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  1. संकट काल में मर्यादा नहीं देखी जाती.जब जान पर बनी हो तो व्यक्ति का पहला धर्म है प्राणों की रक्षा करना. इसी को आपद्धर्म कहा गया है. संस्कृत में कहावत है – आपात्काले मर्यादा नास्ति. इंग्लिश में कहावत है – Nessecity has no laws. 
  2. संक्रांत को थापे हुए होली में काम आवें.गोबर से कंडे (उपले) बनाने को कंडे थापना कहते हैं. संक्रांति पर थापे हुए उपले होली पर काम आते हैं. कहावत के द्वारा सीख दी गई हैं कि कल जिस वस्तु की आवश्यकता होगी उसे आज बना कर रखो. 2. कोई चीज़ बनते ही तुरंत काम में नहीं ली जा सकती इसलिए धैर्य रखो. 
  3. संख बाजेसत्तर बला भाजे.शंख बजाने से सत्तर बलाएं दूर होती हैं. शंख बजाने का एक अर्थ तो पूजा पाठ से है जिससे मन को शान्ति मिलती है और सम्बल मिलता है. दूसरा लाभ यह है कि सांस का व्यायाम होता है जिससे बीमारियाँ दूर होती हैं.
  4. संग सोई तो लाज क्या.जब किसी के साथ सो लीं तो लज्जा कैसी. गलत काम में किसी का सहयोग किया है तो छिपाना कैसा.
  5. संगठन में शक्ति होती है.अर्थ स्पष्ट है.
  6. संगत अच्छी बैठ के खैये नागर पानछोटी संगत बैठ के कटें नाक और कान.नागर पान एक अच्छी किस्म का पान होता है. अच्छी संगत बैठने वाले को सम्मान मिलेगा और बुरी संगत बैठ कर नाक कटेगी.
  7. संगत कीजे साधु की हरे और की व्याधिओछी संगत नीच की आठों पहर उपाधि.साधु की संगत दूसरों का दुःख दूर करती है और नीच की संगत से हर समय संकट बना रहता है.
  8. संगत बड़ों की कीजिएबढ़त बढ़त बढ़ जाएबकरी हाथी पर चढ़ीचुन चुन कोंपल खाए.बड़ों की संगत से लाभ होता है. बकरी हाथी पर चढ़ जाए तो पेड़ की कोमल पत्तियाँ जो ऊँचाई पर लगी होती हैं उनको खा सकती है.
  9. संगत सार अनेक फल.अलग अलग संगत से अलग अलग फल प्राप्त होता है.
  10. संगत से सब होत हैवही तिली वहि तेलजांत पांत सब छोड़ के पाया नाम फुलेल.संगत से व्यक्ति का चरित्र बदल जाता है. तिली के तेल को इत्र की संगत मिल जाती है तो उस का नाम तिली का तेल न रह कर इत्र हो जाता है.
  11. संगत से सुधरें कम और बिगड़ें ज्यादा.गुणों की अपेक्षा अवगुणों की छूत जल्दी लगती है.
  12. संगत ही गुण उपजेसंगत ही गुण जाय.अच्छी संगत से व्यक्ति गुण ग्रहण करता है और बुरी संगत में पड़ कर गुणों को गंवा देता है. (सत्संगति कथय किं न करोति पुंसाम्, कुसंगति कथय किं न करोति पुंसाम्)
  13. संझा की झड़ी और सुबह का झगड़ा. ये जल्दी नहीं रुकते.शाम को यदि वर्षा आरम्भ हो तो जल्दी नहीं रूकती. झगड़ा यदि सुबह को शुरू हो तो जल्दी समाप्त नहीं होता. कहावतों की यह विशेषता है कि उन्हें रुचिकर बनाने के लिए दो अलग बातों को एक साथ जोड़ कर बोला जाता है.
  14. संत हंस गुण गहहिं पयपरिहरि वारि विकार.संत हंस के समान हैं जो विकारों को छोड़ कर गुणों को ग्रहण कर लेते हैं (जिस प्रकार हंस पानी को छोड़ कर दूध को ग्रहण कर लेता है).
  15. संतन की बानी सुने प्रेम सहित जो कोयगंगादिक सब तीर्थ फल बिन अस्नाने होय.जो कोई प्रेम सहित संतों की वाणी सुनता है उसे बिना गंगा आदि नहाए ही सब तीर्थों का फल प्राप्त हो जाता है.
  16. संतों को कैसा स्वाद, अनबिलोया ही आने दे.एक महात्मा किसी के घर भिक्षा मांगने गये. घरवाली दही बिलो (मथ) रही थी.  घरवाली ने कहा, थोड़ा ठहरिये, बिलोना हो जाए तो छाछ देती हूँ. महात्मा जी बोले – हम संत-महात्माओं को कैसा स्वाद, अनबिलोया ही आने दे. वास्तविकता यह है कि छाछ की बजाय अनबिलोया दही ज्यादा स्वादिष्ट होता है. जो व्यक्ति भोला बनकर अपनी स्वार्थ-सिद्धि करना चाहता हो उस के लिए.
  17. संतों संसार कैसा, कि अपने मन जैसा.व्यक्ति की भावना जैसी होती है उसको संसार वैसा ही दिखता है.
  18. संतोष कड़वा पर फल मीठा (संतोष का फल मीठा).जब व्यक्ति को कोई चीज़ न मिलने पर संतोष करना पड़ता है तो उसे मन में कष्ट होता है लेकिन बाद में समझ आता है कि संतोष करने से ही वह सुखी रहा. इंग्लिश में कहावत है – Everything comes to him who waits.
  19. संतोषी सदा सुखी.जिस हाल में हम हैं उसी में संतोष करना सीखें तो हम सदा सुखी रह सकते हैं.
  20. संपत की जोरूविपत का यार.पत्नी सम्पत्ति होने पर ही साथ देती है जबकि मित्र हर प्रकार की विपत्ति में.
  21. संपति जाए, मति न जाए.बुद्धिमान लोग ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि हम पर संकट आए तो धन भले ही चला जाए हमारी बुद्धि न जाए (बुद्धि सलामत रहेगी तो धन फिर कमा लेंगे).
  22. संवर जाय सो कामपल्ले पड़े सो दाम.जो काम सही समय से सफलता पूर्वक सम्पन्न हो जाए वही काम कहलाएगा और व्यापार करने पर जो पैसा जेब में आ जाए वही लाभ माना जाएगा.
  23. संसार तो असारया में सुकृत ही सार है.संसार में केवल अच्छे कर्म ही काम आते हैं और सब सारहीन है.
  24. संसार भेड़िया धसान है.संसार में सभी बिना सोचे समझे एक दूसरे के पीछे भाग रहे हैं.
  25. सकल तीर्थ कर आई तुमडि़या तौ भी न गयी तिताई.जन्मजात स्वभाव बदलता नहीं है. (तूमड़ी- लौकी की जाति का एक फल जो बहुत कड़वा होता है. साधु लोग इससे पानी भरने या खाना रखने का पात्र बनाते हैं)
  26. सकल पदारथ है जग माही कर्म हीन नर पावे नाही.संसार में सभी वस्तुएँ मौजूद हैं, भाग्य के बिना वह कुछ लोगों को मिल नहीं पातीं.
  27. सकल भूमि गोपाल की यामें अटक कहाँ.सारी सृष्टि ईश्वर के आधीन है, इस में किसी को कोई संशय नहीं होना चाहिए. 
  28. सकल वस्तु संग्रह करो, कबहुं आइहैं काम, समय पड़े पे ना मिले, माटी खरचे दाम.(बुन्देलखंडी कहावत) किसी वस्तु को बिल्कुल बेकार नहीं समझना चाहिए. मिट्टी भी कभी कभी खरीदनी पड़ती है.इंग्लिश में कहावत है –Keep a thing seven years, and you will find a use.
  29. सकलदीपी तीन तरह के, पढ़ल-लिखल पंडितकम पढ़ल जोतसी बैद और अनपढ़ ओझा गुनी.सकलदीपी ब्राह्मणों के बारे में लोक विश्वास. सकलदीपी – बिहार में एक प्रकार के ब्राह्मण.
  30. सकुची पूँछ बसत विष, मस्तक बसे भुजंग, केहरि के नख में बसे, तिरिया आठों अंग.सकुची एक जहरीली मछली होती है.स्त्रियों से अत्यधिक पीड़ित किसी व्यक्ति का कथन. सकुची नामक मछली की पूंछ में विष होता है, सांप के सर में और शेर के नाखून में. लेकिन स्त्री के सारे शरीर में विष होता है.
  31. सखी और सूम साल भर में बराबर हो रहते हैं.सखी – दानी, सूम – कंजूस. जो अपने धन का काफी हिस्सा दान करता है और जो कंजूस है उनकी सम्पत्ति में कोई ख़ास फर्क नहीं होता (दानी को आत्मिक सुख मिलता है इसलिए वह अधिक कार्य कर पाता है एवं ईश्वर भी उसकी मदद करता है).
  32. सखी का खजाना कभी खाली नहीं होता.सखी – दानी. परोपकारी व्यक्ति का खजाना कभी खाली नहीं होता. ईश्वर किसी न किसी बहाने स्वयं उसे भरता रहता है.
  33. सखी का बेड़ा पारसूम की मट्टी ख्वार.दानी अपने सत्कर्मों के कारण भव सागर को पार कर जाता है, कंजूस किसी का भला न करने के कारण कर्म बंधन में बंधा रहता है.
  34. सखी का बोलबालासूम का मुँह काला.दानी व्यक्ति की सब बड़ाई करते हैं और कंजूस को सब बुरा कहते हैं.
  35. सखी का सर बुलंद, मूजी की गोर तंग.सखी – दानी, मूजी – कंजूस, गोर – कब्र. दानी व्यक्ति शान से सर उठा कर जीता है जबकि कंजूस को कब्र में भी ठीक से लेटने को जगह नहीं मिलती.
  36. सखी की नाव पहाड़ चले.दानी के सब काम आसानी से हो जाते हैं.
  37. सखी के माल पर पड़ेसूम की जान पर.1दानी व्यक्ति का तो दान देने में केवल धन खर्च होता है, कंजूस का धन खर्च हो तो उस की जान निकल जाती है. धन की रखवाली में ही कंजूस का सारा जीवन लग जाता है.
  38. सगरा खीरा खा के बोले कड़वा है.किसी का पूरा माल डकार कर बाद में कहना कि अच्छा नहीं था.
  39. सगाई ठगाई है.सगाई – संबंध. रिश्ता तय करते समय दोनों पक्ष एक-दूसरे से कई बातें छिपाकर रखते हैं और अपने विषय में अत्यधिक बढ़ा चढ़ा कर बताते हैं. यह ठगाई नहीं तो क्या है. 2. सगाई – प्रेम. वास्तविक प्रेम कुछ नहीं होता, यह केवल धोखा है.
  40. सगाई दो जनांब्याह सौ जनां.किसी कंजूस आदमी का मजाक उड़ाने के लिए जिसने बहुत कम लोगों को न्यौता दिया हो.
  41. सगों बिन सगाई कैसीभलों बिन भलाई कैसी.सगे सम्बन्धियों को साथ लिए बिना विवाहादि कोई भी कार्य नहीं हो सकते और समाज के भले लोगों को साथ लिए बिना परोपकार का कोई कार्य नहीं हो सकता.
  42. सच और झूठ में चार अंगुल का फर्क (अंतर अंगुली चार का सांच झूठ में होई).आँख और कान में केवल चार अंगुल की दूरी होती है. आँखों देखा सच और कानों सुना झूठ.
  43. सच कहइया मारा जाएझूठा भडुआ लड्डू खाए (सच कहे तो मारा जाए).सच बोलना खतरा मोल लेना है. सच कहने वाला विपत्ति में पड़ जाता है और झूठ बोलने वाला ऐश करता है.
  44. सच कहना आधी लड़ाई मोल लेना है.किसी के मुँह पर सच बोल देने से लड़ाई होने की काफी सम्भावना होती है.
  45. सच बोल पूरा तोलमन चाहे जहाँ डोल.जो व्यापारी ग्राहकों से सच बोलता है और पूरा तोलता है उसे किसी का डर नहीं होता.
  46. सच्चा जाय रोता आएझूठा जाय हंसता आए.अदालतों में मिलने वाले झूठे न्याय के बारे में कहावत.
  47. सच्ची बात और गधे की लात झेलने वाले बहुत कम मिलते हैं.अर्थ स्पष्ट है.
  48. सच्ची बात सह्दुल्ला कहेंसबके दिल से उतरे रहें.जो सच्ची और खरी बात कहता है वह सब के दिल से उतरा हुआ रहता है (उसे लोग पसंद नहीं करते).
  49. सच्चे का बोलबालाझूठे का मुँह काला.सच्चे व्यक्ति का सब आदर करते हैं और झूठे से सब नफरत करते हैं.
  50. सच्चे प्रभु को छोड़ के पूजें कब्रें भूतजो बेचारे मर गए उनसे मांगें पूत.मजारों पर जा कर मन्नत मांगने वाले और भूत प्रेत को मानने वाले लोगों के लिए नसीहत.
  51. सजन तुम झूठ मत बोलो, खुदा को सांच प्यारा है, कहावत है बड़ों की यूंकभी न सांच हारा है.अर्थ स्पष्ट है. 
  52. सटटे की कमाई और तेल की मिठाई.दोनों ही खराब हैं, अत: इनसे बचना चाहिए.
  53. सठ सनेह, जीरण वसन, जतन करंता जाय, सजन सनेह, रेसम लछा, घुलत घुलत घुल जाए.धूर्त व्यक्ति का प्रेम और जीर्ण वस्त्र, यत्न करने पर भी नष्ट हो जाते हैं. सज्जन व्यक्ति का प्रेम और रेशम का लच्छा समय के साथ घुल मिल जाते हैं. सठ – शठ, दुष्ट, जीरण – जीर्ण, वसन – वस्त्र.
  54. सठ सुधरहिं सत्संगति पाई.दुष्ट व्यक्ति भी अच्छी संगत में रह कर सुधर जाता है.
  55. सठ सेवकनृप कृपनकुनारीकपटी मित्रशत्रु सम चारी.धूर्त नौकर, कंजूस राजा, चरित्रहीन स्त्री और कपटी मित्र ये चारों शत्रु के समान हैं.
  56. सड़ पक जाएदूसरा न खाएदूसरा खाएगा तो अकारथ जाएगा.अत्यंत स्वार्थी लोगों के लिए. चीज़ चाहे सड़ जाए और फेंकनी पड़े, पर कोई दूसरा न खा ले. 
  57. सत डिगा जहान डिगा.सत – सत्य, अहिंसा, प्रेम, शील इत्यादि सद्गुण. इन्हीं सद्गुणों पर संसार टिका हुआ है. 
  58. सत नहिं छोड़े सूरमासत छोड़े पत जाए.सत – सत्य, श्रेष्ठता, धर्म. वीर पुरुष धन का मोह छोड़ देते हैं पर सत को नहीं छोड़ते क्योंकि सत को छोड़ने से उनका मान चला जाता है.
  59. सत मत छोड़े हे पिया सत छोड़े पत जाएसत की मारी लच्छमी फेर मिलेगी आए.वीर पुरुष धन छोड़ देते हैं पर सत को नहीं छोड़ते क्योंकि सत को छोड़ने से उनका मान चला जाता है. यदि आप सत पर अडिग रहोगे तो लक्ष्मी फिर आपके पास आ जाएगी.
  60. सतवंती के लाज बड़ छिनाली के बात बड़.(भोजपुरी कहावत) सतवंती नारी के लिए उसकी लाज बड़ी चीज़ है और चरित्रहीन नारी के लिए उसकी बात.
  61. सती अंगभुजंगमणिकेहरिकेसगजदंतसूर कटारीविप्र धनहाथ लगें जब अंत.इन छः चीजों को कोई इनके जीवित रहते हाथ नहीं लगा सकता – सती का शरीर, नाग की मणि, सिंह के बाल, हाथी के दांत, शूर पुरुष की कटारी और ब्राह्मण का धन.
  62. सती के वख्र झीर-झीर, वैश्या के रेशम का चीर.पतिव्रता स्त्री को फटे हुए कपड़े और वैश्या को बहुमूल्य वस्त्र मिलते हैं, समाज की यही विडंबना है. 
  63. सती सराप देवे नहीछिनाल को सराप लगे नहीं.सराप – श्राप. पतिव्रता नारी किसी से नाराज होने पर भी उस को श्राप नहीं देती, और कुलटा स्त्री के श्राप का कोई असर नहीं होता.
  64. सत्तर करता सात के और सोलह के सौब्याज बुरा रे बालके इससे राखे भौ (भय).ब्याज पर पैसा लेने से डरो, इसमें सात के सत्तर और सोलह के सौ वापस करने पड़ते हैं.
  65. सत्तू खा के शुक्रिया क्या.छोटे से उपकार का क्या शुक्रिया करना.
  66. सत्तू मनभत्तू जब घोले तब खइबे तब जइबेधान बिचारे भल्ले कूटे खाए चल्ले.कहावत का अर्थ है किसी को मूर्ख बना कर अपना घटिया माल उसे भिड़ा देना और उसका अच्छा माल उस से ठग लेना. इस के पीछे एक कहानी है. गाँव के कुछ लोग किसी काम से शहर जा रहे थे. रास्ते में खाने के लिए एक की पत्नी ने सत्तू साथ में बाँध दिया. दूसरे के घर में और कुछ नहीं था या उस की पत्नी फूहड़ थी तो उसने धान बाँध दिया. धान को खाना बड़ा मुश्किल काम है, पहले कूट कर छिलका अलग करना पड़ेगा, फिर पीसो और फिर खाओ. धान वाले ने सत्तू वाले को बातों में फंसा लिया कि सत्तू के साथ कितनी मुश्किल है, पहले पानी लाओ, फिर घोलो, फिर बैठ के खाओ तब कहीं जा पाओगे. धान बिचारा तो फटाफट कूटो खाओ चलो. सत्तू वाला आदमी भोला भाला था, उसने अपना सत्तू दे कर धान ले लिया. जब खाने बैठा तो मालूम हुआ कि वह मूर्ख बन गया है. तब तक दूसरा आदमी सत्तू खा कर वहाँ से निकल लिया था.
  67. सत्य नारायण की कथा में गधे का क्या काम.(बुन्देलखंडी कहावत) जहाँ धर्म कर्म का काम हो रहा हो वहाँ मूर्खों का कोई काम नहीं है.
  68. सत्यमेव जयते.झूठ कितना भी प्रबल क्यों न हो अंतत: सत्य की ही विजय होती है. संस्कृत में पूरा कथन है – सत्यमेव जयते नानृतं (सत्य की ही जय होती है झूठ की नहीं). 
  69. सत्रह को पेशगी ओर तेरह को बधाई.उल्टा काम. विवाहादि समारोहों में बधाई गाने के लिए जो लोग बुलाए जाते हैं उन्हें पहले ही पेशगी (अग्रिम धनराशि) दी जाती है.   
  70. सत्रह पटेलों से बिगड़े गाँव.ज्यादा जमींदार हों तो गाँव का विकास न हो कर विनाश हो जाता है.
  71. सदा की पदनीउरदों दोष.सदा पादने वाली स्त्री उरद की दाल को दोष दे रही है कि उस से वायु हो गई. अपनी कमी छिपा कर दूसरों को दोष देना. (असभ्य भाषा है).
  72. सदा के उजड़ेनाम बस्ती खां.गुण के विपरीत नाम.
  73. सदा के दुखियानाम चंगे खां.गुण के विपरीत नाम.
  74. सदा दिवाली संत घरजो घी मैदा होए (सदा दीवाली साधु कीजो घर गेहूँ होए).संत के घर खाद्य सामग्री उपलब्ध हो तो सदा उत्सव का सा माहौल रहता है क्योंकि वहाँ दीन दुखियों की भीड़ लगी रहती है.
  75. सदा न काहू की रहीप्रीतम के गल बांहढलते ढलते ढल गईतरुवर की सी छाँव.यौवन सदैव नहीं रहता है.
  76. सदा न जग में जीवनासदा न काले केश.इस संसार में न तो कोई अमर है न अजर (जिसे बुढ़ापा न आए).
  77. सदा न फूले केतकीसदा न सावन होएसदा न जोवन थिर रहेसदा न जीवे कोय.संसार में कोई वास्तु सदैव नहीं रहती. केतकी पर हमेशा फूल नहीं आते, सावन बारह महीने नहीं रहता, यौवन सदैव स्थिर नहीं रहता और कोई व्यक्ति इस धरा पर सदैव नहीं रहता. व्यवहार में इस में से आधा भी बोला जाता है.
  78. सदा नसंग सहेलियाँ सदा न राजा देससदा न जग में जीवनां सदा न कारे केस. संसार में कोई भी चीज सदैव नहीं रहती. किसी कन्या की सखियाँ सदा साथ नहीं रहतीं, कोई राजा अनंतकाल राज्य नहीं करता, कोई व्यक्ति अमर नहीं है और बाल सदा काले नहीं रहते.
  79. सदा भवानी दाहिनेसम्मुख रहें गनेशपांच देव रक्षा करेंब्रह्मा विष्णु महेश.किसी काम को आरम्भ करने से पहले बोली जाने वाली प्रार्थना.
  80. सन के डंठल खेत छिटावेतिनते लाभ चौगुनो पावे.खेत में सन के डंठल छिटकाने से खेती बहुत अच्छी होती है.
  81. सन्त न छाड़ै सन्तईकोटिक मिलें असंतमलय भुजंगहिं बेधियाशीतलता न तजन्त.संत पुरुष अपनी सज्जनता नहीं छोड़ते चाहे करोड़ों दुष्ट लोग क्यों न मिलें. चन्दन पर सांप लिपटे रहते हैं पर वह अपनी शीतलता नहीं छोड़ता.
  82. सन्मुख गाय पियावहीं बाछायही सगुन है सबसे आछा.जो लोग कोई काम करने से पहले शगुन अपशकुन का विचार करते हैं वे ऐसा मानते हैं कि यदि गाय बछड़े को दूध पिलाती दिख जाए तो यह सबसे अच्छा शगुन है.
  83. सपनासगुनसिद्ध का वाचाकोई झूठा कोई साँचा.सपनों के फल, शगुन अशगुन और साधु लोगों की वाणी, इन पर अधिक विश्वास नहीं करना चाहिए क्योंकि ये अक्सर झूठे निकलते हैं.
  84. सपने की सौ मोहर से कौड़ी सरे न काम.सपने में हमारे पास कितना भी धन हो वह हमारे किसी काम का नहीं होता. इसी प्रकार इस नश्वर संसार में कोई कितना भी धन इकठ्ठा कर ले, परलोक में उसका कोई मोल नहीं है.
  85. सपने तो सोने के बाद ही आते हैं.जागृत व्यक्ति कभी व्यर्थ की कल्पनाएँ नहीं करता. जो सोए हुए हैं (वास्तविकता से मुँह मोड़े हुए हैं) वे ही भांति भांति के सपने देखते हैं. 
  86. सपने में राजा भएजागत भए फ़कीर.जो आज अपने राजा होने पर घमंड कर रहा है उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि यह स्वप्न के समान क्षण भंगुर अवस्था है.
  87. सपूत एक ही भला और कपूत सात भी खोटे.सुपुत्र एक ही काफी है और कुपुत्र सात हों तो भी बेकार हैं.
  88. सपूत का बापकपूत की माईहोत की बहनअनहोत का भाई.बाप केवल सपूत का ही सगा होता है जबकि माँ सपूत कपूत सभी से प्रेम करती है. बहन अच्छे दिनों में साथ देती है, जबकि भाई बुरे दिनों में भी साथ देता है. 
  89. सपूत की कमाई में सब का हिस्सा.सपूत सभी के ऊपर खर्च करता है.
  90. सपूत तो पड़ोसी का भी अच्छाजो वक्त पर काम आता है.अच्छा बेटा पड़ोसी का भी हो तो वक्त पर काम आता है.
  91. सपूती रोवे टूकों कोनिपूती रोवे पूतों को.टूकों – टुकड़ों (छोटी छोटी चीजों को). जिसके कई सारे पुत्र हैं वह टुकड़ों की मोहताज है और जिसके पुत्र नहीं है वह पुत्र की कामना में मरी जा रही है.
  92. सपूतों के कपूत और कपूतों के सपूत होते आए हैं.जरूरी नहीं कि दुष्ट लोगों के यहाँ दुष्ट संतानें ही पैदा हों. दुष्टों के यहाँ सज्जन भी पैदा हो सकते हैं और सज्जनों के यहाँ दुष्ट भी जन्म ले सकते हैं.
  93. सफ़ेद भैंस काली दहीहाकिम जो कहें वही सही.हाकिम कुछ भी कहें उस को सही मानना पड़ता है. अगर वह कहें कि भैंस सफ़ेद है और दही का रंग काला है तो भी मानना पड़ेगा.
  94. सब उस्तरे बांधो कोई तलवार न बांधोकर दो ये मुनादी कोई दस्तार न बांधो.दस्तार – पगड़ी. सिखों द्वारा कायर हिन्दू जातियों पर किया गया व्यंग्य.
  95. सब काम दाई का, नाम भौजाई का.काम कोई और करे व श्रेय कोई और ले तो. दाई – प्रसव कराने वाली महिला.
  96. सब की बारी अंडेहमारी बारी कुडुक.भाग्य साथ न देना. औरों की बारी थी तो मुर्गी ने अंडे दिए और हमारी बारी आई तो मुर्गी कुडुक हो गई. 
  97. सब की मैया सांझ.सांझ की गोद में सब को विश्राम मिलता है.
  98. सब कीजे,  तिरिया भेद न दीजे.स्त्रियों को भेद की बात नहीं बतानी चाहिए (वे अपने पेट में कोई बात नहीं पचा सकतीं).
  99. सब कुत्ते गया को जाएं तो पत्ते कौन चाटेगा (सब बिल्लियाँ स्वर्ग को जाएं तो कढ़ाई कौन चाटेगा).सभी लोग बड़े और महत्वपूर्ण बन जाएँ तो छोटे काम कौन करेगा.
  100. सब के भले में अपना भी भला.अच्छी सोच.
  101. सब को अति प्यारा लगेजो नर शील स्वभाव.जो स्वभाव से सुशील होता है वह सबको अच्छा लगता है.
  102. सब कोई पायल पहनेंलंगड़ी कहे हमहूँ.किसी वस्तु के योग्य न होने पर भी उसकी इच्छा करना.
  103. सब गहनों में चंदनहार.स्त्रियाँ सभी गहनों में चन्दनहार (चन्द्रहार) को सर्वश्रेष्ठ मानती हैं.
  104. सब गुण की आगर धिया, नाक बिना बेहाल.एक कन्या सब प्रकार से गुणवान है पर उसकी नाक चपटी है तो उस के सब गुण बेकार हैं (उसकी शादी नहीं हो पाएगी). आगर – खजाना, धिया – बेटी.
  105. सब गुण भरी बैंतला सोंठ.बैंतला सोंठ नामकी औषधि में बहुत से गुण होते हैं. किसी एक व्यक्ति में बहुत से गुण हों तो उस के लिए यह कहावत प्रयोग की जाती है. व्यंग्य में दुष्ट और चालू स्त्री के लिए भी इसे प्रयोग करते हैं.
  106. सब गुन भरे ठकुरवा मोर, आपे पहरू आपे चोर.मेरे मालिक सर्व गुण सम्पन्न हैं. खुद ही पहरेदार हैं और खुद ही चोर. आजकल के नेताओं और भ्रष्ट नौकरशाहों पर व्यंग्य. 
  107. सब घटा देते हैं मुफलिस के गरज़ माल का मोल.गरीब जब जरूरत के वक्त अपनी कोई चीज़ बेचना चाहता है तो लोग उस की मजबूरी का फायदा उठाते हुए चीज़ की कम कीमत लगाते हैं.
  108. सब घर अंधा, द्वारे कुआं.घर के सब लोग अंधे हैं और दरवाजे पर ही कुआँ है. किसी घर या समाज के लोग आसन्न खतरे के प्रति बेपरवाह हों तो यह कहावत कही जाती है. 
  109. सब जग रूठा रूठन देवह एक न रूठा चाहिए.सारा संसार रूठ जाए तो कोई बात नहीं, बस एक परमात्मा नहीं रूठना चाहिए.  
  110. सबहिं जात भगवान कीतीन जात बेपीर, दांव पड़े चूकें नहीं, बामन बनिक अहीर.भगवान ने सभी जातियों को बनाया है लेकिन ब्राह्मण, बनिया और अहीर ये तीन जातियाँ दूसरों का दुख दर्द नहीं समझतीं.
  111. सब जीते जी के झगड़े हैं यह तेरा है यह मेरा हैजब चल बसे इस दुनिया से न तेरा है न मेरा है.जब तक इंसान जीवित रहता है तब तक तेरा मेरा करता रहता है, दुनिया से जाते ही सब खत्म हो जाता है.
  112. सब झगड़े की जड़ दौलत.अर्थ स्पष्ट है.
  113. सब ते कठिन राज मद भाई.सता का नशा सब से बड़ा नशा है.
  114. सब दाढ़ी वाले हों तोचूल्हा कौन फूंकेगा. चूल्हा फूँकने में दाढ़ी जलने का डर रहता है. सभी दाढ़ी वाले हों तो चूल्हा कौन फूंकेगा.
  115. सब दिन चंगेत्यौहार के दिन नंगे.उन लोगों के लिए जो अपने खर्चों का ठीक प्रकार से नियोजन नहीं करते, अन्य दिनों में फिजूलखर्ची करते हैं और त्यौहार के दिन खाली हाथ हो जाते हैं.
  116. सब दिन जात न एक समान.किसी के भी सब दिन एक से नहीं होते. जो आज विपन्न है वह कल सम्पन्न हो सकता है और जो आज धनी है वह कल निर्धन हो सकता है.
  117. सब दिन साहू के एक दिन चोर का.साहूकार अपनी मक्कारी से सब दिन पैसे जोड़ता रहता है और चोर मौका लगते है एक ही दिन में सब साफ़ कर देता है.
  118. सब धन धाम शरीर से ही.शरीर ठीक हो तभी घन कमाया जा सकता है और तीर्थ किए जा सकते हैं. संस्कृत में कहावत है – शरीरमाद्यम् खलु धर्म साधनम्.
  119. सब धान बाइस पसेरी.अच्छी बुरी हर चीज़ का एक ही भाव लगाना.
  120. सब में है और सब से न्यारा.ईश्वर सब में होते हुए भी सब से अलग भी है.
  121. सब रामायण सुन कहेंसीता किसकी जोय.पूरी बात सुनने के बाद कोई मूर्खतापूर्ण प्रश्न पूछना. सारी रामायण सुन कर पूछ रहे हैं कि सीता किस की पत्नी थीं.
  122. सब सच कहने लायक नहीं होते.कुछ सच बहुत अप्रिय होते हैं इसलिए उन्हें बोलने से बचना चाहिए. संस्कृत में कहा गया है – सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात्, न ब्रूयात् सत्यं अप्रियं.
  123. सब से भला किसानखेती करे और घर रहे.सब से अच्छा किसान है जिसे कम से कम घर पर रहने को तो मिलता है. व्यापार में व्यक्ति को कहाँ कहाँ भटकना पड़ता है और नौकरी में हमेशा तबादले की तलवार लटकी रहती है.
  124. सब से मीठी भूख.सबसे स्वादिष्ट क्या है – भूख, क्योंकि तेज भूख लगी हो तो हर चीज़ स्वादिष्ट लगती है. इंग्लिश में कहावत है – Hunger is the best sauce.
  125. सब से हिलमिल चालिए जब लग पार बसाएमिष्ट वचन मुख बोलिए नेकी ही रह जाए.जब तक सम्भव हो सब से हिलमिल कर रहना चाहिए और मीठे वचन बोलना चाहिए. हमारे जाने के बाद हमारे नेक व्यवहार की याद ही लोगों के मन में रह जाएगी.
  126. सब से हिलिए सब से मिलिए सब से कीजे चावहांजी हांजी सबसे कीजे बसिए अपने गाँव.मेल जोल सबसे कीजिए, सबकी हाँ में हाँ मिलाइए लेकिन करिए वही जो आप को ठीक लगे.
  127. सबको ठेलमैं अकेल.स्वार्थी व्यक्ति.
  128. सबते भले वे मूढ़ मतिजिन्हें न व्यापे जगत गति.व्यक्ति जितना बुद्धिमान होता जाता है सांसारिक समस्याओं के प्रति उतनी ही उसकी चिंताएं बढती जाती हैं, मूर्ख लोग सबसे भले हैं जिन्हें संसार की चिंताएं नहीं सतातीं. इंग्लिश में कहावत है – Ignorance is a bliss, more you know more you suffer.
  129. सबसे तेज चले वो ही जो चले अकेला.अकेला काम करने वाला व्यक्ति सबसे जल्दी काम निबटा पाता है, सबके साथ के चक्कर में काम आगे नहीं बढ़ता.
  130. सबसे प्यारा पेट.हर जीव जंतु का पहला लक्ष्य अपना पेट भरना ही होता है. रिश्ते, धर्म, ज्ञान सब इसके बाद हैं.
  131. सबसे भली चुप.चुप रहना सबसे अच्छा है. इससे बड़े बड़े झगड़े निबट जाते हैं. (अव्वल तो झगड़े होते ही नहीं हैं).
  132. सबसे भले हैं मूसर चंदकरें न खेती भरें न दंड.मूसरचंद किसी ऐसे व्यक्ति को कहते हैं जो किसी काम के योग्य न हो. ऐसे लोग सब से भले हैं क्योंकि उन्हें न खेती करनी है न कोई टैक्स देना है.
  133. सबसे मीठी भूख (भूख मीठी या खीर).जब तक भूख न लगी हो, पकवान भी स्वादिष्ट नहीं लगते. 
  134. सबही जात चमार की बिना चाम नहिं कोयबिना चाम वह आप है जिसको लखै न कोय.किसी को चमार कह कर हिकारत की नज़र से मत देखो क्योंकि हम सभी चमड़ी वाले हैं (अर्थात चमार हैं) . बिना चमड़ी वाला तो केवल एक ईश्वर है जिसे हम देख नहीं सकते.
  135. सबाब न अजाबकमर टूटी मुफ्त में.सबाब – पुण्य, अजाब – पाप का दंड. किसी काम में लाभ या हानि कुछ नहीं हुआ, मेहनत बेकार गई.
  136. सबै सहायक सबल के कोऊ न निबल सहाय.(पवन जगावत आग कौं, दीपहिं देत बुझाय) सभी लोग बलवान की सहायता करते हैं, निर्बल की सहायता कोई नहीं करता बल्कि उसे और दबाते हैं. हवा आग को और भड़काती है जबकि दीपक को बुझा देती है.
  137. सब्र की डाल में मेवा फलता है (सब्र का फल मीठा).संतोष से बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है. इंग्लिश में कहावत है – Everything comes if a man can only wait.
  138. सभा बिगारें तीन जनचुगलचुगद औचोर. तीन लोग सभा को बिगाड़ते हैं, चुगलखोर, मूर्ख आदमी और चोर.
  139. सभागिया की जीभ और अभागिया के पाँव.भाग्यशाली व्यक्ति जुबान से बोल कर ही सारे काम करा लेता है और अभागा आदमी दौड़ भाग के भी अपना काम नहीं करा पाता.
  140. सभागिया की बेटी मरे, अभागिया का जंवाई.बेटी के मरने का दुख तो बहुत होता है, पर दामाद के मरने और बेटी के विधवा होने का दुख उससे भी बहुत बड़ा होता है (क्योंकि विधवा बेटी हमेशा आँखों के सामने रहती है).
  141. सभागिया को जंगल में ही मंगल, निरभागिया बस्ती में भी भूखा मरे.जो भाग्यवान है उसे हर परिस्थिति में आनंद मिल जाता है, जो अभागा है वह कहीं सुख नहीं पा सकता.
  142. सभी औरतों के मैके में छप्पर पर छप्पन मन पोदीना होता है.सभी स्त्रियाँ अपने मैके के बारे में बढ़ा चढ़ा के बताती हैं. इंग्लिश में कहावत है – In my father’s house are many mansions.
  143. सभी झुकते हुए पलड़े के साझी हैं.जो जीतता हुआ होता है सब उसी का साथ देना चाहते हैं.
  144. सभी सुपात्र हों कुपात्र एक, जैसे सोने के थाल में लोहे की मेख.किसी घर में सभी लोग बहुत अच्छे हों लेकिन केवल एक व्यक्ति खराब हो तो सारा कुनबा बेकार हो जाता है. एक थाल पूरा सोने का बना हो पर उसमें एक कील लोहे की लगी हो तो पूरा थाल बेकार हो जाता है.
  145. सभी से दोस्ती करने वाला किसी का दोस्त नहीं.जो सभी से मित्रता रखना चाहता है वह किसी एक का घनिष्ठ मित्र नहीं हो सकता. 
  146. समंदर में खसखस के दाने की क्या बिसात.इस असीम ब्रह्मांड में एक मनुष्य की कोई बिसात नहीं है.
  147. समंदर में साझा और पोखर में नहाये.किसी व्यक्ति का समुद्र के अथाह जल में साझा है परन्तु वह तालाब में नहा रहा है. जैसे कोई सनातन जैसे वृहत धर्म का मानने वाला मजार पर माथा टेकने जाए.
  148. समझ के खर्चे सोच के बोले. पैसा खर्च करने से पहले ठीक से समझ लेना चाहिए कि वस्तु इतने दाम के योग्य है या नहीं. इसी प्रकार बोलने से पहले भी सोचना जरूर चाहिए.
  149. समझदार को इशारा काफी है.समझदार आदमी हलके से इशारे से ही बात समझ लेता है.
  150. समझे न बूझेखूँटा ले के जूझे.जबरदस्ती जिद करने वाले नासमझ आदमी के लिए.
  151. समधियाने और पखाने के पास न बसे.पहले के लोग मानते थे कि शौचालय घर के अंदर या घर के पास नहीं होना चाहिए. इसी प्रकार लोगों का मानना है कि बेटे या बेटी की ससुराल घर के पास नहीं होनी चाहिए.
  152. समधी चाहें दान दहेज़, लड़का चाहे जोय, सभी बराती चाहें केवल अच्छी खातिर होय.संसार में हर व्यक्तिको केवल अपना ही हित सूझता है.
  153. समधी समरथ कीजिये, जब तब आवे काम.समर्थ लोगों से ही संबंध जोड़ना चाहिए, वे आड़े वक्त में काम आ सकते हैं. 
  154. समय करे वह बैरी भी न करे.समय मनुष्य के साथ इतना बुरा कर सकता है जितना शत्रु भी नहीं कर सकता.
  155. समय का भरोसा कोनीकब पलटी मार जावे.(राजस्थानी कहावत) समय का कोई भरोसा नहीं, कब बदल जाए. 
  156. समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता.सभी काम समय आने पर ही होते हैं, समय किसी के लिए रुकता नहीं है. इंग्लिश में कहावत है – Time and tide wait for none.
  157. समय की फेरी, सास बहू की चेरी.समय बदल गया है. अब सास को बहू की गुलामी करनी पड़ती है.
  158. समय के बाजे समय पर ही सुहाते हैं (समय समय की राग रागिनी, बेवक्त की शहनाई).जो बाजे मांगलिक अवसरों पर अच्छे लगते हैं, वही दुख और चिंता के क्षणों में बहुत बुरे लगने लगते हैं.
  159. समय धराए तीन नामपरसा परसू परशुराम.परशुराम नाम का एक व्यक्ति जब बहुत गरीब था तो उसको लोग परसा कह कर बुलाते थे, जब उस पर कुछ पैसा हुआ तो उसे परसू कहने लगे और जब वह सम्पन्न हो गया तो परशुराम जी कहने लगे.
  160. समय पड़े की बातबाज पर झपटे बगुला.जब बाज का समय खराब होता है तब बगुला भी उस पर झपट लेता है.
  161. समय परे ओछे बचन, सबके सहउ रहीम.रहीम कहते हैं कि यदि आपका समय खराब है तो सबके कड़वे वचन भी चुपचाप सुन लेना चाहिए. 
  162. समय पाय तरूवर फलेकेतिक सींचो नीर.कोई भी काम समय आने पर ही होता है उसके पहले चाहे कितना प्रयास करो. पेड़ को कितना भी सींचो वह फलेगा समय आने पर ही.
  163. समय पाय फल होत हैसमय पाय झरि जायसदा रहे नहिं एक सीका रहीम पछिताय.समय के अनुसार ही पेड़ पर फल लगता है और समय के अनुसार ही झड़ जाता है. सदा किसी का समय एक सा नहीं रहता इसलिए इसका दुःख नहीं करना चाहिए.
  164. समय बड़ा बलवान.समय व्यक्ति को कुछ का कुछ बना देता है.
  165. समय बिताने के लिए करना है कुछ कामशुरू करो अंताक्षरी ले कर हरि का नाम.अंताक्षरी शुरू करने से पहले बोलने वाली कहावत.
  166. समय संपत्ति है.समय का सदुपयोग करने वाला ही धनवान बन सकता है.
  167. समय सब घावों का मरहम है.समय सब घावों को भर देता है. इंग्लिश में कहावत है – Time is the great healer.
  168. समय समय का बाना न्यारा.अलग अलग समय पर अलग प्रकार के वेश अच्छे लगते हैं. 
  169. समय समय को देखिये, समय समय की बात, काहु समय में दिन बड़ा, काहु समय में रात.सब दिन एक से नहीं रहते. कभी सुख मिलता है कभी दुख.
  170. समय समय सुन्दर सभीरूप कुरूप न कोय.समय के अनुसार ही व्यक्ति सुंदर या असुन्दर होता है. कोई सदैव रूपवान या सदैव कुरूप नहीं होता.
  171. समरथ को नहिं दोष गुसाईं.जो ताकतवर है व समर्थ है वह कुछ भी करे, उसका दोष नहीं माना जाता. इसको एक और तरह से भी कहते हैं – “जबरदस्त का ठेंगा सर पे.” इंग्लिश में कहते हैं – might is right. 
  172. समुद्र और श्मशान किसी को इंकार नहीं करते. समुद्र में कितना भी कुछ डाल दो वह मना नहीं करता, इसी प्रकार श्मशान में कितनी भी अर्थियां आ जाएँ किसी को मना नहीं किया जाता.
  173. समुद्र सूखेगा तो भी घुटनों तक पानी रहेगा.जहाँ बहुत बड़ा भंडार भरा हुआ है वहाँ कम भी होगा तो कितना.
  174. समुद्र सोख को दरिया क्या.बहुत बड़े काम करने वाले के लिए छोटा काम क्या चीज़ है. जो समुद्र को सोख सकता है उसके लिए नदी क्या है.
  175. सम्पत होय थोड़ी तो गाय राखिए न कि घोड़ी.जिस के पास कम पैसा हो उस की समझदारी गाय पालने में है जिसमें खर्च कम और लाभ अधिक है. कम संपत्ति वाले को घोड़ी नहीं पालना चाहिए जिसमें अनाप शनाप खर्च है और उपयोगिता भी कम है. 
  176. सम्पति और विपत्ति को दोनों सम कर राख, चार दिनां की चांदनी फिर अँधेरी पाख.अच्छे और बुरे दोनों समय में मन को स्थिर रखना चाहिए, सुख के कुछ दिनों के बाद दुख भी आता है.
  177. सम्मुख छींक लड़ाई भासैं, छींक पाछिली सुख अभिलासैं, छींक दाहिनी धन को नासैं, वाम छींक सुख सदा प्रकासैं.(बुन्देलखंडी कहावत)किसी के सामने छींक आ जाए तो लड़ाई होती है, पीठ पीछे छींक आए तो अच्छा शकुन मानते हैं, दाहिनी ओर कोई छींक दे तो धन का नाश होता है और कोई बायीं ओर छींके तो शुभ होता है.
  178. सयाना कौआ विष्टा खाता है.जो धूर्त व्यक्ति अपने को ज्यादा बुद्धिमान समझता है वह अंत में मुँह की खाता है.
  179. सयानी चली ससुराल और बावरी सीख दे.अपने से अधिक बुद्धि वाले को सीख देने की कोशिश करना. 
  180. सयाने के सवायेकमबख्त के दूने.सयाना व्यापारी कम मुनाफा लेता है और सफलता पूर्वक व्यापार करता है. मूर्ख व्यापारी दुगुना करने के चक्कर में धन गंवा देता है.
  181. सयाने को जरा इशारामूरख को कोड़ा सारा.समझदार व्यक्ति थोड़े से इशारे से समझ जाता है और मूर्ख आदमी डांट फटकार से समझता है. (अकलमन्द को इशारा, अहमक को फटकारा).
  182. सर गंजा और दो जोड़ी कंघा.जिस वस्तु की बिल्कुल आवश्यकता न हो उस को अधिक मात्रा में अपने पास रखना.
  183. सर पर जूतीहाथ में रोटी.बेइज़्ज़ती के साथ रोटी कमाना. इस पर एक मुहावरा भी है – जूतों में दाल बंटना.
  184. सर बड़ा सरदार कापैर बड़ा गंवार का.किसी का पैर बड़ा हो तो मज़ाक में यह बात कही जाती है. 2.एक आम विश्वास है कि बुद्धिमान व्यक्ति का सर बड़ा होता है और मूर्ख का पैर. इस कहावत को ऐसे भी कहते हैं – सर बड़ा सपूत का, पैर बड़ा कपूत का.
  185. सर भले ही कट जाएनाक नहीं कटनी चाहिए.जान भले ही चली जाए, इज्जत नहीं जानी चाहिए.
  186. सर मुंडाते ही ओले पड़े.कोई काम पूरा करते ही उससे सम्बंधित कोई ऐसी मुसीबत आ जाए जिससे नुकसान हो जाए.
  187. सर मुंड़े उस रांड का जो खसम से पहले खाए.लोक मान्यता है कि स्त्री को पति को खिलाने बाद ही भोजन करना चाहिए. अगर वह पहले खा ले तो उसका सर मूंड देना चाहिए.  
  188. सर सलामत तो पगड़ी हजार.जान बची रहेगी तो मान सम्मान बाद में भी कमा लेंगे.
  189. सर सहलाएं भेजा खाएँ.थोड़ा प्रेम दिखा कर बहुत परेशान करने वालों के लिए.
  190. सरक बुआ भतीजी आई.जहाँ छोटे लोग बड़ों की अवमानना करें.
  191. सरकारी सांड.ऐसे सरकारी मुलाजिम जो काम कुछ न करें और लोगों पर रौब गांठते फिरें.
  192. सरनाम बनिया और बदनाम चोर.दोनों अच्छा पैसा कमाते हैं. नामी बनिया अच्छा पैसा कमाता है क्योंकि लोग उस के नाम से माल खरीदते हैं. बदनाम चोर पैसा कमाता है क्योंकि लोग उसके नाम से डरते हैं.
  193. सरम की बांधी सात घर करे (सरम की मां गोड़ा रगड़े).  शर्म की बँधी सात घर करती है. मजबूरी के कारण व्यक्ति को छोटे काम या गलत काम भी करने पड़ते हैं.
  194. सराय का कुत्ताहर मुसाफिर का यार.जो लोग अपने स्वार्थ के लिए सब से दोस्ती गाँठ लेते हैं उन के लिए.
  195. सराहल धिया डोम घरे जाय.(भोजपुरी कहावत) ज्यादा प्रशंसा करने से बेटी बिगड़ सकती है और उसे अपने भले बुरे का ज्ञान नहीं रहता. ऐसी बहुत सी लड़कियां आजकल लव जिहाद का शिकार हो रही हैं.
  196. सरिता, कूप, तड़ाग नृप, जे कम कभी न देत, करम कुम्भ जाको जितै, सो उतना भर लेत.(बुन्देलखंडी कहावत) नदी, कुआं, तालाब और राजा, ये देने में कंजूसी नहीं करते. जिसका कर्म रूपी घड़ा जितना बड़ा है वह उतना भर लेता है.
  197. सर्दियों का सवेरा, गर्मियों की दोपहर और चौमासे की रात.ये सभी कष्टप्रद होने की वजह से लंबे महसूस होते हैं.
  198. सर्दी भोगी की और गर्मी योगी की.भोगी के लिए जाड़े अधिक उपयुक्त रहते हैं और योगी के लिए गर्मी का मौसम. जब तक एयर कंडिशनर का आविष्कार नहीं हुआ था, धनी और भोगी लोग गर्मी में परेशान रहते थे.
  199. सर्मीलो मांगे नहींगर्वीलो देय नहीं.जिसे आत्म सम्मान प्यारा है वह किसी से कुछ मांगता नहीं और जिसे अपनी सम्पन्नता पर अभिमान है वह बिना मांगे (बिना नीचा दिखाए) किसी को कुछ देता नहीं.
  200. सर्राफ की थैली में खोटा खरा एक.सर्राफ की थैली से निकली हर चीज़ को लोग असली समझ कर विश्वास कर लेते हैं.
  201. सलाम के लिए मियाँ को क्यूँ नाराज करो.अगर मियाँ सलाम करने से खुश होता है तो कर लो, इतनी छोटी सी बात के लिए किसी से क्यूँ बिगाड़ो. (कहावत मुग़ल शासनकाल की है जब हिन्दुओं को मुसलामानों से दबना पड़ता था).
  202. सवाल दीगरजवाब दीगर.सवाल कुछ और, जवाब कुछ और.
  203. सवेरे का टहलनादिन भर की खुशी.सुबह उठ कर टहलने से व्यक्ति दिन भर प्रसन्नचित्त रहता है.
  204. ससुर के प्राण जाएपतोहू करे काजर.दूसरे के कष्ट को न समझ कर अपने स्वार्थ में लगे रहना. ससुर के प्राण जा रहे हैं और पुत्रवधू साज सिंगार करने में व्यस्त है.
  205. ससुर को पड़ी हल बैल की, बहू की पड़ी नोन तेल की.सब को अपने अपने काम की चिंता होती है.
  206. ससुर पकड़े साड़ी, तो बहू क्यों छोड़े दाढ़ी.ससुर अगर मर्यादा का उल्लंघन करे तो बहू को उस की पिटाई करने का पूरा हक है.
  207. ससुरार पियारि लगी जब से, रिपु रूप कुटुम्ब भयो तब से.रिपु रूप – दुश्मन जैसा. जो लोग ससुराल के भक्त हो जाते हैं उन्हें अपना परिवार दुश्मन लगने लगता है.
  208. ससुरार सुख की सारजो रहे दिन दो चार. जो रहे दिन दस बाराहाथ में खुरपी बगल में चारा.ससुराल बड़े सुख की जगह है अगर वहाँ दो चार दिन रहो तो. अगर ज्यादा दिन रहोगे तो काम पकड़ा दिया जाएगा (खुरपी लो और चारा काट कर लाओ).
  209. ससुराल का वास, कुल का नाश.कोई व्यक्ति ससुराल में रहता है तो उस के कुल की मर्यादाओं का सत्यानाश हो जाता है (क्योंकि हर कुल की परम्पराएं अलग अलग होती हैं). 
  210. ससुराल में रहना, गधे पर चढ़ना.ससुराल में रहने पर उतनी ही बेईज्ज़ती होती है जितनी गधे पर चढने से.
  211. ससुराल में सुहाय नहीं, पीहर में समाय नहीं.बहुत सी स्त्रियों को ससुराल में अच्छा नहीं लगता, लेकिन मायके में भी उन के लिए स्थान नहीं है.
  212. ससुराल में सौ बंधन.स्त्रियों को तो ससुराल में तरह तरह के बंधन होते ही हैं, जो पुरुष ससुराल में रहते हैं वे भी आजादी से नहीं रह सकते.
  213. सस्ता ऊँटमहंगा पट्टा.ऊंट तो सस्ता है पर उसका पट्टा महंगा है. चीज़ का दाम तो कम है पर उसका रखरखाव बहुत महंगा है.
  214. सस्ता ऊँटमहंगा पट्टा.किसी वस्तु का रखरखाव वस्तु की कीमत से अधिक महंगा हो तो.
  215. सस्ता माल और बहता पानी.इनका कोई भरोसा नहीं. (आज के जमाने में चाइनीज़ माल).
  216. सस्ता रोवे बार बारमंहगा रोवे एक बार.कोई अच्छी चीज़ थोड़ी महंगी मिले तो खरीदते समय एक बार कष्ट होता है लेकिन सस्ते के चक्कर में घटिया माल उठा लाए तो बार बार रोना पड़ता है. इंग्लिश में कहावत है – If you buy quality, you cry only once.
  217. सस्ती भेड़ की पूँछ, सब उठा उठा देखें.सस्ते माल की कोई कद्र नहीं करता.
  218. सहज पके सो मीठा (धीमा पके सो मीठा होए).इत्मीनान से किया गया काम अच्छा होता है.
  219. सहरी खाए सो रोजा रक्खे.जो किसी काम में होने वाला लाभ उठाए उसे उस काम में होने वाले कष्ट भी झेलने चाहिए. रमजान के दिनों में रोज़ा रखने वालों को सहरी (सुबह के खाने) में बढ़िया माल खाने को मिलते हैं. जो लोग रोज़ा नहीं रखते वे भी माल खाने की जुगत में रहते हैं. सहरी का माल दूसरे लोग खा गए और रोज़ा रखने को किसी दूसरे से कहा जा रहा है, तो वह यह बात कहता है.
  220. सहरी भी न खाऊं तो काफिर न हो जाऊं.जो लोग रोज़ा रखना नहीं चाहते लेकिन सहरी खाने की जुगाड़ में रहते हैं उनका तर्क.
  221. सहस डुबकियां मैं लई मोती कर नहिं लागसागर को क्या दोष है जो नहिं मेरे भाग.मैंने हजार डुबकियाँ लगाएँ लेकिन एक भी मोती हाथ नहीं आया. मेरे भाग्य में नहीं है तो मैं सागर को क्यों दोष दूँ.
  222. सहसा करि पछताएं विमूढ़ा.नासमझ लोग जल्दबाजी में गलत काम कर बैठते हैं और फिर पछताते हैं.
  223. सहस्त्र गोपी एक कन्हैया.जहाँ एक व्यक्ति के चाहने वाले बहुत से लोग हों.
  224. सही गएसलामत आए.किसी काम में असफल होकर लौटने पर व्यंग्य.
  225. सही सवेरे सूम का नाम लो तो रोटी नहीं मिलती.पुराना विश्वास है कि यदि सुबह सुबह कंजूस का नाम ले लोगों तो उस दिन रोटी नहीं मिलती.
  226. साँई ते सब होते हैबन्दे से कुछ नाहिंराई से पर्वत करेपर्वत राई माहिं.सब कार्य ईश्वर के करने से ही होते हैं, मनुष्य के करने से कुछ नहीं होता. ईश्वर चाहे तो राई को पर्वत बना दे और पर्वत को राई.
  227. साँच कहा माने नहीं, झूठ से जग पतियाये.इस संसार में सच्ची बात को कोई नहीं मानता, सब झूठे लोगों का ही विश्वास करते हैं.
  228. साँप के बच्चे सपोले ही कहलाएगें (सांप का बच्चा संपोला) व्यक्ति में अपने वंश के गुण अवश्य आते हैं. 2. व्यक्ति कुछ भी बन जाए वंश का नाम उस का पीछा नहीं छोड़ता.
  229. साँप को दूध पिलाओगे तो भी जहर ही उगलेगा.दुष्ट व्यक्ति की सहायता करोगे तो भी आपको नुकसान ही पहुंचाएगा.
  230. साँप को दूध पिलाने से विष बढ़ता है.दुष्ट व्यक्ति की सहायता करो तो उसकी दुष्टता और बढ़ती है.
  231. साँप निकल गया लकीर पीटते रहो.नुकसान होने के बाद बेकार की जांच पड़ताल करने से क्या लाभ.
  232. साँप मरे न लाठी टूटे. (साँप भी मरे लाठी भी न टूटे). अपना काम भी हो जाए और कुछ गंवाना भी न पड़े.
  233. साँप सर पे बूटी पहाड़ पे.सांप तो सर पे है लेकिन सांप का विष उतारने की बूटी दूर पहाड़ी पर है. खतरा सर पर मंडरा रहा हो और उस से बचने का उपाय पास न हो तो.
  234. साँपों की सभा में जीभों की लपालप.जहाँ दुष्ट लोगों का जमावड़ा होगा वहाँ सब जहरीली बोली ही बोलेंगे.
  235. सांई ऐसे पुत्र से बाँझ रहे बरु नारिबिगरौ बेटो बाप से जाय रहे ससुरारि.जो बेटा बाप से बिगड़ कर ससुराल जा कर रहने लगे ऐसा बेटा होने के मुकाबले तो स्त्री बाँझ रहे वह ज्यादा अच्छा.
  236. सांच कहे तो साथ छुटे. सच बोलने से साथ छूटने का डर रहता है.
  237. सांच को आँच नहीं.किसी नगर में एक जुलाहा रहता था. वह बहुत बढ़िया कम्बल तैयार करता था. उसका धंधा सच्चा था. एक दिन उसने एक साहूकार को दो कम्बल दिए. साहूकार ने दो दिन बाद उनका पैसा ले जाने को कहा. दो दिन बाद जब जुलाहा अपना पैसा लेने आया तो साहूकार ने कहा – मेरे यहां आग लग गई और उसमें दोनों कम्बल जल गए अब मैं पैसे क्यों दूं? जुलाहा बोला – यह नहीं हो सकता मेरा धंधा सच्चाई पर चलता है. असली कम्बल में कभी आग नहीं लग सकती. जुलाहे के कंधे पर एक कम्बल पड़ा था उसे सामने करते हुए उसने कहा – यह लो, लगाओ इसमें आग. साहूकार ने कम्बल को जलाने कि काफी कोशिश की लेकिन कम्बल नहीं जला. तब जुलाहे ने कहा – याद रखो सांच को आंच नहीं.
  238. सांच बराबर तप नहींझूठ बराबर पापजाके हिरदै सांच हैताके हिरदै आप.सच बोलने में बहुत से कष्ट झेलने पड़ते हैं इसलिए सच बोलना एक तपस्या है. झूठ के बराबर कोई पाप नहीं है. जो सच बोलता है उस के हृदय में स्वयं भगवान निवास करते हैं. (कहीं कहीं पर झूठ बराबर ताप भी लिखा मिलता है जिसका अर्थ है कि झूठ बोलने में भी मनुष्य को मानसिक संताप होता है). आजकल इसके उलट एक कहावत कही जाती है – झूठ बराबर तप नहीं, सांच बराबर ताप, जाके हिरदै सांच है, बैठा बैठा टाप.
  239. सांची कहेखुश रहे.सच बोलो तभी मन प्रसन्न होता है.
  240. सांचे का रंग रूखा.सच्चा व्यक्ति अक्सर रूखा होता है.
  241. सांचे गुरु का चेलामरे न मारा जाय.सच्चे गुरु के शिष्य को कोई विपत्ति नहीं आती. 
  242. सांचे रांचे राम.सत्य में ही राम बसते हैं.
  243. सांझे धनुष सकारे मोर, ये दोनों पानी के बोर.सकारे – सुबह को. शाम को इन्द्रधनुष दिखाई दे और सुबह को मोर, तो वर्षा अवश्य होगी.
  244. सांटे की सगाई और ब्याज के रूपये का अहसान क्या.सांटे की सगाई – अदला बदली वाली शादी (जहाँ अपनी बेटी दूसरे घर में शादी हो कर जाए और उस घर की बेटी अपने घर में आए). ऐसी शादी में किसी का किसी पर अहसान नहीं होता. इसी प्रकार उधार लिए धन का ब्याज अदा करने पर भी कोई एहसान नहीं माना जाता.
  245. सांड़ों की लड़ाई में बाड़ का नुकसान (लड़ें सांड बाड़ी का भुरकस).घर के दो लोग आपस में लड़ते हैं तो घर का ही नुकसान होता है. 
  246. सांड़ों से हल नहीं चलते.मुफ्तखोर और अनुशासनहीन लोगों से काम नहीं लिया जा सकता.
  247. सांप और चोर की धाक बड़ी होती है.इन से सभी डरते हैं.
  248. सांप का काटा बच सकता है पर इंसान का काटा नहीं.सांप के काटे का इलाज संभव है पर इंसान के धोखे और विश्वासघात का नहीं. 
  249. सांप का काटा बिच्छू से क्यों डरे.जो बड़ी बड़ी मुसीबतें झेल चूका हो वह छोटी मुसीबतों से क्यों डरेगा.
  250. सांप का डसा रस्सी से भी डरता है.अर्थ स्पष्ट है (दूध का जला छाछ भी फूँक फूँक कर पीता है).
  251. सांप का दांव नेवला जाने.सांप के दांव को इंसान नहीं समझ सकता, नेवला ही समझ सकता है. 
  252. सांप काटना छोड़ दे पर फुफकारना न छोड़े.दुष्ट अपनी दुष्टता को पूर्णतया नहीं छोड़ सकता.
  253. सांप की क्या मौसीसुनार की क्या साख.साँपों में कोई किसी का रिश्तेदार नहीं होता, सब एक दूसरे को खा जाने को तैयार रहते हैं. इसी तरह सुनार की कोई साख नहीं होती कि फलां सुनार बड़ा ईमानदार है.
  254. सांप की तो भाप भी बुरी.दुष्ट आदमी से जितना दूर रहो उतना अच्छा.
  255. सांप के घर पावने, फन से फन मिलावने.(बुन्देलखंडी कहावत)पावने – पाहुने, अतिथि. जहाँ मेजबान और मेहमान एक से बढ़ कर एक हों. 2. दुष्ट लोगों के ख़ुशी प्रकट करने के तरीके भी निराले होते हैं.
  256. सांप के डसे को इतवार कब आवे.सांप ने आज काटा है और झाड़ने वाला कह रहा है कि जहर इतवार को ही उतारा जाता है.
  257. सांप के पैर सांप को ही दिखाई देते हैं(सांप के पाँव पेट में होते हैं). दुष्ट व्यक्ति के पास क्या क्या शक्तियाँ व सामर्थ्य हैं यह वही जानता है.
  258. सांप के संपोले का क्या छोटा और क्या बड़ा.सांप के बच्चे सभी जहरीले होते हैं, चाहे छोटा हो या बड़ा.
  259. सांप को सांप भाई जान कहोगे तब भी काटेगा.आप कितनी भी नम्रता और आदर से बोलिए, दुष्ट अपनी दुष्टता नहीं छोड़ता.
  260. सांप चलती हुई मौत है.अर्थ स्पष्ट है.
  261. सांप डँसे और बोले, मेरे ऊपर मत गिरना.दुष्ट व्यक्ति सबको नुकसान पहुँचाता है और यह भी कहता जाता है कि मुझे कोई हानि मत पहुँचाना.
  262. सांप निकल गया लकीर रह गई. किसी परंपरा के लुप्त होने के बाद भी रूढ़ियों का बंधन रह जाता है. 2. डर मिटने के बाद भी आशंका नहीं मिटती.
  263. सांप लहरा के बिल में घुसे, तो बारह जगह से छिले.दुष्ट व्यक्ति अपने घर में दुष्टता नहीं दिखाता, यदि दिखाएगा तो नुकसान उठाएगा.
  264. सांपों के डर गोगा पूजे (सांप नहीं होते तो गोगा जी को कौन पूछता).राजस्थान में गोगा देव को साँपों का देवता मान कर पूजा जाता है. दुष्टों से बचने के लिए कभी कभी अवांछित लोगों की भी शरण लेनी पडती है.
  265. सांबा खेती अहीर मीत, कभी कभी ही होवें हीत.सांबा एक प्रकार का घटिया अनाज होता है जिसकी खेती लाभदायक नहीं होती. इसी प्रकार अहीर से मित्रता करने से भी कोई लाभ नहीं होता. हीत – हितकर.
  266. सांभर जायअलोना खाय (सांभर में नोन का टोटा).अलोना – बिना नमक का. जहां जिस चीज़ की बहुतायत होनी चाहिए वहाँ उस चीज़ का अभाव हो तो. सांभर झील के पानी में नमक बहुत है इसलिए उससे नमक बनाया जाता है.
  267. सांभर पड़ा सो लून.सांभर झील में जो कुछ डालो वह गल कर नमक बन जाता है. किसी दूसरे समाज के साथ रहने वाला व्यक्ति अपनी पहचान खो कर उनके जैसा ही बन जाता है.
  268. सांस बटाऊ पाहुना, आये या न आए.सांस एक राहगीर और अतिथि के समान है जिसका कोई भरोसा नहीं होता कि वह आएगा या नहीं आएगा.
  269. साईं अपने चित्त का भेद न कहिए कोयतब लग मन में राखिए जब लग कारज होय.जब तक कार्य सम्पूर्ण न हो जाए अपने मन की बात किसी से कहना नहीं चाहिए.
  270. साईं अवसर के पड़े को न सहे दुःख द्वंदजाए बिकाने डोम घर राजा श्री हरिश्चन्द्र.जब कठिन समय आता है तब बड़े लोगों को भी दुख झेलने पड़ते हैं. राजा हरिश्चन्द्र पर जब दुख आया तो उन्हें डोम के हाथों बिकना पड़ा था.
  271. साईं इतना दीजियेजा में कुटुम समायमैं भी भूखा न रहूँसाधु ना भूखा जाय.हे ईश्वर मुझे इतना दीजिए जिसमें मेरे परिवार का पालन भी हो जाए और कोई याचक मेरे द्वार से भूखा न जाए.
  272. साईं का घर दूर है जैसे पेड़ खजूरचढ़े तो चाखे प्रेम रस गिरे तोचकनाचूर. ईश्वर का घर दूर भी है और वहाँ जाने के प्रयास में खतरे भी हैं, जैसे खजूर के पेड़ पर चढ़ पाए तो मीठे खजूर चखने को मिलेंगे और गिर गए तो हड्डियाँ चूर हो जाएँगी.
  273. साईं का रख आसरा वाही का ले नामदोउ जग भरपूर हों तेरे सगरे काम.ईश्वर का आसरा रखने पर लोक परलोक के सारे काम सही हो जाते हैं.
  274. साईं घोड़े मर गए गदहन आयो राजकाग हाथ पै लेत हैं दूर कियो है बाज.निकम्मे या दुष्ट राजा के लिए – घोड़े मर गए हैं और गधों का राज आ गया है जिन्होंने बाज को हटा कर कौवे को हाथ पर बिठाया हुआ है.
  275. साईं या संसार में भांत भांत के लोगसब से मिलकर बैठिये नदी नाव संयोग.संसार में तरह तरह के लोग हैं और हमें बहुत कम समय ही रहना है इसलिए सबसे मिलाकर रखना चाहिए.
  276. साईं या संसार में मतलब को व्यवहारजब लग पैसा गाँठ में तब लग ताको यार.संसार में सब अपना स्वार्थ देखते हैं, जब तक आपके पास धन है तभी तक आपसे दोस्ती करते हैं.
  277. साईसों का अकाल और मुंशियों की बहुतायत.विशेष कामों में माहिर लोगों की कमी और पढ़े लिखे बेरोजगारों की बहुतायत. साईस – घोड़ों की देखभाल करने वाला. आजकल भी कुछ ऐसा ही माहौल है.
  278. साख के हिसाब से उधार.बाज़ार में आदमी की जैसी साख होती है उसे वैसा ही उधार मिलता है.
  279. सागर में पानी बरसेमरुभूमि बूँद को तरसे.जिस के पास धन और साधनों की बहुतायत है उसी के पास और धन इकठ्ठा होता जाता है, निर्धन बेचारा तरसता रहता है.
  280. साझा उधार दोऊ अशुभ, घर अंधियारी लाय.साझे का काम और उधार लेना या देना अशुभ काम हैं. इन से घर में अंधियारा आता है. 
  281. साझा तो भगवान का भी बुरा.साझा किसी से भी नहीं करना चाहिए, भगवान से भी नहीं.  
  282. साझा तो सिर्फ अपना ही भला.अपने अलावा किसी से साझ नहीं करना चाहिए.सुनने में बात अटपटी लगती है, लेकिन यह भी संभव है. एक ही व्यक्ति अलग अलग नामों से प्रतिष्ठान बना कर साझेदारी कर सकता है. 
  283. साझा निभे न बाप का.साझा कभी नहीं निभता (चाहे पिता और पुत्र के बीच क्यों न हो).
  284. साझा बाप न रोए कोई.जिस बाप के कई बेटे हों (साझे का बाप) तो उनमें से कोई बाप के मरने पर दुखी नहीं होता. सब इसी उधेड़बुन में रहते हैं कि सम्पत्ति का बंटवारा कैसे हो. बाप की सेवा को सब एक दूसरे पर टालते हैं.
  285. साझे की खेती गदहे खाएं.साझे की खेती में कोई रखवाली करना नहीं चाहता इसलिए आवारा जानवर जानवर खेत खा जाते हैं.
  286. साझे की तो होली ही अच्छी होती है (साझे की होली सबसे भली)साझे का कोई काम अच्छा नहीं होता, केवल होली ही साझे की (सब मिल कर जलाएं तो) अच्छी होती है.
  287. साझे की नाव, पार नहीं उतारती.साझे का काम किसी भी संकट से बाहर नहीं निकालता.
  288. साझे की माँ गंगा न पावे.साझे के काम में सब एक दूसरे पर काम टालते रहते हैं इसलिए काम नहीं होता. जिस माँ के कई बेटे हैं उसे मरने के बाद कोई भी बेटा गंगा नहीं पहुंचाता. इंग्लिश में कहावत है – Everybody’s business is nobody’s business.
  289. साझे की सुई भी ठेले पर लदती है.साझे के काम में आदमी को पैसे का दर्द नहीं होता इसलिए फिजूलखर्ची बहुत होती है. इंग्लिश में कहावत है – Everybody’s businesses is nobody’s business.
  290. साझे की हांडी चौराहे पर फूटी.साझे का काम फेल होता है और जग हंसाई भी होती है.
  291. साझे के देव को भोग नहीं मिलता.किसी भी काम की जिम्मेदारी बहुत से लोगों पर डाल दी जाए तो वह काम नहीं होता (चाहे देवता को भोग लगाने का काम ही क्यों न हो).
  292. साठ सास ननद हों सौमाँ से होड़ न इनकी हो.साठ सासें और सौ ननदें मिल कर भी माँ की बराबरी नहीं कर सकतीं.
  293. साठा सो पाठा.साठ वर्ष की आयु में आ कर आदमी परिपक्व हो जाता है.
  294. साठी बुद्धि नाठी.साठ साल का होने पर बुद्धि नष्ट हो जाती है.
  295. सात घर की कुतिया.जगह जगह मुँह मारने वालों के लिए.
  296. सात मामा का भांजाभूखा ही सो जाए.एक लड़का ननसाल गया. उसके सात मामा थे. वह एक-एक करके सब के घर गया. सातों मामा यह सोचते रहे कि वह दूसरे के घर से खाना खाकर आया होगा इसलिए किसी ने उससे खाने के लिए नहीं पूछा. अंततः उस बेचारे को भूखा ही सोना पड़ा. जब एक काम की जिम्मेदारी बहुत सारे लोगों को दे दी जाती है तो वह काम नहीं हो पाता. (साझे की माँ गंगा न पावे).
  297. सात हाथ हाथी से रहिएपांच हाथ सिंगहारे सेबीस हाथ नारी से रहिएतीस हाथ मतवारे से.हाथी से सात हाथ दूर रहें, सींग वाले जानवर से पांच हाथ, स्त्री से बीस हाथ और पागल या नशेड़ी से तीस हाथ दूर रहना चाहिए.
  298. सातों माँगी घाघरी घर डूबा डूबासातों काती पूनरी घर ऊबा ऊबा.एक आदमी की सात बहुएँ थीं. सातों ने घाघरी मांगी (खर्च करवाया) तो घर डूब गया और सातों ने छोटा छोटा काम किया (सूत काता) तो घर उबर गया.
  299. साथ छोड़ मत मीत का राह भीर के बीचएक अकेले मनुख को सूझे ऊंच न नीच.भीड़ के बीच मित्र का साथ नहीं छोड़ना चाहिए, अकेले इंसान को सही और गलत की पहचान नहीं हो पाती. मीत के स्थान पर कुछ लोग साथ छोड़ मत टोल का भी कहते हैं. टोल – टोली, समूह.
  300. साथ भी सोवे और मुंह भी छिपावे.यदि स्त्री किसी के साथ सो रही है तो मुंह क्या छिपाना.
  301. साथ सोईबात खोई.किसी परपुरुष के साथ सोने से स्त्री का सम्मान खत्म हो जाता है.
  302. सादा जीवनउच्च विचार.स्पष्ट. इंग्लिश में कहावत है – To be simple is to be great.
  303. साध से सिद्धि नहीं मिलती.केवल चाहने भर से सिद्धि नहीं मिल जाती. इसके लिए साधना करनी पड़ती है.
  304. साधु ऐसा चाहिएजैसा सूप सुभायसार-सार को गहि रहेथोथा देइ उड़ाय.साधु (सज्जन पुरुष) सार्थक बात को ग्रहण करते हैं और निरर्थक बातों पर ध्यान नहीं देते (जिस प्रकार सूप अनाज को रोक कर भूसी को उड़ा देता है). (देखिये परिशिष्ट) 
  305. साधु को दासीचोरको खांसीप्रेम विनास हांसीउसकी बुध्दि विनासीखाय जो रोटी बासी. दासी साधु के विनाश का कारण बनती है (साधु उस के मोह में फंस कर पतित हो जाता है), खांसी चोर का विनाश करती है (खांसने पर चोर पकड़ा जाता है), किसी की हंसी उड़ाने से प्रेम का विनाश होता है और बासी रोटी खाने से बुद्धि का विनाश होता है.
  306. साधु को स्वाद से क्या, गुड़ नहीं बताशा ही सही.आजकल के धूर्त साधुओं पर व्यंग्य. 
  307. साधु भूखा भाव का धन का भूखा नाहिं, (धन का भूखा जो फिरै सो तो साधु नाहिं) साधु का मन  भाव का भूखा होता है,  वह धन का लोभी नहीं होता. जो धन का लोभी है वह तो साधु नहीं हो सकता.
  308. साधु मिलन अरु हरि भजनदया धरम उपकारतुलसी या संसार में पांच रतन हैं सार.अर्थ स्पष्ट है.
  309. साधु संत दें जिन्हें असीससुखी रहें वे बिस्वे बीस.साधु संत जिन्हें आशीर्वाद देते हैं वे सदा सुखी रहते हैं. यहाँ साधु से अर्थ असली साधु से है, गेरुए वस्त्र पहन कर भीख मांगने वालों से नहीं.
  310. साधुन पीई संतन पीई पीई कुंवर कन्हाईजो विजया की निंदा करें उन्हें खाय कालिका माई.विजया माने भांग. भांग पीने वाले इस तरह भांग की बड़ाई करते हैं.
  311. साधू जन रमते भलेदाग लगे न कोय.साधु को कहीं ठहरना नहीं चाहिए, ठहरने से उस पर कलंक लगने का डर रहता है.
  312. साबित कदम को सब जगह ठाँव.परिश्रमी और ईमानदार व्यक्ति का स्वागत सब लोग करते हैं.
  313. साबित नहीं कानबालियों का अरमान.किसी वस्तु के योग्य न होने पर भी उसकी इच्छा करना.
  314. साम दाम दंड भेद.किसी चीज़ को पाने के लिए उचित अनुचित सब प्रकार की तिकड़म करना. इंग्लिश में कहावत है – By hook or by crook.
  315. सामने पड़ जाए कानातो बैकुंठ भी नहीं जाना.एक जमाने में ऐसा माना जाता था कि यदि आप कहीं जा रहे हों और काना व्यक्ति दिख जाए, तो भारी अपशकुन होता है. 
  316. सामने सांप और पीछे बाघ.विकट परिस्थिति, जहाँ दोनों ओर एक से बढ़ कर एक संकट हों.
  317. सार पराई पीर की क्या जाने बेपीर.जो कष्ट किसी ने स्वयं न झेला हो उस के बारे में वह नहीं जान सकता.
  318. सारा गाँव जल गयाकाले मेघा पानी दे.मुसीबत आने पर स्वयं कोई प्रयास न कर के दूसरों का मुँह ताकते रहना.
  319. सारा शहर जल गयाबीबी फ़ातिमा को खबर ही नहीं.अपने चारों तरफ के हालात से अनजान रहना.
  320. सारी ईद मुहर्रम हो गई.एक झटके में सारी ख़ुशी गम में बदल गई. (छठी की तेरईं हो गई)
  321. सारी खुदाई एक तरफ जोरू का भाई एक तरफ.अगर घर में शान्ति चाहिए तो पत्नी के भाई को अति महत्वपूर्ण का दर्ज़ा देना पड़ेगा.
  322. सारी चोट निहाई के सिर.जिम्मेदार व्यक्ति को सब मुसीबतें झेलनी पडती हैं. निहाई पक्के लोहे की एक बड़ी सिल जैसी होती है जिस पर रख कर लोहे को काटा पीटा जाता है. लोहे पर जितनी चोट की जाती हैं वे सब निहाई पर ही पड़ती हैं. 
  323. सारी देग में एक ही चावल टटोला जाता है.किसी घर या समाज के एक ही आदमी को देख कर यह अंदाजा लगाया जाता है कि वह घर या समाज कैसा होगा.
  324. सारी रात पीसा पर ढकना भी न भरा.बहुत मेहनत की पर फल कुछ नहीं मिला.
  325. सारे जहां का दर्द हमारे जिगर में है.जो लोग व्यर्थ में ही सभी की परेशानियों में परेशान होते रहते हैं उनका मज़ाक उड़ाने के लिए.
  326. साला तीरथ, ससुरा तीरथ, तीरथ छोटी साली, मात पिता की बात न पूछे, तीरथ है घरवाली.उन लोगों पर व्यंग्य जो ससुराल को सब कुछ मानते हैं और माता पिता की सेवा नहीं करते हैं.
  327. साली छोड़ सास से मसखरी.मूर्खता पूर्ण और बचकाना काम.
  328. साली निहालीचहिए ओढ़ीचहिए बिछा ली.साली से मज़ाक का रिश्ता होता है इसलिए कुछ भी कहा जा सकता है. निहाली माने निहाल करने वाली.
  329. साले की चूल्हे में जड़.साले को जीजा के घर में कभी खाने पीने की कमी नहीं हो सकती.
  330. सावन की छाछ भूतों कोजेठ की छाछ पूतों को.पुराने लोग मानते थे कि सावन के महीने में छाछ (मट्ठा) नुकसान करता है और जेठ में बहुत लाभ करता है.
  331. सावन की तीजपड़े खेत में बीज.सावन की तीज को खेत में खरीफ की बुआई शुरू करने का रिवाज़ रहा होगा.
  332. सावन के अंधे को हरा ही हरा सूझता है.इस कहावत को कुछ इस तरह प्रयोग करते हैं कि लालची व्यक्ति को हर समय पैसा ही पैसा दिखाई देता है.
  333. सावन के रपटे और हाकिम के डपटे में कुछ बुरा नहीं.सावन में कीचड़ में फिसलना बहुत आम बात है इसलिए उस से ज्यादा परेशान नहीं होना चाहिए. इसी तरह हाकिम अगर डांट दे तो उसका बुरा नहीं मानना चाहिए क्योंकि यह तो हाकिमों की आम आदत होती है.
  334. सावन केरे प्रथम दिन उगत न दीखे भानचार महीना पानी बरसे जानो इसे प्रमान.सावन के पहले दिन यदि सूर्य बादलों में छिपा रहे तो चार महीने अच्छी वर्षा होगी. (घाघ और भड्डरी की कहावतें)
  335. सावन घोड़ी भादों गाय, माघ मास जो भैंस बियाय, जेठे बहू असाढ़े सास, सो घर होवे बाराबाट.(बुन्देलखंडी कहावत) सावन में घोड़ी, भादों में गाय और माघ के महीने में भैंस का ब्याहना अशुभ होता है. इसी प्रकार जेठ में बहू और आषाढ़ में सास को प्रसव हो तो घर में बर्बादी आती है.
  336. सावन घोड़ीभादों गायमाघ मास में भैंस बियायजी से जाय या खसमहिं खाय.इन महीनों में प्रसव होने से ये मर सकती हैं या इनके मालिक का अनिष्ट हो सकता है.
  337. सावन मास बहे पुरवैयाबेचे बरधा लेवे गैया.सावन में पुरवाई चलने से वर्षा नहीं होती. ऐसे में बैल बेच कर गाय खरीद लेना चाहिए जिससे गुजर हो सके.
  338. सावन में गधा उदासा.सावन में जब गधा सब तरफ़ बहुत सारी खास देखता है तो तनाव में आ जाता है कि मैं इतनी सारी घास कैसे खाऊंगा. कोई व्यक्ति बहुत सी सुविधाएं मिलने के बाद भी उदास हो तो यह कहावत कहकर उसका मजाक उड़ाया जाता है. वैशाख के महीने में जब मैदान सूख जाते हैं तो गधा बड़ा खुश होता है कि मैंने सारी घास खा ली. इसीलिए गधे को वैशाख नंदन कहते हैं.
  339. सावन सूखे न भादों हरे (सावन हरे न भादों सूखे).यदि कोई व्यक्ति ऐसा काम कर रहा हो जिसमें न कभी अधिक लाभ होने की संभावना हो और न अधिक हानि (जैसे नौकरी करने वाले लोग).
  340. सास का धन, जमाई पुन्न करे.दूसरे का धन खर्च कर के पुण्यात्मा बनने वाले लोगों पर व्यंग्य. 
  341. सास की चेरीसबकी जिठेरी.सास की मुंहलगी नौकरानी से सब बहुएं डरती हैं.
  342. सास की रीसपतोहू के माथे.बहू के आने से सास का महत्व कम हो जाता है इसलिए सास बहू से ईर्ष्या करती है.
  343. सास को पड़ी भाजर की, बहू को पड़ी काजर की.भाजर – गृहस्थी का सामान. सास को घर गृहस्थी का सामान जुटाने की चिंता है और बहू को अपने श्रृंगार की.
  344. सास गई गाँवबहू कहे मैं क्या क्या खाऊं.पुराने जमाने में बहुएं सास से डरती थीं और सास के सामने अपने मन की चीज़ें नहीं खा सकती थीं. सास बाहर गई है तो बहू के ठाठ हो रहे हैं. (अब इसका उल्टा हो गया है).
  345. सास छोटी और बहू बड़ी.जिस घर में बड़े लोगों की पूछ न हो उस के लिए कही जाने वाली कहावत.
  346. सास ताके टुकुर टुकुर, बहू चली बैकुंठ. घर में किसी अत्यधिक वृद्ध व्यक्ति के जीवित रहते यदि किसी कम आयु वाले की मृत्यु हो जाए तो. 2. सास को छोड़ कर बहू तीर्थ यात्रा पर जाए तो.
  347. सास न नन्दीआप ही आनंदी.जिस बहू के घर में सास और ननद नहीं होतीं वह खुश रहती है (कोई रोकने टोकने वाला नहीं होता).
  348. सास ने बहू से कही, बहू ने कुत्ते से कही, कुत्ते ने पूँछ हिला दी.एक दूसरे पर काम टालने वालों के लिए यह कहावत कही जाती है. 
  349. सास बहू की एकहिं सोड़ (सौर), लक्ष्मी जाए छत को फोड़.(बुन्देलखंडी कहावत) सास बहू को अगर एक साथ प्रसव हो तो यह घर के लिए अशुभ है (लक्ष्मी रूठ जाती है).
  350. सास बहू की हुई लड़ाईकरे पड़ोसन हाथापाई.दूसरों की लड़ाई में जरूरत से ज्यादा लिप्त हो जाना.
  351. सास बहू की हुई लड़ाईसिर को फोड़ मरी हमसाई.सास बहू की में लड़ाई पड़ोसन को बीच में नहीं पड़ना चाहिए. वह जिस के अनुकूल नहीं बोलेगी उसी से दुश्मनी हो जायेगी.
  352. सास मर गई कट गई बेड़ीबहू चढ़ गई हर की पैड़ी.सास के मरने से बहू बहुत आजाद महसूस कर रही है. 
  353. सास मर गई ससुरा जिएनई बहुरिया के राज भए.सास मर गई और ससुर जीवित है तो नई बहू का घर पर राज हो जाता है.
  354. सास मर गई, तूम्बे में आत्मा.बहू को डराने के लिए
  355. सास मेरी घर नहींमुझे किसी का डर नहीं.सास के बाहर जाने पर बहू की मौज. कोई कड़क हाकिम छुट्टी पर हो तो कर्मचारियों की मौज हो जाती है.
  356. सास मोरी अन्हरी, ससुर मोरा अन्हरा, जिस से बियाही वोही चक्चुन्हरा, के को दिखाने को डालूँ मैं कजरा.(भोजपुरी कहावत) अन्हरी – अंधी, अन्हरा – अंधा, चक्चुन्हरा – जिसकी आंखें रौशनी से चकाचौंध हो कर बार बार बंद होती हों. ससुराल में किसी को कुछ दिखता ही नहीं है तो बहू श्रृंगार किस को दिखाने के लिए करे.
  357. सास से तोड़ बहू से नाता.घर में किसी एक से नाता तोड़ कर दूसरे से जोड़ना. यहाँ सास बहू का उदाहरण ख़ास तौर पर इसलिए दिया गया है क्योंकि उन में थोड़ी अनबन और एक दूसरे को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति होती है.
  358. सास से बैरपड़ोसन से नाता.अपने घर के सगे सम्बन्धियों से अधिक पड़ोसियों को तवज्जो देना.
  359. सासकोठे पर की घास.सास को बहुत तुच्छ चीज़ समझना. कोठे पर की घास – छत पर उगी घास.
  360. सासरे का दुख और पीहर के बोल.औरत के लिए कहीं भी सुख नहीं है. ससुराल में हरदम सास और ननद का कोंचना. मायके में भौजाइयों का राज होने पर वे भी ताने मारती रहती हैं. 
  361. सासरो सुख वासरो, दो दिनां को आसरो.पुरुषों के लिए ससुराल में दो दिन रहना ही अच्छा लगता है.
  362. सासू का ओढ़नापतोहू का नक्पोछना.सास जिस चीज़ को जीवन भर संभाल कर इस्तेमाल करती है, पुत्रवधू उसकी बेकद्री करती है (सास के ओढ़ने को बहू नाक पोंछने के लिए प्रयोग कर रही है).
  363. सासू कुत्ती दूर हट, धोबिन माई पांय लागूं(सास से रूठना और धोबिन मैया पांय लागी). ऐसी दुष्ट बहू के लिए जो सास का अपमान करती है और सास को जलाने के लिए दूसरी औरतों व काम वालियों का दिखावटी आदर करती है.
  364. सासू खाती पाहुनाबहू बटाऊ खाय.सास शातिर है, मेहमानों को खा जाती है, पर बहू तो और बढ़ कर है, राह चलते लोगों को पकड़ कर खा लेती है. जहाँ सास बहू एक से बढ़ कर एक धूर्त हों.
  365. सासू जी की सीख घर के द्वार तक.सास की सीख को बहू घर में ही मानती है, जैसे ही घर से निकली आजाद हुइ.
  366. साह का दांव हाट में, चोर का दांव बाट में.व्यापारी का दांव मंडी में काम करता है और चोर का सुनसान रास्ते में.
  367. साह का साथ भला और रात का घात भला.किसी का साथ करना हो तो सुरक्षा की दृष्टि से सब से अच्छा साथ राजा का है, और किसी पर हमला करना हो तो रात का समय सब से अच्छा है.
  368. साहत से सुतार भला.शुभ मुहूर्त की प्रतीक्षा करते रहने से सुअवसर का लाभ उठाना ज्यादा अच्छा है.
  369. साहब की सलाम दूर की भली (साहब से सलाम दूर की).हाकिमों से जितना दूर रहो उतना अच्छा.
  370. साहू बनज न कीजिए जो दरबार बिकात, गाँठ लेत देतन कटे विनती में दिन रात.(बुन्देलखंडी कहावत) व्यापारियों को सलाह दी गई है कि सरकारी विभागों को कोई सामान नहीं बेचना चाहिए. वे भुगतान भी पूरा नहीं करेंगे, रिश्वत मांगेंगे और दिन रात चक्कर भी लगवाएंगे.
  371. सिंह अकेला मारे खाए.शेर को शिकार के लिए किसी सहायक की आवश्यकता नहीं होती. वीर पुरुष अकेले ही कार्य करते हैं.
  372. सिंह के वंश में उपजा स्यार.वीर पुरुषों के वंश में कोई व्यक्ति कायर निकल जाए तो.
  373. सिंह चाहे वन को और वन चाहे सिंह को.शेर के लिए जंगल आवश्यक है और जंगल के लिए शेर. प्रकृति का संतुलन इसी प्रकार से बनता है. जंगल नहीं होगा तो शेर और सारे जानवर कहाँ रहेंगे. यदि शेर शाकाहारी जंतुओं का शिकार नहीं करेगा तो उनकी संख्या बहुत बढ़ जाएगी और वे जंगल को खा जाएंगे.
  374. सिंह नहीं देखा तो देख ले बिलाईजम नहीं देखा तो देख ले जमाई.किसी ने शेर नहीं देखा तो बिल्ली को देख लो जिस में शेर के बहुत से गुण हैं, और यमराज को न देखा हो तो दामाद को देख लो. वैसे यह बात आज के समय में सच नहीं है. आजकल बहुत से दामाद बेटों से ज्यादा सेवा करते हैं.
  375. सिंहनी एक सपूत जन सोवत पाँव पसार, दसेक पूत जन के गधी लादे धोबी भार.समझदार और बहादुर लोग कम बच्चे पैदा करते हैं और सुख से रहते हैं, जबकि मूर्ख लोग ज्यादा बच्चे पैदा कर के गरीबी में पिसते रहते हैं.
  376. सिंहों के नहिं लेह्ड़ेहंसों की नहिं पांतलालन की नहिं बोरियांसाधु न चलें जमात.शेरों के झुंड नहीं होते, हंसों की पंक्तियाँ नहीं होतीं, लाल इतने सारे नहीं होते कि बोरियों में भरे जाएं और साधु इतने अधिक नहीं होते कि समुदाय बना कर चलें. ये सब बिरले ही होते हैं.
  377. सिकंदर जब चला दुनिया सेदोनों हाथ खाली थे.कोई कितना भी शक्तिशाली और दौलतमंद क्यों न हो इस दुनिया से सब को खाली हाथ जाना है.
  378. सिखाई बुद्धि अढाई घड़ी.सिखाई हुई बुद्धि थोड़ी देर ही काम आ सकती है, सारे जीवन नहीं. 
  379. सिखाए पूत दरबार नहीं चढ़ते.जिसमें अपनी कोई बुद्धि न हो वह केवल सिखाने से ही योग्य नहीं बन सकता. राजा के दरबार में वही लोग जा पाते थे जो बहुत योग्य होते थे.
  380. सिखाने से घर उजड़ते हैं, सिखाने से ही घर बसते हैं.गलत बातें सिखाने से घर उजड़ते हैं और अच्छी सकारात्मक बातें सिखाने से घर बसते हैं.
  381. सिखैया नाऊ का काटेगा बटाऊ का.सीखने वाला नाई अनजान लोगों की ही खाल काटता हैबटाऊ – राहगीर.
  382. सिद्ध को साधक पुजाते हैं (सिद्धों की महिमा साधकों से).किसी तथाकथित सिद्ध आदमी की महत्ता उस को पूजने वाले लोग ही निर्माण करते हैं. जितने अधिक मानने वाले होते हैं उतना ही सिद्ध पुरुष पूजा जाता है.
  383. सिपाही की जोरू हमेशा रांड.सिपाही लड़ाई पर जाता है तो भी बेचारी अकेली रहती है, और अगर लड़ाई में मारा जाए तब तो विधवा हो ही जाती है.
  384. सिपाही की रोटी जान बेचे की.सिपाही अपनी जान खतरे में डालने की रोटी खाता है.
  385. सियार औरों को शगुन देआप कुत्तों से डरे.यात्रा में सियार का मिलना अच्छा शगुन माना जाता है. सियार बेचारा औरों के लिए तो अच्छा शगुन है लेकिन खुद कुत्तों से डरता है.
  386. सियार के शिकार को शेर नहीं खाता है.योग्य और वीर पुरुष घटिया लोगों द्वारा अर्जित की हुई संपत्ति से लाभ नहीं उठाते.
  387. सियार ने कहा और लोमड़ी ने गवाही दी.धूर्त लोग आपस में बिना शर्त एक दूसरे का समर्थन करते हैं, जैसे आजकल के कुछ नेता.
  388. सिर का बोझ पैर पर आवे.बोझ चाहे सर पर रखा हो, पैरों को ही सारा बोझ उठाना पड़ता है. परिवार का सारा भार अंततोगत्वा मुखिया पर ही आता है. 
  389. सिर की पगड़ी हाथ, कर ले दो दो हाथ.सिर की पगड़ी से अर्थ अपनी इज्ज़त से है. अपनी इज्ज़त हाथ में ले ली तो फिर गाली गलौज या लड़ने से क्या डरना.
  390. सिर झाड़मुँह पहाड़.कुरूप और बेतरतीव व्यक्ति. 
  391. सिर पर जूतीहाथ में रोटी.बहुत अपमान सह कर रोजी रोटी कमाना.
  392. सिर फोड़े को मुंह फोड़ा ही भाता है.निम्न वृत्ति के लोगों को अपने जैसे लोग ही पसंद आते हैं.
  393. सिर बड़ा सपूत का, पांव बड़ा कपूत का.लोक मान्यता है कि योग्य लोगों का सिर बड़ा होता है और मूर्ख लोगों के पाँव.
  394. सिर सजदे मेंमन बोटियों में.झूठी इबादत. 
  395. सिर से उतरे बालगू में जाएं या मूत में.सिर से उतरने के बाद बाल कहीं भी फेंक दिए जाते हैं (उन्हें कोई नहीं पूछता). समाज की निगाहों से उतरे हुए सम्मानित व्यक्ति का भी यही हाल होता है.
  396. सिरहाना किधर भी करो, चूतड़ तो बीच में ही रहेंगे.सत्ता किसी के भी पास जाए, बिचौलिए मजे में रहते हैं.
  397. सिर्फ ताबीज़ से ही काम नहीं होताकुछ कमर में भी दम चाहिए.विशेष तौर पर यह कहावत संतान मांगने वालों के लिए कही गई है. लेकिन अन्य स्थानों पर भी प्रयोग कर सकते हैं कि पूजा पाठ, गंडे तावीज़ के सहारे मत बैठे रहो, कर्म करो.
  398. सिलाई दोगे या ब्योंत में निकाल लूँ.ब्योंत – कतरन. दरजी को सिलाई का पूरा पैसा नहीं देना चाहोगे तो वह कपड़ा बचा कर कसर पूरी करेगा. जिसका जो काम है उसे उसका पूरा मेहनताना देना चाहिए, वरना वह हेर फेर करने पर मजबूर हो जाता है. 
  399. सिवइयों बिन ईद कैसी.बढ़िया खाना, मिठाई और कपड़े आदि न मिलें तो त्यौहार कैसा.
  400. सींग कटा बछड़ों में मिले.कोई बड़ी उम्र का व्यक्ति बच्चों के बीच बच्चा बन जाए तो.
  401. सींग पकड़े तो टूटा हुआ, पूँछ पकड़े तो कटी हुई.जो व्यक्ति बात-बात में बदल जाय. जिससे कुछ भी कबूलवाना मुश्किल हो. जैसे कुछ धूर्त नेता.
  402. सींग मुड़ेमाथा उठामुंह होवे गोल, रोम नरमचंचल करनतेज बैल अनमोल.आज की खेती में बैल का महत्व समाप्त हो गया है लेकिन एक जमाने में खेती के लिए बैल अपरिहार्य होता था. उस समय सयाने लोग अच्छे बैल की बहुत सी पहचान बताया करते थे.
  403. सीख उसी को दीजिए जाको सीख सुहाएसीख जो दीन्ही बांदरा चिड़िया का घर जाए.सीख उसी को देनी चाहिए जिसे सीख अच्छी लगे. जो सीख सुन कर खिसियाए उसे सीख नहीं देनी चाहिए. चिड़िया और बन्दर की कहानी आप ने सुनी होगी. एक बंदर जाड़े की बरसात में भीग कर थर थर काँप रहा था. बया अपने घोंसले से निकली तो यह देख कर उसने बन्दर को सीख देनी चाही – मानस के से हाथ पैर और मानस की सी काया, चार महीने वर्षा बीती छप्पर क्यों नहिं छाया. बन्दर ने खिसिया कर उसका घर तोड़ दिया.
  404. सीख देत औरों को पांडेआप भरें पापों के भांडे.पंडित लोग औरों को शिक्षा देते हैं और अपने आप गलत काम कर के पाप के घड़े भरते हैं.
  405. सीख बाप की, अकल आप की.पिता की शिक्षा काम आती है पर अपनी अक्ल होना भी बहुत आवश्यक है.
  406. सीख सड़प्पे तो लाला जी के साथ गएअब तो देखो और खाओ.एक लालाजी बहुत कंजूस थे. रोटी में घी लगाना हो तो घी के डब्बे में सींक डुबोते थे. उसमें जितना घी आ जाए वही रोटी पर लगाते थे. सेठ जी की मृत्यु हो गई तो बेटे ने गद्दी संभाली. वह उन से बड़ा कंजूस था. उस ने घर वालों से कहा कि वह सींक वींक सेठजी के साथ चली गई. अब तो बस घी के डब्बे को देखो और रोटी खाओ.
  407. सीख सरीरां ऊपजै देई न आवे सीख. जिसके अंदर सीखने की इच्छा हो वही कुछ सीख सकता है, जबरदस्ती किसी को कुछ नहीं सिखाया जा सकता.
  408. सीढ़ी दर सीढ़ी छत पर चढ़ते हैं.कोई भी कठिन कार्य एक एक पायदान चढ़ कर ही पूरा होता है.
  409. सीतलपातलमंद गतअल्प अहारनिरोसये तिरिया में पांच गुनये तुरिया में दोस.शीतल स्वभाव, पतला शरीर, मंद गति, कम खाना और निरोष (क्रोध रहित) होना, स्त्री में ये पाँचों गुण हैं जबकि घोड़ी में हों तो अवगुण माने जाते हैं. तिरिया शब्द स्त्री का अपभ्रंश है. तुरिया माने घोड़ी.
  410. सीता सुकुमारी जैमाल श्री राम गले डाले.विवाह में जयमाल के समय बड़ी बूढ़ियाँ यह मंगल गीत गाती हैं.
  411. सीधी उँगली से घी नहीं निकलता है.पहले के जमाने में चम्मच का प्रयोग नहीं होता था. यदि थोड़ा सा घी निकालना हो महिलाएं डब्बे में उँगली डाल कर उससे घी निकाल लेती थीं. अब जाहिर सी बात है कि अगर सीधी उंगली डालोगे तो घी कहाँ निकलेगा, टेढ़ी उँगली से ही निकलेगा. कहावत का अर्थ है कि केवल सिधाई से काम नहीं निकलता. इस कहावत को इस प्रकार भी कहते हैं – टेढी उँगली से ही घी निकलता है.
  412. सीधे का मुंह कुत्ता चाटे.जो आदमी सीधा होता है उसका सब नाजायज़ फायदा उठाते हैं.
  413. सीधे को सौ दुख.सीधे आदमी के लिए इस स्वार्थी और कपटी संसार में दुख ही दुख हैं.
  414. सीधे घोड़े पर दो सवार होते हैं (सीधे पर दो लदें)सीधे की सिधाई का सब फायदा उठाते हैं.
  415. सीधे पेड़ काटे जाते हैं, टेढ़े पेड़ खड़े रहते हैं.सीधे लोगों पर ही सब अत्याचार करते हैं, दुष्ट लोगों को कोई नहीं छेड़ता.
  416. सीलवंत गुन न तजेऔगुन तजे न गुलामहरदी जरदी न तजेखटरस तजे न आम.जो शीलवान व्यक्ति है वह अपने गुणों का त्याग नहीं करता और जो बुरी आदतों का गुलाम है वह अपनी बुरी आदतें नहीं छोड़ता. जिस प्रकार हल्दी अपना पीलापन नहीं छोड़ती और कच्चा आम अपना खट्टापन नहीं छोड़ता.
  417. सुअर का बन्दा, क्या साफ़ क्या गन्दा.गंदे आदमी की संतानें भी गंदी ही होती हैं.
  418. सुई कहे मैं छेदूं छेदूं पहले छेद कराए.सुई सब को छेदने से पहले अपने अंदर छेद कराती है. दूसरों को नसीहत देने से पहले स्वयं उसका पालन करना चाहिए.
  419. सुई चोर सो बज्जर चोर.चोर तो चोर है, चाहे वह सुई चुराए या कोई बड़ी चीज़ चुराए.
  420. सुई जहां न जाए वहाँ सूजा घुसेड़ते हैं.जहाँ सिधाई से काम न चले वहाँ बल प्रयोग करना पड़ता है.
  421. सुई टूटी कसीदे से छूटी.सुई टूटने से कामचोर महिला खुश हो रही है कि चलो अब कढ़ाई करने से मुक्ति मिली. कामचोर लोग काम से बचने के बहाने ढूँढते हैं.
  422. सुई से बोले छलनीतेरे सर में छेद.अपने अंदर बहुत सी कमियाँ होते हुए भी दूसरे की छोटी सी कमी का मजाक उड़ाना. (छलनी में खुद इतने सारे छेद होते हैं).
  423. सुख और दुःख एक सिक्के के दो पहलू हैं.हमें इन दोनों को ही स्वीकार करना सीखना चाहिए.
  424. सुख कहना जन सेदुःख कहना मन से.अपना सुख सब से बांटो लेकिन दुःख को मन में ही रखो.
  425. सुख की कदर दुख में ही मालूम होती है.जब तक इंसान को सुख ही सुख मिलता है वह उस की कदर नहीं जानता. जब दुःख मिलता है तभी समझ में आता है कि सुख कितना कीमती है.
  426. सुख के बड़े जोधा रखवाली हैं.सुख किसी किले में बंद है और बहुत से योद्धा उस की रखवाली कर रहे हैं. सुख के आस पास पहुँचना बहुत कठिन है. इंग्लिश में कहावत है – Pleasure has a sting in its tail.
  427. सुख के माथे सिल परै नाम हिए ते जाय, बलिहारी वा दुख की पल-पल नाम रटाय.सिल – पत्थर (शिला), हिए – हृदय. जिस सुख के कारण प्रभु का नाम भूल जाता है उस सुख के माथे पर पत्थर पड़ें. उस दुख की बलिहारी जिस के कारण प्रभु का नाम याद रहता है.
  428. सुख के सब साथीदुःख में न कोय.जब व्यक्ति सुख में होता है तो दूर दूर के दोस्त रिश्तेदार भी अपने होते हैं, दुःख आते ही सब गायब हो जाते हैं.
  429. सुख बढ़े, मुटापा चढ़े.जब व्यक्ति सुख में होता है तो उस पर मोटापा चढ़ने लगता है.
  430. सुख मानो तो सुक्ख है, दुख मानो तो दुक्ख, सच्चा सुखिया वही है, जो माने सुख न दुक्ख.सुख और दुख बहुत कुछ हमारी सोच के परिणाम हैं, जो सुख और दुःख से प्रभावित नहीं होता वही वास्तव में सुखी है.
  431. सुख में आए करमचंदलगे मुड़ावन गंज.करमचन्द ज्यादा पैसे वाले हो गए तो अपने गंजे सर को मुंडवाने लगे. मूर्खतापूर्ण दिखावा और फिजूलखर्ची.
  432. सुख में निद्रा, दुख में राम.सुख में व्यक्ति चैन की नींद सोता है, दुख में उसे भगवान याद आते हैं.
  433. सुख में सिंगार, दुख में ढाल.आभूषणों के लिए ऐसा कहा गया है. सुख के दिनों में श्रृंगार करने के काम में आते हैं और दुख के दिनों का सहारा बनते हैं (इन को बेच कर काम चलाया जा सकता है).
  434. सुख में सुमिरन ना कियादु:ख में किया यादकह कबीर ता दास कीकौन सुने फरियाद.जो लोग सुख में भगवान को याद नहीं करते केवल दुःख में ही याद करते हैं उनकी प्रार्थना भगवान क्यों सुनेंगे. 
  435. सुख सोवे कुम्हार जाकी चोर न लेवे मटिया.कुम्हार को चोरी का कोई डर नही है (उसकी मिट्टी कौन चुराएगा), इसलिए वह सुख से सोता है. सम्पन्नता के साथ ही चिंताएँ आती हैं.
  436. सुखिया सब संसार हैखावै और सोवेदुखिया दास कबीर हैजागै अरु रौवे.जो लोग अज्ञानी हैं वे सुख से खा रहे हैं और सो रहे हैं क्योंकि उन्हें संसार की कोई चिंता नहीं है और अपना भविष्य वे जानते नहीं हैं. जिनके ज्ञान चक्षु खुल गए हैं (जो जाग गए हैं) वे वास्तविकता जान कर दुखी होते हैं.
  437. सुखिया सुख के आगे, दुखिया का दुख क्या जाने.जो सब प्रकार से सुखी और संपन्न है (जिसने कभी कष्ट नहीं भोगा) वह दुखी लोगों के कष्ट को नहीं समझ सकता. 
  438. सुखी सुख देवे, दुखी दुख देवे.सुखी व्यक्ति सुख बाँटता है और दुखी व्यक्ति दुख बाँटता है. दुखी व्यक्ति हमेशा अपनी परेशानियों का रोना रोता है और मदद चाहता है.
  439. सुखे सिहुला दुखे दिनाइ, करम फूटे तो फटे बिबाई.सिहुला – छीप (एक प्रकार का फंगल इन्फेक्शन जिस में खुजली नहिं होती, केवल हल्के रंग के छोटे छोटे गोल चकत्ते बन जाते हैं), दिनाई – दाद. जिन को सिहुला होता है उन्हें कोई कष्ट नहीं होता, जिन्हें दाद होता है उन्हें खुजली के कारण कुछ कष्ट (दुःख) होता है पर जिनके पैर में बिबाई फट जाएँ उन्हें बहुत अधिक कष्ट होता है.
  440. सुघड़ बलैयां ससुरा लेबैल मांग बहू को दे.होशियार और आदर करने वाली बहू की ससुर हर संभव सहायता करता है. बहू को बैलों की जरूरत हो तो दूसरों से बैल मांग कर लाता है.
  441. सुघड़ भलाई ससुरा लेबैल खोल बहू के दे.ऊपर वाली कहावत से एकदम अलग. कुछ लोगों में अपनी प्रशंसा करवाने की बड़ी ललक होती है. ऐसे ही एक ससुर लोगों से प्रशंसा पाने के लिए इतने लालायित हैं कि बहू के बैल खोल कर उधार दे दे रहे हैं. (अपनी तारीफ़ के लिए दूसरे का नुकसान करना).
  442. सुधरने में देर लगती है, बिगड़ने में नहीं.व्यक्ति हो या कोई काम बिगड़ बहुत जल्दी जाता है पर सुधरता बहुत मुश्किल से है.
  443. सुन ऐ माटी के लोलाकायथ सुनार कहीं भगत होला.(भोजपुरी कहावत) कायस्थ और सुनार लोगों से त्रस्त कोई व्यक्ति बता रहा है कि ये लोग कभी सच्चे नहीं होते.
  444. सुना था तो डरे, जब पड़ा तो किए (सुनी थी तो डरी थी, पड़ी थी तो सही थी).जब हम किसी कठिन परिस्थिति के विषय में सुनते हैं तो डरते हैं, पर जब आ कर पड़ती है तो उसे सहते भी हैं और उससे निबटने के लिए उपाय भी करते हैं.
  445. सुनार अपनी माँ की नथ में से भी चुराता है.अर्थ स्पष्ट है. सुनार बेचारे इतने बदनाम हैं कि उन के बारे में यहाँ तक कहा गया है.
  446. सुनार का बेटा सुरूप भी सस्ताबनिए का बेटा कुरूप भी महंगा.सुनार का बेटा सुंदर हो तब भी दहेज़ कम ही मिलेगा और बनिये का बेटा कुरूप हो तब भी अच्छा दहेज़ मिलेगा.
  447. सुनार की खटाई और दर्ज़ी के बंद.काम को टालने वालों के लिए. सुनार और दर्ज़ी कभी समय पर काम कर के नहीं देते. सुनार के पास जाओ तो कहेगा कि सामान तैयार है बस खटाई में डालना है. दर्जी के पास जाओ तो कहेगा कि कपड़ा तैयार है बस बंद (बटन) लगाने हैं.
  448. सुनार जी थोड़ा सोना दे दोसोना क्या मांगे से मिलेमांगे से तो न मिले पर ठाली जिभ्या क्या करे.सुनार से किसी ने सोना माँगा, तो सुनार ने कहा कि सोना क्या माँगने से मिलता है. माँगने वाला कहता है कि मुझे मालूम है मांगने से नहीं मिलता है, पर खाली जीभ क्या करे, कुछ तो चलनी चाहिए. 
  449. सुनार ही जाने सुनार की माया.सुनार किस किस प्रकार से लोगों को ठगता है यह दूसरा सुनार ही जान सकता है.
  450. सुनो भई गप्प सुनो भई सप्पनाव में नदिया डूबी जाए.कोई बड़ी बड़ी गप्पें हांक रहा हो तो उस का मज़ाक उड़ाने के लिए.
  451. सुनो सब की करो मन की.यदि आपको कोई सलाह देता है तो धैर्य पूर्वक सुनना चाहिए पर बिना सोचे समझे उस पर अमल नहीं करना चाहिए. सब की सलाह पर मनन करके और अपने विवेक से सोच कर कोई कार्य करना चाहिए.
  452. सुन्दरता को सिंगार की जरूरत नहीं.जो वास्तव में सुंदर है उसे श्रृंगार की आवश्यकता नहीं है.
  453. सुबह का भूला शाम को घर लौट आए तो भूला नहीं कहलाता.यदि कोई व्यक्ति कुछ गलतियाँ करे पर बाद में उन्हें सुधार ले तो उसका दोष नहीं माना जाता.
  454. सुबेला का पाहुना, कुबेला का बैरी.सही समय पर आया अतिथि अच्छा लगता है और असमय आया अतिथि दुश्मन लगता है. सुबेला – उपयुक्त समय, कुबेला – गलत समय, पाहुना – अतिथि.
  455. सुर नर मुनि सब की यह रीतीस्वारथ लागि करें सब प्रीती.चाहे देवता हों, मनुष्य हों या मुनि हों, सब अपने स्वार्थ के लिए ही प्रेम करते हैं.
  456. सुरमा सबहिं लगातपर चितवन भांत भांत.श्रृंगार सब करते हैं पर सब सुंदर नहीं दिखते.
  457. सुलगती में फूंक मत दो.यदि दो लोगों में कुछ अनबन चल रही हो तो ऐसी कोई बात मत कहो जिससे आग भड़क जाए.
  458. सुहाते की लातन सुहाते की बात.जो अपने को अच्छा लगता है उसकी लात भी सही जाती है लेकिन जो बुरा लगता है उसकी बात भी बुरी लगती है.
  459. सूंड कटे गणेश.बहुत मोटे व्यक्ति का मजाक उड़ाने के लिए. 
  460. सूअर की नजर पड़ेगी तो गू पर ही.जो व्यक्ति जिस प्रवृत्ति का होता है वह वैसे ही गुण दोष ढूँढ लेता है. सूअर के सामने तरह तरह के व्यंजन रखे हों और कोने में कहीं विष्टा पड़ी हो तो वह विष्टा की ओर ही भागेगा. विधर्मी लोग आर्य सनातन धर्म की हजार विशेषताओं को न देख कर एकाध छोटी मोटी कमी का ही मजाक उड़ाते हैं.
  461. सूअर को गू पकवान.निकृष्ट व्यक्ति को निकृष्ट वस्तुएँ ही अच्छी लगती हैं.
  462. सूअर चरें, कटरे मार खाएँ.किसी के अपराध की सजा दूसरे को मिले तो.
  463. सूअर तो गू से भी पेट भरे पर गाय क्या करे.गंदगी में रहने और निकृष्ट पदार्थ खाने वाले व्यक्ति कैसे भी जीवन काट सकते हैं पर स्वच्छता प्रेमी को ऐसी परिस्थितियों में बहुत परेशानी होती है. 
  464. सूई भी साथ नहीं जाएगी.जो लोग धन दौलत इकट्ठी करने के पीछे पागल रहते हैं उन को बार बार यह समझाया जाता है कि तुम यहाँ से सुई भी साथ नहीं ले जा सकते.
  465. सूखे कुएं से घड़ा नहीं भरता.जिस के पास स्वयं कुछ न हो वह किसी को कैसे कुछ दे सकता है.
  466. सूखे धानों पानी पडा. जिस वस्तु की अत्यधिक आवश्यकता थी वही मिल गई. 2. जब धान सूख गए तब पानी पड़ा जोकि किसी काम का नहीं.
  467. सूखो भोजन, कुलरिनी, औ कुलच्छनी नार, पाँव पन्हैया है नहीं, नरकों के फल चार.(बुन्देलखंडी कहावत) कुलरिनी – जिसको बाप दादों का कर्ज उतारना हो. यह चार चीजें धरती पर ही नरक भोगने की निशानी हैं – रूखा सूखा भोजन, बाप दादाओं की कर्जदारी, चरित्रहीन पत्नी और बिना जूते के पैर.
  468. सूझे न बिटौरा और गुलेल का शौक.कंडों के ढेर जैसी बड़ी चीज नहीं दिखती और गुलेल चलाने का शौक रखते हैं. बिना सामर्थ्य के कोई काम करने की कोशिश करने वाले के लिए.
  469. सूझे न बिटौरा, चाँद से राम राम.किसी व्यक्ति को पास की चीज़ भी ठीक से न दिखती हो और वह बहुत दूर देखने की कोशिश करे तो.
  470. सूत न कपासजुलाहे से लठ्ठम लठ्ठा.पहले के लोग कपास ला कर सूट कातते थे और जुलाहे को दे कर उससे कपड़ा बुनवाते थे. बुनाई की मजदूरी कितनी हो या सूत कम हो गया इस बात पर झगड़ा भी होता था. किसी के पास न सूत है न कपास फिर भी जुलाहे से लड़ रहा है. बिना किसी बात के झगड़ा करने वाले के लिए.
  471. सूधी छिपकली घणे माछर खावै.(हरियाणवी कहावत) छिपकली देखने में सीधी सादी लगती है पर ढेर सारे मच्छर खा जाती है. कहावत ऐसे लोगों पर फिट बैठती है जो देखने में सीधे लगते हैं और खूब हेर फेर कर लेते हैं.
  472. सूने घर चोरों का राज (चूहों का राज).सूने घर पर अवांछित तत्व कब्जा कर लेते हैं, इसलिए घर को कभी खाली नहीं छोड़ना चाहिए. 
  473. सूने घर में सियार ब्याये.जिस घर की चौकसी नहीं की जाती, उसका प्रयोग अवांछित लोग करने लगते हैं.
  474. सूप बोले तो बोलेसाथ में छलनी भी बोलेजामें बहत्तर छेद.सूप में अनाज को फटक कर उसमें से भूसी आदि अलग करने का काम किया जाता है. सूप एक बड़ा आइटम है जबकि छलनी छोटी सी चीज है. छलनी में बहुत सारे छेद भी होते हैं. अगर कोई बड़ा आदमी कोई आपत्तिजनक बयान दे और साथ में उसका चमचा टाइप का कोई आदमी भी बोलने लगे तो यह कहावत कही जाती है.
  475. सूप हँसे चलनी पे कि तुझ में बहत्तर छेद.जिस व्यक्ति में दोष ही दोष हों वह अपने से कम दोषों वाले व्यक्ति पर हँसे तो.
  476. सूम का धन बिरथा जाय.कंजूस आदमी का धन व्यर्थ ही जाता है, क्योंकि वह उसका स्वयं भी उपभोग नहीं करता और किसी को दान भी नहीं करता.
  477. सूमन पूछे सूम सेकासे मुक्ख मलीनकै गांठी से गिर पड़ो, कै काहू को दीन्ह, ना गांठी से गिर पड़ो, ना काहू को दीन्हदेवत देखा और कोतासे मुक्ख मलीन.कंजूस घर आया तो बड़ा उदास था. पत्नी ने पूछा, उदास क्यों हो. क्या गाँठ में से कुछ गिर पड़ा, या किसी को कुछ देना पड़ा. कंजूस बोला, ऐसा कुछ नहीं है, किसी और को कुछ दान करते देख लिया, उससे मन में हौला बैठ गया.
  478. सूमी का धन अइसे जाय, जइसे कुंजर कैथा खाय.कहते हैं कि हाथी कैथे के फल को साबुत खा लेता है पर उसे पचा नहीं पाता और साबुत कैथा मल में निकल जाता है. कंजूस का धन भी इसी प्रकार व्यर्थ जाता है.
  479. सूर समर करनी करहिं, कहि न जनावहिं आप.सूर – शूरवीर, समर – युद्ध. वीर पुरुष युद्ध में ही वीरता दिखाते हैं, अपने आप उस का ढिंढोरा नहीं पीटते.
  480. सूरज का क्या दोष जो उल्लू को न दीखे.कहते हैं कि उल्लू हो सूर्य के प्रकाश में नहीं दिखता. अब इस में सूर्य का तो कोई दोष नहीं माना जा सकता. यदि किसी मूर्ख को ज्ञानी की बात समझ में नहीं आती हो तो इस में ज्ञानी का क्या दोष. 
  481. सूरज के शनीचर.जब किसी बहुत नेक इंसान का पुत्र दुष्ट हो तो. शनिदेव सूर्य के पुत्र हैं. सूर्य देव सौभाग्य और यश के दाता हैं जबकि शनि अमंगलकारी.
  482. सूरज बैरी ग्रहन हैदीपक बैरी पौनजी का बैरी काल हैआवत रोके कौन.ग्रहण सूरज का वैरी है और पवन दीपक का. इसी प्रकार काल जीवन का वैरी है इन्हें आने से कोई नहीं रोक सकता.
  483. सूरत को क्या चाटें, जब सीरत ही नहीं है.किसी सुंदर व्यक्ति या स्त्री का व्यवहार अच्छा न हो तो सुंदरता का कोई मूल्य नहीं है.
  484. सूरत देखकर गधे बिदकते है.किसी कुरूप (परन्तु घमंडी) व्यक्ति का मजाक उड़ाने के लिए. 
  485. सूरत न शकलभाड़ में से निकल.किसी व्यक्ति की शक्ल सूरत अच्छी न हो पर वह अपने को बहुत सुन्दर और काबिल समझता हो उससे चिढ़ने वाले ऐसा बोल कर मन की भड़ास निकालते हैं.
  486. सूरत में जैसेसीरत में तैसे.कुछ लोगों की शक्ल सूरत भी अच्छी नहीं होती और व्यवहार भी खराब होता है, उन के लिए.
  487. सूरत से सीरत भली.शक्ल अच्छी हो पर व्यवहार बुरा हो तो आदमी बेकार है, सूरत अच्छी न हो पर व्यवहार अच्छा हो तो आदमी अच्छा है. इंग्लिश में इस से मिलती जुलती एक कहावत है – Hamdsome is that handsome does.
  488. सूरत है लंगूर की बस दुम की कसर है.किसी को चिढ़ाने के लिए बच्चों की कहावत.
  489. सूरदास की काली कमरियाचढे न दूजो रंग.काले कंबल पर दूसरा रंग नहीं चढ़ सकता. सूरदास जी ने इसे भक्ति के आशय में प्रयोग किया है अर्थात सूरदास जी कृष्ण की भक्ति में इतने डूबे हुए हैं कि उन पर कोई और रंग नहीं चढ़ सकता. इस कहावत को किसी भी स्थान पर जहां कोई व्यक्ति अपने कट्टर विश्वास के आगे कुछ मानने को तैयार न हो, प्रयोग किया जा सकता है.
  490. सूरा सो पूरा.जो शूरवीर है वही सम्पूर्ण व्यक्ति है.
  491. सूर्य अस्त पहाड़ मस्त.पहाड़ पर शराब के अत्यधिक चलन के ऊपर कहावत.
  492. सेंत का चन्दनघिस रे लाला.चन्दन को पैसे दे कर खरीदा हो तो बड़ी किफायत से खर्च करते हैं और मुफ्त में मिल गया है तो खूब घिसो. (फोकट का चन्दन घिस मेरे नंदन).
  493. सेंदुर न लगाएं तो भतार का मन कैसे रखें.सिंदूर न लगाएँ तो पति को प्रसन्न कैसे करें. मालिक के मनपसंद काम करना ही पड़ेगा.
  494. सेज की तो मक्खी भी बुरी.सौतिया डाह की पराकाष्ठा.
  495. सेज चढ़ते ही रांड हुई.विवाह होते ही विधवा हो गई. कोई काम होते ही बिगड़ गया हो तो.
  496. सेठ के पेट में पापों की पोटली.अधिकतर लोग यह मानते हैं कि धनवान लोगों की कमाई पाप की होती है.
  497. सेनापति को सेना का जोर और सेना को सेनापति का जोर.सैनिक वीर और बुद्धिमान हों तो सेनापति की शक्ति बहुत बढ़ जाती है, सेनापति वीर और बुद्धिमान हो तो सेना का मनोबल बहुत बढ़ जाता है.
  498. सेर को सवा सेर.किसी चालाक आदमी का उससे भी चालाक से पाला पड़े तो.
  499. सेर भरे के बाबाजी, सवा सेर का शंख.यदि उपकरण बड़ा हो और उसे प्रयोग करने वाला छोटा, तो मजाक में ऐसा कहते हैं.
  500. सेर मरद पसेरी बरद.बरद – बैल, पसेरी – पांच सेर. मेहनतकश आदमी की खुराक एक सेर अनाज की होती है और बैल की पांच सेर की. 
  501. सेवा करोगे तो मेवा मिलेगी.सेवा किसी की भी करो, हमेशा अच्छा फल ही मिलता है. इंग्लिश में कहावत है – He profits most, who serves best.
  502. सेही का काँटा घर में मत रखोलड़ाई होगी.यह एक लोक विश्वास है.
  503. सैंयाके मन मुँह पाईं तो सासू के झोंटा नेवाईं. (भोजपुरी कहावत). पति के मन की थाह मिले और समर्थन मिले तो सास के बाल नोचूँ.
  504. सैंया गए परदेस तो अब डर काहे का.जो मनचली स्त्री पति से डरती हो वह उसके बाहर जाने पर निरंकुश हो जाती हैं. कड़क हाकिम के बाहर जाने पर उसके अधीनस्थ कर्मचारी भी मस्त हो जाते हैं.
  505. सैंया ने इस दुनिया में लाखों किए इकट्ठेकबहिं न लाए लड्डू पेड़े बेर खिलाए खट्टे.कंजूस पति के लिए.
  506. सैंया भए कोतवाल तो अब डर काहे का.यदि किसी का निकट संबंधी किसी अच्छी पोस्ट पर हो और वह उस के बल पर इतराए या कोई गलत काम करे तो यह कहावत कही जाती है.
  507. सो घर सत्यानाश जहां है अति बल नारी.जिस घर में स्त्री की सत्ता चलती है उस घर का सत्यानाश हो जाता है.
  508. सो ताको सागर जहां जाकी प्यास बुझाए. जिसकी जहां प्यास बुझे उसके लिए वही सागर है.
  509. सो पंछी पिंजरे परै जो बोले बहु मीठ (मीठी बानी बोलि कै, परत पींजरा कीर).कीर – तोता. तोता मीठी बोली बोलता है इसलिए पिंजरे में बंद कर के रखा जाता है. अधिक मीठा होना भी खतरनाक है.
  510. सोच कर चलना मुसाफिर, यह ठगों का गाँव है.संसार में तरह तरह के प्रलोभन हैं, उनसे सावधान रहो.
  511. सोच करन्ता पुरषा हारेमर्द वही जो पहले मारे.लड़ाई होने पर जो सोचता ही रहता है वह हार जाता है, वीर पुरुष वही है जो पहले बढ़ कर मारे (वही जीतता है). इंग्लिश में कहावत है – The first blow is half the battle.
  512. सोचो आज, बोलो कल.बोलने से पहले भली भांति सोचना चाहिए.
  513. सोचो साथ क्या जाएगा. इंसान कितना भी कुछ इकट्ठा कर ले अपने साथ कुछ भी नहीं ले जा सकता.
  514. सोटे चलअब तेरी बारी.सोटा – डंडा. जहाँ बातचीत से मसला हल न हो और बल प्रयोग की नौबत आ जाए, वहाँ यह कहावत कही जाती है.  
  515. सोते का मुंह कुत्ता चाटे.जो सचेत नहीं है उसको कोई भी नुकसान पहुँचा सकता है या कोई भी उसका अनुचित लाभ उठा सकता है.
  516. सोते को जगावे, स्वांग करते को क्या जगावे.जो सो रहा हो उसे जगाया जा सकता है, जो सोने का नाटक कर रहा हो उसे कैसे जगा सकते हैं. स्वांग – नाटक.
  517. सोते को सोता कब जगाता है.जो स्वयं चौकन्ना नहीं है वह दूसरे को सचेत कैसे कर सकता है.
  518. सोते शेर को मत जगाओ (सोते नाग को मत छेड़ो).शेर या नाग कितने भी खतरनाक हों अगर सो रहे हैं तो आप का कुछ नहीं बिगाड़ते इस लिए उन्हें सोने दो. कोई शक्तिशाली व्यक्ति, समाज या देश अगर सोया पड़ा है तो ऐसा कोई काम न करो जिससे उसके जागने का खतरा हो. अंग्रेजों ने भारत पर कब्जा कर लिया पर चीन को कभी नहीं छेड़ा. वे यही कहावत कहते थे. 
  519. सोना चांदी आग में ही परखे जाते हैं.उच्च गुणों वाले व्यक्ति मुसीबत पड़ने पर ही परखे जाते हैं.
  520. सोना जाने कसेआदमी जाने बसे.कसौटी नाम का एक विशेष प्रकार का पत्थर होता है जिस पर सोने को घिसकर देखा जाता है कि वह शुद्ध है या मिलावटी. इस प्रक्रिया को कसौटी पर कसना कहते हैं. इस कहावत की पहली पंक्ति यह बताती है कि सोना कैसा है यह कसने से ही जाना जा सकता है. दूसरी पंक्ति का अर्थ है कि आदमी की पहचान उसके पास बसने यानी साथ रहने से ही हो सकती है. केवल दूर के मिलने से किसी की वास्तविकता नहीं जानी जा सकती.
  521. सोना तौले ओर ईंटो का धड़ा करे.महा मूर्खतापूर्ण कार्य. कोई सामान तोलने से पहले तराजू के दोनों पलड़ों को बराबर किया जाता है. इस के लिए जो पलड़ा हल्का है उस तरफ कुछ रख कर दोनों को बराबर करते हैं. इस प्रक्रिया को धड़ा करना कहते हैं. सोना तोलने में खसखस से धड़ा करते हैं.
  522. सोना पाना और खोना दोनों बुरा.सोने जैसी मूल्यवान चीज का खोना तो बुरा है ही, कहीं पड़ा हुआ या गड़ा हुआ सोना मिलना भी बुरा समझा जाता है क्योंकि वह लड़ाई झगड़े और यहाँ तक कि लूट और हत्याकांड का कारण बन सकता है.
  523. सोना मिट्टी में भी चमकता है.जिन में उत्तम गुण होते हैं वे सभी परिस्थितियों में अपनी अलग पहचान बना लेते हैं.
  524. सोना लेने पिय गए सूना कर गए देससोना मिला न पिय मिले चांदी हो गए केस.पति पैसा कमाने विदेश चले गए. बेचारी पत्नी को न पैसा मिला, न पति मिले, प्रतीक्षा में बाल सफ़ेद हो गए. व्यापार के सिलसिले में जो, लोग लम्बे समय तक बाहर रहते हैं उन के लिए.
  525. सोना सज्जन साधुजनटूट जुड़ें सौ बार (दुर्जन कुम्भ कुम्हार के, एकै धके दरार).सोना और साधु प्रवृत्ति के लोग बार बार टूटने के बाद भी जुड़ जाते हैं जबकि दुर्जन लोग कुम्हार के घड़े के समान होते हैं जोकि एक ही धक्के से टूट जाते हैं और फिर कभी नहीं जुड़ते. 
  526. सोने का निवाला खिलाइए और शेर की निगाह से देखिये.खिलाने पिलाने में बच्चे का खूब लाड़ प्यार करें पर उस पर कड़ी नज़र भी रखें.
  527. सोने की कटारी कोई पेट में नहीं मारता.कटारी सोने की हो या हीरे मोती जड़ी हो, अपने पेट में थोड़ी मार ली जाएगी. किसी बहुमूल्य वस्तु को कोई अपने नुकसान के लिए प्रयोग कर रहा हो तो. 
  528. सोने की कटोरी में कौन भीख न देगा.चंदा भी मांगने वाले की हैसियत देख कर दिया जाता है.
  529. सोने की खोट तो सुनार ही जाने.किसी काम की बारीकियों को उस से संबंधित व्यक्ति ही जान सकता है.
  530. सोने की बलेंडी और फूस का छप्पर.बलेंडी उस बल्ली को कहते हैं जिस पर छप्पर रखा जाता है. बलेंडी सोने की है और उस पर फूस का घटिया छप्पर रखा है – बेमेल और घटिया चीज़ (मखमल में टाट का पैबंद).
  531. सोने के अंडे देने वाली मुर्गी का पेट मत फाड़ो.एक नासमझ व्यक्ति को एक बार कहीं से एक ऐसी मुर्गी मिल गई जो रोज एक सोने का अंडा देती थी. इससे उसको बहुत कमाई होने लगी. एक दिन उसे लगा कि इस रोज रोज के झंझट से बचने के लिए क्यों न मैं एक साथ सारे अंडे निकाल लूं. यह सोच कर उसने मुर्गी का पेट फाड़ दिया, पर अंदर से कुछ न निकला और मुर्गी भी मर गई.
  532. सोने को जंग नहीं लगता.उत्तम गुणों वाले लोगों को दोष नहीं व्यापते.
  533. सोने को मुलम्मे की जरूरत नहीं होती.चांदी या अन्य धातुओं को सोने जैसा दिखाने के लिए उन पर सोने की बहुत बारीक पर्त चढ़ाई जाती है जिसे मुलम्मा कहते हैं. जो खुद असली सोना है उसे मुलम्मे की क्या जरूरत. जो स्वयं गुणों से भरपूर है उसे आडम्बर या किसी और के नाम की क्या आवश्यकता.
  534. सोने में सुहागा.एक अति गुणवान और मूल्यवान वस्तु का और गुणवान बन जाना. (सुहागा एक सुगन्धित पदार्थ है).
  535. सोने वाले को पड़वा और जागने वाले को पड़िया.भैंस के बछड़े को पड़वा और बछिया को पड़िया कहते हैं. पड़िया की कीमत पड़वे से बहुत अधिक होती है. अगर कहीं दो लोगों की भैसें साथ साथ ब्याह रही हों और एक भैंस के पड़वा व दूसरी के पड़िया पैदा हो तो जो मालिक जाग रहा होगा वह चुपचाप पड़िया पर अधिकार जमा लेगा चाहे वह उस की भैंस की हो या न हो (पहचान तो कुछ होती नहीं है). कहावत का अर्थ है कि जो चौकन्ना होगा वह हमेशा फायदे में रहेगा.
  536. सोने से गढ़ावल महंगी.जहाँ कच्चा माल तो महंगा हो ही पर उत्पादन की लागत और भी अधिक हो.
  537. सोम भूखे न मंगल अघाए.जिस की स्थिति सदा एक सी रहती हो. अघाए – भरे पेट.
  538. सोया और मुआ बराबर.सोता व्यक्ति मरे के समान है. यहाँ सोये से तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से भी हो सकता है जो अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति सचेत न हो.
  539. सोये घूरे पर और सपने देखे महलों के.अत्यंत निर्धनता में रहने वाला व्यक्ति यदि अत्यधिक धनवान बनने के सपने देखे तो.
  540. सोलह हाथ साड़ी पर आधी पिंडली उघाड़ी.जिस फूहड़ औरत को कपड़े पहिनने का शऊर न हो. बहुत लम्बी साड़ी होते हुए भी ऐसे बांधी है कि आधी पिंडली दिख रही है.
  541. सोवन को कुम्भकरन, भोजन को भीम.जो आदमी सोता भी बहुत हो और खाता भी बहुत हो.
  542. सौ अजान, एक सुजान.सौ कमअक्ल लोगों के मुकाबले एक चतुर व्यक्ति का साथ अधिक अच्छा है. 
  543. सौ इलाज एक परहेज.परहेज सभी प्रकार के इलाजों से अधिक महत्वपूर्ण है. इंग्लिश में कहावत है – Diet cures more than doctors.
  544. सौ ऐबों का एक ऐब गरीबी. गरीबी आदमी से मजबूरी में बहुत से गलत काम कराती है. 2. गरीब कितना भी ईमानदार हो लोग उसे चोर कह कर अपमानित करते हैं.
  545. सौ कपूत से एक सपूत भला.बहुत सारे पुत्र हों और माँ बाप का ध्यान न रखें उन से एक ऐसा पुत्र बेहतर है जो उनका ध्यान रखे और संसार में माता पिता का यश फैलाए.
  546. सौ की हानीसहस बखानी.कुछ लोग थोड़े से नुकसान को बहुत बढ़ा चढ़ा कर बताते हैं उनके लिए (सौ की हानि हुई तो हजार बता रहे हैं).
  547. सौ कौवों में एक बगला भी नरेस.जहाँ सभी अयोग्य हों वहाँ थोड़ी सी योग्यता रखने वाला भी राजा बन जाता है (अंधों में काना राजा).
  548. सौ खोटों का वह सरदारजिसकी छाती एक न बार.जिस पुरुष की छाती पर एक भी बाल न हो उसे बहुत धूर्त माना जाता है. (लोक विश्वास)
  549. सौ गज नापूँ और गज भर न फाडूँ.जो बातें बहुत करे और काम कुछ न करे.
  550. सौ गज पानी में रहेमिटे न चकमक आग.चकमक पत्थर एक विशेष प्रकार का पत्थर होता है जिसको आपस में रगड़ने पर चिंगारी निकलती है. जब माचिस का आविष्कार नहीं हुआ था तो लोग चकमक रगड़ कर उससे सूखे घास फूस में आग पैदा करते थे. चकमक पत्थर को सौ गज पानी के नीचे डूबा कर रखो तब भी बाहर निकालने पर वह आग पैदा करता है. व्यक्ति में जो मौलिक गुण होता है वह विपरीत परिस्थियों में रहने पर भी नष्ट नहीं होता.
  551. सौ गाथा सूआ पढ़ेअंत बिलाई खाय.तोते को कितना भी राम राम रटना या कुछ भी बोलना सिखा दो अंत में वह बिल्ली का भोजन बन जाता है. जो व्यक्ति स्वयं योग्य न हो केवल रट कर ही कुछ बोल लेता हो वह अपनी रक्षा स्वयं नहीं कर सकता और उस का अंत बुरा होता है.
  552. सौ गुंडा न एक मुछमुंडा.किसी किसी समाज में जो लोग मूंछ मुंडवा देते हैं उन्हें लफंगा समझा जाता है. ऐसे ही समाज का कथन.
  553. सौ घोड़ा सौ करहला पूत सपूती जोयमेहा तो बरसत भला होनी हो सो होय.करहला – ऊंट. वर्षा की बाढ़ से किसी के सौ घोड़े, सौ ऊंट और स्त्री पुत्र बह गए तो भी उस ने कहा कि भले ही मेरा सर्वस्व बह गया पर मैं यही कहूँगा कि वर्षा होनी तो आवश्यक है (मनुष्य मात्र की भलाई के लिए).
  554. सौ चंडाल न इक कंगाल.पुराने जमाने में श्मशानघाट में काम करने वाले व्यक्ति को समाज का सबसे निकृष्ट सदस्य माना जाता था और उसे चंडाल कहते थे. सभी वर्णों के लोग उस बेचारे से छुआछूत मानते थे. कंगाल आदमी को उससे भी गया गुज़रा बताया गया है.
  555. सौ ज्योतिषी और एक बुढ़िया.सौ भविष्यवक्ताओं के किताबी ज्ञान की तुलना में एक अनुभवी व्यक्ति की बात ज्यादा सही और वजनदार होती है.
  556. सौ दवा एक हवा.प्रदूषण मुक्त शुद्ध वातावरण में रहना सौ दवा खाने के बराबर है.
  557. सौ दवाएक परहेज. (सौ औषधिएक पथ्य).परहेज इतना कारगर है कि सौ दवाओं से अधिक असर कारक है. इसको इस प्रकार भी कह सकते हैं कि परहेज़ न करो तो सौ दवाएं बेकार हैं.
  558. सौ दिन सासू के एक दिन बहू का.सास बहू को तरह तरह से परेशान करती रहती है पर जब बहू का दांव लगता है तो वह एक ही बार में हिसाब बराबर कर लेती है.
  559. सौ नकटों में एक नाक वाला नक्कू.अंधों में काना राजा.
  560. सौ पट्टा और एक लट्ठा.किसी स्थान पर मालिकाना हक जताने वाले सौ पट्टे दार हों, उन पर एक ही लठैत भारी होता है. (कब्ज़ा सच्चा मुकदमा झूठा).
  561. सौ बरस का कारीगर, और बारह वर्ष का मालिक.जहाँ कम आयु वाले अनुभवहीन लोगों के नीचे अधिक आयु वाले अनुभवी लोगों को काम करना पड़े. जैसे कुछ परिवारवादी राजनैतिक दलों में अनुभवहीन लडके अध्यक्ष बन जाते हैं और बुजुर्ग कार्यकर्ता उनके जूते उठाते हैं.
  562. सौ बार तेरीएक बार मेरी. बार बार तेरी बात मानी जाती है एक बार मेरी भी मानी जानी चाहिए. 2. तूने सौ बार मुझे धोखा दिया है, अब एक बार तू मेरा दांव देख. 
  563. सौ भैंसियों में एक पाड़ा, राकड़सिंह नाम.सौ मूर्खों में एक बुद्धिमान बड़े ठाट से उन पर रुआब जमाता है.
  564. सौ मन अनाज की एक मुट्ठी बानगी.जिस प्रकार किसी अनाज की गुणवत्ता जानने के लिए उस के ढेर में से एक मुट्ठी अनाज पका कर देखते हैं (इसे बानगी कहते हैं), उसी प्रकार किसी जाति या समाज के बारे में जानने के लिए कुछ लोगों से ही बात कर के जानकारी प्राप्त की जा सकती है.
  565. सौ मन इल्म एक मन अकल.सौ विद्याओं से एक बुद्धि बड़ी है.
  566. सौ मन का कुठला भर जाय पर सवा सेर का पेट नही भरता.मनुष्य का लालच इतना बड़ा है कि उसे कितना भी मिल जाए, उसका पेट नहीं भरता.
  567. सौ में फुली सहस में काना, सवा लाख में एंचकताना, एंचकताना करे पुकार, मैं मानी कैरा से हार, कैरा बुद्धि बिनासी, करे बाप की हांसी, जिनकी नइयाँ छतियन बार, उनसे कैरा मानी हार.(बुन्देलखंडी कहावत) फुली – जिसकी आँख में फुल्ली की बीमारी हो, एन्चकताना – भेंगा (टेपंखा), कैरा – कंजा (भूरी आँख वाला). लोक विश्वास है कि उपरोक्त सभी प्रकार के लोग धूर्त होते हैं. सौ लोगों में एक की आँख में फुल्ली होती है, हजार में एक काना होता है और सवा लाख में एक एन्चकताना. कंजा आदमी एन्चकताने से भी अधिक धूर्त होता है और जिसकी छाती पर बाल न हों उस से कंजा भी हार मान लेता है.
  568. सौ में शूर और हजार में दानवीर.सौ में कोई एक व्यक्ति वीर होता है और हजार में एक दानवीर.
  569. सौ में सूर सहस में काना, एक लाख में ऐंचक ताना, ऐचंक ताना करे पुकार, कंजा से रहियो हुशियार, जाके हिये न एकहु बार, ताको कंजा ताबेदार, छोट गर्दना करे पुकार, कहा करे छाती को बार.अर्थ ऊपर वाली कहावत की भांति. फुल्ली के स्थान पर अंधे का वर्णन है. छोटी गर्दन वाला इन सभी से अधिक धूर्त बताया गया है.
  570. सौ सयाने एक मत.बुद्धिमान लोगों का किसी विषय पर एक ही मत होता है.
  571. सौ सुनार कीएक लोहार की. (खुट खुट सुनार कीएक चोट लोहार की).छोटे व्यापारी दिन भर मेहनत कर के थोड़ा थोड़ा कमाते हैं, बड़ा व्यापारी एक ही सौदे में सारी कसर पूरी कर लेता है. कोई किसी दुश्मन को थोड़ा थोड़ा नुकसान पहुँचा रहा हो और दुश्मन एक ही वार में काम तमाम कर दे तो. भोजपुरी में कहते हैं – सोनरवा की ठुक ठुक, लोहरवा की धम्म.
  572. सौ सौ जूते खाएं, तमासा घुस कर देखें.ऐसे बेशर्म लोगों के लिए जो कितना भी अपमान सह कर तमाशा देखने के लिए कहीं भी घुस जाते हैं.
  573. सौ सौ तरह के नाच नचाती हैं रोटियाँ.जीविका के लिए आदमी को क्या क्या नहीं करना पड़ता.
  574. सौत का गुस्सा कठौत पर.कठौत – लकड़ी का बर्तन. गुस्सा किसी और का और निकालना किसी और पर.
  575. सौत की मूरत भी बुरी (सौत तो चून की भी बुरी). सौत कभी अच्छी हो ही नहीं सकती हमेशा बुरी ही होती है.
  576. सौत मरी हुई भी सताती है.किसी स्त्री की सब से बड़ी शत्रु उस की सौत होती है. जीवित सौत तो परेशान करती ही है, पूर्व पत्नी की स्मृतियाँ भी नई पत्नी के लिए परेशानी का कारण बनती हैं.
  577. सौतों में खटपट, सास बदनाम.सौतों में आपस में खटपट होती ही रहती है, सास बेचारी बेकार में बदनाम होती है.
  578. सौदा अच्छा लाभ काराजा अच्छा दाब का.सौदा वही अच्छा है जिसमें लाभ हो, राजा वही अच्छा जो रौब दाब रखता हो.
  579. सौदा बिक गयादूकान रह गई.वैश्या और पहलवान के बुढापे के लिए मजाक में ऐसा कहा जाता है.
  580. सौदा लीजे देख कर और रोटी खाइए सेंक कर.कोई भी चीज़ देख परख कर ही लेना चाहिए और रोटी को ठीक से सेंक कर ही खाना चाहिए.
  581. स्यार आपनी खोह में परे परे सरि जाहिं, सिंह पराए देस में जहं मारे तहं खाए.सियार (कायर व्यक्ति) अपने घर में घुस के बैठा रहता है और सिंह (वीर पुरुष) दूसरे देश में भी अपना शिकार ढूँढ लेता है.
  582. स्याही गई सफेदी आईतो भी तुझे समझ ना आई.बाल काले से सफेद हो गए (उम्र बढ़ गई) फिर भी अक्ल नहीं आई.
  583. स्याही बालों की गईदिल की आरज़ू न गई.बूढ़े हो गए पर मनचलापन नहीं गया.
  584. स्वर्ग की गुलामी से नरक का राज भला (स्वर्ग की मातहती से नरक की दरोगाई भली).गुलामी किसी भी हालत में स्वीकार्य नहीं है.
  585. स्वान धुनें जो अंगअथवा लोटे भूमि पेतो निज कारज भंगअति ही असगुन मानिए.जो लोग शगुन अपशगुन विचार करते हैं उनके लिए कहावत है कि यदि आप किसी काम के लिए निकलें और कुत्ता जमीन पर लोटता दिख जाए तो काम नहीं होगा. (घाघ और भड्डरी की कहावतें)
  586. स्वारथ के ही सब सगे, बिन स्वारथ कोऊ नाहिं.इस जगत में सारे संबंध स्वार्थ पर ही आधारित हैं.
  587. स्वार्थ आदमी को अँधा बना देता है.अर्थ स्पष्ट है.

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