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सांच को आँच नहीं

किसी नगर में एक जुलाहा रहता था. वह बहुत बढ़िया कम्बल तैयार करता था. उसका धंधा सच्चा था. एक दिन उसने एक साहूकार को दो कम्बल दिए. साहूकार ने दो दिन बाद उनका पैसा ले जाने को कहा. दो दिन बाद जब जुलाहा अपना पैसा लेने आया तो साहूकार ने कहा – मेरे यहां आग लग गई और उसमें दोनों कम्बल जल गए, अब मैं पैसे क्यों दूं? जुलाहा बोला – यह नहीं हो सकता मेरा धंधा सच्चाई पर चलता है. असली कम्बल में कभी आग नहीं लग सकती. जुलाहे के कंधे पर एक कम्बल पड़ा था उसे सामने करते हुए उसने कहा – यह लो, लगाओ इसमें आग. साहूकार ने कम्बल को जलाने कि काफी कोशिश की लेकिन कम्बल नहीं जला. तब जुलाहे ने कहा – याद रखो सांच को आंच नहीं. (कहानी में यह माना गया है कि असली ऊन का कम्बल आग नहीं पकड़ता. मालूम नहीं इस में कितना सच है).

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