नदी के इस पार रहने वाले एक सियार और ऊंट में बड़ी दोस्ती थी. ऊँट सरल हृदय और मन का साफ़ था, जबकि सियार धूर्त और दिल का काला था. उस ने अपने मतलब के लिए ऊँट से दोस्ती गाँठ रखी थी. नदी के उस पार खरबूजे के खेत थे. सियार का मन खरबूजे खाने के लिए करता था लेकिन वह नदी को पार नहीं कर सकता था. उसने ऊंट को इस बात के लिए पटाया कि वह उस को अपनी पीठ पर बैठा कर उस पार ले जाए तो दोनों खूब खरबूजे खाएंगे. ऊँट राजी हो गया और दोनों उस पार पहुंच गए. वहां खूब खरबूजे खाने के बाद सियार बोला कि मुझे हुकहुकी आ रही है (अर्थात मेरा मन हुआ हुआ करने को कर रहा है). ऊँट ने कहा, भाई ऐसा मत करना. अभी खेत का मालिक आ जाएगा और हमें मारेगा. पर सियार नहीं माना और हुआ हुआ करने लगा. आवाज सुन कर खेत के रखवाले डंडा लेकर आए तो सियार झाड़ियों में छुप गया. ऊँट आसानी से पकड़ में आ गया सो उन्होंने ऊँट को डंडों से खूब मारा. ऊंट को बहुत गुस्सा आया पर वह उस समय कुछ नहीं बोला. लौटते समय नदी की बीच धार में ऊंट बोला कि मुझे डुबडुबी आ रही है (अर्थात मेरा मन डुबकी लगाने का कर रहा है). सियार बोला भाई ऐसा मत करना, मैं मर जाऊंगा. लेकिन ऊँट नहीं माना. उसके डुबकी लगाते ही सियार नदी की तेज धार में बह गया. कोई किसी धूर्त व्यक्ति को उसकी धूर्तता का मजा चखाए हो तो यह कहावत बोली जाती है.