते हैं. 
  441. किस्मत किसी को तख़्त देती है किसी को तलवार.भाग्य से ही कोई सिंहासन पर बैठ जाता है और कोई तलवार के घाट उतार दिया जाता है. इस कहावत को इस प्रकार भी कहा गया है – तख़्त या तख्ता अर्थात भाग्य से ही सिंहासन और भाग्य से ही फांसी का तख्ता.
  442. किस्मत दे यारीतो क्यों हो ख्वारी.भाग्य से अच्छे मित्र मिल जाएँ तो बर्बादी क्यों हो.
  443. किस्मत न दे यारीतो क्यों करे फौजदारी.भाग्य में यदि दोस्ती नहीं लिखी है तो मारपीट तो मत करो.
  444. किस्मत बहादुरों का साथ देती है.जो हिम्मत कर के आगे बढ़ता है, भाग्य भी उसी का साथ देता है.
  445. किहूँ भांत सोहत नहीं, केहरि ससक विरोध.सोहत नहीं – शोभा नहीं देता, केहरि – सिंह, ससक – शशक (खरगोश). सिंह को खरगोश से लड़ना शोभा नहीं देता.
  446. कीचड़ का आदी सूअर सफाई देख कर नाक भौं चढ़ाता है.जिस आदमी को गंदगी में रहने की आदत हो उसे सफाई अच्छी नहीं लगती. जिस आदमी के संस्कार घटिया हों उसे न्याय और धर्म की बातें अच्छी नहीं लगतीं.
  447. कीड़ी (चींटी) को कन भर, हाथी को मन भर.ईश्वर सभी को उन की आवश्यकता के अनुसार देता है.
  448. कीड़ी को तिनका पहाड़.चींटी के लिए तिनका भी पहाड़ के सामान है. छोटे आदमी के लिए छोटी छोटी समस्याएँ भी बहुत बड़ी होती हैं.
  449. कीड़ी संचे तीतर खायपापी को धन पर ले जाय.चींटी जो इकठ्ठा करती है उसे तीतर खा जाता है. इसी प्रकार पापी का धन दूसरा ले जाता है. इस कहावत में एक बात गलत है. चींटी द्वारा मेहनत से इकट्ठे किए गए सामान की तुलना पापी के धन से की गई है.
  450. कीर्ति के गढ़ कभी नहीं ढहते.ईंट पत्थर का बना किला समय के साथ ढह जाता है लेकिन सत्पुरुषों की कीर्ति अमर रहती है.
  451. कुँआरे को भी ससुराल की याद आये.कोई व्यक्ति किसी ऐसी बात पर उदास हो रहा हो जिस से उसका कोई लेना देना न हो, तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.
  452. कुँए की मिट्टी कुँए में ही लगती है.व्यापार से व्यक्ति धन कमाता है लेकिन उस में से अधिकतर धन व्यापार में ही लग जाता है. 
  453. कुँए की मेंढकी क्या जाने समन्दर का फांट.संकुचित बुद्धि वाले लोग व्यापक सोच वाली बात नहीं समझ सकते.
  454. कुँए में की मेंढकी करे सिन्धु की बात.जब कोई बहुत छोटी बुद्धि वाला आदमी बहुत बड़ी बड़ी बातें करे तो.
  455. कुँए में पानी बहुतेरा, जो निकालो सो ही अपना.प्रकृति में संसाधनों की कमी नहीं है, उनका उपयोग करने वाला चाहिए.
  456. कुँए से कुआँ नहीं मिल सकता.दो बड़े व्यक्ति अपने अपने अहम के कारण एक दूसरे से न मिलते हों तो उन पर व्यंग्य.
  457. कुंआरों का क्या अलग गांव बसता है.समाज में अलग अलग प्रकार के लोगों की बस्तियाँ अलग नहीं होतीं, सब मिल जुल कर एक साथ ही रहते हैं.
  458. कुंजड़न अपने बेरों को खट्टा नहीं बतावे.अपने माल की बुराई कोई नहीं करता.
  459. कुंजड़न की अगाड़ी और कसाई की पिछाड़ी.सब्जी वाली ताजी सब्जी आगे लगाती है इसलिए उससे आगे वाला माल लेना चाहिए. कसाई ताजा गोश्त पीछे लगाता है इसलिए उससे पीछे वाला माल लेना चाहिए.
  460. कुंजड़े का गधा मरे और तेली सर मुंडाए.दूसरे के दुख में अनावश्यक दुखी होना.
  461. कुंद हथियार और किया भतार किसी के काम नहीं आते.किया भतार – ऐसा पुरुष जिससे स्त्री का विधिवत विवाह न हुआ हो (केवल पति मान कर साथ रहती हो). जिस प्रकार बिना धार वाला हथियार किसी काम का नहीं होता, उसी प्रकार माना हुआ पति किसी काम का नहीं होता. 
  462. कुआँ पनघट बैठ के, गोड़ लिए लटकाय, पीठ मलावें सौत से, मरने करें उपाय.मूर्खतापूर्ण कार्य करने वालों के लिए. सौत अगर मौका पा कर जरा सा धक्का दे देगी तो सीधे कुएँ में जा पड़ेंगी.
  463. कुआँ बेचा है कुएं का पानी नहीं बेचा.माल बेचने के बाद बेइमानी करना. इस के पीछे एक कहानी कही जाती है. गाँव के एक ठाकुर ने किसी बनिए को अपना कुआँ बेचा. जब बनिया कुँए से पानी निकालने पहुँचा तो ठाकुर ने कहा कि मैंने तुम्हें कुआँ बेचा है पानी नहीं बेचा है, पानी के लिए अलग से पैसा दो. बात पंचायत में पहुँची. सरपंच ने सारा माजरा समझ कर ठाकुर को सबक सिखाने के लिए फैसला दिया कि कुआँ बनिए का है और पानी ठाकुर का. ठाकुर को अपना पानी कुँए में रखने के लिए सौ रुपये रोज किराया देना होगा. 
  464. कुआं खुदाया बावड़ी, छोड़ गया परदेस.ऐसे व्यक्ति के लिए जिसने ऐश्वर्य के साधन जुटाए लेकिन छोड़ कर चला गया या जाना पड़ा.
  465. कुआं तेरी माँ मरीकुआं तेरी माँ मरी.कुएं में मुंह डाल कर जो बोलोगे वही आवाज कुएं में से आएगी. वह कुछ सोच समझ कर जवाब नहीं देता है. जो लोग बिना समझे दूसरों की बात दोहराते हैं उन पर व्यंग्य (जैसे आजकल सोशल मीडिया पर बिना सोचे समझे मैसेज फॉरवर्ड करने वाले लोग). बड़े गुम्बद में बोलने पर भी वही आवाज आती है.
  466. कुआंरा सब से आला, जिसके लड़का न साला (कुआंरा सब से आला है, न जोरू है न साला है).कुआंरेपन का अपना अलग ही आनंद है. 
  467. कुआंरी को सदा बसंत.वैश्या के लिए व्यंग्य.
  468. कुआंरी खाय रोटियाँब्याही खाय बोटियाँ.लड़की की शादी के बाद माँ बाप की मुश्किलें और बढ़ जाती हैं. बेटी घर में हो तब तक तो केवल रोटी का ही खर्च होता है, उसकी शादी के बाद ससुराल वालों का पेट भरते भरते वे बर्बाद हो जाते हैं. (दुर्भाग्य से हिन्दुस्तान में आज भी ऐसे बहुत से घर हैं).
  469. कुएँ में गिर कर कोई भी सूखा नहीं निकलता.उसी प्रकार जैसे काजल की कोठरी से कोई दाग लगाए बिना नहीं निकल सकता. संसार में आ कर सभी मोह माया में लिप्त हो ही जाते हैं.
  470. कुएँ में नथ गिर गई, मैं जानूँ ननद को दे दी (खोई नथ ननद के खाते).खोई हुई चीज को दान किया हुआ मान लेना.
  471. कुएं के मेंढक को कुआं जहान.संकुचित सोच वाला अपने संकुचित दायरे में ही खुश रहता है.
  472. कुच बिन कामिनी, मुच्छ बिन जवान, ये तीनों फीके लगें, बिना सुपारी पान.स्त्री बिना स्तन के, युवा बिना मूँछ के और पान बिना सुपारी के आकर्षक नहीं लगते.
  473. कुचाल संग फिरनाआप मूत में गिरना.गलत चाल चलन वाले के साथ रहने वाला अपनी दुर्गति स्वयं करता है.
  474. कुचाल संग हांसीजीव जाल की फांसी.गलत चाल चलन वाली स्त्री के साथ हंसी मज़ाक करना अपने लिए मुसीबत बन सकता है.
  475. कुछ कमान झुके कुछ गोशा.गोशा – कमान का सिरा जिसमें तांत अटकाई जाती है. कोई कार्य करना हो या कोई मसला हल करना हो तो थोड़ी थोड़ी सब पक्षों को गुंजाइश करनी चाहिए.  
  476. कुछ कर्मों से हीनकुछ लच्छनों से हीन.जिस आदमी का भाग्य भी साथ न दे रहा हो और जो मेहनत भी न करना चाहता हो.
  477. कुछ काम करोगे ना जीजलपान करोगे हाँ जी.काम करने के नाम बहाने, खाने पीने को मुस्तैद.
  478. कुछ खो कर ही सीखते हैं.मनुष्य धोखा खा कर ही सीखता है.
  479. कुछ तुम समझेकुछ हम समझे.दो लोग एक दूसरे की चालाकी के बारे में समझ जाएं तो.
  480. कुछ तुम समझोकुछ हम समझें.किसी के साथ कोई सौदा या साझा करने से पहले दोनों ही लोगों को एक दूसरे को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए. 2. दो लोगों में अनबन हो तो दोनों को ही एक दूसरे की बात समझ कर कुछ झुकना चाहिए.
  481. कुछ तो खरबूजा मीठाकुछ ऊपर से कंद.एक साथ दो दो अच्छाइयाँ.
  482. कुछ तो खलल है जिस से यह खलल है.कहीं भी कोई खराबी पैदा हो रही है तो उस के पीछे कोई न कोई कारण जरूर होता है.
  483. कुछ तो गेहूँ गीलीऊपर से जिंदरी ढीली.गेहूँ गीला है इसलिए पिसने में दिक्कत है ऊपर से चक्की की कीली (जिंदरी) ढीली है इसलिए और नहीं पिस पा रहा है. परेशानी में परेशानी.
  484. कुछ तो बावलीकुछ भूतों खदेड़ी.एक तो बावली ऊपर से भूत बाधा से ग्रस्त. जैसे कोई मानसिक रोग से ग्रस्त हो और ऊपर से व्यापार में घाटे का तनाव हो जाए.
  485. कुछ दिए कुछ दिलाए, कुछ का देना ही क्या है.उधार लेकर न देने वालों का कथन.
  486. कुछ पाने की इच्छा हो तो पहले उसके लायक बनो.आदमी बहुत कुछ पाने की इच्छा करता है पर पहले उस वस्तु का उपयोग करने लायक बनना आवश्यक है. इंग्लिश में कहावत है – First deserve and then desire.
  487. कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है.जीवन में कुछ प्राप्त करने के लिए त्याग भी आवश्यक है. इंग्लिश में कहावत है – You can’t make an omlette without breaking eggs.
  488. कुछ लेना न देना मगन रहना.संसार में जो लोग इस नीति पर चलते हैं वे ही सबसे प्रसन्न रहते हैं.
  489. कुछ लोग पैसे के मालिक होते हैंकुछ गुलाम.कुछ लोग पैसा कमाते हैं और उसे ठीक से उपयोग भी करते हैं, वे पैसे के मालिक कहलाते हैं, जबकि कुछ लोग केवल पैसे की रखवाली करते रहते हैं. कहावत के द्वारा यह बताने का प्रयास किया गया है कि मनुष्य को पैसे का गुलाम नहीं बनना चाहिए. इंग्लिश में कहावत है – If money is not thy servant, it will be thy master.
  490. कुछ लोहा खोटाकुछ लोहार खोटा.सामान भी घटिया हो और बनाने वाला भी अयोग्य हो तो माल कैसे बनेगा.
  491. कुछ स्वार्थ कुछ परमार्थ.अपना भी ध्यान रखो और समाज के लिए भी करो. (घर में दिया जला कर मस्जिद में दिया जलाना). इस से मिलती जुलती एक कहावत इंग्लिश में भी है – Charity begins at home.
  492. कुजात मनाया सर पर चढ़े, सुजात मनाया पांवों पड़े (सज्जन मनाए पैरों पड़े, दुर्जन मनाए सर चढ़े).नीच व्यक्ति की मान मनौवल करोगे तो और ऐंठ दिखाता है, सज्जन व्यक्ति को मनाओगे तो वह विनम्रता से झुक जाता है. 
  493. कुटनी से तो राम बचावेप्यार दिखा कर पत उतरावे.दुश्चरित्र स्त्री से बच कर रहना चाहिए, वह प्यार दिखा कर आपकी इज्ज़त उतार सकती है.
  494. कुठले में दाना, मूरख बौराना.कुठला – अनाज रखने का बर्तन, बौराना – घमंड में पागल. ओछा व्यक्ति थोड़ी सी धन दौलत से ही बौरा जाता है.
  495. कुठाँव का घाव, ससुर ओझा (कुठौर फोड़ा, ससुर वैद्य).किसी स्त्री के निजी अंग में घाव या फोड़ा हो और उसका ससुर ही वैद्य हो तो कितनी कठिन परिस्थिति होगी.
  496. कुतिया के छिनाले में फंसे हैं.छिनाला – दुश्चरित्रता. किसी दुश्चरित्र स्त्री के दुष्चक्र में फंसे व्यक्ति के लिए.
  497. कुतिया के पिल्लेसब एक जैसे.नीच माता पिता की संतानें निम्न प्रवृत्ति की ही होती हैं.
  498. कुतिया क्यूँ भूंसेटुकड़ों की खातिर.कोई हाकिम ज्यादा गुर्राता है तो लोग कहते हैं कि टुकड़ा डाल दो.
  499. कुतिया गई और पट्टा भी ले गई.बड़े नुकसान के साथ एक छोटा नुकसान भी.
  500. कुतिया गई काशी (कुतिया चली प्रयाग).कोई चरित्रहीन या पापी आदमी पुण्यात्मा बनने का ढोंग करे तो उस का मजाक उड़ाने के लिए. 
  501. कुतिया बैठी नांद में, न खाए न खाने दे.भैंस की नांद में कुतिया आ कर बैठ गई है, न तो खुद भुस खाएगी न किसी को खाने देगी. कोई ईमानदार हाकिम जो खुद भी घूस न खाए और किसी को खाने भी न दे उस से परेशान लोगों का कथन.
  502. कुतिया मिल गई चोर से तो पहरा किसका होए (चोरों कुतिया मिल गईपहरा दे अब कौन).जिस को आप ने पहरेदारी के लिए पाला है वही चोर से मिल जाए तो पहरा कौन देगा. जिस को गद्दी पर बिठाया वही नेता अगर दुश्मन से मिल जाए तो देश की रक्षा कैसे होगी.
  503. कुत्ता अपनी पूँछ को टेढ़ी कब कहता है (कुकुर सराहे अपनी पूँछ).कोई भी व्यक्ति अपनी वस्तु को घटिया नहीं बताता.
  504. कुत्ता अपनी ही दुम के चक्कर लगाता फिरे.निकृष्ट प्रवृत्ति के लोग केवल अपने स्वार्थ के विषय में सोचते हैं.
  505. कुत्ता कपास का क्या करे.कपास कितनी भी उपयोगी वस्तु क्यों न हो, कुत्ते के किसी काम की नहीं है. कोई मूर्ख या ओछा व्यक्ति किसी बहुमूल्य वस्तु का उपहास कर रहा हो तो.
  506. कुत्ता काटे अनजान के और बनिया काटे पहचान के.कुत्ता अपरिचित को काटता है और बनिया पहचान वाले की जेब काटता है.
  507. कुत्ता कुत्ता भूंसेराजा राजा चुप.यह एक प्रकार से बच्चों की कहावत है. कुछ बच्चे मिलकर किसी एक को चिढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. वह यह कहावत कह कर सबको चुप कर देता है.
  508. कुत्ता घास खाय तो सभी न पाल लें.कहावत उस समय की है जब घास बहुत सस्ती मिलती थी और अक्सर लोग मुफ्त में भी खोद लाते थे (अब तो घास भी बहुत महँगी है). कुत्ते को दूध, रोटी, अंडा, मांस वगैरा खिलाना पड़ता है इसलिए उसे कुछ ही लोग पाल सकते हैं. अगर कुत्ता घास खाता होता तो सब पाल लेते.
  509. कुत्ता चौक चढ़ाएचपनी चाटन जाए. (कुत्ता चौक चढ़ाइए चाकी चाटन जाए). चौक चढ़ाना – विवाह के समय वस्त्राभूषण पहनाने के लिए कन्या को मंडप के नीचे बिठाना. कुत्ते का कितना भी आदर सत्कार या लाड़ प्यार करो, वह मौका देखते ही थाली चाट लेता है. नीच व्यक्ति का कितना भी सम्मान करो वह नीचता से बाज नहीं आता.
  510. कुत्ता टेढ़ी पूंछरीकभी न सीधी होय.कुत्ते की टेढ़ी पूंछ बारह साल पाइप के अन्दर रखी फिर भी टेढ़ी निकली. कोई ढीठ आदमी लगातार दंड देने से भी ठीक न हो रहा हो तो.
  511. कुत्ता देखे आइना, भूंक भूंक पगलाय (कुत्ते ने आईना देखा, भौंक भौंक के मर गया).कुत्ता दर्पण में अपना प्रतिबिम्ब देख कर उसे दूसरा कुत्ता समझ कर खूब भौंकता है. मूर्ख व्यक्तियों का मजाक उड़ाने के लिए.
  512. कुत्ता न देख, कुत्ते के मालिक को देख.कुत्ते की अहमियत कुत्ते के मालिक की अहमियत के अनुसार आंकी जाती है.
  513. कुत्ता न देखेगा न भौंकेगा.कहावत में कानून की नज़र बचा कर चुपचाप अपराध करने की सलाह दी गई है.
  514. कुत्ता पाए तो सवा मन खाएनहीं तो दिया ही चाट कर रह जाए.कुत्ते को मिल जाए तो ढेर सारा खा लेता है और न मिले तो बेचारा दिये में लगा तेल चाट कर ही रह जाता है. गरीब और बेसहारा लोग ऐसे ही जीवन काटते हैं.
  515. कुत्ता पाले और पहरा दे.पहरा देने को कुत्ता पाला और खुद पहरा दे रहे हैं. मूर्ख लोगों के लिए. इस आशय की इंग्लिश में कहावत है – Do not keep a dog and bark yourself.
  516. कुत्ता पाले वह कुत्ता, कुत्ता मारे वो कुत्ता, बहन के घर भाई कुत्ता, ससुरे के घर जमाई कुत्ता, सब कुत्तों का वह सरदार, जो रहे बेटी के द्वार.पहले जमाने में कुत्ता पालने को निकृष्ट कार्य माना जाता था. (लोग गाय पालना पसंद करते थे). कुत्ते जैसे निरीह पशु को मारना भी निकृष्ट काम माना गया है. शादी शुदा बहन के घर यदि भाई रहे और दामाद ससुराल में रहे तो उन का सम्मान नहीं होता इस लिए उन्हें निकृष्ट बताया गया है. इन सबसे अधिक घटिया आदमी वह है जो बेटी के घर में रहे.
  517. कुत्ता भी दो घर छोड़ के मूतता है.पालतू कुत्ता अपने घर के आगे कभी नहीं मूतता.जो अपने ही लोगों को धोखा दे या अपने ही इलाके में गंदगी फैला रहा हो उसको उलाहना देने के लिए.
  518. कुत्ता भी बैठता है तो दुम हिला कर बैठता है.कुत्ता बैठने के पहले पूंछ हिला कर जमीन की मिट्टी को झाड़ कर साफ़ करता है. गंदे और आलसी लोगों को उलाहना देने के लिए.
  519. कुत्ता भूँके हजारहाथी चले बजार.हाथी जब बाज़ार में निकलता है तो कुत्ते खूब भौंकते हैं लेकिन हाथी पर इसका कोई असर नहीं होता. जब महान लोग कोई बड़ा काम कर रहे हों और घटिया लोग उनका विरोध करें तो यह कहावत कही जाती है.
  520. कुत्ता भौंक भौंक कर मरे, मालिक को परवाह ही नहीं.निष्ठुर लोगों को अपने सेवकों के कष्टों की कोई चिंता नहीं होती.
  521. कुत्ता भौंकेकाफ़िला सिधारे.काफिला निकलता है तो कुत्ते भौंकते हैं, पर काफिला अपने रास्ते चलता जाता है. सामाजिक कार्य करने वाले संगठन मूर्ख निंदकों की चिंता नहीं करते.
  522. कुत्ता मरे अपनी पीरमियाँ मांगे शिकार.बहुत से लोग शिकार के लिए कुत्ता पालते हैं. कहावत में कहा गया है कि कुत्ता तो दर्द से मर रहा है और मियाँ को सिर्फ शिकार से मतलब है. नौकरों की तकलीफ न देख कर केवल अपना स्वार्थ देखना.
  523. कुत्ता मरे तो चीलर भी मरें.किसी की मृत्यु होने पर उस पर आश्रित लोग बेसहारा हो जाते हैं. वे आश्रित चाहे मरने वाले का खून चूसने वाले ही क्यों न हों.
  524. कुत्ता मुँह लगाने से सर चढ़े.नीच व्यक्ति को मुँह लगाने से वह सिर पर चढ़ता है.
  525. कुत्ता मूते जहाँ जहाँ, सौ सौ गाली पाए.(बुन्देलखंडी कहावत) कुत्ता कभी जमीन पर नहीं मूतता, किसी वस्तु पर ही मूतता है और गाली खाता है. फिर भी अपनी आदत नहीं छोड़ता.
  526. कुत्ता हो कर भी न भौंके.कुत्ता यदि भौंकेगा ही नहीं तो किस काम का. कोई कामचोर कर्मचारी अपने लिए नियत किए गए काम को करने में हीला हवाला करे तो.
  527. कुत्ते और गोती गाँव गाँव में मिलें.कुत्ते और अपने गोत्र वाले हर गाँव में मिल जाते हैं.
  528. कुत्ते का जोर गली मेंकुत्ते का अधिकार क्षेत्र अपनी गली तक ही सीमित होता है. बदमाश और रंगबाज अपने अपने इलाके में ही प्रभावी होते हैं.
  529. कुत्ते की छूत, बिल्ली को नहीं लगती.कुत्ते को यदि कोई छूत की बीमारी है तो वह उस से बिल्ली में नहीं फैलती. गलत काम करने वालों के अलग अलग ढंग होते हैं, वे एक दूसरे से नहीं सीखते.
  530. कुत्ते की पूँछ में कितना भी घी लगाइए, वह टेड़ी की टेड़ी ही रहेगी.नीच व्यक्ति की कितनी भी सेवा करो या मक्खन लगाओ, वह खुश नहीं होता.
  531. कुत्ते की पूंछ पे गठरी बंधी है.जिस को धन को उपयोग करना नहीं आता उस के पास धन हो तो क्या लाभ. कंजूस आदमी पर व्यंग्य.
  532. कुत्ते की मार अढ़ाई घड़ी.कुत्ता मार खाने के बाद बहुत जल्दी भूल जाता है, और फिर ड्योढ़ी पर आ कर बैठ जाता है. जो व्यक्ति अपमान के बाद भी किसी के पीछे लगा रहे उस पर व्यंग्य.
  533. कुत्ते की मौत आए तो मस्जिद में मूते.कुत्ता यदि मस्जिद में पेशाब करेगा तो धर्मांध लोग उसे मार डालेंगे. कभी कभी छोटी सी गलती भी मृत्यु का कारण बन सकती है.
  534. कुत्ते की मौत आती है तब खोपड़ी में कीड़े पड़ते हैं.शरीर में और जगह कीड़े पड़ें तो कुत्ता उन्हें चाट चाट कर साफ़ कर देता है. सर में कीड़े पड़ें तो नहीं चाट पाता है. कहावत का अर्थ इस प्रकार कर सकते हैं कि मूर्ख व्यक्ति का विनाश नजदीक आता है तो उस के दिमाग में तरह तरह के कीड़े कुलबुलाने लगते हैं.
  535. कुत्ते की सी झपकी. (कुत्ते की नींद)अत्यधिक चौकन्नी नींद.
  536. कुत्ते के पाँव जाबिल्ली के पाँव आ.काम को जल्दी से जल्दी करने के लिए.
  537. कुत्ते को आटा दोगे तो क्या रोटी पकाएगा.जिस वस्तु की किसी व्यक्ति के लिए कोई उपयोगिता नहीं है उसे देने से क्या लाभ.
  538. कुत्ते को काम न धाम पर फुरसत नाहीं.जो लोग कोई ठोस काम नहीं करते पर अपने को बहुत व्यस्त दिखाते हैं, उनका मजाक उड़ाने के लिए.
  539. कुत्ते को घी नहीं पचता (कुत्तों को घी हजम नहीं होता)नीच आदमी को उत्तम विचार समझ में नहीं आते.
  540. कुत्ते को टुकड़ा डालते तो क्यूँ भूँकतानीच हाकिम को रिश्वत दे देते तो वह तुम पर नहीं गुर्राता.
  541. कुत्ते को मस्जिद से क्या काम.मस्जिद में कुत्ते को कुछ नहीं मिलेगा, बल्कि मार खाने का डर है. ऐसी जगह जाने से क्या लाभ.
  542. कुत्ते को हड्डी का ही चाव (कुत्ते को हड्डी ही अच्छी लगती है).नीच व्यक्ति को घटिया बातें ही अच्छी लगती हैं. घूसखोर को केवल घूस ही चाहिए होती है.
  543. कुत्ते डाली इलायची, सूँघ सूँघ मर जाए.(बुन्देलखंडी कहावत) कुत्ते के सामने इलायची डालोगे तो खाएगा नहीं, सूँघता ही रहेगा. जो पारखी न हो उसे उत्तम वस्तु नहीं देनी चाहिए.
  544. कुत्ते तेरा लिहाज नहीं तेरे मालिक का लिहाज है (कुत्ते ये तेरा मुँह नहीं तेरे मालिक का मुँह है).कुत्ता अपने मालिक के बल पर ही भौंकता है. कुत्ते की अहमियत उस के मालिक के अनुसार ही होती है.
  545. कुत्ते भूंकें तो चन्द्रमा को क्या.नीच और ओछे लोग कितनी भी आलोचना करें, बड़े लोगों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता. 
  546. कुत्ते वाली योनि पूरी कर रहा हैसनातन मान्यता के अनुसार मनुष्य को चौरासी लाख योनियों में भटक कर फिर मनुष्य का जन्म मिलता है. कोई व्यक्ति बहुत नीचता दिखा रहा हो तो लोग घृणा वश ऐसा बोलते हैं.
  547. कुत्तों की टोली में आटे का दीपक कब तक टिके.कुत्ते मौका पा कर उसे खा ही जाएंगे.
  548. कुत्तों के गाँव नहीं बसते.आपस में लड़ने झगड़ने के कारण. जो लोग आपस में बहुत लड़ते हों उन को उलाहना देने के लिए बड़े लोग ऐसा बोलते हैं.
  549. कुत्तों के भौंकने से बादल नहीं बिखरते.क्षुद्र लोगों के शोर मचाने से बड़े बड़े काम नहीं रुकते.
  550. कुत्तों को दूँपर तुझे न दूँ.किसी से बहुत घृणा करना.
  551. कुत्तों में एका हो गंगा जी न नहा आवें.किसी भी समुदाय में एकता हो तो वे बड़े से बड़ा काम कर सकते हैं.
  552. कुनबा खीर खाए और देवते राजी हों.श्राद्ध पक्ष में लोग पितरों को खुश करने की आड़ में खुद भी माल खाते हैं उस पर व्यंग्य.
  553. कुबड़े वाली लात (कूबड़े लात, बन गई बात).किसी व्यक्ति ने गुस्से में आ कर कुबड़े की पीठ पर जोर से लात मारी तो उसकी कूबड़ ठीक हो गई. कोई किसी को नुकसान पहुँचाना चाहे और नुकसान के स्थान पर उस का काम बन जाय तब.
  554. कुमानुस कहें काकोससुराल में बसे बाको.एक बार भगवान राम अपनी ससुराल जनकपुरी गए. सास जी स्नेहवश उन्हें जाने नहीं दे रही थीं और इधर दशरथ जी को बेचैनी होने लगी. सीधे सीधे बुलावा भेजना मर्यादा के विरुद्ध था. तो जनक जी के पास एक चिट्ठी भेजी कि कृपया एक कुमानुष हमारे यहाँ भेज दीजिए. जनकजी के दरबार में तरह तरह के डोम, बहेलिए, भिश्ती, जुलाहे, सफाईकर्मी, मल्लाह इत्यादि बुलाए गए. सब ने कहा कि राजन, हम तो समाज के लिए बहुत उपयोगी मनुष्य हैं, हम कुमानुष कैसे हो सकते हैं. जनक जी ने पूछा, तो कुमानुष कौन हुआ. तब उन में से एक ने बताया – कुमानुस कहें काको, ससुरार में बसे ताको. राजा जनक फ़ौरन समझ गए कि राम का बुलावा है.
  555. कुम्हार अपना ही घड़ा सराहता है.सब को अपना किया हुआ काम ही अच्छा लगता है.
  556. कुम्हार का गधाजिन के चूतड़ मिटटी देखेउन्हीं के पीछे दौड़े.कुम्हार कच्ची जमीन पर बैठ कर काम करता है इसलिए उसके नितम्बों पर मिट्टी लग जाती है. कुम्हार के गधे ने किसी भी आदमी की धोती पे मिट्टी लगी देखी उसी को कुम्हार समझ कर उसके पीछे चल दिया. कहावत उन भोले भाले लोगों के लिए कही जा सकती है जो गेरुए वस्त्र पहनने वाले हर इंसान को महात्मा समझ कर उसके पीछे चल देते हैं.
  557. कुम्हार की गधीघर घर लदी (भाड़े की गधीघर घर लदी).गरीब और लाचार आदमी पर सब काम लादते हैं.
  558. कुम्हार के घर चुक्के का दुख (वासन का अकाल).जिस चीज़ की बहुतायत जहाँ होनी चाहिए उसी की कमी हो तो. चुक्का – कुल्हड़वासन – बर्तन.
  559. कुम्हार पे बस न चलागधी के कान उमेठ दिए.सबल आदमी पर बस न चले तो निर्बल पर गुस्सा उतारना.
  560. कुयश और मौत बराबर.इज्जतदार लोगों के लिए अपयश मृत्यु के समान है.
  561. कुरमी कुत्ता हाथीतीनो जात के घाती.कुर्मी, कुत्ता और हाथी अपनी जाति वालों को ही हानि पहुंचाते हैं. 
  562. कुल और कपड़ा रखने से.कुल और कपड़े की अगर देखभाल नहीं होगी तो वे नष्ट हो जाएँगे.
  563. कुलटा के यहाँ छिछोरे पहुंचेंगे हीगलत काम करने वाले के यहाँ उसी प्रकार के लोगों का जमावड़ा होता है.
  564. कुलिया में गुड़ नहीं फूटता.कुलिया (छोटा कुल्हड़) में रख कर गुड़ को तोड़ने की कोशिश करोगे तो कुलिया ही टूट जाएगी. अपर्याप्त साधनों से बड़े काम नहीं किए जा सकते.
  565. कुलेल में गुलेल.पक्षियों का जोड़ा पेड़ की डाल पर बैठा किलोल कर रहा है कि किसी ने गुलेल चला दी तो रंग में भंग हो गया.
  566. कुल्हड़ भरा और सीधी मायकेगरीब घर की लड़की यदि धनवान ससुराल में पहुँच जाए तो अपने मायके वालों के लिए बहुत कुछ करना चाहती है.
  567. कूटनवारी कूटी गई, सास पतोहू एक भई.कूटनवारी – अनाज कूटने वाली. सास बहू की लड़ाई में अनाज कूटने वाली बीच में बोल दी. सास बहू फिर एक हो गईं और कूटने वाली पिट गई. दो लड़ने वालों के बीच में न बोलने की सलाह.
  568. कूड़े घर की गायफिर कूड़े घर में.जिसको गंदगी प्रिय है वह गंदगी में रहना ही पसंद करता है.
  569. कूद कूद मछली बगुले को खाए.असंभव बात. कोरी गप्प.
  570. कूदने से पहले चलना सीखो.अर्थ स्पष्ट है.
  571. कूदा पेड़ खजूर से राम करे सो होय.कोई व्यक्ति यदि कोई दुस्साहसिक फैसला ले तो.
  572. कूदे फांदे तोड़े तानताका दुनिया राखे मान. जो दिखावा करने की कला में माहिर हो दुनिया उसी की इज्ज़त करती है. 2. नृत्य की वास्तविक कलाओं के मुकाबले आजकल भौंडे नाच और हू हा को ज्यादा लोकप्रियता मिलती है.
  573. कूवत थोड़ी मंज़िल भारी.ताकत थोड़ी बची है जबकि मंजिल अभी दूर है. सामर्थ्य कम है और काम बड़ा है.
  574. कृपण के धन और स्त्री के मन को कोई न जाने.कंजूस के पास कितना धन है यह कोई नहीं जान सकता और स्त्री के मन में क्या है यह भी कोई नहीं जान सकता.
  575. कृष्ण चले बैकुंठ को राधा पकड़ी बांह, यहाँ तम्बाखू खाय लो वहाँ तम्बाखू नांह.तम्बाखू खाने वाले अपने आप को धोखा देने के लिए तरह तरह की बातें बनाते हैं.
  576. के पालत मायके पालत गाय.बच्चा माँ का दूध पी कर पलता है या गाय का दूध पी कर. इसी लिए हमारे देश में गाय को इतना महत्व दिया गया है.
  577. केका केका लेवें नांवकमली ओढ़े सारा गाँव.अलग से किस किस का नाम लें. यहाँ तो सभी गलत हैं.
  578. केतनो अहिर पिंगल पढ़ेबात जंगल ही की बोले.(भोजपुरी कहावत) पिंगल – छंद शास्त्र. अहीर को कितनी भी उच्च शिक्षा दे दो वह जंगल की बात ही करेगा.
  579. केरा केकड़ा बिच्छू बाँसइन चारों की जमले नाश.(भोजपुरी कहावत) जमला – संतान. केला, केकड़ा, बिच्छू और बांस, इन चारों की सन्तान ही इन का नाश कर देती हैं.
  580. केवल मूर्ख और मृतक अपने विचार नहीं बदलते.मूर्ख लोग अपनी बात पर अड़े रहते हैं इस बात को अधिक जोर दे कर कहने के लिए इस प्रकार से कहा गया है.
  581. केसर की करिहे कहा कीमतहै न परख जहाँ हरदी की.जिन लोगों को हल्दी की परख तक न हो उनसे केसर की कीमत समझने की उम्मीद कैसे की जा सकती है.
  582. केसव केसन अस करी, जो अरिहू न कराहिं, मधुर वचन मृग लोचनी, बाबा कहि कहि जाहिं.केशव दास हिंदी के आरंभिक कवियों में से एक हैं. उन के बाल जल्दी सफेद हो गये थे. एक बार कुछ सुंदर स्त्रियों ने उनके बाल देख कर उन्हें बाबा कह कर सम्बोधित किया तो उन्होंने यह कविता कही.
  583. केहरि फंसा पींजरे में, क्या कर लेगा बल से.शेर यदि पिंजरे में फंस जाए तो अपनी ताकत से नहीं निकल सकता. जहाँ बुद्धि काम आती है वहाँ बल काम नहीं आता.
  584. केहि की प्रभुता न घटी, पर घर गए रहीम.दूसरे के घर जा कर (विशेषकर कुछ मांगने के लिए) सभी का मान घट जाता है.
  585. केहू खाए खाए मुए और केहू बिना खाए मुए.(भोजपुरी कहावत) कोई ज्यादा खाने से मरे और कोई खाने के बिना मरे. कहीं पर किसी वस्तु की अधिकता और कहीं पर बहुत कमी. केहू -कोई, मुए – मरे.
  586. केहू खाना खाय, केहू पैखाना जाय.करे कोई भरे कोई. 
  587. केहू हीरा चोरकेहू खीरा चोर.(भोजपुरी कहावत) कोई बहुत बड़ी चीज़ का चोर है और कोई बहुत छोटी चीज़ का.
  588. कै जागे जोगी कै जागे भोगी.योग साधना के लिए योगी जागता है और भोग भोगने के लिए भोगी जागता है.
  589. कै जागे बेटी को बापकै जागे जाके घर में सांप.या तो वह व्यक्ति चिंता में जागता है जिस की बेटी ब्याह योग्य हो, या वह जागता है जिस के घर में सांप छिपा बैठा हो.
  590. कै तो घोड़ा काटे नहीं, और काटे तो फिर छोड़े नहीं.सामर्थ्यवान व्यक्ति सामान्यत: क्रोध नहीं करता. और क्रोध करता है तो मटियामेट कर देता है.
  591. कै तो जीभ संभाल, कै खोपड़ो संभाल.(हरयाणवी कहावत) जीभ उल्टा सीधा बोलती है तो खोपड़ी पिटती है. जीभ को संभाल लो वरना खोपड़ी को संभालना पड़ेगा.
  592. कै तो बावली सिर खुजावै नाखुजावै तो लहू चला ले.(हरयाणवी कहावत) बावला आदमी या तो कोई काम करेगा नहीं, और करेगा तो उसे रोकना मुश्किल.
  593. कै तो बिगड़े कुपंथ से, कै बिगड़े कुपथ्य से.आदमी गलत राह पर चलने से विनाश को प्राप्त होता है या गलत भोजन से.
  594. कै तो बिलुआ चले नऔर चले तो मेंड़ की मेंड़ ढहावे.आजकल के लोगों ने हाथ से चलने वाली चक्की नहीं देखी होगी. चक्की चलती है तो उसके चारों तरफ आटे की ढेरी बनती जाती है और जैसे जैसे नया आटा पिस कर आता है पुरानी ढेरी ढह कर नई ढेरी बनती जाती है. ढेरी की तुलना यहाँ खेत की मेड़ से की गई है. कहावत में यह कहा गया है कि या तो चक्की का पाट चलता नहीं है और चलता है तो मेड़ की मेड़ ढहाता है. कोई भी काम शुरू तो बहुत मुश्किल से हो पर फिर खूब तेज़ी से चले तो यह कहावत कही जाती है. (देखिये परिशिष्ट)
  595. कै तो लड़े कूकुर, कै लड़े गँवार.लड़ने भिड़ने का काम मूर्ख लोग ही करते हैं.
  596. कै धन मिले धाए धाएकै धन मिले पराया पाएकै धन मिले नदी के कच्छ्नकै धन मिले बहू के लच्छन.(बुन्देलखंडी कहावत) नदी के कच्छ्न – नदी किनारे की उपजाऊ जमीन. धन मिलता है या तो दौड़ भाग करने से, या कहीं पड़ा मिलने से, या नदी के कच्छ में खेती करने से, या अच्छे लक्षणों वाली बहू के घर में आने से.
  597. कै मारे बदली की धूप, कै मारे बैरी को पूत.भादों की धूप मारती है या जिससे दुश्मनी हो उसकी संतान.
  598. कै लड़े सूरमाकै लड़े मूरख.आम तौर पर समझदार लोग लड़ाई भिड़ाई से दूर रहते हैं. या तो शूरवीर लोग लड़ना पसंद करते हैं या मूर्ख लोग जो अपना भला बुरा नहीं समझते.
  599. कै सोवे राजा का पूतकै सोवे योगी अवधूत.या तो राजा का पुत्र निश्चिन्त हो के सो सकता है (क्योंकि वह सब प्रकार से सुरक्षित होता है) या फिर योगी सन्यासी (क्योंकि उसे कोई सांसारिक चिंता नहीं होती).
  600. कै हंसा मोती चुगेकै भूखा रह जाए (लंघन करि जाय).ऐसा माना जाता है कि हंस केवल मोती चुगता है, गंदगी नहीं खाता. जो लोग उत्तम प्रकृति के होते हैं वे केवल उत्तम बातें ही ग्रहण करते हैं.
  601. कैंची काटे ही काटेसूई जोड़े ही जोड़े.जो लोग अच्छी मनोवृत्ति के है वे लोगों को जोड़ते हैं और जो दुष्ट प्रवृत्ति के होते हैं वे केवल लोगों में अलगाव पैदा करते हैं. 
  602. कैर का ठूंठ टूट जाए पर झुके नहीं.नासमझ लोग परिस्थितियों से समझौता करना नहीं जानते.
  603. को कहि सके बड़ेन सों होत बड़ी नहिं भूल, दी ने दई गुलाब की इन डारन पर फूल.दी – दैव (ईश्वर).बड़े लोग भी कभी कभी भूल करते हैं. भगवान ने भी गुलाब की काँटों भरी डालियों में इतने सुंदर फूल दिए हैं.
  604. को न कुसंगति पाय नसाई.कुसंगति पा कर सभी नष्ट हो जाते हैं. नसाई – नष्ट हो जाता है.
  605. को नृप होहिं हमें का लाभ.कोई भी राजा हो हमें क्या फायदा होगा. हम दासी की जगह रानी तो नहीं बन जाएँगी. जिस जमाने में राजा चुनने में प्रजा का कोई हाथ नहीं होता था तब तो यह सोच ठीक थी पर अब लोकतंत्र के जमाने में भी लोग ऐसी सोच रखते हैं जोकि ठीक नहीं है.
  606. को नृप होहिं हमें का हानि. चेरि छांड़ि नहिं होऊ रानी.उपरोक्त की भांति.
  607. कोइरी की बिटिया के न मैके सुख न ससुरारे सुख.कोइरी – सब्जी बोने वाला किसान. गरीब की बेटी को सभी जगह काम अधिक करना पड़ता है और सुख सुविधाएं कहीं नहीं मिलतीं.
  608. कोइरी सिपाही न बकरी मरखनी.किसान योद्धा नहीं बन सकता जैसे बकरी मरखनी नहीं हो सकती.
  609. कोई आँख का अंधाकोई हिए का अंधा.कोई आँख का अंधा है और कोई हृदय का (भावना शून्य व्यक्ति).
  610. कोई ओढ़े शाल दुशालाकोई ओढ़े कम्बल काला.भाग्य से किसी को कम और किसी को बहुत मिलता है.
  611. कोई काम करे दाम सेकोई दाम करे काम से.कोई पैसा खर्च कर के लोगों से काम कराता है और कोई अपने हाथों से काम कर के पैसा कमाता है.
  612. कोई खींचे लांग लंगोटीकोई खींचे मूंछड़ियाँकोठे चढ़ कर देत दुहाईकोऊ मत करियो दो जनियाँ.किसी व्यक्ति की दो पत्नियाँ हैं. वह छत पर चढ़ कर लोगों को समझा रहा है कि कोई दो बीबियाँ मत रखना. कोठा – छत
  613. कोई तोलों कमकोई मोलों कमकोई मोल में भारीकोई तोल में भारी.सभी प्रकार के लोग होते हैं. कोई तोल में कम है (उस में गुण कम हैं) कोई मोल में कम है (उसके पास धन दौलत कम है). इसी प्रकार किसी में गुण और गंभीरता अधिक हैं और किसी के पास पैसा अधिक है.
  614. कोई न बैरी कूकर बैरी.आप लाख कोशिश करें कि किसी से आपकी दुश्मनी न हो लेकिन कोई न कोई आपसे वैर भाव रखने वाला निकल ही आएगा. और कुछ नहीं तो मोहल्ले का कुत्ता ही बिना बात आप पर भौंकेगा.
  615. कोई न मिले तो अहीर से बतलाय, कुछ न मिले तो सतुआ खाय.सत्तू को घटिया खाद्य पदार्थ माना गया है. कुछ न मिले तो मजबूरी में सत्तू खा कर काम चलाना चाहिए. इसी प्रकार अहीर से तभी बात करना चाहिए जब और कोई न मिले.
  616. कोई निरखे चूड़ी कंघीकोई निरखे मनिहारी.मनिहारी – स्त्रियों के श्रृंगार आदि का सामान (विशेषकर चूड़ियाँ) बेचने वाली महिला. किसी की सामान देखने में रूचि है तो कोई मनिहारी को ही निहार रहा है.
  617. कोई मरे कोई अर्थी बनाएकहीं पर मृत्यु होने से मातम हो रहा है और किसी को उससे जीविका मिल रही है.
  618. कोई मरे कोई जीवेसुथरा घोल बताशा पीवे.स्वार्थी लोगों के लिए. 
  619. कोई माल मस्तकोई हाल मस्त.कोई माल में मस्ततो कोई ख़याल में मस्त. कोई धन संपदा में खुश है तो कोई कोरी कल्पनाओं में ही मस्त है.
  620. कोई मुझे न मारे तो मैं किसी को नहीं छोड़ूँ.कायर आदमी का कथन.
  621. कोई रोवे कोई मल्हार गावे (कोई मरे कोई मल्हार गावे).संसार में सब के दिन एक से नही होते. कोई प्रसन्न है तो कोई दुखी. इस कहावत का अर्थ इस प्रकार भी कर सकते हैं कि स्वार्थी लोगों को दूसरों का दुःख नहीं दिखता, वे अपने राग रंग में मस्त रहता हैं.
  622. कोई लाख करे चतुराईकरम का लेख मिटे न रे भाई.व्यक्ति कितनी भी बुद्धिमत्ता दिखा ले, भाग्य के लिखे को नहीं मिटा सकता.
  623. कोई साथ आवे नहीं कोई साथ जावे नहीं.इस संसार में न तो कोई साथ आता है, न कोई साथ जाता है.
  624. कोई स्यान मस्त कोई ध्यान मस्त कोई हाल मस्त कोई माल मस्त.दुनिया में सब प्रकार के लोग हैं. कोई ख्यालों में ही मस्त है, कोई धन धान्य में खुश है, कोई जैसे भी हाल में है उसी में खुश है.
  625. कोऊ काटे मेरी नाक और कानमैं न छोडूँ अपनी बान.अत्यधिक हठी व्यक्ति.
  626. कोऊ को कल्पाए केकोउ कैसे कल पाए.कलपाना – पीड़ित करना, कल पाए – चैन पाए. किसी को पीड़ित कर के कोई कैसे चैन पा सकता है.
  627. कोऊ लांगड़ कोऊ लूल, कोऊ चले मटकावत कूल.ऐसा समाज जहाँ सारे लोगों में कोई न कोई कमी हो.
  628. कोख से जन्मा सांप भी माँ को प्यारा लगे.माँ को अपना बच्चा हमेशा प्यारा लगता है, चाहे वह कैसा भी हो.
  629. कोटहिं रंग दिखावत है जब अंग में आवे भंग भवानी.भंग – भांग. भंगेड़ियों द्वारा भांग की महिमा का बखान.
  630. कोटिन काजू दाख खवावे, ऊंटहिं काठ झंकाड़हि भावे.दाख – द्राक्ष (अंगूर, किशमिश). ऊंट को कितना भी काजू किशमिश खिलाओ उसे झाड़ झंखाड़ ही अच्छे लगते हैं. मूर्ख व्यक्ति उत्तम वस्तुओं का मोल नहीं जानता, उसे निकृष्ट वस्तुएं ही प्रिय होती हैं.
  631. कोठी कुठले को हाथ न लगाओघरबार सब तुम्हारा.कोठी – अनाज रखने का मिटटी का बड़ा बर्तन. कुठला – पानी भरने का बड़ा बर्तन. मेहमान से कह रहे हैं कि खाने पीने की बात मत करो, घरबार सब तुम्हारा ही है. दिखावे का आतिथ्य. (देखिये परिशिष्ट) 
  632. कोठी धोए कीच हाथ लगे.अनाज रखने के बर्तन को धोने से कीचड़ हाथ लगती है. (लेकिन तब भी यह आवश्यक काम है)
  633. कोठी में चावलघर में उपवास.धन धान्य भरपूर मात्रा में है तब भी घर के लोग भूखे हैं. प्रबंधन (मैनेजमेंट) में गड़बड़ी.
  634. कोठी में धान तो मूढ़ में ज्ञान.घर में अनाज भरपूर मात्रा में हो तभी ज्ञान की बातें समझ में आती हैं.
  635. कोठी वाला रोवेछप्पर वाला सोवे.पैसे वाला आदमी हर समय चिंता में दुबला होता रहता है जबकि झोंपड़ी वाला चैन से सोता है.
  636. कोठे से गिरा संभल सकता हैनजरों से गिरा नहीं.कोठा – छत. छत से गिरा आदमी उठ कर खड़ा हो सकता है लेकिन जो एक बार नजरों से गिर जाए वह नहीं.
  637. कोढ़ मिट जाए पर दाग न जाए.एक बार इज्जत चली जाए तो वह बात दोबारा नहीं आती.
  638. कोढ़ में खाज.परेशानी में परेशानी. 
  639. कोढ़ी का टका भी मंदिर में चढ़ता है भगवान् के यहाँ सब बराबर हैं. 2. कोढ़ी से वैसे तो सब लोग छुआछूत मानते हैं पर पैसा उस के हाथ से भी ले लेते हैं.  
  640. कोढ़ी का दिल शहजादी पर.अपनी हैसियत से बहुत अधिक इच्छा रखना.
  641. कोढ़ी के जूँ नहीं पड़ती.लोक विश्वास है कि कोढ़ से ग्रसित व्यक्ति को जूँ नहीं होतीं. हालांकि बीमारी एक ईश्वरीय प्रकोप है और इस में कोढ़ी की कोई गलती नहीं होती फिर लोग उसे गन्दा और नीच मानते हैं. कहावत का अर्थ है कि नीच आदमी को छोटे मोटे कष्ट नहीं सताते.
  642. कोढ़ी डराए थूक से.नीच आदमी अपनी नीचता से डराता है.
  643. कोढ़ी मरे संगाती चाहे.संगाती माने साथ जाने वाला. कोढ़ी चाहता है कि वह मरे तो उस के साथ रहने वाला भी उसके साथ परलोक जाए. 
  644. कोतवाल को कोतवाली ही सिखाती है.किसी भी व्यवसाय को करने वाला व्यक्ति उस काम को करके ही सीखता है.
  645. कोदों का भात किन भातों मेंममिया सास किन सासों में.कोदों एक घटिया अनाज होता है. कोदों से बने भात की गिनती भातों में नहीं होती. इसी प्रकार ममिया सास जबरदस्ती की सास है, उसकी गिनती सासों में नहीं होती.
  646. कोदों दे के नहीं पढ़ेकोदों जैसी घटिया चीज दे के पढ़े होते तो शिक्षक भी घटिया मिलता और शिक्षा भी घटिया मिली होती.
  647. कोदों दे के पूत पढ़ाए, सोलह दूनी आठ.घटिया शिक्षा का घटिया फल.
  648. कोदों परस के मट्ठे को गये.कोदों को पचाने के लिए मट्ठा आवश्यक होता है. कोई व्यक्ति कोदों को ठाली में परस कर मट्ठा मांगने गया है. ऐसे लोग जो योजना बना कर काम नहीं करते.
  649. कोदों में घी खोवे, मूरख से दुख रोवे.कोदों जैसे घटिया अनाज में घी डालना बेकार है और मूर्ख व्यक्ति से अपना दुःख कहना भी बेकार है,
  650. कोदों सबा अन्न नधी दामाद धन्न न.कोदों और सबा घटिया प्रकार के अनाज हैं, जिन्हें लोग अन्न की श्रेणी में नहीं मानते हैं. कहावत में तुकबन्दी कर के दूसरी बात और बताई गई है जो इस से सम्बंधित नहीं है. पुत्री और दामाद व्यक्ति का धन नहीं होते (बेटी को पराया धन कहा गया है), जबकि पुत्र एक प्रकार का धन है. 
  651. कोपीन की गिनती पोशाकों में.कोपीन जैसे न्यूनतम वस्त्र की पोशाकों में गिनती कैसे हो सकती है. कोई बहुत क्षुद्र व्यक्ति अपने को महत्वपूर्ण समझता हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.
  652. कोमल डार ज्यों नमावो त्यों नमे.पेड़ या पौधे की कोमल डाल को जिस प्रकार मोड़ो मुड़ जाती है. इसी प्रकार छोटे बच्चे का मन कोमल होता है उसे किसी भी रूप में ढाला जा सकता है.
  653. कोयल अम्बहिं लेत हैकाग निम्बौरी लेत.कोयल मीठा आम खाती है जबकि कौवा कड़वी निम्बौली खाता है. हर व्यक्ति अपनी रूचि के अनुसार चीज़ चुनता है.
  654. कोयल काले कौवे की जोरू.बेमेल जोड़ा, क्योंकि कोयल सुरीली है और कौआ कर्कश. 2.उपयुक्त जोड़ा, क्योंकि दोनों काले हैं. 3.जहाँ पति पत्नी किसी अवगुण में एक से बढ़ कर एक हों.
  655. कोयल की बोली कोयल क्या जाने.कोयल को अपनी बोली का मोल नहीं मालूम.
  656. कोयला गर्म हो तो हाथ जलाए, ठंडा हो तो हाथ काला करे.नीच मनुष्य का साथ हर परिस्थिति में दुखदाई होता है.
  657. कोयला होय न ऊजलासौ मन साबुन धोय.चाहे सौ मन साबुन से धो लो, कोयला सफ़ेद नहीं हो सकता. दुष्ट व्यक्ति को सुधारने का कितना भी प्रयास कर लो वह नहीं सुधर सकता.
  658. कोयले की दलाली में हाथ काले.आप कोई गलत काम स्वयं न भी करें, अगर उसमें बीच में भी पड़ते हैं तो आपको भी कुछ न कुछ बदनामी होने की संभावना रहेगी.
  659. कोयले से हीराकीचड़ से फूल.कोयले जैसी घटिया चीज़ में से हीरा प्राप्त होता है और कीचड़ की गंदगी में कमल का फूल खिलता है. अति निर्धन या पिछड़ी पृष्ठभूमि से निकला व्यक्ति यदि उच्च स्थान प्राप्त कर ले तो.
  660. कोरी का ब्याह, कड़ेरा हाथ जोड़े फिरे.कोरी – बुनकर, कड़ेरा – धुनिया (रुई धुनने वाला). किसी दूसरे के काम में आवश्यकता से अधिक रूचि दिखाना.
  661. कोरी ठकुराई और बगल में कंडा.झूठ मूठ के ठाकुर. राजस्थानी कहावत – ठाली ठकुराई कांख में छाण.
  662. कोरी नून की पोवेकेवल नमक की रोटी बनाता है. जो बिल्कुल बिना सिर पैर की गप्प हाँकता हो.
  663. कोल्हू के बैल को साथी की क्या दरकारयदि एक ही आदमी से काम चलता हो तो दो लोग क्यों लगाए जाएँ.
  664. कोल्हू से खल उतरीभई बैलों जोग.तिल में से तेल निकलने के बाद खल बचती है जोकि केवल बैलों के खाने के काम आती है. महत्वपूर्ण व्यक्ति अपना पद खोने के बाद गरिमाहीन हो जाता है.
  665. कोस कोस पर पानी बदले, बारह कोस पे बानी. हमारे देश में हर कोस पर पानी का स्वाद बदल जाता है और हर बारह कोस पर बोली में कुछ बदलाव आ जाता है.
  666. कोस चली नबाबा प्यासी.कोस भर भी नहीं चली और कहने लगी बाबा प्यास लग रही है. काम शुरू करते ही थकने का बहाना करना.
  667. कोसे जिएँअसीसे मरें.किसी को खूब कोसा गया फिर भी वह जीवित है, किसी को जुग जुग जीने की आशीष दी गई फिर भी वह मर गया. अर्थ है कि कोसने या असीस देने से कुछ नहीं होता, सब ईश्वर की मर्ज़ी से होता है.
  668. कौआ अपने शिसुन को जानत सबसे सेत.सेत – श्वेत (यहाँ सुंदर से तात्पर्य है) कौए को अपने बच्चे सबसे सुंदर लगते हैं. हर जीव जन्तु को अपनी संतान प्रिय होती है (चाहे वह कैसी भी हो).
  669. कौआ के कोसे ढोर न मरे.कौए के कोसने से ढोर (गाय, भैंस, बैल इत्यादि) नहीं मरते. उन अन्धविश्वासी लोगों को सीख दी गई है जो मंत्र तंत्र कर के किसी को हानि पहुँचाना चाहते हैं.
  670. कौआ चला हंस की चालअपनी चाल भी भूल गया.दूसरों की नकल करने में हम उसके जैसा भी नहीं बन पाते हैं और अपनी वास्तविकता एवं मौलिकता को भी भूल जाते हैं.
  671. कौआ जैसे पंख मोर का अपनी दुम में बांधे.फूहड़पने से किसी की नकल करना.
  672. कौआ बोले बेसी, घर आवे परदेसी.कौवा यदि बार बार बोलता है तो घर में कोई मेहमान आता है.
  673. कौए की चोंच में अंगूरहूर के पहलू में लंगूर.यदि किसी लल्लू पंजू आदमी को बहुत सुंदर पत्नी मिल जाए तो दूसरे लोग ईर्ष्या वश यह कहावत कहते हैं.
  674. कौए की दुम में अनार की कली.उपरोक्त के समान.
  675. कौए की नजर तो रैंट पर हीनीच व्यक्ति को निम्न कोटि की वस्तुएँ ही पसंद आती हैं. (कौआ नाक से निकली रैंट को बड़े शौक से खाता है).
  676. कौए के साथ हंस का जोड़ाबेमेल जोड़ा.
  677. कौए को सोने के पिंजरे में मोती चुगाओ तो भी राजहंस नहीं हो सकताअर्थ स्पष्ट है.
  678. कौए धोए कहीं बगुले हुआ करें.किसी खुराफाती आदमी को सुधारने की बहुत कोशिश की गई पर वह खुराफाती ही रहा तो यह कहावत कही गई. कोई काला या असुंदर व्यक्ति सुंदर दिखने के लिए तरह-तरह के साबुन और लेप लगाए तो भी उसका मजाक उड़ाने के लिए यह कहावत कही जाती है.
  679. कौए सब जगह काले ही काले.दुष्ट लोग सब जगह दुष्टता ही करते हैं.
  680. कौए से भी गोरा.किसी अत्यधिक काले आदमी का मजाक उड़ाने के लिए.
  681. कौओं के बजाए ढोल थोड़े ही फूटें.छोटे और महत्वहीन लोग बड़े व महत्वपूर्ण लोगों का कोई नुकसान नहीं कर सकते.
  682. कौड़ी कौड़ी जोड़ के निधन होत धनवान, अक्षर अक्षर के पढ़े मूरख होत सुजान.अर्थ स्पष्ट है.
  683. कौड़ी कौड़ी बचाओलाखों रूपए पाओ (कौड़ी कौड़ी धन जुड़े).छोटी छोटी बचत अंततः बहुत बड़ी बन जाती हैं.
  684. कौड़ी गाँठ कीजोरू साथ की.कौड़ी वही काम की है जो गाँठ में हो (मतलब पैसा वही काम का है जो पास में हो), पत्नी तभी काम की है जब साथ हो.
  685. कौड़ी नहीं गाँठ, चले बाग की सैर.अपने पास कुछ न होते हुए भी तरह तरह के शौक सूझना.
  686. कौडी नाहीं गाँठ में, करे ऊँट की बात.पास में पैसा न होते हुए भी बड़ी बड़ी बातें करने वालों के लिए.
  687. कौड़ी बिना दो कौड़ी का.जिस के पास पैसा न हो उसे कोई नहीं पूछता.
  688. कौड़ी में हाथी बिकाय, पर कौड़ी तो हो.कोई महंगी चीज बहुत सस्ती मिल रही है लेकिन हमारे पास तो उतने पैसे भी नहीं हैं.
  689. कौन कहे राजा जी नंगे हैं.एक राजा के दरबार में दो लोग आए और राजा से बोले कि वे देवताओं के वस्त्र बनाते हैं. राजा ने कहा कि मेरे लिए भी वस्त्र बनाओ. उन्होंने राजा से एक महीने का समय माँगा और बहुत सा सोना, हीरे जवाहरात और रेशम, मखमल वगैरा ले कर महल के एक कमरे में काम शुरू कर दिया. एक महीने बाद उन्होंने सभा बुलवाई और राजा से कहा कि हम आप को देवताओं के वस्त्र अपने हाथ से पहनाएंगे. वस्त्र तो ऐसे बने हैं कि जो देखेगा देखता रह जाएगा लेकिन इन वस्त्रों की एक विशेषता यह है कि ये उन्हीं लोगों को दिखाई देते हैं जो अपने बाप से पैदा हैं. उन्होंने राजा के कपडे उतरवाए और खाली मूली हवा में ही एक एक चीज़ राजा को पहनाने लगे. लीजिये महाराज यह मलमल का जांघिया, यह रेशम की धोती, यह हीरे मोती जड़ा कुर्ता आदि आदि. राजा को कुछ नहीं दिख रहा था लेकिन वह यह कैसे कहे. उसने सोचा कि हो न हो मैं अपने पिता महाराज की औलाद न हो कर किसी द्वारपाल की औलाद हूँ जो मुझे ये वस्त्र दिखाई नहीं दे रहे हैं. उन लोगों ने सब दरबारियों से पूछा कि कैसे लग रहे हैं महाराज के वस्त्र? सब ने एक स्वर से कहा अद्वितीय. जहाँ पर कोई गलत काम होता सब को दिख रहा हो पर कहने की हिम्मत कोई न जुटा पा रहा हो वहाँ यह कहावत कहते हैं.
  690. कौन किसी के आवे जावेदाना पानी खेंच लावे.कोई किसी के घर वैसे क्यों आएगा जाएगा, दाना पानी व्यक्ति को खींच लाता है.
  691. कौन जाने किस विधि राजी राम.कोई नहीं जान सकता कि ईश्वर की इच्छा क्या है.
  692. कौन सिखावत है कहोराजहंस को चाल.राजहंस की चाल राजसी होती है. लेकिन यह उस का जन्मजात गुण है. हमारे कुछ गुण जन्मजात होते हैं.
  693. कौन सुने किससे कहेंऐसी आन पड़ीकिस किस को समझाइयेकूएँ भांग पड़ी.जहाँ सभी एक से बढ़ कर एक हों.
  694. कौन से जनम का कर्म कौन से जनम में उघड़ आवे.कोई नहीं जानता कि किस जन्म में किया पाप या पुण्य किस जन्म में अपना फल दिखाएगा.
  695. कौवा अपने बच्चों को ही सबसे सुंदर समझता है.अपने बच्चे सभी को सब से सुन्दर लगते हैं.
  696. कौवा कहे कोयल काली.अपनी कमियों को न देख कर दूसरों की खामियाँ ढूँढना. इंग्लिश में कहावत है – The pot calls the kettle black.
  697. कौवा कान ले गया.मूर्ख व्यक्ति से कुछ भी कहो वह विशवास कर लेता है. किसी व्यक्ति ने एक मूर्ख से कहा – देख! कौवा तेरा कान ले गया. मूर्ख तुरंत अपना कान टटोल कर देखने लगा या कौवे के पीछे दौड़ने लगा.
  698. कौवा कोसे ढोर मरें तो रोज़ कोसेरोज़ मारेरोज़ खाए.कौए के कोसने से अगर ढोर (गाय भैंस आदि) मरने लगें तो कौया रोज कोस कोस कर उन्हें मार कर खाएगा. अन्धविश्वासी लोगों को सीख दी गई है.
  699. कौवों की बरात में बड़े कौए की पूछनिकृष्ट लोगों के यहाँ कोई आयोजन होता है तो सब से निकृष्ट आदमी की विशेष पूछ होती है.
  700. क्या अंधे का सोना और क्या उसका जागना.अंधा व्यक्ति चाहे सोए चाहे जागे, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता.
  701. क्या उल्लू और क्या उल्लू का पट्ठा.किसी मूर्ख व्यक्ति और उसकी मूर्ख संतान के लिए हिकारत भरे शब्द.
  702. क्या करे नर बांकुरोजब थैली को मुख सांकरो.धन के अभाव में योग्य व्यक्ति भी असहाय हो जाता है.
  703. क्या कहूँ कछु कहा न जाएबिन कहे भी रहा न जाएमन की बात मन में ही रहीसात गाँव बकरी चर गई.एक चरवाहे ने किसी राजा की जान बचाई तो राजा ने उसे पत्ते पर सात गाँव का पट्टा लिख कर दे दिया. उसने यह बताने के लिए बड़ा खुश हो कर सब लोगों को इकठ्ठा किया. तब तक उसकी निगाह बचते ही बकरी उस पत्ते को खा गई. 
  704. क्या कुत्ते का मगज़ खाया है.कोई आदमी बहुत बकवास करे उसके लिए. (कुत्ता बहुत भौंकता है इसलिए).
  705. क्या तत्ते पानी से घर जले है.गरम पानी से शरीर जल सकता है लेकिन घर नहीं जल सकता. छोटी छोटी चीजें बहुत बड़ा नुकसान नहीं कर सकती हैं. 
  706. क्या पता ऊँट किस करवट बैठे?अनिश्चितता की स्थिति में. (ऊँट के विशेष में यह नहीं पता होता कि वह किस तरफ बैठेगा).
  707. क्या पिद्दी और क्या पिद्दी का शोरबा.पिद्दी एक छोटी सी चिड़िया होती है. किसी छोटे और कमजोर आदमी का मजाक उड़ाने के लिए.
  708. क्या भरोसा है जिंदगानी काआदमी बुलबुला है पानी का.जीवन का कोई भरोसा नहीं, पानी के बुलबुले की तरह क्षणभंगुर है. (पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात – कबीर)
  709. क्या भूख को बासन. क्या नींद को ओढ़न.भूख लगी हो तो बिना बर्तनों के भी खाया जा सकता है और नींद आ रही हो तो बिना ओढ़नी के भी सोया जा सकता है.
  710. क्या रखा इन बातों में, जूते ले लो हाथों में.जूते हाथों में लेने का अर्थ जूते ले कर भागने से भी है, जूते मारने से भी है. वैसे आम तौर पर इस कहावत को मजाक में प्रयोग करते हैं.
  711. क्या ले गए राव और क्या ले गए उमराव.कोई कितना भी शक्तिशाली और सम्पन्न हो इस दुनिया से कुछ नहीं ले जा सकता.
  712. क्या ले गया शेरशाह और क्या ले गया सलीमशाह.बड़े से बड़े लोग भी इस दुनिया से कुछ ले नहीं जा पाए. इसलिए किसी के साथ अन्याय करके धन कमाने का प्रयास नहीं करना चाहिए. 
  713. क्या सासू जी अटको मटको, क्या मटकाओ कूल्हा, डोली पर से जब उतरूंगी, जुदा करूंगी चूल्हा.जो महिलाएं बेटे की शादी में बहुत नाच कूद रही हों उन को सावधान किया गया है.
  714. क्या सौ रुपये की पूंजीक्या एक बेटे की औलाद.जैसे सौ रुपये की पूंजी नाकाफ़ी है वैसे ही संतान के रूप में एक ही बेटा होना पर्याप्त नहीं है.
  715. क्या हंसिया को बेच खाए, क्या खुरपी को गिरवी रखे.हंसिया को बेचने और खुरपी को गिरवी रखने से कितना पैसा मिल जाएगा. बहुत निर्धन व्यक्ति के लिए.
  716. क्या हल्दी को रंग और क्या परदेसी को संग.जिस प्रकार हल्दी का रंग स्थायी नहीं होता उसी प्रकार परदेसी की प्रीत भी क्षणभंगुर होती है.
  717. क्या हिजड़ों ने राह मारी है.क्या हिजड़ों ने तुम्हारी राह रोक ली थी. कोई काम न करने के लिए व्यर्थ के बहाने बनाने पर.
  718. क्यों अंधा न्योता और क्यों दो बुलाए.कोई ऐसा काम करना जिसमें अनावश्यक खर्च शामिल हो.
  719. क्यों कही और क्यों कहाई.न तुम कुछ कहते और न तुम्हें इतना सुनना पड़ता.
  720. क्रोध की सबसे अच्छी दवा मौन है.अर्थ स्पष्ट है.
  721. क्रोध विवेक का दुश्मन है.क्रोध में आदमी विवेक भूल जाता है. इंग्लिश में कहावत है – Anger is a short madness.
  722. क्वांरी कन्या को सौ घर और सौ वर (क्वांरी कन्या सहस वर).ब्याहता स्त्री का तो एक ही वर होता है लेकिन क्वांरी कन्या के लिए सैकड़ों सम्भावित वर होते हैं. वैश्या के लिए भी व्यंग्य में ऐसा कहते हैं.
  723. क्वार करेला चैत गुड़भादों मूली खायपैसा खरचै गांठ कोरोग बिसावन जाय.क्वार में करेला, चैत में गुड़ और भादों में मूली खाना हानिकारक है. पैसा खर्च होता है और रोग भी आते हैं. घाघ ने इस तरह की बहुत सी बातें लिखी हैं जो उस समय के लोगों की स्वास्थ्य सम्बंधी मान्यताओं को दर्शाती हैं. आज के वैज्ञानिक युग में इन में से अधिकतर का कोई आधार नहीं है.
  724. क्वार का सा झल्लाआया बरसा चल्ला.क्वार के महीने में बहुत हल्की सी वारिश होती है (बहुत थोड़े समय के लिए). कोई व्यक्ति बहुत थोड़े समय के लिए आए तो मज़ाक में कहते हैं.
  725. क्वार जाड़े का द्वार.क्वार के महीने के बाद जाड़ा आता है.
  726. क्वारी को अरमान, ब्याही परेशान.कुंआरी लड़की अपने विवाह को लेकर तरह तरह के सपने देख रही है, जबकि विवाहिता स्त्री गृहस्थी की मुसीबतों से परेशान है.

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