एक विधवा स्त्री अपने छोटे से लड़के के साथ रहती थी। वह दुश्चरित्रा थी, इस लिए काजल बिंदी वगैरह श्रृंगार तो किया ही करती, लेकिन दिखावे के लिए तिलक छापे भी लगाती और हाथ में माला लिये रहती। लड़का कुछ सयाना हुआ तो अपनी माँ के सारे करतब जान गया।
एक दिन उसने अपनी मां से काजल बिंदी लगाने का कारण पूछा तो माँ ने नाराज होकर उसे एक गुरु को सौंप दिया। वह गुरु के घर पर रह कर ही पढने लगा। लेकिन गुरु की स्त्री भी व्यभिचारिणी थी। एक दिन गुरु किसी दूसरे गाँव गया तो उसने अपने जार को घर पर बुलाया। उसने उसके लिए बैंगन की सब्जी बनाई, लेकिन वह बोला कि बैंगन मुझे वादी करता है, इसलिए यह सब्ज़ी मैं नहीं खाऊंगा। इस पर गुरु की स्त्री ने वह सब्जी उस लड़के को दे दी। लड़के को वह सब्ज़ी बहुत भाई और वह जोरों से वोल उठा- किसी को बैंगन वादी करे किसी को जाए जंच.
गुरु की स्त्री सनझ गई कि लड़का उस का राज जान गया है। उसने लड़के को घर से निकाल दिया। वहाँ से निकल कर वह किसी राजा की राजधानी में पहुँच गया और संयोग से राजा के यहाँ नौकर हो गया। राजा ने उसे अन्तःपुर की ड्योढी पर नियुक्त कर दिया। वहाँ रहते हुए उसे इस बात का पता चल गया कि राजा की रानी भी बदचलन है। उसने सोचा कि रंक से लगा कर राजा तक इसी प्रकार सभी की लुटिया डूबी हुई है और सहसा बोल उठा – ऊँचे चढ़ चढ़ देखा तो घर-घर वो ही लेखा।
ऊँचे चढ़ चढ़ देखा तो घर-घर वो ही लेखा
09
May