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भय बिनु होहिं न प्रीत
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- भगवान् राम को जब लंका पहुँचने के लिए समुद्र को पार करना था तो उन्होंने तीन दिन तक समुद्र से मार्ग देने के लिए प्रार्थना की. जब समुद्र पर इसका कोई असर नहीं हुआ तो राम ने कुपित हो कर समुद्र को अग्नि वाण से सुखाने के लिए धनुष उठाया. इस पर समुद्र हाथ जोड़ता हुआ उनकी शरण में आया. इस पर य[ह कहावत बनी कि ओछे लोग बिना भय दिखाए प्रेम नहीं करते. तुलसीदास जी ने राम चरित मानस में इस प्रकरण को इस प्रकार कहा है – विनय न मानत जलधि जड़ गए तीनु दिन बीत, बोले राम सकोप तब भय बिनु होहि न प्रीत.