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बकरी खाए न खाए पर मुँह तो जरूर मारे

बकरी की एक ख़ास आदत होती है कि उस का पेट कितना भी भरा हुआ हो, यदि उसके सामने पत्ते लाए जाएं तो वह उन में मुँह जरूर मारती है (भले ही खाए न). अकबर के दरबार में एक बार इस को ले कर बहस हो रही थी. सभी दरबारी कह रहे थे कि बकरी की इस आदत को कोई नहीं बदल सकता. बादशाह ने बीरबल को चुनौती दी कि बीरबल भी ऐसी कोई बकरी ढूँढ़ कर नहीं ला सकते जो पत्तों में मुँह न मारे. बीरबल ने इस काम के लिए एक सप्ताह का समय माँगा.

एक सप्ताह बाद बीरबल दरबार में एक बकरी ले कर आए. बकरी के सामने पत्ते लाए गये. सारे दरबारी मन ही मन खुश हो रहे थे कि आज बीरबल की भद्द जरूर पिटेगी. यह मुमकिन ही नहीं था कि बकरी पत्तों में मुँह न मारे. लेकिन यह क्या? घोर आश्चर्य. बकरी ने मुँह एक तरफ मोड़ लिया. हमेशा की तरह बीरबल शर्त जीत गये थे.

बादशाह ने कहा – बीरबल शर्त तो तुम जीत गए, पर यह बताओ कि यह हुआ कैसे? बीरबल बोले हुजूर! इस के लिए मैं ने संटी उपचार किया. बादशाह बोले वह क्या. बीरबल ने कहा कि मैं बकरी के सामने एक लम्बी सी संटी ले कर बैठ गया. बकरी को पहले भरपेट घास खिलाई. फिर उस के सामने पत्ते रखे, जैसे ही बकरी ने पत्तों में मुँह मारा, एक संटी सूत के उस के मुँह पर मारी. यह प्रक्रिया दिन में कई बार दुहराई गई. धीरे धीरे बकरी को समझ आ गया कि वह घास चाहे जितनी खा ले, उसे पत्ते बिलकुल नहीं खाने हैं.

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