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  1. गँवार गन्ना न देभेली दे(गुड़ न दे भेली दे). मूर्ख व्यक्ति छोटी सी चीज़ देने में आनाकानी करता है जबकि बड़ी चीज़ दे देता है. भेली – गुड़ की भेली. 
  2. गंगा आवनहारभगीरथ को जस.(गंगा आनहार भागीरथ के सिर पड़ी). गंगा को आना ही था, भगीरथ को यश प्राप्त हुआ. जैसे भारत को बहुत से कारणों से आज़ादी मिली नेहरू जी ने श्रेय ले लिया.
  3. गंगा की राह किसने खोदी है.वेगवती नदी जब पहाड़ से उतरती है तो अपनी राह खुद बनाती है. उसके लिए कोई खोद के मार्ग नहीं बनाता. महान लोग जब किसी कार्य के लिए निकलते हैं तो अपना रास्ता खुद बनाते हैं.
  4. गंगा की राह में पीर के गीत.गंगा नहाने जाएंगे तो गंगा के गीत गाए जाएंगे, पीर बाबा के नहीं.
  5. गंगा के मेले में चक्की खोदने वाले को कौन पूछे.चक्की के पाटों में छोटे छोटे गड्ढे बना कर उन को खुरदुरा बनाया जाता है तभी पिसाई होती है. कुछ दिन चलाने के बाद पाट फिर चिकने होने लगते हैं तो उन्हें फिर खोदना पड़ता है. गंगा के मेले में लोग चक्की ले कर जाते ही नहीं हैं इसलिए वहां चक्की खोदने वाले का क्या काम. जिस माल की जहाँ खपत हो वहीं उस का व्यापार करना चाहिए.
  6. गंगा गए तो गंगादासजमुना गए तो जमुनादास.जैसी परिस्थिति देखी वैसे ही बन गए. इंग्लिश में कहावत है – When in Rome, do as Romans do.
  7. गंगा जाते कोढ़ उभरा. पहले के लोग मानते थे कि गंगा में नहाने से कोढ़ ठीक हो जाता है. अगर गंगा जाते समय कोढ़ उभरा है तो चिंता की कोई बात ही नहीं है, हाथ की हाथ निवारण हो जाएगा.
  8. गंगा जी के घाट पर बामन वचन प्रमानगंगा जी को रेत को तू चंदन कर के मान.जाट गंगा नहाने गया तो एक पंडे ने उसे घेर लिया. हाथ में गंगाजल ले कर कुछ उलटे सीधे मन्त्र पढ़े, जाट को गंगा जी की रेत से तिलक लगाया और बोला बामन का वचन है, तू इस रेत को चंदन मान और जल्दी से इस बामन को गऊ दान कर दे. जाट उस से ज्यादा चतुर था. उस ने एक मेंढकी पकड़ी और पंडे से कहा, गंगा जी कै घाट पर जाट वचन परमान, गंगा जी की मेंढकी तू गऊ कर के जान (जाट के वचन को प्रमाण मानो और गंगा जी की मेंढकी को गऊ मान कर ग्रहण करो).
  9. गंगा जी को नहायबोबामन को व्योहारडूब जाय तो पार हैपार जाए तो पार.गंगा में नहाने वाला डूब जाए तो यह मान कर संतोष कर लिया जाता है कि वह भवसागर से पार हो गया और तैर कर पार हो जाए तब तो पार है ही. इसी प्रकार ब्राह्मण को दिया गया ऋण वापस मिल जाए तो अच्छा है और न मिले तो दान पुण्य मान कर संतोष कर लेना चाहिए.
  10. गंगा नहाए मुक्ति होय तो मेंढक मच्छियाँमूढ़ मुड़ाए सिद्धि होए तो भेड़ कपछियाँ.गंगा नहाने से मुक्ति होती तो मेढक मछलियाँ सबसे पहले मुक्त हो जाते, सर मुड़ाने से सिद्धि मिलती तो भेड़ें सबसे पहले सिद्ध हो जातीं क्योंकि वो तो हर साल मुंडती हैं.
  11. गंगा नहाने से गधा घोड़ा नहीं बनता.गंगा नहाने से मूर्ख व्यक्ति योग्य नहीं हो जाता.
  12. गंगा बही जाय, कलारिन छाती पीटे.कलारिन – शराब बनाने वाली. कलारिन को इस बात की चिंता हो रही है कि सारा पानी बह गया तो शराब कैसे बनाएगी.
  13. गंगोत्री ही गन्दी हो तो गंगा में बदबू होगी ही.अर्थ स्पष्ट है. उदाहरण के तौर पर – जिस पकिस्तान का जन्म ही घृणा, उन्माद और हिंसा पर हुआ हो वहां आतंकवाद तो पनपेगा ही.
  14. गंजा और कंकड़ों में कुलांचे खाए.गंजा कंकडों में कुलांचे खाएगा तो उसका सर लहूलुहान हो जाएगा. कोई व्यक्ति अपनी मूर्खता से अपने को नुकसान पहुँचा रहा हो तो.
  15. गंजा मरा खुजाते खुजाते.कोई व्यक्ति कुछ दुर्भाग्य से और कुछ अपने कर्मों के कारण दुर्दशा को प्राप्त हुआ हो तो.
  16. गंजी कबूतरी और महल में डेरा.अयोग्य व्यक्ति को उच्च स्थान प्राप्त होना.
  17. गंजी को सर मुंडाने की क्यों पड़ी.अनावश्यक काम करने वाले पर व्यंग्य.
  18. गंजी क्या मांग निकाले.जिसके बाल ही नहीं है वह मांग कैसे निकालेगी. कोई साधनहीन व्यक्ति सामर्थ्यवान की बराबरी करे तो. 
  19. गंजी देवीऊत पुजारी.जैसे देवता वैसे ही मानने वाले.
  20. गंजी पनिहारी और गोखुरू का हंडुवा.पनिहारी अर्थात पानी भरने वाली. पहले गाँव की स्त्रियाँ कुँए या तालाब से मटके में पानी भर कर सर पर रख कर लाती थीं. सर पर मटके को बैलेंस करने के लिए कपड़े का गोल रिंग बना कर रखा जाता है जिसे हंडुवा या कुंडरी कहते हैं. कहावत का अर्थ है कि एक तो पानी भरने वाली गंजी है ऊपर से गोखुरू (एक प्रकार की कंटीली घास) का हंडुवा बना कर रखा गया है जिससे उसे और कष्ट हो रहा है. अपनी मूर्खता से कष्ट उठाना.
  21. गंजे आदमी को नाई की क्या परवाह.जिस व्यक्ति से हमें कभी काम नहीं पड़ने वाला उसकी परवाह क्यों करें.
  22. गंजे के भाग से ओले पड़ें.जब किसी गंजे के भाग्य में कष्ट उठाना लिखा होता है तब ओले पड़ते हैं.
  23. गंजे को कौओं का डर.गंजे सर पर कौवा चोंच न मार दे इसलिए.
  24. गंजे पर नाई का क्‍या एहसान.गंजे को नाई की जरूरत ही नहीं है, फिर वह उसका एहसान क्यों माने. 
  25. गंजे सर पानी पड़ाढल गया.वैसे बात तो गलत है पर यहाँ गंजे सर का अर्थ बेशर्म आदमी से है.
  26. गंदला है तो भी गंगाजल.गंगाजल यदि थोड़ा गंदला भी हो जाए तो भी उसकी महिमा कम नहीं होती. उच्च चरित्र वाले किसी व्यक्ति पर थोड़े बहुत आक्षेप लग जाएँ तो भी उसका आदर कम नहीं होता.
  27. गंधी बेटा टोटा खाए, डेढ़ा दूना कहीं न जाए.इत्र के व्यापार में कई गुना मुनाफा है. जब इत्र का व्यापारी यह कहता है कि उसे घाटा हुआ है तो इसका मतलब  यह होता है कि उसे केवल डेढ़ दो गुना ही मुनाफा हुआ है.
  28. गंवार अधेला न दे अधेली दे.अधेला माने आधा पैसा और अधेली माने अठन्नी. नासमझ व्यक्ति छोटी सी चीज़ देने में आनाकानी करता है पर लोग उस को बेवकूफ बना कर उस से बड़ी चीज़ ठग लेते हैं.
  29. गंवार की अकल गुद्दी में.पुराने जमाने में गंवार शब्द को मूर्ख के लिए प्रयोग करते थे. मूर्ख व्यक्ति की बुद्धि दिमाग में न हो कर उसकी गर्दन में होती है.
  30. गंवार की गाली, हंसी में टाली. मूर्ख व्यक्ति गाली दे तो हंसी में टाल देना चाहिए, दिल पे नहीं लेना चाहिए.
  31. गंवार को पैसा दीजे पर अकल न दीजे.गंवार शब्द का प्रयोग बहुत स्थानों पर मूर्ख के लिए होता है. इस बात का ग्रामीण लोगों को बुरा नहीं मानना चाहिए. कहावत का अर्थ है कि मूर्ख व्यक्ति को अक्ल का उपदेश देना बेकार है.
  32. गंवार खा के मरे या उठा के मरे.मूर्ख व्यक्ति या तो अधिक खाने से मरता है या क्षमता से अधिक बोझ उठाने से.
  33. गया राज जहाँ चुगला पैठेगया पेड़ जहाँ बगुला बैठे. भोजपुरी कहावत.चुगलखोर की जिस राजपरिवार में पैठ (पहुँच) होती है वह नष्ट हो जाता है और गिद्ध व बगुले जिस पेड़ पर बैठते हैं वह पेड़ भी ठूँठ हो जाता है.
  34. गई आबरू वापस न आवे.एक बार इज्जत चली जाए तो वापस नहीं आती.
  35. गई को जाने दे राख रही को.जो चला गया उसे भूल जाओ जो तुम्हारे पास है उसे संभालो. इसी प्रकार की दूसरी कहावत है – बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुधि लेय.
  36. गई जवानी फिर न बहुरेचाहे लाख मलीदा खाओ.मलीदा कहते हैं खूब घी से बनने वाले एक पकवान को. मनुष्य चाहे कितना प्रयास कर ले, बीता हुआ यौवन वापस नहीं आ सकता.
  37. गई नार जो घर घर डोलेगया घर जहं उल्लू बोलेगया राज जहाँ माने गोलेगया वनिक जो कम कर तोले.पराए घरों में डोलने वाली स्त्री का सम्मान नहीं होता, जिस घर में उल्लू बोले उस का सर्वनाश हो जाता है, जिस राजा के यहाँ गोलों (दासों) की चलती हो वह भी नष्ट हो जाता है, जो बनिया कम तोलता है उस की साख भी समाप्त हो जाती है. गया – नष्ट हो गया.
  38. गई परोथन लेने, कुत्ता आटा ले गया.किसी आवश्यक कार्य के बीच अनपेक्षित नुकसान हो जाना.
  39. गई बला को कौन पुकारे.जो आफत अपने आप टल गई हो उसे वापस बुलाना मूर्खता ही कहलाएगी.
  40. गई बात फिर हाथ न आवे.जो बात बिगड़ जाए वह दोबारा नहीं बनती.
  41. गई भैंस पानी में.भैंस को यदि कहीं पानी भरा तालाब दिख जाए तो वह आपके रोकने के बावज़ूद उस में उतर जाती है. आपके कोशिश करने के बाद भी कोई बना बनाया काम बिगड़ जाए तो मज़ाक में यह बोलते हैं.
  42. गई माँगने पूतखो आई भतार.पुत्र मांगने गई थी, पति को खो आई. किसी लाभ की कोशिश में उससे भी बड़ा नुकसान उठाना.
  43. गई साख फिर हाथ न आवे.जो साख चली जाए वो दोबारा नहीं आती.
  44. गई सोभा दरबार की सब बीरबल के संग.बीरबल से ही अकबर के दरबार की शोभा थी. बीरबल की मृत्यु के बाद अकबर के दरबार में वह बात नहीं रही.
  45. गऊ संतन के कारने, हरि बरसावें मेंह.अच्छे लोगों के हित के लिए प्रभु जो भी कृपाएं प्रदान करते हैं उनसे अच्छे बुरे सब का भला हो जाता है.
  46. गए कटकरहे अटक.बिना बात के किसी काम में फंस जाना.
  47. गए को सबने सराहा है.व्यक्ति के मरने के बाद सब उसकी सराहना करते हैं.
  48. गए गंगा जी और लाए बालू.किसी महत्वपूर्ण स्थान पर जा कर कोई क्षुद्र चीज ले आना.
  49. गए थे रोजा छुड़ानेउल्टे नमाज गले पड़ी(गए थे नमाज छुडानेरोजे गले पड़े). एक छोटी मुसीबत से पीछा छुड़ाने की कोशिश कर रहे थे, उससे बड़ी मुसीबत गले पड़ गई.
  50. गए बिचारे रोजे, और रहे दस बीस.कोई कठिन कार्य करना पड़ रहा हो तो मन में यह भाव रखना चाहिए कि काम बहुत कठिन नहीं है और अब थोड़ा ही तो बचा है, निबट जाएगा.
  51. गए शेर को कंकड़ मारे.शेर चला गया तो उस के पीछे कंकड़ फेंक रहे हैं. बनावटी बहादुर.
  52. गगरी दाना, सूत उताना.सूत – शूद्र. गगरी में अनाज होने पर तुच्छ व्यक्ति इतराने लगता है. 
  53. गज भर के गाजी मियाँ, नौ गज की पूंछ.बहुत अधिक तामझाम और दिखावा.
  54. गजगेंडाकायर पुरुषएकहि बार गिरन्तछत्रिय सूर सपूत नरगिर गिर उठत अनंत.(बुन्देलखंडी कहावत) हाथी, गेंडा और कायर पुरुष एक बार गिर कर फिर उठ नहीं पाते. क्षत्रिय, शूर वीर और सुपुत्र गिर कर भी बार बार उठते हैं.
  55. गठरी बाँधी धूल की रही पवन से फूलगाँठ जतन की खुल गई रही धूल की धूल.मानव जीवन की क्षणभंगुरता के विषय में सुन्दर कथन. मनुष्य का शरीर हवा से फूली हुई धूल की गठरी की तरह है. गाँठ खुलते ही केवल धूल ही बचती है.
  56. गठरी संभालमधुरी चालआज न पहुंचबपहुंचब काल.भोजपुरी कहावत. सामान संभाल कर रखो और आराम से चलो, भले ही थोड़ा देर से पहुँच जाओ.
  57. गडर प्रावाही लोक (संसार भेड़चाल है).जैसे भेड़ें बिना सोचे समझे एक के पीछे एक चलती हैं वैसे ही संसार के लोग एक दूसरे की नकल करते हैं.  
  58. गढ़ की शान कंगूरे बताते हैं.कौन सा गढ़ कितना शानदार है यह उसके कंगूरे देख कर ही मालूम हो जाता है. 
  59. गढ़िया लोहार का गाँव क्या.महाराणा प्रताप के लिए हथियार बनाने वाले लुहार जाति के लोगों ने यह शपथ ली थी कि जब तक राणा को मेवाड़ का राज्य नहीं मिल जाता तब तक वे बस्तियों में नहीं बसेंगे. उन के वंशज (जोकि गढ़िया लोहार कहलाते हैं) अभी तक घुमंतू जीवन व्यतीत कर रहे हैं.
  60. गढ़े कुम्हार भरे संसार.कुम्हार घड़ा बनाते हैं, सब लोग उससे पानी भरते हैं. एक आदमी की कृति से अनेक लोग लाभ उठाते हैं.
  61. गढ़े सुनारपहने संसार.सुनार सुंदर गहने बनाता है जिन्हें सारा संसार पहनता है. कार्य ऐसा ही करना चाहिए जिससे खुद की जीविका भी चले और संसार लाभान्वित भी हो.
  62. गढ़ों और मठों के बंटवारे नहीं होते.जिस प्रकार वारिसों के बीच संपत्ति का बंटवारा होता है उस प्रकार से राज्य और मठ का बंटवारा न कर के किसी एक ही व्यक्ति को उत्तराधिकारी बनाया जाता है. बंटवारे से राजसत्ता और धर्मसत्ता कमजोर होती है.
  63. गणेश के ब्याह में सौ विघ्न.जो व्यक्ति हमेशा दूसरों की सहायता करता हो, उसका खुद का कोई काम न हो रहा हो तो मजाक में यह कहावत कही जाती है. 
  64. गणेश को बुद्धि कौन दे.गणेश जी स्वयं बुद्धि के स्रोत कहलाते हैं, उन्हें बुद्धि कौन दे सकता है. बहुत विद्वान या समझदार व्यक्ति को कौन समझा सकता है.
  65. गणेशजी का चौक पूजा, मेंढक जी आन विराजे.किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति के लिए कोई प्रबंध किया जाए और ओछा व्यक्ति उसका लाभ उठाए तो. जो व्यक्ति अपने को बहुत होशियार समझता हो उस का मजाक उड़ाने के लिए भी ऐसे बोला जाता है.
  66. गदहा गावे, ऊंट सराहे.गदहा गा रहा है और ऊँट सराहना कर रहा है. जब एक मूर्ख व्यक्ति दूसरे मूर्ख की तारीफ़ करे तो. संस्कृत में इस प्रकार कहा गया है – उष्ट्रानां विवाहेषु गीत: गायन्ति गर्दभ:, परस्परं प्रशंशंति अहो रूप: अहो ध्वनि.
  67. गदहा पीटे धूल उड़े.मूर्ख व ढीढ आदमी को दंड देने से कोई लाभ नहीं होता.
  68. गदहा मरे कुम्हार काऔर धोबन सती होए.किसी और के दुःख पर अनावश्यक शोक मनाना.
  69. गधा अगर सोने से लदातो भी रहे गधे का गधा.कोई बहुत पैसे वाला व्यक्ति हो पर उसे बातचीत का सलीका न हो या व्यवहारिक ज्ञान न हो तो यह कहावत कही जाती है. इंग्लिश में कहावत है – An ass remains an ass, even if laden with gold.
  70. गधा की पीठ गधा ही खुजावे.मूर्ख ही मूर्ख के काम आता है.
  71. गधा क्या जाने कस्तूरी की गंध.मूर्ख व्यक्ति बहुमूल्य वस्तुओं का मूल्य नहीं समझ सकता.
  72. गधा क्यों नहाए गंगा, घूरा ही चंगा.गधा गंगा में क्यों नहाएगा (उसे गंगाजी का महत्व क्या मालूम), वह तो घूरे में लोटने में ही खुश है. मूर्ख व्यक्ति को सत्पुरुषों की संगति अच्छी नहीं लगती.
  73. गधा खेत खायकुम्हार मारा जाय.कोई मातहत गलती करे और मालिक उसका दंड भुगते तो.
  74. गधा गंगाजल का माहात्म्य क्या जाने.मूर्ख व्यक्ति किसी अनमोल चीज़ का महत्व नहीं समझ सकता.
  75. गधा गया दुम की तलाश में, कटा आया कान.चौबे जी छब्बे बनने गए, दुबे बन कर लौटे.
  76. गधा गिरा पहाड़ से और मुर्गी के टूटे कान.किसी बिलकुल अनजान व्यक्ति की परेशानी से यदि कोई अत्यधिक दुखी हो रहा हो तो.
  77. गधा घूरा देख कर ही रेंके.मूर्ख व्यक्ति निकृष्ट वातावरण में ही प्रसन्न होता है.
  78. गधा घोड़ा एक भाव.जहाँ योग्य व्यक्ति की पूछ न हो.
  79. गधा चरे खेतन पाप न पुन्यगाय चरे तो पुन्य तो होता.यदि किसी के खेत में गधा चर रहा हो तो वह उसे क्यों चरने दे. अगर गाय चर रही हो तो कम से कम पुन्य तो मिलेगा. कोई ऐसा आदमी आपकी पूँजी खा रहा हो जिससे आपको कोई फायदा न हो तो यह कहावत कही जाती है.
  80. गधा धोने से बछड़ा नहीं हो जाता.कितना भी प्रयास करो मूर्ख आदमी अक्लमंद नहीं बन सकता.
  81. गधा पानी पिए घंघोल के.गधा तो गधा ही है. गड्ढे में भरे पानी में गन्दगी बैठ जाती है और ऊपर साफ़ पानी होता है. बाकी जानवर ऊपर का साफ़ पानी पीते हैं, पर गधा पानी को जोर से हिला कर पीता है जिससे गन्दगी पानी में घुल जाती है. मूर्ख व्यक्तियों के मूर्खतापूर्ण कार्य के लिए कहावत.
  82. गधा पीटे घोड़ा नहीं होता.कितना भी प्रयास करो मूर्ख व्यक्ति बुद्धिमान नहीं बन सकता.
  83. गधे का जीना थोड़े दिन भला.गधे जैसी जिंदगी हो तो थोड़े दिन ही जीना बेहतर है.
  84. गधे का पूत गधा.मूर्ख लोगों की संतान भी मूर्ख होती हैं.
  85. गधे का मूंह कुत्ता चाटे तो क्या बिगड़े.दो मूर्ख या निकृष्ट लोग एक दूसरे से प्रेम करें या एक दूसरे को नुकसान पहुँचाएं, तो हमें क्या.  
  86. गधे की खातिर सर मुंडवायाकिसी मूर्ख व्यक्ति के प्रति अत्यधिक प्रेम प्रदर्शित करना.
  87. गधे की पूँछ पकड़ाई. किसी को ऐसे फालतू के काम पर लगा देना, जिससे लाभ कुछ न हो बल्कि हानि की संभावना हो.
  88. गधे की बगल में गाय बाँधी तो वह भी रेंकने लगी.संगत का असर (कुसंगति कथय किम् न करोति पुंसाम).
  89. गधे की रेंक और ओछे की प्रीत घटती जाती है.दो बिल्कुल अलग दृष्टान्तों को जोड़ कर हास्यपूर्ण ढंग से कोई बात कहना कहावतों की विशेषता होती है. जैसे गधे की रेंक पहले तेज और बाद में धीमी हो जाती है वैसे ही ओछे व्यक्ति की प्रीत शुरू में अधिक और बाद में कम हो जाती है.
  90. गधे के ऊपर वेद लदे, गधा न वेदी होय.गधे के ऊपर पुस्तकें लादने से वह ज्ञानी नहीं हो जाता.
  91. गधे को गधा ही खुजाता है.मूर्ख व्यक्ति की जरूरतों को मूर्ख ही पूरा कर सकता है.
  92. गधे को गुलकंद(गधे को जाफरानगधे को हलुआ पूड़ीगधे को अंगूरी बाग़). अयोग्य व्यक्ति को ऐसी वस्तु मिल जाना जिसके वह बिलकुल योग्य न हो.
  93. गधे को दिया नोनगधा कहे मेरे दीदे फोड़े.गधे को किसी ने नमक खाने को दिया. गधा तो गधा ही ठहरा. उसने नमक का हाथ आँख में लगा लिया. आँख में तकलीफ हुई तो नमक देने वाले को कोसने लगा कि तुमने मेरी आँख फोड़ दी. किसी के भले के लिए कोई काम करो और वह उल्टा आपको कोसे तो यह कहावत कहते हैं.
  94. गधे गुड़ हगने लगें तो गन्ने कौन पेरे.(बुन्देलखंडी कहावत) आसानी से कोई चीज़ मिल जाए तो कोई मेहनत क्यों करेगा इस बात को मजेदार ढंग से कहा गया है.
  95. गधे घोड़े एक भाव.जहाँ प्रतिभाशाली व्यक्ति की कोई कद्र न हो.
  96. गधे पर जीन कसने से घोड़ा नहीं होतामूर्ख व्यक्ति को अच्छे कपड़े पहना दो तो वह योग्य नहीं हो जाता.
  97. गधे पर हाथी की झूल.बेमेल काम.
  98. गधे में ज्ञान नहींमूसल की म्यान नहीं (मूरख के ज्ञान नहींदरांती के म्यान नहीं).गधे (मूर्ख व्यक्ति) में ज्ञान नहीं होता और मूसल या दरांती की म्यान नहीं होती.
  99. गधे से गिरा और गाँव से रूठा.बिना बात रूठने वालों पर व्यंग्य.
  100. गधे से हल चले तो बैल कौन बिसाय.बैल को पालना गधे के मुकाबले बहुत महंगा है. अगर गधा हल चला लेता तो बैल कौन पालता. अगर सस्ती चीज़ से काम चले तो कोई महंगी चीज़ क्यों लेगा.
  101. गधे ही मुल्क जीत लें तो घोड़ों को कौन पूछे.गधे की कीमत भी घोड़े से बहुत कम होती है और रख रखाव भी बहुत सस्ता होता है, लेकिन युद्ध लड़ने के लिए घोड़े ही चाहिए जोकि बहुत महंगे होते हैं. अगर सस्ती चीज़ से पूरा काम निकल जाए तो महंगी चीज़ को कौन पूछेगा. (जो टट्टू जीते संग्राम, को खर्चे तुर्की को दाम).
  102. गधों की यारी में लातों की तैयारी.गधे से दोस्ती करोगे तो दुलत्ती खानी पड़ेगी. मूर्ख व्यक्ति से दोस्ती करना खतरे से खाली नहीं है.
  103. गधों के गले में गजरा.अयोग्य व्यक्ति को बहुमूल्य परन्तु बेमेल चीज़ मिल जाना.
  104. गन्दी बोटी का गन्दा शोरबा.1घटिया कच्चा माल तो घटिया उत्पाद. नीच मां बाप की नीच संतान.
  105. गन्ना बहुत मीठा होता है तो उसमें कीड़े पड़ जाते हैं.ज्यादा सज्जनता मुसीबत बन जाती है.
  106. गन्ने से गंडेरी मीठीगुड़ से मीठा रालाभाई से भतीजा प्यारासब से प्यारा साला.रिश्तों की मिठास को प्रकट करने वाली कहावत.
  107. गम न हो तो बकरी पाल लो.बकरी पालने में बहुत परेशानियाँ उठानी पडती हैं.
  108. गया बदरी, काया सुधरी.बद्रीनाथ की यात्रा करने से स्वास्थ्य लाभ होता है.
  109. गया मर्द जिन खाई खटाईगई रांड जिन खाई मिठाई.पहले के लोग समझते थे कि खटाई खाने से पौरुष शक्ति कम हो जाती है और विधवाओं से यह अपेक्षा की जाती थी कि किसी प्रकार का सुख न भोगें.
  110. गया माघ दिन उनतीस बाकी.माघ का एक दिन बीतने के बाद कह रहे हैं कि माघ खत्म हो गया, बस उन्तीस दिन बाकी हैं. अति उत्साह की मूर्खतापूर्ण पराकाष्ठा.
  111. गया वक्त फिर हाथ नहीं आता.बीता हुआ समय और खोया हुआ अवसर पुन: हाथ नहीं आते.
  112. गरज का क्या मोल(गरज दीवानी होय). किसी वस्तु की बहुत अधिक आवश्यकता होने पर उसकी मुंह मांगी कीमत देनी पड़ती है.
  113. गरज का बावला अपनी गावे.जरूरतमंद आदमी अपनी ही कहता है.
  114. गरज मिटी गूजरी नटी.दूध का काम करने वाले लोग अधिकतर गुर्जर जाति के होते थे. उनकी पत्नी गूजरी कहलाती थी. जब तक गूजरी को आप से कोई काम है वह रोज खीर खिलाती है. जैसे ही उस का काम निकल गया वह छाछ देने को भी मना कर देती है. (गरज दीवानी गूजरी, नित्य जिमावे खीर, गरज मिटी गूजरी नटी, छाछ नहीं रे बीर).
  115. गरज रहे तो चाकर, गरज मिटी तो ठाकुर (गर्ज पड़े मन और है, गर्ज मिटे मन और).जब तक अपना स्वार्थ था तब तक जी हुजूरी करते रहे. स्वार्थ पूरा हो जाने के बाद ऐंठ दिखाने लगे.
  116. गरब का बिरछा, कबहुं नहीं हरियाए.(बुन्देलखंडी कहावत) गरब – गर्व, घमंड, बिरछा – वृक्ष. घमंड का पेड़ कभी फलता फूलता नहीं है, अर्थात घमंड बहुत दिन नहीं टिकता.
  117. गरीब का बेली राम.निर्धन का सहायक ईश्वर है.
  118. गरीब की आहें मोटी होती हैं, बाहें नहीं.गरीब अपने सताने वाले को पीट नहीं सकता, केवल बद्दुआ दे सकता है. लेकिन उस में भी असर होता है.
  119. गरीब की कौड़ी टेंट में.गरीब अपनी छोटी सी पूँजी को भी संभाल कर रखता है. टेंट – अंटी.
  120. गरीब की खाय, जड़ मूल सों जाए.गरीब के हक को मारने वाला समूल नष्ट हो जाता है.
  121. गरीब की जवानी, बहता पानी.गरीब की जवानी व्यर्थ ही चली जाती है.
  122. गरीब की जोरू सब की भौजाई.गरीब पर सब जोर जमाते हैं.
  123. गरीब की बछिया को रंभाना मना.गरीब को अपनी व्यथा कहने का भी अधिकार नहीं है.
  124. गरीब की सच्ची गवाही भी झूठी.गरीब की बात पर कोई विश्वास नहीं करता.
  125. गरीब की हायसरबस खाय.गरीब को नहीं सताना चाहिए, उस की हाय व्यक्ति को बर्बाद कर देती है. (कबीरदास ने कहा है – दुर्बल को न सताइए, जाकी मोटी हाय). 
  126. गरीब के लिए तो बाल-बच्चे ही धन है.अर्थ स्पष्ट है.
  127. गरीब को मत सता गरीब रो देगागरीब की हाय पड़ी तो जड़ मूल खो देगा.अर्थ स्पष्ट है.
  128. गरीब को मिट्टी भी भारी.गरीब को अपने सगों का अंतिम संस्कार करना भी बहुत भारी पड़ता है.
  129. गरीब को मुहूर्त कैसा, जब चाहे चल पड़े.गरीब शगुन असगुन का विचार नहीं कर सकता. जब काम होगा उसे जाना ही पड़ेगा.
  130. गरीब को सरग में भी बेगार.एक गरीब आदमी रोज की बेगार से तंग आ कर मरने की सोच रहा था, तो जमींदार ने कहा कि तुझे स्वर्ग में भी बेगारी में काम करना पड़ेगा, इससे अच्छा तू यहीं रह. (चमार को अर्श पे भी बेगार).
  131. गरीब ने रोजे रखे तो दिन ही बड़े हो गए.गरीब कोई अच्छा काम करना चाहता है तो उसमें भी बहुत सी अड़चनें आती हैं.
  132. गरीबी गुनाहों की जननी है.गरीब व्यक्ति मज़बूरी में अपराध करता है.
  133. गरीबी तेरे तीन नाम लुच्चागुंडाबेईमानअमीरी तेरे तीन नाम परसा परसी परसराम.गरीब को सब लुच्चा, लफंगा और बेईमान कहते हैं जबकि वही अगर अमीर हो जाए तो उस से इज्ज़त से बात करने लगते हैं. गरीब को परसा कहते थे, उस पे थोड़ा पैसा आया तो परसी भाई कहने लगे और वह सम्पन्न हो गया तो परशुराम जी कहने लगे.
  134. गरीबी से बढ़ कर कोई भाईचारा नहींगरीब लोग मुसीबत में एक दूसरे का साथ निभाते हैं, जबकि अमीर लोग आड़े समय में मुँह मोड़ लेते हैं.
  135. गर्जमंद की अकल जाए, दर्दमंद की शकल जाए.जब व्यक्ति बहुत गर्जमंद होता है तो उस की अक्ल काम नहीं करती और जिस व्यक्ति को बहुत बड़ा शारीरिक कष्ट हो रहा हो उसकी सुन्दरता नष्ट हो जाती है.
  136. गलमिल गलकट सुरसुर हाय हाय.मुसलमानों के चार मुख्य त्यौहारों पर कही गई कहावत. गलमिल – गले मिलने वाली मीठी ईद, गलकट- बकरा काटने वाली बकरीद, सुरसुर – पटाखे छोड़ने वाली शबेरात, हाय हाय – शोक मनाने वाली मुहर्रम.
  137. गलियारे में टट्टी बैठे और उल्टे आँख दिखाए.गलियारे में शौच कर रहा है और मना करने पर अकड़ रहा है. चोरी और सीनाजोरी.
  138. गले पड़ीबजाए सिद्ध.कोई आदमी मजबूरी में कोई काम करे और लोग उसे महान समझ लें तो यह कहावत कही जाती है. 
  139. गले पड़े का सौदा.कोई जिम्मेदारी जबरदस्ती गले पड़ जाए तो.
  140. गले में ढोल पड़ा, रो के बजाओ चाहे गा के (गले में ढोल पड़ा है बजाना ही पडेगा).जो जिम्मेदारी आप के ऊपर पड़ी है उसे निभाना तो पड़ेगा ही, हँस के निभाओ या रो कर यह आप के ऊपर है.
  141. गले में सिगड़ी बंधी है.जो लोग हर समय गुस्से में रहते हैं उन का मजाक उड़ाने के लिए.
  142. गहना चांदी का, नखरा बांदी का.गहना चांदी का अच्छा लगता है और दासी के नखरे अच्छे लगते हैं.
  143. गहनों वस्त्र उधार कोकभी न धरिए अंग.उधार के वस्त्र और गहने कभी नहीं पहनने चाहिए.
  144. गहरा बोने वाला और रिश्वत देने वालाघाटे में नहीं रहते.बीज को गहरा बोने में मेहनत अधिक लगती है लेकिन उपज अच्छी होती है इसलिए सब वसूल हो जाता है. रिश्वत देने में पैसा खर्च होता है लेकिन व्यक्ति उस से अधिक लाभ कमा लेता है.
  145. गहिर न जोते बोवे धानसो घर कुठला भरे किसान.धान की बुआई के लिए खेत को गहरा नहीं जोतना होता है. (घाघ)
  146. गाँठ का गवाऊँ न लोगों साथ जाऊँ.जो आदमी बिल्कुल जोखिम लेने को तैयार न हो.
  147. गाँठ का जाए और जग हँसाई होय.जिस का नुकसान होता है उसी पर लोग हँसते हैं. 
  148. गाँठ का देय और बैरी होय.किसी को उधार दे कर आप उससे दुश्मनी पाल लेते हैं.
  149. गाँठ का पैसासाथ की जोरूवक्त पर यही काम आते हैं.पैसा वही काम आता है जो अपने पास हो (उधार में बंटा हुआ न हो) और पत्नी वही काम आती है जो साथ रहती हो.
  150. गाँठ का भरम क्यूँ गवाऊँ.बाजार में किसी की कितनी साख है यह इस बात पर निर्भर करता है कि उसके पास कितना नकद पैसा है. कुछ लोगों के पास पैसा न भी हो तब भी उनकी हवा बंधी रहती है. ऐसे किसी व्यक्ति का कथन.
  151. गाँठ गिरह से मद पीवेलोग कहें मतवाला.शराब ऐसी चीज़ है कि आदमी अपना पैसा खर्च कर के पीता है तो भी मतवाला समझा जाता है.
  152. गाँठ में जमा रहे तो खातिर जमा.जिस व्यक्ति का धन उस के पास रहता है वह निश्चिंत रहता है.
  153. गाँव करे सो पगली करे.जैसा सब गाँव के लोग करते हैं पगली उन की नकल करती है. बिना सोचे समझे किसी के नकल करने वाले पर व्यंग्य.
  154. गाँव का छोरा छोरादूजे गाँव का दूल्हा.गाँव के लड़के की शादी होती है तो उसे दूल्हे वाली इज्जत नहीं मिलती, वह छोरा ही कहलाता है. दूसरे गाँव के लड़के को दूल्हे राजा और जमाई बाबू कह कर सत्कार किया जाता है.
  155. गाँव की छवि चौक से और घर की छवि द्वार से.कोई गाँव कितना उन्नत और समृद्ध है यह उस के चौक को देख कर समझा जा सकता है, इसी प्रकार घर के द्वार को देख कर गृह स्वामी की हैसियत जानी जा सकती है.
  156. गाँव के गडढे पोखर अंधा भी जाने.गाँव के लोग उन्हीं रास्तों पर चलते चलते इतने अभ्यस्त हो जाते हैं कि वे आँख बंद कर के भी चल सकते हैं.
  157. गाँव जलेडोम त्यौहारी मांगे.किसी का कितना भी नुकसान हो रहा हो क्षुद्र लोगों को केवल अपने स्वार्थ से मतलब होता है.
  158. गाँव जले, नंगे को क्या.यहाँ नंगे से तात्पर्य बेशर्म आदमी से भी हो सकता है और अत्यधिक गरीब से भी. गाँव के जलने का इन दोनों पर कोई फर्क नहीं पड़ता.
  159. गाँव न माने पगले को और पगला न माने गाँव को.जो व्यक्ति स्वयं पागल या मूर्ख है वह और सब को पागल और मूर्ख समझता है.
  160. गाँव बसा नहींबिलैंया लोटन लगीं.जब कोई नया गांव बसता है तो आसपास के जंगल से बिल्लियां आकर वहां डेरा डाल लेती हैं. इस कथन का शाब्दिक अर्थ है कि गांव के बसने से पहले ही बिल्लियां डेरा डाल रही हैं. कहावत का अर्थ है – कोई लाभप्रद काम होने से पहले ही फ़ालतू और मुफ्तखोरों का जमा हो जाना.
  161. गाँव में धोबी का छैल.धोबी का बेटा गाँव में छैला बना घूमता है क्योंकि वह शहर के लोगों के कपड़े पहनता है (जो कपड़े लोग धोने के लिए देते हैं).
  162. गाए गीत का गाना क्या, पके धान का पकाना क्या.किसी काम को बार बार करने में आनंद नहीं आता.
  163. गागर में सागर.बहुत कम शब्दों में बहुत बड़ी बात कह देना.
  164. गाजर की पूंगीबजी तो बजीनहीं तो तोड़ खाई.हर तरह से उपयोगी वस्तु.
  165. गाजे न बाजेदूल्हे राजा आय बिराजे.कोई बड़ा आदमी बिना किसी पूर्व सूचना और तैयारी के अचानक आ जाए तो.
  166. गाडर (भेंड़) पाली ऊन को बैठी चरे कपास.भेड़ इसलिए पाली कि ऊन मिलेगी पर वह तो सारी कपास चर गई. 
  167. गाडर पाली ऊन को, बैठी चरे कपास, बहू लाया काम को, बैठी करे फरमास.उपरोक्त कहावत में यह बात जोड़ दी गई है कि बहू लाए थे यह सोच कर कि कुछ काम धाम करेगी, पर वह बैठ कर फरमाइशें कर रही है.
  168. गाड़ी का पहिया और मर्द की जुबान फिरती ही अच्छी.जो मर्द अपनी बात पर कायम न रहें उन के लिए व्यंग्य.
  169. गाड़ी का सुख गाड़ी भर, गाड़ी का दुख गाड़ी भर.गाड़ी जब तक चलती है तब तक बहुत सुख देती है, जब बिगड़ती है तो दुख भी बहुत देती है. यही बात गृहस्थी पर भी लागू होती है.
  170. गाड़ी कुत्ते के बल नहीं चलती.एक कुत्ता बैलगाड़ी के नीचे चल रहा था. उसे यह गलतफहमी हो गई कि गाड़ी को वही चला रहा है. चलते चलते उसे गुस्सा आया कि वह गाड़ी क्यों चलाए. वह रुक गया. लेकिन गाड़ी ऊपर से निकल गई. कोई व्यक्ति बिना किसी उपयोगिता के अपने आप को बहुत महत्वपूर्ण सिद्ध करने की कोशिश कर रहा हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.
  171. गाड़ी के पाड़ी बंधी हुई है.किसी व्यक्ति ने अपने पड़ोसी से कुछ देर के लिए बैलगाड़ी उधार मांगी. देने वाले का मन नहीं था तो उस ने बहाना बनाया कि गाड़ी में पड़िया बंधी हुई है इसलिए नहीं दे सकते.
  172. गाड़ी तो चलती भली, ना तो जान कबाड़.गाड़ी जब तक चलती रहे तभी तक उपयोगी है, अन्यथा कबाड़ के समान है. यही बात मनुष्य पर भी लागू होती है.
  173. गाड़ी देख लाड़ी के पावँ भारी.लाड़ली बेटी अच्छी खासी पैदल चल रही थी. तब तक रिक्शा दिख गया. उसको देख कर कहने लगी माँ मेरे पैरों में दर्द हो रहा है. कोई सुविधा उपलब्ध हो तो हर कोई उसे भोगना चाहता है.
  174. गाड़ी पे सूप का क्‍या भार (चलती गाड़ी में चलनी का क्या भार) (गाड़ी भर नाज में टोकरी का क्या बोझ).जो व्यक्ति बहुत सी जिम्मेदारियाँ उठा रहा हो उस को छोटे मोटे काम से क्या परेशानी.
  175. गाड़ी भर अनाज की मुट्ठी बानगी.गाड़ी में लदा हुआ अनाज कैसा है यह एक मुट्ठी देख कर ही जाना जा सकता है. किसी समाज के विषय में जानकारी उस के एकाध व्यक्ति को देख कर ही हो सकती है.
  176. गाड़ी भर बोया, पल्लू भर पाया.बहुत अधिक परिश्रम का बहुत थोड़ा प्रतिफल.
  177. गाड़ीवान की नार सदा दुखिया.गाड़ी चलाने वाले को अधिकतर घर से बाहर रहना पड़ता है इसलिए उस की पत्नी दुखी रहती है. ट्रकों पर भी अक्सर लिखा होता है – कीचड़ में पैर दोगी तो धोना पड़ेगा, ड्राइवर से शादी करोगी तो रोना पड़ेगा.
  178. गाते गाते कीरतनिया हो जाते हैं.कीरतनिया – कीर्तन करने वाले. गाने का अभ्यास करते करते सभी अच्छे गायक बन जाते हैं. 
  179. गाना और रोना कौन नहीं जानता.ये मनुष्य के मूलभूत गुण हैं.
  180. गाय का दूध सो माय का दूध.गाय का दूध मां के दूध के सामान गुणकारी है.
  181. गाय का बछड़ा मर गया तो खलड़ा देख पनिहाय.खलड़ा – भूसा भरी हुई बछड़े की खाल (बछड़े का पुतला). पनिहाना – थन में दूध उतरना. किसी के प्रियजन की मृत्यु हो जाने पर उस से मिलती जुलती शक्ल सूरत वाले को देख कर भी प्रेम उमड़ता है. पशुओं में भी माँ की ममता की यही पराकाष्ठा देखने को मिलती है.
  182. गाय की भैंस क्या लगे.किसी व्यक्ति से हमारा कोई संबंध नहीं है यह बताने का हास्यपूर्ण तरीका.
  183. गाय को अपने सींग भारी नहीं होते.अपने प्रिय सगे सम्बन्धी कभी बोझ नहीं लगते.
  184. गाय गुण बछड़ा पिता गुण घोड़ाबहुत नहीं तो थोड़ा थोड़ा.गाय के बछड़े में माँ के गुण होते हैं जबकि घोड़े के बछड़े में पिता के गुण होते हैं.
  185. गाय जने, बैल की दुम फटे (गाय बियाए पीर बैल को), (बिल्ली बच्चा जने, बिलौटे को पीर आवे).बच्चा जनना – बच्चा पैदा करना, पीर आना – दर्द होना. किसी दूसरे की परेशानी में अत्यधिक परेशान होने वाले पर व्यंग्य.
  186. गाय तिरावे, भैंस डुवाबे.डूबता आदमी यदि गाय की पूँछ पकड़ ले तो गाय उसे पार करवा देती है, जबकि भैंस डुबो देती है.
  187. गाय तैरी, भैंस तैरी, बकरी बिचारी डूब मरी.बड़ी आपदाओं को बड़े लोग तो झेल लेते हैं पर छोटे बेचारे मटियामेट हो जाते हैं. 
  188. गाय दुही और कुत्तों को पिलाया (गाय दुही और गधे को पिलाया).परिश्रम से अर्जित किए हुए धन को बर्बाद कर देना. घर के लोगों से छीन कर अपात्रों को बांटना.
  189. गाय दूब से सलूक करे तो क्या खाय.गाय दूब का लिहाज करेगी तो क्या खाएगी. दूकानदार अगर सब ग्राहकों से दोस्ती कर लेगा तो पैसा किस से कमाएगा. (घोड़ा घास से यारी करेगा तो क्या खाएगा).
  190. गाय न बच्छीनींद आवे अच्छी.गाय पालना बहुत जिम्मेदारी का काम है. जिस व्यक्ति के पास ऐसी कोई जिम्मेदारी न हो वह चैन से सोता है.
  191. गाय न हो तो बैल दुहो.कुछ न कुछ कर्म करो चाहे उससे कुछ हासिल न हो.
  192. गाय बाँध के रखी जाए सांड नाहीं. सारी बंदिशें स्त्रियों के लिए ही हैं, पुरुषों के लिए कुछ नहीं.2. सीधे आदमी के लिए ही सब कानून हैं, दबंग के लिए नहीं.
  193. गाय बैल मर गए, कुत्ते के गले घंटी.योग्य व्यक्तियों के न रहने पर अयोग्य लोगों की चांदी हो जाना.
  194. गाय भी हाँ और भैंस भी हाँ.हर बात में हाँ में हाँ मिलाना.
  195. गाय मार के जूता दान.बहुत बड़ा पाप कर्म कर के थोड़ा सा दान कर देना और पुण्यात्मा बनने का ढोंग करना.
  196. गाय रतन निगल गई.अत्यधिक दुविधा की स्थिति. गाय को मार कर बहुमूल्य रत्न को निकाल भी नहीं सकते.
  197. गायें तो मालिकों की हैं, ग्वाले का अपना तो फकत लट्‌ठ.गरीब और मजदूर का अपना कुछ नहीं होता.
  198. गायों के भाग से बर्षा होवे.वर्षा होती है तो गायों को घास पत्ते आदि प्रचुर मात्रा में खाने को मिलते हैं. कहावत का अर्थ है कि गरीब और बेसहारा लोगों के लिए ही ईश्वर पानी बरसाते हैं मनुष्य के कर्म तो ऐसे हैं कि वर्षा हो ही न.
  199. गायों को घास, कुतियों को मलीदा.अयोग्य व्यक्तियों को विशेष सुविधाएं.
  200. गाल कट जाए पर चावल न उगले.बहुत कंजूस या बेशर्म आदमी के लिए.
  201. गाल बजाए हू करैं गौरीकन्त निहाल.गाल बजाना – अपनी प्रशंसा स्वयं करना, गौरीकंत – भगवान शंकर. ऐसे व्यक्तियों के लिए जो किसी की सहायता नहीं करते केवल बड़ी बड़ी बातें करते हैं और आश्वासन देते हैं. 2. इससे उलट इसका यह अर्थ भी हो सकता है कि जो व्यक्ति उदार होते हैं वे सहज में ही प्रसन्न हो जाते हैं.
  202. गाल बजाने से कोई बड़ा नहीं हो जाता.गाल बजाना – अपनी बड़ाई करना. अपनी प्रशंसा स्वयं करने से कोई बड़ा नहीं हो जाता.
  203. गाल वाला जीतेमाल वाला हारे.जो बातें बनाने में तेज हो वह जीत जाता है और पैसे वाला उसके सामने हार जाता है.
  204. गालियों से कोई गूमड़े पड़ते हैं.कोई आपको डंडा मार देगा तो सर पर गूमड़ा पड़ जाएगा, लेकिन गाली देगा तो कोई नुकसान थोड़े ही होगा, इसलिए कोई गाली दे तो मारपीट पर उतारू नहीं होना चाहिए.
  205. गाली और तरकारी खाने के लिए ही बने हैं.कोई आप को गाली दे उसका बुरा नहीं मानना चाहिए.
  206. गाली मत दे किसी को, गाली करे फसादगाली सूं लाखों हुए, लड़ भिड़ कर बरबाद.किसी को गाली देना शर्तिया लड़ाई का नुस्खा है.
  207. गावे तो सीठनालड़े तो गाली.सींठना – विवाह इत्यादि में गाई जाने वाली हंसी मजाक की गालियाँ. विशेष अवसर पर वही बात हंसी मजाक मानी जाती है जो लड़ाई के समय गाली मानी जाती है. 
  208. गिदधों को कौन न्योता देता है.गिद्धों को कोई निमंत्रण नहीं भेजता, वे तो लाश देख कर अपने आप चले आते हैं. दुष्ट और अवसरवादी लोगों को कोई बुलाने नहीं जाता, वे अपने आप पहुँच जाते हैं.
  209. गिद्ध की आँख पिड़की निकाले.पिड़की जैसा छोटा सा पक्षी भी गिद्ध की आँख निकाल सकता है. किसी को बहुत कमज़ोर समझने की भूल नहीं करना चाहिए.
  210. गिद्ध को मौत से प्यार.लाशों पर पलने वाले गिद्ध यही चाहते हैं कि आदमी और जानवर मरते रहें. घटिया नेताओं और पत्रकारों पर व्यंग्य.
  211. गिनी गाय में चोरी नहीं हो सकती.अपनी धन संपदा का ठीक से हिसाब रखा जाए तो उसमें चोरी नहीं हो सकती.
  212. गिनी बोटीनपा शोरबा.जहाँ हिसाब किताब बिल्कुल साफ़ हो.
  213. गिने को गिनावेटोटा हो जावे.गिना हुआ धन बार बार गिनने से उसमें घाटा हो जाता है.
  214. गिने गिनाए नौ के नौ.एक गाँव के नौ बुनकरों ने अच्छे अच्छे वस्त्र बुने और अच्छे पैसे मिलने की आशा में उन्हें ले कर शहर की ओर चले. रास्ते में जंगल में बेरों की झाड़ियों में पके हुए बेर देख कर सब का मन चल आया. बेर खाने के लिए सब इधर उधर बिखर गए. छक कर बेर खाने के बाद सब इकट्ठे हुए तो चलने से पहले मुखिया ने सब की गिनती की, लेकिन उसने अपने को नहीं गिना. कई बार गिना पर हर बार आठ ही निकले. वहाँ रोना पीटना पड़ गया. एक घुड़सवार उधर से निकला तो उन से पूछा क्या माजरा है. उन की समस्या सुन कर वह मन ही मन हँसा और बोला, अगर मैं तुम्हारा खोया हुआ आदमी ढूँढ़ दूँ तो क्या दोगे. बुनकर बोले हम ये सारे बहुमूल्य वस्त्र तुम्हें दे देंगे. घुड़सवार ने उन्हें लाइन से खड़ा किया और हर आदमी को कोड़ा मारते हुए पूरे नौ गिन दिए. वे सारे मूर्ख ख़ुशी ख़ुशी सारे वस्त्र उसे दे कर जान बचने की ख़ुशी मनाते हुए अपने गाँव लौट गए.
  215. गिने पूए संभाल खाए.धन संपत्ति को ठीक से गिन कर रखा जाए तो उस का प्रबन्धन आसान हो जाता है..
  216. गिरगिट की दौड़ बिटौरे तक.बिटौरा – कंडों का ढेर. तुच्छ आदमी की सोच सीमित ही होती है. (देखिये परिशिष्ट) 
  217. गिरता पत्ता यूं कहै, सुन तरुवर बनराय, अबका बिछड़ा कब मिलूं, दूर पड़ूँगा जाय. गिरता हुआ पत्ता कहता है कि हे तरुवर! अब दूर जा पडूंगा, पता नहीं बिछुड़ने पर फिर कब मिलना हो.
  218. गिरधर वहां न बैठिएजंह कोऊ दे उठाए.जहाँ सम्मान न हो उन लोगों के बीच नहीं बैठना चाहिए.
  219. गिरा सत्तू पितरों को दान.सत्तू गिर गया, खाने लायक नहीं रहा तो पितरों को दान कर के पुण्य कमा रहे हैं. ढोंगी धर्मात्मा.
  220. गिरी पहाड़ से रूठी भतार से.किसी की नाराजगी किसी और पर उतारना. 
  221. गिरे का क्या गिरेगा.जिसकी कोई इज्ज़त न हो उसकी क्या बेइज्ज़ती हो जाएगी. जो जमीन पर गिरा हुआ है उसका क्या सामान गिर जाएगा.
  222. गिरे का क्या गिरेगा.जो आदमी पहले ही गिरा हुआ है उसके पास से क्या गिर सकता है. यहाँ गिरे हुए का अर्थ ओछे व्यक्ति से भी हो सकता है और अत्यधिक गरीब से भी.
  223. गिरे तो देव के पगों में पड़े.गिरे तो लेकिन देवता के चरणों में गिरे. (ऐसे गिरने से कोई नुकसान नहीं हुआ बल्कि लाभ हो गया). नुकसान के साथ में ही भरपाई भी हो जाना.
  224. गिरे पड़े वक्त का टुकड़ा.बुरे समय में काम आने के लिए बचा कर रखा गया धन या वस्तु.
  225. गिरे पे चार लात जमाना.ऐसे बनावटी बहादुरों पर व्यंग्य जो लड़ने की हिम्मत नहीं रखते पर गिरे हुए पर लात जरूर जमाते हैं.
  226. गिलहरी की दौड़ पीपल तक.छोटा व्यक्ति छोटी सोच ही रखता है. 
  227. गीदड़ की तावल से बेर नहीं पकते.तावल – उतावलापन, जल्दबाजी. गीदड़ के चाहने से बेर जल्दी नहीं पक जाते. उतावले लोगों को सीख देने के लिए.
  228. गीदड़ की मौत आती है तो वह शहर की ओर भागता है.गीदड़ अगर शहर में घुसेगा तो मार दिया जायेगा. यदि कोई कमजोर और डरपोक व्यक्ति दुस्साहस दिखाने का प्रयास करता है तो उसकी मजाक उड़ाने के लिए यह कहावत कही जाती है.
  229. गीदड़ गिरा गड्ढे मेंआज यहीं रहेंगे.अपनी गलती से विपत्ति में पड़े व्यक्ति द्वारा यह दिखावा करना कि उसे कोई परेशानी नहीं है.
  230. गीदड़ ने मारी पालथी, अब मेह बरसेगा तभी उठेगा.अत्यधिक गर्मी होने पर गीदड़ पालथी मार लेता है और पानी बरसने पर ही उठता है. कोई मूर्ख व्यक्ति अपनी बात पर अड़ जाए तो.
  231. गीदड़ पट्टा.कुत्तों के डर से सियार बस्ती में जाने से डरते हैं. एक सियार को संयोग से एक पुराना कागज मिल गया तो उसने अपनी जमात इकट्ठी की. कागज दिखाकर बोला – मैंने गाँव का पटटा ले लिया है. अब कोई कुत्ता हम पर नहीं भौंक सकता. चलो गाँव चलते हैं. सबसे आगे मैं चलूँगा. सियारों की बिरादरी को पट॒टे वाली बात समझ में आ गई. वे सभी उसके पीछे-पीछे गॉव की ओर चले. पर गाँव में घुसते ही कुत्तों की फ़ौज भौंकते हुए उन पर टूट पड़ी. मुखिया सियार वापस भागने में सबसे आगे था. साथियों ने  कहा – भाग क्यों रहे हो? गाँव का पट्टा दिखाओ. तब उस सियार ने और जोर से भागते हुए कहा – ये सभी अनपढ़ हैं, फिर किसे पट्‌टा दिखाऊँ. जान बचाकर भागो, वरना बेमौत मारे जाओगे.
  232. गुजरे लोगन की निंदा अजोग है.मरे हुए लोगों की निंदा नहीं करना चाहिए. इंग्लिश में कहावत है – Speak well of the dead.
  233. गुड़ अँधेरे में खाओ तो मीठा, उजाले में खाओ तो भी मीठा (गुड़ तो अंधेरे में भी मीठा लागे).अर्थ स्पष्ट है.
  234. गुड़ कड़वा लगे तो जानो ज्वर का जोर.बिना बात मुँह कड़वा हो रहा हो तो बुखार की संभावना होती है.
  235. गुड़ की चोट थैली जाने.थैली में रखे गुड़ को तोड़ने के लिए थैली को उठाकर पत्थर पर पटका जाता है. गुड़ मीठा होता है पर थैली पर भीतर से चोट तो करता ही है. कोई मीठा दिखने वाला व्यक्ति चुपचाप किसी को चोट पहुँचाए तो.
  236. गुड़ खाए गुलगुलों से परहेज करे.जो लोग परहेज नहीं करते लेकिन परहेज का दिखावा बहुत करते हैं उनके लिए यह कहावत है.
  237. गुड़ गुड़ कहने से मुंह मीठा नहीं होता.सिर्फ बातें बनाने से कोई काम नहीं होता.
  238. गुड़ से मीठी क्या ईंटें.इस कहावत का प्रयोग उसी प्रकार किया जाता है जैसे – नेकी और पूछ पूछ.
  239. गुड़ से मीठी जुबान.जुबान से बहुत मीठी बोली बोली जा सकती है.
  240. गुड़ हर दफै मीठा ही मीठा.गुड़ को जितनी बार भी खाओगे मीठा ही लगेगा. जो फायदे की बात है वह हर समय अच्छी ही लगेगी.
  241. गुड़ होता गुलगुले करतीआटा उधार मांग लातीनिगोड़ो तेल ही नाय है.पास में कुछ भी न हो तब भी मंसूबे बांधना.
  242. गुड़ियों के ब्याह में चियों का नेग.चिया – इमली का बीज. जैसा बचकाना आयोजन, वैसी बचकानी भेंट.
  243. गुण मिलें तो गुरु बनाए चित्त मिले तो चेलामन मिलें तो मीत बनाए वरना रहे अकेला.गुरु उसी को बनाना चाहिए जिसमें बहुत से गुण हों, चेला उसी को बनाना चाहिए जिससे विचार मिलते हों और मित्र उसी को बनाना चाहिए जिससे मन मिलता हो. 
  244. गुणवान सब जगह पूजा जाता है. जबकि राजा केवल स्वदेश में पूजा जाता है.
  245. गुणों के अनुसार प्रतिष्ठा होती है.अर्थ स्पष्ट है.
  246. गुदड़ी से बीबी आईंशेखजी किनारे हो.कोई ओछा व्यक्ति थोड़ा बहुत अधिकार पाकर अत्यधिक इतराने लगे तो.
  247. गुनके गाहक सहस नरबिन गुन लहै न कोय.गुणों की कद्र सभी लोग करते हैं. बिना गुणों के कोई आपको नहीं पूछता. (गिरधर की एक कुंडली से).
  248. गुनवंती के नौ मायके, गली गली ससुराल.जिस में गुण होते हैं उस की सब जगह पूछ होती है.
  249. गुनिया तो औगुन तजेगुन को तजे गंवार.जो गुणवान है वह अपने अवगुणों को त्यागने का प्रयास करता है और जो मूर्ख है वह अपने भीतर छिपे गुणों को ही त्याग देता है.
  250. गुनियां तो गुण कहेनिर्गुनिया देख घिनाय.गुणों को पहचानने वाला व्यक्ति हर चीज़ में गुण देखता है और जिस में स्वयं कोई गुण नहीं है या जिसे गुणों की पहचान नहीं है वह हर चीज़ को बेकार समझ कर घृणा करता है.
  251. गुनियों की कमी नहीं, पारखियों की कमी है.गुणवान लोग बहुत हैं, उन्हें परखने वाले पारखी चाहिए. 
  252. गुपचुप बुलाईऊंट चढ़ी आई.गुप्त रूप से कोई काम करने लिए किसी को चुपचाप बुलाया और वह बेबकूफ दिखावा करता हुआ आया.
  253. गुप्तदान महापुण्य.वैसे तो सभी प्रकार के दान करने से पुन्य मिलता है लेकिन गुप्त दान (बिना अपना नाम प्रदर्शित किए) सबसे बड़ा पुन्य है क्योंकि इस में व्यक्ति को अपने नाम की भूख नहीं होती.
  254. गुबरारी की रानी भईरानी की गुबरारी.(बुन्देलखंडी कहावत) गुबरारी – गोबर उठाने वाली. भाग्य से ही सब मिलता है. गोबर उठाने वाली रानी बन सकती है और रानी गोबर उठाने वाली.
  255. गुबरैले के लिए तो गोबर ही गुड़. जो जिस परिवेश में रहता है उसको वही अच्छा लगता है. 2. निकृष्ट व्यक्ति निकृष्ट परिवेश में ही खुश रहता है.
  256. गुरु कहै सो करोकरे सो न करो.गुरु के उपदेशों का पालन करो, गुरु जो करते हैं उसकी नकल मत करो. (गुरु में कोई गलत आदत भी हो सकती है).
  257. गुरु की चोटविद्या की पोट.गुरु की मार से ही विद्या आती है.
  258. गुरु की विद्या गुरु को फली.जहाँ कोई शिष्य गुरु से कोई विद्या सीख कर गुरु को लाभ पहुँचाए. (यदि अत्यधिक हानि पहुँचाए तो भी व्यंग्य में यह कहावत बोलते हैं).
  259. गुरु कुम्हार सिष कुंभ हैगढ़ि-गढ़ि काढ़ै खोटअन्तर हाथ सहार दैबाहर बाहै चोट.गुरु कुम्हार के समान है और शिष्य घड़े के समान. कुम्हार अन्दर से हाथ का सहारा देता है और बाहर से चोट कर के घड़े के टेढ़े पन को दूर करता है. इसी प्रकार गुरु शिष्य को सहारा भी देता है और दंड दे कर उसके दोष दूर करता है.
  260. गुरु गुरु विद्यासिर सिर ज्ञान.हर गुरु से विद्या ग्रहण की जा सकती है और हर व्यक्ति से ज्ञान.
  261. गुरु तो ऐसा चाहिए ज्यों सिकलीगर होएजनम जनम का मोरचा छिन में डाले खोए.सिकलीगर – छुरी कैंची पर धार रखने वाला. गुरु ऐसा होना चाहिए जैसा छुरी पर धार रखने वाला होता है. कितनी भी पुरानी जंग (अज्ञान) हो उसे साफ़ कर दे.
  262. गुरु बिन मिले न ज्ञानभाग बिन मिले न संपति.गुरु के बिना ज्ञान और भाग्य के बिना सम्पत्ति नहीं मिल सकती.
  263. गुरु मारे धमधमविद्या आवे छमछम.गुरु के धमाधम कूटने से ही विद्या आती है.
  264. गुरु शुक्र की बादरीरहे शनीचर छाएकहे घाघ सुन घाघनीबिन बरसे नहिं जाए.घाघ कवि के अनुसार बृहस्पति से शनिवार तक यदि बादल छाए रहें तो वर्षा अवश्य होती है.
  265. गुरु से चेला सवाया.जब चेला गुरु से अधिक योग्य या दुष्ट हो तो.
  266. गुरु से पहले चेला माल खाए.गुरु से पहले चेला माल खाता है क्योंकि उस के जरिये ही माल गुरु तक पहुँचता है. रिश्वतखोरों के दलालों के विषय में भी ऐसा ही कहा जा सकता है.
  267. गुरु से पहले चेला मार खाए.जहाँ तक मार खाने (पिटने) का सवाल है तो वह भी गुरु से पहले चेला ही खाता है क्योंकि वह ज्यादा आसानी से उपलब्ध होता है और गुरु को बचाने की कोशिश भी करता है.
  268. गुरुबैद अरु जोतसीदेवमंत्रि औ राजइन्हें भेंट बिन जो मिलेहोए न पूरन काज.गुरु, वैद्य, ज्योतिषी, देवता, मंत्री और राजा, इनसे जो भी बिना भेंट लिए मिलता है उसका कार्य पूर्ण नहीं हो सकता.
  269. गुरू कीजै जान केपानी पीजै छान के.किसी व्यक्ति के विषय में पूरी छानबीन कर के ही उसे अपना गुरु बनाना चाहिए, और पानी हमेशा छान कर पीना चाहिए.
  270. गुरू गुड़ रह गए चेला चीनी हो गया.चेला गुरु से अधिक काबिल हो जाए तो.
  271. गुरू से कपट मित्र से चोरीया हो निर्धन या हो कोढ़ी.गुरु से कपट और मित्र से चोरी करने वाला या तो निर्धन हो जाएगा या कोढ़ी. यहाँ कोढ़ से आशय असाध्य बीमारी से है.
  272. गुलगुला भावेपर गुड़ घी आटा कहाँ से आवे.गुलगुले सब को अच्छे लगते है पर उनको बनाने के लिए सामान हर किसी को उपलब्ध नहीं है. अपनी हैसियत देख कर ही मन ललचाना चाहिए.
  273. गुलाब में कांटे या कांटो में गुलाब.अपना अपना नज़रिया है, हाय गुलाब में कांटे हैं यह कह कर दुखी हो या काँटों जैसी विपरीत परिस्थितियों में भी गुलाब खिलते हैं, यह सोच कर आशान्वित हो.  
  274. गुस्सा बहुतजोर थोड़ामार खाने की निशानी.किसी आदमी में ताकत तो है नहीं पर गुस्सा बहुत है तो मार तो खाएगा ही.
  275. गू का कीड़ा गू में ही खुश रहता है.नीच आदमी अपने निकृष्ट परिवेश में ही खुश रहता है.
  276. गू का पूत नौसादर.लोगों की धारणा है कि नौसादर मल से बनाया जाता है. किसी निम्न कुल में कोई सपूत पैदा हुआ हो तो यह कहावत कही जाती है.
  277. गू का भाई पाद और पाद का भाई गूदो निकृष्ट लोगों के लिए हिकारत भरा कथन.
  278. गू के कीड़े को गुलाब जल में डालो तो मर जाए.निकृष्ट मनोवृत्ति वाले व्यक्ति को अच्छे परिवेश में रखो तो वह बहुत परेशान हो जाता है.
  279. गू खाए तो हाथी का जो पेट तो भरेबकरी की मींगनी क्या खाए जो दाढ़ भी न भरे.कहावत में शिक्षा दी गई है कि रिश्वत खाओ तो बड़ी खाओ, छोटी छोटी मत खाओ.
  280. गू भी कहे कि गोबर में बदबू.अपने अवगुण न देख कर दूसरों में कमियाँ निकालना.
  281. गू में कौड़ी गिरे तो दांतों से उठा ले.किसी महा कंजूस के लिए. आम तौर पर ऐसा कथन वे दिलजले लोग कहते हैं जो कंजूस के पास कुछ मांगने गये हों और उस ने देने से मना कर दिया हो.
  282. गू में न ढेला डालेन छींटें पड़ें.किसी नीच से बहस करना ऐसा ही है जैसा गू में ढेला डालना. गू में ढेला डालोगे तो छींटों से तुम्हारे ही कपड़े गंदे होंगे और नीच से बहस करोगे तो तुम्हारी ही बेइज्जती होगी.
  283. गूँगे वाला गुड़ (गूँगे वाला सपना), (गूँगा गुड़ खाये और मन-ही-मन मुस्काये).जो व्यक्ति अपनी प्रसन्नता को व्यक्त न कर पा रहा हो.
  284. गूंगाअंधाचुगदढ़िया और कानाकहें कबीर सुनो भई साधोइनको नहिं पतियाना.गूंगा, अंधा, छोटी दाढ़ी वाला और काना, इनका विश्वास नहीं करना चाहिए. वैसे यह एक निरर्थक कथन है जोकि कबीरदास का कहा हुआ हो ही नहीं सकता.
  285. गूंगी जोरू भलीगूंगा हुक्का न भला.हुक्का जब तक गुड़गुड़ न करे उसे पीने में मज़ा नहीं आता.
  286. गूंगे का कोई दुश्मन नहीं.क्योंकि उस को कुछ भी कह लो वह जबाब नहीं देता.
  287. गूंगे की सैन गूंगा जाने.सैन – इशारों की भाषा. गूंगे की भाषा गूंगा ही समझ सकता है.
  288. गूंगे के बैनमाँ समझे या भैन (बहन).गूंगे की बात उसकी माँ और बहन ही समझ सकती हैं.
  289. गूंगे के सैन को और न समझे कोयया समझे माई या समझे जोय.गूंगे के इशारों को माँ समझती है या पत्नी.
  290. गूंगे ने सपना देखामन ही मन पछताए.गूंगे ने सपना देखा, अब मन में परेशान हो रहा है कि सब को कैसे बताए. अपनी बात किसी को न समझा पाने का दर्द.
  291. गूजर का दहेज़ क्याबकरी या भेड़.गूजर दहेज़ में क्या देगा, भेड़ बकरी ही तो देगा. (उसका वही धन है).
  292. गूजर किसके असामीकलाल किसके मीत.गूजर बहुत अच्छे ग्राहक नहीं होते और शराब बेचने वाले किसी के दोस्त नहीं होते.
  293. गूजर से ऊजड़ भली.गूजर के पड़ोस से उजाड़ अच्छा.
  294. गूदड़ में गिंदौड़ा.गिंदौड़ा एक बढ़िया मिठाई का नाम है. कोई बहुत गुणवान व्यक्ति अत्यंत साधारण परिस्थितियों में रह रहा हो तो यह कहावत कहते हैं. (गुदड़ी का लाल).
  295. गूदड़ में लाल नहीं छिपता.प्रतिभाशाली व्यक्ति गरीबी में भी अपनी प्रतिभा की पहचान करा देता है.
  296. गृहस्थ का एक हाथ दुख में ओर एक हाथ सुख में.गृहस्थी में सुख और दुख दोनों बराबरी से लगे रहते हैं.
  297. गृहस्थ के पास कौड़ी न हो तो दो कौड़ी कासाधु के पास कौड़ी हो तो दो कौड़ी का.गृहस्थ के पास पैसा न हो तो उसकी कोई कद्र नहीं है और साधु के पास पैसा हो तो वह साधु ही नहीं कहलाएगा.
  298. गेंद खेल की और धन दोनों एक सुभायकर आवत छिन एक में छिन में कर से जाए.खेलने वाली गेंद और धन, इन दोनों का स्वभाव एक सा होता है. ये क्षण में आप के हाथ में आते हैं और क्षण में ही निकल जाते हैं.
  299. गेंवड़े आई बरातबहू को लगी हगास.गेंवड़ा – गाँव का बाहर का हिस्सा. गाँव के बाहर बरात आ गई है और बहू को शौच जाना है (बात उस समय की है जब शौच के लिए गाँव के बाहर जाना होता था). जरूरी काम के समय अगर कोई आदमी विकट समस्या ले कर बैठ जाए तो. (शिकार के वक्त कुतिया हगासी). हगास – शौच जाने की इच्छा.
  300. गेंवड़े खेती हम करी, कर धोबन से हेत, अपनी करी का से कहें, चरो गधन ने खेत.(बुन्देलखंडी कहावत) गाँव के पास के हिस्से को गेंवड़ा कहते हैं. वहाँ के खेत को गाँव के आवारा पशु चर जाते हैं. ऊपर से धोबन से प्रेम कर लिया तो उस के गधे ने भी खेत चर लिया. अपनी गलतियों से कोई नुकसान उठाए तो यह कहावत कही जाती है.
  301. गेंवड़े खेतीछप्पर सांपभाई भयकरनबादी बापये अच्छे नहीं होते.गाँव से लगा खेत, छप्पर में सांप, डराने वाला भाई और मुकदमेबाज बाप ये अच्छे नहीं होते.
  302. गेहूँ के साथ घुन भी पीसा जाता है.जब चक्की में गेहूं पीसा जाता है तो अगर कोई घुन भी गेहुओं के बीच हो तो पिस जाता है. जहां दोषी लोगों को सजा देने में कोई निर्दोष भी लपेटे में आ जाए तो यह कहावत कही जाती है. 
  303. गेहूं के साथ बथुए को भी पानी मिलता है.जब गेहूं की खेती की जाती है तो उसके बीच में जगह जगह पर बथुए के पौधे अपने आप निकल आते हैं. जब गेहूं जैसे महत्वपूर्ण पौधे को पानी दिया जाता है तो बथुए जैसे महत्व हीन पौधे को भी पानी मिल जाता है. आप अपने दोस्त के साथ उसकी ससुराल जाएं और वहां दामाद साहब के साथ आपकी भी खातिरदारी हो तो मजाक में यह कहावत कही जा सकती है.
  304. गैब का धन ऐब में जाए ऐब का धन गैब में जाए.गैब – अदृश्य शक्ति. बिना मेहनत के मिला धन गलत आदतों में खर्च होता है और गलत तरीकों से कमाया धन ईश्वर छीन लेता है.
  305. गैर का सिर कद्दू बराबर.दूसरे की जान को कोई जान नहीं समझता.
  306. गों निकलीआँख बदली. गों माने स्वार्थ. स्वार्थ सिद्ध हो जाने पर लोगों की आँख बदल जाती हैं, कृतघ्न मनुष्यों के विषय में ऐसा कहा जाता है.
  307. गोंद पंजीरी और ही खाएंजच्चा रानी पड़ी कराहें.जच्चा रानी – प्रसूता स्त्री. जिसको प्रसव हुआ है वह तो पड़ी कराह रही है और उसके लिए बनी हरीरा पंजीरी और लोग उड़ा रहे हैं. 
  308. गोकुल गाँव को पैड़ों न्यारो.अनोखी रीति.
  309. गोत्र वाली गाली तो कुत्ते को भी बुरी लगे.जाति सूचक गाली सभी को बुरी लगती है (कुत्ते को भी).
  310. गोद का खिलाया गोद में नहीं रहता.छोटा बच्चा हमेशा छोटा नहीं रहता, कभी न कभी बड़ा होता ही है. बड़ा होने के बाद उसका व्यवहार भी बदल जाता है.
  311. गोद में बैठ के आँख में उँगली (गोद में बैठ के दाढ़ी नोचे).अपने आश्रय देने वाले के साथ विश्वासघात करना.
  312. गोद मोल का छोरानिहाल किसको करे.गोद लिया हुआ या मोल लिया हुआ बेटा किसी को सुख नहीं दे सकता. जब वह बड़ा होता है तो लोग उसे बता देते हैं कि वह गोद लिया हुआ है इसलिए उस के मन में उतना प्रेम नहीं आ सकता.
  313. गोद लड़ायो छोकरो, चढ़ा कचहरी जाट, पीहर लड़ाई पद्मिनीतीनों बारहबाट. गोद लिया बेटा, कचहरी के चक्कर लगाने वाला जाट और मैके से लड़ कर आई स्त्री इन तीनों का भविष्य अच्छा नहीं होता.
  314. गोद वाले की बात न पूछे, पेट वाले को पुचकारे.वर्तमान पर ध्यान न दे कर केवल भविष्य के विषय में सोचना.
  315. गोबर का पुतला भी पहन ओढ़ कर अच्छा लगता है.अच्छे कपड़ों से व्यक्तित्व में निखार आता है.
  316. गोबर में कीड़ा पड़ेंपपीहा मीठे बोल सुनायअफीम चमड़ा गीले होंयवर्षा हो संशय न कोय.अर्थ स्पष्ट है.
  317. गोबर में तो गुबरैले ही पैदा होंगे.खराब परिवेश में तो नीच लोग ही पनपेंगे.
  318. गोबरमैलानीम की खलीया से खेती दूनी फली.जब कृत्रिम खाद का रिवाज़ नहीं था तो गोबर, मल और नीम की खली की खाद ही लगाई जाती थी. कहावत में कहा गया है कि इन से खेती दोगुनी हो जाती है.
  319. गोबर, राखी, पाती सड़ेफिर खेती में दाना पड़े.गोबर, राख और पत्तियों को सड़ा कर उनकी खाद बना कर खेत में डालो, उस के बाद बीज बोओ. (घाघ)
  320. गोरस बेचन हरिमिलनएक पंथ दो काज.एक काम करने से दो प्रयोजन सिद्ध हों. 
  321. गोरी तेरे संग में गई उमरिया बीतअब चाली संग छोड़ के ये न प्रीत की रीत.मरणासन्न व्यक्ति अपनी आत्मा से ऐसे कहता है. कोई बूढ़ा व्यक्ति अपनी मरणासन्न पत्नी से भी ऐसे कह सकता है.
  322. गोरे चमड़े पे न जावह है छछूंदर से बदतर.वेश्याओं से बचने के लिए सीख. 
  323. गोला और मूंज पराये बल ऐंठे. दास अपने स्वामी के बल पर अकड़ता है, मूंज भी पानी का बल पाकर ही  ऐंठती है.
  324. गोली को घाव भर जाएपर बोली को न भरे.कड़वी बोली और चुभने वाली बात कितना कष्ट पहुंचा सकती है इसको समझाने के लिए यह उदाहरण दिया गया है. 
  325. गोह के जाएसारे खुरदरे.गोह – छिपकली की जाति का बड़ा जानवर (बिस्खोपड़ी), जाए – पैदा किए हुए. गोह के सब बच्चे कुरूप ही होते हैं. कहावत का अर्थ है कि नीच लोगों की सभी संतानें नीच ही होती हैं.
  326. गोहरा के पाप से पीपला जले.गोह को मारने के लिए लोग पीपल को जला देते हैं. दुष्ट व्यक्ति की संगत अनजाने में ही आप के लिए बहुत खतरनाक हो सकती है.
  327. गौन के माल में गधे का क्या साझा.जानवरों की पीठ पर जिस बोरे में भर कर माल लादा जाता है उसे गौन कहते हैं. जिस माल को गधा ढोता है उसमें गधे का कोई हिस्सा नहीं होता. मेहनत करने वाले को व्यापार के लाभ में हिस्सा नहीं मिलता.
  328. गौमुखा नाहर.(राजस्थानी कहावत) ऊपर से गाय की तरह सीधा, अंदर से शेर जैसा खतरनाक. नाहर – सिंह.
  329. ग्रह बिना घात नहींभेद बिना चोरी नहीं.बुरे ग्रहों के प्रभाव से ही मृत्यु या कोई बड़ा नुकसान होता है और भेदिये द्वारा भेद देने से ही चोरी होती है. 
  330. ग्रहण का दान, गंगा का स्नान.ग्रहण के समय दान देने से विशेष पुण्य मिलता है.
  331. ग्रहण तो लगा ही नहींडोम घूमने लगे.पुरानी मान्यता है कि ग्रहण पड़ता हो (विशेषकर सूर्य ग्रहण) तो सफाई सेवकों और डोमों इत्यादि को दान देना चाहिए. इस प्रकार के लोग ग्रहण के समय बाहर निकल कर घूमने लगते हैं और आवाज लगाते हैं – दान करो, दान करो. कहावत में कहा गया है कि ग्रहण लगा ही नहीं और मांगने वाले आ गए. बिना उपयुक्त अवसर के लाभ लेने का प्रयास करने वाले लोगों के लिए.
  332. ग्रहण में डोमों की मौजसामान्य जनता के लिए ग्रहण को अनिष्टकारी माना गया है, लेकिन डोमों को ग्रहण में खूब दान मिलता है.
  333. ग्राहक और मौत का भरोसा नहीं होता. यह तोहर कोई जानता है की मौत का कोई भरोसा नहीं कब आ जाए. बुद्धिमान लोग व्यापार में लगे अपने से छोटे लोगों को यह सिखाते हैं कि दुकान छोड़कर गायब नहीं होना चाहिए. ग्राहक का कोई भरोसा नहीं कब आ जाए. अपनी बात को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए साथ में मौत का उदाहरण भी जोड़ दिया गया है.
  334. ग्राहक कभी गलत नहीं होता.व्यापार का नियम है कि ग्राहक की हाँ में हाँ मिलाना चाहिए. इंग्लिश में कहावत है – The customer is always right.
  335. ग्वाले के घर दूध हो तो दूधन नहीं नहाए.अगर किसी के पास कोई वस्तु अधिक मात्रा में उपलब्ध हो तो वह उसका दुरूपयोग थोड़े ही करता है.

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