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ऊँच अटारी मधुर बतास, कहें घाघ घर ही कैलास. ऊंचा मकान और ठंडी हवा का आनंद जिस को प्राप्त हो उस के लिए घर पर ही कैलाश पर्वत है.

ऊँच के बैठे, नीच के खाये, ये दोनों गये ढोल बजाये. अपने से बहुत ऊँचे लोगों के यहाँ अधिक उठने-बैठने वाला आदमी तथा अपने से बहुत निम्न श्रेणी के यहाँ खाना खाने वाला आदमी दोनों ही बर्बाद हो जाते हैं.

ऊँच नीच में बोई क्यारी, जो उपजी सो भई हमारी. ऊबड़ खाबड़ क्यारी में कुछ बोया है तो जो कुछ भी उग आए वही नफ़ा है.

ऊँची अटरिया खोखले बाँस, कर्जा खाएं बारह मास. ऊँची अट्टालिका में रहते हैं, लेकिन खोखले बांस की तरह अंदर से खाली हैं. बारहों महीने कर्ज ले कर खर्च चलाते हैं.

ऊँची दुकान, फीके पकवान. जहाँ कहीं तड़क भड़क व दिखावा तो बहुत हो पर माल घटिया मिल रहा हो वहाँ इस कहावत का प्रयोग करते हैं. 

ऊँचे कुल क्या जनमिया जो करनी उच्च न होय, कनक कलश मद सों भरी साधुन निंदे सोय. यदि करनी अच्छी न हो तो ऊँचे कुल में जन्म लेने का क्या लाभ. सोने का घड़ा शराब से भरा हो तो साधु उसकी निंदा करते हैं.

ऊँचे गढ़ों के ऊंचे ही कंगूरे. बड़े और वज़नदार लोगों की सभी बातें बड़ी ही होती हैं.

ऊँचे चढ़ कर देखा, तो घर घर बाही लेखा. हर घर में कुछ न कुछ खटपट, कलह या गड़बड़ होती है. (चाहे बाहर से न दिखती हो). सन्दर्भ कथा 35. एक विधवा स्त्री अपने छोटे से लड़के के साथ रहती थी. वह दुश्चरित्रा थी, इस लिए काजल बिंदी वगैरह श्रृंगार तो किया ही करती, लेकिन दिखावे के लिए तिलक छापे भी लगाती और हाथ में माला लिये रहती. लड़का कुछ सयाना हुआ तो अपनी माँ के सारे करतब जान गया. एक दिन उसने अपनी मां से काजल बिंदी लगाने का कारण पूछा तो माँ ने नाराज होकर उसे एक गुरु को सौंप दिया. वह गुरु के घर पर रह कर ही पढने लगा.

लेकिन गुरु की स्त्री भी व्यभिचारिणी थी. एक दिन गुरु किसी दूसरे गाँव गया तो उसने अपने जार को घर पर बुलाया. उसने उसके लिए बैंगन की सब्जी बनाई, लेकिन वह बोला कि बैंगन मुझे वादी करता है, इसलिए यह सब्ज़ी मैं नहीं खाऊंगा. इस पर गुरु की स्त्री ने वह सब्जी उस लड़के को दे दी. लड़के को वह सब्ज़ी बहुत भाई और वह जोरों से बोल उठा, किसी को बैंगन वादी करे किसी को जाए जंच. गुरु की स्त्री समझ गई कि लड़का उस का राज जान गया है. उसने लड़के को घर से निकाल दिया. वहाँ से निकल कर वह किसी राजा की राजधानी में पहुँच गया और संयोग से राजा के यहाँ नौकर हो गया. राजा ने उसे अन्तःपुर की ड्योढी पर नियुक्त कर दिया. वहाँ रहते हुए उसे इस बात का पता चल गया कि राजा की रानी भी बदचलन है. उसने सोचा कि रंक से लगा कर राजा तक इसी प्रकार सभी की लुटिया डूबी हुई है और सहसा बोल उठा, ऊँचे चढ़ चढ़ देखा तो घर-घर वो ही लेखा.

ऊँचे चढ़ कर बैठना हो तो कोयल जैसा कुहुको. उच्च पद प्राप्त करना हो तो कोयल के समान मीठा बोलना सीखो.

ऊँट अपनी पूँछ से मक्खी नहीं उड़ा सकता. बड़े से बड़े व्यक्ति को भी अपने छोटे छोटे कामों के लिए किसी की सहायता लेनी पडती है.

ऊँट का पाद, न जमीन का न आसमान का. किसी ऐसे आदमी के लिए जिस की गिनती किसी भी जमात में न हो सके. असभ्य भाषा है पर कहावतों में चलती है. 

ऊँट का मुँह ऊँट ही चूमे. बड़े आदमियों से बड़े ही संबंध बना सकते हैं.

ऊँट का रोग रैबारी जाने. रैबारी – ऊँटों का विशेषज्ञ. जो जिस काम का विशेषज्ञ है वही उस काम को ठीक से कर सकता है.

ऊँट का सुहाली से क्या भला होगा. सुहाली – मैदा की पतली पापड़ी. सुहाली कितनी भी अच्छी क्यों न हो ऊँट के लिए बेकार है क्योंकि न तो वह उसका स्वाद जानता है और न ही उसका सुहाली से पेट भरेगा.

ऊँट का होंठ कब गिरे और कब खाऊँ. ऊँट का होंठ देख कर लगता है कि जैसे गिरने वाला है. लोमड़ी बैठी सोच रही है कि कब होंठ गिरे और कब खाने को मिले. व्यर्थ की आशा करने वालों पर व्यंग्य. 

ऊँट की चोरी झुके-झुके. (ऊँट की चोरी निहुरे निहुरे). कोई छोटी सी चीज़ चुरा कर तो आप झुक कर भाग सकते हैं पर ऊँट की चोरी झुके झुके नहीं कर सकते. कोई चुपचाप बहुत बड़ी चोरी करने का प्रयास करे तो.

ऊँट की पकड़, कुत्ते की झपट, खुदा इनसे बचाए. ये दोनों ही बहुत खतरनाक होती है.

ऊँट की बरसात में कमबख्ती. कीचड़ में चलने में ऊँट को बहुत परेशानी होती है इसलिए. 

ऊँट के गले में बिल्ली. 1 बहुत लम्बा दूल्हा और छोटी सी दुल्हन. बेमेल जोड़ी. 2. किसी अच्छी चीज़ के साथ एक ख़राब चीज़ जबरदस्ती बेचने की कोशिश करना. सन्दर्भ कथा – किसी आदमी का ऊँट खो गया तो उसने घोषणा कर दी कि यदि उसका ऊँट मिल जाए तो वह उसे ढूंढ कर लाने वाले को दो टके में बेच देगा. जिस आदमी को ऊँट मिला, वह इस आशा से उसे उसके पास लाया कि वह ऊँट के मालिक से उसे दो पैसे में खरीद लेगा. लेकिन ऊँट के मालिक ने एक युक्ति निकाल ली. उसने ऊँट के गले में एक बिल्ली बांध दी और कहा कि यह बिल्ली भी खरीदनी होगी. ऊँट की कीमत तो मुताबिक दो टके ही रखी, लेकिन बिल्ली की कीमत ऊंट की कीमत से भी अधिक बतलाई. जाहिर सी बात है कि ऊँट किसी ने नहीं खरीदा और ऊँट वाले की चालाकी के कारण उसका ऊँट बिना कुछ खर्च किये उसे वापस मिल गया.

ऊँट के ब्याह में गधा गवैया. दो मूर्खों का समागम.

ऊँट के मुँह में जीरा. बहुत अपर्याप्त सामग्री. रूपान्तर – ऊँट के मुँह में जीरा, चमार के मुँह में खीरा.  

ऊँट को उठते ही सरपट नहीं दौड़ना चाहिए. ऊँट बेडौल होता है इसलिए उठते ही भागेगा तो गिर जाएगा. किसी नए काम के आरम्भ में बहुत तेजी नहीं दिखानी चाहिए.

ऊँट को किसने छप्पर छाए. घोड़े के लिए घुड़साल और गाय के लिए गौशाला बनाई जाती हैं पर ऊँट को खुले में ही रहना होता है. किस को क्या मिलेगा यह उस के भाग्य पर निर्भर होता है.

ऊँट को दगते देख मेंढकी ने भी टांग फैला दी. कहावत का अर्थ है किसी छोटे आदमी द्वारा अपने से बहुत बड़े आदमी की बराबरी करने की कोशिश करना.

ऊँट को निगल लिया और दुम को हिचके (ऊँट निगल जाए, दुम पे हिचकियाँ ले). बहुत बड़ा घोटाला करने वाला यदि छोटे से गलत काम को मना करे तो.

ऊँट को बबूल प्यारा. घटिया सोच वाले व्यक्ति को घटिया वस्तुएं ही प्रिय होती हैं.

ऊँट गए सींग मांगे, कानौ खो आए. ऊँट के कान बहुत छोटे होते हैं. कहा जाता है कि ऊँट भगवान से सींग मांगने गया था और कान भी गंवा दिए. कुछ पाने की आशा में उल्टे कुछ खो देने वाले व्यक्ति के लिए.

ऊँट गुड़ दिए भी बर्राए, नमक दिए भी बर्राए (ऊँट घी देने पर भी बलाबलाए और फिटकरी देने पर भी बलबलाए). जिस की असंतुष्ट रहने की आदत है वह हर परिस्थिति में शिकायत ही करता रहता है.

ऊँट चढ़ के मांगे भीख. जिस की भीख मांगने की आदत हो उसको ऊँट दान में मिल जाए तो वह ऊँट पर चढ़ कर भी भीख ही मांगेगा. व्यक्ति का मूल स्वभाव बदलता नहीं है. रूपान्तर – ऊँट चढ़ के बूट मांगे.

ऊँट चढ़े पे कमरिया अपने आप मटके. (बुन्देलखंडी कहावत) ऊँट चलता है तो उस पर बैठे सवार की कमर न चाहते हुए भी मटकने लगती है. उच्च पद पाने पर व्यक्ति अपने आप ही इतराने लगता है. 

ऊँट जब भागे तब पच्छम को. नासमझ और जिद्दी आदमी के लिए.

ऊँट तेरी गर्दन टेढ़ी, कि मेरा सीधा क्या है. कुटिल व्यक्ति सब ओर से कुटिलता से भरा हुआ ही होता है.

ऊँट दुल्हा गधा पुरोहित. दो एक से बढ़ कर एक मूर्ख लोग मिल जाएं तो.

ऊँट न कूदे, बोरे कूदें, बोरों से पहले उपले कूदें. जहाँ अफसर कुछ न बोले लेकिन उस के नीचे के कर्मचारी ज्यादा तेजी दिखाएँ.

ऊँट न खाए आक, बकरी न खाए ढाक. सामान्य लोक विश्वास है कि ऊँट सब तरह के पेड़ पौधे खा लेता है पर आक के पेड़ को नहीं खाता. इसी प्रकार बकरी ढाक के पत्ते नहीं खाती.

ऊँट पर से गिरे, भाड़ेती से रूठे. अपनी असावधानी से ऊँट पर से गिर गए और भाड़े पर ऊँट देने वाले पर नाराज हो रहे हैं. अपनी कमी के लिए दूसरों को दोष देना.

ऊँट बलबलाता ही लदता है. जो लोग कोई काम करने में लगातार अनिच्छा और नाखुशी जाहिर करते रहते हैं उनके लिए.

ऊँट बहे, गधा थाह ले. नदी इतनी गहरी है कि ऊँट बह गया पर गधा यह जानने की कोशिश कर रहा है कि पानी कितना गहरा है. जहाँ बड़े बड़े बुद्धिमान किसी समस्या का हल न खोज पा रहे हों वहाँ कोई मूर्ख व्यक्ति अपनी अक्ल लगाए तो.

ऊँट बुड्ढा हुआ पर मूतना न आया. उम्र बढ़ने के साथ भी यदि किसी व्यक्ति को काम करने का ढंग न आए तो यह कहावत कहते हैं.

ऊँट मरा, कपड़े के सिर. व्यापार में जो नुकसान होता है, उसे दाम बढ़ा कर ही वसूला जाता है. कपडे के व्यापारी का ऊँट कपड़ा लाते समय रास्ते में मर गया तो उस की कीमत कपडे का दाम बढ़ा कर ही वसूल की जाएगी.

ऊँट मरे तब पच्छिम को मुँह करे. अंत समय सभी को अपना घर याद आता है, इसलिए ऊँट के संबंध में ऐसा कहते हैं. जब कोई आदमी जाते जाते ऊट-पटांग काम करता है तब भी व्यंग्य में ऐसा बोलते हैं.

ऊँट मरे तो चींचड़ा भी मरे. ऊँट मरता है तो उस का खून चूसने वाले चींचड़ (परजीवी) भी मर जाते हैं. राजा मरता है तो उसके राज में मौज उड़ाने वाले दरबारी भी बर्बाद हो जाते हैं.

ऊँट रे ऊँट तेरी कौन सी कल सीधी. ऊँट कभी इस करवट बैठता है तो कभी उस करवट. उस से पूछ रहे हैं कि तेरी कौन सी करवट तेरे लिए सीधी है. (जैसे इंसान के लिए दाहिनी करवट सीधी मानी जाती है). ऐसे व्यक्ति के लिए जिस की हरकतें विश्वास योग्य न हों.

ऊँट लँगड़ाये और गधा दागा जाये. दागना – लोहे की छड़ गरम कर के शरीर के किसी हिस्से से छुआना. ऐसा माना जाता है कि ऊँट लंगड़ा हो जाय तो गधे को दागने से ठीक हो जाता है. किसी को लाभ पहुँचाने के लिए दूसरे का नुकसान करना.

ऊँट लदे गदा मरा जाय, राम जे बोझा कौन ले जाय. किसी दूसरे के कष्ट में अत्यधिक चिन्तित होना.

ऊँट लम्बा पर पूँछ छोटी. कोई भी व्यक्ति सब तरह से पूर्ण नहीं हो सकता.

ऊँट लादने से गया तो क्या पादने से भी गया. जो आदमी किसी काम का नहीं रहता वह फ़ालतू बकवास तो कर सकता है.

ऊंघते को ठेलते का बहाना. कोई व्यक्ति ऊंघता ऊंघता गिरने को हुआ. तब तक किसी का हल्का सा धक्का लग गया. वह गिर गया तो दूसरे को दोष दे रहा है.अपनी गलती से काम बिगड़ने पर दूसरे को दोष देना.

ऊंघतो बोले, जागतो न बोले.  उलटी बात. जिससे सावधान होने की आशा नहीं वह तो सतर्क है और बोल रहा है, जिसे सावधान होना चाहिए वह चुप है.

ऊजड़ खेड़ा, नाम निवेड़ा. बिलकुल निरक्षर व्यक्ति का नाम विद्याधर. 

ऊजड़ गांव फिर बसे, निर्धनिया धन होय, जोवन गया जो बावरे, पा न सके फिर कोय. अर्थ स्पष्ट है.

ऊजड़ हो घर सास का, बैर करे हर बार, पीहर घर सूयस बसे, जब लग है संसार. सास वैर करती है इसलिए उसका घर उजड़ जाए. पीहर (मायके) से इतना प्रेम है कि उसका सुयश जब तक संसार रहे तब तक रहने की कामना कर रही हैं. (इन्हें यह नहीं मालूम है कि सास का घर उजड़ेगा तो अपना भी तो नुकसान होगा).

ऊत के निन्नानवे, बारह पंजे साठ. मूर्ख आदमी के लिए. (उससे पूछा निन्यानवे कितने होते हैं, बोला बारह पंजे).

ऊत गाँव में कुम्हार ही महतो. सामान्यत: गाँव में कुम्हार की विशेष इज्जत नहीँ होती लेकिन मूरखों के गाँव में कुम्हार को भी बहुत महत्व दिया जा सकता है. 

ऊत घोड़ी के घोंचू बछेड़े. माँ बाप मूर्ख हों तो सन्तान भी मूर्ख होती है.

ऊधो की पगड़ी माधो के सर. किसी की चीज़ किसी को देना या किसी का दोष किसी और के मत्थे मढ़ देना.

ऊधौ का लेना न माधौ का देना. झंझटों से मुक्त होना.

ऊन छीलते तेरह जगहे, कटी बिचारी भेड़. गरीब आदमी को लोग लूटते भी हैं और चोट भी पहुँचाते हैं.

ऊपर गलमिल नीचे टंगड़ी. ऊपर से प्रेम दिखाना और धूर्तता दिखा कर गिराने की कोशिश करना.

ऊपर चिकने भीतर रूखे (ऊपर मीठ, भीतर तीत). ऐसे लोगों के लिए जो ऊपर से मृदुभाषी होते हैं परन्तु वास्तव में रूखे और कड़वे स्वभाव के होते हैं.

ऊपर बरछी नीचे कुआँ, तासे बानिया फारख्त हुआ. विवश हो कर कोई काम करना. सन्दर्भ कथा 37. किसी व्यक्ति को एक बनिये का बहुत सा रुपया उधार देना था. ऋण चुका पाने का कोई उपाय न देख एक दिन उसने बनिये को अपने घर बुलाया और उसे कुँए की मुंडेर पर बैठा दिया. फिर उसने उसे बरछी दिखा कर मार डालने की धमकी दी और फारखती (कर्ज़ अदा होने की रसीद) लिखा ली. परन्तु बनिया बड़ा होशियार था. फारखती की पुर्जी की पीठ पर चुपचाप लिख दिया – ऊपर बरछी नीचे कुआँ, तासें बनिया फारखत हुआ. और बाद में अदालत में नालिश करके रुपये वसूल कर लिये.

ऊपर भरे नीचे झरे, उसको गोरखनाथ क्या करे. (राजस्थानी कहावत) खाने पीने वाला परन्तु संयमहीन. पहले के लोग यह मानते थे कि चालीस सेर खाने से एक सेर खून बनता है और एक सेर खाने से एक बूँद वीर्य. जो संयम नहीं रख सकता वह कितना भी खा ले स्वस्थ नहीं हो सकता.

ऊपर माला भीतर भाला. दिखाने के लिए माला जपना और दूसरों को चोट पहुँचाने की तैयारी रखना.

ऊपर वाले की लाठी में आवाज नहीं होती. ईश्वर जब पापों की सजा देता है तो व्यक्ति कुछ समझ ही नहीं पाता कि यह क्या हुआ कैसे हुआ.

ऊपर से बाबाजी दीखे नीचे खोज गधे के. खोज – पंजे के निशान. कोई खुराफाती आदमी धर्मात्मा बनने का ढोंग करे और चोरी करे तब यह कहावत कही जाती है. सन्दर्भ कथा 38. खोज – पैरों के निशाँ. एक साधु बाबा जंगल में कुटिया बना कर रहा करता था. उसकी कुटिया के पास ही एक किसान का खेत था. साधु रात को खड़ाऊँ पहन कर खेत में जाता और खेत में से खीरे आदि तोड़ कर ले जाता. खड़ाऊँ इस प्रकार बनाई गई थीं कि उनको पहन कर चलने पर पगचिन्ह गधे की तरह अंकित होते थे. प्रातः काल उन चिन्हों को देख कर किसान यही सोचता कि कोई गधा रात को खेत में घुस कर नुकसान पहुँचा जाता है. एक रात को किसान खेत में छुप कर बैठ गया. अपने निश्चित समय पर बाबाजी खड़ाऊँ पहन कर खेत में घुसे, लेकिन जब खीरे आदि तोड़ कर चलने को तैयार हुये तो किसान ने बाबाजी को पकड़ लिया और उनकी खूब मरम्मत की.

ऊपर से राम राम, भीतर कसाई के काम. पाखंडी आदमी.

ऊसर का खेत, जैसे कपटी का हेत. ऊसर खेत में फसल नहीं हो सकती और कपटी से मित्रता कभी सफल नहीं हो सकती. हेत – प्रेम.

ऊसर खेत में केसर. किसी दुष्ट और कंजूस व्यक्ति के घर में कोई दानी धर्मात्मा संतान हो तो.

ऊसर खेती, करम के नास. ऊसर धरती में खेती करने से परिश्रम और भाग्य दोनों का नाश होता है.

ऊसर बरसे तृन न जमे. ऊसर खेत में वारिश हो तो भी कुछ पैदा नहीं होता. मूर्ख व्यक्ति को ज्ञान देने से कोई लाभ नहीं होता.

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