पहले के जमाने में यह प्रथा थी कि यदि किसी दंपत्ति की बहुत सी संतानें जन्म लेने के बाद मृत्यु को प्राप्त हो जाएं तो वे बचने वाली सन्तान का नाम ऐसा रखते थे जिससे उसे नजर न लगे (जैसे घूरेमल, मांगेराम आदि) ऐसे ही एक आदमी का नाम उसके माता पिता ने छुछइयाँ रखा था. इस बात से वह बहुत परेशान रहता था. एक बार वह इतना हताश हो गया कि उसने मरने की ठान ली. मरने के लिए चला तो रास्ते में उसे एक शवयात्रा मिली. उसने लोगों से मरने वाले का नाम पूछा तो लोगों ने बताया अमर सिंह. और आगे बढ़ा तो एक आदमी बड़ी दीन हीन अवस्था में भीख मांगते दिखा. उसका नाम पूछा तो मालूम हुआ उसका नाम था धनपत. उसके आगे लक्ष्मी नाम की एक गरीब फटेहाल औरत कंडे बीनती मिली. तो उस की समझ में आया कि नाम में कुछ नहीं रखा. तब उसने यह कहावत कही और बोला मेरा नाम छुछइयाँ ही ठीक है.
अमर सिंह को मरते देखा, धनपत मांगें भीख, लछमी कंडा बीनतीं, इसे नाम छुछइयाँ ठीक
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Apr