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तीन में न तेरा में मृदंग बजावें डेरा में

ऐसा व्यक्ति जो किसी गिनती में न हो. कहावत का प्रयोग ऐसे अवसर पर होता है जब किसी आदमी की कोई कदर न हो, परन्तु फिर भी बिना पूछे वह बीच में अपनी राय देने के लिए आ जाये. एक बार बानपुर के महाराज मर्दनसिंह ने यज्ञ किया. ठाकुरों में बुन्देला, पँवार और धंधेरे ये तीन कुरी वाले श्रेष्ठ माने जाते हैं. इनके अतिरिक्त तेरह कुरी के ठाकुर और होते हैं. उक्त यज्ञ में इन तीन और तेरह कुरी के ठाकुरों को छोड़ कर एक ऐसे सज्जन पधारे जो इन सबसे बाहर थे और एक साधारण कुरी के समझे जाते थे. यज्ञ के भोज में यह समस्या उपस्थित हुई कि अन्य बड़ी कुरी के ठाकुरों के साथ उनको कहाँ और किस प्रकार बिठाया जाय. बहुत सोच-विचार के पश्चात अंत में निश्चय यह हुआ कि उनको डेरे पर ही रखा जाय और वहीं उनके लिए भोजन आदि की व्यवस्था कर दी जाय. तभी से कहावत चल पड़ी कि ‘तीन में न तेरह में, मृदंग बजावें डेरा में.’

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