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भंग कहे मैं रंगी जंगी पोस्ता कहे मैं साहजहां. भांग पीने वाला कहता है मैं रंगीन पहलवान हूं. पोश्ता (अफीम) का नशा करने पर नशेबाज अपने को शाहजहां बादशाह से कम नहीं समझता है.
भंडुवे की जात क्या, झूठे की बात क्या. भंडुवे की जात और झूठे की बात का कोई महत्व नहीं है.
भंवरा जाने सर्व रस, जिन चाखी वनराय, घुन क्या जाने बापुरो, सूखी लकड़ी खाय. भंवरा भांति भांति के फूलों का पराग चखता है इस लिए उसे सारे रसों का ज्ञान होता है, घुन बेचारा केवल सूखी लकड़ी खाता है इसलिए कुछ नहीं जानता. भँवरे का अर्थ यहाँ विलासी व्यक्ति से है और घुन का अर्थ गरीब मेहनतकश से.
भई गति साँप छछूंदर केरी (धरम सनेह उभय मति घेरी). सांप के विषय में कहा जाता है कि यदि वह छछूंदर को पकड़ ले तो बहुत संकट में पड़ जाता है, यदि वह उसे निगल ले तो अंधा हो जाएगा और अगर उगल दे तो कोढ़ी हो जाएगा. इस संसार में मनुष्य के लिए ऐसी ही स्थिति होती है एक तरफ धर्म होता है और दूसरी तरफ स्नेह करने वाले स्वजन होते हैं.
भए विधि विमुख विमुख सब कोऊ. भाग्य साथ न दे तो बंधु, बांधव, मित्र सभी मुँह मोड़ लेते हैं.
भक्त तो भगवान से भी बड़ा होता है. भक्ति सच्ची हो तो भगवान भी वश में हो जाते हैं.
भक्ति नहीं भाव नहीं, नेह नहीं माला में, अढाई सेर हँस के सुत गये धरमसाला में. ऐसे लोगों के लिए जिन के मन में कोई भक्ति भाव नहीं होता और जो मंदिर में जा कर भी हंसी ठठ्ठा करते हैं. जैसे आजकल के तीर्थयात्री जो दर्शन करने नहीं बल्कि सैर सपाटे के लिए तीर्थ करने जाते हैं.
भगत भौत बैकुंठ संकरो. जब किसी जगह लोगों के बैठने के लिए स्थान की कमी हो तब.
भगवान के राज्य में देर है अंधेर नहीं (भगवान के घर देर है अंधेर नहीं है). ईश्वर सभी के साथ न्याय करता है चाहे वह कुछ देर से क्यों न हो.
भगवान तो भाव के भूखे हैं (भगवान भावना के भूखे हैं). भगवान सवा मन लड्डू या सवा सेर सोना चढ़ाने से प्रसन्न नहीं होते, वे तो भक्त की भावना देखते हैं.
भगवान दयालु हैं पर छोटी नाव में नाचो नहीं. भगवान कितने भी दयालु क्यों न हों मूर्ख लोगों की सहायता करने नहीं आते.
भगवान देता है तो छप्पर फाड़ के देता है. ईश्वर जब कृपा करता है तो भरपूर देता है. अवधी में इस को और विस्तार से कहा गया है – दैव देत है तो छप्पर फाड़ के देत है, नहीं तो चमड़ी उधेड़ लेत है.
भगवान पर विश्वास रखो, पर अपनी सुरक्षा स्वयं करो. भगवान् पर विश्वास रखना चाहिए लेकिन अंधविश्वास न कर के अपने कार्य स्वयं करना चाहिए. रूपान्तर – भगवान पर विश्वास रखो पर कुण्डी जरूर लगाओ.
भगवान मुझे अपनों से बचाए शत्रुओं से मैं अपनी रक्षा आप कर लूँगा. शत्रुओं से अधिक खतरा उन लोगों से है जो अपना होने का दिखावा करते हैं और मौका पाते ही पीठ में छुरा भोंक देते हैं.
भगवान से प्रार्थना करो पर चप्पू चलाते रहो. भगवान से प्रार्थना जरूर करो पर हाथ पर हाथ धर कर न बैठो. अपना पूरा प्रयास भी करते रहो..
भगाओ मन के डर को, बुड्ढे वर को. मन के डर को भगाओ (जो डरता है वह कुछ नहीं कर सकता) और अगर कोई बुड्ढा किसी युवा लड़की से शादी करने को आए तो उसे भगा दो.
भगोड़ा सिपाही पलटन की बुराई करता है. कोई भी कर्मचारी जहाँ से काम छोड़ता है (या निकाला जाता है) वहाँ की बुराई करता है.
भज कलदारं, भज कलदारं, कलदारं भज मूढमते. कलदार – रुपया. इस कलयुग में रुपया ही सब कुछ है. यह कहावत श्री कृष्ण भजन – भज गोविन्दं मूढ़मते की तर्ज पर बनाई गई है.
भजन और भोजन एकान्त में भला. भजन एकांत में इसलिए करना चाहिए जिससे मन इधर उधर न भटके, और भोजन एकांत में इसलिए करना चाहिए जिससे औरों की नज़र न लगे.
भटा भर्ता न खाए, तो दुनिया में काहे को आए. भटा – बैंगन. बुन्देलखंड में बैगन के भर्ते को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. वहाँ के लोगों का कहना है कि बैंगन का भर्ता नहीं खाया तो मनुष्य का जन्म लेना बेकार है.
भड़क भारी, जेब खाली. पैसा पास न होते हुए भी अत्यधिक दिखावा करने वालों के लिए.
भड़भड़िया अच्छा, पेट पापी बुरा. जो ऊपर से शांत दीखता है पर उसके मन में पाप है उस के मुकाबले जल्दी मचाने वाला व्यक्ति अच्छा है. भड़भड़िया – जल्दी मचाने वाला.
भड़भूँजा की छोकरी और केसर का तिलक. अयोग्य व्यक्ति को बहुमूल्य वस्तु मिल जाना. भड़भूँजा – भाड़ में अनाज इत्यादि भूनने वाला (पहले जमाने में निचली श्रेणी के लोगों में से एक).
भडुए को भी मुंह पर भडुआ नहीं कहते. नीच व्यक्ति को भी उस मुँह पर नीच नहीं कहना चाहिए. भडुआ – वेश्याओं का दलाल या साज बजाने वाला.
भद्रा वा घर होयँगे जिनके हैं नौ निद्ध, अष्ट कपाली दारिद्री जब चालै तब सिद्ध. भद्रा-एक अशुभ ग्रह, नौ निद्ध–नौ निधि (नौ प्रकार के ऐश्वर्य). शकुन अपशकुन का विचार धनवान लोग करते हैं. बेचारा गरीब तो जब आवश्यकता होती है चल पड़ता है.
भय और प्रेम एक जगह नहीं रहते. जहाँ प्रेम है वहाँ भय का कोई स्थान नहीं है और जो भय दिखाता है उस से प्रेम नहीं हो सकता.
भय बिन भाव न ऊपजै, भय बिन होय न प्रीति. बिना डर के किसी के प्रति आदर का भाव नहीं पैदा होता और बिना डर के प्रीति भी नहीं होती.
भय बिनु होहि न प्रीत. बिना डर के आदमी कोई काम नहीं करता. सन्दर्भ कथा – . भगवान् राम को जब लंका पहुँचने के लिए समुद्र को पार करना था तो उन्होंने तीन दिन तक समुद्र से मार्ग देने के लिए प्रार्थना की. जब समुद्र पर इसका कोई असर नहीं हुआ तो राम ने कुपित हो कर समुद्र को अग्नि वाण से सुखाने के लिए धनुष उठाया. इस पर समुद्र हाथ जोड़ता हुआ उनकी शरण में आया. इस पर य[ह कहावत बनी कि ओछे लोग बिना भय दिखाए प्रेम नहीं करते. तुलसीदास जी ने राम चरित मानस में इस प्रकरण को इस प्रकार कहा है – विनय न मानत जलधि जड़ गए तीनु दिन बीत, बोले राम सकोप तब भय बिनु होहि न प्रीत.
भर घर देवर, जेठ से ठट्ठा. सामाजिक वर्जनाओं के हिसाब से अनुचित काम. घर में बहुत से देवरों के होते हुए भी यदि कोई स्त्री जेठ से मजाक करे.
भर दे भर पावे, काल कंटक पास न आवे. अधिक दान पुण्य करने वाले को अधिक फल की प्राप्ति होती है. ऐसे दानी व्यक्ति के पास कालसर्प जैसी बाधा नहीं आती.
भर फगुआ बुढ़उ देवर लागेंले. (भोजपुरी कहावत) होली के मौसम में इतनी मस्ती छाती है कि स्त्रियाँ ससुर से भी देवर के समान मजाक कर लेती हैं. फगुआ – फाग, होली.
भरम की ही रोटी है. व्यापार में ही वही सफल होता है जो बाजार में अपने विषय में भ्रम बना कर रखता है.
भरम गओ तो सब गओ. एक बार घर या व्यापार का भेद खुलने से सब इज्जत आवरू चली जाती है.
भरम भारी, पिटारा खाली. जहाँ किसी बात का बहुत भारी भ्रम फैलाया जा रहा हो और वास्तविकता में कुछ न हो (बंद पिटारा दिखा कर लोगों को मूर्ख बनाया जा रहा है जबकि पिटारा अंदर से खाली है).
भरम मारे, भरम जियावे. भ्रम (अनावश्यक डर) ही व्यक्ति को मारता है और भ्रम (आशा) ही व्यक्ति को जीने की और कर्म करने की इच्छा प्रदान करता है.
भरा कहार और खाली कुम्हार तेज जाते हैं. कहार के कन्धों पर बोझ होता है इसलिए जल्दी पहुँचने के लिए तेजी से चलता है. कुम्हार को बर्तन ले कर धीमे चलना पड़ता है इसलिए जब वह खाली होता है तो तेज चलता है.
भरा पेट जाट का, तो हाथी को भी गधा बतावे. पेट भरने के बाद जाट पर मस्ती छाने लगती है.
भरी जवानी पैसा पल्ले, राम चलाए तो सीधा चल्ले. जवानी में यदि दौलत हाथ लग जाए तो व्यक्ति के पथभ्रष्ट होने की बहुत संभावना होती है.
भरी जवानी मांझा ढीला. मांझा – शरीर में कमर और नितम्बों का भाग. युवावस्था में यौनेच्छा की कमी या अशक्ति.
भरी जवानी में बुढ़ापे का मजा. कोई जवानी में ढीला ढाला, कमजोर और आलसी हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए ऐसे बोलते हैं.
भरी नाव में सूप भी भारी. जो व्यक्ति या संस्थान काम के बोझ से लदा हुआ है उस को थोड़ा सा भी अतिरिक्त काम भारी लगता है. जरा सा भी अतिरिक्त बोझ कभी कभी नाव को डुबाने के लिए काफी होता है.
भरी सभा में गूंगा बोले. अयोग्य आदमी के बीच में बोलने की धृष्टता करने पर कहते हैं.
भरी सभा में साख भरें, उनके पुरखा नरक गिरें. जो सब के बीच झूठी गवाही देते हैं उनके पुरखे नरक जाते हैं.
भरे को सब भरें. जो सब प्रकार से सम्पन्न है उसी को सब लोग भेंट और सम्मान देते हैं, जो वास्तव में जरूरतमंद है उसे कोई नहीं देना चाहता.
भरे पेट शक्कर खारी. जब पेट भरा हो तो अच्छे खाद्य पदार्थ भी स्वादिष्ट नहीं लगते, जबकि भूखे पेट पर सादा भोजन भी स्वादिष्ट लगता है.
भरे समंदर में घोंघा प्यासा. समस्त सुविधाओं के बीच रहने वाला व्यक्ति ही अगर उनसे वंचित हो.
भरे समुन्दर घोंघा हाथ. जहाँ से अधिक लाभ की आशा हो वहाँ से बहुत कम लाभ प्राप्त होना.
भरोगे सो आप, न माई न बाप. कोई गलत काम करोगे तो उस का दंड स्वयं भुगतना पड़ेगा. माँ बाप इस में कोई सहायता नहीं कर पाएंगे.
भरोसे की भैंस, पड़ा बियानी. (बुन्देलखंडी कहावत) भैंस की पड़िया की कीमत पड्ढे के मुकाबले बहुत अधिक होती है. जिस भैंस पर विश्वास था कि वह पड़िया जनेगी उसी ने पड्डा पैदा कर दिया. कोई विश्वास पात्र व्यक्ति ही धोखा दे जाए तो यह कहावत कही जाती है.
भलमानस घर में पड़ा, मवाली ने जाना मुझसे डरा. शांति प्रिय व्यक्ति चुपचाप अपने घर में रह रहा है तो गुंडे बदमाश समझ रहे हैं कि उन से डर गया है.
भला किया सो खुदा ने, बुरा किया सो बंदे ने. किसी के साथ कुछ अच्छा घटित हो जाए तो कहता है कि ईश्वर की कृपा से हुआ है और बुरा हो जाए तो किसी न किसी इंसान को दोष देता है.
भला हुआ ननद गौने गई, ननद की साड़ी मोको भई. किसी के जाने से किसी का फ़ायदा. ननद के ससुराल जाने से भाभी इसलिए खुश है कि ननद की साड़ी उसे पहनने को मिल गई.
भला हुआ सैंया को बाघ ले गया, बेगारी से तो बचा. गरीब आदमी के लिए बेगारी (बिना मजदूरी काम) कितनी बड़ी समस्या है इस का अनुमान इस कहावत से लगाया जा सकता है. उसकी पत्नी बेगारी से इतनी दुखी है कि पति को बाघ ले गया इस बात पर भी राजी है क्योंकि उस बेचारे को बेगारी से छुट्टी मिल गई.
भली कहन क्या जात. भली बात कहने में क्या खर्च होता है.
भले आदमी की मुर्गी टके टके. भले आदमी के माल को सब सस्ते में हासिल करना चाहते हैं.
भले के भाई, बुरे के जंवाई. जो हमारे साथ शराफ़त से पेश आएगा उस के लिए हम शरीफ़ हैं और जो हमारे साथ बुरा करेगा उस के लिए हम बुरे है. यहाँ जंवाई का अर्थ है जो खून चूसे तब भी उस की इज्जत करनी पड़े.
भले को नाम रह जात. सज्जन व्यक्ति संपत्ति भले ही न जोड़ पाए, लोग उस का नाम लेते हैं.
भले घोड़े को एक चाबुक, भले आदमी को एक इशारा काफी है. अर्थ स्पष्ट है.
भले दिन का मेहमान, बुरे दिन का दुश्मन. जब व्यक्ति सम्पन्न होता है तो घर आया मेहमान अच्छा लगता है. जब व्यक्ति परेशानी में होता है तो घर आया मेहमान दुश्मन लगता है.
भले बुरे का साथ क्या. भले और बुरे व्यक्ति का कोई साथ नहीं हो सकता.
भलो भयो मेरी मटकी फूटी, मैं दही बेचन से छूटी. चाहे नुकसान हो जाए पर काम न करना पड़े ऐसा सोचने वाले व्यक्ति के लिए.
भलो भयो मेरी माला टूटी राम जपन की किल्लत छूटी. उपर्युक्त कहावत की भांति.
भलो, भलो कह छांड़िए, खोटे ग्रह जप दान (दुष्ट ग्रहों को ही पूजा जाता है). किसी भी घर, खानदान या संगठन में भले लोगों को तो यह कह कर उपेक्षित कर दिया जाता है कि ये तो भले आदमी है मान जाएंगे. जो दुष्ट और दुराग्रही हैं उन्हें मनाने की कोशिश की जाती है. इसका दृष्टांत इस कहावत में इस प्रकार दिया गया है कि सूर्य और बृहस्पति की पूजा कोई नहीं करता, शनि और राहु को शांत करने के लिए दान और हवन किए जाते हैं. इसकी पहली पंक्ति है – बसे बुराई जासु तन, ताही को सन्मान.
भवन बनावत दिन लगे, ढावत लगे न देर. मनुष्य बड़ी मेहनत से महीनों सालों में कोई भवन बनाता है या व्यापार खड़ा करता है, पर जब दुर्भाग्य आता है तो कुछ क्षणों में ही सब ढह जाता है.
भवानी निबल बकरे सबल. देवी कमजोर हैं और उनको बलि चढ़ाने के लिए लाए गए बकरे ताकतवर हैं. जहाँ शासन प्रशासन कमज़ोर और अपराधी मजबूत हों.
भाँड़ डूबा जाय, लोग कहें स्वांग करत है. भाँड़ (नाटक में काम करने वाला कलाकार) तो पानी में डूबा जा रहा है, देखने वाले कह रहे हैं कि देखो कितनी अच्छी एक्टिंग कर रहा है.
भाँड़ो संग खेती की, गा बजा के छीन ली. भांड – हिजड़े. निम्न श्रेणी के लोगों के साथ साझे में कोई काम नहीं करना चाहिए, वे नंगई दिखा कर व्यापार का सारा लाभ छीन सकते हैं.
भांग खाए गंवार, तो खाए हँड़िया भर भात. मूर्ख व्यक्ति भांग खा ले तो उसकी तरंग में बहुत खाना खाता है.
भांग भखन तो सुगम है, लहर कठिन कैंह होय. भांग खाना आसान है भांग की तरंग झेलना मुश्किल है.
भांग मांगे भूगड़ा, सुल्फा मांगे घी, दारू मांगे खूंसड़ा, खुसी आवे तो पी. भूंगड़ा – भुने चने, खूंसड़ा – जूता. भांग की तरंग मसाले दार भुने चने खाने से कम होती है और सुल्फे की खुश्की घी से, दारू पी के जो दिमाग फिरता है वह जूते लगने से ठीक होता है, जिसको जिसमें ख़ुशी हो वही पियो.
भांड की कौन बुआ, सांप की कौन मौसी. निकृष्ट लोग कोई सामाजिक रिश्ता नहीं मानते.
भाई का भाई बाहर बैठ जाए, जोरू का भाई चौके तक जाए. महिलाएँ पति के भाई को घर में बैठाती तक नहीं हैं, लेकिन अपने भाई को चौके में बैठा कर प्रेम से खाना खिलाती हैं.
भाई दूर पड़ोसी नियरे. पड़ोसी का बहुत महत्व है. मुसीबत के वक्त भाई तो दूर होगा पर पड़ोसी पास होगा.
भाई बराबर बैरी नहीं, भाई बराबर प्यारा नहीं. भाई सब से प्यारा भी होता है और जायदाद के झगड़े के कारण भाई सब से बड़ा दुश्मन भी बन जाता है.
भाई भतीजा भांजा, भाट भांड भुइंहार, इतने भ को छोड़ के फेरि करो व्यापार (भइअन छओ भकार से, सदा रहो होसियार). भ अक्षर से शुरू होने वाले इन सब लोगों के साथ व्यापार नहीं करना चाहिए. ये छः लोग कभी भी धोखा दे सकते हैं.
भाई भले ही मरे, भाभी का घमंड टूटना चाहिए. मूर्खता पूर्ण स्वार्थपरता की पराकाष्ठा.
भाई लड़ें तो माँ भी दो हो जाएँ. भाइयों में लड़ाई होती है तो बेचारी माँ के सामने यह दुविधा हो जाती है कि वह क्या बोले. दोनों को लगता है कि माँ दूसरे का पक्ष ले रही है.
भाई सीधा और भाभी चंट, उधर की कसर इधर पूरी. किसी घर में पति सीधा हो और पत्नी चालाक तो लोग पति के सीधेपन का नाजायज फायदा नहीं उठा पाते हैं. ऐसी परिस्थिति में यह कहावत कही जाती है.
भाखा न जाने ताहि शाखामृग जानिए. भाखा – भाषा, शाखामृग – वानर. जो लिखना पढ़ना और बोलना नहीं जानता वह वानर के समान है.
भाग बिना भोगे नहीं भली वस्तु का भोग, (दाख पके जब काग के होत कंठ में रोग). भाग्य के बिना हम किसी वस्तु का उपभोग नहीं कर सकते. लोक मान्यता है कि जब अंगूर पकते हैं तो कौए के गले में रोग हो जाता है और वह अंगूर नहीं खा सकता. दाख – द्राक्ष (अंगूर).
भागते भूत की लंगोटी ही भली. जब कोई बड़ा नुकसान हो रहा हो तो जो कुछ भी बच जाए वही अच्छा. कुछ लोग इसे भागते चोर की लँगोटी भी भली बोलते हैं. रूपान्तर – भागे भूत की मूंछें भली – सन्दर्भ कथा – अंधेरी रात में एक चोर ने एक बनिये के घर में पिछवाड़े से सेंध लगाई. जैसे ही वह सामान लेकर चला, कोई चीज गिरने से बनिया जाग गया और अंदर कमरे की ओर दौड़ा. चोर सामान लेकर सेंध में से निकल ही रहा था कि बनिये ने पीछे से उस की कमर पकड़ ली. चोर निकल तो गया पर उस की लंगोटी बनिये के हाथ में आ गई. बनिये ने शोर मचाया तो तमाम लोग इकट्ठे हो गए. जब उसने लंगोटी लोगों को दिखाई तो गांव के दर्जी ने पहचान लिया कि यह किसकी है. उस लंगोटी के जरिए ही वे लोग चोर तक पहुंचे और तब से यह कहावत बनी.
भागतों के आगे और मारतों के पीछे. डरपोक लोगों के लिए. जहाँ मैदान छोड़ कर भागने की बात आएगी वहाँ सबसे आगे होंगे, और जहाँ आगे बढ़ कर मारने की बात आएगी वहाँ सब से पीछे होंगे.
भागने वाली को दहेज नहीं मिलता. जो लड़की घर से भाग कर शादी करती है उसे दहेज़ नहीं मिलता.
भागने से पहले चलना सीखो. किसी काम को सीखने में जल्दबाजी न करो.
भागलपुर के भागलिए कहलगाँव के ठग, पटना के दिवालिए ये तीनों नामज़द. स्थान विशेष के ऊपर बनाई गई कहावतें जो कभी किसी कारण से बनती हैं और कभी बेसिरपैर की भी होती हैं.
भागलपुर जाइए न, जाइए तो कुछ लाइए न और लाइए तो रोइए न. कहावत में कहा गया है कि भागलपुर में मिलने वाला सामान घटिया होता है. सत्य मालूम नहीं क्या है.
भाग्य और परछाई कभी साथ नहीं छोड़ते. जिस प्रकार परछाईं आदमी का साथ कभी नहीं छोड़ती, उसी प्रकार भाग्य भी हमेशा साथ लगा रहता है (व्यक्ति कहीं भी जाए).
भाग्य की बलिया, रांधी खीर हो गयो दलिया. भाग्य में न हो तो आदमी जो भी काम करे कुछ का कुछ हो जाता है (खीर बनाई तो दलिया बन गया).
भाग्य छोट अभिलाष बड़. भाग्य साथ नहीं देता पर इच्छाएँ बड़ी बड़ी हैं.
भाग्य दो कदम आगे चलता है. जब व्यक्ति का भाग्य खराब होता है तो वह कहीं भी जाए उसे सफलता नहीं मिलती. उसका दुर्भाग्य उससे पहले ही वहाँ पहुँच जाता है.
भाग्यवान का पड़ोसी नरक में जाता है. क्योंकि वह ईर्ष्या से जलता भुनता रहता है.
भाग्यवान के भूत कमावें (भाग्यवान का हल भूत जोतते हैं). जब आदमी का भाग्य प्रबल होता है तो उस के सारे काम अपने आप होते चले जाते हैं. रूपान्तर – भाग्यवान का एक हल आसमान में रहता है.
भाट, कलारिन, वैस्या, तीनों जात कुजात, आते का आदर करें, जात न पूछें बात. ये तीनों केवल आते समय आदर देते हैं जाते समय नहीं. भाट – यशगान सुनाकर इनाम मांगने वाले, कलारिन – शराब बेचने वाली स्त्री.
भाड़ में जावे दुनिया, हम बजावें हरमुनिया. दुनिया भाड़ में जाए, हम अपने राग रंग में मस्त हैं. हरमुनिया – हारमोनियम.
भाड़ लीप कर हाथ काला किया. अपनी हैसियत के अनुकूल काम न करके प्रतिष्ठा को बट्टा लगाया.
भाड़ा, ब्याज, दच्छना, पीछे मिले कुच्छ ना. किराया, ब्याज और दक्षिणा तुरंत ले लेना चाहिए (और हो सके तो पेशगी ले लेना चाहिए). बाद में कुछ नहीं मिलता.
भाड़े के घोड़े, खाएं बहुत चलें थोड़े. किराए पर लिए गए घोड़े खाते अधिक हैं और काम कम करते हैं. जब तक किसी काम में व्यक्ति का अपना नफा नुकसान नहीं होता तब तक वह काम नहीं करता.
भात खाते हाथ पिराए. अत्यधिक नजाकत, चावल खाने में हाथ में दर्द होना.
भात छोड़ दो साथ न छोड़ो (भात छूटे तो छूटे साथ न छूटे). 1.चाहे एक बार को भोजन छोड़ दो पर किसी अपने का साथ न छोड़ो. 2.किसी अपने से अनबन हो जाने पर साथ खाना पीना बंद कर दें पर उस का साथ न छोड़ें.
भात पच जाए बात न पचे. किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में जो खाने पीने में तो तेज हो पर पेट का हल्का हो.
भात बिना है रांड रसोई, खांड बिना अनपूती, बिन घी के जिन खाई रोटी, मानो खाई जूती. चावल और खांड के बिना रसोई बिल्कुल निरर्थक है. घी के बिना रोटी खानी पड़े तो उसे बेइज्जती मानना चाहिए.
भात होगा तो कौवे बहुत आ जाएंगे. आपके पास धन और सत्ता हो उस का लाभ उठाने के लिए बहुत लोग आ जाएंगे (और धन एवं सत्ता के जाते ही ये सब गायब भी हो जाएंगे).
भादों की घाम और साझे का काम देहि तोड़ा करें (या बैरी भादों की घाम, या बैरी साझे का काम). भादों की धूप बहुत तेज़ होती है इसलिए शरीर को तोड़ देती है, साझे के काम में मेहनत करना सबको भारी लगता है इसलिए शरीर टूटता है.
भादों की छाछ जूतों को, कातक की छाछ पूतों को. भादों में छाछ हानिकारक मानी जाती है और कार्तिक में गुणकारी (खाद्य पदार्थों के बारे में ऐसे बहुत से बेतुके अंधविश्वास पहले के लोगों में भी पाए जाते थे और अब भी पाए जाते हैं). कहीं कहीं जूतों के स्थान पर भूतों भी बोला जाता है.
भादों की धूप में हिरन काले हो जाते हैं. भादों की धूप बहुत तेज होती है इसलिए.
भादों की बरखा, एक सींग गीला एक सींग सूखा. भादों की वारिश कहीं होती है और कहीं नहीं होती, इस बात को हास्यपूर्ण ढंग से कहा गया है (बैल के एक सींग पर वर्षा हुई और दूसरे पर नहीं हुई).
भादों की बरखा, जेठ की धूप, बाहर के वकता, घर के चूप. बाहर बोलना अच्छा होता है और घर में चुप रहना.
भादों भैंसा चैत चमार. भादों के महीने में भैंसा सुखी रहता है (पर्याप्त घास और ढंडक के कारण) और चैत्र में चमार सुखी रहता है (चमड़ा सूखने में आसानी होने के कारण).
भानु उदय दीपक किहिं काजा. सूर्य उदय होने के बाद दीपक का क्या काम.
भाभी लीपती जाय, देवर खेलता जाय. भाभी बेचारी आंगन लीप रही है और देवर खेल कर उसे गंदा करता जा रहा है. कोई आदमी मेहनत कर के काम बना रहा हो और दूसरा उसे बिगाड़ता जा रहा हो तो.
भार घसीटत और को, रहे ऊँट के ऊँट. जो लोग अपने दिमाग से काम नहीं करते वे जानवरों के समान दूसरों का बोझ ही ढोते रहते हैं.
भारी पत्थर न उठा तो चूम कर छोड़ दिया. कोई चालाक आदमी भारी पत्थर उठाने की कोशिश कर रहा था. नहीं उठा तो चूम कर छोड़ दिया, यह जताने के लिए कि उठाने की कोशिश नहीं कर रहे थे, हम तो पत्थर को चूम रहे थे. कोई काम न कर पाओ तो चालाकी दिखा कर उस से हाथ खींच लेना.
भारी ब्याज मूल को खाय. ज्यादा मोटा ब्याज वसूलने के चक्कर में कभी कभी मूलधन भी मारा जाता है.
भाव बढ़ा नीक, तौल घटी नाहिं नीक. नीक – उचित. चीज को चाहे कीमत बढ़ा कर बेचो, तौल नहीं घटानी चाहिए.
भाव बिना भक्ति नहीं, भाग बिना धन मान. जब तक भगवान के प्रति समर्पण का भाव न हो तब तक भक्ति नहीं होती और भाग्य के बिना धन व सम्मान नहीं मिलते.
भाव राखे सो भाई. असल भाई वही है जो मन में प्रेम का भाव रखे.
भावज की थैली, सर्राफी करे देवर. दूसरों के धन पर व्यापार करने वालों के लिए.
भावी के वश सब संसार. सारा संसार भविष्य के वश में है.
भिखारी का क्या दीवाला. जिस व्यापार में पूँजी लगती है उस में दीवाला निकलने का डर रहता है. भिखारी की कोई पूँजी दांव पर नहीं लगती.
भिच्छु जो लछमी पाइहै, सीधे परत न पाँव. भिखारी को धन मिल जाए तो बहुत इतराने लगता है.
भिश्ती को बादशाहत मिली तो चमड़े के सिक्के चला दिए. भिश्ती – पानी भर कर लाने वाला व्यक्ति. कहावत का अर्थ है कि बहुत क्षुद्र मानसिकता वाला व्यक्ति अधिकार पा कर भी नहीं बदलता. सन्दर्भ कथा – शेरशाह सूरी से हारने के बाद हुमायूं जब भाग रहा था तो एक भिश्ती ने उसकी जान बचाई थी. हुमायूं ने उससे वादा किया कि जब उसका राज्य वापस मिल जाएगा तो वह उस भिश्ती को एक दिन के लिए बादशाह बना देगा. हुमायूं ने राज्य वापस पाने के बाद अपना वादा पूरा किया और एक दिन के लिए उसे बादशाह बना दिया. कहते हैं भिश्ती ने उस एक दिन में चमड़े के सिक्के चलवा दिए थे. पहले के जमाने में भिश्ती लोग चमड़े से बनी मशक में पानी भर कर सब स्थानों पर पहुँचाते थे. (देखिए परिशिष्ट)
भीख की हँड़िया छींके पर नहीं चढ़ती. भीख मांग कर बमुश्किल गुजारा किया जा सकता है, इतना माल नहीं इकठ्ठा किया जा सकता जो जोड़ कर रख लिया जाए. रूपान्तर – भीख से भंडार नहीं भरते.
भीख के टुकड़े बाजार में डकार. अपने पास कुछ न होते हुए भी दिखावा करना.
भीख न दे माई, मेरो खप्पर तो मत फोड़े. भले ही मेरे ऊपर कुछ उपकार न करो, मुझे नुकसान तो न पहुँचाओ.
भीख भी न मिले तो वैद्यगीरी सीख ले. कहावत में उन झोलाछाप वैद्यों का मजाक उड़ाया गया है जो किसी भी काम में सफल न होने के कारण वैद्य बन कर लोगों को ठग रहे हैं.
भीख माँगे आँख दिखावे. निर्लज्ज भिखारी, भीख मांग रहा है और आँखें दिखा रहा है. (पड़ोसी देश की तरह).
भीख मांगे और पूछे गाँव की जमा. गाँव भर से जो लगान इत्यादि जमींदार लोग जमा करते थे उसे गाँव की जमा कहते थे. कोई भीख मांगने वाला गाँव की जमा पूछे यह बेतुकी बात है.
भीख में पछोड़ क्या (भीख में मांगें पछोर पछोर). भीख का अनाज साफ़ कर के नहीं मिलता. इंग्लिश में कहावत है – Beggars can’t be choosers.
भीगे कान, हुआ स्नान. 1. कुछ लोग केवल कान धो लेने को ही नहाना मान लेते हैं (विशेषकर जाड़ों में इस तरह के शार्टकट बहुत मारे जाते हैं). 2. नदी में नहाते समय जब कान पानी में डूबें तभी नहाना माना जाता है.
भीड़ में सिर बहुत, दिमाग एको नहीं. भीड़ में विवेक नहीं होता.
भीत टले पर बान न टले. एक बार को दीवार अपनी जगह से हट सकती है पर बुरी आदत नहीं छूटती.
भीतर का घाव, रानी जाने या राव. घर की अंदरूनी समस्याओं को घर के मुखिया ही जानते हैं.
भीतर के पट तब खुलें जब बाहर के पट देय. बाहरी संसार से नाता तोड़ने पर ही अंतर्चक्षु खुलते हैं.
भील का घर टोकरी में. बहुत गरीब आदमी के पास इतना कम सामान होता है कि एक टोकरी में आ सकता है.
भीषण सिंधु तरंग में पहले पैठे कौन. समुद्र में भयंकर लहरें उठ रही हों तो पहले कौन उस में उतरेगा. किसी खतरनाक काम को पहले करने का बीड़ा कोई नहीं उठाना चाहता.
भुइंहार के अंतरी उनचास हाथ. भूमिहार भूमि के स्वामी ब्राह्मण जाति को कहते हैं. गरीब लोग कहते हैं कि उनकी आंत उनचास हाथ की होती है अर्थात सब कुछ पचा लेती है.
भुस के मोल मलीदा. मलीदा – एक कीमती मिठाई. जब कोई बहुत कीमती चीज़ बहुत सस्ते में मिल रही हो.
भुस में आग लगाए जमालो दूर खड़ी (भुस में अंगरा डार मलंगो दूर भई). दो लोगों में लड़ाई करवा के दूर से तमाशा देखना. अंगरा – अंगारा.
भूख गए भोजन मिले, जाड़ो गए रजाई, जोवन गए तिरिया मिले, कौन काम को भाई. भूख खत्म होने के बाद भोजन, जाड़ा खत्म होने के बाद रजाई और यौवन बीत जाने के बाद स्त्री मिले तो किस काम के.
भूख में किवाड़ पापड़ होते हैं (भूख में गूलर ही पकवान). बहुत भूख लगी हो तो जो भी खाने को मिले अच्छा लगता है.
भूख में चने बादाम (भूख में चना चिरौंजी) (भूख में चने भी मखाने) भूख में चना भी मेवे जैसा लगता है.
भूख लगी तो घर की सूझी. आवारा आदमी और बालक इनको भूख लगने पर घर ही याद आता है.
भूखा आदमी क्या पाप नहीं करता. भूखा आदमी अपनी भूख मिटाने के लिए कुछ भी पाप करने को तैयार हो जाता है. संस्कृत में कहावत है – बुभुक्षित: किम न करोति पापं.
भूखा खाए तो पतियाए (भूखा तो भोजन से ही पतियाए). भूखे को कितने भी आश्वासन देते रहो, उसे विश्वास तभी होगा जब भर पेट खाने को मिल जाएगा.
भूखा गया जोय बेचने, अघाना कहे बंधक रखो. अघाना – जिस का पेट भरा हुआ हो. गरीब आदमी भूख के कारण अपनी स्त्री को बेचने धनी के पास गया, धनी कहता है मैं खरीदूंगा नहीं मेरे पास गिरवी रख दो. किसी की मजबूरी का अनुचित लाभ उठाना.
भूखा चाहे रोटी दाल, अघाया कहे मैं जोडूं माल. भूखा आदमी भोजन के लिए परेशान है और धनी आदमी (अघाया हुआ, पेट भरा हुआ) माल जोड़ने की चिंता में है.
भूखा पूछे जोतसी, अघाया पूछे वैद. भूख से परेशान गरीब आदमी ज्योतिषी के पास जाता है और पूछता है कि उस के दिन कब फिरेंगे. अधिक खाने से परेशान संपन्न आदमी वैद्य से पूछता है कि खाना कैसे पचाया जाए.
भूखा बंगाली भात ही भात पुकारे. भूखा आदमी भोजन भोजन ही पुकारता है (अगर बंगाली होगा तो भात पुकारेगा क्योंकि भात उसका मुख्य भोजन है). बंगालियों को भूखा बंगाली कह कर उनका मजाक भी उड़ाते हैं.
भूखा बामन सिंह बराबर. भूखा ब्राह्मण हिंसक हो जाता है.
भूखा बामन सोवे, भूखा जाट रोवे, भूखा बनिया हंसे, भूखा रांगड़ कसे. ब्राह्मण भूखा होता है तो चुपचाप सो जाता है, जाट भूखा होने पर रोता है, बनिया भूखा हो तो पागलों जैसी हरकतें करने लगता है और रांगड़ (मुस्लिम राजपूतों की एक जाति) लूटपाट के लिए कमर कस लेता है.
भूखा मरे कि सतुआ खाए. किसी को सत्तू बिलकुल पसंद नहीं है लेकिन खाने के लिए केवल सत्तू ही है. अब वह परेशान है कि भूखा मरे या सत्तू से पेट भरे. मजबूरी में कोई काम करना पड़े तो.
भूखा मरे तो सत्तू खाए, मरी बहू के नैहर जाए. दो काम ऐसे हैं जोकि बिलकुल भूखा मरने की नौबत हो तो करने पड़ते हैं, सत्तू खाना और मरी हुई पत्नी के मायके जाना.
भूखा सिंह न तिनका खाय. शेर कितना भी भूखा क्यों न हो, घास नहीं खा सकता. वीर पुरुष कितने भी संकट में हों, अपने आदर्शों से समझौता नहीं करते.
भूखा सो जाना, पर जौ का दलिया नहीं खाना. सम्भवतः जौ का दलिया बहुत बेस्वाद होता है.
भूखा सो रूखा. भूखे आदमी से मधुर व्यवहार और विनम्रता की आशा नहीं करना चाहिए.
भूखे का पेट बातों से नहीं भरता. भूखे व्यक्ति को आदर्श वाद की बातें नहीं समझाना चाहिए. इंग्लिश में कहावत है – Hungry bellies have no ears.
भूखे की कोई जात नहीं होती. भूखा आदमी किसी भी जात का हो, समान रूप से त्रस्त होता है.
भूखे की पीड़ा अफरा क्या जाने. जिसका पेट भरा है वह भूखे की वेदना को क्या समझे.
भूखे को अन्न प्यासे को पानी, जो दे सो ही दानी. अर्थ स्पष्ट है.
भूखे को क्या न्योता. भूखा आदमी निमंत्रण की प्रतीक्षा नहीं करता.
भूखे को क्या रूखा, थके को क्या तकिया. भूख लगी हुई तो रूखा सूखा भोजन भी अच्छा लगता है, आदमी थका हुआ हो तो बिना तकिये के सो सकता है.
भूखे को भोजन थके को विश्राम. भूखे को भोजन और थके हुए व्यक्ति को विश्राम सबसे अधिक प्यारा होता है. इस को इस प्रकार भी कह सकते हैं कि भूखे को भोजन और थके को विश्राम कराने से बड़ा पुण्य मिलता है.
भूखे ने भूखे को मारा, दोनों को गश आ गया. दो कमजोर आदमी लड़ें तो दोनों का नुकसान होता है.
भूखे बेर, अघाने गाड़ा, ता ऊपर मूली का डांड़ा. भूखे पेट पर बेर खाना चाहिए, पेट भरने के बाद गन्ना और उसके ऊपर मूली का सेवन करना चाहिए.
भूखे भजन न होय गोपाला, ये लो अपनी कंठी माला. भूखा आदमी भजन नहीं कर सकता.
भूखे से पूछा दो और दो क्या, बोला चार रोटियाँ. भूखे व्यक्ति को केवल भोजन ही दिखाई पड़ता है.
भूत की दवा कुत्ते का गू. एक नई नवेली बहू अपने ऊपर भूत आने का नाटक कर के बेहोश पड़ी थी. किसी सयानी स्त्री ने कहा भूत भगाने के लिए कुत्ते का गू मुँह में डाल दो. यह सुनते ही बहू को फौरन होश आ गया.
भूत को पत्थर की चोट नहीं लगती. भूत क्योंकि वास्तव में कुछ नहीं होता इसलिए.
भूत जान न मारे, सता मारे (भूत प्रान नहिं लेत पर हलकान तो कर लेत). 1. दुष्ट के लिए कहते हैं कि वह जान से न भी मारे तो भी परेशान बहुत कर सकता है. 2. भूत किसी को जान से कैसे मार सकता है. जो लोग भूत प्रेतों को मानते हैं वे भांति भांति की कल्पनाएँ कर के डरते रहते हैं (केवल डर से ही सताए जाते हैं).
भूत न मारे, मारे भय. भूत प्रेत कुछ नहीं होता, केवल उसके भय से लोग मर जाते हैं. सन्दर्भ कथा – एक पढ़ा लिखा व्यक्ति भूत प्रेत को बिलकुल नहीं मानता था. किसी ने उसे चुनौती दी कि वह आधी रात में श्मशान में स्थित पीपल के पेड़ पर कोयले से अपना नाम लिख कर दिखाए तो उस को मान जाएँ. उसने चुनौती स्वीकार कर ली और आधी रात में श्मशान स्थित पीपल के पेड़ की ओर चला. श्मशान का वातावरण डरावना तो होता ही है, ऊपर से उस के अवचेतन मस्तिष्क में कुछ न कुछ भय भी था. वह पेड़ पर लिख कर लौटने लगा तभी उसका कुरता पेड़ पर लगी कील में फंस गया. उसे लगा कि भूत ने उसे पकड़ लिया है और इस सदमे से वह वहीँ गिर कर मर गया.
भूत मरे, पलीत जागे. एक मुसीबत समाप्त नहीं हुई कि दूसरी खड़ी हो गई.
भूत माटी का भी डराता है. इंसान भूत के नाम से ही डरता है.
भूतों के घर बालक और हिजड़ों के घर लुगाई. असंभव और बेमेल बात.
भूतों के घर सालिग्राम. किन्हीं निकृष्ट लोगों के घर में कोई अच्छा व्यक्ति जन्म ले तो.
भूतों को कलाबाजी दिखाना. व्यर्थ है, क्योंकि इसमें तो वे स्वयं दक्ष होते हैं.
भूमि न भुमिया छोड़िये, बड़ो भूमि को वास, भूमि विहीनी बेल ज्यों, पल में होत बिनास. (बुन्देलखंडी कहावत) आजकल बहुत से किसान जमीन बेच कर शहरों में बसना चाहते हैं. कहावत में सलाह दी गई है कि किसान को अपनी जमीन नहीं छोड़नी चाहिए. बिना भूमि की बेल का पल भर में ही विनाश हो जाता है.
भूमि परन भूखे मरन, जेहि बरात को हेत. जमीन पर लेटना और भूखों मरना यही बारात का सुख है. लोग बड़ी आशा लेकर बरात में जाते हैं पर कई बार वास्तविकता उसके उलट होती है.
भूमियाँ तो भू पे मरी, तू क्यों मरी बटेर. भूस्वामी तो जमीन के लिए लड़ते हैं, बटेर तू क्यों मरी जा रही है. जब बड़े लोगों की लड़ाई में कोई छोटा आदमी बिना बात शामिल हो रहा हो तो. धूर्त नेता तो सत्ता के लिए लड़ रहे होते हैं पर उनके जो समर्थक बिना बात अपनी जान देते हैं उन को समझाने के लिए.
भूरा भैंसा, चंदली जोय, पूस में वारिश, बिरले होय. भूरे भैंसे, गंजी स्त्री और पूस के महीने में वारिश ये बहुत कम पाए जाते हैं.
भूल का टका भूल में गया. व्यापार में भूल से कुछ पैसा आ भी जाता है और कुछ पैसा चला भी जाता है.
भूल गई चतुर नार हींग डारी भात में. होशियार आदमी से भी कभी कभी बेढंगी भूल हो जाती है.
भूल गए राग रंग भूल गए छकड़ी, तीन चीज याद रहीं नोन तेल लकड़ी (घर करू घर करू घर बड़ा रगड़ी, तीन चीज जान मारे नून तेल लकड़ी). शादी के पहले मस्त रहने वाले लोगों का गृहस्थी संभालने के बाद का कथन.
भूल चूक का पैसा कमाई में नहीं गिना जाता. भूल चूक में कुछ पैसा यदि आ जाए तो उसे कमाई में नहीं गिनते.
भूल चूक लेनी देनी. व्यापारी लोग हिसाब में छोटी मोटी भूल चूक को आपसी सहमति से नज़र अंदाज कर देते हैं, उसी के लिए कथन. इंग्लिश में कहते हैं – Errors and omissions accepted.
भूला फिरे किसान जो कातिक मांगे मेंह. कार्तिक की वर्षा से कोई लाभ नहीं होता.
भूले चूके दंड नहीं. अनजाने में किसी से भूल हो गई हो तो उसे दंड नहीं देना चाहिए.
भूले बनिया भेड़ खाई (भूले बामन गाय खाई), अब खाऊं तो राम दुहाई. धोखे से कोई गलत काम हो गया है, अब आगे से किसी हाल में नहीं करूंगा.
भूले बिसरे राम सहाई. जो वंचित लोग समाज द्वारा उपेक्षित हैं उन की सहायता ईश्वर करता है.
भूसी बहुत आटा थोड़ा. कायदे में आटे में थोड़ी सी ही भूसी (चोकर) होना चाहिए. अगर भूसी अधिक और आटा कम है तो उसे घटिया माना जाएगा.
भेजा खाय, खोपड़ी सहलाय. किसी को बहुत परेशान करने के साथ बहलाना भी.
भेड़ की खाल में भेड़िया. कोई बहुत दुष्ट आदमी सज्जन बनने का ढोंग कर रहा हो तो.
भेड़ की लात घुटनों तक. कमजोर आदमी किसी को अधिक नुकसान नहीं पहुँचा सकता. भेड़ किसी को लात भी मारेगी तो टांगों पर ही मार पाएगी (जबकि गधे घोड़े पेट और मुँह पर भी लात मार सकते हैं.
भेड़ क्या जाने पुआल का मरम. भेड़ के शरीर पर खुद की इतनी ऊन होती है कि उसे पुआल की कोई आवश्यकता नहीं है, इसलिए वह पुआल को भाव नहीं देती
भेड़ क्या जाने सुपारी का स्वाद. मूर्ख व्यक्ति किसी उत्तम वस्तु के गुण नहीं समझ सकता.
भेड़ जहां जाएगी वहीं मुंड़ेगी. सीधा साधा आदमी जहाँ जाएगा वहीं ठगा जाएगा.
भेड़ पर ऊन किसने छोड़ी. कमजोर को सब लूटते हैं.
भेड़ पूंछ भादों नदी को गहि उतरे पार. भादों की उफनती नदी है. भेड़ की पूंछ पकड़ कर कैसे पार हो सकती है. किसी बड़ी मुसीबत को छोटे आदमी के सहारे पार नहीं किया जा सकता.
भेड़ भगतिन बन गई और पूंछ में डाली माला. बनावटी साधुओं पर व्यंग्य.
भेड़ भेड़ तुझे कंबल उढ़ाउंगा, के ऊन कहाँ से लाएगा. जनता को मुफ्त में उपहार बांटने का नाटक करने वाले नेताओं से जनता को यह प्रश्न पूछना चाहिए कि तुम ये सब कहाँ से लाओगे. सब पैसा है तो जनता का ही.
भेड़िया आया, भेड़िया आया. गंभीर सामाजिक मसलों में ठिठोली नहीं करनी चाहिए. सन्दर्भ कथा – एक चरवाहा दूर जंगल में भेड़ें चराया करता था. एक दिन वह मज़ाक मजाक में चिल्लाने लगा – भेड़िया आया, भेडिया आया. आसपास के लोग उसकी मदद के लिए दौड़े तो देखा कि वह झूठ मूठ चिल्ला रहा है. लोगों से मज़ा लेने के लिए उसने दो तीन बार फिर यही हरकत की. हर बार लोग आते और वापस लौट जाते. एक दिन सचमुच में भेड़िया आ गया और उस की एक भेड़ को उठा कर ले जाने लगा. अब की बार वह बहुत चिल्लाया पर लोगों ने सोचा कि वह फिर से मज़ाक कर रहा होगा इसलिए कोई उस की मदद को नहीं आया.
भेड़िये रे भेड़िये, बकरी चराएगा. किसी दुष्ट आदमी से ऐसे काम के लिए पूछना जिसमें उसका बहुत फायदा हो.
भेड़ियों के जरख ही पाहुने. जरख – लकड़बग्घा. नीच लोगों के संबंध नीच लोगों से ही होते हैं.
भेड़ियों को आँसू नहीं आते. कठोर हृदय मनुष्य को दया नहीं आती.
भेदिया सेवक, सुंदर नार, जीरन पट, कुराज, दुख चार. कहावत कहने वाले को चार दुख सबसे बड़े लगते हैं. – नौकर जो आपके भेद और लोगों को बताता हो, सुन्दर नारी (यदि वह काम न करती हो और हर समय उसके नखरे उठाने पड़ते हों), फटे कपड़े और बुरा राज (राजकीय अराजकता).
भेदी चोर, उजाड़े गाँव. भेद जानने वाला चोर सबसे अधिक नुकसान करता है.
भैंस अपना रंग न देखे, छतरी को देख के बिदके. कोई व्यक्ति अपनी बड़ी कमी न देखे और दूसरों की छोटी छोटी कमियों पर दुर्व्यवहार करे तो.
भैंस का गोबर, भैंस के चूतड़ों को ही लग जाता है. बड़े व्यापार में कमाई तो होती है पर उसके अपने खर्चे भी बहुत होते हैं.
भैंस की सगी भैंस. कम बुद्धि वाले लोग अपनी जाति वाले को ही अपना सगा मानते हैं.
भैंस के आगे पढ़ें भागवत, भैंस खड़ी रम्भाए. मूर्ख व्यक्ति के सामने ज्ञान की बात करना बेकार है.
भैंस के आगे बीन बजाई, गोबर का ईनाम. भैंस के आगे बीन बजाई तो उस ने गोबर कर दिया. जो कला का पारखी नहीं है उस के आगे कला प्रदर्शित करोगे तो क्या होगा.
भैंस के आगे बीन बजाओ, भैंस खड़ी पगुराए. यदि आप किसी मूर्ख व्यक्ति के सामने ज्ञान की बातें कर रहे हैं और उस पर कोई असर नहीं हो रहा है, या किसी ऐसे व्यक्ति के सामने अपनी कला प्रदर्शित करें जो उसको समझ न पा रहा हो तो यह कहावत बोलते हैं.
भैंस को पड़िया ही जननी चाहिए और बहू को बेटा. भैंस से तो यह उम्मीद करते हैं कि वह पड़िया ही जने (क्योंकि पड़िया की कीमत बछड़े से बहुत अधिक होती है), पर घर की बहू से यह चाहते हैं कि वह बेटा ही जने.
भैंस चढ़ी बबूल पे, तकि तकि गूलर खाए. कोई व्यक्ति असम्भव और हास्यास्पद बात कह रहा हो तो उसका मजाक उड़ाने के लिए.
भैंस दूध जो काढ़ के पीवे, ताकत घटे न जब लग जीवे. जो आदमी भैंस के दूध को स्वयं दुह के पीता है वह सदा बलवान रहता है. यहाँ ध्यान देने लायक बात यह है कि भैंस का दूध दुहने में व्यायाम भी हो जाता है.
भैंस ने मारी डुबकी तो मेंढक पड़े किनारे. भैस तालाब में डुबकी मारती है तो पानी के उछाल के साथ बेचारे मेंढक किनारे जा पड़ते हैं. प्रभावशाली लोगों के कारण गरीब लोगों को बिना किसी गलती के कष्ट उठाने पड़ते हैं.
भैंस पकोड़े हग गई. किसी को अचानक बिना उम्मीद के बड़ा लाभ हो जाए और वह उस का भेद न बता रहा हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.
भैंस पूछ उठाएगी तो गाना नहीं गाएगी गोबर करेगी. कोई मूर्ख या निकृष्ट आदमी मुँह खोलेगा तो निकृष्ट बात ही बोलेगा.
भैंस सुखी जब ताल परै, रांड़ सुखी जब सबका मरै. भैंस तब प्रसन्न होगी जब कीचड़ वाले पानी में बैठे और विधवा स्त्री तब प्रसन्न होगी जब सब स्त्रियों के पति मर जाएं.
भैंस हमें चाहिए थुरमोलू और उधार, पड़िया उसके तले हो, होवे बहुत दुधार. कोई ग्राहक ऐसा सामान मांग रहा हो जिस की कीमत भी कम हो और उस में सारी खूबियाँ भी हों, साथ में कोई चीज़ मुफ्त भी हो और उधार में भी मिल जाए. थुरमोलू – कम कीमत की.
भैंसा मार के मसाले की कंजूसी. बहुत बड़ा खर्च कर के छोटे मोटे खर्च में आनाकानी करना.
भैंसा, मेंढा, बकरा, चौथी विधवा नार, ये चारों पतले भले मोटा करें बिगाड़. अर्थ स्पष्ट है.
भैया जी कितने भी डंड मलवाएं, बंदा पहलवान नहीं बनने का. आप लोग कितनी भी कोशिश कर लो मैं पहलवान (या डॉक्टर या आईएएस) नहीं बन सकता.
भैया होय अबोलना तो भी अपनी बाँह. भाई से बोलचाल न भी हो तो भी वह सहारा देता है.
भैरों (भूतों) के लड्डुओ में इलायची का क्या स्वाद. जो लड्डू भैरों देवता (या भूतों) पर चढ़ाने के लिए बनाने हैं उनमें इलायची जैसी नजाकत वाली चीज़ डालने का क्या औचित्य.
भोंदू भाव न जानें, पेट भरे से काम. मूर्ख को खिलाने वाले की भावना से नहीं, केवल पेट भरने से काम होता है.
भोथर चटिया, बस्ता मोट (बुड़बक विद्यार्थी के गत्ता मोट). मंद बुद्धि बालक का बस्ता अधिक मोटा होता है.
भोर का मुर्गा बोला, पंछी ने मुँह खोला. भोर होते ही पंछी भोजन की जुगाड़ में लग जाते हैं. छोटा बच्चा जब उठते ही दूध मांगता है तो दादी नानी प्यार से ऐसे बोलती हैं.
भौंकते कुत्ते को रोटी का टुकड़ा. जो हाकिम ज्यादा गुर्राता है उसे दक्षिणा दे कर चुप किया जाता है.
भौंके न बर्राय (गुर्राय), चुपके से काट खाय. जो आदमी बोले कुछ नहीं और चुपचाप भरी नुकसान पहुँचा दे.
भौंर न छाँड़े केतकी, तीखे कंटक जान. केतकी के फूल के साथ कांटे होते हैं पर भौंरा उसे नहीं छोड़ता. अपने मतलब की वस्तु हासिल करने के लिए (या जिससे प्रेम होता है उसे पाने के लिए) व्यक्ति खतरा भी उठाता है.