किसी मूर्ख व्यक्ति ने यह सुन रखा था कि रुपया ही रुपये को खींचता है. उसने इसका प्रयोग करना चाहा. उसने कहीं कुछ व्यक्तियों को रुपये गिन-गिनकर थोक में रखते देखा. वह वहीं थोड़ी दूर पर बैठ गया और अपनी टेंट से एक रुपया निकालकर रुपये की थोक के आमने- सामने दिखाने लगा. वह बहुत देर तक वैसा करता रहा, लेकिन थोक से निकलकर एक भी रुपया उसके पास नहीं आया. रुपये गिनने वालों ने उसे ऐसा करते हुए देखा तो वे समझे कि उस ने इन्हीं रुपयों में से चोरी कर ती है और दो चपत्त लगाते हुए उसका रुपया छीनकर रुपयों को थोक में रख दिया. उस मूर्ख व्यक्ति ने रोते-गिड़गिड़ाते हुए अपने प्रयोग को पूरी कहानी कह सुनाई. इस पर वे लोग बोले तुमने ठीक ही तो सुना है कि रुपया को रुपया खींचता है. इसी का यह फल है कि तुम्हारा रुपया खिंच कर रुपयों की थोक में आ मिला.
रुपये को रूपया खींचता है (रुपया देख के रुपया आवेला)
20
Jun