एक गाँव से थोड़ी ही दूरी पर एक ऐसा रास्ता निकलता था, जहाँ से होकर काफिले गुजरा करते थे। उस गाँव के कुछ बदमाश लोग उधर से गुजरने वाले काफिलों को लूटने का ही काम किया करते थे। उनकी देखा-देखी उस गाँव में रहने वाले हिजड़ों ने भी आपस में सलाह कर के काफिलों को लूटने का निश्चय किया। योजनानुसार उन्होंने रात्रि को डाकुओं का वेश बनाया और जैसे हथियार मिल सके उन्हें लेकर वे सव उस रास्ते पर जा खड़े हुए।
आधी रात के बाद एक काफिला उधर से गुजरा तो उन्होंने काफिले वालों को डपटते हुए कहा कि जान प्यारी हो तो ऊंटों को यहीं छोड़ कर भाग जाओ। उस स्थान का ऐसा आतंक छाया हुआ था कि ऊंट पर सवार एक राजपूत को छोड़ कर शेष सारे लोग भाग गये। डाकू वेशधारी हिजड़ों ने उस राजपूत से भी भाग जाने को कहा। लेकिन वह तलवार निकाल कर अपनी जगह पर डटा रहा और उन्हें ललकारते हुए बोला कि तुम सामने आ जाओ, मैं तुम्हारी
तरह हिजड़ा नहीं हूँ जो भाग जाऊं। उस ने तो कायर के अर्थ में हिजड़ा शब्द का प्रयोग किया था पर हिजड़ों ने समझा कि इसने हमें पहचान लिया है। उनकी हिम्मत टूट गई और वे तालियां बजाते हुए और खूब पहचाना जी, खूब पहचाना जी कहते हुए वहां से भाग गये।
हिजड़ों ने भला कभी काफिला लूटा है
09
May