(विवाह समारोह के बीच में एक रस्म होती है छंद की. कन्या पक्ष की महिलाएं वर से छंद सुनाने की फरमाइश करती हैं. वर को भी मौका मिलता है गालियों का उधार चुकता करने का)  

छन्द पकाऊँ, छन्द पकाऊँ छन्द के ऊपर बरफी।
दूजा छन्द जब कहूं, जब सलहज दे अशरफी।।

छन्न पकाई छन्न पकाई, छन्न पके का खुरमा।
आपकी बेटी को ऐसे रक्खूं, जैसे आँख का सुरमा।।

छन्न पकाई छन्न पकाई, छन्न पके की डाली।
सासू मैया, प्यारी लागे हमको छोटी साली।।

छन्न पकाई छन्न पकाई, छन्न पके की हल्दी।
फेरे तो अब हो चुके, विदा कीजिये जल्दी।।

छन्न पकाई छन्न पकाई, छन्न पके का लोटा।
ऐसों के हम ब्याने आए, जहाँ पानी का भी टोटा।

छन्न पकाई छन्न पकाई, छन्न पके की सेम।
ससुर हमारे लाट साहब, सास हमारी मेम।।

छन्न पकाऊँ छन्न पकाऊँ छन्न का मैं हूँ आदी।
अगला छन्द जब सुनाऊँ जब गोद में बैठाये दादी।।

ढ़ोल बजे मृदंग बजे और बजे शहनाई।
उठो सास जी तिलक करो और जल्दी करो विदाई।।

छन्न पकाऊँ छन्न पकाऊँ छन्न के ऊपर किनकी।
हम अपनी को ले चले, तुम काहे को ठिनकी।।

रिमझिम रिमझिम मेघा बरसे, सड़क में जम गई काई।
सासु जल्दी करो विदाई बेटी हुई पराई।।

गमले में गमला उस में पेड़ की डाली।
वो दूल्हा ही क्या, जिसकी नहीं कोई साली।।

लोटे पे लोटा, लोटे में जल।
(शहर) को छोड़कर (शहर) को चल।।

छंद पकिया, छंद पकिया छंद के ऊपर प्याली।
जीजा जी तो वही करेंगे जो कहे उनकी साली।।

छन पकाई छन पकाई छंद के ऊपर ताला/ताली
अगला छन्द तब सुनाऊं जब नच के दिखाए साला/साली

छन पकाई छन पकाई छंद के ऊपर ताली।
अगला छन्द तब सुनाऊं जब गोद में बैठे साली / इक पप्पी दे साली।।

छन पकाई छन पकाई छंद के ऊपर जीरा।
बारात आयी सोना, जमाई आया हीरा।।

छन पकाई छन पकाई छंद के ऊपर बाम।
सास हमारी पान की बेगम, ससुर हुकुम के गुलाम।।

छन पकाई छन पकाई चांद है कितना कूल।
कुड़ी तुम्हारी कली चम्पे दी, मैं गुलाब दा फूल।।

छन पकाई छन पकाई छंद के ऊपर आम।
सास ससुर के चरणों मे मेरा सादर प्रणाम।।
छन्न पकाई छन्न पकाई, छन्न पकाऊँ शातिर।
शहर तुम्हारे आए हैं हम इस बुलबुल की खातिर।।

छन पकाई छन पकाई छंद के ऊपर धूल।
आपकी लड़की को ऐसे रखेंगे जैसे गुलाब का फूल।।

छन पकाई छन पकाई छंद के ऊपर जुम्मा।
अगला छन्द तब सुनाऊं जब छोटी साली दे चुम्मा।।