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मंगती और छुआ छूत करे. मांगने वाले को यह अधिकार नहीं होता कि वह छुआछूत करे.

मंगते से माँगना जैसे बुढ़िया से सगाई. भिखारी से भीख माँगना और बूढ़ी औरत से विवाह करना एक समान हैं.

मंगनी का बैल चांदनी रात, जोत बड़े भाई सारी रात (मांगे का बैल, मशक्कत से जोतो). (बुन्देलखंडी कहावत). दूसरे की चीज को लोग बेरहमी से प्रयोग करते हैं. 

मंगनी की मिर्च है तो क्या आँखों में लगाओगे. मुफ्त की चीज का दुरूपयोग करने वालों के लिए.

मंगनी के बैल के दांत नहीं देखे जाते. बैल अच्छे गुण वाला है या नहीं इसकी पहचान उसके दांत देख कर की जाती है. अब अगर आप किसी से बैल मांग कर ला रहे हैं तो उसके दांत थोड़े ही गिनेंगे. मांगी हुई वस्तु में गुण दोष नहीं देखे जाते.

मंगनी के सतुआ, सास के पिंडा. मंगनी के सत्तू से सास का पिंडदान. पहली बात तो यह है कि सास का पिंडदान आप क्यों कर रहे हैं, साले को करना चाहिए. दूसरी बात आप के पास पैसा नहीं है तो दूसरों से माँग कर क्यों कर रहे हैं. अपनी सामर्थ्य न होने पर भी किसी अनावश्यक कार्य में टांग अड़ाने की मूर्खता करने वाले के लिए.

मंगनी के हल बैल मंगनी के बीया, हुआ तो हुआ नहीं तो बला से गया. मुफ्त की चीजों से व्यापार किया है तो हानि हो या लाभ, हमारी बला से. बीया – बीज.

मंगलवार परै दीवारी, हँसे किसान मरे व्यापारी. यदि दीपावली मंगलवार को पड़े तो फसल अच्छी होती है.

मंजिल पे पहुँच के लुटा कारवाँ. कार्य समाप्त होने से बिल्कुल पहले बिगड़ जाना.

मंडप में बैठी भैंस भी सुंदर लगती है. विवाह के समय सज संवर के सभी लड़कियां अच्छी लगती हैं.

मंडुए की रोटी पर चावल की खीर. बेढंगा काम. मंडुए की रोटी जैसी घटिया चीज के साथ चावल की खीर जैसे उत्कृष्ट खाद्य पदार्थ का क्या काम.

मंडुए के आटे में शर्त क्या. छोटी मोटी सस्ती चीज उधार देने में दुकानदार शर्तें नहीं रखता.

मकोड़ा कहे मां गुड़ की भेली उठा लाऊं, के अपनी कमर तो देख. अपनी सामर्थ्य देखे बिना कोई काम करने की योजना बनाने वालों के लिए यह कहावत कही जाती है.

मक्का मदिना द्वारिका, बद्री औ केदार, बिना दया सब झूठ है, कहै मलूक विचार. जिसके मन में दया नहीं है वह कितने भी तीर्थ कर ले, सब बेकार है.

मक्के गए न मदीने गए, बीच ही बीच में हाजी भए. कोई कार्य न कर के केवल उसका दिखावा करना और उससे लाभ लेने की कोशिश करना.

मक्के में रहते हैं पर हज नहीं करते. सारी सुविधाएँ उपलब्ध होते हुए भी कोई अच्छा काम न करना या फिर जो चीज़ सहज ही उपलब्ध हो उसकी कद्र न करना. 

मक्खी उड़ाने बैठे, संग जीमने लगे. सौंपा गया काम न कर के अपना स्वार्थ सीधा करना.

मक्खी खोजे घाव, दुश्मन खोजे दाँव. मक्खी अपने बैठने के लिए घाव ढूँढती है और दुश्मन वार करने के लिए मौका ढूँढ़ता है.

मक्खी छोड़े हाथी निगले. दिखावे के लिए छोटा मोटा लाभ छोड़ कर चुपचाप बड़ा घोटाला करना.

मक्खी बैठी शहद पर पंख लिए लपटाए, हाथ मले और सर धुने लालच बुरी बलाए. लालच में प्राणी की दुर्गति हो जाती है. लालच वश मक्खी शहद पर बैठ गई और शहद पंखों पर लग गया. अब वह कभी उड़ नहीं सकती.

मक्खी भी कुछ देख कर बैठती है. हर व्यक्ति अपना स्वार्थ देख कर ही कोई काम करता है.

मक्खी मारी पंख उखाड़े चींटे से रण जीता, मैं तो बहुत वीर मज़बूता. वीरता की डींग हांकने वाले डरपोक आदमी पर व्यंग्य. रूपान्तर – मक्खी मारुं पंख उखाडूँ, तोडूँ कच्चा सूत, लात मार कर पापड़ तोडूँ, मैं बनिए का पूत.

मखमल के परदे पर टाट का पैबंद. कीमती और सुरुचिपूर्ण वस्तुओं के बीच में कोई बदनुमा चीज़.

मगध देश कंचन पुरी, देश अच्छा भाषा बुरी. बिहार के लोगों की भाषा का मजाक उड़ाने के लिए.

मगर को डुबकी सिखाए वो मूर्ख. मगरमच्छ स्वयं डुबकी लगाने में माहिर होता है. जो उसे डुबकी लगाना सिखाने की कोशिश करेगा मगर उसे ही खा जाएगा. 

मगहर मरे सो गदहा होय (नरक में पड़े). लोक विश्वास है कि काशी में जो मरता है वह स्वर्ग जाता है जबकि पास के मगहर नामक स्थान में जो मरता है वह नर्क में जाता है या अगले जन्म में गदहा बनता है.

मगही पान औ पतली तिरिया, मिलें बड़े ही भाग. मगही पान को सब से उत्तम माना जाता है. मगही पान और तन्वंगी पत्नी बड़े भाग्य से मिलते हैं.

मच्छर को हमला भयो, हाथी ऊपर आज. हाथी के ऊपर मच्छर का हमला, हास्यास्पद बात.

मच्छर मार के ऐंठा सिंह. कोई कायर व्यक्ति अपनी बहादुरी के किस्से सुनाए तो उस का मजाक उड़ाने के लिए. 

मछली के जाए किन्ने तैराए. जाए – उत्पन्न किए हुए, बच्चे. मछली के बच्चे को तैरना कौन सिखाता है? (वे खुद ही तैरना सीखते हैं). युवाओं को यह सीख देने के लिए कि तुम्हें सब कुछ सिखाया पढ़ाया नहीं जाएगा, अपनी निर्णय लेने की क्षमता भी विकसित करो.

मछली के ठेके पे बिलाई रखवार (मांस के ढेर पे गिद्ध रखवार). बिल्ली को मछली के ठेके पर और गिद्ध को मांस के ढेर की पहरेदारी का काम देने की मूर्खता.

मछली खा के बगुला ध्यान. उन लोगों के लिए जो धार्मिक होने का ढोंग करते हैं और धार्मिकता की आड़ में चुपचाप गलत काम करते हैं. 

मछली तालाब में, मसाले कुटन लागे. किसी काम के प्रति अदूरदर्शिता और मूर्खतापूर्ण उत्साह.

मछली दे दो पर कहाँ से मिली ये न बताओ. अपनी आमदनी में से किसी की सहायता भले ही कर दो पर अपने व्यापार के भेद किसी को मत बताओ.

मजनू को लैला का कुत्ता भी प्यारा. यदि कोई व्यक्ति आपको प्रिय हो तो उस की हर चीज़ अच्छी लगती है.

मजबूर को उलाहना, ज्यूँ घाव पर ठेस. किसी मजबूर आदमी को बुरा भला कहना किसी के घाव पर नमक छिडकने जैसा है.

मजबूरी का नाम महात्मा गांधी. महात्मा गांधी जी से प्रभावित होकर बहुत से संपन्न लोगों ने सादा जीवन शैली अपनाई थी. बहुत से लोग ऐसे भी थे जिनके पास कुछ नहीं था इसलिए वे साधारण तरीके से रहने को मजबूर थे. उनमें से बहुत से लोग यह कहा करते थे कि हम महात्मा गांधी के चेले हैं इसलिए बहुत सादगी से रहते हैं. 

मजा मारें गाजी मियां, धक्का खाएं मुजाहिर. मुजाहिर – रक्षक. पीर लोग तो ऐश करते हैं और उनके रक्षक धक्के खाते हैं. यही बात राजनैतिक दलों पर भी लागू होती है. नेता मजे मारते हैं और समर्थक धक्के खाते हैं.

मजूरी में क्या हुजूरी. जो मेहनत मजदूरी करके पेट पालता है वह किसी की जी हुजूरी क्यों करेगा.

मजे के लिए चाचा, सलाह के लिए बाबा. मौज मस्ती चाचा के साथ अच्छी लगती है लेकिन गंभीर विषयों पर सलाह बाबा से ही ली जाती है. परिवार में हर व्यक्ति का अलग महत्व है.

मज्जन फल पेखिअ तत्काला, काक होहिं पिक बकहिं मराला. सत्संग रूपी गंगा में स्नान करने का फल तत्काल ही देखा जा सकता है, इसके प्रभाव से कौआ कोयल और बगुला हंस बन जाता है.

मझधार में नाव नहीं बदलनी चाहिए. कोई काम जब नाज़ुक मोड़ पर हो तो उस समय अपने साधन बदलने से बचना चाहिए. उदाहरण के लिए जब गंभीर मरीज आधा ठीक हो चुका हो तो डॉक्टर नहीं बदलना चाहिए.

मटका में पानी गरम, चिड़ी न्हावे धूर, चिऊंटी अंडा ले चले, तो वर्षा भरपूर. घाघ कवि ने अनुभव के आधार पर ऐसी बहुत सी कहावतें कही हैं. उनके अनुसार यदि मटके में पानी ठंडा नहीं हो रहा है, चिड़िया धूल में नहा रही है और चींटी अपना अंडा लेकर जा रही है तो भरपूर वर्षा होगी.

मट्ठा मांगन चली, और मलैया पीछे लुकाई. मलैया – छोटी मटकी, लुकाई – छिपाई. माँगने भी जा रही हैं और शर्म भी आ रही है.

मढ़ो दमामा जात नहिं सौ चूहों के चाम. बहुत सारे छोटे लोग मिल कर भी बड़ा काम नहीं कर सकते. सौ चूहों का चमड़ा भी लगा दिया जाए तो भी दमामा (बहुत बड़ा वाला ढोल) नहीं मढ़ा जा सकता. इस दोहे की पहली पंक्ति इस प्रकार है – रहिमन छोटे नरन सों बड़ो बनत नहिं काम.

मत कर सास बुराई, तेरे भी आगे जाई. बहू सास को सावधान कर रही है कि तू मेरे साथ बुरा व्यवहार मत कर. तेरी लड़की को भी ससुराल जाना है. जाई माने पुत्री.

मत चूको चौहान. किसी को सही काम के लिए जोश दिलाना हो तो यह कहावत कही जाती है. सन्दर्भ कथा – इस विषय में एक कथा कही जाती है (पता नहीं यह सच है या नहीं). पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गोरी को कई बार युद्ध में हराया लेकिन हर बार छोड़ दिया. अंत में एक बार गोरी धोखे से जीत गया तो उस ने पृथ्वीराज को बंदी बना कर उसकी आँखें फोड़ दीं और अपने साथ मुल्तान ले गया. पृथ्वीराज के दरबारी कवि चंदवरदाई ने गोरी से बदला लेने की योजना बनाई. उस ने गोरी के दरबार में जा कर कहा कि सम्राट पृथ्वीराज शब्दवेधी बाण चला सकते हैं.

    गोरी ने इस चमत्कार को देखने के लिए पृथ्वीराज को अपने दरबार में बुलाया. बात यह तय हुई कि एक घंटे पर हथौड़े से चोट की जाएगी और पृथ्वीराज उस घंटे पर तीर चला कर दिखाएंगे. चंदवरदाई ने पृथ्वीराज से कहा – चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान. इससे पृथ्वीराज ने गोरी की स्थिति का अनुमान लगा लिया. घंटे की आवाज के बाद जैसे ही गोरी ने कहा बाण चलाओ, पृथ्वीराज ने उसकी आवाज पर लक्ष्य कर के तीर चला दिया और गोरी मारा गया. इसके तुरंत बाद चंदवरदाई ने पृथ्वीराज के सीने में कटार घोंप दी और अपने पेट में भी कटार मार ली.

मतलब की मनुहार, जगत जिमावे चूरमा. अपना मतलब होता है तो संसार के लोग चूरमे जैसा उत्कृष्ट खाद्य पदार्थ भी खिलाते हैं. 

मतलब के दो बोल ही बहुत हैं. व्यर्थ की लम्बी चौड़ी बातों के मुकाबले अर्थ पूर्ण दो बातें अधिक उपयोगी हैं.

मतलब बनता लोग हंसे तो हंसने दो. अपना काम निकलता हो तो लोगों के हंसी उड़ाने की परवाह मत करो.

मद पिए जात लखाय. दारु पी कर आदमी अपना भेद खोल देता है. कोई व्यक्ति सम्भ्रांत लोगों के बीच रहता है और लोग उसे कुलीन समझते हैं. एक दिन वह सब के बीच बैठ कर शराब पी लेता है और नशे में उगल देता है कि वह किसी नीचे कुल का है या आपराधिक इतिहास वाला है.

मदिरा मानत है जगत, दूध कलाली हाथ. शराब बेचने वाले के हाथ में दूध का पात्र होगा तब भी लोग मदिरा ही समझेंगे. रूपान्तर – दूध कलारी कर गहे, मद समझे सब कोय.

मद्धिम आंचे रोटी मीठ. धैर्य और सलीके से किया गया काम अच्छा होता है. धीमी आंच में सिकी रोटी अधिक स्वादिष्ट होती है.

मधुर वचन ते जात मिट, टंटा अरु अभिमान, तनिक सीत जल सों मिटै जैसे दूध उफान. मीठा बोलने से झगड़े  और अभिमान मिट जाते हैं, जैसे थोड़े से ही शीतल जल से दूध का उफान शांत हो जाता है.

मधुर वचन सौ क्रोध नसाही. मधुर वचन बोलने से सौ क्रोध नष्ट हो जाते हैं.

मधुर वचन है औषधी, कटुक वचन है तीर. मधुर वचन घाव भर सकते हैं जबकि कड़वे वचन घाव कर सकते हैं.

मन करे कि पहनें हार, करम न लिखे भेड़ के बार. मन कुछ भी कहे, भाग्य में लिखे बिना मिलता कहाँ है. रूपान्तर – मन कहे बैठें चौतार, करम लिखे भेड़ी के बार. चौतार – कालीन.

मन का अंकुस ज्ञान. हाथी को वश में रखने के लिए महावत के पास जो औजार होता है उसे अंकुश कहते हैं. स्वेच्छाचारी मन को काबू में रखने के लिए ज्ञान अंकुश के समान है.

मन का अटका तन का झटका. जो मन में हार मान ले वह शरीर से भी हार जाता है. जो समय पर सही निर्णय नहीं ले पाता उसे धन व स्वास्थ्य सभी की हानि होती है.

मन का घाटा कि धन का. धन चला जाए तो इतना नुकसान नहीं होता, मन में घाटा मानो तभी घाटा होता है.

मन की मारी का से कहूँ, पेट मसोसा दे दे रहूँ. जब आप मन की बात किसी से न कह पा रहे हों और मन ही मन घुट रहे हों.

मन के मते न चालिए, मन के मते अनेक, जो मन पर अधिकार है, है कोई साधू एक. मन के कहने पर मत चलिए क्योंकि मन तरह तरह की बातें समझाता है. जो विवेकी पुरुष हैं वही मन पर अधिकार रख पाते हैं.

मन के मते न चालिए, मन है पक्का धूत. कहावत में यह समझाया गया है कि मन पक्का धूर्त होता है. मन के कहने पर चलेंगे तो यह आपको बहकाता रहेगा. अर्थात मनुष्य को संयम और विवेक से काम लेना चाहिए. इस दोहे की अगली पंक्ति है – ले डूबे मंझधार में, जाय हाथ से छूट.

मन के लड्डू फीके क्यूँ, मीठे हैं तो कमती क्यूँ. मन के लड्डू का अर्थ है केवल किसी बात की कल्पना कर के खुश होना. यदि लड्डुओं की कल्पना ही कर रहे हो तो फीके लड्डुओं की क्यों, खूब मीठे की करो और थोड़े क्यों, खूब ज्यादा की करो.

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत (मन जीते जग जीत). कहावत का अर्थ है कि जो अपने मन में हार मान लेता है वह निश्चित रूप से हार जाता है और जो जीत के लिए दृढ़ निश्चय कर लेता है वह अंततः जीत जाता है. कुछ लोग इसके पहले एक पंक्ति और बोलते हैं – यही जगत की रीत है यही जगत की नीत. 

मन चंगा तो कठौती में गंगा. (कठौती – लकड़ी से बना पानी रखने का बर्तन). गंगा नहाने को बहुत से लोग बड़े पुण्य का काम मानते हैं. लेकिन सब लोगों को तो गंगा नहाना नसीब नहीं होता. उन लोगों को दिलासा देने के लिए कहा जाता है कि यदि तुम्हारा मन शुद्ध है तो तुम्हारे लिए कठौती के पानी से नहाना ही गंगा नहाने के समान है. जैसे किसी बूढ़े या बीमार व्यक्ति के लिए तीर्थ यात्रा पर जाना संभव नहीं है तो उसके लिए घर के मंदिर में पूजा करना ही तीर्थ है. इसके पीछे संत रैदास जी की एक कहानी भी है. सन्दर्भ कथा – कठौती कहते हैं लकड़ी से बने पानी रखने के बर्तन को. कहते हैं कि एक बार संत रैदास ने कुछ यात्रियों को गंगास्नान के लिए जाते देख, उन्हें कुछ कौड़ियां देकर कहा कि उन्हें गंगा जी की भेंट कर देना, परंतु देना तभी जब गंगा जी साक्षात प्रकट होकर उन्हें ग्रहण करें. यात्रियों ने गंगा के समीप पहुंच कर कहा कि ये कौड़ियां संत रैदास ने दी हैं, आप इन्हें स्वीकार कीजिए. गंगा ने हाथ बढ़ाकर कौड़ियां ले लीं और उनके बदले में एक सोने का कंगन रैदास जी को देने के लिए दे दिया.

    यात्री वह कंगन रैदास जी के पास न ले जाकर राजा के पास ले गए और उन्हें भेंट कर दिया. रानी उस कंगन को देखकर इतनी विमुग्ध हुई कि उसकी जोड़ का दूसरा कंगन मंगाने का हठ कर बैठीं. पर जब बहुत प्रयत्न करने पर भी उस तरह का कंगन नहीं बन सका, तो राजा हारकर रैदास के पास गए और उन्हें सब वृत्तांत सुनाया. रैदास जी ने तब गंगा का स्मरण करके अपनी कठौती में से, जिसमें चमड़ा भिगोने के लिए पानी भरा रहता था, उस कड़े की जोड़ी निकाल कर दे दी.

मन चले कौ सौदा. जिसे जो वस्तु अच्छी लगती है वही खरीदता है.

मन चाहे हाथी चढ़ूँ, मोती पहनूँ कान, हाथ कतरनी राम के, कितना दे सन्मान. मनुष्य का मन तो सब प्रकार के सुख भोगने के लिए लालायित रहता है पर मिलता ईश्वर की इच्छा के अनुरूप ही है.

मन तो चले, पर टट्टू न चले. कुछ कार्य करने का मन तो बहुत कर रहा है पर शरीर साथ नहीं दे रहा. यौन शक्ति के सम्बन्ध में भी यह कहावत कही जाती है.

मन थिर किए सिद्धि सब पावे. मन को स्थिर करने पर ही सिद्धि पाई जा सकती है.

मन बिना मेल नहीं बाड़ बिना बेल नहीं. मेल तभी बढ़ता है जब मन मिलते हैं, बेल तभी बढ़ती है जब बाड़ का सहारा मिलता है.

मन भर धावे, करम भर पावे. व्यक्ति कितना भी प्रयास कर ले, पाएगा उतना ही जितना भाग्य में है. 

मन भाए तो ढेला सुपारी (ढेला भी गुड़). कोई व्यक्ति किसी रद्दी चीज़ को स्वाद ले कर खा रहा हो तो.

मन मन भावे, मूढ़ हिलावे. कोई काम करने का या कुछ खाने का आपका अंदर से बहुत मन कर रहा है पर ऊपर से आप मना कर रहे हैं तो यह कहावत कही जाती है. कहीं-कहीं पूरी कहावत इस प्रकार कही जाती है – मन मन भावे मूढ़ हिलावे, साजन से कहियो मोहे लेने को आवे.

मन मलीन तन सुन्दर कैसे, विष रस भरा कनक घट जैसे. किसी का शरीर सुन्दर हो पर मन मैला हो तो वह उसी प्रकार है जैसे विष से भरा हुआ सोने का घड़ा.

मन माने का मेला, नहिं तो सब से भला अकेला. जिसकी कहीं आने जाने में रूचि न हो उसे अकेले में ही अच्छा लगता है.

मन मारे औ पेट सुखावे, तब टका से भेंट करावे. रुपया कमाने के लिए इच्छाओं को मारना पड़ता है और भूखे प्यासे रहना पड़ता है.

मन मिले का मेला, चित्त मिले का चेला. दोस्ती और मौज मस्ती उसी के साथ की जा सकती है जिससे मन मिलता हो, शिष्य उसी को बनाया जा सकता है जिससे विचार मिलते हों.

मन में आए बेहयाई, तब ही खावें दूध मलाई. बेशर्म बन कर ही मौज उड़ाई जा सकती है.

मन में आन, बगल में छूरी, जब चाहे तब काटे मूरी. जिनके मन में कुछ और ही बात (ओछी बात) रहती है वे बगल में छुरी दबाए घूमते हैं, जिससे वे जब चाहे तब किसी का सिर काट सकें. मूरी – मूंड़, सर.

मन में बसे सो सुपने दसे. जो बातें हमारे मन में होती हैं वही सपने में दिखती हैं.

मन में मारीच कीन्ह विचारा, दौऊ भांत से मरन हमारा. मारीच से जब रावण ने स्वर्ण मृग बनने के लिए कहा तो मारीच ने सोचा कि उसे दोनों प्रकार से मरना ही है. स्वर्ण मृग बनेगा तो राम के हाथों शिकार होगा, नहीं बनेगा तो क्रोध से रावण मार देगा. किसी काम को करने या न करने में बराबर संकट हो तो.

मन मोतियों ब्याह, मन चावलों ब्याह. (मन – चालीस सेर) विवाह में सभी यथाशक्ति खर्च करते हैं. जिसके पास अथाह धन है वह मन भर मोती लुटाता है, जिसके पास कम पैसा है वह मन भर चावल खर्च करता है.

मन मोदक नहिं भूख बुझावें. मन के लड्डुओं से भूख नहीं मिटती.

मन मौजी, जोरू को कहे भौजी. मन मौजी का कोई भरोसा नहीं, वह पत्नी को भाभी भी कह सकता है.

मन राजा करम दरिद्री. मन तो बहुत बड़ी बड़ी बातें सोचता है पर भाग्य में नहीं है.

मन साँचा तो जग साँचा (मन साँचा तो सब साँचा). आप अपने मन में सत्य का अनुसरण करते हैं तो आप को संसार भी सच्चा लगता है.

मन सुखी तो तन सुखी. मन में आनंद हो तो शरीर भी स्वस्थ रहता है.

मन के मेड़ नहीं होती. मन पर कोई बंदिशें नहीं होतीं, वह किसी भी बात के लिए मचल सकता है.

मन, मोती औ दूध रस इनका एक सुभाय, फाटे पे जुड़ते नहीं कोटिन करो उपाय. मन रूपी मोती और दूध का स्वभाव एक सा होता है, ये एक बार फट जाएँ तो फिर नहीं जुड़ते.

मना करने वाले की खिचड़ी में ही घी डाला जाता है. जो मना करे उसी का अधिक आतिथ्य किया जाता है.

मनुज बली नहिं होत है समय होत बलवान, भीलन लूटीं गोपियाँ वहि अर्जुन वहि बान. समय अच्छा हो तो मनुष्य बलवान हो जाता है. समय खराब आने पर वही मनुष्य निर्बल हो जाता है. सन्दर्भ कथा – मनुष्य कितना भी योग्य और शूरवीर क्यों न हो समय उससे अधिक बलवान होता है. भगवान कृष्ण के गोलोक गमन और यादव पुरुषों के मारे जाने के बाद अर्जुन द्वारिका की स्त्रियों की सुरक्षा के लिए उन को अपने साथ हस्तिनापुर ले कर जा रहे थे. रास्ते में भीलों ने उन पर आक्रमण कर के उन स्त्रियों को लूट लिया. महाभारत के युद्ध को जीतने वाले अर्जुन, अपने उसी धनुष गांडीव और उन्हीं वाणों के होते हुए भी कुछ नहीं कर पाए.

मनुज मनोरथ छांड़ि दे, तेरा किया न होइ, पानी मैं घी नीकसै, रूखा खाइ न कोइ. मनुष्य को अपनी सभी इच्छाएँ पूरी करने की आशा छोड़ देनी चाहिए. पानी में घी निकलने लगे तो रूखा कोई नहीं खाएगा.

मनुवा जंजाली, तू कौन चिरैया पाली. हे मन! तूने यह कौन सी बला मोल ले ली. गृहस्थी के जंजाल के लिए.

मनुष्य अपना भाग्य स्वयं बनाता है. परिश्रम और व्यवहार मनुष्य के अपने हाथ में हैं, इन से ही सफलता मिलती है. इंग्लिश में कहावत है – Every man is the architect of his destiny.

मनुहार से बूढ़े नहीं ब्याहे जाते. बूढ़े आदमी से कोई युवा लड़की मान मनुहार से शादी नहीं कर लेती है, उस के लिए साम दाम दंड भेद प्रयोग करना पड़ता है.

मनौती सौ बार, पूजा एक बार. उन स्वार्थी भक्तों के लिए जो कोई काम अटका होने पर बार बार ईश्वर से कुछ चढ़ाने का वादा कर के मनौती मांगते हैं और काम पूरा होने के बाद मुकर जाते हैं.

मर जैहें पर टरिहैं नाहीं. (भोजपुरी कहावत) मर जाएंगे पर अपनी बात पे अड़े रहेंगे.

मर पड़ कर तो खसम किया, और वह भी हिजड़ा निकला. किसी तरह तो शादी की और पति हिजड़ा निकला. बहुत मुश्किल से कोई काम हुआ हो और उस में भी धोखा हो जाए तो.

मरखना बैल और टिमकुल जनी, इनके मारे रोवे धनी. टिमकुल – सजने धजने वाली, जनी – स्त्री. जिस किसान का बैल मरखना और स्त्री बनाव श्रृंगार करने वाली होती है वह सदैव कष्ट भोगता है.

मरखना बैल गली संकरी. अत्यंत संकट पूर्ण स्थिति. जैसे आप पतली गली में जा रहे हों और सामने से मरखना बैल आ जाए.

मरखना बैल भला, के सूनी सार. सार – पशुशाला. सार सूनी रहे इससे तो मरखना बैल अच्छा.

मरखनी के संग सीधी गाय, दोनों मार बराबर खाएँ. दुष्ट लोगों के साथ रहने में सीधे लोग भी दंड पाते हैं.

मरखनी गाय के गले में लटकन. गाय भैंस मरखनी या उद्दंड हो तो उस के गले में लकड़ी लटका देते हैं, उस को शांत करने के लिए भी और उस की पहचान के लिए भी.

मरघट को गओ कौन लौटत. मरघट का गया कौन लौटता है. गयी बात फिर हाथ नहीं आती.

मरता क्या न करता. जब मजबूरी में कोई ऐसा काम करना पड़े जो आप सामान्य परिस्थितियों में करना पसंद नहीं करते.

मरते के साथ कोई नहीं मरता (मरते के साथ आप न मरो). किसी प्रिय व्यक्ति की मृत्यु पर यदि कोई बहुत अधिक शोक ग्रस्त हो जाए तो उसे समझाने के लिए.

मरते मियाँ मल्हारें गाएं. मल्हार सावन में गाए जाने वाले मस्ती भरे गीतों को कहते हैं. उसी पर आधरित एक राग है मेघ मल्हार. किसी बहुत बीमार आदमी को शौक या मस्ती सूझ रही हो तो यह कहावत बोली जाती है.

मरते मूसे को गोबर सुंघा दिया. ऐसा मानते हैं कि मरते हुए चूहे को गोबर सुंघा दो तो वह जिन्दा हो जाता है. यदि आप किसी अयोग्य व अपात्र व्यक्ति को सजा मिलने से बचा लें तो व्यंग्य में यह कहावत कही जाएगी. भोजपुरी कहावत है – गोबर सुंघला से मुसरी जीओ.   

मरद की बात और गाड़ी का पहिया आगे को ही चलते हैं. सच्चा मर्द अपनी बात से पीछे नहीं हटता.

मरद के चाकर मरें, औरत के चाकर जीएँ. आदमी लोग नौकरों से बहुत काम लेते हैं जबकि औरतें उन का ध्यान रखती हैं.

मरद तो जुबान बांका, कोख बांकी गोरियां, गाय तो दुधार बांकी, तेज बांकी घोड़ियाँ. बांके से अर्थ यहाँ श्रेष्ठ से है. पुरुष वही श्रेष्ठ है जो जुबान का पक्का हो, स्त्री वह जो श्रेष्ठ संतान को जन्म दे, गाय वह अच्छी है जो दूध अधिक दे और घोडी वह अच्छी है जो तेज चले. 

मरन चली तो बदसगुनी हो गई. कोई स्त्री मरने के लिए जाने का नाटक कर रही है कि बिल्ली रास्ता काट जाती है. वह कहती है कि अपशकुन हो गया, अब मैं नहीं जाऊँगी. झूठ मूठ का नाटक करने वाली महिलाओं के लिए.

मरन पीछे बैद आए, मुँह बनाए घर गए. यदि वैद्य या डॉक्टर मरीज के मरने के बाद पहुँचता है तो उसे कोई नहीं पूछता. उसे चुपचाप लौट जाना होता है.

मरना भला बिदेस में जहां न अपना कोय, माटी खाए जनावरा उनका उत्सव होय. साधु प्रवृत्ति के व्यक्ति का कथन, मरना विदेश में अच्छा है जहाँ कोई जानता न हो, पशु पक्षी शरीर को खा लें, उनका भी भला हो जाए.

मरने के डर रोटी खावे. अत्यंत आलसी आदमी. रोटी खाने जितनी मेहनत भी इस लिए करता है कि नहीं खाएगा तो मर जाएगा.

मरने के बाद डोम भी राजा. मरने के बाद सभी की तारीफ की जाती है चाहे डोम हो या राजा. रूपान्तर – मरे पीछे डोम राज. मरने के बाद दुनिया खत्म हो जाती है. फिर चाहे डोम का राज हो क्या फर्क पड़ता है.

मरने के बाद बाबा को घी पिलाने से क्या लाभ. जो लोग जीवित माता पिता की सेवा नहीं करते और उनके मरणोपरांत कर्मकांड करते हैं उन पर व्यंग्य.

मरने को जी करे, कफन का टोटा. जो लोग बात बात पर मरने की धमकी देते हैं उन पर व्यंग्य. 

मरने से पहले ही भूतनी हो गई. किसी बहुत दुष्ट स्त्री पर व्यंग्य.

मरा मुर्दा आँख मारे. कहावतों में मिलने वाला उच्च कोटि का हास्य. उदाहरण के तौर पर कोई नखरे दिखाने वाली स्त्री किसी बहुत बूढ़े आदमी पर उसे छेड़ने का इल्जाम लगाए तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.

मरा रावन फजीहत होके. कोई दुष्ट हाकिम काफी लानत मलानत होने के बाद पद से हटा हो तो.

मरी बछिया बामन को दान. जो चीज़ किसी काम की न हो उसे दान कर के दानवीर बनना.

मरी सौत सतावे, काठ की ननद चिढावे. सौत इतनी बुरी होती है कि मर के भी परेशान कर सकती है और ननद इतनी बुरी होती है कि लकड़ी की बनी हो तब भी भाभी को लगता है कि मुँह चिढा रही है.

मरे का कोई नहीं सब जीते जी के साथ हैं. व्यक्ति के जीवित रहते जो लोग हर समय आगे पीछे घूमते हैं वे मरने के बाद उसे नहीं पूछते.

मरे कुत्ते को कोई लात नहीं मारता. मरे हुए कुत्ते को लात मारने में किसी का अहम संतुष्ट नहीं होता. जिन्दा कुत्ते को लात मारने से (विशेषकर अगर वह किसी बड़े आदमी का कुत्ता हो तो) अपने अहम की तुष्टि होती है.

मरे को क्या मारना. जो स्वयं ही पीड़ित है उसे पीड़ा देना ठीक नहीं है.

मरे को मारे शाह मदार. (दुबले मारे शाह मदार) पीर और शाह भी दुर्बल को ही सताते हैं.

मरे कोई और, स्वर्ग मैं जाऊं. निकृष्ट स्वार्थपरता.

मरे ढोर को किल्ली भी छोड़ देती हैं. जिससे कुछ मिलने की आशा नहीं होती परजीवी लोग उसे त्याग देते हैं.

मरे तो शहीद, मारे तो गाजी. मुस्लिमों को जिहाद (धर्म युद्ध) के लिए उकसाने के लिए कहा जाता है कि यदि तुम काफिरों (दूसरे धर्म वालों, विशेषकर मूर्तिपूजकों) से लड़ते हुए मारे गए तो तुम्हें जन्नत में शहीद का दर्ज़ा मिलेगा और काफिर को मार दोगे तो जिन्दा रहते हुए गाज़ी की उपाधि मिलेगी.

मरे न जिए, हुकुर हुकुर करे (मरे न जिए, खों खों करे). कोई बूढ़ा और बीमार व्यक्ति ठीक भी न हो रहा हो और मर भी न रहा हो तो अंततः प्रियजन भी तंग आ जाते हैं. इस से मिलती जुलती एक और कहावत है – मरे न खाट खाली करे.

मरे न मूसा सिंह से, मारे ताहि बिलार. (बिलार – बिल्ली). चूहे को शेर नहीं मार सकता, बिल्ली ही मार सकती है. कोई व्यक्ति कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, हर काम के लिए उपयुक्त नहीं हो सकता. 

मरे बाघ की मूँछ उखाड़े. कायर लोगों पर व्यंग्य. जो जीवित बिल्ली से भी डरते हों वे मरे हुए बाघ की मूंछें उखाड़ कर बहादुरी दिखाते हैं.

मरे बाबा के बड़े बड़े दीदे. बाबा जब तक जिन्दा थे तब तक तो उन्हें कोई पूछता नहीं था, अब उनके मरने के बाद उनकी छोटी छोटी खूबियाँ गिनाई जा रही हैं, जैसे कोई कह रहा है कि उन की आँखें बड़ी बड़ी थीं.

मरे मुक्ति केहि काज. मर कर कष्टों से मुक्ति मिले तो किस काम की. 

मरे लौं को नातो, मरे लों को बैर. मरने तक ही दुनिया से नाता रहता है और मरने तक ही किसी से बैर भाव.

मरे सरदार, लुटे भंडार. फ़ौज का सरदार मर जाए तो फ़ौज हार मान लेती है और दुश्मन सब लूट लेता है.

मरे हुए आदमी को मार कर कुछ नही मिलता. कमजोर को सताने से कुछ हासिल नहीं होता.

मर्ज बढ़ता ही गया ज्यों ज्यों दवा की. किसी समस्या को हल करने का प्रयास करने पर भी यदि वह बढ़े तो.

मर्द का एक कौल होता है. जो सही मानों में मर्द होते हैं वे अपनी बात पर अडिग रहते हैं.

मर्द का नहाना और औरत का खाना, किसी ने जाना किसी ने न जाना. दोनों काम बहुत जल्दी होते हैं

मर्द को गर्द जरूरी है. पुरुषों के लिए शारीरिक श्रम करना आवश्यक है.

मर्द को गर्द में रहना, हिजड़े की हवेली में नहीं. मर्द को शोभा देता है धूल मिट्टी में काम करना (मेहनत करना) न कि हिजड़ों के साथ रह कर बेशर्मी की कमाई खाना.

मर्द गया खटाई में, औरत गई ढिठाई में, दूकान गई ठठाई में. पहले के लोग मानते थे कि खटाई खाने से पुरुषों की यौनशक्ति कम हो जाती है इसलिए ऐसा कहा गया है कि मर्द ने खटाई खाई तो काम से गया, औरतें ढिठाई (हठ, त्रिया हठ) में जाती हैं और दूकान के बाहर यदि चार लोग खड़े हो कर हंसी ठठ्ठा करने लगें तो व्यापार चौपट हो जाता है.

मर्द तो मर्द है पांच का हो या पचास का. स्त्रियों को सलाह दी जाती है कि वे घर से बाहर जाएं तो किसी मर्द को साथ ले कर जाएँ. वे अगर किसी बच्चे को साथ ले जाएँ तो मजाक में यह बात कही जाती है.

मर्द बिगाड़े ताड़ी, खेत बिगाड़े राड़ी. मर्द को ताड़ी का नशा बर्बाद करता है और खेत को राड़ी नाम की घास.

मर्द मरे कर्जे से तिरिया मांगे गहना. पति बेचारा कर्ज चुकाने में मर रहा है और पत्नी गहने मांग रही है.

मर्द मरे नाम को, नामर्द मरे नान को. यहाँ नान से त्तात्पर्य रोटी से है. मर्द लोग (वीर पुरुष, सत्पुरुष) नाम कमाने के लिए परिश्रम करते हैं और नामर्द (कापुरुष) केवल रोटी (सांसारिक साधनों) के लिए.

मर्द वो हैं जो जमाने को बदल देते हैं. पुरुषार्थी व्यक्ति दुनिया को बदलने की क्षमता रखते हैं.

मर्द साठा सो पाठा, औरत बीसी सो खीसी. पुरुष साठ साल की आयु में परिपक्व होता है और स्त्री बीस के बाद ढलने लगती है.

मल-मल धोए शरीर को, धोए न मन का मैल, नहाए गंगा-गोमती, रहे बैल के बैल. अर्थ स्पष्ट है.

मलयगिरी की भीलनी चन्दन देत जलाय (अति परिचय ते होत है अरुचि अनादर भाय). जहाँ जो चीज़ अधिक मात्रा में और सहज उपलब्ध होती है वहाँ उस चीज़ की कद्र नहीं होती.

मल्लाह का लंगोटा ही भीगता है. क्योंकि वह केवल लंगोट ही पहनता है. जिसके पास खोने के लिए अधिक कुछ न हो उसका अधिक नुकसान नहीं होता.

मसालची मरे तो पटबीजना हो, यहाँ भी चमके वहां भी चमके. पटबीजना – जुगनू. मशालचियों के सम्बन्ध में एक कथन है कि वे मरने के बाद जुगनू बन के जन्म लेते हैं (पता नहीं यह तारीफ़ है या व्यंग्य).

मस्जिद से नजदीक खुदा से दूर. कट्टर मुस्लिम धर्मावलम्बियों पर व्यंग्य. इंग्लिश में इस के समकक्ष एक कहावत है – The nearer to church, the farther from God.

मस्तराम मस्ती में, आग लगे बस्ती में. समाज के प्रति बिल्कुल गैर जिम्मेदाराना व्यवहार.

महतो घुसे पुआल तले, कह के बैरी होए कौन. महतो पुआल के तले छिपे हुए हैं यह भेद बता कर महतो से बैर कौन मोल ले. प्रभावशाली व्यक्ति गर्दिश में हो तब भी उस से कोई बैर मोल लेना नहीं चाहता.

महादेव को मन्त्र कौन सिखाए. जो सब कुछ जानता हो उसे कौन सिखा सकता है.

महावत से यारी और दरवाजा संकरा. सीमित साधन होते हुए भी अपने से बहुत बड़े लोगों से दोस्ती करना.

महि, मेधा, घोड़ा औ धान, मोर, पपीहा, भैंस, किसान, बाढ़ी नदी, मच्छ लपटानी, दस अनंद जो बरसे पानी. महि – पृथ्वी, मेधा – मेढक, मच्छ – मछली. वर्षा होने पर उपरोक्त दस हर्षित होते हैं.

महुअन के टपके धरती नहीं फटत. महुआ के फूलों के टपकने से धरती नहीं फटती. तुच्छ आदमी बड़ा अहित नहीं कर सकता.

महुआ मेवा, बेर कलेवा, गुलगुच बड़ी मिठाई, इतनी चीजें चाहो तो गोंडवाने करो सगाई. गुलगुच – महुए का पका फल. बुन्देलखंड के गोंडवाना क्षेत्र में महुआ और बेर के पेड़ बहुत हैं. वहाँ के लोगों को ये बहुत प्रिय हैं. 

माँ उठाए गोबर, पूत बिटौरे बख्शे. बिटौरा – कंडों का ढेर. जहाँ माँ बाप बहुत गरीब हों और बेटा बहुत दानी बना फिरता हो. माँ कंडे थापने के लिए गोबर उठा रही है और पुत्र कंडों का ढेर दान दे रहा है. रूपान्तर – माँ तो उपलों को तरसे, बेटी बिटौड़े के बिटौड़े बख्शे. माँ छोटी छोटी चीजों को तरस रही है और बेटी दानी बनी हुई है.

माँ एली, बाप तेली, बेटा शाखे जाफ़रान. माँ बाप कुछ न हों और बेटा कुछ बन जाए तो. (ज़ाफ़रान माने केसर).

माँ कहे तो राजी, बाप की जोरू कहे तो पाजी. एक ही बात को कहने का सभ्य और असभ्य तरीका होता है.

माँ कहे धिया धिया, धिया कहे छिया छिया. माँ बेटी के लिए मरी जा रही है और उसके भले की बात समझा रही है. पर बेटी को माँ की बात बहुत बुरी लग रही है और वह माँ को धिक्कार रही है.

माँ का ऋण चुके न चुकाए. अर्थ स्पष्ट है.

माँ का पेट कुम्हार का आवा, कोई गोरा कोई काला रे. किसी माँ के कई बच्चों में कोई गोरा और कोई काला हो तो उन्हें समझाने के लिए यह कहावत कही जाती है. कुम्हार के आवे (बर्तन पकाने की भट्टी) में से भी कोई बर्तन पक कर सामान्य रंग का निकलता है जबकि कोई काला हो जाता है).

माँ का प्यार, बेटी की खराबी. माँ के अधिक लाड से बेटी बिगड़ जाती है.

माँ की सौत, न बाप से यारी, किस नाते बन गई महतारी. जब कोई जबरदस्ती रिश्तेदारी निकाल कर अपना अधिकार जमा रहा हो तो.

माँ के पेट से सीख कर कोई नहीं आता. जो कुछ भी हम सीखते हैं सब इस संसार में रह कर अपने अध्ययन और अनुभवों द्वारा ही सीखते हैं. 

माँ के सराहे पूत सराहनीय नहीं हो जाता. कोई माता पिता अपने बच्चे की बहुत प्रशंसा करते हों तो इसका अर्थ यह नहीं है कि बच्चा बहुत योग्य है.

माँ को मारे, सासू को सिंगारे. ऐसे निकृष्ट बेटे के लिए जो माँ को प्रताड़ित करे और सास की गुलामी करे.

माँ डायन हो तो क्या बच्चे ही को खाएगी. कोई व्यक्ति कितना भी नीच और पापी क्यों न हो अपनी सन्तान का अहित नहीं कर सकता (हालांकि बच्चे मां बाप का अहित कर सकते हैं).

माँ तिताई, बहन मिरचाई, जोरू मिठाई. पत्नी के प्रेम में अंधे को माँ कड़वी और बहन तीखी लगने लगती है.

माँ दूसरी तो बाप तीसरा. सौतेली माँ के आने बाद पिता भी पराया हो जाता है (बच्चे के प्रति पिता का व्यवहार भी बदल जाता है). रूपान्तर – सतमाय कारने वादी बाप. सतमाय – सौतेली माँ, वादी – दुश्मन.

माँ धोबन, पूत बजाजी. जहाँ माँ बाप कुछ न हों और बेटा कुछ बन जाए (तो लोग व्यंग्य में ऐसा कहते हैं).

माँ न माँ का जाया, सब ही लोक पराया. माँ का जाया माने भाई. जब आप किसी ऐसी जगह रह रहे हों जहाँ आप का कोई न हो. कुछ लोग इसे ऐसे भी बोलते हैं – न तो माँ न ही भाई का साया. यदि किसी कारण से घर के लोग किसी व्यक्ति का साथ छोड़ दें तब भी यह कहावत कही जा सकती है.

माँ पिसनहारी बाप कंजर और बेटा मिरजा संजर. माँ अनाज पीसने वाली (मेहनत मजदूरी करने वाली) और बाप घर घर घूमने वाला कंगाल आदमी पर बेटा बड़ा आदमी बन गया है.

माँ बाप जनम दिया, करम नाहिं दिया. मां-बाप जन्म देते हैं, परन्तु सब अपना-अपना भाग्य लेकर आते हैं.

माँ बेटी गाने वाली, बाप पूत बराती. जब कोई अपने सगे सम्बन्धियों को बिना बुलाए घर में ही कोई आयोजन कर ले तो तो सगे संबंधी कुढ़ कर यह बात कहते हैं.

माँ बेटी गौरा को पूजें, अपना अपना सुहाग मांगें. संसार में सभी लोग अपने अपने स्वार्थ के लिए कार्य करते हैं. माँ और बेटी दोनों पार्वती जी से अपने अपने सुहाग की रक्षा करने की प्रार्थना कर रही हैं.  

माँ भटियारी, पूत फ़तेह खां. भटियारी – कामवाली. यदि किसी परिवार में माँ बाप बहुत गरीब हों, पर उनका बेटा कोई बड़ा पद पा जाए तो लोग ईर्ष्यावश तरह तरह की बातें बोलते हैं. 

माँ मर गई तो मर गई खीर तो खाली. नीच और स्वार्थी व्यक्ति. माँ के मरने का दुख नहीं है, मृत्युभोज में खीर खाने को मिल रही है, इस बात से खुश हैं.

माँ मर गई नंगी, बेटी का नाम चंगी. जहाँ माँ बाप कुछ न हों, बेटी कुछ बन जाए और घमंड करने लगे तो.

माँ मर गई, बहन मर गई, दवा फेंट में धरी रह गई. फेंट – धोती का फेंट. दवा पास में थी लेकिन आवश्यकता के समय मरीज को नहीं खिलाई. अज्ञानतावश पास में मौजूद सामान का समय पर सदुपयोग न कर पाना.

माँ मरे धिया के लिए, धिया मरे यार के लिए. धिया – धी, पुत्री. माँ तो बेटी के लिए मरी जा रही है और बेटी को इसकी परवाह ही नहीं है. उसे केवल अपना यार प्यारा है. उन लड़कियों के लिए जो अपनी नादानी में किसी धूर्त प्रेमी के चक्कर में (या लव जिहाद में) फंस कर अपना जीवन बर्बाद कर लेती हैं. 

माँ मारे और माँ ही माँ पुकारे. माँ और बच्चे के बीच सच्चा प्रेम है. माँ जब बच्चे को मारती है तो बच्चा माँ को ही पुकारता है. माँ की मार में भी उस का प्रेम छिपा है और बच्चा भी पिट कर माँ की गोद में ही चढ़ता है. ईश्वर और सच्चे भक्त का प्रेम भी ऐसा ही होता है.

माँ मारे पर दूसरे को मारन न दे. माँ स्वयं तो बच्चे को दंड दे सकती है पर दूसरे को ऐसा नहीं करने देती. माँ की मार में भी स्नेह होता है.

माँ ही मारे, माँ ही पुचकारे. माँ अपने बच्चे को मारती भी है और पुचकारती भी है. सच तो यह है कि माँ की मार में भी उसकी ममता ही होती है.

माँगन मरन समान है, मति माँगो कोई भीख, माँगन से मरना भला, यह सतगुरु की सीख. माँगना और मरना समान है बल्कि मांगने से मरना अच्छा है.

माँगना न आवे भीख, तो सुरती खाना सीख. तंबाखू खाने वाला कितना भी धनी हो तब भी तंबाखू मांग के खाना सीख जाता है, उसी पर व्यंग्य. 

माँगने से तो मौत भी नहीं मिलती. मांगने से कुछ नहीं मिलता, इसलिए कुछ माँगना चाहिए ही नहीं. इस बात को जोर दे कर कहने के लिए यह कहावत कही जाती है.  

माँगे की मठा मोल से महंगी. मांगी हुई वस्तु मँहगी पड़ती है, देने वाले के सौ नखरे सहो और एहसान अलग.

माँगे पे जाट गंडा भी न दे, बिन मांगे भेली दे दे. गंडा – गन्ने की पोई. मांगने पर जाट छोटी सी चीज़ भी नहीं देता पर बिना माँगे (और बिना जरूरत) बड़ी चीज़ भी दे देता है.

माँगे बिन महतारी भी न दे. जो आपका अधिकार है उसे मांग कर लेना चाहिए. बिना मांगे तो माँ भी दूध नहीं पिलाती.

माँगे हरड़, दे बहेड़ा. कोई भी काम ठीक से न करने वाला इंसान.

मांग के खाए, रूठ कर न जाए. यदि आप किसी सगे सम्बन्धी के घर जाएँ और वह आप से खाने को न पूछे तो इस बात पर रूठना नहीं चाहिए. उसको अपना समझ कर आवश्यकता अनुसार उससे माँग लेना चाहिए.

मांग के खाना, मस्जिद में सोना. बिलकुल साधनहीन व्यक्ति.   

मांग के खाय, बहन के द्वारे न जाय. कभी बहुत अधिक आर्थिक संकट आ जाए तो चाहे मांग कर खाना पड़ जाए पर शादीशुदा बहन के घर सहायता मांगने नहीं जाना चाहिए.

मांग में तेल न, टांग में तेल. सर में तेल नहीं है, पैर में तेल लगा रहे हैं. फूहड़पना.

मांगता जीए, करता मुए. मांगने वाला बिना कोई काम करे आराम से जिन्दा है और काम करने वाला काम कर कर के अपना शरीर घुला रहा है और मरा जा रहा है.

मांगन भलो न बाप सों ईश्वर राखे टेक. हे ईश्वर तू हमारी इज्ज़त बचाए रख, हमें कभी अपने पिता से भी न माँगना पड़े.

मांगने वाले के सौ घर, कोई न दे तो जाए कहाँ, सब दे दें तो धरे कहाँ. मांगने वाला बहुत से घरों से मांगता है, कोई भी न दे तो बेचारा जाएगा कहाँ (कैसे जिन्दा रहेगा), और सब कुछ न कुछ दे दें तो इतना सामान हो जाएगा कि बेचारा रखेगा कहाँ. 

मांगे कोइरी साग न दे, बांधे कोइरी सब कुछ दे. कोइरी – सब्जी बोने वाला. गरीब लोगों को सताने वाले दबंग लोग उन्हें पीड़ित कर के उन से सब कुछ छीन लेते हैं.

मांगे तांगे काम चले तो ब्याह क्यों करें. अगर मांगने से स्त्री का साथ मिल जाए तो इंसान विवाह क्यों करे. अगर मांगने से ही गृहस्थी चल जाए तो इंसान व्यापार या नौकरी का झंझट क्यों करे.

मांगे बनिया गुड़ ना देय, मारे घूंसा भेली देय. बनिया कंजूस भी होता है और डरपोक भी. उससे मांग कर थोड़ा कुछ भी पा लेना तो असंभव है पर हड़का कर बहुत कुछ लिया जा सकता है. रूपान्तर – मांगे बनिया भीख ना देय, मारे घूंसा सरबस देय. सरबस-सर्वस्व.

मांगे मान न पाइए, सक्ति सनेह न होय. मांगने से सम्मान नहीं मिल सकता और जबरदस्ती किसी का प्रेम नहीं पाया जा सकता. सक्ति – शक्ति. इंग्लिश में कहावत है – Respct is earned, not commanded.

मांगे मिलें न चार, पूर्ब जनम के पुन्न बिन, इक विद्या इक संपति, नारी नेह सरीर सुख. विद्या, संपत्ति, स्त्री का प्रेम और शरीर का सुख, ये चारों वस्तुएँ पूर्व जन्म के सत्कर्मों से ही मिलती हैं. 

मांगो उसी से, जो दे ख़ुशी से, कहे ना किसी से. यदि माँगना भी पड़े तो उसी से मांगो जो ख़ुशी से दे और सब जगह गाता न फिरे.

मांस खाए मांस बढ़े, घी खाए खोपड़ी, दूध पिए तो चल पड़े, अस्सी बरस की डोकरी. (बुन्देलखंडी कहावत) डोकरी – बुढ़िया. कहावत का अर्थ एकदम स्पष्ट है.  

माई का दूध छोड़, आज सब में मिलावट है. आज माता के दूध को छोड़कर सभी वस्तुओं में मिलावट है.

माई का मनवा गाय जैसा और पूत का मनवा कसाई जैसा. माँ दयालु और पुत्र निर्दयी.

माई घूमे गली गली, बेटा बने बजरंगबली. माँ तो महा गरीब थी पर बेटा अपने को बड़ा आदमी समझने लगा है.

माई बाप के लातन मारे, मेहरी देख जुड़ाए, चारों धामे जो फिरि आवे तबहूँ पाप न जाए. माँ, बाप को लात मारे और पत्नी को देख कर खुश हो, ऐसा व्यक्ति चारों धाम की यात्रा कर आए तब भी उसके पाप दूर नहीं हो सकते.

माई मासे, बाप छमासे, और लोग सब बारह मासे. बच्चा एक महीने को होने पर माँ को पहचानने लगता है, छह महीने में पिता को और बाकी सब लोगों को बारह महीने का होने पर.

माई रोवे तीर के घाव, बाप रोवे तलवार के घाव. जब किसी का पुत्र नालायक निकल जाता है तो माता-पिता को  इतना कष्ट होता है जितना तीर और तलवार के घाव लगने पर होता होगा.

माघ का जाड़ा, जेठ की धूप, बड़े कष्ट से उपजे ऊख. गन्ने की खेती में बहुत मेहनत करनी पड़ती है, माघ का जाड़ा और जेठ की धूप सहन करनी पड़ती है.

माघ के टूटे मरद और भादो के टूटे बरध कभी नहीं जुड़ते.  बरध – बैल. माघ में जिस आदमी का शरीर कमजोर हो गया और भादों में जिस बैल का शरीर कमजोर हो गया उनका स्वास्थ्य फिर नहीं सुधरता.

माघ जाड़ा न पूस जाड़ा, जो चले बतास तो जाड़ा. बतास – हवा. माघ हो या पूस हो, जाड़ा तभी ज्यादा सताता है जब हवा चलती है.

माघ तिलै तिल बाढ़े, फागुन गोड़ पसारे. माघ माह से तिल तिल करके दिन बढ़ते-बढ़ते फागुन माह तक काफी बड़ा होने लग जाता है. गोड़ पसारना – पैर फैलाना.

माघ नंगे वैशाख भूखे. बहुत अधिक वंचित. (माघ की ठंड में भी जो नंगा रहे और बैसाख में नया गेहूँ आने के बाद भी भूखा रहे).

माघ पंद्रह और पूस पचीस, चिल्ला जाड़ा दिन चालीस. अत्यधिक ठंड (चिल्ला जाड़ा) चालीस दिन पड़ता है, पन्द्रह दिन माघ महीने के और पच्चीस दिन पूस के.

माघ मास की बादरी और क्वार की घाम, ये दोनों जो कोई सहै करै परायो काम. पराए खेत में मजदूरी वही कर सकता है जो माघ की वर्षा और क्वार की धूप सहन कर ले. (घाघ की कहावतें)

माघ मास जो परै न सीत, महंगा नाज जान्यो मेरे मीत. माघ मास में जो ठंडक न पड़े तो समझना अनाज महंगा बिकेगा.

माघ में बादर लाल घिरे, साँची मानो पाथर परै. माघ में यदि लाल बादल घिर कर आए तो निश्चित समझो कि ओला गिरेगा. (घाघ की कहावतें)

माघ सवेरे, जेठ दुपहरे, भादों आधी रात, जिसको जंगल लागे उसकी छाती फाट. जब लोग शौच के लिए जंगल आदि में जाते थे तो शौच कर्म को जंगल जाना कहते थे. माघ मास की ठिठुरन भरी सुबह में, जेठ मास की दुपहरी में तथा भादों मास की वर्षा वाली अंधेरी आधी रात में जिसको शौच लगी उसका कलेजा बैठ जाता है.

माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय, एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूंगी तोय. मिटटी कुम्हार से कह रही है कि तू मुझे क्या रौंद रहा है, एक दिन मैं तुझे रौंदूंगी. जो लोग अपने धन और पद का घमंड कर के दूसरों को परेशान करते हैं उन को सीख देने के लिए.

माटी का घोड़ा, सूत की लगाम. अत्यधिक कच्चा काम.

माटी की मूरत भी पहनी ओढ़ी अच्छी लगती है. अच्छे कपड़े पहनने का बड़ा महत्व है.

माटी के देवता जल चढ़ाने में खतम हो गए.  देवता की मूर्ति मिट्टी की बनी थी, लोग उन पर जल चढाने लगे. बेचारे देवता पानी के साथ बह गए. कमजोर नेताओं और अफसरों पर व्यंग्य.

माटी छू दे तो सोना हो जाय. जो व्यक्ति कम साधनों से बहुत लाभ अर्जित कर के दिखाए. रूपान्तर – मिट्टी पकड़े सोना होय. अत्यधिक भाग्यवान व्यक्ति.

मात पिता कुल तारन को जो ‘गया’ न गया सो कहीं न गया. जो पुत्र पितरों का तर्पण करने ‘गया’ नहीं गया उसके सारे तीर्थ बेकार हैं. गया – बिहार में एक तीर्थ स्थान जहाँ पितरों का तर्पण किया जाता है.

माता जैसी ममता, सौतन जैसा बैर, दूजा राखे न कोई, देखा सांझ सवेर. अर्थ स्पष्ट है. 

माता न परसे भरे न पेट, भादों न बरसे भरे न खेत. जब तक माँ न खिलाए तब तक पेट नहीं भरता और जब तक भादों में वर्षा न हो तब तक खेत में पानी पूरा नहीं पड़ता.

माते की लगुन में लगुन. बड़े आदमी के काम के साथ अपना भी काम बन जाना.

माथे पर चोट, बसंत के गीत. मारना भी और खुश करने की कोशिश भी करना.

मान का तो मुट्ठी भर चना ही बहुत है. सम्मान सहित मुट्ठी भर चना मिले तो भी से अच्छा है.

मान का पान भला न अपमान का लड्डू. व्यक्ति का सम्मान सबसे अधिक महत्वपूर्ण है. सम्मान के साथ मिलने वाला पान, अपमान हो कर मिलने वाले लड्डू से बेहतर है.

मान का माहुर न अपमान का लड्डू. माहुर – विष. अपमान सह कर लड्डू खाने की अपेक्षा सम्मान सहित जहर पीना श्रेयस्कर है.

मान घटे नित के घर जाए. बार बार कहीं जाने से सम्मान कम होता है. (कद्र खो देता है रोज़ का आना जाना). संस्कृत में कहते हैं – अति गमनं अनादरं. इस कहावत को अधिक विस्तार में इस प्रकार से कहा गया है –

मान घटे नित के घर जाए, ज्ञान घटे कुसंगत पाए, भाव घटे कुछ मुंह के मांगे, रोग घटे कुछ औषध खाए. किसी के घर बार बार जाने से सम्मान कम होता है, बुरे लोगों के साथ रहने से ज्ञान कम होता है, किसी से कुछ मांगने से प्रेम भाव कम होता है और दवा खाने से रोग कम होता है.

मान न मान, मैं तेरा मेहमान. जबरदस्ती किसी के गले पड़ना.

मान बड़ा कि दान. किसी को दान देने के मुकाबले सम्मान देना अधिक अच्छा है. 

मान मनाई खीर न खाई, झूठी पातर चाटन आई. सम्मान के साथ परोसी गई खीर नहीं खाई और अब झूठी पत्तल चाटने आई हो. जो व्यक्ति उचित समय पर मिलने वाले सम्मान को ठुकरा दे और फिर घटिया काम कर के अपनी बेइज्जती कराए उस के लिए.

मान सहित विष खाय के शम्भु भए जगदीश, बिना मान अमृत पिए, राहू कटायो शीश. सम्मान सहित विष पान कर के शंकर जी को महादेव की उपाधि मिली, और चोरी से अमृत पीने वाले राहु का सिर काटा गया.

माने तो देवता नहीं तो पत्थर. किसी पत्थर की मूर्ति को देवता मान लो तो वह देवता बन जाती है और नहीं मानो तो पत्थर है.

मानो चाहे न मानो हम तुम्हारे पंच. जबरदस्ती किसी का भाग्य विधाता बनना.

मानों तो देव, नहीं तो भीत को लेव. दीवार में उकेर कर किसी ने देवता की मूर्ति बनाई हुई है. अगर मानो तो वह देवता है और न मानो तो दीवार का पलस्तर है.

मापा, कनिया और पटवारी, भेंट लिए बिन करें न यारी. मापा – भूमि नापने वाला अमीन, कनिया – कानूनगो. ये सभी राजस्व कर्मचारी बिना भेंट लिए काम नहीं करते.

मामू के कान में बालियाँ, भांजा ऐंड़ा ऐंड़ा फिरे. अपने किसी रिश्तेदार की समृद्धि पर घमंड करना.

मायके का कुत्ता भी प्यारा होता है. स्त्रियों को मायके की हर चीज़ प्यारी होती है. रूपान्तर – मैके के महुए मीठ.

माया का डर, काया का क्या डर. जिस के पास धन दौलत है उसे उस के चोरी होने या छिन जाने का डर है, जिस के पास कुछ नहीं है (केवल शरीर है) उसे क्या डर.

माया के भी पाँव होते हैं, आज मेरे पास कल तेरे पास. माया किसी की नहीं होती, चलती फिरती रहती है. इसलिए धन सम्पदा को अपना मान कर अधिक खुश नहीं होना चाहिए.

माया गंठी, विधा कंठी. पैसा वह काम आता है जो हमारे पास मौजूद हो (उधार में बंटा पैसा या बाद में मिलने वाला पैसा वक्त पर काम नहीं आता). विद्या वही काम आती है जो हमें कंठस्थ हो.

माया चलती फिरती छाया. माया किसी की नहीं होती, चलती फिरती रहती है.

माया छाया एक सी, बिरला जाने कोय, भगता के पीछे लगे, सम्मुख भागे सोय. माया और छाया एक सी होती हैं यह बात बहुत कम लोग जानते हैं, जो इनसे दूर भागता है उसके पीछे भागती हैं और जो इनके पीछे भागता है उससे दूर भागती हैं.

माया तजी तो क्या भया, मान तजा नहिं जाय. बहुत से लोग सांसारिक मोह माया का त्याग कर के साधु बन जाते हैं पर अहंकार नहीं छोड़ पाते, उन पर व्यंग्य.

माया तू है सुलक्खनी, नाम हुआ जगराम, एही आंगन फिर गया, धरा झोकिया नाम. पैसा पास न हो तो आदमी की कोई इज्जत नहीं रहती. सन्दर्भ कथा – एक सेठ के जगराम नाम का एक ही लड़का था. घर में लक्ष्मी का ठाट-बाट था और उस की शादी भी सम्पन्न घर में हुई थी. लेकिन पिता के मरने पर जगराम ने कुसंगति में पड़ कर सारी सम्पत्ति नष्ट कर डाली. उसकी स्त्री बच्चों को ले कर अपने पीहर चली गई. तंग आकर जगराम भी मजदूरी की तलाश में निकला और भटकते भटकते अपनी सुसराल पहुँच गया. इस हाल में सुसराल वालों ने भी उसे नहीं पहचाना और उसे नौकर रख लिया. वह पानी लाने, आग में लकड़ी झोंकने आदि का काम करने लगा और उसका नाम झोकिया पड़ गया.

    एक दिन जगराम की स्त्री अपनी माँ से कह रही थी कि तुम्हारे दामाद ने और सब कुछ तो बर्बाद कर डाला, लेकिन मेरी सास ने मुँह दिखलाई में मुझे जो चार बहुमूल्य लाल दिये थे, वे उसके हाथ नहीं लगे, क्योंकि उनको मैंने अमुक स्थान पर छिपा दिया था. झोकिया रूपी जगराम ने उन दोनों की बात सुन ली. वह नौकरी छोड़कर अपने घर आ गया. उसने चारों लाल निकाले और उन्हें बेचकर पुनः कारोबार प्रारम्भ किया तथा शीघ्र ही पहले की तरह मालदार बन गया. अब वह अपनी स्त्री को लेने सुसराल पहुँचा तो सुसराल वालों ने उसकी खूब खातिर की. इस पर वह बोला- माया तू है सुलक्खनी, नाम हुआ जगराम, एही  आंगन फिर गया, धरा झोकिया नाम.  

माया बादल की छाया. बादल एक स्थान पर स्थिर नहीं रहता इसलिए उस की छाया भी स्थिर नहीं रहती. इसी प्रकार माया भी एक स्थान पर स्थिर नहीं रहती.

माया महा ठगिनी, हम जानी. जो ज्ञानी लोग हैं वही समझ पाते हैं कि माया केवल सबको ठगती है, किसी की हो कर नहीं रहती.

माया मिल गई सूम को, न खरचे न खाय. कंजूस के पास रखा धन बेकार ही है, न तो वह खुद खाएगा और न ही परोपकार में खर्च करेगा.

माया मुई न मन मुआ, मरि मरि गये शरीर, (आशा तृष्णा ना मुई, यों कह गये कबीर). माया इसी संसार में रहती है जबकि उसे जोड़ने की इच्छा करने वाले चले जाते हैं. सब जानते हुए भी मनुष्य की तृष्णा नहीं मिटती.

माया से छाया भली. पैसा अपने पास रखे रहने से भवन बनवाना और पेड़ लगवाना अधिक अच्छा है.

माया से माया मिले कर कर लम्बे हाथ, तुलसी दास गरीब की कोई न पूछे बात. जिनके पास घन सम्पत्ति है उन्हीं के पास और धन इकट्ठा होता जाता है, गरीब को कोई नहीं पूछता.

माया हुई तो क्या हुआ हिरदा हुआ कठोर, नौ नेजा पानी चढ़ा तऊ न भीजी कोर. नेजा – बांस. बहुत धनी परन्तु कंजूस और निर्दयी व्यक्ति के लिए कहा गया है कि उस के पास माया आई तो किसी को क्या लाभ हुआ, उसका हृदय और कठोर हो गया. पत्थर के ऊपर नौ बांस की ऊँचाई के बराबर पानी भी चढ़ जाए तो भी उसका अंदरूनी हिस्सा नहीं भीगता.

मार के आगे भूत भी भागता है. कोई आदमी अपने ऊपर भूत आने का नाटक कर रहा था. गाँव के एक सयाने ने कहा कि दस कोड़े मारने से भूत भाग जाएगा. दो कोड़े खाने के बाद ही उस ने हाथ जोड़ दिए. तभी से यह कहावत बनी. इस विषय में एक मजेदार कथा भी है. सन्दर्भ कथा – एक किसान की पत्नी वड़ी लड़ाका थी. वह नित्य प्रति अपने पति को घर के आंगन में बिठा कर इक्कीस जूते लगाया करती थी. इससे तंग आकर वह एक दिन भाग निकला और पास के नगर में चला गया. लेकिन वह औरत भी एक ही थी. वह जिस जगह पर अपने पति को बिठा कर जूते मारा करती थी, अब उस खाली जगह पर ही उसके नाम से जूते मार कर अपने नियम का निर्वाह करने लगी. उस स्थान के नीचे एक हँडिया गड़ी हुई थी, जिसमें मंत्र बल से एक भूत को बन्द किया हुआ था. अब वे जूते उसी भूत के सिर पर पड़ने लगे. जूतों की मार से भूत बेचैन हो उठा, लेकिन वह क्या कर सकता था. फिर एक दिन जूतों की मार से वह हँडिया फूट गई तो भूत उसमें से निकल कर बेतहाशा भागा और उसी नगर में जा पहुँचा.

    एक दिन उसे वही किसान दिखलाई पड़ा तो भूत ने उससे कहा, जूत भाई, राम राम. किसान के पूछने पर उसने आप बीती सुनाते हुए कहा कि हम दोनों ने एक ही औरत के हाथ से जूते खाये हैं, इसलिए हम जूत भाई हैं. किसान बोला कि मुझे यहाँ प्राये इतने दिन हो गये, लेकिन कोई अच्छी आय नहीं हुई. भूत ने कहा कि इसका उपाय मैं किये देता हूँ. मैं अभी जाकर अमुक सेठ के बेटे के शरीर में प्रवेश करता हूँ और किसी के निकाले नहीं निकलूंगा. लेकिन जब तुम आओगे तो तुरन्त निकल जाऊंगा. इस काम के बदले तुम सेठ से मोटी रकम वसूल कर लेना. लेकिन इस वात को याद रखना कि मैं दोबारा किसी के शरीर में प्रवेश करूं तो वहां भूल कर भी न आना. यदि आओगे, तो तुम्हें जान से मार डालूंगा.

    किसान ने यह बात स्वीकार कर ली और योजनानुसार किसान को सेठ से मुँह मांगी रकम प्राप्त हो गई.अगली बार भूत ने राजा के पुत्र के शरीर में प्रवेश किया और किसी के निकाले नहीं निकला. राजा को पता चला कि अमुक किसान ने सेठ के बेटे का भूत भगाया था तो उसने किसान को तत्काल ही बुला भेजा. किसान दुविधा में फँस गया. न जाए तो राजा मारे और जाए तो भूत मारे. अन्ततः उसने एक युक्ति निकाली. उसने अपनी घोती ऊपर कर के बाँधी, जूतियां हाथ में लीं और बड़े जोरों से भागता हुआ राजा के बेटे के पास यह कहता हुआ पहुँचा, भूत भाई, रांड आई, अर्थात् वह जूते लगाने वाली औरत यहाँ भी आ पहुँची है. इतना सुनते ही भूत के होश फाख्ता हो गये  और वह अविलम्ब ही राजकुमार के शरीर से निकल कर भाग गया.

मार खाए और कहे मार के देख. कायर आदमी के लिए.

मार गुसैंया तेरी आस. जब स्त्रियाँ पूरी तरह पति पर आश्रित थीं तो पति यदि उन्हें मारे पीटे तब भी यह कहती थीं, कि तू चाहें हमें मार ले तब भी तेरे ही आसरे हैं. जब राजा और जमींदार लोग गरीब पर अत्याचार करते हैं तो वह भी ऐसा ही बोलता है. मनुष्य के ऊपर जब भी कोई घोर कष्ट उसे हमें ईश्वर से यही कहना चाहिए.

मार पीछे पुकार होती रहे. मौके पर आगे बढ़ कर मार लो उसके बाद चीख पुकार होती रहे.

मार बिना गदहा ढीठ. मार खाए बिना गदहा भी ढीठ हो जाता है.

मार मार कर कोई हकीम नहीं बनता. जिस के अंदर लगन हो और मेहनत करने का जज़्बा हो वही बड़ा विद्वान बन सकता है, किसी को मार मार कर होशियार नहीं बनाया जा सकता.

मारकेस से सब डरात. बुरे ग्रहों से सब डरते हैं. इसी प्रकार बुरे लोगों से सब डरते हैं.

मारते का हाथ पकड़ा जाए, बोलते की जबान थोड़े ही न पकड़ी जाए. मारने वाले को रोका जा सकता है पर कड़वी बात कहने वाले या अपशब्द कहने वाले को रोकना कठिन है.

मारने वाले से जिलाने वाला बड़ा दाता है. कोई ऐसा हाकिम जो केवल लोगों को पीड़ित कर सकता हो उसके मुकाबले ऐसे व्यक्ति का स्थान बहुत बड़ा है जो दूसरों को जीवन दे सके या सुख दे सके.

मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है (मारने वाले से बचाने वाले के हाथ लंबे होते हैं). अर्थ स्पष्ट है.

मारा कब, चोट लगी कब. जबरदस्ती पिटाई और चोट लगने का स्वांग करने वालों के लिए.

मारा घोंटू फूटी आँख. चोट किसी और पर नुकसान किसी और का.

मारा चोर, उपासा पाहुना, लौटता नहीं. उपासा – उपवास कराया हुआ. मार खाया हुआ चोर और भूखे लौटाया हुआ अतिथि दोबारा नहीं आते.

मारा जाय अगाड़ी या मारा जाय पिछाड़ी. फ़ौज में सामने से आक्रमण होने पर आगे वाले मारे जाते हैं और पीछे से आक्रमण होने पर सावधान न होने के कारण पीछे वाले मारे जाते हैं. बीच वाले सबसे सुरक्षित रहते हैं.

मारा लेकिन लाल जूते से. किसी की पिटाई तो की लेकिन इज्जत के साथ.

मारि के टरि जाए, खाय के परि जाए. कहीं मार पीट करनी पड़े तो मारने के बाद के वहाँ से भाग लेना श्रेयस्कर है और भोजन कर के आराम करना अच्छा है.

मारे आप लगावे ताप. काल किसी को तलवार ले कर नहीं मारता, बुखार आदि कोई बीमारी लगा देता है. रूपान्तर – मारे राम लगाए बहाना. ईश्वर किसी को मृत्यु देता है तो बीमारी आदि के जरिये देता है.

मारे घुटना, फूटे ललाट. लात से किसी को मारोगे तो दूसरा आप का सर फोड़ेगा.

मारे छोहन छाती फटे और आँसू के ठिकाने नाहीं. (भोजपुरी कहावत) बिछड़ते समय बहुत दुखी होने का दिखावा कर रहे हैं लेकिन आँसू बिल्कुल नहीं आ रहे हैं.

मारे माई जिलावे मौसी, आधी रात खिलावे मौसी. मौसी माँ से भी अधिक प्यार करती है. माँ मारती है तो मौसी बचाती है और आधी रात को उठ कर भी खिलाती है.

मारे सिपाही नाम सरदार का. बेचारे सिपाही खतरा उठा के आगे बढ़ के दुश्मन को मारते हैं और जंग जीतने पर नाम सरदार का होता है. किसी भी बड़े उद्योग में मेहनत मजदूर करते हैं और नाम मैनेजर का होता है या लाभ मालिक को होता है.

मारें मक्खी नाम तीसमारखां. एक सज्जन ने एक ही वार से तीस मक्खियाँ मार दीं, जिसके बाद वह अपने को तीसमारखां कहने लगे थे.

माल के नुकसान में जान की खैर. अगर किसी के माल का नुकसान हुआ तो यही कहने में आता है कि चलो माल चला गया कोई बात नहीं जान तो बच गई.

माल से चाल आवे. धन आता है तो आदमी की चाल बदल जाती है.

माला फेरत जुग गया, गया न मन का फेर, कर का मनका डारि दे, मन का मनका फेर. कहावत उन लोगों के लिए है जो दिखाने के लिए माला फेरते हैं पर उन का मन प्रपंचों में लगा रहता है. उनसे कहा गया है की माला को छोड़ो और अपने मन को प्रपंचों से हटा कर भगवान में लगाओ. इसी प्रकार का एक दोहा और भी है – माला तो कर में फिरे जीभ फिरे मुख मांहि, मनुआ तो चंहु दिसि फिरे ये तो सुमिरन नांहि.

माला फेरूँ, किस को घेरूँ. ढोंगी साधु के लिए जो माला फेरते समय हिसाब लगाता रहता है कि किसे घेरा जाए.

मालिक मालिक एक से. जैसे मालिक लोग मिल कर नौकरों की बेबकूफियों की बातें करते हैं वैसे ही नौकर भी जब आपस में मिलते हैं तो अपने मालिकों की बेबकूफियों और ज्यादतियों की चर्चा करते हैं.

माली आवत देख के, कलियाँ करें पुकार, फूले-फूले चुन लिए, काल्ह हमारी बार. माली को आता देख कर कलियाँ डर रही हैं कि आज यह फूल चुन रहा है, कल हमारी बारी आएगी. मनुष्य को सावधान करने के लिए.

माली के घर बकरी बलाय, जुलाहे के घर वानर बलाय. माली अगर बकरी पालेगा तो वह उसकी सारी पौध खा जाएगी. जुलाहे के घर में बन्दर करघे को तोड़ फोड़ देगा.

माली चाहे बरसना, धोबी चाहे धूप, साहू चाहे बोलना, चोर चाहे चूप. हर व्यक्ति यह चाहता है कि दुनिया का हर काम उसकी सुविधा के अनुसार होना चाहिए.

माली सींचे नौ घड़ा, रुत आवे फल होय. माली चाहे पेड़ में नौ घड़े पानी डाल दे, फल ऋतु आने पर ही लगेगा. प्रयत्न चाहे कितना भी करो, समय आने पर ही कार्य होता है (धीरे धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय).

माले मुफ्त, दिल बेरहम. मुफ्त के माल को आदमी बेरहमी से खर्च करता है.

माहे गेहूँ, जेठ गुड़, भादों मास कपास, बहू मायके, धी घरै, राखे होय बिनास. (बुन्देलखंडी कहावत) माघ के महीने में गेहूँ, जेठ में गुड़ और भादों में कपास घर में रखने से हानि होती है. इसी प्रकार बहू को मायके में रखने और बेटी को घर में रखने से हानि होती है. 

मिजाज बादशाह का, औकात भड़भूंजे की. भड़भूंजा – भाड़ भूनने वाला. हैसियत कुछ नहीं दिमाग आसमान पर.

मिट्टी की ढांड़, लोहे की किवाड़. बेतुका काम. मिट्टी की दीवारों में लोहे का किवाड़ लगाने से क्या लाभ होगा.

मिट्टी की दीवार को गिरते देर नहीं लगती. कमजोर व्यापार और कमजोर संबंध टूटते देर नहीं लगती.

मिट्टी के माधो. जो किसी काम के न हों.

मित्र का बैरी बैरी, बैरी का बैरी मित्र. जो हमारे मित्र का दुश्मन है वह हमारा भी दुश्मन हुआ और जो हमारे शत्रु का शत्रु है वह हमारे काम आ सकता है इसलिए हमारे मित्र के समान है.

मित्र को मिलाप अति आनंद को कंद है.  बिछड़े हुए मित्र से मिलना दुनिया के सबसे बड़े सुखों में से एक है.

मित्र वही जो विपत्ति में काम आए. वैसे तो हर व्यक्ति के बहुत से मित्र होते हैं पर उनमें से सच्चा मित्र कौन है इसकी पहचान तभी होती है जब कोई विपत्ति आती है.

मियाँ का मैल ईद में उतरे. मुसलमानों के कम नहाने पर व्यंग्य. 

मियाँ की जूती, मियाँ के सर. किसी की खुद की चीज़ से उसी को नुकसान पहुँचाना.

मियाँ की दाढ़ी तावीजों में गई (मियां की दाढ़ी वाहवाही में गई) (मुल्ला की दाढ़ी तबर्रुक में गई). कहीं कहीं रिवाज़ होता है कि मुल्ला लोग अपनी दाढ़ी का बाल तावीज़ में रख कर देते हैं. अपनी तारीफ़ करवाने के चक्कर में मुल्ला जी की पूरी दाढ़ी ही नुच गई. सन्दर्भ कथा – कहीं एक मौलवी साहब रहते थे. वे लड़कों को पढ़ाया करते थे. एक बार वे घर गये तो उन्होंने अपनी जगह एक दूसरे मौलवी को रख दिया. जब वे लौटकर आये, तब देखा कि नये मौलवी ने चालाकी से गाँव के लोगों को अपने वश में कर लिया है. उनसे किसी ने बात तक नहीं की. उन्होंने बुद्धिमानी से काम लेने की सोची. वे वहीं रहने लगे और नये मौलवी की तारीफ करनी शुरू की.

    नये गैलवी फूलकर कुप्पा होने लगे. एक दिन जुमा के नमाज के लिए गाँव भर के मुसलमान एकत्र थे. पुराने मौलवी नए मौलवी की तारीफ़ में कहने लगे – आपने अपनी दाढ़ी का एक बाल जिसे दे दिया, वह मालामाल हो गया, रोगी स्वस्थ हो गया आदि. पूरी प्रशंसा के बाद पुराने मौलवी ने नये मौलवी से अपने लिए भी एक बाल माँगा. नये मौलवी तो प्रशंसा सुनकर फूले ही थे. झट उन्होंने अपनी दाढ़ी से नोंचकर एक बाल दे दिया. यह देख अन्य व्यक्ति भी उनसे एक-एक बाल मांगने लगे. अब मौलवी साहब चक्कर में पड़ गए. इतने में सभी उनपर टूट पड़े और एक-एक बाल कर के उनकी समूची दाढ़ी नोंच ली. वे बेचारे उसी रात को वहाँ से भाग गये.

मियाँ घर नहीं बीवी को डर नहीं. पति बाहर गया हो तो पत्नियाँ आज़ाद हो जाती हैं. इस कहावत को इस तरह भी बोलते हैं – सैयां गए परदेस तो अब डर काहे का. (यह पुराने जमाने की बात है जब पत्नियां पतियों से डरती थीं. अब कुछ लोग इस कहावत को इस तरह कहते हैं – बीवी घर नहीं मियाँ को डर नहीं).

मियाँ तो छोड़त बीबी नहीं छोड़तीं. जब कोई आदमी किसी को छोड़ना चाहे पर दूसरा गले पड़ जाये तो.

मियाँ नाक काटने को फिरें, बीवी कहे नथ गढ़ा दो. मियाँ इतने गुस्से में हैं कि बीवी की नाक काटने पर उतारू हैं और बीवी कह रही है कि मेरे लिए नाक की नथ बनवा दो. बिना वक्त की नजाकत देखे कोई बात कहना.

मियाँ फिरें लाल गुलाल, बीबी के हैं बुरे हवाल. जहाँ पति सजधज के छैला बने घूमते हों और पत्नी घर के कामों में ही पिसती रहती हो.

मियाँ बीवी राजी तो क्या करेगा काजी. मुगल शासन काल में शहर में काजी की एक पोस्ट हुआ करती थी जो उस समय का मजिस्ट्रेट होता था. शादी करवाना, तलाक करवाना, झगड़े निपटाना आदि उसके काम हुआ करते थे. जब मियां बीवी आपस में राजी हो तो काजी का क्या काम. जब किसी झगड़े में शामिल दो लोग आपस में सुलह कर ले तो किसी न्यायाधीश या मध्यस्थ की क्या आवश्यकता? सन्दर्भ कथा – एक जाट और मियां दोस्त थे. मियां की शादी थी. जाट भी उसमे शरीक होने के लिए पहुँचा. लेकिन निकाह करवाने वाला काजी नाराज होने के कारण नही आया. तब जाट ने कहा कि इस में क्या बड़ी बात है. निकाह मैं करवा देता हूं. जाट ने मियां और बीवी को पास-पास विठलाया और बोला- मियाँ बीबी राजी, के करैगो काजी, हांडी में दही, निकाह होवै सही.

मियाँ भए गोर जोग, बीवी लाए घर योग. गोर – कब्र. मियाँ बहुत बूढ़े हो गए हैं (कब्र में जाने योग्य), और बीबी लाये हैं जवान (गृहस्थी योग्य). कोई अधिक आयु का व्यक्ति कम आयु की स्त्री से विवाह करे तो.

मियाँ मरें, न रोजे टरें. गले पड़ी मुसीबत के लिए. न मियाँ मरने वाले हैं न ही रोजे टलने वाले हैं.

मियाँ रिसाने मुर्गी मारी. मियाँ जी को बहुत गुस्सा आया तो और तो किसी का कुछ नहीं बिगाड़ पाए, मुर्गी मार दी. कमजोर पर गुस्सा निकालना.

मियाँ रोते क्यूँ हो, क्या करें सूरत ही ऐसी है. कुछ लोग शक्ल से ऐसे लगते हैं जैसे अभी रो पड़ेंगे. ऐसे ही लोगों के लिए कहावत.

मिरग बांदरा तीतर मोर, ये चारों खेती के चोर. हिरन, बन्दर, तीतर और मोर ये चारों खेत को हानि पहुँचाते हैं.

मिरजापुरी बगल में छुरी, खाते पीते नीयत बुरी. मिर्जापुर में रहने वालों पर कही गई कहावत. इस तरह की कहावतें कहाँ से उत्पन्न होती हैं यह पता लगाना कठिन है.

मिल गए तो राम राम. वैसे याद नहीं करते हैं, सामने दिख गए तो राम राम कर ली. दिखावे की दोस्ती.

मिल जुल कर रहो मगर हिसाब साफ़ रखो. दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ मिल जुल कर रहना चाहिए, पर पैसे खर्चे का हिसाब साफ़ रखना चाहिए. हिसाब में गड़बड़ी होने से गाँठ पड़ जाती है.  

मिलन भलो बिछुड़न बुरो, मत मिल बिछड़ो कोय. अपने प्रिय व्यक्ति से मिलना जितना अच्छा लगता है उससे अधिक बुरा बिछड़ना लगता है.

मिलन लगे दूध भात, बिसर गए माई बाप. जब व्यक्ति को सब सुख सुविधाएं मिलने लगती हैं तो वह माँ बाप को भूल जाता है.

मिलें न सूखी, चुपड़ के मांगें. सूखी रोटी की जुगाड़ नहीं हो रही है और घर वाले चुपड़ के मांग रहे हैं. 

मिलेंगे ऊत बजेंगे जूत. मूर्ख लोग मिलते हैं तो जूतम पैजार करते हैं.

मिस्सों से पेट भरता है किस्सों से नहीं. पेट अनाज से भरता है कोरी बातों से नहीं. इंग्लिश में कहावत है – Give me some francs, not thanks.

मीठा और भर कठौती. एक तो मन माफिक चीज़ और वह भी खूब सारी. रूपान्तर – चुपड़ी और दो दो.

मीठा खातिर जूता खाय. छोटे लाभ के लिए बड़ा अपमान झेलना. रूपान्तर – मीठा खातिर झूठा खाय.

मीठा निवाला और कड़वे बोल कोई नहीं भूलता. जिस प्रकार आदमी स्वादिष्ट मिठाई का स्वाद नहीं भूलता उसी प्रकार वह कड़वे बोल की कड़वाहट भी कभी नहीं भूलता. इसलिए किसी से कड़वे बोल नहीं बोलना चाहिए.

मीठा मीठा हप्प, कड़वा कड़वा थू. हम में से अधिकतर लोग केवल अच्छा अच्छा ही प्राप्त करना चाहते हैं, जो हमें बुरा लगता है उससे दूर भागते हैं. किसी व्यक्ति में या किसी काम में अच्छाइयों के साथ कुछ बुराइयाँ भी हैं तो हमें उन्हें भी सहन करना सीखना चाहिए.

मीठी छुरी, जहर की भरी. जो लोग बोलते तो मीठा हैं पर उन के मन में कपट होता है, उन के लिए.

मीठी बातन पेट नहिं भरत. मीठी बातों से पेट नहीं भरता.

मीठी मीठी बात से बनते बिगड़े काम. मीठी बोली से बिगड़ी हुई बात बन जाती है.

मीठे के लिए जूठा खाए. अल्पकालिक लाभ के लिए जो गलत काम करे उस के लिए कहा गया है (विशेषकर वैश्यागामियों के लिए).

मीत बनाए न बनें, बैरी, सिंह और नाग, जैसे कभी न हो सकें एक ठौर जल आग. शत्रु, सिंह और सांप प्रयास करने पर भी मित्र नहीं बन सकते (जैसे आग और पानी एक साथ नहीं रह सकते).

मीर साहब की जात आली है, मुँह चिकना है पेट खाली है. जो लोग बड़े लोगों की जमात में शामिल होने के लिए दिखावा बहुत करते हैं पर अंदर से खाली होते हैं, उनके लिए.

मुँड़ी हुई भेड़ की तरह अमीर. आपसी हास्य व्यंग्य में इस तरह की विरोधाभासी बात बोली जाती है. किसी दोस्त ने दूसरे से कहा कि तुम बहुत पैसे वाले हो, तो वह मजाक में कहता है कि हाँ उतना ही जितनी मुंडी हुई भेड़. 

मुँह आया कौर भी अपनो नहिं होत. मुँह तक आया कौर भी कभी-कभी हाथ से छिन जाता है.

मुँह काला, वक्त उजाला. नीच परन्तु अच्छे भाग्य वाला व्यक्ति, जिसका समय अच्छा चल रहा हो.

मुँह के चिकने, पेट के काले. जो लोग ऊपर से मीठी मीठी बातें करते हैं और अंदर से जहर से भरे होते हैं उनके लिए कही जाने वाली कहावत. रूपान्तर – मुँह मीठी और पेट कसाइन.

मुँह खाए, आँख लजाए (खाए जीभ, लजाए आँख). किसी से एहसान लेने के बाद व्यक्ति को थोड़ा लज्जित होना पड़ता है. कोई हाकिम जिस से रिश्वत ले लेता है उस से नज़र बचाता है.

मुँह खाय पेट ललचाय. किसी को खाता देख कर जब कोई सगा संबंधी ललचा रहा हो तो.

मुँह गंधाय मांग सेंदुर देय. फूहड़ स्त्रियों पर व्यंग्य. मुँह से दुर्गन्ध आ रही है और श्रृंगार करे घूम रही हैं.

मुँह देख कर तिलक. जैसी आदमी की हैसियत होती है वैसा ही उसका सत्कार होता है.

मुँह देख कर बीड़ा और कमर देखकर पीढ़ा. आदमी की हैसियत देख कर ही उस का मान सम्मान किया जाता है. असभ्य भाषा में रूपान्तर – मुंह देख के बीड़ा और चूतड़ देख के पीढ़ा. बीड़ा–पान, पीढ़ा–सींकों का बना हुआ या बुना हुआ छोटा स्टूल. (देखिए परिशिष्ट)

मुँह देख बात, सर देख सलाम. व्यक्ति की हैसियत देख कर ही बात की जाती है और सलाम किया जाता है.

मुँह देखी सब कहत (मुँह देखा व्यवहार). मुँह देखी सब कहते हैं. झूठा शिष्टाचार निभाना.

मुँह देखे की उल्फ़त. वैसे याद नहीं करते हैं, सामने दिख गए तो कुछ प्रेम भरी बात कर ली. दिखावे की दोस्ती.

मुँह धो रखो. अर्थात तुम जो चाहते हो वह नहीं हो सकता, अथवा तुम इसके योग्य नहीं.

मुँह न धोवे से ओझा कहावे. ओझागीरी करने वाले बहुत गंदे रहते हैं उन पर व्यंग्य. 

मुँह पर कहे मूंछ के बाल, पीछे कहे पूंछ के बाल. ऐसा व्यक्ति जो सामने तारीफ़ करता है और पीठ पीछे गालियाँ देता है. अगली कहावत में इस का रूपान्तर कर के अलग अर्थ में प्रयोग किया गया है –

मुँह पर कहे सो मूंछ का बाल, पीछे कहे सो पूंछ का बाल. किसी की बुराई उस के मुंह पर करने वाला बहादुर होता है और पीठ पीछे बुराई करने वाला कायर. मूँछ का बाल गर्व का प्रतीक है और पूँछ का बाल लज्जा का.

मुँह पर पूत, पीछे हरामी भूत. जो लोग सामने बेटा कह कर प्रेम जताते हैं और पीठ पीछे गालियाँ देते हैं.

मुँह पर मुमानी, पीठ पीछे सूअरखानी. ऊपर वाली कहावत की तरह. सामने मुमानी (मुसलमानों में मामी को मुमानी कहते हैं) कह कर प्यार जता रहे हैं और पीठ पीछे सूअर खाने वाली कह रहे हैं (मुसलमानों में सूअर खाना हराम है इसलिए किसी को सूअर खाने वाली कहना बहुत बड़ी गाली है).

मुँह बंधा कुत्ता क्या शिकार करेगा. किसी हाकिम को अधिकार ही नहीं दोगे तो वह काम कैसे करेगा.

मुँह में आया कौर फिसल गया. हाथ में आई वस्तु निकल गयी.

मुँह में राम बगल में छुरी. देखने में धर्मात्मा और अंदर से कपटी.

मुँह रहते नाक से पानी पिये. बेतुका काम.

मुँह लगाई डोमनी, बाल बच्चों समेत आए. छोटे आदमी को थोड़ी सी तवज्जो दे दो तो सर चढ़ जाता है. 

मुँह सुपारी, पेट पिटारी. (मुंह सुई, पेट कुई) (मुंह बाछी सा, पेट हाथी सा). मुँह छोटा पर पेट बड़ा. जो आदमी देखने में छोटा हो पर खाता बहुत हो. कोई हाकिम या बाबू बातें मीठी करता हो पर रिश्वत बहुत मांगता हो. 

मुँह से चावल हजार खाए, नाक से एको न खाए.  (भोजपुरी कहावत). जिस काम का जो कायदा होता है उसी से किया जाता है.

मुंगरिया सड़ गई तोऊ भड़ाफोड़ लायक रही. मोंगरी सड़ गयी है, फिर भी मिट्टी के बर्तन फोड़ने के लायक है. बड़ा आदमी कितना भी बिगड़ जाए, छोटों को अच्छी खासी हानि पहुँचा सकता है. मुंगरिया – लकड़ी का डंडा.

मुंगेरी लाल के हसीन सपने. कोई अयोग्य व्यक्ति बहुत बड़े बड़े सपने देखे तो.

मुंडा योगी और पिसी दवा का क्या ठीक. दोनों को पहचानना मुश्किल है. 

मुआ घोड़ा भी कहीं घास खाता है. मरा हुआ घोड़ा घास नहीं खाता. पितरों को श्राद्ध करने पर व्यंग्य. रिटायर्ड रिश्वतखोर अफसरों पर भी व्यंग्य.

मुए और मूरख कभी न बदलें. जो मर चुका है वह अपने विचार नहीं बदल सकता. इसी प्रकार मूर्ख लोग भी अपने विचारों पर अड़े रहते हैं. 

मुए शेर से जीती बिल्ली भली. मरे हुए शेर से जीवित बिल्ली अच्छी है. किसी रिटायर्ड बड़े अफ़सर के मुकाबले नौकरी कर रहा क्लर्क अधिक काम का है.

मुए सांप पर कीड़ियों का हमला. सांप जब मर जाता है तो चींटियां उस पर हमला कर देती हैं. जब व्यक्ति के पास धन या सत्ता की शक्तियाँ नहीं रहतीं तो छोटे से छोटा आदमी भी उस पर हमलावर हो जाता है.

मुकदमा और पीपल का लासा, लग जाएँ तो जल्दी न छूटें. लासा – पेड़ का चिपचिपा स्राव. अर्थ स्पष्ट है. 

मुकद्दर किसी की जागीर नहीं. भाग्य किसी को विरासत में नहीं मिल सकता.

मुकुत माल बानर लिये, वेद लिये अज्ञान, परम सुंदरी जोगी लिये, कायर लिये कमान. बंदर के पास मोतियों की माला, अज्ञानी के पास वेद, योगी के पास परम सुन्दरी और कायर के पास धनुष होना बेकार है.

मुख दरसावे दुख. इंसान का दुख चेहरे पर प्रकट हो जाता है.

मुद्दई लाख बुरा चाहे तो क्या होता है, वही होता है जो मंजूरे खुदा होता है. इंसान लाख किसी का बुरा चाहे, होगा वही जो ईश्वर की इच्छा होगी. आम तौर पर केवल बाद वाला हिस्सा ही बोला जाता है.

मुद्दई सुस्त गवाह चुस्त. मुद्दई – मुकदमा करने वाला. किसी परेशानी का सब से ज्यादा असर जिस पर पड़ रहा है वह इतनी दौड़ भाग नहीं कर रहा है, जिनसे सहायता मांगी गई है वे ज्यादा परेशान हैं.

मुफलिस का चिराग रोशन नहीं होता. गरीब के पास इतने साधन नहीं होते कि वह सामाजिक कार्य कर सके.

मुफलिस से माँगना हराम है. गरीब से कुछ नहीं माँगना चाहिए.

मुफलिसी सब बहार खोती है, मर्द का ऐतबार खोती है. मुफलिसी – गरीबी. 1.बहार आती है तो गरीब को उससे क्या लाभ. 2. गरीब आदमी पर कोई विश्वास भी नहीं करता.

मुफ्त का चंदन घिस रे लाला, तू भी घिस, घरवालों को भी बुला ला. कोई चीज मुफ्त में मिल रही हो तो सब उस का दुरूपयोग करते हैं.

मुफ्त का सिरका, शहद से मीठा. मुफ्त की चीज़ सदैव अच्छी लगती है.

मुफ्त की गंगा में हराम के गोते. मुफ्त में मिली चीज़ का मज़ा सब लूटना चाहते हैं.

मुफ्त की मिर्ची है तो क्या आँखों में लगाऊं. कोई चीज मुफ्त में मिल गई है तो उससे नुकसान तो नहीं करेंगे.

मुफ्त की शराब काजी को भी रवां है. काजी जी लाख सब को समझाएँ कि शराब बुरी चीज़ है, पर जब मुफ्त में मिल जाए तो खुद भी हाथ साफ़ करने से नहीं चूकते.

मुफ्त में निकले काम तो काहे को दीजे दाम. जहाँ मुफ्त में काम बन रहा हो वहां पैसे खर्च करना मूर्खता ही कहलाएगी.

मुरगी की अजान कौन सुनता है. गरीब की आवाज़ कोई नहीं सुनता.

मुरगे की एक ही टांग थी. जब कोई आदमी सरासर झूठ बोलकर उसे सही साबित करने की कोशिश करे तब. सन्दर्भ कथा – कोई बावर्ची अपने मालिक के लिए खाना पकाकर लाया. उसमें मुर्गे की एक ही टांग थी. एक टांग बावर्ची ने चुपचाप खा ली थी. मालिक ने पूछा-इसकी दूसरी टांग कहां गई. बावर्ची ने जवाब दिया, हुजूर, किसी किसी मुर्गे के सिर्फ एक ही टांग होती है. संयोगवश किसी दिन एक मुर्गा कूड़े के ढेर पर एक टांग से खड़ा था. बावर्ची ने मुर्गे की ओर इशारा करके कहा, हुजूर, एक टांग के मुर्गे को देखिए. मालिक ने ताली बजाई, तो मुर्गे ने झट दूसरा पैर जमीन पर रख दिया. तो उसने बावर्ची से कहा, देख, इसके दोनों पैर हैं कि एक. इस पर बाबर्ची ने जवाब दिया, हुजूर, ताली बजाने से दो पैर दीख पड़े. अगर उस समय भी आपने ताली बजाई होती, तो दूसरा पैर भी सामने आ जाता.

मुरदे के साथ कांधिये नहीं जलते. कांधिये – अर्थी को कंधा देने वाले. कोई मरने वाले का कितना भी सगा सम्बंधी क्यों न हो, चिता पर साथ कोई नहीं चढ़ता. 

मुरदे पर सौ मन मिट्टी तो एक मन और सही. जहाँ किसी पर बहुत सारी मुसीबतें टूट पड़ी हों वहाँ एक और आ जाएगी तो क्या फर्क पड़ेगा.

मुरव्वत में मातियन गाभिन हो गई. मातियन – नाइन. एक नाई काफी लम्बे समय के लिए परदेस गया. लौट के आया तो देखा कि पत्नी गर्भवती है. उसने पूछा कि यह कैसे हुआ. तो नाइन बोली कि वह संकोच में मना नहीं कर पाई. यदि कोई संकोच के कारण बहुत बड़ा नुकसान उठाए तो यह कहावत कही जाती है.  164

मुर्गा बांग न देगा तो क्या सवेरा न होगा. मुर्गे को एक बार यह अहंकार हो गया कि उसके बांग देने से ही सूरज उगता है. ऐसे ही कुछ लोग यह समझते हैं कि उनके बिना कोई काम नहीं हो सकता. ऐसे लोगों को हंसी हंसी में उनकी औकात बताने के लिए यह कहावत कही जाती है.

मुर्गी का घर घूर, वहीं खाय वहीं हगे. घूर – जहां पर कूड़ा डाला जाता है. मुर्गी घूरे पर रहती है, वहीं दाने बीनकर खाती है और वहीं टट्टी भी करती है. अपने चारों ओर गन्दगी बना कर रखने वालों पर व्यंग्य.

मुर्गी की दौड़ घूरे तक. छोटी सोच वाले लोग घटिया काम ही कर सकते हैं.

मुर्गी की नजर में हीरे से अच्छा घास का कीड़ा. हीरा चाहे कितना भी कीमती क्यों न हो मुर्गी के लिए उसकी कोई कीमत नहीं है. कोई चीज़ किसी के लिए मूल्यवान हो सकती है पर दूसरे के लिए बेकार भी हो सकती है.

मुर्गी को तकुआ का घाव ही बहुत है. छोटे आदमी को छोटा मोटा नुकसान भी बहुत बड़ा लगता है. तकुआ – चरखे से लगी लोहे की सलाई जिस पर सूत लपेटते हैं.

मुर्गी जान से गई, मुल्ला को मजा नहीं आया. जब किसी बड़े को खुश करने के लिए छोटा आदमी बहुत नुकसान उठाए और बड़ा खुश न हो.

मुर्गी बीमार और भैंस की बलि. छोटी सी परेशानी को हल करने के लिए बहुत महंगा उपाय करना.

मुर्गी रहे महमूद के, अंडे देवे मसूद के. खाए किसी और का, लाभ किसी और को पहुँचाए. जैसे देश में रहने वाले कुछ कृतघ्न लोग खाते यहाँ का हैं और लाभ पड़ोसी देशों को पहुँचाते हैं. 

मुर्गे को कलगी का गुमान. अपने रूप पर वही लोग घमंड करते हैं जो मुर्गे की भांति छोटी सोच वाले होते हैं.

मुर्गों की लड़ाई में कबूतरों को फायदा. दो शक्तिशाली लोगों की लड़ाई में तीसरे को फायदा होता है (वह कमजोर हो तब भी).

मुर्दे को कफन और देना पड़ता है. घर के किसी व्यक्ति की मृत्यु होना अपने आप में इतना बड़ा नुकसान है, ऊपर से उसके अंतिम संस्कार और मृत्यु भोज में और खर्च करना पड़ता है.

मुर्दे को बैठ कर रोते हैं, रोजगार को खड़े हो कर. अच्छा काम हो या बुरा, सामाजिक हो या असामाजिक, समाज में हर काम को करने का एक ढंग होता है.

मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक. छोटी सोच वाले लोग छोटा ही सोच सकते हैं (छोटा काम ही कर सकते हैं).

मुसलमान भी हुए तो जुलाहे के घर. किसी बड़े आदमी के घर होते तो खूब गोश्त बिरयानी उड़ाते. कोई गलत काम भी किया और उस की एवज़ में भरपूर आनन्द भी नहीं उठाया. 

मुसल्ला पसार, बगल में यार. मुसल्ला – नमाज पढने वाली दरी. नमाज पढ़ने जा रहे हैं और बगल में यार (प्रेमिका या वैश्या) को लिए हैं. ढोंगी नमाजी.

मुसाफिर प्यासा क्यों, गदहा उदासा क्यों, लोटा न था. अमीर खुसरो की खास तरह की पहेली नुमा कहावत जिसमें दो सवालों का एक ही उत्तर होता है. पहले के जमाने में लोग सफर में लोटा और डोरी साथ रखते थे जिससे कुँए से पानी निकाल कर पी सकें. मुसाफिर के पास लोटा नहीं था इसलिए प्यासा रह गया. गधा कुछ देर जमीन में लोटता है तभी उसका मन खुश होता है. गधा उदास क्यों था क्योंकि उसे लोटने को नहीं मिला था.

मुसीबत ढूँढने वाले को मुसीबत मिल ही जाती है. उन लोगों पर व्यंग्य जो बैठे बिठाए मुसीबत मोल लेते हैं.

मुसीबत में काम आवे सो ही सगा. अर्थ स्पष्ट है.

मुसीबत सब पे आती है, भाग्यवान के मांस पर बीतती है, अभागे के हाड़ पर बीतती है. मांस पर बीतने का अर्थ है ऐसी परेशानी जो ठीक हो जाए (बीमारी में मांस सूख जाएगा तो ठीक होने के बाद दोबारा आ जाएगा), हाड़ पर बीतने का अर्थ है स्थाई नुकसान (हड्डी चली जाएगी तो दोबारा नहीं आ सकती).

मुहर्रम की पैदाइश. मनहूस आदमी.

मूँछ उखाड़े मुर्दा हल्का न होय. बहुत छोटा सा नुकसान पहुँचा कर किसी बड़े आदमी का कुछ नहीं बिगाड़ लोगे. 

मूँछ बिचारी क्या करे जब हाथ न फेरा जाए. मूंछ रखने का फायदा तभी है जब उस पर हाथ फेरा जाए. मूँछ पर हाथ फेरने को मर्दानगी का प्रतीक माना गया है.

मूँछ रहे खड़ी, चाहे छोटी हो या बड़ी. खड़ी मूँछ को मर्दानगी का प्रतीक माना गया है.

मूँछें की मूँछें और छलनी की छलनी. बड़ी मूंछ वालों का मजाक उड़ाने के लिए कहते हैं. दूध पीते समय दूध की मलाई मूंछों में अटक जाती है. इसलिए मूँछ को छलनी कहा गया है.

मूंग और मोठ में कौन बड़ा कौन छोटा. व्यर्थ की बहस.

मूंगफली ऊपर पानी पी लो खांसी हो जाएगी, काने से ब्याह कर लो हांसी हो जाएगी. किसी लड़की की काने से शादी हो जाए तो वह सबकी हँसी का पात्र बन जाती है. तुक मिलाने के लिए मूंगफली के ऊपर पानी का जुमला जोड़ दिया गया है.

मूंड़ कटाए बाल की रच्छा. बालों की रक्षा करने के लिए सर कटवा लेना. छोटे नुकसान से बचने के लिए बहुत बड़ा नुकसान उठाना. 

मूंड़ न सही कपार सही. घुमा फिर कर वही बात कहना.

मूंड़ मुंड़ाए सिगरे गाँव, कौन कौन का लीजे नाँव. जहां सभी लोग एक से बढ़ कर एक हों.

मूंड़ मुंड़ाए हरि मिलें तो सब ही लेंय मुंड़ाय, बार बार के मूंड़ने, भेड़ न बैकुंठ जाय. कबीर दास ने कहा है कि सर गंजा कराने से प्रभु नहीं मिलते. यदि मिलते होते तो सबसे पहले भेड़ बैकुंठ जाती. 

मूंड़ मुंड़ाए, जटा रखाए, नगन फिरें ज्यों भैंसा, खलड़ी ऊपर राख लगाए, मन जैसे को तैसा. ढोंगी साधुओं के लिए. मूंछ मुंडाए हैं, जटाएं बढ़ाए हैं, भैंसे की तरह नंगे घूम रहे हैं, तन पर राख मल रखी है, पर मन शुद्ध नहीं है.

मूंड़ मुड़ाये तीन गुन गई माथ की खाज, बाबा होय के जग फिरे खाय पेट भर नाज. सर मुंडाने के तीन लाभ हैं. सिर की खुजली चली जाती है, साधु बन सभी स्थान पर आदर मिलता है और पेट भर खाने को मिलता है.

मूंड़ मुड़ाये तीन नफा, गर्दन मोटी सिर सफा, कंघी, सीसा तेल बचा. सर मुंडाने वालों पर व्यंग्य.

मूजी को टरकाइए, हाथ पाँव बचाइये. (मूजी – दुष्ट और धूर्त व्यक्ति). कोई दुष्ट व्यक्ति यदि आप के पास किसी काम से आये या आप की सहायता करने का प्रस्ताव भी रखे तो उसे टाल देना चाहिए. धूर्त व्यक्ति हमेशा आप को नुकसान पहुँचाएगा.

मूजी को नमाज छोड़ के मारे. मूजी – दुष्ट, कंजूस और धूर्त. ऐसे व्यक्ति को जरूरी से जरूरी काम छोड़ कर पीटना चाहिए. 

मूतते पे छदाम मिला, पौन पैसा कम ही सही. (छदाम – पैसे का चौथाई हिस्सा) बिना प्रयास किए छोटी से छोटी चीज़ भी मिल जाए तो नफा ही है.

मूरख का बल मौन. मूर्ख व्यक्ति की सबसे बड़ी ताकत उस के चुप रहने में ही है (बोलते ही उस की पोल खुल जाती है).

मूरख का माल खुशामद से खाइए. मूर्ख व्यक्ति की प्रशंसा करो तो वह बड़ा प्रसन्न होता है. उसकी प्रशंसा कर के उसे बेवकूफ बनाया जा सकता है और उससे जो चाहे कराया जा सकता है. सन्दर्भ कथा – एक कौवे को कहीं से रोटी का एक बड़ा सा टुकड़ा मिल गया. वह उसे चोंच में दबा कर कर पेड़ की डाल पर जा बैठा. एक लोमड़ी ने उधर से जाते हुए कौवे की चोंच में रोटी का टुकड़ा देखा तो उस के मुँह में पानी आ गया. वह उसे हथियाने की जुगाड़ सोचने लगी. अचानक उसे एक तरकीब सूझी. पेड़ के नीचे आ कर वह कौवे से बोली, कौवे भाई तुम कितने अच्छे गायक हो. तुम्हारी मधुर आवाज सुने हुए कितने दिन हो गए. जरा एक अच्छा सा गाना सुनाओ न. कौवा अपनी प्रशंसा सुन कर ख़ुशी से फूल उठा. उसने जैसे ही गाने के लिए मुँह खोला, रोटी का टुकड़ा नीचे गिर गया. इससे पहले कि कौवा कुछ समझ पाता, लोमड़ी वह टुकड़ा ले कर भाग गई. तभी से यह कहावत बनी. कहीं कहीं बोलते हैं – फूहड़ का माल सराह सराह खाइए.

मूरख की सारी रैन, छैल की एक घड़ी (मूरख की सारी रैन, सयाने की एक घड़ी). मूर्ख व्यक्ति बहुत समय लगा कर भी जो काम नहीं कर सकता उसी काम को चंट चालाक या बुद्धिमान व्यक्ति तुरंत कर लेता है.

मूरख को दियो पान, वो लगो रोटी संग खान. मूर्ख व्यक्ति को पान खाने को दिया तो वह उसे सब्जी की तरह से रोटी के साथ खाने लगा. कोई व्यक्ति मूर्खतावश किसी दी हुई चीज़ का गलत प्रयोग करे तो.  

मूरख को समझाय, ज्ञान गाँठ को जाय. मूर्ख को समझाने की कोशिश में अपना ज्ञान कम होता है.

मूरख भीजे गेंवड़े. गेंवड़ा – गाँव के बाहर का हिस्सा. जो व्यक्ति गाँव के पास पहुँच कर भी बाहर खड़ा भीग रहा हो वह मूर्ख ही माना जाएगा.

मूरख मारे लट्ठ से ऊपर ही दरसाए, ज्ञानी मारे ज्ञान से रोम रोम भिद जाए. किसी को दंड देना हो तो मूर्ख व्यक्ति तो लाठी से मारता है जिसकी चोट केवल शरीर को लगती है, पर ज्ञानी आदमी आपके अंतर्मन को चोट पहुंचाने वाली बात कहता है.

मूरख मिले मौन हो जईयो, ऊसर बीज न बईयो जी (मूर्खों के बीच मौन रह जाना अच्छा है). जिस प्रकार बंजर जमीन में बीज नहीं बोना चाहिए उसी प्रकार मूर्ख व्यक्ति को ज्ञान की बात समझाने का प्रयास नहीं करना चाहिए. इंग्लिश में कहावत है – You can never counsel a fool. सन्दर्भ कथा – गधे ने बाघ से कहा कि घास नीले रंग की होती है. बाघ ने कहा नहीं घास का रंग हरा है. दोनों के बीच बहस हो गई. इस विवाद को समाप्त करने के लिए, दोनों जंगल के राजा शेर के पास गए. बाघ के कुछ कहने से पहले ही गधा चिल्लाने लगा.  महाराज यह बाघ नीली घास को हरी बता रहा है. इसे ठीक से इसकी  सजा दी जाए. शेर ने तुरंत घोषणा की, बाघ को एक हफ्ते की जेल होगी. बाघ शेर के पास गया और पूछा, क्यों महाराज! घास हरी है, क्या यह सही नहीं है. शेर ने कहा, हाँ  घास हरी है. मगर तुम को सज़ा उस मूर्ख गधे के साथ बहस करने के लिये दी गई हैं.

मूरख मूढ़ गंवार को सीख न दीजो कोय, कूकुर वर्गी पून्छड़ी कभी न सीधी होय. जैसे कुत्ते की पूँछ कभी सीधी नहीं हो सकती वैसे ही मूर्ख व्यक्ति लाख सीख देने से भी बुद्धिमान नहीं बन सकता.

मूरख वैद से मौत भली. मूर्ख वैद से इलाज कराने में जान तो जाएगी ही और धन भी जाएगा. संस्कृत में इस प्रकार से कहा गया है – वैद्यराज नमस्तुभ्यं, यमराजस्य सहोदर:, यम हरति प्राणानि, त्वं प्राण धनानि च. हे वैद्यराज! आपको नमस्कार. आप यमराज के भाई हैं. वे प्राण हरते हैं पर आप प्राण के साथ धन भी हर लेते हैं.

मूरख से दुख रोओ, रोटा से घी खोओ. मूर्ख के सामने अपना दुखड़ा रोना उसी तरह व्यर्थ है जैसे मोटे अनाज की रोटी के साथ घी बरबाद करना.

मूर्ख अपने को अकलमंद समझते हैं और अकलमंद अपने को अज्ञानी. मूर्ख व्यक्ति कभी अपने को मूर्ख मानने को तैयार नहीं होते, वे समझते हैं कि उन्हें सब कुछ आता है. जो सही मानों में समझदार हैं वे यह समझते हैं कि दुनिया में जानने के लिए बहुत कुछ है जिसमें से वे बहुत कम जान पाए हैं. उदाहरण के तौर पर जो लोग धर्म की एक ही पुस्तक पढ़ते हैं वे अपने को सर्वज्ञ समझते हैं जबकि भारतीय धर्म दर्शन के सैकड़ों ग्रन्थों का अध्ययन करने वाला विद्वान अपने को अज्ञानी मानता है. 

मूर्ख के तरकस में तीर नहीं टिकते. क्योंकि मूर्ख व्यक्ति अपने संसाधनों को ठीक से प्रयोग नहीं करता. तरकश के चित्र के लिए देखिये परिशिष्ट.

मूर्ख को कभी मूर्ख न कहो क्योंकि वह मूर्ख है. एक बार को बुद्धिमान व्यक्ति को मूर्ख कहने पर वह बुरा नहीं मानेगा पर अगर आपने मूर्ख को उस के मुँह पर मूर्ख बोल दिया तो शामत आई जान लो.

मूर्ख होने से कायर होना बेहतर. मूर्ख होना बुरा है पर कायर होना उससे भी बुरा है.

मूर्खों के पटाखे दीवाली से पहले ही ख़तम हो जाते हैं. जो लोग सही से खर्च करना नहीं जानते वे समय से पहले ही अपनी सारी सम्पत्ति गंवा देते हैं और जरूरत के वक्त खाली हाथ होते हैं.

मूर्खों के बीच अकल की बात करना मूर्खता. मूर्ख तो मूर्ख होते ही हैं, उन से बड़ा मूर्ख वह है जो उन के बीच अक्ल की बात करे. 

मूल पलटे तो नाचे साहू. किसी व्यापार में लगा हुआ या उधार पर दिया हुआ मूल धन भी लौट कर आ जाए तो बनिया बहुत खुश होता है.

मूल से ब्याज प्यारा होता है. 1. अपनी पूँजी (मूलधन) तो सब को प्यारी होती ही है उस पर मिलने वाला ब्याज और अधिक प्यारा होता है. 2. अपनी सन्तान से अधिक अपने नाती पोते प्यारे होते हैं.

मूली को अपने ही पत्ते भारी. जो व्यक्ति स्वयं ही जिम्मेदारियों के बोझ से दबा हुआ हो वह किसी की सहायता कैसे कर सकता है.

मूस मोटइहें लोढ़ा हुइहें, न हाथी न घोड़ा हुइहें. चूहा कितना भी मोटा क्यों न हो जाए, हाथी या घोड़ा नहीं बन सकता. कोई ओछा आदमी धन या अधिकार पा कर महान नहीं बन सकता.

मूसर से मूंड़ मारे. मूर्ख के साथ समय नष्ट करने वाले व्यक्ति के लिए.

मूसर होता तो पाहुना क्या रिस के चला जाता. मूसल होता तो क्या मेहमान क्या नाराज होकर चला जाता. घर में जब कोई वस्तु न हो और उसके लिए किसी को इन्कार करना पड़े तब विनोद में प्रयोग करते हैं.

मूसे और बिलार में कबहुं प्रीत न होय. चूहे और बिल्ली में कभी प्रेम नहीं हो सकता. शोषक और शोषित में कभी मधुर संबंध नहीं हो सकते.

मूसे ने पाई खाकी कत्तर, तो वो थानेदार बन बैठा. ओछी बुद्धि के आदमी को छोटी सी चीज़ मिल जाए तो अपने आप को बहुत बड़ा समझने लगता है.

मृत्यु सारे दुखों का अंत है. अर्थ स्पष्ट है. इंग्लिश में कहावत है – Death is the grand leveler.

मेंढकी को जुकाम, हँसें लोग तमाम. ज्यादा नज़ाकत दिखाने या बीमारी का दिखावा करने वालों के लिए.

मेंह, लड़का और नौकरी घड़ी घड़ी नहीं होते. वारिश होना, पुत्र का पैदा होना और नौकरी मिलना, ये बहुत जल्दी जल्दी नहीं होते.

मेघ बरसे एक पहर, पेड़ बरसे तीन पहर. वर्षा तो एक पहर हो कर रुक जाती है पर पेड़ से पानी की बूँदें लम्बे समय तक टपकती रहती हैं.

मेघ समान जल नहीं, आप समान बल नहीं. अपने बल जैसा उपयोगी और कुछ नहीं है.

मेढ़ा जब पीछे हटे, बैरी जब मीठा बोले. मेढ़ा जब पीछे हटे तो समझ लो कि टक्कर मारने वाला है, शत्रु जब मीठा बोले तो समझ लो कि नुकसान पहुँचाने वाला है.

मेरा कुत्ता मुझी पे भौंके. किसी के टुकड़ों पर पलने वाला व्यक्ति यदि उसी पर आक्रामक हो जाए तो.

मेरा पेट हाऊ, मैं न देहूं काऊ. अत्यधिक लालची व्यक्ति के लिए. मेरा पेट बहुत बड़ा है, मैं किसी को नहीं दूंगा.

मेरा बैल कानून नहीं पढ़ा है. वकीलों का मजाक उड़ाने के लिए. सन्दर्भ कथा – किसी वकील ने एक तेली से पूछा कि तुम लोग अपने बैल के गले में घंटी क्यों बांधते हो? तेली ने जवाब दिया कि जब हम बैल के पास नहीं होते हैं, तो हमें घंटी के शब्द से मालूम हो जाता है कि बैल खड़ा नहीं है और काम कर रहा है. इस पर वकील नें कहा कि यदि वह बैल यों ही खड़ा होकर अपना सिर हिलाए और घंटी बजाता रहे, तो तुम्हें कैसे पता चलेगा कि बैल काम कर रहा है. इस पर तेली ने हंसकर जवाब दिया, जनाब! मेरा बैल कानून नहीं पढ़ा है.

मेरी एक आंख फूटे कोई गम नहीं, पडोसी की दोनों फूटनी चाहिए. ईर्ष्या की पराकाष्ठा. दूसरे को नुकसान पहुंचाने के लिए खुद कितना भी बड़ा नुकसान उठाने को तैयार रहने वाले ईर्ष्या में अंधे व्यक्ति के लिए यह कहावत कही जाती है. सन्दर्भ कथा – एक व्यक्ति को अपने पड़ोसी से बड़ी ईर्ष्या थी. वह सोते जागते हर समय अपने पड़ोसी को नुकसान पहुँचाने के विषय में सोचता रहता था. जब उस का वश नहीं चला तो उस ने कड़ी तपस्या कर के भगवान को प्रसन्न किया. भगवान ने उससे कहा कि वत्स, जो वर मांगोगे मैं तुम्हें दूँगा,  पर तुम्हारा पड़ोसी भी मेरा भक्त है और बहुत भला आदमी है इसलिए मेरी शर्त यह है कि तुम्हें जो दूंगा, तुम्हारे पड़ोसी को उससे दुगुना दूँगा. तब काफी सोच समझ कर उसने माँगा कि मेरी एक आँख फूट जाए.

मेरी तौबा, मेरे बाप की तौबा. किसी काम से तौबा करना (वैसा काम कभी न करने की कसम खाना).

मेरी नाजो को कहाँ कहाँ दुखता है, जहाँ जहाँ सहलाओ वहाँ वहाँ दुखता है. अधिक नाज नखरे दिखाने वाली स्त्रियों और उन के नखरे उठाने वालों पर व्यंग्य.

मेरे और मौसी के इक्कीस रूपये. किसी आयोजन में देने के लिए मौसी ने इक्कीस रूपये दिए हैं. धूर्त व्यक्ति उन रुपयों को देते समय अपना नाम जोड़ रहा है.

मेरे घर ही बरसे मेह, मेरे घर ही खेती फले. निकृष्ट स्वार्थी व्यक्ति.

मेरे पूत निकम्मा को ढेर सारे कम्मा. जो लोग कोई ठोस काम नहीं करते और आलतू फ़ालतू कामों में व्यस्त रहते हैं या व्यस्त रहने का दिखावा करते हैं उन के लिए.

मेरे बांट मुझी को ठगें. बांट – बटखरे. मेरी वस्तु से मुझे ही धोखा देना.

मेरे मन कछु और है साईं के कछु और. मैं अपने मन में कुछ भी चाहूँ यदि ईश्वर की इच्छा कुछ और है तो मेरा चाहा हुआ नहीं हो सकता. रूपान्तर – अपना चाहा होत नहिं, प्रभु चाहा तत्काल.

मेरे मियां के दो कपड़े एक पैजामा, एक नाड़ा. किसी महिला द्वारा अपने पति की गरीबी का मजाक उड़ाया जाना. कोई पुरुष अपनी वस्तुओं का रख रखाव न करता हो तो भी महिलाएं मजाक में ऐसा बोलती हैं.

मेरे लला की उलटी रीत, सावन मास चुनावे भीत. सावन की वर्षा में दीवार चुनवाना मूर्खतापूर्ण काम ही तो है.

मेरे लला के कौन कौन यार, धुनिया, जुलहा और मनिहार. एक माँ का कथन जो कि अपने पुत्र की घटिया मित्र मंडली से दुखी है.

मेले में झमेला. आनंद पूर्ण माहौल में व्यवधान पड़ जाना.

मेव का पूत बारह बरस में बदला लेता है. मेव – राजपूतों की एक जाति जो अपनी वीरता और प्रतिहिंसक प्रवृत्ति के लिए प्रसिद्ध हैं. कहते हैं कि इस जाति में पिता की हत्या का बदला पुत्र बारह साल बाद भी ले सकता है.

मेह वहाँ ही बरसे, जहाँ राजी होवें राम. पानी वहीं बरसता है जहाँ ईश्वर की कृपा होती है. (जब तक सिंचाई के अन्य साधन नहीं थे तब तक खेती और अर्थव्यवस्था वर्षा पर ही निर्भर थी.

मेहनत आराम की कुंजी है. सुनने में उलटी बात लगती है पर सही बात है. 1. मेहनत कर के जो बच्चे अपना भविष्य संवार लेते हैं वे फिर आराम का जीवन बसर करते हैं. 2. मेहनत कर के हम समय से काम निबटा लें तो फिर निश्चिंत हो कर आराम कर सकते हैं.

मेहनत मेरी रहमत तेरी. मेहनत मनुष्य करता है लेकिन ईश्वर की कृपा भी आवश्यक है. 

मेहमानों से घर नहीं बसता. अतिथि कितना भी प्रिय क्यों न हो, उससे घर नहीं बस सकता. घर तो घर के सदस्यों से ही बसता है. (इसलिए मेहमानों के लिए घर वालों का अनादर नहीं करना चाहिए). 

मेहरिया के आगे सगुन भी असगुन. मेहरिया – स्त्री. स्त्रियाँ इतनी अधिक वहमी और शंकालु होती हैं कि अच्छे शगुन में भी अपशगुन होने की बात सोच कर चिंता करती हैं.

मेहरी जस बैरी न मेहरी जस मीत. पत्नी से बड़ा मित्र कोई नहीं हो सकता, और अगर वह दुश्मनी पर उतर आए तो उस से बड़ा शत्रु भी कोई नहीं हो सकता.

मेहरी भतार का झगरा, बीच में बोले सो लबरा. लबरा – झूठ बोलने वाला, मेहरी भतार – पति पत्नी. पति पत्नी में झगड़ा हो रहा तो बीच में नहीं बोलना चाहिए. पति पत्नी फिर एक हो जाते हैं, बेचारा बीच में बोलने वाला झूठा सिद्ध हो जाता है.

मैं कब कहूँ तेरे बेटे को मिरगी आवे है. किसी को उसकी कमी बताना और यह भी कहना कि मैं तो ऐसा कुछ नहीं कह रहा हूँ.

मैं करूँ तेरी भलाई, तू करे मेरी आँखों में सलाई. भलाई के बदले में बुराई करने वाले के लिए. 

मैं की गर्दन पर छुरी. जो बकरी मैं मैं करती है उसकी गर्दन काटी जाती है. रूपान्तर – मैं गला कटाए. अहं का भाव (अहंकार) सर्वनाश कर देता है.

मैं क्या तुमसे पतला मूतता हूँ. मैं तुमसे किसी तरह कम नहीं हूँ यह कहने का अश्लील तरीका.

मैं सच्चा, मेरा पीर सच्चा. जबरदस्ती अपनी बात मनवाना, जो मैं कह रहा हूँ वही ठीक है.

मैं सुंदर मोरा पिया सुंदर, गाँव के लोग बंदरी बंदर. अपने आप को बहुत सुंदर समझने वाली स्त्री के लिए.

मैं ही पाल करा मुस्टंडा, मोहे ही मारे लेके डंडा. मैंने ही जिसे पाल पोस कर बड़ा किया वही (कृतघ्न पुत्र या आश्रित) अब मुझे डंडा ले कर मार रहा है. रूपान्तर – टुकड़े दे दे बछड़ा पाला, सींग लगे तब मारन चाला.

मैके के महुए मीठे. मायके की हर वस्तु स्त्रियों को प्रिय लगती है.

मैना जो मैं ना कहे, दूध भात नित खाय, बकरी जो मैं मैं करे, उलटी खाल खिंचाय. मैना कहती है मैं ना (मैं कुछ नहीं हूँ), उसे दूध भात मिलता है. बकरी कहती है मैं मैं (मैं ही सब कुछ हूँ), उस की खाल खींची जाती है.

मैला कपड़ा पतली देह, कुत्ता काटे कौन संदेह. गरीब दुर्बल गाँव वालों को दुष्ट सरकारी कर्मचारी परेशान करते हैं उसके ऊपर व्यंग्य.

मैले कपड़े बिड़रे बार, वही नार कुलवंती नार. जो स्त्री अपने साज श्रृंगार पर ध्यान न दे कर घर के काम में व सब की देखभाल में लगी रहती है, उसके बाल फैले और कपड़े मैले होते हैं. वही कुलवंती स्त्री मानी जाती है.

मोकों मिले न तोकों, ले चूल्हे में झोंको. जिस चीज़ पर लड़ाई हो रही है वह अगर मुझे नहीं मिल सकती तो तुझे भी न मिले, चाहे चूल्हे में झोंक दो.

मोची की जोरू और फटी जूती. जहाँ पर किसी चीज की बहुतायत होनी चाहिए, वहीं पर उस की कमी हो तो यह कहावत कही जाती है. 

मोची की नजर जूते पर ही पड़ती है. मोची – जूते बनाने वाला. (आजकल इस नाम की एक बड़ी ब्रांड भी है). जिसका जो काम होता है वह उससे सम्बन्धित चीजों पर ही गौर करता है.

मोज़े का घाव, मियाँ जाने या पाँव. मोज़े से जो घाव लगता है वह बाहर दिखाई नहीं देता, जिस को घाव लगा है वही जान सकता है. कोई अन्तरंग व्यक्ति यदि किसी को चोट पहुँचाता है तो वह किसी से कह भी नहीं सकता.

मोटी दातुन जो करे, नित उठ हर्रे खाए, बासी पानी जो पिए, वा घर बैद न जाए. स्वास्थ्य संबंधी विश्वास.

मोठों का पीसना क्या और सास का रूसना क्या. दबंग बहू का कथन जो सास के रूठने की परवाह नहीं करती.

मोती बोए न ऊपजे कंचन लगे न डार, रूप उधारी ना मिले भटकत फिरे गंवार. मोती बोने से नहीं उगते, सोना पेड़ की डाल पर नहीं लगता और सुन्दरता उधार नहीं मिलती. मूर्ख लोग इन दुराशाओं में भटकते रहते हैं.

मोदक मरे जो ताहि माहुर न मारिए. जो लड्डू खाने से मरे उसे जहर मत दीजिए. जो मीठी बातों से वश में आ जाए उस के लिए कड़वी बात या दंड का प्रयोग क्यों किया जाए.

मोम का हाकिम लोहे के चने चबावे. जो हाकिम कोमल हृदय होता है वह प्रशासन चलाने में परेशानी उठाता है.

मोर पिया चिकनियां पचास बीड़ा खायं, आगे-पीछे रिनिया, दीवाने बन जायं. चिकनियां–छैल, बीड़ा–पान, रिनिया–ऋण देने वाले. क़र्ज़ लेकर वापस न करने वाले व्यक्ति की पत्नी का अपने फिजूलखर्च पति के लिए कथन.

मोर भुखिया मोर माई जाने, कठवत भर पिसान साने. कठवत–लकड़ी का बर्तन, पिसान–आटा. मेरी माँ ही जानती है कि मेरी खुराक कितनी है, इसलिए कठौता भर के आटा सानती है. बच्चे कि भूख माँ ही समझ सकती है.

मोरी की ईंट चौबारे चढ़ी. (नाली की ईंट कोठे चढ़ी). मोरी–नाली, चौबारे–चौपाल. कोई निम्न कोटि का व्यक्ति उच्च पद पा जाए कोई छोटे खानदान की लड़की बड़े घर में ब्याहे जाने पे घमंड करे तो लोग ऐसे बोलते हैं.

मोल में ठग लो, माल में मत ठगो. व्यापारियों के लिए बहुत ही उपयोगी सुझाव ही, किसी माल के दाम भले ही अधिक ले लो पर माल घटिया मत दो. 

मोह न अंध कीन्ह कहि केही. मोह किसको अँधा नहीं कर देता. अर्थात मोह हर किसी को अंधा कर देता है.

मोहिनी देख मुनिवर चले. ढोंगी मुनि के लिए जो सुंदर स्त्री को देख कर तपस्या छोड़ उसकी ओर चल देते हैं.

मोहे न नारि, नारि के रूपा. स्त्री को दूसरी स्त्री का सौन्दर्य मोहित नहीं करता.

मौके का घूँसा तलवार से बढ़ कर. सटीक मौके पर दी गई छोटी चोट भी बड़ा काम कर देती है.

मौत कभी रिश्वत नहीं लेती. अर्थ स्पष्ट है.

मौत दीजो पर मंदी न दीजो. व्यापारी मंदी से सबसे अधिक घबराते हैं.

मौत न जाने बेला कुबेला. मृत्यु किसी व्यक्ति का हित अहित और समय असमय नहीं देखती.

मौत मांदगी मुकद्दमा मंदी मांगनहार ये पाँचों मम्मा बुरे भली करे करतार. मांदगी – बीमारी, मम्मा – ‘म’ अक्षर से आरम्भ होने वाले शब्द. अर्थ स्पष्ट है.

मौत या तो बहुत जल्दी आती है या बहुत देर से. मृत्यु कभी भी मनुष्य की इच्छानुसार नहीं आती. या तो व्यक्ति की असामयिक मृत्यु होती है या मौत आती ही नहीं है (परिवार वाले इंतज़ार करते रहते हैं).

मौत सारे कर्ज चुका देती है. मृत्यु के बाद आदमी की सारी देनदारियाँ खत्म हो जाती हैं.

मौत हराए, भूख नवाए. बड़े से बड़ा शूरवीर भी मौत से हार जाता है और पेट की भूख अच्छे अच्छे गर्वीले लोगों को झुका देती है.

मौन स्वीकृति लक्षणं (मौन सम्मति लक्षणं) यदि कोई अन्याय होता देख कर आप चुप रह जाते हैं तो इसे आपकी स्वीकृति माना जाएगा.

मौला यार तो बेड़ा पार. ईश्वर प्रसन्न हो तो हर काम आसान है.

मौसी के मूंछें होतीं तो उन्हें भी मामा कहता. रिश्तों की आपसी मजाक.

म्याऊँ के ठौर को कौन पकडे. शाब्दिक अर्थ के लिए देखिए – बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे. कहावत का प्रयोग इस प्रकार करते हैं कि क्रोधी हाकिम या झगड़ालू व्यक्ति से काम के लिए कौन कहे.

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