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चंचल नार की चाल छिपे नहिं, कोई नीच छिपे न बड़प्पन पाए, जोगी का भेस नीक धरो, कोई करम छिपे न भभूत रमाए. चंचल नार से अर्थ चरित्रहीन नारी से है. अर्थ है कि चरित्रहीन नारी का चाल चलन छिपता नही है, बड़ा पद पा लेने से नीच आदमी की असलियत नहीं छिपती, और भभूत रमाने से कोई धूर्त साधु नहीं छिपता.

चंचल नार छैल से लड़ी, खन अंदर खन बाहर खड़ी. दुश्चरित्र स्त्री का मिलन किसी मनचले (छैल) से हो गया है तो वह अपनी प्रसन्नता छिपा नहीं पा रही है.

चंडाल चौकड़ी. दुष्टों की जमात.

चंडी माई लीपेगी, न निगोड़े खोदुंगी. कुछ स्त्रियां बड़े कर्कश स्वभाव की होती हैं, कुछ पूछो तो हमेशा उल्टा जवाब देती हैं. बोलचाल की भाषा में इन्हें चंडीमाई कहते हैं. ऐसी किसी स्त्री से किसी भले मानुष ने पूछा – चंडीमाई चौका लीपने जा रही हो? चंडीमाई ने जवाब दिया – न निगोड़े! खोदने जा रही हूँ. पहले के जमाने में खाना बनाने के पहले रसोई को मिट्टी या गोबर का पतला घोल बना कर उससे लीपते थे. कुछ लोग इस कहावत को पूरा इस तरह बोलते हैं – चंडी माई लीपेगी, न निगोड़े खोदुंगी, चंडी माई खोदेगी, न निगोड़े लीपुंगी.

चंदन तरु की बास से सब चन्दन हुई जात, तैसेई एक सपूत से सबरो कुटुम अघात. जैसे एक चंदन के पेड़ की खुशबू से सारे पेड़ों में खुशबू आ जाती है, वैसे ही एक सुपुत्र से सारा कुटुंब धन्य हो जाता है. 

चंदन धोई माछली, पर छूटी ना गंध. (राजस्थानी कहावत) मछली पर चंदन रगड़ो तब भी उस की गंध नहीं छूटती. निम्न कोटि का व्यक्ति अच्छी संगत पा कर भी नहीं सुधरता. 

चंदन हूँ की आग से जरे देह तत्काल. चंदन की लकड़ी शीतल होती है पर जलती हुई चंदन की लकड़ी शरीर को जला देती है. कोई संत प्रकृति का व्यक्ति भी अगर क्रोध में है तो हानि पहुँचा सकता है. 

चंद्र ग्रहण कुत्तों को भारी.  चंद्र ग्रहण के दौरान डोम इत्यादि भीख माँगते हैं, तब गलियों में कुत्ते उन पर भौंकते हैं और अकारण ही पिट जाते हैं. दूसरों के कारण व्यर्थ कष्ट उठाने पर.

चंद्रमा में भी कलंक (दाग) हैं. कोई भी चीज़ पूर्णत: दोष रहित नहीं है.

चंपा के दस फूल चमेली की एक कली, मूरख की सारी रैन चातुर की एक घड़ी. जिस प्रकार चम्पा के दस फूल से चमेली की एक कली अधिक अर्थपूर्ण है उसी प्रकार मूर्ख की सारी रात की मेहनत के मुकाबले बुद्धिमान व्यक्ति का एक घड़ी का कार्य अधिक अर्थपूर्ण है.

चकमक दीदा, खाय मलीदा. जो स्त्री सब लोगों से नैन मटक्का करती है उसे गुलछर्रे उड़ाने को मिलते हैं.

चकरया चाकरी करके आप अपने हाथ बिकता है. किसी की नौकरी करने वाला स्वयं ही अपने आत्म सम्मान को उसके हाथ बेच देता है. (चकरया – चाकरी करने वाला)

चकवा चकवी दो जने, इन मत मारो कोय, ये मारे करतार के रैन बिछोहा होय. चकवा और चकवी को वैसे ही रात में अलग रहने का श्राप मिला हुआ है. इन में से किसी को मारने से पाप लगता है.

चक्की पर चक्की, मेरी कसम पक्की. बच्चों की कहावत. कसम खाने के लिए बच्चे ऐसे बोलते हैं.

चक्की पे घर तेरो, निकल सास घर मेरो. नई बहू सास को बता रही है कि तेरा काम अब केवल चक्की पीसना ही है. अब इस घर की मालकिन मैं हूँ.

चक्की में कौर डालोगे तो चून पाओगे. चक्की में गेहूँ डालोगे तभी आटा मिलेगा. पहले कुछ रुपया पैसा खर्च करोगे या पहले कुछ रिश्वत वगैरा दोगे तभी काम हो सकेगा.

चक्की में से साबुत निकल आवे. बहुत निर्लज्ज व्यक्ति (जो चलती हुई चक्की में से भी साबुत निकल आए).

चख ले माल धन को, कौड़ी न रख कफन को. बिंदास जीवन जीने वालों का कथन. सब कुछ अपने जीते जी खर्च कर लो, बचाने के चक्कर में मत पड़ो.

चचरे ममेरे, बड़तले बहुतेरे. बड़े लोगों से सब लोग अपनी रिश्तेदारी निकालते हैं.

चचा चोर भतीजा काजी. चाचा चोर है पर उसका भतीजा ही न्यायाधीश है, ऐसे में न्याय की क्या उम्मीद करें.  कुछ राजनैतिक दलों और न्यायपालिका के कुछ भ्रष्ट सदस्यों के अनैतिक गठबन्धन पर व्यंग्य.

चट मंगनी पट ब्याह. तुरंत निर्णय लिया और तुरंत काम हो जाए तो यह कहावत कही जाती है.

चट मकई, पट सनई. जल्दी मक्का बो कर काट ली और सनई बो दी. बहुत जल्दी जल्दी काम निबटाने वाले लोगों के लिए.

चट मौत, पट शादी (चट रांड, पट सुहागन). स्त्री के पति की मृत्यु के बाद जल्दी दूसरा विवाह हो जाए तो.

चटनी बिन न रोटी सोहे, गूँधे बिन न चोटी सोहे (लवन बिना न सोहे रोटी, बिन गूँधे न सोहे चोटी). बाल खोल कर घूमने वाली लड़कियों को पहले फूहड़ माना जाता था. उनको सीख देने के लिए कहा गया है कि जिस प्रकार चटनी या नमक के बिना रोटी अच्छी नहीं लगती, उसी प्रकार गूँधे बिना चोटी अच्छी नहीं लगती. लवन – लवण.

चटोर का ब्याह, चोट्टी न्योते आई. चटोर – खाने पीने का शौक़ीन, चोट्टी – चोर. जैसा दूल्हा वैसे ही बाराती.

चटोर खोवे एक घर, बतोर खोवे दो घर. चटोरा व्यक्ति (खाने पीने का शौक़ीन) केवल अपना घर बर्बाद करता है (पैसा उड़ा कर), पर बातों का शौक़ीन दो घर बर्बाद करता है. अपना भी समय खराब करता है और दूसरे का भी.

चटोरा कुत्ता, अलोनी सिल. अलोनी सिल – ऐसी सिल जिस पर कुछ न पीसा गया हो. चटोरा कुत्ता ऐसी सिल क्यों चाटेगा जिस पर कुछ न लगा हो.

चटोरी जबान, दौलत की हान. चटोरी जबान वाले लोग खाने पीने में सब पैसा उड़ा देते हैं.

चढ़ जा बेटा सूली पर, भली करेंगे राम (भली करेगो अल्ला). किसी व्यक्ति को जोखिम भरे काम के लिए उकसाया जा रहा हो तो वह यह कहावत कहता है.

चढ़ मार, गूलर पक्के. आगे बढ़ के काम करो, सफलता अवश्य मिलेगी. गूलर के चित्र के लिए देखिए परिशिष्ट.

चढ़ती जवानी और भरी हुई अंटी क्या अनर्थ नहीं कराती. जवानी के जोश में भी बहुत से गलत काम होते हैं और पास में आवश्यकता से अधिक धन हो तो भी गलत काम किए जाते हैं, और दोनों चीजें हो तो क्या कहना.

चढ़ते पित्त उतरते बाय, ताते गोरख भूंज के खाय. भांग की महिमा बताई गई है. भांग चढ़ते समय पित्त को शांत करती है और उतरते समय वायु को. बाय – वायु रोग, ताते – इस कारण से.

चढ़ाई से उतराई महान. 1. पहाड़ पर चढ़ने से उतरना अधिक कठिन है. 2. किसी व्यक्ति की उन्नति हो रही हो तो बहुत अच्छा लगता है, पर जब उस की अवनति होती है तो उसकी कठिन परीक्षा होती है.

चढ़ी कढ़ाही तेल न आया तो कब आएगा. गृहणी ने कढ़ाही आग पर चढ़ा दी है और पति तेल लाने में आनाकानी कर रहा है. तो पत्नी पूछती है कि इस मौके पर तेल नहीं लाओगे तो कब लाओगे. आवश्यकता के समय काम न किए जाने पर.

चढ़े ऊँट, मांगे बूंट. मांगने वाला किसी भी स्थान पर पहुँच जाए उस की मांगने की आदत नहीं जाती. बूंट – चना.

चढ़े कचेहरी, बिके मेहरी. जो कचहरी के चक्कर में पड़ेगा उसका घर बार बिक जाएगा. मेहरी – स्त्री.

चढ़ेगा सो गिरेगा. 1.जो चढ़ेगा वही गिरेगा, जो चढ़ेगा ही नहीं उसे गिरने का क्या डर. 2. उन्नति करने पर बहुत खुश मत हो, कल को फिर नीचे गिर सकते हो. इंग्लिश में कहावत है – He that never climbed, never fell.

चढ़ो चाचा, चढ़ो ताऊ, येहि में घोड़ी खाली चले. एक दूसरे के शिष्टाचार में चाचा ताऊ दोनों पैदल चल रहे हैं और घोड़ी खाली चल रही है.

चतुर कन्या के राम ही रखवार. अपने आप को ज्यादा चतुर और सुंदर समझने वाली कन्या अंततः धोखा खाती है और उस के गलत हाथों में पड़ने का अत्यधिक खतरा होता है. ईश्वर ही उसकी रक्षा कर सकते हैं.

चतुर की चाकरी बुरी. यहाँ चतुर से अर्थ बहुत मीन मेख निकालने वाले व्यक्ति से है. ऐसे व्यक्ति की नौकरी करने में बहुत परेशानियाँ हैं.

चतुर के चार कान नहिं होत. चतुर व्यक्ति बहुत जल्दी बात को सुन और समझ लेता है, इसलिए नहीं कि उसके पास चार कान हैं. बल्कि इसलिए कि उसकी बुद्धि तीव्र होती है. 

चतुर के सौदा मने मने. चतुर व्यक्ति अपना हिसाब किताब मन ही मन में करता है, ढोल नहीं पीटता.

चतुर चार जगह ठगा जाता है. जो अपने को ज्यादा होशियार बनता है वह अधिक नुकसान उठाता है. 

चतुर नार नरकूढ़ से ब्याह होए पछताए, जैसे रोगी नीम को आँख मीच पी जाए. बुद्धिमती स्त्री मूर्ख व्यक्ति से विवाह हो जाने पर मन ही मन शोक के घूँट पी कर रह जाती है, जैसे रोगी नीम को आँख बंद कर के मजबूरी में पी लेता है.

चतुर शत्रु उपायहिं नासे. चतुर शत्रु को चालाकी से ही नष्ट किया जा सकता है, पराक्रम से नहीं.

चतुर सो गृही जो संचै कोषा. कोष – खजाना. वही गृहस्थ चतुर माना जाता है जो रुपया पैसा और अनाज आदि इकठ्ठा कर के रखता है.

चतुरा का काम न करे, हेजिये के बच्चे न खिलाए. जो स्त्री अपने को बहुत चतुर समझती हो उसका काम नहीं करना चाहिए (क्योंकि वह उसमें कमियाँ निकालने से बाज नहीं आएगी). इसी प्रकार जिसे अपने बच्चे का बहुत हेज (सयान) हो उसके बच्चे को नहीं खिलाना चाहिए (क्योंकि वह खिलाने वाले पर कुछ न कुछ इलज़ाम लगाएगी).

चतुरा तो पूतन को तरसे, फूहड़ जन जन हारी. प्रकृति की अजब माया है. समझदार और सम्पन्न स्त्री सन्तान के लिए तरस रही है और जो फूहड़ और गरीब स्त्री है, उसके धड़ाधड़ बच्चे हो रहे हैं.

चतुराई चूल्हे पड़ी. कोई चतुराई काम नहीं आयी.

चतुराई सब विद्या मूल. मनुष्य कितनी भी विद्याएँ सीख ले, बुद्धि के बिना सब बेकार हैं.  

चना ऐसा जबरदस्त न हो जाये कि भाड़ फोड़ डाले. शासकों को हमेशा यह चिंता रहती कि प्रजा में से कोई क्षुद्र व्यक्ति विद्रोह कर के उनके शासन को न उखाड़ फेंके.

चना और चुगल को मुहँ नहीं लगाना चाहिए. (चना और चुगल मुँह लग जाए तो छूटता नहीं है). चुगल – जो दूसरों की बुराई (परनिंदा) करता हो. ऐसे व्यक्ति को मुँह नहीं लगाना चाहिए, क्योंकि फिर आपको भी परनिंदा में रस आने लगता है. कहावत को रुचिकर बनाने के लिए चने का उदाहरण जोड़ दिया गया है.

चना कूदे तो कितना कूदे, कढ़ाई से बाहर. छोटा आदमी बहुत बड़ा काम नहीं कर सकता.

चना मर्द नाज है. चना खाने से ताकत आती है, इसलिए ऐसा कहा गया है.

चना, चबेना, गंगजल जो पुरवे करतार, काशी कबहुँ न छाँड़िये विश्वनाथ दरबार. अर्थ स्पष्ट है.

चने चबाओ या शहनाई बजाओ. अगर शहनाई बजाना है तो चने नहीं चबा सकते. जब दो प्रिय कामों में से एक को चुनने की मज़बूरी हो तो.

चने चाब कर उँगलियाँ चाटने में क्या स्वाद आएगा. जब हम कोई स्वादिष्ट भोजन करते हैं तो उसके बाद उंगलियाँ चाटने में आनंद आता है, चने जैसी साधारण और बिना मसाले की चीज़ खा कर उँगली चाटने में क्या स्वाद आएगा. 

चने चिरौंजी हो गए, गेहूँ हो गए दाख, घर में गहने तीन हैं, चरखा, पीढ़ी, खाट. अत्यधिक गरीबी. चने और गेहूँ मिलना इतने मुश्किल हो गए जैसे चिरौंजी और किशमिश. घर में जो मूल्यवान वस्तुएं बची हैं वे हैं चरखा, बैठने का पीढ़ा और खाट. (देखिए परिशिष्ट)

चन्दन की चुटकी भली, गाड़ी भरा न काठ. गाड़ी भर कर लकड़ी मिलने के मुकाबले चुटकी भर चन्दन बेहतर है. यह उन्हीं के लिए कहा गया है जो चन्दन की कीमत जानते हैं.

चप्पा भर की झोपड़ी नई हवेली नाम. नाम के विपरीत गुण. चप्पा – चार अंगुल के बराबर जगह.

चप्पे जितनी कोठरी और मियाँ मोहल्लेदार. बहुत छोटी से घर में रहते हैं और शान बघारते हैं. झूठी शान बघारने वालों के लिए. रूपान्तर – घर न बार, मियाँ मोहल्लेदार.

चबा के खाते तो हलक में क्यूँ फंसता. धैर्य पूर्वक काम करते तो परेशानी में क्यों पड़ते. रिश्वत लेने की उतावली में कोई कर्मचारी फंस जाए तो साथ वाले ऐसे बोलते हैं.

चबोकड़ सो लबोकड़. ज्यादा बातूनी आदमी झूठा होता है.

चमगादड़ के घर मेहमान आए, जैसे हम लटके वैसे तुम भी लटको भैया. गरीब के घर मेहमान आए तो वह कहता है कि भैया जिस तरह मैं काम चलाता हूँ वैसे ही तुम भी काम चलाओ.

चमचागिरी न करो न कराओ. न किसी की चमचागीरी करनी चाहिए और न ही चमचों को देख कर खुश होना चाहिए. ट्रकों पर भी इस प्रकार की बहुत सी मजेदार कहावतें लिखी होती हैं.

चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए. पैसे के आठवें भाग को दमड़ी कहते थे. ऐसा कंजूस व्यक्ति जो शरीर के अंगों को नुकसान होने की दशा में भी रत्ती भर पैसा इलाज में न खर्च करे.

चमड़े का जल दुनिया पीवे. पहले के जमाने में चमड़े के मशक में कुएं से पानी भर कर भिश्ती लोग घर घर जा कर घड़ों में पानी भरते थे. (देखिये परिशिष्ट) 

चमड़े की चलनी और कुत्ता रखकार (चाम का चमोटा, कूकुर रखवाल). चमड़े की चलनी की रखवाली भला कुत्ता कैसे कर सकता है. वह तो मौका मिलते ही उसे चबा जाएगा.

चमड़े की देवी को जूतों की पूजा. जैसी देवी वैसी पूजा.

चमत्कार को नमस्कार. चमत्कार के आगे सब नतमस्तक होते हैं.

चमरिया को चाची कह दिया तो चौके में चली आई. किसी निम्न कुल की स्त्री को कुछ सम्मान दे दिया तो वह ज्यादा सर चढ़ गई. (कहावतें तत्कालीन समाज का दर्पण होती हैं. इस कहावत में उस समय व्याप्त छुआछूत और जात पांत का सटीक चित्रण है. यह कितना भी निन्दनीय क्यों न हो, उस समय की सच्चाई यही है).   

चमार के मनाने से डांगर नहीं मरते.  डांगर – गाय, भैंस, बकरी आदि. चमार के मनाने से पशु नहीं मरते. अर्थात किसी के चाहने से दूसरे का अनिष्ट नहीं हो जाता.

चमार चमड़े का यार. जिसका जो काम होता है उसको उसी से सम्बन्धित चीजों में रूचि होती है (चर्मकार को चमड़े में, लोहार को लोहे में, मिस्त्री को ईंट गारे में).

चमेली लाड़ में आई, घर भर साथ लाई. चमेली नाम की किसी घटिया स्त्री को दावत में बुला लिया तो वह सारे कुनबे को साथ ले आई. ओछे व्यक्ति से थोड़ा प्यार जता दो तो वह सर चढ़ जाता है.

चरणामृत के गटके, मिटें चौरासी योनि के भटके. चरणामृत पीने से मोक्ष प्राप्त हो जाता है. विशेषकर उन लोगों का कथन जिन्हें कथा से अधिक चरणामृत में रूचि होती है.

चर्बी छाई आंखन में तो नाचन लागी आँगन में. आँखों में चर्बी छाना – पैसे के प्रभाव से खा पी कर मोटा होना. पास में पैसा आया तो आंगन में नाचने लगीं.

चल चलन्ती, हग भरन्ती, जो रहन्ती, सो पोछन्ती. हग भरन्ती – विष्टा से भरना. निकृष्ट लोग अपना काम पूरा होने के बाद जब कोई स्थान छोड़ते हैं तो उसे गन्दा कर जाते हैं (जो आएगा वह साफ़ करेगा).

चल न सकूँ मेरा कूदन नाम. गुण के विपरीत नाम.

चल मरघट को लकड़ियाँ सस्ती हैं. कुछ लोग सस्ते के चक्कर में अनावश्यक सामान खरीद लेते हैं, उन का मज़ाक उड़ाने के लिए.

चलत फिरत धन पाइए, बैठे पावे कौन. कुछ परिश्रम करने से ही धन की प्राप्ति होती है. इंग्लिश में कहावत है – No gains without pains. सन्दर्भ कथा – किसी गाँव में एक धनाढ्य व्यक्ति रहता था. उसके पास अच्छी खासी जमीन थी और बहुत सी गायें भी थीं पर वह न तो खेती पर ध्यान देता था और न ही अपनी गायों पर. उस के पास धन की हमेशा तंगी रहती थी और उसका स्वास्थ्य भी खराब रहता था. एक बार उसके गाँव में एक महात्मा जी आए. वह उनके पास अपनी समस्याओं को दूर करने के लिए कोई उपाय पूछने पहुँचा. महात्मा जी ने उसे बताया कि सुबह मुँह अँधेरे स्वर्ग से एक हंस इस धरती पर आता है. जो कोई उस हंस को एक बार देख लेता है उस के जीवन में कभी कोई संकट नहीं आता.

दूसरे दिन पौ फटने से पहले ही वह व्यक्ति उठ कर उस हंस की तलाश में निकल पड़ा. गोशाला की ओर गया तो देखा कि ग्वाला गाय का दूध दुह कर अपने घर ले जा रहा है. मालिक को देख कर वह हड़बड़ा गया और क्षमा मांगने लगा. खलिहान के पास से निकला तो देखा कि उसका पुराना विश्वसनीय सेवक बोरी में अनाज भर रहा है. वह भी सिटपिटा गया और माफ़ी मांगने लगा. पूरे सप्ताह वह हंस की तलाश में घूमता रहा और जहाँ भी वह गया वहाँ कुछ न कुछ गड़बड़ी होती मिली. उसको अपने स्वास्थ्य में भी बहुत परिवर्तन महसूस हुआ. वह फिर उन महात्मा से मिलने गया और उन्हें बताया कि हंस तो उसे नहीं मिला पर हंस की खोज में जाने से लाभ बहुत हुआ. महात्मा जी ने कहा कि वत्स! परिश्रम ही वह हंस है.

चलता है तो चल निगोड़े, मैं तो गंगा नहाउंगी. पत्नी पति को धमकी दे रही है कि तुम्हें चलना है तो चलो, मैं तो गंगा नहाने अवश्य जाऊँगी. अपनी इच्छा दूसरों पर जबरदस्ती थोपना.

चलती का नाम गाड़ी, गाड़ी का नाम उखली. संसार के रीति रिवाज़ उलटे हैं. कबीर कहते हैं – रंगी को नारंगी कहते, नकद माल को खोया, चलती को तो गाड़ी कहते, देख कबीरा रोया.

चलती के पौ बारह. जिस की किस्मत चल रही हो वह अपने हर काम में सफल होता है.

चलती गाड़ी में तेल सब कोऊ देत. लाभ देने वाले व्यापार में सब पैसा लगाते हैं. 

चलती चाकी देख के, दिया कबीरा रोय, दुइ पाटन के बीच में, साबित बचा न कोय. संसार की चक्की चलती देख कर कबीरदास को रोना आ रहा है. चाकी का एक पाट सांसारिक माया मोह है और दूसरा पाट भगवान की भक्ति है, इन के बीच में कोई भी साबुत नहीं बचता.

चलती में न चलाये वो बावला और न चलती में चलाये वो भी बावला. जो अवसर का लाभ न उठाए वह मूर्ख और जो बिना अवसर लाभ उठाने की कोशिश करे वह भी मूर्ख.

चलती रोजी पे लात मारत. मूर्खतावश बँधी- बँधायी नौकरी छोड़ना या चलते व्यापार को नुकसान पहुँचाना.

चलती हवा से लड़े. बहुत लड़ाका औरत के लिए.

चलते चाक से बड़े बड़े घड़े भी निकल आते हैं पर रुके हुए चाक से छोटा दिया भी नहीं. चलते हुए व्यापार में से कुछ भी बड़े खर्चे किये जा सकते हैं, पर व्यापार बंद हो जाए तो छोटे छोटे खर्चों के भी लाले पड़ जाते हैं.

चलते बरधा को डंडे नहीं मारे जाते (चलते घोड़े को चाबुक कैसा). जो कर्मचारी अच्छा काम करता हो उसे व्यर्थ में नहीं फटकारना चाहिए.

चलन न पावे कूदे नाला. चल तो पाते नहीं और चले हैं नाला कूदने. मूर्खतापूर्ण दुस्साहस.

चलना भला न कोस का, बेटी भली न एक, देना भला न बाप का, जो प्रभु राखे टेक. कोस भर चलना पड़े (सवारी न हो), एक ही संतान हो वह भी बेटी, पिता का ऋण बेटे को चुकाना पड़े, ईश्वर इन सब परेशानियों से बचाए. इस के उत्तर में किसी ने कहा है – चलनो भलो तो कोस को, दुहिता भली तो एक, मांगन भलो तो बाप सों, जो मांगे पर देत. थोड़ा बहुत चलना पड़े तो अच्छा, बेटी एक हो तो अच्छी, और माँगना ही पड़े तो ऐसे पिता से माँगना अच्छा जो आसानी से दे देता हो.

चलना है रहना नहीं, चलना बिस्वे बीस, ऐसे सहज सुहाग पर कौन गुंधावे सीस. संसार से सब को निश्चित रूप से जाना है तो ऐसे क्षणिक सुखों के लिए क्यों माथापच्ची करते हो. बिस्वे बीस – जैसे आजकल कहते हैं शत प्रतिशत, वैसे ही पहले के लोग कहते थे बिस्वे बीस (क्योंकि एक बीघे में बीस बिस्वे होते हैं).

चलनी चम्मा, घोड़ लगम्मा, कायस्थ गुलम्मा, ये तीनों नहिं कोऊ कम्मा (चलनी का चाम, घोड़े की लगाम, कायथ का गुलाम, तीनहुँ निकाम). चलनी का चमड़ा, घोड़े की लगाम और कायस्थ का नौकर, ये तीनों किसी और काम के लायक नहीं होते (कायस्थ आरामतलब और शौक़ीन मिजाज होते हैं इसलिए नौकर भी आलसी हो जाते हैं).

चलनी में दुहे और करम को टटोले. चलनी में दूध दुह रहे हैं और दूध इकट्ठा नहीं हो रहा है तो अपने भाग्य को रो रहे हैं. मूर्खतापूर्ण कार्य करना और भाग्य को दोष देना.

चलनी में न दाने, अम्मा चलीं भुनाने. पहले के लोग कभी भुने चने या मक्का खाने का मन हो उन को चलनी आदि किसी बर्तन में रख कर जाकर भाड़ में भुनवा लाते थे. कहावत का शाब्दिक अर्थ है कि चलनी में दाने तो है नहीं और अम्मा भुनाने चल दी हैं. अर्थात घर में कुछ नहीं है लेकिन तड़क-भड़क और दिखावा खूब है.

चला चली की राह में, भला भली कर लेहु (चला चली के मेले में, भला भली खरीदो). इस संसार से कब जाना पड़ जाए यह कोई नहीं जानता, इसलिए परोपकार अवश्य करो, वही साथ जाएगा. 

चला जाए जी तो क्या करेगा घी. प्राण चले जाएंगे तो रखा हुआ घी किस काम आएगा. कंजूस लोगों पर व्यंग्य.

चले जब तक चलने दो. जब तक काम चले चलाना चाहिए.

चले तो अगाड़ी, ध्यान रहे पिछाड़ी. आगे को चलो लेकिन पीछे का भी ध्यान रखो.

चले तो चाकी, नहीं तो पत्थर. जो चीज जिस काम के लिए बनाई गई है वही नहीं करेगी तो वह बेकार है.

चले रांड का चरखा और चले चटोरे का पेट. विधवा स्त्री बेचारी पेट पालने के लिए लगातार चरखा चलाती है और चटोरे आदमी का पेट अंट शंट खाने के कारण खराब होता रहता है. पेट चलना – दस्त होना.

चले हल न चले कुदारी, बैठे भोजन दे मुरारी. आलसी और मुफ्तखोरों के लिए.

चश्मे बद्दूर, आँखें मोतीचूर. छोटी आँख वालों का मजाक उड़ाने के लिए. चश्मे बद्दूर उर्दू का शब्द है जिसका अर्थ है बुरी नजर दूर रहे. चश्म – आँख, बद – बुरी.

चस्का दिन दस का, पराया खसम किसका. दूसरी महिला के पति पर डोरे डालने वाली महिला को सीख दी जा रही है कि पराया पति तुम्हारा सगा नहीं होगा.

चाँद आसमान चढ़ा, सबने देखा. जब व्यक्ति उन्नति करता है तो उस पर सबकी निगाह पड़ती है.

चाँद उगेगा तो क्या आंचल में छुपेगा. चाँद उगेगा तो सारी दुनिया को दिखेगा. प्रतिभा छिपती नहीं है.

चाँद के ऊपर थूको तो वह अपने ऊपर ही आता है. महापुरुषों और महान कृतियों पर कीचड़ उछालने से अपनी ही छवि खराब होती है.

चाँद के सामने तारों की परवाह कौन करे. बड़े आदमी के सामने छोटों को कोई नहीं पूछता.

चाँद को भी ग्रहण लगता है. महान से महान व्यक्ति को भी कभी न कभी बदनामी झेलनी पड़ती है.

चाँद देखे चंद्रमुखी याद आए. परदेस में रहने वाले व्यक्ति को चाँद देख कर पत्नी/प्रेयसी की याद आती है.

चाँद में भी दाग है. (चंद्रमा में भी कलंक है). जब हम किसी बड़े आदमी की कोई कमी बताते हैं तो उसके प्रशंसक/समर्थक कहते हैं कि ऐसे तो हर व्यक्ति या वस्तु में कुछ न कुछ कमी होती है.

चांडालों के गाँव में कुत्ते भी खामोश. चांडाल – श्मशान में शवों का दाह संस्कार कराने वाला व्यक्ति. यह हमारे समाज की विकृति है कि चांडाल जैसा समाज के लिए आवश्यक मनुष्य घृणा का पात्र बना दिया गया है. उसको लोग निम्नतम श्रेणी का मनुष्य मानते हैं. कहावत में यह कहने की कोशिश की गई है कि नीच लोगों से सब डरते हैं, यहाँ तक कि कुत्ते भी.

चांदनी रात भाग्य में होती तो रतौंधी ही क्यों होती. रतौंधी – रात में दिखाई न देने की बीमारी, (विटामिन ए की कमी से होती है). जिन लोगों को यह बीमारी होती है उन्हें चांदनी रात में भी दिखाई नहीं देता. जिसके भाग्य में सुख न लिखा हो उसके लिए.

चांदनी से जले और हवा से उड़े. बहुत नाज़ुक आदमी.

चांदी का जूता सबके सर पर भारी. पैसे के बल पर सबको दबाया जा सकता है.

चांदी की चाबी सब द्वार खोले. पैसे से सब काम कराए जा सकते हैं.

चांदी की चोट पड़े तब सांड भी गाय हो जावे. पैसे के बल पर टेढ़े आदमियों को भी सीधा किया जा सकता है.

चांदी की मेख, खड़ी तमासा देख. जिस के पास पैसे की ताकत है वह सब कुछ कर सकता है.

चांदी देखे चेतना, मुख देखे व्यौहार. यहाँ चांदी से तात्पर्य चांदी के रुपयों से है. व्यापारी जब देख लेता है कि ग्राहक के पास रूपये हैं तभी माल दिखाने में रूचि लेता है, व्यक्ति को देख कर ही व्यवहार किया जाता है.

चाकर को उज्र नहीं, कूकुर को उज्र है. 1. नौकरी करने वाले को इस बात की स्वतंत्रता नहीं होती कि वह किसी काम को मना कर दे. उस से तो कुत्ता अधिक स्वतन्त्र होता है. 2. आप किसी बड़े आदमी से मिलना चाहते हैं. उसके नौकर को कोई आपत्ति नहीं है लेकिन उसका कुत्ता आप पर भौंके जा रहा है (या कोई महत्वहीन आदमी ख्वामखाह अड़ंगा डाल रहा है). 

चाकर को चूकुर, चूकुर को पेसकार चाहिए. सरकारी नौकरी करने वाला चाहता है कि उसका काम कोई दूसरा कर दे. यही नहीं, उस दूसरे को भी कोई सहायक (पेशकार) चाहिए.

चाकर को ठाकुर बहुतेरे और ठाकुर को चाकर बहुतेरे. नौकरी करने वाले के लिए काम देने वालों की कमी नहीं है और काम देने वालों के लिए नौकरी करने वालों की कमी नहीं है.

चाकर चोर, राजा बेपीर, कहे घाघ को राखे धीर. बेपीर- निर्दयी. नौकर चोर हो और मालिक या राजा निर्दयी, तो भला आदमी कैसे धैर्य धारण कर सकता है.

चाकर से कूकुर भला जो सोये अपनी नींद. पहले के लोग नौकरी को बुरा समझते थे क्योंकि उस में किसी की गुलामी करनी पड़ती है. कहते थे कि नौकर से तो कुत्ता अधिक आजाद है.

चाकर है तो नाचा कर, ना नाचे तो ना चाकर. नौकरी करने वाले को मालिक की मर्ज़ी के अनुसार नाचना पड़ता है. जो नाचने को तैयार न हो वह नौकरी नहीं कर सकता. (चाकरी या तो ना करी, करी तो फिर ना नाकरी).

चाकरी में आकरी कैसी. नौकरी में अकड़ नहीं चल सकती.

चाकरी में न करी क्या. नौकरी करने वाला किसी काम को मना नहीं कर सकता.

चाकी फेरी, हुई चून की ढेरी. कोई काम शुरू करने की देर है, एक बार शुरू हो जाए फिर तो ढेर लग जाता है. चाकी फेरना – चक्की चलाना, चून – आटा.

चाचा पिए, भतीजे को चढ़े. जो लोग अपने रिश्ते दारों के बल पर ऐंठते फिरते हैं उन का मजाक उड़ाने के लिए.

चाची के मूंछें निकल आएं तो चाचा न कहलाएँ. कुछ काम ऐसे हैं जो चाचा ही कर सकते हैं. अगर चाची वो काम करने लगें तो चाचा और चाची में फर्क क्या रह जाएगा.

चातुर का काम नहीं पातुर से अटके. बुद्धिमान व्यक्ति वैश्या के चक्कर में नहीं पड़ता है.

चातुर की चेरी भली मूरख की नार से. कोई काम कराना हो तो बुद्धिमान व्यक्ति की नौकरानी से कहना बेहतर है बामुकाबले मूर्ख की स्त्री के.

चातुर को चिंता घनी, नहिं मूरख को लाज, सर औसर जाने नहीं, पेट भरे सो काज. घनी – बहुत अधिक, औसर – अवसर. समझदार व्यक्ति की बहुत सी चिंताएं होती हैं जबकि मूर्ख को कोई लाज शर्म नहीं होती. उसे केवल खाने से मतलब होता है.

चातुर को चौगुनी, मूरख को सौ गुनी. बुद्धिमान व्यक्ति इशारे में ही बात समझ लेता है, जबकि मूर्ख को बार बार समझाना पड़ता है.

चातुर तो चेरी भली, मूरख भली न नार. मूर्ख स्त्री से तो अक्लमंद दासी बेहतर होती है.

चातुर तो बैरी भलो, मूरख भलो न मीत (बुद्धिमान शत्रु से मूर्ख मित्र अधिक खतरनाक होता है). अर्थ स्पष्ट है. उदाहरण के लिए एक शिकारी, उसके शत्रु शेर और मित्र भालू की एक कथा है. सन्दर्भ कथा – एक शिकारी जंगल में शेर का शिकार करने गया. शेर बहुत चालाक था. वह झाडियों की ओट से हमला करता और फिर छुप जाता. शिकारी भी मंजा हुआ था. वह पूरी सावधानी से उस की हर हरकत पर नजर रखता और अपने आपको शेर के हमले से बचाता. सफलता न मिलते देख शिकारी ने अपनी सहायता के लिए एक भालू को शहद खिला कर उस से दोस्ती कर ली.

एक दिन शिकारी थक कर पेड़ के नीचे सोया था और भालू पास बैठ कर उस की रखवाली कर रहा था. एक मक्खी बहुत देर से शिकारी के मुँह पर बार बार बैठ जा रही थी. भालू बहुत देर तक उसे उड़ाता रहा. जब वह नहीं मानी तो भालू ने आव देखा न ताव मक्खी को मारने के लिए एक बड़ा सा पत्थर उठा कर शिकारी के मुँह पर दे मारा. बेचारा शिकारी बुद्धिमान शत्रु (शेर) के हाथों नहीं बल्कि मूर्ख मित्र (भालू) के हाथों मारा गया

चापलूसी का मुँह काला. चापलूसी करने वाले व्यक्ति से सावधान रहना चाहिए. चापलूसी कर के आगे बढ़ने वाले व्यक्ति का कोई सम्मान नहीं करता.

चाबी लागे ही ताला खुले. सही युक्ति से ही कोई कठिन काम पूरा किया जा सकता है.

चाबुक तो मिल गई, बस जीन, लगाम, घोड़ी ही बाकी है (रही बात थोड़ी, जीन लगाम घोड़ी). कोई व्यक्ति नाममात्र की वस्तु के मिलने से फूल उठे तब. किसी व्यक्ति को रास्ते में एक चाबुक पड़ी मिल गयी. इस पर उसने प्रसन्न होकर कहा – कि बस अब क्या है, जीन, लगाम, घोड़ी की कसर और रह गयी.

चाम प्यारा नहीं, दाम प्यारा है. जिसको अपने शरीर से पैसा अधिक प्यारा हो.

चामे तेल, गुलामे रोटी. तेल लगाने से जिस तरह चमड़ा मजबूत रहता है, उसी तरह भर पेट खाना खिलाने से नौकर भी ठीक काम करता है.

चार अफीमची तीन हुक्के. डिमांड अधिक हो और सप्लाई कम हो तो झगड़ा तो होगा ही.

चार आदमी चार मत. किसी भी बात पर हर व्यक्ति का मत भिन्न हो सकता है. प्रत्येक व्यक्ति के मत का सम्मान करना चाहिए.

चार आने का बाजरा, चौदह आने का मचान. चार आने के बाजरे की फसल की सुरक्षा के लिए चौदह आने का मचान बनाया है. छोटे से लाभ के लिए बहुत अधिक निवेश.

चार औरतें कजिए करें, तो कोई न कोई घर टूटे (औरतें इकटठी हों तो किसी का घर तोड़ती है). औरतें इकट्ठी होती हैं तो तरह तरह की बातें कर के एक दूसरे को भड़काती हैं और घरों में फूट डलवाती हैं.

चार कलेवा, आठ दुपर की, नौ ब्यारी को देओ गोपाला, इतने में कहुं फेर प्रे तो, जे लेओ अपनी कंठी माला. भोला भक्त भगवान से कह रहा है कि बस चार रोटी नाश्ते के लिए, आठ दोपहर में खाने के लिए और नौ रात के खाने के लिए दे दो. इतना भी न दे पाओ तो भजन पूजा किस काम की.

चार का मुँह कौन पकड़े. एक व्यक्ति की बात को दबाया जा सकता है, लेकिन यदि बहुत से लोग किसी बात को गलत बता रहे हों तो उन्हें चुप नहीं कराया जा सकता.

चार कान की बात ब्रह्मा भी नहीं छिपा सकता. कोई बात किसी एक व्यक्ति से कहो तो हो सकता है कि वह उसे अपने तक सीमित रखे, पर अगर दो लोगों से कह दी तब तो उसका फैलना तय है.

चार गोड़वा बांधा जाए, दो गोड़वा न बांधा जाए. चार पैर वाले (जानवर) को बांध कर रख सकते हैं दो पैर वाले (मनुष्य) को नहीं. गोड़ – पैर.

चार चोर चौरासी बनिया, एक एक कर लूटा. चार चोर, चौरासी बनियों (डरपोक लोगों) को एक एक कर के लूट सकते हैं. जब एक को लूट रहे हों तो बाकी चुपचाप देखते रहते हैं.

चार छावें, छह निरावें, तीन खाट, दो बाट. छप्पर छाने के लिए चार मनुष्य चाहिए, खेत निराने के लिए छह मनुष्य चाहिए, खाट बुनने के लिए तीन लोग चाहिए. राह चलने के लिए दो मनुष्य चाहिए।

चार जात गावें हरबोंग, अहीर, डफाली, धोबी, डोम. इन चार जातियों के लोग बेसुरा और बेतुका गाते हैं, अहीर, डफाली (डफली बजाने वाला), धोबी और डोम.

चार दिन का चस्का, फेर यार खिसका. स्वार्थी दोस्त तभी तक साथ रहते हैं जब तक आपके पास माल हो.

चार दिन की आइयाँ, और सोंठ बिसाइन जाईयां. अभी चार दिन आये हुए बीते हैं और सोंठ खरीदने चल दीं. सोंठ आमतौर पर प्रसव के बाद खिलाई जाती है. कोई नया आने वाला अधिक अधिकार जमाए तो.

चार दिन की चमर जोतिस. चमड़े का काम करने वाला कोई व्यक्ति ज्योतिषी बनने का ढोंग करके बैठा है. उसका यह ढोंग चार दिन में ही खुल जाएगा.

चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात (अंधियारी पाख). जब व्यक्ति को मालूम होता है कि कुछ दिनों की मौज मस्ती के बाद फिर परेशानी आनी है, तब वह यह कहावत कहता है.

चार दिन की छोरी को बेटा हुआ, गोड़ पे रक्खी चूहा ले गया. बहुत कम आयु की कन्या माँ बन जाए तो बच्चे की ठीक से देखभाल नहीं कर सकती, इस बात को हास्यपूर्ण ढंग से कहा गया है.

चार दिन के गईले, सुग्गा मोर बन के अईले. (भोजपुरी कहावत) कुछ दिन विदेश में कुछ दिन रह कर जो अपने को अंग्रेज समझने लगते हैं. सुग्गा – तोता. गइले – गया, अइले – आया.

चार दिन को महुआ हमें दे दो, फिर तो तुम्हारा ही है. महुओं में फूल आते हैं तब दस-पाँच दिन के भीतर ही टपक जाते हैं. उन्हीं दिनों के लिए कोई कहता है कि महुए हमें दे दो, फिर तो तुम्हारे हैं ही. निपट स्वार्थ सिद्धि.

चार पैर होते हुए भी घोड़ा ठोकर खा सकता है. साधन संपन्न और चतुर लोग भी धोखा खा सकते हैं.

चार बिछिये टन टन बाजें, नौ मन काजल नैन बिराजे, झीना घूँघट नखरा घना, थोथा चना बाजे घना. सुन्दर न होने पर भी बेतुका श्रृंगार कर के इतराने वाली स्त्रियों के लिए. 

चार लठा के चौधरी पांच लठा के पंच, जिनके घर में छह लठा वो अंच गिनें न पंच. (बुन्देलखंडी कहावत) जिस घर के चार सदस्य लठैत हों वह गाँव का चौधरी बन जाता है, जहाँ पांच लाठी चलाने वाले हों वह पंच, जहाँ छह हों वह किसी को कुछ नहीं गिनता. 

चार वेद और पांचवाँ लवेद. लवेद माने छड़ी. ज्ञान प्राप्त करने के लिए चार वेद चाहिए और पांचवीं छड़ी.

चार वेद चार ओर, ता बीच चतुरी, चारू वेद करना पड़े, चतुरी की चाकरी. चारों वेद के ज्ञान से बढ़ चतुराई महत्वपूर्ण है.

चार सुहाली, चौदह थाली, बाँटन वाली सत्तर जनी. सुहाली – मैदे की पापड़ी नुमा पूड़ी. काम बहुत कम, साधन अधिक और करने वाले बहुत लोग.

चारण मत कर चतुर्भज, नाई कीजे नाथ, आधी गद्दी बैठवों, माथा ऊपर हाथ. हे चतुर्भूज (भगवान विष्णु), मुझे चारण मत बनाना, नाई बनाना क्योंकि नाई राजा के पास गद्दी पर बैठता है और राजा के मस्तक पर हाथ रखता है. चारण – भाट (राजा की प्रशंसा के गीत गाने वाले).

चारा खरीदने के लिए गाय बेच दो. गाय का चारा खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं तो कुछ बेच कर पैसों का प्रबंध करना पड़ेगा. कोई मूर्ख व्यक्ति सलाह दे रहा है कि गाय बेच कर चारा खरीद लो. अरे भाई! जब गाय नहीं होगी तो चारे का करोगे क्या. किसी समस्या के समाधान के लिए मूर्खतापूर्ण सुझाव देने वालों पर व्यंग्य. 

चारु सो भारु. 1.जो अधिक चारा खाता है वह बोझ बन जाता है. 2.बोझा ढोने वाला जानवर अधिक खाता है.

चारों धार दुहारी में पड़ें, तो भरती क्या देर लगे. दुहारी – दूध दुहने की बाल्टी. गाय को दुहते समय चारों थन का दूध बाल्टी में पड़े तो वह जल्दी भरेगी. काम करने वाले कई लोग हों तो काम निबटने में देर नहीं लगती. 

चाल गड मगड, मतलब में चौकस. चाल ढाल में भोंदू लगते हैं पर अपने मतलब में होशियार हैं.

चाल चटके की, मौत पटके की. चाल फुर्ती भरी हो और मौत फटाफट वाली हो. प्रभु से मांगते हैं कि जब तक जिएँ स्वास्थ्य अच्छा रहे और जब मृत्यु आए तो तुरंत आ जाए, घिसटना न पड़े.

चाल चपल, मुख चरपरा, निपट निलज्जा होय, नाक काट गुद्दी धरे, करे दलाली सोय. तेज चलने वाला, अधिक बोलने वाला और निर्लज्ज व्यक्ति ही दलाली कर सकता है.

चाल रहे सादा तो निबहे बाप दादा. जो व्यक्ति सादा और सरल जीवन जीते हैं वे ही अपने कुटुंब की मर्यादा निभा पाते हैं. 

चाल, सुभाव, बिबाई, तीनूं संगै जाई. जिस प्रकार व्यक्ति का चाल चलन और स्वभाव अंत तक साथ रहता है उसी प्रकार पैरों की बिबाई भी मृत्यु तक पीछा नहीं छोड़तीं.

चालाक पदनी पहले नाक दाबे. अपान वायु खारिज करने को बोलचाल की अशिष्ट भाषा में पादना कहा जाता है. पदनी का अर्थ है पादने वाली स्त्री. इस प्रकार की वायु में अक्सर दुर्गन्ध होती है. इसलिए चालाक लोग अपान वायु से पहले नाक बंद कर लेते हैं. कहावत का अर्थ है, चालाक आदमी कोई गलत काम करने से पहले अपने आप को बचाने का प्रबंध कर लेता है. 

चालीस में चार कम हजाम, पंडित जी सलाम. चालीस में चार कम अर्थात छत्तीस. हज्जाम (नाई) छत्तीसा अर्थात बहुत चालाक होते हैं और पंडित को भी मूर्ख बना सकते हैं.

चालीस सेरा ऊत. मूर्ख व्यक्ति के लिए.

चालीस सेरी बात. बिलकुल ठीक बात, जिसमें लाग-लपेट न हो.

चाव घटे नित घर के जाए, भाव घटे कुछ मुँह के मांगे, रोग घटे औषधि के खाए, ज्ञान घटे कुसंगत पाए. बार बार कहीं जाने से मिलने की ललक कम हो जाती है, कुछ मांगने से सम्मान कम होता है, औषधि खाने से रोग कम होता है और कुसंगति से ज्ञान कम होता है.

चावल की कनी और भाले की अनी. पकने में चावल यदि कच्चा रह जाय तो उसकी कनी भाले की नोंक की तरह
हानिकर होती है.

चावल दाल मेरे पास, लकड़ी बिन करहूँ उपास. चावल और दाल जैसे मुख्य भोज्य पदार्थ मेरे पास हैं पर मैं जलाने की लकड़ी न होने के कारण भूखा हूँ. साधन कितना भी गौण क्यों न हो उस का भी महत्व होता है.

चावल बेच कोदों लई, जा अक्कल तोय कौन ने दई. महंगी चीज के बदले सस्ती चीज लेने वाले मूर्ख के लिए.

चाह करे ताकि चाकरी कीजे, अनचाहत का नाम न लीजे. जो प्रेम करे उसकी नौकरी करो और जो न करे उस का नाम भी न लो.

चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह, जिनको कछू न चाहिए, वे साहन के साह. जब तक मनुष्य कुछ पाने की इच्छा करता है तब तक वह चिंताओं से दबा रहता है. जब मनुष्य अपने को इन इच्छाओं से मुक्त कर लेता है तब वह शहंशाह बन जाता है.

चाह चमारी चूहड़ी, सब नीचन की नीच. चाह का अर्थ यहाँ लालच से है. चमारी – चर्मकार जाति की महिला, चूहड़ी – सफाईकर्मी महिला. पुराने जमाने में जब छुआछूत और सामाजिक विषमता का बोलबाला था, तब चर्मकार और सफाई कर्मियों को नीची जाति का कह कर अपमानित किया जाता था. उस समय की कहावत में लालच करने की वृत्ति को बहुत निम्न कोटि का बताने के लिए चमारी और चूहड़ी से उपमा दी गई है. 

चाहले की भैंस. ऐसी स्थूलकाय स्त्री के लिए जिसका पति उसे खूब लाड़ प्यार से रखता हो.

चाहे गाड़ी भर दहेज़ मिल जाए, पर ऐसे घर में ब्याह न करे जहाँ साला न हो. सही बात है, सास ससुर के न रहने पर साले से ही ससुराल होती है.

चाहे जहाँ जाओ, अपने आप से मुक्ति नहीं पा सकते. आदमी दुनिया से भाग सकता है लेकिन अपनी अंतरात्मा से नहीं.

चाहे जितने आदमी काम पर लगाओ, बच्चा पैदा होने में नौ महीने ही लगेंगे. यह समझना जरूरी है कि कुछ काम ऐसे होते हैं जिनमें समय लगता ही है.

चाहे देकर भूल जाए, पर लेकर कभी न भूले. उधार दे कर वापस लेना भले ही भूल जाओ, लेकर वापस करना कभी नहीं भूलना चाहिए.

चाहे मार चाहे तार. ईश्वर के सब आधीन हैं, वह चाहे मारे चाहे तार दे.

चिंता ऐसी डाकिनी काट के जिउ को खाय, बैद बिचारा क्या करे कितनी दवा लगाय. डाकिनी – डायन, जिउ – मन. चिंता बहुत बुरी बीमारी है, मनुष्य को घुला देती है, इसकी कोई दवा भी नहीं है. 

चिंता चिता समान है. चिता तो मृत देह को जलाती है पर चिंता जीवित व्यक्ति को ही जला डालती है.

चिंता ज्वाल सरीर वन, दाह लगे न बुझाय, प्रकट धुंआ न देखिये भीतर ही धुन्धुआए. शरीर रूपी वन के लिए चिंता दावानल (जंगल की आग) के सामान है जो बुझाए नहीं बुझती. फर्क यह है कि इस आग में धुंआ दिखाई नहीं देता, भीतर ही भीतर घुटता रहता है.

चिकना मुँह पेट खाली. देखने में अच्छा भला पर वास्तविकता में अभावग्रस्त. कुछ लोग इसे इस प्रकार बोलते हैं – दिल्ली की दलाली, मुँह चिकना पेट खाली. बड़े शहरों में रहने वाले आमतौर पर अभावग्रस्त होते हैं.

चिकना मुँह सब कोऊ देखत. चिकना मुँह माने संपन्न व्यक्ति. ऐसे व्यक्ति की तरफ सब की नजर जाती है.

चिकनाई बिना पहिया न चले. जिस प्रकार पहिए की धुरी में चिकनाई लगाए बिना गाड़ी नहीं चलती, उसी प्रकार सरकारी विभागों में बिना पैसा दिये काम नहीं होता.

चिकनियां फकीर, मखमल का लंगोट. अपने आप को अत्यंत सादा दिखाने वाले शौक़ीन व्यक्ति पर व्यंग्य.

चिकनी बातों मत पतियाओ. चिकनी चुपड़ी बातों पर विश्वास मत करो. 

चिकने गाल तिलनियाँ के औ जरे भुजे भुरजनिया के. तेली की औरत के गाल चिकने हो जाते हैं और भड़भूंजे की औरत के गाल काले हो जाते हैं. अर्थात व्यक्ति जो काम करता है उसका असर उस के रंग रूप पर पड़ता है.

चिकने घड़े पर पानी नहीं ठहरता. बेशर्म आदमी को किसी भलाई बुराई से कोई फर्क नहीं पड़ता.

चिकने घड़े पर पानी नहीं ठहरता, पर मैल जम सकता है. ऊपर वाली कहावत को अधिक विस्तार से कहा गया है. बेशर्म आदमी कायदे की बात नहीं सीखता पर अनुचित बात फौरन सीख लेता है.

चिकने घाट बैठ कर उतरो. यदि नदी का घाट चिकना हो तो बैठ कर आगे बढ़ना चाहिए. प्रतिकूल परिस्थिति में अतिरिक्त सावधानी आवश्यक है.

चिकने मुँह को सब चूमते हैं. 1.संपन्न व्यक्ति की सब प्रशंसा करते हैं. 2.कमज़ोर का फायदा सब उठाते हैं.

चिकोटी काटो न बकोटे जाओ. किसी को चुटकी लोगे तो वह भी तुम्हें बकोटेगा (जोर से नोचेगा).

चिड़ा चिड़ी की क्या लड़ाई, चल चिड़े मैँ तेरे पीछे आई. चिड़िया व चिड़े की कैसी लड़ाई, पति-पत्नी के बीच का मनमुटाव क्षणिक होता है.

चिड़िया का धन चोंच. चिड़िया के लिए चोंच ही सबसे बड़ी संपत्ति है क्योंकि उसीसे वह खाती पीती है, और उसी से हाथ पैरों का काम भी लेती है. इसी प्रकार गरीब आदमी के हाथ ही उसका धन हैं.

चिड़िया की चोंच में चौथाई हिस्सा. जब किसी गरीब की कमाई में कोई हिस्सा मांगे.

चिड़िया की चोंच में सौ मन काठ. किसी गप्प मारने वाले का मजाक उड़ाने के लिए.

चिड़िया को बाज से क्या काम? सही बात है, भला शिकार को शिकारी से क्या काम हो सकता है. कोई भोला भाला व्यक्ति किसी दुष्ट के जाल में फंसने जा रहा हो तो उसे सावधान करने के लिए.

चिड़िया चाहे जितने प्यार से पाले, पंख लगते ही बच्चे उड़ जाते हैं. माँ बाप चाहे जितने प्यार से बच्चों को पालें, कमाना शुरू करते ही वे अलग हो जाते हैं.

चिड़ियों की मौत, गवारों की हंसी. मूर्ख और स्वार्थी लोग यह नहीं देखते कि उन के मनोरंजन में निरीह लोगों का कितना नुकसान हो रहा है.

चिड़ियों के शिकार में शेर का सामान. छोटे से काम के लिए बहुत टीम टाम.

चिड़ी चोंच भर ले चली, नदी न घट्यो नीर, धरम किए धन न घटे, कह गए दास कबीर. कहावत द्वारा दान धर्म के लिए प्रेरित किया गया है. भिखारी लोग इस तरह की बातें सुना कर लोगों को दान करने के लिए कहते हैं.

चिढ़े को चिढ़ाएंगे, हलुआ पूरी खाएंगे. जो चिढ़ने वाला हो उसे चिढ़ाने में सब को मज़ा आता है.

चित भी मेरी पट भी मेरी, अंटा मेरे बाप का. किसी भी सिक्के के एक साइड को चित और दूसरी साइड को पट कहते हैं. कई बार लोग किसी बात का फैसला सिक्का उछाल कर करते हैं. सिक्का उछालने से पहले ही एक व्यक्ति बोल देता है कि चित आने पर वह जीतेगा. लाख में एक चांस यह भी होता है कि सिक्का न चित पड़े न पट बल्कि खड़ा हो जाए. इसे अंटा कहते हैं. कोई किसी फैसले को अपने पक्ष में करने के लिए जोर जबरदस्ती कर रहा हो तो यह कहावत कहते हैं. इंग्लिश में कहावत है – Heads I win, Tails you lose.

चित्त चंदेरी, मन मालवे. चित्त तो चंदेरी में है और मन मालवे में. अस्थिर चित्त व्यक्ति.

चित्त लगा भोजन में कवित्त को कहवें. (बुन्देलखंडी कहावत) मन तो भोजन में लगा है और कविता सुनाने को कहा जा रहा है. 

चिराग गुल, पगड़ी गायब. चोर और जेबकतरे निगाह बचते ही अपना काम कर जाते हैं.

चिराग तले अंधेरा. दीपक जलता है तो चारों ओर प्रकाश फैलता है पर दीपक के नीचे अँधेरा रहता है. कोई व्यक्ति देश या समाज के लिए बहुत कुछ कर रहा हो पर उसके अपने घर में अभाव हों तो यह कहावत कही जाती है.

चिराग में बत्ती और आँख में पट्टी. जो लोग बहुत जल्दी सो जाते हैं उनके लिए. जलते दिये को बुझाने के लिए लोग बत्ती को दीपक से बाहर कर देते थे जिससे तेल न मिलने के कारण वह बुझ जाए. बोलचाल की भाषा में इसे बाती बढ़ाना या दिया बाती करना कहते थे. विशेष रूप से यह कहावत उन पुरुषों का मजाक उड़ाने के लिए कही जाती है जो किन्हीं कारणों से दाम्पत्य सुख नहीं उठाते और दीपक बुझने के बाद फौरन सो जाते हैं. कुछ स्त्रियाँ अपने पतियों की इस आदत से बहुत परेशान भी रहती हैं. रूपान्तर – अँधेरा चढ़े, बिछौना पड़े.

चिवड़ा दही बारह कोस, पूड़ी अठारह कोस. पूड़ी के मुकाबले चिवड़ा दही जल्दी पच जाता है, इसलिए अगर अधिक दूर जाना है तो पूड़ी खा कर जाना चाहिए.

चिवड़ा मुर मुर दही खट्टा, सास बहू में हंसी ठठ्ठा. बच्चों की आपसी मजाक.

चिवड़े का गवाह दही. दही व चिवड़े को एक साथ खाया जाता है. दो लोगों में अटूट सम्बन्ध हो तो.

चींचड़ी को खाज (जूं के सिर में खाज). चीलर और जूँ जो सभी प्राणियों के शरीर में खुजली पैदा करती हैं उन्हें खुद ही खुजली हो जाए. कोई दुष्ट व्यक्ति अपनी दुष्टता के कारण किसी परेशानी में पड़ जाए तो.

चींटी की आवाज़ अर्श तक. निर्बल की पुकार ईश्वर सुनता है. अर्श माने आसमान.

चींटी की खाल निकालना.  किसी बात में व्यर्थ की बारीकियाँ ढूँढना. बाल की खाल निकालना.

चींटी की मौत आती है तो उसके पंख निकल आते हैं (चींटी के पर निकले और मौत आई). छोटा आदमी बड़ा दुस्साहस करे तो उसकी बर्बादी निश्चित है.

चींटी के खाये पहाड़ घटे. विशाल पर्वत भी चींटी जैसे क्षुद्र प्राणी द्वारा नित्य खाए जाने पर धीरे धीरे समाप्त हो जाता है. छोटे छोटे नुकसान और चोरी भी बड़े से बड़े व्यवसाय को नष्ट कर सकते हैं.

चींटी के घर नित मातम. गरीब आदमी पर कोई न कोई दुख टूटता ही रहता है.

चींटी को अपने पैर भारी हाथी को अपने पैर भारी. बड़ा आदमी बड़ी मुसीबतों से परेशान होता है तो छोटे आदमी को उसकी छोटी परेशानियाँ भी उतना ही परेशान करती हैं.

चींटी को पेशाब की धार ही बहुत है. गरीब के लिए छोटी मोटी आपदा भी जानलेवा बन सकती है.

चींटी चली प्रयाग नहाने. दुस्साहस करने वाले क्षुद्र व्यक्ति के लिए.

चींटी चावल ले चली बिच में मिल गई दाल, कहें कबीर दोऊ ना चलें, इक ले दूजी डाल. चींटी चाल ले कर चली तो बीच में दाल मिल गई. दोनों नहीं ले जा सकती, एक को छोड़ना पड़ेगा. मनुष्य के लिए भी इस संसार में इसी प्रकार की दुविधा है. वासनाएं और भक्ति दोनों को ले कर नहीं चल सकता.

चींटी चाहे सागर थाह (चींटी लेत समुन्दर थाह). बहुत क्षुद्र व्यक्ति अपनी औकात से बहुत अधिक प्रयास करे तो.

चींटी जावे सासरे, नौ मन सुरमा डाल. 1.बच्चों द्वारा मजाक में बोली जाने वाली कहावत. 2.अधिक लीपापोती करने वाली महिलाओं का मजाक उड़ाने के लिए.

चींटी पे मनों का बोझ. असमर्थ पर बड़ा बोझ.

चींटी होके घुसे, मूसल होके निकले. छोटा सा मौका पा कर घुस जाना, और फिर मुश्किल से छोड़ना.

चीज़ के दाम और कीमत में पूरब पश्चिम का फर्क है. यहाँ कीमत से अर्थ उपयोगिता से है. चीज़ कितनी सस्ती या महंगी है इस का कोई संबंध इस बात से है कि उसकी उपयोगिता कितनी है.

चीज न राखे आपनी, चोरन गाली देय, चोर बिचारा क्या करे, पड़ी पाय सो लेय. यदि आपने अपनी चीज़ संभाल कर नहीं रखी और वह चोरी हो गई तो इस के लिए चोर को गाली न दें.

चीटा मारे पानी हाथ. गरीब को सताने से कुछ हासिल नहीं होता. रूपान्तर – बगुला मारे पखना हाथ.

चीरे चार बघारे पांच. थोड़ा काम कर के बहुत ज्यादा बताना. बघारना के दोनों अर्थ हैं – छौंक लगाना (जैसे तरकारी बघारना) एवं  बढ़ा चढ़ा कर बताना (जैसे शान बघारना).

चील का मूत. असंभव वस्तु (जो चीज़ दुनिया में होती ही नहीं है).

चील के घर में मांस की धरोहर. (चील के घोंसले में मांस कहाँ). चील के घोंसले में मांस ढूँढना मूर्खता है. चील मांस छोड़ेगी ही नहीं. चोर उचक्कों की नगरी में आप कोई कीमती सामान भूल आएँ और उसे ढूँढने जाएँ तो.

चील रंग सब कोई, सियारी रंग कोई ना (चील्हो रंग सब कोय सियारो रंग कोय न). व्रत को भंग करने वाली स्त्रियों को जन्म जन्म तक उस पाप का फल भोगना पड़ सकता है. सन्दर्भ कथा – सब लोग चील्हो की तरह हों, सियारो की तरह कोई नहीं. चील्हो (चील) और सियारो (सियारिन) दो सहेलियाँ थीं. दोनों ने जीवत्पुत्रिका-व्रत किया. सियारिन को बड़ी भूख लग गई. वह अपनी माँद में, कहीं से हड्डी-सहित माँस का टुकड़ा लाकर खाने लगी. कट-कट की आवाज सुन, पेड़ पर बैठी चील ने पूछा, सखी, तुम्हारी माँद में से कट-फट की आवाज कैसी आ रही है. इस पर सियारिन ने जवाब दिया, भूख के मारे शरीर की हड्डियाँ पटपटा रही है. मृत्यु के बाद एक ही नगर में चील रानी के रूप में तथा सियारिन वणिक स्त्री के रूप में पैदा हुई. दोनों के सात-सात पुत्र हुए. संयोग ऐसा कि जब-जब चील के लड़कों की शादी होती, तब-तब सियारिन का एक लड़का मर जाता. सियारिन ने एक दिन चील से इसका कारण पूछा, तो चील ने उसे पूर्वजन्म की घटना बतलाते हुए कहा कि व्रतभंग के पाप के कारण तुम्हारे बच्चे मर जाते हैं.

चीलर मारे कुत्ता खाए. दुनिया को दिखाने के लिए चीलर मार रहा है और मौका मिलने पर कुत्ते को खा जाता है. ऐसे कुटिल व्यक्ति के लिए जो भलाई के छोटे मोटे काम कर के वाहवाही लूटे और मौका लगने पर बड़ी चीज़ पर हाथ साफ़ करे.

चीलर, जूँ और चिथरा, तीनूँ बिपत के बखरा. ये तीनों चीजें अत्यंत दयनीय हालत दर्शाती हैं.

चुंगी के डर से कोउ माल नाहीं फेंकत. यह सही है कि व्यापारी लोग चुंगी बचाना चाहते हैं लेकिन इतना भी मूर्ख कोई नहीं होता जो चुंगी न देने के चक्कर में अपना माल ही छोड़ कर भाग जाए.

चुका वायदा, दिखाया कायदा. काम निकल जाने के बाद नियम बताने लगना.

चुग गईं मोरनियाँ, फँस गयो मोर. होशियार आदमी काम बना कर चलता बना, सीधा आदमी चक्कर में आ गया.

चुगलखोर खुदा का चोर. चुगलखोर व्यक्ति भगवान की नजर में चोर के समान होता है.

चुगली लग जात, पर बिनती नाहिं लगत. चुगलखोर चुगली करके जो काम बना लेता है, वह गरीब आदमी द्वारा की गई अनुनय विनय से नहीं बनता. हाकिम लोगों के यहाँ चुगली सुनी जाती है पर विनती नहीं.

चुटके का खाए, उकटे का न खाए. चुटका – गरीब, उकटा – सहायता कर के एहसान जताने वाला. 

चुटिया को तेल नहीं, पकौड़ी को जी चाहे. आज के जमाने में खाने के लिए भी तरह तरह के तेल उपलब्ध हैं और सर में डालने के लिए भी, पर पहले के जमाने में ले दे कर एक सरसों का तेल ही सब कामों में आता था. कहावत का अर्थ है कि सर में डालने लायक जरा सा तेल तक तो है नहीं और पकोड़ी खाने का मन कर रहा है जिसके लिए बहुत सारा तेल चाहिए. कुछ भी न होते हुए बहुत कुछ की इच्छा करना.

चुड़ैल पर दिल आ जाए तो वह भी परी है. जो चीज़ अपने को पसंद आ जाए वही अच्छी है. इस तरह की एक कहावत और है – दिल लगा गधी से तो परी क्या करे. माँ बाप बेटे की शादी अपनी पसंद की किसी घरेलू लड़की से करना चाहते हों पर लड़का किसी फैशनेबिल लड़की से शादी करने के लिए अड़ा हुआ हो तो.

चुप आधी मर्ज़ी. कोई बात सुन कर अगर आप चुप रहते हैं तो इस का मतलब यह है कि आप उससे काफ़ी कुछ सहमत हैं. इस कहावत को इस प्रकार से भी कहा गया है – खामोशी नीम रजा.

चुप चुपओ ब्याह, ढम ढमओ ब्याह. परिस्थितियों के अनुसार शादी विवाह या कोई भी आयोजन चुप चुपाते भी किए जाते हैं और ढोल बाजे बजा कर भी. मुगलों के समय लूटपाट के डर से चुपचाप रात में विवाह करने की प्रथा आरम्भ हुई थी. अन्यथा भारतीय संस्कृति में दिन में विवाह करने का चलन था.

चुप रहने का मौका कभी मत छोड़ो. चुप रहने से बहुत से विवाद और समस्याएँ हल हो जाते हैं.

चुपको रह चन्दन, यहाँ करीलन को वन है. चन्दन को समझाया जा रहा है कि यहाँ करील (कांटेदार झाड़ियाँ) का जंगल है. तुम चुप रहो. यहाँ तुम्हारी कोई कद्र नहीं होगी.

चुपड़ी और दो दो (चुपड़ के और चार ठो).  गरीब आदमी के लिए चुपड़ी रोटी एक नियामत है और वो भी दो मिल जाएं तो क्या कहने. कोई अच्छी चीज़ मिल रही हो और वह भी उम्मीद से अधिक तो यह कहावत कही जाती है. इस प्रकार की दूसरी कहावत है – मीठा और भर कठौती.

चुप्पा आदमी गहरा होता है. बहुत बोलने वाला आदमी आमतौर पर हलकी मानसिकता का होता है जबकि चुप रहने वाले में गहराई होती है.

चुप्पा कुत्ता पहले काटे. जहाँ कई कुत्ते बैठे हों वहाँ जो कुत्ते बहुत भौंक रहे हों उनसे खतरा कम है. जो कुत्ता चुप बैठा हो वह पहले काटेगा. इसी तरह चुप रहने वाला आदमी भी अधिक खतरनाक होता है. इंग्लिश में कहावत है – Beware of silent dog and still waters.

चुप्पे का गुस्सा, भूसे में आग जैसा. भूसे में जब आग लगती है तो वह शुरू में धीरे सुलगती है पर कभी भी विकराल हो सकती है. ऐसे ही चुप रहने वाला व्यक्ति मन में क्रोध करता है जोकि बहुत खतरनाक होता है.

चुभने वाली कील हथोड़े से ठोंक दी जाती है. अधिक परेशान करने वाला व्यक्ति कड़ा दंड देने से ही सीधा होताहै.

चुरावे नथ वाली, नाम लगे चिरकुट वाली का.  चिरकुट – कपड़े का चिथड़ा. पैसे वाला व्यक्ति गलत काम करता है और नाम गरीब का लगता है.

चुल्लू चुल्लू साधेगा, द्वारे हाथी बांधेगा. छोटी छोटी बचत से बड़ी राशि इकट्ठी की जा सकती है. इसके आगे एक पंक्ति और बोली जाती है ‘चुल्लू, चुल्लू खोवेगा, द्वारे बैठा रोवेगा.’

चुल्लू भर पानी में तंग जिंदगानी. अत्यधिक गरीबी.

चुल्लू में उल्लू करे, गाँठ कमाई खाय, मनुष जनावर बन चले, दारु बुरी बलाय. शराब बहुत बुरी चीज़ है, जो एक चुल्लू में ही आदमी को उल्लू बना देती है, जमा पूँजी खा जाती है और आदमी को जानवर बना देती है. 

चुवना घर औ रोवनी बहुरिया, दोनों बहावें उल्टी बयरिया. चुवना- टपकने वाला. रोवनी – रोनेवाली, बयरिया- बयार, हवा. टपकने वाले घर में रहना बहुत कष्ट का काम है और हर समय रोनेवाली बहू कुलक्षणी होती है.

चुहिया का बच्चा कुहुकी दे. चुहिया के बच्चे को यह अहसास नहीं होता कि उसके चूँ चूँ करने से उसके स्थान का पता चल जाएगा और वह पकड़ा जाएगा. कोई मूर्ख व्यक्ति मूर्खतावश जानबूझ कर फंसने का काम करे तो.

चुहिया का शिकार और ग्यारह तोपें. छोटे से काम में बहुत बड़ा ताम झाम.

चूक अजाने से पड़े, बाँधे गाँठ सयान. नासमझ आदमी गलती करता है समझदार आदमी उससे सीख लेता है. इंग्लिश में कहावत है – Learn wisdom by the follies of others.

चूकी चोट निहाई पर. निहाई मजबूत लोहे की बड़ी सी वस्तु होती है जिस पर रख कर लोहे को पीटते हैं या काटते हैं. जिस चीज़ पर चोट करते हैं वह चूक जाए तो निहाई पर ही चोट पड़ती है. घर गृहस्थी में गलती कोई भी करे, जो जिम्मेदार व्यक्ति होता है उसी को खामियाजा भुगतना पड़ता है. (देखिये परिशिष्ट) 

चूड़ियाँ लादीं टूट गईं, खाँड़ लादी बह गई. सब तरफ से दुर्भाग्य. किसी आदमी ने चूड़ियों का व्यापार किया तो लादने वाले बैल का पैर चट्टान से फिसलने से चूड़ियाँ गिर कर फूट गयीं. शक्कर लाद कर ले जा रहा था तो एक नदी पार करनी पड़ी और बैल के बिदकने से सब शक्कर पानी में गिर पड़ी और घुल गयी.

चून खाए मुसंड होवे, तला खाए रोगी. सादा भोजन करने से ताकत आती है, तला हुआ खाने से रोग होते हैं.

चूनी कहे मुझे घी से खाओ. चूनी – मटर का आटा. चूनी जैसे घटिया आटे का भी दिमाग हो गया है, कह रहा है मुझे घी से खाओ. साधारण आदमी अपनी हैसियत से बहुत ऊपर की बात करे तो.

चूरा झाड़ खाओ, लड्डू मत तोड़ो. अपनी मूल पूँजी खा के खत्म नहीं करनी चाहिए, उससे मिलने वाले ब्याज या कमाई को खर्च कर के काम चला लेना चाहिए.

चूल्हा खोदे खाट बिछे. घर में स्थान की इतनी कमी है कि चूल्हा खोद डालने पर ही खाट बिछ सकती है

चूल्हा चक्की, सबहि काम पक्की. ऐसी स्त्री जो खाना पकाने में भी होशियार हो और चक्की भी खूब चला ले. ऐसा व्यक्ति जो शारीरिक और मानसिक हर काम में होशियार हो.

चूल्हा झोंके चांवर हाथ. चांवर (चंवर) माने हाथ का छोटा पंखा. बीबीजी चूल्हे पे खाना बनाने बैठी हैं और चांवर हाथ में है. काम में नज़ाकत दिखाना. चंवर के लिए देखिए परिशिष्ट.

चूल्हा फूँके और दाढ़ी रखे. यदि आपकी दाढ़ी लम्बी होगी तो इस बात का बहुत खतरा है कि चूल्हा फूंकते हुए जल जाए. आप को सलाह दी गई है कि चूल्हा फूंकना है तो दाढ़ी न रखें और दाढ़ी रखना हो तो चूल्हा न फूँकें.

चूल्हे का राव लाव लाव ही पुकारे. चूल्हे का देवता हमेशा नोन तेल लकड़ी मांगता है. गृहस्थी की आवश्यकताएँ कभी पूरी नहीं हो सकतीं.

चूल्हे की रानी, सब पे हुकुम चलावे. जो स्त्री खाना बनाने बैठती है, वह सभी पर हुक्म चलाती है – पानी लाओ, फलां सामान लाओ, क्योंकि खाना बनाने का काम बड़े महत्व का माना जाता है.

चूल्हे की लकड़ी चूल्हेई में जलतीं. जहाँ की वस्तु वहीं काम आती है.

चूल्हे को आग से क्या डराना. जिन परेशानियों को कोई रोज झेलता हो, उनसे उसे क्या डराना.

चूल्हे पर तलवार चलाई, तोऊ चुहिया मार न पाई. किसी छोटे से काम को करने के लिए बहुत बड़ा और मूर्खतापूर्ण प्रयास करना.

चूल्हे में थूके और सुख की आस करे. चूल्हे में थूकना अर्थात किसी अत्यंत आवश्यक वस्तु का निरादर करना. ऐसा करने वाला व्यक्ति कभी सुखी नहीं हो सकता.

चूल्हे में बिलइयाँ डंडोत करें. घर में खाने को नहीं है.

चूहा छोटा और पूँछ बड़ी. अधिक दिखावा करने वाले छोटे व्यक्ति का मजाक उड़ाने के लिए.

चूहा बिल न समा सके कानौ बांधा छाज (पूँछ में बाँधा छाज). बिल इतना छोटा कि चूहा उस में घुस नहीं सकता है ऊपर से कान या पूँछ में छाज बाँध लिया. बहुत कम सामर्थ्य वाला व्यक्ति बहुत बड़ी जिम्मेदारी ले ले तो.

चूहा मारे खेत जलाया. खेत या खलिहान में चूहे अधिक हों तो उन्हें मारने के लिए यदि कोई खेत ही जला दे. जैसे विरोधियों को मात देने के लिए यदि कोई नेता देश में दंगे करा दे. 

चूहे के चाम से जूते नहीं बनते. छोटे आदमी बड़ा काम नहीं कर सकते.

चूहे के जाए बिल ही तो खोदेगें. चूहे के जाए माने चूहे के बच्चे. कोई भी बच्चे वही काम करेंगे जो उन के माँ बाप करते आए हैं. किसी घटिया व्यक्ति के बच्चे कोई घटिया काम करें तो यह कहावत बोलते हैं.

चूहे के बिल में ऊँट नहीं समा सकता. किसी बहुत बड़े आयोजन के लिए बहुत छोटी जगह हो तो.

चूहे को गेहूँ मिलेगा तो कुतर कर ही खाएगा, पूड़ी नहीं बनाएगा. गरीब आदमी के पास आमोद प्रमोद मनाने के साधन नहीं होते. वह जैसे तैसे अपना पेट भरता है.

चूहे को सुपारी का टुकड़ा मिल गया तो खुद को पंसारी समझने लगा. पंसारी की दूकान में छोटी बड़ी सैकड़ों चीजें होती हैं जिनका वह हिसाब रखता है (यह बहुत कठिन काम है). चूहे को सुपारी का टुकड़ा मिल गया तो समझने लगा कि वह पंसारी से कम नहीं है. कोई छोटा सा ज्ञान या वस्तु मिल जाने पर अपने को बहुत काबिल या बहुत बड़ा समझने लगना. जैसे गूगल पर एक बीमारी के विषय में पढ़ कर लोग अपने को डॉक्टर समझने लगते हैं.

चूहों की मौत बिल्ली का खेल. अहंकारी और अत्याचारी लोग अपना पेट भरने या मन बहलाने के लोए गरीब की जान भी ले लेते हैं.

चेरी को चित्त महेरी में (कब बने और कब खाऊँ). महेरी – मट्ठे में बाजरा इत्यादि पका कर बनने वाला खाद्य.

चेले लावें मांग कर बैठा खाए महंत, राम भजन का नाम है पेट भरन का पंथ. ढोंगी साधु, महंतों के लिए. 

चैत सोवे रोगी, बैसाख सोवे जोगी, जेठ सोवे राजा, असाढ़ सोवे अभागा. कहावत दिन के समय सोने पर कही गई है. चैतमाह में रोगी लोग दिन में सोते हैं. बैसाख में योगी लोग दिन में सोते हैं. जेठ में बड़े लोग दिन में सोते हैं(गर्मी के कारण). आषाढ़ में केवल अभागे लोग दिन में सोते हैं क्योंकि इस में काम ही काम होते हैं.

चैते गुर, बैसाखे तेल, जेठे महुआ, असाढ़े बेल, सावन भाजी, भादों मही, क्वॉर करेला, कातिक दही, अघने जीरो, पूसे धना, माघे मिसरी, फागुन चना, इतनी चीज खेहो सभी, मरहो नहीं तो परहो सही. इन इन महीनों में ये चीजें खाना निषिद्ध है. इन्हें खा कर अगर मरे नहीं तो बीमार तो जरूर पड़ोगे.

चैत्र चना, वैशाखे बेल, जेठ शयन अषाढ़े खेल. चैत में चना, वैशाख में बेल खाने तथा जेठ की दोपहरी में सोने एवं आषाढ़ में खेलकूद करने से शरीर स्वस्थ और निरोग रहता है.

चोखा माल टनाटन बोले. जो वस्तु बढ़िया होती है वह अलग ही दिखती है अर्थात अपने आप बोलती है.

चोट गोड़ में, मलहम मूड़ में. समस्या कहीं, समाधान कहीं. चोट लगी है पैर में, मलहम लगा रहे हैं सिर पर.

चोट तभी करो जब लोहा गरम हो. लोहे को किसी आकार में ढालना हो तो उस पर तभी चोट करते हैं जब वह खूब गर्म होता है. किसी आदमी को दूसरे के खिलाफ भड़काना हो तो उस से तभी बात करनी चाहिए जब वह गुस्से में हो. इंग्लिश में कहावत है – Strike the iron when it is hot.

चोट पर चोट, भाग्य का खोट. भाग्य खराब हो तो एक परेशानी में दूसरी जुड़ जाती है.

चोटी हाथ में है तो जायगा कहाँ. कोई आदमी किसी के पूर्ण नियंत्रण में हो तो.

चोट्टी कुतिया, जलेबियों की रखवाली (रहबर). जब कोई कीमती चीज़ किसी चोर प्रकृति के व्यक्ति को रखवाली के लिए दी जाए. जैसे भ्रष्ट नेता को सत्ता सौंपना.

चोर उचक्का चौधरी, कुटनी भई प्रधान. जब नीच और दुष्ट मनुष्यों के हाथ में सत्ता आ जाती है.

चोर और गठरी को कस कर बांधना चाहिए. चोर को पकड़ लिया जाए तो उस के हाथ पैर कस कर बांधना चाहिए नहीं तो वह मौका मिलते ही खोल कर भाग जाएगा. गठरी को कस कर नहीं बाँधोगे तो खुल जाएगी और सामान बिखर जाएगा. अवधी रूपांतरण – चोर औ मोट को कस के बांधा चाही. मोट – चमड़े का बड़ा सा थैला जिसे कुँए से पानी निकालने के काम में लाते थे. मोट को ढीला बांधेंगे तो मोट कुँए में गिर सकता है. (देखिए परिशिष्ट)

चोर और चाँद का बैर.  चोर को चांदनी अच्छी नहीं लगती.

चोर और ढोर का नाहिं भरोसा. चोर और जानवर का विश्वास नहीं करना चाहिए (चोट पहुँचा सकते हैं).

चोर और ढोर दोनों हाजिर. चोर को चोरी के माल (चुराए हुए जानवर सहित) पकड़ना चाहिए.

चोर और सांप दबे पर चोट करते हैं. अर्थ तो स्पष्ट है, लेकिन जो सीख इस के द्वारा दी गई है वह याद रखने योग्य है. चोर व सांप को पकड़ते समय भी और पकड़ने के बाद सावधान रहना चाहिए.

चोर का क्या दीवाला. दीवाला निकलने का डर उसे होता है जो पूँजी लगा कर या उधार ले कर व्यापार करता है. चोर की कोई पूँजी थोड़े ही लगी है. यही बात दलाल के साथ भी होती है.

चोर का चावल टके सेर (चोरी का बाजरा टके धड़ी). चोरी का माल औने पौने दाम में बिकता है. धड़ी का अर्थ है पांच सेर. टका – दो पैसा. (देखिए परिशिष्ट)

चोर का माल चांडाल खाय. पुराने जमाने में चांडाल को सभी मनुष्यों में सब से निकृष्ट माना जाता था. कहावत में कहा गया है कि चोर से भी निकृष्ट आदमी चोर का माल खाएगा.

चोर का साथी गिरहकट (चोर का भाई गंठकटा) (चोर का गवाह गिरहकट). चोर की दोस्ती अपने जैसे लोगों से ही होती है. अलग अलग प्रकार के अपराधी एक दूरे का साथ देते हैं.

चोर की दाढ़ी में तिनका. जिसने चोरी की होती है उसके मन में चोर होता है. सन्दर्भ कथा – एक काजी का न्याय करने के मामले में दूर-दूर तक नाम था. एक बार उसके यहाँ एक अजीब मुकदमा आया. चोरी के शक में चार आदमियों को कचहरी में हाजिर किया गया था. गवाहों के बयान सुनने के बाद और सबूतों को देखने-समझने के बाद असली चोर का निर्णय नहीं हो पा रहा था. काजी ने ये सारे मुजरिमों को गौर से देखा. अचानक एक उपाय उसके दिमाग में एक विचार कौंध गया. उसने अँधेरे में एक तीर छोड़ा. मुजरिमों की ओर इशारा करते हुए वह जोर से बोला “चोर की दाड़ी में तिनका.” असली चोर ने सोचा कि कहीं मेरी दाढ़ी में तो तिनका नहीं है. यह सोचकर उसने दाढ़ी पर हाथ फेरा. दाढ़ी पर हाथ फेरते ही काजी ने कहा, चोर यही है, इसे गिरफ्तार कर लो और बाकी सबको छोड़ दो.

चोर की नज़र गठरी पर. चोर की नज़र उस माल पर ही रहती है जिसे वह चुरा सकता है.

चोर की नार जनम भर दुखिया. चोर की पत्नी हमेशा दुखी रहती है. क्योंकि पहली बात तो चोर रात रात भर बाहर रहता है और पकड़ा जाए तो उसे जेल या मृत्युदंड मिलता है.

चोर के घर चोरी करना चोरी नहीं कहलाता. अर्थ स्पष्ट है.

चोर के घर छिछोर. चोर के घर भी उठाईगीर घुस जाएँ तो यह एक आश्चर्य की ही बात है.

चोर के घर मोर. चोर के घर में कोई चोरी कर ले तो यह कहावत बोलते हैं. इस विषय में एक कथा है – एक बार एक चोर कहीं से सोने का हार चुराकर लाया तो उसे एक मोर ने निगल लिया. चोर छटपटाता ही रह गया.

चोर के पेट में गाय, आप ही आप रम्भाय. यहाँ चोर का अभिप्राय उस व्यक्ति से है जिसने चोरी से मांस खाया हो. उसे अपने पाप की सदैव ग्लानि रहती है.

चोर के पैर कितने. चोर बहुत डरपोक होता है.

चोर के हजार बुद्धि. चोर बनने के लिए बुद्धिमान होना जरूरी है. 

चोर को कहे घुसो और कुत्ते को कहे भूँसो (चोर के संग चोर, पहरेदार के साथ पहरेदार). ऐसे बहरूपिये नेताओं के लिए जो अपराधियों से सांठ गांठ करते हैं और पुलिस प्रशासन को उनसे निपटने के लिए निर्देश देते हैं.

चोर को न मारो, चोर की माँ को मारो. चोर को मारने से अधिक लाभ नहीं होगा, नए चोर पैदा हो जाएंगे. समाज से उन कारणों को दूर करना चाहिए जिन से लोग चोर बनते हैं.

चोर को पकड़ने के लिए चोर रखो. किसी चोर को पकड़ना हो तो किसी ऐसे आदमी को इस का जिम्मा दो जो चोरी करने के सारे दांवपेंच जानता हो. इंग्लिश में कहावत है – Set a thief to catch a thief.

चोर को पकड़िये गाँठ से, छिनाल को पकड़िये खाट से. चोरी सिद्ध करनी हो तो चोर को चोरी के माल के साथ पकड़ना चाहिए और किसी किसी दुश्चरित्र स्त्री को पकड़ना हो तो उसे पर पुरुष के साथ ही पकड़ना चाहिए.

चोर को सूंघे चोर (चोर को चोर की गंध आती है) अर्थात चोर चोर को पहचान लेता है.

चोर गठरी ले गया, बेगारियों को छुट्टी मिली. जमींदारी के जमाने में गरीब लोगों को पकड़ कर उनसे मुफ्त में काम कराया जाता था जिसे बेगार करना कहते थे. जिस काम के लिए लोग पकड़ कर लाए गए थे उस से सम्बन्धित सामान चोर ले गए तो उन लोगों को काम से छुट्टी मिल गई.

चोर चढ़े फांसी तो नौ को और फँसाए. चोर जब फंसता है अपने साथ अपने कई मददगारों को ले डूबता है.

चोर चाहे हीरे का हो या खीरे का, चोर चोर ही होता है (चोरी तो चोरी है हीरे की हो या खीरे की). अर्थ स्पष्ट है.

चोर चूके उठाईगीर चूके पर चुगल न चूके. चोर चोरी करने से चूक सकता है, उठाईगीर सामान उठाने से चूक सकता है पर चुगलखोर चुगली करने से नहीं चूकता.

चोर चोर मौसेरे भाई. चोर लोग एक दूसरे से सहानुभूति रखते हैं. चोरों में आपस में मिलीभगत होती है.

चोर चोरी कर गया, मूसलों ढोल बजाय गया. जब कोई आदमी खुले आम चोरी कर ले जाता है तो कहते हैं कि चोर चुपके से नहीं बल्कि मूसल से ढोल बजा-बजाकर सब ले गया.

चोर चोरी से जाय, हेरा फेरी से न जाय. चोर सजा के डर से या समझाने से चोरी करना तो छोड़ सकता है लेकिन उसकी हेराफेरी करने की आदत नहीं जा सकती इस कहावत के द्वारा यह सीख भी दी गई है कि कोई चोर कितना भी कहे कि उसने चोरी छोड़ दी है उसका विश्वास नहीं करना चाहिए.  सन्दर्भ कथा – एक चोर अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए साधु हो गया. पर उसकी पुरानी आदत ने उसका पीछा नहीं छोड़ा. रात में अपने सब साथियों के सो जाने पर चोरी करने की प्रबल इच्छा उसके मन में जाग्रत हो उठती. तब वह अपने एक साथी के सिर के नीचे की गठरी निकालकर दूसरे के सिर के नीचे और दूसरे की पहले के नीचे रख देता. एक दिन किसी ने उसे ऐसा करते पकड़ लिया. जब उस से ऐसा करने का कारण पूछा गया तो उस ने उक्त कहावत कही.

चोर जाने चोर की सार (चोर को चोर ही पहचाने). चोर को चोर ही सबसे जल्दी पहचान सकता है. चोर के भेद चोर ही जान सकता है.

चोर जुआरी गंठकटा, जार अरु नारि छिनार; सौ सौगंधें खायं जो, घाघ न कर एतबार. चोर, जुआरी, जेबकतरा, परस्त्रीगामी पुरुष (जार) और दुश्चरित्र स्त्री, ये अगर सौ कसमें खाएं तब भी इनका विश्वास नहीं करना चाहिए.

चोर न जाने मंगनी के वासन. चोर को चोरी से मतलब है, जिन बरतनों को वह चुरा रहा है वे मँगनई के हैं इससे उसे क्या मतलब.

चोर न प्यारी चाँदनी, माँगे कारी रात (चोरहिं चांदनी रात न भावे). चोरों को चांदनी अच्छी नहीं लगती. गलत काम करने वाले लोग ईमानदार को नहीं भ्रष्टाचारी शासक को पसंद करते हैं, जिससे उन्हें काम में आसानी हो.

चोर नारि जिमि प्रकट न रोई. चोर के पकड़े जाने पर या उसे सजा मिलने पर उसकी पत्नी सबके सामने रो भी नहीं सकती, छिप के रोती है. चोर से सहानुभूति रखने वाला खुल कर उसका समर्थन नहीं कर सकता.

चोर पेटी ले गया तो क्या हुआ, चाबी तो मेरे पास है. अपनी मूर्खतापूर्ण सोच से नुकसान न होने के प्रति आश्वस्त रहने वाले लोगों के लिए.

चोर बन्दीखाने, तलवार सिरहाने. चोर को बंदी बनाया हुआ है तो भी तलवार को सरहाने रख कर सतर्क रहो, चोर भागने की कोशिश में हमला कर सकता है.

चोर भी सुने धरम की कथा. कोई भ्रष्ट आदमी धर्मात्मा बनने का ढोंग कर रहा हो तो.

चोर में सात राजाओं की बुद्धि. सफल चोर के अंदर राजा से बहुत अधिक बुद्धि होती है.

चोर रे चोर तोहरे हाथी न तोहरे घोड़. 1.चोरी कर के कोई बहुत बड़ा आदमी नहीं बन सकता. 2. चोर कितना भी धन इकठ्ठा कर ले उस का प्रदर्शन नहीं कर सकता.

चोर लाठी दो जने और हम बाप पूत अकेले. कोई दो बाप बेटे चोर को देख कर वहाँ से भाग खड़े हुए. अब गाँव के लोगों को बता रहे हैं कि कितनी कठिन परिस्थिति थी – चोर के पास लाठी थी यानि वो दो जने थे और हम बाप बेटा अकेले थे. जब कोई व्यक्ति अपनी असफलता छिपाने के लिए परिस्थितियों को कठिन बता रहा हो.

चोर वही जो पकड़ा जाय. चोरी तो बहुत लोग करते हैं, जो पकड़ा जाए वही चोर कहलाता है. 

चोर सब घर ले मरे. चोर अंत में खुद तो फंसता ही है सारे घर वालों को फंसा देता है.

चोर सब जग में चोरी करे पर घर में सच बोले. चोर सब जगह चोरी करता है पर अपने घर में सच बोलता है. भ्रष्टाचारी लोग कितने भी भ्रष्ट हों, अपने घर वालों के प्रति ईमानदार होते हैं. 

चोर सबनि चोरै करि जाने, ज्ञानी मन सब ज्ञानी. चोर सबको चोर समझता है और ज्ञानी सब को ज्ञानी.

चोर सिपाई, भाई भाई. बहुत से अपराधों में अपराधियों और पुलिस की मिलीभगत होती है.

चोर से कही चोरी करियो, शाह से कही जागते रहियो. अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए सबसे अलग अलग तरह की बात करना. इंग्लिश में कहावत है – To run with the hare and hunt with the hound.

चोर ही जाने चोर की घात. चोर की चालाकी चोर ही समझ सकता है.

चोरी ऊपर से सीना जोरी (चोरी और मुंहजोरी). एक तो गलत काम करना और ऊपर से उसको सही ठहराने के लिए बहस करना.

चोरी करनी आसान, माल पचाना मुश्किल. चोरी के माल को ठिकाने लगाने में बहुत मुश्किलें आती हैं.

चोरी करी निहाई की, किया सुई का दान, ऊँचे चढ़ि चढ़ि देखता, केतिक दूरि विमान. आजकल के धनाढ्यों और महात्माओं के लिए यह कहावत है. समाज के लोगों को लूट कर धन इकट्ठा किया और उसमें से जरा सा दान कर दिया. अब ऊंचे चढ़ कर देख रहे हैं कि स्वर्ग से विमान आता होगा. निहाई – लोहे की बड़ी सिल.

चोरी का धन मोरी में जाता है (चोरी की कमाई, मोरी में गँवाई). मोरी – नाली. चोरी का धन व्यर्थ ही जाता है.

चोरी का माल सब कोई खाए, चोर की जान अकारथ जाए. चोरी के माल में से बहुत लोग खाते हैं (चोर के घर वाले, पुलिस वाले, चोरी का माल खरीदने वाले आदि), पर पकड़े जाने पर सजा अकेले चोर को मिलती है.

चोरी का माल, कुछ धर्म खाते बाकी हलाल. हलाल माने जो धर्म सम्मत हो. समाज में ढोंगी लोग चोरी के माल में से कुछ तथाकथित धार्मिक कार्यों में खर्च कर देते हैं और बाकी से अपनी तिजोरी भर लेते हैं.

चोरी के बाद चौकसी (चोरी पीछे हुशियारी). चोरी के बाद पहरेदारी करने से क्या फायदा.

चोरी तो चोरी है हीरे की हो या खीरे की. छोटी चोरी भी महत्वपूर्ण होती है लेकिन इतनी नहीं कि चोर को फांसी चढ़ा दो. सन्दर्भ कथा – एक राजा के दरबार में एक चोर को पकड़ कर लाया गया. राजा ने उसे सूली पर चढ़ाने का हुक्म दिया. चोर ने अनुनय भरे स्वर में कहा, महाराज मुझसे एक बहुत छोटी सी भूल हुई है कृपा करके इसके लिए मुझे इतनी बड़ी सजा न दें. राजा ने कड़क कर कहा, चोरी तो चोरी है हीरे की हो या खीरे की, उसके लिए सजा एक ही है. चोर ने कहा, ठीक है महाराज, आप मुझे अवश्य सूली पर चढ़ा दें, पर मरने से पहले मैं एक राज बताना चाहता हूँ मुझे एक विद्या आती है जिसके द्वारा सोने की खेती की जा सकती है. चोर की बात सुनकर महामंत्री गुस्से से बोले, महाराज यह झूठ बोल रहा है. अगर इसको सोने की खेती करना आती होती तो यह चोरियां क्यों करता. चोर बोला, अन्नदाता मैं गरीब आदमी, मेरे पास कोई जमीन नहीं, न ही इतने पैसे कि मैं सोने के बीज खरीद सकूं, और जब खेत में सोना उगे तो उसकी रखवाली कर सकूँ. राजा बोले, ठीक है तुम्हें एक मौका देते हैं, चोर को सख्त पहरे में एक कारागार में रखा गया और उससे सोने की खेती का प्रबंध करने को कहा गया. निश्चित दिन राजपुरोहित एवं विशिष्ट व्यक्ति बुलाए गए और तैयारी शुरू हुई. सबके आ जाने के बाद चोर बोला, महाराज मैं एक बात तो बताना भूल ही गया. बुवाई की एक शर्त है. बुवाई केवल वही कर सकता है जिसने अपने जीवन में कभी कोई छोटी सी चोरी भी न की हो. पहले मंत्र बोले जाएंगे, उसके बाद बुवाई करने वाले को ईश्वर की सौगंध खाकर यह कहना होगा कि उसने बचपन से लेकर अभी तक कोई छोटी से छोटी चोरी भी नहीं की है. मंत्र बोलने के बाद यदि कोई झूठी सौगंध खाएगा तो तुरंत उसकी मृत्यु हो जाएगी. महाराज मेरी प्रार्थना है कि आप से अधिक उपयुक्त इस कार्य के लिए कौन होगा.

यह बात सुनकर राजा पशोपेश में पड़ गए. अपने दिमाग पर काफी जोर देकर बोले, मैंने बचपन में अपने पिता महाराज के शाही पानदान से एक पान चुराकर खाया था. चोर महामंत्री की ओर मुड़ा और बोला – महामंत्री जी आप? मंत्री बोले, मैंने भी बचपन में अपने पिताजी की जेब में से एक पैसे का सिक्का चुराया था. अब चोर ने राजपुरोहित की ओर मुड़ कर उनसे कहा, आप तो स्वयं धर्म की मूर्ति हैं. आप ही यह कार्य करें. उसकी बात सुनकर राजपुरोहित पसीना पसीना हो गए और बोले कि मैंने भी बचपन में एक बार अपनी माता जी के प्रसाद के लड्डुओं में से एक लड्डू चुरा कर खाया था. चोर ने फिर सभी विशिष्ट जनों की ओर मुड़ कर कहा कि आप सब महानुभावों में से कोई तो ऐसा होगा जिसने बचपन से लेकर अभी तक कोई चोरी न की हो. आप में से कोई आगे आइए. सभी बगले झांकने लगे. तब चोर ने राजा से कहा, महाराज जब सभी लोगों ने कभी न कभी कोई छोटी मोटी चोरी की है तो सजा अकेले मुझको ही क्यों मिल रही है. उसकी यह बात सुनकर राजा लज्जा से पानी पानी हो गया. उसने छोटी चोरी पर मृत्युदंड देने का कानून समाप्त कर दिया. उसके बाद चोर को कुछ धन देकर मुक्त कर दिया और कहा कि वह चोरी करना छोड़ कर अपना कोई व्यापार करे.

चोरी न करी पर सीढ़ी तो पकड़ी. चोरी में सहायता करना भी अपराध की श्रेणी में आता है.

चोरी सा रुजगार नहीं जो मार न होवे, जुए सा व्यापार नहीं जो हार न होवे. अगर मार खाने का डर न हो तो चोरी जैसा कोई और रोजगार नहीं है और हारने का डर न हो तो जुए जैसा कोई व्यापार नहीं है.

चोरों की बरात में अपनी अपनी होशियारी. जहाँ सभी चोर हों वहाँ एक दूसरे से होशियार रहना पड़ता है.

चोरों के ब्याह में गिरहकट मेहमान. जैसा दूल्हा होगा वैसे ही बराती होंगे.

चोरों के रखवाले चोर. चोरों का साथ देने वाले भी चोर की श्रेणी में आते हैं.

चोरों के हवाले रखवाली. 1. रखवाली का काम चोर के हवाले कर दोगे तो चोरी होगी ही. 2. इस से उलट दूसरा अर्थ यह है कि जिस से चोरी का डर हो उससे ही रखवाली को कह दो तो चोरी नहीं होगी.

चोरों को सारे नजर आते हैं चोर. जो खुद चोर होते हैं वे सब को चोर समझते हैं.

चोरों में भी इमानदारी होती है. चोर भी अपने धंधे के प्रति ईमानदार होते हैं. इंग्लिश में कहावत है – There is honour among thieves.

चौक में जूता, गली में सलाम. भरी सभा में बेज्जती करना और अकेले में प्रेम दिखाना.

चौपड़ मीठी हार. जुआरी हारने पर भी क्रोध में चौपड़ खेलना नहीं छोड़ता बल्कि बराबर खेलता रहता है.

चौबे जी छब्बे बनने गए थे दुबे बन कर लौटे. जैसे थे उससे बड़ा बनने गए थे पर छोटे हो के लौटे. फायदे के लालच में नुकसान उठाना.

चौबे मरें तो बंदर हों, बंदर मरें तो चौबे हों. चौबे लोगों से चिढ़ने वाले किसी व्यक्ति का कथन.

चौमासे का गोबर, लीपने का न थापने का. (बिल्ली का गू, लीपने का न पोतने का). बरसात के मौसम में गाय भैंस कहीं गोबर करती हैं तो वह पानी के कारण फ़ैल जाता है और किसी काम का नहीं रहता. जो चीज़ किसी काम की न हो या व्यक्ति किसी काम का न हो उस के प्रति उपेक्षा पूर्ण कथन.

चौमासे का ज्वर और राजा का कर. इन दोनों से मुश्किल से निजात मिलती है.

चौमासे में लोमड़ी जो नहिं खोदे गेह, निस्चय करके जान लो नहिं बरसेगो मेह. चौमास आने पर यदि लोमड़ी खोद कर अपना घर नहीं बनाती तो समझ लो वर्षा नहीं होगी.

चौराहे पर बैठे लड़कों और सड़क पर बैठे कुत्तों को कभी न छेड़ें. अर्थ स्पष्ट है, बहुत व्यवहारिक बात है. कहावतों की उपमाएं भी कमाल की होती हैं.

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