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गिने गिनाए नौ के नौ

एक गाँव के नौ बुनकरों ने अच्छे अच्छे वस्त्र बुने और अच्छे पैसे मिलने की आशा में उन्हें ले कर शहर की ओर चले. रास्ते में जंगल में बेरों की झाड़ियों में पके हुए बेर देख कर सब का मन चल आया. बेर खाने के लिए सब इधर उधर बिखर गए. छक कर बेर खाने के बाद सब इकट्ठे हुए तो चलने से पहले मुखिया ने सब की गिनती की, लेकिन उसने अपने को नहीं गिना. कई बार गिना पर हर बार आठ ही निकले. वहाँ तो रोना पीटना पड़ गया. इसी बीच एक घुड़सवार उधर से निकला. सब को इस तरह रोते देख कर  उस ने उन से पूछा कि क्या माजरा है. उन की समस्या सुन कर वह मन ही मन हँसा और बोला, अगर मैं तुम्हारा खोया हुआ आदमी ढूँढ़ दूँ तो मुझे क्या दोगे. बुनकर बोले हम ये सारे बहुमूल्य वस्त्र तुम्हें दे देंगे. घुड़सवार ने उन्हें लाइन से खड़ा किया और हर आदमी को कोड़ा मारते हुए पूरे नौ गिन दिए. वे सारे मूर्ख ख़ुशी ख़ुशी सारे वस्त्र उसे दे कर जान बचने की ख़ुशी मनाते हुए अपने गाँव लौट गए.

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