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अकड़ी खेती, तड़की गाय तब जानो जब मुँह में जाय. अकड़ी – जिस खेत में बालियाँ न हों अथवा सूख रही हों, तड़की – जो गाय बिगड़ैल हो, दूध ऊपर चढ़ा लेती हो. जिस खेत में बालियाँ एकदम मरी-मरी हों तथा गाय बिगड़ैल स्वभाव की हो उस खेती का अनाज एवं ऐसी गाय का दूध जब मुँह में जाए तभी मिला मानना चाहिए.

अकड़ी मकड़ी दूधमदार, नज़र उतर गई पल्ले पार. बच्चे की नजर उतारते समय महिलाएं ऐसा बोलती हैं.

अकरकर मकरकर, खीर में शकर कर, जितने में कुल्ला कर बैठूं, दक्षिणा की फिकर कर. यह कहावत उन ब्राह्मणों के लिए है जो उलटे सीधे मन्त्र बोलकर जल्दी जल्दी पूजा कराते हैं, और जिनका सारा ध्यान खाने पीने और दक्षिणा पर होता है.

अकल आसरे कमाई. बुद्धि के बल से ही कमाई की जा सकती है.

अकल और हेकड़ी एक साथ नहीं रह सकतीं. अक्ल और अकड़ एक साथ नहीं देखीं जातीं. अक्ल मतलब समझदारी. जो आदमी समझदार होगा वह हेकड़ी कभी नहीं दिखाएगा, हमेशा विनम्र ही होगा.

अकल का अंधा गांठ का पूरा. जिसके पास पैसा काफी हो पर समझदारी न हो. ऐसे आदमी को बेबकूफ बना कर उससे पैसा ऐंठना आसान होता है.

अकल का घर बड़ी दूर है. अक्ल बड़ी मुश्किल से आती है इसलिए यह कहावत बनाई गई है.

अकल की कोताही और सब कुछ बहुत. केवल अक्ल की कमी है, बाकी सब ठीक है. 

अकल की बदहजमी. जो आदमी बहुत अकलमंदी दिखने की कोशिश में अपने ही जाल में फंस जाए उस का मजाक उड़ाने के लिए यह कहावत कही जाती है. रूपान्तर – अक्ल को अजीरन (अजीर्ण).

अकल के बोझ से मरा. जो व्यक्ति अति बुद्धिमत्ता में कोई मूर्खतापूर्ण कार्य कर दे.

अकल के लिए टके लगते हैं. अकल सेंत में नहीं मिलती. शिक्षा और अनुभव से अक्ल आती है. दोनों ही चीजों में पैसे खर्च होता है. रूपान्तर – अक्कल के पाँच टका लगत.

अकल तो अपनी ही काम आती है. आप की सहायता करने के लिए कितने भी लोग उपलब्ध हों जीवन में विशेष अवसरों पर अपनी बुद्धि ही काम आती है. रूपान्तर – अक्ल अपनी ही आड़े आवे. सन्दर्भ कथा – एक दिन एक तालाब में रहने वाला मगरमच्छ अच्छे भोजन की तलाश में निकला तो उसे एक फलदार जामुन का पेड़ दिखाई दिया. उसने पेड़ पर बैठे एक बंदर से कुछ जामुन तोड़ कर देने का आग्रह किया. बंदर ने मगर को खूब सारे जामुन खिलाए और दोनों के बीच दोस्ती

 हो गई. अब मगरमच्छ रोज जामुन खाने उसी पेड़ के नीचे आने लगा. एक दिन मगर ने अपनी पत्नी को जामुन ले जा कर खिलाए और बंदर और अपनी दोस्ती की कहानी सुनाई. मगरमच्छनी एक ही धूर्त थी. वह मगर से जिद कर बैठी कि जो बंदर इतने मीठे जामुन खाता है उसका जिगर कितना मीठा होगा. मेरे लिए बंदर का जिगर लेकर आओ. मगरमच्छ के लाख मना करने के बावजूद भी वह  नहीं मानी.

    हार कर मगरमच्छ बंदर के पास गया और बंदर से बोला कि तुम्हारी भाभी तुमसे मिलना चाहती है. तुम मेरी पीठ पर बैठ जाना और मैं तुम्हें उस के पास ले चलूँगा. जब दोनों बीच तालाब में पहुँच गए तो मगरमच्छ ने बंदर को जिगर वाली बात बताई. बंदर को मगरमच्छ की बात सुनकर बहुत ठेस पहुँची, लेकिन उसने चालाकी से काम लेते हुए कहा कि मित्र यह बात तुम्हें पहले बतानी चाहिए थी. समस्या यह है कि हम बंदर लोग अपना जिगर पेड़ की कोटर में रखते हैं. तुम मुझे जल्दी से उस पेड़ के पास ले चलो ताकि मैं अपना जिगर ला सकूं. बंदर की बातों में आकर मगरमच्छ उसे वापस ले गया और जैसे ही दोनों पेड़ के पास पहुँचे बंदर झट से पेड़ पर चढ़ गया और बोला मूर्ख क्या जिगर के बगैर कोई जीवित रहेगा.

अकल तो आई पर खसम के मरने के बाद. काम पूरा बिगड़ने के बाद अक्ल आई.

अकल दुनिया में डेढ़ ही है, एक आप में और आधी में सारी दुनिया. (आप से अर्थ अपने से है). जो आदमी अपने को बहुत अक्लमंद और दुनिया को तुच्छ समझता है उस पर व्यंग्य.

अकल न क्यारी ऊपजे, प्रेम (हेत) न हाट बिकाय. अक्ल खेत में नहीं उगती और प्रेम बाजार में नहीं बिकता. 

अकल न सहूर, गौने जावै जरूर. जब किसी कन्या में ससुराल जाने लायक आवश्यक समझदारी न हो तो.

अकल बड़ी कि बहस. तर्क कुतर्क करने की बजाए अक्ल से काम लेना बेहतर है.

अकल बड़ी कि भाग्य. सच यह है कि दोनों का ही महत्व है.

अकल बड़ी के लाठी. कभी लाठी के आगे बुद्धि लाचार हो जाती है और कभी बुद्धि के आगे लाठी.

अकल बड़ी या नकल. नकल कर के कोई कार्य सिद्ध नहीं किया जा सकता. बुद्धि से ही काम बनते हैं.

अकल बड़ी या भैंस. कोई मूर्ख आदमी बेबकूफी की बात कर रहा हो और अपने को बहुत अक्लमंद समझ रहा हो तो उसका मज़ाक उड़ाने के लिए इस कहावत को बोलते हैं. कुछ लोग बोलते हैं ‘अक्ल बड़ी या बहस.’ कुछ अन्य लोग बोलते हैं – अक्ल बड़ी या वयस (आयु). अर्थात आयु उतनी महत्वपूर्ण नहीं है जितनी बुद्धि.

अकल बिन पूत लठेंगुर सौं, लछन बिन बिटिया डेंगुर सी (पूत बिना बहू डेंगुर सी).  बुद्धि के बिना पुत्र बेकार है और सुलक्षणों के बिना पुत्री. लठेन्गुर – लकड़ी का लट्ठा, डेंगुर – पशुओं के गले में बंधा लकड़ी का टुकड़ा.

अकल मारी जाट की, रांघड़ राख़या हाली, वो उस को काम कहे, वो उस को दे गाली. (हरयाणवी कहावत) रांघड़  मुस्लिम राजपूतों की एक जाति है जो बहुत असभ्य मानी जाती है. किसी जाट ने रांघड़ को नौकरी पर रख लिया. जाट उससे किसी काम के लिए कहता था तो वह बदले में गाली देता था.

अकल से ही खुदा पहचाना जाए. ईश्वर किसी को दिखता नहीं है, बुद्धि के द्वारा ही महसूस किया जाता है.

अकल हाट बिके तो मूरख कौन रहे. अर्थ स्पष्ट है.

अकलमंद को इशारा ही काफी है. बुद्धिमान व्यक्ति हलके से इशारे से ही बात समझ लेता है. इस कहावत को इस प्रकार से भी कहा गया है – अकलमंद को इशारा ही काफी, मूर्ख को मुक्का भी कम.

अकलमन्द की दूर बला. जो बुद्धिमान होता है वह मुसीबतों से दूर रहता है.

अकलमन्द को इशारा, अहमक को फटकारा. अक्लमंद इशारे में ही समझ लेता है जबकि मूर्ख व्यक्ति को डांट कर समझाना पड़ता है. इंग्लिश में इसे इस तरह कहा गया है – A nod to the wise, rod to the foolish.

अकाल पड़े तो पीहर और ससुराल में साथ ही पड़ता है. अगर केवल ससुराल में अकाल पड़े तो स्त्री मायके में जा कर रह सकती है, लेकिन आम तौर पर अकाल दोनों जगह एक साथ पड़ता है, बेचारी कहाँ गुजारा करे. कहावत का अर्थ है कि मुसीबतें व्यक्ति को सब ओर से घेरती हैं. आजकल के लोगों को यह अंदाज़ नहीं होगा कि अकाल कितनी बड़ी आपदा होती थी.  इंग्लिश में कहावत है – Misfortunes never come alone.

अकुलाए खेती, सुस्ताए बनिज. खेती में जल्दबाजी से काम करना चाहिए और व्यापार में धैर्यपूर्वक.

अकुलिन ब्याहे कुल उपहास. नीचे कुल में विवाह करने पर अपने कुल का उपहास होता है.

अकेला खाय सो मट्टी, बाँट खाय सो गुड़. बाँट कर खाने से ही खाने में स्वाद आता है.

अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता. भाड़ एक बड़ा सा तंदूर जैसा होता है जिस में चने मक्का इत्यादि भूने जाते हैं. कहावत का शाब्दिक अर्थ यह है कि एक चने के फटने से भाड़ नहीं फूट सकता. इसको इस प्रकार से प्रयोग करते हैं कि एक आदमी अकेला ही कोई बहुत बड़ा काम नहीं कर सकता.

अकेला चले न बाट, झाड़ बैठे खाट. इस कहावत में दो सीख दी गई हैं – कहीं लम्बे रास्ते पर अकेले नहीं जाना चाहिए (अचानक कोई परेशानी आ जाए तो एक से दो भले) और खाट को हमेशा झाड़ कर ही बैठना चाहिए (खाट में कोई कीड़ा मकोड़ा, बिच्छू सांप इत्यादि हो सकता है).

अकेला पूत कमाई करे, घर करे या कचहरी करे. जहाँ एक आदमी से बहुत सारी जिम्मेदारियां निभाने की अपेक्षा की जा रही हो.

अकेला पूत, मुँह में मूत (चूल्हे में मूत). अकेला बच्चा अधिक लाड़ प्यार के कारण बिगड़ जाता है.

अकेला हँसता भला न रोता भला. इकलखोरे लोगों को सीख देने के लिए यह कहावत कही गई है.

अकेला हसन, रोवे कि कबर खोदे. बेचारे हसन के किसी प्रियजन की मृत्यु हो गई है. वह अकेला रोए या कब्र खोदे. किसी व्यक्ति पर बहुत दुख और जिम्मेदारी एक साथ आ पड़े तो.

अकेली कुतिया भौंके या रखवाली करे. एक व्यक्ति से कितने काम कराए जा सकते हैं.

अकेली दुकान वाला बनिया, मनमाने भाव सौदा बेचे. यदि किसी गाँव या शहर में एक ही व्यापारी हो तो उस का एकाधिकार हो जाता है और वह मनमानी करता है. 

अकेली लकड़ी कहाँ तक जले. कोई व्यक्ति लम्बे समय तक किसी कठिन काम को अकेले ही नहीं कर सकता.

अकेली लकड़ी न जले, न बरे, न बंधे.  अकेली लकड़ी न तो ठीक से जलती है, न सुलगती है और न बंधती है. अनेक लोग मिल कर कार्य करें तो हमेशा अच्छा होता है.

अकेले की कहानी, गुड़ से मीठी.  1. जो लोग अलग अकेले रहना पसंद करते हैं उनके लिए. 2. हर व्यक्ति को अपनी खुद की कहानी सब से अच्छी लगती है.

अकेले बृहस्पति झूठे पड़ें.  बृहस्पति जैसे सर्वज्ञानी भी अकेले पड़ जाएँ तो बहुत सारे दुष्ट लोग मिल कर उन्हें झूठा साबित कर देते हैं.

अकेले से झमेला भला. कई लोग साथ मिल कर रहें या कोई काम करें तो थोड़ा मतभेद या झगड़ा हो सकता है लेकिन ये अकेले रहने से अच्छा है.

अकेले से दुकेला भला. खाली समय बिताना हो या कोई काम करना हो, एक से दो आदमी हमेशा बेहतर होते हैं.

अक्कल बिना ऊँट उभाणे फिरै. उभाणे – नंगे पैर. जानवर नंगे पैर क्यों घूमते है, क्योंकि वे मनुष्य के समान समझदार नहीं हैं. जो बच्चे नंगे पैर घूमते हैं उन्हें उलाहना देने के लिए बड़े लोग ऐसे बोलते हैं.

अक्ल आप ही ऊपजे, दिए न आवे सीख. समझदारी अपने आप से ही आती है सिखाने से नहीं आ सकती.

अक्ल उधार नहीं मिलती. अपनी अक्ल से ही काम लेना होता है.

अक्ल उम्र की मोहताज नहीं होती. छोटी आयु का व्यक्ति अक्लमंद हो सकता है और बड़ी आयु वाला बेबकूफ.

अक्ल का नहीं दाना, खुद को समझे स्याना.  किसी ऐसे व्यक्ति का मजाक उड़ाने के लिए जो मूर्ख हो और अपने को बहुत अक्लमंद समझता हो.

अक्ल का बंटवारा नहीं हो सकता. भाइयो में सम्पत्ति का बंटवारा हो सकता है पर बुद्धि का नहीं.

अक्ल किसी की बपौती नहीं होती. सम्पत्ति की तरह अक्ल विरासत में नही मिलती. बुद्धिमान पिता का बेटा महामूर्ख भी हो सकता है.

अक्ल की पूछ है आदमी की नहीं. अर्थ स्पष्ट है.

अक्ल के पीछे लट्ठ लिए फिरते हैं. कोई बार बार मूर्खता पूर्ण कार्य करता हो तब.

अक्ल के पोपट ज्ञान कहाँ पाए, पानी में भिगो के काहे न खाए. सन्दर्भ कथा – एक कछुए को किसी सियार ने पकड़ लिया. कछुए की कठोर खाल के कारण वह उसे खा नहीं पा रहा था. पेड़ पर बैठे कछुए के मित्र कौए ने कहा कि हे मूर्ख तू इसे पानी में भिगो कर क्यों नहीं खाता. सियार ने जैसे ही उसे तालाब के पानी में डाला. कछुआ तैर कर भाग निकला.

अक्लखुरा जग से बुरा. बुद्धिहीन व्यक्ति संसार में सब से गया बीता प्राणी है.

अक्लमंद के कान बड़े और जुबान छोटी. समझदार आदमी सबकी बात सुनता अधिक है और बोलता कम है.

अखाड़े का लतखौर पहलवान बनता है. अखाड़े में लात खा खा कर ही आदमी पहलवान बनता है. मनुष्य अपनी गलतियों से सीख कर ही कुछ बनता है.

अगड़म बगड़म काठ कठम्बर. फ़ालतू चीजों का ढेर.

अगर कुत्ता आप पर भौंके, तो आप उस पर न भौंको. कोई अपशब्द कहे तो बदले में अपशब्द न कह कर चुप रहना चाहिए. इंग्लिश में कहावत है – If a donkey brays at you, don’t bray at him.

अगर चावल न हो तो भात पका दो. मूर्खता पूर्ण बात.

अगर यह पेट न होता, तो काहू से भेंट न होता. पेट की खातिर ही आदमी सब से मिलता जुलता है.

अगला करे पिछले पर आवे. पहले वाला गलती कर गया, बाद वाला उसे भुगत रहा है.

अगला पाँव उठाइये, देख धरन का ठौर. पैर रखने का स्थान पहले से देख कर अगला पाँव उठाना चाहिए. संभावनाओं पर विचार कर के ही कोई कार्य करना चाहिए.

अगला पैर टिके तो पिछला पैर उठाओ. किसी काम का एक चरण पूरा हो जाए तभी दूसरा शुरू करो. 

अगली खेती आगे आगे, पिछली खेती भागे भागे. समय से की गई खेती हमेशा लाभ देती है. समय निकल जाने पर बोया बीज भाग्य पर निर्भर होता है. भागे – भाग्य से.

अगली हो गई पिछली और पिछली हो गई प्रधान. जब बाद में आने वाली पत्नी या नौकर पहले वाले को हटा कर महत्त्वपूर्ण बन जाए तो.

अगले पानी पिछले कीच. जो पहले पानी भरने आता है उसे पानी मिलता है, बाद में आने वाले को कीचड़ मिलती है. तात्पर्य है कि यदि कुछ पाना चाहते हो तो आलस्य न कर के पहले आओ.

अगसर खेती अगसर मार, कहें घाघ तें कबहुँ न हार. जो पहले खेती करता है और जो लड़ाई में आगे बढ़ कर मारता है वह कभी नहीं हारता. (अगसर – आगे बढ़ कर. संभवत: संस्कृत शब्द अग्रसर से बना है)

अगहन आए, राड़ मोटाए. राड़ – छोटी जाति के लोग. अगहन में फसल कटती है इस लिए सब को भरपूर भोजन मिलता है. इस कारण से गरीब और मजदूर भी स्वस्थ दिखाई देते हैं.

अगहन की अमावस, चैत की आठ, जहाँ जहाँ मन चाहे वहाँ वहाँ काट. अगहन की अमावस्या से धान की और चैत्र कृष्णपक्ष अष्टमी से रबी की फसल कटना आरम्भ होती हैं.

अगहन दूना, पूस सवाई, माघ मास घरहूँ से जाई. अगहन में वर्षा हो तो दूनी फसल होती है, पूस में होने से सवाई और माघ के महीने में हो तो बीज भी नहीं लौटता. वैसे इस में बहुत मतभिन्नता है.

अगहन में मुसवौ के सात जोरू. (भोजपुरी कहावत) मुसवा – मूसा, चूहा. अगहन में धान कटने के कारण इतना अनाज होता है कि चूहा भी सात बीबियाँ रख सकता है.

अगहन राजपुत, अहीर अषाढ़, भादों भैंसा, चैत चमार. अगहन में अनाज आने से राजपूत लगान या चौथ वसूलते थे, अषाढ़ में दूध अधिक होने से अहीर और भादों में घास अधिक होने से भैंसा खुश रहता है, चैत्र में चमड़े को सुखाने व पकाने में मदद मिलती है इसलिए चर्मकार खुश रहता है.

अगाड़ी तुम्हारी, पिछाड़ी हमारी. 1. भैंस का बंटवारा. भैंस के अगले हिस्से में मुँह है जिससे वह खाती है और पिछले हिस्से से दूध और गोबर देती है. स्वार्थी लोग हर चीज़ में अपना फायदा ढूँढ़ते हैं. 2. कभी कभी लोग लड़ाई में धोंस भी देते हैं कि आगे तुम करो फिर पीछे हम करेंगे. सन्दर्भ कथा – आगे का हिस्सा तुम्हारा, पीछे का हमारा. दो भाइयों ने साझे में भैंस खरीदी. उनमें से एक बड़ा होशियार था. उसने दूसरे से कहा – देखो भाई, हम लोग इस भैंस का आधा आधा साझा कर लें तो हम लोगों में फिर कभी किसी बात का झगड़ा नहीं होगा. भैंस का आगे का हिस्सा तुम ले लो और पीछे का मुझे दे दो. दूसरे ने इस बँटवारे को स्वीकार कर लिया. उसके अनुसार वह तो भैंस को चारा दाना खिलाया करता और दूध दूसरा भाई दुह लिया करता.

अगिन, जवासा, गाड़ीवान, बकरी, छीपी, ऊँट, कुम्हार, बेस्या, बानर, बानिन, दस मलीन जो बरसै पानी. अगिन-आग, जवासा-एक प्रकार की घास, छीपी-छपाई करने वाले, वेस्या-वैश्या, बानिन-बनिये की स्त्री. घाघ का कथन है कि उपरोक्त दस लोग पानी बरसने से बेहद दुखी होते हैं क्योंकि उन्हें पानी बरसने से हानि की आशंका होती है.

अगिनकोन जौ वहै समीरा, पड़े अकाल दुख सहै सरीरा, उत्तर से जल फूह परै, चूहा, साँप दोनों अवतरैं. अग्निकोण –पूर्व-दक्षिण दिशा का कोना, अवतरै-पैदा हों. यदि वर्षाकाल में हवा पूर्व दक्षिण के कोने से बहती है तो अकाल पड़ने के लक्षण हैं. उत्तर दिशा में बूँदें पड़ें तो सांप चूहे दोनों बहुत बढ़ जाते हैं.

अगुवा सहे बाँस की मार. किसी भी मुहिम की अगुआई करने वाला सबसे अधिक मार झेलता है.

अग्गम बुद्धि बानिया, पच्छम बुद्धि जाट. बनिया बुद्धि में आगे होता है, जाट बुद्धि में पीछे होता है. 

अग्नि और काल से कोई न बचे. आग सब कुछ भस्म कर देती है और काल सब को लील लेता है.

अग्र सोची सदा सुखी. पहले सोच कर काम करने वाला सदा सुखी रहता है. 

अघाइल भैंसा, तबो अढ़ाई कट्टा. (भोजपुरी कहावत) भैंसे का पेट भरा हो तब भी वह ढाई कट्टा भूसा खा सकता है. बहुत खाने वाले व्यक्ति मजाक उड़ाने के लिए. रूपान्तर – अफरा नीलगाय बीघा भर चर जात.

अघाइल रांड और भुखाएल बाभन से न बोलो. (भोजपुरी कहावत) रांड का अर्थ विधवा से भी होता है और दुष्ट स्त्री से भी. पेट भरी हुई चालाक स्त्री और भूखे ब्राहण से बात करने में खतरा है. 

अघाई मछुआरिन मछली से चूतड़ पोंछे. जिस का पेट भरा हो वह खाने की वस्तु की कद्र नहीं करता.

अघाए को ही मल्हार सूझे. पेट भरने के बाद ही मस्ती सूझती है.

अघाना बगुला, पोठिया तीत. (भोजपुरी कहावत) बगुले का पेट भरा है तो उसे पोठिया (एक प्रकार की मछली) कड़वी लग रही है. कहावत का अर्थ है कि कोई भी वस्तु भूख लगने पर ही स्वादिष्ट लगती है.

अघाया ऊँट टोकरी लुढ़कावे. ऊँट का पेट भरा हो तो वह टोकरी में रखी खाने की वस्तुओं की कद्र नहीं करता.

अच्छत थोर देवता बहुत. अच्छत – अक्षत, पूजा में प्रयोग होने वाला साबुत चावल, थोर – थोड़े. पूजन सामग्री कम है और देवता अधिक हैं. 

अच्छर से भेंट नाहीं, नाम डाकखाना. अनपढ़ लोगों द्वारा चलाई जाने वाली संस्थाओं पर व्यंग्य.

अच्छर-अच्छर के पढ़े, मूरख होय सुजान, कौड़ी-कौड़ी जोड़ के निधन होय धनवान. अर्थ स्पष्ट है.

अच्छा बोओ अच्छा काटो. अच्छा बीज बोने पर अच्छी फसल मिलती है. अच्छे कर्म का अच्छा फल मिलता है. 

अच्छी अच्छी मेरे भाग, बुरी बुरी बामन के लाग. यदि वर या कन्या अच्छे मिल गए तो हमारे भाग्य से और खराब मिले तो पंडित जी की मूर्खता से.

अच्छी जीन से कोई घोड़ा अच्छा नहीं हो जाता. केवल अच्छी जीन बाँधने से कोई घोड़ा अच्छा नहीं हो जाता. अच्छे साज श्रृगार से कोई व्यक्ति योग्य नहीं हो जाता.

अच्छी नीयत, अच्छी बरकत. अच्छी नीयत से किये काम में लाभ होता है.

अच्छी मति जो चाहो, बूढ़े पूछन जाओ. समझदारी भरी राय चाहिए हो तो बूढ़े लोगों के पास जाइए क्योंकि उन के पास लम्बा अनुभव होता है.

अच्छी सूरत से अच्छी सीरत भली. अच्छी शक्ल वाले के मुकाबले वह व्यक्ति अधिक अच्छा है जिसका व्यवहार अच्छा हो और नीयत अच्छी हो.

अच्छे की उम्मीद करो लेकिन बुरे के लिए तैयार भी रहो. अर्थ स्पष्ट है.

अच्छे फूल महादेव जी पर चढ़ें. ईश्वरीय कार्य में अच्छे लोग ही लगते हैं.

अच्छे भए अटल, प्राण गए निकल. अटल का एक अर्थ है अपनी बात पर अड़ने वाला. इस हिसाब से कहावत का अर्थ उस व्यक्ति के लिए है जो अपनी बात पर अड़ा रहा भले ही जान चली गई. अटल का दूसरा अर्थ है तृप्त. इस सन्दर्भ में इसे मथुरा के चौबे लोगों के लिए प्रयोग करते हैं जो खाते ही चले जाते हैं चाहे प्राण निकल जाएं.

अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम. (दास मलूका कह गए, सब के दाता राम) मलूक दास नाम के एक संत थे जिन्होंने ईश्वर की महत्ता बताने के लिए ऐसा कहा है. आजकल कामचोर लोग, भिखारी और ढोंगी साधु भी अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए ऐसा कहते हैं.

अजब तेरी कुदरत अजब तेरे खेल, छछूंदर भी डाले चमेली का तेल. किसी अयोग्य व्यक्ति को भाग्य से कोई नायाब वस्तु मिल जाने पर ऐसा बोला जाता है.

अजब तेरी माया, कहीं धूप कहीं छाया. ईश्वर की बनाई दुनिया में कहीं सुख है तो कहीं दुख.

अटकल पच्चू डेढ़ सौ. बिना सर पैर की बात के लिए कही गई कहावत.

अटका बनिया देय उधार (अटका बनिया सौदा दे). बनिया मजबूरी में माल दे रहा है, क्योंकि पिछला उधार निकालने का और कोई तरीका नहीं है. मजबूरी में कोई किसी का काम कर रहा हो तो यह कहावत कहते हैं.

अटकेगा सो भटकेगा. दो अर्थ हुए.1- जिस का कोई काम अटकेगा वह दौड़ भाग करेगा. 2- जो दुविधा में पड़ेगा वो भटकता रहेगा.

अटन की टटन में, टटन की अटन में. इधर की वस्तु उधर रखना. बे सिर पैर का काम करना.

अड़ते से अड़ो जरूर, चलते से रहो दूर. 1. जो लड़ने पर उतारू है उससे लड़ो जरूर पर जो अपने रास्ते जा रहा है उससे बिना बात मत उलझो. 2. स्थिर आदमी से लड सकते हो, चलते से मत लड़ो, चलता भाग जायेगा.

अड़ी घड़ी काजी के सर पड़ी. कोई भी परेशानी पड़े उसका दोष मुखिया या बिचौलिए को ही दिया जाता है.

अढ़ाई दिन की सक्के ने भी बादशाहत कर ली. अलिफ़ लैला में एक किस्सा है जिस में सक्का नामक एक भिश्ती को ढाई दिन की बादशाहत मिल गई थी. थोड़े समय के लिए सत्ता मिलने पर कोई रौब गांठे तो ऐसा कहते हैं.

अढ़ाई हाथ की ककड़ी, नौ हाथ का बीज. कोई असंभव सी बात. कोरी गप्प.

अति का फूला सैंजना, डाल पात से जाए. 1.सैजना एक पेड़ है जिसमें अत्यधिक फूल और फलियाँ लगती है और उसके बाद पतझड़ हो जाता है. धन या पद मिलने पर अहंकार नहीं करना चाहिए क्योंकि ये क्षणिक हैं. 2.लोग उसको इस लालच में डाल समेत तोड़ लेते हैं. फूल और फलियों के चक्कर में पेड़ अपने डाल पात से जाता है.

अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप (अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप). अति हर चीज़ की बुरी होती है. इस कहावत को ऐसे भी कहा गया है – न ढेर बलबल न ढेर चुप, न ढेर वरखा न ढेर धुप.

अति तातो पय जल पिए, तातो भोजन खाए, बाकी बत्तीसी सबहि, ज्वानी में झर जाए. बहुत गर्म पेय पदार्थ पीने और बहुत गर्म खाना खाने से दांत कमजोर हो जाते हैं.

अति पितवालों आदमी, सोए निद्रा घोर, अनपढ़िया आतम कही, मेघ आवे अति घोर. अत्यधिक पित्त प्रकृति वाला आदमी यदि दिन में घोर निद्रा में सोए तो अनपढ़ (पर अनुभव से भरपूर) आतम कहते हैं कि जोर से वर्षा होगी.

अति बड़ी घरनी को घर नहीं, अति सुंदरी को वर नहीं. बहुत बड़े घर की लड़की के लिए बराबर का घर मिलने में और अत्यधिक सुंदर कन्या के लिए सुयोग्य वर मिलने में कठिनाई आती है. 

अति भक्ति चोर का लक्षण. कोई बहुत ज्यादा भक्ति दिखा रहा हो तो संशय होता है कि कहीं इस के मन में चोर तो नहीं है. संस्कृत में इस से मिलती जुलती कहावत है – अति विनय घूर्त लक्षणम्‌     

अति हर चीज़ की बुरी है. अर्थ स्पष्ट है. संस्कृत में कहते हैं – अति सर्वत्र वर्जयेत.

अतिथि देवो भव. घर में आया अतिथि भगवान के समान है. शिक्षा यह दी गई है कि घर में आए किसी व्यक्ति का अनादर न करो.

अतिशय रगड़ करे जो कोई, अनल प्रकट चन्दन से होई. बहुत रगड़ने से चन्दन जैसी शीतल लकड़ी में से भी अग्नि पैदा हो जाती है. बहुत अधिक अन्याय करने पर सीधे साधे लोग भी विद्रोह पर उतारू हो जाते हैं

अतिशय लोभ न कीजिए लोभ पाप की धार, इक नारियल के कारने पड़े कुएं में चार. अधिक लोभ करने से अत्यधिक संकट उत्पन्न हो सकता है. सन्दर्भ कथा – अधिक लोभ करने से कितना संकट उत्पन्न हो सकता है इसके पीछे एक कहानी कही जाती है. एक कंजूस नारियल लेने बाज़ार में गया. दुकानदार ने कहा चार पैसे का है. उसने आगे बढ़ कर पूछा तो दूसरा दूकानदार बोला तीन पैसे का. और आगे बढ़ा तो दो पैसे, उससे आगे एक पैसे. कंजूस बोला कहीं मुफ्त में नहीं मिलेगा. दुकानदार ने कहा, आगे नारियल का पेड़ है खुद तोड़ लो. कंजूस आगे जा कर नारियल के पेड़ पर चढ़ा और नारियल तोड़ कर उतरने लगा तभी उस का पैर फिसल गया. उसने एक डाल कस कर पकड़ ली और लटकने लगा. संयोग से नीचे एक कुआं भी था, याने अगर वह गिरता तो सीधे कुएं में जाता. डर के मारे उसे भगवान याद आने लगे. सोचने लगा कि कितने भी पैसे खर्च हो जाएँ, किसी तरह जान बच जाए. कुछ देर बाद ऊँट पर सवार एक आदमी उधर से निकला. कंजूस उससे बोला तुम मुझे उतार दो तो मैं सौ रूपये दूंगा. सौ रूपये उस समय बहुत ही बड़ी रकम थी. ऊँट सवार ने कंजूस को उतारने के लिए उस के पैर पकड़े तब तक ऊँट नीचे से चल दिया. अब दोनों कुँए के ऊपर लटकने लगे. इसी तरह एक और ऊंट सवार और उसके बाद एक घुड़सवार भी एक के बाद एक लटक गए. अधिक बोझ से पेड़ की डाल टूट गई और चारों कुँए में जा पड़े.

अतिसय लोभ बकुल ने कीन्हा, छन में प्राण केकड़ा लीन्हा. बकुल – बगुला. अधिक लोभ नहीं करना चाहिए.  लोभ के कारण कैसे एक बगुले को केकड़े के हाथों जान गंवानी पड़ी यह जानने के लिए सन्दर्भ कथा 9. बकुल – बगुला. एक बूढा बगुला मछली पकड़ने में असमर्थ हो गया तो उसने एक योजना बनाई. वह तालाब के किनारे बैठ कर आंसू बहाने लगा. अन्य जीवों ने जब इस का कारण पूछा तो उस ने कहा कि अगले तीन वर्ष भयंकर अकाल पड़ेगा. इस तालाब का पानी सूख जाएगा और सारे जीव जन्तु मर जाएंगे. सब जंतु डर गए और बगुले से इसका उपाय पूछा. बगुले ने कहा कि यहाँ से थोड़ी दूर पर एक बहुत बड़ा तालाब है जिसका जल कभी नहीं सूखता. तुम लोग चाहो तो मैं एक एक कर के तुम सब को वहाँ पहुँचा दूँ. मैं बूढा हो गया हूँ अत: एक दिन में एक ही चक्कर लगा पाऊंगा.

   सारे जलजन्तु इसके लिए तैयार हो गए. अब बगुला एक एक को ले कर जाता और थोड़ी दूर पर एक चट्टान पर बैठ कर आराम से उसे चट कर जाता. एक दिन एक केकड़े की बारी आई. बगुला उसे गले में लटका कर ले चला. जब वे उस चट्टान के पास पहुँचे तो चट्टान पर हड्डियों का ढेर देख कर केकड़े को शक हुआ. उसने बगुले से पूछा तो बगुले ने हँस कर उसे हकीकत बता दी. केकड़े ने तुरंत उस की गर्दन दबा दी जिससे वहीं उस के प्राण पखेरू उड़ गए.

अतिहिं दुलार अनूपा दाई, खाट चढ़े नेवता जाई. अत्यधिक सम्मान दिया गया तो अनूपा दाई खाट पर चढ़ कर नेवता देने जाने लगीं. अयोग्य व्यक्ति अधिक सम्मान के योग्य नहीं होता.

अते की पत, भगवान ही राखें. अति करने वाले का सम्मान भगवान ही बचा सकते हैं.

अतै सो खपै. अति करने वाले का विनाश हो जाता है.

अदरक के चन्दन, ललाट चिरचिराय. (भोजपुरी कहावत) अदरख का चन्दन बना कर लगाओगे तो माथे पर छरछराहट होगी. बदमिजाज आदमी को सर पर बिठाओ तो वह आपको कष्ट ही देगा.

अदरक गुड़ कपास, इन का नफा खाए बतास. ये तीनों चीजें अधिक हवा से खराब होती हैं. बतास – हवा.

अधकचरी विद्या दहे, राजा दहे अचेत, ओछे कुल तिरिया दहे, दहे कपास का खेत. अधूरी विद्या, लापरवाह राजा, निम्न संस्कारों वाली बहू और कपास की खेती विनाश का कारण बनते हैं

अधकुचले सांप सा खतरनाक. चोट खाए हुए सांप की भाँति चोट खाया हुआ प्रतिहिंसा में पागल व्यक्ति.

अधजल गगरी छलकत जाए (भरी न छलके, अधभरी छलके) (भरी गगरिया चुपके जाय). भरी हुई गागर ले कर चलने पर वह छलकती नहीं है, आधी भरी हुई छलकती है. इसी प्रकार जिस व्यक्ति को अधिक ज्ञान होता है वह कम बोलता है जबकि अधूरे ज्ञान वाला व्यक्ति बहुत बकबक करता है.

अधरम से धन होय, बरस पाँच या सात. पाप की कमाई जल्दी ही नष्ट हो जाती है.

अधिक कसने से वीणा का तार टूट जाता है. अधिक प्रशासनिक कड़ाई से जनता त्रस्त हो जाती है और विद्रोह कर सकती है. अधिक कड़े अनुशासन से विद्यार्थी नहीं पढ़ सकते.

अधिक खाऊं न बेवक्त जाऊं. न अधिक खाऊं न बेवक्त शौच के लिए जाऊं.

अधिक खाद औ गहरी फाल, ढो ढो नाज होय बेहाल. खाद अधिक देने और गहरा जोतने से फसल अच्छी होती है (इतनी अधिक कि किसान अनाज ढो ढो के थक जाए).

अधिक प्रेम टूटे, बड़ी आँख फूटे. किसी को बहुत अधिक प्रेम करने से प्रेम के टूटने का डर होता है. तुक मिलाने के लिए कहा गया है कि बहुत बड़ी आँख हो तो उस में चोट लगने का डर होता है.

अधिक संतान गृहस्थी का नाश, अधिक वर्षा खेती का नाश. यूँ तो वर्षा खेती के लिए आवश्यक है पर अधिक वर्षा खेती का सत्यानाश कर देती है. इसी प्रकार एक दो सन्तान होना प्रत्येक परिवार के लिए आवश्यक हैं पर अधिक संतान होने से गृहस्थी का नाश हो जाता है.

अधिक सयाना, तीन जगह सने (अधिक सयानो, जाय ठगानो). यदि किसी साधारण व्यक्ति का पैर मल के ऊपर पड़ जाए तो वह पैर को घसीट कर साफ़ करेगा और चला जाएगा, परन्तु जो ज्यादा सयाना है (व्यंग्य में) वह पहले ऊँगली से छू कर देखता है और फिर सूँघ कर देखता है कि यह क्या है, अर्थात पैर, उंगली और नाक तीन जगह सनता है. इस से मिलती जुलती कहावत है – सयाना कौवा गू खाता है.

अधिक स्याने की नाक जड़ से उड़ाई जात. अधिक स्याने की नाक जड़ समेत काटी जाती है. जो जितना चतुर बनता है उसकी उतनी ही अधिक बेइज्जती  भी होती है.

अधीरे का लेवे नहीं, ओछे का खावे नहीं. उतावले से कभी ऋण न ले और ओछे का कभी अन्न ग्रहण न करे; क्योंकि उतावला आदमी जल्दी पैसा वापिस मांगेगा, और ओछा खिलाने-पिलाने का अहसान जतायेगा.

अधेले के नोन को जाऊं, ला मेरी पालकी. छोटे से काम के लिए बहुत आडम्बर करना. अधेला – आधा पैसा. 

अनकर कपड़ा धोबिनियाँ रानी. दूसरे के कपड़े पहन कर धोबिन बनी ठनी घूमती है. अनकर – दूसरे का. दूसरों की संपत्ति पर ऐश करने वालों पर व्यंग्य.

अनकर करम कहाँ पाऊं, अपना करम माथे चढ़ाऊँ. दूसरे के भाग्य में जो है वह मैं कैसे पा सकता हूँ, जो मेरे भाग्य में है वही सर माथे.

अनकर किए पर जय जगन्नाथ. दूसरे के किए हुए कार्यों पर अपना ठप्पा लगाने की कोशिश.

अनकर खेती अनकर गाय, वह पापी जो मारन जाय. दूसरे का खेत है और किसी और की गाय चर रही है, तुम्हें क्या पड़ी है जो गाय को भगाने का पाप ले रहे हो. अर्थ है कि यदि कोई दूसरा व्यक्ति किसी तीसरे को कोई नुकसान पहुँचा रहा है तो उस में टांग नहीं अड़ानी चाहिए. अनकर – दूसरे की.

अनकर चुक्कर अनकर घी, पांडे बाप का लागा की. (भोजपुरी कहावत) आटा भी दूसरे का है और घी भी दूसरे का, कितना भी लगे, रसोइए के बाप का क्या जा रहा है. अनकर – पराया, चुक्कर – आटा. 

अनकर धिया, पका आम और कसाई, कभी अपने नहीं होते. दूसरे की बेटी मुझे अपना क्यों मानेगी (हमेशा शक की निगाह से देखेगी), पके आम का क्या भरोसा कब टपक जाए और कसाई तो किसी के सगे नहीं होते.

अनकर मंडवा में भड़भड़. दूसरे के विवाह समारोह में गड़बड़ी फैलाने वालों के लिए.

अनकर मूड़ी बेल बराबर. दूसरे का सिर बेल के समान तुच्छ. अनकर – दूसरे का, मूड़ी – सिर (मुंड). 

अनकर सेंदुर देख कर आपन कपार फोरें. (भोजपुरी कहावत) ईर्ष्यालु स्त्री दूसरी औरत की मांग में सिंदूर देख कर अपना सर फोड़ रही है. दूसरे के सुख से ईर्ष्या करना.

अनका खातिर कांटे बोए कांटा उनके गड़े. अनका – दूसरे का. जो दूसरों के लिए कांटे बोते हैं उनके पैर में काँटा जरूर गड़ता है. 

अनका धन पर बिकरम राजा (आनक धन पर मदन गोपाल). दूसरे के धन पर दानी विक्रमादित्य बने हैं.

अनका धन पे रोवे अंखिया. अनका – दूसरे का. दूसरे के धन समृद्धि से दुखी होने वाले के लिए. 

अनका बंसे बंस बनेला, अनका बंसे बंस डूबेला. दूसरे के अच्छे वंश के संयोग से अपना वंश भी उन्नत होता है और यदि दूसरे का वंश घटिया हो तो अपना वंश भी डूबता है. अंतरजातीय विवाह न करने की सलाह.

अनका बारी दुबको, अपनी बारी हड़पो. जब दूसरे को कुछ देने की बारी आए तो दुबक जाओ, और जब कुछ लेने की बारी आए तो सब हड़प लो.

अनके धन पर चोर राजा. दूसरे का धन चुरा कर चोर ऐश करता है.

अनके पनिया मैं भरूँ, मेरे भरे कहार. अपने घर में जो काम करने में हेठी समझे, वही दूसरे के घर में करना.

अनजान का अपराध नहीं माना जाता. मासूम व्यक्ति यदि अनजाने में कोई अपराध करता है तो उसे अपराध नहीं मानना चाहिए. समाज के नियमों में तो यह चल सकता है लेकिन कानून मे अज्ञानता मे हुए अपराध की क्षमा नहीं है. यदि कानून ने एस शुरू किया तो हर आदमी अपराध करेगा और खुद को अज्ञानी बताएगा.

अनजान की मिट्टी ख़राब. अज्ञानी की दुर्दशा ही होती है, क्योंकि वह दुनियादारी नहीं समझता.

अनजान पानी में न उतरो. जिस पानी की गहराई न मालूम हो उस में नहीं उतरना चाहिए. जिस काम के खतरे न मालूम हों उस को नहीं करना चाहिए.

अनजान सुजान, सदा कल्याण. जो बिलकुल अज्ञानी है वह सुखी रहता है क्योंकि उसे कोई चिंता नहीं होती, या फिर जो पूर्ण ज्ञानी है वह सुखी रहता है क्योंकि उसे कोई सांसारिक दुख नहीं व्यापता.

अनजाने को कांसा दीजे, वासा न दीजे. किसी अनजान व्यक्ति को धन या भोजन देकर उसकी सहायता कीजिए पर उसे घर में वास मत कराइए, बहुत बड़ा धोखा हो सकता है. कांसा एक मिश्र धातु है जिससे बर्तन बनते थे.

अनदेखा चोर राजा बराबर. जब तक चोर को चोरी करते न पकड़ लिया जाए तब तक चोर और राजा बराबर हैं. इस कहावत को इस प्रकार से भी कहा गया है – अनदेखा चोर साले बराबर.

अनपढ़ कमाए और जूता खाए (अभागा कमाय और जूता खाय). अभागा आदमी मेहनत से कमाता है फिर भी अपमान सहता है.

अनपढ़ जाट पढ़े बराबर, पढ़ा जाट खुदा बराबर. जाटों की चालाकी और गर्वीलेपन पर व्यंग्य.

अनपढ़ तो घोड़ी चढ़ें, पंडित मांगें भीख. जहाँ अंधेर गर्दी का राज्य हो वहाँ अनपढ़ लोगों को सत्ता मिल जाती है और ज्ञानवान लोग भीख मांग कर गुजारा करते हैं.

अनपढ़ भी पंडित के कान काट सकता है. जिसको व्यवहारिक ज्ञान अधिक हो वह अधिक सफल होता है.

अनमिले के सौ जती हैं.  स्त्री न मिले तो सब योगी बन जाते हैं. जती – यती (सन्यासी). इसी प्रकार की दूसरी कहावत है – मजबूरी का नाम महात्मा गांधी.

अनरथ करत जाहि डर नाहीं, सो जइहैं थोरे दिन मांहीं. संसार में आकर जिस व्यक्ति को अन्याय, अनाचार करने में तनिक भी भय नहीं लगता उसका नाश बहुत थोड़े समय में ही हो जाता है.

अनरूच बहू के कड़वे बोल. जो अपने को पसंद नहीं है उसकी सभी बातें बुरी लगती हैं. अनरूच – जो रुचे नहीं.

अनर्थ अवसर की ताक में रहता है. कहावत का तात्पर्य है कि किसी के भी जीवन में कभी भी कोई अनहोनी घट सकती है, इसलिए मनुष्य को बुरे समय के लिए तैयार रहना चाहिए और अभिमान नहीं करना चाहिए.

अनहोत में औलाद. अनहोत – बुरा समय. बुरे समय में औलाद हो जाना. मुसीबत में मुसीबत.

अनहोनी होती नहीं, होती होवनहार (अनहोनी होनी नहीं, होनी हो सो होय). होनी बलवान है. जो नहीं होना है वह आपके लाख चाहने पर भी नहीं होगा और जो होना है वह हो के रहेगा.

अनाज खाओ पर बीज बचाओ. जीवित रहने के लिए अनाज खाना आवश्यक है पर बोने के लिए बीज बचाना भी जरूरी है, प्रकृति का दोहन भी करो और सरंक्षण भी.

अनाड़ियों को अनाड़ी ही सिखा सकता है (अनाड़ियों को अनाड़ी ही सुगम सिखाए). कम बुद्धि वाले को पढ़ाना बहुत कठिन काम है. तीव्र बुद्धि वाला तो यह काम बिलकुल नहीं कर सकता.

अनाड़ी का सोना बाराबानी (अनाड़ी का सोना हमेशा चोखा). सुनारों की भाषा में बाराबानी सोना कई बार शुद्ध किए गए सोने को कहते हैं. अनाड़ी आदमी सोना बेचने आया हो तो वह सोना बढ़िया ही होगा क्योंकि वह उस की कीमत ही नहीं जानता.

अनाड़ी का सौदा बारा बाट. जो नया बेचने वाला होता है या मूर्ख है, उसका सामान इधर-उधर बिखरा रहता है.

अनाड़ी के घी में भी कंकड़. अनाड़ी आदमी के हर काम में फूहड़पन रहता है. 

अनाड़ी गया चोरी, छेड़न लगा छोरी. हर काम को करने के कुछ नियम कानून होते हैं. चोर लड़की छेड़ेगा तो पकड़ लिया जाएगा, चोरी कैसे करेगा. 

अनोखी जुरवा, साग में शुरवा (नई बहू, करेले में झोर). जुरवा – जोरू, पत्नी. साग बनाते हैं तो उस में शोरबा नहीं बनाते. अनाड़ी पत्नी ने साग में भी शोरबा बना दिया. कोई अनाड़ी आदमी बेतुके ढंग से काम करे तो.

अनोखे गाँव में ऊँट आया, लोगों ने जाना परमेसुर आया. मूर्ख लोगों ने जो चीज़ न देखी हो उसको कुछ का कुछ समझ लेते हैंरूपान्तर – बावले गाँव में ऊँट आया, कहें लम्बी गरदन के परमेसर.

अनोखे घर में नाती भतार. ऐसा घर जहाँ बाप दादा के मुकाबले पोते की बात अधिक मानी जाए. जहाँ बड़ों के मुकाबले छोटों की ज्यादा चले. भतार शब्द भर्ता का अपभ्रंश है जिसका अर्थ है घर का स्वामी. 

अन्त बुरे का बुरा.  अत्याचारी का अंत बुरा होता है.

अन्तकाल सुधरा तो सब सुधरा. किसी व्यक्ति ने जीवन भर बुरे कर्म किये हों पर यदि अंतिम समय में वह सुधर जाए तो लोग उसकी बुराइयों को भूल जाते हैं.

अन्ते गति सो मति. मरते समय व्यक्ति के मन में जो भाव हों वैसी ही उस की गति होती है. सन्दर्भ कथा – मरते समय व्यक्ति के मन में जो भाव रहते हैं वैसी ही उस की गति होती है. इस बारे में एक कहानी कही जाती है. एक ऋषि को वन में एक मृग शावक मिला जिसकी मां हिरनी उसे जन्म देते ही मृत्यु को प्राप्त हो गई थी. उन्होंने दयावश उसे अपने आश्रम में ला कर पाल लिया. उन्हें उस से इतना मोह हो गया कि अपने अंतिम समय पर भी वे उस की चिंता में ही डूबे रहे. इसके फलस्वरुप उन्हें हिरन की योनि में जन्म लेना पड़ा.

       इस विषय में एक दूसरी कथा एक स्त्री के बारे में कही जाती है जो युवावस्था में ही विधवा हो गई थी. जब वह प्रौढावस्था में थी तो बहुत अधिक बीमार हो कर मृत्यु शैया पर पड़ी थी. उसको देखने एक युवा वैद्य आए. वैद्य ने जब नाड़ी देखने के लिए उसका हाथ पकड़ा तो उस स्त्री को एक अजीब सी सिहरन हुई और उस के मन में आया कि हाय मैं इस सुखद अनुभूति से कितनी वंचित रही. उसी समय उसका प्राणांत हो गया. अंतिम समय की उस अतृप्त इच्छा के कारण उसे एक वैश्या के घर में जन्म मिला.

अन्दर छूत नहीं, बाहर करें दुर दुर. केवल दिखावे के लिए छुआछूत करना. जहाँ अपना स्वार्थ हो वहाँ छुआछूत न करना. 

अन्न अमृत, अन्न विष. अन्न जीवन के लिए आवश्यक भी है और अधिक खाने या गलत खाने से आदमी मरता भी है. अन्न जिलाता भी है, अन्न मारता भी है.

अन्न जल बड़ो बलवान, काल बड़ो शिकारी. अन्न और जल बड़े बलवान हैं मनुष्य को कहाँ कहाँ ले जाते हैं, भटकाते हैं और पाप भी कराते हैं. काल सबसे बड़ा शिकारी है जो हर जीव जन्तु का शिकार करता है.

अन्न जलाय के भाड़ा खातिर रार करे भड़भूजा. भाड़ा – मेहनताना, रार – झगड़ा. भाड़ भूनने वाले ने चने तो जला दिए और ऊपर से अपनी मजूरी मांग रहा है. यदि कोई आदमी काम बिगाड़े और ऊपर से झगड़ा करे. 

अन्न जी का गाजा और अन्न जी का बाजा. संसार में सारी महिमा अन्न की ही है.

अन्न दान महा दान. किसी भूखे को खिलाना सबसे बड़ा पुण्य है.

अन्न देवता को माथे चढ़ा कर खाओ.  अन्न को देवता मानना चाहिए और कभी उसका तिरस्कार नहीं करना चाहिए. माथे चढ़ाना – सम्मान करना.

अन्न धन अनेक धन, सोना रूपा कितेक धन. सबसे बड़ा धन अन्न है उसके सामने सोना चांदी भी कुछ नहीं. इस कहावत को इस प्रकार से भी कहा गया है – अन्न धन मूल धन, गहना धन आधा धन, वस्त्र धन फूसफास.

अन्न बिना कल नहीं, सैंया बिना पल नहीं. अन्न के बिना चैन नहीं आता और पति के बिना समय नहीं गुजरता.

अन्न मुक्ता, घी युक्ता. अन्न को भरपेट (मुक्त हो कर) खाना चाहिए और घी को सोच समझ कर खाना चाहिए. इस कहावत को इस प्रकार से भी कहा गया है – अन्न खाय मन भर, घी खाय दम भर.

अन्न से मरे काम से न मरे. अधिक खाने से आदमी मर सकता है पर अधिक काम से कोई नहीं मरता.

अन्न ही तारे, अन्न ही मारे. खाने से ही आदमी जिन्दा रहता है, और अधिक खाने से मरता भी है. अन्न को ले कर युद्ध भी होते हैं, जिनमें अनेक लोग मारे जाते हैं.

अन्न ही नाचे, अन्न ही कूदे, अन्न ही तोड़े तान. पेट भरा होने पर ही सब तरह की मस्ती सूझती है.

अन्न है तो टन्न है, नहीं तो सनासन्न है. टन्न – प्रसन्न, सनासन्न – शान्त. पेट भरा है तो मनुष्य खूब उत्साहित होता है और जब पेट खाली हो तो भूख के मारे बेसुध और शांत.

अन्यायी और सूरमा, जब चाले तब सगुन. अन्यायी लोग अत्याचार का कार्य करते समय सगुन असगुन नहीं विचारते. इसी प्रकार शूरवीर अपने अभियान से पहले मुहूर्त नहीं देखते.

अन्यायी के उलटे पैर. 1. अन्यायी व्यक्ति हर काम उलटे ढंग से करता है. 2. जब पीड़ित लोग प्रतिकार करते हैं तो अन्यायी बहुत जल्दी भाग खड़ा होता है.

अन्हरे सियार के पिपरे मेवा. (भोजपुरी कहावत) अंधे सियार को पीपल ही मेवा के समान है. मजबूर आदमी को जो मिल जाए वही उसके लिए बहुत है. 

अपत भए बिन पाइए, को नव दल फल फूल. बिना पत्ते झड़े नए पत्ते और फल फूल कहाँ आते हैं. कुछ नया पाने के लिए पुराने को खोना पड़ता है.

अपना अपना घोलो अपना अपना पियो. सत्तू का उदाहरण दे कर कहा गया है कि अपनी व्यवस्था स्वयं करो.

अपना अपना, पराया पराया. थोड़ी बहुत खटपट भी हो जाए फिर भी अपना अपना ही रहता है. पराया आदमी कितना भी अच्छा हो अपने जैसा नहीं हो सकता.

अपना काम बनता भाड़ में जाये जनता. विशुद्ध स्वार्थ. (आजकल के नेताओं की तरह).

अपना काम बिगाड़े बिना दूसरे का काम नहीं सुधरता. दूसरों की सहायता करने के लिए अपना नुकसान (समय और पैसे का) करना पड़ता है.

अपना कुत्ता बरजो, हम भीख से बाज आये. भीख मांगने वाले पर यदि किसी का कुत्ता चढ़ दौड़े तो वह कहता है कि भाई साहब अपने कुत्ते को रोको, हम यहाँ आने की गलती कभी नहीं करंगे. यदि मनुष्य को थोड़ी सुविधा के लिये अधिक ख़तरा उठाना पड़े तो वह ऐसा बोल कर वहाँ से निकल लेता है.

अपना के जुरे न, अनका के दानी. (भोजपुरी कहावत) अपने घर में कुछ है नहीं, दूसरों को दान करने चले हैं.

अपना के बिड़ी बिड़ी, दुसरे के खीर पुड़ी. अपने आदमी को दुत्कार और दूसरों का सत्कार करना.

अपना के रोई रोई, भतार के मोटी पोई. स्त्री स्वयं खाये चाहे भूखी ही रह जाय मगर पति को तो मोटी रोटी बनाकर पेट भर खिला ही देती है. भारतीय नारी स्वयं भूखे रह कर भी अपने पति व पुत्र का पेट भरती है.

अपना कोढ़ बढ़ता जाए, औरों को दवा बताए. उन लोगों के लिए जो अपनी समस्याएँ नहीं सुलझा पाते और दूसरों की सहायता करने को आतुर रहते हैं.

अपना कोढ़ राजी बेराजी ओढ़. यदि अपने को कोई असाध्य बीमारी है तो उसको झेलना ही पड़ेगा. यदि अपना कोई सगा सम्बन्धी नालायक हो तो भी निभाना पड़ता है.

अपना कोसा अपने आगे आता है. जो गलत काम आप करते हैं उस के दुष्परिणाम कभी न कभी झेलने पड़ते हैं 

अपना खिलाए और निहोरे कर के. किसी को अपनी जेब से खिलाओ भी और वह भी खुशामद कर के.

अपना घर दूर से सूझता है. अर्थ स्पष्ट है.

अपना चेता होत नहिं, प्रभु चेता तत्काल. मनुष्य जो चाहता है वह नहीं होता, ईश्वर जो चाहता है वह फ़ौरन हो जाता है. इंग्लिश में कहावत है – Man proposes, God disposes.

अपना छुटे न, पराया जुटे न. अपने आदमी से कुछ अनबन भी हो जाए तो भी नाता नहीं टूटता. पराये व्यक्ति के लिए कितना भी कुछ कर लो वह अपने के समान नहीं हो सकता.

अपना पूत पूत और सौत का पूत कपूत. केवल अपने सगे को महत्व दे कर दूसरे की उपेक्षा करना.

अपना पूत लाते, अनकर पूत भाते. 1. अपने पुत्र को लात मारेंगे तब भी अपना ही रहेगा, दूसरे के पुत्र को भात खिलाएंगे तो भी अपना नहीं होगा. 2. अपने पुत्र को कड़े अनुशासन से वश में रखना चाहिए और पराये पुत्र को खिला पिला कर.  

अपना पूत सभी को प्यारा. अपना पुत्र चाहे कुरूप हो, मंदबुद्धि हो तब भी सब को प्यारा होता है.

अपना पूत, पराया डंगर. उन संकीर्ण दृष्टिकोण वाले लोगों के लिए जो अपने पुत्र को नाज़ों से पालें और दूसरे के पुत्र को जानवर तुल्य समझें.

अपना पेट भरे चाहे बेटी बेटा मरे. निकृष्टता की पराकाष्ठा.

अपना फटा सियें नहीं, दूसरे के फटे में पैर दें. अपनी समस्याएँ न सुलझाएं और दूसरों की परेशानियाँ हल करने की कोशिश करें.

अपना बिन सब सपना. यदि संसार में कोई अपना न हो तो यह संसार सपना ही है.

अपना बेटा, बिसखोपड़ा नाम. अपने बेटे का नाम मैं कुछ भी रख लूँ कोई क्या कर लेगा.

अपना बैल कुल्हाड़ी नाथब, दुसरे के बाप का क्या. हमारा बैल है हम चाहें कुल्हाड़ी से नाथें. कहावत का अर्थ है कि अपना काम हम चाहे जैसे करें किसी को क्या. शहर में रहने वाले लोग यह नहीं जानते होंगे कि बैल नाथने का अर्थ होता है, बैल के नथुने में छेद कर के उसमें रस्सी डालना.

अपना बोझा सबसे भारी. हर व्यक्ति को लगता है कि जो काम वह कर रहा है वो सब से कठिन है.

अपना मकान कोट (क़िले) समान. अपना घर सभी को बहुत अच्छा और सुरक्षित लगता है. इंग्लिश में कहावत है – There is no place like home.

अपना मरण, जगत की हँसी. अर्थ है कि हम मुसीबत में पड़े हैं और लोग हँस रहे हैं.

अपना मारे छाँव में डाले. माँ क्रोध में आ कर अपने बेटे को पीटती है. बेटा रोते रोते सो जाता है तो उसे उठा कर छाँव में लिटा देती है. क्रोध में भी माँ की ममता कम नहीं होती.

अपना माल अपनी छाती तले. अपने माल की सुरक्षा स्वयं ही करना चाहिए.

अपना मीठ, पराया तीत. अपना माल अच्छा और पराया बेकार. (मीठ – मीठा, तीत – कड़वा)

अपना मुँह चिकना किए फिरते हैं. केवल अपनी ही चिन्ता करना जानते हैं.

अपना मैला, पड़ोसी का नाम. अपने घर का कूड़ा बाहर फेंक कर पड़ोसी का नाम लगाना.

अपना रख पराया चख. अपना माल बचा कर रखो और दूसरे का माल हड़पने की कोशिश करो. निपट स्वार्थी लोगों का कथन.

अपना लड़का, दूसरे की मेहरारू, बहुत नीक लगत. अपना लड़का, दूसरे की स्त्री बहुत भले लगते हैं.

अपना लाल गँवाय के दर-दर माँगे भीख. (अपने नैन गवांय के दर दर मांगे भीख). अपनी कीमती वस्तु की रक्षा न करना और जरूरत पड़ने पर औरों से मांगते फिरना.

अपना वही जो आवे काम. जो आड़े समय में काम आये वही अपना हितैषी है.

अपना सर, सौ चोटी रखें तो कौन बरजे. हम जैसे चाहें रहें, कौन मना कर सकता है. बरजना – मना करना.

अपना सा मुँह ले कर रह गये. अर्थात् चुप हो गये. कुछ कहते नहीं बना.

अपना सूप मुझे दे, तू हाथों से फटक. शुद्ध स्वार्थ परता. (अनाज में से भूसी और छिलके हटाने के लिए उसे सूप में ले कर फटकते हैं).  

अपना सो अपना, पराया सो सपना. समय पर अपना आदमी ही काम आता है, दूसरा नहीं.

अपना हाथ जगन्नाथ. जिनके पास अपने हाथ से काम करने का हुनर है वे सबसे अधिक भाग्यशाली हैं. संपत्ति छीनी जा सकती है पर हाथ का हुनर हमेशा आपके पास रहता है.

अपना ही माल जाए, आप ही चोर कहलाए. जिस का नुकसान हुआ हो उसी को चोर साबित करने की कोशिश की जाए तो ऐसा कहते हैं. हिन्दुस्तान की पुलिस अक्सर ऐसे कारनामे करती है.

अपना-अपना कमाना, अपना-अपना खाना. 1. आजकल की संस्कृति के ऊपर व्यंग्य. 2. इसका अर्थ इस प्रकार से भी है कि अपनी रोजी रोटी की चिंता सब को स्वयं ही करनी पड़ती है.

अपनी अकल और पराई दौलत सबको बड़ी मालूम होती है. सभी लोग अपने को दूसरों से अधिक अक्लमंद समझते हैं और दूसरों को अपने से अधिक धनवान समझते हैं.

अपनी अटके गधे से दद्दा कहना पड़े. गरज पड़ने पर छोटे आदमी को भी हाथ जोड़ने पड़ते हैं

अपनी अटके, सौत के मायके जाना पड़ता है. किसी स्त्री के लिए सबसे बुरा और अपमान जनक स्थान सौत का मायका ही हो सकता है. लेकिन काम अटकने पर वहाँ भी चले जाना चाहिए.

अपनी अपनी करनी अपने अपने साथ. अपने अपने कर्मो का फल सबको भोगना ही पड़ता है.

अपनी अपनी खाल में सब मस्त (अपनी अपनी खाल में सभी जीव खुशहाल). आम लोग अपने काम, अपने स्वार्थ और अपने परिवार की चिंता में ही व्यस्त रहते हैं. सन्दर्भ कथा 11. आम लोग अपने काम, अपने स्वार्थ और अपने परिवार की चिंता में ही व्यस्त रहते हैं. इस विषय में एक कथा कही जाती है. मृत्यु शैया पर पड़े एक धर्मात्मा राजा ने किसी सिद्ध मुनि से पूछा कि उसका अगला जन्म कहाँ होगा. मुनि  ने बताया कि उसका अगला जन्म फलां स्थान पर फलां शूकरी के गर्भ से होगा.

       राजा यह जान कर अत्यंत दुखी हुआ और उसने अपने पुत्र से कहा कि मेरी मृत्यु के कुछ दिन बाद तुम उस स्थान पर जा कर उस शूकरी के बच्चे को मार डालना जिससे उस योनि से मेरी जल्द मुक्ति हो जाए. राजा का पुत्र जब उस शूकर शावक को मारने गया तो उस ने राजकुमार को पहचान कर उससे कहा कि मैं इस हाल में भी बहुत खुश हूँ, अत: तुम मुझे मत मारो.

 कुछ लोग इसे पूरा बोलते हैं – क्या सीपी क्या घूंघची, क्या मोती क्या लाल, अपनी अपनी खाल में सभी जीव खुशहाल.

अपनी अपनी खींचो और ओढ़ो. अपनी अपनी व्यवस्था खुद करो.

अपनी अपनी गरज को अरज करे सब कोई. अपने स्वार्थ की सिद्धि के लिए सभी लोग प्रयास करते हैं.

अपनी अपनी ढपली, अपना अपना राग. (अपनी अपनी तुनतुनी, अपना-अपना राग). यदि एक व्यक्ति ढपली बजा रहा हो और कुछ लोग उसकी ताल के साथ गा रहे हों तो सुनने में अच्छा लगता है. यदि चार लोग अलग अलग ढपली पर अलग ताल बजा कर अलग अलग राग गा रहे हों तो सुनने में कितना बुरा लगेगा. किसी एक बात पर बहुत से लोग एक ही समय पर अपनी अपनी अलग अलग राय दे रहे हों या अपनी बात मनवाने की कोशिश कर रहे हों तो यह कहावत कही जाती है. 

अपनी अपनी तान में खोता भी मस्तान. मूर्ख लोग अक्सर आत्म मुग्धता के शिकार होते हैं.

अपनी अपनी धोती में सब नंगे (अपने जामे में सभी नंगे) (कपड़ों के भीतर हर आदमी नंगा है). आदमी ऊपर से सभ्यता रूपी कितने भी कपड़े ओढ़ ले भीतर से हर आदमी के अन्दर आदिम प्रवृत्तियाँ जिन्दा रहती हैं.

अपनी अपनी मूंछ पर, सब ही देवें ताव. हर व्यक्ति अपने को महत्वपूर्ण समझता है. आत्म सम्मान सब को प्यारा होता है.

अपनी आँख फूटी तो फूटी पड़ोसी का असगुन तो हुआ. दूसरे को नुकसान पहुँचाने की ललक में अपना चाहे कितना बड़ा नुकसान हो जाए. नीच प्रवृत्ति.

अपनी आँखें मुझे दे दे, तू घूम फिर कर देख. निपट स्वार्थपरता.

अपनी ओर निबाहिए, बाकी की वह जाने. आपका जो कर्तव्य है उसे आप निभाइए, बाकी ईश्वर के हाथ में है. 

अपनी करनी अपने आगे. जो कर्म आपने किए हैं वही आपके आगे आते हैं.

अपनी करनी किससे कहे, पेट मसोसा दे दे रहे. अपने से कोई गलती हुई है तो किसी से कहते नहीं बन रहा है, पेट में मसोस दे दे कर रह जाना पड़ रहा है.

अपनी करनी पार उतरनी. परेशानियों से पार पाने के लिए अपना पुरुषार्थ ही काम आता है. 

अपनी कोख का पूत नौसादर. नौसादर से तात्पर्य उत्कृष्ट वस्तु से है. अपनी सन्तान सब को अच्छी लगती है.

अपनी गई का कोई गम नहीं, जेठ की रही का गम है. अपनी चीज़ चोरी चली गई उसका इतना दुख नहीं है, जेठ की चोरी नहीं हुई इस का दुख अधिक है. 

अपनी गरज बावली. स्वार्थ आदमी को अंधा बना देता है.

अपनी गरज से लोग गधे को भी बाप बनाते हैं (अपनी गरज लोग गदहा चरावत.). अर्थ स्पष्ट है.

अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है. सामान्य लोग वैसे तो डरपोक होते हैं पर अपने इलाके में बहादुरी दिखाते हैं उनके लिए यह कहावत कही जाती है.

अपनी गाँठ पैसा, तो पराया आसरा कैसा. पुराने लोग बाहर जाते समय रुपये पैसे को धोती की फेंट में गाँठ बाँध कर रखते थे. गाँठ में पैसा माने अपने पास पैसा होना. अपने पास ही पैसा होगा तो आवश्यकता पड़ने पर किसी का मुँह क्यों देखना पड़ेगा.

अपनी घानी पिर जाए, फिर चाहे तेली के बैल को शेर खा जाए. निपट स्वार्थ. अपना काम निकल जाए, फिर चाहे कोई मरे या जिए. घानी – कोल्हू, जिसमें सरसों को पेर कर तेल निकाला जाता है. देखिए परिशिष्ट.

अपनी चाल में गधा भी मस्ताना. अधिक इठला कर चलने वालों का मजाक उड़ाने के लिए. 

अपनी चिलम भरने को मेरा झोपड़ा जलाते हो. अपने छोटे से फायदे के लिए किसी का बहुत बड़ा नुकसान करना महापाप है.

अपनी छाछ को कोई खट्टा नहीं कहता. अपनी चीज़ को कोई घटिया नहीं बताता.

अपनी छींक महा दुखदाई, अपनी छींक राम बन गयऊ, दसरथ मरन तुरंते भयऊ, सीता हरन तुरंते भयऊ. अन्धविश्वासी लोग छींक आने को लोग बहुत अशुभ मानते हैं. कहावत में कहा गया है कि छींक आने से जो अपशकुन हुआ उसी के कारण राम को वनवास जाना पड़ा, दशरथ की मृत्यु हुई और सीता का हरण हुआ.

अपनी छोड़ पराई तक्के, सो सब जाए गैब के धक्के. जो अपनी सम्पत्ति छोड़ कर दूसरे की चीज़ पर कुदृष्टि रखता है उस का सब कुछ ईश्वर छीन लेता है. गैब – अदृश्य शक्ति.

अपनी जांघ उघारिए, आपहिं मरिए लाज. आपसी झगडे में अपने घर का भेद दूसरों के सामने खोलने वाले को अंततः स्वयं ही लज्जित होना पड़ता है. 

अपनी झोली के चने दूसरे की झोली में डाले. अपने लाभ की चीज़ अज्ञानतावश दूसरे को दे देना.  

अपनी टेक भँजाई, बलमा की मूंछ कटाई. अपनी हठ को पूरा करने के लिए अपनों को हानि पहुँचाने वाले के लिए. एक बार स्त्री बीमारी का बहाना करके लेट गई. उसके पति ने बहुत इलाज किया, परन्तु आराम नहीं हुआ. एक दिन स्त्री ने कहा, तुम अपनी मूंछ मुड़ा डालो तो मैं अच्छी हो जाऊंगी. पति ने ऐसा ही किया। दूसरे दिन ही स्त्री चारपाई से उठ बैठी और मजे में चक्की पीस कर गाने लगी- अपनी टेक भँजाई, बलमा की मूंछ कटाई.

अपनी दाढ़ी की आग सब पहले बुझाते हैं. अपनी विपत्ति टालने का प्रयास पहिले किया जाता है.

अपनी नरमी दुश्मन को खाय. आप यदि झुक जाएँ तो दुश्मनी समाप्त हो सकती है. (हार मानी, झगड़ा टूटा). 

अपनी नाक़ कटे तो कटे, दूसरे का सगुन तो बिगड़े. उन नीच प्रकृति के लोगों के लिए जो दूसरों को हानि पहुंचाने के लिए अपना नुकसान भी कर सकते हैं.

अपनी नाक पर मक्खी कोई नहीं बैठने देता. अपना अहं सभी को प्यारा होता है.

अपनी नींद सोना, अपनी नींद उठना. पूरी आज़ादी.

अपनी पगड़ी अपने हाथ. यहाँ पगड़ी का अर्थ मान सम्मान से है. कहावत का अर्थ है – आप का कितना आदर हो, यह आपके अपने हाथ में है. जैसा व्यवहार करोगे, वैसा ही सम्मान पाओगे. 

अपनी पीठ खुद को न दिखाई दे. 1.अपनी कमियाँ किसी को नहीं दिखतीं. 2.आपकी पीठ पीछे लोग आपको क्या कहते हैं इसकी चिंता नहीं करना चाहिए.

अपनी फूटी न देखे, दूसरे की फूली निहारे. आँख की एक बीमारी होती है जिसमें आँख फूल जाती है और उस से दिखाई कम देता है. कहावत उन लोगों के लिए है जो अपनी फूटी हुई आँख (बहुत बड़ी कमी) नहीं देख रहे हैं दूसरे की फूली हुई आँख (छोटी कमी) के दोष गिना रहे हैं.

अपनी बारी घोलम घाला, हमरी बारी भूखम भाखा. अपनी बारी पर खूब माल खाए, हमारी बारी आई तो भूखा ही टरका दिया.

अपनी ब्याहता को लाने क्या जाना. अपने घर के लोगों की कद्र न करने वालों के लिए.

अपनी मां को डाकिन कौन बतावे. अपना संबंधी यदि बिल्कुल गलत भी हो तब भी कोई स्वीकार नहीं करता.

अपनी लिट्टी पर सबै आग धरत. लिट्टी – बाटी. अपने स्वार्थ के लिए हर कोई प्रयास करता है.

अपनी हंसी हंसना, अपना रोना रोना. केवल अपना स्वार्थ देखना. दूसरे के सुख दुख में शरीक न होना.

अपनी हैसियत से अतिथि का सत्कार करो, अतिथि की हैसियत से नहीं. यदि हमारे घर कोई ऐसा अतिथि आता है जो हमसे बहुत अधिक सम्पन्न है तो हमें उसके सत्कार में झूठे दिखावे के लिए अपनी हैसियत से अधिक खर्च नहीं करना चाहिए और यदि कोई छोटा व्यक्ति आए तो उस का भी भली प्रकार सत्कार करना चाहिए (छोटा आदमी समझ कर टरका नहीं देना चाहिए).

अपने अपने ओसरे कुँए भरे पनिहार. ओसरा या ओसारा – घर के बाहर का हिस्सा. अपनी बुनियादी जरूरतों का इंतजाम सभी करते हैं.

अपने अपने घर में सभी ठाकुर. यहाँ ठाकुर का अर्थ है स्वामी. हर आदमी अपने घर का स्वामी है, चाहे वह गरीब हो या धनवान.

अपने अपने भाग से खाते हैं सब कोय. सब अपने अपने भाग्य से अन्न जल पाते हैं. सन्दर्भ कथा 12. एक राजा के चार लड़के थे. एक दिन उसने उनको बुला कर पूछा – तुम सब किसके भाग्य से खाते हो. तीन ने उत्तर दिया – हम सब आपके भाग्य से खाते हैं. परन्तु चौथे ने उत्तर दिया – संसार में सब मनुष्य अपने भाग्य से खाते-पीते हैं. मैं भी अपने भाग्य से खाता हूँ. लड़के की यह बात राजा को बहुत बुरी लगी और उसे घर से निकाल दिया कि देखें तुम किस प्रकार अपने भाग्य से खाते हो.

       लड़का कुछ दिनों इधर-उधर घूमने के पश्चात एक राजा के राज्य में पहुँचा जहाँ संयोग से उसकी पुत्री के साथ उसका विवाह हो गया और दहेज में आधा राज्य भी मिल गया. उसके पिता को जब यह समाचार मिला तो उसे स्वीकार करना पड़ा कि वास्तव में सब अपने-अपने भाग्य से खाते हैं.

अपने ऊपर आवे घात, बामन मारे नाहीं पाप. वैसे तो ब्रह्म हत्या को महापाप माना गया है लेकिन यदि ब्राह्मण आप के प्राण लेने की कोशिश कर रहा हो तो उसकी हत्या भी पाप नहीं है.

अपने ऐब सब लीपते हैं. अपनी कमियाँ सब छिपाते हैं.

अपने ओसारे, गोड़ पसारे. ओसारा – घर के बाहर का हिस्सा. अपने घर पर सब प्रकार की आजादी होती है.

अपने कहे, अपने ही समझे. ऐसे लोगों के लिए जो अपने आप कुछ बोलते हैं और अपने आप ही समझते हैं.

अपने किए का क्या इलाज. जो परेशानी हम ने खुद पैदा की है उस के लिए किसी और को दोष कैसे दे सकते हैं. सन्दर्भ के लिए – कहावतों की कहानियां. कथा संख्या 13. एक किसान को पास के जंगल में रहने वाली एक लोमड़ी पर बड़ा गुस्सा आता था क्योंकि वह अकसर घात लगा कर उसकी मुर्गियों को खा जाती थी. एक दिन किसान ने शिकंजा लगा कर उस लोमड़ी को पकड़ लिया. खूब कड़ी सजा देने के इरादे से किसान ने उसकी पूंछ में ढेर सा फटा-पुराना कपड़ा लपेटा, उस में मिटटी का तेल डाला और आग लगाकर उसे छोड़ दिया. लेकिन ये क्या! लोमड़ी तेजी से किसान के खेत की तरफ भागी. खेत में गेहूं की पकी फसल कटने को तैयार थी. लोमड़ी की पूंछ से फसल में आग लग गई और पूरी फसल जलकर खाक हो गई. अब तो किसान ने सिर पीट लिया, पर दोष किसे दे? इस तरह यह कहावत बन गई.

अपने कुचाल चलें, धी बहू को उपदेसें. उन स्त्रियों के लिए जिनका स्वयं का आचरण तो ठीक नहीं है पर बेटी और बहू को अच्छे आचरण के लिए उपदेश देती हैं. माँ बाप को पहले स्वयं अच्छा व्यवहार करना चाहिए.  

अपने को आंक, फिर दरवाजा झाँक. पहले अपनी कमियाँ देखो फिर दूसरे के घर में झांको.

अपने को सूझता नहीं, औरों से बूझता नहीं. किसी ऐसे व्यक्ति के लिए जिसकी अपनी बुद्धि भी काम नहीं करती और वह औरों से पूछता भी नहीं है.

अपने खायें, औरों को ग्यारस बतायें. स्वयं तो ठूंस कर खायें, दूसरों से कहें एकादशी व्रत रखो.

अपने खुजाए ही खुजली मिटती है. अपनी व्यक्तिगत आवश्यकताओं को व्यक्ति स्वयं ही पूरा कर सकता है. 

अपने गाँव आग लागे, आन गांवे धूआं. अपने घर में कोई अनर्थ होता है तो उस की प्रतिध्वनि दूर तक जाती है.

अपने घर की घरनी और चावल की चोरनी. अपने घर में ही कोई चोर हो तो उसे पकड़ना बहुत कठिन होता है.

अपने घर की पुरखिन, दूसरे के घर में बिलार. अपने घर में सम्मान पाने वाली कोई वयोवृद्ध स्त्री जब दूसरे घर में जाकर रहती है तो उसे अपमानित होकर भीगी बिल्ली बनकर रहना पड़ता है.

अपने घर की मोटी भली, दूसरे घर पतली नाहीं. अपने घर के मोटे अनाज की मोटी रोटी भली है, मगर दूसरे के घर की गेहूँ की पतली रोटी अच्छी नहीं है. अपने घर का खराब भोजन दूसरे घर से कहीं अच्छा होता है.

अपने घर खाना नहीं तो हमरे घर आना नहीं. तुम्हारे घर में खाना न हो तो हमारे घर भी मत आना. संकट के समय मदद मांगने वालों से पल्ला झाड़ना.

अपने घर में बिलौटा बाघ. अपने इलाके में हर आदमी बहादुर होता है. (अपने घर में कुत्ता भी शेर).

अपने घर सत्तू न, अनका घर मांगे पेड़ा. अपने घर में तो सत्तू तक नसीब नहीं है और दूसरे के घर में पेड़ा खाने की फरमाइश कर रहे हैं.

अपने जोगी नंगा तो का दिए वरदान.  जोगी खुद नंगे हैं तो किसी को क्या वरदान देंगे. जिसके पास खुद के लिए साधन न हो वो आपको क्या देगा. 

अपने देस के टूका भले, परदेस के समूच नाहीं. देश में रह कर आधी कमाई परदेस की पूरी कमाई से बेहतर है.

अपने पहरू, अपने चोर. खुद ही पहरेदार हैं और खुद ही चोर हैं. (जैसे आजकल के नेता)

अपने पूत कुआँरे फिरें, पड़ोसी के फेरे. अपने लड़कों की शादी नहीं हो रही है, पड़ोसियों के सम्बन्ध करा रहे है. उन लोगों के लिए कहा गया है जो अपने घर की समस्याएं सुलझा नहीं पाते और परोपकारी बने फिरते हैं.

अपने पूत को कोई काना नहीं कहता. अपने प्रिय लोगों की कमियों को सब छिपाते हैं.

अपने बच्चे को ऐसा मारूं कि पड़ोसन की छाती फटे (अपनी बेटी को ऐसा मारूं कि बहू सहम जाए). दूसरे के मन में डर बैठाने के लिए अपने पर जुल्म करना.

अपने बावलों रोइए गैर के बावलों हंसिए. यदि अपने घर में कोई पागल या मंदबुद्धि है तो आप उस पर रोते हैं और दूसरे के घर में है तो उस पर हँसते हैं.

अपने बिछाए कांटे अपने पैरों में ही गड़ते हैं. जो दूसरों के लिए षड्यंत्र रचते हैं वे स्वयं उनका शिकार होते हैं.

अपने मठा को कोऊ पतला नहीं कहत. अपनी वस्तु को कोई बुरा नहीं कहता.

अपने मन का मनुवा, चाहे रस पिये चाहै पनुवा. मनुवा – मनुष्य, पनुवा – गुड़ के कड़ाहे का धोवन. अपने मन के हैं, चाहे रस पियें, चाहे गुड़ के कड़ाहे का धोवन. मनमानी करने वाले को कौन मना कर सकता है.

अपने मन की बात, फकीर रोटी बनाए के भात. फकीर लोग अपनी मर्जी से ही चलते हैं.

अपने मन के जौकी, भात पकाए के लौकी. (भोजपुरी कहावत) अपने मन में जो आए वही करेंगे.  

अपने मन के मौजी, माँ को कहें भौजी. मनमौजी लोग कुछ भी कर सकते हैं.

अपने मन से जानिए पराए मन की बात. यदि आप दूसरे के मन की बात जानना चाहते हैं तो सोचिए कि यदि आप उस की जगह होते तो क्या चाहते.

अपने मन से पूछिए, मेरे मन की बात. यदि आप अपने मन में झाँक कर देखेंगे तो आप को समझ में आ जाएगा कि मैं क्या चाहता/चाहती हूँ. (अक्सर पत्नियाँ अपने पतियों से इस प्रकार से कहती हैं).

अपने मने बिलाई परधान. बिलाई – बिल्ली. तुच्छ से तुच्छ व्यक्ति भी अपने को महत्वपूर्ण समझता है.

अपने मरे बिना स्वर्ग नहीं दीखता. 1. जब तक अपने पर न बीते तब तक दूसरों की परेशानी का एहसास नहीं होता. 2. खुद किए बिना कोई काम नहीं होता.

अपने मियाँ दर दरबार, अपने मियाँ चूल्हे भाड़. किसी ऐसे व्यक्ति का मजाक उड़ाने के लिए जो बड़ी पोस्ट पर हो और तब भी उसे घर के काम भी करने पड़ते हों.

अपने मुँह न बड़ाई छाजे. अपनी प्रसंसा स्वयं करना अच्छा नहीं लगता.

अपने मुंह मियाँ मिट्ठू. अपनी प्रशंसा स्वयं करना. इंग्लिश में कहावत है – To blow one’s own trumpet.

अपने मुंह शादी मुबारक. अपनी तारीफ़ खुद करना. रूपान्तर – अपने मुँह धनाबाई.

अपने लगे तो देह में, और के लगे तो भीत में. दूसरे के कष्ट की कोई परवाह न करना. अपने लगी तो कह रहे हैं हाय बहुत जोर से लगी, दूसरे के लगी तो कहते हैं तुम्हारे लगी ही कहाँ, दीवार में लगी.

अपने सर में सौ चोटी रखूँ, किसी को इससे क्या. मैं जैसे भी सिंगार करूँ मेरी मर्जी. समाज की सामान्य धारणाओं से अलग मूर्खतापूर्ण सोच.

अपने सुई भी न चुभे, दूसरे के भाले घुसेड़ दो. दूसरे के कष्ट की कोई परवाह न करना.

अपने से बचे तो और को दें (अपने से बचे तो बाप को दे). स्वार्थी लोगों के लिए कहा गया है.

अपने हाथ का काम, आधी रात का गहना. जो काम हम अपने हाथ से कर सकते हैं वह हमारे लिए हर समय सुलभ है और गहने की तरह कीमती भी है.

अपने हाथ की पोई, बलि-बलि जाऊँ, जैसे रुचे वैसे खाऊँ. बलि-बलि जाना – न्योछावर हो जाना. अपने हाथ का बनाया हुआ खाना इतना रुचिकर होता है कि जैसा मन भाये, जब मन चाहे बना के खाये.

अपने हाथों अपनी आरती. अपनी प्रशंसा स्वयं करना.

अपने हाथों अपने कान नहीं छेदे जाते. अपने कुछ काम ऐसे भी होते हैं जिन्हें हम अपने हाथ से नहीं कर सकते.

अपने ही जलते हैं. किसी की तरक्की देख कर सबसे अधिक अपने लोग ही जलते हैं. इंग्लिश में कहावत है – The worst hatred is that of relatives.

अपने हुनर में हर आदमी चोर है. अपने अपने व्यवसाय में हर व्यक्ति कुछ न कुछ हेराफेरी करने का जुगाड़ कर लेता है, और मज़े की बात यह है कि वह इस को जायज भी ठहराता है.

अपनो है फिर आपनो, जा में फेर न सार, गोड़ नमत निज उदर को, जानत सब संसार. घुटने जब मुड़ते हैं तो पेट की ओर ही जाते हैं. अपना व्यक्ति लौट कर अपने के पास ही आता है. गोड़ – घुटना. 

अपनों से जले, पड़ोसियों से नाता, ऐसी बुद्धि न देय विधाता. भगवान ऐसी बुद्धि किसी को न दे कि वह अपनों से ईर्ष्या करे और पड़ोसियों से सम्बन्ध जोड़ता फिरे.

अपनों से सावधान. इंसान को सब से अधिक धोखा अपनों से ही मिलता है.

अपमान की चुपरी नाय, मान की सूखी खाय. अपमान के साथ मिलने वाली चुपड़ी रोटी के मुकाबले सम्मान के साथ मिलने वाली रूखी रोटी अच्छी है.

अप्रैल, नवम्बर, जून, सितम्बर चार महीने तीस, फरवरी अट्ठाइस उन्तीस, बाकी सब इक्तीस. अर्थ स्पष्ट है.

अफ़लातून के नाती बने हैं. अपने को बहुत अकलमंद समझने वाले के लिए. यूनान के प्रसिद्ध दार्शनिक अरस्तु (Aristotle) को अरबी में अफलातून कहते हैं.

अफवाहों के पंख होते हैं. अफवाहें बहुत तेज़ी से फैलती हैं. इंग्लिश में कहावत है – Nothing amongst mankind, swifter than rumour. इस कहावत को इस प्रकार से भी कहा गया है – अफवाहें बिना पंख के उड़ती हैं.

अफ़सोस कि दिल गड्ढे में. किसी बात पर अफ़सोस जाहिर करने का मज़ाकिया लहजा.

अफ़ीम या खाए अमीर या खाए फकीर. अफ़ीम महँगी है. या तो बहुत पैसे वाला खा सकता है, या मांगने वाला. इस में एक अर्थ यह भी है कि अफ़ीम आदमी को खाती है, या अमीर को या फकीर को.

अफ़ीमची तीन मंजिल से पहचाना जाता है. अपनी लड़खड़ाती चाल के कारण अफ़ीमची दूर से पहचाना जाता है.

अब आया ऊँट पहाड़ के नीचे. रेगिस्तान में सब तरफ रेत ही रेत होती है. कोई ऊंची चीज नहीं होती. इसलिए ऊँट यह समझता है कि वह सबसे ऊंचा है. लेकिन जब वह पहाड़ के नीचे पहुंचता है तो उसे अपनी औकात समझ में आती है. कोई आदमी जो अपने को बहुत शक्तिशाली और होशियार समझता हो जब उसका सामना अपने से ज्यादा ताकतवर आदमी से होता है तो यह कहावत कही जाती है.

अब कथाकारी भये हैं व्यापारी. 1. अब साहित्यकार अपनी कला का व्यापार करने लगे हैं. 2. धार्मिक कथाओं का आयोजन अब बहुत बड़ा व्यापार हो गया है.

अब की अब के साथ, जब की जब के साथ. वर्तमान में हमें क्या करना है इस पर ध्यान देने की सबसे अधिक आवश्यकता है. पहले क्या हुआ था या आगे क्या हो सकता है ये बातें इतनी महत्वपूर्ण नहीं हैं.

अब की छई की निराली बातें. आजकल की पीढ़ी की बातें निराली हैं.

अब की बार, बेड़ा पार. कोई काम करने के लिए बार बार प्रयास करना पड़े तो जोश दिलाने के लिए. 

अब के बचे तो सब घर रचे. किसी बहुत बड़ी परेशानी या बीमारी के दौरान आदमी सोचता है कि इस से बाहर निकलूँ फिर सब ठीक कर लूँगा. (और उस परेशानी के बीतते ही सब भूल जाता है)

अब कै मारे तो जानूं. कायर आदमी की ललकार. अब के मार लिया सो मार लिया, अब मार के देख.

अब तब काल सीस पर नाचे. मृत्यु हर व्यक्ति के सर पर हर समय नाचती रहती है.

अब दिल्ली दूर नहीं. अब काम पूरा होने ही वाला है.

अब ना कुसल होई हो पिया, तुन ले आए जनक की धिया. मंदोदरी का रावण के प्रति कथन. कोई गलत काम करने वाले अपने निकट सम्बन्धी को चेताने के लिए यह कहावत कही जाती है.

अब पछिताए होत क्या, जब चिड़ियाँ चुग गईं खेत. खेती जब तैयार खड़ी होती है तो उसकी रखवाली करनी होती है वरना चिड़ियों का झुंड आकर फसल के दाने खा जाता है. यह कहावत ऐसे व्यक्ति के लिए कही जाती है जो आलस में समय पर जरूरी काम नहीं करता और जब काम बिगड़ जाता है तो पछताता है. 

अब भी चेत जाओ तो पहला पन्ना फाड़ दिहें. किसी दोषी व्यक्ति प्रलोभन दिया जा रहा है कि अब भी संभल जाओगे तो पुराने आरोपों का लेखा जोखा हटा देंगे. आत्म समर्पण करने वाले डाकुओं से भी ऐसा कहा जाता है.

अब भी मेरा मुर्दा तेरे जिन्दा पर भारी है. मेरे हालात बिगड़ गए हैं तो क्या, मैं अब भी तुझ से बेहतर हूँ.

अब लौं नसानी अब न नसैहों. अब तक मैं ने समय नष्ट किया (जन्म बेकार गँवाया) अब नहीं गंवाऊंगा.

अब सतवंती होकर बैठी, लूट लिया सारा संसार. (अब सतवन्ती बनी, लूट खायो संसार.) कोई भ्रष्ट व्यक्ति अन्त समय में जन कल्याण की बातें करे तो. 

अबर कुटनहार बार बार फटके. अबर – कमजोर, कुटनहार – कूटने वाली. कूटना मेहनत का काम है जब कि फटकना बहुत आसान. कमजोर कूटने वाली मेहनत से बचने के लिए कूटती कम है और फटकती अधिक है.

अबरे उनचास बयार. अबरे – कमजोर के लिए. पुराणों के अनुसार पवन उनचास प्रकार के होते है जो अलग अलग दिशाओं से आते हैं. कहावत का अर्थ है कि कमजोर के ऊपर सब दिशाओं से कष्ट आते हैं.

अबरे के भैंस बियाए, सारा गाँव मटकी ले धाए (आंधर के गाय बियाइल, टहरी लेके दौरलन). (भोजपुरी कहावत) गरीब या अंधे आदमी की गाय भैंस बियाही है तो सारा गाँव मटकी ले कर दौड़ा चला आ रहा है. मजबूर आदमी की मजबूरी का सब फायदा उठाना चाहते हैं. टहरी – मटकी.

अबल पर सभी सबल. कमजोर पर सब जोर जमाते हैं.

अबला को सतावे उसे राम सतावे. जो निर्बल (विशेषकर स्त्री) को सताता है उसे ईश्वर दंड देता है.

अब्बर पे हम जब्बर हैं, जब्बर के हम दास. निर्बल के ऊपर जोर जमाना और सबल की जी हुजूरी करना.

अभागा कमाए, भाग्यवान खाए. अभागा व्यक्ति बहुत मेहनत कर के पैसा कमाता है पर भाग्य में न होने के कारण उसकी मेहनत का लाभ उसे न मिल कर भाग्यवान को मिलता है. जो बहुत कंजूस है वह भी एक प्रकार से अभागा ही है.

अभागा गया ससुराल, वहाँ भी मठा भात. एक व्यक्ति अपने घर पर रोज रोज मट्ठा भात खा कर तंग आ गया तो कुछ अच्छा खाने की इच्छा ले कर ससुराल गया, लेकिन वहाँ भी उसे मट्ठा भात ही खाने को मिला.

अभागा पूत त्यौहार के दिन रूठे. त्यौहार के दिन रूठता है तो उस को अच्छे अच्छे पकवान खाने को नहीं मिलते.

अभागिये चोर पे बिल्ली भी भूंसे है. चोर की किस्मत खराब हो तो कुत्ता तो क्या बिल्ली भी उस पर गुर्राती है.

अभागी की पतरी में छेद. पतरी – पत्तल. भाग्यहीन को सब जगह विपत्ति भोगनी पड़ती है.

अभागे की जाई, गरीब के गले लगाई. अभागे व्यक्ति की बेटी की शादी गरीब से ही होती है.

अभागे को जैसा वार वैसा त्यौहार. जिस के भाग्य में सुख न लिखा हो उस के लिए त्यौहार भी सामान्य दिनों की भांति महत्वहीन होते हैं.

अभी एक बूंट की दो दाल नहीं हुई है. बूंट माने चना. चने को दल के दाल बनाई जाती है. अभी बूंट की दाल नहीं हुई है, मतलब अभी मामला तय नहीं हुआ है.

अभी कै दिन कै रात. अधिकार पा कर इतराने वाले आदमी से सवाल – कितने दिन तुम्हारा यह रुआब चलेगा.

अभी क्या मियाँ मर गए के रोजे घट गए. अगर तुम वाकई कोई काम करना चाते हो तो अभी भी मौका है.

अभी तो बेटी बाप की है. अभी फैसला नहीं हुआ है / बंटवारा नहीं हुआ है. जब तक फेरे पूरे सात नहीं हो जाते स्त्री अपने पति की नहीं होती बल्कि बाप की ही बेटी होती है.

अभी दिल्ली दूर है. अभी काम पूरा होने में समय लगेगा. सन्दर्भ कथा – ये एक पुरानी कहावत है जिसका इस्तेमाल हम तब करते हैं जब लक्ष्य प्राप्त करने में देरी हो. गयासुद्दीन तुग़लक़ के समय दिल्ली में हजरत निज़ामुद्दीन औलिया नाम के एक सूफी संत थे. किसी कारण से गयासुद्दीन तुग़लक़ निज़ामुद्दीन औलिया से नाराज हो गया और उन्हें दिल्ली छोड़ने का हुक्म दिया. इसी बीच उसे युद्ध के लिए बंगाल जाना पड़ा. लौटते समय उसने सन्देश भिजवाया कि उसके पहुँचने से पहले ही हजरत दिल्ली छोड़ दें. जवाब में हजरत ने फ़ारसी में कहा – हनोज दिल्ली दूरस्त (अभी दिल्ली दूर है). दिल्ली पहुँचने से चार मील पहले ही गयासुद्दीन तुगलक अपने बेटे मुहम्मद बिन तुगलक के षडयंत्र का शिकार हो कर मारा गया.

अभी पराई माँ का मुँह नहीं देखा. लाड़-प्यार से पली लड़की के प्रति माँ का कथन, कि मेरे पास मनमाना करती हो, सुराल जाओगी तब पता चलेगा, सास अक्ल दुरुस्त करेगी.

अभी लोटे को जलपात्र कहना बाकी है. एक अहीर अपनी ससुराल गया. वहाँ लोगों पर प्रभाव जमाने के लिए पानी को जल कहने लगा. सब लोगों ने उस के ज्ञान की प्रशंसा की तो फूल के कुप्पा होता हुआ बोला – अभी क्या, अभी तो लोटे को जलपात्र कहना बाकी है. अल्पज्ञानी बडबोले लोगों पर व्यंग्य.

अभी सेर में पौनी भी नहीं कती. अभी काम पूरा नहीं हुआ है. रुई को कात के उसका सूत बनता है. एक सेर रुई में से अभी पौन सेर भी नहीं कती है. सूत कातने के लिए एक छोटी सी तकली होती थी या चरखे से सूत काता जाता था. (देखिये परिशिष्ट)

अमर बेल बिन मूल की प्रतिपालत है ताहि. अमर बेल की कोई जड़ नहीं होती, फिर भी वह फलती फूलती है, इसी प्रकार ईश्वर सब को पोषण देता है.

अमर सिंह को मरते देखा, धनपत मांगें भीख, लछमी कंडा बीनत फिरतीं, इसें नाम छुछइयाँ ठीक. नाम से कुछ नहीं होता. माँ बाप प्यार से जो नाम रख दें वही अच्छा है. सन्दर्भ कथा – पहले के जमाने में यह प्रथा थी कि यदि किसी दंपत्ति की बहुत सी संतानें जन्म लेने के बाद मृत्यु को प्राप्त हो जाएं तो वे बचने वाली सन्तान का नाम ऐसा रखते थे जिससे उसे नजर न लगे (जैसे घूरेमल, मांगेराम आदि) ऐसे ही एक आदमी का नाम उसके माता पिता ने छुछइयाँ रखा था. इस बात से वह बहुत परेशान रहता था. एक बार वह इतना हताश हो गया कि उसने मरने की ठान ली. मरने के लिए चला तो रास्ते में उसे एक शवयात्रा मिली. उसने लोगों से मरने वाले का नाम पूछा तो लोगों ने बताया अमर सिंह. और आगे बढ़ा तो एक आदमी बड़ी दीन हीन अवस्था में भीख मांगते दिखा. उसका नाम पूछा तो मालूम हुआ उसका नाम था धनपत. उसके आगे लक्ष्मी नाम की एक गरीब फटेहाल औरत कंडे बीनती मिली. तो उस की समझ में आया कि नाम में कुछ नहीं रखा. तब उसने यह कहावत कही और बोला मेरा नाम छुछइयाँ ही ठीक है.

अमरौती खाके कौन आया. इस संसार में कोई अमृत पी के नहीं आया, सब को एक दिन मरना है.

अमली मिसरी छांड़ि के खैनी खात सराह. अमली – अमल (नशा) करने वाला, खैनी – एक प्रकार का तम्बाखू. जिसको तम्बाखू की लत होती है वह मिश्री जैसी स्वादिष्ट चीज़ को छोड़ कर तम्बाखू को शौक से खाता है. मूर्ख व्यक्ति संसार में उपलब्ध उत्तम वस्तुओं को छोड़ कर हानिकारक पदार्थों के पीछे भागता है. 

अमानत में खयानत. किसी की चल अचल संपत्ति को नुकसान पहुँचाना. विश्वास घात. जब कोई आदमी किसी पर विश्वास करके उसके पास धरोहर के रूप मे कोई चीज छोड़ जाए तो उस आदमी को उसको अमानत की तरह रखना चाहिए. अगर उस व्यक्ति ने उस चीज का दुरुपयोग किया या क्षति पहुँचाई तो वह खयानत कहलाती है.

अमीन की बिगाड़ी जमीन और माँ बाप का बिगाड़ा नाम, बड़ी मुश्किल से सुधरें. सरकारी मुलाजिम जमीन के कागजों में हेर फेर कर देते हैं तो उसे ठीक करवाना बहुत कठिन होता है. इसी प्रकार माँ बाप बच्चे को जिस बिगड़े हुए नाम से पुकारते हैं वह बड़े होने पर भी उस का पीछा नहीं छोड़ता.

अमीर का उगाल, गरीब का आधार. अमीर आदमी जिस चीज़ को तुच्छ समझ कर फेंक देता है गरीब के लिए वह चीज़ भी बड़े काम की हो सकती है.

अमीर का उतार गरीब का सिंगार. धनी व्यक्ति के लिए जो वस्तु अनुपयोगी हो जाती है वह भी गरीब के बहुत उपयोग में आ सकती है. उतार – उतरन, पहन कर छोड़े हुए कपड़े.

अमीर की बकरी मरी गाँव भर रोया, गरीब की बेटी मरी कोई न आया. अर्थ स्पष्ट है.

अमीर को जान प्यारी, ग़रीब को दम भारी. अमीर आदमी के पास सभी सुख सुविधाएँ होती हैं इसलिए वह अधिक दिन जीना चाहता है जबकि गरीब को जीवन बोझ लगता है.

अमीर ने पादा सेहत हुई, गरीब ने पादा बेअदबी हुई. अशिष्ट भाषा में आवाज़ के साथ गैस पास करने को पादना कहते है. लोक भाषा में कुछ इस प्रकार के शब्द अत्यधिक प्रचलन में होते हैं. अमीर आदमी कोई असामाजिक काम करे तो कोई आपत्ति नहीं करता, बल्कि कुछ लोग तारीफ भी कर देते हैं, गरीब कोई ऐसा काम करे तो उसे बुरा भला कहते हैं. इंग्लिश में कहावत है – One law for the rich and another for the poor.

अमीरी और फकीरी की बू चालीस बरस तक नहीं जाती. कोई अमीर अगर गरीब हो जाए या गरीब आदमी अमीर बन जाए तो उन की पुरानी आदतें लम्बे समय तक नहीं जातीं.

अमृत लागे राबड़ी जा में दांत हिले ना जाबड़ी. रबड़ी सबसे बढ़िया खाद्य पदार्थ है जिसे खाने में बिल्कुल मेहनत नहीं होती.

अम्बर के तारे हाथ से नहीं तोड़े जाते. बहुत बड़ी बड़ी हांकने वालों पर व्यंग्य.

अम्बर ने पटका और धरती ने झेला. किसी बहुत मनहूस व्यक्ति के लिए कही गई बात.

अम्बा झोर चले पुरवाई, तब जानो बरखा ऋतु आई. तेज पुरबाई चलने से आम झड़ने लगें तो समझो वर्षा ऋतु आने वाली है.

अम्मा रहती तो दुख कह सुनाती, गंगा रहती तो पैठ नहाती. स्वर्गवासी माँ से मिलने की इच्छा और गंगा में नहाने की इच्छा हर स्त्री को होती है.

अयाना जाने हिया, सयाना जाने किया. अयाना – मासूम व्यक्ति, हिया – हृदय. छोटा बच्चा या मासूम व्यक्ति केवल प्रेम की भाषा समझता है जबकि सयाना व्यक्ति इस बात पर अधिक ध्यान देता है कि उस के ऊपर क्या उपकार किया गया है.

अरका नाइन, बांस की नहरनी (नई नाइन, बांस का नहन्ना.) नहरनी (नेहन्ना) नाखून काटने के औजार को कहते हैं जोकि लोहे का होता है. नई नई नाइन बांस की नहरनी ले कर आई है जिससे नाखून कट ही नहीं सकते. नौसिखिए आदमी का मज़ाक उड़ाने के लिए. (नहरने के चित्र के लिए देखिये परिशिष्ट)

अरका बामनी, तरवा तेल. नई नई ब्राह्मणी सर की जगह तलवों में तेल लगा रही है. कुछ नया करने की चाह में मूर्खतापूर्ण कार्य करने वालों पर व्यंग्य.

अरजी हमारी आगे मरजी तिहारी है. किसी अधिकारी के सामने या ईश्वर के समक्ष कमज़ोर व्यक्ति की प्रार्थना.

अरध तजहिं बुद्ध सरबस जाता. (जब सारा धन जात हो, आधा देओ लुटाय) जब सारा माल जाने का खतरा हो तो बुद्धिमान लोग यह कोशिश करते हैं कि आधे को लुटा कर आधा बचा लो.

अरहर की टट्टी, गुजराती ताला. किसी सस्ती वस्तु की सुरक्षा के लिए महंगा इंतज़ाम. (देखिये परिशिष्ट)

अरे जौहरी बावले सुन मेरे दो बोल, बिन गाहक मत खोल तू गठरी रतन अमोल. जौहरी को सीख दी जा रही है कि तू बिना उपयुक्त ग्राहक के अपने अमूल्य रत्नों की गठरी मत खोल. अगर कोई मूर्खों के बीच में ज्ञान बांटने की कोशिश कर रहा हो तब भी ऐसा कहा जाता है. 

अरे बिजूका खेत के काहे अपजस लेत, आप न खावे खेत को और न खाने देत. (बुन्देलखंडी कहावत) बिजूका – काकभगोड़ा. खेत में खड़े पुतले से कहा जा रहा है कि तू क्यों चिड़ियों की बद्दुआ ले रहा है, न खुद खाता है, न ही उन्हें खाने देता है. ईमानदार कर्मचारी से भी भ्रष्ट सहकर्मी ऐसा ही बोलते हैं. देखिए परिशिष्ट.  

अर्क तरुन की डाल तें, कहूँ गज बाँधे जांय. कच्चे पेड़ की डाल से हाथी नहीं बांधे जाते. अपर्याप्त साधनों से बड़े बड़े काम नहीं किए जा सकते. अर्क तरु – आक का पेड़.

अर्थ अनर्थ का मूल है. यहाँ अर्थ का अभिप्राय पैसे से है. दौलत सभी प्रकार के अनर्थ की जड़ है.

अर्ध रोग निद्रा हरे, सर्व रोग हरे भूख. यदि रोगी को नींद आने लगे तो इसका अर्थ है उसका आधा रोग दूर हो चुका है और भूख लगने लगे तो पूरा रोग. 

अल गई, बल गई, जलवे के वक्त टल गई. बातें बहुत बनाना और काम के समय गायब हो जाना. जलवा – मुसलमानों में नई बहू की मुँह दिखाई. नई बहू को मुंह दिखाई के वक्त रूपये देने होते हैं. घर की कोई औरत बहुत बातें बना रही है, बहू की बलैयां ले रही है, पर मुंह दिखाई के समय गायब हो जाती है.

अलख राजी तो खलक राजी. जिस पर प्रभु प्रसन्न उस से दुनिया राजी है. 

अलग हुआ बेटा पड़ोसी बराबर (न्यारा पूत पड़ोसी बराबर). जो बेटा संपत्ति में बंटवारा कर के अपना व्यवसाय व चूल्हा अलग कर ले वह पड़ोसी के समान हो जाता है.

अलबेली गुजरिया, कटहल का झुमका. फैशन के लिए पागल युवतियाँ जो न करें सो थोड़ा.

अलबेली ने पकाई खीर, दूध के बदले डाला नीर. नौसिखिया लोगों का मज़ाक उड़ाने के लिए.

अला बला बंदर के सर. कमजोर के सर दोष मढना.

अला लूँ बला लूँ, थाली सरका लूँ. प्यार भरी बातों में फंसा कर थाली अपनी ओर सरका लेना. किसी को बेबकूफ बना कर अपना मतलब निकालना.

अलूनी सिल कुत्ता भी न चाटे. जिस काम से कुछ प्राप्त न हो उसे कौन करेगा. जिस सिल पर कुछ पीसा गया हो उसे ही कुत्ता चाटेगा. (अलूनी सिल – जिस पर कोई अवशिष्ट न लगा हो).

अल्प विद्या भयंकरी. अधूरा ज्ञान हानिकारक होता है. (नीम हकीम खतरे जान)

अल्पविद्या महागर्वी. जिस को कम ज्ञान होता है वह अपने को बहुत विद्वान समझता है.

अल्पाहारी सदा सुखी. कम खाने वाला सुखी रहता है.(अधिक खाने से रोग होते हैं और घर का बजट बिगड़ता है).

अल्ला तेरी आस, नजर चूल्हे पास. ऊपर से दिखाने को कह रहे हैं कि अल्लाह तेरा आसरा है लेकिन नजर चूल्हे पर ही है.

अल्ला देवे खाने को तो कौन जाय कमाने को. यदि भगवान सब को खिलाएगा तो कोई मेहनत क्यों करेगा.

अल्लाह का घर सब जगह है. गुरुनानक जी ने काबा यात्रा के समय पोंगापंथी मुल्लाओं को यह सीख दी थी और प्रत्यक्ष ऐसा कर के दिखाया था. सन्दर्भ कथा – गुरुनानक देव जी एक बार यात्रा करते हुए मक्का पहुँचे. थके हुए होने के कारण अनजाने में ही वे काबा की ओर पैर कर के सो गए. एक मुल्ला ने जब ये देखा तो गुस्से में आकर उन्हें झकझोर कर जगाया और कहा – चल उठ! अल्लाह के घर की तरफ पैर करता है. नानक बोले – भाई! मुझे तो सारी दुनिया ही अल्लाह का घर नजर आती है. मुझसे उठा नहीं जा रहा, आप ही मेरे पैर घुमा दो. मुल्ला ने दूसरी ओर नानक के पैर घुमा दिए, पर देखता क्या है कि काबा उसी ओर दिख रहा है. हैरत में पड़ कर उसने पैर किसी और दिशा में घुमाए तो काबा उस ओर दिखने लगा. इस पर किसी ने लिखा है – मुल्ला बोला नानक से क्यूँ पैर उधर करता है, नानक बोले काबा तो सब ओर मुझे दिखता है. 

अल्लाह यार है तो बेड़ा पार है. ईश्वर जिसका साथ दे उसका कोई काम कैसे रुक सकता है.

अल्लाह सींग दे दे तो वह भी कबूल है. खुदा की मर्जी है तो उसे मानना ही पड़ेगा.

अवगुण तब अजमाइए जब गुण न पूछे कोय. जब आदमी के गुणों की कद्र न हो तो उसे गलत तरीके अपना कर काम निकालना पड़ता है.

अवसर और अंडा एक बार में एक ही आते हैं. मुर्गी एक बार में एक ही अंडा देती है. इसी प्रकार किसी व्यक्ति को एक बार में एक ही अवसर मिलता है. इंग्लिश में कहावत है – Blessings never come in pairs.

अवसर चूके, जगत थूके. जो सही अवसर को भुनाने में चूक जाता है उस की सभी लानत मलानत करते हैं.

अवसर पर दुश्मन को न लगाया हुआ थप्पड़ अपने मुँह पर लगता है. अर्थ स्पष्ट है.

अवसर पर हाथ आए सो ही हथियार. हथियार वही काम का है जो मौके पर उपलब्ध हो.

अव्वल मरना आखिर मरना, फिर मरने से क्या है डरना. पहले मरें या बाद में, मरना एक दिन है ही तो डरना कैसा.

अशर्फियाँ लुटें, कोयलों पर मुहर. महत्वपूर्ण चीजों को लुटाना और महत्वहीन चीजों को संभाल कर रखना. इंग्लिश में कहावत है Penny wise pound foolish.

अस जोड़ा से निगोड़ा भला. जोड़ा – साथी, निगोड़ा- निकम्मा. जब कोई नारी अपने पति की दुष्टता, नीचता आदि से अत्यधिक परेशान हो जाती है तो कहती है कि इससे अच्छा तो कोई निकम्मा पति मिला होता.

असल असल है, नकल नकल है. अर्थ स्पष्ट ही है.

असल कहे सो दाढ़ीज़ार. जो सच कहे वह बुरा है क्योंकि सच कड़वा होता है. (दाढ़ीज़ार – एक गाली)

असाड़ को पैदा भयो, भादों कहे भौत बरसा भई. ऐसे अनुभवहीन व्यक्ति के लिए जिसने दुनिया में अभी कुछ देखा-सुना ही न हो. रूपान्तर – सावन में जन्मा सियार, भादों में आई बाढ़, बाप रे बाप ऐसी बाढ़ कबहुं न देखी.

असाढ़ चूका किसान और डाल चूका बंदर. आषाढ़ में जो किसान बुवाई करने से चूक जाता है वह पछताता ही रह जाता है (जिस प्रकार डाल से डाल पर छलांग लगाने वाला बन्दर डाल पकड़ने से चूक जाए तो पछताता है).

असाढ़ में खाद खेत में जावै, तब भरि मूठि दाना पावै. खाद को असाढ़ के महीने में डालने से फसलों में अच्‍छी पैदावार होती है. 

असाढ़े जोतें लडके बारे, सावन भादों में हरवाहे, क्वार में जोतें घर के बेटा, तब हों ऊंचे होवनहारे. आषाढ़ मास में खेत जोतना आसान होता है इसलिए लड़के हल जोत सकते हैं, सावन भादों में हलवाहे मजदूर खेत जोत सकते हैं, पर सबसे कठिन क्वार में हल जोतना होता है जिसमें स्वयं घर के लोगों को लगना पड़ता है. 

असोज (आश्विन) में बरसें मोती. क्वार के महीने में थोड़ी सी वारिश से खेती को बहुत लाभ होता है.

अस्सी की आमदनी चौरासी का खर्चा. जब खर्च आमदनी से अधिक हो.

अस्सी की उमर, नाम मियां मासूम. नाम के विपरीत शख्सियत.

अस्सी चुटकी नब्बे ताल, तब जानो खैनी के हाल. खाने वाली तम्बाखू को अस्सी बार चुटकी से मसला जाए और नब्बे बार ताली मारी जाए तो उसे खाने का मजा आता है. खैनी खाने वाले किसी अनुभवी व्यक्ति का कथन.

अस्सी बथुआ नब्बे पतार, जुग जुग जीए सनकसार. बथुए का बीज अस्सी वर्ष, पतार का नब्बे वर्ष और सनकसार का बीज युगों तक मिटटी में जीवित रहते हैं. ये सभी खेत में उगने वाले खर पतवार हैं.

अस्सी बरस पूरे किये फिर भी मन फेरों में. 1. अस्सी साल के हो गए हैं फिर भी हेर फेर में ही मन लगता है. 2. अस्सी साल के हो गये हैं पर शादी करना चाह रहे हैं.

अहंकार की अगिनि में जलत सकल संसार. सारा संसार अहंकार के रोग से ग्रस्त है.

अहमक से पड़ी बात, काढ़ो सोटा तोड़ो दांत.  मूर्ख से पाला पड़े तो डंडा निकालो और दांत तोड़ दो. 

अहमद की दाढ़ी बड़ी या मुहम्मद की. बेकार की बहस.

अहमद की पगड़ी महमूद के सर. बेतुका काम या एक का नुकसान कर के दूसरे को लाभ पहुँचाना.

अहिंसा परमोधर्म:  किसी के प्रति हिंसा न करना सबसे बड़ा धर्म होना चाहिए. लेकिन इसके आगे कहा गया है – ‘धर्म हिंसा तथैव च’ जिसका अर्थ है – धर्म की रक्षा के लिए हिंसा करनी पड़े तो उचित है.

अहिर मिताई तब करे जब सब मीत मरि जाए. अहीर से दोस्ती तब करो जब सब दोस्त मर जाएँ. अन्य बिरादरी के लोग अहीरों को अनपढ़, अशिष्ट और स्वार्थी मानते हैं इसलिए ऐसी कहावतें बनी हैं.

अहिर, बानिया, पुलिस, डलेवर, नहीं किसी के यारी, भीतरले में कपट राखल, मीठी बोली प्‍यारी. अहीर, बनिया, पुलिस और ड्राइवर लोग किसी के दोस्त नहीं होते, ऊपर से मीठी बोली बोलते है पर भीतर से कपट रखते हैं.

अहिरे के बिटिया के लुरबुर जीव, कब जइहें सास कब चटिहूं घीव. अहीर की बेटी को घी खाने की आदत होती है. ससुराल में भी वह इसी जुगाड़ में रहती है कि कब सास जाए और घी चाटने को मिले.

अहीर अपने दही को खट्टा नहीं बताता. अपनी चीज़ की बुराई कोई नहीं करता. रूपान्तर –

अहीर का क्या जजमान, लप्सी का क्या पकवान. अहीर बहुत अच्छा जजमान नहीं है क्योंकि वह अधिक दक्षिणा नहीं दे सकता, उसी तरह जैसे लप्सी अच्छा पकवान नहीं है.

अहीर का पेट गहिर, बामन का पेट मदार. अहीर का पेट गड्ढा है और ब्राह्मण का पेट ढोल, अर्थात दोनों बहुत अधिक खाते हैं.

अहीर की नानी खुश भइली, मंडुआ की रोटी और छाछ देइली. अहीर खुश होगा तो क्या देगा, दूध या मट्ठा. छोटे लोगों का लेन देन भी क्षुद्र ही होता है.

अहीर की मिताई, बादलों की छाँव (अहिर मिताई बादर छाँई, होवे होवे नाहीं नाहीं). अहीर की मित्रता क्षण भंगुर होती है. रूपान्तर – अहीर की यारी, भादों की उजारी. उजारी – चांदनी.

अहीर के पिंडा, कतरा फूस. अहीर का पिंडदान घासफूस से ही करा दिया जाता है.

अहीर के भोज में क्या, दाल भात कुम्हड़ा. गरीब आदमी किसी को दावत भी देगा तो और क्या खिलाएगा.

अहीर को बुझावे सो मरद. असली मर्द वही है जो अहीर जैसे जटिल स्वभाव वाले को बातों से संतुष्ट कर सके.

अहीर खड़ा सामने मैं रूखा खाऊँ. जब सुविधाएं उपलब्ध हों तो मैं परेशानी क्यों उठाऊं.

अहीर देख गड़रिया मस्ताना. 1.अहीर को पिए देख कर गड़रिए ने भी चढ़ा ली. दूसरे की बुराई का गलत अनुसरण करना. 2.मिलते जुलते व्यवसाय वाले एक दूसरे को देख कर प्रसन्न होते हैं.

अहीर साठ बरिस तक नाबालिग रहें. अहीर के विषय में कहा गया है कि वह साठ साल की आयु तक भी समझदार नहीं होते.  

अहीर से जब भेद मिले जब बालू से घी. बालू से घी कभी नहीं निकल सकता इसी प्रकार अहीर से उसके काम का भेद कोई नहीं पा सकता.

अहीर, गड़रिया, पासी तीनों सत्यानासी. पुरानी कहावतों में कुछ जातियों के विषय में आधारहीन बातें कही गई हैं, उन में से एक. पासी – ताड़ी निकालने वाले.

अहुवा महुवा ताल तराई, इनके भरोसे कर्ज न खाई. महुआ का पेड़, तालाब और तराई की जमीन, इनसे इतनी आमदनी की आशा नहीं कर सकते कि उसके भरोसे आप उधार ले सकें.

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