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बंके को तिरबंका मिल ही जाता है. धूर्त व्यक्ति को अपने से बड़ा धूर्त कभी न कभी मिल जाता है.

बंद है मुठ्ठी तो लाख की, खुल गई तो फिर ख़ाक की. जब तक कोई रहस्य खुलता नहीं है तब तक लोगों को उसके विषय में उत्सुकता रहती है. रहस्य खुलने के बाद उसकी पूछ कम हो जाती है. सन्दर्भ कथा – जब तक कोई रहस्य खुलता नहीं है तब तक लोगों को उसके विषय में उत्सुकता रहती है. रहस्य खुलने के बाद उसकी पूछ खत्म हो जाती है. एक बार एक राजा ने घोषणा की कि वह अमुक मंदिर में पूजा करने के लिए अमुक दिन जाएगा. इतना सुनते ही मंदिर के पुजारी ने मंदिर की सजावट करना शुरू कर दिया जिस के लिए उसने छः हजार रुपये का कर्ज भी लिया. तय दिन पर राजा मंदिर में ए पहुंचे. जब राजा के सामने आरती की थाली लाई गई तो राजा ने उस में चार आने रखे और प्रस्थान कर गए.

    पुजारी को इस पर बड़ा गुस्सा आया. उसे चिंता भी सताने लगी कि वह अपना क़र्ज़ कैसे भरेगा. फिर उसने एक तरकीब निकाली. उसने आस पास के क्षेत्र में ढिंढोरा पिटवाया कि वह राजा की दी हुई वस्तु को नीलाम कर रहा है. नीलामी की बोली लगाते समय उसने अपनी मुट्ठी बंद रखी. लोग समझे कि राजा की दी हुई वस्तु बहुत अमूल्य होगी इसलिए बोली दस हजार रूपये से शुरू हुई और बढ़ते बढ़ते पचास हजार तक पहुंच गई. पुजारी ने उस समय नीलामी स्थगित कर दी और दूसरे दिन नीलामी को पचास हजार से आगे बढ़ाने की बात कही. इसी बीच यह बात राजा के कानों तक पहुंच गई कि पुजारी उस की दी हुई चीज़ को नीलाम कर रहा है. राजा ने अपने सैनिकों को भेज कर पुजारी को बुलवाया और कहा कि मेरी वस्तु को नीलाम न करो, मैं तुम्हें लाख रुपए देता हूं. इस प्रकार राजा ने अपनी इज्जत को बचाया और पुजारी को भी बहुत बड़ा लाभ हो गया. तब से यह कहावत बनी.

बंदर का गुस्सा तबले पर. 1. बंदर को गुस्सा आता है तो वह तबले को पीटता है. तबला बजता है तो उसे और गुस्सा आता है, वह और जोर से तबले को पीटता है. खिसियाने वाले का मजाक उड़ाने के लिए. 2. बंदर ने कोई नुकसान पहुँचाया. बंदर का कुछ नहीं कर सकते तो तबले को पीट रहे हैं.

बंदर का गुस्सा तबेले पर. तबेला – घुड़साल. पुराने विश्वास के अनुसार घुड़साल के आसपास बंदर पाले जाते हैं जिससे कि घोड़ों पर आने वाली बला बंदरों पर आ जाए. इस बात से नाराज होकर कोई बंदर घुड़साल का क्या बिगाड़ सकता है. क्षुद्र व्यक्ति यदि किसी बड़ी चीज़ पर गुस्सा करे तो यह कहावत कही जाती है.

बंदर के हाथ में आइना. बंदर आइने की कद्र नहीं जान सकता, उसमें अपनी शक्ल देख कर उसे दूसरा बंदर समझ कर तोड़ देगा. मूर्ख व्यक्ति बहुमूल्य वस्तु का मोल नहीं समझ सकता.

बंदर के हाथ में उस्तरा. किसी नासमझ व्यक्ति के हाथ में कोई छोटा सा अस्त्र भी बहुत खतरनाक हो जाता है. वह औरों को भी बहुत हानि पहुँचा सकता है और अपने को भी चोट मार सकता है. उस्तरे से पहले नाई लोग हजामत बनाते थे.(देखिये परिशिष्ट)

बंदर क्या जाने अदरख का स्वाद. अगर आप बंदर को अदरक खाने को दें तो वह यह नहीं समझेगा कि यह कोई नायाब चीज है. वह उसे कड़वा और चरपरा समझ कर थूक देगा. किसी नासमझ आदमी को कोई अक्ल की बात बताई जाए या कोई बढ़िया चीज दी जाए और वह उसकी कद्र न करे तो यह कहावत कही जाती है.

बंदर दारू पी कर सिकंदर बन जाता है. कोई मूर्ख आदमी नशा कर ले तो अपने आप को राजा समझता है.

बंदर नाचे, ऊँट जल मरे. बन्दर को आज़ादी से नाचता देख कर ऊँट को बहुत जलन होती है, क्योंकि वह न तो आज़ाद है, न ही उसे नाचना आता है. दूसरे को प्रसन्न देख कर परेशान होना.

बंदर बूढ़ा हो जाए फिर भी छलांग लगाना नहीं भूलता. बूढ़ा होने के बाद भी आदमी की खुराफातें कम नहीं होतीं.

बंदरों के बीच में गुड़ की भेली. बंदरो के झुंड में अगर गुड़ की भेली रख दी जाए तो वे उस पर कब्जा करने के लिए आपस में बुरी तरह लड़ते हैं. अपात्र लोग किसी चीज के लिए झगड़ रहे हों तो यह कहावत कही जाती है.

बकरा मुटाय, तब लकड़ी खाय. बकरा ज्यादा मोटा हो जाता है तो लड़ाका हो जाता है, इसलिए पिटता है.

बकरिया पागुर करे, डायन बोले मुझे बुरा कहे. कमजोर व्यक्ति पर जबरदस्ती दोष लगा कर उसका शोषण करना.

बकरी के मुँहे कुम्हड़ा नाहीं समात. जब कोई आदमी कोई असंभव बात कहे, तो कहावत कही जाती है.

बकरी खटीक से ही बहलती है. खटीक – चमड़ा निकाल कर बेचने वाली एक जाति. बकरी यह नहीं जानती कि यह खटीक ही उसे मार कर उसकी खाल उतार लेगा. वह उसी का कहना मानती है. जो लोग भ्रष्ट, अराजक और लुटेरे नेताओं को अपना शुभचिंतक समझते हैं उन्हें सीख देने के लिए.

बकरी खाए न खाए पर मुँह तो जरूर मारे. बकरी की एक ख़ास आदत होती है कि उस का पेट कितना भी भरा हुआ हो, यदि उसके सामने पत्ते लाए जाएं तो वह उन में मुँह जरूर मारती है. यदि कोई व्यक्ति बिना जरूरत किसी काम में टांग अड़ाए तो भी यह कहावत कही जा सकती है. सन्दर्भ कथा – बकरी की एक ख़ास आदत होती है कि उस का पेट कितना भी भरा हो, यदि उसके सामने पत्ते लाए जाएं तो वह उन में मुँह जरूर मारती है (भले ही खाए न). अकबर के दरबार में एक बार इस को ले कर बहस हो रही थी. सभी दरबारी कह रहे थे कि बकरी की इस आदत को कोई नहीं बदल सकता. बादशाह ने बीरबल को चुनौती दी कि बीरबल भी ऐसी कोई बकरी ढूँढ़ कर नहीं ला सकते जो पत्तों में मुँह न मारे. बीरबल ने इस काम के लिए एक सप्ताह का समय माँगा.

एक सप्ताह बाद बीरबल दरबार में एक बकरी ले कर आए. बकरी के सामने पत्ते लाए गये. सारे दरबारी मन ही मन खुश हो रहे थे कि आज बीरबल की भद्द जरूर पिटेगी. लेकिन घोर आश्चर्य. बकरी ने मुँह एक तरफ मोड़ लिया. हमेशा की तरह बीरबल शर्त जीत गये थे. बादशाह ने कहा बीरबल शर्त तो तुम जीत गए, पर यह बताओ कि यह हुआ कैसे? बीरबल बोले हुजूर! इस के लिए मैं ने संटी उपचार किया. मैं बकरी के सामने एक लम्बी सी संटी ले कर बैठ गया. बकरी को पहले भरपेट घास खिलाई. फिर उस के सामने पत्ते रखे, जैसे ही बकरी ने पत्तों में मुँह मारा, एक संटी सूत के उस के मुँह पर मारी. यह प्रक्रिया दिन में कई बार दुहराई गई. धीरे धीरे बकरी को समझ आ गया कि वह घास चाहे जितनी खा ले, उसे पत्ते बिलकुल नहीं खाने हैं.

बकरी जान से गई, राजा कहें नमक कम है. किसी गरीब का बहुत बड़ा नुकसान कर के यदि बड़ा आदमी कहे कि उसका मतलब हल नहीं हुआ तो यह कहावत कही जाती है.

बकरी दूध तो दे पर मींगनी कर के. किसी का कोई काम करने के साथ में अशोभनीय व्यवहार करना.

बकरी मार घरैया खाई, पाहुने पे हत्या लगाई (मांस भात घरवइया खाएं, हत्या ले कर पाहुना जाए). किसी दूसरे की आड़ में स्वयं को लाभ पहुँचाना और दूसरे पर दोष लगाना. (मेहमान के बहाने खुद बकरी खा रहे हैं)

बकरी से हल चलता तो बैल कौन रखता. कम लागत से व्यापार हो तो अधिक लागत क्यों लगाई जाएगी.

बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी. जब कोई अप्रिय घटना होना अटलनीय हो. (जैसे बकरा तो कभी न कभी कटना ही है, उसकी माँ कब तक खैर मनाएगी).

बखत चूके जुगन को फेर. समय पर थोड़ा सा चूक जाओ तो युगों का अंतर पड़ जाता है. बीता अवसर दुबारा जल्दी हाथ नहीं आता.

बख्शो बी बिल्ली, चूहा लंडूरा ही जिएगा. लंडूरा – दुमकटा. एक बिल्ली ने चूहे पर झपट्टा मारा तो चूहे की पूँछ कट के उस के हाथ में आ गयी. चूहा जल्दी से बिल में घुस गया. बिल्ली बोली – चूहे राजा, बाहर आ जाओ, पूँछ जोड़ दूंगी. चूहा बोला, मुझे बख्शो बड़ी बी, मैं दुमकटा ही अच्छा. कोई दुष्ट व्यक्ति किसी को लालच दे कर फंसाने की कोशिश करे तो वह आदमी यह कहावत बोलेगा.

बगल में कटारी, चोर को घूंसों से मारे. 1. मूर्खता पूर्ण काम. कटारी होते हुए घूंसे मारना. 2. समझदारी भी कह सकते हैं. कटारी से मारने में इस बात का डर है कि अगर चोर मर गया तो उल्टे लेने के देने पड़ जायेंगे.

बगल में छोरा शहर में ढिंढोरा. ढिंढोरा – बड़ा ढोल. पहले के जमाने में कोई बात आम जनता को बताने से पहले ढोल बजा कर (ढिंढोरा पीट कर) लोगों का ध्यान आकर्षित करते थे. कहावत में कहा गया है कि लड़का तो बगल में मौजूद है और शहर में ढिंढोरा पीट कर उसे ढूँढा जा रहा है. पास में उपलब्ध किसी चीज़ को अन्यत्र ढूँढना.

बगल में तोशा, किसका भरोसा (अपना तोसा अपना भरोसा). जरूरत का सामान अपने साथ हो तो किसी पर निर्भर नहीं होना पड़ता. तोशा – खाने का सामान, टिफिन.

बगुला धोबी का भाई. बगुला और धोबी दोनों को ही पानी में खड़े रहना पड़ता है इसलिए.

बगुला मारे पखना हाथ. मुर्गा या बत्तख मारने पर तो मांस हाथ आएगा पर यदि बगुले को मारोगे तो केवल पंख हाथ लगेंगे. कहावत का अर्थ है कि किसी गरीब आदमी को सताने से क्या हासिल होगा.

बगुले से मछली की यारी. मूर्ख व्यक्ति अपना शोषण करने वाले ढोंगी लोगों को ही अपना मित्र समझते हैं. मूर्ख जनता अपने को लूटने वाले भ्रष्ट नेताओं को अपना हितैषी समझ कर वोट देती है (अधिकतर अपनी जाति का).

बगुलों की लड़ाई में चोंचों की खटखट. दो डरपोक लोग आपस में लड़ रहे हों और एक दूसरे को नुकसान पहुँचाने की हिम्मत न कर पा रहे हों तो उन का मजाक उड़ाने के लिए.

बचपन में खिलाए दूध औ भात, बड़ा हुआ तो मारे लात (बच्चे पाले दूधों भात, बड़े हुए तो मारें लात). जिस बच्चे को अत्यधिक लाड़ प्यार से पाला, वही बड़ा हो कर दुत्कारे तो माँ बाप को बहुत कष्ट होता है.

बचाया सो कमाया. धन बचाना भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना धन कमाना. क्रिकेट के खेल में भी कहते हैं runs saved are runs made.

बचे नर, हजार घर. आदमी की जान बची रहे तो घर तो बहुत से मिल जाएंगे.

बच्चा जने कोई, गोंद मखाने खाए कोई. पहले जमाने में स्त्रियों को प्रसव के बाद गोंद, मखाने, घी, मेवा (हरीरा, पंजीरी) इत्यादि खाने को मिलते थे. कहावत में कहा गया है कि प्रसव का कष्ट किसी और ने उठाया, और गोंद मखाने किसी और को खाने को मिल रहे हैं.

बच्चा बूढ़ा एक समान. बूढ़ा आदमी भी बच्चों के समान जिद्दी और मनचला हो जाता है. अधिक बूढ़ा होने पर मल मूत्र पर भी उसका नियंत्रण नहीं रहता.

बच्चा हुआ न, दर्दों मरी. गर्भ ही नहीं है और प्रसव पीड़ा का दिखावा कर रही है. बहरूपिनी स्त्रियों के लिए.

बच्चे तो पेट में भी लातें मारते हैं. बच्चों की शैतानियों पर कही गई कहावत.

बच्चे रोवें तब फूहड़ पोवे. जब बच्चे भूख से रोने लगते हैं तो फूहड़ स्त्री रोटी बनाने बैठती है.

बच्चे ही गरीब की अमानत हैं. गरीब का धन उसकी संतानें ही होती हैं, कमाने के लिए भी और मुसीबत में साथ देने के लिए भी.

बच्चों और मूर्खो के पेट में बात नहीं पचती. अर्थ स्पष्ट है.

बच्चों के पैर और बुड्ढों के मुँह खुजलाते हैं. बच्चों के पैर खुजलाते हैं अर्थात बच्चे एक जगह बैठते नहीं हैं, बुड्ढों के मुँह खुजलाते हैं मतलब बुड्ढे लोग चुप नहीं बैठते.

बच्चों के बिना घर कैसा. बच्चों से ही घर में रौनक होती है.

बच्चों से बोलूं नहीं, जवान मेरो भैया, बुड्ढन को छोडूँ नहीं चाहें ओढ़ें दस रजैयाँ (चाहें करें दय्या मैया). जाड़े का मौसम ऐसा कहता है.

बछवा बैल जुताय जो, न हल बहे न खेती हो. घाघ कहते हैं कि जो बछवा बैल (कम आयु का अनुभवहीन बैल) से हल जोतने की कोशिश करेगा वह खेती नहीं कर पाएगा.

बछवा बैल बहुरिया जोय, न घर चले न खेती होय. अनुभवहीन नये बैल से खेती नहीं हो सकती और अनुभवहीन नई बहू गृहस्थी नहीं संभाल सकती.

बछिया के बाबा, पड़िया के ताऊ. किसी मूर्ख व्यक्ति के लिए संबोधन. बछिया के ताऊ भी कहते हैं.

बछिया मरी तो मरी कलकत्ता तो देखा. कुछ नुकसान हुआ तो कुछ फायदा भी हो गया.

बजरंग बली का सोटा, फूट जाए भंगेड़ी का लोटा. भांग पीने वाले को डराने के लिए.

बजा दे बेटा ढोलकी, मियाँ खैर से आए. किसी काम में असफल हो कर कोई जान बचा कर लौट आया हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.

बजाज की गठरी का झींगुर मालिक (झींगुर बैठा थान पर तो बजाज बन बैठा). दूसरों के माल को अपना समझ कर घमंड करने वालों के लिए.

बजार लगा नहीं, उचक्कों ने डेरा डाल दिया. वस्तु तो तैयार नहीं, चाहने वाले पहिले से आ गये.

बज्जड़ परे कहाँ, तीन कायथ जहाँ. बज्जड़ – वज्र. जहाँ तीन कायस्थ हों वहाँ बर्बादी होना तय है. कायस्थों को कचहरी का पर्यायवाची माना जाता था.

बटिया खेती सांट सगाई, जा में नफा कौन ने पाई. बटिया खेती – बटाई की खेती, अधिया खेती. खेती को बटाई पे करने पर नफा नहीं मिलती और सांटे की सगाई (जिस घर में लड़की दी जाए उसी घर की लड़की को बहू बना कर अपने घर में लाया जाए) में दहेज़ आदि नहीं मिलता.

बटेऊ खांड मांडे खाए, कुतिया की जीभ जले. बटेऊ – राहगीर, मांडे – पतली रोटी. राह चलता आदमी कोई अच्छी चीज़ खा रहा है, उसे देख कर कुतिया की जीभ जल रही है. दूसरे की ख़ुशी देख कर जलना.

बड़ खुस बनिया, दमड़ी दान. बनियों की कंजूसी पर व्यंग्य. बनिया बहुत खुश होगा तो दमड़ी दान में देगा.

बड़ संग रहियो तो खइयो  बीड़ा पान, छोट संग रहियो तो कटइयो दुनु कान. (भोजपुरी कहावत) सज्जन का संग अच्छा है जबकि दुष्टों का संग करने से हानि होती है. पूरब में अतिथि को पान खिलाने की प्रथा थी. किसी बड़े आदमी के साथ कहीं जाओगे तो पान खाने को मिलेगा और नीच आदमी के साथ जाओगे तो दोनों कान कटेंगे.

बड़का दुश्मन कौन, माँ का पेट. माँ का पेट – माँ के पेट से उत्पन्न दूसरी सन्तान अर्थात भाई. जायदाद के लिए भाइयों में दुश्मनी हो जाती है.

बड़गांव की भागवत शुरू ही से. प्रभावशाली लोगों के कारण बार बार कथावाचक को भागवत शुरू से सुनानी पड़ी.  बिना किसी उचित कारण के किसी काम का बार बार रुकना. सन्दर्भ कथा – बड़गाँव का भागवत है, जो आरम्भ ही होता रहेगा. चम्पारन जिले में बड़गाँव नामक एक गाँव है. एक बार वहाँ एक कथावाचक आये. उन्होंने श्रीमद्भागवत की कथा आरम्भ की. कुछ देर के बाद एक बाबू साहब आये और उन्होंने पण्डितजी से आग्रह किया कि वे आरम्भ से ही कथा कहें. पण्डितजी भला उनकी बात कैसे टालते. उन्होंने पुनः आरम्भ से हो कथा शुरू की. थोड़ी देर बाद एक दूसरे महाशय आये और उन्होंने भी पण्डितजी से वैसा ही आग्रह किया. पण्डितजी फिर आरम्भ से ही कथा कहने लगे. इसी प्रकार एक-एक कर लोग आते और पण्डितजी को उनकी बात रखने के लिए बार-बार आरम्भ से ही कथा कहने को विवश होना पड़ता. फलस्वरूप, कई दिनों तक कथा का आरम्भ ही होता रह गया. उसी समय से यह घटना कहावत बन गई.

बड़न की बात बड़े पहचाना. बड़े लोगों की बातें बड़े ही समझ सकते हैं. इसको मज़ाक में अधिक प्रयोग करते हैं (दो मूर्ख लोग एक दूसरे की बड़ाई कर रहे हों तो). सन्दर्भ कथा – पूरी कहावत इस प्रकार है – काँधे धनुष, हाथ में बाना, कहाँ चले दिल्ली सुल्ताना, बन के राव विकट के राना, बड़न की बात बड़े पहचाना. एक बार एक धुनिया (रुई धुनने वाला) अपना धनुष जैसा औजार लिए जंगल में हो कर जा रहा था. एक सियार ने उसे देखा तो उसे शिकारी समझ कर डर गया. सियार ने उस की चापलूसी करने के लिए कहा कि कंधे पर धनुष और हाथ में वाण ले कर दिल्ली के सुल्तान, आप कहाँ जा रहे हैं? धुनिया ने कभी सियार नहीं देखा था, वह उसे शेर समझ कर डर गया और उसे मक्खन लगाने के लिए बोला कि हे जंगल के स्वामी, बड़े लोगों को बड़े ही पहचानते हैं. धुनिया और उस के औजार के लिए देखिये परिशिष्ट.

बड़न के साझे खेती करी, भुस बाँटन में मुस्किल परी. बड़े आदमियों के साझे में कोई काम नहीं करना चाहिए. कोई विवाद होने पर उनसे कुछ कहा नहीं जा सकता और अंत में अपने को ही हानि उठानी पड़ती है.

बड़न को बड़ो पेट. बड़े आदमियों का पेट भी बड़ा होता है. जो जितना बड़ा हाकिम होगा वह उतनी ही बड़ी रिश्वत मांगेगा. बड़े वकीलों की फीस बहुत ज्यादा होती है.

बड़सिंगा मत लीजो मोल, कुएं में डारौ रुपया खोल. बड़े सींग वाला बैल ठीक से काम नहीं करता. उसे खरीदना कुएं में रूपये डालने जैसा है. (घाघ की कहावतें)

बड़ा टूट कर भी बड़ा ही रहता है. बड़े आदमी को कुछ घाटा भी हो जाए तब भी वह छोटा नहीं हो जाता.

बड़ा धोता बड़ा पोथा, पंडिता पगड़ा बड़ा, अक्षरं नैव जानामि, स्वाहा स्वाहा करोम्यहम. पाखंडी पंडितों के लिए. बड़ी धोती, बड़ी पगड़ी पहन कर बड़ी पोथी हाथ में लिए हैं. मंत्र वंत्र कुछ नहीं जानते हैं, केवल कुछ बुदबुदा कर जोर से स्वाहा स्वाहा करते हैं.

बड़ा निवाला खाइए, बड़ा बोल न बोलिए. यदि आप सम्पन्न हैं तो अच्छा खाइये पर अहंकार मत करिए.

बड़ा बिस बिसधर के चलत है सीस नवाय, थोड़ा बिस बिच्छू के चलत है दुम अलगाय. सर्प के पास अधिक विष होता है मगर वह सिर झुकाकर चलता है, बिच्छू के पास थोड़ा विष होता है वह डंक को उठाकर चलता है.

बड़ा मरे बड़ाई को, छोटा मरे लाड़ को. वयस्क लोग जीवन में कुछ बनने के लिए संघर्ष कर रहे होते हैं. बच्चों को इस से कोई मतलब नहीं होता उन्हें केवल लाड़ प्यार ही चाहिए.

बड़ा रन जीत आये (बड़ा जस कर लओ) (बड़ौ यज्ञ कर लओ). किसी छोटे काम का बड़ा ढिढोरा पीटना.

बड़ा रोवे बड़ाई को, छोटा रोवे पेट को. बड़ा आदमी अपना बड़प्पन सिद्ध करने लिए परेशान रहता है और छोटा आदमी पेट भरने के लिए.

बड़ा लाड़ मोरी मौसी करें, छिनक छिनक सब कोने भरें. मेरी मौसी ने बड़ा लाड़-प्यार किया, तो नाक छिनक छिनक कर घर के सारे कोने भर दिये. बुजुर्ग लोगों के साथ कुछ अलग ही परेशानियाँ झेलनी पडती हैं.

बड़ा शोर सुनते थे कि हाथी की पूंछ है, पास जाके देखा तो सुतली बंधी थी. अर्थ स्पष्ट है. किसी स्थान या व्यक्ति के बारे में बहुत तारीफ सुनी हो और पास जाकर देखने पर वास्तविकता कुछ और निकले तो.

बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर (पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर). कोई व्यक्ति बड़ा अधिकारी, नेता या अमीर बन गया पर आम लोगों की पहुँच से दूर है उस के लिए कहा गया है.

बड़ी असामी, बड़ी फरमाइश.1.बड़े लोगों की फरमाइशें बड़ी होती हैं. 2.बड़ी असामी से बड़ी रिश्वत मांगी जाती है.

बड़ी नाकवाले बने फिरत. बड़ी इज्जत वाले बनते हैं.

बड़ी नाव की बड़ी विपदा. जो काम जितना बड़ा होगा उस में आने वाली विपत्ति भी उतनी ही कठिन होगी.

बड़ी पत्तल का बड़ा बरा. बड़े आदमी का अधिक आदर-सत्कार होता है.

बड़ी बड़ी बात बगल में हाथ. जो लोग बातें बड़ी बड़ी करते हैं पर काम कुछ नहीं करते.

बड़ी बड़ी में नोन नाही पड़े. एक एक बड़ी में नमक नहीं डाला जाता बल्कि दाल को फेंटते समय पूरी दाल में डाला जाता है. हर काम को करने का एक तरीका होता है उसी तरह से काम को करना चाहिए.

बड़ी बहू को बड्डा भाग, छोटो बनड़ो घनो सुहाग. (राजस्थानी कहावत) अगर पत्नी की उम्र पति से अधिक है तो उसे भाग्यशाली मानते हैं, पति आयु में छोटा होगा तो पत्नी से अधिक दिन जीएगा एवम् पत्नी सुहागन रहेगी.

बड़ी बहू, बड़ा भाग. अर्थ ऊपर वाली कहावत की भाँति.

बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है. जिस प्रकार बड़ी मछली छोटी मछली को निगल जाती है उसी प्रकार बड़े व्यापार छोटे व्यापार को और बड़े अपराधी छोटे अपराधियों को निगल जाते हैं.

बड़ी मार करतार की, चित से दिये उतार. ईश्वर किसी पर कुपित होता है तो उसे मन से उतार देते हैं.

बड़ी रातों के बड़े ही सवेरे. अधिक कष्ट के बाद सुख भी अधिक ही मिलता है.

बड़ी हैं जेठानी तो रखें अपना पानी. यहाँ पानी का अर्थ मान सम्मान से है. जो बड़े हैं उन्हें अपने बड़प्पन का ध्यान स्वयं रखना चाहिए (ऐसा व्यवहार करना चाहिए कि छोटे स्वयं उनका सम्मान करें).

बड़े आदमी का कुत्ता भी घमंडी. जिस के पास सत्ता या ताकत हो उस को अहंकार हो जाना स्वाभाविक है, लेकिन देखा यह गया है कि उसके नौकर चाकर, रिश्तेदार और चमचे भी अहंकारी हो जाते हैं.

बड़े आदमी की एक बात, बड़े घोड़े की एक लात. (बुन्देलखंडी कहावत) अर्थ स्पष्ट है.  

बड़े आदमी के चेले बनो कंगाल के दोस्त नहीं. कंगाल से दोस्ती करोगे तो उस की सहायता करने में ही उमर बीत जाएगी. बड़े आदमी के चेले बनने से खुद बड़ा बनने की संभावना हो जाती है.

बड़े आदमी ने साग खाया तो कहा सादा मिजाज़ है, गरीब ने साग खाया तो कहा कंगाल है. अर्थ स्पष्ट है. नेताजी खद्दर पहनते हैं तो उनकी महानता मानी जाती है, गरीब आदमी पहनता है तो उसका मजाक उड़ाया जाता है.

बड़े कढ़ाई में तले जाते हैं. सीधा अर्थ तो यह है कि कढ़ाई में तल कर दाल के बड़े बनाए जाते हैं. श्लेष अर्थ यह है कि घर के बड़ों को बहुत कष्ट उठाना पड़ता है.

बड़े की पीठ काली करें, छोटे का मुहँ काला. लोग बड़े आदमी की बुराई तो उसकी पीठ पीछे ही करते हैं लेकिन छोटे आदमी को उसके मुँह पर बुरा कहते हैं.

बड़े की बड़ाई न छोटे की छुटाई. 1. ऐसे व्यक्ति के लिए जो न बड़ों का सम्मान करता हो और न ही छोटों को स्नेह करता हो. 2. बड़े अपने बड़प्पन का ध्यान नहीं रखेंगे तो छोटे भी उनका सम्मान नहीं करेंगे.

बड़े गाँव जाऊं, बड़ा लड्डू खाऊं. बड़ी जगह पर कमाई अधिक होने की संभावना अधिक होती है.

बड़े घड़े के ठीकरे किस काम के. टूटे घड़े के टुकड़े किसी काम के नहीं होते, छोटे घड़े के हों या बड़े खड़े के.  

बड़े घर पड़ी, पत्थर ढो ढो मरी. लड़की ऐसे घर में ब्याह के गई जहाँ बहुत बड़ा परिवार था. बेचारी काम करते करते मर गई.

बड़े घर में बेटी दी, उससे मिलना भी मुश्किल. बेटी के घर खाली हाथ नहीं जाते हैं. बेटी बड़े घर की बहू है, हर बार उसी के अनुरूप भेंट ले कर जाना पड़ेगा.

बड़े घोड़े की बड़ी चाल. बड़े लोगों का चाल चलन अलग ही होता है.

बड़े चोर का बड़ा हिस्सा. लूट या चोरी के माल में बड़े अपराधी को अधिक हिस्सा मिलता है. रिश्वत का पैसा जब कर्मचारियों में बंटता है तो भी यह नियम लागू होता है.

बड़े न बूड़न देत हैं जाकी पकड़ी बांह, जैसे लोहा नाव में तिरत रहे जल मांह (लोहा तिरे काठ के संग). बड़े लोग जिसकी बांह पकड़ लेते हैं उसको डूबने नहीं देते, जैसे लकड़ी के साथ लोहा भी पानी में तैरता रहता है.

बड़े पेड़ों की बड़ी शाखें. बड़े संगठनों या प्रतिष्ठानों की शाखाएं भी बड़ी होती हैं.

बड़े बचन पलटें नहीं कही निबाहें धीर, कियो विभीषन लंकपति पाय विजय रघुवीर. बड़े लोग अपने वचन से पलटते नहीं हैं, उसे निबाहते हैं. राम ने लंका विजय के बाद विभीषण को ही लंका का राजा बनाया.

बड़े बड़ाई ना करैं, बड़ो न बोलैं बोल, (हीरा कब मुख ते कहै, लाख टका मेरो मोल). जो लोग वास्तव में महान होते हैं वे अपने मुँह से अपनी बड़ाई नहीं करते. हीरा अपने मुँह से नहीं कहता कि उसका मोल लाख रुपये है.

बड़े बड़े नाग पड़े, ढोंढ मांगे पूजा. ढोंढ – एक छोटा विषहीन सर्प. छोटा कर्मचारी अधिक रिश्वत मांगे तो.

बड़े बड़े बादल टकराते हैं तो बिजली चमकती है. बड़े लोगों की लड़ाई के परिणाम भयानक हो सकते हैं.

बड़े बड़े भूत कदम्ब तले रोवें, मूआ मांगे पूआ. कदम्ब के पेड़ के नीचे बड़े बड़े भूत बैठे रो रहे हैं, उन्हें कोई नहीं पूछ रहा, और ये मुर्दा पुए खाने को मांग रहा है. कोई महत्वहीन व्यक्ति अनुचित मांग करे तो.

बड़े बर्तन की खुरचन ही बहुत होती है. शाब्दिक अर्थ तो स्पष्ट है, कहावत का अर्थ यह है कि बड़े लोगों के यहाँ का बचा खुचा भी गरीब के लिए बहुत है. रूपान्तर – बड़े बर्तन की खुरचन बड़ी.

बड़े बात से, छोटे लात से. बड़े लोगों को बातचीत द्वारा समझाया जा सकता है किन्तु नीच लोगों को दंड दे कर ही समझाया जा सकता है.

बड़े बे आबरू होके, तेरे कूचे से हम निकले. अपमानित हो कर कहीं से निकलना पड़े तो.

बड़े बोल का सिर नीचा (बड़े बोल का मुँह काला) (घमंडी का सिर नीचा). अहंकारी कितनी भी बड़ी बड़ी बातें करे, उस को कभी न कभी नीचा देखना पड़ता है.

बड़े मरें बड़ाई को, छोटे मरें दुलार को. बड़े लोग प्रशंसा व प्रसिद्धि चाहते हैं और छोटे बच्चे केवल लाड़ प्यार.

बड़े मियाँ तो बड़े मियाँ छोटे मियाँ सुभान अल्लाह. जब कोई बड़े ओहदे वाला आदमी गड़बड़ियां करने वाला हो और उसके नीचे काम करने वाले और अधिक खुराफाती हों तब यह कहावत कही जाती है.

बड़े मियाँ बड़ा नाम, हिले दाढ़ी डोले गाँव. प्रभावशाली लोगों से सारा गाँव डरता है. विशेषकर मुगलों के शासनकाल में इस प्रकार का अन्याय बहुत अधिक था.

बड़े रईसों के मर्दन मान, घूरे पर की ठीकरी भई प्रधान. बड़े लोगों के घमंड को तोड़ कर कोई बहुत छोटा व्यक्ति महत्वपूर्ण पद पर पहुँचा जाए तो. घूरा – कूड़े का ढेर, ठीकरी – टूटे घड़े का टुकड़ा.

बड़े लोगों की डांट दूध मलाई होती है. बुजुर्गों की डांट का बुरा बिल्कुल नहीं मानना चाहिए. इससे केवल हमारी भलाई ही होती है.

बड़े लोगों के कान होते हैं आँखें नहीं. बड़े लोग केवल अपने चापलूसों की बातें सुन कर विश्वास कर लेते हैं, स्वयं देख कर सच्चाई जानने की कोशिश नहीं करते.

बड़े शहर का बड़ा ही चाँद. बड़े शहरों की हर बात निराली होती है.

बड़े सपूत करौ रुजगार, सोलह सौ के करे हजार. लड़के ने सोलह सौ रूपये लगा कर व्यापार किया तो हजार रूपये रह गये. संतान की अनुभवहीनता से किसी काम में नुकसान हो जाने पर.

बड़े होंए न नेक भी, कितनेहु फाड़ो नैन. कितना भी आँखें फाड़ो, छोटी आँख बड़ी नहीं हो सकती.

बड़ों का बड़ा मुँह. बड़े लोगों की मांग भी बड़ी होती है (वे अधिक मुँह फैलाते हैं).

बड़ों की आस सब करत. 1.बड़ों से सब आशा रखते हैं. 2.अच्छी चीजें (दही बड़े) सब खाना चाहते हैं.

बड़ों की जितनी आमदनी उतना खर्च. बड़ों की आमदनी अधिक होती है तो खर्च भी अधिक होता है.

बड़ों की बड़ी बात. 1. बड़े लोगों की बड़ी बड़ी बातें होती हैं. छोटे लोग उन से बराबरी करने की कोशिश में नुकसान उठाते हैं. 2. बुजुर्ग लोगों की सलाह बड़े काम की होती है.

बड़ों के कहे और आंवलों के खाए का पीछे ही स्वाद आता है. आंवला खाओ तो पहले कड़वा लगता है बाद में उसका स्वाद आता है, बड़े लोगों की सलाह पहले बुरी लगती है पर बाद में उसका महत्व मालूम पड़ता है.

बड़ों के पाँव सिर पर. बड़ों की आज्ञा शिरोधार्य करनी चाहिए.

बड़ों के बड़े हाथ. बड़ा आदमी किसी की बहुत सहायता कर सकता है.

बड़ों के भाग में सब का भाग. बड़ों के भाग्य से दूसरे लोग भी खाते-पीते हैं. माता पिता बूढ़े हो जाएँ और कुछ कमाने लायक ना रहें, तो भी उन का अनादर नहीं करना चाहिए.

बड़ों को टोपी नहीं, कुत्ते को पजामा. घर के बड़ों की अनदेखी कर के आलतू फ़ालतू लोगों को लाभ पहुँचाना.

बड़ों को बड़े ही कलेस. बड़ों की समस्याएं भी बड़ी होती हैं.

बड़ों को लड़ा कर बच्चे फिर एक हो जाते हैं. बच्चों की लड़ाई में बड़े शामिल हो जाते हैं और आपसी रंजिश पाल लेते हैं, जबकि बच्चे फिर एक हो जाते हैं.

बड़ों को होवे दुख बड़ा, छोटों से दुख दूर, तारे तो न्यारे रहें गहे राहु ससि सूर. बड़े लोगों की परेशानियाँ भी बड़ी होती हैं, जबकि छोटे लोग उन विपदाओं से दूर रहते हैं. राहु, सूर्य और चन्द्रमा को ही ग्रसता है तारों को नहीं.

बढ़िया मिल गया तो बिटिया के भाग, न मिला तो नाऊ बामन मारियो. (हरियाणवी कहावत) पहले के जमाने में नाई और ब्राह्मण रिश्ते करा दिया करते थे. बढ़िया रिश्ता मिल गया तो कहेंगे हमारी बेटी का भाग्य अच्छा था, और खराब मिला तो नाई और पंडित को मारो.

बढ़े बाल औ मैले कपड़े और करकसा नार, सोने को धरती मिले नरक निसानी चार. कहावत में घोर दुर्दशा के चार लक्षण बताए हैं – बढ़े हुए बाल (पहले जमाने में बढ़े हुए बालों को बहुत बुरा माना जाता था), मैले कपड़े, कर्कश पत्नी और जमीन पर सोना.

बढ़ें तो अमीर, घटें तो फकीर, मरें तो पीर. मुसलमानों के विषय में अन्य धर्म वालों का व्यंग्य – वे तरक्की करते हैं तो अमीर बन जाते हैं, नुकसान हो जाए तो फकीर बनने का नाटक कर के मौज करते हैं और मर जाएं तो पीर बन कर अपनी पूजा करवाते हैं. मतलब हर परिस्थिति का लाभ उठाते हैं.

बतख तिरे तो तिरन दे, तू क्यों डूबे काग (बत्तख की नकल करने में कौआ डूब जाता है).  दूसरों की नकल करने में अपना नुकसान नहीं करना चाहिए. (विशेषकर यदि कोई गरीब आदमी किसी अमीर की नकल करे तो). पूरी कहावत इस प्रकार है – बत्तख तिरती देख के तू क्यूँ डूबे कग्ग, होड़ पराई जो करे तले मुंडी ऊपर पग्ग.

बत्तीस दाँतन में जैसे जीभ. बहुत सतर्क होकर चलना.

बद अच्छा बदनाम बुरा. बहुत से लोग वाकई में बुरे होते हैं लेकिन लोग उनके बारे में सच नहीं जानते इसलिए उन्हें अच्छा समझते हैं (बद होते हुए भी अच्छे), कुछ लोग इतने बुरे नहीं होते पर किसी कारणवश बदनाम हो जाते हैं और लोग उन्हें बुरा ही समझते हैं (कोई भी गलत काम हो उनका ही नाम लगाते हैं).

बद बदी से न जाए तो नेक नेकी से भी न जाए. अगर बुरा आदमी बुराई नहीं छोड़ सकता तो अच्छे आदमी को अच्छाई भी नहीं छोड़नी चाहिए.

बदनाम भी होंगे तो क्या नाम न होगा. कुछ लोगों को नाम की इतनी भूख होती है कि वे उसके लिए गलत काम करने को भी तैयार हो जाते हैं, उन्हें बदनामी में भी अपनी प्रसिद्धि दिखाई देती है.

बदबू को जितना छिपाओ उतनी ही फैले. अर्थ स्पष्ट है.

बदरकट्टू घाम और अछरकट्टू पंडित बड़े खतरनाक. बादलों को फाड़ कर निकलने वाली धूप और गलत अक्षर और मन्त्र बोलने वाले पंडित बड़े खतरनाक होते हैं.

बदरी हो गई सांझ, फूहर जाने भई भिनसार. बदरी – बादल, भिनसार – सुबह. फूहड़ स्त्री सांझ के समय आकाश में घिरे बादलों को देखकर सुबह होने का अंदाज लगा रही है.

बदली की छाँव क्या. बादल अभी यहाँ तो कुछ देर बाद कहीं और होता है, उसकी छाँव पर आप भरोसा नहीं कर सकते. जो भी चीज़ क्षण भंगुर है उस के सहारे नहीं बैठना चाहिए.

बन आई कुत्ते की जो पालकी बैठा जाए. किसी दुष्ट व्यक्ति को या बड़े आदमी के मुंहलगे नौकर को ठाठ बाट से रहता देख कर आम आदमी के उद्गार.

बन के जाये, बन ही में नाहिं रहत. जाएपैदा हुए. आदमी के दिन सदा एक से नहीं रहते. किसी राजा ने अपनी एक रानी को घर से निकाल दिया. जंगल में उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ. संयोग से एक साधू वहाँ जा पहुँचा. उसने रानी को अपनी बेटी की तरह रखा और उसके पुत्र का पालन पोषण किया. बड़ा होने पर वह लड़का एक बड़े राज्य का राजा बन गया, और एक राजा की बेटी से उसका विवाह भी हो गया.

बन गई तो लालाजी, बिगड़ गई तो बुद्धू. काम बन जाए तो व्यक्ति बुद्धिमान माना जाता है, न बने तो मूर्ख.

बन में अहीर, नैहर में जोय, जल में केवट, काऊ के न होय. अहीर जब जंगल में हो, पत्नी अपने मायके में हो और केवट जल में नाव खे रहा हो, ये तीनों उस समय किसी के सगे नहीं होते.

बन में उपजे सब कोई खाए, घर में उपजे घर खा जाए. यह एक पहेलीनुमा कहावत है जिसका उत्तर है – फूट (खरबूजे की जाति का फल जो पकने पर अपने आप फूट जाता है). कहावत में कहा गया है कि फूट अगर वन में उगती है तो उसे सब कोई खाते हैं और अगर घर में उगती है (आपसी फूट) तो घर को खा जाती है.

बन में बेर पके, कौवा के कौन काम के. (भोजपुरी कहावत) वन में बेर पक रहे हैं तो कौवे को उससे कोई लाभ नहीं होने वाला, क्योंकि वह तो शहर में रहने लगा है.

बन में ही रहना भला, बन पशुओं के साथ, मूरख के संग स्वर्ग में अच्छा नहीं निवास. अर्थ स्पष्ट है.

बनज में भाई बंदी क्या. बनज – वाणिज्य, व्यापार. व्यापार में भाई बन्धु नहीं देखे जाते.

बनते देर लगती है, बिगड़ते नहीं लगती. अर्थ स्पष्ट है.

बनल काम में बाधा डालो कुछ तो पंच दिलाएगा. (भोजपुरी कहावत) बनते काम में बाधा डालो. झगड़ा निपटाने की एवज में कुछ न कुछ तो मिल जाएगा.

बनिए का बहकावा और जोगी का फिटकारा. इनसे बचना मुश्किल है. फिटकारा – श्राप. 

बनिए का बेटा कुछ देख कर ही गिरता है. बनिये इतने चालाक माने गये हैं कि अगर गिरते भी हैं तो कुछ देख कर उसे उठाने के लिए गिरने का बहाना करते हैं.

बनिए का लिखा बनिया बांचे. किसी कारोबार के रहस्य दूसरा कारोबारी ही समझ सकता है.

बनिए की उचापत घोड़े की दौड़ सी. बनिए का उधार घोड़े की तरह तेज दौड़ता है.

बनिए की कमाई उसके चूतड़ों में होती है. बनिया गद्दी से चिपक कर बैठता है तभी कुछ कमा पाता है.

बनिए की सलाम बेगरज नहीं होती. बनिया अगर किसी को सलाम कर रहा है तो उस का कुछ न कुछ स्वार्थ अवश्य होगा.

बनिए तेरी बान, कोई सके न जान, पानी पीवे छान, लहू पिए बिन छान. बनिए मौका मिलते ही चूना लगा देते हैं और क़र्ज़ वसूलने में बड़े निर्दयी होते हैं.

बनिक पुत्र जाने कहा गढ़ लेवे की बात. बनिए का बेटा किला खरीदने की बात नहीं सोच सकता. छोटी सोच रखने वाला व्यक्ति बहुत बड़ा काम नहीं कर सकता.

बनिया अपना गुड़ छिपा कर खाता है. बनिया अपने धन का दिखावा नहीं करता.

बनिया अपने बाप को भी ठगे. कुछ कहावतों में बनिए को बहुत स्वार्थी और धूर्त माना गया है.

बनिया कब कबूले कि नफा बहुत है. बनिया अपने मुँह से कभी नहीं कहता कि उसे व्यापार में बहुत लाभ है.

बनिया को सखरच, ठाकुर को हीन, वैद्य पूत व्याध नहिं चीन्ह, पंडित चुप चुप, बेसवा (वैश्या) मईल, घाघ कहहिं पांचो घर गइल. बनिए का बेटा खर्चीला हो, ठाकुर का बेटा तेजहीन हो, वैद्य अपने पुत्र की बीमारी न समझ पाए (या वैद्य पुत्र को बीमारियों की पहचान न हो), पंडित चुप रहने वाला हो और वैश्या मैले वस्त्र पहनने वाली हो, ये पाँचों घर चले जाते हैं अर्थात व्यवसाय नहीं कर पाते हैं.

बनिया खाट में तो बामन ठाठ में, बनिया ठाठ में तो बामन खाट में. बनिया बीमार होगा तो पूजा पाठ करेगा जिससे पंडित की मौज होगी और बनिया ठाठ में होगा तो पंडित भूखा मरेगा.

बनिया गम खाने में सयाना. गम खाना – कष्ट को सह लेना. बनिया व्यापार में होने वाले भांति भांति के नुकसान झेल कर परेशानियों का अभ्यस्त हो जाता है.

बनिया गुड़ न दे गुड़ की सी बात तो करे. एक बनिए से किसी ने थोड़ा गुड़ मांगा. बनिए ने कहा, चलो आगे बढ़ो, चले आते हैं मुफ्त में मांगने. उसने कहा भैया गुड़ न दो गुड़ जैसी मीठी बात तो बोल सकते हो. व्यापार में बुजुर्ग लोग बच्चों को समझाते हैं कि हर एक से मीठा बोलना सीखो. किसी को मना करो तो भी मिठास के साथ.

बनिया चाहे बैठा खाए, मूल धन कहीं न जाए. बनिया ही क्यों, हम सभी यह चाहते हैं कि हमें बैठे बैठे (बिना काम किए) खाने को मिलता रहे और हमारी पूँजी कम न हो.

बनिया दिवाला भी निकालेगा तो कुछ रखकर ही निकालेगा. जिसका दीवाला निकलता है उस की देनदारी बहुत कम हो जाती है (उसकी बची हुई सम्पत्ति के अनुपात में). बनिया चालाक होता है, अपने को दीवालिया घोषित करने और बची हुई सम्पत्ति घोषित करने से पहले काफी कुछ धन निकाल लेता है.

बनिया बामन बन जाए तो सौदा तौले कौन. समाज में जिसका जो काम उसे वही करना चाहिए तभी समाज की व्यवस्था सुचारू रूप से चलती है. बनिया ब्राह्मण बन जाएगा तो जरूरत के सामान कौन बेचेगा.

बनिया मारे जान, ठग मारे अनजान. बनिया जानने वाले को ठगता है और ठग अनजान व्यक्ति को.

बनिया मीत न बेसवा सत्ती, सुनार साँच न एको रत्ती.  बनिया किसी का दोस्त नहीं हो सकता, वैश्या पतिव्रता नहीं हो सकती और सुनार सच्चा नहीं हो सकता. एको रती – रत्ती भर भी. 

बनिया मीत न वेश्या सती, कागा हंस न गदहा जती. ऊपर वाली कहावत से कुछ हट कर. बनिया किसी का मित्र नहीं हो सकता, वैश्या सती सावित्री नहीं हो सकती, कौवा हंस नहीं हो सकता और गधा सन्यासी नहीं हो सकता.

बनिया मेवे का रूख. बनिए को खुश करो तो बहुत कुछ मिल सकता है.

बनिया या तो आंट मे दे या खाट में दे. आंट – परेशानी. बनिया मुसीबत में फंसता है तो पैसा खर्च करता है, या बीमार पड़ता है तो करता है.

बनिया रीझे तो हँस के दांत दिखावे. बनिया खुश होता है तो देता कुछ नहीं है, केवल हँस के दांत दिखा देता है.

बनिया रीझे, हर्रे दे. बनिया किसी से खुश होगा तो क्या देगा – हर्र. हर आदमी की अपनी अलग मानसिकता होती है जिस के अनुसार ही वह कुछ दे सकता है.

बनिया लड़ेगा भी तो गढ़ी ईंट को ही उखाड़ेगा. 1. बनियों की कंजूसी पर व्यंग्य है. 2. बनिया लड़ता है तो पुराने बही खाते निकाल कर देनदारी दिखाता है.

बनिया लिखे पढ़े करतार. कुछ तो बनिए की लिखावट वैसे ही गंदी होती है, कुछ वह जान बूझ कर गंदा लिखता है जिसे कोई पढ़ न पाए. पहले के जमाने में बही खाते लिखने में मुंडी भाषा का प्रयोग होता था जिसमें मात्राएँ नहीं होती थीं इसलिए उसे पढ़ना और मुश्किल होता था.

बनिया हाट न छेडिये, जाट जंगल के बीच. अपने अपने स्थान पर सब मजबूत होते हैं. बनिए को बाज़ार में मत छेड़ो और जाट को जंगल में.

बनिये का जी धनिये बराबर. बनियों की कायरता और कंजूसी पर व्यंग्य. कुछ लोग इसके आगे इस प्रकार से बोलते हैं – बनिए का जी धनिया, बनियाइन बड़ी उदार, अर्थात बनिया कंजूस है पर उसकी पत्नी उदार है.

बनिये को पसंगे की आस. अधिक लाभ कमाने के लिए बनिए अपने तराजू में पासंग की जुगाड़ कर लेते हैं जिस से तराजू कम तौलता है.

बनिये से सयाना, सो दीवाना. बनिये से चतुर कोई नहीं होता.

बनी के सौ साले, बिगड़ी का एक बहनोई भी नहीं (बनी के सब संघाती, बिगड़ी का कोई नहीं). आपके अच्छे दिनों में बहुत लोग आपसे रिश्ते निकाल लेते हैं. बुरे दिनों में कोई पास नहीं फटकता.

बनी को बनावे सो बनिया. बने हुए काम को और अधिक अच्छा बना कर दिखाये वही सच्चा वैश्य है.

बनी को सब सराहें. बने काम की सब सराहना करते हैं.

बनी न बिगारी तो बुंदेला काहे के. (बुन्देलखंडी कहावत) बुंदेले लोगों को यह कहने में गर्व होता है कि वे किसी की बनी बनाई बात को बिगाड़ने की क्षमता रखते हैं.  

बनी फिरे बेसवा, खोले फिरे केसवा. पहले के जमाने में स्त्रियों के लिए बाल खोल कर घूमना बहुत निर्लज्जता की निशानी मानी जाती थी, केवल वैश्याएं ही ऐसा कर सकती थीं. बेसवा – वैश्या.

बनी बनावे बानिया, बनी बिगाड़े जाट, मूंड़ें सीस सराह के, डोम कवी अरु भाट. बनिया बनी हुई बात को और बनाता है जबकि जाट बनी हुई को बिगाड़ देता है. डोम, कवि और भाट आपकी प्रशंसा कर के आपको मूँड़ते हैं. मूंड़ें सीस – सर मूंडते हैं, सराह के – प्रशंसा कर के.

बनी बनी के सब कोई साथी, बिगड़ी के कोई नाहीं (बनी के सब यार हैं). जब आप के दिन अच्छे होते हैं तो सब आपके दोस्त होते हैं.

बनी सो हमारी, बिगड़ी सो तुम्हारी. काम बन जाए तो उसका श्रेय हम लेंगे, बिगड़ जाए तो जिम्मेदारी तुम्हारी.

बने को सब ही सराहें, बिगड़े को कहें कमबख्त. जिसका काम बन जाए उसकी सब सराहना करते हैं. जिसका बिगड़ जाए उसे मूर्ख और अभागा कहते हैं.

बने तो इंद्रजाल, बिगड़े तो जी का जंजाल. जो लोग जादू टोना करने में विश्वास रखते हैं उन को सीख दी गई है कि यही जादू टोना यदि बिगड़ जाए तो उल्टा उन के ऊपर पड़ सकता है.

बने पे यार बिगड़े पे भकुआ. आपके अच्छे दिनों में आपको दोस्त बताने वाले लोग आपके बुरे दिनों में आपको मूर्ख बताने लगते हैं.

बन्दर एक निसाचरी लाया कर अपनी अर्धंगी, लालदास रघुनाथ कृपा से पैदा हुए फिरंगी.  राम की सेना के एक वानर ने एक राक्षसी से शादी कर ली, उनसे जो संतानें पैदा हुईं वही फिरंगी (अंग्रेज़) हुए. इसके पीछे यह किंवदन्ती भी है कि भगवान राम ने वानरों को वरदान दिया था कि उनके वंशज कलियुग में संसार पर राज करेंगे.

बन्दर कभी गुलाटी मारना नहीं भूलता. धूर्त व्यक्ति कभी धूर्तता करने से बाज नहीं आता.

बन्दर का जखम जल्दी न भरे. क्योंकि बन्दर उसे हर समय नोचता खुजाता रहता है. कहावत इस आशय में प्रयोग करते हैं कि मूर्ख आदमी के नुकसान की भरपाई आसानी से नहीं होती.

बन्दर का हाल मुछंदर जाने. मुछन्दर बंदरों के सरदार को कहते हैं. जो सच्चा नेता है वही जनता का हाल जान सकता है.

बन्दर की आशनाई, घर में आग लगाई) (बन्दर की दोस्ती, जी का जियान). बंदर से प्रेम करने का अर्थ है अपना घर बर्बाद करना. कहावत का अर्थ है कि अपात्र से प्रेम नहीं करना चाहिए. आशनाई – प्रेम.

बन्दर के गले में मोतियों का हार. किसी अपात्र को बहुमूल्य चीज़ मिल जाना (जैसे किसी कुरूप व्यक्ति को बहुत सुंदर पत्नी मिल जाना).

बन्दर के हाथ में नारियल. किसी मूर्ख व्यक्ति को कोई ऐसी चीज़ मिल जाना जिसका वह उपयोग न कर सकता हो (बंदर नारियल को तोड़ नहीं पाता है).

बन्दर घाव से न मरे, पुरसाहाली से मरे (वानर की फुंसी देखादेखी गइल). बन्दर के घाव हो जाता है तो दूसरे बन्दर उससे सहानुभूति दिखाते हुए उसके घाव को कुरेद कुरेद कर देखते हैं. इससे घाव और बड़ा होता जाता है और बन्दर मर जाता है. सहानुभूति दिखाने वाले अक्सर लाभ के मुकाबले नुकसान अधिक करते हैं.

बन्दा जोड़े पली पली और राम लुढ़ावे कुप्पा. पली – एक प्रकार का चमचा जो कुप्पे या पीपे में से घी, तेल निकालने के काम आता है, कुप्पा – बड़ा मटका. आदमी चमचा चमचा भर के इकट्ठा करता है, ईश्वर एक साथ कुप्पा ही लुढ़का देता है. पली और कुप्पे का चित्र देखने के लिए देखिए परिशिष्ट.

बर मरे चाहे कन्या, हमें तो दच्छना से काम. स्वार्थी पंडित के लिए.

बरखा हो तो खेलूं खाऊँ, काल पड़े घर जाऊं. वर्षा हो और अच्छी खेती हो तो तुम्हारे यहाँ मौज करेंगे, अकाल पड़ा तो घर चले जाएंगे. विशुद्ध स्वार्थ.

बरगद का भार जटाएँ झेलती हैं. बरगद का वृक्ष जब बहुत फ़ैल जाता है तो उसका तना पूरा भार नहीं संभाल पाता. बरगद की जो जड़ें (जटाएं) पेड़ से लटकती हैं वे जमीन तक पहुँच जाती हैं और मोटी हो कर तने के समान पेड़ का भार संभालती हैं. इसी प्रकार बड़े परिवार में एक बुजुर्ग पर सारी जिम्मेदारी न डाल कर और सदस्यों को भी परिवार का भार उठाना चाहिए.

बरगद के नीचे पेड़ नहीं बढ़ते. बड़े पेड़ की छाँव में पेड़ नहीं बढ़ते. बच्चों को सीख देने के लिए यह कहावत कही जाती है कि हमेशा माँ बाप के साए में रहने वाला बच्चा स्वतंत्र रूप से कुछ नहीं बन सकता.

बरगद बोलते बोलते पीपल बोलने लगे. बात बदलने वाला व्यक्ति.

बरतन से बरतन खटकता ही है (जहां चार बर्तन होंगे वहां खटकेंगे भी). जब चार लोग साथ रहते हैं तो कभी कभार उनमें थोड़ा बहुत मन मुटाव हो जाना स्वाभाविक है.

बरधा सींग का, मरद लंगोट का. कुछ लोग कहते हैं कि बैल वही अच्छा है जिसके सींग मजबूत हों और मर्द वही अच्छा है जो पौरुष शक्ति से भरपूर हो. इसके जवाब में ज्ञानी लोग कहते हैं – बरधा कांध का, मरद जुबान का, अर्थात बैल वह अच्छा जिसके कंधे मजबूत हों और मर्द वह अच्छा जो जुबान का पक्का हो.

बरसा पानी बह न पावे, तब खेती के मजा देखावे.  वर्षा के पानी को सहेजने से ही खेती अच्छी हो सकती है.

बरसात बर के साथ. वर्षा का आनंद पति के साथ ही आता है.

बरसात में घोंघे का मुँह भी खुल जाता है. कोई मूर्ख व्यक्ति अचानक किसी बात के बीच में बोल पड़े तो उस का मजाक उड़ाने के लिए.

बरसे सावन तौ होय पांच के बावन. सावन की वर्षा खेती के लिये विशेष रूप से लाभकर होती है.

बरसें कम, गरजें ज्यादा. जो लोग बातें बढ़ बढ़ कर करते हैं और काम कम करते हैं उनके लिए.

बरसेगा मेह होंगे अनंद, तुम साह के साह हम नंग के नंग. वर्षा होगी, खेती फले फूलेगी, अमीर आदमी और अमीर हो जाएगा, पर गरीब गरीब ही रहेगा.

बरसो राम कड़ाके से, बुढ़िया मर गयी फाके से. तेज वारिश में बच्चे खुश हो कर बोलते हैं कि हे भगवान जोर से पानी बरसाओ जिससे बुढ़िया भूख से मर जाए. बच्चों को बुड्ढे लोगों से कुछ विशेष बैर होता है.

बरसौ राम जगै दुनिया, खाय किसान मरै बनिया. किसान भगवान से वर्षा के लिए प्रार्थना करते हुए ऐसा कहता है. बरसात से किसान को लाभ और बनिए को घाटा होता है.

बरात की सोभा बाजा, अर्थी की सोभा स्यापा. बरात में जितने अधिक बाजे हों उसे उतना ही प्रभाव छोड़ने वाली माना जाता है, अर्थी में जितना अधिक क्रन्दन हो उसे उतना ही प्रभावी माना जाता है. (स्यापा – रोना पीटना)

बराबर से लड़े और ऊपर से रोवे. कुछ लोग लड़ाई पूरी लड़ते हैं पर साथ में अपने को सताया हुआ दिखाने के लिए रोते भी जाते हैं.

बराबरों से कीजिए ब्याह, बैर औ प्रीत. विवाह आदि संबंध और प्रेम अपने से बराबर वालों में करना चाहिए, दुश्मनी भी अपने से बराबर वालों से करना चाहिए. अपने से बहुत बड़े से दुश्मनी करोगे तो बर्बाद हो जाओगे, बहुत छोटे से दुश्मनी करोगे तो आप को शोभा नहीं देगा.

बरी रे बरी कहां जा के परी, का करै बरी तवा के तरे धरी. कभी-कभी हम सामान को ऐसी जगह रखकर भूल जाते हैं कि स्वयं ही नहीं पाते. बड़ी को तवे से ढंक के रख दिया है और ढूँढ़ पुकार पड़ी हुई है.

बर्र और बालक एक समान. बच्चों के स्वभाव की तुलना मधुमक्खियों से की गई है (एकदम सब ओर फ़ैल जाना, एकदम गुस्से से काट लेना). रूपान्तर – वानर बालक एक सुभाऊ. बालकों का स्वभाव वानरों से भी मिलता है.

बर्र के छत्ते में हाथ कौन डाले. बहुत चिडचिडे स्वभाव के व्यक्ति से बात कहने की हिम्मत किसी को नहीं होती.

बल बुद्धी की बोरियां, बिकें न हाट बजार. बल और बुद्धि बाजार में बोरियों में भर कर नहीं मिलते. ये परिश्रम से और भाग्य से ही मिलते हैं.

बलि का बकरा भी हँसे, ओछी पूजा देख. 1. कहीं पर कोई अधकचरा पंडित गलत सलत पूजा करा रहा हो तो उस का मजाक उड़ाने के लिए. 2. न्यायालयों में भ्रष्टाचार और गलत सलत निर्णय देख कर वादी और प्रतिवादी भी विद्रूप की हंसी हँस कर रह जाते हैं.

बलि के समय बकरा गायब. किसी समारोह में उपयुक्त समय पर यदि मुख्य व्यक्ति अनुपस्थित हो मजाक में यह बात कही जाती है (जैसे विवाह में दूल्हा ही गायब हो जाए).

बस कर मियाँ बस कर, देखा तेरा लश्कर. जो अपनी बहादुरी की झूठी शान बघार रहा हो उसके लिए.

बस हो चुकी नमाज, मुसल्ला बढ़ाइये. मुसल्ला – नमाज के लिए बिछाई जाने वाली दरी. काम पूरा हो जाने के बाद किसी से जाने के लिए कहने का एक तरीका यह भी है.

बसत ईस के सीस तऊ, भयो न पूर्ण मयंक. ईस के सीस – भगवान (शंकर) के माथे पर, मयंक – चंद्रमा. चंद्रमा शिवजी के माथे पर बसता है लेकिन तब भी पूर्ण नहीं है. हर किसी में कोई न कोई कमी अवश्य होती है.

बसाव शहर का और खेत नहर का. शहर में बसना अच्छा होता है (शहर में अधिक सुविधाएं होने के कारण) और नहर किनारे का खेत अच्छा होता है. नहर किनारे के खेत में सिंचाई में आसानी होती है.

बसि कुसंग चाहत कुसल, यह र‍हीम जिय सोस, (महिमा घटी समुद्र की, रावन बस्‍यो परोस). रहीम इस बात पर अफ़सोस करते हैं कि व्यक्ति बुरी संगत में रह कर भी अपनी कुशल चाहता है. रावण के पड़ोस में रहने के कारण समुद्र को अपमानित होना पड़ा था.

बसे बुराई जासु तन, ताही को सन्मान. यहाँ सम्मान का अर्थ हृदय से किया गया सम्मान नहीं बल्कि मजबूरीवश किया गया दिखावटी सम्मान है. इस प्रकार का सम्मान दुष्ट लोगों को ही मिलता है. सूर्य चन्द्रमा की पूजा न कर के लोग शनि और राहु की ही पूजा करते हैं.

बस्ती ऊजड़ को खावे. जब बस्तियों का विस्तार होता है तो जंगल काटे जाते हैं और बस्तियों में रहने वाले मनुष्य वनों का अत्यधिक दोहन भी करते हैं.

बस्ती की लोमड़ी बाघ को डराती है. बस्ती में रहने वाला कमजोर प्राणी भी सुविधाएँ मिलने के कारण और सुरक्षा के कारण शक्तिशाली हो जाता है.

बहता पानी निर्मला, खड़ा सो गंदा होय, (साधू जन रजता भला, दाग लगे न कोय). बहता हुआ पानी स्वच्छ रहता है और यदि कहीं इकट्ठा हो जाए तो गंदा होने लगता है. इसी प्रकार साधु चलते फिरते ठीक रहते हैं, यदि एक स्थान पर रुक जाएं तो उनके चरित्र को दाग लग सकता है.

बहती गंगा में हाथ धो लोगों (बहते दरिया में चुल्लू भर लो). मुफ्त में कोई सुविधा मिल रही हो तो उस का लाभ उठाने की सलाह दी गई है.

बहन के घर भाई कुत्ता, ससुरे के घर जमाई कुत्ता. विवाहित बहन के घर भाई को स्थाई रूप से नहीं रहना चाहिए और ससुराल में दामाद को घर जमाई बन कर नहीं रहना चाहिए. दोनों ही परिस्थितियों में व्यक्ति का कोई सम्मान नहीं होता. इस की पूरी कहावत देखिये – कुत्ता पाले वह कुत्ता.

बहन बत्तीस, भाई छत्तीस. जब भाई बहन एक से बढ़ कर एक हों तो. सन्दर्भ कथा – एक भाई अपनी बहिन के घर गया. बहन बड़ी कंजूस थी. जब भोजन का समय हुआ तो उसने उसके लिए खाना नहीं बनाया और एक थाली में थोड़े से गेहूं और एक पानी का लोटा भिजवा दिया. भाई के पूछने पर बहन ने कहा कि सारी चीजें गेहूं से ही बनती हैं, इसलिये यों समझो कि मैंने तुम्हारे लिये सभी खाद्य पदार्थ सुलभ कर दिये हैं. भाई उस समय कुछ नहीं बोला. कुछ समय बाद बहन की लड़की का विवाह निश्चित हुआ. भाई भात भरने आया तो उसने एक थाली में थोड़ी सी धुनी हुई रूई रख कर बहन को दे दी. बहन के पूछने पर भाई ने उत्तर दिया कि सारे वस्त्र रूई से ही तो बनते है, इसलिये रूई के रूप में मैं तुम्हारे लिए घाघरा, ओढ़नी आदि सारे वस्त्र ले आया हूँ.

बहन मरी तो जीजा किसके. जीजा से रिश्ता बहन के कारण ही होता है. बहन की मृत्यु हो जाए तो रिश्ते का आधार ही क्या रहा. इस प्रकार की एक कहावत है – बेटी मरी जमाई चोर.

बहरा पति और अंधी पत्नी, सदा सुखी जोड़ा. पति अगर बहरा हो तो पत्नी की हर समय की बक बक से परेशान नहीं होगा, और पत्नी अंधी हो तो हर समय कुछ न कुछ देख कर शक नहीं करेगी.

बहरा सुने धर्म की कथा. बहरा व्यक्ति प्रवचन सुने तो बेकार है. जिस ज्ञान को कोई ग्रहण ही नहीं कर सकता वह उस के लिए बेकार है.

बहरा सो गहरा. बहरा आदमी प्राय: गंभीर प्रवृत्ति का होता है.

बहरे आगे गावना, गूंगे आगे गल्ल, अंधे आगे नाचना, तीनों अल्ल बिलल्ल. गल – बात (पंजाबी). बहरे के आगे गाना, गूंगे से बात करने की कोशिश करना और अंधे के आगे नृत्य करना ये तीनों मूर्खतापूर्ण कार्य हैं.

बहसू के नौ ठो हल, खेत में गया एको नहीं. बहसू – बहस करने वाला. बहुत बहस करने वाला व्यक्ति केवल बहस करना जानता है, अपने संसाधनों से काम लेना नहीं जानता.

बहादुरी का काम, चाहे नहीं नाम. जो सही मानों में बहादुर होते हैं वे नाम के लिए काम नहीं करते.

बहादुरी तो बैरी की भी सराही जाती है. शत्रु भी अगर वीर हो तो उस की वीरता की प्रशंसा करनी चाहिए.

बहिर कुत्ता बतासे धावे, न एहर पावे ना ओहर पावे. बहरा कुत्ता हवा चलने पर ही आशंका से ग्रस्त हो कर इधर उधर भागता है पर कुछ पाता नहीं है. बतास–हवा, धावे–दौड़े. नासमझ लोग व्यर्थ की आशंकाओं से ग्रस्त रहते हैं.

बहु ऋणी, बहु धन्धी, बहु बेटियों का बाप, इन्हें कबहुं न मारिए, ये मर जाएँ आप. बहुत से लोगों से उधार लेने वाला, बहुत से व्यवसाय करने वाला और बहुत सी बेटियों का बाप, इनको कभी न मारो. ये बेचारे तो अपने आप मर जाते हैं.

बहु गुणी, बहु दुखी. जिसमें जितने अधिक गुण होते हैं वह उतना अधिक दुखी होता है (उन के पास काम बहुत होते हैं पर समय सीमित होता है). जो मूर्ख व्यक्ति है वह सबसे अधिक सुखी होता है.

बहु निबल मिल बल करें, करैं जो चाहे सोइ. कमजोर लोग यदि संगठित हो कार्य करें तो जो चाहें कर सकते हैं.

बहु भोग, बहु रोग. जो जितना अधिक भोग विलासिता में पड़ेगा, उसे उतने ही अधिक रोग होंगे.

बहु संन्यासी भजन नाशा. बहुत सारे लोग मिल कर कोई काम करें तो उसका सत्यानाश हो जाता है.

बहुत करे सो और को, थोड़ी करे सो आप. जो व्यक्ति थोड़ा काम करता है वह जीवन का आनंद ले पाता है. जो बहुत ज्यादा करता है तो समझो कि दूसरों के लिये कर रहा है. उसकी मेहनत पर दूसरे मजा मारेंगे.

बहुत गया, थोड़ा है बाकी, अब मत बात बिगाड़ो साथी. उम्र के आखिरी पड़ाव में नाराज होने वाले मित्र या जीवनसाथी से कही जाने वाली बात.

बहुत चले सो बीर न होई. बहुत काम करने वाला नहीं, योजना बना के काम करने वाला व्यक्ति वीर माना जाता है. युद्ध कैसे भी जीता जाए, जीतने वाले को ही वीर माना जाता है. इंग्लिश में कहावत है – Smart work is better than hard work.

बहुत बोलना मूरखताई. बहुत बोलना मूर्खता की निशानी है.

बहुत मरद वहाँ बरद उपास, बहु तिरिया तहाँ मरद उपास. जहाँ बहुत लोग बैलो की देखभाल करने वाले हो वहाँ दूसरों पर काम टालने के कारण बैल भूखे मरते हैं और जहाँ बहुत सारी स्त्रियाँ हों वहाँ पुरुष भूखे रहते हैं.

बहुत सयानी चचिया सासू, कंडा लेके पोंछे आँसू. बहू से चचिया सास ने बड़ा प्रेम दिखाया तो कंडा लेकर आंसू पोंछने लगीं. दिखावटी प्रेम.

बहुत सी कथनी से थोड़ी सी करनी भली. बहुत अधिक हांकने के मुकाबले थोड़ा काम कर के दिखाना अच्छा है.

बहुता जाइए, भरम गंवाइए. किसी व्यक्ति को आपके बारे में यह भ्रम हो कि आप बहुत योग्य हैं या बहुत धनी हैं तो उस के घर बार बार मत जाइए. उस के घर अधिक आने जाने से यह भ्रम टूट सकता है.

बहू आई सास हरखी, पैर लगी तो परखी. बहू के आने पर सास को एकदम से बहुत खुश नहीं होना चाहिए, जब उस के लक्षण देख ले तब खुश होना चाहिए.

बहू और भैंस का खिलाया बेकार नहीं जाता. बहू को अच्छा खाने को मिलेगा तो घर का काम भी ठीक से कर पाएगी और स्वस्थ संतान को जन्म देगी. भैंस को ठीक से खिलाया जाएगा तो दूध अच्छा देगी.

बहू के तीते तीनों तीत, पूत भी तीत नाती भी तीत. तीत – कड़वा होना. बहू कड़वी (दुर्व्यवहार करने वाली) हो तो पुत्र और नाती का व्यवहार भी बदल जाता है. अवधी कहावत.

बहू के हाथ चोर मरवाए, चोर बहू का भाई. बहू से कहा गया कि चोर को मारो, यह किसी को मालूम ही नहीं कि चोर तो बहू का भाई है. जिस से सजा देने को कह रहे हो वह तो अपराधियों से मिला हुआ है.

बहू चुस्त और कूआं पास. बहू काम में मुस्तैद हो और कुआँ भी पास हो तो काम में आसानी ही आसानी है. सारी बातें अनुकूल हों तो काम आसानी से होता है.

बहू नवेली और गऊ दुधेली. नई बहू और दुधारी गाय सबको अच्छी लगती हैं.

बहू ने कूटा पीसा, सास ने हाथ साने. एक आदमी मेहनत कर रहा हो और दूसरा केवल दिखावा, तब यह कहावत कही जाती है.

बहू परोसा खाएगा जीते जी मर जाएगा. बहू अपने सास ससुर को पौष्टिक खाना क्यों खिलाएगी?

बहू बिना कैसा आंगन. घर के आंगन की शोभा बहू और बच्चों से ही होती है.

बहू लाली, धन घर खाली. बहू श्रृंगार करने की शौक़ीन (खर्चीली) हो तो धन और घर खाली कर देती है.

बहू सरम की बिटिया करम की. बहू वही अच्छी है जो लज्जावान हो, बेटी वही अच्छी है जो कामकाजी हो.

बा अदब बा नसीब, बे अदब बे नसीब. दूसरों का सम्मान करने वालों का भाग्य साथ देता है, जो दूसरों का सम्मान नहीं करते वे भाग्य हीन हो जाते हैं.

बाँझ का नाम छूटे, भले राम वन जाएँ. राम के जन्म से पहले कौशल्या को बताया गया था कि उनके पुत्र को वन जाना पड़ेगा. पर उन्होंने सोचा कि पुत्र वियोग जैसे तैसे सह लेंगी लेकिन बांझ होने का कलंक तो छूटेगा.

बाँझ के घरै बिलार का दुलार. जिस स्त्री के कोई सन्तान नहीं होती वह कुत्ते बिल्लियों पर लाड़ जताती है.

बाँझ क्या जाने प्रसव की पीड़ा. जिसने कभी बच्चा नहीं जना वह स्त्री प्रसव की पीड़ा को नहीं समझ सकती. जो कष्ट आपने स्वयं नहीं झेला उसकी परेशानी को आप नहीं समझ सकते.

बाँझ गाय द्वार की सोभा. जो गाय दूध नहीं देती वह भी द्वार की शोभा तो बढ़ाती ही है. घर के बड़े बूढों के लिए भी यही बात कही जा सकती है.

बाँझ गाय से घी की आस. गाय बाँझ होगी तो दूध ही नहीं देगी, फिर घी कैसे मिलेगा. किसी ठप पड़े व्यवसाय से कोई लाभ की आशा कर रहा हो तो.

बाँझ बंझौटी, शैतान की लँगोटी. बाँझ – जिस के संतान न हो. पहले के जमाने में लोग संतान न होने पर केवल स्त्री को ही दोषी मानते थे और प्रताड़ित करते थे (पुरुष अपनी जांच ही नहीं कराते थे). ऐसे ही लोगों का कथन.

बाँट कर खाना, स्वर्ग में जाना. अपनी कमाई को बाँट कर खाने वाले को स्वर्ग में भी स्थान मिलता है और इस धरा पर भी उस के लिए स्वर्ग है.

बाँट खाओ या सांट खाओ. सांट – अदला बदली (वस्तु विनिमय). भोजन को बाँट कर खाना चाहिए या अदला बदली कर के. बाँट कर खाने से परोपकार होता है और एक दूसरे से अदला बदली करने से सभी प्रकार के तत्व भोजन से प्राप्त हो जाते हैं.

बाँध के मारे, कहे भौत सऊत है. सऊत – सहनशील. बाँध कर पीट रहे हैं. भाग नहीं रहा है तो कहते हैं – बहुत सहनशील है. जबर लोगों के अत्याचार पर व्यंग्य.

बाँबी में हाथ तू डाल मंत्र मैं पढूं. सांप को पकड़ने के लिए मन्त्र पढ़ते हैं और हाथ से उसे पकड़ते हैं. मन्त्र पढने में तो कोई खतरा नहीं है पर बांबी में हाथ डालने में बहुत खतरा है. जब कोई धूर्त व्यक्ति लाभ पाने के लिए साथी को खतरे में डाल रहा हो तो.

बांट खाय, सदा अघाय. अघाय – तृप्त हो जाए. अकेले खाने से पेट भर सकता है पर आत्मा तृप्त नहीं होती.

बांटने से ज्ञान बढ़ता है. ज्ञान को बांटने से ज्ञान और बढ़ता है.

बांटने से सुख दूना होता है और दुख आधा. खुशियों को सबके साथ मिल कर मनाना चाहिए क्योंकि इस से खुशियाँ बढ़ती हैं. दुख को भी दूसरों के साथ साझा करना चाहिए क्योंकि इस से दुख कम हो जाता है.

बांटल भाई, पड़ोसी बराबर. जिस भाई से बंटवारा हो चुका हो वह पड़ोसी के बराबर ही है.

बांदी के आगे बांदी, मेह गिने न आंधी. नौकर के नीचे का नौकर बहुत काम करता है.

बांध कुदारी खुरपी हाथ, लाठी हंसिया राखे साथ, काटे घास औ खेत निरावे, सो पूरा किसान कहलावे. जो अपने साथ कुदाली, खुरपी, लाठी और हंसिया रखता है, अपने हाथ से घास काटता है और खेत निराता है वही वास्तविक किसान कहलाता है.

बांधा बरधा रहे मठाय, बैठा जवान जाय तुन्दियाय. बैल बंधे बंधे सुस्त हो जाता है और जवान आदमी कुछ न करे तो उस की तोंद निकल आती है. (घाघ कवि)

बांधे बनिया बजार नहीं लगावत. किसी से कोई काम जबरदस्ती नहीं कराया जा सकता है.

बांबी ढिंग मरे, सांप का नाम. कोई अगर सांप की बांबी के पास मरता है तो सब लोग सांप पर ही शक करते हैं. जो बदनाम होता है उसका नाम कई बार बिना कुछ किए भी घसीटा जाता है.

बांस की कोख से रेड़ पैदा हुआ है. रेड़ – अरंड. किसी सज्जन व्यक्ति के घर कुपुत्र पैदा हो जाए तो.

बांस चढ़ी गुड़ खाए. नटनी बांस पर चढ़ कर करतब दिखाती है तभी उसे पारिश्रमिक मिलता है. अर्थ है कि जो प्रयास करेगा वही फल पाएगा.

बांस चढ़ी नटनी कहे, होत न नटियो कोय, मैं नट कर नटनी बनी, नटे सो नटनी होय. नट जाना – मना करना, मुकर जाना. बांस पर चढ़ी नटनी कह रही है कि पैसा होते हुए भी देने को मना मत करना. मैंने मना किया था तो मैं नटनी बनी, जो मना करेगा वह नटनी बनेगा.

बांस डूबें, बौरा थाह मांगे. पानी इतना गहरा है कि बांस डूब जाए और मूर्ख व्यक्ति यह जानने की कोशिश कर रहा है कि पानी कितना गहरा है. रूपान्तर – हाथी घोड़ा डूब गए, गदहा पूछे कित्तो पानी.

बांस बढ़े झुक जाए, एरंड बढ़े टूट जाए. सज्जन व्यक्ति की उन्नति होती है तो वह विनम्र हो जाता है. घमंडी व्यक्ति की उन्नति होती है तो वह ऐंठ में रहता है और अंततः टूट जाता है या तोड़ दिया जाता है.

बांह गहे की लाज, बात कहे की लाज. किसी की बांह पकड़ी है (सहारा दिया है) तो निभाओ जरूर, या सहारा ही मत दो. इसी प्रकार जो बात कही है उसे भी अवश्य पूरा करो, या कहो ही मत.

बाई के बेर अढ़ाई सेर. बाई – बहिन-बेटी. किसी अपने व्यक्ति की वस्तुओं का उचित मूल्य न आँकना.

बाई खा लें तो बामनों को दें. स्वार्थी लोगों के लिए कहा गया है जो पहले खुद खा कर बचा हुआ दान करते हैं. कायदे में तो पहले ब्राह्मणों को दान दे कर या भोजन करा के तब स्वयं खाना चाहिए.

बाको अच्छा मत कहो, जो तेरे धोरे आय, करे बुराई और की, अपने तईं बधाय. जो आप के घर आ कर औरों की बुराई करे और अपनी प्रशंसा करे वह अच्छा व्यक्ति नहीं है.

बाग और वन दोनों को रखना चाहिए. बाग और वन दोनों की उपयोगिता अलग अलग है. दोनों आवश्यक हैं.

बाघ और बाकी, जब चाहे तब खाए. बाघ और ऋण, इंसान को कभी भी खा सकते हैं.

बाघ न चीन्हे बामन के पूत. बाघ जब इंसान का शिकार करता है तो यह नहीं देखता कि वह ब्राह्मण का पुत्र है या चरवाहे का. जात पांत का भेद केवल इंसान ही करते हैं.

बाघ ने मारी बकरी और कुत्ते हड्डी खाएँ. 1. शक्तिशाली लोग कोई उद्यम करते हैं तो समाज के कमजोर लोगों को भी उस का लाभ मिलता है. 2. बड़े अपराधी बड़े अपराध करते हैं और छोटे अपराधी उनके साए में फलते फूलते हैं.

बाघ मार नदी में डारा, बिलाई देख डरानी. कोई ऐसी स्त्री अपनी बहादुरी के किस्से सुना रही थी कि उसने बाघ को मार कर नदी में डाल दिया था. अचानक बिल्ली आ गई तो डर वह गई. झूठी शेखी बघारने वालों के लिए.

बाघ से लड़ने के लिए बघनखा. बघनखा एक खतरनाक अस्त्र होता है जिसे उँगलियों में पहन कर मुट्ठी बाँध ली जाती है. उस के मुड़े हुए काँटों से किसी का भी पेट फाड़ा जा सकता है. कहावत का अर्थ है कि खतरनाक दुश्मन से लड़ने के लिए खतरनाक अस्त्र ही चाहिए. शिवाजी ने दुष्ट अफज़ल खां का पेट बघनखे से ही फाड़ा था.

बाज के बच्चे मुंडेरी पर नहीं उड़ा करते. बाज अपने बच्चे को बहुत कठिन शिक्षा दे कर उड़ना सिखाता है जिससे वह शिकारी पक्षी बन सके. कहावत में बताया गया है कि बहादुर लोग कड़ी मेहनत से ही उंचाई पर पहुँचते हैं.

बाजार का सत्तू, बाप भी खाए, बेटा भी खाए (बाज़ार की मिठाई, जिसने चाही उसने खाई). वैश्या के लिए कहा गया है. वैश्या बाजार में बिकने वाली वस्तु की तरह है जिसे जो भी चाहे दाम दे कर खरीद सकता है.

बाजार किसका, जो लेकर दे उसका (बाज़ार उसका जो ले के दे). जो उधार ले कर समय से वापस करे उसी की बाजार में साख है.

बाजार के दोनवा चाटे गुजर न होई. (भोजपुरी कहावत) दोनवा – दोने, पत्ते. कोई व्यक्ति चाहे कि रोज बाजार की चाट पकौड़ी खा कर काम चला लेगा तो ऐसा नहीं हो सकता. इस में अत्यधिक खर्च भी है और बीमार होने का डर भी. कहावत के द्वारा वैश्यावृत्ति के प्रति भी आगाह किया गया है.

बाड़ के सहारे दूब बढ़ती है (बाड़ बिना बेल नहीं चढ़ती). कमजोर व्यक्ति को आगे बढ़ने के लिए किसी का सहारा चाहिए होता है.

बाड़ लगाईं खेत को बाड़ खेत को खाय, राजा हो चोरी करे कौन करे फिर न्याय (बाड़ ही जब खेत को खाए तो रखवाली कौन करे). खेत की रक्षा करने को बाड़ लगाई और बाड़ ही खेत को खाने लगी. जब राजा ही चोरी करेगा तो न्याय कौन करेगा. आजकल के भ्रष्ट नेताओं पर भी व्यंग्य.

बाड़ी बारह, हाट अठारह, घर बैठे चौबीस. खेत से कोई चीज़ बारह रूपये में मिलती है तो बाज़ार में अठारह की और घर बैठे मंगाना चाहो चौबीस की पड़ती है. कहावत में जो अनुपात बताया गया है वास्तविकता में उस से भी बहुत अधिक अंतर होता है.

बाढ़े पूत पिता के धरमे, खेती उपजे अपने करमे. पुत्र पिता के धर्म कर्म से बढ़ता है और खेती अपने कर्म से.

बात एक ही है साँपनाथ कहो या नागनाथ. दुष्ट को किसी भी नाम से पुकारो, वह दुष्ट ही रहेगा.

बात कम हुई, बदनामी ज्यादा हुई. किसी स्त्री ने पड़ोस के पुरुष से जरा सी बात कर ली तो लोगों ने दोनों को खूब बदनाम किया. किसी बहुत छोटी सी बात पर अनावश्यक रूप से अधिक बदनामी होना.

बात करे तो सज्जन से, सज्जन समझे बात, बात करे न गदहे से, जो घुमा के मारे लात. बात केवल सज्जन लोगों से ही करना चाहिए, मूर्खों से नहीं जो केवल नुकसान पहुँचाना ही जानते हैं.

बात कहन की रीत में है अन्तर अधिकाय, एक वचन तै रिस बढ़े एक वचन ते जाय. बात को भड़काने वाले ढंग से कहें तो झगड़ा हो जाता है और प्रेम से कहें तो झगड़ा खत्म हो जाता है.

बात कहिए जगभाती, रोटी खाइए मनभाती. बोली ऐसी बोलनी चाहिए जो सब को प्रिय लगे. खाना वह खाना चाहिए जो अपने को अच्छा लगे.

बात कही और पराई हुई. बात जब मुँह से निकल जाती है तो आप के वश में नहीं रहती.

बात की बात खुराफ़ात की लात, बकरी के सींगों को चर गए बेरी के पात (इमली के पत्ते पे ठहरी बरात). पहले के जमाने में कहानियाँ सुनाने का बहुत रिवाज़ था. एक विशेष प्रकार की कहानियाँ होती थीं गप्प. उन्हीं गप्पों की शुरुआत इस तरह से होती थी. कहावत का अर्थ है कोई असम्भव बात.

बात गई फिर हाथ न आती.  1.मुँह से निकली बात वापस नहीं आती. 2.सम्मान चला जाए तो वापस नहीं आता.

बात चूका लात खाय. जो अपनी बात पर कायम नहीं रहता वह लात खाता है (प्रताड़ित किया जाता है).

बात छीले रूखड़ी औ काठ छीले चीकना. बात छीलने का यहाँ पर अर्थ है अनावश्यक बहस करना. काठ को छीलो तो चिकना होता है पर ज्यादा खोद खोद कर बात पूछने से या बहस करने से आपस में रुखाई होती है.

बात पर बात याद आती है. अर्थ स्पष्ट है.

बात पूछे, बात की जड़ पूछे. बहुत खोद खोद के कोई बात पूछने वाला.

बात बिगारे तीन, अगर मगर लेकीन. शंका और संशय से बनते काम बिगड़ जाते हैं.

बात मानूँगा लेकिन खूँटा यहीं गाड़ा जाएगा.  (भोजपुरी कहावत). सबकी सुनना लेकिन अपने मन की ही करना.

बात में हुँकारा और फौज में नगाड़ा. ये दोनों चीजें लोगों में जोश भरने का काम करती हैं.

बात है कि घोड़े का पाद. बिलकुल निरर्थक बात करने वाले का मजाक उड़ाने के लिए.

बात है तो जात है. अपनी बात अडिग रहने वाला व्यक्ति ही उच्च कुल का माना जाता है.

बातन में फूल झरत. बातों में फूल झरते हैं, मधुरभाषी के लिए.

बातन से पेट नाहिं भरत. केवल बातों से काम नहीं चलता, पेट भरने के लिए रोटी चाहिए.

बातन हाथी पाइए, बातन हाथी पाँव. (बातों हाथी पायं, बातों हाथी पायं). एक ही बात को कहने का तरीका इतना फर्क हो सकता है कि राजा खुश हो कर हाथी इनाम में दे दे या नाराज हो कर हाथी के पैर तले कुचलवा दे. रूपान्तर – बात बात में भाँत है और भाँत भाँत की बात, बातन हाती पाइये बातन हाती लात.

बातें कम, लातें ज्यादा. मूर्ख लोग स्वस्थ तर्क वितर्क के मुकाबले लातों घूंसों में विश्वास रखते हैं.

बातें करे मैना की सी, आँखें फेरे तोते की सी. जो मीठी मीठी बातें करे और जरूरत के समय आँखें फेर ले. (तोता बोलते बोलते अचानक दूसरी ओर गर्दन घुमा लेता है).

बातें चीतें हमसे लेओ, खसम को रोटी तुम पै देओ. दुनिया भर की बातें और कजिए किस्से तो हम से कराओ और कोई काम आ पड़े तो तुम करो.

बातों की बुढ़िया करतब की ख्वार. जो बातें बहुत बड़ी बड़ी बनाए पर काम चौपट कर दे.

बातों के राजा, नहीं होय काजा. जो लोग बातें बहुत करते हैं पर काम कुछ नहीं करते.

बातों चीतों मैं बड़ी, करतब बड़ी जिठानी. बातें बनाने में तो मैं बड़ी हूँ और कोई काम आ पड़े तो जिठानी बड़ी हैं.

बातों तिमिर न भाजई, दीवा बाती तेल. अँधेरा केवल बातों से नहीं भागता. उसे भगाने के लिए दीपक जलाना पड़ता है जिसके लिए तेल और बत्ती भी चाहिए होता है.

बातों से पनही और बातों से पान (बातहिं से लात मुक्का, बातहिं से पान). बात करने के ढंग से ही जूते खाने पड़ सकते हैं और बातों से ही पान खाने को मिल सकता है.

बादल की छाया से कै दिन काम सरे. अस्थिर वृत्ति (चलायमान प्रकृति) वाले व्यक्ति पर निर्भर नहीं रहा जा सकता. बादल की छाया अभी है अभी खत्म हो जाएगी.

बादल देख कर ही घड़ा फोड़ दिया.  मूर्खतापूर्ण और अदूरदर्शितापूर्ण काम. बादल आए हैं तो क्या मालूम बरसेंगे भी या नहीं, और बरसेंगे तब भी घड़ा तो चाहिए ही होगा. रूपान्तर – बादल देख घड़ा नहीं फोड़ा जात.

बादलों को थेगली. बादलों में पैबंद लगाना. असम्भव काम. 

बानिये की बान न जाए, कुत्ता मूते टांग उठाए. बान-आदत, बानिया-आदत से मजबूर आदमी. जिस व्यक्ति की जो आदत होती है वह जाती नहीं है (जिस प्रकार कुत्ता टांग उठा कर ही मूतता है).

बाप ओझा, मां डायन. विचित्र संयोग. माँ डायन है और बाप डायन को भगाने वाला ओझा है.

बाप कमाए बेटा खाए, कलजुग चाहे जो न कराए. बेटा जब बड़ा हो जाता है तो बूढ़े बाप को कमा कर खिलाता है. लेकिन कलयुग में यह भी देखना पड़ रहा है कि बेटा बैठा बैठा बाप की कमाई खा रहा है.

बाप कर गए मजा, बेटा पावे सजा. बाप ने गलत काम कर के या उधार ले कर गुलछर्रे उडाए हों और बेटे को उस का भुगतान करना पड़े तो यह कहावत कही जाती है.

बाप का किया बेटे के आगे आता है (बाप की कमाई बेटे के आगे आए). मनुष्य जो भी अच्छा या बुरा करता है उसका लाभ और हानि उसकी संतानों के आगे आती है..

बाप का नाम दमड़ी, बेटे का नाम पचकौड़िया, नाती का नाम दोकौड़िया, तीन पुरसें बीतीं छदाम न पूरा हुआ. दमड़ी = 12 कौड़ी, छदाम = 24 कौड़ी. किसी निम्न कोटि के खानदान का मजाक उड़ाने के लिए.

बाप का पोखर है तो क्या कीच खानी है. कोई चीज़ पुरखों से मिली है तो उसका गलत प्रयोग थोड़े ही करोगे.

बाप का मरना, और अकाल का पड़ना. विपत्ति पर विपत्ति आना.

बाप का सर काटे, पूत से हाथ मिलावे. ऐसे व्यक्ति के लिए जो परिवार के एक सदस्य को अत्यधिक हानि पहुँचाए और दूसरे से दोस्ती करे.

बाप की कमाई पर तागड़धिन्ना. जो लोग अपने आप कुछ नहीं करते और पैतृक सम्पत्ति पर ऐश करते हैं, उन पर व्यंग्य.

बाप की टांग तले आई, और माँ कहलाई. बाप की रखैल के लिए.

बाप के गले लबनी, पूत के गले रुद्राच्छ. लबनी – ताड़ी इकठ्ठा करने वाली हांडी. बाप महा कुकर्मी है और पुत्र रुद्राक्ष की माला पहने साधु बना घूम रहा है.

बाप को पूत पढ़ावे, सोलह दूनी आठ. बाप से लड़का बढ़ कर मूर्ख हो तब.

बाप जिन्न और बेटा भूत. जहाँ बाप बदमाश हो और बेटा उस से भी बढ़ कर हो.

बाप जिसका मरा वो खाय मांस भात, पड़ोसी जाए गया. जिसके पिता की मृत्यु हुई है वह तो सारे अधर्म कर रहा है, और पड़ोसी गया जा कर पिंडदान कर रहा है. दूसरे की परेशानी में व्यर्थ परेशान होने वालों के लिए.

बाप देवता पूत राक्षस. पिता बहुत भला आदमी था पर बेटा उतना ही दुष्ट.

बाप न दादे, सात पुश्त हरामज़ादे. किसी नीच व्यक्ति को गाली देने के लिए (इसके केवल बाप और दादा ही नहीं सात पीढियां धूर्त हैं).

बाप न मारी मेंढकी, बेटा तीरंदाज. बाप ने कभी मेंढकी भी नहीं मारी और बेटा अपने को योद्धा समझता है. शेखी खोरों का मजाक उड़ाने के लिए.

बाप नरकटिया, पूत भगतिया. नरकटिया – कीड़े मकौड़ों जैसे आचरण वाला क्षुद्र व्यक्ति (नरकीट). बाप नरकीट है और बेटा भगत बना हुआ है. रूपान्तर – बाप कामी, पूत ब्रह्मचारी.

बाप पदहिन न जाने, पूत शंख बजावे. बाप पादना नहीं जानते और पुत्र शंख बजा रहा है.

बाप पूत कीर्तनिया, बेटी भई नचनिया. पिता और भाई का क्षुद्र आचरण देख कर बेटियाँ भी वैसी बन जाती हैं.

बाप पेट में, पूत ब्याहने चला. उचित समय से बहुत पहले कोई काम करने की कोशिश की जाए तो उसका मजाक उड़ाने के लिए यह अतिश्योक्ति पूर्ण बात कही जाएगी (बाप अभी पैदा भी नहीं हुआ है और बेटा विवाह करने चला है). इससे भी आगे बढ़ कर एक और कहावत है – बाप अभी पेट में, पूत चला ‘गया’ करने. पिता अभी पैदा नहीं हुआ और पुत्र उसका तर्पण करने गया जा रहा है.

बाप बड़ा न मैया सबसे बड़ा रुपैया (गुरू न गुरु भैया, सब से बड़ो रुपैया). रुपया सब सम्बन्धों से बड़ा है.

बाप बनिया, पूत नवाब. बाप बनिए जैसा कंजूस और शातिर हो और बेटा नवाबों जैसा दरियादिल, तो यह कहावत कही जाती है.

बाप बेटा पंच, बैल का दाम तीन टका. बाप और बेटा ही पंच हैं इसलिए बैल को सस्ते में खरीदवा रहे हैं. न्यायपालिका में व्याप्त भ्रष्टाचार पर भी व्यंग्य.

बाप बेटा बाराती, माँ बेटी गीतहारिन (बाप पूत जेवनहार, माई धिया गितहारिन). किसी विवाह आदि में बहुत कम लोग बुलाए गये हों तो जो लोग नहीं बुलाए गए हैं वे ऐसा कहते हैं.

बाप भिखारी पूत भंडारी. किसी गरीब पिता का पुत्र धनवान हो जाए और अपने धन का प्रदर्शन करने लगे तो लोग व्यंग्य में ऐसा कहते हैं.

बाप मरिहैं, तब पूत राज करिहैं. बाप के मरने के बाद ही बेटा राजा बनेगा. कोई बाधा दूर होने तक प्रतीक्षा करनी ही पड़ेगी.

बाप मरे अँधेरा में, बेटवा पावरहाउस. बाप अँधेरे में मर गए और बेटा अपने को पावर हाउस समझता है. पिता कुछ भी न रहा हो और बेटा अपने को बहुत तीसमारखां समझता हो तो उस पर व्यंग्य.

बाप मरे घर बेटा हुआ, इसका टोटा उस में गया. एक नुकसान और एक फायदा हो तो नुकसान की भरपाई मान ली जाती है.

बाप मारे पूत साखी दे. साखी – साक्षी, गवाही. पिता ने कोई अपराध किया हो और पुत्र को गवाही के लिए बुलाया जाए तो न्याय कैसे होगा. 

बाप राज बलीराज, भैया राज निरधन राज. पिता के होते हुए बेटियों को मायके में सब कुछ मिलता है, भाई के राज में कुछ नहीं.

बाप से बेटा सयानो, जेहि में गाँव नसानो. बाप से बेटा अधिक चतुर है, गाँव इसी इसी में नष्ट हुआ. बड़े-बूढ़ों के आगे जहाँ लड़के हर बात अपनी चलाते हों वहाँ कहते हैं. नसानो – नष्ट हुआ.

बाप से बैर पूत से सगाई. घर में किसी एक व्यक्ति से दुश्मनी और दूसरे से दोस्ती. सगाई – प्रेम संबंध.

बाबरे गाँव में ऊँट पाहुना. मूर्खों के बीच में कुछ भी संभव है (वे ऊँट को भी सम्मानित अतिथि मान सकते हैं).

बाबली गीदड़ी के पकड़े कान. न छोड़े जाएँ, न पकड़े राखे जाएँ. (हरियाणवी कहावत) पागल गीदड़ी के कान धोखे से पकड़ लिए हैं, अब छोड़ते हैं तो वह काट खाएगी और पकड़े रहेंगे तो आखिर कब तक पकड़े रहेंगे. जिस काम को करते रहने और छोड़ने दोनों में परेशानी हो.

बाबले कुत्ते हिरनों के पीछे भागें. हिरन जैसे तेज प्राणी को कुत्ते कभी नहीं पा सकते. अपनी पहुँच से बाहर कोई लक्ष्य पाने का प्रयास करना.

बाबा कमावे, बेटा उड़ावे. नालायक बेटे बाप दादों की मेहनत की कमाई को उड़ा देते हैं.

बाबा की बातें, कुत्ता चले बरातें. बाबा जी आप भी क्या बात करते हैं, कुत्ते भी कहीं बरात में चलते हैं? बड़े बुज़ुर्ग कभी कभी गप्पें हांकते हैं तो बच्चे इस प्रकार उनका मजाक उड़ाते हैं.

बाबा के ब्याह में नाती बराती. अधिक आयु का व्यक्ति यदि विवाह करे तो उस पर व्यंग्य.

बाबा घर आना चाहिए, चाहे गली गली आए चाहे छप्पर फाड़ के आए. कैसे भी हो काम होना चाहिए.

बाबा जी कूदे तो सीधे बैकुंठ के अन्दर. बाबा जी खतरनाक काम करने की सोच रहे हैं तो उन को मजाक के लहजे में चेताया जा रहा है कि यहाँ से कूदे तो सीधे स्वर्ग सिधार जाओगे. 

बाबा जी के दाना, हक लगा के खाना. अपनी पुश्तैनी संपत्ति का उपभोग करने का व्यक्ति को पूरा अधिकार है.

बाबा जी चेले बहुत हो गए हैं, बच्चा भूखों मरेंगे तो आप चले जाएंगे. जिम्मेदारियों से तनावग्रस्त न हो कर मस्त रहना.

बाबा जी जाड़े से मरें, गीदड़ बांधे धोती. जिस को मिलना चाहिए उसे न मिल कर अपात्र को सुविधा मिलना.

बाबा बैठे ई घर में, पाँव पसारें ऊ घर में. 1.बाबा बैठते हैं इस घर में, और पाँव पसारते हैं उस घर में. जब कोई आदमी ज़बर्दस्ती दूसरे के काम में हस्तक्षेप करे. 2. यह एक पहेली भी है जिस का उत्तर है – दीपक.

बाबा मरे नाती जन्मा, वही तीन के तीन. घर या समूह में से कोई कम हुआ तो कोई बढ़ गया. खर्च के लिए उतने ही लोग रहे.

बाभन कुत्ता नाई, जात देख गुर्राई/घिनाई. ब्राह्मण, कुत्ता और नाई (हज्जाम नहीं कर्मकांड कराने वाला नाई) अपनी जाति वालों से ही शत्रुता रखते हैं/घृणा करते हैं.

बाभन कुत्ता भाट, जात जात के काट. ब्राह्मण कुत्ता और भाट अपनी जाति वालों की काट करते हैं.

बाभन को घी देव बाभन झल्लाय. किसी को लाभ पहुँचाने की कोशिश करो और वह नाराजगी दिखाए तो यह कहावत कही जाती है.

बामन औ सांड इक्यावन खूँटा. ब्राह्मण का एक स्थान पर रह कर काम नहीं चल सकता. उसे रोजी रोटी के लिए कई घरों में भटकना पड़ता है. सांड भी एक जगह न बंध कर जगह जगह मुँह मारता घूमता है.

बामन का क्रोध सवा पहर. ब्राह्मण अपनी जीविका के लिए दूसरों पर आश्रित है इसलिए क्रोध नहीं करता.

बामन का बनाया बामन खाए न तो बैल खाए. ब्राह्मणों की बनाई खराब रसोई का मजाक उड़ाने के लिए.

बामन का बेटा, बावन बरस तक पोंगा. ब्राहण का बेटा काफ़ी आयु तक पिता का पिछलग्गू रहता है.

बामन का मन लड्डू में. अर्थ स्पष्ट है.

बामन कुत्ता हाथी, ये न जात के साथी (तीनों जात के घाती). ब्राहण, कुत्ता और हाथी अपनी जाति वाले का साथ नहीं देते.

बामन को दी बूढ़ी गाय, धरम न होय दलिद्दर जाय (बूढ़ी गाय बमने जाय, पुन्न होय और टले बलाय).  ब्राह्मण को बूढ़ी गाय दान कर के बड़े खुश हैं, पुण्य न भी मिले तो भी कम से कम उसे खिलाने का झंझट तो गया.

बामन को बामन मिला, मुख देखे व्यौहार, लेन देन को कुछ नहीं नमस्कार ही नमस्कार. ब्राह्मण यदि समाज के किसी अन्य वर्ग के व्यक्ति से मिलते हैं तो आशीर्वाद देते हैं और बदले में कुछ पाने की आशा करते हैं. यदि दूसरा ब्राह्मण ही मिल जाए तो कोई लेन दन कुछ नहीं होता बस नमस्कार होती है. एक समय में ब्राह्मणों की ऐसी छवि बन गई थी कि वे भांति भांति से लोगों को ठगते हैं, उसी पर व्यंग्य.

बामन को लरिका मूलन में नाहिं होत. ब्राहण लोग आम लोगों को तरह तरह के भय दिखा कर धन ऐंठते हैं. इसी प्रकार का एक भय है मूल नक्षत्र का. मूल नक्षत्र को अशुभ बता कर उसमें जन्म लेने वाले बच्चों के लिए पूजा पाठ कराने का प्रावधान रखा गया है. कहावत में कहा गया है कि ब्राह्मण का बेटा मूलों में नहीं होता क्योंकि उस को मूल नक्षत्र का बता कर किस से धन ऐठेंगे.

बामन को साठ बरस पे बुद्धि आवे, और तब वह मर जावे. (राजस्थानी कहावत) साठ वर्ष का होके तो ब्राह्मण को बुद्धि आती है और उसके बाद वह मर जाता है.

बामन खा मरे, तो जाट उठा मरे. ब्राह्मण ज्यादा भोजन करने से मरता है और जाट ज्यादा बोझ उठाने से.

बामन जात अँधेरी रात, एक मुट्ठी चावल पे दौड़े जात. ब्राह्मणों को लोग लालची कहते हैं लेकिन यह उनकी मजबूरी है कि उन्हें छोटी छोटी चीज के लिए भी दौड़ना पड़ता है. उन के पास खेती या व्यापार थोड़े ही है.

बामन जीमे ही पतियाय. ब्राह्मण जब भर पेट खाना खा लेता है तभी किसी का विश्वास करता है.

बामन नाई कूकरो, जात देख गुर्राएं, कायथ कागो कूकड़ो, जात देख हरषाएं. ब्राह्मण, नाई और कुत्ता, अपनी जाति वाले को देख कर गुर्राते हैं. कायस्थ, कौवा और मुर्गा अपनी जाति वालों को देख कर खुश होते हैं.

बामन नाचे, धोबी देखे. उल्टी रीत.

बामन बनिया पनिया सांप, न उन में रिस न इन में बिस. (बुन्देलखंडी कहावत) ब्राह्मण और बनिया पानी के सांप के समान हैं. वे क्रोध (रिस) नहीं करते और इन में विष नहीं होता.

बामन बांधे छुरा तो बड़ा बुरा. ब्राह्मण से यह आशा नहीं की जाती कि वह छुरा रखेगा.

बामन बेटा लोटे पोटे, मूल ब्याज दोनहूँ घोटे. ब्राह्मण का बेटा कुछ न कुछ उलट फेर कर के मूल धन और ब्याज दोनों ही पचा लेता है.

बामन हाथी चढ़ कर भी मांगे. आदमी की आदत नहीं जाती. ब्राह्मण को हाथी मिल गया तो उस पर चढ़ कर भिक्षा मांग रहा है.

बामन हो मंत्री भाट हो ख़ास, उस राजा का होवे नास. जिस राजा का मंत्री ब्राह्मण हो और भाट सलाहकार हो उसका नाश होना निश्चित है.

बामन, कुक्कुर, घोड़िया, जात देखि नरियाए. ब्राह्मण, कुत्ता और घोड़ा अपनी ही जाति के दुश्मन होते हैं.

बामनों में तिवारी, कटहल की तरकारी और हैजा की बीमारी ये तीनों खतरनाक होते हैं. तिवारी लोगों से परेशान किसी व्यक्ति का कथन.

बाय बह जाएगी और बात रह जाएगी. समय और परिवेश बदल जाते हैं पर व्यक्ति की बात रह जाती है.

बायस पालहिं अति अनुरागा, होय निरामिष कबहुं कि कागा. बायस – कौवा, निरामिष – शाकाहारी. कौवा को कितने भी प्रेम से दूध रोटी खिलाकर पालो, वह अपनी आदत के अनुसार बिना मांस खाये मान नहीं सकता.

बार बार चोर की तो एक बार शाह की. चोर बार बार चोरी कर के राजा को परेशान करता है पर राजा जब एक बार चोर को पकड़ लेता है तो उसी एक बार में सारा हिसाब पूरा कर देता है.

बारह गाँव का चौधरी, अस्सी गांव का राय, अपने काम न आए तो ऐसी तैसी में जाए. अँगरेज़ लोग अपने चाटुकार लोगों को तरह तरह के इनाम और ओहदे दिया करते थे. किसी चाटुकार को चौधरी साहब की पदवी दे कर बारह गाँव की जमींदारी दे दी तो उस से बड़े चाटुकार को अस्सी गाँव का पट्टा दे कर राय साहब बना दिया. कहावत में कहा गया है कि कोई कितना भी बड़ा आदमी हो अगर हमारे काम नहीं आता तो ऐसी तैसी में जाए.

बारह बरस का कोढ़ी, एक ही इतवार पाक. चर्मरोग से मुक्ति पाने के लिए सूर्य भगवान की उपासना करते हैं और इतवार का व्रत रखते हैं. कहावत में कहा गया है कि बहुत पुराना कुष्ठ रोगी है जिसे कई इतवार के व्रत की जरूरत है, लेकिन एक ही इतवार ऐसा पड़ रहा है. आवश्यकताएँ बहुत अधिक हों और साधन सीमित हों तो.

बारह बरस की कन्या और छठी रात का वर, मन माने तो कर. कन्या बारह बरस की है और वर छह दिन का है. समझ में आता हो तो शादी करो वरना नहीं. कहावत का अर्थ है कि काम बड़ा बेमेल है, मर्जी हो तो करो.

बारह बरस तप किया, जुलहा भतार मिला. बारह साल कन्या ने व्रत तपस्या की लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ, शादी गरीब जुलाहे से हुई. रूपान्तर – बड़े तप से मिला भतार, सो भी मिला जात का चमार.

बारह बरस बाद घूरे के भी दिन फिरते हैं. घूरा – कूड़े का ढेर. बेकार से बेकार व्यक्ति या स्थान का भाग्य कभी न कभी बदलता है.

बारह बरस में बाँझ ब्याही, पूत ब्याही लंगड़ा. बहुत दिनों में कोई काम किया और वह भी ढंग का नहीं किया.

बारह बरस में बाबा बोले, बोले पड़ेगा अकाल. बाबा बारह बरस बाद तो बोले, और बोले भी तो इतनी अशुभ बात कि अकाल पड़ेगा.

बारह बरस लौं कूकुर जीवे, अरु तेरह तक जिए सियार, बरस अठारह छत्री जीवे, आगे जीवन को धिक्कार. कुत्ता बारह साल तक जीवित रहता है और सियार तेरह साल तक. मनुष्य की आयु सौ बर्ष मानी गयी है परन्तु क्षत्रिय योद्धा अठारह बरस तक ही जीते हैं (इसके बाद युद्ध में मारे जाते हैं) इसलिए इसके आगे यदि वे जिएँ तो वे कायर माने जाएंगे (क्षत्रिय युवकों को युद्ध में जाने के लिए उकसाने हेतु कथन).

बारह बरस सेई कासी, मरने को मगहर की माटी. ऐसा माना जाता था की काशी में मरने वाला निश्चित रूप से स्वर्ग जाता है और काशी के पास मगहर नामक स्थान में मरने वाला निश्चित रूप से नर्क में जाता है. कबीरदास इस प्रकार के अंधविश्वासों के कट्टर विरोधी थे. वे जीवन भर काशी में रहे और मृत्यु निकट आने पर जानबूझ कर मगहर चले गए थे. एक तो उन के लिए विशेष रूप से यह कहावत कही गई है. दूसरे ऐसे लोगों के लिए जिनका जीवन अच्छा कटा हो पर मृत्यु के समय जिनकी दुर्गति हुई हो.

बारह बामन बारह बात, बारह खाती (बढ़ई) एक ही बात. आप किसी समस्या का हल पूछेंगे तो बारह ब्राह्मण बारह तरह की बात कहेंगे और बारह बढ़ई एक ही हल बताएंगे. पंडितों में एक राय नहीं हो सकती.

बारह वर्ष रामायण सुनी, पूछते हैं राम राक्षस था या रावण. जो लोग पूरी बात सुनने के बाद उससे सम्बंधित कोई मूर्खतापूर्ण प्रश्न पूछते हैं उनका मजाक उड़ाने के लिए.

बारह साल दिल्ली में रहे पर भाड़ ही झोंका. अच्छी से अच्छी परिस्थितियों में रह कर भी कोई प्रभावशाली कार्य नहीं कर पाए.

बाराती किनारे हो जइहैं, काम दूल्हा दुल्हन से पड़िहैं (बाराती जीम के जाते धाम, दूल्हा दुल्हन से पड़ता काम). किसी भी आयोजन में इकठ्ठी हुई भीड़ आप के किसी काम की नहीं है. काम मुख्य लोगों से ही पड़ेगा.

बाल की खाल, हिंदी की चिंदी. व्यर्थ की नुक्ताचीनी.

बाल गए सिंगार गया, दांत गए स्वाद गया. बाल स्त्री के मुख की शोभा है. बाल झड जाएं तो श्रृंगार का कोई अर्थ ही नहीं रहता. इसी प्रकार दांत गिर जाने के बाद खाने का मज़ा ही खत्म हो जाता है.

बाल जंजाल, बाल सिंगार. बालों को धोना, काढ़ना, सुलझाना और समय समय पर कटवाना ये सब जी का जंजाल हैं पर बाल मनुष्य का श्रृंगार भी हैं. किसी भी चीज़ से हानि लाभ दोनों ही होते हैं.

बाल दोस गुन गनहिं न साधू. सज्जन लोग बच्चों के दोष नहीं गिनते (क्षमा कर देते हैं).

बाल नोचने से ऊँट नहीं मरते. बड़े लोगों को छोटे मोटे नुकसान से कोई फर्क नहीं पड़ता.

बाल मराल कि मंदर लेहीं. हंस का बच्चा कहीं मंदराचल पर्वत को उठा सकता है? यह प्रसंग राम चरित मानस का है. जब ऋषि विश्वामित्र ने जनक जी के धनुष यज्ञ में राम से धनुष उठाने को कहा तो वहाँ उपस्थित स्त्रियाँ कहने लगीं कि यह सुकोमल बालक इस धनुष को कैसे उठा सकता है?

बाल सा बारीक और मूसल सा भारी. बहुत तीक्ष्ण बुद्धि और बात में वजन रखने वाला व्यक्ति.

बाल हठ, तिरिया हठ, राज हठ. तीन हठ प्रसिद्ध हैं, बच्चों का हठ, स्त्रियों का हठ और राजा का हठ.

बालक हो बुद्धिमान सो बड़ा नर जान तू, बूढ़ा हो अज्ञानी सो पशु समान मान तू. बालक यदि बुद्धिमान हो तो उसे व्यस्क मानो और बूढ़ा अगर अज्ञानी हो तो उसे पशु समान मानो.

बालक, मूंछ अरु नारी, बारे से जाय संवारी. बालक, मूँछ और स्त्री ये प्रारंभ से सँभालने पर ही सँभलते हैं.

बालू की भीत, ओछे का संग, पतुरिया की प्रीत, तितली के रंग. रेत की दीवार, धूर्त व्यक्ति का साथ, चरित्रहीन स्त्री का प्रेम और तितली के रंग ये सब स्थायी नहीं होते.

बालू जैसी भुरभुरी, धौली जैसी धूप, मीठी ऐसी कुछ नहीं, जैसी मीठी चूप. चूप–मौन, धौली–श्वेत, धवल. मौन रहना बहुत बड़ा गुण है (इससे सब झगड़े शांत हो जाते हैं). इस को इस प्रकार भी कहते हैं – सब से मीठी मौन.

बालों हाथ छिनाला और कागों हाथ संदेसा. किसी चरित्रहीन स्त्री द्वारा बच्चे के साथ व्यभिचार करना सफल नहीं हो सकता और कोई व्यक्ति कौवे के हाथ संदेश भेजना चाहे तो सफल नहीं हो सकता.

बावन बुद्धि बकरिया में, छप्पन बुद्धि गड़रिया में. गड़रिये में बकरी से कुछ ही ज्यादा बुद्धि होती है.

बावन बुद्धि बानिया, तरेपन बुद्धि सुनार, सबको ठगे बनिया, बनिया को ठगे सुनार. बनिया जितना होशियार होता है, सुनार उससे भी अधिक चालाक होता है.

बावली को आग बताई, उसने ले घर में लगाई. पहले के जमाने में माचिस और लाइटर की उपलब्धता न होने के कारण लोग एक दूसरे के घर से जलता हुआ कोयला या लकड़ी मांग कर लाते थे. कहावत में कहा गया है कि मूर्ख स्त्री को आग दी तो उस ने घर में ही आग लगा दी. मूर्ख व्यक्ति की सहायता भी सोच समझ कर ही करें.

बावली खाट के बावले पाए, बावली रांड के बावले जाए. जहाँ माँ भी मूर्ख हो और बच्चे भी उस बढ़ कर मूर्ख हों. तुकबंदी के लिए खाट और पायों का ज़िक्र कर दिया गया है.

बावले मर गए औलाद छोड़ गए. किसी मूर्ख व्यक्ति की मूर्ख संतान का मजाक उड़ाने के लिए.

बासी कढ़ी उबाला आया. बुढापे में जोश आना.

बासी चावल बासी साग, अपने घर खाए क्या लाज. अपने घर पर कुछ भी खाओ, उसमें कोई शरम नहीं होती.

बासी भात पे बेनिया डुलाए. बेनिया – बेना, हाथ का पंखा. मिथ्या आडम्बर करने वालों के लिए.

बासी भात में अल्ला मियाँ का कौन निहोरा (बासी भात में ठाकुर साहब का कौन निहोरा). बासी भात खा कर किसी तरह पेट भर रहे हैं, तो इस में अल्ला मियाँ या ठाकुर साहब की क्या मेहरबानी मानें.

बासी मुंह फीका पानी औगुन करे है. बहुत से लोग खाली पेट पानी पीना ठीक नहीं मानते. ऐसे लोग पहले कुछ मीठा खा कर तब पानी पीते हैं. कहीं कहीं (विशेषकर पूर्वी उत्तरप्रदेश में) यह रिवाज होता है कि यदि कोई कामवाला भी पानी मांगे तो उसे पहले कुछ मीठा खाने को देते हैं.

बाहर की चुपड़ी से घर की रूखी सूखी भली. 1. घर में जो कुछ भी रूखा सूखा उपलब्ध हो वही खा कर व्यक्ति को संतोष करना चाहिए, बाहर चुपड़ी खाने के प्रयास में धन और स्वास्थ्य दोनों की हानि होती है. 2. बाहर रह कर अधिक आय होती हो उस के मुकाबले कम आय हो पर घर में रहने को मिले तो बेहतर है.

बाहर खुशबू, भीतर बदबू. ढोंगी सफेदपोश लोगों के लिए.

बाहर टेढ़ो फिरत है, बाँबी सूधो साँप. सांप दुनिया भर में टेढ़ा टेढ़ा चलता है लेकिन अपनी बांबी में सीधा ही घुसता है. कोई व्यक्ति दुनिया के लिए कितना भी दुष्ट क्यों न हो घर में सीधा ही रहता है.

बाहर त्याग, भीतर सुहाग. ऐसे लोगों के लिए जो त्यागी होने का ढोंग करते हैं और वास्तव में भोगी होते हैं.

बाहर मियाँ झंगझंगाले, घर में नंगी जोय. जोय – जोरू, पत्नी. घर से बाहर पतिदेव खूब चौकस कपड़े पहने घूम रहे हैं और घर में बीबी फटे पुराने और अपर्याप्त कपड़े पहन रही है. 

बाहर मियाँ पंजहजारी, घर में बीबी कर्मों मारी. पंज हजारी – पांच हजार रूपये वेतन पाने वाला (पुराने समय में एक अत्यधिक बड़ी रकम). पति बड़े ओहदे पर काम कर रहा है और पत्नी घर के कामों में पिस रही है.

बाहर मियाँ सूबेदार, घर में बीबी झोंके भाड़. घर से बाहर पति बड़े अधिकारी बने रौब गाँठ रहे है और घर में बीबी चूल्हा झोंक रही है.

बाहर वाले खा गए, घर के गावें गीत. बाहर के लोग दावत खा गए और घर वाले गीत गाते ही रह गए. बिना सही योजना बनाए अव्यवस्था पूर्ण कार्य करने वालों के लिए.

बिंध गया सो मोती, रह गया सो पत्थर. जिस का काम बन गया वह बड़ा आदमी बन गया और जिसका काम नहीं बना वह बेचारा गरीब ही रह गया.

बिआवत दुख, बिहावत दुख.  बेटी के बारे में यह कहावत कही गई है कि जब पैदा होती है तब भी दुख और जब शादी होकर चली चली जाती है, तब भी दुख।

बिगड़ी तो चेली बिगड़ी, बाबा जी तो सिद्ध के सिद्ध. बाबा जी और चेली के बीच कोई अनैतिक सम्बन्ध हुआ तो चेली की ही बदनामी होती है.

बिगड़ी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय, (रहिमन फाटे दूध के मथे न माखन होय). बिगड़ी बात फिर नहीं बनती चाहे कितना भी प्रयास करो (फटे हुए दूध को मथने से माखन नहीं निकलता).

बिगड़ी रसोई सुधरती नहीं. इसी प्रकार जो बात बिगड़ जाए वह सुधर नहीं सकती.

बिगड़ी लड़ाई सिपाहियों के सिर. हारी हुई लड़ाई का ठीकरा सिपाहियों के सर फोड़ा जाता है. कोई पार्टी चुनाव हारती है तो कार्यकर्ताओं पर दोष डालती है.

बिगड़ेगा बस सुगढ़ नर क्या बिगड़ेगा कूढ़, क्या बिगड़ेगा मट्ठा बिगड़ेगा बस दूध. जो सज्जन और सम्पन्न व्यक्ति है उसे ही हानि होने का डर होता है, जो मूर्ख और विपन्न है उसे क्या हानि होगी.

बिच्छू का काटा चोर, न हूँ कर सकै न चूँ. चोरी करते समय यदि किसी चोर को बिच्छू काट ले तो वह बेचारा दर्द से बिलबिलाते हुए भी चिल्ला नहीं सकता.

बिच्छू का काटा रोवे, साँप का काटा सोवे. बिच्छू का काटा व्यक्ति भयानक दर्द से रोता है जबकि सांप का काटा व्यक्ति विष के प्रभाव से मूर्च्छित होने लगता है.

बिच्छू का मंत्र जाने नहीं, साँप के बिल में हाथ डाले. जब बिच्छू और सांप के काटे का कोई इलाज उपलब्ध नहीं था तो लोग झाड़ फूँक किया करते थे. अगर सांप जहरीला नहीं हुआ या अधिक विष शरीर में नहीं पहुँचा तो मरीज़ बच जाता था और लोग समझते थे कि मन्त्र से ठीक हो गया. कहावत ऐसे व्यक्ति के विषय में कही गई है जो बिना किसी जानकारी के किसी खतरनाक काम में हाथ डाल रहा है.

बिच्छू के डर से भागे, सांप के मुँह में पड़े. छोटी परेशानी से बचने के प्रयास में बड़े संकट में पड़ जाना.

बिच्छू के मंत्र से सांप का जहर नहीं उतरता. हर संकट का हल एक ही तरीके से नहीं किया जा सकता. अलग अलग परेशानियों के लिए अलग अलग हल खोजने होते हैं.

बिछौना देख थकावट लगे. अर्थ स्पष्ट है.

बिछौने से लग गये.  बहुत दुर्बल हो गये हैं; बचना कठिन है.

बिजया पीवे खटिया सोवे, ताके बैद पिछाड़ी रोवे. बिजया – भांग. जो भंग पीकर सो जाता है, उसको बैद्य भी नहीं बचा सकता (उस के मरने पर रोता है).

बिजली का मारा, लुआठ देख भागे. लुआठ – जलती लकड़ी. जो बिजली गिरने से जला हो, वह जलती हुई लकड़ी को देखकर भी डर जाता है.

बिजली कांसे पर ही गिरती है. कांसा क्योंकि बिजली का अच्छा चालक (conductor) होता है इसलिए बिजली कांसे पर गिर कर धरती में समाती है. कांसा अन्य धातुओं से महंगा होता है. कहावत को इस अर्थ में प्रयोग कर सकते हैं कि आपदा बड़े आदमी पर ही आती है या किसी बिगड़े काम की गाज़ बड़े आदमी पर ही गिरती है.

बिटिया तेरो ब्याह कर दें, मैं कैसे कहूँ. किसी व्यक्ति से ऐसे विषय पर चर्चा करना जो उस के लिए लज्जा का विषय हो. पुराने समय में विवाह की बात पर लड़कियाँ शर्माती थीं.

बिटिया बिआनी ड्यौढ़ी पे बैठी, उतर गई सबके मन से, बेटा बिआनी पलंग चढ़ बैठी, हुकुम चलावे सब घर पे. बेटी को जन्म दिया तो सब के मन से उतर गई और घर की ड्योढ़ी पर बैठी है, और बेटा हुआ तो इतनी इज्ज़त कि सब घर वालों पर हुक्म चला रही है. ये सामाजिक कुरीतियाँ अब भी बहुत जगह विद्यमान हैं.

बिटिया सोहे ससुराल, हाथी सोहे हथसाल. लड़की तो ससुराल में ही शोभा देती है और हाथी हथसाल में.

बिटोरे में से तो उपले ही निकलेंगे. बिटोरा – गोबर के कंडों (उपलों) का ढेर. बिटोरे में से तो उपले ही निकलेंगे, कोई लकड़ियाँ थोड़े ही निकलेंगी. कोई घटिया आदमी गालियाँ दे रहा हो तो यह कहावत कही जा सकती है.

बित्ते भर की छोकरी गज भर की जीभ. कोई छोटा बच्चा बहुत बढ़ चढ़ कर वयस्कों जैसी बातें कर रहा हो तो.

बिदा होउ तौ रोउन बैठें, नहीं तो कंडन को जायें. बिदा हो रही हो तो रोने बैठ जायें, नहीं तो कंडा थोपने जायें. कोई आवश्यक काम हो तो यहाँ बैठें, अन्यथा अपना दूसरा काम देखें.

बिन कुत्तों के गाँव, बिल्ली अलबेली डोले. दो परस्पर विरोधी अर्थ 1. समाज में जागरूक लोगों की कमी हो तो धूर्त लोगों की बन आती है. 2. समाज में गुंडे और दबंग लोग न हों तो कमजोर भी चैन से रह सकता है.

बिन खाए छुधा न बुताए, बिन देखे नयन न जुड़ाय. बिना भोजन किए भूख नहीं मिटती और अपने प्रिय व्यक्ति को सामने देखे बिना आँखें तृप्त नहीं होतीं.

बिन घरनी घर भूत का डेरा. बिना पत्नी घर भूत के डेरे के समान है.

बिन जाटों के किसने पानीपत जीते. पानीपत के सारे युद्धों में जाटों का प्रमुख योगदान रहा है.

बिन देखे राजा भी चोर. अपनी आँख से देखे बिना किसी बात पर विश्वास नहीं करना चाहिए.

बिन निरधार न हो सके सांच झूठ को न्याव. निरधार – निर्धारण करने वाला. बिना उचित निर्धारण करने वाले के सच और झूठ का न्याय नहीं हो सकता.

बिन पंखन के उड़े चाहें. बिना पंखों के उड़ना चाहते हैं. पर्याप्त साधन के बिना काम करना चाहते हैं.

बिन पैसों का तमाशा. ऐसा लड़ाई-झगड़ा जिसमें देखने वाले आनंद लें.

बिन पैसों के परखें मोल, तिनको नाम संखढपोल. बिना पैसों के जो किसी वस्तु को खरीदने की इच्छा करते हैं वे ढपोर शंख कहलाते हैं.

बिन बंसे निरबंस, बहु बंसे निरबंस. निरबंस – निर्वंश, संतानहीन. जिस के कोई पुत्र न हो वह तो संतानहीन कहा ही जाता है, जिस के अधिक पुत्र हों वह भी एक प्रकार से संतानहीन है क्योंकि सारे पुत्र एक दूसरे पर जिम्मेदारी डाल के उस की देखभाल नहीं करते.

बिन बिचौलिया छिनाला नहीं. कोई भी अनैतिक काम जैसे चोरी, डकैती, रिश्वतखोरी, वैश्या वृत्ति आदि दलालों के बिना नहीं होते.

बिन बुलाए अहमक, ले दौड़े सहनक. सहनक – भोजन का थाल. बिना बुलाए दूसरे के यहाँ जा कर भोजन करना.

बिन बैलन खेती करे, बिन भैय्यन के रार, बिन मेहरारू घर करे, चौदह साख गंवार. जो बिना बैलों के खेती करने चले, बिना भाइयों की सहायता के किसी से दुश्मनी मोल ले और बिना पत्नी के घर बनाए ये सब गंवार होते हैं.

बिन ब्याही बेटी मरे, ठाड़ी ऊख बिकाय, बिन मारे मुद्दई मरे, तीन काल टर जाए. बेटी की शादी में और शादी के बाद भी कितनी मुसीबतें होती हैं यह सब जानते हैं, गन्ने को काटना और बेचना भी बहुत कठिन काम है और मुकदमा ठोकने वाला भी बहुत परेशान करता है. इसलिए यह कहा गया है कि यदि अविवाहित बेटी की मृत्यु हो जाए, खेत में खड़ी गन्ने की फसल बिक जाए और मुकदमा ठोकने वाला बिना मारे मर जाए तो यह मानना चाहिए कि बहुत बड़ी मुसीबत टल गई. (वैसे हमारे हिसाब से बेटी के मरने पर खुश होना उचित बात नहीं हैं).

बिन माँगे मोती मिले, मांगे मिले न भीख. माँगना बहुत बुरा है यह समझाने के लिए.

बिन विद्या नर नार, जैसे गधा कुम्हार. विद्या के बिना नर और नारी कुम्हार के गधे के समान हैं.

बिन स्वारथ कैसे सहे कोऊ करवे बैन, लात खाय पुचकारिए होए दुधारू धेनु. अपने स्वार्थ के लिए आदमी कड़वे बोल भी सह लेता है, दूध देने वाली गाय की लात खा कर भी उसे पुचकारते हैं.

बिन हरवाहे हर कैसा, बिना घरनी घर कैसा. बिना हलवाहे के हल का क्या काम और बिना गृहिणी घर कैसा.

बिन हिम्मत किस्मत नहीं. जो लोग साहस नहीं दिखाते उनका भाग्य भी साथ नहीं देता.

बिना असल के नकल नहीं होती. नकल करने के लिए कोई न कोई असली चीज़ तो होना ही चाहिए.

बिना कष्ट उठाए कोई सफलता नहीं मिलती. अर्थ स्पष्ट है.

बिना खटाई के भटा और बिना बाप के बेटा. बिना खटाई के बैंगन अच्छा नहीं बनता और बिना बाप के बेटा.

बिना खाए की डकार. खाली मूली नाटक करने वालों के लिए.

बिना चाह का पाहुना, घी डालूं या तेल. जो अतिथि अपने मन को न भाता हो, उसका सत्कार भी काम चलाऊ ढंग से किया जाता है.

बिना झूठ बोले कबीरदास की कमरिया नाहिं बिकी. बिना थोड़ा बहुत झूठ बोले व्यापार नहीं किया जा सकता.

बिना दबाए तिल से तेल नहीं निकलता. बिना भय दिखाए कोई काम नहीं करता.

बिना नून का रांधे साग, बिना पेंच की बांधे पाग, बिना कंठ के गाए राग, न वो साग, न पाग, न राग. बिना नमक के साग बनाओ तो वह बेकार ही बनेगा, इसी प्रकार बिना पेंच के बंधी पगड़ी और बिना मधुर कंठ के गाया राग भी बेकार ही माना जाएगा.

बिना पथ्य के दवा और बिना सत्य के बात. बिना परहेज के दवा उतनी ही निरर्थक है जितनी बिना सत्य के कोई बात.

बिना पेंदी का लोटा चाहे जिधर लुढ़क जाए. जिस व्यक्ति की अपनी कोई विचारधारा न हो.

बिना बाप का छोरा बिगड़े, बिना माई की छोरी. बिना बाप का बेटा बिगड़ जाता है (अनुशासन के अभाव में) और बिना माँ की बेटी बिगड़ जाती है (माँ की सीख के अभाव में).

बिना बिचारे जो करे सो पाछे पछिताए, (काम बिगारे आपनो जग में होत हंसाय). (गिरधर की कुंडलियों से) जो बिना सोचे विचारे जल्दबाजी में काम करता है उसे बाद में पछताना पड़ सकता है. उसका काम भी बिगड़ता है और दुनिया के लोग उस पर हंसते भी हैं. इस कहावत को आम तौर पर केवल आधा ही बोला जाता है.

बिना बुद्धि जरे विद्या. बुद्धि के बिना विद्या बेकार है.

बिना बुलाई आवे, टांय टांय गावे. विवाह आदि अवसरों पर कुछ विशेष जातियों की स्त्रियाँ आ कर गीत गाती हैं और नेग मांग कर घर वालों का मूड खराब करती हैं. किसी ऐसे व्यक्ति के लिए भी कहावत प्रयोग की जा सकती है जो बिना बुलाए आया हो और जबरदस्ती अपनी सलाह दे रहा हो.

बिना बुलाए आदर नहीं चाहे जा देखे, पेट भरे स्वाद नहीं चाहे खा देखे. अर्थ स्पष्ट है.

बिना बुलाए तो राम के घर भी नहीं जाएंगे. बिना बुलाए कहीं नहीं जाना चाहिए.

बिना बुलाए मत जइयो गौरा, आदर न हुइहैं तुम्हार. सती के पिता दक्ष प्रजापति ने अपने यहाँ यज्ञ में शिवजी को नहीं बुलाया, लेकिन सती (गौरा) तब भी जाना चाहती थीं. शिव जी ने यह कह कर उन्हें जाने से मना किया था. कहीं कोई बुना बुलाए जाने को तैयार हो तो उसे यह कह कर सावधान किया जाता है.

बिना बुलावे कुकुर धावे. बिना बुलाए कुत्ता ही जाता है. कहावत का अर्थ है कि बिना बुलाए कहीं नहीं जाना चाहिए.

बिना माँगे सलाह देने से बाज आइए. बिना मांगे किसी को सलाह नहीं देना चाहिए (ऐसी सलाह का कोई मोल नहीं होता).

बिना मारे की तौबा. कोई बिना कष्ट के कोई चिल्ला रहा हो तो.

बिना मिर्च के घोटे भंग, बिन भाइन के रोपे जंग, ले वैश्या जो न्हावे गंग, ना वह भंग न जंग न गंग.  कहावत में तीन अलग अलग बातें तुकबन्दी कर के एक साथ बताई गई हैं – बिना मिर्च के भांग का सेवन करने से हानि हो सकती है, जिसका परिवार मजबूत न हो वह किसी से लड़ाई मोल ले तो मार खा सकता है, वैश्या को साथ ले कर कोई गंगा नहाएगा तो पुण्य की जगह पाप मिलेगा.

बिना मेह के जोतना, घोड़ा बिना लगाम, फ़ौज बिना सरदार के, तीनों भए निकाम. बिना वर्षा के खेत जोतना, बिना लगाम का घोड़ा और बिना सरदार की सेना ये किसी काम के नहीं हैं. रूपान्तर – बिनु सरदारे सेना नास.

बिना रोए माँ भी दूध नहीं पिलाती. जब तक अपनी परेशानी बताओगे नहीं, कोई तुम्हारी सहायता कैसे करेगा. इस कहावत को इस प्रकार से भी कहा गया है – ‘बिना रोये न लड़का दूध पावे, बिना रोये न माई गोद उठावै.

बिना लाग खेले जुआ, आज न मुआ कल मुआ. लाग माने चालाकी, युक्ति. जिस के अंदर चालाकी नहीं है वह अगर जुआ खेलेगा तो निश्तित रूप से बर्बाद हो जाएगा.

बिना सींग पूँछ का बरद. किसी ताकतवर किन्तु मूर्ख व्यक्ति का मजाक उड़ाने के लिए. बरद – बैल.

बिनु मेहरी ससुरारै जाय, बिना माघ घी खिचरी खाय, बिन भादों पिन्हाए पउआ, घाघ कहै ये तीनहुं कउआ. मेहरी – पत्नी, पिन्हाए पउआ का अर्थ संभवतः झूला झूलने से है. ससुराल पत्नी के साथ ही जाना अच्छा होता है. घी मिली हुई खिचड़ी को माघ के महीने में खाना ही ठीक माना गया है. जो बिना पत्नी ससुराल जाए, माघ के महीने अलावा घी खिचड़ी खाए और भादों के अलावा झूला झूले वह कौए के समान निर्बुद्धि है.

बिनु सत्संग विवेक न होई. सत्संग का अर्थ है अच्छी संगत. कहावत का अर्थ है कि बुद्धिमान लोगों के साथ रहने से ही बुद्धि और विवेक जागृत होता है. (आम तौर पर लोग सत्संग का अर्थ केवल भगवान् का कीर्तन करना और धार्मिक उपदेश सुनना ही समझते हैं). इस कहावत की अगली पंक्ति इस प्रकार है – बिनु सत्संग विवेक न होई, राम कृपा बिनु सुलभ न सोई. अर्थात अच्छी संगत भी भगवान् की कृपा से मिलती है.

बिनु हरि भजन न जाहि कलेसा. हरि की भक्ति के बिना संसार के कष्ट दूर नहीं हो सकते.

बिनौलों की लूट में बरछी का घाव. बहुत छोटा अपराध करते समय बहुत बड़ी हानि.

बिपत संगाती तीन जन, जोरू बेटा भाई. संगाती – साथ देने वाला. विपत्ति में तीन ही लोग साथ देते हैं, पत्नी, पुत्र और भाई. 

बिपद के पीछे बिपद और धन के पीछे धन. विपत्ति के ऊपर विपत्ति आती हैं और धन के ऊपर धन.

बिपद बराबर सुख नही, जो थोड़े दिन होय. विपत्ति यदि थोड़े दिन के लिए आए तो लाभकारी हो सकती है. यह मालूम हो जाता है कि कौन सच्चा मित्र है और बहुत कुछ सीखने को मिलता है.

बिरादरी का मुखिया, दुखिया ही दुखिया. किसी भी समाज का मुखिया होना बहुत तनाव का काम है.

बिरादरी को न खिलाया, चार कांधी ही जिमा दिए. किसी व्यक्ति की जा रही है जिसने अपने घर में किसी की मृत्यु होने पर बिरादरी की दावत नहीं की केवल अर्थी को कंधा देने वाले लोगों को ही जिमाया (भोजन कराया). देहाती समाज की यह बहुत बड़ी कुरीति है कि किसी की मृत्यु के बाद सारी बिरादरी को दावत देनी पड़ती है चाहे मरने वाला घर का इकलौता कमाने वाला ही क्यों न रहा हो और चाहे इस के लिए कर्ज़ ही क्यों न लेना पड़े.

बिराने धन को रोवे चोर. चोर पराये धन को पाने के लिए ही सब जुगत करता है.

बिल खोद चूहा मरे, मौज उड़ावे सांप. चूहा मेहनत कर के बिल खोदता है और सांप उस में रहने आ जाता है. किसी गरीब के परिश्रम का लाभ कोई दबंग व्यक्ति उठाए तो.

बिलइया अपनो एक दाँव तो छिपा राखत (बिल्ली वाली चाल तो सिखलाई ही नहीं). अपने चेले को इतना होशियार नहीं बनाना चाहिए कि वह गुरु का ही गला दबा दे. शेर व बिल्ली की कहानी के लिए देखिए सन्दर्भ कथा 148.

बिलइया के दाँत बिलइया को नाहिं लगत. एक चालाक की चालाकी दूसरे पर नहीं चलती.

बिलइया दंडौत करना. झूठा सम्मान करना. विवश होकर किसी के हाथ-पैर जोड़ना.

बिलाई का मन मलाई में. ओछे लोग हर समय अपने स्वार्थ के विषय में सोचते रहते हैं.

बिल्ली और दूध की रखवाली? बिल्ली से दूध की रखवाली कौन करा सकता है.

बिल्ली की नज़र बस चूहे पे (बिलैया की नज़र मुसवे पर). धूर्त व्यक्ति केवल अपने लाभ की बात देखता है.

बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे. सुझाव सब देते हैं पर खतरा उठा कर काम करना कोई नहीं चाहता. रूपान्तर – म्याऊँ का ठौर कौन पकड़े. इंग्लिश में कहावत है – Who will bell the cat. सन्दर्भ कथा – एक घर में सैकड़ों चूहे रहते थे. वे आज़ादी से पूरे घर में टहलते थे. अचानक एक दिन उस घर में कहीं से एक बिल्ली आ गई. बिल्ली को देखते ही सारे चूहे तेजी से अपने-अपने बिल में छिप गए. लेकिन जब चूहे बाहर निकलते, बिल्ली उन पर झपट्टा मारती और एकाध को खा जाती. धीरे-धीरे चूहों की संख्या कम होने लगी थी. तो इस समस्या का हल निकालने के लिए चूहों ने एक सभा बुलाई. सभी ने अपने अपने सुझाव दिए लेकिन कोई सुझाव ऐसा नहीं था, जिससे बिल्ली का आंतक रोका जा सके.

अचानक एक जवान चूहे ने सुझाव दिया कि यदि हम बिल्ली के गले में घंटी बांध दें तो जब वह आएगी हमें खतरे के बारे में पता चल जाएगा और हम लोग भाग कर अपनी बिल में छिप जाएंगे. यह सुझाव सुन कर सभी चूहे खुशी से झूमने लगे. अचानक एक अनुभवी चूहा उठ खड़ा हुआ. उस ने कहा कि यह बताओ कि आखिर बिल्ली के गले में घंटी बांधेगा कौन? सभा में सन्नाटा छा गया. इसी बीच बिल्ली के आने की आहट पाते ही सभी चूहे भागकर अपने-अपने बिल में जाकर छिप गए.

बिल्ली के भागों छींका टूटा. अचानक बिना उम्मीद के कोई वांछित वस्तु मिल जाना. रूपान्तर – छींके की टूटन, बिलइया की लपकन.

बिल्ली के सपने में चूहा. धूर्त व्यक्ति को सपने में भी अपने फायदे की बात ही दिखती है.

बिल्ली के सरापे छींका नहीं टूटता. सरापे – श्राप देने से, कोसने से. धूर्त व्यक्ति द्वारा कोसे जाने से किसी का नुकसान नहीं होता. (कौआ कोसे ढोर नहीं मरते).

बिल्ली के सिरहाने दूध नहीं जमता. बिल्ली दूध को इतनी देर छोड़ेगी ही कहाँ कि दूध जम पाए. जिस से चोरी का डर हो उसके आसपास कोई चीज़ कैसे सुरक्षित रह सकती है.

बिल्ली को ख़्वाब में भी छिछ्ड़े नजर आते हैं. धूर्त व्यक्ति सोते जागते हर समय केवल अपने लाभ के विषय में ही सोचते हैं. इंग्लिश में कहावत है – A sleeping fox counts hens in her sleep.

बिल्ली को दूध औटाने का काम. किसी काम में जिस व्यक्ति से खतरा हो उसी को वह काम सौंपना. यह मूर्खतापूर्ण भी हो सकता है और समझदारी भरा भी.

बिल्ली को पहले दिन ही मार देना चाहिए. 1. अप्रिय और अशुभ वस्तु को पहले दिन ही दूर कर देना चाहिए. 2.एक आदमी ने शादी के पहले दिन ही एक बिल्ली को मार दिया ताकि पत्नी के मन में आतंक बैठ जाए.

बिल्ली क्या जाने पंचामृत का दूध. बिल्ली क्या जाने कि दूध पंचामृत के लिए रखा है, वह तो मौका पाते ही पी जाएगी. दुष्ट व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए उचित अनुचित विचार क्यों करेगा.

बिल्ली क्या जाने मोल का दही. गाँव के लोग अधिकतर गाय भैंस पालते हैं और दूध दही खरीदने से बचते हैं. बिल्ली को इस बात से क्या मतलब कि घर का है या खरीदा हुआ है. रूपान्तर – बिल्ली को खाने से काम, मोल का हो या मुफ्त का.

बिल्ली खाएगी नहीं तो लुढ़का ही देगी. दुष्ट लोग अपना लाभ न ले पाएँ तो दूसरे का काम बिगाड़ कर ही खुश हो लेते हैं. इस कहावत को इस प्रकार से भी कहा गया है – खा न पाए तो लुढका दे.

बिल्ली गई चूहों की बन आयी. बिल्ली चली जाए तो चूहों की मौज हो जाती है. सख्त हाकिम के जाने के बाद चोर उचक्कों की बन आती है. इंग्लिश में कहावत है – When the cat is away, the mice are at play.

बिल्ली पूज के आये हैं. किसी को गलत तरीकों से अप्रत्याशित सफलता मिलने पर ऐसा कहते हैं.

बिल्ली बाज़ार तो खूब कर ले पर कुत्ते करने दें तब न. कमजोर आदमी बहुत से काम कर सकता है लेकिन जबर उसे नहीं करने देते.

बिल्ली भई मुखिया, गीदड़ करमचारी. जहाँ हाकिम और मातहत सभी धूर्त हों.

बिल्ली भी चूहा खुदा के वास्ते नहीं मारती. हर आदमी अपने स्वार्थ के लिए काम करता है, बिल्ली भी परोपकार करने के लिए चूहा नहीं मारती (अपना पेट भरने के लिए मारती है).

बिल्ली भी दब कर हमला करती है. इसका अर्थ दो प्रकार से हो सकता है – 1. बिल्ली झुक कर हमला करती है अर्थात धूर्त व्यक्ति अगर विनम्रता दिखा रहा हो तो सावधान हो जाएँ, हो सकता है कि हमला करने वाला हो. 2. दबाने पर बिल्ली भी हमला करती है अर्थात कमजोर को अधिक न दबाओ.

बिल्ली भैंस न पाले पर खाए केवल मलाई. धूर्त लोग स्वयं कोई काम न कर के भी मजे मारते हैं.

बिल्ली वाली चाल तो सिखलाई ही नहीं. किसी को शिक्षा दो तो सोच समझ कर. सन्दर्भ कथा – एक बार एक शेरनी ने अपने बच्चे को शिकार आदि की चाल (पैंतरे) सिखलाने की जिम्मेदारी बिल्ली मौसी को सौंपी. बिल्ली ने उसे शिकार करने के अनेक दांव-पेंच सिखला दिये. लेकिन जब शेरनी का बच्चा कुछ बड़ा हुआ तो वह एक दिन बिल्ली पर ही झपटा. बिल्ली झट से उछल कर पेड़ पर चढ गई. शेर का बच्चा देखता ही रह गया और उसने नाराजगी के स्वर में बिल्ली से कहा कि मौसी, तूने यह चाल तो मुझे सिखलाई ही नहीं. इस पर बिल्ली ने उत्तर दिया कि मैंने इसी दिन के लिए इसे रोक कर रखा था.

बिल्ली से छिछड़ों की रखवाली. चोर से किसी चीज़ की पहरेदारी करने को कैसे कहा जा सकता है.

बिस का कीड़ा बिस में ही मानत. दुष्ट व्यक्ति घटिया परिवेश में ही प्रसन्न रहता है.

बिसधर पकड़ जहर को चाट, परनारी संग चले न बाट. एक बार को सांप को पकड़ के उसका जहर चाट ले, लेकिन परनारी के साथ रास्ता न चले.

बिस्वा को कौन आसन सिखावे. बिस्वा – वैश्या. जो सब सीखा सीखाया हो उसे कौन सिखा सकता है.

बिस्वा बिस की गाँठ. वैश्या विष की गाँठ होती है.

बीघे बीघे भूत, बिस्वे बिस्वे सांप. राजस्थान की मरुभूमि में हर बीघे पर भूत और हर बिस्वे पर सांप रहते हैं. एक बीघे में बीस बिस्वे होते हैं. देखिए परिशिष्ट.

बीच की उँगली बड़ी होती है. किसी भी विवाद के निवारण के लिए बीच का मार्ग सबसे अच्छा होता है.

बीज बोया नहीं, खेत का दुख. जिस काम से कोई सरोकार न हो उस के लिए दुखी होने वालों का मजाक उड़ाने के लिए. रूपान्तर – शादी हुई नहीं, ससुराल का दुख.

बीती ताहि बिसारि दे, आगे की सुधि लेइ, (जो बनि आवै सहज में, ताही में चित देइ). जो बीत गया उसका पश्चाताप करने की बजाए आगे क्या करना है यह सोचो. जो काम आसानी से हो सके उस में मन लगाओ. आम तौर पर इसका पहला भाग ही बोला जाता है.

बीननहारी बीन कपास, तेरी मेरी एक ही सास. सलैज और नंदोई की मजेदार कहानी. सन्दर्भ कथा – एक आदमी मेहमानी में किसी गाँव में गया. वहां गाँव के बाहर कुछ महिलाएं कपास के खेत में कपास बीन रही थीं. उन में से एक महिला को वह पहचानता था पर वह महिला उसे नहीं जानती थी. उसने महिला से उस के घर का पता पूछा. महिला ने पूछा आप कौन हैं? वह आदमी बोला,  बीननहारी बीन कपास, तेरी मेरी एक ही सास. तब भी वह महिला नहीं समझी तो उस आदमे ने बताया कि वह उसका नन्दोई है. इस प्रकार से यह एक कहावत भी है और पहेली भी.  

बीबी को बांदी कहा हंस दी, बांदी को बांदी कहा रो दी. घर के किसी व्यक्ति को नौकर कहोगे तो मज़ाक समझ कर हँस देगा पर नौकर को नौकर कहोगे तो बुरा मानेगा.

बीबी नेकबख्त, दमड़ी की दाल तीन वक्त. बीबी बहुत उदार हैं जो दमड़ी की दाल में तीन बार का खाना बनवाती हैं. बहुत कंजूस लोगों का मजाक उड़ाने के लिए.

बीबी बच्चे भूखों मरे और भड़वे लड्डू खाएँ. अपने घर वालों की बेकद्री कर के आलतू फ़ालतू लोगों पर खर्च करने वालों के लिए.

बीबी बीबी ईद आई, चल हरामजादी तुझे क्या. कंजूस से खर्चे की बात कहो तो चिढ़ता है. नौकरानी मालकिन से कह रही है कि ईद आ गई है (अर्थात उसे इनाम चाहिए) तो कंजूस मालकिन चिढ़ रही है.

बीबी वारे बांदी खाए, घर की बला कहीं न जाए. बच्चे की नज़र उतारने के लिए बीबी आटे की लोई को वार के (बच्चे के सिर के चारों और घुमा के) बाहर फेंक देती हैं जहां उसे कुत्ता इत्यादि खा लेता है और घर की बला बाहर चली जाती है. अब अगर वह बांदी को ही खिला देंगी तो घर की बला बाहर कैसे जाएगी. दान पुन्य के नाम पर अगर घर के लोगों को ही खिलाया पिलाया जाए तो परोपकार नहीं माना जाएगा.

बीबी हैं भरमाली, कान पीतर की बाली. अपने पास बहुत छोटी सी कोई चीज़ हो तो भी दिखावा करना.

बीमार की राय बीमार. अस्वस्थ आदमी की राय मानने लायक नहीं होती (क्योंकि उसकी दिमागी हालत ठीक नहीं होती और उसकी सोच भी नकारात्मक हो जाती है).

बीमारी की रात पहाड़ बराबर. बीमारी में दिन तो फिर भी कट जाता है रात काटना बहुत मुश्किल होता है (बात उस समय की है जब न तो टीवी था न स्मार्ट फोन और न ही दर्द निवारक व नींद की दवाएँ थीं).

बीरन बिन नैहर न जांव, पिया बिन सासुरे न ठांव. बीरन-भाई, ठांव-जगह. बिना भाई के मैके में कोई इज्जत नहीं होती इसलिए वहाँ जाने का मन नहीं करता और बिना पति के ससुराल में जगह नहीं मिल पाती.

बीरबल की खिचड़ी. कोई काम बहुत धीमे और हास्यास्पद ढंग से करने पर. सन्दर्भ कथा – एक बार सर्दी के मौसम में अकबर के दरबार में चर्चा हो रही थी कि आजकल यमुना का पानी बहुत ठंडा है और खासकर रात में तो बहुत ही ज्यादा ठंडा हो जाता है. अकबर ने कहा कि अगर कोई व्यक्ति यमुना के पानी में कमर तक डूब कर रात भर खड़ा रह कर दिखाए तो उसे एक हजार अशरफियां इनाम में दी जाएंगी. इस बात की मुनादी करवा दी गई. एक बेचारा गरीब आदमी जो कि कर्ज के बोझ से लगा हुआ था, उसने सोचा क्यों न जान की बाजी लगाकर ऐसा करके देख लूं. हद से हद जान ही तो जाएगी. मुगलों के जमाने में आम आदमी विशेषकर हिन्दुओं की जान की वैसे भी कोई कीमत नहीं थी. वह बेचारा रात भर कमर तक डूब कर यमुना के ठंडे पानी में खड़ा रहा. किनारे पर गश्त लगा रहे सिपाही बीच-बीच में आकर उसको देखते भी रहे.

    सुबह जब वह अकबर के दरबार में इनाम लेने पहुंचा तो अकबर ने उससे पूछा कि भाई तुम्हें इतने ठंडे पानी में खड़े रहने की ताकत कहां से मिली. वह बोला जहांपनाह आपके महल में एक दिया जल रहा था मैं उसी को ताकता रहा और हिम्मत करके खड़ा रहा. अकबर बोला, तो यह कहो कि तुम्हें उस दीपक से गर्मी मिलती रही, तो इसमें कौन सी बहादुरी है. तुम्हें कोई इनाम नहीं मिलेगा. अकबर के इस कमीनेपन को देखकर बीरबल को बहुत कष्ट हुआ. अगले दिन बीरबल दरबार में नहीं आए. अकबर को बेचैनी होने लगी. उसने आदमी भेज कर बीरबल को दरबार में बुलवाया. उस आदमी ने लौटकर बताया की हुजूर बीरबल खिचड़ी पका रहे हैं और पकते ही उसे खाकर दरबार में हाजिर होंगे. काफी देर बीत गई और बीरबल नहीं आए.

अकबर खुद देखने गया तो देखता क्या है कि बीरबल ने तीन बांसों के ऊपर ऊंचाई पर एक हडिया टांग रखी है और नीचे जमीन पर थोड़ी सी आग जला रखी है. अकबर तमक कर बोला, यह क्या तमाशा है बीरबल, ऐसे भी कोई खिचड़ी पकती है? बीरबल बोले, जी हां जहांपनाह, जरूर पकेगी. जब दूर महल में जल रहे दीपक से ठंडे पानी में खड़े एक इंसान को गर्मी मिल सकती है तो ऐसे खिचड़ी क्यों नहीं पक सकती.

बीरबल लाओ ऐसा नर, पीर बाबर्ची भिश्ती खर. ऐसा व्यक्ति जो सारे काम कर सकता हो. सन्दर्भ कथा – एक बार अकबर ने बीरबल से ऐसा कोई आदमी लाने को कहा जो सारे काम कर सकता हो – पीर भी बन जाए अर्थात धर्म का ज्ञान भी दे सके, बाबर्ची का काम कर ले अर्थात  खाना भी पका ले, भिश्ती का काम भी कर ले अर्थात पानी भी भर लाए और बोझ भी ढो ले. तो बीरबल ने उनके सामने एक ब्राह्मण को ले जा कर खड़ा कर दिया. वास्तव में मुगल काल में ब्राह्मणों की दशा बड़ी खराब थी. जीविका चलाने के लिए उन्हें छोटे से छोटे काम करने पड़ते थे.

बीस पचीस के अंदर में जो पूत सपूत हुआ सो हुआ. पुत्र लायक है या नालायक यह बात बीस पचीस साल की आयु तक स्पष्ट हो जाती है.

बुआ के पास गहने तो भतीजी को क्या. किसी निकट संबंधी के पास धन हो, उससे हमें क्या लाभ होने वाला.

बुआ जाऊं जाऊं करे थी, फूफा लेने आ गया. बिना उम्मीद के कोई काम आसानी से हो जाना.

बुखार हाथी के भी हाड़ तोड़ देता है. बीमारी बड़े से बड़े शक्तिशाली लोगों को भी त्रस्त कर देती है.

बुझने से पहले दीपक की लौ तेज हो जाती है. शाब्दिक अर्थ तो स्पष्ट है. कहावत का प्रयोग इस प्रकार करते हैं कि मृत्यु से पहले मनुष्य की स्मृतियाँ अधिक जागृत हो जाती हैं.

बुड़बक का पैसा अकलमंद खाए (बुड़बक का धन, होशियार की चटनी). (भोजपुरी कहावत) बुड़बक – मूर्ख व्यक्ति. मूर्खों का धन होशियार लोगों के लिए मुफ्त में मिली स्वादिष्ट चटनी के समान है.

बुड़बक गए मछली मारे, काँटा आए गंवाय. मूर्ख व्यक्ति कोई काम करने गया तो अपने औजार ही गंवा आया.

बुड़बक दूल्हा, अँधेरे में आँख मारे (बुड़बक रसिया, अँधेरे घर में मटकें). मूर्ख व्यक्ति को परिस्थिति और परिवेश के अनुसार कहाँ पर क्या करना चाहिए और क्या नहीं इस बात का ज्ञान नहीं होता.

बुड़बक मरे बिरानी चिंता. मूर्ख व्यक्ति दूसरों की चिंता में ही दुबला होता रहता है. बिरानी – दूसरों की.

बुड़बक वर के सांझे बिछौना. 1. मूर्ख व्यक्ति को समाज क्या कहेगा इस की चिंता नहीं होती. वह शाम से ही पत्नी के साथ सोना चाहता है. 2. मूर्ख व्यक्ति वैवाहिक सुखों को नहीं जानता, शाम से ही सो जाता है.

बुड़बक वर, बचपने ब्याह. वर अगर मंदबुद्धि है तो उस की शादी बचपन में ही कर देना चाहिए, जिससे उसकी मूर्खता बचपने की आड़ में छिप जाए.

बुड्ढा ब्याह करे, पड़ोसियों को सुख. वैसे यह कोई न्यायपूर्ण और अच्छी बात तो नहीं है पर कटु सत्य तो है. कहावत में सीख दी गई है कि बूढ़े व्यक्ति को युवा स्त्री से विवाह नहीं करना चाहिए.

बुड्ढी बकरी और हुंडार (भेड़िया) से ठट्ठा. अपने से बहुत अधिक शक्तिशाली शत्रु से पंगा लेना.

बुड्ढी भैंस का दूध शक्कर का घोलना, बुड्ढे मर्द की जोरू गले का ढोलना. बुड्ढी भैंस का दूध मीठा होता है, बूढ़े व्यक्ति को अपनी पत्नी बहुत प्रिय होती है. (गले का ढोलना – गले में लटका तावीज़).

बुढ़वा भतार पर पाँच टिकुली. टिकुली – माथे का टीका (सोने का),  भतार – पति. बूढ़े पति को प्रसन्न करने के लिए पाँच टिकुली लगाए हैं. अनावश्यक साज सज्जा.

बुढ़वा भतार पे इतना गुमान, लड़का जो होता तो चलती उतान. अधिक आयु वाला पति होने पर भी कोई स्त्री घमंड दिखा रही है तो अन्य स्त्रियाँ कहती हैं कि यदि इसको युवा पति मिल जाता तो ये कितना उड़ती.

बुढ़ापा दूसरा लड़कपन है. बुढापे में व्यक्ति बच्चों के समान जिद्दी और खाने पीने का लालची हो जाता है.

बुढ़ापा बड़ा कमीना.  1.बुढ़ापे में कष्ट ही कष्ट हैं. 2. बुढापे में आदमी बहुत स्वार्थी हो जाता है.

बुढ़ापा माने बुरा आपा. बूढ़ा होने पर शरीर में सौ बुराइयाँ आ धमकती हैं. 

बुढ़ापे की औलाद ज्यादा प्यारी लगे. अर्थ स्पष्ट है.

बुढ़ापे में आदमी की मत मारी जाती है. अर्थ स्पष्ट है.

बुढ़ापे में ऐसा तो जवानी में कैसा. जो आदमी बुढापे में इतना रंगीनमिजाज है वह जवानी में कैसा रहा होगा.

बुढ़ापे में मिट्टी खराब. किसी का सारा जीवन अच्छा कटा हो पर बुढ़ापे में बहुत कष्ट हो रहे हों तो. (बड़ी बीमारी हो जाए, सन्तान नालायक निकल जाए या किसी प्रियजन की मृत्यु हो जाए).

बुढ़िया आई लगाया रगड़ा, सास बहू में हो गया झगड़ा. इधर उधर की लगा कर झगड़ा कराने वालियों के लिए.

बुढ़िया के कहे खीर कौन रांधे (बुढ़िया के लिए खीर कौन पकाए). आम घरों में लोग बुजुर्गों की फरमाइशों पर ध्यान नहीं देते.

बुढ़िया को पैठ बिना कब सरे. पैठ माने बाज़ार. बुढ़िया का बाज़ार जाए बिना काम नहीं चलता. (किसी की बुढापे में भी सैर सपाटे और खाने पीने की आदत न छूट रही हो तो व्यंग्य).

बुढ़िया गजब की पुड़िया (बुढ़िया जहर की पुड़िया). धूर्त बूढ़ी स्त्री के लिए.

बुढ़िया दासी मालिक को काम बतावे. घर में काम करने वाली पुरानी कामवालियां घर के सदस्य की तरह हो जाती हैं और सभी उनका सम्मान करते हैं. वे गृहस्वामी को भी आदेश देने से नहीं चूकतीं.

बुढ़िया मरी कैसे, बोले सांस नहीं आई. किसी बात का सीधा उत्तर न देना.

बुढ़िया मरी तो मरी आगरा तो देखा. कुछ लोग घर की बड़ी बूढ़ी का इलाज कराने आगरा गए. बूढ़ी अम्मा तो नहीं बचीं पर इस बहाने आगरे की सैर हो गई. कहावत का अर्थ है कि जहाँ एक ओर कुछ काम बिगड़ा वहीं दूसरी ओर कुछ लाभ भी हो गया.

बुढ़िया मरी, खटोला मिला. किसी के नुकसान में अपना फायदा ढूँढने वालों के लिए.

बुढ़िया मरे का गम नहीं, पर जम घर देख गए. बुढ़िया मर गई इस बात का गम नहीं है पर इस बात की चिंता है कि यमदूत घर देख गए (अब दोबारा जल्दी न आ धमकें).

बुढ़िया मिर्ची की पुड़िया. लड़ाकू बुढ़िया के लिए.

बुद्धि बिना बल बेकार. कोई कितना भी बलवान क्यों न हो अगर उसमें बुद्धि न हो तो सब बेकार है. शेर, हाथी, घोड़ा कितने भी बलवान क्यों न हों, मनुष्य अपनी बुद्धि से उन्हें वश में कर लेता है.

बुद्धि बिना विद्या बेकार (बुद्धि बिना विद्या बेचारी). कोई कितनी भी विद्याएँ सीख ले, जब तक अपने अंदर बुद्धि न हो वे किसी काम की नहीं हैं. 

बुध कहै मैं बड़ा सयाना, मेंरे दिन मत करो पयाना, कौड़ी से ना भेंट कराऊँ, क्षेम कुशल से घर पहुँचाऊँ. पयाना – प्रयाण. बुध के दिन यात्रा करने वाला सकुशल घर तो आ जायेगा मगर लाभ एक पैसे का भी न होगा.

बुरा कब्र तक कोसा जाए. बुरे व्यक्ति को लोग मरने के बाद तक कोसते हैं.

बुरा जो देखन मैं चली, बुरा न मिलिया कोय, जो दिल खोजो आपनो, मुझसे बुरा न कोय. दूसरों में बुराई ढूँढने की बजाए अपनी बुराइयों को ढूँढ़ कर उन्हें ठीक करना चाहिए.

बुरी नज़र वाले तेरा मुँह काला. ट्रकों के पीछे लिखा जाने वाली सबसे प्रचलित कहावत.

बुरी नज़र वाले तेरे बच्चे जीयें, बड़े हो कर तेरा खून पीएँ. ट्रकों के पीछे लिखी जाने वाली मजेदार कहावत.

बुरी बात सच्ची हो जाती है, भली बात सच्ची नहीं होती. यदि हम बुरी बुरी आशंकाएं करते हैं तो उन में से कुछ सच हो जाती हैं. इसीलिए पुराने लोग कहते थे, बुरा मत सोचो.

बुरी संगत से अकेला भला (कुसंग से इकंत भली) (बुरी सोहबत से तन्हाई अच्छी).  बुरे लोगों के साथ रहने से अकेला रहना अधिक अच्छा है. इंग्लिश में कहावत है – Better be alone than in a bad company.

बुरे का साथ दे वो भी बुरा. बुरा तो बुरा होता ही है, जो उसका साथ दे वह भी बुरा. द्रोणाचार्य और भीष्म पितामह जैसे प्रतापी और विद्वान् लोग इस लिए बुरे बने क्योंकि उन्होंने दुर्योधन का साथ दिया.

बुरे काम का बुरा नतीजा (बुरे काम का बुरा हवाल). किसी के साथ बुराई करने का परिणाम बुरा ही होता है.

बुरे दिन आते हैं तो पूछकर नहीं आते. कोई व्यक्ति कितना भी शक्तिशाली या सम्पन्न क्यों न हो, हर किसी को यह सोचना चाहिए कि उस पर भी कभी बुरे दिन आ सकते हैं. इसलिए जब अच्छे दिन हों तो भी सब से आदर और प्रेम रखना चाहिए.

बुरे लगत सिख के बचन, हिए बिचारो आप, करुवे भेषज बिन पिये, मिटै न तन को ताप. सिख के वचन – सीख, शिक्षा की बात, हिए – हृदय, भेषज – दवा, तन को ताप – बुखार. कड़वी दवाई से बुखार उतरता है इसलिए हमें दवा पीने में बुरा नहीं मानना चाहिए. इसी प्रकार सीख देने वाली बात कड़वी लगे तब भी बुरा न मानें.

बुरे वक्त का अल्लाह बेली. समय कठिन होनेपर ईश्वर ही सहायक होता है. 

बुरे से देव डरावें. बुरे आदमी से भगवान भी डरता है.

बुरो प्रीति को पंथ, बुरो जंगल को बासो, बुरो नारि को नेह, बुरो मूरख सों हाँसो. प्रेम की राह में खतरे बहुत हैं, जंगल में कोई सुविधाएँ नहीं मिलतीं, परनारी से प्रीत में बदनामी होती है व मूर्ख से मजाक खतरनाक होता है.

बुर्के वाली बूआ, पीछे पीछे चूहा. बच्चों की आपसी मजाक.

बुलाई न चलाई, मैं दूल्हे की ताई. जबरदस्ती किसी से संबंध जोड़ने वालों के लिए.

बुलाये न बैठाये, मेरे तीन हिस्सा. कोई जबरदस्ती आ कर अधिक हिस्सा मांगे तो यह कहावत कही जाती है.

बूँद का चूका, घड़े छ्लकावे. 1.छोटा सा अवसर चूक जाने पर फिर उस की भरपाई करने के लिए बहुत प्रयास करना पड़ता है. 2. जिस का छोटा सा नुकसान हुआ हो वह ईर्ष्यावश दूसरों का बड़ा नुकसान करना चाहता है.

बूँद बूँद से सागर भरता है. सागर में अथाह जल है लेकिन वह बूँद बूँद कर के ही इकठ्ठा हुआ है. छोटी छोटी बचत एक बड़ी राशि बन सकती है.

बूंद बूंद सों घट भरे, टपकत रीतो होए. बूँद बूँद कर के घड़ा भरता है और बूँद बूँद टपकने से खाली भी हो जाता है. थोड़ी थोड़ी बचत कर के निर्धन व्यक्ति धनवान बन सकता है और थोड़ा थोड़ा धन गंवा के धनी व्यक्ति कंगाल हो सकता है.

बूचा सबसे ऊँचा. बूचा – कान कटा कुत्ता (जिसे मनहूस माना जाता है). निर्लज्ज व्यक्ति सबसे बड़ा होता है.

बूची को और ताव, कानी को और ताव. बूची – जिसका कान कटा हुआ हो, ताव – गुस्सा या जोश. बूची और कानी दोनों को ही अशुभ माना जाता है. रूपान्तर –  बूची को कुंडल को ताव, कानी को कजरा को ताव. जब कोई अयोग्य व्यक्ति ऐसी वस्तु को पाने की इच्छा करे जो उस के किसी काम की नहीं है.

बूढ़ा कुत्ता, पिलवा नाम. बेमेल नाम (बूढ़ा कुत्ता है और नाम है पिल्ला).

बूढ़ा गिना न बालका, सुबहा गिनी न सांझ, जन जन का मन राखते, वैश्या रह गई बाँझ. वैश्या ने जो भी उसके पास आया, जिस समय भी आया, सबका मन रखा, इसलिए खुद वह बाँझ रह गई. (वैश्या गर्भधारण से बचने के लिए कुछ दवाएँ खाती है). रूपान्तर – जने जने का मन रखते वैश्या हो गई बाँझ.

बूढ़ा बैल और बूढ़े माँ बाप जितना काम कर दें उतना ही नफा. बैल बूढ़ा हो जाए तो उसे खिलाना तो पड़ता है पर वह खेती के काम का नहीं रहता, अर्थात उस का रख रखाव बहुत महंगा पड़ता है. इसी प्रकार बूढ़े माँ बाप घर के काम में या खेती व्यापार आदि में हाथ तो नहीं बंटा पाते पर उन पर खर्च पूरा होता है. इस प्रकार के लोग काम में जितना भी सहयोग कर दें वह एक प्रकार का बोनस है.

बूढ़ा बैल बिसाय के झीना कपड़ा लीन्ह, पतुरिया को ब्याह के दोस करम को दीन्ह. बैल बूढ़ा खरीद कर जुताई में लगाया और झीना व कमजोर कपड़ा खरीदा, ऊपर से वैश्या को ब्याह कर लाए, और भाग्य को दोष दे रहे हो.

बूढ़ा बैल ब्याह गया है. कोई असम्भव सी बात. जैसे कोई बहुत कंजूस आदमी बड़ी रकम दान कर दे तो.

बूढ़ा रहे घर, न फिकर न डर. घर में कोई बुजुर्ग आदमी रहता हो तो घर सुरक्षित रहता है.

बूढ़ी गाय को सोहराई की आस. सोहराई – दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा पर घर के पशुओं को सजाने का उत्सव. बूढ़ी गाय भी गोवर्धन के दिन सजना संवरना चाह रही है. फैशन करने वाली बूढ़ी स्त्रियों पर व्यंग्य.

बूढ़ी घोडी लाल लगाम (बूढ़ा बैल, रेशम की नाथ). किसी बूढ़े व्यक्ति को फैशन सूझ रहा हो तो या फिर किसी पुरानी चीज़ में कोई नया पुर्जा लगा दिया गया हो तो.

बूढ़ी बकरी को बहकावे भेड़िया, चल नाले पर हरी हरी खाने को मिलेगी. बूढ़ी बकरी भेड़िये की बातों में नहीं आने वाली. किसी अनुभवी व्यक्ति को कोई बहकाने की कोशिश करे तो यह कहावत कही जाती है. 

बूढ़ी वैश्या बनी साध्वी. जिसने जीवन भर कुकर्म किए हों वह बुढापे में साधु बने तो उस पर व्यंग्य.

बूढ़ी हुई बिल्ली, चूहे उड़ावें खिल्ली (जब बूढ़ी भई बिलारी, तब मूस बजावें तारी). जब कोई आततायी शक्तिहीन हो जाता है, तो कमजोर लोग भी उसका मजाक उड़ाने लगते हैं.

बूढ़े और बालक का मन एक सा होवे. अर्थ स्पष्ट है.

बूढ़े की जबान में जोर होता है. बूढ़े आदमी के हाथ पैर नहीं चलते लेकिन जबान बहुत चलती है.

बूढ़े को बूढ़ा कहो तो चिढ़ मरे. सत्य कहने से दोषी आदमी चिढ़ता है.

बूढ़े गवइया के, कौन सुने गीत. जब आदमी बूढ़ा हो जाता है तो उसके हुनर की कोई कद्र नहीं की जाती.

बूढ़े तो सबकी करें, उनकी करे न कोय. बूढ़े लोग सब की फ़िक्र करते हैं लेकिन उनकी फ़िक्र कोई नहीं करता.

बूढ़े तोते भी कही पढ़ते हैं (बूढ़ सुआ राम राम थोरै पढ़िहैं). 1. बूढ़े लोग नहीं पढ़ सकते. इंग्लिश में कहावत है – You can not teach an old dog new tricks. 2. बूढ़े लोगों को पढ़ाने की कोशिश मत करो (उनका अनुभव किताबी ज्ञान से कम मूल्यवान नहीं है).

बूढ़े बैल से भली कुदारी. बूढ़ा बैल किसी काम का नहीं होता क्योंकि वह हल नहीं चला सकता. उससे अधिक उपयोगी तो कुदाली है.

बूढ़े मुंह मुंहासे, लोग आए तमासे. मुँह पर मुँहासे जवानी में निकलते हैं अगर बुढापे में निकलें तो आश्चर्य की बात होगी. बूढों को यदि जवानी चढ़ने लगे तो उनका मजाक उड़ाने के लिए.

बूढ़ो खाय, गांठ को जाय. जो आदमी किसी काम का न हो उस को खिलाना घाटे का सौदा है.

बूढ़ों की सीख, करे काम को ठीक. बूढ़े लोगों के पास लंबा अनुभव होता है जिस से बहुत कुछ सीख सकते हैं.

बूढ़ों से बरकत. घर में मार्ग दिखाने वाले बूढ़े लोग हों तभी समृद्धि आती है.

बे औसर को बाजो, साजो नाहिं लगत. बाजो-बाजा, साजो-उचित. बेअवसर का काम अच्छा नहीं लगता.

बेइज्जत की पूरी से इज्जत की आधी भली. सम्मान के साथ थोड़ा भी मिले तो बेहतर है.

बेकार न बैठ कुछ किया कर, कपड़े ही उधेड़ कर सिया कर. आदमी को कभी खाली नहीं बैठना चाहिए. चाहे किसी काम को दोबारा करना पड़े.

बेकार से बेगार भली. बेकार होने का अर्थ है कोई काम न करना और बेगार का अर्थ है ऐसा काम करना जिसमें कोई मेहनताना या पैसा न मिले. कहावत का अर्थ है कि बेकार बैठने के मुकाबले कुछ न कुछ करना अच्छा है चाहे उससे कोई आर्थिक लाभ न भी हो. सयाने लोग कहते हैं कि खाली बैठोगे तो खाली दिमाग शैतान का घर है. कुछ काम करोगे तो पैसा न भी मिले कुछ अनुभव और ज्ञान मिलेगा, किसी की दुआ भी मिलेगी.

बेकारी महकमे का जमादार. कोई बिलकुल बेकार आदमी. जमादार का अर्थ यहाँ सफाई सेवक से भी हो सकता है और नायक से भी.

बेगानी खेती पर झींगुर नाचे. दूसरे की चीज़ पर जबरदस्ती कब्जा करने वालों के लिए.

बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना. अनजान लोगों की ख़ुशी में जबरदस्ती खुश होने वाला मूर्ख व्यक्ति.

बेच खाओ बैल को मंगनी मत दो. बैल को मंगनी ले जाने लोग उसको खिलाने पिलाने का ध्यान नहीं रखते थे, लेकिन उन से काम बहुत लेते थे. इसलिए यह सुझाव दिया गया है.

बेचे के साग, करे मोती का मोल. हैसियत तो है साग बेचने की, दाम मोतियों का पूछते हैं.

बेटा अभी हुआ नहीं, ढोल बजने लगे (बेटा हुआ नहीं, ढोल पीटने लगे). उचित अवसर से पहले ही ख़ुशी मनाना.

बेटा ऊपर बेटी ललाट पर का मोती, छोड़ पिया खेती, खिलाओ मोरी बेटी. बेटे के ऊपर की बेटी बड़ी लाड़ली होती है. स्त्री पति से कह रही है कि ऐ प्रियतम! खेती-बाड़ी का काम छोड़कर मेरी बेटी को खिलाओ.

बेटा एक कुल की लाज रखता है और बेटी दो कुल की. पुत्र को केवल अपने पिता के कुल की मर्यादा का पालन करना होता है जबकि पुत्री को अपने पिता और पति दोनों कुलों की मर्यादा निभानी होती है.

बेटा और लोटा बाहर ही चमकते हैं. जैसे लोटा अंदर बदरंग होता है और बाहर चमकता है वैसे ही घर में बेटे की कदर नहीं होती, वह घर के बाहर ही प्रशंसा पाता है.

बेटा खाय, बाप लखाय, कलजुग अपना बल दिखलाय. बेटा खा रहा है और बाप बेचारा बैठा देख रहा है, यह कलियुग का लक्षण है.

बेटा बन के सबने खाया, बाप बनके कोऊ न पाया. मीठी बात से जो काम निकलता है वह रोब जमाने से नहीं.

बेटा बेटी बस का अच्छा. बेटा और बेटी वही अच्छे हैं जो माता पिता की बात मानें.

बेटा ब्याहा बुढ़ौती की ताईं, आई बहू टूट गया नाता, मत कर राम बुढ़ौती की आसा. बेटे का जन्म हुआ तो यह आशा की थी कि वह बुढापे में सहारा देगा, लेकिन बहू के आने के बाद वह पराया हो गया.

बेटा ब्याहे झुक के रहे, गहने पहने ढंक के रहे. बेटा होने के बाद घमंड नहीं करना चाहिए बल्कि विनम्रता से रहना चाहिए. गहने पहने हों तो उन का दिखावा न कर के ढक कर रखना चाहिए.

बेटा राजी किससे, जो खिलाए उससे. शिशु किस से प्रसन्न होता है, जो उसे खिलाता है उस से.

बेटा से बेटी भली जो कुलवन्तिन होय. जो बेटा कुल की मर्यादा का ध्यान न रखे उस से वह बेटी अच्छी है जो कुल की लाज रखे.

बेटा हुआ गोद ले, बेटी हुई फेंक दे. सनातन संस्कृति में बेटियों का बहुत मान होता था लेकिन मुगलों के समय बेटियों की सुरक्षा एक बहुत बड़ी समस्या थी, इसलिए लोगों में यह प्रवृत्ति पैदा हुई कि बेटी होने पर उसे फेंक दो. सौभाग्यवश अब इस निकृष्ट सोच का लगभग अंत हो चुका है.

बेटा हुआ तब जानिए जब पोता खेले द्वार. पहले के जमाने में संक्रामक रोगों के कारण बहुत से बच्चों की अकाल मृत्यु हो जाया करती थी. इसलिए यह कहा गया है कि बेटा होने की ख़ुशी तब मनाओ जब बेटे का बेटा हो जाए.

बेटा है तो बहुएँ भौत आ जइहें. लड़का है तो बहुएँ बहुत आ जायेंगी. साधन है तो काम भी हो जायगा.

बेटा होवे सयाना, दलिद्दर जाए पुराना. बेटे बड़े हो जाएँ और कमाने लगें तो घर की दरिद्रता दूर हो जाती है.

बेटी और घूरा, बहुत जल्दी बढ़ते हैं. कहावतों की एक विशेषता यह होती है कि उसे मजेदार बनाने के लिए दो बिल्कुल अलग चीजों को एक साथ मिला कर एक कहावत बना दी जाती है. कहीं पर कूड़ा डालना शुरू करो तो बहुत से लोग वहाँ कूड़ा डालने लगते हैं और घूरा बन जाता है जोकि बहुत तेजी से बढ़ता है. बेटी भी बहुत जल्दी बड़ी होती है और उसके विवाह की चिंता करनी पड़ती है.

बेटी और दामाद तो रूठे हुए ही अच्छे. बेटी और दामाद जितनी बार घर आते हैं उतनी बार उनकी खातिरदारी करनी होती है और उपहार इत्यादि देना पड़ता है. इसलिए इनका रूठना अच्छा है.

बेटी कंगाल की नाम राजरानी. 1. गुण के विपरीत नाम. 2. गरीब से गरीब आदमी को भी संतान प्यारी होती है.

बेटी का भला चाहे तो बोल जमाई लाल की जै. बेटी को सुखी रखना हो तो दामाद की जय बोलना जरूरी है.

बेटी की माँ, बुढ़ापे में पानी भरे. जिस माँ के सब बेटियाँ ही होती हैं उसे बुढ़ापे में सारे काम करने पड़ते हैं, क्योंकि बेटियाँ अपने घर चली जाती हैं. वैसे अब उल्टा हो गया है. किसी के चार बेटे हों वे सेवा नहीं करेंगे (आपस में हिर्स करेंगे), एक बेटी हो तो वह सेवा करेगी.

बेटी के बेटा कौनो काम, खइहें यहाँ और जइहें गाँव. (भोजपुरी कहावत) बेटी के बेटे किस काम के, खाएँगे यहाँ जाएँगे अपने गाँव. दूर रहनेवाले समय पर काम नहीं आते.

बेटी गई बहू आई, भात उतना ही पकेगा. अर्थ स्पष्ट है.

बेटी तू क्यों रोवे है, जो तुझको ब्याहेगो वो रोवेगा. एक समय था जब विवाह के समय लड़की के माँ बाप चिंता करते थे कि मालूम नहीं लड़का और उसके घर वाले कैसे निकलेंगे. अब तो लड़के वाले अधिक चिंता करते हैं कि मालूम नहीं बहू कैसी निकलेगी.

बेटी दे कंजूस को, बेटी ले उदार की. कंजूस के घर में बेटी की शादी करने से खर्च कम करना पड़ता है और उदार व धनवान व्यक्ति की बेटी से शादी करने पर माल खूब मिलता है.

बेटी ने किया कुम्हार और मां ने किया लुहार, न तुम चलाओ हमार न हम चलाएं तुम्हार. बेटी ने कुम्हार से शादी कर ली और माँ ने लुहार से. अब दोनों एक दूसरे से कह रही हैं कि तुम हमारे बारे में कुछ न कहो, हम तुम्हारे बारे में कुछ नहीं कहेंगे. जब दो अपराधी एक दूसरे का अपराध छिपाएं तो.

बेटी मरी जमाई चोर, टूट गई डाली उड़ गया मोर. जिस डाली पर मोर बैठा है वह टूट जाए तो मोर को वहाँ से उड़ जाना पड़ता है. बेटी के मरने पर दामाद उस घर में एक अवांछित व्यक्ति बन जाता है.

बेटी माँ के पेट में समाती है पर बाप के आंगन में नहीं समाती. बेटा और बेटी दोनों माँ की कोख से पैदा होते हैं पर बेटी को अपना आंगन छोड़ कर जाना पड़ता है.

बेटे का मरना ठीक है, विश्वास का उठना ठीक नहीं. बेटे की मृत्यु किसी व्यक्ति के लिए सब से बड़ा दुख माना जाता है, लेकिन लोगों का आप पर से विश्वास उठ जाए यह उस से भी बड़ा दुख है.

बेटे को खिलाऊँगी तगड़ा हो जाएगा, आदमी को खिलाऊँगी खूब कमाएगा, बूढ़े को खिलाऊँगी सो बेकार जाएगा. स्वार्थी बहुओं का कथन. रूपान्तर-बूढ़े को खिलाना, गठरी का डुबाना. बूढ़े आदमी पर अधिक पैसा खर्च मत करो.

बेटे से घर भरे, बेटी से सूना होय. बेटी कितनी भी अच्छी हो एक दिन मजबूरी में घर को सूना कर के चली जाती है, बेटा कम अच्छा भी हो तब भी बहू और बच्चों से घर गुलजार रहता है.

बेटे से बेटी भली जो कोई होय सपूत. नालायक बेटे से तो योग्य बेटी अधिक अच्छी.

बेटों को घी भरपूर और बेटियों को खट्टी छाछ. पुराने समय में बेटे बेटी में बहुत भेदभाव होता था.

बेड़ी सोने की भी बुरी. सोने की बेड़ी अर्थात खूब सुख सुविधाओं वाली गुलामी. गुलामी हमेशा बुरी ही होती है, चाहे उसमें कितनी भी सुविधाएं क्यों न हों.

बेदिल नौकर, दुश्मन बराबर. जो नौकर अपनेपन से काम न करे वह दुश्मन जैसा है (उसे मालिक के हानि लाभ की कोई परवाह नहीं होती).

बेबकूफ किस्मत के धनी होते हैं. यदि किसी बेबकूफ आदमी को अच्छी सुविधाएं मिल रही होती हैं तो अक्लमंद लोग कुढ़ कर यह बात बोलते हैं. (खुदा मेहरबान तो गधा पहलवान)

बेबकूफों की कमी नहीं है, एक ढूँढो हजार मिलते हैं. मूर्ख लोग इस दुनिया में बहुतायत में पाए जाते हैं.

बेबकूफों की बात खुदा ही समझे. बेवकूफ लोग अपनी बात को बहुत महत्वपूर्ण समझते हैं, लिहाजा उन का मजाक उड़ाने के लिए यह कहावत कही जाती है.

बेर खावे गीदड़ी, डंडे खावे रीछ. अपराध कोई और करे, दंड कोई और पाए.

बेल कच्चा या पका, कौवों के बाप का क्या. बेल पका हो या कच्चा हो कौवे को इससे फर्क नहीं पड़ता क्योंकि वह बेल खा ही नहीं सकता (कठोर छिलके में अपनी चोंच से छेद नहीं कर सकता). जिस चीज़ से हमें कोई नफा नुकसान न हो उस में हम क्यों सर खपाएँ.

बेल के मारे बबूल तले, बबूल के मारे बेल तले. बेल के पेड़ के नीचे खड़े थे तो सर पे बेल गिरा और सर फट गया, वहां से भाग कर बबूल के पेड़ के नीचे खड़े हुए तो कांटे चुभ गए तो फिर भाग कर बेल के नीचे आए. अभागे व्यक्ति के लिए.

बेलज्जी बहुरिया पर घर नाचे. निर्लज्ज बहू दूसरों के घरों पर घूमती फिरती है.

बेलाग बेबाक. जिसे कोई लाग लपेट न हो वह बात कहने में नहीं डरता. बेलाग – निस्वार्थ, बेबाक – स्पष्टवादी.

बेलाग से बोलो, भितरघुन्ने से अलगे रहो. जो लोग स्वच्छ हृदय और स्पष्टवादी होते हैं उन्हीं से बात करनी चाहिए, जो मन के काले होते हैं उनसे बचना चाहिए.

बेवकूफ की सबसे बड़ी समझदारी चुप रहना है. बेवकूफ आदमी जब तक चुप रहता है तब तक उसमें और समझदार आदमी में अंतर करना मुश्किल होता है, पर जैसे ही वह बोलता है उसकी असलियत सामने आ जाती है. एक मंदबुद्धि लड़के को देखने के लिए लड़की वाले आ रहे थे. सब लोग उसे समझा रहे थे कि लड़की वाले ऐसा पूछे तो यह जवाब देना, वैसा पूछे तो वह जवाब देना आदि. तब एक बुजुर्ग ने कहा कि बेटा सब से बड़ी समझदारी यह होगी कि तुम चुप रहना.

बेवक्त की शहनाई, मुए कूढ़ ने बजाई. कोई मूर्ख व्यक्ति बेअवसर की बात करे तो. (कूढ़ – मूर्ख व्यक्ति, इसको कुछ लोग कूढ़ मगज़ भी कहते हैं). शहनाई कुछ ख़ास अवसरों पर ही अच्छी लगती है, उस के अलावा कोई बजाए तो गुस्सा आता है.

बेवारिसी नाव डांवाडोल. हर काम के लिए योग्य नेतृत्व की आवश्यकता होती है. बिना मल्लाह की नाव डांवाडोल रहती है.

बेशरम को दुख नहीं, कंजूस को सुख नहीं. बेशर्म आदमी मान अपमान से परे होता है इसलिए उसे कोई दुख नहीं होता. कंजूस कभी अपने ऊपर खर्च नहीं करता इसलिए उसे कोई सुख नहीं होता.

बेशर्म का नंगे से पाला पड़ा है. जब एक बेशर्म आदमी का अपने से बड़े बेशर्म से पाला पड़े तो.

बेशर्मों के पूँछ थोड़े ही होती है. बेशर्म लोग देखने में इंसान ही होते हैं. उन के कोई सींग पूँछ नहीं होते. बस उनकी हरकतें उन्हें औरों से अलग करती हैं.

बेसवा का जाया, किसको बाप कहे. वैश्या के बेटे के सामने यह समस्या होती है कि वह किसी को अपना बाप नहीं कह सकता.

बेहया की पीठ पर रूख जमा, उसने जाना छाँव हुई. बेशर्म आदमी की पीठ पर पेड़ उग आया, बात बहुत परेशानी की है पर वह खुश हो रहा है कि चलो छाया हो गई. बेशर्म आदमी के लिए मान अपमान एक समान है. इसको कुछ अश्लील ढंग से ऐसे भी कहा गया है – बेहया के चूतड़ में पेड़ उगा, आओ लोगों छाँव में बैठो.

बेहया बेहया वहाँ कैसे रहे, मार गाली खाय बड़े सुख से रहे. बेशर्म आदमी से पूछा गया कि फलाँ जगह कैसे रहे. विषय कहता है कि मार और गाली खा कर बड़े आराम से रहे.

बैठने को जगह दे दो, लेटने को खुद ही कर लेंगे. जो लोग थोड़ी सी सुविधा मिलने पर अपना अधिकार जमा लेते हैं उनके लिए.

बैठा अहीर गोबर, उठता अहीर बाघ. अहीर बैठा हो तो किसी काम का नहीं होता, पर यदि खड़ा हो तो बाघ की तरह फुर्तीला और शक्तिशाली होता है.

बैठा बनिया क्या करे, बाट तराजू तौले. बनिया बहुत उद्यमशील होता है, वह खाली बैठने की बजाए कुछ न कुछ करता रहता है.

बैठाई ड्योढ़ी पे, खिसक पहुँची रसोई में. किसी को ड्योढ़ी पर बैठने की छूट दे दी तो वह खिसक खिसक कर रसोई में पहुँच गई. ऊँगली पकड़ कर पाहुंचा पकड़ना.

बैठी बुढ़िया मंगल गाए. समझदार आदमी कभी खाली नहीं बैठता. वह ऐसा कुछ न कुछ काम करता रहता है जो दूसरों को अच्छा लगे.

बैठे देवल सिखर पर, बायस गरुड़ न होय. देवल – देवालय, बायस – कौवा. यदि कौवा मंदिर के शिखर पर बैठ जाए तो वह गरुड़ नहीं बन जाता. नीच व्यक्ति उच्च पद पर बैठ कर कुलीन नहीं बन जाता.

बैठे बैठे तो कारूँ का खजाना भी खाली हो जाता है. कारूँ – मुस्लिम कथाओं में एक अति धनवान और कंजूस व्यक्ति जो हज़रत मूसा का चचेरा भाई था. इंसान यदि कोई काम न करे तो उसने कितना भी धन जोड़ कर रखा हो सब खत्म हो जाता है.

बैठो अक्लमंद के साथ, चलो जनता के साथ. मित्रता हमेशा बुद्धिमान व्यक्ति से ही करना चाहिए, जबकि काम जनता को खुश करने वाला करना चाहिए.

बैद्य, धनी, राजा, नदी, अरु पंडित नहिं होय, जहाँ पाँच ये न हुए, वहाँ बसो न कोय. (बुन्देलखंडी कहावत) किसी भी समाज के अस्तित्व के लिए ये पांच आवश्यक हैं, जहाँ ये न हों वहाँ जीवन जीना कठिन है.  

बैरी को मत मानवो, उर तिरिया की सीख, क्वांर करें हर जोतनी, तीनऊ माँगें भीख. जो वैरी की सलाह माने, स्त्री के कहने पर चले, और क्वार में खेतों की जोताई करे, ऐसे तीनों आदमी भीख मांगते हैं.

बैरी लायो गेह में, किया कुटुम पर रोस, आप कमाया कामड़ा, दई न दीजे दोस (बैरी न्यूत बुलाइयाँ कर भायां से रोस). दई – दैव,ईश्वर; कामड़ा – दुर्भाग्य, दुर्दशा. घर वालों से बदला लेने के लिए बैरी को घर में बुलाया. अब मेरी बारी भी आ गई है. दुर्दशा को मैंने खुद बुलाया है, भाग्य का इस में दोष नहीं है. सन्दर्भ कथा – एक कुएं में बहुत से मेंढक रहते थे. एक बार उनमें आपस में लड़ाई हो गई तो एक मेंढक दूसरों से बदला लेने के लिए एक सांप को बुला लाया. सांप ने एक एक कर के सब मेंढकों को खा लिया. अंत में उस मेंढक की भी बारी आ गई. पृथ्वीराज चौहान से बदला लेने के लिए जयचंद ने मोहम्मद गोरी को बुलाया. बाद में गोरी ने कन्नौज पर आक्रमण कर के जयचंद को भी मार डाला.

बैरी संग न बैठिए पीकर मद और भांग. किसी प्रकार का नशा कर के अपने शत्रु के साथ कभी नहीं बैठना चाहिए. आप नशे में कोई भेद की बात उसे बता कर अपना नुकसान कर सकते हैं और नशे की हालत में वह आपको शारीरिक नुकसान भी पहुँचा सकता है.

बैरी से बच, प्यारे से रच. शत्रु से बच कर रहो और प्रेम करने वाले से प्रेम करो.

बैरी सोवे, न सोवे देय. दुश्मन न तो खुद ही चैन लेता है और न चैन लेने देता है.

बैल अकेला किस काम का. अकेला बैल हल भी नहीं चला सकता और गाड़ी भी नहीं जोत सकता.

बैल कहीं भी जाए, हल में जोता जाए. गरीब और लाचार व्यक्ति जहाँ भी जाए उसे काम में लगा दिया जाता है.

बैल का बैल गया, नौ हाथ का पगहा भी गया. किसी बड़े नुकसान के साथ एक छोटा नुकसान और होना. बैल तो चोरी हुआ है साथ में बैल को बाँधने वाली रस्सी भी चोरी हो गई.

बैल न कूदा, कूदी गौन, (ऐसा तमाशा देखे कौन). गौन – बैल के ऊपर रखी जाने वाली अनाज की बोरी. बोरी रखने पर बैल ने तो कोई आपत्ति नहीं की, बोरी ही उछल कूद मचाने लगी. जिस से कोई चुभती बात कही गई वह तो कुछ न बोला, दूसरा कोई लड़ने को तैयार हो गया.

बैल बेच घंटी पर रार (भैंस बेच पगहे पर झगड़ा).  बड़ा सौदा कर के छोटी सी बात पर लड़ना. रार – झगड़ा. पगहा – गाय भैंस को बाँधने की रस्सी.

बैल ब्याहे तो नहीं पर बूढ़ा तो होगा ही. बैल की शादी भले ही न हो बैल बूढ़ा तो होगा ही. शादी न कर के कोई व्यक्ति समाज के नियम को टाल सकता है पर प्रकृति के नियम को नहीं टाल सकता.

बैल भड़कना टूटी नाव, कभी न कभी ये लेवें दांव. भड़कने वाला बैल और टूटी हुई नाव, ये काम में आ सकते हैं लेकिन ये कभी न कभी बहुत बड़ा धोखा देते हैं.

बैल मरखना चमकुल जोय, बा घर रोना नित ही होय. जिस का बैल मरखना (सींग मारने वाला) हो और पत्नी चमक धमक से रहने वाली हो, उस के घर में नित्य ही मातम होता है.

बैल सरकारी, यारों की टिटकारी. सरकारी सम्पत्ति या किसी भी मुफ्त की चीज़ का लोग खूब दुरूपयोग करते हैं.

बैल सिंगहारो, जवान मुछारो, गेहूँ जवारो, घी रवारो. बैल तो सींगोंवाला, मर्द मूंछोंवाला, गेहूँ का पौधा बाल वाला और घी रवादार अच्छा होता है.

बैले दीजे जायफल, क्या तौले क्या खाय. जायफल सुपारी की जाति का एक फल होता है जिसका प्रयोग कुछ औषधियों और गरम मसाले में किया जाता है. बैल को जायफल दिया जाए तो न तो उस का पेट भरेगा और न ही वह उस के गुणों को समझेगा.

बैलों से खेती घोड़ों से राज, मर्दों से सुधरें सिगरे काज. खेती के लिए बैल आवश्यक हैं, शासन चलाने के लिए घोड़े और सभी प्रकार के कामों के लिए पुरुष आवश्यक हैं.

बोए कोई काटे कोई. इस कहावत का प्रयोग दो प्रकार से हो सकता है – मेहनत किसी और ने की और फल किसी और को मिला, या गलती किसी और ने की खामियाजा किसी और ने भुगता.

बोटी देकर बकरा लेवें. छोटी चीज़ दे कर बड़ी वस्तु ठग लेना.

बोटी नहीं तो शोरबा ही सही. जो मिल जाए वही गनीमत.

बोया गेहूँ, उपजा जौ. भाग्य साथ न दे तो कोई काम ठीक नहीं होता.

बोया न जोता, अल्ला मियाँ ने दिया पोता. बिना मेहनत करे अचानक कोई चीज़ मिल जाए तो.

बोया पेड़ बबूल का, तो आम कहाँ से खाय. सब के साथ बुरा करोगे तो तुम्हारे साथ भलाई कैसे होगी.

बोलने वाले का भुस बिकाय, न बोलने वाले का धान सड़ाय. जिसके अंदर बोलने की कला है वह अपना घटिया उत्पाद भी बेच लेता है और जो नहीं बोल पाता है वह अच्छा उत्पाद भी नहीं बेच पाता है. आजकल के युग में विज्ञापन भी यही काम करते हैं.

बोलबो न सीख्यो तो सब सीख्यो गयो धूल में. आप कितना भी ज्ञान प्राप्त कर लें यदि आप को ठीक से बोलना नहीं आता (अभिव्यक्ति का गुण नहीं है) तो सब ज्ञान बेकार है.

बोली एक अमोल है, जो कोइ बोलै जानि, हिये तराजू तौल के, तब मुख बाहर आनि. बोली अनमोल वस्तु है इसलिए जो कुछ भी बोलो पहले अपने हृदय में उसे तोल लेना चाहिए.

बोली गधे चढ़ावे, बोली घोड़े चढ़ावे. जहाँ एक ओर खराब बोली बोलने पर किसी को मुंह काला कर के गधे पर बिठाया जाता है, वहीं दूसरी ओर अच्छी बोली बोल कर राजा के यहाँ अच्छा पद और सुविधाएं मिल जाती हैं.

बोली तो तब बोलो, जब बोलन की बुध होय. बात तभी करो जब समझ कर बोलना आता हो.

बोली बोली तो ये बोली कि मेरी जूती बोले. लड़ाका स्त्री के लिए जो गुस्से में मुँह फुलाए है और कुछ बोल नहीं रही है, बोलती है तो बस यह कहती है कि मेरी जूती बोलेगी.

बोली से ही पान मिले और बोली से ही पन्हैया. अच्छी बोली बोलने से पान खिला कर सम्मान किया जाता है और बुरी बोली बोलने से जूते खाने पड़ते हैं. पन्हैया – जूता.

बोले सो तेल को जाए. चुप रहना सबसे अच्छा है. जो बोलेगा वही तेल लेने जाएगा. (जो बोले सो कुण्डी खोले).

बोहरे का भाई, गाँव का साला. 1. सूदखोर के भाई की गाँव में सब इज्जत करते हैं. 2. सूदखोर के भाई को गाँव में सब गाली देते हैं (साला एक प्रकार से गाली भी है).

बोहरे की बकरी, सो बरस सखरी. सखरी – अच्छी, स्वस्थ, बोहरा – सूदखोर. सूदखोर के असामी ही उस के भेड़ बकरी हैं जो पीढ़ियों तक कर्ज़ भरते हैं.

बोहरे की राम राम, जम का संदेसा. बोहरा – सूदखोर बनिया. बोहरा नमस्कार कर के अपने पैसे मांगता है, इसलिए उस की नमस्कार भी मौत का संदेश है.

बौना छूने चला अकास. कोई व्यक्ति अपनी औकात से बहुत बड़ा कोई काम करने की कोशिश करे तो.

बौना, जोरू का खिलौना. ठिगने कद के व्यक्ति को चिढ़ाने के लिए.

बौनी तिरिया के घुटने में बुद्धि. बौनी स्त्री पर व्यंग्य. घुटने में बुद्धि का अर्थ मूर्ख भी होता है और धूर्त भी.

बौरी बिस्तुइया, बाघन से नज़ारा. बिस्तुइया – बिस्खोपड़ी, गोह (छिपकली की जाति का एक बड़ा प्राणी जो उस से काफी बड़ा होता है). गोह पगला गई है जो बाघों से भिड़ रही है. कोई अपने से बहुत बड़े दुश्मन से भिड़े तो.

ब्याज कमाने आया, मूल गवां के जाए. किसी काम में लाभ के स्थान पर हानि हो जाना.

ब्याज बढ़ावे धन घना रार बढ़ावे छोय, जैसे गंधक आग में गिरे सो दूनी होय. छोह – क्षोभ. ब्याज से धन बढ़ता है और झगड़ा बढ़ाने से क्षोभ बढ़ता है (जिस प्रकार गंधक आग में गिर कर दूनी हो जाती है).

ब्याज मोटा, मूल का टोटा. ज्यादा मोटा ब्याज वसूलने के चक्कर में कभी कभी मूलधन भी मारा जाता है.

ब्यारी कबहुं न छोडिये, बिन ब्यारी बल जाए, जो ब्यारी औगुन करे दुपरै थोड़ो खाएँ.(बुन्देलखंडी कहावत) ब्यारी – रात का भोजन. मेहनतकश आदमी को रात का भोजन अवश्य करना चाहिए. अगर रात में खाने से पेट में भारीपन लगे तो दोपहर में खाना थोड़ा कम कर देना चाहिए.

ब्याह गाये गाये को और खाये खाये को. विवाह में गाना-बजाना और खाना-पीना ही मुख्य है.

ब्याह जैसी ख़ुशी नहीं, मरने जैसा शोक नहीं. अर्थ स्पष्ट है.

ब्याह तो बिगड़ गया, घर के तो जीमो. किसी विवाह में कन्या और वर पक्ष के बीच बात बिगड़ जाने से बारात वापस चली गई, तो कन्या का पिता कह रहा है कि घर के लोग तो भोजन करो. कोई काम बिगड़ जाने के बाद भी दुनिया रुक नहीं जाती, चलती रहती है.

ब्याह न सगाई, तू मेरी लुगाई. जबरदस्ती किसी से सम्बन्ध होने का दावा करना.

ब्याह नहीं किया तो क्या, बारात तो गए हैं. कोई कार्य हमें स्वयं करने का अनुभव नहीं है तो क्या हुआ हमने औरों को करते देख कर ही सीख लिया है.

ब्याह नहीं रुकेगा, बात कहने को रह जाएगी. कोई रिश्तेदार विवाह में जाने में नखरे दिखा रहा हो तो लोग समझाते हैं कि तुम्हारे न जाने से विवाह नहीं रुकेगा लेकिन लोग कहेंगे कि तुमने अवसर पर साथ नहीं दिया

ब्याह पीछे पत्तल भारी. किसी बड़े कार्य में आप कितना भी खर्च कर लें उस के बाद छोटे खर्च भी भारी लगते हैं. विवाह में चाहे हजार लोगों को खिला दिया हो पर उसके बाद एक आदमी को भोजन कराना भी भारी लगता है.

ब्याह पीछे बरात, बरात पीछे धौंसा. धौंसा – ढोल नगाड़ा. जो काम पहले करना चाहिए वह बाद में करना. विवाह के बाद बारात निकालना और बारात निकलने के बाद बैंड बाजा बजाना.

ब्याह बिगाड़ें दो जने, या मूंजी या मेह. दो चीजें विवाह में व्यवधान डालती हैं, पैसे का लालची व्यक्ति या बरसात. किसी भी आयोजन के लिए उचित खर्च करना जरुरी होता है और प्रकृति का सहयोग भी.

ब्याह में गाए गीत, सारे साँची न होते. विवाह में लोग अच्छे अच्छे गीत गाते हैं वे सब सच नहीं होते. हम भविष्य के बारे में बहुत सी आशाएं संजोते हैं, पर वे सब सच नहीं होतीं.

ब्याह, सगाई, नौकरी, राजी ही से होय. विवाह, प्रेम और नौकरी आपसी सहमति से ही हो सकते हैं.

ब्याह से विधि विधान भारी. विवाह में खाना पीना, नाच कूद और दुल्हन का घर आना तो अच्छा लगता है लेकिन उस के रीति रिवाज पूरे करना बहुत भारी लगता है.

ब्याह हुआ नहीं, गौने का झगड़ा. किसी काम को आरम्भ किए बिना उस के परिणाम को लेकर झगड़ा करना. गौना विवाह के बाद होने वाली रस्म है जिसमें वर वधू को विदा करा के अपने घर ले जाता है. किसी किसी समाज में गौना विवाह के काफी दिन बाद होता है.

ब्याही धिया पड़ोसिन की नाईं. जब लड़की की शादी हो जाए तब वह पड़ोसिन की तरह हो जाती है. वह केवल बुलाए जाने पर ही मायके में आ सकती है.

ब्याही मरी क्वाँरी के भाग. किसी की मृत्यु किसी के सौभाग्य का रास्ता खोल सकती है.

ब्याहे की एक बहू, अनब्याहे की सौ बहू. जिस का विवाह हो गया उस के लिए एक ही पत्नी है, जिसका विवाह नहीं हुआ उस के लिए सैकड़ों स्त्रियाँ संभावित पत्नियां हैं. रूपान्तर – क्वांरी कन्या सहस वर.

ब्याहे न बरात गए. नितांत अनुभवहीन व्यक्ति.

ब्रह्मा के अक्षर. बिलकुल पक्की बात.

ब्राह्मण और धान की जातियाँ अनंत हैं. जिस प्रकार धान की बहुत सारी प्रजातियाँ होती हैं उसी प्रकार ब्राह्मणों में भी बहुत सी उपजातियाँ होती हैं.

ब्राह्मण हो चोरी करे, विधवा पान चबाय, क्षत्री हो रण से भगे, जन्म अकारथ जाय. ब्राह्मण यदि चोरी करे, विधवा यदि पान चबाए (पान चबाना विलासिता का प्रतीक है जबकि विधवा स्त्रियों से बिलकुल सादा जीवन जीने की अपेक्षा की जाती थी) और क्षत्रिय हो कर रणभूमि से भाग जाए, इन सब का जीवन बेकार है.

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