सफर में अकेले दुकेले जाने वालों का भगवान ही मालिक है. फरीदा नाम की एक बुढ़िया जंगल से होकर जाने वाली एक सड़क के किनारे अपने बदमाश लड़कों के साथ झोपड़ी डाल कर रहती थी. उस के लड़के दिन के समय पास के एक नाले के पीछे छिपे रहते थे. जब उस सड़क से कोई इक्का दुक्का मुसाफिर निकलते थे तो वह जोर से बोलती – इक्के दुक्के का अल्ला बेली. उसके डकैत बेटे समझ लेते कि कोई अकेला-दुकेला मुसाफिर है. वे नाले से निकलकर उसे लूट लेते थे. जब यात्री समूह में होते तो बुढ़िया पुकारती – जमात में करामात है. डकैत समझ जाते कि बहुत सारे हैं और छिपे रहते. इसी तरह बहुत दिनों तक चलता रहा. आखिर एक दिन उसके सब डाकू बेटे पकड़े गए और फांसी पर चढ़ा दिए गए. इस पर बुढ़िया को बड़ा पछतावा हुआ और अपने छली जीवन से उसे घृणा हो गई. अपने पास के पैसों से उसने उस नाले का पुल बनवा दिया. बुढ़िया के नाम पर उस जगह का नाम फरीदाबाद पड़ गया.
इक्के-दुक्के का अल्ला बेली
20
Jun