गोनू झा एक राजा के दरबारी थे. राजा ने एक दिन सभी दरबारियों को एक-एक बिल्ली पालने को दी और साथ ही एक-एक ब्याई हुई भैंस भी. राजा ने दरबारियों से एक निश्चित तिथि के बाद अपनी-अपनी बिल्ली लाने को कहा और यह घोषणा की, कि जिसकी बिल्ली सबसे अधिक मोटी ताजी होगी, उसको पुरस्कार दिया जायगा. सभी दरबारी अपनी-अपनी बिल्ली लेकर घर गये और उन्हें भैंस का दूध पिला कर पालने लगे.
गोनू झा ने पहले ही दिन खूब गरम दूध में बिल्ली का मुँह डुबो दिया. बिल्ली का मुँह जल गया. दूसरे दिन से वह दूध देखते ही भाग खड़ी होने लगी. गोनू झा स्वयं भैस का दूध छककर पीने लगे. एक निश्चित तिथि पर सब दरबारी अपनी-अपनी बिल्ली लेकर पुरस्कार पाने की आशा में दरबार पहुंचे. सभी की बिल्लियाँ एक-से-एक मोटी ताजी हो गई थी. केवल गोनू झा की दुबली थी. राजा ने गोनू झा से इसका कारण पूछा. गोनू झा ने बताया कि उनकी बिल्ली दूध पीती ही नहीं. राजा ने इसकी परीक्षा ली. बिल्ली के सामने दूध रखा गया. बिल्ली ने दूध नहीं पिया. राजा गोनू झा की चालाकी समझ गये. उन्होंने पुरस्कार गोनू झा को ही दिया