एक गांव में हर सात दिन बाद हाट (बाजार) लगती थी. हाट में खेती, कारोबार और गृहस्थी संबंधी सभी सामान बिकने आता था. आस-पास के छोटे गांवों के लोग भी सामान लेने आते थे. पास के एक गांव से एक कुंजड़ा और कुम्हार भी अपना सामान हाट में ले जाते थे. कुंजड़ा फल-सब्जिया आदि ले जाता था और कुम्हार अपने मिट्टी के बरतन. इनको सामान का भाड़ा इतना देना पड़ता कि मुनाफा बहुत कम रह जाता था. उसी गांव में एक ऊंटवाला भी था जो हाट में दुकानदारों का सामान लाता ले जाता था.
कुंजड़ा और कुम्हार ने तय किया कि हम अपना सामान ऊंट पर रख कर ले चलते हैं जो किराया आएगा उसको आधा-आधा बाँट लेंगे. बचत होती देखकर दोनों तैयार हो गए. हाट के दिन ऊँट की गौन (ऊँट के ऊपर रखा सामान धोने का थैला) में एक ओर कुम्हार ने अपने बरतन लादे और दूसरी ओर कुंजड़े ने अपनी सब्जियाँ. दोनों हाट को चल दिए. ऊंटवाला रस्सी पकड़े आगे-आगे जा रहा था और ये दोनों साथ-साथ पैदल चल रहे थे.
ऊंट ने एक बार अपनी गरदन पीछे की और घुमाई, तो उसे सब्जी के पत्ते लटकते दिखाई दिए. ऊंट ने पीछे गरदन करके सब्जी के कुछ पत्ते खींच लिए और खा गया. जब ऊंट ने दोबारा सब्जियों के पत्तों में मुंह मारा तो कुंजड़े ने कहा, “ऊंटवाले भैया, डोरी जरा खींचकर रखो. ऊंट सब्जियों में मुह मार रहा है.”
लेकिन ऊँट कहाँ मानने वाला था. ऊंटवाले के ध्यान रखने के बाद भी ऊंट सब्जियों में से कुछ-न-कुछ खींच लेता था
कुंजड़े का नुकसान देखकर कुम्हार हँसते हँसते लोटपोट हुआ जा रहा था. इस पर कुजड़े ने कहा, भैया हंसो नहीं, देखना हैं, ऊंट किस करवट बैठता है.
ऊँट के हाट तक पहुँचते पहुँचते सब्जियाँ काफी कम हो गईं, इसलिए कुम्हार के बर्तन बोझ के कारण दूसरी ओर लटक गए. सुविधा के अनुसार ऊंट उसी करवट बैठा. ऊँट के बोझ से दब कर कुम्हार के बहुत से बरतन टूट गए.
तब से यह कहावत बनी ‘देखना है, ऊंट किस करवट बैठता है?