रोज़े के दिनों में मुसलमान सूर्योदय के पहले ही खूब जम कर खाना खा लेते हैं। फिर दिन भर कुछ नहीं खाते पीते। शाम को इफ्तार होने पर ही कुछ खाते हैं। सुबह का वह भोजन सहरी कहलाता है।
एक मियां साहब के पास एक कुत्ता था। एक दिन उस कुत्ते ने उनकी सहरी खा डाली। इस पर मियां साहब ने नाराज़ होकर उसे एक खंभे से बांध दिया और कहा कि बस अब आज मेरे बदले यह कुत्ता ही रोज़ा रखेगा, क्योंकि इसने ही सहरी खाई है। इस प्रकार मियां साहब ने अपने को रोज़ा रखने की मुसीबत से बचा लिया।