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सुख मानो तो सुक्ख है, दुख मानो तो दुक्ख

एक आदमी अपनी छोटी सी झोपड़ी में अपने परिवार के साथ रहता था. उसकी एक पत्नी थी और सात बच्चे थे. उसने कुछ मुर्गियां भी पाल रखी थी जिन्हें वह जंगली जानवरों और चोरों के डर से अपनी झोपड़ी के अंदर ही रखता था. वे सारी मुर्गियां दिन भर कुटकुट करके शोर मचातीं और गंदगी फैलाती थीं. बरसात के दिनों में झोपड़ी में पानी टपकता था जिससे जिंदगी और भी दूभर हो जाती थी. उसके पास एक बकरी भी थी जिसको वह मजबूरी में बाहर ही बांध देता था.
उस गांव के पास जंगल में एक सिद्ध महात्मा रहते थे जिनके पास लोग अपनी समस्याओं के समाधान के लिए जाया करते थे. एक दिन वह आदमी बहुत परेशान होकर उन महात्मा जी के पास गया और रो-रो कर उनसे फरियाद की. उसने कहा महात्मा जी मेरी जिंदगी बिल्कुल नर्क है. एक छोटी सी झोंपड़ी में नौ परिवार के लोग, बारह मुर्गियां और दो मुर्गे. हम कैसे अपनी जिंदगी काटें.
महात्मा जी ने उसकी पूरी बात सुनी और बोले – जो मैं कहूंगा वह करोगे? उस आदमी ने कहा जी महाराज बिल्कुल करूंगा. महात्मा जी ने कहा – बकरी को भी अंदर बांध लो. वह बोला – महात्मा जी फिर तो हम लोग बिल्कुल ही मर जाएंगे. महात्मा जी ने कहा – जैसा मैं कह रहा हूं वैसा ही करो और एक हफ्ते बाद मेरे पास आओ. एक हफ्ते बाद वह आदमी महात्मा जी के पास रोता हुआ आया और उनके पैर पकड़ कर लेट गया. बोला – महात्मा जी हम सब वाकई मर जाएंगे. झोपड़ी में वैसे ही जगह नहीं थी, अब यह बकरी और अंदर आ गई. यह बदबू करती है, इस ने मिंगनी करके सारी झोपड़ी भर दी है. अब तो बिल्कुल नहीं रहा जाता. महात्मा जी बोले – ठीक है बकरी को बाहर बांध दो और एक हफ्ते बाद मेरे पास आकर बताओ कि जिंदगी कैसी चल रही है. एक हफ्ते बाद वह आदमी फिर से महात्मा जी के पास आया तो काफी खुश नजर आ रहा था. महात्मा जी ने पूछा – कहो क्या हाल है. वह बोला – बहुत अच्छे हैं महाराज जी, कोई बकरी सकरी नहीं केवल हम नौ लोग और थोड़ी सी मुर्गियाँ. हम सब बहुत सुखी हैं.

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