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फकत ताबीज़ से काम नहीं चलता, कुछ कमर में भी बूता चाहिए. सन्तान मांगने (या और किसी काम) के लिए पीरों फकीरों के यहाँ चक्कर लगाने वालों के लिए कथन.
फकीर अपनी कमली में मस्त. जो सही माने में फकीर होते हैं उन्हें धन व ऐश्वर्य की परवाह नहीं होती.
फकीर की जुबान किसने कीली है. कीलना – किसी चीज़ को कील ठोंक कर स्थिर कर देना. फकीर की जबान को कोई नहीं रोक सकता क्योंकि उसे किसी का डर नहीं होता.
फकीर की झोली में सब कुछ. सच्चे फकीर की दुआ में बहुत ताकत होती है, वह सब कुछ दे सकता है.
फकीर की सूरत ही सवाल है. जरूरत मंद कुछ न भी मांगे तो भी उसकी सूरत देख कर ही अंदाजा हो जाता है कि वह जरूरत मंद है.
फकीर, कर्ज़दार और लड़के तीनों नाहीं समझें. फकीर कर्ज़दार और बच्चे समय असमय नहीं देखते, कभी भी कुछ भी मांग बैठते हैं.
फटक चंद गिरधारी, न लोटा न थारी. ऐसे व्यक्ति के लिए जिसके पास कुछ भी न हो.
फटी जेब में पैसा डालना बेकार. जो व्यक्ति धन को संभालना और ठीक से खर्च करना न जानता हो उसको धन देना बेकार है (दान देना भी और उधार देना भी). फटी जेब में कुछ भी डालोगे तो निकल जाएगा.
फटे कपड़े को पैबंद लग सकता है फूटे भाग्य को नहीं. किसी का भाग्य ही फूटा हो तो वह लाख प्रयास कर के भी आप उस की कोई सहायता नहीं कर सकते.
फटे को सियो और रूठे को मनाओ. जितना आवश्यक फटे हुए कपड़े को सिलना है उतना ही आवश्यक है रूठे हुए मित्र और सम्बन्धियों को मनाना (अपने अहं को अलग रख कर).
फटे पजामें में गोटे का नाड़ा. बेमेल काम.
फटे में पाँव, दफ्तर में नाँव. दूसरे के फटे में टांग अड़ाने वाला अपने को झंझट में डाल लेता है (दफ्तरों और कचहरी के चक्कर लगाने पड़ते हैं).
फटे से न लाजे, मैले से लाजे. कपड़े फटे होना किसी की मजबूरी हो सकती है, उसमें शर्म कैसी. कपड़ा गन्दा हो तो लज्जा आनी चाहिए.
फतह और शिकस्त, खुदा के हाथ. हार जीत ईश्वर के हाथ में है (हमें केवल प्रयास करना चाहिए).
फन फन मणि नहिं होत. हर सांप के फन में मणि नहीं होती. हर व्यक्ति योग्य नहीं होता.
फल बिचारि कारज करो करहु न व्यर्थ अमेल, तिल ज्यों बारहुँ पेरिए नाही निकसे तेल. कोई कार्य करने से क्या लाभ हो सकता है यह पहले सोच कर ही कार्य करना चाहिए. तिल को बार बार पेरने से तेल नहीं निकलता.
फल लगने पर पेड़ झुक जाता है. जिस प्रकार फल लगने के बाद पेड़ झुक जाता है उसी प्रकार संतान होने के बाद अहंकारी व्यक्ति भी विनम्र हो जाता है.
फलाने की मां ने खसम किया बड़ा बुरा किया, कर के छोड़ दिया और बुरा किया. खसम किया अर्थात किसी को अपना पति बना लिया (विवाह कर लिया). किसी विधवा ने (जिसके एकाध बच्चा भी है) किसी पुरुष से विवाह कर लिया यह पुराने जमाने के हिसाब से बुरी बात हुई. लेकिन विवाह कर के फिर छोड़ दिया यह और भी बुरी बात हुई. समाज इस बात की अनुमति नहीं देता कि विवाह को हंसी खेल समझ लिया जाए.
फलेगा सो झड़ेगा. जिस पेड़ में फल आयेंगे उस पर अंततः पतझड़ भी आएगी, यह कालचक्र है.
फांदिये न कुआं, खेलिए न जुआ. कोई आदमी कितनी भी लंबी छलांग क्यों न लगा लेता हो, कुआँ फांदने की कोशिश कभी नहीं करनी करने चाहिए. जरा सा धोखा होते ही कुएं में गिरने का डर है. इसी प्रकार जुआ भी कभी नहीं खेलना चाहिए, जीवन भर की कमाई लुट सकती है.
फाग की फाग खेल लई और अंग बचा लए. होली भी खेल ली और किसी छिछोरे को अपने अंग भी नहीं छूने दिए. बिना बदनाम हुए दुनिया का आनंद उठा लिया. फाग – होली (फागुन में होती है इसलिए).
फाग के कुटे और दिवाली के लुटे को कोऊ नई पूछत. होली के हुल्लड़ में यदि कोई पिट जाय और दिवाली में जुए में हार जाय तो कोई उसका बुरा नहीं मानता.
फाग खेले और अंग बचाए. जो व्यक्ति चाहता हो कि होली भी खेले और रंग भी न लगे. 1.झगड़े में पड़ना भी चाहते हैं और अपने को अलग भी रखना चाहते हैं. 2.संसार का आनंद भी लेना चाहते हैं और सांसारिकता में पड़ना भी नहीं चाहते, ये दोनों बातें कैसे संभव हैं.
फागुन का मेह बुरो, बैरी का नेह बुरो. फागुन के महीने की वारिश नुकसानदायक होती है (क्योंकि फसल पक कर खड़ी होती है या कट कर खेत में पड़ी होती है). इसी प्रकार शत्रु का प्रेम बुरा होता है. शत्रु अगर आप से प्रेम दर्शा रहा हो तो सतर्क रहना चाहिए. बुन्देलखंड में पूरी कहावत इस प्रकार बोली जाती है – फागुन का मेह बुरो, बैरी का नेह बुरो, साला घर बीच बुरो, बिगड़ा भानेज बुरो (घर में साला बुरा और नाराज भांजा बुरा).
फागुन मर्द, ब्याह लुगाई. होली के त्यौहार पर पुरुष लोग हंसी ठिठोली में महिलाओं को रंग लगाते हैं और शादी ब्याह में स्त्रियां हल्दी की रस्म में पुरुषों की पीठ पर हल्दी रेंज हाथ से धप्पी लगाती हैं.
फागुन में ससुरा देवर लागे. जब होली होती है तो माहौल में ऐसी मस्ती छाती है कि ससुर भी देवर लगते हैं.
फाटक टूटा, गढ़ लूटा. अर्थ स्पष्ट है. किला तभी तक सुरक्षित है जब तक फाटक न टूटे.
फाटे पीछे न मिलें (जुड़ें), मन मानिक औ दूध. मन, माणिक और दूध फट जाएँ तो फिर नहीं मिलते. कहावत में यह सीख दी गई है कि छोटी छोटी बातों पर मनमुटाव नहीं करना चाहिए. आपसी संबंधों को सहेजना चाहिए.
फ़ारस गए फ़ारसी पढ़ आए बोले वहीँ की बानी, आब आब कह पुतुआ मर गए खटिया तरे धरो रहो पानी. विदेशी भाषा बोलने में अपनी शान समझने वालों का मजाक उड़ाने के लिए. सन्दर्भ कथा – मुगलों के जमाने में पढ़े लिखे लोग फ़ारसी पढ़ा करते थे (फ़ारसी एक प्रकार की उच्च शिक्षा थी, जैसे आजकल इंग्लिश है). फ़ारसी में पानी को आब कहते हैं. फ़ारसी का ज्ञान बघारने वाले लोगों का मजाक उड़ाने के लिए यह कहावत कही गई है कि प्यास लगने पर वह आब आब चिल्लाते रहे, कोई समझा ही नहीं कि वह पानी मांग रहे हैं. वह बेचारे प्यास से मर गए जब कि खाट के नीचे पानी रखा था. आजकल इंग्लिश बोलने में अपनी शान समझने वालों पर यह कहावत लागू की जा सकती है.
फालूदा खाते दांत टूटे. किसी बहुत नाजुक आदमी का मजाक उड़ाने के लिए.
फावड़ा न कुदार, बड़ा खेत हमार. मिथ्या अभिमान. फावड़ा और कुदाली न होते हुए भी बड़ा खेत होने का दावा.
फ़िक्र बुरी फ़ाका भला, फ़िक्र फकीरै खाय. फाका – उपवास. चिंता करने के मुकाबले भूखा रहना कम नुकसानदायक है. चिंता तो फ़क़ीर को भी खा लेती है.
फ़िक्र से हाथी भी घुल जाता है. चिंता से हाथी भी दुबला हो जाता है.
फिजूलखर्ची से फकीरी. जो आज फिजूलखर्ची कर रहा है वह कल फकीर बनने पर मजबूर हो जाएगा.
फिसल पड़े तो हर गंगा. जिस काम से आप बचना चाहते हैं अगर मजबूरी में वह काम करना पड़ जाए तो यह दिखावा करना चाहिए कि आप प्रसन्नता से वह काम कर रहे हैं. कोई सज्जन नदी में नहाने से बचना चाह रहे थे, इसलिए लोगों की निगाह बचा कर किनारे खड़े थे. पर अचानक पैर फिसलने से नदी में गिर पड़े तो जोर जोर से हर हर गंगे चिल्लाने लगे जैसे नहाने में बड़ा आनंद आ रहा हो.
फुरसत घड़ी की नहीं, कमाई कौड़ी की नहीं (धेले भर का काम नहीं, घड़ी भर की फुरसत नहीं). ऐसे लोगों का मजाक उड़ाने के लिए जो कोई ठोस कार्य नहीं करते और अपने को बहुत व्यस्त दिखाते हैं.
फूँक मार कर धूल उड़ाएँ, हम ऐसे बलवान. कायर लोगों का मजाक उड़ाने के लिए.
फूंक देय तौ उड़ि जांय. किसी दुर्बल व्यक्ति का मजाक उड़ाने के लिए.
फूंकने से पहाड़ नहीं उड़ते. बेबकूफी के प्रयासों से बहुत बड़े काम नहीं किये जा सकते.
फूंके के न फांके के, टांग उठा के तापे के. अलाव जलाने में कोई सहयोग नहीं कर रहे हैं बस टांग उठा के ताप रहे हैं. कोई सामाजिक सरोकार न रख कर केवल अपना स्वार्थ सिद्ध करने वालों के लिए.
फूटा घड़ा आवाज से पहचाना जाता है (जर्जर घड़े की आवाज भी जर्जर). फूटे घड़े में दरार दिखाई न भी दे तो ठोंक कर देखने पर उसकी आवाज से मालूम हो जाता है. इसी प्रकार चरित्रहीन मनुष्य के व्यवहार में उसकी असलियत झलक जाती है.
फूटा भाग फ़क़ीर का भरी चिलम गिर जाए. भाग्य साथ न दे तो बना बनाया काम बिगड़ जाता है. फकीर के लिए भरी हुई चिलम का गिर जाना भी बहुत बड़ा दुर्भाग्य है.
फूटी तो सहें, अंजन न सहें. आँख फूट जाय वह स्वीकार, परन्तु काजल डालने का कष्ट सहना स्वीकार नहीं.
तुलसीदास ने कहा है – लोकरीत फूटी सहै, अंजन सहैं न कोइ, तुलसी जो अंजन सहै, सो अंधो न होइ.
फूटी देगची और कलई की भड़क. देगची – एक प्रकार का पतीला. पतीला तो फूटा हुआ है पर उस पर कलई कर के चमकाया गया है. बेकार की चीज की बनावटी दिखावट.
फूटे घड़े में पानी नहीं टिकता. जिस के भाग्य फूटे हों या बुद्धि भ्रष्ट हो उस के पास धन नहीं टिक सकता.
फूटे लड्डू में सबका हिस्सा. लड्डू जब तक बंधा हुआ होता है तब तक एक ही आदमी के हिस्से में आता है, पर अगर फूट जाए तो लूट मच जाती है. एकता में ही शक्ति है.
फूटे से बहि जातु है ढोल, गँवार, अंगार, फूटे से बनि जातु है, फूट, कपास, अनार. ढोल फूट जाए तो बेकार, अंगारा फूट जाए तो राख, और मूर्ख व्यक्ति के मुँह से बोल फूटे तो बेकार (उस की असलियत प्रकट हो जाती है), जबकि फूट नाम का फल, कपास और अनार फूट कर ही उपयोगी बनते हैं.
फूफा रूठेगा तो बुआ को रखेगा. फूफा रूठेंगे तो हद से हद क्या करेंगे, बुआ को नहीं आने देंगे. फूफाओं के नखरों से तंग किसी व्यक्ति का कथन.
फूफी नाते लेना, भतीजे नाते देना. एक रिश्ते से लेना और दूसरे रिश्ते से देना.
फूल आये हैं तो फल भी लगेंगे. कहावत ऐसे परिप्रेक्ष्य में कही जाती है कि यदि देश, समाज या किसी व्यक्ति में कोई सकारात्मक बदलाव हुआ है तो उसके अच्छे परिणाम अवश्य आएंगे.
फूल की डाल नीचे को झुकती है. परिपक्वता आने पर व्यक्ति विनम्र हो जाता है.
फूल की बैरन धूप, घी का बैरी कूप. फूल धूप में कुम्हला जाता है और घी कुप्पे में रखा रखा सड़ जाता है. घी को अधिक दिन कुप्पे में नहीं रखना चाहिए, खा पी कर खत्म करो या बाँट दो.
फूल झड़े तो फल लगे. कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है. फूल झड़ने के बाद ही फल लगता है.
फूल न पाती, देवी हा हा. जिस देवी की पूजा ही न होती हो वह देवी कैसी.
फूल नहीं पंखुड़ी ही सही. बहुत न सही, थोड़ा ही सही.
फूल फूल करके चंगेर भरती है. चंगेर – बांस की डलिया. एक एक फूल इकट्ठा कर के ही डलिया भरती है. थोड़ा थोड़ा करके ही अधिक इकट्ठा हो सकता है.
फूल से फांस लगे और दिए से लू. नज़ाकत की पराकाष्ठा.
फूल सोई जो महेसहिं चढ़े. फूल वही सार्थक है जो शिवजी पर चढ़े.
फूलहिं फलहिं न बेंत, जदपि सुधा बरसहिं जलद, मूरख हृदय न चेत, जो गुरु मिलहिं बिरंचि सम. सुधा – अमृत, जलद – बादल, बिरंचि – ब्रह्मा. बादल कितना भी अमृत बरसाएं, बेंत फलता नहीं है. इसी प्रकार गुरु के रूप में ब्रह्मा भी मिल जाएं तब भी मूर्ख व्यक्ति ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता.
फूले न फले, पत्तों से ढके. पत्तों से ढका है पर फल फूल कुछ नहीं लगते. बातें बनाने वाले अकर्मण्य लोगों पर व्यंग्य जो न कुछ कमाते हैं और न किसी के काम आते हैं.
फूले फूले फिरत हैं आज हमारो ब्याव, तुलसी गाय बजाय के देत काठ में पाँव. विवाह के समय व्यक्ति बहुत प्रसन्न होता है, वह यह नहीं जानता कि इस तरह गा बजा के वह पिंजरे में फंसने जा रहा है.
फूहड़ करे सिंगार, मांग ईंटों से फोड़े. फूहड़ स्त्री कुछ भी कर सकती है, माँग में सिंदूर लगाने के लिए ईंट से सर भी फोड़ सकती है.
फूहड़ का माल, सराह सराह खाइए. मूर्ख व्यक्ति की तारीफ़ करते जाइए और उस का माल खाते जाइए. इस कहावत को इस प्रकार भी बोलते हैं. मूरख का माल खुशामद से खाइए. देखिए सन्दर्भ कथा 165.
फूहड़ का मैल फागुन में उतरे. जो लोग जाड़े के मौसम में बहुत कम नहाते हैं उन पर व्यंग्य.
फूहड़ के घर उगी चमेली, गोबर मांड़ उसी पर गेरी. फूहड़ व्यक्ति किसी गुणवान चीज़ की कद्र नहीं जानता. उस के घर चमेली का पेड़ उग आया तो उसने उसी पर गोबर और मांड गिरा दिया.
फूहड़ के तीन काम हगे, समेटे और गेरन जाए. (हरयाणवी कहावत) फूहड़ व्यक्ति की परिभाषा थोड़े हास्य पूर्ण ढंग से बताई गई है. पहले काम बिगाड़ता है और फिर समेटता है.
फूहड़ चली रसोइया तो कुसल करे गोसइयाँ. फूहड़ स्त्री खाना बनाने रसोई में चली तो भगवान ही मालिक है.
फूहड़ चलीं देवता मनावै, देवता लोट लोट जायँ. 1.फूहड़ स्त्री देवता पूजने चलीं तो उनकी फूहड़ता देख कर देवता भी हँस कर लोट पोट हो रहे हैं. 2. फूहड़ पूजा करने चलीं तो उन्होंने देवता को ही लुढ़का दिया.
फूहड़ चले, नौ घर हिले. कहावत को मजेदार बनाने के लिए अतिशयोक्ति द्वारा हास्य उत्पन्न किया गया है. फूहड़ आदमी इतने फूहड़ पने से चलता है कि नौ घर हिलते हैं.
फूहर पोते चूल्हा, औ मटकावे कूल्हा. फूहड़ स्त्री कोई भी काम फूहड़पन से ही करती है.
फेरन पे हगास लगी. हगास – शौच जाने की इच्छा. यदि किसी दुल्हन को फेरों के दौरान शौच जाने की इच्छा हो तो कितनी बड़ी परेशानी खड़ी हो जाएगी. किसी अति आवश्यक कार्य के बीच व्यर्थ की परेशानी खड़ी हो जाना.
फेरफार चुटिया पे हाथ. घुमा-फिरा कर फिर वही बात.
फ़ोकट का चन्दन, घिस मेरे नंदन. कोई कीमती चीज़ मुफ्त में मिल जाए तो आदमी उस की कद्र नहीं करता.
फोकट का मिले तो हमको भी लाइयो. मुफ्त में मिल रहा हो तो हमारे लिए भी ले आना.
फोकट के कारन चोकट पिट गए. 1. किसी की गलती थी, पिट गया कोई दूसरा. 2. मुफ्त का माल खाने के चक्कर में कोई मार खाए तो.
फ़ौज की अगाड़ी, आंधी की पिछाड़ी, जे न संभारे ते अनाड़ी. फ़ौज जब हमला करती है तो उस के सामने पड़ना खतरनाक है और आंधी आती हो तो उस के पीछे या आसपास रहना खतरनाक है.